JAC Class 10 Social Science Solutions Geography Chapter 2 वन और वन्य जीव संसाधन

JAC Board Class 10th Social Science Solutions Geography Chapter 2 वन और वन्य जीव संसाधन

JAC Class 10th Geography वन और वन्य जीव संसाधन Textbook Questions and Answers

बहुवैकल्पिक प्रश्न

प्रश्न 1.
(i) इनमें से कौन-सी टिप्पणी प्राकृतिक वनस्पतिजात और प्राणिजात के ह्रास का सही कारण नहीं है?
(क) कृषि प्रसार
(ख) वृहत स्तरीय विकास परियोजनाएँ
(ग) पशुचारण और ईंधन-लकड़ी एकत्रित करना
(घ) तीव्र औद्योगीकरण और शहरीकरण
उत्तर:
(ग) पशुचारण और ईंधन-लकड़ी एकत्रित करना

(ii) इनमें से कौन-सा संरक्षण तरीका समुदायों की सीधी भागीदारी नहीं करता?
(क) संयुक्त वन प्रबन्धन ।
(ख) चिपको आन्दोलन
(ग) बीज बचाओ आन्दोलन
(घ) वन्य जीव पशुविहार (Santuary) का परिसीमन
उत्तर:
(घ) वन्य जीव पशुविहार (Santuary) का परिसीमन

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्राणियों/पौधों का उनके अस्तित्व के वर्ग से मेल करें

जानवर/पौधे अस्तित्व वर्ग
1. काला हिरण (A) लुप्त
2. एशियाई हाथी (B) दुर्लभ
3. अंडमानी जंगली सुअर (C) संकटग्रस्त
4. हिमालयन भूरा भालू (D) सुभेद्य
5. गुलाबी सिर वाली बत्तख (E) स्थानिक

उत्तर:

जानवर/पौधे अस्तित्व वर्ग
1. काला हिरण (C) संकटग्रस्त
2. एशियाई हाथी (D) सुभेद्य
3. अंडमानी जंगली सुअर (E) स्थानिक
4. हिमालयन भूरा भालू (B) दुर्लभ
5. गुलाबी सिर वाली बत्तख (A) लुप्त

प्रश्न 3.
निम्नलिखित का मेल करें:
1. आरक्षित वन सरकार, व्यक्तियों के निजी और समुदायों के अधीन वन और बंजर भूमि
2. रक्षित वन वन और वन्य जीव संसाधन संरक्षण की दृष्टि से सर्वाधिक मूल्यवान वन।
3. अवर्गीकृत वन वन भूमि जो और अधिक क्षरण से बचाई जाती है।
उत्तर:

  1. आरक्षित वन-वन और वन्य-जीव संसाधन संरक्षण की दृष्टि से सर्वाधिक मूल्यवान वन
  2. रक्षित वन-वन भूमि जो और अधिक क्षरण से बचाई जाती है।
  3. अवर्गीकृत वन-सरकार, व्यक्तियों के निजी और समुदायों के अधीन वन और बंजर भूमि।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए:
(i) जैव-विविधता क्या है? यह मानव जीवन के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के प्राणिजात एवं वनस्पतिजात का पाया जाना जैव-विविधता कहलाता है। जैव-विविधता वनस्पति व प्राणियों में पाए जाने वाले जातीय विभेद को प्रकट करती है।
जैव-विविधता मानव जीवन के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि जैव विविधता के कारण मानव को अनेक प्रकार की आवश्यक वस्तुएँ प्राप्त होती हैं, जिससे पृथ्वी पर उसका जीवन सम्भव है।

(ii) विस्तारपूर्वक बताएँ कि मानव-क्रियाएँ किस प्रकार प्राकृतिक वनस्पतिजात और प्राणिजात के ह्रास की कारक हैं?
उत्तर:
मानव ने अपनी विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वन एवं वन्य जीवन को बहुत अधिक नुकसान पहुँचाया है। भारत में वनों और वन्य-जीवों को सर्वाधिक हानि उपनिवेश काल में रेलवे लाइन, कृषि, व्यवसाय, वाणिज्य-वानिकी एवं खनन क्रियाओं में वृद्धि से हुई है।

स्थानान्तरी (झूमिंग) कृषि से भी वन तथा वन्य-जीव नष्ट हुए हैं। बड़ी-बड़ी विकास योजनाओं, खनन, वन्य-जीवों के आवासों का विनाश, आखेट, पर्यावरणीय प्रदूषण व विषाक्तीकरण तथा दावानल आदि ने भी जैव विविधता को कम किया है। अतः मानव अन्य सभी कारकों की अपेक्षा प्राकृतिक वनस्पतिजात एवं प्राणिजात के ह्रास व विनाश के लिए अपेक्षाकृत अधिक उत्तरदायी है।

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दीजिए:
(i) भारत में विभिन्न समुदायों ने किस प्रकार वनों तथा वन्य-जीव संरक्षण और रक्षण में योगदान किया है? विस्तारपूर्वक विवेचना करें।
उत्तर:
1. भारत में विभिन्न समुदायों द्वारा वन, वन्य-जीव संरक्षण तथा वन रक्षण के लिए किए गए योगदान को निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है

(ii) राजस्थान के अलवर जिले के सरिस्का बाघ रिजर्व में स्थानीय गाँवों के लोग वन्य जीव रक्षण अधिनियम के अन्तर्गत वहाँ से खनन कार्य बन्द करवाने के लिए संघर्षरत हैं।

(iii) अलवर (राजस्थान) के 5 गाँवों के लोगों ने 1200 हेक्टेयर वन भूमि को भैरोंदेव डाकव ‘सोंचुरी’ घोषित कर दिया है जिसके अपने ही नियम हैं जो शिकार वर्जित करते हैं एवं बाहरी लोगों की घुसपैठ से यहाँ के वन्य-जीवों को बचाते हैं।

(iv) उत्तराखण्ड का प्रसिद्ध ‘चिपको आन्दोलन’ कई क्षेत्रों में वन कटाई रोकने में ही सफल नहीं रहा बल्कि इसने स्थानीय पौधों की प्रजातियों की वृद्धि में भी योगदान दिया है। उत्तराखण्ड राज्य के टिहरी जिले के किसानों का ‘बीज बचाओ आन्दोलन’ एवं ‘नवदानय’ ने रासायनिक खादों के स्थान पर जैविक-खाद का प्रयोग करके यह दिखा दिया है कि आर्थिक रूप से व्यवहार्य कृषि उत्पादन किया जाना सम्भव है।

(v) भारत में संयुक्त वन प्रबन्धन कार्यक्रम ने भी वनों के प्रबन्धन एवं पुनर्जीवन में स्थानीय समुदाय की भूमिका को उजागर किया है। औपचारिक रूप से इन कार्यक्रमों का शुभारम्भ सन् 1988 में ओडिशा राज्य से हुआ। यहाँ ग्राम स्तर पर इस कार्यक्रम को सफल बनाने के उद्देश्य से संस्थाएँ बनाई गईं जिनमें ग्रामीण तथा वन विभाग के अधिकारी संयुक्त रूप से कार्य करते हैं।

(vi) छोटा नागपुर क्षेत्र में मुंडा व संथाल जनजातियाँ महुआ और कदम्ब के पेड़ों की पूजा करती हैं तथा उनका संरक्षण, भी करती हैं।

(vii) राजस्थान में बिश्नोई गाँवों के लोग अपने आस-पास के क्षेत्रों में निवास करने वाले हिरन, चिंकारा, नीलगाय एवं मोर आदि वन्य पशुओं की सुरक्षा करते हैं।

2. वन और वन्य-जीव संरक्षण में सहयोगी रीति-रिवाजों पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
भारत एक विभिन्न सांस्कृतिक विविधता वाला देश है। यहाँ प्रकृति को पहले से ही पवित्र मानकर उसकी पूजा होती रही है। यहाँ के लोग पारम्परिक रूप से पेड़-पौधों, पशु-पक्षी, पर्वत, जल-स्रोतों आदि के उपासक रहे हैं। अपने रीति-रिवाजों द्वारा भारतवासी इनके प्रति अपनी श्रद्धा को प्रकट करते आ रहे हैं। रीति-रिवाजों के कारण ही बहुत-से वन क्षेत्र अपने कौमार्य रूप में आज भी विद्यमान हैं।

इन रिवाजों में वन व वन्य-जीवों से सम्बन्धित कुछ रीति-रिवाज महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये वन एवं वन्य-जीवों को सुरक्षा एवं संरक्षण प्रदान करते हैं। राजस्थान में बिश्नोई समाज के लोग खेजड़ी के वृक्ष, काले हिरन, नीलगाय व मोर आदि जीवों को सुरक्षा व संरक्षण प्रदान करते हैं। ओडिशा व बिहार राज्य की कुछ जनजातियाँ विवाह समारोह के दौरान इमली व आम के वृक्षों की पूजा करती हैं। छोटा नागपुर के पठारी क्षेत्रों में मुंडा और संथाल जनजातियों महुआ और कदम्ब के वृक्षों की पूजा करती हैं।

भारत के कई स्थानों पर पीपल व वटवृक्ष की पूजा की जाती है। तुलसी के पौधे की सम्पूर्ण भारत में हिन्दुओं द्वारा पूजा की जाती है। भारत के विभिन्न भागों में मन्दिरों के आसपास दिखने वाले बंदरों व लंगूरों को लोगों को केले व चने आदि खिलाते हुए देखा जा सकता है। हिन्दू समाज में गाय को एक पवित्र पशु माना जाता है। इस तरह हम देखते हैं कि रीति-रिवाजों द्वारा वन और वन्य-जीवों को पर्याप्त संरक्षण व सुरक्षा मिलती है।

क्रियाकलाप आधारित एवं अन्य सम्बन्धित प्रश्न

पृष्ठ संख्या  17

प्रश्न 1.
वे प्रतिकल कारक कौन से हैं जिनसे वनस्पतिजात और प्राणिजात का ऐसा भयानक ह्रास हुआ है?
उत्तर:
वे प्रतिकूल कारक निम्नलिखित हैं जिनसे वनस्पतिजात और प्राणिजात का तीव्रगति से ह्रास हुआ है

  1. उपनिवेशकाल में रेलवे लाइनों का विस्तार
  2. वन क्षेत्र का कृषि भूमि में परिवर्तन
  3. वाणिज्य, वानिकी का विस्तार
  4. खनन-क्रियाएँ
  5. बड़ी विकास परियोजनाओं का निर्माण
  6. पशुचारण व ईंधन के लिए कटाई
  7. जंगली जानवरों का शिकार करना
  8. पर्यावरणीय प्रदूषण व विषाक्तिकरण।

पृष्ठ संख्या 18

प्रश्न 2.
क्या उपनिवेशी वन नीति को दोषी माना जाए ?
उत्तर:
भारत में उपनिवेशकाल में वनों को सबसे अधिक नुकसान हुआ। उपनिवेशकाल में रेल लाइनों के विस्तार, कृषि के विस्तार, वाणिज्य, वानिकी तथा खनन क्रियाओं में अप्रत्याशित वृद्धि की गई जिसके फलस्वरूप वनों का तीव्र गति से इस हुआ । वनों के दोहन की तुलना में उनके संरक्षण के प्रयास नहीं किए गए। अतः उपनिवेशी वन नीति भारत में वन हास के लिए दोषी रही है।

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प्रश्न 1.
क्या आपने अपने आसपास ऐसी गतिविधियाँ देखी हैं जिससे जैव-विविधता कम होती है। इस पर एक टिप्पणी लिखें और इन गतिविधियों को कम करने के उपाय सुझाएँ।
उत्तर:
मैंने अपने आसपास निम्नलिखित गतिविधियाँ देखी हैं जिससे जैव-विविधता कम होती है

  1. हमारे पड़ोस में कुछ परिवार झोंपड़ियों में रहते हैं, जो प्रतिदिन लकड़ी को ईंधन के रूप में प्रयोग करते हैं जिससे वनों का विनाश होता है।
  2. हमारे शहर में लकड़ी के फर्नीचर की बहुत अधिक माँग है जिसके कारण लकड़ी के फर्नीचर बनाने की कई दुकान खुल गई हैं। जहाँ लकड़ियों से फर्नीचर बनाया जाता है। अतः लकड़ी के फर्नीचर की माँग बढ़ने से वनों का बहुत तीव्र गति से विनाश हो रहा है।
  3. हमारे शहर में एक बूचड़खाना है, जहाँ पशुओं को मारा जाता है। हमारे पड़ोस में रहने वाले कई लोग पशु-पक्षियों का शिकार कर उनके माँस का भोजन के रूप में प्रयोग करते हैं जिससे जैव-विविधता का ह्रास होता है।
  4. कुछ लोग जीवों के विभिन्न अंगों; जैसे- खाल, दाँत, हड्डी आदि का व्यवसाय करते हैं जिससे वन्य जीवों के जीवन को हानि पहुँचती है तथा वे धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं।

जैव-विविधता में कमी लाने वाली गतिविधियों पर रोक लगाने के उपाय:

  1. केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा शिकार पर कठोर प्रतिबन्ध लगाना तथा कानून का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्यवाही का प्रावधान होना चाहिए ।
  2. लोगों को लकड़ी के स्थान पर प्लास्टिक का फर्नीचर प्रयोग करने हेतु प्रेरित करना जिससे लकड़ी की बचत हो सके व वन सुरक्षित रह सकें ।
  3. लोगों को जागरूक करना कि पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बनाये रखने के लिए जैव-विविधता की आवश्यकता है।
  4. बूचड़खानों पर प्रतिबन्ध लगाना।

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प्रश्न 1.
भारत में वन्य जीव पशु विहार और राष्ट्रीय उद्यानों के बारे में और जानकारी प्राप्त करें और उनकी स्थिति मानचित्र पर अंकित करें।
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JAC Class 10 Social Science Solutions Geography Chapter 1 संसाधन एवं विकास

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JAC Class 10th Geography संसाधन एवं विकास Textbook Questions and Answers

बहुवैकल्पिक

प्रश्न 1.
(i) लौह अयस्क किस प्रकार का संसाधन है?
(क) नवीकरण योग्य
(ख) प्रवाह
(ग) जैव
(घ) अनवीकरण योग्य
उत्तर:
(ग) जैव

(ii) ज्वारीय ऊर्जा निम्नलिखित में से किस प्रकार का संसाधन नहीं है?
(क) पुनः पूर्ति योग्य
(ख) अजैव
(ग) मानवकृत
(घ) अचक्रीय
उत्तर:
(क) पुनः पूर्ति योग्य

(iii) पंजाब में भूमि निम्नीकरण का निम्नलिखित में से मुख्य कारण क्या है?
(क) गहन खेती
(ख) अधिक सिंचाई
(ग) वनोन्मूलन
(घ) अति पशुचारण
उत्तर:
(ग) वनोन्मूलन

(iv) निम्नलिखित में से किस प्रांत में सीढ़ीदार (सोपानी) खेती की जाती है?
(क) पंजाब
(ख) उत्तर प्रदेश के मैदान
(ग) हरियाणा
(घ) उत्तराखण्ड
उत्तर:
(घ) उत्तराखण्ड

(v) इनमें से किस राज्य में काली मृदा मुख्य रूप से पाई जाती है?
(क) जम्मू और कश्मीर
(ख) राजस्थान
(ग) महाराष्ट्र
(घ) झारखण्ड
उत्तर:
(ग) महाराष्ट्र

JAC Class 10 Social Science Solutions Geography Chapter 1 संसाधन एवं विकास

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए:
(i) तीन राज्यों के नाम बताएं जहाँ काली मृदा पाई जाती है। इस पर मुख्य रूप से कौन-सी फसल उगाई जाती है?
उत्तर:
वे तीन राज्य निम्नलिखित हैं जहाँ काली मृदा पाई जाती है

1. महाराष्ट्र,
2. मध्य प्रदेश
3. छत्तीसगढ़। इस मृदा पर मुख्य रूप से कपास की फसल उगाई जाती है।

(ii) पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं पर किस प्रकार की मृदा पाई जाती है? इस प्रकार की मृदा की तीन मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं पर जलोढ़ मृदा पाई जाती है। इस प्रकार की मृदा (जलोढ़ मृदा) की तीन प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. यह मृदा बहुत अधिक उपजाऊ होती है।
  2. इस मृदा में रेत, सिल्ट एवं मृत्तिका के विभिन्न अनुपात पाए जाते हैं।
  3. ये मृदाएँ पोटाश, फास्फोरस एवं चूनायुक्त होती हैं।

(iii) पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन की रोकथाम के लिए क्या कदम उठाने चाहिए?
उत्तर:
पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन की रोकथाम के लिए निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए

  1. अतिरिक्त ढाल वाली भूमि पर समोच्च रेखाओं के समान्तर जुताई की जानी चाहिए।
  2. पहाड़ी क्षेत्रों में सीढ़ीदार खेत बनाकर कृषि की जानी चाहिए।
  3. पहाड़ी ढालों पर वृक्षों को कतारों में लगाकर रक्षक मेखला का विकास किया जाना चाहिए।

(iv) जैव और अजैव संसाधन क्या होते हैं? कुछ उदाहरण दें।
उत्तर:
जैव संसाधन-वे संसाधन जिनकी प्राप्ति जैव मण्डल से होती है तथा जिनका एक निश्चित जीवन-चक्र होता है, जैव संसाधन कहलाते हैं, जैसे-मनुष्य, वनस्पति-जगत, प्राणि-जगत व पशुधन आदि। अजैव संसाधन-वे संसाधन जिनमें निश्चित जीवनक्रिया का अभाव होता है, अजैव संसाधन कहलाते हैं, जैसे-चट्टानें व धातुएँ आदि।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दीजिए:
(i) भारत में भूमि उपयोंग प्रारूप का वर्णन करें। वर्ष 1960 – 61 से वन के अन्तर्गत क्षेत्र में महत्वपूर्ण वृद्धि नहीं हुई, इसका क्या कारण है?
उत्तर:
भारत में भूमि उपयोग प्रारूप:
भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग किलोमीटर है लेकिन वर्तमान में इसके 93 प्रतिशत भूभाग के ही भूमि उपयोग आँकड़े उपलब्ध हैं। असम को छोड़कर बाकी पूर्वोत्तर राज्यों के भूमि उपयोग के बारे में जानकारी प्राप्त नहीं है। जम्मू और कश्मीर में पाकिस्तान व चीन अधिकृत क्षेत्रों के भूमि उपयोग का सर्वेक्षण न होने के कारण इनके भी आँकड़ें प्राप्त नहीं हैं। उपलब्ध आँकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि भारत में भूमि उपयोग सन्तुलित नहीं है।

वर्ष 2014 – 15 के आँकड़ों से स्पष्ट है कि भूमि का सर्वाधिक 45.5 प्रतिशत उपयोग शुद्ध बोए गए क्षेत्र के अन्तर्गत एवं सबसे कम उपयोग 1.0 प्रतिशत विविध वृक्षों, वृक्ष, फैसलों एवं उपवनों के अन्तर्गत है। इसके अतिरिक्त वनों के अन्तर्गत 23.3 प्रतिशत क्षेत्र है। स्थायी चारागाहों के अन्तर्गत भी भूमि कम (3.3 प्रतिशत) है। हमारे देश में भूमि उपयोग का यह प्रारूप राष्ट्रीय, राज्य एवं स्थानीय स्तर पर भी सन्तुलित रूप में नहीं है। अतः भारत जैसे अधिक जनसंख्या एवं सीमित भू-संसाधन वाले देश में नियोजित व सन्तुलित भूमि उपयोग प्रारूप स्थापित करने की अति आवश्यकता है।

वर्ष 1960 – 61 से वन के अन्तर्गत क्षेत्र में महत्वपूर्ण वृद्धि नहीं होने के कारण:
भारत में वन क्षेत्र पर्याप्त एवं संतुलित नहीं है। यद्यपि वर्ष 1960-61 की तुलना में वर्ष 2014-15 के वन क्षेत्र में 5.19 प्रतिशत की वृद्धि हुई है परन्तु इस वृद्धि को सन्तोषजनक नहीं कहा जा सकता। इस लम्बी अवधि में वनों के अन्तर्गत क्षेत्र में महत्वपूर्ण वृद्धि न होने का मुख्य कारण वनों की आर्थिक लाभ के लिए कटाई करना है।

विभिन्न उद्योगों के विकास, कृषि कार्य एवं आवास के लिए भूमि निर्माण के उद्देश्य से ऐसा किया गया। इससे कई तरह की समस्याएँ उत्पन्न हुईं। फलस्वरूप सरकार द्वारा वनों की सुरक्षा व संरक्षण सम्बन्धी अनेक नीतियाँ बनाई गईं। इससे वनों का घटता हुआ ग्राफ थम गया। वहीं दूसरी तरफ स्थानीय स्तर पर वनों की कटाई होती रही है। यही कारण है कि वर्ष 1960-61 से वन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण वृद्धि नहीं हुई।

(ii) प्रौद्योगिक और आर्थिक विकास के कारण संसाधनों का अधिक उपभोग कैसे हुआ है?
उत्तर:
किसी भी देश की प्रगति के लिए प्रौद्योगिकी एवं अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में विकास अति आवश्यक है। प्रौद्योगिकी के विकास के कारण ही हम अपनी प्राकृतिक सम्पदा से उपयोगी वस्तुओं का निर्माण कर न केवल अपनी आर्थिक व्यवस्था में सुधार कर सकते हैं, वरन् देश की बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्वि भी कर सकते हैं। प्रौद्योगिकी विकास हमें आधुनिक औजार एवं मशीनें प्रदान करता है जिससे हमारे उत्पादन में वृद्धि होती है, फलस्वरूप संसाधनों का अधिक उपभोग होता है।

प्रौद्योगिकी विकास में आर्थिक विकास भी होता है, जब किसी देश की आर्थिक स्थिति में सुधार आता है तो लोगों की आवश्यकतायें भी बढ़ती हैं जिसके फलस्वरूप संसाधनों का अधिकाधिक उपयोग होता है। वहीं आर्थिक विकास आधुनिकतम प्रौद्योगिकी के विकास हेतु अनुकूल वातावरण प्रदान करता है। यह हमारे आसपास की विभिन्न वस्तुओं को संसाधन में परिवर्तित करने में मदद करता है। अतः नये संसाधनों का दोहन प्रारम्भ हो जाता है। आज प्रौद्योगिक एवं आर्थिक विकास के कारण ही संसाधनों का अधिक उपभोग हुआ है।

उदाहरण के लिए; राजस्थान खनिज एवं शक्ति संसाधनों की दृष्टि से एक सम्पन्न राज्य है परन्तु पहले उचित प्रौद्योगिकी के विकास के अभाव में इन संसाधनों का पर्याप्त उपयोग नहीं हो पाया था। आज उचित प्रौद्योगिकी के विकास से विभिन्न खनिज व शक्ति संसाधनों का पर्याप्त दोहन किया जा रहा है, जिससे विकास तीव्र गति से हो रहा है। अतः यह कहना उचित है कि प्रौद्योगिकी आर्थिक विकास को गति प्रदान करती है तथा इन दोनों द्वारा संसाधनों का अधिक मात्रा में उपयोग होने लगता है।

परियोजना/क्रियाकलाप

प्रश्न 1.
अपने आसपास के क्षेत्रों में संसाधनों के उपभोग और संरक्षण को दर्शाते हुए एक परियोजना तैयार करें।
उत्तर:
विद्यार्थी इस परियोजना कार्य को स्वयं करें।

प्रश्न 2.
आपके विद्यालय में उपयोग किए जा रहे संसाधनों के संरक्षण विषय पर अपनी कक्षा में एक चर्चा आयोजित करें।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं चर्चा का आयोजन करें।

प्रश्न 3.
वर्ग पहेली को सुलझाएँ; ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज छिपे उत्तरों को ढूँढ़ें। नोट-पहेली के उत्तर अंग्रेजी के शब्दों में हैं।
JAC Class 10 Social Science Solutions Geography Chapter 1 संसाधन एवं विकास 1
प्रश्न 1.
भूमि, जल, वनस्पति और खनिज के रूप में प्राकृतिक सम्पदा
उत्तर:
Resource

प्रश्न 2.
अनवीकरण योग्य संसाधन का एक प्रकार
उत्तर:
Minerals

प्रश्न 3.
उच्च नमी. रखाव क्षमता वाली मृदा
उत्तर:
Black

प्रश्न 4.
मानसून जलवायु में अत्यधिक निक्षालित मृदाएँ
उत्तर:
Laterite

प्रश्न 5.
मृदा अपरदन की रोकथाम के लिए वृहत स्तर पर पेड़ लगाना
उत्तर:
Afforestation

प्रश्न  6.
भारत के विशाल मैदान इन मृदाओं से बने हैं।
उत्तर:
Alluvial.

क्रियाकलाप आधारित एवं अन्य सम्बन्धित प्रश्न

पृष्ठ संख्या 1

प्रश्न 1.
क्या आप उन वस्तुओं का नाम बता सकते हैं जो गाँवों और शहरों में हमारे जीवन को आराम पहुँचाती हैं ? ऐसी वस्तुओं की एक सूची तैयार करें और इनको बनाने में प्रयोग होने वाले पदार्थों का नाम बताएँ ।
उत्तर:
जो वस्तुएँ गाँवों और शहरों में हमारे जीवन को आराम पहुँचाती हैं, उनके नाम निम्नवत हैं:

स्थान वस्तु का नाम वस्तु बनाने में प्रयुक्त होने वाले पदार्थ
गाँव कपड़े कपास, ऊन, रेशम आदि।
फर्नीचर लकड़ी, स्टील, रबड़ आदि।
घर ईंट, सीमेंट, लकड़ी, काँच आदि।
साइकिल और मोटरसाइकिल स्टील, रबड़, लोहा आदि।
मिट्टी के तेल का स्टोव स्टील, पीतल आदि।
बल्ब और ट्यूबलाइट ताँबा, काँच, आदि
शहर कपड़े कपास, ऊन, रेशम आदि।
फर्नीचर लकड़ी, स्टील, रबड़ आदि।
गैस स्टोव व सिलेण्डर स्टील, रबड़ लोहा, पीतल आदि।
कार और मोटरसाइकिल स्टील, पीतल, लोहा, प्लास्टिक, फाइबर आदि।
पंखे, कूलर स्टील, लोहा, ताँबा, प्लास्टिक आदि।

 

पृष्ठ संख्या 2

प्रश्न 1.
प्रत्येक संवर्ग से कम से कम दो संसाधनों की पहचान करें।
उत्तर:

  • उत्पत्ति के आधार पर:
    1. जैवं संसाधन — मनुष्य, वनस्पति, जीव-जन्तु, वन, वन्य-जीवन
    2. अजैव संसाधन — चट्टान, खनिज एवं मृदा
  • समाप्यता के आधार पर:
    1. नवीकरण योग्य संसाधन — सौर-ऊर्जा, पवन-ऊर्जा, जल, वन व वन्य-जीवन
    2. अनवीकरण योग्य संसाधन — खनिज व जीवाश्म ईंधन
  • स्वामित्व के आधार पर:
    1. व्यक्तिगत संसाधन — भूखंड, घर, बाग. चारागाह, तालाब, कुएँ
    2. सामुदायिक संसाधन — चारणभूमि, श्मशान भूमि, तालाब, कुएँ, सार्वजनिक पार्क
    3. राष्ट्रीय संसाधन — सड़कें, नहरें, रेल लाइनें, खनिज पदार्थ, जल, वन, वन्य जीवन
    4. अन्तर्राष्ट्रीय संसाधन — तट रेखा से 200 किमी की दूरी (अपवर्जक आर्थिक क्षेत्र), महासागरीय मार्ग
  • विकास के आधार पर:
    1. संभावी संसाधन — ज्वारीय-ऊर्जा, पवन-ऊर्जा, भूतापीय-ऊर्जा
    2. विकसित संसाधन — कोयला, खनिज तेल, जल
    3. भंडार — जल, दो ज्वलनशील गैसों-हाइड्रोजन व ऑक्सीजन का यौगिक है एवं यह ऊर्जा का प्रमुख स्रोत बन सकता है परन्तु इस उद्देश्य से इसका प्रयोग करने के लिए हमारे पास तकनीकी ज्ञान उपलब्ध नहीं है। अतः यह भंडार है। भूगर्भीय ऊर्जा असीमित है परन्तु इसका उपयोग करने के लिए हमारे पास आवश्यक तकनीकी ज्ञान उपलब्ध नहीं है। अतः यह भंडार है।
    4. संचित कोष — बाँधों में संचित जल, वन।

JAC Class 10 Social Science Solutions Geography Chapter 1 संसाधन एवं विकास

पृष्ठ संख्या  3

प्रश्न 1.
अपने आसपास के क्षेत्र में पाए जाने वाले भण्डार और संचित कोष संसाधनों की एक सूची तैयार कीजिए।
उत्तर:
भंडार-जल, सौर-ऊर्जा, भूतापीय-ऊर्जा, पवन-ऊर्जा आदि। संचित कोष-वन, नदियों का जल, बाँधों का जल आदि।

प्रश्न 2.
कल्पना करें कि तेल संसाधन खत्म होने पर इनका हमारी जीवन-शैली पर क्या प्रभाव होगा?
उत्तर:
यदि तेल संसाधन खत्म हो जाए तो इनका हमारी जीवन-शैली पर निम्नलिखित रूप से प्रभाव पड़ेगा

  1. परिवहन तंत्र सर्वाधिक प्रभावित होगा।
  2. हमें पैदल अथवा साइकिल से विद्यालय जाना पड़ेगा।
  3. लोग अपने ऑफिस व अन्य स्थानों पर समय पर नहीं पहुँच पायेंगे।
  4. वस्तुएँ एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं पहुंचाई जा सकेंगी। सब्जियाँ व दैनिक उपयोग की वस्तुएँ महँगी हो जाएँगी।

प्रश्न 3.
घरेलू और कृषि संबंधित अपशिष्ट को पुनः चक्रण करने के बारे में लोगों के विचार जानने के लिए अपने मोहल्ले अथवा गाँव में एक सर्वेक्षण करें । लोगों से प्रश्न पूछे कि:
(अ) उनके द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले संसाधनों के बारे में वे क्या सोचते हैं ?
उत्तर:
उनके द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले संसाधनों के बारे में वे यह सोचते हैं कि वह किसी भी प्रकार से अपने संसाधनों का उचित रूप से प्रयोग करें जिससे कि वह अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर सकें । उन्हें कम से कम तथा सीमित मात्रा में प्रयोग करें, जिससे कि भविष्य में कठिनाइयों का सामना न करना पड़े ।

(ब) अपशिष्ट और उसके उपयोग के बारे में उनका क्या विचार है ?
उत्तर:
उनका मानना है कि कूड़ा अव्यवस्थित तरीके से नष्ट करने की अपेक्षा उचित यह है कि उसका विभिन्न प्रकार से उपयोग कर लिया जाए। जैसे- कूड़े को नष्ट करने की सर्वोत्तम विधि है उससे खाद बनाना। बड़े-बड़े गड्ढों में कूड़ा। भरकर उसे मिट्टी से दबा दिया जाता है। कुछ ही दिनों में कूड़ा सड़कर खाद के रूप में तैयार हो जाता है।

(स) अपने परिणामों का समुच्चित चित्र (collage) तैयार करें।
उत्तर:
विद्यार्थी इस प्रश्न को अपने शिक्षक की सहायता से स्वयं हल करें ।

पृष्ठ संख्या  4

प्रश्न 1.
अपने राज्य में पाए जाने वाले संसाधनों की सूची तैयार करें और जिन महत्वपूर्ण संसाधनों की आपके राज्य में कमी है, उनकी पहचान करें।
उत्तर:
राजस्थान राज्य में पाये जाने वाले संसाधन:
1. खनिज
2. मृदा
3. पशु।
राजस्थान राज्य में कम पाये जाने वाले संसाधन-ऊर्जा संसाधन, जैसे-कोयला. खनिज तेल व प्राकृतिक गैस।

प्रश्न 2.
समुदाय भागीदारी की सहायता से समुदाय/ग्राम पंचायत/वार्ड स्तरीय समुदायों द्वारा आपके आसपास के क्षेत्र में कौन से संसाधन विकसित किए जा रहे हैं?
उत्तर:
समुदाय भागीदारी की सहायता से समुदाय, ग्राम पंचायत, वॉर्ड स्तरीय समुदायों द्वारा हमारे आसपास के क्षेत्र में निम्नलिखित संसाधन विकसित किये जा रहे हैं

  • समुदाय स्तर पर:
    1. चारण भूमि का विकास ।
    2. सार्वजनिक पार्कों का निर्माण
    3. पिकनिक स्थल और खेल के मैदानों का विकास ।
    4. मंदिर, मस्जिद व चर्च आदि का निर्माण ।
  • ग्राम पंचायत स्तर पर:
    1. कृषि बागवानी का विकास
    2. बंजर भूमि का विकास
    3. चारागाहों का विकास।
    4. कुआँ, तालाबों व पोखरों का निर्माण
    5. श्मशान भूमि का विकास
    6. सामुदायिक भवन का निर्माण।
  • वार्ड स्तर पर:
    1. फल तथा फूलों के पौधे लगाने हेतु. बगीचे का विकास।
    2. बालकों के खेलने के लिए पार्क
    3. पेयजल हेतु पानी की टंकी।

JAC Class 10 Social Science Solutions Geography Chapter 1 संसाधन एवं विकास

प्रश्न 3.
क्या आप संसाधन सम्पन्न परन्तु आर्थिक रूप से पिछड़े और संसाधन विहीन परन्तु आर्थिक रूप से विकसित प्रदेशों के नाम बता सकते हैं? ऐसी परिस्थिति होने के कारण बताएँ ।
उत्तर:
भारत में छत्तीसगढ़, झारखण्ड, मध्यप्रदेश, अरुणाचल प्रदेश तथा राजस्थान संसाधन सम्पन्न राज्य हैं परन्तु यह आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं। वहीं दूसरी ओर पंजाब, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र संसाधन विहीन परन्तु आर्थिक रूप से विकसित राज्य हैं। इसका प्रमुख कारण यही है कि पिछड़े राज्यों में पर्याप्त प्रौद्योगिकी विकास तथा संस्थागत परिवर्तनों की कमी है जबकि विकसित राज्यों में प्रौद्योगिकी विकास तथा संस्थागत परिवर्तन बहुत अधिक होता है। पिछड़े राज्यों की अधिकतम जनता अशिक्षित है। विकसित राज्यों की परिवहन व्यवस्था अधिक विकसित रूप में पायी जाती है। वहाँ के अधिकतर लोग शिक्षित हैं। इन्हीं कारणों से उपर्युक्त परिस्थितियों का सामना हमारे देश के राज्यों को करना पड़ रहा है।

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JAC Class 10 Social Science Solutions History Chapter 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया

JAC Board Class 10th Social Science Solutions History Chapter 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया

JAC Class 10th History मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया Textbook Questions and Answers

संक्षेप में लिखें

प्रश्न 1.
निम्नलिखित के कारण दें
(क) वुडब्लॉक प्रिन्ट या तख्ती की छपाई यूरोप में 1295 के बाद आयी।
(ख) मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था और उसने इसकी खुलेआम प्रशंसा की।
अथवा
मार्टिन लूथर ने ऐसा क्यों कहा था कि मुद्रण ईश्वर की दी हुई अंतिम और महानतम देन है?
(ग) रोमन कैथोलिक चर्च ने सोलहवीं सदी के मध्य से प्रतिबन्धित किताबों की सूची रखनी शुरू कर दी।
अथवा
‘रोमन कैथोलिक चर्च’ ने प्रकाशकों और पुस्तकों पर पाबंदियाँ क्यों लगाईं?
(घ) महात्मा गाँधी ने कहा कि स्वराज की लड़ाई दरअसल अभिव्यक्ति, प्रेस और सामूहिकता के लिए लड़ाई है।
उत्तर:
(क) चीन के पास वुडब्लॉक प्रिन्ट या तख्ती की छपाई की तकनीक पहले से ही मौजूद थी। 1295 ई. में मार्कोपोलो नामक महान खोजी यात्री चीन में कई वर्ष तक खोज करने के पश्चात् अपने देश इटली.वापस लौटा। वह अपने साथ वुडब्लॉक प्रिन्ट तकनीक को भी ले गया। अतः 1295 ई. के पश्चात् इटली सहित सम्पूर्ण यूरोप में भी वुडब्लॉक प्रिन्ट तकनीक का प्रयोग किया जाने लगा। यहाँ तख्ती की छपाई से पुस्तकें छपने लगी।

(ख) मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था और उसने इसकी खुलेआम प्रशंसा की। धर्म सुधारक मार्टिन लूथर ने रोमन कैथोलिक चर्च की कुरीतियों की आलोचना करते हुए अपनी पिच्चानवे स्थापनाएँ लिखीं। इसकी एक छपी प्रति विटेनबर्ग के गिरजाघर पर टाँगी गई। उसने न्यूटेस्टामेन्ट का अनुवाद किया जिसकी अल्प समय में 5,000 प्रतियाँ बिक गर्दी और तीन महीने के अन्दर दूसरा संस्करण निकालना पड़ा। लूथर ने मुद्रण की प्रशंसा करते हुए कहा कि “मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन है और सबसे बड़ा तोहफा है।”

(ग) रोमन कैथोलिक चर्च ने सोलहवीं सदी के मध्य से प्रतिबन्धित किताबों की सूची रखना प्रारम्भ कर दिया था क्योंकि छपे हुए लोकप्रिय साहित्य के बल पर शिक्षित लोग धर्म की अलग-अलग व्याख्याओं से परिचित हुए। इटली की आम जनता ने किताबों के आधार पर बाईबिल के नए अर्थ लगाने प्रारम्भ कर दिए।

ये पुस्तकों के माध्यम से ईश्वर और सृष्टि के सही अर्थ समझ पाए। इससे रोमन कैथोलिक चर्च में बहुत अधिक प्रतिक्रिया हुई। ऐसे धर्मविरोधी विचारों पर नियन्त्रण स्थापित करने के लिए रोमन चर्च ने इन्क्वीजीशन यानि धर्मद्रोहियों को सुधारना आवश्यक समझा। अतः रोमन चर्च ने प्रकाशकों और पुस्तक विक्रेताओं पर कई तरह की पाबन्दियाँ लगाईं और 1558 ई. से प्रतिबन्धित किताबों की सूची रखने लगे।

(घ) महात्मा गाँधी ने कहा कि स्वराज की लड़ाई दरअसल अभिव्यक्ति, प्रेस और सामूहिकता के लिए लड़ाई है। ये तीनों अभिव्यक्तियाँ जनता के विचारों को व्यक्त करने व बचाने का एक शक्तिशाली हथियार हैं। स्वराज, खिलाफत और असहयोग की लड़ाई में सबसे पहले इन तीनों संकटग्रस्त आजादियों की लड़ाई है। महात्मा गाँधी ने इन तीनों-अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, प्रेस की स्वतन्त्रता और सामूहिकता की स्वतन्त्रता को अधिक आवश्यक बताया।

JAC Class 10 Social Science Solutions History Chapter 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें
(क) गुटेनबर्ग प्रेस,
(ख) छपी किताब को लेकर इरैस्मस के विचार,
(ग) वर्नाक्युलर या देशी प्रेस एक्ट अथवा 19वीं सदी में अंग्रेजों ने देसी प्रेस’ को बन्द करने की माँग क्यों की?
उत्तर:
(क) गुटेनबर्ग प्रेस:
स्ट्रॉसबर्ग के योहान गुटेनबर्ग ने 1448 ई. में प्रिन्टिग प्रेस का निर्माण किया। इस प्रेस में स्क्रू से लगा एक हैंडल होता था। हैंडल की सहायता से स्क्रू को घुमाकर प्लेटैन को गीले कागज पर दबा दिया जाता था। गुटेनबर्ग ने रोमन वर्णमाला के समस्त 26 अक्षरों के लिए टाइप बनाए। इसमें यह प्रयास किया गया था कि इन्हें इधर-उधर मूव कराकर या घुमाकर शब्द बनाए जा सकें इसलिए इसे मूवेबल टाइप मशीन के नाम से भी जाना गया और यह आगामी 300 वर्षों तक छपाई की बुनियादी तकनीक बनी रही। यह प्रेस एक घण्टे में एकतरफा 250 पन्ने छाप सकती थी। इसमें छपने वाली प्रथम पुस्तक ‘बाईबिल’ थी। गुटेनबर्ग ने तीन वर्षों । बाईबिल की 180 प्रतियाँ छापी जो उस समय के हिसाब से बहुत तेज छपाई थी।

(ख) छपी किताब को लेकर इरैस्मस के विचार:
इरैस्मस एक लैटिन विद्वान एवं कैथोलिक धर्म सुधारक था। इन्होंने कैथोलिक धर्म की ज्यादतियों की आलोचना की लेकिन इन्होंने मार्टिन लथर से भी एक दूरी बनाकर रखी। उसने किताबों की छपाई की आलोचना की। 1508 ई. में उन्होंने एडेजेज़ में लिखा कि किताबें भिन-भिनाती मक्खियों की तरह हैं जो समस्त विश्व में पहुँच जाती हैं। इन पुस्तकों का अधिकांश हिस्सा तो विद्वता के लिए हानिकारक ही है। किताबें बेकार ढेर हैं क्योंकि अच्छी वस्तुओं की अति भी हानिकारक ही होती है, इनसे बचना चाहिए। मुद्रक विश्व को मात्र तुच्छ लिखी हुई पुस्तकों से ही नहीं पाट रहे बल्कि बकवास, बेवकूफ, सनसनीखेज, धर्मविरोधी, अज्ञानी और षड्यन्त्रकारी पुस्तकें छापते हैं और उनकी संख्या इतनी है कि मूल्यवान साहित्य का मूल्य ही नहीं रह जाता।

(ग) वर्नाक्युलर या देशी प्रेस एक्ट:
भारत की ब्रिटिश सरकार ने 1857 ई. की क्रान्ति के पश्चात्.प्रेस की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। अंग्रेजों ने देसी प्रेस को बन्द करने की माँग की। जैसे-जैसे भाषाई समाचार-पत्र राष्ट्रवाद की भावना को जाग्रत करने लगे वैसे-वैसे ही औपनिवेशिक सरकार में कठोर नियन्त्रण के प्रस्तावों पर बहस तेज होने लगी। आयरिश प्रेस कानून की तर्ज पर 1878 ई. में वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट लागू कर दिया गया। इससे सरकार को भाषायी प्रेस में छपी रपट तथा सम्पादकीय को सेंसर करने का व्यापक अधिकार मिल गया। ब्रिटिश सरकार विभिन्न प्रदेशों में छपने वाले भाषायी समाचार-पत्रों पर नियमित रूप से नजर रखने लगी। यदि किसी रपट को बागी करार दिया जाता था तो अखबार को पहले चेतावनी दी जाती थी और यदि चेतावनी की अनसुनी हुई तो अखबार को जब्त किया जा सकता था तथा छपाई की मशीनें छीनी जा सकती थीं।

प्रश्न 3.
उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण संस्कृति के प्रसार का इनके लिए क्या मतलब था ?
(क) महिलाएँ,
(ख) गरीब जनताए
(ग) सुधारक।
उत्तर:
(क) महिलाएँ:
उन्नीसवीं सदी में महिलाओं की स्थिति अत्यन्त दयनीय थी। मुद्रण संस्कृति के प्रसार से महिला लेखिकाओं ने औरतों के बारे में लिखा और उनमें जाग्रति पैदा की, जिससे उनमें अपनी स्थिति को सुधारने की हिम्मत आयी। उदारवादी परिवारों ने महिलाओं की शिक्षा का समर्थन किया, वहीं रूढ़िवादी परिवारों ने महिला शिक्षा का विरोध किया, फिर भी अनेक महिलाओं ने चोरी-छिपे (रसोईघरों में) पढ़ना प्रारम्भ कर दिया। बाद में उन्होंने अपनी जीवन-गाथा को आत्मकथाओं के रूप में लिखा एवं प्रकाशित करवाया। इस प्रकार कहा जा सकता है कि मुद्रण संस्कृति ने भारतीय महिलाओं में आत्मविश्वास की भावना उत्पन्न कर दी।

(ख) गरीब-जनता:
गरीब जनता की पहुँच से किताबें बहुत दूर थी, क्योंकि उनका मूल्य अत्यधिक होता था किन्तु मुद्रण के प्रसार से किताबें सस्ती हो गयीं और जनता की पहुँच में आ गयीं। बीसवीं सदी के आरम्भ से शहरों व कस्बों में सार्वजनिक पुस्तकालय खुलने लगे थे जहाँ गरीब जनता भी जाकर पुस्तकें पढ़ सकती थी। बंगलौर सूती मिल मजदूरों ने स्वयं को शिक्षित करने के विचार से पुस्तकालय स्थापित किये। इस प्रकार भारत में मुद्रण संस्कृति के विकास से गरीब जनता बहुत अधिक लाभान्वित हुई।

(ग) सुधारक:
मुद्रण संस्कृति के प्रसार से सुधारक अपने विचारों को लिखकर जनता तक पहुँचाने लगे और लोगों में उनके विचारों का असर होने लगा। वे समाज में होने वाले अत्याचार और अन्धविश्वास से जनता को जागरुक करने लगे। मुद्रण संस्कृति ने उन्हें धार्मिक अन्धविश्वासों को तोड़ने तथा आधुनिक, सामाजिक एवं राजनीतिक विचारों को फैलाने का मंच प्रदान किया।

चर्चा करें

प्रश्न 1.
अठारहवीं सदी के यूरोप में कुछ लोगों को क्यों ऐसा लगता था कि मुद्रण संस्कृति से निरंकुशता का अन्त, और ज्ञानोदय होगा?
उत्तर:
अठारहवीं सदी के मध्य तक यह आम विश्वास बन चुका था कि किताबों के जरिए प्रगति और ज्ञानोदय होता है। लोगों का मानना था कि वे निरंकुशवाद और राजसत्ता से समाज को मुक्ति दिलाकर ऐसा दौर लायेंगे जब विवेक और बुद्धि का राज होगा। अठारहवीं सदी में फ्रांस के एक उपन्यासकार लुई सेबेस्तिए मर्सिए ने घोषणा की, “छापाखाना प्रगति का सबसे बड़ा ताकतवर औजार है, इससे बन रही जनमत की आँधी में निरंकुशवाद उड़ जाएगा।”

मर्सिए के उपन्यासों में नायक सामान्यतया किताबें पढ़ने में बदल जाते हैं। वे किताबें घोंटते हैं, किताबों की दुनिया में जीते हैं और इसी क्रम में ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं। ज्ञानोदय को लाने और निरंकुशवाद के आधार को नष्ट करने में छापेखाने की भूमिका के बारे में आश्वस्त मर्सिए ने कहा, “हे निरंकुशवादी शासक, अब तुम्हारे काँपने का वक्त आ गया है! आभासी लेखक की कलम के जोर के आगे तुम हिल उठोगे!”

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प्रश्न 2.
कुछ लोग किताबों की सुलभता को लेकर चिन्तित क्यों थे ? यूरोप और भारत से एक-एक उदाहरण लेकर समझाएँ।
उत्तर:
कुछ लोग किताबों को लेकर चिन्तित इसलिए थे क्योंकि वे मानते थे, किताबों में लिखा हुआ पढ़ने से लोग बागी हो जायेंगे, सत्ता का विरोध करेंगे, विरोध करने के लिए वे छपाई का दुरुपयोग करेंगे, लोग अधार्मिक प्रवृत्ति के हो जायेंगे, धर्म के प्रति उनका लगाव कम हो जायेगा, वे अनुशासनहीन हो जायेंगे, महिलाएँ अपने स्वाभाविक कार्यों को छोड़कर पढ़ी हुई बातों का अनुसरण करने लगेंगी, जिससे सामाजिक अव्यवस्था फैल जायेगी।

यूरोप का एक उदाहरण-रोमन कैथोलिक चर्च ने धर्म विरोधी विचारों को दबाने के लिए इन्क्वीजीशन शुरू किया तथा प्रकाशकों व पुस्तक विक्रेताओं पर कई प्रकार की पाबन्दियाँ लगाईं और 1558 ई. से प्रतिबन्धित किताबों की सूची रखने लगे।भारत का उदाहरण – 1857 ई. की क्रान्ति से भारत में प्रेस की स्वतन्त्रता के प्रति ब्रिटिश सरकार का रवैया बदल गया।

औपनिवेशिक सरकार ने राष्ट्रवाद के समर्थक भाषायी समाचार पत्रों पर नियन्त्रण स्थापित करने के लिए 1878 ई. में आयरिश प्रेस कानून की तर्ज पर वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट लागू कर दिया। इस एक्ट के माध्यम से ब्रिटिश सरकार ने राष्ट्रवादी गतिविधियों को रोकने के लिए अनेक स्थानीय अखबारों पर प्रतिबन्ध लगा दिया तथा उनसे छपाई की मशीनें छीन ली गयीं।

प्रश्न 3.
उन्नीसवीं सदी में भारत में गरीब जनता पर मुद्रण संस्कृति का क्या असर हुआ ?
अथवा
“मुद्रण क्रांति ने सूचना और ज्ञान से उनके सम्बन्धों को बदलकर लोगों की जिन्दगी बदल दी।” कथन का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
उन्नीसवीं सदी में भारत में गरीब जनता पर मुद्रण संस्कृति का निम्नकित असर हुआ

  1. देश के अनेक लोगों को छापेखानों में काम मिलने लगा।
  2. भाषायी प्रेस ने गरीब लोगों के मन-मस्तिष्क में राष्ट्रवादी विचारों का रोपण किया।
  3. सस्ती मुद्रण सामग्री से गरीब लोगों को राष्ट्रीय, स्थानीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय गतिविधियों की समाचार-पत्रों के माध्यम से जानकारी मिलने लगी।
  4. मुद्रण संस्कृति के कारण जातिभेद के बारे में विभिन्न प्रकार की पुस्तिकाओं व निबन्धों को लिखा जाने लगा।
  5. मुद्रण संस्कृति द्वारा गरीबों में नशाखोरी कम करने तथा हिंसा को समाप्त करने का सन्देश पहुँचाया गया।

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प्रश्न 4.
मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में क्या मदद की ?
अथवा
मुद्रण संस्कृति ने 19वीं सदी में भारत में राष्ट्रवाद के विकास में किस प्रकार सहायता की? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में निम्न प्रकार से मदद की

  1. मुद्रण संस्कृति द्वारा देश में राष्ट्रवाद का प्रचार-प्रसार किया जाता था।
  2. स्थानीय भाषायी समाचार पत्रों के माध्यम से औपनिवेशिक सरकार के शोषण के तरीकों की आम जनता को जानकारी दी जाती थी।
  3. मुद्रण संस्कृति के माध्यम से शिक्षा का प्रचार-प्रसार होता था।
  4. मुद्रण संस्कृति से स्थानीय भाषाओं में धार्मिक शिक्षा को बढ़ावा मिला।
  5. राष्ट्रवादी राष्ट्रीय व स्थानीय समाचार-पत्रों द्वारा हमेशा भारतीय जनता के दृष्टिकोण को प्रचारित किया जाता था।
  6. ब्रिटिश सरकार के गलत नियमों, राष्ट्रवादी भावनाओं को फैलने से रोकने आदि के प्रयासों, दमनकारी नीतियों एवं प्रेस की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध आदि की जानकारी विस्तार से प्रकाशित की जाती थी।
  7. भारत के विभिन्न समाज सुधारकों के विचारों को आम जनता तक पहुँचाया जाता था तथा समाज सुधार के प्रयास किये जाते थे।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1.
पिछले सौ सालों में मुद्रण संस्कृति में हुए अन्य बदलावों का पता लगाएँ। फिर इनके बारे में यह बताते हुए लिखें कि ये क्यों हुए और इनके कौन से नतीजे हुए ?
उत्तर:
विद्यार्थी इस परियोजना कार्य को शिक्षक की सहायता से स्वयं करें।

गतिविधि एवं अन्य सम्बन्धित प्रश्न

गतिविधि (पृष्ठ संख्या 108)

प्रश्न 1.
कल्पना कीजिए आप मार्कोपोलो हैं। चीन में आपने प्रिन्ट का कैसा संसार देखा, यह बताते हुए एक चिट्ठी लिखें।
उत्तर:
मैं स्वयं को मार्कोपोलो मानते हुए चीन में देखे गये प्रिन्ट के बारे में निम्नलिखित प्रकार से एक चिट्ठी लिखूगा विश्व में मुद्रण की प्रथम तकनीक चीन, जापान व कोरिया में विकसित हुई थी। प्रारम्भ में यह छपाई हाथ से की जाती थी। 594 ई. से चीन में स्याही लगे काठ के ब्लॉक या तख्ती पर कागज को रगड़कर किताबें छापी जाने लगीं। इस तकनीक के अन्तर्गत पतले छिद्रित कागज के दोनों तरफ छपाई सम्भव नहीं है। अत: पारम्परिक चीनी किताबें एकार्डियन शैली में किनारों को मोड़ने के पश्चात् सिलकर बनायी जाती हैं। इन किताबों पर सुलेखन कार्य भी किया जाता है।

चर्चा करें (पृष्ठ संख्या 113)

प्रश्न 2.
छपाई से विरोधी विचारों के प्रसार को किस तरह बल मिलता था ? संक्षेप में लिखें।
उत्तर:
यूरोप में छपाई से कैथोलिक चर्च के साथ-साथ अन्य उच्च वर्ग के लोगों को यह लगता था कि लोग वर्तमान राजशाही एवं धार्मिक व्यवस्था के विरुद्ध हो जायेंगे जिससे विद्रोह की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इस तरह से छपाई के विरोधी विचारों के प्रसार को बल मिला।

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गतिविधि (पृष्ठ संख्या 116)

प्रश्न 3.
कुछ इतिहासकार ऐसा क्यों मानते हैं कि मुद्रण संस्कृति ने फ्रांसीसी क्रान्ति के लिए जमीन तैयार की ?
उत्तर:
मुद्रण संस्कृति ने फ्रांसीसी क्रान्ति के लिए जमीन तैयार की। यह निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट है

  1. छपाई के चलते ज्ञानोदय से वॉल्टेयर एवं रूसों जैसे चिन्तकों के विचारों का प्रसार हुआ।
  2. सामूहिक रूप से उन्होंने परम्परा, अन्धविश्वास एवं निरंकुशवाद की आलोचना प्रस्तुत की। रीतिरिवाजों के स्थान पर विवेक के शासन पर बल दिया तथा प्रत्येक वस्तु को तर्क व विवेक की कसौटी पर परखने की माँग की।
  3. छपाई ने वाद-विवाद की नयी संस्कृति को जन्म दिया जिससे फ्रांस में नये विचारों का सूत्रपात हुआ।
  4. कार्टूनों तथा कैरिकेचरों (व्यंग्य चित्रों) में यह भाव उभरता था कि जनता तो मुश्किल में फँसी है जबकि राजशाही भोग-विलास में डूबी हुई है। इस तरह के कार्टूनों के चलन से क्रान्ति से पहले लोगों के मन-मस्तिष्क पर विशेष असर हुआ। इससे राजतन्त्र के विरुद्ध क्रान्ति की ज्वाला भड़क उठी।

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JAC Class 10 Social Science Solutions History Chapter 4 औद्योगीकरण का युग

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JAC Class 10th History औद्योगीकरण का युग Textbook Questions and Answers

संक्षेप में लिखें

प्रश्न 1.
निम्नलिखित की व्याख्या करें
(क) ब्रिटेन की महिला कामगारों ने स्पिनिंग जेनी मशीनों पर हमले किए।
(ख) सत्रहवीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के सौदागर गाँवों में किसानों और कारीगरों से काम करवाने लगे।
अथवा
17 वीं और 18वीं शताब्दियों में यूरोपीय शहरों के सौदागर गाँवों की ओर रुख क्यों करने लगे थे?
(ग) सूरत बंदरगाह अठारहवीं सदी के अन्त तक हाशिये पर पहुँच गया था।
(घ) ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत में बुनकरों पर निगरानी रखने के लिए गुमाश्तों को नियुक्त किया था।
उत्तर:
(क) ब्रिटेन की महिला कामगारों ने स्पिनिंग जेनी मशीनों पर हमले किए क्योंकि यह मशीन एक ही पहिए से कई तकलियों को घुमा सकती थी। इससे जहाँ एक ओर उत्पादन बढ़ा, वहीं हाथ से पहियों को घुमाकर ऊन कातने वाली महिलाओं का रोजगार छिन गया। इसलिए नाराज महिलाओं ने स्पिनिंग जेनी मशीनों पर हमले कर दिए।

(ख) यूरोपीय शहरों के सौदागर किसानों एवं कारीगरों को पैसा देते थे तथा उनसे अन्तर्राष्ट्रीय बाजार के लिए उत्पादन करवाते थे। सत्रहवीं शताब्दी में विश्व व्यापार के विस्तार और दुनिया के विभिन्न भागों में उपनिवेशों की स्थापना के कारण वस्तुओं की माँग बढ़ने लगी। इस मांग को पूरा करने के लिए शहरों में उत्पादन नहीं बढ़ाया जा सकता था क्योंकि शहरों में शहरी दस्तकार और व्यापारिक गिल्ड्स प्रभावशाली थे।

व्यापारिक गिल्ड्स बाजार, कच्चे माल, कारीगरों एवं उत्पादनों पर नियन्त्रण रखते थे। प्रतिस्पर्धा व मूल्य तय करते थे तथा व्यवसाय में नये लोगों को आने से रोकते थे। शासकों ने भी विभिन्न गिल्ड्स को विशेष उत्पादों के उत्पादन और व्यापार का एकाधिकार दिया हुआ था फलस्वरूप नये व्यापारी शहरों में व्यापार नहीं कर सकते थे इसलिए वे गाँवों की तरफ जाने लगे तथा वहाँ किसानों एवं कारीगरों से काम करवाने लगे।

(ग) भारत में यूरोपीय कम्पनियों की ताकत बढ़ती जा रही थी। व्यापार के माध्यम सूरत व हुगली दोनों पुराने बन्दरगाह कमजोर पड़ गये। सत्रहवीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में सूरत बन्दरगाह से होने वाले व्यापार का कुल मूल्य 1.6 औद्योगीकरण का युग 77 करोड़ रुपये था। 1740 ई. के दशक तक यह गिरकर केवल 30 लाख रुपये रह गया। सूरत व हुगली कमजोर पड़ रहे थे तथा बम्बई व कलकत्ता की स्थिति सुधर रही थी। उन्होंने नये बन्दरगाहों के माध्यम से व्यापार पर नियन्त्रण स्थापित कर लिया था। अत: 18वीं शताब्दी के अन्त तक सूरत बन्दरगाह से समुद्री व्यापार धराशायी हो गया और वह हाशिये पर पहुँच गया।

(घ) भारत के बुनकर ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ-साथ तथा फ्रांसीसी, डच और पुर्तगाली कम्पनियों के लिए भी कपड़ा बुनते थे। ईस्ट इण्डिया कम्पनी कपड़ा उत्पादन संघ व्यापार पर अपना एकाधिकार करना चाहती थी। फलस्वरूप कम्पनी ने बुनकरों पर निगरानी रखने, माल इकट्ठा करने एवं कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने के लिए वेतन पर कर्मचारी नियुक्त किये जिन्हें गुमाश्ता कहा जाता था।

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प्रश्न 2.
प्रत्येक वक्तव्य के आगे ‘सही’ या ‘गलत’ लिखें:
(क) उन्नीसवीं सदी के आखिर में यूरोप की कुल श्रम शक्ति का 80 प्रतिशत तकनीकी रूप से विकसित औद्योगिक क्षेत्र में काम कर रहा था।
(ख) अठारहवीं सदी तक महीन कपड़े के अन्तर्राष्ट्रीय बाजार पर भारत का दबदबा था।
(ग) अमेरिकी गृह युद्ध के फलस्वरूप भारत के कपास निर्यात में कमी आयी।
(घ) फ्लाई शटल के आने से हथकरघा कामगारों की उत्पादकता में सुधार हुआ।
उत्तर:
(क) गलत,
(ख) सही,
(ग) गलत,
(घ) सही।

प्रश्न 3.
पूर्व-औद्योगीकरण का मतलब बताएँ।
उत्तर:
इंग्लैण्ड और यूरोप में कारखानों की स्थापना से पहले ही अन्तर्राष्ट्रीय बाजार के लिए बड़े पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन होने लगा था। यह उत्पादन कारखानों में नहीं होता था। आदि या पूर्व किसी वस्तु की पहली या प्रारम्भिक अवस्था या संकेत है। अतः अनेक इतिहासकारों ने औद्योगीकरण के इस चरण को आदि या पूर्व-औद्योगीकरण का नाम दिया। आदि-औद्योगिक काल में औद्योगिक बाजार के लिए उत्पाद कारखानों की बजाय घरों पर हाथों से बनाये जाते थे।

चर्चा करें

प्रश्न 1.
उन्नीसवीं सदी के यूरोप में कुछ उद्योगपति मशीनों की बजाप हाथ से काम करने वाले श्रमिकों को प्राथमिकता क्यों देते थे ?
उत्तर:
उन्नीसवीं सदी के यूरोप में कुछ उद्योगपति निम्नलिखित कारणों से मशीनों की बजाय हाथ से काम करने वाले श्रमिकों को प्राथमिकता देते थे

  1. विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में मानव श्रम की कोई कमी नहीं थी। इसलिए कुछ उद्योगपति मशीनों की बजाय हाथ से काम करने वाले श्रमिकों को प्राथमिकता देते थे।
  2. कुछ उद्योगपति बड़ी-बड़ी मशीनों पर बहुत अधिक खर्च करने से हिचकिचाते थे क्योंकि मशीनें लगाने से यह जरूरी नहीं था कि उनको ऐसा करने से लाभ ही हो।
  3. बहुत से उद्योगों में श्रमिकों की माँग मौसमी आधार पर घटती-बढ़ती रहती थी, जैसे-गैसघरों, शराबखानों, बुक बाइंडरों, प्रिंटरों, बन्दरगाहों में जहाजों की मरम्मत, साफ-सफाई व सजावट के काम में आदि। ऐसे उद्योगों में उद्योगपति मशीनों की बजाय मजदूरों को ही काम पर रखना पसन्द करते थे।
  4. बाजार में अक्सर बारीक डिजाइन एवं विशेष आकार वाली वस्तुओं की बहुत अधिक माँग रहती थी। इन्हें बनाने के लिए मशीनी तकनीक की बजाय मानवीय निपुणता की आवश्यकता पड़ती थी।
  5. अनेक वस्तुएँ केवल हाथ से ही बनायी जा सकती थीं। मशीनों से एक जैसे निश्चित किस्म की वस्तुएँ नहीं बनायी जा सकती थीं।
  6. विक्टोरियाकाल में ब्रिटेन के उच्च वर्ग के लोग कुलीन और पूँजीपति वर्ग हाथों से निर्मित वस्तुओं को अधिक महत्त्व देते थे। हस्तनिर्मित वस्तुओं को परिवार और सुरुचि का प्रतीक माना जाता था। उनकी फिनिशिंग अच्छी होती थी। उनको एक-एक करके बनाया जाता था। अतः सबका डिजाइन अलग-अलग और अधिक अच्छा होता था।

प्रश्न 2.
ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारतीय बुनकरों से सूती और रेशमी कपड़े की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए क्या किया ?
उत्तर:
ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारतीय बुनकरों से सूती और रेशमी कपड़े की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित कार्य किये।
1. गुमाश्तों की नियुक्ति:
ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने कपड़ा व्यापार में सक्रिय व्यापारियों एवं दलालों को समाप्त करने तथा बुनकरों पर निगरानी रखने, उन्हें माल उपलब्ध कराने एवं कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने के लिए वेतनभोगी कर्मचारी नियुक्त किये, जिन्हें गुमाश्ता कहा जाता था।

2. बुनकरों पर पाबन्दियाँ:
कम्पनी को माल बेचने वाले बुनकरों पर अन्य खरीददारों के साथ कारोबार करने पर पाबन्दी लगा दी। इसके लिए उन्हें पेशगी रकम दी जाती थी।

3. बुनकरों को ऋण उपलब्ध कराना:
कार्य का आदेश मिलने पर कम्पनी द्वारा बुनकरों को कच्चा माल खरीदने के लिए ऋण उपलब्ध करा दिया जाता था। ऋण लेने वाले बुनकरों को अपना बनाया हुआ कपड़ा गुमाश्ता को ही देना पड़ता था। वे अन्य किसी व्यापारी को नहीं बेच सकते थे।

4. बुनकरों का शोषण:
गुमाश्ते बुनकरों के साथ अपमानजनक व्यवहार करने लगे। गुमाश्ते बाहर के लोग थे उनका गाँवों से पुराना सामाजिक सम्बन्ध नहीं था, वे दंभपूर्ण व्यवहार वाले थे। वे सिपाहियों व चपरासियों को लेकर आते थे तथा माल समय पर तैयार न होने की स्थिति में बुनकरों को सजा के तौर पर पीटा जाता था व कोड़े बरसाये जाते थे फलस्वरूप बुनकरों की दशा अत्यन्त दयनीय हो गयी। अब वे न तो दाम पर मोलभाव कर सकते थे और न ही किसी और को माल बेच सकते थे। उन्हें कम्पनी से जो कीमत मिलती थी वह बहुत कम थी परन्तु वे ऋण के कारण कम्पनी के लिए काम करने को मजबूर थे।

JAC Class 10 Social Science Solutions History Chapter 4 औद्योगीकरण का युग

प्रश्न 3.
कल्पना कीजिए कि आपको ब्रिटेन तथा कपास के इतिहास के बारे में विश्वकोश (Encyclopaedia) के लिए लेख लिखने को कहा गया। इस अध्याय में दी गई जानकारियों के आधार पर अपना लेख लिखिए।
उत्तर:
ब्रिटेन का इतिहास:

  1. ब्रिटेन में 1730 ई. के दशक में कारखाने खुले लेकिन इनकी संख्या में तीव्र गति से वृद्धि 18वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में हुई।
  2. कपास नये युग का प्रथम प्रतीक था। 19वीं शताब्दी के अन्त में उत्पादन में बहुत अधिक वृद्धि हुई।
  3. सन् 1760 ई. में ब्रिटेन अपने कपास उद्योग की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए 25 लाख पौंड कच्चे कपास का आयात करता था। 1787 ई. में यह आयात बढ़कर 220 लाख पौंड तक पहुँच गया।
  4. 18वीं शताब्दी में ब्रिटेन में कई आविष्कार हुए जिन्होंने उत्पादन प्रक्रिया कार्डिंग, ऐंठना, कताई व लपेटने के प्रत्येक चरण की कुशलता में वृद्धि कर दी। पहले से ज्यादा मजबूत धागों व रेशों का उत्पादन होने लगा।
  5. रिचर्ड आर्कराइट ने सूती कपड़ा मिल की रूपरेखा तैयार की।
  6. 1840ई. के दशक तक औद्योगीकरण के प्रथम चरण में सूती उद्योग एवं कपास उद्योग ब्रिटेन का सबसे बड़ा उद्योग बन चुका था।
  7. ब्रिटेन के लंकाशायर में एक कॉटन मिल की स्थापना की गयी।
  8. 1830 ई. में एक कताई कारखाने की स्थापना की गयी जिसमें भाप की सहायता से चलने वाले विशाल पहिये एक साथ सैकड़ों तकलियों को घुमाने लगते थे।
  9. जेम्स हरग्रीव्ज ने कताई की प्रक्रिया को तेज करने वाली एक मशीन ‘स्पिनिंग जेनी’ का निर्माण किया।
  10. ब्रिटेन ने समस्त प्रकार के सूती कपड़े पर अपना पूर्ण नियन्त्रण स्थापित कर लिया।
  11. ब्रिटेन ने मैनचेस्टर निर्मित सूती कपड़े को बेचने के लिए अपने समस्त उपनिवेशों में बाजार बना लिये थे। मशीनों द्वारा निर्मित ये कपड़े हाथ से बने कपड़ों से सस्ते पड़ते थे।
  12. यूरोप में बारीक भारतीय कपड़ों की माँग थी। ईस्ट इण्डिया कम्पनी भारतीय बुनकरों को कर्ज देती थी और गुमाश्तों से उनकी निगरानी करवाती थी जिससे कि ब्रिटेन से मोटे और बारीक कपड़े की नियमित आपूर्ति मिलती रहे। इस कपास के व्यापार एवं सूती वस्त्र उद्योग पर कई शताब्दियों तक ब्रिटेन का आधिपत्य बना रहा।

प्रश्न 4.
पहले विश्वयुद्ध के समय भारत का औद्योगिक उत्पादन क्यों बढ़ा ?
उत्तर:
पहले विश्वयुद्ध के समय निम्नलिखित कारणों से भारत का औद्योगिक उत्पादन बढ़ा

  1. प्रथम विश्वयुद्ध तक औद्योगिक विकास धीमा रहा। युद्ध ने एक नई स्थिति उत्पन्न कर दी थी।
  2. ब्रिटिश कारखाने सेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए युद्ध सम्बन्धी उत्पादन में व्यस्त थे इसलिए भारत में मैनचेस्टर के माल का आयात कम हो गया।
  3. भारतीय उद्योगों के लिए यह एक सुअवसर था उन्हें रातों-रात एक विशाल देशी बाजार मिल गया। इस प्रकार औद्योगिक उत्पादन में भी वृद्धि हुई।
  4. युद्ध लम्बे समय तक चला जिसके परिणामस्वरूप भारतीय कारखानों में भी सैनिकों के लिए जूट की बोरियाँ, सैनिकों के लिए वर्दी के कपड़े, टैण्ट और चमड़े के जूते, फोर्ड की जीन एवं अन्य अनेक प्रकार के समान बनने लगे।
  5. माँग में वृद्धि होने से नये-नये कारखानों की स्थापना होने लगी तथा पुराने कारखानों में भी उत्पादन बढ़ाने के लिए कई पालियों में काम होने लगा।
  6. उत्पादन में वृद्धि करने के लिए पर्याप्त मात्रा में श्रमिकों को काम पर रखा गया। प्रत्येक श्रमिक को पहले की तुलना में अधिक कार्य करना पड़ता था। यही कारण था कि प्रथम विश्वयुद्ध के समय भारत का औद्योगिक उत्पादन बढ़ गया।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1.
अपने क्षेत्र में किसी एक उद्योग को चुनकर उसके इतिहास का पता लगाएँ। उसकी प्रौद्योगिकी किस तरह बदली? उसमें मजदूर कहाँ से आते हैं? उसके उत्पादनों का विज्ञापन और मार्केटिंग किस तरह किया जाता है ? इस उद्योग के इतिहास के बारे में मालिकों और उसमें काम करने वाले कुछ मजदूरों से बात करके देखिए।
उत्तर:
विद्यार्थी अपने शिक्षक की सहायता से इस परियोजना कार्य को पूर्ण करें।

क्रियाकलाप सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

गतिविधि (पृष्ठ संख्या 80)

प्रश्न 1.
दो ऐसे उदाहरण दीजिए जहाँ आधुनिक विकास से प्रगति की बजाय समस्याएँ पैदा हुई हैं? आप चाहें तो पर्यावरण, आणविक हथियारों व बीमारियों से सम्बन्धित क्षेत्रों पर विचार कर सकते हैं ?
उत्तर:
1. औद्योगिक विकास:
विभिन्न देशों के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने हेतु विभिन्न प्रकार के उद्योगों की बड़ी संख्या में स्थापना की गई। मिल से निकलने वाले धुएँ, हानिकारक गैसें व अन्य प्रदूपक पदार्थ उत्सर्जित होने से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। औद्योगिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण प्रदूषण की समस्या में भी वृद्धि हुई है।

उदाहरण के तौर पर मथुरा तेल शोधनशाला से निकलने वाले धुएँ के कारण ताजमहल की सुन्दरता को खतरा उत्पन्न हो गया है। भोपाल गैस त्रासदी दिसम्बर, 1984 को यूनियन कार्बाइड कारखानों से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के रिसाव से हजारों व्यक्ति अकाल मृत्यु के शिकार हो गये तथा 10,000 से अधिक लोगों के शरीर विकृत हो गये।

2. परमाणु अस्त्रों का विकास:
परमाणु बमों एवं आणिवक हथियारों के निर्माण में कई रेडियोधर्मी पदार्थों को काम में लिया जाता है। इनसे निकला घातक विकिरण मानव जाति व पेड़-पौधों के लिए अत्यन्त विनाशक है। उदाहरण के रूप में, इनका महाघातक प्रभाव सर्वप्रथम संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा व नागासाकी पर डाले परमाणु बमों के समय देखा गया। इस दुर्घटना में अनेक लोग मारे गये व आज भी लोग इसके घातक प्रभाव झेल रहे हैं।

JAC Class 10 Social Science Solutions History Chapter 4 औद्योगीकरण का युग

गतिविधि (पृष्ठ संख्या – 83)

प्रश्न 2.
चित्र 4 व 5 को देखें। क्या आपको दोनों तस्वीरों में औद्योगीकरण को दर्शाने के ढंग में कोई फर्क दिखाई देता है? अपना दृष्टिकोण संक्षेप में व्यक्त करें।
उत्तर:
हाँ चित्र 4 व 5 की दोनों तस्वीरों में फर्क दिख रहा है। चित्र 4 औद्योगीकरण के प्रारम्भ को दर्शाता है। इस समय  औद्योगीकरण विकास का अहम पहलू बन गया था तथा इसे आकर्षक रूप में स्थान प्राप्त हुआ। चित्र 5 की तस्वीर औद्योगीकरण के अति विकसित स्वरूप को दर्शा रही है। अत्यधिक औद्योगिक इकाइयों की स्थापना से चारों ओर पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता नजर आ रहा है तथा इस दौर तक औद्योगीकरण एक विकराल समस्या बन चुका था।

गतिविधि (पृष्ठ संख्या 85)

प्रश्न 3.
कल्पना कीजिए कि आप सौदागर हैं और एक ऐसे सैल्समेन को चिट्ठी लिख रहे हैं जो आपको नयी मशीन खरीदने के लिए राजी करने की कोशिश कर रहा है। अपने पत्र में बताइए कि मशीन के बारे में आपने क्या पूछा है और आप नयी प्रौद्योगिकी में पैसा क्यों नहीं लगाना चाहते?
उत्तर:
मशीनों के बारे में मैंने सुना है कि मशीनों को लगाने में अधिक खर्चा आता है। मशीनें अक्सर खराब हो जाती हैं। इनकी मरम्मत कराना कठिन होता है। मशीनों से एक जैसी तय किस्म का माल तैयार होता है जबकि उपभोक्ता विचित्र रूप, रंग व विशेष प्रकार की डिजाइन के हाथ से बने हुए माल की माँग करते हैं। इसलिए मैं इस नयी प्रौद्योगिकी में पैसा नहीं लगाना चाहता हूँ।

JAC Class 10 Social Science Solutions History Chapter 4 औद्योगीकरण का युग

गतिविधि (पृष्ठ संख्या 87)

प्रश्न 4.
चित्र 3, 7 और 11 को देखिए। इसके बाद स्रोत-ख को दोबारा पढ़िए। अब बताइए कि बहुत सारे मजदूर स्पिनिंग जेनी के इस्तेमाल का विरोध क्यों कर रहे थे ?
उत्तर:
1764 ई. में जेम्स हरग्रीज द्वारा निर्मित स्पिनिंग जेनी एक ऐसी मशीन थी जिसने एक ही पहिए से अनेक तकलियों को घुमाना सम्भव बना दिया था जबकि इसके पहले एक पहिए की मशीन केवल एक ही तकली को घुमा सकती थीं। उस समय परिवार के सभी लोग इस कार्य में लगे रहते थे और कमाते थे। लेकिन स्पिनिंग जेनी मशीन के आविष्कार ने उनके रोजगार को समाप्त कर दिया और बेरोजगारी को बढ़ावा दिया। अब इस मशीन के एक ही पहिए से एक समय में अनेक तकलियाँ घुमायी जा सकती थीं। इसलिए बहुत सारे मजदूर स्पिनिंग जेनी के इस्तेमाल का विरोध कर रहे थे।

गतिविधि (पृष्ठ संख्या 89)

प्रश्न 5.
एशिया के मानचित्र पर भारत से मध्य एशिया, पश्चिमी एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ होने वाले कंपड़ा व्यापार के समुद्री व सड़क सम्पर्कों को चिह्नित कीजिए।
उत्तर:
JAC Class 10 Social Science Solutions History Chapter 4 औद्योगीकरण का युग 1

JAC Class 10 Social Science Solutions

JAC Class 10 Social Science Solutions History Chapter 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना

JAC Board Class 10th Social Science Solutions History Chapter 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना

JAC Class 10th History भूमंडलीकृत विश्व का बनना Textbook Questions and Answers

संक्षेप में लिखें

प्रश्न 1.
सत्रहवीं सदी से पहले होने वाले आदान-प्रदान के दो उदाहरण दीजिए। एक उदाहरण एशिया से और एक उदाहरण अमेरिका महाद्वीपों के बारे में चुनें।
उत्तर:
सत्रहवीं शताब्दी से पहले एशिया और अमेरिका में होने वाले आदान-प्रदान के उदाहरण निम्नलिखित हैं

  1. एशिया महाद्वीप-रेशम मार्ग से चीनी रेशम एवं चीनी पॉटरी तथा भारत व दक्षिण-पूर्व एशिया के कपड़े व मसाले विश्व के विभिन्न देशों में पहुँचते थे। वापसी में सोने-चाँदी जैसी कीमती धातुएँ यूरोप से एशिया पहुँचती थीं।
  2. अमेरिका महाद्वीप-आज से लगभग 500 वर्ष पूर्व आलू, मूंगफली, सोयाबीन, टमाटर, मिर्च, शकरकंद जैसे अनेक खाद्य पदार्थ हमारे पास उपलब्ध नहीं थे। परन्तु क्रिस्टोफर कोलम्बस द्वारा अमेरिका की खोज के पश्चात् ये खाद्य पदार्थ अमेरिका से यूरोप एवं एशिया के देशों में पहुंचे।

प्रश्न 2.
बताएँ कि पूर्व आधुनिक विश्व में बीमारियों के वैश्विक प्रसार ने अमेरिकी भूभागों के उपनिवेशीकरण में किस प्रकार मदद दी ?
उत्तर:
लाखों वर्षों से समस्त विश्व से अलग-अलग रहने के कारण अमेरिका के लोगों के शरीर में चेचक से बचने की रोग प्रतिरोधक क्षमता का अभाव था। इस बीमारी का प्रसार यूरोप महाद्वीप से हुआ। जब यूरोपीय शक्तियों ने अमेरिका में अपने उपनिवेश स्थापित किये तब चेचक नामक बीमारी फैल गयी।

इस प्रकार यूरोपीय उपनिवेशवादी शक्तियों को अमेरिका के लोगों को जीतने के लिए सैन्य अस्त्रों का उपयोग नहीं करना पड़ा। समस्त अमेरिका में फैली इस घातक बीमारी ने अनेक लोगों को मौत के घाट उतार दिया। इस प्रकार बीमारियों ने अमेरिकी भू-भागों के उपनिवेशीकरण में सहायता दी।

JAC Class 10 Social Science Solutions History Chapter 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना

प्रश्न 3.
निम्नलिखित के प्रभावों की व्याख्या करते हुए संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखें.
(क) कॉर्न लॉ के समाप्त करने के बारे में ब्रिटिश सरकार का फैसला। .
अथवा
‘कार्न लॉ’ के निरस्त होने के किन्हीं पाँच प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
(ख) अफ्रीका में रिंडरपेस्ट का आना।
(ग) विश्वयुद्ध के कारण यूरोप में कामकाजी उम्र के पुरुषों की मौत।
अथवा
विश्वयुद्ध के कारण यूरोप में कामकाजी उम्र के पुरुषों की मौत की व्याख्या करते हुए संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
(घ) भारतीय अर्थव्यवस्था पर महामन्दी का प्रभाव।
(ङ) बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा अपने उत्पादन को एशियाई देशों में स्थानान्तरित करने का फैसला।
उत्तर:
(क)

  1. ब्रिटेन की सरकार द्वारा कॉर्न लॉ समाप्त करने के पश्चात् बहुत ही कम मूल्य पर खाद्य पदार्थों का आयात किया जाने लगा।
  2. आयात किये जाने वाले खाद्य पदार्थों की लागत ब्रिटेन में पैदा होने वाले खाद्य पदार्थों से भी कम थी।
  3. फलस्वरूप ब्रिटेन के किसानों की हालत बिगड़ने लगी क्योंकि वे आयातित माल की कीमत का मुकाबला नहीं कर सकते थे।
  4. विशाल भूभागों पर कृषि कार्य बन्द हो गया। हजारों की संख्या में लोग बेरोजगार हो गये।
  5. गाँवों से निकलकर वे या तो शहरों अथवा अन्य देशों की ओर पलायन करने लगे।

(ख) रिंडरपेस्ट का रोग एशियाई मवेशियों से अफ्रीकी मवेशियों में फैला। मवेशियों में प्लेग की तरह फैलने वाली इस बीमारी ने लोगों की आजीविका व अर्थव्यवस्था पर बहुत अधिक प्रभाव डाला। इस बीमारी से हजारों की संख्या में मवेशी मर गये। इसने अफ्रीकी अर्थव्यवस्था को नष्ट कर दिया जो मवेशियों व जमीन पर आधारित थी। इससे बेरोजगारी में वृद्धि हुई तो अफ्रीकी लोगों को यूरोपीय बागानों एवं खानों में काम करने के लिए बाध्य किया गया।

(ग) प्रथम विश्वयुद्ध में यूरोप की ओर से लड़ने वाले अधिकांश लोग कामकाजी उम्र के थे। युद्ध में इनकी मृत्यु अधि । क मात्रा में हुई तथा ये घायल भी अधिक हुए। इस विनाश के कारण यूरोप में कामकाज़ के लायक लोगों की संख्या बहुत कम रह गयी। परिवार के सदस्यों की संख्या घट जाने के कारण युद्ध के पश्चात् परिवारों की आमदनी भी कम हो गयी।

(घ) भारतीय अर्थव्यवस्था पर महामन्दी का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। महामन्दी के दौरान देश का आयात घटकर आधा रह गया। भारत में कृषि उत्पादनों के मूल्यों में भारी में गिरावट आयी। इसके बावजूद सरकार ने लगान वसूली में छूट नहीं दी। विश्व बाजार के लिए खेती करने वाले किसानों को सर्वाधिक हानि उठानी पड़ी। शहरों में निश्चित आय वाले लोगों पर इस महामन्दी का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। इस महामन्दी से शहरी लोगों की बजाय किसानों एवं काश्तकारों को बहुत अधिक नुकसान हुआ।

(ङ) 1970 ई. के दशक के बीच बेरोजगारी बढ़ने लगी। इस समय बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने एशिया के ऐसे देशों में उत्पादन केन्द्रित किया जहाँ वेतन कम दिया जाता था। चीन में वेतन अन्य देशों की तुलना में कम था। विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने यहाँ पर्याप्त धन का निवेश किया। इसका प्रभाव चीनी अर्थव्यवस्था पर दिखाई दिया है।

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प्रश्न 4.
खाद्य उपलब्धता पर तकनीक के प्रभाव को दर्शाने के लिए इतिहास से दो उदाहरण दें।
अथवा
19वीं सदी में विश्व अर्थव्यवस्था में आए तकनीकी परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
खाद्य उपलब्धता पर तकनीक के प्रभाव को दर्शाने के लिए इतिहास के दो उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  1. तीव्र गति से चलने वाली रेलगाड़ियाँ बनी, बोगियों का भार कम किया गया, जलपोतों का आकार बढ़ा, जिससे किसी भी उत्पाद को खेतों से दूर के बाजारों में कम लागत पर और आसानी से पहुँचाया जा सका।
  2. पानी के जहाजों में रेफ्रिजरेशन की तकनीक स्थापित होने से खाने-पीने के सामानों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाने में आसानी हो गयी। शीघ्र खराब होने वाली वस्तुओं को भी रेफ्रिजरेशन की तकनीक से लम्बी यात्राओं पर ले जाया जाने लगा।

प्रश्न 5.
ब्रेटन वुड्स समझौते का क्या अर्थ है ?
अथवा
‘ब्रेटन वुड्स’ समझौते से विश्व में किस प्रकार की अर्थव्यवस्था का जन्म हुआ ?
अथवा
ब्रेटन वुड्स सम्मेलन से आप क्या समझते हैं? इसकी दो जुड़वाँ संतानें’ किसे कहा गया है?
उत्तर:
युद्धोत्तर अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य औद्योगिक विश्व में आर्थिक स्थिरता एवं पूर्ण रोजगार को बनाए रखना था। इसके अनुरूप जुलाई 1944 ई. में अमेरिका स्थित न्यू हैम्पशर के ब्रेटन वुड्स नामक स्थान पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन में सहमति बनी थी। सदस्य देशों के विदेश व्यापार में लाभ और घाटे से निपटने के लिए ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में ही अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना की गयी।

युद्धोत्तर पुनर्निर्माण के लिए धन की व्यवस्था करने को अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक अर्थात् विश्व बैंक का गठन किया गया। इसलिए विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष को ब्रेटन वुड्स ट्विन भी कहा जाता है। इसी युद्धोत्तर आर्थिक व्यवस्था को ब्रेटन वुड्स व्यवस्था कहा गया है। . ब्रेटन वुड्स व्यवस्था निश्चित विनिमय दरों पर आधारित थी। इस व्यवस्था में राष्ट्रीय मुद्राएँ एक निश्चित विनिमय दर में बँधी हुई थीं। उदाहरण के रूप में, एक डॉलर के बदले में रुपयों की संख्या निश्चित थी। डॉलर का मूल्य भी सोने से बँधा हुआ था। एक डॉलर का मूल्य 35 ओंस सोने के बराबर था।

चर्चा करें

प्रश्न 6.
कल्पना कीजिए कि आप कैरीबियाई क्षेत्र में काम करने वाले गिरमिटिया मजदूर हैं। इस अध्याय में दिए गए विवरणों के आधार पर अपने हालात और अपनी भावनाओं का वर्णन करते हुए अपने परिवार के नाम एक पत्र लिखिए।
उत्तर:
आदरणीय माताजी एवं पिताजी,
सादर चरण स्पर्श व प्रणाम।
आप लोगों की इच्छा के विरुद्ध यहाँ आकर मुझे बहुत दुःख का अनुभव हो रहा है। जैसा मैं अपने देश से सुखद भविष्य को सोचकर यहाँ आया था वैसा यहाँ कुछ भी नहीं है। एजेंट ने हमें धोखा दिया है। यहाँ का जीवन एवं कार्य-परिस्थितियाँ बहुत कठोर हैं। हमें यहाँ दिन-रात कठोर परिश्रम करना पड़ता है। यदि हम कार्य को समय पर सही ढंग।

से पूरा नहीं कर पाते तो हमारा वेतन काट लिया जाता है। कई बार कठोर दण्ड भी दिया जाता है। यहाँ मजदूरों को अपने अनुबन्ध की अवधि में भारी कठिनाइयों एवं कष्टों का सामना करना पड़ता है। यहाँ की स्थिति देखकर मुझ जैसे अनेक मजदूरों की आशाएँ मिट्टी में मिल गयीं। मैं अपने अनुबन्ध की अवधि पूरी होने के बाद यहाँ एक मिनट भी नहीं रुकना चाहता। अपनी कुशलता के समाचार देना।

आपका पुत्र
रमेशचंद

प्रश्न 7.
अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमयों में तीन तरह की गतियों या प्रवाहों की व्याख्या करें। तीनों प्रकार की गतियों के भारत और भारतीयों से सम्बन्धित एक-एक उदाहरण दें और उनके बारे में संक्षेप में लिखें।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमयों में तीन तरह की गतियाँ या प्रवाह निम्नलिखित थे
(क) पहला प्रवाह व्यापार का होता है। यह 19वीं शताब्दी में मुख्य रूप से कपड़ा, गेहूँ आदि के व्यापार तक ही सीमित था।

(ख) दूसरा प्रवाह श्रम का होता है। इसमें लोग काम अथवा रोजगार की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते थे।

(ग) तीसरा प्रवाह पूँजी का होता है। इसमें छोटी तथा कम लम्बी अवधि के लिए पूँजी का दूर-दराज के क्षेत्रों में – निवेश कर दिया जाता है।

तीनों प्रकार की गतियों से भारत एवं भारतीयों से सम्बन्धित उदाहरण निम्नलिखित हैं:
(क) भारत से वस्तुओं के व्यापार का प्रवाह:
भारत से गेहूँ तथा समस्त प्रकार के कपड़े (सूती, ऊनी, रेशमी) आदि ब्रिटेन भेजे जाते थे। कपड़ों की रँगाई के लिए नील का भी व्यापार बड़े पैमाने पर होता था।

(ख) श्रम का प्रवाह:
19वीं शताब्दी में भारत के मजदूरों को बागानों, खदानों, सड़कों एवं रेलवे परियोजनाओं में काम करने के लिए दूर-दूर ले जाया गया। भारतीय अनुबन्धित मजदूरों को अनुबन्ध के आधार पर बाहर ले जाया जाता था इन अनुबन्धों में यह शर्त रखी जाती थी कि पाँच वर्ष तक बागानों में काम कर लेने के बाद ही वे स्वदेश लौट सकते थे। भारत के अनुबन्धित श्रमिक मुख्यतः कैरीबियाई द्वीप के गुयाना, त्रिनिदाद, सूरीनाम, मॉरीशस, फिजी, मलाया आदि में कार्य करने हेतु जाते थे।

(ग) पूँजी का प्रवाह:
भारतीय साहूकार एवं महाजनों ने एक देशी विनिमय व्यवस्था बना ली थी। ये न केवल भारत में ही पूँजी निवेश करते थे बल्कि अफ्रीका व यूरोपीय उपनिवेशों में भी करते थे। भारत के प्रमुख पूँजीपतियों में शिकारीपुरी श्राफ, नटटूकोट्टई चेट्टियार तथा हैदराबादी सिन्धी व्यापारी आदि थे।

JAC Class 10 Social Science Solutions History Chapter 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना

प्रश्न 8.
महामन्दी (1929) के कारणों की व्याख्या करें।
अथवा
महामन्दी के क्या कारण थे ?
उत्तर:
महामन्दी के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे
(क) कृषि में अत्यधिक उत्पादन:
कृषि के क्षेत्र में अत्यधिक उत्पादन की समस्या बनी हुई थी इससे कृषि वस्तुओं की कीमतों में बहुत अधिक कमी आयी। कीमतें घटने से कृषि सम्बन्धी आय भी घट गयी जिसके कारण किसानों ने अपना उत्पादन बढ़ाने की कोशिश की ताकि वे कम कीमत पर ही ज्यादा माल बनाकर अपनी आय का स्तर बनाये रख सकें। इससे बाजार में कृषि उत्पादों की अधिकता के कारण कीमतों में गिरावट आयी। क्रेताओं के अभाव में कृषि उपज बढ़ने लगी।

(ख) ऋणों की कमी:
1920 ई. के दशक के मध्य में अनेक देशों ने अमेरिका से ऋण लेकर अपनी निवेश सम्बन्धी जरूरतों को पूरा किया था। जब स्थिति ठीक थी तो अमेरिका से ऋण जुटाना सरल था लेकिन संकट का संकेत मिलते ही अमेरिकी उद्यमियों में घबराहट पैदा हो गयी। 1928 से पहले छ: माह तक विदेशों से अमेरिका का ऋण एक अरब डॉलर था। वर्षभर के भीतर यह ऋण घटकर केवल एक-चौथाई रह गया था जो देश अमेरिकी दलालों पर सबसे ज्यादा निर्भर थे, उनके समक्ष गहरा संकट उत्पन्न हो गया।

प्रश्न 9.
जी-77 देशों से आप क्या समझते हैं ? जी-77 को किस आधार पर ब्रेटन वुड्स की जुड़वाँ सन्तानों की प्रतिक्रिया कहा जा सकता है ? व्याख्या करें।
अथवा
जी-77 देशों से आप क्या समझते हैं ? जी-77 को ब्रेटन वुड्स की सन्तानों की प्रतिक्रिया किस आधार पर कहा जा सकता है ?
उत्तर:
जी-77 विश्व के विभिन्न विकासशील देशों का एक ऐसा समूह है जो नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली (NIEO) प्राप्त करने के लिए सामूहिक रूप से कार्य करता है। 1944 ई. में ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (विश्व बैंक) की स्थापना की गयी थी। इन्हें ब्रेटन वुड्स संस्थान अथवा ब्रेडन वुड्स की जुड़वाँ सन्तान कहा जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष एवं विश्व बैंक (ब्रेटन वुड्स के दोहरे समझौते) की असन्तोषप्रद सेवाओं के कारण नये स्वतन्त्र हुए देशों ने जी-77 का संगठन किया।

इन देशों की स्वतन्त्रता के पश्चात् ब्रेटन वुड्स की संस्थाओं ने निर्धन देशों की सहायता का प्रस्ताव रखा लेकिन इसके बदले में इन संस्थाओं ने उन देशों के प्राकृतिक संसाधनों को गारण्टी के रूप में अपने नियन्त्रण में ले लिया। इस प्रकार विकासशील देश जो नियमित देशों की तरह ही औद्योगिक विकास के पथ पर चलना चाहते थे, ब्रेटन वुड्स की संस्थाओं ने उनके मार्ग में व्यवधान उत्पन्न किया। जिस कारण जी-77 अस्तित्व में आ गया।

परियोजना कार्य

प्रश्न 10.
उन्नीसवीं सदी के दौरान दक्षिण अफ्रीका में स्वर्ण, हीरा खनन के बारे में और जानकारियाँ इकट्ठी करें। सोना और हीरा कम्पनियों पर किसका नियन्त्रण था? खनिक लोग कौन थे और उनका जीवन कैसा था ?
उत्तर:
विद्यार्थी अपने शिक्षक की सहायता से इस परियोजना कार्य को पूरा करें।

क्रियाकलाप सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

चर्चा करें (पृष्ठ 56)

प्रश्न 1.
जब हम कहते हैं कि सोलहवीं सदी में दुनिया सिकड़ने लगी थी, तो इसका क्या मतलब है?
उत्तर:
16वीं शताब्दी से पूर्व विश्व के विभिन्न देशों के मध्य व्यापार एवं अन्य प्रकार के सांस्कृतिक आदान-प्रदान का अभाव था। लेकिन 16वीं शताब्दी में विश्व के विभिन्न देशों के मध्य व्यापार एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान से लोगों की आवाजाही में वृद्धि हुई है। इस तरह सिकुड़ने का अर्थ विश्व के विभिन्न देशों के लोगों के बीच पारस्परिक सम्बन्धों में वृद्धि से लगाया जा सकता है।

गतिविधि (पृष्ठ 59)

प्रश्न 2.
कल्पना कीजिए कि आप आयरलैंड से अमेरिका में आए एक खेत मजदूर हैं। इस बारे में एक पैराग्राफ लिखिए कि आपने यहाँ आने का फैसला क्यों किया और अब आप अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए क्या करते हैं?
उत्तर:

  1. आयरलैंड में किसानों की हालत का बिगड़ना
  2. बड़े-बड़े भू भागों पर खेती का बंद हो जाना
  3. आयातित माल की कीमत से मुकाबला नहीं कर पाना
  4. बेरोजगारी फैलना
  5. गाँवों का उजड़ जाना
  6. अमेरिकन क्षेत्रों में संसाधनों की प्रधानता के बारे में सुनकर अच्छे जीवन की तलाश में वहाँ जाना। अमेरिका आने के पश्चात आयरलैण्ड की तुलना में अच्छा खान-पान प्राप्त हो रहा है। पर्याप्त कृत्रि क्षेत्र होने से आय के स्तर में भी सकारात्मक परिवर्तन आया है। यहाँ अपने अनुभव का प्रयोग करते हुए अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार किया।

गतिविधि (पृष्ठ 59)

प्रश्न 3.
फ्लो चार्ट के माध्यम से दर्शाइए कि जब ब्रिटेन ने खाद्य पदार्थों के आयात का निर्णय लिया तो उसके कारण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की ओर पलायन करने वालों की संख्या क्यों बढ़ने लगी ?
उत्तर:
जब ब्रिटेन ने खाद्य पदार्थों के आयात का निर्णय लिया तो उसके कारण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की ओर पलायन करने वालों की संख्या बढ़ने लगी। इसे फ्लो चार्ट द्वारा निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है
JAC Class 10 Social Science Solutions History Chapter 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना 2

चर्चा करें (पृष्ठ 64)

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय पहचान के निर्माण में भाषा और लोक परम्पराओं के महत्त्व पर चर्चा करें।
उत्तर:
किसी व्यक्ति की राष्ट्रीय पहचान के निर्माण में भाषा और लोक परम्पराओं का बहुत अधिक महत्त्व होता है। किसी व्यक्ति की पहचान उसकी भाषा व पारम्परिक रीति-रिवाजों से होती है क्योंकि वह जो भाषा बोलता है वह उसके राष्ट्र अर्थात् उसकी मातृभूमि से सम्बन्धित होती है। भाषा और परम्पराएँ अचानक ही विकसित नहीं होतीं बल्कि एक लम्बी समयावधि में विकसित होती हैं। हम देखते हैं कि लोग जन्म लेते हैं, मरते हैं, लेकिन मानव परम्पराएँ यथावत् बनी रहती हैं। वे मरती नहीं हैं। वे सदैव जीवित रहती हैं। व्यक्ति जहाँ भी जाता है वह उसे पहचान देती हैं।

JAC Class 10 Social Science Solutions History Chapter 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना

चर्चा करें (पृष्ठ – 73)

प्रश्न 5.
पटसन (जूट) उगाने वालों के विलाप में पटसन की खेती से किसके मुनाफे का जिक्र आया है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
पटसन (जूट) उगाने वालों के विलाप में कवि काश्तकारों से कहते हैं कि चाहे तुम कितनी भी मेहनत कर लो, कर्जे पर पैसे लेकर पटसन की खेती में लगाओ। जब फसल पकेगी तो इसकी कुछ भी कीमत नहीं रहेगी। व्यापारी अपने घर पर बैठे तुम्हें इसका पाँच रुपया मन देंगे तथा समस्त लाभ को स्वयं प्राप्त कर लेंगे। इस विलाप में पटसन की खेती से व्यापारी वर्ग के मुनाफे का जिक्र आया है, जो काश्तकारों से कम कीमत पर फसल खरीदकर क्रेताओं को अधिक कीमत पर बेचा करते थे।

चर्चा करें (पृष्ठ 75)

प्रश्न 6.
संक्षेप में बताएँ कि दो महायुद्धों के बीच जो आर्थिक परिस्थितियाँ पैदा हुई, उनसे अर्थशास्त्रियों और राजनेताओं ने क्या सबक सीखे ?
उत्तर:
दो महायुद्धों के बीच मिले आर्थिक अनुभवों से अर्थशास्त्रियों और राजनीतिज्ञों ने दो प्रमुख सबक सीखे
1. पहला सबक, वृहत् उत्पादन पर आधारित किसी औद्योगिक समाज को व्यापक उपभोग के बिना कायम नहीं रखा जा सकता। लेकिन व्यापक उपभोग को बनाये रखने के लिए यह आवश्यक था कि आमदनी काफी ज्यादा और स्थिर हो। यदि रोजगार अस्थिर होंगे तो आय स्थिर नहीं हो सकती थी। स्थिर आय के लिए पूर्ण रोजगार भी जरूरी था। लेकिन बाजार पूर्ण रोजगार की गारण्टी नहीं दे सकता। कीमत, उपज और रोजगार में आने वाले उतार-चढ़ावों को नियन्त्रित करने के लिए सरकार का दखल जरूरी था। आर्थिक स्थिरता केवल सरकारी हस्तक्षेप के जरिए ही सुनिश्चित की जा सकती थी। .

2. दूसरा सबक, बाहरी दुनिया के साथ आर्थिक सम्बन्धों के बारे में था। पूर्ण रोजगार का लक्ष्य केवल तभी हासिल किया जा सकता है जब सरकार के पास वस्तुओं, पूँजी और श्रम की आवाजाही को नियन्त्रित करने की ताकत उपलब्ध हो।

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JAC Class 10 Social Science Solutions History Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद

JAC Board Class 10th Social Science Solutions History Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद

JAC Class 10th History भारत में राष्ट्रवाद Textbook Questions and Answers

व्याख्या करें

प्रश्न 1.
(क) उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद विरोधी आन्दोलन से जुड़ी हुई क्यों थी ?
(ख) पहले विश्वयुद्ध ने भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन के विकास में किस तरह योगदान दिया ?
(ग) भारत के लोग रॉलेट एक्ट के विरोध में क्यों थे ?
(घ) गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन को वापस लेने का फैसला क्यों लिया ?
उत्तर:
(क)

  1. भारत में वियतनाम एवं अन्य कई देशों की तरह आधुनिक राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया का उपनिवेश विरोधी आन्दोलन से घनिष्ठ रूप से सम्बन्ध रहा है।
  2. उपनिवेश विरोधी आन्दोलन में सभी जाति, वर्ग एवं सम्प्रदायों के लोगों को विदेशी शासन के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए एकजुट किया गया। इस संगठित संघर्ष ने भी राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा दिया।
  3. यूरोपीय शक्तियों अपनी संस्कृति को श्रेष्ठ समझती थीं। उन्होंने अपने उपनिवेशों में अपनी संस्कृति को जबरदस्ती लादना प्रारम्भ कर दिया जैसा कि फ्रांस ने वियतनाम में किया था। इससे भी राष्ट्रवाद की भावना को प्रेरणा मिली।
  4. उपनिवेश विरोधी आन्दोलन ने राष्ट्रवादी एवं उदारवादी विचारों के आदान-प्रदान के लिए एक मजबूत मंच प्रदान किया।

(ख)

  1. प्रथम विश्वयुद्ध ने भारत में नई आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिति पैदा कर दी।
  2. प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान भारत में तेजी से कीमतों में वृद्धि हुई जिससे जनता के समक्ष कठिन स्थितियाँ उत्पन्न हो गईं।
  3. ग्रामीणों को सेना में भर्ती होने के लिए बाध्य किया गया जिससे जनता में व्यापक रोष उत्पन्न हो गया।
  4. देश के अधिकांश भागों में फसल खराब हो गई, जिसके कारण खाद्यानों की अत्यधिक कमी हो गई।
  5. सन् 1918 से 1921 ई. के मध्य देश को अकाल, सूखा एवं बाढ़ के कारण भयंकर संकट का सामना करना पड़ रहा था। चारों तरफ महामारी के कारण अनेक लोग मारे गये। ब्रिटिश शासन ने इस संकट की स्थिति में भारतीयों की कोई मदद नहीं की। अत: भारतीयों ने एकजुट होकर राष्ट्रीय आन्दोलन में सहयोग दिया।

(ग) भारत में क्रान्तिकारी गतिविधियों को रोकने के लिए ब्रिटिश शासन ने 1919 ई. में रॉलेट एक्ट के नाम से कानून बनाया। इस कानून के तहत सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को कुचलने एवं राजनीतिक कैदियों को दो वर्ष तक बिना मुकदमा चलाये जेलों में बन्द रखने का अधिकार मिल गया था। इसलिए भारत के लोग रॉलेट एक्ट के विरोधी थे।

(घ) गोरखपुर स्थित चौरी-चौरा नामक स्थान पर 5 फरवरी, 1922 की घटना के कारण गाँधीजी को असहयोग आन्दोलन को वापस लेने का फैसला लेना पड़ा। चौरी-चौरा में बाजार से गुजर रहा एक शान्तिपूर्ण जुलूस पुलिस के साथ हिंसक टकराव में बदल गया। जनता ने आवेश में आकर कई पुलिसकर्मियों की हत्या कर थाने को आग लगा दी। इस घटना के बारे में सुनते ही महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन रोकने का आह्वान किया।

JAC Class 10 Social Science Solutions History Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद

प्रश्न 2.
सत्याग्रह के विचार का क्या मतलब है ?
उत्तर:

  1. सत्याग्रह जन आन्दोलन का एक नया तरीका था।
  2. सत्याग्रह के विचार में सत्य की शक्ति पर आग्रह एवं सत्य की खोज पर बल दिया जाता था। इसका अर्थ यह था कि यदि आपका उद्देश्य सच्चा है, यदि आपका संघर्ष अन्याय के विरुद्ध है तो उत्पीड़क से मुकाबला करने के लिए आपको किसी शारीरिक बल की आवश्यकता नहीं है।
  3. प्रतिशोध की भावना अथवा आक्रामकता का सहारा लिये बिना सत्याग्रही केवल अहिंसा के सहारे भी अपने संघर्ष में सफल हो सकता है। इसके लिए दमनकारी शत्रु की चेतना को झिंझोड़ना चाहिए।
  4. उत्पीड़क शत्रु को ही नहीं वरन् समस्त लोगों को हिंसा के माध्यम से सत्य को स्वीकार करने की बजाय सच्चाई को देखने एवं सहज भाव से स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
  5. इस संघर्ष में अंतत: सत्य की ही विजय होनी है। गाँधीजी का दृढ़ विश्वास था कि अहिंसा का यह धर्म समस्त भारतीयों को एकता के सूत्र में बाँध सकता है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पर अखबार के लिए रिपोर्ट लिखें
(क) जलियाँवाला बाग हत्याकांड,
(ख) साइमन कमीशन। जलियाँवाला बाग हत्याकांड पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
(क) 13 अप्रैल, 1919 ई. को जलियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ। इस दिन अमृतसर के आस-पास के कई गाँवों से लोग सालाना वैशाखी मेले में भाग लेने जलियाँवाला बाग मैदान में एकत्रित हुए। इनमें से कई लोग तो सरकार द्वारा लागू किये गये दमनकारी कानून रॉलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एकत्रित हुए। यह मैदान चारों ओर से बन्द था। शहर से बाहर होने के कारण वहाँ एकत्रित लोगों को शहर में मार्शल लॉ लागू होने की जानकारी नहीं थी।

अंग्रेज अफसर जनरल डायर अपने हथियारबन्द सैनिकों के साथ वहाँ पहुँचा और उसने मैदान से बाहर निकलने के समस्त रास्तों को बन्द करवा दिया। इसके पश्चात् जनरल डायर के आदेश पर सिपाहियों ने भीड़ पर अन्धाधुन्ध गोलियाँ चला दीं। इस हत्याकांड में सैकड़ों लोग मारे गये तथा अनेक घायल हुए, जलियाँवाला बाग हत्याकांड भारत के इतिहास की सर्वाधिक दर्दनाक घटना है। इस घटना ने समस्त भारत को अंग्रेज विरोधी बना दिया।

(ख) ब्रिटेन की गोरी सरकार ने सर जॉन साइमन के नेतृत्व में एक वैधानिक आयोग का गठन किया। राष्ट्रवादी आन्दोलन के जवाब में गठित किए गए इस आयोग को भारत में संवैधानिक व्यवस्था की कार्यशैली का अध्ययन करना था तथा उसके बारे में सुझाव प्रस्तुत करने थे। इस आयोग में एक भी भारतीय सदस्य नहीं था, इसके समस्त सदस्य अंग्रेज थे। अतः सन् 1928 ई. में जब साइमन कमीशन भारत पहुँचा तो उसका स्वागत ‘साइमन कमीशन वापस जाओ’ (साइमन कमीशन गो बैक) के नारों के साथ किया गया। इस प्रदर्शन में कांग्रेस व मुस्लिम लीग सहित अन्य कई पार्टियों ने भी भाग लिया।

प्रश्न 4.
इस अध्याय में दी गई भारत माता की छवि और अध्याय 1 में दी गई जर्मेनिया की छवि की तुलना कीजिए।
उत्तर:
इस अध्याय में दी भारत में राष्ट्रवाद 33 इन माँगों में सबसे महत्वपूर्ण माँग नमक कर को समाप्त करने से सम्बन्धित थी। नमक का उपयोग धनिक-निर्धन सभी वर्ग के लोग करते हैं। यह हमारे भोजन का एक अभिन्न हिस्सा है। अत: नमक पर कर एवं उसके उत्पादन पर राजकीय अंकुश को महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासन का सबसे दमनकारी पहलू बताया था। गाँधीजी ने अपने इस पत्र के माध्यम से अंग्रेज सरकार को यह चेतावनी दी थी कि यदि 11 मार्च तक उनकी माँग पूरी नहीं हुई तो कांग्रेस सविनय अवज्ञा आन्दोलन को शुरू कर देगी।

इरविन द्वारा उनके प्रस्तावों को ठुकरा दिया गया तब गाँधीजी ने अपने 78 सहयोगियों के साथ नमक-यात्रा प्रारम्भ कर दी। यह यात्रा साबरमती में गाँधीजी के आश्रम से प्रारंभ होकर 240 किमी. दूर दांडी नामक स्थान पर 6 अप्रैल 1930 को समाप्त हुई। गाँधीजी ने दांडी पहुँचकर समुद्र के पानी को उबालकर नमक बनाना प्रारम्भ कर दिया। यह कानून का उल्लंघन था। इस तरह गाँधी ने औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार के कानून की शान्तिपूर्ण तरीके से अवज्ञा की। इस तरह कहा जा सकता है कि गाँधीजी की नमक यात्रा उपनिवेशवाद के खिलाफ प्रतिरोध का एक असरदार प्रतीक थी।

प्रश्न 3.
कल्पना कीजिए कि आप सिविल नाफरमानी आन्दोलन में हिस्सा लेने वाली महिला हैं। बताइए कि इस अनुभव का आपके जीवन में क्या अर्थ होता ?
उत्तर:
सिविल नाफरमानी आन्दोलन में अनेक महिलाओं के साथ मैंने भी भाग लिया। मैंने देखा कि गाँधीजी के सत्याग्रह के समय उनकी बातों को सुनने के लिए सभी महिलाएँ अपने-अपने घरों से बाहर आ जाती थीं। मैंने अन्य महिलाओं के साथ उस समय अनेक जुलूसों में भाग लिया, नमक बनाया, विदेशी कपड़ों एवं शराब की दुकानों की पिकेटिंग की। अनेक महिलाओं के साथ मैंने भी जेल-यात्राएँ की।

मैंने इस आन्दोलन के दौरान पाया कि शहरी क्षेत्रों में अधिकांश उच्च वर्गीय महिलाएँ सक्रिय थीं जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में सम्पन्न कृषक परिवारों की महिलाएँ ही आन्दोलन में भाग ले रही थीं। गाँधीजी के आह्वान पर मैंने भी राष्ट्र सेवा को अपना प्रथम कर्त्तव्य स्वीकार किया। मुझे अन्य महिलाओं की तरह लगने लगा कि हमारे जीवन में बदलाव आने वाला है। घर चलाना, चूल्हा-चौका सँभालना, अच्छी माँ एवं पत्नी के अतिरिक्त हम महिलाएँ देश की सेवा में अपना दायित्व भली-भाँति निभा सकती हैं। अब मुझे लगने लगा था कि हमें भी पुरुषों के समान महत्त्व मिलने लगेगा।

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प्रश्न 4.
राजनैतिक नेता पृथक् निर्वाचिका के सवाल पर क्यों बँटे हुए थे ?
उत्तर:
विभिन्न राजनैतिक नेता भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों एवं समुदायों का प्रतिनिधित्व करते थे। ये नेता विशेष राजनीतिक अधिकारों तथा पृथक् निर्वाचन क्षेत्रों की माँग कर अपने समर्थकों का जीवन स्तर ऊँचा उठाना चाहते थे। ऐसे नेताओं में प्रमुख रूप से डॉ. बी. आर. अम्बेडकर एवं मोहम्मद अली जिन्ना आदि थे। डॉ. अम्बेडकर भारत के दलित वर्गों का तथा मोहम्मद अली जिन्ना अनेक मुसलमान सामाजिक समूहों का प्रतिनिधित्व करते थे। इसके विपरीत गाँधीजी इन नेताओं की माँग से सहमत नहीं थे। उनका मत था कि पृथक् निर्वाचन क्षेत्र भारत की एकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। उन्होंने आमरण अनशन किया। यही कारण था कि राजनीतिक नेता पृथक् निर्वाचन क्षेत्रों के सवाल पर बँटे हुए थे।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1.
इंड वाइना के उपनिवेशवाद विरोधी आन्दोलन का अध्ययन करें। भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन की तुलना इंडो-चाइन. स्वतन्त्रता संघर्ष से करें।
उत्तर:
विद्यार्थी इस प्रश्न को अपने शिक्षक की सहायता से स्वयं हल करें।

क्रियाकलाप सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

गतिविधि आधारित प्रश्न (पृष्ठ संख्या  31)

प्रश्न 1.
स्रोत-(क) को ध्यान से पढ़ें। जब महात्मा गाँधी ने सत्याग्रह को सक्रिय प्रतिरोध कहा तो इससे उनका क्या आशय था ?
उत्तर:
महात्मा गाँधी ने सत्याग्रह को सक्रिय प्रतिरोध कहा है। इससे उनका आशय था कि सत्याग्रह शुद्ध आत्मबल है, यह अपने शत्रु को कष्ट नहीं पहुँचाता है। सत्य ही आत्मा का आधार होता है। अत: यह सत्याग्रह का भी आधार होता है। सत्याग्रह द्वारा शत्रु के मस्तिष्क को प्रेम, करुणा एवं सत्य के द्वारा विध्वंसक विचारों से हटाकर उसमें रचनात्मक विचारों को आरोपित करना है।

गतिविधि (पृष्ठ संख्या 34)

प्रश्न 2.
मान लीजिए कि साल 1920 चल रहा है। आप सरकारी स्कूल के विद्यार्थी हैं। विद्यार्थियों को असहयोग आंदोलन से जुड़ने का आह्वान करते हुए एक पोस्टर बनाइए।
उत्तर:
विद्यार्थी शिक्षक के निर्देशन पोस्टर बनायें।

गतिविधि (पृष्ठ संख्या  35)

प्रश्न 3.
अगर आप 1920 में उत्तर प्रदेश में किसान होते तो स्वराज के लिए गाँधीजी के आह्वान पर क्या प्रतिक्रिया देते ? अपने उत्तर के साथ कारण भी बताइए।
उत्तर:
अगर मैं 1920 में उत्तर प्रदेश में एक किसान होता तो गाँधीजी के स्वराज के आह्वान पर सकारात्मक अहिंसात्मक आन्दोलनों में सक्रिय रूप से भाग लेता क्योंकि स्थानीय नेताओं ने बताया है कि गाँधीजी किसानों का कर माफ करा देंगे तथा जमीन गरीबों में बाँट दी जायेगी।

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गतिविधि (पृष्ठ संख्या 36)

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल ऐसे अन्य लोगों के बारे में पता लगाइए, जिन्हें अंग्रेजों ने पकड़कर मौत के घाट उतार दिया था।
उत्तर:
भगतसिंह, राजगुरू, सुखदेव, चापेकर बंधु (दामोदर हरि व बालकृष्ण हरि) मंगल पांडे, खुदीराम बोस, ऊधम सिंह, अवध बिहारी, मास्टर अमीचंद, मदन लाल धींगरा, ब्रजकिशोर, असित भट्टाचार्य, सूर्यसेन आदि।

चर्चा करें (पृष्ठ संख्या 43)

प्रश्न 5.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन में विभिन्न वर्गों और समूहों ने क्यों हिस्सा लिया ?
उत्तर:
अपने सीमित हितों की पूर्ति करने के लिए अनेक वर्गों और समूहों के भारतीय लोगों ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन में हिस्सा लिया। उनके लिए स्वराज के मायने अलग-अलग थे, जैसे-

  1. धनी किसानों के लिए स्वराज का अर्थ था, भारी लगान के विरुद्ध लड़ाई।
  2. गरीब किसानों के लिए स्वाज का अर्थ था-उनके पास जमीनें होंगी, उन्हें जमीन का किराया नहीं देना पड़ेगा व बेगार भी नहीं करनी पड़ेगी।
  3. अधिकांश व्यवसायी स्वराज को एक ऐसे युग के रूप में देखते थे जहाँ व्यापार पर औपनिवेशिक पाबन्दियाँ नहीं होंगी तथा व्यापार व उद्योग बिना किसी रुकावट के प्रगति कर सकेंगे। (iv) औद्योगिक श्रमिक इसे उच्च वेतन एवं अच्छी कार्य स्थितियों के रूप में देखते थे।
  4. महिलाओं के लिए स्वराज का अर्थ था भारतीय समाज में पुरुषों के साथ बराबरी एवं स्तरीय जीवन की प्राप्ति होना था।

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चर्चा करें (पृष्ठ संख्या 45)

प्रश्न 6.
स्रोत (घ) को ध्यान से पढ़ें। क्या आप साम्प्रदायिकता के बारे में इकबाल के विचारों से सहमत हैं ? क्या आप साम्प्रदायिकता को अलग प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं ?
उत्तर:
नहीं, मैं साम्प्रदायिकता के बारे में इकबाल के विचारों से सहमत नहीं हैं, क्योंकि इकबाल की विचारधारा थी कि भारत एक विविधतापूर्ण नस्ली एवं धार्मिक विशिष्टताओं वाला देश है। अतः मुसलमानों हेतु पृथक् निर्वाचिका की जरूरत है। मेरे विचार में सम्प्रदायवाद को स्थानीय समुदाय द्वारा नियन्त्रित किया जाता है। इसमें राष्ट्र जैसा कोई तत्व सम्मिलित नहीं होता है जो कि भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में राष्ट्रवादियों के संघर्ष का प्रेरणा स्रोत बना हो।

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JAC Class 10 Social Science Solutions History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

JAC Board Class 10th Social Science Solutions History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

JAC Class 10th History यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय Textbook Questions and Answers

संक्षेप में लिखें

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए
(क) ज्युसेपे मेत्सिनी
(ख) काउंट कैमिलो द कावूर
(ग) यूनानी स्वतन्त्रता युद्ध
(घ) फ्रैंकफर्ट संसद
(ङ) राष्ट्रवादी संघर्षों में महिलाओं की भूमिका।
उत्तर:
(क) ज्युसेपे मेत्सिनी-ज्युसेपे मेत्सिनी इटली का एक युवा क्रान्तिकारी था। इसका जन्म सन् 1807 को जेनोआ में हुआ था। देशभक्ति की भावना से प्रेरित होकर वह कार्बोनारी के गुप्त संगठन का सदस्य बन गया। 24 वर्ष की आयु में लिगुरिया में क्रान्ति करने के कारण उसे बहिष्कृत कर दिया गया। इसके पश्चात् मेत्सिनी ने मार्सेई में यंग इटली एवं बर्न में ‘यंग यूरोप’ नामक दो भूमिगत संगठनों की स्थापना की जिसके सदस्य पोलैण्ड, फ्रांस, इटली एवं जर्मनी आदि राज्यों में समान विचार रखने वाले युवा थे।

मेत्सिनी का विश्वास था कि ईश्वर की इच्छा के अनुसार राष्ट्र ही मनुष्यों की प्राकृतिक इकाई थी। अतः इटली छोटे राज्यों की तरह नहीं रह सकता। उसे जोड़कर राष्ट्रों के व्यापक गठबंधन के अन्दर एकीकृत गणतन्त्र बनाना ही था। यह एकीकरण ही इटली की मुक्ति का आधार हो सकता है। मेत्सिनी ने राजतन्त्र का घोर विरोध करके एवं प्रजातान्त्रिक गणतन्त्रों के अपने स्वप्न से रूढ़िवादियों को पराजित कर दिया।

(ख) काउंट कैमिलो द कावूर-काउंट कैमिलो द कावूर इटली के सार्डीनिया-पीडमॉण्ट राज्य का प्रमुख मंत्री था। वह न तो एक क्रांतिकारी था और न ही जनतंत्र में विश्वास रखने वाला व्यक्ति था। वह इटली के उच्च धनी एवं शिक्षित सदस्यों की भाँति इतालवी की अपेक्षा फ्रेंच भाषा को अच्छे तरीके से बोलने वाला था।

कावूर के प्रयत्नों से फ्रांस और सार्डिनिया-पीडमॉण्ट के बीच एक कूटनीतिक संधि हुई थी। फ्रांस से उसके घनिष्ठ सम्बन्ध थे जिसकी सहायता से सार्डिनिया-पीडमॉण्ट ने सन् 1859 में ऑस्ट्रिया को पराजित कर दिया था। इसने इटली के प्रदेशों को एकीकृत करने वाले आंदोलन का नेतृत्व किया।

(ग) यूनानी स्वतन्त्रता युद्ध-यूरोप में उदारवाद एवं राष्ट्रवाद के विकास के साथ क्रान्तियों का युग प्रारम्भ हुआ। 19वीं शताब्दी में यूनान का स्वतन्त्रता संग्राम भी राष्ट्रवादी भावना से प्रेरित था। यूनान के स्वतन्त्रता संग्राम ने यूरोप के शिक्षित अभिजात वर्ग में राष्ट्रीय भावनाओं का संचार किया। 15वीं शताब्दी से ही यूनान पर ऑटोमन साम्राज्य का शासन था। यूरोप महाद्वीप में क्रान्तिकारी राष्ट्रवाद की प्रगति से यूनान के लोगों में राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ।

इसके परिणामस्वरूप सन् 1821 में यूनान की स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष प्रारम्भ हो गया। यूनान से राष्ट्रवादी नेताओं को निष्कासित कर दिया गया। यूनानवासियों को पश्चिमी यूरोपीय देशों के साथ-साथ अन्य यूरोपीय देशों में रहने वाले निष्कासित यूनानियों का भी समर्थन प्राप्त हुआ क्योंकि वे लोग प्राचीन यूनानी संस्कृति के प्रति सहानुभूति रखते थे। कवियों और कलाकारों ने भी यूनान को यूरोपीय सभ्यता का पालना बताकर उसकी मुक्त कंठ से प्रशंसा की तथा ऑटोमन साम्राज्य के विरुद्ध यूनानी संघर्ष के लिए जनमत जुटाया।

अंग्रेज कवि लॉर्ड बायरन ने धन एकत्रित किया और बाद में युद्ध में भी सम्मिलित हुए लेकिन दुर्भाग्यवश सन् 1824 में बुखार से उनकी मृत्यु हो गयी। अतः सन् 1832 में कुस्तुनतुनिया की संधि ने यूनान को एक स्वतन्त्र राष्ट्र की मान्यता दी। इस तरह यूनान का स्वतन्त्रता संग्राम पूर्ण हुआ।

(घ) फ्रैंकफर्ट संसद-जर्मनी में राष्ट्रवादी नेताओं व राजनैतिक संगठनों द्वारा फ्रैंकफर्ट शहर में एक सर्व जर्मन नेशनल एसेंबली की स्थापना करने का निश्चय किया गया। यह फ्रैंकफर्ट संसद के नाम से जाना जाता है। इसके सदस्यों का चुनाव मताधिकार के द्वारा किया गया। इस संसद का प्रथम अधिवेशन 18 मई, 1848 में आयोजित किया गया। इसमें 831 निर्वाचित प्रतिनिधियों ने भाग लिया। यह संसद सेंट पाल चर्च में आयोजित की गई। इस अधिवेशन में जर्मन राष्ट्र के लिए एक संविदा।

का प्रारूप तैयार किया गया। जर्मन राष्ट्र की अध्यक्षता एक ऐसे राजा को सौंपी गयी जिसे संसद के अधीन रहना था। फ्रैंकफर्ट संसद के प्रतिनिधियों ने प्रशा के राजा फ्रेड्रिक विल्हेम चतुर्थ को जर्मन राष्ट्र का राजा नियुक्त किया। उसने एकीकृत जर्मन राष्ट्र का राजा बनना अस्वीकार कर दिया तथा उसने निर्वाचित सभा के विरोधी राजाओं का साथ दिया। इस प्रकार कुलीन वर्ग एवं सेना का विरोध बढ़ गया और संसद का सामाजिक महत्व कमजोर हो गया।

संसद में मध्यम वर्गों का अधिक प्रभाव था जिन्होंने मजदूरों व कारीगरों की मांगों का विरोध किया। इससे वे मजदूरों का समर्थन खो बैठे। अन्त में सैनिकों को बुलाया गया तथा एसेंबली को भंग कर दिया गया। यद्यपि फ्रैंकफर्ट संसद जर्मनी को एकीकृत करने में असफल रही परन्तु इसने जर्मनी में दूरगामी प्रभाव छोड़े।

(ङ) राष्ट्रवादी संघर्षों में महिलाओं की भूमिका-राष्ट्रवादी संघर्षों में सम्पूर्ण विश्व की महिलाओं ने बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। राष्ट्रवादी आन्दोलन के अन्तर्गत महिलाओं को राजनीतिक अधिकार प्रदान करने का मुद्दा विवाद का विषय बन चुका था। यद्यपि राष्ट्रवादी आन्दोलनों में बहुत पहले से ही बड़ी संख्या में महिलाओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया था।

महिलाओं ने अपने राजनीतिक संगठन तैयार किये, समाचार-पत्र शुरू किये तथा राजनैतिक बैठकों व प्रदर्शनों में भाग लिया लेकिन इसके बावजूद वे राजनीतिक अधिकारों से वंचित थीं। उन्हें एसेम्बली के चुनाव के दौरान मताधिकार से वंचित रखा गया। 1848 ई. में जर्मनी के सेंट पॉल चर्च में जब फ्रैंकफर्ट संसद की सभा आयोजित की गयी थी तब महिलाओं को केवल प्रेक्षकों की हैसियत से दर्शक-दीर्घा में खड़े होने की अनुमति प्रदान की गयी।

JAC Class 10 Social Science Solutions History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

प्रश्न 2.
फ्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान का भाव पैदा करने के लिए फ्रांसीसी क्रान्तिकारियों ने क्या कदम उठाए ?
अथवा
फ्रांसीसियों द्वारा उपनिवेशों के विकास हेतु किये गये कार्यों का वर्णन कीजिए। (मा.शि.बो. राज., 2013)
अथवा
फ्रांसीसी क्रान्तिकारियों द्वारा फ्रांसीसी लोगों में एक सामूहिक पहचान की भावना पैदा करने के लिए प्रारम्भ किए गए किन्हीं पाँच उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
फ्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान का भाव पैदा करने के लिए फ्रांसीसी क्रान्तिकारियों ने निम्नलिखित कदम उठाये

  1. उन्होंने पितृभूमि और नागरिक जैसे विचारों पर बल दिया।
  2. इन विचारों ने एक संयुक्त समुदाय के विचार पर बल दिया जिसे एक संविधान के अन्तर्गत समान अधिकार प्राप्त थे।
  3. उन्होंने एक नया फ्रांसीसी झंडा-तिरंगा चुना, जिसने पहले के राष्ट्रध्वज का स्थान ले लिया।
  4. उन्होंने एस्टेट जनरल का चुनाव सक्रिय नागरिक समूहों द्वारा करवाया तथा उसका नाम बदलकर नेशनल एसेम्बली कर दिया गया।
  5. उन्होंने नयी स्तुतियाँ रची, शपथें ली, शहीदों का गुणगान किया और यह सब राष्ट्र के नाम पर हुआ।
  6. उन्होंने एक केन्द्रीय प्रशासनिक व्यवस्था लागू की जिसने अपने भू-भाग में रहने वाले समस्त नागरिकों के लिए एक समान कानून बनाये।
  7. उन्होंने आयात-निर्यात शुल्क समाप्त कर दिये तथा भार व नाप की एक समान व्यवस्था लागू की।
  8. उन्होंने क्षेत्रीय बोलियों के स्थान पर फ्रेंच भाषा को ही राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित किया।
  9. फ्रांसीसी क्रान्तिकारियों ने यह भी घोषणा की कि फ्रांसीसी राष्ट्र का यह भाग्य और लक्ष्य है कि वह यूरोप के लोगों को निरंकुश शासकों से मुक्त कराये अर्थात् फ्रांस, यूरोप के अन्य लोगों को राष्ट्र के गठित होने में मदद देगा।

प्रश्न 3.
मारीआन और जर्मेनिया कौन थे ? जिस तरह उन्हें चित्रित किया गया उसका क्या महत्त्व शा ?
अथवा
मारीआन और जर्मेनिया कौन थे? नारी रूपकों की यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में क्या भूमिका थी?
उत्तर:
मारीआन-मारीआन फ्रांस राष्ट्र का नारी का प्रतीक रूपक था। फ्रांसीसी क्रान्ति के दौरान कलाकारों ने स्वतन्त्रता, न्याय एवं गणतन्त्र जैसे विचारों को व्यक्त करने के लिए नारी रूपकों का प्रयोग किया। फ्रांस में इसे लोकप्रिय ईसाई नाम ‘मारीआन’ दिया गया जिसने जन राष्ट्र के विचारों को रेखांकित किया।

उसके चिह्न भी स्वतन्त्रता एवं गणतन्त्र के थे-लाल टोपी, तिरंगा व कलगी। फ्रांस में मारीआन की प्रतिमाएँ सार्वजनिक चौराहों पर लगायी गयीं ताकि जनता को एकता के राष्ट्रीय प्रतीक की याद रहे तथा लोगों का विश्वास बना रहे। इसके अतिरिक्त मारीआन की छवि डाक टिकटों एवं सिक्कों पर अंकित की गयी। जर्मेनिया-जर्मेनिया जर्मन राष्ट्र का नारी प्रतीक रूपक था।

चाक्षुष अभिव्यक्तियों में जर्मेनिया बलूत वृक्ष के पत्तों का मुकुट पहनती है क्योंकि जर्मन बलूत वीरता का प्रतीक है। जर्मेनिया की तलवार पर ‘जर्मन तलवार, जर्मन राइन की रक्षा करती है’, अंकित है। इस प्रकार नारी रूप में जर्मेनिया की तस्वीर स्वतन्त्रता, न्याय तथा गणतन्त्र जैसे विचारों को प्रतीकात्मक रूप में व्यक्त करती है। मारीआन व जर्मेनिया को इस प्रकार चित्रित किया गया था कि वे राष्ट्र राज्य के विचार को प्रदर्शित करते थी। वे इस तरह अपने देश का प्रतिनिधित्व करते थे मानो न एक व्यक्ति में। इन्होंने राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया।

प्रश्न 4.
जर्मन एकीकरण की प्रक्रिया का संक्षेप में पता लगाएँ।
अथवा
जर्मनी के एकीकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जर्मन एकीकरण की प्रक्रिया का विवरण निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है-

  1. जर्मन लोगों में सन् 1848 से पहले ही राष्ट्रीयता की भावना जाग्रत हो चुकी थी। राष्ट्रीयता की सहभावना मध्यम वर्ग के जर्मन लोगों में बहुत अधिक थी।
  2. मध्यम वर्ग ने सन् 1848 में जर्मन महासंघ के विभिन्न क्षेत्रों को जोड़कर एक निर्वाचित संसद द्वारा शासित राष्ट्र राज्य बनाने का प्रयास किया गया था।
  3. राष्ट्र निर्माण की इस उदारवादी विचारधारा को राजशाही तथा सेवा ने मिलकर समाप्त कर दिया। इन ताकतों का प्रशा के बड़े भूस्वामियों ने भी समर्थन किया।
  4. प्रशा ने राष्ट्रीय एकीकरण के इस आंदोलन का नेतृत्व सँभाला तथा इसे एक नई दिशा प्रदान की।
  5. प्रशां का प्रमुख मंत्री ऑटो वॉन बिस्मार्क इस प्रक्रिया का जनक था जिसने प्रशा की सेना तथा नौकरशाही की सहायता ली।
  6. सात वर्ष में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क तथा फ्रांस से तीन युद्धों में प्रशा को विजय प्राप्त हुई।
  7. 18 जनवरी, 1871 को वर्साय में हुए एक समारोह में प्रशा के राजा विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया। इस तरह जर्मनी के एकीकरण की प्रक्रिया पूर्ण हुई।

प्रश्न 5.
अपने शासन वाले क्षेत्रों में शासन व्यवस्था को ज्यादा कुशल बनाने के लिए नेपोलियन ने क्या बदलाव किए ?
अथवा
नेपोलियन की संहिता को फ्रांसीसी नियंत्रण के अधीन क्षेत्रों में किस प्रकार लागू किया गया? उदाहरणों सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अपने शासन वाले क्षेत्रों में शासन व्यवस्था को ज्यादा कुशल बनाने के लिए नेपोलियन ने निम्नलिखित बदलाव किए:

  1. नेपोलियन ने प्रशासनिक तंत्र में क्रान्तिकारी सिद्धान्तों का समावेश कर उसे अधिक तर्कसम्मत और प्रभावी बनाया।
  2. उसने सन् 1804 में एक नागरिक संहिता (नेपोलियन संहिता या नेपोलियन कोड) बनाई। उसने जन्म पर आधारित विशेषाधिकार समाप्त कर दिए थे।
  3. उसने कानून के समक्ष समानता एवं सम्पत्ति के अधिकार को सुरक्षित बनाया।
  4. उसने प्रशासनिक विभाजनों को सरल बनाया, सामंती व्यवस्था को खत्म किया तथा किसानों को भू-दासत्व एवं जागीरदारी शुल्कों से मुक्ति दिलवायी।
  5. उसने शहरों में भी कारीगरों के श्रेणी संघों के नियन्त्रणों को हटा दिया था।
  6. यातायात व संचार व्यवस्थाओं में सुधार किये।
  7. एक समान कानून व्यवस्था एवं माप तौल की एक जैसी प्रणाली लागू की।
  8. सम्पूर्ण देश में एक राष्ट्रीय मुद्रा प्रचलित की गई।

चर्चा करें

प्रश्न 1.
उदारवादियों की 1848 की क्रान्ति का क्या अर्थ लगाया जाता है ? उदारवादियों ने किन राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विचारों को बढ़ावा दिया ?
अथवा
उदारवाद क्या है ? उदारवादियों की 1848 की क्रान्ति ने विश्व में किन विचारों को बढ़ावा दिया ?
अथवा
19वीं शताब्दी के दौरान यूरोप में आर्थिक क्षेत्र में ‘उदारवाद’ की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
उदारवाद से आशय-उदारवाद यानि Liberalism शब्द लैटिन भाषा के मूल liber पर आधारित है जिसका अर्थ है। ‘आजाद’। यूरोप में 19वीं शताब्दी में मध्य वर्ग के लोगों एवं बुद्धिजीवियों द्वारा प्रोत्साहित वह विचारधारा, जिसमें उनको राजनीतिक एवं आर्थिक क्षेत्र में अधिकाधिक अवसर प्राप्त हुए तथा उनकी हिस्सेदारी को महत्व प्रदान किया गया, उदारवाद कहलाया।

उदारवादियों की 1848 की क्रान्ति का अर्थ था-राजतंत्र का अन्त तथा गणतंत्र की स्थापना। वे स्वतन्त्र राष्ट्र-राज्य की स्थापना करना चाहते थे जहाँ क्रान्ति की स्वतन्त्रता एवं सभी लोगों के लिए समान कानून तथा स्वतन्त्रता हो। उदारवादियों ने निम्नलिखित राजनैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विचारों को बढ़ावा दिया

  1. सन् 1848 में खाद्य सामग्री का अभाव एवं बेरोजगारी की बढ़ती हुई समस्या के कारण जनजीवन अस्त-व्यस्त हो चुका था। इस संकट के समाधान के लिए उदारवादियों के द्वारा क्रान्ति एवं प्रदर्शन पर बल दिया गया।
  2. सार्वजनिक मताधिकार पर आधारित जनप्रतिनिधि सभाओं (नेशनल एसेम्बली) के निर्माण की माँग बढ़ने लगी।
  3. जर्मनी, इटली, पोलैण्ड, ऑस्ट्रिया व हंगरी आदि के उदारवादी मध्यम वर्ग के स्त्री-पुरुषों ने संविधानवाद की माँग को राष्ट्रीय एकीकरण की माँग से जोड़ दिया।
  4. उदारवादियों ने जनता के असन्तोष का लाभ उठाया तथा एक राष्ट्र राज्य के निर्माण की माँगों को आगे बढ़ाया। यह राष्ट्र राज्य संविधान, प्रेस की स्वतन्त्रता एवं संगठन बनाने की स्वतन्त्रता जैसे संसदीय सिद्धान्तों पर आधारित था।
  5. भू-दासत्व एवं बँधुआ मजदूरी को समाप्त करने की माँग उदारवादी नेताओं द्वारा की जाने लगी।

JAC Class 10 Social Science Solutions History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

प्रश्न 2.
यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति के योगदान को दर्शाने के लिए तीन उदाहरण दें।
अथवा
रूमानीवाद से आप क्या समझते हैं ? रूमानीवाद ने राष्ट्रीयता की धारणा के विकास में किस प्रकार योगदान दिया ? वर्णन कीजिए।
अथवा
यूरोप में संस्कृति के माध्यम से राष्ट्रवाद किस प्रकार विकसित हुआ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति के योगदान की महत्वपूर्ण भूमिका रही। यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में सांस्कृतिक जुड़ाव को रूमानीवाद नाम दिया गया। रूमानीवाद के उदाहरण निम्नलिखित हैं

1. लोक संस्कृति-प्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक योहना गॉटफ्रीड ने दावा किया कि रूमानी जर्मन संस्कृति उसके आम लोगों में निहित थी। उसने लोक संगीत, लोक काव्य एवं लोक नृत्यों के माध्यम से जर्मन राष्ट्र की भावना को प्रचारित व प्रसारित किया।

2. भाषा-राष्ट्रवाद के विकास में भाषा का महत्वपूर्ण योगदान रहा, जिसका उदाहरण पोलैण्ड है। पोलैण्ड में राष्ट्रवाद के विकास में भाषा ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। पोलैण्ड के रूस के कब्जे वाले हिस्सों में पोलिश भाषा को विद्यालयों से बलपूर्वक हटाकर रूसी भाषा को जबरदस्ती लाद दिया गया। जब पादरियों और बिशपों ने रूसी बोलने से इन्कार कर दिया तो उन्हें सजा दी गयी। इस प्रकार पोलिश भाषा रूसी प्रभुत्व के विरुद्ध संघर्ष के प्रतीक के रूप में देखी जाने
लगी।

3. संगीत-पोलैण्ड में परतन्त्रता की स्थिति में संगीत के द्वारा ही राष्ट्रीय भावना जाग्रत रखी गयी। कैरोल कुर्पिस्की नामक एक पोलिश नागरिक था जिसने राष्ट्रीय संघर्ष का अपने ऑपेरा व संगीत से गुणगान किया तथा पोलेनेस व माजुरका जैसे लोकनृत्यों को राष्ट्रीय प्रतीक में बदल दिया।

प्रश्न 3.
किन्हीं दो देशों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए बताएं कि उन्नीसवीं सदी में राष्ट्र किस प्रकार विकसित हुए ?
अथवा
19वीं सदी के मध्य में इटली के राजनीतिक रूप में बँटे होने के कारणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
इटली के एकीकरण का वर्णन कीजिए।
अथवा
जर्मनी व इटली के एकीकरण की प्रक्रिया को समझाइए।
अथवा
जर्मनी का एकीकरण किस प्रकार हुआ था ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उन्नीसवीं सदी में यूरोप में अनेक राष्ट्र विभिन्न तरीकों से विकसित हुए, जिनमें से जर्मनी व इटली प्रमुख हैं

1. जर्मनी:

  • जर्मनी में राष्ट्रवादी भावनाएँ मध्य वर्ग के लोगों में अधिक थीं। सन् 1848 में जर्मन महासंघ ने विभिन्न शेत्रों को जोड़कर एक निर्वाचित संसद (फ्रैंकफर्ट संसद) द्वारा शासित राष्ट्र राज्य बनाने का प्रयास किया था।
  • उदारवादी मध्यम वर्ग द्वारा राष्ट्र निर्माण के इन प्रयासों को राजशाही एवं सेना ने मिलकर दबा दिया। उनका प्रशा के बड़े भूस्वामियों ने भी समर्थन किया।
  • इसके पश्चात् प्रशा ने राष्ट्रीय एकीकरण के आन्दोलन का नेतृत्व सँभाला। प्रशा के प्रमुख मंत्री ऑटोवान बिस्मार्क ने इस कार्य में प्रशा की सेना व नौकरशाही की मदद ली।
  • सात वर्ष के दौरान ऑस्ट्रिया, डेनमार्क एवं फ्रांस से तीन युद्धों में प्रशा को विजय प्राप्त हुई और जर्मनी के एकीकरण की प्रक्रिया पूर्ण हुई।
  • जर्मनी में राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया ने प्रशा राज्य की शक्ति के प्रभुत्व को दर्शाया है।
  • एकीकरण के पश्चात् नये जर्मन राज्य में मुद्रा, बैंकिंग, कानूनी तथा न्यायिक व्यवस्थाओं के आधुनिकीकरण पर बल दिया गया।

2. इटली:

  • जर्मनी की तरह इटली में भी राजनैतिक विखण्डन का एक लम्बा इतिहास रहा है।
  • इटली अनेक वंशानुगत राज्यों एवं बहुराष्ट्रीय हैब्यबर्ग साम्राज्य में बिखरा हुआ था। 19वीं शताब्दी के मध्य में इटली सात राज्यों में विभाजित था, जिनमें से केवल एक राज्य सार्डिनिया- पीडमॉण्ट में एक इतालवी राजघराने का शासन था। उत्तरी भाग ऑस्ट्रिया व हैब्सबर्ग के नियन्त्रण में था, मध्य भाग पर पोप का शासन था तथा दक्षिण भाग स्पेन के बूढे राजाओं के अधीन था।
  • इस समय तक इतालवी भाषा ने भी साझा रूप हासिल नहीं किया था तथा अभी तक उसके विभिन्न क्षेत्रीय व स्थानीय रूप भी मौजूद थे।
  • सन् 1830 के दशक में ज्युसेपे मेत्सिनी ने एकीकृत इतालवी गणराज्य के लिए एक कार्यक्रम का निर्माण किया तथा अपने उद्देश्यों के प्रचार-प्रसार के लिए ‘यंग इटली’ नामक गुप्त संगठन भी बनाया।
  • सन् 1831 और 1848 में क्रान्तिकारी विद्रोहों की असफलता के पश्चात् युद्ध के द्वारा इतालवी सज्यों को संगठित  करने का दायित्व सार्डिनिया-पीडमॉण्ट के शासक विक्टर इमेनुएल पीय पर आ गया।
  •  इटली के प्रदेशों को एकीकृत करने वाले आन्दोलन का नतृत्वकर्ता मंत्री प्रमुख कावूर ने फ्रांस और सार्डिनिया पीडमॉण्ट के मध्य कूटनीतिक संधि करायी।
  • सन् 1859 में सार्डिनिया-पीडमॉण्ट ने ऑस्ट्रिया को पराजित किया। इस युद्ध में नियमित सैनिकों के अतिरिक्त ज्युसेपे मेत्सिनी एवं गैरीबॉल्डी के नेतृत्व में अनेक सशस्त्र स्वयंसेवकों ने भी भाग लिया था।
  • सन् 1860 में वे दक्षिण इटली एवं दो सिसिलियों के राज्यों में प्रवेश कर गये तथा स्पेनी शासकों को हटाने के लिए किसानों की मदद प्राप्त करने में सफल हुए। ।
  • सन् 1861 में इमेनुएल द्वितीय को एकीकृत इटली का राजा घोषित किया गया।
  • सन् 1866 में वेनेशिया को भी इटली में मिला दिया गया। सन 1870 में फ्रांस तथा प्रशा के मध्य युद्ध हुआ। फ्रांस ने अपने सैनिक रोम से हटा लिए। इस अवसर का लाभ उठाकर इटली की सेनाओं ने रोम पर भी अधिकार कर लिया, मेपल राज्य भी इटली में सम्मिलित हो गया। इस प्रकार इटली का एकीकरण हुआ।

JAC Class 10 Social Science Solutions History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

प्रश्न 4.
ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का इतिहास शेष यूरोप की तुलना में किस प्रकार भिन्न था ?
अथवा
ब्रिटेन एवं अन्य यूरोपीय देशों के राष्ट्रवाद का तुलनात्मक अध्ययन कीजिए। (मा.शि.बो. राज., 2012)
उत्तर:
यूरोप में राष्ट्रवाद शक्तिशाली क्रान्तियों, युद्धों तथा सैन्य अभियानों के फलस्वरूप विकसित हुआ। इसका उदाहरण जर्मनी और इटली का एकीकरण है। लेकिन ब्रिटेन में राष्ट्र राज्य का निर्माण किसी क्रान्ति का परिणाम नहीं था बल्कि यह एक क्रमिक विकास के अन्तत सम्भव हुआ। ब्रिटेन में राष्ट्रवाद के लिए कोई युद्ध नहीं लड़ा गया। अतः ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का इतिहास शेष यूरोप से भिन्न है।

ब्रिटेन में अंग्रेज, वेल्स, स्कॉटिश व आयरिश आदि जातीय समूह थे जिनकी पहचान नृजातीय थी। इन जातीय समूहों में से अंग्रेज धीरे-धीरे ताकतवर होते चले गए और उन्होंने अन्य जातीय समूहों पर प्रभुत्व जमाना प्रारम्भ कर दिया। सर्वप्रथम उन्होंने स्कॉटिश लोगों को अपने देश में सम्मिलित किया फिर उन पर प्रभुत्व यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय 11 स्थापित किया। इसके पश्चात् उन्होंने आयरिश लोगों पर नियन्त्रण किया तथा आयरलैण्ड को बलपूर्वक ब्रितानी राज्य में सम्मिलित कर लिया। इस प्रकार ‘यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन’ का शांतिपूर्ण तरीके से गठन हुआ।

प्रश्न 5.
बाल्कन प्रदेशों में राष्ट्रवादी तनाव क्यों पनपा?
अथवा
यूरोप में सन् 1871 के बाद बाल्कन क्षेत्र में बनी विस्फोटक परिस्थितियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सन् 1871 के पश्चात् यूरोप में गंभीर राष्ट्रवादी तनाव का प्रमुख स्रोत बाल्कन क्षेत्र था। इस तनाव के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

  1. बाल्कन प्रदेश में अनेक जातीय समूह निवास करते थे।
  2. इस क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा ऑटोमन साम्राज्य के नियन्त्रण में था, जो पतन के कगार पर था।
  3. 19वीं शताब्दी में ऑटोमन साम्राज्य ने आधुनिकीकरण एवं आंतरिक सुधारों के माध्यम से स्थिति में परिवर्तन लाने का प्रयास किया लेकिन कोई विशेष सफलता नहीं मिल पायी।
  4. जैसे-जैसे विभिन्न स्लाव राष्ट्रीय समूहों में अपनी पहचान तथा स्वतन्त्रता का विकास हुआ वैसे-वैसे बाल्कन क्षेत्र में तनाव बढ़ता गया।
  5. बाल्कन क्षेत्र में बड़ी शक्तियों के मध्य अधिक-से-अधिक क्षेत्र हथियाने की प्रतिस्पर्धा होने लगी। इसी समय यूरोपीय शक्तियों के बीच व्यापार व उपनिवेशों के साथ नौ-सैनिक और सैन्य ताकतों के लिए गहरी प्रतिस्पर्धा थी।
  6. रूस, जर्मनी, इंग्लैण्ड, ऑस्ट्रिया-हंगरी आदि बाल्कन क्षेत्र पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास करने लगे जिसके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में कई युद्ध हुए और अन्त में प्रथम विश्वयुद्ध जैसे परिणाम का सामना करना पड़ा।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1.
यरोप से बाहर के देशों में राष्ट्रवादी प्रतीकों के बारे में और जानकारियाँ इकट्ठा करें। एक या दो देशों के विषय में ऐसी तस्वीरें, पोस्टर्स और संगीत इकट्ठा करें जो राष्ट्रवाद के प्रतीक थे। वे यूरोपीय राष्ट्रवाद के प्रतीकों से भिन्न कैसे हैं ?
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं हल करें।

क्रियाकलाप सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

गतिविधि (पृष्ठ संख्या 3)

प्रश्न 1.
आपकी राय में चित्र 1 किस प्रकार एक कल्पनादी दृष्टि को प्रतिबिम्बित करता है?
उत्तर:
पाठ्य-पुस्तक में दिया गया चित्र 1 सन् 1848 में एक फ्रांसीसी कलाकार फ्रेड्रिक सॉरयू के द्वारा बनाया गया था। इस चित्र में विश्वव्यापी प्रजातांत्रिक एवं सामाजिक गणराज्यों का स्वप्न चित्रित किया गया है। इसमें यूरोप और अमेरिका के लोगों को दिखाया गया है जो प्रजातांत्रिक एवं सामाजिक गणतंत्र बनाने की दिशा में अग्रसर होंगे। यह वास्तव में एक आदर्श स्थिति होगी। अत: यह चित्र एक कल्पनादर्शी स्थिति का चित्रण करता है क्योंकि इस स्थिति के साकार होने की सम्भावना अत्यन्त कम है।

गतिविधि (पृष्ठ संख्या 11)

प्रश्न 3.
यूरोप के नक्शे पर उन परिवर्तनों को चिह्नित करें जो वियना कांग्रेस के फलस्वरूप सामने आए।
उत्तर:
विद्यार्थी पाठ्य-पुस्तक में पेज 6 पर मानचित्र को देखें।

गतिविधि (पृष्ठ संख्या 16)

प्रश्न 4.
कल्पना कीजिए कि आप एक बुनकर हैं जिसने चीज़ों को बदलते हुए देखा है। आपने क्या देखा, इस आधार पर एक रिपोर्ट लिखिए।
उत्तर:
मैं एक बुनकर हूँ। मैंने देखा कि बुनकर समय पर माल की आपूर्ति करने के लिए कठिन परिश्रम करते हैं, इसके बावजूद उन्हें समय पर बकाया पैसा नहीं मिलता है। जब ठेकेदारों से अपना बकाया पैसा माँगा जाता है तो वे उन्हें डाँटते-फटकारते हैं और मारपीट भी करते हैं। इस पर बुनकर समुदाय कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। वे गैर-कानूनी रूप से ठेकेदारों के घरों में प्रवेश करते हैं। बुनकर अपना गुस्सा ठेकेदारों के घरों पर निकालते हैं। ठेकेदार डर कर भाग जाते हैं। अगले दिन ठेकेदार सेना के साथ लौटते हैं तथा बुनकरों को गोली मरवा दी जाती है।

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गतिविधि (पृष्ठ संख्या 20)

प्रश्न 5.
इस व्यंग्य चित्र का वर्णन करें। इसमें बिस्मार्क और संसद के निर्वाचित डेप्युटीज के बीच किस प्रकार का संबंध दिखायी देता है ? यहाँ चित्रकार लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की क्या व्याख्या करना चाहता है ?
उत्तर:
पुस्तक में दिये गये इस व्यंग्य चित्र में जर्मन संसद (राइखस्टैग) में बिस्मार्क को हाथ में हंटर थामे दिखाया गया है, जिसे वह हवा में घुमा रहा है। शेष प्रतिनिधि उससे भयभीत हो रहे हैं। अपने बचाव के लिए सभी प्रतिनिधि बिस्मार्क के लिए आदर प्रदर्शित करते हुए संसद में सिर झुकाए बैठे हैं। यह व्यंग्य चित्र बतलाता है कि बिस्मार्क जर्मनं सांसदों के मस्तिष्कों पर शासन करता था। वह अपने लोगों पर प्रभावी नियंत्रण रखता था। इस चित्र में कलाकार हास्यास्पद ढंग से जनतांत्रिक व्यवस्था की व्याख्या करता है जिसमें जनतंत्र केवल नाम के लिए ही अस्तित्व में है। वास्तव में यह एक व्यक्ति (बिस्मार्क) का एकतंत्र है, जो जर्मन संसद में अस्तित्वमान होता है।

गतिविधि (पृष्ठ संख्या 21)

प्रश्न 6.
पाठ्य-पुस्तक के चित्र 14 (क) को देखें। क्या आपको लगता है कि इनमें से किसी भी क्षेत्र में रहने वाले खुद को इतालवी मानते होंगे ?
पाठ्य-पुस्तक के चित्र 14(ख) की जाँच करें। कौन-सा क्षेत्र सबसे पहले एकीकृत इटली का हिस्सा बना ? सबसे आखिर में कौन-सा क्षेत्र शामिल हुआ ? किस साल सबसे ज्यादा राज्य एकीकृत इटली में शामिल हुए ?
उत्तर:
(क) हाँ, दोनों सिसलियों के राजतन्त्र में निवास करने वाले लोग तथा वेनेशिया एवं लॉम्बार्डी के लोग खुद को इतालवी मानते होंगे।
(ख)

  1. वेनेशिया क्षेत्र सबसे पहले एकीकृत इटली का हिस्सा बना।
  2. मेपल का क्षेत्र सबसे बाद में एकीकृत इटली में सम्मिलित हुआ।
  3. सन् 1858 ई. में सबसे ज्यादा राज्य एकीकृत इटली में सम्मिलित हुए।

गतिविधि (पृष्ठ संख्या 22)

प्रश्न 7.
चित्रकार ने गैरीबॉल्डी को सार्डिनिया-पीडमॉण्ट के राजा को जूते पहनाते हुए दिखाया गया है। अब इटली के नक्शे को फिर देखें। यह व्यंग्य चित्र क्या कहने का प्रयास कर रहा है ?
उत्तर:
चित्रानुसार जूते दक्षिण इटली के दो सिसलियों के राज्य को दर्शा रहे हैं। जिन पर गैरीबॉल्डी ने विजय प्राप्त की थी तथा बाद में उन्हें सार्डिनिया-पीडमॉण्ट के शासक को सौंप दिया था, जिसे संयुक्त इटली का राजा घोषित किया गया था। इस चित्र में इटली के एकीकरण तथा इसमें गैरीबॉल्डी की भूमिका को दर्शाया गया है।

गतिविधि (पृष्ठ संख्या 24)

प्रश्न 8.
1. बॉक्स 3 में दिए गए चार्ट की सहायता से वेइत की जर्मेनिया के गुणों को पहचानें और तस्वीर के प्रतीकात्मक अर्थ की व्याख्या करें। 1836 की एक पुरानी रूपात्मक तस्वीर में वेइत ने काइजर के मुकुट को उस जगह चित्रित किया था जहाँ अब उन्होंने टूटी हुई बेड़ियाँ दिखायी हैं। इस बदलाव का महत्व स्पष्ट करें।
उत्तर:
फिलिप वेट द्वारा चित्रित जर्मेनिया के चित्र में दर्शाया गया है कि जर्मन ‘राष्ट्र का उदय हुआ है। यह एक नये युग का सूत्रपात है जिसमें उदारवादी-राष्ट्रवादी विचारधारा को बल मिलेगा। नया जर्मन राष्ट्र बहुत अधिक शक्तिशाली है तथा अपने पड़ोसी राज्य के साथ युद्ध अथवा शांति के लिए सदैव तत्पर है। यह राष्ट्र राजशाही प्रभुत्व से पूर्णतः मुक्त है। जर्मेनिया ने बलूत के पत्तों का मुकुट पहन रखा है जो वीरता का प्रतीक है। जर्मेनिया के पूर्व के चित्र में परिवर्तन करते हुए मुकुट को टूटी हुई बेड़ियों के स्थान पर रखा गया है जो यह दर्शाता है कि जर्मन राष्ट्र राजशाही के निरंकुश शासन से पूर्णतः स्वतन्त्र है।

2. बताएं कि चित्र 18 में आपको क्या दिखाई पड़ रहा है? राष्ट्र के इस रूपात्मक चित्रण में बनर किन ऐतिहासिक घटनाओं की ओर संकेत कर रहे हैं?
उत्तर:
सन् 1850 में जूलियस ह्यूबनर द्वारा चित्रित इस चित्र में काइजर के मुकुट एवं छड़ी के समक्ष जर्मेनिया गिर गयी थी। राष्ट्र के इस रूपात्मक चित्रण का अर्थ है कि सर्व-जर्मन नेशनल एसेंबली, जो फ्रैंकफर्ट संसद के रूप में सेंट पाल यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय 130 चर्च में आयोजित हुई थी, असफल हो गयी। चित्र में मुकुट तथा छड़ी इस बात के प्रतीक दिखायी देते हैं कि फ्रैंकफर्ट संसद को राजशाही तथा सेना द्वारा भंग कर दिया गया।

गतिविधि (पृष्ठ संख्या 25)

प्रश्न 9.
चित्र 10 को एक बार फिर देखें। कल्पना करें कि आप मार्च 1848 में फ्रैंकफर्ट के नागरिक हैं और संसद की कार्यवाही के समय वहीं मौजूद हैं। यदि आप हॉल ऑफ डेप्यूटीज में बैठे हुए पुरुष होते तो दीवार पर लगे जर्मेनिया के बैनर को देखकर क्या महसूस करते ? और अगर आप हॉल ऑफ डेप्यूटीज में बैठी महिला होतीं तो इस चित्र को देखकर क्या महसूस करती ? दोनों भाव लिखें।
उत्तर:
मैं मार्च 1848 फ्रैंकफर्ट का नागरिक होता/होती

  1. यदि मैं हॉल ऑफ डेप्यूटीज में बैठा हुआ पुरुष होता तो जर्मेनिया के बैनर को देखकर यह महसूस करता कि वह सच हो गया है।
  2. अगर मैं हॉल ऑफ डेप्यूटीज में बैठी महिला होती तो इस चित्र को देखकर यह महसूस करती कि जर्मेनिया का यह चित्र उदारवादी-राष्ट्रवादी विचारधारा का आंशिक रूप से प्रतिनिधित्व करता है।

चर्चा करें (पृष्ठ संख्या 4)

प्रश्न 10.
रेनन की समझ के अनुसार एक राष्ट्र की विशेषताओं का संक्षिप्त विवरण दें। उसके मतानुसार राष्ट्र क्यों महत्वपूर्ण है ?
उत्तर:
अर्स्ट रेनन एक फ्रांसीसी दार्शनिक था। रेनन की समझ के अनुसार, एक राष्ट्र की प्रमुख विशेषताएँ अग्रलिखित हैं

  1. एक राष्ट्र लम्बे प्रयासों, त्याग व निष्ठा का चरम बिन्दु होता है।
  2. शौर्य वीरता से मुक्त अतीत, महान पुरुषों के नाम तथा गौरव यह वह सामाजिक पूँजी है जिस पर एक राष्ट्रीय विचार आधारित किया गया है।
  3. राष्ट्र एक बड़ी व्यापक एकता है, जिसका अस्तित्व जनमत संग्रह पर निर्भर होता है।
  4. राष्ट्र में केवल उनके निवासियों को ही सलाह लेने का अधिकार प्राप है।
  5. किसी देश का विलय करने अथवा किसी देश पर उसकी इच्छा के विरुद्ध कब्जा जमाए रखने में एक राष्ट्र की वास्तविक रूप में कोई दिलचस्पी नहीं होती है। अटै रेनन के मतानुसार राष्ट्र महत्वपूर्ण है, क्योंकि राष्ट्रों का होना स्वतन्त्रता की गारंटी है।

चर्चा करें (पृष्ठ संख्या 10)

प्रश्न 11.
उन राजनीतिक उद्देश्यों का विवरण दें जिन्हें आर्थिक कदमों द्वारा हासिल करने की उम्मीद लिस्ट को है।
उत्तर:
प्रोफेसर फ्रेडरिक लिस्ट को निम्नलिखित राजनीतिक उद्देश्यों को आर्थिक कदमों द्वारा हासिल करने की उम्मीद है
जर्मनी के ट्यूबिजन विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर फ्रेडरिक लिस्ट ने 1834 में लिखा-“जॉलवेराइन का लक्ष्य लोगों का आर्थिक रूप से एक राष्ट्र में बाँध देना है। वह राष्ट्र की आर्थिक हालत जितना बाहरी तरह से उसके हितों की रक्षा करके मजबूत बनाएगा, उतना ही आंतरिक उत्पादकता को बढ़ाकर भी। उसे प्रांतीय हितों को आपस में जोड़कर राष्ट्रीय भावना को जगाना और उठाना चाहिए। जर्मन लोग यह समझ गए हैं कि एक मुक्त आर्थिक व्यवस्था ही राष्ट्रीय भावनाओं के उत्पन्न होने का एकमात्र जरिया है।”

JAC Class 10 Social Science Solutions History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

चर्चा करें (पृष्ठ संख्या 11)

प्रश्न 12.
व्यंग्यकार क्या दर्शाने का प्रयास कर रहा है?
उत्तर;
व्यंग्यकार एक क्लब में बैठे मुंह पर पट्टी बाँधे कुछ पढ़े-लिखे लोगों को चित्र द्वारा यह दर्शाने का प्रयास कर रहा है कि सन् 1815 में स्थापित रूढ़िवादी शासन व्यवस्थाएं निरंकुश थीं। वे आलोचना और असहमति बरदाश्त नहीं करती थीं और उन्होंने उन गतिविधियों को दबाना चाहा जो निरंकुश सरकारों की वैधता पर सवाल उठाती थीं। ज्यादातर सरकारों ने सेंसरशिप के नियम बनाए जिनका उद्देश्य अखबारों, किताबों, नाटकों और गीतों में व्यक्त उन बातों पर नियंत्रण लगाना था, जिनसे फ्रांसीसी क्रांति से जुड़े स्वतन्त्रता और मुक्ति के विचार झलकते थे।

चर्चा करें (पृष्ठ संख्या 15)

प्रश्न 13.
राष्ट्रीय पहचान के निर्मित होने में भाषा और लोक परम्पराओं के महत्त्व की चर्चा करें।
उत्तर:
राष्ट्रीय पहचान के निर्मित होने में भाषा और लोक परम्पराओं का निम्नलिखित महत्त्व है

  1. किसी क्षेत्र विशेष अथवा देश की भाषा और लोक परम्पराएँ लोगों द्वारा एक साथ व्यतीत किए गए अतीत व सामूहिक एकता से जीवनयापन की जानकारी देते हैं।
  2. भाषा और लोक परम्पराएँ लोगों को सांस्कृतिक रूप से समान होने की भावना प्रदान करती हैं जिससे कि वे स्वयं को प्राकृतिक रूप से एक व संयुक्त समझते हैं।
  3. भाषा व लोक परम्पराएँ लोगों को एकता एवं गर्व के धागे से बाँधती हैं।

चर्चा करें (पृष्ठ संख्या 16)

प्रश्न 14.
सिलेसियाई बुनकरों के विद्रोह के कारणों का वर्णन करें। पत्रकार के नजरिए पर टिप्पणी करें।
उत्तर:
सिलेसियाई बुनकरों ने ठेकेदारों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया, जिसके निम्नलिखित कारण थे
1. सिलेसियाई बुनकरों के विद्रोह का कारण था, किए गए कार्य हेतु उन्हें बहुत कम पारिश्रमिक का मिलना।

2. तैयार किए गए कपड़े का कम दाम मिलना। पत्रकार विल्हेम वोल्फ ने सन् 1845 में घटित सिलेसिया के एक गाँव की घटना का वर्णन किया। पत्रकार का यह नजरियां था कि-श्रमिकों की हालत खराब है और काम के लिए बेताब लोगों का ठेकेदार कपड़ा उठाना चाहते हैं-पूरी तरह तर्कसंगत व स्वीकार्य हैं। इस प्रकार बुनकरों के प्रति पत्रकार का नजरिया सहानुभूतिपूर्ण था।

JAC Class 10 Social Science Solutions History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

चर्चा करें (पृष्ठ संख्या 18)

प्रश्न 15.
ऊपर ऊद्भुत तीन लेखकों द्वारा महिलाओं के अधिकारों के प्रश्न पर व्यक्त विचारों की तुलना करें। उनसे उदारवादी विचारधारा के बारे में क्या स्पष्ट होता है ?
उत्तर:
ऊपर उद्धृत तीन लेखकों द्वारा महिलाओं के अधिकारों के प्रश्न पर व्यक्त विचारों की तुलना

  1. कार्ल वेल्कर महिलाओं को किसी भी प्रकार का राजनीतिक अधिकार नहीं देने का समर्थन करता है। उसके अनुसार महिलाओं को पुरुष की सुरक्षा की आवश्यकता है।
  2. लुइजे ऑटो पीटर्स उन पुरुषों की आलोचना करती है, जिन्हें राजनीतिक अधिकार प्राप्त हैं। इन्होंने महिलाओं को राजनीतिक अधिकार देने की वकालत की है।
  3. एक अनाम पाठक ने महिला अधिकारों के विषय में तर्कपूर्ण पक्ष रखा है-उसने पुरुषों व महिलाओं से सम्बद्ध राजनीतिक अधिकारों पर एक तुलनात्मक अध्ययन भी प्रस्तुत किया है जिसमें महिलाओं के लिए मताधिकार की वकालत की गई है। तीनों लेखकों के विचारों से यह स्पष्ट होता है कि उनमें उदारवादी विचारधारा के प्रश्न पर बड़ा मतभेद है। उदारवादी लेखक व चिंतक महिला अधिकारों के प्रश्न पर एकमत नहीं हैं।

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