JAC Class 11 History Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

Jharkhand Board JAC Class 11 History Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 History Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. जापान में मेजी पुनस्स्थापना हुई-
(अ) 1876-77
(ब) 1867-68
(स) 1767-68
(द) 1858-59
उत्तर:
(ब) 1867-68

2. मेजी पुनर्स्थापना से पहले जापान में वास्तविक सत्ता किसके हाथ में थी?
(अ) सम्राट्
(ब) प्रधानमन्त्री
(स) सेना
(द) शोगुन।
उत्तर:
(द) शोगुन।

3. अमरीका के किस कमोडोर ने जापान की सरकार को समझौता करने पंर बाध्य किया?
(अ) नेल्सन
(ब) वाशिंगटन
(स) मैथ्यू पेरी
(द) जेफर्सन।
उत्तर:
(स) मैथ्यू पेरी

4. तनाको शोजो ने औद्योगिक प्रदूषण के विरुद्ध आन्दोलन कब शुरू किया?
(अ) 1870
(ब) 1770
(स) 1970
(द) 1897
उत्तर:
(द) 1897

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5. चीन में गणतन्त्र की स्थापना हुई-
(अ) 1911
(ब) 1890
(स) 1901
(द) 1949
उत्तर:
(अ) 1911

6. चीन में 1911 में गणतन्त्र की स्थापना किसके नेतृत्व में हुई?
(अ) चाउ एन लाई
(ब) कांग युवेई
(स) च्यांग काई शेक
(द) डॉ. सनयात सेन।
उत्तर:
(द) डॉ. सनयात सेन।

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-

1. साम्राज्यवादी जापान ने ……………. में अपनी कॉलोनी के रूप में कोरिया पर जबरन कब्जा कर लिया।
2. 1949 में …………….. ने ताइवान में चीन गणतंत्र की स्थापन की।
3. पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार ……………. में कायम हुई।
4. ……………… की साम्यवादी पार्टी की स्थापना 1921 में हुई थी।
5. अमरीकी नेतृत्व वाले कब्जे $(1945-47)$ के दौरान जापान का ………………. कर दिया गया।।
उत्तर:
1. सन् 1910
2. चियांग काई – शेक
3. 1949 ई.
4. चीन
5. विसैन्यीकरण

निम्न में से सत्य / असत्य कथन छाँटिये –

1. जापान ने चीन को 1894 में हराया और 1905 में रूस को पराजित किया।
2. 1945 में आंग्ल-अमरीकी सैन्य शक्ति के सामने चीन को हार माननी पड़ी।
3. हान चीन का सबसे बड़ा जातीय समूह है।
4. जापान में 1867-68 में तोकुगवा वंश के नेतृत्व में मेजी वंश का शासन समाप्त किया गया।
5. सन यात सेन के विचार कुओमीनतांग के राजनीतिक दर्शन के आधार बने।
उत्तर:
1. सत्य
2. असत्य
3. सत्य
4. असत्य
5. सत्य

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निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये –

1. सन यात सेन (अ) ताईवान में चीनी गणतंत्र के संस्थापक
2. चियांग काई शेक (ब) दक्षिणी कोरिया के राष्ट्रपति
3. माओत्से तुंग (स) मेजी काल के प्रमुख जापानी बुद्धिजीवी
4. मून जे-इन (द) चीनी समाजवादी पार्टी के प्रमुख नेता
5. फुकुजावा यूकिची (य) कुओमीनतांग के नेता

उत्तर:

1. सन यात सेन (य) कुओमीनतांग के नेता
2. चियांग काई शेक (अ) ताईवान में चीनी गणतंत्र के संस्थापक
3. माओत्से तुंग (द) चीनी समाजवादी पार्टी के प्रमुख़ नेता
4. मून जे-इन (ब) दक्षिणी कोरिया के राष्ट्रपति
5. फुकुजावा यूकिची (स) मेजी काल के प्रमुख जापानी बुद्धिजीवी

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
1603 से 1867 तक जापान में कौन से परिवार के लोग शोगुन के पद पर आसीन थे ?
उत्तर:
तोकुगावा।

प्रश्न 2.
जापान का योद्धा वर्ग क्या कहलाता था ?
उत्तर:
समुराई।

प्रश्न 3.
17वीं शताब्दी के मध्य तक जापान का कौनसा शहर दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर बन गया था?..
उत्तर:
एदो।

प्रश्न 4.
जापान की किस बस्ती का रेशम दुनिया भर में उत्कृष्ट कोटि का रेशम माना जाता था ?
उत्तर:
निशिजिन का।

प्रश्न 5.
जापान में ‘मेजी पुनर्स्थापना’ कब हुई ?
उत्तर:
1867-68 में।

प्रश्न 6.
अमेरिका के किस जलसेनापति ने जापानी सरकार को अमेरिका के साथ व्यापारिक और राजनयिक सम्बन्ध स्थापित करने के लिए बाध्य किया?
उत्तर:
कॉमोडोर मैथ्यू पेरी ने।

प्रश्न 7.
जापान की सरकार ने किस नारे के साथ आधुनिकीकरण की नीति की घोषणा की?
उत्तर:
‘फुकोको क्योहे’ (समृद्ध देश, सुदृढ़ सेना) के नारे के साथ।

प्रश्न 8.
जापान की पहली रेलवे लाइन कब बिछाई गई ?
उत्तर:
1870-72 में।

प्रश्न 9.
जापान में आधुनिक बैंकिंग संस्थाओं का प्रारम्भ कब हुआ ?
उत्तर:
र – 1872 में।

प्रश्न 10.
जापान के किस प्रमुख बुद्धिजीवी ने जापान को एशियाई लक्षण छोड़कर अपना पश्चिमीकरण करने की सलाह दी थी?
उत्तर:
फुकुजावा यूकिची ने।

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प्रश्न 11.
तोक्यो में ओलम्पिक खेल कब हुए?
उत्तर:
1964 में।

प्रश्न 12.
आधुनिकीकरण के अन्तर्गत किस नगर को जापान की राजधानी बनाया गया?
उत्तर:
तोक्यो को

प्रश्न 13.
चीन और ब्रिटेन के बीच प्रथम अफीम युद्ध कब हुआ ?
उत्तर:
1839-1842 में।

प्रश्न 14.
आधुनिक चीन के संस्थापक कौन माने जातें हैं ?
उत्तर;
डॉ. सनयात सेन।

प्रश्न 15.
चीन में गणतन्त्र की स्थापना कब हुई और किसके नेतृत्व में हुई ?
उत्तर:
(1) 1911 में
(2) डॉ. सन – यात – सेन के नेतृत्व में।

प्रश्न 16.
डॉ. सनयात सेन का कार्यक्रम किसके नाम से प्रसिद्ध है ?
उत्तर:
तीन सिद्धान्त (सन मिन चुई) के नाम से।

प्रश्न 17.
डॉ. सनयात सेन के तीन सिद्धान्त कौन से थे?
उत्तर:
(1) राष्ट्रवाद
(2) गणतन्त्र की स्थापना
(3) समाजवाद।

प्रश्न 18.
डॉ. सनयात सेन ने किस दल की स्थापना की ?
उत्तर”
‘कुओमिनतांग’ की।

प्रश्न 19.
डॉ. सनयात सेन ने किन चार बड़ी जरूरतों पर बल दिया ?
उत्तर:
(1) कपड़ा
(2) रोटी
(3) मकान
(4) परिवहन।

प्रश्न 20.
जापान ने मन्चूरिया पर कब आक्रमण किया?
उत्तर:
1931 में।

प्रश्न 21.
जापान ने मन्चूरिया पर अधिकार करके वहाँ किसके नेतृत्व में सरकार का गठन किया ?
उत्तर:
मन्चुकाओ के नेतृत्व में।

प्रश्न 22.
चीन में साम्यवादी दल की स्थापना कब हुई ?
उत्तर:
1921 में।

प्रश्न 23.
चीन की तीन प्रमुख नदियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) पीली नदी (हुआंग हे )
(2) यांग्त्सी नदी (छांग जिआंग) तथा
(3) पर्ल नदी।

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प्रश्न 24.
जापान की भौगोलिक स्थिति समझाइए।
उत्तर:
जापान एक द्वीप – शृंखला है, जिसमें चार सबसे बड़े द्वीप हैं –
(1) होंशु
(2) क्युशू
(3) शिकोकू
(4) होकाइदो। ओकिनावा द्वीपों की श्रृंखला सबसे दक्षिण में है।

प्रश्न 25.
शोगुन कौन थे ?
उत्तर:
जापान की वास्तविक सत्ता शोगुनों के हाथ में थी जो सैद्धान्तिक रूप से सम्राट् के नाम पर शासन करते थे।

प्रश्न 26.
जापान अमीर देश क्यों समझा जाता था ?
उत्तर:
जापान चीन से रेशम तथा भारत से कपड़ा जैसी विलासी वस्तुएँ आयात करता था। इस कारण जापान अमीर देश समझा जाता था।

प्रश्न 27.
निशिजिन क्यों प्रसिद्ध था ?
अथवा
‘निशिजिन’ के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
निशिजिन क्योतो की एक बस्ती है। यहाँ बड़े पैमाने पर रेशम का उत्पादन किया जाता था। यहाँ केवल विशिष्ट प्रकार के महँगे उत्पाद बनाए जाते थे।

प्रश्न 28.
मुरासाकी शिकिबु कौन थी ? उसने किस ग्रन्थ की रचना की थी ?
उत्तर:
मुरासाकी शिकिबु जापान की एक प्रसिद्ध लेखिका थी। उसने ‘दि टेल ऑफ गेंजी’ (गेंजी की कथा ) नामक ग्रन्थ की रचना की थी।

प्रश्न 29.
‘मेजी पुनर्स्थापना’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
1867-68 में मेजी वंश के नेतृत्व में तोकुगावा वंश का शासन समाप्त कर दिया गया। अब वास्तविक सत्ता सम्राट के हाथ में आ गई।

प्रश्न 30.
अमरीका जापान में अपना प्रभाव क्यों बढ़ाना चाहता था ?
उत्तर:
अमरीका को प्रशान्त महासागर में अपने बेड़ों के लिए ईंधन प्राप्त करने के लिए स्थान की आवश्यकता थी।

प्रश्न 31.
अमरीका के किस जल-सेनापति के साथ जापान के शोगुन को सन्धि करनी पड़ी और कब ?
उत्तर:
(1) कमोडोर मैथ्यू पेरी के साथ
(2) 1854 ई. में। इस सन्धि के अनुसार जापान ने अमरीका के साथ राजनयिक तथा व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित किये।

प्रश्न 32.
पेरी के आगमन का जापानी राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
सम्राट का अचानक महत्त्व बढ़ गया। 1868 में एक आन्दोलन द्वारा शोगुन को सत्ता से हटा दिया गया।

प्रश्न 33.
जापान की सरकार ने ‘फुकोकु क्योहे’ के नारे के साथ नई नीति की घोषणा की? यह नीति क्या थी?
उत्तर:
जापान की सरकार ने ‘फुकोकु क्योहे’ (समृद्ध देश, मजबूत सेना) के नारे के साथ नई नीति की घोषणा की।

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प्रश्न 34.
जापान की सरकार ने ‘सम्राट्-व्यवस्था’ के पुनर्निर्माण का काम शुरू किया ‘सम्राट् व्यवस्था’ को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘सम्राट् व्यवस्था’ में सम्राट्, नौकरशाही तथा सेना इकट्ठे सत्ता चलाते थे और नौकरशाही व सेना सम्राट् के प्रति उत्तरदायी होते थे।

प्रश्न 35.
जापानी सरकार द्वारा सैन्य क्षेत्र में किये गये दो सुधारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) 20 वर्ष से अधिक आयु के नवयुवकों के लिए सेना में काम करना अनिवार्य कर दिया गया।
(2) एक आधुनिक सैन्य-बल तैयार किया गया।

प्रश्न 36.
लोकतान्त्रिक संविधान तथा आधुनिक सेना को महत्त्व देने के दो परिणाम लिखिए।
उत्तर:
(1) सेना ने साम्राज्य – विस्तार के उद्देश्य से मजबूत विदेश नीति के लिए दबाव डाला।
(2) जापान आर्थिक रूप से विकास करता गया।

प्रश्न 37.
जापान में पहली रेल लाइन कब बनाई गई ?
उत्तर:
जापान की पहली रेल लाइन 1870-72 में तोक्यो और योकोहामा के बन्दरगाह के बीच बिछाई गई।

प्रश्न 38.
तनाका शोजो कौन था ?
उत्तर:
तनाका शोजो जापान की संसद के पहले निम्न सदन का सदस्य था। 1897 में उसने औद्योगिक प्रदूषण के विरुद्ध पहला आन्दोलन शुरू किया।

प्रश्न 39.
फुकुजावा यूकिची कौन था? उसने जापान के आधुनिकीकरण के सम्बन्ध में क्या सुझाव दिए?
उत्तर:
फुकुजावा यूकिची जापान का मेजी काल का एक प्रमुख बुद्धिजीवी था। उसका कहना था कि जापान को अपने एशियाई लक्षण छोड़ कर पश्चिम का हिस्सा बन जाना चाहिए।

प्रश्न 40.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, जापान के किन नगरों पर नाभिकीय बम गिराए गए और क्यों गिराए गए ?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध को जल्दी समाप्त करने के लिए संयुक्त राज्य अमरीका ने जापान के दो नगरों- हिरोशिमा और नागासाकी पर नाभिकीय बम गिराए।

प्रश्न 41.
द्वितीय विश्व युद्ध में पराजित होने के बाद भी जापानी अर्थव्यवस्था का तेजी से पुनर्निर्माण हुआ। इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
(1) 1964 में जापान में ओलम्पिक खेल जापानी अर्थव्यवस्था की मजबूती के प्रमाण हैं।
(2) 1964 में जापान में बुलेट ट्रेन का जाल शुरू हुआ।

प्रश्न 42.
प्रथम अफीम युद्ध किन देशों के बीच हुआ और कब हुआ ?
उत्तर:
चीन और ब्रिटेन के बीच 1839-42 में प्रथम अफीम युद्ध हुआ।

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प्रश्न 43.
चीन के विचारक लियांग किचाऊ ने भारत के विषय में क्या विचार प्रकट किये थे ?
उत्तर:
1903 में लियांग किचाऊ ने लिखा था कि भारत एक कम्पनी के हाथों बर्बाद हो गया, ईस्ट इण्डिया कम्पनी के।

प्रश्न 44.
चीन में गणतन्त्र की स्थापना किसके नेतृत्व में हुई और कब ?
उत्तर:
1911 में चीन में मांचू साम्राज्य समाप्त कर दिया गया और डॉ. सन यात सेन के नेतृत्व में गणतन्त्र की स्थापना की गई।

प्रश्न 45.
डॉ. सनयात सेन कौन थे ?
उत्तर:
डॉ. सनयात सेन आधुनिक चीन के संस्थापक थे।

प्रश्न 46.
कुओमिनतांग दल की स्थापना किसने की थी ?
उत्तर:
डॉ. सनयात सेन ने कुओमिनतांग दल की स्थापना की थी।

प्रश्न 47.
च्यांग काई शेक कौन थे?
उत्तर:
डॉ. सनयात सेन की मृत्यु के बाद च्यांग काई शेक कुओमिनतांग के प्रमुख नेता बने।

प्रश्न 48.
चीन की साम्यवादी पार्टी की स्थापना कब हुई? इसके प्रमुख नेता कौन थे ?
उत्तर:
(1) चीन की साम्यवादी पार्टी की स्थापना 1921 में हुई थी।
(2) इसके प्रमुख नेता माओत्से तुंग थे।

प्रश्न 49.
माओत्से तुंग के आमूल परिवर्तनवादी दो तरीकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) माओत्से तुंग ने मजबूत किसान परिषद् का गठन किया, जमीन पर कब्जा और पुनर्वितरण के साथ एकीकरण हुआ।
(2) उन्होंने आजाद सरकार और सेना पर बल दिया

प्रश्न 50.
लाँग मार्च से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
च्यांग काई शेक के सैनिकों द्वारा आक्रमण करने पर माओत्से तुंग के नेतृत्व में साम्यवादियों को लाँग मार्च (1934-35) पर जाना पड़ा।

प्रश्न 51.
चीन में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (चीनी जनवादी गणतन्त्र) की स्थापना कब हुई ?
उत्तर:
1949 में चीन में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना हुई, जो ‘नए लोकतन्त्र’ के सिद्धान्तों पर आधारित थी।

प्रश्न 52.
लम्बी छलांग वाले आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? यह कब शुरू हुआ ?
उत्तर:
1958 में चीन में लम्बी छलांग वाले आन्दोलन की शुरुआत हुई। इसके द्वारा देश का तेजी से औद्योगीकरण करने का प्रयास किया गया।.

प्रश्न 53.
महान् सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति क्या थी? यह किसने शुरू की और कब ?
उत्तर:
1965 में माओत्से तुंग ने महान् सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति शुरू की थी। पुरानी संस्कृति, पुराने रीति- रिवाजों और पुरानी आदतों के विरुद्ध अभियान छेड़ा गया।

प्रश्न 54.
1978 में साम्यवादी पार्टी ने आधुनिकीकरण के लिए किस चार सूत्री लक्ष्य की घोषणा की थी ?
उत्तर:
1978 में साम्यवादी पार्टी ने आधुनिकीकरण के लिए एक चार-सूत्री लक्ष्य की घोषणा की थी। ये थे- विज्ञान, उद्योग, कृषि और रक्षा का विकास।

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प्रश्न 55.
सन् 1392 से 1910 तक कोरिया में किस राज वंश का शासन था ?
उत्तर:
सन् 1392 से 1910 तक कोरिया में जोसोन राजवंश का शासन था।

प्रश्न 56.
किस साम्राज्यवादी देश ने 1910 में कोरिया पर कब्जा कर लिया था ?
उत्तर:
साम्राज्यवादी देश जापान ने 1910 में अपनी कॉलोनी के रूप में कोरिया पर जबरन कब्जा कर लिया था।

प्रश्न 57.
कोरिया से जापानी औपनिवेशिक शासन कब समाप्त हुआ?
उत्तर:
कोरिया से जापानी औपनिवेशिक शासन अगस्त, 1945 में द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के साथ समाप्त हुआ।

प्रश्न 58.
कोरिया का विभाजन कब स्थायी रूप से स्थापित हो गया ?
उत्तर:
1948 में उत्तर और दक्षिण कोरिया में अलग-अलग सरकारें स्थापित होने के साथ कोरिया का विभाजन स्थायी रूप से स्थापित हो गया।

प्रश्न 59.
उत्तर व दक्षिण कोरिया के बीच युद्ध कब लड़ा गया ?
उत्तर:
दोनों कोरिया के बीच जून, 1950 से जुलाई, 1953 तक युद्ध लड़ा गया।

प्रश्न 60.
दक्षिण कोरिया को युद्ध में किस राष्ट्र की सेना ने समर्थन किया ?
उत्तर:
र – अमेरिकी अगुवाई वाली संयुक्त राष्ट्र सेना ने।

प्रश्न 61.
दक्षिण कोरिया के पहले राष्ट्रपति कौन थे ?
उत्तर:
सिन्गमैन री

प्रश्न 62.
‘पार्क चुंग ही’ दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति कब से कब तक रहे ?
उत्तर:
‘पार्क चुंग ही ‘ मई, 1961 से अक्टूबर, 1979 तक दक्षिण कोरिया के राष्अपति रहे।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शोगुन कौन थे? उनकी शासन व्यवस्था में क्या भूमिका थी?
उत्तर:
शोगुन – जापान में शासन का प्रमुख सम्राट् होता था जो क्योतो में रहता था। परन्तु बारहवीं शताब्दी में वास्तविक सत्ता शोगुनों के हाथ में आ गई। वे सैद्धान्तिक रूप से सम्राट् के नाम पर शासन करते थे। शासन व्यवस्था में शोगुनों की भूमिका-जापान में 1603 से 1867 तक तोकुगावा परिवार के लोग शोगुन पद पर आसीन थे। जापान 250 भागों में विभाजित था, जिनका शासन दैम्पो चलाते थे। शोगुन इन दैम्पो तथा समुराई (योद्धा वर्ग) पर नियन्त्रण रखते थे। शोगुन दैम्पो को लम्बी अवधि के लिए राजधानी एदो ( आधुनिक तोक्यो ) में रहने का आदेश देते थे, ताकि वे कोई खतरा उत्पन्न न कर सकें। शोगुन प्रमुख शहरों और खदानों पर भी नियन्त्रण रखते थे

प्रश्न 2.
शोगुनों के समय में जापान के नगरों के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शोगुनों के समय में जापान के नगरों का विकास-जापान में दैम्पो की राजधानियों का आकार बढ़ता गया जिसके परिणामस्वरूप 17वीं शताब्दी के मध्य तक जापान में एदो विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर बन गया। एदो के अतिरिक्त ओसाका तथा तोक्यो भी बड़े शहरों के रूप में विकसित हुए। जापान में कम से कम 6 ऐसे गढ़ वाले शहरों का उदय हुआ, जिनकी जनसंख्या 50,000 से अधिक थी। शहरों के विकास का महत्त्व –

  • शहरों के विकास से जापान की वाणिज्यिक अर्थव्यवस्था का विकास हुआ और वित्त तथा ऋण की प्रणालियाँ स्थापित हुईं।
  • व्यक्ति के गुण उसके पद से अधिक महत्त्वपूर्ण समझे जाने लगे।
  • शहरों में जीवन्त संस्कृति का विकास हुआ।
  • शहरों के व्यापारियों ने नाटकों तथा कलाओं को प्रोत्साहन दिया।
  • शहरों में रहने वाले प्रतिभाशाली लेखकों के लिए लेखन द्वारा अपनी आजीविका कमाने का अवसर मिला।

प्रश्न 3.
तोकुगावा शोगुनों के समय में जापान की अर्थव्यवस्था में आए परिवर्तन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तोकुगावा शोगुनों के समय में जापान की अर्थव्यवस्था में परिवर्तन – तोकुगावा शोगुनों के समय जापान एक धनी देश समझा जाता था। इसका कारण यह था कि जापान चीन से रेशम तथा भारत से कपड़ा जैसी विलासिता की वस्तुएँ मँगाता था। इन चीजों के आयात के लिए सोने तथा चाँदी के मूल्य चुकाने से अर्थव्यवस्था पर भार अवश्य पड़ा और इस कारण से तोकुगावा ने बहुमूल्य धातुओं के निर्यात पर प्रतिबन्ध लगा दिया। शोगुनों ने क्योतो के निशिजिन में रेशम उद्योग के विकास के लिए भी प्रयास किये जिससे रेशम का आयात कम किया जा सके। निशिजिन का रेशम सम्पूर्ण विश्व में उत्कृष्ट कोटि का रेशम माना जाने लगा। इससे जापान की अर्थव्यवस्था मजबूत हुई। मुद्रा के बढ़ते प्रयोग तथा चावल के शेयर बाजार के निर्माण से पता चलता है कि अर्थतन्त्र नई दिशाओं में विकसित हो रहा था।

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प्रश्न 4.
अमरीका के कामोडोर मैथ्यू पेरी ने जापान के तोकुगावा शोगुन को समझौता करने के लिए क्यों बाध्य किया? पेरी के आगमन के जापानी राजनीति पर क्या प्रभाव हुए?
उत्तर:
अमरीका अपने व्यापारिक हितों की पूर्ति के लिए जापान में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता था। जापान चीन के रास्ते में था और अमरीका चीन में एक बड़े बाजार की सम्भावना देखता था। इसके अतिरिक्त अमरीका को प्रशान्त महासागर में अपने बेड़े के लिए ईंधन लेने का स्थान भी चाहिए था। अतः 1853 में अमरीका ने कामोडोर मैथ्यू पेरी को जापान भेजा। उसने जापानी सरकार से एक ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर करने की माँग की, जिसके अनुसार जापान को अमरीका के साथ राजनयिक और व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करने थे। अमरीका की सैनिक शक्ति से भयभीत होकर जापान के शोगुन ने 1854 में ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए।

पेरी के आगमन का महत्त्व इससे जापान के सम्राट् का अचानक महत्त्व बढ़ गया। 1868 में शोगुन को जबरदस्ती सत्ता से हटा दिया गया। एदो को जापान की राजधानी बना दिया गया तथा उसका नया नाम तोक्यो रखा गया। प्रश्न 5. मेजी सरकार द्वारा ‘सम्राट व्यवस्था’ के पुनर्निर्माण के लिए किये गये उपायों का वर्णन कीजिए। उत्तर-सम्राट व्यवस्था का पुनर्निर्माण – मेजी सरकार ने जापान में सम्राट् व्यवस्था के पुनर्निर्माण के लिए अनेक कदम उठाये। सम्राट् व्यवस्था से अभिप्राय है कि एक ऐसी व्यवस्था जिसमें सम्राट् नौकरशाही और सेना इकट्ठे सत्ता चलाते थे और नौकरशाही तथा सेना सम्राट् के प्रति उत्तरदायी होते थे।

  • राजतान्त्रिक व्यवस्था के सिद्धान्तों को समझने के लिए जापान के कुछ अधिकारियों को यूरोप भेजा गया।
  • सम्राट् को सूर्य – देवी का वंशज माना गया। इसके साथ ही उसे पश्चिमीकरण का नेता भी बनाया गया।
  • जापान में सम्राट् का जन्म – दिन राष्ट्रीय अवकाश का दिन घोषित किया गया।
  • सम्राट् पश्चिमी ढंग की सैनिक वेशभूषा पहनने लगा। उसके नाम से आधुनिक संस्थाएँ स्थापित करने के अधिनियम बनाए गए।
  • 1890 की शिक्षा सम्बन्धी राजाज्ञा ने लोगों को पढ़ने, जनता के सार्वजनिक एवं साझे हितों को प्रोत्साहन देने के लिए प्रेरित किया।

प्रश्न 6.
मेजी सरकार ने शिक्षा के आधुनिकीकरण के लिए क्या कदम उठाये ?
उत्तर:

  • 1870 के दशक से नई विद्यालय व्यवस्था का निर्माण शुरू हुआ। लड़के और लड़कियों को स्कूल जाना अनिवार्य हो गया। 1910 तक जापान में स्कूल जाने से कोई वंचित नहीं रहा।
  • शिक्षा की फीस बहुत कम थी।
  • प्रारम्भ में पाठ्यक्रम पश्चिमी देशों के पाठ्यक्रमों पर आधारित था, परन्तु 1870 से आधुनिक विचारों पर बल दिया जाने लगा। इसके साथ-साथ राज्य के प्रति निष्ठा और जापानी इतिहास के अध्ययन पर भी बल दिया जाने लगा।
  • पाठ्यक्रम, पुस्तक के चयन तथा शिक्षकों के प्रशिक्षण पर शिक्षा मन्त्रालय नियन्त्रण रखता था। नैतिक संस्कृति के विषयों का अध्ययन करना अनिवार्य था। पुस्तकों में माता-पिता के प्रति आदर, राष्ट्र के प्रति स्वामि-भक्ति तथा अच्छे नागरिक बनने की प्रेरणा दी जाती थी।

प्रश्न 7.
गेंजी की कथा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गेंजी की कथा – मुरासाकी शिकिबु द्वारा रचित हेआन राजदरबार की इस काल्पनिक डायरी ‘दि टेल ऑफ दि गेंजी’ ने जापानी साहित्य में अपना प्रमुख स्थान बना लिया है। मुरासाकी शिकिबु एक प्रतिभाशाली लेखिका थी जिसने जापानी लिपि का प्रयोग किया। इस उपन्यास में कुमार गेंजी के रोमांचकारी जीवन पर प्रकाश डाला गया है तथा हेआन राज- दरबार के कुलीन वातावरण का सजीव चित्रण किया गया है। इसमें यह भी बताया गया है कि स्त्रियों को अपने पति चुनने तथा अपना जीवन व्यतीत करने की कितनी स्वतन्त्रता थी।

प्रश्न 8.
‘निशिजिन’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
निशिजिन – निशिजिन जापान के शहर क्योतो की एक बस्ती है। 16वीं शताब्दी में वहाँ 31 परिवारों का बुनकर संघ था। 17वीं शताब्दी के अन्त तक इस समुदाय में 70,000 लोग थे। निशिजिन में रेशम का उत्पादन किया जाता था। निशिजिन का रेशम समस्त विश्व में उत्कृष्ट कोटि का रेशम माना जाता था। यहाँ केवल विशिष्ट प्रकार के महँगे उत्पाद बनाए जाते थे। रेशम उत्पादन से ऐसे प्रादेशिक उद्यमी वर्ग का विकास हुआ, जिसने कालान्तर में तोकुगावा व्यवस्था को चुनौती दी। जब 1859 में विदेशी व्यापार प्रारम्भ हुआ, जापान से रेशम का निर्यात अर्थव्यवस्था के लिए मुनाफे का प्रमुख स्रोत बन गया। यह वह समय था, जबकि जापानी अर्थव्यवस्था पश्चिमी वस्तुओं से प्रतिस्पर्द्धा करने का प्रयास कर रही थी।

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प्रश्न 9.
राष्ट्र के एकीकरण के लिए मैजी सरकार द्वारा किए गए कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • राष्ट्र के एकीकरण के लिए मेजी सरकार ने पुराने गाँवों तथा क्षेत्रीय सीमाओं को परिवर्तित कर नवीन प्रशासनिक ढाँचा तैयार किया।
  • जापान में 20 वर्ष से अधिक आयु के नव-युवकों के लिए कुछ समय के लिए सेना में काम करना अनिवार्य कर दिया गया। एक आधुनिक सैन्य-बल तैयार किया गया।
  • कानून व्यवस्था’ बनाई गई, जो राजनीतिक दलों के कार्यों पर नजर रख सके, सभाएँ बुलाने पर नियन्त्रण रख सके तथा कठोर सेंसर व्यवस्था स्थापित कर सके।
  • सेना और नौकरशाही को सीधा सम्राट् के अधीन रखा गया। लोकतान्त्रिक संविधान तथा आधुनिक सेना को महत्त्व देने के दूरगामी परिणाम निकले। सेना ने साम्राज्यवादी नीति अपनाने के लिए मजबूत विदेश नीति पर बल दिया। इस कारण से जापान को चीन और रूस के साथ युद्ध लड़ने पड़े। इन दोनों युद्धों में जापान की विजय हुई। आर्थिक एवं औद्योगिक क्षेत्रों में भी जापान की अत्यधिक उन्नति हुई।

प्रश्न 10.
फुकुजावा यूकिची पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
फुकुजावा यूकिची – फुकुजावा यूकिची का जन्म 1835 में एक निर्धन समुराई परिवार में हुआ था। उसने नागासाकी तथा ओसाका में शिक्षा प्राप्त की। उसने डच, पश्चिमी विज्ञान और बाद में अंग्रेजी का अध्ययन किया। 1860 में वह अमरीका में पहले जापानी दूतावास में अनुवादक के पद पर नियुक्त हुआ। उन्होंने पश्चिमी देशों पर एक पुस्तक लिखी। उसने एक शिक्षा संस्थान की स्थापना की, जो आज केओ विश्वविद्यालय के नाम से प्रसिद्ध है।

फुकुजावा यूकिची ने ‘ज्ञान’ के लिए प्रोत्साहन’ नामक एक पुस्तक लिखी। इसमें उसने जापानी ज्ञान की कटु आलोचना की : ‘जापान के पास प्राकृतिक दृश्यों के अतिरिक्त गर्व करने के लिए कुछ भी नहीं है।” उसने आधुनिक कारखानों व संस्थाओं के अतिरिक्त पश्चिम के सांस्कृतिक सार तत्त्व को भी प्रोत्साहन दिया, जो कि उसके अनुसार सभ्यता की आत्मा है। उसके द्वारा एक नवीन नागरिक बनाया जा सकता था।

प्रश्न 11.
डॉ. सनयात सेन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
डॉ. सन यात सेन के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
डॉ. सनयात सेन- डॉ. सनयात सेन का जन्म 12 नवम्बर, 1866 को कैंटन के निकट एक गांव में हुआ था। वे आधुनिक चीन के संस्थापक माने जाते हैं। 1911 में चीन में क्रान्ति हो गई। वहाँ मांचू साम्राज्य समाप्त कर दिया – सेन के नेतृत्व में गणतन्त्र की स्थापना की गई। 1912 में सनयात सेन ने कुओमिनतांग दल की गया तथा सन – यात – स्थापना की।
डॉ. सनयात सेन के सिद्धान्त-

1. राष्ट्रवाद – इसका अर्थ था मांचू वंश को सत्ता से हटाना। मांचू वंश विदेशी राजवंश के रूप में देखा जाता था। डॉ. सेन ने चीनियों में राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार किया। उन्होंने चीनियों को विदेशी साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।

2. गणतन्त्रवाद – डॉ. सेन चीन में गणतन्त्र या गणतान्त्रिक सरकार की स्थापना करना चाहते थे।

3. समाजवाद-इससे अभिप्राय था-जो पूँजी का नियमन करे तथा भू-स्वामित्व में बराबरी लाए।
डॉ. सेन के विचार कुओमिनतांग दल के राजनीतिक दर्शन का आधार बने। उन्होंने कपड़ा, भोजन, घर और परिवहन — इन चार बड़ी आवश्यकताओं पर बल दिया।

प्रश्न 12.
चीन में प्रचलित परीक्षा प्रणाली का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चीन में अभिजात सत्ताधारी वर्ग में प्रवेश अधिकतर परीक्षा के द्वारा ही होता था। इसमें 8 भाग वाला निबन्ध निर्धारित प्रपत्र में शास्त्रीय चीनी भाषा में लिखना होता था। यह परीक्षा विभिन्न स्तरों पर हर तीन वर्ष में दो बार आयोजित की जाती थी। पहले स्तर की परीक्षा में केवल 1-2 प्रतिशत लोग ही 24 वर्ष की आयु तक उत्तीर्ण हो पाते थे। इसलिए कई निम्न श्रेणी के डिग्री धारकों के पास नौकरी नहीं होती थी। यह परीक्षा विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास में बाधक का काम करती थी; क्योंकि इसमें केवल साहित्यिक कौशल की माँग होती थी। चूँकि यह क्लासिक चीनी सीखने के कौशल पर ही आधारित थी, जिसकी आधुनिक विश्व में कोई प्रासंगिकता दिखाई नहीं देती थी। अन्त में, 1905 में इस प्रणाली को समाप्त कर दिया गया।

प्रश्न 13.
माओत्से तुंग के आमूल परिवर्तनवादी तौर-तरीकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
माओत्से तुंग के आमूल परिवर्तनवादी तौर-तरीके –
(1) 1928-34 के बीच माओत्से तुंग ने कुओमिनतांग के आक्रमणों से बचाव के लिए सुरक्षित शिविर लगाए।
(2) उन्होंने मजबूत किसान परिषद् (सोवियत) का गठन किया, जमींदारों की भूमि पर अधिकार कर उसे भूमिहीन कृषकों में बाँट दिया।
(3) माओत्से तुंग ने स्वतन्त्र सरकार और सेना पर बल दिया।
(4) उन्होंने महिलाओं की दशा सुधारने पर बल दिया। उन्होंने ग्रामीण महिला संघों की स्थापना को बढ़ावा दिया। उन्होंने विवाह के नये कानून बनाए, जिसमें आयोजित विवाहों तथा विवाह के समझौते खरीदने एवं बेचने पर रोक लगाई और तलाक को सरल बनाया।

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प्रश्न 14.
1930 में माओत्से तुंग द्वारा जुनवू में किए गए सर्वेक्षण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
“1930 में माओत्से तुंग द्वारा जुनवू में किया गया सर्वेक्षण – 1930 में जुनवू में किये गए एक सर्वेक्षण में माओत्से तुंग ने नमक और सोयाबीन जैसी दैनिक जीवन की वस्तुओं, स्थानीय संगठनों की तुलनात्मक दृढ़ताओं, छोटे व्यापारियों और शिल्पकारों, लौहारों, वेश्याओं, धार्मिक संगठनों की मजबूतियाँ, इन सबका परीक्षण किया, ताकि शोषण के पृथक्-पृथक् स्तरों को समझा जा सके। उन्होंने ऐसे आँकड़े एकत्रित किये कि कितने किसानों ने अपने बच्चों को बेचा है और इसके लिए उन्हें कितना धन मिला। लड़के 100-200 यूआन पर बिकते थे, परन्तु लड़कियों की बिक्री के कोई उदाहरण नहीं मिले; क्योंकि आवश्यकता मजदूरों की थी, स्त्रियों के शोषण की नहीं। इस अध्ययन के आधार पर उन्होंने सामाजिक समस्याओं के समाधान के तरीके प्रस्तुत किए।

प्रश्न 15.
पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार की उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार की उपलब्धियाँ – पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार 1949 में स्थापित हुई। यह ‘नए लोकतन्त्र’ के सिद्धान्त पर आधारित थी। इसकी उपलब्धियाँ इस प्रकार रहीं –

  • नया लोकतन्त्र चीन के सभी सामाजिक वर्गों का गठबन्धन था। इसके अन्तर्गत, अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्र सरकार के नियन्त्रण में रखे गए और निजी कारखानों तथा भूस्वामित्व को धीरे-धीरे समाप्त किया गया। यह कार्यक्रम 1953 तक चला।
  • उस समय सरकार ने समाजवादी परिवर्तन का कार्यक्रम शुरू करने की घोषणा की थी।
  • 1958 में सरकार ने लम्बी छलाँग वाले आन्दोलन की नीति अपनाई जिसके अन्तर्गत देश का तीव्र गति से औद्योगीकरण करने का प्रयास किया गया। लोगों को अपने घरों के पिछवाड़े में इस्पात की भट्टियाँ लगाने के लिए बढ़ावा दिया गया।
  •  ग्रामीण क्षेत्रों में पीपुल्स कम्यून शुरू किये गए। यहाँ लोग इकट्ठे जमीन के स्वामी थे तथा मिल-जुलकर फसल उगाते थे।

प्रश्न 16.
माओत्सेतुंग पार्टी द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को पाने के लिए क्या कार्य किये? वे इन लक्ष्यों की प्राप्ति में कैसे सफल रहे?
उत्तर:
माओत्सेतुंग साम्यवादी दल द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए चीनी जनसमुदाय को प्रेरित करने में सफल रहे। वे ‘समाजवादी व्यक्ति’ बनाने के लिए लालायित थे। इसकी पाँच चीजें प्रिय होती थीं –
(1) पितृ भूमि
(2) जनता
(3) काम
(4) विज्ञान तथा
(5) जन सम्पत्ति। किसानों, स्त्रियों, छात्रों और अन्य गुटों के लिए जन- संस्थाएँ बनाई गईं। उदाहरणार्थ ‘ऑल चाइना स्टूडेन्ट्स फेडरेशन’ के 32 लाख 90 हजार सदस्य थे।

प्रश्न 17.
‘1965 की चीन की महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
‘समाजवादी व्यक्ति’ की रचना के इच्छुक माओवादियों तथा कुशलता की बजाय विचारधारा पर माओ के जोर देने की आलोचना करने वालों के मध्य संघर्ष छिड़ गया। इस संघर्ष के परिणामस्वरूप माओत्सेतुंग ने 1965 में महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति शुरू की। इस क्रान्ति की शुरुआत उन्होंने अपने आलोचकों का मुकाबला करने के लिए की। इस क्रान्ति के अन्तर्गत पुरानी संस्कृति, पुरानी रिवाजों और पुरानी आदतों के विरुद्ध अभियान शुरू करने के लिए रेड गार्ड्स मुख्यतः – छात्रों और सेना-का प्रयोग किया गया। छात्रों और व्यावसायिक लोगों को जनता से ज्ञान प्राप्त करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में भेजा गया। विचारधारा (साम्यवादी होना) व्यावसायिक ज्ञान से अधिक महत्त्वपूर्ण थी।

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परिणाम –
(1) सांस्कृतिक क्रान्ति के फलस्वरूप देश में अव्यवस्था फैल गई और साम्यवादी पार्टी कमजोर हो गई।
(2) अर्थव्यवस्था और शिक्षा व्यवस्था में भारी गिरावट आई।
(3) धीरे-धीरे साम्यवादी दल ने अपना प्रभाव बढ़ना शुरू कर दिया।

प्रश्न 18.
यूसिन संविधान क्या था ?
उत्तर:
दक्षिण कोरिया के 1971 के चुनावों में पार्क चुंग ही को पुनः चुन लिया गया। इसके बाद अक्टूबर 1972 में पार्क ने यूसिन संविधान घोषित करके उसे कार्यान्वित किया। इस संविधान ने स्थायी अध्यक्षता को संभव बनाया। यूसिन संविधान के तहत राष्ट्रपति को कानून के क्षेत्राधिकार और प्रशासन पर पूर्ण अधिकार था तथा किसी भी कानून को ‘आपातकालीन नियम’ के रूप में निरस्त करने का भी एक संवैधानिक अधिकार था। इस प्रकार यूसिन संविधान के तहत राष्ट्रपति के पूर्ण अधिकार प्रणाली के साथ लोकतंत्र एक तरह से अस्थायी रूप से निलंबित हो गया।

निबन्धात्मक प्रश्न –
प्रश्न 1.
“चीन और जापान के भौतिक भूगोल में काफी अन्तर है।” स्पष्ट कीजिए।
अथवा
चीन और जापान की भौगोलिक स्थिति तथा उनकी प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
चीन का भौतिक भूगोल- चीन और जापान के भौतिक भूगोल में काफी अन्तर है। चीन विशालकाय . महाद्वीपीय देश है जिसमें कई प्रकार की जलवायु वाले क्षेत्र हैं। मुख्य क्षेत्र में तीन प्रमुख नदियाँ हैं –
(1) पीली नदी (हुआँग हो)
(2) यांग्त्सी नदी (छाँगजिआंग – विश्व की तीसरी सबसे लंम्बी नदी) तथा
(3) पर्ल नदी। चीन का बहुत-सा भाग पहाड़ी है।
चीन का जातीय समूह तथा भाषाएँ – हान चीन का सबसे प्रमुख जातीय समूह है। चीनी वहाँ की प्रमुख भाषा है। परन्तु वहाँ उइधुर, हुई, मांचू, तिब्बती आदि कई और राष्ट्रीयताएँ हैं। कैंटनीज (कैंटन की बोली- उए) तथा शंघाइनीज (शंघाई की बोली – वू) आदि बोलियाँ भी बोली जाती हैं।
चीनी भोजन- चीनी भोजनों में क्षेत्रीय विविधता पाई जाती है। इनमें चार प्रमुख प्रकार के भोजन उल्लेखनीय हैं-
(i) चीन में सबसे प्रसिद्ध भोजनं प्रणाली दक्षिणी या केंटोनी है, जो कैंटन व उसके आन्तरिक प्रदेशों की है। यह प्रणाली इसलिए प्रसिद्ध है कि विदेशों में रहने वाले अधिकतर चीनी कैंटन प्रान्त के हैं। डिमसम (शाब्दिक अर्थ दिल को छूना) यहाँ का प्रसिद्ध भोजन है। यह गुँथे हुए आटे को ‘सब्जी आदि भर कर उबाल कर बनाया गया व्यंजन है।
(ii) उत्तर में गेहूँ मुख्य आहार है।
(iii) शेचुआँ में प्राचीन काल में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा लाए गए मसाले और रेशम मार्ग द्वारा पन्द्रहवीं शताब्दी में पुर्तगालियों द्वारा लाई गई मिर्च के कारण विशेष झालदार और तीखा भोजन मिलता है।
(iv) पूर्वी चीन में चावल और गेहूँ दोनों खाए जाते हैं।
जापान के भौतिक भूगोल की विशेषताएँ – जापान के भौतिक भूगोल की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
1. चीन के विपरीत जापान एक द्वीप – शृंखला है। इनमें चार सबसे बड़े द्वीप हैं –
(1) होंशू
(2) क्यूशू
(3) शिकोकू तथा
(4) होकाइदो। सबसे दक्षिण में ओकिनावा द्वीपों की श्रृंखला है।

2. मुख्य द्वीपों की 50 प्रतिशत से अधिक भूमि पहाड़ी है।
3. जापान बहुत ही सक्रिय भूकम्प क्षेत्र है।
4. जापान की इन भौगोलिक परिस्थितियों ने वहाँ की वास्तुकला को प्रभावित किया है।
5. जापान की अधिकतर जनसंख्या जापानी है, परन्तु कुछ आयनू अल्पसंख्यक तथा कुछ कोरिया के लोग हैं कोरिया के लोगों को श्रमिक मजदूर के रूप में उस समय जापान लाया गया था, जब कोरिया जापान का उपनिवेश था।
6. जापान में पशु-पालन की परम्परा नहीं है।
7. चावल यहाँ की मुख्य फसल है और मछली प्रोटीन का मुख्य स्रोत है। यहाँ की कच्ची मछली साशिमी या सूशी अब सम्पूर्ण विश्व में लोकप्रिय हो गई है क्योंकि इसे बहुत ही स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है।

प्रश्न 2.
मेजी पुनर्स्थापना से क्या अभिप्राय है? जापान की सरकार ने राजनीतिक एवं शैक्षणिक क्षेत्रों में क्या सुधार किये?
उत्तर:
जापान में मेजी पुनर्स्थापना – 1867-68 में जापान में मेजी वंश के नेतृत्व में तोकुगावा वंश का शासन समाप्त किया गया। 1868 में एक प्रबल आन्दोलन द्वारा शोगुन को सत्ता से हटा दिया गया। सम्राट् को एदो में लाया गया। एदो को जापान की राजधानी बना दिया गया तथा उसका नया नाम तोक्यो रखा गया। तोक्यो का अर्थ है – ‘पूर्वी राजधानी’। अब शासन की वास्तविक सत्ता, सम्राट के हाथ में आ गई। इसे ‘मेजी पुनर्स्थापना’ अथवा ‘सम्राट की शक्ति का पुनरुद्धार’ कहते हैं।
1. राजनीतिक क्षेत्र में सुधार – जापान की मेजी सरकार ने राजनीतिक क्षेत्र में निम्नलिखित सुधार किये –
(i) नई नीति की घोषणा – सरकार ने ‘फुकोकु क्योहे’ (समृद्ध देश, मजबूत सेना) के नारे के साथ नई नीति की घोषणा की। सरकार की यह धारणा थी कि देश की अर्थव्यवस्था का विकास और मजबूत सेना का निर्माण करना अत्यन्त आवश्यक है अन्यथा उसे भी भारत की भाँति पराधीन बनना पड़ सकता है। अतः उसने जापानी जनता में राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार करने तथा प्रजा को नागरिक की श्रेणी में बदलने का निश्चय कर लिया।

(ii) सम्राट्-व्यवस्था का पुनर्निर्माण- मेजी सरकार ने सम्राट व्यवस्था के पुनर्निर्माण का कार्य शुरू किया। विद्वानों के अनुसार सम्राट व्यवस्था से अभिप्राय है एक ऐसी व्यवस्था जिसमें सम्राट, नौकरशाही तथा सेना इकट्ठे शासन चलाते थे और नौकरशाही तथा सेना सम्राट के प्रति उत्तरदायी होते थे। राजतान्त्रिक व्यवस्था के सिद्धान्तों को समझने के लिए कुछ अधिकारियों को यूरोप भेजा गया। सम्राट को सूर्य देवी का वंशज माना गया। इसके साथ ही उसे पश्चिमीकरण का नेता भी स्वीकार किया गया। सम्राट का जन्म-दिन राष्ट्रीय अवकाश का दिन घोषित किया गया। अब सम्राट् पश्चिमी ढंग की सैनिक वेशभूषा पहनने लगा। उसके नाम से आधुनिक संस्थाएँ स्थापित करने के अधिनियम जारी किये जाने लगे।

(iii) नवीन प्रशासनिक ढाँचा तैयार करना – राष्ट्र के एकीकरण के लिए मेजी सरकार ने पुराने गाँवों तथा क्षेत्रीय सीमाओं को परिवर्तित कर नया प्रशासनिक ढाँचा तैयार किया। 20 वर्ष से अधिक आयु के नवयुवकों के लिए कुछ समय के लिए सेना में काम करना अनिवार्य हो गया। एक आधुनिक सैन्य बल तैयार किया गया। कानून व्यवस्था बनाई गई जो राजनीतिक गुटों के गठन को देख सके, बैठकें आयोजित करने पर नियन्त्रण रख सके और कठोर सेंसर व्यवस्था बना सके।

सेना और नौकरशाही को सीधा सम्राट के अधीन रखा गया। इस प्रकार संविधान बनने के बाद भी सेना और नौकरशाही सरकारी नियन्त्रण से बाहर रहे। इस नीति के परिणामस्वरूप सेना ने साम्राज्य-विस्तार के लिए मजबूत विदेश नीति अपनाने पर बल दिया। इस कारण से जापान को चीन और रूस से युद्ध लड़ने पड़े, जिनमें जापान की विजय हुई। जापान की आर्थिक क्षेत्र में आश्चर्यजनक उन्नति हुई तथा उसने अपना एक औपनिवेशिक साम्राज्य स्थापित कर लिया। परन्तु सरकार ने अपने देश में लोकतन्त्र के प्रसार को रोका और उपनिवेशीकृत लोगों के साथ संघर्ष की नीति अपनाई।

2. शैक्षणिक क्षेत्र में विकास – 1870 के दशक से जापान में नई विद्यालय – व्यवस्था का निर्माण शुरू हुआ। लड़के तथा लड़कियों के लिए स्कूल जाना अनिवार्य हो गया। 1910 तक स्कूल जाने से कोई वंचित नहीं रहा। शिक्षा की फीस बहुत कम थी। शुरू में पाठ्यक्रम पश्चिमी देशों के नमूने पर आधारित था, परन्तु 1870 से आधुनिक विचारों पर बल देने के साथ-साथ राज्य के प्रति निष्ठा तथा जापानी इतिहास के अध्ययन पर भी बल दिया जाने लगा। पाठ्यक्रम, पुस्तकों के चयन तथा शिक्षकों के प्रशिक्षण पर शिक्षा मन्त्रालय का नियन्त्रण रहता था। नैतिक संस्कृति के विषयों का अध्ययन . आवश्यक था। पुस्तकों में माता-पिता के प्रति आदर, राष्ट्र के प्रति स्वामि-भक्ति और अच्छे नागरिक बनने की प्रेरणा दी जाती थी।

प्रश्न 3.
मैजी सरकार द्वारा जापान की अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण के लिए किये गये सुधारों का वर्णन कीजिए उद्योगों के तीव्र विकास का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
जापान की अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरण मैजी सरकार की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि था। इसके लिए मैजी सरकार ने निम्नलिखित कार्य किये –
(i) धन इकट्ठा करना – कृषि पर कर लगाकर धन इकट्ठा किया गया।
(ii) रेलवे लाइन का निर्माण – जापान की पहली रेलवे लाइन का निर्माण 1870-72 में हुआ जो तोक्यो से योकोहामा तक बनाई गई। 1894 तक जापान में 2118 मील लम्बी रेलवे लाइनों का निर्माण हो चुका था।
(iii) उद्योग- वस्त्र उद्योग के लिए मशीनें यूरोप से मँगाई गईं। लोहे, कपड़े आदि के अनेक कारखाने खोले गए। परिणामस्वरूप कारखानों में कपड़ा, लोहे का सामान, रेशम आदि बड़े पैमाने पर होने लगा। 1890 तक जापान में भाप से चलने वाले 250 से भी अधिक कारखाने स्थापित हो चुके थे। मजदूरों के प्रशिक्षण के लिए विदेशी कारीगरों को बुलाया गया।
(iv) बैंकों की स्थापना – 1872 में जापान में आधुनिक बैंकिंग संस्थाओं का प्रारम्भ हुआ। 1879 ई. तक जापान में लगभग 150 बैंक स्थापित हो चुके थे।
(v) जहाज – निर्माण – जापान में जहाज को सब्सिडी तथा करों में लाभ के द्वारा प्रमुख जहाजों में होने लगा।
उद्योग की बड़ी उन्नति हुई। मित्सुबिशी और सुमितोमी जैसी कम्पनियों जहाज़ – 1 ज़ – निर्माता बनने में सहायता मिली। इससे जापानी व्यापार जापान के
(vi) जायबात्सु (बड़ी व्यापारिक संस्थाएँ) का प्रभुत्व स्थापित होना – जायबात्सु बड़ी व्यापारिक संस्थाएँ जिन पर विशिष्ट परिवारों का नियन्त्रण था, का प्रभुत्व द्वितीय विश्व-युद्ध के बाद तक जापान की अर्थव्यवस्था पर बना रहा।

(vii) जनसंख्या में वृद्धि – 1872 में जापान की जनसंख्या 3.5 करोड़ थी जो 1920 में बढ़कर 5.5 करोड़ हो गई। जनसंख्या के दबाव को कम करने के लिए सरकार ने प्रवास को प्रोत्साहन दिया। पहले उत्तरी टापू होकाइदो की ओर, फिर हवाई और ब्राजील और जापान के बढ़ते हुए औपनिवेशिक साम्राज्य की ओर। उद्योगों के विकास के कारण शहरों की आबादी बढ़ गई। 1925 तक जापान की 21 प्रतिशत जनता शहरों में रहती थी। 1935 तक यह बढ़कर 32 प्रतिशत हो गई। इस प्रकार 1935 तक जापान के शहरों में रहने वाले लोगों की जनसंख्या 2.25 करोड़ थी।

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(viii) औद्योगिक मजदूर – 1870 में जापान में औद्योगिक मजदूरों की संख्या 7 लाख थी, जो बढ़कर 1913 में 40 लाख हो गई। अधिकतर मजदूर ऐसी इकाइयों में काम करते थे, जिनमें 5 से कम लोग थे और जिनमें मशीनों तथा विद्युत ऊर्जा का प्रयोग नहीं होता था। इन आधुनिक कारखानों में काम करने वालों में आधे से अधिक महिलाएँ थीं। 1886 में पहली आधुनिक हड़ताल महिलाओं द्वारा ही आयोजित की गई थी। 1900 के पश्चात् कारखानों में पुरुषों की संख्या बढ़ने लगी परन्तु 1930 के दशक में आकर ही पुरुषों की संख्या स्त्रियों से अधिक हुई।

(ix) कारखानों में मजदूरों की संख्या में वृद्धि – जापान में कारखानों में मजदूरों की संख्या भी बढ़ने लगी। 100 से अधिक मजदूर वाले कारखानों की संख्या 1909 में 1000 थी। 1920 तक इनकी संख्या 2000 से अधिक हो गई और 1930 के दशक में इनकी संख्या 4,000 हो गई। फिर भी 1940 में 5,50,000 कारखानों में 5 से कम मजदूर ही काम करते थे। इससे परिवार – केन्द्रित विचारधारा बनी रही।

पर्यावरण पर प्रभाव – उद्योगों के तीव्र विकास और लकड़ी जैसे प्राकृतिक संसाधनों की माँग से पर्यावरण का विनाश हुआ। संसद के पहले निम्न सदन के सदस्य तनाकोशोजो ने 1897 में औद्योगिक प्रदूषण के विरुद्ध पहला आन्दोलन शुरू किया। तनाकोशोजो ने कहा कि औद्योगिक प्रगति के लिए सामान्य लोगों की बलि नहीं दी जानी चाहिए। आशियो खान से वातारासे नदी में प्रदूषण फैलता जा रहा था जिसके कारण 100 वर्ग मील की कृषि भूमि नष्ट हो रही थी तथा 1000 परिवार प्रभावित हो रहे थे। 800 गाँववासी पर्यावरण प्रदूषण के विरुद्ध संगठित हो गए और उन्होंने सरकार को उचित कार्यवाही करने पर बाध्य कर दिया।

प्रश्न 4.
जापान के आक्रामक राष्ट्रवाद, पश्चिमीकरण और परम्परा पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
1. जापान का आक्रामक राष्ट्रवाद – मेजी संविधान सीमित मताधिकार पर आधारित था और उसकी डायट (संसद) के अधिकार भी सीमित थे। सम्राट की शक्ति की पुनर्स्थापना करने वाले नेता सत्ता में बने रहे तथा उन्होंने राजनीतिक दलों का गठन किया। 1918 तथा 1931 के बीच जनमत से चुने गए प्रधानमन्त्रियों ने मन्त्रिपरिषदों का गठन किया। इसके पश्चात् उन्होंने पार्टियों का भेद भुलाकर बनाई गई राष्ट्रीय एकता मन्त्रिपरिषदों के हाथों अपनी सत्ता खो दी। सम्राट सैन्य बलों का कमाण्डर था।

1890 से यह माना जाने लगा कि थल सेना और नौसेना का नियन्त्रण स्वतन्त्र है। 1899 में जापान के प्रधानमन्त्री ने आदेश दिए कि केवल सेवारत जनरल और एडमिरल ही मन्त्री बन सकते हैं। सेना को शक्तिशाली बनाने का अभियान और जापान का औपनिवेशिक विस्तार इस भय से सम्बन्धित थे कि जापान पश्चिमी देशों की दया पर निर्भर है। इस डर का उपयोग उन लोगों के दमन करने में किया गया जो सैन्य विस्तार के विरुद्ध और सेना को अधिक धन देने के लिए वसूले जाने वाले भारी करों के विरुद्ध आवाज उठा रहे थे।

2. ‘पश्चिमीकरण’ और ‘परम्परा’ – कुछ विद्वानों के अनुसार अमरीका तथा पश्चिमी यूरोपीय देश सभ्यता के शिखर पर थे, जहाँ जापान को भी पहुँचना चाहिए। ये विद्वान जापान का ‘पश्चिमीकरण’ किये जाने के पक्ष में थे। फुकुजावा, यूकिची मेजी काल के प्रमुख बुद्धिजीवियों में से थे। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि ” जापान को अपने में से एशिया को निकाल फेंकना चाहिए।” इसका मतलब यह था कि जापान को अपने एशियाई लक्षणों का परित्याग कर देना चाहिए तथा पश्चिमी देशों का अनुकरण करना चाहिए। पश्चिमी विचारों को पूरी तरह से स्वीकार करने पर आपत्ति करना – जापान की अगली पीढ़ी ने पश्चिमी विचारों को पूरी तरह से स्वीकार करने पर आपत्ति की तथा कहा कि राष्ट्रीय गर्व का निर्माण देसी मूल्यों पर किया जाना चाहिए दर्शनशास्त्री मियाके सेत्सुरे का कहना था कि विश्व-सभ्यता के हित में हर राष्ट्र को अपने विशेष कौशल का विकास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि, ” अपने को अपने देश के लिए समर्पित करना अपने को विश्व को समर्पित करना है। ” पश्चिमी उदारवाद का समर्थन करना – दूसरी ओर कुछ विद्वान पश्चिमी उदारवाद के समर्थक थे। वे चाहते थे कि जापान अपना आधार सेना की बजाय लोकतन्त्र को बनाए।

फ्रांसीसी क्रान्ति में लोगों के प्राकृतिक अधिकारों और जन – प्रभुसत्ता के सिद्धान्तों का समर्थन – संवैधानिक सरकार की माँग करने वाले जनवादी अधिकारों के आन्दोलन के नेता उएकी एमोरी फ्रांसीसी क्रान्ति में लोगों के प्राकृतिक अधिकारों तथा जन-प्रभुसत्ता के सिद्धान्तों के समर्थकं थे। वे उदारवादी शिक्षा के समर्थक थे जो प्रत्येक व्यक्ति का विकास कर सके। उनका कहना था कि, ” व्यवस्था से अधिक मूल्यवान चीज है स्वतन्त्रता। ” कुछ अन्य लोगों ने महिलाओं के मताधिकार का भी समर्थन किया। इस प्रकार के दबाव ने सरकार को संविधान की घोषणा करने पर विवश किया।

प्रश्न 5.
जापान में सत्ता- -केन्द्रित राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के क्या परिणाम हुए?
अथवा
जापान आधुनिकता पर विजय क्यों प्राप्त करना चाहता था ?
उत्तर:
जापान में सत्ता केन्द्रित राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के परिणाम – आधुनिकीकरण के परिणामस्वरूप जापान की शक्ति में अत्यधिक वृद्धि हुई। 1930-40 की अवधि में सत्ता केन्द्रित राष्ट्रवाद को बढ़ावा मिला। इसके फलस्वरूप जापान ने चीन और एशिया में अपने उपनिवेश स्थापित करने के लिए युद्ध लड़े। जापान ने 1937 में चीन पर आक्रमण कर उसके अनेक नगरों पर अधिकार कर लिया। जब 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ, तो उस समय जापान पहले से ही चीन के विरुद्ध युद्ध छेड़े हुए था। उग्र राष्ट्रवाद से प्रेरित होकर 1941 में जापान ने अमरीका की बन्दरगाह पर्ल हार्बर पर आक्रमण कर दिया। राष्ट्रवाद की प्रबलता के कारण सामाजिक नियन्त्रण में वृद्धि हुई। विरोधियों पर अत्याचार किए गए तथा उन्हें जेलों में बन्द कर दिया गया। देश-भक्तों की ऐसी संस्थाओं का निर्माण हुआ जो युद्ध का समर्थन करती थीं। इनमें महिलाओं के अनेक संगठन थे।

आधुनिकता पर विजय – 1943 में जापान में एक संगोष्ठी हुई ‘आधुनिकता पर विजय’। इसमें जापान के सामने यह समस्या थी कि आधुनिक रहते हुए पश्चिम पर कैसे विजय प्राप्त की जाए ? संगीतकार मोरोई साबुरो ने इस बात पर बल दिया कि संगीत को आत्मा की कला के रूप में उसका पुनर्वास कैसे कराया जाए? वे पश्चिमी संगीत का विरोध नहीं कर रहे थे। वे चाहते थे कि जापानी संगीत को पश्चिमी वाद्यों पर बजाए जाने से आगे ले जाया जाए। प्रसिद्ध दर्शनशास्त्री निशितानी केजी ने ‘आधुनिक’ को तीन पश्चिमी धाराओं के मिलन और एकता से परिभाषित किया ” पुनर्जागरण, प्रोटेस्टेन्ट सुधार और प्राकृतिक विज्ञानों का विकास।” उनका कहना था कि जापान की ‘नैतिक ऊर्जा’ ने उसे एक उपनिवेश बनने से बचा लिया और जापान का कर्त्तव्य बनता है कि एक नई विश्व पद्धति एक विशाल पूर्वी एशिया के निर्माण का प्रयत्न करे। इसके लिए एक नई सोच की आवश्यकता है जो विज्ञान और धर्म को जोड़ सके।

प्रश्न 6.
“द्वितीय विश्व युद्ध में पराजित होने के बाद भी जापान का एक वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में प्रकट हुआ। ” विवेचना कीजिए।
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध में पराजित होने के बाद भी जापान वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में उभरना- द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान युद्ध शीघ्र समाप्त करने के लिए अमरीका ने जापान के दो नगरों-हिरोशिमा तथा नागासाकी पर परमाणु बम गिराए। अतः जापान को आत्म-समर्पण करना पड़ा। अमरीकी नेतृत्व वाले कब्जे (1945-47) के दौरान, जापान का विसैन्यीकरण कर दिया गया और वहाँ एक नया संविधान लागू हुआ। इसके अनुच्छेद-9 के अनुसार युद्ध का राष्ट्रीय नीति के साधन के रूप में प्रयोग वर्जित है। कृषि – सुधार व्यापारिक संगठनों का पुनर्गठन और जापानी अर्थव्यवस्था में जायेबात्सु अर्थात् बड़ी एकाधिकार कम्पनियों के प्रभुत्व को समाप्त करने का प्रयास किया गया। राजनीतिक दलों को पुनर्जीवित किया गया। युद्ध के बाद जापान में पहले चुनाव 1946 में हुए। इसमें पहली बार महिलाओं ने भी मतदान किया।

जापानी अर्थव्यवस्था का विकास- द्वितीय विश्व युद्ध में अपनी भीषण पराजय के बावजूद, जापानी अर्थव्यवस्था का ज़िस तीव्र गति से विकास हुआ, उसे एक ‘युद्धोत्तर चमत्कार’ कहा गया है। संविधान को औपचारिक रूप से गणतान्त्रिक रूप इसी समय दिया गया। परन्तु जापान में जनवादी आन्दोलन तथा राजनीतिक भागेदारी का आधार बढ़ाने में बुद्धिजीवियों का ऐतिहासिक योगदान रहा है। अतः युद्ध से पहले के काल की सामाजिक सम्बद्धता को सुदृढ़ किया गया। इसके परिणामस्वरूप सरकार, नौकरशाही और उद्योग के बीच एक निकटता का सम्बन्ध स्थापित हुआ। अमरीकी समर्थन और कोरिया तथा वियतनाम में युद्ध छिड़ने से भी जापान की अर्थव्यवस्था को सहायता मिली।

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1964 में तोक्यो में हुए ओलम्पिक खेल जापानी अर्थव्यवस्था की मजबूती के प्रमाण थे। इसी प्रकार तीव्र गति वाली शिंकांसेन अर्थात् ‘बुलेट ट्रेनों’ का जाल भी 1964 में शुरू हुआ। इस पर रेल‍ गाड़ियाँ 200 मील प्रति घण्टे की रफ्तार से चलती थीं। ( अब वे 300 मील प्रति घण्टे की रफ्तार से चलती हैं।) जापानी : नई प्रौद्योगिकी के द्वारा श्रेष्ठ और सस्ते उत्पाद बाजार में प्रस्तुत करने में सफल रहे। नागरिक समाज आन्दोलन का उदय – 1960 के दशक में नागरिक समाज आन्दोलन का विकास हुआ। बढ़ते औद्योगीकरण के कारण स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ रहे दुष्प्रभाव की अवहेलना करने का विरोध किया गया।

1970 के दशक के उत्तरार्द्ध में वायु में प्रदूषण से भी समस्याएँ उत्पन्न हुईं। अनेक गुटों ने इन समस्याओं को पहचानने और साथ ही हताहतों के लिए मुआवजा देने की माँग की। सरकार द्वारा की गई कार्यवाही तथा नये कानूनों से स्थिति में काफी सुधार हुआ। 1980 के दशक के मध्य से पर्यावरण सम्बन्धी विषयों में लोगों की रुचि में कमी आई है क्योंकि 1990 के जापान में विश्व के कुछ कठोरतम पर्यावरण सम्बन्धी नियन्त्रण लागू किए गए। आज जापान एक विकसित देश है। इस रूप में वह अग्रगामी विश्व शक्ति की अपनी हैसियत को बनाए रखने के लिए अपने राजनीतिक और प्रौद्योगिक क्षमताओं का प्रयोग करने की चुनौतियों का सामना कर रहा है।

प्रश्न 7.
1911 की क्रान्ति से पूर्व आधुनिक चीन की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
1911 की क्रान्ति से पूर्व आधुनिक चीन की स्थिति 1911 की क्रान्ति से पूर्व आधुनिक चीन की स्थिति का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता –
1. जेसुइट मिशनरियों द्वारा चीन से सम्पर्क स्थापित करना – आधुनिक चीन की शुरुआत सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी में पश्चिम के साथ उसका प्रथम सम्पर्क होने के समय से मानी जा सकती है। इस काल में जेसुइट मिशनरियों ने खगोल विद्या तथा गणित जैसे पश्चिमी विज्ञानों को चीन पहुँचाया।

2. प्रथम अफीम युद्ध (1839-42 ) – ब्रिटेन ने अफीम के लाभप्रद व्यापार को बढ़ाने के लिए अपनी सैन्य – शक्ति का प्रयोग किया जिसके फलस्वरूप ब्रिटेन और चीन में प्रथम अफीम – युद्ध (1839-42 ) हुआ। इसमें चीन की बुरी तरह से पराजय हुई और उसे विवश होकर ब्रिटेन से नानकिंग की सन्धि करनी पड़ी। इस युद्ध ने चीन के सत्ताधारी क्विंग राजवंश की प्रतिष्ठा को प्रबल आघात पहुँचाया और उसे कमजोर किया। इसके फलस्वरूप चीन में सुधार तथा परिवर्तन की माँग प्रबल होती गई।

3. व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने पर बल देना- चीन के प्रसिद्ध सुधारकों कांग यूवेई तथा लियांग किचाउ ने चन की व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने पर बल दिया। अतः चीनी सरकार ने एक आधुनिक प्रशासकीय व्यवस्था, नई सेना तथा शिक्षा- प्रणाली के निर्माण के लिए नीतियाँ बनाईं। इसके अतिरिक्त संवैधानिक सरकार की स्थापना के हेतु स्थानीय विधायिकाओं का भी गठन किया गया। सुधारकों ने चीन को उपनिवेशीकरण से बचाये जाने पर भी बल दिया।

4. उपनिवेश बनाये गए देशों के नकारात्मक उदाहरण – साम्राज्यवादी शक्तियों द्वारा उपनिवेश बनाए गए देशों के नकारात्मक उदाहरणों ने भी चीनी विचारकों को प्रभावित किया। 18वीं सदी में पोलैण्ड के बँटवारे के उदाहरण ने चीनियों को अत्यधिक प्रभावित किया। भारत के उदाहरण ने भी चीन को प्रभावित किया। चीनी विचारक लियांग किचाउ का कहना था कि चीनी लोगों में एक राष्ट्र की जागरूकता उत्पन्न करके ही चीन पश्चिम का विरोध कर सकेगा। 1903 में उन्होंने लिखा कि, ” भारत एक ऐसा देश है, जो किसी और देश नहीं, बल्कि एक कम्पनी के हाथों नष्ट हो गया – ईस्ट इण्डिया कम्पनी के। वे ब्रिटेन की सेवा करने तथा अपने लोगों के साथ क्रूर होने के लिए भारतीयों की आलोचना करते थे। उनकी बातों ने चीनियों को अत्यधिक प्रभावित किया, क्योंकि चीनी महसूस करते थे कि ब्रिटेन, चीन के साथ युद्ध में भारतीय सैनिकों का प्रयोग करता है। ”

5. परम्परागत सोच को बदलने की आवश्यकता – चीनियों ने यह अनुभव किया कि परम्परागत सोच को बदलने की आवश्यकता है। कन्फ्यूशियसवाद को विचारधारा चीन के प्रसिद्ध दार्शनिक और धर्म-सुधारक कन्फ्यूशियस और उनके अनुयायियों की शिक्षाओं से विकसित की गई। इसके अन्तर्गत अच्छे व्यवहार, व्यावहारिक समझदारी और उचित सामाजिक सम्बन्धों पर बल दिया गया था। इस विचारधारा ने चीनियों के जीवन के प्रति दृष्टिकोण को प्रभावित किया, सामाजिक मानक दिये तथा चीनी राजनीतिक सोच और संगठनों को आधार प्रदान किया।

6. चीनियों को नये विषयों में प्रशिक्षित करना – नए विषयों में प्रशिक्षित करने के लिए विद्यार्थियों को जापान, ब्रिटेन तथा फ्रांस में पढ़ने भेजा गया। 1890 के दशक में बड़ी संख्या में चीनी विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने के लिए जापान गए। वे नये विचार लेकर चीन पहुँचे। उन्होंने चीन में गणतन्त्र की स्थापना करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। चीन ने जापान से न्याय, अधिकार और क्रान्ति के यूरोपीय विचारों के जापानी अनुवाद लिए।

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7. रूस-जापान युद्ध – 1905 में रूस और जापान के बीच युद्ध हुआ। यह एक ऐसा युद्ध था जो चीन की धरती पर और चीनी प्रदेशों पर प्रभुत्व के लिए लड़ा गया था। इस युद्ध के बाद सदियों पुरानी चीनी परीक्षा-प्रणाली समाप्त कर दी गई, जो चीनियों को अभिजात सत्ताधारी वर्ग में प्रवेश दिलाने का काम करती थी।

प्रश्न 8.
डॉ. सनयात सेन तथा च्यांग काई शेक के नेतृत्व में चीन के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. डॉ. सनयातसेन के नेतृत्व में चीन का विकास – 1911 में मांचू साम्राज्य समाप्त कर दिया गया और डॉ. सनयातसेन के नेतृत्व में गणतन्त्र की स्थापना की गई। डॉ. सेन आधुनिक चीन के संस्थापक माने जाते हैं। उन्होंने डॉक्टरी की परीक्षा उत्तीर्ण की, परन्तु वे चीन के भविष्य के प्रति चिन्तित थे। डॉ. सेन के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित थे
(1) राष्ट्रवाद – इसका अर्थ था मांचू वंश को सत्ता से हटाना, साथ ही साम्राज्यवादियों को चीन से हटाना। मांचू वंश विदेशी राजवंश के रूप में देखा जाता था।

(2) गणतन्त्र – चीन में गणतन्त्र या गणतान्त्रिक सरकार की स्थापना करना।

(3) समाजवाद – पूँजी का नियमन करना तथा भू-स्वामित्व में बराबरी लाना। 1912 में डॉ. सनयात सेन ने कुओमिनतांग दल की स्थापना की जो शीघ्र ही चीन का एक प्रमुख दल बन गया। डॉ. सनयात सेन के विचार कुओमिनतांग के राजनीतिक दर्शन का आधार बने। उन्होंने कपड़ा, भोजन, मकान और परिवहन – इन चार बड़ी आवश्यकताओं पर बल दिया।

2. च्यांग काई शेक के नेतृत्व में चीन का विकास – 1925 में डॉ. सनयात सेन की मृत्यु के पश्चात् च्यांग काई शेक कुओमिनतांग दल के नेता बने।
(1) च्यांग काई शेक ने सैन्य अभियानों के द्वारा वारलार्ड्सको (स्थानीय नेता जिन्होंने सत्ता छीन ली थी) अपने नियन्त्रण में किया और साम्यवादियों को नष्ट किया।
(2) उन्होंने सैक्यूलर और इहलौकिक कन्फ्यूशियसवाद का समर्थन किया, परन्तु साथ ही राष्ट्र का सैन्यकरण करने का कार्यक्रम जारी रखा।
(3) उन्होंने इस बात पर बल दिया कि लोगों को ‘एकताबद्ध व्यवहार की प्रवृत्ति और आदत’ का विकास करना चाहिए।
(4) उन्होंने महिलाओं के विकास पर भी बल दिया। उन्होंने महिलाओं को चार सद्गुण उत्पन्न करने के लिए प्रोत्साहित किया।

ये चार सद्गुण थे –
(1) सतीत्व
(2) रूप-रंग
(3) वाणी,
(4) काम। उन्होंने उनकी भूमिका को घरेलू स्तर पर ही देखने पर बल दिया।

(5) कुओमिनतांग का सामाजिक आधार शहरी प्रदेशों में था। औद्योगिक विकास की गति धीमी थी तथा कुछ ही क्षेत्रों तक सीमित थी। 1919 में शंघाई जैसे शहरों में औद्योगिक मजदूर वर्ग का उदय हो रहा था और उनकी संख्या लगभग पाँच लाख थी। परन्तु इनमें से अधिकतर लोग ‘नगण्य शहरी’ (शियाओ शिमिन), व्यापारी तथा दुकानदार होते थे। आधुनिक उद्योगों में मजदूरों की संख्या कम थी।

(6) व्यक्तिवाद बढ़ने के साथ-साथ, महिलाओं के अधिकार, परिवार बनाने के तरीके और प्रेम-मुहब्बत आदि विषयों पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा।

(7) सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में परिवर्तन लाने में स्कूलों और विश्वविद्यालयों के विस्तार से सहायता मिली। 1902 में पीकिंग विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। पत्रकारिता का भी विकास हुआ।

3. च्यांग काई शेक व कुओमिनतांग की असफलता- देश को एकीकृत करने के अपने भरसक प्रयासों के बावजूद कुओमिन तांग अपने संकीर्ण सामाजिक आधार और सीमित राजनीतिक दृष्टिकोण के कारण असफल हो गया।

यथा –
(i) डॉ. सनयात सेन के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त – पूँजी नियमन और भूमि अधिकारों में बराबरी लाना, को कभी भी कार्यान्वित नहीं किया गया। इसका कारण यह था कि पार्टी ने किसानों और बढ़ती हुई सामाजिक असमानता की अवहेलना की।
(ii) पार्टी ने लोगों की समस्याओं पर ध्यान देने के बजाय, सैनिक व्यवस्था थोपने का प्रयास किया।
(iii) 1937 में जापान ने चीन पर आक्रमण किया और चीन के अनेक नगरों पर अधिकार कर लिया। कुओमिनताँग की सेना को पीछे हटना पड़ा। दीर्घकालीन युद्धों ने चीन को कमजोर कर दिया।
(iv) 1945-49 की अवधि में चीन में कीमतें 30 प्रतिशत प्रति महीने की गति से बढ़ती गईं। इसके परिणामस्वरूप सामान्य व्यक्ति का जीवन बर्बाद हो गया।
(v) ग्रामीण चीन को दो संकटों का सामना करना पड़ा।

ये दो संकट थे –
(1) पर्यावरण सम्बन्धी संकट, जिसमें बंजर जमीन, वनों का नाश और बाढ़ शामिल थे तथा
(2) सामाजिक – आर्थिक संकट जो विनाशकारी जमीन – प्रथा आदि प्रौद्योगिकी तथा निम्न स्तरीय संचार के कारण था।

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प्रश्न 9.
चीन में 1978 से शुरू होने वाले सुधारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चीन में 1978 से शुरू होने वाले सुधार चीन में सांस्कृतिक क्रान्ति के बाद राजनीतिक दांव-पेंच की प्रक्रिया आरम्भ हुई। तंग शीयाओफिंग ने पार्टी पर सुदृढ़ नियन्त्रण बनाये रखा और साथ ही देश में समाजवादी बाजार अर्थव्यवस्था आरम्भ की।

1. चार-सूत्री लक्ष्य – 1978 में चीन की साम्यवादी पार्टी ने आधुनिकीकरण के अपने चार सूत्री लक्ष्य की घोषणा की। यह था – 1 – विज्ञान, उद्योग, कृषि और रक्षा का विकास। पार्टी से प्रश्न-उत्तर न करने की शर्त पर वाद-विवाद करने की अनुमति दे दी गई।

2. नये विचारों का प्रसार – इस नए और स्वतन्त्र वातावरण में नये विचारों का खूब प्रसार हुआ | 5 दिसम्बर, 1978 को दीवार पर लगे एक पोस्टर ने पाँचवीं आधुनिकता का दावा किया कि लोकतन्त्र के बिना अन्य आधुनिकताएँ निरर्थक हैं अर्थात् लोकतन्त्र के बिना आधुनिकीकरण सम्भव नहीं है। इसे पाँचवीं आधुनिकता का नाम दिया गया। पोस्टर में गरीबी को न हटा पाने तथा लैंगिक शोषण समाप्त न कर पाने के लिए सी. सी.पी. की आलोचना की गईं। परन्तु इस विरोध का दमन कर दिया गया।

3. तियानमेन चौक पर छात्रों का प्रदर्शन- 1989 में 4 मई के आन्दोलन की 70वीं वर्षगांठ पर अनेक बुद्धिजीवियों ने अधिक खुलेपन की माँग की और कठोर सिद्धान्तों (शू – शाओझी) को समाप्त करने की माँग की। बीजिंग के तियानमेन चौक पर हजारों चीनी छात्रों ने विशाल प्रदर्शन किया और लोकतन्त्र की माँग की, सरकार ने छात्रों के प्रदर्शन का क्रूरतापूर्वक दमन कर दिया। सम्पूर्ण विश्व में इसकी कटु आलोचना हुई।

4. चीन के विकास के सम्बन्ध में वाद-विवाद – कुछ समय पश्चात् चीन के विकास के विषय पर पुनः वाद- विवाद होने लगा। साम्यवादी पार्टी सुदृढ़ राजनीतिक नियन्त्रण, आर्थिक खुलेपन तथा विश्व बाजार से जुड़ाव का समर्थन करती है। परन्तु आलोचकों का कहना है कि सामाजिक गुटों, क्षेत्रों तथा पुरुषों और महिलाओं के बीच बढ़ती हुई असमानताओं से सामाजिक तनाव में वृद्धि हो रही है। अब चीन में पहले के पारम्परिक विचार फिर से जीवित हो रहे हैं। कन्फ्यूशियसवाद का प्रसार हो रहा है और इस बात पर बल दिया जा रहा है कि पश्चिम की नकल करने की बजाय चीन अपनी परम्परा पर चलते हुए भी एक आधुनिक समाज का निर्माण कर सकता है।

प्रश्न 10.
च्यांग काई शेक के नेतृत्व में ताइवान में सरकार की स्थापना का विवेचन कीजिए। वहाँ की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
च्यांग काई शेक के नेतृत्व में सरकार की स्थापना –
1. 1949 में च्यांग काई शेक का ताइवान भागना-चीन के साम्यवादी दल द्वारा पराजित होने के पश्चात् च्यांग काई शेक 30 करोड़ से अधिक अमरीकी डॉलर और बहुमूल्य कलाकृतियाँ लेकर 1949 में ताइवान भाग निकला। ताइवान में उसने चीनी गणतन्त्र की स्थापना की। 1894-95 में जापान के साथ हुए युद्ध में चीन को यह स्थान जापान को सौंपना पड़ा था। तब से ताइवान जापान का उपनिवेश बना हुआ था। कायरो घोषणा पत्र ( 1943) एवं पोट्सडैम उद्घोषणा (1949) के द्वारा चीन को सम्प्रभुता वापस मिल गई थी।

2. ताइवान में च्यांग काई शेक के नेतृत्व में दमनकारी सरकार की स्थापना – फरवरी, 1947 में हुए प्रबल प्रदर्शनों के पश्चात् कुओमिनतांग ने नेताओं की एक पूरी पीढ़ी का क्रूरतापूर्वक वध करवा दिया। च्यांग काई शेक के नेतृत्व कुओमिनतांग ने एक दमनकारी सरकार की स्थापना की। सरकार ने लोगों से बोलने की तथा राजनीतिक विरोध करने की स्वतन्त्रता छीन ली। सत्ता – केन्द्रों से स्थानीय लोगों को पूर्ण रूप से हटा दिया गया।

3. आर्थिक क्षेत्र में सुधार – च्यांग काई शेक की सरकार ने भूमि सुधार कार्यक्रम लागू किया जिसके परिणामस्वरूप खेती की उत्पादकता बढ़ी। सरकार ने अर्थव्यवस्था का भी आधुनिकीकरण किया जिसके फलस्वरूप 1973 में कुल राष्ट्रीय उत्पाद के मामले में ताइवान सम्पूर्ण एशिया में जापान के बाद दूसरे स्थान पर रहा। यह अर्थव्यवस्था मुख्यतः व्यापार पर आधारित थी तथा निरन्तर विकसित भी होती रही। परन्तु महत्त्वपूर्ण बात यह है अमीर और गरीब के बीच का अन्तराल निरन्तर कम होता गया।

4. ताइवान में लोकतन्त्र की स्थापना – ताइवान में लोकतन्त्र की स्थापना की घटना भी नाटकीय रही है। यह प्रक्रिया 1975 में च्यांग काई शेक की मृत्यु के बाद धीरे-धीरे शुरू हुई। 1987 में वहाँ फौजी कानून हटा लिया गया तथा विरोधी दलों को कानूनी मान्यता मिल गई। इसके बाद वहाँ लोकतन्त्र स्थापित करने की दिशा में काफी प्रगति हुई। पहले स्वतन्त्र मतदान के द्वारा स्थानीय ताइवानी लोग सत्ता में आने लगे। राजनयिक स्तर पर अधिकांश देशों के व्यापार मिशन केवल ताइवान में ही हैं। उनके द्वारा ताइवान में पूर्ण राजनयिक सम्बन्ध और दूतावास रखना सम्भव नहीं, क्योंकि ताइवान को चीन का ही एक भाग माना जाता है।

5. चीन के साथ पुनः एकीकरण की समस्या- चीन के साथ ताइवान का पुन: एकीकरण का प्रश्न अभी भी विवादास्पद बना हुआ है। अब ताइवान और चीन के बीच सम्बन्ध सुधर रहे हैं, ताइवानी व्यापार और निवेश चीन में बड़े पैमाने पर हो रहा है तथा आवागमन भी आसान हो गया है। आशा है कि चीन ताइवान को एक अर्ध-स्वायत्त क्षेत्र के रूप में स्वीकार करने में सहमत हो जायेगा, बशर्ते ताइवान पूर्ण स्वतन्त्रता के लिए कोई उग्र कदम नहीं उठाये।

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प्रश्न 11.
जापान तथा चीन द्वारा आधुनिकीकरण के लिए अपनाये गए मार्गों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
औद्योगिक समाजों ने आधुनिकता के अपने-अपने मार्ग बनाए। जापान और चीन की ऐतिहासिक परिस्थितियों ने उनके स्वतन्त्र तथा आधुनिक देश बनाने के बिल्कुल अलग-अलग मार्ग बनाए।
1. जापान के आधुनिकीकरण का मार्ग – जापान अपनी स्वतन्त्रता बनाए रखने में सफल रहा और पारम्परिक कौशल तथा प्रथाओं को नए तरीकों से प्रयुक्त कर पाया।
(i) उग्र-राष्ट्रवाद का उदय तथा शोषणकारी सत्ता को बनाए रखना – जापान में कुलीन तन्त्र के नेतृत्व में हुए आधुनिकीकरण ने एक उग्र राष्ट्रवाद को जन्म दिया और एक शोषणकारी सत्ता को बनाए रखा। इसने लोकतन्त्र की माँग का दमन कर दिया।
(ii) औपनिवेशिक साम्राज्य की स्थापना – जापान ने एक औपनिवेशिक साम्राज्य की स्थापना की जिससे उस क्षेत्र में कटुता की भावना बनी रही और आन्तरिक विकास भी अवरुद्ध हुआ।
(iii) जापान का आधुनिकीकरण और पश्चिमी साम्राज्यवादी शक्तियों का प्रभुत्व – जापान का आधुनिकीकरण ऐसे वातावरण में हुआ जब पश्चिमी साम्राज्यवादी शक्तियों का बोलबाला था। यद्यपि जापान ने पश्चिमी देशों की नकल की, परन्तु साथ ही अपनी समस्याओं के हल ढूँढ़ने का भी प्रयास किया। जापानी राष्ट्रवाद पर इन विवशताओं का प्रभाव देखा जा सकता है। एक ओर जापान के लोग एशिया को पश्चिमी शक्तियों के आधिपत्य से मुक्त रखने की आशा करते थे, दूसरे लोगों के लिए यही विचार साम्राज्य की स्थापना करने के लिए महत्त्वपूर्ण कारक सिद्ध हुए।
(iv) परम्पराओं का नए तथा अलग रचनात्मक तरीके से प्रयोग करना – जापान के सामाजिक तथा राजनीतिक संस्थानों के सुधार आदि के लिए परम्पराओं का नए तथा अलग रचनात्मक तरीके से प्रयोग करना आवश्यक था। उदाहरण के लिए, मेजी स्कूली पद्धति ने यूरोपीय तथा अमरीकी प्रथाओं के अनुरूप नये विषयों की शुरुआत की। किन्तु पाठ्यचर्या . का मुख्य उद्देश्य निष्ठावान नागरिक बनाना था। नैतिक शास्त्र का विषय पढ़ना अनिवार्य था जिसमें सम्राट के प्रति वफादारी पर बल दिया जाता था। इसी प्रकार परिवार में और दैनिक जीवन में आए परिवर्तन विदेशी और देशी विचारों को मिलाकर कुछ नया बनाने के प्रयास को उजागर करते हैं।

2. चीन के आधुनिकीकरण का मार्ग-चीन के आधुनिकीकरण का मार्ग बिल्कुल अलग था। यथा –
(i) परम्पराओं का परित्याग करना – 19वीं और 20वीं शताब्दी में परम्पराओं का परित्याग किया गया तथा राष्ट्रीय एकता एवं मजबूती स्थापित करने के उपाय ढूँढ़े गए। चीन के साम्यवादी दल तथा उसके समर्थकों ने परम्पराओं को समाप्त करने की लड़ाई लड़ी। उन्होंने महसूस किया कि परम्पराओं ने चीनी लोगों को गरीबी के जाल में जकड़ रखा है। इसके अतिरिक्त वे महिलाओं को अधीन बनाती हैं तथा देश को पिछड़ा हुआ रखती हैं।

(ii) लोगों को अधिकार एवं सत्ता देने का आश्वासन – चीन की साम्यवादी पार्टी ने लोगों को अधिकार एवं सत्ता देने का आश्वासन दिया परन्तु वास्तव में उसने बहुत ही केन्द्रीकृत राज्य की स्थापना की। साम्यवादी कार्यक्रम की सफलता ने नवीन आशा बँधाई परन्तु दमनकारी राजनीतिक व्यवस्था के कारण उनकी आशाएँ फलीभूत नहीं हुईं। परन्तु इससे शताब्दियाँ पुरानी असमानताएँ समाप्त हो गईं। शिक्षा का प्रसार हुआ और जनता में एक जागरूकता उत्पन्न हुई।

(iii) बाजार सम्बन्धी सुधार- चीनी साम्यवादी पार्टी ने बाजार सम्बन्धी सुधार किये और चीन को आर्थिक दृष्टि से शक्तिशाली बनाने में सफल हुई। परन्तु वहाँ की राजनीतिक व्यवस्था पर अब भी कड़ा नियन्त्रण है। अब समाज बढ़ती असमानताओं का सामना कर रहा है और सदियों से दबी हुई परम्पराएँ फिर से जीवित होने लगी हैं। इस नयी स्थिति से पुन: यह प्रश्न उठता है कि चीन किस प्रकार अपनी धरोहर को बनाए रखते हुए अपना विकास कर सकता है।

प्रश्न 12.
1987 के बाद दक्षिण कोरिया के लोकतंत्रीय विकासक्रम पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर:
1987 केबाद दक्षिण कोरिया में लोकतंत्रीय विकासक्रम 1987 के बाद दक्षिण कोरिया के लोकतंत्रीय विकासक्रम को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है –
(1) 1987 का प्रत्यक्ष चुनाव – नये संविधान के अनुसार, 1971 के बाद पहला प्रत्यक्ष चुनाव दिसम्बर, 1987 में आ, लेकिन विपक्षी दलों की एकजुटता में विफलता के कारण, चुन के सैन्य दल के एक साथी सैन्य नेता, ‘रोह ताएं- वू’ का चुनाव हुआ। हालांकि कोरिया में लोकतंत्र जारी रहा। लेकिन इन चुनावों में सैन्य शक्ति ही सत्ता पर कायम रही।

(2) 1992 के चुनाव और एक नागरिक नेतृत्व – 1990 में, लम्बे समय से विपक्षी नेता, रह चुके, किम यंग सैम ने एक बड़ी सत्तारूढ़ पार्टी बनाने के लिए रोह की पार्टी से समझौता किया। दिसम्बर, 1992 के चुनावों में दशकों से चल रहे सैन्य शासन के बाद, एक नागरिक नेता किम को राष्ट्रपति पद के लिए चुना गया।
नए चुनावों एवं सत्तावादी सेन्य शक्ति के विघटन के फलस्वरूप एक बार फिर लोकतंत्र की मुद्रा संकट का सामना करना पड़ा।

(3) शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण – दिसम्बर, 1997 में, एक लम्बे समय के बाद द. कोरिया में पहली बार शांतिपूर्ण हस्तांतरण हुआ और विपक्षी पार्टी के नेता किम डे- जुंग सत्ता में आए। सत्ता में दूसरा शांतिपूर्ण हस्तांतरण 2008 में हुआ जब रूढ़िवादी पार्टी के नेता ली माइक – बाक, प्रगतिशील पार्टी रोह मु-हयून प्रशासन के बाद अध्यक्ष चुने गए। 2012 में रूढिवादी पार्टी की नेता पार्क खान हे पहली महिला राष्ट्रपति के रूप में चुनी गईं। उनके पिता पार्क चुंग-ही की राजनीतिक विरासत के कारण उन्हें अपने कार्यकाल की शुरुआत में बहुत समर्थन प्राप्त हुआ, लेकिन मार्च, 2017 में, उनके मित्र द्वारा गुप्त रूप से सरकारी प्रबंधन किये जाने के कारण, उन पर महाभियोग चला और उन्हें कार्यालय से हटा दिया गया।

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2016 में पार्क खन – हे के विरोध में नागरिकों के नेतृत्व में किए गए, केंडल लाइट विरोध, देश के लोकतांत्रिक कानून और प्रणालियों की सीमाओं के भीतर राष्ट्रपति के इस्तीफे की मांग हेतु शांतिपूर्ण प्रदर्शन आदि कोरियाई लोकतंत्र की परिपक्वता को दर्शाता है। मई, 2017 में तीसरी बार शांतिपूर्ण हस्तांतरण के द्वारा मून जे-इन ने राष्ट्रपति का पद संभाला है।
कोरियाई लोकतंत्र देश के गणतंत्रवाद को प्रोत्साहित करने वाले नागरिकों की जागरूकता का परिणाम है, जिसने आज इस देश को आगे बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाई है।

JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. भारतीय संविधान में निम्न में से कौनसा मौलिक अधिकार प्रदान नहीं किया गया है।
(क) शोषण के विरुद्ध अधिकार
(ख) स्वास्थ्यप्रद पर्यावरण और पर्यावरण संरक्षण का अधिकार
(ग) संवैधानिक उपचारों का अधिकार
(घ) स्वतन्त्रता का अधिकार।

2. 1928 में किस समिति ने भारत में अधिकारों के घोषणा-पत्र की माँग उठायी थी।
(क) साइमन कमीशन ने
(ख) कैबिनेट मिशन ने
(ग) मोतीलाल नेहरू समिति ने
(घ) वांचू समिति ने।

3. निम्नलिखित में कौनसा कथन असत्य है?
(क) मौलिक अधिकारों की गारण्टी और उनकी सुरक्षा स्वयं संविधान करता है।
(ख) मौलिक अधिकारों को संसद कानून बनाकर परिवर्तित कर सकती है।
(ग) मौलिक अधिकार वाद योग्य हैं।
(घ) सरकार के कार्यों से मौलिक अधिकारों के हनन को रोकने की शक्ति और इसका उत्तरदायित्व न्यायपालिका के पास है।

4. संविधान का कौनसा अनुच्छेद साफ-साफ यह कहता है कि राज्य के अधीन सेवाओं में पिछड़े हुए नागरिकों को नियुक्तियों या पदों के आरक्षण जैसी नीति को समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं मानता।
(क) अनुच्छेद 16 (4)
(ख) अनुच्छेद 21
(ग) अनुच्छेद 19
(घ) अनुच्छेद 14

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5. निम्नलिखित में किस प्रावधान से धर्मनिरपेक्षता के जीवन को बल नहीं मिलता है।
(क) भारत का कोई राजकीय धर्म नहीं है।
(ख) सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के सम्बन्ध में सरकार धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करेगी।
(ग) शासकों से अलग धर्म को मानने वाले लोगों को शासकों द्वारा मान्य धर्म को ही स्वीकार करने के लिए विवश करना।
(घ) राज्य द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थाओं में न तो किसी धर्म का प्रचार किया जायेगा और न ही कोई धार्मिक शिक्षा दी जायेगी।

6. भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों को व्यवहार में लाने और उल्लंघन होने पर उनकी रक्षा का साधन है।
(क) संवैधानिक उपचारों का अधिकार
(ग) समानता का अधिकार
(ख) स्वतन्त्रता का अधिकार
(घ) शोषण के विरुद्ध अधिकार।

7. जब कोई निचली अदालत अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करके किसी मुकदमे की सुनवाई करती है तो ऊपर की अदालतें उसे ऐसा करने से रोकने के लिए जो आदेश जारी करती है, उसे कहते हैं।
(क) बंदी प्रत्यक्षीकरण
(ग) निषेध आदेश
(ख) परमादेश
(घ) अधिकार पृच्छा।

8. किस आदेश के द्वारा न्यायालय किसी गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायालय के सामने प्रस्तुत करने का आदेश देता है।
(क) बंदी प्रत्यक्षीकरण
(ग) परमादेश
(ख) उत्प्रेषण लेख
(घ) अधिकार पृच्छा।

9. राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों के पीछे वह कौनसी शक्ति है जो सरकार को यह बाध्य करेगी कि वह नीति। निर्देशक तत्त्वों को गम्भीरता से ले।
(क) संवैधानिक शक्ति
(ख) कानूनी शक्ति
(ग) नैतिक शक्ति
(घ) धार्मिक शक्ति।

10. निम्नलिखित में से कौनसा कथन असत्य है।
(क) भारतीय संविधान नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्यों को लागू करने के सम्बन्ध में संविधान मौन है।
(ख) संविधान में मौलिक कर्त्तव्यों के समावेश से हमारे मौलिक अधिकारों पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ा है।
(ग) नागरिकों के मौलिक अधिकार वाद – योग्य हैं।
(घ) राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व वाद – योग्य हैं।

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

1. दक्षिण अफ्रीका का संविधान दिसंबर ………………….. में लागू हुआ।
उत्तर:
1996

2. अधिकतर लोकतांत्रिक देशों में नागरिकों के अधिकारों को ………………. में सूचीबद्ध कर दिया जाता है।
उत्तर:
संविधान

3. भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान 1928 में ही …………………… समिति ने अधिकारों के एक घोषणापत्र की माँग उठायी थी।
उत्तर:
मोतीलाल नेहरू

4. डॉ. अम्बेडकर ने संवैधानिक उपचारों के अधिकार को संविधान का ………………. और ……………….. की संज्ञा दी।
उत्तर:
हृदय, आत्मा

5. संविधान में नीति निर्देशक तत्त्वों को …………………… के माध्यम से लागू करवाने की व्यवस्था नहीं की गई है।
उत्तर:
न्यायालय।

निम्नलिखित में से सत्य/असत्य कथन छाँटिये

1. मौलिक अधिकारों की गारंटी और उनकी सुरक्षा स्वयं संविधान करता है।
उत्तर:
सत्य

2. संसद कानून बनाकर मौलिक अधिकारों को परिवर्तित कर सकती है।
उत्तर:
असत्य

3. सरकार का कोई भी अंग मौलिक अधिकारों के विरुद्ध कोई कार्य नहीं कर सकता।
उत्तर:
सत्य

4. सरकार मौलिक अधिकारों के प्रयोग पर औचित्यपूर्ण प्रतिबंध लगा सकती है।
उत्तर:
सत्य

5. बंदी प्रत्यक्षीकरण के द्वारा निचली अदालत द्वारा अधिकार क्षेत्र से अतिक्रमण करने से उच्च अदालतें रोकती हैं।
उत्तर:
असत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये

1. जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (अ) नीति निर्देशक तत्त्व
2. काम का अधिकार (ब) कानूनी अधिकार
3. सम्पत्ति का अधिकार (स) 42वां संविधान संशोधन
4. संविधान में नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्यों मुकदमे का निर्णयकी सूची का समावेश (द) केशवनानंद भारती का निर्णय
5. संविधान के ‘मूल ढांचे’ की अवधारणा अतिलघूत्तरात्मक (य) मूल अधिकार

उत्तर:

1. जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (य) मूल अधिकार
2. काम का अधिकार (अ) नीति निर्देशक तत्त्व
3. सम्पत्ति का अधिकार (ब) कानूनी अधिकार
4. संविधान में नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्यों मुकदमे का निर्णयकी सूची का समावेश (स) 42वां संविधान संशोधन
5. संविधान के ‘मूल ढांचे’ की अवधारणा अतिलघूत्तरात्मक (द) केशवनानंद भारती का निर्णय

प्रश्न 1.
अधिकारों के घोषणा-पत्र से क्या आशय है?
उत्तर:
संविधान द्वारा प्रदान किये गये और संरक्षित अधिकारों की सूची को अधिकारों का घोषणा-पत्र कहते हैं।

प्रश्न 2.
अधिकारों का घोषणा-पत्र क्या भूमिका निभाता है?
उत्तर:
अधिकारों का घोषणा-पत्र सरकार को नागरिकों के अधिकारों के विरुद्ध काम करने से रोकता है और उनका उल्लंघन हो जाने पर उपचार सुनिश्चित करता है।

प्रश्न 3.
संविधान नागरिकों के अधिकारों को किससे संरक्षित करता है?
उत्तर:
संविधान नागरिक के अधिकारों को किसी अन्य व्यक्ति, निजी संगठन तथा सरकार के विभिन्न अंगों से संरक्षित करता है।

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प्रश्न 4.
भारत के संविधान में मौलिक अधिकारों की संज्ञा किसे दी गई है?
उत्तर:
भारत के संविधान में उन अधिकारों को सूचीबद्ध किया गया है, जिन्हें सुरक्षा देनी थी । इन्हीं सूचीबद्ध अधिकारों को मौलिक अधिकारों की संज्ञा दी गई है।

प्रश्न 5.
सरकार के कार्यों से मौलिक अधिकारों के हनन को रोकने के उत्तरदायित्व को न्यायपालिका किस प्रकार निभाती है?
उत्तर:
विधायिका या कार्यपालिका के किसी कार्य से या किसी निर्णय से यदि मौलिक अधिकारों का हनन होता है तो न्यायपालिका उसे अवैध घोषित कर सकती है।

प्रश्न 6.
क्या मौलिक अधिकार निरंकुश या असीमित अधिकार हैं?
उत्तर:
नहीं, मौलिक अधिकार निरंकुश या असीमित अधिकार नहीं हैं। सरकार मौलिक अधिकारों के प्रयोग पर औचित्यपूर्ण प्रतिबन्ध लगा सकती है।

प्रश्न 7.
स्वतन्त्रता के अधिकार से क्या आशय है?
उत्तर:
स्वतन्त्रता के अधिकार से आशय है बिना किसी अन्य की स्वतन्त्रता को नुकसान पहुँचाये और बिना कानून व्यवस्था को ठेस पहुँचाये प्रत्येक व्यक्ति अपनी चिन्तन, अभिव्यक्ति एवं कार्य करने की स्वतन्त्रता का आनन्द ले सके।

प्रश्न 8.
निवारक नजरबन्दी किसे कहते है?
उत्तर:
जब किसी व्यक्ति को, इस आशंका पर कि वह कोई गैर-कानूनी कार्य करने वाला है, गिरफ्तार कर वर्णित प्रक्रिया का पालन किये बिना कुछ समय के लिए जेल भेज दिया जाता है तो इसे निवारक नजरबन्दी कहते हैं।

प्रश्न 9.
प्रत्यक्ष रूप से निवारक नजरबन्दी सरकार का किनसे निपटने का एक हथियार है?
उत्तर:
प्रत्यक्ष रूप से निवारक नजरबन्दी सरकार के हाथ में असामाजिक तत्त्वों और राष्ट्र-विरोधी तत्त्वों से निपटने का एक हथियार है।

प्रश्न 10.
भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर किस आधार पर प्रतिबन्ध लगाये जा सकते हैं?
उत्तर:
भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर कानून व्यवस्था, शान्ति और नैतिकता के आधार पर प्रतिबन्ध लगाये जा सकते हैं।

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प्रश्न 11.
धार्मिक स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकार पर सरकार किन आधारों पर प्रतिबन्ध लगा सकती है?
उत्तर:
सरकार लोक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के आधार पर धार्मिक स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकार पर प्रतिबन्ध लगा सकती है।

प्रश्न 12.
अल्पसंख्यक किसे कहते हैं?
उत्तर:
अल्पसंख्यक वह समूह है जिसकी अपनी एक भाषा या धर्म होता है और देश के किसी एक भाग में या पूरे देश में संख्या के आधार पर वह अन्य समूह से छोटा होता है।

प्रश्न 13.
संपत्ति के अधिकार को किस अनुच्छेद के अन्तर्गत एक सामान्य कानूनी अधिकार बना दिया गया है?
उत्तर:
संपत्ति के अधिकार को अनुच्छेद 300 (क) के अन्तर्गत एक सामान्य कानूनी अधिकार बना दिया गया है।

प्रश्न 14.
संवैधानिक उपचारों का अधिकार क्या है?
उत्तर:
संवैधानिक उपचारों का अधिकार वह साधन है जिसके द्वारा मौलिक अधिकारों को व्यवहार में लाया जा सकता है और उल्लंघन होने पर उनकी रक्षा की जा सकती है।

प्रश्न 15.
मूल अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालय कौन – कौनसे आदेश जारी कर सकते हैं?
उत्तर:
मूल अधिकारों की रक्षा के सन्दर्भ में सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय पाँच प्रकार के आदेश जारी कर सकते हैं। ये हैं।

  1. बंदी प्रत्यक्षीकरण,
  2. परमादेश,
  3. निषेध आदेश,
  4. अधिकार पृच्छा तथा
  5.  उत्प्रेषण

प्रश्न 16.
भारत में मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालय के अतिरिक्त अन्य किन-किन संरचनाओं का भी निर्माण किया गया है?
उत्तर:
मूल अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायपालिका के अलावा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग तथा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग आदि संरचनाओं का निर्माण किया गया है।

प्रश्न 17.
राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व क्या हैं?
उत्तर:
संविधान निर्माताओं ने देश में सामाजिक और आर्थिक समानता व स्वतन्त्रता की स्थापना के लिए संविधान में सरकार के लिए कुछ नीतिगत निर्देशों का प्रावधान किया है, जो वाद – योग्य नहीं हैं। इन्हीं को राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व कहा जाता है।

प्रश्न 18.
नीति-निर्देशक तत्त्वों को लागू करने के प्रयास में कौनसी योजनाएँ क्रियान्वित की गई हैं? किन्हीं दो योजनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. पूरे देश में पंचायती राज व्यवस्था लागू करना।
  2. रोजगार गारण्टी योजना के अन्तर्गत काम क सीमित अधिकार प्रदान करना।

प्रश्न 19.
भारत के संविधान में लिखे किसी एक नीति-निर्देशक सिद्धान्त का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
महिला व पुरुष दोनों को समान कार्य के लिए समान वेतन दिया जाये।

प्रश्न 20.
शिक्षा के अधिकार से संबंधित संशोधन का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
शिक्षा के अधिकार के संशोधन का यह महत्त्व है कि जिन बच्चों को किन्हीं अभावों के कारण शिक्षा नहीं मिल पा रही थी, वह अब मिल पा रही है।

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प्रश्न 21.
मौलिक अधिकारों में संशोधन किसके द्वारा किया जाता है?
उत्तर:
मौलिक अधिकारों में संशोधन भारतीय संसद के द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 22.
भारतीय संविधान में कौनसे संविधान संशोधन के द्वारा नागरिकों के कितने मौलिक कर्त्तव्यों का समावेश किया गया है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में 42वें संविधान संशोधन, 1976 के द्वारा नागरिकों के दस मौलिक कर्त्तव्यों का समावेश किया गया है।

प्रश्न 23.
महाराष्ट्र के किस समाज-सुधारक की रचनाओं में इस बात की झलक मिलती है कि अधिकारों में स्वतन्त्रता और समानता दोनों ही निहित हैं?
उत्तर:
महाराष्ट्र के क्रान्तिकारी समाज-सुधारक ज्योतिबा राव फुले की रचनाओं में हमें इस बात की झलक दिखाई देती है कि अधिकारों में स्वतन्त्रता और समानता दोनों ही निहित हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“मौलिक अधिकार अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। ” सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
मौलिक अधिकार अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। इसीलिए उन्हें संविधान में सूचीबद्ध किया गया है और उनकी सुरक्षा के लिए विशेष प्रावधान बनाये गये हैं। सके वे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं इसलिए संविधान स्वयं यह सुनिश्चित करता है कि सरकार भी उनका उल्लंघन न कर

प्रश्न 2.
मौलिक अधिकार और साधारण अधिकारों में कोई दो अन्तर बताइए।
उत्तर:
मौलिक अधिकार और साधारण अधिकारों में अन्तर।

  1. जहाँ साधारण अधिकारों को सुरक्षा देने और लागू करने के लिए साधारण कानूनों का सहारा लिया जाता है, वहाँ मौलिक अधिकारों की गारण्टी और उनकी सुरक्षा स्वयं संविधान करता है।
  2. सामान्य अधिकारों को संसद कानून बनाकर परिवर्तित कर सकती है लेकिन मौलिक अधिकारों में परिवर्तन के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ता है।

प्रश्न 3.
संविधान नागरिकों के अधिकारों को किससे संरक्षित करता है?
उत्तर:
संविधान नागरिकों के अधिकारों को किसी अन्य व्यक्ति या निजी संगठन तथा सरकार के विभिन्न अंगों से संरक्षित करता है। यथा

  1. किसी अन्य व्यक्ति या निजी संगठन से संरक्षण: नागरिक के अधिकारों को किसी अन्य व्यक्ति या निजी संगठन से खतरा हो सकता है। ऐसी स्थिति में संविधान व्यक्ति के अधिकारों को सरकार द्वारा सुरक्षा प्रदान करने की व्यवस्था करता है। इसके लिए यह आवश्यक है कि सरकार व्यक्ति के अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हो।
  2. सरकार से संरक्षण: सरकार के अंग विधायिका, कार्यपालिका, नौकरशाही अपने कार्यों के सम्पादन में व्यक्ति के अधिकारों का हनन कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में न्यायपालिका व्यक्ति के अधिकारों को संरक्षित करती है।

प्रश्न 4.
भारत में न्यायपालिका सरकार के कार्यों से व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का संरक्षण किस प्रकार करती है?
उत्तर:
भारत में सरकार के कार्यों से मौलिक अधिकारों के हनन को रोकने की शक्ति और इसका उत्तरदायित्व न्यायपालिका के पास है। विधायिका या कार्यपालिका के किसी निर्णय या कार्य से यदि मौलिक अधिकारों का हनन होता है या उन पर अनुचित प्रतिबन्ध लगाया जाता है, तो न्यायपालिका उसे अवैध घोषित कर सकती है।

प्रश्न 5.
समता के अधिकार में कौन-कौनसे अधिकार सम्मिलित हैं?
उत्तर:
समता के अधिकार में निम्न अधिकार सम्मिलित हैं।

  1. कानून के समक्ष समानता
  2. कानून का समान संरक्षण
  3. धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध
  4. दुकानों, होटलों, कुओं, तालाबों, स्नानघरों, सड़कों आदि में प्रवेश की समानता
  5. रोजगार में अवसर की समानता
  6. छूआछूत का अन्त
  7. उपाधियों का अन्त आदि।

प्रश्न 6.
अवसर की समानता के मौलिक अधिकार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संविधान के अनुच्छेद 16 में कहा गया है कि सरकारी नियुक्तियों के लिए सभी नागरिकों को समान अवसर दिये जायेंगे। कोई भी नागरिक धर्म, वंश, जाति, जन्म-स्थान या निवास-स्थान के आधार पर सरकारी नियुक्तियों के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जायेगा। अनुच्छेद 16 के दो अपवाद हैं।

  • कुछ विशेष पदों के लिए निवास स्थान सम्बन्धी शर्तें आवश्यक मानी जा सकती हैं।
  • सरकार बच्चों, महिलाओं तथा सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में स्थान आरक्षित कर सकती है।

आरक्षण जैसी नीति को समानता के अधिकार के उल्लंघन के रूप में नहीं देखा जा सकता, बल्कि संविधान की भावना के अनुसार ‘अवसर की समानता’ के अधिकार को पूरा करने के लिए यह आवश्यक है।

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प्रश्न 7.
न्यायालय में निष्पक्ष मुकदमे के लिए संविधान अभियुक्त के किन अधिकारों की व्यवस्था करता है?
उत्तर:
आरोपी या अभियुक्त के अधिकार; न्यायालय में निष्पक्ष मुकदमे के लिए संविधान आरोपी के तीन अधिकारों की व्यवस्था करता है।

  1. किसी भी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक बार से ज्यादा सजा नहीं मिलेगी।
  2. कोई भी कानून किसी भी ऐसे कार्य को जो उक्त कानून के लागू होने के पहले किया गया हो अपराध घोषित नहीं कर सकता।
  3. किसी भी व्यक्ति को स्वयं अपने विरुद्ध साक्ष्य देने के लिए नहीं कहा जा सकेगा।

प्रश्न 8.
धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार को लोकतन्त्र का प्रतीक क्यों माना जाता है?
उत्तर:
धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार को लोकतन्त्र का प्रतीक माना जाता है क्योंकि इतिहास गवाह है कि दुनिया के अनेक देशों के शासकों और राजाओं ने अपने-अपने देश की जनता को धर्म की स्वतन्त्रता का अधिकार नहीं दिया । शासकों से अलग धर्म मानने वाले लोगों को या तो मार डाला गया या विवश किया गया कि वे शासकों द्वारा मान्य धर्म को स्वीकार कर लें। अतः लोकतन्त्र में अपनी इच्छा के अनुसार धर्म – पालन की स्वतन्त्रता को हमेशा एक बुनियादी सिद्धान्त के रूप में स्वीकार किया गया है।

प्रश्न 9.
नागरिक के दो धार्मिक अधिकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. धार्मिक विश्वास का अधिकार: भारत में प्रत्येक व्यक्ति को अपना धर्म चुनने और उसका पालन करने का अधिकार है। धार्मिक स्वतन्त्रता में अन्तःकरण की स्वतन्त्रता भी समाहित है।
  2. धार्मिक प्रचार का अधिकार: प्रत्येक धर्म के मानने वालों को अपने धर्म का प्रचार करने का समान अधिकार है।

प्रश्न 10.
धार्मिक स्वतन्त्रता पर सरकार किन-किन आधारों पर प्रतिबन्ध लगा सकती है?
उत्तर:
धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार निरपेक्ष नहीं है। इस पर कुछ प्रतिबन्ध भी हैं।

  1. लोक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के आधार पर सरकार धार्मिक स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगा सकती है।
  2. कुछ सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए सरकार धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर सकती है, जैसेसती-प्रथा और मानव-बलि जैसी कप्रथाओं पर सरकार ने प्रतिबन्ध के लिए अनेक कदम उठाये हैं।

प्रश्न 11.
“नीति-निर्देशक तत्त्व वाद – योग्य नहीं हैं।” इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
“नीति-निर्देशक तत्त्व वाद-योग्य नहीं हैं।” इस कथन का आशय यह है कि संविधान में नीति-निर्देशक तत्त्वों का समावेश तो किया गया है लेकिन उन्हें न्यायालय के माध्यम से लागू करवाने की व्यवस्था नहीं की गई है। यदि सरकार किसी निर्देश को लागू नहीं करती तो हम न्यायालय में जाकर यह माँग नहीं कर सकते कि उसे लागू करने के लिए न्यायालय सरकार को आदेश दे।

प्रश्न 12.
नीति-निर्देशक तत्त्वों को लागू किये जाने के सम्बन्ध में संविधान निर्माताओं की क्या मान्यता थी?
उत्तर:
नीति-निर्देशक तत्त्वों को लागू किये जाने के सम्बन्ध में संविधान निर्माताओं की मान्यता थी कि।

  1. इन निर्देशक तत्त्वों के पीछे जो नैतिक शक्ति है, वह सरकार को बाध्य करेगी कि सरकार इन्हें गम्भीरता से ले।
  2. जनता इन निर्देशक तत्त्वों को लागू करने की जिम्मेदारी भावी सरकारों पर डालेगी।

प्रश्न 13.
नीति-निर्देशक तत्त्वों की सूची में प्रमुख बातें क्या हैं?
उत्तर:
नीति-निर्देशक तत्त्वों की सूची में तीन बातें प्रमुख हैं।

  1. वे लक्ष्य और उद्देश्य जो एक समाज के रूप में हमें स्वीकार करने चाहिए।
  2. वे अधिकार जो नागरिकों को मौलिक अधिकारों के अलावा मिलने चाहिए।
  3. वे नीतियाँ जिन्हें सरकार को स्वीकार करनी चाहिए।

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प्रश्न 14.
क्या संविधान में मौलिक कर्तव्यों के समावेश से हमारे मौलिक अधिकारों पर कोई प्रतिकूल असर पड़ा है?
उत्तर:
संविधान मौलिक कर्त्तव्यों के अनुपालन के आधार पर या उनकी शर्त पर हमें मौलिक अधिकार नहीं देता । इस दृष्टि से संविधान में मौलिक कर्त्तव्यों के समावेश से हमारे मौलिक अधिकारों पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ा है।

प्रश्न 15.
नीति-निर्देशक तत्त्वों के उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नीति-निर्देशक तत्त्वों के प्रमुख उद्देश्य ये हैं।

  1. लोगों का कल्याण तथा आर्थिक-सामाजिक न्याय की स्थापना।
  2. लोगों का जीवन स्तर ऊँचा उठाना तथा संसाधनों का समान वितरण करना।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को बढ़ावा देना।

प्रश्न 16.
अल्पसंख्यक किसे कहा गया है? भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों के किन्हीं दो अधिकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अल्पसंख्यक से आशय अल्पसंख्यक वह समूह है जिनकी अपनी एक भाषा या धर्म होता है और देश के किसी एक भाग में या पूरे देश में संख्या के आधार पर वह किसी अन्य समूह से छोटा है। भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों के अधिकार

  1. अल्पसंख्यक समूहों को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को सुरक्षित रखने और उसे विकसित करने का अधिकार है।
  2. भाषायी या धार्मिक अल्पसंख्यक अपने शिक्षण संस्थान खोल सकते हैं। ऐसा करके वे अपनी संस्कृति को सुरक्षित और विकसित कर सकते हैं। शिक्षण संस्थाओं को वित्तीय अनुदान देने के मामले में सरकार इस आधार पर भेदभाव नहीं करेगी कि उस शिक्षण संस्थान का प्रबन्ध किसी अल्पसंख्यक समुदाय के हाथ में है।

प्रश्न 17.
नीति-निर्देशक तत्त्व और मौलिक अधिकारों में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
नीति-निर्देशक तत्त्व और मौलिक अधिकारों में सम्बन्ध – मौलिक अधिकार और नीति-निर्देशक तत्त्व एक-दूसरे के पूरक हैं। यथा।

  1. जहाँ मौलिक अधिकार सरकार के कुछ कार्यों पर प्रतिबन्ध लगाते हैं, वहीं नीति-निर्देशक तत्त्व उसे कुछ कार्यों को करने की प्रेरणा देते हैं।
  2. मौलिक अधिकार खास तौर से व्यक्ति के अधिकारों को संरक्षित करते हैं, वहाँ नीति-निर्देशक तत्त्व पूरे समाज के हित की बात करते हैं।
  3. कभी-कभी सरकार जब नीति-निर्देशक तत्त्वों को लागू करने का प्रयास करती है, तो वे नागरिकों के मौलिक अधिकारों से टकरा भी सकते हैं।
  4. मौलिक अधिकार वे अधिकार हैं जो संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदत्त व संरक्षित किये गये हैं, जबकि नीति-निर्देशक तत्त्व वे अधिकार हैं जो नागरिकों को मौलिक अधिकारों के अलावा मिलने चाहिए।

प्रश्न 18.
नीति-निर्देशक तत्त्वों में ऐसे कौनसे अधिकार दिये गये हैं जिनके लिए न्यायालय में दावा नहीं किया जा सकता?
उत्तर:
राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों में निम्नलिखित अधिकार दिये गये हैं जिनके लिए न्यायालय में दावा नहीं किया जा सकता।

  1. पर्याप्त जीवन-यापन का अधिकार।
  2. महिलाओं और पुरुषों को समान काम के लिए समान मजदूरी का अधिकार।
  3. आर्थिक शोषण के विरुद्ध अधिकार।
  4. काम का अधिकार।
  5. बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार।

प्रश्न 19.
भारत में नीति-निर्देशक तत्त्वों के नागरिकों के मौलिक अधिकारों से टकराने का मूल कारण क्या रहा तथा इसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
भारत में मौलिक अधिकारों और नीति-निर्देशक तत्त्वों के बीच टकराहट का एक महत्त्वपूर्ण कारण- सम्पत्ति का मूल अधिकार रहा। यह समस्या तब पैदा हुई जब सरकार ने जमींदारी उन्मूलन कानून बनाने का फैसला किया। इसका विरोध इस आधार पर किया गया कि उससे सम्पत्ति के मूल अधिकार का हनन होता है। लेकिन यह सोचकर कि सामाजिक आवश्यकताएँ वैयक्तिक हित के ऊपर हैं, सरकार ने नीति-निर्देशक तत्त्वों को लागू करने के लिए संविधान का संशोधन किया। इससे एक लम्बी कानूनी लड़ाई शुरू हुई। कार्यपालिका और न्यायपालिका ने इस पर परस्पर विरोधी दृष्टिकोण अपनाया। यथा

  1. कार्यपालिका की मान्यता थी कि नीति-निर्देशक तत्त्वों को लागू करने के लिए मौलिक अधिकारों पर प्रतिबन्ध लगाये जा सकते हैं क्योंकि लोक-कल्याण के मार्ग में अधिकार बाधक हैं।
  2. न्यायपालिका की यह मान्यता थी कि मौलिक अधिकार इतने महत्त्वपूर्ण और पावन हैं कि नीति-निर्देशक तत्त्वों को लागू करने के लिए उन्हें प्रतिबन्धित नहीं किया जा सकता।

इसने एक और विवाद को जन्म दिया कि संसद संविधान के किस अंश या प्रावधान में संशोधन कर सकती है और किसमें नहीं। सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानन्द भारती वाद में इस प्रश्न का निपटारा यह निर्णय करके दिया कि संसद संविधान के ‘मूल ढाँचे’ में कोई संशोधन नहीं कर सकती तथा सम्पत्ति का अधिकार संसद के मूल ढाँचे का तत्त्व नहीं है। अतः संसद इसमें संशोधन कर सकती है। परिणामतः 1978 में 44वें संविधान संशोधन द्वारा संसद ने सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से निकाल दिया।

प्रश्न 20.
नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्यों का संविधान में कब समावेश किया गया? ये कर्त्तव्य कितने हैं? चार प्रमुख कर्त्तव्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्य वर्ष 1976 में संविधान का 42वाँ संशोधन किया गया जिसमें अन्य प्रावधानों के साथ-साथ संविधान में नागरिकों के दस कर्त्तव्यों की एक सूची का समावेश किया गया। लेकिन इन्हें लागू करने के सम्बन्ध में संविधान मौन है। प्रमुख कर्त्तव्य – नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्यों की सूची में चार प्रमुख कर्त्तव्य निम्नलिखित हैं।

  1. नागरिक के रूप में हमें अपने संविधान का पालन करना चाहिए।
  2. सभी नागरिकों को देश की रक्षा करनी चाहिए।
  3. सभी नागरिकों में भाईचारा बढ़ाने का प्रयत्न करना चाहिए।
  4. सभी नागरिकों को पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए।

प्रश्न 21.
भारतीय संविधान में वर्णित शोषण के विरुद्ध अधिकार का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
शोषण के विरुद्ध अधिकार शोषण के विरुद्ध अधिकार का उद्देश्य है। समाज के निर्बल वर्ग को शक्तिशाली वर्ग के शोषण से बचना। इसमें निम्न प्रावधान हैं।

  1. मानव के क्रय-विक्रय तथा शोषण पर प्रतिबन्ध संविधान के अनुच्छेद 23 में दास के रूप में मानव के क्रय-विक्रय तथा किसी भी व्यक्ति से बेगार लेना गैर-कानूनी घोषित किया गया है। शोषण से मनाही के बावजूद देश में अभी भी बंधुआ मजदूरी के रूप में आज भी शोषण किया जा रहा है। अब इसे अपराध घोषित कर दिया गया है और यह कानूनी दण्डनीय अपराध है।
  2. कारखानों आदि में बच्चों को काम करने की मनाही – संविधान के अनुच्छेद 24 के अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी कारखाने, खदान या अन्य किसी खतरनाक काम में नियोजित नहीं किया जायेगा। बाल-श्रम को अवैध बनाकर और शिक्षा को बच्चों का मौलिक अधिकार बनाकर ‘शोषण के विरुद्ध संवैधानिक अधिकार’ को और अर्थपूर्ण बनाया गया है।

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प्रश्न 22.
शिक्षा और संस्कृति से सम्बन्धित कौनसे अधिकार भारतीय नागरिकों को प्रदान किये गये हैं?
उत्तर:
संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 तथा 30 में इन अधिकारों का वर्णन है। इन अधिकारों को संविधान में स्थान देकर अल्पसंख्यकों के अधिकारों को भी स्पष्ट किया गया है। यथा

  1. भारत के नागरिकों को अपनी भाषा, लिपि या संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार है।
  2. धर्म, वंश, जाति, भाषा अथवा इनमें से किसी एक के आधार पर किसी भी नागरिक को किसी राजकीय संस्था या राजकीय सहायता प्राप्त संस्था में प्रवेश से वंचित नहीं किया जा सकता।
  3. अल्पसंख्यकों को अपनी इच्छानुसार स्कूल, कॉलेज खोलने का अधिकार होगा। इस प्रकार की संस्थाओं को अनुदान देने में राज्य कोई भेदभाव नहीं करेगा।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान में दिये गए स्वतन्त्रता के अधिकार का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता का अधिकार भारतीय संविधान में अनुच्छेद 19 से अनुच्छेद 22 तक नागरिकों को प्रदत्त स्वतन्त्रता के अधिकार का वर्णन किया गया है। यथा (अ) नागरिक स्वतन्त्रताएँ ( अनुच्छेद 19 ) – 44वें संविधान संशोधन के पश्चात् अनुच्छेद 19 में भारतीय नागरिकों को निम्नलिखित छः स्वतन्त्रताएँ प्रदान की गई हैं।

1. भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता: नागरिकों को भाषण, लेख, चलचित्र अथवा अन्य किसी माध्यम से अपने विचारों को प्रकट करने की स्वतन्त्रता प्रदान की गई है। समाचार-पत्रों को संसद, विधानमण्डलों की कार्यवाही प्रकाशित करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होगी। परन्तु राज्य देश की अखण्डता, सुरक्षा, शान्ति, नैतिकता, न्यायालयों के सम्मान तथा विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों को ध्यान में रखते हुए इन अधिकारों पर उचित प्रतिबन्ध लगा सकता है।

2. शान्तिपूर्ण ढंग से जमा होने और सभा करने की स्वतन्त्रता: नागरिकों को शान्तिपूर्वक एकत्र होने की स्वतन्त्रता है। लेकिन सुरक्षा और शान्ति की दृष्टि से इस अधिकार पर भी राज्य द्वारा उचित प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है।

3. संगठित होने की स्वतन्त्रता: नागरिकों को संस्था व संघ बनाने की पूर्ण स्वतन्त्रता है परन्तु उसका उद्देश्य सुरक्षा व शान्ति को खतरा पहुँचाना न हो।

4. भ्रमण की स्वतन्त्रता: नागरिकों को देश की सीमाओं के भीतर कहीं भी आने-जाने की स्वतन्त्रता है परन्तु सार्वजनिक हित तथा जनजातियों की रक्षा के लिए सरकार इस स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगा सकती है।

5. देश के किसी भी भाग में बसने और रहने की स्वतन्त्रता: नागरिकों को देश के किसी भाग में निवास करने और बस जाने की स्वतन्त्रता है परन्तु सार्वजनिक हित और जनजातियों की रक्षा के लिए इस पर प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है।

6. कोई भी पेशा चुनने तथा व्यापार करने की स्वतन्त्रता: नागरिकों को अपना कोई भी व्यवसाय करने की स्वतन्त्रता दी गई है लेकिन सार्वजनिक हित में इस पर प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है। दूसरे, किसी भी व्यवसाय के लिए कुछ व्यावसायिक योग्यताएँ निर्धारित की जा सकती हैं। तीसरे, राज्य को स्वयं या किसी सरकारी कम्पनी द्वारा किसी भी व्यापार या धन्धे को अपने हाथों में ले लेने का अधिकार है।

(ब) व्यक्तिगत स्वतन्त्रता: अनुच्छेद 20-21 में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता प्रदान की गई है। जब तक न्यायालय किसी व्यक्ति को किसी अपराध का दोषी नहीं ठहराता तब तक उसे दोषी नहीं माना जा सकता । यह भी जरूरी है कि किसी अपराध के आरोपी को स्वयं को बचाने का समुचित अवसर मिले। न्यायालय में निष्पक्ष मुकदमे के लिए संविधान निम्न अधिकारों की व्यवस्था करता है।

(क) किसी भी व्यक्ति को किसी ऐसे कानून का उल्लंघन करने के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता जो अपराध करते समय लागू न हो।

(ख) किसी व्यक्ति को उससे अधिक दण्ड नहीं दिया जा सकता जो उस कानून के लिए उल्लंघन करते समय निश्चित हो।

(ग) किसी भी व्यक्ति पर एक ही अपराध के लिए एक बार से अधिक न तो मुकदमा चलाया जा सकता है और न ही दोबारा दण्डित किया जा सकता है।

(घ) किसी भी व्यक्ति को अपने विरुद्ध किसी अपराध में गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। संविधान में जीवन तथा निजी स्वतन्त्रता की रक्षा की व्यवस्था की गई है। यथा

किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त अन्य किसी तरीके से जीवन अथवा निजी स्वतन्त्रता से वंचित नहीं किया जा सकता। गिरफ्तार किये जाने पर उस व्यक्ति को अपने पसन्दीदा वकील के माध्यम से अपना बचाव करने का अधिकार है। इसके अलावा, पुलिस के लिए यह आवश्यक है कि वह अभियुक्त को 24 घण्टे के अन्दर निकटतम न्यायाधीश के सामने पेश करे। न्यायाधीश ही इस बात का निर्णय करेगा कि गिरफ्तारी उचित है या नहीं।

इस अधिकार द्वारा किसी व्यक्ति के जीवन को मनमाने ढंग से समाप्त करने के विरुद्ध ही गारण्टी नहीं मिलती बल्कि इसका दायरा और भी व्यापक है। सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले अनेक निर्णयों द्वारा इस अधिकार का दायरा बढ़ाया है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के अनुसार इसमें शोषण से मुक्त और मानवीय गरिमा से पूर्ण जीवन जीने का अधिकार अन्तर्निहित है।

न्यायालय ने माना है कि ‘जीवन के अधिकार’ का अर्थ है व्यक्ति को आश्रय और आजीविका का भी अधिकार हो क्योंकि इसके बिना कोई व्यक्ति जिन्दा नहीं रह सकता। अनुच्छेद 20 तथा 21 में प्राप्त अधिकारों को आपात स्थिति में भी निलम्बित नहीं किया जा सकता। (स) निवारक नजरबन्दी – यदि सरकार को लगे कि कोई व्यक्ति देश की कानून व्यवस्था या शान्ति और सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है, तो वह उसे बन्दी बना सकती है।

लेकिन निवारक नजरबन्दी अधिकतम 3 महीने तक के लिए ही हो सकती है। तीन महीने के बाद ऐसे मामले समीक्षा के लिए एक सलाहकार बोर्ड के समक्ष लाए जाते हैं। प्रत्यक्ष रूप से निवारक नजरबन्दी सरकार के हाथ में असामाजिक तत्त्वों और राष्ट्र-विद्रोही तत्त्वों से निपटने का एक हथियार है। लेकिन सरकार ने प्राय: इसका दुरुपयोग किया है।

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प्रश्न 2.
भारतीय संविधान में दिये गये समानता के अधिकार की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर:
समानता का अधिकार भारतीय संविधान में समानता के अधिकार का वर्णन अनुच्छेद 14 से 18 तक किया गया है। यथा-
1. कानून के समक्ष समानता तथा कानून का समान संरक्षण- संविधान के अनु. 14 में कहा गया है कि ‘राज्य किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।” कानून की दृष्टि में सब व्यक्ति समान हैं।

2. भेदभाव का निषेध: अनुच्छेद 15 में भेदभाव का निषेध किया गया है। इसके अनुसार, “राज्य केवल धर्म, वंश, जाति, लिंग व जन्म स्थान या इनमें से किसी एक आधार पर किसी नागरिक को दुकानों, भोजनालयों, मनोरंजन की जगहों, तालाबों, पूजा स्थलों और कुओं का प्रयोग करने से वंचित नहीं कर सकेगा।” परन्तु महिलाओं और बच्चों को विशेष सुविधाएँ प्रदान की जा सकती हैं। अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए राज्य विशेष प्रकार की व्यवस्था कर सकता है।

3. रोजगार में अवसर की समानता: अनुच्छेद 16 के अनुसार सरकारी सेवाओं पर नियुक्तियों के लिए सभी नागरिकों को समान अवसर दिये जायेंगे। कोई भी नागरिक धर्म, वंश, जाति, जन्म-स्थान या निवास स्थान के आधार पर सरकारी नियुक्तियों के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जायेगा। इस अनुच्छेद के कुछ अपवाद भी दिये गये हैं।

  • कुछ विशेष पदों के लिए निवास स्थान सम्बन्धी शर्तें आवश्यक मानी जा सकती हैं।
  • अनुच्छेद 16(4) के अनुसार, “इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, नियुक्तियों या पदों के आरक्षण का प्रावधान करने से नहीं रोकेगी।”

इस प्रकार संविधान यह स्पष्ट करता है कि सरकार बच्चों, महिलाओं तथा सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की बेहतरी के लिए विशेष योजनाएँ या निर्णय लागू कर सकती है। वास्तव में संविधान अनुच्छेद 16 (4) की आरक्षण जैसी नीति को समानता के अधिकार के उल्लंघन के रूप में नहीं देखा जा सकता। संविधान की भावना के अनुसार तो यह ‘अवसर की समानता’ के अधिकार को पूरा करने के लिए आवश्यक है।

4. अस्पृश्यता की समाप्ति: संविधान के अनुच्छेद 17 में छुआछूत का अन्त कर दिया गया है। किसी भी रूप को बरतने की मनाही की गई है। इसे दण्डनीय अपराध बना दिया गया है।

5. उपाधियों का अन्त: अनुच्छेद 18 के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई है कि

  • केवल उन लोगों को छोड़कर जिन्होंने सेना या शिक्षा के क्षेत्र में गौरवपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की है, राज्य किसी भी व्यक्ति को कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा।
  • भारत का नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा।
  • कोई भी व्यक्ति जो भारत का नागरिक नहीं है, लेकिन वह भारत राज्य के अधीन किसी पद को धारण किये हुए है, तो वह इस पद को धारण करते हुए किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करेगा।

प्रश्न 3.
संवैधानिक उपचारों के अधिकार से क्या तात्पर्य है ? मूल अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालय कितने प्रकार के लेख जारी कर सकता है? इस अधिकार का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
संवैधानिक उपचारों का अधिकार ( अनुच्छेद 32): संवैधानिक उपचारों के अधिकार के अनुसार प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार दिया गया है कि यदि उसे प्राप्त मौलिक अधिकारों में हस्तक्षेप किया जाये या छीना जाये, चाहे वह सरकार ही क्यों न हो, तो वह सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय से न्याय की माँग कर सकता है। विभिन्न प्रकार के लेख – म जारी कर सकते हैं। अधिकारों की रक्षा के लिए ये न्यायालय निम्न प्रकार के निर्देश, आदेश या लेख।
1. बंदी प्रत्यक्षीकरण: बन्दी प्रत्यक्षीकरण के द्वारा न्यायालय किसी गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायालय के सामने प्रस्तुत करने का आदेश देता है। यदि गिरफ्तारी का तरीका या कारण गैर-कानूनी या असन्तोषजनक हो, तो न्यायालय गिरफ्तार व्यक्ति को छोड़ने का आदेश दे सकता है।

2. परमादेश: यह आदेश तब जारी किया जाता है जब न्यायालय को लगता है कि कोई सार्वजनिक पदाधिकारी अपने कानूनी और संवैधानिक दायित्वों का पालन नहीं कर रहा है और इससे किसी व्यक्ति का मौलिक अधिकार प्रभावित हो रहा है।

3. निषेध आदेश: जब कोई निचली अदालत अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करके किसी मुकदमे की सुनवाई करती है तो ऊपर की अदालतें ( उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय) निषेध आदेश के माध्यम से उसे ऐसा करने से रोकती हैं।

4. अधिकार पृच्छा: जब न्यायालय को लगता है कि कोई व्यक्ति ऐसे पद पर नियुक्त हो गया है जिस पर उसका कोई कानूनी हक नहीं है, तब न्यायालय ‘अधिकार पृच्छा आदेश’ के द्वारा उसे उस पद पर कार्य करने से रोक देता है।

5. उत्प्रेषण लेख: जब कोई निचली अदालत या सरकारी अधिकारी बिना अधिकार के कोई कार्य करता है, तो न्यायालय उसके समक्ष विचाराधीन मामले को उससे लेकर उत्प्रेषण लेख द्वारा उसे ऊपर की अदालत या अधिकारी को हस्तान्तरित कर देता है।

संवैधानिक उपचारों के अधिकार का महत्त्व संविधान में संवैधानिक उपचारों के अधिकार द्वारा मौलिक अधिकारों की सुरक्षा प्रदान की गई है। इस अधिकार के बिना मौलिक अधिकार खोखले वायदे साबित होते । संविधान के अनुच्छेद 32 और अनुच्छेद 226 द्वारा नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा का दायित्व सर्वोच्च न्यायालय तथा राज्य के उच्च न्यायालयों को सौंपा गया है। यदि किसी नागरिक के मौलिक अधिकार का हनन होता है तो वह उन न्यायालयों में प्रार्थना-पत्र देकर अपने अधिकार की रक्षा कर सकता है।

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प्रश्न 4.
भारत में मूल अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायपालिका के अतिरिक्त किन संरचनाओं का निर्माण किया गया है ? राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत में मूल अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायपालिका के अलावा कुछ और संरचनाओं का भी निर्माण किया गया है। इनमें राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग तथा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग प्रमुख हैं। ये संस्थाएँ क्रमशः अल्पसंख्यकों, महिलाओं, दलितों के अधिकारों तथा मानवाधिकारों की रक्षा करती हैं।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग गठन-मौलिक अधिकारों और अन्य अधिकारों की रक्षा करने के लिए वर्ष 2000 में भारत सरकार ने कानून द्वारा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में सर्वोच्च न्यायालय का एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश, किसी उच्च न्यायालय का एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश तथा मानवाधिकारों के सम्बन्ध में ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले दो और सदस्य होते हैं। कार्यक्षेत्र मानवाधिकारों के उल्लंघन की शिकायतें मिलने पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग स्वयं अपनी पहल या किसी पीड़ित व्यक्ति की याचिका पर जाँच कर सकता है। जेलों में बन्दियों की स्थिति का अध्ययन कर सकता है; मानवाधिकार के क्षेत्र में शोध कर सकता है या शोध को प्रोत्साहन कर सकता है।

प्राप्त शिकायतों का स्वरूप: आयोग को प्रतिवर्ष हजारों शिकायतें मिलती हैं। इनमें से अधिकतर हिरासत में मृत्यु, हिरासत के दौरान बलात्कार, लोगों के गायब होने, पुलिस की ज्यादतियों, कार्यवाही न किये जाने, महिलाओं के प्रति दुर्व्यवहार आदि से सम्बन्धित होती हैं। आयोग को स्वयं मुकदमा सुनने का अधिकार नहीं है। यह सरकार या न्यायालय को अपनी जाँच के आधार पर मुकदमे चलाने की सिफारिश कर सकता है।

JAC Class 11 History Solutions Chapter 5 यायावर साम्राज्य

Jharkhand Board JAC Class 11 History Solutions Chapter 5 यायावर साम्राज्य Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 11 History Solutions Chapter 5 यायावर साम्राज्य

Jharkhand Board Class 11 History यायावर साम्राज्य In-text Questions and Answers

पृष्ठ 107

क्रियाकलाप 1 : यदि यह मान लें कि जुवैनी का बुखारा पर कब्जे का वृत्तान्त सही है, कल्पना करें कि आप बुखारा और खुरासान के निवासी हैं और ऐसा भाषण सुन रहे हैं, तो उस भाषण का आपके ऊपर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
परवर्ती तेरहवीं शताब्दी के ईरान के मंगोल शासकों के एक फारसी इतिवृत्तकार जुवैनी ने 1220 ई. में मंगोलों द्वारा बुखारा की विजय का वृत्तान्त किया है। जुवैनी ने लिखा है कि बुखारा की विजय के बाद चंगेजखान ‘उत्सव मैदान’ में गया जहाँ पर नगर के धनी व्यापारी एकत्रित थे। उसने उन्हें सम्बोधित कर कहा, ” अरे लोगो ! तुम्हें यह ज्ञात होना चाहिए कि तुम लोगों ने अनेक पाप किए हैं और तुममें से जो अधिक सम्पन्न लोग हैं, उन्होंने सबसे अधिक पाप किए हैं।

यदि तुम मुझसे पूछो कि इसका मेरे पास क्या प्रमाण है, तो इसके लिए मैं कहूँगा कि मैं ईश्वर का दण्ड हूँ। यदि तुमने पाप न किए होते, तो ईश्वर ने मुझे दण्ड हेतु तुम्हारे पास न भेजा होता।” अब कोई व्यक्ति, बुखारा पर अधिकार होने के बाद खुरासान भाग गया था। उससे नगर के भाग्य के बारे में पूछने पर उसने उत्तर दिया, “वे (नगर) आए, दीवारों को ध्वस्त कर दिया, जला दिया, लोगों का वध किया, लूटा और चल दिए।”

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उपर्युक्त भाषण का मेरे ऊपर यह प्रभाव पड़ता कि मंगोल नेता चंगेजखान को ईश्वर से विश्व पर शासन करने का आदेश प्राप्त था। मुझे यह शिक्षा ग्रहण करने को मिलती कि गरीबों का शोषण कर अनुचित तरीकों से धन-सम्पत्ति एकत्रित नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने वालों को ईश्वर से दण्ड मिलता है। चंगेजखान के भाषण से यह ज्ञात होता है कि उसे ईश्वर ने ही बुखारा पर विजय प्राप्त करने और लोगों को दण्ड देने हेतु भेजा था। चंगेज खाँ यह प्रदर्शित करना चाहता था कि उसने ईश्वरीय आज्ञा से बुखारा पर अधिकार किया था और इसलिए बुखारावासियों को उसकी आधीनता स्वीकार कर लेनी चाहिए।

पृष्ठ 118

क्रियाकलाप 3 : पशुचारकों और किसानों के स्वार्थों में संघर्ष का क्या कारण था ? क्या चंगेजखान खानाबदोश कमाण्डरों को देने वाले भाषण में इस तरह की भावनाओं को शामिल करता?
उत्तर:
अधिकांश मंगोल पशुचारक थे तथा कुछ शिकारी-संग्राहक थे। मंगोलों ने कृषि – कार्य को नहीं अपनाया। वे अपने पशुधन के साथ शीतकालीन निवास स्थल से ग्रीष्मकालीन चारण भूमि की ओर चले जाते थे। प्राकृतिक आपदाओं जैसे शिकार – सामग्रियों के समाप्त होने अथवा वर्षा न होने पर घास के मैदानों के सूख जाने पर उन्हें चरागाहों की खोज में भटकना पड़ता था। वे अपने पशुओं को चरागाहों में छोड़ देते थे जिससे कृषकों की फसलों को नुकसान पहुँचता था। वे चाहते थे कि कृषि भूमि को चरागाहों में परिवर्तित कर दिया जाए।

दूसरी ओर कृषक चाहते थे कि पशुचारक चरागाहों दूर रहें और उनकी फसलों को नुकसान न पहुँचाएँ। इस कारण पशुचारकों तथा कृषकों के स्वार्थों में संघर्ष की स्थिति बनी रहती थी। दूसरी ओर चंगेजखान के सबसे छोटे पुत्र तोलुई के वंशज गजन खान ने खानाबदोश कमाण्डरों को सम्बोधित करते हुए कहा था कि किसानों को लूटा न जाए। उन्हें सताने की बजाय उनकी रक्षा की जाए। यदि चंगेजखान भी 13वीं शताब्दी में सत्तारूढ़ रहता, तो सम्भवतः वह भी खानाबदोश कमाण्डरों को देने वाले भाषण में इसी प्रकार की भावनाओं का समावेश करता।

पृष्ठ 120

क्रियाकलाप 4: क्या इन चार शताब्दियों में यास का अर्थ बदल गया, जिसने चंगेजखान को अब्दुल्लाह खान से अलग कर दिया? हफीज-ए-तानीश के अनुसार अब्दुल्लाह खान ने मुसलमान उत्सव मैदान में किए गए धार्मिक अनुपालन के सम्बन्ध में चंगेजखान के ‘यास’ का उल्लेख क्यों किया?
उत्तर:
1221 ई. में बुखारा की विजय के पश्चात् चंगेजखाँ वहाँ के उत्सव मैदान में गया जहाँ पर बुखारा नगर के धनी व्यापारी एकत्रित थे। उसने धनी व्यापारियों की कटु निन्दा की। उसने उन्हें पापी कहा और चेतावनी दी कि इन पापों के प्रायश्चितस्वरूप उनको अपना छिपा हुआ धन उसे देना पड़ेगा। ‘यास’ का मतलब था-चंगेजखान की विधि – संहिता। यास मंगोल जनजाति की ही प्रथागत परम्पराओं का एक संकलन था। यास मंगोलों को समान आस्था रखने वालों के आधार पर संयुक्त करने में सफल हुआ।

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यास ने मंगोलों को अपनी कबीलाई पहचान बनाए रखने और अपने नियमों को उन पराजित लोगों पर लागू करने का आत्मविश्वास दिया। सोलहवीं शताब्दी के अन्त में चंगेजखान के सबसे बड़े पुत्र जोची का एक दूर का वंशज अब्दुल्लाह खान बुखारा के उसी उत्सव मैदान में गया। चंगेजखान के विपरीत अब्दुल्लाह खान वहाँ छुट्टी की नमाज अदा करने गया। अब्दुल्लाह खान के इतिहासकार हफीज – ए – तानीश ने अपने स्वामी की इस मुस्लिम धर्मपरायणता का विवरण अपने इतिवृत्त में दिया और साथ में यह आश्चर्यचकित करने वाली टिप्पणी भी की : ” कि यह चंगेजखान के ‘यास’ के अनुसार था। ”

इस प्रकार सोलहवीं शताब्दी के अन्त में अब्दुल्लाह खान अपनी मुस्लिम धर्म-परायणता का प्रदर्शन करने के लिए बुखारा के उत्सव मैदान में गया था, जबकि चंगेजखान वहाँ के धनी व्यापारियों को ईश्वर के आदेश से दण्ड देने गया था। इस प्रकार यास के अर्थ में परिवर्तन आ गया था। परन्तु इतिहासकार हफीज-ए-तानीश के अनुसार ” यह चंगेजखान के यास के अनुसार था।” इससे पता चलता है कि परवर्ती मंगोलों ने ग्रास को चंगेज खान की विधि – संहिता के रूप में स्वीकार कर लिया था।

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लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मंगोलों के लिए व्यापार क्यों इतना महत्त्वपूर्ण था ?
उत्तर:
मंगोलों के निवास क्षेत्रों में कृषि उत्पादन करना अत्यन्त कठिन था। चारण क्षेत्र में वर्ष की सीमित अवधियों ही कृषि करना सम्भव था। अतः मंगोलों ने कृषि कार्य को नहीं अपनाया। इसलिए जीविकोपार्जन के लिए मंगोल व्यापार की ओर आकर्षित हुए। स्टेपी क्षेत्र में संसाधनों के अभाव के कारण मंगोलों और मध्य एशिया के यायावरों को व्यापार और वस्तुओं के विनिमय के लिए चीन जाना पड़ता था। यह व्यवस्था मंगोलों और चीनियों दोनों के लिए लाभदायक थी। मंगोल खेती से प्राप्त उत्पादों और लोहे के उपकरणों को चीन से लाते थे और घोड़े, फर और शिकार का विनिमय करते थे। जब मंगोल कबीलों के लोग साथ मिलकर व्यापार करते थे, तो वे चीनियों से व्यापार में अपेक्षाकृत अच्छी शर्तें रखते थे। इन परिस्थितियों के कारण मंगोलों के लिए व्यापार काफी महत्त्वपूर्ण था।

प्रश्न 2.
चंगेजखान ने यह क्यों अनुभव किया कि मंगोल कबीलों को नवीन सामाजिक और सैनिक इकाइयों में विभक्त करने की आवश्यकता है?
उत्तर:
मंगोलों और अन्य अनेक यायावर समाजों में प्रत्येक स्वस्थ वयस्क सदस्य हथियारबन्द होता था। आवश्यकता होने पर इन्हीं लोगों से सशस्त्र सेना का गठन होता था । विभिन्न लोगों के विरुद्ध किये गए अभियानों में चंगेज खाँ की सेना में नये सदस्य सम्मिलित हुए। इससे उसकी सेना, जो कि अपेक्षाकृत रूप से छोटी और अविभेदित समूह थी, वह एक विशाल विषमजातीय संगठन में परिवर्तित हो गई। स्टेपी क्षेत्र में कई मंगोल कबीले रहते थे। चंगेजखान मंगोलों के उन विभिन्न जनजातीय समूहों की पहचान को मिटाना चाहता था। जो उसके महासंघ के सदस्य थे। उसकी सेना स्टेपी. क्षेत्रों की प्राचीन दशमलव पद्धति के अनुसार गठित की गई थी।

यह सेना दस, सौ, हजार तथा दस हजार सैनिकों की इकाई में विभाजित थी। पुरानी पद्धति में कुल, कबीले और सैनिक दशमलव इकाइयाँ एक-साथ अस्तित्व में थीं। विभिन्न जनजातीय समूहों के सदस्यों की पहचान मिटाने के लिए ही चंगेजखान ने इस प्रथा को समाप्त कर दिया। उसने प्राचीन जनजातीय समूहों को विभाजित कर उनके सदस्यों को नवीन सैनिक इकाइयों में बाँट दिया।

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जो सैनिक अपने अधिकारी से अनुमति लिए बिना बाहर जाता था, उसे कठोर दण्ड दिया जाता था। सैनिकों की सबसे बड़ी इकाई दस हजार सैनिकों (तुमन) की थी जिसमें अनेक कबीलों और कुलों के लोग सम्मिलित थे। चंगेजखान ने स्टेपी क्षेत्र की पुरानी सामाजिक व्यवस्था को बदल दिया तथा विभिन्न वंशों और कुलों को एकीकृत कर इन सभी को एक नवीन पहचान प्रदान की। इसका कारण यह था कि उसे यह संदेह था कि कहीं ये सभी लोग संगठित होकर उसकी सत्ता पलटकर या विद्रोह कर अपने-अपने अलग साम्राज्य स्थापित न कर लें।

प्रश्न 3.
यास के बारे में परवर्ती मंगोलों का चिन्तन किस तरह चंगेजखान की स्मृति के साथ जुड़े हुए उनके तनावपूर्ण सम्बन्धों को उजागर करता है ?
उत्तर:
चंगेज खान के पश्चात् परवर्ती मंगोलों ने यास को स्वीकार कर लिया था, किन्तु उनके मध्य चंगेजखान की स्मृति के साथ उनके मन में भारी तनाव था जिसने मंगोलों में शंकालु सम्बन्ध उत्पन्न हुए।

यथा –
यास मंगोल जनजाति की प्रथागत परम्पराओं का एक संकलन था जिसे चंगेज खां के वंशजों द्वारा चंगेजखां की विधिसंहिता कहा गया। ऐसा चंगेज खां के वंशजों ने चंगेज खां का मान-सम्मान बढ़ाने के लिए किया था, लेकिन वे यह बात भलीभांति जानते थे कि अपने यास (हुक्मनामे) में बुखारा के लोगों की भर्त्सना की थी तथा उन्हें पापी कहकर चेतावनी दी थी कि अपने पापों के प्रायश्चित स्वरूप उनको अपना छिपा धन उन्हें देना चाहिए। इस हुक्मनामे ने चंगेज खां के उत्तराधिकारियों के लिए काफी कठिनाई पैदा कर दी थी।

बाद के मंगोल न तो चंगेज खां के कठोर नियमों को अपनी प्रजा पर लागू कर सकते थे और न ही वे प्रजा पर लागू कर सकते थे और न ही वे पूर्वज चंगेज खां की तरह उनकी भर्त्सना कर सकते थे। इस बात ने बाद के मंगोलों के लिए शंकालु और तनावपूर्ण सम्बन्ध उत्पन्न किए। इसका कारण यह था कि अब स्वयं वे काफी सभ्य हो चुके थे और अनेक सभ्य जातियों के लोगों पर उनका राज्य स्थापित हो चुका था। उन्हें अब स्थानबद्ध समाज में अपनी धाक जमानी थी, लेकिन वे अब वीरता की वह तस्वीर पेश नहीं कर सकते थे जैसाकि चंगेज खान ने की थी।

प्रश्न 4.
यदि इतिहास नगरों में रहने वाले साहित्यकारों के लिखित विवरणों पर निर्भर करता है, तो यायावर समाजों के बारे में हमेशा प्रतिकूल विचार ही रखे जायेंगे। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? क्या आप इसका कारण धनायेंगे कि फारसी इतिवृत्तकारों ने मंगोल अभियानों में मारे गए लोगों की इतनी बढ़ा-चढ़ाकर संख्या क्यों बताई है ?
उत्तर:
हाँ, मैं इस कथन से सहमत हूँ कि यदि इतिहास नगरों में रहने वाले साहित्यकारों के लिखित विवरणों पर निर्भर करता है, तो उन साहित्यकारों के लिखित विवरणों में यायावर समाजों के बारे में सदैव ही प्रतिकूल विचार ही रखे जायेंगे। इन साहित्यकारों ने यायावर समाजों के बारे में जो विवरण प्रस्तुत किए हैं, वे पक्षपातपूर्ण हैं। इन लेखकों की यायावरों के जीवन-सम्बन्धी सूचनाएँ अज्ञात और पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हैं। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि यायावरी लोगों ने अपने बारे में बहुत कम साहित्य की रचना की है।

यायावरी लोगों को लुटेरा, क्रूर और निर्दयी व्यक्तियों के रूप में चित्रित किया गया है। जो नगर यायावरी लोगों का प्रतिरोध करते थे, उनका विध्वंस कर दिया गया। ये लोग ऐसे नगरों पर धावा बोलकर उन्हें खूब लूटते थे तथा हजारों लोगों की क्रूरतापूर्वक हत्या कर देते थे। इसलिए शहरों के लोग उनसे घृणा करते थे। नगरों में रहने वाले साहित्यकार यायावर समाज के बारे में ऐसा चित्र प्रस्तुत करते हैं कि यायावर लोग क्रूर, बर्बर, हत्यारे तथा नगरों को ध्वस्त करने वाले थे।

दूसरी ओर फारसी इतिहासकार भी इस्लामी दृष्टिकोण से प्रभावित थे। वे भी मंगोलों से घृणा करते थे क्योंकि उन्होंने अनेक इस्लामी राज्यों को रौंद डाला था । इसलिए उन्होंने मंगोल – अभियानों में मारे गए लोगों की इतनी बढ़ा- चढ़ा कर संख्या बताई है। उदाहरण के लिए, एक प्रत्यक्षदर्शी गवाह के अनुसार बुखारा के दुर्ग की रक्षा के लिए 400 सैनिक नियुक्त थे, परन्तु इस विवरण के विरुद्ध एक इल- खानी इतिहासवृत्त में यह विवरण दिया गया है कि बुखारा के दुर्ग पर हुए आक्रमण में 30,000 सैनिक मारे गए।

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इलखानों के फारसी इतिवृत्तकार जुवैनी के अनुसार मर्व में 13,00,000 लोगों का वध किया गया था। उसने इस संख्या का अनुमान इस प्रकार लगाया कि 13 दिनों तक एक लाख शव प्रतिदिन गिने जाते थे। दूसरी ओर इल-खानी के विवरणों में चंगेजखाँ की प्रशंसा की जाती थी परन्तु उनमें यह कथन भी दिया हुआ होता था कि समय बदल गया है और अब पहले की भाँति रक्तपात समाप्त हो चुका है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 5.
मंगोल और बेदोइन समाज की यायावरी विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए यह बताइए कि आपके विचार में किस तरह उनके ऐतिहासिक अनुभव एक-दूसरे से भिन्न थे? इन भिन्नताओं से जुड़े कारणों को समझाने के लिए आप क्या स्पष्टीकरण देंगे?
उत्तर:
(1) बेदोइन समाज –
(i) बहुत से अरब कबीले खानाबदोश होते थे, जो खजूर आदि खाद्य तथा अपने ऊँटों के लिए चारे की तलाश में रेगिस्तान में सूखे क्षेत्रों से हरे-भरे क्षेत्रों अर्थात् नखलिस्तानों की ओर जाते रहते थे।

(ii) कुछ शहरों में बस गए थे और व्यापार अथवा खेती का काम करने लगे थे। खलीफा के सैनिक जिनमें अधिकतर बेदोइन थे, रेगिस्तान के किनारों पर बसे शहरों जैसे कुफा और बसरा में शिविरों में रहते थे, ताकि वे अपने प्राकृतिक आवास स्थलों के निकट और खलीफा की कमान के अन्तर्गत बने रहें।

(iii) प्रत्येक कबीले को अपने स्वयं के देवी- देवता होते थे जिनकी बुतों के रूप में मस्जिदों में पूजा की जाती थी। तीर्थ यात्रा और व्यापार ने खानाबदोशों को एक-दूसरे के साथ वार्तालाप करने और अपने विश्वासों तथा रीति-रिवाजों को आपस में बाँटने का अवसर दिया।

(iv) बेदाइन क्षेत्रों में बसे लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि हुआ करता था। जमीन के मालिक बड़े और छोटे किसान होते थे। जमीन कृषि इकाइयों में बंटी होती थी। जो क्षेत्र स्थिर कृषि व्यवस्था तक पहुँच गए थे, वहां जमीन गाँव की साँझी सम्पत्ति थी।

(2) मंगोल समाज –
(i) मंगोल स्टेपी क्षेत्र के यायावर कबीले थे।

(ii) कुछ मंगोल पशुपालक थे और कुछ शिकारी-संग्राहक। पशुपालक समाज – पशुपालक घोड़ों, भेड़ों, बकरी और ऊंटों को पालते थे। उनका यायावरीकरण मध्य एशिया की चारण भूमि (स्टेपीज) में हुआ। स्टेपी क्षेत्र का परिदृश्य अत्यन्त मनोरम था। पशुचारण के लिए यहाँ पर अनेक हरी घास के मैदान और प्रचुर मात्रा में शिकार उपलब्ध हो जाते थे।
शिकारी संग्राहक लोग – शिकारी संग्राहक लोग पशुपालक कबीलों के आवास क्षेत्र के उत्तर में साइबेरियाई वनों में रहते थे।

(iii) पशुपालक लोगों की तुलना में ये अधिक गरीब होते थे और ग्रीष्मकाल में पकड़े गए जानवरों की खाल के व्यापार से अपना जीविकोपार्जन करते थे। मंगोलों ने कृषि कार्य को नहीं अपनाया। पशुपालक और शिकारी संग्राहकों की अर्थव्यवस्था घनी आबादी वाले क्षेत्रों का भरण-पोषण करने में असमर्थ थी। परिणामस्वरूप इन क्षेत्रों में नगर विकसित नहीं हो सके।

(iv) मंगोल तम्बुओं और जरों में निवास करते थे और अपने पशुधन के साथ शीतकालीन निवास-स्थल से ग्रीष्मकालीन चारण भूमि की ओर चले जाते थे।

(v) मंगोलों का समाज अनेक पितृपक्षीय वंशों में विभाजित था। धनी परिवार विशाल होते थे और उनके पास अधिक पशु तथा अधिक भूमि होती थी।

(vi) मंगोल वीर और साहसी योद्धा होते थे। वे कुशल घुड़सवार और तीरन्दाज होते थे । वे बड़े क्रूर, निर्दयी और खूंखार लोग थे। वे अपने शत्रुओं पर भीषण अत्याचार करते थे।

(vii) समय-समय पर आने वाली प्राकृतिक आपदाओं के अवसरों पर मंगोल यायावरों को चरागाहों की खोज में भटकना पड़ता था। पशुधन को प्राप्त करने के लिए वे लूटपाट भी करते

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(viii) स्टेपी क्षेत्र में संसाधनों के अभाव में मंगोलों को व्यापार और वस्तु-विनिमय के लिए चीन जाना पड़ता था। ये लोग खेती से प्राप्त उत्पादों और लोहे के उपकरणों को चीन से लाते थे और घोड़े, फर और शिकार का विनिमय करते थे।

कभी-कभी ये लोग व्यापारिक सम्बन्धों को नकार कर केवल लूटमार करने लगते थे। यायावर लोग लूटपाट कर संघर्ष – क्षेत्र से दूर भाग जाते थे जिससे उन्हें बहुत कम हानि होती थी। अपने सम्पूर्ण इतिहास में इन यायावरों ने चीन को बहुत हानि पहुँचाई। भिन्नता का कारण – मंगोलों को चंगेजखान तथा अन्य योग्य नेताओं का कुशल नेतृत्व मिलना, यायावरी क्षेत्रों की स्थिति तथा परिदृश्य तथा भौगोलिक परिस्थितियाँ आदि भिन्नता के प्रमुख कारण थे।

प्रश्न 6.
तेरहवीं शताब्दी के मध्य में मंगोलिया द्वारा निर्मित ‘पैक्स मंगोलिका’ का निम्नलिखित विवरण उसके चरित्र को किस तरह उजागर करता है ?
एक फ्रेन्सिसकन भिक्षु, रूब्रुक निवासी विलियम को फ्रांस के सम्राट लुई – IX ने राजदूत बनाकर महान खान मोंके के दरबार में भेजा। वह 1254 में मोंके की राजधानी कराकोरम पहुँचा और वहाँ वह लोरेन, फ्रांस की एक महिला पकेट के सम्पर्क में आया जिसे हंगरी से लाया गया था। यह महिला राजकुंमार की पत्नियों में से एक पत्नी की सेवा में नियुक्त थी जो नेस्टोरियन ईसाई थी।

वह दरबार में एक फारसी जौहरी ग्वीयोम बूशेर के सम्पर्क में आया जिसका भाई पेरिस के ‘ग्रेन्ड पोन्ट’ में रहता था। इस व्यक्ति को सर्वप्रथम रानी सोरगकतानी ने और उसके उपरान्त मोंके के छोटे भाई ने अपने पास नौकरी में रखा। विलियम ने यह देखा कि विशाल दरबारी उत्सवों में सर्वप्रथम नेस्टोरिन पुजारियों को उनके चिन्हों के साथ तथा इसके उपरान्त मुसलमान, बौद्ध और ताओ पुजारियों को महान खान को आशीर्वाद देने के लिए आमन्त्रित किया जाता था।
उत्तर:
उपर्युक्त विवरण से पता चलता है कि मंगोल शासक विभिन्न धर्मों, आस्थाओं से सम्बन्ध रखने वाले थे। वे ईसाई, बौद्ध, इस्लाम आदि धर्मों का सम्मान करते थे। वे विदेशियों तथा विभिन्न धर्मावलम्बियों को अपने दरबार में आश्रय प्रदान करते थे तथा उन्हें राजकीय पदों पर नियुक्त करते थे। मंगोल महिलाओं का भी सम्मान करते थे। ईसाई धर्मावलम्बी महिलाओं को भी राजमहलों में रानियों की सेवा में नियुक्त किया जाता था। इस प्रकार मंगोलों के शासन काल में विभिन्न धर्मावलम्बी शान्तिपूर्वक रहते थे और उनके साथ किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं किया जाता था।

इससे ज्ञात होता है कि मंगोलों का शासन बहु-जातीय, बहु-भाषी, बहु- धार्मिक था। उनके शासन काल में विदेशियों का भी आदर-सम्मान किया जाता था तथा उन्हें महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया जाता था। वे अपने शासन के लिए विभिन्न धर्मों के सन्तों से आशीर्वाद प्राप्त करते थे। इस विवरण से यह भी ज्ञात होता है कि मंगोल शासक चतुर कूटनीतिज्ञ थे तथा विभिन्न देशों से कूटनीतिक सम्बन्ध बनाए रखते थे। मंगोल शासक ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करते थे तथा उनके महलों में सभी प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध थीं। वे धार्मिक दृष्टिकोण से आस्तिकतावादी थे, लेकिन धार्मिक कट्टरवाद से काफी दूर थे।

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यायावर साम्राज्य JAC Class 11 History Notes

पाठ- सार

1. मंगोल – मंगोल विविध जन-समुदाय का एक निकाय था। ये लोग तातार, खितान, मंचू और तुर्की कबीलों से परस्पर सम्बद्ध थे। कुछ मंगोल पशु-पालक थे तथा कुछ शिकारी संग्राहक थे। उनका यायावरीकरण मध्य एशिया की चारण भूमि (स्टेपीज) में था। ये लोग तम्बुओं और जरों में रहते थे और अपने पशुधन के साथ शीतकालीन निवास- स्थान से ग्रीष्मकालीन चारण भूमि की ओर चले जाते थे।

2. समाज – मंगोलों का समाज अनेक पितृपक्षीय वंशों में विभाजित था। धनी परिवार विशाल होते थे। उनके पास अधिक संख्या में पशु और चारण भूमि होती थी। मंगोल पशुधन को प्राप्त करने के लिए लूटपाट भी करते थे। परिवारों के समूह परिसंघ बना लेते थे।

3. चीन से व्यापारिक सम्बन्ध – मंगोल खेती से प्राप्त उत्पादों और लोहे के उपकरणों को चीन से लाते थे तथा घोड़े, फर और स्टेपी में पकड़े गए शिकार का विनिमय करते थे। कभी-कभी मंगोल व्यापारिक सम्बन्धों को नकार कर केवल लूटपाट करने लगते थे। मंगोलों की लूटपाट से अपनी प्रजा की रक्षा के लिए चीनी शासकों को आठवीं शताब्दी से ही किलेबन्दी करनी पड़ी थी।

4. चंगेजखान का जीवन-वृत्त – चंगेजखान का जन्म 1162 ई. के आसपास आधुनिक मंगोलिया के उत्तरी भाग में ओनोन नदी के निकट हुआ था। उसका प्रारम्भिक नाम तेमुजिन था। 1206 में उसने अपने प्रतिद्वन्द्वियों को पराजित किया। मंगोल कबीले के सरदारों की एक सभा – कुरिलताई ने उसे ‘ चंगेजखान’, ‘सार्वभौम शासक’ की उपाधि दी और उसे मंगोलों का महानायक घोषित किया गया।

5. चंगेजखान की विजयें- चंगेजखान ने एक शक्तिशाली सेना का गठन किया। उसने चीन पर विजय प्राप्त की और 1215 में पेकिंग नगर को खूब लूटा। 1219 तथा 1221 ई. तक मंगोलों ने ओट्रार, बुखारा, समरकन्द, बल्ख, गुरगंज, मर्व, निशापुर और हेरात पर विजय प्राप्त की। निशापुर के घेरे के दौरान एक मंगोल राजकुमार की हत्या कर दी गई, तो निशापुर को तहस-नहस कर दिया गया। 1227 ई. में चंगेज खान की मृत्यु हो गई।

6. चंगेजखान के पश्चात् मंगोल – 1236 – 1242 तक मंगोलों ने रूस के स्टैपी क्षेत्र, बुलघार, कीव, पोलैण्ड तथा हंगरी में भारी सफलता प्राप्त की। 1255 से 1300 तक की अवधि में मंगोलों ने समस्त चीन, ईरान, इराक और सीरिया पर विजय प्राप्त की।

7. सैनिक संगठन – मंगोलों ने एक विशाल विषमजातीय सेना का गठन किया। यह सेना दशमलव पद्धति के अनुसार गठित की गई थी। सैनिकों की सबसे बड़ी इकाई लगभग दस हजार सैनिकों की थी जिसमें अनेक कबीलों तथा कुलों के लोग शामिल होते थे। नवीन सैनिक टुकड़ियाँ चंगेज खान के चार पुत्रों जोची, चघनाई, ओगोदेई और तोलो के अधीन थीं।

8. नवविजित प्रदेशों का शासन- चंगेजखान ने नव-विजित प्रदेशों पर शासन करने का उत्तरदायित्व अपने चार पुत्रों को सौंप दिया। इससे ‘उलुस’ का गठन हुआ।

9. हरकारा पद्धति – चंगेज खान ने एक चुस्त हरकारा पद्धति अपना रखी थी जिससे राज्य के दूरदराज के स्थानों में परस्पर सम्पर्क रखा जाता था। अनेक स्थानों पर सैनिक चौकियाँ स्थापित थीं जिनमें बलवान घोड़े तथा घुड़सवार सन्देशवाहक नियुक्त रहते थे। चंगेजखान की मृत्यु के बाद. इस हरकारा पद्धति में और भी सुधार लाया गया।

10. व्यापार – मंगोलों की देखरेख में रेशम मार्ग पर व्यापार अपनी चरम अवस्था पर पहुँच गया था परन्तु पहले की भाँति अब व्यापारिक मार्ग चीन में ही समाप्त नहीं होते थे। सुरक्षित यात्रा के लिए यात्रियों को पास दिये जाते थे। इस सुविधा के लिए व्यापारी ‘बाज’ नामक कर अदा करते थे।

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11. नागरिक प्रशासक – मंगोलों ने विजित राज्यों से नागरिक प्रशासकों को अपने यहाँ भर्ती कर लिया था। इनको कभी-कभी एक स्थान से दूसरे स्थान पर भी भेज दिया जाता था। इनमें से कुछ प्रशासक काफी प्रभावशाली होते थे तथा अपने प्रभाव का उपयोग मंगोल खानों पर भी कर पाते थे।

12. यास-यास का सम्बन्ध प्रशासनिक विनियमों से है, जैसे-आखेट, सैन्य और डाक प्रणाली का संगठन। यास वह नियम-संहिता थी जिसे चंगेजखान ने लागू की थी। यास मंगोलों को समान आस्था रखने वालों के आधार पर संयुक्त करने में सफल हुआ।

13. चंगेजखान और मंगोलों का विश्व इतिहास में स्थान – मंगोलों के लिए चंगेजखान अब तक का सबसे महान शासक था। उसने मंगोलों को संगठित किया। उसने मंगोलों को शक्तिशाली और समृद्ध बनाया। उसने एक विशाल पारमहाद्वीपीय साम्राज्य बनाया और व्यापार के मार्गों तथा बाजारों को पुनर्स्थापित किया। मंगोलों ने सब जातियों और धर्मों के लोगों को अपने यहाँ प्रशासकों और सशस्त्र सैन्य दल के रूप में भर्ती किया। उनका शासन बहु-जातीय, बहु-भाषी, बहु- धार्मिक था जिसको अपने बहुविध संविधान का कोई भय नहीं था । यह उस समय के लिए एक असामान्य बात थी।

14. एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में मंगोलिया – आज, दशकों के रूसी नियन्त्रण के बाद मंगोलिया एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बना रहा है। उसने चंगेजखान को एक महान राष्ट्र नायक के रूप में लिया है जिसका सार्वजनिक रूप से सम्मान किया जाता है और जिसकी उपलब्धियों का वर्णन बड़े गर्व के साथ किया जाता है। मंगोलिया के इतिहास में चंगेजखान मंगोलों के लिए एक आराध्य व्यक्ति के रूप में उपस्थित हुआ है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन 

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

बहुचयनात्मक प्रश्न

1. विश्व की साझी विरासत में क्या शामिल नहीं है।
(अ) वायुमंडल
(ब) सड़क मार्ग
(स) समुद्री सतह
(द) बाहरी अंतरिक्ष
उत्तर:
(ब) सड़क मार्ग

2. क्योटो प्रोटोकॉल सम्मेलन जिस देश में हुआ वह है।
(अ) जापान
(ब) सिंगापुर
(स) नेपाल
(द) बाली
उत्तर:
(स) नेपाल

3. रियो पृथ्वी सम्मेलन में कितने देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया-
(अ) 172
(ब) 170.
(स) 175
(द) 180
उत्तर:
(ब) 170.

4. पर्यावरण के प्रति बढ़ते सरोकारों का कारण है
(अ) पर्यावरण की सुरक्षा मूलवासी लोगों और प्राकृतिक पर्यावासों के लिये जारी है।
(ब) विकसित देश प्रकृति की रक्षा को लेकर चिंतित हैं।
(स) मानवीय गतिविधियों से पर्यावरण को व्यापक नुकसान हुआ है और यह नुकसान खतरे की हद तक पहुँच गया है।
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) मानवीय गतिविधियों से पर्यावरण को व्यापक नुकसान हुआ है और यह नुकसान खतरे की हद तक पहुँच गया है।

5. पृथ्वी सम्मेलन कब हुआ
(अ) 1992 में
(ब) 1995 में
(स) 1997 में
(द) 2000 में
उत्तर:
(अ) 1992 में

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6. 1992 में संयुक्त राष्ट्रसंघ का पर्यावरण और विकास सम्मेलन कहाँ हुआ था?
(अ) ब्रिटेन
(ब) चीन
(स) ब्राजील
(द) भारत
उत्तर:
(स) ब्राजील

7. धरती के वायुमंडल में निम्न में से जिस गैस की मात्रा में लगातार कमी हो रही है, वह है
(अ) ओजोन गै
(ब) कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैसस
(स) मीथेन गैस
(द) नाइट्रस ऑक्साइड गैस
उत्तर:
(अ) ओजोन गै

8. भारत ने क्योटो प्रोटोकॉल ( 1997) पर हस्ताक्षर किये और इसका अनुमोदन किया-
(अ) सन् 1997 में
(ब) सन् 1998 में
(स) सन् 2002 में
(द) सन् 2001 में
उत्तर:
(स) सन् 2002 में

9. स्थलीय हिम का 90 प्रतिशत हिस्सा और धरती पर मौजूद स्वच्छ जल का 70 प्रतिशत हिस्सा कहाँ मौजूद है?
(अ) लातिनी अमरीका
(ब) अंटार्कटिक
(स) अफ्रीका
(द) फिलीपीन्स
उत्तर:
(ब) अंटार्कटिक

10. ‘लिमिट्स टू ग्रोथ’ नामक पुस्तक किसने प्रकाशित की?
(अ) क्लब ऑवरोम
(स) अवर कॉमन फ्यूचर
(ब) संयुक्त राष्ट्रसंघ
(द) अजेण्डा – 21
उत्तर:
(अ) क्लब ऑवरोम

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. ………………………. के अन्तर्गत औद्योगिक देशों के लिए ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन को कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया।
उत्तर:
क्योटो प्रोटोकॉल

2. भारत ने 2 अक्टूबर, 2016 को ………………………. जलवायु समझौते का अनुमोदन किया।
उत्तर:
पेरिस

3. भारत ने पृथ्वी सम्मेलन के समझौतों के क्रियान्वयन …………………….. का एक पुनरावलोकन
उत्तर:
1997

4. फिलीपीन्स के कई समूहों और संगठनों ने मिलकर एक ऑस्ट्रेलियाई बहुराष्ट्रीय कंपनी ………………….. अभियान चलाया।
उत्तर:
वेस्टर्न माइनिंग कारपोरेशन

5. के दशक के शुरुआती और मध्यवर्ती वर्षों में विश्व का पहला बाँध – विरोधी आंदोलन दक्षिणी गोलार्द्ध में चला।
उत्तर:
1980

6. चिले में …………………. नामक मूलवासी रहते हैं।
उत्तर:
मापुशे

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पर्यावरण सुरक्षा संबंधी भूमंडलीय सम्मेलन कब हुआ?
उत्तर:
पर्यावरण सुरक्षा संबंधी भूमंडलीय सम्मेलन सन् 1975 में हुआ।

प्रश्न 2.
पृथ्वी सम्मेलन जिस शहर में हुआ उसका नाम लिखिये।
अथवा
पृथ्वी सम्मेलन कहाँ हुआ था?
अथवा
पृथ्वी सम्मेलन क्या है तथा यह कब हुआ?
उत्तर:
पृथ्वी सम्मेलन 1992 में रियो डी जेनेरियो (ब्राजील) में हुआ । यह संयुक्त राष्ट्र संघ का पर्यावरण की सुरक्षा और विकास से संबंधित विश्व सम्मेलन है।

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प्रश्न 3.
पृथ्वी सम्मेलन की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि क्या रही थी?
उत्तर:
1992 के पृथ्वी सम्मेलन ने पर्यावरण विषय को विश्व राजनीति के प्रमुख मुद्दों में शामिल कर दिया।

प्रश्न 4.
अराल के आसपास बसे हजारों लोगों को घर क्यों छोड़ना पड़ा?
उत्तर:
अराल के आसपास बसे हजारों लोगों को घर छोड़ना पड़ा क्योंकि पानी के विषाक्त होने से मत्स्य उद्योग नष्ट हो गया था।

प्रश्न 5.
1970 के दशक में अफ्रीका की सबसे बड़ी विपदा कौन-सी थी?
उत्तर:
अनावृष्टि

प्रश्न 6.
पर्यावरण प्रदूषण का कोई एक कारण बताएँ।
उत्तर:
पर्यावरण प्रदूषण का महत्त्वपूर्ण कारण जनसंख्या वृद्धि है।

प्रश्न 7.
पर्यावरण संरक्षण का कोई एक उपाय लिखें।
उत्तर:
पर्यावरण संरक्षण के लिये जनसंख्या को नियंत्रित करना आवश्यक है।

प्रश्न 8.
क्योटो प्रोटोकोल सम्मेलन कब और किस देश में हुआ?
उत्तर:
क्योटो प्रोटोकोल सम्मेलन 1997 में जापान में हुआ।

प्रश्न 9.
भारत ने ऊर्जा संरक्षण अधिनियम कब पास किया?
उत्तर:
भारत ने 2001 में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम पास किया।

प्रश्न 10.
साझी सम्पदा किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिन संसाधनों पर एक व्यक्ति की बजाय पूरे समुदाय का अधिकार हो उसे साझी सम्पदा कहते हैं।

प्रश्न 11.
‘वैश्वी साझी सम्पदा’ से क्या तात्पर्य है?
अथवा
विश्व की साझी विरासत से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘वैश्वी साझी संपदा’ किसी संप्रभु राज्य का हिस्सा नहीं होता और उस पर किसी के राज्य का नियंत्रण नहीं होता जैसे धरती का वायुमण्डल, समुद्र सतह आदि।

प्रश्न 12.
‘अवर कॉमन फ्यूचर’ के रिपोर्ट में क्या संकेत दिया गया था?
उत्तर:
‘अवर कॉमन फ्यूचर’ के रिपोर्ट में यह संकेत दिया गया था कि आर्थिक विकास के तौर-तरीके आगे चलकर टिकाऊ साबित नहीं होंगे।

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प्रश्न 13.
वैश्वी साझी सम्पदा में क्या सम्मिलित किया जाता है?
उत्तर:
धरती का वायुमण्डल, अंटार्कटिका, समुद्र सतह और बाहरी अंतरिक्ष को ‘विश्व की साझी विरासत’ माना जाता है।

प्रश्न 14.
संयुक्त राष्ट्र संघ के पर्यावरण एवं विकास के मुद्दे पर केन्द्रित ‘पृथ्वी सम्मेलन’ में किन्होंने भाग लिया था?
अथवा
पृथ्वी सम्मेलन में कितने देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया?
उत्तर:
पृथ्वी सम्मेलन में 170 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

प्रश्न 15.
भारत ने क्योटो प्रोटोकोल पर कब हस्ताक्षर किये?
उत्तर:
भारत ने क्योटो प्रोटोकोल पर अगस्त, 2002 में हस्ताक्षर किये।

प्रश्न 16.
विश्व जलवायु के संदर्भ में अण्टार्कटिक महाद्वीप की क्या उपयोगिता है?
उत्तर:
विश्व जलवायु का संतुलन करना।

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प्रश्न 17.
‘वैश्विक सम्पदा’ की सुरक्षा के लिये किये गये किन्हीं दो समझौतों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. अंटार्कटिका (1959)
  2. मांट्रियल न्यायाचार (प्रोटोकोल 1987 )।

प्रश्न 18.
पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित सम्मेलन कब और कहाँ हुआ?
उत्तर:
पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित सम्मेलन बाली (इन्डोनेशिया) में दिसम्बर,

प्रश्न 19.
पर्यावरण का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्त:
पर्यावरण से तात्पर्य उन सभी प्रभावों व परिस्थितियों के समूह से है जो मनुष्य को चारों ओर से घेरे हुए हैं। जिसके परिणामस्वरूप जीवन संभव है।

प्रश्न 20.
वैश्विक तापवृद्धि करने वाली गैसों के नाम लिखिए।
उत्तर:
कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और हाइड्रो-फ्लोरो कार्बन।

प्रश्न 21.
1950 और 1960 के दशक में किन देशों के बीच स्वच्छ जल-संसाधनों को हथियाने के लिए संघर्ष
उत्तर:
इजरायल, सीरिया और जार्डन।

प्रश्न 22.
ऐसे दो देशों के नाम बताओ जिनको क्योटो प्रोटोकॉल की शर्तों से अलग रखा गया।
उत्तर:
भारत और चीन।

प्रश्न 23.
मूलवासी का अर्थ बताइये।
उत्तर:
मूलवासी ऐसे लोगों के वंशज हैं जो किसी देश में बहुत दिनों से रहते चले आ रहे हैं।

प्रश्न 24.
फिलीपिन्स के कोरडिलेरा क्षेत्र में कितने लाख मूलवासी लोग रहते हैं?
उत्तर:
20 लाख मूलवासी।

प्रश्न 25.
प्राकृतिक संसाधनों को कितने और कौन-कौनसे वर्गों में रखा जा सकता है?
उत्तर:
प्राकृतिक संसाधनों को तीन वर्गों में रखा जा सकता है।

  1. क्षय संसाधन
  2. अक्षय संसाधन तथा
  3. चक्रीय संसाधन।

प्रश्न 26.
‘वर्ल्ड काउंसिल ऑफ इंडिजिनस पीपल’ का गठन कब हुआ?
उत्तर:
सन् 1975 में ‘वर्ल्ड काउंसिल ऑफ इंडिजिनस पीपल’ का गठन हुआ।

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प्रश्न 27.
रियो- सम्मेलन में किनके संबंध में नियमाचार निर्धारित हुए?
उत्तर:
जलवायु परिवर्तन, जैव-विविधता और वानिकी

प्रश्न 28.
‘वैश्विक संपदा’ या ‘मानवता की साझी विरासत’ के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी का वायुमंडल, अंटार्कटिका, समुद्री सतह और बाहरी अंतरिक्ष।

प्रश्न 29.
पर्यावरण संरक्षण के कोई दो उपाय बताएँ।
उत्तर:

  1. पर्यावरण संरक्षण के लिये जनसंख्या को नियंत्रित करना आवश्यक है।
  2. पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिये तथा देश के संतुलित विकास के लिए आवश्यक है कि वनों की रक्षा की जाये।

प्रश्न 30.
‘साझी विरासत’ की सुरक्षा के दो उपाय बताएँ।
उत्तर:

  1. विश्व की साझी विरासतों का सीमित प्रयोग करना चाहि ।
  2. विश्व की साझी विरासतों के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करनी चाहिये।

प्रश्न 31.
किन देशों ने अंटार्कटिक क्षेत्र पर अपने संप्रभु अधिकार का वैधानिक दावा किया?
उत्तर:
ब्रिटेन, अर्जेण्टीना, चिले, नार्वे, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड

प्रश्न 32.
‘वैश्विक संपदा’ की सुरक्षा हेतु कौनसे महत्त्वपूर्ण समझौते हुए?
उत्तर:
अंटार्कटिका संधि (1959), मांट्रियल न्यायाचार (प्रोटोकॉल 1987) और अंटार्कटिका पर्यावरणीय न्यायाचार (1991)

प्रश्न 33.
टिकाऊ विकास क्या ह ?
उत्तर:
टिकाऊ विकास से आशय है कि प्राकृतिक संसाधनों का ऐसा प्रयोग करना कि वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताएँ पूरी हो और भविष्य के लिए भी बची रहे।

प्रश्न 34.
साझी संपदा से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
साझी संपदा का आशय है ऐसी संपदा जिस पर किसी समूह के प्रत्येक सदस्य का स्वामित्व हो।

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प्रश्न 35.
भारत, चीन और अन्य विकासशील देशों को क्योटों प्रोटोकॉल की बाध्यताओं से छूट क्यों दी गई?
उत्तर:
क्योंकि औद्योगीकरण के दौर में ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन के मामले में इन देशों का खास योगदान नहीं था।

प्रश्न 36.
विश्व में सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश कौन-सा है?
उत्तर:
सऊदी अरब।

प्रश्न 37.
इराक के तेल भंडारों के बारे में क्या संभावना है?
उत्तर:
इराक के तेल भंडारों के बारे में यह संभावना है कि इराक का तेल भंडार 112 अरब बैरल से ज्यादा

प्रश्न 38.
विश्व – राजनीति के विद्वानों ने ‘जलयुद्ध’ शब्द क्यों गढ़ा है?
उत्तर:
पानी जैसे जीवनदायी संसाधन को लेकर भविष्य में होने वाले हिंसक संघर्ष को इंगित करने के लिए विश्व – राजनीति के विद्वानों ने ‘जलयुद्ध’ शब्द गढ़ा है।

प्रश्न 39.
1950 और 1960 के दशक में इजरायल, सीरिया और जार्डन के बीच संघर्ष का क्या कारण था?
उत्तर:
इनमें से प्रत्येक देश ने जॉर्डन और यारमुक नदी से पानी का बहाव मोड़ने की कोशिश की थी।

प्रश्न 40.
तुर्की, सीरिया और इराक के बीच किस नदी पर बाँध बनाने को लेकर एक-दूसरे से ठनी है?
उत्तर:
फरात।

प्रश्न 41.
ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड समेत ओसियाना क्षेत्र में किन वंश के मूलवासी रहते हैं?
उत्तर:
पॉलिनेशिया, मैलनेशिया और माइक्रोनेशिया।

प्रश्न 42.
भारत में ‘मूलवासी’ के लिए किन शब्दों का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
नुसूचित जनजाति या आदिवासी।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पर्यावरण का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर:
पर्यावरण से तात्पर्य उन भौतिक घेराव, दशाओं, परिस्थितियों आदि से है जिनमें कोई व्यक्ति रहता है। इसके अन्तर्गत जल, वायु, भूमि, मनुष्यों और अन्य जीवित प्राणियों, पौधों, सूक्ष्म जीवों तथा सम्पत्ति में पाये जाने वाले अन्तर्सम्बन्ध को शामिल किया गया है।

प्रश्न 2.
पर्यावरण प्रदूषित होने के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  1. पश्चिमी देशों ने प्राकृतिक संसाधनों का अन्धाधुंध दोहन कर पर्यावरण को प्रदूषित किया है।
  2. वनों की निरन्तर कटाई के फलस्वरूप भूमि की कठोरता कम हो रही है और भू-क्षरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई है तथा पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही ह।

प्रश्न 3.
आप पर्यावरण आंदोलन के स्वयं सेवक के रूप में किन कदमों को उठाना पसन्द करेंगे?
उत्तर:
पर्यावरण आंदोलन के स्वयं सेवक के रूप में

  1. हम वनों की अंधाधुंध कटाई के विरुद्ध आंदोलन चलायेंगे तथा वृक्षारोपण के प्रति लोगों को जागरूक करेंगे तथा
  2. खनिजों के अंधाधुंध दोहन के विरोध में आंदोलन करेंगे।

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प्रश्न 4.
खाद्य-उत्पादन में कमी आने की क्या वजहें हैं?
उत्तर:
खाद्य उत्पादन में कमी आने की निम्न वजहें है

  1. दुनियाभर में कृषि योग्य भूमि में अब कोई बढ़ोत्तरी नहीं हो रही है दूसरी तरफ मौजूदा उपजाऊ जमीन के एक बड़े हिस्से की उर्वरता कम हो रही है:
  2. चरागाहों के चारे खत्म होने को है और मत्स्य भंडार घट रहा है।
  3. जलाशयों की जलराशि बड़ी तेजी से कम हुई है उसमें प्रदूषण बढ़ा है।

प्रश्न 5.
क्योटो प्रोटोकॉल के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर;
जलवायु परिवर्तन के संबंध में विभिन्न देशों के सम्मेलन का आयोजन जापान के क्योटो शहर में 1997 में हुआ। इसके अंतर्गत औद्योगिक देशों के लिए ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन को कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया।

प्रश्न 6.
आपके दृष्टिकोण से क्योटो-प्रोटोकॉल से विश्व को होने वाले लाभ की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
क्योटो प्रोटोकॉल से विश्व को होने वाले लाभ

  1. इसमें जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता और वानिकी के सम्बन्ध में कुछ नियम- आचार निर्धारित हुए।
  2. इसमें यह सहमति बनी कि आर्थिक विकास का तरीका ऐसा होना चाहिए जिससे पर्यावरण को हानि न

प्रश्न 7.
आजकल नैसर्गिक घटनाएँ और इनका अध्ययन भूगोल की जगह राजनीति विज्ञान का विषय बनते जा रहा है। संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
आजकल नैसर्गिक घटनाएँ और इनका अध्ययन भूगोल की जगह राजनीति विज्ञान का विषय सामग्री बनते जा रहा है क्योंकि पर्यावरण के नुकसान से जुड़े मसलों की चर्चा तथा उन पर अंकुश रखने के लिए अगर विभिन्न देशों की सरकारें कदम उठाती हैं तो इन मसलों की परिणति इस अर्थ में राजनीतिक होगी। इन मामलों में अधिकांश ऐसे हैं जिसका समाधान किसी देश की सरकार अकेले दम पर नहीं कर सकतीं इसी कारण ये मसले विश्व राजनीति का हिस्सा बन जाते हैं।

बहरहाल, पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों के मसले एक और गहरे अर्थ में राजनीतिक हैं। कौन पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता है? इस पर रोक लगाने के उपाय करने की जिम्मेदारी किसकी है? धरती के प्राकृतिक संसाधनों पर किसको कितने इस्तेमाल का हक है? इन सवालों के जवाब बहुधा इस बात से निर्धारित होते हैं कि कौन देश ताकतवर है। इस तरह ये मसले गहरे अर्थों में राजनीतिक है।

प्रश्न 8.
विश्व जलवायु परिवर्तन बैठक के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
1997 में नई दिल्ली में विश्व जलवायु परिवर्तन बैठक हुई। इस बैठक में निर्धनता, पर्यावरण तथा संसाधन प्रबंध के समाधान के संबंध में विकसित तथा विकासशील देशों में व्यापार की सम्भावनाओं पर विचार किया गया।

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प्रश्न 9.
‘साझी सम्पदा’ से क्या अभिप्राय है? आप इसमें किन क्षेत्रों को सम्मिलित करेंगे?
अथवा
विश्व की ‘साझी विरासत’ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
कुछ क्षेत्र एक देश के क्षेत्राधिकार से बाहर होते हैं, जैसे पृथ्वी का वायुमण्डल, अंटार्कटिका, समुद्री सतह तथा बाहरी अंतरिक्ष इत्यादि। इसका प्रबंधन अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा साझे तौर पर किया जाता है। इन्हीं को विश्व की साझी विरासत या ‘साझी सम्पदा’ कहा जाता है।

प्रश्न 10.
विश्व की साझी विरासत की सुरक्षा के दो उपाय बताएं।
उत्तर:
विश्व की साझी विरासत की रक्षा के दो उपाय अग्रलिखित हैं।

  1. सीमित प्रयोग: विश्व की साझी विरासतों का सीमित प्रयोग करना चाहिए।
  2. जागरूकता पैदा करना: विश्व की साझी विरासतों के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करनी चाहिए।

प्रश्न 11.
वैश्विक संपदा के रूप में बाहरी अंतरिक्ष के इतिहास से क्या पता चलता है?
उत्तर:
वैश्विक संपदा के रूप में बाहरी अंतरिक्ष के इतिहास से यह पता चलता है कि इस क्षेत्र के प्रबंधन पर उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों के बीच मौजूद असमानता का असर पड़ा है। धरती के वायुमंडल और समुद्री सतह के समान यहाँ भी महत्त्वपूर्ण मसला प्रौद्योगिकी और औद्योगिकी विकास का है। यह एक जरूरी बात है क्योंकि बाहरी अंतरिक्ष में जो दोहन – कार्य हो रहे हैं उनके फायदे न तो मौजूदा पीढ़ी में सबके लिए बराबर हैं और न आगे की पीढ़ियों के लिए।

प्रश्न 12.
पर्यावरण को लेकर उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों के रवैये में अंतर है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पर्यावरण को लेकर उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों के रवैये में अंतर है क्योंकि उत्तर के विकसित देश पर्यावरण के मसले पर उसी रूप में चर्चा करना चाहते हैं जिस दशा में आज पर्यावरण मौजूद है। ये देश चाहते हैं कि पर्यावरण के संरक्षण में हर देश की जिम्मेदारी बराबर हो । दक्षिण के विकासशील देशों का तर्क है कि विश्व में पारिस्थितिकी को नुकसान अधिकांशतया विकसित देशों के औद्योगिक विकास से पहुँचा है।

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प्रश्न 13.
मूलवासियों को परिभाषित कीजिये।
उत्तर:
मूलवासी ऐसे लोगों के वंशज हैं जो किसी मौजूद देश में लम्बी समयावधि से रहते चले आ रहे हैं। यद्यपि किसी दूसरी जातीय मूल के लोगों ने अन्य हिस्सों से आकर इनको अपने अधीन कर लिया तथापि वे अभी भी अपनी परम्परा, संस्कृति, रीति-रिवाज का पालन करना पसन्द करते हैं।

प्रश्न 14.
मूलवासियों के अधिकारों का वर्णन करें।
उत्तर:
मूलवासियों के अधिकार निम्नलिखित हैं।

  1. विश्व में मूलवासियों को बराबरी का दर्जा प्राप्त हो।
  2. मूलवासियों को अपनी स्वतंत्र पहचान रखने वाले समुदाय के रूप में जाना जाय ।
  3. मूलवासियों के आर्थिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन न किया जाये।
  4. देश के विकास से होने वाला लाभ मूलवासियों को भी मिलना चाहिये।

प्रश्न 15.
‘साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारियाँ’ के संदर्भ में रियो के घोषणा पत्र में क्या कहा गया है?
उत्तर:
‘साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारियाँ’ के संदर्भ में रियो घोषणा-पत्र का कहना है। धरती के पारिस्थितिकी तंत्र की अखंडता और गुणवत्ता बहाली, सुरक्षा तथा संरक्षण के लिए विभिन्न देश विश्व- बंधुत्व की भावना से आपस में सहयोग करेंगे। पर्यावरण के विश्वव्यापी अपक्षय में विभिन्न राज्यों का योगदान अलग- अलग है। इसे देखते हुए विभिन्न राज्यों की ‘साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारियाँ’ होगी। विकसित देशों के समाजों का वैश्विक पर्यावरण पर दबाव ज्यादा है और इन देशों के समाजों का वैश्विक पर्यावरण पर दबाव ज्यादा है और इन देशों के पास विपुल प्रौद्योगिकी एवं वित्तीय संसाधन हैं। इसे देखते हुए टिकाऊ विकास के अंतर्राष्ट्रीय प्रयास में विकसित देश अपनी खास जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं। ”

प्रश्न 16.
समुद्रतटीय क्षेत्रों का प्रदूषण किस प्रकार से बढ़ रहा है?
उत्तर:
समुद्रतटीय क्षेत्रों का जल जमीनी क्रियाकलापों से प्रदूषित हो रहा है। पूरी दुनिया में समुद्रतटीय इलाकों में मनुष्यों की सघन बसावट जारी है और इस प्रवृत्ति पर अंकुश न लगा तो समुद्री पर्यावरण की गुणवत्ता में भारी गिरावट आयेगी।

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प्रश्न 17.
ओजोन परत में छेद होने से परिस्थिति तंत्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
अथवा
धरती के ऊपरी वायुमंडल में ओजोन गैस की मात्रा में हो रही निरंतर कमी से मानव के लिये कैसे खतरा पैदा हो रहा है?
उत्तर:
धरती के ऊपरी वायुमण्डल में ओजोन गैस की मात्रा में लगातार कमी हो रही है। इसे ओजोन परत में छेद होना कहते हैं। इससे पारिस्थितिकी तंत्र और मनुष्य के स्वास्थ्य पर एक वास्तविक खतरा मँडरा रहा है। इसके कारण विश्व तापमान में वृद्धि हो रही है और जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव सामने आ रहे हैं।

प्रश्न 18.
प्राकृतिक वन जलवायु के संतुलन को बनाये रखने में किस तरह से महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक वन जलवायु को संतुलित रखने में मदद करते हैं, इनसे जल चक्र भी संतुलित बना रहता है। और इन्हीं वनों में धरती की जैव-विविधता का भंडार भरा रहता है।

प्रश्न 19.
वैश्विक राजनीति में पर्यावरण के बारे में बढ़ती चिन्ता के कोई दो कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वैश्विक राजनीति में पर्यावरण के बारे में बढ़ती चिन्ता के दो प्रमुख कारण ये हैं।

  1. वनों की अंधाधुंध कटाई: दक्षिणी देशों में वनों की अंधाधुंध कटाई से जलवायु, जलचक्र असंतुलित हो रहा है, जैव विविधता खत्म हो रही है।
  2. ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन-ग्रीन हाउस गैसों के अत्यधिक उत्सर्जन से ओजोन गैस की परत के क्षीण होनें के स्वास्थ्य पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है।

प्रश्न 20.
पर्यावरण से सम्बन्धित भारत सरकार के किन्हीं दो प्रयासों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
भारत सरकार ने पर्यावरण से सम्बन्धित निम्न प्रयास किये-

  1. भारत ने अपनी ‘नेशनल ऑटो- फ्यूल पॉलिसी’ के अन्तर्गत वाहनों के लिये स्वच्छतर ईंधन अनिवार्य कर दिया।
  2. 2001 में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम पारित हुआ । इसमें ऊर्जा के ज्यादा कारगर इस्तेमाल की पहलकदमी की गई है।

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प्रश्न 21.
तथ्य दीजिये कि पर्यावरण से जुड़े सरोकार 1960 के दशक के बाद से राजनैतिक चरित्र ग्रहण कर सके।
उत्तर:
पर्यावरण से जुड़े सरोकारों का लंबा इतिहास है लेकिन आर्थिक विकास के कारण पर्यावरण पर होने वाले असर की चिंता ने 1960 के दशक के बाद से राजनीतिक चरित्र ग्रहण किया। 1972 में प्रकाशित ‘लिमिट्स टू ग्रोथ’ पुस्तक इसका स्पष्ट उदाहरण है।

प्रश्न 22.
संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट 2016 के आधार पर बताइये कि प्रदूषण के कारण तीस लाख से ज्यादा बच्चे प्रतिवर्ष क्यों मौत के शिकार हो जाते हैं?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ की विश्व विकास रिपोर्ट (2016) के अनुसार विकासशील देशों की एक अरब बीस करोड़ जनता को स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं होता और यहाँ की दो अरब चालीस करोड़ आबादी साफ-सफाई की सुविधा से वंचित है। इस वजह से 30 लाख से ज्यादा बच्चे हर साल मौत के शिकार होते हैं।

प्रश्न 23.
अराल के आस-पास के हजारों लोगों को अपना घर क्यों छोड़ना पड़ा?
उत्तर:
अराल के आस-पास बसे हजारों लोगों को अपना घर: बार छोड़ना पड़ा क्योंकि पानी के विषाक्त होने से मत्स्य उद्योग नष्ट हो गया। जहाजरानी उद्योग और इससे जुड़े तमाम कामकाज खत्म हो गये। पानी में नमक की सांद्रता बढ़ जाने से पैदावार कम हो गई।

प्रश्न 24.
पर्यावरण आन्दोलन को परिभाषित कीजिये।
उत्तर:
पर्यावरण की हानि की चुनौतियों के मद्देनजर विश्व के विभिन्न भागों में पर्यावरण के प्रति सचेत कार्यकर्ताओं की सक्रियता, सामाजिक चेतना के दायरे में ही राजनीतिक कार्यवाही की नई सोच ने एक आंदोलन का रूप ले लिया है। इसी को पर्यावरण आंदोलन के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 25.
पर्यावरण प्रदूषण के लिये उत्तरदायी कोई चार कारण लिखें।
उत्तर:
पर्यावरण प्रदूषण के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारण निम्न हैं।

  1. पश्चिमी विचारधारा: पर्यावरण प्रदूषण के लिये पश्चिमी चिंतन तथा उनकी भौतिक जीवन दृष्टि काफी सीमा तक उत्तरदायी है।
  2. जनसंख्या में वृद्धि: जनसंख्या वृद्धि के कारण मानव की आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रकृति का शोषण बढ़ता है तथा पर्यावरण प्रदूषित होता है।
  3. वनों की कटाई एवं भूक्षरण: वनों की निरन्तर कटाई के फलस्वरूप कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है और पर्यावरण प्रदूषण भी बढ़ रहा है।
  4. जल प्रदूषण: कारखानों से निकलने वाले विषैले रसायनों तथा नगरों के गंदे पानी से नदियों का जल प्रदूषित हो रहा है।

प्रश्न 26.
पर्यावरण प्रदूषण के कोई चार उपाय लिखिए।
उत्तर:
पर्यावरण प्रदूषण के चार उपाय निम्नलिखित हैं-

  1. समग्र चिंतन की आवश्यकता: पश्चिमी जगत् के भौतिक चिंतन में इस बात पर जोर दिया जाता है कि इस पृथ्वी पर व प्रकृति पर जो कुछ भी है, वह मानव के उपभोग के लिये है। अतः आवश्यकता मानव की सोच बदलने की है। इसके लिये समग्र चिंतन आवश्यक है।
  2. वन संरक्षण: पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई को रोकना अति आवश्यक है।
  3. जनसंख्या नियंत्रण: पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिये जनसंख्या को नियंत्रित करना आवश्यक है।
  4. वन्य-जीवन का संरक्षण: पर्यावरण संरक्षण के लिये वन संरक्षण के साथ-साथ वन्य जीवन का संरक्षण करना आवश्यक है।

प्रश्न 27.
पर्यावरण के संदर्भ में हम मूलवासियों के अधिकारों की रक्षा किस प्रकार कर सकते हैं?
उत्तर:
हम पर्यावरण के संदर्भ में मूलवासियों के अधिकारों की रक्षा निम्न प्रकार से कर सकते हैं।

  1. मूलवासियों के प्राकृतिक आवास अर्थात् वन क्षेत्र को कुल भूमि क्षेत्र का 33.3 प्रतिशत तक बढ़ा दिया जाना चाहिए।
  2. आदिवासियों को उनकी परम्परा में परिवर्तन किये बिना मूल रूप में राजनीतिक संरक्षण दिया जाए।
  3. आदिवासियों (मूलवासियों) को संगठित करके विश्व स्तर पर संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रतिनिधित्व दिलाया जाए।
  4. आदिवासियों को शिक्षा तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी मार्गदर्शन देकर मुख्यधारा के साथ जुड़ने की उनमें स्वतः इच्छा जामृत की जाए।

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प्रश्न 28.
रियो घोषणा पत्र में से लिये गये पैरे को पढ़ें तथा संबंधित प्रश्नों के उत्तर दें।
“पृथ्वी के पर्यावरण को संरक्षित, सुरक्षित तथा पोषित करने के लिए राज्य विश्व भागीदारी की भावना के आधार पर सहयोग करेंगे। पर्यावरण को खराब करने से संबंधित असमान भागीदारी को ध्यान में रखते हुए राज्य साझे परन्तु भिन्न-भिन्न जिम्मेदारियों को निभायेंगे ।”
(क) इस पैरे में जिस प्रकार के पर्यावरण की बात कही गई है, उसके दो उदाहरण दें।
(ख) विश्व के किस भांग की पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी अधिक है और क्यों?
(ग) रियो सम्मेलन के बाद राज्यों ने अपने कार्यान्वयन में इस भावना को कितना पूरा किया है?
उत्तर:
(क) इस पैरे में पृथ्वी के संरक्षित तथा सुरक्षित पर्यावरण की बात की गई है। उदाहरण के लिए

  1. वनों की अंधाधुंध कटाई रोककर नये पेड़ लगाये जायें। इससे पर्यावरण संरक्षित और सुरक्षित रह सकेगा।
  2. सुरक्षित और संरक्षित पर्यावरण के लिए यह आवश्यक है कि विश्व के सभी देश मिलकर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के समयबद्ध नियम निर्धारित करें तथा इन्हें बाध्यतामूलक बनाया जाये। साथ ही सौर ऊर्जा तथा पवन ऊर्जा के स्रोतों का विकास करें।

(ख) पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी विकसित देशों की अधिक है क्योंकि पर्यावरण को खराब करने में विकसित देशों की सर्वाधिक भूमिका रही है।
(ग) रियो सम्मेलन के बाद अधिकांश देशों ने रियो घोषणा पत्र का पालन नहीं किया है

प्रश्न 29.
यू. एन. ई. पी. क्या है? इसके किन्हीं दो मुख्य कार्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
यू.एन. ई. पी. से आशय – यू. एन. ई. पी. संयुक्त राष्ट्र संघ की पर्यावरण कार्यक्रम से जुड़ी एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था है। मुख्य कार्य – इसके मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं।

  1. पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं पर सम्मेलन कराना तथा इस विषय पर अध्ययन को बढ़ावा देना।
  2. पर्यावरण की समस्याओं पर ज्यादा कारगर और सुलझी पहलकदमियों की विश्वस्तर पर व्यापक ढंग से शुरुआत करना।

प्रश्न 30.
ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करने हेतु भारत द्वारा किये गये किन्हीं चार प्रयासों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करने हेतु भारत ने अग्र प्रयास किये हैं।

  1. भारत ने क्योटो प्रोटोकॉल को 2002 में हस्ताक्षरित करके उसका अनुमोदन किया है।
  2. भारत ने वाहनों के लिए स्वच्छतर ईंधन अनिवार्य कर दिया है।
  3. भारत ने ऊर्जा के अधिक कारगर उपाय पर विशेष जोर दिया है।
  4. प्राकृतिक गैस के आयात, स्वच्छ कोयले के उपयोग पर आधारित प्रौद्योगिकी को अपनाने की दिशा में कार्य करना प्रारंभ कर दिया है।

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प्रश्न 31.
‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:

  1. भारत में मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र से गुजरने वाली नर्मदा नदी पर 30 बड़े, 135 मझोले तथा 300 छोटे बांध बन रहे हैं। फलतः नर्मदा नदी पर बन रहे इन बाँधों के खिलाफ चलने वाले आन्दोलन को ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ कहा जाता है।
  2. इससे देश में चल रही विकास की अन्य परियोजनाओं पर प्रश्न खड़े हुए हैं।
  3. इस आंदोलन ने विकास के मॉडल और उसके सार्वजनिक औचित्य पर भी सवाल खड़े हुए हैं।

प्रश्न 32.
वैश्विक राजनीति में पर्यावरण की चिंता के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वैश्विक राजनीति में पर्यावरण की चिंता: वैश्विक राजनीति में पर्यावरण की चिंता के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  1. विश्व में कृषि योग्य भूमि में उर्वरता की कमी होने, चारागाहों के चारे खत्म होने, मत्स्य भंडारों के घटने तथा जलाशयों में प्रदूषण बढ़ने से खाद्य उत्पादन में कमी आ रही है।
  2. प्रदूषित पेयजल व स्वच्छता की सुविधा की कमी के कारण विकासशील देशों में 30 लाख से भी अधिक बच्चे प्रतिवर्ष मौत के शिकार हो रहे हैं।
  3. वनों की अंधाधुंध कटाई से जैव-विविधता में कमी आ रही है।
  4. वायुमंडल में ओजोन गैस की परत में छेद होने से पारिस्थितिकीय तंत्र और मानव स्वास्थ्य पर खतरा मंडरा
  5. समुद्र तटों पर बढ़ते प्रदूषण से समुद्री पर्यावरण की गुणवत्ता में भारी गिरावट आ रही है।

प्रश्न 33.
पर्यावरण के सम्बन्ध में दक्षिणी और उत्तरी गोलार्द्ध के देशों के दृष्टिकोणों में क्या अन्तर है?
उत्तर:
पर्यावरण के सम्बन्ध में दक्षिणी और उत्तरी गोलार्द्ध के देशों के दृष्टिकोणों में अन्तर: पर्यावरण को लेकर उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध के दृष्टिकोणों में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं।

  1. उत्तर के विकसित देश चाहते हैं कि पर्यावरण के संरक्षण में हर देश की जिम्मेदारी बराबर हो, जबकि दक्षिण के विकासशील देशों का कहना है कि विकसित देशों ने पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुँचाया है, उन्हें इस नुकसान की भरपाई की ज्यादा जिम्मेदारी उठानी चाहिए।
  2. विकासशील देश अभी औद्योगीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं, इसलिए उन पर वे प्रतिबंध न लगें जो विकसित देशों पर लगाए जाने हैं।

प्रश्न 34.
‘साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारियाँ’ के नियमाचार को स्वीकार करने वाले देश किन दो बातों पर सहमत थे?
उत्तर:
साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारियाँ’ के नियमाचार को स्वीकार करने वाले देश निम्न दो बातों पर सहमत थे।

  1. ऐतिहासिक रूप से भी और मौजूदा समय में भी ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन में सबसे ज्यादा हिस्सा विकसित देशों का है।
  2. विकासशील देशों का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन अपेक्षाकृत कम है।

प्रश्न 35.
साझी संपदा के पीछे का मूल तर्क क्या है? उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिये इसका आकार घटने का कारण बताइये।.
उत्तर:
साझी संपदा के पीछे का मूल तर्क यह है कि ऐसे संसाधन की प्रकृति, उपयोग के स्तर और रख-रखाव के संदर्भ में समूह के हर सदस्य को समान अधिकार प्राप्त होंगे और समान उत्तरदायित्व निभाने होंगे। उदाहरण के लिए, सदियों के चलन और आपसी समझदारी से भारत के ग्रामीण समुदायों ने साझी संपदा के संदर्भ में अपने सदस्यों के अधिकार और दायित्व तय किए हैं। निजीकरण, गहनतर खेती, आबादी की वृद्धि और पारिस्थितिकी तंत्र की गिरावट समेत कई कारणों से पूरी दुनिया में साझी संपदा का आकार घट रहा है, उसकी गुणवत्ता और गरीबों को उसकी उपलब्धता कम हो रही है।

प्रश्न 36.
‘देवस्थान’ किन्हें कहा जाता है?
उत्तर:
कई पुराने समाजों में धार्मिक कारणों से प्रकृति की रक्षा का चलन है। भारत में मौजूद ‘पावन वन – प्रांतर’ इस चलन का उदाहरण है। इस चलन के अंतर्गत वनों के कुछ हिस्सों को काटा नहीं जाता है क्योंकि इन स्थानों पर देवता अथवा किसी पुण्यात्मा का वास माना जाता है। इन्हें ही ‘पावन वन-प्रांतर’ या ‘देवस्थान’ कहा जाता है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

प्रश्न 37.
देवस्थानों को भारत के अलग-अलग राज्यों में किस नाम से संबोधित किया जाता है?
उत्तर:
देवस्थान के देशव्यापी फैलाव का अंदाजा हम इस बात से लगा सकते हैं कि देशभर की भाषाओं में इनके लिए अलग-अलग शब्द हैं। इन देवस्थानों को राजस्थान में वानी, केंकड़ी और ओरान; झारखंड में जहेरा यान और सरना; मेघालय में लिंगदोह; केरल में काव; उत्तराखंड में थान या देवभूमि और महाराष्ट्र में देव रहतिस इत्यादि नामों से जाना जाता है।

प्रश्न 38.
अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार पावन वन-प्रांतर का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
कुछ अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार देवस्थान से जैव-विविधता और पारिस्थितिकी, संरक्षण में ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक वैविध्य को भी कायम रखने में सहायता मिलती है। देवस्थान की व्यवस्था वन संरक्षण के विभिन्न तौर-तरीकों में संपन्न है और इसकी विशेषताएँ साझी संपदा के संरक्षण की व्यवस्था से मिलती है।

प्रश्न 39.
‘देवस्थान’ के महत्त्व का परंपरागत आधार इसकी आध्यात्मिक अथवा सांस्कृतिक विशेषताएँ हैं। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘देवस्थान’ के महत्त्व का परंपरागत आधार इसकी आध्यात्मिक अथवा सांस्कृतिक विशेषताएँ हैं। इसको निम्न कथनों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

  1. हिन्दू समवेत रूप से प्राकृतिक वस्तुओं की पूजा करते हैं जिसमें पेड़ और वन- प्रान्तर भी शामिल हैं।
  2. बहुत से मंदिरों का निर्माण ‘देवस्थानों’ में हुआ है।
  3. संसाधनों की विरलता नहीं बल्कि प्रकृति के प्रति गहरी श्रद्धा वह आधार थी जिसने इतने युगों से वनों को बचाए रखने की प्रतिबद्धता कायम रखी।

प्रश्न 40.
देवस्थान के प्रबंधन में कठिन समस्या कब आती है?
उत्तर:
देवस्थान के प्रबंधन में कठिन समस्या तब आती है जब इन स्थानों का कानूनी स्वामित्व एक के पास हो और व्यावहारिक नियंत्रण किसी दूसरे के हाथ में हो अर्थात् कानूनी स्वामित्व राज्य का हो और व्यावहारिक नियंत्रण समुदाय के हाथ में। क्योंकि इन दोनों के नीतिगत मानक अलग-अलग हैं और देवस्थान के उपयोग के उद्देश्यों में भी इनके बीच कोई मेल नहीं।

प्रश्न 41.
साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारियों के सिद्धांत के अनुरूप भारत का विचार क्या है?
उत्तर:
साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारियों के सिद्धांत के अनुरूप भारत का विचार है कि उत्सर्जन – दर में कमी करने की सबसे ज्यादा जिम्मेवारी विकसित देशों की है क्योंकि इन देशों ने एक लंबी अवधि तक बहुत ज्यादा उत्सर्जन किया है।

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प्रश्न 42.
भारत द्वारा संचालित बायोडीजल मिशन का ध्येय क्या है?
उत्तर:
भारत पर्यावरण सुरक्षा के लिहाज से हर संभव प्रयास कर रहा है। इसी के अंतर्गत भारत बायोडीजल से संबंधित मिशन चला रहा है। इसके अंतर्गत 2011-12 तक बायोडीजल तैयार होने लगेगा और इसमें 1 करोड़ 10 लाख हेक्टेयर भूमि का इस्तेमाल होगा ।

प्रश्न 43.
भारत द्वारा पृथ्वी सम्मेलन के समझौतों के क्रियान्वयन के पुनरावलोकन का निष्कर्ष क्या है?
उत्तर:
भारत ने पृथ्वी सम्मेलन के समझौतों के क्रियान्वयन का एक पुनरावलोकन सन् 1997 में किया इसका निष्कर्ष यह था कि विकासशील देशों को रियायती शर्तों पर नये और अतिरिक्त वित्तीय संसाधन तथा पर्यावरण के संदर्भ में बेहतर साबित होने वाली प्रौद्योगिकी मुहैया कराने की दिशा में कोई सार्थक प्रगति नहीं हुई है।

प्रश्न 44.
आज पूरे विश्व में पर्यावरण आंदोलन सबसे ज्यादा जीवंत, विविधतापूर्ण तथा ताकतवर आंदोलन है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पर्यावरण आंदोलन आज पूरे विश्व में सबसे ज्यादा जीवंत, विविधतापूर्ण तथा ताकतवर आंदोलन में शामिल किया जाता है क्योंकि इन आंदोलन से नए विचार निकलते हैं। इन आंदोलनों ने समाज को यह नजरिया दिया है कि वैयक्तिक और सामूहिक जीवन के लिए आगे के दिनों की योजना क्या होनी चाहिए।

प्रश्न 45.
अंटार्कटिका महादेशीय क्षेत्र की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
अंटार्कटिक महादेशीय क्षेत्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. अंटार्कटिक महादेशीय इलाका 1 करोड़ 40 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला है।
  2. विश्व के निर्जन क्षेत्र का 26 प्रतिशत हिस्सा इसी महादेश के अंदर आता है।
  3. यह महादेश हिम और जल का भंडार है।
  4. इस महादेश का 3 करोड़ 60 लाख वर्ग किलोमीटर तक अतिरिक्त विस्तार समुद्र में है
  5. सीमित स्थलीय जीवन वाले इस महादेश का समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र अत्यंत उर्वर है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अंटार्कटिका महादेशीय क्षेत्र की विशेषताएँ तथा महत्त्व बताइये इस पर किसका स्वामित्व है?
उत्तर:

  • अंटार्कटिका महादेश की विशेषताएँ:
    1. अंटार्कटिका महादेशीय क्षेत्र एक करोड़ 40 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।
    2. विश्व के निर्जन क्षेत्र का 26 प्रतिशत हिस्सा इसी महादेश के अन्तर्गत आता है ।
    3. स्थलीय हिम का 90 प्रतिशत हिस्सा और धरती पर मौजूद जल का 70 प्रतिशत हिस्सा इस महादेश में स्थित है अर्थात् यह महादेश हिम और स्वच्छ जल का भंडार है।
    4. इसका 3 करोड़ 60 लाख वर्ग किलोमीटर तक अतिरिक्त विस्तार समुद्र में है।
    5. इस महादेश का समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र अत्यन्त उर्वर है जिसमें सूक्ष्म शैवाल, कवक और लाइकेन, समुद्री स्तनधारी जीव, मत्स्य तथा विभिन्न पक्षी तथा क्रिल मछली शामिल हैं।
  • अंटार्कटिका महादेश का महत्त्व: अंटार्कटिका महादेश के महत्त्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है।
    1. इसमें क्रिल मछली तथा अन्य पादप व पक्षी पाये जाते हैं जो समुद्री आहार श्रृंखला की धुरी है।
    2. यह प्रदेश विश्व की जलवायु को संतुलित रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    3. इस प्रदेश की अंदरूनी हिमानी परत ग्रीन हाउस गैस के जमाव का महत्त्वपूर्ण सूचना स्रोत है।
    4. इससे लाखों बरस पहले के वायुमंडलीय तापमान का पता किया जा सकता है। इस पर विश्व के सभी देशों का साझा स्वामित्व है।

प्रश्न 2.
पर्यावरण की सुरक्षा की दृष्टि से भारत के पावन वन प्रांतर पर एक लेख लिखिये।
उत्तर:
पावन वन प्रांतर का अर्थ – बहुत से पुराने समाजों में धार्मिक कारणों से प्रकृति की रक्षा करने का चलन है। भारत में विद्यमान ‘पावन वन प्रांतर’ इस चलन के सुंदर उदाहरण हैं। ‘पावन वन प्रांतर’ प्रथा में वनों के कुछ हिस्सों को काटा नहीं जाता। इन स्थानों पर देवता अथवा किसी पुण्यात्मा का निवास माना जाता है। इन्हें ही ‘पावन वन प्रांतर’ या देव स्थान कहा जाता है। पावन वन प्रांतर या देवस्थान का देशव्यापी फैलाव – भारत में पावन वन प्रांतर या देवस्थान का देशव्यापी फैलाव पाया जाता है।

इनके देशव्यापी फैलाव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देशभर की भाषाओं में इनके लिए अलग-अलग शब्द हैं। इन देवस्थानों को राजस्थान में वानी, केंकड़ी और ओरान, झारखंड में जहेरा थान और सरना, मेघालय में लिंगदोह, केरल में काव, उत्तराखंड में थान या देवभूमि और महाराष्ट्र में देव रहतिस आदि सैकड़ों नामों से जाना जाता है।

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प्रश्न 3.
पर्यावरण की सुरक्षा की दृष्टि से देवस्थान के महत्त्व को समझाइये।
उत्तर:
पर्यावरण संरक्षण में देवस्थान का महत्त्व: पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से देवस्थान के महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।

  1. समुदाय आधारित संसाधन: प्रबंधन देवस्थान को हम ऐसी व्यवस्था के रूप में देख सकते हैं जिसके अन्तर्गत पुराने समाज प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग इस तरह करते हैं कि पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बना रहे।
  2. जैव-विविधता तथा सांस्कृतिक विविधता को कायम रखने में सहायक – ‘देवस्थान’ की मान्यता से जैव- विविधता और पारिस्थितिकीय संरक्षण को ही नहीं, सांस्कृतिक वैविध्य को भी कायम रखने में मदद मिल सकती है।
  3. साझी संपदा के संरक्षण की व्यवस्था के समान: देवस्थान व्यवस्था की विशेषताएँ साझी संपदा के संरक्षण की व्यवस्था से मिलती-जुलती हैं।
  4. आध्यात्मिक या सांस्कृतिक विशेषताएँ”: देवस्थान के महत्व का परम्परागत आधार ऐसे क्षेत्र की आध्यात्मिक या सांस्कृतिक विशेषताएँ हैं। प्रकृति के प्रति गहरी श्रद्धा ही वह आधार थी जिसने इतने युगों से वनों को बचाये रखने की प्रतिबद्धता कायम रखी। वर्तमान स्थिति: हाल के वर्षों में मनुष्यों की बसावट के विस्तार ने धीरे-धीरे ऐसे ‘देवस्थानों पर अपना कब्जा कर लिया है

प्रश्न 4.
क्या वन निर्जन होते हैं? इस प्रश्न की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिये ।
उत्तर: दक्षिणी देशों के वन निर्जन नहीं हैं जबकि उत्तरी गोलार्द्ध के देशों के वन जनविहीन हैं या कहें कि इन देशों में वन को निर्जन प्रांत के रूप में देखा जाता है। इसी कारण उत्तरी देशों में वन भूमि को निर्जन भूमि का दर्जा दिया गया है अर्थात् वन भूमि ऐसी जगह है जहाँ लोग नहीं रहते – बसते। यह दृष्टिकोण मनुष्य को प्रकृति का हिस्सा नहीं मानता। दूसरे शब्दों में, यह दृष्टिकोण पर्यावरण को मनुष्य से दूर की चीज मानता है; एक ऐसी चीज जिसे बाग-बगीचे या अभयारण्य में तब्दील कर पर्यावरण को मनुष्य से बचाया जाना चाहिए।

अविकसित निर्जन वन क्षेत्र – वनों को विजनपन का प्रतीक मानने का दृष्टिकोण आस्ट्रेलिया, स्कैंडिनेविया, उत्तरी अमेरिका और न्यूजीलैंड में हावी है। इन इलाकों में ‘अविकसित निर्जन वन क्षेत्र’ अपेक्षाकृत ज्यादा हैं। दूसरी तरफ, दक्षिणी देशों में पर्यावरण के अधिकांश मसले इस मान्यता पर आधारित हैं कि लोग वनों में भी रहते हैं।

प्रश्न 5.
पर्यावरण सुरक्षा के मसले पर भारत के दृष्टिकोण तथा प्रयासों पर एक निबन्ध लिखिये।
उत्तर:
पर्यावरण की सुरक्षा के मुद्दे पर भारत का दृष्टिकोण भारत ने 2002 में क्योटो प्रोटोकॉल (1997) पर हस्ताक्षर किये और इसका अनुमोदन किया । भारत, चीन और अन्य विकासशील देशों को क्योटो प्रोटोकॉल की बाध्यताओं से छूट दी गई है। पर्यावरण सुरक्षा के मसले पर भारत ने जून, 2005 में ग्रुप-8 के देशों की बैठक में अपने दृष्टिकोण को निम्न प्रकार स्पष्ट किया हैं।

  1. विकासशील देशों में ग्रीन हाउस गैसों की प्रति व्यक्ति उत्सर्जन दर विकसित देशों की तुलना में नाममात्र है।
  2. उत्सर्जन – दर में कमी करने की सबसे ज्यादा जिम्मेदारी विकसित देशों की है क्योंकि इन देशों ने एक लम्बी अवधि तक बहुत ज्यादा उत्सर्जन किया है। यथा
  3. ग्रीन हाउस गैसों के रिसाव की ऐतिहासिक और मौजूदा जवाबदेही ज्यादातर विकसित देशों की है।

भारत के पर्यावरण से संबंधित प्रयास: भारत की सरकार विभिन्न कार्यक्रमों के जरिये पर्यावरण से संबंधित वैश्विक प्रयासों में शिरकत कर रही है।

  1. भारत ने अपनी ‘नेशनल ऑटो-फ्यूल पॉलिसी’ के अन्तर्गत वाहनों के लिए स्वच्छतर ईंधन अनिवार्य कर दिया है।
  2. ऊर्जा संरक्षण अधिनियम 2001 में ऊर्जा के ज्यादा कारगर इस्तेमाल की पहलकदमी की गई है। (3) सन् 2003 के बिजली अधिनियम में पुनर्नवा ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया गया है।
  3. भारत में प्राकृतिक गैस के आयात और स्वच्छ कोयले के उपयोग पर आधारित प्रौद्योगिकी को अपनाने की तरफ रुझान बढ़ा है
  4. भारत बायोडीजल से संबंधित एक राष्ट्रीय मिशन चलाने के लिए भी तत्पर है।

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प्रश्न 6.
संसाधनों की भू-राजनीति पर एक निबन्ध लिखिये।
उत्तर:
संसाधनों की भू-राजनीति संसाधनों की वैश्विक भू-राजनीति का विवेचन अग्रलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है।

  • व्यापारिक संबंध, युद्ध तथा ताकत के संदर्भ में संसाधनों की भू-राजनीति-संसाधनों से जुड़ी भू- राजनीति को पश्चिमी दुनिया ने ज्यादातर व्यापारिक सम्बन्ध, युद्ध तथा ताकत के संदर्भ में सोचा। इस सोच के मूल में था- -विदेश में संसाधनों की मौजूदगी तथा समुद्री नौवहन में दक्षता।
    1. 18वीं तथा 19वीं सदी में भू-राजनीति इमारती लकड़ियों की आपूर्ति पर आधारित रही।
    2. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान सामरिक संसाधनों, विशेषकर तेल की निर्बाध आपूर्ति का महत्त्व बहुत अच्छी तरह उजागर हो गया। शीत युद्ध के दौरान इसके अन्तर्गत संसाधन – दोहन के क्षेत्रों तथा परिवहन मार्गों के इर्द-गिर्द सेना की तैनाती, महत्त्वपूर्ण संसाधनों का भंडारण, संसाधनों के उत्पादक देशों में मनपसन्द सरकारों की बहाली तथा बहुराष्ट्रीय निगमों और अपने हितसाधक अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों को समर्थन देना शामिल है।
  • तेल पर आधारित भू-राजनीति: शीत युद्ध की समाप्ति के बाद वैश्विक भू-राजनीति में तेल महत्त्वपूर्ण संसाधन बना हुआ है। तेल के साथ विपुल संपदा जुड़ी है और इस कारण इस पर कब्जा जमाने के लिए राजनीतिक संघर्ष छिड़ता है।
  • स्वच्छ पानी के क्षेत्रों पर विश्व: राजनीति – विश्व: राजनीति के लिए पानी एक और महत्त्वपूर्ण संसाधन है। विश्व के कुछ भागों में साफ पानी की कमी हो रही है। साथ ही, विश्व के हर हिस्से में स्वच्छ जल समान मात्रा में मौजूद नहीं है। इस कारण, इस जीवनदायी संसाधन को लेकर हिंसक संघर्ष की सम्भावना हैं।

प्रश्न 7.
पर्यावरण आंदोलन से आप क्या समझते हैं? मौजूदा पर्यावरण आंदोलनों की विविधता को समझाइये
उत्तर:
पर्यावरण आंदोलन से आशय – पर्यावरण की हानि की चुनौतियों के मद्देनजर विश्व के विभिन्न भागों में सक्रिय पर्यावरण के प्रति सचेत कार्यकर्ताओं की पर्यावरण के प्रति सक्रियता, सामाजिक चेतना के दायरे में ही राजनीतिक कार्यवाही की नई सोच ने एक आंदोलन का रूप ले लिया है। इसी को पर्यावरण आंदोलन के नाम से जाना जाता है। पर्यावरण आंदोलन की विविधता पर्यावरण आंदोलन की विविधता की विशेषताओं को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है।

  1. वन-आंदोलन: दक्षिणी देशों, जैसे कि मैक्सिको, चिली, ब्राजील, मलेशिया, इंडोनेशिया, महादेशीय अफ्रीका और भारत में वनों की अंधाधुंध कटाई से वन- आंदोलनों पर काफी दबाव है
  2. खनिजों के अंधाधुंध दोहन के विरोध में आंदोलन: खनिज उद्योग रसायनों का भरपूर उपयोग करता है; भूमि और जलमार्गों को प्रदूषित करता है और स्थानीय वनस्पतियों का विनाश करता है। इसके कारण जन-समुदायों को विस्थापित होना पड़ता है। अतः स्पष्ट है कि खनिज उद्योग वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और भूमि प्रदूषण का प्रमुख कारण है। इसके कारण विश्व के विभिन्न भागों में खनिज उद्योगों के विरोध में एक जन-आंदोलन आकार ले रहा है, जैसे- फिलिपींस तथा आस्ट्रेलिया में।
  3. बांध-विरोधी तथा नदियों को बचाओ आंदोलन: कुछ आंदोलन बड़े बांधों के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। अब बांध विरोधी-आंदोलनों को नदियों को बचाने के आंदोलनों के रूप में देखने की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है।

प्रश्न 8.
एजेण्डा-21 से आप क्या समझते हैं? साझी पर अलग-अलग जिम्मेदारियों से क्या आशय है? एजेण्डा – 21 का अभिप्राय
उत्तर:
1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ का पर्यावरण एवं विकास के मुद्दे पर केन्द्रित ब्राजील के रियो-डी-जेनेरियो सम्मेलन के अवसर पर एजेण्डा-21 पारित किया गया एजेण्डा – 21 के प्रमुख बिन्दु निम्न प्रकार थे।

  1. पर्यावरण एवं विकास के बीच सम्बन्ध के मुद्दों को समझा जाए।
  2. ऊर्जा का अधिक कुशल तरीके से प्रयोग किया जाए।
  3. किसानों को पर्यावरण सम्बन्धी जानकारी दी जाएँ।
  4. प्रदूषण फैलाने वालों पर भारी अर्थदण्ड लगाए जाएँ।
  5. इस दृष्टिकोण से राष्ट्रीय योजना बनाई और लागू की जाए।

इस प्रकार एजेण्डा-21 के रूप में इस सम्मेलन में विकास के ऐसे तौर-तरीके सुझाये गये जिनसे पर्यावरण को हानि न पहुँचे। कुछ आलोचकों का कहना है कि टिकाऊ विकास के नाम पर ‘एजेंडा – 21’ का झुकाव पर्यावरण संरक्षण को सुनिश्चित करने के बजाय आर्थिक वृद्धि की ओर है। साझी पर अलग-अलग जिम्मेदारियाँ: यद्यपि विश्व पर्यावरण की रक्षा के सम्बन्ध में सभी देशों की साझी जिम्मेदारी है, लेकिन यह जिम्मेदारी विकासशील देशों की तुलना में विकसित देशों की अधिक है क्योंकि विकसित देशों ने पर्यावरण को ज्यादा नुकसान पहुँचाया है तो इन्हें इस नुकसान की भरपाई की जिम्मेदारी भी ज्यादा उठानी चाहिए। 1992 के पृथ्वी सम्मेलन में इस तर्क को मान लिया गया और इसे ‘साझी परन्तु अलग-अलग जिम्मेदारियाँ’ का सिद्धान्त कहा गया।

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प्रश्न 9.
मूलवासी और उनके अधिकार विषय पर एक लेख लिखें।
उत्तर-
मूलवासी और उनके अधिकार: मूलवासी से आशय – संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार मूलवासी ऐसे लोगों के वंशज हैं जो किसी मौजूदा देश में बहुत दिनों से रहते चले आ रहे थे। फिर किसी दूसरी संस्कृति या जातीय मूल के लोग विश्व के दूसरे हिस्से से उस देश में आए और इन लोगों को अधीन बना लिया। मूलवासी आज भी उस देश की संस्थाओं के अनुरूप आचरण करने से ज्यादा अपनी परंपरा, सांस्कृतिक रिवाज तथा अपने खास सामाजिक-आर्थिक ढर्रे पर जीवन-यापन करना पसंद करते हैं।

  • मूलवासियों का अपने अधिकारों के लिए संघर्ष व आंदोलन: मूलवासी अपने अधिकारों की आवाज उठाते रहे हैं। यथा
    1. विश्व राजनीति में मूलवासियों की आवाज विश्व-बिरादरी में बराबरी का दर्जा पाने के लिए उठी है।
    2. सरकारों से इनकी मांग है कि इन्हें मूलवासी कौम के रूप में अपनी स्वतंत्र पहचान रखने वाला समुदाय माना जाये।
    3. अपने मूल वास स्थान पर ये अपना अधिकार चाहते हैं, क्योंकि ये यहाँ अनंतकाल से रहते चले आ रहे हैं।
    4. भौगोलिक रूप से चाहे मूलवासी अलग-अलग जगहों पर कायम हैं लेकिन जमीन और उस पर आधारित विभिन्न जीवन-प्रणालियों के बारे में इनकी विश्व दृष्टि एक समान है।
  • मूलवासियों के अधिकारों के लिए वैश्विक प्रयास:
    1. 1970 के दशक में विश्व के विभिन्न भागों के मूलवासियों के नेताओं के बीच पारस्परिक सम्पर्क बढ़ा । इससे इनके साझे अनुभवों और सरोकारों को एक शक्ल मिली।
    2. 1975 में ‘वर्ल्ड काउंसिल ऑफ इंडिजिनस पीपल’ का गठन हुआ । संयुक्त राष्ट्र संघ में सबसे पहले इस परिषद् को परामर्शदात्री परिषद् का दर्जा दिया गया।

प्रश्न 10.
पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले कारकों की व्याख्या करें।..
उत्तर:
पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले प्रमुख उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं। पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले कारक

  1. जनसंख्या में वृद्धि: पिछले 50 वर्षों में विश्व की जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। परिणामस्वरूप मानव की आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति के लिए प्रकृति का शोषण बढ़ रहा है तथा पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है।
  2. वनों की कटाई: वनों की अंधाधुंध कटाई से कार्बन डाइऑक्साइड गैस की मात्रा बढ़ रही है और ऑक्सीजन गैस की मात्रा घट रही है।
  3. जल-प्रदूषण: समुद्र का तटवर्ती जल जमीनी क्रियाकलापों से प्रदूषित हो रहा है। पूरी दुनिया में समुद्रतटीय इलाकों में मनुष्यों की सघन बसावट जारी है और इस प्रवृत्ति पर अंकुश न लगा तो समुद्री पर्यावरण की गुणवत्ता में भारी गिरावट आएगी। दूसरे, औद्योगीकरण के कारण उद्योगों के विषैले रसायनों को नदियों में डालने, उनमें शहरों के कूड़े-कचरे व गंदगी को डालने आदि से नदियों का स्वच्छ जल गंदला हो रहा है।
  4. वायु प्रदूषण: नगरीकरण तथा औद्योगीकरण, यातायात के बढ़ते साधनों, खनन परियोजनाओं, ताप बिजली परियोजनाओं, परमाणु बिजली परियोजनाओं, बड़े कारखानों की चिमनी से निकलते धुएँ आदि के कारण विश्व में वायुमण्डल प्रदूषित हो रहा है ।
  5. औद्योगीकरण: बढ़ते औद्योगीकरण के कारण बढ़ते कारखानों से विषैली गैसें पैदा होती हैं जो वायु जल को प्रदूषित कर देती हैं।
  6. ध्वनि प्रदूषण: विभिन्न प्रकार की ध्वनियों व शोर ने भी नगरों के पर्यावरण को प्रदूषित किया है। बड़े-बड़े नगरों में चारों ओर शोरगुल व्याप्त है।

प्रश्न 11.
पर्यावरण के संबंध में ‘साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारी’ इस अवधारणा के महत्त्व और भूमिका की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
दुनिया के विभिन्न देशों द्वारा पर्यावरण को बचाने हेतु ‘साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारी’ में योगदान अति आवश्यक है परंतु उत्तरी और दक्षिणी गोलाद्ध में पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति अलग-अलग धारणाएँ हैं।

  1. उत्तरी गोलार्द्ध के विकसित देश पर्यावरण के मुद्दे पर उसी रूप में चर्चा करना चाहते हैं जिस दशा में पर्यावरण वर्तमान में है। ये देश पर्यावरण के संरक्षण में हर देश का बराबर योगदान चाहते हैं।
  2. दक्षिण के विकासशील देशों के अनुसार विश्व के पारिस्थितिकी को नुकसान पहुँचाने में ज्यादा योगदान विकसित देशों का है क्योंकि विकसित देशों में औद्योगिक क्रांति पहले हुई थी। यदि विकसित देशों ने पर्यावरण को ज्यादा क्षति पहुँचायी है तो उन्हें इस नुकसान की भरपाई की जिम्मेदारी भी ज्यादा उठानी चाहिए।
  3. विकासशील देशों के औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया अभी चल रही है इसलिए उन पर वे प्रतिबंध न लगे जो विकसित देशों पर लगाए गए हैं। उदाहरण के लिए क्योटो प्रोटोकॉल इत्यादि।
  4. इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण कानून के निर्माण, प्रयोग और व्याख्या में विकासशील देशों की विशिष्ट जरूरतों को ध्यान में रखना चाहिए। उपरोक्त सभी प्रावधानों को 1992 के पृथ्वी सम्मेलन में मान लिया गया है और इसे ही ‘साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारी ‘ का सिद्धांत कहा गया है।

प्रश्न 12.
तेल वैश्विक राजनीति में एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है जो भूराजनीति और वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
तेल वह संसाधन है जो अपार धन उत्पन्न करता है, इसलिए यह औद्योगिक देशों से जुड़े राजनीतिक संघर्ष का कारण बनता है। तेल के स्थिर प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न उपायों को अपनाया जा सकता है।

  1. इसमें शोषण स्थलों तथा संचार के समुद्री मार्गों के पास सैन्य बल की तैनाती शामिल है।
  2. तेल सामरिक संसाधनों का भंडार है।
  3. बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा अनुकूल अंतर्राष्ट्रीय समझौता होना चाहिए।
  4. वैश्विक अर्थव्यवस्था, तेल पर एक पोर्टेबल और अपरिहार्य ईंधन के रूप में निर्भर करती है। इसलिए पेट्रोलियम का इतिहास संघर्षों का इतिहास युद्ध और संघर्षों भरा है।
  5. तेल के आधिपत्य को लेकर इराक और सऊदी अरब के बीच संघर्ष हो चुका है क्योंकि इराक के ज्ञात भंडार सऊदी अरब के बाद दूसरे नंबर पर है चूँकि इराकी क्षेत्र के पर्याप्त हिस्से का पूरी तरह पता लगाया जाना बाकी है। इस बात की पूरी संभावना है कि वास्तविक भंडार कहीं अधिक बड़ा हो सकता है।

JAC Class 12 Political Science Solutions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

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पृष्ठ 32

प्रश्न 1.
मैं खुश हूँ कि मैंने विज्ञान के विषय नहीं लिये वर्ना मैं भी अमरीकी वर्चस्व का शिकार हो जाता । क्या आप बता सकते हैं क्यों?
उत्तर:
यदि मैं विज्ञान के विषय लेकर अध्ययन करता तो अध्ययन के बाद मैं वैज्ञानिक या इंजीनियर या डॉक्टर बनता। इन स्थितियों में मैं अमरीकी वर्चस्व का शिकार अवश्य हो जाता क्योंकि इन क्षेत्रों में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अमरीकी नेटवर्क का ही वर्चस्व है।

पृष्ठ 34

प्रश्न 2.
क्या यह बात सही है कि अमरीका ने अपनी जमीन पर कभी कोई जंग नहीं लड़ी? कहीं इसी वजह से जंगी कारनामे करना अमरीका के लिए बाएं हाथ का खेल तो नहीं?
उत्तर:
हाँ, यह बात सही है कि अमरीका ने अपनी जमीन पर कभी कोई जंग नहीं लड़ी और अमरीका के लिए जंगी कारनामे करने का यह एक बहुत बड़ा कारण भी है क्योंकि अपनी जमीन पर जंग न लड़े जाने के कारण अमरीका को अपनी जमीन पर जंग से होने वाली जन-धन की अपार हानि कभी नहीं उठानी पड़ी। इससे होने वाली क्षति से प्रायः सभी महाशक्तियाँ प्रभावित रही हैं, लेकिन अमेरिका इससे अछूता रहा है। इसलिए उसकी शक्ति में कभी भी इतनी कमी नहीं आ पायी कि वह जंग के खर्चे से बचे।

दूसरे, अपनी जमीन पर जंग न लड़े जाने के कारण वहाँ की जनता को जंग के उन दारुण्य दुःखों का एहसास नहीं है। इस कारण वहाँ की जनता भी अपने शासकों को जंग से रोकने का पूर्ण प्रयास नहीं करती है। तीसरे, उन्नत प्रौद्योगिकी तथा अत्याधुनिक हथियारों के बलबूते अमेरिका किसी देश पर हमला करने में समर्थ है। इन तीनों ही बातों के कारण अमेरिका के लिए जंगी कारनामे करना बायें हाथ का खेल है।

JAC Class 12 Political Science Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

पृष्ठ 35

प्रश्न 3.
यह तो बड़ी बेतुकी बात है! क्या इसका यह मतलब लगाया जाए कि लिट्टे आतंकवादियों के छुपे होने का शुबहा होने पर श्रीलंका पेरिस पर मिसाइल दाग सकता है?
उत्तर:
9/11 की आतंकवादी घटना के पश्चात् अमेरिका ने शुबहा के आधार पर अफगानिस्तान तथा विश्व के अन्य अनेक देशों में ‘ऑपरेशन एंड्यूरिंग फ्रीडम’ अभियान चलाकर लोगों को गिरफ्तार करके गोपनीय स्थलों पर बनी जेलों में भर कर उन पर अमानवीय अत्याचार किये थे। लड़की इसे ही बेतुकी बात कहती है क्योंकि आतंकवादियों के किसी देश में छिपे होने के संदेह के आधार पर उस देश पर बमों की वर्षा करना अनुचित है। अमरीका ने ऐसा किया है। उसका यह कृत्य संयुक्त राष्ट्र संघ की कमजोरी को दर्शाता है तथा अमरीका की विश्व – दादागीरी को स्पष्ट दर्शाता है

पृष्ठ 36

प्रश्न 4.
क्या अमरीका में भी राजनीतिक वंश-परम्परा चलती है या यह सिर्फ एक अपवाद है?
उत्तर:
अमरीका में राजनीतिक वंश परम्परा नहीं चलती। एच. डब्ल्यू. बुश के राष्ट्रपति बनने के बाद उनके पुत्र जार्ज डब्ल्यू. बुश का राष्ट्रपति बनना एक अपवाद भर है क्योंकि अमरीका एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है और यहाँ के मतदाता प्रत्येक चार वर्ष बाद अपना राष्ट्रपति चुनते हैं।

पृष्ठ 37

प्रश्न 5.
शीत युद्ध के बाद हुए उन संघर्षो / युद्धों की सूची बनाएं जिनमें अमरीका ने निर्णायक भूमिका निभाई।
उत्तर:
शीत युद्ध के बाद अमरीका ने अग्र प्रमुख संघर्षों/युद्धों में निर्णायक भूमिका निभायी –

  • 1990 में अमेरिका ने ‘ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म’ नामक इराक के विरुद्ध सैनिक अभियान चलाया जिसे ‘प्रथम खाड़ी युद्ध’ कहा जाता है।
  • वर्ष 1998 में अमेरिका ने ‘ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच’ के तहत सूडान व अफगानिस्तान के अलकायदा के ठिकानों पर कई बार क्रूज मिसाइलों से हमला किया।
  • 1999 में अमरीकी नेतृत्व में नाटो के देशों ने यूगोस्लावियाई क्षेत्रों पर दो महीने तक बमबारी की। इससे यूगोस्लाविया से स्लोबदान मिलोसेविच की सरकार गिर गई और कोसावो पर नाटो की सेना काबिज हो गई।
  • 11 सितम्बर, 2001 को अमरीका पर हुई आतंकवादी घटना के बाद आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध के अंग के रूप में ‘ऑपरेशन एन्ड्यूरिंग फ्रीडम’ के तहत मुख्य निशाना अलकायदा और अफगानिस्तान के तालिबान शासन को बनाया । तालिबान शासन का वहां अन्त हुआ।
  • 19 मार्च, 2003 को अमरीका ने ‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ के कूट नाम से इराक पर सैन्य हमला किया और इराकी शासक सद्दाम को शासन से अपदस्थ किया गया।

पृष्ठ 38

प्रश्न 6.
‘अमेरिका के अंगूठे तले’ शीर्षक का यह कार्टून ( पाठ्यपुस्तक पृष्ठ – 38 ) वर्चस्व के आमफहम अर्थ को ध्वनित करता है। अमेरिकी वर्चस्व की प्रकृति के बारे में यह कार्टून क्या कहता है? कार्टूनिस्ट विश्व के किस हिस्से के बारे में इशारा कर रहा है?
उत्तर:
यह कार्टून अमरीकी वर्चस्व की दादागिरी की प्रकृति को बता रहा है कि अमरीकी राजनीति पूर्णरूप से शक्ति और उसकी मनमानी के इर्द-गिर्द घूमती है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में वह अपनी सैन्य तथा आर्थिक शक्ति के बलबूते प्रत्येक देश के राजनैतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में अपनी दादागिरी चलाना चाहता है।

प्रश्न 7.
‘वर्चस्व’ जैसे भारी-भरकम शब्द का इस्तेमाल क्यों करें? हमारे शहर में इसके लिए ‘दादागीरी’ शब्द चलता है। क्या यह शब्द ज्यादा अच्छा नहीं रहेगा?
उत्तर:
हमारे शहर में ‘दादागीरी’ शब्द ‘शारीरिक ताकत’ के अर्थ में चलता है। वर्चस्व के ‘सैन्य प्रभुत्व’ के पर्याय के रूप में ही हम ‘दादागीरी’ शब्द का प्रयोग कर सकते हैं लेकिन वर्चस्व का रूप ‘दादागीरी’ के भाव से व्यापक है; इसमें सैन्य प्रभुत्व, आर्थिक शक्ति, राजनैतिक रुतबे और सांस्कृतिक बढ़त के अनेक रूप हैं।

पृष्ठ 39

प्रश्न 8.
पर दिये हुए नक्शे को ध्यान से देखें और नीचे दिये गये प्रश्न का उत्तर दें। अमरीका की सैन्य शक्ति के बारे में यह मानचित्र क्या बताता है ?
उत्तर:
इस मानचित्र में अमरीकी सशस्त्र सेना के पांच अलग-अलग कमानों के सैन्य कार्रवाई के क्षेत्र को दिखाया गया है जिससे पता चलता है कि अमरीकी सेना का कमान क्षेत्र सिर्फ संयुक्त राज्य अमरीका तक सीमित नहीं है बल्कि इसके विस्तार में समूचा विश्व शामिल है। इनके बूते अमरीका पूरी दुनिया में कहीं भी निशाना साध सकता है।

पृष्ठ 41

प्रश्न 9.
यह देश इतना धनी कैसे हो सकता है? मुझे तो यहाँ बहुत से गरीब लोग दिख रहे हैं। इनमें अधिकांश अश्वेत हैं।
उत्तर:
यह सही है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में वहाँ के अश्वेत लोग गरीब हैं; वहाँ आर्थिक असमानता तथा गरीबी विद्यमान है, लेकिन किसी देश की समृद्धि का पैमाना वहाँ की आर्थिक असमानता को नहीं बनाया जाता है। किसी देश की समृद्धि का पैमाना है। उसका सकल घरेलू उत्पाद, विश्व की अर्थव्यवस्था में उसकी हिस्सेदारी, विश्व के व्यापार में उसकी हिस्सेदारी आदि। इस दृष्टि से देखें तो तुलनात्मक क्रय शक्ति के आधार पर 2005 में अमरीका का सकल घरेलू उत्पाद विश्व का 20 प्रतिशत था। विश्व की अर्थव्यवस्था में अमरीका की हिस्सेदारी 28 प्रतिशत है और विश्व के कुल व्यापार में अमरीका की हिस्सेदारी 15 प्रतिशत है। विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा विश्व व्यापार संगठन पर अमेरिकी प्रभाव है। यह तथ्य बताते हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका एक धनी देश है।

पृष्ठ 43

प्रश्न 10.
बड़ी विचित्र बात है! अपने लिए जीन्स खरीदते समय तो मुझे अमरीका का ख्याल तक नहीं आता फिर मैं अमरीकी वर्चस्व के चपेट में कैसे आ सकती हूँ?
उत्तर:
वर्चस्व का सांस्कृतिक पहलू यह है कि यहाँ जोर-जबरदस्ती से नहीं बल्कि रजामंदी से बात मनवायी जाती है। समय गुजरने के साथ हम इसके इतने अभ्यस्त हो जाते हैं कि हम उसे इतना ही सहज मानते हैं जितना कि अपने आस-पास के पेड़, पक्षी या नदी को। यही स्थिति ‘नीली जीन्स’ को हमारे पहनने के सम्बन्ध में लागू होती है और हमें इसको खरीदते तथा पहनते समय अमरीकी सांस्कृतिक वर्चस्व का एहसास तक नहीं होता है।

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पृष्ठ 45

प्रश्न 11.
परियोजना कार्य-
भारत और अमरीका के बीच हाल ही में नागरिक परमाणु समझौता हुआ है। इसके बारे में अखबारों से रिपोर्ट और लेख जुटाएँ। इस समझौते के समर्थक और विरोधियों के तर्कों का सार संक्षेप में लिखें।
उत्तर:
भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका में परमाणु ऊर्जा के मामले में एक समझौता हुआ। भारत की लोकसभा में इस समझौते पर बहस में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इसके पक्ष में तथा विपक्षी नेताओं, विशेषकर भाजपा और मार्क्सवादी साम्यवादी पार्टी के नेताओं ने इसके विरोध में अपने-अपने तर्क दिये जिनका सार संक्षेप में निम्न प्रकार है- समझौते के पक्ष में तर्क- प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि ताकत की राजनीति अब बीते दिनों की बात हो गयी है। हमें अपनी आत्मरक्षा को सुनिश्चित करते हुए आए अवसरों का लाभ भी उठाना चाहिए। इसलिए हमें सभी शक्तिशाली देशों से अच्छे सम्बन्ध बनाये रखने की दृष्टि से अमेरिका के साथ इस परमाणु समझौते को मान्यता देनी चाहिए क्योंकि यह दोनों देशों के पक्ष में है तथा इसमें सरकार ने कोई ऐसी धारा नहीं रखने दी है जिससे देश की सुरक्षा पर आँच आए। समझौते के विपक्ष में तर्क-

  1. भाकपा (मार्क्सवादी) नेता बासुदेव आचार्य ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद से हम अपने राष्ट्रीय हितों के कारण स्वतंत्र विदेश नीति पर अमल करते आ रहे हैं। लेकिन अब भारत सरकार अमेरिकी दबाव के समक्ष झुक रही है और राष्ट्रीय हित को तिरोहित कर रही है। अतः यह समझौता भारत के हितों को अमरीका के हाथों गिरवी रखने जैसा है।
  2. भाजपा नेता खंडूरी ने कहा कि अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य में हमें विश्व की एकमात्र महाशक्ति अमरीका के साथ अच्छे सम्बन्ध रखने चाहिए लेकिन अपनी सुरक्षा की कीमत पर नहीं सरकार को हर कीमत पर देश की सुरक्षा और हितों को बनाए रखना चाहिए। नोट – विद्यार्थी अखबारों से रिपोर्ट तथा लेख जुटाकर इन तर्कों का विस्तार कर सकते हैं।

प्रश्न 12.
जैसे ही मैं कहता हूँ कि मैं भारत से आया हूँ, ये लोग मुझसे पूछते हैं कि “क्या तुम कम्प्यूटर इंजीनियर हो?” यह सुनकर अच्छा लगता है। क्यों?
उत्तर:
यह सुनकर इसलिये अच्छा लगता है क्योंकि इससे भारत में कम्प्यूटर शिक्षा के क्षेत्र में हुई प्रगति एहसास होता है।

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प्रश्न 13.
ये सारी बातें ईर्ष्या से भरी हुई हैं। अमरीकी वर्चस्व से हमें परेशानी क्या है? क्या यही कि हम अमरीका में नहीं जन्मे? या कोई और बात है?
उत्तर:
अमरीकी वर्चस्व का प्रतिरोध करना कोई ईर्ष्या से भरी हुई बात नहीं है, बल्कि विश्व के एकमात्र चौधरी के असहनीय व्यवहार का एकमात्र विकल्प यही है कि हम उस असहनीय व्यवहार का प्रतिरोध करें उदाहरण के लिए, हम एक विश्वग्राम में रहते हैं जिसमें एक चौधरी है और हम सभी उसके पड़ोसी यदि चौधरी का बरताव असहनीय हो जाये तो भी विश्वग्राम से चले जाने का विकल्प हमारे पास मौजूद नहीं है क्योंकि यही एकमात्र गांव है जिसे हम जानते हैं और रहने के लिए हमारे पास यही एक गांव है। ऐसी स्थिति में प्रतिरोध ही एकमात्र विकल्प बचता है। ठीक इसी तरह सम्पूर्ण विश्व एक गांव की तरह है और इसमें अमेरिका चौधरी की तरह पिछले कुछ वर्षों से अमरीकी वर्चस्व व उसका व्यवहार विश्व के अन्य देशों के लिए असहनीय हो रहा है। ऐसी स्थिति में अमरीका का प्रतिरोध ही हमारे पास एकमात्र विकल्प है।

Jharkhand Board Class 12 Political Science समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
वर्चस्व के बारे में निम्नलिखित में से कौनसा कथन गलत है?
(क) इसका अर्थ किसी एक देश की अगुआई या प्राबल्य है।
(ख) इस शब्द का इस्तेमाल प्राचीन यूनान में एथेंस की प्रधानता को चिह्नित करने के लिए किया जाता था।
(ग) वर्चस्वशील देश की सैन्य शक्ति अजेय होती है।
(घ) वर्चस्व की स्थिति नियत होती है। जिसने एक बार वर्चस्व कायम कर लिया उसने हमेशा के लिए वर्चस्व कायम कर लिया ।
उत्तर:
(घ) वर्चस्व की स्थिति नियत होती है। जिसने एक बार वर्चस्व कायम कर लिया उसने हमेशा के लिए वर्चस्व कायम कर लिया।

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प्रश्न 2.
समकालीन विश्व- व्यवस्था के बारे में निम्नलिखित में से कौनसा कथन गलत है?
(क) ऐसी कोई विश्व – सरकार मौजूद नहीं जो देशों के व्यवहार पर अंकुश रख सके।
(ख) अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में अमरीका की चलती है।
(ग) विभिन्न देश एक-दूसरे पर बल-प्रयोग कर रहे हैं।
(घ) जो देश अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करते हैं उन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ कठोर दंड देता है।
उत्तर:
(क) ऐसी कोई विश्व – सरकार मौजूद नहीं जो देशों के व्यवहार पर अंकुश रख सके।

प्रश्न 3.
‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ ( इराकी मुक्ति अभियान ) के बारे में निम्नलिखित में से कौनसा कथन गलत है?
(क) इराक पर हमला करने के इच्छुक अमरीकी अगुआई वाले गठबंधन में 40 से ज्यादा देश शामिल हुए।
(ख) इराक पर हमले का कारण बताते हुए कहा गया कि यह हमला इराक को सामूहिक संहार के हथियार बनाने से रोकने के लिए किया जा रहा है।
(ग) इस कार्रवाई से पहले संयुक्त राष्ट्र संघ की अनुमति ले ली गई थी।
(घ) अमरीकी नेतृत्व वाले गठबंधन को इराकी सेना से तगड़ी चुनौती नहीं मिली।
उत्तर:
(ग) इस कार्रवाई से पहले संयुक्त राष्ट्र संघ की अनुमति ले ली गई थी।

प्रश्न 4.
इस अध्याय में वर्चस्व के तीन अर्थ बताए गए हैं। प्रत्येक का एक-एक उदाहरण बतायें। ये उदाहरण इस अध्याय में बताए गए उदाहरणों से अलग होने चाहिए।
उत्तर:
इस अध्याय में वर्चस्व के निम्न तीन अर्थ बताए गए हैं-
(1) वर्चस्व – सैन्य शक्ति के अर्थ में।
(2) वर्चस्व – ढाँचागत ताकत के अर्थ में।
(3) वर्चस्व – सांस्कृतिक अर्थ में।

उदाहरण :

  1. अमेरिका वर्तमान में ईरान को बार-बार यह धमकी दे रहा है कि या तो वह परमाणु परीक्षण बंद करे नहीं तो उसके विरुद्ध कभी भी युद्ध छेड़ा जा सकता है। यह अमेरिका की सैन्य शक्ति के वर्चस्व को दिखाता है।
  2. अमेरिका अपने ढांचागत वर्चस्व को दिखाने के लिए अनेक छोटे-बड़े देशों को कह चुका है कि ” जो भी उदारीकरण और वैश्वीकरण को नहीं अपनायेगा या परमाणु परीक्षण निषेध संधि पर हस्ताक्षर नहीं करेगा ” उसे विश्व बैंक या अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से ऋण देने के बारे में या तो कटौती की जा सकती है या उस पर पूर्ण प्रतिबंध लग सकता है। अमेरिका समय-समय पर देशों पर आर्थिक प्रतिबंध लगाता रहा है।
  3. सांस्कृतिक वर्चस्व के अर्थ में अमेरिका ने लोकतांत्रिक पूँजीवादी (उदारवादी) विचारधारा सभी पूर्व साम्यवादी यूरोपीय देशों पर लाद दी और वह उनसे सहमति बनवाने में सफल रहा।

प्रश्न 5.
उन तीन बातों का जिक्र करें जिनसे साबित होता है कि शीत युद्ध की समाप्ति के बाद अमरीकी प्रभुत्व का स्वभाव बदला है और शीत युद्ध के वर्षों के अमरीकी प्रभुत्व की तुलना में यह अलग है?
उत्तर:
निम्न तीन बातों से यह साबित होता है कि शीत युद्ध की समाप्ति के बाद अमरीकी प्रभुत्व का स्वभाव बदला है तथा यह शीत युद्ध के वर्षों के अमरीकी प्रभुत्व की तुलना में अलग है-
(1) संयुक्त राष्ट्र संघ में अपनी इच्छा के अनुसार निर्णय करवाना:
1991 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने कुवैत को मुक्त कराने के लिए अमरीका को इराक पर बल प्रयोग की अनुमति दी। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा अमरीका को बल प्रयोग की स्पष्ट अनुमति देना, अमरीकी प्रभुत्व के स्वभाव के बदले स्वरूप को दिखाता है क्योंकि शीत युद्ध के दौरान ज्यादातर मामलों में चुप्पी साध लेने वाले संयुक्त राष्ट्र संघ के लिहाज से यह एक नाटकीय फैसला था। अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने इसे ‘नई विश्व व्यवस्था’ की संज्ञा दी। प्रथम खाड़ी युद्ध से यह बात भी स्पष्ट हो गई कि बाकी देश सैन्य क्षमता के मामले में अमेरिका से बहुत पीछे हैं जबकि शीतयुद्ध के काल में सोवियत संघ इसके समकक्ष की स्थिति में था।

(2) संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों की परवाह नहीं करना:
आतंकवाद के विरुद्ध अमेरिका ने ‘ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच’ के तहत सूडान और अफगानिस्तान के अलकायदा ठिकानों पर कई बार क्रूज मिसाइलों से हमले किये। अमेरिका ने इस कार्यवाही के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की अनुमति लेने या इस सिलसिले में अन्तर्राष्ट्रीय कानून की परवाह नहीं की । शीत युद्ध के काल में ऐसा संभव नहीं था।

(3) इराक पर आक्रमण कर उसके तेल भंडारों पर कब्जा करना तथा अपनी पसंद के शासक को बिठाना:
शीत युद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र संघ की अनुमति के बिना इराक पर रासायनिक हथियार और परमाणु हथियार छिपा रखने का आरोप लगाते हुए सन् 2003 में इराक पर आक्रमण कर दिया। लेकिन इराक में रासायनिक हथियारों की मौजूदगी के कोई प्रमाण नहीं मिले। इसका एकमात्र उद्देश्य इराक के तेल भंडारों को अपने कब्जे में लेना था तथा इराक में अपना ‘जी – हजूर’ शासन स्थापित करना था। जिस प्रकार अमेरिका ने इराक पर आक्रमण किया शीत युद्ध काल में ऐसा आक्रमण करना संभव नहीं था।

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित में मेल बैठायें-

(1) ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच (क) तालिबान और अलकायदा के खिलाफ जंग
(2) ऑपरेशन एंड्यूरिंग फ्रीडम (ख) इराक पर हमले के इच्छुक देशों का गठबंधन
(3) ऑपरेशन डेजर्ट स्टार्म (ग) सूडान पर मिसाइल से हमला
(4) ऑपरेशन इराकी फ्रीडम (घ) प्रथम खाड़ी युद्ध।

उत्तर:

(1) ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच (ग) सूडान पर मिसाइल से हमला
(2) ऑपरेशन एंड्यूरिंग फ्रीडम (क) तालिबान और अलकायदा के खिलाफ जंग
(3) ऑपरेशन डेजर्ट स्टार्म (घ) प्रथम खाड़ी युद्ध
(4) ऑपरेशन इराकी फ्रीडम (ख) इराक पर हमले के इच्छुक देशों का गठबंधन

प्रश्न 7.
अमरीकी वर्चस्व की राह में कौन-से व्यवधान हैं? आपके जानते इनमें से कौन-सा व्यवधान आगामी दिनों में सबसे महत्त्वपूर्ण साबित होगा?
उत्तर:
अमरीकी वर्चस्व की राह में व्यवधान विश्व में वर्तमान में अमेरिकी वर्चस्व कायम है परन्तु इस वर्चस्व की राह में निम्नलिखित प्रमुख व्यवधान हैं:
(1) अमेरिका की संस्थागत बनावट:
अमरीकी वर्चस्व का प्रथम व्यवधान, स्वयं अमेरिका की संस्थागत बुनावट है। यहाँ सरकार के तीनों अंग एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं; उनके बीच शक्ति का बंटवारा है और यही बुनावट कार्यपालिका द्वारा सैन्य शक्ति के बेलगाम इस्तेमाल पर अंकुश लगाने का काम करती है।

(2) अमेरिकी उन्मुक्त समाज:
अमरीकी वर्चस्व के आड़े आने वाली दूसरी अड़चन अमरीकी समाज की उन्मुक्त प्रकृति है। अमरीकी राजनीतिक संस्कृति में शासन के उद्देश्य और तरीके को लेकर गहरा संदेह का भाव रहा है। अमरीकी विदेशी सैन्य अभियानों पर अंकुश रखने में यह बात बड़ी कारगर भूमिका निभाती है।

(3) नाटो द्वारा अंकुश:
अमरीकी वर्चस्व के मार्ग का तीसरा महत्त्वपूर्ण व्यवधान ‘नाटो’ है। अमेरिका का बहुत बड़ा हित लोकतांत्रिक देशों के इस संगठन को कायम रखने से जुड़ा है क्योंकि इन देशों में बाजारमूलक अर्थव्यवस्था चलती है। इसी कारण इस बात की पर्याप्त संभावनाएँ हैं कि ‘नाटो’ में सम्मिलित देश अमेरिकी वर्चस्व पर अंकुश लगा सकते हैं। हमारे विचार से अमरीका के वर्चस्व पर ‘उन्मुक्त समाज’ का व्यवधान सबसे महत्त्वपूर्ण साबित होगा क्योंकि अमेरिका एक लोकतांत्रिक देश है तथा जनमत की अवहेलना कोई भी लोकतांत्रिक सरकार नहीं कर सकती।

प्रश्न 8.
भारत-अमरीका समझौते से संबंधित बहस के तीन अंश इस अध्याय में दिये गये हैं। इन्हें पढ़ें और किसी एक अंश को आधार मानकर पूरा भाषण तैयार करें जिसमें भारत-अमरीकी संबंध के बारे में किसी एक रुख का समर्थन किया गया हो।
उत्तर:
भारत और अमेरिका के मध्य परमाणु ऊर्जा के मुद्दे पर समझौता हुआ। भारत की लोकसभा में इस मुद्दे पर बहस हुई। हम देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के विचारों से सहमत होकर भारत-अमरीकी सम्बन्ध के बारे में निम्नलिखित भाषण तैयार कर सकते हैं:

मान्यवर, शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् विश्व राजनीति में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। सोवियत संघ के विघटन से विश्व एक ध्रुवीय हो गया है। आज विश्व राजनीति अमेरिका के इर्द-गिर्द होकर ही चलती है। इसी संदर्भ में 1991 से भारत ने अपनी आर्थिक नीतियों तथा विदेश नीति में परिवर्तन किये हैं। वर्तमान परिस्थितियों में देश के राष्ट्रीय हितों के लिए यही अच्छा रहेगा कि वह आने वाले समय में अमेरिका से सम्बन्ध अच्छे रखकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अधिक-से-अधिक लाभ उठाये। इसलिये अमरीका और भारत के बीच हुए परमाणु समझौते को लागू न करना भारत के हित में नहीं होगा।

भारत का निर्यात अमेरिका को सबसे ज्यादा है। भारतीय मूल के नागरिक और प्रवासी भारतीय अमेरिका में तकनीकी, इंजीनियरिंग, चिकित्सा और प्रौद्योगिकी सेवाओं में संलग्न हैं। अमेरिका और भारत दोनों ही लोकतांत्रिक और उदारवादी देश हैं। भारत ने हाल के वर्षों में अमेरिका से कुछ ऐसे संधि या समझौते किये हैं, जिनसे दोनों के सम्बन्धों में लगातार सुधार हुआ है। वर्ष 2006 में अमरीका और भारत के बीच हु असैनिक परमाणु ऊर्जा समझौते ने दोनों को और अधिक नजदीक ला दिया है। साथ ही, इस समझौते में ऐसी कोई धारा नहीं है जिससे कि हमारी सुरक्षा पर कोई आंच आती हो।

JAC Class 12 Political Science Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 9.
“यदि बड़े और संसाधन सम्पन्न देश अमरीकी वर्चस्व का प्रतिकार नहीं कर सकते तो यह मानना अव्यावहारिक है कि अपेक्षाकृत छोटी और कमजोर राज्येतर संस्थाएँ अमरीकी वर्चस्व का कोई प्रतिरोध कर पायेंगी।” इस कथन की जाँच करें और अपनी राय बताएँ।
उत्तर:
यह कथन हमारी राय से बिल्कुल सही है कि छोटी और कमजोर राज्येतर संस्थाओं से अमरीकी वर्चस्व के प्रतिरोध की आशा करना पूर्णतः अव्यावहारिक है क्योंकि:

  1. आज अमरीका विश्व का सबसे धनी और सैन्य दृष्टि से सबसे शक्तिशाली देश है। अन्य देश सैन्य क्षमता के मामले में अमेरिका से बहुत पीछे हैं। प्रौद्योगिकी के धरातल पर अमेरिका बहुत आगे निकल गया है।
  2. आज वैचारिक दृष्टि से भी पूँजीवाद समाजवाद को पीछे छोड़ चुका है। आज सोवियत संघ से अलग हुए सभी देशों ने उदारवादी लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपना लिया है।
  3. आज विश्व में सबसे बड़ा साम्यवादी देश चीन है। लेकिन वहाँ भी ताइवान, तिब्बत और अन्य क्षेत्रों में अलगाववाद, उदारीकरण और वैश्वीकरण के पक्ष में आवाज उठती रहती है।
  4. वर्तमान में जब इराक युद्ध, यूगोस्लाविया पर बम वर्षा; अफगानिस्तान पर आक्रमण आदि के सम्बन्ध में चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन, भारत आदि कोई देश अमरीकी वर्चस्व को खुली चुनौती देने में विफल रहा तो ऐसी स्थिति में यह सोचना गलत होगा कि छोटी और कमजोर राज्येतर संस्थाएँ अमरीकी वर्चस्व का कोई प्रतिरोध कर पायेंगी क्योंकि छोटे और विकासशील देश, राज्येतर संस्थाएँ सैनिक, आर्थिक और तकनीकी क्षेत्र में अमेरिका के सामने कहीं नहीं ठहरते।

समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व JAC Class 12 Political Science Notes

→ नई विश्व व्यवस्था की शुरुआत:
सोवियत संघ के विघटन के बाद विश्व में एक ध्रुवीय व्यवस्था कायम हुई है। वर्तमान एक ध्रुवीय व्यवस्था ने शीतयुद्धकालीन व्यवस्था की द्विध्रुवीयता का स्थान ले लिया है। आज संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व की एक सबसे शक्तिशाली ताकत के रूप में उभर गया है। सम्पूर्ण भूमण्डल में यह सैन्य व आर्थिक रूप से शक्तिशाली है। इसकी सैन्य शक्ति का अनुमान हम इसके विशाल रक्षा खर्च से लगा सकते हैं। इसके अतिरिक्त सैन्य प्रौद्योगिकी और अनुसंधान तथा विकास सुविधाओं में नेतृत्व से भी इसका अनुमान लगाया जा सकता है।

→ नई विश्व व्यवस्था में अमरीकी वर्चस्व:
अमरीका ने 1991 से ही वर्चस्वकारी ताकत के रूप में व्यवहार करना प्रारम्भ कर दिया, लेकिन इसका एहसास कुछ अन्य घटनाओं के बाद हो पाया कि आज विश्व अमरीकी वर्चस्व में जी रहा है। यथा-

→ प्रथम खाड़ी युद्ध:
1990 के अगस्त में इराक ने कुवैत पर हमला कर उस पर अपना कब्जा जमा लिया। इराक को समझाने-बुझाने की तमाम राजनयिक कोशिशों के असफल हो जाने पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने कुवैत को मुक्त कराने के लिए बल प्रयोग की अनुमति दे दी। शीत युद्ध के दौरान ज्यादातर मामलों में चुप्पी साध लेने वाले संयुक्त राष्ट्र संघ का यह निर्णय नाटकीय था। अमरीकी राष्ट्रपति ने इसे ‘ नई विश्व व्यवस्था’ की संज्ञा दी 34 देशों की मिली-जुली फौज ने इराक के विरुद्ध मोर्चा खोला और उसे परास्त कर दिया। इसे प्रथम खाड़ी युद्ध कहा जाता है। इराक को कुवैत से हटने को मजबूर होना पड़ा। अमरीका ने इस युद्ध में लाभ कमाया क्योंकि उसने जितनी रकम इस जंग में खर्च की उससे कहीं ज्यादा रकम उसे जर्मनी, जापान और सऊदी अरब जैसे देशों से मिली थी।

→ यूगोस्लाविया पर नाटो की बमबारी (1999 ):
1999 में अपने कोसावों प्रान्त में यूगोस्लाविया ने अल्बीनियाई लोगों के आन्दोलन को कुचलने के लिए सैन्य कार्यवाही की तो इसके जवाब में अमरीकी नेतृत्व में नाटो ने दो माह तक यूगोस्लाविया क्षेत्रों में बमबारी की और यूगोस्लाविया की सरकार गिर गयी तथा कोसावो में नाटो की सेना काबिज हो गई।

→ सूडान और अफगानिस्तान में अलकायदा के ठिकानों पर बमबारी (1998 ):
नैरोबी (केन्या) और दारे सलाम (तंजानिया) के अमरीकी दूतावासों पर बमबारी (1998) के जवाब में अमरीका ने सूडान और अफगानिस्तान अलकायदा के ठिकानों पर कई बार क्रूज मिसाइल से हमले किये। अमरीका ने अपनी इस कार्यवाही के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की अनुमति लेने या इस सिलसिले में अन्तर्राष्ट्रीय कानून की परवाह नहीं की।

→ आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी कार्यवाही:
9/11 को अमेरिका में आतंकवाद की घटना हुई अमेरिका ने इस आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध छेड़ दिया और इसका निशाना अलकायदा तथा अफगानिस्तान के तालिबान – शासन को बनाया तालिबानी – शासन के पाँव तो जल्दी उखड़ गये लेकिन तालिबान और अलकायदा के आतंकवाद के अवशेष अब भी सक्रिय हैं। अमरीकी सेना ने इस संदर्भ में पूरे विश्व में गिरफ्तारियाँ कीं। गिरफ्तार लोगों के बारे में उनकी सरकार को जानकारी नहीं दी गई। गिरफ्तार लोगों को अलग-अलग देशों में भेजा गया और उन्हें खुफिया जेलखानों में बंदी बनाकर रखा गया। संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतिनिधियों तक को इन बंदियों से मिलने की अनुमति नहीं दी गई।

→ इराक पर आक्रमण (2003 ):
2003 के 19 मार्च को अमरीका के नेतृत्व में इराक पर सैन्य हमला किया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस हमले की अनुमति नहीं दी थी। इस हमले का मकसद था – इराक के तेल भंडार पर नियन्त्रण करना और इराक में अमरीका की मनपसन्द सरकार कायम करना।

  • वर्चस्व का अर्थ: जब अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में शक्ति का केन्द्र एक हो तो उसे ‘वर्चस्व’ का नाम दिया जा सकता है।
  • विश्व राजनीति: में अमरीकी वर्चस्व: विश्व राजनीति में अमरीकी वर्चस्व को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है।

(अ) सैन्य शक्ति में अमरीकी वर्चस्व:
समकालीन विश्व राजनीति में संयुक्त राज्य अमेरिका ही महाशक्ति है उसकी सैन्य शक्ति न केवल विशाल रक्षा व्यय से मालूम होती है, बल्कि सैन्य प्रौद्योगिकी और अनुसंधान तथा विकास सुविधाओं में उसके नेतृत्व से भी परिलक्षित होती है।

(ब) ढांचागत शक्ति के अर्थ में वर्चस्व – उच्च शिक्षा, वैज्ञानिक अनुसंधान, उन्नत प्रौद्योगिकी में अमेरिका पूरे विश्व का नेतृत्व कर रहा है। अमेरिका की शक्ति, संपत्ति और स्थिति ने उसे विश्व के महत्त्वपूर्ण मामलों में भूमिका निभाने योग्य बनाया। ढाँचागत शक्ति के अर्थ में वर्चस्व को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है

→ आर्थिक वर्चस्व:
अमरीका वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी इच्छा थोपने व अपनी इच्छा से आर्थिक नीतियों का पालन कराता है तथा सार्वजनिक वस्तुओं को मुहैया कराने में भी विश्व में अमरीका की भूमिका मिलती है। समुद्री – व्यापार मार्ग पर अमरीका के प्रभाव को देखा जा सकता है। इंटरनेट अमरीकी सैन्य योजना अनुसंधान का हीं परिणाम है और जितने भी उपग्रह इंटरनेट पर आधारित हैं, उनमें अधिकांश अमरीका के ही हैं। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व – व्यापार संगठन पर अमरीका का वर्चस्व है।

JAC Class 12 Political Science Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

→ शैक्षणिक वर्चस्व:
अमरीकी वर्चस्व को बढ़ाने में व्यावसायिक शिक्षा ने भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।

→ सांस्कृतिक अर्थ में वर्चस्व:
आज विकसित व अल्पविकसित या विकासशील देशों में सामाजिक व राजनीतिक संस्कृति के जो मॉडल अपनाये गये हैं, वे पूर्णतया अमरीका में प्रचलित संस्कृति की नकल ही कहे जा सकते हैं।

अमरीकी वर्चस्व के मार्ग में बाधाएँ-

  • अमरीकी राजनीतिक व्यवस्था का शक्तियों के पृथक्करण का ढाँचा अमरीकी वर्चस्व के लिए एक सबसे बड़ी चुनौती लग रहा है।
  • अमरीकी जनता के मन में अपनी शासन व्यवस्था के उद्देश्य व तरीकों को लेकर संदेह।
  • नाटो के देश अमरीका के वर्चस्व पर अंकुश लगा सकते हैं।

→ अमरीका से भारत के संबंध:
शीतयुद्ध के दौरान भारत अमरीकी गुट के विरुद्ध खड़ा था तथा सोवियत संघ के करीब था। सोवियत संघ के बिखरने के बाद भारत ने पाया कि लगातार कटुतापूर्ण होते अन्तर्राष्ट्रीय माहौल में वह मित्रविहीन हो गया है। इसी अवधि में भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था का उदारीकरण करने तथा उसे वैश्विक अर्थव्यवस्था से जोड़ने का भी फ़ैसला किया। इस नीति और हाल के सालों में प्रभावशाली आर्थिक वृद्धि दर के कारण भारत अब अमरीका समेत कई देशों के लिए आकर्षक आर्थिक सहयोगी बन गया है।

→ वर्चस्व से कैसे निपटें?
यह बात सत्य है कि कोई भी देश अमरीकी सैन्य शक्ति से टक्कर नहीं ले सकता है। भारत, चीन और रूस जैसे देशों में अमरीकी वर्चस्व को चुनौती देने की क्षमता है लेकिन इन देशों में आपसी मतभेद हैं और इन मतभेदों के कारण अमरीका के विरुद्ध इनका कोई गठबंधन नहीं हो सकता। कुछ विद्वानों का तर्क है कि वर्चस्वजनित अवसरों के लाभ उठाने की रणनीति ज्यादासंगत है। उदाहरण के लिए- आर्थिक वृद्धि – दर को ऊँचा करने के लिए व्यापार को बढ़ावा, प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण और निवेश जरूरी है और अमरीका के साथ मिलकर काम करने से इसमें आसानी होगी न कि उसका विरोध करने से। देशों के सामने यह विकल्प भी है कि दबदबे वाले देश से यथासंभव दूरी बनाकर रखें।

उदाहरण के लिए – चीन, रूस और यूरोपीय संघ सभी अपने को अमरीकी निगाह में चढ़ने से बचा रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि अमरीकी वर्चस्व का प्रतिकार कोई देश अथवा देशों का समूह नहीं कर पाएगा क्योंकि सभी देश अमरीकी ताकत के आगे बेबस हैं। ये लोग मानते हैं कि राज्येतर संस्थाएँ अमरीकी वर्चस्व को आर्थिक और सांस्कृतिक धरातल पर चुनौती दे सकती हैं। ये राज्येत्तर संस्थाएँ विश्वव्यापी नेटवर्क बना सकती हैं जिसमें अमरीकी नागरिक भी शामिल होंगे और साथ मिलकर अमरीकी नीतियों की आलोचना तथा प्रतिरोध किया जा सकेगा।

 

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 3 मानव विकास

Jharkhand Board JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 3 मानव विकास Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Geography Important Questions Chapter 3 मानव विकास

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखो

1. विकास का कौन-सा तत्त्व विरोधाभास नहीं है?
(A) पारिस्थितिक निम्नीकरण
(B) ग़रीबी
(C) कुपोषण
(D) उच्च साक्षरता।
उत्तर:
(D) उच्च साक्षरता।

2. कौन-सा तत्त्व विकास का प्रतीक नहीं ?
(A) संचार जाल
(B) उच्च शिक्षा
(C) औद्योगीकरण
(D) कुपोषण।
उत्तर:
(D) कुपोषण।

3. UNDP द्वारा मानव विकास रिपोर्ट का सर्वप्रथम प्रकाशन कब हुआ?
(A) 1970
(B) 1980
(C) 1990
(D) 1995.
उत्तर:
(D) 1995.

4. भारत का औसत मानव सूचकांक मूल्य है
(A) 0.802
(B) 0.702
(C) 0.602
(D) 0.502.
उत्तर:
(C) 0.602

5. एशिया के निम्नलिखित देशों में किस देश का मानव सचकांक मल्य अधिक है?
(A) जापान
(B) थाईलैण्ड
(C) श्रीलंका
(D) ईरान।
उत्तर:
(A) जापान

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 3 मानव विकास

6. भारत में प्रचलित कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय है
(A) 15813 रु०
(B) 17813 रु०
(C) 18813 रु०
(D) 20813 रु०
उत्तर:
(D) 20813 रु०

7. किस राज्य में ग़रीबी रेखा से नीचे लोगों का प्रतिशत अधिक है ?
(A) बिहार
(B) उड़ीसा
(C) आन्ध्र प्रदेश
(D) असम।
उत्तर:
(B) उड़ीसा

8. भारत में शिशु मृत्यु दर प्रति हजार है –
(A) 50
(B) 60
(C) 70
(D) 80
उत्तर:
(C) 70

9. भारत में मृत्यु दर प्रति हज़ार है
(A) 6
(B) 7
(C) 8
(D) 9
उत्तर:
(C) 8

10. भारत में किस राज्य में साक्षरता दर उच्चतम है ? ।
(A) गोवा
(B) केरल
(C) मिज़ोरम
(D) महाराष्ट्र।
उत्तर:
(B) केरल

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11. भारत में किस राज्य में मानव सूचकांक मूल्य निम्नतम है ?
(A) राजस्थान
(B) बिहार
(C) असम
(D) मध्य प्रदेश।
उत्तर:
(B) बिहार

12. Small is Beautiful पुस्तक के लेखक कौन थे ?
(A) माल्यस
(B) महात्मा गांधी
(C) ई० एफ० शूमाकर
(D) ब्रुडलैण्ड।
उत्तर:
(D) ब्रुडलैण्ड।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
संयुक्त राष्ट्र ने कब सर्वप्रथम मानव विकास प्रतिवेदन प्रस्तुत किया?
उत्तर:
1990 में।

प्रश्न 2.
सन् 2011 में भारत का विश्व में मानव विकास सूचकांक में कौन-सा स्थान है?
उत्तर:
134वां।

प्रश्न 3.
भारत में शिशु मृत्यु दर कितनी है?
उत्तर:
70 प्रति हज़ार।

प्रश्न 4.
भारत में औसत जीवन प्रत्याशा कितनी है?
उत्तर:
65 वर्ष।

प्रश्न 5.
भारत में साक्षरता दर कितनी है?
उत्तर:
74%.

प्रश्न 6.
भारत में साक्षरता दर सबसे कम किस राज्य में है?
उत्तर:
बिहार (47.53%)।

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प्रश्न 7.
भारत में किस राज्य में साक्षरता दर सबसे अधिक है?
उत्तर:
केरल (95.6%)।

प्रश्न 8.
भारत में सकल घरेलू उत्पाद कितना है?
उत्तर:
3200 अरब रुपए।

प्रश्न 9.
भारत में निर्धनता का प्रतिशत कितना है?
उत्तर:
26% (26 करोड़ ग़रीब लोग)।

प्रश्न 10.
भारत के किस राज्य में मानव सूचकांक अधिकतम है?
उत्तर:
केरल (0.638)।

प्रश्न 11.
मानव विकास के चार पक्ष बताओ।
उत्तर:
आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक।

प्रश्न 12.
मानव विकास के तीन सूचकांक बताओ।
उत्तर:
दीर्घ जीविता, ज्ञान तथा उच्च जीवन स्तर।

प्रश्न 13.
भारत में शिशु मृत्यु दर कितनी है?
उत्तर:
70 प्रति हज़ार।

प्रश्न 14.
भारत में स्त्री तथा पुरुष साक्षरता दर कितनी है ?
उत्तर:
स्त्री साक्षरता दर 54.16 प्रतिशत तथा पुरुष साक्षरता दर 75.85 प्रतिशत है।

प्रश्न 15.
भारत के साक्षर लोगों की कितनी संख्या है ?
उत्तर:
90 करोड़।

प्रश्न 16.
भारत में सबसे कम मानव सूचकांक किस राज्य में है ?
उत्तर:
बिहार में 0.367.

प्रश्न 17.
वर्तमान विकास ने कौन से संकट उत्पन्न किए हैं ?
उत्तर:
सामाजिक अन्याय, प्रादेशिक असन्तुलन तथा पर्यावरणीय निम्नीकरण।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 3 मानव विकास

प्रश्न 18.
हमारे सांझा संसाधनों की त्रासदी के क्या कारण हैं?
उत्तर:
वायु, मृदा, जल व ध्वनि प्रदूषण।

प्रश्न 19.
UNDP द्वारा सर्वप्रथम मानव विकास रिपोर्ट कब प्रकाशित की गई?
उत्तर:
1990 में।

प्रश्न 20.
2001 की जनगणना के अनुसार उत्तर भारत में अधिकतम लिंगानुसार वाला राज्य कौन-सा है ?
उत्तर:
केरल।

प्रश्न 21.
2001 की जनगणना के अनुसार न्यूनतम साक्षरता वाला राज्य कौन-सा है ?
उत्तर:
बिहार।

प्रश्न 22.
उस राज्य का नाम लिखें जहां गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली जनसंख्या (10% से कम) न्यूनतम है।
उत्तर:
जम्मू कश्मीर।

प्रश्न 23.
किसी एक राज्य का नाम लिखें जिसमें 40 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या ग़रीबी रेखा से नीचे है ?
उत्तर:
बिहार।

प्रश्न 24.
मानव विकास रिपोर्ट 2001 के अनुसार भारत के किस राज्य का मानव विकास सूचकांक अधिकतम है ?
उत्तर:
केरल।

प्रश्न 25.
भारत में कितने प्रतिशत व्यक्ति ग़रीबी रेखा से नीचे है ?
उत्तर:

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मानव विकास का लक्ष्य क्या है ? इसके तीन प्रमुख पक्ष बताओ।
उत्तर:
मानव विकास का लक्ष्य लोगों का कल्याण होना चाहिए। केवल धन के द्वारा जन कल्याण सम्भव नहीं।
इसके प्रमुख पक्ष हैं –

  1. आर्थिक विकास
  2. सामाजिक विकास
  3. सांस्कृतिक विकास।

प्रश्न 2.
मानव विकास की परिभाषा दो। इसके प्रमुख पक्ष बताओ।
उत्तर:
मानव विकास से अभिप्राय है लोगों के विकल्पों को परिवर्धित करने की प्रक्रिया। इसके प्रमुख तत्त्व दीर्घ स्वस्थ जीवन, शिक्षा और उच्च जीवन स्तर हैं। राजनीतिक स्वतन्त्रता, मानव अधिकारों की गारन्टी, आत्म-निर्भरता तथा स्वाभिमान अन्य पक्ष हैं। इस प्रकार लोगों के विकल्पों के परिवर्द्धन की प्रक्रिया और जन कल्याण के स्तर को ऊंचा उठाना ही मानव विकास है।

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प्रश्न 3.
‘मानव विकास की प्रक्रिया का केन्द्र बिन्दु है’ व्याख्या करो।
उत्तर:
मानव विकास का लक्ष्य है जन कल्याण। इसलिए मानव ही इस विकास का केन्द्र बिन्दु है। विकास लोगों के लिए हो न की लोग विकास के लिए हों। लोगों को स्वास्थ्य, शिक्षा, आदि की क्षमताओं को सुधारने के लिए पूरे अवसर मिलने चाहिए ताकि वे अपनी क्षमताओं का पूरा-पूरा उपयोग कर सकें। इन निर्णयों में पुरुष, स्त्रियां, बच्चे सभी शामिल हों। सब को मानवीय, आर्थिक और राजनीतिक स्वतन्त्रता प्राप्त करने के अवसर प्राप्त हों। विकास का मुख्य लक्ष्य मानव जीवन की समृद्धि होना चाहिए।

प्रश्न 4.
‘मानव विकास सूचकांक एक मिश्र संकेतक है।’ व्याख्या करो।
उत्तर:
जीवन की गुणवत्ता और जन कल्याण के स्तर का मात्रात्मक मापन कठिन है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने मानव विकास सूचकांक (HDI) के रूप में एक मिश्र संकेतक का निर्माण किया है, जो मानव विकास के विविध आयामों का मापन है।

इस सूचकांक में तीन संकेतन शामिल हैं –

  1. दीर्घ जीविता
  2. ज्ञान आधार
  3. उच्च जीवन स्तर।

प्रश्न 5.
‘जीवन प्रत्याशा विशेष रूप से बढ़ी है।’ कारण बताओ।
उत्तर:

  1. जीवन प्रत्याशा बढ़ने का कारण निरन्तर बढ़ती खाद्य सुरक्षा है।
  2. दूसरा कारण चिकित्सा और स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार है।
  3. 1951 में अनाज और दालों की प्रति व्यक्ति प्रतिदिन उपलब्धि 394.9 ग्राम थी जो 2001 में बढ़कर 413 ग्राम हो गई।
  4. अस्पतालों तथा डिस्पेन्सरियों की संख्या में वृद्धि हुई है।
  5. डॉक्टरों तथा नों की संख्या में भी 10 गुणा वृद्धि हुई है।

प्रश्न 6.
नगरों के विकास के विरोधाभासों का वर्णन करो।
उत्तर:
विशाल नगरों में इमारतों, सड़कों तथा सुविधाओं के साथ-साथ विशाल विरोधाभास भी पाए जाते हैं।
जैसे –

  1. झुग्गी और गन्दी बस्तियां
  2. ट्रैफिक जाम व भीड़
  3. अपराध व निर्धनता
  4. भीख मांगना, प्रदूषित जल, वायु।

प्रश्न 7.
मानव विकास सम्बन्धी विकल्प कौन-से हैं ?
उत्तर:

  1. दीर्घ और स्वस्थ जीवन
  2. शिक्षित होना
  3. राजनीतिक स्वतन्त्रता
  4. गारन्टीकृत मानवाधिकार
  5.  व्यक्तिगत आत्म सम्मान।

प्रश्न 8.
कुछ विकसित राज्यों में भी ग़रीबों की संख्या अधिक है?
उत्तर:
उत्तरी भारत के विकसित राज्यों में प्रतिवर्ष आय 4000 रु० से अधिक है परन्तु इन राज्यों में उपभोग की वस्तुओं पर खर्च अधिक है। यह खर्च 690 रु० प्रति व्यक्ति प्रतिमाह है। इसलिए इन राज्यों में भी ग़रीबों की संख्या अधिक है।

प्रश्न 9.
ग़रीबी की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
ग़रीबी वंचित रहने की अवस्था है। निरपेक्ष रूप से यह व्यक्ति की सतत, स्वस्थ और यथोचित उत्पादक जीवन जीने के लिए आवश्यक ज़रूरतों को सन्तुष्ट न कर पाने की असमर्थता को प्रतिबिम्बित करती है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 3 मानव विकास

प्रश्न 10.
2000 रु० प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष आय वाले राज्यों में क्या आर्थिक समस्याएं हैं?
उत्तर:
बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, असम, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में लोगों की प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष आय 2000 रु० से कम है तथा उपभोग वस्तुओं पर 520 रु० प्रतिमाह खर्च है। यहां ग़रीबी, बेरोजगारी तथा अपूर्ण रोजगारी जैसी आर्थिक समस्याएं हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
विश्व में मानवीय विकास में भारत का कौन-सा स्थान है?
उत्तर:
भारत का विश्व के 172 देशों में 134वां स्थान है। (2011 में) भारत का स्थान मध्यम स्तर के मानवीय विकास देशों के वर्ग में है। जहां HDI-0.571 से अधिक है। विभिन्न देशों में नार्वे (0.963), ऑस्ट्रेलिया (0.955), श्रीलंका (0.751), पाकिस्तान (0.527) मानवीय विकास का सूचकांक है।

प्रश्न 2.
मानवीय विकास को मापने के लिए कौन-से सूचकांक प्रयोग किए जाते हैं?
उत्तर:
HDI – आंकने के लिए निम्नलिखित संकेतक प्रयोग किए जाते हैं –
(क) स्वास्थ्य सम्बन्धी संकेतक-जन्म दर, मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर, पोषण।
(ख) जीवन प्रत्याशा-जीवित रहने की सम्भावना का समय।
(ग) सामाजिक सूचकांक-साक्षरता, शिक्षा, स्त्री, साक्षरता, छात्र अध्यापक अनुपात।
(घ) आर्थिक उत्पादन तथा प्रति व्यक्ति आय, वेतन, रोजगार, सकल घरेलू उत्पाद।

प्रश्न 3.
भारत में जन्म दर तथा मृत्यु-दर की 1951 के पश्चात् प्रवृत्तियों का वर्णन करो।
उत्तर:
1951 में मृत्यु दर 25 से घटकर 2011 में केवल 8.1 प्रति हज़ार रह गई है। परन्तु जन्म दर उतनी गति से नहीं कम हुआ है। शिशु, मृत्यु दर 148 प्रति हज़ार घटकर 70% रह गई है। जीवन प्रत्याशा 37 वर्ष से बढ़कर 62 वर्ष हो गई है। जन्मदर 40 से घटकर 26 रह गई है।

प्रश्न 4.
भारत में साक्षरता दर कम होने के क्या कारण हैं?
उत्तर:
भारत में साक्षरता दर 2011 में 74.20% है। पुरुष साक्षरता 73.20% है। जबकि महिला साक्षरता 54.50% है। ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता दर 59.4% है जबकि नगरीय क्षेत्रों में साक्षरता दर 80.30% है।
भारत में निम्न साक्षरता दर के कारण –

  1. ब्रिटिश शासन का भारत में साक्षरता की ओर कम ध्यान था।
  2. निर्धनता के कारण बच्चे कार्य करने में जुट जाते हैं। वे शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते।
  3. स्कूलों में शिक्षकों की कमी है। स्कूल लगभग 5 km की दूरी पर स्थित हैं।
  4. उच्च शिक्षा प्राप्ति के अवसर भी कम हैं।

प्रश्न 5.
स्वाधीनता के पश्चात् भारत में साक्षरता की उन्नति की समीक्षा करो।
उत्तर:
स्वाधीनता से पहले भारत में साक्षरता दर कम थी। 1951 में 18.33% से बढ़कर 2001 में 65.38% हो गई है। देश में शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता में भिन्नता है। इसी प्रकार पुरुष तथा महिला साक्षरता में भी भिन्नता है। 1951-2000 की अवधि में साक्षरता दर तीन गुणा बढ़ी है जबकि महिला साक्षरता दर 6 गुणा बढ़ी है।

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भारत-साक्षरता दर 1951-2001

वर्ष कुल व्यक्ति (%) पुरुष (%) स्त्री (%)
1951 18.33 27.17 8.56
1961 28.30 40.40 15.35
1971 34.45 45.96 29.97
1981 43.57 56.38 29.76
1991 52.21 64.13 39.29
2001 65.38 75.85 54.16

प्रश्न 6.
भारत में उच्च तथा निम्न साक्षरता वाले प्रदेश बताओ।
उत्तर:
भारत में बिहार में सबसे कम 40.53% साक्षरता दर है जबकि केरल में 90, 92% साक्षरता दर है। भारत के 22 राज्यों में तथा केन्द्र शासित प्रदेशों में राष्ट्रीय औसत से अधिक साक्षरता दर है जबकि 13 प्रदेशों में कम है। केरल, मिज़ोरम, लक्षद्वीप, गोवा, दिल्ली, चण्डीगढ़ तथा पांडिचेरी में उच्च साक्षरता दर है जबकि बिहार, झारखण्ड तथा जम्मू कश्मीर में निम्न साक्षरता दर है।

प्रश्न 7.
भारत में स्वास्थ्य संकेतकों की प्रगति का वर्णन करो।
उत्तर:
स्वास्थ्य संकेतक मानव विकास का प्रमुख अंग है। इसका मापन जन्म दर, मृत्यु दर तथा जीवन प्रत्याशा के रूप में किया जाता है।
(क) (i) मृत्यु दर (Death Rate) – मृत्यु दर भारत में तेजी से घटी है। 1951 में मृत्यु दर 25.1% प्रति हज़ार थी जो 1999 में घट कर 8.7 तक रह गई है। मृत्यु दर में 16.4 अंकों की कमी आई है।
(ii) शिशु मृत्यु दर (Infant Mortality Rate) – शिशु मृत्यु दर 1951 की तुलना में आधी है। यह 148 प्रति हज़ार से घटकर 70 रह गई है।
(iii) बाल मृत्यु दर (Child Mortality Rate) – चार वर्ष से कम बच्चों की मृत्यु दर 51.9 से घट कर 22.5 प्रति हज़ार है। इससे स्पष्ट है कि स्वास्थ्य सेवाओं में पर्याप्त सुधार हुआ है।

(ख) (i) जन्म दर (Birth Rate) – जन्म दर धीमी गति से घटी है। 1951 में यह 40.8 से घट कर 1999 में 26.1 प्रति हज़ार रह गई है। इसमें 14.7 अंकों की कमी आई है।
(ii) प्रजनन दर (Fertility Rate) – 1951 में प्रजनन दर 6 बच्चे प्रति स्त्री थी जो 1999 में घटकर 2.99 रह गई है।

(ग) जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) – जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हुई है। 1991 में पुरुष जीवन प्रत्याशा केवल 37.1 वर्ष तथा स्त्री प्रत्याशा 36.2 वर्ष थी परन्तु 2011 में यह बढ़ कर क्रमश: 62.30 तथा 65.27 वर्ष हो गई है।

प्रश्न 8.
मानव विकास क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
पाल स्ट्रीटन के अनुसार निम्नलिखित कारणों से मानव विकास आवश्यक है
(1) विकास की सभी क्रियाओं का अन्तिम उद्देश्य मानवीय दशाओं को सुधारना तथा लोगों के लिए विकल्पों को बढ़ाना है।
(2) मानव विकास उच्चतर उत्पादकता का साधन है। सुपुष्ट, स्वस्थ, शिक्षित, कुशल और सतर्क श्रमिक, अधिक उत्पादन करने में समर्थ होते हैं। अत: उत्पादकता के आधार पर भी मानव विकास में विनिवेश न्यायसंगत माना जाता है।
(3) मानव विकास भौतिक पर्यावरण हितैषी भी है। मानव विकास ग़रीबी को घटाने, वनों के विनाश, मरुस्थलों के फैलाव व मृदा अपरदन रोकने में सहायक होता है। गरीबी के घटने से निर्वनीकरण, मरुस्थलीकरण और मृदा अपरदन भी कम हो जाता है।
(4) सुधरी मानवीय दशाएं और घटी गरीबी, स्वस्थ और सभ्य समाज के निर्माण में योगदान देती हैं तथा लोकतन्त्र तथा सामाजिक स्थिरता को बढ़ाती हैं।
अतः मानव विकास की संकल्पना केवल अर्थव्यवस्था के विकास से सम्बन्धित न होकर, मानव के सम्पूर्ण विकास से सम्बन्धित है।

प्रश्न 9.
आर्थिक विकास तथा मानव विकास में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर”
आर्थिक विकास और मानव विकास की संकल्पनाओं में आधारभूत अन्तर है। पहले में मानव की आय बढ़ाने पर ही मुख्य रूप से बल दिया जाता है, जबकि दूसरे में मानवीय विकल्पों के बढ़ाने पर बल दिया जाता है। मानवीय विकल्प हैं-आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक विकास। ऐसे विकास के लिए आर्थिक विकास अनिवार्य हैं, लेकिन इसका परिप्रेक्ष्य भिन्न होता है। इसमें निहित मूल सिद्धान्त आय का उपयोग है न कि स्वयं आय। इसी से मानवीय विकल्पों में वृद्धि होती है। इस प्रकार राष्ट्रों की वास्तविक सम्पदा उनके लोग हैं। अत: विकास का मुख्य लक्ष्य मानव जीवन की समृद्धि ही होना चाहिए।

प्रश्न 10.
मानव संसाधन विकास तथा मानव विकास में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
मानव विकास का अर्थ है जन कल्याण। इसका उद्देश्य है लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा करना। मानव विकास लोगों के विकल्पों में वृद्धि करता है।
मानव संसाधन विकास का अर्थ है संसाधनों का उपयोग करना। यह क्रिया मानव कुशलता, प्रौद्योगिकी तथा विकास स्तर पर निर्भर करता है। कोई संसाधन तब तक संसाधन नहीं बनता जब तक उसका पूरा उपयोग न हो।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 3 मानव विकास

प्रश्न 11.
मानव विकास के संकेतक का वर्णन करो।
उत्तर:
जीवन की गुणवत्ता और जनकल्याण के स्तर का मात्रात्मक मापन कठिन है। फिर भी मानव विकास के विविध आयामों के मापन क लिए एक व्यापक मापक की खोज करते-करते संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने एक मिश्र संकेतक का निर्माण किया है, जिसे अब मानव विकास सूचकांक के रूप में जाना जाता है।
इसमें –

  1. दीर्घजीविता
  2. ज्ञान आधार और
  3. उच्च जीवन स्तर शामिल हैं।

संकेतक को सरल बनाए रखने के लिए केवल सीमित चरों को ही शामिल किया गया है।
प्रारम्भ में जीवन प्रत्याशा को दीर्घजीविता के संकेतक के रूप में, प्रौढ़ साक्षरता को ज्ञान के संकेतक के रूप में, क्रय शक्ति समता के लिए, समायोजित प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय उत्पाद को अच्छे जीवन के संकेतक के रूप में चुना गया था। इन चरों को विभिन्न इकाइयों में अभिव्यक्त किया जाता है। इसीलिए अनेक संकेतकों के स्थान पर एक मिश्र संकेतक के निर्माण के लिए एक विधितन्त्र का विकास किया गया था।

प्रश्न 12.
‘विकास स्वतन्त्रता है’ व्याख्या करो।
अथवा
विकास क्षेत्र यूरोप-केन्द्रित विचार की व्याख्या करो।
उत्तर:
पश्चिमी देशों के विचार के अनुसार विकास स्वतन्त्रता है। इसका सम्बन्ध आधुनिकीकरण, अवकाश, सुविधा व समृद्धि से जुड़ा हुआ है। वर्तमान समय में कम्प्यूटरीकरण, औद्योगीकरण सक्षम परिवहन और जाल, बृहत शिक्षा प्रणाली, आधुनिक चिकित्सा सुविधाएं, सुरक्षा इत्यादि को विकास का प्रतीक समझा जाता है। विकास के स्तर को इन वस्तुओं की उपलब्धता और गम्यता के सन्दर्भ में पाया जाता है। परन्तु यह विकास का एक तरफा दृश्य है। भारत जैसे उत्तर-उपनिवेशी देश के लिए उपनिवेशवाद, सीमांतीकरण, सामाजिक भेदभाव और प्रादेशिक असमता विकास का दूसरा पहलू है। इसलिए कहा जाता है कि विकास और पर्यावरण एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

प्रश्न 13.
विकास की निम्नतर मानवीय दशाओं का किन प्रक्रियाओं से सम्बन्ध है? वर्तमान विकास किन समस्याओं का कारण है ?
उत्तर:
विकास का एक अन्य अन्तर्सम्बन्धित पक्ष भी है जिसका निम्नतर मानवीय दशाओं से सीधा सम्बन्ध है। इसका सम्बन्ध पर्यावरणीय प्रदूषण से है जो पारिस्थितिक संकट का कारक है। वायु, मृदा, जल और ध्वनि प्रदूषण न केवल ‘हमारे साझा संसाधनों की त्रासदी’ का कारण बने हैं अपितु हमारे समाज के अस्तित्व के लिए भी खतरा
बन गए हैं।

परिणामस्वरूप, निर्धनों में सामर्थ्य के गिरावट के लिए तीन अन्तर्संबंधित प्रक्रियाएं कार्यरत हैं –
(क) सामाजिक सामर्थ्य में कभी विस्थापन और दुर्बल होते सामाजिक बन्धनों के कारण
(ख) पर्यावरणीय सामर्थ्य में कभी प्रदूषण के कारण, और
(ग) व्यक्तिगत सामर्थ्य में कभी बढ़ती बीमारियों और दुर्घटनाओं के कारण। अन्ततः उनके जीवन की गुणवत्ता और मानव विकास पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

उपर्युक्त अनुभवों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वर्तमान विकास सामाजिक अन्याय, प्रादेशिक असन्तुलन और पर्यावरणीय निम्नीकरण के मुद्दों के साथ स्वयं को जोड़ नहीं पाया है। इसके विपरीत इसे व्यापक रूप से सामाजिक वितरक अन्यायों, जीवन की गुणवत्ता और मानव विकास में गिरावट, पारिस्थितिक संकट और सामाजिक अशान्ति का कारण माना जा रहा है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 3 मानव विकास

प्रश्न 14.
मानव विकास की प्रकृति कौन-से कारक निर्धारित करते हैं?
उत्तर:
मानव विकास सूचकांक में निम्न स्कोर का होना गम्भीर चिन्ता का विषय है, स क मूल्यों के परिकलन के लिए चुने गए सूचकों का वर्णन निम्नलिखित है
(1) उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद और नव-साम्राज्यवाद जैसे ऐतिहासिक कारको
(2) मानवाधिकार उल्लंघन, प्रजाति, धर्म, लिंग और जाति के आधार पर सामाजिक भेदभाव जैसे सामाजिक-सांस्कृतिक कारक
(3) अपराध आतंकवाद और युद्ध जैसी सामाजिक समस्याएं और
(4) राज्य की प्रकृति, सरकार का स्वरूप (लोकतन्त्र अथवा तानाशाही), सशक्तिकरण का स्तर जैसे राजनीतिक कारकों के प्रति संवेदनशीलता का अभाव ये कारक मानव विकास की प्रकृति के निर्धारण में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। भारत तथा अन्य अनेक विकासशील देशों के सम्बन्ध में इन पक्षों का विशेष महत्त्व है।

प्रश्न 15.
आर्थिक उपलब्धियों के सचक बताओ। इस बारे कौन-सी विषमताएं हैं?
उत्तर:
आर्थिक उपलब्धियों के सूचक-आर्थिक उपलब्धियों के निम्नलिखित सूचक हैं –
(1) समृद्ध संसाधन आधार और
(2) इन संसाधनों तक सभी, विशेष रूप से निर्धन, पद-दलित और हाशिए पर छोड़ दिए गए लोगों की पहुंच
(3) उत्पादकता, ये कल्याण और मानव विकास की कुंजी है। सकल घरेलू उत्पादन और इसकी प्रति व्यक्ति उपलब्धता को किसी देश के संसाधन आधार/अक्षयनिधि का माप जाना जाता है। भारत के लिए ऐसा आकलन किया गया है कि इसका सकल घरेलू उत्पाद (प्रचलित कीमतों पर) 3200 करोड़ रु० था और इस प्रकार प्रचलित कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय 20,813 रु० थी। प्रत्यक्ष रूप से आंकड़े एक प्रभावशाली निष्पादन का संकेत देते हैं। विषमताएं-गरीबी, वंचना, कुपोषण, निरक्षरता, अनेक प्रकार के पूर्वाग्रह और इन सबसे बढ़कर सामाजिक वितरण, अन्याय और बड़े पैमाने की प्रादेशिक विषमताएं इन सभी तथाकथित आर्थिक उपलब्धियों को झूठा साबित करती हैं।

प्रश्न 16.
स्वस्थ जीवन के सूचक बताओ। इनके सम्बन्ध में भारत में प्रगति का वर्णन करो।
उत्तर:
स्वस्थ जीवन के सूचक-रोग और पीड़ा से मुक्त जीवन और यथोचित दीर्घायु एक स्वस्थ जीवन के सूचक हैं।

  1. शिशु मर्त्यता
  2. माताओं में प्रजननोत्तर मृत्यु दर को घटाने के उद्देश्य से पूर्व
  3. प्रसवोत्तर स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता
  4. वृद्धों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं
  5. पर्याप्त पोषण और
  6. व्यक्तियों की सुरक्षा एक स्वस्थ और लम्बे जीवन के कुछ महत्त्वपूर्ण माप हैं।

भारत में प्रगति –
1. मृत्यु दर का घटना-कुछ स्वास्थ्य सूचकों के क्षेत्र में भारत में सराहनीय कार्य किया है, जैसे मृत्यु दर का 1951 में 25.1 प्रतिशत से घटकर 1999 में 8.1 प्रति हजार होना।
2. शिशु मर्त्यता का घटना-इसी अवधि में शिशु मर्त्यता का 148 प्रति हज़ार से 70 प्रति हज़ार होना।
3. जीवन प्रत्याशा में वृद्धि-इसी प्रकार 1951 से 1999 की अवधि में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा में पुरुषों के लिए 37.1 वर्ष से 62.3 वर्ष तथा स्त्रियों के लिए 36.2 वर्ष से 65.3 वर्ष की वृद्धि करने में भी सफलता मिली। यद्यपि ये महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां हैं, फिर भी बहुत कुछ करना बाकी है।
4. जन्म दर का घटना-इसी प्रकार, इसी अवधि के दौरान भारत ने जन्म दर को 40.8 से 26.1 तक नीचे लाकर अच्छा कार्य किया है, किन्तु यह जन्म दर भी अनेक विकसित देशों की तुलना में काफी ऊंची है।

JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 3 मानव विकास

प्रश्न 17.
ऐसे कौन-से कारण हैं जिनके फलस्वरूप मानव विकास अति आवश्यक है ?
उत्तर:
निम्नलिखित कारणों के कारण मानव विकास अति आवश्यक हैं –
(i) विकास की सभी क्रियाओं का अन्तिम उद्देश्य मानवीय दशाओं को सुधारना तथा लोगों के लिए विकल्पों को बढ़ाना है।
(ii) मानव विकास उच्चतर उत्पादकता का साधन है। सुपुष्ट, स्वस्थ, शिक्षित, कुशल और सतर्क श्रमिक, अधिक उत्पादन करने में समर्थ होते हैं। अत: उत्पादकता के आधार पर भी मानव विकास में विनिवेश न्यायसंगत माना जाता है। . .
(iii) मानव विकास भौतिक पर्यावरण हितैषी भी है। गरीबी के घटने से वनों का विनाश, मरुस्थलीकरण और मृदा अपरदन भी कम हो जाता है।
(iv) सुधरी मानवीय दशाएं और घटी गरीबी स्वस्थ और सभ्य समाज के निर्माण में योगदान देती हैं तथा लोकतन्त्र तथा सामाजिक स्थिरता को बढ़ाती हैं।
अतः मानव विकास की संकल्पना केवल अर्थव्यवस्था के विकास से सम्बन्धित न होकर, मानव के सम्पूर्ण विकास से सम्बन्धित है। इसलिए यह अति आवश्यक है।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में समाज के विभिन्न वर्गों के विकास के अवसरों का वितरण समान नहीं है उदाहरण देकर व्याख्या करो।
उत्तर:
इस प्रकार, भारत के लिए विकास अवसरों के साथ-साथ उपेक्षाओं एवं वंचनाओं का मिला-जुला थैला है।
(1) यहां महानगरीय केन्द्रों और अन्य विकसित अन्तर्वेशों (इनक्लेव) जैसे कुछ क्षेत्र हैं जहां इनकी जनसंख्या के एक छोटे से खण्ड को आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं।
(2) दूसरे छोर पर विशाल ग्रामीण क्षेत्र और नगरीय क्षेत्रों की गन्दी बस्तियां हैं जिनमें पेयजल, शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसी आधारभूत सुविधाएं और अवसंरचना इनकी अधिकांश जनसंख्या के लिए उपलब्ध नहीं है।
(3) यह एक सुस्थापित तथ्य है कि अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, भूमिहीन कृषि मजदूरों, गरीब किसानों और गन्दी बस्तियों में बड़ी संख्या में रहने वाले लोगों इत्यादि का बड़ा समूह सर्वाधिक हाशिए पर है।
(4) स्त्री जनसंख्या का बड़ा खण्ड इन सबमें से सबसे ज़्यादा कष्टभोगी है।।
(5) यह भी समान रूप से सत्य है कि वर्षों से हो रहे विकास के बाद भी सीमान्त वर्गों में से अधिकांश की सापेक्षिक के साथ-साथ निरपेक्ष दशाएं भी बदतर हुई हैं। परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोग पतित निर्धनता पूर्ण और अमानवीय दशाओं में जीने को विवश हैं।

प्रश्न 2.
पर्यावरण, संसाधन तथा विकास में सम्बन्ध बताओ। इस बारे विभिन्न लेखकों के विचार बताओ।
उत्तर:
जनसंख्या, पर्यावरण और विकास-मानव विकास सामाजिक विज्ञानों में प्रयुक्त होने वाली एक जटिल संकल्पना है। यह जटिल है क्योंकि युगों से यही सोचा जा रहा है कि विकास एक मूलभूत संकल्पना है और यदि एक बार इसे प्राप्त कर लिया गया तो यह समाज की सभी सामाजिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय समस्याओं का निदान हो जाएगा।

यद्यपि विकास ने मानव जीवन की गुणवत्ता में अनेक प्रकार से महत्त्वपूर्ण सुधार किया है परन्तु अनेक संकट भी उत्पन्न किए हैं जैसे –

  1. प्रादेशिक विषमताएं
  2. सामाजिक असमानताएं
  3. भेदभाव
  4. वंचना
  5. लोगों का विस्थापन
  6. मानवाधिकारों पर आघात
  7. मानवीय मूल्यों का विनाश तथा
  8. पर्यावरणीय निम्नीकरण भी बढ़ा है।

सम्बद्ध मुद्दों की गम्भीरता और संवेदनशीलता को भांपते हुए संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने अपनी 1993 की मानव विकास रिपोर्ट में विकास की अवधारणा में अभिभूत कुछ स्पष्ट पक्षपातों और पूर्वाग्रहों को संशोधित करने का प्रयत्न किया है। लोगों की प्रतिभागिता और उनकी सुरक्षा 1993 की मानव विकास रिपोर्ट के प्रमुख मुद्दे थे। इसमें मानव विकास की न्यूनतम दशाओं के रूप में उत्तरोत्तर लोकतन्त्रीकरण और लोगों के बढ़ते सशक्तिकरण पर बल दिया गया था।

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नागरिक समाजों की भूमिका-नागरिक समाजों को विकसित देशों द्वारा प्रतिरक्षा खर्चों में कटौती, सशस्त्र बलों के अपरियोजन, प्रतिरक्षा से आधारभूत वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन की ओर संक्रमण और विशेष रूप से निशस्त्रीकरण तथा नाभिकीय युद्धास्त्रों की संख्या घटाने के लिए जनमत तैयार करने की दिशा में कार्य करना चाहिए। एक नाभिकीय-कृत विश्व में शान्ति और कल्याण दो प्रमुख वैश्विक चिन्ताएं हैं।

जनसंख्या तथा संसाधान-इस उपागम के दूसरे छोर पर नव-माल्थस वादियों, पर्यावरणविदों और आमलवादी पारिस्थितिकविदों द्वारा व्यक्त विचार हैं। उनका विश्वास है कि एक प्रसन्नचित्त एवं शांत सामाजिक जीवन के लिए जनसंख्या और संसाधनों के बीच उचित सन्तुलन एक आवश्यक दशा है। इन विचारकों के अनुसार जनसंख्या और संसाधनों के बीच का अन्तर 18वीं शताब्दी के बाद बढ़ा है। विगत 300 वर्षों में विश्व के संसाधनों में बहुत थोड़ी वृद्धि हुई है जबकि मानव जनसंख्या में विपुल वृद्धि हुई है। विकास ने केवल विश्व के सीमित संसाधनों के बहुविध प्रयोगों को बढ़ाने में योगदान दिया है जबकि इन संसाधनों की मांग में अत्यधिक वृद्धि हुई है।

इस प्रकार विकास के किसी भी क्रियाकलाप के समक्ष परम कार्य जनसंख्या और संसाधनों के बीच समता बनाए रखना है। सर राबर्ट माल्थस मानव जनसंख्या की तुलना में संसाधनों के अभाव के विषय में चिन्ता व्यक्त करने वाले पहले विद्वान् थे। प्रत्यक्ष रूप से यह विचार तर्कसंगत और विश्वासप्रद लगता है परन्तु यदि विवेचनात्मक ढंग से देखा जाए तो इसमें कुछ अन्तर्निहित दोष हैं जैसे कि संसाधन एक तटस्थ वर्ग नहीं है। संसाधनों की उपलब्धता का होना इतना महत्त्वपूर्ण नहीं है जितना कि उनका सामाजिक वितरण। संसाधन हर जगह असमान रूप से वितरित हैं।

समृद्ध देशों और लोगों की संसाधनों के विशाल भण्डारों तक पहुंच’ है जबकि निर्धनों के संसाधन सिकुड़ते जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त शक्तिशाली लोगों द्वारा अधिक से-अधिक संसाधनों पर नियन्त्रण करन पर नियन्त्रण करने के लिए किए गए अनंत प्रयत्नों और उनका अपनी असाधारण विशेषता को प्रदर्शित करने के लिए प्रयोग करना ही जनसंख्या संसाधनों और विकास के बीच संघर्ष और अन्तर्विरोधों के प्रमुख कारण हैं।

भारतीय संस्कृति और सभ्यता लम्बे समय से ही जनसंख्या, संसाधनों और विकास के प्रति संवेदनशील रही हैं कहना गलत नहीं होगा कि प्राचीन ग्रन्थ मूलतः प्रकृति के तत्त्वों के बीच सन्तुलन और समरसता के प्रतिचिंतित थे। महात्मा गांधी ने अभिनव समय में ही दोनों के बीच सन्तुलन और समरसता के प्रबलन को प्रेषित किया है। गांधी जी हो रहे विकास, विशेष रूप से इसमें जिस प्रकार औद्योगिकीकरण द्वारा नैतिकता, आध्यात्मिकता, स्वावलम्बन, अहिंसा और पारस्परिक सहयोग और पर्यावरण के ह्रास का सांस्थितीकरण किया गया है, के प्रति आशंकित थे।

उनके विचार में व्यक्तिगत मितव्ययता, सामाजिक धन की न्यासधारिता और अहिंसा एक व्यक्ति और एक राष्ट्र के जीवन में उच्चतर लक्ष्य प्राप्त करने की कुंजी है। उनके विचार क्लब ऑफ रोम की रिपोर्ट ‘लिमिट्स टू गोथ’ (1972), शूमाकर की पुस्तक ‘स्माल इज ब्यूटीफुल’ (19 74) बुंडलैंड कमीशन की रिपोर्ट ‘ऑवर कामन फ्यूचर’ (1987) और अन्त में ‘एजेंडा-21 रिपोर्ट ऑफ द रियो कान्फेरेंस’ (1993) में भी प्रतिध्वनित हुए हैं।

JAC Class 9th Social Science Notes Geography Chapter 5 Natural Vegetation and Wildlife

JAC Board Class 9th Social Science Notes Geography Chapter 5 Natural Vegetation and Wildlife

→ Introduction

  • Our country India is one of the twelve mega bio-diversity countries of the world.
  • With about 47,000 plant species, India occupies tenth place in the world and fourth in Asia in plant diversity. There are about 15,000 flowering plants in India, which account for 6 per cent the world’s total number of flowering plants.

→ Natural Vegetation

  • Natural vegetation refers to a plant community which has grmvn naturally without human aid and has been left undisturbed by humans for a long time. This is also called Virgin Vegetation.
  • Virgin vegetation is of two types: (i) Endemic species: These plants species have originated from the country. (ii) Exotic species: These plants species have originated outside the country.

→ Factors affecting flora and fauna: Factors which influence the diversity of flora and fauna are as follows:

  • Relief: It includes land and soil.
  • Land: The nature of the land i.e., hilly, plateau or a plain, determines the kind of vegetation which will grow on it. Fertile lands are used for growing crops, vegetables and fruits. Rugged and uneven terrains generally develop either into grasslands or forests.
  • Soil: The soils also vary from place to place. Different kinds of soils provide different kinds of vegetation.

Climate: It includes temperature, photoperiod and precipitation.

  • Temperature: The character and extent of vegetation and distribution of fauna is mainly determined by temperature.
  • Photoperiod: Due to longer duration of sunlight, trees grow faster in summers.
  • Precipitation: Areas of heavy rainfall have more dense vegetation and fauna as compared to other areas of less rainfall.

→ Types of Vegetation

  • According to India State of Forest Report 2011, the forest cover in India is 21.05 per cent.
  • India has following types of vegetation: (i) Tropical evergreen forests, (ii) Tropical deciduous forests, (ii) Tropical thorn  (iv) orests and scrubs, (v) Montane forests, (vi) Mangrove forests.
  • Tropical Evergreen Forests: They are found in areas where the annual rainfall is over 200 cm with a short dry season.
  • Ebony, mahogany, rubber, cinchona and rosewood trees are useful commercial trees found in these forests.
  • Animals found here include rhinoceros, elephants, monkey, lemur, deer, many bird species etc.

→ Regions of these forests are western slopes of the Western Ghats, Lakshadweep islands, Andaman and Nicobar Islands, upper parts of Assam and some parts of the coasts of Tamil Nadu and Odisha.

JAC Class 9th Social Science Notes Geography Chapter 5 Natural Vegetation and Wildlife

→ Tropical deciduous forests

  • Tropical deciduous forests or monsoon forests are the most widespread forests of India.
  • These types of forests are found in areas with rainfall ranging from 70 to 200 cm.
  • On the basis of the availability of water, these forests are further divided into moist and dry deciduous.
  • Moist deciduous forests are found mostly in the eastern part of the country, such as- north-eastern states, west Odisha, Jharkhand, Chhattisgarh, foothills of Himalayas and the leeward side of the Western Ghats. Teak is the most prominent species of these forests.
  • Dry deciduous forests are found in rainier parts of the Peninsular plateau and the plains of Uttar Pradesh and Bihar.

→ Tropical Thron Forests and Scrubs

  • These forests are found in north-western part of the country including semi-arid areas of Gujarat, Rajasthan, some areas of Uttar Pradesh, Chhattisgarh, Haryana and Madhya Pradesh.
  • Trees like acacia, palm, euphorbia and cactus are found in these areas. Fox, wolf, rats and mice, wild ass, horses, tiger, lion, camels and similar animals are found in these areas.

→ Montane Forests

  • Montane forests are found in mountainous areas of Jammu and Kashmir, Himachal Pradesh, Uttarakhand, Sikkim and Arunachal Pradesh.
  • Altitudinal distribution of montane forests are as follows: (i) Wet temperature forests, (ii) Temperate forests, (iii) Temperate grasslands, (iv) Alpine vegetation, (v) Alpine grasslands, (vi) Tundra vegetation.
  • Trees like oaks, chestnut, pine, deodar, silver fir, spruce, cedar, birch are found in these areas.
  • Animals found here include the Kashmir stag, spotted dear, wild sheep, Jack rabbit, Tibetan antelope, yak, snow leopard, squirrels, bear, rare red panda, sheep and goats with thick hair.

→ Mangrove Forests

  • These are found in the delta areas of rivers on the eastern coast in India (Ganga, Brahmaputra, Mahanadi, Godavari, Krishna and Kaveri).
  • In the Ganga-Brahmaputra delta, Sundari trees providing durable timber are prominent. Other trees are palm, coconut, keora and agar.
  • Animals found here include the Royal Bengal tigers, snakes, turtles, gharials and crocodiles.

→ Wild Life

  • Like its flora, India is also rich in its fauna.
  • India has approximately 90,000 of animal species. The country has more than 2,000 species of birds. They constitute 13% of the world’s total species. There are 2,546 species of fish, which account for nearly 12% of the world’s stock. It also shares between 5 and 8 per cent of the world’s amphibians, reptiles and mammals.
  • Wildlife Protection Act was implemented in 1972 in India.
  • The Gir forest is the last remaining inhabitat of the Asiatic lion.
  • The Elephants are found in the hot wet forests of Assam, Karnataka and Kerala.
  • Indian bison, nilgai, chousingha, garel and different species of deer and some other animals are also found in India.
  • India is the only country in the world that has both tigers and lions.
  • The natural habitat of the Indian lion is the Gir forest in Gujarat.
  • Tigers are found in the forests of Madhya Pradesh, the Sundarbans of West Bengal and the Himalayan region.
  • Gharial is the only representative of a variety of crocodile found in India.
  • Peacocks, pheasants, ducks, parakeets, cranes and pigeons are some of the birds inhabiting the forests and wetlands of the country.
  • The wetlands of India are home to many migratory birds such as Siberian crane, flamingo, etc.
  • Due to excessive exploitation of plant and animal resources by human beings, the ecosystem has been disturbed.

→ The main cause of threat to ecosystem are:

  • Hunting by greedy hunters for commercial purpose,
  • Pollution due to chemical and industrial waste, acid deposits,
  • Reckless cutting of the forests to bring land under cultivation and habitation,
  • Introduction of alien species.

→ To protect the flora and fauna of the country, the government has taken many steps, such as:

  • Setting up of various biosphere reserves,
  • Providing financial and technical assistance to many botanical gardens,
  • Introduced eco-developmental projects,
  • National Parks (104), Wildlife Sanctuaries, (543) and Zoological Gardens have been set up.

→ But, in spite of all these steps, all of us must realise the importance of the natural eco-system for our own survival. It is possible if indiscriminate destruction of natural environment is put to an immediate end.

JAC Class 9th Social Science Notes Geography Chapter 5 Natural Vegetation and Wildlife

→ Natural Vegetation/Virgin Vegetation: It refers to a plant community which has grown naturally without human aid and is left undisturbed by humans for a long time.

→ Wildlite: It refers to undomesticated animal species, but has come to include all plants, fungi, and other organisms that grow or survive wild in an area without being introduced by humans.

→ Biodiversity: The existence of a large number of different kinds of animals and plants which makes a balanced environment.

→ Fern: A green plant with no flowers and a lot of long thin leaves.

→ Algae: Algae is a single or multi-cellular organism that has no roots, stems or leaves and is often found in water.

→ Endemic Species: Purely Indian species.

→ Exotic Plants or Species: Plants or species which have come from outside in India are called exotic plants or species.

→ Flora: It is used to denote plants of a particular region.

→ Fauna: It is used to denote animals of a particular region.

→ Feres: Extensive and covered with trees.

JAC Class 9th Social Science Notes Geography Chapter 5 Natural Vegetation and Wildlife

→ Tropical Forests: These forests are dense and evergreen; they grow in areas receiving over 200 cm annual rainfall.

→ Deciduous Forests: Forests having trees that lose their leaves every year.

→ Thorn and Scrub Forests: These grow in areas receiving less than 70 cm of annual rainfall.

→ Ecosystem: It comprises the community of living organisms and the physical environment.

→ Biosphere: Part of the earth which is inhabited by living things.

→ Biosphere Reserve: A reserved forest area where all types of flora and fauna are conserved in their natural environment.

→ National Park: It is a reserved area meant for preserving natural vegetation, wildlife and natural beauty.

→ Wildlife Sanctuaries: Wildlife sanctuaries are that part of the natural forests where hunting and poaching of wild animals and birds is prohibited.

→ Zoological gardens: These are reserved gardens where wild animals are kept in man- made surroundings according to their natural habitat.

JAC Class 9 Social Science Notes

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 निर्धनता : एक चुनौती

JAC Board Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 निर्धनता : एक चुनौती

→ स्वतन्त्र भारत के समक्ष सर्वाधिक कठिन चुनौती निर्धनता की समस्या है।

→ भारत एवं विश्व में निर्धनता की प्रवृतियों को निर्धनता रेखा की अवधारणा के माध्यम से समझाया गया है।

→ जिन्हें हम निर्धन समझते हैं वे गाँवों के भूमिहीन श्रमिक या शहरों की भीड़ भरी झुग्गियों में रहने वाले लोग हो सकते हैं। ये निर्धन लोग दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी या ढाबों पर काम करने वाले बाल श्रमिक अथवा भिखारी भी हो सकते हैं।

→ एक व्यक्ति तब निर्धन माना जाता है जब उसकी आय या उपभोग का स्तर इतना कम होता है कि वह अपनी मूलभूत न्यूनतम आवश्यकताओं को भी पूर्ण नहीं कर पाता है।

→ महात्मा गाँधी सदैव इस बात पर जोर देते थे कि भारत सही मायने में तभी स्वतन्त्र होगा जब यहाँ का सबसे निर्धन व्यक्ति भी मानवीय व्यथा से मुक्त होगा।

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 निर्धनता : एक चुनौती

→ सामाजिक वैज्ञानिकों द्वारा निर्धनता को अनेक सूचकों जैसे आय और उपभोग के स्तर, निरक्षरता के स्तर, कुपोषण के कारण रोग प्रतिरोधी क्षमता की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, रोजगार के अवसरों की कमी, सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता की कमी आदि के माध्यम से देखा जाता है।

→ निर्धनता के प्रति असुरक्षा एक माप है जो कुछ विशेष समुदायों या व्यक्तियों के आने वाले वर्षों में निर्धन होने या बने रहने की सम्भावना को प्रदर्शित करता है।

→ असुरक्षा का निर्धारण परिसम्पत्तियों, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों का जीविका के लिए विभिन्न समुदायों के पास उपलब्ध विकल्पों से होता है।

→ निर्धनता रेखा की अवधारणा के माध्यम से निर्धनता का आकलन सामान्य आय एवं उपभोग स्तर के आधार पर समझाया जाता है।

→ व्यक्तियों की मूल आवश्यकताएँ काल एवं स्थान के अनुसार भिन्न होती हैं इसीलिए काल एवं स्थान के अनुसार निर्धनता रेखा भी भिन्न होती है।

→ निर्धनता रेखा का आकलन सामान्यतः प्रत्येक 5 वर्ष बाद ‘राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन’ द्वारा किया जाता है।

→ भारत में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के परिवार निर्धनता के प्रति सर्वाधिक असुरक्षित हैं। आर्थिक समूहों ‘ में सर्वाधिक असुरक्षित समूह-ग्रामीण कृषि श्रमिक परिवार व अनियमित मजदूर परिवार हैं।

→ निर्धन परिवार के सभी लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है किन्तु कुछ लोगों, जैसे महिलाओं, वृद्धों और लड़कियों को अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

JAC Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 3 निर्धनता : एक चुनौती

→ वर्ष 2011-12 में भारत का निर्धनता अनुपात 22 प्रतिशत था, लेकिन सभी राज्यों में इसकी दर एक समान नहीं है।

→ भारत के उड़ीसा, असम, बिहार, बंगाल, त्रिपुरा और उत्तर प्रदेश राज्यों में निर्धनता अन्य राज्यों की अपेक्षा एक गम्भीर समस्या है।

→ पंजाब और हरियाणा राज्यों में उच्च कृषि वृद्धि दर के द्वारा, केरल में मानव संसाधन विकास द्वारा तथा पश्चिमी बंगाल में भूमि सुधार उपायों के माध्यम से निर्धनता को कम करने में सफलता हासिल की गई है।

→ भारत में निर्धनता के प्रमुख कारण हैं

  • ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान आर्थिक विकास का निम्न स्तर।
  • जनसंख्या में उच्च वृद्धि दर का पाया जाना।
  • गाँवों से शहरों की ओर पलायन की प्रवृत्ति ने नगरीय क्षेत्रों में निर्धनता को बढ़ावा दिया।
  • भूमि और संसाधनों का असमान वितरण।
  • भारत में भूमि संसाधनों की कमी और भूमि का उप विभाजन।
  • भारतीयों में सामाजिक दायित्वों और धार्मिक अनुष्ठानों की प्रवृत्ति का अधिक पाया जाना।
  • अत्यधिक ऋणग्रस्तता भी निर्धनता का प्रमुख कारण है।

→ भारत में निर्धनता उन्मूलन हेतु उपाय

  • भारत सरकार द्वारा आर्थिक संवृद्धि दर को प्रोत्साहन देना।
  • राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम, 2005 (मनरेगा) पारित किया गया।
  • राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम प्रारम्भ करना।
  • प्रधानमन्त्री रोजगार योजना शुरू करना।
  • ग्रामीण रोजगार सृजन योजना लागू करना।
  • स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना प्रारम्भ करना।
  • प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना प्रारम्भ करना।
  • अंत्योदय अन्न योजना प्रारम्भ करना आदि।

→ देश की प्रगति के बाद भी निर्धनता उन्मूलन एक महत्वपूर्ण चुनौती है। आशा है कि अगले 10-15 वर्षों में निर्धनता उन्मूलन में अधिक प्रगति होगी जो प्रमुख रूप से उच्च आर्थिक संवृद्धि, सभी को प्राथमिक शिक्षा उपलब्धि पर जोर, जनसंख्या विकास में कमी, महिलाओं और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के बढ़ते सशक्तीकरण से सम्भव हो सकेगा।

JAC Class 9 Social Science Notes

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 1 संसाधन एवं विकास

JAC Board Class 10th Social Science Notes Geography Chapter 1 संसाधन एवं विकास

पाठ सारांश

  • हमारे पर्यावरण में पाये जाने वाला ऐसा पदार्थ अथवा तत्व जिसमें मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करने की क्षमता हो, संसाधन कहलाता है।
  • मानव स्वयं संसाधनों का एक महत्वपूर्ण भाग है। वह पर्यावरण में पाए जाने वाले पदार्थों को संसाधनों में परिवर्तित कर उनका उपयोग करता है।
  • संसाधनों को उनकी उत्पत्ति, समाप्यता, स्वामित्व एवं विकास के स्तर के आधार पर निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है

(अ) उत्पत्ति के आधार पर:

  1. जैव संसाधन, (मनुष्य, वनस्पतिजात, प्राणीजात आदि),
  2. अजैव संसाधन (चट्टानें व धातुएँ आदि)।

(ब) समाप्यता के आधार पर:

  1. नवीकरण योग्य, (सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल, वन तथा वन्य जीवन आदि)
  2. अनवीकरण योग्य (खनिज व जीवाश्म ईंधन आदि)।

(स) स्वामित्व के आधार पर:

  1. व्यक्तिगत (भूमि, घर, बाग, चरागाह, तालाब व कुआँ आदि),
  2. सामुदायिक (चारण भूमि, श्मशान भूमि, खेल के मैदान व पिकनिक स्थल आदि),
  3. राष्ट्रीय (सड़कें, नहरें, रेल लाइनें, – खनिज पदार्थ, जल संसाधन आदि),
  4. अन्तर्राष्ट्रीय (तट रेखा से 200 समुद्री मील की दूरी से परे खुले महासागरीय संसाधन आदि)।

(द) विकास के स्तर के आधार पर:

  1. संभावी, (राजस्थान व गुजरात में पवन और सौर ऊर्जा की संभावना),
  2. विकसित (सर्वेक्षण के बाद उपयोग की गुणवत्ता व मात्रा का निर्धारण करने वाले संसाधन),
  3. भंडार (हाइड्रोजन ऊर्जा),
  4. संचित कोष (बाँधों में जल व वन आदि)

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 1 संसाधन एवं विकास

  • संसाधन मानव के जीवनयापन के साथ-साथ जीवन की गुणवत्ता बनाये रखने के लिए भी अति आवश्यक हैं।
  • मानव ने संसाधनों को प्रकृति की देन समझकर उनका अंधाधुंध उपयोग किया है जिससे अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं, जिनमें पर्यावरण-प्रदूषण, भूमि-निम्नीकरण, भूमंडलीय-तापन व ओजोन-परत का क्षय आदि प्रमुख हैं।
  • विश्व स्तर पर उभरते पर्यावरण संरक्षण एवं सामाजिक-आर्थिक विकास की समस्याओं का समाधान ढूँढ़ने के लिए जून, 1992 में ब्राजील के रियो-डी-जेनेरो नामक शहर में प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय पृथ्वी-सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें 100 से भी अधिक देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने भाग लिया।
  • संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए उनका उचित प्रकार से नियोजन आवश्यक है।
  • 1968 ई. में ‘क्लब ऑफ रोम’ ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यवस्थित तरीके से संसाधन संरक्षण की वकालत की।
  • भारत में भूमि पर पर्वत, पठार, मैदान तथा द्वीप जैसी विभिन्न प्रकार की भू-आकृतियाँ पाई जाती हैं।
  • भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग किमी. है लेकिन वर्तमान में इसके 93 प्रतिशत भाग के ही भू-उपयोग सम्बन्धी आँकड़े उपलब्ध हैं।
  • भारत की राष्ट्रीय वन नीति, 1952 द्वारा निर्धारित वनों के तहत 33 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र वांछित है जो पारिस्थितिकी सन्तुलन बनाए रखने हेतु जरूरी है।
  • भारत में संसाधनों के नियोजन के लिए प्रथम पंचवर्षीय योजना से ही प्रयास किये जा रहे हैं।
  • एक लम्बे समय तक निरन्तर भूमि संरक्षण एवं प्रबन्ध की अवहेलना तथा निरन्तर भू-उपयोग के कारण भू-संसाधनों का निम्नीकरण हो रहा है जो एक गम्भीर समस्या है।
  • वनारोपण, चारागाहों का उचित प्रबंधन, पशुचारण नियंत्रण एवं खनन नियंत्रण आदि द्वारा भूमि निम्नीकरण की समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
  • मनुष्य की समस्त प्रारम्भिक आवश्यकताओं का आधार मृदा संसाधन है। मृदा जैव और अजैव दोनों प्रकार के पदार्थों से बनती है। खनिज व जैव-पदार्थों का प्राकृतिक सम्मिश्रण है।
  • भारत में उच्चावच, भू-आकृतियाँ, जलवायु एवं वनस्पति की विविधता के कारण अनेक प्रकार की मृदाओं का विकास हुआ है जो निम्नलिखित हैं
  1. जलोढ़ मृदा
  2. काली मृदा
  3. लेटराइट मृदा
  4. लाल व पीली मृदा
  5. मरुस्थलीय मृदा
  6. वन मृदा।
  • जलोढ़ मृदा देश की सबसे महत्वपूर्ण मृदा है। यह बहुत उपजाऊ होती है।
  • काली मृदा कपास की खेती के लिए प्रसिद्ध है।
  • मृदा अपरदन, मृदा की सबसे महत्वपूर्ण समस्या है। इससे मृदा की उर्वर-शक्ति का निरन्तर ह्रास होता रहता है।
  • मृदा के संरक्षण हेतु कई उपाय किये जा सकते हैं, जिनमें समोच्च रेखीय जुताई, पट्टीनुमा कृषि, सीढ़ीदार कृषि आदि प्रमुख हैं।
  •  पर्यावरण की पुनर्स्थापना के लिए लोगों द्वारा इसका प्रबन्धन आवश्यक है। सुखोमाजरी गाँव एवं झबुआ जिले में इस प्रकार का कार्य हुआ है। वहाँ के लोगों ने भूमि निम्नीकरण प्रक्रिया को समाप्त कर दिखाया है।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 1 संसाधन एवं विकास

→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. संसाधन: हमारे पर्यावरण में उपलब्ध वे समस्त दार्थ या तत्व जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने में प्रयोग किये जाते हैं और जिनका उपयोग करने के लिए तकनीकी 7 उपलब्ध है, जो आर्थिक रूप से संभाव्य एवं सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य हैं, संसाधन कहलाते हैं।

2. जैव संसाधन: वे संसाधन जिनका जैवमण्डल में एक निश्चित जीवन-चक्र होता है, जैव संसाधन (जैविक संसाध न) कहलाते हैं, जैसे-वनस्पति, मनुष्य, पशु-पक्षी, छोटे जीव, वन्य-प्राणी, मछली आदि।

3. अजैव संसाधन: वें संसाधन जिनमें एक निश्चित जीवन-क्रिया का अभाव होता है अर्थात् निर्जीव वस्तुओं से बने होते हैं, अजैव संसाधन कहलाते हैं, जैसे-लोहा, सोना, चाँदी, कोयला, चट्टानें आदि।

4. नवीकरण योग्य संसाधन: वे समस्त संसाधन जिनको भौतिक, रासायनिक अथवा यांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा नवीकृत या पुनः उत्पन्न किया जा सकता है, नवीकरण योग्य संसाधन कहलाते हैं। उन्हें पुनः पूर्ति योग्य संसाधन भी कहा जाता है, जैसे-सौर-ऊर्जा, पवन-ऊर्जा, जल, वन, कृषि आदि।

5. अनवीकरण योग्य संसाधन: वे समस्त संसाधन जिनको एक बार उपयोग में लेने के पश्चात् पुनः पूर्ति किया जाना सम्भव नहीं है, अनवीकरण योग्य संसाधन कहलाते हैं। ये संसाधन सीमित मात्रा में होते हैं, जैसे-कोयला, खनिज तेल, यूरेनियम, प्राकृतिक गैस आदि।

6. प्राकृतिक संसाधन: प्रकृति से प्राप्त विभिन्न पदार्थ या तत्व जिनका कोई मानवीय उपयोग होता है, प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं, जैसे-सूर्य का प्रकाश, खनिज, धरातल, मिट्टी, जल, वायु व वनस्पति। ये संसाधन प्रकृति द्वारा मनुष्य को दिए गए निःशुल्क उपहार हैं।

7. मानवीय संसाधन: मानव द्वारा विकसित किए गए संसाधन, मानवीय संसाधन कहलाते हैं, जैसे-भवन, गाँव, स्वास्थ्य, शिक्षा, मशीन, उद्योग, सड़क आदि।

8. संभावी संसाधन: किसी प्रदेश विशेष में वे समस्त विद्यमान संसाधन जिनका अब तक उपयोग नहीं किया गया है, संभावी संसाधन कहलाते हैं।

9. विकसित संसाधन: वे समस्त संसाधन जिनका सर्वेक्षण किया जा चुका है एवं उनके उपयोग की गुणवत्ता व मात्रा का निर्धारण किया जा चुका है, विकसित संसाधन कहे जाते हैं।

10. भंडार: हमारे पर्यावरण में उपलब्ध वे समस्त पदार्थ जो मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं परन्तु उपयुक्त प्रौद्योगिकी के अभाव में पहुँच से बाहर हैं, भंडार में सम्मिलित किये जाते हैं।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 1 संसाधन एवं विकास

11. संचित कोष: भण्डार का वह हिस्सा जिसे तकनीकी ज्ञान की सहायता से उपयोग में लाया जा सकता हैं लेकिन जिसका प्रयोग अभी तक आरम्भ नहीं किया गया है, संचित-कोष कहलाता है।

12. पुनःचक्रीय संसाधन: ऐसे संसाधन जिनका उपयोग बार-बार किया जा सकता है, पुनः चक्रीय संसाधन कहलाते हैं, जैसे-लोहा, सोना, चाँदी आदि धातुएँ । इन धातुओं को बार-बार पिघलाकर विभिन्न रूपों में उपयोग किया जा सकता है।

13. अचक्रीय संसाधन: ऐसे संसाधन जिनका उपयोग बार-बार नहीं किया जा सकता, अचक्रीय संसाधन कहलाते हैं, जैसे-जीवाश्म ईंधन, कोयला, खनिज-तेल, प्राकृतिक गैस आदि संसाधन एक बार प्रयोग कर लेने के पश्चात् समाप्त हो जाते हैं।

14. सतत् पोषणीय विकास: सतत् पोषणीय विकास पर्यावरण को बिना हानि पहुँचाए किया जाने वाला विकास है। इसमें वर्तमान विकास प्रक्रिया का निर्धारण भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाता है।

15. संसाधन नियोजन: संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए सर्वमान्य रणनीति को संसाधन नियोजन कहते हैं।

16. संसाधन संरक्षण: प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का अर्थ है-उनका नियोजित एवं विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग करना ताकि हमें अपने संसाधनों का एक लम्बे समय तक पर्याप्त लाभ प्राप्त हो सके।

17. परती भूमि: वह भूमि जिस पर एक या अधिक ऋतुओं में कृषि नहीं की मई हो ताकि उसकी उर्वरता बढ़ सके, परती भूमि कहलाती है।

18. बंजर भूमि: भूमि का वह भाग जिसका कोई उपयोग नहीं होता है, बंजर भूमि कहलाती है।

19. शुद्ध (निवल) बोया गया क्षेत्र: एक कृषि वर्ष में कुल बोया गया क्षेत्र, शुद्ध (निवल) बोया गया क्षेत्र कहलाता

20. चारागाह: घास उत्पन्न करने वाली वह भूमि जिसका उपयोग पशुओं को चराने के लिए किया जाता है।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 1 संसाधन एवं विकास

21. सकल कृषित क्षेत्र: एक कृषि वर्ष में एक बार से अधिक बोए गए क्षेत्र को शुद्ध .(निवल) बोए गए क्षेत्र में जोड़ देना सकल कृषित क्षेत्र कहलाता है।

22. भूमि निम्नीकरण: मानवीय क्रिया-कलापों के कारण भूमि की गुणवत्ता का कम हो जाना भूमि निम्नीकरण कहलाता है।

23. रक्षक मेखला: फसलों के बीच में वृक्षों की कतारें लगाना रक्षक मेखला कहलाता है।

24. मृदा: पृथ्वी की भूपर्पटी की वह सबसे ऊपरी परत जो बारीक विखण्डित चट्टान चूर्ण से बनी होती है और पेड़-पौधों के लिए उपयोगी होती है, मृदा कहलाती है।

25. बांगर: पुरानी जलोढ़ मृदा। इस प्रकार की मृदा में कंकर ग्रन्थियों की मात्रा अधिक होती है।

26. खादर: नवीन जलोढ़ मृदा। इस प्रकार की मृदा में बांगर मृदा की तुलना में अधिक बारीक कण पाये जाते हैं।

27. मृदा अपरदन: मृदा के कटाव एवं उसके बहाव की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहते हैं।

28. उत्खात: भूमि-ऐसी भूमि जो अवनलिकाओं के कारण कृषि योग्य नहीं रहती, उत्खात भूमि कहलाती है।

29. खड्ड-भूमि: चम्बल नदी के बेसिन में उत्खात भूमि को खड्ड-भूमि कहा जाता है।

JAC Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 1 संसाधन एवं विकास

30. चादर अपरदन: जब बहते हुए जल के साथ विस्तृत क्षेत्र की मृदा की ऊपरी परत बह जाती है तो उसे चादर अपरदन कहते हैं।

31. अवनलिका अपरदन: जब बहता हुआ जल मृत्तिकायुक्त मृदाओं को काटते हुए गहरी वाहिकाएँ बनाता है तो उन्हें अवनलिका अपरदन कहते हैं।

32. पवन अपरदन: पवन द्वारा मैदानी अथवा ढालू क्षेत्र से मृदा को उड़ा ले जाने की क्रिया पवन अपरदन कहलाती है।

33. समोच्च जुताई: ढोल वाली भूमि पर समोच्च रेखाओं के समानान्तर हल चलाने को समोच्च जुताई कहते हैं।

34. पट्टी कृषि: बड़े खेतों को पट्टियों में बाँटकर उनके बीच में फसल उगाई जाती है तथा पट्टियों में घास उगायी जाती है जिससे पवन के वेग का प्रभाव फसलों पर नहीं पड़ता। इस प्रकार से की जाने वाली कृषि को पट्टी कृषि कहते हैं।

35. निक्षालन: निक्षालन मृदा अपरदन की एक प्रक्रिया है जिसमें मृदा के तत्व भारी वर्षा के कारण बह जाते हैं।

JAC Class 10 Social Science Notes

JAC Class 10 Social Science Important Questions Civics Chapter 5 Popular Struggles and Movements

JAC Board Class 10th Social Science Important Questions Civics Chapter 5 Popular Struggles and Movements

Multiple Choice Questions

Question 1.
When was the King Birendra killed in a mysterious massacre of the royal family?
(a) 2000
(b) 2001
(c) 2002
(d) 2003
Answer:
(b) 2001

Question 2.
When did King Gyanendra dismiss the then prime minister and dissolve the Parliament?
(a) In February 2005
(b) In February 2006
(c) In March 2006
(d) In April 2006
Answer:
(a) In February 2005

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Question 3.
Against whom the people of Bolivia led a successful struggle?
(a) Limited franchise
(b) Government’s apathy towards public facilities
(c) Privatisation of water
(d) Lack of educational facilities
Answer:
(c) Privatisation of water

Question 4.
Which financial agency/organisation pressurised the government to give up its control of municipal water supply?
(a) International Monetary Fund
(b) World Bank
(c) Central Bank of Bolivia
(d) None of these
Answer:
(b) World Bank

Question 5.
What is not true regarding public interest groups?
(a) hey represent some common or general interest
(b) Members of the organisation may not benefit from the cause that the organisation represents
(c) They promote collective rather than selective good
(d) They aim to help their own members
Answer:
(d) They aim to help their own members

Question 6.
Who won Bolivia’s water war?
(a) People
(b) Government
(c) MNC
(d) None of these
Answer:
(a) People

Question 7.
Most of the time democracy evolves through what?
(a) Consensus
(b) Popular struggles
(c) Both the above
(d) None of the above
Answer:
(b) Popular struggles

Question 8.
Which one of the following is not true about the pressure groups?
(a) They are directly engaged in party politics
(b) They take a political stance
(c) They organise protests
(d) They try to gain public support
Answer:
(d) They try to gain public support

Question 9.
Through what outstanding democratic conflicts are usually resolved?
(a) Mass mobilisation
(b) Institutions like the Parliament or the Judiciary
(c) Both the above
(d) None of the above
Answer:
(c) Both the above

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Question 10.
Which of these is one of the agencies of organised politics?
(a) Political parties
(b) Pressure groups
(c) Movement groups
(d) All of the above
Answer:
(d) All of the above

Very Short Answer Type Questions

Question 1.
When was the movement for democracy in Nepal conducted? What was its aim?
Answer:
The movement for democracy in Nepal was conducted in April 2006. Its aim was to restore democracy.

Question 2.
What was SPA in Nepal?
Answer:
SPA was Seven Party Alliance of all the major political parties in the parliament of Nepal.

Question 3.
What was the outcome of the struggle of people in Bolivia?
Answer:
The contract with the MNC was cancelled and water supply was restored to the municipality at old rates.

Question 4.
What are pressure groups?
Answer:
Pressure groups are organizations that attempt to influence government policies.

Question 5.
How are most of the trade unions and students’ union are established or afflicted in India?
Answer:
Most of the unions and students’ organization in India are either established or afflicted to one or other political party e.g. ABVP (BJP), NSUI (Congress).

Question 6.
Some parties grow out movements. Give one example.
Answer:
When the Assam movement led by students against the ‘foreigners’ came to an end, it led to the information of the Asom Gana Parishad.

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Question 7.
Which organization led the protest against water privatisation in Bolivia?
Answer:
FEDECOR led the protest against water privatisation in Bolivia.

Question 8.
Name any two sectional interest groups.
Answer:
Two sectional interest groups of India are Hind Mazdoor Sabha and Bengal Jute Mill Workers’ Union.

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Question 9.
Who were Maoists?
Answer:
Those communists who believed in the ideology of Mao, the great leader of the Chinese Revolution were called Maoists.

Question 10.
Give one difference between Nepal and Bolivia movements.
Answer:
The movement in Nepal was to establish democracy, while the struggle in Bolivia involved claims on an elected, democratic government.

JAC Class 10 Social Science Important Questions

JAC Class 10 Social Science Solutions Civics Chapter 5 Popular Struggles and Movements

JAC Board Class 10th Social Science Solutions Civics Chapter 5 Popular Struggles and Movements

JAC Class 10th Civics Popular Struggles and Movements Textbook Questions and Answers

Question 1.
In what ways do pressure groups and movements exert influence on politics?
Answer:
Pressure groups and movements exert influence on politics in a variety of ways:

  1. They try to gain public support and sympathy for their goals and their activity by carrying out information campaigns, organizing meetings, file petition, etc.
  2. They often organize protest activity like strikes or disrupting government programs.
  3. Business groups often employ professional lobbyists or sponsors expensive advertisements.
  4. In some instances, the pressure groups are either formed or led by the leaders of political parties or act as extended arms of political parties.
  5. Sometimes political parties grow out of movements.
  6.  In most cases, the relationship between parties and interest or movement groups is not so direct.

Question 2.
Describe the forms of relationship between pressure groups and political parties?
Answer:
The relationship between political parties and pressure groups can take different forms. Pressure groups are often formed and led by politicians and political parties. Most trade unions and students organisations in India are either established by or affiliated to one or the other major political party. Political parties sometimes grow out of movements. Parties like DMK and AIADMK were formed this way. Many a times the issues raised by pressure or movement groups are taken up by political parties leading to a change in the policies of the parties.

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Question 3.
Explain how the activities of pressure groups are useful in the functioning of a democratic government.
Answer:

  1. It may initially appear that it is not healthy for groups that promote the interest of one section to have influence in democracy.
  2. It may seem that these groups wield power without responsibility!
  3. Pressure groups and movements may not get their funds and support from the people.
  4. Putting pressure on the rulers is not unhealthy activity in a democracy as long as everyone gets this opportunity.
  5. Public interest groups and movements perform a useful role in countering this useful role or countering this undue influence and reminding the government of the needs and concerns of ordinary citizens.

Question 4.
What is a pressure group? Give a few examples.
Answer:
A pressure group is an organisation which attempts to influence government policies through protests and demonstrations. Pressure groups are formed when people with similar opinions get together for similar objectives. Examples of pressure groups are FEDECOR and BAMCEF.

Question 5.
What is the difference between a pressure group and a political party?
Answer:

Pressure Group Political Party
(i) They attempt to influence gavernment policies. (i) They aim to directly control or share power.
(ii) People with common interest come together to achieve a common objective. (ii) It is directly answerable to the people.

Question 6.
Organisations that undertake activities to promote the interests of specific social sections such as workers, employees, teachers, and lawyers are called ……….. groups.
Answer:
Sectional Interest

Question 7.
Which among the following is the special feature that distinguishes a pressure group from a political party?
(a) Parties take political stances, while pressure groups do not bother about political issues.
(b) Pressure groups are confined to a few people, while parties involve larger number of people.
(c) Pressure groups do not seek to get into power, while political parties do.
(d) Pressure groups do not seek to mobilise people, while parties do.
Answer:
(c) Pressure groups do not seek to get into power, while political parties do.

Question 8.
Match List I (organisations and struggles) with List II and select the correct answer using the codes given below the lists:

List I List II
1. Organisations that seek to promote the interests of a particular section or group A. Movement
2. Organisations that seek to promote common interest B. Political parties
3. Struggles launched for the resolution of a social problem with or without an organisational structure C. Sectional interest groups
4. Organisations that mobilise people with a view to win political power D. Public interest groups
1 2 3 4
(a) C D B A
(b) C D A B
(c) D C B A
(d) B C D A

Answer:
(b) C,D,A and B

Question 9.
Match List I with List II and select the correct answer using the codes given below the lists:

List I List II
1. Pressure group A. Narmada Bachao Andolan
2. Long-term movement B. Asom Gana Parishad
3. Single issue movement C. Women’s movement
4. Political party D. Fertilizer dealers’ association
1 2 3 4
(a) D C A B
(b) B A D C
(c) C D A B
(d) B D C A

Answer:
(a) D,C,A and B

Question 10.
Consider the following statements about pressure groups and parties.
A. Pressure groups are the organised expression of the interests and views of specific social sections.
B. Pressure groups take positions on political issues.
C. All pressure groups are political parties.
Which of the statements given above are correct?
(a) A, B, and C
(b) A and B
(c) B and C
(d) A and C
Answer:
(b) A and B

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Question 11.
Mewat is one of the most backward areas in Haryana. It used to be a part of two districts, Gurgaon and Faridabad. The people of Mewat felt that the area will get better attention if it were to become a separate district. But political parties were indifferent to this sentiment. The demand for a separate district was rais’ed by Mewat Educational and Social Organisation and Mewat Saksharta Samiti in 1996. Later, Mewat Vikas Sabha was founded in 2000 and carried out a series of public awareness campaigns. This forced both the major parties, Congress and the Indian National Lok Dal, to announce their support for the new district before the assembly elections held in February 2005. The new district came into existence in July 2005. In this example what is the relationship that you observe among movement, political parties and the government? Can you think of an example that shows a relationship different from this one?
Answer:
From the example of Mewat, we can infer that movements take up issues which have been ignored by political parties. Political parties may then be influenced by these demands when they grab their own manifesto. Finally, the party which comes to power ends up implementing steps which fulfil these demands.

The six – year long Assam movement (19791985), led by the All Assam Students Union (AASU), was aimed against the infiltration of foreigners from Bangladesh into Assam. At the end of this movement, the state assembly was dissolved, the government was dismissed, and fresh elections were held. The Asom Gana Parishad, formed out of the AASU, contested and won the elections, forming the Government of Assam. In this example, we see a political party being formed out of a pressure group, which then goes on to form the government.

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