JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

JAC Class 10 Hindi बिहारी के दोहे Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
छाया भी कब छाया ढूँढ़ने लगती है?
अथवा
बिहारी के दोहों के आधार पर ग्रीष्म ऋतु की प्रचंड गर्मी और दोपहरी का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
अथवा
बिहारी ने ग्रीष्म ऋतु की तुलना किससे की है?
उत्तर :
कवि ग्रीष्म ऋतु की तपोवन से तुलना करते हुए कहता है कि जून के महीने में बहुत अधिक गर्मी पड़ती है। उस समय ऐसा लगता है, जैसे चारों ओर अंगारे बरस रहे हों। गर्मी की ऐसी भयंकरता को देखकर लगता है कि शायद छाया भी छाया की तलाश में है। उस समय छाया घने जंगलों में अथवा घरों के अंदर होती है। छाया भी गर्मी से परेशान होकर छाया की तलाश में भटकती दिखाई देती है।

प्रश्न 2.
बिहारी की नायिका यह क्यों कहती है ‘कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात’- स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
नायिका परदेस गए नायक को प्रेम-पत्र लिखती है। वह विरह की अत्यधिक पीड़ा के कारण कागज़ पर लिखने में स्वयं को असमर्थ पाती है। किसी अन्य के माध्यम से नायक को संदेश भेजने में उसे लज्जा आती है। ऐसे में वह कहती है कि अब उसे किसी साधन की आवश्यकता नहीं है। नायक का हृदय ही उसे नायिका के हृदय की विरह व्यथा का आभास करवा देगा। वह ऐसा इसलिए कहती है, क्योंकि वह नायक से सच्चा प्रेम करती है और यदि नायक भी उसे समान सच्चा प्रेम करता होगा तो उसका हृदय भी विरह की अग्नि में जल रहा होगा। ऐसे में वह अपने हृदय की पीड़ा से नायिका के हृदय की पीड़ा का सहज ही अनुमान लगा लेगा।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 3 बिहारी के दोहे

प्रश्न 3.
सच्चे मन में राम बसते हैं-दोहे के संदर्भानुसार स्पष्ट कीजिए।
अथवा
बिहारी ने ईश्वर प्राप्ति में किन साधनों को साधक और किनको बाधक माना है?
अथवा
‘सच्चे मन में ईश्वर बसते हैं। इस भाव में बिहारी के दोहे का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि का मत है कि बाह्य आडंबरों से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती। मनकों की माला का जाप करने, रंगे वस्त्र पहनने और तिलक लगाने से ईश्वर को प्राप्त नहीं किया जा सकता। जो व्यक्ति सच्चे मन से ईश्वर को याद करता है, ईश्वर उसी पर प्रसन्न होते हैं। छल-कपटपूर्ण आचरण करने वाला व्यक्ति कितनी भी भक्ति कर ले, ईश्वर को नहीं पा सकता। ईश्वर तो सच्चे हृदय वाले व्यक्ति के मन में निवास करते हैं।

प्रश्न 4.
गोपियाँ श्रीकृष्ण की बाँसुरी क्यों छिपा लेती हैं ?
उत्तर :
गोपियों को श्रीकृष्ण की बाँसुरी से विशेष ईर्ष्या है। एक बार बाँसुरी हाथ में आने पर श्रीकृष्ण गोपियों को भूल जाते हैं। वे बाँसुरी बजाने में इतने खो हो जाते हैं कि गोपियों की ओर ध्यान नहीं देते। गोपियाँ चाहती हैं कि श्रीकृष्ण उनसे प्रेमपूर्ण बातचीत करें और इसलिए वे बाँसुरी को छिपा देती हैं। वे जानती हैं कि श्रीकृष्ण बाँसुरी के विषय में अवश्य पूछेगे और इस प्रकार वे श्रीकृष्ण से बातचीत करने का आनंद प्राप्त कर सकती हैं।

प्रश्न 5.
बिहारी कवि ने सभी की उपस्थिति में भी कैसे बात की जा सकती है, इसका वर्णन किस प्रकार किया है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
नायक और नायिका एक ऐसे स्थान पर बैठे हैं, जहाँ बहुत-से लोग हैं। नायक नायिका से बातचीत करना चाहता है, किंतु लोगों की उपस्थिति में यह संभव नहीं था। ऐसे में नायक और नायिका आँखों के संकेतों से सारी बात कर लेते हैं। नायक आँखों के संकेत से नायिका को कुछ कहता है। नायिका आँखों के संकेत से मना कर देती है। नायिका के मना करने के सरस ढंग पर नायक प्रसन्नता व्यक्त करता है, तो नायिका झूठी खीझ व्यक्त करती है। थोड़ी देर में उनके नेत्र पुनः मिलते हैं, तो दोनों खिल उठते हैं और शरमा जाते हैं। इस प्रकार नायक और नायिका सभी की उपस्थिति में बातचीत भी कर लेते हैं और किसी को पता भी नहीं चलता।

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प्रश्न 6.
बिहारी ने ‘जगतु तपोबन सौ कियौ’ क्यों कहा है?
उत्तर :
ग्रीष्म ऋतु में जंगल तपोवन जैसा पवित्र बन जाता है क्योंकि शेर, हिरण, मोर साँप जैसे हिंसक जीव भी परस्पर शत्रुता भूलकर एक साथ रहने लगते हैं।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न :
1. मनौ नीलमनि-सैल पर आतपु पर्यो प्रभात।
2. जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निराघ।
3. जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।
मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु॥
उत्तर :
1. कवि के अनुसार श्रीकृष्ण के नीले शरीर पर पीले वस्त्र ऐसे सुशोभित हैं, जैसे नीलमणि पर्वत पर सूर्य की पीली किरणें फैली हों अर्थात् प्रात:कालीन धूप फैली है।
2. इन पंक्ति के अनुसार ग्रीष्म ऋतु की गर्मी ने जंगल को तपोवन जैसा पवित्र बना दिया है। हिंसा की जगह सभी में आपसी प्रेम, सौहार्द्र और मित्रता का भाव उत्पन्न हो गया है। शेर, हिरण, मोर, साँप आदि जीव शत्रुता भूलकर एक साथ गर्मी को सहन कर रहे हैं।
3. कवि कहता है कि हाथ में माला लेकर जपने से, छपे वस्त्र पहनने से या तिलक लगाने से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती। चंचल मन से ईश्वर भक्ति करना केवल आडंबर है। कवि ने इन्हें व्यर्थ के नृत्य कहा है। उसके अनुसार ईश्वर की प्राप्ति केवल सच्चे हृदय वाले लोगों को ही होती है। नि:स्वार्थ भक्ति ही ईश्वर को प्रिय है।

योग्यता विस्तार –

प्रश्न :
सतसैया के दोहरे ज्यौं नावक के तीर।
देखन में छोटे लगें घाव करैं गंभीर।
अध्यापक की मदद से बिहारी विषयक इस दोहे को समझने का प्रयास करें। इस दोहे से बिहारी की भाषा संबंधी किस विशेषता का पता चलता है।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

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परियोजना कार्य –

प्रश्न :
बिहारी कवि के विषय में जानकारी एकत्रित कीजिए और परियोजना पुस्तिका में लगाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

JAC Class 10 Hindi बिहारी के दोहे Important Questions and Answers

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
बिहारी ने अपने दोहों में बाह्याडंबरों का खुलकर विरोध किया है, क्यों?
उत्तर :
बिहारी के ऐसे अनेक दोहे हैं, जिनमें भक्ति-भावना का चित्रांकन किया गया है। उन्होंने भक्ति के सरल, दास्य और माधुर्य भावों का उल्लेख किया है किंतु उनकी भक्ति आडंबर रहित है। बिहारी ने बाह्याडंबरों का खुलकर खंडन किया है, क्योंकि उनका मानना है कि बाह्याडंबरों से भक्ति कलुषित हो जाती है; भक्त का ध्यान भटक जाता है। उन्होंने भक्ति के लिए मन की पवित्रता पर बल दिया है। वे बायाडंबरों को भक्ति-मार्ग में बाधक और व्यर्थ मानते हैं। उनका कहना है कि जपमाला रटने, तिलक लगाने आदि आडंबरों से कोई भी कर्म पूर्ण नहीं होता।

जपमाला, छाएँ, तिलक सरै न एकौ कामु।
मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु॥

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प्रश्न 2.
बिहारी की नायिका कागज़ पर संदेश लिखने में भी क्यों असहाय है?
उत्तर :
बिहारी की नायिका कागज़ पर संदेश लिखने में असहाय है, क्योंकि वह अपने प्रियतम की विरह-व्यथा से अत्यंत पीड़ित है। वह उसकी राह देखते-देखते अत्यंत कमज़ोर और शक्तिहीन हो गई है। उसे अपने प्रियतम से मिलने की निरंतर व्याकुलता व्यथित कर रही है। अब उसमें थोड़ी-सी भी शक्ति नहीं बची कि वह कागज़ पर संदेश लिख सके।

प्रश्न 3.
बिहारी ने लोगों से भरे भवन में भी नायक-नायिका के मिलन का कैसा शब्द-चित्र प्रस्तुत किया है?
उत्तर :
बिहारी श्रृंगार रस के अनूठे कवि हैं। उन्होंने नायक-नायिका के संयोग पक्ष के विविध भावों का सुंदर एवं सजीव चित्रण किया है। नायक नायिका लोगों से भरे भवन में आँखों के संकेत के माध्यम से ही सब बातें करते हैं। नायक नायिका को आँखों से संकेत करता है, तो लज्जावश नायिका इनकार कर देती है। नायक उसके इनकार पर भी मुग्ध हो जाता है। इस पर नायिका अपनी खीझ प्रकट करती है। तत्पश्चात दोनों के नेत्र पुनः एक-दूसरे से मिलते हैं। वे दोनों आनंदित हो उठते हैं और लज्जाने लगते हैं।

प्रश्न 4.
बिहारी ने माला जपने और तिलक लगाने को व्यर्थ कहकर क्या संदेश देना चाहा है?
उत्तर :
बिहारी ने अपने दोहे में माला जपने और तिलक लगाने को व्यर्थ बताया है। उनके अनुसार ये सब बाहरी आडंबर के प्रतीक हैं। मनुष्य को इन आडंबरों को छोड़कर सच्चे हृदय से ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए। कवि के अनुसार ईश्वर केवल उसी को प्राप्त होता है, जो सच्चे हृदय से उसका ध्यान करते हैं।

प्रश्न 5.
बिहारी के दोहों’ की रचना मुख्यतः किन भावों पर आधारित हैं? उनके मुख्य ग्रंथ और भाषा के नाम का उल्लेख , कीजिए।
उत्तर :
बिहारी के दोहे मुख्य रूप से श्रृंगारी, नीतिपरक और भक्ति से संबंधित और जीवन के व्यावहारिक पक्षों से जुड़े हुए हैं। इनका मुख्य ग्रंथ ‘बिहारी सतसई’ है। इनकी भाषा ब्रज है, जिसमें अन्य स्थानीय, उर्दू, फारसी के शब्दों का भी कहीं-कहीं प्रयोग मिलता है।

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प्रश्न 6.
(क) “बिहारी के दोहे’ के आधार पर लिखिए कि किन प्राणियों में स्वाभाविक बैर है? वे आपसी बैर कब और क्यों भूल जाते हैं?
(ख) “बिहारी के दोहे’ के आधार पर लिखिए कि माला जपने और तिलक लगाने से क्या होता है? ईश्वर किससे प्रसन्न रहते हैं?
उत्तर :
(क) साँप, मोर, हिरण और बाघ में स्वाभाविक रूप से बैर है परंतु लंबी ग्रीष्म ऋतु की भयंकर गर्मी ने सारे जंगल को तपोवन जैसा बना दिया है जिस कारण वे अपनी स्वाभाविक दुश्मनी भूलकर मिल-जुलकर रहने लगे हैं।

(ख) हाथ में माला ले कर जपने और तिलक लगाने मात्र से ईश्वर-भक्ति का कार्य पूरा नहीं होता, इससे ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती, क्योंकि मन तो अस्थिर था। सच्चे मन से ईश्वर पर विश्वास रखते हुए उनका नाम स्मरण करने से ईश्वर प्रसन्न होते हैं।

बिहारी के दोहे Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन – बिहारी हिंदी साहित्य के रीतिकाल के कवियों में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। वे मुख्य रूप से श्रृंगारी कवि हैं। उनका जन्म ग्वालियर के वसुआ गोविंदपुर गाँव में सन 1595 ई० में हुआ था। वे राजा जयसिंह के दरबारी कवि थे और उन्हीं की प्रेरणा से उन्होंने ‘सतसई’ की रचना की। बिहारी राज्याश्रित होते हुए भी स्वतंत्र प्रकृति के कवि थे। अतः उन्होंने कोई भी प्रशंसात्मक काव्य नहीं लिखा। 1663 ई० में उनका देहांत हो गया।

रचनाएँ – बिहारी ने अपनी सारी प्रतिभा एक ही पस्तक के निर्माण में लगा दी, जो साहित्य जगत में ‘बिहारी सतसई’ या ‘सतसैया’ नाम से विख्यात है। इसमें लगभग 719 दोहे संग्रहीत हैं। प्रत्येक दोहे के भाव गांभीर्य को देखकर पता चलता है कि बिहारी में गागर में सागर भरने की क्षमता थी। उन्होंने अपने एक ही दोहे के प्रभाव से राजा जयसिंह को सचेत कर दिया था। राजा जयसिंह आरंभ में विलासी राजा था। वह अपनी नव-विवाहिता पत्नी पर इतना आसक्त हुआ कि उसने राज-दरबार के कामों से मुँह मोड़ लिया। लेकिन बिहारी के निम्नलिखित दोहे ने राजा जयसिंह की आँखें खोल दीं नहिं पराग

नहिं मधुर मधु, नहिं विकास यहि काल।
अलि कलि ही सौं बिंध्यो, आगे कौन हवाल॥

साहित्यिक विशेषताएँ-बिहारी ने अपनी सतसई की रचना मुक्तक शैली में की है। इसमें श्रृंगार, भक्ति एवं नीति की त्रिवेणी प्रवाहित हो रही है। सभी आलोचकों ने सतसई के महत्व को स्वीकार किया है। बिहारी को श्रृंगार रस के चित्रण में अधिक सफलता प्राप्त हुई है। श्रृंगार रस के दोनों पक्षों संयोग एवं वियोग पर बिहारी ने दोहों की रचना की है। राधा एवं कृष्ण की प्रेम-क्रीड़ा का वर्णन कितना स्वाभाविक है –

बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंह करें भौंहनु हँसे, दैन कहैं नटि जाय॥

संयोग के समान बिहारी का वियोग वर्णन भी अनूठा है, पर कहीं-कहीं अतिशयोक्ति के प्रभाव ने अस्वाभाविकता ला दी है –

इति आवति चली जाति उत, चली छः सातक हाथ।
चढ़ी हिंडौर सी हैं, लगी उसासनु साथ ॥

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बिहारी ने सतसई में प्रकृति के सौंदर्य का भी चित्रण किया है। इस सौंदर्य में ऋतु वर्णन का विशेष महत्व है। वसंत ऋतु की मादकता का चित्रण देखिए –

छकि रसाल सौरभ सने, मधुर माधुरी गंध।
ठौर ठौर झारत झंपत, भौंर-झऔर मधु अंध॥

बिहारी भक्ति-भावना से भी प्रेरित रहे हैं। उनके बहुत-से दोहों में दीनता एवं विनय का भाव व्यक्त हुआ है –

कब को टेरत दीन ह्वै, होर न स्याम सहाइ।
तुमहूं लागी जगत गुरु, जग नाइक जग बाइ॥

बिहारी ने ब्रजभाषा को अपनाया है। भाषा पर उनका पूरा अधिकार है। इसका चित्रण बड़ा सुंदर एवं स्वाभाविक है। बिहारी के प्रत्येक दोहे में किसी-न-किसी अलंकार का प्रयोग हआ है। शुक्ल जी के अनुसार, “बिहारी की भाषा चलती होने पर भी साहित्यिक है। वाक्य-रचना व्यवस्थित है और शब्दों के रूपों का व्यवहार एक निश्चित प्रणाली पर है। ब्रजभाषा के अनेक कवियों ने शब्दों को तोड़-मरोड़ कर उन्हें विकृ कर दिया है। परंतु बिहारी की भाषा इस दोष से मुक्त है।” बिहारी की भाषा पर बुंदेलखंडी तथा अरबी-फारसी के शब्दों का भी प्रभाव है।

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दोहों का सार –

अपनी शत्रुता को त्यागकर एक साथ छाया में एकत्रित हो गए हैं। उन्हें देखकर जंगल भी तपोवन के समान प्रतीत होता है। तीसरे दोहे में गो उनसे बाँसुरी माँगते हैं, तो वे मना कर देती हैं। मना करते समय उनका भौंहों से हास्य प्रकट करना श्रीकृष्ण को संदेह में डाल देता है और वे पुनः अपनी बाँसुरी मांगने लगते हैं। चौथे दोहे में नायक और नायिका की संकेतों में बातचीत का वर्णन है। नायक आँखों के संकेतों से नायिका से कुछ कहता है। नायिका उसे मना कर देती है। नायक उसके मना करने के ढंग पर रीझ जाता है, तो नायिका झूठी खीझ प्रकट करती है।

जब दोनों के नेत्र पुनः मिलते हैं, तो दोनों प्रसन्न हो जाते हैं और एक-दूसरे को देखकर लजा जाते हैं। इस प्रकार वे भीड़ भरे भवन में भी बातचीत कर लेते हैं। पाँचवें दोहे में कवि कहता है कि प्रेमियों के नेत्र मिलने पर उनमें प्रेम होता है। वे आपस में तो प्रेम के बंधन में बँध जाते हैं, किंतु परिवार से छूट जाते हैं। उनके इस प्रेम को देखकर दुष्ट लोग कष्ट का अनुभव करते हैं। छठे दोहे में एक सखी द्वारा राधा को समझाने का वर्णन है। राधा श्रीकृष्ण से रूठी हुई है। उसकी सखी उसे समझाती है कि उसके सौंदर्य पर तो उर्वशी नामक अप्सरा को भी न्योछावर किया जा सकता है।

वह तो श्रीकृष्ण के हृदय में उसी प्रकार समाई है, जिस प्रकार उर्वशी नामक आभूषण हृदय पर लगा रहता है। सातवें दोहे में कवि ने गर्मी की भयंकरता का वर्णन किया है। ज्येष्ठ मास में गर्मी की प्रचंडता इतनी अधिक है कि छाया भी छाया की तलाश में है और वह घने जंगल में और घरों में जाकर छिप गई है। आठवें दोहे में विरहणी नायिका की विरह व्यथा को उसी के माध्यम से व्यक्त किया गया है। वह परदेस गए अपने प्रियतम को पत्र लिखने में असमर्थ है और उस तक संदेश भिजवाने में उसे लज्जा आती है।

अंततः वह अपने प्रियतम से कहती है कि तुम अपने ही हृदय से पूछ लेना, वह तुम्हें मेरे दिल की बात कह देगा। नौवें दोहे में कवि ने श्रीकृष्ण से अपने संकट दूर करने की प्रार्थना की है। दसवें दोहे में कवि कहता है कि बड़े लोगों के कार्यों की पूर्ति छोटे लोगों से नहीं हो सकती। विशाल नगाड़ों का निर्माण कभी भी चूहे जैसे छोटे जीव की खाल से नहीं हुआ करता। अंतिम दोहे में बिहारी ने स्पष्ट है उसे सहज ही ईश्वर की प्राप्ति हो जाती है।

सप्रसंग व्याख्या –

दोहे –

1. सोहत ओ पीतु पटु स्याम, सली. गाता
मनौ नीलमनि-सैल पर आतपु परयौ प्रभात।।

शब्दार्थ : सोहत – शोभा देना। ओढ़े – ओढ़ कर। पीतु पटु – पीले वस्त्र। सली. – साँवले। गात – शरीर। नीलमनि – नीलमणि। सैल – पर्वत, चट्टान। आतपु – धूप।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रीतिकालीन कवि बिहारी द्वारा रचित है। यह दोहा उनके प्रसिद्ध ग्रंथ ‘सतसई’ से लिया गया है। इसमें उन्होंने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन किया है।

व्याख्या : बिहारी श्रीकृष्ण के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के साँवले शरीर पर पीले वस्त्र अत्यंत सुशोभित हो रहे हैं। उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है, मानो किसी नीलमणि पर्वत पर प्रात:काल की धूप पड़ रही हो। यहाँ श्रीकृष्ण के साँवले शरीर को नीलमणि पर्वत तथा पीले वस्त्रों को सूर्य की धूप के समान माना गया है।

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2. कहलाने एकत बसत अहि मयूर, मृग बाघ ।
जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ ॥

शब्दार्थ कहलाने – क्यों। एकत – इकट्ठे। बसत – रहते हैं। अहि – साँप। मयूर – मोर। मृग – हिरण। बाघ – शेर। दीरघ – लंबा। दाघ – गर्मी। निदाघ – ग्रीष्म ऋतु।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा प्रसिद्ध रीतिकालीन कवि बिहारी द्वारा रचित है। यह दोहा बिहारी की प्रसिद्ध रचना ‘सतसई’ से लिया गया है। इसमें उन्होंने ग्रीष्म ऋतु की भयंकर गर्मी का वर्णन किया है। इस दोहे की प्रथम पंक्ति प्रश्न के रूप में है तथा दूसरी पंक्ति में उसका उत्तर है।

व्याख्या : कवि बिहारी स्वयं प्रश्न करते हैं कि किस कारण से साँप, मोर, हिरण और बाघ एक स्थान पर इकट्ठे हो रहे हैं। इस प्रश्न का स्वयं ही उत्तर देते हुए वे कहते हैं कि शायद इसका कारण भयंकर गर्मी का होना है। लंबी ग्रीष्म ऋतु की भयंकर गर्मी ने सारे जंगल को एक तपोवन के समान बना दिया है, जहाँ सारे जीव अपना वैर-भाव भूलकर एक-दूसरे के साथ मिल-जुलकर रहने लगे हैं।

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3. बतरस-लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ।
सौह करैं भौहनु हैसै, दैन कहैं नटि जाइ॥

शब्दार्थ : बतरस – बातें करने का आनंद। लालच – लोभ। लाल – नायक अर्थात श्रीकृष्ण। मुरली – बाँसुरी। धरी – रख दी। लुकाइ – छिपाकर। सौंह – कसम। भौंहनु हँसै – भौंहों से हास्य व्यक्त करना। नटि जाइ – मना कर देना।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा कविवर बिहारी द्वारा रचित है। यह उनके प्रसिद्ध ग्रंथ ‘सतसई’ से लिया गया है। इसमें उन्होंने बताया है कि नायिका ने अपने प्रिय से बात करने के लालच में उसकी बाँसुरी छिपा दी। इसके बाद उन दोनों में जो बात हुई, उसे इस दोहे में बताया गया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि नायिका ने श्रीकृष्ण से प्रेम भरी बातचीत का सुख प्राप्त करने के लिए उनकी बाँसुरी कहीं छिपाकर रख दी। श्रीकृष्ण उसे तरह-तरह की कसम देकर अपनी बाँसुरी के विषय में पूछते हैं। नायिका कसम खाकर कहती है कि उसने बाँसुरी नहीं छिपाई। श्रीकृष्ण उसकी बात पर विश्वास कर लेते हैं, किंतु तभी नायिका भौंहें घुमाकर हँसने लगी। श्रीकृष्ण को उस पर संदेह हो गया और वे फिर से उसे अपनी बाँसुरी देने के लिए कहते हैं।

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4. कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन मैं करत हैं नैननु ही सब बात।

शब्दार्थ : नटत – इनकार करना। रीझत – मुग्ध होना। खिझत – चिढ़ना। खिलत – प्रसन्न होना। लजियात – लजा जाना, शर्माना। भौन – भवन, घर। नैननु – नेत्रों से।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा प्रसिद्ध रीतिकालीन कवि बिहारी द्वारा रचित है। इसमें उन्होंने नायक और नायिका की आँखों द्वारा की जाने वाली बातचीत का सुंदर चित्रण किया है। व्याख्या कवि के अनुसार नायक आँखों से कुछ संकेत करके नायिका से कुछ कहता है, परंतु नायिका आँखों के संकेत से ही इनकार कर देती है।

नायिका के इनकार करने का ढंग कुछ ऐसा है कि नायक मुग्ध हो जाता है। यह देखकर नायिका आँख के इशारे से अपनी खीझ प्रकट करती है। उसकी यह खीझ बनावटी है। थोड़ी देर बाद जब पुनः उनकी आँखें मिलती हैं, तो दोनों एक-दूसरे को देखकर खिल उठते हैं और लजा जाते हैं। इस प्रकार भीड़ भरे घर में भी नायक-नायिका आँखों-ही-आँखों में बातचीत कर लेते हैं।

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5. बैठि रही अति सघन बन, पैठि सदन-तन माँह।
देखि दुपहरी जेठ की छाँहौं चाहति छाँह॥

शब्दार्थ : सघन बन – घने जंगल। पैठि – घुसकर। सदन-तन – घरों में। जेठ – ज्येष्ठ मास, जून का महीना। छाँहौं – छाया भी। छाँह – छाया।

प्रसंग प्रस्तुत दोहा कवि बिहारी द्वारा रचित है, जो उनके प्रसिद्ध ग्रंथ सतसई से लिया गया है। इस दोहे में उन्होंने गर्मी की भयंकरता का सुंदर
चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि जेठ मास की इस दोपहर में भयंकर गर्मी है; छाया भी गर्मी से बचने के लिए छाया चाहती है। इसी कारण छाया या तो घने जंगल में है या घरों के भीतर छिपना चाहती है। भाव यह है कि गर्मी बहुत अधिक है, जिस कारण गर्मी से घबराकर छाया भी छाया ढूँढ़ रही है। वह भी छिपना चाहती है।

6. कागद पर लिखत न बनत, कहत संदेसु लजात।
कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात॥

शब्दार्थ : कागद – कागज़। लिखत न बनत – लिखा नहीं जाता। संदेसु – संदेश। लजात – लज्जा आना। कहिहै – कह देगा। हिय – हृदय।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा प्रसिद्ध रीतिकालीन कवि बिहारी दवारा रचित है। इस दोहे में उन्होंने एक नायिका की विरह-व्यथा का वर्णन किया है। वह परदेस गए हुए अपने प्रियतम को प्रेम-पत्र लिखना चाहती है, किंतु लिख नहीं पाती।

व्याख्या : नायिका कहती है कि हे प्रियतम! मैं अपनी विरह की पीड़ा को कागज पर लिखने में असमर्थ हूँ। मैं तुम्हें मौखिक रूप से किसी के द्वारा अपना प्रेम-संदेश भी नहीं भिजवा सकती, क्योंकि ऐसा करने में मुझे लज्जा का अनुभव होता है। अतः मैं केवल इतना ही कहना चाहती

हूँ कि तुम अपने ही हृदय से पूछ लेना; वह तुम्हें मेरे हृदय की सब बातें बता देगा। भाव यह है कि तुम्हारी विरह में जैसे मेरा हृदय दुखी है, वैसे ही मेरी विरह में तुम्हारा हृदय भी दुखी होगा। इस प्रकार तुम अपने हृदय से मेरी स्थिति का सहज ही अनुमान लगा सकते हो।

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7. प्रगट भए द्विजराज-कुल, सुबस बसे ब्रज आइ।
मेरे हरौ कलेस सब, केसव केसवराइ॥

शब्दार्थ : प्रगट भए – उत्पन्न हुए। द्विजराज-कुल – ब्राह्मण वंश, चंद्र वंश। सुबस – अपनी इच्छा से। हरौ – दूर करो। कलेस – कष्ट, दुख। केसव – श्रीकृष्ण। केसवराइ – केशवराय, बिहारी के पिता।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा प्रसिद्ध रीतिकालीन कवि बिहारी द्वारा रचित है। इस दोहे में उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण का रूपक अपने पिता केशवराय से करके उनसे अपने कष्टों का निवारण करने की प्रार्थना की है।

व्याख्या : उनसे कवि कहता है कि हे श्रीकृष्ण! आपने चंद्रवंश में जन्म लिया है और आप अपनी इच्छा से ही ब्रज में आकर बस गए हैं। ब्रज में बसे हुए केशवराय रूपी केशव! मेरी प्रार्थना है कि आप मेरे सभी संकटों और दुखों को दूर करो। भाव यह है कि आप सर्वशक्तिमान हैं, अतः मेरे कष्टों का भी निवारण करो।

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8. जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।
मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु॥

शब्दार्थ : जपमाला – माला द्वारा ईश्वर के नाम का जाप करना। छापा – ईश्वर नाम के छपे हुए वस्त्र पहनना। सरै – पूरा होना। मन-काँचै – कच्चे मन वाला, अस्थिर मन वाला। नाचै – नाचना। बृथा – बेकार में। साँचै – सच्चे मन वाला। राँचै – प्रसन्न होना।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा कविवर बिहारी द्वारा रचित ‘सतसई’ में से लिया गया है। इसमें उन्होंने बाह्य आडंबरों के स्थान पर सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति करने पर बल दिया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि हाथ में माला लेकर निरंतर जाप करने से, ईश्वर नाम के छपे वस्त्र पहनने से तथा तिलक लगाने से ईश्वर-भक्ति का कार्य पूरा नहीं होता। यदि मनुष्य का मन अस्थिर है और उसके मन में ईश्वर के प्रति पूर्ण विश्वास नहीं है, तो उसका भक्ति में नाचना भी व्यर्थ है। इसके विपरीत जो व्यक्ति सच्चे मन से ईश्वर पर विश्वास करके भक्ति करते हैं, भगवान उन्हीं पर प्रसन्न होते हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 1 माता का आँचल

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JAC Class 10 Hindi माता का आँचल Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है ?
उत्तर :
माँ बच्चे की जन्मदाता तथा पालन-पोषण करने वाली होती है। स्वाभाविक रूप से बच्चा माँ से अधिक लगाव रखता है। माँ भी एक बाप की अपेक्षा हृदय से अधिक प्यार-दुलार करती है। वह बाप की अपेक्षा बच्चों की भावनाओं को अधिक अच्छे ढंग से समझ लेती है। माँ का अपने बच्चे से आत्मिक प्रेम होता है। बच्चा चाहकर भी माँ की ममता को नहीं भुला सकता। यह भी सत्य है कि एक बाप अपने बच्चों को बहुत अधिक प्यार तो दे सकता है, लेकिन एक माँ का हृदय वह कभी प्राप्त नहीं कर सकता। इसलिए प्रस्तुत पाठ में पिता से अधिक लगाव होने पर भी बच्चा विपदा के समय पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है।

प्रश्न 2.
आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है?
उत्तर :
मनुष्य स्वाभाविक रूप से अपनी आयु तथा प्रकृति के लोगों के साथ अधिक जुड़ा रहता है। वह मन से उनकी संगति लेना चाहता है। उनकी संगति में आकर उसके दुख, रोग आदि सब मिट जाते हैं। विशेषकर बच्चा अपने जैसे साथियों की संगति अवश्य चाहता है, क्योंकि उनके बिना उसकी अठखेलियाँ और मौज-मस्ती अधूरी रह जाती हैं। वह अपनी संगति में आकर अपने सारे सुख-दुख भूल जाता है। इसलिए भोलानाथ भी अपने साथियों को देखकर सिसकना भूल जाता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 1 माता का आँचल

प्रश्न 3.
आपने देखा होगा कि भोलानाथ और उसके साथी जब-तब खेलते-खाते समय किसी न किसी प्रकार की तुकबंदी करते हैं। आपको यदि अपने खेलों आदि से जुड़ी तुकबंदी याद हो तो लिखिए।
उत्तर :
(i) अक्कड़-बक्कड़ बंबे बो,
अस्सी नब्बे पूरे सौ।
सौ पे लगा धागा,
चोर निकलकर भागा।

(ii) पौशम पा भई पौशम पा
डाकिए ने क्या किया
सौ रुपये की घड़ी चुराई
अब तो जेल में जाना पड़ेगा
जेल की रोटी खानी पड़ेगी।
जेल का पानी पीना पड़ेगा।

प्रश्न 4.
भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है?
अथवा
माता के अँचल पाठ में वर्णित खेलों से आज के खेल कितने अलग हैं, उसका तुलनातमक वर्णन कीजिए।
उत्तर :
भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री हमारे खेल और खेलने की सामग्री से निम्नलिखित प्रकार से भिन्न है –
(i) भोलानाथ और उसके साथी तमाशे, नाटक, चिड़ियाँ पकड़ना, घर बनाना, दुकान लगाना आदि खेल खेला करते थे।
हम क्रिकेट खेलना, कार्टून देखना, साइकिल दौड़ाना, सवारी करना, तैरना आदि खेल खेलते हैं।
(ii) भोलानाथ और उसके साथी चबूतरा, चौकी, सरकंडे, पत्ते, गीली मिट्टी, फूटे घडे के टुकडे, ठीकरे आदि सामग्री का प्रयोग करते थे। हम साइकिल, रस्सी, टी०वी०, कंप्यूटर, इंटरनेट, पेन, पेंसिल आदि सामग्री का प्रयोग करते हैं।

प्रश्न 5.
पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों?
उत्तर :
1. देखिए, मैं खिलाती हूँ। मरदुए क्या जाने कि बच्चों को कैसे खिलाना चाहिए और महतारी के हाथ से खाने पर बच्चों का पेट भी भरता है। यह कहकर वह थाली में दही-भात सानती और अलग-अलग तोता, मैना, कबूतर, हंस, मोर आदि के बनावटी नाम से कौर बनाकर यह कहते हुए खिलाती कि जल्दी खा लो, नहीं तो उड़ जाएँगे; पर हम उन्हें इतनी जल्दी उड़ा जाते थे कि उड़ने का मौका ही नहीं मिलता।

2. एक टीले पर जाकर हम लोग चूहों के बिल में पानी डालने लगे। नीचे से ऊपर पानी फेंकना था हम सब थक गए। तब तक गणेशजी के चूहे की रक्षा के लिए शिवजी का साँप निकल आया। रोते-चिल्लाते हम लोग बेतहाशा भाग चले।

3. इसी समय बाबूजी दौड़े आए। आकर झट हमें मइयाँ की गोद से अपनी गोद में लेने लगे पर हमने मइयाँ के आँचल की प्रेम और शांति के चँदोवे की छाया न छोड़ी।

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प्रश्न 6.
इस उपन्यास अंश में तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति का चित्रण है। आज की ग्रामीण संस्कृति में आपको किस तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं ?
उत्तर :
आज की ग्रामीण संस्कृति में हमें अनेक तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं –

  • आज के ग्रामीण परिवेश में बच्चों के परस्पर स्नेह में बँधे हुए झुंड दिखाई नहीं देते।
  • बच्चे बाहर खेलने की अपेक्षा अपने घरों में अधिकांश बँधे रहते हैं।
  • खेलने के लिए पहले जैसे खुले मैदान नहीं रहे।
  • आज उनके खेल तथा खेलने की सामग्री भी बदल चुकी है।
  • आज के बच्चे क्रिकेट खेलना पसंद करते हैं, मिट्टी आदि के ढेलों से नहीं।

प्रश्न 7.
पाठ पढ़ते-पढ़ते आपको भी अपने माता-पिता का लाड़-प्यार याद आ रहा होगा। अपनी इन भावनाओं को डायरी में अंकित कीजिए।
उत्तर :
बचपन में हमें भी सुबह-सवेरे माँ बड़े प्यार से जगाया करती थी। जल्दी-जल्दी नहला-धुलाकर तथा साफ़ कपड़े पहनाकर फिर हमें खेलने के लिए छोड़ देती थीं। पिताजी हमें अपने कंधे पर बिठाकर दूर तक झुलाया करते थे। कभी-कभी आँगन में अपनी पीठ पर बैठाकर घोड़े की तरह झुला दिया करते थे। कभी-कभी वे हमें अपने साथ लेकर नदी में नहलाने के लिए ले जाते थे और अपनी गोदी में लेकर पानी में खूब डुबकियाँ लगाते थे। कई बार पिताजी हमें अपने साथ खेतों में घुमाया करते थे। माँ अपने आँचल में बिठाकर हमें दूध पिलाया करती; भोजन खिलाती थीं। पेट भर जाने पर भी हमसे और खाने के लिए कहती थीं। बच्चों के साथ बाहर खेलने जाते तो बड़े प्यार से समझा-बुझाकर भेजती थीं। अनेक नसीहतें देती थीं।

प्रश्न 8.
यहाँ माता-पिता का बच्चे के प्रति जो वात्सल्य व्यक्त हुआ है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
प्रस्तुत पाठ में बच्चे के प्रति माता-पिता के वात्सल्य का सजीव वर्णन किया गया है। बच्चे का माँ के आँचल में खेलना, माँ द्वारा सुबह बच्चे को नहला-धुलाकर तथा कपड़े आदि पहनाकर खेलने भेजना, पूजा-पाठ आदि करके उसके माथे पर तिलक लगाना आदि का सजीव चित्रण हुआ है। बच्चे का अपने पिता की मूंछों के साथ खेलने का अनूठा वर्णन हुआ है। पिता बच्चों को अपने कंधों पर झुला-झुलाकर उनका मन बहलाता है; उनके साथ कुश्ती करता है। बच्चों का मन खुश करने हेतु हार जाता हैं, जिससे बच्चे खिलखिलाकर हँस पड़ते हैं। माँ बच्चों को तोता, मैना, कबूतर, हंस, मोर आदि के बनावटी नाम देकर उन्हें भोजन खिलाती है। बच्चों को थोड़ी-सी चोट लगने पर माता-पिता दुखी हो जाते हैं। माँ अपने बच्चे को अपने आँचल में छिपाकर उनसे प्यार करती है।

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प्रश्न 9.
‘माता का अँचल’ शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य शीर्षक सुझाइए।
उत्तर :
‘माता का अँचल’ पाठ के माध्यम से लेखक ने माँ के आँचल के प्रेम एवं शांति का वर्णन किया है। लेखक और उसका भाई वैसे तो अधिकतर अपने पिता के साथ रहते हैं। उनके पास सोते हैं, लेकिन जो प्यार और शांति उन्हें माँ के आँचल में मिलती है वैसी पिता के साथ नहीं मिलती। माँ अपने बच्चों को नहला-धुलाकर, कुरता-टोपी, तिलक आदि लगाकर बाहर खेलने के लिए भेजती है। पिता के द्वारा रोटी खिलाने पर भी माँ बच्चों को कबूतर, तोता, मैना आदि के बनावटी नाम देकर रोटी खिलाती है।

पाठ के अंत में भी जब बच्चे साँप से भयभीत होकर घर पहुँचते हैं, तो वे अपनी माँ के आँचल में छिप जाते हैं। उन्हें हुक्का गुड़गुड़ाते हुए पिता अनदेखा कर देते हैं। माँ ही अपने आँचल में लेकर बच्चों की चोट पर हल्दी का लेप लगाती है। काँपते होंठों को बार-बार देखकर उन्हें गले लगा लेती है। उसी समय बाबूजी माँ की गोद से बच्चों को लेना चाहते हैं, लेकिन बच्चे अपनी माता के अँचल की प्रेम और शांति की छाया को नहीं छोड़ते। संभवतः माता का अँचल एक उपयुक्त शीर्षक है। इसका अन्य शीर्षक ‘बचपन’ हो सकता है।

प्रश्न 10.
बच्ने माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं ?
उत्तर :
बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को अपनी क्रीड़ाओं के माध्यम से अभिव्यक्त करते हैं। वे अपने मन की भावनाओं को अपनी क्रीड़ा के माध्यम से प्रकट करते हैं। उनकी भावनाएँ ही उनके प्रेम का प्रतीक होती हैं। वे कभी नाराज़, तो कभी प्रसन्न होकर अपना प्रेम प्रदर्शित करते हैं।

प्रश्न 11.
इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है वह आपके बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है?
उत्तर :
प्रस्तुत पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है, वह हमारे बचपन की दुनिया से पूर्णतः भिन्न है। हमारी दुनिया में परस्पर स्नेह भाव, दोस्ती, विचारों के आदान-प्रदान आदि की कमी है। आज मित्र-मंडली जैसा शब्द भी खो गया सा लगता है, जिसमें परस्पर प्रेमभाव से भरकर, मस्ती में चूर होकर कहीं बाहर खेलने जाए। फिर पहले की अपेक्षा आज की दुनिया में प्राकृतिक खेलों का चलन कम हो गया है और कृत्रिम खेल व सामग्री का चलन बढ़ा है।

आज की दुनिया कृत्रिम उपादानों से घिरी हुई है। उसमें स्वाभाविकता छिप गई है। तमाशे करना, नाटक खेलना, मिट्टी का घर बनाना, चिड़ियों संग खेलना आदि प्राकृतिक खेल तथा सामग्री अब कहीं नहीं मिलती। अब तो हमारी दुनिया कंप्यूटर, टी० वी०, क्रिकेट आदि में उलझकर रह गई है।

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प्रश्न 12.
फणीश्वरनाथ रेणु और नागार्जुन की आंचलिक रचनाओं को पढ़िए।
उत्तर :
फणीश्वर नाथ रेणु हिंदी साहित्य के महान आंचलिक कथाकार हैं। नागार्जुन भी प्रमुख आंचलिक लेखक माने जाते हैं। विद्यार्थी इनकी रचनाएँ पुस्तकालय से लेकर पढ़ें।

JAC Class 10 Hindi माता का आँचल Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘जहाँ बुड्ढों का संग, तहाँ खर्चे का तंग’ प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से समाज में बुजुर्गों की निरंतर उपेक्षा की ओर संकेत किया गया है, कैसे?
उत्तर :
यह सत्य है कि आज के आधुनिक युग में मनुष्य पहले की अपेक्षा अधिक लालची, सीमित तथा स्वार्थी हो गया। उसमें नैतिकता, परस्पर स्नेह, बुजुर्गों का सम्मान, पारिवारिक देखभाल आदि जीवन मूल्य समाप्त हो गए हैं। इसलिए आज वह अपने बुजुर्गों की अपनी मौज-मस्ती में चूर है। बुजुर्ग इसी उपेक्षा के शिकार होकर खर्चे की तंगी के कारण अपना विडंबनापूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे हैं। लेखक ने इस पंक्ति के माध्यम से जहाँ बुजुर्गों के उपेक्षित जीवन के प्रति चिंता व्यक्त की है, वहीं आज के युवा समाज पर कटु व्यंग्य भी किए हैं।

प्रश्न 2.
तारकेश्वर नाथ का नाम ‘भोलानाथ’ कैसे पड़ा?
उत्तर :
बाबूजी सुबह-सवेरे अपने साथ-साथ लेखक तथा उसके भाई को भी उठा दिया करते थे और अपने साथ उन्हें भी नहला-धुलाकर पूजा पर बिठा लिया करते थे पूजा के पश्चात बाबूजी अपने दोनों बेटों के चौड़े मस्तक पर अर्ध चंद्राकार की रेखाएँ बना देते थे। उनके सिर पर लंबी-लंबी जटाएँ थीं। अतः उनके मस्तक पर भभूत बहुत अच्छी लगती थी। इस प्रकार भोले के समान वेश होने के कारण तारकेश्वरनाथ का नाम भोलानाथ पड़ गया।

प्रश्न 3.
‘मरदुए क्या जाने कि बच्चों को कैसे खिलाना चाहिए।’ इस पंक्ति में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से लेखक ने पुरुष समाज पर व्यंग्य किया है। यह सत्य है कि नारी की अपेक्षा पुरुष के अंदर वात्सल्य भावना बहुत कम होती है। माँ के रूप में नारी एक बच्चे को जो लाड़-प्यार दे सकती है, वैसा पिता के रूप में पुरुष नहीं दे सकता। पिता की अपेक्षा माँ बच्चों के मन को झाँककर देख लेती है। वह भावनात्मक रूप से बच्चों के साथ जुड़ी रहती है। इसलिए वह बच्चों की भावनाओं को शीघ्रता से समझ लेती है।

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प्रश्न 4.
पाठ में बच्चों द्वारा जो घरौंदा बनाया था, उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
लेखक की मित्र-मंडली ने जो घरौंदा बनाया था, उसमें धूल की मेंड़ से दीवार बनाई गई और तिनकों का छप्पर। उसमें दातुन के खंभे तथा दियासलाई की पेटियों के किवाड़ लगाए गए। उसके अंदर घड़े के मुँहड़े की चूल्हा-चक्की, दीये की कड़ाही और बाबूजी की पूजा वाली कलछी बनाई गई। घर में पानी का घी, धूल के पिसान और बालू की चीनी से मित्र-मंडली भोजन करती थी। सब लोग घर के अंदर पंगत में बैठकर यह भोजन जीमते थे। इस प्रकार लेखक ने बच्चों का यह अद्भुत घरौंदा बनाया।

प्रश्न 5.
लेखक को उसके पिताजी क्या कहकर पुकारते थे? लेखक अपने माता-पिता को क्या कहकर पुकारता था?
उत्तर :
लेखक के पिता उसे बड़े प्यार से भोलानाथ कहकर पुकारा करते थे। असल में लेखक का नाम ‘तारकेश्वरनाथ’ था। लेखक अपने पिता को ‘बाबूजी’ तथा माता को ‘मइयाँ’ कहकर पुकारता था।

प्रश्न 6.
लेखक के पिता जब रामायण का पाठ करते थे, तब लेखक क्या करता था?
उत्तर :
लेखक के पिता जब सुबह स्नान के बाद रामायण का पाठ करते थे, तब लेखक उनके बगल में बैठकर दर्पण में अपने मुख को निहारता था। ओर देखते थे, तब वह कुछ शरमाकर दर्पण को नीचे रख देता था। यह देखकर लेखक के पिता भी मुस्कुरा पड़ते थे।

प्रश्न 7.
प्रतिदिन सुबह लेखक के पिता उसे किस प्रकार तैयार करते थे?
उत्तर :
लेखक रात को अपने पिता के साथ बैठक में सोया करता था। उसके पिता जब सुबह उठते थे, तब वे अपने साथ लेखक को भी उठा . देते थे। फिर उसे नहलाकर पूजा पर बिठा लेते थे। वे लेखक के माथे पर भभूत का तिलक लगा देते थे।

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प्रश्न 8.
लेखक ‘बम-भोला’ कब बन जाता था?
उत्तर :
जब लेखक के पिता उसके माथे पर भभूति तथा त्रिपुंड लगा देते थे, तो उसका माथा खिल उठता था। लेखक की लंबी-लंबी जटाएँ थीं तथा भभूत लगाने से वह अच्छा खासा ‘बम भोला’ लगता था।

प्रश्न 9.
पूजा-पाठ करने के बाद लेखक के पिता क्या करते थे?
उत्तर :
पूजा-पाठ करने के बाद लेखक के पिता राम-नाम लिखने लगते थे। वे अपनी ‘रामनामा’ बही में हज़ार राम-नाम लिखकर उसे पाठ कर रख देते थे। पाँच सौ बार कागज़ के छोटे-छोटे टुकडों पर राम-नाम लिखकर आटे की गोलियों में लपेटते थे और उन गोलियों को लेकर गंगा जी की ओर चल पड़ते थे। वहाँ वे ये गेलियाँ मछलियों को खिला देते थे।

प्रश्न 10.
जब लेखक के पिता गंगा में आटे की गोलियाँ फेंकते थे, तब लेखक क्या करता था?
उत्तर :
जब लेखक के पिता गंगा में आटे की गोलियाँ फेंककर मछलियों को खिलाते थे, तब लेखक उनके कंधे पर विराजमान होता था और बैठे-बैठे हँसा करता था। जब उसके पिताजी मछलियों को चारा खिलाकर घर वापस लौटते थे, तब बीच रास्ते में उसको पेड़ों की डालों पर बिठाकर झूला झुलाते थे।

प्रश्न 11.
बैजू कौन था ? वह किसे चिढ़ाता था?
उत्तर :
बैजू लेखक की मंडली का एक लड़का था। वह सभी लड़कों में बड़ा ढीठ था। बैजू मूसन तिवारी को चिढ़ाता था। वह उन्हें चिढ़ाने के लिए कहता था कि ‘बुढ़वा बेईमान माँगे करैला का चोखा।’

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प्रश्न 12.
लेखक के पिता ने यह क्यों कहा कि ‘लड़के और बंदर पराई पीर नहीं समझते।’
उत्तर :
लेखक के पिता ने ऐसा इसलिए कहा, क्योंकि बच्चे अपने खेल, आनंद तथा मौज-मस्ती के लिए किसी का भी मजाक उड़ाने से पीछे नहीं हटते; फिर चाहे जिसका मज़ाक वे उड़ा रहे हैं; उसे कितना ही कष्ट क्यों न हो। उन्हें इससे कोई मतलब नहीं होता। यही काम बंदरों का भी है। इसलिए लेखक के पिता ने कहा कि लड़के और बंदर पराई पीर नहीं समझते।’

प्रश्न 13.
लेखक और उसके मित्रों ने जब चूहे के बिल में पानी डाला, तब क्या हुआ?
उत्तर :
लेखक और उसके मित्रों ने जब चूहे के बिल में पानी डाला, तो उसके अंदर से साँप निकल आया। उसे देखकर सभी लड़के वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गए।

प्रश्न 14.
बिल में से साँप निकलने पर बच्चों का क्या हाल हुआ?
उत्तर :
जब बिल में से साँप निकला, तो बच्चे रोते-चिल्लाते बेतहाशा भागे। कोई औंधा गिरा, कोई अंटाचिट। किसी का सिर फूटा, किसी के दाँत टूटे। लेखक का सारा शरीर लहूलुहान हो गया। उसके पैर के तलवे काँटों से छलनी हो गए थे।

माता का आँचल Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन-परिचय – शिवपूजन सहाय का जन्म सन 1893 में गाँव उनवास जिला शाहाबाद (बिहार) में हुआ। इनके बचपन का नाम भोलानाथ था। दसवीं की परीक्षा पास करने के बाद इन्होंने बनारस की अदालत में नकलनवीस की नौकरी की। बाद में ये हिंदी के अध्यापक बन गए। असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर इन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। शिवपूजन सहाय तत्कालीन लेखकों में बहुत लोकप्रिय और सम्मानित व्यक्ति थे। इन्होंने जागरण, हिमालय, माधुरी, बालक आदि कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का संपादन किया। इसके साथ ही ये हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिका मतवाला के संपादक-मंडल में थे। सन 1963 में इनका देहांत हो गया।

रचनाएँ – शिवपूजन सहाय मुख्यतः गद्य लेखक थे। देहाती दुनिया, ग्राम सुधार, वे दिन वे लोग, स्मृतिशेष आदि इनकी दर्जन भर गद्य-कृतियाँ प्रकाशित हुई हैं। शिवपूजन रचनावली के चार खंडों में इनकी संपूर्ण रचनाएँ प्रकाशित हैं।

साहित्यिक विशेषताएँ – शिवपूजन सहाय आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख साहित्यकार माने जाते हैं। इन्होंने युगीन समाज की विडंबनाओं, समस्याओं, सामाजिक एवं राजनीतिक विषयों आदि का यथार्थ चित्रण किया है। समाज में बढ़ रहे शोषण के विरुद्ध इन्होंने आवाज़ उठाई है। इन्होंने सामाजिक कुरीतियों का डटकर विरोध करते हुए नारी में चेतना जागृत करने का प्रयास भी किया। सहाय जी ने ग्राम्य संस्कृति का अनूठा चित्रण किया है। देहाती दुनिया, ग्राम-सुधार, माता का आँचल आदि ऐसी प्रमुख रचनाएँ हैं जिनमें ग्राम्य संस्कृति, रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज आदि का सजीव अंकन हुआ है। माता का आँचल में लेखक ने माँ के आँचल की गरिमा तथा ग्राम्य संस्कृति का अनूठा वर्णन किया है। इन्होंने स्पष्ट शब्दों में बताया है कि युवा वर्ग मस्ती में चूर रहता है, तो बुजुर्ग लोग बेबस होने के कारण अपनी आजीविका चलाने हेतु खर्चे से भी तंग हो जाते हैं। उन्होंने कहा है –

जहाँ लड़कों का संग, तहाँ बाजे मृदंग।
जहाँ बुड्ढों का संग, तहाँ खर्चे का तंग॥

सहाय जी की भाषा-शैली सरल-सरस खड़ी बोली है। इनकी भाषा में लोक जीवन और लोक संस्कृति के प्रसंग सहज ही मिल जाते हैं। इनकी भाषा में आंचलिक शब्दों का प्रचुर प्रयोग हुआ है। इसके साथ-साथ तत्सम, तद्भव, उर्दू, फारसी, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। इन्होंने वर्णनात्मक, चित्रात्मक, विवरणात्मक शैलियों का भावपूर्ण प्रयोग किया है। मुहावरों एवं लोकोक्तियों के प्रयोग से इनकी भाषा में रोचकता एवं प्रवाहमयता उत्पन्न हो गई है। संभवतः शिवपूजन सहाय हिंदी साहित्य के महान लेखक थे। इनका हिंदी साहित्य में अपूर्व योगदान है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 1 माता का आँचल

पाठ का सार :

शिवपूजन सहाय द्वारा लिखित ‘माता का अँचल’ उनके उपन्यास का अंश है। प्रस्तुत पाठ में लेखक ने माँ के अंचल की ‘ममता’ के साथ-साथ ग्राम्य संस्कृति का अनूठा चित्रांकन किया है। समाज में युवा जहाँ मौज-मस्ती में रहते हैं, वहाँ बजर्ग कठिनता से जीवनयापन कर पाते हैं। लेखक ने बताया है कि उसके पिता सुबह उठकर स्नान कर पूजा-पाठ करते थे। वे लेखक तथा उसके भाई को भी पूजा-स्थान पर बैठा लेते थे।

लेखक अधिकांश अपने पिता के साथ रहता था। पूजा के बाद पिता उसके माथे पर भभूत और तिलक लगाकर उसे भोलानाथ कहकर पुकारते थे। बाबूजी द्वारा रामायण पाठ करते समय वे दोनों भाई आईने में अपना मुँह निहारा करते थे। इसके बाद बाबूजी अपनी ‘रामनामा बही’ में हज़ार बार राम नाम लिखकर उसे पाठ करने की पोथी के साथ बंद करके रख देते थे। बाबूजी द्वारा गंगा में मछलियों को आटे की गोलियाँ खिलाते समय दोनों भाई उनके कंधों पर बैठे हँसते थे।

कभी-कभी बाबूजी उनसे कुश्ती करते थे। वे दोनों अपने बाबूजी की लंबी-लंबी मूंछों के साथ खेलते थे। बाबूजी प्यार से उन्हें चूमते थे। घर आकर बाबूजी उन्हें चौके पर बिठाकर अपने हाथों से खाना खिलाया करते थे। लेखक तथा उसके भाई के मना करने पर उनकी माँ बड़े प्यार से तोता, मैना, कबूतर, हँस, मोर आदि के बनावटी नाम से टुकड़े बनाकर उन्हें दही-भात खिलाती थी। छककर खाने के बाद वे नग-धडंग अवस्था में बाहर दौड़ पड़ते थे। कभी अचानक माँ पकड़ ले, तो वे उनकी चोटी गूंथकर तथा उन्हें कुरता-टोपी पहनाकर ही छोड़ती थीं। वे सिसकते-सिसकते बाबूजी की गोद में बाहर आते।

बाहर आते ही वे बालकों के झुंड के साथ मौज-मस्ती में डूब जाते थे। वे चबूतरे पर बैठकर तमाशे और नाटक किया करते थे। मिठाइयों की दुकान; जिसमें पत्ते की पूरियाँ, मिट्टी की जलेबियाँ आदि मिलती है; लगाया करते थे। सभी बच्चों के साथ मिलकर वे घर बनाते थे, जिसमें तिनकों का छप्पर, दातून के खंभे, दीए की कड़ाही आदि रखे जाते थे। उसी घरौंदे में सभी पंक्ति में बैठ जीमने लगते। बाबूजी भी उनके पास चले आते थे। कभी-कभी वे बारात का जुलूस निकालते थे, जिसमें कनस्तर का तंबूरा और आम के पौधे की शहनाई बजती।

टूटी चूहेदानी की पालकी बनती और समधी बनकर बकरे पर चढ़ जाते। यह बारात एक कोने से दूसरे कोने तक जाती थी। कभी मित्रमंडली इकट्ठी होकर खेती करने लगती। इस प्रकार के नाटक वे प्रतिदिन खेला करते थे। किसी दूल्हे के आगे चलती पालकी देखते ही ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगते। एक बार बूढ़े वर ने खदेलकर लेखक मंडली को ढेलों से मारा। एक बार रास्ते में आते हुए मूसन तिवारी को बुढ़वा बेईमान कहकर चिढ़ा दिया। मूसन तिवारी ने उनको खूब खदेड़ा। उसके बाद मूसन तिवारी पाठशाला पहुँच गए।

वहाँ चार लड़कों में से बैजू तो भाग निकला, लेकिन लेखक और उसका भाई पकड़ा गया। यह सुनकर बाबूजी पाठशाला दौड़ें आए। गुरुजी से विनती कर बाबूजी उन्हें घर ले आए। फिर वे रोना-धोना भूलकर अपनी मित्र मंडली के साथ हो गए। उनके मित्र मकई के खेत में चिड़ियों को पकड़ने लगे, वे खेत से अलग होकर ‘रामजी की चिरई, रामजी का खेत खा लो चिरई भर-भर पेट’ गीत गाते रहे। कुछ दूरी पर बाबूजी तथा अन्य गाँव के लोग यह तमाशा देख रहे थे। एक टीले पर जाकर लेखक और उसका भाई अपने मित्रों के साथ मिलकर चूहों के बिल में पानी डालने लगे।

कुछ देर बाद उसमें से गणेशजी के चूहे की रक्षा के लिए शिव का सांप निकल आया। उससे डरकर वे रोते-चिल्लाते वहाँ से भाग चले। गिरते-फिसलते, काँटों में चलते वे सब खून से लथपथ हो गए। सभी अपने-अपने घर में घुस गए। उस समय बाबूजी बरामदे में बैठे हुक्का पी रहे थे। वे दोनों अपनी माँ की गोद में जाकर बैठ गए। उन्हें डर से कांपते हुए देखकर लेखक की माँ रोने लगी। वह व्याकुल होकर कारण पूछने लगी। कभी उन्हें अपने आँचल में छिपाती, तो कभी प्यार करने लगती। माँ ने तुरंत हल्दी पीसकर लेखक और उसके भाई के घावों पर लगाई। उनका शरीर काँप रहा था। आँखें चाहकर भी खुलती न थीं। बाबूजी दौड़कर उन्हें गोद में लेने लगे, लेकिन वे अपनी माँ के आँचल में ही छुपे रहे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 1 माता का आँचल

कठिन शब्दों के अर्थ :

मृदंग – एक प्रकार का वाद्य-यंत्र। संग – के साथ। तड़के – प्रातः, सुबह। लिलार – ललाट, माथा। त्रिपुंड – एक प्रकार का तिलक जिसमें माथे पर तीन आड़ी या अर्धचंद्र के आकार की रेखाएँ बनाई जाती हैं। जटाएँ – बाल। भभूत – राख। विराजमान – स्थापित, बैठना। उतान – पीठ के बल लेटना। सामकर – मिलाकर। अफ़र जाते – भरपेट खा लेते। ठौर – स्थान। कड़वा तेल – सरसों का तेल। बोथकर – सराबोर कर देना। चॅदोआ – छोटा शमियाना। ज्योनार – भोज, दावत। जीमने – भोजन करना। कनस्तर – टीन का एक ओहार – परदे के लिए डाला हुआ कपड़ा। अमोले – आम का उगता हुआ पौधा। कसोरे – मिट्टी का बना छिछला कटोरा। रहरी – अरहर। अँठई – कुत्ते के शरीर में चिपके रहने वाले छोटे कीड़े। चिरौरी – विनती, प्रार्थना। मइयाँ – माँ। महतारी – माँ। अमनिया – साफ़, शुद्ध। ओसारे में – बरामदे में।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति

JAC Class 10 Hindi संस्कृति Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक की दृष्टि में ‘सभ्यता’ और ‘संस्कृति’ की सही समझ अब तक क्यों नहीं बन पाई है?
उत्तर :
लेखक के अनुसार हम लोग अपनी रूढ़ियों से इस प्रकार बँधे हुए हैं कि प्रतिपल परिवर्तित होने वाले संसार के साथ चल नहीं पाते। इस कारण अपनी सीमाओं में बँधे रहते हैं। इस संकुचित दृष्टिकोण के कारण हम सभ्यता और संस्कृति के लोक कल्याणकारी रूप को भुला देते हैं और अपने व्यक्तिगत, जातिगत, वर्गगत हितों की रक्षा करने में लग जाते हैं और इसे ही अपनी सभ्यता व संस्कृति मान बैठते हैं। इसके विपरीत सभ्यता और संस्कृति में मानवीय कल्याण का स्वर प्रमुख होता है। इसके अभाव में सभ्यता ‘असभ्यता’ और संस्कृति ‘असंस्कृति’ हो जाती है। अपने स्वार्थों के कारण ही हमें सभ्यता और संस्कृति की सही समझ अब तक नहीं आई है।

प्रश्न 2.
आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज क्यों मानी जाती है?
उत्तर :
इस खोज के पीछे रही प्रेरणा के मुख्य स्रोत क्या रहे होंगे? आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज इसलिए मानी जाती है, क्योंकि इसके बाद मनुष्य के अनेक कार्य सुगम हो गए हैं। आग से खाना बनाया जाता है; ऊर्जा पैदा करके अनेक मशीनों को चलाया जा सकता है। आग की खोज के पीछे पेट भरने के लिए खाद्य सामग्री पकाने की प्रेरणा ही मुख्य है। अँधेरे में प्रकाश करना, ठंड में गरमी प्राप्त करना आदि आग की खोज करने के अन्य प्रेरणास्त्रोत हैं।

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प्रश्न 3.
वास्तविक अर्थों में ‘संस्कृत व्यक्ति’ किसे कहा जा सकता है?
उत्तर :
लेखक ने उस व्यक्ति को ‘संस्कृत व्यक्ति’ बताया है जिसकी योग्यता, बुद्धि, विवेक, प्रेरणा अथवा प्रवृत्ति उसे किसी नए तथ्य का दर्शन करवाती है और वह जनकल्याण के लिए नि:स्वार्थ भाव से कार्य करता है। संस्कृत व्यक्ति सदा अच्छे कार्य करता है। वह प्राणीमात्र के कल्याण की चिंता करता है। अपने कार्यों से वह किसी का अहित नहीं करता। वह स्वयं कष्ट उठाकर दूसरों को सुख देता है।

प्रश्न 4.
न्यूटन को संस्कृत मानव कहने के पीछे कौन-से तर्क दिए गए हैं? न्यूटन द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों एवं ज्ञान की कई दूसरी बारीकियों को जानने वाले लोग भी न्यूटन की तरह संस्कृत नहीं कहला सकते, क्यों?
उत्तर :
न्यूटन को संस्कृत मानव इसलिए कहते हैं क्योंकि उसने अपनी योग्यता, प्रवृत्ति एवं प्रेरणा के बल पर जनकल्याण के लिए गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कार किया था। उसकी यह खोज मौलिक खोज थी। इस खोज के पीछे उसका अपना कोई स्वार्थ नहीं था। उसने यह कार्य कल्याण की भावना से किया था। आज कई लोग न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के अतिरिक्त भौतिक विज्ञान से संबंधित उन अनेक बातों को भी जानते हैं, जो न्यूटन को पता नहीं थीं। इस पर भी इन लोगों को न्यूटन के समान संस्कृत व्यक्ति इसलिए नहीं कह सकते, क्योंकि इन लोगों ने स्वयं कोई आविष्कार नहीं किया है। ये लोग अन्य व्यक्तियों द्वारा की गई खोजों से ही ज्ञान प्राप्त करते हैं। अतः ये लोग न्यूटन की तरह संस्कृत व्यक्ति नहीं कहे जा सकते।

प्रश्न 5.
किन महत्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सुई-धागे का आविष्कार हुआ होगा?
उत्तर :
मानव ने सूई-धागे का आविष्कार कपड़े सीने, शीतोष्ण से बचने के लिए, वस्त्र बनाने आदि के लिए किया होगा। शरीर को सजाने के लिए बनाए जाने वाले वस्त्रों के लिए भी सुई-धागे का आविष्कार हुआ होगा। रज़ाई, गद्दे, टैंट, पर्दे आदि बनाने के लिए भी सुई-धागे
का ही उपयोग होता है।

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प्रश्न 6.
‘मानव संस्कृति एक अविभाज्य वस्तु है।” किन्हीं दो प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जब –
(क) मानव संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की गईं।
(ख) जब मानव संस्कृति ने अपने एक होने का प्रमाण दिया।
उत्तर :
(क) मानव संस्कृति को विभाजित करने के लिए धर्म के नाम पर लोगों को आपस में लड़ाया जाता है, जैसा कि ब्रिटिश सरकार ने हिंदू-मुसलमानों को आपस में लड़ाकर हिंदुस्तान के दो टुकड़े भारत और पाकिस्तान कर दिए थे।
(ख) गुजरात में आए भूकंप के समय हिंदू-मुस्लिम का भेदभाव भुलाकर सभी लोगों ने एकजुट होकर पीड़ितों की सहायता की। इस घटना से मानव संस्कृति के एक होने का प्रमाण मिलता है।

प्रश्न 7.
आशय स्पष्ट कीजिए –
उत्तर :
मानव की जो योग्यता उससे आत्म-विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है, हम उसे उसकी संस्कृति कहें या असंस्कृति? लेखक का मानना है कि मनुष्य अपनी योग्यता और कुशलता के बल पर जिन विनाशकारी साधनों का आविष्कार करता है, वह हमारी संस्कृति के अनुरूप नहीं है। विनाशकारी साधनों का आविष्कार करना असंस्कृति का प्रतीक है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 8.
लेखक ने अपने दृष्टिकोण से सभ्यता और संस्कृति की एक परिभाषा दी है। आप सभ्यता और संस्कृति के बारे में क्या सोचते हैं? लिखिए।
उत्तर :
मेरे विचार में संस्कृति वह है, जो श्रेष्ठ कृति अथवा कर्म के रूप में व्यक्त होती है। कर्म विचार पर आधारित होता है। इसलिए जो ज्ञान एवं भाव हमारे कर्मों को श्रेष्ठ बनाते हैं, वहीं संस्कृति है। संस्कृति का कार्य ही हमें अच्छे कार्यों की ओर ले जाना है। संस्कृति हमारे भौतिक जीवन को सुधारती है और हमारी सभ्यता को विकसित तथा उन्नत बनाती है। जो समाज जितना अधिक सुसंस्कृत होगा, उसकी सभ्यता भी उतनी ही अधिक विकसित तथा उन्नत होगी।

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भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 9.
निम्नलिखित सामासिक पदों का विग्रह करके समास का भेद भी लिखिए –
[गलत-सलत, आत्म-विनाश, महामानव, पददलित, हिंदू-मुस्लिम, यथोचित, सप्तर्षि, सुलोचना]
उत्तर :

  • गलत-सलत – गलत ही गलत-अव्ययीभाव समास।
  • आत्म-विनाश – आत्मा का विनाश-तत्पुरुष समास।
  • महामानव – महान है जो मानव-कर्मधारय समास।
  • पददलित – पद से दलित-तत्पुरुष समास।
  • हिंदू-मुस्लिम – हिंदू और मुस्लिम-वंद्व समास।
  • यथोचित – जैसा उचित हो-अव्ययीभाव समास।
  • सप्तर्षि – सात ऋषियों का समूह-द्विगु समास।
  • सुलोचना – सुंदर हैं लोचन जिसके (स्त्री विशेष)-बहुव्रीहि समास।

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
‘स्थूल भौतिक कारण ही आविष्कारों का आधार नहीं है।’ इस विषय पर वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 2.
उन खोजों और आविष्कारों की सूची तैयार कीजिए जो आपकी नज़र में बहुत महत्वपूर्ण हैं ?
उत्तर :
रेडियो, टेलीविज़न, रेलगाड़ी, हवाई जहाज़, टेलीफोन, मोबाइल, साइकिल, कार, बस, घड़ी, गैस, स्टोव, बल्ब, बिजली, हीटर, कूलर, ए०सी०, पेन, बॉलपेन, पेंसिल, कागज़, कार्बन पेपर, इंटरनेट, फ्रिज, वाशिंग मशीन, सिलाई मशीन, ट्रैक्टर, स्कूटर, बैटरी, ड्राई सैल, पेट्रोल, डीज़ल, केरोसीन, दवाइयाँ आदि।

JAC Class 10 Hindi संस्कृति Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
संस्कृत व्यक्ति की संतान के संबंध में लेखक के क्या विचार हैं?
उत्तर :
लेखक के विचार में एक संस्कृत व्यक्ति किसी नई चीज़ की खोज करता है। वह वस्तु जब उसकी संतान को अनायास ही प्राप्त हो जाती है, तो वह एक संस्कृत व्यक्ति नहीं बल्कि सभ्य व्यक्ति कहलाएगा क्योंकि उस वस्तु की खोज उसने नहीं की थी। खोज करने वाला उसका पूर्वज ही संस्कृत व्यक्ति है। उसी ने अपनी बुद्धि और विवेक से उस वस्तु की खोज की थी। उसकी संतान को तो वह वस्तु उत्तराधिकारी के रूप में मिली है। इसलिए उसकी संतान सभ्य हो सकती है, संस्कृत नहीं।

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प्रश्न 2.
पेट और तन ढंकने के बाद संस्कृत मनुष्य की क्या दशा होती है ?
उत्तर :
जब संस्कृत मनुष्य का पेट भरा होता है और उसका तन ढंका होता है, तो वह खुले आकाश के नीचे लेटा हुआ भी रात के जगमगाते तारों को देखकर यह जानने के लिए व्याकुल हो उठता है कि मोतियों से भरा थाल ऐसे क्यों लटका हुआ है ? वह कभी भी निठल्ला नहीं बैठ सकता। उसकी बुद्धि उसे कुछ नया खोजने के लिए निरंतर प्रेरित करती रहती है। वे अपनी आंतरिक प्रेरणा से ही जनकल्याण के कार्य करता है।

प्रश्न 3.
लेखक के अनुसार जनकल्याण के क्या-क्या कार्य हो सकते हैं?
उत्तर :
लेखक ने कुछ उदाहरण देते हुए बताया है कि किसी भूखे को अपना खाना देना, रोगी बच्चे को सारी रात गोद में लेकर माता का बैठे रहना, लेनिन का ब्रेड स्वयं न खाकर दूसरों को देना, कार्ल मार्क्स का आजीवन मज़दूरों को सुखी देखने के लिए प्रयास करना, सिद्धार्थ का मानवता के कल्याण के लिए सभी सुखों का त्याग करना आदि जनकल्याण के कार्य हैं।

प्रश्न 4.
लेखक के अनुसार सभ्यता क्या है ? इसका संबंध किससे है?
उत्तर :
लेखक ने सभ्यता को संस्कृति का परिणाम माना है। हमारा खान-पान, रहन-सहन, ओढ़ना-पहनना, जीवन-शैली आदि सभ्यता के अंतर्गत आते हैं। सभ्यता का संबंध हमारे आचरण से होता है। यदि हम विकास के कार्य करते हैं, तो हम सभ्य कहलाएँगे और विनाशकारी कार्य करने से असभ्य माने जाएँगे।

प्रश्न 5.
सभ्यता और संस्कृति खतरे में कब होती है?
उत्तर :
लेखक के अनुसार सभ्यता और संस्कृति तब खतरे में पड़ जाती है, जब किसी जाति अथवा देश पर अन्य लोगों की ओर से विनाशकारी आक्रमण होता है। हिटलर के आक्रमण के कारण मानव संस्कृति खतरे में पड़ गई थी। धर्म, संप्रदाय, वर्ण-व्यवस्था आदि के नाम पर होने वाले दंगों से भी सभ्यता और संस्कृति खतरे में पड़ जाती है।

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प्रश्न 6.
ऐसे कौन से दो शब्द हैं, जो जल्दी समझ में नहीं आते? इनके साथ कौन से विशेषण जुड़कर इनके अर्थ का प्रतिपादन करते हैं?
उत्तर :
सभ्यता और संस्कृति दो ऐसे शब्द हैं, जिनका उपयोग अत्यधिक होता है लेकिन ये समझ में कम आते हैं। किंतु जब इन दोनों शब्दों के साथ विशेषण जुड़ जाते हैं, तब इनका अर्थ समझ में आने लगता है; जैसे- भौतिक सभ्यता, आध्यात्मिक सभ्यता आदि।

प्रश्न 7.
संस्कृति और सभ्यता किसे कहते हैं ? उदाहरण की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जिस योग्यता, प्रवृत्ति अथवा प्रेरणा के बल पर आग और सुई-धागे का आविष्कार हुआ, वह व्यक्ति विशेष की संस्कृति है और उस संस्कृति द्वारा जो आविष्कार हुआ; जो वस्तु उसने अपने लिए तथा दूसरों के लिए आविष्कृत की, उसका नाम सभ्यता है।

प्रश्न 8.
वास्तविक संस्कृत व्यक्ति कौन होता है?
उत्तर :
वास्तविक संस्कृत व्यक्ति वह होता है, जो किसी नई चीज की खोज करता है। जिस व्यक्ति की बुद्धि अथवा विवेक ने किसी नए तथ्य का दर्शन किया हो, तो वह व्यक्ति ही वास्तविक संस्कृत व्यक्ति कहलाता है।

प्रश्न 9.
लेखक के अनुसार असंस्कृति क्या है?
उत्तर :
लेखक के अनुसार वह सब असंस्कृति है, जो मानव-कल्याण से युक्त नहीं है तथा जिसमें मानव-कल्याण की भावना निहित नहीं है तथा जो विनाश की भावना से ओत-प्रोत है।

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प्रश्न 10.
‘संस्कृति’ पाठ के लेखक भदंत आनंद कौसल्यायन की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
भदंत जी की रचनाओं में सरल, व्यावहारिक तथा बोलचाल की भाषा की प्रधानता है। ‘संस्कृति’ निबंध में लेखक ने ‘सभ्यता और संस्कृति’ की व्याख्या की है। इस निबंध में लेखक की भाषा तत्सम प्रधान हो गई है। लेखक की शैली व्याख्यात्मक, वर्णन प्रधान तथा सूत्रात्मक है।

प्रश्न 11.
लेखक को भारत में संस्कृति के बँटवारे पर आश्चर्य क्यों नहीं है?”
उत्तर :
लेखक भारत में संस्कृति के बँटवारे पर आश्चर्यचकित इसलिए नहीं है, क्योंकि जिस देश में पानी और रोटी का भी हिंदू-मुस्लिम में बँटवारा हो वहाँ संस्कृति के बँटवारे पर आश्चर्य कैसा! लेखक को ‘हिंदू संस्कृति’ में प्राचीन व नवीन संस्कृति, वर्ण-व्यवस्था आदि के नाम पर बँटवारा भी उचित नहीं नहीं लगता।

प्रश्न 12.
सई और धागे का आविष्कार क्यों हआ होगा?
उत्तर :
प्रत्येक आविष्कार के पीछे कोई-न-कोई प्रेरणा अवश्य रहती है। आग के आविष्कार के पीछे पेट भरने की तथा सुई-धागे के आविष्कार के पीछे तन ढंकने की प्रेरणा हो सकती है।

प्रश्न 13.
मानव संस्कृति के माता-पिता कौन हैं ?
उत्तर :
मानव संस्कृति के माता-पिता भौतिक प्रेरणा और जानने की इच्छा है, जो सदैव मानव के मन में जिज्ञासा को बनाए रखती है तथा उसे कुछ नवीन करने की प्रेरणा देती हैं।

प्रश्न 14.
मानव संस्कृति किस प्रकार की वस्तु है?
उत्तर :
वास्तव में मानव संस्कृति वस्तु न होकर एक भावना एवं संस्कार है, जो मानव को उत्तम कोटि का बनाती है तथा उसे क्रियाशील बनाने में अपना अहम योगदान देती है। यह एक ऐसी भावना एवं संस्कार है, जिसे बाँटा नहीं जा सकता। इसमें जितना भी भाग कल्याण करने का है, वह अकल्याण करने वाले की तुलना में श्रेष्ठ और स्थायी है।

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प्रश्न 15.
लेखक ने किन संस्कृतियों को ‘बला’ कहा है और क्यों?
उत्तर :
लेखक ने हिंदू संस्कृति और मुस्लिम-संस्कृति को बला कहा है। उसके अनुसार एक ही संस्कृति अखण्ड है और वह है-‘मानव संस्कृति’। देखा जाए तो हिंदू संस्कृति और मुस्लिम संस्कृति की अलग से न तो अपनी कोई पहचान है और न ही कोई विशेष नाम है। अलग कहने में केवल अलगाव की स्थिति पैदा होगी, जो दोनों धर्मों में टकराव पैदा करेगी।

प्रश्न 16.
किसी भी संस्कृति में झगड़े कब होते हैं?
उत्तर :
किसी भी संस्कृति में झगड़े तब होते हैं, जब दो धर्मों की संस्कृतियाँ आमने-सामने टकराव की स्थिति में आ खड़ी हों तथा एक-दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास करती हों। अपनी संस्कृति को महान तथा दूसरे की संस्कृति को किसी भी योग्य की न कहना टकराव पैदा करता है। एक-दूसरे के उत्सवों पर दोनों धर्म किसी-न-किसी रूप में भयभीत ही रहते हैं कि कहीं अन्य धर्म उन पर भारी न पड़ जाए।

प्रश्न 17.
‘संस्कृति’ पाठ में लेखक ने आग और सुई-धागे के आविष्कारों से क्या स्पष्ट किया है?
उत्तर :
मानव ने सूई-धागे का आविष्कार कपड़े सीने, शीतोष्ण से बचने के लिए, वस्त्र बनाने आदि के लिए किया होगा। शरीर को सजाने के लिए बनाए जाने वाले वस्त्रों के लिए भी सुई-धागे का आविष्कार हुआ होगा। रज़ाई, गद्दे, टेंट, पर्दे आदि बनाने के लिए भी सूई-धागे का ही उपयोग होता है। सुई-धागे के आविष्कार के पीछे मनुष्य की आवश्यकता ही रही होगी। अतः स्पष्ट है कि मनुष्य चिंतनशील प्राणी है। उसके मन में सदा कुछ न कुछ जानने तथा करने की इच्छा बनी रहती है।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. एक संस्कृत व्यक्ति किसी नई चीज़ की खोज करता है; किंतु उसकी संतान को वह अपने पूर्वज से अनायास ही प्राप्त हो जाती है। जिस व्यक्ति की बुद्धि ने अथवा उसके विवेक ने किसी भी नए तथ्य का दर्शन किया, वह व्यक्ति ही वास्तविक संस्कृत व्यक्ति है और उसकी संतान जिसे अपने पूर्वज से वह वस्तु अनायास ही प्राप्त हो गई है, वह अपने पूर्वज की भाँति सभ्य भले ही बन जाए, संस्कृत नहीं कहला सकता।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
2. ‘संस्कृत व्यक्ति’ से क्या तात्पर्य है?
3. संस्कृत व्यक्ति की संतान संस्कृत क्यों नहीं हो सकती?
4. संस्कृत व्यक्ति की संतान को लेखक क्या मानता है और क्यों?
5. संस्कृत व्यक्ति में क्या गुण होते हैं ?
उत्तर :
1. पाठ-संस्कृति,’ लेखक-भदंत आनंद कौसल्यायन।

2. संस्कृत व्यक्ति से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है, जो किसी नई चीज़ की खोज करता है। वह अपनी बुद्धि और विवेक की सहायता से किसी नए तथ्य के दर्शन करके उसी के अनुरूप कार्य करता है। उसके सभी कार्य सोच-विचार कर होते हैं और उनमें जनकल्याण की भावना का समावेश होता है।

3. संस्कृत व्यक्ति की संतान संस्कृत इसलिए नहीं हो सकती, क्योंकि संस्कृत व्यक्ति जिस नई वस्तु की खोज करता है उसकी संतान को वह वस्तु अपने पूर्वजों से उत्तराधिकारी के रूप में बिना कुछ किए ही प्राप्त हो जाती है। उसे इसके लिए कोई प्रयास नहीं करना पड़ता। इसलिए वह संस्कृत व्यक्ति नहीं हो सकता, क्योंकि इस वस्तु की प्राप्ति के लिए उसने कोई प्रयास नहीं किया।

4. संस्कृत व्यक्ति की संतान को लेखक सभ्य मानता है, क्योंकि उसने न तो किसी नए तथ्य के दर्शन किए हैं और न ही अपनी बुद्धि और विवेक के बल पर किसी नई वस्तु की खोज की है। उसने तो अपने पूर्वजों द्वारा की गई खोज को उत्तराधिकारी के रूप में अनायास ही पा लिया है।

5. संस्कृत व्यक्ति बुद्धिमान, विचारवान, जिज्ञासु, मानवतावादी, परिश्रमी तथा कुछ नया करने की इच्छा से युक्त होता है। उसके सभी कार्यों में जनकल्याण की भावना प्रमुख होती है। वह अपना स्वार्थ सिद्ध करने की अपेक्षा दूसरों की सहायता करने के लिए सदा तत्पर रहता है।

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2. आग के आविष्कार में कदाचित पेट की ज्वाला की प्रेरणा एक कारण रही। सुई-धागे के आविष्कार में शायद शीतोष्ण से बचने तथा शरीर को सजाने की प्रवृत्ति का विशेष हाथ रहा। अब कल्पना कीजिए उस आदमी की जिसका पेट भरा है, जिसका तन ढंका है, लेकिन जब वह खुले आकाश के नीचे सोया हुआ रात के जगमगाते तारों को देखता है, तो उसको केवल इसलिए नींद नहीं आती क्योंकि वह यह जानने के लिए परेशान है कि आखिर वह मोती भरा थाल क्या है?

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. मनुष्य ने आग का आविष्कार क्यों और कैसे किया था?
2. धागे का आविष्कार किसलिए हुआ और सुई कैसे बनाई गई होगी?
3. मनुष्य के पेट भरे और तन ढके होने पर भी नींद क्यों नहीं आती?
4. मनुष्य किस प्रकार का प्राणी है?
उत्तर :
1. आदिमानव कंद-मूल-फल आदि से अपना पेट भरता था, परंतु इससे उसकी भूख शांत नहीं होती थी। पेट की भूख को शांत करने के लिए उसने आग का आविष्कार किया, जिससे आग पर पकाकर वह अपना भोजन तैयार कर सके। आग पैदा करने के लिए उसने दो पत्थरों को आपस में रगड़ा था। इससे आग पैदा हो गई थी।

2. सुई-धागे के आविष्कार के पीछे मनुष्य की यह आवश्यकता रही होगी कि वह स्वयं को सर्दी-गर्मी से बचाने के लिए वस्त्र, बिस्तर आदि बनाना चाहता होगा। स्वयं को सजाने के लिए अच्छे-अच्छे परिधान बनाने की इच्छा भी इस आविष्कार की प्रेरणा रही होगी। सुई बनाने के लिए उसने लोहे के एक टुकड़े को घिसकर उसके एक सिरे को छेदकर उसमें धागा पिरोने के लिए स्थान बनाया होगा।

3. जब मनुष्य का पेट भरा होता है और तन सुंदर वस्त्रों से ढका रहता है, तब भी वह जब रात के समय खुले आसमान के नीचे लेटा होता है तो उसे नींद नहीं आती। वह आसमान पर छिटके हुए तारों को देखकर सोचने लगता है कि क्या कारण है, जो इस मोतियों से भरे उल्टे पड़े हुए थाल के मोती नीचे नहीं गिरते? वह इस रहस्य को जानने की व्याकुलता के कारण सो नहीं पाता?

4. मनुष्य एक चिंतनशील प्राणी है। उसके मन में सदा कुछ-न-कुछ जानने की इच्छा बनी रहती है। वह अपनी बुद्धि के बल पर कुछ नया करने के लिए प्रयास करता है। वह कभी खाली नहीं बैठ सकता। वह सदा कुछ-न-कुछ करते हुए क्रियाशील बना रहना चाहता है।

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3. पेट भरने और तन ढकने की इच्छा मनुष्य की संस्कृति की जननी नहीं है। पेट भरा और तन ढंका होने पर भी ऐसा मानव जो वास्तव में संस्कृत है, निठल्ला नहीं बैठ सकता। हमारी सभ्यता का एक बड़ा अंश हमें ऐसे संस्कृत आदमियों से ही मिला है, जिनकी चेतना पर स्थूल भौतिक कारणों का प्रभाव प्रधान रहा है, किंतु उसका कुछ हिस्सा हमें मनीषियों से भी मिला है, जिन्होंने तथ्य-विशेष को किसी भौतिक प्रेरणा के वशीभूत होकर नहीं, बल्कि उनके अंदर की सहज संस्कृति के ही कारण प्राप्त किया है। रात के तारों को देखकर न सो सकने वाला मनीषी हमारे आज के ज्ञान का ऐसा ही प्रथम पुरस्कर्ता था।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. संस्कृत व्यक्ति की कौन-सी विशेषताएँ बताई गई हैं।
2. पेट भरना व तन ढंकना मनुष्य की संस्कृति की जननी क्यों नहीं है?
3. हमें हमारी सभ्यता किनसे प्राप्त हुई और कैसे?
4. रात के तारों को देखकर न सो सकने वाले मनीषी को प्रथम पुरस्कर्ता क्यों कहा गया है?
उत्तर :
1. संस्कृत व्यक्ति पेट भरा और तन ढंका होने पर भी कभी खाली नहीं बैठ सकता। वह अपनी बुद्धि निरंतर कुछ ऐसा करना चाहता है जिससे प्राणीमात्र का कल्याण हो सके। उसकी यह सोच निःस्वार्थ भाव से होती है।

2. केवल पेट भरने और तन ढंकने के बारे में सोचने वाले व्यक्ति संसार में सुखी व आनंदमय जीवन व्यतीत करना चाहते हैं। लेकिन उनकी यह सोच केवल उन तक ही सीमित होती है। दूसरों के कल्याण से उन्हें कुछ लेना-देना नहीं होता। वे स्वार्थ में लिप्त होते हैं, इसलिए लेखन उन्हें संस्कृति की जननी नहीं कहा है।

3. हमें हमारी सभ्यता उन लोगों से प्राप्त हुई है, जो संस्कृत है। ये संस्कृत लोग अपने विवेक के बल पर हमें कोई ऐसी नई वस्तु दे जाते हैं, जो हमें सभ्य बना देती है। इनकी यह देन निःस्वार्थ भाव से प्राणीमात्र के कल्याण के लिए होती है। इनकी इस प्रकार की देनों से सभ्यता का विकास होता है।

4. लेखक ने ऐसे व्यक्ति को प्रथम पुरस्कर्ता इसलिए माना है, क्योंकि वह अपनी आंतरिक भावनाओं की प्रेरणा से मानव-कल्याण के कार्य करता है। उसके इन कार्यों के पीछे किसी प्रकार का कोई भौतिक प्रलोभन अथवा स्वार्थ नहीं होता। वह अपने सहज स्वभाव से ही समस्त कल्याणकारी कार्य करता है।

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4. और सभ्यता? सभ्यता है संस्कृति का परिणाम। हमारे खाने-पीने के तरीके, हमारे ओढ़ने-पहनने के तरीके, हमारे गमना-गमन के साधन, हमारे परस्पर कट मरने के तरीके; सब हमारी सभ्यता है। मानव की जो योग्यता उससे आत्म-विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है, हम उसे उसकी संस्कृति कहें या असंस्कृति? और जिन साधनों के बल पर वह दिन-रात आत्म-विनाश में जुटा हुआ है, उन्हें हम उसकी सभ्यता समझें या असभ्यता? संस्कृति का यदि कल्याण की भावना से नाता टूट जाएगा तो वह असंस्कृति होकर ही रहेगी और ऐसी संस्कृति का अवश्यंभावी परिणाम असभ्यता के अतिरिक्त दूसरा क्या होगा?

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. सभ्यता क्या है?
2. असंस्कृति का जनक कौन है?
3. असभ्यता के अंतर्गत कौन-से कार्य आते हैं ?
4. संस्कृति में कौन-सी भावना की प्रधानता होती है ?
उत्तर :
1. लेखक के अनुसार सभ्यता हमारी संस्कृति का परिणाम होती है। हमारे खाने-पीने के ढंग, ओढ़ने-पहनने के तरीके, आवागमन के साधन, परस्पर मेल-मिलाप, लड़ाई-झगड़े आदि के तरीके हमारी सभ्यता को व्यक्त करते हैं। हमारा ये सब कार्य जितने अधिक सुसंस्कृत होंगे, हम उतना ही अधिक सभ्यता का पालन करने वाले लोग होंगे।

2. लेखक ने मानव के उन कार्यों को असंस्कृति का जनक माना है, जिनके कारण वह मानवीय विनाश के कार्य करनेवाले उपकरण बनाता है। मानव-कल्याण से रहित कार्यों को करने वाला व्यक्ति असंस्कृति का जनक माना जाता है। युद्ध, मारधाड़, चोरी-डकैती, लूट-पाट आदि हिंसक कार्य इसी श्रेणी में आते हैं और असंस्कृति के जनक माने जाते हैं।

3. मनुष्य अपने जिन साधनों के द्वारा दिन-रात आत्म-विनाश के कार्यों में जुटा रहता है, वे असभ्यता को जन्म देते हैं। मानवता और मानव कल्याण के विरुद्ध किए जाने वाले सभी कार्य असभ्यता के अंतर्गत आते हैं। चोरी, डकैती, लूट-पाट, युद्ध, अपहरण, भ्रष्टाचार, झूठ आदि कार्य असभ्यता के सूचक हैं।

4. संस्कृति में कल्याण की भावना प्रधान होती है। इस भावना के वशीभूत होकर ही मनुष्य मानवता के उत्थान के लिए नि:स्वार्थ भाव से कार्य करता है। वह प्राणीमात्र के कल्याण के बारे में सोचता है तथा ‘सर्वजन हिताए’ के कार्य करता है। उसे इस प्रकार की प्रेरणा अपने अंतर से प्राप्त होती है। जन-कल्याण के लिए उसे किसी भौतिक अथवा बाहरी प्रेरणा की आवश्यकता नहीं होती।

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5. संस्कृति के नाम से जिस कूड़े-कर्कट के ढेर का बोध होता है, वह न संस्कृति है न रक्षणीय वस्तु। क्षण-क्षण परिवर्तन होने वाले संसार में किसी भी चीज़ को पकड़कर बैठा नहीं जा सकता। मानव ने जब-जब प्रज्ञा और मैत्री भाव से किसी नए तथ्य का दर्शन किया है तो उसने कोई वस्तु नहीं देखी है, जिसकी रक्षा के लिए दलबंदियों की ज़रूरत है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. लेखक ने किस संस्कृति को संस्कृति नहीं माना है और क्यों?
2. प्रज्ञा और मैत्री भाव किस नए तथ्य के दर्शन करवा सकता है और उसकी क्या विशेषता है?
3. मानव संस्कृति की विशेषता लिखिए।
उत्तर
1. लेखक के अनुसार संस्कृति का संबंध मानव-सभ्यता के कल्याण से है। लेकिन यदि मानव का कल्याण की भावना से संबंध टूट जाएगा और वह दूसरों के विनाश के बारे में सोचने लगेगा, तो उसे कदापि संस्कृति नहीं माना जा सकता। ऐसी स्थिति में संस्कृति का रूप असंस्कृति में परिवर्तित हो जाएगा।

2. प्रज्ञा और मैत्री भाव विश्व-बंधुत्व व मानव कल्याण के मिश्रित तथ्य का दर्शन करवा सकते हैं। इसका आधार और लक्ष्य मानव-समाज का कल्याण है, जिसमें असंस्कृति के लिए कोई स्थान नहीं है। यही इसकी सबसे बड़ी विशेषता भी है।

3. मानव संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता इसका अविभाज्य होना तथा इसमें मानव कल्याण के अंश का होना है। यह विशेषता ही र यता को संस्कृति के रूप में परिवर्तित करती है।

संस्कृति Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन-सुप्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु भदंत आनंद कौसल्यायन का जन्म अंबाला जिले के सोहाना गाँव में सन 1905 ई० में हुआ था। इनका बचपन का नाम ‘हरनाम दास’ था। इनका हिंदी से विशेष स्नेह था। इन्होंने देश-विदेश की अनेक यात्राएँ की हैं। गांधीजी से इनका विशेष संबंध रहा है। ये बहुत लंबे समय तक गांधीजी के साथ वर्धा में रहे थे। इनका निधन सन 1988 ई० में हुआ। इन्होंने हिंदी के प्रचार-प्रसार में विशेष योगदान दिया था।

रचनाएँ – इन्होंने हिंदी साहित्य को अनेक निबंधों, संस्मरणों एवं यात्रा-वृत्तांतों से समृद्ध किया है। इनकी प्रमुख रचनाएँ ‘भिक्षु के पत्र, बहानेबाजी, रेल का टिकट, जो भूल न सका, यदि बाबा न होते, कहाँ क्या देखा, आह! ऐसी दरिद्रता’ हैं। इन्होंने बौद्ध धर्म और दर्शन से संबंधित अनेक पुस्तकें लिखी हैं तथा अनुवाद कार्य भी किया है। इनके द्वारा जातक कथाओं के किए गए अनुवाद विशेष उल्लेखनीय हैं।

भाषा-शैली – भदंत आनंद कौसल्यायन ने हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए देश-विदेश में भ्रमण किया था। इस कारण इनकी रचनाओं में सरल, व्यावहारिक तथा बोलचाल की भाषा की प्रधानता है। ‘संस्कृति’ निबंध में लेखक ने ‘सभ्यता और संस्कृति’ की व्याख्या की है। इस निबंध में लेखक की भाषा तत्सम प्रधान हो गई है, जिसमें ‘प्रवृत्ति, प्रेरणा, आविष्कार, आविष्कृत, परिष्कृत, शीतोष्ण, मनीषियों, सर्वस्व’ जैसे तत्सम प्रधान शब्दों के साथ-साथ ‘दलबंदियों, हद, छीछालेदार, कूड़ा-कर्कट, बला, पेट, तन, निठल्ला, डैस्क, कौर, तरीका, कोशिश’ जैसे विदेशी और देशज शब्दों का भी भरपूर प्रयोग हुआ है।

लेखक की शैली व्याख्यात्मक, वर्णन प्रधान तथा सूत्रात्मक है। अपनी बात को समझाने के लिए लेखक ने उदाहरणों का प्रयोग किया है। आदमी द्वारा आग और सूई धागे का आविष्कार ऐसे ही उदाहरण हैं। इन्हीं उदाहरणों के माध्यम से लेखक संस्कृति और सभ्यता का अंतर स्पष्ट करते हुए लिखता है ‘जिस योग्यता, प्रवृत्ति अथवा प्रेरणा के बल पर आग का व सूई-धागे का आविष्कार हुआ, वह है व्यक्ति विशेष की संस्कृति; और उस संस्कृति द्वारा जो आविष्कार हुआ, जो चीज़ उसने अपने तथा दूसरों के लिए आविष्कृत की, उसका नाम है सभ्यता।’

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति

पाठ का सार :

‘संस्कृति’ निबंध भदंत आनंद कौसल्यायन द्वारा रचित है। इस निबंध में लेखक ने सभ्यता और संस्कृति में संबंध तथा अंतर स्पष्ट करने का प्रयास किया है। लेखक का मानना है कि आजकल उन दो शब्दों का सबसे अधिक प्रयोग होता है, जिन्हें हम सबसे कम समझ पाते हैं और वे दो शब्द ‘सभ्यता’ और ‘संस्कृति’ हैं। इन दोनों शब्दों को समझाने के लिए लेखक दो हैं, उदाहरण देता है।

पहला उदाहरण उस आदमी का है, जिसने पहले-पहल आग का आविष्कार किया और दूसरा उदाहरण उस व्यक्ति का है, जिसने सूई-धागे का आविष्कार किया। इस आधार पर लेखक का मानना है कि जिस योग्यता, प्रवृत्ति अथवा प्रेरणा के बल पर आग और सूई-धागे का आविष्कार हुआ, वह व्यक्ति विशेष की संस्कृति है और उसने जो चीज़ आविष्कृत की है, उसका नाम सभ्यता है। जो व्यक्ति जितना अधिक सुसंस्कृत होगा, उसका आविष्कार भी उतना ही श्रेष्ठ होगा।

जो व्यक्ति किसी चीज़ की खोज करता है, वह संस्कृत व्यक्ति है; किंतु उसकी संतान को यह खोज अपने पूर्वजों से अनायास ही मिल जाती है, इसलिए वह संस्कृत नहीं बल्कि सभ्य कहला सकता है। न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कार किया था, इसलिए वह संस्कृत मानव था। आज के भौतिक विज्ञान के विद्यार्थी न्यूटन के इस सिद्धांत के अतिरिक्त अन्य सिद्धांतों से भी परिचित हैं, परंतु वे न्यूटन की अपेक्षा अधिक संस्कृत नहीं बल्कि सभ्य हो सकते हैं। प्रत्येक आविष्कार के पीछे कोई-न-कोई प्रेरणा अवश्य रहती है।

आग के आविष्कार के पीछे पेट भरने की तथा सूई-धागे के आविष्कार के पीछे तन ढकने की प्रेरणा हो सकती है। पेट भरा और तन ढका होने पर भी मनुष्य खाली नहीं बैठता; वह कुछ अन्य आविष्कार करने में लगा रहता है। ऐसे व्यक्ति ही संस्कृत व्यक्ति होते हैं। भौतिक प्रेरणा और जानने की इच्छा ही मानव संस्कृति के माता-पिता हैं।

भूखे को अपना भोजन दे देना, बीमार बच्चे को गोद में लेकर रात भर माँ का जागना, लेनिन का डबलरोटी के टुकड़ों को स्वयं न खाकर दूसरों को खिलाना, कार्ल मार्क्स द्वारा मजदूरों को सुखी करने के लिए जीवन भर प्रयास करना, सिद्धार्थ द्वारा मानवता के उत्थान के लिए गृह-त्याग करना। इस प्रकार सर्वस्व त्याग करने वाले महामानवों में जो भावना है, वही संस्कृति है।

लेखक ने इसी सभ्यता के परिणाम को संस्कृति माना है। हमारा खान-पान, रहन-सहन आदि सभ्यता के अंतर्गत आता है। मानव के विकास का कार्य करने वाली सभ्यता है और मानव के विनाश का कार्य करने वाली शक्तियाँ असभ्यता है। संस्कृति यदि कल्याण की भावना से रहित होगी, तो असंस्कृति हो जाएगी और ऐसी असंस्कृति का परिणाम असभ्यता होगा। हिटलर के आक्रमणों ने मानव-संस्कृति को खतरे में डाल दिया था।

आज हमारे देश में हिंदू और मुस्लिम संस्कृति के खतरे की बात कही जा रही है। लेखक के अनुसार हम न तो हिंदू संस्कृति को समझ पा रहे हैं और न ही मुस्लिम संस्कृति को। लेखक को इस बात का खेद – है कि जिस देश में पानी और रोटी का भी हिंदू-मुस्लिम में बँटवारा हो, वहाँ संस्कृति के बँटवारे पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए। ‘हिंदू संस्कृति’ में प्राचीन व नवीन संस्कृति, वर्ण-व्यवस्था आदि के नाम पर बंटवारे भी लेखक को उचित प्रतीत नहीं होते हैं।

इस प्रकार संस्कृति की होने वाली दुर्दशा की कोई सीमा नहीं है। आज संस्कृति के नाम पर जैसी विकृति हो रही है, उसे लेखक न तो संस्कृति मानता है और न ही उसकी रक्षा करने की आवश्यकता अनुभव करता है। प्रतिक्षण परिवर्तनशील इस संसार में किसी भी वस्तु को पकड़कर बैठे रहना भी उसे उचित प्रतीत नहीं होता।

मनुष्य जब भी अपनी बुद्धि और मित्रता के भाव से किसी नए विचार का दर्शन करता है, तो उसे उसकी रक्षा के लिए किसी की भी आवश्यकता नहीं होती है। लेखक मानता है कि मानव संस्कृति एक ऐसी वस्तु है, जिसे बाँटा नहीं जा सकता और उसमें जितना भी भाग कल्याण करने का है, वह अकल्याण करने वाले की तुलना में श्रेष्ठ और स्थायी है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति

कठिन शब्दों के अर्थ :

आध्यात्मिक – परमात्मा या आत्मा से संबंध रखने वाला: मन से संबंध रखने वाला। साक्षात संस्कत – जिसका संस्कार हआ हो, सँवारा हआ। आविष्कर्ता – आविष्कार करने वाला। संस्कति – शदधिः किसी जाति की वे सब बातें जो उसके मन, रुचि, आचार-विचार, कला-कौशल और सभ्यता के क्षेत्र में बौद्धिक विकास की सूचक होती है। परिष्कत – सजाया हआ, शुद्ध किया हुआ, साफ़ किया हुआ। अनायास – बिना प्रयास के, आसानी से। कदाचित – कभी, शायद। ज्ञानेप्सा – जानने की इच्छा।

शीतोष्ण – ठंडा और गर्म। सर्वस्व – सबकुछ। निठल्ला – बेकार, अकर्मण्य, बिना काम-धंधे का, खाली बैठा हुआ। मनीषियों – विद्वानों, विचारशीलों। रक्षणीय – रक्षा करने योग्य। वशीभूत – अधीन, पराधीन। तृष्णा – प्यास, लोभ। अवश्यंभावी – जिसका होना निश्चित हो। ताज़िया – बाँस की तिल्लियों व रंगीन कागज़ों का बना वह ढाँचा जो इमाम हसन और इमाम हुसैन के मकबरों की आकृति का बनाया जाता है। वर्ण-व्यवस्था – वर्ण-विभाग। छीछालेदर – दुर्दशा, फ़जीहत। अविभाज्य – जो बाँटा न जा सके।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij, Kritika, Sparsh & Sanchayan Bhag 2 Jharkhand Board

JAC Jharkhand Board Class 10th Hindi Solutions क्षितिज, कृतिका, स्पर्श, संचयन भाग 2

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JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

JAC Class 10 Hindi कन्यादान Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना?
उत्तर :
माँ के इन शब्दों में लाक्षणिकता का गुण विद्यमान है। नारी में कोमलता, सुंदरता, शालीनता, सहनशक्ति, माधुर्य, ममता आदि गुण होते हैं। ये गुण ही परिवार को बनाने के लिए आवश्यक होते हैं। इसलिए माँ ने कहा है कि उसका लड़की होना आवश्यक है। उसमें आज की सामाजिक स्थितियों का सामना करने का साहस होना चाहिए। उसमें सहजता, सजगता और सचेतता के गुण होने चाहिए। उसे दब्बू और डरपोक नहीं होना चाहिए। इसलिए उसे लड़की जैसी दिखाई नहीं देना चाहिए ताकि कोई सरलता से उसे डरा-धमका न सके।

प्रश्न 2.
‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं’
(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?
(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों जरूरी समझा?
उत्तर :
(क) कवि ने इन पंक्तियों में समाज में विवाहिता स्त्री की स्थिति की ओर संकेत किया है। वर्तमान समय में हमारे भारतीय समाज में दहेज-प्रथा की आग बहुओं को बहुत तेजी से जला रही है। लोग दहेज के नाम पर पुत्रवधू के पिता के घर को खाली करके भी चैन नहीं पाते। वे खुले मुँह से धन माँगते हैं और धन न मिलने पर बहू से बुरा व्यवहार करते हैं; उसे मारते-पीटते हैं और अनेक बार लोभ में आकर उसे आग में धकेल देते हैं। कवि ने समाज में नारी की इसी स्थिति की ओर संकेत किया है, जो निश्चित रूप से अति दुखदायी और शोचनीय है।

(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना इसलिए ज़रूरी समझा क्योंकि उसे डर था कि कहीं वह भी अन्य बहुओं की तरह किसी की आग में अपना जीवन न खो दे। उसे किसी भी अवस्था में कमजोर नहीं बनना चाहिए। उसे कष्ट देने वालों के सामने उठ कर खड़ा हो जाना चाहिए। कोमलता नारी का शाश्वत गुण है, पर आज की परिस्थितियों में उसे कठोरता का पाठ अवश्य पढ़ लेना चाहिए ताकि किसी प्रकार की कठिनाई आने की स्थिति में उसका सामना कर सके।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

प्रश्न 3.
‘पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’
इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभर कर आ रही है, उसे शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर :
अपने माता-पिता के संस्कारों में बँधी भोली-भाली लड़की उसी रास्ते पर चलना चाहती है, जो उसे बचपन से लेकर युवावस्था तक दिखाया गया है। उसने माता-पिता की छत्रछाया में रहते हुए जीवन के दुखों का सामना नहीं किया। वह नहीं जानती कि आज का समाज कितना बदल गया है। उसे दूसरों के द्वारा दी गई पीड़ाओं का कोई अहसास नहीं है। वह तो अज्ञान और अपनी छोटी से धुंधले प्रकाश में जीवन की कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों को पढ़ने वाली पाठिका है।

प्रश्न 4.
माँ को अपनी बेटी अंतिम पूजी’ क्यों लग रही थी?
अथवा
‘कन्यादान’ कविता में बेटी को ‘अंतिम पूँजी’ क्यों कहा गया है?
उत्तर :
माँ को अपनी बेटी अंतिम पूँजी लग रही थी, क्योंकि वह अपने जीवन के सारे सुख-दुख उसी के साथ बाँटती थी। वही उसके सबसे निकट थी; वही उसकी साथी थी।

प्रश्न 5.
माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी?
उत्तर :
माँ ने बेटी को सीख दी कि वह केवल सुंदरता पर न रीझे, बलिक अपने आस-पास के वातावरण के प्रति भी सचेत रहे। जिस पानी में झाँकने पर उसे अपनी परछाई दिखाई देवी है, उसकी गहराई को भी वह भली-भाति जाने लै। कही वही उसके लिए जानलेवा सिद्ध न हो जाए। वह उस आग की तपन का भी ध्यान रखे, जो रोटी पकाने के काम आती है। कहीं रोसा ने ही कि बही उसको जला डाले। उसे लड़की लगना चाहिए, पर लड़की जैसा कमलोर नहीं दिखना वाहिए। उसे दुनिका की पूरी समझ होनी चाहिए।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 6.
आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है?
अथवा
‘कन्या’ के साथ दान के औचित्य पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
युगों से नारी को हमारे समाज में हेय समझा जाता रहा है। पुरुष प्रधान समाज में पुरुषों को ही श्रेष्ठ माना जाता है। विवाह के पश्चात लड़की ही लड़के के साथ रहने के लिए जाती है। विवाह के समय लड़की के माता-पिता के द्वारा कन्या का दान किया परंपरा पूरी तरह से गलत है। आज के युग में लड़के या लड़की में कोई अंतर नहीं है। दोनों की शिक्षा बराबर होती है; दोनों एक-समान काम करते हैं; बराबर कमाते हैं, तो फिर कन्या के दान की बात ही क्यों? ऐसा कहना पूरी तरह से ग़लत है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
‘स्त्री को सौंदर्य का प्रतिमान बना दिया जाना ही उसका बंधन बन जाता है’ इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से कीजिए।
यहाँ अफगानी कवयित्री मीना किश्वर कमाल की कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं। क्या आपको कन्यादान कविता से इसका कोई संबंध दिखाई देता है ?

मैं लौटूंगी नहीं

मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है
अब मैं लौटूंगी नहीं
मैंने ज्ञान के बंद दरवाजे खोल दिए हैं
सोने के गहने तोड़कर फेंक दिए हैं
भाइयो! मैं अब वह नहीं हूँ जो पहले थी
मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है।
अब मैं लौटूंगी नहीं
उत्तर :
इस कविता का ‘कन्यादान’ कविता से सीधा संबंध तो नहीं है, पर स्त्री की जागरूकता और सजगता की दृष्टि से साम्य अवश्य है। इस कविता में कवियित्री कहती है कि एक युगों से चली आने वाली सामाजिक रूढियों को तोड़कर उसने घर से बाहर कदम निकालने सीख लिए हैं। वह उन कष्टों और पीड़ाओं से अब परिचित है, जिसे उसने स्वयं झेला है। उसने ज्ञान के बंद दरवाजे खोल दिए हैं।

शृंगार के लिए पहने गहने उतार दिए हैं। वह जाग चुकी है। उसने अपने देश को आजाद कराने की राह देख ली है। वह अपना सबकुछ छोड़कर आज़ादी की राह पर आगे बढ़ गई है। वह वापस अपने घर नहीं लौटना चाहती। वह आज़ादी प्राप्त करने के लिए अड़ी हुई हैं। इस पंक्ति से स्त्री का क्रोध और मानसिक दृढ़ता का मनोभाव प्रकट हुआ है। उसने ज्ञान की प्राप्ति से ही ऐसा करना सीखा है।

JAC Class 10 Hindi कन्यादान Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘कन्यादान’ कविता में माँ ने बेटी को किन परंपराओं से हटकर जीवन जीने की शिक्षा दी है?
अथवा
विवाह के समय माँ ने अपनी बेटी को क्या शिक्षा दी? ‘कन्यादान’ कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
माँ ने बेटी को शिक्षा दी कि वह केवल शारीरिक सुंदरता, सुंदर कपड़ों और गहनों की ओर ही ध्यान न दे। उसे चाहिए कि वह समाज में आए परिवर्तन को खुली आँखों से देखे और अपने भीतर हिम्मत और साहस को बटोरे। उसके हृदय का साहस और अधिकारों के प्रति जागरूकता ही उसके जीवन को नई दिशा देंगे। इसी से उसके जीवन की रक्षा होगी।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

प्रश्न 2.
कवि ने कविता के माध्यम से माँ की किस विशेषता को वाणी प्रदान की है?
उत्तर :
कवि ने कविता के माध्यम से माँ के संचित अनुभवों की पीड़ा को प्रस्तुत किया है। माँ ने अपने जीवन में जिन कष्टों को पाया था, उनके कारणों को समझा था। वह नहीं चाहती थी कि उसकी बेटी को कभी कोई कष्ट हो।

प्रश्न 3.
माँ के मन में यह विचार क्यों आया कि पुत्री ही उसकी अंतिम पूँजी है ?
उत्तर :
विवाह के समय जब कन्यादान की प्रथा का निर्वाह हुआ, तो माँ को लगा कि उसकी अंतिम पूँजी उससे दूर जा रही है। माँ-बेटी में बहुत मधुर संबंध होता है। यह रिश्ता माँ को एक पूँजी के समान लगता है। यही रिश्ता बेटी की विदाई के साथ उससे दूर हो जाएगा। माँ के दुख-सुख को बाँटने वाली बेटी पर माँ का पहले-सा अधिकार न रहेगा। इसी कारण माँ ने कन्यादान को अंतिम पूँजी के समान कहा है।

प्रश्न 4.
किसके दुख को प्रामाणिक कहा गया है और क्यों?
अथवा
‘कन्यादान’ कविता में किसके दुख की बात की गई है और क्यों ?
उत्तर :
माँ के दुख को प्रमाणिक कहा गया है। माँ जानती है कि बेटी के विवाह के पश्चात वह अकेली रह जाएगी। उसके दुख-सुख बाँटने वाली दूर चली जाएगी। माँ का यह दुख प्रमाणिक है। इसे किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं। यह स्वाभाविक दुख है। माँ सदा बेटी के विवाह के पश्चात स्वयं को अकेला महसूस करती है।

प्रश्न 5.
माँ ने बेटी को स्वयं पर मोहित न होने की सीख क्यों दी?
अथवा
‘कन्यादान’ कविता के आधार पर लिखिए कि माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी?
उत्तर :
विवाह के पश्चात सामान्यतः लड़कियाँ साज-शृंगार की ओर अधिक ध्यान देती हैं। वे अपना अधिकांश समय ऐसे ही सजने-संवरने में लगा देती हैं। अतः माँ ने बेटी को ऐसा न करने की सीख दी, ताकि वह ससुराल में अपने कर्तव्यों का निर्वाह करे। अपने लिए आदर: सम्मान बटोरे। सौंदर्य सदा नहीं रहता, उस पर क्या मोहित होना! अपने गुणों को विकसित करें। ससुराल पक्ष में अपना एक सम्मान योग्य स्थान बनाने का प्रयास करें।

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प्रश्न 6.
उत्तर
कन्यादान कविता में माँ ने वस्त्र और आभूषणों को स्त्री जीवन का बंधन क्यों कहा?
उत्तर :
लड़की की माँ एक परिपक्व महिला है। अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर ही उसने आभूषणों को स्त्री जीवन का बंधन कहा है। पुरुष जानता है कि स्त्री को आभूषणों-गहनों से बहुत प्यार होता है। ऐसे में इनका प्रयोग वह मनमानी करने के लिए करता है। स्त्री को गहनों की चकाचौंध में उलझाकर उसका मानसिक शोषण करता है। स्त्री को यह समझ नहीं आता कि ये गहने उसकी आजादी का हनन करते हैं; उसे जबरन बंधन में बाँध देते हैं।

प्रश्न 7.
माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों आवश्यक समझा?
उत्तर :
माँ ने सीख देकर अपनी बेटी को सचेत किया है, क्योंकि लड़की भोली, सरल तथा नासमझ है। उसे संसार की कुटिलता का आभास नहीं है; दुनियादारी की समझ नहीं है। फिर आज की सामाजिक परिस्थितियाँ भी कुछ ऐसी हैं कि दहेज या अन्य किसी भी छोटी-सी बात पर लड़की का ससुराल में मानसिक-शारीरिक शोषण होता है। बेटी के साथ किसी भी तरह की अनहोनी न हो, इसी आशंका से माँ ने कन्यादान के बाद विदा करते हुए बेटी को सचेत करना आवश्यक समझा।

प्रश्न 8.
‘कन्यादान’ कविता की माँ परंपरागत माँ से कैसे भिन्न है ?
उत्तर :
‘कन्यादान’ कविता की माँ परंपरागत माँ से अलग है, क्योंकि उसने बेटी को जो सीख दी है, वह परंपराओं से अलग है। वैसे तो माँ ने बेटी को अपने कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक निर्वाह करने की सलाह दी है, परंतु साथ ही उसे अपने आत्म-सम्मान के प्रति भी सचेत किया है। लीक से हटकर माँ ने आज के संदर्भ में जो समाज की वास्तविकता है, उसी के अनुरूप अपनी बेटी को सीख दी है। माँ अपनी बेटी के सुखद वैवाहिक जीवन के साथ-साथ उसकी सुरक्षा के प्रति भी आशंकित है। अतः माँ ने उसे कुछ अलग तरीके से समझाया है।

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प्रश्न 9.
‘कन्यादान’ कविता का मूल उद्देश्य या भाव क्या है?
उत्तर :
यह कविता आधुनिक समाज का दर्पण है। एक ओर माँ-बेटी के घनिष्ठ संबंध की चर्चा हुई है, तो दूसरी ओर हमें यहाँ समाज की वर्तमान स्थिति का दर्शन हुआ है। इस कविता का संबंध नारी-जागृति से भी है। कवि ने स्त्री की कमजोरियों पर प्रकाश डाला है। आज भी भारत में पुरुष-प्रधान समाज विद्यमान है। कवि ने यह बताते हुए नारी को अपने शोषण के प्रति सचेत रहने को कहा है। दहेज – प्रथा जैसी समस्या पर भी कवि ने नारी को जागृत करने का प्रयास किया है। नारी अपने सभी गुणों तथा शक्तियों के साथ शोषण का डटकर सामना करने का साहस भी रखे। यही इस कविता का मूल भाव है।

प्रश्न 10.
‘कन्यादान’ कविता में किसे दुख बाँटना नहीं आता था और क्यों?
उत्तर :
‘कन्यादान’ कविता में लड़की को दुख बाँटना नहीं आता था, क्योंकि उसने जीवन में अभी तक दुख नहीं देखे थे। दुखों व कष्टों की पीड़ा से वह अनजान थी, इसलिए उसे दुख बाँटना नहीं आता था।

प्रश्न 11.
माँ की सीख में समाज की कौन-सी कुरीतियों की ओर संकेत किया गया है?
उत्तर :
माँ की सीख में समाज में व्याप्त दहेज़ प्रथा व परिवार में होने वाले नारी शोषण की ओर संकेत किया गया है। यह कविता इन कुरीतियां से युक्त वर्तमान सामाजिक ढाँचे को प्रस्तुत करती है।

प्रश्न 12.
‘कन्यादान’ कविता में वस्त्र और आभूषणों को शाब्दिक-भ्रम क्यों कहा गया है?
उत्तर :
कन्यादान कविता में माँ ने वस्त्र और आभूषणों को शाब्दिक भ्रम कहा है क्योंकि ये नारी जवीन को भ्रम में डालने का काम करते हैं। ये शाब्दिक धोखे हैं जो स्त्री जीवन को बाँध देने के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं।

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प्रश्न 13.
‘बेटी, अभी सयानी नहीं थी’- में माँ की चिंता क्यों है ? ‘कन्यादान’ कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
‘बेटी, अभी सयानी नहीं थी’ में माँ अपनी बेटी को लेकर चिंतित थी। माँ ने बेटी को सचेत करना इसलिए ज़रूरी समझा क्योंकि उसे डर था कि कहीं वह भी अन्य बहुओं की तरह किसी की आग में अपना जीवन न खो दे। उसे किसी भी अवस्था में कमजोर नहीं बनना चाहिए। उसे कष्ट देने वालों के सामने उठ कर खड़ा हो जाना चाहिए। कोमलता नारी का शाश्वत गुण है लेकिन आज की परिस्थितियों में उसे कठोरता का पाठ अवश्य पढ़ लेना चाहिए ताकि किसी प्रकार की कठिनाई आने की स्थिति में उसका सामना कर सके।

पिठित काव्यांश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

दिए गए काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पी प्रश्नों के उचित विकल्प चुनकर लिखिए –

कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो
लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की।

(क) कवि ऋतुराज ने किसके दुखों को प्रामाणिक माना है?
(i) सहेलो के
(ii) माँ के
(iii) पत्नी के
(iv) पुत्री के
उत्तर :
(ii) माँ के

(ख) माँ को अपनी पुत्री कैसी पूँजी लगती है?
(i) अंतिम
(ii) अति सुखद
(iii) बातूनी
(iv) दुखदायी
उत्तर :
(i) अंतिम

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

(ग) पुत्री स्वभाव से कैसी थी?
(i) चालाक
(ii) बुद्धिमान
(iii) कठोर
(iv) भोली-भाली
उत्तर :
(iv) भोली-भाली

(घ) पुत्री को क्या पढ़ना नहीं आता था?
(i) सुखों को
(ii) दुखों को
(iii) पत्रों को
(iv) ये सभी
उत्तर :
(ii) दुखों को

(ङ) पाठिका किसे कहा गया है?
(i) माँ को
(ii) पत्नी को
(iii) पुत्री को
(iv) पाठक को
उत्तर :
(iii) पुत्री को

काव्यबोध संबंधी बहुविकल्पी प्रश्न –

काव्य पाठ पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्नों के उत्तर वाले विकल्प चुनिए –
(क) ‘बेटी अभी सयानी नहीं थी’-से कवि का क्या तार्य है?
(i) उसकी उम्र अभी कम थी।
(ii) उसको सांसारिक समझ नहीं थी।
(iii) उसकी आयु विवाह के योग्य नहीं थी।
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर :
(ii) उसको सांसारिक समझ नहीं थी।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

(ख) किसके प्रति नारी का आकर्षण स्वाभाविक होता है?
(i) पुष्पों
(ii) चाँद
(iii) वस्त्र और आभूषणों
(iv) नौकर-चाकरों
उत्तर :
(iii) वस्त्र और आभूषणों

(ग) ‘लड़की होने से क्या तार्य है?
(i) भोलापन, गकोमलता, समर्पण और सादगी
(ii) चालाकी, कठोरता, समर्पण और सादगी
(iii) भोलापन, कठोरता, समर्पण और सादगी
(iv) भोलापन, चतुरता, समर्पण और सादगी
उत्तर :
(i) भोलापन, कोमलता, समर्पण और सादगी

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण संबंधी एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त ।
जैसे वही उसकी अंतिम पूंजी हो
लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बांचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की।

शब्दार्थ : वक्त – समय। अंतिम पूँजी – आखिरी संपत्ति। सयानी – समझदार। बांचना – पढ़ना।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित कविता ‘कन्यादान’ से लिया गया है, जिसके रचयिता ऋतुराज हैं। वर्तमान समय में जीवन-मूल्य बदल गए हैं। माँ अपनी बेटी के लिए केवल भावुकता को महत्वपूर्ण नहीं मानती बल्कि अपने संचित अनुभवों की पीड़ा का ज्ञान भी उसे देना चाहती है। वह उसे भावी जीवन का यथार्थ पाठ पढ़ाना चाहती है।

व्याख्या : कवि कहता है कि माँ ने अपना जीवन जीते हुए जिन दुखों को भोगा था; सहा था, कन्यादान के समय अपनी बेटी को वह सब समझाना और उसे इसकी जानकारी देना उसके लिए बहुत अधिक आवश्यक था। उसकी बेटी ही उसकी अंतिम संपत्ति थी। जीवन के सारे सुख-दुख वह अपनी बेटी के साथ ही बाँटती थी। चाहे वह बेटी का विवाह कर रही थी, पर अभी उसकी बेटी अधिक समझदार नहीं थी; उसने दुनियादारी को नहीं समझा था।

वह अभी बहुत भोली और सीधी-सादी थी। वह दुखों की उपस्थिति को महसूस तो करती थी, लेकिन अभी उसे दुखों को भली-भाँति समझना और पढ़ना नहीं आता था। ऐसा लगता था कि अभी वह धुंधले प्रकाश में जीवन रूपी कविता की कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों को पढ़ना ही जानती थी, पर उनके अर्थ समझना उसे नहीं आता था अर्थात वह दुनियादारी की ऊँच-नीच को अभी भली-भाँति नहीं समझती थी। उसमें इतनी समझदारी नहीं आई थी कि वह दुनिया के भेदभावों को समझ कर स्वयं निर्णय कर सके।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोतर –

1. अवतरण में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
2. माँ के दुख को कवि ने क्या माना है?
3. अंतिम पूँजी कौन और क्यों थी?
4. ‘लड़की का दान’ से क्या तात्यर्य है?
5. विवाह के समय लड़की कैसी थी?
6. लड़की को किसका आभास था?
7. लड़की को क्या करना नहीं आता था?
8. ‘तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों’ से क्या तात्पर्य है?
9. पाठिका किसे कहा गया है?
उत्तर :
1. कवि ने कविता के द्वारा बदल चुकी वर्तमान सामाजिक व्यवस्था की ओर संकेत किया है। माँ के पास अब बेटी के विवाह के समय उसके प्रति कोरी भावुकता और प्रेम का भाव नहीं होता, बल्कि वह अपनी बेटी को शिक्षा देते समय जीवनभर के इकट्ठे अपने अनुभवों की पीड़ा को प्रामाणिक रूप से प्रकट करती है ताकि वह उन अनुभवों से शिक्षा ले और अपने जीवन को सही ढंग से जिए। वह जीवन में कभी कष्ट न उठाए।2. कवि ने माँ के दुखों को प्रामाणिक माना है, क्योंकि उसने अपने जीवन में उन्हें सहा है।
3. माँ की अंतिम पूँजी बेटी थी, क्योंकि वह अपने जीवन के हर सुख-दुख उसके साथ बाँटती है। बेटी ही माँ के सबसे निकट और उसके दुखसुख की साथी होती है।
4. ‘लड़की का दान’ से तात्पर्य लड़की के विवाह से है। युगों से चली आने वाली परंपरा में विवाह के समय कन्यादान का प्रचलन है।
5. विवाह के समय लड़की भोली-भाली और सीधी-सादी थी।
6. लड़की को सुख का आभास था, क्योंकि माता-पिता ने उसे केवल सुख ही प्रदान किए थे। उन्होंने अपनी बेटी को दुखों का अनुभव होने ही नहीं दिया था।
7. लड़की को दुखों की भयानकता को समझना नहीं आता था।
8. ‘तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों’ से कवि का तात्पर्य उस सामान्य ज्ञान से है, जो विवाह से पहले लड़की को परिवार में रहते हुए प्राप्त होता है, जिसमें दुखों की मात्रा या तो होती ही नहीं या वे बहुत कम होते हैं।
9. पाठिका उस लड़की को कहा गया है, जो जीवन के सामान्य ज्ञान को अभी प्राप्त कर रही थी।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

सदिय-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. अवतरण के भाव को स्पष्ट कीजिए।
2. किस बोली का प्रयोग किया गया है?
3. कवि ने किस प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया है?
4. कवि के कथन को किस शब्द-शक्ति के प्रयोग ने गहनता-गंभीरता प्रदान की है?
5. कौन-सा काव्य-गुण विद्यमान है?
6. किस काव्य-रस का प्रयोग किया गया है?
7. भावों को स्पष्ट करने के लिए किनका प्रयोग किया गया है?
8. किस छंद का प्रयोग है?
9. दो तद्भव शब्द लिखिए।
10. दो तत्सम शब्द लिखिए।
11. अवतरण से अलंकार चुनकर लिखिए।
12. ‘धुंधला प्रकाश’ प्रतीक को स्पष्ट करें।
उत्तर :
1. कवि ने माँ के द्वारा बेटी को परंपराओं से हटकर शिक्षा देने की ओर संकेत किया है, जिससे आधुनिक समाज व्यवस्था में आए परिवर्तनों का बोध होता है।
2. खड़ी बोली का प्रयोग है।
3. सामान्य बोलचाल के शब्दों का प्रयोग किया गया है।
4. लाक्षणिकता के प्रयोग ने कवि के कथन को गहनता-गंभीरता प्रदान की है।
5. प्रसाद गुण विद्यमान है।
6. शांत रस है।
7. प्रतीकात्मकता का प्रयोग किया गया है।
8. अतुकांत छंद है।
9. दान, सयानी।
10. प्रामाणिक, प्रकाश
11. अनुप्रास-दान में देते वक्त उत्प्रेक्षा-जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो।
12. अस्पष्ट सुख।

2. माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियां सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

शब्दार्थ : रीझना – आकृष्ट होना। आभूषण – गहने। भ्रमों – धोखों।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित कविता ‘कन्यादान’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता ऋतुराज हैं। कवि ने आधुनिक युग में समाज में आए परिवर्तनों के आधार पर विवाह के समय माँ की ओर से बेटी को शिक्षा दी है; उसे सचेत किया है। आज के बदलते समाज में कोरे आदर्शों की कमजोरी का कोई महत्व शेष नहीं बचा है।

व्याख्या : कवि के अनुसार माँ कन्यादान के समय अपनी लड़की को समझाते हुए कहती है कि पानी में झाँककर अपने चेहरे की सुंदरता की ओर केवल निहारते न रहना। केवल अपनी सुंदरता और बनाव-श्रृंगार की ओर ध्यान देना तुम्हारे लिए पर्याप्त नहीं है, बल्कि परछाई दिखाने वाले उस पानी की गहराई के बारे में जान लेना आवश्यक है। जो पानी परछाई दिखाता है और सुंदरता के प्रति तुम्हें आकर्षित करता है, वह डूबने पर मृत्यु का कारण भी बन सकता है; उससे सावधान रहना।

आग केवल रोटियाँ सेंकने के लिए होती है। वह जलने और जलकर मर जाने के लिए नहीं होती, इसलिए उसका शिकार न बनना। नारी जीवन को भ्रम में डालने वाले तरह-तरह के वस्त्र और गहने हैं। ये शाब्दिक धोखे हैं, जो स्त्री को जीवन में बाँध देने के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं। माँ ने अपनी लड़की को समझाते हुए कहा कि तुम लड़की बने रहना, पर कभी भी लड़की की तरह दिखाई न देना; सजग और सचेत रहना। समाज में व्याप्त परिवर्तनों को भली-भाँति समझना। यह संसार निर्मम है, इसलिए उसे भली-भाँति समझना।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. अवतरण में निहित भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
2. कवि ने ‘आग’ और ‘पानी’ का क्या प्रतीक स्पष्ट किया है ?
3. नारी-जीवन में वस्त्र और आभूषण क्या हैं ?
4. माँ ने अपनी लड़की को क्या समझाया?
5. लड़की की माँ लड़की से क्या उम्मीद रखती है?
6. ‘लड़की होने से क्या तात्पर्य है?
7. आग के विषय में बताते हुए माँ के हृदय में क्या हो रहा था ?
8. माँ ने चेहरे पर रीझने के लिए क्यों मना किया?
उत्तर :
1. माँ ने लड़की को अपने व्यवहार के प्रति सजग रहने की शिक्षा दी है और उससे कहा है कि वह लड़की की तरह रहे, पर लड़की की तरह कमज़ोर और असहाय न बने।
2. ‘आग’ और ‘पानी’ जीवन के प्रतीक हैं, पर यह केवल जीवन देने वाले नहीं हैं बल्कि जीवन लेने वाले भी हैं।
3. नारी-जीवन में वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह बंधन हैं।
4. माँ ने अपनी लड़की को समझाया कि उसे लड़की की तरह होना तो चाहिए, पर उसका व्यवहार कमज़ोर नहीं होना चाहिए। उसे लड़की की तरह दिखाई नहीं देना चाहिए।
5. लड़की की माँ लड़की से उम्मीद रखती है कि वह विवाह के बाद घर-गृहस्थी के सारे काम तो करे पर शोषण का शिकार न बने। वह किसी भी अवस्था में अपनी स्वतंत्रता न खोए।
6. लडकी होने से तात्पर्य भोलेपन, सरलता, कोमलता, समर्पण आदि के भावों को बनाए रखना है।
7. आग के विषय में बताते हुए माँ के हृदय में बेचैनी और पीड़ा के भाव थे कि वह भी कहीं ससुराल की ओर से दी जाने वाली पीड़ा का शिकार न बन जाए। कहीं उसे भी दहेज के लालची आग में न झोंक दें।
8. ससुराल वालों से झूठी प्रशंसा को पाकर कहीं बेटी शोषण का शिकार न बन जाए। अपनी सुंदरता की प्रशंसा सुनकर भ्रमित न हो जाए।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. कवि ने नारी को किनके प्रति सचेत किया है ?
2. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है?
3. किस बोली का प्रयोग है?
4. शब्दावली किस प्रकार की है?
5. किस छंद का प्रयोग है?
6. काव्य-रस कौन-सा है?
7. सांकेतिकता का एक उदाहरण दीजिए।
8. दो तद्भव शब्द लिखिए।
9. दो तत्सम शब्द लिखिए।
10. अवतरण से अलंकार चुनकर लिखिए।
उत्तर :
1. कवि ने समाज के आधुनिक रूप के प्रति नारी को सचेत किया है कि उसे समाज के व्यवहार के प्रति सदा सजग रहना चाहिए।
2. लाक्षणिकता का प्रयोग किया गया है।
3. खड़ी बोली।
4. सामान्य शब्दावली का प्रयोग किया गया है।
5. छंद रहित अभिव्यक्ति है।
6. शांत रस है।
7. माँ ने कहा पानी में झाँक कर अपने चेहरे पर मत रीझना।
8. चेहरे, लड़की
9. आभूषण, भ्रम
10. विरोधाभास – माँ ने कहा लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।
उपमा – वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह बंधन हैं स्त्री-जीवन के।

कन्यादान Summary in Hindi

कवि-परिचय :

आधुनिक युगबोध और यथार्थ के कवि ऋतुराज की नई कविता के क्षेत्र में विशिष्ट पहचान है। इनका जन्म सन 1940 में राजस्थान के भरतपुर में हुआ था। इन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय से अंग्रेजी विषय में एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। इन्होंने अध्ययन-अध्यापन को ही आजीविका का साधन बनाया था। चालीस वर्ष तक अंग्रेजी साहित्य पढ़ने-पढ़ाने के बाद अब ये सेवा-निवृत्त होकर जयपुर में रहते हैं।

इन्होंने हिंदी कविता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया है और अब तक इनकी आठ रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। उनमें से प्रमुख हैं – एक मरणधर्मा और अन्य, पुल पर पानी, सुरत निरत, लीला मुखारविंद। साहित्य सेवा के लिए इन्हें सोमदत्त परिमल सम्मान, मीरा पुरस्कार, पहल सम्मान और बिहारी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

साहित्यिक विशेषताएँ – ऋतुराज ने अपनी कविता में आज के मानव की दशा को प्रस्तुत करने की चेष्टा की है। इनकी कविता आधुनिकता, सामाजिक दायित्व, स्वाभिमान और विश्व-बंधुत्व की प्राप्ति से आलोकित है। इन्होंने न तो किसी को धूल बनाने की कोशिश की है और न ही हवा में ऊपर उठाने की। कवि अत्यंत सहज भाव से अन्याय, दमन, शोषण और रूढ़िग्रस्त जर्जर संस्कारों से जूझना चाहता है।

कहीं-कहीं कवि की विद्रोह- भावना व्यक्त हुई है। कवि ने आज के मानव के संघर्ष को कविता में स्थान दिया है। वह नई मर्यादाओं की स्थापना के लिए आगे बढ़ने में विश्वास रखता है। उसने उन लोगों को अपनी कविता का आधार बनाया है, जिन्हें समाज में अधिक महत्व प्राप्त नहीं हुआ।

ऋतुराज ने बड़ी-बड़ी दार्शनिक बातों को कहने की जगह दैनिक जीवन के अनुभव का यथार्थ प्रकट किया है। वे अपने आस-पास रोजमर्रा में घटित होने वाले सामाजिक शोषण और विडंबनाओं पर दृष्टि डालते हैं। इन्होंने परंपराओं से हटकर नए मूल्यों की स्थापना करने का प्रयत्न किया है। इनकी कविताओं में कोरी भावुकता नहीं है, बल्कि ये यथार्थ का दर्शन करने में सक्षम हैं –

माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के

कवि ने कृत्रिम भाषा का प्रयोग नहीं किया है। इनकी भाषा अपने वातावरण और लोक जीवन से जुड़ी हुई है। इन्होंने बिंबों का सजीव चित्रण किया है। इनकी भाषा में तत्सम और तद्भव शब्दावली का सहज समन्वित प्रयोग दिखाई देता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

कविता का सार :

कवि ने ‘कन्यादान कविता में माँ-बेटी के आपसी संबंधों की घनिष्ठता को प्रतिपादित करते हुए नए सामाजिक मूल्यों को परिभाषित करने का प्रयत्न किया है। माँ अपनी युवा होती बेटी के लिए पहले कुछ और सोचती थी, पर सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन के कारण अब कुछ और सोचती है। पहले उसके मन में कुछ अलग तरह के डर के भाव छिपे हुए थे, पर अब उनकी दिशा और मात्रा बदल गई है।

इसलिए वह अपनी बेटी को परंपरागत उपदेश नहीं देना चाहती। उसके आदर्शों में भी परिवर्तन आ गया है। बेटी ही माँ की अंतिम पूँजी होती है, क्योंकि वह उसके दुख-सुख की साथी होती है। बेटी अभी पूरी तरह से बड़ी नहीं हुई। वह भोली-भाली और सरल है। उसे सुखों का आभास तो होता है, पर उसे जीवन के दुखों की ठीक से पहचान नहीं है। वह धुंधले प्रकाश में कुछ तुक और लयबद्ध पंक्तियों को पढ़ने का प्रयास मात्र करती है। माँ ने उसे समझाते हुए कहा कि उसे जीवन में संभलकर रहना पड़ेगा।

वह अपनी बेटी को पानी में झाँककर अपने ही चेहरे पर न रीझने और आग से बचकर रहने की सलाह देती है। आग रोटियाँ सेंकने के लिए होती है, न कि जलने के लिए। वस्त्रों और आभूषणों का लालच उसे जीवन के बंधन में डालने का कार्य करता है। माँ ने कहा कि उसे लड़की की तरह दिखाई नहीं देना चाहिए। उसे सजग, सचेत और दृढ होना चाहिए। जीवन की हर स्थिति का निर्भयतापूर्वक डटकर सामना करना आना चाहिए।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

JAC Class 10 Hindi छाया मत छूना Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है?
उत्तर :
मनुष्य का जीवन कल्पनाओं के आधार पर नहीं टिकता। वह जीवन के कठोर धरातल पर स्थित होकर आगे गति करता है। पुरानी सुख भरी यादों से वर्तमान दुखी हो जाता है; मन में पलायनवाद के भाव उत्पन्न हो जाते हैं। उसे कठिन यथार्थ से आमना-सामना करके ही आगे बढ़ने की चेष्टा करनी चाहिए। इसलिए कवि ने जीवन की कठोर वास्तविकता को स्वीकार करने की बात कही है।

प्रश्न 2.
भाव स्पष्ट कीजिए –
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
उत्तर :
कवि ने माना है कि हर मनुष्य अपने जीवन में धन-दौलत और सुखों की प्राप्ति करना चाहता है, पर सबके लिए ऐसा हो पाना संभव नहीं होता। वह उसके लिए मृगतृष्णा के समान ही सिद्ध होकर रह जाता है। उसे केवल सुखों के प्राप्त हो जाने का झूठा आभास होता है। वह उसे प्राप्त नहीं कर पाता। इस कारण उसका हृदय पीड़ा से भर जाता है। हर चाँदनी रात के पीछे जिस तरह अमावस्या की अंधेरी रात छिपी रहती है, उसी प्रकार हर सुख के बाद दुख का भाव भी निश्चित रूप से छिपा रहता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

प्रश्न 3.
‘छाया’ शब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है ? कवि ने उसे छूने के लिए मना क्यों किया है ?
उत्तर :
‘छाया’ शब्द में लाक्षणिकता विद्यमान है, जो भ्रम और दुविधा की स्थिति को प्रकट करता है। यह सुखों के भावों को प्रकट करता है, जो मनुष्य के जीवन में सदा नहीं रहते। सुख-दुख मानव-जीवन के अंग हैं। जब दुख का भाव जीवन में आता है, तब मनुष्य बार-बार उन सुखों को याद करता है जिन्हें उसने कभी प्राप्त किया था। दुख की घड़ियों में सुखद समय की स्मृतियों में डूबने से उसके दुख दोगुने हो जाते हैं। इसलिए कवि ने उसे छूने के लिए मना किया है।

प्रश्न 4.
कविता में विशेषण के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में विशेष प्रभाव पड़ता है, जैसे कठिन यथार्थ। कविता में आए ऐसे अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी लिखिए कि इससे शब्दों के अर्थ में क्या विशिष्टता पैदा हुई?
उत्तर :
कवि ने छायावादी काव्यधारा से प्रभावित होकर अपनी कविता में विशेषणों का विशेष प्रयोग किया है, जैसे
(i) सुरंग सुधियाँ – यादों की विविधता और मोहक सुंदरता की विशिष्टता।
(ii) छवियों की चित्र-गंध – सुंदर रूपों में मादक गंध की विशिष्टता।
(iii) तन-सुगंध – सुगंध के साकार रूप की विशिष्टता।
(iv) जीवित-क्षण – समय की सकारात्मकता की विशिष्टता।
(v) शरण-बिंब – जीवन में आधार बनने की विशिष्टता।
(vi) यथार्थ कठिन – जीवन की कठोर वास्तविकता की विशिष्टता।
(vii) दुविधा-हत साहस – साहस होते हुए भी दुविधाग्रस्त रहने की विशिष्टता।
(viii) शरद्-रात – रात में शरद् ऋतु की ठंडक की विशिष्टता।
(ix) रस-बसंत – बसंत ऋतु में मधुर रस के अहसास की विशिष्टता।

प्रश्न 5.
‘मृगतृष्णा’ किसे कहते हैं ? कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है?
अथवा
प्रभुता की कामना को मृगतृष्णा क्यों कहा गया है? ‘छाया मत छूना’ कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
‘मृगतृष्णा’ का शाब्दिक अर्थ है-‘धोखा’ या ‘भ्रम’। जो न होकर भी होने को प्रकट करता है, वही मृगतृष्णा है। कवि ने कविता में सुख-संपदाओं की प्राप्ति से होने वाले मानसिक सुख के लिए ‘मृगतृष्णा’ शब्द का प्रयोग किया है। किसी व्यक्ति के पास चाहे अपार भौतिक सुख हो, पर उनसे मानसिक सुख और शांति की प्राप्ति होना संभव नहीं होता; भले ही उसकी संपन्नता को देखकर लोग उसे सुखी मानते रहे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

प्रश्न 6.
‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ – यह भाव कविता की किस पंक्ति से झलकता है?
उत्तर :
कवि ने ‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ के लिए अपनी कविता में जिस पंक्ति का प्रयोग किया है, वह है
‘जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण’

प्रश्न 7.
कविता में व्यक्त दुख के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
हर व्यक्ति का जीवन सुख और दुखों के मेल से बना है। सुख के बाद दुख आते हैं, तो दुखों के बाद सुख। हमें सुख आनंद का अहसास करवाते हैं, तो दुख पीड़ा देते हैं। हम पीड़ा से मुक्ति पाने की चेष्टा करते हैं और सुख की घड़ियों को बार-बार याद करने लगते हैं, जिससे पीड़ा कम होने की अपेक्षा बढ़ जाती है; वह दोगुनी हो जाती है। हम धन-दौलत प्राप्त कर अपना जीवन सुखमय बनाने की कोशिश करते हैं, पर धन की प्राप्ति से सभी सुख प्राप्त नहीं होते। सुख का आधार मन की शांति है। हमें मन की शांति के लिए : प्रयत्नशील होना चाहिए। जो बातें बीत चुकी हों, उन्हें भुला देना चाहिए और सुखद भविष्य के लिए प्रयासरत हो जाना चाहिए। दुख के कारण पुरानी सुखद बातों को मन-ही-मन दोहराते नहीं रहना चाहिए।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 8.
‘जीवन में है सुरंग सुधियाँ सुहावनी’ से कवि का अभिप्राय जीवन की मधुर स्मृतियों से है। आपने अपने जीवन की कौन-कौन सी स्मृतियाँ सँजो रखी हैं?
उत्तर :
प्रत्येक व्यक्ति के मन में अनेक मधुर स्मृतियाँ छिपी रहती हैं, जो समय-समय पर प्रकट होती हैं। जब वे याद आती हैं, तब अनायास ही होंठों पर मुस्कान बिखर जाती है। जब मैं छोटा था, तब मेरी बुआ जी मेरे जन्मदिन पर एक साथ दस उपहार लेकर आई थीं। मैंने हैरान होकर उनसे पूछा था कि वे एक साथ इतने उपहार क्यों ले आई हैं? उन्होंने मुस्कराकर कहा था कि वे पिछले दस वर्ष से विदेश में थीं और मेरे जन्मदिन पर वे मुझे उपहार नहीं दे पाई थीं। इसलिए पिछले दस वर्षों के दस उपहार मुझे एक साथ दे रही हैं।

उपहार भी एक से बढ़कर एक थे। मैं खुशी से झूम उठा। आज भी मुझे वह घटना ऐसी लगती है, जैसे उसे घटित हुए कुछ ही देर हुई हो। मैं इस घटना को कभी नहीं भूल सकता। एक बार मैं पैदल स्कूल जा रहा था। एक नन्हा-सा पिल्ला मेरे पीछे-पीछे चलने लगा। मुझे उसका अपने पीछे आना अच्छा लगा। जब मैं स्कूल पहुँच गया, तो स्कूल के चौकीदार ने उसे भगा दिया।

छुट्टी के बाद जैसे ही मैं बाहर निकला, वैसे ही न जाने कहाँ से वह भागता हुआ आया और फिर मेरे पीछे-पीछे मेरे घर तक आया। यह क्रम अगले दिन भी चला। इसके बाद महीना भर मेरा और उसका स्कूल जाना-आना एक साथ हुआ। इसके बाद मुझे नहीं पता कि अचानक वह पिल्ला कहाँ चला गया। मैंने उसे ढूँढ़ने की कोशिश की, पर फिर वह मुझे कहीं दिखाई नहीं दिया। इस घटना को अनेक वर्ष बीत चुके हैं, पर मुझे उसकी मधुर स्मृति कभी नहीं भूलती।

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प्रश्न 9.
“क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?’ कवि का मानना है कि समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद देती है। क्या आप ऐसा मानते हैं ? तर्क सहित लिखिए।
उत्तर
समय का विशेष महत्व है। इसके बीत जाने पर हमें प्रायः दुख ही उठाना पड़ता है। समय कभी किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। यह लगातार आगे भागता जाता है। यदि हम इसके एक-एक क्षण को व्यर्थ गँवा देते हैं, तो हमारा कल्याण संभव नहीं हो सकता। कहा भी तो जाता है –

‘अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत’

प्राय: माना जाता है कि धन सबसे कीमती वस्तु है, पर यदि ध्यान से सोचा जाए तो समय धन से भी अधिक उपयोगी और मूल्यवान है। धन से हर वस्तु खरीदी जा सकती है, पर समय नहीं खरीदा जा सकता। यह घड़ी की टिक-टिक के साथ भागता जाता है। यदि किसी बीमार व्यक्ति को समय पर उपचार न मिले, तो उसका जीवन नहीं बचाया जा सकता। यदि समय पर विद्यार्थी पढ़ाई न करें, तो वे परीक्षा में पास नहीं हो सकते। यदि किसान समय पर अपने खेत की सिंचाई न करे, तो उसे उपज प्राप्त नहीं हो सकती।

रेलगाड़ी, बस, वायुयान आदि किसी के लिए प्रतीक्षा नहीं करते। समय चूक जाने पर वे अपने गंतव्य की ओर चले जाते हैं। यदि किसी उपलब्धि की हमें समय के बाद प्राप्ति हो भी जाती है, तो उसका कोई उपयोग नहीं रहता। फ़सल के सूख जाने के बाद वर्षा हो भी जाए तो उसका क्या लाभ? हमें चाहिए कि हम हर कार्य उचित समय पर ही करें, ताकि इससे समय की उपलब्धि की उपादेयता बनी रहे।

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
आप गर्मी की चिलचिलाती धूप में कभी सफ़र करें तो दूर सड़क पर आपको पानी जैसा दिखाई देगा पर पास पहुँचने पर वहाँ कुछ नहीं होता। अपने जीवन में भी कभी-कभी हम सोचते कुछ हैं, दिखता कुछ है लेकिन वास्तविकता कुछ और होती है। आपके जीवन में घटे ऐसे किसी अनुभव को अपने प्रिय मित्र को पत्र लिखकर अभिव्यक्त कीजिए।
उत्तर :
48, दुग्गल कॉलोनी,
कानपुर
15 सितंबर, 20……
प्रिय अंकुश,
मुझे तुम्हारा पत्र बहुत पहले प्राप्त हो गया था, पर मैं समय पर उसका उत्तर नहीं दे पाया। मुझे इस बात का खेद है। वास्तव में पिछले दिनों मेरे साथ कुछ ऐसा घटित हुआ, जिसकी मुझे कभी उम्मीद नहीं थी।

तुम्हें याद होगा कि मैंने अपने एक मित्र से तुम्हारा परिचय करवाया था, जब तुम पिछली छुट्टियों में घर आए थे। उसका नाम कपिल था। वह मेरी ही कक्षा में पढ़ता था और प्रायः मेरे घर आया करता था। वह होस्टल में रहता था। उसके माता-पिता किसी दूर के गाँव मम्मी-पापा उसे अपने बेटे के समान ही प्यार करते थे। यदि मेरे लिए वे बाजार से कुछ लाते थे, तो उसके लिए लाना नहीं भूलते थे।

कहते थे कि कितना होनहार बच्चा है! होशियार है, मीठा बोलता है, भोला-भाला है। पिछले सप्ताह उसने अपने गाँव के कुछ लोगों के साथ मिलकर हमारे घर में चोरी कर ली। हमारा लगभग पाँच लाख रुपये का नुकसान हो गया है। उसे हमारे घर की एक-एक चीज़ पता थी। लगभग हर रोज़ वह हमारे घर आता था। अगले महीने रीमा दीदी की शादी है, इसलिए घर में उसके दहेज का नया सामान था; नकदी थी।

वह सब चोरी चला गया। हमें तो विश्वास ही नहीं हुआ, जब पुलिस ने उसे उसके गाँव से पकड़कर हमारे सामने खड़ा कर दिया। उसने अपना अपराध कबूल कर लिया है, पर न तो उसके साथी पुलिस की पकड़ में आए हैं और न ही हमारा सामान बरामद हुआ। शायद हमारा सामान हमें वापस मिल जाए। उसकी शक्ल कितनी भोली थी, पर वह मन का कितना काला निकला! सच है कि हम लोगों के बारे में सोचते कुछ हैं, वे निकलते कुछ हैं। अच्छा, बाकी बातें अगली बार।
अंकल-आंटी को मेरी ओर से नमस्ते कहना।
तुम्हारा मित्र
अनुज

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

प्रश्न 2.
कवि गिरिजाकुमार माथुर की ‘पंद्रह अगस्त’ कविता खोजकर पढ़िए और उस पर चर्चा कीजिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।

यह भी जानें –

प्रसिद्ध गीत ‘We shall overcome’ का हिंदी अनुवाद ‘हम होंगे कामयाब’ शीर्षक से कवि गिरिजाकुमार माथुर ने किया है।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण संबंधी एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली सनभावनी;
तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण

शब्दार्थ : छाया – भ्रम, दुविधा, पुरानी सुखद बातें। दूना – दोगुना। सुरंग – रंग-बिरंगी। सुधियाँ – यादें। सुहावनी – सुंदर। छवियों की चित्रगंध – चित्र की स्मृति के साथ उसके आस-पास की गंध का अनुभव। मनभावनी – मन को अच्छी लगने वाली। तन-सुगंध – शरीर की सुगंध। शेष – बाकी, पीछे। यामिनी – तारों भरी चाँदनी रात। कुंतल – लंबे बाल। छुअन – स्पर्श।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य–पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित कविता छाया मत छूना से लिया गया है, जिसके रचयिता गिरिजाकुमार माथुर हैं। कवि ने पुरानी सुखद बातों को बार-बार याद करने को उचित नहीं माना, क्योंकि ऐसा करने से जीवन में आए दुख दोगुने हो जाते हैं।

व्याख्या : कवि कहता है कि हे मेरे मन! तू पुरानी सुख भरी यादों को बार-बार अपने मन में मत ला; उन्हें याद मत कर। ऐसा करने से मन में छिपा दुख बढ़कर दोगुना हो जाएगा। हम मनुष्यों के जीवन में न जाने कितनी सुख भरी यादें होती हैं। वे सुखद रंग-बिरंगी छवियों की झलक और उनके आस-पास मधुर यादों की गंध सदा मन को मोहती हैं। वे सदा अच्छी लगती हैं।

जब सुखद समय बीत जाता है, तब केवल शरीर की मादक-मोहक सुगंध ही यादों में शेष रह जाती है। जब तारों से भरी सुखद चाँदनी रात बीत जाती है, तब यादें शेष रह जाती हैं। लंबे सुंदर बालों में लगे फूलों की याद ही चाँदनी के समान मन में छाई रहती हैं। सुख भरे समय में भूल से किया गया एक स्पर्श भी जीवित क्षण के समान सुंदर और मादक प्रतीत होता है। उसे भुलाने की बात मन में कभी नहीं आती। वही सुखद पल जीवन के लिए सुखदायी बनकर मन में छिपा रहता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. अवतरण में निहित भावार्थ को स्पष्ट कीजिए।
2. ‘छाया मत छूना’ का तात्पर्य स्पष्ट कीजिए।
3. जीवन में किसकी पोहक यादें फैली थी?
4. ‘चित्र-गंध’ क्या है?
5. यामिनी बीतने का क्या अर्थ है ?
6. ‘कुंतल के फूल’ क्या हैं ?
7. ‘चाँदनी’ किसकी प्रतीक है?
8. ‘हर जीवित क्षण’ क्या है?
9. ‘शेष रही’ में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने सुख और दुख को जीवन का आवश्यक हिस्सा माना है। मनुष्य को जीवन में दुख आने की स्थिति में सुखों को याद नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे दुख कम नहीं होते बल्कि दोगुने हो जाते हैं।
2. ‘छाया मत छूना’ से तात्पर्य पुरानी सुखद बातों को याद न करने से है।
3. जीवन में सुखों की मोहक यादें फैली थीं।
4. मधुर यादों के साथ उसके आस-पास फैली गंध का अनुभव।
5. सुख के क्षणों का व्यतीत हो जाना।
6. ‘कुंतल के फूल’ प्रतीकात्मक शब्द हैं; जो सुखद घड़ियों को प्रकट करते हैं।
7. ‘चाँदनी’ प्रेम भरे क्षणों को व्यक्त करने वाला प्रतीकात्मक शब्द है। यह सुख की घड़ियों को प्रकट करता है।
8. ‘हर जीवित क्षण’ सख का अहसास करवाने वाला मधुर पल है।
9. प्रेमरूपी सुगंध का बना रहना ही ‘शेष रही’ को प्रकट करता है।

बोर्ड परीक्षा में पूछे गए प्रश्नोत्तर –

(क) ‘छाया मत छूना’-कवि ने ऐसा क्यों कहा?
(ख) ‘छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी’ का क्या तात्पर्य है?
(ग) ‘कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी’ में कवि को कौन सी यादें कचोटती हैं?
उत्तर :
(क) ‘छाया मत छूना’ से कवि का तात्पर्य पुरानी सुखद यादों और बातों को याद न करने से है।
(ख) जीवन में सुखों की मोहक यादें फैली थी, जिसकी मधुर यादों के साथ उसके आस-पास फैली गंध अत्यंत मनभावनी लगती है।
(ग) ‘कुंतल के फूल’ प्रतीकात्मक शब्द है; जो सुखद घड़ियों को प्रकट करता है। यहाँ कवि को सुख का अहसास करवाने वाले मधुर पलों की यादें कचौटती हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. भाव स्पष्ट कीजिए।
2. कवि के भावों को गहनता-गंभीरता किसने प्रदान की है?
3. किस बोली का प्रयोग किया गया है?
4. किस प्रकार की शब्दावली की अधिकता है?
5. किस बिंब का प्रयोग है?
6. कौन-सा काव्य-रस विदयमान है?
7. किस छंद ने लयात्मकता की सृष्टि की है?
8. किस काव्य-गुण का प्रयोग हुआ है ?
9. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग है?
10. दो तत्सम शब्द लिखिए।
11. दो तद्भव शब्द लिखिए।
12. यह कविता किस काव्य-धारा से संबंधित है?
13. प्रयुक्त अलंकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने सुख की घड़ियों में मन पर पड़ने वाले आनंद के भावों का प्रभाव प्रस्तुत किया है। उसका मानना है कि सुख के भावों को दुख की घड़ियों में याद करने से दुख बढ़ता है; घटता नहीं है।
2. प्रतीकात्मकता के प्रयोग ने कवि के भावों को गहनता-गंभीरता प्रदान की है।
3. खड़ी बोली का प्रयोग है।
4. तत्सम शब्दावली का अधिक प्रयोग किया गया है।
5. मानस बिंब का प्रयोग है।
6. वियोग श्रृंगार रस है।
7. तुकांत छंद ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
8. प्रसाद गुण विद्यमान है।
9. लक्षणा शब्द-शक्ति है।
10. कुंतल, चित्रगंध।
11. फूल, मन।
12. छायावाद
13. अनुप्रास –
दुख दूना, सुरंग सुधियां सुहावनी

उपमा –
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

2. छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन-
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।

शब्दार्थ : वैभव – संपदा, धन-दौलत, संपत्ति। सरमाया – पूँजी। प्रभुता का शरणे बिंब – बड़प्पन का अहसास। भरमाया – भ्रम में पड़ना। मृगतृष्णा – भ्रम, धोखा। चंद्रिका – चाँदनी। कृष्णा – काली, अमावस्या। यथार्थ – वास्तविक। कठिन – मुश्किल। पूजन – पूजा।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित कविता ‘छाया मत छूना’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता श्री गिरिजाकुमार माथुर हैं। कवि का मानना है कि जीवन में दुख और सुख तो आते रहते हैं, पर दुख की घड़ियों में सुखों को याद नहीं करना चाहिए।

व्याख्या : कवि कहता है कि हे मेरे मन! जीवन में आने वाले दुखों के समय छायारूपी सुख को मत छूना, क्योंकि इससे दुख कम नहीं होता बल्कि वह दोगुना बढ़ जाता है। मेरे जीवन में न तो शान-शौकत है और न ही धन-दौलत; न तो मान-सम्मान है और न ही किसी प्रकार की पूँजी। श्रेष्ठता और प्रभुता की प्राप्ति की इच्छा केवल धोखे के पीछे भागना है। जो नहीं है, उसे प्राप्त करने की इच्छा है। हर सुख के पीछे दुख छिपा होता है। ठीक उसी प्रकार जैसे चाँदनी रात के पीछे अमावस्या की अंधेरी रात छिपी रहती है। हे मेरे मन! जो अति कठिन सच्चाई है; वास्तविकता है, तू उसकी पूजा कर। उसे प्राप्त करने का प्रयत्न कर।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. अवतरण में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
2. दुख क्यों दोगुना लगने लगता है?
3. कवि ने किन अभावों को प्रकट किया है?
4. ‘भरमाया’ में निहित अर्थ स्पष्ट कीजिए।
5. ‘मृगतृष्णा’ क्या है?
6. ‘चंद्रिका’ में छिपा प्रतीकार्थ स्पष्ट कीजिए।
7. ‘कृष्णा’ शब्द से कवि किसकी ओर संकेत करता है?
8. ‘यथार्थ कठिन’ क्या है?
9. ‘पूजन’ में निहित अर्थ को प्रकट कीजिए।
10. छाया से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
1. कवि ने कहा है कि दुख की घड़ियों में बीते समय के सुखों को याद करने से दुख कम नहीं होते बल्कि बढ़ जाते हैं। हर व्यक्ति सुख पाना चाहता है; धन-दौलत प्राप्त करना चाहता है। पर जितना हम सुखों के पीछे भागते हैं, वे उतने ही मृगतृष्णा सिद्ध होते हैं। हमें उनकी प्राप्ति सरलता से नहीं होती। हर सुख के पीछे दुख दो अवश्य छिपा रहता है। हमें जीवन की कठोर सच्चाइयों को ही मन में रखना चाहिए।
2. जब जीवन में दुख की घड़ियाँ आने पर हम पिछले सुखों के बारे में सोचने लगते हैं, तब दुख दोगुना लगने लगता है।
3. कवि ने मान-सम्मान, धन-दौलत और सुखों की पूँजी के अभाव को प्रकट किया है।
4. ‘भरमाया’ का अर्थ है-‘भ्रम में पड़ना’। सुखों को प्राप्त करने के लिए हम जितनी अधिक भाग-दौड़ करते हैं, ये उतना ही अधिक हमें भ्रम में डालते जाते हैं। इससे हमारी परेशानियाँ बढ़ती हैं।
5. ‘मृगतृष्णा’ का अर्थ है-‘भ्रम’ या ‘धोखा’। जो न होकर भी होने का आभास करवाता है, वही मृगतृष्णा है। जीवन में प्रभुता को पाने की इच्छा के लिए कवि ने इस शब्द का प्रयोग किया है।
6. ‘चंद्रिका’ का शाब्दिक अर्थ चाँदनी है, पर कवि ने इसे सुखों के रूप में प्रयुक्त किया है। हर व्यक्ति अपने जीवन में सुखरूपी चाँदनी को प्राप्त करना चाहता है।
7. ‘कृष्णा’ शब्द से कवि ने दुखरूपी अमावस्या का बोध करवाया है। कवि कहता है कि हर व्यक्ति के जीवन में दुखों का आना-जाना लगा रहता है।
8. ‘यथार्थ कठिन’ जीवन की वह सच्चाई है, जिसे हर व्यक्ति को झेलनी पडती है। कठोर परिश्रम करना और जीवन को सखी बनाने की चेष्टा इससे ही संबंधित है।
9. ‘पूजन’ प्रतीक शब्द है, जो कठोर परिश्रम में स्वयं को लगा देने के लिए प्रयुक्त किया है। यह निष्ठा और लगन का भी प्रतीक है। इसके पीछे आस्था का भाव छिपा हुआ है।
10. छाया से तात्पर्य पुरानी सुखद यादों को स्मरण करना है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. भाव व्यक्त कीजिए।
2. किस बोली से भावों को अभिव्यक्त किया गया है?
3. किस प्रकार की शब्द-योजना की प्रधानता है?
4. भावों की गहनता का आधार क्या है?
5. किसने कथन को गंभीरता प्रदान की है?
6. किस छंद ने लयात्मकता की सृष्टि की है?
7. कौन-सा काव्य-गुण विद्यमान है?
8. दो तत्सम और दो तद्भव शब्द चुनकर लिखिए।
9. इसमें कौन-सी शैली प्रयुक्त की गई है?
10. अलंकारों का उल्लेख कीजिए।
11. प्रतीक छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
1. कवि ने स्वीकार किया है कि जीवन में सुख-दुख आते रहते हैं। किसी के भी जीवन में केवल सुख नहीं रहते, बल्कि हर सुख के पीछे दुख निश्चित रूप से लगा रहता है।
2. खड़ी बोली।
3. तत्सम शब्दावली का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया गया है।
4. प्रतीकात्मकता।
5. लाक्षणिकता का प्रयोग किया गया है, जिससे कथन में गंभीरता उत्पन्न हुई है।
6. तुकांत छंद ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
7. प्रसाद गुण विद्यमान है।
8. तत्सम –
प्रभुता, मृगतृष्णा

तद्भव –
छाया, दुख

9. छायावादी।

10. अनुप्रास –
होगा दुख दूना
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन

11. (i) रात कृष्णा –
दुख-दीनता

(ii) छाया –
पुरानी यादें और भविष्य की कामनाएँ

(ii) चंद्रिका –
सुख-वैभव

(iv) मृगतृष्णा –
धोखा/मन का भटकाव

(v) दौड़ना –
सांसारिक तृष्णाएँ

(vi) कृष्णा –
निराशा/पीड़ा

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

3. छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत महीं।
दुख है न चांद खिला शरद-गा आने पर,
क्या हुआ जो खिल पूल रस-बसंत्त जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू भखिष्य वरण,
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।

शब्दार्थ : दुविधा-हत साहस – साहस होते हुए भी दुविधा-ग्रस्त रहना। पंथ – रास्ता। शरद-रात – सर्दियों की रात। भविष्य वरण – आने वाले समय के सुखों का चुनाव।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित कविता ‘छाया मत छूना’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता श्री गिरिजाकुमार, माथुर हैं। कवि ने प्रेरणा दी है कि पुराने सुखों की याद में हर पल डूबे रहना उचित नहीं है। इससे जीवन में दुखों की छाया बढ़ती है। परिश्रम करते हुए भविष्य को सँवारने की चेष्टा करना ही सदा अच्छा होता है।

व्याख्या : कवि कहता है कि हे मेरे मन ! दुख और निराशा की घड़ियों में बीते हुए सुखों को याद मत कर। ऐसा करने से वर्तमान के दुख बढ़ जाते हैं। हम अपने जीवन में अकारण ही निराशा के भावों से भरे रहते हैं। साहस होते हुए भी दुविधा से ग्रस्त रहते हैं। हमें अपने जीवन की राह दिखाई नहीं देती। भौतिक धन-दौलत से हम शारीरिक सुख-उपभोग तो प्राप्त कर लेते हैं, पर हमारे मन में व्याप्त दुखों का अंत नहीं होता। हमारे मन में दुख के भाव इतने अधिक हैं कि सुखों के आने का पता ही नहीं चलता।

शरद् ऋतु के साफ़-स्वच्छ आकाश में रात के समय चाँदरूपी सुख की चाँदनी दिखाई ही नहीं देती। मन की निराशा उसे प्रकट नहीं होने देती। बसंत ऋतु बीत जाने पर यदि फूल खिला भी, तो उसका क्या लाभ। भाव है कि किसी सुख के बीत जाने पर यदि उसका आभास हुआ भी, तो उसका कोई लाभ नहीं है। हे मन! तुम्हें जो जीवन में अभी तक नहीं मिला उसे भविष्य में प्राप्त कर; परिश्रम कर और सुख-दुख से दूर होकर मनचाहा प्राप्त कर। तू दुख की घड़ियों में सुख के क्षणों को याद मत कर।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. अवतरण में निहित भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
2. ‘दुविधा हत साहस’ क्या है?
3. ‘पंथ’ में निहित अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
4. सुख-सुविधाएँ प्राप्त होने पर भी हमें किसके अंत का पता नहीं होता?
5. ‘न चाँद खिला’ से क्या तात्पर्य है?
6. ‘क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
7. ‘भविष्य वरण’ का क्या अर्थ है ?
8. देह का सुख किससे प्राप्त करने की ओर संकेत किया गया है?
9. ‘फूल का खिलना’ किस बात का बोध कराता है ?
उत्तर :
1. कवि ने स्पष्ट किया है कि जब मन में उत्साह की कमी हो; वह दुख और पीड़ा के भावों से भरा हुआ हो, तब उसे अपने जीवन की राह साफ़-साफ़ दिखाई नहीं देती। मन के कष्टों को भुलाकर मनुष्य को भविष्य के सुखों की ओर बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।
2. ‘दुविधा हत साहस’ से तात्पर्य है-‘साहस होते हुए भी दुविधाग्रस्त रहना’।
3. ‘पंथ’ से तात्पर्य हमारे जीवन के उन उद्देश्यों से है, जिन्हें दुविधाग्रस्त होने के कारण हम प्राप्त कर सकने में सक्षम नहीं हो पाते।
4. सुख-सुविधाएँ प्राप्त होने पर भी हमें मन में व्याप्त दुखों के अंत का पता नहीं होता।
5. ‘न चाँद खिला’ प्रतीकात्मक प्रयोग है, जिसका तात्पर्य सुखों के प्राप्त न होने से है; जिस कारण मन में सुख का भाव उत्पन्न नहीं होता।
6. ‘क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर’ से कवि का तात्पर्य है कि उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि फूल कब खिला। फिर भले ही रंग-बसंत’ अर्थात समय बीत गया हो।
7. ‘भविष्य वरण’ का अर्थ आने वाले समय की ओर बढ़कर नए उद्देश्यों और लक्ष्यों की प्राप्ति करना है; उनका चुनाव करना है।
8. देह का सुख मन के सुख से प्राप्त करने की ओर संकेत किया गया है। धन-वैभव से देह के लिए बाहरी सुख बटोरे जा सकते हैं, पर वास्तविक सुख तभी प्राप्त होते हैं जब मन पूर्ण रूप से संतुष्ट हो; उसमें सुख का भाव छिपा हो।
9. ‘फूल का खिलना’ सुखों की प्राप्ति को प्रकट करता है। इससे जीवन में प्राप्त होने वाले आनंद का बोध होता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. भाव स्पष्ट कीजिए।
2. भावों की गंभीरता का आधार क्या है?
3. कवि ने अपने कथन को गहनता किस प्रकार दी है?
4. किस बोली का प्रयोग है?
5. किस प्रकार की शब्दावली का प्रयोग अधिकता से किया गया है?
6. किस काव्य गुण का प्रयोग है?
7. कौन-सा छंद लयात्मकता का आधार बना है?
8. प्रश्न-शैली ने कथन को क्या प्रदान किया है?
9. दो तत्सम और दो तद्भव शब्द लिखिए।
10. प्रतीक छाँटकर लिखिए।
11. हिंदी की किस काव्यधारा से संबंधित है?
12. प्रयुक्त अलंकार चुनकर लिखिए।
उत्तर :
1. कवि ने सुख भरे भविष्य के लिए परिश्रम करने की प्रेरणा दी है तथा दुख की घड़ियों में सुखद पलों को याद न करने का परामर्श दिया है।
2. प्रतीकात्मकता।
3. लाक्षणिकता का प्रयोग भावों में गहनता का आधार बना है।
4. खड़ी बोली का प्रयोग है।
5. तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है।
6. प्रसाद गुण विद्यमान है।
7. तुकांत छंद ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
8. प्रश्न-शैली ने भावों को सामर्थ्य प्रदान किया है।
9. तत्सम –
दुविधा, वरण

तद्भव –
मन, फूल

10. चाँद, शरद-रात, फूल, बसंत, छाया।
11. छायावाद
12. अनुप्रास –
दुख दूना, खिला फूल, मिला धूल।

प्रश्न –
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?

JAC Class 10 Hindi छाया मत छूना Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘छाया मत छूना’ कविता के आधार पर गिरिजाकुमार माथुर की मानसिक सबलता पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
गिरिजाकुमार माथुर छायावादी काव्यधारा से प्रभावित थे और उनकी कविता में प्रेम-सौंदर्य और कल्पना की अधिकता है, पर कवि ने ‘छाया मत छूना’ कविता में कल्पना की उड़ान से बहुत दूर होकर अपनी मानसिक सबलता का परिचय दिया है। उनके अनुसार कोरी कल्पनाएँ जीवन में किसी काम की नहीं होती। इनसे सुखों की अनुभूति होती है, लेकिन जीवन का वास्तविक सुख प्राप्त नहीं होता।

जीवन में सुख दुख आते हैं, लेकिन दुख की घड़ियों में हम सुखों को याद करके अपनी पीड़ा को बढ़ा लेते हैं। जीवन में केवल मधुर सपने नहीं हैं, इसमें कठोरता भी बसती है। हमें पुरानी बातों को भुलाकर मज़बूत कदमों से भविष्य की ओर बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए। क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर? जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण। जीवन की सार्थकता इसी में है कि हम अपने लक्ष्य की ओर दृष्टि जमाए रखें और आगे बढ़ते जाएँ, न कि पिछले सुखों को याद कर आँसू बहाते रहे।

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प्रश्न 2.
‘छाया मत छूना’ में कवि ‘छाया’ किसे कहता है और क्यों?
उत्तर :
कवि ने अतीत के सुखों को छाया कहा है। अतीत में प्राप्त सुख हमारे वर्तमान को सुखमय नहीं बना सकते। वर्तमान जीवन में उनका कोई अस्तित्व नहीं। अतीत की छाया वर्तमान से मेल नहीं खाती, न ही यथार्थ में बदल सकती है। अतीत का सुख हमें असमंजस में लाकर खड़ा कर देता है। अत: अतीत की सुखरूपी छाया से दूर रहना ही उचित है।

प्रश्न 3.
‘तन सुगंध शेष रही बीत गई यामिनी’ पंक्ति को स्पष्ट करें।
उत्तर :
‘तन सुगंध शेष रही बीत गई यामिनी’ पंक्ति का संबंध कवि के जीवन की उन सुखद रातों से है, जो अब अतीत बन गई हैं। अब बस उनकी याद (सुगंध) ही शेष रह गई है। यह कैसी त्रासदी है कि पहले की सुखद रातें अब उसके लिए दुखद प्रतीत होती हैं, क्योंकि वर्तमान में प्रिया उसके साथ नहीं है।

प्रश्न 4.
कवि ने यश, वैभव, मान आदि को किसके समान बताया है ?
उत्तर :
मानव उसी तरह जीवनभर यश, वैभव, मान के पीछे भागता है, जैसे रेगिस्तान में हिरण जल के आभास में चमकती रेत के पीछे दौड़ता है। जीवन में यश, वैभव को कवि ने मृगतृष्णा के समान कहा है। जैसे हिरण की प्यास नहीं बुझती, उसी तरह मनुष्य भी अर्जित यश, वैभव, मान से संतुष्ट नहीं होता। उसकी लालसा कभी नहीं मिटती।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

प्रश्न 5.
कवि ने ‘छाया मत छूना’ कविता में कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों की है ?
उत्तर :
कवि के अनुसार अतीत की सुखद स्मृति हमारे वर्तमान को दुखद बनाती है। यह सच्चाई है कि जीवन में सुख-दुख आते-जाते हैं। कठिन परिस्थितियों का सामना करना व उनको स्वीकार करना यथार्थ को अपनाना है। सच्चाई से बचा नहीं जा सकता, इसलिए उसका पूजन करना ही मनुष्य के लिए लाभप्रद है। विचलित हुए बिना कष्टों का सामना करना या कठिनाइयों से सामंजस्य स्थापित करना ही यथार्थ पूजन है। कठिनाइयों का सामना करें, पलायन नहीं।

प्रश्न 6.
कैसे व्यक्ति को पंथ दिखाई नहीं देता?
उत्तर :
ऐसा व्यक्ति जो उचित-अनुचित या सही-गलत में अंतर नहीं कर सकता; जिसका मन दुविधाग्रस्त रहता है, उसे लक्ष्य की ओर जाने वाला मार्ग नहीं दिखता। उसे सफलता-असफलता की आशंका घेरे रहती है। ऐसा व्यक्ति न तो शारीरिक रूप से सुखी होता है, न ही मानसिक रूप से। ऐसा व्यक्ति उन क्षणों को भी सुखपूर्वक नहीं भोग सकता, जो उसे वर्तमान में प्राप्त हैं।

प्रश्न 7.
कवि हमें क्या भूल जाने की सलाह दे रहा है?
उत्तर :
कवि हमें समझाना चाहता है कि जो जीवन में हमें प्राप्त न हो सका, उसका शोक करने के स्थान पर उसे भूल जाना ही हितकर है। उसके चिंतन में घुलना अनुचित है। ऐसा करने वाला स्वयं को दुख ही देता है। अपने वर्तमान तथा भविष्य को व्यर्थ चिंता कर खराब न करें। जो नहीं मिला न सही, जो है उसे महत्व प्रदान करें; कम-से-कम उसे तो हाथों से न जाने दें।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

प्रश्न 8.
‘छाया मत छूना’ कविता का संदेश क्या है?
अथवा
‘छाया मत छूना’ कविता में कवि क्या कहना चाहता है?
अथवा
कवि अपने मन को ‘छाया मत छूना’ कहकर क्या समझाना चाहता है?
उत्तर :
कवि ने अपनी इस कविता द्वारा संदेश दिया है कि अतीत के सुखों की याद को अपने वर्तमान पर हावी न होने दें। जीवन में यथार्थ का सामना करें। अतीत के आधार पर जीवन संचालित नहीं हो सकता। वर्तमान को ही सुखद भविष्य का आधार माने। दुख के समय निराश हुए बिना उत्साह बनाए रखना चाहिए। संघर्ष ही जीवन का यथार्थ पक्ष है। सुखद स्मृतियों को याद कर वर्तमान को और अधिक दुखद न बनाएँ।

प्रश्न 9.
‘हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा’ के माध्यम से कवि हमें क्या समझाना चाहता है ?
उत्तर :
कवि के अनुसार जीवन में उसी प्रकार सुख और दुख आते-जाते हैं, जिस तरह से चाँदनी रात के बाद अमावस्या और फिर अमावस्या के बाद चाँदनी रात आती है। इसी तरह दुख-सुख का पहिया हम सबके जीवन में निरंतर चलता रहता है। जीवन की इस सच्चाई को जानकर हमें उसी परिस्थिति के अनुरूप जीवन व्यतीत करना चाहिए और हताश हुए बिना आगे बढ़ते रहना चाहिए।

प्रश्न 10.
कवि ने “छाया मत छूना’ कविता में किस ऋतु का उदाहरण देकर क्या स्पष्ट करना चाहा है –
उत्तर :
कवि गिरिजाकुमार माथुर ने ‘छाया मत छूना’ कविता में बसंत ऋतु तथा शरद ऋतु का वर्णन किया है। कवि ने बसंत ऋतु के समय में फूल का तथा शरद ऋतु के समय में चंद्रमा का अभाव दिखाया है। कवि द्वारा दोनों उदाहरण देने का एक ही अभिप्राय है कि यदि सुख की प्राप्ति ठीक समय पर नहीं होती, तो व्यक्ति को बहुत दुख होता है।

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प्रश्न 11.
कविता में ‘सुरंग सुधियाँ’ शब्द से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
कवि ने सुरंग सुधियों को अति सुंदर तथा मन को आकर्षक लगने वाली बताया है। ये मनभावन होती हैं। प्रत्येक व्यक्ति के मन में न जाने कितनी यादें एवं सुख के क्षण छिपे रहते हैं। उनकी याद एक सुखद गंध की तरह महकती रहती है। मानव को ये यादें किसी जीवित क्षण के समान ही प्रतीत होती हैं।

पिठित काव्यांश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

दिए गए काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पी प्रश्नों के उचित विकल्प चुनकर लिखिए –

1. छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
दुविधा-हत साहस हे, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।
दुख है न चांद खिला शरद-रात आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर,
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।

(क) दुख के समय में किन यादों से मन और दुखी हो जाता है?
(i) बुरी यादों से
(ii) सुखभरी यादों से
(iii) कड़वी यादों से
(iv) बचपन की यादों से
उत्तर :
(ii) सुखभरी यादों से

(ख) कवि का जीवन कैसा है?
(i) शान-शौकत से भरा
(ii) सुखमय
(iii) धन से परिपूर्ण
(iv) मान-सम्मान से हीन
उत्तर :
(iv) मान-सम्मान से हीन

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

(ग) प्रभुता की इच्छा क्या है?
(i) लक्ष्य को प्राप्त करना
(ii) मृगतृष्णा
(iii) वास्तविकता को जानना
(iv) धोखे में रहना
उत्तर :
(ii) मृगतृष्णा

(घ) ‘हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
(i) हर सुख के पीछे दुख छिपा होता है।
(ii) दुख के बाद सुख आता है।
(iii) निराशा में आशा का होना।
(iv) बचपन के बाद यौवन का आना
उत्तर :
(i) हर सुख के पीछे दुख छिपा होता है।

(ङ) कवि किसकी पूजा के लिए प्रेरित करता है?
(i) मन की
(ii) तन की
(iii) वास्तविकता की
(iv) सुख की
उत्तर :
(iii) वास्तविकता की

काव्यबोध संबंधी बहुविकल्पी प्रश्न – 

काव्य पाठ पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्नों के उत्तर वाले विकल्प चुनिए –

(क) ‘छाया’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
(i) परछाईं
(ii) भविष्य
(iii) आशा
(iv) सुखद यादें
उत्तर :
(iv) सुखद यादें

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

(ख) ‘चाँदनी’ किसका प्रतीक है?
(i) प्रेम भरे क्षणों का
(ii) घृणा का
(iii) प्रकाश का
(iv) अंधकार का
उत्तर :
(i) प्रेम भरे क्षणों का

(ग) ‘यामिनी बीतने’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
(i) दुख का समय व्यतीत हो जाना
(ii) सुख के क्षणों का व्यतीत हो जाना
(iii) अंधकार का मिट जाना
(iv) सुबह होना
उत्तर :
(ii) सुख के क्षणों का व्यतीत हो जाना

(घ) कवि को क्या नहीं दिखाई देता?
(i) साहस
(ii) दुविधा
(iii) पंथ
(iv) चाँदनी
उत्तर :
(iii) पंथ

छाया मत छूना Summary in Hindi

कवि-परिचय :

गिरिजाकुमार माथुर आधुनिक युग के प्रतिभा-संपन्न रचनाकार थे। ये प्रमुख रूप से प्रयोगवादी कवि माने जाते हैं, लेकिन इनकी कविताएँ मात्र प्रयोग के लिए न होकर जीवन की यथार्थ अनुभूति के चित्रण के लिए हैं। कोमलता एवं मधुरता के प्रति आकर्षक होने के कारण माथुर जी की कविता में छायावादी शैली का सौंदर्य भी प्राप्त होता है। माथुर जी का जन्म मध्यप्रदेश राज्य के गुना नामक स्थान पर सन 1918 ई० में हुआ था। इनके पिता ब्रज भाषा के प्रसिद्ध कवि थे। परिवार का स्तर साधारण था।

यही कारण है कि इनकी कविताओं एवं नाटकों में प्रायः सामान्य स्तर के जीवन का ही चित्रण रहता है। इनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर हुई। इन्होंने एम०ए०, एल०एल०बी० तक शिक्षा प्राप्त की। माथुर जी ने झाँसी में रहकर आकाशवाणी में भी कार्य किया। वे दूरदर्शन से भी संबंधित रहे। सन 1994 ई० में इनका निधन हो गया। माथुर जी में कविता लिखने की प्रतिभा जन्मजात थी।

पहले यह प्रतिभा कविता पढ़ने की अत्यधिक रुचि के रूप में प्रकट हुई। बाद में इन्होंने केवल 13 वर्ष की आयु में ही कविता लिखनी आरंभ कर दी। इनकी प्रमुख रचनाएँ मंजीर, नाश और निर्माण, धूप के दान, भीतरी नदी की यात्रा, शिलापंख चमकीले हैं। ‘पृथ्वी-कल्प’ इनका प्रतीकात्मक नाट्य-काव्य, जन्म कैद नाटक तथा नई कविता सीमाएँ और संभावनाएँ इनके द्वारा लिखित आलोचनात्मक रचनाएँ हैं।

माथुर जी ने रेडियो फ़ीचर, गीति नाट्य और प्रतीकात्मक नाटकों की भी रचना की है। माथुर जी एक भावुक कलाकार हैं। इनकी रचनाओं में व्यक्तिगत अनुभूतियों की बहुलता है। सरसता, मधुरता, सौंदर्य और प्रेम के प्रति आकर्षण इनकी कविताओं की अन्य प्रमुख विशेषताएँ हैं। इनकी कुछ कविताओं में यथार्थपरक दृष्टि का भी उन्मेष है। जीवन के कटु और मधुर रूप का भी चित्रण है।

इनकी कविता पर छायावाद का स्पष्ट प्रभाव है। इन्होंने रोमांस और संताप के भावों को अपनी कविता में स्थान दिया है। इन्होंने संवेदना और पीड़ा के भावों को महत्वपूर्ण माना है। इनमें प्रकृति के प्रति विशेष लगाव-सा है। मानवीकरण करते हुए इन्होंने प्रकृति से संबंधित अनेक चित्र बनाए हैं कंटकित बेरी करौंदे, महकते हैं झाब झोरे। सुन्न हैं, सागौन वन के, कान जैसे पात चौड़े॥

दूह, टीले टौरियों पर, धूप-सूखी घास भूरी। हाड़ टूटे देह कुबड़ी, चुप पड़ी है गैल बूढ़ी॥ कवि ने अपनी कविता में स्थान-स्थान पर आँचलिक शब्दावली का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया है। इन्होंने विषय की मौलिकता को बनाए रखने के लिए विशेष वातावरण की सृष्टि की है। इन्होंने मुक्त छंद में ध्वनि साम्य के प्रयोग के कारण तुक के बिना भी कविता में संगीतात्मकता को उत्पन्न किया है।

उनकी कविताओं में भाषा के दो रंग विद्यमान हैं। जहाँ रोमानी कविताओं में ये छोटी-छोटी ध्वनि वाले शब्दों का प्रयोग करते हैं, वहाँ क्लासिक स्वभाव वाली कविताओं में लंबी और गंभीर ध्वनि वाले शब्दों को महत्व देते हैं। इनकी भाषा प्रयोगवादी कविता के लिए अनुकूल है। इन्होंने नए प्रतीकों, बिंबों और उपमानों का प्रयोग किया है। इन्होंने देशी-विदेशी शब्दों का भी खुलकर प्रयोग किया है हाँडियाँ, मचिया, कठौते, लट्ठ, गूदड़, बैल, बक्खर।

राख, गोबर, चरी, औंगन, लेज, रस्सी, हल, कुल्हाड़ी। सूत की मोटी फताई, चका, हंसिया और गाड़ी। कवि की भाषा सहज और सरल है। उसमें सरसता विद्यमान है। कवि ने जहाँ भी अलंकारों का प्रयोग किया है, वे अति स्वाभाविक है। वर्णनात्मक शैली से इन्हें विशेष लगाव है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

कविता का सार :

छाया मत छूना कविता मानव-जीवन के संदर्भो से जुड़ी हुई है। हमारे जीवन में सुख आते हैं, तो दुख भी अपने रंग दिखाते हैं। मनुष्य को सुख अच्छे लगते हैं, तो दुख परेशान करने वाले। व्यक्ति पुराने सुखों को याद करके वर्तमान के दुखों को और अधिक बढ़ा लेते हैं। कवि की दृष्टि में ऐसा करना उचित नहीं है। इससे दुखों की मात्रा बढ़ जाती है। सुख हमें सदा अच्छे लगते हैं। उनके द्वारा मिली प्रसन्नताएँ मन पर देर तक छायी रहती हैं।

प्रेम भरे क्षण भुलाने की कोशिश करने पर भी भूलते नहीं हैं। लेकिन मनुष्य सुखों के पीछे जितना अधिक भागता है, उतना ही अधिक भ्रम के जाल में उलझता जाता है। हर सुख के बाद दुख अवश्य आता है। हर चाँदनी के बाद अमावस्या भी छिपी होती है। मनुष्य को जीवन की वास्तविकता को समझना चाहिए; उसे स्वीकार करना चाहिए। मनुष्य के मन में छिपा साहस का भाव जब छिप जाता है, तो उसे जीवन की राह दिखाई नहीं देती। मानव मन में छिपे दुखों की सीमा का तो पता ही नहीं है। हर व्यक्ति को जीवन में सबकुछ नहीं मिलता।

जो हमें वर्तमान में प्राप्त हो गया है, हमें इसी में संतुष्ट होना चाहिए। जो अभी प्राप्त नहीं हुआ, उसे भविष्य में प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए। लेकिन पुरानी यादों से स्वयं को चिपकाए रखने का कोई लाभ नहीं है। उनसे दुख बढ़ते हैं, घटते नहीं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

JAC Class 10 Hindi यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Textbook Questions and Answers

1. यह दंतुरित मुसकान

प्रश्न 1.
बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा। वह उसके सुंदर और मोहक मुख पर छाई मनोहारी मुसकान देखकर प्रसन्नता से भर उठा। उसे ऐसा लगा कि धूल-धूसरित वह चेहरा किसी तालाब में खिले सुंदर कमल के फूल के समान है, जो उसकी झोंपड़ी में आ गया है। कवि उसे एकटक देखता रह गया। उसकी मुसकान ने उसे अपनी पत्नी के प्रति कृतज्ञात प्रकट कर देने के लिए विवश कर दिया।

प्रश्न 2.
बच्चे की मुसकान और एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में क्या अंतर है?
उत्तर :
बच्चे की मुसकान में बनावटीपन नहीं होता; वह सहज और स्वाभाविक होती है। लेकिन किसी बड़े व्यक्ति की मुसकान बनावटी हो सकती है। वह समय और स्थिति के अनुसार बदलती रहती है। बच्चे की मुसकान में निश्छलता रहती है, पर बड़े व्यक्ति की मुसकान में हर समय स्वाभाविकता नहीं होती।

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प्रश्न 3.
कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को किन-किन बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है ?
उत्तर :
कवि ने बच्चे की मुसकान से चाक्षुक और मानस बिंबों की सुंदर सृष्टि की है। छोटे-छोटे दाँतों से युक्त उसकी मुसकान किसी मृतक को पुन: जीवन देने की क्षमता रखती है। उसके धूल-धूसरित शरीर के अंग कमल के सुंदर फूल के समान प्रतीत होते हैं। पत्थर भी मानो उसके स्पर्श को पाकर जल का रूप पा गए होंगे। चाहे कोई कितना भी कठोर क्यों न रहा हो; बाँस या बबूल के समान ही उसका रूप क्यों न हो, पर वे सब उसे छूकर शेफालिका के फूलों के समान कोमल हो गए होंगे।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल रहे जलजात।
(ख) छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल बाँस था कि बबूल?
उत्तर :
(क) कवि को ऐसा लगा कि उस छोटे बच्चे की अपार सुंदरता ईश्वरीय वरदान के समान है। धूल-धूसरित अंग-प्रत्यंगों वाला वह बालक जैसे तालाब में खिले कमल के समान मोहक और मनोरम था, जो उसकी झोंपड़ी में आकर बस गया था।
(ख) उस छोटे दंतुरित बच्चे का ऐसा मनोरम रूप है कि चाहे कोई कितना भी कठोर क्यों न रहा हो, पर उसे देख मन-ही-मन प्रसन्नता से भर उठता है। चाहे वह बाँस के समान हो या काँटों भरे कीकर के समान; उसकी सुदंरता से प्रभावित होकर वह मुसकराने के लिए विवश हो जाता है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 5.
मुसकान और क्रोध भिन्न-भिन्न भाव हैं। इनकी उपस्थिति से बने वातावरण की भिन्नता का चित्रण कीजिए।
उत्तर :
मुसकान और क्रोध दोनों मानव-मन में उत्पन्न होने वाले भाव हैं। मुसकान एक सुखद मनोभाव है, तो क्रोध एक मनोविकार है। मुसकान में व्यक्ति अपने हृदय के सुखद भावों को प्रकट करता है; क्रोध में वह अतृप्ति, क्लेश और पीड़ा के भावों को प्रकट करता है। मुसकान सदा सुखदायी होती है, जबकि क्रोध दुखदायी। क्रोध उन सभी को दुख देता है, जो-जो उसकी समीपता को प्राप्त करते हैं। मुसकान से किसी के भी हृदय को जीता जा सकता है, पर क्रोध से अपनों को भी पलभर में दुश्मन बनाया जा सकता है।

प्रश्न 6.
‘दंतुरित मुसकान’ से बच्चे की उम्र का अनुमान लगाइए और तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर :
बच्चे की उम्र लगभग आठ-नौ महीने से लेकर एक वर्ष के बीच होनी चाहिए। उसके मुँह में छोटे-छोटे दाँत हैं, जो सामान्यतः इसी आयु में निकलते हैं। वह कवि को पहचानता नहीं, पर उसके हृदय में उत्सुकता का भाव है। वह उसे बुलाना चाहता है, पर अनजान होने के कारण बुलाता नहीं बल्कि कनखियों से उसकी ओर देखता है। प्रायः ऐसी क्रियाएँ इस उम्र के बच्चे ही करते हैं।

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प्रश्न 7.
बच्चे से कवि की मुलाकात का जो शब्द-चित्र उपस्थित हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
वह बच्चा अत्यंत सुंदर है। वह छोटा-सा है; एक साल से भी छोटा होगा। उसका चेहरा कमल के फूल के समान मोहक है। वह मिट्टी में खेलता है; कच्चे आँगन में इधर-उधर रेंगता है। उसके सारे शरीर पर धूल लगी हुई है। कवि लंबे समय के बाद घर लौटा है। बच्चे के बारे में उसे अपनी पत्नी से पता लगा है। वह भाव-विभोर है और एकटक उस बच्चे की ओर निहार रहा है।

वह उसकी मोहक ‘दंतुरित मुसकान’ पर मंत्र-मुग्ध है। बच्चा उसे पहचानना चाहता है, पर पहचान नहीं पाता। उसने कवि को पहली बार देखा है, इसलिए वह कनखियों से अतिथि को देखकर मुस्कराता है। कवि को लगता है कि इस बच्चे की मुसकान पत्थर को भी पिघला देने की क्षमता रखती है। कठोर-से-कठोर व्यक्ति भी इसकी मोहक मुसकान पर स्वयं को न्योछावर कर सकता है।

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
आप जब भी किसी बच्चे से पहली बार मिलें तो उसके हाव-भाव, व्यवहार आदि को सूक्ष्मता से देखिए और उस अनुभव को कविता या अनुच्छेद के रूप में लिखिए।
उत्तर :
कल मैं अपनी सहेली के घर गई थी। वह मेरी कक्षा में ही पढ़ती है। जब मैं उसके साथ उसके घर के आँगन में बैठी थी, तो मैंने देखा कि लगभग डेढ़-दो वर्ष की एक छोटी-सी लड़की दरवाज़े की ओट में खड़ी होकर एकटक मुझे देख रही थी। उसने अपने एक हाथ की उँगली मुँह में डाल रखी थी और दूसरे हाथ से दरवाज़ा थाम रखा था। मैंने इशारे से उसे बुलाया, पर वह वहीं खड़ी रही। मेरी सहेली ने बताया कि वह उसकी भतीजी है, जो दो दिन पहले ही दिल्ली से आई है। उसका नाम सलोनी था। मैंने उसे नाम से पुकारा।

वह मुस्कराई अवश्य, पर वहाँ से आगे नहीं बढ़ी। मैं अपनी जगह से उठकर जैसे ही उसकी तरफ़ बढ़ी, वह झट से भीतर भाग गई। मैं वापस अपनी जगह पर आकर बैठ गई। कुछ देर बाद मैंने फिर उधर देखा, तो वह वहीं खड़ी थी। मेरी सहेली ने उसे बुलाया, तो वह हमारे पास आ गई। मैंने उसे पुचकारा; उसका नाम पूछा। वह चुप रही; बस धीरे-धीरे मुस्काती रही।

मैंने उससे पूछा कि क्या उसे गाना आता है, तो उसने हाँ में सिर हिलाया और फिर धीरे से पूछा कि क्या वह गाना सुनाए? मेरे हाँ कहने के बाद उसने गाना शुरू किया और एक के बाद एक न जाने कितनी देर तक वह आधे-अधूरे गाने गाती रही; ठुमकती रही। उसकी झिझक दूर हो गई थी। जब मैं चलने लगी, तो वह मेरी उँगली थाम कर मेरे साथ चलने को तैयार थी। कुछ देर पहले मुझसे शर्माने और झिझकने वाली सलोनी अब मेरे साथ थी। उसके चेहरे पर झिझक के भाव नहीं थे; उसके व्यवहार में भय नहीं था। वह बहुत मीठा और अच्छा बोलती थी।

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प्रश्न 2.
एन० सी० ई० आर० टी० द्वारा नागार्जुन पर बनाई गई फ़िल्में देखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता लें।

2. फसल

प्रश्न 1.
कवि के अनुसार फसल क्या है?
उत्तर :
कवि के अनुसार फसल मनुष्य की लगन और शारीरिक परिश्रम के साथ-साथ प्रकृति के जादुई सहयोग का परिणाम है। जब मनुष्य और प्रकृति मिलकर कार्य करते हैं, तभी फसल होती है। यह लाखों करोड़ों हाथों के स्पर्श की महिमा और गरिमा है।

प्रश्न 2.
कविता में फसल उपजाने के लिए आवश्यक तत्वों की बात कही गई है। वे आवश्यक तत्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
कविता में फसल उपजाने के लिए जिन आवश्यक तत्वों की बात कही है, वे हैं-‘नदियों के पानी का जादू, करोड़ों हाथों का परिश्रम, मिट्टी के अद्भुत गुण, सूर्य की किरणें और हवा।

प्रश्न 3.
फसल को ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा’ और ‘महिमा’ कहकर कवि क्या व्यक्त करना चाहता है?
उत्तर :
कवि ने लाखों-करोड़ों लोगों के द्वारा किए जाने वाले परिश्रम और उनकी एकनिष्ठ लगन को ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा और ‘महिमा’ कहा है। कवि कहता है कि फसल उत्पन्न करना किसी एक व्यक्ति का काम नहीं है; न जाने कितने दिन-रात मेहनत करके वे इसे उगाने का गौरव प्राप्त करते हैं।

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प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) रूपांतर है सूरज की किरणों का सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!
उत्तर :
कवि कहता है कि फसल केवल मनुष्य के परिश्रम का परिणाम नहीं है। प्रकृति भी इसमें सम्मिलित है। सूर्य की किरणें इसे प्रकाश देती हैं; अपनी ऊष्मा और ऊर्जा प्रदान करती हैं, जिससे फसलें उत्पन्न होती हैं। फसल प्रकृति से अपना भोजन प्राप्त करती हैं और बढ़ती हैं। हवा उन्हें थिरकन प्रदान करती है, तभी उसमें बीज बनता है और दानों के रूप में हमें प्राप्त होता है।

रचमा और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 5.
कवि ने फसल को हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म कहा है –
(क) मिट्टी के गुण-धर्म को आप किस तरह परिभाषित करेंगे?
(ख) वर्तमान जीवन शैली मिट्टी के गुण-धर्म को किस-किस तरह प्रभावित करती है?
(ग) मिट्टी द्वारा अपना गुण-धर्म छोड़ने की स्थिति में क्या किसी भी प्रकार के जीवन की कल्पना की जा सकती है? (घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हमारी क्या भूमिका हो सकती है?
उत्तर :
(क) मिट्टी का गुण-धर्म इसकी उपजाऊ-शक्ति है, जो इसमें मिले अनेक तत्वों के कारण होती है। उन तत्वों की उपस्थिति के कारण ही मिट्टी भिन्न-भिन्न रंगों को प्राप्त करती है; हल्की-हल्की गंध प्राप्त करती है। वे तत्व ही फसल को बढ़ने में सहायता देते हैं।

(ख) वर्तमान जीवन-शैली मिट्टी को प्रदूषित कर रही है। जाने-अनजाने तरह-तरह के रासायनिक पदार्थ इसमें मिलाए जाते हैं, जिस कारण इसके गुण बदल जाते हैं। उद्योग-धंधे और प्रदूषित जल इसे बिगाड़ रहे हैं । तरह-तरह के कीटनाशक इसे खराब कर रहे हैं। इनके प्रयोग से भले ही हमें फसल कुछ अधिक प्राप्त हो जाती है, पर इससे मिट्टी की प्रकृति बदल रही है।

(ग) मिट्टी के अपने स्वाभाविक गुण-धर्म को छोड़ देने से जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। यदि मिट्टी फसल उगाने का गुण-धर्म त्याग दे, तो हमारा जीवन असंभव-सा हो जाएगा क्योंकि सभी प्राणियों का जीवन फसल पर ही निर्भर करता है।

(घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हमारी भूमिका अति महत्वपूर्ण हो सकती है। हम इसे प्रदूषित होने से बचा सकते हैं। इसमें मिलाए जाने वाले रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, खरपतवार नाशियों के स्थान पर हम प्राकृतिक पदार्थों का प्रयोग कर सकते हैं। इसमें मिलने वाले औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थों की रोकथाम कर सकते हैं।

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पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया के माध्यमों द्वारा आपने किसानों की स्थिति के बारे में बहुत कुछ सुना, देखा और पढ़ा होगा। एक सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था के लिए आप अपने सुझाव देते हुए अखबार के संपादक को पत्र लिखिए।
उत्तर :
सेवा में,
प्रमुख संपादक,
दैनिक भास्कर,
लखनऊ।

विषय : सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था हेतु सुझाव

मान्यवर,
मैं आपके समाचार-पत्र के माध्यम से सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था हेतु कुछ सुझाव देना चाहता हूँ, जो किसानों के लिए निश्चित रूप से महत्वपूर्ण सिद्ध होंगे। हमारा देश कृषि-प्रधान देश है। इसकी लगभग 80% जनता गाँवों में रहती है और पूरी तरह से कृषि पर आश्रित है।

सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था के लिए खेती योग्य अधिकतर भूमि पर हमें फसल उगाने की योजनाएँ बनानी चाहिए। परंपरागत पद्धति को त्यागकर वैज्ञानिक आधार पर खेती करनी चाहिए। हमें समझना होगा कि हर खेत की मिट्टी एक-सी फसल उगाने योग्य नहीं होती। इसलिए कृषि-संस्थानों से मिट्टी की परख करवाकर हमें जान लेना चाहिए कि वह किस प्रकार की फसल के लिए अधिक उपयोगी है।

यदि उसमें किसी विशेष तत्व की कमी है, तो उसे रासायनिक पदार्थों के प्रयोग से पूरा करना चाहिए। हमें फसल के लिए उन्नत और संकरण से प्राप्त बीज ही बोने चाहिए, जो कृषि-संस्थानों से प्राप्त हो जाते हैं। समय-समय पर मान्यता प्राप्त खरपतवार नाशियों और कीटनाशियों का प्रयोग करना चाहिए। सिंचाई के लिए परंपरागत तरीके छोड़कर स्पिंरकरज़ का प्रयोग करना चाहिए। इससे सारे खेत की सिंचाई एक समान होती है। उर्वरकों के साथ-साथ कंपोस्ट और वर्मीकंपोस्ट का प्रयोग करना चाहिए। इससे फसल की प्राप्ति अच्छी होती है।

सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था के अंतर्गत फूलों की खेती की ओर भी ध्यान देना चाहिए। वर्षभर में केवल दो फसलों पर निर्भर न रहकर तीन-चार अंतराफसलें प्राप्त करनी चाहिए। कीटनाशियों के उचित प्रयोग से भी हम अपनी फसलों को नष्ट होने से बचा सकते हैं। आशा है कि आप अपने प्रतिष्ठित समाचार-पत्र में इन सुझावों को अवश्य स्थान देंगे।
भवदीय,
राकेश भारद्वाज

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प्रश्न 2.
फसलों के उत्पादन में महिलाओं के योगदान को हमारी अर्थव्यवस्था में महत्व क्यों नहीं दिया जाता है ? इस बारे में कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अध्यापक-अध्यापिका की सहायता से करें।

JAC Class 10 Hindi यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि ने स्वयं को प्रवासी क्यों कहा है ?
उत्तर :
नागार्जुन प्रायः घूमते रहते थे। वे फक्कड़ और घुमक्कड़ थे। राजनीति और घुमक्कड़ी के शौक के कारण प्रायः अपने घर से दूर रहते थे इसलिए उन्होंने स्वयं को प्रवासी कहा है। साहित्य जगत में भी उन्हें ‘यात्री’ के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 2.
‘दंतुरित मुसकान’ क्या-क्या कर सकती थी ?
उत्तर :
‘दंतुरित मुसकान’ किसी कठोर-से-कठोर व्यक्ति के हृदय को भी कोमलता से भर सकती थी। वह किसी मृतक को जीवित कर सकती थी। उसकी सुंदरता से प्रभावित होकर पत्थर भी पिघलकर पानी बन सकता था।

प्रश्न 3.
कवि ने फसल के द्वारा किन-किन में आपसी सहयोग का भाव व्यक्त किया है?
उत्तर :
कवि ने फसल के द्वारा मनुष्य के शारीरिक बल, परिश्रम तथा प्रकृति में छिपी अथाह ऊर्जा के आपसी सहयोंग का भाव व्यक्त किया है। जब ममुष्य की मेहन्त और प्रकृति का सहयोग आपस में मिल जाते हैं, तो फसल उत्पन्न होती है।

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प्रश्न 4.
कवि ने मुसकान के लिए दंतुरित विशेषण का प्रयोग क्यों किया है ?
उत्तर :
मुसकान अपने-आप में ही सभी को आकर्षित कर लेती है, परंतु एक नन्हे से बालक के छोटे-छोटे दाँतों से युक्त मुसकान उसे और भी विशिष्ट बना देती है।

प्रश्न 5.
‘छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल रहे जलजात’ का आशय स्पष्ट करो।
उत्तर :
धूल-मिट्टी से सने बालक के शरीर को देखकर कवि को लगता है कि जैसे कोई कमल सरोवर को छोड़कर उसके घर में आकर खिल गया है। अपने नन्हें से बच्चे को देख कवि अति प्रसन्न है।

प्रश्न 6.
पाषाण का पिघलना और जल बनना से कवि का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
पत्थर या पाषाण पिघलने का अर्थ है-‘ऐसा व्यक्ति जो कोमल भावनाओं से दूर है, इस सुंदर बालक का कोमल स्पर्श पाकर भावुक बन जाता है।’ कवि के अनुसार बालक की मुसकान से कठोर हृदय भी पिघलकर जल बन जाता है।

प्रश्न 7.
‘दंतुरित मुसकान’ कविता में किस भाव की अभिव्यक्ति है?
उत्तर :
इस कविता में एक ऐसे पिता के मन के भावों की अभिव्यक्ति है, जिसने काफ़ी समय के बाद अपने पुत्र को देखा है। ये भाव अपने शिशु को देखकर पिता के हृदय में स्नेह से परिपूर्ण होकर जागते हैं। शिशु की छोटी-से-छोटी भाव-भंगिमा भी पिता को अभिभूत कर देती है। वात्सल्स तथा स्नेहमयी अभिव्यक्ति इस कविता का मुख्य भाव है।

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प्रश्न 8.
कवि और शिशु के बीच माध्यम कौन है?
उत्तर :
कवि तथा शिशु के बीच माध्यम है-‘शिशु की माँ’। जो दोनों के बीच एक कड़ी का काम करती है। दोनों को एक-दूसरे के साथ
पिता-पुत्र के संबंध में बाँधती है।

प्रश्न 9.
कवि शिशु की माँ तथा शिशु को धन्य क्यों कहता है ?
उत्तर :
कवि जब अपने शिशु को काफी समय के बाद देखता है, तो उसे बड़ी प्रसन्नता होती है। कवि की अनुपस्थिति में शिशु की माँ ने ही उसका पालन-पोषण किया। उसके कारण ही शिशु की दंतुरित मुसकान को देखने का कवि को सौभाग्य मिला। यदि माँ न होती, तो शिशु का अस्तित्व ही न होता और यदि ये दोनों न होते, तो कवि को यह खुशी देखने को न मिलती। इसी कारण कवि ने माँ तथा शिशु दोनों को धन्य कहा है।

प्रश्न 10.
‘उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क’ में मधुपर्क से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
नन्हें शिशु के समुचित विकास के लिए माँ पाँच पौष्टिक पदार्थों को मिलाकर अपनी उँगलियों से उसे चटाती है। मधुपर्क जिन पाँच वस्तुओं के मिश्रण से बनता है, वे हैं-दूध, दही, शहद, घी और जल। मधुपर्क की पौष्टिकता के साथ-साथ माँ की उँगलियों में जो स्नेहरूपी अमृत है, वह भी महत्वपूर्ण है।

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प्रश्न 11.
कवि ने ‘फसल’ के निर्माण में किसान के परिश्रम को अधिक महत्वपूर्ण क्यों कहा है?
उत्तर :
फसल के निर्माण में प्रकृति और किसान दोनों का ही योगदान होता है। मनुष्य को प्रकृति के अनुसार चलकर अधिक उत्पादन मिल सकता है। फिर भी कृषक का अथक परिश्रम अधिक महत्वपूर्ण है। किसान बीज बोता है; जुताई-सिंचाई करता है; धैर्य के साथ फसल की सेवा करता है। समय के अनुसार उसमें खाद डालता है। जानवरों से उसकी रक्षा करता है। इसी कारण किसान फसल निर्माण की प्रक्रिया में अधिक महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 12
हजार-हजार खेतों की मिट्टी के गुण-धर्म से कवि का क्या आशय है?
उत्तर :
फसल मिट्टी में ही उगती है। तरह-तरह की फसल के लिए मिट्टी के मुण भी अलग-अलग होते हैं। हर तरह की फसल एक 4 ही खेत में नहीं उगाई जा सकती। मिट्टी के खनिज तत्व अलग-अलग होते हैं। मिट्टी या खेत की उपजाऊ-शक्ति भी एक-सी नहीं होती। खेतों की उर्वरा शक्ति के अनुसार ही उनमें बीज बोए जाते हैं और तरह-तरह की फसल उगाई जाती है।

प्रश्न 13.
फसल कविता दवारा कवि हमें क्या संदेश देना च –
उत्तर :
कवि का मानना है कि फसल मानव और प्रकृति के सहयोग से लहलहाती है। प्रकृति के अनेक तत्वों का सहयोग ही किसान के परिश्रम को फसल के रूप में उत्पन्न करता है। एक-दूसरे के अभाव में फसल कदापि तैयार नहीं हो सकती। मानव तथा प्रकृति एक-दूसरे के पूरक हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

प्रश्न 14.
प्रकृति के कौन-कौन से तत्व फसल के लिए अपना योगदान देते हैं?
उत्तर :
खेतों की मिट्टी, उसमें समाहित खनिज तत्व, पानी, सूरज की किरणें, हवाएँ तथा प्रकृति के सहयोग से प्राप्त विभिन्न प्रकार के बीज ये सभी तत्व प्रकृति हमें प्रदान करती हैं, ताकि हमें तरह-तरह की फसल मिल सके।

प्रश्न 15.
कवि ने फसल को जादू क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि के अनुसार फसल एक जादू है। एक बीज में से जो अंकुर फूटकर बाहर निकलता है; जिसे मिट्टी, नदियों का पानी, सूर्य की ऊर्जा, हवा तथा किसान का सहयोग प्राप्त है, वह ईश्वर का जादू है। हर बीज अलग-अलग तरह का तथा अलग तरह की फसल पैदा करने में सक्षम है। यह एक चमत्कार से कम नहीं है।

पठित धनाश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न – 

दिए गए काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पी प्रश्नों के उचित विकल्प चुनकर लिखिए –

1. तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात….
छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल?
तुम मुझे पाए नहीं पहचान?

(क) प्रस्तुत काव्यांश में कवि किसे संबोधित कर रहा है?
(i) बालक को
(ii) वृद्ध को
(iii) स्त्री को
(iv) युवक को
उत्तर :
(i) बालक को

(ख) बच्चे का अंग-प्रत्यंग कैसा है?
(i) स्वच्छ
(ii) कठोर
(iii) धूल-मिट्टी से सना
(iv) काला
उत्तर :
(iii) धूल-मिट्टी से सना

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(ग) बच्चे की मुसकान किसका संदेश देती है?
(i) मृत्यु का
(ii) जीवन का
(iii) दुख का
(iv) चिंताओं का
उत्तर :
(ii) जीवन का

(घ) कवि के अनुसार कठिन पाषाण किस प्रकार पिघला होगा?
(i) तप कर
(ii) बच्चे के स्पर्श से
(ii) बच्चे के प्राणों का स्पर्श पाकर
(iv) जल कर
उत्तर :
(iii) बच्चे के प्राणों का स्पर्श पाकर

(ङ) बच्चे के स्पर्श से कौन-से फूल झड़ने लगेंगे?
(i) बबूल के
(ii) गुलाब के
(iii) गुलमोहर के
(iv) शेफालिका के
उत्तर :
(iv) शेफालिका के

2. हजार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म फसल क्या है?
और तो कुछ नहीं है वह नदियों के पानी का जादू है वह हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा का थिरकन का!
(क) फसल में कितने खेतों की मिट्टियों के गुण-धर्म मौजूद हैं?
(i) दो खेतों की
(ii) सैकड़ों खेतों की
(iii) हज़ारों खेतों की
(iv) लाखों खेतों की
उत्तर :
(iii) हज़ारों खेतों की

(ख) फसल किसका जादू है?
(i) अनाज का
(ii) झरनों के पानी का
(iii) झीलों के पानी का
(iv) नदियों के पानी का
उत्तर :
(iv) नदियों के पानी का

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(ग) फसल किसके स्पर्श की महिमा है?
(i) परिश्रमी हाथों के स्पर्श की
(ii) पानी के स्पर्श की
(iii) बच्चे के स्पर्श की
(iv) मिट्टी के स्पर्श की
उत्तर :
(i) परिश्रमी हाथों के स्पर्श की

(घ) कवि ने मिट्टी की किन विशेषताओं को प्रकट किया है?
(i) खुशबू की
(ii) काले, भूरे और संदले रंगों की
(iii) उपजाऊपन की
(iv) नमी की
उत्तर :
(ii) काले, भूरे और संदले रंगों की

(ङ) फसल किसका रूपांतर है?
(i) परिश्रम का
(ii) पानी का
(iii) सूर्य की किरणों का
(iv) अनाज का
उत्तर :
(iii) सूर्य की किरणों का

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काव्यबोध संबंधी बहुविकल्पी प्रश्न –

काव्य पाठ पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्नों के उत्तर वाले विकल्प चुनिए –

(क) कवि और बच्चे के बीच का माध्यम कौन है?
(i) कवि की माँ
(ii) बच्चे की माँ
(iii) मुसकान
(iv) बच्चे का भोलापन
उत्तर :
(ii) बच्चे की माँ

(ख) ‘मधुपर्क’ किसका प्रतीक है?
(i) बच्चे की मुसकान का
(ii) माँ के प्यार का
(iii) कमल की सुंदरता का
(iv) पालन-पोषण का
उत्तर :
(ii) माँ के प्यार का

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(ग) कवि के अनुसार फसल क्या है?
(i) परिश्रम का फल
(ii) अनाज का ढेर
(iii) जादू
(iv) खेत-खलिहान
उत्तर :
(iii) जादू

(घ) फसल को थिरकना कौन सिखाता है?
(i) हवा
(ii) किसान
(iii) मिट्टी
(iv) पानी
उत्तर :
(i) हवा

यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Summary in Hindi

कवि-परिचय : वैद्यनाथ मिश्र ‘यात्री’ जो ‘नागार्जुन’ के नाम से विख्यात हुए, हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध प्रगतिशील कवि एवं कथाकार हैं। आधनिक कबीर के रूप में विख्यात नागार्जन घुमंत व्यक्ति थे। इनका जन्म 1911 में बिहार के दरभंगा जिले के सतलखा गाँव में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय संस्कृत पाठशाला में हुई थी। बाद में ये संस्कृत अध्ययन के लिए बनारस और कोलकाता भी गए। सन 1936 में नागार्जुन अध्ययन के लिए श्रीलंका गए और वहीं बौद्ध धर्म में दीक्षित हो गए। वर्ष 1938 में वे स्वदेश वापस आ गए।

नागार्जुन अपने घुमक्कड़पन और फक्कड़पन के लिए प्रसिद्ध रहे। शिक्षा-प्राप्ति के दौरान उनकी भेंट मैथिली के प्रकांड पंडित सीताराम झा से हुई और उन्होंने उनसे भाषा, छंद, अलंकार आदि का विशेष ज्ञान प्राप्त किया। बनारस में रहते हुए नागार्जुन संस्कृत के साथ-साथ मैथिली में भी साहित्य-रचना करने लगे। बीस वर्ष की अवस्था में नागार्जुन का विवाह हुआ। लेकिन अध्ययन, घुमक्कड़ी और राजनीति में रुचि होने के कारण ये परिवार की देख-रेख नहीं कर सके। नागार्जुन के चार पुत्र और दो पुत्रियाँ थीं।

मैथिल समाज में उन्हें समुचित आदर नहीं मिला; क्योंकि एक तो वे समुद्र पार की यात्रा कर आए थे, दूसरे संन्यास भ्रष्ट थे और तीसरे बौद्ध होने के कारण उनकी खान-पान की पवित्रता नष्ट हो गई थी। वर्ष 1941 में नागार्जुन पुनः घर लौटे। लगभग पाँच दशक तक इन्होंने अनेक हिंदी साहित्य को समृद्ध करने के बाद 5 नवंबर, 1998 को नागार्जुन का देहांत हुआ। साहित्य-रचना-नागार्जुन ने वर्ष 1935 में हिंदी मासिक ‘दीपक’ में काम किया तथा वर्ष 1942-43 में ‘विश्व बंधु’ साप्ताहिक का संपादन किया।

ये अपनी मातृभाषा मैथिली में ‘यात्री’ उपनाम से रचना करते थे। इनके कविता-संग्रह ‘चित्रा’ से मैथिली में नवीन भाव बौद्ध का प्रारंभ माना जाता है। संस्कृत में चाणक्य उपनाम से इन्होंने अनेक कविताएँ लिखीं। वर्ष 1930 से विधिवत लेखन करते हुए नागार्जुन ने हिंदी को महत्वपूर्ण रचनाएँ दीं…’ सतरंगे पंखों वाली’, ‘प्यासी पथराई आँखें’, ‘युगधारा’, ‘तालाब की मछलियाँ’, ‘हज़ार-हजार बाहों वाली’, ‘तुमने कहा था’, ‘पुरानी जूतियों का कोरस’, ‘आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने’, ‘रत्नगर्भा’, ‘ऐसे भी हम क्या, ऐसे भी तुम क्या’, ‘पका है कटहल’, ‘मैं मिलटरी का बूढ़ा घोड़ा’ तथा ‘भस्मांकुर’।

नागार्जुन के उपन्यासों में ‘बलचनमा’, ‘रतिनाथ की चाची’, ‘कुंभीपाक’, ‘उग्रतारा’, ‘जमनिया का बाबा’ तथा ‘उग्रतारा’ प्रमुख है। नागार्जुन का संपूर्ण साहित्य सात खंडों में प्रकाशित हो चुका है। सन 1956 में प्रकाशित ‘युगधारा’ में कवि ने अपना परिचय निम्न शब्दों में दिया है –

‘पैदा हुआ था मैं दीन-हीन अपठित किसी कृषक-कुल में
आ रहा हूँ पीता अभाव का आसव ठेठ बचपन से।’

काव्य-सौंदर्य – नागार्जुन की कविता राष्ट्रीय-चेतना की कविता है, जिसमें राष्ट्रीय आंदोलनों की धड़कन सुनाई पड़ती है। व्यंग्यात्मकता उनकी कविता का अभिन्न अंग है। ‘प्यासी पथराई आँखें’, ‘हिम कसमों का चंचरीक’ तथा ‘फाहियान के वंशधर’ आदि कविताएँ राष्ट्रीय भावों से ओत-प्रोत हैं। मातृभूमि के प्रति उनका प्रेम निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त हुआ – है

‘भारत माता के गालों पर कसकर पड़ा तमाचा है।
राम राज्य में अब की रावन नंगा होकर नाचा है।’
तथा
‘खेत हमारे, भूमि हमारी, सारा देश हमारा है।
इसीलिए तो हमको इसका, चप्पा-चप्पा प्यारा है।’

नागार्जुन अपनी कविता में वामपंथी विचारधारा को लेकर आए। वे प्रगतिशील जनवादी कवि थे। उन्होंने जनता के सुख-दुख; उसके संघर्ष और कष्ट; उसकी आस्था और जिजीविषा को अपने काव्य में व्यक्त किया है। सामाजिक अन्याय, शोषण, जड़ता, अंधविश्वास, ढोंग, पाखंड आदि के विरोध में नागार्जुन ने बहुत लिखा। नागार्जुन ने ‘पोस्टर कविता’ के रूप में व्यंग्यात्मक राजनीतिक कविताएँ वर्ष 1965 के आपातकाल में लिखीं। राजनीतिक आंदोलनों के कारण ये अनेक बार जेल भी गए। नागार्जुन की कविताओं में गहन राजनीतिक समझ दिखाई देती है।

राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं पर इन्होंने अनेक रचनाएँ लिखी हैं। मार्क्सवादी विचारधारा से जुड़े होने पर भी इनके काव्य में वैचारिक कट्टरता नहीं है। कवि का ग्रामीण संस्कार भी इनकी कविताओं में व्यक्त हुआ है। नागार्जुन घुमक्कड़ थे, इसलिए देश-विदेश के अनेक सुंदर स्थानों के शब्द-चित्र इनकी कविताओं में हैं। प्रकृति से जुड़ी इनकी कविताएँ बहुत प्रसिद्ध हैं। ‘बादल को घिरते देखा है’ तथा ‘घन कुरंग’ जैसी कविताएँ बहुत सुंदर हैं। नागार्जुन के काव्य-विषय जीवन से लिए गए हैं, इसलिए रिक्शा खींचते गरीब के पाँवों में फटी बिवाइयाँ भी वहाँ हैं; फटी बनियान और टपकता कटहल भी उनका काव्य विषय बना है।

काव्य-भाषा – नागार्जुन की काव्य-भाषा भावों का अनुसरण करती है। तत्सम शब्दावली के साथ तद्भव और देशी-विदेशी शब्द आवश्यकतानुसार प्रयुक्त हुए हैं। मुहावरों का सटीक प्रयोग इनके काव्य की विशेषता है; यथा –

वतन बेचकर पंडित नेहरू फूले नहीं समाते हैं।
बापू के भी ताऊ निकले, तीनों बंदर ताऊ के।
गिरगट के अंडे सेता हूँ, मैं देख रहा।
सत्तर चूहे खाकर रीझा वृद्ध बिलौटा अब जन मन पर।

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नागार्जुन की कविता बिंबात्मक है। हिरण की तरह उछलते-कूदते बादल का बिंब देखिए –

‘नभ में चौकड़ियाँ भरे भले
शिशु घन-कुरंग
खिलवाड़ देर तक करें भले
शिशु घन कुरंग।’

नागार्जुन ने मधुर गीत भी लिखे हैं और मुक्त छंद में काव्य-रचना भी की है। इन्होंने प्रणय, प्रकृति, राजनीति और देश-प्रेम पर कविताएँ लिखी। हैं। इनकी कविताओं का स्वर मानवतावादी है। प्रसिद्ध आलोचक रामविलास शर्मा के शब्दों में-“इनकी कविताएँ दिल पर चोट करने वाली हैं; कर्तव्य की याद दिलाने वाली हैं और राह दिखाने वाली भी हैं।” नागार्जुन मित्रों के लिए नागा बाबा थे। समाज, राजनीति, धर्म तथा साहित्य में एक साथ संघर्ष करने वाला हिंदी का यह कवि अद्भुत था, क्योंकि कवि के विवेक पर यह किसी तरह का बंधन स्वीकार नहीं करता था।

नागार्जुन मानते थे कि पार्टी देश और समाज से बड़ी नहीं होती, इसलिए वामपंथियों ने इन्हें अंततः ठुकरा दिया। वर्ष 1962 में इन्होंने ० चीन विरोधी कविताएँ लिखीं और वर्ष 1965 में आपातकाल विरोधी कविताएँ लिखीं। इन्होंने जय प्रकाश आंदोलन का भी खुलकर साथ दिया था। नागार्जुन कोमल भावनाओं के कवि भी थे। जब संन्यासी जीवन काटकर बरसों बाद गृहस्थ बने, पत्नी की उम्र ढल चुकी थी। उसकी पीड़ा पर कविता लिखी ‘प्रत्यावर्तन’ अर्थात लौटना। इसमें पत्नी की दशा पर लिखा –

‘हृदय में पीड़ा दृगों में लिए पानी।
देखते पथ काट दी सारी जवानी।’

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1. यह दंतुरित मुसकान

कविता का सार :

कवि किसी ऐसे छोटे बच्चे की मुसकान को देखकर अपार प्रसन्न है, जिसके मुंह में अभी छोटे-छोटे दाँत निकले हैं। कवि को उसकी मुसकान जीवन का संदेश प्रतीत होती है। उस मुसकान के सामने कठोर-से-कठोर मन भी पिघल सकता है। उसकी मुसकान तो किसी मृतक में भी नई जान फूंक सकती है। धूल-मिट्टी से सना हुआ नन्हा-सा बच्चा ऐसा प्रतीत होता है, जैसे कमल का सुंदर-कोमल फूल तालाब छोड़कर झोंपड़ी में खिल उठा हो। उसे छूकर पत्थर भी जल बन जाता है; उसे छूकर शेफालिका के फूल झड़ने लगते हैं। नन्हा-सा बच्चा कवि को नहीं पहचान पाया, इसलिए एकटक उसकी तरफ देखता रहा। कवि मानता है कि उस बच्चे की मोहिनी छवि और उसके संदर दांतों को वह उसकी मां के कारण देख पाया था। वह मां धन्य है और बच्चे की मुसकान भी धन्य है। वह स्वयं इधर-उधर जाने वाला प्रवासी । था, इसलिए उसकी पहचान नन्हे बच्चे के साथ नहीं हो सकी। जब उसकी माँ कहती, तब वह कनखियों से कवि की ओर देखता और उसकी छोटे-छोटे दाँतों से सजी मसकान कवि के मन को मोह लेती।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण संबंधी एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

जात
1. तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात….
छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल?
तुम मुझे पाए नहीं पहचान?
देखते ही रहोगे अनिमेष! थक गए हो?
आँख लूँ मैं फेर?
क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार?

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शब्दार्थ : दंतुरित – बच्चों के नए-नए दाँत। मृतक – मरा हुआ। धूलि-धूसर – धूल-मिट्टी। गात – शरीर के अंग-प्रत्यंग। जलजात – कमल का फूल। परस – स्पर्श। पाषाण – चट्टान, पत्थर। अनिमेष – बिना पलक झपकाए लगातार देखना।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित कविता ‘यह दंतुरित मुसकान’ से ली गई हैं। इसके रचयिता कवि नागार्जुन हैं ! घुमक्कड़ स्वभाव का होने के कारण कवि जगह-जगह घूमता रहता था। उसने जब अपने छोटे-से बच्चे के मुँह में छोटे-छोटे दाँत देखे तो उसे अपार प्रसन्नता हुई। उसने अपने भावों को अनेक बिंबों के माध्यम से प्रकट किया।

व्याख्या : कवि छोटे-से बच्चे को संबोधित करता हुआ कहता है कि तुम्हारे छोटे-छोटे दाँतों से सजे मुँह की मुसकान इतनी आकर्षक है कि वह मृतकों में भी जान डालने की क्षमता रखती है। वह जीवन का संदेश देती है। तुम्हारे शरीर का अंग-प्रत्यंग धूल-मिट्टी से सना हुआ है। मुझे ऐसा लगता है कि तुम तालाब को छोड़कर मेरी निर्धन की झोपड़ी में खिलने वाले कमल हो।

वह तालाब भी पहले पत्थर होगा, पर तुम्हारे प्राणों का स्पर्श पाकर वह पिघल गया होगा और जल बन गया होगा। चाहे वह बाँस हो या बबूल, पर तुम से छूकर उससे भी शेफालिका के कोमल फूल झड़ने लगते हैं। कवि उस बच्चे से पूछता है कि क्या उसने उसे पहचाना है या नहीं। क्या तुम बिना पलकें झपकाए हैरानी से लगातार मेरी ओर देखते ही रहोगे? क्या तुम थक गए हो? कवि कहता है कि यदि वह उसे पहले पहचान नहीं पाया तो भी कोई बात नहीं। भाव है कि वह अभी बहुत छोटा है, पर वह बहुत भोला-भाला और सुंदर है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पंक्तियों में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
2. ‘दंतुरित मुसकान’ किसकी है?
3. बच्चे का शरीर किससे सना हुआ है ?
4. कवि की झोंपड़ी में बच्चा किसे प्रतिबिंबित कर रहा है?
5. बच्चे के शरीर के स्पर्श मात्र से कौन-से फूल झड़ने लगे थे?
6. कवि की दृष्टि में जीवन का संदेश कौन देता है?
7. बच्चा कवि की ओर किस प्रकार देख रहा था?
8. ‘बाँस था कि बबूल’ की प्रतीकात्मकता स्पष्ट कीजिए।
9. कवि को कौन नहीं पहचान पाया था?
उत्तर :
1. कवि अपने बच्चे को काफ़ी लंबे समय के बाद मिला और उसके छोटे-छोटे दाँतों को देखकर अति प्रसन्न हो उठा है। उसे यह प्रतीत हुआ कि उसकी मुसकान में अपार सुंदरता छिपी हुई है।
2. ‘दंतुरित मुसकान’ कवि के नन्हे-से बच्चे की है।
3. बच्चे का सारा शरीर धूल-मिट्टी से सना हुआ है।
4. कवि की झोपड़ी में नन्हा-सा बच्चा कमल के फूल को प्रतिबिंबित कर रहा है।
5. बच्चे के शरीर के स्पर्श मात्र से शेफालिका के फूल झड़ने लगे थे।
6. कवि की दृष्टि में जीवन का संदेश बच्चे का सौंदर्य देता है।
7. बच्चा कवि की ओर बिना पलकें झपकाए लगातार देखता रहा था।
8. ‘बाँस था कि बबूल’ में कठोर और विपरीत स्थितियों का भाव छिपा है। कठिनाइयों की स्थिति में भी वह अपनी सुंदरता और भोलेपन से सबके मन को हर रहा था।
9. कवि को नन्हा-सा बच्चा नहीं पहचान पाया था।

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सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने किसके दाँतों की सराहना की और उसे भोला-भाला माना है?
2. किस बोली का प्रयोग किया गया है?
3. किस प्रकार के शब्दों का समन्वित प्रयोग किया है ?
4. छंद कौन-सा है?
5. किस शैली ने नाटकीयता उत्पन्न की है?
6. कौन-सा काव्य-गुण विद्यमान है?
7. काव्य-रस का नाम लिखिए।
8. किस शब्द-शक्ति के प्रयोग से कथन को सरलता-सरसता प्राप्त हुई है ?
9. ‘जलजात’ शब्द की विशिष्टता क्या है?
10. पंक्तियों में आए ‘दो तत्सम और दो तद्भव’ शब्द छाँटकर लिखिए।
11. ‘दंतुरित मुसकान’ में कौन-सा बिंब है?
12. पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
1. कवि ने छोटे-से बच्चे के दाँतों की सुंदरता की सराहना करते हुए उसे भोला और सीधा माना है।
2. खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
3. तत्सम और तद्भव शब्दावली का समन्वित प्रयोग किया गया है।
4. अतुकांत छंद है।
5. प्रश्न-शैली ने नाटकीयता की सृष्टि की है।
6. प्रसाद गुण विद्यमान है।
7. वात्सल्य रस।
8. अभिधात्मकता ने कवि के कथन को सरलता, सरसता और सहजता प्रदान की है।
9. प्रतीकात्मकता विद्यमान है।
10. तत्सम –

  • मृतक, पाषाण तद्भव
  • तालाब, फूल

11. चाक्षुक बिंब।
12. अतिशयोक्ति –

  • तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
  • मृतक में भी डाल देगी जान उत्प्रेक्षा
  • छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल उठे जलजात।
  • पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण।
  • छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल। अनुप्रास
  • ‘परस पाकर’, ‘धूलि-धूसर’

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2. यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न सकता देख
मैं न पाता जान
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!
इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क
उँगलियों माँ की कराती रही हैं मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होती जब कि आँखें चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगली बड़ी ही छविमान!

शब्दार्थ : चिर प्रवासी – लंबे समय तक बाहर रहने वाला। इतर – दूसरा ! मधुपर्क – दही, घी, शहद, जल और दूध का मिश्रण, जो देवता और अतिथि के सामने रखा जाता है। इसे पंचामृत भी कहते हैं। बच्चे को जीवन देने वाला आत्मीयता की मिठास से युक्त माँ का प्यार। कनखी – तिरछी निगाह से देखना। अतिथि – मेहमान। संपर्क – संबंध: छविमान – सुंदर।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) से ली गई हैं। ये पंक्तियाँ नागार्जुन के द्वारा रचित कविता ‘यह दंतुरित मुसकान’ में निहित हैं। कवि लंबे समय तक कहीं बाहर रहने के पश्चात वापस अपने घर लौटा था और उसने अपने बच्चे के छोटे-छोटे दाँतों की सुंदर चमक से शोभायमान मुसकान को देखा था। इससे उसे अपार प्रसन्नता हुई थी।

व्याख्या : कवि कहता है कि हे सुंदर दाँतों वाले बच्चे ! यदि तुम्हारी माँ तुम्हारे और मेरे बीच माध्यम न बनी होती, तो मैं कभी भी तुम्हें और तुम्हारी सुंदर मुसकान को देख न पाता और न ही तुम्हें जान पाता। तुम धन्य हो और तुम्हारो माँ भी धन्य है। मैं तुम दोनों का आभारी हूँ। मैं लंबे समय से बाहर था, इसलिए मैं तुम्हारे लिए कोई दूसरा हूँ। मेरे प्यारे बच्चे ! मैं तुम्हारे लिए मेहमान की तरह हूँ, इसलिए तुम्हारा मेरे साथ कोई संबंध नहीं रहा; तुम्हारे लिए मैं अनजाना-सा हूँ।

मेरी अनुपस्थिति में तुम्हारी माँ ही आत्मीयतापूर्वक तुम्हारा पालन-पोषण करती रही। तुम्हें अपना प्यार प्रदान करती रही। वही तुम्हारा पंचामृत से पालन-पोषण करती रही। तुम मुझे देखकर हैरान से थे और मेरी ओर कनखियों से देख रहे थे। जब कभी अचानक तुम्हारी और मेरी दृष्टि मिल जाती थी, तो मुझे तुम्हारे मुँह में तुम्हारे चमकते हुए सुंदर दाँतों से युक्त मुसकान दिखाई दे जाती है। सच ही मुझे तुम्हारी दूधिया दाँतों से सजी मुसकान बहुत सुंदर लगती है। मैं तुम्हारी मुसकान पर मुग्ध हूँ।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पंक्तियों में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
2. बच्चे की दंतुरित मुसकान और कवि के बीच कौन माध्यम बना था?
3. किस अवस्था में कवि अपने बच्चे को नहीं देख पाता?
4. कवि ने किसे-किसे धन्य माना है और क्यों?
5. कवि ने स्वयं को क्या माना है?
6. माँ अपने बच्चे का पालन-पोषण क्या खिलाकर करती रही थी?
7. ‘मधुपर्क’ में निहित प्रतीकात्मकता स्पष्ट कीजिए।
8. कवि को छविमान क्या लगती है?
9. नन्हा बच्चा बाहर से आए कवि की ओर किस प्रकार देख रहा था ?
उत्तर :
1. कवि ने अपने बच्चे की सुंदर दाँतों को देखा था और उसकी मुसकान पर मुग्ध हो उठा था। वह अपनी पत्नी के प्रति आभारी था कि उसकी अनुपस्थिति में उसने बहुत अच्छे तरीके से बच्चे का प्रेमपूर्वक पालन-पोषण किया था।
2. बच्चे की ‘दंतुरित मुसकान’ और कवि के बीच कवि की पत्नी माध्यम थी, जिसने कवि को बच्चे की मधुर मुसकान से परिचित करवाया था।
3. यदि कवि की पत्नी बच्चे की मधुर मुसकान से उसका परिचय न करवाती तो वह उसके विषय में न जान पाता और उसे न देख सकता, क्योंकि वह बहुत लंबे समय के बाद वापस अपने घर लौटा था।
4. कवि ने अपने बच्चे और अपनी पत्नी को धन्य माना है, क्योंकि उनके कारण ही उसे अपार प्रसन्नता की प्राप्ति हुई थी। वह स्वयं को उनसे मिलकर धन्य मानता है।
5. कवि ने स्वयं को ‘चिर प्रवासी’ माना है। वह लंबे समय के बाद वापस घर लौटा था।
6. माँ अपने बच्चे का पालन-पोषण दही, घी, शहद और दूध के मिश्रण से बने पंचामृत से करती रही थी।
7. मधुपर्क में प्रतीकात्मकता छिपी हुई है। इसमें बच्चे को जीवन देने वाला आत्मीयता की मिठास से युक्त माँ का प्यार छिपा हुआ है।
8. कवि को बच्चे की ‘दंतुरित मुसकान’ बहुत छविमान लगती है।
9. नन्हा बच्चा बाहर से आए कवि की ओर आश्चर्य और उत्सुकता के कारण कनखियों से देखता है। वह उसकी ओर सीधा नहीं देखता।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. भाव स्पष्ट कीजिए।
2. किस शब्द-शक्ति के प्रयोग से सरलता-सरसता प्रकट हुई है?
3. किस काव्य-गुण का प्रयोग हुआ है?
4. काव्य-रस का नाम लिखिए।
5. किस बोली का प्रयोग किया है?
6. किस प्रकार के शब्दों का समन्वित प्रयोग किया है?
7. छंद का नाम लिखिए।
8. किन मुहावरों का सहज प्रयोग है?
9. दो तद्भव और दो तत्सम शब्द लिखिए।
10. प्रयुक्त अलंकार लिखिए।
11. कौन-सा बिंब प्रधान है?
उत्तर :
1. कवि ने अपने नन्हें से बच्चे की मधुर मुसकान के आकर्षण का सहज सुंदर वर्णन किया है और अपनी पत्नी की कर्तव्यनिष्ठा का उल्लेख किया है, जिसने उसकी अनुपस्थिति में अपने पुत्र का प्रेमपूर्वक पालन-पोषण किया था।
2. अमिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है, जिससे कवि का कथन सरलता-सरसता से प्रकट हुआ है।
3. प्रसाद गुण विद्यमान है।
4. वात्सल्य रस।
5. खड़ी बोली का प्रयोग है।
6. तत्सम तद्भव शब्दावली का समन्वित प्रयोग किया गया है।
7. अतुकांत छंद है।
8. आँखें चार होना, कनखी मारना जैसे मुहावरों का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया गया है।
9. तद्भव
– माँ, मुसकान तत्सम
– प्रवासी, संपर्क
10. अनुप्रास-माँ न माध्यम; माँ को कराती रही मधुपर्क
11. चाक्षुक बिंब।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

2. फसल

किविता का सार :

फसलें हमारे जीवन की आधार हैं। ‘फसल’ शब्द सुनते ही हमारी आँखों के सामने खेतीं में लहलहाती फसलें आ जाती हैं। फसल को पैदा करने के लिए न जाने कितने तत्व और कितने हाथों का परिश्रम लगता है। फसल प्रकृति और मनुष्य के आपसी सहयोग से ही संभव होती है। न जाने कितनी नदियों का पानी और लाखों-करोड़ों हाथों का परिश्रम इसे उत्पन्न करता है। खेतों की उपजाऊ मिट्टी इसे शक्ति देती है; सूर्य की किरणें इसे जीवन देती हैं और हवा इसे धिरकना सिखाती है। फसल अनेक दुश्य-अदृश्य शक्तियों के मिले-जुले बल के कारण उत्पन्न होती है।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण संबंधी एवं सौंदर्य सराहना से बंधी प्रश्नोत्तर –

1. एक के नहीं,
दो के नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू:
एक के नहीं,
दो के नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा :
एक की नहीं,
दो की नहीं,
हजार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म :
फसल क्या है?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा का थिरकन का!

शब्दार्थ : ढेर – बहुत-सी। कोटि – करोड़ों। स्पर्श – छूना। गरिमा – गौरव। गुण धर्म – विशेषताएँ। संदली – चंदन की। रूपांतर – परिवर्तन।
सिमटा – इकट्ठा। प्रसंग प्रस्तुत कविता ‘फसल’ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ (भाग-2) में संकलित है, जिसके रचयिता नागार्जुन हैं। कवि ने स्पष्ट किया है कि फसल उत्पन्न करने के लिए मनुष्य और प्रकृति मिलकर एक-दूसरे का सहयोग करते हैं।

व्याख्या : कवि कहता है कि फसल को उत्पन्न करने के लिए एक-दो नहीं बल्कि अनेक नदियों से प्राप्त होने वाला पानी अपना जादुई प्रभाव दिखाता है। उसी पानी के कारण यह पनपती है; बढ़ती है। इसे उगाने के लिए किसी एक या दो व्यक्ति के नहीं, बल्कि लाखों-करोड़ों हाथों के द्वारा छूने की गरिमा छिपी हुई है। यह लाखों-करोड़ों इनसानों के परिश्रम का परिणाम है। इसमें एक-दो खेतों की मिट्टी नहीं प्रयुक्त हुई। इसमें हजारों खेतों की उपजाऊ मिट्टी की विशेषताएँ छिपी हुई हैं। मिट्टी का गुण-धर्म इसमें छिपा हुआ है।

फसल क्या है ? यह तो नदियों के द्वारा लाए गए पानी का जादू है, जिसने इसे उपजाने में सहायता दी। इसमें न जाने कितने लोगों के हाथों का परिश्रम छिपा है। यह उन हाथों की महिमा का परिणाम है। भूरी-काली-संदली मिट्टी की विशेषताएँ इसमें विद्यमान हैं। यह सूर्य की किरणों का फसल के रूप में पनी किरणों से उसे बढ़ाया है। जीवन दिया है। हवा ने इसे थिरकने और इधर-उधर डोलने का गुण प्रदान किया है। भाव यह है कि फसल प्रकृति और मनुष्य के सामूहिक प्रयत्नों का परिणाम है।

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अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कविता में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. नदियों का पानी फसल के लिए क्या करता है?
3. फसल किनके स्पर्श की गरिमा है?
4. किसकी मिट्टी का गुण-धर्म फसल में विद्यमान है?
5. मिट्टी की किन विशेषताओं को कवि फसल के माध्यम से प्रकट किया है ?
6. मिट्टी के लिए ‘संदली’ शब्द का प्रयोग क्यों किया जाता है?
7. हवा फसल को क्या सिखाती है?
8. फसल किसका रूपांतर है?
9. कवि ने कौन-सा काव्य लिखकर नाटकीयता की सृष्टि की है?
उत्तर :
1. कविता का भावार्थ है कि फसल केवल मनुष्य उत्पन्न नहीं करता। यह प्रकृति और मनुष्य के द्वारा मिल-जुलकर किए जाने वाले सहयोग का परिणाम है।
2. नदियों का पानी फसल के लिए जादू का काम करता है, वही इसे बढ़ाता है, जीवन देता है।
3. फसल लाखों-करोड़ों मनुष्यों के स्पर्श की गरिमा है।
4. हज़ारों खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म फसल में विद्यमान है।
5. मिट्टी के काले-भूरे और चंदन जैसे रंग की विशेषताओं को कवि ने फ़सल के माध्यम से प्रकट किया है।
6. ‘संदल’ का अर्थ है-‘चंदन’। मिट्टी में सदा सोंधी-सोंधी सी गंध होती है। मिट्टी की इसी विशेषता को प्रकट करने के लिए कवि ने ‘संदली’ शब्द का प्रयोग किया है।
7. हवा फसल को थिरकना सिखाती है।
8. फसल अनाज के रूप में सूर्य के प्रकाश का रूपांतरण है।
9. कवि ने ‘फसल क्या है?’ लिखकर नाटकीयता की सृष्टि की है।

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सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. भाव स्पष्ट कीजिए।
2. किस बोली का प्रयोग किया गया है ?
3. किस प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया है ?
4. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग है ?
5. छंद का नाम लिखिए।
6. किस शैली ने नाटकीयता की सृष्टि की है?
7. काव्य-गुण का नाम लिखिए।
8. कौन-सा रस विद्यमान है?
9. पंक्तियों में प्रयुक्त दो तत्सम और दो तद्भव शब्द लिखिए।
10. लाक्षणिक भाषा का एक प्रयोग लिखिए।
11. कविता में प्रयुक्त अलंकार छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
1. कवि ने फसलों के उत्पन्न होने का आधार केवल मनुष्य को न मानकर मनुष्य और प्रकृति के मिले-जुले सहयोग को माना है।
2. खड़ी बोली का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया गया है।
3. तत्सम और तद्भव शब्दावली का सहज-सुंदर प्रयोग किया गया है।
4. अभिधा शब्द-शक्ति ने कवि के कथन को सरलता-सरसता प्रदान की है।
5. अतुकांत छंद का प्रयोग है।
6. प्रश्न शैली ने नाटकीयता की सृष्टि की है।
7. प्रसाद गुण।
8. शांत रस विद्यमान है।
9. तत्सम –
स्पर्श, गरिमा

तद्भव –
हाथ, मिट्टी

10. नदियों के पानी का जादू है वह।
11. पुनरुक्ति प्रकाश –

  • लाख-लाख,
  • कोटि-कोटि,
  • हज़ार-हज़ार

प्रश्न –
फसल क्या है?

अनुप्रास –

  • सूरज की किरणों का
  • सिमटा हुआ संकोच है

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

JAC Class 10 Hindi उत्साह और अट नहीं रही Textbook Questions and Answers

1. उत्साह

प्रश्न 1.
कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने’ के लिए कहता है, क्यों?
उत्तर :
निराला विद्रोही कवि थे। वे समाज में क्रांति के माध्यम से परिवर्तन लाना चाहते थे। वे क्रांति चेतना का आह्वान करने में विश्वास रखते थे, जो ओज और जोश पर निर्भर करती है। ओज और जोश के लिए ही कवि बादलों को गरजने के लिए कहता है।

प्रश्न 2.
कविता का शीर्षक उत्साह क्यों रखा भया है।
उत्तर :
यह एक आहवान गीत है, जिसमें कवि ने मत्साहपूर्ण उग में अपने प्रगतिवादी स्वर को प्रकट किया है। वह बादलों को गरज-गरजकर सारे संसार को नया जीवन प्रदान करने के लिए प्रेरित करता है, जिनके भीतर वज्रपात की शक्ति छिपी हुई है। वे संसार को नई प्रेरणा और जीवन प्रदान करने की क्षमता रखते हैं, इसलिए कवि ने बादलों के विशेष गुण के आधार पर इस कविता का शीर्षक उत्साह रखा है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

प्रश्न 3.
कविता में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है?
उत्तर :
कविता में बादल ललित कल्पना और क्रांति चेतना की ओर संकेत करता है। एक तरफ़ यह पीड़ित-प्यासे लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने वाला है, वहीं दूसरी तरफ़ वह नई कल्पना और नए अंकुर के लिए विध्वंस, विप्लव और क्रांति चेतना की ओर संकेत करता है।

प्रश्न 4.
शब्दों का ऐसा प्रयोग जिससे कविता के किसी खास भाव या दृश्य में ध्वन्यात्मक प्रभाव पैदा हो, नाद-सौंदर्य कहलाता है। उत्साह कविता में ऐसे कौन-से शब्द हैं जिनमें नाद-सौंदर्य मौजूद है, छाँटकर लिखें।
उत्तर :

  1. घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ।
  2. ललित ललित, काले धुंघराले।
  3. विद्युत-छवि उर में, कवि नवजीवन वाले।
  4. विकल विकल, उन्मन थे उन्मन।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 5.
जैसे बादल उमड़-घुमड़कर बारिश करते हैं वैसे ही कवि के अंतर्मन में भी भावों के बादल उमड़-घुमड़कर कविता के रूप में अभिव्यक्त होते हैं। ऐसे ही कभी प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर अपने उमड़ते भावों को कविता में उतारिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

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पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
बादलों पर अनेक कविताएँ हैं। कुछ कविताओं का संकलन करें और उनका चित्रांकन भी कीजिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।

2. अट नहीं रही है।

प्रश्न 1.
छायावाद की एक खास विशेषता है-अंतर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है ? लिखिए।
उत्तर :
पत्तों से लदी डाल कहीं हरी, कहीं लाल कहीं पड़ी है उर में मंद-गंध-पुष्प-माला पाट-पाट शोभा-श्री पट नहीं कही है। कवि कहता है कि हरे पत्तों और लाल कोंपलों से भरी डालियों के बीच खिले सुगंधित फूलों की शोभा बिखरी है। ऐसा प्रतीत होता है कि उनके कंठों में सुगंधित फूलों की मालाएँ पड़ी हुई हैं। कवि के अज्ञात सत्तारूपी प्रियतम वन की शोभा के वैभव को कूट-कूटकर भर रहे हैं पर अपनी पुष्पलता के कारण उसमें समा न सकने के कारण वह चारों ओर बिखर रही है। कवि ने अपने मन के भावों को प्रकृति के माध्यम से व्यक्त किया है।

प्रश्न 2.
कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है?
अथवा
‘अट नहीं रही है’ कविता में ‘उड़ने को नभ में तुम पर-पर कर देते हो’ के आलोक में बताइए कि फागुन लोगों के मन में किस तरह प्रभावित करता है?
उत्तर :
कवि के अज्ञात सत्तारूपी प्रियतम प्रभु फागुन की सुंदरता के कण-कण में व्याप्त हैं। उनके श्वास के द्वारा प्रकृति का कोना-कोना सुगंध से आपूरित था। वही कवि के मन में तरह-तरह की कल्पनाएँ भरते थे। उनमें विशेष आकर्षण था, जिससे कवि अपनी आँख नहीं हटाना चाहता। उसकी दृष्टि हट ही नहीं रही है।

प्रश्न 3.
प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है?
उत्तर :
कवि ने प्रकृति की व्यापकता को फागुन की सुंदरता के रूप में प्रकट किया है। प्रकृति की सुंदरता और व्यापकता फागुन में समा नहीं पाती, इसलिए वह सब तरफ़ फूटी पड़ती दिखाई देती है। प्रकृति के माध्यम से परमात्मा की सर्वव्या किया है। वह परम सत्ता अपनी श्वासों से प्रकृति के कोने-कोने में सुगंध के रूप में व्याप्त है।

प्रकृति ही कवि को कल्पना की ऊँची उड़ान भरने के लिए प्रेरित करती है और उसकी रचनाओं में सर्वत्र दिखाई देती है। प्रकृति की व्यापकता ही कवि के मन में तरह-तरह की कल्पनाओं को जन्म देती है। वन का प्रत्येक पेड़-पौधा इसी सुंदरता से भरकर शोभा देता है। प्रकृति की व्यापकता नैसर्गिक सौंदर्य का मूल आधार है।

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प्रश्न 4.
फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है ?
उत्तर :
फागुन का महीना मस्ती से भरा होता है, जो प्रकृति को नया रंग प्रदान कर देता है। पेड़-पौधों की शाखाएँ हरे-हरे पत्तों से लद जाती हैं। लाल-लाल कोंपलें अपार सुंदर लगती हैं। रंग-बिरंगे फूलों की बहार-सी छा जाती है। इससे वन की शोभा का वैभव पूरी तरह से प्रकट हो जाता है। प्रकृति ईश्वरीय शोभा को लेकर प्रकट हो जाती है, जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होती है। इस ऋतु में न गरमी का प्रकोप होता है और न ही सरदी की ठिठुरन। इसमें न तो हर समय की वर्षा होती है और न ही पतझड़ से ,ठ बने वृक्ष। यह महीना अपार सुखदायी बनकर सबके मन को मोह लेता है।

प्रश्न 5.
इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य-शिल्प की विशिष्टताएँ लिखिए।
उत्तर :
निराला विद्रोही कवि थे, इसलिए उनके काव्य-शिल्प में भी विद्रोह की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। उन्होंने कला के क्षेत्र में रूढ़ियों और परंपराओं को स्वीकार नहीं किया था। उन्होंने भाषा, छंद, शैली-प्रत्येक क्षेत्र में मौलिकता और नवीनता का समावेश करने का प्रयत्न किया था। वे छायावादी कवि थे, इसलिए शिल्प की कोमलता उनकी कविता में कहीं-न-कहीं अवश्य बनी रही थी। उनकी कविताओं के शिल्प में विद्यमान प्रमुख विशेषताएँ अग्रलिखित हैं –

1. भाषागत कोमलता – उनकी भाषा में एकरसता की कमी है। उन्होंने सरल, व्यावहारिक, सुबोध, सौष्ठव प्रधान और अलंकृत भाषा का प्रयोग :
किया है। उनकी भाषा पर संस्कृत का विशेष प्रभाव है –

विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर

शीतल कर दो –

2. कोमलता-निराला की कविताओं में कोमलता है। उन्होंने विशिष्ट शब्दों के प्रयोग से कोमलता को उत्पन्न करने में सफलता प्राप्त की है –

घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
ललित ललित, काले धुंघराले,
बाल कल्पना के-से पाले,
विदयुत-छबि उर में, कवि नवजीवन वाले!

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3. शब्दों की मधुर योजना – निराला ने अन्य छायावादी कवियों की तरह भाषा को भाषानुसारिणी बनाने के लिए शब्दों की मधुर योजना की है। यथा –

शिशु पाते हैं माताओं के
वक्ष-स्थल पर भूला गान,
माताएँ भी पातीं शिशु के
अधरों पर अपनी मुसकान।

4. लाक्षणिक प्रयोग – निराला की भाषा में लाक्षणिक प्रयोग भरे पड़े हैं। उन्होंने परंपरा के प्रति अपने विरोध-भाव को प्रकट करते समय भी लाक्षणिकता का प्रयोग किया था –

कठिन श्रंखला बज-बजाकर
गाता हूँ अतीत के गान
मुझ भूले पर उस अतीत का
क्या ऐसा ही होगा ध्यान?

5. संगीतात्मकता – छायावादी कवियों की तरह निराला ने भी प्रायः तुक के संगीत का प्रयोग नहीं किया था और उसके स्थान पर लय-संगीत को अपनाया था। उन्हें संगीत का अच्छा ज्ञान था। कविता में उनकी यह विशेषता स्थान-स्थान पर दिखाई देती है –

कहीं पड़ी है उर में
मंद-गंध पुष्प-माल
पाट-पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है।

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6. चित्रात्मकता – निराला ने शब्दों के बल पर भाव चित्र प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने बादलों का ऐसा शब्द चित्र खींचा है कि वे काले घुघराले बालों के समान आँखों के सामने झूमते-गरजते-चमकते से प्रतीत होने लगते हैं।

7. लोकगीतों जैसी भाषा – निराला ने अनेक गीतों की भाषा लोकगीतों के समान प्रयुक्त की है। कहीं-कहीं उन्होंने कजली और गज़ल भी लिखी हैं। इसमें कवि ने देशज शब्दों का खुलकर प्रयोग किया है अट नहीं रही है आभा फागुन की तन सट नहीं रही है।

8. मुक्त छंद – निराला ने मुख्य रूप से अपनी भावनाओं को मुक्त छंद में प्रकट किया है। उन्होंने छंद से मुक्त रहकर अपने काव्य की रचना की है। इनके मुक्त छंद को अनेक लोगों ने खंड छंद, केंचुआ छंद, रबड़ छंद, कंगारू छंद आदि नाम दिए हैं।

9. अलंकार योजना – कवि ने समान रूप से शब्दालंकारों और अर्थालंकारों का प्रयोग किया है। इससे इनके काव्य में सुंदरता की वृद्धि हुई है।
(i) पुनरुक्ति प्रकाश-घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ! ममा ललित ललित, काले घुघराले।
(ii) उपमा-बाल कल्पना के-से पाले।
(iii) वीप्सा-विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
(iv) प्रश्न-क्या ऐसा ही होगा ध्यान?
(v) अनुप्रास-कहीं हरी, कहीं लाल
(vi) यमक-पर-पर कर देते हो।

वास्तव में निराला ने मौलिक-शिल्प योजना को महत्व दिया है, जिस कारण साहित्य में उनकी अपनी ही पहचान है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 6.
होली के आसपास प्रकृति में जो परिवर्तन दिखाई देते हैं, उन्हें लिखिए।
उत्तर :
होली के आसपास मौसम में एकदम परिवर्तन आता है। सरदी समाप्त होने लगती है और सूर्य की तपन बढ़ने लगती है। सरदियों में जिस गर्म धूप की इच्छा होती है, वह इच्छा कम हो जाती है। पेड़-पौधों पर हरियाली छाने लगती है। वनस्पतियों पर नई-नई कोंपलें दिखाई देने लगती हैं। घास पर सुबह-सुबह दिखाई देने वाली ओस की बूंदें गायब हो जाती हैं। पक्षियों के जो झुंड सरदियों में न जाने कहाँ चले जाते हैं, वे वापस पेड़ों पर लौटकर चहचहाने लगते हैं। होली के आसपास प्रकृति की शोभा नया-सा रूप प्राप्त कर लेती है।

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
फागुन में गाए जाने वाले गीत जैसे होरी, फाग आदि गीतों के बारे में जानिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से कीजिए। इस कविता में भी निराला फागुन के सौंदर्य में डूब गए हैं। उनमें फागुन की आभा रच गई, ऐसी आभा जिसे न शब्दों से अलग किया जा सकता है, न फागुन से।

फूटे हैं आमों में बौर – भर गये मोती के झाग,
भौर वन-वन टूटे हैं। – जनों के मन लूटे हैं।
होली मची ठौर-ठौर, – माथे अबीर से लाल,
सभी बंधन छूटे हैं। – गाल सेंदुर के देखे,
फागुन के रंग राग, – आँखें हुए हैं गुलाल,
बाग-वन फाग मचा है, – गेरू के ढेले कूटे हैं।

JAC Class 10 Hindi उत्साह और अट नहीं रही Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
पाठ में संकलित निराला की कविताओं के आधार पर विद्रोह के स्वर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
निराला की कविताओं में विद्रोह का स्वर प्रधान है। कवि ने परंपराओं का विरोध करते हुए हिंदी काव्य को मुक्त छंद का प्रयोग प्रदान किया था। उसे लगा था कि ऐसा करना आवश्यक है, क्योंकि नई काव्य परंपराएँ साहित्य का विस्तार करती हैं –

शिशु पाते हैं माताओं के
वक्षःस्थल पर भूला गान
माताएँ भी पाती शिशु के
अधरों पर अपनी मुसकान।

कवि ने बादलों के माध्यम से विद्रोह के स्वर को ऊँचा उठाया है। वे समझते थे कि इसी रास्ते पर चलकर समाज का कल्याण किया जा सकता है –

विकल विकल, उन्मन थे उन्मन,
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो –

वास्तव में निराला जीवनपर्यंत कविता के माध्यम से विद्रोह और संघर्ष के स्वर को प्रकट करते रहे थे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

प्रश्न 2.
‘अट नहीं रही’ के आधार पर बसंत ऋतु की शोभा का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
कवि ने बसंत में प्रकृति की शोभा का सुंदर उल्लेख किया है। ऐसा लगता है, जैसे इस ऋतु में प्रकृति के कण-कण में सुंदरता समा-सी जाती है। प्रकृति के कोने-कोने में अनूठी-सी सुगंध भर जाती है, जिससे कवियों की कल्पना ऊँची उड़ान लेने लगती है। चाहकर भी प्रकृति की सुंदरता से आँखें हटाने की इच्छा नहीं होती। नैसर्गिक सुंदरता के प्रति मन बँधकर रह जाता है। जगह-जगह रंग-बिरंगे और सुगंधित फूलों की शोभा दिखाई देने लगती है।

प्रश्न 3.
‘अट नहीं रही’ कविता में विद्यमान रहस्यवादिता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
निराला जी को प्रकृति के कण-कण में परमात्मा की अज्ञात सत्ता दिखाई देती है। वे उसका रहस्य जानना चाहते हैं; पर जान नहीं पाते। उन्हें यह तो प्रतीत होता है कि प्रकृति के परिवर्तन के पीछे कुछ-न-कुछ अवश्य है। वह ईश्वर ही हो सकता है, जो परिवर्तन का कारण बनता है।

कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है।

कवि निराला को प्रकृति के कण-कण में ईश्वरीय सत्ता की छवि के दर्शन होते हैं। उन्हें प्रकृति के आँचल में छिपे उसी परमात्मा का रूप दिखाई देता है।

प्रश्न 4.
कवि ने बादलों की सुंदरता के लिए क्या उपमान चुना है?
उत्तर :
कवि ने बादलों की सुंदरता के लिए उन्हें सुंदर काले धुंघराले बालों के समान माना है, जो बालकों की अबोध कल्पना के समान पाले गए हैं। बादलों के अंतर में छिपी बिजली चमक-चमककर उनकी शोभा को और भी अधिक आकर्षक बना देती है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

प्रश्न 5.
बादल से मानव जीवन को क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर :
कवि ने बादलों को मानव जीवन को हरा-भरा बनाने वाला मानते हुए मनुष्य को सामाजिक क्रांति के लिए प्रेरित किया है। जैसे बादल सबको समान रूप से वर्षा का जल देकर उनकी प्यास बुझाते हैं तथा धरती को अन्न उपजाने योग्य बनाकर मानव-मात्र को सुख प्रदान करते हैं, वैसे ही वह मानव को भी सामाजिक जीवन में विषमताएँ दूर कर सुख व समृद्धिपूर्ण जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है।

प्रश्न 6.
उत्साह किस प्रकार की कविता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
उत्साह एक आह्वान गीत है। इस गीत में कवि ने बादलों को संबोधित किया है और उनके माध्यम से अपने मन के भावों को प्रकट किया है। कवि ने बादलों को जीवनदाता तथा प्रेरणादायक माना है। कवि ने बादलों को बालकों की अबोध कल्पना के समान माना है।

प्रश्न 7.
निराला के काव्य में वेदना एवं करुणा की अनुभूति होती है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
वेदना, दुख एवं करुणा की अभिव्यक्ति छायावाद की एक प्रमुख विशेषता है। निराला जी ने वेदना एवं दुख को कई प्रकार से प्रकट किया है। इसका मूल हेतु जीवन की निराशा है।

तप्त धरा, जब से फिर
शीतल कर दो
बादल, गरजो!

सामाजिक विषमताओं को देखकर कवि निराला का मन खिन्न हो जाता है। उसके मन में वेदना और निराशा के भाव भर जाते हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

प्रश्न 8.
कवि निराला ने ‘उत्साह’ कविता में प्रकृति पर चेतना का आरोप किया है, सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
निराला ने ‘उत्साह’ कविता में सर्वत्र चेतना का आरोप किया है। उन्होंने प्रकृति का मानवीकरण किया है। उनकी दृष्टि में बादल चेतना है। वे बादल से कहते हैं कि –

बादल, गरजो!
घेर घेर घोर गगन, धाराधर
ओ!
ललित ललित, काले धुंधराले
बाल कल्पना के-से पाले।

प्रश्न 9.
निराला ने अपने भावों को कैसे और किस माध्यम से प्रकट किया है?
उत्तर :
कवि ने नवजीवन और नई कविता के संदर्भो में विचार करते हुए बादलों के माध्यम से अपने मन के भावों को प्रकट किया है। वे नई चेतना एवं जागृति लाना चाहते हैं; प्रकृति का सहारा लेकर जनजागरण करना चाहते हैं।

प्रश्न 10.
कवि ने ‘उत्साह’ कविता में बादलों का कैसा रूप-सौंदर्य दिखाया है?
उत्तर :
कवि ने ‘उत्साह’ त्रित करते हुए उन्हें घना तथा प को काले बादल ऐसे लगते हैं, जैसे किसी बच्चे के काले धुंघराले बाल हों। कवि को बादलों का रूप-रंग भी बच्चों के बालों के समान दिखाई पड़ता है।

प्रश्न 11.
मनुष्य के मन पर फागुन की मस्ती का क्या प्रभाव दिखाई देता है?
उत्तर :
फागुन अपने आप में अत्यंत रंगीन तथा आकर्षक दिखाई देता है। उसकी मस्ती अनूठी है, जिससे मनुष्य का मन हर्षित
तथा प्रसन्नचित्त रहता है। इसके कारण उसके मन में खुशी का संचार होता है। उसका मन दूर नील मान में उड़ने को छ का रहता है। फागुन की सुंदरता उसे अपनी ओर इतना अधिक आकर्षित करती है कि वह चाहकर भी अपना ध्यान दूसरी ओर नहीं कर पता।

पठित काव्यांश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

दिए गए काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पी प्रश्नों के उचित विकल्प चुनकर लिखिए –

1. विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो –
बादल, गरजो!

(क) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने किसका आह्वान किया है?
(i) लोगों का
(ii) विश्व का
(iii) बादलों का
(iv) दिशाओं का
उत्तर :
(iii) बादलों का

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

(ख) विकल और उन्मन कौन थे?
(i) बादल-नभ
(ii) प्रकाश-तारा
(iii) धरा-जल
(iv) विश्व-जन
उत्तर :
(iv) विश्व-जन

(ग) बादल किसका प्रतीक हैं?
(i) क्रांति और नवचेतना के
(ii) भीषण गरमी के
(iii) दुखीं धरा के
(iv) शीतल नभ के
उत्तर :
(i) क्रांति के नवचेतना के

(घ) प्रस्तुत काव्यांश किस कविता से लिया गया है?
(i) फ़सल
(ii) अट नहीं रही है
(iii) बादल
(iv) उत्साह
उत्तर :
(iv) उत्साह

(ङ) कवि ने ‘निदाघ’ से किस ओर संकेत किया है?
(i) तप्त धरा
(ii) सांसारिक सुखों
(iii) सांसारिक दुखों
(iv) भीषण गरमी
उत्तर :
(iii) सांसारिक दुखों

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2. कहीं साँस लेते हो,
पत्तों से लदी डाल
घर-घर भर देते हो,
कहीं हरी, कहीं लाल,
उड़ने को नभ में तुम
कहीं पड़ी है उर में
पर-पर कर देते हो,
मंद-गंध-पुष्प-माल
आँख हटाता हूँ तो
पाट-पाट शोभा-श्री
हट नहीं रही है।
पट नहीं रही है।

(क) कविता में किस माह के सौंदर्य का चित्रण है?
(i) पौष
(ii) फागुन
(iii) चैत्र
(iv) वैशाख
उत्तर :
(ii) फागुन

(ख) पत्तों से लदी डाल पर किन रंगों की छटा बिखरी हुई है?
(i) लाल-पीली
(ii) लाल-हरी
(iii) हरी-पीली
(iv) लाल-नीली
उत्तर :
(ii) लाल-हरी

(ग) कवि का साँस लेने से क्या तात्पर्य है?
(i) जीवित होना
(ii) सुगंध फैलाना
(iii) सुगंधित पवन का चलना
(iv) पत्तों का हिलना
उत्तर :
(iii) सुगंधित पवन का चलना

(घ) कवि की आँख कहाँ से हट नहीं रही?
(i) फागुन का सुंदरता से
(ii) नीले आसमान से
(iii) तेज़ सूरज से
(iv) शीतल चाँद से
उत्तर :
(i) फागुन का सुंदरता से

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(ङ) प्रस्तुत कविता के कवि कौन हैं?
(i) प्रसाद
(ii) दिनकर
(iii) निराला
(iv) जायसी
उत्तर :
(iii) निराला

काव्यबोध संबंधी बहुविकल्पी प्रश्न –

काव्य पाठ पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्नों के उत्तर वाले विकल्प चुनिए –

(क) बादलों को किसके समान सुंदर कहा गया है?
(i) सफ़ेद बालों के समान
(ii) भूरे बालों के समान
(iii) काले-घुघराले बालों के समान
(iv) बच्चों के समान
उत्तर :
(iii) काले-धुंघराले बालों के समान

(ख) कवि ने बादलों के माध्यम से किसका आह्वान किया है?
(i) समृद्धि का
(ii) आपदा का
(iii) सामाजिक क्रांति व नवचेतना का
(iv) वर्षा का
उत्तर :
(iii) सामाजिक क्रांति व नवचेतना का

(ग) ‘अट नहीं रही है’ कविता में पाट-पाट पर क्या बिखरा है?
(i) कण
(ii) ओस
(iii) बादल
(iv) शोभा-श्री
उत्तर :
(iv) शोभा-श्री

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(घ) कवि ने बादल को क्या कहा है?
(i) विद्युतमय
(ii) वज्रमय
(iii) कल्पनामय
(iv) (i) और (ii) दोनों
उत्तर :
(iii) कल्पनामय

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण संबंधी एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. उत्साह

बादल, गरजो!
घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
ललित ललित, काले घुघराले,
बाल कल्पना के-से पाले,
विद्युत-छवि उर में, कवि, नवजीवन वाले!
वज्र छिपा, नूतन कविता
फिर भर दो –
बादल, गरजो! विकल विकल, उन्मन
थे उन्मन विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो –
बादल, गरजो!

शब्दार्थ : गगन – आकाश। धाराधर – मूसलाधार, लगातार। ललित – सुंदर। विद्युत-छवि – बिजली की चमक (शोभा)। उर – हृदय, भीतर। कवि – स्रष्टा। विकल – व्याकुल। उन्मन – अनमना, उदास। निदाघ – गरमी का ताप। तप्त – गर्म। धरा – पृथ्वी! अनंत – आकाश।

प्रसंग : प्रस्तुत कविता ‘उत्साह’ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित की गई है, जिसके रचयिता सप्रसिदध छायावादी कवि श्री सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। कवि ने अपनी कविता में बादलों का आह्वान किया है कि वे पीड़ित-प्यासे लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करें। उन्होंने बादलों को नए अंकुर के लिए विध्वंस और क्रांति चेतना को संभव करने वाला भी माना है।

व्याख्या : कवि बादलों से गरज-बरस कर सारे संसार को नया जीवन देने की प्रेरणा देते हुए कहता है कि बादलो! तुम गरजो। तुम सारे आकाश को घेरकर मूसलाधार वर्षा करो; घनघोर बरसो। हे बादलो! तुम अत्यंत सुंदर हो। तुम्हारा स्वरूप सुंदर काले घुघराले बालों के समान है तथा तुम अबोध बालकों की मधुर कल्पना के समान पाले गए हो। तुम हृदय में बिजली की शोभा धारण करते हो। तुम नवीन सृष्टि करने वाले हो।

तुम जलरूपी नया जीवन देने वाले हो और तुम्हारे भीतर वज्रपात करने की अपार शक्ति छिपी हुई है। तुम इस संसार को नवीन प्रेरणा और जीवन प्रदान कर दो। बादलो! तुम गरजो और सबमें नया जीवन भर दो। गरमी के तेज ताप के कारण धरती के सारे लोग बहुत ल्याकुल और बेचैन हैं, वे उदास हो रहे हैं। अरे बादलो! तुम सीमाहीन आकाश में पता नहीं किस ओर से आकर सब तरफ़ फैल गए हो। तुम इस गरमी के ताप से तपी हुई धरती को बरसकर शीतलता प्रदान करो। हे बादलो! तुम गरज-गरज कर बरसो और फिर धरती को शीतल करो!

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कविता में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
2. कवि ने किसका आह्वान किया है और क्यों?
3. बादलों को किसके समान संदर माना गया है ?
4. बादल किसकी कल्पना के समान पाले गाए हैं ?
5. बादलों के हृदय में किस प्रकार की शोभा छिपी हुई है?
6. बादल मानव-जीवन और कवि को क्या प्रदान करते हैं ?
7. धरती के लोग किस कारण व्याकुल और बेचैन थे?
8. बादल कहाँ छा जाते हैं ?
9. कवि बादलों से बरसकर क्या करने को कहता है ?
उत्तर :
1. कवि ने प्यास और पीड़ित लोगों के कष्टों को दूर कर उनकी इच्छाओं-आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए बादलों का आग्रह भा आहवान किया है ! साथ-ही-साथ उसने बादलों को नई कल्पना और नए अंकुर के लिए विध्वंस, विप्लव और क्रांति चेतना को संपन्न करने वाला माना है। बादल ही धरती को हरा-भरा बनाते हैं और कवि को कविता लिखने की प्रेरणा प्रदान करते हैं।
2. कवि ने बादलों का आह्वान किया है, ताकि वे अपने जल से धरती तथा सारे संसार को नया जीवन प्रदान करें।
3. बादलों को काले धुंघराले बालों के समान सुंदर माना गया है।
4. बादल अबोध बालकों की कल्पना के समान पाले गए हैं।
5. बादलों के हृदय में बिजली की शोभा छिपी हुई है, जो समय-समय पर जगमगाकर प्रकट हो जाती है।
6. बादल मानव-जीवन और कवि को नवीन प्रेरणा व जीवन प्रदान करते हैं।
7. धरती के लोग गरमी के ताप के कारण व्याकुल और बेचैन थे।
8. बादल न जाने सीमाहीन आकाश के किस कोने से आकर सब ओर छा गए थे।
9. कवि बादलों से बरसकर गरमी के ताप से तपी धरती को शीतलता प्रदान करने को कहता है।

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सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने बादलों के माध्यम से किस प्रकार प्रतीकात्मकता को प्रस्तुत किया है ?
2. किस बोली का प्रयोग किया गया है।
3. किस प्रकार की शब्दावली का अधिक से प्रयोग किया गया है?
4. किस छंद का प्रयोग किया गया है?
5. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग है?
6. प्रयुक्त काव्य-गुण का नाम लिखिए।
7. प्रयुक्त बिंब कौन-सा है?
8. कविता में प्रयुक्त किन्हीं दो तद्भव शब्दों को लिखिए।
9. कविता में प्रयुक्त किन्हीं दो तत्सम शब्दों को लिखिए।
10. कविता हिंदी साहित्य की किस काव्यधारा से संबंधित है?
11. शैली का नाम लिखिए।
12. कविता में प्रयुक्त अलंकारों का निरूपण कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने बादलों के माध्यम से सामाजिक क्रांति का आहवान किया है। बादल सृजन और संहार दोनों कर सकते हैं।
2. खड़ी बोली।
3. तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
4. अतुकांत छंद का प्रयोग किया है, पर फिर भी लयात्मकता की सृष्टि हुई है।
5. लाक्षणिकता की विशेषता विद्यमान है।
6. ओज गुण विद्यमान है।
7. गतिशील चाक्षुक बिंब का प्रयोग है।
8. बादल, काले।
9. विधुत, ललित।
10. छायावाद।
11. आहवान शैली/संबोधन शैली।
12. अनुप्रास –

  • घेर घेर घोर गगन
  • ललित ललित
  • बाल कल्पना के-से पाले

मानवीकरण –

  • बादल गरजो!
  • घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!

पुनरुक्ति प्रकाश –
घेर घेर, ललित ललित, विकल-विकला

उपमा –
बाल कल्पना के-से पाले

2. अट नहीं रही है।

अट नहीं रही है
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है।
कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है।
पत्तों से लदी डाल
कहीं हरी, कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर में
मंद-गंध-पुष्प-माल,
पाट-पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है।

शब्दार्थ : अट – समाना, प्रविष्ट। आभा – चमक, सौंदर्य। नभ – आकाश। उर – हृदय। मंद – धीमी। पुष्प-माल – फूलों की माला। पाट-पाट -जगह-जगह। शोभा-श्री – सौंदर्य से भरपूर। पट – समा नहीं रही है।

प्रसंग : प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित है, जिसके रचयिता छायावादी काव्यधारा के प्रमुख कवि श्री सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। इसे मूल रूप से उनकी काव्य-रचना ‘राग-विराग’ में संकलित किया गया है। कवि ने इसमें फागुन की मादकता को प्रकट किया है, जिसकी सुंदरता और उल्लास सभी दिशाओं में फैला हुआ है।

व्याख्या : कवि कहता है कि फागुन की यह सुंदरता शरीर में किसी भी से प्रकार समा नहीं पा रही है। वह प्रकृति के कण-कण से फूट रही है। अपने रहस्यवादी भावों को प्रकट करते हुए कवि कहता है कि हे प्रिय! पता नहीं तुम कहाँ बैठकर अपनी साँस के द्वारा प्रकृति के कोने-कोने को सुगंध से भर रहे हो। तुम कल्पना के आकाश में ऊँचा उड़ने तुम्हारी के लिए मन को पंख प्रदान करते हो। तुम मन में तरह-तरह की कल्पनाओं को जन्म देते हो। सब तरफ़ तुम्हारी सुंदरता ही व्याप्त है।

वह अत्यधिक आकर्षक और सुंदर है। कवि कहता है कि मैं उसकी ओर से अपनी आँख हटाना चाहता हूँ, पर वह वहाँ से हट नहीं पा रही। इस सुंदरता में मन बँधकर रह गया है। पेड़ों की सभी डालियाँ पत्तों से पूरी तरह से लद गई हैं। कहीं तो पत्ते हरे हैं और कहीं कोंपलों में लाली छाई है। उनके बीच सुंदर-सुगंधित फूल खिल रहे हैं। ऐसा लगता है कि उनके कंठों में सुगंध से भरे फूलों की मालाएँ पड़ी हैं। हे प्रिय! तुम जगह-जगह शोभा के वैभव को कूट-कूटकर भर रहे हो पर वह अपनी पुष्पलता के कारण उसमें समा नहीं पा रही और चारों ओर बिखरी पड़ी है।

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अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
2. कवि ने अपनी कविता में किसे अपनी बात कहनी चाही है?
3. कवि ने किस महीने की सुंदरता का वर्णन किया है?
4. कवि के प्रिय किसे और किसके द्वारा सुगंध से आपूरित कर देते हैं ?
5. कवि को मन के पंख क्यों प्रदान किए गए हैं ?
6. चारों ओर किसका सौंदर्य व्याप्त है ?
7. कवि किसकी ओर से अपनी आँख नहीं हटा पाता और क्यों ?
8. पेड़-पौधों की डालियाँ किस प्रकार के पत्तों से लद गई हैं ?
9. वन के वैभव में कूट-कूटकर क्या भरा हुआ है ?
10. कविता के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने फागुन महीने की अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है, जिसे देखकर कवि के हृदय में अनेक कल्पनाओं का जन्म होता है। कवि के अनुसार ईश्वर की रहस्यमयी शोभा सब तरफ़ व्याप्त है।
2. कवि ने कविता में रहस्यवादी भाव प्रकट करते हुए अपने प्रियतम से अपनी बात कहनी चाही है।
3. कवि ने फागुन के महीने की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है।
4. कवि के प्रिय अपनी श्वास से प्रकृति के कोने-कोने को सुगंध से आपूरित कर देते हैं।
5. कवि के मन को उसके प्रियतम द्वारा पंख इसलिए प्रदान किए गए, ताकि वह कल्पना के आकाश में स्वतंत्रतापूर्वक ऊँचा उड़ सके।
6. चारों ओर प्रकृति का सौंदर्य व्याप्त है।
7. कवि अपने चारों ओर फैले परमात्मा के सौंदर्य से आँख नहीं हटा पाता। उसका मन नैसर्गिक सौंदर्य में बँधकर रह गया है।
8. पेड़-पौधों की डालियाँ हरे-भरे पत्तों और नई-नई लाल कोंपलों से लद गई हैं।
9. वन के वैभव में शोभा और सौंदर्य कूट-कूटकर भरा हुआ है।
10. खड़ी बोली में रचित इस कविता में तत्सम और तद्भव शब्दावली का अधिक प्रयोग किया गया है। प्रसाद गुण का प्रयोग है। अतुकांत छंट है। विशेषोक्ति, असंगति, पुनरुक्ति प्रकाश, रूपक, पदमैत्री और स्वाभावोक्ति अलंकारों का सहज प्रयोग सराहनीय है।

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सिौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने किस प्रकार की भावना को व्यक्त किया है?
2. कविता में किस सुंदर छटा को मुखरित किया गया है?
3. भाषा में कौन-सा गुण विद्यमान है?
4. किस छंद का प्रयोग किया है ?
5. किस शब्द-शक्ति ने कवि के कथन को गहनता-गंभीरता प्रदान की है?
6. काव्य-गुण लिखिए।
7. किस बोली का प्रयोग किया गया है?
8. किस प्रकार के शब्दों का अधिक प्रयोग है?
9. दो तद्भव शब्द लिखिए।
10. एक मुहावरे का उल्लेख कीजिए।
11. अलंकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने रहस्यवादी भावना को प्रकट किया है। उसे सब दिशाओं में फागुन की सुंदरता और उल्लास समान रूप से फैला हुआ प्रतीत होता है।
2. प्रकृति की सुंदर छटा मुखरित हुई है।
3. भाषा में गेयता का गुण विद्यमान है।
4. अतुकांत छंद का प्रयोग है।
5. लाक्षणिकता के प्रयोग ने कवि के कथन को गहनता-गंभीरता प्रदान की है।
6. प्रसाद गुण विद्यमान है।
7. खड़ी बोली।
8. तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
9. माँस, आँख।
10. पट जाना, अट जाना।
11. अनुप्रास –

  • नहीं रही है
  • घर-घर भर
  • पर-पर कर
  • पाट-पाट
  • शोभा-श्री

विशेषोक्ति –

  • आँख हटाता हूँ तो
  • हट नहीं रही है।

पुनरुक्ति प्रकाश –
घर-घर, पर-पर, पाट-पाट

मानवीकरण –

  • कहीं साँस लेते हो
  • घर-घर भर देते हो
  • उड़ने को नभ में तुम
  • पर-पर कर देते हो।

उत्साह और अट नहीं रही Summary in Hindi

कवि-परिचय :

हिंदी साहित्य जगत में ‘महाप्राण निराला’ नाम से प्रसिद्ध सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म सन 1899 ई० में बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता रामसहाय त्रिपाठी उत्तर-प्रदेश के उन्नाव जिले के गाँव गढ़ाकोला के निवासी थे। वे तत्कालीन महिषादल रियासत में कोषाध्यक्ष थे। जब निराला जी तीन वर्ष के थे, तो इनकी माता का देहावसान हो गया था।

इनकी अधिकांश शिक्षा घर पर ही हुई। इन्होंने बाँग्ला, संस्कृत, अंग्रेजी, हिंदी आदि में रचित साहित्य का गहन अध्ययन किया था। पारिवारिक उत्तरदायित्वों को वहन करने के लिए इन्होंने महिषादल रियासत में नौकरी प्रारंभ की, किंतु कुछ कारणों से त्याग-पत्र देकर वहाँ से चले आए। कुछ समय तक वे रामकृष्ण मिशन कलकत्ता (कोलकाता) के पत्र ‘समन्वय’ का संपादन करते रहे।

बाद में इन्होंने ‘मतवाला’ पत्रिका का संपादन भी किया। 15 अगस्त 1961 ई० को इनका देहावसान हो गया। निराला जी अत्यंत उदार, स्वाभिमानी, अध्ययनशील, प्रकृति-प्रेमी तथा त्यागी व्यक्ति थे। वे स्वयं संगीत-प्रेमी थे। अतिथि-सत्कार करने में वे अत्यंत संतोष का अनुभव करते थे। वे विद्रोही प्रवृत्ति तथा पुरातन में नवीनता का समावेश करने वाले साहित्यकार थे।

रचनाएँ – निराला जी बहमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। इन्होंने गद्य और पद्य दोनों में लिखा। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –

काव्य रचनाएँ-अनामिका, परिमल, गीतिका, कुकुरमुत्ता, अणिमा, बेला, नए पत्ते, अपरा, अराधना, अर्चना, तुलसीदास, सरोज स्मृति, राम की शक्ति-पूजा, राग-विराग, वर्षा गीत आदि।
उपन्यास – अप्सरा, अलका, प्रभावती, निरूपमा, चोटी की पकड़, काले कारनामे, चमेली आदि।
कहानी संग्रह – लिली, सखी, चतुरी चमार तथा सुकुल की बीबी।
रेखाचित्र-कुल्ली भाट और बकरिहा।
निबंध संग्रह – प्रबंध पद्य, प्रबंध प्रतिमा, चाबुक, प्रबंध परिचय एवं रवींद्र कविता कानन।
जीवनियाँ – ध्रुव, भीष्म तथा राणा प्रताप।

अनुवाद – आनंदपाठ, कपाल कुंडला, चंद्रशेखर, दुर्गेश नंदिगी, कृष्णकांत का विल, युगलांगुलीय, रजनी, देवी चौधरानी, राधा रानी, विष वृक्ष, राजसिंह, महाभारत आदि। साहित्यिक विशेषताएँ-निराला जी हिंदी की छायावादी कविता के आधार-स्तंभ माने जाते हैं, किंतु इनकी कविता में छायावाद के अतिरिक्त प्रगतिवादी तथा प्रयोगवादी कविता की विशेषताएँ भी परिलक्षित होती हैं। इनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

1. वैयक्तिकता – छायावादी कवियों के समान निराला के काव्य में भी वैयक्तिकता की अभिव्यक्ति है। जूही की कली, हिंदी के सुमनों के प्रति, मैं अकेला, राम की शक्ति-पूजा, विफल वासना, स्नेह निर्झर बह गया है, सरोज-स्मृति आदि अनेक कविताओं में हमें निराला की वैयक्तिक भावना की सफल अभिव्यक्ति मिलती है।

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2. निराशा, वेदना, दुखवाद एवं करुणा की विवृत्ति-छायावादी कवि वेदना एवं दुख को जीवन का सर्वस्व मानते हैं। निराला जी ने वेदना एवं दुखवाद को कई प्रकार से प्रकट किया है। इसका मूल हेतु जीवन की निराशा है –

“दिए हैं मैंने जगत को फूल फल, किया है अपनी प्रभा से चकित-चल,
यह अनश्वर था सफल पल्लवित तल, ठाट जीवन का वही जो ढह गया है।”

सामाजिक विषमताओं को देखकर कवि निराला का मन खिन्न हो जाता है। उनके मन में वेदना और निराशा के भाव भर जाते हैं।

3. प्रकृति-चित्रण-निराला ने प्रकृति पर सर्वत्र चेतना का आरोप किया है। उनकी दृष्टि में बादल, प्रपात, यमुना-सभी कुछ चेतना है। वे यमुना से पूछते हैं –

“तू किस विस्मृत की वीणा से, उठ उठ कर कातर झंकार।
उत्सुकता से उकता-उकता, खोल रही स्मृति के दृढ़ द्वार?”

4. मानवतावादी जीवन-दर्शन – निराला के काव्य में मानवतावादी जीवन-दर्शन की अभिव्यक्ति हुई है। बादल राग’ में कवि समाज की विषमता से पीड़ित होकर कहता है –

“विप्लव रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।
अट्टालिका नहीं है रे, आतंक भवन।”

‘तोड़ती पत्थर’ तथा ‘भिक्षुक’ जैसी कविताओं में निराला जी ने मानव में छिपे हुए देवता का दर्शन किया है। यथा –

“ठहरो अहो मेरे हृदय में है अमृत, मैं सींच दूंगा
अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम।”

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5. नारी का विविध एवं नवीन रूपों में चित्रण – नारी के प्रति उनके हृदय में गहरी सहानुभूति है। कहीं वह जीवन की सहचरी एवं प्रेयसी है और कहीं उन्हें वह प्रकृति में व्याप्त होकर अलौकिक भावों से अभिभूत करती हुई दिखाई देती है। कहीं वे उसके दिव्यदर्शन की झलक पाते हैं और कहीं नारी को लक्ष्य करके वे कवि प्रेमोन्माद की अस्फुट मनोवृत्ति का चित्रण करते हैं। ‘तोड़ती पत्थर’ कविता में ‘मज़दूरिनी’ के प्रति गहरी सहानुभूति प्रदर्शित करते हुए निराला यह लिखना नहीं भूलते हैं कि –

“श्याम तन, भर बंधा यौवन…,
देख मुख उस दृष्टि से…,
ढुलक माथे से गिरे सीकर।”

6. सामाजिक चेतना – निराला जी चाहते हैं कि समाज का प्रत्येक प्राणी सुखी हो। निराला ने अपने प्रसिद्ध वंदना गीत ‘वीणा वादिनी वर दे’ में प्रार्थना की है कि मानव-समाज में नवीन शक्तियों का आविर्भाव हो, जिससे प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्तव्य का पालन कर सके। निराला ने अपनी पैनी दृष्टि से समाज के सच्चे रूप को देखा था और अपने गरीब जीवन को सहा था।

7. देश-प्रेम की अभिव्यक्ति – देश के सांस्कृतिक पतन की ओर निराला जी ने बड़ी ओजस्विनी भाषा में इंगित किए हैं। इनका कहना है कि देश के भाग्याकाश को विदेशी शासक के राहू ने ग्रस रखा है। वे चाहते हैं कि किस प्रकार देश का भाग्योदय हो और भारतीय जन-मन आनंद-विभोर हो उठे। भारती वंदना, जागो फिर एक बार, तुलसीदास, छत्रपति शिवाजी का पत्र आदि कविताओं में निराला जी ने देश-भक्ति के भाव प्रकट किए हैं।

8. विद्रोह का स्वर एवं स्वच्छंदता – अन्य छायावादी कवियों की अपेक्षा निराला जी कहीं अधिक विद्रोही एवं स्वच्छंदता के प्रेमी थे। वस्तुतः वे जीवनपर्यंत विद्रोह एवं संघर्ष ही करते रहे। अपनी संस्कृति का दंभ भरने वालों को ललकारते हुए निराला जी ने लिखा है-‘हज़ार वर्ष से सलाम ठोकते-ठोकते नाक में दम हो गया, अपनी संस्कृति लिए फिरते हैं। ऐसे लोग संसार की तरफ़ से आँखें बंदकर अपने ही विवर में व्याघ्र बन बैठे रहते हैं। अपनी ही दिशा में ऊँट बनकर चलते हैं।’

9. कला पक्ष-निराला जी ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए जिस छंद को चुना है, उसे मुक्त छंद कहा जाता है। काव्य के कला पक्ष के अंतर्गत हम मुक्तक छंद को निराला की सबसे बड़ी देन कह सकते हैं। निराला की भाषा की प्रमुख विशेषताएँ कोमलता, शब्दों की मधुर योजना, भाषा का लाक्षणिक प्रयोग, संगीतात्मकता, चित्रात्मकता, प्रकृतिजन्य प्रतीकों की प्रचुरता आदि हैं। निराला को संगीत शास्त्र का अच्छा ज्ञान था। वे स्वयं भी अच्छे गायक थे। उनकी कविता में संगीतात्मकता का सुंदर निर्वाह मिलता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

कविता का सार :

करते हुए निराला जी ने बादलों के माध्यम से अपने भावों को प्रकट किया है। कविता में बादल एक ओर भूखे-प्यासे और पीड़ित लोगों की इच्छाओं-आकांक्षाओं को पूरा करते दिखाए गए हैं, तो दूसरी ओर उसे नए अंकुर के लिए विध्वंस, विप्लव और क्रांति की चेतना को वाले तत्व के रूप में प्रस्तुत किया है। कवि ने जीवन को व्यापक और समग्र दृष्टि से देखते हुए अपने मन की कल्पना और क्रांति चेतना की ओर ध्यान दिया है। साहित्य की सामाजिक परिवर्तन में सदा ही महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है।

कवि बादलों से गरज-गरजकर : बरसने की बात कहता है। सुंदर और काले बादल अबोध बालकों की कल्पना के समान हैं। वे नई सृष्टि की रचना करते हैं। उनके भीतर वज्रपात की शक्ति छिपी हुई है। कवि बादलों का आह्वान करता है कि वे बरसकर गरमी के ताप से तपी हुई धरती को शीतलता प्रदान करें। अट नहीं रही है-निराला जी ने अपनी इस रहस्यवादी कविता में फागुन मास की मादकता का सुंदर चित्रण किया है। जब व्यक्ति के मन में प्रसन्नता हो, तो हर तरफ़ फागुन की सुंदरता और उल्लास भरा रूप ही दिखाई देता है।

कवि को सारी प्रकृति में सुंदरता फूटती-सी प्रतीत होतो है; उसके कोने-कोने में सुगंध प्रतीत होती है। इससे मन में तरह-तरह की लेती हैं। वनों के सभी पेड़ नए-नए पत्तों से लद गए हैं। वे पत्ते कहीं हरे हैं, तो कहीं केवल कोंपलों के रूप में लाल हैं। उनके बीच में सुगंधित फूल खिल रहे हैं। सारे वन का वैभव अति आकर्षक और मधुर है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

JAC Class 10 Hindi आत्मकथ्य Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है ?
उत्तर :
कवि आत्मकथा लिखने से बचना चाहता है, क्योंकि उसे लगता है कि उसका जीवन साधारण-सा है। उसमें कुछ भी ऐसा नहीं जिससे लोगों को किसी प्रकार की प्रसन्नता प्राप्त हो सके। उसका जीवन अभावों से भरा हुआ है, जिन्हें वह औरों के साथ बाटना नहीं चाहता उसके जीवन में किसी के प्रति कोमल भाव अवश्य था, जो उसके निजी सुखद क्षण हैं इसे किसी को बताना नहीं चाहता।

प्रश्न 2.
आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में अभी समय भी नहीं कवि ऐसा क्यों कहता है?
उत्तर :
कवि को लगता है कि अभी उसके जीवन में बड़ी-बड़ी उपलब्धियाँ नहीं हैं, जिन्हें दूसरों के सामने प्रकट किया जा सके। वह अपने अभावग्रस्त जीवन के कष्टों को अपने हृदय में छिपाकर रखना चाहता है। इसलिए वह कहता है- अभी समय भी नहीं ।

प्रश्न 3.
स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का क्या आशय है?
उत्तर :
‘पाथेय’ का शाब्दिक अर्थ है-‘सबल’ या ‘रास्ते का सहारा’। कवि के हृदय में किसी अति रूपवान के लिए गहरा प्रेमभाव था। उसके प्रति मधुर यादें थीं और वे यादें ही उसके जीवन की आधार थीं, जिन्हें वह न तो औरों के सामने प्रकट करना चाहता था और न ही ‘स्मृति रूपी सहारे’ को अपने से दूर करना चाहता था। कवि के मन में छिपी मधुर स्मृतियाँ उसके सुखों का आधार थीं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट करें –
(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
(ख) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उत्तर :
(क) कवि का कहना है कि उसे अपने जीवन में सुखों की प्राप्ति नहीं हुई। हर व्यक्ति की तरह वह भी अपने जीवन में सुख चाहता था। अवचेतन में छिपे सुख के भावों के कारण कवि ने भी सुख भरा सपना देखा था, पर वह सुख कभी उसे वास्तव में प्राप्त नहीं हुआ। वह सुख उसके बिलकुल पास आते-आते मुस्कुराकर दूर भाग गया।

(ख) कवि का प्रियतम अति सुंदर था। उसकी गालों पर मस्ती भरी लाली छाई हुई थी। उसकी सुंदर छाया में प्रेमभरी भोर भी अपने सुहाग की मधुरिमा प्राप्त करती थी।

प्रश्न 5.
‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’-कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है? उत्तर
अभाव
थे: दख थे: पीडा थी. पर फिर भी उसे कोई प्रेम करने वाला था। लेकिन कवि उस प्रेम-भाव को जग-जाहिर नहीं करना चाहता। वह उसे नितांत अपना मानता है, इसलिए वह मधुर चाँदनी की उस उज्ज्वल कहानी को दूसरों के लिए नहीं गाना चाहता।

प्रश्न 6.
‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर :
जयशंकर प्रसाद की कविता ‘आत्मकथ्य’ पर छायावादी काव्य-शिल्प की सीधी छाप दिखाई देती है, जिसे निम्न आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है –
1. भाषा की कोमलता-प्रसाद ने अपनी कविता में भाषा की कोमलता पर विशेष ध्यान दिया है। खड़ी बोली में रचित ‘आत्मकथ्य’ में कोमल शब्दों के प्रयोग की अधिकता है। ये शब्द मधुर और कर्णप्रिय हैं –

जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

कवि ने तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग किया है, जिससे शब्दों पर उनकी पकड़ का पता चलता है।

2. भाषा की लाक्षणिकता-लाक्षणिकता प्रसाद जी के काव्य की महत्वपूर्ण विशेषता है। इसके द्वारा कवि ने अपने सूक्ष्म भावों को सहजता से प्रकट किया है –

सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।

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3. भाषा की प्रतीकात्मकता-कवि ने अपनी कविता में प्रतीकात्मकता का भी अधिक प्रयोग किया है। उन्होंने प्रकृति-जगत से अपने अधिकांश प्रतीकों का प्रयोग किया है –

मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।

‘मधुप’ मनरूपी भँवरा है, जो ‘गुनगुना’ कर भावों को प्रकट करता है। मुरझाकर गिरती ‘पत्तियाँ’ नश्वरता की प्रतीक हैं। कवि ने अपनी इस कविता में ‘अनंत-नीलिमा’, ‘गागर रीति’, ‘उज्ज्वल गाथा’, ‘चाँदनी रातों की’, ‘अनुरागिनी उषा’, ‘स्मृति पाथेय’, ‘थके पथिक’, ‘सीवन को उधेड़’, ‘कंथा’ आदि प्रतीकात्मक शब्दों का सहज-सुंदर प्रयोग किया है। -भाषा की चित्रमयता-प्रसाद की इस कविता की एक अनुपम विशेषता है-‘चित्रमयता’। कवि ने इसके द्वारा पाठक के सामने एक चित्र-सा प्रस्तुत किया है। इससे कविता में बिंब उपस्थित करने में सफलता मिली है।

5. भाषा की संगीतात्मकता – इस कविता में संगीतात्मकता का तत्व निश्चित रूप से विद्यमान है। इसका कारण यह है कि कवि को नाद, लय और छंद तीनों का अच्छा ज्ञान था। स्वरमैत्री ने संगीतात्मकता को उत्पन्न करने में सहायता प्रदान की है –

छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?

6. भाषा की आलंकारिकता – भाषा को सजाने और प्रभावपूर्ण बनाने के लिए प्रसाद ने अपनी कविता में जगह-जगह अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया है –
(i) मधुप गुनगुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी-अनुप्रास
(ii) आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया-पुनरुक्ति प्रकाश
(iii) सीवन को उधेड़कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?-प्रश्न
(iv) अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में-मानवीकरण

7. मधुर-शब्द योजना – कवि को शब्दों की अंतरात्मा की सूक्ष्म पहचान है। जो शब्द जहाँ ठीक लगता है, कवि ने इसका वहीं प्रयोग किया है –

उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?

इन पंक्तियों में ‘पाथेय’, ‘पथिक’, ‘पंथा’, ‘सीवन’, ‘कंथा’ आदि अत्यंत सटीक और सार्थक शब्द हैं, जो विशेष भावों को व्यक्त करते हैं।

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प्रश्न 7.
कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है ?
उत्तर :
कवि ने सुख के जिस स्वप्न को देखा था उसे वह प्राप्त नहीं कर पाया। वह स्वप्न अधूरा ही रह गया, पर कवि के मन में उसकी याद गहराई से जमी हुई थी। कवि के हृदय में अपने प्रिय की सुखद छवि विद्यमान थी। उसका प्रिय भोला-भाला था, जिसके लिए कवि ने ‘सरलते’ शब्द का प्रयोग किया है। उसके लिए रस से भीगे अतीत के उन दिनों को भुला पाना कभी संभव नहीं हो पाया। वे प्यार-भरी मधुर चाँदनी रातें उसके लिए सदा याद रखने योग्य थीं। वे उसे अलौकिक आनंद प्रदान करती थीं।

प्रिय की हँसी का स्रोत उसके जीवन के कण-कण को सराबोर किए रहता था, पर वह कल्पना मात्र था। जब तक सपना आँखों के सामने छाया रहा, तब तक वह प्रसन्नता से भरा रहा; पर स्वप्न के समाप्त होते ही जीवन की वास्तविकता उसके सामने आ गई। उसकी आनंद-कल्पना अधूरी रह गई। उसका प्रिय अपार सौंदर्य का स्वामी था। उसके गालों की सौंदर्य-लालिमा के सामने उषा की लालिमा भी फीकी थी, पर अब वह दृश्य ही बदल गया है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 8.
इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
श्री जयशंकर प्रसाद हिंदी के छायावादी काव्य के प्रवर्तक हैं। उन्होंने इस कविता में अपने व्यक्तित्व की हल्की-सी झलक दी है। वे अभावग्रस्त थे; वे धन-संपन्न नहीं थे; वे सामान्य जीवन जीते हुए यथार्थ को स्वीकार करते थे। वे अति विनम्र थे। उन्हें लगता था कि उनके जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो दूसरों को सुख दे सके इसलिए वे अपनी जीवन-कहानी औरों को नहीं सुनाना चाहते थे –

तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीति।

वे प्रेमी-हृदय थे। उन्हें किसी से प्रेम था, पर वे उसके प्रेम को पा नहीं सके। वे स्वभाव से ऐसे थे कि न तो अपनी पीड़ा दूसरों के सामने प्रकट करना चाहते थे और न ही किसी की हँसी उड़ाना चाहते थे। वे दूसरों को अपने छोटे-से जीवन की कहानियाँ नहीं सुनाना चाहते थे। वे अपनी पीड़ा को अपने हृदय में समेटकर रखना चाहते थे।

प्रश्न 9.
आप किन व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहेंगे और क्यों?
उत्तर :
महान व्यक्तियों के द्वारा लिखित आत्मकथाएँ प्रेरणा की स्रोत होती हैं। ये पाठकों का मार्गदर्शन करती हैं। इनमें लेखक अपने जीवन की विभिन्न परिस्थितियों और दशाओं का वर्णन करते हैं। वे अपने जीवन पर पड़े विभिन्न प्रभावों का उल्लेख भी करते हैं। मैं महापंडित राहुल सांकृत्यायन के द्वारा रचित आत्मकथा ‘मेरी जीवन यात्रा’ पढ़ना चाहूँगा।

इसे पढ़ने से देश-विदेश में घूमने और स्थान-स्थान के ज्ञान को प्राप्त करने की प्रेरणा मिलेगी, विभिन्न क्षेत्रों के जीवन और रीति-रिवाजों को समझने की क्षमता मिलेगी। इसके अतिरिक्त मैं हरिवंशराय बच्चन की ‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’ और ‘नीड़ का निर्माण फिर-फिर’ पढ़ना चाहूँगा। इनसे एक महान लेखक और कवि के जीवन को निकट से जानने का अवसर मिलेगा।

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प्रश्न 10.
कोई भी अपनी आत्मकथा लिख सकता है। उसके लिए विशिष्ट या बड़ा होना जरूरी नहीं। हरियाणा राज्य के गुड़गाँव में घरेलू सहायिका के रूप में काम करने वाली बेबी हालदार की आत्मकथा बहुतों के द्वारा सराही गई। आत्मकथात्मक शैली में अपने बारे में कुछ लिखिए।
उत्तर :
मैं अपने जीवन में कुछ ऐसा करना चाहती हूँ जिससे समाज में मेरा नाम हो; प्रतिष्ठा हो और लोग मेरे कारण मेरे परिवार को पहचाने। जीवन तो सभी प्राणी भगवान से प्राप्त करते हैं; पशु भी जीवित रहते हैं, पर उनका जीवन भी क्या जीवन है ? अनजाने-से इस दुनिया में। आते हैं और वैसे ही मर जाते हैं। मैं अपना जीवन ऐसे व्यतीत नहीं करना चाहती। मैं चाहती हूँ कि मेरी मृत्यु भी ऐसी हो, जिस पर सभी गर्व करें और युगों तक मेरा नाम प्रशंसापूर्वक लेते रहे।

मेरे कारण मेरे नगर और मेरे देश का नाम ख्याति प्राप्त करे। कल्पना चावला इस संसार में आईं और चली गईं। उनका धरती पर आना तो सामान्य था, पर यहाँ से जाना सामान्य नहीं था। आज उन्हें हमारा देश ही नहीं सारा संसार जानता है। उनके कारण उनके पैतृक शहर करनाल का नाम अब सभी की जुबान पर है। मैं भी चाहती हूँ कि अपने जीवन में मैं इतना परिश्रम करूँ कि मुझे विशेष पहचान मिले। मैं अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने देश की कीर्ति का कारण बनूँ।

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
किसी भी चर्चित व्यक्ति का अपनी निजता को सार्वजनिक करना या दूसरों का उनसे ऐसी अपेक्षा करना सही है-इस विषय के पक्ष-विपक्ष में कक्षा में चर्चा करें।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से कीजिए।

प्रश्न 2.
बिना ईमानदारी और साहस की आत्मकथा नहीं लिखी जा सकती। गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ पढ़कर पता लगाइए कि उसकी क्या-क्या विशेषताएँ हैं ?
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से कीजिए।

यह भी जानें –

प्रगतिशील चेतना की साहित्यिक मासिक पत्रिका हंस प्रेमचंद ने सन 1930 से 1936 तक निकाली थी। पुनः सन 1956 से यह साहित्यिक पत्रिका निकल रही है और इसके संपादक राजेंद्र यादव हैं।

बनारसीदास जैन कृत अर्धकथानक हिंदी की पहली आत्मकथा मानी जाती है। इसकी रचना सन 1641 में हुई और यह पद्यात्मक है। आत्मकथ्य का एक अन्य रूप यह भी देखें –

मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।
मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना;
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना!
मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ;
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ,
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ!

– कवि बच्चन की आत्म-परिचय
कविता का अंश

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सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण संबंधी एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर – 

1. मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।

शब्दार्थ : मधुप – भँवरा, मनरूपी भँवरा। घनी – अत्यधिक। अनंत नीलिमा – अंतहीन विस्तार। असंख्य – अनगिनत; जिसकी गणना न की जा सके। मलिन – मैला। उपहास – मज़ाक। दुर्बलता – कमज़ोरी। गागर रीति – खाली घड़ा, ऐसा मन जिसमें कोई भाव नहीं।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई है। जिसके रचयिता छायावादी काव्य के प्रवर्तक श्री जयशंकर प्रसाद हैं। इसके माध्यम से कवि ने कहा है कि उनके जीवन में ऐसा कुछ भी विशेष नहीं है जो औरों को कुछ सरस दे पाए।

व्याख्या : कवि कहता है कि जीवनरूपी उपवन में उसका मनरूपी भँवरा गुनगुना कर न जाने अपनी कौन-सी कहानी कह जाता है। उस कहानी से किसी को सुख मिलता है या दुख, वह नहीं जानता। लेकिन इतना अवश्य है कि आज उपवन में कितनी अधिक पत्तियाँ मुरझाकर झड़ रही हैं। कवि का स्वर निराशा के भावों से भरा है। उसे केवल दुख और पीड़ारूपी मुरझाई पत्तियाँ ही दिखाई देती हैं। उसकी न जाने कितनी इच्छाएँ पूरी हुए बिना ही मन में घुटकर रह गईं।

उचित परिस्थितियों और वातावरण को न पाकर वे समय से पहले ही पीले-सूखे पत्तों की तरह मुरझाकर मिट गईं। जीवन के अंतहीन गंभीर विस्तार में जीवन के असंख्य इतिहास रचे जाते हैं। वे बीती हुई निराशा भरी बातें कवि की स्थिति और पीड़ा पर व्यंग्य करती हैं; उसका उपहास उड़ाती हैं और कवि चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता। वह अपने जीवन की विवशताओं के सामने असहाय है; हताश है।

उसकी पीड़ा भरी जिंदगी के बारे में जानने की इच्छा रखने वालों से वह दुख भरे स्वर में पूछता है कि उसकी पीड़ा और विवशता को देखकर भी क्या वे चाहते हैं कि कवि अपनी पीड़ा, दुर्बलता और अपने पर बीती दुखभरी कहानी को फिर से सुनाए; फिर से दोहराए ? क्या उसकी पीड़ा देखकर नहीं समझी जा सकती? जब तुम उसकी जीवनरूपी खाली गागर को देखोगे, तो क्या तुम्हें उसे देख-सुनकर सुख प्राप्त होगा? मेरे हताश और निराशा से भरे अभावपूर्ण मन में कोई ऐसा भाव नहीं है, जिसे दूसरों को सुनाया जा सके।

अर्धग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पंक्तियों में निहित भाव स्पष्ट करें।
2. ‘मधुप’ में विद्यमान प्रतीकात्मकता लिखिए।
3. ‘पत्तियों का मुरझाना’ किसे स्पष्ट करता है?
4. ‘अनंत-नीलिमा’ और ‘असंख्य जीवन इतिहास’ क्या है?
5. कवि किससे कहता है-‘कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती’?
6. ‘रीति गागर’ क्या है?
7. व्यंग्य-उपहास कौन करते हैं ?
8. ‘तुम सुनकर सुख पाओगे’ में छिपे अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
9. कवि का जीवन कैसा था?
10. कवि अपनी कथा क्यों नहीं सुनाना चाहता था?
उत्तर :
1. कवि का जीवन दुखों और अभावों से भरा हुआ है, जिसकी व्यथा भरी कहानी वह औरों को नहीं सुनाना चाहता। किसी व्यक्ति की पीड़ा भरी कहानी को सुनकर किसी को खुशी प्राप्त नहीं होती।
2. ‘मधुप’ एक प्रतीकात्मक शब्द है। यह ‘मन’ को प्रकट करता है, जो भँवरे के समान जहाँ-तहाँ उड़कर कहीं भी पहुँच जाता है।
3. ‘पत्तियों का मुरझाना’ मन में उत्पन्न सुख और आनंद के भावों का मिट जाना है। तरह-तरह के अभावों के कारण कवि के हृदय में उत्पन्न भाव दबकर रह जाते थे।
4. ‘अनंत-नीलिमा’ जीवन का अंतहीन विस्तार है। मनुष्य अपने मन में हर समय न जाने कौन-कौन से विचार अनुभव करता है। यदि वे सुखद होते हैं, तो दुखद भी होते हैं। ‘अनंत-नीलिमा’ लाक्षणिक शब्द है, जो अपने भीतर व्यापकता के भावों को छिपाए हुए है। ‘असंख्य जीवन इतिहास’ मानव-मन में उत्पन्न वे विभिन्न विचार हैं, जो तरह-तरह की घटनाओं के घटित होने के आधार बने।
5. ‘कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती’-कवि उन लोगों से कहता है, जो उसकी पीड़ा भरी जिंदगी के विषय में जानना चाहते हैं।
6. ‘रीति सागर’ में लाक्षणिकता और प्रतीकात्मकता है, जो कवि के अभावग्रस्त जीवन की ओर संकेत करती है जिसमें कोई सुख-सुविधा नहीं है।
7. कवि के अपने ही मन की निराशा भरी बातें उस पर व्यंग्य-उपहास करती हैं।
8. कवि व्यंग्यार्थ का प्रयोग करते हुए कहता है कि क्या उसके जीवन को जानने की इच्छा रखने वाले लोग उसकी पीड़ा और व्यथा को सुनकर प्रसन्नता प्राप्त कर सकेंगे। निश्चित रूप से उन्हें उसकी पीड़ा भरी कहानी को सुनकर किसी आनंद की प्राप्ति कदापि नहीं होगी।
9. कवि का जीवन दुख और निराशा से भरा हुआ था।
10. कवि के जीवन में केवल असफलता, पीड़ा, दुख और निराशा के भाव ही थे; इसलिए वह अपनी कथा नहीं सुनाना चाहता था।

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सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तरी –

प्रश्न :
1. कवि ने किस काव्य-शैली का प्रयोग किया है?
2. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग दिखाई देता है ?
3. कवि ने किन प्रतीकात्मक शब्दों का प्रयोग किया है?
4. कवि ने किस बोली का प्रयोग किया है ?
5. पंक्तियों में किस प्रकार के शब्दों की अधिकता है?
6. गेयात्मकता की सृष्टि किससे हुई है?
7. किस काव्य-गुण का प्रयोग किया गया है?
8. किस काव्य-रस का समावेशन हुआ है?
9. दो तत्सम शब्द छाँटकर लिखिए।
10. कविता का संबंध हिंदी के किस वाद से है?
11. अवतरण से अलंकार छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
1. कवि ने अपने हृदय की पीड़ा और असहायता को आत्मकथात्मक शैली में प्रकट किया है और कहा है कि उसकी दुख भरी कहानी सुनने-सुनाने के योग्य नहीं है।
2. लाक्षणिकता का प्रयोग किया गया है।
3. मधुप, पत्तियाँ, अनंत-नीलिमा, जीवन-इतिहास, रीति गागर आदि में प्रतीकात्मकता विद्यमान है।
4. खड़ी बोली।
5. तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
6. स्वरमैत्री ने गयात्मकता की सृष्टि की है।
7. प्रसाद गुण विद्यमान है।
8. करुण रस का प्रयोग है।
9. मधुप, अनंत।
10. छायावाद।
11. अनुप्रास –
कर कह जाता कौन कहानी

रूपकातिशयोक्ति –
‘मधुप गुन-गुना कर कह जाता है’ में ‘मधुप’ मनरूपी भँवरे के लिए प्रयुक्त हुआ है।
‘गागर रीती’, ‘जीवनरूपी खाली गागर’ के लिए प्रयुक्त हुआ है।

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2. किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
रह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की।

शब्दार्थ : विडंबना – निराश करना, उपहास का विषय। प्रवंचना – धोखा।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई है। जिसके रचयिता छायावादी काव्यधारा के प्रवर्तक श्री जयशंकर प्रसाद हैं। उन्हें ‘हंस’ नामक पत्रिका के लिए आत्मकथा लिखने के लिए कहा गया था, लेकिन कवि को ऐसा प्रतीत होता है कि वे अति साधारण हैं और उनके जीवन में कुछ भी ऐसा नहीं है, जिसे पढ़-सुनकर लोग वाह-वाह कर उठे। कवि ने यथार्थ के साथ-साथ अपने विनम्र भावों को प्रकट किया है।

व्याख्या : जो लोग कवि की दुखपूर्ण कथा को सुनना चाहते हैं, कवि उनसे कहता है कि उसकी कथा सुनकर कहीं वे यह न समझने लगे कि वही उसकी जीवनरूपी गागर को खाली करने वाले थे। वे सब अपने आपको समझें; स्वयं को पहचानें। वे उसके भावों के रस को प्राप्त कर अपने आप को भरने वाले थे। अरे सरल मन वालो! यह उपहास और निराशा का विषय है कि मैं तुम्हारी हँसी उड़ाऊँ। मैं अपने दवारा की गई गलतियों या दूसरों के द्वारा दिए गए धोखों को क्यों प्रकट करूँ ? आत्मकथा के नाम से मुझे अपनी या औरों की बातें जग-जाहिर नहीं करनी।

कवि कहता है कि उसके जीवन में पूर्ण रूप से पीड़ा और निराशा की कालिमा नहीं है; उसमें मधुर चाँदनी रातों की मीठी स्मृतियाँ भी हैं, पर वह उन उज्ज्वल गाथाओं को कैसे गाए और वह उन्हें क्यों प्रकट करे? वह अपने जीवन के कोमल पक्षों में सभी को भागीदार नहीं बनाना चाहता, क्योंकि वे उसकी निजी यादें हैं। वह अपनी मधुर स्मृतियों में सबकी साझेदारी नहीं चाहता। वह कभी अपनों के साथ खिलखिलाकर हँसा था; मीठी बातों में डूबा था और उसका हृदय प्रसन्नता से भर उठा था-उन क्षणों को वह औरों को क्यों बताए?

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पंक्तियों में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. कवि ने किसका रस लेने की बात कही है ?
3. कवि ने ‘खाली करने वाला’ किसे कहा है?
4. ‘अरी सरलते’ में विद्यमान विशिष्टता क्या है?
5. कवि अपनी कथनी के द्वारा क्या बताना चाहता है ?
6. ‘उज्ज्वल गाथा’ में निहित प्रतीकार्थ स्पष्ट कीजिए।
7. कवि औरों के समक्ष किस गाथा को नहीं गाना चाहता?
8. ‘उन बातों में छिपा भाव स्पष्ट कीजिए।
9. ‘विडंबना’ में छिपा अर्थ व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
1. कवि अपने सुख-दुख की गाथा को जग-जाहिर नहीं करना चाहता। वह कहता था कि उसके पास ऐसा कुछ नहीं है, जो औरों को प्रसन्नता दे सके। कवि न तो अपनी सुख भरी बातें प्रकट करना चाहता है और न ही दूसरों की भूलें व्यक्त करना चाहता है।
2. कवि ने अपना प्रेम भरा रस लेने की बात कही है।
3. कवि ने ‘खाली करने वाला’ उन्हें कहा है, जो उसकी दुखभरी कहानी सुनने की इच्छा करते हैं।
4. ‘अरी सरलते’ में प्रेमपूर्ण संबोधन विद्यमान है, जिससे कवि ने अपनत्व का भाव प्रकट किया है।
5. कवि अपनी कथनी के द्वारा बताना चाहता है कि वह न तो औरों की आलोचना करना चाहता है और न ही सबको अपनी व्यक्तिगत बातें सुनाना चाहता है।
6. ‘उज्ज्वल गाथा’ प्रतीकात्मकता और लाक्षणिकता से परिपूर्ण है, जिसमें कवि हृदय में छिपा प्रेम और अपनत्व का भाव प्रकट होता है। कवि को इससे सुख की अनुभूति हुई थी।
7. कवि उस गाथा को औरों के समक्ष नहीं गाना चाहता, जो उसकी पूर्ण रूप से व्यक्तिगत है; जिसमें उसकी प्रेमानुभूति छिपी हुई है।
8. ‘उन बातों में गूढार्थ विद्यमान है। इनसे कवि को जीवन में सुख प्राप्त हुआ था।
9. ‘विडंबना’ का अर्थ है-‘उपहास का विषय’ या ‘निराश करना’। कवि किसी का उपहास नहीं उड़ाना चाहता। वह अपनी बात से किसी की हँसी उड़ाकर उसे व्यथित करने के बारे में सोच भी नहीं सकता।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

सौदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने किसे व्यक्तिगत माना है?
2. पंक्तियों में किस शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है?
3. कवि ने किस बोली का प्रयोग किया है?
4. किस प्रकार की शब्दावली का प्रयोग किया गया है?
5. किस काव्य-गुण का प्रयोग दिखाई देता है?
6. नाटकीयता की सृष्टि का आधार क्या है?
7. लयात्मकता का आधार क्या है?
8. कवि ने किस शैली का प्रयोग किया है ?
9. दो तत्सम शब्दों को चुनकर लिखिए।
10. प्रयुक्त अलंकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने अपने सुख-दुख को व्यक्तिगत माना है और वह उन्हें सबके साथ नहीं बाँटना चाहता।
2. लाक्षणिकता का सुंदर प्रयोग किया गया है।
3. खड़ी बोली।
4. तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
5. प्रसाद गुण विद्यमान है।
6. संबोधन शैली के प्रयोग ने नाटकीयता की सृष्टि की है।
7. स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
8. आत्मकथात्मक शैली।
9. प्रवंचना, उज्ज्वल।
10. मानवीकरण –
अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों में।

अनुप्रास –
किंतु कहीं ऐसा न हो।
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ।

3. मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?

शब्दार्थ : स्वप्न – सपना। मुसक्या कर – मुस्कुराकर। अरुण-कपोलों – लाल गालों। मतवाली – मस्ती भरी। अनुरागिनी उषा – प्रेमभरी भोर । निज – अपना। स्मृति पाथेय – स्मृति रूपी सहारा। पथिक – मुसाफ़िर; यात्री। पंथा – रास्ता, राह। सीवन – सिलाई। कंथा – गुदड़ी, अंतर्मन।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ छायावादी कवि श्री जयशंकर प्रसाद के द्वारा रचित कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई हैं। कवि ने अपने जीवन की कहानी किसी को न सुनाने के बारे में सोचा था, क्योंकि उसे लगता था कि उसके जीवन में कुछ भी ऐसा सुखद नहीं था, जो किसी को सुख दे सके। उसके पास केवल सुखद यादें अवश्य थीं।

व्याख्या : कवि कहता है कि उसे अपने जीवन में कभी किसी सुख की प्राप्ति नहीं हुई। सपने में जिस सुख को अनुभव कर वह नींद से जाग गया था, वह भी उसे प्राप्त नहीं हुआ। वह सुख देने वाला उसके आलिंगन में आते-आते धीरे से मुस्कुराकर उससे दूर हो गया; उसे प्राप्त नहीं हुआ। जो सपने में सुख और प्रेम का आधार बना था, वह अपार सुंदर और मोहक था। उसके लाल-गुलाबी गालों की मस्ती भरी छाया में प्रेम भरी भोर अपने सुहाग की मिठास भरी मनोहरता को लेकर प्रकट हो गई थी।

भाव यह है कि उसके गालों में प्रात:कालीन लाली और शोभा विद्यमान थी। जीवन की लंबी राह पर थककर चूर हुए कविरूपी यात्री की स्मृतियों में केवल वही एक सहारा थी। उसकी यादें ही उसकी थकान को कुछ कम करती थीं। कवि नहीं चाहता कि उसकी मधुर यादों के आधार को कोई जाने। वह पूछता है कि क्या उसके अंतर्मन रूपी गुदड़ी की सिलाई को उधेड़कर उस छिपे रहस्य को आप देखना चाहेंगे? भाव यह है कि कवि उस रहस्य को अपने भीतर सँभालकर रखना चाहता है; उसे व्यक्त नहीं करना चाहता।

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अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पंक्तियों में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
2. कवि नींद से क्यों जाग गया था?
3. कवि किसे आलिंगन में लेने को आतुर था?
4. कवि के प्रिय का रूप कैसा था?
5. कवि ने भोर को कैसा माना है?
6. कवि को किसका सहारा प्राप्त हुआ था ?
7. कवि अपना रास्ता कैसा मानता है ?
8. ‘सीवन को उधेड़ना’ क्या है?
9. ‘कंथा’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
1. कवि को जीवन में किसी से प्रेम हुआ था, पर उसे अपने प्रेम की प्राप्ति नहीं हुई। कवि को लगता है कि उसके प्रिय की अपार सुंदरता ही उसके जीवन की प्रेरणा है और उसके स्मृतिरूपी सहारे से वह अपने जीवन की थकान को कम करने में सफल हुआ है। कवि के जीवन से परिचित होने की इच्छा रखने वालों को उसके प्रेम के विषय में जानने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वह विषय उसका पूर्णरूप से निजी था।
2. कवि उस स्वप्न को देखकर नींद से जाग गया था, जिसके सुख को उसने पाया ही नहीं था।
3. कवि स्वप्न में देखे अपने प्रिय को आलिंगन में लेने को आतुर था।
4. कवि का प्रिय अपार सुंदर था। उसके मतवाले लाल गाल ऐसे थे, जैसे प्रातः के समय पूर्व दिशा की लाली उसी से प्राप्त की गई हो।
5. कवि ने भोर को प्रेम और लाली से युक्त माना है।
6. कवि को स्वप्न में देखे अपने प्रिय की स्मृतियों का सहारा प्राप्त हुआ था।
7. कवि को अपना रास्ता कठिन प्रतीत होता है, जिस पर उसके थके हुए कदम आसानी से आगे नहीं बढ़ते।
8. ‘सीवन को उधेड़ना’ से अभिप्राय कवि के मन में छिपी पुरानी यादों को फिर से ताज़ा करना है, जिन्हें वह अपने हृदय में छिपा चुका है।
9. ‘कंथा’ का शाब्दिक अर्थ ‘गुदड़ी’ है, जिसे कवि ने अंतर्मन के लिए प्रयुक्त किया है।

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने पंक्तियों में किसका आभास दिया है ?
2. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है ?
3. किस बोली का प्रयोग है?
4. किस प्रकार की शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है?
5. काव्य-गुण कौन-सा विद्यमान है?
6. किस शैली का प्रयोग है?
7. दो तत्सम शब्द चुनकर लिखिए।
8. पंक्तियों में से निराशा के भाव का एक उदाहरण दीजिए।
9. कविता का संबंध हिंदी-साहित्य की किस काव्यधारा से है ?
10. प्रयुक्त अलंकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने अपने जीवन में किसी के प्रेम को प्राप्त करने का आभास दिया है, जिसका परिचय वह किसी को नहीं देना चाहता।
2. लाक्षणिकता विद्यमान है।
3. खड़ी बोली।
4. तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है।
5. प्रसाद गुण विद्यमान है।
6. आत्मकथात्मक शैली।
7. आलिंगन, अनुरागिनी।
8. मिला कहाँ वह सुख।
9. छायावाद।
10. व्यतिरेक –
जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी ऊषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

पुनरुक्ति प्रकाश –

आलिंगन में आते-आते अनुप्रास
थके पथिक की पंथा की
क्यों मेरी कंथा की।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

4. छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।

शब्दार्थ : कथाएँ – कहानियाँ। मौन – चुप। आत्मकथा – अपनी कहानी। व्यथा – पीड़ा।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ छायावादी काव्यधारा के प्रवर्तक श्री जयशंकर प्रसाद के द्वारा रचित कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई हैं। कवि से कहा गया था कि वह अपनी आत्मकथा लिखे, ताकि सभी उससे परिचित हो सकें। लेकिन कवि को लगता है कि उसकी जीवनी में कुछ भी ऐसा विशेष नहीं है, जिससे दूसरों को सुख प्राप्त हो सके।

व्याख्या : कवि कहता है कि उसका जीवन छोटा-सा है; सुखों से रहित है, इसलिए वह उससे संबंधित बड़ी-बड़ी कहानियाँ किस प्रकार सुनाए? वह अपनी कहानी सुनाने की अपेक्षा चुप रहकर औरों की कहानियों को सुनना अधिक अच्छा मानता है। वह उनकी कहानियों से कुछ पाना चाहता है। वह पूछता है कि लोग उसकी कहानी को सुनकर क्या करेंगे? उसकी जीवन कहानी सीधी-सादी और भोली-भाली थी, जिसमें कोई भी विशेष आकर्षण नहीं था। उसे लगता है कि अभी अपनी कहानी सुनाने का अवसर भी अनुकूल नहीं है। उसकी मौन पीड़ा अभी थकी-हारी सो रही है; उसके मन में छिपी हुई है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पंक्तियों में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. कवि ने अपने जीवन को कैसा माना है?
3. कवि के जीवन में बड़ी-बड़ी कथाएँ क्यों नहीं थीं ?
4. कवि मौन रहकर क्या सुनना चाहता है?
5. कवि ने अपनी कथा को कैसा माना है?
6. कवि की मौन व्यथा हृदय में क्या कर रही है?
7. कवि ने क्यों लिखा कि ‘अभी समय भी नहीं।
8. कवि ने प्रश्न-चिहनों के प्रयोग से शिल्प में किस विशिष्टता को प्रकट किया है ?
9. ‘मौन व्यथा’ में निहित गूढार्थ को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. कवि अपनी कथा को दूसरों के सामने प्रकट नहीं करना चाहता। उसे लगता है कि उसकी पीड़ा भरी कहानी किसी को सुख नहीं दे पाएगी। इसलिए उसके लिए यही अच्छा है कि वह दूसरों की कहानी को सुने और अपनी कथा को अपने मन में ही छिपाकर रखे।
2. कवि ने अपने जीवन को छोटा-सा माना है।
3. कवि स्वभाव से विनम्र है। इसलिए हिंदी साहित्य में बहुत बड़ा योगदान होने पर भी वह मानता है कि उसके जीवन में बड़ी-बड़ी कथाएँ नहीं थीं।
4. कवि मौन रहकर दूसरों की कथाएँ सुनना चाहता है।
5. कवि ने अपनी कथा को भोली और सीधी-सादी माना है।
6. कवि की मौन व्यथा उसके हृदय में थककर सो रही है। वह उसकी वाणी द्वारा औरों के सामने व्यक्त नहीं होना चाहती।
7. कवि को लगता है कि उसकी आत्मकथा को सुनने से किसी को कोई सुख प्राप्त नहीं होगा। साथ ही वह अपनी पीड़ा को दूसरों के सामने उजागर करने का यह उचित अवसर नहीं मानता।
8. कवि ने प्रश्न-चिह्नों के प्रयोग से अपनी विनम्रता को प्रकट करने में सफलता प्राप्त की है। साथ ही कवि ने इनसे अपने पाठकों या श्रोताओं की जिज्ञासा में वृद्धि की है। कवि ने अपनी नकारात्मकता को प्रकट न कर प्रश्न-चिह्नों से कथन को नाटकीयता का गुण प्रदान किया है।
9. ‘मौन व्यथा’ में गूढार्थ विद्यमान है। जब व्यक्ति अपने दुख-दर्द को सबके सामने बार-बार कहता है, तो कोई भी उसे बाँटना नहीं चाहता बल्कि बाद में उस पर कटाक्ष व व्यंग्य करता है। दुख-सुख सभी के जीवन के आवश्यक हिस्से हैं। यह जीवन का यथार्थ है। इसलिए कवि उन्हें दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता। वह उसे अपने भीतर ही छिपाकर रखना चाहता है। कई बार पूछे जाने पर व्यथित व्यक्ति अपने दुख को प्रकट कर देता है, पर कवि अपनी पीड़ा को ‘मौन व्यथा’ कहकर चुप हो जाता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि किसका परिचय औरों को नहीं देना चाहता?
2. कवि ने किस बोली का प्रयोग किया है?
3. किस प्रकार की शब्दावली की अधिकता है?
4. किस काव्य-गुण का प्रयोग किया गया है?
5. कवि के शब्दों में उसकी कौन-सी विशेषता साफ़ रूप से झलकती है?
6. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग है?
7. लयात्मकता की सृष्टि किस कारण हुई है?
8. अवतरण किस शैली से संबंधित है ?
9. प्रयुक्त किन्हीं दो तत्सम शब्दों को लिखिए।
10. यह किस युग की कविता है ?
11. प्रयुक्त अलंकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
1. कवि अपनी पीड़ा भरी आत्मकथा का परिचय औरों को नहीं देना चाहता।
2. खड़ी बोली।
3. तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है।
4. प्रसाद गुण विद्यमान है।
5. कवि की विनम्रता साफ़ रूप से दिखाई देती है।
6. अभिधा शब्द-शक्ति के प्रयोग ने कवि के कथन को सरलता-सरसता से प्रकट किया है।
7. स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
8. आत्मकथात्मक शैली।
9. मौन, व्यथा।
10. छायावाद।
11. अनुप्रास –
मैं मौन, मेरी मौन व्यथा
मानवीकरण –
मेरी भोली आत्मकथा, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा

JAC Class 10 Hindi आत्मकथ्य Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
आप अपना आत्मकथ्य पद्य या गद्य में लिखिए।
उत्तर :
मेरा आत्मकथ्य अभी किसी के लिए भी महत्वपूर्ण नहीं हो सकता। न तो अभी मैंने यथार्थ जीवन की राह में कदम बढ़ाए हैं और न ही मैं अपनी शिक्षा पूरी कर पाया हूँ। अभी मेरी केवल पंद्रह वर्ष की आयु है। मेरा जन्म जिस परिवार में हुआ है, वह मध्यवर्गीय है। पिताजी की नौकरी से प्राप्त होने वाली आय कठिनाई से परिवार को जीवन गुजारने योग्य सुविधाएँ प्रदान करती है। मेरे माता-पिता अपना पेट काटकर हम तीन भाई-बहनों का पेट भरते हैं; हमें पढ़ाते-लिखाते हैं।

स्वयं पुराना और घिसा-पिटा कपड़ा पहनकर भी हमें नए कपड़े लेकर देने का प्रयत्न करते हैं। उन्होंने हमें अच्छे संस्कार दिए हैं और कभी किसी के सामने हाथ न फैलाने की शिक्षा दी है। पढ़ाई-लिखाई के साथ मुझे व्यायाम करने और कुश्ती लड़ने का शौक है। मैं अपने स्कूल की ओर से कई बार कुश्ती प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुका हूँ और मैंने स्कूल के लिए कई पुरस्कार जीते हैं। पढ़ाई में भी मैं अच्छा हूँ। कक्षा में पहला या दूसरा स्थान प्राप्त कर लेता हूँ, जिस कारण माता-पिता के साथ-साथ अपने अध्यापकों की आँखों का भी तारा हूँ। मेरे सहपाठियों और मेरे मोहल्ले के लड़कों को मेरे साथ खेलना और बातें करना अच्छा लगता है। ईश्वर के प्रति मेरी अटूट आस्था है।

प्रश्न 2.
श्री जयशंकर प्रसाद ने ‘आत्मकथ्य’ नामक कविता की रचना क्यों की थी?
उत्तर
नामक पत्रिका का प्रकाशन करते थे। वे उसके संपादक थे। सन 1932 में उन्होंने पत्रिका का आत्मकथा विशेषांक निकालने का निर्णय लिया। उन्होंने प्रसाद जी से आग्रह किया कि वे भी आत्मकथा लिखें। लेकिन प्रसाद जी को ऐसा करना उचित प्रतीत नहीं हुआ। वे विनम्र थे और उन्हें लगता था कि उन्होंने ऐसा कुछ विशेष नहीं किया, जिससे उन्हें लोगों की वाहवाही मिलती। उनकी आत्मकथा न लिखने की इच्छा के कारण ‘आत्मकथ्य’ की रचना हुई, जिसे ‘हंस’ पत्रिका के आत्मकथा विशेषांक में छापा गया था।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

प्रश्न 3.
कवि अपने जीवन के किस प्रसंग को जग-जाहिर नहीं करना चाहता था और क्यों?
उत्तर :
कवि किसी के प्रति अपने प्रेमभाव को जग-जाहिर नहीं करना चाहता था। वह नहीं चाहता था कि जिस प्रेम के सुख को उसने पाया नहीं और जिसका केवल सपना-भर देखा, उसे दूसरों के सामने प्रकट करे। वह प्रेम उसकी स्मृतियों का सहारा था, जो उसे जीने की प्रेरणा देता था।

प्रश्न 4.
कवि ने अपनी कथा को भोली क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि का जीवन सीधा-सादा और विनम्रता से भरा हुआ था। उसे नहीं लगता था कि उसकी कथा में किसी को कुछ विशेष देने की क्षमता है। उससे किसी प्रकार की वाहवाही भी प्राप्त नहीं की जा सकती। इसलिए कवि ने अपनी कथा को भोली कहा है।

प्रश्न 5.
प्रसाद के काव्य में प्रकृति-प्रेम झलकता है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि जयशंकर प्रसाद छायावाद के आधार स्तम्भ माने जाते हैं। प्रकृति छायावादी कवियों का मन चाहा शरण स्थल रही है। प्रकृति को मानवीय रूप में देखना और उससे प्यार करना इनके काव्य का प्रमुख गुण है। प्रसाद जी ने प्रकृति को अपने काव्य की सहचरी माना है। इसी कारण उसका सजीव चित्रण भी किया है।

प्रश्न 6.
कवि ने अपने जीवन को कैसा माना है?
उत्तर :
कवि ने अपने जीवन को छोटा और सरल माना है। उसका जीवन सुखों से रहित है; उसमें सर्वत्र दुखों का वास है। प्रेम और सुख की कल्पना करना भी उसे पीड़ादायक लगता है। उसका जीवन पीड़ा की एक कहानी है। उसकी यह कहानी किसी को भी सुख प्रदान नहीं कर सकती। वह अपने जीवन को स्वयं तक सीमित रखना चाहता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

प्रश्न 7.
कवि ने कविता में अपना रास्ता कैसा और किस प्रकार का माना है?
उत्तर :
कवि ने अपना रास्ता अत्यंत कठिन तथा पीड़ादायक माना है। उसका रास्ता हृदय को द्रवित करने वाला है। उसे अपना रास्ता इतना अधिक कठिन प्रतीत होता है कि उस पर उसके थके कदम आसानी से नहीं बढ़ते। उसे पग-पग पर समस्याओं से जूझना पड़ता है। न चाहते हुए भी कष्टों को सहन करना पड़ता है।

प्रश्न 8.
कविता में कवि ने अपने प्रिय के विषय में क्या कहा है?
उत्तर :
कवि ने बताया है कि अतीत में उसने कभी किसी से प्रेम किया था लेकिन जिससे उसने प्रेम किया था, वह उसे प्राप्त नहीं हो सका। उसके प्रिय का अगाध सौंदर्य ही उसके जीवन की प्रेरणा थी। कवि अपने जीवन को पूर्ण रूप से व्यक्तिगत मानता है। वह अपने दुख भरे जीवन से किसी को परिचित नहीं करवाना चाहता।

प्रश्न 9.
कवि ने कविता में जीवन एवं मन को किस रूप में तथा कैसे प्रकट किया है?
उत्तर :
कवि ने कविता में जीवन को एक उपवन के रूप में प्रस्तुत किया है। इसी उपवन में मनरूपी भँवरा गुनगुनाता रहता है। किंतु वह चाहे कितनी भी गुंजार करे, उसके आस-पास अनेक पत्तियाँ मुरझाती रहती हैं।

आत्मकथ्य Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जयशंकर प्रसाद आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रतिभावान कवि माने जाते हैं। ये छायावाद के प्रवर्तक थे। इन्होंने कहानी, नाटक, उपन्यास, आलोचना आदि हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई। इनका जन्म सन 1889 ई० में काशी के सुंघनी साहू नामक प्रसिद्ध वैश्य परिवार में हुआ था। इनके पिता देवी प्रसाद साहू काव्य-प्रेमी थे। जब उनका देहांत हुआ, तब प्रसाद की आयु केवल आठ वर्ष की थी। परिवारजन की मृत्यु, आत्म-संकट, पत्नी वियोग आदि कष्टों को झेलते हुए भी ये काव्य-साधना में लीन रहे। तपेदिक के कारण इनका देहांत 15 नवंबर 1937 में हुआ।
रचनाएँ – जयशंकर प्रसाद ने बड़ी मात्रा में साहित्य की रचना की। इन्होंने पद्य एवं गद्य दोनों क्षेत्रों में अनुपम रचनाएँ प्रस्तुत की हैं, जो निम्नलिखित हैं –
काव्य – ‘चित्राधार’, ‘कानन-कुसुम’, ‘झरना’, ‘लहर’, ‘प्रेम पथिक’, ‘आँसू’, ‘कामायनी’ आदि।
नाटक – ‘चंद्रगुप्त’, ‘स्कंदगुप्त’, ‘अजातशत्रु’, ‘जनमेजय का नागयज्ञ’, ‘ध्रुवस्वामिनी’, ‘करुणालय’, ‘कामना’, ‘कल्याणी’, ‘परिणय’, ‘प्रायश्चित्त’, ‘सज्जन’, ‘राज्यश्री’, ‘विशाख’, ‘एक घुट’ आदि।
कहानी – ‘छाया’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘इंद्रजाल’, ‘आकाशदीप’, ‘आँधी’ आदि। उपन्यास कंकाल, तितली, इरावती (अपूर्ण)।
साहित्यिक विशेषताएँ – जयशंकर प्रसाद ने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी और उसकी प्रत्येक विधा को समृद्ध किया। प्रसाद विरचित साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. स्वदेश-प्रेम – प्रसाद का स्वदेश-प्रेम सौंदर्य के अछूते चित्रों के रूप में व्यक्त हुआ है। संपूर्ण भारत उनके लिए सौंदर्य का भंडार है।
भारत के प्राकृतिक सौंदर्य पर मुग्ध होकर कवि ने उसका चित्रण किया है। ‘चंद्रगुप्त’ नाटक का अमर गीत है
‘अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।’

2. प्रकृति-चित्रण छायावादी कवियों का मनचाहा शरणस्थल प्रकृति ही रही है। प्रकृति को मानवीय रूप में देखना और उससे प्यार करना उनके काव्य में मुख्य रूप से अंकित है। प्रकृति को प्रसाद ने अपने काव्य की पृष्ठभूमि न मानकर सहचरी माना है और उसका सजीव चित्रण किया है। कोलाहल में भरी इस दुनिया से भागकर कवि प्रकृति की गोद में शरण लेना चाहता है, इसलिए वह लिखता है –

‘ले चल मुझे भुलावा देकर, मेरे नाविक धीरे-धीरे।
तज कोलाहल की अवनि रे।’

3. रहस्यवाद – छायावादी कवि रहस्यवादी हैं और प्रकृति में प्रभु के दर्शन करते हैं। प्रसाद के काव्य में रहस्यवादी तत्व पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। जिज्ञासा, प्रेम, विरह तथा मिलन की सीढ़ियों से गुजरने वाली ईश्वर-प्रेम की भावना का कवि ने वर्णन किया है। ईश्वर के अस्तित्व के विषय में जिज्ञासा व्यक्त करता हुआ कवि कहता है –

‘हे अनंत रमणीय! कौन तुम?
यह मैं कैसे कह सकता।
कैसे हो? क्या हो? इसका तो
भार विचार न सह सकता।’

प्रेम के सौंदर्य के साथ-साथ प्रसाद के काव्य में विश्व-बंधुत्व, सर्व जन हिताय तथा व्यापक मानवतावाद से ओत-प्रोत रचनाएँ भी हैं ! प्रसाद मूलत: आंतरिक अनुभूतियों के कवि हैं, परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि उनका काव्य समकालीन हलचलों को अनदेखा करता है। प्रसाद की कविता मानव में ईश्वर और ईश्वर में मानव को देखती है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

4. भाषा-शैली – प्रसाद की भाषा-शैली परिष्कृत, स्वाभाविक, तत्सम शब्दावली प्रधान एवं सरस है। छोटे-छोटे पदों में गंभीर भाव भर देना और उनमें संगीत लय का विधान करना प्रसाद की शैली की प्रमुख विशेषताएँ हैं। देश-प्रेम की रचनाओं में ओज गुण प्रधान शब्दावली, शृंगार रस प्रधान रचनाओं में माधुर्य-गुण से युक्त शब्दावली तथा सामान्यतः प्रसाद गुणयुक्त शब्दावली का प्रयोग किया गया है।

शब्द-चित्रों की सुंदर योजना प्रसाद की रचनाओं में रहती है। इनकी रचनाओं में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। प्रसाद की कविताओं में शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली का प्रामाणिक रूप मिलता है। इनकी काव्य-भाषा कहीं पर सरल तथा कहीं पर क्लिष्ट एवं तत्सम शब्दावली प्रधान है। स्वाभाविकता एवं प्रवाह उनकी भाषा की विशेषता है। भाषा भावानुकल है, इसलिए तत्सम शब्द भी स्वाभाविक लगते हैं। उनकी रचनाओं में मुहावरे बहुत कम हैं।

5. संगीतात्मकता – संगीतात्मकता उनके काव्य का प्रमुख स्वर है ! संगीत की स्वर-लहरी पद-पद पर झलकती है। ‘कामायनी’, ‘आँस’, ‘लहर’, ‘झरना’ सभी कविताएँ गेय हैं।
वस्तुतः उनके साहित्य में सर्वतोन्मुखी प्रतिभा की झलक दिखाई देती है।

कविता का सार :

मुंशी प्रेमचंद ने अपनी पत्रिका ‘हंस’ में छापने के लिए श्री जयशंकर प्रसाद से आत्मकथा लिखने का आग्रह किया था, पर उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया। उन्होंने आत्मकथा न लिखकर ‘आत्मकथ्य’ कविता लिखी थी, जो सन 1932 में ‘हंस’ में छपी। कवि ने इस कविता में जीवन के यथार्थ को प्रकट करने के साथ-साथ उन अनेक अभावों को भी लिखा था, जिन्हें उन्होंने झेला था। उनका कहना था कि उनका जीवन किसी भी सामान्य व्यक्ति के जीवन की तरह सरल और सीधा था जिसमें कुछ भी विशेष नहीं था, वह लोगों की वाहवाही लूटने और उन्हें रोचक लगने वाला नहीं था।

जीवनरूपी उपवन में मनरूपी भँवरा गुनगुना कर चाहे अपनी कहानी कहता हो, पर उसके आसपास पेड़-पौधों की न जाने कितनी पत्तियाँ मुरझाकर बिखरती रहती हैं। इस नीले आकाश के नीचे न जाने कितने जीवन-इतिहास रचे जाते हैं, पर ये व्यंग्य से भरे होने के कारण पीड़ा को प्रकट करते हैं। क्या इन्हें सुनकर सुख पाया जा सकता है? मेरा जीवन तो खाली गागर के समान व्यर्थ है, अभावग्रस्त है। इस संसार में व्यक्ति स्वार्थ भरा जीवन जीते हैं। वे दूसरों के सुखों को छीनकर स्वयं सुखी होना चाहते हैं। यह जीवन की विडंबना है।

कवि दूसरों के धोखे और अपनी पीड़ा की कहानी नहीं सुनाना चाहता। वह नहीं समझता कि उसके पास दूसरों को सुनाने के लिए मीठी बातें हैं। उसे अपने जीवन में सुख प्रदान करने वाली मीठी-अच्छी बातें दिखाई नहीं देतीं। उसे प्राप्त होने वाले सुख आधे रास्ते से ही दूर हो जाते हैं। उसकी यादें थके हुए यात्री के समान हैं, जिसमें कहीं सुखद यादें नहीं हैं। कोई भी उसके मन में छिपी दुखभरी बातों को क्यों जानना चाहेगा! उसके छोटे-से जीवन में बड़ी उपलब्धियाँ नहीं हैं।

इसलिए कवि अपनी कहानियाँ न सुनाकर केवल दूसरों की बातें सुनना चाहता है। वह चुप रहना चाहता है। कवि को अपनी आत्मकथा भोली-भाली और सीधी-सादी प्रतीत होती है। उसके हृदय में छिपी हुई पीड़ाएँ मौन-भाव से थककर सो गई थीं, जिन्हें कवि जगाना उचित नहीं समझता। वह नहीं चाहता कि कोई उसके जीवन के कष्टों को जाने।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

JAC Class 10 Hindi सवैया और कवित्त Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि ने श्रीकृष्ण के लिए ‘श्रीब्रजदूलह’ का प्रयोग किया है। श्रीकृष्ण ब्रह्म स्वरूप हैं और सृष्टि के कण-कण में समाए हुए हैं। सारी सृष्टि उन्हीं की लीला, प्रेम, करुणा और दया का परिणाम है। वे प्रत्येक प्राणी के जीवन के आधार हैं और सभी की आत्मा में उन्हीं का वास है। इसलिए उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक कहा गया है।

प्रश्न 2.
पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
उत्तर :
(क) अनुप्रास –
(i) कटि किंकिनि के धुनि की मधुराई
(ii) साँवरे अंग लसै पट पीत।
(iii) हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
(iv) मंद हँसी मुखचंद जुहाई।
(v) जै जग – मंदिर-दीपक सुंदर।

(ख) रूपक –
(i) मंद हँसी मुखचंद जुहाई।
(ii) जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
पाँयनि नूपुर मंजु बसें, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
उत्तर :
कवि ने श्रीकृष्ण की अपार रूप-सुंदरता का वर्णन करते हुए कहा है कि उनके पाँव में पाजेब शोभा देती है, जो उनके चलने पर मधुर ध्वनि उत्पन्न करती है। उनकी कमर में करधनी मधुर धुन पैदा कर रही है। उनके साँवले-सलोने शरीर पर पीले रंग के वस्त्र अति शोभा देते हैं। उनकी छाती पर फूलों की सुंदर माला शोभायान है। ब्रजभाषा में रचित पंक्तियों में तत्सम शब्दावली की अधिकता है। सवैया छंद और स्वरमैत्री लयात्मकता का आधार है। अभिधा शब्द-शक्ति ने कथन को सरलता, सरसता और सहजता प्रदान की है। अनुप्रास अलंकार की स्वाभाविक शोभा प्रकट की गई है।

प्रश्न 4.
दूसरे कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतुराज बसंत के बाल-रूप का वर्णन परंपरागत बसंत वर्णन से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर :
परंपरागत रूप से बसंत का वर्णन करते हुए कवि प्रायः ऋतु परिवर्तन की शोभा का वर्णन करते हैं। वे रंग-बिरंगे फूलों, चारों ओर फैली हरियाली, नायिकाओं के झूले, परंपरागत रागों, राग-रंग आदि का बखान करते हैं। वे नर-नारियों के हृदय में उत्पन्न होने वाले प्रेम और काम-भावों का वर्णन करते हैं। लेकिन इस कवित्त में कवि ने बसंत का बाल-रूप में चित्रण किया है, जो कामदेव का बालक है। सारी प्रकृति उसके साथ वैसा ही व्यवहार करती दिखाई गई है, जैसा सामान्य जीवन में नवजात बच्चों से व्यवहार किया जाता है। इससे कवि की कल्पनाशीलता और सुकुमार भाव प्रवणता का परिचय मिलता है।

प्रश्न 5.
‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै’–इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
काव्य-रूढ़ि है कि सुबह-सवेरे जब कलियाँ फूलों के रूप में खिलती हैं, तो ‘चट्’ की ध्वनि करती हुई खिलती हैं। कवि ने इसी काव्य-रूढ़ि का प्रयोग करते हुए बालकरूपी बसंत को प्रातः जगाने के लिए गुलाब के फूलों की सहायता ली है। सुबह गुलाब के खिलते ही चटकने की ध्वनि उत्पन्न होती है। कवि ने इससे स्पष्ट किया है कि वे चुटकियाँ बजाकर बाल-बसंत को प्यार से जगाते हैं।

प्रश्न 6.
चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन-किन रूपों से देखा है?
उत्तर :
कवि ने चाँदनी रात की सुंदरता को स्फटिक की शिलाओं से बने सुधा मंदिर में प्रकट किया है, जो दही के समुद्र में उत्पन्न तरंगों के रूप में दिखाई देती है। वह दूध की झाग के समान सर्वत्र फैलकर अपनी सुंदरता को व्यक्त करती है। सारा आकाश उसकी आभा से जगमगाता है। चाँदनी रात में चाँदनी की तरह दमकती हुई राधा के प्रतिबिंब से ही चाँद सुंदर लगता है।

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प्रश्न 7.
‘प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’- इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते हुए बताएं कि इसमें कौन-सा अलंकार है?
उत्तर :
राधा का रूप अति सुंदर है; चाँदनी में नहाया हुआ उसका रूप अति उज्ज्वल है। चंद्रमा की शोभा और चमक-दमक उसकी अपनी नहीं है, बल्कि वह राधा के रूप को बिंबित कर रहा है। इसलिए वह इतना सुंदर है। इस पंक्ति में उपमा अलंकार है।

प्रश्न 8.
तीसरे कवित्त के आधार पर बताइए कि कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है?
उत्तर :
फटिक सिलानि, उदधि दधि, दूध को सो फेन, मोतिन की जोति, तारासी मल्लिका को मकरंद, आरसी से अंबर।

प्रश्न 9.
पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
देव रीतिकालीन आचार्य कवि थे, जिनके काव्य में रीतिकालीन कविता की लगभग सभी विशेषताएँ दिखाई देती हैं। पठित कविताओं के आधार पर उनकी निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ दिखाई देती हैं –
1. शृंगारिकता – देव ने अपनी कविताओं में राधा-कृष्ण के माध्यम से अपनी शृंगारिक भावनाएँ प्रकट की हैं। उनकी प्रवृत्ति भी अन्य रीतिकालीन कवियों की तरह संयोग श्रृंगार में अधिक रमी है। राधा की रूप माधुरी ने विशेष रूप से प्रभावित किया है। चाँदनी रात में उसका रूप ऐसा निखरा हुआ है कि चंद्रमा भी उसका बिंब मात्र दिखाई देती है –

तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।

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2. भक्ति-भाव – देव चाहे शृंगारिक कवि थे, पर भारतीय संस्कारों में बँधने के कारण वे कभी नास्तिक नहीं रहे। उन्होंने अपनी कविता में बार-बार वैराग्य भावना और आस्तिकता को प्रकट किया है। वे वैष्णव थे। उन्होंने श्रीकृष्ण के प्रति अपने भक्ति-भाव को प्रकट किया है –

माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई,
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सहाई॥

3. प्रकृति-चित्रण – देव ने अपनी कविताओं में प्रकृति-चित्रण अति सुंदर ढंग से किया है। उनके काव्य में प्रकृति साध्य नहीं है, बल्कि साधन है। उन्होंने प्रकृति वर्णन में ऋतु वर्णन की परंपरा का पालन किया। उनकी प्रकृति संबंधी मौलिक दृष्टि की वहाँ सराहना करनी पड़ती है, जहाँ उन्होंने बसंत का अति भावपूर्ण चित्रण किया है। उन्होंने बसंत का परंपरागत वर्णन न कर उसे कामदेव के बालक के रूप में प्रकट किया है, जिसकी सेवा में सारी प्रकृति लीन हो जाती है –

डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छवि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावै, ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी है।

4. कला-पक्ष-देव ने अपने काव्य को सफल अभिव्यक्ति प्रदान करने के लिए शब्द शक्तियों का अच्छा प्रयोग किया है। उनके अमिधा के प्रयोग में सहजता है। उन्होंने माधुर्य और प्रसाद गुण का अच्छा प्रयोग किया है। उन्हें अनुप्रास अलंकार के प्रति विशेष मोह है-
(i) पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन
(ii) मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि
(iii) कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई
(iv) मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद

इन्होंने उपमा का भी अच्छा प्रयोग किया है। ब्रजभाषा की कोमलकांत शब्दावली का इन्होंने सार्थक और सुंदर प्रयोग किया है। इनके काव्य में तत्सम शब्दावली का प्रयोग अधिक है।

रचना और अभिव्यक्ति – 

प्रश्न 10.
आप अपने घर की छत से पूर्णिमा की रात देखिए तथा उसके सौंदर्य को अपनी कलम से शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर :
मेरा घर यमुना-किनारे से कुछ ही दूरी पर है। इसके आसपास का क्षेत्र हरे-भरे पेड़ों, सरकंडों और झाड़ियों से भरा हुआ है। पूर्णिमा की रात को सारा आकाश तो चाँदनी से जगमगाता ही है, पर यमुना नदी का पानी भी उससे जगमगाता-सा प्रतीत होता है। जब पानी की लहरें तेजी से आगे बढ़ती हैं, तो चाँद के चमकीले टुकड़े उन पर सवार उछलते-कूदते-से प्रतीत होते हैं। अँधेरी रातों में प्राय: न दिखाई देने वाले पेड़ चाँदनी में अपना काला रूप लिए दिखाई देते हैं। वे सुंदर नहीं लगते। वे कुछ-कुछ डरावने से प्रतीत होते हैं। चाँदनी रात में यमुना में तैरती कोई-कोई नौका बहुत सुंदर लगती है।

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पाठेतर सक्रियता – 

प्रश्न 1.
भारतीय ऋतु चक्र में छह ऋतुएँ मानी गई हैं, वे कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर :
गरमी, सरदी, वर्षा, बसंत, हेमंत, शिशिर।

प्रश्न 2.
‘ग्लोबल वार्मिंग’ के कारण ऋतुओं में क्या परिवर्तन आ रहे हैं ? इस समस्या से निपटने के लिए आपकी क्या भूमिका हो सकती है?
उत्तर :
विश्व भर में बड़ी तेज़ी से उद्योग स्थापित किए जा रहे हैं। दूसरे विश्व युद्ध के बाद से हर देश नए-नए उद्योग स्थापित करके आर्थिक उन्नति की ओर तेज़ी से कदम बढ़ाने का प्रयत्न कर रहा है। ऊर्जा की उत्पत्ति के लिए वे जीवाश्मी ईंधन को जलाते हैं। कोयला और पेट्रोल भूमि के गर्भ से निकाल-निकालकर दिन-रात जलाया जा रहा है। इससे लोगों को सुख-सुविधाएँ तो अवश्य प्राप्त हो रही हैं, पर साथ-ही-साथ वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन गैसों की मात्रा बढ़ती जा रही है। ये दोनों गैसें वायु के तापमान को तेजी से बढ़ा रही हैं। इसे ही ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं।

इस तापमान वृद्धि का परिणाम ही है कि ध्रुवों पर जमी बर्फ की परत पिघलने लगी है। जिस ग्लेशियर से गंगा नदी निकलती है, वह तेजी से पिघलने लगा है। इसका परिणाम यह हो सकता है कि आने वाले समय में धरती के वातावरण का तापमान बढ़ने के साथ-साथ जल-स्रोतों में कमी आने लगेगी। ‘ग्लोबल वार्मिंग’ अर्थात ‘वैश्विक तापन’ पूरी पृथ्वी के लिए खतरे की घंटी है, जो हमारे भविष्य के लिए अति खतरनाक सिद्ध होगी। इससे समुद्रों का जलस्तर बढ़ने लगेगा, जिसके परिणामस्वरूप समुद्र तटों पर बसे नगर डूबने लगेंगे।

द्वीप पूरी तरह समुद्र में समा जाएँगे। ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से निपटने के लिए कोई एक व्यक्ति या कोई एक देश कुछ नहीं कर सकता। इस समस्या से निपटने के लिए विश्व भर के देशों को एक साथ मिलकर प्रयत्न करना होगा। हमें ऐसी नीतियाँ बनाकर कठोरता से लागू करनी होंगी कि कोयले और पेट्रोल के दहन को नियंत्रित किया जाए। सौर ऊर्जा, जलीय ऊर्जा, पवन ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा, सागरीय ऊर्जा आदि का अधिकसे-अधिक प्रयोग किया जाए ताकि हवा में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन गैसें न बढ़ें।

वाहनों के लिए सौर ऊर्जा या विद्युत का प्रयोग किया जाए। इस समस्या से निपटने के लिए हमारी भूमिका यह हो सकती है कि हम योजना-बद्ध तरीके से जन जागृति में सहायक बनें। जिन लोगों को इस समस्या का अभी पता नहीं है, उन्हें सचेत करें। अपने स्कूल में ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करें, जिनसे बच्चे-बच्चे को इस समस्या की जानकारी मिले। आज का बच्चा ही आने वाले कल के उद्योगपति और नेता होंगे। उचित जानकारी होने पर वे : इस समस्या पर नियंत्रण पा सकेंगे।

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यह भी जानें –

कवित्त – कवित्त वार्णिक छंद है, उसके प्रत्येक चरण में 31-31 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के सोलहवें या फिर पंद्रहवें वर्ण पर यति रहती है। सामान्यतः चरण का अंतिम वर्ण गुरु होता है।

‘पाँयनि नूपुर’ के आलोक में भाव साम्य के लिए पढ़ें –

सीस मुकुट कटि काछनि, कर मुरली उर माल।
यों बानक मौं मन सदा, बसौ बिहारी लाल॥
– बिहारी

रीतिकालीन कविता की वसंत ऋतु का एक चित्रण यह भी देखिए –

कूलन में केलि में कछारन में कुंजन में,
क्यारिन में कलित कलीन किलकत है।
कहै पदमाकर परागन में पौनहू में
पातन में पिक में पलासन पगंत है।
द्ववारे में दिसान में दुनी में देस देसन में
देखौ दीपदीपन में दीपत दिगंत है।
बीथिन में ब्रज में नबेलिन में बेलिन में
बनन में बागन में बगस्यौ बसंत है।
– पदमाकर

JAC Class 10 Hindi सवैया और कवित्त Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
देव की कविता में शब्द भंडार पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
देव शब्दों के कुशल शिल्पी हैं, जिन्होंने एक-एक शब्द को बड़ी कुशलता से तराशकर अपने शब्द भंडार को समृद्ध किया है। उनकी वर्ण-योजना में संगीतात्मकता और चित्रात्मकता विद्यमान है। भाव और वर्ण-विन्यास में संगति है। उनका एक-एक शब्द मोतियों की तरह कवित्त-सवैयों की जमीन पर सजाया गया है –

पाँयनि नूपुर मंजु बज, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई॥

कवि के पास अक्षय शब्द-भंडार है। भिन्न-भिन्न पर्याय और विशेषणों द्वारा देव ने भावों की विभिन्न छवियों को उतारा है। उन्होंने अभिधा, लक्षणा और व्यंजना तीनों का सफलतापूर्वक प्रयोग किया है –

आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।

कवि के शब्दों में तत्सम की अधिकता है। तद्भव शब्दावली का उन्होंने सुंदर प्रयोग किया है।

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प्रश्न 2.
पठित पदों के आधार पर देव के चाक्षुक बिंब विधान को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
देव के काव्य में सुंदर ढंग से बिंब योजनाएँ की गई हैं। इससे श्रृंगारपरक अंश खिल उठे हैं। चाक्षुक बिंब योजना ऐसी है कि श्रोता या पाठक की आँखों के सामने कवि के मन में उभरी रूप-छवि स्पष्ट उभर आती है –

(i) साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।
(ii) पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।

देव के बिंब विधान में संवेदनात्मक, अलंकरण और क्रमबद्धता के अतिरिक्त भावात्मक संबंध स्थापित करने की शक्ति है।

प्रश्न 3.
देव के कवित्त और सवैया की विशेषता लिखिए।
उत्तर :
छंद में लयमान होना कविता की विशेषता है। इससे कविता की सुंदरता की रक्षा होती है। विभिन्न छंदों के प्रयोग से काव्य के भावों को गति दी जा सकती है। देव ने कवित्त और सवैया के प्रयोग से लय की उत्पत्ति की है। कवि ने श्रृंगारिक लय बनाने के लिए कवित्त छंद का अधिक प्रयोग किया है। सवैया से प्रसाद, गुण और ओज तीनों गुणों को सरलता से प्रस्तुत करने में उन्होंने सफलता पाई है।

प्रश्न 4.
पठित कविताओं को आधार बनाकर देव के सौंदर्य-निरूपण पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
देव प्रेम, सौंदर्य और श्रृंगार के कवि हैं। उन्होंने अपने अधिकतर साहित्य की रचना सौंदर्य और श्रृंगार के आधार पर की है। उनकी कविता में सौंदर्य और श्रृंगार का पुराना रूप दिखाई देता है। उन्होंने इस क्षेत्र में नई कल्पनाएँ नहीं की थीं। उन्होंने परंपरागत उपमानों का ही प्रयोग किया था।

उन्होंने श्रीकृष्ण की सुंदरता सामंती प्रवृत्ति के आधार पर की है।

पाँयनि नूपुर मंजु बसें, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।

राधा अद्भुत सौंदर्य की स्वामिनी है। उसके सौंदर्य के सामने सारे नर-नारी पानी भरते हैं। चाँद भी उसकी सुंदरता का बिंब मात्र है –

आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।।

चाँदनी के रंग वाली वह स्फटिक के महल में छिपी-सी रहती है।

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प्रश्न 5.
चाँदनी रात के उस रूप का वर्णन कीजिए, जिसे कवि ने अपने कवित्त में वर्णित किया है।
उत्तर :
चाँदनी रात सुंदरता की पर्याय है, जिसकी आभा ने सारे संसार को सुंदरता प्रदान की है। स्फटिक की शिलाओं से अमृत-सा उज्ज्वल भवन जगमगा उठता है और दही रूपी सागर की तरंगें अपार मात्रा में उमड़ जाती हैं। दूध की झाग-सी चाँदनी इस प्रकार सब ओर फैल जाती है कि बाहर-भीतर की दीवारें तक दिखाई नहीं देतीं। आँगन और फ़र्श चाँदनी-से नहा उठते हैं। तारे-सी सुंदर राधा चाँदनी में झिलमिलाती हुई ऐसी प्रतीत होती है, जैसे मोती की आभा में मल्लिका के पराग की सुगंध मिली हो। आईने जैसे साफ़-स्वच्छ आकाश में चाँदनी फैल जाती है। चंद्रमा की जगमगाहट राधा के प्रतिबिंब का ही रूप है।

प्रश्न 6.
देव ने मदन महीप बालक किसे और क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि देव ने मदन महीप बालक वसंत ऋतु को कहा है। वह वसंत को कामदेव के पुत्र के रूप में देखता है, क्योंकि वसंत के आगमन पर ही सारी प्रकृति हरियाली से युक्त हो जाती है। रंग-बिरंगे फूल खिल जाते हैं। मंद-मंद सुगंधित हवाएँ बहने लगती हैं। पंक्षी चहचहाने लगते हैं। यही कारण है कि कवि देव ने वसंत को मदन महीप बालक कहा है।

प्रश्न 7.
कवि ने किस कवित्त में रासलीला का दृश्य दिखाया है और कैसे?
उत्तर :
कवि ने दूसरे कवित्त में रासलीला का दृश्य दिखाया है। प्रकृति की मनोरम छटा का सहारा लेकर कवि ने रासलीला का सुंदर शब्द-चित्र सजाया है। उन्होंने महारास की कल्पना करते हुए चाँदनी रात को देखा है। वह कल्पना करते हैं, मानो दूर आकाश में स्फटिक शिलाओं से एक सुधा-मंदिर बना हुआ है। उस आकाश का फर्श एक दम पारदर्शी है। वह दूध के झाग के समान उज्ज्वल है। तारों के समान राधा की सखियों का झिलमिलाना रास है। चंद्रमा का प्रकाश भी राधा की परछाईं के समान ही प्रतीत होता है।

प्रश्न 8.
कवि देव के काव्य का प्रमुख विषय क्या है?
उत्तर :
कवि देव के काव्य का प्रमुख विषय शृंगार है। उन्होंने राधा-कृष्ण के माध्यम से शृंगारिक भावनाओं को प्रकट किया है। उन्होंने शृगार रस के दोनों पक्षों का भली-भाँति प्रयोग किया है। संयोग शृंगार को रचने में उनका मन अधिक रमता हैं। इसके साथ-साथ उन्होंने वैराग्य तथा भक्ति-भाव का भी सफल चित्रण किया है।

प्रश्न 9.
देव की भक्ति-भावना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
देव रीतिकाल के कवियों में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनके जीवन में भक्ति का प्रवेश शीघ्र हो गया था। उन्होंने वैराग्य और भक्ति-भावना का सुंदर सहज वर्णन किया है। उन्होंने शारीरिक क्रियाओं को माया का बंधन माना है। उनके काव्य में भक्ति के साथ-साथ दार्शनिकता के दर्शन भी बार-बार होते हैं।

प्रश्न 10.
देव के काव्यशिल्प पर विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर :
देव का काव्यशिल्प उनके भावपक्ष के अनुसार ही अत्यंत समृद्ध है। उनकी भाषा में सहजता तथा सरलता है। उन्होंने ब्रजभाषा में अपनी काव्य-धारा प्रवाहित की है। उनकी ब्रजभाषा में सर्वत्र स्वच्छता, एकरूपता विद्यमान है। इसी कारण इनकी भाषा में भावों के अनुकूल चलने की अद्भुत क्षमता है। उन्होंने प्रायः ठेठ ब्रजभाषा के शब्दों का ही अधिक प्रयोग किया है। उनकी भाण की प्रकृति साफ-सुथरी और अत्यंत निखरी है। देव का भाषा पर इतना अधिकार दिखाई पड़ता है कि वह कवि के इशारे पर नाचती है।

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प्रश्न 11.
कवि देव ने पठित छंदों में प्रकृति का मानवीकरण किस प्रकार किया है?
उत्तर :
कवि देव ने प्रकृति को एक बालक के रूप में चित्रित किया है। उन्होंने ऋतुराज वसंत को कामदेव के पुत्र के समान माना है। इसके अतिरिक्त और भी अनेक स्थानों पर कवि ने बड़ी सहजता के साथ प्रकृति का मानवीकरण किया है; जैसे हवा बालक वसंत का पालना झुलाती है; तोते बालक से बातें करते हैं; वसंत की नज़र फूलों के पराग से उतारी गई आदि।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण संबंधी एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर – 

सवैया –

1. पाँयनि नूपुर मंजु बसें, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सुहाई॥

शब्दार्थ : पाँयनि – पाँवों में। नूपुर – पायल, पाजेब। मंजु – सुंदर। कटि – कमर। किंकिनि – करधनि। लसै – शोभा देता है। पट – वस्त्र। पीत – पीला। हिये – छाती, हृदय। हुलसै – आनंदित होना। बनमाल – फूलों की माला। सुहाई – शोभा देती है। किरीट – मुकुट। दृग – आँखें। मंद – धीमी। मुखचंद – चंद्र के समान मुख। जुन्हाई – चाँदनी।

प्रसंग : प्रस्तुत सवैया रीतिकालीन कवि देव के द्वारा रचित है और इसे हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित किया गया है। इसमें कवि ने श्रीकृष्ण के बालरूप की अद्भुत सुंदरता का वर्णन किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि श्रीकृष्ण के पाँव में पाजेब है, जो उनके चलने पर अत्यंत सुंदर ध्वनि उत्पन्न करती है। उनकी कमर में करधनी है, जो मीठी धुन पैदा करती है। उनके साँवले-सलोने अंगों पर पीले रंग के वस्त्र शोभा दे रहे हैं। उनकी छाती पर फूलों की माला शोभा देती हुई मन में प्रसन्नता उत्पन्न करती है। उनके माथे पर मुकुट है और उनकी बड़ी-बड़ी आँखें हैं, जो चंचलता से भरी हैं। उनकी मंद-मंद हँसी उनके चाँद जैसे सुंदर चेहरे पर चाँदनी की तरह फैली हुई है। संसाररूपी इस मंदिर में दीपक के समान जगमगाते हुए अति सुंदर श्रीकृष्ण की जय-जयकार हो। कवि कहता है कि जीवन में सदा श्रीकृष्ण सहायता करते रहे।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. श्रीकृष्ण के पाँव में क्या है?
3. श्रीकृष्ण की कमर में बँधी किस वस्तु के कारण मधुर धुन उत्पन्न हो रही है?
4. श्रीकृष्ण के वस्त्र किस रंग के हैं?
5. उनके गले की शोभा को किसने बढ़ाया है?
6. श्रीकृष्ण की आँखों की सुंदरता को स्पष्ट कीजिए।
7. कवि को बालक कृष्ण के चेहरे पर मुस्कान कैसी प्रतीत हो रही है?
8. कवि ने किसकी जय-जयकार की है?
9. श्रीकृष्ण के माथे की शोभा किससे बढ़ी है?
उत्तर :
1. कवि ने पद में श्रीकृष्ण के बालरूप की सुंदरता को प्रस्तुत किया है। साँवले रंग के श्रीकृष्ण पीले रंग के वस्त्रों में सजे हुए अति सुंदर लगते हैं। उनके गले में माला है; पाँव में पाजेब है और कमर में करधनी शोभा दे रही है। उनके माथे पर मुकुट है और चेहरे पर चाँदनी के समान मुस्कान फैली हुई है।
2. श्रीकृष्ण के पाँव में पायल है।
3. श्रीकृष्ण की कमर में बँधी करधनी के कारण मधुर धुन उत्पन्न हो रही है।
4. श्रीकृष्ण के वस्त्र पीले रंग के हैं।
5. उनके गले की शोभा को ‘बनमाल’ अर्थात फूलों की माला ने बढ़ाया है।
6. श्रीकृष्ण की आँखें बड़ी-बड़ी और चंचलता से भरी हुई हैं।
7. कवि को श्रीकृष्ण के चेहरे पर फैली मुस्कान चाँदनी के समान प्रतीत हो रही है।
8. कवि ने श्रीकृष्ण की जय-जयकार की है।
9. श्रीकृष्ण के माथे की शोभा मुकुट के कारण बढ़ी है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने किस रूपक के माध्यम से श्रीकृष्ण से अपनी दया बनाए रखने की प्रार्थना की है?
2. पद में किस भाषा का प्रयोग किया गया है?
3. कवि ने किस प्रकार के शब्दों का समन्वित प्रयोग किया है ?
4. कवि ने सामंती वैभव के आधार पर किसका सौंदर्य चित्रण किया है?
5. किस शब्द में रूपकात्मकता और प्रतीकात्मकता का प्रयोग किया है ?
6. सवैया में बिंब किस प्रकार है?
7. किस छंद का प्रयोग किया है ?
8. लयात्मकता की सृष्टि किस प्रकार हुई है?
9. किस शब्दशक्ति के प्रयोग से कवि ने कथन को सरलता-सरसता प्रदान की है?
10. किस शब्द में लाक्षणिकता विद्यमान है।
11. कवि ने किस काव्य गुण का प्रयोग किया है?
12. पद में निहित अलंकार-योजना स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने श्रीकृष्ण की सुंदरता का चित्रण किया है और संसाररूपी इस मंदिर में सदा अपनी दया बनाए रखने की प्रार्थना की है।
2. ब्रजभाषा का सहज व सुंदर प्रयोग किया गया है।
3. तत्सम और तद्भव शब्दावली का समन्वित प्रयोग सराहनीय है।
4. कवि ने सामंती वैभव के आधार पर श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का चित्रण किया है।
5. ‘जग-मंदिर-दीपक’ में रूपकात्मकता और प्रतीकात्मकता विद्यमान है।
6. चाक्षुक बिंब।
7. सवैया छंद।
8. स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
9. अभिधा शब्द-शक्ति के प्रयोग ने कवि के कथन को सरलता-सरसता से प्रकट किया है।
10. ‘श्रीब्रजदूलह’ शब्द में लाक्षणिकता विद्यमान है।
11. माधुर्य गुण।
12. रूपक –

  • मुखचंद
  • मंद हँसी जुन्हाई
  • जग-मंदिर-दीपक

अनुप्रास –

  • हिये हुलसै
  • कटि किंकिनि
  • पट पीत
  • मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई
  • जै जग-मंदिर
  • कवित्त

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

2. डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावैं ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै॥
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै॥

शब्दार्थ : डार – डाली, टहनी, डालकर। द्रुम – पेड़। पलना – बच्चों का झूला। नव पल्लव – नए पत्ते। सुमन – फूल। झिंगूला – झबला, ढीला-ढाला – वस्त्र। तन – शरीर। छबि – शोभा। पवन – हवा। केकी – मोर। कीर – तोता। कोकिल – कोयल। हलावे – हिलाती है। हुलसावै – खुश करती है। कर – हाथ। तारी – ताली। उतारो करै राई नोन – जिस बच्चे को नज़र लगी हो उसके सिर के चारों ओर राई-नमक घुमाकर आग में जलाने का टोटका। कंजकली – कमल की कली। लतान – बेलें। सारी – साड़ी। मदन – कामदेव। महीप – राजा। प्रातहि – सुबह-सुबह। चटकारी – चुटकी।

प्रसंग : प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ (भाग-2) में संकलित ‘कवित्त’ से लिया गया है, जिसके रचयिता रीतिकालीन कवि देव हैं। कवि ने ऋतुराज बसंत को एक बालक के रूप में प्रस्तुत किया है और प्रकृति के प्रति अपने प्रेम-भाव को प्रकट किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि बसंत एक नन्हे बालक की तरह पेड़ की डाली पर नए-नए पत्तों के पलने रूपी बिछौने पर झूलने लगा है। फूलों का ढीला-ढाला झबला उसके शरीर पर अत्यधिक शोभा दे रहा है। बसंत के आते ही पेड़-पौधे नए-नए पत्तों और फूलों से सज-धजकर शोभा देने लगे हैं। हवा उसके पलने को झुलाती है। कवि कहता है कि मोर और तोते अपनी-अपनी आवाज़ों में उससे बातें करते हैं। कोयल उसके पलने को झुलाती है और तालियाँ बजा-बजाकर अपनी प्रसन्नता प्रकट करती है।

कमल की कलीरूपी नायिका सिर पर लतारूपी साड़ी से सिर ढाँपकर अपने पराग कणों से बालक बसंत की नज़र उतार रही है। बालक बसंत को दूसरों की बुरी नज़र से बचाने के लिए वह वैसा ही टोटका कर रही है, जैसा सामान्य नारियाँ बच्चे की नज़र उतारने के लिए उसके सिर के चारों ओर राई-नमक घुमाकर आग में डालने का टोटका करती हैं। यह बसंत कामदेव महाराज का बालक है, जिसे प्रातः होते ही गुलाब चुटकियाँ बजाकर जगाते हैं। गुलाब की कली फूल में बदलने से पहले जब चटकती है, तो बसंत को जगाने के लिए ही ऐसा करती है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवित्त में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
2. बालक बसंत का बिछौना किससे बना है?
3. बसंत कैसे वस्त्र पहने हुए है?
4. बसंत के पालने को झुलाने का कार्य कौन कर रहा है?
5. कोयल क्या कर रही है?
6. कमल की कलीरूपी नायिका ने अपना सिर किससे ढाँपा और उसने क्या किया?
7. बसंत किसकी संतान है?
8. प्रातः होते ही बसंत को गुलाब किस प्रकार जगाते हैं ?
9. बसंत की नज़र किससे उतारी गई ?
उत्तर :
1. देव द्वारा रचित कवित्त में प्रकृति के मानवीकरण रूप को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है। कवि के अनुसार बसंत का बालक के रूप में जन्म हुआ है, जिसकी सेवा-सुश्रुषा में सारी प्रकृति जी-जान से जुट गई है। पत्तों के बिछौने पर हवा उसे झुलाती है और फूलों ने उसे वस्त्र प्रदान किए हैं। मोर और तोते उससे बातें करते हैं, तो कोयल तालियाँ बजा-बजाकर प्रसन्न होती है। कमल की कली उसे लगी नज़र को दूर करने के लिए टोटका करती है और गुलाब के फूल चटक-चटककर उसे सुबह जगाने का कार्य करते हैं। कामदेव के बालक की सेवा में सारी प्रकृति पूरी तरह से लगी हुई है।
2. बसंतरूपी बालक का बिछौना पेड़-पौधों के नए-नए कोमल पत्तों से बना हुआ है।
3. बसंत ने फूलों से बना ढीला-ढाला झबला पहना हुआ है।
4. बसंत के पालने को झुलाने का कार्य हवा कर रही है।
5. कोयल झूले को हिलाती है और तालियाँ बजा-बजाकर अपनी प्रसन्नता को प्रकट करती है।
6. कमल की कलीरूपी नायिका ने बेल से अपने सिर को ढाँपा और पराग-कणों से बसंत को लगी नज़र का टोटका पूरा किया।
7. बसंत कामदेव की संतान है।
8. प्रातः होते ही गुलाब चटक-चटककर बसंत को जगाते हैं।
9. बसंत की नज़र फूलों के पराग से उतारी गई।

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सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने किसके जन्म के अवसर पर प्रकृति में परिवर्तन चित्रित किए हैं।
2. प्रकृति का चित्रण किस रूप में किया गया है?
3. किस भाषा की योजना की गई है?
4. पद में किस काव्य-रस की प्रधानता है?
5. किस प्रकार की शब्द-योजना की गई है?
6. बिंब योजना किस प्रकार की है?
7. पद में किस छंद का प्रयोग है?
8. लयात्मकता की सृष्टि किस कारण हुई है?
9. भाषा को कोमल बनाने के लिए किन दो शब्दों का प्रयोग किया गया है?
10. पद में कौन-सा काव्य गुण विद्यमान है?
11. पद में किन अलंकारों का प्रयोग किया गया है?
उत्तर :
1. कवि ने कामदेव के बालक बसंत के जन्म के अवसर पर सारी प्रकृति में दिखाई देने वाले परिवर्तनों को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है।
2. प्रकृति का मानवीकरण रूप में चित्रण किया गया है।
3. ब्रजभाषा के कोमल कांत शब्द अति स्वाभाविक रूप से प्रयुक्त किए हैं।
4. वात्सल्य रस।
5. तत्सम और तद्भव शब्दावली का समन्वित प्रयोग सराहनीय है।
6. चाक्षुक बिंब है। गतिशील बिंब योजना की गई है।
7. कवित्त छंद।
8. स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
9. डार, तारी।
10. माधुर्य गुण का प्रयोग किया गया है।
11. अनुप्रास – हलावै-हुलसावै, सिर सारी, मदन महीप, केकी कीर, बालक बसंत, पुरित पराग
रूपक – मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि, प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।

3. फटिक सिलानि सौं सुधार्यो सुधा मंदिर,
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘देव’,
दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद।
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद॥

शब्दार्थ : फटिक – स्फटिक। सिलानि – शिलाएँ, चट्टानें। सुधा – अमृत। उदधि – समुद्र। दधि – दही। अमंद – जो कम न हो, बहुत अधिक। उमगे – उमड़ना। फेन – झाग। आँगन – अहाता। फरस बंद – फ़र्श के रूप में बना हुआ ऊँचा स्थान। तरुनि – युवती। तामें – उसमें। ठाढ़ी – खड़ी। भीति – दीवार। मल्लिका – बेले की जाति का एक सफ़ेद फूल। मकरंद – पराग, फूलों का रस। आरसी – दर्पण, आईना। अंबर – आकाश। प्रतिबिंब – परछाईं। लगत – लगता है।

प्रसंग : प्रस्तुत पद रीतिकालीन कवि देव के द्वारा रचित है, जो हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ (भाग-2) में संकलित है। इसमें कवि ने चाँदनी रात की आभा को अति सुंदर ढंग से प्रकट किया है। कवि ने इसके माध्यम से राधा के रूप-सौंदर्य को प्रस्तुत करने की चेष्टा की है।

व्याख्या : कवि कहता है कि अमृत की धवलता और उज्ज्वलता वाले भवन को स्फटिक की शिलाओं से इस प्रकार बनाया गया है कि उसमें दही के समुद्र की तरंगों-सा अपार आनंद उमड़ रहा है। भवन बाहर से भीतर तक चाँदनी उज्ज्वलता से इस प्रकार भरा हुआ है कि उसकी दीवारें भी दिखाई नहीं दे रहीं। दूध के झाग जैसी उज्ज्वलता सारे आँगन और फ़र्श के रूप में बने ऊँचे स्थान पर फैली हुई है। इस भवन में तारे की तरह झिलमिलाती युवती राधा ऐसी प्रतीत हो रही है, जैसे मोतियों की आभा और जूही की सुगंध हो। राधा की रूप छवि ऐसी ही है। आईने जैसे साफ़-स्वच्छ आकाश में राधा का गोरा रंग ऐसे फैला हुआ है कि इसी के कारण चंद्रमा राधा का प्रतिबिंब-सा लगता है।

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अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. कवि की कल्पना में सुधा मंदिर की रचना किससे की गई है?
3. भवन में किसकी तरंगों-सा अपार आनंद उमड़ रहा है?
4. भवन में बाहर से भीतर तक दीवारें क्यों नहीं दिखाई देतीं?
5. आँगन और फ़र्श पर चाँदनी किस प्रकार फैली हुई है?
6. युवती कैसी प्रतीत हो रही है ?
7. राधा में किसकी ज्योति और सुगंध मिली हुई है?
8. आकाश कैसा प्रतीत हो रहा है?
9. चंद्रमा कैसा प्रतीत होता है?
उत्तर :
1. महाकवि देव ने चाँदनी रात की आभा के माध्यम से राधा की अपार सुंदरता को प्रस्तुत किया है। उसकी सुंदरता से ही चाँद ने सुंदरता प्राप्त की है। चाँदनी का प्रभाव अति व्यापक है, जिसने सारे भवन को उज्ज्वलता प्रदान कर दी है।
2. कवि की कल्पना में सुधा मंदिर की रचना स्फटिक की शिलाओं से की गई है।
3. भवन में दही के समुद्र-सी तरंगों का अपार आनंद उमड़ रहा है।
4. भवन स्फटिक का बना है और चाँदनी की उज्ज्वलता का प्रसार ऐसा है कि बाहर से भीतर तक की दीवारें दिखाई नहीं देती।
5. आँगन और फ़र्श पर दूध की झाग-सी उज्ज्वलता चाँदनी के रूप में फैली हुई है।
6. युवती तारे-सी दिखाई दे रही है।
7. राधा में मोतियों की चमक और मल्लिका (जूही) की सुंगध मिली हुई है।
8. चाँदनी रात में आकाश आईने के समान साफ़-स्वच्छ और उज्ज्वलता से भरा हुआ दिखाई दे रहा है।
9. चंद्रमा राधा की उज्ज्वलता और सुंदरता से प्रतिबिंबित होता हुआ दिखाई दे रहा है।

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सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने किसके माध्यम से राधा की सुंदरता की प्रशंसा की है?
2. किस छंद का प्रयोग किया गया है?
3. कौन-सा काव्य-गुण प्रयोग किया गया है?
4. कवि ने किस भाषा में अपने भाव व्यक्त किए हैं ?
5. किस प्रकार के शब्दों की अधिकता है?
6. कौन-सा काव्य-रस प्रधान है?
7. पद में किन अलंकारों का प्रयोग किया गया है?
उत्तर :
1. कवि ने चाँदनी के माध्यम से राधा की सुंदरता का अद्भुत वर्णन किया है।
2. कवित्त छंद ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
3. माधुर्य गुण विद्यमान है।
4. ब्रजभाषा।
5. तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
6. शृंगार रस विद्यमान है।
7. रूपक –
उदधि दहि

अनुप्रास –

  • सिलानि सौं सुधार्यो सुधा
  • फेन फैल्यो
  • तारा सी तरुनि तामें
  • मिल्यो मल्लिका को मकरंद

उत्प्रेक्षा –
फटिक सिलानि सौं सुधार्यो सुधा मंदिर

व्यतिरेक –
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद

उपमा –

  • दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद,
  • तारा-सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
  • आरसी से अंबर में
  • आभा सी उजारी लगै

सवैया और कवित्त Summary in Hindi

कवि-परिचय :

देव रीतिकाल के कवि थे। इनका पूरा नाम देवदत्त द्विवेदी था। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा में सन 1673 में हुआ था। यह देवसरिया ब्राह्मण थे। इन्होंने स्वयं अपने बारे में लिखा है-‘योसरिया कवि देव को, नगर इटावौ वास’। इन्हें अपने जीवनकाल में आश्रय के लिए अनेक आश्रयदाताओं के पास भटकना पड़ा। ये कुछ समय के लिए औरंगज़ेब के पुत्र आजमशाह के दरबार में भी रहे थे, पर इन्हें जितना संतोष और सुख भोगीलाल नामक आश्रयदाता से प्राप्त हुआ, उतना किसी और से नहीं मिल सका। इनका देहांत सन 1767 में हुआ था।

रचनाएँ-देव के द्वारा रचित ग्रंथों की निश्चित संख्या अभी तक ज्ञात नहीं है। कुछ विद्वानों ने इनके ग्रंथों की संख्या 52 मानी है, तो किसी ने 72 तक स्वीकार की है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इनकी संख्या 25 मानी है। इनके ग्रंथों की संख्या की अनिश्चितता का कारण यह है कि ये अपनी पुरानी रचनाओं में ही थोड़ा-बहुत हेर-फेर करके नया ग्रंथ तैयार कर देते थे।

इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-भावविलास, रसविलास, काव्यरसायन, भवानीविलास, अष्टयाम, प्रेम तरंग, सुखसागर-तरंग, देव चरित्र, देव माया प्रपंच, शिवाष्टक, शब्द रसायन, देव शतक, प्रेम चंद्रिका आदि। साहित्यिक विशेषताएँ-देव की कविता का प्रमुख विषय शृंगार था। इन्होंने प्रायः राधा-कृष्ण के माध्यम से शृंगारिक भावनाओं को प्रकट किया है। इन्होंने संयोग श्रृंगार की रचना अधिक की है। वियोग श्रृंगार में इन्होंने विभिन्न भाव दशाओं का वर्णन किया है। देव ने वैराग्य और भक्ति-भावना का सुंदर वर्णन किया है।

ये शरीर और शारीरिक क्रियाओं को माया का बंधन मानते थे। इस संसार में कोई भी मौत से बच नहीं सकता, इसलिए इसकी क्षणभंगुरता देखकर इनके हृदय में इसके प्रति ग्लानि उत्पन्न होती है। देव ने आचार्य-कर्म को पूरा किया था और ‘शब्द रसायन’ के द्वारा काव्य की विभिन्न विशेषताओं का चित्रण किया था। इनके काव्य में दार्शनिकता के बार-बार दर्शन होते हैं।

ये ब्रह्म को एक और सर्वव्यापक मानते हैं। उसका न तो आरंभ है और न ही अंत; वह निर्गुण भी है और सगुण भी; वह अनंत, नित्य, सत्य और शाश्वत है। उसका वर्णन वेद भी नहीं कर सकते –

पै अपने ही गुन बंधे, माया को उपजाइ।
ज्यों मकरी अपने गुननि, उरझि-उरझि मुरझाई॥

देव के काव्य में प्रकृति का सुंदर चित्रण है। इनकी कविता में दरबारी संस्कृति का अधिक चित्रण हुआ है। इनकी कविता में दरबारों, आश्रयदाताओं की प्रशंसा भी की गई है। इन्होंने प्रेम और सौंदर्य के सहज चित्र खींचे हैं। देव ने अपनी कविता ब्रजभाषा में रची थी। इन्हें अनुप्रास अलंकार के प्रति विशेष मोह था। इन्होंने शब्द-शक्तियों का अच्छा प्रयोग किया है। छंद-योजना में लय और तुक का उन्होंने विशेष ध्यान रखा है। इनकी कविता में तत्सम शब्दावली का अधिक प्रयोग किया गया है। देव वास्तव में बहुत अच्छे भाषा शिल्पी थे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

कवित्त-सवैयों का सार :

देव के द्वारा रचित कवित्त-सवैयों में जहाँ एक ओर रूप-सुंदरता का अलंकारिक चित्रण किया गया है, वहीं दूसरी ओर प्रेम और प्रकृति के प्रति मनोरम भाव अभिव्यक्त किए गए हैं। पहले सवैये में श्रीकृष्ण के सौंदर्य का चित्रण किया गया है। इसमें उनका लौकिक रूप नहीं, बल्कि सामंती वैभव दिखाया गया है। उनके पाँवों में नूपुर मधुर ध्वनि उत्पन्न करते हैं और कमर में बँधी करधनी मीठी धुन-सी पैदा करती है। उनके साँवले रंग पर पीले वस्त्र और गले में फूलों की माला शोभा देती है।

उनके माथे पर सुंदर मुकुट है और चेहरे पर मंद-मंद मुस्कान चाँदनी के समान बिखरी हुई है। इस संसाररूपी मंदिर में उनकी शोभा दीपक के समान फैली हुई है। दूसरे कवित्त में बसंत को बालक के रूप में दिखाकर प्रकृति के साथ उसका संबंध जोड़ा गया है। बालकरूपी बसंत पेड़ों के नए-नए पत्तों के पलने पर झूलता है और तरह- : तरह के फूल उनके शरीर पर ढीले-ढाले वस्त्रों के रूप में सजे हुए हैं। हवा उन्हें झुलाती है, तो मोर और तोते उससे बातें करते हैं। कोयल उसे बहलाती है।

कमल की कलीरूपी नायिका उसकी नज़र उतारती है। कामदेव के बालक बसंत को सुबह-सवेरे गुलाब चुटकी दे-देकर जगाते है। तीसरे कवित्त में पूर्णिमा की रात में चाँद तारों से भरे आकाश की शोभा का वर्णन किया गया है। चाँदनी रात की शोभा को दर्शाने के लिए कवि ने दूध में फेन जैसे पारदर्शी बिंबों का प्रयोग किया है। चाँदनी बाहर से भीतर तक सर्वत्र फैली है। तारे की तरह झिलमिलाती । राधा अनूठी दिखाई देती है। उसके शरीर का अंग-प्रत्यंग अद्भुत छटा से युक्त है। चाँदनी जैसे रंग वाली राधा चाँदनी रात में स्फटिक के महल में छिपी-सी रहती है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

JAC Class 10 Hindi राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए ?
उत्तर :
सीता स्वयंवर के अवसर पर श्रीराम ने शिवजी के धनुष को तोड़ दिया था, जिस कारण परशुराम अत्यंत क्रोधित हो गए थे। तब लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने का कारण बताते हुए कहा था कि वह धनुष नहीं, बल्कि धनुही थी। यह बहुत पुराना था और राम के द्वारा हते ही टूट गया था। इसमें राम का कोई दोष नहीं है।

प्रश्न 2.
परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुई उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
राम और लक्ष्मण दोनों एक ही पिता की संतान थे। उन्होंने एक ही गुरु से शिक्षा पाई थी और एक-से वातावरण में रहे थे लेकिन फिर भी दोनों के स्वभाव में बहुत अंतर था। राम स्वभाव से शांत थे, पर लक्ष्मण उग्र स्वभाव के थे। धनुष टूट जाने पर राम ने शांत भाव से परशुराम से कहा था कि धनुष तोड़ने वाला कोई उनका दास ही होगा। लेकिन लक्ष्मण ने उन्हें मनचाही जली-कटी सुनाई थी।

राम ने परशुराम के क्रोध को शांत करने का प्रयास किया, तो लक्ष्मण ने अपनी व्यंग्यपूर्ण वाणी से उन्हें उकसाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। परशुराम के क्रोध करने पर राम शांत भाव से बैठे थे, पर लक्ष्मण उन पर व्यंग्य करते हुए उन्हें उकसाते रहे। राम ऋषि-मुनियों का आदर-सम्मान करने वाले थे, पर लक्ष्मण का स्वभाव ऐसा नहीं था। लक्ष्मण की वाणी परशुरामरूपी यज्ञ की अग्नि में आहुति के समान थी, तो राम की वाणी शीतल जल के समान उस अग्नि को शांत करने वाली थी।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 3.
लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।
उत्तर :
लक्ष्मण (मुसकराते हुए) – मुनियों में श्रेष्ठ मुनिवर ! क्या आप स्वयं को बहुत बड़ा योद्धा समझते हैं? बार-बार मुझे अपनी कुल्हाड़ी क्यों दिखाते हैं ? क्यों आप अपनी फॅक से पहाड़ उड़ाने की कोशिश करना चाहते हैं?
परशुराम (गुस्से में भरकर) – लक्ष्मण! अपने शब्दों को रोक लो। अन्यथा यह फरसा रक्त चखने के लिए व्यग्र है।
लक्ष्मण (व्यंग्य भाव से) – मुनिवर ! मैं कुम्हड़े का फूल नाहीं हूँ, जो आपकी तर्जनी देख सूख जाऊँगा।
मैंने तो आपके फरसे और धनुष – बाण को देखकर समझा था कि आप कोई क्षत्रिय है। इसलिए अभिमानपूर्वक मैंने आपसे कुछ कह दिया था।
परशुराम (गुस्से से लाल होते हुए) – हे दुःसाहसी। मैंने कई बार पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन किया है।
लक्ष्मण (डरने का अभिनय करते हुए) – अरे ! आप तो ब्राह्मण हैं। आपके गले में यज्ञोपवीत भी है। मुझसे गलती हो गई। मुझे क्षमा करें। हमारे वंश में देवता, ब्राह्मण, भक्त और गौ के प्रति कभी वीरता नहीं दिखाई जाती।
परशुराम (गुस्से से पूछते हुए) – मूर्ख! मेरे फरसे को धार तुम्हारा मस्तक काटने के लिए व्याकुल है। संभल जा, अन्यथा युद्ध के लिए तैयार रह।

लक्ष्मण-ब्राहमण देवता! यदि आप मुझे मारेंगे, तो भी मैं आपके पैरों में ही पड़ेगा। मुनिवर! आपकी बात ही अनूठी है।
आपका एक-एक वचन ही करोड़ों वनों के समान है। बताइए कि फिर आपने व्यर्थ ही ये धनुष-बाण और फरसा क्यों धारण कर रखा है? आपको इन सबकी क्या जरूरत है? मैंने आपके इन अस्त्र-शस्त्रों को देखकर आपसे जो उल्टा-सीधा कह दिया है, कृपया उसके लिए मुझे क्षमा करें।

परशराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए? बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही॥ भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही। सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा।। मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर। गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर॥

परशुराम ने अपने विषय में कहा कि वे बाल ब्रह्मचारी हैं; स्वभाव के अति क्रोधी हैं। सारा संसार जानता है कि वे क्षत्रिय वंश के नाशक हैं। उन्होंने पृथ्वी से क्षत्रिय राजाओं को समाप्त कर देने की प्रतिज्ञा कर रखी है। न जाने उन्होंने कितनी बार अपने बाहुबल से पृथ्वी के क्षत्रिय राजाओं का वध कर उनके राज्य ब्राहमणों को सौंप दिए हैं। वे सहस्रबाहु जैसे अपार बलशाली की भुजाओं को काट देने वाले पराक्रमी वीर हैं।

उन्होंने अपने फरसे से लक्ष्मण को डराने के लिए कहा कि अरे राजा के बालक ! तू मेरे द्वारा मारा जाएगा। क्यों अपने माता-पिता को चिंता में डालता है? वे मानते थे कि उनका फ़रसा बड़ा भयानक है, जो गर्भ में ही बच्चों का नाश कर देने वाला है। गुस्सा आने पर वे छोटे-बड़े में कोई अंतर नहीं करते; वे किसी का भी वध कर देते हैं।

प्रश्न 5.
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताई?
अथवा
लक्ष्मण ने शूरवीरों के क्या गुण बताए हैं?
उत्तर :
लक्ष्मण ने बीर योद्धा की विशेषताओं के बारे में कहा कि वे व्यर्थं अपनी वीरता की डोंमें नहीं हाँकते बल्कि युद्ध-भूमि में युद्ध करते हैं; अपने अस्त्र-शस्त्रों से वीरता के जौहर दिखाते हैं। शत्रु को सामने पाकर जो अपने प्रताप की बातें करते हैं, वे कायर होते हैं।

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प्रश्न 6.
साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
विनम्रता सदा साहसियों और शक्तिशालियों को ही शोभा देती है। कमजोर और कायर व्यक्ति का विनम्न होना उसका गुण नहीं होता बल्कि उसकी मजबूरी होती है। वह किसी का क्या बिगाड़ सकता है? लेकिन कोई शक्तिशाली व्यक्ति अपनी शक्ति का दुरुपयोग न करके जब दोन-दुखियों के प्रति विनम्नता का भाव प्रकट करता है, तो सारे समाज में सम्मान प्राप्त करता है। तुलसीदास ने कहा भी है-‘परम धर्म श्रुति विदित अहिंसा’ तथा ‘पर पीड़ा सम नहि अधमाई’। साहस और धैर्य मन में उत्पन्न होने वाले वे भाव हैं, जो शक्ति को पाकर विपरीत स्थितियों में मानव को विचलित होने से रोक लेते हैं।

साहस और धैर्य ‘असमय के सखा’ हैं, जिन्हें शक्ति की सहायता से बनाकर रखा जाना चाहिए पर उसके साथ विनम्रता का बना रहना आवश्यक है। बिनम्न व्यक्ति ही किसी के साथ होने : वाले अन्याय के विरोध में खड़ा हो सकने का साहस करता है। भगवान विष्णु को जब भृगु ने ठोकर मारी थी और उन्होंने साहस व शक्ति होने के बावजूद विनम्नता का प्रदर्शन किया था, तभी उन्हें देवों में से सबसे बड़ा मान लिया गया था।

समाज में सदा से माना गया है कि अशक्त और असहाय की याचनापूर्ण करुण दृष्टि से जिसका हृदय नहीं पसीजा, भूखे व्यक्ति को अपने खाली पेट पर हाथ फिराते देखकर जिसने अपने सामने रखा भोजन उसे नहीं दे दिया, अपने पड़ोसी के घर में लगी आग को देखकर उसे बुझाने के लिए वह उसमें कूद नहीं पड़ा-बह मनुष्य न होकर पशु है, क्योंकि साहस और शक्ति होते हुए अन्याय का प्रतिकार न करना कायरता है। साहस और शक्ति के साथ विनम्रता मानव का सदा हित करती है। गुरु नानक देव ने कहा भी है –

जो प्राणी ममता तजे, लोभ, मोह, अहंकार
कह नानक आपन तरे, औरन लेत उबार।

साहस और शक्ति अनेक प्राणियों में होती है, पर विनम्रता के अभाव के कारण वे कभी भी समाज में प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त कर पाते। जब हमारे हृदय में विनम्रता का भाव होता है, तभी हम स्वयं को भुलाकर दूसरों के कष्टों को कम करने की बात सोचते हैं। सच्ची मनुष्यता इसी बात में छिपी हुई है कि मनुष्य साहस और शक्ति होने के साथ विनम्रता को हमेशा महत्त्व दें।

भगवान शिव इसलिए पूजनीय है कि उन्होंने साहस और शक्ति से संपन्न होते हुए विनम्रता का परिचय दिया था। उन्होंने विषपान कर देवताओं और दानवों की रक्षा की थी। भर्तृहरि ने राक्षस और मनुष्य का अंतर विनम्रता के आधार पर ही किया है। जो विनम्र है, वही महापुरुष है और जो अपने साहस व शक्ति को स्वार्थ के लिए प्रयोग करता है, वहीं राक्षस है। तभी तो मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है –

यही पशु प्रवृत्ति है कि आप-आप ही चरे।
मनुष्य है वही कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

वास्तव में साहस और शक्ति के साथ विनम्नता ही मानव को मानव बनाती है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 7.
भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) बिहसि लखनु बोले मदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठा। चहत उड़ावन फँकि पहात ॥
(ख) इहाँ कुम्हड़बतिआ कोड नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं।।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।
(ग) गाधिसू नु कर हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न जखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।
उत्तर :
(क) इन पंक्तियों में लक्ष्मण ने परशुराम के अभिमानपूर्ण स्वभाव पर व्यंग्य किया है। वे कहते हैं कि वीर वह होता है, जो वीरता का प्रदर्शन करे न कि व्यर्थ में डींगें हाँके। जब परशुराम ने यह कहा कि उन्होंने अपनी भुजाओं के बल से कई बार पृथ्वी के क्षत्रिय राजाओं को मिटाकर उनके राज्य ब्राह्मणों को दे दिए थे और उन्होंने सहस्त्रबाहु की भुजाओं को काट डाला था, तब लक्ष्मण ने मुसकराकर कहा कि मुनीश्वर !

आप स्वयं को बहुत बड़ा योद्धा समझते हैं और बार-बार कुल्हाड़ी दिखाकर डराना चाहते हैं। आप फूंक मारकर पहाड़ उड़ाने का कार्य करना चाहते हैं। भाब है कि राम और लक्ष्मण ऐसे क्षत्रिय बीर नहीं थे, जो सरलता और सहजता से परशुराम से हार जाते।

(ख) कवि ने यहाँ परशुराम के झूठे अभिमान को काव्य रूनि के माध्यम से स्पष्ट किया है। समाज में पुरानी उक्ति है कि कुम्हड़े के छोटे कच्चे फल की ओर तर्जनी का संकेत करने से बह मर जाता है। लक्ष्मण कुम्हड़े के कच्चे फल जैसे कमजोर नहीं थे, जो परशुराम की धमकी मात्र से भयभीत हो जाते। लक्ष्मण ने यदि उनसे अभिमानपूर्वक कुछ कहा था तो वह उनके अस्त्र-शास्त्र और फरसे को देखकर कहा था।

विश्वामित्र ने परशुराम की अभिमानपूर्वक प्रकट कहीं जाने वाली उनकी वीरता संबंधी बातों को सुनकर मन-ही-मन कहा था कि मुनि को हरा-ही-हरा सूझ रहा है। वे सामान्य क्षत्रियों को युद्ध में हराते रहे हैं, इसलिए उन्हें लगने लगा है कि वे राम-लक्ष्मण को भी युद्ध में आसानी से हरा देंगे। पर वे यह नहीं समझ पा रहे, कि ये दोनों साधारण क्षत्रिय नहीं हैं। ये गन्ने से बनी खाँड के समान नहीं, बल्कि फौलाद के बने खाँडे के समान हैं। मुनि व्यर्थ में बेसमझ बने हुए हैं और इनके प्रभाव को नहीं समझ पा रहे।

प्रश्न 8.
पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर :
“तुलसीदास ने अवधी भाषा के लोकप्रिय और परिनिष्ठित रूप को साहित्यिक रूप में प्रस्तुत किया है। उन्होंने व्याकरण के नियमों का पूर्ण रूप से निर्वाह किया है। उनकी भाषा में कहीं भी शिथिलता दिखाई नहीं देती। उनको वाक्य-रचना पूर्ण रूप से निर्दोष है। उन्होंने शब्द प्रयोग में उदार नीति का परिचय दिया है, जिसमें तत्सम तद्भव शब्दावली के साथ देशी शब्दों का भी प्रयोग दिखाई देता है। लोक प्रचलित मुहावरों और लोकोक्तियों के कारण उनकी भाषा सजीव, प्रवाहपूर्ण और प्रभावशाली बन गई है।

गोस्वामी जी ने प्रसंगानुकूल भाषा का प्रयोग किया है। रस की अनुकूलता के अतिरिक्त उन्होंने इस बात का पूरा ध्यान रखा है कि किस स्थान पर किस शब्द का प्रयोग किया जाए। उनकी भाषा सर्वत्र भावों और विचारों की सफल अभिव्यक्ति में समर्थ दिखाई देती है। गुण के सहारे रस की अभिव्यक्ति करने में उन्होंने सफलता पाई है। उनकी भाषा की वर्ण मैत्री दर्शनीय है। उन्होंने नाद सौंदर्य का पूरा ध्यान रखा है। बास्तब में भाषा पर जैसा अधिकार तुलसीदास का है, वैसा किसी और हिंदी कवि का नहीं है।

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प्रश्न 9.
इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
तुलसीदास हिंदी के श्रेष्ठतम भक्त कवियों में से एक हैं, जिन्होंने गंभीरतम दार्शनिक काव्य लिखने के साथ-साथ व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य प्रस्तुत किया है। इस प्रसंग में उन्होंने लक्ष्मण के माध्यम से मुनि परशुराम की करनी और कथनी पर कटाक्ष करते हुए व्यंग्य को सहज सुंदर अभिव्यक्ति की है। लक्ष्मण ने शिवजी के धनुष को धनुही कहकर परशुराम के अहं को चुनौती दी थी। उन्होंने व्यंग्य भरी वाणी में कहा –

(i) बिहसि लखनु बोले मदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूंकि पहारू॥

(ii) इहाँ कुम्हड़बतिआ कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥

लक्ष्मण ने व्यंग्य करते हुए परशुराम से कहा कि वे जो चाहते हैं, वह कह देना चाहिए। उन्हें क्रोध रोककर असह्य दुख नहीं सहना : चाहिए। परशुराम तो मानो काल को हाँक लगाकर बार-बार बुलाते थे। भला इस संसार में ऐसा कौन था, जो उनके शील को नहीं जानता था। वे संसार में प्रसिद्ध थे। लक्ष्मण कहते हैं कि वे अपने माता-पिता के ऋण से मुक्त हो चुके थे; अब उन्हें अपने गुरु के ऋण से : भी मुक्त हो जाना चाहिए।

सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये व्याज बड़ बाढ़ा।
अब आनिअ व्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।

वास्तव में तुलसीदास ने परशुराम के स्वभाव और उनके कश्चन के ढंग पर व्यंग्य कर अनूठे सौंदर्य की प्रस्तुति की है।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचानकर लिखिए –
(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।
(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
(ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लाबा। बार-बार मोहि लागि बोलाया।
(घ) लखन उतर आहुति सरिस भूगुबरकोपु कृसानु। बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।
उत्तर :
(क) अनुप्रास
(ख) उपमा, अनुप्रास
(ग) उत्प्रेक्षा, पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास
(घ) उपमा, रूपक

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रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 11.
“सामाजिक जीवन में क्रोध की जरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दुसरे के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।”
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।
उत्तर :
पक्ष में – वास्तव में हमारे सामाजिक जीवन में क्रोध की अत्यधिक जरूरत पड़ती है। यदि मनुष्य क्रोध को पूरी तरह से त्याग दे. तो दूसरों के द्वारा दिए जाने वाले कष्टों को वह अपने मन से कभी दूर न कर पाए और सदा के लिए घुट-घुट कर कष्ट उठाता रहे। सामाजिक जीवन सुखों-दुखों से मिलकर बनता है। हमें प्राय: दुख अपनों से ही नहीं बल्कि बाहर वालों से मिलते हैं। उस पीड़ा को तभी दूर किया जा सकता है, जब हम अपने मन में छिपे भावों को क्रोध प्रकट करके निकालते हैं।

जो व्यक्ति कभी क्रोध नहीं करता और जीवन में सकारात्मकता हूँढना चाहता है, लोग उसे कमजोर और कायर मानने लगते हैं। छोटे बच्चे भी क्रोध को रोकर या दुख प्रकर कर व्यक्त करते हैं। बिना दुखा के क्रोध उत्पन्न हो नहीं होता। क्रोध में सदा बदले की भावना छिपी हुई नहीं होती, बल्कि इसमें स्वरक्षा की भावना भी मिली होती है। यदि कोई हमें दो-चार टेढ़ी बातें कह जाए, तो उस दुख से बचने के लिए आवश्यक है कि क्रोध करके उसे बतला दिया जाए कि उसका स्थान कौन-सा है और कहाँ है? क्रोध दूसरों में भय को उत्पन्न करता है। जिस पर क्रोध प्रकट किया जाता है, यदि वह डर जाता है तो नम्र होकर पश्चात्ताप करने लगता है। इससे क्षमा का अवसर सामने आता है।

विपक्ष में – क्रोध एक मनोविकार है, जो दुख के कारण उत्पन्न होता है। प्रायः लोग अपनों पर अधिक क्रोध करते हैं। एक शिशु अपनी माता की आकृति से परिचित हो जाने के बाद जान जाता है कि उसे भोजन उसी से प्राप्त होगा। तब भूखा होने पर वह उसे देखते ही रोने लगता है और अपने क्रोध का आभास दे देता है। क्रोध चिड़चिड़ाहट को उत्पन्न करता है।

प्रायः क्रोध करने वाला उस तरफ़ देखता है, जिधर वह क्रोध करता है। क्रोध से क्रोध ही उत्पन्न होता है। क्रोध न करने वाला व्यक्ति अपनी बुद्धि या विवेक पर नियंत्रण रखता है, जिस कारण वह अनेक अनर्थों से बच जाता है। महात्मा बुद्ध, गुरु नानक देव, महात्मा गांधी आदि जैसे महापुरुषों ने अपने क्रोध पर विजय पाकर संसार भर में अपना नाम अमर कर लिया। क्रोध से बचकर हम अपना आत्मिक बल बढ़ा सकते हैं और आंतरिक शक्तियों को अनुकूल कार्यों की ओर लगा सकते हैं।

बाल्मीकि ने क्रोध पर विजय प्राप्त कर आदिकवि होने का यश प्राप्त कर लिया था। क्रोध पर नियंत्रण पाकर वैर से बचा जा सकता है। अतः जहाँ तक संभव हो सके, मनुष्य को क्रोध से बचकर जीवन जीना चाहिए।

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प्रश्न 12.
संकलित अंश में राम का व्यवहार विनयपूर्ण और संयत है, लक्ष्मण लगातार व्यंग्य बाणों का उपयोग करते हैं और परशुराम का व्यवहार क्रोध से भरा हुआ है। आप अपने आपको इस परिस्थिति में रखकर लिखें कि आपका व्यवहार कैसा होता?
उत्तर :
परशुराम के समान किए जाने वाले क्रोध से तो सामने वाले के हृदय में भी क्रोध का भाव ही भरेगा, जिससे क्लेश-भाव बढ़ेगा और समस्या बढ़ जाएगी। लक्ष्मण के समान व्यंग्य-बाणों का लगातार उपयोग भी सामने वाले व्यक्ति को भड़काएगा, जिससे उसका गुस्सा बढ़ेगा। विनय का भाव और संयत व्यवहार किसी क्रोधी व्यक्ति के क्रोध को भी शांत कर देने की क्षमता रखता है। इसलिए ऐसी परिस्थिति में श्रीराम के समान विनयपूर्वक और संयत व्यवहार करूँगा।

प्रश्न 13.
अपने किसी परिचित या मित्र के स्वभाव की विशेषताएं लिखिए।
उत्तर :
मेरे एक परिचित हैं-डॉ. सिंगला। उनका नर्सिंग होम मेरे घर से कुछ ही दूरी पर है। उनका घर भी नर्सिंग होम का ही एक हिस्सा है, जो उनके रोगियों के लिए बहुत उपयुक्त है। किसी भी आपातकाल में वे उनके पास मिनट में पहुँच सकते हैं। मेरे परिचित बहुत साफ-सुधरे रहते हैं। साफ़-सफाई उनके हर काम में दिखाई देती है।

चमचमाते फर्श, साफ-सुथरी दीवारें चुस्त कर्मचारी उनके नर्सिंग होम की पहचान है, जिसमें डॉ. सिंगला के स्वभाव की पहचान साफ़ झलकती है। वे मृदुभाषी हैं। उनके रोगियों का आधा रोग तो उनसे बातचीत करके ही दूर हो जाता है। उन्हें पेड़-पौधे लगाने का शौक है। रंग-बिरंगे फूल, झाड़ियाँ और बेलें उनके घर में महकती रहती हैं। अपने व्यस्त समय में से वे कुछ घड़ियाँ इनके लिए निकाल लेते हैं।

वे बहुत मिलनसार हैं। नगर के बहुत कम लोग ही ऐसे होंगे, जो उन्हें जानते-पहचानते न हों। वे अनेक सामाजिक संस्थाओं से जुड़कर समाज-सेवा के कार्यों में सहयोग दे रहे हैं। वे सभी के सुख-दुख में सहायता करने के लिए सदा तैयार रहते हैं। उनका व्यक्तित्व उन्हें जानने-पहचानने वाले सभी लोगों को एक उत्साह-सा प्रदान करता है।

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प्रश्न 14.
दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए-इस शीर्षक को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।
उत्तर :
घने जंगल में एक खरगोश उछलता-कूदता भागा जा रहा था। वह बड़ा प्रसन्न था और मन-ही-मन सोच रहा था कि उस से तेज़ कोई भी नहीं भाग सकता।
बिना ध्यान भागते हुए वह धीरे-धीरे चलते एक कछुए से टकरा गया। उसके पाँव पर हल्की-सी चोट लगी और वह रुक गया। वह कछुए से बोला-“अरे, तुम्हें चलना तो आता नहीं, पर फिर भी मेरे रास्ते में रुकावट बनते हो।”
कछुआ बोला – “भगवान ने चलने की जितनी क्षमता मुझे दी है, मेरे लिए बही काफी है। मेरा इतनी गति से ही काम चल जाता है।”
खरगोश ने व्यंग्य से कहा – ‘नहीं, नहीं! तुम तो बहुत तेज भागते हो; यहाँ तक कि मुझे भी दौड़ में हरा सकते हो। दौड़ लगाओगे मेरे साथ?
कछुए ने कहा-“नहीं भाई। मैं तुम्हारे सामने क्या हूँ? तुमसे दौड़ कैसे लगा सकता है?”
खरगोश ने उसे उकसाते हुए कहा – “अरे, हिम्मत तो कर। हम दोनों एक ही रास्ते पर जा रहे हैं। चल देखते हैं कि बड़े पीपल के पास वाले तालाब तक पहले कौन पहुँचता है। यदि तू जीत गया तो मैं कभी तुम्हें ‘सुस्त’ नहीं कहूँगा।”
कछुए ने धीमे स्वर में कहा – “अच्छा, मैं कोशिश करता हूँ।”
यह सुनते ही खरगोश तेजी से तालाब की दिशा में भागा। बिना पीछे देखे वह लगातार भागता हो गया। कछुए का कहीं कोई अता-पता नहीं था। खरगोश एक छायादार पेड़ के नीचे बैठ गया। उसने सोचा कि कछुआ शाम से पहले उस तक नहीं पहुँच पाएगा। यदि वह छाया में कुछ देर सुस्ता ले, तो फिर और तेज़ भाग सकेगा। बैठे-बैठे उसे नींद आ गई। जब उसकी आँख खुली, तो हल्का-हल्का अंधेरा होने वाला था। वह तेज गति से तालाब की ओर भागा। पर जब वह तालाब के किनारे पहुँचा, तो कछुआ वहाँ पहले से ही पहुँचकर उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। उसे देख कछुआ धीरे से मुस्कराया। खरगोश खिसियाकर बोला – “अरे, तुम पहुँच गए! मेरी जरा आँख लग गई थी।”
कछुआ बोला – “कोई बात नहीं। ऐसा हो जाता है, पर याद रखना कि तुम्हें दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए। ईश्वर ने सबको अलग-अलग गुण दिए हैं।”

प्रश्न 15.
उन घटनाओं को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।
उत्तर :
पहली घटना – पिछले वर्ष से मैं अपने स्कूल की हॉकी टीम में खेल रहा था। परसों जब शाम को मैं अभ्यास के लिए खेल के मैदान में पहुँचा, तो खेल-कूद के इंचार्ज के निकट एक अनजान लड़का हॉकी लिए खड़ा था। मुझे देखते ही उन्होंने कहा कि तुम्हारी जगह टीम में आज से यह लड़का खेलेगा। यह मेरा भतीजा है और इसने आज ही इस स्कूल में दाखिला लिया है। मैंने कहा कि एक साल से मैं इस टीम का नियमित सदस्य हूँ और मेरा खेल भी अच्छा है। उन्होंने मुझे गुस्से से देखा और कहा कि निर्णय का अधिकार उनका है कि कौन खेलेगा और कौन नहीं।

मैं चुपचाप वहाँ से चला आया। मैं स्कूल के प्राचार्य के पर गाया और उनसे बात की। उन्होंने मुझे समझाया और कहा कि वे स्कूल में इंचार्ज से बात करके मुझे बताएँगे। मैं नहीं जानता कि प्राचार्य महोदय की सर से क्या बात हुई, पर सातवें पीरियड में स्कूल का चपरासी एक नोटिस लाया कि शाम को मुझे खेलने के लिए पहले की तरह ही पहुँचना है। दुसरी घटना- मेरे घर के बाहर कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे।

मैं उन्हें खेलता हुआ देख रहा था। जैसे ही एक लड़के ने बॉल को हिट किया, तो वह उछलकर खिड़की से टकराई और शीशा टूट गया। बच्चों ने शीशा टूटता देखा और वहाँ से भागे। एक छोटा लड़का वहाँ खड़ा था। वह खेल नहीं रहा था, बस खेल देख रहा था। मेरा बड़ा भाई साइकिल पर कहीं बाहर से आ रहा था। उसने लड़कों को भागते और खिड़को के टूटे शीशे को देखा। उसने झपटकर उस छोटे लड़के को पकड़ लिया। इससे पहले कि वह उस पर हाथ उठा पाता, मैंने उसे ऐसा करने से रोका क्योंकि शीशा तोड़ने में लड़के का कोई हाथ नहीं था।

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प्रश्न 16.
अवधी भाषा आज किन-किन क्षेत्रों में बोली जाती है?
उत्तर :
पूर्वी हिंदी की अवधी भाषा जिन-जिन क्षेत्रों में बोली जाती है, वे हैं-उन्नाव, लखनऊ, राय बरेली, फतेहपुर, लखीमपुर खीरी, सीतापुर, बहराइच, बाराबंकी, गोंडा, फैजाबाद, सुल्तानपुर, इलाहाबाद, जौनापुर, मिर्जापुर आदि।

पाठेतर सक्रियता –

1. तुलसी की रचनाएँ पुस्तकालय से लेकर पढ़ें।
2. दोहा और चौपाई के वाचन का एक पारंपरिक ढंग है। लय सहित इनके वाचन का अभ्यास कीजिए।
3. कभी आपको पारंपरिक रामलीला अथवा रामकथा की नाट्य प्रस्तुति देखने का अवसर मिला होगा। उस अनुभव को अपने शब्दों में लिखिए।
4. इस प्रसंग की नाट्य प्रस्तुति करें।
5. कोही, कुलिस, खोरि, उरिन, नेवारे-इन शब्दों के बारे में शब्दकोश में दी गई विभिन्न जानकारियाँ प्राप्त कीजिए। उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से कीजिए।

यह भी जानें –

दोहा : दोहा एक लोकप्रिय मात्रिक छंद है जिसकी पहली और तीसरी पंक्ति में 13-13 मात्राएँ होती है और दूसरी और चौथी पंक्ति में 11-11 मात्राएँ।

चौपाई : मात्रिक छंद चौपाई चार पंक्तियों का होता है और इसकी प्रत्येक पंक्ति में 16 मात्राएँ होती हैं।
तुलसी से पहले सूफी कवियों ने भी अवधी भाषा में दोहा-चौपाई-छंद का प्रयोग किया है जिसमें मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत उल्लेखनीय है।

परशुराम और सहस्रबाहु की कथा

पाठ में ‘सहसबाहु सम सो रिपु मोरा’ का उल्लेख आया है। परशुराम और सहसबाहु के बैर की अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। महाभारत के अनुसार यह कथा इस प्रकार है –
परशुराम ऋषि जमदग्नि के पुत्र थे। एक बार राजा कार्तवीर्य सहसबाहु शिकार खेलते हुए जमदग्नि के आश्रम में आए। जमदग्नि के पास कामधेनु गाय थी, जो विशेष गाय थी। कहते हैं कि वह सभी कामनाएं पूरी करती थी। कार्तवीर्य सहसबाहु ने ऋषि जमदग्नि से कामधेनु गाय को प्राप्त करने की इच्छा प्रकट की। ऋषि द्वारा मना किए जाने पर सहसबाहु ने कामधेनु गाय को बलपूर्वक छीन लिया।

इस पर क्रोधित होकर परशुराम ने सहसबाहु का वध कर दिया। इस कार्य की ऋषि जमदग्नि ने घोर निंदा की थी और परशुराम को प्रायश्चित करने के लिए कहा था। क्रोध में भर कर सहसबाहु के पुत्रों ने ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी थी। इस पर पुनः क्रोधित होकर परशुराम ने पृथ्वी को क्षत्रिय बिहीन करने की प्रतिज्ञा की।

JAC Class 10 Hindi राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
श्रीराम ने परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए क्या किया था?
उत्तर :
सीता स्वयंवर के समय श्रीराम ने शिवजी के धनुष को तोड़ दिया था, जिस कारण परशुराम क्रोध से भर उठे थे। उनके क्रोध को शांत करने के लिए राम ने उनसे विनम्र स्वर में कहा था कि ‘हे नाथ! शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला आपका ही कोई दास होगा। यदि आप कोई आज्ञा देना चाहते हैं, तो मुझे दीजिए।’ उनकी वाणी में सहजता और मिठास थी। वे किसी भी प्रकार से परशुराम के गुस्से को बढ़ाने वाले शब्द नहीं बोले थे।

प्रश्न 2.
परशुराम ने राम को क्या उत्तर दिया था ?
उत्तर :
परशुराम ने राम से कहा था कि सेवक वह होता है जो सेवा करे, न कि शत्रुता की राह पर चले। शत्रु का काम करने वाले से लड़ाई ही करनी चाहिए। जिसने शिवजी के धनुष को तोड़ा है, वह सहस्रबाहु के समान उनका शत्रु है। उसे राज समाज से अलग हो जाना चाहिए। ऐसा न करने पर राज सभा में उपस्थित सभी राजा उनके द्वारा मार दिए जाएंगे।

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प्रश्न 3.
परशुराम को लक्ष्मण की किस बात पर अधिक गुस्सा आया?
अथवा
यम लक्ष्मण के किन तकों ने परशुराम के क्रोध की आग को भड़काया?
उत्तर :
लक्ष्मण ने शिवजी के धनुष को धनुही कहा था। लक्ष्मण के अनुसार शिव-धनुष इतना कमजोर था कि उस जैसे अनुहियों को वे अपने बचपन में खेल-खेल में ही तोड़ दिया करते थे। वैसे भी पुराने और जर्जर धनुषों को तोड़ देने से न कोई लाभ होता है और न हानि। : शिवजी के धनुष के इस अपमान से परशुराम का क्रोध बढ़ गया था।

प्रश्न 4.
लक्ष्मण ने परशुराम से यह क्यों कहा था कि उन्हें गाली देना शोभा नहीं देता?
उत्तर :
गाली असभ्य, मूर्ख और शक्तिहीन लोग दिया करते हैं। परशुराम वीर, धैर्यवान और क्षोभरहित थे। यदि उन्हें क्रोध आया था, तो वे अपने अस्त्र-शस्त्रों के प्रयोग से उसे प्रकट कर सकते थे न कि गाली देकर; क्योंकि शुरवीर युद्ध-भूमि में अपनी बीरता दिखाते हैं। इसलिए लक्ष्मण ने परशुराम से कहा था कि उन्हें गाली देना शोभा नहीं देता।

प्रश्न 5.
परशुराम को ‘नाथ’ कहकर किसने और क्या संबोधित किया था?
उत्तर :
परशुराम को श्रीराम ने ‘नाथ’ कहकर संबोधित किया था। उन्होंने बड़े ही विनयशीलता के साथ कहा था कि शिव-धनुष तोड़ने वाला आपका कोई दास ही होगा। आपका क्या आदेश है, आप मुझसे कह सकते हैं।

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प्रश्न 6.
सेवक धर्म के बारे में परशुराम ने श्रीराम से क्या कहा था?
उत्तर :
जब श्रीराम ने परशुराम से कहा कि शिव-धनुष तोड़ने वाला उनका कोई सेवक अथवा दास ही होगा, तो परशुराम ने कहा कि सेवक वह होता है जो सेवा का कार्य करे। लड़ाई अथवा उदंडता करने वाला सेवक नहीं कहलाता। ऐसे व्यक्ति से शत्रुता करनी चाहिए।

प्रश्न 7.
शिव धनुष तोड़ने वाले के विषय में परशराम ने क्या-क्या कहा?
अथवा
स्वयंवर स्थल पर शिवधनुष तोड़ने वाले को परशुराम ने किस प्रकार धमकाया ?
उत्तर :
परशुराम भरी सभा में श्रीराम के सम्मुख घोषणा करते हुए कहते हैं कि जिस किसी ने भी उनके आराध्य भगवान शिव का धनुष तोड़ा है, वह सहस्रबाहु के समान उनका शत्रु है। वह जो कोई भी हो स्वयं मेरे सामने आ जाए। यदि वह सामने नहीं आएगा, तो इस सभा में उपस्थित सभी राजा मारे जाएँगे।

प्रश्न 8.
भरी सभा में लक्षण के सम्मुख परशुराम अपनी वीरता का बखान किस प्रकार करते हैं?
अथवा
कि परशुराम ने अपनी किन विशेषताओं के उल्लेख के द्वारा लक्ष्मण को डराने का प्रयास किया?
उत्तर :
लक्ष्मण द्वारा भड़काने पर परशुराम अत्यंत क्रोध में आ गए। क्रोधावेश में वे अपने बाहुबल एवं बीरता का परिचय देते हुए कहते हैं कि वे बाल ब्रह्मचारी हैं। उनका स्वभाव अत्यंत क्रोधी है। वे विश्वभर में क्षत्रिय कुल के शत्रु के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने अपनी वीरता एवं बाहुबल से कई बार पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन कर दिया और बार-बार ब्राहमणों को जीता राज्य दान में दे दिया। सहसबाहु की भुजाओं को भी उन्होंने अपने फरसे से ही काटा था।

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प्रश्न 9.
परशुराम ने लक्ष्मण को अपने फरसे का किस प्रकार डर दिखाया?
उत्तर :
परशुराम ने लक्ष्मण को अपने क्रोध तथा फरसे से डराते हुए कहा कि राजा के बेटे! तू अपने माता-पिता को चिंता में क्यों डाल रहा है। मेरे हाथ में जो फरसा है, वह बड़ा ही भयानक है। यह छोटे-बड़े किसी में भेद नहीं करता। यह इतना भयानक है कि गर्भ में पलने वाले बच्चों का भी नाश कर देता है।

प्रश्न 10.
लक्ष्मण के अनुसार रषकुल के लोग किन-किन पर दया करते थे?
उत्तर :
उल्लर लक्ष्मण ने परशुराम से कहा कि रघुकुल में देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त और गौ पर सदा दया की जाती है। इन पर कभी कोई अत्याचार अथवा बार नहीं करता। इन्हें मारने से उन्हें पाप लगता है तथा उनके कुल की अपकीर्ति होती है। यदि कोई गलती से उन्हें मार दे, तो क्षमा मांगनी पड़ती है।

प्रश्न 11.
‘गाधिसू नु कर हृदय हसि मुनिहि हरियो सूझ’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
उक्त पंक्ति में मुनि विश्वामित्र मन-ही-मन हँसते हुए कहते हैं कि परशुराम को चारों ओर हरा-ही-हरा दिखाई दे रहा है। दूसरे अर्थों में कहा जाए तो वे राम-लक्ष्मण को साधारण शन्निय समझ रहे है।

प्रश्न 12.
परशुराम की स्वभावगत विशेषताएँ क्या हैं? पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
परशुराम ने अपने विषय में कहा कि वे बाल-ब्रह्मचारी हैं। वे स्वभाव के अति क्रोधी हैं। सारा संसार जानता है कि वे क्षत्रिय वंश के नाशक हैं। उन्होंने पृथ्वी से क्षत्रिय राजाओं को समाप्त कर देने की प्रतिज्ञा कर रखी है। न जाने उन्होंने कितनी बार अपने बाहुबल से पृथ्वी के क्षत्रिय राजाओं का वध कर उनके राज्य ब्राहमणों को सौंप दिए हैं। वे सहस्रबाहु जैसे अपार बलशाली की भुजाओं को काट देने वाले पराक्रमी वीर हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 13.
‘गाधिसूनु’ किसे कहा गया है? वे मुनि की किस बात पर मन ही मन मुस्कुरा रहे थे?
उत्तर :
‘गाधिसूनु’ विश्वामित्र जी के लिए कहा गया है। वे मुनि परशुराम की बातों पर मन ही मन हंसते हैं कि परशुराम जी को चारों ओर हरा ही हरा दिखाई दे रहा है। दूसरे अर्थों में कहा जाए तो वे राम-लक्ष्मण को साधारण क्षत्रिय समझ रहे हैं।

पठित काव्यांश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न – 

दिए गए काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पी प्रश्नों के उचित विकल्प चुनकर लिखिए –

1. नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।
आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
सेवकु सो जो करें सेवकाई। अरि करनी करि करिअ लराई।।
सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।

(क) श्रीराम ने परशुराम के लिए किस शब्द का संबोधन किया?
(i) नाथ
(ii) भजनहारी
(iii) दास
(iv) समु
उत्तर :
(i) नाथ

(ख) भंजनिहारा का अर्थ है –
(i) सेवक
(ii) मित्र
(iii) शत्रु
(iv) टुकड़े करने वाला
उत्तर :
(iv) टुकड़े करने वाला

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

(ग) धनुष था
(i) शिव-धनुष
(ii) ब्रह्म-धनुष
(iii) राम-धनुष
(iv) विष्णु परशु
उत्तर :
(i) शिव-धनुष

(घ) परशुराम शिव-धनुष तोड़ने वाले को किसके समान अपना शत्रु मानते हैं?
(i) सहस्राबाहु के समान
(ii) दसानन के समान
(iii) दशरथ के समान
(iv) बाणासुर के समान
उत्तर :
(i) सहस्राबाहु के समान

(ङ) किसने शिव-धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई?
(i) रावण
(ii) लक्ष्मण
(ii) राम
(iv) परशुराम
उत्तर :
(ii) गम

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

2. बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारूरू। चहत उड़ावन कि पहारू॥
इहाँ कुम्हड़ बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाही।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥

(क) लखनु कौन है?
(i) लक्ष्मण
(iii) परशुराम
(iv) विश्वामित्र
उत्तर :
(i) लक्ष्मण

(ख) परशुराम किस प्रकार लक्ष्मण को डरा रहे हैं?
(i) हाल दिखाकर
(ii) अजगव दिखाकर
(iii) फरसा दिखाकर
(iv) धनुष-बाण दिखाकर
उत्तर :
(iii) फरसा दिखाकर

(ग) ‘कुम्हड़ बतिया’ का यहाँ क्या भाव है?
(i) बहुत वीर
(ii) बहुत नाजुक
(iii) बहुत कठोर
(iv) बहुत शंकालु
उत्तर :
(ii) बहुत नाजुक

(घ) कुम्हड़ बतिया किसको देखकर मर जाती है?
(i) फरसा
(ii) धूप
(iii) अँगूठा
(iv) तरजनी
उत्तर :
(iv) तरजनी

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

(ङ) लक्ष्मण की मृदु वाणी सुनकर परशुराम कैसी प्रतिक्रिया कर रहे हैं?
(i) परशुराम क्रोध कर रहे हैं।
(ii) परशुराम के क्रोध को शांत कर रही है।
(iii) (i) और (ii) दोनों विकल्प
(iv) कोई नहीं
उत्तर :
(i) परशुराम क्रोध कर रहे हैं।

काव्यबोध संबंधी बहुविकल्पी प्रश्न –

काव्य पाठ पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्नों के उत्तर वाले विकल्प चुनिए –

(क) ‘राम-लक्ष्मण’ का संवाद किससे हुआ?
(i) अयोध्यावासियों से
(ii) बालकों से
(iii) परशुराम से
(iv) लंकावासियों से
उत्तर :
(iii) परशुराम से

(ख) राम-लक्ष्मण परशुराम संवाद में किस भाषा का प्रयोग किया गया है?
(i) ब्रजभाषा
(ii) मैथिली भाषा
(iii) अवधी भाषा
(iv) मगही भाषा
उत्तर :
(ii) अवधी भाषा

(ग) तुलसीदास जी ने प्रस्तुत पद में किन छंदों का प्रयोग किया है?
(a) दोहा-चौपाई
(ii) रोला
(ii) सोरठा
(iv) हरिगीतिका
उत्तर :
(i) दोहा-चौपाई

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

(घ) तुलसीदास ने ‘भृगुकुल केतु’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त किया है।
(i) विश्वामित्र
(ii) लक्ष्मण
(ii) परशुराम
(iv) वशिष्ठ
उत्तर :
(iii) परशुराम

(अ) ‘अपमय खाँड न अखमय’ में अपमय’ का क्या अर्थ है?
(d) गन्ना
(ii) कुठार
(iii) लोहे से बना
(iv) खाँड से बना
उत्तर :
(iii) लोहे से बना

सप्रसंग व्याख्या, अर्थगता संबंधो एवं सौंयँ-सरहुना संबंधी प्रश्नोत्तर – 

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

1. नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥
आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही॥
सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।
सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा॥
सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
सुनि मुनिबचन लखन मुसकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।
बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाई॥
येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू॥
रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न संभार।
धनही सम तिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।

शब्दार्थ : नाथ – स्वामी। संभुधनु – शिवजी का धनुष। भंजनिहारा – तोड़ने वाला। आयेसु – आज्ञा। रिसाइ – क्रोध करना। कोही – क्रोधी। सो – वह। सेवकाई – सेवा। अरि – शत्रु। जेहि – जिसने। रिपु – शत्रु। बिलगाउ – अलग होना। लरिकाई – बचपन में। अवमाने – अपमान करना। रिस – गुस्सा करना। भृगुकुलकेतू – ब्राह्मण कुल के केतु, परशुराम। सम – समान। तिपुरारि – भगवान, शिव।

प्रसंग : प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संबाद’ से लिया गया है। मूल रूप से यह गोस्वामी तुलसीदास के द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के बालकांड में निहित है। गुरु विश्वामित्र के साथ राम और लक्ष्मण सीता स्वयंवर के अवसर पर राजा जनक की सभा में गए थे। राम ने वहाँ शिवजी के धनुष को तोड़ दिया था। परशुराम ने क्रोध में भरकर इसका विरोध किया था। तब राम ने उन्हें शांत करने का प्रयत्न किया था।

व्याख्या : श्रीराम ने परशुराम को संबोधित करते हुए कहा कि ‘हे नाथ! भगवान शिव के धनुष को तोड़ने वाला आपका कोई दास ही होगा। क्या आज्ञा है, आप मुझसे क्यों नहीं कहते?’ यह सुनकर क्रोधी मुनि गुस्से में भरकर बोले-“सेवक वह होता है, जो सेवा का काम करे। शत्रु का काम करने वाले से लड़ाई ही करनी चाहिए। हे राम! जिसने भगवान शिव के धनुष को तोड़ा है, वह सहस्रबाहु के समान ही मेरा शत्रु है। वह इस समाज को छोड़कर अलग हो जाए, नहीं तो इस सभा में उपस्थित सभी राजा मारे जाएंगे।”

मुनि के वचन सुनकर लक्ष्मण मुस्कुराए और परशुराम का अपमान करते हुए बोले-‘हे स्वामी! अपने बचपन में हमने बहुत-सी धनुहियाँ तोड़ डाली थी। किंतु आपने ऐसा क्रोध कभी नहीं किया। आपको इसी धनुष पर इतनी ममता किस कारण से है?” यह सुनकर भृगु वंश की ध्वजा के रूप में परशुराम गुस्से में भरकर कहने लगे-“अरे राजपुत्र! अमराज के वश में होने के कारण तुझे बोलने में कुछ होश नहीं है। सारे संसार में प्रसिद्ध भगवान शिव का धनुष क्या धनुही के समान है? तुम्हारे द्वारा शिवजी के धनुष को धनुही कहना तुम्हारा दुस्साहस है।”

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर :

1. पद में निहित भावों को स्पष्ट कीजिए।
2. परशुराम को ‘नाथ’ कहकर किसने अपनी बात कही थी?
3. परशुराम का स्वभाव कैसा था?
4. शिव धनुष तोड़ने वाले को परशुराम ने किसके समान शत्रु माना था?
5. परशुराम ने क्या चेतावनी दी थी?
6. परशुराम के वचनों को सुनकर लक्ष्मण के चेहरे पर कैसे भाव प्रकट हुए?
7. लक्ष्मण ने शिव धनुष को क्या कहा था?
8. लक्ष्मण की किस बात को सुनकर परशुराम को अधिक क्रोध आया था?
9. परशुराम के अनुसार लक्ष्मण किसके बस में होकर बोल रहा था?
10. परशुराम ने राम के वचनों का उत्तर कैसे दिया?
उत्तर :
1. रामचरितमानस के बालकांड से लिए गए इस पद के अनुसार राम ने सौता स्वयंवर के समय शिव के धनुष को तोड़ दिया था, जिस कारण परशुराम क्रोध से भर उठे। राम ने उन्हें मीठे शब्दों से शांत करना चाहा, लेकिन लक्ष्मण ने व्यंग्य भरे शब्दों से उनके क्रोध को भड़का दिया और उनसे जानना चाहा कि यह साधारण-सा धनुष उन्हें क्यों प्रिय है।
2. परशुराम को राम ने ‘नाथ’ कहकर अपनी बात कही थी।
3. परशुराम का स्वभाव अभिमान और क्रोध से भरा हुआ था।
4. परशुराम ने शिव धनुष तोड़ने वाले को सहस्त्रबाहु के समान अपना शत्रु माना था।
5. परशुराम ने चेतावनी दी थी कि यदि शिव का धनुष तोड़ने वाले को सभा से अलग नहीं किया गया, तो वे सभा में उपस्थित सभी राजाओं का वध कर देंगे।
6. परशुराम द्वारा सभी राजाओं का वध कर देने की बात सुनकर लक्ष्मण के चेहरे पर व्यंग्यपूर्ण मुसकराहट का भाव प्रकट हो गया।
7. लक्ष्मण ने शिवधनुष को धनुही कहा था।
8. जब लक्ष्मण ने कहा कि उन्होंने अपने लड़कपन में बैसी अनेक धनुहियाँ खेल-खेल में तोड़ दी थी, तो यह सुनकर परशुराम को अधिक क्रोध आया।
9. परशुराम के अनुसार लक्ष्मण काल अर्थात मृत्यु के बस में होकर बिना सोचे-समझे बोल रहा था।
10. परशुराम ने राम के विनयपूर्वक कहे गए शाब्दों का उत्तर क्रोध में भरकर दिया। उन्होंने कहा कि तुम कैसे सेवक हो ? सेवक तो वह होता है, जो सेवा करता है। जो शत्रु जैसा व्यवहार करता है, उससे लड़ाई ही की जानी चाहिए।

सौदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. कवि ने किस प्रकार पद में नाटकीयता उत्पन्न की है?
2. किस तत्त्व ने पद को स्वाभाविकता का गुण प्रदान किया है?
3. पद में किस काव्य-गुण की प्रधानता है?
4. कवि ने किस छंद का प्रयोग किया है?
5. कथन को संगीतात्मकता का गुण कैसे प्राप्त हुआ है?
6. कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है?
7. किस काव्य-रस का प्रयोग किया गया है?
8. पद में से शिव और परशुराम के दो-दो पर्यायवाची छाँटिए।
9. पद में प्रयुक्त अनुप्रास अलंकार के उदाहरण चुनकर लिखिए।
उत्तर :
1. तुलसीदास ने परशुराम के क्रोधपूर्ण स्वभाव और लक्ष्मण की निर्भयता को आधार बनाकर पद में नाटकीयता उत्पन्न की है।
2. संवादात्मकता ने कथन को स्वाभाविकता का गुण प्रदान किया है।
3. ओज गुण प्रधान है।
4. दोहा-चौपाई छंद का प्रयोग है।
5. स्वरमैत्री ने कवि को संगीतात्मकता का गुण प्रदान किया है।
6. अवधी भाषा।
7. वीर रस का प्रयोग है।
8. शिव – संभु, त्रिपुरारि।
परशुराम – परसुधरहि, भृगुकुलकेतू।
9. अनुप्रास –
आयेसु काह कहिअ किन,
सेवकु सो जो करै सेवकाई.
अरिकरनी करि करिअ,
सहसबाहु सम सो, सकल संसार
जिलगाउ विहाइ।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

2. लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें॥
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू॥
बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा॥
बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही॥
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही॥
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही॥
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा॥
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
गर्भह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर॥

शब्दार्थं : छति – हानि। लाभु – लाभ। नयन – नया। भोरे – धोखे। दोसू – दोष। रोसू – क्रोध। सठ – दुष्ट। सुभाउ – स्वभाव। जड़ – मूर्ख। मोही – मुझे। बिस्व – संसार, विश्व। विदित – विख्यात। महिदेव – ब्राह्मण। बिलोकु – देखकर। महीपकुमार – राजकुमार। अर्भक – बच्चा। दलन – नाश।

प्रसंग : प्रस्तुत पद गोस्वामी तुलसीदास के द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के बालकांड से लिया गया है। ‘सीता स्वयंवर’ के समय श्रीराम ने शिव का धनुष तोड़ दिया था, जिस कारण परशुराम क्रोध में भर गए। लक्ष्मण के द्वारा व्यंग्य करने पर परशुराम का गुस्सा भड़क गया, पर उनके गुस्से का लक्ष्मण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था।

व्याख्या : लक्ष्मण ने हंसकर कहा कि ‘हे देव ! सुनिए ! हमारे लिए तो सभी धनुष एक-से ही हैं। पुराने धनुष को तोड़ने में क्या लाभ और क्या हानि! श्री रामचंद्र ने इसे नया समझ कर धोखे से देखा था। फिर यह छुते ही टूट गया। इसमें रघुकुल के स्वामी श्रीराम का कोई दोष नहीं है। हे मुनि! आप बिना किसी कारण के क्रोध क्यों करते हैं?’ परशुराम ने अपने फ़रसे की ओर देखकर कहा-“अरे दुष्ट! तूने मेरा स्वभाव नहीं सुना? मैं तुम्हें बालक समझकर नहीं मार रहा हूँ। अरे मूर्ख ! क्या तू मुझे निरा मुनि हो समझता है।

मैं बालब्रह्मचारी और अत्यंत क्रोधी स्वभाव का हूँ। मैं क्षत्रिय कुल का शत्रु विश्व भर में प्रसिद्ध हूँ। आपनी भुजाओं के बल से मैंने पृथ्वी को राजाओं से रहित कर दिया और कई बार उसे ब्राह्मणों को दे डाला। हे राजकुमार! सहस्रबाहु की भुजाओं को काट देने वाले मेरे इस फरसे को देख ! अरे राजा के बालक! तू अपने माता-पिता को चिंता के वश में न कर। मेरा फरसा बड़ा भयानक है। यह गर्भ के बच्चों का भी नाश करने वाला है। यह छोटे-बड़े किसी की भी परवाह नहीं करता।”

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. लक्ष्मण सभी धनुषों को कैसा मानते थे?
3. लक्ष्मण के अनुसार राम ने धनुष को किस धोखे से छू लिया था?
4. लक्ष्मण के अनुसार धनुष तोड़ने में राम का कोई दोष क्यों नहीं था?
5. परशुराम लक्ष्मण का वध क्यों नहीं कर रहे थे?
6. परशुराम विश्व भर में अपने किन गुणों के कारण विख्यात थे?
7. परशुराम ने अपनी भुजाओं के बल से क्या किया था?
8. परशुराम ने क्रोध में लक्ष्मण को कौन-सा अस्त्र दिखाया था?
9. परशुराम का फ़रसा क्या कर सकने की योग्यता रखता था?
10. पद के अनुसार परशुराम के परिचय को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. गोस्वामी तुलसीदास ने लक्ष्मण के व्यंग्य-भावों तथा परशुराम के गुस्से को प्रकट करते हुए स्पष्ट किया है कि परशुराम को अपने बल-पराक्रम पर घमंड था, पर लक्ष्मण उनके बल से कदापि प्रभावित नहीं थे। वे उनसे डरते नहीं थे।
2. लक्ष्मण सभी धनुषों को एक-सा मानते थे। उनकी दृष्टि में उनमें कोई अंतर नहीं था।
3. लक्ष्मण के अनुसार राम ने शिवजी के धनुष को नया धनुष समझकर छू लिया था।
4. लक्ष्मण के अनुसार धनुष को तोड़ने में राम का कोई दोष नहीं था। धनुष पुराना था और राम के छूते ही वह टूट गया था।
5. परशुराम लक्ष्मण पर अत्यंत क्रोधित थे, पर वे उसे बालक समझकर उसका बध नहीं कर रहे थे।
6. विश्व भर में परशुराम अपने क्रोध और ब्रह्मचर्य के कारण प्रसिद्ध थे। वे क्षत्रिय वंश को अपना शत्रु मानते थे और उसे कई बार नष्ट करने के कारण विख्यात थे।
7. परशुराम ने अपनी भुजाओं के बल से पृथ्वी को अनेक बार क्षत्रियों से रहित करके उनका राज्य ब्राह्मणों को दान में दे दिया था।
8. परशुराम ने क्रोध में भरकर लक्ष्मण को अपना फरसा दिखाया था, जिसने सहस्रबाहु की भुजाओं को काट दिया था।
9. परशुराम का फ़रसा माँ के गर्भ में विद्यमान बच्चों को भी नष्ट कर देने की योग्यता रखता था।
10. परशुराम बाल ब्रह्मचारी, महाक्रोधी, क्षत्रियों के दुश्मन और अपार बलशाली ब्राह्मण थे। उन्होंने क्षत्रिय राजाओं का नाश किया था।

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. पद की भाषा कौन-सी है?
2. कवि ने किस छंद का प्रयोग किया है?
3. गेयता के गुण का आधार क्या है?
4. किस काव्य-रस की प्रधानता है?
5. इस पद को किस मूल ग्रंथ से लिया गया है?
6. किस काव्य-गुण का प्रयोग किया गया है?
7. पद से दो तद्भव शब्द छाँटकर लिखिए।
8. लक्ष्मण की शब्दावली में किन भावों की प्रमुखता है?
9. पद से दो तत्सम शब्द छाँटकर लिखिए।
10. प्रयुक्त अलंकारों को छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
1. पद की भाषा अवधी है।
2. दोहा-चौपाई छंद।
3. स्वरमैत्री।
4. बीर रस।
5. रामचरितमानस (बालकांड)।
6. ओज गुण।
7. धनुष, केवल
8. व्यंग्य, क्रोध
10. अनुप्रास –

  • हसि हमरे
  • नहि तोही
  • जून धनु, मुनि बिनु
  • काज करिअ कता
  • सठ सुनहि सुभाउ
  • बालकु बोलि बधौं
  • बाल ब्रह्मचारी
  • बिपुल बार
  • जड़ जानहि
  • भुजबल भूमि भूप

अतिशयोक्ति –

  • छुअत टूट

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

3. बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी॥
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूंकि पहा ॥
इहाँ कुम्हड़बतिआ कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥
देखि कुठारू सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।
भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सही रिस रोकी॥
सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।
बधे पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
जो बिलोकि अनुचित कहे. छमहु महामुनि धीर।
सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गंभीर।।

शब्दार्थ : बिहसि – हँस कर। मृदु बानी – कोमल वाणी। महाभट – महायोद्धा। मानी – समझते हैं। कुठारु – कुल्हाड़ी। कुम्हड़बतिआ – बहुत कमजोर, निर्बल व्यक्ति, काशीफल या कुम्हड़े का बहुत छोटा फल। तरजनी – अँगूठे के पास की उँगली। सरासन – धनुष। जनेउ – यज्ञोपवीत। बिलोकी – देखकर। रिस – गुस्सा। सुर – देवता। महिसुर – ब्राह्मण। हरिजन – भागवान के भक्त। अपकीरति – अपयश। मारतहू — आप मारें तो भी। पा – पैर। कोटि – करोड़ों। कुलिस – बज। बिलोकि – देखकर। गिरा – वाणी।

प्रसंग : प्रस्तुत पद तुलसीदास के द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के बालकांड से लिया गया है। सीना-स्वयंबर के समय श्रीराम ने शिवजी के धनुष को तोड़ दिया था, जिस कारण परशुराम क्रोधित हो गए थे। लक्ष्मण ने उन पर व्यंग्य किया था, जिससे परशुराम का गुस्सा भड़क उठा था।

व्याख्या : लक्ष्मण ने हँस कर कोमल वाणी में कहा-“अहो ! मुनीश्वर तो अपने आप को बड़ा वीर योद्धा समझते हैं। मुझे देखकर ये बार-बार अपनी कुल्हाड़ी दिखाते हैं। ये तो फैंक से पहाड़ उड़ा देना चाहते हैं। यहाँ कोई काशीफल या कुम्हड़े के फूल से बना छोटा-सा फल नहीं है, जो आपके अंगूठे के साथ वाली उँगली को देखकर ही मर जाए। मैंने जो कुछ कहा है, वह आपके कुल्हाड़े और धनुष-बाण को देखकर ही अभिमान सहित कहा है। भृगुवंशी समझकर और आपका यज्ञोपवीत देखकर आप जो कुछ कहते हैं, उसे मैं अपना गुस्सा रोककर सह लेता हूँ।

देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त और गौ-इन पर हमारे कुल में अपनी वीरता का प्रदर्शन नहीं किया जाता, क्योंकि इन्हें मारने से पाप लगता है और इनसे हार जाने पर अपकीर्ति होती है। इसलिए यदि आप मारे, तो भी आपके पैर ही पड़ना चाहिए। आपका एक-एक वचन ही करोड़ों वजों के समान है। धनुष-बाण और कुल्हाड़ा तो आप व्यर्थ ही धारण करते हैं। आपके इस धनुष-बाण और कुल्हाड़े को देखकर मैंने कुछ अनुचिता कहा हो, तो हे धौर महामुनि। आप क्षमा कीजिए।” यह सुनकर भृगु वंशमणि परशुराम क्रोध के साथ गंभीर वाणी में बोले।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर।

1. पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. परशुराम बार-बार अपना कुल्हाड़ा किसे दिखा रहे थे?
3. कवि के द्वारा प्रयुक्त काव्य रूढ़ि और समाज में चली आने वाली मान्यता को स्पष्ट कीजिए।
4. लक्ष्मण ने परशुराम से अभिमानपूर्वक बात क्यों की थी?
5. लक्ष्मण ने अपना गुस्सा रोककर परशुराम से बात क्यों की थी?
6. रघुकुल के लोग किन-किन पर वीरता का प्रदर्शन नहीं करते थे?
7. सूर्यवंशी जिन पर दया करते थे, उन्हें क्यों नहीं मारना चाहते थे?
8. लक्ष्मण ने परशुराम को मारने की अपेक्षा क्या करने की बात कही थी?
9. लक्ष्मण ने मुनि को अनुचित शब्द कहने के बाद उनसे क्या माँगा?
10. लक्ष्मण के क्रोध-भाव को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
1. लक्ष्मण ने परशुराम के द्वारा अभिमानपूर्वक कहे गए शब्दों पर व्यंग्य किया और उन्हें बताया कि उनके वंश में ब्राह्मणों पर शस्त्र नहीं उठाया जाता: भले ही वे बुरा व्यवहार क्यों न करें।
2. परशुराम लक्ष्मण को डराने के लिए उन्हें बार-बार अपना कुल्हाड़ा दिखा रहे थे।
3. युगों से समाज में एक मान्यता चली आ रही है कि काशीफल की बेल पर खिलने वाले फूल या छोटे फल की ओर तर्जनी से इशारा किया जाए, तो वह सूख कर गिर जाता है। छोटी आयु के लक्ष्मण की ओर परशुराम बार-बार ऊँगली उठाकर उन्हें डराने का प्रयत्न कर रहे थे। इसलिए लक्ष्मण ने उनसे कहा था कि वे काशीफल की बेल पर लगे फूल या फल की तरह कमजोर नहीं हैं, जो उनकी उठी उँगली से नष्ट हो जाएंगे।
4. लक्ष्मण ने परशुराम के कुल्हाड़े और धनुष-बाण देखकर उन्हें क्षत्रिय समझ लिया था और इसी कारण से उनसे अभिमानपूर्वक बात की थी।
5. लक्ष्मण जान गए थे कि परशुराम भृगुवंशी हैं। उनके गले में यज्ञोपवीत भी था। इसलिए उन्होंने अपना गुस्सा रोककर परशुराम से बात की थी।
6. रघुकुल के लोग देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त और गाय पर बोरता का प्रदर्शन नहीं करते थे।
7. सूर्यवंशी जिन पर दया करते थे, उन्हें कभी मारना नहीं चाहते थे क्योंकि उन्हें मारने से पाप लगता था और उनसे हार जाने पर अपयश मिलता था।
8. लक्ष्मण ने परशुराम को मारने की अपेक्षा उनके पाँव में पड़ने और क्षमा माँगने की बात कही थी।
9. लक्ष्मण ने मुनि को अनुचित शब्द कहने के बाद उनसे क्षमा माँगी थी।
10. लक्ष्मण अति क्रोधी स्वभाव का था। वह परशुराम के बड़बोलेपन को झेलने वाला नहीं था। वह निर्भीक, साहसी और वीर था।

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. कवि के द्वारा किस भाषा का प्रयोग किया गया है?
2. किस काव्य-रस की प्रधानता है?
3. किस काव्य-गुण का प्रयोग किया गया है?
4. किन छंदों का प्रयोग किया गया है?
5. किस प्रयोग ने संगीतात्मकता की सृष्टि की है?
6. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है?
7. काव्यांश में प्रयुक्त दो तत्सम शब्दों को छाँटकर लिखिए।
8. लक्ष्मण की भाषा में किसकी प्रधानता है?
9. काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
1. अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है।
2. वीर रस का प्रयोग है।
3. ओज गुण विद्यमान है।
4. दोहा-चौपाई छंद।
5. स्वरमैत्री के प्रयोग ने संगीतात्मकता की सृष्टि की है।
6. व्यंजना शब्द-शक्ति विद्यमान है।
7. मृद. कुल
8. व्यंग्य, बाक्वीरता।
9. अनुप्रास
मुनीस् महाभट मानी,
कछु कहा; कछु कहहु, कोटि कुलिस,
सुर, महिसुर: सुनि सरोष,
धरहु धनु
गिरा गंभीर पुनरुक्ति-प्रकाश
पुनि-पुनि उपमा
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

4. कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल्ल घालकु॥
भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू॥
कालकवलु होइहि छन माहीं। कहाँ पुकारि खोरि मोहि नाहीं ॥
तुम्ह हटकहु जौं चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।
लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बस्नै पारा।।
अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भांति बहु बरनी।।
नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू॥
बीरबती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
सूर समर करनी करहि कहि न जनावहिं आए।
विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथाहिं प्रतापु॥

शब्दार्थ : कौसिक – विश्वामित्र। भानु बंस – सूर्यवंशी। राकेस – चंद्र। निपट – बिलकुल। निरंकुसु – उदंड। अवधु – मूर्ख। कालकवलु – काल का ग्रास। खोरि – दोष। मोहि – मेरा। हटकहु – मना करो, रोको। उबारा – बचाना। रोषु – क्रोध। बरनी – वर्णन। दुसह – असह्य। सूर – शूरवीर। समर = बुद्ध। रन – युद्ध। रिपु – शत्रु।

प्रसंग : प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ से लिया गया है. मूल रूप से यह तुलसीदास द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के बालकांड में निहित है। सीता स्वयंवर के समय राम ने शिवजी के धनुष को तोड़ दिया था, जिस कारण परशुराम क्रोध से भर गए थे। लक्ष्मण ने उन पर व्यंग्य किया था, जिस कारण उनका क्रोध और अधिक बढ़ गया था।

व्याख्या : परशुराम ने राम और लक्ष्मण के गुरु विश्वामित्र को संबोधित करते हुए कहा कि ‘हे विश्वामित्र! सुनो! यह बालक बड़ा कुबुद्धिपूर्ण और कुटिल है। काल के वश होकर यह अपने कुल का घातक बन रहा है। यह सूर्यवंशरूपी चंद्रमा का कलंक है। यह बिलकुल उदंड, मूर्ख और निडर है। अभी क्षण भर बाद यह मौत के देवता काल का ग्रास बन जाएगा। मैं पुकार कर कहे देता हूँ कि इसके मर जाने के बाद फिर मुझे दोष नहीं देना। यदि तुम इसे बचाना चाहते हो, तो इसे हमारा प्रताप, बल और क्रोध बतलाकर ऐसा करने से रोक दो?’ लक्ष्मण ने तब कहा-‘हे मुनि! आपका सुयश आपके रहते और कौन वर्णन कर सकता है ? आपने पहले ही अनेक बार अपने मुँह से अपनी करनी का कई तरह से वर्णन किया है।

यदि इतने पर भी आपको संतोष न हुआ हो, तो फिर कुछ कह डालिए। क्रोध रोककर असह्य दुख मत सहो। आप वीरता का व्रत धारण करने वाले, धैर्यवान और ओभ रहित हैं। गाली देते हुए आप शोभा नहीं देते। शूरवीर तो युद्ध में अपनी शूरवीरता का कार्य करते हैं। वे बातें कहकर अपनी वीरता को प्रकट नहीं करते। शत्रु को युद्ध में पाकर कायर ही अपने प्रताप की डींगें हाँका करते हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. परशुराम ने लक्ष्मण को बचाने के लिए किसे संबोधित किया ?
3. परशुराम के अनुसार लक्ष्मण की विशेषताएँ कौन-कौन सी थी ?
4. परशुराम ने विश्वामित्र से अपने कौन-कौन से गुण लक्ष्मण को बताने के लिए कहा था?
5. लक्ष्मण ने परशुराम को क्या सुझाव दिया?
6. परशुराम राजसभा में क्या बता चुके थे ?
7. परशुराम क्या रोककर अधिक दख सह रहे थे?
8. लक्ष्मण ने परशुराम को किन-किन विशेषताओं का स्वामी माना था?
9. शूरवीर अपनी वीरता का परिचय किस प्रकार देता है?
10. लक्ष्मण की किस बात पर परशुराम नाराज थे?
उत्तर :
1. परशुराम ने विश्वामित्र को सुझाव दिया था कि वे लक्ष्मण को उनके गुण बताकर व्यर्थ बोलने और उकसाने से रोके, ताकि परशुराम उसका वध न करे। लेकिन लक्ष्मण ने उन्हें वीरता का पालन करने की शिक्षा दे दी थी।
2. परशुराम ने लक्ष्मण को बचाने के लिए ऋषि विश्वामित्र को संबोधित किया।
3. परशुराम के अनुसार लक्ष्मण मूर्ख, कुबुद्धिपूर्ण और कुटिल था। वह सूर्यवंशरूपी चंद्रमा का कलंक था। यह उदंड, मुर्ख और निडर था।
4. परशुराम ने विश्वामित्र से अपने बारे में लक्ष्मण को यह बताने के लिए कहा था कि वे बड़े प्रतापी, अति बलशाली और अत्यंत क्रोधी हैं।
5. लक्ष्मण ने परशुराम को सुझाव दिया कि उन्हें अपना सुयश अपने मुँह से स्वयं प्रकट करना चाहिए, क्योंकि उनके स्वयं वहाँ रहते हुए उनके सुयश को ठीक-ठीक ढंग से कोई और नहीं प्रकट कर सकता।
6. राजसभा में परशुराम अनेक बार अपनी विशेषताएँ बता चुके थे।
7. परशुराम अपने क्रोध को रोककर अधिक दुख सह रहे थे।
8. लक्ष्मण ने परशुराम को वीरता का व्रत धारण करने वाला, धैर्यवान और क्षोभरहित माना था।
9. शूरवीर युद्ध में लड़कर अपनी शूरवीरता को प्रदर्शित करता है, न कि अपनी वीरता की डींगें हाँककर।
10. लक्ष्मण को स्पष्टवादिता, स्वभाव और उग्रता के कारण परशुराम नाराज थे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. तुलसीदास ने लक्ष्मण और परशुराम के स्वभाव के किन गुणों/ अवगुणों को प्रकट किया है?
2. कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है?
3. किस प्रकार के छंदों का प्रयोग किया गया है?
4. किस काव्य-रस का प्रयोग किया गया है?
5. किस काव्य-गुण की प्रधानता है?
6. किस शब्द-शक्ति का अधिकता से प्रयोग किया गया है?
7. संवादों से कथन को कौन-सा गुण प्राप्त हुआ है?
8. ‘बीरबती’ शब्द में कैसा भाव छिपा हुआ है?
9. परशुराम की वाणी में कौन-सा भाव प्रमुख है ?
10. काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. तुलसीदास ने लक्ष्मण की स्पष्टवादिता और साहस तथा परशुराम को डींगें हाँकने के स्वभाव को प्रकट किया है।
2. अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है।
3. दोहा-चौपाई का प्रयोग है।
4. वीर रस।
5. ओज गुण विद्यमान है।
6. लक्षणा शब्द-शक्ति का अधिक प्रयोग किया गया है।
7. नाटकीयता का गुण
8. व्यंग्यात्मकता
9. प्रचंड क्रोध
10. अनुप्रास –
पुकारि खोर, बहु बरनी,
दुसह दुख, कुटिल कालबस, कछु कहहू,
करनी करहिं कहि, कायर कथाहिं।

मानवीकरण –
कालकवतु होइहि छन माही

रूपक –
भानु बंस राकेस कलंकू

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

5. तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।।
सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि परेड कर बोरा ॥
अब जनि दे दोसु मोहि लोमू। कटुबादी बालक बाजोगू॥
बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मनिहार भा साँचा॥
कौसिक कहा छमिल अपराधू। बाल दोष गुन गहन साधू
खार कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही
उतर देत छोड़ों बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे
न त येहि काटि कुठार कठोरे। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोर।।
गाधि सून कह हृदय हसि मुनिहि हरियो सझा
अयमय खाँड़ न ऊखमय अबाई न बूझ अबूम।

शब्दार्थ : मोहि लागि- मेरे लिए। परसु – फ़रसा। कर – हाथ। बधजोगू – वध के योग्य। कटुबादी – कड़वा बोलने वाला। बिलोकि – देखकर। बाँचा – बचाया। मरनिहार – मरने को। साँचा – सचमुच। कौसिक – विश्वामित्र। खर कुठार – तीखी धार का कुठार। गाधिसून – विश्वामित्र। हरियो – हरा ही हरा।

प्रसंग : प्रस्तुत पद गोस्वामी तुलसीदास के द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के बालकांड से लिया गया है। सौता-स्वयंवर के अवसर पर परशुराम और लक्ष्मण के बीच शिव-धनुष के भंग होने के कारण विवाद हुआ था।

व्याख्या : लक्ष्मण ने कहा कि ‘हे मुनिवर परशुराम ! आप तो मानो काल को बार-बार हाँक लगाकर उसे मेरे लिए बुलाते हैं लक्ष्मण के कठोर वचन सुनते ही परशुराम ने अपने फ़रसे को सुधार कर हाथ में ले लिया और कहा कि “अब लोग मुझे दोष न दें। यह कड़वा बोलने वाला बालक मारे जाने के ही योग्य है। बालक समझकर मैंने इसे बहुत देर तक बचाया, लेकिन अब यह सचमुच मरने को आ गया है। तब गुरु विश्वामित्र ने कहा-“अपराध क्षमा कीजिए मुनिवर ! बालकों के दोष और गुण को साधु लोग नहीं गिनते।”

परशुराम बोले-“मेरा तीखी धार का फरसा, मैं दयारहित और क्रोधी हूँ। मेरे सामने यह गुरुद्रोही और अपराधी उत्तर दे रहा है। इतने पर ही मैं इसे बिना मारे छोड़ रहा हूँ। हे ऋषिवर! मैं इसे केवल आपके शोल और प्रेम के कारण बिना मारे छोड़ रहा हूँ। नहीं तो इसे इस कठोर फरसे से काटकर थोड़े से परिश्रम से ही गुरु के ऋण से मुक्त हो जाता।” विश्वामित्र ने मन-ही-मन हैसकर कहा-“मुनि को हरा-ही-हरा सूझ रहा है। अन्य सभी जगह पर विजयी होने के कारण ये राम और लक्ष्मण को भी साधारण क्षत्रिय ही समझ रहे हैं। पर वे लोहे से बनी हुई खाँड (खाँडा-खड्ग) हैं; गन्ने की खाँड नहीं, जो मुँह में डालते ही गल जाती है। मुनि अब भी बेसमझ बने हुए हैं और इनके प्रभाव को समझ नहीं पा रहे।”

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. पद में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।
2. लक्ष्मण के किस कथन से उनकी निडरता का परिचय मिलता है?
3. लक्ष्मण के कड़वे शब्दों को सुनकर परशुराम ने क्या किया?
4. परशुराम ने सभा से किस कार्य का दोष उन्हें न देने के लिए कहा?
5. विश्वामित्र ने परशुराम को क्या कहकर समझाया ?
6. परशुराम ने लक्ष्मण को गुरु-द्रोही क्यों कहा था?
7. परशुराम ने अपने किन गुणों का उल्लेख किया ?
8. विश्वामित्र के किस गुण के कारण परशुराम लक्ष्मण को मारे बिना छोड़ रहे थे?
9. विश्वामित्र ने अपने आप से क्या कहा था?
10. परशुराम क्यों क्रोधित हो गए?
उत्तर :
1. लक्ष्मण को अपना अपमान करते देखकर परशुराम ने फरसे को सुधार कर हाथ में ले लिया, पर गुरु विश्वामित्र के समझाने पर वे मान गए। लेकिन परशुराम ने अपनी बीरता की डींग हाँकने की आदत का फिर से परिचय दे दिया, जिसे सुनकर विश्वामित्र मन-ही-मन मुसकरा सोचने लगे कि ये नहीं समझते कि राम-लक्ष्मण सामान्य क्षत्रिय नहीं हैं।
2. ‘तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लाबा, बार-बार मोहि लागि बोलाबा’- इन पंक्तियों से लक्ष्मण की निडरता का परिचय मिलता है।
3. लक्ष्मण के कड़वे शब्दों को सुनकर परशुराम ने अपने भयानक फरसे को सुधार कर हाथ में ले लिया।
4. क्रोधित परशुराम ने सभा से बालक लक्ष्मण के वध का दोष न देने के लिए कहा।
5. विश्वामिन ने परशुराम को यह कहकर समझाया कि साधु बालकों के गुण और दोष को नहीं गिनते।
6. परशुराम को भगवान शिव ने बह धनुष संभाल कर रखने के लिए दिया था, जिसे सीता स्वयंवर के समय राम ने भंग कर दिया था। परशुराम ने इसे अपना और भगवान शिव का अपमान मानकर राजसभा में उपस्थित क्षत्रियों को बुरा-भला कहा। लक्ष्मण ने क्रोधभरी और व्यंग्यात्मक बातों से इसका विरोध किया था, जिस कारण परशुराम ने लक्ष्मण को गुरुद्रोही कहा।
7. परशुराम ने अपने गुणों को बताते हुए कहा था कि वे दया से रहित और क्रोधी स्वभाव के हैं।
8. विश्वामित्र के शील और प्रेमपूर्ण स्वभाव के कारण परशुराम अभी तक लक्ष्मण को बिना मारे छोड़ रहा था।
9. विश्वामित्र ने अपने आप से कहा था कि परशुराम को हरा-ही-हरा सूझ रहा है। अब तक वे साधारण क्षत्रियों पर बिना हारे विजय प्राप्त करते आए थे और अब उन्हें ऐसा लगने लगा था कि वे सभी क्षत्रियों को युद्ध में हरा सकते हैं। ये राम-लक्ष्मण गन्ने से बनी खाँड नहीं हैं, बल्कि फ़ौलाद के खाँडे हैं। जिन्हें हराना इनके लिए संभव नहीं। मुनि इनके प्रभाव को समझ नहीं पा रहे।
10. लक्ष्मण द्वारा बार बार भड़काए जाने व व्यंग्य भरे वाक्य बोलने के कारण परशुराम क्रोधित हो गए।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. तुलसीदास ने किस-किसके स्वभाव का सटीक वर्णन किया है?
2. नाटकीयता की सृष्टि किस कारण हुई है?
3. कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है?
4. किस काव्य-गुण की अधिकता दिखाई देती है?
5. किस काव्य-रस का प्रयोग किया गया है?
6. अवतरण में लयात्मकता की सृष्टि किस कारण हुई है?
7. किस छंद का प्रयोग किया गया है?
8. दो तत्सम शब्द लिखिए।
9. इस काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार लिखिए।
उत्तर :
1. तुलसीदास ने लक्ष्मण के तेज स्वभाव, विश्वामित्र के विवेक और परशुराम के अहंकार का सटीक वर्णन किया है।
2. संवादात्मकता ने कथन को नाटकीयता का गुण प्रदान किया है।
3. अवधी भाषा का प्रयोग है।
4. ओज गुण विद्यमान है।
5. बीर रस।
6. स्वरमैत्री और छंद युक्त होने के कारण रचना में लयात्मकता विद्यमान है।
7. दोहा-चौपाई छंद का प्रयोग किया गया है।
8. दोष, श्रम
9. हरा-ही-हरा सूझना।

उत्प्रेक्षा –
तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा

पुनरुक्तिप्रकाश –
बार-बार

रूपकातिशयोक्ति –
अयमय जाँड़ न ऊखमय

अनुप्रास –

  • कौसिक कहा, केवल कौसिक, काटि कुठार कठोरें,
  • गुन गनहि,
  • हृदय हसि मुनिहि हरियरे,
  • परसु
  • सुधारि बरेउ कर घोरा-
  • देई दोसू,
  • कटुबादी बालकु बधजोग, बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

6. कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
माता पितहि उरिन भये नीकें। गुररिनु रहा सोचु बड़ जी के॥
सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढ़ा।
अब आनिअ व्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।
सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा॥
भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिन बिचारि बचौं नृपद्रोही।
मिले ने कबहुँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता बरहि के बाड़े॥
अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सबनहि लखनु नेवारे।
लखन उतर आहुति सरिस भृगबरकोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।

शब्दार्थ : कहेउ – कहा। विदित – जानता। उरिन – ऋण से मुक्त। व्यवहारिआ – हिसाब करने वाला। कटु – कड़वा। मोही – मुझे। बिन – ब्राह्मण। नृपद्रोही – राजाओं के शत्रु। सुभट – अच्छे बलवान वीर। रन – युद्ध। द्विज – ब्राह्मण। सयनहि – संकेत से; इशारे से। नेवारे – रोक दिया। सरिस – समान। कोपु – क्रोध। कृसानु – आग। रघुकुलभानु – रघुकुल के सूर्य।

प्रसंग : प्रस्तुत पद गोस्वामी तुलसीदास के द्वारा रचित महाकाव्य ‘ रामचरितमानस’ के ‘बालकांड” से लिया गया है। सीता स्वयंवर के समय शिवजी के धनुष टूट जाने पर लक्ष्मण और परशुराम में विवाद हुआ था, जिसे राम ने अधिक बढ़ने से पहले ही रोक दिया था।

व्याख्या : लक्ष्मण ने कहा-‘हे मुनि! आपके शोल को कौन नहीं जानता? वह संसार भर में प्रसिद्ध है। आप माता-पिता के ऋण से तो भली-भाँति मुक्त हो चुके हैं। अब आप पर गुरु का ऋण रह गया है, जिसका आपके मन पर बड़ा बोझ है। आपको उसकी चिंता सता रही है।

वह ऋण मानो हमारे ही माथे निकाला था। बहुत दिन बीत गए। इसमें व्याज भी बहुत बढ़ गया होगा। अब किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुला लाइए, तो मैं तुरंत थैली खोलकर उधार चुका हूँ।” लक्ष्मण के कड़वे वचन सुनकर परशुराम ने अपना फ़रसा संभाला। सारी सभा हाय ! हाय ! करके पुकार उठी। लक्ष्मण ने कहा-‘”हे भृगु श्रेष्ठ! आप मुझे फरसा दिखा रहे हैं? पर हे राजाओं के शत्रु! मैं आपको ब्राह्मण समझकर अब तक बचा रहा है।

लगता है कि आपको कभी रणधीर, बलवान वोर नहीं मिले। हे ब्राह्मण देवता! आप घर ही में बड़े हैं।” यह सुनते ही सभी लोग पुकार उठे कि ‘यह अनुचित है ! अनुचित है!’ तब रघुकुलपति श्रीराम ने संकेत से लक्ष्मण को रोक दिया। आहुति के समान लक्ष्मण के उत्तर से परशुराम को क्रोधरूपी आग को बढ़ते देखकर रघुकुल के सूर्य श्रीराम ने जल के समान शीतल वचन कहे।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. लक्ष्मण ने परशुराम पर क्या व्यंग्य किया?
2. लक्ष्मण ने परशुराम के शील के संबंध में क्या कहा?
3. ‘माता पितहि उरिन भये नीके’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
4. परशुराम की चिंता अभी शेष क्यों थी?
5. यहाँ किस गुरु-ऋण की बात हो रही है? उसे चुकाने के लिए लक्ष्मण ने परशुराम को क्या उपाय सुझाया?
6. लक्ष्मण के व्यवहार का राजसभा पर क्या प्रभाव पड़ा?
7. लक्ष्मण परशुराम को क्यों बना रहे थे?
8. राम ने लक्ष्मण को बोलने से किस प्रकार रोका था?
9. लक्ष्मण के शब्द परशुराम के लिए कैसे थे?
10. इस अवतरण के आधार पर राम के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।
11. इस अवतरणा के आधार पर लक्ष्मण के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।
12. नृपदोही किसे कहा गया है और क्यों?
13. सभा में उपस्थित लोगों ने लक्ष्मण की कठोर और व्यंग्यपूर्ण बातों को सुनकर क्या प्रतिक्रिया दी?
उत्तर :
1. लक्ष्मण ने परशुराम से व्याय शैली में बात करते हुए कहा कि वे अपने माता-पिता के ऋण से मुक्त हो ही चुके हैं, अब गुरु-ऋण का जो हिसाब-किताब उनके मत्थे डाला गया है उसे भी चुका दें। वे व्यर्थ में अपने सिर पर बोझ क्यों लादे हुए हैं? आज तक उन्हें शक्तिशाली रणवीर मिले ही नहीं थे और इसलिए वे स्वयं को बहादुर मान रहे हैं।
2. लक्ष्मण ने परशुराम से कहा कि सारा संसार उनके शील को भली-भाँति जानता है।
3. इस पंक्ति का आशय है कि परशुराम अपने माता-पिता के ऋण से मुक्त हो चुके हैं।
4. परशुराम की चिंता अभी यह सोचकर शेष थी कि वे अपने गुरु के ऋण को किस प्रकार चुकाएँगे।
5. यहाँ लक्ष्मण ने परशुराम को अपने गुरु का ऋण चुकाने के लिए कहा है। लक्ष्मण के अनुसार परशुराम ने अपने गुरु से जो शस्त्र विद्या सौखी है, वे उस ऋण को उतार दें। इसके बाद लक्ष्मण ने ऋण चुकाने के लिए ब्याज गणना हेतु किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुलाने के लिए कहा।
6. लक्ष्मण के व्यवहार से सारी राजसभा हाय! हाय! करने लगी और कहने लगी कि लक्ष्मण का परशुराम के प्रति व्यवहार अनुचित है।
7. लक्ष्मण परशुराम को अब तक इसलिए बचा रहे थे, क्योंकि परशुराम ब्राह्मण थे और सूर्यवंशी ब्राह्मणों पर अस्त्र-शस्त्र नहीं उठाते थे। राम ने संकत के द्वारा नबमण को बोलने से रोका था।
9. लक्ष्मण के शब्द परशुराम के लिए क्रोधरूपी आग में आहुति के समान थे, जिस कारण उनका गुस्सा लगातार बढ़ता जा रहा था।
10. राम शांत, नम, विनयी, कोमल, मर्यादित और समझदार व्यक्तित्व के स्वामी थे। वे अपने कोमल शब्दों से बिगड़ी हुई स्थिति को नियंत्रित करने में समर्थ थे।
11. लक्ष्मण उग्र, क्रोधी और व्यंग्य करने वाले व्यक्तित्व के स्वामी थे। वे बोलते समय विवेकपूर्ण व्यवहार नहीं करते थे।
12. परशुराम को नपदोही कहा गया है, क्योंकि उन्होंने अनेक बार पृथ्वी से क्षत्रियों को समाप्त कर दिया था।
13. सभा में उपस्थित लोगों ने लक्ष्मण को कहार और व्यंग्यपूर्ण बातों को सुनकर अपना रोष और विरोध प्रकट किया।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. कवि ने किम भाषा का प्रयोग किया है?
2. किस प्रकार की शब्दावली का प्रयोग किया गया है?
3. कवि ने किन छंदों का प्रयोग किया है?
4. किस काव्य-रस का प्रयोग है?
5. किस काव्य-गुण की प्रधानता है?
6. कवि ने लयायकना की सृष्टि कैसे की है?
7. लक्ष्मणा के शब्दों में कौन-सी शब्द-शक्ति विद्यमान है?
8. कोई दो नद्भव शब्द छाँटकर लिखिए।
9. संवादों के कारण कौन-सी भाव विशेषता आ गई है?
10. ‘द्विजदेवता’ में कौन-सा भाव व्यक्त हुआ है?
11. दो तत्सम शब्द छाँटकर लिखिए।
12. इस काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार लिखिए।
उत्तर :
1. अवधी भाषा का सहज-सुंदर प्रयोग किया गया है।
2. तत्सम और तद्भव शब्दावली का स्वाभाविक-समन्वित प्रयोग किया गया है।
3. दोहा-चौपाई छंद का प्रयोग है।
4. बौर रस का प्रयोग है।
5. ओज गुण विद्यमान है।
6. स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
7. व्यंजना शब्द शक्ति विद्यमान है, जिसने लक्ष्मण के शब्दों को विशेष अर्थ प्रदान किया है।
8. थैली, दिन
9. नाटकीयता।
10. व्यंग्य, वक्रोक्ति।
11. आहुति, कटु।
12. बीप्सा –
हाय-हाय वक्रोक्ति
कहेउ लखन मुनि सील तुम्हारा। को नहि जान बिदिन संसारा॥
माता पितहि उरिन भये नौकें …………… थैली खोली।

उपमा –
लखन उत्तर आहुति सरिस
जल-सम बचन
भगुबरकोपु कृसानु

अनुप्रास –

व्याज बड़ बाढ़ा, बिन बिचारि बचौं
सब सभा
थैली खोली
कुठार सुधारा

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Summary in Hindi

कवि-परिचय :

तुलसीदास राममार्गीं शाखा के प्रतिनिधि कवि, हिंदी सहित्य के गौरव तथा भारतीय संस्कृति के रक्षक माने जाते हैं। इनकी रचनाएँ भारतीय धर्म एवं आस्था की प्रतीक बन गई हैं। तुलसीदास का जन्म सन 1532 ई० में उत्तर प्रदेश के बाँदा ज़िले के राजापुर ग्राम में हुआ था। कुछ विद्वान उनका जन्मस्थान सोरों (ज़िला एटा) भी मानते हैं। वे जाति से सरयूपारी ब्राह्मण थे। उनके पिता का नाम आत्माराम दूबे और माता का नाम हुलसी था।

तुलसीदास का बचपन बड़ी कठिनाइयों में व्यतीत हुआ। इनके पिता ने इन्हें मूल नक्षत्र में पैदा होने के कारण त्याग दिया था। बाद में नरहरि बाबा ने इनका पालन-पोषण किया। उनकी कृपा से तुलसीदास ने पुराण, वेद, इतिहास एवं दर्शन का खूब अध्ययन किया।

कहते हैं कि तुलसीदास यौवनकाल में अपनी पली पर विशेष अनुरक्त थे। लेकिन पल्नी की फटकार ने इनकी जीवन-दिशा को बदल दिया। इन्होंने अपना जीवन राम के चरणों में अर्पित कर दिया। भगवान राम के प्रति इनके मन में अगाध श्रद्धा थी। इन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा राम-काव्य को उत्कर्ष प्रदान किया।

सन 1623 ई० में काशी में इनका देहांत हो गया। इनके निधन के विषय में निम्नलिखित दोहा प्रचलित है-

संबत् सोलह सौ असी, असी गंग के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तग्यो शरीर॥

तुलसीदास ने अपना सारा जीवन राम की आराधना में लगा दिया। इनके द्वारा रचित बारह रचनाएँ हैं, जिनमें रामचरितमानस तथा विनय-पत्रिका
विशेष उल्लेखनीय हैं। रामचरितमानस प्रबंधकाव्य का आदर्श प्रस्तुत करता है, तो विनय-पत्रिका मुक्तक-शौली में रचा गया उत्कृष्ट गीति-काव्य है।

इसके अतिरिक्त तुलसीदास ने हनुमान-चालीसा, दोहावली, कवितावली, गीतावली आदि की रचना भी की। तुलसीदास के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता समन्वय की भावना है। इनके काव्य को समन्वय की विराट चेष्टा कहा गया हैं। अपने समन्वयवादी दृष्टिकोण के कारण ही तुलसीदास लोकनायक के आसन पर आसीन हुए। लोकसंग्रह का भाव तुलसी की भक्ति का अभिन्न अंग था। इसलिए इनकी भक्ति कृष्णभक्त कवियों के समान एकांगी न होकर सवांगपूर्ण हैं।

तुलसीदास का भाव-जगत पर पूर्ण अधिकार था। वे अपनी रचनाओं में; विशेषकर ‘मानस’ में; मार्मिक स्थलों के चयन में विशेष सफल रहे हैं। तुलसीदास ने श्रृंगार-रस का चित्रण मर्यदा के भीतर रहकर किया है। वात्सल्य-रस के चित्रण में भी इन्हें पूर्ण सफलता मिली है।तुलसी-काव्य में शांत-रस एवं करुण-रस की प्रधानता रही है। अन्य रसों का भी प्रसंगानुकूल वर्णन मिलता है। तुलसीदास ने धर्म का स्वस्थ रूप सामने रखकर अपने काव्य की रचना की हैं।

विनय-पत्रिका में तुलसीदास की दास्य भाव की भक्ति का आदर्श निहित है। भाषा, अर्थ-गौरव एवं पांडित्य तीनों दृष्टियों से विनय-पत्रिका अपना विशिष्ट स्थान रखती है। तुलसी की विनय की अभिव्यक्ति उनके भक्त-हृदय की परिचायक है –

ऐसो को उदार जग माहीं।
बिना सेवा जो द्रबै-दीन पर, राम सरस कोऊ नाहीं।

तुलसीदास ने अपने पात्रों में आदर्श को प्रतिष्ठा दिखाकर उनके चरित्र को अनुकरण का विषय बना दिया है। इन्होंने पात्रों के माध्यम से अनेक आदर्श हमारे सामने रखे। सामाजिक मर्यादाओं के प्रकाश में इन्होंने धर्म को नवीन रूप प्रदान किया। इन्होंने मानस में व्यक्ति-धर्म, समाज-धर्म तथा साष्ट्र-धर्म की स्थापना की। राम के चरित में विविध आदर्शो की स्थापना की। रमम एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श मित्र, आदर्श शत्रु तथा आदर्श राजा के रूप में हमारे सामने आते हैं।

तुलसीदास ने तस्कालीन समय में प्रचलित अवधी तथा ब्रज-दोनों भाषाओं को अपनाया है। रामचरितमानस में अवधी भाषा का प्रयोग हैं, जबकि कवितावली तथा विनय-पत्रिका में ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है। तुलसीदास ने सभी काव्य-शैलियों को अपनाया है जिनमें छप्पय, कवित्त, सवैया पद्धति विशेष उल्लेखनीय हैं। तुलसीदास ने अलंकारों का भी समुचित प्रयोग किया है। उनके काव्य में रूपक, निदर्शना, उपमा, व्यतिरेक, अप्रस्तुत प्रशंसा आदि अनेक अलंकारों का प्रयोग है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

काविता का सार :

रामचरितमानस के बालकांड से लिए गए ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संबाद’ में सोता-स्वयंवर के समय राम के द्वारा शिव कें धनुष-भंग करने के बाद मुने पष्युराम के क्रोध और राम-लक्मूण से उनके संवादों का वर्णन किया गया है। परशुराम को जब यह समाचार मिला कि शिब-धनुष खंडंडित कर दिया गया है, तो वे बहुत क्रोधित हुए। उनके क्रोध को देख्रकर राम ने विनयपूर्वक मुनि से कहा कि शिवजी के धनुष को तोड़ने बाला कोई उनका दास ही होगा। मुनि ने गुस्से में भरकर कहा कि सेवक वह होता है, जो सेवा का कान करे।

जिसने शिवजी के धनुष को तोड़ा है, बह सहसजाहु की तरह उनका शत्तु है। यदि उसने स्वयं को यहाँ उपस्थित राज समाज से अलग नहीं किया, तो सभी राजा मारे आाएंग। यह सुनकर लक्ष्मण ने कहा कि उन्हौंने लड़कपन में अनेक धनुहियाँ सोड़ दी थीं, पर तब तो उन्होंने ऐसा गुस्सा नहीं किया था। यह सुलकर युनि ने क्रोध में लक्षण को दुलकारते हुए पूला कि क्या उन्हें शिव-धनुष एक धनुहि के समान प्रतीत होता है ? लक्षण ने हैंपते हुए कहा कि धनुष तो सरे एक-से ही होते हैं।

पुराने धनुष को तोड़ने से क्या लाभ और क्या ह्नानि ? त्रीराम ने तो उस युराने धनुप को बह छुआ ही था कि वह टूट गया। गुस्से में भरकर परशुणाम ने कहा कि वे उसे बालक समझकर नहीं मार रहे। वे केबल भुनि ही नहीं है, बलिक बाल-ब्रहमचारी और अल्यंत क्रोधी हैं। से क्षत्रिय कुल के शत्रु के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनका फ़रसा बड़ा भयातक है। लक्षण ने हाँसते हुए युनि का मज़ाक उड़ाया और कहा कि कमजोर तो वे भी नहीं हैं। वे उन्हें व्राहमण समझकर व अज्ञोपवीत देखकर अपने क्रांध को रोक उन्हें सहारते हैं, क्योंकि उनके कुल सें ब्राहुमण, भक्त और गो पर बीरता नहीं दिखाई जाती। इन्हें मारने से पाप लगता है और इससे हार जाने पर अपयश मिलता है।

वैसे आपका एक-एक शन्द ही करोड़ों वज्रों के समान है। आपको किसी अस्न-शख्र को धारण करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह सुन परखुराम ने गुरु चिरबमित्र से कहा कि लधमण बड़ा कुदुद्धि और दुए हैं। यह सूर्यंश का कलंक है, जिसे वे क्षणभर बाद अपने कुल्हाड़े से काट डालेंगे। यदि वे उसे इचाना चहते है, तो उसे समझा-बुझा कर ऐसा बोलने से रोकें। बिश्वाभित्र तो नहीं सोले, पर लक्ष्मण ने कहा कि यदि परगुराम को अपने यारे में और कुछ भी कहना है, तो वे कह लें 1 वैसे वे अपना यश पहले ही काफ़ी बसान कर चुके हैं।

क्रोध को रोकार व्यर्थ दुख नहीं उठाना चाहिए। वैसे गाली देना उन्हें शोभा नहीं देता। शूरखीर तो अपना वल युद्ध-भुम में दिखाते हैं, वे ब्यर्ध में डींग चर्ति हैंका करते। यह सुन परशुराम ने गुस्से से भरकर अपना परशु सुधार कर हाथ में ले लिया। सब विश्वामित्र ने उनसे कहा कि वे उसके प्रपराध को क्षमा कर दें। बालकों के दोष और गुण को साधु नहीं गिनते।

तब परशुराम ने अहसान जताते हुए कहा कि वे विखायित्र के शील के कारण लक्क्रण को बिना मारे छोड़ रहे हैं, नहीं तो अपने फ़रसे से उसे काटकर अपने गुरु के और जो गुरु का ऋण शेष बचा है, उसे भी पूरी कर लें। यह सुनते ही परशुरान ने अपना कुल्हाड़ा संभाल लिया। सारी सभा में हाहाकार संच गया। लक्ष्सण की वाणी ने परशुरम की क्रोधरूपी अरिन में आहुति का काम किया। तब श्रीराम ने जल के समान शांत करने वाले झा्द कहे।