JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व Textbook Exercise Questions and Answers

JAC Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

Jharkhand Board Class 12 Political Science समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व InText Questions and Answers

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प्रश्न 1.
मैं खुश हूँ कि मैंने विज्ञान के विषय नहीं लिये वर्ना मैं भी अमरीकी वर्चस्व का शिकार हो जाता । क्या आप बता सकते हैं क्यों?
उत्तर:
यदि मैं विज्ञान के विषय लेकर अध्ययन करता तो अध्ययन के बाद मैं वैज्ञानिक या इंजीनियर या डॉक्टर बनता। इन स्थितियों में मैं अमरीकी वर्चस्व का शिकार अवश्य हो जाता क्योंकि इन क्षेत्रों में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अमरीकी नेटवर्क का ही वर्चस्व है।

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प्रश्न 2.
क्या यह बात सही है कि अमरीका ने अपनी जमीन पर कभी कोई जंग नहीं लड़ी? कहीं इसी वजह से जंगी कारनामे करना अमरीका के लिए बाएं हाथ का खेल तो नहीं?
उत्तर:
हाँ, यह बात सही है कि अमरीका ने अपनी जमीन पर कभी कोई जंग नहीं लड़ी और अमरीका के लिए जंगी कारनामे करने का यह एक बहुत बड़ा कारण भी है क्योंकि अपनी जमीन पर जंग न लड़े जाने के कारण अमरीका को अपनी जमीन पर जंग से होने वाली जन-धन की अपार हानि कभी नहीं उठानी पड़ी। इससे होने वाली क्षति से प्रायः सभी महाशक्तियाँ प्रभावित रही हैं, लेकिन अमेरिका इससे अछूता रहा है। इसलिए उसकी शक्ति में कभी भी इतनी कमी नहीं आ पायी कि वह जंग के खर्चे से बचे।

दूसरे, अपनी जमीन पर जंग न लड़े जाने के कारण वहाँ की जनता को जंग के उन दारुण्य दुःखों का एहसास नहीं है। इस कारण वहाँ की जनता भी अपने शासकों को जंग से रोकने का पूर्ण प्रयास नहीं करती है। तीसरे, उन्नत प्रौद्योगिकी तथा अत्याधुनिक हथियारों के बलबूते अमेरिका किसी देश पर हमला करने में समर्थ है। इन तीनों ही बातों के कारण अमेरिका के लिए जंगी कारनामे करना बायें हाथ का खेल है।

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प्रश्न 3.
यह तो बड़ी बेतुकी बात है! क्या इसका यह मतलब लगाया जाए कि लिट्टे आतंकवादियों के छुपे होने का शुबहा होने पर श्रीलंका पेरिस पर मिसाइल दाग सकता है?
उत्तर:
9/11 की आतंकवादी घटना के पश्चात् अमेरिका ने शुबहा के आधार पर अफगानिस्तान तथा विश्व के अन्य अनेक देशों में ‘ऑपरेशन एंड्यूरिंग फ्रीडम’ अभियान चलाकर लोगों को गिरफ्तार करके गोपनीय स्थलों पर बनी जेलों में भर कर उन पर अमानवीय अत्याचार किये थे। लड़की इसे ही बेतुकी बात कहती है क्योंकि आतंकवादियों के किसी देश में छिपे होने के संदेह के आधार पर उस देश पर बमों की वर्षा करना अनुचित है। अमरीका ने ऐसा किया है। उसका यह कृत्य संयुक्त राष्ट्र संघ की कमजोरी को दर्शाता है तथा अमरीका की विश्व – दादागीरी को स्पष्ट दर्शाता है

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प्रश्न 4.
क्या अमरीका में भी राजनीतिक वंश-परम्परा चलती है या यह सिर्फ एक अपवाद है?
उत्तर:
अमरीका में राजनीतिक वंश परम्परा नहीं चलती। एच. डब्ल्यू. बुश के राष्ट्रपति बनने के बाद उनके पुत्र जार्ज डब्ल्यू. बुश का राष्ट्रपति बनना एक अपवाद भर है क्योंकि अमरीका एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है और यहाँ के मतदाता प्रत्येक चार वर्ष बाद अपना राष्ट्रपति चुनते हैं।

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प्रश्न 5.
शीत युद्ध के बाद हुए उन संघर्षो / युद्धों की सूची बनाएं जिनमें अमरीका ने निर्णायक भूमिका निभाई।
उत्तर:
शीत युद्ध के बाद अमरीका ने अग्र प्रमुख संघर्षों/युद्धों में निर्णायक भूमिका निभायी –

  • 1990 में अमेरिका ने ‘ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म’ नामक इराक के विरुद्ध सैनिक अभियान चलाया जिसे ‘प्रथम खाड़ी युद्ध’ कहा जाता है।
  • वर्ष 1998 में अमेरिका ने ‘ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच’ के तहत सूडान व अफगानिस्तान के अलकायदा के ठिकानों पर कई बार क्रूज मिसाइलों से हमला किया।
  • 1999 में अमरीकी नेतृत्व में नाटो के देशों ने यूगोस्लावियाई क्षेत्रों पर दो महीने तक बमबारी की। इससे यूगोस्लाविया से स्लोबदान मिलोसेविच की सरकार गिर गई और कोसावो पर नाटो की सेना काबिज हो गई।
  • 11 सितम्बर, 2001 को अमरीका पर हुई आतंकवादी घटना के बाद आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध के अंग के रूप में ‘ऑपरेशन एन्ड्यूरिंग फ्रीडम’ के तहत मुख्य निशाना अलकायदा और अफगानिस्तान के तालिबान शासन को बनाया । तालिबान शासन का वहां अन्त हुआ।
  • 19 मार्च, 2003 को अमरीका ने ‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ के कूट नाम से इराक पर सैन्य हमला किया और इराकी शासक सद्दाम को शासन से अपदस्थ किया गया।

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प्रश्न 6.
‘अमेरिका के अंगूठे तले’ शीर्षक का यह कार्टून ( पाठ्यपुस्तक पृष्ठ – 38 ) वर्चस्व के आमफहम अर्थ को ध्वनित करता है। अमेरिकी वर्चस्व की प्रकृति के बारे में यह कार्टून क्या कहता है? कार्टूनिस्ट विश्व के किस हिस्से के बारे में इशारा कर रहा है?
उत्तर:
यह कार्टून अमरीकी वर्चस्व की दादागिरी की प्रकृति को बता रहा है कि अमरीकी राजनीति पूर्णरूप से शक्ति और उसकी मनमानी के इर्द-गिर्द घूमती है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में वह अपनी सैन्य तथा आर्थिक शक्ति के बलबूते प्रत्येक देश के राजनैतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में अपनी दादागिरी चलाना चाहता है।

प्रश्न 7.
‘वर्चस्व’ जैसे भारी-भरकम शब्द का इस्तेमाल क्यों करें? हमारे शहर में इसके लिए ‘दादागीरी’ शब्द चलता है। क्या यह शब्द ज्यादा अच्छा नहीं रहेगा?
उत्तर:
हमारे शहर में ‘दादागीरी’ शब्द ‘शारीरिक ताकत’ के अर्थ में चलता है। वर्चस्व के ‘सैन्य प्रभुत्व’ के पर्याय के रूप में ही हम ‘दादागीरी’ शब्द का प्रयोग कर सकते हैं लेकिन वर्चस्व का रूप ‘दादागीरी’ के भाव से व्यापक है; इसमें सैन्य प्रभुत्व, आर्थिक शक्ति, राजनैतिक रुतबे और सांस्कृतिक बढ़त के अनेक रूप हैं।

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प्रश्न 8.
पर दिये हुए नक्शे को ध्यान से देखें और नीचे दिये गये प्रश्न का उत्तर दें। अमरीका की सैन्य शक्ति के बारे में यह मानचित्र क्या बताता है ?
उत्तर:
इस मानचित्र में अमरीकी सशस्त्र सेना के पांच अलग-अलग कमानों के सैन्य कार्रवाई के क्षेत्र को दिखाया गया है जिससे पता चलता है कि अमरीकी सेना का कमान क्षेत्र सिर्फ संयुक्त राज्य अमरीका तक सीमित नहीं है बल्कि इसके विस्तार में समूचा विश्व शामिल है। इनके बूते अमरीका पूरी दुनिया में कहीं भी निशाना साध सकता है।

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प्रश्न 9.
यह देश इतना धनी कैसे हो सकता है? मुझे तो यहाँ बहुत से गरीब लोग दिख रहे हैं। इनमें अधिकांश अश्वेत हैं।
उत्तर:
यह सही है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में वहाँ के अश्वेत लोग गरीब हैं; वहाँ आर्थिक असमानता तथा गरीबी विद्यमान है, लेकिन किसी देश की समृद्धि का पैमाना वहाँ की आर्थिक असमानता को नहीं बनाया जाता है। किसी देश की समृद्धि का पैमाना है। उसका सकल घरेलू उत्पाद, विश्व की अर्थव्यवस्था में उसकी हिस्सेदारी, विश्व के व्यापार में उसकी हिस्सेदारी आदि। इस दृष्टि से देखें तो तुलनात्मक क्रय शक्ति के आधार पर 2005 में अमरीका का सकल घरेलू उत्पाद विश्व का 20 प्रतिशत था। विश्व की अर्थव्यवस्था में अमरीका की हिस्सेदारी 28 प्रतिशत है और विश्व के कुल व्यापार में अमरीका की हिस्सेदारी 15 प्रतिशत है। विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा विश्व व्यापार संगठन पर अमेरिकी प्रभाव है। यह तथ्य बताते हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका एक धनी देश है।

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प्रश्न 10.
बड़ी विचित्र बात है! अपने लिए जीन्स खरीदते समय तो मुझे अमरीका का ख्याल तक नहीं आता फिर मैं अमरीकी वर्चस्व के चपेट में कैसे आ सकती हूँ?
उत्तर:
वर्चस्व का सांस्कृतिक पहलू यह है कि यहाँ जोर-जबरदस्ती से नहीं बल्कि रजामंदी से बात मनवायी जाती है। समय गुजरने के साथ हम इसके इतने अभ्यस्त हो जाते हैं कि हम उसे इतना ही सहज मानते हैं जितना कि अपने आस-पास के पेड़, पक्षी या नदी को। यही स्थिति ‘नीली जीन्स’ को हमारे पहनने के सम्बन्ध में लागू होती है और हमें इसको खरीदते तथा पहनते समय अमरीकी सांस्कृतिक वर्चस्व का एहसास तक नहीं होता है।

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प्रश्न 11.
परियोजना कार्य-
भारत और अमरीका के बीच हाल ही में नागरिक परमाणु समझौता हुआ है। इसके बारे में अखबारों से रिपोर्ट और लेख जुटाएँ। इस समझौते के समर्थक और विरोधियों के तर्कों का सार संक्षेप में लिखें।
उत्तर:
भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका में परमाणु ऊर्जा के मामले में एक समझौता हुआ। भारत की लोकसभा में इस समझौते पर बहस में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इसके पक्ष में तथा विपक्षी नेताओं, विशेषकर भाजपा और मार्क्सवादी साम्यवादी पार्टी के नेताओं ने इसके विरोध में अपने-अपने तर्क दिये जिनका सार संक्षेप में निम्न प्रकार है- समझौते के पक्ष में तर्क- प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि ताकत की राजनीति अब बीते दिनों की बात हो गयी है। हमें अपनी आत्मरक्षा को सुनिश्चित करते हुए आए अवसरों का लाभ भी उठाना चाहिए। इसलिए हमें सभी शक्तिशाली देशों से अच्छे सम्बन्ध बनाये रखने की दृष्टि से अमेरिका के साथ इस परमाणु समझौते को मान्यता देनी चाहिए क्योंकि यह दोनों देशों के पक्ष में है तथा इसमें सरकार ने कोई ऐसी धारा नहीं रखने दी है जिससे देश की सुरक्षा पर आँच आए। समझौते के विपक्ष में तर्क-

  1. भाकपा (मार्क्सवादी) नेता बासुदेव आचार्य ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद से हम अपने राष्ट्रीय हितों के कारण स्वतंत्र विदेश नीति पर अमल करते आ रहे हैं। लेकिन अब भारत सरकार अमेरिकी दबाव के समक्ष झुक रही है और राष्ट्रीय हित को तिरोहित कर रही है। अतः यह समझौता भारत के हितों को अमरीका के हाथों गिरवी रखने जैसा है।
  2. भाजपा नेता खंडूरी ने कहा कि अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य में हमें विश्व की एकमात्र महाशक्ति अमरीका के साथ अच्छे सम्बन्ध रखने चाहिए लेकिन अपनी सुरक्षा की कीमत पर नहीं सरकार को हर कीमत पर देश की सुरक्षा और हितों को बनाए रखना चाहिए। नोट – विद्यार्थी अखबारों से रिपोर्ट तथा लेख जुटाकर इन तर्कों का विस्तार कर सकते हैं।

प्रश्न 12.
जैसे ही मैं कहता हूँ कि मैं भारत से आया हूँ, ये लोग मुझसे पूछते हैं कि “क्या तुम कम्प्यूटर इंजीनियर हो?” यह सुनकर अच्छा लगता है। क्यों?
उत्तर:
यह सुनकर इसलिये अच्छा लगता है क्योंकि इससे भारत में कम्प्यूटर शिक्षा के क्षेत्र में हुई प्रगति एहसास होता है।

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प्रश्न 13.
ये सारी बातें ईर्ष्या से भरी हुई हैं। अमरीकी वर्चस्व से हमें परेशानी क्या है? क्या यही कि हम अमरीका में नहीं जन्मे? या कोई और बात है?
उत्तर:
अमरीकी वर्चस्व का प्रतिरोध करना कोई ईर्ष्या से भरी हुई बात नहीं है, बल्कि विश्व के एकमात्र चौधरी के असहनीय व्यवहार का एकमात्र विकल्प यही है कि हम उस असहनीय व्यवहार का प्रतिरोध करें उदाहरण के लिए, हम एक विश्वग्राम में रहते हैं जिसमें एक चौधरी है और हम सभी उसके पड़ोसी यदि चौधरी का बरताव असहनीय हो जाये तो भी विश्वग्राम से चले जाने का विकल्प हमारे पास मौजूद नहीं है क्योंकि यही एकमात्र गांव है जिसे हम जानते हैं और रहने के लिए हमारे पास यही एक गांव है। ऐसी स्थिति में प्रतिरोध ही एकमात्र विकल्प बचता है। ठीक इसी तरह सम्पूर्ण विश्व एक गांव की तरह है और इसमें अमेरिका चौधरी की तरह पिछले कुछ वर्षों से अमरीकी वर्चस्व व उसका व्यवहार विश्व के अन्य देशों के लिए असहनीय हो रहा है। ऐसी स्थिति में अमरीका का प्रतिरोध ही हमारे पास एकमात्र विकल्प है।

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प्रश्न 1.
वर्चस्व के बारे में निम्नलिखित में से कौनसा कथन गलत है?
(क) इसका अर्थ किसी एक देश की अगुआई या प्राबल्य है।
(ख) इस शब्द का इस्तेमाल प्राचीन यूनान में एथेंस की प्रधानता को चिह्नित करने के लिए किया जाता था।
(ग) वर्चस्वशील देश की सैन्य शक्ति अजेय होती है।
(घ) वर्चस्व की स्थिति नियत होती है। जिसने एक बार वर्चस्व कायम कर लिया उसने हमेशा के लिए वर्चस्व कायम कर लिया ।
उत्तर:
(घ) वर्चस्व की स्थिति नियत होती है। जिसने एक बार वर्चस्व कायम कर लिया उसने हमेशा के लिए वर्चस्व कायम कर लिया।

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प्रश्न 2.
समकालीन विश्व- व्यवस्था के बारे में निम्नलिखित में से कौनसा कथन गलत है?
(क) ऐसी कोई विश्व – सरकार मौजूद नहीं जो देशों के व्यवहार पर अंकुश रख सके।
(ख) अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में अमरीका की चलती है।
(ग) विभिन्न देश एक-दूसरे पर बल-प्रयोग कर रहे हैं।
(घ) जो देश अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करते हैं उन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ कठोर दंड देता है।
उत्तर:
(क) ऐसी कोई विश्व – सरकार मौजूद नहीं जो देशों के व्यवहार पर अंकुश रख सके।

प्रश्न 3.
‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ ( इराकी मुक्ति अभियान ) के बारे में निम्नलिखित में से कौनसा कथन गलत है?
(क) इराक पर हमला करने के इच्छुक अमरीकी अगुआई वाले गठबंधन में 40 से ज्यादा देश शामिल हुए।
(ख) इराक पर हमले का कारण बताते हुए कहा गया कि यह हमला इराक को सामूहिक संहार के हथियार बनाने से रोकने के लिए किया जा रहा है।
(ग) इस कार्रवाई से पहले संयुक्त राष्ट्र संघ की अनुमति ले ली गई थी।
(घ) अमरीकी नेतृत्व वाले गठबंधन को इराकी सेना से तगड़ी चुनौती नहीं मिली।
उत्तर:
(ग) इस कार्रवाई से पहले संयुक्त राष्ट्र संघ की अनुमति ले ली गई थी।

प्रश्न 4.
इस अध्याय में वर्चस्व के तीन अर्थ बताए गए हैं। प्रत्येक का एक-एक उदाहरण बतायें। ये उदाहरण इस अध्याय में बताए गए उदाहरणों से अलग होने चाहिए।
उत्तर:
इस अध्याय में वर्चस्व के निम्न तीन अर्थ बताए गए हैं-
(1) वर्चस्व – सैन्य शक्ति के अर्थ में।
(2) वर्चस्व – ढाँचागत ताकत के अर्थ में।
(3) वर्चस्व – सांस्कृतिक अर्थ में।

उदाहरण :

  1. अमेरिका वर्तमान में ईरान को बार-बार यह धमकी दे रहा है कि या तो वह परमाणु परीक्षण बंद करे नहीं तो उसके विरुद्ध कभी भी युद्ध छेड़ा जा सकता है। यह अमेरिका की सैन्य शक्ति के वर्चस्व को दिखाता है।
  2. अमेरिका अपने ढांचागत वर्चस्व को दिखाने के लिए अनेक छोटे-बड़े देशों को कह चुका है कि ” जो भी उदारीकरण और वैश्वीकरण को नहीं अपनायेगा या परमाणु परीक्षण निषेध संधि पर हस्ताक्षर नहीं करेगा ” उसे विश्व बैंक या अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से ऋण देने के बारे में या तो कटौती की जा सकती है या उस पर पूर्ण प्रतिबंध लग सकता है। अमेरिका समय-समय पर देशों पर आर्थिक प्रतिबंध लगाता रहा है।
  3. सांस्कृतिक वर्चस्व के अर्थ में अमेरिका ने लोकतांत्रिक पूँजीवादी (उदारवादी) विचारधारा सभी पूर्व साम्यवादी यूरोपीय देशों पर लाद दी और वह उनसे सहमति बनवाने में सफल रहा।

प्रश्न 5.
उन तीन बातों का जिक्र करें जिनसे साबित होता है कि शीत युद्ध की समाप्ति के बाद अमरीकी प्रभुत्व का स्वभाव बदला है और शीत युद्ध के वर्षों के अमरीकी प्रभुत्व की तुलना में यह अलग है?
उत्तर:
निम्न तीन बातों से यह साबित होता है कि शीत युद्ध की समाप्ति के बाद अमरीकी प्रभुत्व का स्वभाव बदला है तथा यह शीत युद्ध के वर्षों के अमरीकी प्रभुत्व की तुलना में अलग है-
(1) संयुक्त राष्ट्र संघ में अपनी इच्छा के अनुसार निर्णय करवाना:
1991 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने कुवैत को मुक्त कराने के लिए अमरीका को इराक पर बल प्रयोग की अनुमति दी। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा अमरीका को बल प्रयोग की स्पष्ट अनुमति देना, अमरीकी प्रभुत्व के स्वभाव के बदले स्वरूप को दिखाता है क्योंकि शीत युद्ध के दौरान ज्यादातर मामलों में चुप्पी साध लेने वाले संयुक्त राष्ट्र संघ के लिहाज से यह एक नाटकीय फैसला था। अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने इसे ‘नई विश्व व्यवस्था’ की संज्ञा दी। प्रथम खाड़ी युद्ध से यह बात भी स्पष्ट हो गई कि बाकी देश सैन्य क्षमता के मामले में अमेरिका से बहुत पीछे हैं जबकि शीतयुद्ध के काल में सोवियत संघ इसके समकक्ष की स्थिति में था।

(2) संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों की परवाह नहीं करना:
आतंकवाद के विरुद्ध अमेरिका ने ‘ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच’ के तहत सूडान और अफगानिस्तान के अलकायदा ठिकानों पर कई बार क्रूज मिसाइलों से हमले किये। अमेरिका ने इस कार्यवाही के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की अनुमति लेने या इस सिलसिले में अन्तर्राष्ट्रीय कानून की परवाह नहीं की । शीत युद्ध के काल में ऐसा संभव नहीं था।

(3) इराक पर आक्रमण कर उसके तेल भंडारों पर कब्जा करना तथा अपनी पसंद के शासक को बिठाना:
शीत युद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र संघ की अनुमति के बिना इराक पर रासायनिक हथियार और परमाणु हथियार छिपा रखने का आरोप लगाते हुए सन् 2003 में इराक पर आक्रमण कर दिया। लेकिन इराक में रासायनिक हथियारों की मौजूदगी के कोई प्रमाण नहीं मिले। इसका एकमात्र उद्देश्य इराक के तेल भंडारों को अपने कब्जे में लेना था तथा इराक में अपना ‘जी – हजूर’ शासन स्थापित करना था। जिस प्रकार अमेरिका ने इराक पर आक्रमण किया शीत युद्ध काल में ऐसा आक्रमण करना संभव नहीं था।

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित में मेल बैठायें-

(1) ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच (क) तालिबान और अलकायदा के खिलाफ जंग
(2) ऑपरेशन एंड्यूरिंग फ्रीडम (ख) इराक पर हमले के इच्छुक देशों का गठबंधन
(3) ऑपरेशन डेजर्ट स्टार्म (ग) सूडान पर मिसाइल से हमला
(4) ऑपरेशन इराकी फ्रीडम (घ) प्रथम खाड़ी युद्ध।

उत्तर:

(1) ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच (ग) सूडान पर मिसाइल से हमला
(2) ऑपरेशन एंड्यूरिंग फ्रीडम (क) तालिबान और अलकायदा के खिलाफ जंग
(3) ऑपरेशन डेजर्ट स्टार्म (घ) प्रथम खाड़ी युद्ध
(4) ऑपरेशन इराकी फ्रीडम (ख) इराक पर हमले के इच्छुक देशों का गठबंधन

प्रश्न 7.
अमरीकी वर्चस्व की राह में कौन-से व्यवधान हैं? आपके जानते इनमें से कौन-सा व्यवधान आगामी दिनों में सबसे महत्त्वपूर्ण साबित होगा?
उत्तर:
अमरीकी वर्चस्व की राह में व्यवधान विश्व में वर्तमान में अमेरिकी वर्चस्व कायम है परन्तु इस वर्चस्व की राह में निम्नलिखित प्रमुख व्यवधान हैं:
(1) अमेरिका की संस्थागत बनावट:
अमरीकी वर्चस्व का प्रथम व्यवधान, स्वयं अमेरिका की संस्थागत बुनावट है। यहाँ सरकार के तीनों अंग एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं; उनके बीच शक्ति का बंटवारा है और यही बुनावट कार्यपालिका द्वारा सैन्य शक्ति के बेलगाम इस्तेमाल पर अंकुश लगाने का काम करती है।

(2) अमेरिकी उन्मुक्त समाज:
अमरीकी वर्चस्व के आड़े आने वाली दूसरी अड़चन अमरीकी समाज की उन्मुक्त प्रकृति है। अमरीकी राजनीतिक संस्कृति में शासन के उद्देश्य और तरीके को लेकर गहरा संदेह का भाव रहा है। अमरीकी विदेशी सैन्य अभियानों पर अंकुश रखने में यह बात बड़ी कारगर भूमिका निभाती है।

(3) नाटो द्वारा अंकुश:
अमरीकी वर्चस्व के मार्ग का तीसरा महत्त्वपूर्ण व्यवधान ‘नाटो’ है। अमेरिका का बहुत बड़ा हित लोकतांत्रिक देशों के इस संगठन को कायम रखने से जुड़ा है क्योंकि इन देशों में बाजारमूलक अर्थव्यवस्था चलती है। इसी कारण इस बात की पर्याप्त संभावनाएँ हैं कि ‘नाटो’ में सम्मिलित देश अमेरिकी वर्चस्व पर अंकुश लगा सकते हैं। हमारे विचार से अमरीका के वर्चस्व पर ‘उन्मुक्त समाज’ का व्यवधान सबसे महत्त्वपूर्ण साबित होगा क्योंकि अमेरिका एक लोकतांत्रिक देश है तथा जनमत की अवहेलना कोई भी लोकतांत्रिक सरकार नहीं कर सकती।

प्रश्न 8.
भारत-अमरीका समझौते से संबंधित बहस के तीन अंश इस अध्याय में दिये गये हैं। इन्हें पढ़ें और किसी एक अंश को आधार मानकर पूरा भाषण तैयार करें जिसमें भारत-अमरीकी संबंध के बारे में किसी एक रुख का समर्थन किया गया हो।
उत्तर:
भारत और अमेरिका के मध्य परमाणु ऊर्जा के मुद्दे पर समझौता हुआ। भारत की लोकसभा में इस मुद्दे पर बहस हुई। हम देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के विचारों से सहमत होकर भारत-अमरीकी सम्बन्ध के बारे में निम्नलिखित भाषण तैयार कर सकते हैं:

मान्यवर, शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् विश्व राजनीति में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। सोवियत संघ के विघटन से विश्व एक ध्रुवीय हो गया है। आज विश्व राजनीति अमेरिका के इर्द-गिर्द होकर ही चलती है। इसी संदर्भ में 1991 से भारत ने अपनी आर्थिक नीतियों तथा विदेश नीति में परिवर्तन किये हैं। वर्तमान परिस्थितियों में देश के राष्ट्रीय हितों के लिए यही अच्छा रहेगा कि वह आने वाले समय में अमेरिका से सम्बन्ध अच्छे रखकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अधिक-से-अधिक लाभ उठाये। इसलिये अमरीका और भारत के बीच हुए परमाणु समझौते को लागू न करना भारत के हित में नहीं होगा।

भारत का निर्यात अमेरिका को सबसे ज्यादा है। भारतीय मूल के नागरिक और प्रवासी भारतीय अमेरिका में तकनीकी, इंजीनियरिंग, चिकित्सा और प्रौद्योगिकी सेवाओं में संलग्न हैं। अमेरिका और भारत दोनों ही लोकतांत्रिक और उदारवादी देश हैं। भारत ने हाल के वर्षों में अमेरिका से कुछ ऐसे संधि या समझौते किये हैं, जिनसे दोनों के सम्बन्धों में लगातार सुधार हुआ है। वर्ष 2006 में अमरीका और भारत के बीच हु असैनिक परमाणु ऊर्जा समझौते ने दोनों को और अधिक नजदीक ला दिया है। साथ ही, इस समझौते में ऐसी कोई धारा नहीं है जिससे कि हमारी सुरक्षा पर कोई आंच आती हो।

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प्रश्न 9.
“यदि बड़े और संसाधन सम्पन्न देश अमरीकी वर्चस्व का प्रतिकार नहीं कर सकते तो यह मानना अव्यावहारिक है कि अपेक्षाकृत छोटी और कमजोर राज्येतर संस्थाएँ अमरीकी वर्चस्व का कोई प्रतिरोध कर पायेंगी।” इस कथन की जाँच करें और अपनी राय बताएँ।
उत्तर:
यह कथन हमारी राय से बिल्कुल सही है कि छोटी और कमजोर राज्येतर संस्थाओं से अमरीकी वर्चस्व के प्रतिरोध की आशा करना पूर्णतः अव्यावहारिक है क्योंकि:

  1. आज अमरीका विश्व का सबसे धनी और सैन्य दृष्टि से सबसे शक्तिशाली देश है। अन्य देश सैन्य क्षमता के मामले में अमेरिका से बहुत पीछे हैं। प्रौद्योगिकी के धरातल पर अमेरिका बहुत आगे निकल गया है।
  2. आज वैचारिक दृष्टि से भी पूँजीवाद समाजवाद को पीछे छोड़ चुका है। आज सोवियत संघ से अलग हुए सभी देशों ने उदारवादी लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपना लिया है।
  3. आज विश्व में सबसे बड़ा साम्यवादी देश चीन है। लेकिन वहाँ भी ताइवान, तिब्बत और अन्य क्षेत्रों में अलगाववाद, उदारीकरण और वैश्वीकरण के पक्ष में आवाज उठती रहती है।
  4. वर्तमान में जब इराक युद्ध, यूगोस्लाविया पर बम वर्षा; अफगानिस्तान पर आक्रमण आदि के सम्बन्ध में चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन, भारत आदि कोई देश अमरीकी वर्चस्व को खुली चुनौती देने में विफल रहा तो ऐसी स्थिति में यह सोचना गलत होगा कि छोटी और कमजोर राज्येतर संस्थाएँ अमरीकी वर्चस्व का कोई प्रतिरोध कर पायेंगी क्योंकि छोटे और विकासशील देश, राज्येतर संस्थाएँ सैनिक, आर्थिक और तकनीकी क्षेत्र में अमेरिका के सामने कहीं नहीं ठहरते।

समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व JAC Class 12 Political Science Notes

→ नई विश्व व्यवस्था की शुरुआत:
सोवियत संघ के विघटन के बाद विश्व में एक ध्रुवीय व्यवस्था कायम हुई है। वर्तमान एक ध्रुवीय व्यवस्था ने शीतयुद्धकालीन व्यवस्था की द्विध्रुवीयता का स्थान ले लिया है। आज संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व की एक सबसे शक्तिशाली ताकत के रूप में उभर गया है। सम्पूर्ण भूमण्डल में यह सैन्य व आर्थिक रूप से शक्तिशाली है। इसकी सैन्य शक्ति का अनुमान हम इसके विशाल रक्षा खर्च से लगा सकते हैं। इसके अतिरिक्त सैन्य प्रौद्योगिकी और अनुसंधान तथा विकास सुविधाओं में नेतृत्व से भी इसका अनुमान लगाया जा सकता है।

→ नई विश्व व्यवस्था में अमरीकी वर्चस्व:
अमरीका ने 1991 से ही वर्चस्वकारी ताकत के रूप में व्यवहार करना प्रारम्भ कर दिया, लेकिन इसका एहसास कुछ अन्य घटनाओं के बाद हो पाया कि आज विश्व अमरीकी वर्चस्व में जी रहा है। यथा-

→ प्रथम खाड़ी युद्ध:
1990 के अगस्त में इराक ने कुवैत पर हमला कर उस पर अपना कब्जा जमा लिया। इराक को समझाने-बुझाने की तमाम राजनयिक कोशिशों के असफल हो जाने पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने कुवैत को मुक्त कराने के लिए बल प्रयोग की अनुमति दे दी। शीत युद्ध के दौरान ज्यादातर मामलों में चुप्पी साध लेने वाले संयुक्त राष्ट्र संघ का यह निर्णय नाटकीय था। अमरीकी राष्ट्रपति ने इसे ‘ नई विश्व व्यवस्था’ की संज्ञा दी 34 देशों की मिली-जुली फौज ने इराक के विरुद्ध मोर्चा खोला और उसे परास्त कर दिया। इसे प्रथम खाड़ी युद्ध कहा जाता है। इराक को कुवैत से हटने को मजबूर होना पड़ा। अमरीका ने इस युद्ध में लाभ कमाया क्योंकि उसने जितनी रकम इस जंग में खर्च की उससे कहीं ज्यादा रकम उसे जर्मनी, जापान और सऊदी अरब जैसे देशों से मिली थी।

→ यूगोस्लाविया पर नाटो की बमबारी (1999 ):
1999 में अपने कोसावों प्रान्त में यूगोस्लाविया ने अल्बीनियाई लोगों के आन्दोलन को कुचलने के लिए सैन्य कार्यवाही की तो इसके जवाब में अमरीकी नेतृत्व में नाटो ने दो माह तक यूगोस्लाविया क्षेत्रों में बमबारी की और यूगोस्लाविया की सरकार गिर गयी तथा कोसावो में नाटो की सेना काबिज हो गई।

→ सूडान और अफगानिस्तान में अलकायदा के ठिकानों पर बमबारी (1998 ):
नैरोबी (केन्या) और दारे सलाम (तंजानिया) के अमरीकी दूतावासों पर बमबारी (1998) के जवाब में अमरीका ने सूडान और अफगानिस्तान अलकायदा के ठिकानों पर कई बार क्रूज मिसाइल से हमले किये। अमरीका ने अपनी इस कार्यवाही के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की अनुमति लेने या इस सिलसिले में अन्तर्राष्ट्रीय कानून की परवाह नहीं की।

→ आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी कार्यवाही:
9/11 को अमेरिका में आतंकवाद की घटना हुई अमेरिका ने इस आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध छेड़ दिया और इसका निशाना अलकायदा तथा अफगानिस्तान के तालिबान – शासन को बनाया तालिबानी – शासन के पाँव तो जल्दी उखड़ गये लेकिन तालिबान और अलकायदा के आतंकवाद के अवशेष अब भी सक्रिय हैं। अमरीकी सेना ने इस संदर्भ में पूरे विश्व में गिरफ्तारियाँ कीं। गिरफ्तार लोगों के बारे में उनकी सरकार को जानकारी नहीं दी गई। गिरफ्तार लोगों को अलग-अलग देशों में भेजा गया और उन्हें खुफिया जेलखानों में बंदी बनाकर रखा गया। संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतिनिधियों तक को इन बंदियों से मिलने की अनुमति नहीं दी गई।

→ इराक पर आक्रमण (2003 ):
2003 के 19 मार्च को अमरीका के नेतृत्व में इराक पर सैन्य हमला किया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस हमले की अनुमति नहीं दी थी। इस हमले का मकसद था – इराक के तेल भंडार पर नियन्त्रण करना और इराक में अमरीका की मनपसन्द सरकार कायम करना।

  • वर्चस्व का अर्थ: जब अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में शक्ति का केन्द्र एक हो तो उसे ‘वर्चस्व’ का नाम दिया जा सकता है।
  • विश्व राजनीति: में अमरीकी वर्चस्व: विश्व राजनीति में अमरीकी वर्चस्व को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है।

(अ) सैन्य शक्ति में अमरीकी वर्चस्व:
समकालीन विश्व राजनीति में संयुक्त राज्य अमेरिका ही महाशक्ति है उसकी सैन्य शक्ति न केवल विशाल रक्षा व्यय से मालूम होती है, बल्कि सैन्य प्रौद्योगिकी और अनुसंधान तथा विकास सुविधाओं में उसके नेतृत्व से भी परिलक्षित होती है।

(ब) ढांचागत शक्ति के अर्थ में वर्चस्व – उच्च शिक्षा, वैज्ञानिक अनुसंधान, उन्नत प्रौद्योगिकी में अमेरिका पूरे विश्व का नेतृत्व कर रहा है। अमेरिका की शक्ति, संपत्ति और स्थिति ने उसे विश्व के महत्त्वपूर्ण मामलों में भूमिका निभाने योग्य बनाया। ढाँचागत शक्ति के अर्थ में वर्चस्व को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है

→ आर्थिक वर्चस्व:
अमरीका वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी इच्छा थोपने व अपनी इच्छा से आर्थिक नीतियों का पालन कराता है तथा सार्वजनिक वस्तुओं को मुहैया कराने में भी विश्व में अमरीका की भूमिका मिलती है। समुद्री – व्यापार मार्ग पर अमरीका के प्रभाव को देखा जा सकता है। इंटरनेट अमरीकी सैन्य योजना अनुसंधान का हीं परिणाम है और जितने भी उपग्रह इंटरनेट पर आधारित हैं, उनमें अधिकांश अमरीका के ही हैं। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व – व्यापार संगठन पर अमरीका का वर्चस्व है।

JAC Class 12 Political Science Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

→ शैक्षणिक वर्चस्व:
अमरीकी वर्चस्व को बढ़ाने में व्यावसायिक शिक्षा ने भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।

→ सांस्कृतिक अर्थ में वर्चस्व:
आज विकसित व अल्पविकसित या विकासशील देशों में सामाजिक व राजनीतिक संस्कृति के जो मॉडल अपनाये गये हैं, वे पूर्णतया अमरीका में प्रचलित संस्कृति की नकल ही कहे जा सकते हैं।

अमरीकी वर्चस्व के मार्ग में बाधाएँ-

  • अमरीकी राजनीतिक व्यवस्था का शक्तियों के पृथक्करण का ढाँचा अमरीकी वर्चस्व के लिए एक सबसे बड़ी चुनौती लग रहा है।
  • अमरीकी जनता के मन में अपनी शासन व्यवस्था के उद्देश्य व तरीकों को लेकर संदेह।
  • नाटो के देश अमरीका के वर्चस्व पर अंकुश लगा सकते हैं।

→ अमरीका से भारत के संबंध:
शीतयुद्ध के दौरान भारत अमरीकी गुट के विरुद्ध खड़ा था तथा सोवियत संघ के करीब था। सोवियत संघ के बिखरने के बाद भारत ने पाया कि लगातार कटुतापूर्ण होते अन्तर्राष्ट्रीय माहौल में वह मित्रविहीन हो गया है। इसी अवधि में भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था का उदारीकरण करने तथा उसे वैश्विक अर्थव्यवस्था से जोड़ने का भी फ़ैसला किया। इस नीति और हाल के सालों में प्रभावशाली आर्थिक वृद्धि दर के कारण भारत अब अमरीका समेत कई देशों के लिए आकर्षक आर्थिक सहयोगी बन गया है।

→ वर्चस्व से कैसे निपटें?
यह बात सत्य है कि कोई भी देश अमरीकी सैन्य शक्ति से टक्कर नहीं ले सकता है। भारत, चीन और रूस जैसे देशों में अमरीकी वर्चस्व को चुनौती देने की क्षमता है लेकिन इन देशों में आपसी मतभेद हैं और इन मतभेदों के कारण अमरीका के विरुद्ध इनका कोई गठबंधन नहीं हो सकता। कुछ विद्वानों का तर्क है कि वर्चस्वजनित अवसरों के लाभ उठाने की रणनीति ज्यादासंगत है। उदाहरण के लिए- आर्थिक वृद्धि – दर को ऊँचा करने के लिए व्यापार को बढ़ावा, प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण और निवेश जरूरी है और अमरीका के साथ मिलकर काम करने से इसमें आसानी होगी न कि उसका विरोध करने से। देशों के सामने यह विकल्प भी है कि दबदबे वाले देश से यथासंभव दूरी बनाकर रखें।

उदाहरण के लिए – चीन, रूस और यूरोपीय संघ सभी अपने को अमरीकी निगाह में चढ़ने से बचा रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि अमरीकी वर्चस्व का प्रतिकार कोई देश अथवा देशों का समूह नहीं कर पाएगा क्योंकि सभी देश अमरीकी ताकत के आगे बेबस हैं। ये लोग मानते हैं कि राज्येतर संस्थाएँ अमरीकी वर्चस्व को आर्थिक और सांस्कृतिक धरातल पर चुनौती दे सकती हैं। ये राज्येत्तर संस्थाएँ विश्वव्यापी नेटवर्क बना सकती हैं जिसमें अमरीकी नागरिक भी शामिल होंगे और साथ मिलकर अमरीकी नीतियों की आलोचना तथा प्रतिरोध किया जा सकेगा।

 

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