JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

JAC Board Class 10th Social Science Important Questions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. भारत में ग्रामीण क्षेत्र में किस क्षेत्रक का सर्वाधिक योगदान ह
(क) प्राथमिक
(ख) द्वितीयक
(ग) तृतीयक
(घ) ये सभी
उत्तर:
(क) प्राथमिक

2. किस क्षेत्रक की गतिविधियाँ प्राकृतिक संसाधनों के प्रत्यक्ष उपयोग पर आधारित हैं
(क) प्राथमिक क्षेत्रक
(ख) द्वितीयक क्षेत्रक
(ग) तृतीयक क्षेत्रक
(घ) ये सभी
उत्तर:
(क) प्राथमिक क्षेत्रक

3. द्वितीयक क्षेत्रक को कहा जाता है
(क) औद्योगिक क्षेत्रक
(ख) कृषि क्षेत्रक
(ग) सेवा क्षेत्रक
(घ) सहायक क्षेत्रक
उत्तर:
(क) औद्योगिक क्षेत्रक

4. किस क्षेत्रक में अल्प रोजगार सर्वाधिक मिलता है
(क) सेवा क्षेत्रक
(ख) उत्पाद क्षेत्रक
(ग) उद्योग क्षेत्रक
(घ) कृषि क्षेत्रक
उत्तर:
(घ) कृषि क्षेत्रक

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5. मनरेगा का पूरा नाम है
(क) महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण गारंटी अधिनियम
(ख) महानगर. राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कानून
(ग) मन से रोजगार योजना
(घ) राष्ट्रीय स्वर्णिम चतुर्भुज योजना
उत्तर:
(क) महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण गारंटी अधिनियम

रिक्त स्थान

निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. प्राथमिक क्षेत्रक को……………भी कहा जाता है।
उत्तर:
कृषि एवं सहायक,

2. द्वितीयक क्षेत्रक के……………की प्रक्रिया अपरिहार्य है।
उत्तर:
विनिर्माण,

3. तृतीयक क्षेत्रक को……….भी कहा जाता है।
उत्तर:
सेवा क्षेत्रक,

4. हमारे देश में आधे से अधिक श्रमिक……..में कार्यरत है।
उत्तर:
प्राथमिक क्षेत्रक।

अति लघूत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राथमिक क्षेत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं तो उसे प्राथमिक क्षेत्र कहते हैं।

प्रश्न 2.
प्राथमिक क्षेत्र में कौन-सी आर्थिक गतिविधियाँ सम्मिलित की जाती हैं?
उत्तर:
प्राथमिक क्षेत्रक में कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन, खनन, आखेट, संग्रहणण, मुर्गी पालन आदि गतिविधियाँ सम्मिलित की जाती हैं।

प्रश्न 3.
जब्ब हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके वस्तुओं का उत्पादन करते हैं, तो इस प्रकार की गतिविधियाँ किस आर्थिक क्षेत्रक के अन्तर्गत करते हैं?
अथवा
जब हम प्राकृतिक उत्पादों को अन्य रूपों में परिवर्तित करते हैं, तब यह गतिविधि किस आर्थिक क्षेत्रक के अन्तर्गत आती हैं?
उत्तर:
प्राथमिक क्षेत्र ।

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प्रश्न 4.
प्राथमिक क्षेत्रक को कृषि एवं सहायक क्षेत्रक क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
प्राथमिक क्षेत्रक को कृषि एवं सहायक क्षेत्रक इसलिए कहा जाता है क्योंकि हम अधिकतर प्राकृतिक उत्पाद कृषि, पशुपालन, मत्स्य एवं वनों से प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 5.
द्वितीयक क्षेत्रक की गतिविधियों से क्या आशय है?
उत्तर:
द्वितीयक क्षेत्रक की गतिविधियों के अन्तर्गत प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रणाली द्वारा अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है। इसके विनिर्माण की प्रक्रिया अपरिहार्य है।

प्रश्न 6.
द्वितीयक क्षेत्रक को औद्योगिक क्षेत्रक क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
क्योंकि यह क्षेत्रक क्रमशः संवर्धित विभिन्न प्रकार के उद्योगों से जुड़ा हुआ है।

प्रश्न 7.
तृतीयक क्षेत्रक की किन्हीं चार गतिविधियों के नाम बताइए।
अथवा
तृतीयक क्षेत्र की किन्हीं दो सेवाओं के नाम लिखिए। नहीं करता बल्कि सेवाओं का सृजन करता हैन

प्रश्न 9.
अन्तिम वस्तुएँ कौन-सी होती हैं?
उत्तर:
अन्तिम वस्तुएँ वे वस्तुएँ
उत्तर:
अन्तिम वस्तुएँ वे वस्तुएँ है जिनका प्रयोग अंतिम उपयोग अथवा पूँजी निर्माण में होता है। इन्हें फिर से बेचा नहीं जाता।

प्रश्न 10.
मध्यवर्ती वस्तुएँ क्या हैं?
उत्तर:
मध्यवर्ती वस्तुएँ वे उत्पादित वस्तुएँ हैं जिनका प्रयोग उत्पादक कच्चे माल के रूप में उत्पादन प्रक्रिया में करता है अथवा उन्हें फिर से बेचने के लिए खरीदा जाता है।

प्रश्न 11.
बिस्कुट के उत्पादन हेतु कोई दो मध्यवर्ती वस्तुएँ लिखिए।.

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प्रश्न 12.
सकल घरेलू उत्पाद से क्या अभिप्राय है?
अथवा
सकल घरेलू उत्पाद की गणना किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
तीनों क्षेत्रकों के उत्पादनों के योगफल को देश का सकल घरेलू उत्पाद (जी. डी. पी.) कहते हैं। यह किसी देश के भीतर किसी विशेष वर्ष में उत्पादित सभी अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य होता है।

प्रश्न 13.
बेरोजगारी किसे कहते हैं?
उत्तर:
लब प्रचलित मजदूरी पर काम करने के इच्छुक व सक्षम व्यवितयों को कोई कार्य उपलब्य नहीं होता तो ऐसी स्थिंत को बेरोजगारी कहा जाता है।

प्रश्न 14.
मौसमी बेरोजगारी क्या है?
उत्तर:
ब्रेरोजगारी की वह स्थिति जिसमें लोगों को पूरे साल काम नहीं मिलता अर्थात् साल के कुछ महीनों में ये लोग बिना काम के रहते हैं, मौसमी बेरोजगारी कहलाती है; जैसे- ग्रामीण क्षेत्र में खराब मौसम के कारण उत्पन्न बेरोजगारी।

प्रश्न 15.
कुल उत्पादन और रोजगार की दृष्टि से कौन-सा क्षेत्रक सबसे महत्त्वपूर्ण हो गया है ?
उत्तर:
फुल उत्पादन और रोजगार की दृष्टि से द्वितीयक क्षेत्रक सबसे महत्वपूर्ण हो गया है।

प्रश्न 16.
कौन-सा क्षेत्रक सबसे अधिक रोजगार देता है?
अथवा
भारत में अधिकांश श्रमिक आज भी किस क्षेत्र में नियोजित हैं?
उत्तर:
प्राथमिक क्षेत्रक सबसे अधिक रोजगार देता है। भारत में अधिकांश श्रमिक आज भी इसी क्षेत्रक में नियोजित है।

प्रश्न 17.
कृषि और उद्योग के विकास से किन सेवाओं का विकास होता है?
उत्तर:
कषष और उद्योग के विकास से परिवहन, व्यापार, भण्डारण जैसी सेवाओं का विकास होता है।

प्रश्न 18.
भारत में कृषि आधारित किन्हीं दो उद्गोगों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. चीनी उद्योग
  2. चाय उद्योग।

प्रश्न 19.
संगठित क्षेत्रक से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
संगठित क्षेत्रक के अन्तर्गत वे उद्यम अथवा कार्य स्थान आते हैं जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है, काम सुनिश्चित होता है और सरकारी नियमों व विनियमों का अनुपालन किया जाता है।

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प्रश्न 20.
असंगठित क्षेत्रक से क्या आशय है?
उत्तर:
असंगठित क्षेत्रक छोटी-छोटी और बिखरी इकाइयाँ, जो अधिकांशतः राजकीय नियन्त्रण से आहर होती है, से निर्मित होता है। इस क्षेत्रक के नियम और विनियम तो होते हैं किन्तु उनका अनुपालन नहीं होता है।

प्रश्न 21.
कौन-सा क्षेत्रक अर्त्यधिक मांग पर ही रोजगार प्रस्तावित करता है?
उत्तर:
संगठित क्षेत्रक अत्यधिक माँग पर ही रोजगार प्रस्तावित करता है।

प्रश्न 22.
ग्रामीण क्षेत्रों में कौन-से लोग हैं, जो असंगठित क्षेत्रक में काम करते हैं?
उत्तर:
ग्रामीण क्षेत्रों में मुख्यतः भूमिहीन कृषि श्रमिक, छोटे और सीमांत किसान, फसल बँंटाइदार और कारीगर ( जैसे-बुनकर, लुहार, बढ़ई व सुनार) आदि असंगठित क्षेत्रक में काम करते हैं।

प्रश्न 23.
किन श्रमिकों को शहरी व ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में संरक्षण दिए जाने की आवश्यकता है?
उत्तर:
आकस्मिक श्रमिकों को शहरी व ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में संरक्षण दिए जाने की आवश्यकता है।

प्रश्न 24.
संसाधनों के स्वामित्व के आधार पर दो क्षेत्रक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
संसाधनों के स्वामित्व के आधार पर दो क्षेत्रक निम्नलिखित हैं: सार्वजनिक क्षेत्रक

प्रश्न 25.
सार्वजनिक क्षेत्रक किसे कहते हैं?
उत्तर:
स्रकार्वजनिक क्षेत्रक वह क्षेत्रक होता है जिस पर सरकार का स्वामित्व, नियंत्रण एवं प्रबंधन होता है।

प्रश्न 26.
सार्वजनिक क्षेत्रक के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. भारतीय रेलवे
  2. भारतीय ड्डाक विभाग।

प्रश्न 27.
निजी क्षेत्रक के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी लिमिटेड,
  2. रिलायंस इण्डस्ट्रीज लिमिटेड।

प्रश्न 28.
निजी क्षेत्रक का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
निजी क्षेत्रक का मुख्य उद्देश्य अधिकतम लाभ अर्जित करना है।

प्रश्न 29.
सार्वजनिक क्षेत्रक का मुख्य उदेश्य क्या होता है?
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्रक का मुख्य उद्देश्य समाज कल्याण में वृद्धि करना होता है।

प्रश्न 30.
सरकार सेवाओं पर किए गए व्यय की भरपाई कैसे करती है?
उत्तर:
सरकार सेवाओं पर किए गए व्यय की भरपाई कर लगाकर या अन्य तरीकों से करती है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA1)

प्रश्न 1.
भारतीय अर्थव्यवस्था में प्राथमिक क्षेत्रक के महत्त्व को बताइए।
अथवा
भारतीय अर्थव्यवस्था में प्राथमिक क्षेत्रक के महत्त्व के किन्हीं चार सूत्रों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
“विकास की प्रारम्भिक अवस्थाओं में प्राथमिक क्षेत्रक’ ही आर्थिक सक्रियता का सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक रहा है।” इस कथन का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर
भारतीय अर्थव्यवस्था में प्राथमिक क्षेत्रक का महत्त्व निम्नलिखित है

  1. प्राथमिक क्षेत्रक में कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन, वनारोपण आदि सम्मिलित हैं जो भारतीय अर्थव्यवस्था को योगदान देते हैं।
  2. भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जी. डी. पी.) में प्राथमिक क्षेत्रक का योगदान लगभग 13 प्रतिशत है।
  3. भारत में रोजगार में प्राथमिक क्षेत्र की हिस्सेदारी 44 प्रतिशत है।
  4. यह भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे अधिक रोजगार प्रदान करने वाला क्षेत्रक है।

प्रश्न 2.
भारतीय अर्थव्यवस्था में द्वितीयक क्षेत्रक के महत्त्व के कोई चार सूत्र लिखिए।
उत्तर:
भारतीय अर्थव्यवस्था में द्वितीयक क्षेत्रक का महत्त्व निम्नलिखित है

  1. द्वितीयक क्षेत्रक प्राथमिक एवं तृतीयक क्षेत्रक के विकास को बढ़ावा देता है।
  2. यह लोगों को रोजगार प्रदान करता है। रोजगार में इस क्षेत्रक की हिस्सेदारी लगभग 25 प्रतिशत है।
  3. भारत के जी. डी. पी. में द्वितीयक क्षेत्रक लगभग 2 प्रतिशत योगदान देता है।
  4. यह क्षेत्रक लोगों को अनेक निर्मित वस्तुएँ; जैसे-कपड़ा, चीनी, गुड़, कार, इस्पात आदि प्रदान करता है।

प्रश्न 3.
तृतीयक क्षेत्रक क्या है? क्या भारत में तृतीयक क्षेत्रक का योगदान बढ़ता जा रहा है?
अथवा
सेवा क्षेत्र को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
तृतीयक क्षेत्रक:
इसके अन्तर्गत वे क्रियाएँ आती हैं जो प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रकों के विकास में मदद करती हैं। इसे सेवा क्षेत्रक भी कहते हैं; जैसे-अध्यापक, डॉक्टर, वकील, व्यापार, दूरसंचार, स्वास्थ्य आदि। भारत में विगत दशकों से तृतीयक क्षेत्रक का योगदान निरन्तर बढ़ता जा रहा है। इस क्षेत्रक में रोजगार में भी वृद्धि हुई है। जी. डी. पी. में इस क्षेत्र के योगदान में निरन्तर वृद्धि हुई है। सन् 1973-74 में इसका जी.डी.पी. में योगदान लगभग 48% था, जो 2013-14 में बढ़कर 68% हो गया है।

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प्रश्न 4.
अन्तिम वस्तुओं और मध्यवर्ती वस्तुओं में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अन्तिम वस्तुओं और मध्यवर्ती वस्तुओं में निम्नलिखित अन्तर हैं अन्तिम वस्तुएँ

अन्तिम वस्तुएँ मध्यवर्ती वस्तुएँ
1. अन्तिम वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती हैं जो उपभोक्ताओं के पास पहुँचती हैं। 1. मध्यवर्ती वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका उपयोग अन्तिम वस्तुओं के उत्पादन में किया जाता है।
2. अन्तिम वस्तुओं का मूल्य राष्ट्रीय आय में सम्मिलित किया जाता है। उदाहरण-चॉकलेट, बिस्कुट, ब्रेड, अलमारी व टेलीविजन आदि। 2. मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य राष्ट्रीय आय में सम्मिलित नहीं होता है। उदाहरण-आटा, कपास, गे है, स्टील आचे।

प्रश्न 5.
सकल घरेलू उत्पाद की गणना करते समय केवल अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं को ही क्यों सम्मिलित किया जाता है?
उत्तर:
सकल घरेलू उत्पाद की गणना करते समय केवल अन्तिम वस्तुएँ एवं सेवाओं को ही सम्मिलित किया जाता है क्योंकि इससे दोहरी गणना की सम्भावना नहीं रहती है। यदि मध्यवर्ती वस्तुओं जो कि अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्माण में प्रयुक्त की जाती हैं, की गणना भी कर ली जाए तो इससे दोहरी गणना हो जाएगी जिससे हमें वास्तविक राष्ट्रीय आय की जानकारी प्राप्त नहीं हो पायेगी।

प्रश्न 6.
अल्प अथवा छिपी बेरोज़गारी क्या है? यह किन क्षेत्रों में विद्यमान है?
अथवा
छिपी या प्रच्छन्न बेरोजगारी क्या है?
उत्तर:
किसी कार्यस्थल पर यदि आवश्यकता से अधिक लोग कार्य कर रहे हों तथा जिनके जाने से उत्पादन पर कोई असर न पड़े, ऐसी स्थिति को अल्प बेरोज़गारी या प्रच्छन्न बेरोज़गारी कहते हैं। कृषि क्षेत्रक में, जहाँ परिवार के सभी सदस्य कार्य करते हैं, प्रत्येक व्यक्ति कुछ-न-कुछ काम करता दिखाई पड़ता है, किन्तु वास्तव में उनका श्रम-प्रयास विभाजित होता है तथा किसी को भी पूर्ण रोजगार प्राप्त नहीं होता है।

यह स्थिति अल्प बेरोज़गारी की स्थिति होती है। इसे छिपी या प्रच्छन्न बेरोज़गारी भी कहते हैं। यह बेरोज़गारी सेवा क्षेत्रक में भी पायी जाती है। यहाँ हजारों अनियमित श्रमिक पाए जाते हैं, जो दैनिक रोजगार की तलाश में रहते हैं। वे श्रमसाध्य, कठिन और जोखिमपूर्ण कार्य करते हैं किन्तु अपनी क्षमता से कम आय प्राप्त कर पाते हैं।

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प्रश्न 7.
संगठित क्षेत्रक क्या है?
अथवा
संगठित क्षेत्रक को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
संगठित क्षेत्रक में वे उद्यम या कार्य स्थान आते हैं, जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है और इसलिए लोगों के पास सुनिश्चित काम होता है। इस क्षेत्रक में सरकार का नियंत्रण होता है इनके लिए नियम-विनियम होते हैं जिनका पालन होता है। इन नियमों एवं विनियमों का अनेक विधियों; जैसे-कारखाना अधिनियम, सेवानुदान अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, दुकान एवं प्रतिष्ठान अधिनियम आदि में उल्लेख किया जाता है।

प्रश्न 8.
असंगठित क्षेत्रक क्या है? अथवा असंगठित क्षेत्रक को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
असंगठित क्षेत्रक के अन्तर्गत वे छोटी-छोटी और बिखरी हुई इकाइयाँ आती हैं जो सामान्यतः राजकीय नियन्त्रण के बाहर होती हैं। यद्यपि इनके लिए भी नियम व विनियम बने हैं परन्तु उनका पालन नहीं होता है। इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कम वेतन वाले रोजगार हैं और प्रायः नियमित नहीं हैं। इस क्षेत्रक में बहुत बड़ी संख्या में लोग अपने-अपने छोटे कार्यों, जैसे-सड़कों पर विक्रय अथवा मरम्मत कार्य में स्वतः नियोजित हैं। इसी प्रकार कृषक अपने खेतों में कार्य करते हैं एवं आवश्यकता पड़ने पर मजदूरी पर श्रमिकों को लगाते हैं। .

प्रश्न 9.
“असंगठित क्षेत्रक के श्रमिक अनियमित व कम मजदूरी पर काम करने के अतिरिक्त सामाजिक भेदभाव के भी शिकार हैं।” क्या आप इस कथन से सहमत हैं? कारण दीजिए।
उत्तर:
हाँ, मैं इस कथन से सहमत हूँ। इसके निम्नलिखित कारण हैं.

  1. असंगठित क्षेत्रक में अधिकांश श्रमिक अनुसूचित जाति, जनजाति एवं पिछड़ी जातियों से हैं इसलिए वे सामाजिक भेदभाव के शिकार होते हैं।
  2. ये श्रमिक दलित वर्गों से सम्बन्धित होते हैं। अतः उन्हें अपना मूल्यांकन कर अधिक मजदूरी माँगने का साहस नहीं होता है।
  3. इसके अतिरिक्त महिला श्रमिकों को भी शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर माना जाता है और वे कार्यस्थल पर भेदभाव का बहुत अधिक शिकार होती हैं।

प्रश्न 10.
किन सुविधाओं को उपलब्ध कराना सरकार का उत्तरदायित्व है?
उत्तर:
निम्नलिखित सुविधाओं को उपलब्ध कराना सरकार का उत्तरदायित्व है

  1. ऐसी वस्तुओं को उपलब्ध कराना जिन्हें निजी क्षेत्रक उचित कीमत पर उपलब्ध नहीं कराते हैं; जैसे सड़क, पुल, रेलवे, बन्दरगाह, विद्युत आदि का निर्माण। इसके निर्माण हेतु अत्यधिक मुद्रा की आवश्यकता होती है जो सामान्यतः निजी क्षेत्रक की क्षमता से बाहर होती है।
  2. शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
  3. आर्थिक सहायता के रूप में सरकारी समर्थन।
  4. आवास, भोजन एवं पोषण सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
  5. शुद्ध व सुरक्षित पेयजल की उपलब्धता को सुनिश्चित कराना।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA2)

प्रश्न 1.
प्राथमिक क्षेत्रक की मुख्य गतिविधियों को कुछ उदाहरण देकर बताइए। इन्हें प्राथमिक क्यों कहा जाता है?
अथवा
प्राथमिक क्षेत्रक से क्या आशय है? इसे कृषि एवं सहायक क्षेत्रक क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
जब हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं, तो इसे प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधि कहा जाता है। इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कृषि, डेयरी, खनन, मत्स्य पालन, वनारोपण आदि क्रियाएँ आती हैं। उदाहरण के लिए-कपास की खेती। यह एक मौसमी फसल है, यह मुख्यतः प्राकृतिक कारकों; जैसे-वर्षा, सूर्य का प्रकाश और जलवायु पर निर्भर है।

इस क्रिया द्वारा उत्पादित कपास एक प्राकृतिक उत्पाद होता है। इसे प्राथमिक क्षेत्रक इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह उन सभी उत्पादों का आधार है, जिन्हें हम निर्मित करते हैं। चूँकि हम अधिकांशतः प्राकृतिक वस्तुएँ कृषि, डेयरी, मत्स्य पालन एवं वनारोपण से प्राप्त करते हैं, इसलिए इस क्षेत्रक को कृषि एवं सहायक क्षेत्रक भी कहा जाता है।

प्रश्न 2.
द्वितीयक क्षेत्रक क्या है?
अथवा
द्वितीयक क्षेत्रक की गतिविधियों के बारे में आप क्या जानते हैं? उदाहरण दें।
अथवा
द्वितीयक क्षेत्रक का संक्षिप्त वर्णन करें। इसे औद्योगिक क्षेत्रक क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
द्वितीयक क्षेत्रक के अन्तर्गत वे क्रियाएँ आती हैं जिनमें प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रक्रिया के माध्यम से अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है। यह प्राथमिक क्षेत्रक से अगली अवस्था है। यहाँ वस्तुएँ सीधे प्रकृति से उत्पादित नहीं होती बल्कि निर्मित की जाती हैं। इसलिए विनिर्माण की प्रक्रिया आवश्यक होती है जो किसी कारखाने, कार्यशाला अथवा घर में हो सकती है। उदाहरणार्थ, कपास के पौधे से प्राप्त रेशे से सूत कातना व कपड़ा बुनना, गन्ने से चीनी एवं मिट्टी से ईंट का विनिर्माण आदि। चूँकि यह क्षेत्रक क्रमशः विभिन्न प्रकार के उद्योगों से जुड़ा हुआ है, इसलिए इसे औद्योगिक क्षेत्रक भी कहा जाता है।

प्रश्न 3.
महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम (मनरेगा) 2005 को सविस्तार समझाइए।
उत्तर:
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजागार गारण्टी अधिनियम, 2005 का उद्देश्य चयनित जिलों में ग्रामीण क्षेत्रों के प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को वर्ष में कम से कम 100 दिन के रोजगार की गारंटी देना है, जो काम करने में सक्षम हैं और जिन्हें काम की जरूरत है। वर्ष 2009-10 में इसका नाम बदलकर ‘महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम’ कर दिया गया है।

राज्यों में कृषि’ श्रमिकों के लिए लागू वैधानिक न्यूनतम मजदूरी का भुगतान इसके लिए किया जाएगा। इसके अन्तर्गत 33 प्रतिशत लाभभोगी महिलाएँ होंगी। रोज़गार न दिए जाने पर निर्धारित दर से बेरोजगारी भत्ता सरकार द्वारा दिया जायेगा। इस प्रकार यह अधिनियम रोज़गार की वैधानिक गारण्टी प्रदान करता है। इस अधिनियम के अंतर्गत ठन कार्यों को वरीयता प्रदान की जाएगी जिनसे भविष्य में भूमि से उत्पादन बढ़ाने में मदद मिल सकेगी।

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प्रश्न 4.
संगठित क्षेत्रक क्या है? संगठित क्षेत्रक की कार्य-स्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
संगठित क्षेत्रक के कर्मचारियों की स्थिति पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
अथवा
कर्मचारियों द्वारा संगठित क्षेत्रक को प्राथमिकता क्यों दी जाती है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
किन कारणों से संगठित क्षेत्र असंगठित क्षेत्र से प्राथमिक है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
संगठित क्षेत्रक: संगठित क्षेत्रक में वे उद्यम अथवा कार्यस्थान आते हैं जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है। इस कारण लोगों के पास सुनिश्चित कार्य होता है। इस क्षेत्रक में सरकार का नियंत्रण होता है तथा राजकीय नियमों एवं विनियमों का अनुपालन किया जाता है। संगठित क्षेत्रक की निम्नलिखित कार्य-स्थितियाँ होती हैं

  1. इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कुछ औपचारिक प्रक्रियाएँ होती हैं। व्यक्ति को एक नियुक्ति पत्र दिया जाता है जिसमें काम की सभी शर्तों का स्पष्ट उल्लेख होता है।
  2. संगठित क्षेत्रक के कर्मचारियों को रोजगार सुरक्षा के लाभ मिलते हैं।
  3. लोग निश्चित घण्टे तक ही काम करते हैं। यदि वे अधिक घण्टे काम करते हैं तो इन्हें इसके लिए नियोक्ता द्वारा अतिरिक्त भुगतान किया जाता है।
  4. लोग नियमित रूप से मासिक वेतन प्राप्त करते हैं।
  5. वेतन के अतिरिक्त लोग कई अन्य लाभ भी प्राप्त करते हैं; जैसे-छुट्टी का भुगतान, भविष्य निधि, चिकित्सकीय भत्ते, पेंशन आदि।
  6. रोजगार की शर्ते नियमित होती हैं। लोगों के काम सुनिश्चित होते हैं।
  7. यहाँ स्वच्छ पीने का पानी एवं सुरक्षित वातावरण जैसी सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। उक्त कार्य-स्थितियों के कारण संगठित क्षेत्र असंगठित क्षेत्र से प्राथमिक है।

प्रश्न 5.
असंगठित क्षेत्रक क्या है? असंगठित क्षेत्रक की कार्य-स्थितियाँ क्या हैं?
अथवा
असंगठित क्षेत्र की किन्हीं तीन विशेषताओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
असंगठित क्षेत्रक असंगठित क्षेत्रक में छोटे-छोटे एवं बिखरे हुए उद्यमों को सम्मिलित किया जाता है, जिन पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता है तथा सरकार के नियमों व विनियमों का अनुपालन नहीं किया जाता है। असंगठित क्षेत्रक की निम्न कार्य-स्थितियाँ/ कार्यविधियाँ हैं

  1. इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कोई औपचारिक प्रक्रिया नहीं होती है। व्यक्ति को नियोक्ता द्वारा कोई औपचारिक नियुक्ति पत्र नहीं दिया जाता है।
  2. इस क्षेत्रक के अन्तर्गत रोजगार में मजदूरी कम व अनियमित होती है।
  3. इस क्षेत्रक में काम के घण्टे सुनिश्चित नहीं होते हैं। इसमें अतिरिक्त काम के अतिरिक्त घंटे के लिए भुगतान की कोई व्यवस्था नहीं है।
  4. इस क्षेत्रक में रोजगार की सुनिश्चितता नहीं होती है व लोगों को नियोक्ता द्वारा अकारण किसी भी समय काम छोड़ने के लिए कहा जा सकता है।
  5. इस क्षेत्रक में लोग दैनिक मजदूरी प्राप्त करते हैं। दैनिक मजदूरी के अतिरिक्त अन्य किसी लाभ का प्रावधान नहीं है।
  6. इस क्षेत्रक में सवेतन अवकाश एवं बीमारी के कारण छुट्टी आदि का कोई प्रावधान नहीं है।

प्रश्न 6.
क्या सार्वजनिक क्षेत्रक का होना अपरिहार्य है? उक्त कथन की पुष्टि कीजिए।
अथवा
आपके विचार से सार्वजनिक क्षेत्र क्यों आवश्यक है? कोई तीन बिन्दु लिखिए।
अथवा
कोई छः सार्वजनिक सुविधाओं के नाम बताइए।
अथवा
सार्वजनिक क्षेत्रक राष्ट्र के आर्थिक विकास में किस प्रकार योगदान करता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हाँ, सार्वजनिक क्षेत्रक का होना अपरिहार्य है। इसके लिए निम्नलिखित कारण हैं

  1. केवल सरकार ही सड़कों, पुलों, रेलवे, पत्तनों, विद्युत व सिंचाई बाँधों जैसी आवश्यक सार्वजनिक परियोजनाओं पर पर्याप्त निवेश कर सकती है। सभी लोगों को सुविधाएँ प्रदान करने के लिए सरकार यह निवेश करती है।
  2. सरकार निजी क्षेत्रक के लिए सहायक होती है। निजी क्षेत्रक सरकारी सहायता के बिना अपना उत्पादन जारी नहीं रख सकता। सरकार निजी क्षेत्रक एवं लघु उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए वास्तविक लागत से कम कीमत पर बिजली उपलब्ध कराती है।
  3. सरकार किसानों से खाद्यान्न खरीदती है और उन्हें अपने गोदामों में भण्डारण करती है। इसके पश्चात् वह इन्हें राशन की दुकानों के माध्यम से उपभोक्ताओं को कम कीमत पर बेचती है।
  4. कई क्रियाएँ सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी होती हैं; जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य आदि। सरकार को इन क्रियाओं पर व्यय करना पड़ता है।
  5. सरकार मानव विकास के पक्ष, जैसे सुरक्षित पेयजल की उपलब्धता, निर्धनों के लिए आवास सुविधाएँ और भोजन व पोषण पर ध्यान देती है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था के तीनों क्षेत्रकों का संक्षिप्त वर्णन करते हुए सोदाहरण बताइए कि तृतीयक क्षेत्रक अन्य क्षेत्रों से भिन्न कैसे है?
अथवा
आर्थिक गतिविधियों के तीन क्षेत्रक कौन-कौन से हैं? सोदाहरण समझाइए।
अथवा
प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रकों को उदाहरण की सहायता से समझाइए।
अथवा
अर्थव्यवस्था में प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक क्षेत्रों की परस्पर निर्भरता को समझाइए।
अथवा
प्राथमिक क्षेत्रक और द्वितीयक क्षेत्रक में चार बिन्दु देते हुए अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक अर्थव्यवस्था के तीन क्षेत्रक निम्नलिखित हैं
1. प्राथमिक क्षेत्रक:
जब हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं तो इसे प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधियाँ कहा जाता है। प्राथमिक क्षेत्रक को कृषि एवं सहायक क्षेत्रक भी कहा जाता है। भारतीय अर्थव्यवस्था में रोजगार की दृष्टि से प्राथमिक क्षेत्रक की भूमिका अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। उदाहरण-गेहूँ की खेती, मछली पालन, वनोपज इकट्ठा करना, खानों से खनिजों का उत्खनन, लकड़ी काटना, पशुपालन आदि।

2. द्वितीयक क्षेत्रक:
इस क्षेत्रक के अन्तर्गत वे क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं जिनमें प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रक्रिया के माध्यम से अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है। इस क्षेत्रक में वस्तुएँ सीधे प्रकृति से उत्पादित नहीं होती हैं बल्कि निर्मित की जाती हैं इसलिए विनिर्माण की प्रक्रिया अपरिहार्य है। यह प्रक्रिया किसी कारखाने अथवा घर में संचालित की जा सकती है। इस क्षेत्रक को औद्योगिक क्षेत्रक भी कहा जाता है। उदाहरण-फर्नीचर उद्योग, कागज निर्माण उद्योग, सूती वस्त्र उद्योग, लोहा व इस्पात उद्योग, इंजीनियरिंग उद्योग आदि।

3. तृतीयक क्षेत्रक:
प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रक के अतिरिक्त अन्य समस्त गतिविधियों को तृतीयक क्षेत्रक में सम्मिलित किया जाता है। इसके अन्तर्गत वे क्रियाएँ आती हैं जो प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रकों के विकास में मदद करती हैं। ये गतिविधियाँ स्वतः वस्तुओं का उत्पादन नहीं करती हैं बल्कि उत्पादन प्रक्रिया में सहयोग करती हैं। इस क्षेत्रक में विभिन्न गतिविधियाँ वस्तुओं की बजाय सेवाओं का सृजन करती हैं। इसलिए इस क्षेत्रक को सेवा क्षेत्रक भी कहा जाता है।

उदाहरण: अध्यापक, डॉक्टर, वकील, रेलवे, दूरसंचार, दुकानदार, व्यापार, शिक्षा व स्वास्थ्य आदि। ततीयक क्षेत्रक की अन्य क्षेत्रों से भिन्नता तृतीयक क्षेत्रक परिवहन, संचार, बीमा, बैंकिंग, भण्डारण व व्यापार आदि से सम्बन्धित सेवाएँ प्रदान करता है। तृतीयक क्षेत्रक को सेवा क्षेत्रक भी कहते हैं। तृतीयक क्षेत्रक अन्य दो क्षेत्रकों से भिन्न है।

इसका कारण है कि अन्य दो क्षेत्रक (प्राथमिक व द्वितीयक क्षेत्रक) वस्तुएँ उत्पादित करते हैं जबकि यह क्षेत्रक अपने आप कोई वस्तु उत्पादित नहीं करता है बल्कि इस क्षेत्रक में सम्मिलित क्रियाएँ प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रकों के विकास में माध्यम होती हैं अर्थात् ये प्राथमिक क्रियाएँ उत्पादन प्रक्रिया में मदद करती हैं।

उदाहरण के लिए, प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रक द्वारा उत्पादित वस्तुओं को थोक एवं खुदरा विक्रेताओं को बेचने के लिए ट्रैक्टर, ट्रकों एवं रेलगाड़ी द्वारा परिवहन करने की जरूरत पड़ती है। इन वस्तुओं को कभी-कभी गोदाम या शीतगृह में भण्डारण की भी आवश्यकता होती है। हमें उत्पादन एवं व्यापार में सुविधा के लिए कई लोगों से टेलीफोन से भी बातें करनी होती हैं

या पत्राचार करना पड़ता है एवं कभी-कभी बैंक से पैसा भी उधार लेना पड़ता है। इस प्रकार परिवहन, भण्डारण, संचार एवं बैंकिंग प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रकों के विकास में सहायक होते हैं। इस प्रकार कह सकते हैं कि अर्थव्यवस्था में प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक क्षेत्र परस्पर एक-दूसरे पर निर्भर है।

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

प्रश्न 2.
भारत में तृतीयक क्षेत्रक इतना अधिक महत्त्वपूर्ण क्यों हो गया है? कारण दीजिए।
अथवा
गत वर्षों में उत्पादन में तृतीयक क्षेत्रक के बढ़ते महत्त्व के कारणों पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
अथवा
भारत में तृतीयक क्षेत्रक अधिक महत्त्वपूर्ण क्यों हो रहा है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भारत में तृतीयक क्षेत्रक’ महत्त्वपूर्ण क्यों हो रहा है? किन्हीं तीन कारणों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
भारत में तृतीयक क्षेत्र विस्तार और महत्त्व को बढ़ाने वाले कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यद्यपि 1973-74 और 2013-14 के 40 वर्षों में सभी क्षेत्रकों में उत्पादन में वृद्धि हुई है परन्तु सबसे अधिक वृद्धि तृतीयक क्षेत्रक के उत्पादन में हुई है। परिणामस्वरूप, भारत में प्राथमिक क्षेत्रक को प्रतिस्थापित करते हुए तृतीयक क्षेत्रक.सबसे बड़े उत्पादक क्षेत्रक के रूप में उभरा है। भारत में तृतीयक क्षेत्रक के अधिक महत्त्वपूर्ण होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
1. बुनियादी सेवाएँ:
किसी भी देश में आर्थिक विकास को गति प्रदान करने के लिए कुछ आधारभूत सेवाओं की आवश्यकता होती है। इन सेवाओं में अस्पताल, शैक्षिक संस्थाएँ, डाक व तार सेवा, थाना, न्यायालय, ग्रामीण प्रशासनिक कार्यालय, नगर निगम, रक्षा, परिवहन, बैंक, बीमा आदि प्रमुख हैं। किसी विकासशील देश में इन सेवाओं के प्रबंधन की . जिम्मेदारी सरकार की होती है।

2. परिवहन व संचार के साधनों का विकास:
कृषि एवं उद्योगों के विकास के कारण परिवहन, संचार, भण्डारण, व्यापार आदि सेवाओं का विस्तार होता है। प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रक का विकास जितना अधिक होगा, ऐसी सेवाओं की माँग उतनी ही अधिक होगी।

3. नई सेवाएँ:
गत कुछ वर्षों से आधुनिकीकरण एवं वैश्वीकरण के कारण सूचना एवं प्रौद्योगिकी पर आधारित कुछ नवीन सेवाएँ महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक होती जा रही हैं; जैसे-ए., टी. एम. बूथ; काल सेंटर, इंटरनेट कैफे, सॉफ्टवेयर कम्पनी आदि। इन सेवाओं के उत्पादन में तीव्र वृद्धि हो रही है।

4. अधिक आय अधिक सेवाएँ:
हमारे देश में प्रतिव्यक्ति आय बढ़ रही है, जैसे-जैसे आय बढ़ती है तो कुछ लोग अन्य सेवाओं; जैसे-रेस्तरां, शॉपिंग, पर्यटन, निजी अस्पताल, निजी विद्यालय, व्यावसायिक प्रशिक्षण आदि की माँग प्रारम्भ कर देते हैं। शहरों में इन सेवाओं की माँग बहुत तेजी से बढ़ रही है।

प्रश्न 3.
संगठित एवं असंगठित क्षेत्रक क्या हैं? इन क्षेत्रकों की रोजगार परिस्थितियों की तुलना कीजिए।
अथवा
अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्र में प्रचलित रोजगार की दशाओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
संगठित और असंगठित क्षेत्रकों की रोजगार परिस्थितियों की तुलना कीजिए।
अथवा
संगठित क्षेत्र क्या है? इसकी कार्य अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. संगठित क्षेत्रक:
संगठित क्षेत्रक में वे उद्यम अथवा कार्य-स्थान आते हैं, जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है और इसलिए लोगों के पास सुनिश्चित काम होता है। ये क्षेत्रक सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं एवं उन्हें राजकीय नियमों व विनियमों का अनुपालन करना होता है। इन नियमों व विनियमों का अनेक विधियों; जैसे-कारखाना अधिनियम की निश्चित न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, सेवानुदान अधिनियम, दुकान एवं प्रतिष्ठान अधिनियम आदि में उल्लेख किया गया है।

यह क्षेत्रक संगठित क्षेत्रक इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसकी कुछ औपचारिक प्रक्रिया एवं क्रियाविधि होती है। इस क्षेत्रक के अन्तर्गत. रोजगार सुरक्षित, काम के घण्टे निश्चित एवं अतिरिक्त कार्य के लिए अतिरिक्त वेतन मिलता है। कर्मचारियों को कार्य के दौरान एवं सेवानिवृत्ति के पश्चात् भी अनेक सुविधाएँ मिलती हैं।

2. असंगठित क्षेत्रक:
असंगठित क्षेत्रक के अन्तर्गत वे छोटी-छोटी और बिखरी इकाइयाँ सम्मिलित होती हैं जो अधिकांशतः सरकारी नियन्त्रण से बाहर होती हैं। यद्यपि इस क्षेत्रक के नियम और विनियम तो होते हैं परन्तु उनका पालन नहीं होता है। ये अनियमित एवं कम वेतन वाले रोजगार होते हैं। इनमें सवेतन छुट्टी, अवकाश, बीमारी के कारण छुट्टी आदि का कोई प्रावधान नहीं होता है और न ही रोजगार की सुरक्षा। श्रमिकों को बिना किसी कारण काम से हटाया जा सकता है। संगठित एवं असंगठित क्षेत्रकों की रोजगार परिस्थितियों की तुलना.निम्नलिखित प्रकार से है

संगठित क्षेत्रक की रोजगार परिस्थितियाँ असंगठित क्षेत्रक की रोजगार परिस्थितियाँ
(i) इस क्षेत्रक के उद्योगों एवं प्रतिष्ठानों को सरकार द्वारा पंजीकृत कराना अवश्यक होता है। (i) इस क्षेत्रक के अन्तर्गत दुकानों व प्रतिष्ठानों को सरकार से पंजीकृत कराना अनिवार्य नहीं है।
(ii) यह क्षेत्रक सरकारी नियमों व उपनियमों के अधीन कार्य करता है। ये नियम व विनियम सभी नियोक्ताओं, कर्मचारियों व श्रमिकों पर समान रूप से लागू होते हैं। (ii) इस क्षेत्रक के नियम व विनियम तो होते हैं परन्तु उनका अनुपालन नहीं किया जाता है।
(iii) इस क्षेत्रकं में काम करने की अवधि व काम के घण्टे निशिचत होते हैं। (iii) इस क्षेत्रक में काम करने के घण्टे निश्चित नहीं होते हैं।
(iv) इस क्षेत्रक में कार्य करने वाले कर्मचारियों, श्रमिकों को मासिक वेतन प्राप्त होता है। (iv) इस क्षेत्रक में काम करने वाले कर्मचारी/श्रमिक दैनिक मजदूरी प्राप्त करते हैं।
(v) इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कर्मचारी मासिक वेतन के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के भत्ते, सवेतन अवकाश का भुगतान, प्रोविडेंट फंड, वार्षिक वेतन वृद्धि आदि सुविधाएँ प्राप्त करते हैं। (v) इस क्षेत्रक के अन्तर्गत श्रमिकों को दैनिक मजदूरी के अतिरिक्त कोई अन्य भत्ता नहीं मिलता है।
(vi) इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कर्मचारियों/ श्रमिकों को रोजगार सुरक्षा प्राप्त होती है। (vi) इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कार्यरत कर्मचारियों/श्रमिकों को रोजगार सुरक्षा प्राप्त नहीं होती है।
(vii) इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कर्मचारियों / श्रमिकों को नियोक्ता द्वारा एक नियुक्ति पत्र दिया जाता है जिसमें काम की सभी शर्ते एवं दशाएँ वर्णित होती हैं। (vii) इस क्षेत्रक. के अन्तर्गत कर्मचारियों/श्रमिकों को कोई औपचारिक नियुक्ति पत्र नहीं दिया जाता है।
(viii) इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कर्मचारियों को कार्यस्थल पर स्वच्छ पानी, स्वास्थ्य एवं कार्य का सुरक्षित वातावरण आदि सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं। (viii) इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कर्मचारियों को इस प्रकार की सुविधाओं का लगभग अभाव देखने को मिलता है।
(ix) इस क्षेत्रक में श्रम संघ महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अतः श्रमिकों का शोषण नहीं होता है। (ix) इस क्षेत्रक में श्रम संधों के अभाव के कारण श्रमिकों का अत्यधिक शोषण होता है।

प्रश्न 4.
असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों का किस प्रकार से शोषण किया जाता है? इस क्षेत्रक में श्रमिकों के संरक्षण हेतु कौन-कौन से उपाय किए जा सकते हैं?
उत्तर:
असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों का शोषण-असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों का निम्न प्रकार से शोषण किया जाता है

  1. इस क्षेत्रक में श्रमिकों के संरक्षण के लिए बनाये गये सरकारी नियमों एवं विनियमों का पालन नहीं होता है।
  2. असंगठित क्षेत्रक में बहुत कम वेतन/मजदूरी दी जाती है और वह भी नियमित रूप से नहीं दी जाती है।
  3. इस क्षेत्रक में मजदूर सामान्यतः अशिक्षित, अनभिज्ञ व असंगठित होते हैं, इसलिए वे नियोक्ता से मोल-भाव कर अच्छी मजदूरी सुनिश्चित करने की स्थिति में नहीं होते हैं।
  4. इस क्षेत्रक में अतिरिक्त समय में काम तो लिया जाता है परन्तु अतिरिक्त वेतन नहीं दिया जाता है।
  5. इस क्षेत्रक में सवेतन छुट्टी, अवकाश, बीमारी के कारण छुट्टी का कोई प्रावधान नहीं है।
  6. इस क्षेत्रक में रोजगार सुरक्षा भी नहीं होती है। नियोक्ता द्वारा कर्मचारियों को बिना किसी कारण काम से हटाया। जा सकता है।
  7. इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कुछ मौसमों में जब काम नहीं होता है, तो कुछ लोगों को काम से छुट्टी दे दी जाती है। बहुत से लोग नियोक्ता की पसन्द पर निर्भर होते हैं।

असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों के संरक्षण हेतु किये जा सकने वाले उपाय: असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों के संरक्षण हेतु अग्रलिखित उपाय किये जा सकते हैं
1. ग्रामीण क्षेत्रों में सुविधाओं का विस्तार:
भारत में लगभग 80 प्रतिशत ग्रामीण परिवार छोटे व सीमांत किसानों की श्रेणी में हैं जो असंगठित क्षेत्रक के अन्तर्गत आता है। इन किसानों को उन्नत बीजों की समय पर आपूर्ति, कृषि उपकरणों, साख, भण्डारण सुविधा और विपणन की सुविधाओं के माध्यम से सहायता पहुँचाने की आवश्यकता है।

2. लघु एवं कुटीर उद्योगों का संरक्षण:
सरकार को चाहिए कि वह लघु व कुटीर उद्योगों को कच्चा माल प्राप्त करने एवं उत्पादों के विपणन में सहायता प्रदान करे ताकि वे अधिक आय अर्जित कर अपने श्रमिकों को भी अधिक वेतन एवं सुविधाएँ प्रदान कर सकें।

3. न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण सरकार असंगठित क्षेत्रक के लिए न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण कर उसे कड़ाई से लागू करे तथा वर्तमान नियमों व कानूनों को कड़ाई से लागू करे।

4. सामाजिक सुविधाओं का विस्तार:
असंगठित क्षेत्रक में कार्यरत श्रमिकों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के लिए सरकार को सार्वजनिक सुविधाओं का तीव्र गति से विस्तार करना चाहिए।

JAC Class 10 Social Science Important Questions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

प्रश्न 5.
सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रक क्या हैं? इसकी गतिविधियों एवं कार्यों का तुलनात्मक अध्ययन कीजिए।
अथवा
सार्वजनिक क्षेत्रक एवं निजी क्षेत्रक में कोई तीन अंतर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
सार्वजनिक क्षेत्रक, निजी क्षेत्रक से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्रक:
सार्वजनिक क्षेत्रक के अन्तर्गत उत्पादन के साधनों पर सरकार का स्वामित्व, प्रबंधन व नियंत्रण होता है। सरकार ही समस्त सेवाएँ उपलब्ध कराती है। इस क्षेत्रक का मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक कल्याण में वृद्धि करना होता है। निजी क्षेत्रक-निजी क्षेत्र के अन्तर्गत उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व होता है। इस क्षेत्रक की गतिविधि का उद्देश्य लाभ अर्जित करना होता है। सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रक की गतिविधियों एवं कार्यों का तुलनात्मक अध्ययन सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रक की गतिविधियों एवं कार्यों का तुलनात्मक अध्ययन निम्न प्रकार से है

सार्वजनिक क्षेत्रक निजी क्षेत्रक
1. इस क्षेत्रक के अन्तर्गत अधिकांश परिसम्पत्तियों पर सरकार का स्वामित्व होता है और सरकार ही सभी आवश्यक सेवाएँ उपलब्ध करती है, जैसे—डाकघर, भारतीय रेलवे, आकाशवाणी, इण्डियन एयरलाइन्स आदि। 1. इस क्षेत्रक में परिसम्पत्तियों पर स्वामित्व एवं सेवाओं के वितरण की जिम्मेदारी एकल व्यक्ति या कम्पनी के हाथों में होती है, जैसे मित्तल पब्लिकेशन्स, टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी, रिलायंस इण्डस्ट्रीज लिमिटेड आदि।
2. सार्वजनिक क्षेत्रक का उद्देश्य सार्वजनिक कल्याण में वृद्धि करना होता है। 2. निजी क्षेत्रक की गतिविधियों का उद्देश्य लाभ अर्जित करना होता है।
3. इस क्षेत्रक में उत्पादन एवं वितरण सम्बन्धी समस्त निर्णय सरकार द्वारा निर्धारित नीति द्वारा लिये जाते हैं। 3. इस क्षेत्रक में उत्पादन एवं वितरण सम्बन्धी निर्णय निजी स्वामियों अथवा प्रबन्धकों द्वारा लिए जाते हैं।
4. सरकार समाज के लिए आवश्यक सार्वजनिक परियोजनाओं में बहुत अधिक राशि का व्यय करती है, जैसे-सड़क, पुल, नहर, बन्दरगाह आदि का निर्माण करना। 4. निजी क्षेत्रक अपने लाभ के उद्देश्य के कारण बहुत अधिक राशि व्यय करने वाली परियोजनाओं में निवेश नहीं करता है।
5. कई प्रकार की गतिवधियों को पूरा करना सरकार का प्राथमिक दायित्व होता है; जैसे-शिक्षा, स्वास्थ्य, विद्युत आदि। इसलिए सरकार बड़ी संख्या में विद्यालय, महाविद्यालय, अस्पताल, विद्युत परियोजनाएँ आदि चलाती है। 5. निजी क्षेत्रक का ऐसा किसी प्रकार का कोई दायित्व नहीं होता है यदि वह ऐसी सेवाएँ प्रदान करता है तो इसके लिए वह राशि वसूलता है। उदाहरण के लिए, हमारे क्षेत्र में निजी पब्लिक स्कूल, सरकारी स्कूल की तुलना में बहुत अधिक फीस लेते हैं।

JAC Class 10 Social Science Important Questions

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

JAC Class 10 Hindi बालगोबिन भगत Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे?
उत्तर :
खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत वेशभूषा से साधु नहीं लगते थे, परंतु उनका व्यवहार साधु जैसा था। वे कबीर के भक्त थे और उनके भजन ही गाते थे। उनके बताए मार्ग पर चलते थे। वे कभी झूठ नहीं बोलते थे। वे कभी किसी से निरर्थक बातों के लिए नहीं लड़ते थे, परंतु गलत बातों का विरोध करने में संकोच भी नहीं करते थे। वे कभी किसी की चीज़ को नहीं छूते थे और न ही व्यवहार में लाते थे। उनकी सब चीजें साहब (कबीर) की थी। उनके खेत में जो पैदावार होती थी, उसे लेकर वे कबीर के मठ पर जाते थे। वहाँ से उन्हें जो प्रसाद के रूप में मिलता था, उसी में अपने परिवार का निर्वाह करते थे। बालगोबिन भगत की : इन्हीं चारित्रिक विशेषताओं के कारण लेखक उन्हें साधु मानता था।

प्रश्न 2.
भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी?
उत्तर :
भगत के परिवार में पुत्र और पुत्रवधू के अतिरिक्त कोई नहीं था। पुत्र की मृत्यु के बाद उन्होंने पुत्रवधू को उसके घर भेजने का निर्णय लिया, परंतु पुत्रवधू उन्हें बढ़ती उम्र में अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी। वह उनकी सेवा करना अपना फर्ज़ समझती थी। उसके अनुसार बीमार पड़ने पर उन्हें पानी देने वाला और उनके लिए भोजन बनाने वाला कोई नहीं था। इसलिए भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेला छोड़ना नहीं चाहती थी।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

प्रश्न 3.
भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त की?
उत्तर :
भगत का एक बेटा था, जो हमेशा बीमार रहता था। एक दिन वह मर गया। भगत ने अपने बेटे के मरने पर शोक नहीं मनाया, क्योंकि उनके अनुसार बेटे की आत्मा परमात्मा के पास चली गई है। उनका कहना था कि आज एक विरहिनी अपने प्रेमी से मिलने गई है और उसके मिलन की खुशी में आनंद मनाना चाहिए, न कि अफ़सोस। उन्होंने अपने बेटे के मृत शरीर को फलों से सजाया और उसके पास एक दीपक जला दिया। फिर अपने बेटे के मृत शरीर के पास आसन पर बैठकर मिलन के गीत गाने लगे। उन्होंने अपनी बहू को भी रोने के लिए मनाकर दिया और उसे आत्मा के परमात्मा में मिलने की खुशी में आनंद मनाने को कहा।

प्रश्न 4.
भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
बालगोबिन भगत मँझोले कद के गोरे-चिट्टे व्यक्ति थे, जिनकी आयु साठ वर्ष से अधिक थी। उनके बाल सफ़ेद थे। वे दाढ़ी तो नहीं रखते थे, पर उनके चेहरे पर सफ़ेद बाल जगमगाते रहते थे। वे कमर में एक लँगोटी और सिर पर कबीरपंथियों जैसी कनफटी टोपी पहनते थे। जब सरदियाँ आती, तो ऊपर से एक काली कमली ओढ़ लेते थे। उनके माथे पर सदा रामानंदी चंदन चमकता था, जो नाक के एक छोर से ही औरतों के टीके की तरह शुरू होता था। वे अपने गले में तुलसी की जड़ों की एक बेडौल माला बाँधे रहते थे।

उनमें साधुओं वाली सारी बातें थीं। वे कबीर को ‘साहब’ मानते थे; उन्हीं के गीत गाते रहते थे और उन्हीं के आदेशों पर चलते थे। वे कभी झठ नहीं बोलते थे और सदा खरा व्यवहार करते थे। हर बात साफ़-साफ़ करते थे; किसी से व्यर्थ झगड़ा नहीं करते थे। किसी की चीज़ को कभी छूते तक नहीं थे। वे दूसरों के खेत में शौच तक के लिए नहीं बैठते थे। उनके खेत में जो कुछ पैदा होता, उसे सिर पर रखकर चार कोस दूर कबीरपंथी मठ में ले जाते थे और प्रसाद रूप में जो कुछ मिलता, वहीं वापस ले आते थे।

प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी?
उत्तर :
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के आश्चर्य का कारण थी क्योंकि वे अपने नियमों का दृढ़ता से पालन करते थे। वे सुबह मुँह अँधेरे उठते और गाँव से दो मील दूर नदी पर स्नान के लिए जाते। वापसी में पोखर के ऊँचे स्थान पर बैठकर खजड़ी बजाते हुए गीत गाते। यह नियम न सरदी देखता और न ही गरमी। वे बिना पूछे न ही किसी की वस्तु छूते और न ही व्यवहार में लाते थे। कई बार तो वे अपने नियमों पर इतने दृढ़ हो जाते कि शौच के लिए भी दूसरों के खेतों का प्रयोग नहीं करते थे। नियमों पर उनकी दृढ़ता ही लोगों के आश्चर्य का कारण बनती थी।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

प्रश्न 6.
पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
बालगोबिन भगत के गायन को न तो माघ की सरदी और न ही जेठ की गरमी प्रभावित करती थी। गरमी में उमस से भरी शामें भी उनके गायन से शीतल प्रतीत होती थीं। गरमियों में शाम के समय वे अपने घर के आँगन में कुछ संगीत प्रेमियों के साथ आसन लगाकर बैठ जाते थे। सबके पास खजड़ियाँ और करताल होते थे। बालगोबिन भगत एक पद गाते और उनके पीछे सभी लोग उसी पद को दोहराते हुए बारबार गाते। धीरे-धीरे गीत का स्वर से ऊँचा होने लगता था। स्वर की लय में एक निश्चित ताल और गति होती थी। उनके गीत मन से होते हुए तन पर हावी हो जाते थे। सुनने वाले और साथ गाने वाले अपनी सुध-बुध खो बैठते थे। बालगोबिन भगत उठकर नाचने लगते और सभी लोग उनका साथ देते थे।

प्रश्न 7.
कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
बालगोबिन भगत समाज में प्रचलित मान्यताओं को नहीं मानते थे। वे जाति-पाति में विश्वास नहीं रखते थे। सब लोगों को एक समझते थे। वे भगवान के निराकार रूप को मानते थे। उनके विचार में मृत्यु आनंद मनाने का अवसर था। जब उनके इकलौते बेटे की मृत्यु होती है, तो वे अपने बेटे के मृत शरीर को फूलों से सजाते हैं और गीत गाते हैं। उनके अनुसार आत्मा-रूपी प्रेमिका परमात्मा-रूपी प्रेमी से मिल गई है और उसके मिलन पर आनंद मनाना चाहिए अफ़सोस नहीं। भगत ने अपने बेटे का क्रिया-कर्म अपनी पुत्रवधू से करवाया।

उनकी पुत्रवधू ने ही अपने पति की चिता को अग्नि दी थी। उनकी जाति में विधवा के पुनर्विवाह को अनुचित नहीं मानते थे, परंतु उनकी पुत्रवधू इसके लिए तैयार नहीं थी। वह उन्हीं के पास रहकर उनकी सेवा करना चाहती थी। लेकिन उन्होंने उसे यौवन की ऊँच-नीच का ज्ञान करवाया और पुनर्विवाह के लिए तैयार किया। इससे हम कह सकते हैं कि बालगोबिन पुरानी सामाजिक मान्यताओं के समर्थक नहीं थे। वे अपने स्वार्थ की अपेक्षा दूसरों के हित का ध्यान रखते थे।

प्रश्न 8.
धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं? उस माहौल का शब्द-चित्र प्रस्तुत करें।
अथवा
बालगोबिन भगत के गीतों को खेतों में काम करते हुए और आते-जाते नर-नारियों पर क्या प्रभाव पड़ता था?
उत्तर :
आषाढ़ की फुहार पड़ते ही सारा गाँव खेतों में दिखाई देने लगता। वह मौसम धान की रोपाई का होता है। खेतों में कहीं हल चल रहे हैं और कहीं धान के पौधों की रोपाई हो रही है। घर की औरतें आदमियों के लिए भोजन लेकर खेतों की मुँडेर पर बैठी हैं। बच्चे पास में खेल रहे हैं। खेतों में ठंडी-ठंडी हवा चलती है। उसी समय सबके कानों में मधुर स्वर लहरियाँ पड़ने लगती हैं। यह स्वर बालगोबिन भगत का है। वे भी अपने खेत में धान की रोपाई कर रहे हैं।

उनका सारा शरीर खेत की गीली मिट्टी से लथ-पथ है। जिस प्रकार उनकी उँगलियाँ धान के पौधों को एक-एक करके पंक्तिबद्ध रूप दे रही थीं, उसी प्रकार उनका कंठ उनकी संगीत शब्दावली को स्वरों के ताल से ऊपरनीचे कर रहा था। ऐसे लग रहा था, जैसे कि संगीत के कुछ स्वर ऊपर स्वर्ग की ओर जा रहे हैं और कुछ स्वर धरती पर खेतों में काम करने वाले लोगों के कानों में जा रहे हैं। उनका संगीत खेतों में काम करने वाले लोगों के तन में लय पैदा कर देता है, जिससे वहाँ का सारा वातावरण संगीतमय हो जाता है।

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रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 9.
पाठ के आधार पर बताएं कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई है?
उत्तर :
लेखक के अनुसार बालगोबिन भगत कबीर के भगत थे। वे कबीर को ‘साहब’ कहते थे। वे कबीर के बताए नियमों का दृढ़ता से पालन करते थे। उनके अनुसार उनकी सब चीजें ‘साहब’ की देन हैं। उनके खेत में जो भी पैदावार होती थी, उसे सिर पर लादकर ‘साहब’ के दरबार में पहुँचा देते थे। वे सबकुछ भेंट स्वरूप दरबार में रख देते थे। वापसी में जो कुछ भी ‘प्रसाद’ के रूप में मिलता, उससे अपना निर्वाह करते थे। बालगोबिन भगत कबीर की तरह ही भगवान के निराकार रूप को मानते थे।

वे मृत्यु को दुख का नहीं बल्कि आनंद मनाने का अवसर मानते थे। कबीर ने आत्मा को परमात्मा की प्रेमिका बताया है, जो मृत्यु उपरांत अपने प्रियतम से जा मिलती है। बालगोबिन भगत ने कबीर की वाणी का पालन करते हुए अपने पुत्र के मृत शरीर को फूलों से सजाया और पास में दीपक जलाया। वे स्वयं भी पुत्र के मृत शरीर के पास बैठकर पिया मिलन के गीत गाने लगे। उन्होंने अपनी पुत्रवधू को भी रोने के लिए मना कर दिया था। इससे पता चलता है कि बालगोबिन भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा थी।

प्रश्न 10.
आपकी दृष्टि में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के क्या कारण रहे होंगे?
उत्तर
मेरे विचार में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के कई कारण रहे होंगे, जैसे कि भगत समाज में प्रचलित रूढ़िवादी सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। वे भगवान के निराकार रूप को मानते थे, जिसमें मनुष्य के अंत समय में आत्मा से परमात्मा का मिलन होता है। वे गृहस्थ होते हुए भी व्यवहार से साधु थे। वे सब चीज़ों की प्राप्ति में भगवान को सहायक मानते थे। जिन बातों को भगत मानते थे, वही बातें कबीर ने अपनी वाणी में कही थीं। इसलिए बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा थी।

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प्रश्न 11.
गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों भर जाता है?
उत्तर :
गाँव के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश में आषाढ़ चढ़ते ही विशेष उल्लास दिखाई देता है। आषाढ़ की ठंडी पुरवाई जेठ की तपती गरमी से छुटकारा दिलाती है। आषाढ़ में बारिश की रिमझिम शुरू हो जाती है। उस समय खेतों में धान की फसल की रोपाई आरंभ हो जाती है। धान की रोपाई करते समय किसान और उसका परिवार बहुत प्रसन्न दिखाई देते हैं क्योंकि यह फसल उनके सपनों को पूरा करती है। गाँव के सभी लोग खेतों में दिखाई देते हैं। चारों तरफ़ बैलों के गले की घंटियों की आवाजें, मिट्टी और पानी में छप-छप करते बच्चे तथा खेतों की मुँडेर पर आदमियों के लिए खाना लिए बैठी औरतें-यह दृश्य मन में उल्लास भर देता है। आषाढ़ में चारों ओर मेले जैसा वातावरण होता है।

प्रश्न 12.
“ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे।” क्या ‘साधु’ की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए? आप किन आधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति ‘साधु’ है?
उत्तर :
‘साधु’ की पहचान उसके पहनावे से नहीं बल्कि उसके व्यवहार से करनी चाहिए। भगवे कपड़े पहनने वाला हर व्यक्ति साधु नहीं होता अपितु परिवार में रहने वाला व्यक्ति भी साधु हो सकता है। साधु की पहचान निम्न आधारों पर की जा सकती है –
1. दृढ़-निश्चयी-साधु का स्वभाव दृढ़-निश्चयी होना चाहिए। उसे अपनी कथनी और करनी में अंतर नहीं करना चाहिए। अपने लिए व उसने जो नियम बनाए उसका दृढ़ता से पालन करना चाहिए; तभी दूसरे व्यक्ति भी उन नियमों का पालन करेंगे।
2. सीमित आवश्यकताएँ-साधु व्यक्ति की आवश्यकताएँ सीमित होनी चाहिए। उसे मायाजाल में नहीं फंसना चाहिए।
3. सरल स्वभाव-साधु व्यक्ति का स्वभाव सरल होना चाहिए। उसके मन में किसी के प्रति भेदभाव नहीं होना चाहिए।
4. मधुर वाणी-साधु व्यक्ति की वाणी मधुर होनी चाहिए, ताकि व्यक्ति उसकी वाणी सुनकर प्रभावित हुए बिना न रह सकें।
5. सामाजिक कुरीतियों से दूर-साधु व्यक्ति को समाज में फैली कुरीतियों से दूर रहना चाहिए। उसे संपर्क में आने वाले लोगों को भी उन कुरीतियों के अवगुणों से अवगत करवाना चाहिए। जिस व्यक्ति में उपरोक्त विशेषताएँ हों, वह गृहस्थ होते हुए भी साधु है। लेकिन भगवे कपड़े पहनकर पूजा-पाठ का दिखावा करने वाला व्यक्ति इन गुणों के अभाव में साधु होते हुए भी साधु नहीं है।

प्रश्न 13.
मोह और प्रेम में अंतर होता है। भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर आप इस कथन को सच सिद्ध करेंगे?
उत्तर :
मोह और प्रेम में अंतर होता है। भगत का एक ही बेटा था और वह भी दिमाग से सुस्त था अर्थात उसका दिमाग कमजोर था। भगत ने उसकी परवरिश बहुत प्यार से की थी। भगत के अनुसार कम दिमाग वालों को अधिक प्यार और देखभाल की आवश्यकता होती है। उन्होंने उसकी शादी की। बेटे की बहू भी सुशील और सुघड़ थी। एक दिन बेटा मर गया।

भगत ने बेटे के मोह में पड़कर शोक नहीं मनाया बल्कि उन्होंने उसकी मृत्यु को आनंद मनाने का अवसर बताया। वे शरीर के मोह में नहीं थे। वे मनुष्य की आत्मा से प्रेम करते थे। उनके अनुसार मृत्यु के बाद प्रेमिका रूपी आत्मा शरीर से निकलकर अपने प्रेमी रूपी परमात्मा से मिल जाती है। इसलिए उन्होंने बेटे मृत शरीर का श्रृंगार किया और मिलन के गीत गाए। भगत ने मृत्यु के सच को जान लिया था, इसलिए वे अपने बेटे के मोह में नहीं पड़े। उन्होंने अपनी पुत्रवधू को भी शोक मनाने से मना कर दिया था।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 14.
इस पाठ में आए कोई दस क्रियाविशेषण छाँटकर लिखिए और उनके भेद भी बताइए।
उत्तर :
1. हमारे समाज के सबसे नीचे स्तर का यह तेली। – स्थानवाचक क्रिया-विशेषण।
2. कपड़े बिलकुल कम पहनते थे। – परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण।
3. थोड़ी ही देर पहले मूसलाधार वर्षा खत्म हुई है। – परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण।
4. उनका यह गाना अँधेरे में अकस्मात कौंध उठने वाली बिजली की तरह किसे न चौंका देता? – रीतिवाचक क्रिया-विशेषण।
5. इन दिनों वह सवेरे ही उठते। – कालवाचक क्रिया-विशेषण।
6. धीरे-धीरे स्वर ऊँचा होने लगा। – रीतिवाचक क्रिया-विशेषण।
7. उसके सामने ज़मीन पर ही आसन जमाए गीत गाए चले जा रहे हैं। – स्थानवाचक क्रिया-विशेषण।
8. वह हर वर्ष गंगा-स्नान करने जाते। – कालवाचक क्रिया-विशेषण।
9. थोड़ा बुखार आने लगा। – परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण।
10. उस दिन भी संध्या में गीत गाए। – कालवाचक क्रिया-विशेषण।

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पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
पाठ में ऋतुओं के बहुत ही सुंदर शब्द-चित्र उकेरे गए हैं। बदलते हुए मौसम को दर्शाते हुए चित्र/फोटो का संग्रह कर एक अलबम
तैयार करें।
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
पाठ में आषाढ़, भादों, माघ आदि में विक्रम संवत कैलेंडर के मासों के नाम आए हैं। यह कैलेंडर किस माह से आरंभ होता है? महीनों की सूची तैयार कीजिए।
उत्तर :
विक्रम संवत कैलेंडर के महीने इस क्रम से होते हैं –
चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रवण, भादों, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन।

प्रश्न 3.
कार्तिक के आते ही भगत ‘प्रभाती’ गाया करते थे। प्रभाती प्रातःकाल गाए जाने वाले गीतों को कहते हैं। प्रभाती गायन का संकलन कीजिए और उसकी संगीतमय प्रस्तुति कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

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प्रश्न 4.
इस पाठ में जो ग्राम्य संस्कृति की झलक मिलती है वह आपके आसपास के वातावरण से कैसे भिन्न है?
उत्तर :
मैं देश के एक महानगर के अति व्यस्त और आधुनिक क्षेत्र में रहता/रहती हूँ। यहाँ का वातावरण किसी भी ग्राम्य क्षेत्र से बिलकुल भिन्न है। यहाँ चौड़ी-पक्की सड़कें हैं, जो चौबीस घंटे वाहनों से भरी रहती हैं। यहाँ आधी रात को भी सड़कों से शोर दूर नहीं होता। दिन के समय यहाँ बहुत भीड़ होती है। यहाँ सजे-सँवरे लोग दिखावे से भरा जीवन जीने की कोशिश में लगे रहते हैं।

सब तरफ़ बड़ीबड़ी दुकानें हैं; शोरूम हैं; गगनचुंबी इमारते हैं; बड़े-बड़े मल्टीप्लैक्स हैं; लंबी-लंबी गाड़ियों की भरमार है। यहाँ प्रकृति की सुंदरता नहीं है। कहीं-कहीं गमलों में कुछ पौधे अवश्य दिखाई दे जाते हैं, लेकिन पेड़ों का अभाव है। मेरे नगर से कुछ दूरी पर एक नदी है, पर वह बुरी तरह से प्रदूषित है। नगर के कारखानों का कचरा उसी में गिरता है। वास्तव में गाँव के साफ़-सुथरे वातावरण से मेरे नगर की कोई तुलना नहीं है।

यह भी जानें प्रभातियाँ मुख्य रूप से बच्चों को जगाने के लिए गाई जाती हैं। प्रभाती में सूर्योदय से कुछ समय पूर्व से लेकर कुछ समय बाद तक का वर्णन होता है। प्रभातियों का भावक्षेत्र व्यापक और यथार्थ के अधिक निकट होता है। प्रभातियों या जागरण गीतों में केवल सुकोमल भावनाएँ ही नहीं वरन् वीरता, साहस और उत्साह की बातें भी कही जाती हैं। कुछ कवियों ने प्रभातियों में राष्ट्रीय चेतना और विकास की भावना पिरोने का प्रयास किया है।

श्री शंभूदयाल सक्सेना द्वारा रचित एक प्रभाती –

पलकें, खोलो, रैन सिरानी।
बाबा चले खेत को हल ले सखियाँ भरती पानी॥
बहुएँ घर-घर छाछ बिलोती गातीं गीत मथानी।
चरखे के संग गुन-गुन करती सूत कातती नानी॥
मंगल गाती चील चिरैया आस्मान फहरानी।
रोम-रोम में रमी लाडली जीवन ज्योत सुहानी।
आलस छोड़ो उठो न सुखदे! मैं तब मोल बिकानी॥
पलकें खोलो हे कल्याणी॥

JAC Class 10 Hindi बालगोबिन भगत Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘बालगोबिन भगत’ पाठ के माध्यम से लेखक क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर :
‘बालगोबिन भगत’ पाठ के लेखक ‘रामवृक्ष बेनीपुरी’ हैं। लेखक बचपन से ही बालगोबिन भगत को आदरणीय व्यक्ति मानता था। लेखक ब्राह्मण था और बालगोबिन भगत एक तेली थे। उस समय के समाज में तेली को उचित सम्मान प्राप्त नहीं था। फिर भी ‘बालगोबिन भगत’ सबकी आस्था के केंद्र थे। लेखक ने इस पाठ के माध्यम से वास्तविक साधुत्व का परिचय दिया है। उसके अनुसार गृहस्थी में रहते हुए भी व्यक्ति साधु हो सकता है। साधु की पहचान उसका पहनावा नहीं अपितु उसका व्यवहार है।

अपने नियमों पर दृढ़ रहना, निजी आवश्यकताओं को सीमित करना, सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए प्रयत्नशील होना तथा मोह-माया के जाल से दूर रहने वाला व्यक्ति ही साधु हो सकता है। बालगोबिन भगत भगवान के निराकार रूप को मानते थे। उनके अनुसार उनका जो कुछ भी है, वह मालिक की देन है; उस पर उसी का अधिकार है। इसलिए वे अपने खेतों की पैदावार कबीर मठ में पहुँचा देते थे।

बाद में प्रसाद के रूप में जो मिलता, उसी से अपना निर्वाह करते थे। उन्होंने अपने पुत्र की मृत्यु पर अपनी पुत्रवधू से सभी क्रिया-कर्म करवाए। वे समाज में प्रचलित मान्यताओं को नहीं मानते थे। उन्होंने पुत्रवधू को पुनर्विवाह के लिए उसके घर भेज दिया था। वे अपने निजी स्वार्थ के लिए कुछ नहीं करते थे। उनके सभी कार्य परहित में होते थे। वे अंत तक अपने बनाए नियमों में विश्वास करते हुए जीते रहे।

उन्होंने आत्मा के वास्तविक रूप को पहचान लिया था। वे कहते थे कि अंत में आत्मा का परमात्मा से मिलन हो जाता है, इसलिए उसका मोह व्यर्थ है। व्यक्ति को अपनी मुक्ति के लिए परमात्मा से प्रेम करना चाहिए। इस पाठ के माध्यम से लेखक लोगों को पाखंडी साधुओं से सचेत करना चाहता है। पाठ हमें बताता है कि वास्तविक साधु वही होते हैं, जो समाज के सामने उदाहरण प्रस्तुत करें और समाज को पुरानी सड़ी-गली परंपराओं से मुक्त करवाएँ।

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प्रश्न 2.
‘बालगोबिन भगत’ पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत का चरित्र चित्रण कीजिए।
उत्तर :
बालगोबिन भगत लेखक ‘रामवृक्ष बेनीपुरी’ की इस कहानी का मुख्य पात्र है। बालगोबिन भगत का चरित्र-चित्रण कुछ प्रमुख बिंदुओं के आधार पर किया गया है –
परिचय – बालगोबिन भगत गृहस्थ होते हुए भी स्वभाव से साधु थे। उनकी आयु साठ वर्ष से ऊपर थी। उनकी पत्नी नहीं थी। परिवार में एक बीमार बेटा तथा उसकी पत्नी थी।

व्यक्तित्व – बालगोबिन भगत मँझोले कद के व्यक्ति थे। उनका रंग गोरा था। बाल सफ़ेद थे। वे लंबी दाढ़ी नहीं रखते थे। सफ़ेद बालों के कारण उनके चेहरे पर बहुत तेज़ था।

वेशभूषा – बालगोबिन भगत बहुत कम कपड़े पहनते थे। उनके अनुसार शरीर पर उतने ही कपड़े पहनने चाहिए, जितने शरीर पर आवश्यक हों। वे कमर पर एक लँगोटी पहनते थे और सिर पर कनफटी टोपी पहनते थे। सरदियों में वे काली कमली ओढ़ते थे। मस्तक पर रामानंदी चंदन का टीका होता था। वह टीका नाक से शुरू होकर ऊपर तक जाता था। गले में तुलसी की जड़ों की एक बेडौल माला होती थी।

व्यवसाय – बालगोबिन भगत का काम खेतीबाड़ी था। वे एक किसान थे। वे अपने खेत में धान की फसल उगाते थे।

कबीर के भक्त – बालगोबिन भगत गृहस्थ होते हुए भी साधु थे। उन्होंने अपने जीवन में कबीर का जीवन-वृत्त उतार रखा था। वे कबीर को अपना साहब मानते थे और उनकी शिक्षाओं पर अमल करते थे। उनके अनुसार उनका जो कुछ था, वह सब साहब (कबीर) की देन था।

मधुर गायक – बालगोबिन भगत एक मधुर गायक थे। उनका गीत सुनने वाला व्यक्ति अपनी सुध-बुध खोकर उसी में खो जाता था। वे कबीर के पद इस ढंग से गाते थे कि ऐसे लगता था, मानो सभी पद जीवित हो उठे हों। बालगोबिन भगत के संगीत का जादू सबको झूमने के लिए मजबूर कर देता था।

संतोषी वृत्ति के व्यक्ति – बालगोबिन भगत संतोषी वृत्ति के व्यक्ति थे। उनकी निजी आवश्यकताएँ सीमित थीं। उनके खेत में जो पैदावार होती थी, वे उसे कबीर के मठ में पहुँचा देते थे। वहाँ से जो प्रसाद के रूप में मिलता था, उसी में अपनी गहस्थी का निर्वाह करते थे।

परमात्मा से प्रेम – बालगोबिन भगत भगवान के निराकार रूप को मानते थे। उनके अनुसार आत्मा की मुक्ति के लिए परमात्मा से प्रेम करना चाहिए। उन्होंने मृत्यु की यह सच्चाई जान ली थी कि अंत में शरीर में से आत्मा निकलकर परमात्मा में मिल जाती है। इसलिए परमात्मा से प्रेम करना चाहिए।

मोहमाया से दूर – बालगोबिन भगत मोहमाया से दूर थे। उन्हें केवल परमात्मा से प्रेम था। वे मोहमाया के किसी भी बंधन में नहीं बँधते थे। जब उनके इकलौते बेटे की मृत्यु हुई, तो उन्होंने शोक मनाने की अपेक्षा उसे आनंद मनाने का अवसर माना। इस दिन उनके बेटे की आत्मा शरीर से मुक्त होकर परमात्मा से मिल गई थी। उन्होंने बेटे की मृत्यु के पश्चात उसकी पत्नी को भी उसके घर भेज दिया था, ताकि वह पुनर्विवाह कर सके। वे किसी प्रकार के मोह में नहीं पड़ना चाहते थे।

नियमों पर दृढ़ – बालगोबिन भगत अपने बनाए नियमों पर दृढ़ थे। वे किसी से बिना पूछे उसकी वस्तु व्यवहार में लाना तो दूर, छूते भी नहीं थे। गंगा-स्नान जाते समय मार्ग में कुछ भी नहीं खाते थे। उन्हें आने-जाने में चार-पाँच दिन लग जाते थे। वे अपनी दिनचर्या का पालन बीमारी में भी नियमपूर्वक करते रहे।

सामाजिक परंपराओं के विरोधी – बालगोबिन भगत सामाजिक परंपराओं के विरोधी थे। उन्होंने अपने बेटे की मृत्यु के सभी क्रिया-कर्म अपनी पुत्रवधू से करवाए थे। उन्होंने अपनी पुत्रवधू को पुनर्विवाह के लिए मजबूर किया था। वे उसे अपने पास रखकर उसके मन को मरता हुआ नहीं देख सकते थे। वे ऐसी सामाजिक मान्यताएँ नहीं मानते थे, जो किसी को दुख दें। बालगोबिन का चरित्र उनके साधुत्व को प्रकट करता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

प्रश्न 3.
बचपन में लेखक पक्का ब्राह्मण बनने के लिए क्या करता था?
उत्तर :
बचपन में लेखक को स्वयं पर बहुत गर्व था, क्योंकि वह एक ब्राह्मण था। ब्राह्मण ही ब्रह्म को जानता है, यह सोचकर लेखक भी पक्का ब्राह्मण बनने के लिए ब्रह्म को जानना चाहता था। इसलिए वह संध्या करता, गायत्री का जाप करता, धूप-हवन करता तथा चंदन का तिलक लगाता था। लेखक उन सभी क्रियाओं में बढ़-चढ़कर भाग लेता, जिससे उसका ब्राह्मणत्व सिद्ध हो। उसने अपने ब्राह्मणत्व में गाँव के कई ऐसे लोगों के पैर छूने भी छोड़ दिए थे, जो ब्राह्मण नहीं थे।

प्रश्न 4.
बालगोबिन भगत की पहचान लिखिए।
उत्तर :
बालगोबिन भगत मँझले कद के व्यक्ति थे। उनका रंग गोरा था। उनकी उम्र साठ वर्ष की थी। बाल पक गए थे। वे दाढी या जटा नहीं रखते थे। उनका चेहरा सदा सफ़ेद बालों से चमकता रहता था। वे शरीर पर उतने ही कपड़े पहनते थे, जितने शरीर को ढकने के लिए – आवश्यक थे। कमर में एक लँगोटी बाँधते थे और सिर कबीर-पंथी कनफटी टोपी पहनते थे। सरदियों में एक काली कमली ओढ़ते थे। माथे पर रामानंदी चंदन का टीका होता था, जिसे वह नाक से शुरू करके ऊपर तक लगाते थे। गले में तुलसी की जड़ों की माला पहनते थे। उनके साधारण पहनावे में भी लोगों को आकर्षित करने की शक्ति थी।

प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत किसके पद गाते थे?
उत्तर :
बालगोबिन भगत कबीर को बहुत मानते थे। वे सबकुछ उनकी देन मानते थे। वे कबीर के पद गाते थे। उनके गाने का ढंग ऐसा था कि सीधे-सादे पदों में भी जान आ जाती थी।

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प्रश्न 6.
कार्तिक मास से फाल्गुन मास तक बालगोबिन भगत सुबह के समय क्या करते थे?
उत्तर :
कार्तिक मास में बालगोबिन भगत की प्रभाती शुरू हो जाती थी। यह प्रभाती कार्तिक मास से शुरू होकर फाल्गुन मास तक चलती थी। वे सुबह अँधेरे में उठते और गाँव से दो मील दूर नदी पर स्नान करने जाते थे। वापसी में गाँव के पोखर के ऊँचे भिंडे पर बैठकर अपनी खजड़ी बजाते हुए गीत गाते थे। वे गीत गाते समय अपने आसपास के वातावरण को भूल जाते थे। उनमें माघ की सरदी में भी गीत गाते समय इतनी उत्तेजना आ जाती थी कि उन्हें पसीना आने लगता था, परंतु सुनने वालों का शरीर ठंड के कारण कँपकँपा रहा होता था।

प्रश्न 7.
बालगोबिन भगत की पुत्रवधू कैसी थी?
उत्तर :
बालगोबिन भगत का एक ही पुत्र था, जो दिमाग से कमज़ोर और बीमार था। बड़े होने पर उन्होंने अपने पुत्र की शादी की। उनकी पुत्रवधू बड़ी सुशील तथा सुघड़ थी। उसने घर का सारा प्रबंध सँभाल लिया था। पुत्रवधू के आने से भगत भी दुनियादारी से काफ़ी सीमा तक मुक्त हो गए थे। उसने पुत्र और पिता दोनों की सेवा की। वह ससुर को बुढ़ापे में अकेला छोड़कर पुनर्विवाह के पक्ष में नहीं थी।

प्रश्न 8.
पुत्र के मरने के पश्चात बालगोबिन भगत पुत्रवधू को उसके घर क्यों भेजना चाहते थे?
उत्तर :
बालगोबिन भगत ने पुत्र के श्राद्ध की अवधि पूरी होने के बाद अपनी पुत्रवधू को उसके घर भेज दिया था। उनकी जाति में पुनर्विवाह की अनुमति थी। वे अपने घर में जवान विधवा को नहीं रखना चाहते थे, क्योंकि उनके अनुसार व्यक्ति का अपने मन की भावनाओं पर नियंत्रण रखना आसान नहीं होता। उनकी पुत्रवधू जवान थी। वे नहीं चाहते थे कि वह उनके कारण अपने मन को मारकर उनके साथ रहे और यदि उससे कोई ऊँच-नीच हो गई, तो वे मुश्किल में पड़ जाएंगे। इसलिए उन्होंने उसे उसके घर भेज दिया।

प्रश्न 9.
बालगोबिन भगत का गंगा-स्नान पर जाते समय क्या नियम था?
उत्तर :
बालगोबिन भगत हर वर्ष गंगा-स्नान के लिए जाते थे। इस बहाने उन्हें संतों के दर्शन हो जाते थे। गंगा उनके गाँव से तीस कोस दूर थी। वहाँ जाने में चार-पाँच दिन लग जाते थे। वे गंगा-स्नान जाते समय अपने घर से ही खाकर चलते थे और वापस अपने घर पर आकर ही खाते थे। उनके अनुसार यदि वे साधु हैं, तो साधु को कहीं आते-जाते समय खाने की क्या आवश्यकता है और यदि वे गृहस्थ हैं, तो गृहस्थ के लिए भिक्षा माँगकर खाना अच्छा नहीं है। इसलिए वे दोनों कारणों से मार्ग में खाना नहीं खाते थे। मार्ग में प्यास लगने पर पानी अवश्य पीते थे।

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प्रश्न 10.
बालगोबिन भगत की मृत्यु किस प्रकार हुई?
उत्तर :
हर वर्ष की तरह बालगोबिन भगत गंगा-स्नान करने गए। अब वे बूढ़े हो गए थे, परंतु अपने नियम पर अडिग थे। वे पूरे रास्ते गाते-बजाते गए और कुछ नहीं खाया। जब वे गंगा-स्नान से लौटे, तो उनकी तबीयत खराब थी। धीरे-धीरे उनकी तबीयत बिगड़ने लगी, परंतु उन्होंने अपने नियम-व्रतों में ढील नहीं आने दी। वे अपने सभी दैनिक कार्य स्वयं करते थे। लोगों की आराम करने की सलाह को वे हँसी में टाल देते थे। एक शाम वे गीत गाकर सोए और उसी रात उनके जीवन की माला टूट गई। लोगों को सुबह पता चला कि बालगोबिन भगत नहीं रहे। उनकी मृत्यु उनके स्वभाव के अनुरूप हुई थी।

प्रश्न 11.
बालगोबिन अपना सर्वस्व किसे मानते थे?
उत्तर :
बालगोबिन भगत साधु थे और कबीर को ‘साहब’ मानते थे। वे उन्हीं के गीतों को गाते थे तथा उन्हीं के आदर्शों पर चलते थे। वे उन्हें ही अपना सर्वस्व मानते थे।

प्रश्न 12.
बालगोबिन भगत अपनी सभी चीज़ों को किसकी मानते थे?
उत्तर :
बालगोबिन भगत अपनी सभी चीज़ों को ‘साहब’ की मानते थे। जो कुछ भी खेत में पैदा होता था, वे उसे सिर पर लादकर चार कोस दूर साहब के दरबार में ले जाते थे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

प्रश्न 13.
बालगोबिन भगत का संगीत जादू था, कैसे?
अथवा
बालगोबिन भगत के संगीत को जादू क्यों कहा गया है?
उत्तर :
इसमें कोई दो राय नहीं कि बालगोबिन भगत का संगीत जादू के समान था। जब वे गाना शुरू करते थे तब बच्चे, बूढ़े, जवान सभी झूमने लगते थे। उनके संगीत को सुनकर नारियों के होंठ काँप उठते थे। वे गुनगुनाने लगती थीं। रोपनी करने वालों की उँगलियाँ एक अजीब ही क्रम में चलने लगती थीं। इसलिए बालगोबिन भगत के संगीत को जादू कहा गया है।

पठित गद्याश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

दिए गए गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए –
बेटे के क्रिया – कर्म में तूल नहीं किया; पतोहू से ही आग दिलाई उसकी। किंतु ज्योंही श्राद्ध की अवधि पूरी हो गई, पतोहू के भाई को बुलाकर उसके साथ कर दिया, यह आदेश देते हुए कि इसकी दूसरी शादी कर देना। इधर पतोहू रो-रोकर कहती-मैं चली जाऊँगी तो बुढ़ापे में कौन आपके लिए भोजन बनाएगा, बीमार पड़े, तो कौन एक चुल्लू पानी भी देगा? मैं पैर पड़ती हूँ, मुझे अपने चरणों से अलग नहीं कीजिए। लेकिन भगत का निर्णय अटल था। तू जा, नहीं तो मैं ही इस घर को छोड़कर चल दूंगा-यह थी उनकी आखिरी दलील और इस दलील के आगे बेचारी की क्या चलती?

(क) बेटे की चिता को अग्नि किसने दी?
(i) बालगोबिन भगत ने
(ii) पतोहू के भाई ने
(iii) पतोहू ने
(iv) पंडित ने
उत्तर :
(iii) पतोहू ने

(ख) श्राद्ध की अवधि के पूरा होते ही पतोहू को कहाँ भेजा दिया?
(i) सैर करने
(ii) माता के दर्शन करने
(iii) वनवास में
(iv) मायके
उत्तर :
(iv) मायके

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(ग) ‘बेटे के क्रिया-कर्म में तूल नहीं किया’ से क्या आशय है?
(i) आडंबरों से क्रिया-कर्म करना
(ii) जमकर दिखावा करना
(iii) साधारण ढंग से क्रिया-कर्म करना
(iv) क्रिया-कर्म के लिए अनेक ज्ञानी पंडित बुलाना
उत्तर :
(iii) साधारण ढंग से क्रिया-कर्म करना

(घ) पति के निधन के पश्चात पतोहू भगत को छोड़कर क्यों नहीं जाना चाहती थी?
(i) जायदाद और अन्न का लालच था।
(ii) उसका भाई उसे नहीं ले जाना चाहता था।
(iii) उसे अपने यौवन की चिंता थी।
(iv) ससुर भगत के बुढ़ापे की चिंता थी।
उत्तर :
(iv) ससुर भगत के बुढ़ापे की चिंता थी।

(ङ) पतोहू के भाई से उसकी दूसरी शादी रचाने के निर्देश में भगत की किस विचारधारा का परिचय मिलता है?
(i) सामाजिक व धार्मिक रूढ़ियों में विश्वास न रखना।
(ii) स्वार्थी होने का।
(iii) अपनी पतोहू को सम्मान देना।
(iv) रीति-रिवाजों का सख्ती से पालन करना।
उत्तर :
(i) सामाजिक व धार्मिक रूढ़ियों में विश्वास न रखना।

उच्च चिंतन क्षमताओं एवं अभिव्यक्ति पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

पाठ पर आधारित प्रश्नों को पढ़कर सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए
(क) बालगोबिन भगत पाठ किस विधा में लिखा गया है?
(i) रेखाचित्र
(ii) संस्मरण
(iii) निबंध
(iv) नाटक
उत्तर :
(i) रेखाचित्र

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(ख) बेटे की मृत्यु पर बालगोबिन आनंद मनाने की बात क्यों कहते हैं?
(i) उनका बेटा ज्ञानी हो गया था।
(ii) क्योंकि उनके विचार से आत्मा-परमात्मा का एकाकार होता है।
(iii) क्योंकि उनका पुत्र झगड़ालू हो गया था।
(iv) क्योंकि वह मूक हो गया था।
उत्तर :
(ii) क्योंकि उनके विचार से आत्मा-परमात्मा का एकाकार होता है।

(ग) भगत किसे अपना साहब मानते थे?
(i) कबीर को
(ii) ईश्वर को
(iii) पक्षी को
(iv) वरुण को
उत्तर :
(i) कबीर को

(घ) बालगोबिन भगत की प्रभातफेरियाँ किस महीने से शुरू हो जाती थीं?
(i) चैत्र
(ii) वैशाख
(iii) पौष
(iv) कार्तिक
उत्तर :
(iv) कार्तिक

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. न जाने वह कौन-सी प्रेरणा थी, जिसने मेरे ब्राह्मण का गर्वोन्नत सिर उस तेली के निकट झुका दिया था। जब-जब वह सामने आता, मैं झुककर उससे राम-राम किए बिना नहीं रहता। माना, वे मेरे बचपन के दिन थे, किंतु ब्राह्मणता उस समय सोलहो कला से मुझ पर सवार थी। दोनों शाम संध्या की जाती, गायत्री का जाप होता, धूप-हवन जलाए जाते, चंदन-तिलक किया जाता और इन सारी चेष्टाओं से ‘ब्रह्म’ को जानकर पक्का ‘ब्राह्मण’ बनने की कोशिशें होती-ब्रह्म जानाति ब्राह्मणः!

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
2. बचपन में लेखक की क्या दशा थी?
3. लेखक गर्वोन्नत क्यों था?
4. लेखक का सिर किसके सामने और क्यों झुक गया?
5. ब्राह्मणता का सोलह कलाओं में सवार होने से क्या तात्पर्य है?
6. ‘ब्रह्म जानाति ब्राह्मण’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
1. पाठ-बालगोबिन भगत; लेखक-रामवृक्ष बेनीपुरी।

2. बचपन में लेखक ब्राह्मण धर्म के अनुसार पूजा-पाठ करता था। ब्राह्मण होने के कारण वह स्वयं को सबसे श्रेष्ठ मानता था। वह सुबह-शाम दोनों समय संध्या आदि करता था।

3. लेखक गर्वोन्नत इसलिए था, क्योंकि वह ब्राह्मण था। उसे ब्राह्मण द्वारा किए जाने वाले सभी कार्य; जैसे-पूजा-पाठ, संध्या, धूप-हवन करना, चंदन-तिलक लगाना आदि; सबकुछ आता था। इसलिए वह स्वयं को सबसे श्रेष्ठ समझकर गर्वोन्नत था।

4. लेखक का सिर बालगोबिन भगत के सामने झुक गया था। वह जब भी उन्हें देखता था, उन्हें झुककर राम-राम करता था। वह उनके गुणों के कारण उनसे प्रभावित था और उन्हें आदर-मान देता था। वे अत्यंत साधु प्रकृति के व्यक्ति थे।

5. इस कथन से तात्पर्य है कि लेखक स्वयं को पक्का ब्राह्मण समझता था। वह ब्राह्मण द्वारा किए गए सभी कार्य जैसे-पूजा-पाठ, संध्या, हवन आदि करता था। इस प्रकार वह स्वयं को इन साधनों के द्वारा ब्रह्म को जानने वाला पक्का ब्राह्मण समझता था।

6. जो ब्रह्म को जानता है, वह ब्राह्मण है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

2. आसमान बादल से घिरा; धूप का नाम नहीं। ठंडी पुरवाई चल रही। ऐसे ही समय आपके कानों में एक स्वर-तरंग झंकार-सी कर उठी।
यह क्या है-यह कौन है! यह पूछना न पड़ेगा। बालगोबिन भगत समूचा शरीर कीचड़ में लिथड़े, अपने खेत में रोपनी कर रहे हैं। उनकी अँगुली एक-एक धान के पौधे को, पंक्तिबद्ध, खेत में बिठा रही है। उनका कंठ एक-एक शब्द को संगीत के जीने पर चढ़ाकर कुछ को ऊपर, स्वर्ग की ओर भेज रहा है और कुछ को इस पृथ्वी की मिट्टी पर खड़े लोगों के कानों की ओर! बच्चे खेलते हुए झूम उठते हैं; मेंड़ पर खड़ी औरतों के होंठ काँप उठते हैं, वे गुनगुनाने लगती हैं; हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते हैं; रोपनी करनेवालों की अँगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती हैं! बालगोबिन भगत का यह संगीत है या जादू!

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. लेखक ने किस अवसर का वर्णन किया है?
2. बालगोबिन भगत क्या कर रहे थे? अथवा बालगोबिन भगत अपने खेत में किसकी रोपनी कर रहे थे?
3. बालगोबिन भगत के कंठ से क्या निकल रहा था?
4. बालगोबिन भगत के संगीत का लोगों पर क्या प्रभाव पड़ रहा था?
उत्तर :
1. लेखक ने आषाढ़ के महीने में होने वाली रिमझिम वर्षा का वर्णन किया है। इस अवसर पर गाँव के सभी लोग अपने-अपने खेतों में हल चलाने अथवा रोपनी करने आ जाते हैं। आकाश बादलों से घिरा रहता है तथा ठंडी पुरवाई चलती रहती है।

2. बालगोबिन भगत पूरी तरह कीचड़ से सने हुए अपने खेत में रोपनी कर रहे थे। वे धान के पौधों को पंक्तिबद्ध रूप से खेत में रोप रहे थे।

3. बालगोबिन भगत अपने खेत में रोपनी करते हुए उच्च स्वर में मधुर-गीत गा रहे थे।

4. बालगोबिन का संगीत सुनकर खेलते हुए बच्चे झूमने लगते थे। उनका संगीत सुनकर स्त्रियाँ गुनगुनाने लगती थीं; हलवाहों के पैर ताल से उठते लगते थे। खेतों में रोपनी करने वाले भी मंत्रमुग्ध होकर क्रम से कार्य करने लगते थे। इस प्रकार बालगोबिन भगत का संगीत सब पर जादू-सा कर देता था।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

3. गरमियों में उनकी ‘संझा’ कितनी उमसभरी शाम को न शीतल करती! अपने घर के आँगन में आसन जमा बैठते। गाँव के उनके कुछ प्रेमी भी जुट जाते। खजड़ियों और करतालों की भरमार हो जाती। एक पद बालगोबिन भगत कह जाते, उनकी प्रेमी-मंडली उसे दहराती, तिहराती। धीरे-धीरे स्वर ऊँचा होने लगता-एक निश्चित ताल, एक निश्चित गति से। उस ताल-स्वर के चढ़ाव के साथ श्रोताओं के मन भी ऊपर उठने लगते। धीरे-धीरे मन तन पर हावी हो जाता। होते-होते, एक क्षण ऐसा आता कि बीच में खजड़ी लिए बालगोबिन भगत नाच रहे हैं और उनके साथ ही सबके तन और मन नृत्यशील हो उठे हैं। सारा आँगन नृत्य और संगीत से ओतप्रोत है!

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. गरमियों की संध्या में बालगोबिन भगत क्या करते थे?
2. प्रेमी-मंडली किनकी थी और उसका क्या काम था?
3. ‘मन तन पर हावी हो जाता’ से क्या आशय है?
4. होते-होते कौन-सा क्षण आ जाता था?
उत्तर :
1. बालगोबिन भगत अपने संगीत के स्वरों के द्वारा गरमियों की उमस भरी संध्या को शीतल कर देते थे। वे अपने आँगन में संगीत-प्रेमी मित्रों के साथ संगीत की सभा जुटा लेते थे। वे गाते थे तथा अन्य उसे दोहराते थे।

2. प्रेमी-मंडली उन संगीत-प्रेमी लोगों की मंडली थी, जो बालगोबिन भगत के घर गरमियों की उमस भरी शाम के समय खंजड़ियाँ और करताल बजाकर उनके गाए पदों को दोहराते थे तथा वातावरण में उमस के स्थान पर शीतलता भर देते थे।

3. इस कथन का आशय है कि बालगोबिन भगत के गाए हुए पदों को दोहराते समय लोग इतने मग्न हो जाते थे कि वे अपने तन की सुध भूलकर मन से भक्ति रस में डूब जाते थे। उन्हें दीन-दुनिया की सुध नहीं रहती थी। वे मनोलोक में विचरण करने लगते थे।

4. इस प्रकार भक्ति-रस में लीन होकर वह क्षण आ जाता था, जब बालगोबिन भगत भावविभोर होकर खजड़ी बजाते हुए नाचने लगते थे तथा उनकी प्रेमी-मंडली के सदस्य भी उनके चारों ओर घेरा बनाकर नाचते थे। ऐसे समय में सारा वातावरण संगीत की ताल पर नाचता हुआ लगता था।

4. बेटे को आँगन में एक चटाई पर लिटाकर एक सफ़ेद कपड़े से ढाँक रखा है। वह कुछ फूल तो हमेशा ही रोपे रहते, उन फूलों में से कुछ तोड़कर उस पर बिखरा दिए हैं; फूल और तुलसीदल भी। सिरहाने एक चिराग जला रखा है। और, उसके सामने ज़मीन पर ही आसन जमाए गीत गाए चले जा रहे हैं! वही पुराना स्वर, वही पुरानी तल्लीनता। घर में पतोहू रो रही है, जिसे गाँव की स्त्रियाँ चुप कराने की कोशिश कर रही हैं।

किंतु, बालगोबिन भगत गाए जा रहे हैं! हाँ, गाते-गाते कभी-कभी पतोहू के नज़दीक भी जाते और उसे रोने के बदले उत्सव मनाने को कहते। आत्मा परमात्मा के पास चली गई, विरहिनी अपने प्रेमी से जा मिली, भला इससे बढ़कर आनंद की कौन बात? मैं कभी-कभी सोचता, यह पागल तो नहीं हो गए। किंतु नहीं, वह जो कुछ कह रहे थे उसमें उनका विश्वास बोल रहा था-वह चरम विश्वास जो हमेशा ही मृत्यु पर विजयी होता आया है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. बेटे की मृत्यु पर बालगोबिन ने क्या किया?
2. बेटे की मृत-देह के पास बालगोबिन क्या करने लगे?
3. अपनी पतोहू को बालगोबिन ने क्या समझाया ?
4. आत्मा के संबंध में बालगोबिन के क्या विचार थे ?
5. लेखक बालगोबिन के संबंध में क्या सोचता था और क्यों?
उत्तर :
1. बालगोबिन के बेटे की बीमारी से मृत्यु हो गई थी। उन्होंने मृत बेटे को घर के आँगन में एक चटाई पर लिटाकर उसे एक सफ़ेद कपड़े से ढक दिया था। उन्होंने उस पर कुछ फूल और तुलसीदल बिखेर दिए थे और उसके सिरहाने दीपक जला दिया था।

2. वे अपने बेटे की मृत देह के सामने ज़मीन पर बैठकर गीत गाने लगे।

3. उन्होंने अपनी पतोहू को रोने से मना किया और कहा, कि आज रोने का नही, बल्कि उत्सव मनाने का दिन है, क्योंकि उसके पति की आत्मा अब परमात्मा से मिल गई है।

4. बालगोबिन का विचार था कि मरने के बाद आत्मा परमात्मा में जाकर लीन हो जाती है। परमात्मा रूपी प्रियतम के वियोग में भटकती हुई आत्मा मृत्यु के बाद अपने प्रिय से जा मिलती है।

5. लेखक को लगता था कि कहीं बालगोबिन पागल तो नहीं हो गए, क्योंकि वे अपने एकमात्र पुत्र की मृत्यु पर शोक की बजाय आनंद मना रहे हैं तथा अपनी पतोहू को भी रोने के स्थान पर उत्सव मनाने के लिए कह रहे हैं। उन्हें मृत्यु आनंद मनाने का अवसर लगता है।

5. बेटे के क्रिया-कर्म में तूल नहीं किया; पतोहू से ही आग दिलाई उसकी। किंतु ज्योंही श्राद्ध की अवधि पूरी हो गई, पतोहू के भाई को बुलाकर उसके साथ कर दिया, यह आदेश देते हुए कि इसकी दूसरी शादी कर देना। उनकी जाति में पुनर्विवाह कोई नई बात नहीं, किंतु पतोहू का आग्रह था कि वह यहीं रहकर भगतजी की सेवा-बंदगी में अपने वैधव्य के दिन गुज़ार देगी।

लेकिन, भगतजी का कहना थानहीं, यह अभी जवान है, वासनाओं पर बरबस काबू रखने की उम्र नहीं है इसकी। मन मतंग है, कहीं इसने गलती से नीच-ऊँच में पैर रख दिए तो। नहीं-नहीं, तू जा। इधर पतोहू रो-रोकर कहती-मैं चली जाऊँगी तो बुढ़ापे में कौन आपके लिए भोजन बनाएगा, बीमार पड़े, तो कौन एक चुल्लू पानी भी देगा? मैं पैर पड़ती हूँ, मुझे अपने चरणों से अलग नहीं कीजिए! लेकिन भगत का निर्णय अटल था।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. बालगोबिन भगत ने बेटे का क्रिया-कर्म कैसे किया?
2. पतोहू के लिए बालगोबिन ने क्या प्रबंध किया?
3. पतोहू क्या चाहती थी और क्यों?
4. बालगोबिन पतोहू का पुनर्विवाह क्यों करना चाहते थे?
5. ‘भगत का निर्णय अटल था’-इससे भगत के चरित्र की किस विशेषता का बोध होता है?
उत्तर :
1. बालगोबिन भगत ने अपने बेटे के क्रिया-कर्म में कोई आडंबर नहीं किया। उन्होंने अपने बेटे की चिता में अपनी पतोहू से आग दिलाई।

2. श्राद्ध का समय समाप्त होते ही उन्होंने पतोहू के भाई को बुलाया और उसे अपनी बहन को साथ ले जाने के लिए कहा। उन्होंने उसके भाई को यह भी कहा कि अपनी बहन का दूसरा विवाह कर देना।

3. बालगोबिन भगत की पतोहू अपने भाई के साथ नहीं जाना चाहती थी; वह दूसरा विवाह भी नहीं करना चाहती थी। वह यहीं रहकर भगत जी की सेवा करना चाहती थी। वह उन्हें बुढ़ापे में बेसहारा छोड़कर नहीं जाना चाहती। वह उनके लिए खाना बनाना, बीमारी में देखभाल करना आदि कार्य करना चाहती थी।

4. बालगोबिन भगत के अनुसार पतोहू अभी जवान थी। उसके सामने सारा जीवन था, वह अकेले नहीं चल पाएगी। मनुष्य का मन चंचल होता है। वह भी कभी भटक सकती थी। इन सब बुराइयों से बचने के लिए ही वे अपनी पतोहू का विवाह कर देना चाहते थे।

5. इस कथन से भगत के चरित्र की दृढ़ता का पता चलता है कि वे अपनी कही हुई बात पर सदा अटल रहते थे। उनकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं था। इसलिए वे अपनी पतोहू के तर्कों को नहीं मानते और उसे उसके भाई के साथ भेज देते हैं, जिससे वह उसका पुनर्विवाह करवा सके।

बालगोबिन भगत Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन – आधुनिक युग के निबंधकारों में श्री रामवृक्ष बेनीपुरी का महत्वपूर्ण स्थान है। इनका जन्म मुजफ्फरपुर जिले (बिहार) के बेनीपुर गाँव में सन 1899 ई० में हुआ। बचपन में ही इनके सिर से माता-पिता की छाया उठ गई थी। सन 1920 में गांधीजी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन प्रारंभ होने पर ये अध्ययन छोड़कर राष्ट्र-सेवा में लग गए। गांधीजी के दर्शन में इनकी विशेष आस्था थी। ‘रामचरितमानस’ के पठन-पाठन ने इन्हें साहित्य की ओर प्रेरित किया। स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लेने के कारण इन्हें अनेक बार जेल की यातनाएँ सहन करनी पड़ी। सन 1968 ई० में इनका देहावसान हो गया।

रचनाएँ – पंद्रह वर्ष की अवस्था से ही ये पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखने लग गए थे। इन्होंने ‘बालक’, ‘तरुण भारत’, ‘किसान मित्र’, ‘नयी धारा’ आदि अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया। उपन्यास, नाटक, कहानी, यात्रा-विवरण, संस्मरण, निबंध आदि लगभग सभी गद्य विधाओं में बेनीपुरी जी की अनेक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। इनका पूरा साहित्य ‘बेनीपुरी रचनावली’ के आठ खंडों में प्रकाशित हुआ है। ‘पतितों के देश में’ (उपन्यास); ‘चिता के फूल’ (कहानी); ‘माटी की मूरतें’, ‘नेत्रदान’ तथा ‘मन और विजेता’ (रेखाचित्र); अंबपाली’ (नाटक); ‘गेहूँ और गुलाब’ (निबंध और रेखाचित्र); ‘पैरों में पंख बाँधकर’ (यात्रा विवरण); ‘जंजीरें और दीवारें’ (संस्मरण) आदि इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं।

भाषा-शैली – इनकी भाषा ओजपूर्ण तथा सशक्त है। इसमें प्रांतीय शब्दों का प्रयोग भी हुआ है। इन्होंने खड़ी बोली के परिष्टत रूप का प्रयोग किया है। इन्होंने सामान्य बोलचाल के शब्दों में तत्सम शब्दावली का सुंदर प्रयोग किया है। बाक्य रचना स्वाभाविक है। ‘बालगोबिन भगत’ इनके द्वारा रचित रेखाचित्र है, जिसमें लेखक ने एक ऐसे चरित्र का उद्घाटन किया है जो अपनले का लोकनायक है।

उसने रूढ़ियों से ग्रस्त समाज से टक्कर लेकर अपने युग में सर्वत्र क्रांतिकारी पग उठाए हैं। अपने पुराना को अपनी मोह से अग्नि दिलवाई और उसे पुनर्विवाह करने के लिए कहा। इस रेखाचित्र में मनोवृत्ति, मात्र, कंठ, अकस्मात, आपल जैसे तत्सप्प शब्दों के साथ-साथ लँगोटी, जाड़ा, तूल, खजड़ी, पियवा, रोपनी आदि देशज शब्दों का भी खुलकर प्रयोग किया है।

इनकी शैली भावपूर्ण, चित्रात्मक, विचारपूर्ण तथा कहीं-कहीं वर्णनात्मक हो गई है। कहीं-कहीं काव्यात्मक शैली के भी दर्शन होते हैं। जैसे… उनका यह गाना अँधेरे में अकस्मात कौंध उठने वाली बिजली की तरह किसे न चौंका देता?’ आषाढ़ के आगमन का वर्णन अत्यंत ही सजीवता लिए हुए है। जैसे – ‘आषाढ़ की रिमझिम है। समूचा गाँव खेतों में उतर पड़ा है। कहीं हल चल रहे हैं; कहीं रोपनी हो रही है। धान के पानी-भरे खेतों में बच्चे उछल रहे हैं। औरतें कलेवा लेकर मेंड़ पर बैठी हैं। आसमान बादलों से घिरा, धूप का नाम नहीं। ठंडी पुरवाई चल रही है।’

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

पाठ का सार :

‘बालगोबिन भगत’ के लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी हैं। इस रेखाचित्र के माध्यम से उन्होंने एक ऐसे संन्यासी का वर्णन किया है, जो वेशभूषा या बाह्य-आडंबरों से संन्यासी नहीं लगता था। लेखक के अनुसार उसके संन्यासी होने का आधार मानवीय जीवन के प्रति प्रेम था। वह वर्ण-व्यवस्था और सामाजिक रूढ़ियों का विरोधी था। इस रेखाचित्र के माध्यम से हमें ग्रामीण जीवन की झलक देखने को मिलती है।

लेखक बचपन में स्वयं को पक्का ब्राह्मण मानता था। वह ब्राह्मण की पहचान करवाने वाली सभी क्रियाएँ करता था। वह इस बात पर विश्वास करता था कि ब्रह्म का ज्ञाता केवल ब्राह्मण होता है। लेकिन एक तेली के आगे लेखक का गर्व से ऊँचा सिर स्वयं ही झुक जाता था। हमारे समाज में तेली का यात्रा के समय मिलना अच्छा नहीं समझा जाता। बालगोबिन भगत साठ वर्ष के मँझोले कद के गोरे-चिट्ठे भी व्यक्ति थे। वे केवल कमर में एक लँगोटी तथा कबीरपंथियों वाली कनपटी टोपी पहनते थे।

सरदियों में एक काली कमली ओढ़ते थे। मस्तक पर रामानंदी चंदन का टीका तथा गले में तुलसी की जड़ों की माला पहनते थे। बालगोबिन एक गृहस्थ व्यक्ति थे। उनके बेटा-बहू थे। वे खेती-बाड़ी का काम करते थे। बालगोबिन गृहस्थ होते हुए भी साधु थे। वे ‘कबीर’ की मान्यताओं को बहुत मानते थे। उन्हीं के गीतों को गाते थे। वे ‘कबीर’ को ‘साहब’ मानते थे। ‘कबीर की मान्यताओं के अनुसार वे न कभी झूठ बोलते थे, न किसी की चीज़ को हाथ लगाते थे और न ही बिना पूछे व्यवहार में लाते थे।

उनकी हर चीज पर ‘साहब’ का अधिकार था। वे अपने खेत की पैदावार को सिर पर रख ‘कबीर’ के मठ पर जाते। उस पैदावार को भेट-स्वरूप चढ़ाते और जो कुछ प्रसाद के रूप में मिलता उसी में गुजारा करते थे। लेखक बालगोबिन भगत के गायन पर मुग्ध था। उनका गायन सदा सबको सुनने को मिलता था। आषाढ़ आते ही खेतों में धान की रोपाई शुरू हो जाती थी। पूरे गाँव के आदमी, औरतें और बच्चे खेतों में दिखाई देते थे। खेतों में रोपाई करते समय हर किसी के कानों में गाने का स्वर गूंजता रहता था।

इसका कारण यह था कि बालगोबिन रोपाई करते समय गाना गाते थे। उनके कंठ से निकला एक-एक शब्द ऐसा लगता था, जैसे कुछ ऊपर स्वर्ग की ओर तो कुछ पृथ्वी की मिट्टी पर खड़े लोगों के कानों में जा रहे हैं। उनके संगीत से सारा वातावरण संगीतमय हो जाता था। सभी लोग एक ताल में एक क्रम में काम करने लगते थे। वे भादों की अँधेरी रातों में पिया के प्यार के गीत गाते थे। इन गीतों के अनुसार पिया साथ होते हुए भी प्रियतमा अपने को अकेली समझती है, इसलिए बिजली की चमक से चौंक उठती है।

जब सारा संसार सो रहा होता था, उस समय बालगोबिन का संगीत जाग रहा होता था। बालगोबिन कार्तिक से फागुन तक प्रभाती गाया करते थे। वे सुबह अँधेरे में उठकर, दो मील चलकर नदी-स्नान करते थे। वापसी में गाँव के बाहर पोखरे पर वे अपनी खजड़ी लेकर बैठ जाते और गीत गाने लगते थे। लेखक को देर तक सोने की आदत थी, परंतु एक दिन उसकी आँख जल्दी खुल गई। वे माघ के दिन थे। बालगोबिन का संगीत लेखक को गाँव के बाहर पोखर पर ले गया।

वे अपने संगीत में बहुत मस्त थे। उनके माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं, लेकिन लेखक ठंड के मारे काँप रहा था। गरमियों में उमसभरी शाम को वे अपने गीतों से शीतल कर देते थे। उनके गीत लोगों के मन से होते हुए तन पर हावी हो जाते थे। वे भी बालगोबिन की तरह मस्ती में नाचने लगते थे। उनके घर का आँगन संगीत-भक्ति से ओत-प्रोत हो जाता था। सब लोगों ने बालगोबिन भगत की संगीत-साधना की चरम-सीमा उस दिन देखी, जिस दिन उनका इकलौता बेटा मरा था।

उनका बेटा दिमागी तौर पर सुस्त था। बालगोबिन उस पर अधिक ध्यान देते थे। उनके अनुसार ऐसे लोगों को अधिक-देखभाल और प्यार की आवश्यकता होती है। उनके बेटे की बहू बहुत सुघड़ और सुशील थी। उसने आते ही घर के सारे काम को सँभाल लिया था। उसने बालगोबिन भगत को दुनियादारी से काफी सीमा तक मुक्त कर दिया था। जिस दिन बालगोबिन का लड़का मरा, सारा गाँव उसके घर इकट्ठा हो गया। बालगोबिन को देखकर सभी लोग हैरान थे। उन्होंने अपने बेटे को आँगन में चटाई पर लिटा रखा था। उस पर सफ़ेद कपड़ा दे रखा था।

कुछ फूल और तुलसी के पत्ते उस पर बिखेर रखे थे। पास में ही वे आसन पर बैठे गीत गा रहे थे। कमरे में उनकी पुत्रवधू बैठी रो रही थी। वे बीचबीच में उसे चुप करवाते और कहते कि उसे रोना नहीं चाहिए। यह समय तो उत्सव मनाने का है। उनके बेटे की आत्मा परमात्मा में मिल गई है। आज प्रियतमा का अपने पिया से मिलन हो गया है। यह तो आनंद की बात है। लेखक को लग रहा था कि वे पागल हो गए हैं। उन्होंने अपने बेटे का क्रिया-कर्म अपने बेटे की बहू से करवाया था।

श्राद्ध की अवधि पूरी होने पर उन्होंने बहू को उसके घर भेज दिया। उन्होंने उसके घरवालों को उसकी दूसरी शादी करवाने का आदेश दिया। बहू ने उनकी बात मानने से इनकार कर दिया। वह उनके पास रहकर उनकी सेवा करना चाहती थी। उसे इस बात की बहुत चिंता थी कि बुढ़ापे में उनका ध्यान कौन रखेगा। लेकिन बालगोबिन भगत अपने कारण बहू का जीवन खराब नहीं करना चाहते थे और वे जवानी में संन्यास लेने के विरुद्ध थे।

इसलिए उन्होंने उसे घर छोड़ने की धमकी दी कि यदि वह अपने पिता के घर नहीं गई, तो वे घर छोड़कर चले जाएंगे। उनकी यह बात सुनकर बहू अपने घर चली गई। बालगोबिन भगत के स्वभाव के अनुरूप ही उनकी मृत्यु हुई। वे प्रतिवर्ष पैदल ही गंगा-स्नान के लिए जाते थे। गंगा-स्नान के बहाने वे संतों से मिलते थे। गंगा उनके गाँव से तीस कोस दूर थी। वे घर से ही खा-पीकर चलते थे और लौटकर घर पर ही आकर खाते थे। रास्ते भर । वे गाते-बजाते जाते थे। उनको आने-जाने में चार दिन लग जाते थे।

अब वे बूढ़े हो गए थे, लेकिन उनका लंबा उपवास और गायन लगातार चलता था। इस बार वे गंगा-स्नान से लौटकर आए, तो उनकी तबीयत खराब थी। बुखार में भी नियम-व्रत नहीं तोड़े। लोगों ने उन्हें सबकुछ छोड़कर आराम करने के लिए कहा, परंतु वे हँसकर टाल देते थे। एक दिन उन्होंने संध्या को गीत गाए, लेकिन रात को जीवन की माला का धागा टूट गया। लोगों को सुबह बालगोबिन भगत के गीतों का स्वर सुनाई नहीं दिया, तो उन्होंने देखा कि उनके शरीर से आत्मा निकलकर : परमात्मा से मिल गई थी।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

कठिन शब्दों के अर्थ :

गर्वोन्नत – गर्व से ऊँचा। सोलहो कला – पूरी तरह से। खामखाह – बेवजह। कौंध – चमक। मँझोला – न बहुत बड़ा न बहुत छोटा। चरम उत्कर्ष – बहुत ऊँचाई पर। कमली – कंबल, गर्म कपड़ा। पतोहू – पुत्रवधू/ पुत्र की स्त्री। रोपनी – धान की रोपाई। कलेवा – सवेरे का नाश्ता। पुरवाई – पूर्व की ओर से बहने वाली हवा। अधरतिया – आधी रात। खजड़ी – ढफली के आकार का छोटा वाद्य-यंत्र। निस्तब्धता – सन्नाटा। प्रभाती – प्रातःकाल गाया जाने वाला गीत। लोही – प्रात:काल की लालिमा। कुहासा – कोहरा, धुंध। आवृत – ढका हुआ। कुष्टा – एक प्रकार की नुकीली घास। बोदा – कम बुद्धि वाला। मतंग – बादल, मेघ। संबल – सहारा।

JAC Class 10 Hindi रचना संदेश लेखन

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Rachana संदेश लेखन Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10 Hindi Rachana संदेश लेखन

अपने मनोभावों और विचारों को प्रकट करने का सशक्त माध्यम संदेश-लेखन कहलाता है। इस माध्यम के द्वारा हम अपने प्रियजन, सहपाठियों, मित्रों, पारिवारिक सदस्यों या संबंधियों को किसी शुभ अवसर, त्योहार या फिर परीक्षा अथवा नौकरी में सफलता प्राप्त करने आदि अवसरों में अपने मन के भावों को संदेश लिखकर आत्मीयता से प्रकट करते हैं। इस प्रकार संदेश लेखन के माध्यम से शुभकामनाएँ भेजने के साथ-साथ नि:संदेह उनका मनोबल बढ़ाना होता है।

संदेश लेखन लिखते समय ध्यान देने योग्य प्रमुख बिंदु – 

  1. संदेश को बॉक्स के अंदर लिखना चाहिए।
  2. संदेश लिखते समय शब्द, शब्द-सीमा 30 से 40 शब्द ही होनी चाहिए।
  3. संदेश हृदयस्पर्शी तथा संक्षिप्त होने चाहिए।
  4. बॉक्स के बाएँ शीर्ष में दिनांक और उसके नीचे स्थान अवश्य लिखें।
  5. संदेश के आखिर में नीचे प्रेषक का नाम लिखना न भूलें।
  6. संदेश लिखते समय केवल महत्वपूर्ण बातों का ही उल्लेख करें।
  7. मनोभावों की सुंदर अभिव्यक्ति पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करने वाली होती है।
  8. संदेश लेखन में तुकबंदी वाली प्रभावशाली पंक्तियाँ भी लिखी जाती हैं।
  9. संदेश दो प्रकार के अनौपचारिक व औपचारिक हो सकते हैं।

JAC Class 10 Hindi रचना संदेश लेखन

उदाहरण स्वरनप कुछ संदेश दिए गए हैं –

1. स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने सहेली को 30 से 40 शब्दों में एक शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

15 अगस्त, 20XX
चेन्नई
प्रिय सहेली।
स्वतंत्रता दिवस का पावन अवसर है, विजयी-विश्व का गान अमर है। देश-हित सबसे पहले है, बाकी सबका राग अलग है।
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आपको हार्दिक शुभ कामनाएँ। रोशनी

2. अपने मित्र को वसंत पंचमी के अवसर पर शब्बों में शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संवेश

10 फ़रवरी, 20
नई दिल्ली
मित्रवर,
गेंदा गमके महक बिखेरे।
उपवन को आभास दिलाए।
बहे बयरिया मधुरम-मधुरम।
प्यारी कोयल गीत जो गाए।
ऐसी बेला में उत्सव होता जब।
वाग्देवी भी तान लगाए।
आपको वसंत पंचमी के अवसर पर ढेर सारी बधाई और उम्मीद है कि आप हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी वार्षिक वसंतोत्सव में वाग्देवी की सेवा में सहभागिता देंगे।
आर्यन

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3. आप अमेरिका में रहते हैं और गणतंत्र दिवस के अवसर पर अपने भारतीय सहेली को 30 से 40 शब्बों में शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

26 जनवरी, 20
नवी मुंबई
प्रिय मान्यता।
भारत देश हमारा है यह हमको जान से प्यारा है
दुनिया में सबसे न्यारा यह सबकी आँखों का तारा है
मोती हैं इसके कण-कण में बूँद-बूँद में सागर है
प्रहरी बना हिमालय बैठ धरा सोने की गागर है।
इस गणतंत्र दिवस की आप और आपके परिवार को मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ। भारत देश ऐसे ही कामयाबी की बुलंदियों को छूता रहे। अपने राष्ट्र की समृद्धि और उन्नति में अपना योगदान देना हर भारतवासी का कर्तव्य है।
कविता

4. राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर शिष्य द्वारा विज्ञान शिक्षक को 30 से 40 शब्दों में शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

28 फ़रवरी, 20XX
नई दिल्ली
आदरणीय गुरुदेव,
28 फ़रवरी, 1928 को सर सी०आर० रमन ने 1930 में अपनी खोज की घोषणा कर नोबल पुरस्कार प्राप्त किया था। जो विज्ञान विशिष्ट ज्ञान को जीवन के अनुभव के साथ जोड़कर शिक्षा देता है और उस शिक्षा से शिक्षार्थी का जीवन सार्थक बनता है, वही विषय विज्ञान कहलाता है। हर दिन आपके द्वारा पढ़ाए गए विज्ञान विषय से मेरी रुचि में अद्भुत परिवर्तन आया। आपके अनुभव ने मेरा और मुझ जैसे अनेक शिष्यों का मार्गदर्शन कर आदर्श विज्ञान शिक्षक की भूमिका का निर्वाह किया। आपका उद्देश्य सर्वदा विद्यार्थियों को विज्ञान के प्रति आकर्षित व प्रेरित करना रहा है। ऐसे विशिष्ट गुरु को मेरा शत-शत प्रणाम। विज्ञान दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
अभिनव

5. विद्यालय की वार्षिक पत्रिका के प्रकाशन पर अध्यक्ष द्वारा विद्यार्थियों को 30 से 40 शब्दों में शुभकामना संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

5 अप्रैल, 20
कोलकाता
प्रिय विद्यार्थियो,
सत्र 20-20 की वार्षिक पत्रिका का प्रकाशन हो रहा है। उत्कृष्ट लेख, नाटक, प्रहसन, चुट्कुले, निबंध आदि के प्रकाशन हेतु प्रवेश नियम विद्यार्थियों को विद्यालय के सूचना बोर्ड पर शर्तों के साथ सूचित कर दिया गया है। इस साहित्यिक पत्रिका में विद्यार्थियों का चहुमुखी साहित्यिक विकास होगा और आप कवि या लेखक के रूप में लेखन द्वारा राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का निर्वहन करेंगे, मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ आपके साथ हैं।
अध्यक्ष
शिखर त्रिवेदी

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6. अपने मित्र की नौकरी में पदोन्नति होने पर बधाई देते हुए शुभकामना संदेश 30-40 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :

संदेश

8 जून, 20
नई दिल्ली
मित्रवर,
फूल बनके मुसकराना ज़िंदगी है
मुसकरा कर गम भुलाना भी ज़िंदगी है
जीत कर खुश हो तो अच्छा है पर,
हार कर खुशियाँ मनाना भी ज़िंदगी है
आपने अपनी योग्यता और कुशलता का अद्भुत परिचय तो परीक्षा का अंतिम पड़ाव पारकर सभी का दिल जीत लिया था। आज फिर वह अवसर आ गया है कि आपको योग्यता और परिश्रम के बल पर पदोन्नति मिली है, आप इस पदोन्नति के सच्चे हकदार हैं। भविष्य में भी आप अपने सहकर्मियों के लिए एक आदर्श बने रहेंगे। आपके उज्ज्वल भविष्य के लिए ढेर सारी शुभकामनाएँ।
जयंत शुक्ल

7. अपनी पूजनीया माता जी को जन्मदिवस की शुभकामनाएँ देते हुए 30-40 शब्दों में संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

14 अप्रैल, 20
नई दिल्ली
खुद से पहले तुम मुझे खिलाती थी,
रोने पर तुम भी बच्चा बन जाती थी,
खुद जाग-जागकर मुझे सुलाती थी,
शिक्षक बनकर तुम मुझे पढ़ाती थी,
कभी बहन कभी सहेली बन जाती थी।
आपने-अपने प्रेम, परम त्याग और आदर्शों से पूरे परिवार को प्रेम के धागे में बाँधे रखा। हमेशा अपने मश्दु अनुभवों से हमारा मार्गदर्शन किया। मैंने माँ के रूप में सच्ची सहेली और शिक्षिका पाया। आपके चरणों में शत-शत नमन। जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएँ।
अनन्या

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8. मोबाइल फोन को कम उपयोग करने के लिए विद्यार्थियों को 30-40 शब्दों में संदेश लिखिए।
उत्तर :

संदेश

22 जुलाई, 20
नई दिल्ली
प्रिय विद्यार्थियो
खोजा बहुत ही उसको, नहीं मुलाकात हुई उससे।
घर-घर में खिलता था वह बचपन बिना मोबाइल जो।
जो करता दुरुपयोग इसका नर्वस सिस्टम होता खराब।
बीमारियों का आमंत्रण, डिप्रैशन, अनेक विकार।
स्मरण शक्ति का निश्चय होता है ह्रास।
रवि

9. अपनी छोटी बहन के जन्मदिवस पर उसे एक बधाई संदेश 30-40 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
शुभकामना संवेश
दिनांक : 6 नवंबर, 20
समय : प्रातः 6 : 00 बजे
प्रिय आयुषि
जन्मदिन की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ।
खुशियाँ व सफलता तुम्हारे कदम चूमें। मेरी ईश्वर से यही दुआ है कि तुम दीर्घायु हो, स्वस्थ रहो और प्रगति के मार्ग प्रशस्त करती रहो। तुम्हारी बड़ी बहन
कामिनी

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10. ‘शिक्षक दिवस’ के अवसर पर अपने हिंदी शिक्षक के लिए एक भावपूर्ण संदेश 30-40 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
दिनांक : 5 सितंबर, 20 संदेश
समय : प्रातः 8: 00 बजे
आदरणीय गीता मैडम
शिक्षक-दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
“मातृभाषा (हिंदी) का हमें ज्ञान कराया
अपने अथक प्रयासों से हमारे भविष्य को चमकाया।
आप जैसे शिक्षक से हमने अपना जीवन धन्य पाया।”
“शिक्षक-दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ”
आपका शिष्य
क० ख० ग०

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10th Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

प्रत्ययस्य परिभाषा – धातोः प्रातिपादिकस्य वा पश्चात् यस्य प्रयोगः क्रियते सः प्रत्ययः इति कथ्यते। (धातु अथवा प्रातिपदिक (शब्द) के पश्चात् जिसका प्रयोग किया जाता है वह प्रत्यय कहा जाता है।)

प्रत्यानां भेदाः – प्रत्ययानां मुख्यरूपेण त्रयो भेदाः सन्ति। ते क्रमशः इमे सन्ति- (प्रत्ययों के मुख्य रूप से तीन भेद हैं। जो क्रमश: ये हैं-)

  1. कृत् प्रत्ययाः
  2. तद्धितप्रत्ययाः
  3. स्त्रीप्रत्ययाः

1. कृत-प्रत्ययाः – येषां प्रत्ययानां प्रयोगः धातोः (क्रियायाः) पश्चात् क्रियते ते कृत् प्रत्ययाः कथ्यन्ते। यथा- (जिन प्रत्ययों का प्रयोग धातु (क्रिया) के पश्चात् किया जाता है वे कृत् प्रत्यय कहे जाते हैं। जैसे -)

कृ + तव्यत् = कर्त्तव्यम् = करना चाहिए।
पठ् + अनीयर् = पठनयीम् = पढ़ना चाहिए।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

2. तद्धितप्रत्ययाः – येषां प्रत्ययानां प्रयोगः संज्ञासर्वनामादिशब्दानां पश्चात् क्रियते ते तद्धितप्रत्ययाः कथ्यन्ते। यथा (जिन प्रत्ययों का प्रयोग संज्ञा, सर्वनाम आदि शब्दों के पश्चात् किया जाता है वे तद्धित प्रत्यय कहे जाते हैं। जैसे-)

शिव + अण् = शैवः।
उपगु + अण् = औपगवः
दशरथ + इञ् = दाशरथिः
धन + मतुप् = धनवान्

3. स्त्रीप्रत्ययाः – येषां प्रत्ययानां प्रयोगः पुंल्लिङ्गशब्दान् स्त्रीलिङ्गे परिवर्तयितुं क्रियते ते स्त्रीप्रत्ययाः कथ्यन्ते। यथा (जिन प्रत्ययों का प्रयोग पुँल्लिङ्ग शब्दों को स्त्रीलिङ्ग में परिवर्तित करने के लिये किया जाता है वे स्त्री प्रत्यय कहे जाते हैं। जैसे-)

कुमार + ङीप् = कुमारी
अज + टाप् = अजा

कृत-प्रत्ययाः

शतृप्रत्ययः
वर्तमानकालार्थे अर्थात् गच्छन् (जाते हुए), लिखन् (लिखते हुए) इत्यस्मिन् अर्थे परस्मैपदिधातुभ्यः शतृप्रत्ययः भवति। अस्य ‘अत्’ भागः अवशिष्यतेः शकारस्य ऋकारस्य च लोपः भवति। शतप्रत्ययान्तस्य शब्दस्य प्रयोगः विशेषणवत् भवति। अस्य पल्लिङ्गे पठत-वत, स्त्रीलिङ्गगे नदी-वत, नपंसकलिङ्गे च जगत-वत चलन्ति। (वर्तमान काल के अर्थ में ‘गच्छन्’ (जाते हुए), लिखन् (लिखते हुए) अर्थात् ‘हुआ’ अथवा ‘रहा’, ‘रहे’ इस अर्थ में (इस अर्थ का बोध कराने के लिए) परस्मैपदी धातुओं में ‘शत’ प्रत्यय होता है। जिसका (शतृ का) ‘अत्’ भाग शेष रहता है, शकार और ऋकार का लोप होता है। ‘शतृ’ प्रत्ययान्त शब्द का प्रयोग विशेषण की तरह होता है। इसके रूप पुंल्लिङ्ग में पठत्-वत्, स्त्रीलिङ्ग में नदी-वत् और नपुसंकलिङ्ग में जगत-वत् चलते हैं।)

शतप्रत्ययान्त-शब्दाः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 1

शतृ प्रत्ययान्त अन्य उदाहरणानि पुँल्लिते (शतृ प्रत्ययान्त अन्य उदाहरण केवल पुँल्लिङ्ग में)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 2

शानच् प्रत्ययः

वर्तमानकालार्थे आत्मनेपदिधातुभ्यः शानच् प्रत्ययः भवति। अस्य शकारस्य चकारस्य च लोपः भवति, ‘आन’ इति अवशिष्यते। शानच् प्रत्ययान्तरस्य शब्दस्य प्रयोगः विशेषणवत् भवति। अस्य रूपाणि पुंल्लिङ्गे रामवत्, स्त्रीलिङ्गे रमावत्, नपुंसकलिङ्गे च फलवत् चलन्ति ! (वर्तमानकाल के अर्थ में आत्मनेपदी धातुओं में शानच प्रत्यय होता है। इसके (शानच् के) शकार और चकार का लोप होता है। ‘अ’ यह शेष रहता है। शानच् प्रत्ययान्त शब्द का प्रयोग विशेषण की तरह होता है। इसके रूप पुल्लिङ्ग में राम-वत् स्त्रीलिङ्ग में रमा-वत्, और नपुंसकलिङ्ग में फल-वत् चलते हैं।)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

शानच् प्रत्ययान्त-शब्दाः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 3

शानच् प्रत्ययान्त अन्य उदाहरणानि (पुल्लिड़े) (अन्य उदाहरण केवल पुल्लिङ्ग में दिये जा रहे हैं।)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 4

तव्यत्-प्रत्ययः

तव्यत् प्रत्ययस्य प्रयोग: हिन्दीभाषायाः ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ इत्यस्मिन् अर्थे भवति। अस्य ‘तव्य’ भागः अवशिष्यते, तकारस्य च लोपः भवति। अयं प्रत्ययः भाववाच्ये अथवा कर्मवाच्ये एव भवति। तव्यत्-प्रत्ययान्तशब्दानां रूपाणि पुँल्लिङ्गे रामवत्, स्त्रीलिङ्गे रमावत्, नपुंसकलिङ्गे च फलवत् चलन्ति। (तव्यत् प्रत्यय का प्रयोग हिन्दी भाषा के ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ इस अर्थ में होता है। इसका (तव्यत् का) ‘तव्य’ शेष रहता है और तकार का लोप होता है। यह प्रत्यय भाववाच्य में अथवा कर्मवाच्य में ही होता है। तव्यत् प्रत्ययान्त शब्दों के रूप पुंल्लिङ्ग में राम-वत्, स्त्रीलिङ्ग में रमा-वत् और नपुंसकलिङ्ग में फल-वत् चलते हैं।)

तव्यत् प्रत्ययान्त शब्दाः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 5

तव्यत् प्रत्ययान्त अन्य उदाहरणानि केवल पुल्लिङ्गे (तव्यत् प्रत्ययान्त अन्य उदाहरण केवल पुंल्लिङ्ग में)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 6

अनीयर्-प्रत्ययः

अनीयर् प्रत्ययः तव्यत् प्रत्ययस्य समानार्थकः अस्ति। अस्य प्रयोगः हिन्दीभाषायाः ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ इत्यर्थे भवति। अस्य ‘अनीय’ भागः अवशिष्यते, रेफस्य च लोपः भवति। अयं प्रत्ययः कर्मवाच्ये अथवा भाववाच्ये एव भवति। अनीयर्-प्रत्ययान्त-शब्दानां रूपाणि पुंल्लिङ्गे रामवत्, स्त्रीलिङ्गे रमावत्, नपुंसकलिङ्गे च फलवत् चलन्ति। (‘अनीयर्’ प्रत्यय ‘तव्यत्’ प्रत्यय का समानार्थक है। इसका प्रयोग हिन्दी भाषा के ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ इस अर्थ में होता है। इसका (अनीयर का) ‘अनीय’ भाग शेष रहता है और रेफ का लोप होता है। यह प्रत्यय कर्मवाच्य अथवा भाववाच्य में ही होता है। अनीयर् प्रत्ययान्त शब्दों के रूप पुंल्लिङ्ग में राम-वत्, स्त्रीलिङ्ग में रमा-वत् और नपुंसकलिङ्ग में फल-वत् चलते हैं।)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

अनीयर्-प्रत्ययान्तशब्दाः

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अनीयर् ग्रहणीयम् अनीयर प्रत्ययान्त अन्य उदाहरणानि केवल पुंल्लिने (अनीयर् प्रत्ययान्त अन्य उदाहरण केवल पुंल्लिङ्ग में)

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क्तिन प्रत्यय-स्त्रियां क्तिन:

भाववाचक शब्द की रचना के लिए सभी धातुओं से ‘क्तिन’ प्रत्यय होता है। इसका ‘ति’ भाग शेष रहता है, ‘कृ’ और “न्’ का लोप हो जाता है। ‘क्तिन’ प्रत्ययान्त शब्द स्त्रीलिंग में ही होते हैं। इनके रूप ‘मति’ के समान चलते हैं।
उदाहरण –

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 9

ल्युट्-प्रत्ययः

भाववाचक शब्द की रचना के लिए सभी धातुओं से ल्युट् प्रत्यय जोड़ा जाता है। इसका ‘यु’ भाग शेष रहता है तथा ‘ल’ और ‘ट्’ का लोप हो जाता है। ‘यु’ के स्थान पर ‘अन’ हो जाता है। ‘अन’ ही धातुओं के साथ जुड़ता है। ल्युट्-प्रत्ययान्त शब्द प्रायः नपुंसकलिङ्ग में होते हैं। इनके रूप ‘फल’ शब्द के समान चलते हैं।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

ल्युट्-प्रत्ययान्तशब्दाः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 10

तृच् प्रत्ययः

कर्ता अर्थ में अर्थात् हिन्दी भाषा में ‘करने वाला’ इस अर्थ में धातु के साथ तृच् प्रत्यय होता है। इसका ‘तृ’ भाग शेष रहता है और ‘च्’ का लोप हो जाता है। तृच्-प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं।

कृ + तृच् = कर्तृ (कर्ता)
पा + तृच् = पातृ (पिता)
गम् + तृच् = गन्तृ (गन्ता)
हृ + तृच् = हर्तृ (हर्ता)
भृ + तृच् = भर्तृ (भर्ता)

अन्य उदाहरण –

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 11

2. तद्धित-प्रत्ययाः

मतुप् प्रत्ययः
‘तदस्य अस्ति’ (वह इसका है अथवा वाला) अथवा ‘अस्मिन्’ (इसमें) इत्यर्थे तद्धितस्य मतुप् प्रत्ययः भवति। अस्य ‘मत्’ भागः अवशिष्यते, उकारस्य पकारस्य च लोपो भवति। ‘मत्’ इत्यस्य स्थाने क्वचित् ‘वत्’ इति भवति। मतुप् प्रत्ययान्तशब्दानां रूपाणि पुंल्लिङ्गे भगवत्-वत्, स्त्रीलिङ्गे ई (ङीप्) प्रत्ययं संयोज्य नदीवत्, नपुंसकलिङ्गे च जगत्-वत् चलन्ति। (‘वह इसका है’ अथवा ‘वाला’ अथवा ‘इसमें’ इन अर्थों में तद्धित का ‘मतुप्’ प्रत्यय होता है। इसका (मतुप् का) ‘मत्’ शेष रहता है, और उकार तथा पकार का लोप होता है। ‘मत्’ के स्थान पर कहीं ‘वत्’ भी होता है। मतुप् प्रत्ययान्त शब्दों के रूप पुंल्लिङ्ग में ‘भगवत्-वत्’, स्त्रीलिङ्ग में ‘ई’ (ङीप्) प्रत्यय जोड़कर ‘नदीवत्’ और नपुंसकलिङ्ग में ‘जगत्-वत्’ चलते हैं।)
इदमत्र अवगन्तव्यम् (यहाँ इसको जान लेना चाहिए।)
“वत्’ इत्यस्य प्रयोगः प्रायः इयन्तशब्देभ्यः अथवा झकारान्तशब्देभ्यः भवति। यथा- (‘वत्’ इसका प्रयोग प्रायः झकारान्त शब्दों अथवा अकारान्त शब्दों में होता है जैसे-)
झयन्तेभ्यः – विद्युत् + मतुप् = विद्युत्वत्
अकारान्तेभ्य – धन + मतुप् = धनवत्
विद्या + मतुप् = विद्यावत्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

‘मत्’ इत्यस्य प्रयोगः प्रायः झकारान्तशब्देभ्यः भवति। यथा- (‘मत्’ इसका प्रयोग प्रायः इकारान्त शब्दों के साथ होता है। जैसे-)
श्री + मतुप् – श्रीमत्
बुद्धि + मतुप् + बुद्धिमत्

मतुप् प्रत्ययान्तशब्दाः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 12

2. इन्-ठन् प्रत्ययौ

‘अत इनिठनौ’ अकारान्ताद् प्रातिपदिकाद् ‘तदस्य अस्ति’ (वह इसका है) अथवा ‘अस्मिन्’ (इसमें) इत्यर्थे इनिठनौ प्रत्ययौ भवतः। (‘वह इसका है’ अथवा ‘इसमें’ इस अर्थ में अकारान्त प्रातिपदिक (संज्ञा शब्दों) से ‘इन्’-‘ठन्’ प्रत्यय होते हैं।)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

इनि – प्रयोगकाले ‘इनि’ प्रत्ययस्य ‘इन्’ अवशिष्यते, स च प्रथमाविभक्त्यर्थके ‘सु’ प्रत्यये ‘इ’ रूपे परिवर्तते। यथा-दण्डम् अस्य अस्तीति = दण्ड + इन् = दण्डिन् सु = दण्डी। ठन्- प्रयोगकाले ‘ठन्’ प्रत्ययस्य ‘ठ’ इति शिष्यते। ठस्य स्थाने च ‘इक’ आदेश: “ठस्येकः” सूत्रेण जायते। (‘इनि’ के प्रयोग में ‘इनि’ प्रत्यय का ‘इन्’ शेष रहता है और वह प्रथमा विभक्ति के अर्थ में ‘स’ प्रत्यय ‘ई’ रूप में परिवर्तित हो जाता है। जैसे- ‘दण्डम्’ इसका होता है दण्ड + इन = दण्डिन् प्रथमा विभक्ति में ‘सु’ प्रत्यय लगने पर- ‘दण्डिन् + सु’ ‘सु’ ‘ई’ रूप में परिवर्तित होकर दण्डी यह रूप बना। ‘ठन्’ का प्रयोग करने में ‘ठन्’ प्रत्यय का ‘ठ’ शेष रहता है। ‘ठ’ के स्थान पर ‘इक’ आदेश ‘ठस्येक’ सूत्र से होता है।)
यथा- दण्डम् अस्य अस्तीति- दण्ड + ठन् (ठ) दण्ड + इक = दण्डिकाः। उदाहरणानि
(जैसे- ‘दण्डम्’ इसका होता है – दण्ड + ठन् (ठ) = दण्ड + इक = दण्डिकः। उदाहरण-)

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3. स्व-तल प्रत्ययो- ‘तस्य भावस्त्वतली’- षष्ठीसमर्थात् प्रातिपदिकात् भाव इत्येतस्मिन्नर्थे त्व-तली प्रत्ययो भवतः। प्रयोगस्थलेषु त्व प्रत्ययान्तशब्दस्य रूपाणि फलवत् नपुंसकलिङ्गमनुसरन्ति। तथैव तल् प्रत्ययान्तशब्दस्य रूपाणि लतावत् स्त्रीलिङ्गे चलन्ति। यथा- (‘तस्य भावस्त्वतलौ’ षष्ठी से समर्थित प्रातिपदिक (संज्ञा शब्द) से भावाचक के अर्थ में त्व-तलौ प्रत्यय होते हैं।) अर्थात् भाववाचक संज्ञा बनाने के लिये किसी शब्द में त्व अथवा तल् (ता) प्रत्यय लगाते हैं।) प्रयोग स्थलों में ‘तव’ प्रत्ययान्त शब्द के रूप फल-वत् नपुंसकलिङ्ग में चलते हैं। उसी प्रकार ‘तल’ प्रत्यन्त शब्द के रूप लता-वत् स्त्रीलिङ्ग में चलते हैं। जैसे-)

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3. स्त्री-प्रत्ययाः

टाप प्रत्ययः- ‘अजाद्यतष्टाप’- अजादिभ्यः अकारान्तेभ्यश्च प्रातिपदिकेभ्यः स्त्रियां टाप टाप्प्रत्ययान्तशब्दानां रूपाणि आकारान्ताः स्त्रीलिङ्गे रमा-वत् चलन्ति। यथा- (‘अजाद्यतष्टाप्’- अकारान्त पुंल्लिङ्ग शब्दों से स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए उनके आगे ताप् (आ) प्रत्यय होता है। अर्थात् भाववाचक एंत्रा बनाने के लिये किसी शब्द में त्व अथवा तल (ता) प्रत्यय लगाते हैं। प्रयोग स्थलों में ‘त्व’ प्रत्ययान्त शब्द के रूप में फल. -वत् नपुंसकलिङ्ग में चलते हैं। उसी प्रकार ‘तल’ प्रत्ययान्त शब्द के रूप लता-वत् स्त्रीलिंग में चलते हैं। जैसे-)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 15

टाप-प्रत्ययान्तशब्देषु क्वचित् अकारस्य इकारः भवति। यथा – (टाप् प्रत्ययान्त शब्दों में कहीं अकार का इकार होता है। जैसे-)

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2. गीप् प्रत्ययः – (1) ‘न्नेभ्यो गीप्’ – ऋन्त्रेभ्यो डीप् – नकारान्तेभ्यश्च प्रातिपादिकेभ्यः (शब्देभ्यः) स्त्रियाम् (स्त्रीलिओं) छीप् प्रत्ययो भवति। जीप् प्रत्ययस्य ‘ई’ अवशिष्यते। सामान्य-प्रयोगस्थले छात्रैः जीवन्ताः शब्दाः ईकारान्त-रूपेण स्मर्यन्ते। (‘अत्रेभ्यो जीप’ – प्रकारान्त और नकारान्त (पल्लिा ) शब्दों में स्त्रीलिज बनाने के लिए जीप (1) प्रत्यय होता है। डीप् प्रत्यय का ‘ए’ शेष रहता है। सामान्य प्रयोग स्थल में छात्रों द्वारा सीबत इकारान्त शब्दों के रूप में स्मरण किये जाते है।)

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(ii) ‘उगितश्च’ – उगिदन्तात् प्रातिपादिकात् स्त्रियां ङीप् प्रत्ययो भवति। येषु प्रत्येषु ‘उ, ऋ लु’ इत्येतेषां वर्णानाम् इत्संज्ञकत्वे लोपः ज्ञातः ते उगित् प्रत्ययाः। तैः प्रत्ययैः ये शब्दाः निर्मिताः ते उगिदन्ताः शब्दाः प्रातिपादिकाः वा, तेभ्यः उगिदन्तेभ्यः स्त्रियां ङीप् प्रत्यय: स्यात्। (ऐसे प्रातिपादिकों से जिनमें उकार और ऋकार का लोप होता है (मतुप, वतुप, इयसु, तवतु, शत से बने हुए शब्दों से) स्त्रीलिङ्ग बनाने में ङीप् (ई) प्रत्यय होता है। जिन प्रत्ययों में ‘उ, ऋ, लु’ इन वर्गों की इत्संज्ञा होकर लोप हो जाता है वे ‘उगित’ प्रत्यय हैं। उन प्रत्ययों से जो शब्द निर्मित होते हैं वे उगिदन्त शब्द अथवा प्रातिपदिक होते हैं, उन उगिदन्तों से स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए डीप (ई) प्रत्यय होवे।)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 18

(iii) ‘टिड्ढाणद्वयसज्दनज्मात्रच्तयप्टक्ठकञ्क्वरपः’ – टित्, ढ, अण, अब, द्वयसच्, दनच, मात्रच्, तयप्, ठक, ठ, कम्, क्वरप्, इत्येवमन्तेभ्यः अनुपसर्जनेभ्यः प्रातिपदिकेभ्यः स्त्रियां ङीप् प्रत्ययो भवति। उदाहरणानि- (टित्, ढ, अण, अञ् द्वयसच्, दनच, मात्र, तयप्, ठक्, ठञ्, कञ्, क्वरप् इनसे अन्त होने वाले शब्दों के अनन्तर स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए डीप (ई) प्रत्यय होता है। जैसे-)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 19

(iv) ‘वयसि प्रथमे’ – प्रथमे वयसि वर्तमानेभ्यः उपसर्जनरहितेभ्यः अदन्तेभ्यः प्रातिपदिकेभ्यः स्त्रियां ङीप् प्रत्ययो भवति। उदाहरणानि- (प्रथम वयस् (अन्तिम अवस्था को छोड़कर) का ज्ञान कराने वाले अदन्त शब्दों के अन्तर स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए डीप (ई) प्रत्यय होता है। जैसे-)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 20

(v) षिद्गौरादिभ्यश्च – (पा. सू.)- जहाँ ‘ष’ का लोप हुआ हो (षित्) तथा गौर, नर्तक, नट, द्रोण, पुष्कर आदि गौरादिगण में पठित शब्दों से स्त्रीलिंग में ङीष् (ई) प्रत्यय होता है। यथा –
गौरी, नर्तकी, नटी, द्रोणी, पुष्करी, हरिणी, सुन्दरी, मातामही, पितामही, रजकी, महती आदि।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

(vi) द्विगो:- द्विगुसंज्ञाकाद् अनुपसर्जनाद् अदन्तात् प्रातिपदिकात स्त्रियां ङीप् प्रत्ययो भवति।
अयमर्थः – अदन्ताः ये द्विगुसंज्ञकाः शब्दः तेभ्यः स्त्रीलिङ्गे ङीप् प्रत्ययः स्यात्। उदाहरणानि
(अदन्त जो द्विगुसंज्ञक शब्द हैं उनसे स्त्रीलिङ्ग में (स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए) ङीप् प्रत्यय होता है। जैसे-)

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 21

(vii) पुंयोगादाख्यायाम-पुरुषवाचक अकारान्त शब्द प्रयोग से स्त्रीलिंग हो तो उससे ङीष् (ई) हो जाता है। यथा गोपस्य स्त्री – गोप + ई = गोपी, शूद्रस्य स्त्री – शूद्र + ई = शूद्री।

(viii) जातेश्रस्त्रीविषयादयोपधात्-जो नित्य स्त्रीलिंग और योपध नहीं है, ऐसे जातिवाचक शब्द से स्त्रीलिंग में ङीष् होता है। ङीष् का भी ‘ई’ शेष रहता है। यथा –
ब्राह्मण + ई = ब्राह्मणी, मृग – मृगी, महिषी, हंसी, मानुषी, घटी, वृषली आदि।

(ix) इन्द्रवरुणभवशर्व० – इन्द्र आदि शब्दों से स्त्रीलिंग बनाने पर अनुक् (आन्) और ङीष् (ई) प्रत्यय होता है। यथा –
इन्द्र की स्त्री-इन्द्र + आन् + ई = इन्द्राणी, वरुण-वरुणानी, भाव-भवानी, शर्व-शर्वाणी, मातुल-मातुलानी, रुद्र-रुद्राणी, आचार्य-आचार्यानी आदि।

(x) यव’ शब्द से दोष अर्थ में, यवन शब्द से लिपि अर्थ में तथा अर्य एवं क्षत्रिय शब्द से स्वार्थ में आनुक् (आन्) और ङीष् (ई) होता है। जैसे –
यव + आन् + ई = यवानी, यवन + आन् + ई = यवनानी।
मातुलानी, उपाध्यायानी, आर्याणी, क्षत्रियाणी-इनमें भी स्त्री अर्थ में ङीष् होता है।

(xi) हिमारण्ययोर्महत्त्वे – महत्त्व अर्थ में हिम और अरण्य शब्द से ङीष् और आनुक् होता है। यथा महद् हिम-हिम + आन् + ई = हिमानी। (हिम की राशि) महद् अरण्यम् अरण्यानी (विशाल अरण्य)

(xii) वोतो गुणवचनात् – गुणवाचक उकारान्त शब्दसे स्त्रीलिंग बनाने के लिए विकल्प से ङीष् (ई) प्रत्यय होता है। यथा
मृदु से मृद्वी, पटु से पट्वी, साधु से साध्वी।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

(xiii) इतो मनुष्यजाते: – इदन्त मनुष्य जातिवाचक शब्द से स्त्रीलिंग बनाने पर ङीष् (ई) होता हैं जैसे दाक्षि + ई = दाक्षी (दक्ष के पुत्र की स्त्री)

(xiv) बहु आदि शब्दों से, शोण तथा कृत्प्रत्ययान्त इकारान्त शब्दों से तथा नासिका-उत्तरपद वाले शब्दों से विकल्प से ङीष् प्रत्यय होता है। यथा –

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 24

अभ्यासः

प्रश्न 1.
प्रदत्तेषु उत्तरेषु प्रत्ययानुसार यत् उत्तरम् शुद्धम् अस्ति, तत् चित्वा लिखत –
(दिए गये उत्तरों में प्रत्यय के अनुसार जो उत्तर शुद्ध हो, उसे चुनकर लिखिए)
1. गुरवः ……………. (वन्द् + अनीयर)
(अ) वन्दनीयः
(ब) वन्दनीयम्
(स) वन्दनीयाः
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(अ) वन्दनीयः

2. मानवसेवां ……………. (कृ + शानच्) वृक्षाः केषां न हितकराः।
(अ) कुर्वाणः
(ब) कुर्वाणाः
(स) कुर्वाणा
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(अ) कुर्वाणः

3. ……………. (छाया + मतुप्) वृक्षाः आश्रयं यच्छन्ति।।
(अ) छायावान्
(ब) छायावन्तौ
(स) छायावन्तः
(द) न कोऽपि (कोकिल + टाप्)
उत्तरम् :
(स) छायावन्तः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

4. ……………. आम्रवृक्षे मधुरं गायति।
(अ) कोकिला
(ब) कोकिले
(स) कोकिला:
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(अ) कोकिला

5. ……………. (बल + इन) निर्बलान् रक्षन्ति।
(अ) बलिन्
(ब) बलिनी
(स) बलिनः
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(स) बलिनः

6. अस्माभिः परस्परं स्नेहेन ……………. (वस् + तव्यत्)।
(अ) वसितव्यः
(ब) वसितव्या
(स) वसितव्यम्
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(स) वसितव्यम्

7. उद्यमस्य ……………. (महत् + त्व) सर्वविदितम् एव।
(अ) महत्त्वः
(ब) महत्त्वम्
(स) महत्त्वा
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(ब) महत्त्वम्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

8. ……………. (वर्ष + ठक् + ङीप) परीक्षा समीपम् एव।
(अ) वार्षिकी
(ब) वार्षिकी
(स) वार्षिकम्
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(अ) वार्षिकी

9. त्वं कर्त्तव्यनिष्ठः ……………. (अधिकार + इन्) असि।
(अ) अधिकारी
(ब) अधिकारिन्
(स) अधिकारिणी
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(अ) अधिकारी

10. छात्रैः अनुशासनम् ……………. (पाल् + अनीयर)।
(अ) पालनीयः
(ब) पालनीया
(स) पालनीयम्
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(स) पालनीयम्

11. मानवः ……………. (समाज + ठक्) प्राणी अस्ति।
(अ) सामाजिकः
(ब) सामाजिकी
(स) सामाजिकम्
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(अ) सामाजिकः

12. ……………. (लौकिक + ङीप्) उन्नतिः यश: वर्धयति।
(अ) लौकिकः
(ब) लौकिकी
(स) लौकिकम्
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(ब) लौकिकी

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

13. (शिष्य + टाप) ……………. जलेन लताः सिञ्चति।
(अ) शिष्या
(ब) शिष्ये
(स) शिष्या
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(स) शिष्या

14. गुरोः (गुरु + त्व) वर्णयितुं न शक्यते।
(अ) गुरुत्वम्
(ब) गुरुत्वः
(स) गुरुत्वम्
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(अ) गुरुत्वम्

15. मा भव …………….. (मान + णिनि)।
(अ) मानी
(ब) मानिनौ
(स) मानिनः
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(अ) मानी

16. (उदार + तल्) ……………. गुणः न सुलभः।
(अ) उदारतम्
(ब) उदारता
(स) उदारतः
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(ब) उदारता

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

17. ……………. (राजन् + ङीप) प्रासादं गच्छति।
(अ) राजनी
(ब) राजिनी
(स) राज्ञी
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(स) राज्ञी

18. गता रेल …………… (गन्तु + ङीप्)।
(अ) गन्त्री
(ब) गन्त्री
(स) गन्त्र्यः
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(ब) गन्त्री

19. एकं …………… (सप्ताह + ठक्) पत्रम् आनय।।
(अ) साप्ताहिकः
(ब) साप्ताहिकी
(स) साप्ताहिकम्
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(स) साप्ताहिकम्।

20. …………… (योग + इनि) ईश्वरं भजन्ते।
(अ) योगी
(ब) योगिनो
(स) योगिनः
(द) न कोऽपि
उत्तरम् :
(स) योगिनः।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

प्रश्न 2.
रिक्तस्थानानि यथानिर्दिष्ट पदेन पूरयत – (रिक्त-स्थानों की पूर्ति निर्देशानुसार कीजिए-)
(क) रूपं यथा ………….” महार्णवस्य। (शम् + क्त)
(ख) ” ” नृत्यन्ति। (शिखा + इनि)
(ग) सलिलतीरं ……………. पक्षिण: वायसगणाः च। (वस् + णिनि)
(घ) अपयानक्रमो नास्ति …………”” अप्यन्यत्र को भवेत्। (नी + तृच)
(ङ) तत्किमत्र प्राप्तकालं स्यादिति
समहात्मास्वकीय सत्यतपोबलमेव तेषां रक्षणोपायम् अमन्यत्। (वि + मृश् + शतृ)
(च) स्मरामि न प्राणिवधं यथाहं ………. कृच्छ्रे परमेऽपि कर्तुम्। (सम् + चिन्त् + ल्यप्)
(छ) अतः शील विशद्धौ ……..” …..” (प्र + यत् + तव्यत्)
(ज) …………” राज संसत्सु श्रुतवाक्या बहुश्रुता ! (वि + श्रु + क्त + टाप्)
(झ) स लोके लोके लभते कीर्तिं परत्र च शुभां (गम् + क्तिन्)
(ब) ततः प्रविशति दारकं ………” रदनिका। (ग्रह + क्तवा)
(ट) उष्णं हि ………….. स्वदते। (भुज् + कर्म + शानच)
(ठ) कालोऽपि नो ……………” यमो वा। (नश् + णिच् + तुमुन्)
(ड) अस्ति कालिन्दीतीरे …… पुरं नाम नगरम् (योग + इनि + ङीप)
(ढ) हम्मीरदेवेन साकं युद्धं ……… “। (कृ + क्तवतु)
(ण) सः पराक्रमं …”दुर्गान्निः सृत्य सङ्ग्रामभूमौ निपपात्। (कृ + शानच्)
उत्तराणि –
(क) शान्तम्
(ख) शिखिनः
(ग) वासिनः
(घ) नेता
(ङ) विमृशन्
(च) सञ्चिन्त्य
(ज) विश्रुता
(झ) गीतम्
(ञ) गृहीत्वा
(ट) भुज्यमान
(ठ) नाशायतुम्
(ड) यागिना
(ढ) कृतवान्
(ण) कुर्वाणः।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

प्रश्न 3.
रिक्तस्थानं प्रकोष्ठात् पदं चित्वा लिखत – (रिक्तस्थान को कोष्ठक से पद चुनकर भरो-)
(क) इति दारकमादाय …………….. रदनिका। (निष्क्रान्तः/निष्क्रान्ता)
(ख) मम हृदये नित्य …………….. स्तः। (सन्निहितो/सन्निहितः)
(ग) किन्तु अनुज्ञां गन्तु शक्येत्। .. (प्राप्त्वा/प्राप्य)
(घ) वार्तालापं …………….. भृत्यौ रत्ना च बहिरायान्ति। (श्रुतौ/श्रुत्वा)
(ङ) दारकस्य कर्णमेव ……………” प्रवृत्तोऽसि। (भङ्क्तुम्/भञ्जयितुम्)
(च) ……………..” अस्मि तव न्यायालये। (पराजित:/पराजितम्)
(छ) रामदत्तहरणौ …………….” आगच्छतः। (धावन्ता/धावन्तौ)
(ज) देवस्य शत्रु ………….” प्रभोर्मनोरथं साधयिष्यामः। . (हनित्वा/हत्वा)
(झ) रे रे “” …………. ! अहं यवनराजेन समं योत्स्यामि। (योद्धाः/योद्धार:!)
(ब) रक्ष स्व ………….. परहा भवार्यः। (जातिम्/जात्याः)
(ट) नशक्तो कालोपि नो ……………..। (नष्टुम्/नाशयितुम्)
(ठ) अतिविलम्बितं हि ………….. न तृप्तिमधिगच्छति। (भुञ्जन्/भुञ्जानो)
(ड) …………” चाग्निमौदर्यमुदीयति। (भुक्तम्/भुक्त:)
(ढ) स्वबाहुबलम् … योऽभ्युज्जीवति सः मानवः। (आश्रित्य/आश्रित्वा)
(ण) निर्जितं सिन्धुराजेन …………..” दीनचेतसम्। (शयमानम्/शयानम्)
उत्तराणि –
(क) निष्क्रान्ता
(ख) सन्निहितौ
(ग) प्राप्य
(घ) श्रुत्वा
(ङ) भञ्जयितुम्
(च) पराजितः
(छ) धावन्तौ
(ज) हत्वा
(झ) योद्धारः !
(ब) जातिम्
(ट) नाशयितुम्
(ठ) भुञ्जानो
(ड) भुक्तम्
(ढ) आश्रित्य
(ण) शयानम्।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

प्रश्न 4.
प्रकृतिप्रत्ययं योजयित्वा पदरचनां कुरुत – (प्रकृति-प्रत्यय को जोड़कर पदरचना कीजिये।)
(क) (सम् + उद् + बह + शतृ) सलिलाऽतिभारं बलाकिनो वारिधराः नदन्तः।
(ख) शालिवनं (वि + पच् + क्त)
(ग) तान् मत्स्यान् (भक्ष् + तुमुन्) चिन्तयन्ति।
(घ) (मुह + क्त) मुखेन अति करुणं मन्त्रयसि।
(ङ) जीवितार्थं कुलं (त्यज् + क्तवा) यो जनोऽतिदूरं व्रजेत् किं तस्य जीवितेन ?
(च) तेन (रक्ष + अनीयर) रक्षा भविष्यन्ति।
(छ) भृत्यौ (हस् + शत) गृहाभ्यन्तरं पलायेते।
(ज) भो किं (कृ + क्तवतु) सिन्धु।
(झ) स्वपुस्तकालये (नि + सद् + क्त) दूरभाषयन्त्रं बहुषः प्रवर्तयति।
(ब) वत्स सोमधर ! मित्रगृहान्नैव (गम् + तव्यत्)
(ट) देवागारे (अपि + धा + क्त) द्वारे भजसे किम् ?
(ठ) ध्यानं (हा + क्त्वा) बहिरेहित्वम्।
(ड) शाकफल (वि + क्री + तृच्) दारकः कथं त्वामतिशेते।
(ढ) स लोके लभते (क + क्तिन्)
(ण) तद् ग्रहाण एतम् (अलम् + कृ + ण्वुल्)।
उत्तराणि :
(क) समुद्वहन्तः
(ख) विपक्वम्
(ग) भक्षितुम्
(घ) मुग्धेन
(ङ) त्यक्त्वा
(च) रक्षणीय
(छ) हसन्तौ
(ज) कृतवान्
(झ) निषण्णः
(ब) गन्तव्यम्
(ट) पिहित
(ठ) हित्वा
(ड) विक्रेतुः
(ढ) कीर्तिम
(ण) अलङ्कारकम्।।

प्रश्न 5.
कोष्ठकेषु प्रदत्तैः शब्दैः प्रकृति-प्रत्ययानुसारं रिक्तस्थानपूर्तिः करणीया। (कोष्ठकों में दिए गए शब्दों से प्रकृति-प्रत्यय के अनुसार रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए।)
1. (i) पाठः तु सदैव ध्यानेन एव ………………। (पठ् + अनीयर)
(ii) छात्रैः समये विद्यालयः ………………। (गम् + तव्यत्)
(iii) ……………. पुरुषः सफलतां लभते। (यत् + शानच्)
(iv) ……………. बालकः हसति। (गम् + शतृ)
(v) वाराणस्याम्……………. पुरुषाः निवसन्ति। (धर्म + ठक्)
उत्तराणि :
(i) पठनीयः
(ii) गन्तव्यः
(iii) यतमानः
(iv) गच्छन्
(v) धार्मिकाः।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

2. (i) (विद्या + मतुप्) ……………… सर्वत्र सम्मान्यते।
(ii) पुत्रेण अनुशासनम् (पाल् + अनीयर) ……………।
(iii) सदा (सुख + इन्) …………… भव।
(iv) शस्त्रहीनः न (हन् + तव्यत्) ………………।
(v) जीवने (महत् + त्व) ……………… लभस्व।
उत्तराणि :
(i) विद्यावान्
(ii) पालनीयम्
(iii) सुखी
(iv) हन्तव्यः
(v) महत्त्वम्।

3. (i) बालिकाभिः राष्ट्रगीतं ……………… (गै + तव्यत्)।
(ii) छात्रैः ……………… (उपदेश) पालनीयाः।
(iii) ……………… (युष्मद्) शुद्धं जलं पातव्यम्।
(iv) मुनिभिः ……………… (तपस्) करणीयम्।
(v) न्यायाधीशेन न्यायः ……………..(कृ + अनीयर्)।
उत्तराणि :
(i) गातव्यम्
(ii) उपदेशाः
(iii) युष्माभिः
(iv) तपः
(v) करणीयः।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

4. (i) ……………… (भवति) पाठः लेखनीयः।
(ii) विद्वद्भिः कविताः ……………… (रच् + अनीयर)।
(iii) अस्माभिः लताः ……………… आरोपयितव्याः।
(iv) पत्रवाहकेन पत्राणि ………………। (आ + नी + तव्यत्)
(v) ……………… (राजन्) प्रजाः पालनीयाः।
उत्तराणि :
(i) भवत्या
(ii) रचनीयाः
(iii) लताः
(iv) आरोपयितव्याः
(v) राज्ञा।

5. (i) त्वया सन्तुलित आहारः (कृ + तव्यत्) ………………
(ii) तव (कृश + तल्) ……………… मां भृशं तुदति।
(iii) विद्यायाः महत्त्वमपि ……………… (स्मृ + तव्यत्)।
(iv) सद्ग्रन्थाः सदैव ……………… (पठ् + अनीयर्)।
(v) अध्ययनेन मनुष्यः (गुण + मतुप्) ……………… भवति।
उत्तराणि :
(i) कर्त्तव्यः
(ii) कृशता
(iii) स्मर्तव्यम्
(iv) पठनीयाः
(v) गुणवान्।

6. (i) अस्याः ……………… (अनुज + टाप्) दीपिका अस्ति।
(ii) दीपिका क्रीडायाम् ……………… (कुशल + टाप्) अस्ति।।
(iii) प्रभादीपिकयो: माता ……………… (चिकित्सक + टाप्) अस्ति।
(iv) सा समाजस्य ……………… (सेवक + टाप्) अस्ति।
(v) सा तु स्वभावेन अतीव ……………… (सरल + आप्) अस्ति।
उत्तराणि :
(i) अनुजा
(ii) कुशला
(iii) चिकित्सिका
(iv) सेविका
(v) सरला।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

7. (i) छात्रैः समये विद्यालयः (गम् + तव्यत्) ………………।
(ii) अद्य अस्माकं (वर्ष + ठक् + ङीप्) ……………… परीक्षा आरभते।
(iii) पर्यावरणस्य (महत् + त्व) ……………… सर्वे जानन्ति।
(iv) (बुद्धि + मतुप्) ……………… नरः सर्वत्र मानं लभते।
(v) जनकं (सेव् + शानच्) ……………… पुत्रः प्रसन्नः अस्ति।
उत्तराणि :
(i) गन्तव्यः
(ii) वार्षिकी
(iii) महत्त्वम्
(iv) बुद्धिमान्
(v) सेवमानः।

8. (i) मम ……………… (कीदृश + ङीप्) इयं क्लेशपरम्परा।
(ii) मारयितुम् ……………. (इष् + शतृ) स कलशं गृहाभ्यन्तरे क्षिप्तवान्।
(iii) छलेन अधिगृह्य ……………… (क्रूर + तल्) भक्षयसि।
(iv) अधुना ……………… (रमणीय + टाप्) हि सृष्टिरेव।
(v) अनेकानि अन्यानि ……………… (दृश् + अनीयर) स्थलानि अपि सन्त।
उत्तराणि :
(i) कीदृशी
(ii) इच्छन्
(iii) क्रूरतया
(iv) रमणीया
(v) रमणीयता।

9. (i) नृपेण प्रजा (पाल् + अनीयर) ………………।
(ii) आचार्यस्य (गुरु + त्व) ……………… वर्णयितुं न शक्यते।
(iii) पुरस्कार (लभ् + शानच्) ……………… छात्रः प्रसन्नः भवति।
(iv) मनुष्यः (समाज + ठक्) ……………… प्राणी अस्ति।
(v) प्रकृते (रमणीय + तल) ……………… दर्शनीया अस्ति।
उत्तराणि :
(i) पालनीया
(ii) गुरुत्वम्
(iii) लभमानः
(iv) सामाजिकः
(v) रमणीयता।

प्रश्न 6.
कोष्ठके दत्तान् प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा अनुच्छेदं पुनः उत्तर-पुस्तिकायां लिखत –
(कोष्ठक में दिए हुए प्रकृति-प्रत्ययों को जोड़कर अनुच्छेद को पुनः उत्तर-पुस्तिका में लिखिए)
1. पर्यावरणस्य (महत् + त्व) (i) ……………… कः न जानाति ? परं निरन्तरं (वृध् + शानच्) (ii) ……….. प्रदूषणेन मानव जातिः विविधैः रोगैः आक्रान्ता अस्ति। अस्माभिः (ज्ञा + तव्यत्) (iii) …………… यत् पर्यावरणस्व रक्षणे एव अस्माकं रक्षणम्। एतदर्थम् (जन + तल) (iv) …………… जागरूका कर्तव्या। स्थाने स्थाने वृक्षारोपणम् अवश्यम् (कृ + अनीयर) (v) ……………। यतो हि वृक्षाः पर्यावरणरक्षणे अस्माकं सहायकाः सन्ति।
उत्तरम् :
पर्यावरणस्य महत्त्वं कः न जानाति ? परं निरन्तरं वर्धमानेन प्रदूषणेन मानवजातिः विविधैः रोगैः आक्रान्ना अस्ति। अस्माभिः ज्ञातव्यम् यत् पर्यावरणस्य रक्षणे एव अस्माकं रक्षणम्। एतदर्थम् जनता जागरूका कर्त्तव्याः। स्थान-स्थाने वृक्षारोपणम् अवश्यम् करणीयम्। यतो हि वृक्षाः पर्यावरणरक्षणे अस्माकं सहायकाः सन्ति।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

2. ओदनं पचन्ती (i) ……………… (पुत्र + ङीप) कथितवती – किं त्वं जानासि कालस्य (ii) ……….. (महत् + त्व) ? काल: तु सततं चक्रवत् (ii) ……………… (परिवृत् + शानच्) वर्तते। ये जनाः अस्य अस्थिरता अनुभूय स्वकार्याणि यथासमयं कुर्वन्ति, ते एव (iv) ……………… (बुद्धि + मतुप)। ते जनाः (v) ……. (बन्द अनीयर्) भवन्ति।
उत्तरम् :
ओदनं पचन्ती पुत्री कथितवती-किं त्वं जानासि कालस्य महत्त्वम् ? कालः तु सततं चक्रवत् परिवर्तमान वर्तते। ये जनाः अस्य अस्थिरताम् अनुभूय स्वकार्याणि यथासमयं कुर्वन्ति, ते एव बुद्धिमन्तः। ते जनाः वन्दनीया: भाः

3. जानासि अस्माकं विद्यार्थिनां कानि (कृ + तव्यत्) (i) ……………… ? अस्माभिः विद्यालयस्य अनुशासनं (पान + अनीयर) (ii) ………………। सर्वैः सहपाठिभिः सह (मित्र + तल) (iii) ……………… आचरणीया। छात्रजीवने परिश्रमस्य (महत् + तल्) (iv) ……………… वर्तते। सत्यम् एव उक्तम् (सुखार्थ + इन्) (v) ……………… कुतो विद्या?
उत्तरम् :
जानासि अस्माकं विद्यार्थिनां कानि कर्त्तव्यानि ? अस्माभिः विद्यालयस्य अनुशासनं पालनीयम्। सबै सहपाठिभिः सह मित्रता आचरणीया। छात्रजीवने परिश्रमस्य महत्ता वर्तते। सत्यम् एव उक्तम् – सुखार्थिनः मन विद्या ?

4. कार्यं तु सदैव ध्यानेन एव (i) ……………… (कृ + अनीयर)। (ii)……………… (फल + इन्) वृक्षाः एन सदैव नमन्ति। शिक्षायाः (iii) ……………… (महत् + त्व) तु अद्वितीयम् एव। (iv)……………… (वृध् + शानच बालाः नृत्यन्ति। (v) ……………… (अज + टाप्) शनैः शनैः चलति।
उत्तरम् :
कार्यं तु सदैव ध्यानेन एव करणीयम्। फलिनः वृक्षाः एव सदैव नमन्ति। शिक्षायाः महत्त्वं तु अद्वितीयम् एव। वर्धमानाः बालाः नृत्यन्ति। अजा शनैः शनैः चलति।।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

5. एकदा पितरं (सेव् + शानच्) (i) ……………… पुत्रः तम् अपृच्छत् – ‘हे पितः! संसारे कः पूज्यते ? ‘ पिता अवदत् – (गुण + मतुप्) (ii) ……………… सर्वत्र पूज्यते। यः सेवायाः (महत् + त्व) (iii) ……………… सम्यक् जानाति, सः समाजे सदा (वन्द् + अनीयर्) (iv) ……………… भवति। अतः सर्वैः (मानव + तल्) (v) ………… सेवितव्या।’
उत्तरम् :
एकदा पितरं सेवमानः पुत्रः तम् अपृच्छत् – ‘हे पितः, संसारे कः पूज्यते ?’ पिता अवदत् – ‘ गुणवान् सर्वत्र पूज्यते। यः सेवायाः महत्त्वं सम्यक् जानाति, सः समाजे सदा वन्दनीयः भवति। अतः सर्वैः मानवता सेवितव्या।’

6. त्वं (गुण + मतुप्) (i) ……………… असि। तव प्रकृतिः (शोभन + टाप) (ii) ……………… अस्ति। अतः (विनय + इन्) (iii) ……………… अपि भव। सदैव (समाज + ठक्) (iv) ……………… कार्यमपि (कृ + शतृ) (v) ……………… त्वं लोके यशः प्राप्स्यसि।
उत्तरम् :
त्वं गुणवान् असि। तव प्रकृतिः शोभना अस्ति। अतः विनयी अपि भव। सदैव सामाजिक कार्यमपि कुर्वन् त्वं लोके यशः प्राप्स्यसि।

7. छात्रैः यथाकालम् एव विद्यालयस्य कार्यः (i) …………………. (कृ + तव्यत्)। ये छात्राः अध्ययनस्य (ii) ……………… (महत् + त्व) न जानन्ति तेषां कृते (iii) ……………… (सफल + तल) सन्दिग्धा भवति, परञ्च ये छात्रा: आलस्यं विहाय अहर्निशं परिश्रमं कुर्वन्ति तेषां कृते (iv) ……………… (वर्ष + ठक् + ङीप्) परीक्षा भयं न जनयति। (v) ……………… (बुद्धि + मतुप्) छात्राः पुरुषार्थे विश्वसन्ति न तु केवलं भाग्ये। अतः सर्वैः स्वकार्याणि समये (vi) ……………… (कृ + अनीयर)।
उत्तरम् :
छात्रैः यथाकालम् एव विद्यालयस्य कार्यः कर्त्तव्यम्। ये छात्राः अध्ययनस्य महत्त्वं न जानन्ति तेषां कृते सफलता सन्दिग्धा भवति, परञ्च ये छात्रा: आलस्यं विहाय अहर्निशं परिश्रमं कुर्वन्ति तेषां कृते वार्षिकी परीक्षा भयं न जनयति। बुद्धिमन्तः छात्राः पुरुषार्थे विश्वसन्ति न तु केवलं भाग्ये। अतः सर्वैः स्वकार्याणि समये करणीयानि।।

8. पिता पुत्रम् उपादिशत् यत् त्वया कुमार्गः (i) ……………… (त्यज् + तव्यत्) (ii) ……………… (प्र + यत् + शानच्) जनाः साफल्यं प्राप्नुवन्ति। यः नरः सत्यवादी (iii) ……………… (निष्ठा + मतुप्) च सः एव श्रेष्ठः। वृक्षारोपणम् अस्माकं (iv) ……………… (नीति + ठक्) कर्त्तव्यम्। मातृभूमिः सदैव (v)……………… (वन्दनीय + टाप्) भवति।
उत्तरम् :
पिता पुत्रम् उपादिशत् यत् त्वया कुमार्गः त्यक्तव्यः प्रयतमानाः जनाः साफल्यं प्राप्नुवन्ति। यः नरः सत्यवादी निष्ठावान् च सः एव श्रेष्ठः। वृक्षारोपणम् अस्माकं नैतिकं कर्त्तव्यम्। मातृभूमिः सदैव वन्दनीया भवति।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

9. एक: कैयट: नाम विद्वान् आसीत्। सः प्रातः (i) ……………… (काल + इ) शास्त्राणाम् अध्ययने रतः भवति स्म। एकदा राजा तं (ii) ……………… (बुद्धि + मतुप्) द्रष्टुं तस्य कुटीरं (iii) ……………… (गम् + तव्यत्) इति निश्चितवान्। तत्र गत्वा तस्य (iv) ……………… (दरिद्र + तल्) दूरीकर्तुं सः तस्मै स्वर्णमुद्राः अयच्छत्। कैयटः अवदत्- “धनस्य (v) ……………… (लोभ + इन्) जनाः आसक्ताः भूत्वा दुःखिनः भवन्ति। अतः मम आनन्दं मा नाशयतु इति।”
उत्तरम् :
एक: कैयटः नाम विद्वान् आसीत्। सः प्रात:काले शास्त्राणाम् अध्ययने रतः भवति स्म। एकदा राजा तं बुद्धिमन्तं द्रष्टुं तस्य कुटीरं गन्तव्यम् इति निश्चितवान्। तत्र गत्वा तस्य दरिद्रतां दूरीका सः तस्मै स्वर्णमुद्राः अयच्छत्। कैयटः अवदत् – “धनस्य लोभिनः जनाः आसक्ताः भूत्वा दुःखिनः भवन्ति। अतः मम आनन्दं मा नाशयतु इति।”
धानस्य शोभा खलु (i)……………… (दृश् + अनीयर)। शीघ्र-शीघ्रं (ii) ……………… (चल + शतृ) जनाः प्रसन्नाः भवन्ति। ते वायोः (iii) ……………… (शीतल + तल) अनुभवन्ति। (iv) ……………… (पक्ष + इन्) मधुर स्वरेण गायन्ति। बालकाः (v) ……………… (बालक + टाप्) च कन्दुकेन क्रीडन्ति।
उत्तरम् :
प्रात:काले उद्यानस्य शोभा खलु दर्शनीया। शीघ्रं-शीघ्रं चलन्तः जनाः प्रसन्नाः भवन्ति। ते वायोः शीतलताम् अनुभवन्ति। पक्षिणः मधुरस्वरेण गायन्ति। बालकाः बालिकाः च कन्दुकेन क्रीडन्ति।।

11. जीवने शिक्षायाः सर्वाधिकं (i) ……………… (महत् + त्व) वर्तते। बालः भवेत् (ii) ……………… (बालक + टाप्) वा भवेत्, ज्ञान प्राप्तुं सर्वैः एव प्रयत्नः (iii) ……………… (कृ + तव्यत्)। शिक्षिताः (iv) …….. (प्राण + इन्) परोपकारं (v) ………. …. (कृ + शानच) देशस्य सर्वदा हितमेव चिन्तयन्ति।
उत्तरम् :
जीवने शिक्षायाः सर्वाधिक महत्त्वं वर्तते। बालः भवेत् बालिका वा भवेत्, ज्ञानं प्राप्तुं सर्वैः एव प्रयत्नः कर्तव्यः। शिक्षिताः प्राणिनः परोपकारं कुर्वाणा: देशस्य सर्वदा हितमेव चिन्तयन्ति।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित पदों में प्रकृति-प्रत्यय को अलग कीजिए –
अधीतः, जग्धवान्, गृहीत्वा, उपगम्य, पातुम्।।
उत्तरम् :
अधि + इ + क्त; अद् + क्तवतु ग्रह + क्त्वा, उपगम् + ल्यप्, पा + तुमुन्।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में प्रकृति-प्रत्यय का मेल कीजिए –
कर्ता + ङीप, एडक + टाप, भाग् + इनि, बहु + तमप, निम्न + तरप्, रक्ष् + तव्यत्, युध् + शानच्, वस् + शतृ, स्तु + क्तवतु।
उत्तरम् :
की, एडका, भागी, बहुतमः, निम्नतरः, रक्षितव्यः, युध्यमानः, वसन् स्तुतवान्।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित प्रत्ययान्त शब्दों को ‘कृत्”तद्धित’ और ‘स्त्री’ प्रत्ययान्त के रूप में अलग-अलग छाँटिये कोकिला, हन्त्री, शूद्रता, पीत्वा, नीति, भूता, पूजनम्, हन्तव्यः, लेखनीयः, भगवती, लघुता, शिशुत्वम्।
उत्तरम् :
कृत्-पीत्वा, नीति, पूजनम्, हन्तव्यः, लेखनीयः। तद्धित्-शूद्रता, लघुता, शिशुत्वम्। स्त्री-कोकिला, हन्त्री, भूता, भगवती।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

प्रश्न 10.
प्रत्येक धातु में कोई पाँच प्रत्यय जोड़कर उनका एक-एक उदाहरण लिखिए –
पठ्, नम्, पच्, दा, लभ्, दृश्, गम्, हस्, इष्, लभ्।
उत्तरम् :
JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् 23

प्रश्न 11.
अधोलिखितवाक्येषु रेखांकितपदानां प्रकृति-प्रत्यय-विभाग प्रत्ययान्तपदं वा लिखत –
(निम्नलिखित वाक्यों में रेखांकित पदों में प्रकृति-प्रत्यय अलग कीजिये अथवा प्रत्ययान्त शब्द लिखिए-)
(1) अहं शयनं परित्यज्य भ्रमणं गच्छामि।
(2) श्यामः पुस्तकं क्रेतुं गमिष्यति।
(3) मया रामायणं श्रुतम्।
(4) फलं खादन् बालकः हसति।
(5) सुरेशः ग्रामं गत्वा धावति।
(6) सर्वान् विचिन्त्य ब्रू (वच्) + तव्यत्।
(7) मुकेशः भोजनं खाद + शत पुस्तकं पठति।
(8) स: गृहकार्यं कृ + क्त्वा क्रीडति।
(9) सीता ग्रामात् आ + गम् + ल्यप् नृत्यति।
(10) भारत: पठ्+तुमुन् इच्छति।
उत्तर :
(1) परि + त्यज् + ल्यप्,
(2) क्री + तुमुन्,
(3) श्रु+ क्त,
(4) खाद् + शत,
(5) गम् + क्त्वा,
(6) वक्तव्यम्,
(7) खादन्,
(8) कृत्वा,
(9) आगत्य,
(10) पठितुम्।।

प्रश्न 12.
निर्देशम् अनुसृज्य उदाहरणानुसारं संयोज्य वाक्यसंयोजनं क्रियताम्।
(निर्देश का अनुसरण करके उदाहरणानुसार जोड़कर वाक्यों को जोड़िए।)
(क) पूर्ववाक्ये ‘क्त्वा’ प्रत्ययं प्रयुज्य वाक्यं संयोजयत
(पहले वाक्य में ‘क्त्वा’ प्रत्यय का प्रयोग कर वाक्य-संयोजन कीजिए) महेशः खेलति। महेशः धावति।
उत्तरम् :
महेशः खेलित्वा धावति।

(ख) ‘तुमुन्’ प्रत्ययप्रयोगं कृत्वा वाक्यसंयोजनं क्रियताम्-(तुमुन् प्रत्यय का प्रयोग कर वाक्य-संयोजन कीजिए –
रामः वनं गच्छति। रामः अश्वम् आरोहति।
उत्तरम् :
रामः वनं गन्तुम् अश्वम् आरोहति।

(ग) पूर्ववाक्ये शतृप्रत्ययं प्रयुज्य वाक्यं पुनः लिखत –
(पूर्व वाक्य में ‘शतृ’ प्रत्यय का प्रयोग कर वाक्य को पुनः लिखिए-)
छात्राः श्यामपट्ट स्पृशति। छात्राः गृहं गच्छति।
उत्तरम् :
छात्राः श्यामपट्ट स्पृशन्तः गृहं गच्छन्ति।

(घ) ‘तुमुन्’ प्रत्ययं प्रयुज्य वाक्यं पुनः लिखत –
(तुमुन् प्रत्यय का प्रयोग कर वाक्य को पुनः लिखिए-)
त्वं जलं पिबसि। त्वं कूपं गच्छसि।
उत्तरम् :
त्वं जलं पातुं कूपं गच्छसि।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

प्रश्न 13.
स्थूलपदानाम् ‘प्रकृतिप्रत्ययः’ पृथक् संयोगं कृत्वा उत्तर-पुस्तिकायां लिखत –
(मोटे शब्दों के प्रकृति-प्रत्यय अलग करके उत्तर-पुस्तिका में लिखिए)
1. (i) अद्य मानवः सेवाया महत्त्वं न जानाति। (आज मनुष्य सेवा का महत्त्व नहीं जानता है।)
(ii) समाजसेवा करणीया। (समाज सेवा की जानी चाहिए।)
(iii) बालकोऽयं गुणवान् अस्ति। (यह बालक गुणवान् है।)
(iv) लोभी न भवेत्। (लोभी नहीं होना चाहिए।)
(v) सा बुद्धिमती अचिन्तयत्। (वह बुद्धिमती सोचने लगी।)
उत्तराणि :
(i) महत् + त्व
(ii) कृ + अनीयर् + टाप्
(iii) गुण + मतुप् (वत्)
(iv) लोभ + इनि
(v) बुद्धि + मतुप् + ङीप।

2. (i) गुरुः वन्दनीयः। (गुरु वन्दना के योग्य होता है।)
(ii) ज्ञानवान् एव गुरुत्वं प्राप्नोति। (ज्ञानवान् ही गुरुत्व को प्राप्त करता है।)
(iii) देशे अनेकानि दर्शनीयानि स्थानानि सन्ति। (देश में अनेक दर्शनीय स्थान हैं।)
(iv) गुणी एव सर्वत्र पूज्यः। (गुणी ही सब जगह पूज्य होता है।)
(v) शिक्षिका गणितं पाठयति। (शिक्षिका गणित पढ़ाती है।)
उत्तराणि :
(i) वन्द् + अनीयर्
(ii) गुरु + त्व
(iii) दृश् + अनीयर्
(iv) गुण + इन्
(v) शिक्षक + टाप्।

3. (i) पुस्तकानां महत्तां कः न जानाति ? (पुस्तकों की महत्ता को कौन नहीं जानता ?)
(ii) गायिका मधुरं गायति। (गायिका मधुर गाती है।)।
(iii) कार्यं कुर्वाणाः छात्राः अङ्कान् लभन्ते। (कार्य करते हुए छात्र अंक प्राप्त करते हैं।)
(iv) बालकैः गुरवः नन्तव्याः। (बालकों द्वारा गुरु को नमस्कार किया जाना चाहिए।)
(v) अश्वा धावति। (घोड़ी दौड़ती है।)
उत्तराणि :
(i) महत् + तल्
(ii) गायक + टाप्
(iii) कृ + शानच्
(iv) नम् + तव्यत्
(v) अश्व + टाप।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

4. (i) सः वेत्रासने आसीनः। (वह कुर्सी पर बैठा है।)
(ii) राज्ञी राजानम् अपृच्छत्। (रानी ने राजा से पूछा।)
(iii) इन्द्राणी इन्द्रं पृच्छति। (इन्द्राणी इन्द्र से पूछती है।)
(iv) मन्त्रिणः संसदि भाषन्ते। (मन्त्री संसद में बोलते हैं।)
(v) अजाः क्षेत्रे चरन्ति। (बकरियाँ खेत में चरती हैं।)
उत्तराणि :
(i) आस् + शानच्
(ii) राजन् + ङीप्
(iii) इन्द्र + ङीप्
(iv) मन्त्र + इन्
(v) अज + टाप्।

5. (i) मासिकं पत्रम् आनय। (मासिक पत्र लाइए।)
(ii) सुखार्थिनः कुतो विद्या। (सुख चाहने वाले को विद्या कहाँ ?)
(iii) वाष्पयानमाला संधावति वितरन्ती ध्वानम्।(रेलगाड़ी शोर बाँटती हुई दौड़ रही है।)
(iv) जगति शुद्धिकरणं करणीयम्। (संसार में शुद्धिकरण करना चाहिए।)
(v) ललितलतानां माला रमणीया। (सुन्दर लताओं की माला रमणीय है।)
उत्तराणि :
(i) मास + ठक्
(ii) सुख + अर्थ + इन्
(iii) वितरत् + ङीप्
(iv) कृ + अनीयर्
(v) रमू + अनीयर् + टाप्।

6. (i) लक्षणवती कन्यां विलोक्य सः पृच्छति (लक्षणवाली कन्या को देखकर वह पूछता है।)
(ii) अन्योऽपि बुद्धिमान् लोके मुच्यते महतो भयात्।। (और भी बुद्धिमान् लोक के महान् भय से मुक्त हो जाते हैं।)
(iii) शृगालः हसन् आह। (शृगाल ने हँसते हुए कहा।)
(iv) मया सा चपेटया प्रहरन्ती दृष्टा। (मैंने उसे थप्पड़ से प्रहार करती हुई देखा है।)
(v) तर्हि त्वया अहं हन्तव्यः। (तो तुम मुझे मार देना।)
उत्तराणि :
(i) लक्षणवत् + ङीप्
(ii) बुद्धि + मतुप्
(iii) हस् + शतृ
(iv) प्रहरत् + ङीप
(v) हन् + तव्यत्।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

7. (i) शुनी सर्वम् इन्द्राय निवेदयति। (कुतिया सब कुछ इन्द्र से निवेदन कर देती है।)
(ii) आचार्य सेवमानः शिष्यः विद्यां लभते। (आचार्य की सेवा करता हुआ शिष्य विद्या प्राप्त करता है।)
(iii) श्रद्धावान् लभते ज्ञानम्।। (श्रद्धावान् ज्ञान प्राप्त करता है।)
(iv) अद्य अस्माकं वार्षिकी परीक्षा आरभते। (आज हमारी वार्षिक परीक्षा आरम्भ है।)
(v) सः कार्यं कुर्वन् पठति अपि। (वह कार्य करता हुआ भी पढ़ता है।)
उत्तराणि :
(i) श्वन् + ङीप्
(ii) सेव + शानच्
(iii) श्रद्धा + मतुप् (वत्)
(iv) वर्ष + ठक् + ङीप्।
(v) कृ + शतृ।

8. (i) जीवने विद्यायाः अपि महत्त्वं वर्तते। (जीवन में विद्या का भी महत्त्व है।)
(ii) तर्हि त्वया सद्ग्रन्थाः अपि पठनीयाः। (तो तुम्हें सद्ग्रन्थ भी पढ़ने चाहिए।)
(iii) पठनेन नरः गुणवान् भवति। (पढ़ने से मनुष्य गुणवान् होता है।)
(iv) किं त्वं जानासि कालस्य महत्त्वम् ? (क्या तुम समय का महत्त्व जानते हो ?)
(v) कालः तु सततम् चक्रवत् परिवर्तमानः वर्तते। (समय तो निरन्तर चक्र की तरह बदलता रहता है।)
उत्तराणि :
(i) महत् + त्व
(ii) पत् + अनीयर्
(iii) गुण + मतुप् (वत्)
(iv) महत् + त्व
(v) परिवृत् + शानच्।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

9. (i) ये जनाः अस्थिरताम् अनुभूय स्वकार्याणि यथासमयं कुर्वन्ति ते एव बुद्धिमन्तः।
(जो लोग अस्थिरता का अनुभव करके अपने कार्य समय पर करते हैं, वे ही बुद्धिमान् हैं।)
(ii) ते जनाः वन्दनीयाः भवन्ति। (वे लोग वन्दना करने योग्य होते हैं।)
(iii) जनाः तीव्र धावन्तः गच्छन्ति। (लोग तीव्र दौड़ते हुए जाते हैं।)
(iv) गृहं गच्छन्त्यः छात्राः प्रसीदन्ति। (घर जाती हुई छात्राएँ प्रसन्न होती हैं।)
(v) कालः परिवर्तमानः वर्तते। (समय बदलता रहता है।)
उत्तराणि :
(i) अस्थिर + तल, बुद्धि + मतुप्
(ii) वन्द् + अनीयर् + टाप्
(iii) धाव् + शतृ
(iv) गच्छत् + ङीप्
(v) परिवृत् + शानच्।

10. (i) कार्यं तु सदैव ध्यानेन एव करणीयम्। (कार्य सदैव ध्यान से ही करना चाहिए।)
(ii) फलिनः वृक्षाः एव सदैव नमन्ति। (फल वाले वृक्ष ही सदा झुकते हैं।)
(iii) शिक्षायाः महत्त्वं तु अद्वितीयम् एव। (शिक्षा का महत्त्व तो अद्वितीय है।)
(iv) वर्धमानाः बालाः नृत्यन्ति। (बढ़ती हुई बालाएँ नाचती हैं।)
(v) अजाः शनैः शनैः चलति।
(बकरी धीरे-धीरे चलती है।)
उत्तराणि :
(i) कृ + अनीयर्
(ii) फल + इन्
(iii) महत् + त्व
(iv) वृध् + शानच्
(v) अज + टाप्।

11. (i) कार्यं सदैव शीघ्रं परन्तु धैर्येण कर्त्तव्यम्। (कार्य सदैव शीघ्र परन्तु धैर्यपूर्वक करना चाहिए।)
(ii) वर्धमाना बालिका शीघ्रं शीघ्रं धावति। (बढ़ती बालिका जल्दी-जल्दी दौड़ती है। )
(iii) गुणिनः जनाः सदा वन्दनीयाः। (गुणी लोग सदैव वन्दना करने योग्य हैं।)
(iv) वृक्षाणां महत्त्वं कः न जानाति ? (वृक्षों का महत्त्व कौन नहीं जानता ?)
(v) कोकिला मधुर स्वरेण गायति। (कोयल मधुर स्वर से गाती है।)
उत्तराणि :
(i) कृ + तव्यत्
(ii) वृध् + शानच् + ङीप
(iii) गुण + इन्
(iv) महत् + त्व
(v) कोकिल + टाप।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

12. (i) पुस्तकानाम् अध्ययनं करणीयम्। (पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए।)
(ii) मन्त्रिणः सदसि भाषन्ते। (मन्त्री सभा में भाषण करते हैं।)
(iii) वर्तमाना शिक्षापद्धतिः सुकरा। (वर्तमान शिक्षा पद्धति सरल है।)
(iv) त्वं स्व अज्ञानतां मा दर्शय। (तुम अपनी अज्ञानता को मत दिखाओ।)
(v) नर्तकी शोभनं नृत्यति। (नर्तकी सुन्दर नाचती है।)
उत्तराणि :
(i) कृ + अनीयर्
(ii) मन्त्र + इन्
(iii) वृत् + शानच् + टाप्
(iv) अज्ञान + तल्
(v) नर्तक+ङीप्।

13. (i) अस्माभिः सेवकाः पोषणीयाः। (हमें सेवकों का पोषण करना चाहिए।)
(ii) पक्षिणः वृक्षेषु तिष्ठन्ति। (पक्षी वृक्ष पर बैठते हैं।)
(iii) पृथिव्याः गुरुत्वं सर्वे जानन्ति। (पृथ्वी की गुरुता को सभी जानते हैं।)
(iv) सेवमाना: सेवकाः धनं लभन्ते। (सेवा करते हुए सेवक धन पाते हैं।)
(v) अश्वा वरं धारयति। (घोड़ी वर को धारण करती है।)
उत्तराणि :
(i) पुष् + अनीयर्
(ii) पक्ष + इन्
(iii) गुरु + त्व
(iv) सेव् + शानच्।
(v) अश्व + टाप्।

14. (i) बालकैः गुरवः नन्तव्याः।
(बालकों को गुरुजनों का नमन करना चाहिए।)
(ii) कार्यं कुर्वाणा: छात्राः अङ्कान् लभन्ते। (कार्य करते छत्र अंक प्राप्त करते हैं।)
(iii) भाग्यशालिनः जनाः विश्रामं कुर्वन्ति। (भाग्यशाली लोग आराम करते हैं।)
(iv) गायिका मधुरं गायति। (गायिका मधुर गाती है।)
(v) पुस्तकानां महत्तां कः न जानाति। (पुस्तकों की महत्ता कौन नहीं जानता।)
उत्तराणि :
(i) नम् + तव्यत्
(ii) कृ + शानच्
(iii) भाग्यशाल + इन्
(iv) गायक + टाप्।
(v) महत् + तल्।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

प्रश्न 14.
प्रकृतिप्रत्ययं योजयित्वा पदरचनां कुरुत।
(प्रकृति प्रत्यय को मिलाकर पदरचना कीजिये।)
(क) जन् + क्त
(ख) क्रीड् + शतृ
(ग) त्यज् + क्तवा
(घ) वि + श्रम् + ल्यप्
(ङ) भक्ष् + तुमुन्
(च) नि + वृत् + क्तिन्
(छ) प्र + यत् + तव्यत्
(ज) भुज् + शानच
(झ) गुह् + क्त + टाप्
(ब) जि + अच्
(ट) ग्रह् + ण्वुल्
(ठ) लभ् + क्तवतु
(ड) अधि + वच् + तृच्
(द) कृ + क्तवतु + ङीप्
(ण) कृ + अनीयर्
उत्तरम् :
(क) जातः
(ख) क्रीडन्
(ग) त्यक्तवा
(घ) विश्रम्य
(ङ) भक्षितुम्
(च) निवृत्तिः
(छ) प्रयतितव्यम्
(ज) भुञ्जानः
(झ) गूढ
(ब) जयः
(ट) ग्राहकः
(ठ) लब्धवान्
(ड) अधिवक्ता
(ढ) कृतती
(ण) करणीयः।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्

प्रश्न 15.
अधोलिखित पदेषु प्रकृतिप्रत्यय विभागः क्रियताम्।
(निम्नलिखित पदों में प्रकृति-प्रत्यय पृथक् कीजिये)
(क) प्रयुक्तम्
(ख) भवितव्यम्
(ग) गन्तुम्
(घ) पर्यटन्तः
(ङ) वहमानस्य
(च) क्रीत्वा
(छ) दृष्टिः
(ज) कर्ता
(झ) अतितराम्
(ब) प्रतीक्षमाणः
(ट) करणीया
(ठ) प्रत्यभिज्ञाय
(ड) कारकः
(ढ) कृतवती
(ण) विक्रेता।
उत्तरम् :
(क) प्रयुक्तम् = प्र + युज् + क्त
(ख) भवितव्यम् = भू + तव्यत्
(ग) गन्तुम् = गम् + तुमुन्
(घ) पर्यटन्तः = परि + अट् + शत् (प्र.ब.व.)
(ङ) वहमानस्य = वह् + शानच् (ब.ए.व.)
(च) क्रीत्वा = क्री + क्तवा
(छ) दृष्टिः = दृश् + क्तिन्
(ज) कर्ता = कृ + तृच्
(झ) अतितराम् = अति + तरप् + टाप् (द्वि.ए.व.)
(ब) प्रतीक्षमाणः = प्रति + ईक्ष् + शानच
(ट) करणीया = कृ + अनीयर् + टाप
(ठ) प्रत्यभिज्ञाय = प्रति + अभि + ज्ञा + ल्यप्
(ड) कारकः = कृ + ण्वुल्
(ढ) कृतवती = क + क्तवतु + ङीप्
(ण) विक्रेता = वि + क्री + तृच

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10th Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

संस्कृत भाषा में प्रयोग करने के लिए इन शब्दों को ‘पद’ बनाया जाता है। संज्ञा, सर्वनाम आदि शब्दों को पद बनाने हेतु इनमें प्रथमा, द्वितीया आदि विभक्तियाँ लगाई जाती हैं। इन शब्दरूपों (पदों) का प्रयोग (पुंल्लिङ्ग, स्त्रीलिङ्ग और नपुंसकलिङ्ग तथा एकवचन, द्विवचन और बहुवचन में भिन्न-भिन्न रूपों में) होता है। इन्हें सामान्यतया शब्दरूप कहा जाता हैं।

संज्ञा आदि शब्दों में जुड़ने वाली विभक्तियाँ सात होती हैं। इन विभक्तियों के तीनों वचनों (एक, द्वि, बहु) में बनने वाले रूपों के लिए जिन विभक्ति-प्रत्ययों की पाणिनि द्वारा कल्पना की गई है, वे ‘सुप्’ कहलाते हैं। इनका परिचय इस प्रकार है –

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 1

संज्ञा शब्दरूप-प्रकरणम्

1. अकारान्त पुल्लिंग छात्र’ शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 2

नोट – इसी प्रकार ह्रस्व ‘अ’ पर समाप्त होने वाले पुल्लिंग संज्ञा शब्द- मोहन, शिव, नृप (राजा), राम, सुत (बेटा), गज (हाथी), पुत्र, कृष्ण, जनक (पिता), पाठ, ग्राम, विद्यालय, अश्व (घोड़ा), ईश्वर (ईश या स्वामी), बुद्ध, मेघ (बादल), नर (मनुष्य), युवक (जवान), जन (मनुष्य), पुरुष, वृक्ष, सूर्य, चन्द्र (चन्द्रमा), सज्जन, विप्र (ब्राह्मण), क्षत्रिय, दुर्जन (दुष्ट पुरुष), प्राज्ञ (विद्वान्), लोक (संसार), उपाध्याय (गुरु), वृद्ध (बूढा), शिष्य, प्रश्न, सिंह (शेर), वेद, क्रोश (कोस), भर्प ,सागर (समुद्र), कृषक (किसान), छात्र (बालक), मानव, भ्रमर, सेवक, समीर (हवा), सरोवर और यज्ञ आदि के रूप चलते हैं।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

विशेष – जिस शब्द में र्, ऋ अथवा ष् होता है, उसके तृतीया एकवचन के तथा षष्ठी बहुवचन के रूप में ‘न्’ के स्था- ‘ण’ हो जाता है। जैसे-‘राम’ शब्द में ‘र’ है। अतः तृतीया एकवचन में रामेण और षष्ठी बहुवचन में ‘रामाणाम्’ रूप बने हैं, किन्तु ‘बालक’ शब्द में र, ऋ अथवा ष् न होने से ‘बालकेन’ व ‘बालकानाम्’ रूप बनते

2. इकारान्त पुल्लिंग ‘हरि’ शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 3

नोट – इस प्रकार ह्रस्व ‘इ’ पर समाप्त होने वाले सभी पुल्लिंग संज्ञा शब्द-‘कवि’, बह्नि (आग), यति, (संन्यासी), नृपति (राजा), भूपति (राजा), गणपति (गणेश), प्रजापति (ब्रह्मा), रवि (सूर्य), कपि (बन्दर), अग्नि (आग), मुनि, जलधि (समुद्र), ऋषि, गिरि (पहाड़), विधि (ब्रह्मा), मरीचि (किरण), सेनापति, धनपति (सेठ), विद्यापति (विद्वान्), असि (तलवार), शिवि (शिवि नाम का राजा), ययाति (ययाति नाम का राजा) और अरि (शत्रु) आदि के रूप चलते हैं।

विशेष – जिन शब्दों में र, ऋ अथवा ष् होता है, उनमें तृतीया एकवचन में व षष्ठी बहुवचन में ‘न्’ के स्थान पर ‘ण’ हो जाता है। जैसे-हरि शब्द (रि में र होने के कारण)तृतीया एकवचन में हरिणा’ होगा तथा षष्ठी बहुवचन में ‘हरीणाम्’ होगा किन्तु ‘कवि’ में र, ऋ अथवा ए नहीं होने के कारण ‘कविना’ तथा कवीनाम्’ ही हुए हैं।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

3. ऋकारान्त पुंल्लिग ‘पितृ’ (पिता) शब्द

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नोट – इसी प्रकार ह्रस्व (छेटी) ‘ऋ’ से अन्त होने वाले अन्य पुल्लिग शब्दों-भ्रातृ (भाई) और जामातृ (जमाई, दामाद) आदि के रूप चलेंगे।

4. गो (धेनुः) (ओकारान्तः पुल्लिंगः स्त्रीलिङ्गश्च) शब्दः

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5. उकारान्त पुल्लिग’गुरु’ शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 6

नोट – इसी प्रकार भानु, साधु, शिशु, इन्दु, रिपु, शत्रु, शम्भु, विष्णु आदि शब्दों के रूप चलते हैं।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

6. ईकारान्त स्त्रीलिंग ‘नदी’ शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 7

नोट – इसी प्रकार दीर्घ (बड़ी) ‘ई’ से अन्त होने वाले स्त्रीलिंग शब्दों-देवी, भगवती, सरस्वती, श्रीमती, कुमारी (अविवाहिता), गौरी (पार्वती), मही (पृथ्वी), पुत्री (बेटी), पत्नी, राज्ञी (रानी), सखी (सहेली), दासी (सेविका), रजनी (रात्रि), महिषी (रानी, भैंस), सती, वाणी, नगरी, पुरी, जानकी और पार्वती आदि शब्दों के रूप चलते हैं।

7. वधू (बहू) शब्द (ऊकारान्त) स्त्रीलिंग

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 8

8. मातृ (माता) ऋकारान्त स्त्रीलिंग शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 9

इसी प्रकार ह्रस्व (छोटी) ‘ऋ’ से अन्त होने वाले अन्य सभी स्त्रीलिंग शब्दों-दुहितु (पुत्री) और यातृ (देवरानी) आदि के रूप चलेंगे।

नोट – ‘मातृ’ शब्द के द्वितीया विभक्ति के बहुवचन के ‘मातः’ इस रूप को छोड़कर शेष सभी रूप ‘पितृ’ शब्द के समान ही चलते हैं।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

9. उकारान्त स्त्रीलिंग’धेनु’ (गाय) शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 10

नोट – इस प्रकार ह्रस्व ‘उ’ से अन्त होने वाले स्त्रीलिंग शब्दों-तनु (शरीर), रेणु (धूल), रज्जु (रस्सी), कामधेनु, चञ्चु (चोंच) और हनु (ठोड़ी) आदि के रूप चलते हैं।

विशेष-धेनु शब्द के चतुर्थी, पञ्चमी, षष्ठी और सप्तमी विभक्ति के एकवचन के दो-दो रूप बनते हैं। इनमें से प्रथम रूप नदी शब्द के समान बनता है तथा द्वितीय रूप भान शब्द के समान बनता है। इन दो रूपों में से किसी भी एक रूप को प्रयोग में लाया जा सकता है।

सर्वनाम शब्दरूप-प्रकरणम्

10. अस्मद् (मैं) शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 11

नोट – ‘अस्मद्’ शब्द के रूप तीनों लिंगों में समान होते

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

11. युष्मद् (तुम) शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 12

नोट – ‘युष्मद्’ शब्द के रूप तीनों लिंगों में समान होते

12. सर्व (सब) पुल्लिंग शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 13

13. सर्व (सब) स्त्रीलिंग शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 14

14. सर्व (सब) नपुंसकलिंग शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 15

नोट – शेष विभक्तियों के रूप पुल्लिंग ‘सर्व’ की तरह चलेंगे।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

15. तत्/तद् (वह) पुल्लिंग शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 16

नोट – प्रथमा विभक्ति एकवचन को छोड़कर सभी रूपों का आधार ‘त’ अक्षर है तथा ‘सर्व’ शब्द के समान रूप हैं।

16. तत् / तद् (वह) स्त्रीलिंग शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 17

17. तत् / तद (वह) नपुंसकलिंग

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 18

नोट – ‘तद्’ नपुंसकलिंग के तृतीया विभक्ति से सप्तमी विभक्ति तक के ये सभी रूप तद्’ पुल्लिंग के समान चलते

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

18. यत् (जो) पुंल्लिग शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 19

नोट – इस ‘यत्’ शब्द का सभी लिंगों में, सभी विभक्तियों के रूप में ‘य’ आधार रहेगा तथा इसके ‘सर्व’ के समान ही रूप चलेंगे।

19. यत् (जो) स्त्रीलिंग शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 20

20. यत् (जो) नपुंसकलिंग शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 21

नोट – ‘यत्’ नपुंसकलिंग के तृतीया विभक्ति से सप्तमी विभक्ति तक के सम्पूर्ण रूप ‘यत्’ पुंल्लिंग के समान ही चलेंगे।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

21. किम् (कौन) पुंल्लिंग शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 22

नोट – ‘किम्’ शब्द के रूपों का मूल आधार सभी लिंगों एवं विभक्तियों में ‘क’ होता है तथा इसके रूप ‘सर्व’ शब्द के समान ही चलते हैं।

22. किम् (कौन) स्त्रीलिंग शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 23

23. किम् (कौन) नपुंसकलिंग शब्द

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 24

नोट – ‘किम्’ शब्द के नपुंसकलिंग के तृतीया विभक्ति से सप्तमी विभक्ति तक के सभी रूप ‘किम्’ पुल्लिंग के समान ही चलते हैं।

अभ्यासः

प्रश्न 1.
अधोलिखित प्रश्नेषु सम्यक् विकल्प चिनुत –
1. ‘बालक’ तृतीया विभक्ति एकवचन –
(अ) बालक
(ब) बालकेन
(स) बालकस्य
(द) बालकः
उत्तरम् :
(ब) बालकेन

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

2. ‘पति’ (स्वामी) षष्ठी द्विवचन –
(अ) पती
(ब) पत्युः
(स) पत्यौ
(द) पतिभ्यः
उत्तरम् :
(स) पत्यौ

3. ‘गुरु’ चतुर्थी विभक्ति बहुवचन –
(अ) गुरूणा
(ब) गुरौ
(स) गुरुभिः
(द) गुरुभ्यः
उत्तरम् :
(द) गुरुभ्यः

4. ‘सखि’ द्वितीया विभक्ति एकवचन –
(अ) सख्यौ
(ब) सखीनाम्
(स) सखायम्
(द) सख्युः
उत्तरम् :
(स) सखायम्

5. ‘स्त्री’ प्रथमा विभक्ति बहुवचन –
(अ) स्त्रियः
(ब) स्त्रीभ्यः
(स) स्त्रीभ्याम्
(द) स्त्रयाः
उत्तरम् :
(अ) स्त्रियः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

6. ‘विभा’ सप्तमी विभक्ति एकवचन –
(अ) विभासु
(ब) विभाभ्यः
(स) विभायाम्
(द) हे विभाः
उत्तरम् :
(स) विभायाम्

7. ‘पुस्तक’ पञ्चमी विभक्ति द्विवचन –
(अ) पुस्तकम्
(ब) पुस्तकाभ्याम्
(स) पुस्तकाय
(द) पुस्तकयोः
उत्तरम् :
(ब) पुस्तकाभ्याम्

8. ‘आत्मन्’ सप्तमी द्विवचन –
(अ) आत्मनः
(ब) आत्मभ्याम्
(स) आत्मानौ
(द) आत्मनोः
उत्तरम् :
(द) आत्मनोः

9. ‘पितृ’ प्रथमा बहुवचन –
(अ) पितरि
(ब) पित्रोः
(स) पितरः
(द) पित्रा
उत्तरम् :
(स) पितरः

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

10. ‘भगवत्’ तृतीया विभक्ति बहुवचन –
(अ) भगवद्भिः
(ब) भगवत्सु
(स) भगवन्तः
(द) भगवते
उत्तरम् :
(अ) भगवद्भिः

11. ‘सर्व’ पुल्लिंग सप्तमी विभक्ति एकवचन –
(अ) सर्वेषु
(ब) सर्वयोः
(स) सर्वस्मिन्
(द) सर्वैः
उत्तरम् :
(स) सर्वस्मिन्

12. अस्मद् (मैं) तृतीया विभक्ति बहुवचन –
(अ) मह्यम्
(ब) अस्माकम्
(स) आवयोः
(द) अस्माभिः
उत्तरम् :
(द) अस्माभिः

13. किम् (कौन) स्त्रीलिंग,पंचमी विभक्ति, द्विवचन –
(अ) कयोः
(ब) काभ्याम्
(स) कासाम्
(द) के
उत्तरम् :
(ब) काभ्याम्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

14. अस्मिन् वाक्ये सर्वनाम पदं किम्? ‘सा विद्यालये संस्कृत पठति।’
(अ) विद्यालये
(ब) पठति
(स) सा
(द) संस्कृतं
उत्तरम् :
(स) सा

15. इदम् मनीषस्य पुस्तकं अस्ति। अस्मिन् वाक्ये सर्वनाम पदं किम्?
(अ) पुस्तकं
(ब) अस्ति
(स) इदम्
(द) मनीषस्य
उत्तरम् :
(स) इदम्

16. भवत्याः गृहं अति शोभनं अस्ति। अस्मिन् वाक्ये सर्वनाम पदं किम् –
(अ) गृहं
(ब) अति
(स) शोभनं
(द) भवत्याः
उत्तरम् :
(द) भवत्याः

17. …………… प्रभावेन सिंहः सजीवः अभवत? रिक्त स्थाने उचितं सर्वनाम पदं किम् –
(अ) केन
(ब) कस्मात्
(स) के
(द) कस्य
उत्तरम् :
(अ) केन

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

18. अस्मिन् वाक्ये सर्वनाम पदः नास्ति-अहं तव तस्य च मित्र।
(अ) तव
(ब) तस्य
(स) अहं
(द) मित्रं
उत्तरम् :
(ब) तस्य

19. अस्मिन् वाक्ये सर्वनाम पदः अस्ति-तस्य भ्राता ग्रामं गच्छति।
(अ) तस्य
(ब) ग्रामं
(स) भ्राता
(द) गच्छति
उत्तरम् :
(अ) तस्य

20. युष्मद् (तुम) शब्दस्य पंचमी बहुवचने रूपं भवति –
(अ) युष्माकम्
(ब) युष्मत्
(स) युष्मानम्
(द) युष्मासु
उत्तरम् :
(स) युष्मानम्

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

प्रश्न 2.
कोष्ठके प्रदत्तं निर्देशानुसारम् उचित विभक्तिपदेन रिक्तस्थानानि पूर्ति कुरुत –
(कोष्ठक में दिये निर्देशानुसार उचित विभक्ति पद से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-)
(i) ……………. पत्रं पतति।’ (वृक्ष-पञ्चमी)
(ii) ……………… हरीशः विनम्रः।(छात्र-सप्तमी)
(iii) भो ………………. पत्रं पठ। (महेश-सम्बोधन)
(iv) ………………. किं हसन्ति ? (भवान्-प्रथम)
(v) ………………. शनैः शनैः लिखति (केशव-प्रथमा)
(vi) गोपालः जलेन…………………. प्रक्षालयति। (मुख-द्वितीया)
(vii) सेवकः स्कन्धेन………………. वहति। (भार-द्वितीया)
(viii) सः ………………. कोमलः। (स्वभाव-तृतीया)
(ix) कोऽर्थः ………………. यो न विद्वान् न धार्मिकः। (पुत्र-तृतीया)
(x) भक्तः ………………. हरि भजति। (मुक्ति-चतुर्थी)
(xi) क्रीडनकं रोचते। …………….(शिशु-चतुर्थी)
(xii) ज्ञानं गुरुतरम्। (धन-पंचमी)
(xiii) ……………… गङ्गा प्रभवति। (हिमालय-पंचमी)
(xiv) …………….. हेतोः वाराणस्यां तिष्ठति। (अध्ययन-षष्ठी)
(xv) ………………. ओदनं पचति।। (स्थाली-सप्तमी)
उत्तरम्:
(i) वृक्षात्
(ii) छात्रेषु
(iii) महेश !
(iv) भवन्तः
(v) केशवः
(vi) मुखं
(vii) भारं
(viii) स्वभावेन
(ix) पुत्रेण
(x) मुक्तये
(xi) शिशवे
(xii) धनात्
(xili) हिमालयात्
(xiv) अध्ययनस्य
(xv) स्थाल्याम्।

प्रश्न 3.
कोष्ठकात् उचितविभक्तियुक्तं पदं चित्वा वाक्यपूर्तिः क्रियताम् –
(कोष्ठक से उचित विभक्तियुक्त पद को चुनकर वाक्य-पूर्ति कीजिए-)
(i) ………………. पुरोहितः अकथयत्। (शुद्धोदनाय, शुद्धोदनस्य, शुद्धोदने)
(ii) मम ………………. स्वां दुहितरं यच्छ। (पिता, पित्रा, पित्रे)
(iii) शान्तनुः ……………….. वरम् अयच्छत्। (भीष्माय, भीष्मे, भीष्मात्)
(iv) अयि ………………. मम मित्रं भविष्यति।(चटकपोत!, चटकपोतं, चटकपोतैः)
(v) अस्मिन् ………………. प्रत्येकं स्व-स्वकृत्ये निमग्नो भवति। (जगत. जगता, जगति)
(vi) कस्मिंश्चिद् ………………. एका निर्धना वृद्धा स्त्री न्यवसत्। (ग्रामेन, ग्रामे, ग्रामस्य)
(vii) सा ………………. बहिः आगन्तव्यम्। (ग्रामात्, ग्रामे, ग्रामान्)
(vii) लुब्धया ………………. लोभस्य फलं प्राप्तम्। (बालिका, बालिकया, बालिकाया:)
(ix) इन्दुः ……………… प्रकाशं लभते। (भानुना, भानोः, भानवे)
(x) ……………. गङ्गा सर्वश्रेष्ठा। (नद्याम्, नद्याः नदीषु)
(xi) भो भगवन् ! ………………… दयस्व।(मयि, माम्, अहं)
(xii) ………………. सर्वत्र पूज्यते। (विद्वान्, विद्वांसः विद्वांसी)
(xiii) रविः प्रतिदिनं ………………. नमति। (ईश्वराय, ईश्वरे, ईश्वरम्)
(xiv) सः ……………… पश्यति। (राजानम्, राज्ञाम्, राज्ञा)
(xv) रामः ………………. पटुतरः। (मोहनेन, मोहनस्य, मोहनात्)
उत्तरम्-
(i) शुद्धोदनस्य
(ii) पित्रे
(iii) भीष्माय
(iv) चटकपोत!
(v) जगति
(vi) ग्रामे
(vil) ग्रामात्
(viii) बालिकया
(ix) भानुना
(x) नदीषु
(xi) मयि
(xii) विद्वान्
(xiii) ईश्वरम्
(xiv) राजानम्
(xv) मोहनात्।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

प्रश्न 4.
समुचितं विभक्तिप्रयोगं कृत्वा रिक्तस्थानानि पूरयत –
(उचित विभक्ति का प्रयोग करके रिक्त-स्थानों की पूर्ति कीजिए-)
1. …………….. कुत्र गच्छति? (भवत्)
2. ……………. मोदकं रोचते। (बालक)
3. …………… अभितः वनं अस्ति। (ग्राम)
4. कर्णः ………………. सह नगरं गच्छति। (पिता)
5. गङ्गा ……………. उद्भवति। (हिमालय)
6. ………………. कक्षायां बालकाः पठन्ति। (इदम्)
7. सः………………. अधितिष्ठति। (आसन)
8. मुनिः ………………. लोकं जयति। (सत्य)
9. नृपः ………………. क्रुध्यति। (दुर्जन)
10. बालकः…………….. बिभेति। (चोर)
उत्तरम् :
(1) भवान्
(ii) बालकाय
(iii) ग्रामम्
(iv) पित्रा
(v) हिमालयात्
(vi) अस्याम्
(vii) आसनम्
(viii) सत्येन
(ix) दुर्जनेभ्यः
(x) चोरात्।

प्रश्न 5.
कोष्ठके प्रदत्तं निर्देशानुसारम् उचितविभक्तिपदेन रिक्तस्थानानां पूर्ति कुरुत –
(कोष्ठक में दिये निर्देशानुसार उचित विभक्ति पद से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-)
(i) …………… च एका दुहिता आसीत्। (तत्-स्त्रीलिंग षष्ठी)
(ii) …………….. विस्मयं गता। (तत्-स्त्रीलिंग प्रथमा)
(iii) ………………….. मम श्वश्रूः सदैव मर्मघातिभिः कटुवचनैराक्षिपति माम्। (इदम्-स्त्रीलिंग प्रथम)
(iv) …………………… काकिणी अपि न दत्ता। (यत्-पुल्लिग तृतीया)
(v) …………… तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता। (तत्-पुल्लिंग पंचमी)
(vi) ………………. मरालैः सह विप्रयोगः। (यत्-पुंल्लिग षष्ठी)
(vii) ………………. अनुकूले स्थिते शक्रोऽपि नास्मान् बाधितुं शक्नुयात्। (इदम्-ऍल्लिंग सप्तमी)
(viii) तत् ……………. अस्मात् मनोरथमभीष्टं साधयामि। (अस्मद्-प्रथमा)
(ix) किन्तु …………………. सह केलिभिः कोऽपि न उपलभ्यमानः आसीत्।। (तत्-पुंल्लिंग तृतीया)
(x) अयि चटकपोत ! ……….. मित्रं भविष्यसि। (अस्मद्-षष्ठी)
(xi) अपूर्वः इव ते हर्षो ब्रूहि ……….. असि विस्मितः। (किम्-पुंल्लिंग तृतीया)
(xii) …………………. कुले आत्मस्तवं कर्तुमनुचितम्। (अस्मद्-षष्ठी)
(xiii) तां च …………… चित् श्रेष्ठिनो गृहे निक्षेपभूतां कृत्वा देशान्तरं प्रस्थितः। (किम्-पुल्लिंग षष्ठी)
(xiv) वत्स! पितृव्योऽयं ………….. (युष्मद्-षष्ठी)
(xv) ……………….. अस्मि तपोदत्तः। (अस्मद्-प्रथमा)
(xvi) गुरुगृहं गत्वैव विद्याभ्यासो ……………. करणीयः। (अस्मद्-तृतीया)
(xvii) …………………. शब्दमवसुप्तस्तु जटायुरथ शुश्रुवे। (तत्-पुल्लिंग द्वितीया)
(xviii) वृद्धोऽहं ………………. युवा धन्वी सरथः कवची शरी। (युष्मद्-प्रथमा)
(xix) यतः ……………….. स्थलमलापनोदिनी जलमलापहारिणश्च। (तत्-पुल्लिंग प्रथमा)
(xx) ………………. सर्वान् पुष्णाति विविधैः प्रकारैः। (इदम्-स्त्रीलिंग प्रथमा)
उत्तरम् :
(i) तस्याः
(ii) सा
(iii) इयम्
(iv) येन
(v) तस्मात्
(vi) येषाम्
(vii) अस्मिन्
(viii) अहम्
(ix) तेन
(x) मम
(i) केन
(xii) अस्माकं
(xiii) कस्य
(xiv) तव
(xv) अहम्
(xvi) मया
(xvii) तम्
(xviii) त्वम्
(xix) स:
(xx) इयम्।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

प्रश्न 6.
कोष्ठकात् उचितविभक्तियुक्तं पदं चित्वा वाक्यपूर्तिः क्रियताम् –
(कोष्ठक से उचित विभक्ति युक्त पद को चुनकर वाक्य की पूर्ति कीजिए-)
(i) नाऽहं जाने ……………… कोऽस्ति भवान्। (यत्, याभ्याम्, याः)
(ii) सिकता: जलप्रवाहे स्थास्यन्ति ……………….? (किम्, कानि, काषु)
(ii) त्वया ………………. पूर्वेषाम् अभीष्टाः कामाः पूरिताः। (आवाभ्याम्, अस्मत्, अहम्)
(iv) प्रकृतिरेव ………………. विनाशकी सजाता। (तस्य, तयोः, तेषां)
(v) ………………. सर्वमिदानी चिन्तनीयं प्रतिभाति। (तत्, ते, तानि)
(vi) भगवन्। प्रष्टुमिच्छामि किम् …………………. मनः ? (इयं, अयं, इदम्)
(vii) अशितस्यान्नस्य योऽणिष्ठः ………………. मनः। (तत्, तम्, तासाम्)
(viii) बालिका ………………. निवारयन्ती। (तस्मै, ताभ्याम्, तम्)
(ix) परं ………………. माता एकाकिनी वर्तते। (तव, तयोः, तेषु)
(x) ………………. अपि चायपेयस्य नास्ति। (इदम्, इदानीम्, अयम्)
(xi) यत् …………….. अपि कथनीयं यां प्रत्येव कथय। (किम्, कौ, कानि)
(xii) ……………….. नृशंसाः। (मह्यम्, अस्मत्, वयम्)
(xiii) ………………. इदानी कुत्र गताः ? (ते, ताभ्याम्, तेभ्यः)
(xiv) कल्पतरु: ……………….. उद्याने तिष्ठति स तव सदा पूज्य:। (तव, तेभ्यः, तस्मै)
(xv) विषाक्तं जलं नद्यां निपात्यते ………………. मत्स्यादीनां जलचराणां च नाशो जायते। (येन, याभ्यां, याषु)
उत्तरम् :
(i) यत्
(ii) किम्
(iii) अस्मत्
(iv) तेषां
(v) तत्
(vi) इदम्
(vii) तत्
(viii) तम्
(ix) तव
(x) इदानीम्
(xi) किम्
(xii) वयम्
(xiii) ते
(xiv) तव
(xv) येन।

प्रश्न 7.
अधोलिखितानां शब्दरूपाणां वाक्येषु प्रयोगं कुरुत-
(निम्नलिखित शब्दरूपों का वाक्यों में प्रयोग करो-)
पूर्वस्या, द्वितीयम्, सखा, रमायै, पूर्वे, हरिः, पितृभ्यः, सखिषु, स्वसुः, राज्ञाम्, भवान्, भवती, विद्वांसः, अमूः, दिक्षु, सरितः, कर्मणा, नव, वाक्, पञ्च।
उत्तराणि :
1. सूर्यः पूर्वस्याम् दिशि उदेति।
2. कक्षायां मम द्वितीय स्थानमस्ति।
3. रमेशः मम सखा अस्ति।
4. फलानि रमायै सन्ति।
5. मोहनः पूर्वे कर्णपुरनगरे निवसति स्म।
6. हरिः विद्यालयं गच्छति।
7. राकेशः पितृभ्यः जलं समर्पयति।
8. सखिषु रमा सुन्दरतमा अस्ति।
9. रामः श्वः स्वसुः गृहं गमिष्यति।
10. राज्ञाम् आचारः शोभनः भवति।
11. भवान् कुत्र निवसति ?
12. भवती किं पठति ?
13. स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वांसः सर्वत्र पूज्यन्ते।
14. अमूः कुत्र वसन्ति ?
15. दिक्षु कृष्णाः वारिदाः सन्ति।
16. सरितः जलं शीतलं भवति।
17. कर्मणा विना जीवनं न अस्ति।
18. तत्र विद्यालये नव छात्राः सन्ति।
19. जनस्य वाक् मधुरं भवेत।
20. पञ्च पाण्डवाः विज्ञाः आसन्।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

प्रश्न 8.
निर्देशानुसार सर्वनाम शब्दानां रूपं लिखत –
(निर्देशानुसार सर्वनाम शब्दों के रूप लिखिए-)
1. (i) सर्व – (पुल्लिंग प्रथमा विभक्ति बहुवचन)
(ii) तत् – (नपुंसकलिंग सप्तमी विभक्ति एकवचन)
2. (i) भवती – (तृतीया विभक्ति एकवचन)
(ii) यत् – (पुल्लिंग षष्ठी विभक्ति बहुवचन)
3. (i) इदम् – (स्त्रीलिंग द्वितीया विभक्ति बहुवचन)
(ii) एतत् – (पुल्लिंग पंचमी विभक्ति एकवचन)
4. (i) भवत् – (तृतीया विभक्ति द्विवचन)
(ii) किम् – (पुल्लिंग षष्ठी विभक्ति एकवचन)
5. (i) सर्व – (स्त्रीलिंग चतुर्थी विभक्ति एकवचन)
(ii) किम् – (नपुंसकलिंग सप्तमी विभक्ति बहुवचन)
6. (i) युष्मद् – (द्वितीया विभक्ति बहुवचन)
(ii) एतत् – (नपुंसकलिंग सप्तमी विभक्ति द्विवचन)
7. (i) सर्व – (नपुंसकलिंग चतुर्थी विभक्ति द्विवचन)
(ii) किम् – (स्त्रीलिंग पंचमी विभक्ति बहुवचन)
8. (i) इदम् – (पुल्लिग प्रथमा विभक्ति बहुवचन)
(ii) यत् – (स्त्रीलिंग पंचमी विभक्ति बहुवचन)
9. (i) इदम् – (नपुंसकलिंग तृतीया विभक्ति बहुवचन)
(ii) तत् – (पुल्लिंग षष्ठी विभक्ति एकवचन)
10. (i) अस्मद् – (चतुर्थी विभक्ति एकवचन)
(ii) एतत् – (स्त्रीलिंग सप्तमी विभक्ति बहुवचन)
11. (i) सर्व – (पुल्लिंग प्रथमा विभक्ति एकवचन)
(ii) तत् – (नपुंसकलिंग सप्तमी विभक्ति बहुवचन)
12. (i) भवती – (प्रथमा विभक्ति द्विवचन)
(ii) यत् – (पुल्लिग सप्तमी विभक्ति एकवचन)
13. (i) इदम् – (स्त्रीलिंग प्रथमा विभक्ति बहुवचन)
(i) एतत् – (पुल्लिंग सप्तमी विभक्ति द्विवचन)
14. (i) भवत् – (द्वितीया विभक्ति एकवचन)
(ii) किम् – (पुल्लिंग षष्ठी विभक्ति बहुवचन)
15. (i) सर्व – (स्त्रीलिंग द्वितीया विभक्ति द्विवचन)
(ii) किम् – (नपुंसकलिंग षष्ठी विभक्ति एकवचन)
16. (i) युष्मद् – (द्वितीया विभक्ति द्विवचन)
(ii) एतत् – (नपुंसकलिंग षष्ठी विभक्ति द्विवचन)
17. (i) सर्व – (नपुंसकलिंग तृतीया विभक्ति एकवचन)
(ii) किम् – (स्त्रीलिंग पंचमी विभक्ति एकवचन)
18. (i) इदम् – (पुल्लिंग तृतीया विभक्ति द्विवचन)
(ii) यत् – (स्त्रीलिंग पंचमी विभक्ति एकवचन)
19. (i) इदम् – (नपुंसकलिंग तृतीया विभक्ति बहुवचन)
(ii) तत् – (पुल्लिंग पंचमी विभक्ति द्विवचन)
20. (i) अस्मद् – (चतुर्थी विभक्ति बहुवचन)
(ii) एतत् – (स्त्रीलिंग सप्तमी विभक्ति एकवचन)
उत्तराणि :
1. (i) सर्वे (ii) तस्मिन्
2. (i) भवत्या (i) येषाम्
3. (i) इमाः (ii) एतस्मात्
4. (i) भवद्भ्याम् (ii) कस्य
5. (i) सर्वस्यैः (ii) केषु
6. (i) युष्मान् (ii) एतयोः
7. (i) सर्वाभ्याम् (ii) काभ्यः
8. (i) इमे (ii) याभ्यः
9. (i) एभिः (ii) तस्य
10. (i) मह्यम् (ii) एतासु
11. (i) सर्वः (ii) तेषु
12. (i) भवत्यौ (ii) यस्मिन्
13. (i) इमाः (ii) एतयोः
14. (i) भवन्तम् (ii) केषाम्
15. (i) सर्वे (ii) कस्य
16. (i) युवाम् (ii) एतयोः
17. (i) सर्वेण (ii) कस्याः
18. (i) आभ्याम् (ii) यस्याः
19. (i) एभिः (ii) ताभ्याम्
20.(i) अस्मभ्यम् (ii) एतस्याम्।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

प्रश्न 9.
निर्देशानुसारं शब्द-रूपं लिखत – (निर्देशानुसार शब्द-रूप लिखिए-)
1. (i) धेनु – (तृतीया विभक्ति बहुवचन)
(ii) प्रासाद – (सप्तमी विभक्ति एकवचन)
2. (i) स्वसृ – (चतुर्थी विभक्ति एकवचन)
(ii) विधातृ – (पुल्लिंग सप्तमी विभक्ति बहुवचन)
3. (i) पितृ – (षष्ठी विभक्ति बहुवचन)
(ii) तनु – (प्रथमा विभक्ति बहुवचन)
4. (i) फलम् – (सप्तमी विभक्ति बहुवचन)
(ii) रमा – (तृतीया विभक्ति एकवचन)
5. (i) जगत् – (षष्ठी विभक्ति बहुवचन)
(ii) धेनु – (प्रथमा विभक्ति बहुवचन)
6. (i) नदी – (प्रथमा विभक्ति बहुवचन)
(ii) मातृ – (तृतीया विभक्ति एकवचन)
7. (i) भ्रातृ – (पंचमी विभक्ति द्विवचन)
(ii) आशु – (सप्तमी विभक्ति एकवचन)
8. (i) प्रासाद – (द्वितीया विभक्ति एकवचन)
(ii) पितृ – (तृतीया विभक्ति बहुवचन)
9. (i) वेदना – (पंचमी विभक्ति एकवचन)
(ii) धातृ – (द्वितीया विभक्ति द्विवचन)
10. (i) शान्तनु – (षष्ठी विभक्ति एकवचन)
(ii) दातृ – (चतुर्थी विभक्ति एकवचन)
11. (i) गंगा – (पंचमी विभक्ति बहुवचन)
(ii) कर्तृ – (तृतीया विभक्ति बहुवचन)
12. (i) धीवर – (षष्ठी विभक्ति द्विवचन)
(ii) हर्तृ – (सप्तमी विभक्ति बहुवचन)
13. (i) कन्या – (सप्तमी विभक्ति द्विवचन)
(ii) भ्रातृ – (द्वितीया विभक्ति एकवचन)
14. (i) गृहम् – (द्वितीया विभक्ति बहुवचन)।
(ii) दुहितृ – (सप्तमी विभक्ति एकवचन)
15. (i) सेवा – (प्रथमा विभक्ति बहुवचन)
(ii) स्वसू – (षष्ठी विभक्ति एकवचन)
16. (i) भानु – (चतुर्थी विभक्ति एकवचन)
(ii) ननान्दृ – (पंचमी विभक्ति बहुवचन)
17. (i) रज्जु – (द्वितीया विभक्ति द्विवचन)
(ii) भ्रातृ – (सप्तमी विभक्ति एकवचन)
18. (i) पशु – (प्रथमा विभक्ति बहुवचन)
(ii) विधातृ – (षष्ठी विभक्ति बहुवचन)
19. (i) धेनु – (द्वितीया विभक्ति एकवचन)
(ii) भगवत् – (पंचमी विभक्ति एकवचन)
20. (i) तनु – (तृतीया विभक्ति एकवचन)
(ii) जगत् – (सप्तमी विभक्ति बहुवचन)
उत्तराणि :
1. (i) धेनुभिः (ii) प्रासादे
2. (i) स्वस्रे (ii) विधातृषु
3. (i) पितृणाम् (i) तनवः
4. (i) फलेषु (ii) रमया
5. (i) जगताम् (ii) धेनवः
6. (i) नद्यः (ii) मात्रा
7. (i) भ्रातुः (ii) आशौ
8. (i) प्रासादम् (ii) पितृभिः
9. (i) वेदनायाः (ii) धातरौ
10. (i) शान्तनो: (ii) दात्रे
11. (i) गंगाभ्यः (ii) कर्तृभि
12. (i) धीवरयोः (ii) हर्तृषु,
13. (i) कन्ययोः (ii) भ्रातरम्
14. (i) गृहाणि (ii) दुहितरि
15. (i) सेवाः (ii) स्वसुः
16. (i) भानवे (ii) ननान्दृभ्यः
17. (i) रज्जू (ii) भ्रातरि
18. (i) पशव: (ii) विधातृणाम्
19. (i) धेनुम् (ii) भगवतः
20. (i) तन्वा (ii) जगत्सु।

JAC Class 10 Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

प्रश्न 10.
अधोलिखितेषु शब्देषु विभक्तिः वचनं च निर्देशनं कुरुत-
(निम्नलिखित शब्दों में विभक्ति और वचन को निर्देशित कीजिए-)
(i) गुरुणा
(ii) विद्यालयेषु
(iii) देवानाम्
(iv) लतायाम्
(v) मुनीन्
(vi) वारिणि
(vii) त्वाम्
(viii) कैः
(ix) यस्मै
(x) एतस्मात्।
उत्तरम् :
(i) तृतीया विभक्तिः एकवचनम्
(ii) सप्तमी विभक्तिः बहुवचनम्
(iv) षष्ठी विभक्तिः बहुवचनम्
(iv) सप्तमी विभक्तिः एकवचनम्
(v) द्वितीया विभक्तिः बहुवचनम्
(vi) द्वितीया विभक्तिः बहुवचनम्
(vii) द्वितीया विभक्तिः एकवचनम्
(viii) तृतीया विभक्ति: बहुवचनम्
(ix) चतुर्थी विभक्तिः एकवचनम्
(x) पञ्चमी विभक्तिः एकवचनम्।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-रूपांतरण

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Vyakaran रचना के आधार पर वाक्य-रूपांतरण Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10 Hindi Vyakaran रचना के आधार पर वाक्य-रूपांतरण

प्रश्न 1.
वाक्य किसे कहते हैं?
उत्तर :
एक विचार को पूर्णता से प्रकट करने वाले सार्थक शब्द-समूह को वाक्य कहते हैं।
जैसे – अशोक पुस्तक पढ़ता है। राम दिल्ली गया। एक वाक्य में कम-से-कम दो शब्द-कर्ता और क्रिया अवश्य होने चाहिए लेकिन वार्तालाप की स्थिति में कभी एक शब्द भी पूरे वाक्य का काम कर जाता है।
जैसे – आप कहाँ गए थे?
दिल्ली!
बीमार कौन है ?
माता जी।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-रूपांतरण 1

प्रश्न 2.
रचना के आधार पर वाक्य कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
रचना के आधार पर वाक्य तीन प्रकार के सरल वाक्य, संयुक्त वाक्य और मिश्र वाक्य होते हैं।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-रूपांतरण

प्रश्न 3.
सरल वाक्य किसे कहते हैं ?
उत्तर :
सरल वाक्य स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त होने वाला उपवाक्य है। इसमें एक उद्देश्य, एक विधेय और एक ही समापिका क्रिया होती है। इसमें कर्ता, कर्म, पूरक, क्रिया और क्रिया-विशेषण में से कुछ घटकों का प्रयोग होता है। जैसे –

  • नकुल हँसता है।
  • रजत रुचि का छोटा भाई है।
  • आप क्या लेंगे?
  • बालक खेलता है।
  • राधा धीरे-धीरे चल रही है।
  • परिश्रम करने वाले विद्यार्थी सदा सफल रहते हैं।

प्रश्न 4.
संयुक्त वाक्य किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जिस वाक्य में दो या दो से अधिक उपवाक्य स्वतंत्र रूप में समुच्चय बोधक अथवा योजक द्वारा जुड़े हुए हों, उसे संयुक्त वाक्य कहते हैं। जैसे-अशोक पुस्तक पढ़ता है, परंतु शीला नहीं पढ़ती।

  • आशीष पुस्तक पढ़ता है और शीला लेख लिख रही है।
  • आप चाय पीएँगे या आप के लिए ठंडा लाऊँ ।
  • हम लोग घूमने गए और वहाँ चार दिन रहे।
  • चुपचाप बैठो या यहाँ से चले जाओ।
  • सत्य बोलो परंतु कटु सत्य मत बोलो।
  • मोहन बीमार है अतः आने में असमर्थ है।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-रूपांतरण

प्रश्न 5.
मिश्र वाक्य किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जिस वाक्य में एक प्रधान उपवाक्य हो और एक या अधिक आश्रित उपवाक्य हों, उसे मिश्र वाक्य कहा जाता है। मिश्र वाक्य में उपवाक्य परस्पर व्याधिकरण योजकों जैसे कि, यदि, अगर, तो, तथापि, यद्यपि, इसलिए आदि से जुड़े होते हैं। जैसे-खाने-पीने का मतलब है कि मनुष्य स्वस्थ बने।
खाने-पीने का मतलब है-स्वतंत्र या प्रधान उपवाक्य।
कि-समुच्चयबोधक या योजक।
मनुष्य स्वस्थ बने-आश्रित उपवाक्य।
जब बाघ और शिकारी घात लगाकर निकलते हैं तब उनकी शक्ल देखने लायक होती है।
जो अपने वचन का पालन नहीं करता, वह विश्वास खो बैठता है।
रुचि ने कहा कि वह चंडीगढ़ जा रही है।
जहाँ-जहाँ हम गए, हमारा सत्कार हुआ।
मैं आपके पास आ रहा हूँ, जिससे कुछ योजना बन सके।

मिश्र वाक्य में आने वाले आश्रित वाक्य तीन प्रकार के होते हैं –

संज्ञा उपवाक्य – मुख्य अथवा प्रधान उपवाक्य की किसी संज्ञा या संज्ञा पदबंध के बदले आने वाला उपवाक्य संज्ञा उपवाक्य कहलाता है। जैसे-राकेश बोला कि मैं लखनऊ जा रहा हूँ। यहाँ ‘मैं लखनऊ जा रहा हूँ’ उपवाक्य, प्रधान वाक्य ‘राकेश बोला’ क्रिया के कर्म के रूप में प्रयुक्त हुआ है। अतः यह संज्ञा उपवाक्य है।
मेरे जीवन का मूल उद्देश्य है कि मैं विद्या प्राप्त करूँ।
संज्ञा वाक्य के आरंभ में ‘कि’ योजक का प्रयोग होता है।

विशेषण उपवाक्य – मुख्य या प्रधान उपवाक्य के किसी संज्ञा या सर्वनाम शब्द की विशेषता बताने वाला उपवाक्य विशेषण उपवाक्य कहलाता है।

मैंने एक भिखारी देखा जो बहुत भूखा-प्यासा था।
जो व्यक्ति सच्चरित्र होता है, उसे सभी चाहते हैं।

क्रिया – विशेषण उपवाक्य – मुख्य अथवा प्रधान उपवाक्य की क्रिया के संबंध में किसी प्रकार की सूचना देने वाला उपवाक्य क्रिया-विशेषण उपवाक्य कहा जाता है। क्रिया-विशेषण उपवाक्य पाँच प्रकार के होते हैं –

(i) कालवाची उपवाक्य –
ज्योंही मैं स्टेशन पहुंचा, त्योंही गाड़ी ने सीटी बजाई।
जब पानी बरस रहा था, तब मैं घर के भीतर था।

(ii) स्थानवाची उपवाक्य –
जहाँ तुम पढ़ते थे वहीं मैं पढ़ता था।
जिधर तुम जा रहे हो, उधर आगे रास्ता बंद है।

(iii) रीतिवाची उपवाक्य –
मैंने वैसे ही किया है जैसे आपने बताया था।
वह उसी प्रकार खेलता है जैसा उसके कोच सिखाते हैं।

(iv) परिमाणवाची उपवाक्य –
जैसे-जैसे आमदनी बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे महँगाई बढ़ती जाती है।
तुम जितना पढ़ोगे उतना ही तुम्हारा लाभ होगा।

(v) परिमाणवाची (कार्य-कारिणी) उपवाक्य –
वह जाएगा ज़रूर क्योंकि उसका साक्षात्कार है।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-रूपांतरण

प्रश्न 6.
कोष्ठक में दिए गए निर्देशों के अनुसार वाक्यों में उचित परिवर्तन कीजिए –
(क) रमा को पुस्तक खरीदनी थी, इसलिए बाज़ार गई। (सरल वाक्य)
(ख) कल फूलपुर में मेला है और हम वहाँ जाएँगे। (सरल वाक्य)
(ग) झाड़ियों के पीछे छिपकर बैठी बिल्ली कुत्ते के जाने की प्रतीक्षा करने लगी। (संयुक्त वाक्य)
(घ) आओ अंदर बैठकर देर तक बातें करें। (संयुक्त वाक्य)
(ङ) सुबह पहली बस पकड़ो और शाम तक लौट आओ। (सरल वाक्य)
(च) मैंने उस व्यक्ति को देखा जो पीड़ा से कराह रहा था। (सरल वाक्य)
(छ) उसने नौकरी के लिए प्रार्थना-पत्र लिखा। (मिश्र वाक्य)
(ज) दिन-रात मेहनत करने वालों को सोच-समझकर खर्च करना चाहिए। (मिश्र वाक्य)
(झ) मैंने उस बच्चे को देखा जो स्कूटर चला रहा था। (सरल वाक्य)
(ब) वहाँ एक गाँव था। वह गाँव बहुत बड़ा था। वह गाँव चारों ओर जंगल से घिरा था। उस गाँव में आदिवासियों के परिवार रहते थे। (सरल वाक्य)
(ट) मज़दूर खूब मेहनत करता है परंतु उसे उसका लाभ नहीं मिलता। (सरल वाक्य)
(ठ) मैंने एक दुबले-पतले व्यक्ति को भीख माँगते देखा। (मिश्र वाक्य)
(ड) जो व्यक्ति परिश्रम करते हैं, उन्हें अधिक समय तक निराश नहीं होना पड़ता। (सरल वाक्य)
(ढ) मेरा विचार है कि आज घूमने चलें। (सरल वाक्य)
(ण) मैंने उसे पढ़ाकर नौकरी दिलाई। (संयुक्त वाक्य)
(त) वह फल खरीदने के लिए बाजार गया। (मिश्र वाक्य)
(थ) तुम बस रुकने के स्थान पर चले जाओ। (मिश्र वाक्य)
(द) शशि गा रही है और नाच रही है। (सरल वाक्य)
(ध) अध्यापक अपने शिष्यों को अच्छा बनाना चाहता है। (मिश्र वाक्य)
(न) बालिकाएँ गा रही हैं और नाच रही हैं। (सरल वाक्य)
उत्तर :
(क) रमा पुस्तकें खरीदने के लिए बाज़ार गई।
(ख) कल हम फूलपुर के मेले में जाएँगे।
(ग) बिल्ली झाड़ियों के पीछे छिपकर बैठ गई और कुत्ते के जाने की प्रतीक्षा करने लगी।
(घ) आओ अंदर बैठे और देर तक बातें करें।
(ङ) सुबह पहली बस पकड़कर शाम तक लौट आओ।
(च) मैंने पीड़ा से कराहते उस व्यक्ति को देखा।
(छ) उसने प्रार्थना-पत्र लिखा जो नौकरी के लिए था।
(ज) जो दिन-रात मेहनत करते हैं, उन्हें सोच-समझकर खर्च करना चाहिए।
(झ) मैंने स्कूटर चला रहे बच्चे को देखा।
(अ) चारों ओर जंगल से घिरे उस बहुत बड़े गाँव में आदिवासियों के परिवार रहते थे।
(ट) मजदूर को खूब मेहनत करने पर भी उसका लाभ नहीं मिलता।
(ठ) मैंने एक व्यक्ति को भीख माँगते देखा जो दुबला-पतला था।
(ड) परिश्रमी व्यक्तियों को अधिक समय तक निराश नहीं होना पड़ता।
या
परिश्रम करने वाले व्यक्तियों को अधिक समय तक निराश नहीं होना पड़ता।
(ढ) मेरे विचार में आज घूमने चलें; या मेरा विचार घूमने के लिए चलने का है।
(ण) मैंने उसे पढ़ाया और नौकरी दिलवाई।
(त) वह बाजार गया क्योंकि उसे फल खरीदने थे।
(थ) तुम उस स्थान पर चले जाओ जहाँ बस रुकती है।
(द) शशि नाच-गा रही है।
(ध) अध्यापक चाहते हैं कि उसके शिष्य अच्छे बनें।
(न) बालिकाएँ नाच-गा रही हैं।

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प्रश्न 7.
वाक्य रूपांतरण किसे कहते हैं ?
उत्तर :
सरल वाक्य को संयुक्त एवं मिश्र बनाना, संयुक्त को सरल एवं मिश्र बनाना रूपांतरण कहलाता है। जैसे –
(i) सरल से मिश्र और संयुक्त वाक्य बनाना –
सरल – बारिश में बच्चे भीग रहे हैं। मिश्र-क्योंकि बारिश हो रही है, इसलिए बच्चे उसमें भीग रहे हैं।
संयुक्त – बारिश हो रही है और बच्चे उसमें भीग रहे हैं।

(ii) मिश्र से सरल वाक्य बनाना –
मिश्र – जब तक मोहन घर पहुँचा तब तक उसके पिता चल चुके थे।
सरल – मोहन के घर पहुँचने से पूर्व उसके पिता चल चुके थे।

(ii) मिश्र से सरल और संयुक्त वाक्य बनाना
मिश्र – मैंने एक आदमी देखा जो बहुत बीमार था।
सरल – मैंने एक बहुत बीमार आदमी देखा।
संयुक्त – मैंने एक आदमी देखा और वह बहुत बीमार था।

(iv) संयुक्त से सरल और मिश्र वाक्य बनाना
संयुक्त – मोहन बहुत खिलाड़ी है लेकिन फेल कभी नहीं होता।
सरल – मोहन बहुत खिलाड़ी होने पर भी फेल कभी नहीं होता।
मिश्र – यद्यपि मोहन बहुत खिलाड़ी है तथापि फेल कभी नहीं होता।

(v) सरल वाक्यों से एक मिश्र वाक्य बनाना –
सरल – पुस्तक में एक कठिन प्रश्न था। कक्षा में उस प्रश्न को कोई भी हल नहीं कर सका। मैंने उस प्रश्न को हल कर दिया।
मिश्र – पुस्तक के जिस कठिन प्रश्न को कक्षा में कोई भी हल नहीं कर सका मैंने उसे हल कर दिया है।

(vi) सरल वाक्यों से संयुक्त और मिश्र वाक्य बनाना –
सरल वाक्य – इस वर्ष हमारे विद्यालय में बहुत-से वक्ता पधारे। कुछ वक्ता धर्म पर बोले। कुछ वक्ता साहित्य पर बोले। कुछ वक्ता वैज्ञानिक विषयों पर बोले।
संयुक्त वाक्य में रूपांतरण – इस वर्ष हमारे विद्यालय में पधारने वाले बहुत-से वक्ताओं में से कुछ धर्म पर, कुछ साहित्य पर और कुछ वैज्ञानिक विषयों पर बोले।
मिश्र वाक्य में रूपांतरण – इस वर्ष हमारे विद्यालय में जो बहुत-से वक्ता पधारे उनमें से कुछ धर्म पर, कुछ साहित्य पर और कुछ वैज्ञानिक विषयों पर बोले।

(vii) वाच्य की दृष्टि से रूपांतरण-राम नहीं खाता। = राम से नहीं खाया जाता।

(viii) सकर्मक से अकर्मक में रूपांतरण-मोहन पेड़ काट रहा है। = मोहन से पेड़ कट रहा है।

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प्रश्न 8.
कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार बदलिए –
1. बालिकाएँ नाच रही हैं और गा रही हैं। (सरल वाक्य में)
2. अध्यापक अपने शिष्यों को अच्छा बनाना चाहता है। (मिश्र वाक्य में)
3. मैंने एक बहुत मोटा व्यक्ति देखा। (मिश्र वाक्य में)
4. मैं बाज़ार जाऊँगा और कपड़े खरीदूंगा। (सरल वाक्य में)
5. आप खूब परिश्रम करते हैं और अच्छे अंक प्राप्त करते हैं। (सरल वाक्य में)
6. मेरा निर्णय आज मौन रहने का है। (मिश्र वाक्य में)
7. शाहनी ने दुपट्टे से सिर ढका। हवेली को अंतिम बार देखा। (सरल वाक्य में)
8. शाहनी ने हिचकियों को रोका और रूंधे गले से कहा। (सरल वाक्य में)
9. चातक थोड़ी देर चुप रहकर बोला। (संयुक्त वाक्य में)
10. मैंने गौरा को देखा और उसे पालने का निश्चय किया। (सरल वाक्य में)
11. मैंने एक व्यक्ति देखा। वह बहुत ग़रीब था। (मिश्र वाक्य में)
12. बच्चा भूखा था। वह रोने लगा। माँ ने उसे गोद में ले लिया। (मिश्र वाक्य में)
13. मोहन कल यहाँ आया। उसने राम से बात की। वह चला गया। (संयुक्त वाक्य में)
14. मैंने एक व्यक्ति देखा। वह बहुत दुबला-पतला था। (मिश्र वाक्य में)
15. सड़क पार करता हुआ एक व्यक्ति बस से टकराकर मर गया। (मिश्र वाक्य में)
16. यही वह बच्चा है, जिसे बैल ने मारा था। (सरल वाक्य में)
17. रमेश जा रहा था। लता हँस रही थी। (मिश्र वाक्य में)
उत्तर :
1. बालिकाएँ नाच और गा रही हैं।
2. अध्यापक चाहता है कि उसके शिष्य अच्छे बनें।
3. मैंने एक व्यक्ति देखा, जो बहुत मोटा था।
4. मैं बाज़ार जाकर कपड़े खरीदूंगा।
5. आप खूब परिश्रम कर अच्छे अंक प्राप्त करते हैं।
6. मेरा निर्णय है कि मैं आज मौन रहूँ।
7. शाहनी ने दुपट्टे से सिर ढककर हवेली को अंतिम बार देखा।
8. शाहनी ने हिचकियों को रोक कर रुंधे गले से कहा।
9. चातक थोड़ी देर चुप रहा और बोला।
10. मैंने गौरा को देखकर, उसे पालने का निश्चय कर लिया।
11. मैंने एक व्यक्ति देखा, जो बहुत ग़रीब था।
12. क्योंकि बच्चा भूख से रो रहा था, इसलिए माँ ने उसे गोद में ले लिया।
13. मोहन ने कल यहाँ आकर राम से बात की और चला गया।
14. मैंने एक व्यक्ति देखा, जो बहुत दुबला-पतला था।
15. जो व्यक्ति सड़क पार कर रहा था, वह बस से टकराकर मर गया।
16. इस बच्चे को बैल ने मारा था।
17. रमेश गा रहा था तो लता हँस रही थी।

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प्रश्न 9.
नीचे लिखे वाक्यों का निर्देशानुसार रूपांतरण कीजिए –

  1. जापान में चाय पीने की एक विधि है जिसे ‘चा-नो-यू’ कहते हैं। (सरल वाक्य में)
  2. तताँरा को देखते ही वामीरो फूट-फूट कर रोने लगी। (मिश्र वाक्य में)
  3. तताँरा की व्याकुल आँखें वामीरो को ढूँढ़ने में व्यस्त थीं। (संयुक्त वाक्य में)

उत्तर :

  1. जापान में चाय पीने की एक विधि को ‘चा-नो-यू’ कहते हैं।
  2. जैसे ही वामीरो ने तताँरा को देखा वैसे ही वह फूट-फूट कर रोने लगी।
  3. तताँरा की आँखें व्याकुल थीं और वे वामीरो को ढूंढने में व्यस्त थीं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत

JAC Class 10 Hindi नौबतखाने में इबादत Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है?
उत्तर :
शहनाई की दुनिया में डुमराँव को इसलिए याद किया जाता है, क्योंकि यहाँ सोन नदी के किनारे पाई जाने वाली नरकट नामक घास से शहनाई की रीड बनाई जाती है। इसी रीड से शहनाई को फूंका जाता है। उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का जन्म भी डुमराँव में हुआ था। इनके परदादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ और पिता उस्ताद पैगंबरबख्श खाँ भी डुमराँव के निवासी थे।

प्रश्न 2.
बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा जाता है ?
उत्तर :
जहाँ कहीं भी कोई उत्सव अथवा समारोह होता है, सबसे पहले बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई की ध्वनि सुनाई देती है। इन समारोहों में बिस्मिल्ला खाँ से तात्पर्य उनकी शहनाई की गूंज से होता है। इनकी शहनाई की आवाज़ लोगों के सिर चढ़कर बोलती है। गंगा तट, बालाजी का मंदिर, बाबा विश्वनाथ अथवा संकटमोचन मंदिर में प्रभाती का मंगलस्वर बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई का ही होता है। समस्त मांगलिक विधि-विधानों के अवसरों पर भी यह वाद्य मंगलध्वनि का परिवेश प्रतिष्ठित कर देता है। इसलिए बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक कहा जाता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत

प्रश्न 3.
‘सुषिर-वाद्यों’ से क्या अभिप्राय है? शहनाई को ‘सुषिर वाद्यों में शाह’ की उपाधि क्यों दी गई होगी?
उत्तर :
बाँस अथवा मुँह से फूंककर बजाए जाने वाले वाद्यों में से निकलने वाली ध्वनि को ‘सुषिर’ कहते हैं। इस आधार पर ‘सुषिर-वायों’ से तात्पर्य उन वाद्य-यंत्रों से है, जो फूंककर बजाए जाने पर ध्वनि उत्पन्न करते हैं। अरब देश में फूंककर बजाए जाने वाले वाद्य; जिनमें नाड़ी अथवा सरकट या रीड होती है; को ‘नय’ कहते हैं। वे शहनाई को ‘शाहेनय’ अर्थात् ‘सुषिर-वाद्यों में शाह’ कहते हैं। इस कारण शहनाई को सुषिर-वाद्यों में शाह की उपाधि दी गई होगी।

प्रश्न 4.
आशय स्पष्ट कीजिए –
(क) ‘फटा सुर न बखों। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल-सी जाएगी।’
(ख) मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ।
उत्तर :
(क) बिस्मिल्ला खाँ को उनकी शिष्या फटी तहमद न पहनने के लिए कहती है, तो खाँ साहब कहते हैं कि सुर नहीं फटना चाहिए फटी हुई लुंगी तो सिल सकती है, परंतु सुर यदि फट जाए तो वह कभी ठीक नहीं हो सकता। इसलिए वे परमात्मा से यही प्रार्थना करते हैं कि वह उन्हें फटा सुर न दे।
(ख) बिस्मिल्ला खाँ साहब अस्सी वर्षों से शहनाई बजा रहे है। वे शहनाई के बादशाह माने जाते हैं, फिर भी नमाज़ पढ़ने के बाद वे परमात्मा से यही प्रार्थना करते हैं कि वह उन्हें मधुर सुर प्रदान करे। उनके सुरों में ऐसा प्रभाव भर दे, जिससे लोग भावविभोर हो जाएँ और भाव-वेश में सच्चे मोतियों के समान आँखों से अनायास आँसुओं की झड़ी लग जाए।

प्रश्न 5.
काशी में हो रहे कौन-से परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे?
उत्तर :
काशी के पक्का महल क्षेत्र से मलाई बरफ़ बेचने वालों का चले जाना बिस्मिल्ला खाँ को बहुत खलता था। उन्हें यह भी अच्छा नहीं लगता था कि अब काशी में पहले जैसी देशी घी की जलेबियाँ और कचौड़ियाँ नहीं बनती हैं। वे गायकों के मन में अपने संगतियों के प्रति अनादर के भाव से भी व्यथित रहते थे। गायकों द्वारा रियाज़ न करना भी उन्हें अच्छा नहीं लगता। काशी में संगीत, साहित्य और अदब के क्षेत्र में निरंतर हो रही गिरावट ने बिस्मिल्ला खाँ को बहुत व्यथित कर दिया था।

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प्रश्न 6.
पाठ में आए किन प्रसंगों के आधार पर आप कह सकते हैं कि –
(क) बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे?
(ख) वे वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इनसान थे?
उत्तर :
(क) बिस्मिल्ला खाँ गंगा किनारे, बालाजी के मंदिर, काशी विश्वनाथ के मंदिर तथा संकटमोचन मंदिर में शहनाई बजाते थे। वे मुहर्रम के दिनों में आठवीं तारीख पर खड़े होकर शहनाई बजाते थे तथा दालमंडी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल जाते थे। इस प्रकार उनके द्वारा हिंदू-मुस्लिम धर्मों में भेदभाव न करते हुए समान रूप से सबका आदर करना यही सिद्ध करता है कि बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।

(ख) बिस्मिल्ला खाँ को भारत रत्न, पद्मविभूषण, डॉक्टरेट आदि अनेक उपाधियाँ मिली थीं; परंतु वे सदा सीधे-साधे सच्चे इनसान की तरह जीवन व्यतीत करते रहे। उनकी एक शिष्या उन्हें फटा तहमद पहनने पर टोकती थी तो वे स्पष्ट कह देते थे कि सम्मान उनकी शहनाई को मिला है फटे तहमद को नहीं। वे परमात्मा से भी ‘सच्चा सुर’ माँगते रहे; उनसे कभी भौतिक सुविधाएँ नहीं माँगी।

प्रश्न 7.
उत्तर
बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख करें जिन्होंने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया? बिस्मिल्ला खाँ छ: वर्ष की अवस्था में ही अपने ननिहाल काशी आ गए थे, जहाँ उनके दोनों मामा सादिक हुसैन और अलीबख्श खाँ शहनाई के विभिन्न सुरों को अलापते थे। यहीं से उनका शहनाई के प्रति लगाव उत्पन्न हो गया था। इन्हें सम का ज्ञान भी यही हुआ था। जब इनके मामा अलीबख्श खाँ सम पर आते थे, तो ये धड़ से एक पत्थर ज़मीन पर मारते थे।

चौदह वर्ष की आयु में रसूलन और बतूलन बहनों के गायन ने इन्हें संगीत के प्रति आकर्षित किया था। इन्हें कुलसुम हलवाइन द्वारा कलकलाते घी में कचौड़ी डालते समय उत्पन्न छन्न की आवाज़ में भी संगीत के आरोह-अवरोह सुनाई देते थे। इससे स्पष्ट है कि बिस्मिल्ला खाँ को उनके आसपास के परिवेश तथा व्यक्तियों ने शहनाई-वादन के लिए प्रेरित किया था। इनके नाना, दादा तथा पिता भी सुप्रसिद्ध शहनाई-वादक थे।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 8.
बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन-सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया?
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ भारत के सच्चे सपूत थे। वे मुसलमान होते हुए भी हिंदू थे। उनके लिए धर्म, जाति आदि विशेष महत्व नहीं रखते थे। उनके लिए धर्म वह था, जो मन को शांति प्रदान करता था। जीवन को सरल, सहज और सादगी से व्यतीत करना खाँ साहब को आता था। उनके अनुसार जीवन की आवश्यकताओं को उतना ही बढ़ाना चाहिए, जितनी इन्सान पूरी कर सकता हो। दूसरों की संस्कृति की नकल न करके व्यक्ति को अपनी संस्कृति पर गर्व करना चाहिए और उसे अपनाना चाहिए। अकेले रहकर शान और ठाठ से जीने से अच्छा है कि अपनों के साथ खुशी-खुशी सीमित आवश्यकताओं के साथ जीएँ। बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की इन्हीं विशेषताओं ने हमें प्रभावित किया है।

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प्रश्न 9.
मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
मुहर्रम के दिनों में बिस्मिल्ला खाँ तथा उनके परिवार का कोई भी सदस्य न तो शहनाई बजाता था और न ही किसी संगीत सम्मेलन में भाग लेता था। मुहर्रम की आठवीं तारीख को बिस्मिल्ला खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते थे तथा दालमंडी में फातमान तक करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए तथा नौहा बजाते हुए जाते थे। इस दिन वे कोई भी राग-रागिनी नहीं बजाते थे। उनकी आँखें इमाम हुसैन और उनके परिवारजन के बलिदान को स्मरण कर भीगी रहती थी।

प्रश्न 10.
बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे, तर्क साहित उत्तर दीजिए।
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ साहब को भारत सरकार ने भारतरत्न तथा पद्मविभूषण के सम्मानों से सम्मानित किया था। संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार के अतिरिक्त अनेक विश्वविद्यालयों ने इनकी संगीत साधना के लिए इन्हें डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्रदान की थीं। इन्हें इतना सम्मान मिला, फिर भी खाँ साहब सामान्य जीवन व्यतीत करते रहे और परमात्मा से सच्चा सुर प्रदान करने की प्रार्थना करते रहे।

इन्हें कड़ाही में ‘छन्न’ करती हुई कचौड़ी में संगीत का आरोह-अवरोह सुनाई देता था। रसूलनबाई और बतूलनबाई के गानों ने इन्हें संगीत के प्रति आकर्षित किया था। इन विवरणों से स्पष्ट है कि बिस्मिल्ला खाँ साहब कला के अनन्य उपासक थे। उनके सामने कोई छोटा-बड़ा नहीं था। वे धर्म-भेद भुलाकर मुहर्रम और बालाजी के मंदिर में समान रूप से शहनाई बजाते थे। कला ही उनका धर्म था और सुर की साधना करना उनके जीवन का उद्देश्य था।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 11.
निम्नलिखित मिश्र वाक्यों के उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए –
(क) यह जरूर है कि शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं।
(ख) रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूंका जाता है।
(ग) रीड नरकट से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है।
(घ) उनको यकीन है, कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा।
(ङ) हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है जिसकी गमक उसी में समाई है।
(च) खाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है कि पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णतया व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा।
उत्तर :
(क) उपवाक्य-शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। – संज्ञा उपवाक्य
(ख) उपवाक्य-जिसके सहारे शहनाई को फूंका जाता है। – विशेषण, उपवाक्य
(ग) उपवाक्य-जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। – विशेषण उपवाक्य
(घ) उपवाक्य-कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा। – संज्ञा उपवाक्य
(ङ) उपवाक्य-जिसकी गमक उसी में समाई है। – विशेषण उपवाक्य
(च) उपवाक्य-पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा। – संज्ञा उपवाक्य

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत

प्रश्न 12.
निम्नलिखित वाक्यों को मिश्रित वाक्यों में बदलिए
(क) इसी बालसुलभ हँसी में कई यादें बंद हैं।
(ख) काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।
(ग) धत्! पगली ई भारतरत्न हमको शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं।
(घ) काशी का नायाब हीरा हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।
उत्तर :
(क) यह वैसी ही बालसुलभ हँसी है, जिसमें कई यादै बेद हैं।
(ख) काशी में जो संगीत आयोजन होते हैं, उनकी एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।
(ग) धत् ! पगली ई भारतरत्न शहनाई पे मिला है न कि लुंगिया पे।
(घ) काशी का जो नायाब हीरा है, वह हमेशा दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।

पाठेतर सक्रियता –

1. कल्पना कीजिए कि आपके विद्यालय में किसी प्रसिद्ध संगीतकार के शहनाईवादन का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम की सूचना देते हुए बुलेटिन बोर्ड के लिए नोटिस बनाइए।
उत्तर :

सूचना

राजकीय उच्च विद्यालय,
नासिक
दिनांक : ……….

समस्त विद्यार्थियों को सूचित किया जाता है कि सोमवार दिनांक …….. को प्रातः 11.00 बजे विद्यालय के सभागार में सुप्रसिद्ध शहनाई-वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ साहब की स्मृति में शहनाई-वादन का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में सभी विद्यार्थियों की उपस्थिति अनिवार्य है।

हस्ताक्षर ……..
प्रधानाचार्य
राजकीय उच्च विद्यालय, नासिक।

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2. आप अपने मनपसंद संगीतकार के बारे में एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर :
मेरे मनपसंद संगीतकार उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ हैं। उनका जीवन अभावों, तंगहाली व उपेक्षाओं में व्यतीत हुआ। परंतु उन्होंने कभी भी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया। उनका सिद्धांत था कि भगवान जिस स्थिति में रखे, उसी स्थिति में मनुष्य को प्रसन्न रहना चाहिए। आज की युवा पीढ़ी जिस पश्चिमी चकाचौंध को अपना आदर्श मानकर अपने देश और संस्कृति को भूलते जा रहे हैं, उन्हें बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से शिक्षा लेनी चाहिए कि अपना देश और संस्कृति दूसरों से कम नहीं है। मनुष्य अपने देश और उसकी संस्कृति से ही अपना विकास कर सकता है।

बिस्मिल्ला खाँ के लिए कहा गया है कि न वे हिंदू थे और न ही मुसलमान। उनके लिए सभी धर्म समान थे। वे गंगा-जमनी तहज़ीब के प्रतीक थे। आज के समय में बिस्मिल्ला खाँ का आदर्श बहुत महत्व रखता है। उनके आदर्शों का अनुसरण करते हुए मनुष्य को किसी धर्म विशेष के प्रति स्नेह होने पर भी सभी धर्मों को समान आदर देना चाहिए। इससे देश में सद्भावना और एकता के वातावरण का निर्माण होगा, जिससे देश प्रगति की ओर अग्रसर होगा।

3. हमारे साहित्य, कला, संगीत और नृत्य को समृद्ध करने में काशी (आज के वाराणसी) के योगदान पर चर्चा कीजिए।
उत्तर :
काशी ने संगीत के क्षेत्र में उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ साहब जैसे महान शहनाई-वादक दिए। सादिक हुसैन, अलीबख्श खाँ, उस्ताद सलार हुसैन खाँ, उस्ताद पैगंबरबख्श खाँ आदि शहनाई-वादक भी काशी की ही देन हैं। नृत्य और गायन के क्षेत्र में काशी ने रसूलनबाई तथा बतूलनबाई जैसी प्रतिभाओं को जन्म दिया है। इनके गायन से प्रभावित होकर बिस्मिल्ला खाँ संगीत की ओर आकर्षित हुए थे। काशी की देशी घी की जलेबियाँ और कचौड़ियाँ प्रसिद्ध हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय एवं संपूर्णानंद विश्वविद्यालयों ने शिक्षा के क्षेत्र में पर्याप्त योगदान दिया है। संस्कृत के अध्ययन-अध्यापन का केंद्र काशी ही है। काशी के अन्य प्रसिद्ध कलाकार नृत्यांगना सितारा देवी, ठुमरी गायिका गिरिजा देवी, तबला वादक कंठे महाराज, गुदई महाराज, नर्तक बिरजू महाराज और गोपी कृष्ण हैं।

4. काशी का नाम आते ही हमारी आँखों के सामने काशी की बहुत-सी चीजें उभरने लगती हैं, वे कौन-कौन सी हैं?
उत्तर :
काशी का नाम आते ही हमें काशी विश्वनाथ की याद आ जाती है। गंगा के विशाल घाट, गंगा में स्नान करते श्रद्धालुओं की भीड़, आरती के समय जगमगाती गंगा, गंगा में नौकाविहार आदि का स्मरण हो आता है। बालाजी और संकटमोचन मंदिर, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, संपूर्णानंद विश्वविद्यालय, गंगा घाट की छतरियाँ, पंडे, उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई की गूंज-यह सबकुछ आँखों के सामने तैर जाता है।

यह भी जाने –

  • सम – ताल का एक अंग, संगीत में वह स्थान जहाँ लय की समाप्ति और ताल का आरंभ होता है।
  • श्रुति – एक स्वर से दूसरे स्वर पर जाते समय का अत्यंत सूक्ष्म स्वरांश।
  • वाद्ययंत्र – हमारे देश में वाद्य यंत्रों की मुख्य चार श्रेणियाँ मानी जाती हैं।
  • तत-वितत – तार वाले वाद्य-वीणा, सितार, सारंगी।
  • सुषिर – फूंक कर बजाए जाने वाले वाद्य-बांसुरी, शहनाई, नागस्वरम, बीन।
  • घनवाद्य – आघात से बजाए जाने वाले धातु वाद्य-झाँझ, मंजीरा, धुंघरू।
  • अवनद्ध – चमड़े से मढ़े वाद्य-तबला, ढोलक, मृदंग आदि।

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चैती – एक तरह का चलता गाना। चैती-चढ़ल चइत चित लागे ना रामा

बाबा के भवनवा
बीर बमनवा सगुन बिचारो
कब होइहैं पिया से मिलनवा हो रामा
चढ़ल चइत चित लागे ना रामा

ठुमरी – एक प्रकार का गीत जो केवल एक स्थायी और एक ही अंतरे में समाप्त होता है।

ठुमरी बाजुबंद खुल-खुल जाए
जादू की पुड़िया भर-भर मारी
हे ! बाजुबंद खुल-खुल जाए

टप्पा – यह भी एक प्रकार का चलता गाना ही कहा जाता है। ध्रुपद एवं ख्याल की अपेक्षा जो गायन संक्षिप्त है, वही टप्पा है।

टप्पा
बागां विच आया करो
बागां विच आया करो
मक्खियाँ तो डर लगदा
गुड़ ज़रा कम खाया करो।

दादरा – एक प्रकार का चलता गाना। दो अर्धमात्राओं के ताल को भी दादरा कहा जाता है।

दादरा
तड़प तड़प जिया जाए
सांवरियां बिना
गोकुल छाड़े मथुरा में छाए
किन संग प्रीत लगाए
तड़प तड़प जिया जाए

JAC Class 10 Hindi नौबतखाने में इबादत Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
बिस्मिल्ला खाँ की जीवन-पद्धति कैसी थी?
उत्तर :
उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ के लिए जीने का अर्थ शानदार कोठियाँ, गाड़ियाँ या बैंक-बैलेंस नहीं था। उनके लिए ठाठ और शान से जीने का अर्थ था-अपनों के साथ बनारस में रहते हुए जीना। उनके लिए उनका परिवार ही सर्वोपरि था। उसमें उनके परिवार के सदस्य ही नहीं अपितु उनके संगतकार साजिंदों के परिवार भी सम्मिलित थे। उनके भरण-पोषण का उत्तरदायित्व बिस्मिल्ला खाँ ने अपने ऊपर ले रखा था। यह उनके लिए अनचाहा बोझ नहीं था। यह उनके जीवन जीने का एक तरीका था। उन्हें अपनों के साथ सादगी से रहने में सुख मिलता था।

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प्रश्न 2.
बिस्मिल्ला खाँ के जीवन में गंगा का क्या महत्व था?
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ के जीवन में अपना कहने के लिए उनके परिवार के सदस्यों तथा संगतकार साजिंदों के अतिरिक्त बनारस शहर तथा गंगा नदी थी। उन्हें बनारस और गंगा नदी के बदले में जीवन का कोई भी अन्य सुख आनंद नहीं देता था। उन्हें जितना आनंद और सुख बनारस व गंगा नदी के किनारे रहते हुए मिलता था, वैसा सुख और कहीं नहीं मिलता था। एक बार अमेरिका का राक फेलर फाउंडेशन उन्हें उनके संगतकार साजिंदों के साथ कुछ दिन अमेरिका में रखना चाहता था।

वे लोग उनके लिए वहाँ पर बनारस जैसा वातावरण बनाने के लिए भी तैयार थे, परंतु खाँ साहब ने इन्कार कर दिया। उनका उत्तर था कि वे लोग उन्हें अमेरिका में सबकुछ दे देंगे, परंतु वहाँ गंगा नदी कहाँ से लाएँगे? उनके कहने का अर्थ था कि उनके लिए संसार के सभी ऐशो-आराम गंगा नदी के सामने व्यर्थ हैं। उनका जीवन वहीं है, जहाँ गंगा नदी है।

प्रश्न 3.
बिस्मिल्ला खाँ का जन्म कहाँ हुआ? उनका खानदानी पेशा क्या था?
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ का जन्म बिहार के डुमराँव गाँव में हुआ था। शहनाई बजाना उनका खानदानी पेशा और कौशल था। उनके परिवार के सदस्य राजघराने के नौबतखाने में शहनाई बजाते थे।

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प्रश्न 4.
बिस्मिल्ला खाँ की ऐतिहासिक उपलब्धि क्या है?
उत्तर :
आज तक किसी भी महान से महान संगीतकार को भी वह गौरव नहीं मिला, जो कि बिस्मिल्ला खाँ को मिला था। बिस्मिल्ला खाँ को आज़ाद भारत की पहली सुबह 15 अगस्त, 1947 को लाल किले पर शहनाई बजाने का अवसर मिला था। दूसरा ऐतिहासिक क्षण वह था, जब 26 जनवरी, 1950 को बिस्मिल्ला खाँ ने लाल किले पर शहनाई बजाकर लोकतांत्रिक गणराज्य के मंगल प्रभात के रथ की अगुवाई की थी।

प्रश्न 5.
बिस्मिल्ला खाँ को कौन-कौन से राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं ?
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ को पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण और भारतरत्न से सम्मानित किया गया है। उनका सबसे बड़ा पुरस्कार था – भारत के इतिहास की दो महत्वपूर्ण तिथियों 15 अगस्त, 1947 और 26 जनवरी, 1950 को लाल किले पर शहनाई की मंगल धुनें बजाना। ऐसा पुरस्कार आज तक किसी भी संगीतकार को नहीं मिला।

प्रश्न 6.
बिस्मिल्ला खाँ की संगीत की प्रतिभा और उपलब्धि कैसी थी?
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ की जीवन-शैली साधारण थी। उसमें कोई तड़क-भड़क नहीं थी। उन्होंने सदा उतना ही सहेजा, जितना उनकी तथा उनके परिवार की आवश्यकताओं के लिए जरूरी था। इससे हम उन्हें किसी से कम नहीं कह सकते। उनकी उपलब्धि का इससे पता चलता है कि एक बार अमेरिका का राकफेलर फाउंडेशन उन्हें और उनके संगतकार साजिंदों को परिवार सहित उनकी जीवन-शैली के अनुसार अमेरिका में रखना चाहता था। परंतु बिस्मिल्ला खाँ ने अमेरिका के ऐश्वर्य की चाह न रखते हुए उनसे पूछा कि वहाँ वे गंगा नदी कहाँ से लाएँगे? वे चाहते तो अपने लिए सभी प्रकार के भौतिक सुख इकट्ठे कर सकते थे, परंतु उन्होंने अपना जीवन अपनी इच्छा से सादगी और सरलता से व्यतीत किया था।

प्रश्न 7.
बिस्मिल्ला खाँ काशी क्यों नहीं छोड़ना चाहते थे? कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ अनेक कारणों से काशी नहीं छोड़ना चाहते थे। इसमें से एक कारण ‘गंगा नदी’ थी, जिसके बिना बिस्मिल्ला खाँ नहीं रह सकते थे। दूसरा कारण यह था कि उनके पूर्वज वर्षों से वहाँ शहनाई बजाते रहे थे। वे यह परंपरा तोड़ना नहीं चाहते थे।

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प्रश्न 8.
बिस्मिल्ला खाँ साहब का निधन कब हुआ?
उत्तर :
21 अगस्त, 2006 को बिस्मिल्ला खाँ ने दुनिया को अलविदा कह दिया था। टी०वी० पर उनके देहांत का समाचार बार-बार प्रसारित होता रहा। उस समाचार को सुनकर मन में एक टीस उठ रही थी कि इनके जैसा मानव हमारी धरती पर फिर पैदा नहीं हो सकता। उस दिन . सबकी आँखें नम थीं। उनके घर पर आज भी शहनाई की धुनें लगातार बज रही थीं। परंतु यह शहनाई उनकी यादों को ताज़ा कर रही थी।

प्रश्न 9.
शहनाई बजाने के लिए किसका प्रयोग किया जाता है?
उत्तर :
शहनाई बजाने के लिए रीड का प्रयोग होता है। रीड अंदर से पोली होती है, जिसके सहारे शहनाई को फूंका जाता है।

प्रश्न 10.
रीड कहाँ पाई जाती है? यह किससे बनाई जाती है?
उत्तर :
रीड डुमराँव में सोन नदी के किनारे पर पाई जाती है। यह नरकट से बनाई जाती है, जो एक प्रकार की घास होती है।

प्रश्न 11.
शहनाई और डुमराँव का रिश्ता गहरा कैसे है?
उत्तर :
शहनाई डुमराँव में सोन नदी के किनारे मिलने वाली रीड से बनती है, वहीं दूसरी ओर सर्वश्रेष्ठ शहनाई-वादक बिस्मिल्ला खाँ का जन्म भी डुमराँव में हुआ था। इसलिए दोनों में गहरा रिश्ता है।

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प्रश्न 12.
बिस्मिल्ला खाँ जीवन भर ईश्वर से क्या माँगते रहे, और क्यों? इससे उनकी किस विशेषता का पता चलता है?
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ जीवन भर ईश्वर से यही प्रार्थना करते रहे कि वे उन्हें मधुर सुर प्रदान करें; वे अपने सुरों से लोगों में ऐसा प्रभाव भर दें, जिससे लोग भावविभोर हो जाए। शहनाई-वादन में अति कुशल बिस्मिल्ला खाँ के इस व्यवहार से पता चलता है कि वे स्वयं पर व अपनी कला पर कभी अभिमान नहीं किया। वे इसे ईश्वर की कृपा मानते थे और जीवनपर्यंत अपनी कला को निखारने के लिए प्रयासरत रहे।

प्रश्न 13.
खाँ साहब के लिए आठवीं तारीख खास क्यों है?
उत्तर :
खाँ साहब के लिए आठवीं तारीख का अपना विशेष महत्व है। इस दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते हैं और दालमंडी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए, नौहा बजाते जाते हैं। इस दिन कोई राग नहीं बजता। इस दिन राग-रागिनियों की अदायगी का निषेध है।

प्रश्न 14.
काशी में ऐसा कौन-सा आयोजन होता है, जिसमें बिस्मिल्ला खाँ अवश्य शामिल होते थे?
उत्तर :
काशी में संगीत आयोजन की एक अद्भुत एवं प्राचीन परम्परा है। यह आयोजन संकटमोचन मंदिर में पिछले कई वर्षों से हो रहा है। यहाँ हनुमान जयंती के अवसर पर पाँच दिनों तक शास्त्रीय एवं उपशास्त्रीय गायन-वादन की उत्कृष्ट सभा होती है। इसमें बिस्मिल्ला खाँ अवश्य शामिल होते थे।

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प्रश्न 15.
शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। शहनाई बजाने के लिए रीड का प्रयोग होता है। रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फेंका जाता है। रीड, नरकट (एक प्रकार की घास) से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। इतनी ही महत्ता है इस समय डुमराँव की जिसके कारण शहनाई जैसा वाद्य बजता है। फिर अमीरुद्दीन जो हम सबके प्रिय हैं, अपने उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ साहब हैं। उनका जन्म-स्थान भी डुमराँव ही है। इनके परदादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ डुमराँव निवासी थे। बिस्मिल्ला खाँ उस्ताद पैगंबरबख्श खाँ और मिट्ठन के छोटे साहबजादे हैं।
(क) शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के पूरक हैं, कैसे?
(ख) यहाँ रीड के बारे में क्या-क्या जानकारियाँ मिलती हैं?
(ग) अमीरुद्दीन के माता-पिता कौन थे?
उत्तर :
(क) शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के पूरक हैं क्योंकि यहाँ सोन नदी के किनारे पाई जाने वाली नरकट नामक घास से शहनाई की रीड बनाई जाती है। उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का जन्म भी डुमराँव में हुआ था। इनके परदादा और पिता भी डुमराँव के निवासी थे।
(ख) रीड अंदर से पोली होती है। इसके द्वारा शहनाई को बजाया जाता है। रीड नरकट नामक घास से बनाई जाती है।
(ग) अमीरुद्दीन के पिता का नाम पैगंबरबख्श खाँ तथा माता का नाम मिट्ठन था।

पठित गद्यांश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पी प्रश्नों के उचित विकल्प चुनकर लिखिए –

1. शहनाई के इसी मंगलध्वनि के नायक बिस्मिल्ला खाँ साहब अस्सी बरस से सुर माँग रहे हैं। सच्चे सुर की नेमत। अस्सी बरस की पाँचों वक्त वाली नमाज इसी सुर को पाने की प्रार्थना में खर्च हो जाती है। लाखों सज़दे, इसी एक सच्चेसुर की इबादत में खुदा के आगे झुकते हैं। वे नमाज़ के बाद सज़दे में गिड़गिड़ाते हैं-‘मेरे मालिक एक सुर’ बख दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आए।’

(क) लेखक ने मंगल ध्वनि किसे कहा है?
(i) सितार की ध्वनि को
(ii) शंखनाद को
(iii) शहनाई की ध्वनि को
(iv) बाँसुरी की ध्वनि को
उत्तर :
(iii) शहनाई की ध्वनि को

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(ख) बिस्मिल्ला खाँ कितने वर्षों से शहनाई बजा रहे थे?
(i) बीस वर्षों से
(ii) तीस वर्षों से
(iii) पचास वर्षों से
(iv) अस्सी वर्षों से
उत्तर :
(iv) अस्सी वर्षों से

(ग) बिस्मिल्ला खाँ दिन में कितनी बार शहनाई बजाते थे?
(i) दो बार
(ii) तीन बार
(iii) चार बार
(iv) पाँच बार
उत्तर :
(iv) पाँच बार

(घ) बिस्मिल्ला खाँ खुदा से क्या माँगते थे?
(i) मान-सम्मान
(ii) धन-दौलत
(iii) एक सुर
(iv) सुख-संपत्ति
उत्तर :
(iii) एक सुर

(ङ) बिस्मिल्ला खाँ की इच्छा क्या थी?
(i) अच्छी से अच्छी शहनाई बजाना
(ii) अच्छे घर में रहना
(iii) अच्छे कपड़े पहनना
(iv) अच्छा खाना खाना
उत्तर :
(i) अच्छी से अच्छी शहनाई बजाना

उच्च चिंतन क्षमताओं एवं अभिव्यक्ति पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

पाठ पर आधारित प्रश्नों को पढ़कर सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए –

(क) बिस्मिल्ला खाँ किस शहर को नहीं छोड़ना चाहते थे?
(i) काशी को
(ii) लखनऊ को
(iii) मुंबई को
(iv) कोलकाता को
उत्तर :
(i) काशी को

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(ख) बिस्मिल्ला खाँ के अनुसार शहनाई और काशी क्या है?
(i) मन बहलाने का साधन
(ii) जन्नत
(iii) जीने का ज़रिया
(iv) कमाने का ज़रिया
उत्तर :
(ii) जन्नत

(ग) काशी में क्या मंगलमय माना गया है?
(i) काशी में रहना
(ii) काशी में गंगा स्नान करना
(iii) काशी में पूजा करना
(iv) काशी में मरना
उत्तर :
(iv) काशी में मरना

(घ) बिस्मिल्ला खाँ काशीवासियों को क्या प्रेरणा देते हैं?
(i) शहनाई बजाने की
(ii) संगीत सीखने की
(iii) मिल-जुलकर रहने की
(iv) पूजा-पाठ करने की
उत्तर :
(ii) मिल-जुलकर रहने की

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. अमीरुद्दीन अभी सिर्फ छः साल का है और बड़ा भाई शम्सुददीन नौ साल का। अमीरुद्दीन को पता नहीं है कि राग किस चिड़िया को कहते हैं और ये लोग हैं मामूजान वगैरह जो बात-बात पर भीमपलासी और मुलतानी कहते रहते हैं। क्या वाज़िब मतलब हो सकता है इन शब्दों का, इस लिहाज से अभी उम्र नहीं है अमीरुद्दीन की, जान सके इन भारी शब्दों का वजन कितना होगा। गोया, इतना ज़रूर है कि अमीरुद्दीन व शम्सुद्दीन के मामाद्वय सादिक हुसैन तथा अलीबख्श देश के जाने-माने शहनाईवादक हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
2. अमीरुद्दीन कौन था?
3. भीमपलासी और मुलतानी क्या हैं ? अमीरुद्दीन को इनका पता क्यों नहीं था?
4. लेखक ने किन्हें देश के जाने-माने शहनाईवादक कहा है?
5. ‘वाजिब’ शब्द का क्या अर्थ है? यहाँ इस शब्द का प्रयोग किसलिए किया गया है?
उत्तर :
1. पाठ-नौबतखाने में इबादत, लेखक-यतींद्र मिश्र।
2. अमीरुद्दीन उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ के बचपन का नाम था।
3. भीमपलासी और मुलतानी शास्त्रीय संगीत के दो प्रसिद्ध राग हैं। अमीरुद्दीन केवल छह वर्ष का बालक था, इसलिए उसे इन रागों का ज्ञान नहीं था।
4. लेखक ने अमीरुद्दीन के दोनों मामाओं-सादिक हुसैन और अलीबख्श को देश के जाने-माने शहनाईवादक कहा है।
5. ‘वाजिब’ शब्द का अर्थ ‘उचित’ है। यहाँ इस शब्द का प्रयोग यह स्पष्ट करने के लिए किया गया है कि अमीरुद्दीन को अपने दोनों मामा द्वारा बार-बार भीम पलासी और मुलतानी जैसे शब्दों का प्रयोग सुनकर यह समझ नहीं आता था कि इन शब्दों का सही अर्थ क्या हो सकता है?

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2. खाँ साहब को बड़ी शिद्दत से कमी खलती है। अब संगतियों के लिए गायकों के मन में कोई आदर नहीं रहा। खाँ साहब अफ़सोस जताते हैं। अब घंटों रियाज़ को कौन पूछता है? हैरान हैं बिस्मिल्ला खाँ। कहाँ वह मजली, चैती और अदब का ज़माना? सचमुच हैरान करती है काशी-पक्का महाल से जैसे मलाई बरफ़ गया, संगीत, साहित्य और अदब की बहुत सारी परंपराएँ लुप्त हो गई। एक सच्चे सुर-साधक और सामाजिक की भाँति बिस्मिल्ला खाँ एक-दूसरे के पूरक रहे हैं, उसी तरह मुहर्रम-ताज़िया और होली-अबीर, गुलाल की गंगा-जमुनी संस्कृति भी एक-दूसरे के पूरक रहे हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. संगीत की कौन-सी परंपराएँ बदलते समय के अनुसार विलुप्त हो गई?
2. बाबा विश्वनाथ और बिस्मिल्ला खाँ को एक-दूसरे का पूरक क्यों कहा गया है?
3. ‘गंगा-जमुनी संस्कृति’ से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. संगीत की कुछ परंपराएं बदलते समय के साथ लुप्त होती जा रही है जैसे संगतियों के लिए गायकों के मन में अब कोई आदर, नहीं रहा, अब कोई गायक या वादक घंटों तक रियाज नहीं करता, चैती और अदब का ज़माना भी अब नहीं रहा।

2. उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ काशी के बाबा विश्वनाथ मंदिर में बैठकर घंटों रियाज़ किया बरते अथवा गंगा के किनारे पर शहनाई बजाया करते थे। जब भी वह किसी कार्यक्रम में शहनाई वादन के लिए काशी से बाहर जाते तो भी बाबा विश्वनाथ के मंदिर की ओर मुंह करके शहनाई वादन आरंभ करते थे। इससे पता चलता है कि वे दोनों एक-दूसरे से अंतर्मन से जुड़े हुए थे और एक-दूसरे के पूरक थे।

3. भारत अनेक प्रकार के धर्मों तथा जातियों की मिली-जुली संस्कृति वाला देश है। काशी संस्कृति की पाठशाला है क्योंकि काशी में संगीत की अद्भुत परंपरा रही है। यहां के लोगों की अलग ही तहजीब है, बोली, अपने विशिष्ट विचार है। इनके अपने उत्सव है और अपने गम है। यहाँ सभी धर्मों के लोग शांत वातावरण में मिलजुल कर रहते हैं। इसका सबसे उत्तम उदाहरण है कि बिस्मिल्ला खाँ तथा बाबा विश्वनाथ अलग-अलग धर्मों से संबंध रखते हुए भी एक-दूसरे से जुड़े हुए थे।

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3. काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है। यह आयोजन पिछले कई बरसों से संकटमोचन मंदिर में होता आया है। यह मंदिर शहर के दक्षिण में लंका पर स्थित है व हनुमान जयंती के अवसर पर यहाँ पाँच दिनों तक शास्त्रीय एवं उपशास्त्रीय गायनवादन की उत्कृष्ट सभा होती है। इसमें बिस्मिल्ला खाँ अवश्य रहते हैं। अपने मजहब के प्रति अत्यधिक समर्पित उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की श्रद्धा काशी विश्वनाथ जी के प्रति भी अपार है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. काशी में संगीत आयोजन की क्या परंपरा है ?
2. हनुमान जयंती के अवसर पर आयोजित संगीत सभा का परिचय दीजिए।
3. बिस्मिल्ला खाँ की काशी विश्वनाथ के प्रति कैसी भावनाएँ थीं?
4. काशी में संकटमोचन मंदिर कहाँ स्थित है और उसका क्या महत्व है?
उत्तर :
1. काशी में संगीत आयोजन की बहुत प्राचीन और विचित्र परंपरा है। यह आयोजन काशी में विगत कई वर्षों से हो रहा है। यह संकटमोचन मंदिर में होता है। इस आयोजन में शास्त्रीय एवं उपशास्त्रीय गायन-वादन होता है।
2. हनुमान जयंती के अवसर पर काशी के संकटमोचन मंदिर में पाँच दिनों तक शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत की श्रेष्ठ सभा का आयोजन किया जाता है। इस सभा में बिस्मिल्ला खाँ का शहनाई-वादन अवश्य होता है।
3. बिस्मिल्ला खाँ अपने धर्म के प्रति पूर्णरूप से समर्पित हैं। वे पाँचों समय नमाज़ पढ़ते हैं। इसके साथ ही वे बालाजी मंदिर और काशी विश्वनाथ मंदिर में भी शहनाई बजाते हैं। उनकी काशी विश्वनाथजी के प्रति अपार श्रद्धा है।
4. काशी में संकटमोचन मंदिर शहर के दक्षिण में लंका पर स्थित है। यहाँ हनुमान जयंती के अवसर पर पाँच दिनों का संगीत सम्मेलन होता है। इस अवसर पर बिस्मिल्ला खाँ का शहनाईवादन होता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत

4. अक्सर कहते हैं-‘क्या करें मियाँ, ई काशी छोड़कर कहाँ जाएँ, गंगा मइया यहाँ, बाबा विश्वनाथ यहाँ, बालाजी का मंदिर यहाँ, यहाँ हमारे खानदान की कई पुश्तों ने शहनाई बजाई है, हमारे नाना तो वहीं बालाजी मंदिर में बड़े प्रतिष्ठित शहनाईवाज़ रह चुके हैं। अब हम क्या करें, मरते दम तक न यह शहनाई छूटेगी न काशी। जिस ज़मीन ने हमें तालीम दी, जहाँ से अदब पाई, वो कहाँ और मिलेगी? शहनाई और काशी से बढ़कर कोई जन्नत नहीं इस धरती पर हमारे लिए।’

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. बिस्मिल्ला खाँ काशी छोड़कर क्यों नहीं जाना चाहते थे?
2. बिस्मिल्ला खाँ के परिवार में और कौन-कौन शहनाई बजाते थे?
3. बिस्मिल्ला खाँ के लिए शहनाई और काशी क्या हैं?
4. बिस्मिल्ला खाँ मरते दम तक क्या और क्यों नहीं छोड़ना चाहते ?
उत्तर :
1. बिस्मिल्ला खाँ काशी छोड़कर इसलिए नहीं जाना चाहते थे क्योंकि यहाँ गंगा है; बाबा विश्वनाथ हैं; बालाजी का मंदिर है और उनके परिवार की कई पीढ़ियों ने यहाँ शहनाई बजाई है। उन्हें इन सबसे बहुत लगाव है।
2. बिस्मिल्ला खाँ के नाना काशी के बालाजी के मंदिर में शहनाई बजाते थे। उनके मामा सादिम हुसैन और अलीबख्श देश के जाने माने शहनाई वादक थे। इनके दादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ और पिता उस्ताद पैगंबरबख्श खाँ भी प्रसिद्ध शहनाई-वादक थे।
3. बिस्मिल्ला खाँ के लिए इस धरती पर शहनाई और काशी से बढ़कर अन्य कोई जन्नत ही नहीं है।
4. बिस्मिल्ला खाँ मरते दम तक काशी में रहना और शहनाई बजाना नहीं छोड़ना चाहते, क्योंकि इसी काशी नगरी में उन्हें शहनाई बजाने की शिक्षा मिली।

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5. काशी आज भी संगीत के स्वर पर जगती और उसी की थापों पर सोती है। काशी में मरण भी मंगल माना गया है। काशी आनंदकानन है। सबसे बड़ी बात है कि काशी के पास उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ जैसा लय और सुर की तमीज़ सिखाने वाला नायाब हीरा रहा है जो हमेशा से दो कौमों को एक होने व आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. आज की काशी कैसी है?
2. काशी में मरण मंगलमय क्यों माना गया है?
3. काशी के पास कौन-सा नायाब हीरा रहा है?
4. काशी आनंदकानन कैसे है?
उत्तर :
1. आज की काशी भी संगीत के स्वरों से जागती है और संगीत की थपकियाँ उसे सुलाती हैं। बिस्मिल्ला खाँ के शहनाईवादन की प्रभाती काशी को जगाती है।
2. काशी में मरना इसलिए मंगलमय माना गया है, क्योंकि हिंदू धर्मग्रंथों में इसे शिव की नगरी कहा गया है। उनके अनुसार यहाँ मरने से मनुष्य को शिवलोक प्राप्त हो जाता है और वह जन्म-मरण के बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
3. काशी के पास बिस्मिल्ला खाँ जैसा लय और सुर का नायाब हीरा रहा है, जो अपने सुरों से काशी में प्रेमरस बरसाता रहा है। उसने सदा काशीवासियों को मिल-जुल कर रहने की प्रेरणा दी है।
4. काशी को आनंदकानन इसलिए कहते हैं, क्योंकि यहाँ विश्वनाथ अर्थात् भगवान शिव विराजमान हैं। उनकी कृपा से यहाँ सदा आनंद-मंगल की वर्षा होती रहती है। विभिन्न संगीत-सभाओं के आयोजनों से सदा उत्सवों का वातावरण बना रहता है। यहाँ सदैव आनंद ही आनंद छाया रहता है।

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6. वही पुराना बालाजी का मंदिर जहाँ बिस्मिल्ला खाँ को नौबतखाने रियाज़ के लिए जाना पड़ता है। मगर एक रास्ता है बालाजी मंदिर तक जाने का। यह रास्ता रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से होकर जाता है। इस रास्ते में अमीरुद्दीन को जाना अच्छा लगता है। इस रास्ते न जाने कितने तरह के बोल-बनाव कभी ठुमरी, कभी टप्पे, कभी दादरा के मार्फत ड्योढ़ी तक पहुँचते रहते हैं। रसूलन और बतूलन जब गाती हैं तब अमीरुद्दीन को खुशी मिलती है। अपने ढेरों साक्षात्कारों में बिस्मिल्ला खाँ साहब ने स्वीकार किया है कि उन्हें अपने जीवन के आरंभिक दिनों में संगीत के प्रति आसक्ति इन्हीं गायिका बहनों को सुनकर मिली है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. बिस्मिल्ला खाँ कौन थे ? बालाजी मंदिर से उनका क्या संबंध है?
2. रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से होकर बालाजी के मंदिर जाना बिस्मिल्ला खाँ को क्यों अच्छा लगता था?
3. ‘रियाज़’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
1. बिस्मिल्ला खाँ शहनाई वादक थे जिनके बचपन का नाम अमीरुद्दीन था। बचपन से ही वे बालाजी के मंदिर के रास्ते से नौबतखाने में रियाज़ के लिए जाते थे।
2. रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से होकर बालाजी के मन्दिर जाना बिस्मिल्ला खाँ को इसलिए अच्छा लगता था क्योंकि वहाँ वे दोनों बहनों के गाए ठुमरी, टप्पे, दादरा के बोल इन्हें बहुत अच्छे लगते थे।
3. ‘रियाज’ से तात्पर्य है-किसी सुर या वाद्ययंत्र का बार-बार अभ्यास करना। गीतकार एवं संगीतकार रियाज़ कर स्वयं को उत्तम बनाने का – प्रयास करते हैं।

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7. किसी दिन एक शिष्या ने डरते-डरते खाँ साहब को टोका, “बाबा! आप यह क्या करते हैं, इतनी प्रतिष्ठा है आपकी। अब तो आपको भारतरत्न भी मिल चुका है, यह फटी तहमद न पहना करें। अच्छा नहीं लगता, जब भी कोई आता है आप इसी फटी तहमद में सबसे मिलते हैं।” खाँ साहब मुसकराए। लाड़ से भरकर बोले, “धत्! पगली, ई भारतरत्न हमको शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं। तुम लोगों की तरह बनाव-सिंगार देखते रहते, तो उमर ही बीत जाती, हो चुकती शहनाई। तब क्या रियाज़ हो पाता?”

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. एक दिन एक शिष्या ने खाँ साहब को क्या कहा? क्यों?
2. खाँ साहब ने शिष्या को क्या समझाया?
3. इससे खाँ साहब के स्वभाव के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर :
1. एक दिन खाँ साहब की शिष्या ने डरते-डरते उनसे कहा कि वे फटी हुई लुंगी/तहमद को न पहना करें। उनकी प्रतिष्ठा पर फटी तहमद अच्छी नहीं लगती। उन्हें भारतरत्न पुरस्कार भी मिल चुका है।
2. खाँ साहब ने शिष्या को समझाया कि भारत रत्न पुरस्कार उन्हें शहनाई पर मिला है न कि लुंगी पर। अतः हमें शारीरिक सौंदर्य पर ध्यान न देकर अपनी कला पर ध्यान देना चाहिए।
3. उक्त वाक्यों से खाँ साहब के सरल, सहज स्वभाव के बारे में पता चलता है। उनके मन में शहनाई ही सर्वोपरि है। वे कला के सच्चे उपासक

नौबतखाने में इबादत Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन-यतींद्र मिश्र का जन्म सन 1977 ई० में उत्तर प्रदेश के अयोध्या नगर में हुआ था। इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से एम०ए० (हिंदी) की परीक्षा उत्तीर्ण की। कविता, संगीत एवं अन्य ललित कलाओं में इन्हें विशेष रुचि है। इन्होंने सन 1999 ई० में ‘विमला देवी फाउंडेशन’ नामक सांस्कृतिक न्यास की स्थापना की। ‘थाती’ और अर्धवार्षिक पत्रिका ‘सरित’ का इन्होंने संपादन किया है। इन्हें इनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए भारतभूषण अग्रवाल कविता सम्मान, हेमंत स्मृति कविता पुरस्कार ऋतुराज सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। इन दिनों ये स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। रचनाएँ-यतींद्र मिश्र की प्रमुख रचनाएँ ‘ यदा-कदा, अयोध्या तथा अन्य कविताएँ, ड्योढ़ी पर आलाप और गिरिजा’ हैं। इन्होंने ‘कवि द्विजदेव ग्रंथावली’ का सह-संपादन भी किया है।

भाषा-शैली – यतींद्र मिश्र की भाषा-शैली सहज, प्रवाहमयी, व्यावहारिक तथा प्रसंगानुकूल है। ‘नौबतखाने में इबादत’ प्रसिद्ध शहनाईवादक उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ साहब के जीवन के विभिन्न पक्षों को उजागर करने वाला शब्दचित्र है, जिसमें लेखक ने शास्त्रीय परंपरा के विभिन्न प्रसंगों को कुशलता से उजागर किया है। इसके लिए लेखक ने संगीत जगत में प्रचलित शब्दावली का भी प्रयोग किया है; जैसे-सम, सुर, ताल, ठुमरी, टप्पा, दादरा, रीड, कल्याण, मुलतानी, भीम पलासी आदि भाषा में लोक प्रचलित विदेशी शब्दों का खुलकर प्रयोग किया गया है; जैसे-रोज़नामचे, दरबार, पेशा, खानदानी, साहबजादे, शाहेनय, मुराद, ग़मज़दा, बदस्तूर आदि।

कहीं-कहीं तत्सम प्रधान शब्दावली के भी दर्शन हो जाते हैं; जैसे-‘अपने अहापोहों से बचने के लिए हम स्वयं किसी शरण, किसी गुफ़ा को खोजते हैं जहाँ अपनी दुश्चिताओं, दुर्बलताओं को छोड़ सकें और वहाँ फिर अपने लिए एक नया तिलस्म गढ़ सकें।’ संवादों में स्थानीय भाषा का चमत्कार देखा जा सकता है; जैसे ‘धत् ! पगली ई भारत रत्न हमको शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं।’ शैली में सर्वत्र रोचकता बनी रही है जो कभी भावात्मक, कभी वर्णनात्मक और कभी चित्रात्मक हो जाती है।

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पाठ का सार :

‘नौबतखाने में इबादत’ यतींद्र मिश्र द्वारा रचित सुप्रसिद्ध शहनाईवादक उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ के जीवन के विभिन्न पक्षों को उजागर करने वाला व्यक्ति-चित्र है। सन 1916 से 1922 के आसपास की काशी में छह वर्ष का अमीरुद्दीन अपने नौ साल के बड़े भाई शम्सुद्दीन के साथ अपने दोनों मामा सादिक हुसैन और अलीबख्श के पास रहने आ जाते हैं। इनके दोनों मामा देश के प्रसिद्ध शहनाईवादक हैं। वे दिन की शुरुआत पंचगंगा घाट स्थित बालाजी मंदिर की ड्योढ़ी पर शहनाई बजाकर करते हैं। अमीरुद्दीन ही उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ के बचपन का नाम है।

इनका जन्म बिहार के डुमराँव नामक गाँव में हुआ था। डुमराँव में सोन नदी के किनारे पाई जाने वाली नरकट नामक घास से शहनाई की रीड बनाई जाती है, जिससे शहनाई बजती है। इनके परदादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ और पिता उस्ताद पैगंबरबख्श खाँ थे। इनकी माता का नाम मिट्ठन था। अमीरुद्दीन अर्थात बिस्मिल्ला खाँ चौदह वर्ष की उम्र में बालाजी के मंदिर में जाते समय रसूलनबाई और बतूलनबाई के घर के रास्ते से होकर जाते थे। इन दोनों बहनों के गाए हुए ठुमरी, टप्पे, दादरा के बोल इन्हें बहुत अच्छे लगते थे।

इन्होंने स्वयं माना है कि इन दोनों बहनों के कारण ही उन्हें अपने जीवन के प्रारंभिक दिनों में संगीत के प्रति लगाव हुआ था। वैदिक साहित्य में शहनाई का कोई वर्णन प्राप्त नहीं होता। शहनाई को ‘मुँह से फूंककर बजाए जाने वाले वाद्यों में गिना जाता है, जिसे ‘सुषिरवाद्य’ कहते हैं। शहनाई को ‘शाहेनय’ अर्थात ‘सुषिर वाद्यों में शाह’ की उपाधि दी गई है।

सोलहवीं शताब्दी के अंत में तानसेन द्वारा रचित राग कल्पद्रुम की बंदिश में शहनाई, मुरली, वंशी, शृंगी और मुरछंग का वर्णन मिलता है। अवधी के लोकगीतों में भी शहनाई का उल्लेख प्राप्त होता है। मांगलिक अवसरों पर शहनाई का प्रयोग किया जाता है। दक्षिण भारत के मंगलवाद्य ‘नागस्वरम’ के समान शहनाई भी प्रभाती की मंगल ध्वनि का प्रतीक है।

अस्सी वर्ष के होकर भी उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ परमात्मा से सदा ‘सुर में तासीर’ पैदा करने की दुआ माँगते हैं। उन्हें लगता है कि वे अभी तक सातों सुरों का ढंग से प्रयोग करना नहीं सीख पाए हैं। बिस्मिल्ला खाँ मुहर्रम के दिनों की आठवीं तारीख को खड़े होकर शहनाई बजाते हैं और दालमंडी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल ही रोते हुए नौहा बजाते हुए जाते हैं। उनकी आँखें हज़रत इमाम हुसैन और उनके परिवारवालों के बलिदान की स्मृति में भीगी रहती हैं।

अपने खाली समय में वे जवानी के उन दिनों को याद करते हैं जब रियाज़ से अधिक उन पर कुलसुम हलवाइन की दुकान की कचौड़ियाँ खाने तथा गीताबाली और सुलोचना की फ़िल्में देखने का जुनून सवार रहता था। वे बचपन में मामू, मौसी और नानी से दो-दो पैसे लेकर छह पैसे के टिकट से थर्ड क्लास में फ़िल्म देखने जाते थे। जब बालाजी मंदिर में शहनाई बजाने के बदले अट्ठनी मिलती थी, तो उसे भी वे कचौड़ी खाने और सुलोचना की फ़िल्म देखने में खर्च कर देते थे।

उन्हें कुलसुम की कड़ाई में कचौड़ी डालकर तलते समय उत्पन्न होने वाली छन्न की ध्वनि में संगीत सुनाई देता था। विगत कई वर्षों से काशी में संगीत का आयोजन संकटमोचन मंदिर में होता है। हनुमान जयंती के अवसर पर यहाँ पाँच दिनों तक शास्त्रीय एवं उपशास्त्रीय संगीत सम्मेलन होता है। इसमें बिस्मिल्ला खाँ अवश्य रहते हैं। उन्हें काशी विश्वनाथ के प्रति भी अपार श्रद्धा है। वे जब भी काशी से बाहर होते हैं, तो विश्वनाथ एवं बालाजी मंदिर की ओर मुँह करके थोड़ी देर के लिए शहनाई अवश्य बजाते हैं। उन्हें काशी से बहुत मोह है। वे गंगा, विश्वनाथ, बालाजी की काशी को छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहते।

उन्हें इस धरती पर काशी और शहनाई से बढ़कर कहीं भी स्वर्ग नहीं दिखाई देता। काशी की अपनी ही संस्कृति है। बिस्मिल्ला खाँ का पर्याय उनकी शहनाई है और शहनाई का पर्याय बिस्मिल्ला खाँ हो गए हैं। इनकी फूंक से शहनाई में जादुई ध्वनि उत्पन्न हो जाती है। एक दिन इनकी एक शिष्या ने इन्हें कहा कि ‘आपको भारत-रत्न मिल चुका है। आप फटी हुई तहमद न पहना करें।’ इस पर इनका उत्तर था कि ‘भारत-रत्न हमें शहनाई पर मिला है न कि तहमद पर।

हम तो मालिक से यही दुआ करते हैं कि फटा सुर नं दे, तहमद चाहे फटा रहे।’ सन 2000 की बात स्मरण करते हुए लेखक कहता है कि उन्हें इस बात की कमी खलती थी कि पक्का महाल क्षेत्र में मलाई बरफ़ बेचने वाले चले गए हैं। देशी घी की कचौड़ी-जलेबी भी पहले जैसी नहीं बनती। संगीत, साहित्य और अदब की प्राचीन परंपराएँ लुप्त होती जा रही हैं। काशी में आज भी संगत के स्वर गूंजते हैं। यहाँ का मरण मंगलमय माना जाता है। काशी आनंदकानन है।

यहाँ बिस्मिल्ला खाँ और विश्वनाथ एक-दूसरे के पूरक रहे हैं। यहाँ की गंगा-जमुनी संस्कृति का अपना ही महत्व है। भारत-रत्न व अनेक उपाधियों, पुरस्कारों, सम्मानों आदि से सम्मानित बिस्मिल्ला खाँ सदा संगीत के अजेय नायक बने रहेंगे। नब्बे वर्ष की आयु में दिनांक 21 अगस्त, 2006 को संगीत की दुनिया का अनमोल साधक संगीत-प्रेमियों के संसार से विदा हो गया।

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किठिन शब्दों के अर्थ :

तिलिस्म – जादू। गमक – खुशबू, सुगंध। अज़ादारी – मातम करना, दुख मनाना। बदस्तूर – कायदे से, तरीके से। नैसर्गिक – स्वाभाविक, प्राकृतिक। दाद – शाबासी। तालीम – शिक्षा। अदब – कायदा, साहित्य। अलहमदुलिल्लाह- तमाम तारीफ़ ईश्वर के लिए। जिजीविषा – जीने की इच्छा। शिरकत – शामिल होना। ड्योढ़ी – दहलीज़। नौबतखाना – प्रवेश द्वार के ऊपर मंगल ध्वनि बजाने का स्थान। रियाज़ – अभ्यास। मार्फत – द्वारा। श्रृंगी – सींग का बना वायंत्र। मुरदंग – एक प्रकार का लोक वाद्ययंत्र। नेमत – ईश्वर की देन, सुख, धन-दौलत। सज़दा – माथा टेकना। इबादत – उपासना। तासीर – गुण, प्रभाव, असर। श्रुति – शब्द-ध्वनि। ऊहापोह – उलझन, अनिश्चितता।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 मीरा के पद

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 मीरा के पद Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 मीरा के पद

JAC Class 10 Hindi मीरा के पद Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
पहले पद में मीरा ने हरि से अपनी पीड़ा हरने की विनती किस प्रकार की है?
उत्तर :
मीराबाई श्रीकृष्ण को संबोधित करते हुए कहती हैं कि हे श्रीकृष्ण! आप सदैव अपने भक्तों की पीड़ा को दूर करते हैं। वे कहती हैं कि जब-जब भी भक्तों पर मुसीबतें आई हैं, तब-तब श्रीकृष्ण ने स्वयं आकर अपने भक्तों की पीड़ा को हरा है। जब कौरवों ने भरी सभा में द्रौपदी को अपमानित करने का प्रयास किया, तो भगवान श्रीकृष्ण ने उसके मान-सम्मान की रक्षा की। इसी प्रकार भक्त का प्रहलाद के लिए नृसिंह अवतार धारण किया; हाथी की मगरमच्छ से रक्षा की। हरि से इन सभी दृष्टांतों के माध्यम से अपनी पीड़ा को भी हरने की मीराबाई ने विनती की है।

प्रश्न 2.
दूसरे पद में मीराबाई श्याम की चाकरी क्यों करना चाहती हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
मीराबाई श्रीकृष्ण की सेविका बनकर उनके आस-पास रहना चाहती हैं और उनके बार-बार दर्शन करना चाहती हैं। सेवक सदा अपने स्वामी के आस-पास रहता है; मीराबाई भी श्रीकृष्ण के आस-पास रहकर उनकी लीला का गुणगान करना चाहती हैं। वे श्रीकृष्ण की सेवा में उनके दर्शन और नाम-स्मरण को पाना चाहती हैं। मीराबाई श्रीकृष्ण की सेविका बनकर भक्तिरूपी धन-दौलत को प्राप्त करना चाहती हैं।

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प्रश्न 3.
उत्तर
मीराबाई ने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन कैसे किया है?
उत्तर :
मीराबाई श्रीकृष्ण की सुंदरता का वर्णन करते हुए कहती हैं कि श्रीकृष्ण के माथे पर मोर के पंखों का मुकुट सुशोभित है। उनके शरीर पर पीतांबर उनकी शोभा को और अधिक बढ़ा रहा है। श्रीकृष्ण के गले में वैजंती माला अत्यंत शोभा पा रही है। ऐसी वेशभूषा से सुशोभित श्रीकृष्ण वृंदावन में गाय चराते हुए और बाँसुरी बजाते हुए अत्यंत आकर्षक लगते हैं।

प्रश्न 4.
मीराबाई की भाषा शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
मीराबाई के काव्य की भाषा उनके प्रेमी हृदय का सौंदर्य है। उन्होंने अपने काव्य में मुख्य रूप से ब्रजभाषा, पंजाबी, राजस्थानी, गुजराती आदि शब्दों का प्रयोग में किया है। मीरा का अधिकांश समय राजस्थान में बीता था, इसलिए उनके काव्य में राजस्थानी शब्दों का प्रयोग अधिक मिलता है। मीरा की भाषा में प्रवाहात्मकता का गुण सर्वत्र विद्यमान है। उनकी भावानुकूल शब्द-योजना द्रष्टव्य है।

अपनी प्रेम की पीड़ा को अभिव्यक्त करने के लिए उन्होंने अत्यंत भावानुकूल शब्दावली का प्रयोग किया है। भाषा पर राजस्थानी प्रभाव के कारण उन्होंने ‘न’ के स्थान पर ‘ण’ का प्रयोग किया है। इसके साथ-साथ मीराबाई की भाषा में अनेक अलंकारों का सफल एवं स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। उनके द्वारा प्रयुक्त अलंकारों में अनुप्रास, वीप्सा, रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा तथा उदाहरण अलंकार प्रमुख हैं। मीराबाई के काव्य की शैली गीति शैली है।

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प्रश्न 5.
वे श्रीकृष्ण को पाने के लिए क्या-क्या कार्य करने को तैयार हैं?
उत्तर :
मीराबाई श्रीकृष्ण को अपने प्रियतम के रूप में देखती हैं। वे बार-बार श्रीकृष्ण के दर्शन करना चाहती हैं। उन्हें पाने के लिए मीराबाई उनकी सेविका बनने के लिए तैयार हैं। वे सेविका बनकर श्रीकृष्ण का निरंतर सामीप्य चाहती हैं। वे बड़े-बड़े महलों का निर्माण करवाकर उनके बीच में खिड़कियाँ बनवाना चाहती हैं। इन खिड़कियों से वे श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य को निहारना चाहती हैं। श्रीकृष्ण को पाने के लिए मीरा भली प्रकार से श्रृंगार करके आधी रात को यमुना के तट पर उनकी प्रतीक्षा करती हैं। वे श्रीकृष्ण के दर्शन की प्यासी हैं और किसी भी प्रकार से उन्हें पा लेना चाहती हैं।

(ख) निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए –
(लघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1.
हरि आप हरो जन री भीर।
द्रौपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर।
भगत कारण रूप नरहरि, धरयो आप सरीर॥
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा का सुंदर प्रयोग किया है। अनुप्रास एवं उदाहरण अलंकार हैं। भाषा में प्रवाहमयता तथा सरसता का गुण विद्यमान है। दैन्य भाव की भक्ति है तथा शांत रस की प्रधानता है। कवयित्री ने अभिधात्मक शैली का प्रयोग करते हुए अपने भावों की सुंदर अभिव्यक्ति की है।

प्रश्न 2.
बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुण्जर पीर।
दासी मीराँ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर।
उत्तर :
इन पंक्तियों में कवयित्री ने राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। तत्सम और तद्भव शब्दों का सुंदर मिश्रण है। अनुप्रास तथा दृष्टांत अलंकार का प्रयोग है। दास्य भाव की भक्ति है तथा शांत रस की प्रधानता है। कवयित्री की भाषा में प्रवाहात्मकता, संगीतात्मकता तथा गेयता का गुण विद्यमान है। अत्यंत सरल शब्दों में भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति हुई है।

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प्रश्न 3.
चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ, तीनूं बातां सरसी॥
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्तियों की भाषा राजस्थानी है। भाषा में लयात्मकता, संगीतात्मकता तथा गेयता का गुण सर्वत्र विद्यमान है। सरलता, सरसता और माधुर्य से युक्त भाषा द्रष्टव्य है। दास्य भाव की भक्ति है, जिसमें शांत रस की प्रधानता है। कवयित्री ने श्रीकृष्ण के प्रति अपनी कोमल भावनाओं की सुंदर ढंग से अभिव्यक्ति की है।

भाषा अध्ययन –

प्रश्न :
उदाहरण के आधार पर पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए
उदाहरण – भीर – पीड़ा/कष्ट/दुख; री – की
चीर, बूढ़ता, धरयो, लगास्यूँ, कुण्जर, घणा, बिन्दरावन, सरसी, रहस्यूँ, हिवड़ा, राखो, कुसुम्बी
उत्तर :

  • चीर – वस्त्र, कपड़ा
  • धरयो – धारण किया
  • कुण्जर – हाथी
  • बिन्दरावन – वृंदावन
  • रहस्यूँ – रहकर
  • राखो – रखना
  • बूढ़ता – डूबते हुए
  • लगास्यूँ – लगाऊँगी
  • घणा – बहुत अधिक
  • सरसी – अच्छी, रस से युक्त
  • हिवड़ा – हृदय
  • कुसुम्बी – लाल रंग की

योग्यता विस्तार –

प्रश्न 1.
मीरा के अन्य पदों को याद करके कक्षा में सुनाइए।
उत्तर
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 मीरा के पद

प्रश्न 2.
यदि आपको मीरा के पदों के कैसेट मिल सकें तो अवसर मिलने पर उन्हें सुनिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

परियोजना कार्य –

प्रश्न 1.
मीरा के पदों का संकलन करके उन पदों को चार्ट पर लिखकर भित्ति पत्रिका पर लगाइए।
उत्तर :
चार्ट बनाने का कार्य विदयार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
पहले हमारे यहाँ दस अवतार माने जाते थे। विष्णु के अवतार राम और कृष्ण प्रमुख हैं।
अन्य अवतारों के बारे में जानकारी प्राप्त करके एक चार्ट बनाइए।
उत्तर :
चार्ट बनाने का कार्य विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 10 Hindi मीरा के पद Important Questions and Answers

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
मीरा की दृष्टि में उनके प्रभु श्रीकृष्ण कैसे हैं ?
उत्तर :
मीरा की दृष्टि में उनके प्रभु श्रीकृष्ण दयालु और भक्त-वत्सल हैं। वे अपने भक्तों पर अपनी विशेष अनुकम्पा रखते हैं; उनकी सहायता के लिए सदैव तत्पर रहते हैं, फिर चाहे इसके लिए उन्हें नृसिंह अवतार ही क्यों न लेना पड़े। वे अपने भक्तों को बीच मझधार में नहीं छोड़ते। वे अपने भक्तों की परीक्षा अवश्य लेते हैं, लेकिन यह परीक्षा धैर्य और भक्ति की पराकाष्ठा को देखने के लिए होती है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 मीरा के पद

प्रश्न 2.
मीरा को श्रीकृष्ण की सेवा करते हुए भक्ति के कौन-से तीन रूप मिलने वाले थे?
उत्तर :
मीरा को श्रीकृष्ण की सेवा करते हुए भक्ति के तीन रूप-भावमग्न भक्ति, प्रभु-दर्शन तथा नाम-स्मरण प्राप्त होने वाले थे। मीरा कहती हैं कि जब वे दासी बनकर श्रीकृष्ण की सेवा करेंगी, तो प्रतिदिन उन्हें प्रभु के दर्शन होंगे। उनके लिए प्रभु की सेवा करने की कमाई मेरे लिए प्रभु का नाम-स्मरण होगा। प्रभु के रूप-सौंदर्य की लालसा में जब वे उनका इंतज़ार करेंगी तो वह भाव-मग्न भक्ति होगी।

प्रश्न 3.
श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की लाज किस प्रकार बचाई थी?
उत्तर :
जब दुःशासन भरी सभा में द्रौपदी को सबके समक्ष निर्वस्त्र करने का प्रयास कर रहा था, तब श्रीकृष्ण प्रकट हुए और उन्होंने द्रौपदी के वस्त्र को बढ़ाकर उसे अपमानित होने से बचा लिया था। श्रीकृष्ण के इस कार्य से ही द्रौपदी के मान-सम्मान की रक्षा हुई थी।

प्रश्न 4.
श्रीविष्णु ने प्रह्लाद की रक्षा किस रूप में और क्यों की थी?
उत्तर :
श्रीविष्णु ने प्रहलाद की रक्षा नृसिंह रूप में अवतरित होकर की थी। प्रहलाद उनका भक्त था। अपने भक्त की रक्षा के लिए उन्होंने अत्याचारी एवं अनाचारी दैत्य हिरण्यकशिपु का वध किया था। उनका यह कार्य उनकी भक्त-वत्सलता का प्रमाण है कि वे कभी भी अपने भक्तों को अकेला व असहाय नहीं छोड़ते।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 मीरा के पद

प्रश्न 5.
मीरा श्रीकृष्ण की सेवा करके वेतन रूप में क्या पाना चाहती हैं?
उत्तर :
मीरा अपने आराध्य श्रीकृष्ण की सेवा करके उनके नाम-स्मरण को वेतन के रूप में पाना चाहती हैं, ताकि वे प्रभु को प्रतिपल याद करती रहे। एक क्षण के लिए भी वे प्रभु से दूर न हों। उनका भाव एवं विचार सदैव प्रभु-भक्ति में लीन रहे।

प्रश्न 6.
मीरा का हृदय क्यों व्याकुल है?
उत्तर :
मीरा श्रीकृष्ण को अपना सर्वस्व मानती हैं। उनके सिवाय मीरा को संसार में कोई अपना नहीं लगता। संसार का कण-कण मीरा को श्रीकृष्ण की याद दिलाता है। श्रीकृष्ण के प्रति अपनी अनन्य भक्ति एवं तल्लीनता के कारण वे श्रीकृष्ण के दर्शनों की प्यासी हैं। इसलिए श्रीकृष्ण के दर्शनों के लिए उनका हृदय बहुत व्याकुल है।

प्रश्न 7.
मीरा श्रीकृष्ण से क्या प्रार्थना करती हैं ?
उत्तर :
मीरा श्रीकृष्ण की अनन्य उपासिका हैं। मीरा का मन सारा दिन श्रीकृष्ण के नाम का भजन करता है। वे श्रीकृष्ण से अपनी पीड़ा को दूर करने की प्रार्थना करती हैं। वे मानती हैं कि उनके प्रभु भक्त-वत्सल हैं। वे भक्तों की विनती को कभी नहीं ठुकराते। भक्तों पर उनकी दया-दृष्टि सदैव बनी रहती है, इसलिए वे श्रीकृष्ण से अपनी पीड़ा को दूर करने के लिए प्रार्थना करती हैं।

मीरा के पद Summary in Hindi

कवयित्री-परिचय :

जीवन – राजस्थान के भक्तों में सर्वोपरि, कृष्ण भक्तों में सम्माननीय और मध्ययुगीन हिंदी काव्य में विशिष्ट स्थान की अधिकारिणी मीराबाई का सारा साहित्य कृष्ण भक्ति से संबंधित है। वह आँसुओं के जल से सिंचा और आहों से सुवासित हुआ है। मीरा का संबंध राठौड़ों की एक उपशाखा मेड़तिया वंश से था। मीराबाई राव दूदा जी के चौथे पुत्र रत्नसिंह की पुत्री थीं। इनका जन्म जोधपुर के चोकड़ी (कुड़की) नामक ग्राम में सन 1503 के आसपास हुआ था। मीरा के दादा अत्यंत धर्मात्मा व्यक्ति थे, जिनके कारण इनके परिवार में धार्मिक भावनाओं की प्रधानता स्वाभाविक थी। बचपन से ही मीरा कृष्ण भक्त थीं। इन्होंने अधिक दिनों तक लौकिक सुहाग का सुख नहीं भोगा।

विवाह के कुछ वर्षों बाद राणा सांगा के जीवनकाल में ही इनके पति भोजराज की मृत्यु हो गई। इससे इनके जीवन में एक नया मोड़ आ गया। लेकिन सिंदूर लुट जाने पर भी गिरधर के अखंड सौभाग्य का रंग सदा के लिए इन पर छा गया। सभी राग-विरागों से मुक्त हो वे अपने आराध्य कृष्ण में ही एकनिष्ठ हो गईं। इनका विरह कृष्ण-प्रेम का रूप लेकर गीतों में फूट पड़ा।

मीरा के श्वसुर उदार और स्नेही व्यक्ति थे, इसलिए उनके रहते हुए मीरा को कोई कष्ट नहीं हुआ। लेकिन उनके देहांत के बाद मीरा को अनेक परेशानियाँ हुईं। इन्हें विष देकर एवं पिटारी में साँप भेजकर मारने का प्रयास किया गया। कालांतर में मीरा पूर्ण वैरागिन होकर साधुओं की मंडली में मिल गई और वृंदावन चली गईं। लगभग सन 1546 में श्री रणछोड़ के मंदिर में कीर्तन-भजन करते-करते इनकी मृत्यु हो गई।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 मीरा के पद

रचनाएँ – मीरा की रचनाएँ निम्नलिखित मानी जाती हैं – नरसी का मायरा, गीत गोविंद टीका, राग सोरठ के पद, राग गोविंद व मीरा के पद। मीरा के पद गुजराती, राजस्थानी, पंजाबी, खड़ी बोली आदि में मिलते हैं। इनके गीत ‘मीराबाई पदावली’ में संकलित हैं।

साहित्यिक प्रवृत्तियाँ – मीरा का काव्य कृष्ण-प्रेम से ओत-प्रोत है। वे सच्ची प्रेमिका हैं। इनकी भक्ति दैन्य और माधुर्य भाव की है। इनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
1. प्रेम-भावना – मीरा के काव्य का मूल स्वर प्रेम है। उनके प्रिय श्रीकृष्ण हैं। मीरा का प्रेम, उनकी भक्ति सगुण लीलाधारी कृष्ण के प्रति निवेदित है। ‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई’ इसी की सहज अभिव्यक्ति है। मीरा के आराध्य वही कृष्ण हैं, जिनके नयन विशाल हैं; जो मुरली और वैजयंती माला धारण करते हैं। कृष्ण उनके जीवन के आधार हैं। ‘हरि मेरे जीवन प्राणाधार,’ ‘मैं गिरधर रंग राती’ तथा ‘मीरा लागो रंग हरी और न रंग अरथ परी’ आदि उनकी प्रेम-भावना के परिचायक हैं।

2. कृष्ण का अवतारी रूप – मीरा ने कृष्ण के अवतारी और लोकोपकारक स्वरूप का चित्रण किया है। वह भगवान को लोक हितकारी एवं शरणागत वत्सल रूप का भी स्मरण दिलाती है –

हरि तुम हरो जन की भीर,
द्रौपदी की लाज राखी आप बढ़ायो चीर।

3. विरह-वेदना का आधिक्य – प्रेम और भक्ति चिरसंगी है और प्रेम के संयोग-वियोग पक्षों में विरह-वेदना की अनुभूति अधिक बलवती है। विरह प्रेम की एकमात्र कसौटी है। मीरा का सारा काव्य विरह की तीव्र वेदनानुभूति से परिपूर्ण है। मीरा एक सच्ची प्रेमिका की भाँति प्रियतम की ‘बाट’ जोहती है; प्रिय के आगमन के दिन गिनती रहती है।

रात दिवस कल नाहिं परत है,
तुम मिलियाँ बिन मोई।

4. भक्ति का स्वरूप – मीरा की भक्ति अनेक पद्धतियों और सिद्धांतों से युक्त है। इन्होंने किसी भी संप्रदाय से दीक्षा नहीं ली थी। इन्हें अपने भक्ति-क्षेत्र में जो भी अच्छा लगा, उसे अपना लिया। मीरा पर सगुण और निर्गुण दोनों का प्रभाव है। मीरा की भक्ति में समर्पण भाव है। उनके काव्य में अनुभूति की गहनता है।

5. गीति काव्य – मीरा के पदों में गेयता के सभी तत्व-आत्माभिव्यक्ति, संक्षिप्तता, तीव्रता, संगीतात्मकता, भावात्मक एकता और भावना की पूर्णता है। उनकी पीड़ा की अभिव्यक्ति व्यक्तिगत न होकर समष्टिगत है। सभी पद संगीत के शास्त्रीय पक्ष पर खरे उतरते हैं। इनके पदों का आकार संक्षिप्त है और इनमें भावों की पूर्णता भी है।

भाषा-शैली-मीरा के काव्य में किसी एक भाषा का प्रयोग नहीं है; इसमें ब्रज, राजस्थानी, पंजाबी, गुजराती, हरियाणवी आदि भाषाओं के शब्दों का प्रयोग है। परंतु राजस्थानी इनकी मुख्य भाषा रही है। इनके काव्य में भाव पक्ष को प्रमुखता दी गई है, इसलिए कला पक्ष अधिक मुखरित नहीं हो पाया। इन्होंने भावानुकूल शब्दों का प्रयोग किया है। इनमें राजस्थानी के तद्भव और देशज शब्दों की संख्या बहुत अधिक है। भाषा में अलंकारों और छंदों का प्रयोग सहज रूप में हुआ है। शांत, भक्ति और करुण रसों के प्रयोग से काव्य में सरसता आ गई है। अनुभूति की गहनता और अभिव्यक्ति की प्रखरता के कारण मीरा का गीतिकाव्य आज भी सर्वोच्च स्थान रखता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 मीरा के पद

पदों का सार :

इन पदों में मीराबाई ने भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी भक्ति-भावना व्यक्त की है। वे श्रीकृष्ण को सबकी पीड़ा को दूर करने वाला बताती हैं। – मीरा श्रीकृष्ण को संबोधित करते हुए कहती है कि हैं श्रीकृष्ण! आप सदैव अपने भक्तों की पीड़ा को दूर करते हैं। आपने ही भरी सभा में द्रौपदी को अपमानित होने से बचाया था। भक्त प्रहलाद की रक्षा करने के लिए ही आपने नृसिंह अवतार लिया। इसके साथ-साथ आपने मगरमच्छ को दूसरे पद में मीरा स्वयं को श्रीकृष्ण की सेविका के रूप में प्रस्तुत करती हैं।

वे कहती है कि हे कृष्ण ! मुझे अपनी सेविका बना लो। आपकी सेवा में रहते हुए मैं प्रतिदिन उठते ही आपके दर्शन पा सकूँगी और निरंतर वृंदावन की गलियों में आपकी लीला का गुणगान करूँग सेवा करते हुए आपके दर्शन करना और नाम-स्मरण करना ही मेरी कमाई होगी। हे श्रीकृष्ण ! आपके माथे पर मोर के पंखों का मुकुट, शरीर पर पीतांबर तथा गले में वैजयंती माला अत्यंत सुशोभित होती है। मैं लाल रंग की साड़ी पहनकर आधी रात को यमुना के तट पर आपके दर्शनों की प्यासी खड़ी हूँ। आप मुझे दर्शन दीजिए। मीराबाई कहती हैं कि प्रभु श्रीकृष्ण के दर्शनों के लिए उसका हृदय अत्यंत व्याकुल हो उठता है। वे बार-बार प्रभु श्रीकृष्ण के दर्शन करना चाहती हैं।

सप्रसंग व्याख्या –

1. हरि आप हरो जन री भीर।
द्रोपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर।
भगत कारण रूप नरहरि, धर्यो आप सरीर।
बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुण्जर पीर।
दासी मीराँ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर॥

शब्दार्थ : हरो – दूर करो। जन – भक्त। बढ़ायो – बढ़ाया। चीर – वस्त्र। नरहरि – भगवान विष्णु का नृसिंह अवतार। धरयो – धारण किया। गजराज – हाथी। कुंजर – हाथी। पीर – पीड़ा। म्हारी – हमारी। भीर – विपत्ति, दुख, संकट।

प्रसंग : प्रस्तुत पद प्रसिद्ध कवयित्री मीराबाई द्वारा रचित है। इस पद में उन्होंने अपने आराध्य भगवान श्रीकृष्ण से अपनी पीड़ा हरने की प्रार्थना की है।

व्याख्या : मीराबाई श्रीकृष्ण को संबोधित करते हुए कहती हैं कि आप सदा अपने भक्तों की पीड़ा को दूर करते हैं। कौरवों ने जब भरी सभा में द्रौपदी को निर्वस्त्र कर अपमानित करना चाहा, तो आपने उसके वस्त्र-बढ़ाकर उसके मान-सम्मान की रक्षा की। भक्त प्रह्लाद को हिरण्यकशिपु ने मारने का प्रयास किया, तो आपने नृसिंह अवतार धारण करके प्रहलाद की रक्षा की। जब एक हाथी को जल के भीतर मगरमच्छ ने मारने का प्रयास किया, तो आपने मगरमच्छ को मारकर शरणागत हाथी के प्राणों की रक्षा की। मीराबाई कहती हैं कि वह तो ऐसे श्रीकृष्ण की दासी है, जो सदा भक्तों की रक्षा करते हैं। वे उनसे अपनी पीड़ा को भी दूर करने की प्रार्थना करती हैं। वे श्रीकृष्ण के दर्शनों की प्यासी है। श्रीकृष्ण के दर्शन पाकर ही उनकी पीड़ा दूर हो सकती है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 मीरा के पद

2. स्याम म्हाने चाकर राखो जी,
गिरधारी लाला म्हाँने चाकर राखोजी।
चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरसण पास्यूँ।
बिन्दरावन री कुज गली में, गोविन्द लीला गास्यूँ।
चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ, तीनूं बाताँ सरसी।
मोर मुगट पीताम्बर सौहे, गल वैजन्ती माला।
बिन्दरावन में धेनु चरावे, मोहन मुरली वाला।
ऊँचा ऊँचा महल बणावं बिच बिच राखूँ बारी।
साँवरिया रा दरसण पास्यूँ, पहर कुसुम्बी साड़ी।
आधी रात प्रभु दरसणा, दीज्यो जमनाजी रे तीरां।
मीराँ रा प्रभु गिरधर नागर, हिवड़ो घणो अधीराँ॥

शब्दार्थ : स्याम – श्रीकृष्ण। म्हाने – हमें। चाकर – सेवक। नित – प्रतिदिन। लीला – विविध रूप। सरसी – अच्छी। पीतांबर – पीले वस्त्र। सोहै – सुशोभित होना। धेनु – गाय। बारी – खिड़की। साँवरिया – प्रियतम, श्रीकृष्ण। कुसुंबी – लाल रंग की। तीरां – तट, किनारा। हिवड़ो – हृदय। घणो – बहुत अधिक। अधीरां – व्याकुल, बेचैन।

प्रसंग : प्रस्तुत पद श्रीकृष्ण की प्रेम दीवानी मीराबाई द्वारा रचित है। इस पद में उन्होंने श्रीकृष्ण की सेविका बनने की इच्छा प्रकट की है। वे श्रीकृष्ण की सेविका बनकर निरंतर उनके समीप रहना चाहती हैं।

व्याख्या : मीराबाई श्रीकृष्ण को संबोधित करते हुए कहती हैं कि हे श्रीकृष्ण ! मुझे अपनी सेविका के रूप में रख लो। मैं आपकी सेवा करते हुए बाग बगीचे लगाऊँगी और प्रातः उठकर प्रतिदिन आपके दर्शन किया करूँगी। मैं तो आपकी सेविका बनकर वृंदावन की गलियों में आपकी लीला का गुणगान करूँगी। आपकी सेवा में रहते हुए मैं आपके दर्शन और नाम-स्मरण को वेतन के रूप में पाऊँगी और भक्तिरूपी संपत्ति को प्राप्त करूँगी। मेरे लिए ये तीनों बातें अच्छी हो जाएँगी।

मैं आपकी सेवा से दर्शन, नाम-स्मरण और भक्ति-तीनों प्राप्त करूँगी। मीरा श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती हैं कि श्रीकृष्ण के मस्तक पर मोर के पंखों का मुकुट तथा शरीर पर पीतांबर सुशोभित है। उनके। बजाते हुए गाय चराते हैं। मीरा कहती है कि वह ऊँचे-ऊँचे महलों का निर्माण करवाकर उनके बीच में खिड़कियाँ रखना चाहती है, ताकि वह श्रीकृष्ण के दर्शन कर सके।

वह लाल रंग की साड़ी पहनकर अपने प्रियतम श्रीकृष्ण के दर्शनों के लिए आधी रात के समय यमुना के तट पर उनकी प्रतीक्षा करती है। अंत में मीरा कहती हैं कि वह अपने प्रिय श्रीकृष्ण के दर्शनों की प्यासी है। श्रीकृष्ण के दर्शनों के लिए उनका हृदय बहुत व्याकुल है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा

JAC Class 10 Hindi तताँरा-वामीरो कथा Textbook Questions and Answers

मौखिक –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
तताँरा-वामीरो कहाँ की कथा है?
उत्तर :
तताँरा-वामीरो अंडमान-निकोबार द्वीप समूह की कथा है।

प्रश्न 2.
वामीरो अपना गाना क्यों भूल गई?
उत्तर :
वामीरो जब गा रही थी, तो अचानक समुद्र में ऊँची लहर उठी और उसे पूरी तरह भिगो गई। यह देखकर वह हड़बड़ा गई और हड़बड़ाहट में गाना भूल गई।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा

प्रश्न 3.
तताँरा ने वामीरो से क्या याचना की?
उत्तर :
तताँरा ने वामीरो से गाना पूरा करने और अगले दिन पुनः उसी स्थान पर आने की याचना की।

प्रश्न 4.
तताँरा और वामीरो के गाँव की क्या रीति थी?
उत्तर
गाँव की रीति के अनुसार विवाह के लिए वर और वधू का एक ही गाँव का होना आवश्यक था। दूसरे गाँव में विवाह करना :
अनुचित था।

प्रश्न 5.
क्रोध में तताँरा ने क्या किया?
उत्तर :
क्रोध में तताँरा ने कार-निकोबार द्वीप समूह को दो भागों में विभक्त कर दिया।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30) शब्दों में लिखिए – 

प्रश्न 1.
तताँरा की तलवार के बारे में लोगों का क्या मत था?
उत्तर :
तताँरा लकड़ी की एक तलवार को सदैव अपनी कमर से बाँधे रखता था। लोगों का मानना था कि उस तलवार में अद्भुत दैवीय-शक्ति थी। वे सोचते थे कि तताँरा अपने सभी साहसिक कारनामों को इसी तलवार के कारण ही कर पाता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा

प्रश्न 2.
वामीरो ने तताँरा को बेरुखी से क्या जवाब दिया?
उत्तर :
तताँरा के गीत को पूरा करने के आग्रह पर वामीरो ने उसे बड़ी बेरुखी से उत्तर दिया। उसने तताँरा से कहा कि पहले वह अपना परिचय दे और बताए कि वह उसे क्यों घूर रहा है। उसे उससे ऐसा असंगत प्रश्न भी नहीं पूछना चाहिए, क्योंकि गाँव की रीति के अनुसार वह अपने गाँव के युवक अतिरिक्त किसी अन्य गाँव के युवक के प्रश्न का उत्तर देने के लिए भी बाध्य नहीं है।

प्रश्न 3.
तताँरा-वामीरो की त्यागमयी मृत्यु से निकोबार में क्या परिवर्तन आया?
उत्तर :
तताँरा-वामीरो एक-दूसरे से प्रेम करते थे, किंतु गाँव की रीति के अनुसार उनका विवाह नहीं हो सकता था। तताँरा ने क्रोध में आकर पूरे द्वीप समूह को दो भागों में विभाजित कर दिया। इसमें तताँरा की मृत्यु हो गयी और वामीरो भी उसके प्रेम में पागल होने के बाद मर गई। उन दोनों की त्यागमयी मृत्यु के बाद निकोबार के लोग दूसरे गाँवों में भी वैवाहिक संबंध करने लगे।

प्रश्न 4.
निकोबार के लोग तताँरा को क्यों पसंद करते थे?
उत्तर :
तताँरा एक सुंदर और शक्तिशाली युवक था। वह नेक और मददगार था। दूसरों की सहायता करना वह अपना परम कर्तव्य समझता था। वह मुसीबत में प्रत्येक व्यक्ति की सहायता करने के लिए तैयार रहता था। उसकी इन्हीं विशेषताओं के कारण निकोबार के लोग तताँरा को पसंद करते थे।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60) शब्दों में लिखिए –

प्रश्न 1.
तताँरा खूब परिश्रम करने के बाद कहाँ गया? वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
तताँरा खूब परिश्रम करने के बाद समुद्र के किनारे टहलने के लिए गया। वह सूर्यास्त का समय था। सूर्य डूबने ही वाला था। समुद्र से आने वाली ठंडी हवा बहुत अच्छी लग रही थी। पक्षियों की मधुर चहचहाहट धीरे-धीरे सुनाई दे रही थी। सूर्य की अंतिम रंग-बिरंगी किरणें समुद्र के पानी में बहुत आकर्षक लग रही थीं। डूबता हुआ सूर्य ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो देखते-ही-देखते वह क्षितिज के नीचे समा जाएगा।

तताँरा ऐसे प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद ले रहा था कि तभी उसे एक मधुर गीत गूंजता हुआ सुनाई दिया। गीत की आवाज़ अत्यंत मधुर और मोहक थी। ऐसा प्रतीत होता था, मानो वह गीत बहता हुआ उसकी ओर ही आ रहा हो। उस गीत के बीच-बीच में लहरों का संगीत उसकी मधुरता को और भी बढ़ाने वाला था।

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प्रश्न 2.
निकोबार द्वीपसमूह के विभक्त होने के बारे में निकोबारियों का क्या विश्वास है?
उत्तर :
निकोबारी इस दवीप समूह के विभक्त होने का कारण एक प्रेम कथा को मानते हैं। यह कथा तताँरा-वामीरो की है। तताँरा पासा गाँव का रहने वाला सुंदर नवयुवक था। वह साहसी, नेक और मददगार था। वामीरो समीप के गाँव लपाती की रहने वाली थी। दोनों एक दूसरे से प्रेम करने लगे, किंतु गाँव की परंपरा के अनुसार उनका विवाह नहीं हो सका।

एक दिन तताँरा और वामीरो को लोगों ने भला बुरा कहा। वामीरो जोर-जोर से रोने लगी। तताँरा इसे सहन नहीं कर सका। उसने क्रोध में भरकर अपनी तलवार को धरती में गाड़ दिया और पूरी शक्ति से अपनी ओर खींचता चला गया। उसने जहाँ-जहाँ से तलवार से काटा, वह सारा हिस्सा अलग होता चला गया। इस प्रकार निकोबार द्वीप समूह दो टुकड़ों में विभक्त हो गया।

प्रश्न 3.
वामीरो से मिलने के बाद तताँरा के जीवन में क्या परिवर्तन आया?
उत्तर :
वामीरो से मिलने के बाद तताँरा अपनी सुध-बुध खो बैठा। वह हर समय उसी के ख्यालों में डूबा रहता। उसका हृदय व्यथित रहने लगा। उसके मन में एक विचित्र-सी बेचैनी रहती। सदैव सबकी मदद के लिए तैयार रहने वाला तताँरा अब केवल वामीरो के बारे में सोचता रहता। वह बार-बार उससे मिलने की इच्छा करता। शक्तिशाली, शांत और गंभीर तताँरा अब चंचल-सा रहने लगा। उसे वामीरों के बिना एक-एक पल पहाड़-सा भारी प्रतीत होता। वामीरो से मिलने के बाद तताँरा का जीवन पूरी तरह बदल गया था।

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प्रश्न 4.
प्राचीन काल में मनोरंजन और शक्ति-प्रदर्शन के लिए किस प्रकार के आयोजन किए जाते थे?
उत्तर :
प्राचीन काल में मनोरंजन और शक्ति प्रदर्शन के लिए अस्त्र-शस्त्र चलाने संबंधी आयोजन तथा पशु-पर्व किए जाते थे। पशु-पर्व जैसे आयोजनों में पशुओं की शक्ति का प्रदर्शन किया जाता था। इसके अतिरिक्त युवकों व पशुओं के बीच में भी शक्ति-प्रदर्शन होता था। इस तरह के आयोजन में भोजन, नृत्य और संगीत की व्यवस्था भी की जाती थी।

प्रश्न 5.
रूढ़ियाँ जब बंधन बन बोझ बनने लगें तब उनका टूट जाना ही अच्छा है। क्यों ? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
तताँरा-वामीरो कथा के आधार पर प्रतिपादित कीजिए कि रूढ़ियाँ बंधन बनने लगें तो उन्हें टूट जाना चाहिए।
उत्तर :
प्रत्येक समाज अपने जीवन को व्यवस्थित ढंग से चलाने के लिए कुछ रूढ़ियों और परंपराओं का पालन करता है। समय के साथ-साथ इन रूढ़ियों और परंपराओं में परिवर्तन होना जरूरी है। यदि इनमें परिवर्तन न हो, तो ये रूढ़ियाँ बंधन बन जाती हैं। तब इनका निर्वाह करना बोझ के समान लगता है। नई पीढ़ी विकास चाहती है। ये रूढ़ियाँ तब विकास में भी बाधक बनती हैं। स्वतंत्र विचारों वाली पीढ़ी इसे स्वीकार नहीं कर पाती। यदि हम फिर भी इन रूढ़ियों और परंपराओं से चिपके रहे, तो हमारी आने वाली पीढ़ी का विकास रुकता है। बोझ बनी इन रूढ़ियों से न तो विकास हो सकता है और न ही स्वच्छ जीवनयापन। ऐसे में इन रूढ़ियों का टूट जाना ही अच्छा होता है।

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
जब कोई राह न सूझी तो क्रोध का शमन करने के लिए उसमें शक्ति भर उसे धरती में घोंप दिया और ताकत से उसे खींचने लगा।
उत्तर :
इन पंक्तियों में लेखक ने तताँरा के मनोभावों को व्यक्त किया है। तताँरा वामीरो से प्रेम करता है और उससे विवाह भी करना चाहता है, परंतु वामीरो का परिवार इसे पसंद नहीं करता। ‘पशु-पर्व’ पर आयोजित मेले में वामीरो की माता तताँरा को वामीरो के साथ देखकर आग-बबूला हो उठती है और उसे अपमानित करती है। गाँव के अन्य लोग भी तताँरा का विरोध करने लगते हैं। इस पर तताँरा क्रोध से भर उठता है, परंतु किसी पर क्रोध करने की बजाय वह अपनी तलवार को पूरा जोर लगाकर धरती में घोंप देता है और फिर उसे खींचने लगता है।

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प्रश्न 2.
बस आस की एक किरण थी जो समुद्र की देह पर डूबती किरणों की तरह कभी भी डूब सकती थी।
उत्तर :
यहाँ लेखक ने वामीरो की प्रतीक्षा करते तताँरा की बेचैनी को स्पष्ट किया है। वह समुद्री चट्टान पर वामीरो की प्रतीक्षा में खड़ा था। उसे वामीरो के आने की बहुत कम आशा थी, फिर भी वह उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। वामीरो की आने की आशा सूर्यास्त के समय डूबते सूर्य की किरणों के समान थी। जिस प्रकार सूर्यास्त में सूर्य की किरणें धीरे-धीरे समाप्त हो रही थीं, उसी प्रकार वामीरो के वहाँ आने की आशा किसी भी समय समाप्त हो सकती थी।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
उत्तर
निम्नलिखित वाक्यों के सामने दिए गए कोष्ठक में (✓) का चिह्न लगाकर बताएँ कि वह वाक्य किस प्रकार का है (क) निकोबारी उसे बेहद प्रेम करते थे। (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)
(ख) तुमने एकाएक इतना मधुर गाना अधूरा क्यों छोड़ दिया ? (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)
(ग) वामीरो की माँ क्रोध में उफन उठी। (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)
(घ) क्या तुम्हें गाँव का नियम नहीं मालूम ? (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)
(ङ) वाह! कितना सुंदर नाम है। (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)
(च) मैं तुम्हारा रास्ता छोड़ दूंगा। (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)
उत्तर :
(क) निकोबारी उसे बेहद प्रेम करते थे। (विधानवाचक)
(ख) तुमने एकाएक इतना मधुर गाना अधूरा क्यों छोड़ दिया? (प्रश्नवाचक)
(ग) वामीरो की माँ क्रोध में उफन उठी। (विधानवाचक)
(घ) क्या तुम्हें गाँव का नियम नहीं मालूम? (प्रश्नवाचक)
(ङ) वाह! कितना सुंदर नाम है। (विस्मयादिबोधक)
(च) मैं तुम्हारा रास्ता छोड़ दूंगा। (विधानवाचक)

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा

प्रश्न 2.
निम्नलिखित मुहावरों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए
(क) सुध-बुध खोना
(ख) बाट जोहना
(ग) खुशी का ठिकाना न रहना
(घ) आग बबूला होना
(ङ) आवाज़ उठाना।
उत्तर :
(क) सुध-बुध खोना-जब मैंने पहली बार ताजमहल देखा, तो उसकी सुंदरता देखकर मैं अपनी सुध-बुध खो बैठा।
(ख) बाट जोहना-किसी की बाट जोहना अत्यंत कठिन कार्य है।
(ग) खुशी का ठिकाना न रहना-सुरेश के जिले में प्रथम आने की बात सुनकर उसके पिता की खुशी का ठिकाना न रहा।
(घ) आग बबूला होना-रमेश ने जब चोरी की, तो उसकी माँ आग बबूला हो उठी।
(ङ) आवाज़ उठाना-हमें भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिए।

प्रश्न 3.
नीचे दिए गए शब्दों में से मूल शब्द और प्रत्यय अलग करके लिखिए-
JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा 1
उत्तर :
JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा 2

प्रश्न 4.
नीचे दिए गए शब्दों में उचित उपसर्ग लगाकर शब्द बनाइए
………. + आकर्षक = ………
………. + ज्ञात = ……….
………. + कोमल = ………
……….. + होश = …………
………. + घटना = ………..
उत्तर :
अति + आकर्षक = अत्याकर्षक
अ + ज्ञात = अज्ञात
सु + कोमल = सुकोमल
बे + होश = बेहोश
दुर् + घटना = दुर्घटना

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा

प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार परिवर्तित कीजिए –
(क) जीवन में पहली बार मैं इस तरह विचलित हुआ हूँ। (मिश्र वाक्य)
(ख) फिर तेज़ कदमों से चलती हुई तताँरा के सामने आकर ठिठक गई। (संयुक्त वाक्य)
(ग) वामीरो कुछ सचेत हुई और घर की तरफ़ दौड़ी। (सरल वाक्य)
(घ) तताँरा को देखकर वह फूटकर रोने लगी। (संयुक्त वाक्य)
(ङ) रीति के अनुसार दोनों को एक ही गाँव का होना आवश्यक था। (मिश्र वाक्य)
उत्तर :
(क) जीवन में पहली बार ऐसा हुआ है कि मैं इस तरह विचलित हुआ हूँ।
(ख) फिर तेज़ कदमों से चली और तताँरा के सामने आकर ठिठक गई।
(ग) वामीरो कुछ सचेत होकर घर की तरफ़ दौड़ी।
(घ) उसने तताँरा को देखा और वह फूटकर रोने लगी।
(ङ) यह रीति थी कि दोनों को एक ही एक गाँव का होना आवश्यक था।

प्रश्न 6.
नीचे दिए गए वाक्य पढ़िए तथा ‘और’ शब्द के विभिन्न प्रयोगों पर ध्यान दीजिए –
(क) पास में सुंदर और शक्तिशाली युवक रहा करता था। (दो पदों को जोड़ना)
(ख) वह कुछ और सोचने लगी। (‘अन्य’ के अर्थ में)
(ग) एक आकृति कुछ साफ़ हुई … कुछ और … कुछ और … (क्रमश: धीरे-धीरे के अर्थ में)
(घ) अचानक वामीरो कुछ सचेत हुई और घर की तरफ़ दौड़ गई। (दो उपवाक्यों को जोड़ने के अर्थ में)
(ङ) वामीरो का दुख उसे और गहरा कर रहा था। (‘अधिकता’ के अर्थ में)
(च) उसने थोड़ा और करीब जाकर पहचानने की चेष्टा की। (‘निकटता’ के अर्थ में)
उत्तर :
विद्यार्थी इसे ध्यानपूर्वक समझें।

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प्रश्न 7.
नीचे दिए गए शब्दों के विलोम शब्द लिखिए –
भय, मधुर, सभ्य, मूक, तरल, उपस्थिति, सुखद।
उत्तर :

  • भय = निर्भय
  • सभ्य = असभ्य
  • तरल = ठोस
  • सुखद = दुखद
  • मधुर = कहु
  • मूक = वाचाल
  • उपस्थिति = अनुपस्थिति

प्रश्न 8.
नीचे दिए गए शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए –
समुद्र, आँख, दिन, अँधेरा, मुक्त।
उत्तर :

  • समुद्र = सागर, जलधि
  • दिन = दिवस, वासर
  • मुक्त = स्वतंत्र, आजाद
  • आँख = नयन, नेत्र
  • अँधेरा =अंधकार, तम

प्रश्न 9.
नीचे दिए गए शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
किंकर्तव्यविमूढ़, विह्वल, भयाकुल, याचक, आकंठ।
उत्तर :

  • किंकर्तव्यविमूढ़ – सचिन सड़क पर हुई दुर्घटना को देखकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया।
  • भयाकुल – अचानक सामने आए शेर को देखकर राम भयाकुल हो उठा।
  • विह्वल – कई दिनों के बाद अपने पुत्र से मिलकर माँ भाव-विह्वल हो उठी।
  • याचक – याचक को कभी खाली नहीं लौटाना चाहिए।
  • आकंठ – वह संगीत की महफिल में जाकर संगीत के सुरों में आकंठ डूब गया।

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प्रश्न 10.
“किसी तरह आँचरहित एक ठंडा और ऊबाऊ दिन गुज़रने लगा’ वाक्य में दिन के लिए किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया गया है? आप दिन के लिए कोई तीन विशेषण और सुझाइए।
उत्तर :
वाक्य में दिन के लिए आँचरहित, ठंडा और ऊबाऊ विशेषणों का प्रयोग किया गया है। दिन के लिए तीन अन्य विशेषण हैं-गर्म दिन, शानदार दिन, मुसीबत भरा दिन।

प्रश्न 11.
इस पाठ में देखना’ क्रिया के कई रूप आए हैं-‘देखना’ के इन विभिन्न शब्द-प्रयोगों में क्या अंतर है? वाक्य-प्रयोग द्वारा स्पष्ट कीजिए।
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इसी प्रकार बोलना’ क्रिया के विभिन्न शब्द-प्रयोग बताइए।

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उत्तर :
आँखें केंद्रित करना = अपने लक्ष्य पर आँखें केंद्रित करके आगे बढ़ते रहना चाहिए।
नज़र पड़ना = घर आते ही कमरे में रखे नए फूलदान पर अचानक मेरी नज़र पड़ी।
ताकना = इधर-उधर ताकना बुरी बात है।
घूरना = तुम मुझे इस प्रकार घूरना छोड़ दो, वरना अच्छा नहीं होगा।
निहारना = प्राकृतिक सौंदर्य को निहारना बहुत अच्छा लगता है।
निर्निमेष ताकना = बगीचे में लगा गुलाब का फूल इतना आकर्षक था कि मैं उसे निर्निमेष ताकता रह गया। इसी प्रकार ‘बोलना’ क्रिया के विभिन्न शब्द-प्रयोग निम्नलिखित हैं –
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प्रश्न 12.
नीचे दिए गए वाक्यों को पढ़िए –
(क) श्याम का बड़ा भाई रमेश कल आया था। (संज्ञा पदबंध):
(ख) सुनीता परिश्रमी और होशियार लड़की है। (विशेषण पदबंध)
(ग) अरुणिमा धीरे-धीरे चलते हुए वहाँ जा पहुंची। (क्रियाविशेषण पदबंध)
(घ) आयुष सुरभि का चुटकुला सुनकर हँसता रहा। (क्रिया पदबंध)
ऊपर दिए गए वाक्य (क) में रेखांकित अंश में कई पद हैं जो एक पद संज्ञा का काम कर रहे हैं। वाक्य (ख) में तीन पद मिलकर विशेषण पद का काम कर रहे हैं। वाक्य (ग) और (घ) में कई पद मिलकर क्रमशः क्रिया-विशेषण और क्रिया का काम कर रहे हैं।
ध्वनियों के सार्थक समूह को शब्द कहते हैं और वाक्य में प्रयुक्त शब्द ‘पद’ कहलाता है; जैसे –
‘पेड़ों पर पक्षी चहचहा रहे थे।’ वाक्य में पेड़ों’ शब्द पद है क्योंकि इसमें अनेक व्याकरणिक बिंदु जुड़ जाते हैं।
कई पदों के योग से बने वाक्यांश को जो एक ही पद का काम करता है, पदबंध कहते हैं। पदबंध वाक्य का एक अंश होता है।
पदबंध मुख्य रूप से चार प्रकार के होते हैं –

  • संज्ञा पदबंध
  • क्रिया पदबंध
  • विशेषण पदबंध
  • क्रियाविशेषण पदबंध।

वाक्यों के रेखांकित पदबंधों का प्रकार बताइए –
(क) उसकी कल्पना में वह एक अद्भुत साहसी युवक था।
(ख) तताँरा को मानो कुछ होश आया।
(ग) वह भागा-भागा वहाँ पहुँच जाता।
(घ) तताँरा की तलवार एक विलक्षण रहस्य थी।
(ङ) उसकी व्याकुल आँखें वामीरो को ढूँढ़ने में व्यस्त थीं।
उत्तर :
(क) विशेषण पदबंध
(ख) क्रिया पदबंध
(ग) क्रिया-विशेषण पदबंध
(घ) विशेषण पदबंध
(ङ) विशेषण पदबंध

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योग्यता विस्तार –

प्रश्न :
1. पुस्तकालय में उपलब्ध विभिन्न प्रदेशों की लोककथाओं का अध्ययन कीजिए।
2. भारत के नक्शे में अंडमान निकोबार द्वीप समूह की पहचान कीजिए और उसकी भौगोलिक स्थिति के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
3. अंडमान निकोबार द्वीपसमूह की प्रमुख जनजातियों की विशेषताओं का अध्ययन पुस्तकालय की सहायता से कीजिए।
4. दिसंबर 2004 में आए सुनामी का इस द्वीपसमूह पर क्या प्रभाव पड़ा? जानकारी एकत्रित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

परियोजना कार्य –

प्रश्न 1.
अपने घर-परिवार के बुजुर्ग सदस्यों से कुछ लोककथाओं को सुनिए। उन कथाओं को अपने शब्दों में कक्षा में सुनाइए।
उत्तर
विद्यार्थी स्वयं करें।

JAC Class 10 Hindi तताँरा-वामीरो कथा Important Questions and Answers

निबंधात्मक प्रश्न – 

प्रश्न 1.
‘तताँरा-वामीरो कथा’ किस क्षेत्र से संबंधित है? इसके पीछे लोगों का क्या विश्वास है?
उत्तर :
‘तताँरा-वामीरो कथा’ अंडमान-निकोबार द्वीप समूह की कथा है। यह एक लोककथा है, जो तताँरा नामक युवक और वामीरो नामक युवती की प्रेम-कथा पर आधारित है। इस लोककथा के पीछे निकोबारियों का विश्वास है कि इन दो प्रेमियों के कारण ही वर्तमान के लिटिल अंडमान और कार-निकोबार अलग हुए थे। इससे पहले ये दोनों द्वीप एक ही थे। इस बात की प्रमाणित करने के लिए एक कहानी के रूप में इस मान्यता को प्रस्तुत किया गया है।

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प्रश्न 2.
तताँरा के व्यक्तित्व का वर्णन संक्षेप में कीजिए।
उत्तर :
तताँरा पासा गाँव का रहने वाला सुंदर और शक्तिशाली युवक था। वह नेक और मददगार था। दूसरों की सहायता के लिए वह सदा तैयार रहता था। वह केवल अपने गाँववालों की ही नहीं, अपितु समूचे द्वीपवासियों की सेवा करना अपना परम कर्तव्य समझता था। वह अत्यंत चर्चित और आदरणीय था। उसके आत्मीय स्वभाव के कारण सभी उसे पसंद करते थे। वह अपनी पारंपरिक पोशाक के साथ कमर में लकड़ी की एक तलवार बाँधे रखता था, जो उसे अन्य लोगों से विशिष्ट बनाती थी। लोगों का मत था कि उसकी तलवार में दैवीय शक्ति थी।

प्रश्न 3.
तताँरा को लोग दैवीय-शक्ति से संपन्न व्यक्ति क्यों मानते थे?
उत्तर :
तताँरा को लोग दैवीय-शक्ति से संपन्न व्यक्ति मानते थे, क्योंकि उसके पास लड़की से बनी एक तलवार थी। लोगों का विश्वास था कि उस तलवार में दैवीय शक्ति है। तताँरा उस तलवार को सदैव अपने साथ रखता था। वह उसे अपनी कमर से बाँधकर रखता था। वह उस तलवार का प्रयोग अत्याचार को मिटाने तथा समाज को रूढ़ियों और बंधनों से मुक्त करने के लिए करता था। कहानी के अंत में अपनी तलवार से द्वीप के दो टुकड़े करके तताँरा इस धारणा को सही सिद्ध करता है।

प्रश्न 4.
तताँरा को क्रोध क्यों आया? उसने क्रोध में आने के बाद क्या किया?
उत्तर :
तताँरा और वामीरो का प्रेम अपनी बुलंदी पर था। शीघ्र ही यह प्रेम जगजाहिर हो गया। इसी प्रेम के कारण गाँववालों ने तताँरा को अपमानित भी कर दिया। यही अपमान का घूट तताँरा के क्रोध का कारण बना। उसने अपनी लकड़ी की तलवार निकाली और अपने क्रोध को शांत करने के लिए तलवार से निकोबार की धरती को दो टुकड़ों में विभाजित कर दिया। इसके बाद से ही निकोबार द्वीप दो भागों में विभाजित हो गया।

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प्रश्न 5.
तताँरा द्वारा धरती के दो टुकड़े करने से वह लोगों को क्या संदेश देना चाहता था?
उत्तर :
द्वीप के दो टुकड़े करके तताँरा लोगों को समझाना चाहता था कि वे अपने पुराने रूढ़िवादी विचारों से बाहर निकल आएँ। अपनी तंग मानसिकता को दूर करके एक अच्छे समाज की नींव रखें। यदि वे पुरानी रूढ़ियों और बंधनों को ऐसे ही मानते रहे, तो न उनका विकास होगा और न ही समाज या देश का विकास होगा। अत: लोगों को अपनी सोच को सही रखकर उसमें सुधार लाना होगा। यह शायद उसके प्रयास का ही फल था कि बाद में द्वीप के लोगों ने अपनी पुरानी परपंरा को समाप्त कर दिया था।

प्रश्न 6.
तताँरा और वामीरो की मृत्यु किस प्रकार की थी? इसके बाद क्या परिवर्तन हुआ?
उत्तर :
तताँरा और वामीरो की मुत्यु त्यागमयी थी, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए सुंदर सपने छोड़कर जाने वाली मृत्यु थी, वह समाज तथा लोगों को उनका घृणित रूप दिखाने वाली मृत्यु थी। उनकी इस त्यागमयी मृत्यु के बाद एक सुखद परिवर्तन यह आया कि निकोबार के लोग अब दूसरे गाँवों में भी वैवाहिक संबंध बनाने लगे थे। उनकी तंग मानसिकता में सुधार आने लगा था।

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
तताँरा समुद्र के किनारे क्या देखकर अपनी सुध-बुध खो बैठा?
उत्तर :
तताँरा जब समुद्र के किनारे टहल रहा था, तो उसने एक मधुर गीत सुना। वह उस दिशा में चल पड़ा, जहाँ से गीत का स्वर आ रहा था। वहाँ उसने वामीरो को देखा, जो अत्यंत सुंदर थी। उसके अनुपम सौंदर्य को देखकर तताँरा अपनी सुध-बुध खो बैठा। वह वामीरो के रूप सौंदर्य के जादू में डूब गया।

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प्रश्न 2.
तताँरा को गाँव की किस परंपरा पर क्षोभ हो रहा था?
उत्तर :
तताँरा वामीरो से प्रेम करता था और वामीरो भी उससे विवाह करना चाहती थी। गाँव की यह परंपरा थी कि लड़का और लड़की को एक ही गाँव का होना चाहिए, तभी विवाह संभव था। तताँरा पासा गाँव का रहने वाला था और वामीरो लपाती गाँव की थी। इस कारण से उन दोनों का विवाह संभव नहीं था। तताँरा को विवाह की इसी निषेध परंपरा पर क्षोभ था।

प्रश्न 3.
वामीरो की माँ को क्या अपमानजनक लगा और उसने क्या किया?
उत्तर :
वामीरो और उसकी माँ पासा गाँव में आयोजित ‘पशु-पर्व’ में आईं। वामीरो ने जैसे ही तताँरा को देखा, तो वह रोने लगी। तताँरा किंकर्तव्यविमूढ़ वहाँ खड़ा रहा। वामीरो की माँ ने जब वामीरो का रुदन स्वर सुना, तो वह वहाँ पहुँची और आग-बबूला हो उठी। गाँववालों की उपस्थिति में वामीरो को तताँरा के साथ खड़े देखना उसे अपमानजनक लगा। उसने तताँरा को तरह-तरह से अपमानित किया।

प्रश्न 5.
लीलाधर मंडलोई की भाषा-शैली का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
लीलाधर मंडलोई मूल रूप से एक कवि हैं। इनकी भाषा-शैली अत्यंत सहज, सरल तथा सरस है। इनकी भाषा में लयात्मकता, प्रवाहात्मकता और रोचकता विद्यमान रहती है। ‘तताँरा-वामीरो कथा’ में उन्होंने तत्सम, तद्भव, देशज आदि शब्दों का सुंदर मिश्रण किया है। इन्होंने पाठ में उर्दू-फ़ारसी के शब्दों का भी खूब प्रयोग किया है।

तताँरा-वामीरो कथा Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन-श्री लीलाधर मंडलोई का जन्म सन 1954 में छिंदवाड़ा जिले के एक छोटे-से गाँव । गुढ़ी में हुआ था। इनका जन्म जन्माष्टमी के दिन हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा भोपाल और रायपुर में हुई थी। सन 1987 में कॉमनवेल्थ रिलेशंस ट्रस्ट, लंदन ने इन्हें प्रसारण की उच्च शिक्षा के लिए वहाँ आमंत्रित किया। प्रसारण के क्षेत्र में इनका विशेष योगदान रहा है। वर्तमान में ये प्रसार भारती दूरदर्शन के महानिदेशक का कार्यभार सँभाल रहे हैं। इन्हें इनकी रचनाओं के लिए कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया है।

रचनाएँ – लीलाधर मंडलोई वास्तव में कवि हैं। इनकी कविताएँ छत्तीसगढ़ अंचल से संबंधित हैं। इनकी कविताओं में वहाँ की बोली की मिठास के साथ-साथ वहाँ के जन-जीवन का सजीव चित्रण है। इनका कवि मन इन्हें सदैव लोककथा, लोकगीत, यात्रा-वृत्तांत, डायरी और रिपोर्ताज जैसे भिन्न-भिन्न विधाओं के लेखन की ओर प्रवृत्त करता रहा है। अंदमान-निकोबार द्वीप समूह की जनजातियों पर लिखा इनका गद्य अपने आप में एक समाजशास्त्रीय अध्ययन भी है। इनकी प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं-घर-घर घूमा, रात-बिरात, मगर एक आवाज़, देखा-अनदेखा और काला पानी।

भाषा-शैली – मंडलोई जी की भाषा-शैली अत्यंत सरल और सहज है। भाषा में प्रवाहात्मकता, लयात्मकता और रोचकता सदैव विद्यमान रहती है। प्रस्तुत पाठ ‘तताँरा-वामीरो कथा’ में उन्होंने तत्सम, तद्भव, देशज आदि शब्दों का सुंदर मिश्रण किया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने उर्दू-फ़ारसी के शब्दों का भी सुंदर प्रयोग किया है। मुहावरों के प्रयोग से इनकी भाषा अधिक प्रभावशाली हो गई है। इन्होंने अनेक मुहावरों जैसे-सुध-बुध खोना, बाट जोहना, खुशी का ठिकाना न रहना, आग बबूला होना, आवाज़ उठाना आदि का अच्छा प्रयोग किया है। मंडलोई जी की शैली वर्णनात्मक है। कहीं-कहीं उन्होंने संवादात्मक शैली का प्रयोग किया है, जिसमें नाटकीयता का पुट विद्यमान है।

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पाठ का सार –

प्रस्तुत पाठ ‘तताँरा-वामीरो कथा’ अंदमान-निकोबार द्वीप समूह के एक छोटे से द्वीप की लोककथा पर आधारित है। यह ‘तताँरा’ नामक युवक और ‘वामीरो’ नामक युवती की प्रेमकथा है। तताँरा और वामीरो को आज भी इस द्वीप के निवासी गर्व और श्रद्धा से याद करते हैं। प्राचीनकाल में लिटिल अंडमान और कार-निकोबार द्वीप समूह आपस में जुड़े हुए थे। वहाँ पासा नामक गाँव में तताँरा नाम का एक सुंदर और शक्तिशाली युवक रहता था। वह बहुत ही नेक और मददगार था। सबकी सहायता करना वह अपना कर्तव्य समझता था।

सभी उसे बहुत पसंद करते थे। उसके आत्मीय स्वभाव के कारण आस-पास के गाँववाले भी उसे पर्व-त्योहारों पर विशेष रूप से आमंत्रित करते थे। तताँरा का व्यक्तित्व अत्यंत आकर्षक था। वह अपनी पारंपरिक पोशाक के साथ अपनी कमर में सदैव एक लकड़ी की तलवार बाँधे रखता था। लोगों का विचार था कि उसकी लकड़ी की तलवार में दैवीय शक्ति थी। एक दिन तताँरा सूर्यास्त के समय समुद्र के किनारे विचारमग्न बैठा था। तभी उसे पास ही मधुर गीत गूंजता सुनाई दिया। वह उस गीत के मधुर स्वरों में डूब गया। जैसे ही उसकी तंद्रा टूटी, वह उस गीत को गाने वाले को देखने के लिए व्याकुल हो उठा।

अंतत: उसकी नज़र एक युवती पर पड़ी, जो उस शृंगार गीत को गा रही थी। तताँरा उस युवती के अप्रतिम सौंदर्य को देखकर उसमें डूब गया। वह अपनी सुध-बुध खो बैठा और बार-बार उसे उस गीत को पूरा करने का आग्रह करने लगा। युवती ने उससे उसका परिचय पूछा, किंतु तताँरा विचलित होने के कारण कुछ नहीं बता पाया। तताँरा ने उस युवती का नाम पूछा, तो उसने अपना नाम वामीरो बताया और कहा कि वह लपाती गाँव में रहती है। यह कहकर वह चली गई। तताँरा उसे आवाजें लगाकर अपने बारे में बताता रहा और अगले दिन पुनः उसी चट्टान पर आने का आग्रह करता रहा। वामीरो नहीं रुकी और तताँरा उसे जाते हुए निहारता रहा। वामीरो जब घर पहुंची, तो वह भी तताँरा को बार-बार याद करने लगी। उसने अपने लिए जैसे जीवन साथी की कल्पना की थी, तताँरा वैसा ही था।

साथ ही वह यह भी जानती थी कि दूसरे गाँव के युवक के साथ वैवाहिक संबंध होना गाँव की परंपरा के विरुद्ध था। अत: उसने तताँरा को भुलाना ही उचित समझा, किंतु तताँरा की छवि बार-बार उसकी आँखों के आगे नाचती रही। उधर तताँरा सायंकाल होते ही समुद्री चट्टान पर खडा वामीरो की प्रतीक्षा करने लगा। ऐसी बेचैनी उसने अपने शांत और गंभीर जीवन में पहले कभी अनुभव नहीं की थी। उसे वामीरो के आने की आशा बहुत कम थी। बार-बार वह लपाती गाँव से आने वाले रास्ते की ओर देखता। तभी अचानक नारियल के झुरमुटों में उसे वामीरो दिखाई दी।

उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। वे दोनों देर तक एक-दूसरे को निहारते शब्दहीन खड़े रहे। सूर्यास्त हो चुका था और अँधेरा बढ़ने लगा। तभी वामीरो सचेत हुई और अपने घर की तरफ़ दौड़ी। तताँरा चुपचाप वहीं खड़ा रहा। तताँरा और वामीरो प्रतिदिन इसी प्रकार मिलते। धीरे-धीरे उनका यह मूक प्रेम लपाती गाँव के कुछ युवकों को पता चल गया और उन्होंने गाँव के सभी लोगों को बता दिया। तताँरा और वामीरो को बहुत समझाने का प्रयास किया गया, क्योंकि अलग-अलग गाँव के होने के कारण उनका विवाह संभव नहीं था; किंतु वे नहीं माने। कुछ समय बाद तताँरा के पासा गाँव में ‘पशु-पर्व’ का आयोजन हुआ।

वर्ष में एक बार होने वाले इस आयोजन में सभी गांवों के लोग पासा में एकत्रित हुए। तताँरा की आँखें तो केवल वामीरो को ढूँढ रही थीं। तभी उसे वामीरो दिखाई दी। वामीरो तताँरा को देखते ही फूट-फूटकर रोने लगी। वामीरो की माँ को अनेक लोगों की उपस्थिति में तताँरा के पास खड़ी वामीरो का रोना : अपमानजनक लगा। वह क्रोधित हो उठी और उसने तताँरा को अनेक तरह से अपमानित किया। गाँव के लोग भी तताँरा के विरुद्ध आवाजें उठाने लगे। तताँरा के लिए यह सब असहनीय हो गया।

उसे गाँव की परंपरा पर क्रोध आ रहा था और अपनी असहायता पर खीझ होने लगी। उधर वामीरो लगातार रोये जा रही थी। तताँरा का क्रोध लगातार बढ़ता गया। उसका हाथ अपनी तलवार पर गया और उसने तलवार निकाल ली। अपने क्रोध को शांत करने के लिए उसने तलवार को धरती में घोंप दिया और पूरी ताकत से अपनी तरफ़ खींचते-खींचते दूर तक पहुँच गया। चारों ओर सन्नाटा छा गया। लोगों ने देखा कि तलवार की जहाँ-जहाँ लकीर खिंची थी, वहाँ से धरती फटने लगी। तताँरा क्रोध में द्वीप आरंभ हो गया था। उसने छलाँग लगाकर दूसरा सिरा थामना चाहा, किंतु ऐसा न कर पाया और वामीरो-वामीरो चिल्लाता हुआ समुद्र की सतह की ओर फिसल गया।

उधर वामीरो भी तताँरा-तताँरा पुकार रही थी। अंतत: तताँरा लहूलुहान होकर गिर पड़ा और पानी में बह गया। वामीरो उसके गम में पागल हो गई। उसने खाना-पीना छोड़ दिया और तताँरा को खोजती घंटों उस जगह पर बैठी रहती। कुछ समय पश्चात वामीरो भी अचानक कहीं चली गई। लोगों ने उसे ढूँढने का प्रयास किया, किंतु उसका कहीं पता नहीं चला। लेखक कहता है कि तताँरा और वामीरो की यह प्रेम-कथा अंडमान-निकोबार के प्रत्येक घर में सुनाई जाती है। निकोबारियों का विचार है कि तताँरा की तलवार से कार-निकोबार का जो दूसरा टुकड़ा हुआ, वह लिटिल अंडमान ही है। तताँरा और वामीरो की त्यागमयी मृत्यु के बाद एक सखद परिवर्तन यह हआ कि निकोबार के लोग दसरे गाँवों में भी वैवाहिक संबंध बनाने लगे थे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा

किठिन शब्दों के अर्थ :

लिटिल – छोटा, श्रृंखला – क्रम, आदिम – प्रारंभिक, विभक्त – बँटा हुआ, विभाजित, लोककथा – जन-समाज में प्रचलित कथा, मददगार – मदद करने वाला, तत्पर – तैयार, आत्मीय – अपना, चर्चित – प्रसिद्ध, आकर्षक – मोहक, साहसिक कारनामा – साहसपूर्ण कार्य, विलक्षण – असाधारण, क्षितिज – जहाँ धरती और आकाश मिलते दिखाई दें, अथक – बिना थके, बयार – शीतल-मंद वाय, शनै:-शनै: – धीरे-धीरे, प्रबल – तेज, तंद्रा – एकाग्रता, चैतन्य – चेतना, सजग, विकल – बेचैन, व्याकुल, निःशब्द – बिना बोले, संचार – उत्पन्न होना, असंगत – अनुचित, बाध्य – मजबूर, अप्रतिम – अतुलनीय, आकंठ – पूर्णरूप से,

सम्मोहित – ना – चिढ़ना, अन्यमनस्कता – जिसका चित्त कहीं और हो, बलिष्ठ – शक्तिशाली, निर्निमेष – जिसमें पलक न झपकी जाए/बिना पलक झपकाए, श्रेयस्कर – उचित, सही, मूक – मौन, रीति – परंपरा, अचंभित – चकित, किंकर्तव्यविमूढ़ – असमंजस, रोमांचित – पुलकित, निश्चल – स्थिर, भयाकुल – भय से बेचैन, अफ़वाह – उड़ती खबर, उफनना – उबलना, अचेत – बेहोश, निषेध परंपरा – वह परंपरा जिस पर रोक लगी हो, शमन – शांत करना, घोंपना – गाड़ना, फँसाना, दरार – रेखा की तरह का लंबा छिद्र जो फटने के कारण पड़ जाता है, सुराग – प्रमाण, सुखद परिवर्तन – सुख देने वाला बदलाव।

JAC Class 10 Hindi अपठित बोध अपठित गद्यांश

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions अपठित बोध अपठित गद्यांश Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10 Hindi अपठित बोध अपठित गद्यांश

अपठित बोध के अंतर्गत विद्यार्थी को किसी को पढ़कर उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर देने होते हैं। इन प्रश्नों का उत्तर देने से पूर्व अपठित को अच्छी प्रकार से पढ़कर समझ लेना चाहिए। जिन प्रश्नों के उत्तर पूछे गए हैं वे उसी में ही छिपे रहते हैं। उन उत्तरों को अपने शब्दों में लिखना चाहिए। अपठित का शीर्षक भी पूछा जाता है। शीर्षक अपठित में व्यक्त भावों के अनुरूप होना चाहिए। शीर्षक कम-से-कम शब्दों में लिखना चाहिए। शीर्षक से अपठित का मूल-भाव भी स्पष्ट होना चाहिए।

निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर समझिए –

1. हम आम लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि कोई व्यक्ति अच्छा है या बुरा इसकी पहचान उसकी संगति से होती है। यह स्वाभाविक ही है कि स्वभाव, आचार, व्यवहार की दृष्टि से जैसा व्यक्ति खुद होगा, वैसे ही लोगों से वह मिलना-जुलना पसन्द करेगा। कौए कौओं से ही मिलकर बैठते हैं। कुंजे कूजों से। केवल इतना ही नहीं, किसी का चरित्र बनाने या बिगाड़ने में भी संगति का बहुत बड़ा हाथ होता है।

अगर कोई शराबियों के साथ उठता-बैठता है तो उसे शराब की बुराई चिपट जाएगी। हम प्रतिदिन कहते और सुनते हैं कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग पकड़ता है। इसलिए मनुष्य अपनी संगति के प्रभाव से कैसे बच सकता है। इस प्रकार साधु-संगति या सत्संग कहलाने का मान केवल उस संगत को होता है, जिसमें सन्त सतगुरु शामिल हों। यह महापुरुष दया और दयालुता के स्रोत होते हैं और वे अपनी शिक्षा, दयालुता और दया भाव से अनेक जीवों को कृतार्थ करते हैं।

जहाँ ऐसे उपकारी पुरुष वास करते हैं उस स्थान की संगति परोपकार की भावना से भर जाती है। ऐसी साधु-संगति से मन का मैल दूर हो जाता है। सारी सृष्टि के जीवों में ईश्वर का ही नूर दिखाई देता है। विश्व-बन्धुत्व की भावना बढ़ जाती है। अतः परमानन्द प्राप्त करने के लिए अच्छे पुरुषों की संगति ही एक मात्र उपाय या साधन है। अतः सत्संग को अपनाना ही सही कदम है।

प्रश्न :
1. उपरोक्त अवतरण का उचित शीर्षक दीजिए।
2. अच्छे या बुरे व्यक्ति की पहचान कैसे होती है?
3. चरित्र निर्माण में कैसी संगति बाधक है?
4. मनुष्य के आचार व्यवहार पर अधिक प्रभाव किसका होता है ?
5. सत्संगति कहलाने का मान किस संगति को प्राप्त है?
उत्तर :
1. सत्संगति।
2. अच्छे या बुरे व्यक्ति की पहचान उसकी संगति से होती है क्योंकि व्यक्ति स्वयं जैसा होता है, वह वैसे ही लोगों से मिलना-जुलना पसंद करता है।
3. चरित्र-निर्माण में बुरी संगति बाधक है। यदि हम शराबियों, जुआरियों की संगति में रहेंगे तो हम भी उन जैसे बुरे बनेंगे।
4. मनुष्य के आचार-व्यवहार पर अधिक प्रभाव उसकी संगति का होता है क्योंकि जैसी संगति हो वैसी यति भी हो जाती है।
5. सत्संगति कहलाने का मान उस संगति को प्राप्त है, जिसमें संत, सतगुरु शामिल होते हैं। वे हमें सद्मार्ग पर चलाते हैं।

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2. दुख के वर्ग में जो स्थान भय का है, वही स्थान आनंद-वर्ग में उत्साह का है। भय में हम प्रस्तुत कठिन स्थिति के नियम से विशेष रूप से दुखी और कभी-कभी उस स्थिति से अपने को दूर रखने के लिए प्रयत्नवान भी होते हैं। उत्साह में हम आने वाली कठिन स्थिति के भीतर साहस के अवसर के निश्चय द्वारा प्रस्तुत कर्म-सुख की उमंग से अवश्य प्रयत्नवान होते हैं। उत्साह से कष्ट या हानि सहने की दृढ़ता के साथ-साथ कर्म में प्रवृत्ति होने के आनंद का योग रहता है। साहसपूर्ण आनंद की उमंग का नाम उत्साह है। कर्म-सौंदर्य के उपासक ही सच्चे उत्साही कहलाते हैं।

जिन कर्मों में किसी प्रकार कष्ट या हानि सहने का साहस अपेक्षित होता है उन सबके प्रति उत्कंठापूर्ण आनंद उत्साह के अंतर्गत लिया जाता है। कष्ट या हानि के भेद के अनुसार उत्साह के भी भेद हो जाते हैं। साहित्य-मीमांसकों ने इसी दृष्टि से युद्ध-वीर, दान-वीर, दया-वीर इत्यादि भेद किए हैं। इनमें सबसे प्राचीन और प्रधान युद्धवीरता है, जिसमें आघात, पीड़ा क्या मृत्यु तक की परवाह नहीं रहती। इस प्रकार की वीरता का प्रयोजन अत्यंत प्राचीनकाल से पड़ता चला आ रहा है, जिसमें साहस और प्रयत्न दोनों चरम उत्कर्ष पर पहुँचते हैं। केवल कष्ट या पीड़ा सहन करने के साहस में ही उत्साह का स्वरूप स्फुरित नहीं होता।

उसके साथ आनंदपूर्ण प्रयत्न या उसकी उत्कंठा का योग चाहिए। बिना बेहोश हुए भारी फोड़ा चिराने को तैयार होना साहस कहा जाएगा, पर उत्साह नहीं। इसी प्रकार चुपचाप, बिना हाथ-पैर हिलाए, घोर प्रहार सहने के लिए तैयार रहना साहस और कठिन-से-कठिन प्रहार सह कर भी जगह से न हटना वीरता कही जाएगी। ऐसे साहस और वीरता को उत्साह के अंतर्गत तभी ले सकते हैं जबकि साहसी या वीर उस काम को आनंद के साथ करता चला जाएगा जिसके कारण उसे इतने प्रहार सहने पड़ते हैं। सारांश यह है कि आनंदपूर्ण प्रयत्न या उसकी उत्कंठा में ही उत्साह का दर्शन होता है, केवल कष्ट सहने के निश्चेष्ट साहस में नहीं। वृत्ति और साहस दोनों का उत्साह के बीच संचरण होता है।

प्रश्न :
1. अवतरण को उचित शीर्षक दीजिए।
2. उत्साह का स्थान क्या है?
3. उत्साह में किसका योग रहता है ?
4. उत्साह के भेदों में सबसे प्राचीन किसे माना जाता है?
5. उत्साह के दर्शन कहाँ होते हैं?
उत्तर :
1. उत्साह।
2. दुख के वर्ग में जो स्थान भय का है वही स्थान आनंद के वर्ग में उत्साह का है।
3. उत्साह में कष्ट या नुकसान सहने की दृढ़ता के साथ कर्म में प्रवृत्ति होने के आनंद का योग रहता है। कर्म सौंदर्य में उत्साह का योग बना
रहता है।
4. उत्साह के भेदों दानवीर, दयावीर, युद्धवीर आदि में सबसे प्राचीन युद्धवीर माना जाता है, जिसमें व्यक्ति मृत्यु-प्राप्ति से भी नहीं डरता। इसमें साहस और प्रयत्न पराकाष्ठा पर होते हैं।
5. उत्साह के दर्शन आनंदपूर्ण प्रयत्न या उसकी उत्कंठा में होते हैं, केवल कष्ट सहने के निश्चेष्ट साहस में नहीं।

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3. सफलता चाहने वाले मनुष्य का प्रथम कर्तव्य यह देखना है कि उसकी रुचि किन कार्यों की ओर अधिक है। यह बात गलत है कि हर कोई मनुष्य हर एक काम कर सकता है। लॉर्ड वेस्टरफ़ील्ड स्वाभाविक प्रवृत्तियों के काम को अनावश्यक समझते थे और केवल परिश्रम को ही सफलता का आधार मानते थे। इसी सिद्धांत के अनुसार उन्होंने अपने बेटे स्टेनहाप को, जो सुस्त, ढीला-ढाला, असावधान था, सत्पुरुष बनाने का प्रयास किया। वर्षों परिश्रम करने के बाद भी लड़का ज्यों-का-त्यों रहा और जीवन-भर योग्य न बन सका।

स्वाभाविक प्रवृत्तियों को जानना कठिन भी नहीं है, बचपन के कामों को देखकर बताया जा सकता है कि बच्चा किस प्रकार का मनुष्य होगा। प्रायः यह संभावना प्रबल होती है कि छोटी आयु में कविता करने वाला कवि, सेना बनाकर चलने वाला सेनापति, भुट्टे चुराने वाला चोर-डाकू, पुरजे कसने वाला मैकेनिक और विज्ञान में रुचि रखने वाला वैज्ञानिक बनेगा। जब यह विदित हो जाए कि लड़के की रुचि किस काम की ओर है तब यह करना चाहिए कि उसे उसी विषय में ऊँची शिक्षा दिलाई जाए।

ऊँची शिक्षा प्राप्त करके मनुष्य अपने काम-धंधे में कम परिश्रम से अधिक सफल हो सकता है, जिनके काम-धंधे का पूर्ण प्रतिबिंब बचपन में नहीं दिखता वे अपवाद ही हैं। प्रत्येक मनुष्य में एक विशेष कार्य को अच्छी प्रकार करने की शक्ति होती है। वह बड़ी दृढ़ और उत्कृष्ट होती है। वह देर तक नहीं छिपती। उसी के अनुकूल व्यवसाय चुनने से ही सफलता मिलती है। जीवन में यदि आपने सही कार्यक्षेत्र चुन लिया तो समझ लीजिए कि बहुत बड़ा काम कर लिया।

प्रश्न :
1. लॉर्ड वेस्टरफ़ील्ड का क्या सिद्धांत था? समझाइए।
2. इसे उसने सर्वप्रथम किस पर आज़माया? और क्या परिणाम रहा?
3. बालक आगे चलकर कैसा मनुष्य बनेगा, इसका अनुमान कैसे लगाया जा सकता है?
4. सही कार्यक्षेत्र चुनने के क्या लाभ हैं?
5. उपर्युक्त गद्यांश के लिए एक उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
1. लॉर्ड वेस्टरफ़ील्ड का सिद्धांत स्वाभाविक प्रवृत्तियों के काम को अनावश्यक तथा केवल परिश्रम को ही सफलता का आधार मानना था।
2. इसे उन्होंने सर्वप्रथम अपने पुत्र स्टेनहाप पर आजमाया था। इसका परिणाम यह रहा कि वर्षों परिश्रम करने के बाद भी उनके बेटे में कोई सुधार नहीं हुआ।
3. बालक के भविष्य में क्या बनने का अनुमान उसके बचपन के कामों में किसी कार्य विशेष के प्रति रुचि देखकर लगाया जा सकता है, जैसे विज्ञान में रुचि रखने वाला बालक बड़ा होकर वैज्ञानिक बन सकता है।
4. सही कार्यक्षेत्र चुनने से जीवन में सफलता मिलती है तथा वह निरंतर उन्नति करता है।
5. सफलता का रहस्य।

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4. जातियाँ इस देश में अनेक आई हैं। लड़ती-झगड़ती भी रही हैं, फिर प्रेमपूर्वक बस भी गई हैं। सभ्यता की नाना सीढ़ियों पर खड़ी और नाना ओर मुख करके चलने वाली इन जातियों के लिए एक सामान्य धर्म खोज निकालना कोई सहज बात नहीं थी। भारतवर्ष के ऋषियों ने अनेक प्रकार से अनेक ओर से इस समस्या को सुलझाने की कोशिश की थी। पर एक बात उन्होंने लक्ष्य की थी। समस्त वर्णों और समस्त जातियों का एक सामान्य आदर्श भी है। वह है अपने ही बंधनों से अपने को बाँधना। मनुष्य पशु से किस बात में भिन्न है ? आहार-निद्रा आदि पशु सुलभ स्वभाव उसके ठीक वैसे ही हैं, जैसे अन्य प्राणियों के, लेकिन वह फिर भी पशु से भिन्न है।

उसमें संयम है, दूसरे के सुख-दुख के प्रति संवेदना है, श्रद्धा है, तप है, त्याग है। यह मनुष्य के स्वयं के उद्भावित बंधन हैं। इसीलिए मनुष्य झगड़े-टंटे को अपना आदर्श नहीं मानता, गुस्से में आकर चढ़ दौड़ने वाले अविवेकी को बुरा समझता है और वचन, मन और शरीर से किए गए असत्याचरण को गलत आचरण मानता है। यह किसी खास जाति या वर्ण या समुदाय का धर्म नहीं है। वह मनुष्य-मात्र का धर्म है।

महाभारत में इसीलिए निर्वर भाव, सत्य और अक्रोध को सब वर्गों का सामान्य धर्म कहा है। अन्यत्र इसमें निरंतर दानशीलता को भी गिनाया गया है। गौतम ने ठीक ही कहा था कि मनुष्य की मनुष्यता यही है कि यह सबके दुख-सुख को सहानुभूति के साथ देखता है। यह आत्म-निर्मित बंधन ही मनुष्य को मनुष्य बनाता है। अहिंसा, सत्य और अक्रोधमूलक धर्म का मूल उत्स यही है। मुझे आश्चर्य होता है कि अनजाने में भी हमारी भाषा से यह भाव कैसे रह गया है। लेकिन मुझे नाखून के बढ़ने पर आश्चर्य हुआ था, अज्ञान सर्वत्र आदमी को पछाड़ता है। और आदमी है कि सदा उससे लोहा लेने को कमर कसे है।

प्रश्न :
1. ‘अनजाने’ में उपसर्ग बताइए।
2. ऋषियों ने क्या किया था?
3. मनुष्य में पशु से भिन्न क्या है?
4. मनुष्य किसे गलत आचरण मानता है?
5. मनुष्य की मनुष्यता क्या है?
उत्तर :
1. अन + जाने = ‘अन’ उपसर्ग।
2. प्राचीनकाल में ऋषियों ने समस्याओं को सुलझाने की अनेक प्रकार से कोशिश की थी और सभी के लिए आदर्श स्थापित किया था।
3. मनुष्य में पशुओं से संयम, सुख-दुख के प्रति संवेदना, श्रद्धा, तप और त्याग की भावनाएँ भिन्न हैं। यही उन्हें पशुओं से श्रेष्ठ बनाती हैं।
4. मनुष्य मन, वचन और कर्म के द्वारा किए गए असत्याचरण को गलत मानता है।
5. मनुष्य की मनुष्यता यही है कि वह सबके सुख-दुख को सहानुभूति से देखता है। अहिंसा, सत्य और अक्रोध मूलकता ही उसके आधार हैं।

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5. हमारा हिमालय से कन्याकुमारी तक फैला हुआ देश, आकार और आत्मा दोनों दृष्टियों से महान और सुंदर है। उसका बाह्य सौंदर्य विविधता की सामंजस्यपूर्ण स्थिति है और आत्मा का सौंदर्य विविधता में छिपी हुई एकता की अनुभूति है। चाहे कभी न गलने वाला हिम का प्राचीर हो, चाहे कभी न जमने वाला अतल समुद्र हो, चाहे किरणों की रेखाओं से खचित हरीतिमा हो, चाहे एकरस शून्यता ओढ़े हुए मरु हो, चाहे साँवले भरे मेघ हों, चाहे लपटों में साँस लेता हुआ बवंडर हो, सब अपनी भिन्नता में भी एक ही देवता के विग्रह को पूर्णता देते हैं।

जैसे मूर्ति के एक अंग का टूट जाना संपूर्ण देव-विग्रह खंडित कर देता है, वैसे ही हमारे देश की अखंडता के लिए विविधता की स्थिति है। यदि इस भौगोलिक विविधता में व्याप्त सांस्कृतिक एकता न होती, तो यह विविध नदी, पर्वत, वनों का संग्रह-मात्र रह जाता। परंतु इस महादेश की प्रतिभा ने इसकी अंतरात्मा को एक रसमयता में प्लावित करके इसे विशिष्ट व्यक्तित्व प्रदान किया है, जिससे यह आसमुद्र एक नाम की परिधि में बँध जाता है। हर देश अपनी सीमा में विकास पाने वाले जीवन के साथ एक भौतिक इकाई है, जिससे वह समस्त विश्व की भौतिक और भौगोलिक इकाई से जुड़ा हुआ है।

विकास की दृष्टि से उसकी दूसरी स्थिति आत्मरक्षात्मक तथा व्यवस्थापक राजनीतिक सत्ता में है। तीसरी सबसे गहरी तथा व्यापक स्थिति उसकी सांस्कृतिक गतिशीलता में है, जिससे वह अपने विशेष व्यक्तित्व की रक्षा और विकास करता हुआ विश्व-जीवन के विकास में योग देता है। यह सभी बाह्य और स्थूल तथा आंतरिक और सूक्ष्म स्थितियाँ एक दूसरे पर प्रभाव डालतीं और एक-दूसरी से संयमित होती चलती हैं। एक विशेष भूखंड में रहने वाले मानव का प्रथम परिचय, संपर्क और संघर्ष अपने वातावरण से ही होता है और उससे प्राप्त जय, पराजय, समन्वय आदि से उसका कर्म-जगत ही संचालित नहीं होता, प्रत्युत अंतर्जगत और मानसिक संस्कार भी प्रभावित होते हैं।

प्रश्न :
1. अवतरण को उचित शीर्षक दीजिए।
2. हमारे देश की सुंदरता किसमें निहित है?
3. कौन एक ही देवता के विग्रह को पूर्णता प्रदान करते हैं ?
4. हमारे देश की अखंडता के लिए विविधता की स्थिति कैसी है?
5. विकास की दृष्टि से किसी देश की स्थिति किसमें है?
उत्तर :
1. देश की सांस्कृतिक एकता।
2. हमारे देश की बाह्य सुंदरता विविधता के सामंजस्य और आत्मा की सुंदरता विविधता में छिपी एकता में निहित है।
3. ऊँचे-ऊँचे बर्फ से ढके पर्वत, अतल गहराई वाले सागर, रेगिस्तान, घने-काले बादल, बवंडर आदि देवता के विग्रह को पूर्णता प्रदान करते हैं।
4. हमारे देश की अखंडता के लिए विविधता की स्थिति वैसी ही है जैसे किसी मूर्ति की पूर्णता। मूर्ति का एक अंग भी टूट जाना देव मूर्ति को जैसे खंडित कर देता है वैसे ही हमारे देश की अखंडता है।
5. विकास की दृष्टि से किसी देश की स्थिति आत्मरक्षात्मक और व्यवस्थापरक राजनीतिक सत्ता में है। वह उसकी सांस्कृतिक गतिशीलता में है।

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6. हमारे देश ने आलोक और अंधकार के अनेक युग पार किए हैं, परंतु अपने सांस्कृतिक उत्तराधिकार के प्रति वह अत्यंत सावधान रहा है। उसमें अनेक विचारधाराएँ समाहित हो गईं, अनेक मान्यताओं ने स्थान पाया, पर उसका व्यक्तित्व सार्वभौम होकर भी उसी का रहा। उसके अंतर्गत आलोक ने उसकी वाणी के हर स्वर को उसी प्रकार उद्भासित कर दिया, जैसे आलोक हर तरंग पर प्रतिबिंबित होकर उसे आलोक की रेखा बना देता है। एक ही उत्स से जल पाने वाली नदियों के समान भारतीय भाषाओं के बाह्य और आंतरिक रूपों में उत्सगत विशेषताओं का सीमित हो जाना ही स्वाभाविक था। कूप अपने अस्तित्व में भिन्न हो सकते हैं, परंतु धरती के तल का जल तो एक ही रहेगा। इसी से हमारे चिंतन और भावजगत में ऐसा कुछ नहीं है, जिसमें सब प्रदेशों के हृदय और बुद्धि का योगदान और समान अधिकार नहीं है।

आज हम एक स्वतंत्र राष्ट्र की स्थिति पा चुके हैं, राष्ट्र की अनिवार्य विशेषताओं में दो हमारे पास हैं- भौगोलिक अखंडता और सांस्कृतिक एकता परंतु अब तक हम उस वाणी को प्राप्त नहीं कर सके हैं जिसमें एक स्वतंत्र राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों के निकट अपना परिचय देता है जहाँ तक बहुभाषा भाषी होने का प्रश्न है, ऐसे देशों की संख्या कम नहीं है, जिनके भिन्न भागों में भिन्न भाषाओं की स्थिति है। पर उनकी अविच्छिन्न स्वतंत्रता की परंपरा ने उन्हें सम-विषम स्वरों से एक राग रच लेने की क्षमता दे दी है।

हमारे देश की कथा कुछ दूसरी है। हमारी परतंत्रता आँधी-तूफान के समान नहीं आई, जिसका आकस्मिक संपर्क तीव्र अनुभूति से अस्तित्व को कंपित कर देता है। वह तो रोग के कीटाणु लाने वाले मंद समीर के समान साँस में समाकर शरीर में व्याप्त हो गई है। हमने अपने संपूर्ण अस्तित्व से उसके भार को दुर्वह नहीं अनुभव किया और हमें यह ऐतिहासिक सत्य भी विस्मृत हो गया कि कोई भी विजेता विजित कर राजनीतिक प्रभुत्व पाकर ही संतुष्ट नहीं होता, क्योंकि सांस्कृतिक प्रभुत्व के बिना राजनीतिक विजय न पूर्ण है, न स्थायी। घटनाएँ संस्कारों में चिर जीवन पाती हैं और संस्कार के अक्षय वाहक, शिक्षा, साहित्य कला आदि हैं।

प्रश्न :
1. ‘आलोक’ का एक पर्यायवाची शब्द लिखें।
2. हमारा देश प्रमुख रूप से किसके प्रति सावधान रहा है?
3. राष्ट्र की कौन-सी दो अनिवार्य विशेषताएँ हमारे पास हैं ?
4. अब तक हम भारतवासी किसे प्राप्त नहीं कर पाए हैं ?
5. हमारे देश में परतंत्रता किस प्रकार आई थी?
उत्तर :
1. प्रकाश।
2. हमारे देश ने अनेक संकटों को झेला है। उसे अनेक विचारधाराएँ और मान्यताएँ मिली हैं पर फिर भी वह सदा अपने सांस्कृतिक उत्तराधिकार की रक्षा के प्रति सावधान रहता है।
3. हमारे पास भौगोलिक अखंडता और सांस्कृतिक एकता है।
4. अब तक हम भारतवासी उस एक भाषा को प्राप्त नहीं कर पाए हैं जिसके द्वारा एक स्वतंत्र राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों को अपना परिचय दे पाता है।
5. हमारे देश में परतंत्रता आँधी-तूफ़ान की तरह एकदम से नहीं आई थी बल्कि उसने धीरे-धीरे हमारे अस्तित्व को अपने बस में कर लिया था।

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7. मैं घहरते हुए सावन-भादों में भी वहाँ गया हूँ और मैंने इस प्रपात के उद्दम यौवन के उस महावेग को भी देखा है जो सौ-डेढ़-सौ फीट की धरती के चटकीले धानी आँचर में उफनाते सावन को कस लेने के लिए व्याकुल हो जाता है और मैंने देखा है कि जब अंबर के महलों में घनालिंगन करने वाली सौदामिनी धरती के इस सौभाग्य की ईर्ष्या में तड़प उठती है, तब उस तड़पन की कौंध में इस प्रपात का उमड़ाव फूलकर दुगुना हो जाता है।

शरद की शुभ्र ज्योत्सना में जब यामिनी पुलकित हो गई है और जब इस प्रपात के यौवन का मद खुमार पर आ गया है और उस खुमारी में इसका सौंदर्य मुग्धा के वदनमंडल की भाँति और अधिक मोहक बन गया है, तब भी मैंने इसे देखा है और तभी जाकर मैंने शरदिंदु को इस प्रपात की शांत तरल स्फटिक-धारा पर बिछलते हुए देखा है। पहली बार जब मैं गया था तो वहाँ ठहरने के लिए कोई स्थान बना नहीं था और इसलिए खड़ी दुपहरी में चट्टानों की ओट में ही छाँह मिल सकी थी।

ये भूरी-भूरी चट्टानें पानी के आघात से घिस-घिसकर काफ़ी समतल बन गई हैं और इनका ढाल बिलकुल खड़ा है। इन चट्टानों के कगारों पर बैठकर लगभग सात-आठ हाथ दूर प्रपात के सीकरों का छिड़काव रोम-रोम से पीया जा सकता है। इन शिलाओं से ही कुंड में छलाँग मारने वाले धवल जल-बादल पेंग मारते से दिखाई देते हैं और उनके मंद गर्जन का स्वर भी जाने किस मलार के राग में चढ़ता-उतरता रहता है कि मन उसमें खो-सा जाता है।

एक शिला की शीतल छाया में कगार के नीचे पैर डाले मैं बड़ी देर तक बैठे-बैठे सोचता रहा कि मृत्यु के गहन कूप की जगत पर पैर लटकाए भले ही कोई बैठा हो, किंतु यदि उसे किसी ऐसे सौंदर्य के उद्रेक का दर्शन मिलता रहे तो वह मृत्यु की भयावह गहराई भूल जाएगा। मृत्यु स्वयं ऐसे उन्मादी सौंदर्य के आगे हार मान लेती है, नहीं तो समय की कसौटी पर यौवन का गान अमिट स्वर्ण-रेखा नहीं खींच सकता था।

प्रश्न :
1. अवतरण के लिए उचित शीर्षक दीजिए।
2. जल-प्रपात का फैलाव वर्षा ऋतु में कैसा हो जाता है?
3. शरद की चाँदनी में जल-प्रपात लेखक को कैसा प्रतीत हुआ था?
4. जब लेखक पहली बार वहाँ गया था तो कहाँ रुका था?
5. लेखक की दृष्टि में मृत्यु किसके आगे हार मान लेती है?
उत्तर :
1. जल-प्रपात का सौंदर्य।
2. जल-प्रपात का फैलाव वर्षा ऋतु में बढ़कर दुगुना हो जाता है और वह उफ़नाते सावन को कस लेने के लिए व्याकुल-सा हो उठता है।
3. लेखक को शरद की चाँदनी में जल-प्रपात ऐसा लगा था जैसे वह शांत रूप में स्फटिक धारा पर फैला हुआ हो। वह चाँदनी में जगमगा रहा था।
4. जब लेखक पहली बार जल-प्रपात देखने गया था तो वहाँ ठहरने का कोई स्थान नहीं था। उसने दोपहर की धूप चट्टानों की ओट में झेली थी।
5. लेखक की दृष्टि में मृत्यु स्वयं ऐसे जल-प्रपात के उन्मादी सौंदर्य के सामने हार मान लेती है।

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8. शिक्षा व्यक्ति और समाज दोनों के विकास के लिए अनिवार्य है। अज्ञान के अंधकार में जीना तो मृत्यु से भी अधिक कष्टकर है। ज्ञान के प्रकाश से ही जीवन के रहस्य खुलते हैं और हमें अपनी पहचान मिलती है। शिक्षा मनुष्य को मस्तिष्क और देह का उचित प्रयोग करना सिखाती है। व को पाठ्य-पुस्तकों के ज्ञान के अतिरिक्त कुछ गंभीर चिंतन न दे, व्यर्थ है। यदि हमारी शिक्षा सुसंस्कृत, सभ्य, सच्चरित्र एवं अच्छे नागरिक नहीं बना सकती, तो उससे क्या लाभ? सहृदय, सच्चा परंतु अनपढ़ मज़दूर उस स्नातक से कहीं अच्छा है जो निर्दय और चरित्रहीन है।

संसार के सभी वैभव और सुख-साधन भी मनुष्य को तब तक सुखी नहीं बना सकते जब तक कि मनुष्य को आत्मिक ज्ञान न हो। हमारे कुछ अधिकार व उत्तरदायित्व भी हैं। शिक्षित व्यक्ति को अपने उत्तरदायित्वों और कर्तव्यों का उतना ही ध्यान रखना चाहिए जितना कि अधिकारों का क्योंकि उत्तरदायित्व निभाने और कर्तव्य करने के बाद ही हम अधिकार पाने के अधिकारी बनते हैं।

प्रश्न :
1. अज्ञान में जीवित रहना मृत्यु से अधिक कष्टकर है, ऐसा क्यों कहा गया है?
2. शिक्षा के किन्हीं दो लाभों को समझाइए।
3. अधिकारों और कर्तव्यों का पारस्परिक संबंध समझाइए।
4. शिक्षा व्यक्ति और समाज दोनों के विकास के लिए क्यों आवश्यक है?
5. इस गद्यांश के लिए एक उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
1. अज्ञान के कारण हम जीवन के रहस्यों को नहीं समझ सकते और न ही हमें अपनी पहचान मिलती है। हमारी सोचने-समझने की शक्ति भी कुंठित हो जाती है। इसलिए इस दशा में हमारा जीवन मरने से भी अधिक कष्टदायी हो जाता है।
2. शिक्षा से हमें अपनी पहचान मिलती है। शिक्षा हमें तन-मन का उचित प्रयोग करना सिखाती है। शिक्षा हमें जीवन के विभिन्न रहस्यों से परिचित कराती है। शिक्षा हमें अच्छा नागरिक बनाती है।
3. अधिकारों और कर्तव्यों का आपस में गहरा संबंध है। यदि हम अपने कर्तव्यों का उचित रूप से पालन करेंगे तो हम अधिकारों के भी अधिकारी हो सकते हैं। अपने उत्तरदायित्व निभाकर ही हम अधिकार प्राप्त कर सकते हैं।
4. शिक्षा व्यक्ति और समाज को सहृदय, सुसंस्कृत, सभ्य, सच्चरित्र तथा अच्छा नागरिक बनाती है, जिससे दोनों का ही विकास होता है। शिक्षा के अभाव में यह संभव नहीं है।
5. शिक्षा की अनिवार्यता।

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9. कवियों, शायरों तथा आम आदमी को सम्मोहित करने वाला ‘पलाश’ आज संकट में है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर इसी तरह पलाश का विनाश जारी रहा तो यह ‘ढाक के तीन पात’ वाली कहावत में ही बचेगा। अरावली और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं में जब पलाश वृक्ष चैत (वसंत) में फूलता था तो लगता था कि वन में आग लग गई हो अथवा अग्नि-देव फूलों के रूप में खिल उठे हों।

पलाश पर एक-दो दिन में ही संकट नहीं आ गया है। पिछले तीस-चालीस वर्षों में दोना-पत्तल बनाने वाले, कारखाने बढ़ने, गाँव-गाँव में चकबंदी होने तथा वन माफियाओं द्वारा अंधाधुंध कटान कराने के कारण उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि प्रांतों में पलाश के वन घटकर दस प्रतिशत से भी कम रह गए हैं। वैज्ञानिकों ने पलाश के वनों को बचाने के लिए ऊतक संवर्धन (टिशू कल्चर) द्वारा परखनली में पलाश के पौधों को विकसित कर एक अभियान चलाकर पलाश के वन रोपने की योजना प्रस्तुत की है। हरियाणा तथा पुणे में ऐसी दो प्रयोगशालाएँ भी खोली हैं।

एक समय था जब बंगाल के पलाश का मैदान, अरावली की पर्वत-मालाएँ टेसू के फूलों के लिए दुनिया में मशहूर थीं। विदेशों से लोग पलाश के रक्तिम वर्ण के फूल देखने आते थे। महाकवि पद्माकर का छंद-‘कहै पद्माकर परागन में, पौन हूँ में, पानन में, पिक में, पलासन पगंत है’ लिखकर पलाश की महिमा बखान की थी। ब्रज, अवधी, बुंदेलखंडी, राजस्थानी, हरियाणवी, पंजाबी लोकगीतों में पलाश के गुण गाए गए हैं। कबीर ने तो ‘खांखर भया पलाश’-कहकर पलाश की तुलना एक ऐसे सुंदर-सजीले नवयुवक से की है, जो अपनी जवानी में सबको आकर्षित कर लेता है किंतु बुढ़ापे में अकेला रह जाता है।

वसंत और ग्रीष्म ऋतु में जब तक टेसू में फूल और हरे-भरे पत्ते रहते हैं, उसे सभी निहारते हैं किंतु शेष आठ महीने वह पतझड़ का शिकार होकर झाड़-झंखाड़ की तरह रह जाता है। पर्यावरण के लिए प्लास्टिक-पॉलीथीन की थैलियों पर रोक लगाने के बाद पलाश की उपयोगिता महसूस की गई, जिसके पत्ते, दोनों, थैले, पत्तल, थाली, गिलास सहित न जाने कितने काम में उपयोग में आ सकते हैं। पिछले तीस-चालीस साल में नब्बे प्रतिशत वन नष्ट कर डाले गए। बिन पानी के बंजर, ऊसर तक में उग आने वाले इस पेड़ की नई पीढ़ी तैयार नहीं हुई। यदि यही स्थिति रही है और समाज जागरूक न हुआ तो पलाश विलुप्त वृक्ष हो जाएगा।

प्रश्न :
1. अवतरण को उचित शीर्षक दीजिए।
2. अरावली और सतपुड़ा में पलाश के वृक्ष कैसे लगते थे?
3. पलाश के वृक्ष कम क्यों रह गए हैं ?
4. पलाश के वृक्षों को बचाने के लिए क्या किया जा रहा है?
5. पलाश की उपयोगिता कब अनुभव की गई ?
उत्तर :
1. पलाश।
2. अरावली और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं में फूले हुए पलाश के वृक्ष ऐसे लगते थे जैसे जंगल में आग लग गई हो या अग्नि देव फूलों के रूप में खिल उठे हों।
3. पलाश के पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, गाँवों की चकबंदी आदि के कारण इनकी संख्या बहुत कम रह गई है।
4. पलाश के वृक्षों को बचाने के लिए ऊतक संवर्धन द्वारा परखनली में इन्हें विकसित करने का अभियान चलाया गया है। इस काम के लिए हरियाणा और पुणे में दो प्रयोगशालाएँ आरंभ की गई हैं।
5. पर्यावरण के लिए प्लास्टिक-पॉलीथीन की थैलियों पर रोक लगने के बाद पलाश की उपयोगिता अनुभव की गई है।

JAC Class 10 Hindi अपठित बोध अपठित गद्यांश

10. संसार के सभी देशों में शिक्षित व्यक्ति की सबसे पहली पहचान यह होती है कि वह अपनी मातृभाषा में दक्षता से काम कर सकता है। केवल भारत ही एक देश है जिसमें शिक्षित व्यक्ति वह समझा जाता है जो अपनी मातृभाषा में दक्ष हो या नहीं, किंतु अंग्रेज़ी में जिसकी दक्षता असंदिग्ध हो। संसार के अन्य देशों में सुसंस्कृत व्यक्ति वह समझा जाता है जिसके घर में अपनी भाषा की पुस्तकों का संग्रह हो और जिसे बराबर यह पता रहे कि उसकी भाषा के अच्छे लेखक और कवि कौन हैं तथा समय-समय पर उनकी कौन-सी कृतियाँ प्रकाशित हो रही हैं।

भारत में स्थिति दूसरी है। यहाँ प्रायः घर में साज-सज्जा के आधुनिक उपकरण तो होते हैं किंतु अपनी भाषा की कोई पुस्तक या पत्रिका दिखाई नहीं पड़ती। यह दुरावस्था भले ही किसी ऐतिहासिक प्रक्रिया का परिणाम है, किंतु यह सुदशा नहीं, दुरावस्था ही है और जब तक यह दुरावस्था कायम है, हमें अपने-आपको, सही अर्थों में शिक्षित और सुसंस्कृत मानने का ठीक-ठाक न्यायसंगत अधिकार नहीं है। इस दुरावस्था का एक भयानक दुष्परिणाम यह है कि भारतीय भाषाओं के समकालीन साहित्य पर उन लोगों की दृष्टि नहीं पड़ती जो विश्वविद्यालयों के प्रायः सर्वोत्तम छात्र थे और अब शासन-तंत्र में ऊँचे ओहदों पर काम कर रहे हैं।

इस दृष्टि से भारतीय भाषाओं के लेखक केवल यूरोपीय और अमेरिकी लेखकों से ही हीन नहीं हैं, बल्कि उनकी किस्मत मिस्र, बर्मा, इंडोनेशिया, चीन और जापान के लेखकों की किस्मत से भी खराब है क्योंकि इन सभी देशों के लेखकों की कृतियाँ वहाँ के अत्यंत सुशिक्षित लोग भी पढ़ते हैं। केवल हम ही हैं जिनकी पुस्तकों पर यहाँ के तथाकथित शिक्षित समुदाय की दृष्टि प्रायः नहीं पड़ती।

हमारा तथाकथित उच्च शिक्षित समुदाय जो कुछ पढ़ना चाहता है, उसे अंग्रेज़ी में ही पढ़ लेता है, यहाँ तक कि उसकी कविता और उपन्यास पढ़ने की तृष्णा भी अंग्रेजी की कविता और उपन्यास पढ़कर ही समाप्त हो जाती है और उसे यह जानने की इच्छा ही नहीं होती कि शरीर से वह जिस समाज का सदस्य है उसके मनोभाव उपन्यास और काव्य में किस अदा से व्यक्त हो रहे हैं।

प्रश्न :
1. भारत में शिक्षित व्यक्ति की क्या पहचान है?
2. भारत तथा अन्य देशों के सुशिक्षित व्यक्ति में मूल अंतर क्या है ?
3. ‘यह दुरावस्था ऐतिहासिक प्रक्रिया का परिणाम है’ कथन से लेखक का नया अभिप्राय है?
4. भारतीय शिक्षा समुदाय प्रायः किस भाषा का साहित्य पढ़ना पसंद करता है? उनके लिए ‘तथाकथित’ विशेषण का प्रयोग क्यों किया गया है?
5. मातृभाषा के प्रति शिक्षित भारतीयों की कैसी भावना है?
उत्तर :
1. भारत में शिक्षित व्यक्ति की पहचान यह है कि वह चाहे अपनी मातृभाषा में दक्ष हो या न हो पर अंग्रेजी भाषा बोलने और लिखने में पूरी तरह से दक्ष होता है।

2. भारत तथा अन्य देशों के सुशिक्षित व्यक्तियों में मूल अंतर यह है कि भारत के व्यक्ति अंग्रेजी भाषा में दक्षता-प्राप्ति को महत्त्वपूर्ण मानते हैं जबकि विश्व के अन्य देशों के व्यक्ति अपनी मातृभूमि में दक्षता को महत्त्वपूर्ण मानते हैं। भारत के व्यक्ति अपने घर में सजावटी सामान तो शान-शौकत के लिए इकट्ठा करते हैं लेकिन अपनी मातृभाषा की कोई पुस्तक या पत्रिका नहीं खरीदते, जबकि अन्य देशों के सुसंस्कृत व्यक्ति घरों में अपनी भाषा की पुस्तकों का संग्रह करते हैं और उन्हें पढ़ते हैं।

3. हमारा देश सैकड़ों वर्षों तक विदेशियों का गुलाम रहा और राजनीतिक गुलामी के साथ हमारे पूर्वजों ने मानसिक गुलामी भी प्राप्त कर ली थी। इसीलिए उन्हें अपनी मातृभाषा की अपेक्षा अंग्रेजी भाषा के प्रति अधिक मोह है। पढ़ने-लिखने के प्रति कम रुचि होने के कारण उनके घरों में पुस्तकों के दर्शन नहीं होते।

4. भारतीय शिक्षित समुदाय प्रायः अंग्रेजी भाषा का साहित्य पढ़ना पसंद करता है। ‘तथाकथित’ विशेषण में व्यंग्य और वितृष्णा के भाव छिपे हुए हैं कि भारत में जो स्वयं को शिक्षित मानते हैं वे अपने देश के साहित्य से अपरिचित हैं लेकिन अंग्रेजी भाषा के मोहजाल में फँस कर अंग्रेजी साहित्य को अधिक महत्त्वपूर्ण मानते हैं।

5. हीन भावना है।

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11. जहाँ भी दो नदियाँ आकर मिल जाती हैं, उस स्थान को अपने देश में तीर्थ कहने का रिवाज है। यह केवल रिवाज की बात नहीं है। हम सचमुच मानते हैं कि अलग-अलग नदियों में स्नान करने से जितना पुण्य होता है, उससे कहीं अधिक पुण्य संगम स्नान में है। किंतु, भारत आज जिस दौर से गुजर रहा है, उसमें असली संगम वे स्थान, वे सभाएँ तथा वे मंच हैं, जिन पर एक से अधिक भाषाएँ एकत्र होती हैं। नदियों की विशेषता यह है कि वे अपनी धाराओं में अनेक जनपदों का सौरभ, अनेक जनपदों के आँसू और उल्लास लिए चलती हैं और उनका पारस्परिक मिलन वास्तव में नाना जनपदों के मिलन का ही प्रतीक है। यही हाल भाषाओं का भी है।

उनके भीतर भी नाना जनपदों में बसने वाली जनता के आँसू और उमंगें, भाव और विचार, आशाएँ और शंकाएँ समाहित होती हैं। अतः जहाँ भाषाओं का मिलन होता है, वहाँ वास्तव में, विभिन्न जनपदों के हृदय ही मिलते हैं, उनके भावों और विचारों का ही मिलन होता है तथा भिन्नताओं में छिपी हुई एकता वहाँ कुछ अधिक प्रत्यक्ष हो उठती है। इस दष्टि से भाषाओं के संगम आज सबसे बडे तीर्थ हैं और इन तीर्थों में जो भी भारतवासी श्रदधा से स्नान करता है, वह भारतीय एकता का सबसे बड़ा सिपाही और संत है।

हमारी भाषाएँ जितनी ही तेज़ी से जगेंगी, हमारे विभिन्न प्रदेशों का पारस्परिक ज्ञान उतना ही बढ़ता जाएगा। भारतीय लेखकों की बहुत दिनों से यह आकांक्षा रही थी कि वे केवल अपनी ही भाषा में प्रसिद्ध होकर न रह जाएँ, बल्कि भारत की अन्य भाषाओं में भी उनके नाम पहुँचे और उनकी कृतियों की चर्चा हो। भाषाओं के जागरण के आरंभ होते ही एक प्रकार का अखिल भारतीय मंच आप-से आप प्रकट होने लगा है।

आज प्रत्येक भाषा के भीतर यह जानने की इच्छा उत्पन्न हो गई है कि भारत की अन्य भाषाओं में क्या हो रहा है, उनमें कौन-कौन ऐसे लेखक हैं जिनकी कृतियाँ उल्लेखनीय हैं तथा कौन-सी विचारधारा वहाँ प्रभुसत्ता प्राप्त कर रही है।

प्रश्न :
1. लेखक ने आधुनिक संगम स्थल किसको माना है और क्यों?
2. भाषा-संगमों में क्या होता है?
3. लेखक ने सबसे बड़ा सिपाही और संत किसको कहा है ?
4. स्वराज्य-प्राप्ति के उपरांत विभिन्न भाषाओं के लेखकों में क्या जिज्ञासा उत्पन्न हुई?
5. भाषाओं के जागरण से लेखक का क्या अभिप्राय है? .
उत्तर :
1. लेखक ने आधुनिक संगम स्थल उन सभाओं और मंचों को माना है जिन पर एक से अधिक भाषाएँ इकट्ठी होती हैं। क्योंकि इन पर विभिन्न जनपदों में बसने वाली जनता के सुख-दुख, भाव-विचार, आशाएँ-शंकाएँ आदि प्रकट होते हैं।
2. विभिन्न भाषाओं का मिलन।
3. लेखक ने सबसे बड़ा सिपाही और संत उस भारतवासी को माना है, जो भाषाओं के संगम पर श्रद्धापूर्वक स्नान करता है।
4. स्वराज्य-प्राप्ति के उपरांत विभिन्न भाषाओं के लेखकों में जिज्ञासा उत्पन्न हुई थी कि भारत की अन्य भाषाओं में क्या हो रहा है। उनमें कौन-कौन ऐसे लेखक हैं जिन्होंने उल्लेखनीय रचनाओं को प्रदान किया था और वहाँ कौन-सी विचारधारा प्रभुसत्ता प्राप्त कर रही थी।
5. भाषाओं के जागरण से लेखक का अभिप्राय देश-भर की विभिन्न भाषाओं के बीच संबंधों की स्थापना है, जिससे देश के सभी लोग दूसरे राज्यों के विषय में जान सकें।

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12. प्रतिभा किसी की मोहताज़ नहीं होती। इसके आगे सारी समस्याएँ बौनी हैं। लेकिन समस्या एक प्रतिभा को खुद दूसरी प्रतिभा से होती है। बहुमुखी प्रतिभा का होना, अपने भीतर एक प्रतिभा के बजाए दूसरी प्रतिभा को खड़ा करना है। इससे हमारा नुकसान होता है। कितना और कैसे? मन की दुनिया की एक विशेषज्ञ कहती हैं कि बहुमुखी होना आसान है, बजाए एक खास विषय के विशेषज्ञ होने की तुलना में। बहुमुखी लोग स्पर्धा से घबराते हैं। कई विषयों पर उनकी पकड़ इसलिए होती है कि वे एक स्प र्धा होने पर दूसरे की ओर भागते हैं।

वे आलोचना से भी डरते हैं और अपने काम में तारीफ़ ही तारीफ़ सुनना चाहते हैं। बहुमुखी लोगों में सबसे महान् माने जाने वाले माइकल एंजेलो से लेकर अपने यहाँ रवींद्रनाथ टैगोर जैसे कई लोग। लेकिन आज ऐसे लोगों की पूछ-परख कम होती है। ऐसे लोग प्रतिभाशाली आज भी माने जाते हैं, लेकिन असफल होने की आशंका उनके लिए अधिक होती है। आज वे लोग ‘विची सिंड्रोम’ से पीड़ित माने जाते हैं, जिनकी पकड़ दो-तीन या इससे ज्यादा क्षेत्रों में हो, लेकिन हर क्षेत्र में उनसे बेहतर उम्मीदवार मौजूद हों।

बहुमुखी प्रतिभा वाले लोगों के भीतर कई कामों को साकार करने की इच्छा बहुत तीव्र होती है। उनकी उत्सुकता उन्हें एक से दूसरे क्षेत्र में हाथ आजमाने को बाध्य करती है। समस्या तब होती है, जब यह हाथ आजमाना दखल करने जैसा हो जाता है। वे न इधर के रह जाते हैं, और न उधर के। प्रबंधन की दुनिया में एक के साधे सब सधे, सब साधे सब जाए’ का मंत्र ही शुरू से प्रभावी है। यहाँ उस पर ज्यादा फ़ोकस नहीं किया जाता, जो सारे अंडे एक टोकरी में न रखने की बात करता है। हम दूसरे क्षेत्रों में हाथ आजमा सकते हैं, पर एक क्षेत्र के महारथी होने में ब्रेकर की भूमिका न अदा करें।

प्रश्न :
1. बहुमुखी प्रतिभा क्या है? प्रतिभा से समस्या कब, कैसे हो जाती है?
2. बहुमुखी प्रतिभा बालों की किन कमियों की ओर संकेत है?
3. बहुमुखी प्रतिभागियों की पकड़ किन क्षेत्रों में होती है और उनकी असफलता की संभावना क्यों है?
4. ऐसे लोगों का स्वभाव कैसा होता है और वे प्रायः सफल क्यों नहीं हो पाते?
5. प्रबंधन के क्षेत्र में कैसे लोगों की आवश्यकता होती है? क्यों?
6. आशय स्पष्ट कीजिए-प्रतिभा किसी की मोहताज़ नहीं होती है।
उत्तर :
1. अनेक विषयों का ज्ञान होना बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न होना है। प्रतिभा से समस्या तब पैदा हो जाती है, जब एक प्रतिभा के बजाए दूसरी प्रतिभा हमारे भीतर खड़ी हो जाती है।

2. बहुमुखी प्रतिभा वाले लोग स्प र्धा से घबराते हैं, वे आलोचना से डरते हैं, वे सिर्फ अपनी प्रशंसा सुनना चाहते हैं, और उन्हें असफल होने की आशंका अधिक रहती है।

3. बहुमुखी प्रतिभागियों की पकड़ कई विषयों में होती है, किंतु एक विषय में स्पर्धा होने पर वे दूसरे की ओर भागते हैं, जिससे उनकी असफलता की संभावना अधिक हो जाती है क्योंकि वे टिक कर कोई काम नहीं कर पाते।

4. ऐसे लोगों का स्वभाव अस्थिर और चंचल होता है, जिसके कारण उनमें कई कार्य करने की तीव्र इच्छा होती है। इससे वे एक से दूसरे और फिर तीसरे क्षेत्र में हाथ आज़माने लगते हैं, परंतु एकाग्र भाव से किसी एक काम को नहीं करने से वे प्रायः किसी भी कार्य में सफल नहीं हो पाते।

5. प्रबंधन के क्षेत्र में ऐसे लोगों की आवश्यकता होती है जो किसी एक कार्य को मन लगाकर सही रूप से करते हैं क्योंकि इससे उनके सभी कार्य सफल हो जाते हैं।

6. इस कथन का आशय यह है कि प्रतिभा को किसी दूसरे के सहारे की आवश्यकता नहीं होती है। व्यक्ति के अंदर उसकी प्रतिभा छिपी रहती है, जिसे वह अपने परिश्रम और एकाग्र भाव से कार्य करते हुए निखारता है।

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13. महात्माओं और विद्वानों का सबसे बड़ा लक्षण है – आवाज़ को ध्यान से सुनना। यह आवाज़ कुछ भी हो सकती है। कौओं की कर्कश आवाज़ से लेकर नदियों की छलछल तक। मार्टिन लूथर किंग के भाषण से लेकर किसी पागल के बड़बड़ाने तक। अमूमन ऐसा होता नहीं। सच यह है कि हम सुनना चाहते ही नहीं। बस बोलना चाहते हैं। हमें लगता है कि इससे लोग हमें बेहतर तरीके से समझेंगे। हालांकि ऐसा होता नहीं।

हमें पता ही नहीं चलता और अधिक बोलने की कला हमें अनसुना करने की कला में पारंगत कर देती है। एक मनोवैज्ञानिक ने अपने अध्ययन में पाया कि जिन घरों के अभिभावक ज्यादा बोलते हैं, वहाँ बच्चों में सही-गलत से जुड़ा स्वाभाविक ज्ञान कम विकसित हो पाता है, क्योंकि ज्यादा बोलना बातों को विरोधाभासी तरीके से सामने रखता है और सामने वाला बस शब्दों के जाल में फंसकर रह जाता है।

बात औपचारिक हो या अनौपचारिक, दोनों स्थितियों में हम दूसरे की न सुन, बस हावी होने की कोशिश करते हैं। खुद ज्यादा बोलने और दूसरों को अनसुना करने से जाहिर होता है कि हम अपने बारे में ज्यादा सोचते हैं और दूसरों के बारे में कम। ज्यादा बोलने वालों के दुश्मनों की भी संख्या ज्यादा होती है। अगर आप नए दुश्मन बनाना चाहते हैं, तो अपने दोस्तों से ज्यादा बोलें और अगर आप नए दोस्त बनाना चाहते हैं, तो दुश्मनों से कम बोलें।

अमेरिका के सर्वाधिक चर्चित राष्ट्रपति रूजवेल्ट अपने माली तक के साथ कुछ समय बिताते और इस दौरान उनकी बातें ज्यादा सुनने की कोशिश करते। वह कहते थे कि लोगों को अनसुना करना अपनी लोकप्रियता के साथ खिलवाड़ करने जैसा है। इसका लाभ यह मिला कि ज्यादातर अमेरिकी नागरिक उनके सुख में सुखी होते, और दुख में दुखी।

प्रश्न :
1. अनसुना करने की कला क्यों विकसित होती है?
2. अधिक बोलने वाले अभिभावकों का बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है और क्यों?
3. रूजवेल्ट की लोकप्रियता का क्या कारण बताया गया है?
4. तर्कसम्मत टिप्पणी कीजिए- “हम सुनना चाहते ही नहीं”
5. अनुच्छेद का मूल भाव तीन-चार वाक्यों में लिखिए।
उत्तर :
1. अनसुना करने की कला इसलिए विकसित होती है क्योंकि हम किसी की सुनना नहीं चाहते और सिर्फ बोलना चाहते हैं। हमारे अधिक बोलने तथा किसी की नहीं सुनने से अनसुना करने की कला विकसित होती है।

2. अधिक बोलने वाले अभिभावकों के बच्चों में सही-गलत से जुड़ा स्वाभाविक ज्ञान सही रूप से विकसित नहीं हो पाता क्योंकि अभिभावकों का ज्यादा बोलना बातों को विरोधाभासी तरीके से प्रस्तुत करता है, जिससे बच्चे शब्दों के जाल में फँस कर रह जाते हैं।

3. रूजवेल्ट की लोकप्रियता का यह कारण बताया गया है कि वे लोगों की अधिक सुनते थे। वे किसी को अनसुना नहीं करते थे।

4. इस कथन का आशय यह है कि हम सदा अपनी बात को ही कहना चाहते हैं तथा दूसरे की बिलकुल भी नहीं सुनते क्योंकि हमें अपनी बात कहते रहने से ही आत्मसंतोष मिलता है।

5. आजकल अधिकांश लोग अपनी सुनाना चाहते हैं, दूसरे की सुनते नहीं हैं। इस प्रकार दूसरों को अनसुना करने से हम अपने अनेक दुश्मन बना लेते हैं और हमारी लोकप्रियता में कमी आती है, इसलिए अपनी लोकप्रियता बनाए रखने के लिए हमें दूसरों की भी सुननी चाहिए।

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14. चरित्र का मूल भी भावों के विशेष प्रकार के संगठन में ही समझना चाहिए। लोकरक्षा और लोक-रंजन की सारी व्यवस्था का ढाँचा इन्हीं पर ठहराया गया है। धर्म-शासन, राज-शासन, मत-शासन सबमें इनसे पूरा काम लिया गया है। इनका सदुपयोग भी हुआ है और दुरुपयोग भी। जिस प्रकार लोक-कल्याण के व्यापक उद्देश्य की सिद्धि के लिए मनुष्य के मनोविकार काम में लाए गए हैं उसी प्रकार संप्रदाय या संस्था के संकुचित और परिमित विधान की सफलता के लिए भी।

सब प्रकार के शासन में चाहे धर्म-शासन हो, चाहे राज-शासन, मनुष्य-जाति से भय और लोभ से पूरा काम लिया गया है। दंड का भय और अनुग्रह का लोभ दिखाते हुए राज-शासन तथा नरक का भय और स्वर्ग का लोभ दिखाते हुए धर्म-शासन और मत-शासन चलते आ रहे हैं। इसके द्वारा भय और लोभ का प्रवर्तन सीमा के बाहर भी प्रायः हुआ है और होता रहता है।

जिस प्रकार शासक-वर्ग अपनी रक्षा और स्वार्थसिद्धि के लिए भी इनसे काम लेते आए हैं उसी प्रकार धर्म-प्रवर्तक और आचार्य अपने स्वरूप वैचित्र्य की रक्षा और अपने प्रभाव की प्रतिष्ठा के लिए भी। शासक वर्ग अपने अन्याय और अत्याचार के विरोध की शान्ति के लिए भी डराते और ललचाते आए हैं। मत-प्रवर्तक अपने द्वेष और संकुचित विचारों के प्रचार के लिए भी कँपाते और डराते आए हैं। एक जाति को मूर्ति-पूजा करते देख दूसरी जाति के मत-प्रवर्तकों ने उसे पापों में गिना है। एक संप्रदाय का भस्म और रुद्राक्ष धारण करते देख दूसरे संप्रदाय के प्रचारकों ने उनके दर्शन तक को पाप माना है।

प्रश्न :
1. लोक-रंजन की व्यवस्था का ढाँचा किस पर आधारित है? तथा इसका उपयोग कहाँ किया गया है?
2. दंड का भय और अनुग्रह का लोभ किसने और क्यों दिखाया है?
3. धर्म-प्रवर्तकों ने स्वर्ग-नरक का भय और लोभ क्यों दिखाया है?
4. शासन व्यवस्था किन कारणों से भय और लालच का सहारा लेती है?
5. प्रतिष्ठा और लोभ शब्दों के समानार्थक शब्द लिखिए।
उत्तर :
1. लोक-रंजन की व्यवस्था का ढाँचा चरित्र के मूल भावों के विशेष प्रकार के संगठन पर आधारित है तथा इसका उपयोग धर्म-शासन, राज-शासन तथा मत-शासन में किया गया है।
2. दंड का भय और अनुग्रह का लोभ राज-शासन ने दिखाया है, जिससे उनके स्वार्थ सिद्ध हो सकें और वे अपनी रक्षा कर सकें।
3. धर्म-प्रवर्तकों ने स्वर्ग-नरक का लोभ और भय अपने स्वरूप वैचित्र्य की रक्षा और अपने प्रभाव की प्रतिष्ठा के लिए दिखाया है।
4. शासन व्यवस्था अपने अन्याय और अत्याचार के विरोध की शांति के लिए भय और लालच का सहारा लेती है।
5. प्रतिष्ठा = कीर्ति, प्रसिद्धि। लोभ = लालच, लिप्सा।

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15. पता नहीं क्यों, उनकी नौकरी लंबी नहीं चलती थी। मगर इससे वह न तो परेशान होते, न आतंकित, और न ही कभी निराशा उनके दिमाग में आती। यह बात उनके दिमाग में आई कि उन्हें अब नौकरी के चक्कर में रहने की बजाए अपना काम शुरू करना चाहिए। नई ऊँचाई तक पहुँचने का उन्हें यही रास्ता दिखाई दिया। सत्य है, जो बड़ा सोचता है, वही एक दिन बड़ा करके भी दिखाता है और आज इसी सोच के कारण उनकी गिनती बड़े व्यक्तियों में होती है। हम अक्सर इंसान के छोटे-बड़े होने की बातें करते हैं, पर दरअसल इंसान की सोच ही उसे छोटा या बड़ा बनाती है।

स्वेट मार्डेन अपनी पुस्तक ‘बड़ी सोच का बड़ा कमाल’ में लिखते हैं कि यदि आप दरिद्रता की सोच को ही अपने मन में स्थान दिए रहेंगे, तो आप कभी धनी नहीं बन सकते, लेकिन यदि आप अपने मन में अच्छे विचारों को ही स्थान देंगे और दरिद्रता, नीचता आदि कुविचारों की ओर से मुँह मोड़े रहेंगे और उनको अपने मन में कोई स्थान नहीं देंगे, तो आपकी उन्नति होती जाएगी और समृद्धि के भवन में आप आसानी से प्रवेश कर सकेंगे। भारतीय चिंतन में ऋषियों ने ईश्वर के संकल्प मात्र से सृष्टि रचना को स्वीकार किया है और यह संकेत दिया है कि व्यक्ति जैसा बनना चाहता है, वैसा बार-बार सोचे।

व्यक्ति जैसा सोचता है, वह वैसा ही बन जाता है।’ सफलता की ऊँचाइयों को छूने वाले व्यक्तियों का मानना है कि सफलता उनके मस्तिष्क से नहीं, अपितु उनकी सोच से निकलती है। व्यक्ति में सोच की एक ऐसी जादुई शक्ति है कि यदि वह उसका उचित प्रयोग करे, तो कहाँ से कहाँ पहुँच सकता है। इसलिए सदैव बड़ा सोचें, बड़ा सोचने से बड़ी उपलब्धियाँ हासिल होंगी, फायदे बड़े होंगे और देखते-देखते आप अपनी बड़ी सोच द्वारा बड़े आदमी बन जाएँगे। इसके लिए हैजलिट कहते हैं-महान सोच जब कार्यरूप में परिणत हो जाती है, तब वह महान कृति बन जाती है।

प्रश्न :
1. गद्यांश में किस प्रकार के व्यक्ति के बारे में चर्चा की गई है। ऐसे व्यक्ति ऊँचाई तक पहुँचने का क्या उपाय अपनाते हैं?
2. गद्यांश में समृद्धि और उन्नति के लिए क्या सुझाव दिए गए हैं?
3. भारतीय विचारधारा में संकल्प और चिंतन का क्या महत्त्व है?
4. गद्यांश में किस जादुई शक्ति की बात की गई है? उसके क्या परिणाम हो सकते हैं?
5. ‘सफलता’ और आतंकित’ शब्द में प्रयुक्त उपसर्ग और प्रत्यय का उल्लेख कीजिए।
6. गद्यांश से दो मुहावरे चुनकर उनका वाक्य प्रयोग कीजिए।
उत्तर :
1. इस गद्यांश में बड़ा बनने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति के बारे में चर्चा की गई है। ऐसे व्यक्ति ऊँचाई तक पहुँचने के लिए बड़ा सोचते हैं और एक दिन बड़ा करके भी दिखाते हैं।
2. समृद्धि और उन्नति के लिए मन में दरिद्रता की सोच के स्थान पर अच्छे विचारों को स्थान देना होगा। इससे दरिद्रता, नीचता, कुविचार दूर हो जाएंगे और उन्नति तथा समृद्धि का जीवन में प्रवेश हो जाएगा।
3. भारतीय विचारधारा में संकल्प और चिंतन का बहुत महत्त्व है क्योंकि व्यक्ति जैसा सोचता है, वह वैसा ही बन जाता है। संकल्प करने से लक्ष्य की प्राप्ति हो जाती है।
4. गद्यांश में व्यक्ति की सोच को जादुई शक्ति बताया गया है क्योंकि अपनी सोच का उचित प्रयोग करने से व्यक्ति कहीं से कहीं पहुँच सकता है। सही सोच व्यक्ति को बड़ा बना देती है और उसके लिए उन्नति के मार्ग खोल देती है।
5. सफलता = ‘स’ उपसर्ग, ‘ता’ प्रत्यय, स + फल + ता।
आतंकित = ‘इत’ प्रत्यय, आतंक + इत।
6. लंबी चलना = नरेश की बीमारी ठीक होने के स्थान पर लंबी चलती जा रही है।
चक्कर में रहना = बुरी संगत के चक्कर में रहकर हरभजन सिंह ने अपनी सेहत ही खराब कर दी है।

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16. हँसी भीतरी आनंद का बाहरी चिह्न है। जीवन की सबसे प्यारी और उत्तम से उत्तम वस्तु एक बार हँस लेना तथा शरीर को अच्छा रखने की अच्छी से अच्छी दवा एक बार खिलखिला उठना है। पुराने लोग कह गए हैं कि हँसो और पेट फुलाओ। हँसी कितने ही कला-कौशलों से भली है। जितना ही अधिक आनंद से हँसोगे उतनी ही आयु बढ़ेगी। एक यूनानी विद्वान कहता है कि सदा अपने कर्मों पर खीझने वाला हेरीक्लेस बहुत कम जिया, पर प्रसन्न मन डेमाक्रीट्स 109 वर्ष तक जिया। हँसी-खुशी का नाम जीवन है। जो राते हैं। उनका जीवन व्यर्थ है। कवि कहता है-‘जिंदगी जिंदादिली का नाम है, मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं। मनुष्य के शरीर के वर्णन पर एक विलायती विद्वान ने पुस्तक लिखी है। उसमें वह कहता है कि उत्तम सुअवसर की हँसी उदास-से-उदास मनुष्य के चित्त को प्रफुल्लित कर देती है। आनंद एक ऐसा प्रबल इंजन है। कि उससे शोक और दुख की दीवारों को ढा सकते हैं। प्राण रक्षा के लिए सदा सब देशों में उत्तम-से-उत्तम उपाय मनुष्य के चित्त को प्रसन्न रखना है। सुयोग्य वैद्य अपने रोगी के कानों में आनंदरूपी मंत्र सुनाता है। एक अंग्रेज़ डॉक्टर कहता है कि किसी नगर में दवाई लदे हुए बीस गधे ले जाने से एक हँसोड़ आदमी को ले जाना अधिक लाभकारी है।

प्रश्न :
1. हँसी भीतरी आनंद को कैसे प्रकट करती है?
2. पुराने समय में लोगों ने हँसी को महत्तव क्यों दिया?
3. हँसी को एक शक्तिशाली इंजन के समान क्यों कहा गया है?
4. हेरीक्लेस और डेमाक्रीट्स के उदाहरण से लेखक क्या स्पष्ट करना चाहता है?
5. गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
1. हँसी भीतरी आनंद को अपने प्रसन्नता के भावों से प्रकट करती है और व्यक्ति स्वस्थ रहता है।
2. पुराने समय के लोगों ने हँसी को महत्त्व दिया है क्योंकि इससे मनुष्य की आयु बढ़ती है और वह निरोग रहता है।
3. हँसी से जिस आनंद की प्राप्ति होती है उससे मनुष्य अपने दुखों और शोक से मुक्त हो जाता है।
4. इनके उदाहरणों से लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि सदा खीझने वाले व्यक्ति की आयु कम होती है परन्तु सदा हँसने वाले की आयु लम्बी होती है।
5. हँसी का महत्त्व।

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17. आदमियों की तिजारत करना मूरों का काम है। सोने और लोहे के बदले मनुष्य को बेचना मना है। आजकल आप की कलों का दाम तो हजारों रुपया है; परन्तु मनुष्य कौड़ी के सौ-सौ बिकते हैं। सोने और चाँदी की प्राप्ति से जीवन का आनंद नहीं मिल सकता। सच्चा आनंद तो मुझे मेरे काम से मिलता है। मुझे अपना काम मिल जाए तो फिर स्वर्ग प्राप्ति की इच्छा नहीं, मनुष्य-पूजा ही सच्ची ईश्वर-पूजा है। आज से हम अपने ईश्वर की तलाश किसी वस्तु, स्थान या तीर्थ में नहीं करेंगे।

अब तो यही इरादा है कि मनुष्य की अनमोल आत्मा में ईश्वर के दर्शन करेंगे यही आर्ट है-यही धर्म है। मनुष्य के हाथ से ही ईश्वर के दर्शन कराने वाले निकलते हैं। बिना काम, बिना मजदूरी, बिना हाथ के कला-कौशल के विचार और चिंतन किस काम के! जिन देशों में हाथ और मुँह पर मज़दूरी की धूल नहीं पड़ने पाती वे धर्म और कला-कौशल में कभी उन्नति नहीं कर सकते।

पद्मासन निकम्मे सिद्ध हो चुके हैं। वही आसन ईश्वर-प्राप्ति करा सकते हैं जिनसे जोतने, बोने, काटने और मजदूरी का काम लिया जाता है। लकड़ी, ईंट और पत्थर को मूर्तिमान करने वाले लुहार, बढ़ई, मेमार तथा किसान आदि वैसे ही पुरुष हैं जैसे कवि, महात्मा और योगी आदि। उत्तम से उत्तम और नीच से नीच काम, सबके सब प्रेमरूपी शरीर के अंग हैं।

प्रश्न :
1. आदमियों की तिजारत से आप क्या समझते हैं?
2. मनुष्य-पूजा को ही सच्ची ईश्वर-पूजा क्यों कहाँ गया है?
3. लेखक के अनुसार धर्म क्या है?
4. लुहार, बढ़ई और किसान की तुलना कवि, महात्मा और योगी से क्यों की गई है?
5. लेखक को सच्चा आनंद किससे मिलता है?
6. गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
1. आदमियों को किसी वस्तु के बदले बेचना, उन्हें खरीदकर अपना गुलाम बनाना आदमियों की तिजारत करना है।
2. मनुष्य-पूजा को ही सच्ची ईश्वर-पूजा इसलिए कहा गया है क्योंकि मनुष्य द्वारा सच्चे मन से किए गए अपने कार्य ही ईश्वर-पूजा के समान होते हैं। अपने कर्म के प्रति समर्पण ही सच्ची पूजा है।
3. लेखक के अनुसार कर्म के प्रति समर्पित मनुष्य की अनमोल आत्मा में ईश्वर के दर्शन करना ही सच्चा धर्म है। ईश्वर को विभिन्न धर्मस्थानों में देखने का आडंबर नहीं करना चाहिए।
4. क्योंकि लुहार, बढ़ई और किसान सृजन करने वाले होते हैं। वे अपने अथक परिश्रम से लकड़ी, ईंट, पत्थर, लोहे, मिट्टी आदि को मूर्तिमान कर देते हैं। इसमें उनकी त्याग, श्रम तथा शक्ति लगी रहती है।
5. सच्चा आनंद अपना कर्म करने से मिलता है।
6. कर्म में ईश्वर है।

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18. साहस की जिंदगी सबसे बड़ी जिंदगी है। ऐसी जिंदगी की सबसे बड़ी पहचान यह है कि वह बिलकुल निडर, बिल्कुल बेखौफ़ होती है। साहसी मनुष्य की पहली पहचान यह है कि वह इस बात की चिंता नहीं करता कि तमाशा देखने वाले लोग उसके बारे में क्या सोच रहे हैं। जनमत की उपेक्षा करके जीने वाला व्यक्ति दुनिया की असली ताकत होता है और मनुष्य को प्रकाश भी उसी आदमी से मिलता है। अड़ोस-पड़ोस को देखकर चलना यह साधारण जीव का काम है। क्रांति करने वाले लोग अपने उद्देश्य की तुलना न तो पड़ोसी के उद्देश्य से करते हैं और न अपनी चाल को ही पड़ोसी की चाल देखकर मद्धम बनाते हैं।

1. साहस की जिंदगी की पहचान क्या है?
(क) निडर होती है।
(ख) दुखभरी होती है।
(ग) खुशहाल होती है।
(घ) उधार की होती है।
उत्तर :
(क) निडर होती है

2. दुनिया की असली ताकत कौन होता है?
(क) दूसरों का अनुसरण करने वाला
(ख) जनमत की उपेक्षा करके जीने वाला
(ग) डरपोक व्यक्ति
(घ) निडर व्यक्ति
उत्तर :
(ख) जनमत की उपेक्षा करके जीने वाला

3. गद्यांश का उचित शीर्षक है
(क) साहस की जिंदगी
(ख) अड़ोस-पड़ोस
(ग) जनमत
(घ) साहस
उत्तर :
(क) साहस की जिंदगी

4. अड़ोस-पड़ोस को देखकर चलना किसका काम है?
(क) सामाजिक व्यक्ति का
(ख) असामाजिक व्यक्ति का
(ग) कामचोर व्यक्ति का
(घ) साधारण व्यक्ति का
उत्तर :
(घ) साधारण व्यक्ति का

5. क्रांति करने वाले लोग क्या नहीं करते?
(क) अपनी तुलना दूसरों से
(ख) अपनी उपेक्षा
(ग) दूसरों की उपेक्षा
(घ) किसी की भी उपेक्षा
उत्तर :
(क) अपनी तुलना दूसरों से

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19. आपका जीवन एक संग्राम-स्थल है जिसमें आपको विजयी बनना है। महान जीवन के रथ के पहिए फूलों से भरे नंदन वन से नहीं गुज़रते, कंटकों से भरे बीहड़ पथ पर चलते हैं। आपको ऐसे ही महान जीवन पथ का सारथि बनकर अपनी यात्रा को पूरा करना है। जब तक आपके पास आत्म विश्वास का दुर्जय शस्त्र नहीं है, न तो आप जीवन की ललकार का सामना कर सकते हैं, न जीवन संग्राम में विजय प्राप्त कर सकते हैं और न महान जीवन के सोपानों पर चढ़ सकते हैं। जीवन पथ पर आप आगे बढ़ रहे हैं, दुख और निराशा की काली घटाएँ आपके मार्ग पर छा रही हैं, आपत्तियों का अंधकार मुँह फैलाए आपकी प्रगति को निगलने के लिए बढ़ा चला आ रहा है, लेकिन आपके हृदय में आत्म-विश्वास की दृढ़ ज्योति जगमगा रही है तो इस दुख एवं निराशा का कुहरा उसी प्रकार कट जाएगा जिस प्रकार सूर्य की किरणों के फूटते ही अंधकार भाग जाता है।

1. महान जीवन के रथ किस रास्ते से गुजरते हैं?
(क) काँटों से भरे रास्तों से
(ख) नंदन वन से
(ग) नदियों से
(घ) आसान रास्तों से
उत्तर :
(क) काँटों से भरे रास्तों से

2. आप किस शस्त्र के द्वारा जीवन के कष्टों का सामना कर सकते हैं?
(क) आत्म-रक्षा के शस्त्र से
(ख) आत्म-विश्वास के शस्त्र से
(ग) क्रोध के शस्त्र से
(घ) अभिमान के शस्त्र से
उत्तर :
(ख) आत्म-विश्वास के शस्त्र से

3. जीवन-पथ पर हमारा सामना किनसे होता है?
(क) खुशियों से
(ख) शत्रुओं से
(ग) निराशाओं और आपत्तियों से
(घ) आशाओं से
उत्तर :
(क) निराशाओं और आपत्तियों से

4. गद्यांश का उचित शीर्षक है
(क) आत्म-विश्वास
(ख) आत्मा की शांति
(ग) आत्म-रक्षा
(घ) परोपकार
उत्तर :
(क) आत्म-विश्वास

5. जीवन क्या है?
(क) परीक्षा
(ख) संग्राम-स्थल
(ग) दंड
(घ) कसौटी
उत्तर :
(ख) संग्राम-स्थल

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20. विद्यार्थी का अहंकार आवश्यकता से अधिक बढ़ता जा रहा है और दूसरा उसका ध्यान अधिकार पाने में है, अपना कर्तव्य पूरा करने में नहीं। अहं बुरी चीज़ कही जा सकती है। यह सब में होता है और एक सीमा तक आवश्यक भी है किंतु आज के विद्यार्थियों में यह इतना बढ़ गया है कि विनय के गुण उनमें नाम मात्र के नहीं रह गए हैं। गुरुजनों या बड़ों की बात का विरोध करना उनके जीवन का अंग बन गया है। इन्हीं बातों के कारण विद्यार्थी अपने अधिकारों के बहुत अधिकारी नहीं हैं। उसे भी वह अपना समझने लगे हैं। अधिकार और कर्तव्य दोनों एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। स्वस्थ स्थिति वही कही जा सकती है जब दोनों का संतुलन हो। आज का विद्यार्थी अधिकार के प्रति सजग है परंतु वह अपने कर्तव्यों की ओर से विमुख हो गया है। एक सीमा की अति का दूसरे पर भी असर पड़ता है।

1. आधुनिक विद्यार्थियों में किसकी कमी होती जा रही है?
(क) अहंकार की
(ख) नम्रता की
(ग) जागरूकता की
(घ) अहं की
उत्तर :
(ख) नम्रता की

2. विद्यार्थी प्रायः किसका विरोध करते हैं?
(क) अपने मित्रों का
(ख) अपने गुरुजनों या अपने से बड़ों की बातों का
(ग) अपने माता-पिता का
(घ) अध्यापकों का
उत्तर :
(ख) अपने गुरुजनों या अपने से बड़ों की बातों को

3. विद्यार्थी में किसके प्रति सजगता अधिक है?
(क) अपने अधिकारों और माँगों के प्रति
(ख) अपनी चीज़ों के प्रति
(ग) अपने भविष्य के प्रति
(घ) अपने सम्मान के प्रति
उत्तर :
(क) अपने अधिकारों और माँगों के प्रति

4. गद्यांश का उचित शीर्षक है
(क) विद्यार्थी जीवन
(ख) विद्यार्थी और अहंकार
(ग) अहंकार
(घ) अधिकार और माँग
उत्तर :
(ख) विद्यार्थी और अहंकार

5. अधिकार किससे जुड़ा है?
(क) अहंकार
(ख) गुणों से
(ग) माँग से
(घ) कर्तव्य से
उत्तर :
(घ) कर्तव्य से

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21. प्यासा आदमी कुएँ के पास जाता है, यह बात निर्विवाद है। परंतु सत्संगति के लिए यह आवश्यक नहीं कि आप सज्जनों के पास जाएँ और उनकी संगति प्राप्त करें। घर बैठे-बैठे भी आप सत्संगति का आनंद लूट सकते हैं। यह बात पुस्तकों द्वारा संभव है। हर कलाकार और लेखक को जन-साधारण से एक विशेष बुद्धि मिली है। इस बुद्धि का नाम प्रतिभा है। पुस्तक निर्माता अपनी प्रतिभा के बल से जीवन भर से संचित ज्ञान को पुस्तक के रूप में उड़ेल देता है। जब हम घर की चारदीवारी में बैठकर किसी पुस्तक का अध्ययन करते हैं तब हम एक अनुभवी और ज्ञानी सज्जन की संगति में बैठकर ज्ञान प्राप्त करते हैं। नित्य नई पुस्तक का अध्ययन हमें नित्य नए सज्जन की संगति दिलाता है। इसलिए विद्वानों ने स्वाध्याय को विशेष महत्व दिया है। घर बैठे-बैठे सत्संगति दिलाना पुस्तकों की सर्वश्रेष्ठ उपयोगिता है।

1. कौन कुएँ के पास जाता है?
(क) प्यासा आदमी
(ख) भूखा आदमी
(ग) धनी आदमी
(घ) निर्धन आदमी
उत्तर :
(क) प्यासा आदमी

2. घर बैठे-बैठे सत्संगति का लाभ किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है?
(क) टी०वी० देखने से
(ख) कीर्तन करने से
(ग) बात करने से
(घ) पुस्तकों का अध्ययन करने से
उत्तर :
(घ) पुस्तकों का अध्ययन करने से

3. पुस्तकों की सर्वश्रेष्ठ उपयोगिता क्या है?
(क) लिखित रूप में होना
(ख) घर बैठे-बैठे लोगों को सत्संगति का लाभ दिलाना
(ग) पढ़े-लिखे लोगों द्वारा उपयोग किया जाना
(घ) चित्रयुक्त होना
उत्तर :
(ख) घर बैठे-बैठे लोगों को सत्संगति का लाभ दिलाना

4. गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(क) पुस्तकों का लाभ
(ख) संगति
(ग) स्वाध्याय की उपयोगिता
(घ) अनुभव व ज्ञान
उत्तर :
(ग) स्वाध्याय की उपयोगिता

5. विद्वानों ने किसे विशेष महत्व दिया है?
(क) पुस्तकों को
(ख) स्वास्थ्य को
(ग) स्वाध्याय को
(घ) सत्संगति को
उत्तर :
(ग) स्वाध्याय को

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22. संसार में धर्म की दुहाई सभी देते हैं। पर कितने लोग ऐसे हैं, जो धर्म के वास्तविक स्वरूप को पहचानते हैं। धर्म कोई बुरी चीज़ नहीं है। धर्म ही एक ऐसी विशेषता है, जो मनुष्य को पशुओं से भिन्न करती है। अन्यथा मनुष्य और पशु में अंतर ही क्या है। उस धर्म को समझने की आवश्यकता है। धर्म में त्याग की महत्ता है। इस त्याग और कर्तव्यपरायणता में ही धर्म का वास्तविक स्वरूप निहित है। त्याग परिवार के लिए, ग्राम के लिए, नगर के लिए, देश के लिए और मानव-मात्र के लिए भी हो सकता है।

परिवार से मनुष्य मात्र तक पहुँचते-पहुँचते हम एक संकुचित घेरे से निकलकर विशाल परिधि में घूमने लगते हैं। यही वह क्षेत्र है, जहाँ देश और जाति की सभी दीवारें गिर कर चूर-चूर हो जाती हैं। मनुष्य संसार भर को अपना परिवार और अपने आपको उसका सदस्य समझने लगता है। भावना के इस विस्तार ने ही धर्म का वास्तविक स्वरूप दिया है जिसे कोई निर्मल हृदय संत ही पहचान सकता है।

1. संसार में सब किसकी दुहाई देते हैं?
(क) दया की
(ख) अधर्म की
(ग) धर्म की
(घ) धन की
उत्तर :
(ग) धर्म की

2. धर्म की प्रमुख उपयोगिता क्या है?
(क) धर्म मनुष्य को विवेक और त्याग की भावना प्रदान करता है।
(ख) धर्म मनुष्य को आस्तिक बनाता है।
(ग) धर्म मनुष्य को धनी बनाता है।
(घ) धर्म मनुष्य को न्यायप्रिय बनाता है।
उत्तर :
(क) धर्म मनुष्य को विवेक और त्याग की भावना प्रदान करता है।

3. धर्म का वास्तविक रूप किसमें निहित है?
(क) आस्था में
(ख) त्याग और कर्तव्यपरायणता में
(ग) अधिकार ने
(घ) मोह-माया में
उत्तर :
(ख) त्याग और कर्तव्यपरायणता में

4. धर्म का वास्तविक रूप कौन पहचान सकता है?
(क) धर्मात्मा
(ख) दानवीर व्यक्ति
(ग) निर्मल हृदय संत
(घ) धनी व्यक्ति
उत्तर :
(ग) निर्मल हृदय संत

5. उचित शीर्षक है –
(क) धर्म का वास्तविक स्वरूप
(ख) धर्म-अधर्म
(ग) त्याग
(घ) कर्तव्यपरायणता
उत्तर :
(क) धर्म का वास्तविक स्वरूप

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23. आधुनिक मानव समाज में एक ओर विज्ञान को भी चकित कर देने वाली उपलब्धियों से निरंतर सभ्यता का विकास हो रहा है तो दूसरी ओर मानव मूल्यों का ह्रास होने से समस्या उत्तरोत्तर गूढ होती जा रही है। अनेक सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का शिकार आज का मनुष्य विवेक और ईमानदारी का त्याग कर भौतिक स्तर से ऊँचा उठने का प्रयत्न कर रहा है। वह सफलता पाने की लालसा में उचित और अनुचित की चिंता नहीं करता। उसे तो बस साध्य को पाने की प्रबल इच्छा रहती है।

ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए भयंकर अपराध करने में भी संकोच नहीं करता। वह इनके नित नए-नए रूपों की खोज करने में अपनी बुद्धि का अपव्यय कर रहा है। आज हमारे सामने यह प्रमुख समस्या है कि इस अपराध वृद्धि पर किस प्रकार रोक लगाई जाए। सदाचार, कर्तव्यपरायणता, त्याग आदि नैतिक मूल्यों को तिलांजलि देकर समाज के सुख की कामना करना स्वप्न मात्र है।

1. मानव जीवन में समस्याएँ निरंतर क्यों बढ़ रही हैं?
(क) आधुनिकता के कारण
(ख) अज्ञानता के कारण
(ग) विवेक, ईमानदारी की कमी के कारण
(घ) विकास के कारण
उत्तर :
(ग) विवेक, ईमानदारी की कमी के कारण

2. आज का मानव सफलता प्राप्त करने के लिए क्या कर रहा है जो उसे नहीं करना चाहिए?
(क) तकनीक का विकास
(ख) विवेक का प्रयोग
(ग) व्यापार का विस्तार
(घ) अविवेकशील अनुचित कार्य
उत्तर :
(घ) अविवेकशील अनुचित कार्य

3. किन जीवन-मूल्यों के द्वारा सुख की कामना की जा सकती है?
(क) सेवकाई
(ख) वीरता
(ग) दानवीरता
(घ) सदाचार, कर्तव्यपराणता, त्याग आदि
उत्तर :
(घ) सदाचार, कर्तव्यपराणता, त्याग आदि

4. ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए आज का मनुष्य क्या कर रहा है?
(क) अपराध
(ख) व्यापार
(ग) संदिग्ध कार्य
(घ) नौकरी
उत्तर :
(क) अपराध

5. गद्यांश का उचित शीर्षक है –
(क) विवेक की आवश्यकता
(ख) आधुनिक जीवन में नैतिक मूल्यों की आवश्यकता
(ग) कर्तव्यपरायणता
(घ) त्याग व बलिदान
उत्तर :
(ख) आधुनिक जीवन में नैतिक मूल्यों की आवश्यकता

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24. कर लेखक का काम बहुत अंशों में मधु-मक्खियों के काम से मिलता है। मधु-मक्ख्यिाँ मकरंद संग्रह करने के लिए कोसों के चक्कर लगाती हैं और अच्छे-अच्छे फूलों पर बैठकर उनका रस लेती हैं। तभी तो उनके मधु में संसार की सर्वश्रेष्ठ मधुरता रहती है। यदि आप अच्छे लेखक बनना चाहते हैं तो आपको भी यही वत्ति ग्रहण करनी चाहिए। अच्छे-अच्छे ग्रंथों का खब अध्ययन करना चाहिए और उनकी बातों का मनन करना चाहिए फिर आपकी रचनाओं में से मधु का-सा माधुर्य आने लगेगा।

कोई अच्छी उक्ति, कोई अच्छा विचार भले ही दूसरों से ग्रहण किया गया हो, पर यदि यथेष्ठ मनन करके आप उसे अपनी रचना में स्थान देंगे तो वह आपका ही हो जाएगा। मननपूर्वक लिखी गई चीज़ के संबंध में जल्दी किसी को यह कहने का साहस नहीं होगा कि यह अमुक स्थान से ली गई है या उच्छिष्ट है। जो बात आप अच्छी तरह आत्मसात कर लेंगे, वह फिर आपकी हो ही जाएगी।

1. लेखक का काम किससे मिलता है?
(क) तितलियों के काम से
(ख) चींटियों के काम से
(ग) मधुमक्खियों के काम से
(घ) टिड्डों के काम से
उत्तर :
(ग) मधुमक्खियों के काम से

2. मधुमक्खियाँ किसका संग्रह करती हैं?
(क) शहद का
(ख) मकरंद का
(ग) पानी का
(घ) छत्ते का
उत्तर :
(ख) मकरंद का

3. संसार की सर्वश्रेष्ठ मधुरता किसमें होती है?
(क) गन्ने के रस में
(ख) चीनी में
(ग) शहद में
(घ) गुड़ में
उत्तर :
(ग) शहद में

4. कौन-सी बात आपकी अपनी हो जाती है?
(क) जिस बात का अच्छी तरह से आत्मसात किया जाए।
(ख) जो बात लिखी जाए।
(ग) जो बात पढ़ी जाए।
(घ) जो बात बोली जाए।
उत्तर :
(क) जिस बात का अच्छी तरह से आत्मसात किया जाए

5. गद्यांश का उचित शीर्षक है –
(क) मुधुमक्खी का काम
(ख) मकरंद
(ग) श्रेष्ठ लेखक की मौलिकता
(घ) मधु का-सा माधुर्य
उत्तर :
(ग) श्रेष्ठ लेखक की मौलिकता

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25. सहयोग एक प्राकृतिक नियम है, यह कोई बनावटी तत्व नहीं है। प्रत्येक पदार्थ, प्रत्येक व्यक्ति का काम आंतरिक सहयोग पर अवलंबित है। किसी मशीन का उसके पुर्जे के साथ संबंध है। यदि उसका एक भी पुर्जा खराब हो जाता है तो वह मशीन चल नहीं सकती। किसी शरीर का उसके आँख, कान, हाथ, पाँव आदि पोषण करते हैं। किसी अंग पर चोट आती है, मन एकदम वहाँ पहुँच जाता है।

पहले क्षण आँख देखती है, दूसरे क्षण हाथ सहायता के लिए पहुँच जाता है। इसी तरह समाज और व्यक्ति का संबंध है। समाज शरीर है तो व्यक्ति उसका अंग है। जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अंग परस्पर सहयोग करते हैं उसी तरह समाज के विकास के लिए व्यक्तियों का आपसी सहयोग अनिवार्य है। शरीर को पूर्णता अंगों के सहयोग से मिलती है। समाज को पूर्णता व्यक्तियों के सहयोग से मिलती है। प्रत्येक व्यक्ति, जो जहाँ पर भी है, अपना काम ईमानदारी और लगन से करता रहे, तो समाज फलता-फूलता है।

1. सहयोग क्या है?
(क) बनावटी तत्व
(ख) धर्म
(ग) ईमान
(घ) प्राकृतिक नियम
उत्तर :
(घ) प्राकृतिक नियम

2. समाज कैसे फलता-फूलता है?
(क) धन से
(ख) कर्म से
(ग) व्यक्तियों के आपसी सहयोग से
(घ) रीति-रिवाजों से
उत्तर :
(ग) व्यक्तियों के आपसी सहयोग से

3. समाज और व्यक्ति का क्या संबंध है?
(क) समाज रूपी शरीर का व्यक्ति एक अंग है।
(ख) व्यक्ति से समाज है।
(ग) समाज घर, व्यक्ति कमरा है
(घ) समाज से व्यक्ति है।
उत्तर :
(क) समाज रूपी शरीर का व्यक्ति एक अंग है।

4. शरीर को पूर्णता कैसे मिलती है?
(क) समाज से
(ख) भोजन से
(ग) अंगों से
(घ) कार्य से
उत्तर :
(ग) अंगों से

5. उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है –
(क) समाज
(ख) सहयोग
(ग) विकास
(घ) शरीर और अंग
उत्तर :
(ख) सहयोग

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26. शिक्षा विविध जानकारियों का ढेर नहीं है, जो तुम्हारे मस्तिष्क में ठूस दिया जाता है और आत्मसात् हुए बिना वहाँ आजन्म पड़ा रहकर गड़बड़ मचाया करता है। हमें उन विचारों की अनुभूति कर लेने की आवश्यकता है जो जीवन-निर्माण, मनुष्य-निर्माण तथा चरित्र-निर्माण में सहायक हों। यदि आप केवल पाँच ही परखे हुए विचार आत्मसात कर उनके अनुसार अपने जीवन और चरित्र का निर्माण कर लेते हैं तो पूरे ग्रंथालय को कंठस्थ करने वाले की अपेक्षा अधिक शिक्षित हैं। शिक्षा और आचरण अन्योन्याश्रित हैं। बिना आचरण के शिक्षा अधूरी है और बिना शिक्षा के आचरण और अंततोगत्वा ये दोनों ही अनुशासन के ही भिन्न रूप हैं।

1. जीवन-निर्माण, मनुष्य निर्माण और चरित्र निर्माण में क्या सहायक है?
(क) धर्म
(ख) जाति
(ग) धन
(घ) शिक्षा
उत्तर :
(घ) शिक्षा

2. शिक्षा और आचरण को किसका रूप माना गया है?
(क) ज्ञान का
(ख) अनुशासन का
(ग) चरित्र का
(घ) आचरण का
उत्तर :
(ख) अनुशासन का

3. बिना आचरण के क्या अधूरा है?
(क) चरित्र
(ख) ज्ञान
(ग) शिक्षा
(घ) जीवन
उत्तर :
(ग) शिक्षा

4. कौन व्यक्ति शिक्षित है?
(क) शिक्षा को आत्मसात करके जीवन में अपनाने वाला
(ख) ग्रंथ पढ़ने वाला
(ग) शास्त्रों का ज्ञाता
(घ) ग्रंथ कंठस्थ करने वाला
उत्तर :
(क) जो शिक्षा को आत्मसात करके जीवन में अपनाता है।

5. गद्यांश का उचित शीर्षक है
(क) शिक्षित व्यक्ति
(ख) चरित्र-निर्माण
(ग) मनुष्य का प्रभाव
(घ) शिक्षा और आचरण
उत्तर :
(घ) शिक्षा और आचरण

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27. कुछ लोग भाग्यवादी होते हैं और सब-कुछ भाग्य के सहारे छोड़कर कर्म से विरत हो जाते हैं। ऐसे लोग समाज के लिए बोझ हैं। वे कभी कोई बड़ा कर्म नहीं कर पाते। बड़ी-बड़ी खोज, बड़े-बड़े आविष्कार और बड़े-बड़े निर्माण कार्य कर्मशील लोगों के द्वारा ही संभव हो सके हैं। हम अपनी बुद्धि और प्रतिभा तथा कार्य-क्षमता के बल पर सही मार्ग पर चल सकते हैं; किंतु बिना कठिन श्रम के अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच सकते। कठिन परिश्रम करने के बाद पाई गई सफलता हमारे मन को अलौकिक आनंद से भर देती है। यदि हम अपने कार्य में अपेक्षित श्रम नहीं करते हो हमारा मन ग्लानि का अनुभव करता है।

1. कैसे लोग समाज के लिए बोझ हैं?
(क) भाग्यहीन
(ख) भाग्यशाली
(ग) भाग्यवादी
(घ) अभागे
उत्तर :
(ग) भाग्यवादी

2. बडे-बडे कार्य करने के लिए सर्वाधिक आवश्यकता किसकी है?
(क) कर्म करने की
(ख) भाग्य की
(ग) धर्म की
(घ) लक्ष्य की
उत्तर :
(क) कर्म करने की

3. किस प्रकार के लोग समाज के लिए बोझ हैं?
(क) भाग्यशाली
(ख) कर्मशील
(ग) कर्म न करने वाले
(घ) भाग्यहीन
उत्तर :
(ग) कर्म न करने वाले

4. जीवन में बड़ी उपलब्धियाँ कैसे संभव हो सकती हैं?
(क) भाग्य पर भरोसा करने से
(ख) कर्म न करने से
(ग) पूजा-पाठ से
(घ) परिश्रम और कर्म करने से
उत्तर :
(घ) परिश्रम और कर्म करने से

5. इस गद्यांश का शीर्षक है
(क) परिश्रम और सफलता
(ख) भाग्य के भरोसे
(ग) भाग्यवादी
(घ) कर्महीन
उत्तर :
(क) परिश्रम और सफलता

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28. मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है, आत्मनिर्भरता तथा सबसे बड़ा अवगुण है, स्वावलंबन का अभाव। स्वावलंबन सबके लिए अनिवार्य है। जीवन के मार्ग में अनेक बाधाएँ आती हैं। यदि उनके कारण हम निराश हो जाएँ, संघर्ष से जी चुराएँ या मेहनत से दूर रहें तो भला हा में सफल कैसे होंगे? अतः आवश्यक है कि हम स्वावलंबी बनें तथा अपने आत्मविश्वास को जाग्रत करके मजबूत बनें। यदि व्यक्ति स्वयं में आत्मविश्वास जाग्रत कर ले तो दुनिया में ऐसा कोई कार्य नहीं है जिसे वह न कर सके।

स्वयं में विश्वास करने वाला व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में कामयाब होता आया है। सफलता स्वावलंबी मनुष्य के पैर छूती है। आत्मविश्वास तथा आत्मनिर्भरता से आत्मबल मिलता है जिससे आत्मा का विकास होता है तथा मनुष्य श्रेष्ठ कार्यों की ओर प्रवृत्त होता है। स्वावलंबन मानव में गुणों की प्रतिष्ठा करता है। आत्मसम्मान, आत्मविश्वास, आत्मबल, आत्मरक्षा, साहस, संतोज़, धैर्य आदि गुण स्वावलंबन के सहोदर हैं। स्वावलंबन व्यक्ति, राष्ट्र तथा मानव मात्र के जीवन में सर्वांगीण सफलता प्राप्ति का महामंत्र है।

1. मनुष्य का सबसे बड़ा गुण क्या है?
(क) परोपकार
(ख) आशावाद
(ग) ईमानदारी
(घ) आत्मनिर्भरता
उत्तर :
(घ) आत्मनिर्भरता

2. मनुष्य का सबसे बड़ा अवगुण क्या है?
(क) निराशा का अभाव
(ख) स्वावलंबन का अभाव
(ग) कर्मशील होना
(घ) परोपकारी होना
उत्तर :
(ख) स्वावलंबन का अभाव

3. हमें किनसे निराशा नहीं होना चाहिए?
(क) उन्नति से
(ख) धन से
(ग) बाधाओं से
(घ) सम्मान से
उत्तर :
(ग) बाधाओं से

4. ‘आत्मबल’ के लिए क्या आवश्यक है?
(क) ईमानदारी
(ख) परोपकार की भावना
(ग) आत्मविश्वास व आत्मनिर्भरता
(घ) स्वाभिमान
उत्तर :
(ग) आत्मविश्वास व आत्मनिर्भरता

5. उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(क) आत्मसंयम
(ख) स्वाभिमान
(ग) स्वावलंबन का महत्व
(घ) आत्मबल
उत्तर :
(ग) स्वावलंबन का महत्व

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29. लाखों वर्षों से मधुमक्खी जिस तरह छत्ता बनाती आई है वैसे ही बनाती है। उसमें फेर-बदल करना उसके लिए संभव नहीं है। छत्ता तो त्रुटिहीन बनता है लेकिन मधुमक्खी अपने अभ्यास के दायरे में आबद्ध रहती है। इस तरह सभी प्राणियों के संबंध में प्रकृति ने उन्हें अपने आँचल में सुरक्षित रखा है, उन्हें विपत्तियों से बचाने के लिए उनकी आंतरिक गतिशीलता को ही प्रकृति ने घटा दिया है। लेकिन सृष्टिकर्ता ने मनुष्य की रचना करने में अद्भुत साहस का परिचय दिया है। उसने मानव के अंत:करण को बाधाहीन बनाया है। हालाँकि बाह्य रूप से उसे निर्वस्त्र, निरस्त्र और दुर्बल बनाकर उसके चित्त को स्वच्छंदता प्रदान की है।

इस मुक्ति से आनंदित होकर मनुष्य कहता है-“हम असाध्य को संभव बनाएँगे।” अर्थात जो सदा से होता आया है और होता रहेगा, हम उससे संतुष्ट नहीं रहेंगे। जो कभी नहीं हुआ, वह हमारे द्वारा होगा। इसीलिए मनुष्य ने अपने इतिहास के प्रथम युग में जब प्रचंडकाय प्राणियों के भीषण नखदंतों का सामना किया तो उसने हिरण की तरह पलायन करना नहीं चाहा, न कछुए की तरह छिपना चाहा। उसने असाध्य लगने वाले कार्य को सिद्ध किया-पत्थरों को काटकर भीषणतर नखदंतों का निर्माण किया। प्राणियों के नखदंत की उन्नति केवल प्राकृतिक कारणों पर निर्भर होती है। लेकिन मनुष्य के ये नखदंत उसकी अपनी सृष्टि क्रिया से निर्मित थे।

इसलिए आगे चलकर उसने पत्थरों को छोड़कर लोहे के हथियार बनाए। इससे यह प्रमाणित होता है कि मानवीय अंत:करण संधानशील है। उसके चारों ओर जो कुछ है उस पर ही वह आसक्त नहीं हो जाता। जो उसके हाथ में नहीं है उस पर अधिकार जमाना चाहता है। पत्थर उसके सामने रखा है पर वह उससे संतुष्ट नहीं। लोहा धरती के नीचे है, मानव उसे वहाँ से बाहर निकालता है। पत्थर को घिसकर हथियार बनाना आसान है लेकिन वह लोहे को गलाकर, साँचे में ढाल-ढालकर, हथौड़े से पीटकर, सब बाधाओं को पार करके, उसे अपने अधीन बनाता है। मनुष्य के अंत:करण का धर्म यही है कि वह परिश्रम से केवल सफलता ही नहीं बल्कि आनंद भी प्राप्त करता है।

1. सभी प्राणियों को किसने अपने आँचल में सुरक्षित रखा है?
(क) पृथ्वी ने
(ख) पर्यावरण ने
(ग) प्रकृति ने
(घ) आकाश ने
उत्तर :
(ग) प्रकृति ने

2. सृष्टिकर्ता ने मनुष्य के अंतःकरण को कैसा बनाया है?
(क) बाधाहीन
(ख) बाधाओं से युक्त
(ग) परतंत्र
(घ) विवेकहीन
उत्तर :
(क) बाधाहीन

3. मनुष्य ने किसके द्वारा नखदतों का निर्माण किया?
(क) लोहे के द्वारा
(ख) लकड़ी के द्वारा
(ग) पत्थर के द्वारा
(घ) नाखूनों के द्वारा
उत्तर :
(ग) पत्थर के द्वारा

4. परिश्रम से क्या प्राप्त होता है?
(क) निराशा
(ख) दुख
(ग) इज्जत
(घ) आनंद और सफलता
उत्तर :
(घ) आनंद और सफलता

5. गद्यांश का उचित शीर्षक है
(क) बाधाहीन जीवन
(ख) सृष्टिकर्ता
(ग) संधानशील मनुष्य
(घ) अंत:करण
उत्तर :
(ग) संधानशील मनुष्य

JAC Class 10 Hindi अपठित बोध अपठित गद्यांश

30. यह हमारी एकता का ही प्रमाण है कि उत्तर या दक्षिण चाहे जहाँ भी चले जाइए, आपको जगह-जगह पर एक ही संस्कृति के मंदिर दिखाई देंगे, एक ही तरह के आदमियों से मुलाकात होगी जो चंदन लगाते हैं, स्नान-पूजा करते हैं, तीर्थ-व्रत में विश्वास करते हैं अथवा जो नई रोशनी को अपना लेने के कारण इन बातों को कुछ शंका की दृष्टि से देखते हैं। उत्तर भारत के लोगों का जो स्वभाव है, जीवन को देखने की उनकी जो दृष्टि है, वही स्वभाव और वही दृष्टि दक्षिण वालों की भी है।

भाषा की दीवार के टूटते ही एक उत्तर भारतीय और एक दक्षिण भारतीय के बीच कोई भी भेद नहीं रह जाता और वे आपस में एक-दूसरे के बहुत करीब आ जाते हैं। असल में भाषा की दीवार के आर-पार बैठे हुए भी वे एक ही हैं। वे एक धर्म के अनुयायी और संस्कृति की एक ही विरासत के भागीदार हैं, उन्होंने देश की आजादी के लिए एक ही होकर लड़ाई लड़ी और आज उनकी पार्लियामेंट और शासन-विधान भी एक है। और जो बात हिंदुओं के बारे में कही जा रही है। वही बहुत दूर तक मुसलमानों के बारे में भी कही जा सकती है।

देश के सभी कोनों में बसने वाले मुसलमानों के भीतर जहाँ एक धर्म को लेकर एक तरह की आपसी एकता है। वहाँ वे संस्कृति की दृष्टि से हिंदुओं के भी बहुत करीब हैं, क्योंकि ज़्यादा मुसलमान तो ऐसे ही हैं, जिनके पूर्वज हिंदू थे और जो इस्लाम धर्म में जाने के समय अपनी हिंदू-आदतें अपने साथ ले गए। इसके सिवा अनेक सदियों तक हिंदू-मुसलमान साथ रहते आए हैं और इस लंबी संगति के फलस्वरूप उनके बीच संस्कृति और तहज़ीब की बहुत-सी सामान बातें पैदा हो गई हैं जो उन्हें दिनों-दिन आपस में नज़दीक लाती जा रही हैं।

1. लेखक भारत की एकता का कौन-सा प्रमाण प्रस्तुत करता है?
(क) जगह-जगह पर एक ही संस्कृति के मंदिर दिखाई देंगे।
(ख) एक ही तरह के आदमियों से मुलाकात होगी जो चंदन लगाते हैं, स्नान-पूजा करते हैं।
(ग) तीर्थ-व्रत में विश्वास करते हैं।
(घ) उपर्युक्त सभी विकल्प।
उत्तर :
(घ) उपर्युक्त सभी विकल्प।

2. भारत और दक्षिण भारत के लोगों की कौन-सी स्वाभाविक एकता बताई गई है
(क) जीवन को देखने की दृष्टि
(ख) स्वार्थी जीवन को अपनाने की दृष्टि
(ग) केवल तीर्थ-व्रत में विश्वास करने की दृष्टि
(घ) (क) व (ख) विकल्प
उत्तर :
(क) जीवन को देखने की दृष्टि

3. किसके आर-पार बैठे हुए भी वे एक ही हैं?
(क) सीमा रेखा के आर-पार
(ख) रहन-सहन की दीवार के आर-पार
(ग) भाषा की दीवार के आर-पार
(घ) (क) व (ख) विकल्प
उत्तर :
(क) सीमा रेखा के आर-पार

4. हिंदू-मुसलमान की लंबी संगति के फलस्वरूप क्या हुआ?
(क) संस्कृति और तहज़ीब की बहुत-सी समान बातें पैदा हो गई।
(ख) बहुत-सी असमान बातें पैदा हो गई।
(ग) भाषा की दीवार बन गई।
(घ) (क) व (ख) विकल्प।
उत्तर :
(क) संस्कृति और तहज़ीब की बहुत-सी समान बातें पैदा हो गईं।

5. देश के सभी कोनों में बसने वाले मुसलमानों के भीतर किसे लेकर आपसी एकता है?
(क) कर्म को लेकर
(ख) धर्म को लेकर
(ग) व्यवसाय को लेकर
(घ) सभी विकल्प
उत्तर :
(ख) धर्म को लेकर

JAC Class 10 Hindi अपठित बोध अपठित गद्यांश

31. अहिंसा और कायरता कभी साथ नहीं चलती। मैं पूरी तरह शस्त्र-सज्जित मनुष्य के हृदय से कायर होने की कल्पना कर सकता हूँ। हथियार रखना कायरता नहीं तो डर का होना तो प्रकट करता ही है, परंतु सच्ची अहिंसा शुद्ध निर्भयता के बिना असंभव है। क्या मुझमें बहादुरों की वह अहिंसा है? केवल मेरी मृत्यु ही इसे बताएगी। अगर कोई मेरी हत्या करे और मैं मुँह से हत्यारे के लिए प्रार्थना करते हुए तथा ईश्वर का नाम जपते हुए और हृदये मंदिर में उसकी जीती-जागती उपस्थिति का भान रखते हुए मरूँ तो ही कहा जाएगा कि मझमें बहादुरों की अहिंसा थी। मेरी सारी शक्तियों के क्षीण हो जाने से अपंग बनकर मैं एक हारे हुए आदमी के रूप में नहीं मरना चाहता।

किसी हत्यारे की गोली भले मेरे जीवन का अंत कर दे, मैं उसका स्वागत करूँगा। लेकिन सबसे ज़्यादा तो मैं अंतिम श्वास तक अपना कर्तव्य-पालन करते हुए ही मरना पसंद करूंगा। मुझे शहीद होने की तमन्ना नहीं है। लेकिन अगर धर्म की रक्षा का उच्चतम कर्तव्य-पालन करते हुए मुझे शहादत मिल जाए तो मैं उसका पात्र माना जाऊँगा। भूतकाल में मेरे प्राण लेने के लिए मुझ पर अनेक बार आक्रमण किए गए हैं, परंतु आज तक भगवान ने मेरी रक्षा की है और प्राण लेने का प्रयत्न करने वाले अपने किए पर पछताए हैं। लेकिन अगर कोई आदमी यह मानकर मुझ पर गोली चलाए कि वह एक दुष्ट का खात्मा कर रहा है, तो वह एक सच्चे गांधी की हत्या नहीं करेगा, बल्कि उस गांधी की करेगा जो उसे दुष्ट दिखाई दिया था।

1. अहिंसा और कायरता के बारे में क्या कहा गया है?
(क) कभी-कभी एक साथ चलती है।
(ख) हमेशा साथ चलती है।
(ग) दोनों खतरनाक होती हैं।
(घ) कभी साथ नहीं चलती।
उत्तर :
(घ) कभी साथ नहीं चलती।

2. सच्ची अहिंसा किसके बिना असंभव है?
(क) कायरता के बिना
(ख) शुद्ध निर्भयता के बिना
(ग) ममता के बिना
(घ) शुद्ध जड़ता के बिना
उत्तर :
(ख) शुद्ध निर्भयता के बिना

3. गांधी जी किस प्रकार मरना पसंद करेंगे?
(क) कर्तव्य पालन करते हुए
(ख) शत्रु को बदले की भावना से मारते हुए
(ग) हिंसा करते हुए
(घ) सभी विकल्प
उत्तर :
(क) कर्तव्य पालन करते हुए

4. प्राण लेने का प्रयत्न करने वालों के साथ क्या हुआ है?
(क) कोई फ़र्क नहीं पड़ा है।
(ख) आंतरिक ग्लानि नहीं हुई।
(ग) अपने किए पर पछताए हैं।
(घ) कभी झुके नहीं हैं।
उत्तर :
(ग) अपने किए पर पछताए हैं।

5. किसी हत्यारे की गोली भले मेरे जीवन का अंत कर दे, मैं उसका –
(क) उसका जड़ से खात्मा करूँगा।
(ख) हृदय से स्वागत करूँगा।
(ग) उसको मिट्टी में मिला दूंगा।
(घ) मैं उसकी प्रशंसा करूँगा।
उत्तर :
(ख) हृदय से स्वागत करूँगा।

JAC Class 10 Hindi अपठित बोध अपठित गद्यांश

32. उन्नीसवीं शताब्दी से पहले, मानव और पशु दोनों की आबादी भोजन की उपलब्धता तथा प्राकृतिक विपदाओं आदि के कारण सीमित रहती थी। कालांतर में जब औद्योगिक क्रांति के कारण मानव सभ्यता की समृद्धि में भारी वृद्धि हुई तब उसके परिणामस्वरूप कई पश्चिमी देश ऐसी बाधाओं से लगभग अनिवार्य रूप से मुक्त हो गए। इससे वैज्ञानिकों ने अंदाजा लगाया कि अब मानव जनसंख्या विस्फोटक रूप से बढ़ सकती है। परंतु इन देशों में परिवारों का औसत आकार घटने लगा था और जल्दी ही समृद्धि और प्रजनन के बीच एक उलटा संबंध प्रकाश में आ गया था।

जीवविज्ञानियों ने मानव समाज की तुलना जानवरों की दुनिया से कर इस संबंध को समझाने की कोशिश की और कहा कि ऐसे जानवर जिनके अधिक बच्चे होते हैं, वे अधिकतर प्रतिकूल वातावरण में रहते हैं और ये वातावरण प्रायः उनके लिए प्राकृतिक खतरों से भरे रहते हैं। चूँकि इनकी संतानों के जीवित रहने की संभावना कम होती है, इसलिए कई संतानें पैदा करने से यह संभावना बढ़ जाती है कि उनमें से कम-से-कम एक या दो जीवित रहेंगी। इसके विपरीत, जिन जानवरों के बच्चे कम होते हैं, वे स्थिर और अनुकूल वातावरण में रहते हैं।

ठीक इसी प्रकार यदि समदध वातावरण में रहने वाले लोग केवल कुछ ही बच्चे पैदा करते हैं, तो उनके ये कम बच्चे उन बच्चों को पछाड़ देंगे जिनके परिवार इतने समृद्ध नहीं थे तथा इनकी आपस की प्रतिस्पर्धा भी कम होगी। इस सिद्धांत के आलोचकों का तर्क है कि पशु और मानव व्यवहार की तुलना नहीं की जा सकती है। वे इसके बजाए यह तर्क देते हैं कि सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन इस घटना को समझाने के लिए पर्याप्त हैं। श्रम-आश्रित परिवारों में बच्चों की बड़ी संख्या एक वरदान के समान होती है।

वे जल्दी काम कर परिवार की आय बढ़ाते हैं। जैसे-जैसे समाज समृद्ध होता जाता है, वैसे-वैसे बच्चे जीवन के लगभग पहले 25-30 सालों तक शिक्षा ग्रहण करते हैं। जीवन के प्रारंभिक वर्षों में उर्वरता अधिक होती है तथा देर से विवाह के कारण संतानों की संख्या कम हो जाने की संभावना बनी रहती है।

1. निम्नलिखित में से कौन-सा ऊपर लिखित पाठ्यांश का प्राथमिक उद्देश्य है?
(क) मानव परिवारों के आकार के संबंध में दिए गए उस स्पष्टीकरण की आलोचना जो पूरी तरह से जानवरों की दुनिया से ली गई टिप्पणियों पर आधारित है।
(ख) औद्योगिक क्रांति के बाद अपेक्षित जनसंख्या विस्फोट न होने के कारणों की विवेचना।
(ग) औद्योगिक क्रांति से पहले और बाद में पर्यावरणीय प्रतिबंधों और सामाजिक दृष्टिकोण से परिवार का आकार कैसे प्रभावित हुआ, का अंतर्संबंध दर्शाना।
(घ) परिवार का आकार बढ़ी हुई समृद्धि के साथ घटता है इस तथ्य को समझने के लिए दो वैकल्पिक सिद्धांत प्रस्तुत करना।
उत्तर :
(घ) परिवार का आकार बढ़ी हुई समृद्धि के साथ घटता है इस तथ्य को समझने के लिए दो वैकल्पिक सिद्धांत प्रस्तुत करना।

2. पाठ्यांश के अनुसार निम्नलिखित में से कौन-सा जनसंख्या विस्फोट के विषय में सत्य है?
(क) पश्चिमी देशों में यह इसलिए नहीं हुआ क्योंकि औद्योगीकरण से प्राप्त समृद्धि ने परिवारों को बच्चों की शिक्षा की विस्तारित अवधि को वहन करने का सामर्थ्य प्रदान किया था।
(ख) यह घटना विश्व के उन क्षेत्रों तक सीमित है, जहाँ औद्योगिक क्रांति नहीं हुई है।
(ग) श्रम आधारित अर्थव्यवस्था में केवल उद्योग के आधार पर ही परिवार का आकार निर्भर रहता है।
(घ) इसकी भविष्यवाणी पश्चिमी देशों में औद्योगिक क्रांति के समय जीवित कुछ लोगों द्वारा की गई थी।
उत्तर :
(घ) इसकी भविष्यवाणी पश्चिमी देशों में औद्योगिक क्रांति के समय जीवित कुछ लोगों द्वारा की गई थी।

3. अंतिम अनुच्छेद निम्नलिखित में कौन-सा कार्य करता है?
(क) यह पहले अनुच्छेद से वर्णित घटना के लिए एक वैकल्पिक स्पष्टीकरण प्रस्तुत करता है।
(ख) यह दूसरे अनुच्छेद में प्रस्तुत स्पष्टीकरण की आलोचना करता है।
(ग) यह वर्णन करता है कि समाज के समृद्ध होने के साथ सामाजिक दृष्टिकोण कैसे बदलते हैं।
(घ) यह दूसरे अनुच्छेद में प्रस्तुत घटना की व्याख्या करता है।
उत्तर :
(क) यह पहले अनुच्छेद में वर्णित घटना के लिए एक वैकल्पिक स्पष्टीकरण प्रस्तुत करता है।

4. पाठ्यांश में निम्नलिखित में से किसका उल्लेख औद्योगिक देशों में औसत परिवार का आकार हाल ही में गिरने के एक संभावित कारण के रूप में नहीं किया गया है?
(क) शिक्षा की विस्तारित अवधि।
(ख) पहले की अपेक्षा देरी से विवाह करना।
(ग) बदल हुआ सामाजिक दृष्टिकोण।
(घ) औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं में मजदूरों की बढ़ती माँग।
उत्तर :
(घ) औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं में मजदूरों की बढ़ती माँग।

5. पाठ्यांश में दी गई कौन-सी जानकारी बताती है कि निम्नलिखित में से किस जानवर के कई बच्चे होने की संभावना है
(क) एक विशाल शाकाहारी जो घास के मैदान में रहता है और अपनी संतानों की भरसक सुरक्षा करता है।
(ख) एक सर्वभक्षी जिसकी आबादी कई छोटे द्वीपों तक सीमित है और जिसे मानव अतिक्रमण से खतरा है।
(ग) एक मांसाहारी जिसका कोई प्राकृतिक शिकारी नहीं है, लेकिन उसे भोजन की आपति बनाए रखने के लिए लंबी दरी तय करनी पड़ती है।
(घ) एक ऐसा जीव जो मैदानों और झीलों में कई प्राणियों का शिकार बनता है।
उत्तर :
(घ) एक ऐसा जीव जो मैदानों और झीलों में कई प्राणियों का शिकार बनता है।

JAC Class 10 Hindi अपठित बोध अपठित गद्यांश

33. विज्ञान-शिक्षण के पक्षधरों ने कल्पना की थी कि शिक्षा में इसकी शुरुआत पारंपरिकता, कृत्रिमता और पिछड़ेपन को दूर करेगी। यह सोच पुराने समय से चली आ रही-‘तथ्य प्रचुर पाठ्यचर्या’ जिसके अंतर्गत- आलोचना, चुनौती, सृजनात्मकता व विवेचनात्मकता का अभाव था, आदि के कारण पैदा हो रही थी। मानवतावादियों ने सोचा था कि वैज्ञानिक-पद्धति मध्यकालीन मतवाद के अंधविश्वासों को जड़ से मिटा देगी।

किंतु हमारे शिक्षकों ने रासायनिक प्रतिक्रियाओं की समझ को भी प्रेमचंद की कहानियों की तरह केवल पढ़ा व रटाकर उन्हें नीरस बना दिया। शिक्षा में विज्ञान-शिक्षण सम्मिलित करने के लिए यह तर्क दिया गया था कि इससे बच्चे विज्ञान की खोजों से परिचित हो सकेंगे तथा अपने वास्तविक जीवन में घट रही घटनाओं के बारे में कुछ सीखेंगे। वे वैज्ञानिक विधि का अध्ययन कर तार्किक रूप से कैसे सोचना है, के कौशल में पारंगत होंगे। इन उद्देश्यों में से केवल पहले ही में एक सीमित सफलता मिली है।

दूसरे व तीसरे में व्यावहारिक रूप से बच्चे कुछ भी नहीं प्राप्त कर पा रहे हैं। अधिकतर बच्चों से भौतिकी और रसायन विज्ञान के तथ्यों के बारे में कुछ जानने की उम्मीद की जा सकती है, लेकिन वे शायद ही जानते हों कि उनका कंप्यूटर अथवा कार का इंजन कैसे कार्य करते हैं अथवा क्यों उनकी माता जी सब्जी पकाने के लिए उसे छोटे टुकड़ों में काटती हैं जबकि वैज्ञानिक पद्धति में रुचि रखने वाले किसी भी उज्ज्वल लड़के को ये बातें सहज रूप से ही ज्ञात हो जाती हैं।

वैज्ञानिक पद्धति की शिक्षा अधिकांश विद्यालयों में भली प्रकार से नहीं दी जा रही है। दरअसल, शिक्षकों ने अपनी सुविधा और परीक्षा केंद्रित सोच के कारण, यह सुनिश्चित कर लिया है कि छात्र वैज्ञानिक पद्धति न सीख कर ठीक इसका उलटा सीखें, अर्थात वे जो बताएँ, उस पर आँख मूंद कर विश्वास करें और पूछे जाने पर उसे जस का तस परीक्षा में लिख दें।

वैज्ञानिक पद्धति को आत्मसात करने के लिए लंबे व्यक्तिगत अनुभव तथा परिश्रम व धैर्य पर आधारित वैज्ञानिक मूल्यों की आवश्यकता होती है और जब तक इसे संभव बनाने के लिए शैक्षिक या सामाजिक प्रणालियों को बदल नहीं दिया जाता है, वैज्ञानिक तकनीकों में सक्षम केवल कुछ बच्चे ही सामने आएँगे तथा इन तकनीकों को आगे विकसित करने वालों की संख्या इसका भी अंश मात्र ही होगी।

1. लेखक का तात्पर्य है कि शिक्षकों ने
(क) अपने सीमित ज्ञान के कारण विज्ञान पढ़ाने में रुचि नहीं ली है।
(ख) विज्ञान शिक्षा को लागू करने के प्रयासों को विफल किया है।
(ग) बच्चों को अनुभव आधारित ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया है।
(घ) मानवतावादियों का समर्थन करते हुए कार्य किया है।
उत्तर :
(ख) विज्ञान शिक्षा को लागू करने के प्रयासों को विफल किया है।

2. स्कूल शिक्षा में विज्ञान शिक्षण के प्रति लेखक का क्या रवैया है?
(क) तटस्थ
(ख) सकारात्मक
(ग) व्यंग्यात्मक
(घ) नकारात्मक
उत्तर :
(घ) नकारात्मक

3. उपर्युक्त पाठ्यांश निम्नलिखित में से किस वशक में लिखा गया होगा?
(क) 1950-60
(ख) 1970-80
(ग) 1980-90
(घ) 2000-10
उत्तर :
(क) 1950-60

4. लेखक वैज्ञानिक पद्धति को लागू करने में विफलता के लिए निम्नलिखित किस कारक को सबसे अधिक जिम्मेदार ठहराता है?
(क) शिक्षक
(ख) परीक्षा के तरीके
(ग) प्रत्यक्ष अनुभव की कमी
(घ) सामाजिक और शिक्षा-प्रणाली
उत्तर :
(ग) प्रत्यक्ष अनुभव की कमी

5. यदि लेखक वर्तमान समय में आकर विज्ञान-शिक्षण का प्रभाव सुनिश्चित करना चाहे तो निम्नलिखित में से किस प्रश्न के उत्तर में दिलचस्पी लेगा?
(क) क्या छात्र दुनिया के बारे में अधिक जानते हैं?
(ख) क्या छात्र प्रयोगशालाओं में अधिक समय बिताते हैं?
(ग) क्या छात्र अपने ज्ञान को तार्किक रूप से लागू कर सकते हैं?
(घ) क्या पाठ्यपुस्तकों में तथ्याधारित सामग्री बढ़ी है?
उत्तर :
(ग) क्या छात्र अपने ज्ञान को तार्किक रूप से लागू कर सकते हैं?

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-भेद

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Vyakaran रचना के आधार पर वाक्य-भेद Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10 Hindi Vyakaran रचना के आधार पर वाक्य-भेद

प्रश्न 1.
वाक्य किसे कहते हैं ?
उत्तर :
एक विचार को पूर्णता से प्रकट करने वाले क्रमबद्ध सार्थक शब्द-समूह को वाक्य कहते हैं; जैसे-अशोक पुस्तक पढ़ता है। राम दिल्ली गया है। एक वाक्य में कम-से-कम दो शब्द-कर्ता और क्रिया अवश्य होने चाहिए, लेकिन वार्तालाप की स्थिति में कभी-कभी एक शब्द भी पूरे वाक्य का काम कर जाता है; जैसे –
आप कहाँ गए थे?
दिल्ली।
बीमार कौन है?
माता जी।

रचना की दृष्टि से वाक्य-भेद

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-भेद 1

प्रश्न 2.
सरल वाक्य किसे कहते हैं ?
उत्तर :
सरल वाक्य स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त होने वाला उपवाक्य है। इसमें एक उद्देश्य, एक विधेय और एक ही समापिका क्रिया होती है। इसमें कर्ता, कर्म, पूरक, क्रिया और क्रिया-विशेषण में से कुछ घटकों का योग होता है; जैसे –

  • नकुल हँसता है।
  • रजत रुचि का छोटा भाई है।
  • आप क्या लेंगे?
  • पापा के द्वारा समझाने पर भी वह नहीं मानी।
  • आप खाना खाकर सो जाइए।
  • शाम होते ही पिताजी वापस आ गए।
  • रीना रो-रो कर बेहाल हो रही थी।
  • आँधी आते ही टैंट उड़ गया था।
  • आद्या थोड़ी देर चुप रहकर बोली।
  • मैंने उसे खाना खिलाकर सुला दिया है।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-भेद

प्रश्न 3.
संयुक्त वाक्य किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जिस वाक्य में दो या दो से अधिक उपवाक्य स्वतंत्र रूप में समुच्चयबोधक अथवा योजक द्वारा मिले हुए हों, उसे संयुक्त वाक्य कहते हैं; जैसे –

  • अशोक पुस्तक पढ़ता है, परंतु शीला नहीं पढ़ती।
  • अशोक पुस्तक पढ़ता है और शीला लेख लिख रही है।
  • आप चाय पीएँगे या आपके लिए ठंडा लाऊँ।
  • हम लोग घूमने गए और वहाँ चार दिन रहे।
  • मम्मी बीमार थी इसलिए बाज़ार नहीं गई।
  • भीड़ ने आग लगाई और पत्थर बरसाने आरंभ कर दिए।
  • वह मंडी गई और ढेरों फल खरीद लाई।
  • वह मोटा है पर तेज़ भागता है।
  • रुचि बाज़ार गई लेकिन कपड़े खरीदना भूल गई।
  • अमृता ने समझाया और रघू मान गया।
  • उसने परिश्रम किया और सफलता प्राप्त कर ली।

प्रश्न 4.
मिश्र वाक्य किसे कहते हैं?
उत्तर :
जिस वाक्य में एक प्रधान उपवाक्य हो और एक या अधिक आश्रित उपवाक्य हों, उसे मिश्रित वाक्य कहा जाता है। मिश्रित वाक्य में उपवाक्य परस्पर व्याधिकरण योजकों; कि, यदि, अगर, तो, तथापि, यद्यपि इसलिए आदि; से जुड़े होते हैं। जैसे –

  • खाने – पीने का मतलब है कि मनुष्य स्वस्थ बने।
  • खाने – पीने का मतलब है-स्वतंत्र या प्रधान उपवाक्य।
  • कि – समुच्चयबोधक या योजक।
  • मनुष्य स्वस्थ बने – आश्रित उपवाक्य।

अन्य उदाहरण –

  • जब बाघ और शिकारी घात लगाकर निकलते हैं तब उनकी शक्ल देखने लायक होती है।
  • जो अपने वचन का पालन नहीं करता, वह विश्वास खो बैठता है।
  • जैसे ही मैं घर पहुँचा वैसे ही आँधी आ गई थी।
  • मैंने एक औरत देखी जो बहुत ठिगनी थी।
  • जैसे ही सिपाही पहुँचा वैसे ही गुंडे भाग गए।
  • मुझे एक बच्चा मिला जो बहुत दुबला-पतला था।
  • जब भूकंप आया तब अनेक इमारतें गिर गईं।
  • यद्यपि वह अच्छी टीम थी तथापि इनके सामने टिक नहीं पाई।
  • यह वही लड़की है जिसने आम तोड़े थे।
  • जैसे ही नेताजी पधारे वैसे ही स्वागत गान आरंभ हो गया।

मिश्र वाक्य में आने वाले आश्रित वाक्य तीन प्रकार के होते हैं –

1. संज्ञा उपवाक्य – मुख्य अथवा प्रधान उपवाक्य की किसी संज्ञा या संज्ञा पदबंध के बदले आने वाला उपवाक्य संज्ञा उपवाक्य कहलाता है। जैसे –

  • राकेश बोला कि मैं लखनऊ जा रहा हूँ।
  • यहाँ ‘मैं लखनऊ जा रहा हूँ’ उपवाक्य, प्रधान वाक्य ‘राकेश बोला’ क्रिया के कर्म के रूप में प्रयुक्त हुआ है। अत: यह संज्ञा उपवाक्य है।
  • मेरे जीवन का मूल उद्देश्य है कि मैं विद्या प्राप्त करूँ।
  • संज्ञा वाक्य के आरंभ में ‘कि’ योजक का प्रयोग होता है।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-भेद

2. विशेषण उपवाक्य – मुख्य या प्रधान उपवाक्य के किसी संज्ञा या सर्वनाम शब्द की विशेषता बताने वाला उपवाक्य विशेषण उपवाक्य कहलाता है। जैसे –

  • मैंने एक भिखारी देखा जो बहुत भूखा-प्यासा था।
  • जो व्यक्ति सच्चरित्र होता है, उसे सभी चाहते हैं।

3. क्रिया-विशेषण उपवाक्य – मुख्य अथवा प्रधान उपवाक्य की क्रिया के संबंध में किसी प्रकार की सूचना देने वाला उपवाक्य
क्रिया – विशेषण उपवाक्य कहा जाता है। जैसे –
क्रिया – विशेषण उपवाक्य पाँच प्रकार के होते हैं –
(i) कालवाची उपवाक्य –

  • ज्योंही मैं स्टेशन पहुँचा, त्योंही गाड़ी ने सीटी बजाई।
  • जब पानी बरस रहा था, तब मैं घर के भीतर था।

(ii) स्थानवाची उपवाक्य –

  • जहाँ तुम पढ़ते थे वहीं मैं पढ़ता था।
  • जिधर तुम जा रहे हो, उधर आगे रास्ता बंद है।

(iii) रीतिवाची उपवाक्य –

  • मैंने वैसे ही किया है जैसे आपने बताया था।
  • वह उसी प्रकार खेलता है जैसा उसके कोच सिखाते हैं।

(iv) परिणामवाची उपवाक्य

  • जैसे आमदनी बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे महँगाई बढ़ती जाती है।
  • तुम जितना पढ़ोगे उतना ही तुम्हारा लाभ होगा।

(v) परिमाणवाची (कार्य-कारिणी) उपवाक्य –

  • वह जाएगा ज़रूर क्योंकि उसका साक्षात्कार है।
  • यदि मैंने पढ़ा होता तो अवश्य उत्तीर्ण हो गया होता।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-भेद

प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्यों में उपवाक्य अलग करके उनके नाम लिखिए –
(क) गीता में कहा गया है कि कर्म ही मनुष्य का अधिकार है।
(ख) वीर सैनिकों ने ललकार कर कहा कि प्राण रहते शत्रु को नगर में नहीं घुसने देंगे।
(ग) समाज को एक सूत्र में बद्ध करने के लिए न्याय यह है कि सबको अपना काम करने की स्वतंत्रता मिले ताकि किसी को शिकायत करने का मौका न हो।
(घ) आज लोगों के मन में यही एक बात समा रही है कि जहाँ तक हो सके शीघ्र ही शत्रुओं से बदला लेना चाहिए। (ङ) सब जानते हैं, ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया है।
(च) हमारे खिलाड़ी कल मुंबई पहुंचेंगे और परसों पहला मैच खेलेंगे, जिसे हज़ारों दर्शक देखेंगे।
(छ) कल हमारे विद्यालय का वार्षिकोत्सव है, जिसमें अनेक प्रकार के कार्यक्रम होंगे।
(ज) मेरी आकाँक्षा है कि मैं एक सफल शिक्षक बनूँ, क्योंकि आज देश को योग्य शिक्षकों की जरूरत है।
(झ) जासूस को अपराधियों का भेद लगाना था, इसलिए वह उनके पास ठहर गया।
(ब) मैं जानता हूँ कि वह तुम्हारा भाई है।
(ट) मैं पढ़ रहा हूँ और वह सो रहा है।
(ठ) जब वह यहाँ आया, मैं सो रहा था।
(ड) वह आदमी जो कल यहाँ आया था, मेरा मित्र है।
(ढ) जब भी मैं वहाँ गया, उसने मेरा सत्कार किया।
(ण) जो छात्र परिश्रमी होता है, वह सभी को अच्छा लगता है।
(त) मैंने एक व्यक्ति देखा जो बहुत लंबा था।
(थ) मेरे जीवन का लक्ष्य है कि मैं डॉक्टर बनें।
(द) मेरे जीवन का लक्ष्य है कि मैं इंजीनियर बनूं।
(ध) उसने कहा कि मैं कल आगरा जाऊँगा।
(न) रमेश ने कहा कि मैं आज विद्यालय नहीं जाऊँगा।
उत्तर :
(क) (i) गीता में कहा गया है – प्रधान उपवाक्य।
(ii) कर्म पर ही मनुष्य का अधिकार है – आश्रित संज्ञा उपवाक्य।
(iii) वाक्य-भेद – मिश्रित वाक्य।

(ख) (i) वीर सैनिकों ने ललकार कर कहा – प्रधान उपवाक्य ।
(ii) प्राण रहते शत्रु को नगर में नहीं घुसने देंगे – आश्रित संज्ञा उपवाक्य।
(iii) वाक्य-भेद – मिश्रित वाक्य।

(ग) (i) समाज को एक सूत्र में बद्ध करने के लिए न्याय यह है – प्रधान उपवाक्य।
(ii) सबको अपना काम करने की स्वतंत्रता मिले – आश्रित संज्ञा उपवाक्य।
(iii) किसी को शिकायत करने का मौका न मिले – आश्रित क्रिया-विशेषण उपवाक्य।
(iv) वाक्य-भेद – मिश्रित वाक्य।

(घ) (i) आज लोगों के मन में यही बात समा रही है – प्रधान उपवाक्य।
(ii) जहाँ तक हो सके शीघ्र ही शत्रुओं से बदला लेना चाहिए – आश्रित संज्ञा उपवाक्य।
(iii) वाक्य-भेद – मिश्रित वाक्य।

(ङ) (i) सब जानते हैं-प्रधान उपवाक्य।
(ii) ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था-आश्रित संज्ञा उपवाक्य।
(iii) वाक्य-भेद-मिश्रित वाक्य।

(च) (i) हमारे खिलाड़ी कल मुंबई पहुँचेंगे-प्रधान उपवाक्य।
(ii) (वे) परसों पहला मैच खेलेंगे-समानाधिकरण उपवाक्य।
(iii) जिसे हज़ारों दर्शक देखेंगे-आश्रित विशेषण उपवाक्य।
(iv) वाक्य-भेद-संयुक्त वाक्य।

(छ) (i) कल हमारे विद्यालय का वार्षिकोत्सव है-प्रधान उपवाक्य।
(ii) जिसमें अनेक प्रकार के कार्यक्रम होंगे-आश्रित विशेषण उपवाक्य।
(iii) वाक्य-भेद-मिश्रित वाक्य।

(ज) (i) मेरी आकाँक्षा है-प्रधान उपवाक्य।
(ii) मैं एक सफल शिक्षक बनूं-आश्रित संज्ञा उपवाक्य।
(iii) आज देश को योग्य शिक्षकों की ज़रूरत है-आश्रित क्रिया-विशेषण उपवाक्य।
(iv) वाक्य-भेद-मिश्रित वाक्य।

(झ) (i) जासूस को अपराधियों का भेद लेना था-प्रधान उपवाक्य।
(ii) वह उसके पास ठहर गया-समानाधिकरण-उपवाक्य।
(iii) वाक्य-भेद-संयुक्त वाक्य।

(ञ) (i) मैं जानता हूँ-प्रधान उपवाक्य।
(ii) वह तुम्हारा भाई है-आश्रित संज्ञा उपवाक्य।
(iii) वाक्य-भेद-मिश्रित वाक्य।

(ट) (i) मैं पढ़ रहा हूँ-प्रधान उपवाक्य।
(ii) वह सो रहा है-समानाधिकरण-उपवाक्य।
(iii) वाक्य-भेद-संयुक्त वाक्य।

(ठ) (i) मैं सो रहा था-प्रधान उपवाक्य।
(ii) जब वह यहाँ आया-आश्रित क्रिया-विशेषण उपवाक्य।
(iii) वाक्य-भेद-मिश्रित वाक्य।

(ड) (i) वह आदमी मेरा मित्र है-प्रधान वाक्य।
(ii) जो कल यहाँ आया था-आश्रित क्रिया-विशेषण उपवाक्य।
(iii) वाक्य-भेद-मिश्रित उपवाक्य।

(ढ) (i) उसने मेरा सत्कार किया-प्रधान उपवाक्य।
(ii) जब भी मैं वहाँ गया-आश्रित क्रिया-विशेषण उपवाक्य।
(iii) वाक्य-भेद-मिश्रित उपवाक्य।

(ण) (i) वह सभी को अच्छा लगता है-प्रधान उपवाक्य।
(ii) जो छात्र परिश्रमी होता है-आश्रित क्रिया-विशेषण उपवाक्य।
(iii) वाक्य-भेद-मिश्रित उपवाक्य।

(त) (i) मैंने एक व्यक्ति देखा-प्रधान वाक्य।
(ii) जो बहुत लंबा था-आश्रित क्रिया-विशेषण उपवाक्य।
(iii) वाक्य-भेद-मिश्रित वाक्य।

(थ) (i) मेरे जीवन का लक्ष्य है-प्रधान उपवाक्य।
(ii) मैं डॉक्टर बनूं-आश्रित संज्ञा उपवाक्य।
(iii) वाक्य-भेद-मिश्रित वाक्य।

(द) (i) मेरे जीवन का लक्ष्य है-प्रधान उपवाक्य।
(ii) मैं इंजीनियर बनूं-आश्रित संज्ञा उपवाक्य।
(iii) वाक्य-भेद-मिश्रित वाक्य।

(ध) (i) उसने कहा-प्रधान उपवाक्य
(ii) मैं कल आगरा जाऊँगा-आश्रित संज्ञा उपवाक्य।
(iii) वाक्य-भेद-प्रधान उपवाक्य।

(न) (i) रमेश ने कहा-प्रधान उपवाक्य।
(ii) मैं आज विद्यालय नहीं जाऊँगा-आश्रित संज्ञा उपवाक्य।
(iii) वाक्य-भेद-मिश्रित वाक्य।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-भेद

प्रश्न 6.
कोष्ठक में दिए गए निर्देशों के अनुसार वाक्यों में उचित परिवर्तन कीजिए –
(क) रमा को पुस्तक खरीदनी थी, इसलिए बाज़ार गई। (सरल वाक्य)
(ख) कल फूलपुर में मेला है और हम वहाँ जाएँगे। (साधारण वाक्य)
(ग) झाड़ियों के पीछे छिपकर बैठी बिल्ली कुत्ते के जाने की प्रतीक्षा करने लगी। (संयुक्त वाक्य)
(घ) आज अंदर बैठकर देर तक बातें करें। (संयुक्त वाक्य)
(ङ) सुबह पहली बस पकड़ो और शाम तक लौट आओ। (सरल वाक्य)
(च) मैंने उस व्यक्ति को देखा जो पीड़ा से कराह रहा था। (साधारण वाक्य)
(छ) उसने नौकरी के लिए प्रार्थना-पत्र लिखा। (मिश्र वाक्य)
(ज) दिन-रात मेहनत करने वालों को सोच-समझकर खर्च करना चाहिए। (मिश्रित वाक्य)
(झ) मैंने उस बच्चे को देखा जो स्कूटर चला रहा था। (सरल वाक्य)
(ञ) वहाँ एक गाँव था। वह गाँव बहुत बड़ा था। वह गाँव चारों ओर जंगल से घिरा था। उस गाँव में आदिवासियों के परिवार रहते थे। (सरल वाक्य)
(ट) मज़दूर खूब मेहनत करता है परंतु उसे उसका लाभ नहीं मिलता। (सरल वाक्य)
(ठ) मैंने एक दुबले-पतले व्यक्ति को भीख माँगते देखा। (मिश्र वाक्य)
(ड) जो व्यक्ति परिश्रम करते हैं, उन्हें अधिक समय तक निराश नहीं होना पड़ता। (सरल वाक्य)
(ढ) मेरा विचार है कि आज घूमने चलें। (सरल वाक्य)
(ण) मैंने उसे पढ़ाकर नौकरी दिलवाई। (संयुक्त वाक्य)
(त) वह फल खरीदने के लिए बाज़ार गया। (मिश्र वाक्य)
(थ) तुम बस रुकने के स्थान पर चले जाओ। (मिश्र वाक्य)
(द) शशि गा रही है और नाच रही है। (सरल वाक्य)
(ध) अध्यापक अपने शिष्यों को अच्छा बनाना चाहते हैं। (मिश्रित वाक्य)
(न) बालिकाएँ गा रही हैं और नाच रही हैं। (सरल वाक्य)
उत्तर :
(क) रमा पुस्तकें खरीदने के लिए बाजार गई।
(ख) कल हम फूलपुर के मेले में जाएंगे।
(ग) बिल्ली झाड़ियों के पीछे छिपकर बैठ गई और कुत्ते के जाने की प्रतीक्षा करने लगी।
(घ) आज अंदर बैठें और देर तक बातें करें।
(ङ) सुबह पहली बस पकड़कर शाम तक लौट आओ।
(च) मैंने पीड़ा से कराहते उस व्यक्ति को देखा।
(छ) उसने प्रार्थना-पत्र लिखा जो नौकरी के लिए था।
(ज) जो दिन-रात मेहनत करते हैं, उन्हें सोच-समझकर खर्च करना चाहिए।
(झ) मैंने स्कूटर चला रहे बच्चे को देखा।
(ञ) चारों ओर जंगल से घिरे उस बहुत बड़े गाँव में आदिवासियों के परिवार रहते थे।
(ट) मजदूर को खूब मेहनत करने पर भी उसका लाभ नहीं मिलता।
(ठ) मैंने एक व्यक्ति को भीख माँगते देखा जो दुबला-पतला था।
(ड) परिश्रमी लोगों को अधिक समय तक निराश नहीं होना पड़ता; या
परिश्रम करने वाले लोगों को अधिक समय तक निराश नहीं होना पड़ता।
(ढ) मेरे विचार में आज घूमने चलें; या।
मेरा विचार घूमने के लिए चलने का है।
(ण) मैंने उसे पढ़ाया और नौकरी दिलवाई।
(त) वह बाज़ार गया क्योंकि उसे फल खरीदने थे।
(थ) तुम उस स्थान पर चले जाओ जहाँ बस रुकती है।
(द) शशि नाच-गा रही है।
(ध) अध्यापक चाहते हैं कि उसके शिष्य अच्छे बनें।
(न) बालिकाएँ नाच-गा रही हैं।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-भेद

प्रश्न 7.
नीचे लिखे वाक्यों में कुछ साधारण वाक्य, कुछ मिश्रित वाक्य और कुछ संयुक्त वाक्य हैं। उनके ठीक-ठीक नाम लिखिए।
(क) मोहन ने कहा कि मैं जिस सिनेमाघर में गया उसमें टिकट नहीं मिला।
(ख) जो विद्वान होता है, उसे सभी आदर देते हैं।
(ग) मैं चाहता हूँ कि तुम परिश्रम करो और परीक्षा में सफल हो।
(घ) वह आदमी पागल हो गया है।
(ङ) स्त्री कपड़े सिलती है।
(च) झूठ बोलना महापाप है।
(छ) हमारे जीवन का आधार केवल धन नहीं, बल्कि कई और पदार्थ भी हैं।
(ज) अपना काम देखो।
(झ) जब राजा नगर में आया तो उत्सव मनाया गया।
(ञ) जो पत्र मिला है, उसे शीला ने लिखा होगा।
उत्तर :
(क) मिश्र
(ख) मिश्र
(ग) मिश्र
(घ) सरल
(ङ) सरल
(च) संयुक्त
(छ) सरल
(ज) सरल या सरल
(झ) मिश्र
(ञ) मिश्र

वाक्य रचनांतरण –

प्रश्न 1.
वाक्य रचनांतरण किसे कहते हैं?
उत्तर :
सरल वाक्य को संयुक्त एवं मिश्र बनाना, संयुक्त को सरल एवं मिश्र बनाना रचनांतरण कहलाता है। जैसे –
(i) सरल से मिश्र और संयुक्त वाक्य बनाना –
सरल – मोहन हिंदी पढ़ने के लिए शास्त्री जी के यहाँ गया है। जैसे –
मिश्र – मोहन को हिंदी पढ़ना है, इसलिए शास्त्री जी के यहाँ गया है।
संयुक्त – मोहन को हिंदी पढ़ना है और इसलिए शास्त्री जी के यहाँ गया है।

(ii) मिश्र से सरल वाक्य बनाना –
मिश्र – जब तक मोहन घर पहुंचा तब तक उसके पिता चल चुके थे।
सरल – मोहन के घर पहुंचने से पूर्व उसके पिता चल चुके थे।

(iii) मिश्र से सरल और संयुक्त वाक्य बनाना –
मिश्र – मैंने एक आदमी देखा जो बहुत बीमार था।
सरल – मैंने एक बहुत बीमार आदमी देखा।
संयक्त – मैंने एक आदमी देखा और वह बहत बीमार था।

(iv) संयुक्त से सरल और मिश्र वाक्य बनाना –
संयुक्त – मोहन बहुत अच्छा खिलाड़ी है लेकिन फेल कभी नहीं होता।
सरल – मोहन बहुत अच्छा खिलाड़ी होने पर भी फेल कभी नहीं होता।
मिश्र – यद्यपि मोहन बहुत अच्छा खिलाड़ी है तथापि फेल कभी नहीं होता।

(v) सरल वाक्यों से एक मिश्र वाक्य बनाना
सरल – पुस्तक में एक कठिन प्रश्न था। कक्षा में उस प्रश्न को कोई भी हल नहीं कर सका। मैंने उस प्रश्न को हल कर दिया।
मिश्र – पुस्तक के जिस कठिन प्रश्न को कक्षा में कोई भी हल नहीं कर सका मैंने उसे हल कर लिया है।

(vi) सरल वाक्यों से संयुक्त और मिश्र वाक्य बनाना –
सरल – इस वर्ष हमारे विद्यालय में बहुत-से वक्ता पधारे। कुछ वक्ता धर्म पर बोले। कुछ वक्ता साहित्य पर बोले। कुछ वक्ता वैज्ञानिक विषयों पर बोले।
संयुक्त – इस वर्ष हमारे विद्यालय में पधारने वाले बहुत-से वक्ताओं में से कुछ धर्म पर, कुछ साहित्य पर और कुछ वैज्ञानिक विषयों पर बोले।
मिश्र – इस वर्ष हमारे विद्यालय में जो बहुत-से वक्ता पधारे उनमें से कुछ धर्म पर, कुछ साहित्य पर और कुछ वैज्ञानिक विषयों पर बोले।
(vii) वाच्य की दृष्टि से रचनांतरण – राम नहीं खाता। = राम से नहीं खाया जाता।
(viii) सकर्मक से अकर्मक में रचनांतरण – मोहन पेड़ काट रहा है। = मोहन से पेड़ कट रहा है।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-भेद

प्रश्न 2.
रूपांतरण कैसे होता है?
उत्तर :
अर्थ की दृष्टि से वाक्य आठ प्रकार के होते हैं। उसमें परस्पर रूपांतरण का अभ्यास होना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि उन सभी भेदों की रचना से आप सुपरिचित हों। कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं –

  • विधानवाचक – राम स्कूल जाएगा।
  • निषेधवाचक – राम स्कूल नहीं जाएगा।
  • प्रश्नवाचक – क्या राम स्कूल जाएगा?
  • आज्ञावाचक – राम, स्कूल जाओ।
  • विस्मयवाचक – अरे, राम स्कूल जाएगा!
  • इच्छावाचक – राम स्कूल जाए।
  • संदेहवाचक – राम स्कूल गया होगा।
  • संकेतवाचक – राम स्कूल जाए तो

प्रश्न 3.
कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार बदलिए –

  1. माँ खाना पका रही है और परोस रही है। (सरल वाक्य में)
  2. अध्यापक अपने शिष्यों को अच्छा बनाना चाहता है। (मिश्र वाक्य में)
  3. मैंने एक बहुत मोटा व्यक्ति देखा। (मिश्र वाक्य में)
  4. मैं बाज़ार जाऊँगा और कपड़े खरीदूंगा। (सरल वाक्य में)
  5. आप खूब परिश्रम करते हैं और अच्छे अंक प्राप्त करते हैं। (सरल वाक्य में)
  6. मेरा निर्णय आज मौन रहने का है। (मिश्र वाक्य में)
  7. शाहनी ने दुपट्टे से सिर ढका। हवेली को अंतिम बार देखा। (सरल वाक्य में)
  8. शाहनी ने हिचकियों को रोका और रुंधे गले से कहा। (सरल वाक्य में)
  9. चातक थोड़ी देर चुप रहकर बोला। (संयुक्त वाक्य में)
  10. मैंने गौरा को देखा और उसे पालने का निश्चय किया। (सरल वाक्य में)
  11. मैंने एक व्यक्ति देखा। वह बहुत गरीब था। (मिश्र वाक्य में)
  12. वहाँ एक गाँव था। वह गाँव छोटा-सा था। उसके चारों ओर जंगल था। (मिश्र वाक्य में)
  13. मोहन कल यहाँ आया। उसने राम से बात की। वह चला गया। (संयुक्त वाक्य में)
  14. मैंने एक व्यक्ति देखा। वह बहुत दुबला-पतला था। (मिश्र वाक्य में)
  15. सड़क पार करता हुआ एक व्यक्ति बस से टकराकर मर गया। (मिश्र वाक्य में)
  16. यही वह बच्चा है, जिसे बैल ने मारा था। (सरल वाक्य में)
  17. रमेश गा रहा था। लता हँस रही थी। (मिश्र वाक्य में)

उत्तर :

  1. माँ खाना पका और परोस रही है।
  2. अध्यापक चाहता है कि उसके शिष्य अच्छे बनें।
  3. मैंने एक व्यक्ति देखा, जो बहुत मोटा था।
  4. मैं बाज़ार जाकर कपड़े खरीदूंगा।
  5. आप खूब परिश्रम कर अच्छे अंक प्राप्त करते हैं।
  6. मेरा निर्णय है कि मैं आज मौन रहूँ।
  7. शाहनी ने दुपट्टे से सिर ढककर हवेली को अंतिम बार देखा।
  8. शाहनी ने हिचकियों को रोककर रुंधे गले से कहा।
  9. चातक थोड़ी देर चुप रहा और बोला।
  10. मैंने गौरा को देखकर, उसे पालने का निश्चय कर लिया।
  11. मैंने एक व्यक्ति देखा, जो बहुत गरीब था।
  12. वहाँ उस छोटे-से गाँव के चारों ओर जंगल था।
  13. मोहन ने कल यहाँ आकर राम से बात की और चला गया।
  14. मैंने एक व्यक्ति देखा, जो बहुत दुबला-पतला था।
  15. जो व्यक्ति सड़क पार कर रहा था, वह बस से टकराकर मर गया।
  16. इस बच्चे को बैल ने मारा था।
  17. रमेश गा रहा था तो लता हँस रही थी।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-भेद

अभ्यास के लिए प्रश्नोत्तर – 

(अ) निम्नलिखित वाक्यों में से सरल वाक्य चुनिए
1. (क) जो लोग परिश्रम से धन कमाते हैं उन्हें सोच-समझकर खर्च करना चाहिए।
(ख) वह बाज़ार गया और वहाँ से आवश्यक सामान खरीद लाया।
(ग) सिपाही को देखते ही चोर भाग गया।
(घ) जो साहसी था वह तो अब रहा नहीं।
उत्तर :
(ग) सिपाही को देखते ही चोर भाग गया।

2. (क) नौकर भीतर आया उसने रोना शुरू कर दिया।
(ख) सच्चा-ईमानदार व्यक्ति सबको अच्छा लगता है।
(ग) मेरे बिस्तर पर जो चादर बिछी है वह मैली नहीं है।
(घ) जैसे ही समय पूरा हुआ वैसे ही मैंने पेपर मैडम को दे दिया था।
उत्तर :
(ख) सच्चा ईमानदार व्यक्ति सबको अच्छा लगता है।

(आ) निम्नलिखित वाक्यों में से संयुक्त वाक्य चुनिए –
1. (क) चहा बिल से बाहर निकला और बिल्ली ने उसे दबोच लिया।
(ख) इला भी क्रिकेट खेलने की शौकीन है।
(ग) परिश्रम न करने के कारण रीमा उत्तीर्ण न हो सकी।
(घ) सड़क पर शोर होने के कारण सब बाहर भागे थे।
उत्तर :
(क) चूहा बिल से बाहर निकला और बिल्ली ने उसे दबोच लिया।

(क) श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान दिया था।
(ख) लड़का छात्रावास में जाकर बीमार हो गया।
(ग) डालियों पर आम का बौर लगा और कोयल कूकने लगी।
(घ) यह वही बदमाश है जिसने तुम सबको गालियाँ दी थीं।
उत्तर :
(ग) डालियों पर आम का बौर लगा और कोयल कूकने लगी।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-भेद

(इ) निम्नलिखित में से मिश्र वाक्य चुनिए
1. (क) माँ ने कहा कि मैं कल हरिद्वार जा रही हूँ।
(ख) राधेय ने बाण साधा और अर्जुन की ओर छोड़ दिया।
(ग) जो दूसरों के लिए मर-मिटते हैं, उनकी आज भी कमी नहीं है।
(घ) जंगल में शेर झाड़ियों के पीछे छिपा हुआ था।

2. (क) चीता भाग रहा था और शिकारी उसके पीछे लगे हुए थे।
(ख) जितनी महँगाई बढ़ेगी, उतना ही असंतोष का भाव बढ़ेगा।
(ग) किसान ने हल नीचे उतारा और बैल को चरने के लिए छोड़ दिया।
(घ) कर्ण बहादुर ही नहीं अपितु दानवीर भी था।

3. (क) बालक खाते-खाते ही सो गया था।
(ख) आइए अंदर चलें और बैठकर बात करें।
(ग) कठोर बनकर भी सहृदयता रखो।
(घ) जो दिन-रात लड़ते-झगड़ते रहते हैं, उनका जीवन कभी सुखद नहीं हो सकता।
उत्तर :
1. (ग) जो दूसरों के लिए मर मिटते हैं, उनकी आज भी कमी नहीं है।
2. (ख) जितनी महँगाई बढ़ेगी, उतना ही असंतोष का भाव बढ़ेगा।
3. (घ) जो दिन-रात लड़ते-झगड़ते रहते हैं, उनका जीवन कभी सुखद नहीं हो सकता।

(ई) संयुक्त तथा मिश्र वाक्य में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
संयुक्त वाक्य – संयुक्त वाक्य में दो अथवा अधिक वाक्य समुच्चयबोधक, योजक शब्द द्वारा जुड़े होते हैं।
उदाहरण – वह हॉकी खेलेगा और मैं फुटबॉल खेलँगा।
मिश्र वाक्य – मिश्र वाक्य में एक प्रधान वाक्य होता है तथा अन्य उपवाक्य उसके अधीन होकर आते हैं।
उदाहरण – मैंने सुना है कि तुम बनारस जा रहे हो।
मैंने सुना है – प्रधान वाक्य तथा तुम बनारस जा रहे हो उपवाक्य है।

(उ) और, पर, या, ताकि का प्रयोग करते हुए चारों के दो-दो संयुक्त वाक्य बनाइए।
उत्तर :
और –
1. राकेश विद्यालय जाएगा और महेश घर का काम करेगा।
2. सूर्य डूबता है और अँधेरा हो जाता है।

पर –
1. मैं चल-चित्र देखने जाना चाहता था पर जा न सका।
2. मैं तो गया था पर उसने मेरी बात ही नहीं सुनी।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-भेद

या –
1. आप घर जाइए या कार्यालय में जाइए।
2. अनुशासन में रहो या बाहर चले जाओ।

ताकि –
1. आप परिश्रम करें ताकि सफल हो जाएँ।
2. मैं प्रतीक्षा करता रहा ताकि काम बन जाए।

(ऊ) निर्देशानुसार उत्तर दीजिए –

  1. पिता ने बच्चे को तैयार करके स्कूल भेजा। (संयुक्त वाक्य)
  2. हम लोग तैरने के लिए नहर पर गए थे। (मिश्र वाक्य)
  3. प्लेट नीचे गिरी और टूट गई। (सरल वाक्य)
  4. फ़ायदे वाला काम करो। (मिश्र वाक्य)
  5. जुआ खेलने वाले लोग मुझे अच्छे नहीं लगते। (मिश्र वाक्य)
  6. मैं एक ऐसे पंडित से मिला जो बहुत विद्वान था। (संयुक्त वाक्य)
  7. आप कमीज़ लेना चाहेंगे अथवा पैंट लेना चाहेंगे? (सरल वाक्य)
  8. मेरे घर में एक पुरानी मेज़ है। (मिश्र वाक्य)
  9. मेरे विचार से काम करें। (मिश्र वाक्य)
  10. मैंने उसे बुलाया तब वह मेरे पास आया। (सरल वाक्य)
  11. सफ़ेद पैंट वाला आदमी कहाँ गया। (मिश्र वाक्य)
  12. मैंने उसे पढ़ाकर काबिल बनाया। (संयुक्त वाक्य)

उत्तर :

  1. पिता ने बच्चे को तैयार किया और स्कूल भेजा।
  2. हम लोगों को तैरना था इसलिए हम नहर पर गए थे।
  3. प्लेट नीचे गिरकर टूट गई।
  4. काम वही करो जिसमें फायदा हो।
  5. जो लोग जुआ खेलते हैं, मुझे अच्छे नहीं लगते।
  6. मैं एक पंडित से मिला और वह बहुत विद्वान था।
  7. आप कमीज़ या पैंट में से क्या लेंगे?
  8. मेरे घर में जो मेज़ है, वह बहुत पुरानी है।
  9. मेरा विचार है कि काम करें।
  10. मेरे बुलाने पर वह मेरे पास आया।
  11. वह आदमी कहाँ गया जो सफ़ेद पैंट पहने हुए था।
  12. मैंने उसे पढ़ाया और काबिल बनाया।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-भेद

पाठ पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर –

1. रचना के आधार पर वाक्य-भेद संबंधी प्रश्नों के सही विकल्प वाले उत्तर चुनिए –
(क) जहाँ दो स्वतंत्र वाक्य समुच्चयबोधक द्वारा जुड़े हों, उसे कहते हैं।
(i) संयुक्त वाक्य
(ii) सरल वाक्य
(iii) मिश्र वाक्य
(iv) जटिल वाक्य
उत्तर :
(i) संयुक्त वाक्य

(ख) दिए गए वाक्यों में से मिश्र वाक्य है –
(i) प्रधानमंत्री आने वाले थे किंतु नहीं आए।
(ii) मैं महँगी साइकिल नहीं खरीदूंगा।
(iii) जो योग्य है, वही इस पद का हकदार है।
(iv) वह विदेश गया और मेरे लिए उपहार लाया।
उत्तर :
(iii) जो योग्य है, वही इस पद का हकदार है।

(ग) दिए गए वाक्यों में से संयुक्त वाक्य है
(i) मैंने उसे अभी रुकने के लिए कहा था लेकिन उसने मना कर दिया।
(ii) तुम्हारे विचार ऐसे हैं जो उनको पसंद नहीं हैं।
(iii) उस युग में उत्पीड़न का बोलवाला था।
(iv) वहाँ एक धनी रहता है जिसके पास अपार संपत्ति है।
उत्तर :
(i) मैंने उसे अभी रुकने के लिए कहा था लेकिन उसने मना कर दिया।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-भेद

(घ) जिस वाक्य में एक ही उद्देश्य और एक ही विधेय होता है, उसको कहते हैं –
(i) मिश्र वाक्य
(ii) संयुक्त वाक्य
(iii) जटिल वाक्य
(iv) सरल वाक्य
उत्तर :
(iv) सरल वाक्य

(ङ) जिस वाक्य में एक प्रधान उपवाक्य के साथ एक या अधिक आश्रित उपवाक्य हो, उसे कहते हैं –
(i) संयुक्त वाक्य
(ii) साधारण वाक्य
(iii) सरल वाक्य
(iv) मिश्र वाक्य
उत्तर :
(iv) मिश्र वाक्य

2. निर्देशानुसार उपयुक्त विकल्प चुनिए –
(क) निम्नलिखित में से संयुक्त वाक्य है
(i) जैसे ही कार आई, वह बैठ गया।
(ii) हम कल पुणे जाएँगे।
(iii) मैंने उसे जंगल में जाने से मना किया पर वह नहीं माना।
(iv) भीख माँगना दीनता का द्योतक है।
उत्तर :
(iii) मैंने उसे जंगल में जाने से मना किया पर वह नहीं माना।

(ख) निम्नलिखित में से सरल वाक्य है –
(i) जो श्रम के आश्रित हैं, उन्हें सफलता अवश्य मिलती है।
(ii) जैसे ही बच्चे ने माँ को देखा वैसे ही चुप हो गया।
(iii) सफलता परिश्रमी के कदम चूमती है।
(iv) वह आएगी तो हम मसौदा बनाएँगे।
उत्तर :
(iii) सफलता परिश्रमी के कदम चूमती है।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-भेद

(ग) “जो छात्र पढ़ने के इच्छुक हैं, उन्हें यहाँ सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं।” साधारण वाक्य में होगा –
(i) पढ़ने के इच्छुक छात्रों को यहाँ सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
(ii) पढ़ाई करने वालों छात्रों को यहाँ सभी सुविधाएँ मिलती हैं।
(iii) पढ़ाई करने वाले यहाँ सभी सुविधाएँ प्राप्त कर सकते हैं।
(iv) यहाँ पढ़ने वाले सभी छात्र सुविधाएँ पाते हैं।
उत्तर :
(i) पढ़ने के इच्छुक छात्रों को यहाँ सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं।

(घ) दिए गए वाक्यों में से संयुक्त वाक्य है –
(i) तुम्हारा ज्ञान दुख का विनाश करेगा।
(ii) आप सब कुछ बोलिए किंतु उसको राक्षस मत कहिए।
(iii) वह ज्यों ही घर से निकला त्यों ही आँधी आने लगी।
(iv) तुम जहाँ रहते हो, वहीं जाओ।
उत्तर :
(ii) आप सब कुछ बोलिए किंतु उसको राक्षस मत कहिए।

(ङ) “उसकी चाची घर में आकर माँ से मिलकर चली गई।” मिश्र वाक्य का रूप होगा –
(i) उसकी चाची घर में आई और माँ से मिलकर गई।
(ii) जैसे ही चाची घर में आई वैसे ही माँ से मिलकर चली गई।
(iii) चाची घर में आते ही माँ से मिली और चली गई।
(iv) चाची घर में आकर माँ से मिलकर चली गई।
उत्तर :
(ii) जैसे ही चाची घर में आई वैसे ही माँ से मिलकर चली गई।

3. निर्देशानुसार उपयुक्त विकल्प चुनिए –
(क) दिए गए वाक्यों में से संयुक्त वाक्य है
(i) मेरे दफ्तर में एक पुरानी अलमारी है।
(ii) वह छात्रा पास हो गई जो कल यहाँ आई थी।
(iii) पिता जी ने खाना खाया और सो गए।
(iv) मैंने सुना है कि तुम अयोध्या जा रहे थे।
उत्तर :
(iii) पिता जी ने खाना खाया और सो गए।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-भेद

(ख) “वर्षा हो रही थी। राम छाता लेकर विद्यालय आया।” सरल वाक्य में होगा
(i) राम विद्यालय में छाता लेकर गया क्योंकि वर्षा हो रही थी।
(ii) राम वर्षा में छाता लेकर विद्यालय गया।
(iii) वर्षा हो रही थी इसलिए राम छाता लेकर विद्यालय गया।
(iv) वर्षा होते ही राम छाता लेकर विद्यालय गया।
उत्तर :
(ii) राम वर्षा में छाता लेकर विद्यालय गया।

(ग) दिए गए वाक्यों में से मिश्र वाक्य छाँटिए
(i) लाल कमीज़ वाले छात्र को यह ट्रॉफी दे दो।
(ii) जो भाषण मैंने मंच से दिया वह अखबारों में छप गया।
(iii) वे बेबाक राय और सुझाव देते हैं।
(iv) आगरा आने पर वे मुझसे मिले।
उत्तर :
(ii) जो भाषण मैंने मंच से दिया वह अखबारों में छप गया।

(घ) जहाँ एक प्रधान उपवाक्य और एक या एक के अधिक उपवाक्य योजकों द्वारा जुड़े हों, उसे क्या कहते हैं?
(i) सरल वाक्य
(ii) संयुक्त वाक्य
(iii) मिश्र वाक्य
(iv) जटिल वाक्य
उत्तर :
(ii) संयुक्त वाक्य

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-भेद

(ङ) “बालगोबिन जानते हैं कि अब बुढ़ापा आ गया।” वाक्य में रेखांकित उपवाक्य का भेद है –
(i) विशेषण उपवाक्य
(ii) सर्वनाम उपवाक्य
(iii) क्रिया उपवाक्य
(iv) संज्ञा उपवाक्य
उत्तर :
(iv) संज्ञा उपवाक्य

बोर्ड की परीक्षाओं में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर –

1. (i) बढ़ती जनसंख्या पर अंकुश नहीं लगाया गया तो मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ेगा। (सरल वाक्य में बदलिए)
(ii) अनेक संस्थाएँ जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए कार्यरत हैं। (मिश्र वाक्य बनाइए)
(iii) जो अपने भाई साहब से मिलने आए हैं उन्हें मैं जानता भी नहीं। (संयुक्त वाक्य में बदलिए)
उत्तर :
(i) बढ़ती जनसंख्या पर अकुंश लगाये बिना मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ेगा।
(ii) अनेक संस्थाएँ कार्यरत हैं जो जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करेंगी।
(iii) अपने भाई साहब को मिलने कोई आए हैं और मैं उन्हें नहीं जानता।

2. (i) एक तुमने ही इस जादू पर विजय प्राप्त की है। (वाक्य भेद लिखिए)
(ii) एक मोटरकार उनकी दुकान के सामने आकर रुकी। (संयुक्त वाक्य में बदलिए)
(ii) सभी विद्यार्थी कवि-सम्मेलन में समय से पहुँचे और शांति से बैठे रहे। (मिश्रित वाक्य में बदलिए)
उत्तर
(i) सरल वाक्य।
(ii) एक मोटरकार आई और उनकी दुकान के सामने रुकी।
(iii) जो भी विद्यार्थी कवि-सम्मेलन में आए हुए थे वे सभी शांति से बैठे रहे।

3. (i) सर्वदयाल ने शीत से बचने के लिए हाथ जेब में डाला तो कागज़ का एक टुकड़ा निकल आया। (मिश्र वाक्य में बदलिए)
(ii) उसे दफ़्तर की नौकरी से घृणा थी। (वाक्य भेद बताइए)
(ii) उनको पूरा-पूरा विश्वास था कि ठाकुर साहब मेंबर बन जाएँगे। (सरल वाक्य में बदलिए)
उत्तर:
(i) सर्वदयाल ने जब शीत से बचने के लिए हाथ जेब में डाला तब कागज़ का एक टुकड़ा निकल आया।
(ii) सरल वाक्य।
(iii) ठाकुर साहब के मेंबर बनने का उन्हें पूरा विश्वास था।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-भेद

4. (i) उनको पूरा-पूरा विश्वास था कि ठाकुर साहब मेंबर बन जाएंगे। (आश्रित उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए)
(ii) लालची लोग दिन-रात ठाकुर साहब के घर मिठाइयाँ उड़ाते थे। (उद्देश्य-विधेय छाँटकर लिखिए)
(iii) उसे वोट दें जो सच्चे अर्थों में देश का हितैषी हो। (सरल वाक्य में बदलिए)
उत्तर :
(i) आश्रित उप वाक्य – ठाकुर जी मेंबर बन जाएँगे।
भेद – आश्रित संज्ञा उपवाक्य
(ii) उद्देश्य – लालची लोग
विधेय – ठाकुर साहब के घर मिठाइयाँ उड़ाते थे।
(iii) सच्चे अर्थों में देश के हितैषी को वोट दें।

5. (i) जीवन की कुछ चीजें हैं जिन्हें हम कोशिश करके पा सकते हैं। (आश्रित उपवाक्य छाँटकर उसका भेद भी लिखिए) (ii) मोहनदास और गोकुलदास सामान निकालकर बाहर रखते जाते थे। (संयुक्त वाक्य में बदलिए)
(iii) हमें स्वयं करना पड़ा और पसीने छूट गए। (मिश्र वाक्य में बदलिए)
उत्तर :
(i) विशेषण आश्रित उपवाक्य-जिन्हें हम कोशिश करके पा सकते हैं।
(ii) मोहनदास और गोकुलदास सामान निकालते थे और बाहर रखते जाते थे।
(iii) जब हमें स्वयं करना पड़ा तब पसीने छूट गए।

6. (i) वे उन सब लोगों से मिले, जो मुझे जानते थे। (सरल वाक्य में बदलिए)
(ii) पंख वाले चींटे या दीमक वर्षा के दिनों में निकलते हैं। (वाक्य का भेद लिखिए)
(iii) आषाढ़ की एक सुबह एक मोर ने मल्हार के मियाऊ-मियाऊ को सुर दिया था। (संयुक्त वाक्य में बदलिए)
उत्तर :
(i) वे मुझे जानने वाले सब लोगों से मिले।
(ii) सरल वाक्य
(iii) आषाढ़ की एक सुबह थी और एक मोर ने मल्हार के मियाऊ-मियाऊ की सुर दिया था।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-भेद

7. (i) कभी ऐसा वक्त भी आएगा जब हमारा देश विश्वशक्ति होगा।
(आश्रित उपवाक्य छाँटकर उसका भेद भी लिखिए।)
(ii) घर से दूर होने के कारण वे उदास थे। (संयुक्त वाक्य में बदलिए)
(ii) जब बच्चे उतावले हो रहे थे तब कस्तूरबा की आशंकाएँ भीतर उसे खरोंच रही थीं। (सरल वाक्य में बदलिए) उत्तर :
(i) क्रिया-विशेषण आश्रित उपवाक्य-जब हमारा देश विश्व शक्ति होगा।
(ii) वे घर से दूर थे इसलिए उदास थे।
(iii) बच्चों के उतावले होने पर कस्तूरबा की आशंकाएँ भीतर उसे खरोंच रही थीं।

8. (i) जब सावन-भादों आते हैं तब दर्जिन की आवाज़ पूरे इलाके में गूंजती है। (सरल वाक्य में बदलिए)
(ii) भुजंगा शाम को तार पर बैठकर पतिंगों को पकड़ता रहता है। (मिश्र वाक्य में बदलिए)
(ii) अँधेरा होते-होते चौदह घंटों बाद कूजन-कुंज का दिन ख़त्म हो जाता है। (संयुक्त वाक्य में बदलिए)
उत्तर :
(i) सावन-भादों आने पर दर्जिन की आवाज़ पूरे इलाके में गूंजती है।
(ii) जब भुजंगा शाम को तार पर बैठता है तब पतिंगों को पकड़ता रहता है।
(iii) अँधेरा होने लगता है और चौदह घंटों बाद कूजन-कुंज का दिन ख़त्म हो जाता है।

9. (i) मैंने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों के अभावग्रस्त जीवन के बारे में मैं सब जानती हूँ। (आश्रित उपवाक्य छाँटकर उसका भेद भी लिखिए।)
(ii) सीधा-सादा किसान सुभाष पालेकर अपनी नेचुरल फार्मिंग से कृषि के क्षेत्र में क्रांति ला रहा है। (मिश्र वाक्य में बदलिए)
(iii) अपने उत्पाद को सीधे ग्राहक को बेचने के कारण किसान को दुगुनी कीमत मिलती है। (संयुक्त वाक्य में बदलिए)
उत्तर :
(i) संज्ञा आश्रित उपवाक्य-कि स्वतंत्रता सेनानियों के अभावग्रस्त जीवन के बारे में मैं सब जानती हूँ।
(ii) सुभाष पालेकर सीधा-सादा किसान है जो अपनी नेचुरल फार्मिंग से कृषि के क्षेत्र में क्रांति ला रहा है।
(iii) किसान अपने उत्पाद को सीधे ग्राहक को बेचता है और इसलिए उसे दुगुनी कीमत मिलती है।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-भेद

10. (i) डलिया में आम हैं, दूसरे फलों के साथ आम रखे हैं। (सरल वाक्य बनाइए)
(ii) शर्मीला पीलक पेड़ के पत्तों में छुपकर बोलता है। (संयुक्त वाक्य बनाइए)
(iii) पीलक जितना शर्मीला होता है उतनी ही इसकी आवाज़ भी शर्मीली है। (वाक्य-भेद लिखिए)
उत्तर :
(i) डलिया में दूसरे फलों के साथ आम रखे हैं।
(ii) शर्मीला पीलक पेड़ के पत्तों में छुपता है और बोलता है।
(iii) मिश्र वाक्य।

11. (i) बालगोबिन जानते हैं कि अब बुढ़ापा आ गया। (आश्रित उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए)
(ii) मॉरीशस की स्वच्छता देखकर मन प्रसन्न हो गया। (मिश्र वाक्य में बदलिए)
(ii) गुरुदेव आराम कुर्सी पर लेटे हुए थे और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद ले रहे थे। (सरल वाक्य में बदलिए)
उत्तर :
(i) कि अब बुढ़ापा आ गया है (संज्ञा उपवाक्य)
(ii) जब मॉरीशस की स्वच्छता देखी तो मन प्रसन्न हो गया।
(iii) गुरुदेव आराम कुर्सी पर लेटकर प्राकृतिक सौंदर्य का आनन्द ले रहे थे।

12. (i) कठोर होकर भी सहृदय बनो। (संयुक्त वाक्य में बदलिए)
(ii) यद्यपि वह सेनानी नहीं था पर लोग उसे कैप्टन कहते थे। (सरल वाक्य में बदलिए)
(iii) बच्चे वैसे करते हैं जैसे उन्हें सिखाया जाता है। (रेखांकित उपवाक्य का भेद लिखिए)
(iv) सभी लोगों ने सुंदर दृश्य देखा। (रचना के आधार पर वाक्य भेद लिखिए)
उत्तर :
(i) कठोर बनो और सहृदय रहो।
(ii) सेनानी न होने पर भी लोग उसे कैप्टन कहते थे।
(iii) क्रियाविशेषण आश्रित उपवाक्य।
(iv) सरल वाक्य।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-भेद

13. (i) एक चश्मेवाला है जिसका नाम कैप्टन है। (सरल वाक्य में बदलिए)
(ii) कहा जा चुका है कि मूर्ति संगमरमर की थी। (आश्रित उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए)
(iii) मूर्ति की आँखों पर सरकंडे से बना छोटा-सा चश्मा रखा हुआ था। (मिश्र वाक्य में बदलिए)
(iv) हालदार साहब का प्रश्न सुनकर वह आँखों ही आँखों में हँसा। (संयुक्त वाक्य में बदलिए)
उत्तर :
(i) एक चश्मे वाले का नाम कैप्टन है।
(ii) कि मूर्ति संगमरमर की थी।
(iii) मूर्ति की आँखों पर चश्मा था, जो सरकंडे से बना था।
(iv) उसने हालदार साहब का प्रश्न सुना और आँखों ही आँखों में हँसा।

14. (i) मैंने उस व्यक्ति को देखा जो पीड़ा से कराह रहा था। (संयुक्त वाक्य में बदलिए)
(ii) जो व्यक्ति परिश्रमी होता है, वह अवश्य सफल होता है। (सरल वाक्य में बदलिए)
(iii) वह कौन-सी पुस्तक है जो आपको बहुत पसंद है। (रेखांकित उपवाक्य का भेद लिखिए)
(iv) कश्मीरी गेट के निकल्सन कब्रगाह में उनका ताबूत उतारा गया। (मिश्र वाक्य में बदलिए)
उत्तर :
(i) मैंने उस व्यक्ति को देखा और वह पीड़ा से कराह रहा था।
(ii) परिश्रमी व्यक्ति अवश्य सफल होता है।
(iii) प्रधान वाक्य।
(iv) उनका ताबूत निकल्सन कब्रगाह में उतारा गया जो कश्मीरी गेट में है।

15. “हर्षिता बहुत विनम्र है और सर्वत्र सम्मान प्राप्त करती है।”-रचना के आधार पर वाक्य भेद है
(क) सरल वाक्य
(ख) मिश्र वाक्य
(ग) संयुक्त वाक्य
(घ) साधारण वाक्य
उत्तर :
(ग) संयुक्त वाक्य।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-भेद

16. निम्नलिखित में मिश्र वाक्य है
(क) मैंने एक वष्टद्ध की सहायता की।
(ख) जो विद्यार्थी परिश्रमी होता है, वह अवश्य सफल होता है।
(ग) अध्यापिका ने अवनि की प्रशंसा की तथा उसका उत्साह बढ़ाया।
(घ) नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया।
उत्तर :
(ख) जो विद्यार्थी परिश्रमी होता है, वह अवश्य सफल होता है।

17. “प्रयश बाज़ार गया। वहाँ से सेब लाया।”-इस वाक्य का संयुक्त वाक्य में रूपांतरण होगा
(क) प्रयश बाज़ार गया और वहाँ से सेब लाया।
(ख) प्रयश सेब लाया जब वह बाज़ार गया।
(ग) प्रयश बाज़ार जाकर सेब लाया।
(घ) जब प्रयश बाज़ार गया तो वहाँ से सेब लाया।
उत्तर :
(क) प्रयश बाज़ार गया और वहाँ से सेब लाया।

18. “जो वीर होते हैं, वे रणभूमि में अपनी वीरता का प्रदर्शन करते हैं।” रेखांकित उपवाक्य का भेद है
(क) संज्ञा आश्रित उपवाक्य
(ख) सर्वनाम आश्रित उपवाक्य
(ग) क्रियाविशेषण आश्रित उपवाक्य
(घ) विशेषण आश्रित उपवाक्य
उत्तर :
(घ) विशेषण आश्रित उपवाक्य

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-भेद

19. निम्नलिखित में सरल वाक्य है
(क) प्रातःकाल हुआ और सूरज की किरणें चमक उठीं।
(ख) जब प्रात:काल हुआ, सूरज की किरणें चमक उठीं।
(ग) प्रात:काल होते ही सूरज की किरणें चमक उठीं।
(घ) जैसे ही प्रात:काल हुआ सूरज की किरणें चमक उठीं।
उत्तर :
(ग) प्रात:काल होते ही सूरज की किरणें चमक उठीं।

20. निर्देशानुसार उत्तर लिखिए –
(क) पत्थर की मूर्ति पर चश्मा असली था। (संयुक्त वाक्य में बदलिए)
(ख) मूर्तिकार ने सुना और जवाब दिया। (सरल वाक्य में बदलिए)
(ग) काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है। (मिश्र वाक्य में बदलिए)
(घ) एक चश्मेवाला है जिसका नाम कैप्टन है। (आश्रित उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए)
उत्तर :
(क) मूर्ति पत्थर की थी (और/परंतु) चश्मा असली था।
(ख) मूर्तिकार ने सुनकर जवाब दिया।
(ग) वह काशी है जहाँ संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।
(घ) जिसका नाम कैप्टन है। संज्ञा आश्रित उपवाक्य

21. निर्देशानुसार उत्तर लिखिए –
(क) एक साल पहले बने कॉलेज में शीला अग्रवाल की नियुक्ति हुई थी। (संयुक्त वाक्य में बदलिए)
(ख) जो व्यक्ति साहसी है उनके कोई कार्य असंभव नहीं है। (सरल वाक्य में बदलिए)
(ग) सवार का संतुलन बिगड़ा और वह गिर गया। (मिश्रवाक्य में बदलिए)
(घ) केवट ने कहा कि बिना पाँव धोए आपको नाव पर नहीं चढ़ाऊँगा। (आश्रित उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए) उत्तर :
(क) कॉलेज एक साल पहले बना था और उसमें शीला अग्रवाल की नियुक्ति हुई थी।
(ख) साहसी व्यक्ति के लिए कोई कार्य असंभव नहीं है।
(ग) जैसे ही सवार का संतुलन बिगड़ा वैसे ही वह गिर गया।
(घ) कि बिना पाँव धोए आपको नाव पर नहीं चढ़ाऊँगा।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण रचना के आधार पर वाक्य-भेद

22. निर्देशानुसार उत्तर लिखिए –
(क) उसने स्टेडियम जाकर क्रिकेट मैच देखा। (संयुक्त वाक्य)
(ख) जैसे ही बच्चे को खिलौना मिला वह चुप हो गया। (सरल वाक्य में बदलिए)
(ग) मन्नू जी की साहित्यिक उपलब्धियों के लिए उन्हें अनेक पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। (मिश्र वाक्य में बदलिए)
(घ) जो शांति बरसती थी वह चेहरे में स्थिर थी। (आश्रित उपवाक्य छाँटकर उसका भेद लिखिए)
उत्तर :
(क) वह स्टेडियम गया और क्रिकेट मैच देखा।
(ख) खिलौना मिलने के बाद बच्चा चुप हो गया।
उत्तर
(ग) जो मन्न जी हैं उन्हें साहित्यिक उपलब्धियों के लिए अनेक पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं।
(घ) वह चेहरे में स्थिर थी।

23. निर्देशानुसार उत्