JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 17 कारतूस

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 17 कारतूस Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 17 कारतूस

JAC Class 10 Hindi कारतूस Textbook Questions and Answers

मौखिक निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
कर्नल कालिंज का खेमा जंगल में क्यों लगा हुआ था?
उत्तर :
कर्नल कालिंज ने वज़ीर अली को पकड़ने के लिए जंगल में खेमा लगाया हुआ था।

प्रश्न 2.
वज़ीर अली से सिपाही क्यों तंग आ चुके थे?
उत्तर :
वज़ीर अली की तलाश में जंगल में खेमा लगाए हुए कई दिन बीत चुके थे, किंतु वजीर अली पकड़ में नहीं आ रहा था। इसी कारण सिपाही वज़ीर अली से तंग आ गए थे।

प्रश्न 3.
कर्नल ने सवार पर नज़र रखने के लिए क्यों कहा?
उत्तर :
कर्नल को सवार पर शक था। इसी कारण उसने सिपाहियों से सवार पर नज़र रखने के लिए कहा।

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प्रश्न 4.
सवार ने क्यों कहा कि वज़ीर अली की गिरफ्तारी बहुत मुश्किल है?
उत्तर :
सवार वास्तव में वज़ीर अली था। वह एक जाँबाज सिपाही था और वह जानता था कि उसे गिरफ्तार करना आसान नहीं है। इसी
कारण उसने कहा कि वज़ीर अली को गिरफ्तार करना बहुत मुश्किल है।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
वज़ीर अली के अफ़साने सुनकर कर्नल को राँबिनहुड की याद क्यों आ जाती थी ?
उत्तर :
वज़ीर अली और रॉबिनहुड में काफ़ी समानता थी। वज्तीर अली भी रॉंबिनहुड के समान दिलेर और निडर था। रॉबिनहुड अमीरों को लूटकर गरीबों में धन बाँटा करता था और वज़ीर अली अपने देशवासियों को आज़ाद करवाने के लिए प्रयास कर रहा था। रॉबिनहुड की वीरता और साहस के समान वज़ीर अली की वीरता और साहस भी प्रसिद्ध था। इसी कारण वज़ीर अली के कारनामे सुनकर कर्नल को रॉंबिनहुड की याद आ जाती थी।

प्रश्न 2.
सआदत अला का सआदत अली कौन था? उसने वज़ीर अली की पैदाइश को अपनी मौत क्यों समझा ?
उत्तर :
सआदत अली अवध के नवाब आसिफ़उद्दौला का भाई था। वज़ीर अली आसिफ़उद्दौला का पुत्र था। सआदत अली अपने भाई के साथ गद्दारी करके अंग्रेजों के साथ मिल गया था। जब वज़ीर अली का जन्म हुआ था, उसे आभास हो गया कि वह अवश्य उसे मार डालेगा। इसलिए वह वज़ीर अली की पैदाइश को अपनी मौत समझता था।

प्रश्न 3.
सआदत अली को अवध के तख्त पर बिठाने के पीछे कर्नल का क्या मकसद था?
उत्तर :
सआदत अली अंग्रेजों का मित्र बन गया था। वह ऐशो-आराम से जीवन जीने वाला व्यक्ति था। कर्नल चाहता था कि वह अवध के तख्त पर ऐसे व्यक्ति को बिठाए, जो ब्रिटिश सरकार को अच्छा-खासा पैसा दे। सआदत अली ऐसा ही व्यक्ति था। उसने अपनी आधी जायदाद और दस लाख रुपये नकद ब्रिटिश सरकार को दे दिए थे। इसी कारण कर्नल ने सआदत अली को अवध के तख्त पर बिठाया था।

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प्रश्न 4.
कंपनी के वकील का कत्ल करने के बाद वजीर अली ने अपनी हिफाजत कैसे की?
उत्तर :
बनारस में कंपनी के वकील का कत्ल करने के बाद वज़ीर अली आजमगढ़ की हिफाजत चला गया। इसके बाद आजमगढ़ के शासक की मदद से वह घागरा तक पहुँच गया। वह अपने कुछ साथियों के साथ वहाँ के जंगलों में छिप गया। उन जंगलों में उसे ढूँढ़ना सरल नहीं था। इस प्रकार उसने अपनी हिफाज़त की।

प्रश्न 5.
सवार के जाने के बाद कर्नल क्यों हक्का-बक्का रह गया?
उत्तर :
सवार वास्तव में वज़ीर अली था। जब उसने ब्रिटिश सेना के खेमे में जाकर कर्नल को मूर्ख बनाया और उससे दस कारतूस भी ले गया, तो कर्नल उसकी दिलेरी को देखकर हैरान रह गया। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि कोई व्यक्ति इतना जाँबाज़ भी हो सकता है। कर्नल – वजीर अली के इस साहस और वीरता को देखकर हक्का-बक्का रह गया था।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
लेफ़्टीनेंट को ऐसा क्यों लगा कि कंपनी के खिलाफ़ सारे हिंदुस्तान में एक लहर दौड़ गई है?
उत्तर :
लेफ़्टीनेंट ने सुना था कि वज़ीर अली अफ़गानिस्तान के शासक शाहे- ज़मा को हिंदुस्तान पर आक्रमण करने का निमंत्रण दे रहा है, ताकि वह अंग्रेज़ी शासन की जड़ें हिला सके। कर्नल ने उसे बताया कि इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वज़ीर अली अफ़गानिस्तान के शासक को दिल्ली भी बुला चुका है। साथ ही बंगाल के नवाब का भाई शमसुद्दौला भी हिंदुस्तान के अंग्रेज़ी शासन पर आक्रमण करवाना चाहता है। इस प्रकार अवध से बंगाल तक सभी अंग्रेज़ी शासन को नष्ट करने का मन बना चुके हैं। इसी कारण लेफ़्टीनेंट को लगा कि कंपनी के खिलाफ़ सारे हिंदुस्तान में एक लहर दौड़ गई है।

प्रश्न 2.
वज़़ीर अली ने कंपनी के वकील का कत्ल क्यों किया ?
उत्तर :
यहाँ कंपनी से तात्पर्य ईस्ट इंडिया कंपनी से है। कंपनी ने अवध के नवाब वज़ीर अली को उसके पद से हटाकर बनारस पहुँचा दिया। कुछ समय बाद ब्रिटिश सरकार के गवर्नर जनरल ने वज़ीर अली को कलकत्ता (कोलकाता) बुलवाया। वज़ीर अली को इस प्रकार बुलवाया जाना उचित नहीं लगा। उसने कंपनी के वकील से इसकी शिकायत की। लेकिन वकील ने शिकायत पर ध्यान न देकर उसी को भला-बुरा कह दिया। वज़ीर अली अंग्रेज़ों से नफ़रत करता था। अतः जब वकील ने ऐसा दुर्व्यवहार किया, तो गुस्से में आकर वज़ीर अली ने उसका कत्ल कर दिया।

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प्रश्न 3.
सवार ने कर्नल से कारतूस कैसे हासिल किए ?
उत्तर :
कर्नल कालिंज वज़ीर अली को पकड़ने के लिए एक लेफ़्टीनेंट और कुछ सिपाहियों के साथ जंगल में खेमा लगाए हुए था। एक दिन उसे एक सवार खेमेमे की ओर आता दिखाई दिया। उस सवार ने उससे अकेले में बातचीत करने के लिए कहा। कर्नल ने इसे स्वीकार कर लिया। तब सवार ने कहा कि वह वज़ीर अली को गिरफ़्तार कर सकता है और उसके लिए उसे कुछ कारतूस चाहिए। कर्नल ने तुरंत उसे दस कारतूस दे दिए। वास्तव में वह सवार वज़ीर अली था। इस प्रकार उसने बड़ी चालाकी से कर्नल से कारतूस हासिल किए।

प्रश्न 4.
वज़ीर अली एक जाँबाज सिपाही था, कैसे ? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
वज़ीर अली ने कर्नल को कैसे मात दी ?
उत्तर :
वज़ीर अली का एकमात्र उद्देश्य अंग्रेज़ों को भारत से बाहर निकालना था। उसकी वीरता और साहस के कारण अंग्रेज़ भी उससे डरते थे। उसने दिलेरी दिखाते हुए अंग्रेज़ बटालियन के खेमे में पहुँचकर वहाँ से कारतूस प्राप्त किए। उसकी निडरता को देखकर कर्नल कालिंज भी हक्का-बक्का रह गया। वज़ीर अली ने शक्तिशाली ईस्ट इंडिया कंपनी से सीधे टक्कर लेने का साहस दिखाया था। कर्नल कालिंज पर उसकी बहादुरी का इतना प्रभाव पड़ा कि उसके मुँह से शब्द ही नहीं निकल रहे थे। वह अपनी जान पर खेलकर साहसिक कारनामे करता था। इससे सिद्ध होता है कि वज़ीर अली एक जाँबाज सिपाही था।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
मुठ्ठी भर आदमी और ये दमखम।
उत्तर :
प्रस्तुत कथन कर्नल कालिंज का है। वह वज़ीर अली की बहादुरी और साहस के विषय में कहता है कि उसके पास मुट्ठी भर लोग हैं, किंतु वह शक्तिशाली ईस्ट इंडिया कंपनी से टक्कर ले रहा है। वह कंपनी के वकील को मार चुका है और अंग्रेज़ों को हिंदुस्तान से बाहर निकालने की कोशिश में लगा हुआ है। यद्यपि उसके साथ अधिक लोग नहीं हैं, फिर भी उसका साहस कम नहीं है। वह थोड़-से लोगों के साथ ही ब्रिटिश सरकार का मुकाबला करने को तैयार है।

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प्रश्न 2.
गर्द तो ऐसे उड़ रही है जैसे कि पूरा एक काफ़िला चला आ रहा हो मगर मुझे तो एक ही सवार नज़र आता है।
उत्तर :
प्रस्तुत कथन में कर्नल कालिंज घोड़े पर सवार वज़ीर अली को अपनी ओर आता देखकर कहता है कि उड़ती हुई धूल से ऐसा प्रतीत हो रहा है, मानो अनेक लोगों का समूह उनकी ओर बढ़ रहा है। धूल अधिक उड़ रही है, किंतु घुड़सवार केवल एक दिखाई दे रहा है। वास्तव में वह धूल वज़ीर अली के घोड़े के अधिक तेज़ दौड़ने के कारण उड़ रही थी।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों का एक-एक पर्याय लिखिए –
खिलाफ़, पाक, उम्मीद, हासिल, कामयाब, वजीफ़ा, नफ़रत, हमला, इंतज़ार, मुमकिन
उत्तर :

  • खिलाफ़ = विरुद्ध
  • पाक = पवित्र
  • उम्मीद = आशा
  • हासिल = प्राप्त
  • कामयाब = सफल
  • वजीफ़ा = छात्रवृत्ति
  • नफ़रत = घृणा
  • हमला = आक्रमण
  • इंतज़ार = प्रतीक्षा
  • मुमकिन = संभव

प्रश्न 2.
निम्नलिखित मुहावरों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
आँखों में धूल झोंकना, कूट-कूट कर भरना, काम तमाम कर देना, जान बखा देना, हक्का-बक्का रह जाना।
उत्तर :
आँखों में धूल झोंकना – पुलिस की आँखों में धूल झोंककर चोर भाग गया।
कूट-कूट कर भरना – भगतसिंह में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी।
काम तमाम कर देना – भारतीय सैनिकों ने अनेक शत्रु सैनिकों का काम तमाम कर दिया।
जान बखा देना – डाकू ने राहगीरों से रुपये तो लूट लिए, लेकिन उनकी जान बखा दी।
हक्का-बक्का रह जाना – रानी लक्ष्मीबाई की वीरता को देखकर अंग्रेज़ हक्के-बक्के रह गए।

प्रश्न 3.
कारक वाक्य में संज्ञा या सर्वनाम का क्रिया के साथ संबंध बताता है। निम्नलिखित वाक्यों में कारकों को रेखांकित कर उनके नाम लिखिए –
(क) जंगल की जिंदगी बड़ी खतरनाक होती है।
(ख) कंपनी के खिलाफ़ सारे हिंदुस्तान में एक लहर दौड़ गई।
(ग) वज़ीर को उसके पद से हटा दिया गया।
(घ) फ़ौज के लिए कारतूस की आवश्यकता थी।
(ङ) सिपाही घोड़े पर सवार था।
उत्तर :
(क) जंगल की जिंदगी बडी खतरनाक होती है। – संबंध कारक
(ख) कंपनी के खिलाफ़ सारे हिंदुस्तान में एक लहर दौड़ गई। – संबंध कारक, अधिकरण कारक
(ग) वज़ीर को उसके पद से हटा दिया गया। – कर्म कारक, संबंध कारक, अपादान कारक
(घ) फ़ौज के लिए कारतूस की आवश्यकता थी। – संप्रदान कारक, कर्म कारक
(ङ) सिपाही घोड़े पर सवार था। – अधिकरण कारक

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प्रश्न 4.
क्रिया का लिंग और वचन सामान्यतः कर्ता और कर्म के लिंग और वचन के अनुसार निर्धारित होता है। वाक्य में कर्ता और कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार जब क्रिया के लिंग, वचन आदि में परिवर्तन होता है तो उसे अन्विति कहते हैं।
क्रिया के लिंग, वचन में परिवर्तन तभी होता है जब कर्ता या कर्म परसर्ग रहित हों;
जैसे-स सवार कारतूस माँग रहा था। (कर्ता के कारण)
सवार ने कारतुस माँगे। (कर्म के कारण)
कर्नल ने वज़ीर अली को नहीं पहचाना। (यहाँ क्रिया कर्ता और कर्म किसी के भी कारण प्रभावित नहीं है)
अतः कर्ता और कर्म के परसर्ग सहित होने पर क्रिया कर्ता और कर्म में से किसी के भी लिंग और वचन से प्रभावित नहीं होती वह एकवचन पुल्लिंग में ही प्रयुक्त होती है। नीचे दिए गए वाक्यों में ‘ने’ लगाकर उन्हें दुबारा लिखिए –
(क) घोड़ा पानी पी रहा था।
(ख) बच्चे दशहरे का मेला देखने गए।
(ग) रॉंबिनहुड गरीबों की मदद करता था।
(घ) देशभर के लोग उसकी प्रशंसा कर रहे थे।
उत्तर :
(क) घोड़े ने पानी पीया।
(ख) बच्चों ने दशहरे का मेला देखा।
(ग) रॉबिनहुड ने गरीबों की मदद की।
(घ) देशभर के लोगों ने उसकी प्रशंसा की।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्यों में उचित विराम-चिह्न लगाइए –
(क) कर्नल ने कहा सिपाहियो इस पर नज़र रखो ये किस तरफ़ जा रहा है
(ख) सवार ने पूछा आपने इस मुकाम पर क्यों खेमा डाला है इतने लावलश्कर की क्या ज़रूरत है
(ग) खेमे के अंदर दो व्यक्ति बैठे बातें कर रहे थे चाँदनी छिटकी हुई थी और बाहर सिपाही पहरा दे रहे थे एक व्यक्ति कह रहा था दुश्मन कभी भी हमला कर सकता है
उत्तर :
(क) कर्नल ने कहा, “सिपाहियो! इस पर नज़र रखो, ये किस तरफ़ जा रहा है?”
(ख) सवार ने पूछा, “आपने इस मुकाम पर क्यों खेमा डाला है? इतने लावलश्कर की क्या ज़रूरत है?”
(ग) खेमे के अंदर दो व्यक्ति बैठे बातें कर रहे थे। चाँदनी छिटकी हुई थी और बाहर सिपाही पहरा दे रहे थे। एक व्यक्ति कह रहा था, “दुश्मन कभी भी हमला कर सकता है।”

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
पुस्तकालय से रॉबिनहुड के साहसिक कारनामों के बारे में जानकारी हासिल कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

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प्रश्न 2.
वृंदावनलाल वर्मा की कहानी इब्राहिम गार्दी पढ़िए और कक्षा में सुनाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

परियोजना-कार्य –

प्रश्न 1.
‘कारतूस’ एकांकी का मंचन अपने विद्यालय में कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
‘एकांकी’ और ‘नाटक’ में क्या अंतर है? कुछ नाटकों और एकांकियों की सूची तैयार कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 10 Hindi कारतूस Important Questions and Answers

निबंधात्मक प्रश्न –

प्रश्न 1.
जंगल में किसने खेमा लगाया हुआ था और क्यों?
उत्तर :
जंगल में कर्नल कालिंज ने खेमा लगाया हुआ था। ईस्ट इंडिया कंपनी ने उसे वज़ीर अली को पकड़ने का आदेश दिया था। इस आदेश को पूरा करने के लिए ही वह एक लेफ़्टीनेंट और कुछ सिपाहियों के साथ जंगल में खेमा लगाए हुए था। वह काफी समय से जंगलों में भटक रहा है, किंतु वज़ीर अली को पकड़ने में सफल नहीं हो सका।

प्रश्न 2.
शमसुद्दौला कौन था? एकांकी में उसका नाम किस संदर्भ में आया है?
उत्तर :
शमसुद्दौला बंगाल के नवाब का रिश्ते में भाई लगता था। वह अंग्रेजों से बहुत नफ़रत करता था। वह बहुत वीर एवं साहसी व्यक्ति था। उसने अफ़गानिस्तान के शासक शाहे-ज़मा को हिंदुस्तान पर आक्रमण करने का निमंत्रण दिया था। वह किसी भी प्रकार से अंग्रेजी हुकूमत को हिंदुस्तान से बाहर निकालना चाहता था। एकांकी में अफ़गानिस्तान के शासक को वज़ीर अली द्वारा निमंत्रण देने के संदर्भ में शमसुददौला का नाम आया है। कर्नल कालिंज लेफ्टीनेंट को बताता है कि शमसुद्दौला भी अंग्रेजी हुकूमत के लिए बहुत खतरनाक है।

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प्रश्न 3.
वज़ीर अली ने कंपनी के वकील का कत्ल क्यों किया? इसके बाद वह कहाँ भाग गया?
उत्तर :
कंपनी के वकील से वज़ीर अली ने शिकायत की थी कि उसे बार-बार कलकत्ता न बुलाया जाए। किंतु वकील ने उसे ही भला-बुरा कहा। इससे क्रोधित होकर वज़ीर अली ने उसका कत्ल कर दिया। उसके बाद वह अपने कुछ साथियों के साथ आजमगढ़ की ओर भाग गया। आजमगढ़ के शासक ने मदद करते हुए उसे आगरा तक पहुँचा । दिया। तभी से वज़ीर अली अपने साथियों के साथ वहीं के जंगलों में ही रहने लगा था।

प्रश्न 4.
वज़ीर अली के चरित्र की किन्हीं तीन चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
वज़ीर अली कौन था? उसके चरित्र की विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर :
वजीर अली की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
(i) देशभक्त-वज़ीर अली एक सच्चा देशभक्त है। वह हिंदुस्तान को गुलाम बनाने वाले अंग्रेजों से नफ़रत करता है। वह किसी भी प्रकार से अंग्रेजों को हिंदुस्तान से निकालकर बाहर कर देना चाहता है।
(ii) वीर एवं साहसी-वज़ीर अली अत्यंत वीर एवं साहसी है। दुश्मन भी उसकी वीरता का लोहा मानते हैं। वह सीधे दुश्मन के खेमे में जाकर उसे ललकारने में विश्वास रखता है। वह कर्नल कालिंज के खेमे में जाकर उससे कारतूस लेकर आता है।
(iii) अच्छा शासक-वज़ीर अली एक अच्छा शासक है। उसने केवल पाँच महीने अवध की बागडोर संभाली, किंतु इस दौरान उसने अपनी रियासत को अंग्रेज़ी प्रभाव से लगभग मुक्त करके उसे स्वतंत्र जीवन प्रदान किया।

प्रश्न 5.
‘कारतूस’ एकांकी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
‘कारतूस’ हबीब तनवीर द्वारा रचित एक श्रेष्ठ एकांकी है। इसकी भाषा उर्दू-फ़ारसी मिश्रित हिंदी है। इसमें तत्सम, तद्भव एवं अंग्रेज़ी भाषाओं के शब्दों का भी समन्वय हुआ है। इसमें संवादात्मक एवं चित्रात्मक शैली है, जो पात्रों के मनोभावों को व्यक्त करने में पूर्णतः सक्षम है। इनकी शैली में नाटकीयता, रोचकता एवं प्रभावोत्कता के गुण विद्यमान हैं। मुहावरों एवं लोकोक्तियों के प्रयोग से सजीवता एवं रोचकता का समावेश हुआ है।

प्रश्न 6.
‘कारतूस’ एकांकी का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
हबीब तनवीर द्वारा लिखित एकांकी ‘कारतूस’ में उन्होंने 1799 ई० में घटित ऐतिहासिक घटना को सजीवता प्रदान की है। आरंभ में अंग्रेज़ भारतवर्ष में व्यापारी के रूप में आए, किंतु धीरे-धीरे ईस्ट इंडिया कंपनी ने हिंदुस्तान की रियासतों पर कब्जा जमाना शुरू कर दिया। इसे देखते हुए भारत के देशभक्त अंग्रेज़ों को भारत से खदेड़ने के प्रयास करने लगे। अनेक हिंदुस्तानी नौजवानों ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अपना योगदान दिया। इस एकांकी में वज़ीर अली नामक पात्र के माध्यम से तत्कालीन हिंदुस्तानी जाँबाजों की वीरता का सुंदर चित्रण किया गया है।

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
सआदत अली का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा
‘कारतूस’ पाठ में सआदत अली को किस प्रकार का व्यक्ति बताया गया है?
उत्तर :
सआदत अली ऐशो-आराम चाहने वाला व्यक्ति था। वह अंग्रेजी सरकार का पिट्ठू था, इसलिए उसने अंग्रेजी सरकार की अधीनता स्वीकार कर ली। वह एक देशद्रोही था।

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प्रश्न 2.
कर्नल लेफ्टीनेंट को वज़ीर अली के बारे में क्या बताता है?
उत्तर :
कर्नल लेफ्टीनेंट को वजीर अली के बारे में बताता है कि वह रॉबिनहुड के समान वीर एवं साहसी है। अंग्रेजों से उसे घृणा है। वह भारत को अंग्रेजों से मुक्त करना चाहता है और अंग्रेजों को भारत से निकालने के लिए निरंतर योजनाएँ बनाता रहता है।

प्रश्न 3.
सआदत अली ने अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार करने के साथ उन्हें और क्या दिया?
उत्तर :
सआदत अली ने अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार करने के साथ उन्हें अपनी आधी जायदाद तथा दस लाख रुपये दे दिए। सआदत अली का यह काम उसकी चाटुकारिता को दर्शाता है।

प्रश्न 4.
ईस्ट इंडिया कंपनी ने वज़ीर अली के साथ क्या किया?
उत्तर :
ईस्ट इंडिया कंपनी ने वज़ीर अली को अवध के नवाब पद से हटा दिया और उसके स्थान पर सआदत अली को अवध का नवाब बना दिया।

कारतूस Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन-हबीब तनवीर का जन्म सन 1923 में छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में हुआ था। इन्होंने सन 1944 में नागपुर से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इनकी नाट्य-क्षेत्र में विशेष रुचि थी। ये नाट्य लेखन का अध्ययन करने ब्रिटेन भी गए। बाद में दिल्ली लौटकर इन्होंने नाट्यमंच की स्थापना की। हबीब तनवीर एक नाटककार, कवि, पत्रकार, नाट्य निर्देशक तथा अभिनेता के रूप में काफ़ी प्रसिद्ध रहे। लोकनाट्य के क्षेत्र में इनका कार्य महत्वपूर्ण एवं प्रशंसनीय रहा है। हबीब तनवीर को अनेक पुरस्कारों, फेलोशिप तथा पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया। रचनाएँ-हबीब तनवीर मुख्य रूप से नाटककार हैं।

इनकी प्रसिद्ध रचनाओं में आगरा बाजार, चरनदास चोर, देख रहे हैं नैन तथा हिरमा की अमर कहानी हैं। इन्होंने कई रचनाओं का हिंदी में अनुवाद भी किया है। इसके साथ-साथ हबीब तनवीर ने बसंत ऋतु का सपना, शाजापुर की शांति बाई, मिट्टी की गाड़ी तथा मुद्राराक्षस जैसे नाटकों का आधुनिक रूपांतर भी किया। भाषा-शैली-हबीब तनवीर की भाषा उर्दू-फ़ारसी मिश्रित हिंदी है। इनकी भाषा में सरलता, सरसता और सहजता सर्वत्र विद्यमान है। चित्रात्मकता, प्रभावोत्यादकता तथा रोचकता इनकी भाषा-शैली के अन्य गुण हैं।

प्रस्तुत एकांकी ‘कारतूस’ में भी इनकी उर्दू फ़ारसी मिश्रित हिंदी के दर्शन होते हैं। कहीं-कहीं तो पूरे वाक्य ही उर्दू-फ़ारसी में आ गए हैं। ऐसे स्थानों पर साधारण पाठक को थोड़ी कठिनाई अवश्य हुई है; जैसे वज़ीर अली का यह कथन-‘दीवार हमगोश दारद तन्हाई। इसके अतिरिक्त एकांकी की भाषा में सामान्य बोलचाल के शब्दों का अधिक प्रयोग हुआ है।

उदाहरणस्वरूप-‘वजीर अली कंपनी के वकील के पास गया जो बनारस में रहता था और उससे शिकायत की कि गवर्नर-जनरल उसे कलकत्ता (कोलकाता) में क्यूँ तलब करता है। वकील ने शिकायत की परवाह नहीं की उल्टा उसे बुरा-भला सुना दिया।’ हबीब तनवीर की शैली संवादात्मक है, जो पात्रों के मनोभावों को व्यक्त करने में पूर्णतः सक्षम है। इनकी शैली में नाटकीयता, चित्रात्मकता तथा स्पष्टता साफ़ दिखाई देती है।

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पाठ का सार :

‘कारतूस’ हबीब तनवीर द्वारा रचित एक श्रेष्ठ एकांकी है। इस एकांकी में उन्होंने हिंदुस्तान के सन 1799 के वातावरण को सजीव कर दिया है। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उस समय तक हिंदुस्तान पर अपना काफ़ी अधिकार जमा लिया था। इस एकांकी में वज़ीर अली नामक पात्र के माध्यम से लेखक ने तत्कालीन हिंदुस्तानी वीरों की वीरता का सुंदर चित्रण किया है।

एकांकी का आरंभ ईस्ट इंडिया कंपनी की एक बटालियन के कर्नल कालिंज और उसके लेफ्टीनेंट की बातचीत से होता है। कर्नल एक लेफ्टीनेंट और कुछ सिपाहियों के साथ वजीर अली नामक एक वीर हिंदुस्तानी को गिरफ्तार करने के लिए गोरखपुर के जंगल में खेमा लगाए हुए है। कर्नल लेफ्टीनेंट को बताता है कि वज़ीर अली रॉबिनहुड के समान वीर एवं साहसी है।

वह अंग्रेजों से घृणा करता है और उन्हें हिंदुस्तान से बाहर निकालना चाहता है। ईस्ट इंडिया कंपनी वज़ीर अली को अवध के नवाब पद से हटाकर उसके स्थान पर सआदत अली को अवध का नवाब बना देती है। सआदत अली ऐशो-आराम पसंद करने वाला व्यक्ति है। वह अंग्रेज़ी सरकार की अंधीनता स्वीकार कर लेता है और अपनी आधी जायदाद व दस लाख रुपये ब्रिटिश सरकार को दे देता है।

कर्नल लेफ़्टीनेंट को बताता है कि वज़ीर अली बहुत खतरनाक आदमी है। वह अफ़गानिस्तान के शासक से मिलकर अंग्रेज़ी सरकार की जड़ें हिलाना चाहता है। उसने ईस्ट इंडिया कंपनी के वकील को भी मार डाला था। वह बहुत ही निडर और साहसी है। अंग्रेज़ी सरकार उसे गिरफ्तार करना चाहती है, किंतु किसी भी तरह से वह उसे पकड़ नहीं पा रही।

कर्नल बताता है कि वज़ीर अली की योजना हिंदुस्तान पर अफ़गानी हमला करवाकर अंग्रेजों की शक्ति कमज़ोर करना, अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाकर अवध का नवाब पद हासिल करना और अंग्रेजों को हिंदुस्तान से बाहर निकालना है। कर्नल कालिंज और लेफ़्टीनेंट इस प्रकार की बातें कर ही रहे थे कि तभी उन्हें दूर से किसी घुड़सवार के आने की आवाज़ सुनाई देती है। कर्नल अपने सिपाहियों को उस सवार पर नज़र रखने का आदेश देता है। थोड़ी ही देर में वह घुड़सवार कर्नल और लेफ्टीनेंट के समीप आकर खड़ा हो जाता है।

घुड़सवार कर्नल कालिंज से मिलने की इच्छा प्रकट करता है। उसे कर्नल तक पहुँचाया जाता है। घुड़सवार कर्नल से कहता है कि वह उससे अकेले में कुछ बात करना चाहता है। कर्नल सिपाही और लेफ़्टीनेंट को बाहर भेज देता है। घुड़सवार कर्नल से पूछता है कि उसने जंगल में खेमा क्यों लगाया हुआ है और वह क्या चाहता है ? कर्नल उसे बताता है कि वह वज़ीर अली को पकड़ना चाहता है। घुड़सवार कर्नल से कुछ कारतूस माँगता है और कहता है कि उसे ये कारतूस वज़ीर अली को पकड़ने के लिए चाहिए।

कर्नल उसे दस कारतूस दे देता है। कर्नल जब उससे उसका नाम पूछता है, तो वह अपना नाम वज्तीर अली बताता है। कर्नल उसका नाम सुनते ही हक्काबक्का रह जाता है। वह उसकी दिलेरी देखकर सन्नाटे में आ जाता है। वज़ीर अली कारतूस लेकर घोड़े पर सवार होकर चला जाता है। उसके जाने के बाद लेप़्टीनेंट अंदर आकर कर्नल से पूछता है कि वह कौन था, तो कर्नल के मुख से यही निकलता है-‘ एक जाँबाज़ सिपाही’।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 17 कारतूस

कठिन शब्दों के अर्थ :

खेमा – डेरा/अस्थायी पड़ाव, अंदरूनी – भीतरी, खतरनाक – भयंकर, अफ़साने (अफ़साना) – कहानियाँ, कारनामे (कारनामा) – ऐसे काम जो याद रहें, खिलाफ़ – विरुद्ध, नफ़रत – घृणा, असर – प्रभाव, हकमत – शासन, तकरीबन – लगभग, कामयाब में, उम्मीद – आशा, पैदाइश – जन्म, तख्त – सिंहासन, मसलेहत – रहस्य, ऐश-पसंद – भोग-विलास पसंद करने वाला, मुसीबत – धन-दौलत, जायदाद, हमला – आक्रमण, जाँबाज – जान की बाजी लगाने वाला, दमखम – शक्ति और दृढ़ता, जाती तौर से – व्यक्तिगत रूप से, सलाना – वार्षिक, वजीफ़ा – परवरिश के लिए दी जाने वाली राशि, मुकर्रर – तय करना,

तलब किया – याद किया, परवाह – चिंता, काम तमाम करना – मार देना, हुकमराँ – शासक, हिफाज़त – सुरक्षा, स्कीम – योजना, मुमकिन – संभव, गर्द – धूल, मसरूफ – व्यस्त, काफ़िला – एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में। जाने वाले यात्रियों का समूह, शुब्हा – संदेह, गुंजाइश – संभावना, करीब – समीप, खामोश – चुप, तन्हाई – एकांत, राजेदिल – दिल की बात, दीवार हमगोश दारद तनहाई – दीवारों के भी कान होते हैं, राज की बात तनहाई में कही जाती है, मकाम – पड़ाव, हुक्म – आदेश, लावलश्कर – सेना का बड़ा समूह और युद्ध-सामग्री, कारतूस = पीतल आदि की एक नली जिसमें बारूद भरा रहता है, हक्का-बक्का रह जाना = हैरान होना

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा

JAC Class 10 Hindi तताँरा-वामीरो कथा Textbook Questions and Answers

मौखिक –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
तताँरा-वामीरो कहाँ की कथा है?
उत्तर :
तताँरा-वामीरो अंडमान-निकोबार द्वीप समूह की कथा है।

प्रश्न 2.
वामीरो अपना गाना क्यों भूल गई?
उत्तर :
वामीरो जब गा रही थी, तो अचानक समुद्र में ऊँची लहर उठी और उसे पूरी तरह भिगो गई। यह देखकर वह हड़बड़ा गई और हड़बड़ाहट में गाना भूल गई।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा

प्रश्न 3.
तताँरा ने वामीरो से क्या याचना की?
उत्तर :
तताँरा ने वामीरो से गाना पूरा करने और अगले दिन पुनः उसी स्थान पर आने की याचना की।

प्रश्न 4.
तताँरा और वामीरो के गाँव की क्या रीति थी?
उत्तर
गाँव की रीति के अनुसार विवाह के लिए वर और वधू का एक ही गाँव का होना आवश्यक था। दूसरे गाँव में विवाह करना :
अनुचित था।

प्रश्न 5.
क्रोध में तताँरा ने क्या किया?
उत्तर :
क्रोध में तताँरा ने कार-निकोबार द्वीप समूह को दो भागों में विभक्त कर दिया।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30) शब्दों में लिखिए – 

प्रश्न 1.
तताँरा की तलवार के बारे में लोगों का क्या मत था?
उत्तर :
तताँरा लकड़ी की एक तलवार को सदैव अपनी कमर से बाँधे रखता था। लोगों का मानना था कि उस तलवार में अद्भुत दैवीय-शक्ति थी। वे सोचते थे कि तताँरा अपने सभी साहसिक कारनामों को इसी तलवार के कारण ही कर पाता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा

प्रश्न 2.
वामीरो ने तताँरा को बेरुखी से क्या जवाब दिया?
उत्तर :
तताँरा के गीत को पूरा करने के आग्रह पर वामीरो ने उसे बड़ी बेरुखी से उत्तर दिया। उसने तताँरा से कहा कि पहले वह अपना परिचय दे और बताए कि वह उसे क्यों घूर रहा है। उसे उससे ऐसा असंगत प्रश्न भी नहीं पूछना चाहिए, क्योंकि गाँव की रीति के अनुसार वह अपने गाँव के युवक अतिरिक्त किसी अन्य गाँव के युवक के प्रश्न का उत्तर देने के लिए भी बाध्य नहीं है।

प्रश्न 3.
तताँरा-वामीरो की त्यागमयी मृत्यु से निकोबार में क्या परिवर्तन आया?
उत्तर :
तताँरा-वामीरो एक-दूसरे से प्रेम करते थे, किंतु गाँव की रीति के अनुसार उनका विवाह नहीं हो सकता था। तताँरा ने क्रोध में आकर पूरे द्वीप समूह को दो भागों में विभाजित कर दिया। इसमें तताँरा की मृत्यु हो गयी और वामीरो भी उसके प्रेम में पागल होने के बाद मर गई। उन दोनों की त्यागमयी मृत्यु के बाद निकोबार के लोग दूसरे गाँवों में भी वैवाहिक संबंध करने लगे।

प्रश्न 4.
निकोबार के लोग तताँरा को क्यों पसंद करते थे?
उत्तर :
तताँरा एक सुंदर और शक्तिशाली युवक था। वह नेक और मददगार था। दूसरों की सहायता करना वह अपना परम कर्तव्य समझता था। वह मुसीबत में प्रत्येक व्यक्ति की सहायता करने के लिए तैयार रहता था। उसकी इन्हीं विशेषताओं के कारण निकोबार के लोग तताँरा को पसंद करते थे।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60) शब्दों में लिखिए –

प्रश्न 1.
तताँरा खूब परिश्रम करने के बाद कहाँ गया? वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
तताँरा खूब परिश्रम करने के बाद समुद्र के किनारे टहलने के लिए गया। वह सूर्यास्त का समय था। सूर्य डूबने ही वाला था। समुद्र से आने वाली ठंडी हवा बहुत अच्छी लग रही थी। पक्षियों की मधुर चहचहाहट धीरे-धीरे सुनाई दे रही थी। सूर्य की अंतिम रंग-बिरंगी किरणें समुद्र के पानी में बहुत आकर्षक लग रही थीं। डूबता हुआ सूर्य ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो देखते-ही-देखते वह क्षितिज के नीचे समा जाएगा।

तताँरा ऐसे प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद ले रहा था कि तभी उसे एक मधुर गीत गूंजता हुआ सुनाई दिया। गीत की आवाज़ अत्यंत मधुर और मोहक थी। ऐसा प्रतीत होता था, मानो वह गीत बहता हुआ उसकी ओर ही आ रहा हो। उस गीत के बीच-बीच में लहरों का संगीत उसकी मधुरता को और भी बढ़ाने वाला था।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा

प्रश्न 2.
निकोबार द्वीपसमूह के विभक्त होने के बारे में निकोबारियों का क्या विश्वास है?
उत्तर :
निकोबारी इस दवीप समूह के विभक्त होने का कारण एक प्रेम कथा को मानते हैं। यह कथा तताँरा-वामीरो की है। तताँरा पासा गाँव का रहने वाला सुंदर नवयुवक था। वह साहसी, नेक और मददगार था। वामीरो समीप के गाँव लपाती की रहने वाली थी। दोनों एक दूसरे से प्रेम करने लगे, किंतु गाँव की परंपरा के अनुसार उनका विवाह नहीं हो सका।

एक दिन तताँरा और वामीरो को लोगों ने भला बुरा कहा। वामीरो जोर-जोर से रोने लगी। तताँरा इसे सहन नहीं कर सका। उसने क्रोध में भरकर अपनी तलवार को धरती में गाड़ दिया और पूरी शक्ति से अपनी ओर खींचता चला गया। उसने जहाँ-जहाँ से तलवार से काटा, वह सारा हिस्सा अलग होता चला गया। इस प्रकार निकोबार द्वीप समूह दो टुकड़ों में विभक्त हो गया।

प्रश्न 3.
वामीरो से मिलने के बाद तताँरा के जीवन में क्या परिवर्तन आया?
उत्तर :
वामीरो से मिलने के बाद तताँरा अपनी सुध-बुध खो बैठा। वह हर समय उसी के ख्यालों में डूबा रहता। उसका हृदय व्यथित रहने लगा। उसके मन में एक विचित्र-सी बेचैनी रहती। सदैव सबकी मदद के लिए तैयार रहने वाला तताँरा अब केवल वामीरो के बारे में सोचता रहता। वह बार-बार उससे मिलने की इच्छा करता। शक्तिशाली, शांत और गंभीर तताँरा अब चंचल-सा रहने लगा। उसे वामीरों के बिना एक-एक पल पहाड़-सा भारी प्रतीत होता। वामीरो से मिलने के बाद तताँरा का जीवन पूरी तरह बदल गया था।

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प्रश्न 4.
प्राचीन काल में मनोरंजन और शक्ति-प्रदर्शन के लिए किस प्रकार के आयोजन किए जाते थे?
उत्तर :
प्राचीन काल में मनोरंजन और शक्ति प्रदर्शन के लिए अस्त्र-शस्त्र चलाने संबंधी आयोजन तथा पशु-पर्व किए जाते थे। पशु-पर्व जैसे आयोजनों में पशुओं की शक्ति का प्रदर्शन किया जाता था। इसके अतिरिक्त युवकों व पशुओं के बीच में भी शक्ति-प्रदर्शन होता था। इस तरह के आयोजन में भोजन, नृत्य और संगीत की व्यवस्था भी की जाती थी।

प्रश्न 5.
रूढ़ियाँ जब बंधन बन बोझ बनने लगें तब उनका टूट जाना ही अच्छा है। क्यों ? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
तताँरा-वामीरो कथा के आधार पर प्रतिपादित कीजिए कि रूढ़ियाँ बंधन बनने लगें तो उन्हें टूट जाना चाहिए।
उत्तर :
प्रत्येक समाज अपने जीवन को व्यवस्थित ढंग से चलाने के लिए कुछ रूढ़ियों और परंपराओं का पालन करता है। समय के साथ-साथ इन रूढ़ियों और परंपराओं में परिवर्तन होना जरूरी है। यदि इनमें परिवर्तन न हो, तो ये रूढ़ियाँ बंधन बन जाती हैं। तब इनका निर्वाह करना बोझ के समान लगता है। नई पीढ़ी विकास चाहती है। ये रूढ़ियाँ तब विकास में भी बाधक बनती हैं। स्वतंत्र विचारों वाली पीढ़ी इसे स्वीकार नहीं कर पाती। यदि हम फिर भी इन रूढ़ियों और परंपराओं से चिपके रहे, तो हमारी आने वाली पीढ़ी का विकास रुकता है। बोझ बनी इन रूढ़ियों से न तो विकास हो सकता है और न ही स्वच्छ जीवनयापन। ऐसे में इन रूढ़ियों का टूट जाना ही अच्छा होता है।

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
जब कोई राह न सूझी तो क्रोध का शमन करने के लिए उसमें शक्ति भर उसे धरती में घोंप दिया और ताकत से उसे खींचने लगा।
उत्तर :
इन पंक्तियों में लेखक ने तताँरा के मनोभावों को व्यक्त किया है। तताँरा वामीरो से प्रेम करता है और उससे विवाह भी करना चाहता है, परंतु वामीरो का परिवार इसे पसंद नहीं करता। ‘पशु-पर्व’ पर आयोजित मेले में वामीरो की माता तताँरा को वामीरो के साथ देखकर आग-बबूला हो उठती है और उसे अपमानित करती है। गाँव के अन्य लोग भी तताँरा का विरोध करने लगते हैं। इस पर तताँरा क्रोध से भर उठता है, परंतु किसी पर क्रोध करने की बजाय वह अपनी तलवार को पूरा जोर लगाकर धरती में घोंप देता है और फिर उसे खींचने लगता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा

प्रश्न 2.
बस आस की एक किरण थी जो समुद्र की देह पर डूबती किरणों की तरह कभी भी डूब सकती थी।
उत्तर :
यहाँ लेखक ने वामीरो की प्रतीक्षा करते तताँरा की बेचैनी को स्पष्ट किया है। वह समुद्री चट्टान पर वामीरो की प्रतीक्षा में खड़ा था। उसे वामीरो के आने की बहुत कम आशा थी, फिर भी वह उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। वामीरो की आने की आशा सूर्यास्त के समय डूबते सूर्य की किरणों के समान थी। जिस प्रकार सूर्यास्त में सूर्य की किरणें धीरे-धीरे समाप्त हो रही थीं, उसी प्रकार वामीरो के वहाँ आने की आशा किसी भी समय समाप्त हो सकती थी।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
उत्तर
निम्नलिखित वाक्यों के सामने दिए गए कोष्ठक में (✓) का चिह्न लगाकर बताएँ कि वह वाक्य किस प्रकार का है (क) निकोबारी उसे बेहद प्रेम करते थे। (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)
(ख) तुमने एकाएक इतना मधुर गाना अधूरा क्यों छोड़ दिया ? (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)
(ग) वामीरो की माँ क्रोध में उफन उठी। (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)
(घ) क्या तुम्हें गाँव का नियम नहीं मालूम ? (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)
(ङ) वाह! कितना सुंदर नाम है। (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)
(च) मैं तुम्हारा रास्ता छोड़ दूंगा। (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)
उत्तर :
(क) निकोबारी उसे बेहद प्रेम करते थे। (विधानवाचक)
(ख) तुमने एकाएक इतना मधुर गाना अधूरा क्यों छोड़ दिया? (प्रश्नवाचक)
(ग) वामीरो की माँ क्रोध में उफन उठी। (विधानवाचक)
(घ) क्या तुम्हें गाँव का नियम नहीं मालूम? (प्रश्नवाचक)
(ङ) वाह! कितना सुंदर नाम है। (विस्मयादिबोधक)
(च) मैं तुम्हारा रास्ता छोड़ दूंगा। (विधानवाचक)

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा

प्रश्न 2.
निम्नलिखित मुहावरों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए
(क) सुध-बुध खोना
(ख) बाट जोहना
(ग) खुशी का ठिकाना न रहना
(घ) आग बबूला होना
(ङ) आवाज़ उठाना।
उत्तर :
(क) सुध-बुध खोना-जब मैंने पहली बार ताजमहल देखा, तो उसकी सुंदरता देखकर मैं अपनी सुध-बुध खो बैठा।
(ख) बाट जोहना-किसी की बाट जोहना अत्यंत कठिन कार्य है।
(ग) खुशी का ठिकाना न रहना-सुरेश के जिले में प्रथम आने की बात सुनकर उसके पिता की खुशी का ठिकाना न रहा।
(घ) आग बबूला होना-रमेश ने जब चोरी की, तो उसकी माँ आग बबूला हो उठी।
(ङ) आवाज़ उठाना-हमें भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिए।

प्रश्न 3.
नीचे दिए गए शब्दों में से मूल शब्द और प्रत्यय अलग करके लिखिए-
JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा 1
उत्तर :
JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा 2

प्रश्न 4.
नीचे दिए गए शब्दों में उचित उपसर्ग लगाकर शब्द बनाइए
………. + आकर्षक = ………
………. + ज्ञात = ……….
………. + कोमल = ………
……….. + होश = …………
………. + घटना = ………..
उत्तर :
अति + आकर्षक = अत्याकर्षक
अ + ज्ञात = अज्ञात
सु + कोमल = सुकोमल
बे + होश = बेहोश
दुर् + घटना = दुर्घटना

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा

प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार परिवर्तित कीजिए –
(क) जीवन में पहली बार मैं इस तरह विचलित हुआ हूँ। (मिश्र वाक्य)
(ख) फिर तेज़ कदमों से चलती हुई तताँरा के सामने आकर ठिठक गई। (संयुक्त वाक्य)
(ग) वामीरो कुछ सचेत हुई और घर की तरफ़ दौड़ी। (सरल वाक्य)
(घ) तताँरा को देखकर वह फूटकर रोने लगी। (संयुक्त वाक्य)
(ङ) रीति के अनुसार दोनों को एक ही गाँव का होना आवश्यक था। (मिश्र वाक्य)
उत्तर :
(क) जीवन में पहली बार ऐसा हुआ है कि मैं इस तरह विचलित हुआ हूँ।
(ख) फिर तेज़ कदमों से चली और तताँरा के सामने आकर ठिठक गई।
(ग) वामीरो कुछ सचेत होकर घर की तरफ़ दौड़ी।
(घ) उसने तताँरा को देखा और वह फूटकर रोने लगी।
(ङ) यह रीति थी कि दोनों को एक ही एक गाँव का होना आवश्यक था।

प्रश्न 6.
नीचे दिए गए वाक्य पढ़िए तथा ‘और’ शब्द के विभिन्न प्रयोगों पर ध्यान दीजिए –
(क) पास में सुंदर और शक्तिशाली युवक रहा करता था। (दो पदों को जोड़ना)
(ख) वह कुछ और सोचने लगी। (‘अन्य’ के अर्थ में)
(ग) एक आकृति कुछ साफ़ हुई … कुछ और … कुछ और … (क्रमश: धीरे-धीरे के अर्थ में)
(घ) अचानक वामीरो कुछ सचेत हुई और घर की तरफ़ दौड़ गई। (दो उपवाक्यों को जोड़ने के अर्थ में)
(ङ) वामीरो का दुख उसे और गहरा कर रहा था। (‘अधिकता’ के अर्थ में)
(च) उसने थोड़ा और करीब जाकर पहचानने की चेष्टा की। (‘निकटता’ के अर्थ में)
उत्तर :
विद्यार्थी इसे ध्यानपूर्वक समझें।

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प्रश्न 7.
नीचे दिए गए शब्दों के विलोम शब्द लिखिए –
भय, मधुर, सभ्य, मूक, तरल, उपस्थिति, सुखद।
उत्तर :

  • भय = निर्भय
  • सभ्य = असभ्य
  • तरल = ठोस
  • सुखद = दुखद
  • मधुर = कहु
  • मूक = वाचाल
  • उपस्थिति = अनुपस्थिति

प्रश्न 8.
नीचे दिए गए शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए –
समुद्र, आँख, दिन, अँधेरा, मुक्त।
उत्तर :

  • समुद्र = सागर, जलधि
  • दिन = दिवस, वासर
  • मुक्त = स्वतंत्र, आजाद
  • आँख = नयन, नेत्र
  • अँधेरा =अंधकार, तम

प्रश्न 9.
नीचे दिए गए शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
किंकर्तव्यविमूढ़, विह्वल, भयाकुल, याचक, आकंठ।
उत्तर :

  • किंकर्तव्यविमूढ़ – सचिन सड़क पर हुई दुर्घटना को देखकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया।
  • भयाकुल – अचानक सामने आए शेर को देखकर राम भयाकुल हो उठा।
  • विह्वल – कई दिनों के बाद अपने पुत्र से मिलकर माँ भाव-विह्वल हो उठी।
  • याचक – याचक को कभी खाली नहीं लौटाना चाहिए।
  • आकंठ – वह संगीत की महफिल में जाकर संगीत के सुरों में आकंठ डूब गया।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा

प्रश्न 10.
“किसी तरह आँचरहित एक ठंडा और ऊबाऊ दिन गुज़रने लगा’ वाक्य में दिन के लिए किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया गया है? आप दिन के लिए कोई तीन विशेषण और सुझाइए।
उत्तर :
वाक्य में दिन के लिए आँचरहित, ठंडा और ऊबाऊ विशेषणों का प्रयोग किया गया है। दिन के लिए तीन अन्य विशेषण हैं-गर्म दिन, शानदार दिन, मुसीबत भरा दिन।

प्रश्न 11.
इस पाठ में देखना’ क्रिया के कई रूप आए हैं-‘देखना’ के इन विभिन्न शब्द-प्रयोगों में क्या अंतर है? वाक्य-प्रयोग द्वारा स्पष्ट कीजिए।
JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा 3

इसी प्रकार बोलना’ क्रिया के विभिन्न शब्द-प्रयोग बताइए।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा 4
उत्तर :
आँखें केंद्रित करना = अपने लक्ष्य पर आँखें केंद्रित करके आगे बढ़ते रहना चाहिए।
नज़र पड़ना = घर आते ही कमरे में रखे नए फूलदान पर अचानक मेरी नज़र पड़ी।
ताकना = इधर-उधर ताकना बुरी बात है।
घूरना = तुम मुझे इस प्रकार घूरना छोड़ दो, वरना अच्छा नहीं होगा।
निहारना = प्राकृतिक सौंदर्य को निहारना बहुत अच्छा लगता है।
निर्निमेष ताकना = बगीचे में लगा गुलाब का फूल इतना आकर्षक था कि मैं उसे निर्निमेष ताकता रह गया। इसी प्रकार ‘बोलना’ क्रिया के विभिन्न शब्द-प्रयोग निम्नलिखित हैं –
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प्रश्न 12.
नीचे दिए गए वाक्यों को पढ़िए –
(क) श्याम का बड़ा भाई रमेश कल आया था। (संज्ञा पदबंध):
(ख) सुनीता परिश्रमी और होशियार लड़की है। (विशेषण पदबंध)
(ग) अरुणिमा धीरे-धीरे चलते हुए वहाँ जा पहुंची। (क्रियाविशेषण पदबंध)
(घ) आयुष सुरभि का चुटकुला सुनकर हँसता रहा। (क्रिया पदबंध)
ऊपर दिए गए वाक्य (क) में रेखांकित अंश में कई पद हैं जो एक पद संज्ञा का काम कर रहे हैं। वाक्य (ख) में तीन पद मिलकर विशेषण पद का काम कर रहे हैं। वाक्य (ग) और (घ) में कई पद मिलकर क्रमशः क्रिया-विशेषण और क्रिया का काम कर रहे हैं।
ध्वनियों के सार्थक समूह को शब्द कहते हैं और वाक्य में प्रयुक्त शब्द ‘पद’ कहलाता है; जैसे –
‘पेड़ों पर पक्षी चहचहा रहे थे।’ वाक्य में पेड़ों’ शब्द पद है क्योंकि इसमें अनेक व्याकरणिक बिंदु जुड़ जाते हैं।
कई पदों के योग से बने वाक्यांश को जो एक ही पद का काम करता है, पदबंध कहते हैं। पदबंध वाक्य का एक अंश होता है।
पदबंध मुख्य रूप से चार प्रकार के होते हैं –

  • संज्ञा पदबंध
  • क्रिया पदबंध
  • विशेषण पदबंध
  • क्रियाविशेषण पदबंध।

वाक्यों के रेखांकित पदबंधों का प्रकार बताइए –
(क) उसकी कल्पना में वह एक अद्भुत साहसी युवक था।
(ख) तताँरा को मानो कुछ होश आया।
(ग) वह भागा-भागा वहाँ पहुँच जाता।
(घ) तताँरा की तलवार एक विलक्षण रहस्य थी।
(ङ) उसकी व्याकुल आँखें वामीरो को ढूँढ़ने में व्यस्त थीं।
उत्तर :
(क) विशेषण पदबंध
(ख) क्रिया पदबंध
(ग) क्रिया-विशेषण पदबंध
(घ) विशेषण पदबंध
(ङ) विशेषण पदबंध

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा

योग्यता विस्तार –

प्रश्न :
1. पुस्तकालय में उपलब्ध विभिन्न प्रदेशों की लोककथाओं का अध्ययन कीजिए।
2. भारत के नक्शे में अंडमान निकोबार द्वीप समूह की पहचान कीजिए और उसकी भौगोलिक स्थिति के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
3. अंडमान निकोबार द्वीपसमूह की प्रमुख जनजातियों की विशेषताओं का अध्ययन पुस्तकालय की सहायता से कीजिए।
4. दिसंबर 2004 में आए सुनामी का इस द्वीपसमूह पर क्या प्रभाव पड़ा? जानकारी एकत्रित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

परियोजना कार्य –

प्रश्न 1.
अपने घर-परिवार के बुजुर्ग सदस्यों से कुछ लोककथाओं को सुनिए। उन कथाओं को अपने शब्दों में कक्षा में सुनाइए।
उत्तर
विद्यार्थी स्वयं करें।

JAC Class 10 Hindi तताँरा-वामीरो कथा Important Questions and Answers

निबंधात्मक प्रश्न – 

प्रश्न 1.
‘तताँरा-वामीरो कथा’ किस क्षेत्र से संबंधित है? इसके पीछे लोगों का क्या विश्वास है?
उत्तर :
‘तताँरा-वामीरो कथा’ अंडमान-निकोबार द्वीप समूह की कथा है। यह एक लोककथा है, जो तताँरा नामक युवक और वामीरो नामक युवती की प्रेम-कथा पर आधारित है। इस लोककथा के पीछे निकोबारियों का विश्वास है कि इन दो प्रेमियों के कारण ही वर्तमान के लिटिल अंडमान और कार-निकोबार अलग हुए थे। इससे पहले ये दोनों द्वीप एक ही थे। इस बात की प्रमाणित करने के लिए एक कहानी के रूप में इस मान्यता को प्रस्तुत किया गया है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा

प्रश्न 2.
तताँरा के व्यक्तित्व का वर्णन संक्षेप में कीजिए।
उत्तर :
तताँरा पासा गाँव का रहने वाला सुंदर और शक्तिशाली युवक था। वह नेक और मददगार था। दूसरों की सहायता के लिए वह सदा तैयार रहता था। वह केवल अपने गाँववालों की ही नहीं, अपितु समूचे द्वीपवासियों की सेवा करना अपना परम कर्तव्य समझता था। वह अत्यंत चर्चित और आदरणीय था। उसके आत्मीय स्वभाव के कारण सभी उसे पसंद करते थे। वह अपनी पारंपरिक पोशाक के साथ कमर में लकड़ी की एक तलवार बाँधे रखता था, जो उसे अन्य लोगों से विशिष्ट बनाती थी। लोगों का मत था कि उसकी तलवार में दैवीय शक्ति थी।

प्रश्न 3.
तताँरा को लोग दैवीय-शक्ति से संपन्न व्यक्ति क्यों मानते थे?
उत्तर :
तताँरा को लोग दैवीय-शक्ति से संपन्न व्यक्ति मानते थे, क्योंकि उसके पास लड़की से बनी एक तलवार थी। लोगों का विश्वास था कि उस तलवार में दैवीय शक्ति है। तताँरा उस तलवार को सदैव अपने साथ रखता था। वह उसे अपनी कमर से बाँधकर रखता था। वह उस तलवार का प्रयोग अत्याचार को मिटाने तथा समाज को रूढ़ियों और बंधनों से मुक्त करने के लिए करता था। कहानी के अंत में अपनी तलवार से द्वीप के दो टुकड़े करके तताँरा इस धारणा को सही सिद्ध करता है।

प्रश्न 4.
तताँरा को क्रोध क्यों आया? उसने क्रोध में आने के बाद क्या किया?
उत्तर :
तताँरा और वामीरो का प्रेम अपनी बुलंदी पर था। शीघ्र ही यह प्रेम जगजाहिर हो गया। इसी प्रेम के कारण गाँववालों ने तताँरा को अपमानित भी कर दिया। यही अपमान का घूट तताँरा के क्रोध का कारण बना। उसने अपनी लकड़ी की तलवार निकाली और अपने क्रोध को शांत करने के लिए तलवार से निकोबार की धरती को दो टुकड़ों में विभाजित कर दिया। इसके बाद से ही निकोबार द्वीप दो भागों में विभाजित हो गया।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा

प्रश्न 5.
तताँरा द्वारा धरती के दो टुकड़े करने से वह लोगों को क्या संदेश देना चाहता था?
उत्तर :
द्वीप के दो टुकड़े करके तताँरा लोगों को समझाना चाहता था कि वे अपने पुराने रूढ़िवादी विचारों से बाहर निकल आएँ। अपनी तंग मानसिकता को दूर करके एक अच्छे समाज की नींव रखें। यदि वे पुरानी रूढ़ियों और बंधनों को ऐसे ही मानते रहे, तो न उनका विकास होगा और न ही समाज या देश का विकास होगा। अत: लोगों को अपनी सोच को सही रखकर उसमें सुधार लाना होगा। यह शायद उसके प्रयास का ही फल था कि बाद में द्वीप के लोगों ने अपनी पुरानी परपंरा को समाप्त कर दिया था।

प्रश्न 6.
तताँरा और वामीरो की मृत्यु किस प्रकार की थी? इसके बाद क्या परिवर्तन हुआ?
उत्तर :
तताँरा और वामीरो की मुत्यु त्यागमयी थी, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए सुंदर सपने छोड़कर जाने वाली मृत्यु थी, वह समाज तथा लोगों को उनका घृणित रूप दिखाने वाली मृत्यु थी। उनकी इस त्यागमयी मृत्यु के बाद एक सुखद परिवर्तन यह आया कि निकोबार के लोग अब दूसरे गाँवों में भी वैवाहिक संबंध बनाने लगे थे। उनकी तंग मानसिकता में सुधार आने लगा था।

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
तताँरा समुद्र के किनारे क्या देखकर अपनी सुध-बुध खो बैठा?
उत्तर :
तताँरा जब समुद्र के किनारे टहल रहा था, तो उसने एक मधुर गीत सुना। वह उस दिशा में चल पड़ा, जहाँ से गीत का स्वर आ रहा था। वहाँ उसने वामीरो को देखा, जो अत्यंत सुंदर थी। उसके अनुपम सौंदर्य को देखकर तताँरा अपनी सुध-बुध खो बैठा। वह वामीरो के रूप सौंदर्य के जादू में डूब गया।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा

प्रश्न 2.
तताँरा को गाँव की किस परंपरा पर क्षोभ हो रहा था?
उत्तर :
तताँरा वामीरो से प्रेम करता था और वामीरो भी उससे विवाह करना चाहती थी। गाँव की यह परंपरा थी कि लड़का और लड़की को एक ही गाँव का होना चाहिए, तभी विवाह संभव था। तताँरा पासा गाँव का रहने वाला था और वामीरो लपाती गाँव की थी। इस कारण से उन दोनों का विवाह संभव नहीं था। तताँरा को विवाह की इसी निषेध परंपरा पर क्षोभ था।

प्रश्न 3.
वामीरो की माँ को क्या अपमानजनक लगा और उसने क्या किया?
उत्तर :
वामीरो और उसकी माँ पासा गाँव में आयोजित ‘पशु-पर्व’ में आईं। वामीरो ने जैसे ही तताँरा को देखा, तो वह रोने लगी। तताँरा किंकर्तव्यविमूढ़ वहाँ खड़ा रहा। वामीरो की माँ ने जब वामीरो का रुदन स्वर सुना, तो वह वहाँ पहुँची और आग-बबूला हो उठी। गाँववालों की उपस्थिति में वामीरो को तताँरा के साथ खड़े देखना उसे अपमानजनक लगा। उसने तताँरा को तरह-तरह से अपमानित किया।

प्रश्न 5.
लीलाधर मंडलोई की भाषा-शैली का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
लीलाधर मंडलोई मूल रूप से एक कवि हैं। इनकी भाषा-शैली अत्यंत सहज, सरल तथा सरस है। इनकी भाषा में लयात्मकता, प्रवाहात्मकता और रोचकता विद्यमान रहती है। ‘तताँरा-वामीरो कथा’ में उन्होंने तत्सम, तद्भव, देशज आदि शब्दों का सुंदर मिश्रण किया है। इन्होंने पाठ में उर्दू-फ़ारसी के शब्दों का भी खूब प्रयोग किया है।

तताँरा-वामीरो कथा Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन-श्री लीलाधर मंडलोई का जन्म सन 1954 में छिंदवाड़ा जिले के एक छोटे-से गाँव । गुढ़ी में हुआ था। इनका जन्म जन्माष्टमी के दिन हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा भोपाल और रायपुर में हुई थी। सन 1987 में कॉमनवेल्थ रिलेशंस ट्रस्ट, लंदन ने इन्हें प्रसारण की उच्च शिक्षा के लिए वहाँ आमंत्रित किया। प्रसारण के क्षेत्र में इनका विशेष योगदान रहा है। वर्तमान में ये प्रसार भारती दूरदर्शन के महानिदेशक का कार्यभार सँभाल रहे हैं। इन्हें इनकी रचनाओं के लिए कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया है।

रचनाएँ – लीलाधर मंडलोई वास्तव में कवि हैं। इनकी कविताएँ छत्तीसगढ़ अंचल से संबंधित हैं। इनकी कविताओं में वहाँ की बोली की मिठास के साथ-साथ वहाँ के जन-जीवन का सजीव चित्रण है। इनका कवि मन इन्हें सदैव लोककथा, लोकगीत, यात्रा-वृत्तांत, डायरी और रिपोर्ताज जैसे भिन्न-भिन्न विधाओं के लेखन की ओर प्रवृत्त करता रहा है। अंदमान-निकोबार द्वीप समूह की जनजातियों पर लिखा इनका गद्य अपने आप में एक समाजशास्त्रीय अध्ययन भी है। इनकी प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं-घर-घर घूमा, रात-बिरात, मगर एक आवाज़, देखा-अनदेखा और काला पानी।

भाषा-शैली – मंडलोई जी की भाषा-शैली अत्यंत सरल और सहज है। भाषा में प्रवाहात्मकता, लयात्मकता और रोचकता सदैव विद्यमान रहती है। प्रस्तुत पाठ ‘तताँरा-वामीरो कथा’ में उन्होंने तत्सम, तद्भव, देशज आदि शब्दों का सुंदर मिश्रण किया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने उर्दू-फ़ारसी के शब्दों का भी सुंदर प्रयोग किया है। मुहावरों के प्रयोग से इनकी भाषा अधिक प्रभावशाली हो गई है। इन्होंने अनेक मुहावरों जैसे-सुध-बुध खोना, बाट जोहना, खुशी का ठिकाना न रहना, आग बबूला होना, आवाज़ उठाना आदि का अच्छा प्रयोग किया है। मंडलोई जी की शैली वर्णनात्मक है। कहीं-कहीं उन्होंने संवादात्मक शैली का प्रयोग किया है, जिसमें नाटकीयता का पुट विद्यमान है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा

पाठ का सार –

प्रस्तुत पाठ ‘तताँरा-वामीरो कथा’ अंदमान-निकोबार द्वीप समूह के एक छोटे से द्वीप की लोककथा पर आधारित है। यह ‘तताँरा’ नामक युवक और ‘वामीरो’ नामक युवती की प्रेमकथा है। तताँरा और वामीरो को आज भी इस द्वीप के निवासी गर्व और श्रद्धा से याद करते हैं। प्राचीनकाल में लिटिल अंडमान और कार-निकोबार द्वीप समूह आपस में जुड़े हुए थे। वहाँ पासा नामक गाँव में तताँरा नाम का एक सुंदर और शक्तिशाली युवक रहता था। वह बहुत ही नेक और मददगार था। सबकी सहायता करना वह अपना कर्तव्य समझता था।

सभी उसे बहुत पसंद करते थे। उसके आत्मीय स्वभाव के कारण आस-पास के गाँववाले भी उसे पर्व-त्योहारों पर विशेष रूप से आमंत्रित करते थे। तताँरा का व्यक्तित्व अत्यंत आकर्षक था। वह अपनी पारंपरिक पोशाक के साथ अपनी कमर में सदैव एक लकड़ी की तलवार बाँधे रखता था। लोगों का विचार था कि उसकी लकड़ी की तलवार में दैवीय शक्ति थी। एक दिन तताँरा सूर्यास्त के समय समुद्र के किनारे विचारमग्न बैठा था। तभी उसे पास ही मधुर गीत गूंजता सुनाई दिया। वह उस गीत के मधुर स्वरों में डूब गया। जैसे ही उसकी तंद्रा टूटी, वह उस गीत को गाने वाले को देखने के लिए व्याकुल हो उठा।

अंतत: उसकी नज़र एक युवती पर पड़ी, जो उस शृंगार गीत को गा रही थी। तताँरा उस युवती के अप्रतिम सौंदर्य को देखकर उसमें डूब गया। वह अपनी सुध-बुध खो बैठा और बार-बार उसे उस गीत को पूरा करने का आग्रह करने लगा। युवती ने उससे उसका परिचय पूछा, किंतु तताँरा विचलित होने के कारण कुछ नहीं बता पाया। तताँरा ने उस युवती का नाम पूछा, तो उसने अपना नाम वामीरो बताया और कहा कि वह लपाती गाँव में रहती है। यह कहकर वह चली गई। तताँरा उसे आवाजें लगाकर अपने बारे में बताता रहा और अगले दिन पुनः उसी चट्टान पर आने का आग्रह करता रहा। वामीरो नहीं रुकी और तताँरा उसे जाते हुए निहारता रहा। वामीरो जब घर पहुंची, तो वह भी तताँरा को बार-बार याद करने लगी। उसने अपने लिए जैसे जीवन साथी की कल्पना की थी, तताँरा वैसा ही था।

साथ ही वह यह भी जानती थी कि दूसरे गाँव के युवक के साथ वैवाहिक संबंध होना गाँव की परंपरा के विरुद्ध था। अत: उसने तताँरा को भुलाना ही उचित समझा, किंतु तताँरा की छवि बार-बार उसकी आँखों के आगे नाचती रही। उधर तताँरा सायंकाल होते ही समुद्री चट्टान पर खडा वामीरो की प्रतीक्षा करने लगा। ऐसी बेचैनी उसने अपने शांत और गंभीर जीवन में पहले कभी अनुभव नहीं की थी। उसे वामीरो के आने की आशा बहुत कम थी। बार-बार वह लपाती गाँव से आने वाले रास्ते की ओर देखता। तभी अचानक नारियल के झुरमुटों में उसे वामीरो दिखाई दी।

उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। वे दोनों देर तक एक-दूसरे को निहारते शब्दहीन खड़े रहे। सूर्यास्त हो चुका था और अँधेरा बढ़ने लगा। तभी वामीरो सचेत हुई और अपने घर की तरफ़ दौड़ी। तताँरा चुपचाप वहीं खड़ा रहा। तताँरा और वामीरो प्रतिदिन इसी प्रकार मिलते। धीरे-धीरे उनका यह मूक प्रेम लपाती गाँव के कुछ युवकों को पता चल गया और उन्होंने गाँव के सभी लोगों को बता दिया। तताँरा और वामीरो को बहुत समझाने का प्रयास किया गया, क्योंकि अलग-अलग गाँव के होने के कारण उनका विवाह संभव नहीं था; किंतु वे नहीं माने। कुछ समय बाद तताँरा के पासा गाँव में ‘पशु-पर्व’ का आयोजन हुआ।

वर्ष में एक बार होने वाले इस आयोजन में सभी गांवों के लोग पासा में एकत्रित हुए। तताँरा की आँखें तो केवल वामीरो को ढूँढ रही थीं। तभी उसे वामीरो दिखाई दी। वामीरो तताँरा को देखते ही फूट-फूटकर रोने लगी। वामीरो की माँ को अनेक लोगों की उपस्थिति में तताँरा के पास खड़ी वामीरो का रोना : अपमानजनक लगा। वह क्रोधित हो उठी और उसने तताँरा को अनेक तरह से अपमानित किया। गाँव के लोग भी तताँरा के विरुद्ध आवाजें उठाने लगे। तताँरा के लिए यह सब असहनीय हो गया।

उसे गाँव की परंपरा पर क्रोध आ रहा था और अपनी असहायता पर खीझ होने लगी। उधर वामीरो लगातार रोये जा रही थी। तताँरा का क्रोध लगातार बढ़ता गया। उसका हाथ अपनी तलवार पर गया और उसने तलवार निकाल ली। अपने क्रोध को शांत करने के लिए उसने तलवार को धरती में घोंप दिया और पूरी ताकत से अपनी तरफ़ खींचते-खींचते दूर तक पहुँच गया। चारों ओर सन्नाटा छा गया। लोगों ने देखा कि तलवार की जहाँ-जहाँ लकीर खिंची थी, वहाँ से धरती फटने लगी। तताँरा क्रोध में द्वीप आरंभ हो गया था। उसने छलाँग लगाकर दूसरा सिरा थामना चाहा, किंतु ऐसा न कर पाया और वामीरो-वामीरो चिल्लाता हुआ समुद्र की सतह की ओर फिसल गया।

उधर वामीरो भी तताँरा-तताँरा पुकार रही थी। अंतत: तताँरा लहूलुहान होकर गिर पड़ा और पानी में बह गया। वामीरो उसके गम में पागल हो गई। उसने खाना-पीना छोड़ दिया और तताँरा को खोजती घंटों उस जगह पर बैठी रहती। कुछ समय पश्चात वामीरो भी अचानक कहीं चली गई। लोगों ने उसे ढूँढने का प्रयास किया, किंतु उसका कहीं पता नहीं चला। लेखक कहता है कि तताँरा और वामीरो की यह प्रेम-कथा अंडमान-निकोबार के प्रत्येक घर में सुनाई जाती है। निकोबारियों का विचार है कि तताँरा की तलवार से कार-निकोबार का जो दूसरा टुकड़ा हुआ, वह लिटिल अंडमान ही है। तताँरा और वामीरो की त्यागमयी मृत्यु के बाद एक सखद परिवर्तन यह हआ कि निकोबार के लोग दसरे गाँवों में भी वैवाहिक संबंध बनाने लगे थे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 12 तताँरा-वामीरो कथा

किठिन शब्दों के अर्थ :

लिटिल – छोटा, श्रृंखला – क्रम, आदिम – प्रारंभिक, विभक्त – बँटा हुआ, विभाजित, लोककथा – जन-समाज में प्रचलित कथा, मददगार – मदद करने वाला, तत्पर – तैयार, आत्मीय – अपना, चर्चित – प्रसिद्ध, आकर्षक – मोहक, साहसिक कारनामा – साहसपूर्ण कार्य, विलक्षण – असाधारण, क्षितिज – जहाँ धरती और आकाश मिलते दिखाई दें, अथक – बिना थके, बयार – शीतल-मंद वाय, शनै:-शनै: – धीरे-धीरे, प्रबल – तेज, तंद्रा – एकाग्रता, चैतन्य – चेतना, सजग, विकल – बेचैन, व्याकुल, निःशब्द – बिना बोले, संचार – उत्पन्न होना, असंगत – अनुचित, बाध्य – मजबूर, अप्रतिम – अतुलनीय, आकंठ – पूर्णरूप से,

सम्मोहित – ना – चिढ़ना, अन्यमनस्कता – जिसका चित्त कहीं और हो, बलिष्ठ – शक्तिशाली, निर्निमेष – जिसमें पलक न झपकी जाए/बिना पलक झपकाए, श्रेयस्कर – उचित, सही, मूक – मौन, रीति – परंपरा, अचंभित – चकित, किंकर्तव्यविमूढ़ – असमंजस, रोमांचित – पुलकित, निश्चल – स्थिर, भयाकुल – भय से बेचैन, अफ़वाह – उड़ती खबर, उफनना – उबलना, अचेत – बेहोश, निषेध परंपरा – वह परंपरा जिस पर रोक लगी हो, शमन – शांत करना, घोंपना – गाड़ना, फँसाना, दरार – रेखा की तरह का लंबा छिद्र जो फटने के कारण पड़ जाता है, सुराग – प्रमाण, सुखद परिवर्तन – सुख देने वाला बदलाव।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 14 गिरगिट

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 14 गिरगिट Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 14 गिरगिट

JAC Class 10 Hindi गिरगिट Textbook Questions and Answers

मौखिक –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
काठगोदाम के पास भीड़ क्यों इकट्ठी हो गई थी?
उत्तर :
काठगोदाम के पास ख्यूक्रिन नामक व्यक्ति की उँगली पर एक कुत्ते ने काट लिया था। ख्यूक्रिन उस कुत्ते को पकड़ रहा था। उसके चिल्लाने और कुत्ते के किकियाने की आवाज़ को सुनकर वहाँ भीड़ इकट्ठी हो गई थी।

प्रश्न 2.
उँगली ठीक न होने की स्थिति में ख्यूक्रिन का नुकसान क्यों होता?
उत्तर :
ख्यूक्रिन सुनार का कार्य करता था, जो पूरी तरह से हाथ उँगलियों पर आधारित होता है। इसी कारण उँगली ठीक न होने पर उसे काफी नुकसान हो सकता था।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 14 गिरगिट

प्रश्न 3.
कुत्ता क्यों किकिया रहा था?
उत्तर :
कुत्ते को ख्यूक्रिन ने दबोच लिया था। इसी कारण वह कुत्ता किकिया रहा था।

प्रश्न 4.
बाजार के चौराहे पर खामोशी क्यों थी?
उत्तर :
बाजार में पुलिस इंस्पेक्टर ओचुमेलॉव अपने सिपाही के साथ गश्त लगा रहा था। वह रिश्वतखोर था। जो भी उसके सामने आता था, उससे वह कुछ-न-कुछ लूट-खसोट ज़रूर करता था। उसके बाज़ार में निकलने के कारण ही चौराहे पर खामोशी थी।

प्रश्न 5.
जनरल साहब के बावर्ची ने कुत्ते के बारे में क्या बताया?
उत्तर :
जनरल साहब के बावर्ची ने बताया कि यह कुत्ता जनरल साहब के भाई का है, जो थोड़ी देर पहले ही वहाँ आए हैं।

प्रश्न 6.
‘गिरगिट’ पाठ में चौराहे पर खड़ा व्यक्ति ज़ोर-ज़ोर से क्यों चिल्ला रहा था?
उत्तर :
चौराहे पर खड़ा व्यक्ति ज़ोर-ज़ोर से इसलिए चिल्ला रहा था क्योंकि उस की उँगली कुत्ते ने काट ली थी।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
ख्यूक्रिन ने मुआवजा पाने की क्या दलील दी?
उत्तर :
ख्यूक्रिन ने बताया कि वह कामकाजी व्यक्ति है और उसका काम भी पेचीदा किस्म का है। उँगली पर कुत्ते के काटने से वह कई दिनों तक काम नहीं कर पाएगा। इससे उसे काफ़ी नुकसान होगा। इसी आधार पर उसने कुत्ते के मालिक से मुआवजा दिलाने की प्रार्थना की।

प्रश्न 2.
ख्यक्रिन ने ओचमेलॉव को उँगली ऊपर उठाने का क्या कारण बताया?
उत्तर :
ख्यूक्रिन ने ओचुमेलॉव को बताया कि वह बाज़ार में लकड़ी लेकर कुछ काम निपटाने के उद्देश्य से आया था। तभी अचानक एक कुत्ता कहीं से आया और उसने उसकी उँगली पर काट लिया। कुत्ते द्वारा काटे जाने के कारण ही उसने उँगली ऊपर उठाई हुई थी।

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प्रश्न 3.
येल्दीरीन ने ख्यूक्रिन को ही दोषी ठहराते हुए क्या कहा?
अथवा
‘गिरगिट’ पाठ में येल्दीरीन ने ख्यूक्रिन को उसके दोषी होने के क्या कारण बताए ?
उत्तर :
येल्दीरीन एक चापलूस सिपाही था। वह अपने इंस्पेक्टर की हाँ में हाँ मिलाते हुए उल्टे ख्यूक्रिन को ही दोषी ठहराता है। वह कहा है कि ख्यूक्रिन हमेशा कोई-न-कोई शरारत करता है। इसने ज़रूर अपनी जलती हुई सिगरेट से कुत्ते की नाक जला दी होगी, जिससे कुत्ते ने इसे काटा है। यदि कुत्ते ने इसे काटा है, तो इसमें सारा दोष ख्यक्रिन का ही है। कुत्ते का कोई दोष नहीं है।

प्रश्न 4.
ओचुमेलॉव ने जनरल साहब के पास यह संदेश क्यों भिजवाया होगा कि ‘उनसे कहना कि यह मुझे मिला और मैंने इसे वापस उनके पास भेजा है’ ?
उत्तर :
ओचुमेलॉव एक अवसरवादी इंस्पेक्टर है। उसने यह संदेश इसलिए भिजवाया होगा, ताकि वह जनरल साहब की नज़रों में अच्छा बन सके। वह एक चापलूस व्यक्ति है। इसी चापलूसी के बलबूते वह पदोन्नति भी चाहता है। उसे आशा थी कि यह संदेश सुनकर जनरल साहब उससे खुश हो जाएँगे और उसकी प्रशंसा करने के साथ-साथ उसे पदोन्नति भी देंगे।

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प्रश्न 5.
भीड़ ख्यूक्रिन पर क्यों हँसने लगती है?
उत्तर
ख्यूक्रिन कुत्ते द्वारा काटे जाने पर न्याय-मुआवजे की आशा करता है। इंस्पेक्टर ओचुमेलॉव को जब पता चलता है कि कुत्ता जनरल साहब के भाई का है, तो वह ख्यूक्रिन को ही दोष देता है और कुत्ते को पुचकारता है। उस समय ख्यूक्रिन के स्थान पर उसे एक जानवर अधिक प्यारा और अच्छा लगता है। ख्यूक्रिन की स्थिति उस कुत्ते से भी बदतर हो जाती है। यह सब देखकर भीड़ ख्यूक्रिन पर हँसने लगती है।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
किसी कील-वील से उँगली छील ली होगी-ऐसा ओचुमेलॉव ने क्यों कहा?
उत्तर :
ओचुमेलॉव एक अवसरवादी व्यक्ति है। वह अवसर देखकर, बात करने वाला है; उसे प्रत्येक अवसर का लाभ उठाना भी आता है। जब उसे पता चलता है कि कुत्ता जनरल झिगालॉव का है, तो वह अपने आपको पूरी तरह बदल देता है। ख्यूक्रिन द्वारा शिकायत करने पर पहले तो वह कुत्ते के मालिक को दंड देने तक की बात कह देता है, लेकिन यह पता चलते ही कि कुत्ता जनरल साहब का है, वह अपनी ही बात को बदल देता है। वह उल्टा ख्यूक्रिन पर दोष लगाता है कि उसने जान-बूझकर कील से उँगली छीली है और अब वह कुत्ते पर झूठा आरोप लगा रहा है। ओचुमेलॉव चापलूस किस्म का व्यक्ति है। इसी कारण वह ख्यूक्रिन का कोई दोष न होते हुए भी उसी पर दोष लगाता है। वह जनरल झिगालॉव के कुत्ते को अच्छा बताकर उनकी चापलूसी करता है।

प्रश्न 2.
ओचुमेलॉव के चरित्र की विशेषताओं को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
ओचुमेलॉव भ्रष्ट पुलिस अधिकारियों का प्रतिनिधित्व करने वाला पात्र है। वह एक रिश्वतखोर व्यक्ति है। यही कारण है कि जब वह – अपने सिपाही के साथ बाज़ार से निकलता है, तो चारों ओर खामोशी छा जाती है। वह लोगों से जबरदस्ती लूट-खसोट करने वाला व्यक्ति है। ओचुमेलॉव एक अवसरवादी और चापलूस व्यक्ति भी है। जब उसे पता चलता है कि कुत्ता जनरल साहब का है, तो वह कुत्ते को सुंदर, अच्छा और प्यारा-सा डॉगी कहता है। वह अवसर के अनुसार बदल जाने वाला व्यक्ति है। इससे पूर्व कुत्ते को किसी भिजवाते हुए यह कहकर कि यह उसने भिजवाया है, जनरल साहब की चापलूसी भी करता है।

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प्रश्न 3.
यह जानने के बाद कि कुत्ता जनरल साहब के भाई का है-ओचुमेलॉव के विचारों में क्या परिवर्तन आता और क्यों?
उत्तर :
ओचुमेलॉव परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को बदलने वाला व्यक्ति है। जब उसे पता चलता है कि कुत्ता जनरल साहब के भाई का है, तो वह एकदम बदल जाता है। जिस कुत्ते को थोड़ी देर पहले वह आवारा किस्म का कहकर मार डालने की बात कहता है, उसी कुत्ते को वह पुचकारने लगता है। वह उसे अत्यंत सुंदर ‘डॉगी’ और अत्यंत खूबसूरत पिल्ला कहता है। यहाँ तक कि वह उस कुत्ते को ‘भाई’ भी कह देता है। ओचमेलॉव उसे नन्हा-सा शैतान कहकर जनरल साहब के बावर्ची को सौंप देता है। उसके बाद वह उस व्यक्ति को धमकाता है, जो कुत्ते के मालिक से हर्जाना चाहता था। वह उसे मारने-पीटने की धमकी देकर वहाँ से भगा देता।

प्रश्न 4.
ख्यूक्रिन का यह कथन कि ‘मेरा एक भाई भी पुलिस में है…. ‘ समाज की किस वास्तविकता की ओर संकेत करता है?
उत्तर :
ख्यक्रिन के इस कथन से समाज में फैली भाई-भतीजावाद की प्रवृत्ति का पता चलता है। ख्यूक्रिन यह कहना चाहता है कि उसका भाई भी पुलिस की नौकरी करता है और वह जानता है कि पुलिस क्या-क्या करती है। साथ ही वह अपने भाई के विषय में बताकर ओचुमेलॉव और वहाँ उपस्थित लोगों पर रौब भी डालना चाहता है। पुलिस वाले का भाई बताकर वह अपने आपको सुरक्षित करना चाहता है। ख्यक्रिन के इस कथन से यह भी स्पष्ट होता है कि पुलिस गलत को सही और सही को गलत बताकर कुछ भी कर सकती है। भ्रष्ट पुलिस न्याय को नहीं देखती और अपनी मनमानी करती है। ख्यूक्रिन के इस कथन से स्पष्ट होता है कि कानून व्यवस्था पूरी तरह भ्रष्ट हो चुकी है।

प्रश्न 5.
इस कहानी का शीर्षक ‘गिरगिट’ क्यों रखा होगा? क्या आप इस कहानी के लिए कोई अन्य शीर्षक सुझा सकते हैं? अपने शीर्षक का आधार भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
“गिरगिट’ एक ऐसा जीव होता है, जो आस-पास के वातावरण के अनुसार अपना रंग बदल लेता है। प्रस्तुत कहानी का मुख्य पात्र ओचुमेलॉव भी ऐसा ही व्यक्ति है। वह अपने स्वार्थ के लिए परिस्थितियों के अनुसार अपनी बात, व्यवहार और दृष्टिकोण को बार-बार बदलता है। वास्तव में वह अवसरवादी है और गिरगिट की तरह रंग बदलने वाला है। इसी आधार पर इस कहानी का शीर्षक ‘गिरगिट’ रखा गया होगा। इस कहानी का एक अन्य शीर्षक ‘आदमी और कुत्ता’ भी हो सकता है। यह कहानी ख्यूक्रिन नामक एक आदमी और उसे काटने वाले कुत्ते के इर्द-गिर्द घूमती है। अंत में उस कुत्ते को आदमी से अधिक महत्व दिया जाता है, क्योंकि वह एक बड़े आदमी का कुत्ता है।

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प्रश्न 6.
‘गिरगिट’ कहानी के माध्यम से समाज की किन विसंगतियों पर व्यंग्य किया गया है? क्या आप ऐसी विसंगतियाँ अपने समाज में भी देखते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘गिरगिट’ कहानी के माध्यम से लेखक ने समाज की कानून-व्यवस्था पर व्यंग्य किया है। लेखक ने बताया है कि शासन-व्यवस्था पूर्ण रूप से चापलूसों और भाई-भतीजावाद के समर्थक अधिकारियों के भरोसे चल रही है। इन विसंगतियों के कारण सामान्य मनुष्य को न्याय नहीं मिलता। वर्तमान समाज में भी ऐसी विसंगतियों को देखा जा सकता है। हम देखते हैं कि चापलूस और रिश्वतखोर लोग सों व भ्रष्ट ला इसी रास्ते को अपनाते जा रहे हैं। कुल मिलाकर वर्तमान समाज में भी कई विसंगतियों को देखा जा सकता है। यद्यपि इन विसंगतियों को दूर करने के प्रयास किए जा रहे हैं, किंतु अभी अधिक सफलता नहीं मिल पाई है।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न :
1. उसकी आँसुओं से सनी आँखों में संकट और आतंक की गहरी छाप थी।
2. कानून सम्मत तो यही है… कि सब लोग अब बराबर हैं।
3. हुजूर! यह तो जनशांति भंग हो जाने जैसा कुछ दीख रहा है।
उत्तर :
इस पंक्ति से लेखक का आशय है कि बुरी तरह मारे-पीटे जाने के कारण वह कुत्ता घबरा गया था। उसकी साँसें तेज-तेज चल रही थी। उसे आभास हो चुका था कि उस पर गहरा संकट आने वाला है। अत्यधिक पीटे जाने के कारण उसकी आँखों में आँसू थे। उसे लोगों के शोर और पीटने से अनुमान लग गया था कि उसका जीवन संकट में पड़ने वाला है। वह बहुत अधिक डरा हुआ था और ये भाव उसकी आँखों में साफ़ दिखाई दे रहे थे।

2. प्रस्तुत कथन ख्यूक्रिन का है। इस कथन से ख्यूक्रिन कहना चाहता है कि वर्तमान कानून-व्यवस्था में सभी बराबर हैं। कोई छोटा बड़ा नहीं है; कानून सभी के लिए बराबर है। यदि कोई बड़ा व्यक्ति अपराध करता है, तो उसे भी अवश्य दंड मिलना चाहिए। कानून की दृष्टि में कोई छोटा-बड़ा नहीं होता, बल्कि सभी बराबर होते हैं।

3. यह कथन सिपाही येल्दीरीन का है। वह इंस्पेक्टर ओचुमेलॉव को भड़काना चाहता है। जब एक कुत्ते द्वारा काटे जाने पर ख्यूक्रिन चिल्लाता है, तो वहाँ भीड़ इकट्ठी हो जाती है। येल्दीरीन दूर से ही भीड़ देखकर इंस्पेक्टर को बड़ा-चढ़ाकर कहता है कि यह देखकर ऐसा लगता है, मानो जन-विद्रोह होने वाला हो। शायद लोगों ने शांति छोड़कर विद्रोह का मार्ग अपना लिया है।

भाषा अध्ययन –

प्रश्न 1.
नीचे दिए गए वाक्यों में उचित विराम-चिह्न लगाइए –
(क) माँ ने पूछा बच्चो कहाँ जा रहे हो
(ख) घर के बाहर सारा सामान बिखरा पड़ा था
(ग) हाय राम यह क्या हो गया
(घ) रीना सुहेल कविता और शेखर खेल रहे थे
(ङ) सिपाही ने कहा ठहर तुझे अभी मजा चखाता हूँ
उत्तर :
(क) माँ ने पूछा, “बच्चो! कहाँ जा रहे हो?”
(ख) घर के बाहर सारा सामान बिखरा पड़ा था।
(ग) हाय राम! यह क्या हो गया?
(घ) रीना, सुहेल, कविता और शेखर खेल रहे थे।
(ङ) सिपाही ने कहा, “ठहर, तुझे अभी मजा चखाता हूँ।”

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प्रश्न 2.
नीचे दिए गए वाक्यों में रेखांकित अंश पर ध्यान दीजिए
मेरा एक भाई भी पुलिस में है।
यह तो अति सुंदर ‘डॉगी’ है।
कल ही मैंने बिलकुल इसी की तरह का एक कुत्ता उनके आँगन में देखा था।
वाक्य के रेखांकित अंश निपात’ कहलाते हैं, जो वाक्य के मुख्य अर्थ पर बल जाप बात पर बल दिया जा रहा है और वाक्य क्या अर्थ दे रहा है। वाक्य में जो अव्यय किसी शब्द या पद के बाद लगकर उसके अर्थ में विशेष प्रकार का बल या भाव उत्पन्न करने में सहायता करते हैं, उन्हें निपात कहते हैं; जैसे-ही, भी, तो, तक आदि।
ही, भी, तो, तक निपातों का प्रयोग करते हुए पाँच वाक्य बनाइए।
उत्तर :
1. कल मैंने भी सुरेश को देखा था।
2. यह तो बहुत सुंदर गुलदस्ता है।
3. मुझे कल तक इस प्रश्न का उत्तर मिल जाना चाहिए।
4. मैंने आज ही नई साइकिल खरीदी है।
5. मुझे कल ही आगरा जाना पड़ेगा।

प्रश्न 3.
पाठ में आए मुहावरों में से पाँच मुहावरे छूटकर उनका वाक्य में प्रयोग कीजिए।
उत्तर :
1. त्योरियाँ चढ़ाना – जैसे ही अफसर ने त्योरियाँ चढ़ाकर सिपाही की ओर देखा, वह चुपके से बाहर चला गया।
2. मजा चखाना – मैं सुरेश को दूसरों को धोखा देने का मज़ा चखाकर ही रहूँगा।
3. मत्थे मढ़ना – तुम अपना दोष किसी दूसरे के मत्थे नहीं मढ़ सकते।
4. तबाह होना – युद्ध में कई जिंदगियाँ तबाह हो जाती हैं।
5. गाँठ बाँधना – तुम्हें यह बात गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि मेहनत के बिना सफलता नहीं मिल सकती।

प्रश्न 4.
नीचे दिए गए शब्दों में उचित उपसर्ग लगाकर शब्द बनाइए –
(क) ………. + भाव + ……….
(ख) ………. + पसंद + ……….
(ग) ………. + धारण + ……….
(घ) ………. + उपस्थित + ……….
(ङ) ………. + लायक + ……….
(च) ………. + विश्वास + ……….
(छ) ………. + परवाह + ……….
(ज) ………. + कारण + ……….
उत्तर :
(क) सम् + भाव = संभाव
(ख) ना + पसंद = नापसंद
(ग) निर् + धारण = निर्धारण
(घ) अनु + उपस्थित = अनुपस्थित
(ङ) ना + लायक = नालायक
(च) अ + विश्वास = अविश्वास
(छ) ला + परवाह = लापरवाह
(ज) अ + कारण = अकारण

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प्रश्न 5.
नीचे दिए गए शब्दों में उचित प्रत्यय लगाकर शब्द बनाइए –
मदद + …………. = …………
बुद्धि + …………. = …………
गंभीर + …………. = …………
सभ्य + …………. = …………
ठंड + …………. = …………
प्रदर्शन + …………. = …………
उत्तर :
मदद + गार = मददगार
बुद्धि + मान = बुद्धिमान
गंभीर + ता = गंभीरता
सभ्य + ता = सभ्यता
ठंड + ई = ठंडी
प्रदर्शन + ई = प्रदर्शनी

प्रश्न 6.
नीचे दिए गए वाक्यों के रेखांकित पदबंध का प्रकार बताइए –
(क) दुकानों में ऊँघते हुए चेहरे बाहर झाँके।
(ख) लाल बालोंबाला एक सिपाही चला आ रहा था।
(ग) यह ख्यूक्रिन हमेशा कोई-न-कोई शरारत करता रहता है।
(घ) एक कुत्ता तीन टाँगों के बल रेंगता चला आ रहा है।
उत्तर :
(क) संज्ञा पदबंध
(ख) विशेषण पदबंध
(ग) क्रिया पदबंध
(घ) क्रिया-विशेषण

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प्रश्न 7.
आपके मोहल्ले में लावारिस/आवारा कुत्तों की संख्या बहुत ज्यादा हो गई है जिससे आने-जाने वाले लोगों को असुविधा होती है। अतः लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए नगर निगम अधिकारी को एक पत्र लिखिए।
उत्तर :
2106, मंदिर मार्ग
नई दिल्ली
15 जून, ……
सेवा में,
सुरक्षा अधिकारी
नगर निगम, विभाग,
नई दिल्ली।
विषयः लावारिस कुत्तों से सुरक्षा हेतु पत्र
महोदय,
पिछले कई दिनों से हमारे मोहल्ले में लावारिस और आवारा कुत्तों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। ये कुत्ते मोहल्ले के लोगों पर बिना कारण भौंकते हैं और उन्हें काटने को दौड़ते हैं। इन कुत्तों के कारण छोटे बच्चों और बूढ़े लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। कई बार तो ये कुत्ते आने-जाने वाले लोगों की खाने-पीने की चीज़ों पर भी झपट पड़ते हैं। इससे सारे मोहल्ले के लोगों में आतंक-सा छा गया है। अतः आपसे अनुरोध है कि इन लावारिस और आवारा कुत्तों को पकड़वाने का कष्ट करें, ताकि लोग चैन की साँस ले सकें। सारे मोहल्लेवासी आपके अति आभारी रहेंगे।
भवदीय
रोशन लाल

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
जिस प्रकार गिरगिट शत्रु से स्वयं को बचाने के लिए अपने आस-पास के परिवेश के अनुसार रंग बदल लेता है, उसी प्रकार कई व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए परिस्थितियों के अनुसार अपनी बात, व्यवहार, दृष्टिकोण, विचार को बदल लेते हैं। यही कारण है कि ऐसे व्यक्तियों को ‘गिरगिट’ कहा जाता है।

प्रश्न 2.
अवसर के अनुसार व्यावहारिकता का सहारा लेना आप कहाँ तक उचित समझते हैं ? इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।

प्रश्न 3.
यहाँ आपने रूसी लेखक चेखव की कहानी पढ़ी है। अवसर मिले तो लियो ताल्स्ताय की कहानियाँ भी पढ़िए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करें।

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परियोजना कार्य –

प्रश्न 1.
‘गिरगिट’ कहानी में आवारा पशुओं से जुड़े किस नियम की चर्चा हुई है? क्या आप इस नियम को उचित मानते हैं ? तर्क सहित दीजिए।

प्रशन 2.
गिरगिट कहानी का कक्षा में अथवा विद्यालय में मंचन कीजिए। मंचन के लिए आपको किस प्रकार की तैयारी और सामग्री की ज़रूरत होगी? उनकी एक सूची भी बनाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

JAC Class 10 Hindi गिरगिट Important Questions and Answers

निबंधात्मक प्रश्न –

प्रश्न 1.
इंस्पेक्टर ओचुमेलॉव ने चौराहे पर क्या देखा?
उत्तर :
इंस्पेक्टर ओचुमेलॉव अपने सिपाही येल्दीरीन के साथ चौराहे से निकला, तो अचानक उसे एक व्यक्ति के चिल्लाने और एक कुत्ते के किकियाने की आवाज़ सुनाई दी। वहाँ उसने देखा कि काठगोदाम में से एक कुत्ता तीन टाँगों के बल पर रेंगता हुआ चला आ रहा था। एक व्यक्ति उस कुत्ते के पीछे-पीछे दौड़ रहा था। जैसे-तैसे वह कुत्ते की पिछली टाँग को पकड़ने में सफल हो गया। कुत्ता ज़ोर-ज़ोर से किकिया रहा था और वह व्यक्ति चीखकर ‘मत जाने दो’ कह रहा था। वहाँ आस-पास भीड़ भी इकट्ठी हो गई थी।

प्रश्न 2.
जब इंस्पेक्टर ओचुमेलॉव को पता चलता है कि कुत्ता जनरल साहब का है, तो उसकी क्या प्रतिक्रिया होती है?
उत्तर :
इंस्पेक्टर ओचुमेलॉव को जब यह पता चलता है कि कुत्ता जनरल साहब का है, तो वह पूरी तरह से बदल जाता है। इससे पहले वह कुत्ते को आवारा, भद्दा तथा मरियल कहता है। बाद में वह उसे महँगा और नाजुक प्राणी कहता है। वह उल्टे ख्यक्रिन पर दोष लगाता है कि वह झूठा हर्जाना पाना चाहता है। वह ख्यूक्रिन से कहता है कि उसने अपनी उँगली को कील आदि से छील लिया होगा और अब वह उस कुत्ते पर आरोप लगा रहा है।

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प्रश्न 3.
इंस्पेक्टर ओचुमेलॉव जनरल साहब के बावर्ची की आधी बात सुनकर क्या कहता है और पूरी बात सुनने के बाद उसमें क्या परिवर्तन आता है?
उत्तर :
इंस्पेक्टर ओचुमेलॉव जनरल साहब के बावर्ची प्रोखोर से कुत्ते के विषय में पूछता है। प्रोखोर कहता है कि यह कुत्ता उनके जनरल साहब का नहीं है। इस अधूरी बात को सुनकर ओचुमेलॉव कुत्ते को आवारा कहकर उसे मार डालने की बात कहता है। बाद में जब प्रोखोर यह बताता है कि कुत्ता जनरल साहब के भाई का है, तो उसके हावभाव बदल जाते हैं। वह उसी कुत्ते को तथा ‘सुंदर डॉगी’ तथा ‘खूबसूरत पिल्ला’ कहता है। वह कुत्ते को नन्हा-सा शैतान कहकर उसे प्रोखोर को सौंप देता है।

प्रश्न 4.
‘गिरगिट’ पाठ के आधार पर लिखिए कि इंस्पेक्टर ओचुमेलॉव ख्व्यूक्रिन पर क्यों झुंझला रहा था?
उत्तर :
ख्यूक्रिन को एक कुत्ते ने काट लिया था। लेकिन इंस्पेक्टर ओचुमेलौव यह समझ नहीं पा रहा था कि कुत्ते का वास्तविक मालिक कौन है? इस बीच ख्यूक्रिन के बार-बार कराहने, अपने पक्ष को मज़बूत बताते हुए कुत्ते के मालिक से हरज़ाना दिलवाने की माँग करने तथा अपनी पहचान ऊपर तक बताने के कारण ओचुमेलॉव उस पर झुंझला उठा।

प्रश्न 5.
‘गिरगिट’ कहानी समाज में व्याप्त चाटुकारिता पर करारा व्यंग्य है – इसे पाठ के आधार पर सोदाहरण सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
‘गिरगिट’ प्रसिद्ध व्यंग्यकार अंतोन चेखव द्वारा लिखित कहानी है। इसमें उन्होंने सामाजिक स्तर पर व्याप्त चापलूसी का उल्लेख करते हुए उस पर करारा व्यंग्य किया है। कहानी का मुख्य पात्र इंस्पेक्टर आचुमेलॉव एक भ्रष्ट और चाटुकारिता से युक्त व्यक्तित्व का मालिक है। वह परिस्थितियों के अनुसार बदलने वाला तथा उनका लाठा उठाने वाला व्यक्ति है। जब तक उसे यह ज्ञात नहीं होता कि कुत्ता जनरल के भाई का है, तब तक वह उसे मारने तक का निश्चय करता है।

लेकिन जैसे ही उसे वास्तविकता पता चलती है, उसका व्यवहार पूरी तरह से बदल जाता है। उसके व्यवहार और शब्दों से चाटुकारिता टपकने लगती है। इसके बाद वह कुत्ते की तारीफ करते हुए उसे ‘एक अति सुंदर डॉगी’ कहता है। साथ ही वह कहता है कि ‘जनरल साहब से कहना कि यह मुझे मिला है और मैंने इसे वापस उनके पास भेजा है।’ इस प्रकार स्पष्ट होता है कि लेखक ने ओचुमेलॉव के माध्यम से चाटुकारिता पर करारा व्यंग्य किया है।

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
पुलिस इंस्पेक्टर कौन था? उसने सिपाही को क्या आदेश दिया?
उत्तर :
पुलिस इंस्पेक्टर ओचुमेलॉव था। उसने सिपाही को कुत्ते के मालिक का पता लगाने तथा उसकी पूरी रिपोर्ट तैयार करने के लिए कहा। उसने कहा कि कुत्ते को बिना देरी किए खत्म कर दिया जाए। शायद यह कुत्ता पागल हो।

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प्रश्न 2.
पुलिस इंस्पेक्टर के अचानक होश क्यों उड़ गए?
उत्तर :
जब पुलिस इंस्पेक्टर ने सिपाही को लापता कुत्ते के मालिक का पता लगाने तथा उसकी पूरी रिपोर्ट करने का आदेश दिया, तो किसी ने भीड़ में से किसी ने बताया कि शायद यह कुत्ता जनरल झिगालॉव का है। यह सुनकर पुलिस इंस्पेक्टर के होश उड़ गए।

प्रश्न 3.
ख्यूक्रिन कानून के बारे में क्या दलील दी?
उत्तर :
ख्यूक्रिन ने दलील दी कि कानून की दृष्टि में सब लोग बराबर हैं। कानून के अनुसार कोई छोटा-बड़ा नहीं है।

प्रश्न 4.
ओचुमेलॉव ने त्योरियाँ चढ़ाते हुए कुत्ते के मालिक के विषय में क्या कहा?
उत्तर :
ओचुमेलॉव ने त्योरियाँ चढ़ाते हुए कुत्ते के मालिक के विषय में कहा कि वह इस तरह आवाज़ छोड़ने वाले कुत्ते के मालिक को मजा चखाएगा। वह उसे इतना जुर्माना लगाएगा कि उसे इल्म हो जाए कि कुत्ते को आवारा छोड़ने का क्या नतीजा होता है।

प्रश्न 5.
इंस्पेक्टर साहब की दृष्टि में जनरल साहब कैसे कुत्ते पालते थे?
उत्तर :
इंस्पेक्टर साहब की दृष्टि में जनरल साहब महँगे और अच्छी नस्ल के कुत्ते पालते थे। उनके कुत्ते हट्टे-कट्टे और सेहतमंद थे। जनरल साहब जैसा सभ्य आदमी ऐसे मरियल कुत्ते नहीं पाल सकता।

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प्रश्न 6.
‘गिरगिट’ कहानी में लेखक ने मुख्य रूप से क्या स्पष्ट करना चाहा है?
उत्तर :
‘गिरगिट’ कहानी में लेखक ने रूस की तत्कालीन कानून एवं न्याय व्यवस्था पर करारा व्यंग्य किया है। उन्होंने कहानी के द्वारा यह बताया है कि किस प्रकार नाम और हैसियत कानून व न्याय पर भारी पड़ जाती है। कानून अमीरों की इच्छा पर चलता है।

प्रश्न 7.
ख्यूक्रिन कौन था? वह इंस्पेक्टर ओचुमेलॉव से क्या प्रार्थना करता है?
उत्तर :
ख्यूक्रिन एक सुनार था। उसकी उँगली पर एक कुत्ते ने काट लिया था। वह इंस्पेक्टर ओचुमेलॉव से कहता है कि उसका काम काफ़ी पेचीदा ढंग का है। कुत्ते द्वारा काटे जाने के बाद वह अपना काम ठीक ढंग से नहीं कर पाएगा। अत: वह इंस्पेक्टर ओचुमेलॉव से उस कुत्ते के मालिक से हर्जाना दिलाने की प्रार्थना करता है।

गिरगिट Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन – प्रसिद्ध रूसी लेखक अंतोन चेखव का जन्म सन 1860 में दक्षिणी रूस के तगनोर नगर में हुआ था। उन्होंने बाल्यकाल से ही कहानियाँ लिखना शुरू कर दिया था। जब वे शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, तब भी उनकी लिखी कहानियाँ प्रभावशाली थीं। सन 1890 से 1900 तक का समय रूस के लिए एक कठिन समय था। उस समय स्वतंत्र विचारों वाले व्यक्तियों को दबाया जा रहा था। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में भी अंतोन चेखव ने साहस का परिचय देते हुए तत्कालीन अवसरवादी लोगों पर करारे व्यंग्य किए थे। सन 1904 में इस महान लेखक का देहांत हो गया।

रचनाएँ – अंतोन चेखव केवल रूस के ही नहीं अपितु पूरे विश्व के प्रिय लेखक माने जाते हैं। इनकी रचनाओं में सत्य के प्रति आस्था और निष्ठा दिखाई देती है, जो इनके साहित्य की विशेषता है। इन्होंने अपनी रचनाओं में सत्य को सर्वोपरि माना है। गिरगिट, क्लर्क की मौत, वाल्का, तितली, एक कलाकार की कहानी, घोंघा, इओनिज, रोमांस, दुलहन आदि इनकी प्रमुख कहानियाँ हैं। इसके अतिरिक्त वाल्या मामा, तीन बहनें, सीगल और चेरी का बगीचा इनके प्रसिद्ध नाटक हैं।

भाषा-शैली – अंतोन चेखव मूल रूप से रूसी लेखक थे। प्रस्तुत कहानी भी उनके द्वारा रूसी में ही लिखी गई, थी जिसका हिंदी में अनुवाद किया गया है। उनकी भाषा में रोचकता, मौलिकता और सरसता का गुण दिखाई देता है। समाज की बुराइयों का विरोध करने के कारण उनकी भाषा में व्यंग्यात्मकता साफ़ झलकती है। उनकी भाषा में प्रखरता और सभी भावों को व्यक्त करने की न्होंने इतने सहज रूप से प्रस्तुत किया है कि वह सीधे पाठक के हृदय तक पहँचती है। उनकी शैली वर्णन प्रधान और संवादात्मक है। वे छोटे-छोटे संवादों के माध्यम से अपनी कहानी को गति देने के पक्षधर थे। उनकी शैली में नाटकीयता का गुण भी दिखाई देता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 14 गिरगिट

पाठ का सार :

‘गिरगिट’ अंतोन चेखव द्वारा लिखित एक श्रेष्ठ कहानी है। यह सन 1884 में लिखी गई थी। इसमें रूस के तत्कालीन कानून एवं न्याय व्यवस्था पर करारा व्यंग्य किया गया है। पुलिस इंस्पेक्टर ओचुमेलॉव अपने सिपाही येल्दीरीन के साथ बाज़ार के चौराहे से गुज़रता है। वह एक रिश्वतखोर, भ्रष्ट और चापलूस व्यक्ति है। अचानक उसे एक कुत्ते के किकियाने और एक व्यक्ति के ‘पकड़ो, पकड़ो’ चिल्लाने की आवाज़ सुनाई देती है।

ओचुमेलॉव और येल्दीरीन उसी ओर बढ़ते हैं। वहाँ उन्हें पता चलता है कि किसी कुत्ते ने ख्यूक्रिन नामक एक सुनार की उँगुली पर काट लिया है। उसने भी कर वहीं गिरा दिया था। ओचमेलॉव के पूछे जाने पर ख्यक्रिन बताता है कि उसे इस कुत्ते ने काट लिया है। वह ओचमेलॉव । से कहता है कि वह उसे कुत्ते के मालिक से हरजाना दिलवाए। ओचुमेलॉव उसे दिलासा देता है कि वह कुत्ते और उसके मालिक को इसकी सजा अवश्य देगा।

ओचुमेलॉव येल्दीरीन को कुत्ते के मालिक का पता लगाने को कहता है। तभी वहाँ खड़ी भीड़ में से कोई बताता है कि यह कुत्ता जनरल झिगालॉव का है। यह सुनते ही इंस्पेक्टर ओचुमेलॉव एकदम बदल जाता है। वह उलटा ख्यूक्रिन को ही दोष देने लगता है। वह कहता है कि उसकी उँगली कील आदि से छिल गई होगी और वह कुत्ते के मालिक से झूठा हरजाना वसूलना चाहता है। सिपाही येल्दीरीन भी कहता है कि ख्यूक्रिन ने अवश्य अपनी जलती हुई सिगरेट से कुत्ते की नाक जला दी होगी। इसी कारण इसने इसे काटा है। ख्यक्रिन बार-बार कहता है कि वह सच बोल रहा है, किंतु इंस्पेक्टर ओचुमेलॉव और सिपाही पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

अभी यह बहस चल ही रही होती है कि सिपाही येल्दीरीन कुत्ते को भली प्रकार देखकर कहता है कि यह कुत्ता जनरल साहब का नहीं है। यह सुनकर ओचुमेलॉव फिर बदल जाता है। तब वह उस कुत्ते को भद्दा और मरियल बताता है। वह ऐसे बेकार और आवारा कुत्तों को मरवाने की बात भी कह देता है। थोड़ी ही देर में सिपाही पुन: कहता है कि शायद यह कुत्ता जनरल साहब का ही है। भीड़ से भी यह आवाज़ आती है कि कुत्ता जनरल साहब का है। इंस्पेक्टर ओचुमेलॉव फिर बदल जाता है। वह फिर से ख्यूक्रिन को ही दोष देना शुरू कर देता है। वह कहता है कि यदि कुत्ते ने उसे काटा भी है, तो इसमें सारी गलती उसकी अपनी है।

इंस्पेक्टर ओचुमेलॉव ख्यूक्रिन को बुरी तरह फटकारता है। उसी समय वहाँ से जनरल साहब का बावर्ची गुज़रता है। वह बताता है कि यह कुत्ता तो जनरल साहब के भाई का है। उनके भाई को ही ‘बारजोयस’ नस्ल के कुत्ते बहुत पसंद हैं। ओचुमेलॉव वह सुनकर प्रसन्नता का ढोंग करता है। वह उस कुत्ते को जनरल साहब के बावर्ची को सौंप देता है। वह उस कुत्ते को अति सुंदर डॉगी और खूबसूरत पिल्ला कहता है। बावर्ची कुत्ते को लेकर चला जाता है। वहाँ खड़ी भीड़ ख्यूक्रिन की हालत पर हँसने लगती है। तब इंस्पेक्टर ओचुमेलॉव ख्यूक्रिन को धमकाकर वहाँ से अपने रास्ते पर चला जाता है।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

जब्त – कब्जा करना, हथिया लेना, खामोशी – शांति, झरबेरियों – बेर की एक किस्म, किकियाना – कष्ट में होने पर कुत्ते द्वारा की जाने वाली आवाज़, काठगोदाम – लकड़ी का गोदाम, कलफ – माँड़ लगाया गया कपड़ा, विहीन – रहित, सुनार – सोने का काम करने वाला, बारजोयस – कुत्ते की एक प्रजाति, आतंक – भय, अकारण – बिना किसी कारण के, कामकाजी – काम करने वाला, पेचीदा – जटिल, कठिन, लायक – योग्य, गुजारिश – प्रार्थना, हरजाना – क्षतिपूर्ति, नुकसान के बदले में दी जाने वाली रकम,

बर्दाश्त – सहना, खखारते – खाँसते हुए, त्योरियाँ – भौंहें चढ़ाना, इल्य – ज्ञान, विवरण – ब्योरा देना, तत्काल – उसी समय, फायदा – लाभ, कानून सम्मत – कानून के अनुसार, भद्दा – अनाकर्षक, कुरूप, नस्ल – जाति, वंश, विनती – प्रार्थना, आह्लाद – खुशी, प्रसन्नता, अद्भुत – विचित्र, खूबसूरत – सुंदर, हालत – स्थिति।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र

JAC Class 10 Hindi तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र Textbook Questions and Answers

मौखिक –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –

लघु उत्तरीय प्रश्न – 

प्रश्न 1.
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को कौन-कौन से पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है?
उत्तर :
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को राष्ट्रपति स्वर्णपदक मिला था। इसे बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म तथा कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इसके साथ-साथ मास्को फ़िल्म फेस्टिवल में भी यह फ़िल्म पुरस्कृत हुई थी।

प्रश्न 2.
शैलेंद्र ने कितनी फ़िल्में बनाई?
उत्तर :
शैलेंद्र ने केवल एक ही फ़िल्म बनाई थी। इस फ़िल्म का नाम ‘तीसरी कसम’ है।

प्रश्न 3.
राजकपूर द्वारा निर्देशित कुछ फ़िल्मों के नाम बताइए।
उत्तर :
राजकपूर द्वारा निर्देशित कुछ प्रमुख फ़िल्में बॉबी, मेरा नाम जोकर, जागते रहो, सत्यम् शिवम् सुंदरम् हैं।

प्रश्न 4.
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म के नायक व नायिकाओं के नाम बताइए और फ़िल्म में इन्होंने किन पात्रों का अभिनय किया है?
उत्तर :
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म के नायक राजकपूर तथा नायिका वहीदा रहमान हैं। राजकपूर ने एक भोले-भाले गाड़ीवान ‘हीरामन’ का तथा वहीदा रहमान ने नौटंकी की बाई ‘हीराबाई’ की भूमिका निभाई है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र

प्रश्न 5.
फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ का निर्माण किसने किया था?
उत्तर :
फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ का निर्माण कवि और गीतकार शैलेंद्र ने किया था।

प्रश्न 6.
राजकपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ के निर्माण के समय किस बात की कल्पना भी नहीं की थी?
उत्तर :
राजकपूर को ‘मेरा नाम जोकर’ फ़िल्म के एक भाग को बनाने में छह वर्ष लग गए थे। उन्होंने यह कल्पना नहीं की थी कि इस फ़िल्म के बनने में इतना अधिक समय लग जाएगा।

प्रश्न 7.
राजकपूर की किस बात पर शैलेंद्र का चेहरा मुरझा गया ?
उत्तर :
राजकपूर ने शैलेंद्र की फ़िल्म में काम करने के लिए मज़ाक में एडवांस माँग लिया। शैलेंद्र ने सोचा कि वे मित्र होकर भी उनसे पारिश्रमिक माँग रहे हैं। यह सोचकर उनका चेहरा मुरझा गया।

प्रश्न 8.
फ़िल्म समीक्षक राजकपूर को किस तरह का कलाकार मानते थे?
उत्तर :
फ़िल्म समीक्षक राजकपूर को आँखों से बात करने वाला कलाकार मानते थे।

लिखित (क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30) शब्दों में लिखिए –

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को ‘सैल्यूलाइड पर लिखी कविता’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर :
सैल्यूलाइड से तात्पर्य किसी चीज्त को कैमरे की रील में भरकर चित्र पर प्रस्तुत करना होता है। फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ में कवि हृदयी शैलेंद्र की संवेदनशीलता और उनकी भावनाएँ पूरी सफलता से प्रस्तुत की गई थीं। हिंदी साहित्य की एक अत्यंत मार्मिक रचना को आधार बनाकर बनाई गई इस फ़िल्म में कविता के समान ही भावनाओं की प्रधानता है। इसी कारण ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को सैल्यूलाइड पर लिखी कविता कहा गया है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र

प्रश्न 2.
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को खरीददार क्यों नहीं मिल रहे थे?
उत्तर :
फ़िल्मी बाज़ार में बिकाऊ कोई भी चीज़ ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में नहीं थी। इस फ़िल्म से लाभ नहीं कमाया जा सकता था। हर क्षेत्र में बेहतरीन फ़िल्म होने के बावजूद भी खरीददारों को इससे अधिक कमाई की आशा नहीं थी। यह एक भावात्मक आदर्शवादी फ़िल्म थी, जबकि फ़िल्मों से पैसा कमाने वालों के लिए भावनाओं और संवेदनाओं का कोई महत्व नहीं होता। इसी कारण इस फ़िल्म को खरीददार नहीं मिल रहे थे।

प्रश्न 3.
शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का कर्तव्य क्या है ?
उत्तर :
शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का कर्तव्य है कि वह उपभोक्ता की रुचियों का परिष्कार करने का प्रयत्न करे। उनकी दृढ़ मान्यता थी कि दर्शकों की रुचि की आड़ में हमें उथलेपन को उन पर थोपना नहीं चाहिए।

प्रश्न 4.
फ़िल्मों में त्रासद स्थितियों का चित्रांकन ग्लोरीफ़ाई क्यों कर दिया जाता है ?
अथवा
हमारी फिल्मों में त्रासद स्थितियों का चित्रांकन ‘ग्लोरीफाई’ क्यों कर दिया जाता है? ‘तीसरी कसम’ के शिल्पकार शैलेन्द्र के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर :
दर्शकों को अधिक भावुक बनाने के लिए ही फ़िल्मों में त्रासद स्थितियों के चित्रांकन को ग्लोरीफ़ाई किया जाता है। त्रासद स्थितियों में दुख के वीभत्स रूप को प्रस्तुत किया जाता है, ताकि दर्शक उसमें डूब जाए। ऐसा करके दर्शकों का सरलता से भावनात्मक शोषण किया जा सकता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र

प्रश्न 5.
‘शैलेंद्र ने राजकपूर की भावनाओं को शब्द दिए हैं’-इस कथन से आप क्या समझते हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ में शैलेंद्र ने राजकपूर दवारा निभाए गए किरदार हीरामन की भावनाओं के अनुसार ही गीतों में शब्द दिए हैं। राजकपूर द्वारा गीत गाते-गाते हीराबाई से ‘मन’ के विषय में पूछना उनकी कोमल भावनाओं को ही दर्शाता है। एक नौटंकी की बाई में अपनापन खोजने वाले सरल हृदय हीरामन की जैसी भावनाएँ हो सकती थीं, उसी के अनुरूप गीतों में शब्द दिए गए हैं। इसी प्रकारं ‘सजनवा बैरी हो गए हमार’ गीत में भावप्रवणता अपनी चरम-सीमा पर है।

प्रश्न 6.
लेखक ने राजकपूर को एशिया का सबसे बड़ा शोमैन कहा है। शोमैन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
शोमैन से अभिप्राय ऐसे फ़िल्म निर्माता से है, जो बहुत अधिक लोकप्रिय हो; जिसके नाम से ही फ़िल्में बिकती हों। इसके साथ-साथ फ़िल्मों के खरीददार जिसकी फ़िल्में हाथों-हाथ खरीद लेते हों। फ़िल्म इंडस्ट्री में जिसकी कई फ़िल्में लगातार हिट हो जाती हैं, उसे शोमैन की संज्ञा दी जाती है।

प्रश्न 7.
फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ के गीत ‘रातों दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पर संगीतकार जयकिशन ने आपति क्यों की?
उत्तर :
फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ के गीत ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ में दिशाएँ दस कही गई हैं। संगीतकार जयकिशन का कहना था कि दर्शक दस दिशाओं की बात नहीं समझ सकता। गीत में दस की बजाय ‘चार दिशाएँ’ होनी चाहिए थी, इसलिए उन्हें गीत में आई ‘दस दिशाएँ’ शब्द पर आपत्ति थी।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60) शब्दों में लिखिए –

निबंधात्मक प्रश्न –

प्रश्न 1.
राजकपूर द्वारा फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह करने पर भी शैलेंद्र ने यह फ़िल्म क्यों बनाई?
उत्तर :
राजकपूर और शैलेंद्र दोनों अच्छे मित्र थे। जब शैलेंद्र ने ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म बनाने के बारे में सोचा, तो राजकपूर ने उन्हें फ़िल्म की असफलता के खतरों के बारे में पहले ही बता दिया था फिर भी शैलेंद्र ने फ़िल्म बनाने का निर्णय नहीं बदला। वे एक आदर्शवादी भावुक कवि थे। उनका उद्देश्य फ़िल्म का निर्माण करके उससे धन कमाना नहीं था। उन्हें अपार संपत्ति और धन की कोई कामना नहीं थी। वे आत्म-संतुष्टि के सुख के लिए फ़िल्म बना रहे थे। उनके लिए आत्म-संतुष्टि सबसे बड़ी चीज़ थी। अतः राजकपूर द्वारा फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह किए जाने पर भी शैलेंद्र ने ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म बनाई।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र

प्रश्न 2.
‘तीसरी कसम’ में राजकपूर का महिमामय व्यक्तित्व किस तरह हीरामन की आत्मा में उतर गया है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
राजकपूर एक महान कलाकार थे। फ़िल्म के पात्र के अनुरूप अपने आपको ढाल लेना वे भली-भाँति जानते थे। जब ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म बनी थी, उस समय राजकपूर एशिया के सबसे बड़े शोमैन के रूप में स्थापित हो चुके थे। फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ में उन्हें एक सरल हृदय ग्रामीण गाड़ीवान के रूप में प्रस्तुत किया गया। उन्होंने अपने आपको उस ग्रामीण गाड़ीवान हीरामन के साथ एकाकार कर लिया। एक शुद्ध देहाती का जैसा अभिनय राजकपूर ने किया, वह अद्वितीय है।

एक गाड़ीवान की सरलता, नौटंकी की बाई में अपनापन खोजना, हीराबाई की बोली पर रीझना, उसकी भोली सूरत पर न्योछावर होना और हीराबाई की तनिक-सी उपेक्षा पर अपने अस्तित्व से जूझना जैसी हीरामन की भावनाओं को राजकपूर ने बड़े सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। फ़िल्म में राजकपूर कहीं भी अभिनय करते नहीं दिखते, अपितु ऐसा लगता है जैसे वह ही हीरामन हो। ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में राजकपूर का पूरा व्यक्तित्व ही जैसे हीरामन की आत्मा में उतर गया है।

प्रश्न 3.
लेखक ने ऐसा क्यों लिखा है कि ‘तीसरी कसम’ ने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है?
उत्तर :
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म साहित्यिक रचना पर आधारित थी। इस फ़िल्म से पहले भी साहित्यिक रचनाओं पर आधारित फ़िल्में बनती रही थीं। उन फ़िल्मों में साहित्यिक रचना की मूल कथा में कुछ काल्पनिक तत्वों का समावेश करके उसे मनोरंजक बनाया जाता था। उन फ़िल्मों का उद्देश्य दर्शकों की रुचि के अनुरूप सामग्री डालकर धन कमाना होता था, किंतु ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में ऐसा नहीं था। इस फ़िल्म में मूल साहित्यिक रचना को उसके वास्तविक रूप में प्रस्तुत किया गया। उसमें किसी प्रकार के काल्पनिक अथवा मनोरंजक तत्वों को न डालकर उसकी गरिमा को भी बनाए रखा गया। इसी कारण लेखक ने लिखा है कि ‘तीसरी कसम’ ने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है।

प्रश्न 4.
शैलेंद्र के गीतों की क्या विशेषताएँ हैं? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
शैलेंद्र एक कवि और सफल गीतकार थे। उनके लिखे गीतों में अनेक विशेषताएँ दिखाई देती हैं। उन्होंने कभी भी निम्न-स्तर के गीत नहीं लिखे। उनमें सस्ती लोकप्रियता पाने की ललक नहीं थी। उनके गीतों में भावनाओं का प्रवाह है। उनके गीतों की एक अन्य विशेषता सरलता है। उन्होंने अपने गीतों में कठिन शब्दों के स्थान पर सरल शब्दों का प्रयोग किया है, जिससे सामान्य दर्शक भी उसे समझ लेता है।

उनके गीतों में करुणा के साथ-साथ संघर्ष की भावना भी दिखाई देती है। शैलेंद्र के गीत मनुष्य को जीवन में दुखों से घबराकर रुकने के स्थान पर निरंतर आगे बढ़ने का संदेश देते हैं। शैलेंद्र के गीतों की एक अन्य विशेषता उसकी भावप्रवणता है। उनके गीत का एक एक शब्द भावनाओं की अभिव्यक्ति करने में पूर्णतः सक्षम है।

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प्रश्न 5.
फ़िल्म निर्माता के रूप में शैलेंद्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
फ़िल्म निर्माता के रूप में ‘तीसरी कसम’ शैलेंद्र की पहली और अंतिम फ़िल्म थी। उन्होंने इस फ़िल्म का निर्माण पैसा कमाने के उद्देश्य से नहीं किया था। उन्होंने फ़िल्म निर्माता के रूप में यश और संपत्ति की कभी कामना नहीं की। वे एक आदर्शवादी भावुक कवि थे। उन्होंने तो आत्म-संतुष्टि के लिए फ़िल्म बनाई थी। शैलेंद्र फ़िल्म की असफलता से होने वाले खतरों से परिचित थे, फिर भी उन्होंने शुद्ध साहित्यिक फ़िल्म बनाकर साहसी फ़िल्म निर्माता का परिचय दिया। शैलेंद्र एक मानवतावादी फ़िल्म निर्माता थे।

उन्होंने फ़िल्म इंडस्ट्री में रहते हुए भी अपनी आदमियत नहीं खोई थी। शैलेंद्र की एक अन्य विशेषता फ़िल्म में दुख को भी सहज स्थिति में जीवन सापेक्ष प्रस्तुत करना था। शैलेंद्र ने तीसरी कसम फ़िल्म का निर्माण पूरी तरह साहित्यिक रचना के अनुसार करके उसके साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है। वे चाहते तो इसमें फेरबदल करके इसे अधिक मनोरंजक बना सकते थे। उन्होंने फ़िल्म के असफल होने के डर से घबराकर अपने सिद्धांतों के साथ कोई समझौता नहीं किया। इस प्रकार वे एक आदर्श फ़िल्म निर्माता के रूप में सामने आए हैं।

प्रश्न 6.
शैलेंद्र के निजी जीवन की छाप उनकी फ़िल्म में झलकती है-कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
शैलेंद्र ने अपने जीवन में एक ही फ़िल्म का निर्माण किया, जिसका नाम ‘तीसरी कसम’ था। यह एक संवेदनात्मक और भावनापूर्ण फ़िल्म थी। शांत नदी का प्रवाह और समुद्र की गहराई उनके निजी जीवन की विशेषता थी और यही विशेषता उनकी फ़िल्म में भी दिखाई देती है। ‘तीसरी कसम’ का नायक हीरामन अत्यंत सरल हृदयी और भोला-भाला नवयुवक है; जो केवल दिल की जुबान समझता है, दिमाग की नहीं। उसके लिए मोहब्बत के सिवा किसी चीज का कोई अर्थ नहीं। ऐसा ही व्यक्तित्व शैलेंद्र का था।

वे एक भावुक एवं संवेदनशील कवि थे। हीरामन को धन की चकाचौंध से दूर रहने वाले एक देहाती के रूप में प्रस्तुत किया गया है। शैलेंद्र स्वयं भी यश और धन-लिप्सा से कोसों दूर थे। इसके साथ-साथ फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ में दुख को भी सहज स्थिति में जीवन सापेक्ष प्रस्तुत किया गया है। शैलेंद्र अपने निजी जीवन में भी दुख को सहज रूप से जी लेते थे। वे दुख से घबराकर उससे दूर नहीं भागते थे। इस प्रकार स्पष्ट है कि शैलेंद्र के निजी जीवन की छाप उनकी फ़िल्म में झलकती है।

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प्रश्न 7.
लेखक के इस कथन से कि ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म कोई सच्चा कवि हृदय ही बना सकता था, आप कहाँ तक सहमत हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में भावनाओं और संवेदनाओं की मार्मिक अभिव्यक्ति है। फणीश्वरनाथ रेणु की साहित्यिक कृति पर आधारित – इस फ़िल्म में शैलेंद्र ने संवेदनशीलता को पूरी तीव्रता के साथ व्यक्त किया है। इस पूरी फ़िल्म में कोमल भावनाओं की प्रधानता है। ऐसी कोमल भावनाओं को एक कवि-हृदय व्यक्ति ही भली प्रकार समझ सकता है और उन्हें अच्छे ढंग से प्रस्तुत कर सकता है। कवि स्वभाव से अत्यंत संवेदनशील होते हैं; वे दिल से काम लेते हैं, दिमाग से नहीं।

‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में नायक और नायिका के मनोभावों को प्रस्तुत करने के लिए एक कवि-हदय की ही आवश्यकता थी। शैलेंद्र एक भावुक कवि और गीतकार थे। वे उन कोमल अनुभूतियों को बारीकी से समझते थे और उन्हें प्रस्तुत करने में भी सक्षम थे। उनके कवि-हृदय के कारण ही फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ का निर्माण संभव हो पाया। इस फ़िल्म में कोमल भावनाओं की प्रधानता होने के कारण ही लेखक ने कहा है कि इसे कोई सच्चा कवि हृदय ही बना सकता था। हम लेखक के कथन से पूर्णतः सहमत हैं।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
वह तो एक आदर्शवादी भावुक कवि था, जिसे अपार संपत्ति और यश तक की इतनी कामना नहीं थी जितनी आत्म-संतुष्टि के सुख की अभिलाषा थी।
उत्तर :
यहाँ लेखक का आशय यह है कि शैलेंद्र ने ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म का निर्माण धन-संपत्ति कमाने और यश पाने के उद्देश्य से नहीं किया था। उनका इस फ़िल्म को बनाने का कारण आत्म-संतुष्टि के सुख को पाने की इच्छा थी। शैलेंद्र एक भावुक और आदर्शवादी कवि थे। उन्हें धन और यश की कोई इच्छा नहीं थी, अपितु वे तो समाज को एक साफ़-सुथरी और अच्छी फ़िल्म देना चाहते थे। वे तो इस बात की संतुष्टि पाना चाहते थे कि उन्होंने एक अच्छी फ़िल्म बनाई।

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प्रश्न 2.
उनका यह दृढ़ मंतव्य था कि दर्शकों की रुचि की आड़ में हमें उथलेपन को उन पर नहीं थोपना चाहिए। कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह उपभोक्ता की रुचियों का परिष्कार करने का प्रयत्न करे।
उत्तर :
लेखक ने यहाँ फ़िल्म-निर्माता और कलाकार के विषय में कवि शैलेंद्र के विचारों को प्रस्तुत किया है। लेखक के अनुसार कवि एवं संगीतकार शैलेंद्र की दृढ़ मान्यता थी कि फ़िल्मों में दर्शकों की रुचि का सहारा लेकर निम्न-स्तर की सामग्री का प्रयोग नहीं होना चाहिए। फ़िल्म निर्माता को उच्च-स्तर के दर्शकों का भी ध्यान रखना चाहिए। दर्शक सभी प्रकार के होते हैं।

केवल कुछ दर्शकों को प्रसन्न करने के लिए अन्य दर्शकों पर घटिया सामग्री को नहीं थोपना चाहिए। साथ ही उनका यह भी मानना था कि कलाकार को चाहिए कि वह दर्शकों की रुचियों को साफ़-सुथरा बनाने की कोशिश करे। कलाकार का कर्तव्य है कि वह दर्शकों को निम्न रुचियों को ध्यान में रखकर अभिनय न करे, अपितु उसे दर्शकों की रुचियों को अपने अभिनय से श्रेष्ठ रूप में बदलने का प्रयास करना चाहिए।

प्रश्न 3.
व्यथा आदमी को पराजित नहीं करती, उसे आगे बढ़ने का संदेश देती है।
उत्तर :
लेखक का आशय यह है कि जीवन में आने वाले दुख मनुष्य को कभी पराजित नहीं करते, बल्कि वे तो जीवन में आगे बढ़ने का संदेश देते हैं। जो लोग दुखों से घबराकर बैठ जाते हैं, वे जीवन में कभी भी सफल नहीं हो सकते। जीवन में आने वाले दुख और पीड़ाएँ हमें अधिक मज़बूत बनाती हैं और जीवन में निरंतर आगे बढ़ने की ओर प्रेरित करती हैं। दुखों से घबराने के स्थान पर इनसे प्रेरणा लेकर निरंतर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। जो लोग ऐसा कर पाते हैं, वही सफ़ल होते हैं।

प्रश्न 4.
दरअसल इस फ़िल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने वाले की समझ से परे है।
उत्तर :
लेखक का आशय यह है कि फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ एक संवेदनशील फ़िल्म थी। यह संवेदना फ़िल्मों से पैसा कमाने वाले लोगों की समझ में आने वाली नहीं थी। जिस फ़िल्म में दर्शकों के मनोरंजन के लिए पर्याप्त सामग्री होती है, उसे फ़िल्मों के खरीददार हाथों-हाथ खरीद लेते हैं। फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ में भावनाओं और संवेदनाओं की प्रधानता थी। फ़िल्मों से पैसा कमाने वालों के लिए संवेदनाओं का कोई महत्व नहीं था। इसी कारण इस फ़िल्म को कोई खरीददार नहीं मिला।

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प्रश्न 5.
उनके गीत भाव-प्रवण थे-दुरूह नहीं।
उत्तर :
लेखक का आशय यह है कि कवि एवं गीतकार शैलेंद्र के गीतों में भावप्रवणता बहुत थी, लेकिन वे कठिन नहीं थे। उनके गीतों में भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति होती थी। गहरी से गहरी भावनाओं को भी बड़ी सरलता से प्रस्तुत किया जाता था। उनके गीत भावनात्मक होते हुए भी सरल थे। सामान्य से सामान्य श्रोता और दर्शक भी उनके गीतों के भाव को बड़ी आसानी से समझ लेता था। उनके गीत भावनाओं से परिपूर्ण होते हुए भी आम आदमी से जुड़े हुए थे।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
पाठ में आए ‘से’ के विभिन्न प्रयोगों से वाक्य की संरचना को समझिए।
(क) राजकपूर ने एक अच्छे और सच्चे मित्र की हैसियत से शैलेंद्र को फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगह भी किया।
(ख) रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ।
(ग) फ़िल्म इंडस्ट्री में रहते हुए भी वहाँ के तौर-तरीकों से नावाकिफ़ थे।
(घ) दरअसल इस फ़िल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने के गणित जानने वाले की समझ से परे थी।
(ङ) शैलेंद्र राजकपूर की इस याराना दोस्ती से परिचित तो थे।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

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प्रश्न 2.
इस पाठ में आए निम्नलिखित वाक्यों की संरचना पर ध्यान दीजिए
(क) ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म नहीं, सैल्यूलाइड पर लिखी कविता थी।
(ख) उन्होंने ऐसी फ़िल्म बनाई थी जिसे सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था।
(ग) फ़िल्म कब आई, कब चली गई, मालूम ही नहीं पड़ा।
(घ) खालिस देहाती भुच्च गाड़ीवान जो सिर्फ़ दिल की जुबान समझता है, दिमाग की नहीं।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 3.
पाठ में आए निम्नलिखित मुहावरों से वाक्य बनाइए –
चेहरा मुरझाना, चक्कर खा जाना, दो से चार बनाना, आँखों से बोलना
उत्तर :
चेहरा मुरझाना – परीक्षा में पास न होने पर रमेश का चेहरा मुरझा गया।
चक्कर खा जाना – आई०ए०एस० की परीक्षा पास करने में बड़े-बड़े चक्कर खा जाते हैं।
दो से चार बनाना – दो से चार बनाना भी किसी-किसी का काम है, सबका नहीं।
आँखों से बोलना – राम की आँखें बहुत कुछ कहती हैं; वह तो आँखों से बोलता है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों के हिंदी पर्याय दीजिए –
(क) शिद्दत
(ख) याराना
(ग) बमुश्किल
(घ) खालिस
(ङ) नावाकिफ़
(च) यकीन
(छ) हावी
(ज) रेशा
उत्तर :
(क) शिद्दत – तीव्रता
(ख) याराना – मित्रता
(ग) बमुश्किल – कठिनतापूर्वक
(घ) खालिस – शुद्ध
(ङ) नावाकिफ़ – अपरिचित
(च) यकीन – विश्वास
(छ) हावी – भारी
(ज) रेशा – कण

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित का संधिविच्छेद कीजिए –
(क) चित्रांकन
(ख) सर्वोत्कृष्ट
(ग) चर्मॉत्कर्ष
(घ) रूपांतरण
(ङ) घनानंद
उत्तर :
(क) चित्रांकन – चित्र + अंकन
(ख) सर्वोत्कृष्ट – सर्व + उत्कृष्ट
(ग) चर्मोत्कर्ष – चरम + उत्कर्ष
(घ) रूपांतरण – रूप + अंतरण
(ङ) घनानंद – घन + आनंद

प्रश्न 6.
निम्नलिखित का समास विश्रह कीजिए और समास का नाम भी लिखिए –
(क) कला-मर्मज्ञ
(ख) लोकण्रिय
(ग) राष्ट्रपति
उत्तर :
(क) कला-मर्मज्ञ – कला का मर्मझ – संबंध तत्पुरुष
(ख) लोकप्रिय – लोगों में प्रिय – अधिकरण तत्पुरुष
(ग) राष्ट्रपति – राष्ट्र का पति – संबंध तत्पुरुष

योग्यता विस्तार –

प्रश्न 1.
फणीश्वरनाथ रेणु की किस कहानी पर तीसरी कसम फ़िल्म आधारित है, जानकारी प्राप्त कीजिए और मूल रचना पढ़िए।
उत्तर :
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म फणीश्वरनाथ रेणु की रचना ‘तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम’ पर आधारित है।

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प्रश्न 2.
समाचार-पत्रों में फिल्मों की समीक्षा दी जाती है। किन्हीं तीन फ़िल्मों की समीक्षा पढ़िए और ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को देखकर इस फ़िल्म की समीक्षा स्वयं लिखने का प्रयास कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

परियोजना कार्य –

प्रश्न 1.
फ़िल्मों के संदर्भ में आपने अकसर यह सुना होगा-‘जो बात पहले की फ़िल्मों में थी, वह अब कहाँ’। वर्तमान दौर की फ़िल्मों और पहले की फ़िल्मों में क्या समानता और अंतर है? कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी समूहों में विभाजित होकर चर्चा करें।

प्रश्न 2.
‘तीसरी कसम’ जैसी और भी फ़िल्में हैं जो किसी-न-किसी भाषा की साहित्यिक रचना पर बनी हैं। ऐसी फ़िल्मों की सूची निम्नांकित प्रपत्र के आधार पर तैयार करें।
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उत्तर :
JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र 2

प्रश्न 3.
लोकगीत हमें अपनी संस्कृति से जोड़ते हैं। तीसरी कसम’ फ़िल्म में लोकगीतों का प्रयोग किया गया है। आप भी अपने क्षेत्र के प्रचलित दो-तीन लोकगीतों को एकत्र कर परियोजना कॉपी पर लिखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने-अपने क्षेत्र के अनुसार स्वयं करें।

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निबंधात्मक प्रश्न –

प्रश्न 1.
लेखक ने शैलेंद्र को फ़िल्म-निर्माता बनने के सर्वथा अयोग्य क्यों कहा है?
उत्तर :
फ़िल्म निर्माता बनने के लिए खूब चालाकी और चतुरता की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत शैलेंद्र बिलकुल सरल-हृदयी थे। फ़िल्म निर्माता दर्शकों की रुचि के अनुसार निम्न स्तरीय सामग्री का भी उपयोग कर लेते हैं, किंतु शैलेंद्र आदर्शवादी व्यक्ति थे। वे अपने सिद्धांतों से कोई समझौता नहीं करते थे। इसी कारण लेखक ने उन्हें फ़िल्म-निर्माता बनने के सर्वथा अयोग्य बताया है।

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प्रश्न 2.
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में राजकपूर के अभिनय की तुलना किस फ़िल्म से की गई है? उनका श्रेष्ठ अभिनय किस फ़िल्म में है?
उत्तर :
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में राजकपूर के अभिनय की तुलना उनकी एक अन्य फ़िल्म ‘जागते रहो.’ से की गई है। यद्यपि ‘जागते रहो’ फ़िल्म में भी उनके अभिनय को बहुत अधिक सराहा गया है, किंतु ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में उनका अभिनय सर्वश्रेष्ठ है। इस फ़िल्म में उन्होंने पात्र के साथ स्वयं को एकाकार कर लिया है। ऐसा प्रतीत होता है, मानो उनका व्यक्तित्व पूरी तरह से उनके द्वारा निभाए गए पात्र हीरामन की आत्मा में उतर गया है।

प्रश्न 3.
‘तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र’ पाठ के आधार पर राजकपूर के व्यक्तित्व का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
राजकपूर भारतीय सिनेमा जगत के एक सुप्रसिद्ध अभिनेता तथा फ़िल्म निर्माता थे। वे एक महान कलाकार थे। उनकी कीर्ति और यश अपने देश में तो फैला ही था, विदेशों में भी उन्होंने खूब नाम कमाया था। एशिया महाद्वीप में उन्हें शोमैन के रूप में जाना जाता था।

वे जिस भी फ़िल्म में काम करते थे, उसमें अपनी भूमिका को बड़े सटीक ढंग से निभाते थे। कला के जानकार राजकपूर को एक ऐसा कलाकार मानते थे, जो आँखों से बात करता था। राजकपूर ने अनेक फ़िल्मों का निर्माण किया था, जिनमें से कुछ फ़िल्में मेरा नाम जोकर, सत्यम् शिवम् सुंदरम, मैं और मेरा दोस्त आदि थीं। फ़िल्म में वे अपनी भूमिका में खोकर शीघ्र ही एकाकार हो जाते थे।

प्रश्न 4.
आजकल हमारी फ़िल्मों की सबसे बड़ी कमज़ोरी क्या है?
उत्तर :
आजकल हमारी फ़िल्मों की सबसे बड़ी कमी है-‘लोक तत्वों का न होना’। आज हमारी फ़िल्में आम जीवन तथा उनकी जिंदगी से बहुत दूर होती जा रही हैं। आज फ़िल्मों में जो फ़िल्माया जा रहा है, वह जनता को उससे न जोड़कर मात्र मनोरंजन का साधन बन गया है। इसमें दुख को इतनी गहराई और गंभीरता से पेश कर देते हैं कि दर्शक न चाहकर भी स्वयं को उसमें डुबा दे तथा उसी में खो जाए। लेकिन यह दुख के स्वरूप को अधिक वीभत्स करता है।

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प्रश्न 5.
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में राजकपूर का अभिनय किस प्रकार का है ?
उत्तर :
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में राजकपूर का अभिनय बेजोड़ है। उन्होंने इस फ़िल्म में एक शुद्ध देहाती हीरामन नामक गाड़ीवान की भूमिका निभाई है। उनके द्वारा निभाई गई भूमिका इतनी उत्कृष्ट है कि वे कहीं भी अभिनय करते प्रतीत नहीं होते। वे अपनी भूमिका में इतने खो गए हैं कि वे हीरामन ही लगते हैं। उनका महिमामय व्यक्तित्व पूरी तरह से हीरामन में ढल गया है। उन्होंने एक सरल-हृदय गाड़ीवान की भावनाओं को बड़े ही सुंदर एवं सजीव ढंग से प्रस्तुत किया है।

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
‘संगम’ फ़िल्म की अद्भुत सफलता से प्रभावित होकर राजकपूर ने क्या किया?
उत्तर :
‘संगम’ फ़िल्म की अद्भुत सफलता से प्रभावित होकर राजकपूर ने एक साथ चार फ़िल्मों के निर्माण की घोषणा कर दी। इन फ़िल्मों के नाम ‘मेरा नाम जोकर’, ‘अजंता’, ‘मैं और मेरा दोस्त’ तथा ‘सत्यम् शिवम् सुंदरम्’ थे। इनमें से केवल एक ही फ़िल्म ‘मेरा नाम जोकर’ के एक भाग को बनाने में ही उन्हें छह वर्ष का समय लग गया था।

प्रश्न 2.
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में राजकपूर और वहीदा रहमान ने किसकी भूमिका निभाई है?
उत्तर :
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में राजकपूर ने एक शुद्ध देहाती गाड़ीवान की भूमिका निभाई है, जिसका नाम ‘हीरामन’ है। वह सरल-हृदयी है। वह भोला-भाला ग्रामीण केवल दिल की बात समझता है। उसके लिए मोहब्बत के सिवा किसी दूसरी चीज़ का कोई अर्थ नहीं है। इस फ़िल्म में वहीदा रहमान ने नौटंकी में काम करने वाली एक बाई की भूमिका निभाई है, जिसका नाम ‘हीराबाई’ है।

प्रश्न 3.
आज भी ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को क्यों याद किया जाता है?
उत्तर :
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म शैलेंद्र की पहली तथा अंतिम फ़िल्म थी। इस फ़िल्म ने अनेक पुरस्कार प्राप्त किए थे। इस फ़िल्म की पटकथा प्रसिद्ध आंचलिक उपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणु ने तैयार की थी। फ़िल्म में छोटी-से-छोटी बारीक चीजें भी पूरी स्पष्टता के साथ दृष्टिगोचर होती हैं। यह फ़िल्म समाज के लिए मात्र मनोरंजन का साधन नहीं थी; यह फ़िल्म लोगों को एक संदेश देने में भी सफल रही।

प्रश्न 4.
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म की प्रसिद्धि के क्या कारण थे?
उत्तर :
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म की प्रसिद्धि के अनेक कारण थे। यह फ़िल्म कलात्मक दृष्टि से उच्च कोटि की फ़िल्म थी। इसके गीत, संगीत अपने आप में बेजोड़ थे। फ़िल्म के कलाकार राजकपूर और अभिनेत्री वहीदा रहमान का अपने पात्रों में कुशल प्रस्तुति देने के कारण भी यह फ़िल्म प्रसिद्धि पाने में सफल रही।

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प्रश्न 5.
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में कवि हृदय शैलेंद्र के किस रूप के दर्शन होते हैं ?
उत्तर :
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में शैलेंद्र की संवेदनशीलता के दर्शन होते हैं। लेखक ने ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को सैल्यूलाइड पर लिखी कविता की संज्ञा दी है। यह इनके भावुक होने और समाज के प्रति इनके चिंतन के भाव को मुखरित करता है। वे एक अत्यंत भावुक कवि थे। इनकी भावात्मकता इस फ़िल्म में स्पष्ट दिखाई पड़ती है।

प्रश्न 6.
“तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र’ पाठ के माध्यम से लेखक क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर :
इस पाठ के माध्यम से लेखक वास्तविकता का ज्ञान करवाना चाहता है कि कला फिल्में मर जाती हैं और लोगों को पता तक नहीं चलता। इसका कारण इनमें संवेदनाएँ तो होती हैं, लेकिन मनोरंजक तथ्य एवं भंगिमाएँ नहीं होती। इसी कारण दर्शक उनसे जुड़ नहीं पाते। हमें जीवन संदेश को आत्मसात् करना चाहिए, न कि मनोरंजन में ही डूबे रहना चाहिए।

प्रश्न 7.
‘तीसरी कसम’ फिल्म के मुख्य नायक कौन थे? उन्होंने इसमें क्या भूमिका निभाई है?
उत्तर :
‘तीसरी कसम’ फिल्म के मुख्य नायक राजकपूर थे। उनका अभिनय बेजोड़ था। उनके द्वारा किया गया अभिनय इतना बेजोड़ था कि वह कहीं भी अभिनय करते दिखाई नहीं देते थे। उनके अभिनय में वास्तविकता झलक रही थी। उनका व्यक्तित्व हीरामन में समाहित हो गया था। उन्होंने एक सरल-हृदय गाड़ीवान की भावनाओं को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया।

तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन – फ़िल्म-क्षेत्र पर लेखनी चलाने वाले प्रहलाद अग्रवाल का जन्म सन 1947 में मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर में हुआ था। बचपन से ही इनकी रुचि फ़िल्मों की ओर रही। इन्हें किशोरावस्था में हिंदी फ़िल्मों के इतिहास और फ़िल्मकारों के जीवन व उनके अभिनय के बारे में जानने तथा उस पर चर्चा करने का शौक रहा। इन्होंने हिंदी विषय में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। वर्तमान में ये सतना के शासकीय स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्राध्यापन कार्य कर रहे हैं।

रचनाएँ – प्रहलाद अग्रवाल ने अपनी रुचि के अनुरूप फ़िल्म क्षेत्र से जुड़े लोगों और फ़िल्मों के लिए ही अधिक लिखा है। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं – सातवाँ दशक, तानाशाह, मैं खुशबू, सुपर स्टार, राजकपूरः आधी हकीकत आधा फ़साना, कवि शैलेंद्र जिंदगी की जीत में यकीन, प्यासा चिर अतृप्त गुरुदत्त, उत्ताल उमंग सुभाष घई की फ़िल्मकला, ओ रे माँझी बिमल राय का सिनेमा और महाबाज़ार के महानायक इक्कीसवीं सदी का सिनेमा।

भाषा-शैली – प्रहलाद अग्रवाल की भाषा-शैली अत्यंत सरल, सहज, सरस और प्रभावशाली है। इनकी भाषा में रोचकता और प्रवाहमयता का गुण सर्वत्र विद्यमान है। इन्होंने तत्सम व तद्भव शब्दों के साथ-साथ उर्दू-फ़ारसी के शब्दों का सुंदर चित्रण किया है। प्रस्तुत पाठ में उर्दू फ़ारसी के अनेक शब्दों के अतिरिक्त अंग्रेजी के अनेक शब्दों जैसे फेस्टिवल, जर्नलिस्ट एसोसिएशन, एडवांस, ग्लोरीफ़ाई आदि का प्रयोग भी किया गया है।

फ़िल्म क्षेत्र पर अधिक लिखने के कारण इनकी भाषा में फ़िल्मी दुनिया में प्रयोग होने वाले शब्दों की भरमार है; जैसे रिलीज़, फ़िल्म इंडस्ट्री, स्टार, पटकथा, सैल्यूलाइड, शोमैन, फ़िल्म वितरक आदि। इसके साथ-साथ इनकी भाषा में आंचलिक शब्दों का भी र खूब प्रयोग हुआ है। जैसे-भुच्च, बांचे, भाग, टप्पर गाड़ी, उकड़, फेनू-गिलासी, मनुआ-नटुआ आदि। प्रहलाद अग्रवाल की शैली वर्णनात्मक है। कहीं-कहीं उन्होंने संवादात्मक शैली का भी प्रयोग किया है, जिसमें नाटकीयता का पुट है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र

पाठ का सार :

प्रस्तुत पाठ ‘तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र’ में लेखक ने कवि एवं गीतकार शैलेंद्र द्वारा बनाई एकमात्र फिल्म ‘तीसरी कसम’ के विषय में बताया है। तीसरी कसम’ फ़िल्म सन 1966 ई० में प्रदर्शित हुई। इसमें मुख्य भूमिका शैलेंद्र के मित्र और अभिनेता राजकपूर ने निभाई। इस फ़िल्म को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। यह फ़िल्म फणीश्वरनाथ रेणु की एक साहित्यिक रचना पर आधारित थी। इस फ़िल्म में कवि हृदय शैलेंद्र की संवेदनशीलता का स्वरूप दिखाई देता है। लेखक ने ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को सैल्यूलाइड पर लिखी कविता की संज्ञा दी है।

शैलेंद्र एक भावुक कवि थे। यद्यपि राजकूपर ने उन्हें फ़िल्म की असफलता के खतरों से पहले ही आगाह कर दिया था, फिर भी उन्होंने फ़िल्म बनाने का निर्णय नहीं छोड़ा। उनका फ़िल्म बनाने का उद्देश्य धन और यश न होकर आत्म-संतुष्टि के सुख की अभिलाषा थी। ‘तीसरी कसम’ में फ़िल्म में लोकप्रिय सितारे, संगीत और गीत होने के बावजूद इसे कोई खरीददार नहीं मिल पाया। इसका कारण यह था कि इस फ़िल्म में पेश की गई संवेदना और करुणा फ़िल्मों से पैसा कमाने वाले खरीददारों की समझ से परे थी।

परिणामस्वरूप यह फ़िल्म कब आई और कब चली गई, किसी को पता ही नहीं चला। लेखक कहता है कि शैलेंद्र फ़िल्म इंडस्ट्री के तौर-तरीकों को भली-भाँति जानते थे, फिर भी उन्होंने अपनी मनुष्यता को नहीं खोया था। उनकी दृढ़ मान्यता थी कि दर्शकों की रुचि का सहारा लेकर निर्माताओं को फ़िल्मों में निम्न-स्तरीय सामग्री पेश नहीं करनी चाहिए। वे चाहते किया गया है। तत किया।

थे कि कलाकार भी दर्शकों की रुचियों का परिष्कार करें। ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में संवेदनशीलता अपनी चरम-सीमा पर है। कहीं-कहीं तो नायिका आँखों से बोलती प्रतीत होती है। इसके अतिरिक्त फ़िल्म में मस्ती में डूबते और झूमते गाड़ीवान, नौटंकी की बाई में अपनापन खोजते गाड़ीवान और अभावों की जिंदगी जीने वाले लोगों के सुनहरी सपनों का सुंदर चित्रण किया गया है। लेखक के अनुसार हमारी फ़िल्मों में सबसे बड़ी कमजोरी लोक-तत्व का अभाव है। तीसरी कसम’ फ़िल्म में लोक तत्वों को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है।

इस फ़िल्म में दुख को भी सहज स्थिति में जीवन-सापेक्ष प्रस्तुत किया गया है। लेखक कहता है कि शैलेंद्र के गीत भी अपनी अलग विशेषताओं के कारण प्रसिदध रहे हैं। उनके गीतों में भावप्रवणता, सरलता और करुणा के साथ-साथ संघर्ष का स्वर भी : दिखाई देता है। ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म के तो सभी गीत भावप्रवणता का उत्कृष्ट उदाहरण है।

लेखक कहता है कि ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में राजकपूर का अभिनय बेजोड़ है। उन्होंने इस फ़िल्म में एक शुद्ध देहाती हीरामन नामक गाड़ीवान की भूमिका निभाई है। उनके द्वारा निभाई गई भूमिका इतनी उत्कृष्ट है कि वे कहीं भी अभिनय करते प्रतीत नहीं होते। अपितु वे हीरामन ही बन गए हैं। उनका महिमामय व्यक्तित्व पूरी तरह से हीरामन में ढल गया है। उन्होंने एक सरल-हृदय गाड़ीवान की भावनाओं को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म की पटकथा फणीश्वरनाथ रेणु ने तैयार की थी। उनकी मूल रचना का छोटे से छोटा भाग और उसकी बारीकियाँ इस फ़िल्म में बड़ी सफलता से प्रस्तुत की गई हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र

कठिन शब्दों के अर्थ :

गहन – गहरा, अंतराल – के बाद, अभिनीत – अभिनय किया गया, सर्वोत्कृष्ट – सबसे अच्छा, अत्यंत – बहुत अधिक, सैल्यूलाइड – कैमरे की रील में उतार चित्र पर प्रस्तुत करना, सार्थकता – सफलता के साथ, कलात्मकता – कला से परिपूर्ण, संवेदनशीलता – भावुकता, तारीफ़ प्रशंसा, फेस्टिवल – उत्सव, शिद्दत – तीव्रता, अनन्य – परम, अत्यधिक, तन्मयता – तल्लीनता, पारिश्रमिक – मेहनताना, उम्मीद – आशा, याराना मस्ती – दोस्ताना अंदाज़, सर्वथा – बिलकुल, पूरी तरह, आगाह – सचेत, भावुक – संवेदनशील, भावनाओं में बहने वाला, आत्म-संतुष्टि – अपनी तुष्टि, अभिलाषा – चाह, इच्छा,

बमुश्किल – बहुत कठिनाई से, वितरक – प्रसारित करने वाले लोग, नामजद – विख्यात, प्रसिद्ध, बेहद – बहुत अधिक, दरअसल – वास्तव में, नावाकिफ़ – अनजान, आदमियत – मानवता, मनुष्यता, इकरार – सहमति, मंतव्य – मान्यता, उथलापन – सतही, नीचा, भावप्रवण – भावनाओं से भरा हुआ, दुरूह – कठिन, एकमात्र – अकेली मोड़कर पैर के तलवों के सहारे बैठना, सूक्ष्मता – बारीकी, स्पंदित – संचालित करना, गतिमान, लालायित – इच्छुक, टप्पर-गाड़ी – अर्धगोलाकार छप्पर युक्त बैलगाड़ी,

हुजूम – भीड़, प्रतिरूप – छाया, रूपांतरण – किसी एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित करना, लोक तत्व – लोक संबंधी, त्रासद – दुखद, ग्लोरीफ़ाई – गुणगान, महिमामंडित करना, वीभत्स – भयावह, व्यथा – पीड़ा-दुख, जीवन, सापेक्ष – जीवन के प्रति, धन-लिप्सा – धन की अत्यधिक चाह, तहत – द्वारा, प्रक्रिया – प्रणाली, अद्वितीय – जिसके समान दूसरा न हो, बाँचै – पढ़ना, भाग – भाग्य, समीक्षक – समीक्षा करने वाला, कला-मर्मज्ञ – कला की परख करने वाला, चर्मोत्कर्ष – ऊँचाई के शिखर पर, खालिस – शुद्ध, देहाती – ग्रामीण, सिर्फ़ – केवल, भुच्च – निरा, बिलकुल, मुकाम – पड़ाव, किंवदंती – कहावत, तनिक सी – थोड़ी-सी

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत

JAC Class 10 Hindi नौबतखाने में इबादत Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है?
उत्तर :
शहनाई की दुनिया में डुमराँव को इसलिए याद किया जाता है, क्योंकि यहाँ सोन नदी के किनारे पाई जाने वाली नरकट नामक घास से शहनाई की रीड बनाई जाती है। इसी रीड से शहनाई को फूंका जाता है। उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का जन्म भी डुमराँव में हुआ था। इनके परदादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ और पिता उस्ताद पैगंबरबख्श खाँ भी डुमराँव के निवासी थे।

प्रश्न 2.
बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा जाता है ?
उत्तर :
जहाँ कहीं भी कोई उत्सव अथवा समारोह होता है, सबसे पहले बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई की ध्वनि सुनाई देती है। इन समारोहों में बिस्मिल्ला खाँ से तात्पर्य उनकी शहनाई की गूंज से होता है। इनकी शहनाई की आवाज़ लोगों के सिर चढ़कर बोलती है। गंगा तट, बालाजी का मंदिर, बाबा विश्वनाथ अथवा संकटमोचन मंदिर में प्रभाती का मंगलस्वर बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई का ही होता है। समस्त मांगलिक विधि-विधानों के अवसरों पर भी यह वाद्य मंगलध्वनि का परिवेश प्रतिष्ठित कर देता है। इसलिए बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक कहा जाता है।

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प्रश्न 3.
‘सुषिर-वाद्यों’ से क्या अभिप्राय है? शहनाई को ‘सुषिर वाद्यों में शाह’ की उपाधि क्यों दी गई होगी?
उत्तर :
बाँस अथवा मुँह से फूंककर बजाए जाने वाले वाद्यों में से निकलने वाली ध्वनि को ‘सुषिर’ कहते हैं। इस आधार पर ‘सुषिर-वायों’ से तात्पर्य उन वाद्य-यंत्रों से है, जो फूंककर बजाए जाने पर ध्वनि उत्पन्न करते हैं। अरब देश में फूंककर बजाए जाने वाले वाद्य; जिनमें नाड़ी अथवा सरकट या रीड होती है; को ‘नय’ कहते हैं। वे शहनाई को ‘शाहेनय’ अर्थात् ‘सुषिर-वाद्यों में शाह’ कहते हैं। इस कारण शहनाई को सुषिर-वाद्यों में शाह की उपाधि दी गई होगी।

प्रश्न 4.
आशय स्पष्ट कीजिए –
(क) ‘फटा सुर न बखों। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल-सी जाएगी।’
(ख) मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ।
उत्तर :
(क) बिस्मिल्ला खाँ को उनकी शिष्या फटी तहमद न पहनने के लिए कहती है, तो खाँ साहब कहते हैं कि सुर नहीं फटना चाहिए फटी हुई लुंगी तो सिल सकती है, परंतु सुर यदि फट जाए तो वह कभी ठीक नहीं हो सकता। इसलिए वे परमात्मा से यही प्रार्थना करते हैं कि वह उन्हें फटा सुर न दे।
(ख) बिस्मिल्ला खाँ साहब अस्सी वर्षों से शहनाई बजा रहे है। वे शहनाई के बादशाह माने जाते हैं, फिर भी नमाज़ पढ़ने के बाद वे परमात्मा से यही प्रार्थना करते हैं कि वह उन्हें मधुर सुर प्रदान करे। उनके सुरों में ऐसा प्रभाव भर दे, जिससे लोग भावविभोर हो जाएँ और भाव-वेश में सच्चे मोतियों के समान आँखों से अनायास आँसुओं की झड़ी लग जाए।

प्रश्न 5.
काशी में हो रहे कौन-से परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे?
उत्तर :
काशी के पक्का महल क्षेत्र से मलाई बरफ़ बेचने वालों का चले जाना बिस्मिल्ला खाँ को बहुत खलता था। उन्हें यह भी अच्छा नहीं लगता था कि अब काशी में पहले जैसी देशी घी की जलेबियाँ और कचौड़ियाँ नहीं बनती हैं। वे गायकों के मन में अपने संगतियों के प्रति अनादर के भाव से भी व्यथित रहते थे। गायकों द्वारा रियाज़ न करना भी उन्हें अच्छा नहीं लगता। काशी में संगीत, साहित्य और अदब के क्षेत्र में निरंतर हो रही गिरावट ने बिस्मिल्ला खाँ को बहुत व्यथित कर दिया था।

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प्रश्न 6.
पाठ में आए किन प्रसंगों के आधार पर आप कह सकते हैं कि –
(क) बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे?
(ख) वे वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इनसान थे?
उत्तर :
(क) बिस्मिल्ला खाँ गंगा किनारे, बालाजी के मंदिर, काशी विश्वनाथ के मंदिर तथा संकटमोचन मंदिर में शहनाई बजाते थे। वे मुहर्रम के दिनों में आठवीं तारीख पर खड़े होकर शहनाई बजाते थे तथा दालमंडी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल जाते थे। इस प्रकार उनके द्वारा हिंदू-मुस्लिम धर्मों में भेदभाव न करते हुए समान रूप से सबका आदर करना यही सिद्ध करता है कि बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।

(ख) बिस्मिल्ला खाँ को भारत रत्न, पद्मविभूषण, डॉक्टरेट आदि अनेक उपाधियाँ मिली थीं; परंतु वे सदा सीधे-साधे सच्चे इनसान की तरह जीवन व्यतीत करते रहे। उनकी एक शिष्या उन्हें फटा तहमद पहनने पर टोकती थी तो वे स्पष्ट कह देते थे कि सम्मान उनकी शहनाई को मिला है फटे तहमद को नहीं। वे परमात्मा से भी ‘सच्चा सुर’ माँगते रहे; उनसे कभी भौतिक सुविधाएँ नहीं माँगी।

प्रश्न 7.
उत्तर
बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख करें जिन्होंने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया? बिस्मिल्ला खाँ छ: वर्ष की अवस्था में ही अपने ननिहाल काशी आ गए थे, जहाँ उनके दोनों मामा सादिक हुसैन और अलीबख्श खाँ शहनाई के विभिन्न सुरों को अलापते थे। यहीं से उनका शहनाई के प्रति लगाव उत्पन्न हो गया था। इन्हें सम का ज्ञान भी यही हुआ था। जब इनके मामा अलीबख्श खाँ सम पर आते थे, तो ये धड़ से एक पत्थर ज़मीन पर मारते थे।

चौदह वर्ष की आयु में रसूलन और बतूलन बहनों के गायन ने इन्हें संगीत के प्रति आकर्षित किया था। इन्हें कुलसुम हलवाइन द्वारा कलकलाते घी में कचौड़ी डालते समय उत्पन्न छन्न की आवाज़ में भी संगीत के आरोह-अवरोह सुनाई देते थे। इससे स्पष्ट है कि बिस्मिल्ला खाँ को उनके आसपास के परिवेश तथा व्यक्तियों ने शहनाई-वादन के लिए प्रेरित किया था। इनके नाना, दादा तथा पिता भी सुप्रसिद्ध शहनाई-वादक थे।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 8.
बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन-सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया?
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ भारत के सच्चे सपूत थे। वे मुसलमान होते हुए भी हिंदू थे। उनके लिए धर्म, जाति आदि विशेष महत्व नहीं रखते थे। उनके लिए धर्म वह था, जो मन को शांति प्रदान करता था। जीवन को सरल, सहज और सादगी से व्यतीत करना खाँ साहब को आता था। उनके अनुसार जीवन की आवश्यकताओं को उतना ही बढ़ाना चाहिए, जितनी इन्सान पूरी कर सकता हो। दूसरों की संस्कृति की नकल न करके व्यक्ति को अपनी संस्कृति पर गर्व करना चाहिए और उसे अपनाना चाहिए। अकेले रहकर शान और ठाठ से जीने से अच्छा है कि अपनों के साथ खुशी-खुशी सीमित आवश्यकताओं के साथ जीएँ। बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की इन्हीं विशेषताओं ने हमें प्रभावित किया है।

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प्रश्न 9.
मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
मुहर्रम के दिनों में बिस्मिल्ला खाँ तथा उनके परिवार का कोई भी सदस्य न तो शहनाई बजाता था और न ही किसी संगीत सम्मेलन में भाग लेता था। मुहर्रम की आठवीं तारीख को बिस्मिल्ला खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते थे तथा दालमंडी में फातमान तक करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए तथा नौहा बजाते हुए जाते थे। इस दिन वे कोई भी राग-रागिनी नहीं बजाते थे। उनकी आँखें इमाम हुसैन और उनके परिवारजन के बलिदान को स्मरण कर भीगी रहती थी।

प्रश्न 10.
बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे, तर्क साहित उत्तर दीजिए।
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ साहब को भारत सरकार ने भारतरत्न तथा पद्मविभूषण के सम्मानों से सम्मानित किया था। संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार के अतिरिक्त अनेक विश्वविद्यालयों ने इनकी संगीत साधना के लिए इन्हें डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्रदान की थीं। इन्हें इतना सम्मान मिला, फिर भी खाँ साहब सामान्य जीवन व्यतीत करते रहे और परमात्मा से सच्चा सुर प्रदान करने की प्रार्थना करते रहे।

इन्हें कड़ाही में ‘छन्न’ करती हुई कचौड़ी में संगीत का आरोह-अवरोह सुनाई देता था। रसूलनबाई और बतूलनबाई के गानों ने इन्हें संगीत के प्रति आकर्षित किया था। इन विवरणों से स्पष्ट है कि बिस्मिल्ला खाँ साहब कला के अनन्य उपासक थे। उनके सामने कोई छोटा-बड़ा नहीं था। वे धर्म-भेद भुलाकर मुहर्रम और बालाजी के मंदिर में समान रूप से शहनाई बजाते थे। कला ही उनका धर्म था और सुर की साधना करना उनके जीवन का उद्देश्य था।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 11.
निम्नलिखित मिश्र वाक्यों के उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए –
(क) यह जरूर है कि शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं।
(ख) रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूंका जाता है।
(ग) रीड नरकट से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है।
(घ) उनको यकीन है, कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा।
(ङ) हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है जिसकी गमक उसी में समाई है।
(च) खाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है कि पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णतया व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा।
उत्तर :
(क) उपवाक्य-शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। – संज्ञा उपवाक्य
(ख) उपवाक्य-जिसके सहारे शहनाई को फूंका जाता है। – विशेषण, उपवाक्य
(ग) उपवाक्य-जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। – विशेषण उपवाक्य
(घ) उपवाक्य-कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा। – संज्ञा उपवाक्य
(ङ) उपवाक्य-जिसकी गमक उसी में समाई है। – विशेषण उपवाक्य
(च) उपवाक्य-पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा। – संज्ञा उपवाक्य

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प्रश्न 12.
निम्नलिखित वाक्यों को मिश्रित वाक्यों में बदलिए
(क) इसी बालसुलभ हँसी में कई यादें बंद हैं।
(ख) काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।
(ग) धत्! पगली ई भारतरत्न हमको शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं।
(घ) काशी का नायाब हीरा हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।
उत्तर :
(क) यह वैसी ही बालसुलभ हँसी है, जिसमें कई यादै बेद हैं।
(ख) काशी में जो संगीत आयोजन होते हैं, उनकी एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।
(ग) धत् ! पगली ई भारतरत्न शहनाई पे मिला है न कि लुंगिया पे।
(घ) काशी का जो नायाब हीरा है, वह हमेशा दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।

पाठेतर सक्रियता –

1. कल्पना कीजिए कि आपके विद्यालय में किसी प्रसिद्ध संगीतकार के शहनाईवादन का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम की सूचना देते हुए बुलेटिन बोर्ड के लिए नोटिस बनाइए।
उत्तर :

सूचना

राजकीय उच्च विद्यालय,
नासिक
दिनांक : ……….

समस्त विद्यार्थियों को सूचित किया जाता है कि सोमवार दिनांक …….. को प्रातः 11.00 बजे विद्यालय के सभागार में सुप्रसिद्ध शहनाई-वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ साहब की स्मृति में शहनाई-वादन का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में सभी विद्यार्थियों की उपस्थिति अनिवार्य है।

हस्ताक्षर ……..
प्रधानाचार्य
राजकीय उच्च विद्यालय, नासिक।

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2. आप अपने मनपसंद संगीतकार के बारे में एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर :
मेरे मनपसंद संगीतकार उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ हैं। उनका जीवन अभावों, तंगहाली व उपेक्षाओं में व्यतीत हुआ। परंतु उन्होंने कभी भी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया। उनका सिद्धांत था कि भगवान जिस स्थिति में रखे, उसी स्थिति में मनुष्य को प्रसन्न रहना चाहिए। आज की युवा पीढ़ी जिस पश्चिमी चकाचौंध को अपना आदर्श मानकर अपने देश और संस्कृति को भूलते जा रहे हैं, उन्हें बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से शिक्षा लेनी चाहिए कि अपना देश और संस्कृति दूसरों से कम नहीं है। मनुष्य अपने देश और उसकी संस्कृति से ही अपना विकास कर सकता है।

बिस्मिल्ला खाँ के लिए कहा गया है कि न वे हिंदू थे और न ही मुसलमान। उनके लिए सभी धर्म समान थे। वे गंगा-जमनी तहज़ीब के प्रतीक थे। आज के समय में बिस्मिल्ला खाँ का आदर्श बहुत महत्व रखता है। उनके आदर्शों का अनुसरण करते हुए मनुष्य को किसी धर्म विशेष के प्रति स्नेह होने पर भी सभी धर्मों को समान आदर देना चाहिए। इससे देश में सद्भावना और एकता के वातावरण का निर्माण होगा, जिससे देश प्रगति की ओर अग्रसर होगा।

3. हमारे साहित्य, कला, संगीत और नृत्य को समृद्ध करने में काशी (आज के वाराणसी) के योगदान पर चर्चा कीजिए।
उत्तर :
काशी ने संगीत के क्षेत्र में उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ साहब जैसे महान शहनाई-वादक दिए। सादिक हुसैन, अलीबख्श खाँ, उस्ताद सलार हुसैन खाँ, उस्ताद पैगंबरबख्श खाँ आदि शहनाई-वादक भी काशी की ही देन हैं। नृत्य और गायन के क्षेत्र में काशी ने रसूलनबाई तथा बतूलनबाई जैसी प्रतिभाओं को जन्म दिया है। इनके गायन से प्रभावित होकर बिस्मिल्ला खाँ संगीत की ओर आकर्षित हुए थे। काशी की देशी घी की जलेबियाँ और कचौड़ियाँ प्रसिद्ध हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय एवं संपूर्णानंद विश्वविद्यालयों ने शिक्षा के क्षेत्र में पर्याप्त योगदान दिया है। संस्कृत के अध्ययन-अध्यापन का केंद्र काशी ही है। काशी के अन्य प्रसिद्ध कलाकार नृत्यांगना सितारा देवी, ठुमरी गायिका गिरिजा देवी, तबला वादक कंठे महाराज, गुदई महाराज, नर्तक बिरजू महाराज और गोपी कृष्ण हैं।

4. काशी का नाम आते ही हमारी आँखों के सामने काशी की बहुत-सी चीजें उभरने लगती हैं, वे कौन-कौन सी हैं?
उत्तर :
काशी का नाम आते ही हमें काशी विश्वनाथ की याद आ जाती है। गंगा के विशाल घाट, गंगा में स्नान करते श्रद्धालुओं की भीड़, आरती के समय जगमगाती गंगा, गंगा में नौकाविहार आदि का स्मरण हो आता है। बालाजी और संकटमोचन मंदिर, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, संपूर्णानंद विश्वविद्यालय, गंगा घाट की छतरियाँ, पंडे, उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई की गूंज-यह सबकुछ आँखों के सामने तैर जाता है।

यह भी जाने –

  • सम – ताल का एक अंग, संगीत में वह स्थान जहाँ लय की समाप्ति और ताल का आरंभ होता है।
  • श्रुति – एक स्वर से दूसरे स्वर पर जाते समय का अत्यंत सूक्ष्म स्वरांश।
  • वाद्ययंत्र – हमारे देश में वाद्य यंत्रों की मुख्य चार श्रेणियाँ मानी जाती हैं।
  • तत-वितत – तार वाले वाद्य-वीणा, सितार, सारंगी।
  • सुषिर – फूंक कर बजाए जाने वाले वाद्य-बांसुरी, शहनाई, नागस्वरम, बीन।
  • घनवाद्य – आघात से बजाए जाने वाले धातु वाद्य-झाँझ, मंजीरा, धुंघरू।
  • अवनद्ध – चमड़े से मढ़े वाद्य-तबला, ढोलक, मृदंग आदि।

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चैती – एक तरह का चलता गाना। चैती-चढ़ल चइत चित लागे ना रामा

बाबा के भवनवा
बीर बमनवा सगुन बिचारो
कब होइहैं पिया से मिलनवा हो रामा
चढ़ल चइत चित लागे ना रामा

ठुमरी – एक प्रकार का गीत जो केवल एक स्थायी और एक ही अंतरे में समाप्त होता है।

ठुमरी बाजुबंद खुल-खुल जाए
जादू की पुड़िया भर-भर मारी
हे ! बाजुबंद खुल-खुल जाए

टप्पा – यह भी एक प्रकार का चलता गाना ही कहा जाता है। ध्रुपद एवं ख्याल की अपेक्षा जो गायन संक्षिप्त है, वही टप्पा है।

टप्पा
बागां विच आया करो
बागां विच आया करो
मक्खियाँ तो डर लगदा
गुड़ ज़रा कम खाया करो।

दादरा – एक प्रकार का चलता गाना। दो अर्धमात्राओं के ताल को भी दादरा कहा जाता है।

दादरा
तड़प तड़प जिया जाए
सांवरियां बिना
गोकुल छाड़े मथुरा में छाए
किन संग प्रीत लगाए
तड़प तड़प जिया जाए

JAC Class 10 Hindi नौबतखाने में इबादत Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
बिस्मिल्ला खाँ की जीवन-पद्धति कैसी थी?
उत्तर :
उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ के लिए जीने का अर्थ शानदार कोठियाँ, गाड़ियाँ या बैंक-बैलेंस नहीं था। उनके लिए ठाठ और शान से जीने का अर्थ था-अपनों के साथ बनारस में रहते हुए जीना। उनके लिए उनका परिवार ही सर्वोपरि था। उसमें उनके परिवार के सदस्य ही नहीं अपितु उनके संगतकार साजिंदों के परिवार भी सम्मिलित थे। उनके भरण-पोषण का उत्तरदायित्व बिस्मिल्ला खाँ ने अपने ऊपर ले रखा था। यह उनके लिए अनचाहा बोझ नहीं था। यह उनके जीवन जीने का एक तरीका था। उन्हें अपनों के साथ सादगी से रहने में सुख मिलता था।

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प्रश्न 2.
बिस्मिल्ला खाँ के जीवन में गंगा का क्या महत्व था?
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ के जीवन में अपना कहने के लिए उनके परिवार के सदस्यों तथा संगतकार साजिंदों के अतिरिक्त बनारस शहर तथा गंगा नदी थी। उन्हें बनारस और गंगा नदी के बदले में जीवन का कोई भी अन्य सुख आनंद नहीं देता था। उन्हें जितना आनंद और सुख बनारस व गंगा नदी के किनारे रहते हुए मिलता था, वैसा सुख और कहीं नहीं मिलता था। एक बार अमेरिका का राक फेलर फाउंडेशन उन्हें उनके संगतकार साजिंदों के साथ कुछ दिन अमेरिका में रखना चाहता था।

वे लोग उनके लिए वहाँ पर बनारस जैसा वातावरण बनाने के लिए भी तैयार थे, परंतु खाँ साहब ने इन्कार कर दिया। उनका उत्तर था कि वे लोग उन्हें अमेरिका में सबकुछ दे देंगे, परंतु वहाँ गंगा नदी कहाँ से लाएँगे? उनके कहने का अर्थ था कि उनके लिए संसार के सभी ऐशो-आराम गंगा नदी के सामने व्यर्थ हैं। उनका जीवन वहीं है, जहाँ गंगा नदी है।

प्रश्न 3.
बिस्मिल्ला खाँ का जन्म कहाँ हुआ? उनका खानदानी पेशा क्या था?
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ का जन्म बिहार के डुमराँव गाँव में हुआ था। शहनाई बजाना उनका खानदानी पेशा और कौशल था। उनके परिवार के सदस्य राजघराने के नौबतखाने में शहनाई बजाते थे।

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प्रश्न 4.
बिस्मिल्ला खाँ की ऐतिहासिक उपलब्धि क्या है?
उत्तर :
आज तक किसी भी महान से महान संगीतकार को भी वह गौरव नहीं मिला, जो कि बिस्मिल्ला खाँ को मिला था। बिस्मिल्ला खाँ को आज़ाद भारत की पहली सुबह 15 अगस्त, 1947 को लाल किले पर शहनाई बजाने का अवसर मिला था। दूसरा ऐतिहासिक क्षण वह था, जब 26 जनवरी, 1950 को बिस्मिल्ला खाँ ने लाल किले पर शहनाई बजाकर लोकतांत्रिक गणराज्य के मंगल प्रभात के रथ की अगुवाई की थी।

प्रश्न 5.
बिस्मिल्ला खाँ को कौन-कौन से राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं ?
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ को पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण और भारतरत्न से सम्मानित किया गया है। उनका सबसे बड़ा पुरस्कार था – भारत के इतिहास की दो महत्वपूर्ण तिथियों 15 अगस्त, 1947 और 26 जनवरी, 1950 को लाल किले पर शहनाई की मंगल धुनें बजाना। ऐसा पुरस्कार आज तक किसी भी संगीतकार को नहीं मिला।

प्रश्न 6.
बिस्मिल्ला खाँ की संगीत की प्रतिभा और उपलब्धि कैसी थी?
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ की जीवन-शैली साधारण थी। उसमें कोई तड़क-भड़क नहीं थी। उन्होंने सदा उतना ही सहेजा, जितना उनकी तथा उनके परिवार की आवश्यकताओं के लिए जरूरी था। इससे हम उन्हें किसी से कम नहीं कह सकते। उनकी उपलब्धि का इससे पता चलता है कि एक बार अमेरिका का राकफेलर फाउंडेशन उन्हें और उनके संगतकार साजिंदों को परिवार सहित उनकी जीवन-शैली के अनुसार अमेरिका में रखना चाहता था। परंतु बिस्मिल्ला खाँ ने अमेरिका के ऐश्वर्य की चाह न रखते हुए उनसे पूछा कि वहाँ वे गंगा नदी कहाँ से लाएँगे? वे चाहते तो अपने लिए सभी प्रकार के भौतिक सुख इकट्ठे कर सकते थे, परंतु उन्होंने अपना जीवन अपनी इच्छा से सादगी और सरलता से व्यतीत किया था।

प्रश्न 7.
बिस्मिल्ला खाँ काशी क्यों नहीं छोड़ना चाहते थे? कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ अनेक कारणों से काशी नहीं छोड़ना चाहते थे। इसमें से एक कारण ‘गंगा नदी’ थी, जिसके बिना बिस्मिल्ला खाँ नहीं रह सकते थे। दूसरा कारण यह था कि उनके पूर्वज वर्षों से वहाँ शहनाई बजाते रहे थे। वे यह परंपरा तोड़ना नहीं चाहते थे।

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प्रश्न 8.
बिस्मिल्ला खाँ साहब का निधन कब हुआ?
उत्तर :
21 अगस्त, 2006 को बिस्मिल्ला खाँ ने दुनिया को अलविदा कह दिया था। टी०वी० पर उनके देहांत का समाचार बार-बार प्रसारित होता रहा। उस समाचार को सुनकर मन में एक टीस उठ रही थी कि इनके जैसा मानव हमारी धरती पर फिर पैदा नहीं हो सकता। उस दिन . सबकी आँखें नम थीं। उनके घर पर आज भी शहनाई की धुनें लगातार बज रही थीं। परंतु यह शहनाई उनकी यादों को ताज़ा कर रही थी।

प्रश्न 9.
शहनाई बजाने के लिए किसका प्रयोग किया जाता है?
उत्तर :
शहनाई बजाने के लिए रीड का प्रयोग होता है। रीड अंदर से पोली होती है, जिसके सहारे शहनाई को फूंका जाता है।

प्रश्न 10.
रीड कहाँ पाई जाती है? यह किससे बनाई जाती है?
उत्तर :
रीड डुमराँव में सोन नदी के किनारे पर पाई जाती है। यह नरकट से बनाई जाती है, जो एक प्रकार की घास होती है।

प्रश्न 11.
शहनाई और डुमराँव का रिश्ता गहरा कैसे है?
उत्तर :
शहनाई डुमराँव में सोन नदी के किनारे मिलने वाली रीड से बनती है, वहीं दूसरी ओर सर्वश्रेष्ठ शहनाई-वादक बिस्मिल्ला खाँ का जन्म भी डुमराँव में हुआ था। इसलिए दोनों में गहरा रिश्ता है।

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प्रश्न 12.
बिस्मिल्ला खाँ जीवन भर ईश्वर से क्या माँगते रहे, और क्यों? इससे उनकी किस विशेषता का पता चलता है?
उत्तर :
बिस्मिल्ला खाँ जीवन भर ईश्वर से यही प्रार्थना करते रहे कि वे उन्हें मधुर सुर प्रदान करें; वे अपने सुरों से लोगों में ऐसा प्रभाव भर दें, जिससे लोग भावविभोर हो जाए। शहनाई-वादन में अति कुशल बिस्मिल्ला खाँ के इस व्यवहार से पता चलता है कि वे स्वयं पर व अपनी कला पर कभी अभिमान नहीं किया। वे इसे ईश्वर की कृपा मानते थे और जीवनपर्यंत अपनी कला को निखारने के लिए प्रयासरत रहे।

प्रश्न 13.
खाँ साहब के लिए आठवीं तारीख खास क्यों है?
उत्तर :
खाँ साहब के लिए आठवीं तारीख का अपना विशेष महत्व है। इस दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते हैं और दालमंडी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए, नौहा बजाते जाते हैं। इस दिन कोई राग नहीं बजता। इस दिन राग-रागिनियों की अदायगी का निषेध है।

प्रश्न 14.
काशी में ऐसा कौन-सा आयोजन होता है, जिसमें बिस्मिल्ला खाँ अवश्य शामिल होते थे?
उत्तर :
काशी में संगीत आयोजन की एक अद्भुत एवं प्राचीन परम्परा है। यह आयोजन संकटमोचन मंदिर में पिछले कई वर्षों से हो रहा है। यहाँ हनुमान जयंती के अवसर पर पाँच दिनों तक शास्त्रीय एवं उपशास्त्रीय गायन-वादन की उत्कृष्ट सभा होती है। इसमें बिस्मिल्ला खाँ अवश्य शामिल होते थे।

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प्रश्न 15.
शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। शहनाई बजाने के लिए रीड का प्रयोग होता है। रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फेंका जाता है। रीड, नरकट (एक प्रकार की घास) से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। इतनी ही महत्ता है इस समय डुमराँव की जिसके कारण शहनाई जैसा वाद्य बजता है। फिर अमीरुद्दीन जो हम सबके प्रिय हैं, अपने उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ साहब हैं। उनका जन्म-स्थान भी डुमराँव ही है। इनके परदादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ डुमराँव निवासी थे। बिस्मिल्ला खाँ उस्ताद पैगंबरबख्श खाँ और मिट्ठन के छोटे साहबजादे हैं।
(क) शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के पूरक हैं, कैसे?
(ख) यहाँ रीड के बारे में क्या-क्या जानकारियाँ मिलती हैं?
(ग) अमीरुद्दीन के माता-पिता कौन थे?
उत्तर :
(क) शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के पूरक हैं क्योंकि यहाँ सोन नदी के किनारे पाई जाने वाली नरकट नामक घास से शहनाई की रीड बनाई जाती है। उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का जन्म भी डुमराँव में हुआ था। इनके परदादा और पिता भी डुमराँव के निवासी थे।
(ख) रीड अंदर से पोली होती है। इसके द्वारा शहनाई को बजाया जाता है। रीड नरकट नामक घास से बनाई जाती है।
(ग) अमीरुद्दीन के पिता का नाम पैगंबरबख्श खाँ तथा माता का नाम मिट्ठन था।

पठित गद्यांश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पी प्रश्नों के उचित विकल्प चुनकर लिखिए –

1. शहनाई के इसी मंगलध्वनि के नायक बिस्मिल्ला खाँ साहब अस्सी बरस से सुर माँग रहे हैं। सच्चे सुर की नेमत। अस्सी बरस की पाँचों वक्त वाली नमाज इसी सुर को पाने की प्रार्थना में खर्च हो जाती है। लाखों सज़दे, इसी एक सच्चेसुर की इबादत में खुदा के आगे झुकते हैं। वे नमाज़ के बाद सज़दे में गिड़गिड़ाते हैं-‘मेरे मालिक एक सुर’ बख दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आए।’

(क) लेखक ने मंगल ध्वनि किसे कहा है?
(i) सितार की ध्वनि को
(ii) शंखनाद को
(iii) शहनाई की ध्वनि को
(iv) बाँसुरी की ध्वनि को
उत्तर :
(iii) शहनाई की ध्वनि को

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(ख) बिस्मिल्ला खाँ कितने वर्षों से शहनाई बजा रहे थे?
(i) बीस वर्षों से
(ii) तीस वर्षों से
(iii) पचास वर्षों से
(iv) अस्सी वर्षों से
उत्तर :
(iv) अस्सी वर्षों से

(ग) बिस्मिल्ला खाँ दिन में कितनी बार शहनाई बजाते थे?
(i) दो बार
(ii) तीन बार
(iii) चार बार
(iv) पाँच बार
उत्तर :
(iv) पाँच बार

(घ) बिस्मिल्ला खाँ खुदा से क्या माँगते थे?
(i) मान-सम्मान
(ii) धन-दौलत
(iii) एक सुर
(iv) सुख-संपत्ति
उत्तर :
(iii) एक सुर

(ङ) बिस्मिल्ला खाँ की इच्छा क्या थी?
(i) अच्छी से अच्छी शहनाई बजाना
(ii) अच्छे घर में रहना
(iii) अच्छे कपड़े पहनना
(iv) अच्छा खाना खाना
उत्तर :
(i) अच्छी से अच्छी शहनाई बजाना

उच्च चिंतन क्षमताओं एवं अभिव्यक्ति पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

पाठ पर आधारित प्रश्नों को पढ़कर सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए –

(क) बिस्मिल्ला खाँ किस शहर को नहीं छोड़ना चाहते थे?
(i) काशी को
(ii) लखनऊ को
(iii) मुंबई को
(iv) कोलकाता को
उत्तर :
(i) काशी को

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(ख) बिस्मिल्ला खाँ के अनुसार शहनाई और काशी क्या है?
(i) मन बहलाने का साधन
(ii) जन्नत
(iii) जीने का ज़रिया
(iv) कमाने का ज़रिया
उत्तर :
(ii) जन्नत

(ग) काशी में क्या मंगलमय माना गया है?
(i) काशी में रहना
(ii) काशी में गंगा स्नान करना
(iii) काशी में पूजा करना
(iv) काशी में मरना
उत्तर :
(iv) काशी में मरना

(घ) बिस्मिल्ला खाँ काशीवासियों को क्या प्रेरणा देते हैं?
(i) शहनाई बजाने की
(ii) संगीत सीखने की
(iii) मिल-जुलकर रहने की
(iv) पूजा-पाठ करने की
उत्तर :
(ii) मिल-जुलकर रहने की

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. अमीरुद्दीन अभी सिर्फ छः साल का है और बड़ा भाई शम्सुददीन नौ साल का। अमीरुद्दीन को पता नहीं है कि राग किस चिड़िया को कहते हैं और ये लोग हैं मामूजान वगैरह जो बात-बात पर भीमपलासी और मुलतानी कहते रहते हैं। क्या वाज़िब मतलब हो सकता है इन शब्दों का, इस लिहाज से अभी उम्र नहीं है अमीरुद्दीन की, जान सके इन भारी शब्दों का वजन कितना होगा। गोया, इतना ज़रूर है कि अमीरुद्दीन व शम्सुद्दीन के मामाद्वय सादिक हुसैन तथा अलीबख्श देश के जाने-माने शहनाईवादक हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
2. अमीरुद्दीन कौन था?
3. भीमपलासी और मुलतानी क्या हैं ? अमीरुद्दीन को इनका पता क्यों नहीं था?
4. लेखक ने किन्हें देश के जाने-माने शहनाईवादक कहा है?
5. ‘वाजिब’ शब्द का क्या अर्थ है? यहाँ इस शब्द का प्रयोग किसलिए किया गया है?
उत्तर :
1. पाठ-नौबतखाने में इबादत, लेखक-यतींद्र मिश्र।
2. अमीरुद्दीन उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ के बचपन का नाम था।
3. भीमपलासी और मुलतानी शास्त्रीय संगीत के दो प्रसिद्ध राग हैं। अमीरुद्दीन केवल छह वर्ष का बालक था, इसलिए उसे इन रागों का ज्ञान नहीं था।
4. लेखक ने अमीरुद्दीन के दोनों मामाओं-सादिक हुसैन और अलीबख्श को देश के जाने-माने शहनाईवादक कहा है।
5. ‘वाजिब’ शब्द का अर्थ ‘उचित’ है। यहाँ इस शब्द का प्रयोग यह स्पष्ट करने के लिए किया गया है कि अमीरुद्दीन को अपने दोनों मामा द्वारा बार-बार भीम पलासी और मुलतानी जैसे शब्दों का प्रयोग सुनकर यह समझ नहीं आता था कि इन शब्दों का सही अर्थ क्या हो सकता है?

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2. खाँ साहब को बड़ी शिद्दत से कमी खलती है। अब संगतियों के लिए गायकों के मन में कोई आदर नहीं रहा। खाँ साहब अफ़सोस जताते हैं। अब घंटों रियाज़ को कौन पूछता है? हैरान हैं बिस्मिल्ला खाँ। कहाँ वह मजली, चैती और अदब का ज़माना? सचमुच हैरान करती है काशी-पक्का महाल से जैसे मलाई बरफ़ गया, संगीत, साहित्य और अदब की बहुत सारी परंपराएँ लुप्त हो गई। एक सच्चे सुर-साधक और सामाजिक की भाँति बिस्मिल्ला खाँ एक-दूसरे के पूरक रहे हैं, उसी तरह मुहर्रम-ताज़िया और होली-अबीर, गुलाल की गंगा-जमुनी संस्कृति भी एक-दूसरे के पूरक रहे हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. संगीत की कौन-सी परंपराएँ बदलते समय के अनुसार विलुप्त हो गई?
2. बाबा विश्वनाथ और बिस्मिल्ला खाँ को एक-दूसरे का पूरक क्यों कहा गया है?
3. ‘गंगा-जमुनी संस्कृति’ से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. संगीत की कुछ परंपराएं बदलते समय के साथ लुप्त होती जा रही है जैसे संगतियों के लिए गायकों के मन में अब कोई आदर, नहीं रहा, अब कोई गायक या वादक घंटों तक रियाज नहीं करता, चैती और अदब का ज़माना भी अब नहीं रहा।

2. उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ काशी के बाबा विश्वनाथ मंदिर में बैठकर घंटों रियाज़ किया बरते अथवा गंगा के किनारे पर शहनाई बजाया करते थे। जब भी वह किसी कार्यक्रम में शहनाई वादन के लिए काशी से बाहर जाते तो भी बाबा विश्वनाथ के मंदिर की ओर मुंह करके शहनाई वादन आरंभ करते थे। इससे पता चलता है कि वे दोनों एक-दूसरे से अंतर्मन से जुड़े हुए थे और एक-दूसरे के पूरक थे।

3. भारत अनेक प्रकार के धर्मों तथा जातियों की मिली-जुली संस्कृति वाला देश है। काशी संस्कृति की पाठशाला है क्योंकि काशी में संगीत की अद्भुत परंपरा रही है। यहां के लोगों की अलग ही तहजीब है, बोली, अपने विशिष्ट विचार है। इनके अपने उत्सव है और अपने गम है। यहाँ सभी धर्मों के लोग शांत वातावरण में मिलजुल कर रहते हैं। इसका सबसे उत्तम उदाहरण है कि बिस्मिल्ला खाँ तथा बाबा विश्वनाथ अलग-अलग धर्मों से संबंध रखते हुए भी एक-दूसरे से जुड़े हुए थे।

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3. काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है। यह आयोजन पिछले कई बरसों से संकटमोचन मंदिर में होता आया है। यह मंदिर शहर के दक्षिण में लंका पर स्थित है व हनुमान जयंती के अवसर पर यहाँ पाँच दिनों तक शास्त्रीय एवं उपशास्त्रीय गायनवादन की उत्कृष्ट सभा होती है। इसमें बिस्मिल्ला खाँ अवश्य रहते हैं। अपने मजहब के प्रति अत्यधिक समर्पित उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की श्रद्धा काशी विश्वनाथ जी के प्रति भी अपार है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. काशी में संगीत आयोजन की क्या परंपरा है ?
2. हनुमान जयंती के अवसर पर आयोजित संगीत सभा का परिचय दीजिए।
3. बिस्मिल्ला खाँ की काशी विश्वनाथ के प्रति कैसी भावनाएँ थीं?
4. काशी में संकटमोचन मंदिर कहाँ स्थित है और उसका क्या महत्व है?
उत्तर :
1. काशी में संगीत आयोजन की बहुत प्राचीन और विचित्र परंपरा है। यह आयोजन काशी में विगत कई वर्षों से हो रहा है। यह संकटमोचन मंदिर में होता है। इस आयोजन में शास्त्रीय एवं उपशास्त्रीय गायन-वादन होता है।
2. हनुमान जयंती के अवसर पर काशी के संकटमोचन मंदिर में पाँच दिनों तक शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत की श्रेष्ठ सभा का आयोजन किया जाता है। इस सभा में बिस्मिल्ला खाँ का शहनाई-वादन अवश्य होता है।
3. बिस्मिल्ला खाँ अपने धर्म के प्रति पूर्णरूप से समर्पित हैं। वे पाँचों समय नमाज़ पढ़ते हैं। इसके साथ ही वे बालाजी मंदिर और काशी विश्वनाथ मंदिर में भी शहनाई बजाते हैं। उनकी काशी विश्वनाथजी के प्रति अपार श्रद्धा है।
4. काशी में संकटमोचन मंदिर शहर के दक्षिण में लंका पर स्थित है। यहाँ हनुमान जयंती के अवसर पर पाँच दिनों का संगीत सम्मेलन होता है। इस अवसर पर बिस्मिल्ला खाँ का शहनाईवादन होता है।

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4. अक्सर कहते हैं-‘क्या करें मियाँ, ई काशी छोड़कर कहाँ जाएँ, गंगा मइया यहाँ, बाबा विश्वनाथ यहाँ, बालाजी का मंदिर यहाँ, यहाँ हमारे खानदान की कई पुश्तों ने शहनाई बजाई है, हमारे नाना तो वहीं बालाजी मंदिर में बड़े प्रतिष्ठित शहनाईवाज़ रह चुके हैं। अब हम क्या करें, मरते दम तक न यह शहनाई छूटेगी न काशी। जिस ज़मीन ने हमें तालीम दी, जहाँ से अदब पाई, वो कहाँ और मिलेगी? शहनाई और काशी से बढ़कर कोई जन्नत नहीं इस धरती पर हमारे लिए।’

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. बिस्मिल्ला खाँ काशी छोड़कर क्यों नहीं जाना चाहते थे?
2. बिस्मिल्ला खाँ के परिवार में और कौन-कौन शहनाई बजाते थे?
3. बिस्मिल्ला खाँ के लिए शहनाई और काशी क्या हैं?
4. बिस्मिल्ला खाँ मरते दम तक क्या और क्यों नहीं छोड़ना चाहते ?
उत्तर :
1. बिस्मिल्ला खाँ काशी छोड़कर इसलिए नहीं जाना चाहते थे क्योंकि यहाँ गंगा है; बाबा विश्वनाथ हैं; बालाजी का मंदिर है और उनके परिवार की कई पीढ़ियों ने यहाँ शहनाई बजाई है। उन्हें इन सबसे बहुत लगाव है।
2. बिस्मिल्ला खाँ के नाना काशी के बालाजी के मंदिर में शहनाई बजाते थे। उनके मामा सादिम हुसैन और अलीबख्श देश के जाने माने शहनाई वादक थे। इनके दादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ और पिता उस्ताद पैगंबरबख्श खाँ भी प्रसिद्ध शहनाई-वादक थे।
3. बिस्मिल्ला खाँ के लिए इस धरती पर शहनाई और काशी से बढ़कर अन्य कोई जन्नत ही नहीं है।
4. बिस्मिल्ला खाँ मरते दम तक काशी में रहना और शहनाई बजाना नहीं छोड़ना चाहते, क्योंकि इसी काशी नगरी में उन्हें शहनाई बजाने की शिक्षा मिली।

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5. काशी आज भी संगीत के स्वर पर जगती और उसी की थापों पर सोती है। काशी में मरण भी मंगल माना गया है। काशी आनंदकानन है। सबसे बड़ी बात है कि काशी के पास उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ जैसा लय और सुर की तमीज़ सिखाने वाला नायाब हीरा रहा है जो हमेशा से दो कौमों को एक होने व आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. आज की काशी कैसी है?
2. काशी में मरण मंगलमय क्यों माना गया है?
3. काशी के पास कौन-सा नायाब हीरा रहा है?
4. काशी आनंदकानन कैसे है?
उत्तर :
1. आज की काशी भी संगीत के स्वरों से जागती है और संगीत की थपकियाँ उसे सुलाती हैं। बिस्मिल्ला खाँ के शहनाईवादन की प्रभाती काशी को जगाती है।
2. काशी में मरना इसलिए मंगलमय माना गया है, क्योंकि हिंदू धर्मग्रंथों में इसे शिव की नगरी कहा गया है। उनके अनुसार यहाँ मरने से मनुष्य को शिवलोक प्राप्त हो जाता है और वह जन्म-मरण के बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
3. काशी के पास बिस्मिल्ला खाँ जैसा लय और सुर का नायाब हीरा रहा है, जो अपने सुरों से काशी में प्रेमरस बरसाता रहा है। उसने सदा काशीवासियों को मिल-जुल कर रहने की प्रेरणा दी है।
4. काशी को आनंदकानन इसलिए कहते हैं, क्योंकि यहाँ विश्वनाथ अर्थात् भगवान शिव विराजमान हैं। उनकी कृपा से यहाँ सदा आनंद-मंगल की वर्षा होती रहती है। विभिन्न संगीत-सभाओं के आयोजनों से सदा उत्सवों का वातावरण बना रहता है। यहाँ सदैव आनंद ही आनंद छाया रहता है।

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6. वही पुराना बालाजी का मंदिर जहाँ बिस्मिल्ला खाँ को नौबतखाने रियाज़ के लिए जाना पड़ता है। मगर एक रास्ता है बालाजी मंदिर तक जाने का। यह रास्ता रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से होकर जाता है। इस रास्ते में अमीरुद्दीन को जाना अच्छा लगता है। इस रास्ते न जाने कितने तरह के बोल-बनाव कभी ठुमरी, कभी टप्पे, कभी दादरा के मार्फत ड्योढ़ी तक पहुँचते रहते हैं। रसूलन और बतूलन जब गाती हैं तब अमीरुद्दीन को खुशी मिलती है। अपने ढेरों साक्षात्कारों में बिस्मिल्ला खाँ साहब ने स्वीकार किया है कि उन्हें अपने जीवन के आरंभिक दिनों में संगीत के प्रति आसक्ति इन्हीं गायिका बहनों को सुनकर मिली है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. बिस्मिल्ला खाँ कौन थे ? बालाजी मंदिर से उनका क्या संबंध है?
2. रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से होकर बालाजी के मंदिर जाना बिस्मिल्ला खाँ को क्यों अच्छा लगता था?
3. ‘रियाज़’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
1. बिस्मिल्ला खाँ शहनाई वादक थे जिनके बचपन का नाम अमीरुद्दीन था। बचपन से ही वे बालाजी के मंदिर के रास्ते से नौबतखाने में रियाज़ के लिए जाते थे।
2. रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से होकर बालाजी के मन्दिर जाना बिस्मिल्ला खाँ को इसलिए अच्छा लगता था क्योंकि वहाँ वे दोनों बहनों के गाए ठुमरी, टप्पे, दादरा के बोल इन्हें बहुत अच्छे लगते थे।
3. ‘रियाज’ से तात्पर्य है-किसी सुर या वाद्ययंत्र का बार-बार अभ्यास करना। गीतकार एवं संगीतकार रियाज़ कर स्वयं को उत्तम बनाने का – प्रयास करते हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत

7. किसी दिन एक शिष्या ने डरते-डरते खाँ साहब को टोका, “बाबा! आप यह क्या करते हैं, इतनी प्रतिष्ठा है आपकी। अब तो आपको भारतरत्न भी मिल चुका है, यह फटी तहमद न पहना करें। अच्छा नहीं लगता, जब भी कोई आता है आप इसी फटी तहमद में सबसे मिलते हैं।” खाँ साहब मुसकराए। लाड़ से भरकर बोले, “धत्! पगली, ई भारतरत्न हमको शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं। तुम लोगों की तरह बनाव-सिंगार देखते रहते, तो उमर ही बीत जाती, हो चुकती शहनाई। तब क्या रियाज़ हो पाता?”

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. एक दिन एक शिष्या ने खाँ साहब को क्या कहा? क्यों?
2. खाँ साहब ने शिष्या को क्या समझाया?
3. इससे खाँ साहब के स्वभाव के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर :
1. एक दिन खाँ साहब की शिष्या ने डरते-डरते उनसे कहा कि वे फटी हुई लुंगी/तहमद को न पहना करें। उनकी प्रतिष्ठा पर फटी तहमद अच्छी नहीं लगती। उन्हें भारतरत्न पुरस्कार भी मिल चुका है।
2. खाँ साहब ने शिष्या को समझाया कि भारत रत्न पुरस्कार उन्हें शहनाई पर मिला है न कि लुंगी पर। अतः हमें शारीरिक सौंदर्य पर ध्यान न देकर अपनी कला पर ध्यान देना चाहिए।
3. उक्त वाक्यों से खाँ साहब के सरल, सहज स्वभाव के बारे में पता चलता है। उनके मन में शहनाई ही सर्वोपरि है। वे कला के सच्चे उपासक

नौबतखाने में इबादत Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन-यतींद्र मिश्र का जन्म सन 1977 ई० में उत्तर प्रदेश के अयोध्या नगर में हुआ था। इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से एम०ए० (हिंदी) की परीक्षा उत्तीर्ण की। कविता, संगीत एवं अन्य ललित कलाओं में इन्हें विशेष रुचि है। इन्होंने सन 1999 ई० में ‘विमला देवी फाउंडेशन’ नामक सांस्कृतिक न्यास की स्थापना की। ‘थाती’ और अर्धवार्षिक पत्रिका ‘सरित’ का इन्होंने संपादन किया है। इन्हें इनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए भारतभूषण अग्रवाल कविता सम्मान, हेमंत स्मृति कविता पुरस्कार ऋतुराज सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। इन दिनों ये स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। रचनाएँ-यतींद्र मिश्र की प्रमुख रचनाएँ ‘ यदा-कदा, अयोध्या तथा अन्य कविताएँ, ड्योढ़ी पर आलाप और गिरिजा’ हैं। इन्होंने ‘कवि द्विजदेव ग्रंथावली’ का सह-संपादन भी किया है।

भाषा-शैली – यतींद्र मिश्र की भाषा-शैली सहज, प्रवाहमयी, व्यावहारिक तथा प्रसंगानुकूल है। ‘नौबतखाने में इबादत’ प्रसिद्ध शहनाईवादक उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ साहब के जीवन के विभिन्न पक्षों को उजागर करने वाला शब्दचित्र है, जिसमें लेखक ने शास्त्रीय परंपरा के विभिन्न प्रसंगों को कुशलता से उजागर किया है। इसके लिए लेखक ने संगीत जगत में प्रचलित शब्दावली का भी प्रयोग किया है; जैसे-सम, सुर, ताल, ठुमरी, टप्पा, दादरा, रीड, कल्याण, मुलतानी, भीम पलासी आदि भाषा में लोक प्रचलित विदेशी शब्दों का खुलकर प्रयोग किया गया है; जैसे-रोज़नामचे, दरबार, पेशा, खानदानी, साहबजादे, शाहेनय, मुराद, ग़मज़दा, बदस्तूर आदि।

कहीं-कहीं तत्सम प्रधान शब्दावली के भी दर्शन हो जाते हैं; जैसे-‘अपने अहापोहों से बचने के लिए हम स्वयं किसी शरण, किसी गुफ़ा को खोजते हैं जहाँ अपनी दुश्चिताओं, दुर्बलताओं को छोड़ सकें और वहाँ फिर अपने लिए एक नया तिलस्म गढ़ सकें।’ संवादों में स्थानीय भाषा का चमत्कार देखा जा सकता है; जैसे ‘धत् ! पगली ई भारत रत्न हमको शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं।’ शैली में सर्वत्र रोचकता बनी रही है जो कभी भावात्मक, कभी वर्णनात्मक और कभी चित्रात्मक हो जाती है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत

पाठ का सार :

‘नौबतखाने में इबादत’ यतींद्र मिश्र द्वारा रचित सुप्रसिद्ध शहनाईवादक उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ के जीवन के विभिन्न पक्षों को उजागर करने वाला व्यक्ति-चित्र है। सन 1916 से 1922 के आसपास की काशी में छह वर्ष का अमीरुद्दीन अपने नौ साल के बड़े भाई शम्सुद्दीन के साथ अपने दोनों मामा सादिक हुसैन और अलीबख्श के पास रहने आ जाते हैं। इनके दोनों मामा देश के प्रसिद्ध शहनाईवादक हैं। वे दिन की शुरुआत पंचगंगा घाट स्थित बालाजी मंदिर की ड्योढ़ी पर शहनाई बजाकर करते हैं। अमीरुद्दीन ही उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ के बचपन का नाम है।

इनका जन्म बिहार के डुमराँव नामक गाँव में हुआ था। डुमराँव में सोन नदी के किनारे पाई जाने वाली नरकट नामक घास से शहनाई की रीड बनाई जाती है, जिससे शहनाई बजती है। इनके परदादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ और पिता उस्ताद पैगंबरबख्श खाँ थे। इनकी माता का नाम मिट्ठन था। अमीरुद्दीन अर्थात बिस्मिल्ला खाँ चौदह वर्ष की उम्र में बालाजी के मंदिर में जाते समय रसूलनबाई और बतूलनबाई के घर के रास्ते से होकर जाते थे। इन दोनों बहनों के गाए हुए ठुमरी, टप्पे, दादरा के बोल इन्हें बहुत अच्छे लगते थे।

इन्होंने स्वयं माना है कि इन दोनों बहनों के कारण ही उन्हें अपने जीवन के प्रारंभिक दिनों में संगीत के प्रति लगाव हुआ था। वैदिक साहित्य में शहनाई का कोई वर्णन प्राप्त नहीं होता। शहनाई को ‘मुँह से फूंककर बजाए जाने वाले वाद्यों में गिना जाता है, जिसे ‘सुषिरवाद्य’ कहते हैं। शहनाई को ‘शाहेनय’ अर्थात ‘सुषिर वाद्यों में शाह’ की उपाधि दी गई है।

सोलहवीं शताब्दी के अंत में तानसेन द्वारा रचित राग कल्पद्रुम की बंदिश में शहनाई, मुरली, वंशी, शृंगी और मुरछंग का वर्णन मिलता है। अवधी के लोकगीतों में भी शहनाई का उल्लेख प्राप्त होता है। मांगलिक अवसरों पर शहनाई का प्रयोग किया जाता है। दक्षिण भारत के मंगलवाद्य ‘नागस्वरम’ के समान शहनाई भी प्रभाती की मंगल ध्वनि का प्रतीक है।

अस्सी वर्ष के होकर भी उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ परमात्मा से सदा ‘सुर में तासीर’ पैदा करने की दुआ माँगते हैं। उन्हें लगता है कि वे अभी तक सातों सुरों का ढंग से प्रयोग करना नहीं सीख पाए हैं। बिस्मिल्ला खाँ मुहर्रम के दिनों की आठवीं तारीख को खड़े होकर शहनाई बजाते हैं और दालमंडी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल ही रोते हुए नौहा बजाते हुए जाते हैं। उनकी आँखें हज़रत इमाम हुसैन और उनके परिवारवालों के बलिदान की स्मृति में भीगी रहती हैं।

अपने खाली समय में वे जवानी के उन दिनों को याद करते हैं जब रियाज़ से अधिक उन पर कुलसुम हलवाइन की दुकान की कचौड़ियाँ खाने तथा गीताबाली और सुलोचना की फ़िल्में देखने का जुनून सवार रहता था। वे बचपन में मामू, मौसी और नानी से दो-दो पैसे लेकर छह पैसे के टिकट से थर्ड क्लास में फ़िल्म देखने जाते थे। जब बालाजी मंदिर में शहनाई बजाने के बदले अट्ठनी मिलती थी, तो उसे भी वे कचौड़ी खाने और सुलोचना की फ़िल्म देखने में खर्च कर देते थे।

उन्हें कुलसुम की कड़ाई में कचौड़ी डालकर तलते समय उत्पन्न होने वाली छन्न की ध्वनि में संगीत सुनाई देता था। विगत कई वर्षों से काशी में संगीत का आयोजन संकटमोचन मंदिर में होता है। हनुमान जयंती के अवसर पर यहाँ पाँच दिनों तक शास्त्रीय एवं उपशास्त्रीय संगीत सम्मेलन होता है। इसमें बिस्मिल्ला खाँ अवश्य रहते हैं। उन्हें काशी विश्वनाथ के प्रति भी अपार श्रद्धा है। वे जब भी काशी से बाहर होते हैं, तो विश्वनाथ एवं बालाजी मंदिर की ओर मुँह करके थोड़ी देर के लिए शहनाई अवश्य बजाते हैं। उन्हें काशी से बहुत मोह है। वे गंगा, विश्वनाथ, बालाजी की काशी को छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहते।

उन्हें इस धरती पर काशी और शहनाई से बढ़कर कहीं भी स्वर्ग नहीं दिखाई देता। काशी की अपनी ही संस्कृति है। बिस्मिल्ला खाँ का पर्याय उनकी शहनाई है और शहनाई का पर्याय बिस्मिल्ला खाँ हो गए हैं। इनकी फूंक से शहनाई में जादुई ध्वनि उत्पन्न हो जाती है। एक दिन इनकी एक शिष्या ने इन्हें कहा कि ‘आपको भारत-रत्न मिल चुका है। आप फटी हुई तहमद न पहना करें।’ इस पर इनका उत्तर था कि ‘भारत-रत्न हमें शहनाई पर मिला है न कि तहमद पर।

हम तो मालिक से यही दुआ करते हैं कि फटा सुर नं दे, तहमद चाहे फटा रहे।’ सन 2000 की बात स्मरण करते हुए लेखक कहता है कि उन्हें इस बात की कमी खलती थी कि पक्का महाल क्षेत्र में मलाई बरफ़ बेचने वाले चले गए हैं। देशी घी की कचौड़ी-जलेबी भी पहले जैसी नहीं बनती। संगीत, साहित्य और अदब की प्राचीन परंपराएँ लुप्त होती जा रही हैं। काशी में आज भी संगत के स्वर गूंजते हैं। यहाँ का मरण मंगलमय माना जाता है। काशी आनंदकानन है।

यहाँ बिस्मिल्ला खाँ और विश्वनाथ एक-दूसरे के पूरक रहे हैं। यहाँ की गंगा-जमुनी संस्कृति का अपना ही महत्व है। भारत-रत्न व अनेक उपाधियों, पुरस्कारों, सम्मानों आदि से सम्मानित बिस्मिल्ला खाँ सदा संगीत के अजेय नायक बने रहेंगे। नब्बे वर्ष की आयु में दिनांक 21 अगस्त, 2006 को संगीत की दुनिया का अनमोल साधक संगीत-प्रेमियों के संसार से विदा हो गया।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत

किठिन शब्दों के अर्थ :

तिलिस्म – जादू। गमक – खुशबू, सुगंध। अज़ादारी – मातम करना, दुख मनाना। बदस्तूर – कायदे से, तरीके से। नैसर्गिक – स्वाभाविक, प्राकृतिक। दाद – शाबासी। तालीम – शिक्षा। अदब – कायदा, साहित्य। अलहमदुलिल्लाह- तमाम तारीफ़ ईश्वर के लिए। जिजीविषा – जीने की इच्छा। शिरकत – शामिल होना। ड्योढ़ी – दहलीज़। नौबतखाना – प्रवेश द्वार के ऊपर मंगल ध्वनि बजाने का स्थान। रियाज़ – अभ्यास। मार्फत – द्वारा। श्रृंगी – सींग का बना वायंत्र। मुरदंग – एक प्रकार का लोक वाद्ययंत्र। नेमत – ईश्वर की देन, सुख, धन-दौलत। सज़दा – माथा टेकना। इबादत – उपासना। तासीर – गुण, प्रभाव, असर। श्रुति – शब्द-ध्वनि। ऊहापोह – उलझन, अनिश्चितता।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 मीरा के पद

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 मीरा के पद Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 मीरा के पद

JAC Class 10 Hindi मीरा के पद Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
पहले पद में मीरा ने हरि से अपनी पीड़ा हरने की विनती किस प्रकार की है?
उत्तर :
मीराबाई श्रीकृष्ण को संबोधित करते हुए कहती हैं कि हे श्रीकृष्ण! आप सदैव अपने भक्तों की पीड़ा को दूर करते हैं। वे कहती हैं कि जब-जब भी भक्तों पर मुसीबतें आई हैं, तब-तब श्रीकृष्ण ने स्वयं आकर अपने भक्तों की पीड़ा को हरा है। जब कौरवों ने भरी सभा में द्रौपदी को अपमानित करने का प्रयास किया, तो भगवान श्रीकृष्ण ने उसके मान-सम्मान की रक्षा की। इसी प्रकार भक्त का प्रहलाद के लिए नृसिंह अवतार धारण किया; हाथी की मगरमच्छ से रक्षा की। हरि से इन सभी दृष्टांतों के माध्यम से अपनी पीड़ा को भी हरने की मीराबाई ने विनती की है।

प्रश्न 2.
दूसरे पद में मीराबाई श्याम की चाकरी क्यों करना चाहती हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
मीराबाई श्रीकृष्ण की सेविका बनकर उनके आस-पास रहना चाहती हैं और उनके बार-बार दर्शन करना चाहती हैं। सेवक सदा अपने स्वामी के आस-पास रहता है; मीराबाई भी श्रीकृष्ण के आस-पास रहकर उनकी लीला का गुणगान करना चाहती हैं। वे श्रीकृष्ण की सेवा में उनके दर्शन और नाम-स्मरण को पाना चाहती हैं। मीराबाई श्रीकृष्ण की सेविका बनकर भक्तिरूपी धन-दौलत को प्राप्त करना चाहती हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 मीरा के पद

प्रश्न 3.
उत्तर
मीराबाई ने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन कैसे किया है?
उत्तर :
मीराबाई श्रीकृष्ण की सुंदरता का वर्णन करते हुए कहती हैं कि श्रीकृष्ण के माथे पर मोर के पंखों का मुकुट सुशोभित है। उनके शरीर पर पीतांबर उनकी शोभा को और अधिक बढ़ा रहा है। श्रीकृष्ण के गले में वैजंती माला अत्यंत शोभा पा रही है। ऐसी वेशभूषा से सुशोभित श्रीकृष्ण वृंदावन में गाय चराते हुए और बाँसुरी बजाते हुए अत्यंत आकर्षक लगते हैं।

प्रश्न 4.
मीराबाई की भाषा शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
मीराबाई के काव्य की भाषा उनके प्रेमी हृदय का सौंदर्य है। उन्होंने अपने काव्य में मुख्य रूप से ब्रजभाषा, पंजाबी, राजस्थानी, गुजराती आदि शब्दों का प्रयोग में किया है। मीरा का अधिकांश समय राजस्थान में बीता था, इसलिए उनके काव्य में राजस्थानी शब्दों का प्रयोग अधिक मिलता है। मीरा की भाषा में प्रवाहात्मकता का गुण सर्वत्र विद्यमान है। उनकी भावानुकूल शब्द-योजना द्रष्टव्य है।

अपनी प्रेम की पीड़ा को अभिव्यक्त करने के लिए उन्होंने अत्यंत भावानुकूल शब्दावली का प्रयोग किया है। भाषा पर राजस्थानी प्रभाव के कारण उन्होंने ‘न’ के स्थान पर ‘ण’ का प्रयोग किया है। इसके साथ-साथ मीराबाई की भाषा में अनेक अलंकारों का सफल एवं स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। उनके द्वारा प्रयुक्त अलंकारों में अनुप्रास, वीप्सा, रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा तथा उदाहरण अलंकार प्रमुख हैं। मीराबाई के काव्य की शैली गीति शैली है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 मीरा के पद

प्रश्न 5.
वे श्रीकृष्ण को पाने के लिए क्या-क्या कार्य करने को तैयार हैं?
उत्तर :
मीराबाई श्रीकृष्ण को अपने प्रियतम के रूप में देखती हैं। वे बार-बार श्रीकृष्ण के दर्शन करना चाहती हैं। उन्हें पाने के लिए मीराबाई उनकी सेविका बनने के लिए तैयार हैं। वे सेविका बनकर श्रीकृष्ण का निरंतर सामीप्य चाहती हैं। वे बड़े-बड़े महलों का निर्माण करवाकर उनके बीच में खिड़कियाँ बनवाना चाहती हैं। इन खिड़कियों से वे श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य को निहारना चाहती हैं। श्रीकृष्ण को पाने के लिए मीरा भली प्रकार से श्रृंगार करके आधी रात को यमुना के तट पर उनकी प्रतीक्षा करती हैं। वे श्रीकृष्ण के दर्शन की प्यासी हैं और किसी भी प्रकार से उन्हें पा लेना चाहती हैं।

(ख) निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए –
(लघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1.
हरि आप हरो जन री भीर।
द्रौपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर।
भगत कारण रूप नरहरि, धरयो आप सरीर॥
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा का सुंदर प्रयोग किया है। अनुप्रास एवं उदाहरण अलंकार हैं। भाषा में प्रवाहमयता तथा सरसता का गुण विद्यमान है। दैन्य भाव की भक्ति है तथा शांत रस की प्रधानता है। कवयित्री ने अभिधात्मक शैली का प्रयोग करते हुए अपने भावों की सुंदर अभिव्यक्ति की है।

प्रश्न 2.
बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुण्जर पीर।
दासी मीराँ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर।
उत्तर :
इन पंक्तियों में कवयित्री ने राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। तत्सम और तद्भव शब्दों का सुंदर मिश्रण है। अनुप्रास तथा दृष्टांत अलंकार का प्रयोग है। दास्य भाव की भक्ति है तथा शांत रस की प्रधानता है। कवयित्री की भाषा में प्रवाहात्मकता, संगीतात्मकता तथा गेयता का गुण विद्यमान है। अत्यंत सरल शब्दों में भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति हुई है।

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प्रश्न 3.
चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ, तीनूं बातां सरसी॥
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्तियों की भाषा राजस्थानी है। भाषा में लयात्मकता, संगीतात्मकता तथा गेयता का गुण सर्वत्र विद्यमान है। सरलता, सरसता और माधुर्य से युक्त भाषा द्रष्टव्य है। दास्य भाव की भक्ति है, जिसमें शांत रस की प्रधानता है। कवयित्री ने श्रीकृष्ण के प्रति अपनी कोमल भावनाओं की सुंदर ढंग से अभिव्यक्ति की है।

भाषा अध्ययन –

प्रश्न :
उदाहरण के आधार पर पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए
उदाहरण – भीर – पीड़ा/कष्ट/दुख; री – की
चीर, बूढ़ता, धरयो, लगास्यूँ, कुण्जर, घणा, बिन्दरावन, सरसी, रहस्यूँ, हिवड़ा, राखो, कुसुम्बी
उत्तर :

  • चीर – वस्त्र, कपड़ा
  • धरयो – धारण किया
  • कुण्जर – हाथी
  • बिन्दरावन – वृंदावन
  • रहस्यूँ – रहकर
  • राखो – रखना
  • बूढ़ता – डूबते हुए
  • लगास्यूँ – लगाऊँगी
  • घणा – बहुत अधिक
  • सरसी – अच्छी, रस से युक्त
  • हिवड़ा – हृदय
  • कुसुम्बी – लाल रंग की

योग्यता विस्तार –

प्रश्न 1.
मीरा के अन्य पदों को याद करके कक्षा में सुनाइए।
उत्तर
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 मीरा के पद

प्रश्न 2.
यदि आपको मीरा के पदों के कैसेट मिल सकें तो अवसर मिलने पर उन्हें सुनिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

परियोजना कार्य –

प्रश्न 1.
मीरा के पदों का संकलन करके उन पदों को चार्ट पर लिखकर भित्ति पत्रिका पर लगाइए।
उत्तर :
चार्ट बनाने का कार्य विदयार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
पहले हमारे यहाँ दस अवतार माने जाते थे। विष्णु के अवतार राम और कृष्ण प्रमुख हैं।
अन्य अवतारों के बारे में जानकारी प्राप्त करके एक चार्ट बनाइए।
उत्तर :
चार्ट बनाने का कार्य विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 10 Hindi मीरा के पद Important Questions and Answers

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
मीरा की दृष्टि में उनके प्रभु श्रीकृष्ण कैसे हैं ?
उत्तर :
मीरा की दृष्टि में उनके प्रभु श्रीकृष्ण दयालु और भक्त-वत्सल हैं। वे अपने भक्तों पर अपनी विशेष अनुकम्पा रखते हैं; उनकी सहायता के लिए सदैव तत्पर रहते हैं, फिर चाहे इसके लिए उन्हें नृसिंह अवतार ही क्यों न लेना पड़े। वे अपने भक्तों को बीच मझधार में नहीं छोड़ते। वे अपने भक्तों की परीक्षा अवश्य लेते हैं, लेकिन यह परीक्षा धैर्य और भक्ति की पराकाष्ठा को देखने के लिए होती है।

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प्रश्न 2.
मीरा को श्रीकृष्ण की सेवा करते हुए भक्ति के कौन-से तीन रूप मिलने वाले थे?
उत्तर :
मीरा को श्रीकृष्ण की सेवा करते हुए भक्ति के तीन रूप-भावमग्न भक्ति, प्रभु-दर्शन तथा नाम-स्मरण प्राप्त होने वाले थे। मीरा कहती हैं कि जब वे दासी बनकर श्रीकृष्ण की सेवा करेंगी, तो प्रतिदिन उन्हें प्रभु के दर्शन होंगे। उनके लिए प्रभु की सेवा करने की कमाई मेरे लिए प्रभु का नाम-स्मरण होगा। प्रभु के रूप-सौंदर्य की लालसा में जब वे उनका इंतज़ार करेंगी तो वह भाव-मग्न भक्ति होगी।

प्रश्न 3.
श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की लाज किस प्रकार बचाई थी?
उत्तर :
जब दुःशासन भरी सभा में द्रौपदी को सबके समक्ष निर्वस्त्र करने का प्रयास कर रहा था, तब श्रीकृष्ण प्रकट हुए और उन्होंने द्रौपदी के वस्त्र को बढ़ाकर उसे अपमानित होने से बचा लिया था। श्रीकृष्ण के इस कार्य से ही द्रौपदी के मान-सम्मान की रक्षा हुई थी।

प्रश्न 4.
श्रीविष्णु ने प्रह्लाद की रक्षा किस रूप में और क्यों की थी?
उत्तर :
श्रीविष्णु ने प्रहलाद की रक्षा नृसिंह रूप में अवतरित होकर की थी। प्रहलाद उनका भक्त था। अपने भक्त की रक्षा के लिए उन्होंने अत्याचारी एवं अनाचारी दैत्य हिरण्यकशिपु का वध किया था। उनका यह कार्य उनकी भक्त-वत्सलता का प्रमाण है कि वे कभी भी अपने भक्तों को अकेला व असहाय नहीं छोड़ते।

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प्रश्न 5.
मीरा श्रीकृष्ण की सेवा करके वेतन रूप में क्या पाना चाहती हैं?
उत्तर :
मीरा अपने आराध्य श्रीकृष्ण की सेवा करके उनके नाम-स्मरण को वेतन के रूप में पाना चाहती हैं, ताकि वे प्रभु को प्रतिपल याद करती रहे। एक क्षण के लिए भी वे प्रभु से दूर न हों। उनका भाव एवं विचार सदैव प्रभु-भक्ति में लीन रहे।

प्रश्न 6.
मीरा का हृदय क्यों व्याकुल है?
उत्तर :
मीरा श्रीकृष्ण को अपना सर्वस्व मानती हैं। उनके सिवाय मीरा को संसार में कोई अपना नहीं लगता। संसार का कण-कण मीरा को श्रीकृष्ण की याद दिलाता है। श्रीकृष्ण के प्रति अपनी अनन्य भक्ति एवं तल्लीनता के कारण वे श्रीकृष्ण के दर्शनों की प्यासी हैं। इसलिए श्रीकृष्ण के दर्शनों के लिए उनका हृदय बहुत व्याकुल है।

प्रश्न 7.
मीरा श्रीकृष्ण से क्या प्रार्थना करती हैं ?
उत्तर :
मीरा श्रीकृष्ण की अनन्य उपासिका हैं। मीरा का मन सारा दिन श्रीकृष्ण के नाम का भजन करता है। वे श्रीकृष्ण से अपनी पीड़ा को दूर करने की प्रार्थना करती हैं। वे मानती हैं कि उनके प्रभु भक्त-वत्सल हैं। वे भक्तों की विनती को कभी नहीं ठुकराते। भक्तों पर उनकी दया-दृष्टि सदैव बनी रहती है, इसलिए वे श्रीकृष्ण से अपनी पीड़ा को दूर करने के लिए प्रार्थना करती हैं।

मीरा के पद Summary in Hindi

कवयित्री-परिचय :

जीवन – राजस्थान के भक्तों में सर्वोपरि, कृष्ण भक्तों में सम्माननीय और मध्ययुगीन हिंदी काव्य में विशिष्ट स्थान की अधिकारिणी मीराबाई का सारा साहित्य कृष्ण भक्ति से संबंधित है। वह आँसुओं के जल से सिंचा और आहों से सुवासित हुआ है। मीरा का संबंध राठौड़ों की एक उपशाखा मेड़तिया वंश से था। मीराबाई राव दूदा जी के चौथे पुत्र रत्नसिंह की पुत्री थीं। इनका जन्म जोधपुर के चोकड़ी (कुड़की) नामक ग्राम में सन 1503 के आसपास हुआ था। मीरा के दादा अत्यंत धर्मात्मा व्यक्ति थे, जिनके कारण इनके परिवार में धार्मिक भावनाओं की प्रधानता स्वाभाविक थी। बचपन से ही मीरा कृष्ण भक्त थीं। इन्होंने अधिक दिनों तक लौकिक सुहाग का सुख नहीं भोगा।

विवाह के कुछ वर्षों बाद राणा सांगा के जीवनकाल में ही इनके पति भोजराज की मृत्यु हो गई। इससे इनके जीवन में एक नया मोड़ आ गया। लेकिन सिंदूर लुट जाने पर भी गिरधर के अखंड सौभाग्य का रंग सदा के लिए इन पर छा गया। सभी राग-विरागों से मुक्त हो वे अपने आराध्य कृष्ण में ही एकनिष्ठ हो गईं। इनका विरह कृष्ण-प्रेम का रूप लेकर गीतों में फूट पड़ा।

मीरा के श्वसुर उदार और स्नेही व्यक्ति थे, इसलिए उनके रहते हुए मीरा को कोई कष्ट नहीं हुआ। लेकिन उनके देहांत के बाद मीरा को अनेक परेशानियाँ हुईं। इन्हें विष देकर एवं पिटारी में साँप भेजकर मारने का प्रयास किया गया। कालांतर में मीरा पूर्ण वैरागिन होकर साधुओं की मंडली में मिल गई और वृंदावन चली गईं। लगभग सन 1546 में श्री रणछोड़ के मंदिर में कीर्तन-भजन करते-करते इनकी मृत्यु हो गई।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 मीरा के पद

रचनाएँ – मीरा की रचनाएँ निम्नलिखित मानी जाती हैं – नरसी का मायरा, गीत गोविंद टीका, राग सोरठ के पद, राग गोविंद व मीरा के पद। मीरा के पद गुजराती, राजस्थानी, पंजाबी, खड़ी बोली आदि में मिलते हैं। इनके गीत ‘मीराबाई पदावली’ में संकलित हैं।

साहित्यिक प्रवृत्तियाँ – मीरा का काव्य कृष्ण-प्रेम से ओत-प्रोत है। वे सच्ची प्रेमिका हैं। इनकी भक्ति दैन्य और माधुर्य भाव की है। इनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
1. प्रेम-भावना – मीरा के काव्य का मूल स्वर प्रेम है। उनके प्रिय श्रीकृष्ण हैं। मीरा का प्रेम, उनकी भक्ति सगुण लीलाधारी कृष्ण के प्रति निवेदित है। ‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई’ इसी की सहज अभिव्यक्ति है। मीरा के आराध्य वही कृष्ण हैं, जिनके नयन विशाल हैं; जो मुरली और वैजयंती माला धारण करते हैं। कृष्ण उनके जीवन के आधार हैं। ‘हरि मेरे जीवन प्राणाधार,’ ‘मैं गिरधर रंग राती’ तथा ‘मीरा लागो रंग हरी और न रंग अरथ परी’ आदि उनकी प्रेम-भावना के परिचायक हैं।

2. कृष्ण का अवतारी रूप – मीरा ने कृष्ण के अवतारी और लोकोपकारक स्वरूप का चित्रण किया है। वह भगवान को लोक हितकारी एवं शरणागत वत्सल रूप का भी स्मरण दिलाती है –

हरि तुम हरो जन की भीर,
द्रौपदी की लाज राखी आप बढ़ायो चीर।

3. विरह-वेदना का आधिक्य – प्रेम और भक्ति चिरसंगी है और प्रेम के संयोग-वियोग पक्षों में विरह-वेदना की अनुभूति अधिक बलवती है। विरह प्रेम की एकमात्र कसौटी है। मीरा का सारा काव्य विरह की तीव्र वेदनानुभूति से परिपूर्ण है। मीरा एक सच्ची प्रेमिका की भाँति प्रियतम की ‘बाट’ जोहती है; प्रिय के आगमन के दिन गिनती रहती है।

रात दिवस कल नाहिं परत है,
तुम मिलियाँ बिन मोई।

4. भक्ति का स्वरूप – मीरा की भक्ति अनेक पद्धतियों और सिद्धांतों से युक्त है। इन्होंने किसी भी संप्रदाय से दीक्षा नहीं ली थी। इन्हें अपने भक्ति-क्षेत्र में जो भी अच्छा लगा, उसे अपना लिया। मीरा पर सगुण और निर्गुण दोनों का प्रभाव है। मीरा की भक्ति में समर्पण भाव है। उनके काव्य में अनुभूति की गहनता है।

5. गीति काव्य – मीरा के पदों में गेयता के सभी तत्व-आत्माभिव्यक्ति, संक्षिप्तता, तीव्रता, संगीतात्मकता, भावात्मक एकता और भावना की पूर्णता है। उनकी पीड़ा की अभिव्यक्ति व्यक्तिगत न होकर समष्टिगत है। सभी पद संगीत के शास्त्रीय पक्ष पर खरे उतरते हैं। इनके पदों का आकार संक्षिप्त है और इनमें भावों की पूर्णता भी है।

भाषा-शैली-मीरा के काव्य में किसी एक भाषा का प्रयोग नहीं है; इसमें ब्रज, राजस्थानी, पंजाबी, गुजराती, हरियाणवी आदि भाषाओं के शब्दों का प्रयोग है। परंतु राजस्थानी इनकी मुख्य भाषा रही है। इनके काव्य में भाव पक्ष को प्रमुखता दी गई है, इसलिए कला पक्ष अधिक मुखरित नहीं हो पाया। इन्होंने भावानुकूल शब्दों का प्रयोग किया है। इनमें राजस्थानी के तद्भव और देशज शब्दों की संख्या बहुत अधिक है। भाषा में अलंकारों और छंदों का प्रयोग सहज रूप में हुआ है। शांत, भक्ति और करुण रसों के प्रयोग से काव्य में सरसता आ गई है। अनुभूति की गहनता और अभिव्यक्ति की प्रखरता के कारण मीरा का गीतिकाव्य आज भी सर्वोच्च स्थान रखता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 मीरा के पद

पदों का सार :

इन पदों में मीराबाई ने भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी भक्ति-भावना व्यक्त की है। वे श्रीकृष्ण को सबकी पीड़ा को दूर करने वाला बताती हैं। – मीरा श्रीकृष्ण को संबोधित करते हुए कहती है कि हैं श्रीकृष्ण! आप सदैव अपने भक्तों की पीड़ा को दूर करते हैं। आपने ही भरी सभा में द्रौपदी को अपमानित होने से बचाया था। भक्त प्रहलाद की रक्षा करने के लिए ही आपने नृसिंह अवतार लिया। इसके साथ-साथ आपने मगरमच्छ को दूसरे पद में मीरा स्वयं को श्रीकृष्ण की सेविका के रूप में प्रस्तुत करती हैं।

वे कहती है कि हे कृष्ण ! मुझे अपनी सेविका बना लो। आपकी सेवा में रहते हुए मैं प्रतिदिन उठते ही आपके दर्शन पा सकूँगी और निरंतर वृंदावन की गलियों में आपकी लीला का गुणगान करूँग सेवा करते हुए आपके दर्शन करना और नाम-स्मरण करना ही मेरी कमाई होगी। हे श्रीकृष्ण ! आपके माथे पर मोर के पंखों का मुकुट, शरीर पर पीतांबर तथा गले में वैजयंती माला अत्यंत सुशोभित होती है। मैं लाल रंग की साड़ी पहनकर आधी रात को यमुना के तट पर आपके दर्शनों की प्यासी खड़ी हूँ। आप मुझे दर्शन दीजिए। मीराबाई कहती हैं कि प्रभु श्रीकृष्ण के दर्शनों के लिए उसका हृदय अत्यंत व्याकुल हो उठता है। वे बार-बार प्रभु श्रीकृष्ण के दर्शन करना चाहती हैं।

सप्रसंग व्याख्या –

1. हरि आप हरो जन री भीर।
द्रोपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर।
भगत कारण रूप नरहरि, धर्यो आप सरीर।
बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुण्जर पीर।
दासी मीराँ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर॥

शब्दार्थ : हरो – दूर करो। जन – भक्त। बढ़ायो – बढ़ाया। चीर – वस्त्र। नरहरि – भगवान विष्णु का नृसिंह अवतार। धरयो – धारण किया। गजराज – हाथी। कुंजर – हाथी। पीर – पीड़ा। म्हारी – हमारी। भीर – विपत्ति, दुख, संकट।

प्रसंग : प्रस्तुत पद प्रसिद्ध कवयित्री मीराबाई द्वारा रचित है। इस पद में उन्होंने अपने आराध्य भगवान श्रीकृष्ण से अपनी पीड़ा हरने की प्रार्थना की है।

व्याख्या : मीराबाई श्रीकृष्ण को संबोधित करते हुए कहती हैं कि आप सदा अपने भक्तों की पीड़ा को दूर करते हैं। कौरवों ने जब भरी सभा में द्रौपदी को निर्वस्त्र कर अपमानित करना चाहा, तो आपने उसके वस्त्र-बढ़ाकर उसके मान-सम्मान की रक्षा की। भक्त प्रह्लाद को हिरण्यकशिपु ने मारने का प्रयास किया, तो आपने नृसिंह अवतार धारण करके प्रहलाद की रक्षा की। जब एक हाथी को जल के भीतर मगरमच्छ ने मारने का प्रयास किया, तो आपने मगरमच्छ को मारकर शरणागत हाथी के प्राणों की रक्षा की। मीराबाई कहती हैं कि वह तो ऐसे श्रीकृष्ण की दासी है, जो सदा भक्तों की रक्षा करते हैं। वे उनसे अपनी पीड़ा को भी दूर करने की प्रार्थना करती हैं। वे श्रीकृष्ण के दर्शनों की प्यासी है। श्रीकृष्ण के दर्शन पाकर ही उनकी पीड़ा दूर हो सकती है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 2 मीरा के पद

2. स्याम म्हाने चाकर राखो जी,
गिरधारी लाला म्हाँने चाकर राखोजी।
चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरसण पास्यूँ।
बिन्दरावन री कुज गली में, गोविन्द लीला गास्यूँ।
चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ, तीनूं बाताँ सरसी।
मोर मुगट पीताम्बर सौहे, गल वैजन्ती माला।
बिन्दरावन में धेनु चरावे, मोहन मुरली वाला।
ऊँचा ऊँचा महल बणावं बिच बिच राखूँ बारी।
साँवरिया रा दरसण पास्यूँ, पहर कुसुम्बी साड़ी।
आधी रात प्रभु दरसणा, दीज्यो जमनाजी रे तीरां।
मीराँ रा प्रभु गिरधर नागर, हिवड़ो घणो अधीराँ॥

शब्दार्थ : स्याम – श्रीकृष्ण। म्हाने – हमें। चाकर – सेवक। नित – प्रतिदिन। लीला – विविध रूप। सरसी – अच्छी। पीतांबर – पीले वस्त्र। सोहै – सुशोभित होना। धेनु – गाय। बारी – खिड़की। साँवरिया – प्रियतम, श्रीकृष्ण। कुसुंबी – लाल रंग की। तीरां – तट, किनारा। हिवड़ो – हृदय। घणो – बहुत अधिक। अधीरां – व्याकुल, बेचैन।

प्रसंग : प्रस्तुत पद श्रीकृष्ण की प्रेम दीवानी मीराबाई द्वारा रचित है। इस पद में उन्होंने श्रीकृष्ण की सेविका बनने की इच्छा प्रकट की है। वे श्रीकृष्ण की सेविका बनकर निरंतर उनके समीप रहना चाहती हैं।

व्याख्या : मीराबाई श्रीकृष्ण को संबोधित करते हुए कहती हैं कि हे श्रीकृष्ण ! मुझे अपनी सेविका के रूप में रख लो। मैं आपकी सेवा करते हुए बाग बगीचे लगाऊँगी और प्रातः उठकर प्रतिदिन आपके दर्शन किया करूँगी। मैं तो आपकी सेविका बनकर वृंदावन की गलियों में आपकी लीला का गुणगान करूँगी। आपकी सेवा में रहते हुए मैं आपके दर्शन और नाम-स्मरण को वेतन के रूप में पाऊँगी और भक्तिरूपी संपत्ति को प्राप्त करूँगी। मेरे लिए ये तीनों बातें अच्छी हो जाएँगी।

मैं आपकी सेवा से दर्शन, नाम-स्मरण और भक्ति-तीनों प्राप्त करूँगी। मीरा श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती हैं कि श्रीकृष्ण के मस्तक पर मोर के पंखों का मुकुट तथा शरीर पर पीतांबर सुशोभित है। उनके। बजाते हुए गाय चराते हैं। मीरा कहती है कि वह ऊँचे-ऊँचे महलों का निर्माण करवाकर उनके बीच में खिड़कियाँ रखना चाहती है, ताकि वह श्रीकृष्ण के दर्शन कर सके।

वह लाल रंग की साड़ी पहनकर अपने प्रियतम श्रीकृष्ण के दर्शनों के लिए आधी रात के समय यमुना के तट पर उनकी प्रतीक्षा करती है। अंत में मीरा कहती हैं कि वह अपने प्रिय श्रीकृष्ण के दर्शनों की प्यासी है। श्रीकृष्ण के दर्शनों के लिए उनका हृदय बहुत व्याकुल है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 कबीर की साखी

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 कबीर की साखी Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 कबीर की साखी

JAC Class 10 Hindi कबीर की साखी Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(निबंधात्मक प्रश्न)

प्रश्न 1.
मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त
अथवा
कबीर ने कैसी वाणी बोलने की सलाह दी है ?
उत्तर :
कबीरदास कहते हैं कि मनुष्य को सदैव मधुर वचन बोलने चाहिए। मीठी वाणी बोलने से उसे सुनने वाला सुख का अनुभव करता है, क्योंकि मीठी वाणी जब हमारे कानों तक पहुँचती है तो उसका प्रभाव हमारे हृदय पर होता है। इसके विपरीत किसी के द्वारा कहे गए कड़वे वचन तीर की भाँति हृदय में चुभने वाले होते हैं। जब हम मीठे वचनों का प्रयोग करते हैं, तो हमारा अहंकार नष्ट हो जाता है। अहंकार के नष्ट होने पर हमें शीतलता प्राप्त होती है। इस प्रकार मीठी वाणी बोलने से न केवल दूसरों को हम सुख प्रदान करते हैं, अपितु स्वयं भी शीतलता को अनुभव करते हैं।

प्रश्न 2.
दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कबीरदास के अनुसार जिस प्रकार दीपक के जलने पर अंधकार अपने आप दूर हो जाता है, उसी प्रकार हृदय में ज्ञानरूपी दीपक के जलने कबीरदास के अना पर अज्ञानरूपी अंधकार दूर हो जाता है। जब तक मनुष्य में अज्ञान रहता है, तब तक उसमें अहंकार और अन्य दुर्गुण होते हैं। वह अपने ही हृदय में निवास करने वाले ईश्वर को पहचान नहीं पाता। अज्ञानी मनुष्य अपने आप में डूबा रहता है। लेकिन जैसे ही उसके हृदय में ज्ञानरूपी दीपक जलता है, उसका हृदय प्रकाशित हो उठता है। ज्ञानरूपी दीपक के जलते ही मनुष्य का अज्ञानरूपी अंधकार नष्ट हो जाता है। ज्ञान के दीपक के जलने पर मनुष्य ईश्वर-प्राप्ति के मार्ग पर चल पड़ता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 कबीर की साखी

प्रश्न 3.
ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?
उत्तर :
कबीरदास का मानना है कि निर्गुण ब्रह्म कण-कण में समाया हुआ है, किंतु अपनी अज्ञानता के कारण हम उसे नहीं देख पाते। जिस प्रकार कस्तूरी नामक सुगंधित पदार्थ हिरण की अपनी नाभि में ही विद्यमान होता है लेकिन वह उसे जंगल में इधर-उधर ढूँढ़ता है; उसी प्रकार मनुष्य भी अपने हृदय में छिपे ईश्वर को अपनी अज्ञानता के कारण पहचान नहीं पाता। वह ईश्वर को धर्म के अन्य साधनों जैसे मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरुद्वारा आदि में व्यर्थ ढूँढ़ता है। कबीरदास का मत है कि कण-कण में छिपे परमात्मा को देखने के लिए ज्ञान का होना अति आवश्यक है।

प्रश्न 4.
संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतीक हैं ? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कबीरदास के अनुसार जो व्यक्ति केवल सांसारिक सुखों में डूबा रहता है और जिसके जीवन का उद्देश्य केवल खाना, पीना और सोना है, वही व्यक्ति सुखी है। इसके विपरीत जो व्यक्ति संसार की नश्वरता को देखकर ईश्वर प्राप्ति के लिए रोता है, वह दखी है। यहाँ ‘सोना’ शब्द सांसारिक सुखों में डूबे रहने का प्रतीक है तथा ‘जागना’ ज्ञान प्राप्त होने का प्रतीक है। इन शब्दों का प्रयोग कवि ने यह बताने के लिए किया है कि मूर्ख व्यक्ति अपना जीवन यूँ ही निश्चित रहकर नष्ट कर देता है। दूसरी ओर ज्ञानी व्यक्ति जानता है कि संसार नश्वर है। वह ईश्वर प्राप्ति के लिए प्रयत्न करता है और दुखी रहता है। वह चाहता है कि मनुष्य भौतिक सुखों को त्यागकर ईश्वर-प्राप्ति की ओर अग्रसर हो।

प्रश्न 5.
अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है ?
अथवा
कबीर के विचार से निंदक को निकट रखने के क्या-क्या लाभ हैं?
उत्तर :
कबीर का मानना है कि अपने स्वभाव को निर्मल रखने का सबसे अच्छा उपाय निंदा करने वाले को अपने साथ रखना है। निंदा करने वाले को घर में अपने आस-पास रखना चाहिए। ऐसा करने से हमारा स्वभाव अपने आप ही निर्मल हो जाएगा, क्योंकि निंदा करने वाला व्यक्ति हमारे गलत कार्यों की निंदा करेगा तो हम अपने आप को सुधारने का प्रयास करेंगे। इस प्रकार निंदा करने वाले व्यक्ति के पास रहने पर हम धीरे-धीरे अपने स्वभाव को बिलकुल निर्मल कर लेंगे। इस तरह उसके द्वारा बताए गए अपने अवगुणों को दूर करके हम अपने स्वभाव को निर्मल बनाने में सफल हो सकते हैं।

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प्रश्न 6.
‘एकै आषिर पीव का, पढे स पंडित होइ’-इस पंक्ति के दवारा कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर :
इस पंक्ति के द्वारा कवि स्पष्ट करना चाहता है कि जो व्यक्ति अपने प्रिय परमात्मा के प्रेम का अक्षर पढ़ लेता है, वही ज्ञानवान है। कुछ लोग बड़े-बड़े धर्मग्रंथों को पढ़कर अपने आपको विद्वान और ज्ञानवान सिद्ध करने का प्रयास करते हैं। कबीर का मत है कि वेदों, पुराणों और उपनिषदों को पढ़ने से कोई लाभ नहीं होता। इनको पढ़ना व्यर्थ है। इसके विपरीत जो ईश्वर-प्रेम के मार्ग को अपनाकर उसमें डूब जाता है, वही वास्तविक विद्वान और ज्ञानवान है।

प्रश्न 7.
कबीर की उद्धत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रयोग हुआ है। कहीं-कहीं इन्होंने पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग किया है, किंतु अधिकांश साखियों में प्राय: बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया गया है। इन साखियों में कबीरदास ने सामान्य भाषा में भी लोक व्यवहार की शिक्षा दी है। जैसे –

ऐसी बाँणी बोलिए, मन का आपा खोइ।
अपना तन सीतल करै, औरन कौं सुख होई॥

कबीर की भाषा में कहीं-कहीं बौद्धिकता के भी दर्शन होते हैं। यह बौद्धिकता प्राय: उपदेशात्मक साखियों में अधिक है। दोहा छंद में लिखी गई इन साखियों में मुक्तक शैली का प्रयोग है तथा गीति-तत्व के सभी गुण विद्यमान हैं। भाषा पर कबीर के अधिकार को देखते हुए ही डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इन्हें ‘वाणी का डिक्टेटर’ कहा है।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए –
(लघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1.
बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ।
उत्तर :
कबीरदास का कहना है कि जब विरहरूपी सर्प शरीर में बैठ जाता है, तो विरही व्यक्ति सदा तड़पता है। उस पर किसी प्रकार के मंत्र का कोई प्रभाव नहीं होता। जब आत्मा अपने प्रिय परमात्मा की विरह में तड़पती है, तो वह केवल अपने प्रिय परमात्मा के दर्शन पाकर होती है। विरहरूपी सर्प आत्मा को तब तक तड़पाता है, जब तक परमात्मा के दर्शन नहीं हो जाते।

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प्रश्न 2.
कस्तूरी कुंडलि बसैं, मृग ढूँढ़े बन माँहि।
उत्तर :
कवि यहाँ यह स्पष्ट करना चाहता है कि हिरण की अपनी नाभि में ही कस्तूरी नामक सुगंधित पदार्थ होता है। जब हिरण को उसकी सुगंध आती है तो वह उसे इधर-उधर खोजता है, किंतु वह उसे ढूँढ़ नहीं पाता। इसी प्रकार ईश्वर भी मनुष्य के हृदय में विद्यमान है, किंतु मनुष्य अज्ञानतावश उसे पहचान नहीं पाता। वह ईश्वर को अन्य स्थानों पर खोज रहा है, जोकि व्यर्थ है।

प्रश्न 3.
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।
उत्तर :
यहाँ कबीरदास के कहने का भाव है कि जब तक मनुष्य में ‘मैं’ अर्थात अहंकार की भावना होती है, तब तक वह ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता। मनुष्य जैसे ही अपने भीतर से अहंकार की भावना को नष्ट कर देता है, ईश्वर को सहजता से पा लेता है। ईश्वर को पाने के लिए अहंकार को त्यागना आवश्यक है।

प्रश्न 4.
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
उत्तर :
कबीरदास का मत है कि धार्मिक ग्रंथ आदि पढ़ने से कोई व्यक्ति विद्वान अथवा बुद्धिमान नहीं बनता। जो व्यक्ति ईश्वर-प्रेम को जान लेता है, वही सच्चा विद्वान है। धार्मिक ग्रंथों को पढ़कर स्वयं को विद्वान और ज्ञानी कहने वाले अनेक लोग मिट जाते हैं, किंतु ईश्वर-प्रेम के एक अक्षर को समझने वाला व्यक्ति अमर हो जाता है।

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भाषा अध्ययन –

प्रश्न :
पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप उदाहरण के अनुसार लिखिए –
उदाहरणः जिवै – जीना
औरन, माँहि, देख्या, भुवंगम, नेड़ा, आँगणि, साबण, मुवा, पीव, जालौं, तास।
उत्तर :

  • औरन – दूसरे को/अन्य को
  • माँहि – में
  • देख्या – देखा
  • भुवंगम – भुजंग/साँप
  • नेड़ा – निकट/समीप
  • आँगणि – आँगन
  • साबण – साबुन
  • मुवा – मरा
  • पीव – पिया, प्रिय, प्रियतम
  • तास – उस
  • जालौं – जलाऊँ

योग्यता विस्तार –

प्रश्न 1.
‘साधु में निंदा सहन करने से विनयशीलता आती है’ तथा ‘व्यक्ति को मीठी व कल्याणकारी वाणी बोलनी चाहिए’-इन विषयों पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

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प्रश्न 2.
कस्तूरी के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
कस्तूरी एक सुगंधित पदार्थ होता है, जो ‘कस्तूरी’ नामक मृग की नाभि में होता है। भारत में यह मृग हिमालय के वन्य क्षेत्र में पाया जाता है। वर्तमान समय में अनेक लोग कस्तूरी के लिए इस मृग का शिकार कर रहे हैं, जिससे उनकी संख्या तेजी से कम हो रही है। यही कारण है कि कस्तूरी मृग को दुर्लभ और संरक्षित प्रजाति घोषित किया गया है।

परियोजना कार्य –

प्रश्न 1.
मीठी वाणी/बोली संबंधी व ईश्वर प्रेम संबंधी दोहों का संकलन कर चार्ट पर लिखकर भित्ति पत्रिका पर लगाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 2.
कबीर की साखियों को याद कीजिए और कक्षा में अंत्याक्षरी में उनका प्रयोग कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

JAC Class 10 Hindi कबीर की साखी Important Questions and Answers

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
‘साखी’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
‘साखी’ शब्द साक्षी शब्द से बिगड़कर बना है, जिसका अर्थ है-‘गवाही’। कबीर ने जिन बातों को अपने अनुभव से जाना और सत्य पाया, उन्हें ‘साक्षी’ या साखी रूप में लिखा है। साखियाँ अनुभूत सत्य की प्रतीक हैं और कबीर उस सच्चाई के गवाह हैं।

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प्रश्न 2.
ईश्वर के प्रति भक्ति कब दृढ़ हो जाती है?
उत्तर :
कबीरदास का मत है कि जब ईश्वर की विरह में जलने वाला व्यक्ति ऐसे ही दूसरे व्यक्ति से मिलता है, तो ईश्वर के प्रति भक्ति और दृढ़ हो जाती है। ईश्वर के प्रेम में घायल व्यक्ति जब ईश्वर के प्रेम में तड़पने वाले अपने ही समान अन्य व्यक्ति से मिलता है, तो उनमें विचारों का आदान-प्रदान होता है। दोनों अपने अनुभवों को बताते हैं और इस प्रकार दोनों के हृदयों में ईश्वर के प्रति भक्ति-भाव और अधिक प्रगाढ़ हो जाता है। इससे ईश्वर के प्रति भक्ति को दृढ़ता मिलती है।

प्रश्न 3.
हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराड़ा हाथि।
अब घर जालौ तास का, जे चलै हमारे साथि।
प्रस्तुत साखी के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि कबीर ने क्रांतिकारी स्वर में क्या कहा?
उत्तर :
संत कबीर ने जनमानस में चेतना लाने के लिए क्रांतिकारी स्वरों में कहा कि उन्होंने विषय-वासनाओं से युक्त अपने शरीर को जलाकर नष्ट कर दिया है। अब उन्हें सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हो गई है। इस सच्चे ज्ञान की मशाल को लेकर वे निकल पड़े हैं। जिसे भी उनके साथ चलना है, वह उनके साथ आ जाए। कबीर उनके सभी विकारों को समाप्त कर देंगे।

प्रश्न 4.
‘बिरह भुवंगम तन बसै …. जिवै तो बौरा होइ’ दोहे में कबीर ने विरह के विषय में क्या कहा है?
उत्तर :
कबीर ने प्रस्तुत दोहे में विरह की पीड़ा और प्रभाव को व्यक्त किया है। उन्होंने विरह को साँप की संज्ञा देते हुए कहा है कि विरहरूपी साँप शरीररूपी बिल में घुसा बैठा है। विरहाग्नि दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। कोई भी मंत्र इस विरहरूपी जहर पर अपना प्रभाव नहीं छोड़ पा रहा। जो व्यक्ति परमात्मा के विरह में तड़पने वाला है, वह उस पीड़ा से जीवित नहीं रह पाता। यदि किसी कारणवश वह जीवित रह भी जाता है, तो भी उसकी स्थिति पागलों के समान हो जाती है।

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प्रश्न 5.
“लिया मुराड़ा हाथि’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर :
‘मुराड़ा’ से कवि का अर्थ ‘ज्ञानरूपी मशाल’ से है। कवि का मानना है कि जिस प्रकार जलती हुई लकड़ी या मशाल से अंधकार का नाश होता है; चारों ओर उजाला एवं रोशनी फैलती है, ठीक उसी प्रकार ज्ञानरूपी मशाल से मनुष्य के मन का अज्ञानरूपी अंधकार दूर होता है।

प्रश्न 6.
कबीर ने ईश्वर प्राप्ति हेतु किसे त्यागने की बात कही है?
उत्तर :
कबीर ने ईश्वर प्राप्ति हेतु अहंकार को त्यागने की बात कही है। जब तक मनुष्य के मन में अहंकार होता है, तब तक उसे परमात्मा की प्राप्ति संभव नहीं हो सकती। परमात्मा उसे ही मिलता है, जिसका हृदय अहंकार रहित होता है।

प्रश्न 7.
कबीर ने जीवित रहते हुए भी किस प्रकार के व्यक्ति को मृतक समान माना है?
उत्तर :
कबीरदास ने प्रभु-भक्ति में लीन उन भक्तों को जीवित रहते हुए भी मृतक माना है, जो सांसारिक सुख-सुविधाओं को त्याग चुके हैं; जो परमात्मा की भक्ति में स्वयं को भुला चुके हैं। जिन्हें भौतिक वस्तुओं से कोई लेना-देना नहीं; जिन्होंने सांसारिक सुखों को पाने की इच्छा को त्याग दिया है।

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प्रश्न 8.
कबीर की भाषा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर :
कबीरदास की भाषा सधुक्कड़ी अथवा खिचड़ी भाषा है। इनकी भाषा-शैली मुक्त है। इनके पदों में अनेक राग-रागनियों का प्रयोग हुआ है। इन्होंने अपनी भाषा में ब्रज, अवधी, खड़ी बोली, राजस्थानी आदि शब्दों का खूब प्रयोग किया है। इन्हें भाषा डिक्टेटर कवि भी कहा जाता है। अलंकारों तथा प्रतीकों के प्रयोग ने इनकी भाषा को सुंदरता प्रदान की है।

कबीर की साखी Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन – कबीर भक्तिकाल की ज्ञानमार्गी शाखा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। उनकी जन्म-तिथि और जन्म-स्थान के विषय में विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत हैं। बहुमत के अनुसार कबीर का जन्म सन 1398 में काशी में हुआ था। उनका पालन-पोषण ‘नीरु-नीमा’ नामक दंपति ने किया। कबीर के गुरु का नाम स्वामी रामानंद था। कुछ लोग शेख तकी को भी कबीर का गुरु मानते हैं। रामानंद के विषय में कबीर ने स्वयं कहा है –

काशी में हम प्रकट भए, रामानंद चेताये।

कबीर का विवाह भी हुआ था। उनकी पत्नी का नाम लोई था। उनके ‘कमाल’ एवं ‘कमाली’ नाम के बेटा-बेटी थे। स्वभाव से वैरागी होने के कारण कबीर साधुओं की संगति में रहने लगे। सन 1518 में काशी के निकट मगहर में उनका निधन हुआ। रचनाएँ-कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे। वे बहुश्रुत थे। उन्होंने जो कुछ कहा, अपने अनुभव के बल पर कहा। एक स्थान पर उन्होंने शास्त्र-ज्ञाता पंडित को कहा भी है –

मैं कहता आँखिन की देखी, तू कहता कागद की लेखी।

कबीर की वाणी ‘बीजक’ नामक ग्रंथ में संकलित है। इस रचना में कबीर द्वारा रचित साखी, रमैनी एवं सबद संग्रहीत हैं।

काव्यगत विशेषताएँ – कबीर के काव्य की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है –
1. समन्वय-भावना – कबीर के समय में हिंदू एवं मुस्लिम संप्रदायों में संघर्ष की भावना तीव्र हो चुकी थी। कबीर ने हिंदू-मुस्लिम एकता तथा विभिन्न धर्मों एवं संप्रदायों में समन्वय लाने का प्रयत्न किया। उन्होंने एक ऐसे धर्म की नींव रखी, जिस पर मुसलमानों के एकेश्वरवाद, शंकर के अद्वैतवाद, सिद्धों के हठ योग, वैष्णवों की भक्ति एवं सूफ़ियों के पीर-प्रेम का प्रभाव था।

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2. ईश्वर के निर्गुण रूप की उपासना – कबीर ईश्वर के निर्गुण रूप के उपासक थे। उनके अनुसार ईश्वर प्रत्येक हृदय में वास करते हैं, उन्हें मंदिर-मस्जिद में ढूँढ़ना व्यर्थ है। भगवान की भक्ति के लिए आडंबर की अपेक्षा मन की शुद्धता एवं पवित्र आचरण की आवश्यकता है –

कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढे बन माँहि।
ऐसैं घटि घटि राँम है, दुनियाँ देखै नाँहि ॥

3. समाज-सुधार की भावना – कबीर उच्च कोटि के कवि होने के साथ-साथ समाज-सुधारक भी थे। उन्होंने अपने काव्य के द्वारा धर्म एवं जाति के नाम पर होने वाले अत्याचारों का डटकर विरोध किया। जाति-पाँति की भेद-रेखा खींचने वाले पंडितों एवं मौलवियों की उन्होंने खूब खबर ली –

ऊँचे कुल क्या जनमिया, जो करनी ऊँच न होय।
सवरन कलस सुरइ भरा, साधु निंदै सोय॥

4. गुरु महिमा – कबीर ने सच्चे गुरु को भगवान के समान ही मानकर उनकी वंदना की है। उनके अनुसार गुरु ही ईश्वर तक पहुँचने की राह दिखाता है –

गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपण, गोबिंद दियो बताय॥

5. सत्संगति का महत्त्व – सत्संगति का प्रभाव अटल होता है। कबीर ने सत्संग की महिमा में अनेक दोहों एवं शब्दों की रचना की है।

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6. रहस्यवाद – आत्मा एवं परमात्मा के मध्य चलने वाली प्रणय लीला को रहस्यवाद कहते हैं। इस विषय में कबीर ने कहा है
कि आत्मा एवं परमात्मा के मिलने में माया सबसे बड़ी बाधा है। माया का पर्दा हटते ही आत्मा-परमात्मा एक हो जाते हैं।
कबीर ने प्रेम-पक्ष की तीव्रता का भी बड़ा मार्मिक चित्रण किया है।

भाषा-शैली – कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे, इसलिए उनके काव्य में कला-पक्ष का अधिक निखार नहीं है। दूसरा कारण यह है कि कबीर सुधारक पहले थे और कवि बाद में। फिर भी उनके काव्य में भाषा का सहज सौंदर्य दिखाई देता है। कबीर की भाषा सधुक्कड़ी अथवा खिचड़ी भाषा है। उसमें ब्रज, पंजाबी, खड़ी बोली, अवधी आदि भाषाओं के अनेक शब्दों का मिश्रण एवं अलंकारों ने भी सहयोग दिया है। शैली मुक्तक है। कबीर के पदों में अनेक राग-रागनियों का प्रयोग भी हुआ है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि कबीर हिंदी साहित्य की महान विभूति हैं। उनकी कविता में क्रांति का स्वर, समाज-सुधार की भावना और एक सच्चे भक्त की पुकार है।

साखियों का सार :

प्रस्तुत साखियाँ कबीरदास द्वारा रचित हैं। इन साखियों में कवि ने विभिन्न विषयों पर अपने विचारों को सुंदर ढंग से अभिव्यक्त किया है। कबीरदास के अनुसार हमें ऐसे मधुर वचनों का प्रयोग करना चाहिए, जिससे दूसरों को भी सुख का अनुभव हो। उनका मानना है कि ईश्वर प्रत्येक हृदय में विद्यमान है, किंतु मनुष्य कस्तूरी मृग की तरह उसे इधर-उधर ढूँढ़ता फिरता है। ईश्वर को प्राप्त करने के लिए अहंकार को नष्ट करना आवश्यक है और मन को पूर्ण एकाग्र करके ही ईश्वर को पाया जा सकता है।

कबीरदास कहते हैं कि सांसारिक लोग विषय – वासनाओं में डूबे रहते हैं, वे खाने-पीने और सोने में सुख अनुभव करते हैं। इसके विपरीत ज्ञानी व्यक्ति जीवन की नश्वरता को देखकर दुखी रहता है। ईश्वर की विरह में तड़पने वाला व्यक्ति अत्यंत कष्टमय जीवन व्यतीत करता है। उनका मानना है कि मनुष्य को अपने आलोचकों को भी अपने आस-पास रखना चाहिए, क्योंकि निंदा करने वाले व्यक्ति के सभी दोषों को दूर कर देते हैं। कवि के अनुसार वेदों, उपनिषदों आदि ग्रंथों को पढ़कर कोई व्यक्ति विद्वान नहीं होता। जो व्यक्ति ईश्वर-प्रेम के मार्ग पर चलता है, वही वास्तविक विद्वान होता है। ईश्वर-प्रेम के प्रकाशित होने पर एक विचित्र-सा प्रकाश फैल जाता है। उसके बाद मनुष्य की वाणी से भी सुगंध आने लगती है। अंत में कबीरदास क्रांतिकारी स्वर में कहते हैं कि ईश्वर-प्रेम के मार्ग पर चलना सरल नहीं है। इस मार्ग में चलने के लिए तो अपना सर्वस्व न्योछावर करना पड़ता है।

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सप्रसंग व्याख्या :

1. ऐसी बॉणी बोलिये, मन का आपा खोइ।
अपना तन सीतल करै, औरन कौं सुख होइ।।

शब्दार्थ : बाँणी – वाणी, शब्द, वचन। आपा – अहंकार, घमंड। खोइ – नष्ट होना। तन – शरीर। सीतल – शीतलता, सुख, आनंद।

प्रसंग : प्रस्तुत साखी महान संत कबीरदास द्वारा रचित है। इस साखी में कवि ने मनुष्य को मधुर वचनों के लाभ बताए हैं।

व्याख्या : कबीर मधुर वचन बोलने के संबंध में कहते हैं कि मनुष्य को ऐसे मीठे वचन बोलने चाहिए, जिससे मन का अहंकार समाप्त हो जाए। मनुष्य के द्वारा बोले गए मीठे वचनों से वह स्वयं तो आनंद का अनुभव करता ही है, उसे सुनने वाला भी सुख प्राप्त करता है। कहने का भाव यह है कि मनुष्य को सदैव मधुर वचन बोलने चाहिए।

2. कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढ़े बन माँहि।
ऐसें घटि घटि राँम है, दुनियाँ देखै नाँहि॥

शब्दार्थ : कस्तूरी – एक सुंगधित पदार्थ। मृग – हिरण। बन – वन, जंगल। माँहि – में। घटि – हृदय। दुनियाँ – संसार, विश्व।

प्रसंग : प्रस्तुत साखी महाकवि कबीरदास द्वारा रचित है। इस साखी में उन्होंने बताया है कि ईश्वर सर्वत्र विद्यमान है। वह प्रत्येक हुदय में निवास करता है।

व्याख्या : कबीरदास कहते हैं कि कस्तूरी नामक सुगंधित पदार्थ हिरण की अपनी नाभि में ही विद्यमान होता है, किंतु वह इस तथ्य से अनजान होकर उसे जंगल में इधर-उधर खोजता है। इसी प्रकार ईश्वर भी सभी के हृदय में विद्यमान है, किंतु लोग इस बात को नहीं समझते। वे ईश्वर को दुनिया भर में खोजते हैं।

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3. जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।
सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि।

शब्दार्थ : हरि – परमात्मा, ईश्वर। अँधियारा – अंधेरा। दीपक – दीया। मिटि – समाप्त। देख्या – देखा।

प्रसंग : प्रस्तुत साखी कवि कबीरदास द्वारा रचित है। इसमें उन्होंने ईश्वर-प्राप्ति के लिए अहंकार को त्यागने पर बल दिया है।

व्याख्या : कबीर कहते हैं कि जब तक मुझमें अहंकार था, तब तक प्रभु मुझसे दूर थे। अब अहंकार के मिट जाने पर मुझे प्रभु मिल गए हैं। जब मैंने ज्ञानरूपी दीपक को लेकर अपने अंत:करण में देखा, तो मेरे हृदय का अज्ञानरूपी अंधकार पूरी तरह से नष्ट हो गया। भाव यह है कि ईश्वर-प्राप्ति के लिए अहंकार को त्यागना आवश्यक है।

4. सुखिया सब संसार है, खायै अरू सोवै।
दुखिया दास कबीर है, जागै अरू रोवै॥

शब्दार्थ : सुखिया – सुखी। अरू – और। सोवै – सोना। दुखिया – दुखी। रोवै – रोना।

प्रसंग : प्रस्तुत साखी कबीरदास द्वारा रचित है। इसमें उन्होंने सांसारिक और ज्ञानी व्यक्ति के अंतर को स्पष्ट किया है।

व्याख्या : कबीर कहते हैं कि सारा संसार सुखी है। सांसारिक व्यक्ति खाने-पीने और सोने में जीवन व्यतीत कर देता है। वह इसी को सच्चा सुख मानकर इसमें डूबा हुआ है। दूसरी ओर मैं संसार की नश्वरता को समझ चुका हूँ और ईश्वर की प्राप्ति के लिए प्रयास कर रहा हूँ। उसके वियोग में रो रहा हूँ और उदास हूँ।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 कबीर की साखी

5. बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ।
राम बियोगी ना जिवै, जिवै तो बौरा होइ॥

शब्दार्थ : भुवंगम – भुजंग, साँप । तन – शरीर। वियोगी – विरह में तड़पने वाला। जिवै – जीवित। बौरा – पागल।

प्रसंग : प्रस्तुत साखी कबीरदास द्वारा रचित है। इसमें उन्होंने ईश्वरीय विरह की पीड़ा और प्रभाव को व्यक्त किया है।

व्याख्या : कबीर कहते हैं कि विरहरूपी साँप शरीररूपी बिल में घुसा बैठा है। कोई भी मंत्र उस पर अपना प्रभाव नहीं डाल पा रहा। ईश्वर के प्रेम की विरह में तड़पने वाला व्यक्ति विरह की पीड़ा के कारण जीवित नहीं रहता और यदि वह जीवित रह जाता है, तो उसकी स्थिति पागलों जैसी हो जाती है। वह स्वयं में ही डूबा रहता है।

6. निंदक नेड़ा राखिये, आँगणि कुटी बंधाइ।
बिन साबण पाणी बिना, निरमल करै सुभाइ॥

शब्दार्थ : निंदक – निंदा करने वाला। नेड़ा – समीप, निकट। आँगणि – आँगन। कुटी – कुटिया। साबण – साबुन। पाँणी – पानी। निरमल – स्वच्छ। सुभाइ – स्वभाव।

प्रसंग : प्रस्तुत साखी कबीरदास द्वारा रचित है। इसमें उन्होंने निंदा करने वाले व्यक्ति की उपयोगिता बताई है।

व्याख्या : कबीरदास कहते हैं कि निंदा करने वाले व्यक्ति का भी महत्व होता है। निंदक व्यक्ति बार-बार हमारे अवगुणों को बताता है और इस प्रकार वह साबुन और पानी के बिना ही हमारे स्वभाव को निर्मल एवं स्वच्छ बना देता है। अत: उसे अपने आस-पास ही रखना चाहिए। यदि संभव हो तो अपने घर के आँगन में ही उसके लिए छप्पर डाल देना चाहिए।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 कबीर की साखी

7. पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
ऐकै अषिर पीव का, पढ़े सु पंडित होइ।

शब्दार्थ : पोथी – ग्रंथ, पुस्तक। जग – संसार। पंडित – विद्वान। भया – होना। ऐकै – एक। आषिर – अक्षर। पीव – प्रियतम, ईश्वर। सु – वही।

प्रसंग : प्रस्तुत साखी कबीरदास द्वारा रचित है। इसमें उन्होंने बताया है कि जो व्यक्ति ईश्वर-प्रेम के सच्चे रस में डूब जाता है, वही वास्तविक विद्वान है।

व्याख्या : कबीर कहते हैं कि इस संसार में धार्मिक ग्रंथों को पढ़-पढ़कर अनेक सांसारिक लोग मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं, किंतु कोई भी सच्चा विद्वान नहीं बन सका। दूसरी ओर जो व्यक्ति प्रेम के अक्षर को पढ़ लेता है अर्थात् प्रेम को स्वयं में समाहित कर लेता है, वही सच्चा विद्वान बन जाता है। ईश्वर- प्रेम में डूबने वाला व्यक्ति ही ईश्वर को प्राप्त करने में सफल होता है। धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने से कोई लाभ नहीं होता।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 1 कबीर की साखी

8. हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराड़ा हाथि।
अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि॥

शब्दार्थ : जाल्या – जलाया। आपणाँ – अपना। मुराड़ा – जलती हुई लकड़ी, मशाल। तास का – उसका। साथि – साथ।

प्रसंग : प्रस्तुत साखी कवि कबीर द्वारा रचित है। इस साखी में उन्होंने समस्त विकारों को त्यागकर ज्ञान-प्राप्ति की बात कही है।

व्याख्या : कबीरदास कहते हैं कि उन्होंने विषय-वासनाओं और अन्य विकारों से युक्त अपने शरीररूपी घर को जलाकर नष्ट कर दिया है। अब उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई है। अब वे ज्ञानरूपी मशाल को लेकर निकल पड़े हैं और जो उनके साथ चलने के लिए तैयार होगा, वे उसके भी अज्ञान को जलाकर नष्ट कर देंगे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ?

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ? Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ?

JAC Class 10 Hindi मैं क्यों लिखता हूँ? Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक के अनसार प्रत्यक्ष अनुभव की अपेक्षा अनभति उनके लेखन में कहीं अधिक मदद करती है, क्यों?
उत्तर :
लेखक के अनुसार प्रत्यक्ष अनुभव की अपेक्षा अनुभूति गहरी चीज़ है। प्रत्यक्ष अनुभव सामने घटित हुई घटना का होता है, किंतु अनुभूति संवेदना और कल्पना पर आधारित होती है। यह संवेदना और कल्पना के सहारे उस सत्य को ग्रहण कर लेती है, जो रचनाकार के सामने घटित नहीं हुआ। लेखक को भी यह अनुभूति सदा प्रभावित करती रही है। इस अनुभूति से ही उसके भीतर एक ज्वलंत प्रकाश आता है और उसे सबकुछ साफ़-साफ़ दिखाई देने लगता है। अनुभूति से ही वह अपने सामने घटित न होने वाली घटनाओं को भी स्पष्ट देखता है। यह अनुभूति ही उसे भीतर से व्याकुल कर देती है और वह लिखने के लिए बाध्य हो जाता है। इसी कारण लेखक को लिखने में प्रत्यक्ष अनुभव की अपेक्षा अनुभूति अधिक मदद करती है।

प्रश्न 2.
लेखक ने अपने आपको हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता कब और किस तरह महसूस किया?
उत्तर :
जापान में घूमते हुए लेखक ने एक दिन एक जले हुए पत्थर पर एक लंबी उजली छाया देखी। यह छाया विस्फोट के समय वहाँ खड़े किसी व्यक्ति की थी, जो विस्फोटक पदार्थ के कारण भाप बन गया होगा। वह विस्फोट इतना भयंकर था कि पत्थर भी उससे झुलस गया था। लेखक ने जब उस पत्थर को देखा, तो वह हैरान रह गया। उसके मन-मस्तिष्क में अणु-विस्फोट के समय हुई सारी घटना कल्पना के माध्यम से घूम गई। उसने मन-ही-मन उस सारी घटना को महसूस कर लिया। उसे ऐसा लगा, जैसे उस अणु-विस्फोट के समय वह वहाँ मौजूद है और वह विस्फोट उसके सामने हुआ है। इस प्रकार लेखक अपनी अनुभूति से हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता बन गया।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ?

प्रश्न 3.
मैं क्यों लिखता हूँ? के आधार पर बताइए कि –
(क) लेखक को कौन-सी बातें लिखने के लिए प्रेरित करती हैं?
(ख) किसी रचनाकार के प्रेरणा-स्रोत किसी दूसरे को कुछ भी रचने के लिए किस तरह उत्साहित कर सकते हैं ?
उत्तर :
(क) लेखक के अनुसार वह स्वयं जानना चाहता है कि वह क्यों लिखता है और यही जानने की इच्छा ही उसे लिखने के लिए प्रेरित करती है। वह अपने भीतर उमड़ने वाली एक विवशता से मुक्ति पाने के लिए भी लिखता है। यह विवशता ही उसे लिखने के लिए बाध्य करती है। लेखक को उसकी आंतरिक विवशता से मुक्ति पाने की इच्छा तथा तटस्थ होकर उसे देखने और पहचानने की भावना ही लिखने के लिए प्रेरित करती है।

(ख) निश्चित रूप से किसी रचनाकार के प्रेरणा स्रोत किसी दूसरे को कुछ भी रचने के लिए उत्साहित करते हैं। जापान के हिरोशिमा नामक स्थान पर अणु-बम गिराने वाले ने भी लेखक को उत्साहित किया। इसके अतिरिक्त हिरोशिमा में जब लेखक ने झुलसे पत्थर को देखा, तो उससे भी कुछ लिखने के लिए उत्साहित हुआ था। उसकी कोमल भावनाओं को उस निर्जीव पत्थर ने भी प्रेरित किया था।

प्रश्न 4.
कुछ रचनाकारों के लिए आत्मानुभूति/स्वयं के अनुभव के साथ-साथ बाहृय दबाव भी महत्वपूर्ण होता है। ये बाहूय दबाव कौन-कौन से हो सकते हैं ?
उत्तर :
सामान्य तौर पर लेखक आत्मानुभूति के कारण ही लिखते हैं। वे स्वयं को अपनी आंतरिक विवशता से मुक्ति दिलाने के लिए ही रचनाओं का निर्माण करते हैं। इसके साथ-साथ कुछ लेखकों के लिए स्वयं के अनुभव के अतिरिक्त कुछ बाहय दबाव भी महत्वपूर्ण होते हैं। ये बाहय दबाव संपादकों का आग्रह, प्रकाशक का तकाजा तथा उनकी आर्थिक आवश्यकता आदि हो सकते हैं।

प्रश्न 5.
क्या बाहूय दबाव केवल लेखन से जुड़े रचनाकारों को ही प्रभावित करते हैं या अन्य क्षेत्रों से जुड़े कलाकारों को भी प्रभावित करते हैं, कैसे?
उत्तर :
बाहय दबाव सभी क्षेत्रों से जुड़े लोगों को प्रभावित करते हैं। जो व्यक्ति प्रसिद्धि पा लेता है, अन्य लोगों की उससे अपेक्षाएँ बढ़ जाती हैं। फिर वह लोगों के बाहय दबाव से प्रभावित होकर कार्य करता है। इसके साथ-साथ प्रत्येक कार्य में धन की आवश्यकता होती है। वर्तमान में धन के बिना किसी कार्य की सफलता संभव नहीं है। इसी कारण धन की आवश्यकता जैसा बाहय दबाव भी प्रत्येक क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति को प्रभावित करता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि केवल रचनाकारों को ही नहीं, अपितु अन्य सभी क्षेत्रों से जुड़े कलाकारों को भी बाह्य दबाव प्रभावित करते हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ?

प्रश्न 6.
हिरोशिमा पर लिखी कविता लेखक के अंतः व बाह्य दोनों दबाव का परिणाम है यह आप कैसे कह सकते हैं?
उत्तर :
लेखक जब जापान गया तो उसने हिरोशिमा के अस्पताल में जाकर अनेक ऐसे घायल लोगों को देखा, जो हिरोशिमा पर गिराए गए अणु बम का शिकार हुए थे। वहीं एक दिन उसने झुलसे हुए पत्थर पर एक मानव की छाया भी देखी, जो अणु-बम से भाप बन गया था। यह देखकर उसका हृदय व्यथित हो उठा। उसने अनुमान लगा लिया कि वह घटना कितनी दुःखद और व्यथापूर्ण रही होगी।

इसी व्यथा ने उसे झकझोर कर रख दिया और अपने इसी अंत: दबाव से मुक्ति पाने के लिए उसने हिरोशिमा पर कविता लिखी। इसके अतिरिक्त लेखक जैसे प्रसिद्ध व्यक्ति पर यह बाहरी दबाव भी था कि वह अपनी जापान-यात्रा से लौटकर कुछ लिखे। इस प्रकार कहा जा सकता है कि हिरोशिमा पर लिखी कविता लेखक के अंत और बाह्य दोनों दबाव का ही परिणाम है।

प्रश्न 7.
हिरोशिमा की घटना विज्ञान का भयानकतम दुरुपयोग है। आपकी दृष्टि में विज्ञान का दुरुपयोग कहाँ-कहाँ और किस तरह से हो रहा है?
उत्तर :
आज विज्ञान का दुरुपयोग करके मानव विश्व का संहार करने में व्यस्त है। विज्ञान का दुरुपयोग करके परमाणु बम, एटम बम, हाइड्रोजन बम, मिसाइल्स तथा अनेक ऐसे विनाशकारी अस्त्र-शस्त्र बनाए जा रहे हैं, जिनसे संसार क्षण भर में नष्ट हो सकता है। विज्ञान द्वारा अनेक विषैली गैसें तैयार की जा रही हैं। इन गैसों से किसी भी देश की जलवायु को विषाक्त करके लोगों को समाप्त किया जा सकता है। इसके साथ-साथ विज्ञान का दुरुपयोग लोगों को आलसी, निकम्मा, चरित्रहीन आदि बनाने में भी हो रहा है। विज्ञान के नए-नए प्रयोग मनुष्य को हिंसा और अनेक कुवृत्तियों की ओर धकेल रहे हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ?

प्रश्न 8.
एक संवेदनशील युवा नागरिक की हैसियत से विज्ञान का दुरुपयोग रोकने में आपकी क्या भूमिका है?
उत्तर :
वर्तमान युग में विज्ञान का दुरुपयोग करके पॉलिथीन का निर्माण हो रहा है। यह पॉलिथीन पर्यावरण के लिए अत्यंत हानिकारक है। इससे वातावरण प्रदूषित होने के साथ-साथ जीवों का जीवन भी संकट में आ चुका है। इससे प्रभावित होकर कई पशु-पक्षी मर रहे हैं। अत: सबसे पहले हमें पॉलिथीन के निर्माण पर रोक लगानी होगी। इसके साथ-साथ पैदावार बढ़ाने के लिए अनेक प्रकार के रासायनिक पदार्थों का प्रयोग हो रहा है। इनसे बहुत अधिक ज़हर हमारे शरीर में जा रहा है। अतः इसके स्थान पर वही पुरानी गोबर खाद अथवा खाद का प्रयोग करके विज्ञान का दुरुपयोग रोका जा सकता है।

JAC Class 10 Hindi मैं क्यों लिखता हूँ? Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक ने अपने लिखने का कारण क्या बताया है ?
उत्तर :
लेखक कहता है कि कोई भी लेखक अपने भीतर की विवशता से मुक्त होने के लिए लिखता है। वह भी अपनी आंतरिक विवशता से मुक्ति पाने के लिए तथा तटस्थ होकर उसे देखने और पहचानने के लिए लिखता है। लेखक का मानना है कि वह बाहरी दबावों से प्रभावित होकर बहुत कम लिखता है। उसके लिखने का मुख्य कारण उसकी आंतरिक विवशता है और लिखकर ही वह स्वयं को उससे मुक्त कर पाता है।

प्रश्न 2.
लेखक ने बाहरी दबाव की तुलना किससे की है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार कुछ रचनाकार बाहरी दबाव के बिना नहीं लिख पाते। उनकी स्थिति ठीक वैसी ही है, जैसे कोई व्यक्ति सुबह नींद खुल जाने पर भी अलार्म बजने तक बिस्तर पर पड़ा रहे। जब अलार्म बजता है, तभी वह उठता है। कुछ रचनाकार भी ऐसे ही होते हैं। जब तक बाहरी दबाव उन पर हावी नहीं हो जाता, वे नहीं लिखते हैं। ऐसे रचनाकार बाहरी दबाव के बिना लिख ही नहीं पाते।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ?

प्रश्न 3.
लेखक ने अणु-बम द्वारा होने वाले व्यर्थ जीव-नाश का अनुभव कैसे किया?
उत्तर :
लेखक ने युद्ध के समय देखा कि भारत की पूर्वी सीमा पर सैनिक ब्रह्मपुत्र नदी में बम फेंककर हजारों मछलियाँ मार रहे थे। यद्यपि उन्हें कुछ ही मछलियों की आवश्यकता थी, किंतु वे इस प्रकार बम फेंककर हजारों जीवों को नष्ट कर रहे थे। यह देखकर ही लेखक ने अनुभव किया कि अणु-बम के द्वारा भी ऐसे ही असंख्य लोगों को व्यर्थ में ही मारा जा रहा है। हिरोशिमा पर गिराया गया अणु-बम इसका स्पष्ट उदाहरण है।

प्रश्न 4.
लेखक ने ‘हिरोशिमा’ कविता कहाँ लिखी? यह कब प्रकाशित हुई तथा यह उनके किस काव्य-संग्रह में संकलित है?
उत्तर :
लेखक ने ‘हिरोशिमा’ कविता भारत लौटकर रेलगाड़ी में बैठे-बैठे लिखी। यह कविता सन 1959 में प्रकाशित हुई तथा यह उनके ‘अरी ओ करुणा प्रभामय’ नामक काव्य-संग्रह में संकलित है।

प्रश्न 5.
हिरोशिमा में हुए विस्फोट की भयावहता को देखकर भी लेखक ने इस विषय पर क्यों नहीं लिखा?
उत्तर :
लेखक ने जब हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराए जाने की घटना के बारे में पढ़ा और सुना, तो भी उसने तत्काल इस विषय पर कुछ न लिखा। इस घटना से लेखक विचलित हुआ था, परंतु इस घटना से उसे आंतरिक अनुभूति पैदा नहीं हुई। वह व्याकुल व दुखी तो हुआ, परंतु केवल बौद्धिक रूप से। किसी भी विषय को कोई तभी लिख सकता है, जब उसे वह विषय आंतरिक रूप से प्रभावित करे; संवेदनाओं को उभारे। हिरोशिमा की यह भयानक घटना लेखक को आकुल न कर सकी।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ?

प्रश्न 6.
लेखक ने किन बाह्य दबावों का वर्णन किया है, जो रचनाकार को लिखने के लिए बाध्य करते हैं ?
उत्तर :
आत्मानुभूति के साथ-साथ कुछ बाह्य दबाव भी लेखकों को लिखने के लिए बाध्य करते हैं; जैसे-संपादक का आग्रह, पाठकों की इच्छा, प्रकाशक का दबाव, आर्थिक विवशताएँ आदि।

प्रश्न 7.
प्रत्यक्ष अनुभव तथा अनुभूति में क्या अंतर है?
उत्तर :
कभी-कभी लेखक के मन में किसी विषय को लेकर कल्पनाएँ उठती हैं, जो उसे अभिभूत कर देती हैं। प्रत्यक्ष रूप से यह लेखक की कल्पना ही होती है, परंतु वह कल्पना भी किसी प्रत्यक्ष घटना के कारण ही उसके मन में संवेदना जगाती है। प्रत्यक्ष अनुभव पर आधारित लेखन तभी जन्म लेता है, जब लेखक की आँखों के सामने कोई वास्तविक घटना घटी हो। यही लेखक का प्रत्यक्ष अनुभव है। अनुभूति मन की गहराइयों में जन्म लेती है और प्रत्यक्ष अनुभव आँखों के सामने घटित होता है।

प्रश्न 8.
किसी भी लेखक के लिए यह प्रश्न कठिन क्यों माना जाता है कि वह क्यों लिखता है?
उत्तर :
किसी भी विषय पर कुछ लिखना लेखक के अंतर्मन से जुड़ा होता है, जहाँ समय-समय पर अलग-अलग भाव उत्पन्न होते हैं। हर लेखक के मन का स्तर अलग होता है और वह भी परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है। उनकी प्रेरणाएँ भिन्न होती हैं; उनकी रुचियाँ और मानसिकता अलग होती हैं, इसलिए यह जानना कि ‘वह लिखता क्यों है’ अति कठिन प्रश्न है।

प्रश्न 9.
लेखक और कृतिकार में क्या अंतर होता है?
उत्तर :
लेखक के अनसार जो साहित्य भीतरी दबाव के कारण लिखा जाए: जिसमें मन की सच्ची छटपटाहट छिपी हुई हो, उसे ‘कति’ कहते हैं। उसका रचयिता कृतिकार कहलाता है। इसके विपरीत धन, यश, विवशता आदि की प्रेरणा से लिखा जाने वाला साहित्य लेखन कहलाता है और इस स्थिति में लिखने वाला लेखक कहलाता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ?

प्रश्न 10.
ब्रह्मपुत्र नदी में बम फेंकने और हिरोशिमा के विस्फोट में लेखक ने किस समानता को देखा है ?
उत्तर :
लेखक ने कुछ मछलियों को प्राप्त करने के लिए सैनिकों के द्वारा ब्रह्मपुत्र नदी में बम फेंकने की बात कही है, जिससे हज़ारों मछलियाँ मर जाती थीं। वे दो-चार मछलियों के लिए हज़ारों मछलियों को मार देते थे। हिरोशिमा में भी इसलिए लाखों इनसान मार डाले गए थे। दोनों ही प्रसंग प्राणियों के अकारण नाश से जुड़े हुए हैं। अतः दोनों में समानता है।

मैं क्यों लिखता हूँ? Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

हिंदी के सुप्रसिद्ध प्रयोगवादी कवि, मनोवैज्ञानिक उपन्यासकार, प्रखर चिंतक एवं प्रतिष्ठित निबंध लेखक अज्ञेय जी का जन्म 7 मार्च, सन् 1911 में उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के कसिया (कुशीनगर) नामक स्थान पर हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। इन्होंने लाहौर से बी०एससी० की डिग्री प्राप्त की। क्रांतिकारी आंदोलनों में भाग लेने के कारण इन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। इन्होंने सेना, आकाशवाणी तथा शिक्षा के क्षेत्र में अपनी सेवाएं प्रदान की।

अज्ञेय जीवन-भर साहित्य और पत्रकारिता के प्रति पूर्णतः समर्पित रहे। सन् 1987 में दिल्ली में इनका देहांत हो गया। रचनाएँ-अज्ञेय की रचनाओं में बौद्धिकता की स्पष्ट छाप है। इनकी प्रमुख रचनाओं में भग्नदूत, चिंता, अरी ओ करुणा प्रभामय, इंद्रधनुष रौदे हुए थे, आँगन के पार द्वार (काव्य-संग्रह), शेखर एक जीवनी, नदी के द्वीप (उपन्यास), विपथगा, शरणार्थी, जयदोल (कहानी-संग्रह), त्रिशंकु, आत्मनेपद (निबंध) तथा अरे यायावर रहेगा याद (यात्रा-वृत्तांत) आदि हैं। इसके अतिरिक्त इनके द्वारा संपादित ‘तार सप्तक’ सहित चार सप्तकों का हिंदी साहित्य की समकालीन हिंदी कविता में महत्वपूर्ण योगदान है।

इनकी विभिन्न रचनाओं के लिए इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारत-भारती सम्मान तथा भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भाषा-शैली-अज्ञेय की भाषा-शैली में सर्वत्र नवीनता के दर्शन होते हैं। इन्होंने शब्दों को नया अर्थ देने का प्रयास करते हुए हिंदी भाषा का विकास किया है। प्रस्तुत पाठ ‘मैं क्यों लिखता हूँ’ में इनकी भाषा सरल एवं बोधगम्य है। कहीं-कहीं इनकी भाषा में बौद्धिकता के कारण दुरुहता भी दिखाई देती है। इनकी भाषा में चित्रात्मकता और प्रभावोत्पादकता का गुण सर्वत्र विद्यमान है। यहाँ इनकी शैली कहीं-कहीं आत्मकथात्मक तथा कहीं वर्णनात्मक है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ?

पाठ का सार :

‘मैं क्यों लिखता हूँ’ पाठ में लेखक ने अपने लिखने के कारणों के साथ-साथ एक लेखक के प्रेरणा-स्रोतों पर भी प्रकाश डाला है। लेखक के अनुसार वह अपनी आंतरिक व्याकुलता से मुक्ति पाने तथा तटस्थ होकर उसे देखने और पहचानने के लिए लिखता है। प्रायः प्रत्येक रचनाकार की आत्मानुभूति ही उसे लेखन-कार्य के लिए प्रेरित करती है, किंतु कुछ बाहरी दबाव भी होते हैं। ये बाहरी दबाव भी कई बार रचनाकार को लिखने के लिए बाध्य करते हैं। इन बाहरी दबावों में संपादकों का आग्रह, प्रकाशक का तकाजा तथा आर्थिक आवश्यकता आदि प्रमुख हैं। लेखक का मत है कि वह बाहरी दबावों से कम प्रभावित होता है।

उसे तो उसकी भीतरी विवशता ही लिखने की ओर प्रेरित करती है। उसका मानना है कि प्रत्यक्ष अनुभव से अनुभूति गहरी चीज़ है। एक रचनाकार को अनुभव सामने घटित घटना को देखकर होता है, किंतु अनुभूति संवेदना और कल्पना के द्वारा उस सत्य को भी ग्रहण कर लेती है जो रचनाकार के सामने घटित नहीं हुआ। फिर वह सत्य आत्मा के सामने ज्वलंत प्रकाश में आ जाता है और रचनाकार उसका वर्णन करता है। लेखक बताता है कि उसके द्वारा लिखी ‘हिरोशिमा’ नामक कविता भी ऐसी ही है।

एक बार जब वह जापान गया, तो वहाँ हिरोशिमा में उसने देखा कि एक पत्थर बुरी तरह झुलसा हुआ है और उस पर एक व्यक्ति की लंबी उजली छाया है। उसे देखकर उसने अनुमान लगाया कि जब हिरोशिमा पर अणु-बम गिराया गया होगा, तो उस समय वह व्यक्ति इस पत्थर के पास खड़ा होगा। अणु-बम के प्रभाव से वह भाप बनकर उड़ गया, किंतु उसकी छाया उस पत्थर पर ही रह गई।

लेखक को उस झुलसे हुए पत्थर ने झकझोर कर रख दिया। वह हिरोशिमा पर गिराए गए अणु-बम की भयानकता की कल्पना करके बहुत दुखी हुआ। उस समय उसे ऐसे लगा, मानो वह उस दुःखद घटना के समय वहाँ मौजूद रहा हो। इस त्रासदी से उसके भीतर जो व्याकुलता पैदा हुई, उसी का परिणाम उसके द्वारा हिरोशिमा पर लिखी कविता थी। लेखक कहता है कि यह कविता ‘हिरोशिमा’ जैसी भी हो, वह उसकी अनुभूति से पैदा हुई थी। यही उसके लिए महत्वपूर्ण था।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ?

कठिन शब्दों के अर्थ :

आंतरिक – भीतरी। आभ्यंतर – अंदरूनी, भीतर का। विवशता – मज़बूरी। मुक्त – आजाद। कृतिकार – रचनाकार। ख्याति – प्रसिद्धि, यश। उन्मेष – प्रकाश। निमित्त – कारण। बिछौना – बिस्तर। बाधा – रुकावट। बखानना – वर्णन करना। पुस्तकीय – पुस्तकों में लिखा। परवर्ती प्रभाव – बाद में पड़ने वाले प्रभाव। युद्धकाल – युद्ध के समय। ब्रह्मपुत्र – एक नदी का नाम। व्यथा – पीड़ा, दुख। व्यर्थ – बेकार में। अवसर – मौका। आहत – घायल। प्रत्यक्ष – स्पष्ट देखना। तत्काल – उसी क्षण। झुलसाना – जला देना। समूची – सारी। ट्रेजडी – त्रासदी, दुखद घटना। अवाक् – मौन। सहसा – अचानक। भोक्ता – भोगने वाला। आकुलता – बेचैनी।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!

JAC Class 10 Hindi एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
हमारी आजादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग का योगदान भी कम नहीं रहा है। इस कहानी में ऐसे लोगों के योगदान को लेखक ने किस प्रकार उभारा है?
उत्तर :
इस कहानी में लेखक ने दुलारी और टुन्नू के माध्यम से समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग द्वारा आजादी की लड़ाई में दिए गए योगदान को स्पष्ट किया है। दुलारी को फेंकू सरदार मैंचेस्टर तथा लंका-शायर की मिलों की बनी बारीक सूत की मखमली किनारे वाली साड़ियों का बंडल लाकर देता है। दुलारी साड़ियों के उस बंडल को विदेशी वस्त्रों की होली जलाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को दे देती है। वह टुन्नू की दी हुई खादी की साड़ी पहनती है। फेंकू सरदार को अंग्रेज़ों का मुखबिर जानकर उसे झाड़ मारकर घर से निकाल देती है। टुन्नू विदेशी वस्त्रों के संग्रह करने वाले जुलूस के साथ जाता है और पुलिस द्वारा मार दिया जाता है। इस प्रकार लेखक ने स्वतंत्रता संग्राम में इनके योगदान को रेखांकित किया है।

प्रश्न 2.
कठोर हृदयी समझी जाने वाली दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर क्यों विचलित हो उठी?
उत्तर :
दुलारी को कठोर हृदयी तथा कर्कशा गौनहारिन समझा जाता है। वह होली के अवसर पर टुन्नू द्वारा साड़ी लाने पर उसे डाँटती है और साड़ी उठाकर फेंक देती है। परंतु जब उसे टुन्नू की मृत्यु का समाचार मिलता है, तो उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बह निकलती है। वह बहुत व्याकुल हो जाती है और टुन्नू की लाई हुई खद्दर की धोती निकालकर पहन लेती है। वह वहाँ जाना चाहती है, जहाँ टुन्नू को मारा गया था। वह मन-ही-मन टुन्नू के प्रति कोमल भावनाएँ रखती है। उसका टुन्नू से आत्मिक संबंध है। इन्हीं आत्मिक भावनाओं के वशीभूत होकर वह टुन्नू की मृत्यु का समाचार सुनकर विचलित हो उठी थी।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!

प्रश्न 3.
कजली दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन क्यों हुआ करता होगा?
उत्तर :
कुछ और परंपरागत लोक आयोजनों का उल्लेख कीजिए। कजली दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन लोकगीतों की परंपरा को प्रोत्साहन देने के लिए किया जाता था। इन आयोजनों में कजली गाने वाले विख्यात शायर भाग लिया करते थे। इससे जनता का मनोरंजन भी होता था तथा श्रेष्ठ गायकों को पुरस्कृत भी किया जाता था। कुछ अन्य परंपरागत लोक-आयोजन कुश्ती, नौटंकी, भांगड़ा, गिद्दा, लावणी, गरबा आदि हैं।

प्रश्न 4.
दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक दायरे से बाहर है, फिर भी अति विशिष्ट है। इस कथन को ध्यान में रखते हुए दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
दुलारी एक गौनहारिन अथवा गाना गाने का पेशा करने वाली महिला है। उसे समाज के विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक दायरे से बाहर माना जाता है। लेकिन उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताओं ने उसे विशिष्ट बना दिया है –
1. कसरती बदन – दुलारी मराठी महिलाओं की तरह धोती लपेटकर कसरत करती थी। वह दंड लगाने में निपुण थी तथा उसे अपने भुजदंडों पर पहलवानों की तरह गर्व था।

2. कर्कशा – दुलारी को अन्य गौनहारियाँ कर्कशा मानती हैं। वे उसे कठोर हृदया कहती हैं। जब टुन्नू उसके लिए धोती लाता है, तो वह उस पर चिल्ला पड़ती है-“खैरियत चाहते हो तो अपना यह कफ़न लेकर यहाँ से सीधे चले जाओ।”

3. कोमल हृदया – दुलारी कर्कशा और कठोर होते हुए भी अत्यंत कोमल है। टुन्नू जब होली पर उसके लिए धोती लाता है, – तो वह उसे फेंक देती है परंतु उसके जाने के बाद वह धोती उठाकर चूमने लगती है। इसी प्रकार से टुन्नू की मृत्यु का समाचार सुनकर वह इतनी विचलित हो उठती है कि उसकी आँखों से आँसुओं की गंगा बहने लगती है और वह उसकी दी हुई साड़ी पहनकर उसके मृत्यु के स्थान पर जाने के लिए चल पड़ती है।

4. श्रेष्ठ गायिका – दुक्कड़ गानेवालियों में दुलारी बहुत प्रसिद्ध है। उसमें पद्य में सवाल-जवाब करने की अद्भुत क्षमता थी। कजली गाने वाले बड़े-बड़े विख्यात शायर भी उसका सामना करते डरते थे। जब टुन्नू को उसके विरुद्ध पद्यात्मक प्रश्नोत्तरी में उतारा गया, तो उसके कंठ से छल-छल करता स्वर का सोता फूट निकला था।

5. देश-प्रेम – दुलारी के मन में अपने देश के प्रति अटूट श्रद्धा है। जब फेंकू सरदार उसे मैंचेस्टर तथा लंका-शायर की मिलों की बनी बारीक सूत की मखमली किनारेवाली धोतियों का बंडल देता है, तो वह उसे अपने पास न रखकर विदेशी वस्त्रों की होली जलाने वाले स्वदेशियों को दे देती है। उसे जैसे ही फेंकू के अंग्रेजों का मुखबिर होने का पता चलता है, वह उसे झाड़ मारकर घर से निकाल देती है। टाउन हॉल में जिस स्थान पर टुन्नू गिरा था उधर दृष्टि जमाकर दुलारी का गाना, उसकी टुन्नू के बलिदान के प्रति श्रद्धांजलि थी। इन समस्त विशेषताओं के कारण ही दुलारी त्याज्य होकर भी अति विशिष्ट है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!

प्रश्न 5.
दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय कहाँ और किस रूप में हुआ?
उत्तर :
दुलारी का टुन्नू से प्रथम परिचय छह महीने पहले पिछली भादों में तीज के अवसर पर खोजवाँ बाजार में गाना गाते समय हुआ था। यहाँ खोजवाँ वालों का बजरडीहा वालों से मुकाबला था। दुलारी के कारण खोजवाँ वालों को अपनी जीत का पूरा भरोसा था। सामान्य गायन के बाद जब पद्यात्मक प्रश्नोत्तरी प्रारंभ हुई, तो बजरडीहा वालों की तरफ़ से.टुन्नू ने गाना शुरू किया। उस समय टुन्नू सोलह-सत्रह वर्ष का था। दुलारी उसके कंठ-स्वर की मधुरता का मुग्ध भाव से रसपान कर रही थी।

प्रश्न 6.
दुलारी का टुन्नू को यह कहना कहाँ तक उचित था-“सरबउला बोल जिन्नगी में कब देखले लोट…!” दुलारी के इस आक्षेप में आज के युवा वर्ग के लिए क्या संदेश छिपा है ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
दुलारी इस कथन के माध्यम से टुन्नू पर यह आक्षेप लगाती है कि वह बढ़-चढ़कर बोलता है। उसके कथनों में सत्यता नहीं है। इसी प्रसंग में आगे वह उस पर बगुला भगत होने का भी आक्षेप लगाती है। वह आज के युवा-वर्ग को बड़बोलापन त्याग कर गंभीर बनने का संदेश देती है। उन्हें आडंबरों को त्यागकर गांधीजी जैसा सीधा-सादा जीवन जीना चाहिए। देश के लिए आत्मबलिदानी बनना चाहिए तथा चातक जैसा प्रेमी बनना चाहिए।

प्रश्न 7.
भारत के स्वाधीनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू ने अपना योगदान किस प्रकार दिया?
उत्तर :
भारत के स्वाधीनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू का योगदान सराहनीय एवं अनुकरणीय है। दुलारी ने फेंकू सरदार द्वारा लाया गया मैंचेस्टर तथा लंका-शायर की मिलों में बनी हुई बारीक सूत की धोतियों का बंडल विदेशी वस्त्रों की होली जलाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को दे दिया था। उसने अंग्रेज़ों के मुखबिर फेंकू को अपने घर से झाड़ मारकर निकाल दिया था। टुन्नू ने विदेशी वस्त्रों को एकत्र करने वाले जुलूस में शामिल होकर आत्म-बलिदान दे दिया था।

प्रश्न 8.
दुलारी और टुन्नू के प्रेम के पीछे उनका कलाकार मन और उनकी कला थी? यह प्रेम दुलारी को देशप्रेम तक कैसे पहुँचाता है ?
उत्तर :
का प्रेम शारीरिक न होकर आत्मिक था। दुलारी टुन्न के कंठ-स्वर की मधुरता पर मुग्ध हो गई थी। टुन्न सोलह सत्रह वर्ष का था और दुलारी यौवन के अस्ताचल पर खड़ी थी। उसके मन के किसी कोने में टुन्नू ने अपना स्थान बना लिया। था। यह सब दोनों के कलाकार मन और कला के कारण हुआ था। टुन्नू द्वारा आबरवाँ की जगह खद्दर पहनना, लखनवी दोपलिया की जगह गांधी टोपी पहनना और दुलारी को खादी की धोती देना और अंत में स्वयं को देश के लिए कुर्बान कर देना दुलारी को भी देश-प्रेम की ओर प्रेरित करता है। दुलारी का विदेशी-वस्त्रों की होली जलानेवालों को कीमती साड़ियाँ देना, टुन्नू की मृत्यु के बाद उसकी दी हुई खादी की साड़ी पहनना, टुन्नू के मरणस्थल पर गाना गाना आदि दुलारी के देशप्रेम के उदाहरण हैं।

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प्रश्न 9.
जलाए जाने वाले विदेशी वस्त्रों के ढेर में अधिकांश वस्त्र फटे-पुराने थे, परंतु दलारी दवारा विदेशी मिलों में बनी कोरी साडियों का फेंका जाना उसकी किस मानसिकता को दर्शाता है?
उत्तर :
टुन्नू जब दुलारी को होली के अवसर पर खादी की धोती देकर चला जाता है, तो दुलारी उसकी भेंट को लेकर उसी के विचारों में खो जाती है। इन विचारों से मुक्ति पाने के लिए वह रसोई की व्यवस्था में जुटना ही चाहती है कि फेंकू सरदार उसके लिए मैंचेस्टर और लंका-शायर की मिलों में बनी बारीक सूत की मखमली किनारेवाली धोतियों का बंडल लेकर आता है। तभी उधर से जलाने के लिए विदेशी-वस्त्रों का संग्रह करता हुआ देशभक्तों का दल ‘भारत जननी तेरी जय’ गीत गाते हुए निकलता है। लोग अपने पुराने विदेशी वस्त्र उन्हें दे रहे थे। दुलारी अपनी खिड़की खोलकर फेंकू द्वारा लाया गया धोतियों का बंडल नीचे फैली चादर पर फेंक देती है। इससे उसकी फेंकू के प्रति नफ़रत, टुन्नू के प्रति करुणा तथा देश के प्रति प्रेम की भावना व्यक्त होती है।

प्रश्न 10.
“मन पर किसी का बस नहीं; वह रूप या उमर का कायल नहीं होता”। टुन्नू के इस कथन में उसका दुलारी के प्रति किशोर जनित प्रेम व्यक्त हुआ है परंतु उसके विवेक ने उसके प्रेम को किस दिशा की ओर मोड़ा?
उत्तर :
टुन्नू जब होली के अवसर पर दुलारी को खादी की साड़ी भेंट करने आता है, तो दुलारी उपेक्षापूर्वक साड़ी टुन्नू के पैरों के पास फेंक देती है। वह उसे बहुत भला-बुरा कहती है। टुन्नू टप-टप आँसू बहाता है और यह कहकर कोठरी से बाहर निकल जाता है कि ‘मन पर किसी का बस नहीं, वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।’ वह ‘आबरवाँ’ पहनना छोड़कर खद्दर पहनने लगता है। स्वदेशियों की हड़ताल में शामिल होता है। विदेशी वस्त्रों को एकत्रकर उनकी होली जलाने वाले जुलूस के साथ टाउन हॉल तक जाता है, जहाँ एक पुलिस जमादार द्वारा मार दिया जाता है। इस प्रकार उसका विवेक उसे दैहिक प्रेम से देश-प्रेम की ओर ले जाता है।

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प्रश्न 11.
‘एही छैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ का प्रतीकार्थ समझाइए।
उत्तर :
इस पंक्ति का शाब्दिक अर्थ है कि ‘इसी स्थान पर मेरे नाक की लौंग खो गई है राम’। वास्तव में दुलारी इस कथन के माध्यम से यह कहना चाहती है कि उसकी ‘नाक की लौंग’ अर्थात् प्रतिष्ठा यहाँ आकर नष्ट हो गई है। जहाँ दुलारी को थाने वालों ने गाने के लिए बुलाया था, उसी स्थान पर टुन्नू को मार दिया गया था। टुन्नू उसकी प्रतिष्ठा थी। टुन्नू के मरणास्थल पर दुलारी को बलपूर्वक नाचने-गाने के लिए कहना उसके सम्मान को नष्ट करना है।

JAC Class 10 Hindi एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
टुनू की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
टुन्नू सोलह-सत्रह वर्ष का जवानी की दहलीज पर पाँव रखने वाला युवक था। जिसका चरित्र बड़ा साफ-स्वच्छ और निर्मल था। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
1. सुंदर और निर्मल-टुन्नू किशोर अवस्था का अति सुंदर, गोरा, दुबला-पतला एवं लंबा किशोर था, जो पहली ही दृष्टि में आकृष्ट करने की क्षमता रखता था। दुलारी जैसी औरत भी उसकी ओर आकृष्ट होने पर विवश हो गई थी।
2. निर्धन-टुन्नू अति गरीब था। काशी में उसके पिता दिनभर गंगा के घाट पर बैठकर कर्मकांड किया करते थे और बड़ी कठिनाई से घर का खर्च चला पाते थे।
3. मेधावी-टुन्ने चाहे निर्धन परिवार में उत्पन्न हुआ था, पर वह मेधावी था। उसकी कल्पना-शक्ति अद्भुत थी। वह दूर की कौड़ी पकड़ने में अति निपुण था।
4. श्रेष्ठ कलाकार-टुन्नू श्रेष्ठ कलाकार था। उसने कजली जैसी लोक-कला में सिद्धहस्तता प्राप्त कर ली थी। उसमें हिम्मत थी कि वह दुलारी जैसी विख्यात गायिका को चुनौती दे सके।
5. गुण ग्राहक-जब टुन्नू को दुलारी के गुणों का पता लगा, तो वह उसकी कला को सीखने के लिए उसके पास जाने लगा। उसके प्रति उसके मन में श्रद्धा के भाव जग गए थे।
6. सच्चा प्रेमी-टुन्नू चाहे आयु में छोटा था, पर दुलारी के प्रति उसके हृदय में सच्चा प्रेम था। कलाकार के नाते वह उसे अपने प्रेम के योग्य मानता था।
7. सच्चा देशभक्त-टुन्नू देशभक्त था। गांधीजी के आदेशानुसार खद्दर पहनता था। उसी ने दुलारी के दिल में देशभक्ति का भाव भरा था। वह देश के लिए मर भी गया था।

प्रश्न 2.
‘एही छैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा’ कहानी में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘एही छैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा’ प्रथम दृष्टि में एक किशोर और यौवनावस्था के अस्ताचल पर खड़ी एक गाने वाली की प्रेमकथा प्रतीत होती है, जिसमें आत्मिक प्रेम को महत्व प्रदान किया गया है। इस कथा के माध्यम से लेखक ने यह संदेश दिया है कि समाज के उपेक्षित तथा त्याज्य माने जाने वाले वर्ग के लोगों का भी भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अद्भुत योगदान रहा है।

गाने का पेशा करने वाली दुलारी देशद्रोही फेंकू को झाड़ मारकर घर से निकाल देती है। फेंकू के दिए विदेशी वस्त्रों को विदेशी वस्त्रों की होली जलाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को दे देती है। टुन्नू जैसा किशोर गायक विदेशी वस्त्र त्यागकर खादी पहनता है और देशभक्तों के जुलूस में शामिल होकर अंग्रेजों द्वारा मार दिया जाता है। इस प्रकार यह देश-प्रेम और त्याग का संदेश देने वाली कहानी है।

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प्रश्न 3.
टुन्नू और दुलारी का प्रेम कैसा था?
उत्तर :
दुलारी ने टुन्नू को खोजवाँ बाज़ार में गाने के अवसर पर देखा था। वहाँ वह उसके कंठ-स्वर की मधुरता पर मुग्ध हो गई थी। तब से उसके मन में टुन्नू के प्रति कोमल भाव जागृत हो गए थे। वह यौवन के अस्ताचल पर खड़ी थी, जबकि टुन्नू सोलह-सत्रह वर्ष का था। टुन्नू उसके पास आता; घंटे-आध घंटे उसके सामने बैठता; पूछने पर भी अपने हृदय की कामना व्यक्त नहीं करता, केवल अत्यंत मनोयोग से उसकी बातें सुनता था।

दुलारी को लगता यहाँ शरीर का कोई संबंध नहीं, केवल आत्मा का ही संबंध है। टुन्नू का यह कथन भी इसी आत्मिक प्रेम की ओर संकेत करता है-‘मैं तुमसे कुछ माँगता तो हूँ नहीं। देखो, पत्थर की देवी तक अपने भक्त द्वारा दी गई भेंट नहीं ठुकराती, तुम तो हाड़-मांस की बनी हो।’ टुन्नू दुलारी का भक्त है, प्रेमी नहीं। उधर दुलारी के मन में भी ‘इस कृशकाय और कच्ची उमर के पांडुमुख बालक टुन्नू पर करुणा’ है।

प्रश्न 4.
टुन्नू की मृत्यु कैसे हुई और क्यों?
उत्तर :
आज़ादी के आंदोलन से प्रभावित होकर टुन्नू भी उसमें कूद पड़ा। एक दिन जब टुन्नू विदेशी-वस्तुओं का बहिष्कार करने वाले जुलूस के साथ जा रहा था, तो पुलिस के ज़मादार अली सगीर ने उसे पकड़ लिया और उसे गालियाँ देकर जूतों से ठोकर मारी। टाउन हॉल के पास ही यह सब घटित हुआ। टुन्नू ने भी उसके इस व्यवहार का डटकर विरोध किया। अली सगीर ने उसे इतना मारा कि उसकी पसली टूट गई। टुन्नू के मुँह से रक्त की धारा बहने लगी और कुछ ही देर में उसकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 5.
विदेशी वस्त्रों का संग्रह करने वाले लोग कब हैरान रह गए और क्यों?
उत्तर :
विदेशी वस्त्रों का संग्रह करने वाले लोग तब हैरान रह गए, जब उनकी फैलाई चादर पर कोरी विदेशी साड़ियों का एक बंडल आकर गिरा। वे लोग जलाने के लिए विदेशी वस्त्र एकत्र कर रहे थे। अभी तक जो भी विदेशी-वस्त्र उन्होंने एकत्र किए थे, वे सब पुराने थे। परंतु ये बिल्कुल नई साड़ियाँ थीं, जिनको बंडल से बाहर तक नहीं निकाला गया था।

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प्रश्न 6.
दुलारी ने टुन्नू द्वारा लाया गया उपहार क्यों ठुकरा दिया? .
उत्तर :
दुलारी और टुन्नू कजली गायन के एक दंगल में मिले थे। दोनों ही एक-दूसरे से प्रभावित हुए बिना न रहे, क्योंकि दोनों ही अपनी गायन कला में निपुण थे। टुन्नू ब्राह्मण परिवार से संबंध रखता था और दुलारी एक कजली गायिका थी, जिसे समाज आदर की दृष्टि से नहीं देखता था। टुन्नू दुलारी की कला का पुजारी था। वह दुलारी से आत्मिक प्रेम करने लगा था। कम आयु का टुन्नू समाज की ऊँच-नीच नहीं जानता था, परंतु दुलारी एक परिपक्व महिला थी। उसे टुन्नू का अपने घर में आना न पसंद था। वह नहीं चाहती थी कि उसके कारण टुन्नू की बदनामी हो। वह उसे दुत्कारती थी, ताकि वह कभी दोबारा न आए। इसलिए दुलारी ने उपहार में टुन्न द्वारा दी गई साड़ी को भी उसके सामने ठुकरा दिया।

प्रश्न 7.
टुन्नू ने दुलारी की तुलना कोयल से कर एक साथ कौन-से दो तीर चलाए थे?
उत्तर :
टुन्नू ने दुलारी की आवाज़ को कोयल की मधुर आवाज़ के समान कहकर उसकी मीठी आवाज़ की प्रशंसा की थी और साथ ही उसके साँवले-काले रंग की ओर संकेत कर दिया था। उसके कथन में यह भाव भी छिपा हुआ था कि जैसे कोयल का पालन-पोषण कौवे के घोंसले में होता है, वैसे ही तुम्हारा पोषण भी दूसरों के द्वारा ही हुआ है। यह कहकर टुन्नू ने दुलारी पर दोहरा तीर चलाया था।

प्रश्न 8.
‘एही छैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ के शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
‘एही छैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा’ का शाब्दिक अर्थ है-‘यही वह स्थान है जहाँ मेरे नाक की लोंग खो गई थी’। लेखक ने लोकगीत के मुखड़े जैसे प्रतीत होने वाले इस वाक्य को कहानी का शीर्षक बताया है, जिसमें गहरी प्रतीकार्थकता विद्यमान है। टुन्नू का दुलारी से विवाह नहीं हुआ था, इसलिए वह उसका सुहाग नहीं था। नाक की नथनी सुहाग का प्रतीक होता है और दुलारी मन-ही-मन टुन्न को अपने पति के रूप में मानती थी। उसके लिए उसके हृदय में वही स्थान था, जो किसी सुहागिन के लिए उसके सुहाग का होता है।

एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र’ का जन्म काशी में सन 1911 में हुआ था। इनकी शिक्षा काशी के हरिश्चंद्र कॉलेज, क्वींस कॉलेज एवं काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हुई थी। इन्होंने स्कूल एवं विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया तथा कई पत्रिकाओं का संपादन भी किया। – इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-बहती गंगा, सुचिताच (उपन्यास), ताल तलैया, गजलिका, परीक्षा पचीसी (गीत एवं व्यंग्य गीत संग्रह)। इनकी अनेक संपादित रचनाएँ काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा – प्रकाशित हई हैं। वे काशी नागरी प्रचारिणी सभा के प्रधान पद पर भी रहे। सन 1970 में इनका देहांत हो गया। इनकी भाषा आंचलिक, तत्सम प्रधान तथा शैली वर्णनात्मक एवं संवादात्मक है।

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पाठ का सार :

‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ पाठ के लेखक शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र’ हैं। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने गाने-बजाने वाले समाज के देश के प्रति असीम प्रेम, विदेशी शासन के प्रति क्षोभ और पराधीनता की जंजीरों को उतार फेंकने की तीव्र लालसा का वर्णन किया है।। दुलारी का शरीर पहलवानों की तरह कसरती था। वह मराठी महिलाओं की तरह धोती लपेटकर कसरत करने के बाद प्याज और हरी मिर्च के साथ चने खाती थी।

वह अपने रोजाना के कार्य से खाली नहीं हुई थी कि उसके घर के दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। दरवाजा खोलने पर उसने देखा कि टुन्नू बगल में कोई बंडल दबाए खड़ा था। दुलारी टुन्नू को डाँटती है कि उसने उसे यहाँ आने के लिए मनाकर रखा था। टुन्नू उसकी डॉट सुनकर सहम जाता है। वह उसके लिए गांधी आश्रम की खादी से बनी साड़ी लेकर आया था। वह उसे होली के त्योहार पर नई साड़ी देना चाहता था।

दुलारी उसे बुरी तरह फटकारती है कि ऐसे काम करने की अभी उसकी उम्र नहीं है। दुलारी टुन्नू की दी हुई धोती उपेक्षापूर्वक उसके पैरों के पास फेंक देती है। टुन्नू की आँखों से कज्जल-मलिन आँसुओं की बूंदें साड़ी पर टपक पड़ती हैं। वह अपमानित-सा वहाँ से चला जाता है। उसके जाने के बाद दुलारी धोती उठाकर सीने से लगा लेती है और आँसुओं के धब्बों को चूमने लगती है।

दुलारी छह महीने पहले टुनू से मिली थी। भादों की तीज पर खोजवाँ बाजार में गाने का कार्यक्रम था। दुलारी गाने में निपुण थी। उसे पद्य में सवाल-जवाब करने की अद्भुत क्षमता थी। बड़े-बड़े शायर भी उसके सामने गाते हुए घबराते थे। खोजवाँ बाज़ार वाले उसे अपनी तरफ़ से खड़ा करके अपनी जीत सुनिश्चित कर चुके थे। विपक्ष में उसके सामने सोलह-सत्रह साल का टुन्नू खड़ा था। टुन्नू के पिता यजमानी करके अपने घर का गुजारा करते थे। टुनू को आवारों को संगति में शायरी का चस्का लग गया था।

उसने भैरोहेला को उस्ताद बनाकर कजली की सुंदर रचना करना सीख लिया था। टुनू ने उस दिन दुलारी से संगीत में मुकाबला किया। दुलारी को भी अपने से बहुत छोटे लड़के से मुकाबला करना अच्छा लग रहा था। मुकाबले में टुन्नू के मुँह से दुलारी की तारीफ़ सुनकर सुंदर के ‘मालिक’ फेंकू सरदार ने टुन्नू पर लाठी से वार किया। दुलारी ने टुन्नू को उस मार से बचाया था। टुन्नू के जाने के बाद दुलारी उसी के बारे में सोच रही थी।

टुन्नू उसे आज अधिक सभ्य लगा था। टुन्नू ने कपड़े भी सलीके से पहन रखे थे। दुलारी ने टुन्नू की दी हुई साड़ी अपने संदूक में रख दी। उसके मन में टुनू के लिए कोमल भाव उठ रहे थे। टुन्नू उसके पास कई दिन से आ रहा था। वह उसे देखता रहता था और उसकी बातें बड़े ध्यान से सुनता था। दुलारी का यौवन ढल रहा था। टुन्नू पंद्रह-सोलह वर्ष का लड़का था, दुलारी ने दुनिया देख रखी थी। वह समझ गई कि टून्नू और उसका संबंध शरीर का न होकर आत्मा का है।

वह यह बात टुन्नू के सामने स्वीकार करने से डर रही थी। उसी समय फेंकू सरदार धोतियों का बंडल लेकर दुलारी की कोठरी में आता है। फेंकू सरदार उसे तीज पर बनारसी साड़ी दिलवाने का वायदा करता है। जब दुलारी और फेंकू सरदार बातचीत कर रहे थे, उसी समय उसकी गली में से विदेशी वस्त्रों की होली जलाने वाली टोली निकली। चार लोगों ने एक चादर पकड़ रखी थी जिसमें लोग धोती, कमीज़, कुरता, टोपी आदि डाल रहे थे। दुलारी ने भी फेंकू सरदार का दिया मैंचेस्टर तथा लंका-शायर की मिलों की बनी बारीक सूत की मखमली किनारेवाली धोतियों का बंडल फैली चादर में डाल दिया।

अधिकतर लोग जलाने के लिए पुराने कपड़े फेंक रहे थे। दुलारी की खिड़की से नया बंडल फेंकने पर सबकी नजर उस तरफ़ उठ गई। जुलूस के पीछे चल रही खुफिया पुलिस के रिपोर्टर अली सगीर ने भी दुलारी को देख लिया था। दुलारी ने फेंकू सरदार को उसकी किसी बात पर झाड़ से पीट-पीटकर घर से बाहर निकाल दिया। जैसे ही फेंकू दुलारी के घर से निकला, उसे पुलिस रिपोर्टर मिल जाता है। उसे देखकर वह झेंप जाता है। दुलारी के आँगन में रहने वाली सभी स्त्रियाँ इकट्ठी हो जाती हैं। सभी मिलकर दुलारी को शांत करती हैं। सब इस बात से हैरान थीं कि फेंकू सरदार ने दुलारी पर अपना सबकुछ न्योछावर कर रखा था, फिर आज उसने उसे क्यों मारा।

दुलारी कहती है कि यदि फेंकू ने उसे रानी बनाकर रखा था, तो उसने भी अपनी इज्जत, अपना सम्मान उसके नाम कर दिया था। एक नारी के सम्मान की कीमत कुछ नहीं है। पैसों से तन खरीदा जा सकता है, एक औरत का मन नहीं खरीदा जा सकता। उन दोनों के बीच झगड़ा टुन्नू को लेकर हुआ था। सभी स्त्रियाँ बैठी बातें कर रही थीं कि झींगुर ने आकर बताया कि टुनू महाराज को गोरे सिपाहियों ने मार दिया और वे लोग लाशें उठाकर भी ले गए। टुन्नू के मारे जाने का समाचार सुनकर दुलारी की आँखों से अविरल आँसुओं की धारा बह निकली। उसकी पड़ोसिनें भी दुलारी का हाल देखकर हैरान थीं।

सभी ने उसके रोने को नाटक समझा। लेकिन दुलारी अपने मन की सच्चाई जानती थी। उसने टुन्नू की दी साधारण खद्दर की धोती पहन ली। वह झींगुर से टुन्नू के शहीदी स्थल का पता पूछकर वहाँ जाने के लिए घर से बाहर निकली। घर से बाहर निकलते ही थाने के मुंशी और फेंकू सरदार ने उसे थाने चलकर अमन सभा के समारोह में गाने के लिए कहा। प्रधान संवाददाता ने शर्मा जी की लाई हुई रिपोर्ट को मेज पर पटकते हुए डाँटा और अखबार की रिपोर्टरी छोड़कर चाय की दुकान खोलने के लिए कहा।

उनके द्वारा लाई रिपोर्ट को उसने अलिफ़-लैला की कहानी कहा, जिसे प्रकाशित करना वह उचित नहीं समझता। उनकी दी हुई रिपोर्ट को छापने से उसे अपनी अखबार के बंद हो जाने का भय है। इस पर संपादक ने शर्मा जी को रिपोर्ट पढ़ने के लिए कहा। शर्मा जी ने अपनी रिपोर्ट का शीर्षक एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा’ रखा था। उनकी रिपोर्ट के अनुसार ‘कल छह अप्रैल को नेताओं की अपील पर नगर में पूर्ण हड़ताल रही। खोमचेवाले भी हड़ताल पर थे। सुबह से ही विदेशी वस्त्रों का संग्रह करके उनकी होली जलाने वालों के जुलूस निकलते रहे।

उनके साथ प्रसिद्ध कजली गायक टुन्नू भी था। जुलूस टाउन हॉल पहुँचकर समाप्त हो गया। सब जाने लगे तो पुलिस के जमादार अली सगीर ने टन्न को गालियाँ दी। टुन्न के प्रतिवाद करने पर उसे जमादार ने बूट से ठोकर मारी। इससे उसकी पसली में चोट लगी। वह गिर पड़ा और उसके मुँह से खून निकल पड़ा। गोरे सैनिकों ने उसे उठाकर गाड़ी में डालकर अस्पताल ले जाने के स्थान पर वरुणा में प्रवाहित कर दिया, जिसे संवाददाता ने भी देखा था। इस टुन्नू का दुलारी नाम की गौनहारिन से संबंध था।

कल शाम अमन सभा द्वारा टाउन हॉल में आयोजित समारोह में, जहाँ जनता का एक भी प्रतिनिधि उपस्थित नहीं था, दुलारी को नचाया-गवाया गया था। टुन्नू की मृत्यु से दुलारी बहुत उदास थी। उसने खद्दर की साधारण धोती पहन रखी थी। वह उस स्थान पर गाना नहीं चाहती थी, जहाँ आठ घंटे पहले उसके प्रेमी की हत्या कर दी गई थी। फिर भी कुख्यात जमादार अली सगीर के कहने पर उसने दर्दभरे स्वर में एही ठेयाँ झुलनी हेरानी हो रामा, कासों मैं पूलूं’ गाया और जिस स्थान पर टुन्नू गिरा था, उधर ही नज़र जमाए हुए गाती रही। गाते-गाते उसकी आँखों से आँसू बह निकले मानो टुन्नू की लाश को वरुणा में फेंकने से पानी की जो बूंदें छिटकी थीं, वे अब दुलारी की आँखों से बह निकली हैं।’ संपादक महोदय को रिपोर्ट तो सत्य लगी, परंतु वे इसे छापने में असमर्थ थे।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

दनादन – लगातार। चणक-चर्वण – चने चबाना। विलोल – चंचल। शीर्णवदन – उदास मुख। आर्द्र – गीला, रुंधा। कज्जल-मलिन – काजल से मैली। पाषाण-प्रतिमा – पत्थर की मूर्ति । दुक्कड़ – शहनाई के साथ बजाया जाने वाला एक तबले जैसा बाजा। महती – बहत अधिक। ख्याति – प्रसिद्धि। कजली – भादो की तीज पर गाया जाने वाला लोकगीत। कोर दबना – लिहाज करना। गौनहारिन – गाना गाने वाली, गाना गाने का पेशा करने वाली। दरगोड़े – पैरों से कुचलना या रौंदना।

तीरकमान हो जाना – लड़ने या मुकाबले के लिए तैयार : होना। आविर्भाव – प्रकट होना, सम्मुख आना। रंग उतरना – शोभा या रौनक घटना। वकोट – मुँह नोच लेना। अगोरलन – रखवाली करना। सरबउला बोल – बढ़-चढ़कर बोलना। अझे – इस प्रकार। बिथा – व्यथा। आबरवाँ – बहुत बारीक मलमल। कृशकाय – कमज़ोर शरीर। पांडुमुख – पीला मुँह। कृत्रिम – बनावटी। निभृत – छिपा हुआ, गुप्त, एकांत। उभय पार्श्व – दोनों तरफ़। मुखबर – ख़बर देने वाला। डाँका – लाँघना। आँखों में मेघमाला – आँखों से आँसुओं की झड़ी लगना। एही – इसी। ठैयाँ – स्थान। झुलनी – नाक की लौंग। हेरानी – खो गई। उदभ्रांत – हैरान।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना-साना हाथ जोड़ि

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना-साना हाथ जोड़ि Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना-साना हाथ जोड़ि

JAC Class 10 Hindi साना-साना हाथ जोड़ि Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को किस तरह सम्मोहित कर रहा था?
उत्तर :
झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को सम्मोहित कर रहा था। रहस्यमयी सितारों की रोशनी में उसका सबकुछ समाप्त हो गया था। उसे ऐसे अनुभव हो रहा था, जैसे उसकी चेतना लुप्त हो गई थी। बाहर और अंदर सबकुछ शून्य हो गया था। वह इंद्रियों से दूर एक रोशनी भरे संसार में चली गई थी। उसके लिए आस-पास का वातावरण शून्य हो गया था।

प्रश्न 2.
गंतोक को ‘मेहनतकश बादशाहों का शहर क्यों कहा गया?
उत्तर :
गंतोक को मेहनतकश बादशाहों का शहर इसलिए कहा गया है क्योंकि यहाँ स्त्री, पुरुष, बच्चे सभी पूरी मेहनत से काम करते हैं। स्त्रियाँ बच्चों को पीठ पर लादकर काम करती हैं। स्कूल जाने वाले विद्यार्थी स्कूल से आने के बाद अपने माता-पिता के कामों में हाथ बँटाते हैं। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण यहाँ सभी कार्य कड़ी मेहनत से पूरे होते हैं। इसलिए यह मेहनतकश बादशाहों का शहर कहलाता है।

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प्रश्न 3.
कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना किन अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है?
उत्तर :
यूमथांग जाते हुए लेखिका को रास्ते में बहुत सारी बौद्ध पताकाएँ दिखाई दीं। लेखिका के गाइड जितेन नार्गे ने बताया कि जब किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है, तो उस समय उसकी आत्मा की शांति के लिए श्वेत पताकाएँ फहराई जाती हैं। रंगीन पताकाएँ किसी नए कार्य के आरंभ पर लगाई जाती हैं।

प्रश्न 4.
जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जनजीवन के बारे में क्या महत्वपूर्ण जानकारियाँ दीं, लिखिए।
उत्तर :
जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम के बारे में बताया कि यहाँ का इलाका मैदानी नहीं, पहाड़ी है। मैदानों की तरह यहाँ का जीवन सरल नहीं है। यहाँ कोई भी व्यक्ति कोमल या नाजुक नहीं मिलेगा, क्योंकि यहाँ का जीवन बहुत कठोर है। मैदानी क्षेत्रों की तरह यहाँ कोने-कोने पर स्कूल नहीं हैं। नीचे की तराई में एक-दो स्कूल होंगे। बच्चे तीन-साढ़े तीन किलोमीटर की चढ़ाई चढ़कर स्कूल पढ़ने जाते हैं। ये बच्चे स्कूल से आकर अपनी माँ के काम में सहायता करते हैं। पशुओं को चराना, पानी भरना और जंगल से लकड़ियों : के भारी-भारी गट्ठर सिर पर ढोकर लाते हैं। सिक्किम की प्रकृति जितनी कोमल और सुंदर है, वहाँ की भौगोलिक स्थिति और जनजीवन कठोर है।

प्रश्न 5.
लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका को पूरे भारत की आत्मा एक-सी क्यों दिखाई दी?
उत्तर :
लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र के विषय में जितेन ने बताया कि इसे घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं। लेखिका को उस घूमते चक्र को देखकर लगा कि पूरे भारत के लोगों की आत्मा एक जैसी है। विज्ञान ने चाहे कितनी अधिक प्रगति कर ली है, फिर भी लोगों की आस्थाएँ, विश्वास, अंधविश्वास, पाप-पुण्य की मान्यताएँ सब एक जैसी हैं। वे चाहे पहाड़ पर हों या फिर मैदानी क्षेत्रों में-उनकी धार्मिक मान्यताओं को कोई तोड़ नहीं सकता।

प्रश्न 6.
जितेन नार्गे की गाइड की भूमिका के बारे में विचार करते हुए लिखिए कि एक कुशल गाइड में क्या गुण होते हैं ?
उत्तर :
जितेन नार्गे ड्राइवर-कम-गाइड था। उसे सिक्किम और उसके आस-पास के क्षेत्रों की भरपूर जानकारी थी। जितेन एक ऐसा गाइड था, जो जानता था कि पर्यटकों को असीम संतुष्टि कैसे दी जा सकती है। इसलिए वह लेखिका और उसके सहयात्रियों को सिक्किम घुमाते हुए बर्फ़ दिखाने के लिए कटाओ तक ले जाता है। उससे आगे चीन की सीमा आरंभ हो जाती है। वह छोटी-छोटी जानकारी भी अपने यात्रियों को देना नहीं भूलता।

यात्रियों की थकान उतारने व उनके मन बहलाव के लिए वह उनकी पसंद के संगीत का सामान भी साथ रखता है। एक गाइड के लिए अपने क्षेत्र के इतिहास की पूरी जानकारी होनी आवश्यक है, जो जितेन को भरपूर थी। जितेन रास्ते में आने वाले छोटे-छोटे पवित्र स्थानों, जिनके प्रति वहाँ के स्थानीय लोगों में श्रद्धा थी, के बारे में विस्तार से बता रहा था। एक कुशल गाइड से यात्रा का आनंद दोगुना हो जाता है। वह आस-पास के सुनसान वातावरण को भी खुशनुमा बना देता है। इस तरह जितेन नार्गे में एक कुशल गाइड के गुण थे।

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प्रश्न 7.
इस यात्रा-वृत्तांत में लेखिका ने हिमालय के जिन-जिन रूपों का चित्र खींचा है, उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
लेखिका का यात्री दल यूमथांग जाने के लिए जीप द्वारा आगे बढ़ रहा था। जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ रही थी, वैसे-वैसे हिमालय का पलपल बदलता वैभव और विराट रूप सामने आता जा रहा था। हिमालय विशालकाय होता गया। आसमान में फैली घटाएँ गहराती हुई पाताल नापने लगी थीं। कहीं-कहीं किसी चमत्कार की तरह फूल मुस्कुराने लगे थे। सारा वातावरण अद्भुत शांति प्रदान कर रहा था।

लेखिका हिमालय के पल-पल बदलते स्वरूप को अपने भीतर समेट लेना चाहती थी। उसने हिमालय को ‘मेरे नागपति मेरे विशाल’ कहकर सलामी दी। हिमालय कहीं चटक हरे रंग का मोटा कालीन ओढ़े प्रतीत हो रहा था और कहीं हल्के पीलेपन का कालीन दिखाई दे रहा था। हिमालय का स्वरूप कहीं-कहीं पलस्तर उखड़ी दीवारों की तरह पथरीला लग रहा था। सबकुछ लेखिका को जादू की ‘छाया’ व ‘माया’ का खेल लग रहा था। हिमालय का बदलता रूप लेखिका को रोमांचित कर रहा था।

प्रश्न 8.
प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को कैसी अनुभूति होती है?
उत्तर :
प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को लग रहा था कि वह आदिमयुग की कोई अभिशप्त राजकुमारी है। बहती जलधारा में पैर डुबोने से उसकी आत्मा को अंदर तक भीगकर सत्य और सौंदर्य का अनुभव होने लगा था। हिमालय से बहता झरना उसे जीवन की शक्ति का अहसास करवा रहा था। उसे लग रहा था कि उसकी सारी बुरी बातें और तासिकताएँ निर्मल जलधारा के साथ बह गई थीं। वह भी जलधारा में मिलकर बहने लगी थी; अर्थात् वह एक ऐसे शून्य में पहुँच गई थी, जहाँ अपना कुछ नहीं रहता; सारी इंद्रियाँ आत्मा के वश में हो जाती हैं। लेखिका उस झरने की निर्मल धारा के साथ बहते रहना चाहती थी। वहाँ उसे सुखद अनुभूति का अनुभव हो रहा था।

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प्रश्न 9.
प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को कौन-कौन से दृश्य झकझोर गए?
उत्तर :
प्राकृतिक सौंदर्य के आलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को वहाँ के आम जीवन की निर्ममता झकझोर गई। लेखिका को प्रकृति के असीम सौंदर्य ने ऐसी अनुभूति दी थी कि वह एक चेतन-शून्य संसार में पहुँच गई थी। उसे लग रहा था कि वह ईश्वर के निकट पहुँच गई है, परंतु उस सौंदर्य में कुछ पहाड़ी औरतें पत्थर तोड़ रही थीं। वे शरीर से कोमल दिखाई दे रही थीं। उनकी पीठ पर टोकरियों में बच्चे बँधे हुए थे। वे बड़े-बड़े हथौड़ों और कुदालों से पत्थरों को तोड़ने का प्रयास कर रही थीं।

यह देखकर लेखिका बेचैन हो गई। वहीं खड़े एक कर्मचारी ने बताया कि पहाड़ों में रास्ता बनाना बहुत कठिन कार्य है। कई बार रास्ता बनाते समय लोगों की जान भी चली जाती है। लेखिका को लगा कि भूख और जिंदा रहने के संघर्ष ने इस स्वर्गीय सौंदर्य में अपना मार्ग इस प्रकार ढूँढ़ा है। कटाओं में फ़ौजियों को देखकर वह सोचने लगी कि सीमा पर तैनात फ़ौजी हमारी सुरक्षा के लिए ऐसी-ऐसी जगहों की रक्षा करते हैं, जहाँ सबकुछ बर्फ़ हो जाता है।

जहाँ पौष और माघ की ठंड की बात तो छोड़ो, वैशाख में भी हाथ-पैर नहीं खुलते। वे इतनी ठंड में प्राकृतिक बाधाओं को सहन करते हुए हमारा कल सुरक्षित करते हैं। पहाड़ी औरतों को भूख से लड़ते पत्थरों को तोड़ना और कड़ाके की ठंड में फ़ौजियों का सीमा पर तैनात रहना लेखिका को अंदर तक झकझोर गया।

प्रश्न 10.
सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में किन-किन लोगों का योगदान होता है, उल्लेख करें।
उत्तर :
सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में प्रमुख योगदान पर्यटन स्थलों पर उपलब्ध सुविधाओं, स्थानीय गाइड तथा आवागमन के मार्ग का होता है। इसके अतिरिक्त वहाँ के लोगों तथा सरकारी रख-रखाव का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है।

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प्रश्न 11.
“कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती हैं।” इस कथन के आधार पर स्पष्ट करें कि आम जनता की देश की आर्थिक प्रगति में क्या भूमिका है?
उत्तर :
देश की आर्थिक प्रगति में आम जनता की महत्वपूर्ण भूमिका है। देश के महत्वपूर्ण संस्थानों के निर्माण में आम जनता ही सहयोग करती है। वहाँ पत्थर तोड़ने से लेकर पत्थर जोड़ने तक का कार्य वे लोग ही करते हैं। इस कार्य में व्यक्ति की पूरी शक्ति लगती है, परंतु उसके काम के बदले में उसे बहुत कम पैसे मिलते हैं। बड़े-बड़े लोगों को धनवान बनाने वाले ये लोग उन पैसों से अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति भी बड़ी कठिनाई से करते हैं। सड़कों को चौड़ा बनाने का कार्य, बाँध बनाने का कार्य और बड़ी-बड़ी फैक्टरियाँ बनाने के कार्य की नींव आम जनता के खून-पसीने पर रखी जाती है।

सड़कों के निर्माण से यातायात का आवागमन सुगम हो जाता है। तैयार माल और कच्चा माल एक स्थान से दूसरे स्थान तक सरलता से पहुँचाया जाता है, जिससे देश की आर्थिक प्रगति होती है। बाँधों के निर्माण से बिजली का उत्पादन किया जाता है तथा फ़सलों को उचित सिंचाई के साधन उपलब्ध करवाए जाते हैं। इन सब कार्यों में आम जनता का भरपूर योगदान होता है। इन लोगों की भूमिका के बिना देश की आर्थिक प्रगति संभव नहीं है।

प्रश्न 12.
आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति के साथ किस तरह का खिलवाड़ किया जा रहा है ? इसे रोकने में आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए।
उत्तर :
आज की पीढ़ी भौतिकवादी हो चुकी है। वह अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रकृति का निर्मम ढंग से प्रयोग कर रही है। उन्हें यह नहीं पता कि प्रकृति मनुष्य को कितना कुछ देती है, बदले में वह मनुष्य से कुछ नहीं माँगती। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, नदियों के जल का दुरुपयोग तथा कृषि योग्य भूमि पर बड़े-बड़े औद्योगिक संस्थानों के निर्माण ने प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ दिया है। मनुष्य को चाहिए यदि वह प्रकृति से लाभ उठाना चाहता है, तो उसकी उचित देख-रेख करें। जितने वृक्ष काटें, उससे दोगुने वृक्षों को लगाएँ।

वृक्ष लगाने से मिट्टी का बहाव रुक जाएगा तथा चारों ओर हरियाली होने से प्रकृति में वायु और वर्षा का संतुलन बन जाएगा। वर्षा उचित समय से होने पर नदियों में जल की कमी नहीं होगी। जल प्रकृति की अनमोल देन है। मनुष्य को चाहिए नदियों के जल का उचित प्रयोग करें। नदियों के जल में गंदगी नहीं डालनी चाहिए। औद्योगिक संस्थानों से निकले गंदे पानी की निकासी के लिए अलग प्रबंध करना चाहिए। कृषि योग्य भूमि को भी दुरुपयोग से बचाना चाहिए। सरकार को प्रकृति का संतुलन बनाने के लिए उचित तथा कठोर नियम बनाने चाहिए। उन नियमों का उल्लंघन करने वालों के लिए कठोर दंड का प्रावधान होना चाहिए।

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प्रश्न 13.
प्रदूषण के कारण स्नोफॉल में कमी का जिक्र किया गया है। प्रदूषण के और कौन-कौन से दुष्परिणाम सामने आए हैं, लिखें।
अथवा
‘साना-साना हाथ जोडि’ पाठ में प्रदूषण के कारण हिमपात में कमी पर चिंता व्यक्त की गई है। प्रदूषण के कारण कौन-कौन से दुष्परिणाम सामने आए हैं? हमें इसकी रोकथाम के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर :
प्रदूषण के कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है। साथ में मनुष्य का स्वास्थ्य भी प्रभावित हुआ है। प्रदूषण के कारण पूरे देश का सामाजिक और आर्थिक वातावरण बिगड़ गया है। खेती के आधुनिक उपायों, खादों तथा कृत्रिम साधनों के प्रयोग से भूमि की उपजाऊ शक्ति खत्म होती जा रही है। बीज और खाद के दूषित होने के कारण फ़सलें खराब हो जाती हैं, जिससे मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण ने मिलकर मनुष्य और प्रकृति को विकलांग बना दिया।

वायु प्रदूषण से साँस लेने के लिए स्वच्छ वायु की कमी होती जा रही है, जिससे मनुष्य को फेफड़ों से संबंधित कई बीमारियाँ लग रही हैं। ध्वनि प्रदूषण से बहरेपन की समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इससे मानव के स्वभाव पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है। प्रदूषण की इस समस्या से निपटने के लिए युवा पीढ़ी का जागरूक होना आवश्यक है। उसके लिए सरकार को प्रदूषण संबंधी कार्यक्रम चलाने चाहिए। प्रदूषण संबंधी नियमों का दृढ़ता से पालन और लागू किया जाना आवश्यक है।

प्रश्न 14.
‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। इस कथन के पक्ष में अपनी राय व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। ‘कटाओ’ को भारत का स्विट्ज़रलैंड कहा जाता है। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता असीम है, जिसे देखकर सैलानी स्वयं को ईश्वर के निकट समझते हैं। वहाँ उन्हें अद्भुत शांति मिलती है। यदि वहाँ पर दुकानें खुल जाती हैं तो लोगों की भीड़ बढ़ जाएगी, जिससे वहाँ गंदगी और प्रदूषण फैलेगा। लोग सफ़ाई संबंधी नियमों का पालन नहीं करते। वस्तुएँ खा-पीकर व्यर्थ का सामान इधर-उधर फेंक देते हैं। लोगों का आना-जाना बढ़ने से जैसे यूमथांग में स्नोफॉल कम हो गया है, वैसा ही यहाँ पर भी होने की संभावना है। ‘कटाओ’ के वास्तविक स्वरूप में रहने के लिए वहाँ किसी भी दुकान का न होना अच्छा है।

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प्रश्न 15.
प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है?
उत्तर :
प्रकृति का जल संचय करने का अपना ही ढंग है। सर्दियों में वह बर्फ के रूप में जल इकट्ठा करती है। गर्मियों में जब लोग पानी के लिए तरसते हैं, तो ये बर्फ शिलाएँ पिघलकर जलधारा बन जाती हैं। इनसे हम जल प्राप्त कर अपनी प्यास बुझाते हैं और दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।

प्रश्न 16.
देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी किस तरह की कठिनाइयों से जूझते हैं ? उनके प्रति हमारा क्या उत्तरदायित्व होना चाहिए?
अथवा
देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी कई तरह से कठिनाइयों का मुकाबला करते हैं। सैनिकों के जीवन से किन-किन जीवन-मूल्यों को अपनाया जा सकता है? चर्चा कीजिए।
उत्तर :
देश की सीमा पर तैनात फ़ौजियों को कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। बर्फीले क्षेत्रों में तैनात फ़ौजी बर्फीली हवाओं और तूफानों का सामना करते हैं। पौष और माघ की ठंड में वहाँ पेट्रोल के अतिरिक्त सबकुछ जम जाता है। फ़ौजी बड़ी मुश्किल से अपने शरीर के तापमान को सामान्य रखते हुए देश की सीमा की रक्षा करते हैं। वहाँ आने-जाने का मार्ग खतरनाक और सँकरा है, जिन पर से गुजरते हुए किसी के भी प्राण जाने की संभावना बनी रहती है।

ऐसे रास्तों पर चलते हुए फ़ौजी अपने जीवन की परवाह न करते हुए हमारे लिए आने वाले कल को सुरक्षित करते हैं। देश की सीमा की रक्षा करने वाले फ़ौजियों के प्रति आम नागरिक का भी कर्तव्य बन जाता है कि वे उनके परिवार की खुशहाली के लिए प्रयत्नशील हो, जिससे वे लोग बेफ़िक्र होकर सीमा पर मजबूती से अपना फ़र्ज पूरा कर सकें। समय-समय पर उनका साहस बढ़ाने के लिए मनोरंजक कार्यक्रमों का प्रबंध करना चाहिए।

लोगों को भी देश की संपत्ति की रक्षा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इसके अतिरिक्त हमें देश के अंदर शांति-व्यवस्था तथा धार्मिक सौहार्दयता बनाए रखने में अपना योगदान देना चाहिए। फौजियों से हम अनुशासन और विपरीत परिस्थितियों से न घबराने की सीख भी ले सकते हैं।

JAC Class 10 Hindi साना-साना हाथ जोड़ि Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखिका को गंतोक से कंचनजंघा क्यों नहीं दिखाई दे रहा था?
उत्तर :
लेखिका की वह सुबह गंतोक में आखिरी सुबह थी। वहाँ से वे लोग यूमथांग जा रहे थे। वहाँ के लोगों के अनुसार यदि मौसम साफ़ हो तो वहाँ से कंचनजंघा दिखाई देता है। कंचनजंघा हिमालय की तीसरी सबसे बड़ी चोटी थी। उस दिन मौसम साफ़ होने पर भी लेखिका को हल्के-हल्के बादलों के कारण वह चोटी दिखाई नहीं दी थी।

प्रश्न 2.
क्या लेखिका को लायुग में बर्फ़ देखने को मिली? यदि नहीं, तो उसका क्या कारण था?
उत्तर :
लेखिका जैसे पर्वतों के निकट आती जा रही थी, उसकी बर्फ़ देखने की इच्छा प्रबल होती जा रही थी। लायुग में उसे बर्फ के होने का विश्वास था। परंतु सुबह उठकर जैसे वह बाहर निकली, उसे निराशा हाथ लगी। वहाँ बर्फ का एक भी टुकड़ा नहीं था। लेखिका को लगा कि समुद्र से 14000 फीट की ऊँचाई पर भी बर्फ का न मिलना आश्चर्य है। वहाँ के स्थानीय व्यक्ति ने इस समय स्नोफॉल न होने का कारण बढ़ते प्रदूषण को बताया। जिस प्रकार से प्रदूषण बढ़ रहा है, उसी तरह प्रकृति के साधनों में कमी आती जा रही है।

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प्रश्न 3.
लेखिका को बर्फ कहाँ देखने को मिल सकती थी और वह कहाँ स्थित है?
उत्तर :
लेखिका को इस समय बर्फ ‘कटाओ’ में देखने को मिल सकती थी। कटाओ को भारत का स्विट्ज़रलैंड भी कहा जाता है। अभी तक वह टूरिस्ट स्पॉट नहीं बना, इसलिए वह अपने प्राकृतिक स्वरूप में था। कटाओ लाचुंग से 500 फीट की ऊँचाई पर था। वहाँ पहुँचने के लिए लगभग दो घंटे का समय लगना था।

प्रश्न 4.
‘कटाओ’ का सफ़र कैसा रहा?
उत्तर :
कटाओ का रास्ता खतरनाक था। उस समय धुंध और बारिश हो रही थी, जिसने सफ़र को और खतरनाक बना दिया था। जितेन लगभग र, अनुमान से गाड़ी चला रहा था। खतरनाक रास्तों के अहसास ने सबको मौन कर दिया था। ज़रा-सी असावधानी सबके प्राणों के लिए घातक सिद्ध हो सकती थी। जीप के अंदर केवल एक-दूसरे की साँसों की आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही थी। वे लोग आस-पास के वातावरण से अनजान थे। जगह-जगह पर सावधानी से यात्रा करने की चेतावनी लिखी हुई थी।

प्रश्न 5.
लेखिका बर्फ पर चलने की इच्छा पूरी क्यों नहीं कर सकी?
उत्तर :
लेखिका और उसका यात्री दल जब कटाओ पहुँचा, उस समय ताजी बर्फ गिरी हुई थी। बर्फ देखकर लेखिका का मन प्रसन्नता से भर उठा। उसकी इच्छा थी कि वह बर्फ पर चलकर इस जन्नत को अनुभव करे। परंतु वह ऐसा कुछ नहीं कर सकी, क्योंकि उसके पास बर्फ में पहनने वाले जूते नहीं थे। वहाँ पर ऐसी कोई दुकान नहीं थी, जहाँ से वह जूते किराए पर ले सके।

प्रश्न 6.
लेखिका पर वहाँ के वातावरण ने क्या प्रभाव डाला?
उत्तर :
लेखिका वहाँ पहुँचकर स्वयं को प्रकृति में खोया हुआ अनुभव कर रही थी। वह दूसरे लोगों की तरह फ़ोटो खींचने में नहीं लगी हुई थी। वह उन क्षणों को पूरी तरह अपनी आत्मा में समा लेना चाहती थी। हिमालय के शिखर उसे आध्यात्मिकता से जोड़ रहे थे। उसे लग रहा था कि ऋषि-मुनियों ने इसी दिव्य प्रकृति में जीवन के सत्य को जाना होगा; वेदों की रचना की होगी। जीवन में सब सुख देने वाला महामंत्र भी यहीं से पाया होगा। लेखिका उस सौंदर्य में इतनी खो गई थी कि उसे अपने आस-पास सब चेतन शून्य अनुभव हो रहा था।

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प्रश्न 7.
जितेन ने सैलानियों से गुरु नानक देव जी से संबंधित किस घटना का वर्णन किया है?
उत्तर :
जितेन को वहाँ के इतिहास और भौगोलिक स्थिति का पूरा ज्ञान था। वह उन्हें रास्ते भर तरह-तरह की जानकारियाँ देता रहा था। एक स्थान पर उसने बताया कि यहाँ पर एक पत्थर पर गुरु नानक देव जी के पैरों के निशान हैं। जब गुरु नानक जी यहाँ आए थे, उस समय उनकी थाली से कुछ चावल छिटककर बाहर गिर गए थे। जहाँ-जहाँ चावल छिटके थे, वहाँ-वहाँ चावलों की खेती होने लगी थी।

प्रश्न 8.
हिमालय की तीसरी चोटी कौन-सी है? लेखिका उसे क्यों नहीं देख पाई ?
उत्तर :
हिमालय की तीसरी चोटी कंचनजंघा है। लेखिका को गंतोक शहर के लोगों ने बताया था कि यदि मौसम साफ हो तो यहाँ से हिमालय की तीसरी चोटी कंचनजंघा साफ-साफ दिखाई देती है, लेकिन उस दिन आसमान हलके बादलों से ढका था, जिस कारण लेखिका कंचनजंघा को नहीं देख पाई।

प्रश्न 9.
लेखिका ने गंतोक के रास्ते में एक युवती से प्रार्थना के कौन-से बोल सीखे थे?
उत्तर :
अपनी गंतोक यात्रा के दौरान लेखिका ने एक नेपाली युवती से प्रार्थना के कुछ बोल सीखे थे-‘साना-साना हाथ जोड़ि, गर्दहु प्रार्थना। हाम्रो जीवन तिम्रो कोसेली। इसका अर्थ है-छोटे-छोटे हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रही हूँ कि मेरा सारा जीवन अच्छाइयों को समर्पित हो।

प्रश्न 10.
लेखिका ने जब ‘सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल’ देखा, तो उसे क्या अहसास हुआ?
उत्तर :
लेखिका ने जब ‘सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल’ देखा, तो उसे एक अजीब जीवन शक्ति का अहसास हुआ। उसे अपने अंदर की सभी बुराइयाँ एवं दुष्ट वासनाएँ दूर होती हुई प्रतीत होने लगीं। उसे लगा कि जैसे वह सरहदों से दूर आकर धारा का रूप धारण करके बहने लगी है। अपने अंदर इस बदलाव को देखकर लेखिका चाह रही थी कि वह ऐसी ही बनी रही और झरनों से बहने वाले निर्मल-स्वच्छ जल की कल-कल ध्वनि सुनती रहे।

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प्रश्न 11.
लेखिका जब चाय बागानों के बीच से गुजर रही थी, तब किस दृश्य ने उसका ध्यान अपनी ओर खींचा?
उत्तर :
लेखिका जब चाय बागानों के बीच से गुजर रही थी, तो सिक्किमी परिधान पहने युवतियाँ हरे-भरे बागानों में चाय की पत्तियाँ तोड़ रही थीं। उनके चेहरे ढलते सूरज की रोशनी में दमक रहे थे। चारों ओर इंद्रधनुषी रंग छटा बिखरी हुई थी। प्रकृति का ऐसा अद्भुत दृश्य देखकर लेखिका का ध्यान उसी ओर खींचता जा रहा था।

प्रश्न 12.
पहाड़ी बच्चों का जनजीवन किस प्रकार का होता है?
उत्तर :
पहाड़ी बच्चों का जनजीवन बड़ा ही कठोर होता है। वहाँ बच्चे तीन-चार किलोमीटर की चढ़ाई चढ़कर स्कूल जाते हैं। वहाँ आस-पास कम ही स्कूल होते हैं। वहाँ बच्चे स्कूल से लौटकर अपनी माँ के साथ काम करते हैं।

प्रश्न 13.
लायुग में जनजीवन किस प्रकार का है?
उत्तर :
लायुंग में अधिकतर लोगों की जीविका का साधन पहाड़ी आलू, धान की खेती और शराब है। इनका जीवन भी गंतोक शहर के लोगों के समान बड़ा कठोर है। परिश्रम की मिसाल देनी हो, तो इन्हीं क्षेत्रों की दी जा सकती है।

प्रश्न 14.
गंतोक का क्या अर्थ है? लोग इसे क्या कहकर पुकारते हैं?
उत्तर :
गंतोक का अर्थ है-‘पहाड़’। लोग गंगटोक को ही ‘गंतोक’ बुलाते हैं।

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प्रश्न 15.
जितेन के अनुसार पहाड़ी लोग गंदगी क्यों नहीं फैलाते ?
उत्तर :
पहाड़ी लोगों की मान्यता है कि वहाँ विशेष स्थान पर देवी-देवताओं का निवास है। जो यहाँ गंदगी फैलाएगा, वह मर जाएगा। इसी मान्यता के कारण वे लोग यहाँ गंदगी नहीं फैलाते।

साना-साना हाथ जोड़ि Summary in Hindi

लेखिका-परिचय :

मधु कांकरिया का जन्म कोलकाता में सन 1957 में हुआ था। इन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम० ए० और कंप्यूटर एप्लीकेशन में डिप्लोमा प्राप्त किया था। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-पत्ताखोर (उपन्यास), सलाम आखिरी, खुले गगन के लाल सितारे, बीतते हुए, अंत में ईशु (कहानी-संग्रह)। इन्होंने अनेक यात्रा-वृत्तांत भी लिखे हैं। इनकी रचनाओं में विचार और संवेदना की नवीनता मिलती है। इन्होंने समाज में व्याप्त समसामयिक समस्याओं पर अपनी लेखनी चलाई है। इनकी भाषा सहज, भावानुरूप, प्रवाहमयी तथा शैली वर्णनात्मक, भावपूर्ण तथा चित्रात्मक है।

पाठ का सार :

‘साना-साना हाथ जोड़ि….’ पाठ की लेखिका ‘मधु कांकरिया’ हैं। लेखिका इस पाठ के माध्यम से यह बताना चाहती है कि यात्राओं से मनोरंजन, ज्ञानवर्धन एवं अज्ञात स्थलों की जानकारी के साथ-साथ भाषा और संस्कृति का आदान-प्रदान भी होता है। लेखिका जब महानगरों की भावशून्यता, भागमभाग और यंत्रवत जीवन से ऊब जाती है, तो दूर-दूर यात्राओं पर निकल पड़ती है। उन्हीं यात्राओं के अनुभवों को उन्होंने अपने यात्रा-वृत्तांतों में शब्दबद्ध किया है।

इस लेख में भारत के सिक्किम राज्य की राजधानी गंगटोक और उसके आगे हिमालय की यात्रा का वर्णन किया गया है। लेखिका गंगटोक शहर में तारों से भरे आसमान को देख रही थी। उस रात में ऐसा सम्मोहन था कि वह उसमें खो जाती है। उसकी आत्मा भावशून्य हो जाती है। वह नेपाली भाषा में मंद स्वर में सुबह की प्रार्थना करने लगती है। उन लोगों ने सुबह यूमथांग के लिए जाना था।

यदि वहाँ का मौसम साफ़ हो, तो गंगटोक से हिमालय की तीसरी सबसे बड़ी चोटी कंचनजंघा दिखाई देती है। मौसम साफ़ होने के बावजूद आसमान में हल्के बादल थे, इसलिए लेखिका को कंचनजंघा पिछले साल की तरह दिखाई नहीं दी। यूमथांग गंगटोक से 149 कि० मी० की दूरी पर था। उन लोगों के गाइड कम ड्राइवर का नाम जितेन नार्गे था। यूमथांग का रास्ता घाटियों और फूलों से भरा था। रास्ते में उन्हें एक जगह पर सफ़ेद बौद्ध पताकाएँ लगी दिखाई दीं। ये पताकाएँ अहिंसा और शांति की प्रतीक हैं।

जितेन नार्गे ने बताया कि जब कोई बुद्धिस्ट मर जाता है, तो किसी पवित्र स्थल पर एक सौ आठ सफ़ेद बौद्ध पताकाएँ फहरा दी जाती हैं जिन्हें उतारा नहीं जाता। कई बार किसी नए कार्य के आरंभ पर रंगीन पताकाएँ लगाई जाती हैं। जितेन नार्गे की जीप में भी दलाई लामा की फ़ोटो लगी थी। जितेन ने बताया कि कवी-लोंग स्टॉक नामक स्थान पर ‘गाइड’ फ़िल्म की शूटिंग हुई थी। उन लोगों ने रास्ते में एक घूमता हुआ चक्र देखा, जिसे धर्म-चक्र के नाम से जाना जाता था। वहाँ रहने वाले लोगों का विश्वास था कि उसे घूमाने से सारे पाप धुल जाते हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना-साना हाथ जोड़ि

लेखिका को लगता है कि सभी जगह आस्थाएँ, विश्वास, अंधविश्वास और पाप-पुण्य एक जैसे हैं। जैसे-जैसे वे लोग ऊँचाई की ओर बढ़ने लगे, वैसे-वैसे बाजार, लोग और बस्तियाँ आँखों से ओझल होने लगीं। घाटियों में देखने पर सबकुछ धुंधला दिखाई दे रहा था। पहाड़ियों ने विराट रूप धारण कर लिया था। पास से उनका वैभव कुछ अलग था। धीरे-धीरे रास्ता अधिक घुमावदार होने लगा था। उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे वे किसी हरियाली वाली गुफ़ा के मध्य से गुज़र रहे हों।

सब यात्रियों पर वहाँ के हसीन मौसम का असर हो रहा था। लेखिका अपने आस-पास के दृश्यों को चुप रहकर अपने में समा लेना चाहती थी। सिलीगुड़ी से साथ चल रही तिस्ता नदी का सौंदर्य आगे बढ़ने पर और अधिक निखर गया था। वह उस नदी को देखकर रोमांचित हो रही थी। वह मन-ही-मन हिमालय को सलामी देती है। ‘सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल’ पर जीप रुकती है। सभी लोग वहाँ की सुंदरता को कैमरे में कैद करने लग जाते हैं।

लेखिका आदिम युग की अभिशप्त राजकुमारी की तरह झरने से बह रहा संगीत आत्मलीन होकर सुनने लगती है। उसे लगा, जैसे उसने सत्य और सौंदर्य को छू लिया हो। झरने का पानी उसमें एक नई शक्ति का अहसास भर रहा था। लेखिका को लग रहा था कि उसके अंदर की सारी कुटिलता और बुरी इच्छाएँ पानी की धारा के साथ बह गई हैं। वह वहाँ से जाने के लिए तैयार नहीं थी। जितेन ने कहा कि आगे इससे भी सुंदर दृश्य हैं। पूरे रास्ते आँखों और आत्मा को सुख देने वाले दृश्य थे। रास्ते में प्राकृतिक दृश्य पलपल अपना रंग बदल रहे थे।

ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई जादू की छड़ी घुमाकर सबकुछ बदल रहा था। माया और छाया का यह अनूठा खेल लेखिका को जीवन के रहस्य समझा रहा था। पूरा वातावरण प्राकृतिक रहस्यों से भरा था, जो सबको रोमांचित कर रहा था। थोड़ी देर के लिए जीप रुकी। जहाँ जीप रुकी थी, वहाँ लिखा था-‘थिंक ग्रीन’। वहाँ ब्रह्मांड का अद्भुत दृश्य देखने को मिल रहा था। सभी कुछ एक साथ सामने था।

लगातार बहते झरने थे, नीचे पूरे वेग से बह रही तिस्ता नदी थी, सामने धुंध थी, ऊपर आसमान में बादल थे और धीरेधीरे हवा चल रही थी, जो आस-पास के वातावरण में खिले फूलों की हँसी चारों ओर बिखेर रही थी। उस प्राकृतिक वातावरण को देखकर ऐसा लग रहा था कि लेखिका का अस्तित्व भी इस वातावरण के साथ बह रहा था।

ऐसा सौंदर्य जीवन में पहली बार देखा था। लेखिका को लग रहा था कि उसका अंदर-बाहर सब एक हो गया था। उसकी आत्मा ईश्वर के निकट पहुँच गई लगती थी। मुँह से सुबह की प्रार्थना के बोल निकल रहे थे। अचानक लेखिका का इंद्रजाल टूट गया। उन्होंने देखा कि इस अद्वितीय सौंदर्य के मध्य कुछ औरतें बैठी पत्थर तोड़ रही थीं। कुछ औरतों की पीठ पर बंधी टोकरियों में बच्चे थे। इतने सुंदर वातावरण में भूख, गरीबी और मौत के निर्मम दृश्य ने लेखिका को सहमा दिया। ऐसा लग रहा था कि मातृत्व और श्रम साधना साथ-साथ चल रही है। एक कर्मचारी ने बताया कि ये पहाडिनें।

मौत की भी परवाह न करते हुए लोगों के लिए पहाड़ी रास्ते को चौड़ा बना रही हैं। कई बार काम करते समय किसी-न-किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है, क्योंकि जब पहाड़ों को डायनामाइट से उड़ाया जाता है तो उनके टुकड़े इधर-उधर गिरते हैं। यदि उस समय सावधानी न ! बरती जाए, तो जानलेवा हादसा घट जाता है। उन लोगों की स्थिति देखकर लेखिका को लगता है कि सभी जगह आम जीवन की कहानी। एक-सी है। मजदूरों के जीवन में आँसू, अभाव और यातना अपना अस्तित्व बनाए रखते हैं। लेखिका की सहयात्री मणि और जितेन उसे गमगीन देखकर कहते हैं कि यह देश की आम जनता है, इसे वे लोग कहीं भी देख सकते हैं।

लेखिका उनकी बात सुनकर चुप रहती है, परंतु मन ही मन सोचती है कि ये लोग समाज को कितना कुछ देते हैं; इस कठिन स्थिति में भी ये खिलखिलाते रहते हैं। वे लोग वहाँ से आगे चलते हैं। रास्ते में बहुत सारे पहाड़ी स्कूली बच्चे मिलते हैं। जितेन बताता है कि ये बच्चे तीन-साढ़े तीन किलोमीटर – की पहाड़ी चढ़ाई चढ़कर स्कूल जाते हैं। यहाँ आस-पास एक या दो स्कूल हैं। ये बच्चे स्कूल से लौटकर अपनी माँ के साथ काम करते हैं। यहाँ का जीवन बहुत कठोर है। जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ती जा रही थी, वैसे-वैसे खतरे भी बढ़ते जा रहे थे। रास्ता तंग होता जा रहा था। जगह-जगह सरकार की चेतावनियों के बोर्ड लगे थे कि गाड़ी धीरे चलाएँ।

सूरज ढलने पर पहाड़ी औरतें और बच्चे गाय चराकर घर लौट रहे थे। कुछ के सिर पर लकड़ियों के गट्ठर थे। शाम के समय जीप चाय बागानों में से गुजर रही थी। बागानों में कुछ युवतियाँ सिक्किमी परिधान पहने चाय की पत्तियाँ तोड़ रही थीं। उनके चेहरे ढलती शाम के सूरज की रोशनी में दमक रहे थे। चारों ओर इंद्रधनुषी रंग छटा बिखेर रहे थे। लेखिका इतना प्राकृतिक सौंदर्य देखकर खुशी से चीख रही थी। यूमथांग पहुँचने से पहले वे लोग लायुंग रुके। लायुग में लकड़ी से बने छोटे-छोटे घर थे। लेखिका सफ़र की थकान उतारने के लिए तिस्ता नदी के किनारे फैले पत्थरों पर बैठ गई। उस वातावरण में अद्भुत शांति थी। ऐसा लग रहा था जैसे प्रकृति अपनी लय, ताल और गति में कुछ कह रही है। इस सफ़र ने लेखिका को दार्शनिक बना दिया था।

रात होने पर जितेन के साथ अन्य साथियों ने नाच-गाना शुरू कर दिया था। लेखिका की सहयात्री मणि ने बहुत सुंदर नृत्य किया। लायुंग में अधिकतर लोगों की जीविका का साधन पहाड़ी आलू, धान की खेती और शराब था। लेखिका को वहाँ बर्फ़ देखने की इच्छा थी, परंतु वहाँ बर्फ का नाम न था। वे लोग उस समय समुद्र तट से 14000 फीट की ऊँचाई पर थे। एक स्थानीय युवक के अनुसार प्रदूषण के कारण यहाँ स्नोफॉल कम हो। गया था। ‘कटाओ’ में बर्फ देखने को मिल सकती है। कटाओ’ को भारत का स्विट्जरलैंड कहा जाता है। कटाओ को अभी तक टूरिस्ट स्पॉट नहीं बनाया गया था, इसलिए यह अब तक अपने प्राकृतिक स्वरूप में था।

लायुंग से कटाओ का सफ़र दो घंटे का था। कटाओ का रास्ता खतरनाक था। जितेन अंदाज़ से गाड़ी चला रहा था। वहाँ का सारा वातावरण बादलों से घिरा हुआ था। जरा-सी भी असावधानी होने पर बड़ी घटना घट सकती थी। थोड़ी दूर जाने पर मौसम साफ़ हो गया था। मणि कहने लगी कि यह स्विट्ज़रलैंड से भी सुंदर है। कटाओ दिखने लगा था। चारों ओर बर्फ से भरे पहाड़ थे। जितेन कहने लगा कि यह बर्फ रात को ही पड़ी है। पहाड़ ऐसे लग रहे थे जैसे चारों ओर चाँदी फैली हो।

कटाओ पहुँचने पर हल्की-हल्की बर्फ पड़ने लगी थी। बर्फ को देखकर सभी झूमने लगे थे, लेखिका का मन बर्फ पर चलने का हो रहा था, परंतु उसके पास बर्फ में पहनने वाले जूते नहीं थे। सभी सहयात्री वहाँ के वातावरण में फोटो खिंचवा रहे थे। लेखिका फोटो खिंचवाने की अपेक्षा वहाँ के वातावरण को अपनी साँसों में समा लेना चाहती थी। उसे लग रहा था कि यहाँ के वातावरण ने ही ऋषियोंमुनियों को वेदों की रचना करने की प्रेरणा दी होगी। ऐसे असीम सौंदर्य को यदि कोई अपराधी भी देख ले, तो वह भी आध्यात्मिक हो जाएगा। मणि के मन में भी दार्शनिकता उभरने लगी थी।

ये हिमशिखर पूरे एशिया को पानी देते हैं। प्रकृति अपने ढंग से सर्दियों में हमारे लिए पानी ! इकट्ठा करती है और गर्मियों में ये बर्फ़ शिलाएँ पिघलकर जलधारा बनकर हम लोगों की प्यास को शांत करती हैं। प्रकृति का यह जल संचय अद्भुत है। इस प्रकार नदियों और हिमशिखरों का हम पर ऋण है। थोड़ा आगे जाने पर फ़ौजी छावनियाँ दिखाई दीं। थोड़ी दूरी पर चीन की सीमा थी। फ़ौजी कड़कड़ाती ठंड में स्वयं को कष्ट देकर हमारी । रक्षा करते हैं।

लेखिका फ़ौजियों को देखकर उदास हो गई। वैशाख के महीने में भी वहाँ बहुत ठंड थी। वे लोग पौष और माघ की ठंड में किस तरह रहते होंगे? वहाँ जाने का रास्ता भी बहुत खतरनाक था। वास्तव में ये फ़ौजी अपने आज के सुख का त्याग करके हमारे लिए। शांतिपूर्वक कल का निर्माण करते हैं। वे लोग वहाँ से वापस लौट आए थे। यूमथांग की पूरी घाटियाँ प्रियुता और रूडोडेंड्री के फूलों से खिली थीं।

जितेन ने रास्ते में बताया कि यहाँ पर बंदर का माँस भी खाया जाता है। बंदर का मांस खाने से कैंसर नहीं होता। उसने आगे बताया. कि उसने तो कुत्ते का माँस भी खाया हुआ है। सभी को जितेन की बातों पर विश्वास नहीं हुआ, लेकिन लेखिका को लग रहा था कि वह सच बोल रहा है। उसने पठारी इलाकों की भयानक गरीबी देखी है। लोगों को सुअर का दूध पीते हुए देखा था। यूमथांग वापस आकर उन लोगों को वहाँ सब फीका-फीका लग रहा था।

वहाँ के लोग स्वयं को प्रदेश के नाम से नहीं बल्कि भारतीय के नाम से पुकारे जाने को पसंद करते हैं। पहले सिक्किम स्वतंत्र राज्य था। अब वह भारत का एक हिस्सा बन गया है। ऐसा करके वहाँ के लोग बहुत खुश हैं। मणि ने बताया। कि पहाड़ी कुत्ते केवल चाँदनी रातों में भौंकते हैं। यह सुनकर लेखिका हैरान रह गई। उसे लगा कि पहाड़ी कुत्तों पर भी ज्वारभाटे की तरह पूर्णिमा की चाँदनी का प्रभाव पड़ता है। लौटते हुए जितेन ने उन लोगों को कई और महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी। रास्ते में उसने एक जगह दिखाई।

उसके बारे में बताया कि यहाँ पूरे एक किलोमीटर के क्षेत्र में देवी-देवताओं का निवास है। जो यहाँ गंदगी फैलाएगा, वह मर जाएगा। उसने बताया कि वे लोग पहाड़ों पर गंदगी नहीं फैलाते हैं। वे लोग गंगटोक को गंतोक बुलाते हैं। गंतोक का अर्थ है-‘पहाड़। सिक्किम में अधिकतर क्षेत्रों को टूरिस्ट स्पॉट बनाने का श्रेय भारतीय आर्मी के कप्तान शेखर दत्ता को जाता है। लेखिका को लगता है कि मनुष्य की कभी न समाप्त होने वाली खोज का नाम ही सौंदर्य है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना-साना हाथ जोड़ि

कठिन शब्दों के अर्थ :

अतींद्रियता – इंद्रियों से परे। संधि – सुलह। उजास – प्रकाश, उजाला। सम्मोहन – मुग्ध करना। रकम-रकम – तरह-तरह के। कपाट – दरवाज़ा। लम्हें – क्षण। रफ़्ता-रफ़्ता – धीरे-धीरे। गहनतम – बहुत गहरी। सघन – घनी। शिद्दत – तीव्रता, प्रबलता, अधिकता। पताका – झंडा। श्वेत – सफ़ेद। मुंडकी – सिर। सुदीर्घ – बहुत बड़े। मशगूल – व्यस्त। प्रेयर व्हील – प्रार्थना का चक्र। अभिशप्त – शापित, शाप युक्त सरहद – सीमा। पराकाष्ठा – चरम-सीमा। तामसिकताएँ – तमोगुण से युक्त, कुटिल। मशगूल – व्यस्त। आदिमयुग – आदि युग।

निर्मल – स्वच्छ, साफ़। श्रम – मेहनत। अनंतता – असीमता। वंचना – धोखा। दुष्ट वासनाएँ – बुरी इच्छाएँ। आवेश – जोश। सयानी – समझदार, चतुर। मौन – चुप। जन्नत – स्वर्ग। सृष्टि – संसार, जगत। सन्नाटा – खामोशी। चैरवेति चैरवेति – चलते रहो, चलते रहो। वजूद – अस्तित्व। सैलानी – यात्री, पर्यटक। वृत्ति – जीविका। ठाठे – हाथ में पड़ने वाली गाँठे या निशान। दिव्यता – सुंदरता। वेस्ट एट रिपेईंग – कम लेना और ज़्यादा देना। मद्धिम – धीमी, हलकी। दुर्लभ – कठिन। हलाहल – विष, ज़हर। सतत – लगातार।

प्रवाहमान – गतिमान। संक्रमण – मिलन, संयोग। चलायमान – चंचल। लेवल – तल, स्तर। सुर्खियाँ – चर्चा में आना। निरपेक्ष – बेपरवाह। गुडुप – निगल लिया। राम रोछो – अच्छा है। टूरिस्ट स्पॉट – भ्रमण-स्थल। असमाप्त – कभी समाप्त न होने वाला। अद्वितीय – अनुपम। कुदाल – भूमि खोदने का अस्त्र। विलय – मिलना। सँकरे – तंग। सात्विक आभा – निर्मल कांति। सुरम्य – अत्यंत मनोहर। मीआद – सीमा। आबोहवा – जलवायु।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 2 जॉर्ज पंचम की नाक

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 2 जॉर्ज पंचम की नाक Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 2 जॉर्ज पंचम की नाक

JAC Class 10 Hindi जॉर्ज पंचम की नाक Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है, वह उनकी किस मानसिकता को दर्शाती है?
उत्तर :
हमारा देश चाहे पिछले अनेक वर्षों से स्वतंत्र हो चुका है, पर यहाँ अभी भी मानसिक गुलामी का भाव विद्यमान है। सरकारी तंत्र अपने देश की मान-मर्यादा की रक्षा करने की अपेक्षा उन विदेशियों के तलवे चाटने की इच्छा रखता है, जिन्होंने लंबे समय तक देशवासियों को अपने पैरों तले कुचला था; उन्हें परेशान किया था; देशभक्तों को अपने जुल्मों का शिकार बनाया था। सरकारी तंत्र की चिंता और बदहवासी का कोई कारण नहीं था; पर फिर भी वह परेशान था। उसे देश की जनता और देश की मान-मर्यादा से अधिक चिंता उस पत्थर की नाक की थी, जिसे आंदोलनकारियों ने अपने गुस्से का शिकार बना दिया था। इससे सरकारी तंत्र की अदूरदर्शिता, संकुचित सोच और जनता के पैसे के अपव्यय के साथ-साथ अखबारों में छपने की तीव्र इच्छा प्रकट होती है। उनकी गुलाम मानसिकता किसी भी दृष्टि से सराहनीय नहीं कही जा सकती।

प्रश्न 2.
रानी एलिजाबेथ के दरजी की परेशानी का क्या कारण था? उसकी परेशानी को आप किस तरह तर्कसंगत ठहराएँगे?
उत्तर :
रानी एलिजाबेथ के दरज़ी की परेशानी का कारण रानी के द्वारा पहने जाने वाले वस्त्र थे, जो उसने हिंदुस्तान, पाकिस्तान और नेपाल के दौरे पर पहनने थे। दरजी की परेशानी उसकी अपनी दृष्टि से तर्कसंगत थी। हर व्यक्ति अपने द्वारा किए गए कार्य को सर्वश्रेष्ठ रूप में प्रस्तुत करना चाहता है, ताकि वह दूसरों के द्वारा की जाने वाली प्रशंसा को बटोर सके।

एलिजाबेथ उस देश की रानी थी, जिसने उन देशों पर राज्य किया था जहाँ अब वह दौरे के लिए पधार रही थी। हर व्यक्ति की दृष्टि में पहली झलक शारीरिक सुंदरता और वेशभूषा की ही होती है और उसी से वह बाहर से आने वाले के बारे में अपने विचार बनाने लगता है। इसलिए दरजी रानी के लिए अति सुंदर और उच्च स्तरीय वस्त्र तैयार करना चाहता था। उसकी परेशानी तर्कसंगत और सार्थक है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 2 जॉर्ज पंचम की नाक

प्रश्न 3.
‘और देखते-ही-देखते नई दिल्ली का काया पलट होने लगा’-नई दिल्ली के काया पलट के लिए क्या-क्या प्रयत्न किए गए होंगे?
उत्तर :
जब रानी एलिज़ाबेथ ने तीन देशों की यात्रा में सबसे पहले हिंदुस्तान आने का निश्चय किया, तो तत्कालीन सरकार प्रसन्नता और उत्साह से भर उठी होगी। उसके मन में नई दिल्ली की शोभा के माध्यम से सारे देश की झलक दिखा देने का भाव उत्पन्न हुआ होगा। नई दिल्ली की वे सड़कें जो धूल-मिट्टी से भरी रहती हैं, उन्हें अच्छी तरह से साफ़ करके सँवारा गया होगा; उनकी टूट-फूट ठीक की गई होगी। जगह-जगह बंदनवार और फूलों से सजे स्वागत द्वार लगाए गए होंगे। रानी के स्वागत में बड़े-बड़े बैनर और रंग-बिरंगे बोर्ड तैयार किए गए होंगे। सड़क किनारे उगे झाड़-झंखाड़ काटे गए होंगे और घास को सँवारा गया होगा। न जाने कहाँ-कहाँ से फूल-पौधों के गमले लाकर सजा दिए गए होंगे।

प्रश्न 4.
आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खान-पान संबंधी आदतों आदि के वर्णन का दौर चल पड़ा है
(क) इस प्रकार की पत्रकारिता के बारे में आपके क्या विचार हैं?
(ख) इस तरह की पत्रकारिता आम जनता विशेषकर युवा पीढ़ी पर क्या प्रभाव डालती है?
उत्तर :
(क) चर्चित हस्तियों के पहनावे, खान-पान संबंधी आदतों आदि के बारे पत्र-पत्रिकाओं में छपे वर्णन से सामान्य लोग उन तथाकथित बड़े लोगों के निजी जीवन की शाब्दिक झलक पा सकते हैं, जिनके बारे में वे न जाने क्या-क्या सोचते हैं। जिस जीवन को वे जी नहीं सकते; निकट से देख नहीं सकते, शब्दों और तसवीरों के माध्यम से उस जीवन-शैली का अहसास तो कर ही सकते हैं। इस प्रकार की पत्रकारिता में कुछ भी अनुचित नहीं है। पत्रकारिता का जो उद्देश्य है, पत्रों के माध्यम से वे वही पूरा करते हैं।

(ख) इस तरह की पत्रकारिता आम जनता को केवल चर्चित हस्तियों के बारे में सतही जानकारी ही प्रदान नहीं करती, बल्कि उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित भी करती है। युवा वर्ग तो उनके जीवन-स्तर से प्रभावित होकर वैसा ही करना चाहता है, जैसा वे करते हैं। कभी-कभी ऐसा करते हुए कई युवक गलत मार्ग की ओर प्रवृत्त हो सकते हैं। अधिक धन न होने के कारण वे अनुचित तरीके से धन प्राप्त करने की चेष्टा करने लगते हैं और अपराध मार्ग की ओर बढ़ जाते हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 2 जॉर्ज पंचम की नाक

प्रश्न 5.
जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार ने क्या-क्या यत्न किए?
उत्तर :
जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार ने सारे देश के पर्वतीय क्षेत्रों का भ्रमण किया; पत्थरों की खानों को देखा। इससे पहले पुरातत्व विभाग से यह जानने की कोशिश भी की गई थी कि मूर्ति कहाँ बनी, कब बनी और किस पत्थर से बनी? मूर्ति जैसा पत्थर प्राप्त न हो पाने के कारण देशभर के महापुरुषों की मूर्तियों की नाक उस मूर्ति पर लगाने का प्रयत्न किया, लेकिन सभी मूर्तियों की नाक लंबी होने के कारण ऐसा नहीं हो सका।

उसने अपनी हिम्मत बनाए रखते हुए अंत में जॉर्ज पंचम की नाक की जगह देशवासियों में से किसी की जिंदा नाक लगाने का प्रस्ताव रखा, जिसे स्वीकार कर लिया गया। उसने इंडिया गेट के पास तालाब को सुखाकर साफ़ किया। उसकी रवाब निकलवाई और उसमें ताजा पानी भरवाया, ताकि जिंदा नाक लगने के बाद सूख न पाए।

प्रश्न 6.
प्रस्तुत कहानी में जगह-जगह कुछ ऐसे कथन आए हैं, जो मौजूदा व्यवस्था पर करारी चोट करते हैं। उदाहरण के लिए ‘फाइलें सब कुछ हजम कर चुकी हैं।’ या ‘सब हुक्कामों ने एक-दूसरे की तरफ़ ताका’ आदि। पाठ में आए ऐसे अन्य कथन छाँटकर लिखिए।
(क) शंख इंग्लैंड में बज रहा था, गूंज हिंदुस्तान में आ रही थी।
(ख) और देखते-देखते नयी दिल्ली का कायापलट होने लगा।
(ग) अगर यह नाक नहीं है तो हमारी भी नाक नहीं रह जाएगी।
(घ) दिमाग खरोंचे गए और यह तय किया गया कि हर हालत में इस नाक का होना बहुत ज़रूरी है।
(ङ) जैसे भी हो, यह काम होना है।
(च) इस मेहनत का फल हमें मिलेगा…आने वाला ज़माना खुशहाल होगा।
(छ) लानत है आपकी अक्ल पर! विदेशों की सारी चीजें हम अपना चुके हैं।
(ज) लेकिन बड़ी होशियारी से।

प्रश्न 7.
नाक मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का द्योतक है। यह बात पूरी व्यंग्य रचना में किस तरह उभरकर आई है? लिखिए। उत्तर :
वास्तव में नाक मान-सम्मान और प्रतिष्ठा की प्रतीक है। रानी एलिजाबेथ का चार सौ पौंड का हल्का नीला सूट उसकी नाक अर्थात् सम्मान और प्रतिष्ठा की प्रतीक है, तो दरजी की चिंता उसके नाक की प्रतिष्ठा को प्रकट करती है कि कहीं उसकी सिलाई-कढ़ाई रानी के स्तर से कुछ कम न रह जाए। अखबारों की नाक की प्रतिष्ठा इस बात में छिपी है कि कोई भी, कैसी भी खबर छपने से रह न जाए। रानी के इंग्लैंड में रहने वाले कुत्ते की भी फोटो समेत खबर हिंदुस्तान की जनता को अखबारों में दिख जानी चाहिए।

सरकार की नाक तभी ऊँची रह सकती है, जब सदा धूल-मिट्टी से भरी रहने वाली टूटी-फूटी सड़कें विदेशियों के सामने जगमगाती। दिखाई दें। आंदोलन करने वालों की नाक की ऊँचाई इसी बात पर टिकती है कि वे कुछ और कर सकें या न कर सकें, पर पत्थर की बनी जॉर्ज पंचम की मूर्ति की नाक को जरूर तोड़ दें। इससे कोई लाभ होगा या हानि, उन्हें इस बात से कुछ लेना-देना नहीं है। उन्होंने एक बार निर्णय कर लिया कि मूर्ति की नाक नहीं रहनी चाहिए, तो वह नहीं रहेगी।

देश के शुभचिंतकों ने एक बार ठान लिया। कि मूर्ति की नई नाक लगानी है, तो वह लगेगी; क्योंकि यह उनके मान-सम्मान और प्रतिष्ठा का प्रश्न था। भले ही इसके लिए वे देश के महान नेताओं की मूर्तियों की नाक हटवाएँ या किसी जिंदा व्यक्ति की नाक ही क्यों न लगवाएँ। मूर्तिकार की नाक इसी में ऊँची रहनी थी कि वह किसी भी तरह मूर्ति को नाक लगा दे। ऐसा न कर पाने पर उसकी नाक दाँव पर लग जाती। लेखक ने अपनी व्यंग्य रचना में नाक को मान-सम्मान और प्रतिष्ठा का प्रतीक मानकर अपनी बात को स्पष्ट किया है कि सभी अपने अहं को ऊँचे स्थान पर प्रतिष्ठित करना चाहते हैं। इसी से उनके नाक की ऊँचाई बनी रह सकती है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 2 जॉर्ज पंचम की नाक

प्रश्न 8.
जॉर्ज पंचम की लाट पर किसी भी भारतीय नेता, यहाँ तक कि भारतीय बच्चे की नाक फिट न होने की बात से लेखक किस ओर संकेत करना चाहता है?
उत्तर :
जॉर्ज पंचम की लाट पर किसी भी भारतीय नेता या बच्चे की नाक फिट न हो सकने की बात से लेखक ने यह बताने का प्रयास किया कि सभी भारतीय अपनी मान-मर्यादा और प्रतिष्ठा को सदा ध्यान में रखने वाले थे। उन्होंने किसी दूसरे देश की भूमि पर अपनी नाक स्थापित करने की कभी कोशिश नहीं की थी। इंग्लैंड की सत्ता ही ऐसी थी, जो देश-देश में अपनी नाक को घुसेड़कर अपना प्रभुत्व दिखाना चाहती थी पर इससे उनकी प्रतिष्ठा नहीं बढ़ी थी; चाहे उन्हें राजनैतिक लाभ उन्हें प्राप्त हुए थे। भारतीय बच्चे भी देश के लिए मर मिटने को तैयार थे। वे देश की स्वतंत्रता चाहते थे, ताकि उनकी नाक ऊँची हो और विदेशी सत्ता की नाक नीची हो।

प्रश्न 9.
अखबारों ने जिंदा नाक लगने की खबर को किस तरह से प्रस्तुत किया?
उत्तर :
अखबारों ने जिंदा नाक लगने की खबर को केवल इतना ही प्रस्तुत किया कि नाक का मसला हल हो गया है और राजपथ पर इंडिया गेट के पास वाली जॉर्ज पंचम की लाट के नाक लग रही है।

प्रश्न 10.
‘नयी दिल्ली में सब था… सिर्फ नाक नहीं थी।’ इस कथन के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
उत्तर :
लेखक इस कथन के माध्यम से कहना चाहता है कि देश की स्वतंत्रता के बाद नई दिल्ली में अब सबकुछ था, केवल जॉर्ज पंचम का अभिमान और मान-मर्यादा की प्रतीक उनकी ऊँची नाक यहाँ नहीं थी। अंग्रेजी राज में उनकी यहाँ तूती बोलती थी; उन्हीं का आदेश चलता था, पर अब इंडिया गेट के निकट लगी उसकी मूर्ति की नाक नहीं बची थी।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 2 जॉर्ज पंचम की नाक

प्रश्न 11.
जॉर्ज पंचम की नाक लगने वाली खबर के दिन अखबार चुप क्यों थे?
उत्तर :
मूर्तिकार ने जॉर्ज पंचम की मूर्ति को चालीस करोड़ भारतीयों में से किसी एक की जिंदा नाक लगाने का जिम्मा लिया था। अखबारों में छप गया था कि उसे जिंदा नाक लगा दी गई। इस कृत्य से भारतवासियों को ऐसा लगा, जैसे उन सबकी नाक कट गई; सबका घोर अपमान हुआ। आज़ाद देश में उस व्यक्ति की मूर्ति को जिंदा नाक लगाई गई, जिसने सारे देश को गुलामी की बेड़ियों में जकड़ रखा था। इस अपमानजनक घटना के बाद अखबार चुप थे। इस अपमान से पीड़ित होने के कारण उनके पास कहने के लिए कुछ म भी शेष नहीं बचा था।

JAC Class 10 Hindi जॉर्ज पंचम की नाक Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
इंग्लैंड की रानी के हिंदुस्तान आगमन पर अखबारों में क्या-क्या छप रहा था?
उत्तर :
अखबारों में इंग्लैंड की रानी के हिंदुस्तान आने के उपलक्ष्य में की जाने वाली तैयारियों की ख़बरें छप रही थीं। उनमें रानी के द्वारा पहने जाने वाले वस्त्रों का वर्णन था। रानी की जन्मपत्री, प्रिंस फिलिप के कारनामे, नौकरों, बावरचियों, खानसामों और अंगरक्षकों की लंबी-चौड़ी बातों के साथ-साथ शाही महल में पलने वाले कुत्तों की तसवीरें तक अखबारों में छप रही थीं।

प्रश्न 2.
जॉर्ज पंचम की मूर्ति की नाक कैसे और कहाँ चली गई थी?
उत्तर :
किसी समय दिल्ली में इस विषय पर तहलका मचा था कि हिंदुस्तान को गुलाम बनाने वाले जॉर्ज पंचम की मूर्ति की नाक रहे या। न न रहे। इस विषय पर राजनीतिक पार्टियों ने प्रस्ताव पास किए; नेताओं ने भाषण दिए; गर्मागर्म बहसें हुई और अखबारों के पन्ने रंग दिए गए। कुछ लोग इस पक्ष में थे कि नाक नहीं रहनी चाहिए और कुछ लोग इसके विरोध में थे। आंदोलन को देखते हुए जॉर्ज पंचम की नाक की रक्षा के लिए हथियारबंद पहरेदार तैनात कर दिए गए थे। किसी की क्या मजाल कि कोई उनकी नाक तक पहुंच – सकता, पर उन्हीं हथियारबंद पहरेदारों की उपस्थिति में लाट की नाक चली गई। पता नहीं गश्त लगाते पहरेदार की ठीक नाक के नीचे से लाट की नाक को कौन ले गया और कहाँ ले गया।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 2 जॉर्ज पंचम की नाक

प्रश्न 3.
मूर्तिकार लाट की नाक लगाने को तैयार क्यों हुआ?
उत्तर :
मूर्तिकार भारतीय था और हर हिंदुस्तानी की तरह उसमें भी हिंदुस्तानी दिल धड़कता था, पर वह पैसों से लाचार था। खाली पेट व्यक्ति से कौन-सा काम नहीं कराता? इसी विवशता के कारण मूर्तिकार लाट की नाक लगाने को तैयार हो गया था।

प्रश्न 4.
मूर्तिकार ने मूर्ति की नाक के लिए उपयुक्त पत्थर प्राप्त न कर पाने का क्या कारण बताया था?
उत्तर :
मूर्तिकार ने लाट की नाक के लिए उचित पत्थर प्राप्त करने हेतु देश के सारे पर्वतीय क्षेत्रों का भ्रमण किया था; उसने पत्थरों की खादानों में भी खोजबीन की थी। पर जब उसे मूर्ति के लिए उपयुक्त पत्थर नहीं मिला, तो उसने इसका कारण बताया था कि मूर्ति का पत्थर विदेशी है।

प्रश्न 5.
सभापति ने किस आधार पर कहा था कि हम भारतवासियों ने अंग्रेजी सभ्यता को स्वीकार कर लिया है?
उत्तर :
देश की आजादी के बाद भले ही अंग्रेजी शासन हिंदुस्तान से चला गया, पर अंग्रेजी प्रभाव पूरी तरह से यहाँ रह गया। सभापति ने तभी तैश में आकर कहा था कि ‘लानत है आपकी अक्ल पर! विदेशों की सारी चीजें हम अपना चुके हैं-दिल-दिमाग, तौर-तरीके और रहन-सहन, जब हिंदुस्तान में बाल डांस तक मिल जाता है तो पत्थर क्यों नहीं मिल सकता?’ अंग्रेजी सभ्यता के प्रभाव के कारण ही शुभचिंतक लाट की टूटी हुई नाक की जगह नई नाक लगवाना चाहते थे।

प्रश्न 6.
जॉर्ज पंचम की नाक की लंबी दास्तान क्या थी?
उत्तर :
जॉर्ज पंचम की नाक की एक लंबी दस्तान थी। किसी समय इस नाक के लिए बड़े तहलके मचे थे; आंदोलन हुए थे; राजनीतिक पार्टियों ने प्रस्ताव पास किए थे; चंदा जमा किया था। कुछ नेताओं ने भाषण भी दिया था और गरमागरम बहसें भी हुए थीं। अखबारों में भी खूब छपा था कि जॉर्ज पंचम की नाक रहने दी जाए या हटा दी जाए।

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प्रश्न 7.
नई दिल्ली की कायापलट क्यों और कैसे हुई ?
उत्तर :
नई दिल्ली की कायापलट इसलिए हो रही थी, क्योंकि इंग्लैंड की रानी एलिज़ाबेथ द्वितीय अपने पति के साथ भारत की यात्रा पर आ रही थी। भारतीय राजनेता उनके शाही सम्मान की तैयारी में जुटे थे, इसलिए नई दिल्ली की सड़कें जवान हो रही थीं; उनके बुढ़ापे की धूल साफ़ हो रही थी। इमारतों को सजाया जा रहा था।

प्रश्न 8.
मूर्तिकार ने जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को किन-किन भारतीय नेताओं की नाक से मिलाया?
उत्तर :
मूर्तिकार ने जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को भारत के विभिन्न नेताओं की नाक से मिलाया था। इनमें शिवाजी, तिलक, गोखले, जहाँगीर, दादा भाई नौरोजी, गुरुदेव रवींद्रनाथ, सुभाषचंद बोस, महात्मा गांधी, सरदार पटेल, विट्ठल भाई पटेल, राजा राममोहन राय, मोतीलाल नेहरू, लाला लाजपत राय, भगतसिंह आदि थे।

प्रश्न 9.
मूर्तिकार ने अंत में परेशान होकर क्या योजना बताई ?
उत्तर :
मूर्तिकार ने अंत में परेशान होकर कहा कि जॉर्ज पंचम की मूर्ति को नाक लगाना आवश्यक है, इसलिए चालीस करोड़ भारतीयों में से किसी एक की जिंदा नाक काटकर मूर्ति पर लगा दी जाए।

प्रश्न 10.
मूर्तिकार की योजना सुनकर राजनेता क्यों परेशान हो उठे और उन्हें शांत करने के लिए मूर्तिकार ने क्या किया?
उत्तर :
मूर्तिकार की यह योजना सुनकर कि मूर्ति पर जिंदा नाक लगानी होगी, सभी राजनेता और अधिकारी परेशान हो गए। तब मूर्तिकार ने उन सभी को शांत करते हुए कहा कि उन्हें घबराने की आवश्यकता नहीं है, वह स्वयं ही किसी की नाक चुन लेगा जो मूर्ति पर सटीक बैठ सके।

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प्रश्न 11.
जॉर्ज पंचम की मूर्ति पर जिंदा नाक लगाने से पहले क्या इंतजाम किए गए और क्यों?
उत्तर :
जॉर्ज पंचम की मूर्ति पर जिंदा नाक लगाने से पहले मूर्ति के चारों ओर हथियारबंद सैनिक खड़े कर दिए गए। मूर्ति के आसपास जो तालाब था, उसका पानी निकाल दिया गया और उसमें पुनः ताज़ा पानी भरा गया। यह सब इसलिए किया गया ताकि जो जिंदा नाक मूर्ति पर लगने वाली थी, वह किसी भी प्रकार से सूखने न पाए।

प्रश्न 12.
सभापति ने तैश में आकर क्या कहा था?
उत्तर :
सभापति ने तैश में आकर कहा-“लानत है आपकी अक्ल पर! विदेशों की सारी चीजें हम अपना चुके हैं- दिल-दिमाग, तौर-तरीके और रहन-सहन, जब हिंदुस्तान में बाल डांस तक मिल जाता है तो पत्थर क्यों नहीं मिल सकता?”

प्रश्न 13.
मूर्तिकार को शहीद बच्चों की नाक जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ी क्यों लगी?
उत्तर :
मूर्तिकार ने महसूस किया कि जॉर्ज पंचम ने भारत को गुलाम बनाया था; इस पर शासन किया था, जबकि बच्चों ने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था। इसलिए उसे बच्चों की नाक जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ी लगी।

प्रश्न 14.
पत्रकारिता क्या है?
उत्तर :
पत्रकारिता समाज का दर्पण होती है। वह समाज को नई दिशा प्रदान करती है। समाज की अच्छी-बुरी सोच का निर्धारण पत्रकारिता के द्वारा ही होता है। पत्रकारिता आम जनता तथा युवा पीढ़ी पर अपनी सोच का अनुकूल प्रभाव डालती है।

जॉर्ज पंचम की नाक Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

नई कहानी के सुविख्यात रचनाकार कमलेश्वर का जन्म 6 जनवरी, 1932 ई० को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी कस्बे में हुआ। बचपन में ही इनके पिता का स्वर्गवास हो गया था। मैनपुरी से इन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। बाद में इन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय इलाहाबाद से हिंदी में एम०ए० पास किया। पत्रकारिता से भी इनका विशेष लगाव रहा है। नई कहानी’, ‘सारिका’, ‘दैनिक जागरण’ और ‘दैनिक भास्कर’ का संपादन कमलेश्वर ने बहुत ही कुशलता के साथ किया। आकाशवाणी और दूरदर्शन पर इन्होंने अनेक परिचर्चाओं में भी भाग लिया। जीवन के कुछ वर्ष इन्होंने मुंबई की फ़िल्मी दुनिया में व्यतीत किए। वहाँ इन्होंने अनेक फ़िल्मों और दूरदर्शन धारावाहिकों की पटकथाएँ एवं संवाद लिखे। इनकी कहानियों में कस्बे मैनपुरी, इलाहाबाद, दिल्ली और बंबई (मुंबई) जैसे महानगरों का रंग स्पष्ट उभरा है। इनका देहांत 27 जनवरी, 2007 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ।

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रचनाएँ – कमलेश्वर की रचनाएँ निम्नलिखित हैं –

कहानी संग्रह – राजा निरबंसिया, कस्बे का आदमी, मांस का दरिया, बयान, खोई हुई दिशाएँ, तलाश, जिंदा मुर्दे, आधी दुनिया, मेरी प्रिय कहानियाँ आदि।
उपन्यास – काली आँधी, समुद्र में खोया हुआ आदमी, वही बात, एक सड़क सत्तावन गलियाँ, सुबह… दोपहर… शाम, डाक बंगला, कितने पाकिस्तान आदि।
नाटक – चारुलता, अधूरी आवाज़, कमलेश्वर के बाल नाटक आदि।
यात्रावृत्त – खंडित यात्राएँ। संस्मरण-अपनी निगाह में।
समीक्षा – नई कहानी की भूमिका, समांतर सोच, मेरा पन्ना आदि।
साहित्यिक विशेषताएँ – कमलेश्वर नई कहानी के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। इनकी कहानियों में आधुनिक जन-जीवन की विभिन्न विसंगतियों, कुंठाओं, पीड़ाओं और वर्जनाओं का चित्रण यथार्थ के धरातल पर किया गया है। समाज का प्रत्येक पक्ष इनकी कहानियों में मुखरित हुआ है। इनमें आधुनिक समाज में व्याप्त स्वार्थ, घृणा, नफ़रत, घुटन, संत्रास और आत्महत्या जैसी भावनाओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है।

कमलेश्वर ने अपनी कहानियों के माध्यम से आधुनिक मूल्यों की अन्वेषणा की है। इनमें जीवन की त्रासदी उभरकर सामने खड़ी हो। गई है। कहीं-कहीं वे व्यंग्य-शैली के माध्यम से समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, पापाचार, संवेदनहीनता तथा आर्थिक विषमताओं का चित्रण बड़ी ही बेबाकी के साथ करते हैं। इनकी कहानियों में आधुनिक जीवन में व्याप्त बनावटीपन और खोखलेपन का पर्दाफ़ाश यथार्थ दृष्टि से हुआ है।

कमलेश्वर मानव मन के कथाकार हैं। कमलेश्वर की कहानियों में सर्वत्र अंतरवंद परिभाषित होता है। इनकी कहानियों में पीड़ाग्रस्त और अभावग्रस्त आम आदमी का चित्रण मनोवैज्ञानिक दृष्टि से हुआ है। आज की भाग-दौड़ और आर्थिक तंगहाली किस प्रकार आम आदमी को परेशान एवं हताश कर रही है, यह चिंतनपरक शैली में प्रस्तुत है। इन्होंने अपनी कहानियों में चित्रित पात्रों के माध्यम से गिरते-पड़ते एवं बेचैन मानव के अंदर एक नई शक्ति का संचार किया है।

आधुनिक जन-जीवन में मानवीय संबंधों में आए बिखराव को कमलेश्वर ने अपनी कहानियों में उकेरा है। पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच बढ़ती दूरी संबंधों में विकेंद्रीकरण की स्थिति उत्पन्न करती है। पति-पत्नी के दांपत्य संबंधों में आपसी टकराव दांपत्य जीवन को नाटकीय बना रहा है। किशोरावस्था में आया चिढ़चिढ़ापन युवा पीढ़ी को पथभ्रष्ट कर रहा है। मानवीय जीवन में आई इन्हीं सभी विसंगतियों के कारण समाज में बिखराव और टकराव को कमलेश्वर ने अपनी कहानियों में चित्रित किया है।

कमलेश्वर की कहानियों की भाषा परिमार्जित है, जिसमें उर्दू, अंग्रेजी तथा आंचलिक शब्दों का प्रयोग हुआ है। मुहावरों के सटीक प्रयोग से इनकी भाषा प्रवाहमयी हो गई है। इनकी अधिकांश कहानियाँ वर्णनात्मक और आत्मकथात्मक-शैली में लिखी गई हैं। अपनी लेखन शैली में वे लाक्षणिकता और प्रतीकात्मकता से अधिक काम लेते हैं।

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पाठ का सार :

इंग्लैंड की रानी एलिजाबेथ द्वितीय अपने पति के साथ हिंदुस्तान पधारने वाली थी। सारे देश की अखबारे इस शाही दौरे की खबरों से भरी : थीं। लंदन से उड़ने वाली हर खबर यहाँ सुर्खियों में दिखाई देती थी। इस दौरे के लिए छोटी-से-छोटी बात पर भी सबकी निगाहें टिकी हुई। थीं। वहाँ का दरजी इस बात से परेशान था कि हंदुस्तान, पाकिस्तान और नेपाल के दौरे पर महारानी कब-क्या पहनेंगी।

उनके सेक्रेटरी, जासूस और फ़ोटोग्राफर सब भाग-दौड़ में लगे थे। रानी ने चार सौ पौंड खर्च कर हलके नीले रंग का रेशमी सूट बनवाया था, जिसकी खबर भी। अखबारों में छपी थी। रानी की जन्मपत्री और प्रिंस फिलिप के कारनामों के अतिरिक्त अखबारों में उनके नौकरों, बावरचियों, खानसामों, अंगरक्षकों और कुत्तों की तसवीरें छापी गई थीं। दिल्ली में शाही सवारी के आगमन से धूम मची हुई थी।

वहाँ की सदा धूल-मिट्टी से भरी रहने वाली सड़कें साफ़ हो गईं। इमारतों को सजाया गया, सँवारा गया। पर एक बहुत बड़ी मुश्किल सामने आ गई थी। नई दिल्ली में जॉर्ज पंचम की मूर्ति की नाक नहीं थी। कई राजनीतिक पार्टियों ने इस मूर्ति को लेकर आंदोलन किए थे; कई प्रस्ताव पास हुए थे, अनेक भाषण : दिए गए थे और गरमागरम बहसें भी हुई थीं कि जॉर्ज पंचम की नाक रहने दी जाए या हटा दी जाए।

कुछ लोग इसके पक्ष में थे, तो कुछ विपक्ष में। सरकार ने जॉर्ज पंचम की नाक की सुरक्षा के लिए हथियारबंद पहरेदार तैनात कर दिए थे। पर हादसा हो ही गया। इंडिया गेट के सामने वाली जॉर्ज पंचम की लाट की नाक अचानक गायब हो गई थी। हथियारबंद पहरेदार अपनी जगह तैनात रहे, गश्त लगती रही पर लाट की नाक चली गई। अब महारानी देश में आ रही थी और लाट की नाक न हो, तो परेशानी होनी ही थी।

देश की भलाई चाहने वालों की एक मीटिंग बुलाई गई। मीटिंग में उपस्थित सभी इस बात से सहमत थे कि लाट की नाक तो होनी ही चाहिए। यदि वह नाक न लगाई गई, तो देश की नाक भी नहीं बचेगी। उच्च स्तर पर सलाह-मशविरे हुए और तय किया गया कि किसी मूर्तिकार से मूर्ति की नाक लगवा दी जाए। मूर्तिकार ने कहा कि नाक तो लग जाएगी, पर उसे पता होना चाहिए कि वह मूर्ति कहाँ बनी थी, कब बनी थी और इसके लिए पत्थर कहाँ से लाया गया । था। पुरातत्व विभाग से जानकारी मांगी गई, पर वहाँ से इस बारे में कुछ पता नहीं चला।

मूर्तिकार ने सुझाव दिया कि वह देश के हर पहाड़ पर जाएगा और वैसा ही पत्थर ढूँढ़कर लाएगा, जैसा मूर्ति में लगा था। हुक्कामों से आज्ञा मिल गई। मूर्तिकार हिंदुस्तान के सभी पहाड़ी प्रदेशों और पत्थरों की खानों के दौरे पर निकल गया, पर कुछ दिनों बाद खाली हाथ लौट आया। उसे वैसा पत्थर नहीं मिला। उसने कह दिया कि वह पत्थर विदेशी है। मूर्तिकार ने सुझाव दिया कि देश में नेताओं की अनेक मूर्तियाँ लगी है। यदि उनमें से किसी एक की नाक लाट की मूर्ति पर लगा दी जाए। तो ठीक रहेगा।

सभापति ने सभा में उपस्थित सभी लोगों की सहमति से ऐसा करने की आज्ञा दे दी, पर साथ ही उन्हें सावधान रहने की बात भी समझा दी ताकि यह खबर अख़बार वालों तक न पहुँचे। मूर्तिकार ने फिर देशभर का दौरा किया। जॉर्ज पंचम की खोई हुई नाक का नाप उसके पास था। उसने दादा भाई नौरोजी, गोखले, तिलक, शिवाजी, कॉवस जी जहाँगीर, गांधीजी, सरदार पटेल, महादेव देसाई, गुरुदेव रवींद्रनाथ, सुभाषचंद्र बोस, राजा राममोहन राय, चंद्रशेखर आजाद, बिस्मिल, मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय, सत्यमूर्ति, लाला लाजपत राय, भगतसिंह आदि सबकी मूर्तियों को भली-भाँति देखा-परखा। सभी के नाक की नाप लो, पर सबकी नाक जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ी।

थी। वे इस पर फिट नहीं बैठती थी। इस बात से बड़े हुक्कामों में खलबली मच गई। अगर जॉर्ज की नाक न लग पाई, तो रानी के स्वागत का कोई मतलब नहीं था। मूर्तिकार ने फिर एक सुझाव दिया। एक ऐसा सुझाव, जिसका पता किसी को नहीं लगना चाहिए था। देश की चालीस करोड़ जनता में से किसी की जिंदा नाक काटकर मूर्ति पर लगा देनी चाहिए। यह सुनकर सभापति परेशान हुआ, पर मूर्तिकार को इसकी इजाजत दे दी गई।

अखबारों में केवल इतना छपा कि ‘नाक का मसला हल हो गया है और इंडिया गेट के पास वाली जॉर्ज पंचम की लाट के नाक लग रही है।’ नाक लगने से पहले फिर हथियारबंद पहरेदारों की तैनाती हुई। मूर्ति के आसपास का तालाब सुखाकर साफ़ किया गया। उसकी रवाब निकाली गई और ताजा पानी डाला गया, ताकि लगाई जाने वाली जिंदा नाक सूख न जाए। वह दिन आ गया जब अख़बारों में छप गया कि जॉर्ज पंचम के जिंदा नाक लगाई गई है, जो बिलकुल पत्थर की नहीं लगती।

उस दिन अखबारों में किसी प्रकार के उल्लास और उत्साह की खबर नहीं छपी; किसी का ताजा चित्र नहीं छपा। ऐसा लगता था कि जैसे जॉर्ज पंचम को जिंदा नाक लगाने से सारे देशवासियों की नाक कट गई थी। जिन विदेशियों ने हमारे देश को इतने लंबे समय तक गुलाम बनाकर रखा था, उनकी नाक के लिए हम अपनी नाक कटवाने को क्यों तैयार रहते हैं।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

मय – के साथ। पधारने – सम्मान सहित आने। तूफानी दौरा – जल्दबाज़ी में किया गया भ्रमण। बावरची – रसोइए। बेसाख्ता – स्वाभाविक रूप से। खुदा की रहमत – ईश्वर की दया। काया पलट – पूरी तरह से परिवर्तन। करिश्मा – जादू। नाज़नीनों – कोमलांगी। दास्तान – कहानी, गाथा। तहलका – शोर शराबा, फ़साद। खामोश – चुप्प, शांत। एकाएक – अचानक। लाट – खंभा, मूर्ति। खेरख्वाहों – भलाई चाहने वाले। उच्च स्तर – ऊँचा दरजा। फौरन – शीघ्र। हाज़िर – उपस्थित। लाचार – परेशान। हुक्कामों – स्वामियों। ताका – देखा। मसला – विषय, समस्या। खता – अपराध, गलती। दारोमदार – किसी कार्य के होने या न होने की पूरी ज़िम्मेदारी, कार्यभार। किस्म – प्रकार। बदहवासी – परेशानी। परिक्रमा – चारों ओर का चक्कर। हैरतअंगेज ख्याल – आश्चर्यचकित करने वाला विचार। सन्नाटा – पूर्ण शांति। खामोशी – चुप्पी। कानाफूसी – फुसफुसाहट, धीमे स्वर में बातचीत। इजाज़त – आज्ञा। हिदायत – सलाह, सावधानी।