JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 मधुर-मधुर मेरे दीपक जल

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 मधुर-मधुर मेरे दीपक जल Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 मधुर-मधुर मेरे दीपक जल

JAC Class 10 Hindi मधुर-मधुर मेरे दीपक जल Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
महादेवी वर्मा की कविता में ‘दीपक’ और ‘प्रियतम’ किसके प्रतीक हैं?
उत्तर :
प्रस्तुत कविता में ‘दीपक’ कवयित्री की कोमल भावनाओं से परिपूर्ण हृदय का प्रतीक है। कवयित्री ने ‘प्रियतम’ का प्रयोग अपने प्रिय ईश्वर के लिए किया है।

प्रश्न 2.
दीपक से किस बात का आग्रह किया जा रहा है और क्यों ?
अथवा
न कवयित्री ने दीपक को किस प्रकार जलने के लिए कह रही है और क्यों? कवयित्री ने दीपक से जलने की प्रार्थना क्यों की है?
उत्तर :
दीपक से निरंतर जलते रहने का आग्रह किया जा रहा है। दीपक स्वयं जलता है, किंतु दूसरों के मार्ग को आलोकित कर देता है। वह त्याग और परोपकार का संदेश देता है। कवयित्री दीपक से जलने का आग्रह करते हुए कहती है कि जलने में पीड़ा नहीं है। जलने में तो आनंद की अनुभूति होती है। संसार की समस्त वस्तुएँ अपने भीतर अग्नि समेटे हुए हैं। यदि जलने में आनंद न होता, तो ऐसा कभी न होता। अतः उसे निरंतर जलते रहना चाहिए।

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प्रश्न 3.
‘विश्व-शलभ’ दीपक के साथ क्यों जल जाना चाहता है?
उत्तर :
“विश्व-शलभ’ अपनी परोपकारी वृत्ति के कारण दीपक के साथ जल जाना चाहता है। उसकी इच्छा है कि जिस प्रकार दीपक के जलने से सबको प्रकाश प्राप्त होता है, उसी प्रकार उसके जलने से भी सभी प्रकाश प्राप्त करें। वह भी किसी की भलाई का कारण बने।

प्रश्न 4.
आपकी दृष्टि में ‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल’ कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर है-
(क) शब्दों की आवृत्ति पर
(ख) सफल बिंब अंकन पर सफल बिंब अंकन पर।
उत्तर :
सफल बिंब अंकन पर।

प्रश्न 5.
कवयित्री किसका पथ आलोकित करना चाह रही हैं?
उत्तर :
कवयित्री अपने प्रियतम का पथ आलोकित करना चाह रही है। उसकी इच्छा है कि वह स्वयं दीपक के समान जलकर प्रकाश फैला दे और अपने प्रियतम के मार्ग के अंधकार को दूर कर दे। वह अपने प्रियतम के मार्ग को प्रकाशित कर देना चाहती है, ताकि वह उसके पास सरलता से पहुंच सके।

प्रश्न 6.
कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन से क्यों प्रतीत हो रहे हैं?
उत्तर :
स्नेनहीन शब्द से तात्पर्य प्रेम-रहित, नीरस और तेल से रहित है। आकाश के तारे मध्यम रोशनी में टिमटिमा रहे हैं। उनकी रोशनी अत्यधिक कम है। वे कभी जलते और कभी बुझते से प्रतीत होते हैं। कवयित्री कहती है कि ऐसा लगता है, मानो इन दीपकों का तेल समाप्त हो रहा है और ये तेल-रहित होने के कारण टिमटिमा रहे हैं। इसी कारण उसे आकाश के तारे स्नेहहीन से प्रतीत होते हैं।

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प्रश्न 7.
पतंगा अपने क्षोभ को किस प्रकार व्यक्त कर रहा है?
उत्तर :
पतंगा स्वयं को दीपक के समान जला देना चाहता है। उसकी इच्छा है कि वह भी किसी के कुछ काम आ सके। जिस प्रकार दीपक स्वयं जलकर दूसरों को रोशनी प्रदान करता है, उसी प्रकार वह भी दूसरों के मार्ग को प्रकाशित करना चाहता है। इस बात का उसके मन में बहुत क्षोभ है। वह कहता है कि काश! वह भी दीपक की लौ में जलकर किसी के मार्ग को प्रकाशित करने का कारण बन पाता। ऐसा न कर पाने का उसे बहुत पछतावा है।

प्रश्न 8.
मधुर-मधुर, पुलक-पुलक, सिहर-सिहर और विहँस-विहँस, व वयित्री ने दीपक को हर अलग-अलग तरह से जलने को क्यों कहा है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवयित्री ने इन शब्दों से अलग-अलग बिंब योजनाएँ की हैं। जलते हुए दीपक की क्षण-क्षण हिलती और जगमगाती लौ की उज्ज्वलता और सुंदरता को प्रकट करने के लिए उसने दीपक को हर तरह से जलने के लिए कहा है।

प्रश्न 9.
नीचे दी गई काव्य-पंक्तियों को पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
जलते नभ में देख अल्पसंख्यक,
स्नेहहीन नित कितने दीपक,
जलमय सागर का उर जलता,
विद्युत ले घिरता है बादल!
विहँस विहँस मेरे दीपक जल।
(क) ‘स्नेहहीन दीपक’ से क्या तात्पर्य है?
(ख) सागर को ‘जलमय’ कहने का क्या अभिप्राय है और उसका हृदय क्यों जलता है?
(ग) बादलों की क्या विशेषता बताई गई है?
(घ) कवयित्री दीपक को ‘विहँस विहँस’ जलने के लिए क्यों कह रही हैं?
उत्तर :
(क) ‘स्नेहहीन दीपक’ से तात्पर्य आकाश के असंख्य तारों से है। आकाश के तारे इस प्रकार टिमटिमाते हैं, मानो उनमें तेल समाप्त हो गया हो।

(ख) सागर में सर्वत्र जल-ही-जल दिखाई देता है। लेकिन कवयित्री का मानना है कि यद्यपि जल और अग्नि एक साथ नहीं रह सकते, फिर भी सागर में अग्नि का निवास होता है। सागर की इस अग्नि को बड़वाग्नि कहते हैं। इसी अग्नि से सागर का हृदय जलता हुआ प्रतीत होता है।

(ग) बादलों की विशेषता उसमें छिपी बिजली को बताया गया है। बादल पानी से लबालब भरा होता है, वह बहुत जल बरसाता है, किंतु उसके भीतर भी बिजली के रूप में अग्नि का निवास होता है। बादल से जब भी घनघोर वर्षा होती है, तो बिजली अवश्य कौंधती है।

(घ) विहँस का अर्थ है-‘हँसकर’। कवयित्री दीपक से कहती है कि उसे निरंतर जलने में पीड़ा का अनुभव नहीं होना चाहिए। संसार की सभी वस्तुएँ जल रही हैं। सभी में अग्नि विद्यमान है। आकाश के तारे, समुद्र, बादल सभी किसी-न-किसी अग्नि में जल रहे हैं। अत: कवयित्री ने दीपक को जलने में पीड़ा का अनुभव न करके हँसने के लिए कहा है।

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प्रश्न 10.
क्या मीराबाई और आधुनिक मीरा ‘महादेवी वर्मा इन दोनों ने अपने-अपने आराध्य देव से मिलने के लिए जो युक्तियाँ अपनाई हैं उनमें आपको कुछ समानता या अंतर प्रतीत होता है? अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर :
मीराबाई और महादेवी वर्मा ने अपने-अपने आराध्य देव से मिलने के लिए अलग-अलग युक्तियाँ अपनाई थीं। मीराबाई ने स्पष्ट रूप से श्रीकृष्ण को अपना प्रियतम माना था और उन्हें रिझाने के लिए हर संभव कार्य किया था। वे उनके लिए नाचती थीं; गाती थीं; ज़हर का प्याला तक उन्होंने पी लिया था। महादेवी के प्रियतम रहस्यवाद से घिरे हैं। वे उन्हें अनुभूति से पाना चाहती थीं। वे उन्हें प्रकृति के कण-कण से ढूँढ़ना चाहती थीं। वे उन्हें साकार रूप में न पाकर मानसिक रूप से प्राप्त करना चाहती थीं।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न :
1. दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल गल!
2. युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
प्रियतम का पथ अलोकित कर!
3. मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन!
उत्तर :
1. प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने लोकमंगल की भावना को अत्यंत सुंदर ढंग से अभिव्यक्त किया है। कवयित्री कहती है कि जैसे दीपक स्वयं को मिटाकर संसार को प्रकाश प्रदान करता है, वैसे ही मनुष्य को आत्म-बलिदान द्वारा संसार का कल्याण करना चाहिए। कवयित्री की भाषा तत्सम प्रधान है। प्रवाहमयता, चित्रात्मकता तथा लयात्मकता द्रष्टव्य है। मानवीकरण एवं पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का सुंदर प्रयोग है। भाषा सरल, सरस और प्रभावशाली है। बिंबात्मकता का सुंदर प्रयोग है।

2. यहाँ कवयित्री ने सूफी कवियों के समान प्रेम की पीड़ा को सुंदर ढंग से व्यक्त किया है। वह कहती हैं कि जिस प्रकार दीपक निरंतर जल-जलकर संसार में आलोक बिखेरता है, वैसे ही मनुष्य को भी स्वयं को मिटाकर संसार का कल्याण करना चाहिए। प्रतीकात्मकता का सुंदर प्रयोग है। प्रसादात्मकता और लयात्मकता ने काव्य-सौष्ठव में अभिवृद्धि की है। भाषा में तत्सम शब्दावली का प्रयोग है। भाषा की सरसता, भावानुकूलता तथा प्रवाहमयता द्रष्टव्य है। पुनरुक्ति प्रकाश तथा अनुप्रास अलंकार के प्रयोग से काव्य-सौंदर्य में वृद्धि हुई है।

3. प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री का कथन है कि जैसे दीपक धीरे-धीरे मोम की तरह गलकर प्रकाश फैलाता है, वैसे ही मनुष्य को भी स्वयं का बलिदान कर संसार का कल्याण करना चाहिए। कोमलकांत शब्दावली का प्रयोग किया है। भाषा में तत्सम श प्रधानता है। सरसता एवं लयात्मकता द्रष्टव्य है। अनुप्रास एवं उपमा अलंकार का सुंदर प्रयोग है।

भाषा अध्ययन –

प्रश्न 1.
कविता में जब एक शब्द बार-बार आता है और वह योजक चिह्न द्वारा जुड़ा होता है, तो वहाँ पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार होता है; जैसे-पुलक-पुलक। इसी प्रकार के कुछ और शब्द खोजिए जिनमें यह अलंकार हो।
उत्तर :
इसी प्रकार के अन्य शब्द हैं –
(i) मधुर-मधुर
(ii) युग-युग
(iii) गल-गल
(iv) सिहर-सिहर
(v) विहँस-विहँस

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योग्यता विस्तार –

प्रश्न 1.
इस कविता में जो भाव आए हैं, उन्हीं भावों पर आधारित कवयित्री द्वारा रचित कुछ अन्य कविताओं का अध्ययन करें; जैसे
(क) मैं नीर भरी दुख की बदली
(ख) जो तुम आ जाते एक बार
ये सभी कविताएँ ‘सन्धिनी’ में संकलित हैं।
उत्तर
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 2.
इस कविता को कंठस्थ करें तथा कक्षा में संगीतमय प्रस्तुति करें।
उत्तर
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 3.
महादेवी वर्मा को आधुनिक मीरा कहा जाता है। इस विषय पर जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 10 Hindi मधुर-मधुर मेरे दीपक जल Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ कविता में कवयित्री किसका पथ आलोकित करना चाहती है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवयित्री अपने प्रियतम के मार्ग को प्रकाशित करना चाहती है। इसी कारण वह दीपक को युगों-युगों तक, प्रतिदिन, प्रतिपल अपना प्रकाश बिखेरने के लिए कहती है। वह चाहती है कि दीपक के प्रकाश से उसके प्रियतम के मार्ग का समस्त अंधकार दूर हो जाए और उसके प्रियतम को उस तक पहुँचने में किसी प्रकार की कठिनाई न हो। कवयित्री ईश्वर-मिलन में बाधक अज्ञानरूपी अंधकार को समाप्त कर देना चाहती है।

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प्रश्न 2.
विश्व के नवीन और शीतल पदार्थ दीपक से क्या माँगते हैं और क्यों?
उत्तर :
विश्व के नवीन और शीतल पदार्थ दीपक से ज्वाला के कण माँगते हैं। कवयित्री का मानना है कि विश्व की समस्त वस्तुओं में पीड़ा का भाव छिपा हुआ है। पीड़ा के बिना किसी भी चीज़ का महत्व नहीं है। जब मन में वेदना हो, तो दुनिया का दर्द समझ में आता है। जब तक मनुष्य दुख और पीड़ा का अनुभव नहीं करेगा, वह समर्पण का आनंद नहीं जान सकेगा। इसी कारण विश्व के सभी नवीन और शीतल पदार्थ दीपक से ज्वाला के कण माँगते हैं।

प्रश्न 3.
कवयित्री ने ‘मृदु तन’ किसको कहा है और उसे क्या करने के लिए कहा है?
उत्तर :
कवयित्री ने दीपक को ‘मृदु तन’ कहा है। वह दीपक से कहती है कि वह अपने कोमल और सुंदर शरीर को मोम की तरह घोल दे। इससे संसार को प्रकाश प्राप्त होगा। उसे अपने व्यक्तिगत सुख की अपेक्षा अपने आपको संसार के लिए नष्ट कर देना चाहिए।

प्रश्न 4.
मधुर मधुर मेरे दीपक जल!
युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर!
अवतरण का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस अवतरण में महादेवी वर्मा ने दीपक को परोपकार, त्याग एवं वेदना का प्रतीक मानकर उसे युगों-युगों तक जलकर प्रकाश फैलाने की प्रेरणा दी है। तत्सम प्रधान भाषा सहज व सरल है। गेयता का गुण विद्यमान है। शांत रस एवं माधुर्य गुण है। रूपक, वीप्सा, अनुप्रास एवं पुनरुक्ति प्रकाश की छटा है। दृश्य बिंब की योजना है।

प्रश्न 5.
‘सौरभ फैला विपुल धूप बन’ पंक्ति के माध्यम से हमें क्या प्रेरणा मिलती है ?
उत्तर :
इस पंक्ति के माध्यम से हमें त्याग, परोपकार एवं निःस्वार्थ भावना से मानवता के कल्याण की प्रेरणा मिलती है। हमें सदैव मानव कल्याण के लिए कार्य करने चाहिए। दूसरों के हित के लिए सदा तत्पर रहना चाहिए। यहाँ तक कि दूसरों को सुख प्रदान करने के लिए यदि स्वयं को जलाना पड़े, तो पीछे नहीं हटना चाहिए। स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देने का प्रयास करना चाहिए।

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प्रश्न 6.
कवयित्री ने दीपक को किसका प्रतीक माना है? वह उससे क्या करना चाहती है?
उत्तर :
कवयित्री ने दीपक को परोपकार, वेदना और त्याग का प्रतीक माना है। उसने दीपक के माध्यम से प्रकट करना चाहा है कि वह अपने जीवन के कण-कण को दीपक की लौ की तरह जलाकर प्रियतम के मार्ग को प्रकाशमान करना चाहती है। वह अपने प्रियतम के पथ को सदा प्रकाशित करना चाहती है। वह चाहती है कि उसके मार्ग के सभी अंधकार मिट जाएँ।

प्रश्न 7.
अपने जीवन अणु को कवयित्री क्यों गलाना चाहती है?
उत्तर :
कवयित्री अपने जीवन-पथ पर पूर्णतः अडिग है। वह अपने प्रियतम को पाने हेतु स्वयं को भी अर्पित कर देना चाहती है। इसलिए वह अपना अहम् गला देना चाहती है। अपने शरीर को तिल-तिल कर घुलाने और विभिन्न प्रकार के कष्टों को सहज भाव से झेलने के लिए पूरी तरह से तैयार है।

प्रश्न 8.
कवयित्री ने स्नेहहीन दीपक का क्या अर्थ प्रकट करना चाहा है?
उत्तर :
कवयित्री ने स्नेहहीन दीपक उस जीवन को कहा है, जो भक्ति से रहित होता है। जिनके हृदय में प्रभु के लिए समर्पण का भाव शून्य हो जाता है; जिनका लगाव और आकर्षण प्रभु के प्रति दिखावा मात्र रह जाता है, ऐसे लोगों के जीवन को कवयित्री ने उस दीपक के समान माना है जो तेल के बिना होता है। उनके जीवन में प्यार का कोई नाम नहीं होता।

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल Summary in Hindi

कवयित्री-परिचय :

जीवन-श्रीमती महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य में आधुनिक युग की मीरा के नाम से विख्यात हैं। इसका कारण यह है कि मीरा की तरह महादेवी जी ने अपनी विरह-चेतना को कला के रंग में रंग दिया। महादेवी जी का जन्म सन 1907 में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद नामक नगर में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में हुई। माता के प्रभाव ने इनके हृदय में भक्ति-भावना के अंकुर को जन्म दिया। छोटी आयु में ही इनका विवाह हो गया था। आस्थामय जीवन की साधिका होने के कारण ये शीघ्र ही विवाह के बंधन से मुक्त हो गईं।

सन 1933 में इन्होंने प्रयाग में संस्कृत विषय में एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। प्रयाग महिला विद्यापीठ के आचार्य पद के उत्तरदायित्व को निभाते हुए महादेवी जी साहित्य-साधना में लीन रहीं। सन 1987 में इनका निधन हो गया। रचनाएँ-महादेवी जी ने पद्य एवं गद्य-दोनों में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। कविता में अनुभूति तत्व की प्रधानता है, तो गद्य में चिंतन की। उनकी कृतियों का उल्लेख इस प्रकार है काव्य-नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत तथा दीपशिखा आदि।

गद्य रचनाएँ – श्रृंखला की कड़ियाँ, अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, क्षणदा।

काव्यगत विशेषताएँ – महादेवी जी आधुनिक युग की सफल कवयित्री हैं। इनके काव्य में भाव-पक्ष एवं कला-पक्ष-दोनों का सुंदर निखार है। इनके काव्य में निम्नलिखित तत्वों की प्रधानता है –

1. वेदना – महादेवी जी वेदना और करुणा की सबसे बड़ी कवयित्री हैं। अपने जीवन में व्याप्त पीड़ा एवं दुखवाद के बारे में उन्होंने एक स्थान पर लिखा है, “बचपन से ही भगवान बुद्ध के प्रति एक भक्तिमय अनुराग होने के कारण उनके संसार को दुखात्मक समझने वाले दर्शन से मेरा असमय ही परिचय हो गया था।” यही कारण है कि महादेवी जी पीड़ा को अपनी सबसे बड़ी थाती समझती हैं। इसका परित्याग करके वे प्रियतम का उपहार ‘अमरों का लोक’ भी ठुकरा देना चाहती हैं –

क्या अमरों का लोक मिलेगा, तेरी करुणा का उपहार
रहने दो हे देव! अरे, यह मेरा मिटने का अधिकार।

2. रहस्यवाद – महादेवी जी ‘चिर सुंदर’ की उपासिका हैं। उन्होंने अपने गीतों में रहस्यवाद की सभी स्थितियों का चित्रण किया है। वे निरंतर साधनामय जीवन व्यतीत करने में विश्वास रखती हैं।

3. प्रकृति-चित्रण – छायावादी युग की कवयित्री होने के कारण महादेवी जी ने प्रकृति के भिन्न रूपों का भी चित्रण किया है। कभी वे प्रकृति के उपकरणों में अपने प्राणों का स्पंदन खोजती हैं, तो कभी यह प्रकृति उस विराट की छाया मात्र बन जाती है। प्रकृति का प्रत्येक रहस्यमय व्यापार उस अनंत की साधना करता प्रतीत होता है।

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4. छायावाद – महादेवी जी के काव्य में छायावाद, प्रकृति-चित्रण तथा रहस्यवाद घुल-मिलकर प्रस्तुत हुए हैं। इसका कारण यह है कि प्रकृति के माध्यम से ही महादेवी जी उस चिर सुंदरता के दर्शन करती हैं। उनके काव्य में छायावाद की भाव-पक्ष एवं कला पक्ष संबंधी सभी विशेषताएँ उपलब्ध हो जाती हैं।

5. गीति तत्व – महादेवी जी प्रमुख रूप से गीतिकार हैं। उनके गीतों में एकरूपता, वैयक्तिक्ता, संगीतात्मकता, ध्वन्यात्मकता, प्रवाहपूर्णता, भावातिरेक आदि सभी विशेषताएँ पाई जाती हैं। गीत लिखने में जो सफलता महादेवी जी को मिली है, वह आधुनिक युग के किसी भी कवि को प्राप्त नहीं हुई।

भाषा-शैली – महादेवी जी को संस्कृत का अच्छा ज्ञान था। अतः उनकी भाषा संस्कृतनिष्ठ बन गई है। भाषा में संगीतात्मकता, कोमलता और सरसता है। इनके गीतों में अलंकारों की भी सुंदर छटा है। ‘मानव’ के शब्दों में-“महादेवी जी की कला का जन्म अक्षय सौंदर्य के मूल से, दिव्य-प्रेम के भीतर से, अलौकिक प्रकाश की गुहा और पावन आँसुओं के अंतर से हुआ है।”

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कविता का सार :

है। कवयित्री ने ‘दीपक’ को परोपकार, वेदना और त्याग की भावनाओं का प्रतीक मानकर प्रकट किया है कि वह भी अपने जीवन के कवयित्री ने प्रतीकों का सुंदर प्रयोग किया है। वह जीवनरूपी दीपक को संबोधित करती हुई कहती है कि हे मेरे मधुर दीपक! सदा जलता रह, जिससे मेरे प्रियतम का पथ सदा प्रकाशित रहे; उनके पथ का अंधकार मिट जाए और मेरे पास आने में उन्हें किसी प्रकार की असुविधा न हो! हे दीपक! तू धूप बनकर संसार में सुगंधि को फैला दे। तू स्वयं को जलाकर सारे संसार को दिव्य प्रकाश प्रदान कर। संसार में जितने भी शीतल, कोमल और नवीन पदार्थ हैं, वे सभी तेरी जलन में जलना चाहते हैं।

संसाररूपी पतंगा पछताकर कहता है कि वह तुझमें मिलकर क्यों नहीं जल गया। अरे दीपक ! हँस-हँसकर जल। तुम्हें जलने में किसी प्रकाश की पीड़ा अनुभव न हो, क्योंकि संसार के अन्य सभी पदार्थ भी तो लगातार जलते रहते हैं। आकाश में असंख्य तारे बिना तेल के ही जल रहे हैं। सागर पानी से भरा होने पर भी बड़वाग्नि (समुद्री आग) से अपने हृदय को जलाता रहता है। बादल बिजली से निरंतर स्वयं को जलाता रहता है। कवयित्री दीपक से पुनः कहती है कि उसे जलने में पीड़ा का अनुभव नहीं करना चाहिए। पीड़ा में ही आनंद की प्राप्ति होती है। अत: उसे चुपचाप निरंतर जलते रहना चाहिए।

सप्रसंग व्याख्या –

1. मधुर मधुर मेरे दीपक जल!
युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर!

शब्दार्थ : प्रतिदिन – प्रत्येक दिन। प्रतिक्षण – प्रत्येक क्षण। प्रियतम – प्रिय। पथ – रास्ता। आलोकित – प्रकाशित।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रसिद्ध छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा रचित कविता ‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में प्रस्तुत पाक्तया प्रासन कवयित्री ने दीपक को परोपकार, वेदना और त्याग की भावनाओं का प्रतीक मानकर वेदना से ही प्रियतम को प्राप्त करने की बात कही है।

व्याख्या : कवयित्री कहती है कि हे मेरे भावनारूपी दीपक! तू जलता रह। तू इसी प्रकार युगों-युगों तक, प्रतिदिन, प्रतिपल अपना प्रकाश बिखेरता रह और मेरे प्रियतम के पथ को प्रकाशित कर। तेरे इस प्रकार प्रकाश फैलाने से उनके रास्ते का अंधकार मिट जाएगा और उन्हें मुझ तक पहुँचने में किसी प्रकार की असुविधा नहीं होगी। भाव यह है कि वह स्वयं कष्ट झेलकर अपने प्रियतम के मार्ग को प्रकाशित करना चाहती है, क्योंकि वेदना को सहन करने से ही परम प्रियतम की प्राप्ति संभव हो सकती है।

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2. सौरभ फैला विपुल धूप बन,
मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन;
दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल गल!
पुलक पुलक मेरे दीयक जल!

शब्दार्थ सौरभ – सुगंधि। विपुल – बहुत अधिक। मृदुल – कोमल। मृदु तन – कोमल शरीर। सिंधु – सागर। अपरिमित – अपार। पुलक – पुलकित होकर, प्रसन्न होकर।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रसिद्ध छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा रचित कविता ‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल! से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री ने स्वयं को ‘दीपक’ के समान जलाकर दूसरों को सुख प्रदान करने की भावना को प्रकट किया है। कवयित्री का मानना है कि दूसरों को सुख प्रदान करने के लिए स्वयं को दुख देना ही पड़ता है।

व्याख्या : कवयित्री कहती है कि हे मेरे दीपक ! तू प्रसन्नता में भरकर जल। तू धूप बनकर सारे संसार में सुगंधि फैला दे तथा उसे प्रकाश से भर देने के लिए अपने सुंदर शरीर को कोमल मोम की तरह घोल दे। तेरे जीवन का कण-कण गलकर संसार को अपार प्रकाश का सागर प्रदान करे अर्थात तू स्वयं को मिटाकर संसार को उज्ज्वलता प्रदान कर। भाव यह है कि कवयित्री स्वयं दुख उठाकर दूसरों को सुख प्रदान करना चाहती है। उसे अपने सुखों के प्रति मोह नहीं है। वह तो सारे समाज को सुख-संपन्न करना चाहती है।

3. सारे शीतल कोमल नूतन,
माँग रहे तुझसे ज्वाला-कण
विश्व-शलभ सिर धुन कहता ‘मैं
हाय न जल पाया तुझ में मिल’!
सिहर सिहर मेरे दीपक जल!

शब्दार्थ शीतल – ठंडा। नूतन – नया, नवीन। ज्वाला-कण – आग के टुकड़े। विश्व-शलभ – संसार रूपी पतंगा। सिर धुनना – पछताना।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रसिद्ध छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा रचित कविता ‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री ने मानव को स्वार्थपूर्ण विचारधारा छोड़कर सभी की हितकारी विचारधारा अपनाने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या : हे मेरे प्रिय दीपक! तू सिहर-सिहर कर निरंतर जलता रह। संसार के जितने भी शीतल, कोमल और नवीन पदार्थ हैं, वे सभी तुझसे आग के टुकड़े माँग रहे हैं। भाव यह है कि सभी तेरी जलन को ग्रहण करके स्वयं जलना चाहते हैं। संसाररूपी पतंगा पछताकर कहता है कि वह तुझमें मिलकर स्वयं को मिटा क्यों नहीं पाया अर्थात उसे अत्यंत दुख है कि वह भी कल्याणकारी भावना को लेकर नष्ट क्यों नहीं हुआ। संसार में त्याग और परोपकार की भावनाओं की अत्यंत कमी है। मनुष्य अपने स्वार्थमयी स्वभाव के कारण इन्हें अपना नहीं रहा है, जबकि उसे इन्हें अपनाना चाहिए।

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4. जलते नभ में देख असंख्यक,
स्नेहहीन नित कितने दीपक;
जलमय सागर का उर जलता,
विद्युत ले घिरता है बादल!
विहँस विहँस मेरे दीपक जल!

शब्दार्थ : नभ – आकाश। असंख्यक – अनगिनत, अपार। स्नेहहीन – नीरस, प्रेम से रहित। जलमय – जल से परिपूर्ण। उर – हृदय। विद्युत – बिजली। विहँस – हँसकर।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रसिद्ध छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा रचित कविता ‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल!’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री ने दीपक से कहा है कि संसार का प्रत्येक पदार्थ ज्वलनशील है। अतः उसे भी निरंतर जलते रहना चाहिए।

व्याख्या : कवयित्री कहती है कि हे मेरे दीपक! तू हँस-हँसकर जल और निरंतर जलने में किसी प्रकार की पीड़ा का अनुभव न कर, क्योंकि संसार में पता नहीं कितने और पदार्थ भी लगातार जल रहे हैं। ज़रा देख तो, आकाश में असंख्य तारे तेलरहित होकर भी जल रहे हैं। यद्यपि सागर पानी से भरा हुआ है, फिर भी बड़वाग्नि (समुद्री आग) इसे भीतर ही भीतर जलाती है। उसका दिल जलता रहता है। चाहे बादल पानी से भरा हुआ है; पानी बरसाता है, फिर भी यह बिजली को लेकर घिरता है अर्थात् कौंधने वाली बिजली से स्वयं को जलाता है। भाव यह है कि प्रकृति में यदि सभी किसी-न-किसी कारण जल रहे हैं, तो दीपक को भी निरंतर जलते रहना चाहिए।

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