JAC Class 9 Maths Notes Chapter 1 संख्या पद्धति

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JAC Board Class 9 Maths Notes Chapter 1 संख्या पद्धति

प्राकृत संख्याएँ वस्तुओं की गिनती करने के लिए हम 1, 2, 3, 4,… आदि संख्याओं का प्रयोग करते हैं। इन संख्याओं को प्राकृत संख्याएँ कहते हैं। इनकी संख्या अनन्त होती है। प्राकृत संख्याओं के समूह को N द्वारा व्यक्त करते हैं।
जैसे N = {1, 2, 3, 4, 5,…..}

पूर्ण संख्याएं: यदि प्राकृत संख्याओं में 0 (शून्य) को सम्मिलित कर लिया जाए, तो प्राप्त संख्याओं के समूह को पूर्ण संख्याएँ कहा जाता है। इस समूह को W से व्यक्त किया जाता है।
जैसे W = {0, 1, 2, 3, 4….}

प्राकृत संख्याओं और पूर्ण संख्याओं के समुच्चय में अन्तर :
प्राकृत संख्याओं का समुच्चय N = {1, 2, 3…} है और पूर्ण संख्याओं का समुच्चय W = {0, 1, 2, 3….} है।
प्राकृत और पूर्ण संख्याओं के समुच्चय की तुलना करने पर, हम देखते हैं कि

  • समस्त प्राकृत संख्याएँ पूर्ण संख्याएँ हैं।
  • 0 के अतिरिक्त समस्त पूर्ण संख्याएँ प्राकृत संख्याएँ हैं।
  • 1 सबसे छोटी प्राकृत संख्या है जबकि 0 सबसे छोटी पूर्ण संख्या है।
  • प्राकृत तथा पूर्ण संख्याएँ अनन्त होती हैं।

पूर्णांक संख्याएँ : यदि प्राकृत संख्याओं में ऋण संख्याओं को भी सम्मिलित कर लिया जाए तो प्राप्त संख्याओं के संग्रह को पूर्णांक संख्याएँ कहा जाता है, और इन्हें Z or I प्रतीक से व्यक्त किया जाता हैं। ये दो प्रकार की होती हैं:
(i) धन पूर्णांक,
(ii) ऋण पूर्णांक
JAC Class 9 Maths Notes Chapter 1 संख्या पद्धति 1
(i) संख्या रेखा पर शून्य के दार्यों और के पूर्णांक, धन पूर्णांक तथा शून्य के बायीं ओर के पूर्णांक, ऋण पूर्णांक कहलाते हैं।
(ii) शून्य, प्रत्येक धन पूर्णांक से छोटा तथा सभी ऋण पूर्णांकों से बड़ा होता है।

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परिमेय संख्याएँ : ऐसी संख्याएँ जो \(\frac{p}{q}\) के रूप में व्यक्त की जा सकती हों तथा जहाँ p और पूर्णांक हों, परन्तु q ≠ 0, परिमेय संख्याएँ कहलाती हैं।
जैसे : \(\frac{1}{2}, \frac{2}{3}, \frac{-4}{5}, \frac{7}{3}, \frac{-6}{7}, \ldots\) इत्यादि।

  • प्रत्येक प्राकृत संख्या परिमेय संख्या है।
  • 0 एक परिमेय संख्या है।
  • प्रत्येक पूर्णांक परिमेय संख्या है।
  • प्रत्येक भिन्न परिमेय संख्या है।
  • प्रत्येक परिमेय संख्या का दशमलव भिन्न के रूप में प्रसार किया जा सकता है।

परिमेय संख्याओं का दशमलव प्रसार दो प्रकार का होता है:
(i) सांत,
(ii) असांत (अनवसानी आवर्ती)।

सांत दशमलव प्रसार : परिमेय संख्याएँ, जो कि सदा \(\frac{p}{q}\) के रूप में होती है, p में q का भाग देने पर अन्त में शेषफल शुन्य प्राप्त होता है, तो वे दशमलव संख्याएँ सांत दशमलव प्रसार वाली परिमेय संख्याएँ कहलाती हैं।
जैसे : \(\frac{1}{2}\) = 0.5, \(\frac{3}{2}\) = 1.5, \(\frac{1}{8}\) = 0.125 आदि।

असांत दशमलव प्रसार : परिमेय संख्या को दशमलव संख्या में बदलते समय भाग की क्रिया निरन्तर चलती रहती है और शेषफल की निरंतरता बनी रहती है अर्थात् भागफल में अंकों की पुनरावृत्ति होती रहती है इस प्रकार की दशमलव संख्याओं को असांत आवर्ती दशमलव संख्या कहते हैं असांत दशमलव संख्या को संक्षिप्त रूप में लिखने के लिए पुनरावृत्ति वाले अंकों के ऊपर (-) रेखा खींचते हैं।
जैसे : \(\frac{3}{11}\) = 0.272727…….. = \(0 . \overline{27}\)
\(\frac{1}{3}\) = 0.333……. = \(0 . \overline{3}\) इत्यादि।
इन्हें असांत आवर्ती (Non-terminating Repeating) परिमेय संख्याएँ भी कहते हैं।

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परिमेय संख्याओं के महत्त्वपूर्ण बिन्दु :

  1. प्राकृत संख्याएँ, पूर्ण संख्याएँ, पूर्णांक व भिन्नें सभी परिमेय संख्याएँ होती हैं।
  2. भिन्न के अंश और हर प्राकृत संख्याएँ होती हैं, जबकि परिमेय संख्या के अंश और हर पूर्णांक होते हैं। परन्तु परिमेय संख्या का हर शून्य नहीं होता।
  3. संख्या रेखा पर परिमेय संख्याएँ प्रदर्शित की जा सकती हैं।
  4. किसी परिमेय संख्या के अंश और हर को समान अशून्य पूर्णांक से गुणा करने अथवा भाग देने पर समतुल्य परिमेय संख्याएँ प्राप्त होती हैं।
  5. दो परिमेय संख्याओं के बीच में अनन्त परिमेय संख्याएँ निहित होती हैं।
  6. प्रत्येक परिमेय संख्या को सांत अथवा असांत आवर्ती दशमलव संख्या के रूप में लिखा जा सकता है।
  7. सांत परिमेय संख्या का हर सदैव 2m × 5n के रूप में होता है।
  8. यदि परिमेय संख्या का हर 2m × 5n के रूप में नहीं है तो वह असांत आवृत्ति होती है।
  9. यदि परिमेय संख्या के अंश तथा हर में एक के अतिरिक्त अन्य कोई उभयनिष्ठ गुणनखण्ड नहीं है तो वह परिमेय संख्या का मानक रूप (Standard form) कहलाता है।
  10. परिमेय संख्या ऋणात्मक हो सकती है किन्तु उसका हर सदैव धनात्मक ही लिया जाता है।

JAC Class 9 Hindi रचना नारा लेखन

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JAC Board Class 9 Hindi Rachana नारा लेखन

किसी सुंदर विचार अथवा उद्देश्य को बार-बार अभिव्यक्त करने के लिए प्रयोग किया जाने वाला आदर्श वाक्य नारा कहलाता है। नारों में प्रभावशाली वाक्य पिरोए जाते हैं। जिनसे ये सहज लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। इनमें विस्तृत विवरण तो प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं होती। नारे सामाजिक दायरे में रहकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

नारा लिखते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान रखना चाहिए –

  • नारों में आदर्शवादिता का भाव होना आवश्यक है।
  • नारे अनेक क्षेत्रों जैसे – राजनीतिक, धार्मिक, समाज से संबंधित हो सकते हैं।
  • नारों में विवादास्पद शब्दावली का प्रयोग बिलकुल नहीं करना चाहिए।
  • नारों के प्रकटन का उद्देश्य सार्वभौमिक होना चाहिए।
  • नारों की शब्दावली सर्वस्वीकार्य होनी चाहिए।
  • नारों की गूँज से ऊर्जा का संचार होता है। रोमांचक होने का अहसास होता है। उदाहरण के तौर पर देश प्रेम के नारे जनमानस में देश –
  • भक्ति का संचार करते हैं।
  • नारों में तुकबंदी अथवा लयात्मक योजना का विशेष महत्व होता है।
  • नारों की विषय सामग्री में आपसी सम्बद्धता व मौलिकता का होना ज़रूरी है।

नारों के महत्वपूर्ण उदाहरण :

प्रश्न 1.
लॉकडाउन के दौरान आप अपने घर पर हैं। जागरूक नागरिक होने के नाते जनमानस के बीच सामाजिक सचेतता फैलाने वाले सुझावों पर 20-30 शब्दों में नारा लेखन कीजिए।
उत्तर :
सामाजिक दूरी है वायरस से लड़ने का औजार।
पैदल हो या फिर कार पर हो सवार।।
बिना मास्क के घर से मत निकलो यार।
आफत को मत गले लगाओ, बन जाओ समझदार।।

JAC Class 9 Hindi रचना नारा लेखन

प्रश्न 2.
शिक्षा प्रत्येक नागरिक का मूल अधिकार है। शिक्षा के बिना हमारे जीवन का कोई महत्व नहीं है। अशिक्षितों को शिक्षित करने के लिए 20-30 शब्दों में नारा लेखन कीजिए।
उत्तर :
लड़का हो या लड़की, सब बने साक्षर।
शिक्षा से ही फलता-फूलता यह देश निरंतर।।
बच्चे-बच्चे का सपना हो साकार।
शिक्षा पर हम सबका अधिकार ।।

प्रश्न 3.
स्वच्छता अपनाना सभी की जवाबदारी है। हर हाल में सफाई का ध्यान रखते हुए 20-30 शब्दों में नारा लेखन कीजिए।
उत्तर :
स्वच्छता से है बढ़ते देशों की पहचान।
आओ मिलकर रखें इनका ध्यान ।।
स्वच्छता से बढ़ेगी धरती की शान।
तभी गांधीजी के सपनों का होगा मान।।

प्रश्न 4.
सड़क सुरक्षा अनुशासित जीवन का अंग है। सुरक्षा नियमों का पालन करना मजबूरी नहीं हो सकती। ट्रैफिक नियमों के प्रति जागरूक करने के लिए 20-30 शब्दों में नारा लेखन कीजिए।
उत्तर :
चलो सड़क पर रखो आँखें चार।
पैदल हो, बाईक हो या फिर कार।।
ट्रैफिक सिगनल देख करो सड़क को पार।
रहो सुरक्षित पड़ेगी न दंड की मार ||

JAC Class 9 Hindi रचना नारा लेखन

प्रश्न 5.
वृक्षारोपण बहुत ज़रूरी है। इसे पुण्य का काम समझा जाता है। वृक्ष की उपयोगिता का ध्यान रखते हुए 20-30 शब्दों में नारा लेखन कीजिए।
उत्तर :
वृक्ष ही हैं सबके जीवन का अधिकार।
उदर पूर्ति का होते हैं ये अद्भुत भंडार।।
हरे-भरे वृक्ष जीवन में हरियाली लाते।
अपने कर्तव्यों से हम क्यों मुकर जाते।।

प्रश्न 6.
15 अगस्त को बड़े उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। इतिहास के इस स्वर्णिम दिन का महत्व बताते हुए 20-30 शब्दों में नारा लेखन कीजिए।
उत्तर :
आज किरन किरन थिरक रही, ले प्रभा नवीन।
आज श्वास है नवीन आज की पवन नवीन।।
मिलती नहीं आजादी खुद, यह ली जाती है मीत।
तलवारों के साये के नीचे गाने पड़ते हैं गीत।।

प्रश्न 7.
विज्ञान को मानव की तीसरी आँख माना गया है। विज्ञान के कारण मानव जीवन में अनेक परिवर्तन आए हैं। विज्ञान के वरदान या अभिशाप को ध्यान में रखते हुए 20-30 शब्दों में नारा लेखन कीजिए।
उत्तर :
फैल रहा विज्ञान का घर – घर प्रकाश।
करता दोनों काम- नव निर्माण विकास।।
यह विष्णु जैसा पालक है, शंकर जैसा संहारक।
पूजा उसकी शुद्ध भाव से करो तुम यहाँ आराधक।।

JAC Class 9 Hindi रचना नारा लेखन

प्रश्न 8.
हम कभी न बुझने वाला आशा का दीपक अपने हाथ में लेकर मंजिल की ओर बढ़ते हैं। लक्ष्य प्राप्ति के लिए 20-30 शब्दों में नारा लेखन कीजिए।
उत्तर :
जिस युग में जन्मे उसे बड़ा बनाएँगे।
चाहे कितना हो विस्तीर्ण – कर्म क्षेत्र बनाएँगे।
जीवन में कुछ करना है तो – मन मारकर न बैठेंगे।
यदि आगे-आगे बढ़ना है – हिम्मत हारकर न बैठेंगे।।

JAC Class 9 Hindi रचना संदेश लेखन

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JAC Board Class 9 Hindi Rachana संदेश लेखन

अपने मनोभावों और विचारों को प्रकट करने का सशक्त माध्यम संदेश – लेखन कहलाता है। इस माध्यम के द्वारा हम अपने प्रियजन, सहपाठियों, मित्रों, पारिवारिक सदस्यों या संबंधियों को किसी शुभ अवसर, त्योहार या फिर परीक्षा अथवा नौकरी में सफलता प्राप्त करने आदि अवसरों में अपने मन के भावों को संदेश लिखकर आत्मीयता से प्रकट करते हैं। इस प्रकार संदेश लेखन के माध्यम से शुभकामनाएँ भेजने के साथ-साथ निःसंदेह उनका मनोबल बढ़ाना होता है।

संदेश लेखन लिखते समय ध्यान देने योग्य प्रमुख बिंदु –

  • संदेश को बॉक्स के अंदर लिखना चाहिए।
  • संदेश लिखते समय शब्द, शब्द – सीमा 30 से 40 शब्द ही होनी चाहिए।
  • संदेश हृदयस्पर्शी तथा संक्षिप्त होने चाहिए।
  • बॉक्स के बाएँ शीर्ष में दिनांक और उसके नीचे स्थान अवश्य लिखें।
  • संदेश के आखिर में नीचे प्रेषक का नाम लिखना न भूलें।
  • संदेश लिखते समय केवल महत्वपूर्ण बातों का ही उल्लेख करें।
  • मनोभावों की सुंदर अभिव्यक्ति पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करने वाली होती है।
  • संदेश लेखन में तुकबंदी वाली प्रभावशाली पंक्तियाँ भी लिखी जाती हैं।
  • संदेश दो प्रकार के अनौपचारिक व औपचारिक हो सकते हैं।

JAC Class 9 Hindi रचना संदेश लेखन

संदेश लेखन के महत्वपूर्ण उदाहरण :

प्रश्न 1.
आप अमेरिका में रहते हैं और गणतंत्र दिवस के अवसर पर अपने भारतीय सहेली को 30 से 40 शब्दों में शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

26 जनवरी, 20XX
नवी मुंबई
प्रिय मान्यता।
भारत देश हमारा है यह हमको जान से प्यारा है दुनिया में सबसे न्यारा यह सबकी आँखों का तारा है मोती हैं इसके कण-कण में बूँद-बूँद में सागर है
प्रहरी बना हिमालय बैठ धरा सोने की गागर है।
इस गणतंत्र दिवस की आप और आपके परिवार को मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ। भारत देश ऐसे ही कामयाबी की बुलंदियों को छूता रहे। अपने राष्ट्र की समृद्धि और उन्नति में अपना योगदान देना हर भारतवासी का कर्तव्य है।
कविता

प्रश्न 2.
अपने मित्र को वसंत पंचमी के अवसर पर 30 से 40 शब्दों में शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

10 फ़रवरी, 20Xx
नई दिल्ली
मित्रवर,
संदेश
गेंदा गमके महक बिखेरे। उपवन को आभास दिलाए।
बहे बयरिया मधुरम – मधुरम। प्यारी कोयल गीत जो गाए।
ऐसी बेला में उत्सव होता जब।
वाग्देवी भी तान लगाए।
आपको वसंत पंचमी के अवसर पर ढेर सारी बधाई और उम्मीद है कि आप हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी वार्षिक वसंतोत्सव में वाग्देवी की सेवा में सहभागिता देंगे।
आर्यन

JAC Class 9 Hindi रचना संदेश लेखन

प्रश्न 3.
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने सहेली को 30 से 40 शब्दों में एक शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

15 अगस्त, 20XX
चेन्नई
प्रिय सहेली।
संदेश
स्वतंत्रता दिवस का पावन अवसर है, विजयी – विश्व का गान अमर है।
देश-हित सबसे पहले है, बाकी सबका राग अलग है।
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आपको हार्दिक शुभ कामनाएँ।
रोशनी

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर शिष्य द्वारा विज्ञान शिक्षक को 30 से 40 शब्दों में शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

28 फ़रवरी, 20XX
नई दिल्ली
आदरणीय गुरुदेव,
28 फ़रवरी, 1928 को सर सी०आर० रमन ने 1930 में अपनी खोज की घोषणा कर नोबल पुरस्कार प्राप्त किया था। जो विज्ञान विशिष्ट ज्ञान को जीवन के अनुभव के साथ जोड़कर शिक्षा देता है और उस शिक्षा से शिक्षार्थी का जीवन सार्थक बनता है, वही विषय विज्ञान कहलाता है। हर दिन आपके द्वारा पढ़ाए गए विज्ञान विषय से मेरी रुचि में अद्भुत परिवर्तन आया। आपके अनुभव ने मेरा और मुझ जैसे अनेक शिष्यों का मार्गदर्शन कर आदर्श विज्ञान शिक्षक की भूमिका का निर्वाह किया। आपका उद्देश्य सर्वदा विद्यार्थियों को विज्ञान के प्रति आकर्षित व प्रेरित करना रहा है। ऐसे विशिष्ट गुरु को मेरा शत-शत प्रणाम। विज्ञान दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ। अभिनव

JAC Class 9 Hindi रचना संदेश लेखन

प्रश्न 5.
अपनी पूजनीया माता जी को जन्मदिवस की शुभकामनाएँ देते हुए 30-40 शब्दों में संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

14 अप्रैल, 20XX
नई दिल्ली
खुद से पहले तुम मुझे खिलाती थी, रोने पर तुम भी बच्चा बन जाती थी,
खुद जाग जागकर मुझे सुलाती थी, शिक्षक बनकर तुम मुझे पढ़ाती थी,
कभी बहन कभी सहेली बन जाती थी।
आपने – अपने प्रेम, परम त्याग और आदर्शों से पूरे परिवार को प्रेम के धागे में बाँधे रखा। हमेशा अपने मश्दु अनुभवों से हमारा मार्गदर्शन किया। मैंने माँ के रूप में सच्ची सहेली और शिक्षिका पाया। आपके चरणों में शत-शत नमन। जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएँ।
अनन्या

प्रश्न 6.
अपने मित्र की नौकरी में पदोन्नति होने पर बधाई देते हुए शुभकामना संदेश 30-40 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :

संदेश

8 जून, 20XX
नई दिल्ली
मित्रवर,
फूल बनके मुसकराना जिंदगी है
मुसकरा कर गम भुलाना भी जिंदगी है जीत कर खुश हो तो अच्छा है पर,
हार कर खुशियाँ मनाना भी जिंदगी है
आपने अपनी योग्यता और कुशलता का अद्भुत परिचय तो परीक्षा का अंतिम पड़ाव पारकर सभी का दिल जीत लिया था। आज फिर वह अवसर आ गया है कि आपको योग्यता और परिश्रम के बल पर पदोन्नति मिली है, आप इस पदोन्नति के सच्चे हकदार हैं। भविष्य में भी आप अपने सहकर्मियों के लिए एक आदर्श बने रहेंगे। आपके उज्ज्वल भविष्य के लिए ढेर सारी शुभकामनाएँ।
जयंत शुक्ल

JAC Class 9 Hindi रचना संदेश लेखन

प्रश्न 7.
विद्यालय की वार्षिक पत्रिका के प्रकाशन पर अध्यक्ष द्वारा विद्यार्थियों को 30 से 40 शब्दों में शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

5 अप्रैल, 20XX
कोलकाता
प्रिय विद्यार्थियो
सत्र 20XX – 20XX की वार्षिक पत्रिका का प्रकाशन हो रहा है। उत्कृष्ट लेख, नाटक, प्रहसन, चुटकुले, निबंध आदि के प्रकाशन हेतु प्रवेश नियम विद्यार्थियों को विद्यालय के सूचना बोर्ड पर शर्तों के साथ सूचित कर दिया गया है। इस साहित्यिक पत्रिका में विद्यार्थियों का चहुमुखी साहित्यिक विकास होगा और आप कवि या लेखक के रूप में लेखन द्वारा राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का निर्वहन करेंगे, मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ आपके साथ हैं।
अध्यक्ष
शिखर त्रिवेदी

JAC Class 9 Hindi रचना संदेश लेखन

प्रश्न 8.
मोबाइल फोन को कम उपयोग करने के लिए विद्यार्थियों को 30-40 शब्दों में संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

22 जुलाई, 20XX
नई दिल्ली
प्रिय विद्यार्थियो
खोजा बहुत ही उसको, नहीं मुलाकात हुई उससे।
घर-घर में खिलता था वह बचपन बिना मोबाइल जो।
जो करता दुरुपयोग इसका नर्वस सिस्टम होता खराब।
बीमारियों का आमंत्रण, डिप्रैशन, अनेक विकार।
स्मरण शक्ति का निश्चय होता है ह्रास।
रवि

JAC Class 9 Hindi रचना लघुकथा-लेखन

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JAC Board Class 9 Hindi Rachana लघुकथा-लेखन

किसी घटना के संक्षिप्त रोचक वर्णन को लघुकथा कहते हैं। कहानी या कथा लिखना एक कला है। लघुकथा में कम-से-कम शब्दों में ही बात को इस प्रकार प्रस्तुत करना होता है कि वह पाठक के मन को चिंतन के लिए उद्वेलित कर दे। अपनी कल्पना और वर्णन – शक्ति के द्वारा लेखक कहानी के कथानक, पात्र या वातावरण को प्रभावशाली बना देता है। लेखक पाठक के लिए अपनी कल्पना और विचारों को नैतिक संदेश प्रदान करने के लिए एक कहानी के रूप में डालने की कोशिश करता है। विद्यार्थियों को पहले दी गई रूपरेखा के आधार, चित्र देखकर अथवा कहानी के संकेत पढ़कर कहानी लिखने का अभ्यास करना चाहिए।

JAC Class 9 Hindi रचना लघुकथा-लेखन

कहानी के कुछ प्रमुख तत्व :

  • कथावस्तु
  • संवाद
  • देशकाल और वातावरण
  • भाषा-शैली
  • चरित्र-चित्रण
  • उद्देश्य

कथावस्तु – कथावस्तु से तात्पर्य कहानी में वर्णित घटनाओं और कार्य – व्यापार से है।
संवाद – कहानी के पात्रों द्वारा आपस में किए गए वार्तालाप को संवाद कहते हैं। कहानी के संवाद लिखते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि संवाद पात्र के अनुकूल हों।
देशकाल और वातावरण – कहानी में वर्णित घटना का संबंध जिस परिस्थिति अथवा वातावरण से है, उसे एक कहानी का देशकाल अथवा परिवेश कहा जाता है।
भाषा-शैली – कथाकार अपनी भाषा शैली के द्वारा कहानी के पात्रों को जीवंत और प्रभावशाली बनाता है। भाषा शैली कहानी का प्राण तत्व होती है।
चरित्र-चित्रण – कहानी के पात्रों के हाव-भाव तथा कार्य-व्यापार उनके चरित्र का निर्माण करते हैं।
उद्देश्य – कहानी का अभिप्राय ही कहानी का उद्देश्य है। पाठक कहानी के अभिप्राय को समझे बिना कहानी को सही ढंग से आत्मसात नहीं कर सकता।

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कहानी लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –

  • परिचय कहानी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। कहानी लिखते समय मुख्य चरित्र और एक घटना का उल्लेख के साथ परिचय लिखना चाहिए।
  • परिचय के उपरांत कहानी की स्थिति के बारे में लिखना चाहिए।
  • दी गई रूपरेखा अथवा संकेतों के आधार पर ही कहानी का विस्तार करें।
  • कहानी में विभिन्न घटनाओं और प्रसंगों को संतुलित विस्तार दें।
  • कहानी की भाषा सरल होनी चाहिए, जिससे पाठकों को आसानी से समझ आ जाए।
  • कहानी रोचक और स्वाभाविक हो। घटनाओं का पारस्परिक संबंध हो और कहानी से कोई-न-कोई उपदेश मिलता हो।
  • कहानी का शीर्षक उपयुक्त एवं आकर्षक होना चाहिए।
  • कहानी का आरंभ आकर्षक होना चाहिए और अंत सहज ढंग से होना चाहिए।

संकेत बिंदुओं के आधार पर लघुकथा लेखन के कुछ उदाहरण –

1. एक बालक का अपने मित्रों के साथ बगीचे में जाना… चोरी से फल तोड़कर खाना… माली का बगीचे में आना… बच्चों का भाग जाना… एक बालक का पकड़े जाना… माली द्वारा उसे डाँटना… बालक का रोना.. माली की बात को आत्मसात करना… भविष्य में प्रतिष्ठित व्यक्ति बनना।

शीर्षक – सीख

एक दिन कुछ बालक विद्यालय से लौट रहे थे कि रास्ते में एक बगीचे में अमरूद से लदे पेड़ देखकर सभी बच्चे उसमें घुस गए। माली को वहाँ न पाकर बच्चे पेड़ पर चढ़ गए और अमरूद तोड़कर खाने लगे। एक बच्चा नीचे खड़ा बड़े बच्चों से गुहार लगा रहा था कि वे उसे भी थोड़े अमरूद तोड़ कर दे दें। पेड़ पर चढ़े एक बच्चे ने एक अमरूद उसकी ओर उछाल दिया।

अमरूद पाकर बालक बड़ा प्रसन्न हुआ और अमरूद खाने लगा। इतने में ही बालक ने ज़ोर से शोर मचाया, माली आ गया भागो…..। बच्चे पेड़ से उतरकर भागने लगे। वह छोटा बालक अमरूद खाने में लगा हुआ था उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था तभी माली ने आकर उसे धर दबोचा। माली उस बालक को पहचान गया। उससे बोला, तुम्हें बगीचे में चोरी करते हुए लज्जा नहीं आती? एक तो तुम्हारे पिता नहीं हैं ऊपर से तुम इन बच्चों के साथ गंदी आदतें सीख रहे हो।

बालक यह सुनकर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। बालक को रोता देखकर माली ने समझाया, “तुम्हारी माता भविष्य के सुनहरे सपने देखती हैं। तुम्हें तो अच्छी तरह पढ़ना चाहिए ताकि तुम बड़े होकर अपनी माँ का हाथ बँटा सको।’

बालक समझ गया उसने माली की बात गाँठ बाँध ली। इसके बाद वह बालक कभी उस बगीचे में नज़र नहीं आया। आगे चलकर यही बालक हमारे देश के दूसरे प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री के रूप में विख्यात हुए।

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2. अध्यापक का शिष्यों के साथ घूमने जाना …… अच्छी संगति के महत्व को समझाना ……. एक गुलाब का पौधा देखना …… ढेला उठाकर सूँघना …… शिष्य का ढेला सूँघना ……. अध्यापक का शिष्यों को समझाना ……. गुलाब की पंखुड़ियाँ गिरना ……. पंखुड़ियों की संगति से मिट्टी से गुलाब की महक आना ……… जैसी संगति वैसे ही गुण-दोष।

शीर्षक – संगति का असर

एक अध्यापक अपने शिष्यों के साथ घूमने जा रहे थे। रास्ते में वे अपने शिष्यों के अच्छी संगति का महत्व समझा रहे थे। लेकिन शिष्य इसे समझ नहीं पा रहे थे। तभी अध्यापक ने फूलों से लदा एक गुलाब का पौधा देखा। उन्होंने एक शिष्य को उस पौधे के नीचे से तत्काल एक मिट्टी का ढेला उठाकर ले आने को कहा। जब शिष्य ढेला उठा लाया तो अध्यापक ने उससे उस ढेले को सूँघने को कहा।

शिष्य ने ढेला सूँघा और बोला, “गुरु जी इसमें से तो गुलाब की बड़ी खुशबू आ रही है।”

अध्यापक बोले, “बच्चो ! जानते हो इस मिट्टी में यह मनमोहक महक कैसे आई? दर सअसल इस मिट्टी पर गुलाब के फूलों की पंखुड़ियाँ, टूट-टूटकर गिरती हैं, तो मिट्टी में भी गुलाब की महक आने लगी है। जिस प्रकार गुलाब की पंखुड़ियों की संगति के कारण इस मिट्टी में से गुलाब की महक आने लगी उसी प्रकार जो व्यक्ति जैसी संगति में रहता है उसमें वैसे ही गुण-दोष आ जाते हैं।

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3. व्यापारी का ऊँटों का व्यापार करना ……… उनके बच्चे खरीदकर बेचना ……… जंगल के पास चरने को भेजना ……… ऊँट का बच्चा शैतान होना ……… उसके गले में घंटी बाँधना ……… शेर ऊँटों को शिकार करने के लिए देखना ……… मौके की तलाश करना ……… ऊँटों का खतरा होना …….. चल पड़ना ………. बच्चे का झुंड से अलग जाना ……… शेर के द्वारा मारे जाना।

शीर्षक – मूर्खता का परिणाम

रेगिस्तान के किनारे स्थित एक गाँव में एक व्यापारी रहता था। वह ऊँटों का व्यापार करता था। वह ऊँटों के बच्चों को खरीदकर उन्हें शक्तिशाली बनाकर बेच देता था। इससे वह ढेर सारा धन कमाता था।
व्यापारी ऊँटों को पास के जंगल में घास चरने के लिए भेज देता था जिससे उनके चारे का खर्च बचता था। उनमें से एक ऊँट का बच्चा बहुत शैतान था। वह प्राय: समूह से दूर चलता था और इस कारण पीछे रह जाता था। बड़े ऊँट हरदम उसे समझाते थे, परंतु वह नहीं सुनता था। इसलिए उन सबने उसकी परवाह करना छोड़ दिया।
व्यापारी को उस छोटे ऊँट से बहुत प्रेम था। इसलिए उसने उसके गले में घंटी बाँध रखी थी। जब भी वह सिर हिलाता तो उसकी घंटी बजती थी जिससे उसकी चाल एवं स्थिति का पता चल जाता था।
एक बार उस स्थान से एक शोर गुजरा जहाँ ऊँट चर रहे थे। उसे ऊँट की घंटी के द्वारा उनके होने का पता चल गया था। उसने फ़सल में से झाँककर देखा तो उसे ज्ञात हुआ कि ऊँट का एक बड़ा समूह है लेकिन वह ऊँटों पर हमला नहीं कर सकता था क्योंकि समूह में ऊँट उससे बलशाली थे। इस कारण वह मौके की तलाश में वहाँ छुपकर खड़ा हो गया। समूह के एक बड़े ऊँट को खतरे का आभास हो गया। ऊँटों ने एक मंडली बनाकर जंगल से बाहर निकलना आरंभ कर दिया। शेर ने मौके की तलाश में उनका पीछा करना शुरू कर दिया। बड़े

ऊँट ने विशेषकर छोटे ऊँट को सावधान किया था। कहीं वह कोई परेशानी न खड़ी कर दे। पर छोटे ऊँट ने ध्यान नहीं दिया और वह लापरवाही से चलता रहा। छोटा ऊँट अपनी मस्ती में अन्य ऊँटों से पीछे रह गया। जब शेर ने उसको देखा तो वह उस पर झपट पड़ा। छोटा ऊँट अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागा, पर वह अपने आप को उस शेर से नहीं बचा पाया। उसका अंत बुरा हुआ क्योंकि उसने अपने बड़ों की आज्ञा का पालन नहीं किया था।

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4. एक धनी सेठ के बेटे का आज्ञाकारी तथा होनहार होना… उसका बुरी संगत में पड़ना …….. उनके साथ उसका कक्षा छोड़कर भागना …….. उसे सिगरेट की लत लगना ……. उसके पिता का उसे सिगरेट पीते देखना पर कुछ न कहना …….. आदित्य को पश्चाताप होना …….. पिता से क्षमा माँगना ……. बुरी संगति को छोड़ना …….

संगति का प्रभाव

बनारस के पास एक छोटे-से नगर में सेठ श्याम दास रहते थे। उनका इकलौता था पुत्र था, जो बहुत ही होनहार था उसका नाम आदित्य था। विद्यालय के सभी शिक्षक आदित्य को बहुत पसंद किया करते थे क्योंकि वह आज्ञाकारी होने के साथ-साथ पढ़ाई में भी बहुत अच्छा था। उसकी कक्षा में कुछ ऐसे बच्चे भी पढ़ते थे जिनकी आदत खराब थी। न मालूम कैसे धीरे-धीरे आदित्य की मित्रता उन बच्चों के साथ हो गई। अब वह भी उन बच्चों की भाँति विद्यालय से भागने लगा। उसे कक्षा छोड़कर जाना अच्छा लगने लगा। वह पहले की भाँति विद्यालय तो आता, लेकिन बीच में ही विद्यालय से बाहर निकलकर उन मित्रों के साथ सिनेमा देखता, बाज़ार घूमता और जुआ खेलता। उसे सिगरेट पीने की लत भी लग गई थी। सेठ श्याम दास इन सब बातों से बेखबर थे। वे नहीं जानते थे कि उनका प्रिय पुत्र किस प्रकार बुरी संगति में पड़ गया है।

एक दिन किसी कार्यवश वे बाज़ार निकले, तो उन्होंने देखा कि आदित्य कुछ बच्चों के साथ पेड़ के नीचे बैठकर सिगरेट पी रहा है। पहले तो उन्हें अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ किंतु पास जाकर देखा, तो समझ गए कि आदित्य अब बुरी संगति में पड़ चुका है। अपने पिता को सामने खड़ा देखकर आदित्य झेंप गया। उसे कुछ जवाब देते नहीं बन पड़ा। बिना कुछ कहे वह अपने पिता के साथ हो लिया। रास्ते भर पिता-पुत्र में कोई बातचीत नहीं हुई। वह समझ चुका था कि उसने अपने पिता को बहुत कष्ट पहुँचाया है। घर आकर उसने अपने पिता से क्षमा माँगी और उन गलत दोस्तों का साथ छोड़ देने का प्रण लिया। उसे समझ आ गया था कि बुरे लोगों के साथ रहकर कुछ भला नहीं हो सकता।

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5. सेठ काशीराम के पास अपार दौलत होना ……… पर मन की शांति नहीं ……… एक दिन आश्रम में जाना ……… संत द्वारा प्रश्न पूछना …….. सेठ द्वारा अपनी परेशानी को बताना ……….. दोनों का आश्रम के चक्कर लगाना ………… सेठ द्वारा सुंदर वृक्ष को छूना ….. काँटा चुभना …….. सेठ का चिल्लाना ……… संत द्वारा समझाया जाना ……. ईर्ष्या, क्रोध, लोभ का त्याग करना ……… शांति का प्राप्त होना ……….

शीर्षक-शांति की प्राप्ति

सेठ काशीराम के पास अपार धन-दौलत थी। उन्हें हर तरह का आराम था लेकिन उनके मन को शांति नहीं मिल पाती थी। हर पल उन्हें कोई-न-कोई चिंता परेशान किए रहती थी। एक दिन वे कहीं जा रहे थे तो रास्ते में उनकी नज़र एक आश्रम पर पड़ी। वहाँ उन्हें किसी साधु के प्रवचनों की आवाज़ सुनाई दी। उस आवाज़ से प्रभावित होकर काशीराम आश्रम के अंदर गए और बैठ गए।

प्रवचन समाप्त होने पर सभी अपने-अपने घर को चले गए। लेकिन सेठ वहीं बैठे रहे। उन्हें देखकर संत बोले, ” कहो, तुम्हारे मन में क्या निराशा है, जो तुम्हें परेशान कर रही है।”
इस पर काशीराम बोले, “बाबा, मेरे जीवन में शांति नहीं है।”

यह सुनकर संत बोले, ” घबराओ नहीं, तुम्हारे मन की सारी अशांति अभी दूर हो जाएगी। तुम आँखें बंद करके ध्यान की मुद्रा में बैठो।’ संत की बात सुनकर ज्यों ही काशीराम ध्यान की मुद्रा में बैठे त्यों ही उनके मन में इधर-उधर की बातें घूमने लगीं और उनका ध्यान उचट गया। संत ने यह देखकर सेठ से कहा, ‘चलो, आश्रम का एक चक्कर लगाते हैं।’

इसके बाद वे आश्रम में घूमने लगे। काशीराम ने एक सुंदर वृक्ष देखा तथा उसे हाथ से छुआ। हाथ लगाते ही उनके हाथ में एक काँटा चुभ गया और सेठ बुरी तरह चिल्लाने लगे। यह देखकर संत वापस अपनी कुटिया में आए। कटे हुए हिस्से पर लेप लगाया। कुछ देर बाद वे सेठ से बोले, “तुम्हारे हाथ में ज़रा-सा काँटा चुभा तो तुम बेहाल हो गए। सोचो कि जब तुम्हारे अंदर ईर्ष्या, क्रोध व लोभ जैसे बड़े-बड़े काँटे छिपे हैं, तो तुम्हारा मन भला शांत कैसे हो सकता है?”

संत की बात से सेठ काशीराम को अपनी गलती का अहसास हो गया। वे संतुष्ट होकर वहाँ से चले गए। उसके बाद सेठ काशीराम ने कभी भी ईर्ष्या नहीं की, क्रोध भी त्याग दिया।

JAC Class 9 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

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JAC Board Class 9 Hindi Rachana पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

आज के वैज्ञानिक युग में चाहे दूरभाष, वायरलेस, ई-मेल, स्काइप आदि के प्रयोग से दूर स्थित सगे-संबंधियों, सरकारी-गैर-सरकारी संस्थानों तथा व्यापारिक प्रतिष्ठानों से पल भर में बात की जा सकती है पर फिर भी पत्र – लेखन का अभी भी हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। पत्र – लेखन विचारों के आपसी आदान-प्रदान का सशक्त, सुगम और सस्ता साधन है। पत्र – लेखन केवल विचारों का आदान- प्रदान ही नहीं है बल्कि इससे पत्र – लेखक के व्यक्तित्व, दृष्टिकोण, चरित्र, संस्कार, मानसिक स्थिति आदि का ज्ञान हो जाता है। पत्र लिखते समय अनेक सावधानियाँ अवश्य ध्यान में रखनी चाहिए, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं –

  • सरल और स्पष्ट भाषा का प्रयोग।
  • स्नेह, शिष्टता और भद्रता का निर्वाह।
  • पत्र प्राप्त करने वाले का पद, योग्यता, संबंध, सामर्थ्य, स्तर, आयु आदि।
  • अनावश्यक विस्तार से बचाव।
  • विषय-वस्तु की पूर्णता।
  • कड़वे, अशिष्ट और अनर्गल भावों तथा शब्दों का निषेध।

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पत्रों के भेद :

प्रमुख रूप से पत्रों को दो प्रकार का माना जाता है, जिनके आगे अनेक भेद – विभेद हो सकते हैं। वे हैं-
(क) औपचारिक पत्र (Formal Letters)
(ख) अनौपचारिक पत्र ( Informal Letters)

(क) औपचारिक पत्र (Formal Letters) :

जिन लोगों के साथ औपचारिक संबंध होते हैं, उन्हें औपचारिक पत्र लिखे जाते हैं। इन पत्रों में व्यक्तिगत और आत्मीय विचार प्रकट नहीं किए जाते। इनमें अपनेपन का भाव पूरी तरह गायब रहता है। इनमें अपने विचारों को भली-भाँति सोच-विचारकर प्रकट किया जाता है। प्रायः औपचारिक – पत्र सरकारी और गैर-सरकारी कार्यालयों के अधिकारियों, निजी संस्थानों, पत्र-पत्रिकाओं के संपादकों, अध्यापकों, प्रधानाचार्यों, व्यापारियों आदि को लिखे जाते हैं। औपचारिक पत्रों की रूपरेखा प्रायः निम्नलिखित आधारों पर निर्धारित की जाती है –

1. पत्र का क्रमांक
2. विभाग / कार्यालय / मंत्रालय का नाम
3. दिनांक
4. प्रेषक का नाम तथा पद
5. प्राप्तकर्ता का नाम तथा पद
6. विषय का संक्षिप्त उल्लेख
7. संबोधन
8. विषय-वस्तु
9. समापन शिष्टता
10. प्रेषक के हस्ताक्षर
11. प्रेषित का पद / नाम / पता

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औपचारिक पत्र का प्रारूप –

भारत सरकार के गृह मंत्रालय के सचिव की ओर से मुख्य सचिव, पंजाब राज्य को एक सरकारी- पत्र लिखें, जिसमें राज्य में कानून और व्यवस्था की बिगड़ती हुई स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई हो।

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औपचारिक-पत्र के आरंभ और समापन की विधि –

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(ख) अनौपचारिक पत्र (Informal Letters) :

जिन लोगों के आपसी संबंध आत्मीय होते हैं, उनके द्वारा एक-दूसरे को लिखे जाने वाले पत्र अनौपचारिक पत्र कहलाते हैं। ऐसे पत्र प्रायः रिश्तेदारों, मित्रों, स्नेही संबंधियों आदि के द्वारा लिखे जाते हैं। इन पत्रों में एक-दूसरे के प्रति प्रेम, लगाव, गुस्से, उलाहने, आदर आदि के भाव अपनत्व के आधार पर स्पष्ट दिखाई देते हैं। इन पत्रों में बनावटीपन की मात्रा कम होती है। वाक्य संरचना बातचीत के स्तर पर आ जाती है।

मन के भाव और विचार बिना किसी संकोच के प्रकट किए जा सकते हैं। इनमें औपचारिकता का समावेश नहीं किया जाता। प्रायः सभी प्रकार के सामाजिक पत्रों को इसी श्रेणी में सम्मिलित कर लिया जाता है। विवाह, जन्म-दिन, गृहप्रवेश, मुंडन संस्कार, शोक सूचनाओं आदि को इन्हीं के अंतर्गत ग्रहण किया जाता है। अनौपचारिक पत्रों की रूपरेखा प्रायः निम्नलिखित आधारों पर निर्धारित की जाती है –

1. पत्र के बाईं ओर भेजने वाले का पता
2. दिनांक
3. पत्र प्राप्त करने के प्रति संबोधन
4. पत्र प्राप्त करने वाले से संबंधानुसार अभिवादन
5. पत्र में अनुच्छेदानुसार पत्र लिखने का कारण, विषय का विस्तार तथा परिवार के अन्य सदस्यों के प्रति अभिवादन
6. समापन
7. बाईं ओर पत्र – लेखक का पत्र प्राप्त करनेवाले से संबंध
8. पत्र लिखनेवाले का नाम

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अनौपचारिक पत्र का प्रारूप –

अपने मित्र को अपने विद्यालय में हुए वार्षिकोत्सव के विषय में पत्र लिखिए।

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अनौपचारिक पत्र के आरंभ और समापन की विधि

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I. औपचारिक पत्र

(क) कार्यालयी – पत्र :

1. भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय की ओर से महाराष्ट्र सरकार को नई शिक्षा नीति लागू करने के लिए पत्र लिखिए।

रजत शर्मा
सचिव, भारत सरकार
शिक्षा मंत्रालय
दिनांक : 12 मार्च, 20XX
सेवा में
सचिव
शिक्षा विभाग
महाराष्ट्र राज्य मुंबई
विषय – नई शिक्षा नीति लागू करने हेतु पत्र।
महोदय

मुझे आपको यह सूचित करने का निर्देश दिया गया है कि भारत सरकार के निश्चयानुसार शिक्षा सत्र 20…. से संपूर्ण देश में नई शिक्षा नीति को लागू कर दिया जाए। महाराष्ट्र में भी इस नीति को क्रियान्वित किया जाए तथा इस योजना को लागू करने के लिए किए गए प्रयासों से मंत्रालय को भी परिचित कराया जाए।
आपका विश्वासपात्र
ह० रजत शर्मा
(रजत शर्मा)
सचिव, शिक्षा मंत्रालय

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2. उपायुक्त, सिरसा की ओर से मुख्य सचिव हरियाणा सरकार को एक पत्र लिखकर बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए अनुरोध कीजिए।

बी० एस० यादव
उपायुक्त, सिरसा
दिनांक : 16 अगस्त, 20XX
सेवा में
मुख्य सचिव
हरियाणा राज्य
चंडीगढ़
विषय – बाढ़ पीड़ितों की सहायता हेतु पत्र।
महोदय
1. मैं आपको सूचित करता हूँ कि इन दिनों हुई भयंकर वर्षा के परिणामस्वरूप सिरसा के आसपास के गाँवों में भीषण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई है। खड़ी फसलें नष्ट हो गई हैं तथा जन-धन और संपत्ति की भी बहुत हानि हुई है। मैंने अन्य जिला अधिकारियों के साथ स्थिति का निरीक्षण भी किया है।
2. ज़िला – स्तर पर बाढ़ पीड़ितों की यथासंभव सहायता की जा रही है, जो अपर्याप्त है। आपसे प्रार्थना है कि बाढ़ पीड़ितों को राज्य सरकार की ओर से विशेष आर्थिक सहायता प्रदान की जाए, जिससे वे अपने टूटे-फूटे मकान बना सकें तथा नष्ट हुई फ़सल के स्थान पर अगली फसल की तैयारी कर सकें।
3. बाढ़ के कारण बीमारियों का प्रकोप भी बढ़ गया है। जिला स्वास्थ्य अधिकारी इन बीमारियों पर नियंत्रण करने में पूर्णरूप से सक्षम नहीं हैं। अतः विशेष चिकित्सकों के दल को भी भेजने का प्रबंध करें।
भवदीय
बी० एस० यादव
उपायुक्त, सिरसा

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3. भारत सरकार के उद्योग मंत्रालय की ओर से हिमाचल प्रदेश सरकार के उद्योग सचिव को राज्य में उद्योग-धंधों को प्रोत्साहित करने के लिए एक पत्र लिखिए।

भारत सरकार
उद्योग मंत्रालय
नई दिल्ली
दिनांक : 22 सितंबर, 20XX
श्री पी० एस० यादव
सचिव, उद्योग विभाग, हिमाचल प्रदेश
विषय – उद्योग धंधों को प्रोत्साहित करने हेतु पत्र।
प्रिय श्री यादव जी
विगत दिनों हिमाचल प्रदेश के कुछ उद्योगपतियों ने इस मंत्रालय को राज्य में उद्योग-धंधों की दयनीय स्थिति से अवगत कराया। मुझे बहुत दुख हुआ कि उद्योग-धंधों की उपेक्षा के कारण जहाँ हिमाचल प्रदेश की आर्थिक स्थिति को आघात पहुँचा है, वहीं देश की प्रगति भी अवरुद्ध हो रही है। इस संबंध में आप व्यक्तिगत रूप से रुचि लें तथा प्रदेश में उद्योग-धंधों को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न योजनाएँ चलाएँ। इस संदर्भ में विस्तृत योजनाएँ आपको अलग से भेजी जा रही हैं।
इन योजनाओं को लागू करने में यदि आपको कोई कठिनाई हो तो मुझसे संपर्क कर सकते हैं।
शुभकामनाओं सहित
आपकी सद्भावी
पूनम शर्मा
शिमला

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4. शारदा विद्या मंदिर, लखनऊ के प्राचार्य की ओर से महर्षि दयानंद विद्यालय के प्राचार्य को वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह में मुख्य अतिथि पद को स्वीकार करने हेतु एक पत्र लिखिए।

शारदा विद्या मंदिर
लखनऊ
दिनांक : 18 अक्तूबर, 20XX
सेवा में
डॉ० नरेश चंद्र मिश्र
प्राचार्य
महर्षि दयानंद विद्यालय
लखनऊ
विषय – मुख्य अतिथि पद के निमंत्रण हेतु पत्र।
प्रिय डॉ० मिश्र जी
हमारे विद्यालय का वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह 18 जनवरी, 20…. को आयोजित करने का निश्चय किया गया है। इसमें
मुख्य अतिथि
पद को सुशोभित करने हेतु आपसे निवेदन है कि आप अपने अति व्यस्त समय में से कुछ अमूल्य क्षण प्रदान कर हमें अनुगृहीत करें। इस समारोह में विद्यार्थियों को शैक्षणिक तथा विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों में श्रेष्ठता प्रदर्शित करने के लिए पुरस्कृत किया जाएगा। यदि आप इस विषय में अपनी सुविधानुसार समय दे सकें तो मैं आपका विशेष रूप से आभारी होऊँगा।
शुभकामनाओं सहित
शुभाकांक्षी
डॉ० के० के० मेनन

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5. अपने क्षेत्र में मलेरिया फैलने की संभावना को देखते हुए स्वास्थ्य अधिकारी को पत्र लिखिए।

14 / 131, सुभाष नगर
सेलम
दिनांक : 17 मई, 20XX
स्वास्थ्य अधिकारी
नगर-निगम
सेलम
विषय – मलेरिया की रोकथाम हेतु पत्र।
आदरणीय महोदय
इस पत्र के द्वारा मैं अपने क्षेत्र ‘सुभाष नगर’ की सफ़ाई व्यवस्था की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहता हूँ। आप जानते हैं कि यह क्षेत्र पर्याप्त ढलान पर बसा हुआ है। बरसात में यहाँ स्थान-स्थान पर पानी रुक जाता है। यही नहीं सड़कों के दोनों ओर गंदगी के ढेर लगे रहते हैं। सफाई कर्मचारी कोई ध्यान नहीं देते। परिणामस्वरूप यहाँ मक्खियों और मच्छरों का जमघट बना रहता है। रुका हुआ पानी मच्छरों की संख्या में तीव्र गति से वृद्धि करता है। अतः इस तरफ़ ध्यान न दिया गया तो इस क्षेत्र में मलेरिया फैलने की पूरी संभावना है। अतः आपसे प्रार्थना है कि इस क्षेत्र की तुरंत सफ़ाई करवाने का आदेश दें और मलेरिया की रोकथाम के लिए समुचित व्यवस्था करें। यही नहीं यहाँ के निवासियों को आवश्यक दवाइयाँ भी मुफ़्त उपलब्ध करवाई जाएँ।
आशा है कि आप मेरी प्रार्थना की ओर ध्यान देंगे और उचित प्रबंध द्वारा इस क्षेत्र के निवासियों को मलेरिया के प्रकोप से बचा लेंगे। भवदीय
अनुराग छाबड़ा

6. अपने नगर के जलापूर्ति अधिकारी को पर्याप्त और नियमित रूप से पानी न मिलने की शिकायत करते हुए पत्र लिखिए।

512, शास्त्री नगर
रोहतक
दिनांक : 14 मार्च, 20XX
जलापूर्ति अधिकारी
नगरपालिका
रोहतक
विषय – पेयजल की कठिनाई हेतु शिकायती पत्र।
मान्यवर
बड़े खेद की बात है कि पिछले एक मास से ‘शास्त्री नगर’ क्षेत्र में पेयजल की कठिनाई का अनुभव किया जा रहा है। नगरपालिका की ओर से पेयजल की सप्लाई बहुत कम होती जा रही है। कभी-कभी तो पूरा-पूरा दिन पानी नलों में नहीं आता। मकानों की पहली दूसरी मंजिल तक तो पानी चढ़ता ही नहीं। आप पानी की आवश्यकता के विषय में जानते हैं।
पानी की कमी के कारण यहाँ के लोगों का जीवन कष्टमय बन गया है। आप से प्रार्थना है कि इस क्षेत्र में पेयजल की समस्या का समाधान करें।
आशा है कि आप इस विषय पर ध्यान देंगे और शीघ्र ही उचित कार्रवाई करेंगे।
भवदीय
रामसिंह

JAC Class 9 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

7. अपने मोहल्ले में वर्षा के कारण उत्पन्न हुए जल भराव की समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट करने के लिए नगरपालिका अधिकारी को पत्र लिखिए।

4/307, जगाधरी गेट
अंबाला
दिनांक : 18 सितंबर, 20XX
स्वास्थ्य अधिकारी
नगरपालिका
अंबाला
विषय – जल भराव की समस्या हेतु शिकायती पत्र
महोदय
निवेदन यह है कि मैं जगाधरी गेट का निवासी हूँ। यह क्षेत्र सफ़ाई की दृष्टि से पूरी तरह उपेक्षित है। वर्षा के दिनों में तो इसकी और बुरी हालत हो जाती है। इन दिनों प्रायः सभी गलियों में वर्षा का जल भरा हुआ है। नगरपालिका इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रही। इस जल- भराव के कारण आवागमन में ही कठिनाई नहीं होती बल्कि बीमारी फैलने का भी खतरा है।
आपसे नम्र निवेदन है कि आप स्वयं एक बार आकर इस जल भराव को देखें। तभी आप हमारी कठिनाई को समझ पाएँगे। कृपया इस क्षेत्र से जल निकास का शीघ्र प्रबंध करें।
आशा है कि आप मेरी प्रार्थना की तरफ़ ध्यान देंगे।
भवदीय
महेश बजाज

8. चुनाव के दिनों में कार्यकर्ता घर, विद्यालयों और मार्गदर्शक आदि पर बेतहाशा पोस्टर लगा जाते हैं। इससे लोगों को होने वाली असुविधा पर अपने विचार व्यक्त करते हुए ‘दैनिक लोक वाणी’ समाचार-पत्र के ‘जनमत’ कॉलम के लिए पत्र लिखिए।

480, नई बस्ती
चंबा
दिनांक : 22 जनवरी, 20XX
संपादक
दैनिक लोकवाणी
चेन्नई
विषय – जगह-जगह राजनीतिक पोस्टर लगाने हेतु शिकायती पत्र।
आदरणीय महोदय
मैं आपके लोकप्रिय पत्र के ‘जनमत कॉलम’ के लिए एक पत्र लिख रहा हूँ। इसे प्रकाशित करने की कृपा करें। आप जानते हैं कि चुनाव के दिनों में कार्यकर्ता बिना सोचे-समझे, विद्यालयों, घरों तथा मार्गदर्शन चित्रों आदि पर अत्यधिक पोस्टर लगा जाते हैं। घर अथवा विद्यालय कोई राजनीतिक संस्थाएँ नहीं। उन पर लगे पोस्टरों से यह भ्रम हो जाता है कि घर तथा विद्यालय भी किसी राजनीतिक दल से संबद्ध है। इन पोस्टरों से मार्गदर्शन चित्र इस तरह ढक जाते हैं कि अजनबी को रास्ते के बारे में कुछ पता नहीं चलता। इन पोस्टरों को लगानेवालों की भीड़ के कारण आम लोगों को तथा छात्रों को असुविधा होती है। अतः मैं सरकार तथा राजनीतिक दलों का ध्यान इस तरफ़ दिलाना चाहता हूँ।
आशा है कि आप लोगों की सुविधा का ध्यान रखते हुए मेरे इस पत्र को प्रकाशित करने का आदेश देंगे।
भवदीय
मोहन मेहता

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(ख) आवेदन-पत्र

9. दिल्ली नगर निगम के अध्यक्ष को एक आवेदन-पत्र लिखिए जिसमें लिपिक के पद के लिए आवेदन किया गया हो।

4/19, अशोक नगर
नई दिल्ली
दिनांक : 15 दिसंबर, 20XX
अध्यक्ष
नगर-निगम
दिल्ली
विषय – लिपिक के पद हेतु आवेदन पत्र।
मान्यवर
निवेदन है कि मुझे विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि आपके कार्यालय में एक क्लर्क की आवश्यकता है। मैं इस रिक्ति के लिए अपनी सेवाएँ प्रस्तुत करता हूँ। मेरी योग्यताएँ इस प्रकार हैं –
(i) बी० ए० द्वितीय श्रेणी
(ii) टाइप का पूर्ण ज्ञान-गति 50 शब्द प्रति मिनट
(iii) अनुभव – एक वर्ष
(iv) आयु – 24वें वर्ष में प्रवेश
मुझे अंग्रेज़ी एवं हिंदी का अच्छा ज्ञान है। पंजाबी भाषा पर भी अधिकार है।
आशा है कि आप मेरी योग्यता को देखते हुए अपने अधीन काम करने का अवसर प्रदान करेंगे। मैं सच्चाई एवं ईमानदारी के साथ काम करने का आश्वासन दिलाता हूँ।
योग्यता एवं अनुभव संबंधी प्रमाण-पत्र इस प्रार्थना-पत्र के साथ संलग्न कर रहा हूँ।
धन्यवाद सहित
भवदीय
सुखदेव गोयल
संलग्न : उपर्युक्त

10. ‘जनसंख्या विभाग’ को घर-घर जाकर सूचनाएँ एकत्रित करने वाले ऐसे सर्वेक्षकों की आवश्यकता है, जो हिंदी और अंग्रेजी में भली-भाँति बात कर सकते हों और सूचनाओं को सही-सही दर्ज कर सकते हों। इसके साथ ही आवेदकों में विनम्रतापूर्वक बात करने की योग्यता होनी चाहिए। इस काम में अपनी रुचि प्रदर्शित करते हुए जनसंख्या विभाग के सचिव को आवेदन-पत्र लिखिए।

7, रामलीला मार्ग
हमीरपुर
दिनांक : 14 दिसंबर, 20XX
प्रशासनिक अधिकारी
जनसंख्या विभाग
कोयंबटूर
विषय – सर्वेक्षक की नौकरी हेतु आवेदन-पत्र।
आदरणीय महोदय
मुझे आज के दैनिक समाचार-पत्र में प्रकाशित विज्ञापन से ज्ञात हुआ है कि आपको घर-घर जाकर सूचनाएँ एकत्रित करने के लिए सर्वेक्षकों की आवश्यकता है। मैं आपके कार्यालय द्वारा निर्धारित योग्यताओं को पूर्ण करता हूँ।
मैंने इसी वर्ष बारहवीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण की है। कुछ समय तक मैंने स्थानीय कार्यालय में कार्य भी किया है। मैं हिंदी तथा अंग्रेज़ी बोलने तथा इन दोनों भाषाओं में वार्तालाप करने में दक्ष हूँ।
मैं अपनी सेवाएँ प्रदान करना चाहता हूँ। आशा है कि आप मुझे अवसर प्रदान करेंगे। आवश्यक प्रमाण-पत्र मैं भेंटवार्ता के अवसर पर साथ लेकर आऊँगा।
भवदीय
महेश महाजन

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11. ‘प्रचंड भारत’ दैनिक समाचार-पत्र को खेल विभाग के लिए संवाददाताओं की आवश्यकता है। पद के लिए खेलों का ज्ञान और रुचि के साथ-साथ हिंदी भाषा में अच्छी गति से लिखने का अभ्यास अनिवार्य है। इस पद के लिए आवेदन-पत्र लिखिए।

14, पश्चिम विहार,
कोटा
दिनांक : 15 सितंबर, 20XX
संपादक
दैनिक ‘प्रचंड भारत’
कोटा
विषय – खेल संवाददाता के पद हेतु आवेदन पत्र।
मान्यवर
आपके लोकप्रिय समाचार-पत्र में प्रकाशित विज्ञापन से ज्ञात हुआ कि आपको खेल विभाग के लिए संवाददाताओं की आवश्यकता है। इस पद के लिए मैं अपनी सेवाएँ अर्पित करना चाहता हूँ।
मेरी योग्यताओं का विवरण इस प्रकार है –
शैक्षिक योग्यता बी० ए० प्रथम श्रेणी – 2012, पत्रकारिता में डिप्लोमा – 2013
विद्यालय की क्रिकेट टीम का कप्तान – अवधि 2 वर्ष
मुझे खेलों की सामग्री का पर्याप्त अनुभव है। मुझे हिंदी भाषा का अच्छा ज्ञान है। विद्यालय तथा महाविद्यालय की पत्रिका में मेरे लेख भी प्रकाशित होते रहे हैं।
आवश्यक प्रमाण-पत्र इस आवेदन पत्र के साथ संलग्न हैं
आशा है कि आप मुझे सेवा का अवसर प्रदान करेंगे।
भवदीय
प्रतीक राय

(ग) व्यावसायिक पत्र :

12. रिक्तियों के लिए समाचार-पत्र में विज्ञापन के प्रकाशन हेतु पत्र लिखिए।
रेलवे रोड
जालंधर
दिनांक : 29 सितंबर, 20XX
विज्ञापन व्यवस्थापक
दैनिक ट्रिब्यून
चंडीगढ़
विषय – विज्ञापन प्रकाशन हेतु पत्र।
महोदय
इस पत्र के साथ एक विज्ञापन का प्रारूप भेज रहा हूँ जिसे कृपया 7 अक्तूबर तथा 14 अक्तूबर के अंकों में प्रकाशित कर दें। आपका बिल प्राप्त होते ही उसका भुगतान कर दिया जाएगा।

विज्ञापन का प्रारूप

आवश्यकता है एक ऐसे अनुभवी सेल्स मैनेजर की जो स्वतंत्र रूप से प्रतिष्ठान के बिक्री काउंटर को सँभाल सके। वेतन ₹15000-20000 तथा निःशुल्क आवास की व्यवस्था। बहुत योग्य तथा अनुभवी अभ्यार्थी को योग्यतानुसार उच्च वेतन भी दिया जा सकता है। निम्नलिखित पते पर
15 नवंबर, 20XX तक लिखें या मिलें –
मल्होत्रा बुक डिपो,
रेलवे रोड, जालंधर शहर।
धन्यवाद
भवदीय
एस० के० सिक्का
प्रबंधक
संलग्न : विज्ञापन

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13. आपको दिल्ली के किसी पुस्तक-विक्रेता से कुछ पुस्तकें मँगवानी हैं। वी० पी० पी० द्वारा मँगवाने के लिए पत्र लिखिए।

5/714, तिलक नगर
कटक
दिनांक : 17 नवंबर, 20XX
प्रबंधक
मल्होत्रा बुक डिपो
गुलाब भवन
6, बहादुर शाह ज़फ़र मार्ग
नई दिल्ली- 110002
विषय – पुस्तकें मँगवाने हेतु पत्र।
महोदय
निम्नलिखित पुस्तकें स्थानीय पुस्तक – विक्रेता से नहीं मिल रहीं अतः ये पुस्तकें वी० पी० पी० द्वारा शीघ्र भेजने का कष्ट करें। यदि अग्रिम भेजने की आवश्यकता हो तो सूचित करें। पुस्तकों पर उचित कमीशन काटना न भूलें। पुस्तकें नवीन पाठ्यक्रम के अनुसार होनी चाहिए।
1. हिंदी गाइड (कक्षा नौ) …… एक प्रति
2. इंगलिश गाइड (कक्षा नौ) ……… एक प्रति
3. नागरिक शास्त्र के सिद्धांत (कक्षा नौ) …… एक प्रति
4. भूगोल (कक्षा नौ) ……… एक प्रति
5. विज्ञान (कक्षा नौ) ……… एक प्रति
भवदीय
निशा सिंह

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(घ) प्रार्थना-पत्र :

14. अपने प्रधानाचार्य को एक प्रार्थना-पत्र लिखिए जिसमें कई महीने से अंग्रेज़ी की पढ़ाई न होने के कारण उत्पन्न कठिनाई का वर्णन किया गया हो।

प्रधानाचार्य
केंद्रीय विद्यालय
पुड्डूचेरी
विषय – अंग्रेज़ी की पढ़ाई न हो पाने हेतु शिकायती पत्र।
महोदय
आप भली-भाँति जानते हैं कि हमारे अंग्रेज़ी के अध्यापक श्री ज्ञानचंद जी पिछले तीन सप्ताह से बीमार हैं। अभी भी उनके स्वास्थ्य में विशेष सुधार नहीं हो रहा। डॉक्टर का कहना है कि अभी श्री ज्ञानचंद जी को स्वस्थ होने में कम-से-कम दो सप्ताह और लगेंगे। पिछले तीन सप्ताह से हमारी अंग्रेज़ी की पढ़ाई ठीक ढंग से नहीं हो रही। आपने जो प्रबंध किया है, वह संतोषजनक नहीं है। उधर परीक्षा सिर पर आ रही हैं। अभी पाठ्यक्रम भी समाप्त नहीं हुआ है। पुनरावृत्ति के लिए भी समय नहीं बचेगा। अतः आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप हमारी अंग्रेज़ी की पढ़ाई का उचित एवं संतोषजनक प्रबंध करें। यदि कुछ कालांश बढ़ा दिए जाएँ तो और भी अच्छा रहेगा।
आशा है कि हमारी कठिनाई को शीघ्र ही दूर करने का प्रयास करेंगे।
आपका आज्ञाकारी
नवनीत (नौ ‘क’)

15. अपने प्रधानाचार्य को प्रार्थना-पत्र लिखिए जिसमें पुस्तकालय के लिए नई पुस्तकों और बाल-पत्रिकाओं को मँगाने की प्रार्थना की गई हो।

प्रधानाचार्य
राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय
जम्मू
विषय – पुस्तकालय में पुस्तकें मँगवाने हेतु पत्र।
मान्यवर महोदय
गत सप्ताह आपने प्रार्थना सभा में विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए विद्यालय के पुस्तकालय की उपयोगिता पर प्रकाश डाला था। आपने छात्रों को पुस्तकालय से अच्छी-अच्छी पुस्तकें निकलवाकर उनका अध्ययन करने की भी प्रेरणा दी थी। लेकिन पुस्तकालय में छात्रों ने जिन पुस्तकों तथा बाल – पत्रिकाओं की माँग की, वे प्रायः विद्यालय में उपलब्ध नहीं हैं।
आपसे नम्र निवेदन है कि कुछ नई पुस्तकें तथा बालोपयोगी पत्रिकाओं को मँगवाने की व्यवस्था करें। पुस्तकों तथा पत्रिकाओं के अध्ययन से जहाँ छात्र वर्ग के ज्ञान में वृद्धि होती है, वहाँ उनका पर्याप्त मनोरंजन भी होता है।
आशा है कि आप हमारी प्रार्थना पर शीघ्र ध्यान देंगे।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
मनोज कुमार
तिथि : 7.11.20XX

JAC Class 9 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

16. विद्यालय के प्राचार्य को संध्याकालीन खेलों के उत्तम प्रबंध के लिए प्रार्थना-पत्र लिखिए।

प्राचार्य
नवयुग विद्यालय
वर्धमान
विषय – संध्याकालीन खेलों के उत्तम प्रबंध हेतु पत्र।
महोदय
निवेदन यह है कि आप ने प्रातःकालीन सभा में खेलों के महत्त्व पर प्रकाश डाला था। हम विद्यालय परिसर में संध्या के समय खेलना चाहते हैं, परंतु हमारे विद्यालय के परिसर का खेल का मैदान साफ़ नहीं है तथा हमें खेल की उचित सामग्री भी प्राप्त नहीं होती।
आपसे अनुरोध है कि खेल के मैदान को साफ़ करवाने की तथा खेलों की सामग्री दिलवाने की कृपा करें।
धन्यवाद
भवदीय
देबाशीष डे
तथा कक्षा नौवीं के अन्य विद्यार्थी
दिनांक : 24 अप्रैल, 20XX

17. अध्यक्ष परिवहन निगम को अपने गाँव तक बस सुविधा उपलब्ध कराने के लिए प्रार्थना-पत्र लिखिए।

अध्यक्ष
परिवहन निगम
दिल्ली
विषय – बस सुविधा उपलब्ध करवाने हेतु पत्र।
आदरणीय महोदय
मैं गाँव ‘सोनपुरा’ का एक निवासी हूँ। वह गाँव दिल्ली से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर है। खेद की बात है कि परिवहन निगम की ओर से इस गाँव तक कोई बस सेवा उपलब्ध नहीं है। यहाँ के किसानों को नगर से कृषि के लिए आवश्यक सामान लाने में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। छात्र – छात्राओं को अपने-अपने विद्यालयों तथा महाविद्यालयों में पहुँचने के लिए भी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। अतः आपसे प्रार्थना है कि इस गाँव तक बस सेवा उपलब्ध करवाने की कृपा करें।
आशा है कि हमारी प्रार्थना पर शीघ्र ध्यान दिया जाएगा।
धन्यवाद सहित।
भवदीय
रमेश ‘बाल रत्न’
निवासी ‘सोनपुरा गाँव’
तिथि : 18 मार्च, 20XX

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18. अपने विद्यालय के प्रधानाध्यापक को एक प्रार्थना-पत्र लिखिए जिसमें खेलों की आवश्यक तैयारी तथा खेल का सामान उपलब्ध करवाने की प्रार्थना की गई हो।

प्रधानाध्यापक
केंद्रीय विद्यालय
पणजी
विषय – खेलों की आवश्यक तैयारी तथा खेल का सामान उपलब्ध करवाने हेतु पत्र।
मान्यवर
आपने एक छात्र – सभा में भाषण देते हुए इस बात पर बल दिया था कि छात्रों को शिक्षा के साथ-साथ खेलों का महत्व भी समझना चाहिए। खेल शिक्षा का एक महत्वपूर्ण अंग है। खेद की बात यह है कि आप खेलों की आवश्यकता तो खूब समझते हैं पर खेल सामग्री के अभाव की ओर कभी आपका ध्यान नहीं गया। खेलों के अनेक लाभ हैं। ये स्वास्थ्य के लिए बड़ी उपयोगी हैं। ये अनुशासन, समयपालन, सहयोग तथा सद्भावना का भी पाठ पढ़ाते हैं।
अतः आपसे नम्र निवेदन है कि आप खेलों का सामान उपलब्ध करवाने की कृपा करें। इससे छात्रों में खेलों के प्रति रुचि बढ़ेगी। वे अपनी खेल प्रतिभा का विकास कर सकेंगे।
आशा है कि आप मेरी प्रार्थना पर उचित ध्यान देंगे और आवश्यक आदेश जारी करेंगे।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
रजत शर्मा
कक्षा : नौवीं ‘ब’
दिनांक : 17 अप्रैल, 20XX

19. अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को भाई के विवाह के कारण चार दिन का अवकाश प्रदान करने हेतु प्रार्थना पत्र लिखिए।

प्रधानाचार्य
एस० एम० उच्च विद्यालय
अहमदाबाद
विषय – भाई के विवाह के कारण अवकाश हेतु पत्र।
महोदय
सविनय प्रार्थना है कि मेरे बड़े भाई का शुभ विवाह 12 अक्तूबर को होना निश्चित हुआ है। मेरा इसमें सम्मिलित होना अति आवश्यक है। इसलिए इन दिनों मैं विद्यालय में उपस्थित नहीं हो सकता। कृपया मुझे 11 से 14 अक्तूबर तक चार दिन की छुट्टी देकर अनुगृहित करें। अति धन्यवाद सहित।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
जयदीप
कक्षा : नौवीं ‘बी’
दिनांक : 10 अक्तूबर, 20XX

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20. शिक्षा-शुल्क क्षमा करवाने के लिए अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को प्रार्थना-पत्र लिखिए।

प्रधानाचार्य
डी० ए० वी० उच्च विद्यालय
अकोला
विषय – शिक्षा शुल्क क्षमा करवाने के लिए पत्र।
महोदय
सविनय निवेदन यह है कि मैं आपके विद्यालय में कक्षा नौवीं ‘ए’ में पढ़ता हूँ। मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से संबंध रखता हूँ। मेरे पिताजी एक स्थानीय कार्यालय में केवल पाँच हज़ार रुपये मासिक पर कार्य करते हैं। हम परिवार में छह सदस्य हैं। इस महँगाई के समय में इतने कम वेतन में निर्वाह होना अति कठिन है। ऐसी स्थिति में मेरे पिताजी मेरा शुल्क अदा करने में असमर्थ हैं।
मेरी पढ़ाई में विशेष रुचि है। मैं सदा अपनी कक्षा में प्रथम रहता आया हूँ। मैं स्कूल की हॉकी टीम का कप्तान भी हूँ। मेरे सभी अध्यापक मुझसे सर्वथा संतुष्ट हैं। अतः आपसे मेरी विनम्र प्रार्थना है कि आप मेरा शिक्षा शुल्क माफ़ कर मुझे आगे पढ़ने का सुअवसर प्रदान करने की कृपा करें।
मैं आपका सदा आभारी रहूँगा।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
प्रमोद कुमार
कक्षा नौवीं ‘ए’
दिनांक : 15 मई, 20XX

21. अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को एक पत्र लिखिए जिसमें स्कूल फंड से पुस्तकें लेकर देने की प्रार्थना की गई हो।

प्रधानाचार्य
केंद्रीय विद्यालय
मदुरै
विषय – स्कूल फंड से पुस्तकें लेकर देने हेतु पत्र।
महोदय
निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय में कक्षा नौवीं ‘ए’ का अत्यंत निर्धन विद्यार्थी हूँ। जैसा कि आप जानते हैं कि पिछले वर्ष मेरे पिता की मृत्यु हो गई थी। मेरी माँ पढ़ी-लिखी नहीं है। खेती-बाड़ी या आय का अन्य कोई साधन नहीं है। मेरे अलावा मेरे दो छोटे भाई हैं, जिनमें से एक छठी कक्षा में पढ़ता है। माँ हम सब का मेहनत-मज़दूरी करके पालन-पोषण कर रही है और पढ़ा-लिखा रही है। नवंबर का महीना बीत रहा है और अभी तक मेरे पास एक भी पाठ्य पुस्तक नहीं है। अभी तक मैं साथियों से पुस्तकें माँग कर काम चला रहा हूँ। परंतु परीक्षा के समय मेरे साथी चाहकर भी अपनी पाठ्य-पुस्तकें नहीं दे पाएँगे। यह बात स्मरण करके अपनी बेबसी का बेहद एहसास होता है। वार्षिक परीक्षा दो-तीन महीने बाद शुरू होने वाली है।
अतः आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप मुझे निर्धन छात्र- कोष या पुस्तकालय से सभी आवश्यक पाठ्य-पुस्तकें दिलाने की कृपा करें। आपके इस उपकार का मैं जीवन-भर आभारी रहूँगा।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
कमल मोहन
कक्षा नौवीं ‘ए’
दिनांक : 11 मई, 20XX

JAC Class 9 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

22. अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को विद्यालय-त्याग का प्रमाण-पत्र प्रदान करने के लिए प्रार्थना-पत्र लिखिए।

प्रधानाचार्य
शारदा उच्च विद्यालय
धर्मशाला
विषय – विद्यालय – त्याग प्रमाण पत्र प्रदान करने हेतु।
मान्यवर
सविनय निवेदन है कि मेरे पिताजी का स्थानांतरण शिमला हो गया है। वे कल यहाँ से जा रहे हैं और साथ में परिवार भी जा रहा है। इस अवस्था में मेरा यहाँ अकेला रहना कठिन है। कृपा करके मुझे स्कूल छोड़ने का प्रमाण- पत्र दीजिए ताकि मैं वहाँ जाकर स्कूल में प्रविष्ट हो सकूँ।
कृपा के लिए धन्यवाद।
आपका विनीत शिष्य
सुनील कुमार
कक्षा : नौवीं ‘बी’
दिनांक : 11 फरवरी, 20XX

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द विचार

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Vyakaran शब्द विचार Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9 Hindi Vyakaran शब्द विचार

परिभाषा-श्रुतिसम अर्थात सुनने में समान। जो शब्द पढ़ने और सुनने में लगभग एक समान लमते है, परंतु अर्थ की दृष्टि से भिन्नत पाई जाती हैं, वे श्रुतिसम-भिन्नर्थक शब्द कहलाते हैं। इन शब्दों में स्वर, मात्रा अथवा व्यंजन में थोड़-सी भिन्नता पाई जाती हैं। ये बोलने में लगभग एक जैसे लगते हैं, परंतु उनके अर्थ में भिन्नता अवश्य होती है। यही शब्द ‘ ग्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द’ होते हैं।
जैसे – घन और धन दोनों के उच्चारण में कोई खास भिन्नता महसूस नहीं होती परंतु अर्थ में भिन्नता है।

घन = बादल
धन = रुपया-पैसा या संपत्ति

हिंदी भाषा में ऐसे बहुत से शब्द हैं, जिनमें से कुछ की सूची नीचे दी जा रही है :

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द विचार 1

पमासनाही पालन

जिन शब्दों के अर्थ में समानता होती है, उन्हें पर्यायवाची या समानार्थी शब्द कहते हैं। यद्यपि पर्यायवाची शब्दों के अर्थ में समानता तो होती है, परंतु प्रत्येक शब्द की अपनी विशेषता होती है। भावगत भिन्नता पाई जाती है। इनके प्रयोग में हमें सावधानी बरतनी होती है।

  • अच्छा – सुष्ठु, शुभ, श्रेष्ठ, शोभन, सुंदर
  • अनुरूप – अनुकूल, संगत, अनुसार
  • अनुपम – अद्भुत, अद्वितीय, अनोखा, अपूर्व, निराला, अनूठा
  • अधम – पतित, भ्रष्ट, नीच, निकृष्ट, खल, पामर, दुर्जन
  • अपमान – अनादर, उपेक्षा, तिरस्कार, निरादर
  • अंकुश – रोक, दबाव, प्रतिबंध
  • अमृत – सुधा, पीयूष, अमिय, सोम
  • अरिन – हुताशन, वहनि, अनल, पावक, आग, दहन, ज्वाला
  • अलि – भ्रमर, भौरा, मधुकर, मधुप, मिलिंद
  • असुर – राक्षस, दैत्य, दानव, दनुज, निशाचर
  • ईश्वर – ईश, परमात्मा, परमेश्वर, प्रभु, भगवान, जगदीश
  • उषा – प्रभात, सवेरा, अरुणोदय, निशांत
  • उन्नति – उदय, वृद्धि, विकास, उत्कर्ष, उत्थान, अभ्युदय, प्रगति, उन्नयन
  • अंकुर – कोंपल, अँखुआ, कलिका
  • अँधेरा – तम, तिमिर, अंधकार, अँधियारा
  • आँसू – अश्रु, नयनजल, नेत्रनीर
  • अहंकार – अभिमान, गर्व, घमंड, मद, दर्प
  • आनंद – मोद, प्रमोद, हर्ष, आमोद, प्रसन्नता, उल्लास
  • आँख – नेत्र, चक्षु, नयन, लोचन, अक्षि
  • आकाश – व्योम, गगन, अंबर, नभ, आसमान, अनंत
  • अतिधि – अभ्यागत, मेहमान, आगंतुक, पाहुन
  • अश्व – घोड़ा, हय, बाजी, घोटक, तुरंग
  • आभूषण – अलंकार, भूषण, गहना
  • इनाम – पुरस्कार, पारितोषिक, प्रीतिकर, आनंदकर
  • इच्छा – अभिलाषा, चाह, मनोरथ, कामना, आकांक्षा, लालसा
  • इंद्र – देवेंद्र, सुरेंद्र, सुरपति, पुरंदर, देवराज, शचीपति
  • उद्देश्य – अभिग्राय, आशय, लक्ष्य, ध्येय, इष्ट, तात्पर्य
  • उपकार – हित, भलाई, नेकी, भला
  • कपड़ा – वस्त्र, अंबर, चीर, पट, वसन, परिधान
  • किरण – रश्मि, अंशु, मरीची, मयूख, कर
  • केश – बाल, अलक, कच, कुंतल
  • कोयल – पिक, कोकिल, श्यामा, कलकंठी, कोकिला, वसंतदूत
  • कृपा – अनुग्रह, मेहरबानी, दया, अनुकंपा
  • कमल – अरविंद, जलज, नलिन, पंकज, सरोज, राजीव, नीरज, अंबुज
  • कान – कर्ण, श्रोत्र, श्रवण
  • किनारा – तट, तीर, कूल, पुलिन
  • कृष्ण – वासुदेव, गोपाल, गिरधर, केशव
  • क्रोध – गुस्सा, रोष, कोप, आमर्ष
  • खल – अधम, कुटिल, दुष्ट, शठ
  • खून – रक्त, लहू, शोणित
  • गणेश – गणपति, भालचंद्र, लंबोदर, गजानन, विनायक
  • गंगा – भागीरथी, देवनदी, सुरसरी, मंदाकिनी, नदीश्वरी
  • गौ – गाय, सुरभि, धेनु, गऊ, दुधा
  • गोद – अंक, क्रोड, उत्सर्ग
  • गुफा – गुहा, विवर, कंदरा
  • जल – वारि, नीर, पानी, पय, तोय, सलिल, अंबु, उदक
  • जंगल – विपिन, कानन, वन, अरण्य
  • घर – गृह, सदन, निकेतन, भवन, आवास, आलय, धाम, गेह
  • चंद्रमा – शशि, विधु, चंद्र, राकेश, इंदु, चाँद, सोम, सुधाकर
  • चतुर – दक्ष, प्रवीण, निपुण, कुशल, योग्य, होशियार
  • चाँदनी – ज्योत्स्ना, चंद्रिका, कौमुदी, चंद्रमरीची
  • झंडा – ध्वज, पताका, निशान, केतु
  • तलवार – खड्ग, कृपाण, असि, शमशीर, करवाल
  • तरंग – लहर, उर्मि, वीचि, हिलोर
  • जीभ – जिह्वा, रसना, रसज्ञा, रसा
  • दूध – दुग्ध, पय, गोरस, क्षीर
  • तालाब – सर, सरोवर, तड़ाग, जलाशय, ताल, पोखर
  • तारा – नक्षत्र, तारक, नखत
  • तीर – बाण, शर, सायक, इषु, नाराच, शिलिमुख
  • दास – भृत्य, नौकर, सेवक, अनुचर, परिचारक
  • दिवस – दिन, वार, वासर, दिव, अहर
  • देवता – सुर, अमर, देव, अजर
  • दुर्गा – भवानी, देवी, कालिका, अंबा, चंडिका
  • दुख – पीड़ा, कष्ट, व्यथा, विषाद, यातना, वेदना
  • धनुष – धनु, कोदंड, चाप, कमान, शरासन, पिनाक, कार्मुक
  • धन – द्रव्य, अर्थ, वित्त, संपत्ति, लक्ष्मी
  • नदी – सरिता, तरंगिणी, सरित, नद, तटिनी
  • दंत – दाँत, दशन, रद, द्विज, दंश
  • नमस्कार – नमः, प्रणाम, अभिवादन, नमस्ते
  • नरक – दुर्गति, संघात, यमपुर, यमलोक, यमालय
  • पर्वत – गिरी, पहाड़, शैल, नग, अचल, महीधर
  • पुत्र – सुत, बेटा, लड़का, पूत, तनय
  • पुत्री – सुता, बेटी, लड़की, नंदिनी, तनया
  • नारी – स्त्री, कामिनी, महिला, अबला, वनिता, भामिनी, ललना
  • नागर – नगरी, पत्तन, पुर, पुरी
  • निशा – यामिनी, रात, रात्रि, रजनी, शर्वरी
  • निर्मल – शुद्ध, स्वच्छ, विमल, पवित्र
  • नौका – नाव, तरिणी, जलयान, बेड़ा, पतंग, तरी
  • पंडित – विद्वान, प्राज्ञ, बुद्धिमान, धीमान, धीर, सुधी
  • पवन – हवा, वायु, समीर, बयार, मारूत, अनिल
  • पक्षी – खग, नभचर, विहग, पंछी, विहंग, पतंग
  • पत्नी – वधु, गृहिणी, स्त्री, प्राणप्रिया, अर्धांगिनी, भार्या
  • पति – स्वामी, नाथ, वर, कांत, प्राणनाथ, आर्य, ईश
  • पत्ता – पात, दल, पत्र, पल्लव
  • पराग – पुष्पराज, कुसुमरज, पुष्पधूलि
  • पत्थर – पाषाण, वज्र, पाहन, उपल, शिला
  • पुष्प – कुसुम, सुमन, फूल, मंजरी, प्रसून
  • पृथ्वी – भू, भूमि, धरणी, धरती, वसुधा, धरा
  • भयानक – डरावना, भयजनक, विकट, गंभीर
  • भिक्षा – भीख, याचना, माँगना, खैरात
  • प्रकाश – उजाला, ज्योति, प्रभा, विभा, आलोक
  • प्रतीक – चिहन, प्रतिमा, निशान, प्रतिभूति
  • बाग – बगीचा, वाटिका, उपवन, उद्यान, आराम
  • बिजली – विद्युत, तड़ित, दामिनी, चंचला, चपला
  • बंदर – कपि, वानर, शाखामृग, हरि
  • मदिरा – शराब, सुरा, मद्य, वारुणी
  • मित्र – सखा, सहचर, साथी, मीत, दोस्त
  • माता – जननी, माँ, मात, मैया, अंबा
  • मुख – मुँह, मुखड़ा, आनन, वदन
  • भूख – क्षुधा, बुभुक्षा, अन्नलिप्सा, आहारेच्छा
  • मछली – अंडज, मीन, मत्स्य, शफरी
  • मृत्यु – निधन, देहांत, अंत, मौत
  • मनुष्य – मनुज, नर, आदमी, मानव, पुरुष
  • मेघ – जलद, बादल, नीरद, घन, वारिद
  • मोर – मयूर, शिखी, शिखंडी, कलापी
  • मूर्ख – अज, अबोध, गंवार, मूढ़
  • मल्लाह – नाविक, माँझी, खेवट, कर्णधार, केवट
  • यत्न – उद्यम, प्रयास, उद्योग, प्रयत्त, पुरुषार्थ
  • लक्ष्मी – इंदिरा, कमला, रमा, हरिप्रिया, श्री
  • वन – विपिन, जंगल, कानन, अटवी, अरण्य
  • यौवन – जवानी, युवावस्था, जीवन, शिरोमणि, तरुणाई
  • युवक – जवान, युवा, तरुण
  • युद्ध – समर, लड़ाई, रण, संग्राम
  • राजा – नृप, भूपति, भूप, नरेश, सम्राट, नरेंद्र, नरपति
  • रण – संग्राम, सम, युद्ध, लड़ाई
  • शत्रु – रिपु, दुश्मन, विपक्षी, अरि, वैरी
  • शरीर – देह, काया, कलेवर, तन, वपु, अंग, गात
  • शिव – शंकर, महादेव, रुद्र, भूतनाथ, नीलकंठ, पिनाकी
  • वृक्ष – तरु, पादप, विटप, द्रुम
  • वर्ष – अब्द, साल, बरस, संवत्
  • शोभा – छवि, दीप्ति, कांति, सुषमा, आभा, छटा
  • समुद्र – सागर, उदधि, रत्नाकर, जलधि, सिंधु
  • सरस्वती – शारदा, भारती, गिरा, वाणी
  • सेना – सैन्य, दल, कटक, वाहिनी
  • सिंह – शेर, केसरी, मृंगंद्र, वनराज, मृगराज
  • स्वर्ण – कंचन, कनक, कुंदन, सोना
  • हाथ – कर, पाणि, हस्त
  • हिरन – कुरंग, मृग, सारंग, कृष्णसार
  • सूर्य – रवि, प्रभाकर, भास्कर, दिवाकर, आदित्य, सविता, दिनकर
  • सर्प – भुजंग, नाग, विषधर, व्याल
  • संसार – दुनिया, जगत्, विश्व, जग, भवन, लोक
  • संतान – संतति, अपत्य, प्रजा, प्रसूति, औलाद
  • हंस – मराल, कलहंस, मानसौकस
  • हनुमान – महावीर, पवनसुत, मारूत, कपीश, बजरंगबली, आंजनेय
  • हाथी – गज, कुंजर, गयंद, हस्ती, मतंग, करी

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द विचार

विलोम शब्द

किसी शब्द के उलटे अर्थ को व्यक्त करने वाले शब्द को विलोम शब्द कहते है। भाषा में भावों-विचारों की स्पष्टता के लिए विलोम शब्द महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

शब्द – विलोम

  • अंतरंग – बहिरंग
  • अक्षत – विक्षत
  • अस्तित्व – अनस्तित्व
  • अवर – प्रवर
  • अति – अल्प
  • अर्थ – अनर्थ
  • अथ – इति
  • अंत – आरंभ
  • अंधकार – प्रकाश
  • आमिष – निरामिष
  • हिंसा – अहिंसा
  • इच्छा – अनिच्छा
  • ईश – अनीश
  • उद्यम – आलस्य
  • उचित – अनुचित
  • उपेक्षा – अपेक्षा
  • उत्कर्ष – अपकर्ष
  • अल्पज्ञ – सर्वज्ञ
  • आज्ञा – अवज्ञा
  • आदि – अंत
  • आस्तिक – नास्तिक
  • आय – व्यय
  • आदर – निरादर
  • आयात – निर्यात
  • आरोह – अवरोह
  • आगत – अनागत
  • आर्य – अनार्य
  • आंतरिक – बाह्य
  • अन्याय – न्याय
  • अनुज – अग्रज
  • अनुराग – विराग
  • अभिमान – नम्रता
  • अज्ञ – प्राज्ञ
  • उपकार – अपकार
  • अवनति – उन्नति
  • अनुकूल – प्रतिकूल
  • अपेक्षा – उपेक्षा
  • अनिवार्य – ऐच्छिक
  • अमृत – विष
  • उन्नति – अवनति
  • उन्नयन – पलायन
  • आना – जाना
  • उर्वरा – ऊसर
  • आस्था – अनास्था
  • उतार – चढ़ाव
  • उत्थान – पतन
  • उदार – कृपण
  • आकाश – पाताल
  • कुरूप – सुरूप
  • खल – सज्जन
  • खरा – खोटा
  • गुण – अवगुण
  • लौकिक – अलौकिक
  • लोक – परलोक
  • लेन – देन
  • प्राचीन – नवीन
  • वादी – प्रतिवादी
  • आरंभ – अंत
  • आदान – प्रदान
  • उत्कृष्ट – निकृष्ट
  • उत्तीर्ण – अनुत्तीर्ण
  • उपस्थित – अनुपस्थित
  • उत्तर – प्रश्न
  • उत्तम – अधम
  • उपयुक्त – अनुपयुक्त
  • एक – अनेक
  • आलस्य – स्फूर्ति
  • आचार – अनाचार
  • आशा – निराशा
  • एकता – अनेकता
  • ऐच्छिक – आवश्यक
  • कृतज्ञ – कृतघ्न
  • क्रय – विक्रय
  • कायर – साहसी
  • धर्म – अधर्म
  • ज्येष्ठ – कनिष्ठ
  • जल – स्थल
  • उदय – अस्त
  • कीर्ति – अपकीर्ति
  • कोमल – कठोर
  • जीवित – मृत
  • जन्म – मृत्यु
  • जय – पराजय
  • जीत – हार
  • ऊपर – नीचे
  • कर्कश – मधुर
  • कनिष्ठ – ज्येष्ठ
  • कुमति – सुमति
  • कठिन – सरल
  • कपटी – निष्कपट
  • सम – विषम
  • चतुर – मूर्ख
  • काला – सफ़ेद
  • कृत्रिम – स्वाभाविक
  • उष्ण – शीत
  • गुप्त – प्रकट
  • ऋण – उत्रण
  • घटिया – बढ़िया
  • ठौर – कुठौर
  • चर – अचर
  • चेतन – जड़
  • चल – अचल
  • चंचल – स्थिर
  • उधार – नकद
  • उजाला – अँधेरा
  • उपयोगी – अनुपयोगी
  • उत्पत्ति – विनाश
  • दु:शील – सुशील
  • दुर्बल – बलवान
  • दोष – गुण
  • दायाँ – बायाँ
  • शिक्षित – अशिक्षित
  • शकुन – अपशकुन
  • वीर – कायर
  • शयन – जागरण
  • नया – पुराना
  • बुढ़ापा – यौवन
  • जटिल – सरल
  • झूठ – सच
  • दुर्जन – सज्जन
  • डर – निडर
  • डरपोक – निर्भीक
  • निकट – दूर
  • तृष्णा – संतोष
  • त्यागी – स्वार्थी
  • दानी – कृपण
  • दिन – रात
  • दयालु – निर्दयी
  • दुर्गंध – सुगंध
  • देश – विदेश
  • देव – दानव
  • धीर – अधीर
  • धनवान – निर्धन
  • स्वर्ग – नरक
  • सुरूप – कुरूप
  • सामान्य – विशेष
  • भला – बुरा
  • भारी – हलका
  • नेकी – बदी
  • विधवा – सधवा
  • विरोध – समर्थन
  • विरोधी – समर्थक
  • शांत – अशांत
  • नश्वर – अनश्वर
  • गहरा – छिछला
  • नास्तिक – आस्तिक
  • नत – उन्नत
  • नूतन – पुरातन
  • निद्रा – जागरण
  • निर्गुण – सगुण
  • रात्रि – प्रातः
  • स्वदेश – विदेश
  • स्तुति – निंदा
  • शीत – उष्ण
  • निर्यात – आयात
  • निश्चय – अनिश्चय
  • निंदा – स्तुति
  • सुख – दु:ख
  • साकार – निराकार
  • सामान्य – असामान्य
  • सदुपयोग – दुरुपयोग
  • निंदनीय – प्रशंसनीय
  • निगलना – उगलना
  • पाप – पुण्य
  • प्रत्यक्ष – परोक्ष
  • पंडित – मूर्ख
  • पराधीन – स्वाधीन
  • शुष्क – आर्द्र
  • शाप – वरदान
  • सुगंध – दुर्गध
  • सार्थक – निर्थक
  • सरल – जटिल
  • सुगम – दुर्गम
  • सकाम – निष्काम
  • स्वार्थ – परमार्थ
  • सभ्य – असभ्य
  • योगी – भोगी
  • विक्रय – क्रय
  • विद्वान – मूर्ख
  • शुद्ध – अशुद्ध
  • शुभ – अशुभ
  • शांति – अशांति
  • परतंत्र – स्वतंत्र
  • पूर्व – पश्चिम
  • पूर्ण – अपूर्ण
  • पवित्र – अपवित्र
  • सबल – निर्बल
  • प्रीति – वैर
  • परिश्रम – आलस्य
  • पक्षपात – निष्पक्ष
  • प्रसन्न – अप्रसन्न
  • पक्ष – विपक्ष
  • प्रश्न – उत्तर
  • पुरस्कार – तिरस्कार
  • बुराई – भलाई
  • बाहर – अंदर
  • सदाचार – दुराचार
  • विजय – पराजय
  • वृष्टि – अनावृष्टि
  • सुपुत्र – कुपुत्र
  • सुबोध – दुर्बोध
  • भयभीत – निर्भय
  • रुग्ण – स्वस्थ
  • स्थूल – सूक्ष्म
  • रक्षक – भक्षक
  • हर्ष – विषाद
  • प्रीति – दोष
  • सौम्य – भीषण
  • सुयोग – कुयोग
  • मधुर – कटु
  • मान – अपमान
  • राग – दूवेष
  • लघुता – गुरुता
  • लाभ – हानि
  • हार – जीत
  • स्वाधीन – पराधीन
  • स्थिर – चंचल
  • सधवा – विधवा
  • सरस – नीरस
  • सौभाग्य – दुर्भाग्य
  • योग्य – अयोग्य
  • राजा – रंक
  • मित्र – शत्रु
  • मानव – दानव
  • मृदु – कठोर
  • मूक – वाचाल
  • संधि – विग्रह
  • मलिन – निर्मल
  • मिथ्या – सत्य
  • मुख्य – गौण
  • यश – अपयश
  • सफल – असफल
  • संयोग – वियोग
  • सुलभ – दुर्लभ
  • ज्ञान – अज्ञान
  • ज्ञानी – मूर्ख
  • क्षमा – दंड
  • क्षय – अक्षय
  • संकल्प – विकल्प
  • सुर – असुर
  • सुरक्षित – असुरक्षित
  • आत्मीय – अनात्मीय

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Vyakaran अनुस्वार एवं अनुनासिक Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9 Hindi Vyakaran अनुस्वार एवं अनुनासिक

अनुस्वार, अनुनासिक –

हिंदी में अनुस्वार और अनुनासिक का प्रायः प्रयोग किया जाता है।
अनुस्वार का उच्चारण इ इ, ण्, च, म् के समान होता है। जैसे – कंघी (कड्घी), गंजा (गज्जा), घंटी (घण्टी), संत (सल), पंप (पम्प) अनुस्वार के साथ मिलती-जुलती एक ध्वनि अनुनासिक भी है, जिसका रूप ‘ज’ है। इन दोनों में भेद केवल यह है कि जनस्वार की ध्वनि कठोर होती है और अनुनासिक की कोमल। अनुस्वार का उच्चारण नाक से होता है और अनुनासिक का उच्चारण मुख और नासिका दोनों से होता है। जैसे-हँस और हंस। हँस का अर्थ है-हँसना और हंस का अर्थ है-एक प्रकार का पक्षी।

हिंदी मानक लिपि में बिंदु –

(क) पंचमाक्षों (ङ, उ, ण, न, म) का जब अपने वर्ग के वर्णों के साथ संयोग होता है तब उनके स्थान पर अनुस्वार (-लिखा जाता है । जैसे –

  • दन्त = दंत
  • चज्वल = चंचल
  • ठण्डा = ठंडा
  • कड्यी = कंघी
  • पम्प = पंप
  • कन्द्रा = कंधा

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक

(ख) य, र, ल, व, श, ष, स, ह के साथ अनुस्वार ही लगता है। जैसे -संयोग, संरक्षण, संसार, संशय, शंका, लंपट, बंदना, संबाद. हुंकार, हंता, रंक, रंज, लंका आदि।
(ग) यदि वर्ण के ऊपर मात्रा लगी हो, तो अनुनासिक (-) का उच्चारण होने पर भी अनुस्वार की बिंदी ही लगेरी। जैंसे-मैं, हैं, बेंमल्ला, सौंफ आदि।
अनुस्वार के प्रयोग संबंधी अन्य उदाहरण –

पुराना रूप – मानक रूप

  • चन्दन – चंदन
  • प्रशान्त – प्रशांत
  • किन्तु – किंतु
  • हिन्दी – हिंदी
  • अन्त – अंत
  • पण्डा – पंडा
  • इन्द्र – इंद्र
  • प्रबन्ध – प्रबंध
  • अन्तर – अंतर
  • सम्बन्धी – संबंधी
  • निरन्तर – निरंतर
  • हिन्दू – हिंदू
  • चिह्न – चिह्न
  • गन्दा – गंदा
  • क्रन्दन – क्रंदन
  • सन्ध्या – संध्या
  • सुन्दर – सुंदर
  • दन्त – दंत
  • अन्तर – अंतर
  • केन्द्र – कैंद्र
  • निन्दनीय – निंदनीय
  • आरम्भ – आरंभ
  • आनन्द – आनंद
  • ठण्डक – एंडक
  • अभिनन्दन – अभिनंद्न
  • सम्भावना – संभावन
  • इप्टरनेशनल – इंटरनेशनल
  • सम्पादक मण्डल – संपादक मंडल
  • प्रेमचन्द – प्रेमचंद
  • सन्दिग्ध – संदिन्ध
  • सन्देह – संदेह
  • अन्दर – अंदर
  • तुरन्त – तुरंत
  • इन्तज़ार – इंतजार
  • सम्भव – संभव
  • सन्देहास्पद – संदेहास्पद्
  • शान्ति – शांति
  • स्वतन्त्र – स्वतंत्र
  • गणतन्त्र – गणतंत्र
  • अम्बाला – अंबाला
  • चण्डीगढ़ – चंडीगढ़
  • मुम्बई – मुंबई
  • हिन्दुस्तान – हिंदुस्तान
  • गान्धी – गांधी
  • सन्दीपन – संदीपन
  • क्रान्ति – क्रांति
  • श्रद्धार्जलि – श्रद्धाजाल
  • दुर्गन्ध – दुर्गंध
  • सन्धि – संधि
  • सन्तोष – संतोष
  • अम्बर – अंबर
  • अझ्ग – अंग
  • कुन्तल – कुंतल
  • अम्भोज – अंभोज
  • निशान्त – निशांत
  • उत्कण्ठा – उत्कंठा
  • पउ्चबाण – पंचबाण
  • लम्बोदर – लंबोदर
  • चन्द्रमा – चंद्रमा
  • कालिन्दी – कालिंदी
  • दन्तच्छद – दंतच्छद
  • नरेन्द्र – नरेंद्र
  • इन्दिरा – इंदिरा
  • सन्तान – संतान
  • वसुन्धरा – वसुंधरा
  • बन्दर – बंदर
  • देहान्त – देहांत
  • कुन्दन – कुंदन
  • किंवदन्ती – किंवर्दंती
  • दम्पति – दंपति
  • पन्द्रह – पंद्रह
  • सम्पत्ति – संपत्ति
  • अनन्त – अनंत
  • इन्द्रियां – इंद्रियाँ
  • पाण्डव – पांडव
  • छन्द – छंद
  • तम्बू – तंबू
  • मन्दिर – मंदिर
  • क्रान्ति – क्रांति
  • अनुकम्पा – अनुकंपा
  • दयानन्द – द्यानंद
  • कवीन्द्र – कवींद्र
  • सम्पदाय – संप्रदाय
  • सम्भावित – संभावित
  • पीताम्बर – पीतांबर
  • परमानन्द – परमानंद्
  • मन्दाकिनी – मंदाकिनी

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक

अनुनासिकता के अशुद्ध प्रयोग संबंधी कुछ शुद्ध उदाहरण –

अशुद्ध – शुद्ध

  • आंगन – आँगन
  • उंगली – उँगली
  • कांटा – काँटा
  • पांव – पाँव
  • चांद – चाँद
  • गांव – गाँव
  • बहुएं – बहुएँ
  • अशुद्ध – शुद्ध
  • खांसी – खाँसी
  • टांक – टाँक
  • फंसा – फँसा
  • संभल – सँभल
  • सांप – साँप
  • नदियां – नदियाँ

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक

आगत ध्वनियाँ :

अर्धचंद्राकार –

आजकल अंग्रेज़ी भाषा के प्रभाव से हिंदी में ‘आ’ आगत ध्वनि का प्रयोग किया जाने लगा है। जो ‘आ’ और ‘ओ’ के बीच की ध्वनि है। जैसे –

JAC Class 9 Hindi व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक 1

यदि हिंदी में ‘ऑ’ आगत ध्वनि का प्रयोग न किया जाए तब शब्दों की अभिव्यक्ति में दोष उत्पन्न होने की पूरी संभावना हो सकती है। जैसे –

  • हाल – हालचाल
  • बाल – शरीर के बाल
  • काल – समय
  • काफ़ी – पर्याप्त
  • डाल – डालना
  • हॉल – एक बड़ा कमरा
  • बॉल – गेंद
  • कॉल – बुलाना
  • कॉफ़ी – एक पेय
  • डॉल – गुड़िया

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द और पद

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Vyakaran शब्द और पद Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 9 Hindi Vyakaran शब्द और पद

शब्द भाषा की स्वतंत्र और सार्थक इकाई है। शब्द को व्याकरण के नियमों के अनुसार किसी वाक्य में प्रयोग करने पर वह पद बन जाता है। एक से अधिक पद जुड़कर एक ही व्याकरणिक इकाई का काम करने पर पदबंध कहलाते हैं।

शब्द का वर्गीकरण इस प्रकार है –

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द और पद 1

प्रश्न 1.
शब्द किसे कहते हैं ?
उत्तर :
शब्द वर्णों के मेल से बनाई गई भाषा की स्वतंत्र और सार्थक इकाई है। जैसे – राम, रावण, मारना।

प्रश्न 2.
शब्द का प्रत्यक्ष रूप किसे कहते हैं ?
उत्तर :
भाषा में जब शब्द कर्ता में बिना परसर्ग के आता है तो वह अपने मूल रूप में आता है। इसे शब्द का प्रत्यक्ष रूप कहते हैं। जैसे – वह, लड़का, मैं।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द और पद

प्रश्न 3.
कोशीय शब्द किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जिस शब्द का अर्थ शब्दकोश से प्राप्त हो जाए, उसे कोशीय शब्द कहते हैं। जैसे- मनुष्य, घोड़ा।

प्रश्न 4.
व्याकरणिक शब्द किसे कहते हैं ?
उत्तर :
व्याकरणिक शब्द उस शब्द को कहते हैं, जो व्याकरणिक कार्य करता है। जैसे-‘मुझसे आजकल विद्यालय नहीं जाया जाता।’ इस वाक्य में ‘जाता’ शब्द व्याकरणिक शब्द है।

प्रश्न 5.
पद किसे कहते हैं ?
अथवा
शब्द वाक्य में प्रयुक्त होने पर क्या कहलाता है ?
उत्तर :
जब किसी शब्द को व्याकरण के नियमों के अनुसार किसी वाक्य में प्रयोग किया जाता है तब वह पद बन जाता है। जैसे- राम, रावण, मारा शब्द है। इनमें विभक्तियों, परसर्ग, प्रत्यय आदि को जोड़कर पद बन जाता है। जैसे- श्रीराम ने रावण को मारा।

प्रश्न 6.
पद के कितने और कौन-कौन से भेद हैं ?
उत्तर :
पद के पाँच भेद संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया और अव्यय हैं।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द और पद

प्रश्न 7.
शब्द और पद में क्या अंतर है ?
उत्तर :
शब्द भाषा की स्वतंत्र और सार्थक इकाई है और वाक्य के बाहर रहता है, परंतु जब शब्द वाक्य के अंग के रूप में प्रयोग किया जाता है तो इसे पद कहते हैं। जैसे- ‘लड़का, मैदान, खेलना’ शब्द हैं। इन शब्दों से यह वाक्य बनाने पर – ‘लड़के मैदान में खेलते हैं।’- ये पद बन जाते हैं।

प्रश्न 8.
पदबंध किसे कहते हैं ?
उत्तर :
पदबंध का शाब्दिक अर्थ है – पदों में बँधा हुआ। जब एक से अधिक पद मिलकर एक इकाई के रूप में व्याकरणिक कार्य करते हैं तो वे पदबंध कहलाते हैं। जैसे चिड़िया सोने के पिंजरे में बंद है। इस वाक्य में सोने का पिंजरा पदबंध है। पदबंध वाक्यांश मात्र होते हैं, काव्य नहीं। पदबंध में एक से अधिक पदों का योग होता है और ये पद आपस में जुड़े होते हैं। शब्द के सभी भेद स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न 9.
शब्द और शब्दावली वर्गीकरण निम्नलिखित दृष्टियों से किया जा सकता है –
उत्तर :
(क) अर्थ की दृष्टि से वर्गीकरण –
अर्थ की दृष्टि से निम्नलिखित चार भेद किए जाते हैं –
(i) एकार्थी – जिन शब्दों का प्रयोग केवल एक अर्थ में ही होता है, उन्हें एकार्थी शब्द कहते हैं। जैसे –
पुस्तक, पेड़, घर, घोड़ा, पत्थर आदि।
(ii) अनेकार्थी – जो शब्द एक से अधिक अर्थ बताने में समर्थ हैं, उन्हें अनेकार्थी शब्द कहते हैं। इन शब्दों का प्रयोग जिस संदर्भ में किया जाएगा, ये उसी के अनुसार अर्थ देंगे। जैसे –
काल – समय, मृत्यु।
अर्क – सूर्य, आक का पौधा।
(iii) पर्यायवाची या समानार्थी – जिन शब्दों के अर्थों में समानता हो, उन्हें पर्यायवाची या समानार्थी शब्द कहते हैं
जैसे – कमल – जलज, नीरज, अंबुज, सरोज।
आदमी – नर, मनुष्य, मानव।
(iv) विपरीतार्थी – विपरीत अर्थ प्रकट करने वाले शब्दों को विपरीतार्थी अथवा विलोम शब्द कहते हैं। जैसे –
आशा-निराशा हँसना – रोना

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द और पद

(ख) उत्पत्ति की दृष्टि से वर्गीकरण –
इतिहास की दृष्टि से शब्दों के पाँच भेद हैं –
(i) तत्सम – तत्सम शब्द का अर्थ है – तत् (उसके) + सम (समान) अर्थात उसके समान जो शब्द संस्कृत के मूल रूपों के समान ही हिंदी में प्रयुक्त होते हैं, उन्हें तत्सम कहते हैं। इनका प्रयोग हिंदी में भी उसी रूप में किया जाता है, जिस रूप में संस्कृत में किया जाता है। जैसे- नेत्र, जल, पवन, सूर्य, आत्मा, माता, भवन, नयन, आशा, सर्प, पुत्र, हास, कार्य, यदि आदि।

(ii) तद्भव – तद्भव शब्द का अर्थ है तत् ( उससे) + भव ( पैदा हुआ) जो शब्द संस्कृत के मूल रूपों से बिगड़ कर हिंदी में प्रयुक्त होते हैं, उन्हें तद्भव कहते हैं, जैसे- दुध से दुग्ध, घोटक से घोड़ा, आम्र से आम, अंधे से अंधा, कर्म से काम, माता से माँ, सर्प से साँप, सप्त से सात, रत्न से रतन, भक्त से भगत।

(iii) देशज – देशज का अर्थ होता है देश + ज अर्थात देश में जन्मा। लोकभाषाओं से आए हुए शब्द देशज कहलाते हैं। कदाचित ये शब्द बोलचाल से बने हैं। जैसे – पेड़, खिड़की, अटकल, तेंदुआ, लोटा, डिबिया, जूता, खोट, फुनगी आदि।

(iv) विदेशज – जो शब्द विदेशी भाषाओं से लिए गए हैं, उन्हें विदेशज कहते हैं।
अंग्रेज़ी – डॉक्टर, नर्स, स्टेशन, प्लेटफ़ॉर्म, पेंसिल, बटन, फ़ीस, मोटर, कॉलेज, ट्रेन, ट्रक, कार, बस, स्कूटर, फ्रीज़ आदि।
फ़ारसी – दुकान, ईमान, ज़हर, किशमिश, उम्मीद, फ़र्श, जहाज़, कागज़, ज़मींदार, बीमार, सब्ज़ी, दीवार आदि।
अरबी – कीमत, फ़ैसला, कायदा, तरफ़, नहर, कसरत, नशा, वकील, वज़न, कानून, तकदीर, खराब, कत्ल, फौज़ नज़र, खत आदि।
तुर्की – तगमा, तोप, लाश, चाकू, उर्दू, कैंची, बेग़म, गलीचा, बावर्ची, बहादुर, चम्मच, कैंची, कुली, कुरता आदि।
पुर्तगाली – तंबाकू, पेड़ा, गिरिजा, कमीज़, तौलिया, बालटी, मेज़, कमरा, अलमारी, संतरा, साबुन, चाबी, आलपीन, कप्तान आदि।
फ्रांसीसी – कारतूस, कूपन, अंग्रेज़।

(v) संकर – दो भाषाओं के शब्दों के मिश्रण से बने शब्द संकर शब्द कहलाते हैं।
यथा – जाँचकर्ता – जाँच (हिंदी) कर्ता (संस्कृत)
सज़ाप्राप्त – सज़ा (फ़ारसी) प्राप्त (संस्कृत)
रेलगाड़ी – रेल (अंग्रेज़ी) गाड़ी (हिंदी)
उद्गम के आधार पर शब्दों की एक और कोटि हिंदी शब्दावली में पाई जाती है जिसे अनुकरणात्मक या ध्वन्यात्मक कहते हैं।
यथा – हिनहिनाना, चहचहाना, खड़खड़ाना, भिनभिनाना आदि।

(ग) रचना की दृष्टि से वर्गीकरण –
प्रयोग के आधार पर शब्दों के भेद तीन प्रकार के होते हैं –

(i) मूल अथवा रूढ़ शब्द – जो शब्द किसी अन्य शब्द के संयोग से नहीं बनते हैं और अपने आप में पूर्ण होते हैं उन्हें रूढ़ अथवा मूल शब्द कहते हैं। ये शब्द किसी विशेष अर्थ के लिए रूढ़ या प्रसिद्ध हो जाते हैं। इनके खंड या टुकड़े नहीं किए जा सकते।
जैसे – घड़ा, घोड़ा, काला, जल, कमल, कपड़ा, घास, दिन, घर, किताब, मुँह।

(ii) यौगिक – दो शब्दों के संयोग से जो सार्थक शब्द बनते हैं, उन्हें यौगिक कहते हैं। दूसरे शब्दों में यौगिक शब्द वे शब्द होते हैं जिनमें रूढ़ शब्द के अतिरिक्त प्रत्यय, उपसर्ग या एक अन्य रूढ़ शब्द अवश्य होता है अर्थात ये दो अंशों को जोड़ने से बनते हैं, जिनमें एक शब्द आवश्यक रूप से रूढ़ होता है। जैसे – नमकीन – इसमें नमक रूढ़ तथा ईन प्रत्यय है।
जैसे – गतिमान, विचारवान, पाठशाला, विद्यालय, प्रधानमंत्री, गाड़ीवान, पानवाला, घुड़सवार, बैलगाड़ी, स्नानघर, अनपढ़, बदचलन।

(iii) योगरूढ़ – दो शब्दों के योग से बनने पर भी किसी एक निश्चित अर्थ में रूढ़ हो जाने वाले शब्द योगरूढ़ कहलाते हैं।
जैसे – चारपाई, तिपाई, जलज (जल + ज = कमल), दशानन (दस + आनन = रावण), जलद (जल + द = बादल), जलधि (जल + धि समुद्र)।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द और पद

(घ) रूपांतरण की दृष्टि से शब्दों के भेद –

(i) विकारी शब्द – जिन शब्दों के रूप में विकार (परिवर्तन) उत्पन्न हो जाता है, उन्हें विकारी शब्द कहते हैं। संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया – ये चार प्रकार के शब्द विकारी कहलाते हैं। इनमें लिंग, वचन एवं कारक आदि के कारण विकारी उत्पन्न हो जाता है।

(ii) अविकारी शब्द – जिन शब्दों के रूप में विकार (परिवर्तन) उत्पन्न नहीं होता और जो अपने मूल में बने रहते हैं, उन्हें अविकारी शब्द कहते हैं।

अविकारी शब्द को अव्यय भी कहा जाता है। क्रिया-विशेषण, समुच्चयबोधक, संबंधसूचक तथा विस्मयादिबोधक – ये चार प्रकार के शब्द अविकारी कहलाते हैं। क्रिया-विशेषण इधर समुच्चयबोधक और संबंधसूचक के ऊपर विस्मयादिबोधक ओह।

(ङ) प्रयोग की दृष्टि से –
प्रयोग के आधार पर शब्दों का वर्गीकरण निम्नलिखित दो वर्गों में किया जाता है –
(i) सामान्य शब्द – आम जन-जीवन में प्रयोग होने वाले शब्द सामान्य शब्द कहलाते हैं; जैसे- दाल, भात, खाट, लोटा, सुबह, हाथ, पाँव, घर, मैदान।

(ii) पारिभाषिक शब्द – जो शब्द ज्ञान – विज्ञान अथवा विभिन्न व्यवसायों में विशेष अर्थों में प्रयोग किए जाते हैं, पारिभाषिक शब्द कहलाते हैं।
इन्हें तकनीकी शब्द भी कहते हैं, जैसे- संज्ञा, सर्वनाम, रसायन, समाजशास्त्र, अधीक्षक।

JAC Class 9 Hindi व्याकरण शब्द और पद

प्रश्न 10.
शब्द पद कब बन जाता है ? उदाहरण देकर तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
उत्तर :
शब्द को जब व्याकरण के नियमों के अनुसार वाक्य में प्रयोग करते हैं तब वह पद बन जाता है, जैसे- राम, रावण, मारा शब्द हैं। इनसे बना वाक्य – राम ने रावण को मारा- पद है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत

JAC Class 9 Hindi गीत – अगीत Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) नदी का किनारों से कुछ कहते हुए बह जाने पर गुलाब क्या सोच रहा है ? इससे संबंधित पंक्तियों को लिखिए।
(ख) जब शुक गाता है, तो शुकी के हृदय पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
(ग) प्रेमी जब गीत गाता है, तो प्रेमिका की क्या इच्छा होती है ?
(घ) प्रथम छंद में वर्णित प्रकृति-चित्रण को लिखिए।
(ङ) प्रकृति के साथ पशु-पक्षियों के संबंध की व्याख्या कीजिए।
(च) मनुष्य को प्रकृति किस रूप में आंदोलित करती है ? अपने शब्दों में लिखिए।
(छ) सभी कुछ गीत है, अगीत कुछ नहीं होता। कुछ अगीत भी होता है क्या ? स्पष्ट कीजिए।
(ज) ‘गीत-अगीत’ के केंद्रीय भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) तट पर एक गुलाब सोचता है, “देते स्वर यदि मुझे विधाता, अपने पतझर के सपनों का मैं भी जग को गीत सुनाता। ”

(ख) जब शुक गाता है तो उसका स्वर सारे जंगल में गूँज उठता है, परंतु शुकी चुपचाप रहती है और अपने पंख फुलाकर भविष्य में मिलने वाले मातृत्व के सुखद भावों में डूबी रहती है।

(ग) प्रेमी जब गीत गाता है, तो प्रेमिका उसका गीत सुनने घर से बाहर उस स्थान तक आ जाती है जहाँ प्रेमी गीत गा रहा होता है। वह एक नीम के पेड़ के नीचे छिपकर उसका गीत सुनती रहती है और मन-ही-मन सोचती है कि वह अपने प्रेमी के गीत की एक कड़ी क्यों न बन गई ? प्रेमी गीत गाता रहता है और प्रेमिका का हृदय प्रसन्नता से भरता जाता है।

(घ) नदी पहाड़ से उतरकर कल-कल ध्वनि करती हुई निरंतर बहते हुए सागर की ओर तेजी से बढ़ती जाती है। नदी अपने रास्ते में पड़े हुए पत्थरों से टकराकर आगे बढ़ती जाती है। नदी के किनारे गुलाब के फूल उगे हुए हैं। कवि ने प्रकृति का मानवीकरण किया है जो किसी सामान्य मानव की तरह अपने भावों को व्यक्त करती है। वह अपने प्रियतम सागर से मिलने के लिए तेज़ वेग से बहती हुई अपने हृदय में छिपी प्रेमकथा अपने तल में पड़े पत्थरों को सुनाती जाती है और नदी किनारे उगा गुलाब सोचता है कि यदि उसके पास वाणी होती तो वह भी पतझड़ के सपनों का गीत सुनाता।

(ङ) प्रकृति के साथ पशु-पक्षियों का संबंध तो मणि- कंचन योग की तरह है। पशु-पक्षी अपने सुंदर रंगों, तरह-तरह के रूप- आकारों, आवाज़ों और चहचहाहट से प्रकृति को जीवंतता प्रदान करते हैं। हरे-भरे पेड़ जब तक पक्षियों के कलरव से गुंजायमान नहीं होते; झाड़ियों के झुरमुट तरह-तरह के कीड़े-मकोड़ों की ध्वनियों से नहीं गूँजते और जंगल छोटे-बड़े जीवों की आवाज़ों से नहीं थर्राते तब तक प्रकृति सूनी-सी लगती है। भागते-दौड़ते पशु, उड़ते – मंडराते पक्षी, रेंगते – सरकते कीड़े और सरीसृप, तालाब में तैरती मछलियाँ और टर-टर्राते मेंढक और बादलों में उड़ती सारसों की पंक्तियाँ ही प्रकृति को जीवन देती हैं। प्रकृति और पशु-पक्षी एक-दूसरे के पूरक ही तो हैं।

(च) मनुष्य और प्रकृति एक-दूसरे से गहरे जुड़े हुए हैं। मनुष्य प्रकृति का हिस्सा ही तो है। प्रकृति उसे सदा आंदोलित करती रहती है तथा उसकी विभिन्न प्रेरणाओं की आधार बनती है। आकाश में उमड़ते-घुमड़ते बादल, उड़ते रंग-बिरंगे पक्षी तथा तरह-तरह के कीड़े-मकोड़े मानव को सदा आंदोलित करते हैं कि वह भी उनकी तरह आकाश में उड़ान भरे और मनुष्य हवा में उड़ान भरने के लिए साधन बना लिए। पानी में मछली की तरह तैरना सीख लिया; सागर की गहराइयों में गोते खाना सीख लिया। ऊँचे पेड़ों पर रहने वाले पक्षियों को देख ऊँचे-ऊँचे भवनों में रहना सीख लिया। प्रकृति सदा मनुष्य को प्रेरणा देती है, दिशा दिखाती है। तभी तो वह तितली के रंगों से प्रेरित रंग-बिरंगे कपड़े पहनना सीख गया।

(छ) यदि मन के कोमल भावों को गाकर मधुर स्वर में प्रकट करना गीत है तो मन के वे कोमल भाव अगीत हैं जो मन में छिपे रहते हैं। वे मुखर नहीं होते, मौन रह जाते हैं। यदि गीत हैं तो वे अगीत के कारण से हैं। मन में छिपे सभी कोमल-कठोर भाव अगीत ही तो हैं जो शब्दों का रूप नहीं ले पाते। यदि अगीत न हों तो गीत बन नहीं सकते। गीत तो अगीत के ही शाब्दिक रूप हैं। इस संसार के हर मानव में हर समय तरह-तरह के भाव उत्पन्न होते रहते हैं। वे भाव, प्रेम, घृणा, वीरता, भक्ति, साहस, करुणा आदि के हो सकते हैं, पर हर भाव तब तक गीत नहीं बनता जब तक उसे शब्द प्राप्त नहीं हो जाते। वास्तव में भावों के रूप में अगीत पहले बनते हैं और गीतों की सर्जना बाद में होती है।

(ज) ‘गीत-अगीत’ कविता में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि प्रेम की पहचान प्रदर्शन में नहीं अपितु मौन-भाव से प्रेम की पीड़ा को पी जाने में है। नदी विरह गीत गाते हुए तीव्र गति से सागर से मिलने चली जाती है। वह अपनी विरह व्यथा अपने मार्ग में आने वाले पत्थरों को सुनाती है, परंतु नदी किनारे उगा हुआ गुलाब मौन-भाव से सोचता रहता है तथा अपने प्रेम-भावों को व्यक्त नहीं करता है। तोता दिन निकलने पर मुखरित हो उठता है परंतु तोती स्नेहभाव में डूबी मौन रहती है। प्रेमी उच्च स्वर में आल्हा गाकर अपना प्रेम व्यक्त करता है परंतु प्रेमिका छिपकर उसका गीत सुनकर भी मौन रहती है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत

प्रश्न 2.
संदर्भ – सहित व्याख्या कीजिए –
(क) अपने पतझर के सपनों का
मैं भी जग को गीत सुनाता।
(ख) गाता शुक जब किरण वसंती
छूती अंग पर्ण से छनकर।
(ग) हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की, बिधना ?
यों मन में गुनती है।
उत्तर :
सप्रसंग व्याख्या के लिए पद क्रमांक 1, 2, 3 की व्याख्या देखिए।

भाषा-अध्ययन –

निम्नलिखित उदाहरण में ‘वाक्य- विचलन’ को समझने का प्रयास कीजिए। इसी आधार पर प्रचलित वाक्य – विन्यास लिखिए –
उदाहरण: तट पर एक गुलाब सोचता- एक गुलाब तट पर सोचता है।
(क) देते स्वर यदि मुझे विधाता
(ख) बैठा शुक उस घनी डाल पर
(ग) गूँज रहा शुक का स्वर वन में
(घ) हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की
(ङ) शुकी बैठी अंडे है सेती।
उत्तर :
(क) यदि विधाता मुझे स्वर देते।
(ख) उस घनी डाल पर शुक बैठा है।
(ग) वन में शुक का स्वर गूँज रहा है।
(घ) मैं गीत की कड़ी क्यों न हुई ?
(ङ) शुकी बैठकर अंडे सेती है।

JAC Class 9 Hindi गीत – अगीत Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘गीत-अगीत’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि प्रेम की पहचान मुखरता में नहीं अपितु मौन भाव में है।
उत्तर :
‘गीत-अगीत’ कविता में कविवर श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने प्रेम के साहित्यिक पक्ष को अभिव्यक्ति प्रदान की है। कवि का मानना है कि प्रेम की पहचान मुखरता में नहीं अपितु प्रेम की पीड़ा को मौन भाव से पी जाने में है। इसे कवि ने नदी और गुलाब, शुक और शुकी तथा प्रेमी और प्रेमिका की निम्नलिखित तीन स्थितियों के माध्यम से स्पष्ट किया है –

(क) नदी पहाड़ से नीचे उतरकर समुद्र की ओर तेजी से आगे बढ़ती हुई निरंतर विरह के गीत गाती है। वह किनारे या मध्य धारा में पड़े पत्थरों से दिल की पीड़ा कहकर अपना मन हल्का कर लेती है। लेकिन किनारे पर उगा हुआ एक गुलाब मन ही मन सोचता है कि भगवान यदि उसे भी वाणी प्रदान करता तो वह भी पतझड़ में मिलने वाली हताशा और दुख प्रकट कर पाता। वह भी संसार को बताता कि विरह की पीड़ा कितनी दुखमय है, पर वह ऐसा कर नहीं पाता। नदी तो गा-गाकर विरह भावना को व्यक्त करती हुई बह रही है पर गुलाब किनारे पर चुपचाप खड़ा है।

(ख) एक तोता किसी पेड़ की उस घनी शाखा पर बैठा है जो नीचे की शाखा को छाया दे रहा है जिस पर उसका घोंसला है घोंसले में तोती पंख फुला कर मौन भाव से बैठी है। वह मातृत्व भाव से भरी हुई है और अपने अंडों को सेने का कार्य कर रही है। सूर्य के निकलने के बाद सुनहरी वसंती किरणें जब पत्तों से छन-छनकर नीचे आती हैं तो तोता प्रसन्नता से भरकर मधुर गीत गाता है, किंतु तोती मौन है। उसके गीत मन में उमड़कर भी बाहर नहीं आते। वह तो अपने उत्पन्न होने वाले बच्चों के प्रेम में मग्न है। तोते का स्वर तो सारे जंगल में गूँज रहा है, वह अपने प्रसन्नता के भावों को प्रकट कर रहा है पर तोती अपने पंख फुला कर मातृत्व के सुखद भावों में डूबी है।

(ग) शाम के समय प्रेमी आल्हा की कथा को रसमय ढंग से गाता है। उसकी आवाज़ सुनते ही उसकी प्रेमिका स्वयं ही खिंची चली आती है – वह घर में नहीं रह पाती। वह प्रेमी के सामने यह सोचकर नहीं जाती कि कहीं उसका प्रेमी गीत गाना बंद न कर दे। वह वहीं एक नीम के पेड़ के नीचे चोरी-चोरी छिपकर गीत सुनती रहती है और मन में सोचती है कि हे ईश्वर ! मैं भी अपने प्रेमी के गीत की एक कड़ी क्यों न बन गई? प्रेमी उच्च स्वर में गीत गा रहा है पर प्रेमिका का हृदय मूक प्रसन्नता से भरता जा रहा है।

इन तीनों स्थितियों में नदी, शुक और प्रेम मुखरित हैं किंतु गुलाब, शुकी और प्रेमिका अपने प्रेम को व्यक्त नहीं करते हैं किंतु मन-ही-मन प्रेम का आस्वादन करते हैं। इनका प्रेम भी नदी, शुक और प्रेमी से कम महत्वपूर्ण नहीं है। इनका यह मौन भाव ही इनके सात्विक प्रेम की पहचान है। इसलिए स्पष्ट है कि सच्चा प्रेम मुखरता में नहीं बल्कि मौन भाव में होता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत

प्रश्न 2.
नदी अपने हृदय की पीड़ा को कैसे कम करती है और उसके विरह के गीत कौन सुनता है ?
उत्तर :
नदी अपने हृदय की पीड़ा को कम करने के लिए पहाड़ से नीचे उतरते हुए तेज़ी से आगे बढ़ते हुए विरह के गीत गाती है। अपनी विरह – पीड़ा की कथा कल-कल ध्वनि से सुनाती है। उसकी विरह कथा किनारे या मध्य पड़े पत्थर सुनते हैं। इस तरह नदी अपनी बात कह कर अपना मन हल्का कर लेती है।

प्रश्न 3.
नदी को अपनी पीड़ा व्यक्त करते देख गुलाब का फूल क्या सोच रहा है ?
उत्तर :
नदी को अपनी पीड़ा व्यक्त करते देख गुलाब सोचता है कि यदि भगवान ने उसे भी वाणी दी होती तो वह भी की कहानी सुनाता। वह भी संसार को बताता कि पतझड़ आने पर वह कैसे निराश और दुखी हो जाता है

प्रश्न 4.
शुक अपना प्यार कैसे व्यक्त करता है ?
उत्तर :
शुक अपने परिवार के साथ पेड़ की शाखा पर बने घोंसले में रहता है। शुकी घोंसले में अंडों को सेने का काम करती है। वह मातृत्व के स्नेह में डूबी हुई है। शुक सूर्य निकलने के बाद सुनहरी वसंती किरणें जब पत्तों से छनकर उसकी ओर आती हैं तो वह प्रसन्नता से भर जाता है और मधुर गीत गाने लगता है। इस प्रकार वह अपना प्रेम प्रकट करता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत

प्रश्न 5.
शुकी, शुक के प्रेम-भरे गीत सुनकर भी बाहर क्यों नहीं आती है ?
उत्तर :
शुकी घोंसले में अपने पंख फैलाकर अपने अंडे सेने का काम कर रही है। वह मातृत्व स्नेह से भरी हुई है। उसे शुक के प्रेम-भरे गीत सुनाई दे रहे हैं। परंतु उसके गीत मन में उमड़कर भी बाहर नहीं आते। शुकी अपने उत्पन्न होने वाले बच्चों के प्रेम में सिक्त है। वह शुक का प्रेम-गीत सुन रही है, परंतु उसका प्रेम मौन रूप धारण किए हुए है। वह अपना प्रेम प्रकट नहीं करती है क्योंकि वह मातृत्व के सुखद भावों में डूबी हुई है।

प्रश्न 6.
प्रेमी आल्हा गीत क्यों गाता है ?
उत्तर :
कवि एक प्रेमी जोड़े का वर्णन करता है। प्रेमी संध्या होते ही आल्हा की कथा रसमय ढंग से गाने लगता है। से अपनी प्रेमिका को अपने पास बुलाना चाहता है। वह चाहता है कि उसके गीत सुनकर, उसकी प्रेमिका उसके वह अपने प्रेम को गीतों के माध्यम से व्यक्त करता है।

प्रश्न 7.
प्रेमिका का प्रेम मौन क्यों है ?
उत्तर :
प्रेमिका प्रेमी की आल्हा की कथा सुनकर अपने को रोक नहीं पाती है। वह घर से प्रेम में डूबी हुई निकल पड़ती है। वह घर से प्रेमी से मिलने निकलती है, परंतु वह उसके सामने न जाकर एक पेड़ के पीछे छिपकर खड़ी हो जाती है। वहीं खड़े-खड़े वह अपने प्रेमी द्वारा गाए जा रहे गीत सुनती है। वह ईश्वर से प्रार्थना करती है कि ईश्वर उसे प्रेमी के गीत की एक कड़ी बना दे। वह मौन रहकर अपने प्रेम को प्रकट करती है। वह अपने प्रेम को शब्दों में व्यक्त नहीं करती है।

व्याख्या :

1. गाकर गीत विरह के तटिनी वेगवती बहती जाती है।
दिल हलका कर लेने को उपलों से कुछ कहती जाती है।
तट पर एक गुलाब सोचता, “देते स्वर यदि मुझे विधाता,
अपने पतझर के सपनों का मैं भी जग को गीत सुनाता।”
गा-गाकर बह रही निर्झरी, पाटल मूक खड़ा तट पर है।
गीत, अगीत, कौन सुंदर है ?

शब्दार्थ : तटिनी नदी वेगवती तेज़ी से बहने वाली। उपलों – पत्थरों। विधाता – ईश्वर। जग – संसार। निर्झरी नदी। पाटल – गुलाब, रंग के जैसा। मूक – चुपचाप।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित कविता ‘गीत-अगीत’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने प्रेम और शृंगार के भावों को व्यंजित किया है। उसने माना है कि प्रेम-भावों में मौन रहने वालों का महत्व किसी प्रकार से भी कम नही है। तीन चित्रों में से प्रस्तुत पहले चित्र में नदी और गुलाब के रूपक से कवि ने अपने कथन की सार्थकता को प्रमाणित करने की चेष्टा की है।

व्याख्या : कवि प्रश्न करते हुए कहता है कि गीत के स्वर प्रकट करना अच्छा है या मौन रहना ? वह प्रश्न का उत्तर देने की अपेक्षा चित्र प्रस्तुत करता है। नदी पहाड़ से नीचे उतरकर समुद्र की ओर तेज़ी से आगे बढ़ती हुई निरंतर विरह के गीत गाती जाती है। कल-कल की ध्वनि करती हुई नदी निरंतर बहती रहती है, अपनी विरह – पीड़ा की कथा कहती है। वह किनारे या मध्य धारा में पड़े पत्थरों से दिल की पीड़ा कहकर अपना मन हल्का कर लेती है।

लेकिन किनारे पर उगा हुआ एक गुलाब मन ही मन सोचता है कि भगवान यदि उसे भी वाणी प्रदान करता तो वह भी पतझर में मिलने वाली हताशा और दुख को प्रकट कर पाता। वह भी संसार को बताता कि विरह की पीड़ा कितनी दुखमय है, पर वह ऐसा कर नहीं पाता। नदी तो गा-गा कर विरह भावना को व्यक्त करती हुई बह रही है पर गुलाब किनारे पर चुपचाप खड़ा है। पता नहीं, व्यक्त किया गया गीत अच्छा है या मौन भाव से प्रकट किया गया भाव श्रेष्ठ है ?

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत

2. बैठा शुक उस घनी डाल पर जो खोंते पर छाया देती।
पंख फुला नीचे खोंते में शुकी बैठ अंडे है सेती।
गाता शुक जब किरण वसंती छूती अंग पर्ण से छनकर।
किंतु, शुकी के गीत उमड़कर रह जाते स्नेह में सनकर।
गूँज रहा शुक का स्वर वन में फूला मग्न शुकी का पर है।
गीत, अगीत, कौन सुंदर है ?

शब्दार्थ : शुक – तोता। खोंते – घोंसले, नीड़। शुकी – तोती। पर्ण – पत्ते। स्नेह – प्यार। सनकर – युक्त होकर। फूला – प्रसन्नता से भरा।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित कविता ‘गीत-अगीत’ से ली गई हैं, जिसमें कवि प्रेम के मौन और मुखर रूपों में से किसी एक को श्रेष्ठ घोषित करना चाहता है पर वह ऐसा शब्दों में न कर शब्द-चित्रों के द्वारा प्रकट करता है।

व्याख्या : तोता किसी पेड़ की उस घनी शाखा पर बैठा है जो नीचे की शाखा को छाया दे रही है। उस पर उसका घोंसला है। घोंसले में तोती पंख फुलाकर मौन भाव से बैठी है। वह मातृत्व भाव से भरी हुई है और अपने अंडों को सेने का कार्य कर रही है। सूर्य के निकलने के बाद सुनहरी वसंती किरणें जब पत्तों से छन-छन कर नीचे आती हैं तो तोता प्रसन्नता से भरकर मधुर गीत गाता है, किंतु तोती मौन है। उसके गीत मन में उमड़कर भी बाहर नहीं आते। वह तो अपने उत्पन्न होने वाले बच्चों के प्रेम में सिक्त है। तोते का स्वर तो सारे जंगल में गूँज रहा है, वह अपने प्रसन्नता के भावों को प्रकट कर रहा है पर तोती अपने पंख फुलाकर भावी मातृत्व के सुखद भावों में डूबी है। कवि प्रश्न करता है कि पता नहीं गीत सुंदर है या अगीत ?

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत

3. दो प्रेमी हैं यहाँ, एक जब पड़े साँझ आल्हा गाता है,
पहला स्वर उसकी राधा को घर से यहाँ खींच लाता है।
चोरी-चोरी खड़ी नीम की छाया में छिपकर सुनती है,
‘हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की, बिधना ?’ यों मन में गुनती है।
वह गाता, पर किसी वेग से फूल रहा इसका अंतर है।
गीत, अगीत, कौन सुंदर है ?

शब्दार्थ : बिधना – ब्रह्म, भाग्य। आल्हा – पृथ्वीराज चौहान के समय का एक योद्धा, वीर रस का गीत।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित कविता ‘गीत-अगीत’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने गीत-अगीत में अंतर स्पष्ट करने के लिए विभिन्न चित्र अंकित किए हैं जिनके माध्यम से मौन प्रेम को महत्वपूर्ण बताया है। नदी – गुलाब तथा शुक शुकी के चित्रों के माध्यम से उसने प्रेमी-प्रेमिका के प्रेम-भाव को प्रस्तुत किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि यहाँ दो प्रेमी हैं। शाम के समय प्रेमी आल्हा की कथा को रसमय ढंग से गाता है। उसकी आवाज़ सुनते ही उसकी प्रेमिका स्वयं ही खिंची चली आती है – वह घर में नहीं रह पाती। वह प्रेमी के सामने भी एकदम से नहीं जाती शायद यह सोचकर कि उसका प्रेमी कहीं गीत गाना बंद न कर दे। वह वहीं एक नीम के पेड़ के नीचे चोरी-चोरी छिपकर गीत सुनती रहती है और मन में सोचती है कि हे ईश्वर ! मैं भी अपने प्रेमी के गीत की एक कड़ी क्यों न बन गई। प्रेमी उच्च स्वर में गीत गा रहा है पर प्रेमिका का हृदय प्रसन्नता से भरता जा रहा है। पता नहीं, प्रेमी के द्वारा गाकर प्रकट किया गया प्रेम-भाव महत्वपूर्ण है या प्रेमिका के द्वारा छिपकर प्रकट किया मौन प्रेम ?

गीत – अगीत Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन-परिचय – आधुनिक भारतीय जनमानस को राष्ट्रीय चेतना का पाठ पढ़ाने वाले राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म 30 सितंबर, सन् 1908 को बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया गाँव में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई थी। मोकामाघाट के स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करके उन्होंने सन् 1932 में पटना विश्वविद्यालय से इतिहास में बी० ए० ऑनर्स किया।

सन् 1950 में बिहार विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग में प्राध्यापक नियुक्त हुए। वे सन् 1952 से 1964 तक राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रहे। इसके बाद वे भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रहे। कुछ वर्षों तक आप भारत सरकार के हिंदी सलाहकार भी रहे। उनकी साहित्यिक सेवाओं के कारण भागलपुर विश्वविद्यालय ने उन्हें डी० लिट्० की उपाधि प्रदान की। सन् 1959 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से अलंकृत किया। उनका निधन सन् 1974 में हुआ।

रचनाएँ – कविवर दिनकर ने अपनी रचनाएँ काव्य, निबंध आलोचना, बाल-साहित्य आदि के रूप में प्रस्तुत की हैं। ‘कुरुक्षेत्र’, ‘रश्मिरथी’, ‘उर्वशी’, ‘हुंकार’, ‘रेणुका’, ‘रसवंती’, ‘परशुराम की प्रतीक्षा’, ‘द्वंद्वगीत’, ‘धूप-छाँह ‘, सीपी और शंख’, ‘धूप और धुआँ’ आदि उनकी प्रसिद्ध काव्य रचनाएँ हैं।

‘संस्कृति के चार अध्याय’ आपका संस्कृति संबंधी एक विशाल ग्रंथ है। ‘शुद्ध कविता की खोज’, ‘मिट्टी की ओर’ तथा ‘अर्द्ध- नारीश्वर’, उनकी प्रसिद्ध गद्य रचनाएँ हैं। ‘चित्तौड़ का साका’ तथा ‘ मिर्च का मज़ा इनके बाल-साहित्य के अंतर्गत लिखी गई पुस्तकें हैं।

काव्य की विशेषताएँ – कविवर दिनकर सर्वोन्मुखी प्रतिभा के कवि हैं। उन्होंने अपने काव्य में जीवन के विविध पक्षों को अभिव्यक्ति दी है। उन्होंने भारतीय समाज और संस्कृति की अनेक समस्याओं को अपने काव्य में संजोया है। उनके काव्य का मुख्य स्वर देश-प्रेम एवं राष्ट्रीय उत्थान की भावना है। उन्होंने विश्व में व्याप्त वर्ग संघर्ष व पूँजीवादी व्यवस्था का भी विरोध किया है। प्रकृति-चित्रण की दृष्टि से भी इनके काव्य में ग्राम्य-जीवन सजीव हो उठता है।

कवि के हृदय में समाज के दलित वर्ग के प्रति सहानुभूति का स्वर दिखाई देता है। कवि की भाषा सहज, सरल, मधुर एवं तत्सम प्रधान खड़ी बोली है। लाक्षणिकता इनकी भाषा की प्रमुख विशेषता है। इन्होंने मुख्य रूप से गीति – शैली को अपनाया है। इन्होंने प्रबंध एवं मुक्तक दोनों ही शैलियों में काव्य-रचनाएँ की हैं। छंद और अलंकारों की विविधता इनके काव्य की विशेषता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत

कविता का सार :

श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित कविता ‘गीत-अगीत’ शृंगारिक चेतना से परिपूर्ण रचना है जिसमें जीवन में प्रेम और कोमलता के महत्व को प्रतिपादित किया गया है। कवि मानता है कि प्रेम की महानता उसकी पहचान करने में नहीं है बल्कि मौन भाव में सारी पीड़ा को पी जाने में है। कवि ने तीन रूपकों के माध्यम से अपने भाव कहने चाहे हैं। वे रूपक हैं-सरिता और गुलाब, मुखर शुक और मौन शुकी तथा आल्हा गाने वाला प्रेमी और चोरी-चोरी उसका गीत सुनने वाली उसकी प्रेमिका।

नदी विरह के गीत गाती हुई तीव्र वेग से बहती हुई आगे निकल जाती है। वह किनारे पड़े पत्थरों से कुछ-कुछ कहकर अपना हृदय हल्का कर लेती है पर नदी के किनारे उगा हुआ एक गुलाब मौन भाव से सोच में डूबा रहता है। वह अपने प्रेम-भावों को प्रकट नहीं कर पाता। एक डाली पर तोता बैठा है और उसके कुछ नीचे घोंसले में पड़े अंडों को तोती से रही है। धूप की सुनहरी किरणों को पाकर तोता तो गाता है पर तोती स्नेह भाव में डूबी मौन है, वह कुछ नहीं बोलती।

प्रेमी संध्या समय आल्हा गाता है। वह अपने प्रेम को गीत के माध्यम से व्यक्त करता है पर उसकी प्रेमिका नीम की छाया में चुपचाप गीत सुनती है, कुछ बोलती नहीं, पर सोचती अवश्य है कि भाग्य ने उसे गीत की कड़ी क्यों नहीं बना दिया। इस कविता में जो नहीं कहा गया, वह कहे गए से अधिक महत्वपूर्ण है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

JAC Class 9 Hindi एक फूल की चाह Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) कविता की उन पंक्तियों को लिखिए जिनसे निम्नलिखित अर्थ का बोध होता है –
सुखिया के बाहर जाने पर पिता का हृदय काँप उठता था।
(ख) पर्वत की चोटी पर स्थित मंदिर की अनुपम शोभा।
(ग) पुजारी से प्रसाद। फूल पाने पर सुखिया के पिता की मन:स्थिति।
(घ) पिता की वेदना और उसका पश्चाताप
उत्तर :
(क) बहुत रोकता था सुखिया को, न जा खेलने को बाहर;
नहीं खेलना रुकता उसका, नहीं ठहरती वह पल-भर।
मेरा हृदय काँप उठता था, बाहर गई निहार उसे;
यही मनाता था कि बचा लूँ, किसी भाँति इस बार उसे।
(ख) ऊँचे शैल – शिखर के ऊपर, मंदिर था विस्तीर्ण विशाल;
स्वर्ण – कलश सरसिज विहसित थे, पाकर समुदित रवि-कर- जाल।
दीप – धूप से आमोदित था, मंदिर का आँगन सारा;
गूँज रही थी भीतर-बाहर, मुखरित उत्सव की धारा।
(ग) मेरे दीप – फूल लेकर वे, अंबा को अर्पित करके,
दिया पुजारी ने प्रसाद जब, आगे को अंजलि भरके,
भूल गया उसका लेना झट, परम लाभ-सा पाकर मैं,
सोचा, बेटी को माँ के ये पुण्य-पुष्प दूँ जाकर मैं।

(घ) बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर, छाती धधक उठी मेरी,
हाय ! फूल – सी कोमल बच्ची, हुई राख की थी ढेरी !
अंतिम बार गोद में बेटी, तुझको ले न सका मैं हा!
एक फूल माँ का प्रसाद भी तुझको दे न सका मैं हा!

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प्रश्न 2.
बीमार बच्ची ने क्या इच्छा प्रकट की थी ?
उत्तर :
बीमार बच्ची ने देवी के प्रसाद के एक फूल को लाकर देने की इच्छा प्रकट की थी।

प्रश्न 3.
सुखिया के पिता पर कौन-सा आरोप लगाकर उसे दंडित किया गया ?
उत्तर :
सुखिया के पिता पर यह आरोप लगाया गया कि उसने मंदिर में घुसकर मंदिर की पवित्रता को नष्ट कर दिया है।

प्रश्न 4.
जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने अपनी बच्ची को किस रूप में पाया ?
उत्तर :
जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने देखा कि उसकी बच्ची उसके जेल जाने के बाद मर गई थी। उसे उसके परिचितों ने जला दिया था। वह उसके सामने बुझी हुई चिता की राख के ढेर के समान पड़ी हुई थी।

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प्रश्न 5.
इस कविता का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
‘एक फूल की चाह’ कविता के माध्यम से कवि ने यह स्पष्ट किया है कि स्वतंत्रता से पूर्व हमारे देश में जाति-भेद की समस्या बहुत उग्र थी। जाति विशेष के लोगों को मंदिरों में नहीं जाने दिया जाता था। सुखिया महामारी से पीड़ित थी। उसने अपने पिता से देवी के मंदिर से देवी के प्रसाद के रूप में एक फूल लाने के लिए कहा। उसका पिता मंदिर गया और उसे देवी का प्रसाद भी मिल गया परंतु कुछ लोगों ने उसे पहचान लिया और पीटते हुए न्यायालय ले गए। वहाँ उसे सात दिन का दंड मिला। जब वह लौटकर आया तो उसकी बच्ची मर गई थी। उसका दाह-संस्कार भी उसके पड़ोसियों ने कर दिया था। वह बेटी के अंतिम दर्शन भी नहीं कर सका था।

प्रश्न 6.
इस कविता में से कुछ भाषिक प्रतीकों / बिंबों को छाँटकर लिखिए –
उदाहरण – अंधकार की छाया।
उत्तर :
(क) स्वर्ण – धन
(ग) हृदय – चिताएँ
(ख) पुण्य- पुष्प
(घ) चिरकालिक शुचिता
(ङ) उत्सव की धारा

प्रश्न 7.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट करते हुए उनका अर्थ- सौंदर्य बताइए-
(क) अविश्रांत बरसा करके भी आँखें तनिक नहीं रीतीं।
(ख) बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर, छाती धधक उठी मेरी।
(ग) हाय ! वही चुपचाप पड़ी थी, अटल शांति-सी धारण कर।
(घ) पापी ने मंदिर में घुसकर, किया अनर्थ बड़ा भारी।
उत्तर :
(क) सुखिया का पिता जेल में बंद निरंतर रोता रहा। वह अपनी बेटी की इच्छा पूरी न कर पाने के कारण मन-ही-मन तड़पता रहा। लगातार रोने पर भी उसकी आँखों से आँसू कम नहीं हुए। मन की पीड़ा आँखों के रास्ते बहती ही रही।
(ख) श्मशान में सुखिया की बेटी की चिता बुझी पड़ी थी। सगे-संबंधी उसे जलाकर जा चुके थे। पिता का हृदय बेटी की चिता को देखकर धधक उठा था।
(ग) बेटी महामारी की चपेट में आ गई थी। हर समय चंचल रहने वाली अटल शांत-सी चुपचाप पड़ी हुई थी। वह कोई गति नहीं कर रही थी: अचंचल थी।
(घ) लोगों ने सुखिया के पिता को इस अपराध में पकड़ लिया था कि वह बीमार बेटी के लिए देवी माँ के चरणों का एक फूल प्रसाद रूप में प्राप्त करने के लिए मंदिर में प्रवेश कर गया था। भक्तों को लगा था कि उसने बहुत अनर्थ कर दिया था। उसने देवी का अपमान किया था।

योग्यता- विस्तार –

प्रश्न 1.
‘एक फूल की चाह’ एक कथात्मक कविता है। इसकी कहानी को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

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प्रश्न 2.
‘बेटी’ पर आधारित निराला की रचना ‘सरोज- स्मृति’ पढ़िए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 3.
तत्कालीन समाज में व्याप्त स्पृश्य और अस्पृश्य भावना में आज आए परिवर्तनों पर एक चर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi एक फूल की चाह Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
मार खाने के बाद सुखिया के पिता ने माँ के भक्तों से क्या कहा ?
उत्तर :
मार खाने के बाद सुखिया के पिता ने माँ के भक्तों से कहा- क्या मेरा पाप माँ की महिमा से भी बड़ा है। क्या वह किसी बात में माँ की महिमा से भी आगे है। तुम लोग माँ के कैसे अजीब भक्त हो जो माँ के सामने ही माँ के गौरव को छोटा बना रहे हो।

प्रश्न 2.
सुखिया के पिता को अंत में किस बात का पछतावा रहा?
उत्तर :
सुखिया के पिता को अंत में इस बात का पछतावा था कि वह अंत समय में अपनी बेटी की देवी के प्रसाद की फूल-प्राप्ति की इच्छा भी पूरी नहीं कर सका। फूल का प्रसाद पहुँचाने में असमर्थ होने के कारण उसे पश्चात्ताप तथा दुख का अनुभव हो रहा था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

प्रश्न 3.
सुखिया का पिता पुजारी के हाथ से प्रसाद क्यों नहीं ले पाया ?
उत्तर :
सुखिया का पिता पुजारी के हाथ से प्रसाद लेना इसलिए भूल गया क्योंकि वह जल्दी-से-जल्दी देवी के मंदिर से पुण्य-पुष्प लाकर अपनी बेटी को देना चाहता था।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) देख रहा था – जो सुस्थिर हो, नहीं बैठती थी क्षण-भर
हाय! वही चुपचाप पड़ी थी, अटल शांति-सी धारण कर।
(ख) माँ के भक्त हुए तुम कैसे, करके यह विचार खोटा ?
माँ के सम्मुख ही माँ का तुम, गौरव करते हो छोटा !
उत्तर :
इन प्रश्नों के उत्तर के लिए सप्रसंग व्याख्या का अंश देखें।

प्रश्न 5.
स्वर्ण कलश-सरसिज विहाँसित थे
पाकर समुदित रवि कर – जाल।
उपर्युक्त पंक्तियों के आधार पर बताइए कि स्वर्ण कलश के सौंदर्य की तुलना कवि ने किससे की है ?
उत्तर :
स्वर्ण कलश की तुलना कवि ने कमल के फूलों से की है। जिस प्रकार सूर्य की किरणों से कमल खिल उठते हैं, उसी प्रकार सूर्य की किरणों के प्रकाश से स्वर्ण कलश चमक उठे थे। यहाँ उपमा अलंकार का प्रयोग है। मंदिर के स्वर्ण कलश की उपमा स्वर्ण कमल से दी गई है।

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प्रश्न 6.
जान सका न प्रभात सजग से,
हुई अलस कब दोपहरी।
आपके विचार में प्रभात के लिए ‘सजग’ और दोपहर के लिए ‘अलस’ विशेषणों का प्रयोग कवि ने क्यों किया है?
उत्तर :
प्रभात के लिए कवि ने ‘सजग’ विशेषण का प्रयोग इसलिए किया है क्योंकि प्रभात का समय जागरण का समय है। दोपहर के लिए ‘अलस’ विशेषण का प्रयोग इसलिए किया है क्योंकि यह समय आलस्य का भाव उत्पन्न करता है।

प्रश्न 7.
भीतर, “जो डर रहा छिपाए, हाय वही बाहर आया” कौन – सा डर था जो बाहर आया? कैसे?
उत्तर :
महामारी का भयंकर प्रकोप इधर-उधर फैल रहा था। सुखिया के पिता को यह डर था कि कहीं उसकी बेटी को यह रोग न घेर ले। एक दिन सुखिया को बुखार आ गया। यह देखकर पिता के मन में छिपा डर बाहर आ गया। उसे जिसका डर था, वही हुआ।

प्रश्न 8.
‘एक फूल की चाह’ कविता में बालिका के पिता के मन में भय क्यों था ?
उत्तर :
चारों ओर भयंकर महामारी फैली हुई थी। बहुत से बच्चे उस महामारी के प्रकोप से काल का ग्रास हो चुके थे। बालिका सुखिया पिता के बार-बार रोकने पर भी खेलने के लिए घर से बाहर चली जाती थी। इसी कारण पिता के मन में भय था कि कहीं उसकी बेटी महामारी की चपेट में न आ जाए।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह

प्रश्न 9.
‘एक फूल की चाह’ कविता में कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर :
इस कविता में कवि यह कहना चाहता है कि ईश्वर की दृष्टि में सब बराबर हैं। जात-पात का भाव व्यर्थ है। कोई ऊँचा या नीचा नहीं है। दूसरों पर अत्याचार करने वाले प्रभुभक्त नहीं हो सकते।

प्रश्न 10.
“छोटी-सी बच्ची को ग्रसने, कितना बड़ा तिमिर आया !” भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
यहाँ तिमिर मौत का सूचक है। छोटी-सी और कोमल बच्ची भयंकर महामारी से ग्रस्त बिस्तर पर पड़ी तड़प रही थी। उस फूल- सी बच्ची की दयनीय दशा देखकर ऐसा लग रहा था मानो प्रचंड महामारी मौत का रूप धारण कर उसे ग्रसने आई हो।

प्रश्न 11.
लोगों की मृत्यु का क्या कारण था ? मृतकों के सगे-संबंधियों का रोना किस प्रकार का वातावरण उत्पन्न कर रहा था ?
उत्तर :
लोगों की मृत्यु का कारण उस क्षेत्र में फैली महामारी थी। महामारी से मरने वालों के सगे-संबंधियों का रोना निरंतर वातावरण में दुख फैला रहा था। उनके हृदय रूपी चिताएँ जल रही थीं, धधक रही थीं व माताओं का रोना सभी दिशाओं को चीरता हुआ फैल रहा था। वे किसी भी प्रकार अपने हृदय को सांत्वना नहीं दे पा रहे थे।

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प्रश्न 12.
सुखिया किस प्रकार लेटी हुई थी और उसका पिता उसे क्यों उकसा रहा था ?
उत्तर :
सुखिया महामारी का शिकार बन तेज़ बुखार में तपती हुई स्थिर व शांत लेटी हुई थी। उसका पिता उसे इस प्रकार लेटे देखकर डर रहा था। सुखिया तो कभी शांत होकर नहीं बैठती थी। पिता उसे पहले की तरह चंचल देखना चाहता था, इसलिए उसे देवी के प्रसाद की प्राप्ति के लिए उकसा रहा था ताकि वह कुछ तो बोले।

प्रश्न 13.
लोगों ने सुखिया के पिता की निंदा क्यों की ?
उत्तर :
लोगों ने सुखिया के पिता की निंदा इसलिए की क्योंकि उन लोगों का मंदिर में आना मना था, परंतु वह अपनी बेटी के लिए देवी माँ का प्रसाद लेने आया था। लोगों के अनुसार उसने मंदिर में आकर मंदिर की पवित्रता नष्ट कर दी थी। उसने ऐसा अपराध किया था जो क्षमा के योग्य नहीं था।

व्याख्या :

1. उद्वेलित कर अश्रु – राशियाँ, हृदय – चिताएँ धधकाकर,
महा महामारी प्रचंड हो फैल रही थी इधर-उधर।
क्षीण- कंठ मृतवत्साओं का करुण रुदन दुर्दात नितांत,
भरे हुए था निज कृश रव में हाहाकार अपार अशांत।

शब्दार्थ : उद्वेलित – भाव-विभोर। अश्रु – राशियाँ – आँसुओं की झड़ी। प्रचंड तीव्र। क्षीण कंठ – दबी आवाज़। मृतवत्साओं – जिन माताओं की संतानें मर गई हैं। रुदन रोना। दुर्दात जिसे वश में करना कठिन हो, हृदय को दहलाने वाला। नितांत – बिलकुल। निज – अपना। कृश – कमज़ोर। रव – शोर।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने महामारी से ग्रस्त कन्या की व्यथा को चित्रित किया है जो देवी के चरणों में अर्पित एक फूल की कामना करती है परंतु समाज में व्याप्त छुआछूत की समस्या उसकी इस इच्छापूर्ति में बाधक बन जाती है।

व्याख्या : इन पंक्तियों में कवि महामारी के फैलने का वर्णन करते हुए लिखता है कि लोग महामारी से मर रहे थे। मृतकों के सगे-संबंधी परेशान और पीड़ित हो निरंतर आँसू बहाते थे। उनके हृदय रूपी चिताएँ धधक – धधक कर पीड़ा को व्यक्त करती थीं। भीषण महामारी प्रचंड होकर इधर-उधर फैल रही थी। जिन ममतामयी माताओं की संतानें मौत को प्राप्त हो गई थीं वे अपने कमज़ोर गले से चीख – चिल्ला रही थीं। उनकी करुणा से भरी चीख-पुकार सब दिशाओं में फैल रही थी। अपने कमज़ोर और दीन-हीन हाहाकार के शोर में उनकी अशांत कर देनेवाली अपार मानसिक पीड़ा छिपी हुई थी।

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2. बहुत रोकता था सुखिया को, न जा खेलने को बाहर;
नहीं खेलना रुकता उसका, नहीं ठहरती वह पल-भर।
मेरा हृदय काँप उठता था, बाहर गई निहार उसे;
यही मनाता था कि बचा लूँ, किसी भांति इस बार उसे।

शब्दार्थ : निहार – देखकर।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘स्पर्श’ में संकलित कविता ‘एक फूल की चाह से अवतरित हैं। इस कविता के रचयिता श्री सियारामशरण गुप्त हैं। इसमें उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व की दयनीय दशा का चित्रण किया है। महामारी का भयंकर रोग फैल जाता है। एक व्यक्ति अपनी बेटी सुखिया को छूत के इस रोग से बचाने की कोशिश करता है पर अंततः उसकी बेटी इस रोग से प्रभावित हो ही जाती है। इस पद्यांश में पिता की मनःस्थिति का चित्रण हुआ है।

व्याख्या : छूत की बीमारी फैलने पर सुखिया के पिता का हृदय भय से भर गया था कि कहीं उसकी बेटी को भी महामारी का रोग न घेर ले। अतः वह अपनी बेटी को बहुत रोकता था कि वह खेलने के लिए घर से बाहर न जाए। लेकिन स्वभाव से चंचल होने के कारण सुखिया का खेल नहीं रुकता था। वह पलभर के लिए भी घर में न टिकती थी। उसे बाहर गया देखकर पिता का हृदय काँप उठता था। वह यही मनौती मनाता था कि किसी तरह इस बार उसे बचा ले।

3. भीतर जो डर रहा छिपाए, हाय! वही बाहर आया।
एक दिवस सुखिया के तनु को, ताप तप्त मैंने पाया।
ज्वर में विह्वल हो बोली वह, क्या जानूँ किस डर से डर,
मुझको देवी के प्रसाद का, एक फूल ही दो लाकर।

शब्दार्थ : दिवस – दिन। तनु – शरीर। ताप-तप्त – ज्वर, बुखार से पीड़ित। विह्वल – दुखी।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता, ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित हैं। इस कविता में कवि ने एक व्यक्ति की दयनीय दशा का चित्रण किया है। उसका हृदय हमेशा डरता रहता था कि कहीं महामारी का रोग उसकी बेटी को ग्रस्त न कर ले।

व्याख्या : वह कहता है कि – मेरे भीतर जो डर का भाव था, वही एक दिन प्रकट रूप में सामने आ गया। मैंने अपनी बेटी सुखिया के शरीर को ज्वर से पीड़ित पाया। ज्वर की पीड़ा से पीड़ित होकर तथा न जाने किस डर से डरकर वह कहने लगी- मुझे देवी के प्रसाद का एक फूल लाकर दो। सुखिया का एक फूल के प्रसाद की कामना करना उसपर दैवी प्रकोप के प्रभाव का प्रमाण प्रस्तुत करता है।

4. क्रमशः कंठ क्षीण हो आया, शिथिल हुए अवयव सारे,
बैठा था नव-नव उपाय की, चिंता में मैं मन मारे।
जान सका न प्रभात सजग से, हुई अलस कब दोपहरी,
स्वर्ण- घनों में कब रवि डूबा, कब आई संध्या गहरी।

शब्दार्थ : क्रमशः – क्रम से, सिलसिलेवार। शिथिल – ढीले। अवयव अंग। नव नए। प्रभात – नए। प्रभात – सवेरा। स्वर्ण घने – सोने के रंग जैसे बादल। रवि सूर्य।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित ‘एक फूल की चाह’ नामक कविता से अवतरित की गई हैं। सुखिया का पिता हमेशा इस बात से डरता था कि कहीं उसकी बेटी भी महामारी का शिकार न बन जाए। आखिर वही हुआ जिसका डर था। सुखिया को भी महामारी ने आ घेरा। सुखिया की दशा का वर्णन करते हुए उसका पिता कहता है।

व्याख्या : धीरे-धीरे सुखिया के गले की आवाज़ कमज़ोर हो गई। सारे अंग ढीले पड़ गए। मैं मन को मारे हुए अर्थात उदास हुए नए-नए तरीके सोचने में लीन था। सोचता था इसके लिए फूल कैसे लाया जाए। सवेरे सजग होकर, जागकर मैं यह जान न सका कि कब दोपहर हो गई। यह भी न समझ सका कि कब सुनहरे बादलों में सूर्य डूबा और कब गहरी घनी, अंधकारपूर्ण संध्या आ गई।

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5. सभी ओर दिखलाई दी बस, अंधकार की ही छाया,
छोटी-सी बच्ची को ग्रसने, कितना बड़ा तिमिर आया !
ऊपर विस्तृत महाकाश में, जलते से अंगारों से,
झुलसी-सी जाती थीं आँखें, जगमग जगते तारों से।

शब्दार्थ : ग्रसने – डसने। तिमिर – अंधकार। महाकाश – विशाल आकाश।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित है। करुण रस से ओत-प्रोत इस कविता में कवि ने समाज के एक वर्ग की दयनीय दशा का बड़ा मार्मिक चित्रण किया है। यहाँ सुखिया की निरंतर बिगड़ती हुई दशा का वर्णन है।

व्याख्या : सुखिया की निरंतर बिगड़ती हुई दशा के कारण उसका निराश पिता कहता है कि यद्यपि मैंने अपनी बेटी का हठ पूरा करने के अनेक उपायों पर विचार किया, किंतु केवल निराशा ही मेरे हाथ लगी। मेरी इतनी सुकुमार और छोटी-सी बालिका को ग्रसने के लिए इतनी प्रचंड महामारी का प्रकोप छाया हुआ था। सुखिया की आँखों से आग निकल रही थी, जिसे देखकर ऐसा प्रतीत होता था मानो विस्तृत आकाश में अंगारों की तरह अगणित तारे चमक रहे हों। अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार तारों से आकाश के विस्तार का अनुमान नहीं लग पाता, उसी प्रकार सुखिया की झुलसती आँखों से उसके शरीर के ताप का सही अनुमान नहीं लग सकता था।

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6. देख रहा था – जो सुस्थिर हो, नहीं बैठती थी क्षण-भर
हाय! वही चुपचाप पड़ी थी, अटल शांति-सी धारण कर।
सुनना वही चाहता था मैं, उसे स्वयं ही उकसाकर
मुझको देवी के प्रसाद का एक फूल ही दो लाकर।

शब्दार्थ : सुस्थिर एक स्थान पर टिका हुआ, अडिग। अटल – स्थिर।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह से अवतरित हैं। सुखिया रोग ग्रस्त हो जाने के कारण स्थिर अवस्था में पड़ी रहती थी।

व्याख्या : सुखिया का पिता कहता है- जो बेटी स्वभाव से चंचल होने के कारण पल-भर के लिए भी एक स्थान पर टिककर नहीं बैठती थी, वही अब स्थिर शांति धारण किए एक ही स्थान पर पड़ी रहती थी। अब वह दुर्बल तथा क्षीण कंठ होने के कारण बोल भी नहीं सकती थी। उसका पिता अपनी मानसिक शांति के लिए स्वयं उसको उकसाकर एक बार उससे यही सुनना चाहता था – ‘मुझे देवी के प्रसाद का एक फूल लाकर दो।’

7. ऊँचे शैल – शिखर के ऊपर, मंदिर था विस्तीर्ण विशाल;
स्वर्ण कलश सरसिज विहसित थे, पाकर समुदित रवि-कर- जाल।
दीप- धूप से आमोदित था, मंदिर का आँगन सारा;
गूँज रही थी भीतर – बाहर, मुखरित उत्सव की धारा।

शब्दार्थ : शैल शिखिर पर्वत की चोटी। विस्तीर्ण – विस्तृत। विशाल – बहुत बड़े आकारवाला। स्वर्ण कलश – सोने के कलश। सरसिज – कमल। विहसित – हँसते हुए। रवि-कर- जाल सूर्य की किरणों का समूह। आमोदित प्रसन्न।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित ‘एक फूल की चाह’ नामक कविता से अवतरित की गई हैं। कवि मंदिर के बाहरी सौंदर्य तथा भीतरी वातावरण पर प्रकाश डालता हुआ कहता है।

व्याख्या : पर्वत की चोटी पर एक बहुत बड़ा मंदिर था। सूर्य की किरणों के समूह को पाकर सोने का कलश कमल के समान हँसता हुआ दिखाई देता था। भाव यह है कि सूर्य की किरणों का स्पर्श पाकर कमल खिलते हैं। मंदिर का स्वर्णिम कलश भी सूर्य की किरणों का स्पर्श पाकर कमल के समान खिला हुआ दिखाई दे रहा था। दीपकों और सुगंधित धूप से मंदिर का सारा आँगन प्रसन्नता को व्यक्त कर रहा था। मंदिर के भीतर और बाहर उत्सव की धारा प्रकट हो रही थी। भाव यह है कि मंदिर के भीतर जो भजन आदि गाए जा रहे थे, उनकी आवाज़ भी गूँज रही थी।

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8. भक्त-वृंद मृदु-मधुर कंठ से, गाते थे सभक्ति मुद-मय-
‘पतित-तारिणी पाप-हारिणी’ माता तेरी जय-जय।’
‘पतित-तारिणी’ तेरी जय जय, मेरे मुख से भी निकला,
बिना बढ़े ही मैं आगे को, जाने किस बल से ढिकला।

शब्दार्थ : भक्त वृंद – भक्तों का समूह। मुद-मय प्रसन्नतापूर्वक। पतित-तारिणी पापियों को तारने वाली। पाप हारिणी- पापों को हरनेवाली। ढिकला – ढकेला गया; ठेला गया।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित हैं। मंदिर में भक्तों का समूह देवी माँ की वंदना कर रहा था।

व्याख्या : भक्तों का समूह भक्ति भाव से भरकर कोमल, मधुर तथा प्रसन्नचित्त मन से यही गा रहा था – हे माता ! तू पतितों को तारनेवाली तथा उनके पापों को हरनेवाली है। हे माता ! तुम्हारी जय-जयकार हो। सुखिया का पिता कहता है कि उन भक्तों के अनुकरण पर मेरे मुख से भी यही निकला – हे पापियों को तारनेवाली तेरी जय हो। वह बिना बढ़े ही भीड़ द्वारा आगे ठेल दिया गया।

9. मेरे दीप – फूल लेकर वे, अंबा को अर्पित करके,
दिया पुजारी ने प्रसाद जब, आगे को अंजलि भरके,
भूल गया उसका लेना झट, परम लाभ-सा पाकर मैं,
सोचा, बेटी को माँ के ये, पुण्य-पुष्प दूँ जाकर मैं,

शब्दार्थ : अंबा – माँ, देवी माँ। अर्पित – भेंट। अंजलि – मुट्ठी। पुण्य-पुष्प – पवित्र फूल।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित हैं। सुखिया का पिता अपनी बीमार बेटी के लिए देवी के मंदिर में प्रसाद लेने जा पहुँचता है।

व्याख्या : सुखिया का पिता कहता है कि मेरे दीप और फूल को लेकर पुजारी ने देवी माँ के चरणों में अर्पित कर दिए। पुजारी ने जब अपना हाथ आगे बढ़ाकर मुझे प्रसाद दिया तो मैं उसको लेना ही भूल गया। मैंने परम लाभ पाकर यही सोचा कि मैं अपनी बेटी को शीघ्र अति शीघ्र जाकर माँ के पवित्र फूल दूँ।

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10. सिंह पौर तक भी आँगन से, नहीं पहुँचने मैं पाया,
सहसा यह सुन पड़ा कि – “कैसे यह अछूत भीतर आया ?
पकड़ो, देखो भाग न जावे, बना धूर्त यह धूर्त यह है कैसा;
साफ-स्वच्छ परिधान किए है, भले मानुषों के जैसा !”

शब्दार्थ : सिंह पौर – मंदिर का मुख्य द्वार। सहसा – प्रसंग। अचानक। धूर्त – दुष्ट। परिधान – वस्त्र। मानुषों – मनुष्यों।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित हैं। यहाँ सुखिया के पिता के मंदिर में जाने के दुष्परिणाम परिणाम पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या : सुखिया का पिता कहता है – मैं माँ के मंदिर से पवित्र फूल लेकर अभी मंदिर के मुख्य द्वार पर भी नहीं पहुँचा था कि अचानक यह आवाज़ सुनाई दी कि यह मंदिर के भीतर कैसे घुस आया। सबने कहा कि उसे पकड़ लो, कहीं भाग न जाए। साफ़-सुथरे कपड़े पहनकर यह दुष्ट भले मानुष का सा रूप धारण करके आ गया है।

11. पापी ने मंदिर में घुसकर किया अनर्थ बड़ा भारी,
कलुषित कर दी है मंदिर की, चिरकालिक शुचिता सारी।
ऐं, क्या मेरा कलुष बड़ा है, देवी की गरिमा से भी;
किसी बात में हूँ मैं आगे, माता की महिमा के भी ?

शब्दार्थ : अनर्थ – अविष्ट। कलुषित – अपवित्र। चिरकालिक – बहुत पुराने समय से चली आ रही। शुचिता – पवित्रता। कलुष – पाप। गरिमा – महानता।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ शीर्षक कविता से उद्धृत की गई हैं। जब मंदिर में उपस्थित लोगों को यह पता लगा कि सुखिया का पिता देवी के मंदिर में घुस आया है तो सभी ने उसकी कठोर भर्त्सना एवं निंदा की।

व्याख्या : मंदिर में उपस्थित लोग कहने लगे कि – देखो तो सही, इस पापी ने मंदिर में घुसकर कितना बड़ा अनर्थ कर डाला है। इसने मंदिर की पुरानी पवित्रता को नष्ट कर दिया है। निश्चय ही इसका कृत्य अक्षम्य है। जब सुखिया के पिता ने यह सब सुना तो वह सहज भाव से बोला, हे भाई, क्या मेरा पाप इतना बड़ा है कि देवी की महानता उसे क्षमा नहीं कर सकती ? अभिप्राय यह है कि देवी के समक्ष तो सभी एकसमान हैं- फिर मेरा ही पाप तो इतना बड़ा नहीं है कि मुझे क्षमादान नहीं मिल सकता। मेरी तरह तुम सब भी तो किसी-न-किसी रूप में पापी हो। तात्पर्य यह है कि देवी की गरिमा और महानता को मुझसे और मेरे कृत्यों से कोई क्षति नहीं पहुँच सकती। देवी के सर्वशक्तिशाली रूप के समक्ष मेरा अकिंचन अस्तित्व कोई महत्व नहीं रखता।

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12. माँ के भक्त हुए तुम कैसे, करके यह विचार खोटा ?
माँ के सम्मुख ही माँ का तुम, गौरव करते हो छोटा !
कुछ न सुना भक्तों ने, झट से मुझे घेर कर पकड़ लिया;
मार मार कर मुक्के घूँसे, धम-से नीचे गिरा दिया !

शब्दार्थ : सम्मुख – सामने। गौरव – सम्मान।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित हैं। इन पंक्तियों में सुखिया के पिता के उद्गारों का मार्मिक वर्णन है।

व्याख्या : सुखिया का पिता देवी के भक्तों को संबोधित कर कहता है कि इतना तुच्छ विचार रखकर तुम माँ के कैसे विचित्र भक्त हो। तुम माँ के सम्मुख ही माँ की महिमा को छोटा कर रहे हो। अभिप्राय यह है कि माँ का मंदिर इतना पवित्र है कि वह किसी भी पापी के प्रवेश से अपवित्र बन ही नहीं सकता। मंदिर को अपवित्र कहना माँ के गौरव का हनन करना है। लेकिन देवी के भक्तों ने उसकी बातों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। उसे पकड़ लिया तथा मुक्के और घूँसे मार-मारकर उसे धरती पर गिरा दिया।

13. मेरे हाथों से प्रसाद भी, बिखर गया हा ! सबका सब
हाय ! अभागी बेटी तुझ तक कैसे पहुँच सके यह अब !
न्यायालय ले गए मुझे वे सात दिवस का दंड विधान
मुझको हुआ; हुआ था मुझसे देवी का महान अपमान!

शब्दार्थ : न्यायालय – अदालत। दंड – सज़ा। विधान – नियम।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘एक फूल की चाह’ से अवतरित हैं। इन पंक्तियों में सुखिया के पिता की व्यथा का मार्मिक चित्रण है।

व्याख्या : सुखिया का पिता कहता है कि मंदिर में उपस्थित भक्तों ने उसे खूब पीटा, क्योंकि उसने मंदिर में घुसकर घोर अपराध किया था। मार-पीट के दौरान उसके हाथों का प्रसाद भी नीचे गिर गया था। वह सोचता है कि उसकी अभागी बेटी के पास अब प्रसाद कैसे पहुँचे। सुखिया तक उस प्रसाद के पहुँचने की कोई संभावना न थी। अदालत ने उसे इस अपराध के लिए सात दिन की सज़ा सुनाई। लोगों के अनुसार उसके कारण देवी का घोर अपमान हुआ था।

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14. मैंने स्वीकृत किया दंड वह शीश झुकाकर चुप ही रह;
उस असीम अभियोग, दोष का क्या उत्तर देता, क्या कह ?
सात रोज़ ही रहा जेल में या कि वहाँ सदियां बीतीं,
अविश्रांत बरसा करके भी आँखें तनिक नहीं रीतीं।

शब्दार्थ : दंड – सज़ा। शीश – सिर। असीम – सीमा से रहित, अत्यधिक। अविश्रांत – लगातार, बिना रुके हुए। तनिक – ज़रा भी। रीतीं – खाली हुईं।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श- भाग एक’ में संकलित कविता ‘एक फूल की चाह’ से ली गई हैं जिसके रचयिता श्री सियारामशरण गुप्त हैं। कवि ने समाज में व्याप्त धर्म पर आधारित रूढ़ियों का सजीव चित्रण किया है। सुखिया के पिता को मंदिर से प्रसाद लेने के अपराध में जेल में भेज दिया गया था जबकि उसकी बेटी घर में पड़ी मौत से लड़ रही थी।

व्याख्या : सुखिया के पिता का कहना है कि उसने न्यायालय के सामने सिर झुकाकर दिए गए दंड को स्वीकार किया। उस पर लगाए गए इतने बड़े आरोप का भला वह क्या कह कर उत्तर देता। उसके पास कहने के लिए कुछ नहीं था। वह सात दिन तक जेल में बंद रहा। उसे ऐसा लगता कि वह सदियों से वहाँ बंद था। निरंतर उसकी आँखें आँसू बहाती रहतीं पर फिर भी वे ज़रा भी खाली न हुईं। आँसू तो उनमें ज्यों- के त्यों भरे ही रहे और बेटी की याद और अपने साथ हुए अन्याय के कारण बरसते रहे।

15. दंड भोगकर जब मैं छूटा, पैर न उठते थे घर को ;
पीछे ठेल रहा था कोई भय जर्जर तनु पंजर को।
पहले की-सी लेने मुझको नहीं दौड़कर आई वह;
उलझी हुई खेल में ही हा ! अबकी दी न दिखाई वह।

शब्दार्थ : दंड – सज़ा। ठेल – धकेल। तनु – शरीर।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक स्पर्श (भाग – एक) में संकलित कविता ‘एक फूल की चाह’ से लिया गया है जिसके रचयिता श्री सियारामशरण गुप्त हैं। बेटी के लिए प्रसाद लेने के लिए पिता मंदिर गया था, पर जाति-भेद के कारण उसे मार-पीट कर सात दिन के लिए जेल में भेज दिया गया था।

व्याख्या : सुखिया के पिता जेल में सजा भोगने के बाद जब घर को लौट रहा था तो ग्लानि के कारण उसके पाँव नहीं उठ रहे थे। डर और कमज़ोरी के कारण उसके लड़खड़ाते शरीर को जैसे कोई पीछे धकेल रहा था। वह आगे बढ़ ही नहीं पा रहा था। आज उसे पहले की तरह लेने के लिए उसकी बेटी सुखिया भागकर आगे से नहीं आई थी और न ही किसी खेल – कूद में ही उलझी हुई दिखाई दी।

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16. उसे देखने मरघट को ही गया दौड़ता हुआ वहाँ,
मेरे परिचित बंधु प्रथम ही, फूँक चुके थे उसे जहाँ।
बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर, छाती धधक उठी मेरी,
हाय! फूल-सी कोमल बच्ची, हुई राख की थी ढेरी!
अंतिम बार गोद में बेटी, तुझको ले न सका मैं हा!
एक फूल माँ का प्रसाद भी तुझको दे न सका मैं हा!

शब्दार्थ : मरघट मरघट – श्मशान। बंधु मित्र, रिश्तेदार। फूँक चुके – जला चुके।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘स्पर्श (भाग – एक) ‘ में संकलित कविता ‘एक फूल की चाह’ से ली गई हैं जिसके रचयिता श्री सियारामशरण गुप्त हैं। महामारी के कारण बेटी चल बसी थी पर पिता उसे देवी माँ के प्रसाद रूप में एक फूल तक न लाकर दे सका।

व्याख्या : सुखिया का पिता कहता है कि वह अपनी मृतक बेटी को देखने के लिए श्मशान की ओर दौड़ता हुआ पहुँचा लेकिन उसके सगे-संबंधी पहले ही उसके मृतक शरीर को जला चुके थे। उसकी बुझी हुई चिता ही थी। पिता का हृदय धधक पड़ा, वह कराह उठा। हाय ! उसकी फूल – सी कोमल बेटी राख की ढेरी बन चुकी थी। पिता अपनी बेटी को अंतिम बार गोद में भी नहीं ले सका। बेटी ने एक ही तो चीज़ माँगी थी और वह देवी माँ का प्रसाद रूप में एक फूल भी उसे नहीं दे सका था। वह अपनी इच्छा को साथ लेकर ही यहाँ से चली गई।

एक फूल की चाह Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन – परिचय – सियारामशरण गुप्त राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त के छोटे भाई थे। उनका जन्म सन् 1895 ई० में चिरगाँव, जिला झाँसी में हुआ था। श्वास रोग, पत्नी की असामयिक मृत्यु तथा राष्ट्रीय आंदोलन की असफलता ने उनके शरीर को जर्जर कर दिया था। यही कारण है कि उनके काव्य में करुणा, पीड़ा एवं विषाद का स्वर प्रधान हो गया है। सन् 1963 ई० में इनका देहांत हो गया।

रचनाएँ – गुप्त जी ने काव्य-रचना के साथ-साथ कहानी, उपन्यास, निबंध एवं नाटक के क्षेत्र में भी अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। वे कवि रूप में ही अधिक प्रसिद्ध हैं। इनकी प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं – मौर्य विजय, दूर्वादल, आर्द्रा, पाथेय, आत्मोत्सर्ग, मृण्मयी, बापू, उन्मुक्त, गोपिका, नकुल, दूर्वादल तथा नोआखली आदि। ‘गीता-संवाद’ में श्रीमद्भगवद गीता का काव्यानुवाद है।

काव्य की विशेषताएँ – सियारामशरण गुप्त की कविताओं में मानवतावाद तथा राष्ट्रवाद की प्रधानता है। अतीत के प्रति अनुराग तथा नवीनता के प्रति आस्था उनके काव्य की अन्य उल्लेखनीय विशेषताएँ हैं। आख्यानक गीति रचने में वे सिद्धहस्त रहे हैं। गाँधी एवं विनोबा के जीवन-दर्शन के प्रभावस्वरूप उन्होंने दया, सहानुभूति, सत्य, अहिंसा एवं परोपकार आदि भावनाओं को विशेष महत्त्व दिया है। गुप्त जी की काव्यभाषा खड़ी बोली है जिसके ऊपर संस्कृत के तत्सम शब्दों का पर्याप्त प्रभाव है।

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कविता का सार :

‘एक फूल की चाह’ कविता श्री सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित है। इस कविता में एक ओर पुत्री के प्रति पिता के असीम स्नेह का चित्रण है, तो दूसरी ओर समाज में व्याप्त छुआछूत एवं ऊँच-नीच की समस्या पर प्रकाश डाला है। कवि ने इस रचना के माध्यम से यह भी स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि किसी के स्पर्श से देवी की पवित्रता और गरिमा नष्ट नहीं होती, बल्कि देवी की शरण में जाने पर सभी पवित्र हो जाते हैं। देवी की महिमा अपरंपार है और उसकी गरिमा पतितों का उद्धार करने में ही है।

किसी स्थान पर भीषण महामारी फैल गई। इस महामारी के भय से बालिका सुखिया का पिता उसे घर से बाहर नहीं जाने देता। फिर भी सुखिया उस महामारी की चपेट में आ ही गई। महामारी से ग्रस्त सुखिया पिता से देवी के प्रसाद में मिलनेवाले फूल को प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त करती है। अपनी जाति के कारण पिता मंदिर में जाकर फूल लाने से डरता है किंतु पुत्री के मोह ने उसे देवी के मंदिर से फूल लाने के लिए विवश कर दिया।

प्रसाद रूप में फूल लेकर जैसे ही वह लौटने लगा, कुछ लोगों ने उसे पहचान लिया तथा पकड़कर बुरी तरह पीटा। फिर उसपर मंदिर की पवित्रता भंग करने का आरोप लगाकर जेल भिजवा दिया। सात दिन का कारावास का दंड भोगकर जब वह घर लौटा तो उसकी प्यारी बेटी सुखिया की मृत्यु हो चुकी थी। अपनी बेटी की अंतिम इच्छा पूरी न कर सकने के कारण उसका हृदय चीत्कार कर उठा।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 11 आदमी नामा

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 11 आदमी नामा Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 11 आदमी नामा

JAC Class 9 Hindi आदमी नामा Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(क) पहले छंद में कवि की दृष्टि आदमी के किन-किन रूपों का बखान करती है? क्रम से लिखिए।
(ख) चारों छंदों में कवि ने आदमी के सकारात्मक और नकारात्मक रूपों को परस्पर किन-किन रूपों में रखा है ? अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
(ग) ‘आदमी नामा’ शीर्षक कविता के इन अंशों को पढ़कर आपके मन में मनुष्य के प्रति क्या धारणा बनती है ?
(घ) इस कविता का कौन-सा भाग आपको अच्छा लगा और क्यों ?
(ङ) आदमी की प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
(लघु उत्तरीय प्रश्न) (लघु उत्तरीय प्रश्न)
(निबंधात्मक प्रश्न)
उत्तर :
(क) पहले छंद में कवि ने आदमी को बादशाह, गरीब, भिखारी, दौलतमंद, कमजोर, स्वादिष्ट भोजन खाने वाले तथा सूखे टुकड़े चबाने वाले के रूप में चित्रित किया है।

(ख) इस कविता में कवि ने आदमी के सकारात्मक रूप को एक बादशाह, दौलतमंद, स्वादिष्ट भोजन खाने वाले, मसजिद बनाने वाले, धर्मगुरु बनने वाले, कुरान शरीफ़ और नमाज़ पढ़ने वाले, दूसरों के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले, शासन करने वाले, सज्जन, राजा, मंत्री, सबके दिलों को लुभाने वाले कार्य करने वाले, शिष्य, गुरु और अच्छे कार्य करने वाले के रूप में चित्रित किया है। कवि ने आदमी के नकारात्मक रूप को गरीब, भिखारी, कमजोर, सूखे टुकड़े चबाने वाले, मसजिद से जूते चुराने वाले, लोगों को तलवार से मारने वाले, दूसरों का अपमान करने वाले, सेवक के कार्य करने वाले, नीच और बुरे व्यक्ति के रूप में चित्रित किया है।

(ग) ‘आदमी नामा’ कविता पढ़कर हमें यह ज्ञात होता है कि इस संसार में मनुष्य से अच्छा और मनुष्य से बुरा दूसरा कोई नहीं है। मनुष्य ही राजा के समान महान और मनुष्य ही दीन-हीन भिखारी है। शक्तिशाली भी मनुष्य है और कमजोर भी वही है। मनुष्य धार्मिक और चोर है, तो मनुष्य ही किसी को बचाता और मारता भी है। शासक भी वही है और शासित भी वही है। सज्जन से लेकर नीच और राजा से लेकर मंत्री तक मनुष्य ही होता है। इसलिए मनुष्य को अच्छे कार्य करते हुए इस संसार को सुंदर बनाना चाहिए।

(घ) इस कविता की निम्नलिखित पंक्तियाँ मुझे अच्छी लगी हैं –

‘अच्छा भी आदमी ही कहाता है ए नज़ीर
और सबमें जो बुरा है सो है वो भी आदमी।’

ये पंक्तियाँ मुझे इसलिए अच्छी लगी, क्योंकि इन पंक्तियों से हमें सद्गुणों को अपनाकर अच्छा आदमी बनने की प्रेरणा मिलती है। हमें दुर्गुणों का त्याग कर देना चाहिए। दुर्गुणी व्यक्ति बुरा आदमी बन जाता है। समाज में अच्छे आदमी का आदर होता है, बुरे का नहीं।

(ङ) आदमी स्वभाव से अच्छा भी और बुरा भी है। वह दूसरों के दुखों का कारण है, तो वही उन दुखों का निवारण करने वाला भी है। आदमी ही आदमी पर शासन करता है: आदेश देता है और मनचाहे ढंग से परेशान करता है। आदमी दीन-हीन है और आदमी ही संपन्न है। आदमी धर्म-कर्म में विश्वास करता है और आदमी ही उस धर्म-कर्म के ढंग को बनाता है। आदमी के जूते आदमी चुराता है, तो आदमी ही उनकी देख-रेख करता है। आदमी ही आदमी की रक्षा करता है और आदमी ही आदमी का वध करता है। आदमी अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को अपमानित करता है। अपनी रक्षा के लिए आदमी पुकारता है और सहायता के लिए आदमी ही दौड़कर आता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 11 आदमी नामा

प्रश्न 2.
निम्नलिखित अंशों की व्याख्या कीजिए – (निबंधात्मक प्रश्न)
(क) दुनिया में बादशाह है सो है वह भी आदमी
और मुफ़लिस-ओ-गदा है सो है वो भी आदमी

(ख) अशराफ़ और कमीने से ले शाह ता वज़ीर
ये आदमी ही करते हैं सब कारे दिलपज़ीर
उत्तर :
(क) और (ख) की व्याख्या के लिए इस कविता के व्याख्या भाग क्रमांक 1 और 4 को देखिए।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में अभिव्यक्त व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए –
(क) पढ़ते हैं आदमी ही कुरआन और नमाज यां
और आदमी ही उनकी चुराते हैं जूतियाँ
जो उनको ताड़ता है सो है वो भी आदमी
(ख) पगड़ी भी आदमी की उतारे है आदमी
चिल्ला के आदमी को पुकारे है आदमी
और सुनके दौड़ता है सो है वो भी आदमी
उत्तर :
(क) कवि ने व्यंग्य किया है मसजिद में आदमी कुरान शरीफ़ पढ़ने और नमाज़ अदा करने जाते हैं परंतु उनमें कुछ ऐसे आदमी भी होते हैं, जो वहाँ आने वालों की जूतियाँ चुराते हैं। उन जूता चोरों पर नज़र रखने वाले भी आदमी ही होते हैं। जूता चोरों और उन पर नज़र रखने वालों का ध्यान परमात्मा की ओर नहीं बल्कि अपने – अपने लक्ष्य पर होता है।

(ख) कवि ने व्यंग्यात्मक स्वर में कहा है कि आदमी ही आदमी का अपमान करता है। सहायता प्राप्ति के लिए आदमी ही आदमी को पुकारता है और सहायता देने के लिए भी आदमी ही दौड़कर आता है। अपमान करने वाला आदमी और सहायता करने वाला भी आदमी ही है। कवि के अनुसार अलग-अलग प्रवृत्तियाँ आदमी से अलग-अलग काम करवाती हैं।

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प्रश्न 4.
नीचे लिखे शब्दों का उच्चारण कीजिए और समझिए कि किस प्रकार नुक्ते के कारण उनमें अर्थ परिवर्तन आ गया है।
(क)                  (ख)
राज (रहस्य) – फ्रन (कौशल)
राज (राज्य) – फन (साँप का मुँह)
ज्रा (थोड़ा) – फलक (आकाश)
जरा (बुढ़ापा) – फलक (लकड़ी का तखा)
जफ़ से युक्त दो-दो शब्दों को और लिखिए।
उत्तर :
ज़ – जमीन, ज़मीर। फ़ – फ़ना, फ़रक।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित मुहावरों का प्रयोग वाक्यों में कीजिए –
(क) टुकड़े चबाना (ख) पगड़ी उतारना (ग) मुरीद होना (घ) जान वारना (ङ) तेग मारना
उत्तर :
(क) टुकड़े चबाना – गरीब को सूखे टुकड़े चबाकर अपना पेट भरना पड़ता है।
(ख) पगड़ी उतारना – भरी सभा में मंत्री ने सेठ करोड़ीमल की कंजूसी का वर्णन करके उनकी पगड़ी उतार दी।
(ग) मुरीद होना – इन दिनों क्रिकेट के दीवाने धोनी के मुरीद हो गए हैं।
(घ) जान वारना – माँ अपने लाडले पर अपनी जान वारती है।
(ङ) तेग मारना – कृष्णन ने तेग मारकर भागते हुए डकैत को घायल कर दिया।

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योग्यता – विस्तार –

प्रश्न 1.
अगर ‘बंदर नामा’ लिखना हो तो आप किन-किन सकारात्मक और नकारात्मक बातों का उल्लेख करेंगे ?
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi आदमी नामा Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
नज़ीर अकबराबादी की कविता ‘आदमी नामा’ के आधार पर आदमी की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
नज़ीर अकबराबादी की कविता ‘आदमी नामा’ के आधार पर आदमी की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
(i) धार्मिक – आदमी ईश्वर में विश्वास करता है। वह मसजिदें बनाता है; नमाज अदा करता है; कुरान शरीफ़ पढ़ता-सुनता
है और स्वयं को सौभाग्यशाली मानता है।
(ii) चोर – आदमी मौका मिलने पर दूसरों का सामान चुराने में तनिक नहीं झिझकता। वह तो यह भी नहीं सोचता कि उसे कहाँ चोरी करनी चाहिए और कहाँ नहीं।
(iii) अत्याचारी और अनाचारी – आदमी दूसरे आदमियों का शोषण करता है; उन्हें गरीब बनाता है। उनके मुँह का कोर छीनने को सदा तैयार रहता है। वह दूसरों की हत्या करने में भी नहीं झिझकता। वह अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए किसी का भी अपमान करने को तैयार रहता है।
(iv) दयाभाव से संपन्न – आदमी के हृदय में दया के भाव पैदा होते हैं। वह दूसरों को रोटी देता है। कष्ट की घड़ी में उनकी सहायता करता है। आदमी ही गुरु बनता है और आदमी को शिक्षा देता है।

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प्रश्न 2.
संसार में आकर व्यक्ति क्या-क्या बनता है ?
उत्तर :
संसार में आकर आदमी ही राजा बनता है और आदमी ही दीन-हीन गरीब है। अमीर भी आदमी है और गरीब भी आदमी है। रूखा- सूखा चबाने वाला आदमी है, तो स्वादिष्ट भोजन खाने वाला भी आदमी है।

प्रश्न 3.
संसार में आकर मनुष्य क्या-क्या काम करता है ?
उत्तर :
संसार में आकर मनुष्य कई तरह के काम करता है। वह मस्जिद बनाता है; मस्जिद में नमाज पढ़ने वाला भी आदमी होता है। कुरान शरीफ़ का अर्थ बताने वाला धर्मगुरु भी आदमी ही है। आदमी ही मस्जिद में आकर जूते चुराने का काम करते हैं तथा जूतों को चुराने वाले आदमियों पर नज़र रखने वाला भी आदमी होता है

प्रश्न 4.
‘अच्छा भी आदमी ही कहाता है ए नज़ीर
और सबमें जो बुरा है सो हैं वो भी आदमी’
उपरोक्त पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने आदमी के अच्छे-बुरे रूपों को प्रकट किया है और कहा है कि आदमी ही प्रत्येक अच्छाई और बुराई के पीछे होता है। कवि की भाषा में उर्दू शब्दावली की अधिकता है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। अभिधा शब्द – शक्ति ने कथन को सरलता और सहजता प्रदान की है। तुकांत छंद लयात्मकता का आधार बना है।

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प्रश्न 5.
‘आदमी नामा’ किस प्रकार की रचना है ?
उत्तर :
‘आदमी नामा’ कवि नज़ीर अकबराबादी द्वारा रचित एक उद्बोधनात्मक कविता है। कवि ने अपनी इस रचना में आदमी को संसार की सर्वश्रेष्ठ रचना माना है। कविता में कवि ने आदमी की कमियों का व्याख्यान करते हुए उसे जीवन में सद्गुणों को अपनाने की बात कही है।

प्रश्न 6.
‘आदमी नामा’ कविता आम आदमी से जुड़ी हुई कविता कैसे है ?
उत्तर :
‘आदमी नामा’ नज़ीर अकबराबादी की एक सर्वश्रेष्ठ रचना है। यह आम आदमी से जुड़ी हुई कविता है। इसे गाकर फेरीवाले, नाचने-गाने वाले नर-नारियाँ अपना जीवन निर्वाह करते थे। कवि ने अपनी इस रचना में तत्कालीन जनजीवन का यथार्थ चित्रण किया है। कवि ने अपनी इस काव्य-कृति में आम आदमी की कमियों से मानव को अवगत करवाना चाहा है। कवि के अनुसार संसार में अच्छा-बुरा, छोटा-बड़ा- हर तरह का काम करने वाला आदमी ही होता है। आदमी के अंतरिक गुण-अवगुण ही समाज में उसकी पहचान निर्धारित करते हैं।

प्रश्न 7.
कवि के अनुसार संसार में आकर आदमी क्या बनता है ?
उत्तर :
कवि के अनुसार संसार में आकर जो व्यक्ति राजा बनता है, वह आदमी होता है। संसार में व्याप्त गरीब भी आदमी हैं। ऊँचे-ऊँचे महलों में निवास करने वाले सेठ और बादशाह भी आदमी हैं। बलशाली भी आदमी है और एक दीनहीन भी आदमी है।

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प्रश्न 8.
कवि नज़ीर अकबराबादी के काव्य की भाषा-शैली स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि नज़ीर अकबराबादी का काव्य आम आदमी से जुड़ा हुआ काव्य है। इस कविता में उन्होंने आदमी के अलग-अलग रूपों का उल्लेख किया है। उनके अनुसार हर अच्छे बुरे कार्य के पीछे आदमी ही निहित होता है। इन्होंने अपने काव्य में उर्दू-फारसी के शब्दों का अत्यधिक प्रयोग किया है। इनके काव्य की भाषा को उर्दू मिश्रित खड़ी बोली कहा जा सकता है, जिसमें कहीं-कहीं देशज शब्दों का प्रयोग देखा जा सकता है। इनके काव्य में सरल, सहज एवं संक्षिप्त वाक्यों का प्रयोग हुआ है।

आदमी नामा Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन-परिचय – नज़ीर अकबराबादी का जन्म उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में सन 1735 ई० में हुआ था। इन्होंने आगरा के सुप्रसिद्ध शिक्षाविदों से अरबी – फ़ारसी की शिक्षा प्राप्त की थी। इन्हें हर प्रकार के तीज-त्योहारों में बहुत दिलचस्पी थी। इन्हें किसी भी विषय पर कविता करने में कोई कठिनाई नहीं होती थी। इनके प्रशंसक इन्हें रास्ते में रोककर इनसे अपनी मनपसंद कविता सुनते थे। इनका निधन सन 1830 ई० में हुआ।

रचनाएँ -नज़ीर अकबराबादी ने विभिन्न विषयों पर कविताएँ लिखी हैं। इनकी कविता उर्दू की ‘नज़्म’ शैली में आती है। इन्होंने ‘सब ठाठ पड़ा जाएगा, जब लाद चलेगा बंजारा’ जैसी नीति से संबंधित नज़्मों के अतिरिक्त भिश्ती, ककड़ी बेचने वालों, बिसाती, गाना गाकर जीवनयापन करने वालों आदि के काम में सहायता देने वाली नज़्में भी लिखी हैं। ‘आदमी नामा’ इनकी एक उद्बोधनात्मक कविता है।

काव्य की विशेषताएँ – नज़ीर अकबराबादी की कविता आम आदमी से जुड़ी हुई कविता है। इसे गा-गाकर फेरीवाले, गानेवालियाँ आदि अपना जीवन-यापन करते थे। इन्होंने अपनी कविताओं में तत्कालीन जनजीवन का यथार्थ अंकन किया है। इन नज़्मों में मानव-जीवन के सुख-दुख, हँसी-मज़ाक, मेले- त्योहारों आदि का सहज भाव से चित्रण किया गया है। इनके काव्य की भाषा उर्दू मिश्रित खड़ी बोली है, जिसमें कहीं-कहीं देशज शब्दों का प्रयोग भी देखा जा सकता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 11 आदमी नामा

कविता का सार :

आदमी नामा’ नज़ीर अकबराबादी द्वारा रचित एक उद्बोधनात्मक कविता है। इसमें कवि ने आदमी को संसार की सर्वश्रेष्ठ रचना मानते हुए उसे उसकी कमियों से परिचित करवाया है और उसे अपने जीवन में सद्गुणों को अपनाकर संसार को और भी अधिक सुंदर बनाने की प्रेरणा दी है। कवि के अनुसार इस दुनिया में आदमी ही सबकुछ करता प्रतीत होता है। वही दुनिया का बादशाह है और वही प्रजा है।

मालदार भी वही है और गरीब भी वही है। रोटी देने वाला भी वही है और रोटी खाने वाला भी वही है। मसजिद बनाने वाला, नमाज़ पढ़ने वाला, वहाँ से जूते चुराने वाला यदि आदमी है तो इमाम और खुतबाख्वां भी आदमी ही है। आदमी का अपमान करने वाला आदमी है; हत्यारा भी आदमी है; अपमान करने वाला आदमी है, तो रक्षक भी आदमी है। शरीफ़ भी आदमी है और कमीना भी आदमी है। आदमी ही गुरु है और चेला भी आदमी है। अच्छा भी आदमी है और बुरा भी वही है।

व्याख्या :

1. दुनिया में बादशाह है सो है वह भी आदमी
और मुफ़लिस-ओ-गदा है सो है वो भी आदमी
ज़रदार बेनवा है सो है वो भी आदमी
निअमत जो खा रहा है सो है वो भी आदमी
टुकड़े चबा रहा है सो है वो भी आदमी

शब्दार्थ : बादशाह – राजा। मुफ़लिस – गरीब। ओ – और। गदा – भिखारी, फ़कीर। ज़रदार – अमीर, दौलतवाला। बेनवा – कमज़ोर। निअमत – स्वादिष्ट भोजन, बहुत अच्छा पदार्थ।

प्रस्तुत : पंक्तियाँ नज़ीर अकबराबादी द्वारा रचित कविता ‘आदमी नामा’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने मनुष्य के विभिन्न रूपों का चित्रण करते हुए उसे सद्गुण अपनाकर, संसार को और भी अच्छा बनाने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या : कवि कहता है कि इस संसार में आकर जो राजा बनता है, वह आदमी ही है तथा इस संसार में दीन-हीन, गरीब और भिखारी भी आदमी ही होता है। दौलतवाला आदमी है और कमज़ोर भी आदमी ही है। जो प्रतिदिन स्वादिष्ट भोजन खाता है, वह आदमी है; रूखे टुकड़े चबाने वाला भी आदमी ही है।

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2. मसजिद भी आदमी ने बनाई है यां मियाँ
बनते हैं आदमी ही इमाम और खुतबाख्वाँ
पढ़ते हैं आदमी ही कुरआन और नमाज़ यां
और आदमी ही उनकी चुराते हैं जूतियाँ
जो उनको ताड़ता है सो है वो भी आदमी।

शब्दार्थ : यां – यहाँ। मियाँ श्रीमान। इमाम- नमाज़ पढ़ाने वाले धर्मगुरु। खुतबाख्वाँ – कुरान शरीफ़ का अर्थ बताने वाला। ताड़ता – भाँप लेना, डाँटना।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ नज़ीर अकबराबादी द्वारा रचित कविता ‘आदमी नामा’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने मनुष्य के विभिन्न रूपों का वर्णन करते हुए उसे एक अच्छा आदमी बनकर संसार का कल्याण करने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या : कवि कहता है कि इस संसार में मसजिद भी आदमी ने बनाई है और आदमी ही मसजिद में नमाज़ पढ़ाने वाले व कुरान शरीफ़ का अर्थ बताने वाले धर्मगुरु बनते हैं। आदमी ही कुरान शरीफ़ पढ़ते हैं और नमाज़ अदा करते हैं। आदमी ही मसजिद में आने वालों के जूते चुराते हैं और उन जूतों को चुराने वालों पर नज़र रखने वाला भी आदमी ही होता है।

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3. यां आदमी पै जान को वारे है आदमी
और आदमी पै तेग को मारे है आदमी
पगड़ी भी आदमी की उतारे है आदमी
चिल्ला के आदमी को पुकारे हैं आदमी
और सुनके दौड़ता है सो है वो भी आदमी

शब्दार्थ : जान को वारे – प्राण न्योछावर करना। तेग – तलवार। पगड़ी उतारना – अपमान करना।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ नज़ीर अकबराबादी द्वारा रचित कविता ‘आदमी नामा’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने मनुष्य के विभिन्न रूपों का वर्णन करते हुए उसे अच्छा आदमी बनकर संसार को सुंदर बनाने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या : कवि कहता है कि इस संसार में मनुष्य ही मनुष्य के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर देता है और आदमी ही आदमी को तलवार से मार देता है। आदमी ही दूसरे आदमी का अपमान करता है। आदमी ही आदमी के ऊपर अधिकार जमाते हुए उसे चिल्लाकर पुकारता है, तो उसकी सेवा करने वाला आदमी उसकी पुकार सुनकर दौड़ता चला जाता है।

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4. अशराफ़ और कमीने से ले शाह ता वज़ीर
ये आदमी ही करते हैं सब कारे दिलपज़ीर
यां आदमी मुरीद है और आदमी ही पीर
अच्छा भी आदमी ही कहाता है ए नज़ीर
और सबमें जो बुरा है सो है वो भी आदमी

शब्दार्थ : अशराफ़ – सज्जन, शरीफ़। कमीना ओछा, नीच। शाह – राजा, सम्राट। वज़ीर मंत्री। ता तक। कारे काम। दिलपज़ीर दिल को अच्छा लगने वाला। मुरीद – शिष्य। पीर – गुरु।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ नज़ीर अकबराबादी द्वारा रचित कविता ‘आदमी नामा’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने मनुष्य के विभिन्न रूपों का वर्णन करते हुए उसे सद्गुणों से युक्त होकर संसार को सुंदर बनाने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या : इन पंक्तियों में कवि कहता है कि आदमी ही सज्जन और आदमी ही नीच होता है। राजा से मंत्री तक भी कोई आदमी ही होता है। आदमी ही ऐसे कार्य करता है, जो सबके दिल को लुभाने वाले होते हैं। इस संसार में आदमी ही शिष्य होता है, तो दूसरा आदमी उसका गुरु होता है। कवि कहता है कि संसार में अच्छा आदमी भी होता है और संसार में जो सबसे बुरा है, वह भी आदमी ही होता है।