Jharkhand Board JAC Class 9 Science Solutions Chapter 14 प्राकृतिक सम्पदा Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 9 Science Solutions Chapter 14 प्राकृतिक सम्पदा
Jharkhand Board Class 9 Science प्राकृतिक सम्पदा Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
जीवन के लिए वायुमण्डल क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
जीवन के लिए वायुमण्डल की आवश्यकताजीवों के लिए वायुमण्डल बहुत आवश्यक है। पृथ्वी पर जीवन वायु के घटकों का परिणाम है। स्थलीय जन्तु श्वसन के लिए ऑक्सीजन वायुमण्डल से ही प्राप्त करते हैं। जलीय जीव इसे पानी में घुली हुई अवस्था में प्राप्त करते हैं। यूकैरियोटिक तथा प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं को ग्लूकोज के अणुओं को तोड़ने के लिए तथा उससे ऊर्जा प्राप्त करने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। इसी कारण CO2 उत्पन्न होती है। पौधे इस CO2 को ग्लूकोज में बदलते हैं तथा अपने लिए भोजन के रूप में प्राप्त करते हैं। वायुमण्डल ने पूरी पृथ्वी को कम्बल की तरह ढक रखा है।
वायु ताप की कुचालक है इसलिए वायुमण्डल पृथ्वी के औसत तापमान को पूरे वर्ष भर लगभग नियत रखता है। वायुमण्डल दिन के तापमान को अचानक बढ़ने से रोकता है और रात के समय ऊष्मा को बाहरी अन्तरिक्ष में जाने की दर को कम करता है। मौसम सम्बन्धी सभी क्रियाएँ वायुमण्डल द्वारा निर्मित होती हैं। इसलिए जीवन के लिए वायुमण्डल आवश्यक है।
प्रश्न 2.
जीवन के लिए जल क्यों अनिवार्य है?
उत्तर:
जीवन के लिए जल की अनिवार्यता – जल जीवमण्डल का एक महत्त्वपूर्ण निर्जीव घटक है। जल बहुत से पदार्थों को अपने में घोल लेने में सक्षम है। जीवन की विभिन्न प्रक्रियाओं में स्थलीय जीव-जन्तु और पौधे जल का उपयोग करते हैं। सभी कोशिकीय प्रक्रियाएँ जलीय माध्यम में ही होती हैं। हमारे शरीर में या कोशिकाओं के अन्दर होने वाली सभी प्रक्रियाएँ जल में घुले हुए पदार्थों से ही होती हैं। शरीर के अन्दर पदार्थों का संवहन घुली हुई अवस्था में होता है। इसलिए सजीव प्राणी व पौधे जीवित रहने के लिए अपने शरीर में जल की मात्रा का सन्तुलन बनाये रखते हैं। स्थलीय जीवों को जीवित रहने के लिए शुद्ध जल की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 3.
जीवित प्राणी मृदा पर कैसे निर्भर हैं? क्या जल में रहने वाले जीव सम्पदा के रूप में मृदा से पूरी तरह स्वतन्त्र हैं?
उत्तर:
जीवित प्राणियों की मृदा पर निर्भरता जीवित प्राणी मृदा पर ही निर्भर करते हैं। मृदा में उत्पन्न पेड़-पौधों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं जो हमें ऊर्जा प्रदान करता है। जीवनयापन के लिए अन्य बहुत से आवश्यक तत्व मृदा से ही प्राप्त होते हैं। पौधे अनेक प्रकार के खनिज लवण मृदा से ही प्राप्त करते हैं और भोजन के तत्वों के रूप में प्राणियों के जीवन का आधार बनते हैं। जल में रहने वाले जीव सम्पदा के रूप में मुदा से पूरी तरह स्वतन्त्र नहीं हैं।
क्योंकि जलीय जीव भी भोजन और ऊर्जा के लिए जल में उगने वाले पौधों पर आश्रित हैं। जलीय पौधे खनिजों को जल से प्राप्त करते हैं। इस प्रकार जल में रहने वाले जीव सम्पदा के रूप में मृदा से पूरी तरह स्वतन्त्र हैं। परन्तु फिर भी कहीं न कहीं मृदा का उनके साथ सम्बन्ध अवश्य है।
प्रश्न 4.
आपने टेलीविजन पर और समाचार-पत्र में मौसम सम्बन्धी रिपोर्ट को देखा होगा। क्या आप सोचते हैं कि हम मौसम के पूर्वानुमान में सक्षम हैं?
उत्तर:
मौसम का पूर्वानुमान जी हाँ, हम मौसम के पूर्वानुमान के सम्बन्ध में भविष्यवाणी पवनों की दिशाओं का अध्ययन करने के बाद कर सकते हैं। पवनों की दिशाओं द्वारा हमें वर्षा होने या न होने, पवनों की गति, तापमान आदि की जानकारी मिल जाती है। पवनों का पैटर्न हमें बता सकता है कि किस दिशा में गर्म और ठंडी हवाएँ बहेंगी और कम वायु दाब तथा उच्च वायु दाब वाले क्षेत्र कौन-कौन से हैं। भारत के अधिकतर भाग में वर्षा दक्षिणी-पश्चिमी या पूर्वी उत्तरी मानसूनों (मौसमी हवाओं) द्वारा होती है। कम वायु दाब तथा उच्च वायु दाब वाले क्षेत्रों को पहचान कर और मानसून पवनों की दिशा ज्ञात कर हम मौसम सम्बन्धी पूर्वानुमान लगा सकते हैं।
प्रश्न 5.
हम जानते हैं कि बहुत सी मानवीय गतिविधियाँ वायु, जल एवं मृदा के प्रदूषण स्तर को बढ़ा रही हैं। क्या आप सोचते हैं कि इन गतिविधियों को कुछ विशेष क्षेत्रों में सीमित कर देने से प्रदूषण के स्तर को घटाने में सहायता मिलेगी?
उत्तर:
बहुत से मानवीय क्रियाकलाप वायु, जल एवं मृदा के प्रदूषण स्तर को निरन्तर बढ़ा रहे हैं। यदि इन क्रिया कलापों को कुछ विशेष क्षेत्रों में सीमित कर दिया जाए तो प्रदूषण के स्तर को घटाने में सहायता मिल सकेगी। यातायात के भारी वाहनों का अस्पतालों के आसपास व घनी बस्तियों में आवागमन प्रतिबन्धित कर वातावरण में हानिकारक गैसों पर नियन्त्रण पाया जा सकता है। पेट्रोल और डीजल के स्थान पर वाहनों में CNG का प्रयोग कुछ नगरों में प्रारम्भ किया गया है जिसके अनुकूल प्रभाव दिखाई दिये हैं।
खानों की खनन क्रिया को रोककर वायुमण्डल तथा पेड़-पौधों की रक्षा की गई है। नदियों के जल के शुद्धीकरण के लिए प्रयत्न किये गये हैं। यह ठीक है कि हमारे देश में जनसंख्या बहुत अधिक है, अशिक्षा है, निर्धनता है, परन्तु फिर भी प्रयत्न करने पर सकारात्मक परिणाम अवश्य प्राप्त होंगे। इनसे प्रदूषण तो पूर्णरूपेण समाप्त नहीं होगा परन्तु प्रदूषण के स्तर को घटाने में अवश्य सहायता मिलेगी।
प्रश्न 6.
जंगल वायु, मृदा तथा जलीय स्रोत की गुणवत्ता को कैसे प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
जंगल (वन) तीनों प्राकृतिक स्रोतों वायु, जल तथा मृदा की गुणवत्ता को निम्नलिखित प्रकार से प्रभावित करते हैं-
1. जंगल वायुमण्डल में CO2 तथा O2 के अनुपात को बनाए रखते हैं-वृक्ष हमारे पर्यावरण से CO2 गैस की अवशोषित करके तथा O2 गैस मुक्त करके पर्यावरण को स्वच्छ करने का महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं, जिसके कारण वायुमण्डल में CO2 और O2 की मात्रा का अनुपात ठीक बना रहता है।
2. जंगल मृदा अपरदन को रोकने में सहायक होते हैं- वृक्षों तथा अन्य पौधों एवं वनस्पतियों की जड़ें मिट्टी को जकड़े रहती हैं। यह जल तथा वायु के तेज प्रवाह में अवरोध उत्पन्न करते हैं जिसके कारण मृदा का अपरदन नहीं होने पाता है तथा मृदा की ऊपरी उपजाऊ परत का संरक्षण होता रहता है।
3. जंगल जलस्रोतों के पुनः पूरण में सहायक होते हैंवृक्ष वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रिया द्वारा अत्यधिक मात्रा में जलवाष्प उत्सर्जित करते हैं। यह जलवाष्प संघनित होकर वर्षा वाले बादलों में परिवर्तित हो जाती है। यदि किसी क्षेत्र में वृक्षों की संख्या कम होगी तो उस क्षेत्र में वर्षा कम होगी, परिणामस्वरूप, उस क्षेत्र में जल की कमी हो जायेगी और एक समय ऐसा आयेगा कि वह क्षेत्र मरुस्थल (रेगिस्तान) बन सकता है। अतः ऐसे स्थानों पर वृक्षारोपण और उनकी सुरक्षा करना बहुत आवश्यक है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वन वृक्ष वर्षा को आकर्षित करते हैं जिससे हमारे जलस्रोतों का पुनः पूरण होता रहता है। अतः वन (जंगल) हमारे राष्ट्र की अमूल्य निधि हैं।
Jharkhand Board Class 9 Science प्राकृतिक सम्पदा InText Questions and Answers
क्रियाकलाप 14.1. (पा. पु. पृ. सं. 214)
निम्नलिखित का ताप मापिए- (i) जल से भरा एक बीकर, (ii) मृदा या बालू से भरा एक बीकर और (iii) एक बन्द बोतल लें, जिसमें थर्मामीटर लगा हो। इन सभी को सूर्य के प्रकाश में तीन घन्टे तक रखो। अब तीनों बोतलों के तापमान को मापो। इसी समय छाया में भी तापमान को देखिए।
(i) या (ii) में से किसमें तापमान की माप अधिक है?
उत्तर:
(ii) मृदा या बालू से भरे बीकर का तापमान अधिक है।
प्राप्त निष्कर्ष के आधार पर कौन सब से पहले गर्म होगा – स्थल या समुद्र?
उत्तर:
सबसे पहले स्थल गर्म होगा।
क्या छाया में वायु का तापमान बालू तथा जल के तापमान के समान होगा? आप इसके कारण के बारे में क्या सोचते हैं और तापमान को छाया में क्यों मापा जाता है?
उत्तर:
छाया में वायु का तापमान बालू तथा जल के तापमान से कम होगा, क्योंकि बालू जल्दी गर्म हो जाती है। इसी प्रकार जल भी वायु की अपेक्षा जल्दी गर्म हो जाता है।
तापमान को छाया में इसलिए मापा जाता है कि सूर्य की गर्मी या किरणों के परावर्तन के कारण तापमान में वृद्धि हो जाती है। अतः इसके कारण तापमान सही मापने में अनुमान लगाना कठिन होता है।
क्या बन्द बोतल या शीशे के बर्तन में लिया गया हवा का तापमान और खुले में लिया गया हवा का तापमान समान है? इसके कारण के बारे में आप क्या सोचते हैं? क्या हम प्रायः इस प्रकार की घटनाओं से अवगत होते हैं?
उत्तर:
बन्द बोतल या शीशे के बर्तन में ली गई हवा का तापमान खुले में लिए गए तापमान से कम होगा क्योंकि बाहर की हवा अन्दर की हवा की तुलना में अधिक गर्म होती है और उस पर मौसम का प्रभाव भी बना रहता है। हम इस प्रकार की घटनाओं से प्रतिदिन अवगत होते रहते हैं।
क्रियाकलाप 14.2. (पा.पु. पृ. सं. 214)
चित्र 14.1 के अनुसार एक मोमबत्ती को चौड़े मुँह वाली बोतल या बीकर में रखकर उसे जलाते हैं। अब एक अगरबत्ती को जलाकर उसे बोतल के मुँह के पास ले जाते हैं।
जब अगरबत्ती को बोतल के मुँह के किनारे पर ले जाया जाता है तब अवलोकन करते हैं कि धुँआ किस ओर जाता है? जब अगरबत्ती को मोमबत्ती के थोड़ा ऊपर रखा जाता है। तब धुँआ किस ओर जाता है?
दूसरे भागों में जब अगरबत्ती को रखा जाता है तब धुँआ किस ओर जाता है?
धुँआ की दिशाओं को देखने से हमें पता चलता है कि किस दिशा में गर्म और ठंडी हवाएँ बहती हैं। इसी प्रकार जब वायु स्थल और जल के विकिरण के कारण गर्म होती है। तब यह ऊपर की ओर प्रवाहित होती है। चूँकि जल की अपेक्षा स्थल शीघ्र गर्म हो जाता है इसलिए स्थल के ऊपर की वायु जल के ऊपर की वायु की अपेक्षा तेजी से गर्म होती है।
दिन में जब हम तटीय क्षेत्रों की ओर देखते हैं तो पाते हैं कि स्थल के ऊपर की वायु तेजी से गर्म होकर ऊपर की और उठना प्रारम्भ कर देती है। जैसे ही यह वायु ऊपर की ओर उठती है, वहाँ कम दबाव का क्षेत्र बन जाता है और समुद्र के ऊपर की वायु कम दाब वाले क्षेत्र की ओर प्रवाहित हो जाती है। एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में वायु की गति पवनों (winds) का निर्माण करती है। दिन के समय हवा की दिशा समुद्र से स्थल की ओर हो जाती है।
रात के समय स्थल और समुद्र दोनों ठंडे होने लगते हैं। चूँकि स्थल की अपेक्षा जल धीरे-धीरे ठंडा होता है। इसलिए जल के ऊपर की वायु स्थल के ऊपर की वायु से गर्म होगी।
तटीय क्षेत्रों पर कम तथा उच्च दाब के क्षेत्र रात में प्रतीत होते हैं, क्यों?
उत्तर:
क्योंकि दिन के समय हवा की दिशा समुद्र से स्थल की ओर होती है। दिन के समय स्थल के ऊपर की वायु तेज गति से गर्म होकर ऊपर उठने लगती है। जैसे ही यह वायु ऊपर की ओर उठती है, वहाँ कम दाब का क्षेत्र बन जाता है और समुद्र के ऊपर की वायु कम दाब वाले क्षेत्र की ओर प्रवाहित हो जाती है।
तटीय क्षेत्रों में रात के समय वायु की दिशा क्या होगी?
उत्तर:
रात के समय स्थल और समुद्र दोनों ठण्डे होने लगते हैं। चूँकि स्थल की अपेक्षा जल धीरे-धीरे ठंडा होता है। इसलिए जल के ऊपर की वायु स्थल के ऊपर की वायु से अधिक गर्म होगी तथा वायु का प्रवाह ऊपर की ओर होगा। हवा की गति और दिशाओं को बहुत से अन्य कारक भी प्रभावित करते हैं, जैसे- पृथ्वी की घूर्णन गति तथा पवन के मार्ग में आने वाली पर्वत श्रृंखलाएँ।
क्रियाकलाप 14.3. (पा. पु. पृ. सं. 215)
एक पतली प्लास्टिक की बोतल लेकर इसमें 5 से 10 ml जल भर लेते हैं तथा बोतल को कसकर बन्द कर देते हैं। अब इसे अच्छी तरह से हिलाकर 10 मिनट तक धूप में रख देते हैं। इससे बोतल में मौजूद वायु जलवाष्प से संतृप्त हो जाती है।
अब एक जली हुई अगरबत्ती लेते हैं और बोतल के मुँह को खोलकर अगरबत्ती के धुँए की कुछ मात्रा को बोतल के अन्दर जाने देते हैं। पुनः बोतल को कसकर बन्द कर देते हैं। बोतल को अपनी हथेलियों के बीच में रखकर खूब जोर से दबाते हैं। अब कुछ समय तक प्रतीक्षा करने के बाद बोतल को छोड़ देते हैं। एक बार पुनः बोतल को जितना जोर से सम्भव हो, दबाते हैं।
आपने कब देखा कि बोतल के अन्दर स्थित हवा कुहरे की भाँति हो जाती है?
उत्तर:
बोतल के अन्दर की हवा कुहरे की भाँति तब हो जाती है जब हमने अगरबत्ती के धुँए की कुछ मात्रा को बोतल के अन्दर जाने दिया।
यह कुहासा कब समाप्त होता है?
उत्तर:
यह कुहांसा तब समाप्त होता है जब हम बोतल को हथेलियों के बीच रखकर जोर से दबाते हैं।
बोतल के अन्दर दाब कब अधिक है?
उत्तर:
बोतल के अन्दर अगरबत्ती का धुँआ पहुँचने के बाद बोतल के अन्दर का दाब अधिक हो गया।
कुहासा दिखाई देने की स्थिति में, बोतल के अन्दर का दाब कम है या अधिक।
उत्तर:
कुहासा दिखाई देने की स्थिति में बोतल के अन्दर का दाब अधिक होगा।
इस प्रयोग के लिए बोतल के भीतर धुँए की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर:
इस बोतल के भीतर दाब बढ़ाने के लिए और बादल की संरचना प्रदर्शित करने के लिए धुँए की आवश्यकता हैं।
क्या होगा जब हम इस प्रयोग को बिना अगरबत्ती के धुँए के करेंगे? अब ऐसा प्रयत्न करते हैं और देखते हैं कि परिकल्पना सही थी या गलत।
उत्तर:
जब हम इस प्रयोग को बिना अगरबत्ती के धुए के करेंगे तो बोतल में कुहासा की स्थिति नहीं बनेगी। इस स्थिति में प्रयोग करने पर हमें यह मालूम हो जाता है कि परिकल्पना सही थी।
क्या होता है जब जलवाष्प से भरी हुई वायु उच्च दाब वाले क्षेत्र से कम दाब वाले क्षेत्र में या इसके विपरीत प्रवाहित होती है?
उत्तर:
दिन के समय जब जलीय भाग गर्म हो जाते हैं तब बहुत अधिक मात्रा में जलवाष्प बन जाती है और यह वाष्प वायु में प्रवाहित हो जाती है जलवाष्प की कुछ मात्रा विभिन्न जैविक क्रियाओं के कारण वायुमण्डल में चली जाती है। यह वायु भी गर्म हो जाती है। गर्म वायु अपने साथ जलवाष्प को लेकर ऊपर की ओर उठ जाती है।
यह वायु ऊपर पहुँचकर फैलती है तथा ठंडी हो जाती है। ठंडा होने के – कारण हवा में उपस्थित जलवाष्प छोटी-छोटी जल की बूँदों में संघनित हो जाती है जिन्हें बादल कहते हैं। जल का यह संघनन सरलतापूर्वक हो जाता है। कुछ कण नाभिक के समान कार्य करके अपने चारों ओर बूँदों को एकत्र होने देते हैं। सामान्यतः वायु में उपस्थित धूल के कण तथा दूसरे निलम्बित कण नाभिक के रूप में कार्य करते हैं।
एक बार जब जल की बूँदें बन जाती हैं तो वे संघनित होने के कारण बड़ी हो जाती हैं। बड़ी और भारी हो जाने पर ये बूँदें वर्षा के रूप में नीचे की ओर गिरती हैं। कभी-कभी जब वायु का तापमान बहुत कम हो जाता है तब ये हिम वृष्टि अथवा ओलों के रूप में गिरती हैं।
वर्षा का पैटर्न पवनों के पैटर्न पर निर्भर करता है। भारत के बहुत बड़े भू-भाग में अधिकतर वर्षा दक्षिण-पश्चिम या उत्तर पूर्वी मानसून के कारण होती है। ऐसा बंगाल की खाड़ी पर वायु का दाब कम होने के कारण कई क्षेत्रों में वर्षा होती है।
क्रियाकलाप 14.4. (पा.पु. पृ. सं. 216)
पूरे देश में होने वालो वर्षा के पैटर्न के बारे में समाचार पत्र या टेलीविजन के माध्यम से मौसम सम्बन्धी सूचनाओं की जानकारी एकत्र करते हैं। यह भी पता लगाते हैं कि एक वर्षामापक यन्त्र कैसे बनाया जाता है और उसे बनाते हैं। वर्षामापक यन्त्र से सही डाटा (आँकड़े) प्राप्त करने के लिए कौन-कौन से सुरक्षात्मक उपाय करने आवश्यक हैं?
किस महीने में आपके शहर/नगर/ गाँव में सबसे अधिक वर्षा हुई?
उत्तर:
जुलाई और अगस्त के महीने में हमारे शहर / नगर / गाँव में सबसे अधिक (मानसूनी) वर्षा हुई।
किस महीने में आपके राज्य / केन्द्र शासित प्रदेश में सबसे अधिक वर्षा हुई?
उत्तर:
जुलाई-अगस्त के महीने में हमारे राज्य में सबसे अधिक वर्षा हुई।
क्या वर्षा हमेशा बादल गरजने और बिजली चमकने के साथ होती है? अगर नहीं, तो किस मौसम में सबसे अधिक वर्षा, बादल गरजने और बिजली चमकने के साथ होती है।
उत्तर:
वर्षा हमेशा बादल गरजने और बिजली चमकने के साथ नहीं होती है। जून-जुलाई तथा अगस्त में ग्रीष्मकालीन मौसम में सर्वाधिक वर्षा बादल गरजने एवं बिजली चमकने के साथ होती है।
क्रियाकलाप 14.5. (पा. पु. पू. सं. 216)
पुस्तकालय से मानसून और चक्रवात के बारे में और अधिक जानकारी एकत्र करें। किसी दूसरे देश की वर्षा के पैटर्न का पता लगाएँ क्या पूरे विश्व में वर्षा के लिए मानसून उत्तरदायी होता है?
उत्तर:
मानसून पवनें- वे पवनें हैं जिनकी दिशा मौसम के अनुसार पूर्णरूपेण उल्टी हो जाती है ये पवनें ग्रीष्म ऋतु के 6 महीने समुद्र से स्थल की ओर तथा शीत ऋतु के 6 महीने स्थल से समुद्र की ओर चलती है। ये पवनें मुख्य रूप से भारत, पाकिस्तान, बंग्लादेश, बर्मा, श्रीलंका, अरब सागर, बंगाल की खाड़ी, चीन, जापान, उत्तरी आस्ट्रेलिया एवं अमेरिका में चलती हैं।
क्रियाकलाप 14.6.
लाइकेन नामक जीव वायु में उपस्थित सल्फर डाइऑक्साइड के स्तर के प्रति अधिक संवेदी होते हैं। ये प्रायः वृक्षों की छालों पर पतले हरे और सफेद रंग की परत के रूप में पाए जाते हैं। यदि आप के आस-पास वृक्षों पर लाइकेन है तो आप उसे देख सकते हैं।
व्यस्त सड़क के समीप पेड़ पर स्थित लाइकेन और कुछ दूरी पर स्थित पेड़ पर स्थित लाइकेन की तुलना करें।
सड़क के समीप स्थित पेड़ों पर सड़क की ओर की सतहों पर लगे लाइकेन की तुलना सड़क की विपरीत दिशा की ओर वाली सतहों पर लगे लाइकेन से करें।
खंड 14.1.4 से सम्बन्धित पाठ्य पुस्तक के प्रश्न (पाठ्य पुस्तक पृ. सं. 217)
प्रश्न 1.
शुक्र और मंगल ग्रहों के वायुमण्डल से हमारा वायुमण्डल कैसे भिन्न है?
उत्तर:
शुक्र और मंगल ग्रहों के वायुमण्डल का मुख्य घटक कार्बन डाइऑक्साइड है। इनके वायुमण्डल में 95 से 97 प्रतिशत तक कार्बन डाइऑक्साइड है। जबकि हमारी पृथ्वी के वायुमण्डल में नाइट्रोजन ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड तथा जलवाष्प का मिश्रण है।
प्रश्न 2.
वायुमण्डल एक कम्बल की तरह कैसे कार्य करता है?
उत्तर:
वायु ऊष्मा का कुचालक है वायुमण्डल पृथ्वी के औसत तापमान को दिन के समय और यहाँ तक कि पूरे वर्ष भर लगभग नियत रखता है। वायुमण्डल दिन में तापमान को अचानक बढ़ने से रोकता है और रात के समय ऊष्मा की बाहरी अन्तरिक्ष में जाने की दर को कम करता है। इस तरह वायुमण्डल एक कम्बल की तरह कार्य करता है।
प्रश्न 3.
वायु प्रवाह (पवन) के क्या कारण हैं?
उत्तर:
वायु प्रवाह, हमारे वायुमण्डल में हवा के गर्म होने और जलवाष्प बनने का परिणाम है जलवाष्प जीवित प्राणियों के क्रियाकलापों और जल के गर्म होने के कारण बनती है। स्थलीय भाग या जलीय भाग से होने वाले विकिरण के परावर्तन तथा पुनर्विकिरण के कारण वायुमण्डल गर्म होता है जिससे वायु में संवहन धाराएँ उत्पन्न होती हैं।
प्रश्न 4.
बादलों का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर:
बादलों का निर्माण क्रियात्मक प्रश्नोत्तर 14.3 के अन्तर्गत प्रश्न (7) का उत्तर देखिए।.
प्रश्न 5.
मनुष्य के तीन क्रियाकलापों का उल्लेख करें, जो वायु प्रदूषण में सहायक हैं।
उत्तर:
वायु प्रदूषण में सहायक मनुष्य के तीन क्रियाकलाप निम्नलिखित हैं-
- मोटर वाहनों में पेट्रोल और डीजल का उपयोग ईंधन के रूप में करना।
- कल-कारखानों, इंजनों और थर्मल पावर स्टेशनों में कोयले का ईंधन के रूप में उपयोग किया जाना तथा औद्योगिक विस्तार।
- अन्य मानवीय क्रियाकलापों से उत्पन्न होने वाला धुँआ, वनों की अबाध कटाई तथा नगरीकरण का विकास आदि।
क्रियाकलाप 14.7. (पा.पु. पू. सं. 218)
बहुत से नगर निगम जल की उपलब्धता बढ़ाने के लिए जल संग्रहण की तकनीकों पर कार्य कर रहे हैं। पता लगाइये कि ये कौन कौन-सी तकनीक हैं तथा ये उपयोग के लिए उपलब्ध जल की मात्रा बढ़ाने में किस प्रकार सहायक हैं?
उत्तर:
जल की उपलब्धता विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न है। गर्मी में अधिकतर स्थानों पर भूमिजल की मात्रा भी कम हो जाती है। शुद्ध जल के भंडार विभिन्न स्थानों पर बिखरे हुए हैं। देश के प्रत्येक व्यक्ति तक शुद्ध पेय जल पहुँचाना सरकार का कार्य है। यह कार्य नगर निगमों के द्वारा जल आपूर्ति करके किया जाता है।
शुद्ध जल हमें प्राकृतिक रूप में वर्षा के द्वारा प्राप्त होता है जो नदियों, तालाबों और झीलों के रूप में मिलता है। इस जल को प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचाने हेतु नदियों पर बड़े-बड़े बाँध बनाये जाते हैं। फिर इन बाँधों से नहरों के द्वारा इस जल को गाँव-गाँव तक पहुँचाया जाता है। शहर और कस्बों में तालाब या बड़े-बड़े टैंकों में नहर से जल की आपूर्ति होती रहती है। पहले नहर के जल को क्लोरीनीकरण क्रिया या छनन क्रिया द्वारा शुद्ध करके पाइप लाइनों के माध्यम से घर-घर तक पहुँचाया जाता है।
बाँधों में संग्रहित जल से बिजली बनाई जाती है, सिंचाई की जाती है तथा करोड़ों लोगों को समय पर शुद्ध पेय जल मिलता है। जल संग्रहण तकनीक से जल की उपलब्धता की मात्रा कई गुना बढ़ गई है।
जल हमारे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि सभी प्रतिक्रियाएँ जो हमारे शरीर में या कोशिकाओं के अन्दर होती हैं वह जल में घुले हुए पदार्थों में, जलीय माध्यम में होती हैं। शरीर के एक भाग से दूसरे भाग में पदार्थों का संवहन घुली हुई अवस्था में होता है। स्थलीय जीवों को जीवित रहने के लिए शुद्ध जल की आवश्यकता होती है क्योंकि खारे जल में नमक की अधिक मात्रा होने के कारण जीवों का शरीर उसे सहन नहीं कर पाता है। इसलिए प्राणियों और पौधों को पृथ्वी पर जीवित रहने के लिए सुगमतापूर्वक जल उपलब्धि के स्रोत आवश्यक हैं।
क्रियाकलाप 14.8. (पा.पु. पू. सं. 218)
किसी नदी, तालाब या झील के समीप एक छोटे से स्थान को चुनते हैं। माना कि एक वर्ग मीटर। इस क्षेत्र में पाए जाने वाले विभिन्न पौधों एवं जन्तुओं की संख्या को गिन लें। प्रत्येक स्पीशीज की अलग-अलग गणना करें।
इसकी तुलना सूखे और पथरीले भाग के उतने ही बड़े क्षेत्र में पाए जाने वाले जन्तुओं और पौधों से करें। क्या दोनों क्षेत्रों में पाए जाने वाले पौधे और जन्तु एक प्रकार के हैं?
उत्तर:
क्रियाकलाप के अनुसार हमने चुने हुए दोनों क्षेत्रों के पौधों और जन्तुओं की गणना कर ली।
नदी के पास वाले क्षेत्र की सूखे और पथरीले क्षेत्र से तुलना करने पर हमने पाया कि सूखे व पथरीले क्षेत्र में बहुत ही कम स्पीशीज के थोड़े से पौधे और जन्तु थे जबकि सूखे क्षेत्र की तुलना में नदी के समीप वाले क्षेत्र में कई गुना अधिक विभिन्न प्रकार के सैकड़ों पौधों और जन्तुओं की स्पीशीज पाई गई।
क्रियाकलाप 14.9. (पा.पु. पु. सं. 218)
अपने विद्यालय के समीप या किसी प्रयोग में न आने वाली भूमि को चुनें।
उसी प्रकार उस क्षेत्र में पाए जाने वाले विभिन्न जन्तुओं और पौधों तथा प्रत्येक स्पीशीज के जीवों की संख्याओं की गणना करें।
उसी स्थान की गणना वर्ष में दो बार करें। एक बार गर्मी में या सूखे मौसम में और दूसरी बार बरसात के मौसम के बाद।
अब उत्तर दें
प्रश्न 1.
क्या दोनों बार संख्याएँ समान थीं?
उत्तर:
नहीं, दोनों बार समान संख्या नहीं थीं।
प्रश्न 2.
किस मौसम में आपने विभिन्न प्रकार के पौधों और जन्तुओं की अधिकता पाई?
उत्तर:
बरसात के मौसम के बाद गणना करने पर गर्मी की गणना की अपेक्षा कई गुना अधिक पौधों और जन्तुओं की संख्या हमें प्राप्त हुई।
प्रश्न 3.
प्रत्येक प्रकार के जीवों की संख्या किस मौसम में अधिक थी?
उत्तर:
बरसात के बाद वाले मौसम में प्रत्येक प्रकार के जीवों की संख्या गर्मी वाले मौसम की संख्या से अधिक थी।
इसी प्रकार वर्षा के पैटर्न के अनुसार 200 cm वर्षा वाले क्षेत्र में हम सबसे अधिक प्रकार के जीवों की उपलब्धता पाते हैं।
मानचित्र में वर्षा के पैटर्न को देखकर हम असम तथा उत्तरांचल राज्यों में सबसे अधिक जैव विविधता पाते हैं, जबकि राजस्थान और गुजरात राज्यों में सबसे कम जैव विविधता पाते हैं।
निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि जल की उपलब्धता प्रत्येक स्पीशीज के वर्ग जो कि एक विशेष क्षेत्र में जीवित रहने में सक्षम हैं, की संख्या को ही निर्धारित नहीं करती, अपितु यह वहाँ के जीवन में विविधता को भी निर्धारित करती है। जीवन की विविधता को निर्धारित करने के लिए जल के अतिरिक्त तापमान और मिट्टी की प्रकृति भी महत्त्वपूर्ण कारक है। किन्तु जल एक महत्त्वपूर्ण संपदा है जो जीवन को स्थल पर निर्धारित करता है।
खंड 14.2.1 से सम्बन्धित पाठ्य पुस्तक के प्रश्न (पाठ्य पुस्तक पृ. सं. 219)
प्रश्न 1.
जीवों को जल की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर:
जीवों को जल की आवश्यकता – जीवों की सभी कोशिकीय प्रक्रियाएँ जलीय माध्यम में होती हैं। हमारे शरीर में या कोशिकाओं में होने वाली प्रक्रियाएँ जल में घुलित पदार्थों में होती हैं। शरीर के एक भाग से दूसरे भागों में पदार्थों का संवहन घुली हुई अवस्था में होता है। इसलिए जीवों को जीवित रहने के लिए जल की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 2.
जिस गाँव / शहर / नगर में आप रहते हैं, वहाँ पर उपलब्ध शुद्ध जल का मुख्य स्रोत क्या है?
उत्तर:
हमारे गाँव में उपलब्ध शुद्ध जल का मुख्य स्रोत वर्षा तथा हैण्डपम्प का जल है। शहर / नगर में शुद्ध जल, टंकियों में एकत्रित किये हुए जल को क्लोरीनीकरण क्रिया द्वारा (या छनन क्रिया द्वारा) शुद्ध करके पाइप लाइनों के माध्यम से घर-घर पहुँचाया जाता है।
प्रश्न 3.
क्या आप किसी ऐसे क्रियाकलाप के बारे में जानते हैं जो इस जल के स्रोत को प्रदूषित कर रहा है?
उत्तर:
हाँ, वें क्रियाकलाप हैं- जलाशयों में अनैच्छिक पदार्थों का डालना जैसे पीड़कनाशी, रासायनिक उर्वरक, कारखानों से निकलने वाले विषैले अपशिष्ट पदार्थ। शहरों की सीवर लाइनों तथा गन्दी नालियों का दूषित पानी, जिसमें अनेक प्रकार के विषाक्त पदार्थ मिले होते हैं।
क्रियाकलाप 14.10. (पा. पु. पृ. सं. 220)
कुछ मृदा लेकर उसे जल से भरे बीकर में डालते हैं। ली गई मृदा की मात्रा का लगभग 5 गुना जल लेते हैं। मृदा और जल को मिलाते हैं और फिर मृदा को नीचे जमने देते हैं। कुछ समय बाद उसका अवलोकन करें।
क्या बीकर के तल में मृदा समांगी है या परतों में विभाजित है?
अगर परतों का निर्माण हुआ है तो किस प्रकार एक परत दूसरे से भिन्न है?
क्या वहाँ जल की सतह पर कुछ तैर रहा है?
क्या आप सोच सकते हैं कि कुछ पदार्थ जल में घुल गए होंगे? आप इसे कैसे रोकेंगे?
उत्तर:
क्रियाकलाप से हमने देखा कि मृदा एक मिश्रण है। इसमें विभिन्न प्रकार के छोटे-छोटे टुकड़े मिले होते हैं। इसमें सड़े-गले जीवों के टुकड़े भी मिले होते हैं जिसे ह्यूमस (Humus) कहा जाता है। इसके अतिरिक्त मिट्टी में विभिन्न प्रकार के जीव भी मिले होते हैं। मृदा के प्रकार का निर्णय उसमें पाये जाने वाले कणों के औसत आकार द्वारा निर्धारित किया जाता है। मृदा के गुण का निर्धारण उसमें स्थित ह्यूमस की मात्रा और उसमें पाये जाने वाले सूक्ष्म जीवों के आधार पर किया जाता है।
मृदा की संरचना का मुख्य कारक ह्यूमस है, क्योंकि यह मृदा को सरन्ध्र बनाता है और वायु तथा जल को भूमि के अन्दर जाने में सहायक होता है। खनिज पोषक तत्व जो उस मृदा में पाये जाते हैं वह उन पत्थरों पर निर्भर करते हैं जिनसे मृदा बनी है। किस मृदा पर कौन सा पौधा होगा यह इस पर निर्भर करता है कि उस मृदा में पोषक तत्व कितने हैं, हयूमस की मात्रा कितनी है और उसकी गहराई कितनी है। इस प्रकार, मृदा की ऊपरी परत में जिसमें मृदा के कणों के अतिरिक्त हयूमस और सजीव स्थित होते हैं, उसे उपरिमृदा कहा जाता है। उपरिमृदा की गुणवत्ता, जो उस क्षेत्र की जैव विविधता को निर्धारित करती है, एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
आधुनिक समय में खेतों में पीड़कनाशकों और उर्वरकों का बहुत बड़ी मात्रा में प्रयोग हो रहा है। लम्बे समय तक इन पदार्थों का उपयोग करने से मृदा के सूक्ष्म जीव मृत हो जाते हैं और मृदा की संरचना को नष्ट कर सकते हैं जो कि मृदा के पोषक तत्वों का पुनर्चक्रण करते हैं। ह्यूमस बनाने में सहायक भूमि में स्थित केंचुओं को भी वे समाप्त कर सकते हैं उपयोगी घटकों का मृदा से हटना और दूसरे हानिकारक पदार्थों का मृदा में मिलना जो कि मृदा की उर्वरता को प्रभावित करते हैं और उसमें स्थित जैविक विविधता को नष्ट कर देते हैं। इसे भूमि प्रदूषण कहते हैं।
क्रियाकलाप 14.11. (पा.पु. पू. सं. 221)
एक ही प्रकार की दो ट्रे लेकर मृदा से भर देते हैं। एक ट्रे में सरसों या मूंग अथवा धान या हरे चने का पौधा रोपते हैं और दोनों ट्रे में तब तक जल देते हैं जब तक कि जिस ट्रे में पौधा रोपा गया है, वह पौधे की वृद्धि से ढक नहीं जाए। यह सुनिश्चित कर लेते हैं कि दोनों ट्रे एक ही कोण पर झुके हों। दोनों ट्रे में समान मात्रा में जल इस प्रकार डालते हैं कि जल बाहर की ओर न निकलने पाए।
- ट्रे से बाहर जाने वाली मृदा की मात्रा का अध्ययन करें। क्या बहने वाली मृदा की मात्रा दोनों ट्रे में समान है?
- अब कुछ ऊँचाई से दोनों ट्रे में समान मात्रा में जल डालते हैं जितना कि हमने पहले डाला था उतनी ही मात्रा में जल तीन से चार बार डालते हैं।
- अब मृदा की मात्रा का अध्ययन करते हैं जो ट्रे से बाहर चली गई है। क्या दोनों ट्रे में मृदा की मात्रा समान है?
उत्तर:
उपरोक्त प्रकार से हमने अपनी प्रयोगात्मक व्यवस्था सैट कर ली। फिर इसके कुछ समय बाद जल के साथ बहने वाली मृदा का अध्ययन किया तो पाया कि एक ट्रे जिसमें पौधा नहीं रोपा गया था वह मृदा दूसरे ट्रे की मृदा से बहुत अधिक बढ़ गई थी। फिर कुछ ऊँचाई से 3-4 बार दोनों ट्रे में समान मात्रा में पानी डालने पर फिर मृदा का अध्ययन किया जो ट्रे से बाहर चली गई थी तो हमने पाया कि एक ट्रे में कम और रोपे गए पौधे वाली ट्रे में अधिक मृदा है।
इस क्रियाकलाप से यह स्पष्ट होता है कि पौधों की जड़ें मृदा के अपरदन (erosion) को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। बड़े स्तर पर जंगलों को काटना न केवल जैव विविधता को नष्ट कर रहा है बल्कि मृदा के अपरदन के लिए भी उत्तरदायी है। वनस्पति के लिए सहायक उपरिमृदा अपरदन की प्रक्रिया में तीव्रता से हट सकती है। अतः मृदा अपरदन को रोकना बहुत कठिन है। सतह पर पायी जाने वाली वनस्पति जल को परतों के अन्दर जाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
खंड 14.3 से सम्बन्धित पाठ्य पुस्तक के प्रश्न (पाठ्य पुस्तक पृ. सं. 222)
प्रश्न 1.
मृदा (मिट्टी) का निर्माण किस प्रकार होता है?
उत्तर:
मृदा (मिट्टी) का निर्माण हजारों और लाखों वर्षों के लम्बे समयान्तराल में पृथ्वी की सतह या उसके समीप पाये जाने वाले पत्थर विभिन्न प्रकार के भौतिक- रासायनिक और कुछ जैव प्रक्रमों के द्वारा टूट जाते हैं। टूटने के बाद सबसे अंत में बचा महीन कण मृदा है। सूर्य, जल, वायु और जीव मृदा निर्माण प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण योगदान करते हैं।
प्रश्न 2.
मृदा अपरदन क्या है?
उत्तर:
मृदा अपरदन – जल तथा वायु के प्रभाव से मृदा की ऊपरी परत बह जाती है जिसे मृदा अपरदन कहते हैं। मृदा अपरदन प्रमुख रूप से वनस्पति हीन, ढालू तथा कम ह्यूमस वाले क्षेत्रों में अधिक होता है। मृदा अपरदन का मुख्य कारण मनुष्य के अवांछित क्रियाकलाप जैसे वनों की अन्धाधुन्ध कटाई, पशुओं द्वारा अनियन्त्रित चराई कराना तथा अवैज्ञानिक ढंग से खेती करना आदि हैं।
प्रश्न 3.
अपरदन को रोकने और कम करने के कौन-कौन से तरीके हैं?
उत्तर:
अपरदन को रोकने के तरीके- हमारे देश में मृदा अपरदन एक बहुत ही गम्भीर समस्या बन गई है। ऐसी परिस्थिति में मृदा का संरक्षण बहुत ही आवश्यक है। इसके लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं-
(1) वृक्षारोपण – मृदा अपरदन को रोकने का सबसे कारगार उपाय वृक्षारोपण है। जहाँ अपरदन की समस्या गम्भीर हो गई हो, वहाँ नए वृक्ष लगाए जाने चाहिए। वनों की अन्धाधुन्ध कटाई तथा उनके दुरुपयोग पर रोक लगाई जानी चाहिए।
(2) पशुचारण पर नियन्त्रण – खाली खेतों में पशुओं के बिना रोक-टोक घूमने से उनके खुरों से मिट्टी ढीली हो जाती है। इससे वर्षा के जल और वायु के लिए मृदा अपरदन आसान हो जाता है। अतः पशुचारण पर नियन्त्रण होना चाहिए। नियन्त्रित पशु चराई से मृदा अपरदन रुक सकता है।
(3) कृषि प्रणाली में सुधार – कृषि प्रणाली में सुधार करके मृदा अपरदन को बहुत कुछ रोका जा सकता है। इनमें फसल चक्र अपनाना, सीढ़ीदार खेती करना तथा ढालों पर समोच्च रखी जुताई करना आदि उपाय किये जाने चाहिए।
(4) बाँध बनाना – बरसात के दिनों में जब नदी में बाढ़ आती है तो बहुत सी उपजाऊ मिट्टी जल के साथ बह जाती हैं। इसे रोकने के लिए नदियों पर बाँध बनाये जाने चाहिए। इससे जल के वेग में कमी आती है और मृदा अपरदन रुक जाता है।
क्रियाकलाप 14.12. (पा. पु. पृ. सं. 225)
(i) वैश्विक ऊष्मीकरण के क्या परिणाम हो सकते हैं?
(ii) कुछ अन्य ग्रीन हाउस गैसों के नामों का भी पता लगाइए।
उत्तर:
(i) वैश्विक ऊष्मीकरण के कारण हमारी पृथ्वी के वायुमण्डल में ऊष्मा (गर्मी) की वृद्धि हो रही है जिसके फलस्वरूप –
- हिमचोटियों और हिमनदियों के पिघलने से -समुद्र तल की ऊँचाई में वृद्धि हो रही है और तटवर्ती क्षेत्र तथा द्वीप डूबते जा रहे हैं या डूबने की स्थिति में हैं।
- समय से पहले फसलें पक जाने के कारण अनाज के दानों का आकार छोटा होता जा रहा है।
- मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इससे उसकी कार्यक्षमता भी प्रभावित हो रही है।
(ii) कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के अतिरिक्त वायुमण्डल में ग्रीन हाउस प्रभाव उत्पन्न करने वाली अन्य गैसें मीथेन, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरो कार्बन, SO2 आर्गन, अमोनिया तथा क्रिप्टान आदि हैं।
क्रियाकलाप 14.13: (पा. पु. पृ. सं. 226)
पता लगाएँ कि और कौन से अणु हैं जो ओजोन परत को हानि पहुचाते हैं? समाचार-पत्रों में प्रायः ओजोन परत में होने वाले छिद्र की चर्चा की जाती है। पता लगाएँ कि क्या छिद्र में कोई परिवर्तन हो रहा है ? वैज्ञानिक क्या सोचते हैं कि यह किस प्रकार पृथ्वी पर जीवन को प्रभावित करेगा ?
उत्तर:
क्रियाकलाप के इन प्रश्नों के उत्तर के लिए खण्ड 14.5 के अन्तर्गत ‘ओजोन परत’ को ध्यानपूर्वक पढ़िये।
खंड 14.4 और 14.5 से सम्बन्धित पाठ्य पुस्तक के प्रश्न (पाठ्य पुस्तक पृ. सं. 226)
प्रश्न 1.
जल चक्र के क्रम में जल की कौन-कौन सी अवस्थाएँ पाई जाती हैं?
उत्तर:
जलचक्र के क्रम में जल पहले वाष्प बनता है। फिर संघनित होकर वर्षा के रूप में पृथ्वी की सतह पर गिरता है और फिर यह जल नदियों के द्वारा समुद्र में पहुँच जाता है।
प्रश्न 2.
जैविक रूप से महत्त्वपूर्ण दो यौगिकों के नाम दीजिए जिनमें ऑक्सीजन और नाइट्रोजन दोनों पाए जाते हों।
उत्तर:
जैविक रूप से महत्त्वपूर्ण यौगिक प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल, DNA तथा RNA तथा कुछ विटामिन हैं।
प्रश्न 3.
मनुष्य की किन्हीं तीन गतिविधियों को पहचानें जिनसे वायु में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है।
उत्तर:
मनुष्य की तीन गतिविधियाँ जिनसे वायु में CO2 की मात्रा बढ़ती है निम्नांकित हैं-
- दहन की क्रिया जहाँ ईंधन का उपयोग भोजन पकाने व गर्म करने में होता है। होना।
- यातायात के लिए मोटर वाहनों का उपयोग करना।
- उद्योगों के द्वारा वायुमण्डल में (CO2) का प्रवेश
प्रश्न 4.
ग्रीन हाउस प्रभाव क्या है?
उत्तर:
ग्रीन हाउस प्रभाव- कुछ गैसें, जैसे- CO2, मीथेन, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, CFC आदि पृथ्वी से ऊष्मा को पृथ्वी के वायुमण्डल के बाहर जाने से रोकती हैं। वायुमण्डल में विद्यमान इस प्रकार की गैसों में वृद्धि संसार के औसत तापमान को बढ़ा सकती है। इस प्रकार के प्रभाव को फ़ोन हाउस प्रभाव कहते हैं।
प्रश्न 5.
वायुमण्डल में पाए जाने वाले ऑक्सीजन के दो रूप कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
वायुमण्डल में पाये जाने वाले ऑक्सीजन के दो रूप-
- द्विपरमाण्विक अणु O2, तथा
- वायुमण्डल के ऊपरी भाग में तीन परमाणु वाले अणु O3 (ओजोन)