JAC Class 12 History Important Questions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. 1857 के विद्रोह का प्रारम्भ हुआ –
(क) मेरठ से
(ग) कलकत्ता से
(ख) बरेली से
(घ) दिल्ली से
उत्तर:
(क) मेरठ से

2. 1857 के विद्रोह के प्रारम्भ की तारीख थी –
(क) 15 मई
(ख) 13 मई
(ग) 10 मई
(घ) 31 मई
उत्तर:
(ग) 10 मई

3. दिल्ली पहुँचकर सिपाहियों ने अपना नेता घोषित किया –
(क) बहादुरशाह जफर को
(ख) रानी लक्ष्मीबाई को
(ग) नाना धुन्धुपन्त को
(घ) बेगम हजरत महल को
उत्तर:
(क) बहादुरशाह जफर को

4. ‘फिरंगी’ शब्द जिस भाषा का है, वह है –
(क) अरब
(ख) फारसी
(ग) उर्दू
(घ) हिन्दी
उत्तर:
(ख) फारसी

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5. 1857 के विद्रोह के समय उत्तर प्रदेश के बड़ौत परगने संगठित करने वाला नेता था –
(क) भूरामल
(ख) शाहमल
(ग) पीरामल
(घ) लादूमल
उत्तर:
(ख) शाहमल

6. छोटा नागपुर में कोल आदिवासियों का नेता था –
(क) गोनू
(ख) सिन्धू
(ग) मोनू
(घ) भीकू
उत्तर:
(क) गोनू

7. जिस राइफल के कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी लगी होने की चर्चा थी, वह थी –
(क) 303 राइफल
(ख) एनफील्ड राइफल
(ग) एस. एल. राइफल
(घ) ए.के. 47 राइफल
उत्तर:
(ख) एनफील्ड राइफल

8. 1857 के विद्रोह के समय भारत में अंग्रेज गवर्नर जनरल था –
(ख) लॉर्ड रिपन
(क) लॉर्ड डलहौजी
(ग) लॉर्ड केनिंग
(घ) लॉर्ड वेलेजली
उत्तर:
(ग) लॉर्ड केनिंग

9. सतीप्रथा को अवैध घोषित करने वाला कानून बना थी
(क) 1828 में
(ख) 1829 में
(ग) 1835 में
(घ) 1827 में
उत्तर:
(ख) 1829 में

10. ” ये गिलास फल एक दिन हमारे ही मुँह में आकर गिरेगा।” यह कहना था –
(क) लॉर्ड विलियम बैंटिक का
(ख) लॉर्ड डलहौजी का
(ग) लॉर्ड केनिंग का
(घ) लॉर्ड मुनरो का
उत्तर:
(ख) लॉर्ड डलहौजी का

11. 1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण था-
(क) चर्बी वाले कारतूस
(ख) वेलेजली की सहायक सन्धि
(ग) ईसाई धर्म प्रचारक
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) चर्बी वाले कारतूस

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12. कानपुर में विद्रोहियों का नेतृत्व किसने किया?
(क) नाना साहिब
(ख) तांत्या टोपे
(ग) रानी लक्ष्मीबाई
(घ) वाजिद अली
उत्तर:
(क) नाना साहिब

13. जमदार कुँवर सिंह का सम्बन्ध था –
(क) बरेली से
(ख) अजमेर से
(ग) आरा से
(घ) कलकत्ता से
उत्तर:
(ग) आरा से

14. एनफील्ड राइफलों का सर्वप्रथम प्रयोग किस गवर्नर जनरल ने प्रारम्भ किया?
(क) लॉर्ड हार्डिंग
(ग) लॉर्ड डलहौजी
(ख) लॉर्ड वेलेजली
(घ) हेनरी हार्डिंग
उत्तर:
(घ) हेनरी हार्डिंग

15. किस अंग्रेज गवर्नर जनरल ने सहायक सन्धि प्रारम्भ कौ ?
(क) लॉर्ड डलहौजी
(ख) लॉर्ड केनिंग
(ग) लॉर्ड क्लाइव
(घ) लॉर्ड वेलेजली
उत्तर:
(घ) लॉर्ड वेलेजली

16. अवध के नवाब वाजिद अली शाह को गद्दी से हटाकर कहाँ निष्कासित किया गया था ?
(क) कलकत्ता
(ख) बम्बई
(ग) रंगून
(घ) जयपुर
उत्तर:
(क) कलकत्ता

17. बंगाल आर्मी की पौधशाला कहा जाता था –
(क) कानपुर को
(ख) अवध को
(ग) अहमदाबाद को
(घ) अजमेर को
उत्तर:
(ख) अवध को

18. ‘रिलीफ ऑफ लखनऊ’ का चित्रकार कौन था?
(क) फेलिस विएतो
(ख) टॉमस जोन्स बार्कर
(ग) जोजेफ
(घ) पंच
उत्तर:
(ख) टॉमस जोन्स बार्कर

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19. किस भारतीय लेखिका ने यह कविता लिखी- “खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।”
(क) रानी लक्ष्मीबाई
(ख) महादेवी वर्मा
(ग) सुभद्रा कुमारी चौहान
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) सुभद्रा कुमारी चौहान

20. विद्रोह के दौरान अवध मिलिट्री पुलिस के कैप्टेन कौन थे?
(क) कैप्टेन हियसें
(ख) नाना साहिब
(ग) शाह मल
(घ) हेनरी लॉरेंस
उत्तर:
(क) कैप्टेन हियसे

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. ……………….. “की दोपहर बाद मेरठ छावनी में सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया।
2. फिरंगी, फारसी भाषा का शब्द है जो ……………. शब्द से निकला है।
3. फ्रांस्वा सिस्टन ………………. के देसी ईसाई इंस्पेक्टर थे।
4. 1858 के अन्त में विद्रोह विफल होने के पश्चात् नाना साहिब भागकर …………… चले गए थे।
6. मौलवी …………… 1857 के विद्रोह में अहम भूमिका निभाने वाले बहुत सारे मौलवियों में से एक थे।
7. स्थानीय स्तर पर राजा कहलाने वाले शाहमल ने एक अंग्रेज अफसर के बंगले में डेरा डाला, उसे …………… का नाम दिया गया।
8. गवर्नर जनरल के प्रतिनिधि को …………… कहा जाता था।
9. लॉर्ड वेलेजली द्वारा तैयार की गई सहायक सन्धि को अवध में ……………से लागू कर दी गई थी।
10. ताल्लुकदारों के रवैये को रायबरेली के पास स्थित …………… के राजा हनवन्त सिंह ने सबसे अच्छी तरह व्यक्त किया था।
11. ………….को बंगाल आर्मी की पौधशाला की संज्ञा दी गई थी।
12. …………… के चित्रकार जोजेफ नोएल पेटन हैं।
13. लखनऊ में विद्रोह की शुरुआत …………… मई को हुई थी।
उत्तर:
1. 10 मई, 1857
2. फ्रैंक
3. सीतापुर
4. नेपाल
5. पेशवा बाजीराव द्वितीय
6. अहमदुल्ला शाह
7. न्याय भवन
8. रेजीडेंट
9.1801
10. कालाकंकर
11. अवध
12. इन मेमोरियम
13. 30

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
झाँसी में 1857 के विद्रोह का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर:
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने

प्रश्न 2.
1857 के विद्रोह के समय मुगल बादशाह कौन था?
उत्तर:
बहादुरशाह जफर

प्रश्न 3.
अवध पर कब्जे में अंग्रेजों की दिलचस्पी क्यों थी?
उत्तर:
(1) अवध की जमीन कपास तथा नील की खेती हेतु अत्यधिक उपयुक्त थी।
(2) यह उत्तरी भारत का बाजार बन सकता था।

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प्रश्न 4.
1857 के विद्रोह के संदर्भ में इंग्लैण्ड और भारत में छपी तस्वीरों से दोनों देशों के लोगों में उत्पन्न संवेदनाओं की संक्षेप में तुलना कीजिए।
उत्तर:
ब्रिटेन के लोग विद्रोहियों को कुचलने की माँग कर रहे थे ये तस्वीरें भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना जगा रही थीं।

प्रश्न 5.
1857 के विद्रोह के समय भारत में मुगल सम्राट कौन थे?
उत्तर:
बहादुरशाह जफर।

प्रश्न 6.
ब्रिटिश अधिकारियों ने 1857 के विद्रोह को किस रूप में देखा ?
उत्तर:
सैनिक विद्रोह के रूप में।

प्रश्न 7.
दिल्ली पर विद्रोहियों के कब्जे का विद्रोह पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
दिल्ली पर विद्रोहियों के कब्जे के समाचार ने गंगा घाटी की छावनियों एवं दिल्ली के पश्चिम की कुछ छावनियों में विद्रोह को तीव्रता प्रदान की।

प्रश्न 8.
1857 के विद्रोह में साहूकार व अमीर लोग विद्रोहियों के क्रोध का शिकार क्यों बने?
उत्तर:
क्योंकि विद्रोही साहूकारों व अमीर लोगों को किसानों का उत्पीड़क व अंग्रेजों का पिट्ठू मानते थे।

प्रश्न 9.
लखनऊ में ब्रिटिश राज के ढहने की खबर पर लोगों ने किसे अपना नेता घोषित किया?
उत्तर:
नवाब वाजिद अली शाह के युवा बेटे बिरजिस कद्र को।

प्रश्न 10.
गवर्नर जनरल के प्रतिनिधि को क्या कहा जाता था?
उत्तर:
रेजीडेंट।

प्रश्न 11.
सहायक संधि कब तैयार की गई थी?
उत्तर:
सहायक संधि 1798 में तैयार की गई थी।

प्रश्न 12.
अवध की रियासत को किस सन् में औपचारिक रूप से ब्रिटिश साम्राज्य का अंग घोषित किया गया ?
उत्तर:
सन् 1856 में।

प्रश्न 13.
अवध के अधिग्रहण के बाद 1856 में कौनसी ब्रिटिश भू-राजस्व व्यवस्था लागू की गई थी?
उत्तर:
एकमुश्त बन्दोबस्त नामक भू-राजस्व व्यवस्था।

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प्रश्न 14.
अवध जैसे जिन इलाकों में 1852 के दौरान प्रतिरोध बेहद सघन और लम्बा चला था, वहाँ लड़ाई की बागडोर किनके हाथों में थी?
उत्तर:
ताल्लुकदारों और उनके किसानों के हाथों में।

प्रश्न 15.
विद्रोहियों के बारे में अंग्रेजों की क्या राय थी?
उत्तर:
वे विद्रोहियों को एहसान फरामोश और बर्बर मानते थे।

प्रश्न 16.
विद्रोहियों ने दिल्ली पर अधिकार कब किया?
उत्तर:
11 मई, 1857 को

प्रश्न 17.
1857 के विद्रोह का सूत्रपात कब हुआ और कहाँ से हुआ?
उत्तर:
(1) 10 मई, 1857 को
(2) मेरठ से

प्रश्न 18.
1857 के विद्रोह का नेतृत्व करने वाले चार नेताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) बहादुर शाह जफर
(2) नाना साहिब
(3) रानी लक्ष्मी बाई
(4) कुंवर सिंह

प्रश्न 19.
उत्तर प्रदेश के बड़ौत परगने में अंग्रेजों के विरुद्ध लोगों को विद्रोह करने के लिए किसने संगठित किया? वह किस कुटुम्ब से सम्बन्धित था?
उत्तर:
(1) शाहमल ने
(2) जाट कुटुम्ब से

प्रश्न 20.
1857 के विद्रोह से पूर्व भारतीय सैनिकों को कौनसी राइफलें दी गई थीं?
उत्तर:
एनफील्ड राइफल।

प्रश्न 21.
भारतीय सैनिकों ने किस अफवाह से प्रेरित होकर एनफील्ड राइफलों के कारतूसों का प्रयोग करने से क्यों इनकार कर दिया था ?
उत्तर:
इन कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी लगी हुई थी।

प्रश्न 22.
अंग्रेजों ने 1857 के विद्रोह से पूर्व गोद लेने को अवैध घोषित कर अनेक रियासतों पर अधिकार कर लिया था। ऐसी किन्हीं तीन रियासतों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) झांसी
(2) सतारा
(3) नागपुर।

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प्रश्न 23.
अंग्रेजों ने अवध के नवाब वाजिद अली शाह को गद्दी से हटा कर कहाँ निष्कासित कर दिया था ?
उत्तर:
कलकत्ता ।

प्रश्न 24.
“देह से जान जा चुकी थी, शहर की काया बेजान थी।” इस प्रकार का शोक और विलाप किस घटना पर किया जा रहा था?
उत्तर:
अवध के नवाब वाजिद अली शाह के कलकत्ता निष्कासन पर।

प्रश्न 25.
सामान्यतः विद्रोह का सन्देश किनके द्वारा फैल रहा था?
उत्तर:
सामान्यतः विद्रोह का सन्देश आम पुरुषों, महिलाओं एवं धार्मिक लोगों के माध्यम से फैल रहा था।

प्रश्न 26.
अवध के अधिग्रहण के बाद विद्रोहियों ने किसके नेतृत्व में अंग्रेजों का प्रतिरोध किया ?
उत्तर:
बेगम हजरत महल।

प्रश्न 27.
‘ बंगाल आर्मी की पौधशाला’ किस राज्य को कहा जाता था?
उत्तर:
अवध को ।

प्रश्न 28.
आजमगढ़ घोषणा किसके द्वारा जारी की गई थी और कब?
उत्तर:
(1) बहादुरशाह जफर के द्वारा
(2). 25 अगस्त, 1857 को

प्रश्न 29.
किस राज्य में अंग्रेजों के विरुद्ध प्रतिरोध सबसे लम्बा चला?
उत्तर:
अवध में।

प्रश्न 30.
1857 के विद्रोह को किस रूप में याद किया जाता है?
उत्तर:
भारत के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के रूप में।

प्रश्न 31.
‘खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसीवाली रानी थी’ यह कविता किसने लिखी?
उत्तर:
सुभद्रा कुमारी चौहान ने

प्रश्न 32.
1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण क्या था?
उत्तर:
सैनिकों द्वारा गाव और सुअर की चर्बी लगे कारतूसों का विरोध

प्रश्न 33.
विद्रोहियों ने अंग्रेजों के अतिरिक्त साहूकारों और अमीरों पर हमला क्यों किया?
उत्तर:
क्योंकि वे इन्हें अपना शोषणकर्ता, उत्पीड़क होने के साथ अंग्रेजों का वफादार तथा पिट्टू मानते थे।

प्रश्न 34.
मौलवी अहमदुल्ला शाह के बारे में लोगों की क्या धारणा थी?
उत्तर:
लोगों की यह राय थी कि उनके पास कई जादुई ताकतें हैं।

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प्रश्न 35.
चिनहट की लड़ाई में किसकी हार हुई ?
उत्तर:
अंग्रेज सेनापति हेनरी लारेंस की।

प्रश्न 36.
सिंहभूम कहाँ है? इसमें किसानों का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर:
सिंहभूम वर्तमान में झारखण्ड में है। वहाँ किसानों का नेतृत्व गोनू ने किया था।

प्रश्न 37.
सैनिकों के साजो-सामान के आधुनिकीकरण का प्रयास किसने किया और इसका क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
(1) गवर्नर जनरल हार्डिंग ने
(2) उसने एनफील्ड राइफलों का प्रयोग शुरू किया।

प्रश्न 38.
अवध को ब्रिटिश साम्राज्य में कब व किसने मिलाया ?
उत्तर:
अवध को 1856 ई. में लार्ड डलहौजी ने ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाया।

प्रश्न 39.
अवध के अधिग्रहण का वहाँ की जनता पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
अवध के अधिग्रहण से वहाँ की जनता अंग्रेजों के विरुद्ध हो गई क्योंकि बहुत से लोग बेरोजगार हो गए।

प्रश्न 40.
अवध के अधिग्रहण का वहाँ के ताल्लुकदारों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
अंग्रेजों ने अनेक ताल्लुकदारों की जमीनें छीन लीं, उनकी सेनाएँ भंग कर दी और उनके किले नष्ट कर दिए।

प्रश्न 41.
रंग बाग का निर्माण किसने करवाया ?
उत्तर:
नवाब वाजिद अली शाह ने

प्रश्न 42.
जनता में ब्रिटिश शासन के प्रति किस बात पर क्रोध था?
उत्तर:
अंग्रेजों ने अनेक भू-स्वामियों की जमीनें छीन लीं तथा घरेलू उद्योगों को नष्ट कर दिया।

प्रश्न 43.
विद्रोहियों की उद्घोषणाएँ किस डर को व्यक्त कर रही थीं?
उत्तर:
ब्रिटिश सत्ता हिन्दू और मुसलमानों की जाति और धर्म को नष्ट करके उन्हें ईसाई बनाने पर तुली थी।

प्रश्न 44.
विद्रोह को दबाने के लिए उत्तर भारत में अंग्रेजों ने क्या कार्यवाही की ?
उत्तर:
विद्रोह को दबाने के लिए कई पूरे उत्तर भारत में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया।

प्रश्न 45.
दिल्ली पर कब्जा करने में अंग्रेजों को कब सफलता मिल पाई ?
उत्तर:
दिल्ली पर दो तरफ से हमले किए गए। अंग्रेजों को दिल्ली पर पुनः कब्जा करने में सितम्बर, 1857 में सफलता मिली।

प्रश्न 46.
अवध के विद्रोह दमन के बारे में फॉरसिथ के विचार लिखिए।
उत्तर:
अवध में फॉरसिथ का यह अनुमान था कि अवध की तीन-चौथाई वयस्क पुरुष आबादी युद्ध में लगी हुई थी।

प्रश्न 47.
1857 के विद्रोह को कुचलने के लिए अंग्रेजों द्वारा उठाए गए कोई दो कदम बताइये ।
उत्तर:
(1) सम्पूर्ण उत्तर भारत में मार्शल ला लागू कर दिया गया।
(2) ब्रिटेन से नई सैनिक टुकड़ियाँ मंगाई गई।

प्रश्न 48.
विद्रोह के दौरान अंग्रेजों ने दहशत फैलाने के लिए क्या किया?
उत्तर:
अंग्रेजों द्वारा विद्रोहियों को तोप के मुँह से बाँध कर उड़ाया गया या सरेआम फाँसी पर लटकाया गया।

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प्रश्न 49.
ब्रिटिश अखबारों तथा पत्रिकाओं ने विद्रोह के बारे में क्या लिखा?
उत्तर:
ब्रिटिश अखबारों तथा पत्रिकाओं में विद्रोही सैनिकों द्वारा की गई हिंसा को बड़े लोमहर्षक शब्दों में छापा गया।

प्रश्न 50.
लखनऊ रेजीडेन्सी की रक्षा अंग्रेजों ने कैसे की?
उत्तर:
जेम्स आट्रम तथा हेनरी हेवलॉक ने वहाँ पहुँचकर विद्रोहियों को तितर-बितर किया और कैम्पबेल ने ब्रिटिश सेना को घेरे से छुड़ाया।

प्रश्न 51.
इन मेमोरियम’ चित्र का चित्रकार कौन था?
उत्तर:
‘इन मेमोरियम’ चित्र का चित्रकार जोजेफ नोएल पेटन था।

प्रश्न 52.
फिरंगी कौन थे?
उत्तर:
पश्चिमी लोगों को फिरंगी कहा जाता था।

प्रश्न 53.
विद्रोही ब्रिटिश राज को किस नाम से पुकारते थे?
उत्तर:
फिरंगी राज।

प्रश्न 54.
विद्रोहियों द्वारा स्थापित शासन संरचना का प्राथमिक उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
बुद्ध की जरूरतों को पूरा करना।

प्रश्न 55.
किस भविष्यवाणी से विद्रोहियों को विद्रोह करने के लिए प्रोत्साहन मिला?
उत्तर:
प्लासी युद्ध के बाद 100 वर्ष पूरा होते ही 23 जून, 1857 को ब्रिटिश शासन समाप्त हो जाने की भविष्यवाणी से।

प्रश्न 56.
लार्ड विलियम बैंटिक के किन सामाजिक सुधारों से भारतीयों में असन्तोष व्याप्त था ?
उत्तर:
लार्ड विलियम बैंटिक ने सती प्रथा को समाप्त करने तथा हिन्दू विधवा विवाह को वैधता देने हेतु कानून बनाए थे।

प्रश्न 57.
रेजीडेन्ट को किस राज्य में तैनात किया जाता था?
उत्तर:
रेजीडेन्ट को ऐसे राज्य में तैनात किया जाता था जो अंग्रेजों के प्रत्यक्ष शासन के अन्तर्गत नहीं था।

प्रश्न 58.
“ये गिलास फल एक दिन हमारे ही मुँह में आकर गिरेगा।” यह कथन किसका था और किस रियासत के बारे में था?
उत्तर:
(1) यह कथन लार्ड डलहौजी का था।
(2) यह अवध की रियासत के बारे में था।

प्रश्न 59.
अंग्रेजों ने अवध के किस नवाब को क्या आरोप लगाकर गद्दी से हटाया था?
उत्तर:
अंग्रेजों ने वाजिद अली शाह को यह कहकर गद्दी से हटाया कि वह अच्छी तरह शासन नहीं चला रहे थे।

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प्रश्न 60.
ब्रिटिश प्रेस में गवर्नर जनरल लार्ड केनिंग की किस घोषणा का मजाक उड़ाया गया ?
उत्तर:
फेनिंग की घोषणा का मजाक उड़ाया गया कि नमीं और दयाभाव से सैनिकों की वफादारी प्राप्त करने में मदद मिलेगी।

प्रश्न 61.
सहायक सन्धि किसके द्वारा तैयार की गई थी?
उत्तर:
सहायक सन्धि लार्ड वेलेजली के द्वारा तैया की गई थी।

प्रश्न 62.
अवध को किसने ब्रिटिश साम्राज्य में सम्मिलित किया था?
उत्तर:
लार्ड डलहौजी ने।

प्रश्न 63.
मौलवी अहमदुल्ला शाह कौन थे ?
उत्तर:
मौलवी अहमदुल्ला शाह ने 1857 के विद्रोह के लिए लोगों को संगठित किया और चिनहट के अंग्रेजों को परास्त किया।

प्रश्न 64.
1857 के विद्रोह के लिए लोगों को संगठित करने वाले दो विद्रोही नेताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) शाहमल
(2) मौलवी अहमदुल्ला शाह।

प्रश्न 65.
1857 के विद्रोह से पूर्व लोगों में फैली हुई दो अफवाहों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) गाय और सुअर की चर्बी लगे हुए कारतूसों का प्रचलन
(2) सैनिकों के आटे में गाय और सुअर की हड्डियों का चूरा मिलाना।

प्रश्न 66.
रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु कब व कैसे हुई ?
उत्तर:
अंग्रेजों से लड़ते हुए जून, 1858 में रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हुई।

प्रश्न 67.
अवध के ताल्लुकदारों में व्याप्त असन्तोष के दो कारण बताइये।
उत्तर:
(1) तालुकदारों को उनकी जमीनों से बेदखल करना
(2) उनकी सेनाओं को भंग करना।

प्रश्न 68.
1857 की क्रान्ति एक सैनिक विद्रोह था अथवा स्वतन्त्रता संग्राम? अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए।
उत्तर:
1857 ई. की क्रान्ति स्पष्ट रूप से एक स्वतन्त्रता संग्राम था क्योंकि इस क्रान्ति में प्रत्येक धर्म, जाति और समूह के लोगों ने भाग लिया था।

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प्रश्न 69.
अवध में लार्ड वेलेजली द्वारा सहायक सन्धि कब लागू की गई ?
उत्तर:
1801 ई. में।

प्रश्न 70.
लखनऊ रेजीडेन्सी के घेरे में विद्रोहियों द्वारा लखनऊ का कौनसा कमिश्नर मारा गया?
उत्तर:
सर हेनरी लारेन्स।

प्रश्न 71.
किन अंग्रेज अधिकारियों ने लखनऊ रेजीडेन्सी का घेरा डालने वाले विद्रोहियों को परास्त कर दिया ?
उत्तर:
जेम्स औट्रम, हेनरी हेवलाक तथा कैम्पबेल ने।

प्रश्न 72.
किसकी भारतीय सैनिकों के प्रति दया और सहानुभूति दिखाए जाने की नीति का अंग्रेजी समाचारपत्रों में मजाक उड़ाया गया ?
उत्तर:
भारत के गवर्नर जनरल कैनिंग की।

लघुत्तरात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1.
मेरठ छावनी के विद्रोही सिपाहियों ने मुगल सम्राद् बहादुरशाह को क्या सन्देश पहुँचाया?
उत्तर:
दिल्ली के लाल किले के फाटक पर पहुँचकर मेरठ छावनी के विद्रोही सैनिकों ने मुगल सम्राट् बहादुरशाह को यह सन्देश पहुँचाया कि “हम मेरठ के सभी अंग्रेज पुरुषों को मारकर आए हैं क्योंकि वे हमें गाय और सूअर की चर्बी में लिपटे कारतूसों को दाँतों से खींचने के लिए मजबूर कर रहे थे। इससे हिन्दू और मुसलमानों, दोनों का धर्म भ्रष्ट हो जाएगा। आप हमें अपना आशीर्वाद दे एवं हमारा नेतृत्व करें।”

प्रश्न 2.
मेरठ से विद्रोही सैनिकों का जत्था दिल्ली के लाल किले के फाटक पर कब पहुँचा? बहादुर शाह से मुलाकात का विद्रोह पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
मेरठ से विद्रोही सैनिकों का जत्था दिल्ली के लाल किले के फाटक पर 11 मई, 1857 को पहुंचा। किले में घुसे इन सैनिकों ने माँग की कि सम्राट् बहादुरशाह उन्हें अपना आशीर्वाद प्रदान करें। विद्रोही सैनिकों से घिरे बहादुरशाह के पास उनकी बात मानने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प न था। इस तरह इस विद्रोह ने एक वैधता | प्राप्त कर ली क्योंकि अब इसे मुगल बादशाह के नाम पर चलाया जा सकता था।

प्रश्न 3.
‘ब्रिटिश शासन’ ताश के किले की तरह बिखर गया। यह कथन किसने व क्यों कहा?
उत्तर:
मेरठ छावनी से प्रारम्भ भारतीय सैनिकों का विद्रोह मई-जून 1857 में तीव्र गति से देश भर में फैला। अंग्रेजों के पास विद्रोहियों की कार्यवाहियों का कोई जवाब नहीं था। उन्हें केवल अपनी जान व घर-बार बचाने की चिन्ता थी। इसी स्थिति के सन्दर्भ में एक अंग्रेज अधिकारी ने लिखा है कि “ब्रिटिश शासन ताश के किले की तरह बिखर गया।”

प्रश्न 4.
कला और साहित्य ने 1857 की स्मृति को जीवित रखने में किस प्रकार योगदान दिया ?
उत्तर:
(1) क्रान्तिकारी नेताओं को ऐसे नायकों के रूप में चित्रित किया जाता था जो देश को बुद्ध-स्थल की ओर ले जा रहे हैं। उन्हें लोगों को दमनकारी ब्रिटिश शासन के विरुद्ध उत्तेजित करते हुए चित्रित किया जाता था।
(2) झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के शौर्य का गौरवगान करने वाली कविताएँ लिखी गई सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता “खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।” अमर हो गई।

प्रश्न 5.
“ये गिलास फल एक दिन हमारे ही मुँह में आकर गिरेगा।” अवध के विषय में लार्ड डलहौजी के उक्त विचारों की सत्यता का परीक्षण कीजिये।
उत्तर:
अंग्रेज अवध पर अधिकार करने के लिए लालायित थे क्योंकि वहाँ की जमीन नील और कपास की खेती के लिए उपयोगी थी और इस प्रदेश को उत्तरी भारत के एक बड़े बाजार के रूप में विकसित किया जा सकता था अतः 1856 में डलहौजी ने अवध के नवाब पर कुशासन का आरोप लगाकर उसे अपदस्थ कर दिया और अवध पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार अवध के विषय में कहा गया उपर्युक्त कथन सत्य सिद्ध हुआ।

प्रश्न 6.
दिल्ली उर्दू अखबार ने 14 जून, 1857 की अपनी रिपोर्ट में क्या लिखा?
उत्तर:
शहर में आम लोगों के लिए साग-सब्जी मिलना बन्द हो गया है। चंद बड़े लोगों को ही बाग- बगीचों से सब्जियाँ मिल पाती हैं। गरीब, मध्यम वर्ग उनको देखकर होंठों पर जीभ फिराकर रह जाता है। पानी भरने वालों ने पानी भरना बन्द कर दिया है तथा कुलीन लोग खुद घड़ों में पानी भरकर लाते हैं तब जाकर घर में खाना बनता है। शहर की आबोहवा खराब हो रही है। गन्दगी और बीमारियों के कारण महामारी फैल सकती है।

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प्रश्न 7.
सिस्टन की भेंट किससे हुई तथा दोनों में क्या वार्तालाप हुआ? लिखिए।
उत्तर:
सहारनपुर में सिस्टम की भेंट बिजनौर के मुस्लिम तहसीलदार से हुई। तहसीलदार ने उसे क्रान्तिकारी समझा और उससे अवध के बारे में बातचीत की। तहसीलदार ” क्या खबर है अवध की? काम कैसा चल रहा है?” सिस्टन” अगर हमें अवध में काम मिलता है, तो जनाब ए आली को भी पता लग जाएगा।” तहसीलदार ” भरोसा रखो, इस बार हम कामयाब होंगे। मामला काबिल हाथों में है।” यह तहसीलदार बिजनौर के विद्रोहियों का सबसे बड़ा नेता था।

प्रश्न 8.
कालाकांकर के राजा हनवन्तसिंह ने अंग्रेज अफसर से अपनी पीड़ा किन शब्दों में व्यक्त की? लिखिए।
उत्तर:
“साहिब आपके मुल्क के लोग हमारे देश में आए और उन्होंने हमारे राजाओं को खदेड़ दिया। एक ही झटके में आपने मेरे पुरखों की जमीन मेरे से छीन ली। मैं चुप रहा। फिर अचानक आपका बुरा वक्त शुरू हो गया। यहाँ के लोग आपके खिलाफ खड़े हो गए। तब आप मेरे पास आए, जिसे आपने बर्बाद किया था। मैंने आपकी जान बचाई है। लेकिन अब मैं अपने सिपाहियों को लेकर लखनऊ जा रहा हूँ, ताकि आपको देश से खदेड़ सकूँ।”

प्रश्न 9.
आजमगढ़ घोषणा किसके द्वारा किन वर्गों के लिए जारी की गई? धार्मिक नेताओं के लिए इसमें क्या कहा गया?
उत्तर:
आजमगढ़ घोषणा 25 अगस्त, 1857 को मुगल सम्राट बहादुरशाह द्वारा जमींदारों, व्यापारियों, सरकारी कर्मचारियों, कारीगरों और धार्मिक नेताओं के लिए जारी की गई। पण्डित और फकीर क्रमश: हिन्दू और मुस्लिम धर्मों के अभिभावक हैं। यूरोपीय दोनों धर्मों के शत्रु हैं और फिलहाल धर्म के कारण ही अंग्रेजों के खिलाफ एक युद्ध छिड़ा हुआ है। इसलिए पण्डितों और फकीरों का फर्ज है कि वे खुद को हमारे सामने पेश करें और इस पवित्र युद्ध में अपनी भूमिका निभाएँ।

प्रश्न 10.
इस स्रोत के आधार पर बताइये कि सिपाहियों ने क्यों विद्रोह में भाग लिया?
उत्तर:
(i) सिपाहियों को चर्बी लगे कारतूस चलाने को दिए गए, जिन्हें मुँह से काटकर खोलना पड़ता था । इससे उनका धर्म भ्रष्ट हो सकता था।
(ii) मना करने पर अनेक सिपाहियों को दण्डित किया गया, उन्हें जेल में बन्द कर दिया गया।
(iii) हम अपनी आस्था की रक्षा के लिए अंग्रेजों से लड़े। हम दो साल तक इसलिए लड़े, ताकि हमारी आस्था और मजहब दूषित न हो। अगर एक हिन्दू या मुसलमान का धर्म ही नष्ट हो गया, तो दुनिया में बचेगा ही क्या?

प्रश्न 11.
ग्रामीण अवध क्षेत्र से रिपोर्ट भेजने वाले अफसर ने अपनी रिपोर्ट में क्या लिखा?
उत्तर:
ग्रामीण अवध क्षेत्र से रिपोर्ट भेजने वाले अफसर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा- ” अवध के लोग उत्तर से जोड़ने वाली संचार लाइन पर जोर बना रहे हैं। ये लोग गाँव वाले हैं तथा यूरोपीय लोगों की पकड़ से बाहर हैं। पल में बिखर जाते हैं और पल में फिर जुट जाते हैं। शासकीय अधिकारियों का कहना है कि इन गाँव वालों की संख्या बहुत बड़ी है और उनके पास बाकायदा बंदूकें हैं।”

प्रश्न 12.
सहायक सन्धि ने अवध के नवाब को किस प्रकार असहाय बना दिया था?
उत्तर:
सहायक सन्धि के कारण अवध का नवाब वाजिद अली शाह अपनी सैनिक शक्ति से वंचित हो गया फलस्वरूप वह अपनी रियासत में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए दिन-प्रतिदिन अंग्रेजों पर निर्भर होता जा रहा था नवाब का विद्रोही मुखियाओं एवं ताल्लुकदारों पर भी कोई नियन्त्रण न रहा था।

प्रश्न 13.
अंग्रेजों द्वारा अवध के अधिग्रहण का स्थानीय जनता पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
अंग्रेजों द्वारा अवध के अधिग्रहण के कारण स्थानीय जनता ब्रिटिश शासन के विरुद्ध हो गई क्योंकि नवाब को हटाने से दरबार और उसकी संस्कृति नष्ट हो गई। संगीतकारों, नर्तकों, कवियों, बावचियों, नौकरों, सरकारी कर्मचारियों एवं अनेक लोगों की रोजी-रोटी समाप्त हो गयी थी।

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प्रश्न 14.
बहादुर शाह जफर कौन थे? संक्षेप में बताइए ।
उत्तर:
बहादुरशाह जफर द्वितीय अन्तिम मुगल सम्राट् था। अंग्रेज अधिकारियों ने कहा था कि बहादुरशाह जफर के उपरान्त उसके उत्तराधिकारियों को दिल्ली के लाल किले में नहीं रहने दिया जायेगा। इसी कारण से बहादुरशाह अंग्रेजों के विरुद्ध हो गये। विद्रोहियों ने जब बहादुरशाह से अपना प्रधान सेनापति बनने को कहा तो कुछ संकोच के साथ वह इस पर राजी हो गये। यद्यपि बहादुरशाह उस समय तक अत्यधिक वृद्ध हो चुके थे तो भी उन्होंने विद्रोहियों का नेतृत्व किया। बहादुरशाह ने सैनिकों द्वारा आरम्भ किये गये इस विद्रोह को युद्ध का रूप प्रदान कर दिया। किन्तु बहादुरशाह की यह योजना सफल नहीं हो सकी तथा उनको गिरफ्तार करके रंगून भेज दिया गया।

प्रश्न 15.
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
रानी लक्ष्मीबाई 1857 ई. के स्वतन्त्रता संग्राम की अग्रणी महिला क्रान्तिकारी थी। उनके पति को अंग्रेजों ने पुत्र गोद लेने की आज्ञा प्रदान नहीं की थी। लक्ष्मीबाई अपने पति की मृत्यु के उपरान्त झाँसी की शासिका बर्नी । इन्होंने कई युद्धों में अंग्रेजों को परास्त किया। 1858 ई. में अंग्रेज सेनापति हयूरोज ने झाँसी पर आक्रमण किया। तांत्या टोपे के साथ मिलकर इन्होंने बड़ी वीरता के साथ अपने किले की रक्षा की किन्तु वह पराजित हुई फिर भी अंग्रेजों को वाँछित सफलता प्राप्त नहीं हुई रानी ने वीरतापूर्वक शत्रुओं का सामना किया किन्तु रानी के कुछ अधिकारी अंग्रेजों से मिल गये। अतः रानी लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हुई।

प्रश्न 16.
1857 की क्रान्ति के परिणामों पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
(1) भारत से ईस्ट इण्डिया कम्पनी का शासन हमेशा के लिए समाप्त हो गया और उसके स्थान पर 1858 से महारानी विक्टोरिया की घोषणा के साथ भारत में ब्रिटिश ताज का शासन प्रारम्भ हो गया।
(2) अंग्रेजों की दमनात्मक नीति से भारतवासियों में तीव्र आक्रोश उत्पन्न हुआ।
(3) भारत की जनता में राष्ट्रीयता की भावना जगाने में इस क्रान्ति का सबसे बड़ा योगदान रहा। इसके फलस्वरूप भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन शुरू हुआ।

प्रश्न 17.
मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर ने विद्रोहियों का नेतृत्व करना क्यों स्वीकार कर लिया था?
उत्तर:
10 मई, 1857 को सैनिकों ने मेरठ में विद्रोह कर दिया। विद्रोही सैनिक 11 मई को दिल्ली पहुँच गए। उन्होंने मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर को बताया कि अंग्रेज उन्हें गाय और सुअर की चर्बी लगे हुए कारतूस दाँतों से खींचने के लिए बाध्य कर रहे थे जिससे हिन्दू और मुसलमान दोनों का धर्म भ्रष्ट हो सकता था। इस समय बहुत से सैनिक लाल किले में प्रविष्ट हो गए। इन परिस्थितियों में मुगल- सम्राट को विद्रोहियों का नेतृत्व करना स्वीकार करना पड़ा।

प्रश्न 18.
विभिन्न सैनिक छावनियों के सैनिकों के बीच अच्छा संचार बना हुआ था।” स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
जब सातवीं अवध हरेग्युलर केवेलरी ने मई, 1857 के प्रारम्भ में नये कारतूसों का प्रयोग करने से इनकार कर दिया, तो उन्होंने 48वीं नेटिव इन्फेन्ट्री को लिखा कि “हमने अपने धर्म की रक्षा के लिए यह निर्णय लिया है और 48वीं नेटिव इन्फेन्ट्री के आदेश की प्रतीक्षा कर रहे हैं।” इस प्रकार विभिन्न सैनिक छावनियों में सम्पर्क बना ‘हुआ था तथा सैनिक या उनके सन्देशवाहक एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा रहे थे। सभी लोगं विद्रोह को सफल बनाने के लिए प्रयत्नशील थे।

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प्रश्न 19.
1857 के विद्रोह सुनियोजित थे।” स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
41वीं नेटिव इन्फेन्ट्री ने अवध मिलिट्री पुलिस से अनुरोध किया कि अवध मिलिट्री पुलिस को या तो कैप्टेन हियरों का वध कर देना चाहिए या उसे गिरफ्तार करके उनके हवाले कर देना चाहिए। जब अवध मिलिट्टी पुलिस ने इन दोनों बातों को अस्वीकार कर दिया, तो इस मामले पर विचार करने के लिए हर रेजीमेन्ट के देशी अधिकारियों की एक पंचायत बुलाई गई। ये पंचायतें रात को कानपुर सिपाही लाइनों में जुटती थीं और सैनिक सामूहिक रूप से निर्णय लेते थे।

प्रश्न 20.
“अनेक स्थानों पर विद्रोह का सन्देश आम पुरुषों और महिलाओं के द्वारा तथा धार्मिक लोगों के द्वारा फैल रहा था।” व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
मेरठ में हाथी पर सवार एक फकीर विद्रोह का सन्देश फैला रहा था तथा उससे भारतीय सैनिक बार- बार मिलने जाते थे। लखनऊ में अवध पर अधिकार के बाद अनेक धार्मिक नेता ब्रिटिश शासन को समाप्त करने का अलख जगा रहे थे। कुछ स्थानों पर स्थानीय नेता लोगों को विद्रोह के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे। शाहमल ने उत्तरप्रदेश में बड़ौत परगने के गाँव वालों को तथा छोटा नागपुर स्थित सिंहभूम के एक किसान गोनू ने वहाँ के आदिवासियों को संगठित किया।

प्रश्न 21.
नाना साहेब कौन थे? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
नाना साहेब 1857 के विद्रोह के एक प्रमुख सेनापति थे। नाना साहेब एक वीर मराठा तथा पेशवा बाजीराव के दत्तक पुत्र थे। उन्होंने स्वयं को जून, 1857 में कानपुर में पेशवा घोषित कर दिया किन्तु अंग्रेजों ने उन्हें पेशवा मानने से मना कर दिया। नाना साहेब ने प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में अंग्रेजों का वीरता के साथ मुकाबला किया। कानपुर में क्रान्तिकारियों का नेतृत्व भी नाना साहेब ने किया तथा कर्नल नील से जबरदस्त संघर्ष किया। कर्नल नील अवध (वर्तमान उत्तर प्रदेश) से क्रान्तिकारियों का पूर्ण रूप से दमन करना चाहता था अतः कर्नल नील तथा नाना साहेब में भीषण युद्ध हुआ। दुर्भाग्य से युद्ध में नाना साहेब पराजित हो गये तथा वह वहाँ से भागकर नेपाल चले गये।

प्रश्न 22.
1857 की क्रान्ति के दौरान राजनीतिक असन्तोष के क्या कारण थे?
उत्तर:
1857 की क्रान्ति के दौरान राजनीतिक असन्तोष के निम्नलिखित कारण थे –
(1) मुगल बादशाह का अपमान-अंग्रेजों के भारत आगमन के पश्चात् मुगल साम्राज्य पतन की ओर अग्रसर था। अन्तिम मुगल बादशाह बहादुर शाह का शासन केवल लाल किले तक ही सीमित था।

(2) नाना साहिब व रानी लक्ष्मीबाई से अनुचित व्यवहार – लार्ड डलहौजी ने दत्तक प्रथा पर रोक लगाकर झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र को शासक मानने से इन्कार कर दिया तथा झाँसी को हड़पने की नीति अपनाई जिससे रानी झाँसी अंग्रेजों के विरुद्ध हो गयी। नाना साहिब पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र थे अंग्रेजों ने उनकी पेंशन बन्द कर दी।

(3) अवध का अनुचित विलय- लार्ड डलहौजी ने अवध के नवाब वाजिद अली शाह पर कुशासन का आरोप लगाकर उन्हें हटा दिया तथा 1856 ई. में अवध का अंग्रेजी राज्य में विलय कर लिया।

(4) डलहौजी की हड़प नीति- डलहौजी ने अपनी साम्राज्यवादी हड़प नीति के तहत अनेक रियासतों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया फलस्वरूप उन रियासतों के शासक अंग्रेजों के विरुद्ध हो गये।

प्रश्न 23.
1857 ई. के विद्रोह के धार्मिक कारण कौन-कौनसे थे?
उत्तर:
1857 के विद्रोह के अनेक कारण उत्तरदायी थे। इसमें से धार्मिक कारण निम्न थे –
(1) 1813 में ईसाई मिशनरियों को भारत में कार्य करने की इजाजत दे दी।
(2) ये मिशनरियाँ भारतीयों को लालच देकर ईसाई बना रही थीं।
(3) लॉर्ड विलियम बैंटिक ने सती प्रथा सहित अनेक समाज सुधार किये जिसे भारतीयों ने अपने धर्म के विरुद्ध समझा।
(4) अनेक हिन्दू सिपाहियों को समुद्र मार्ग से बाहर भेजा गया। उस समय हिन्दू समुद्र की यात्रा करना अपवित्र मानते थे।
इन्हीं सब घटनाओं ने 1857 ई. के विद्रोह की नींव रखी।

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प्रश्न 24.
कानपुर और झांसी में किन नेताओं ने विद्रोहियों का नेतृत्व करना स्वीकार किया था?
उत्तर:
कानपुर में सैनिकों और शहर के लोगों ने पेशवा बाजीराव द्वितीय के उत्तराधिकारी नाना साहिब को विद्रोह का नेतृत्व सम्भालने के लिए बाध्य किया। झांसी में भी रानी लक्ष्मी बाई को जनता के दबाव में विद्रोह की बागडोर सम्भालनी पड़ी। कुछ ऐसी ही स्थिति बिहार में आरा के स्थानीय जमींदार कुँवर सिंह की भी लखनऊ में ब्रिटिश राज की समाप्ति की सूचना पर लोगों ने नवाब वाजिद अली शाह के युवा पुत्र बिरजिस कद्र को अपना नेता घोषित कर दिया था।

प्रश्न 25.
सहायक सन्धि क्या थी और इसे किसने लागू किया था?
उत्तर:
सन् 1798 में लॉर्ड वेलेजली ने देशी शासकों पर कम्पनी का नियंत्रण स्थापित करने हेतु सहायक संधि की। इसकी शर्तें निम्न प्रकार थीं—
(1) देशी शासक को अपने खर्चे पर एक अंग्रेजी सेना अपने राज्य में रखनी होगी।
(2) बिना अंग्रेजों की अनुमति के वह देशी शासक किसी अन्य राज्य से न तो संधि करेगा और न ही युद्ध करेगा।
(3) बदले में अंग्रेज उस शासक को आन्तरिक एवं बाहरी चुनौतियों से रक्षा करेंगे।

प्रश्न 26.
1857 ई. की क्रान्ति में शाहमल के कार्यों का मूल्यांकन कीजिये।
अथवा
शाहमल कौन था और उसने 1857 के विद्रोह में क्या भूमिका निभाई?
उत्तर:
शाहमल उत्तर प्रदेश के बड़ौत परगने के एक बड़े गाँव के रहने वाले एक जाट परिवार में पैदा हुए थे। शाहमल ने चौरासी देस के मुखियाओं और काश्तकारों को संगठित किया तथा लोगों को विद्रोह करने हेतु प्रेरित किया। शाहमल के आदमियों ने सरकारी इमारतों पर हमला करके उन्हें नष्ट किया। लोग शाहमल को राजा के नाम से पुकारते थे। जुलाई, 1857 में शाहमल वीरगति को प्राप्त हो गए।

प्रश्न 27.
मौलवी अहमदुल्ला शाह कौन थे और उनके बारे में लोगों में क्या विश्वास था?
उत्तर:
हैदराबाद में शिक्षा प्राप्त करने के बाद कम उम्र में ही मौलवी अहमदुल्ला शाह उपदेशक बन गये थे। 1856 में उन्हें अंग्रेजों के विरुद्ध जिहाद (धर्मयुद्ध) का प्रचार करते हुए और लोगों को विद्रोह के लिए तैयार करते हुए देखा गया। जनता का मानना था कि मौलवी में जादुई ताकतें हैं, जिससे अंग्रेज उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं। 22वीं नेटिव इन्फैंट्री ने उन्हें अपना नेता चुन लिया। उन्होंने चिनहट की लड़ाई में हेनरी लारेंस की टुकड़ी को पराजित किया।

प्रश्न 28.
किन अफवाहों के द्वारा लोगों को विद्रोह करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा था?
उत्तर:
(1) सिपाहियों में यह अफवाह फैली हुई थी कि उनकी राइफलों में प्रयुक्त किए जाने वाले कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी लगी थी। इनका प्रयोग करने से उनकी जाति तथा धर्म के भ्रष्ट होने की सम्भावना थी।

(2) यह अफवाह भी जोरों पर थी कि अंग्रेजों ने बाजार में मिलने वाले आटे में गाय और सुअर की हड्डियों का चूरा मिलवा दिया है इसका उद्देश्य हिन्दुओं और मुसलमानों की जाति तथा धर्म को नष्ट करना था।

प्रश्न 29.
भारतीय लोग अफवाहों में विश्वास क्यों कर रहे थे?
अथवा
“अफवाहें तभी फैलती हैं, जब वे प्रभावशाली होती हैं, जब लोगों में बहुत ज्यादा भय और सन्देह फैल जाए।” 1857 के विद्रोह के संदर्भ में यह कथन कहाँ तक सत्य था?
उत्तर:
(1) लार्ड विलियम बैंटिक द्वारा सती प्रथा को समाप्त करने तथा हिन्दू विधवा विवाह को वैधता प्रदान करने वाले कानून बनाये गए थे। इनसे भारतीयों में असन्तोष
था।
(2) लार्ड डलहौजी द्वारा अवध, शांसी तथा सतारा जैसी रियासतों पर अधिकार करने से भारतीय नरेशों और जनता में आक्रोश व्याप्त था वहाँ अंग्रेजों द्वारा अपने ढंग की शासन व्यवस्था, अपने कानून, भू-राजस्व वसूली की अपनी व्यवस्था लागू किये जाने से भी भारतीयों में असन्तोष था ।

प्रश्न 30.
“देह से जान जा चुकी थी।” व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
जब 1856 में अवध के नवाब वाजिद अली शाह को गद्दी से हटाकर कलकत्ता निष्कासित कर दिया तो अवध के लोगों में दुःख और शोक की लहर दौड़ गई। एक लेखक ने लिखा था कि “देह से जान जा चुकी गया, थी। शहर की कला बेजान थी। कोई सड़क, बाजार और घर ऐसा न था, जहाँ से जान-ए-आलम (नवाब वाजिद अली शाह) से बिछुड़ने पर विलाप का शोर न गूँज रहा हो।”

प्रश्न 31.
अवध के नवाब वाजिद अली शाह के कलकत्ता निष्कासन से लोगों को दुःख और अपमान का एहसास क्यों हुआ?
उत्तर:
(1) अवध का नवाब वाजिद अली शाह अवध की जनता में बड़ा लोकप्रिय था। लोग उसे दिल से चाहते थे। अतः नवाब के निष्कासन पर लोगों को प्रबल आघात पहुँचा।
(2) नवाब को अपदस्थ किये जाने से दरबार और उसकी संस्कृति भी समाप्त हो गई थी।
(3) नवाब के निष्कासन से अनेक संगीतकारों, नर्तकों, कवियों, कारीगरों, बावर्चियों, नौकरों, सरकारी कर्मचारियों और बहुत सारे लोगों की रोजी-रोटी जाती रही।

प्रश्न 32.
“ताल्लुकदारों की सत्ता छिनने के परिणामस्वरूप पूरी सामाजिक व्यवस्था भंग हो गई।” विवेचना कीजिये।
उत्तर:
जनता की दृष्टि में बहुत से ताल्लुकदार दयालु संरक्षक की भाँति आचरण करते थे। वे संकटपूर्ण परिस्थितियों में किसानों की सहायता भी करते थे। अब इस बात की कोई गारन्टी नहीं थी कि कठिन समय में या फसल खराब होने पर सरकार राजस्व माँग में कोई कमी करेगी। न ही किसानों को इस बात की आशा थी कि तीज-त्यौहारों पर उन्हें कोई ऋण और सहायता मिल जायेगी जो पहले ताल्लुकदारों से मिल जाती थी।

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प्रश्न 33.
1857 के जन-विद्रोह से पहले अवध के सैनिकों में असन्तोष के क्या कारण थे?
उत्तर:
(1) सैनिक कम वेतन और समय पर अवकाश न मिलने के कारण असन्तुष्ट थे।
(2) सैनिक अधिकारी सैनिकों के साथ अपमानजनक व्यवहार करते थे।
(3) गाय और सुअर की चर्बी लगे हुए कारतूसों के कारण भी सैनिकों में असन्तोष था ।
(4) बंगाल आर्मी के सैनिकों में बहुत सारे सैनिक अवध के गाँवों से भर्ती होकर आए थे उनके ग्रामीणों से अच्छे सम्बन्ध थे। अतः जब सैनिक अपने अधिकारियों के विरुद्ध हथियार उठाते थे, तो ग्रामीण लोग उनका साथ देते थे।

प्रश्न 34.
बीसवीं सदी के राष्ट्रवादी आन्दोलन को 1857 के घटनाक्रम से क्या प्रेरणा मिल रही थी ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1857 का विद्रोह प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम था जिसमें देश के सभी वर्गों के लोगों ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध मिलकर संघर्ष किया था। कलाकारों और साहित्यकारों ने 1857 के विद्रोह के नेताओं को ऐसे नायकों के रूप में प्रस्तुत किया जो देश को रणस्थल की ओर ले जा रहे थे। बहादुरशाह, नाना साहिब, रानी लक्ष्मी बाई, कुंवर सिंह आदि ने अपने पराक्रमपूर्ण कार्यों, त्याग और बलिदान से भारतीयों में राष्ट्रीयता का प्रसार किया और राष्ट्रीय आन्दोलन की पृष्ठभूमि तैयार की।

प्रश्न 35.
ब्रिटिश भू-राजस्व व्यवस्था का ताल्लुकदारों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
एकमुश्त बन्दोबस्त के द्वारा ताल्लुकदारों को बेदखल किया जाने लगा। आँकड़ों से पता चलता है कि अंग्रेजों के आने से पहले ताल्लुकदारों के पास अवध के 67% गाँव थे एकमुश्त बन्दोबस्त लागू होने के बाद यह संख्या घटकर 38 प्रतिशत रह गई दक्षिण अवध के ताल्लुकदारों पर सबसे बुरी मार पड़ी। कुछ के आधे से अधिक गाँव उनके हाथ से निकल गए। इस प्रकार ब्रिटिश भू-राजस्व व्यवस्था ने ताल्लुकदारों की प्रतिष्ठा तथा सत्ता को प्रबल आघात पहुँचाया।

प्रश्न 36.
एकमुश्त बन्दोबस्त से न तो ताल्लुकदार खुश थे और न ही कृषक वर्ग खुश था, क्यों? विवेचना कीजिए।
उत्तर:
एकमुश्त बन्दोबस्त लागू करने की योजना के पीछे अंग्रेजों की यह सोच थी कि वे ताल्लुकदारों को हटाकर जमीन का मालिकाना हक असली मालिकों यानी किसानों को सौंप देंगे। इससे किसानों के शोषण में कमी आयेगी तथा राजस्व वसूली में भी वृद्धि होगी और ताल्लुकदारों की शक्ति में कमी आयेगी लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं हो पाया। ताल्लुकदार बेदखल किए गए और राजस्व वसूली में भी इजाफा हुआ लेकिन किसानों के बोझ में कमी नहीं आई।

प्रश्न 37.
विद्रोही किस वैकल्पिक सत्ता की तलाश कर रहे थे?
उत्तर:
ब्रिटिश शासन ध्वस्त हो जाने के बाद विद्रोही नेता अठारहवीं सदी की पूर्व व्यवस्था को पुनर्स्थापित करना चाहते थे। इन नेताओं ने पुरानी दरबारी संस्कृति का सहारा लिया। विभिन्न पदों पर नियुक्तियाँ की गई भू-राजस्व वसूली और सैनिकों के वेतन भुगतान का प्रबन्ध किया गया। लूटपाट बन्द करने के हुक्मनामे जारी किए गए तथा इसके साथ ही अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध जारी रखने की योजनाएँ भी बनाई गई। सेना की कमान श्रृंखला तय की गई।

प्रश्न 38.
1857 के विद्रोह के पूर्व अंग्रेज अफसरों और सैनिकों के सम्बन्धों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
(1) 1820 के दशक में गोरे अफसरों के अपने सैनिकों और मातहतों के साथ दोस्ताना सम्बन्ध थे। वे उनके साथ मौज-मस्ती करते थे, मल्लयुद्ध करते थे तथा तलवारबाजी करते थे।
(2) 1840 के दशक में अफसरों और सैनिकों के सम्बन्धों में काफी बदलाव आ गया था। अफसर सिपाहियों को कमतर नस्ल का मानने लगे थे। वे उनकी भावनाओं की जरा भी कद्र नहीं करते थे सैनिकों के साथ गाली- गलौज और शारीरिक हिंसा साधारण बात हो गई।

प्रश्न 39.
विद्रोहियों द्वारा परस्पर सम्पर्क करने के लिए संचार के कौन-से माध्यम थे?
उत्तर:
(1) विभिन्न छावनियों के सैनिक या उनके संदेशवाहक विद्रोह का संदेश देने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा रहे थे (2) 41वीं नेटिव इन्फेन्ट्री ने अंग्रेजों पर आक्रमण करने के लिए अवध मिलिट्री पुलिस से सहायता प्राप्त करने का प्रयास किया। (3) सामूहिक रूप से निर्णय लेने के लिए देशी अफसरों की पंचायतें आयोजित की जा रही थीं। सैनिक एक साथ बैठकर अपने भविष्य के बारे में निर्णय लेते थे।

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प्रश्न 40.
अंग्रेज अवध पर अधिकार करने के लिए क्यों लालायित थे?
उत्तर:
(1) अंग्रेजों की मान्यता थी कि अवध की भूमि नील और कपास की खेती के लिए बहुत लाभदायक थी और इस प्रदेश को उत्तरी भारत के एक बड़े बाजार के रूप में विकसित किया जा सकता था
(2) अंग्रेज मराठा- भूमि, दोआब, कर्नाटक, पंजाब, बंगाल आदि पर अपना आधिपत्य स्थापित कर चुके थे। अवध पर अधिकार करके अंग्रेज क्षेत्रीय विस्तार की आकांक्षा पूरी करना चाहते थे।

प्रश्न 41.
20वीं शताब्दी में भारतीय राष्ट्रवादी आन्दोलन ने किससे प्रेरणा ली?
उत्तर:
20वीं शताब्दी में भारतीय राष्ट्रवादी आन्दोलन ने 1857 के घटनाक्रम से प्रेरणा ली। इस विद्रोह के आस- पास राष्ट्रवादी कल्पना का एक विस्तृत दृश्य जगत बुन दिया गया था तथा इसको प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के रूप में याद किया जाता था, जिसमें प्रत्येक वर्ग ने साम्राज्यवादी शासन के विरुद्ध मिल-जुलकर संघर्ष किया था।

प्रश्न 42.
इतिहास लेखन की तरह कला और साहित्य ने भी 1857 की स्मृति को जीवित रखने में योगदान दिया? रानी लक्ष्मीबाई का उदाहरण देते हुए स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इतिहास लेखन की तरह कला और साहित्य ने भी 1857 की स्मृति को जीवित रखने में योगदान दिया। साहित्य एवं चित्रों में 1857 के विद्रोह के नेताओं को एक ऐसे नायकों के रूप में प्रस्तुत किया जाता था जो देश को युद्ध स्थल की ओर ले जा रहे थे। उन्हें जनता को अत्याचारी साम्राज्यवादी शासन के विरुद्ध उत्तेजित करते हुए चित्रित किया जाता था। एक हाथ में घोड़े की रास एवं दूसरे हाथ में तलवार लिए हुए अपनी मातृभूमि की मुक्ति के लिए संघर्ष करने वाली रानी लक्ष्मीबाई की वीरता का गौरव गान करते हुए कविताएँ लिखी गयीं। देश के विभिन्न हिस्सों में बच्चे सुभद्रा कुमारी चौहान की इन पंक्तियों को पढ़ते हुए बड़े हो रहे थे ” खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।”

प्रश्न 43.
1857 के विद्रोही उत्पीड़न के किन प्रतीकों के विरुद्ध थे?
उत्तर:

  • विद्रोही अंग्रेजों द्वारा देशी रियासतों पर अधिकार करने के लिए उनकी निन्दा करते थे
  • ब्रिटिश भू-राजस्व व्यवस्था ने बड़े-छोटे भू-स्वामियों को जमीन से बेदखल कर दिया था और विदेशी व्यापार ने दस्तकारों तथा बुनकरों को बर्बाद कर दिया था।
  • अंग्रेजों ने स्थापित सुन्दर जीवन शैली को नष्ट कर दिया था।
  • अंग्रेज हिन्दुओं और मुसलमानों की जाति तथा धर्म को नष्ट करने के लिए प्रयत्नशील थे।
  • सूदखोर भी सामान्य जनता का शोषण करते थे।

प्रश्न 44.
अंग्रेजों ने विद्रोहियों के दमन के लिए क्या उपाय किये?
उत्तर:

  • सम्पूर्ण उत्तर भारत में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया। यह घोषित किया गया कि विद्रोह की केवल एक ही सजा हो सकती है सजा-ए-मौत’
  • ब्रिटेन से नई सैनिक टुकड़ियाँ मंगाई गई
  • अंग्रेजों ने जमींदारों तथा किसानों की एकता को भंग करने हेतु जमींदारों को आश्वस्त किया कि उन्हें उनकी जागीरें लौटा दी जायेंगी।
  • स्वामिभक्त जमींदारों को पुरस्कृत किया गया तथा विद्रोही जमींदारों को उनकी जमीनों से बेदखल कर दिया गया।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
1857 के विद्रोह को नेतृत्व प्रदान करने वाले नेताओं तथा अनुयायियों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
1857 के विद्रोह को नेतृत्व प्रदान करने वाले नेता और अनुयायी 1857 के विद्रोह को नेतृत्व प्रदान करने वाले नेताओं और अनुयायियों का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है-

(1) मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर 10 मई 1857 को भारतीय सैनिकों ने मेरठ में विद्रोह कर दिया। विद्रोही सैनिक 11 मई को दिल्ली पहुँच गए। उन्होंने मुगल- सम्राट बहादुरशाह जफर को बताया कि अंग्रेज उन्हें गाय और सुअर की चर्बी लगे हुए कारतूसों को दाँतों से खींचने के लिए बाध्य कर रहे थे, जिससे हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों का धर्म भ्रष्ट हो सकता था। इस समय बहुत से सैनिक लालकिले में प्रविष्ट हो गये और उन्होंने मुगल- सम्राट से उन्हें नेतृत्व प्रदान करने की प्रार्थना की। इन परिस्थितियों में मुगल सम्राट बहादुरशाह को विद्रोहियों का नेतृत्व करने के लिए बाध्य होना पड़ा। बहादुरशाह के पास अन्य कोई विकल्प नहीं था।

(2) नाना साहिब कानपुर में सैनिकों और शहर के लोगों ने पेशवा बाजीराव द्वितीय के उत्तराधिकारी नाना साहिब से विद्रोह का नेतृत्व करने का अनुरोध किया जिसे उन्हें स्वीकार करना पड़ा। नाना साहिब के पास भी विद्रोह का नेतृत्व संभालने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं था।

(3) झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई 1857 के विद्रोह की गुंज झाँसी में भी सुनाई दी। सैनिकों और आम जनता ने झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई से विद्रोह का नेतृत्व सँभालने की प्रार्थना की रानी लक्ष्मीबाई को सैनिकों और आम जनता के दबाव में विद्रोह का नेतृत्व सँभालना पड़ा।

(4) कुँवर सिंह बिहार के लोगों ने भी 1857 के विद्रोह में भाग लिया। आरा (बिहार) के लोगों ने वहाँ के जमींदार कुँवर सिंह से विद्रोह का नेतृत्व सँभालने की गुजारिश की। उन्हें भी विवश होकर विद्रोह का नेतृत्व संभालना पड़ा।

(5) बिरजिस कद्र लखनऊ में ब्रिटिश राज की समाप्ति की सूचना पर लखनऊ के लोगों ने अवध के नवाब वाजिद अली शाह के युवा पुत्र विरजिस कद्र को अपना नेता घोषित कर दिया।

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

(6) अन्य नेता-मेरठ में हाथी पर सवार एक फकीर ने विद्रोह के सन्देश का प्रसार किया। शाहमल ने उत्तर प्रदेश में बढ़ौत परगने के गाँव वालों को संगठित किया और अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष किया छोटा नागपुर स्थित सिंहभूम के एक आदिवासी किसान गोनू ने वहाँ के कोल आदिवासियों को नेतृत्व प्रदान किया हैदराबाद में शिक्षा प्राप्त मौलवी अहमदुल्ला शाह ने गाँव-गाँव में जाकर लोगों को अंग्रेजों के विरुद्ध संगठित किया। 1857 में उन्होंने चिनहट की लड़ाई में हेनरी लारेन्स की सैनिक टुकड़ियों को परास्त किया।

प्रश्न 2.
1857 के जनविद्रोह का आरम्भ किस प्रकार हुआ? इसके विस्तार को भी बतलाइए।
उत्तर:
1857 के जनविद्रोह का आरम्भ- 1857 के जनविद्रोह का आरम्भ 10 मई, 1857 को दोपहर पश्चात् मेरठ छावनी से हुआ था। यहाँ इस विद्रोह की शुरुआत भारतीय सैनिकों की पैदल सेना ने की। शीघ्र ही यह विद्रोह घुड़सवार सेना एवं शहर तक फैल गया। शहर और आस-पास क गाँवों के लोग सैनिकों के साथ जुड़ गए सैनिकों ने हथियार एवं गोला बारूद से भरे हुए शस्त्रागार पर अधिकार कर लिया।

विद्रोह का विस्तार- 1857 के विद्रोह का विस्तार देशव्यापी होता चला गया। विद्रोही सैनिक 11 मई, 1857 को प्रातः लाल किले के फाटक पर पहुँचे। रमजान का महीना था मुगल बादशाह बहादुरशाह नमाज पढ़कर एवं सहरी खाकर उठे ही थे कि उन्हें फाटक पर शोरगुल सुनाई दिया। बाहर खड़े सैनिकों ने उन्हें बताया कि वे मेरठ के सभी अंग्रेज पुरुषों को मारकर आए हैं क्योंकि वे हमें गाय और सूअर की चर्बी लगे कारतूस दाँतों से खोलने के लिए मजबूर कर रहे थे।

इससे हिन्दू और मुसलमान दोनों का धर्म भ्रष्ट हो जाएगा। तब तक विद्रोही सैनिकों का एक और दल दिल्ली में प्रवेश कर चुका था। दिल्ली शहर की आम जनता भी उनके साथ जुड़ने लगी। अनेकों अंग्रेज मारे गये। दिल्ली के अमीर लोगों पर भी हमले हुए और लूटपाट हुई। विद्रोही सैनिकों से घिरे बहादुरशाह के पास उनकी बात मानने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं था। इस तरह विद्रोह ने एक नेतृत्व प्राप्त कर लिया क्योंकि अब उसे मुगल बादशाह बहादुर शाह के नाम पर चलाया जा सकता था। 12 व 13 मई 1857 को उत्तर भारत में शान्ति रही परन्तु जैसे ही यह खबर फैली कि दिल्ली पर विद्रोहियों का अधिकार हो चुका है तथा इस विद्रोह को मुगल बादशाह बहादुरशाह ने समर्थन दे दिया, परिस्थितियों में तेजी से बदलाव आया।

गंगा घाटी एवं दिल्ली के पश्चिम की कुछ छावनियों में विद्रोह के स्वर तीव्र होने लगे। विद्रोह में आम जनता के सम्मिलित होने से हमलों में विस्तार आता गया। लखनऊ, कानपुर एवं बरेली जैसे बड़े शहरों में साहूकार एवं धनिक वर्ग के लोगों पर भी विद्रोहियों ने हमले प्रारम्भ कर दिये। अधिकांश स्थानों पर धनिक वर्ग के घर-बार लूटकर ध्वस्त कर दिए गए। इन छिटपुट विद्रोहों ने शीघ्र ही चौतरफा विद्रोह का रूप धारण कर लिया।

ब्रिटिश शासन की सत्ता की खुलेआम अवहेलना होने लगी। 1857 के विद्रोह का विस्तार अवध (लखनऊ) में भी हुआ। यहाँ विद्रोह का सबसे भयंकर रूप देखने को मिला। अंग्रेजों ने यहाँ के नवाब वाजिद अली शाह को शासन से हटा दिया था। यहाँ विद्रोह का नेतृत्व नवाब के. युवा पुत्र बिरजिस कद्र ने किया था कानपुर में विद्रोह का नेतृत्व नाना साहब ने झांसी में रानी लक्ष्मीबाई ने तथा बिहार के आरा में स्थानीय जमींदार कुंवर सिंह ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया। इस प्रकार 1857 का जन विद्रोह का विस्तार होता चला गया।

प्रश्न 3.
1857 के विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजों ने क्या-क्या कार्यवाहियों की?
उत्तर:
1857 के विद्रोह के दमन के लिए अंग्रेजों ने निम्नलिखित उपाय किये –
(1) नये कानूनों को लागू करना मई-जून, 1857 में पारित किए गए कानूनों के जरिए पूरे उत्तर भारत में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया। फौजी अफसरों के अलावा आम अंग्रेजों को भी ऐसे हिन्दुस्तानियों पर मुकदमा चलाने और उनको दण्डित करने का अधिकार दे दिया गया, जिन पर विद्रोह में शामिल होने का शक था।

(2) दिल्ली पर नियंत्रण के लिए दोतरफा आक्रमण – नए विशेष कानूनों और ब्रिटेन से मंगाई गई सैनिक टुकड़ियों से लैस अंग्रेज सरकार ने विद्रोह को ‘कुचलने का काम शुरू कर दिया विद्रोहियों की तरह अंग्रेज भी दिल्ली के महत्व को जानते थे इसलिए उन्होंने दिल्ली पर दो तरफ से हमला किया। एक कलकत्ते की ओर से और दूसरा पंजाब की ओर से। दिल्ली पर नियंत्रण की मुहिम सितम्बर के आखिर में जाकर पूरी हुई। इसका एक कारण था कि पूरे उत्तर भारत के विद्रोही राजधानी को बचाने के लिए दिल्ली में एकत्र हो गए थे।

(3) गंगा के मैदान में विद्रोहियों का दमनगंगा के मैदान में भी अंग्रेजों को धीरे-धीरे बढ़त हासिल हुई, क्योंकि उन्हें गाँव-दर-गाँव को जीतना था। आम देहाती जनता और आसपास के लोग उनके खिलाफ थे जैसे ही अंग्रेजों ने अपनी उपद्रव विरोधी कार्यवाही शुरू की, वैसे ही उन्हें एहसास हो गया कि वे जिनसे जूझ रहे हैं, उनके पीछे बेहिसाब जनसमर्थन मौजूद है।

(4) विद्रोहियों की एकता को तोड़ने के प्रयास-विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजों ने अपनी सैनिक ताकत का भयानक पैमाने पर इस्तेमाल किया। साथ ही उत्तर प्रदेश के भू-स्वामियों और काश्तकारों के विरोध की धार कम करने के लिए अंग्रेजों ने उनकी एकता को तोड़ने के प्रयास भी किए। इसके लिए उन्होंने बड़े जमींदारों को यह आश्वासन दिया कि उनकी जागीरें लौटा दी जायेंगी। विद्रोह का रास्ता अपनाने वाले जागीरदारों की जागीरें जब्त युवा पुत्र बिरजिस कद्र ने किया था कानपुर में विद्रोह का नेतृत्व नाना साहब ने झांसी में रानी लक्ष्मीबाई ने तथा बिहार के आरा में स्थानीय जमींदार कुंवर सिंह ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया। इस प्रकार 1857 का जन विद्रोह का विस्तार होता चला गया।

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प्रश्न 3.
1857 के विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजों ने क्या-क्या कार्यवाहियों की?
उत्तर:
1857 के विद्रोह के दमन के लिए अंग्रेजों ने निम्नलिखित उपाय किये
(1) नये कानूनों को लागू करना मई-जून, 1857 में पारित किए गए कानूनों के जरिए पूरे उत्तर भारत में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया। फौजी अफसरों के अलावा आम अंग्रेजों को भी ऐसे हिन्दुस्तानियों पर मुकदमा चलाने और उनको दण्डित करने का अधिकार दे दिया गया, जिन पर विद्रोह में शामिल होने का शक था।

(2) दिल्ली पर नियंत्रण के लिए दोतरफा आक्रमण – नए विशेष कानूनों और ब्रिटेन से मंगाई गई सैनिक टुकड़ियों से लैस अंग्रेज सरकार ने विद्रोह को ‘कुचलने का काम शुरू कर दिया विद्रोहियों की तरह अंग्रेज भी दिल्ली के महत्व को जानते थे इसलिए उन्होंने दिल्ली पर दो तरफ से हमला किया। एक कलकत्ते की ओर से और दूसरा पंजाब की ओर से। दिल्ली पर नियंत्रण की मुहिम सितम्बर के आखिर में जाकर पूरी हुई। इसका एक कारण था कि पूरे उत्तर भारत के विद्रोही राजधानी को बचाने के लिए दिल्ली में एकत्र हो गए थे।

(3) गंगा के मैदान में विद्रोहियों का दमनगंगा के मैदान में भी अंग्रेजों को धीरे-धीरे बढ़त हासिल हुई, क्योंकि उन्हें गाँव-दर-गाँव को जीतना था। आम देहाती जनता और आसपास के लोग उनके खिलाफ थे जैसे ही अंग्रेजों ने अपनी उपद्रव विरोधी कार्यवाही शुरू की, वैसे ही उन्हें एहसास हो गया कि वे जिनसे जूझ रहे हैं, उनके पीछे बेहिसाब जनसमर्थन मौजूद है।

(4) विद्रोहियों की एकता को तोड़ने के प्रयास-विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजों ने अपनी सैनिक ताकत का भयानक पैमाने पर इस्तेमाल किया। साथ ही उत्तर प्रदेश के भू-स्वामियों और काश्तकारों के विरोध की धार कम करने के लिए अंग्रेजों ने उनकी एकता को तोड़ने के प्रयास भी किए। इसके लिए उन्होंने बड़े जमींदारों को यह आश्वासन दिया कि उनकी जागीरें लौटा दी जायेंगी। विद्रोह का रास्ता अपनाने वाले जागीरदारों की जागीरें जब्त कर ली गई। जो अंग्रेजों के वफादार थे, उन्हें पुरस्कृत किया गया। बहुत सारे जमींदार या तो अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते मारे गए या भागकर नेपाल चले गए, जहाँ और भूख स्पे दम तोड़ दिया।

(5) दहशत का प्रदर्शन आम जनता में दहशत फैलाने के लिए अंग्रेजों ने विद्रोहियों को खुलेआम फाँसी पर लटकाया या तोपों के मुँह से बाँधकर उड़ाया, जिससे लोग विद्रोह करने से डरें।

प्रश्न 4.
1857 ई. में फैली अफवाहों पर लोग क्यों विश्वास कर रहे थे? विस्तारपूर्वक बताइए।
उत्तर:
1857 ई. में फैली अफवाहों पर लोग निम्न कारणों से विश्वास कर रहे थे –
(1) ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार का सुधारात्मक कार्य यदि 1857 की अफवाहों को 1820 के दशक से अंग्रेजों द्वारा अपनायी जा रही नीतियों के सन्दर्भ में देखा जाए तो इनका अर्थ आसानी से समझा जा सकता है। उस समय गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक के नेतृत्व में ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार पश्चिमी शिक्षा, पश्चिमी विचार एवं पश्चिमी संस्थानों के माध्यम से भारतीय समाज में आवश्यक सुधार करने हेतु विशेष प्रकार की नीतियाँ लागू कर रही थी।

(2) सती प्रथा का निषेध-गवर्नर जनरल लार्ड विलियम वैटिक ने 1829 ई. में सती प्रथा को समाप्त करने के लिए एक कानून का निर्माण किया जिसमें सती प्रथा को अवैध ठहराया गया। इसके अतिरिक्त हिन्दू विधवा विवाह को वैधता प्रदान करने के लिए कानून बनाए गए थे।

(3) डलहौजी की हड़प नीति- लार्ड डलहौजी ने भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन को विस्तार प्रदान करने के लिए शासकीय कमजोरी एवं दत्तकता को अवैध घोषित कर देने के बहाने अवध, झाँसी व सतारा जैसी अनेक रियासतों को अपने नियन्त्रण में ले लिया था। जैसे ही कोई भारतीय रियासत अंग्रेजों के अधिकार में आती, वहाँ पर अंग्रेज अधिकारी अपने ढंग की शासन पद्धति, अपने कानून, भूमि विवाद निपटाने की पद्धति एवं भू-राजस्व वसूली की अपनी व्यवस्था लागू कर देते थे। उत्तर भारत के लोगों पर इन कार्यवाहियों का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा।

(4) ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के अंग्रेज अधिकारियों ने ईसाई धर्म का प्रसार करने हेतु ईसाई धर्म प्रचारकों को प्रोत्साहित किया। भारत के निर्धन वर्ग के लोग ईसाई धर्म को स्वीकार कर रहे थे क्योंकि उन्हें अंग्रेजों द्वारा अनेक सुविधाएँ प्राप्त हो रही थीं, इस प्रकार नवीन सुधारक नीतियों एवं ईसाई धर्म प्रचारको की गतिविधियों से इस सोच को बल मिल रहा था कि अंग्रेजों द्वारा भारतीयों की सभ्यता व संस्कृति को नष्ट किया जा रहा है, ऐसे अनिश्चित वातावरण में अफवाहें रातों रात फैलने लगती थीं।

प्रश्न 5.
“ये गिलास फल एक दिन हमारे ही मुँह में आकर गिरेगा।” डलहौजी की इस टिप्पणी को विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
अपनी हड़प नीति के लिए कुख्यात लॉर्ड डलहौजी ने 1851 में अवध की रियासत के विषय में कहा था कि ये गिलास फल एक दिन हमारे ही मुँह में आकर गिरेगा।” 1856 में अर्थात् इस टिप्पणी के पाँच वर्ष बाद अवध पर कुशासन का आरोप लगाकर ब्रिटिश राज्य में मिला लिया गया तथा अवध के नवाब को वहाँ से निर्वासित कर कलकत्ता भेज दिया गया। रियासतों पर अनैतिक रूप से कब्जे की शुरुआत 1798 ई. में आरम्भ हुई थी, जब निजाम को जबरदस्ती लॉर्ड वेलेजली ने सहायक सन्धि पर हस्ताक्षर करने को विवश कर दिया। इसके कुछ समय उपरान्त अर्थात् 1801 ई. में अवध पर सहायक सन्धि थोप दी गयी थी।

इस सहायक सन्धि में शर्त यह थी कि नवाब अपनी सेना समाप्त कर देगा, रियासत में अंग्रेज रेजीडेण्टों की नियुक्ति की जायेगी तथा दरबार में एक ब्रिटिश रेजीडेण्ट रखा जायेगा। इसके अतिरिक्त नवाव ब्रिटिश रेजीडेण्ट की सलाह पर अपने कार्य करेगा। विशेषकर अन्य राज्यों के साथ सम्बन्धों में रेजीडेण्ट की स्वीकृति लेनी अनिवार्य होगी। अपनी सैनिक शक्ति से वंचित हो जाने के उपरान्त नवाब अपनी रियासत में कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए अंग्रेजों पर निर्भर होता जा रहा था। नवाब का अब विद्रोही मुखियाओं तथा ताल्लुकदारों पर कोई विशेष नियन्त्रण नहीं रहा।

धीरे-धीरे अवध पर कब्जा करने में अंग्रेजों की रुचि बढ़ती जा रही थी। उन्हें लगता था कि वहाँ की जमीन नील तथा कपास की कृषि के लिये सर्वोत्तम है तथा इस क्षेत्र को एक बड़े बाजार के रूप में विकसित किया जा सकता है। 1850 के दशक के आरम्भ तक अंग्रेज भारत के अधिकांश भागों पर कब्जा कर चुके थे मराठा प्रदेश, दोआब, कर्नाटक, पंजाब, सिंध तथा बंगाल इत्यादि सभी अंग्रेजों के हाथ में आ चुके थे। इस समय मात्र अवध ही एक बड़ा प्रान्त था जहाँ ब्रिटिश शासन स्थापित नहीं हो सकता था। अतः अंग्रेजों ने असंगत आरोप लगाकर अवध को अपने कब्जे में ले लिया।

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प्रश्न 6.
“अफवाहों और भविष्यवाणियों ने 1857 के विद्रोह को प्रोत्साहित किया।” विवेचना कीजिये।
उत्तर:
1857 के विद्रोह को फैलाने में अफवाहों और भविष्यवाणियों का भी भरपूर योगदान रहा और इन अफवाहों ने लोगों को विद्रोह करने के लिए उत्प्रेरित किया। यथा-
(1) चर्बी वाले कारतूस मेरठ से दिल्ली आने | वाले विद्रोही सैनिकों ने मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर को बताया कि उन्हें जो कारतूस चलाने को दिए गए, उनमें गाय और सुअर की चर्बी का लेप लगा था। अगर वे इन कारतूसों को से लगाएंगे तो उनका धर्म नष्ट हो जाएगा। सिपाहियों का इशारा एनफील्ड राइफल की ओर f था। अंग्रेजों के लाख समझाने पर भी सिपाहियों की यह भ्रान्ति खत्म नहीं हुई और यह अफवाह जंगल की आग की तरह उत्तर भारत की समस्त छावनियों में फैल गई।

(2) अफवाह का स्त्रोत- राइफल इंस्ट्रक्शन डिपो के कमांडेण्ट कैप्टन राइट ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि, “दमदम स्थित शस्वागार में काम करने वाले ‘नीची जाति’ के एक खलासी ने जनवरी, 1857 के तीसरे हफ्ते में एक ब्राह्मण सिपाही से पानी पिलाने को कहा था। ब्राह्मण सिपाही ने यह कहकर पानी पिलाने से इनकार कर दिया कि ‘नीची जाति’ के छूने से लोटा अपवित्र हो जाएगा।” इस पर खलासी ने जवाब दिया कि, ” (वैसे भी) जल्दी ही तुम्हारी जाति भ्रष्ट होने वाली है, क्योंकि अब तुम्हें गाय और सुअर की चर्बी लगे कारतूस मिलेंगे, जिन्हें तुम्हें मुँह से खींचना पड़ेगा।” इस अफवाह ने सैनिकों को क्रोधित कर दिया।

(3) आटे में हड्डियों का चूरा-1857 की शुरुआत में यह अफवाह भी जोरों पर फैली कि अंग्रेज सरकार ने हिन्दुओं और मुसलमानों की जाति और धर्म को नष्ट करने के लिए एक भयानक साजिश रची है। इस मकसद को प्राप्त करने के लिए उन्होंने बाजार में मिलने वाले आटे में गाय और सुअर की हड्डियों को पिसवाकर मिलवा दिया है। चारों ओर शक व भय फैल गया कि अंग्रेज हिन्दुस्तानियों को ईसाई बनाना चाहते हैं। शहरों और छावनियों में सिपाहियों ने आटे को छूने से भी मना कर दिया। इस अफवाह ने भी लोगों को विद्रोह के लिए उत्प्रेरित किया।

(4) 100 वर्ष पूरे होने पर अंग्रेजी राज के समाप्त होने की भविष्यवाणी- किसी बड़ी कार्यवाही के आह्वान को इस भविष्यवाणी से और बल मिला कि प्लासी के युद्ध (23 जून, 1757) के सौ साल पूरे होते ही 23 जून, 1857 को अंग्रेजी राज खत्म हो जायेगा। इस भविष्यवाणी से विद्रोह को प्रेरणा मिली।

(5) चपातियाँ बाँटना-उत्तर भारत के विभिन्न भागों से गाँव-गाँव में चपातियाँ बैटने की खबरें आ रही थीं। बताते हैं कि रात में एक आदमी आकर गाँव के चौकीदार को एक चपाती देता था तथा पाँच और चपाती बनाकर अगले गाँवों में पहुंचाने का निर्देश दे जाता था। यह सिलसिला यूँ ही चलता जाता था। जनता इसे किसी आने वाली उथल-पुथल का संकेत मान रही थी।

प्रश्न 7.
1857 के विद्रोह के पूर्व फैलने वाली अफवाहें और भविष्यवाणियाँ जनता के भय, उनकी आशंकाओं और विश्वासों को व्यक्त कर रही थीं।” विवेचना कीजिये।
अथवा
“अफवाहें तभी फैलती हैं, जब वे प्रभावशाली साबित होती हैं, जब लोगों में बहुत ज्यादा भय और | सन्देह फैल जाए।” 1857 के विद्रोह के संदर्भ में यह कथन कहाँ तक सत्य था?
अथवा
1857 के विद्रोह के राजनीतिक, सामाजिक व धार्मिक कारणों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
1857 के विद्रोह के पूर्व फैलने वाली अफवाहें और भविष्यवाणियाँ लोगों के भय, आशंकाओं, उनके विश्वासों और प्रतिबद्धताओं को उजागर कर रही थीं। अफवाहें तभी फैलती हैं जब लोगों के मस्तिष्क में गहरे दबे डर और सन्देह की अनुगूँज सुनाई देती है। 1857 में फैली अफवाहों पर लोग निम्न कारणों से विश्वास कर रहे थे –

(1) पाश्चात्य शिक्षा का प्रसार यदि 1857 की अफवाहों को 1820 के दशक से अंग्रेजों द्वारा अपनाई जा रही नीतियों के सन्दर्भ में देखा जाए तो इनका अर्थ आसानी म से समझा जा सकता है। गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक के नेतृत्व में ब्रिटिश सरकार पश्चिमी शिक्षा, पश्चिमी विचार और पश्चिमी संस्थानों के द्वारा भारतीय समाज को सुधारने के लिए खास नीतियाँ लागू कर रही थी। भारतीय समाज के कुछ लोगों की सहायता से उन्होंने अंग्रेजी माध्यम के स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय स्थापित किए थे जिनमें पश्चिमी विज्ञान और उदार कलाओं (Liberal Arts) के बारे में पढ़ाया जाता था।

(2) सामाजिक सुधार विलियम बैंटिक ने 1829 न में सतीप्रथा को बन्द करने के लिए एक कानून बनाया, क जिसमें सतीप्रथा को अवैध घोषित करते हुए दण्डनीय , अपराध कहा गया। इसके अतिरिक्त हिन्दू विधवा विवाह को वैध ठहराते हुए उसे कानूनी मान्यता दे दी गई। अंग्रेजों द्वारा सामाजिक कार्यों में हस्तक्षेप करने से भारतीयों में
न असन्तोष उत्पन्न हुआ।

(3) डलहौजी की हड़प नीति-डलहौजी ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद को बढ़ावा देने के लिए शासकीय कमजोरी तथा दत्तकता को अवैध घोषित कर देने के बहानों के द्वार अवध, झाँसी, सतारा, नागपुर जैसी बहुत सी रियासतों क अपने कब्जे में ले लिया था। जैसे ही कोई रियासत अंग्रेजों के अधिकार में आती थी, वहाँ पर अंग्रेज अपने ढंग की शासन पद्धति, अपने कानून, भूमि विवाद निपटाने के अपने तरीके और भू-राजस्व वसूली की अपनी व्यवस्था लागू क देते थे।

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उत्तर भारत के लोगों पर इन कार्यवाहियों का गहरा असर पड़ा। जनता पर नई नीतियों व कार्यवाहियों का प्रभाव- इन कार्यवाहियों से लोगों को लगने लगा कि अब तक जिन चीजों की वे कद्र करते थे, जिनको पवित्र मानते थे चाहे वे राजे-रजवाड़े हों या सामाजिक, धार्मिक रीति- रिवाज हों या भूमि स्वामित्व, लगान अदायगी की प्रणाली हो, इन सबको नष्ट करके उन पर एक ऐसी व्यवस्था लादी जा रही थी जो ज्यादा हृदयहीन, परायी और दमनकारी थी।

(4) ईसाई धर्म का प्रचार- अंग्रेज अफसरों ने ईसाई धर्म को बढ़ावा देने के लिए पादरियों को प्रोत्साहित किया। इससे भी भारतीयों में असन्तोष व्याप्त था।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित क्रान्तिकारियों के विषय में संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए-
1. रानी लक्ष्मीबाई
2. नाना साहेब
3. बहादुरशाह द्वितीय।
उत्तर:
1. रानी लक्ष्मीबाई लक्ष्मीबाई 1857 ई. के स्वतन्त्रता संग्राम की अग्रणी महिला क्रान्तिकारी थीं। वह झाँसी की रानी थी। उनके पति को अंग्रेजों ने पुत्र गोद लेने की आज्ञा प्रदान नहीं की थी। लक्ष्मीबाई अपने पति की मृत्यु के उपरान्त झाँसी की शासिका बनीं। इन्होंने कई युद्धों में अंग्रेजों को परास्त किया। 1858 ई. में अंग्रेज सेनापति ह्यूरोज ने झाँसी पर आक्रमण किया। ताँत्या टोपे के साथ मिलकर इन्होंने बड़ी वीरता के साथ अपने किले की रक्षा की किन्तु वह पराजित हुई।

2. नाना साहेब नाना साहेब 1857 के विद्रोह के एक प्रमुख सेनापति थे। नाना साहेब एक वीर मराठा तथा पेशवा बाजीराव के दसक पुत्र थे। उन्होंने स्वयं को जून, 1857 मँ कानपुर में पेशवा घोषित कर दिया। किन्तु अंग्रेजों ने उन्हें पेशवा मानने से इन्कार कर दिया। इसके अतिरिक्त अंग्रेजों ने नाना साहेब की 80,000 पाउण्ड की पेंशन भी बन्द कर दी। इससे नाना साहेब अंग्रेजों से अत्यधिक क्रुद्ध हो गये। नाना साहेब ने प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में अंग्रेजों का वीरता के साथ मुकाबला किया। कानपुर में क्रान्तिकारियों का नेतृत्व भी नाना साहेब ने किया तथा कर्नल नील से जबरदस्त संघर्ष किया।

3. बहादुरशाह द्वितीय बहादुरशाह जफर द्वितीय 7 अन्तिम मुगल सम्राट् था अंग्रेज अधिकारियों ने कहा था कि बहादुरशाह जफर के उपरान्त उसके उत्तराधिकारियों को दिल्ली लाल किले में रहने नहीं दिया जाएगा। इसी कारण बहादुरशाह अंग्रेजों के विरुद्ध हो गए। विद्रोहियों ने जब बहादुरशाह से अपना प्रधान सेनापति बनने को कहा तो कुछ संकोच के साथ वह इस पर राजी हो गये। बहादुरशाह ने सैनिकों द्वारा आरम्भ किये गये इस विद्रोह को युद्ध का रूप प्रदान कर दिया। बहादुरशाह ने भारत की सभी रियासतों, जमींदारों तथा सरदारों को पत्र लिखकर एकजुट होने तथा संगठित होने का अनुरोध किया। किन्तु बहादुरशाह की यह योजना सफल नहीं हो सकी तथा उनको गिरफ्तार करके रंगून भेज दिया गया।

प्रश्न 9.
1857 के विद्रोह ने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रोत्साहित किया।” विवेचना कीजिये।
उत्तर:
1857 के विद्रोह द्वारा भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रोत्साहित करना 1857 के विद्रोह ने बीसवीं शताब्दी के भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रोत्साहित किया। इस विद्रोह के इर्द- गिर्द राष्ट्रवादी कल्पना का एक विस्तृत ताना-बाना बुन दिया
गया था।

(1) प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम 1857 के विद्रोह को प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की संज्ञा दी जाती है। इस व्यापक विद्रोह में देश के हर वर्ग के लोगों ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध मिलकर लड़ाई लड़ी थी। इसमें हिन्दुओं और मुसलमानों ने कन्धा से कन्धा मिलाकर अंग्रेजों का प्रतिरोध किया था। उनका प्रमुख उद्देश्य अंग्रेजी शासन को समाप्त कर उनके चंगुल से भारत को स्वतन्त्र कराना था।

(2) कला और साहित्य के माध्यम से राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार – अनेक कलाकारों एवं साहित्यकारों ने भी अपनी कलाकृतियों एवं रचनाओं द्वारा भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार किया। उन्होंने 1857 के विद्रोह के नेताओं को ऐसे नायकों के रूप में प्रस्तुत किया जो देश को रणस्थल की ओर ले जा रहे थे। उन्हें लोगों को दमनकारी ब्रिटिश शासन के विरुद्ध उत्तेजित करते हुए चित्रित किया जाता था। इन विद्रोही नायक-नायिकाओं की प्रशंसा में अनेक कविताएँ लिखी गई।

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर, नाना साहिब, कुंवर सिंह, बेगम हजरत महल आदि के पराक्रमपूर्ण कार्यों, साहस, त्याग और बलिदान ने भारतीयों को अत्यधिक प्रभावित किया और वे उनके लिए प्रेरणा के स्रोत बन गए। एक हाथ में घोड़े की रास और दूसरे हाथ में तलवार थामे अपनी मातृभूमि की स्वतन्त्रता के लिए लड़ाई लड़ने वाली रानी लक्ष्मीबाई की शूरवीरता का गौरवगान करते हुए कविताएँ लिखी गई।

रानी झांसी को एक ऐसे मर्दाना योद्धा के रूप में चित्रित किया जाता था जो शत्रु दल का पीछा करते हुए और ब्रिटिश सैनिकों का वध करते हुए आगे बढ़ रही थी। सुभद्राकुमारी चौहान द्वारा रचित ‘खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी’ नामक कविता सम्पूर्ण देश में लोकप्रिय थी। इस प्रकार भारतीय राष्ट्रवादी चित्र हमारी राष्ट्रवादी कल्पना को निर्धारित करने में सहायता दे रहे थे। इस प्रकार 1857 ई. के विद्रोह ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लोगों में राष्ट्रीय भावना का प्रसार किया। इसने बीसवीं शताब्दी के राष्ट्रीय आन्दोलन के लिए एक पृष्ठभूमि तैयार कर दी।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय

बहुचयनात्मक प्रश्न

1. खेती-बाड़ी के औजार के लिए गाँव वालों को किस पेड़ की लकड़ी की आवश्यकता थी?
(क) शीशम
(ख) अंगू
(ग) सागौन
(घ) बबूल
उत्तर:
(ख) अंगू

2. सूचना के अधिकार का आंदोलन किस सन् में प्रारंभ हुआ
(क) 1989
(ख) 1987
(ग) 1990
(घ) 1988
उत्तर:
(ग) 1990

3. चिपको आंदोलन की शुरुआत किस राज्य से हुई?
(क) उत्तराखण्ड
(ख) छत्तीसगढ़
(ग) झारखण्ड
(घ) मध्यप्रदेश
उत्तर:
(क) उत्तराखण्ड

4. गोलपीठ कविता किसके द्वारा लिखी गई है?
(क) फणीश्वर नाथ रेणु
(ख) नामदेव ढसाल
(ग) रवीन्द्रनाथ टैगोर
(घ) मैथिलीशरण गुप्त
उत्तर:
(ख) नामदेव ढसाल

5. बीकेयू किन प्रदेशों के किसानों का संगठन था?
(क) पंजाब और हरियाणा
(ख) पश्चिम उत्तरप्रदेश और पंजाब
(ग) हरियाणा और महाराष्ट्र
(घ) पश्चिम उत्तरप्रदेश और हरियाणा
उत्तर:
(घ) पश्चिम उत्तरप्रदेश और हरियाणा

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6. मार्क्सवादी-लेनिनवादी समूहों को किस नाम से जाना जाता है?
(क) माओवादी
(ख) नक्सलवादी
(ग) गाँधीवादी
(घं) आतंकवादी
उत्तर:
(ख) नक्सलवादी

7. दलित पैंथर्स का गठन किया गया
(क) 1970
(ख) 1972
(ग) 1973
(घ) 1977
उत्तर:
(ख) 1972

8. चिपको आंदोलन किससे संबंधित है?
(क) पर्यावरण.
(ख) मानवीय
(ग) राष्ट्रीय
(घ) प्रांतीय
उत्तर:
(क) पर्यावरण

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :

1. देश ने आजादी के बाद …………… का मॉडल अपनाया था।
उत्तर:
नियोजित विकास

2. नामदेव ढसाल ………………… के प्रसिद्ध कवि थे।
उत्तर:
मराठी

3. ……………. से संकेत दलित समुदाय की ओर किया गया है।
उत्तर:
अँधेरे की पदयात्रा

4. दलित पैंथर्स नामक संगठन का निर्माण ………………..में सन् ……………….. में हुआ।
उत्तर:
महाराष्ट्र, 1972

5. दलितों पर हो रहे अत्याचार से संबंधित कानून …………………. में बनाया गया।
उत्तर:
1989

6. ……………. पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के किसानों का संगठन था।
उत्तर:
भारतीय किसान यूनियन

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
चिपको आंदोलन का सम्बन्ध किस प्रदेश से है?
उत्तर:
उत्तराखण्ड।

प्रश्न 2.
भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् विकास का कौनसा प्रतिमान अपनाया?
उत्तर:
नियोजित विकास का प्रतिमान

प्रश्न 3.
नामदेव ढसाल कौन थे?
उत्तर:
नामदेव ढसाल मराठी के प्रसिद्ध कवि थे।

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प्रश्न 4.
प्रमुख कवि नामदेव ढसाल का सम्बन्ध किस राज्य से था?
उत्तर:
महाराष्ट्र राज्य से।

प्रश्न 5.
महेन्द्र सिंह टिकैत क्यों प्रसिद्ध हैं?
उत्तर:
महेन्द्र सिंह टिकैत भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष के रूप में प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 6.
दलित पैंथर्स नामक संगठन किसके द्वारा स्थापित किया गया?
उत्तर:
दलित पैंथर्स नामक संगठन का उदय 1972 में दलित युवाओं द्वारा स्थापित किया गया।

प्रश्न 7.
भारतीय किसान यूनियन का गठन किस प्रदेश में हुआ था?
उत्तर:
उत्तरप्रदेश में।

प्रश्न 8.
मछुआरों के राष्ट्रीय संगठन का क्या नाम है?
उत्तर:
नेशनल फिश वर्कर्स फोरम।

प्रश्न 9.
नामदेव ढसाल कौन थे? उनके दलित पैंथर्स समर्थक विचारों का उनकी एक मराठी कविता के आधार पर संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
नामदेव ढसाल मराठी के प्रसिद्ध कवि थे। उन्होंने अनेक रचनाएँ लिखीं जिनमें से कुछ बहुत प्रसिद्ध अंधेरे में पदयात्रा और सूरजमुखी आशीषों वाला फकीर है।

प्रश्न 10.
पंचायती राज की स्थापना कौनसे संवैधानिक संशोधन द्वारा लागू हुई?
उत्तर:
73वें संवैधानिक संशोधन द्वारा।

प्रश्न 11.
‘सूरजमुखी आशीषों वाला फकीर’ किनको इंगित करता है?
उत्तर:
डॉ. भीमराव अम्बेडकर।

प्रश्न 12.
बामसेफ का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी एम्पलाईज फेडरेशन।

प्रश्न 13.
हरित क्रांति से किस राज्य के किसानों को फायदा मिला?
उत्तर:
हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तरप्रदेश|

प्रश्न 14.
सूचना के अधिकार के आन्दोलन की शुरुआत कब हुई?
उत्तर:
1990 में।

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प्रश्न 15.
संसद ने सूचना के अधिकार विधेयक को कब पास किया?
उत्तर:
2002 में।

प्रश्न 16.
पिछड़े वर्ग का पिता किसे कहा जाता है?
उत्तर:
डॉ. भीमराव अम्बेडकर को।

प्रश्न 17.
राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना 1992 में की गई।

प्रश्न 18.
सुन्दरलाल बहुगुणा, मेधा पाटकर तथा बाबा आमटे किस आन्दोलन से सम्बन्ध रखते हैं?
उत्तर:
पर्यावरण संरक्षण आन्दोलन।

प्रश्न 19.
चिपको आन्दोलन की शुरुआत कब हुई?
उत्तर:
1973 में।

प्रश्न 20.
मछुआरों की संख्या के लिहाज से भारत का विश्व में कौनसा स्थान है?
उत्तर:
दूसरा।

प्रश्न 21.
जन आन्दोलन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
ऐसे आन्दोलन जो लोगों की किसी समस्या या जनहित को लेकर चलाये जाते हैं उन्हें जन आन्दोलन कहते हैं।

प्रश्न 22.
चिपको आन्दोलन का उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
चिपको आन्दोलन का उद्देश्य वनों की रक्षा करना था।

प्रश्न 23.
चिपको आंदोलन का नूतन पहलू क्या था?
उत्तर:
चिपको आंदोलन का नूतन पहलू जंगल के वृक्षों की अंधाधुंध कटाई को रोकना था।

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प्रश्न 24.
महाराष्ट्र में दलितों के हितों की रक्षा के लिए कौनसा संगठन बनाया गया और कब बनाया गया?
उत्तर:
महाराष्ट्र में 1972 में दलित युवाओं का संगठन दलित पैन्थर्स बनाया गया।

प्रश्न 25.
आन्ध्रप्रदेश के किस जिले में सबसे पहले ताड़ी (शराब) विरोधी आन्दोलन आरम्भ हुआ?
उत्तर:
ताड़ी (शराब) विरोधी आन्दोलन का आरम्भ नेल्लौर जिले में हुआ

प्रश्न 26.
आंध्रप्रदेश के नैल्लोर जिले के ताड़ी आंदोलन में महिलाओं ने क्या किया था?
उत्तर:
नैल्लोर में लगभग 5000 महिलाओं ने ताड़ी की बिक्री बंद करने संबंधी एक प्रस्ताव पास कर जिला कलेक्टर को भेजा।

प्रश्न 27.
नेशनल फिश वर्कर्स फोरम ने सरकार से कब लड़ाई लड़ी?
उत्तर:
नेशनल फिश वर्कर्स फोरम ने 1977 में केन्द्र सरकार के साथ अपनी पहली कानूनी लड़ाई लड़ी। प्रश्न 28. किन्हीं दो किसान आन्दोलनों के नाम लिखें।
उत्तर:
किसान आन्दोलनों के नाम हैं।  तिभागा आन्दोलन, तेलंगाना आन्दोलन।

प्रश्न 29.
नेशनल फिश वर्कर्स फोरम ने केन्द्र सरकार से पहली कानूनी लड़ाई कब लड़ी?
उत्तर:
1997 में।

प्रश्न 30.
भारत में हुए किन्हीं दो पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित आन्दोलनों के नाम लिखिए।
उत्तर:
पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित आन्दोलन हैं।  चिपको आन्दोलन, नर्मदा बचाओ आन्दोलन।

प्रश्न 31.
ए. एन. एफ. (ANF) का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
ए. एन. एफ. (ANF) का पूरा नाम है। नेशनल फिश वर्कर्स फोरम (National Fish Workers Forum)।

प्रश्न 32.
बी. के. यू. (BKU) का पूरा नाम बताइये।
उत्तर:
बी. के. यू. (BKU) का पूरा नाम है। भारतीय किसान यूनियन।

प्रश्न 33.
औपनिवेशिक दौर के प्रमुख आंदोलन कौन से थे?
उत्तर:
औपनिवेशिक दौर के प्रमुख आंदोलन किसान आंदोलन, मजदूर संगठनों के आंदोलन, आदिवासी मजदूर संगठनों के आंदोलन तथा स्वाधीनता आंदोलन थे।

प्रश्न 34.
ताड़ी – विरोधी आंदोलन का नारा क्या था?
उत्तर:
ताड़ी की बिक्री बंद करो।

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प्रश्न 35.
संविधान के किन संशोधन के अंतर्गत महिलाओं को स्थानीय राजनीतिक निकायों में आरक्षण दिया गया?
उत्तर:
73वें और 74वें।

प्रश्न 36.
सूचना का अधिकार के आंदोलन की शुरुआत कब हुई और इसका नेतृत्व किसने किया?
उत्तर:
सूचना का अधिकार के आंदोलन की शुरुआत 1990 में हुई और इसका नेतृत्व मजदूर किसान शक्ति संगठन ने किया।

प्रश्न 37.
सूचना का अधिकार को राष्ट्रपति की मंजूरी कब हासिल हुई?
उत्तर:
जून, 2005

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
चिपको आन्दोलन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
चिपको आन्दोलन की शुरुआत 1973 में उत्तराखण्ड राज्य में हुई । इस आन्दोलन के द्वारा स्त्री-पुरुषों ने पेड़ों की व्यावसायिक कटाई के विरोध हेतु पेड़ों को अपनी बाँहों में घेर लिया ताकि उन्हें काटने से बचाया जा सके। यह विरोध आगामी दिनों में भारत के पर्यावरण आंदोलन के रूप में बदल गया तथा ‘चिपको आंदोलन’ के रूप में विश्वप्रसिद्ध हुआ।

प्रश्न 2.
भारत में नारी आन्दोलन की मुख्य विशेषता बताइये।
उत्तर:
भारत में नारी आन्दोलन की मुख्य विशेषता यह है कि यह एक गैर- राजनीतिक आन्दोलन है। इसका प्रमुख उद्देश्य महिलाओं का उत्थान करना है।

प्रश्न 3.
महिला सशक्तिकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
महिला सशक्तिकरण से तात्पर्य महिलाओं की समाज में दोयम दर्जे की भूमिका को समाप्त करना तथा समाज की मुख्यधारा के साथ जोड़ते हुए सभी क्षेत्रों में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने से है।

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प्रश्न 4.
सूचना के अधिकार का आंदोलन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सूचना के अधिकार के आंदोलन का प्रारंभ 1990 में हुआ। राजस्थान में कार्य कर रहे ‘मजदूर किसान शक्ति संगठन’ ने भीम तहसील में सरकार के सामने यह माँग रखी कि अकाल राहत कार्य तथा मजदूरों को दिए जाने वाले वेतन के रिकार्ड का सार्वजनिक खुलासा किया जाये । यही माँग आगे चलकर सूचना के अधिकार आन्दोलन में बदल गई।

प्रश्न 5.
नर्मदा बचाओ आन्दोलन के प्रमुख नेता का नाम बताइए। उन्होंने इस आन्दोलन को कैसे आगे बढ़ाया?
उत्तर:
नर्मदा बचाओ आन्दोलन की प्रमुख नेता मेधा पाटकर हैं। 1980 के दशक में इस आन्दोलन की तरफ लोगों का ध्यान उस समय आकर्षित हुआ जब विस्थापित लोग सुसंगठित हुए और इस आन्दोलन के जाने-माने कार्यकर्ता बाबा आमटे, सुन्दरलाल बहुगुणा आदि इसमें शामिल हुए।

प्रश्न 6.
नर्मदा बचाओ आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं?
अथवा
नर्मदा बचाओ आन्दोलन पर संक्षिप्त नोट लिखिए ।
उत्तर:
नर्मदा बचाओ आन्दोलन बाँध परियोजनाओं के विरुद्ध चलाया गया आन्दोलन था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य बांध द्वारा विस्थापित लोगों के उचित पुनर्वास की व्यवस्था करना था। राज्य अधिकारियों द्वारा पुनर्वास की योजना को उचित ढंग से लागू नहीं किया जा रहा था। इसलिए मानवाधिकारों से जुड़े हुए कार्यकर्ता इस आंदोलन के समर्थक बन गये।

प्रश्न 7.
तेलंगाना आन्दोलन क्या था?
उत्तर:
तेलंगाना आन्दोलन हैदराबाद राज्य में 1946 में जागीरदारों द्वारा की जा रही जबरन एवं अत्यधिक वसूली के विरोध में चलाया गया क्रान्तिकारी आन्दोलन था । क्रान्तिकारी किसानों ने पाँच हजार गुरिल्ला सैनिक तैयार किए और जमींदारों के विरुद्ध संघर्ष आरम्भ किया। भारत सरकार द्वारा हस्तक्षेप करने पर यह आन्दोलन समाप्त हुआ।

प्रश्न 8.
चिपको आंदोलन की मुख्य माँगें क्या थीं?
उत्तर:
चिपको आंदोलन की मुख्य माँगें निम्न थीं।

  1. जंगल की कटाई का कोई भी ठेका बाहरी व्यक्ति को नहीं दिया जाना चाहिए।
  2. स्थानीय लोगों का जल, जंगल, जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर कारगर नियंत्रण होना चाहिए।
  3. सरकार लघु उद्योगों के लिए कम कीमत की सामग्री उपलब्ध कराए और इस क्षेत्र के पारिस्थितिकी संतुलन को नुकसान पहुँचाए बिना यहाँ का विकास सुनिश्चित करे।
  4. आंदोलन ने भूमिहीन वन कर्मचारियों का आर्थिक मुद्दा भी उठाया और न्यूनतम मजदूरी की गारंटी की माँग की।

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प्रश्न 9.
ताड़ी विरोधी आन्दोलन क्या था?
उत्तर:
वर्ष 1992 के सितम्बर और अक्टूबर में आंध्रप्रदेश के गांवों में महिलाओं ने शराब के विरुद्ध लड़ाई छेड़ रखी थी। यह लड़ाई शराब माफिया और सरकार दोनों के खिलाफ थी। इस आंदोलन ने वृहद् रूप धारण कर लिया तो इसे राज्य में ताड़ी – विरोधी आंदोलन के रूप में जाना गया।

प्रश्न 10.
चिपको आंदोलन में महिलाओं ने सक्रिय भागीदारी की। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
चिपको आंदोलन में महिलाओं ने सक्रिय भागीदारी की। इस आंदोलन में महिलाओं ने शराबखोरी की लत के खिलाफ भी लगातार आवाज उठायी।

प्रश्न 11.
सरदार सरोवर परियोजना को कब और कहाँ प्रारंभ किया गया था?
उत्तर:
1980 के दशक के प्रारंभ में सरदार सरोवर परियोजना को मध्यप्रदेश में नर्मदा घाटी में प्रारंभ किया गया।

प्रश्न 12.
सरदार सरोवर परियोजना के क्या लाभ बताये गये?
उत्तर:
सरदार सरोवर परियोजना के अन्तर्गत एक बहुउद्देश्यीय बांध बनाने का प्रस्ताव है। इसके निर्माण से तीन राज्यों में पीने का पानी, सिंचाई तथा बिजली के उत्पादनं की सुविधा उपलब्ध करायी जा सकेगी। कृषि की उपज में गुणात्मक बढ़ोतरी होगी तथा इससे बाढ़ और सूखे की आपदाओं पर अंकुश लगाया जा सकेगा।

प्रश्न 13.
महिला सशक्तिकरण के लिए कोई दो सुझाव दीजिए।
उत्तर:

  1. महिलाओं के लिए उचित शिक्षा व्यवस्था की जाए ताकि उनका मानसिक विकास हो सके। इससे उनका दृष्टिकोण व्यापक होगा और वे अपने अधिकारों के प्रति सजग होंग ।
  2. महिलाएँ भी पुरुषों के समान क्षमता और सूझबूझ रखती हैं। महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए अवसर प्रदान किये जाने चाहिए।

प्रश्न 14.
सत्तर और अस्सी के दशक में समाज के कई तबकों का राजनीतिक दलों से मोहभंग होने का क्या कारण था?
उत्तर:
सत्तर और अस्सी के दशक में समाज के कई तबकों का राजनीतिक दलों से मोहभंग हुआ क्योंकि जनता पार्टी के रूप में गैर-कांग्रेसवाद का प्रयोग कुछ खास नहीं चल पाया और इसकी असफलता से राजनीतिक अस्थिरता का माहौल भी कायम हुआ था और इसका एक कारण सरकार की आर्थिक नीतियाँ भी रहीं।

प्रश्न 15.
नियोजित विकास के मॉडल को अपनाने के पीछे दो लक्ष्य क्या थे?
उत्तर:
नियोजित विकास का मॉडल अपनाने के पीछे दो लक्ष्य निम्न थे।

  1. आर्थिक संवृद्धि
  2. आय का समतापूर्ण बँटवारा।

प्रश्न 16.
जन आन्दोलनों से क्या अभिप्राय है?
अथवा
जन आन्दोलनों की प्रकृति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जन आन्दोलन- जन आन्दोलन वे आन्दोलन होते हैं, जो प्राय: समाज के संदर्भ या श्रेणी के क्षेत्रीय अथवा स्थानीय हितों, माँगों और समस्याओं से प्रेरित होकर प्रायः लोकतान्त्रिक तरीके से चलाए जाते हैं। चिपको आन्दोलन, दलित पैंथर्स आन्दोलन तथा ताड़ी विरोधी आन्दोलन इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

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प्रश्न 17.
दलित पैंथर्स क्या था? इसकी किन्हीं दो माँगों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
दलित पैंथर्स – दलित हितों की दावेदारी के क्रम में महाराष्ट्र में सन् 1972 में दलित युवाओं का एक ‘संगठन ‘दलित पैंथर्स’ बना। दलित पैंथर्स की माँगें:

  1. जाति आधारित असमानता व भौतिक साधनों के मामले में दलितों के साथ हो रहे अन्याय समाप्त हों।
  2. आरक्षण के कानून और सामाजिक न्याय की नीतियों का कारगर ढंग से क्रियान्वयन हो।

प्रश्न 18.
दलित पैंथर्स की किन्हीं दो गतिविधियों पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:

  1. दलित पैंथर्स ने दलित अधिकारों की दावेदारी करते हुए जन कार्यवाही का रास्ता अपनाया।
  2. महाराष्ट्र के विभिन्न इलाकों में दलितों पर बढ़ रहे अत्याचारों से लड़ना दलित पैंथर्स की एक अन्य प्रमुख गतिविधि थी। इसके परिणामस्वरूप सरकार ने 1989 में दलित अत्याचार करने वाले के लिए कठोर दंड के प्रावधान वाला एक व्यापक कानून बनाया।

प्रश्न 19.
‘दल आधारित आंदोलनों’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
दल आधारित आन्दोलन:
मुम्बई, कोलकाता तथा कानपुर जैसे औद्योगिक शहरों में सभी बड़े दलों ने मजदूरों को लामबंद करने के लिए अपने-अपने मजदूर संगठन बनाए। आंध्रप्रदेश के तेलंगाना क्षेत्र के किसान कंम्युनिस्ट पार्टियों के नेतृत्व में लामबन्द हुए। दलों के नेतृत्व में गठित इन आंदोलनों को ‘दल आधारित आंदोलन’ कहा गया।

प्रश्न 20.
नामदेव ढसाल कौन थे? उनके दलित पैंथर्स समर्थक ( पक्षधर ) विचारों की उनकी मराठी कविता के आधार पर संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
नामदेव ढसाल: नामदेव ढसाल मराठी भाषा के प्रसिद्ध कवि थे। उनकी मराठी कविता के आधार पर कहा जा सकता है कि।

  1. वे दलितों के प्रति सच्ची हमदर्दी रखते थे।
  2. वे दलितों को एक गरिमापूर्ण स्थान दिलाने के लिए जुझारू संघर्ष की बात करते थे।
  3. वे डॉ. अम्बेडकर को प्रेरणा पुरुष मानते थे।

प्रश्न 21.
जन आंदोलनों ने किस प्रकार लोकतंत्र को अभिव्यक्ति दी?
उत्तर:
जन आंदोलनों का इतिहास हमें लोकतांत्रिक राजनीति को अच्छी तरह से समझने में सहायता करता है। प्रथमतः, इन आंदोलनों का उद्देश्य दलीय राजनीति की बुराइयों को दूर करना था। दूसरे, इन आंदोलनों ने समाज के उन नये वर्गों की सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं को अभिव्यक्ति दी, जो अपनी समस्याओं को चुनावी राजनीति के माध्यम से हल नहीं कर पा रहे थे।

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प्रश्न 22.
स्वतन्त्रता के बाद महिलाओं की स्थिति में क्या परिवर्तन आया है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता के बाद महिलाओं की स्थिति: स्वतन्त्रता के बाद महिलाओं को पुरुषों के समान समानता का दर्जा प्राप्त हुआ है। महिलाएँ किसी भी प्रकार की शिक्षा या प्रशिक्षण को चुनने के लिए स्वतन्त्र हैं। वे सार्वजनिक सेवाओं के हर क्षेत्र में अपनी भूमिका निभा रही हैं। परन्तु ग्रामीण समाज में अभी भी महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है जिसे दूर किये जाने की आवश्यकता है। यद्यपि कानूनी तौर पर महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्रदान किये गये हैं परन्तु आदि काल से चली आ रही पुरुष प्रधान व्यवस्था में व्यावहारिक रूप में महिलाओं के साथ अभी भी भेदभाव किया जाता है।

प्रश्न 23.
” ताड़ी विरोधी आन्दोलन महिला आन्दोलन का हिस्सा था ।” कारण बताइये।
उत्तर:
वर्ष 1992 के सितम्बर और अक्टूबर में आंध्रप्रदेश के गांवों में महिलाओं ने ताड़ी अर्थात् शराब के विरुद्ध लड़ाई छेड़ रखी थी। इस आंदोलन ने जब वृहद रूप धारण कर लिया तो यह महिला आंदोलन का हिस्सा बन गया क्योंकि।

  1. यह ताड़ी विरोध के साथ-साथ घरेलू हिंसा, दहेज-प्रथा कार्यस्थल एवं सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ आंदोलन बन गया जो कि महिला आंदोलन के मुख्य मुद्दे थे।
  2. इस आंदोलन ने महिलाओं के मुद्दों के प्रति समाज में व्यापक जागरूकता उत्पन्न की।
  3. इसमें महिलाओं को विधायिका में दिये जाने वाले आरक्षण के मामले उठे।
    इस प्रकार ताड़ी विरोधी आंदोलन महिला आंदोलन का हिस्सा था।

प्रश्न 24.
आजादी के शुरुआती 20 सालों में अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय संवृद्धि होने के बावजूद गरीबी और असमानता बरकरार रही क्यों?
उत्तर:
आजादी के शुरुआती 20 सालों में अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय वृद्धि होने के बावजूद गरीबी और असमानता बरकरार रही क्योंकि आर्थिक संवृद्धि के लाभ समाज के हर तबके को समान मात्रा में नहीं मिले। जाति और लिंग पर आधारित सामाजिक असमानताओं ने गरीबी के मसले को और ज्यादा जटिल तथा धारदार बना दिया। शहरी- औद्योगिक क्षेत्र तथा ग्रामीण कृषि क्षेत्र के बीच न पाटी जा सकने वाली दूरी पैदा हुई। समाज के विभिन्न समूहों के बीच अपने साथ हो रहे अन्याय और वंचना का भाव प्रबल हुआ।

प्रश्न 25.
जन आंदोलन का क्या अर्थ है? दल समर्थित (दलीय) और स्वतंत्र (निर्दलीय) आंदोलन का स्वरूप स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
जन-आन्दोलन: प्रजातांत्रिक मर्यादाओं तथा संवैधानिकियमों के आधार पर तथा सामाजिक शिष्टाचार से संबंधित नियमों के पालन सहित सरकारी नीतियों, कानून व प्रशासन सहित किसी मुद्दे पर व्यक्तियों के समूह या समूहों के द्वारा असहमति प्रकट किया जाना जन-आंदोलन कहलाता है।

  1. दल आधारित आंदोलन: जब कभी राजनैतिक दल या राजनीतिक दलों के समर्थन प्राप्त समूहों द्वारा आंदोलन किये जाते हैं तो इन्हें दलीय आंदोलन कहा जाता है। जैसे किसान सभा आंदोलन एक दलीय आंदोलन था।
  2. स्वतंत्र जन आंदोलन: जब आंदोलन असंगठित लोगों के समूह द्वारा संचालित किये जाते हैं, तो वे निर्दलीय जन आंदोलन कहलाते हैं। जैसे—चिपको आंदोलन, दलित पैंथर्स आंदोलन|

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प्रश्न 26.
महिला सशक्तिकरण के साधन के रूप में संसद और राज्य विधानसभाओं में सीटों के आरक्षण की व्यवस्था का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
महिला सशक्तिकरण के लिए यह आवश्यक है कि महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को बढ़ाया जाए। जब तक स्थानीय संस्थाओं, विधानमण्डलों और संसद में महिलाओं के लिए स्थान सुरक्षित नहीं किये जाते तब तक महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं हो सकता। 73वें – 74वें संवैधानिक संशोधन द्वारा ग्रामीण एवं शहरी स्थानीय संस्थाओं में तो महिलाओं के लिए कुल निर्वाचित पदों का एक-तिहाई भाग आरक्षित कर दिया गया है। इससे महिला सशक्तिकरण आन्दोलन को बल मिला। लेकिन संसद तथा राज्य विधान मण्डलों में अभी तक महिलाओं को आरक्षण प्रदान नहीं किया जा सका है।

प्रश्न 27.
क्या आप पंचायत स्तर पर महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटों पर आरक्षण के पक्ष में हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
पंचायत स्तर पर महिलाओं के लिए आरक्षण की यह व्यवस्था सही है; क्योंकि

  1. यह संस्था तभी सफलतापूर्वक कार्य कर सकती है जब इसके संगठन में पुरुष और स्त्रियों दोनों को स्थान मिले।
  2. यदि स्त्रियों को पंचायतों में आरक्षण दिया जाता है तो पंचायत और अधिक लोकतान्त्रिक संस्था बनेगी तथा लोगों का उस पर विश्वास बना रहेगा। क्योंकि स्त्रियाँ शारीरिक रूप से निर्बल होती हैं, इस कारण भी उनको अपनी सुरक्षा के लिए पंचायतों में आरक्षण दिया जाना चाहिए।
  3. ग्रामीण स्तर पर महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बहुत कम है, यदि पंचायतों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित की जाती हैं, तो इससे राजनीति में महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ेगी तथा उन्हें राजनीतिक शिक्षा भी मिलेगी।

प्रश्न 28.
आरक्षण व्यवस्था के पक्ष में कोई चार तर्क दीजिए।
उत्तर:
आरक्षण व्यवस्था के पक्ष में तर्क आरक्षण व्यवस्था के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं।

  1. सामाजिक सम्मान में वृद्धि: आरक्षण की नीति के फलस्वरूप कमजोर वर्ग के लोग सार्वजनिक सेवा के किसी भी उच्च पद को प्राप्त करने में सफल हो सकेंगे, जिससे उनके सामाजिक सम्मान में वृद्धि होगी।
  2. राजनीतिक भागीदारी में वृद्धि: आरक्षण की नीति के कारण समाज के उच्च वर्गों के साथ-साथ निम्न वर्गों को भी शासन प्रणाली और राजनीतिक व्यवस्था में अपनी भागीदारी निभाने का अवसर मिलता है।
  3. राजनीतिक चेतना में वृद्धि: कमजोर वर्गों के शिक्षित लोग अब अपने राजनीतिक अधिकारों के प्रति पहले से अधिक जागरूक हैं।
  4. आर्थिक उन्नति में सहायक: आरक्षण की नीति से समाज के गरीब वर्गों के लिए वर्षों से रुके हुए व्यवसाय के अवसर खुलेंगे, जिससे उनकी आर्थिक उन्नति होगी।

प्रश्न 29.
आरक्षण नीति के विरोध में कोई चार तर्क दीजिए।
उत्तर:
आरक्षण नीति के विरोध में तर्क- आरक्षण की नीति के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं।

  1. समानता के सिद्धान्त के विरुद्ध: आरक्षण की व्यवस्था समानता के मूल अधिकार के विरुद्ध है।
  2. जातिगत भेदभाव को बढ़ावा: इस व्यवस्था से जातिवाद को बहुत अधिक बढ़ावा मिला है।
  3. आरक्षण का लाभ सभी को समान रूप से नहीं: आरक्षण का लाभ अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों तथा पिछड़े वर्गों के सभी लोगों को नहीं मिल पाया है। इससे लाभ इन जातियों के एक छोटे से वर्ग ने उठाया है।
  4. निर्भरता को बढ़ावा: आरक्षण के कारण अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों तथा पिछड़े वर्गों की आत्म- निर्भरता में कमी हुई है।

प्रश्न 30.
किन्हीं तीन किसान आन्दोलनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
किसान आन्दोलन: तीन प्रमुख किसान आन्दोलन निम्नलिखित हैं।

  1. तिभागा आन्दोलन: तिभागा आन्दोलन 1946-47 में बंगाल में प्रारम्भ हुआ। यह आन्दोलन मुख्यतः जोतदारों के विरुद्ध मझोले किसान एवं बंटाईदारों का संयुक्त प्रयास था। इस आन्दोलन का मुख्य कारण भीषण अकाल था।
  2. तेलंगाना किसान आन्दोलन: तेलंगाना आन्दोलन हैदराबाद राज्य में 1946 में जागीरदारों द्वारा की जा रही जबरन एवं अत्यधिक वसूली के विरोध में चलाया गया क्रान्तिकारी किसान आन्दोलन था।
  3. आधुनिक आन्दोलन: 1980 के दशक में महाराष्ट्र, गुजरात तथा पंजाब के किसानों ने कपास के दामों को कम किए जाने के विरोध में आन्दोलन किया। 1987 में किसानों के द्वारा गुजरात विधानसभा का घेराव किये जाने के कारण पुलिस ने किसानों पर तरह-तरह के अत्याचार किए।

प्रश्न 31.
स्वयंसेवी संगठन अथवा स्वयंसेवी क्षेत्र के संगठन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
राजनीतिक धरातल पर सक्रिय कई समूहों का विश्वास लोकतांत्रिक संस्थाओं और चुनावी राजनीति से उठ गया। ये समूह दलगत राजनीति से अलग हुए और अपने विरोध के स्वर देने के लिए इन्होंने जनता को लामबंद करना शुरू किया। इस काम में विभिन्न तबकों के राजनीतिक कार्यकर्ता आगे आए और दलित तथा आदिवासी जैसे वंचितों को लामबंद करना शुरू किया। मध्यवर्ग तथा युवा कार्यकर्ताओं ने गाँव के गरीब लोगों के बीच रचनात्मक कार्यक्रम तथा सेवा संगठन चलाए। इन संगठनों के सामाजिक कार्यों की प्रकृति स्वयंसेवी थी इसलिए इन संगठनों को स्वयंसेवी संगठन या स्वयंसेवी क्षेत्र का संगठन कहा गया।

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प्रश्न 32.
नर्मदा बचाओ आंदोलन के पक्ष और विपक्ष में दो-दो तर्क दीजिये।
उत्तर:
नर्मदा बचाओ आंदोलन के पक्ष में तर्क।

  1. बाँध के निर्माण से संबंधित राज्यों के 245 गाँव डूबने की आशंका थी। इससे ढाई लाख लोग निर्वासित हो सकते थे।
  2. इस प्रकार की परियोजनाओं का लोगों के स्वास्थ्य, आजीविका, संस्कृति और पर्यावरण पर कुप्रभाव पड़ता नर्मदा बचाओ आंदोलन के विपक्ष में तर्क है।
  3. नर्मदा पर बांध के निर्माण से गुजरात के एक बहुत बड़े हिस्से सहित तीन पड़ोसी राज्यों में पीने का पानी, सिंचाई, विद्युत उत्पादन की सुविधा उपलब्ध कराई जा सकेगी और कृषि उपज में वृद्धि होगी।
  4. बाँध निर्माण से बाढ़ व सूखे की आपदाओं पर रोक लगाई जा सकेगी।

प्रश्न 33.
स्वयंसेवी संगठनों को स्वतंत्र राजनीतिक संगठन क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
स्वयंसेवी संगठनों ने स्वयं को दलगत राजनीति से दूर रखा। स्थानीय अथवा क्षेत्रीय स्तर पर ये संगठन न तो चुनाव लड़े और न ही इन्होंने किसी एक राजनीतिक दल को अपना समर्थन दिया। हालांकि ये संगठन राजनीति में विश्वास करते थे और उसमें भागीदारी भी करना चाहते थे लेकिन इन्होंने राजनीतिक भागीदारी के लिए राजनीतिक दलों को नहीं चुना। इसी कारण इन संगठनों को स्वतंत्र राजनीतिक संगठन कहा जाता है।

प्रश्न 34.
अन्य पिछड़ा वर्ग का ‘ सम्पन्न तबका’ (Creamy Layer) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पिछड़ा वर्ग का सम्पन्न तबका (Creamy Layer) सम्पन्न तबका पिछड़े वर्गों में वह वर्ग है जो सामाजिक व शैक्षणिक दृष्टि से सम्पन्न है और जो राजनीतिक कारणों से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का लाभ उठा रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में कहा है कि यह वर्ग यदि सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न है तो उसे पिछड़ा वर्ग से अलग किया जाए; क्योंकि इसे पिछड़ा वर्ग नहीं माना जा सकता।

प्रश्न 35.
डॉ. भीमराव अम्बेडकर पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
डॉ. भीमराव अम्बेडकर: दलितों के मसीहा डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जन्म सन् 1891 में एक महर परिवार में हुआ। इन्होंने इंग्लैण्ड एवं अमेरिका से वकालत की शिक्षा ग्रहण की। 1923 में इन्होंने वकालत का पेशा अपनाया। सन् 1926 से 1934 तक ये बम्बई विधान परिषद् के सदस्य रहे। इन्होंने गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया। 1942 में यह वायसराय की कार्यकारिणी परिषद् के सदस्य नियुक्त किए गए। इन्हें भारत के संविधान की प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया। इन्हें स्वतन्त्र भारत का विधि मंत्री भी बनाया गया। इन्होंने हिंदू कोड बिल पास करवाया एवं संविधान में अनुसूचित जातियों को आरक्षण प्रदान करवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। सन् 1956 में इनका निधन हो गया।

प्रश्न 36.
भारत में लोकप्रिय जन आंदोलन से सीखे सबकों (पाठों ) का मूल्यांकन कीजिये।
उत्तर:
जन आंदोलन के सबक – जन आंदोलनों के द्वारा पढ़ाये जाने वाले प्रमुख सबक निम्नलिखित हैं।

  1. जन आंदोलन के द्वारा लोगों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बेहतर ढंग से समझने में सहायता मिली है।
  2. इन आंदोलनों का उद्देश्य लोकतान्त्रिक दलीय राजनीति की खामियों को दूर करना था।
  3. इन आंदोलनों ने समाज के उन नये वर्गों की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को अभिव्यक्ति दी है जो अपनी समस्याओं को चुनावी राजनीति के माध्यम से हल नहीं कर पा रहे थे।
  4. समाज के गहरे तनावों और जनता के क्षोभ को इन आंदोलनों ने एक सार्थक दिशा दी है।
  5. इन आंदोलनों ने भारतीय लोकतंत्र के बनाया है। तथा लोगों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनाया है।

प्रश्न 37.
स्वयंसेवी संगठनों के अनुसार लोकतांत्रिक सरकार की प्रकृति में सुधार कैसे आएगा?
उत्तर:
स्वयंसेवी संगठनों का मानना था कि स्थानीय मसलों के समाधान में स्थानीय नागरिकों की सीधी और सक्रिय भागीदारी राजनीतिक दलों की अपेक्षा कहीं ज्यादा कारगर होगी। इन संगठनों का विश्वास था कि लोगों की सीधी भागीदारी से लोकतांत्रिक सरकार की प्रकृति में सुधार आएगा।

प्रश्न. 38.
वर्तमान में स्वयंसेवी संगठनों की प्रकृति में आए बदलावों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
स्वयंसेवी संगठन शहरी और ग्रामीण इलाकों में लगातार सक्रिय हैं। परंतु अब इनकी प्रकृति बदल गई है। बाद के समय में ऐसे अनेक संगठनों का वित्त पोषण विदेशी एजेंसियों से होने लगा है। ऐसी एजेंसियों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सर्विस एजेंसियाँ भी शामिल हैं। इन संगठनों को बड़े पैमाने पर जब विदेशी धनराशि प्राप्त होती है जिससे स्थानीय पहल का आदर्श कुछ कमजोर हुआ है।

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प्रश्न 39.
भारत में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण हेतु योजनाएँ भारत सरकार द्वारा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के कल्याण हेतु निम्नलिखित योजनाएँ चलायी जा रही हैं-

  1. शिक्षा के क्षेत्र में सभी राज्यों में इनके लिए उच्च स्तर तक शिक्षा निःशुल्क कर दी गई है। विभिन्न शिक्षण संस्थाओं में इनके लिए स्थान आरक्षित किए गए हैं।
  2. इन वर्गों की छात्राओं के लिए छात्रावास योजना प्रारम्भ की गई है।
  3. 1987 में भारत के जनजाति सहकारी बाजार विकास संघ की स्थापना की गई। 1992-93 में जनजातीय क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्रों की व्यवस्था की गई।
  4. मार्च, 1992 में बाबा साहब आम्बेडकर संस्था की स्थापना की गई। इन सबके अतिरिक्त इस समय 194 जनजातीय विकास योजनाएँ चल रही हैं।

प्रश्न 40.
महिला सशक्तिकरण की राष्ट्रीय नीति, 2001 के मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय महिला सशक्तिकरण (2001) के उद्देश्य – राष्ट्रीय महिला सशक्तिकरण नीति के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं।

  1. सकारात्मक आर्थिक और सामाजिक नीतियों द्वारा ऐसा वातावरण तैयार करना जिसमें महिलाओं को अपनी पूर्व क्षमता को पहचानने का मौका मिले और उनका पूर्ण विकास हो।
  2. महिलाओं द्वारा पुरुषों की भाँति राजनीतिक, आर्थिक-सामाजिक, सांस्कृतिक और नागरिक सभी क्षेत्रों में समान स्तर पर भी मानवीय अधिकारों और मौलिक स्वतन्त्रताओं का कानूनी और वास्तविक उपभोग।
  3. स्वास्थ्य देखभाल, प्रत्येक स्तर पर उन्नत शिक्षा, जीविका एवं व्यावसायिक मार्गदर्शन, रोजगार, समान पारिश्रमिक, सामाजिक सुरक्षा और सार्वजनिक पदों आदि में महिलाओं को समान सुविधाएँ।
  4. न्याय व्यवस्था को मजबूत बनाकर महिलाओं के विरुद्ध होने वाले किसी प्रकार के अत्याचारों का उन्मूलन करना।

प्रश्न 41.
सूचना का अधिकार अधिनियम क्या है? भारत में इसे कब पारित किया गया था?
उत्तर:
सूचना का अधिकार भारतीय संसद द्वारा पारित वह अधिनियम है जो नागरिकों के सूचना के अधिकार के बारे में नियमों और प्रक्रियाओं को निर्धारित करता है। इस अधिनियम के अंतर्गत भारत का कोई भी नागरिक किसी भी. सरकारी प्राधिकरण से सूचना प्राप्त करने हेतु अनुरोध कर सकता है और यह सूचना संबंधित विभाग को ज्यादा से ज्यादा 30 दिनों में उपलब्ध करानी होती है। भारत में यह विधेयक 2005 में पारित हुआ था।

प्रश्न 42.
भारत में पर्यावरण सुरक्षा हेतु क्या – क्या कदम उठाये जा रहे हैं? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा
पर्यावरणीय आन्दोलन का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पर्यावरणीय सुरक्षा आन्दोलन: भारत में पर्यावरण की सुरक्षा हेतु अनेक कदम उठाये जा रहे हैं, जिनमें प्रमुख हैं।

  1. स्वतन्त्र भारत में वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए अनेक स्थानों पर अभयारण्यों की स्थापना की गई और इन अभयारण्यों में सभी प्रकार के जीवों की सुरक्षा की व्यवस्था की गई, जिससे जंगलों की संख्या बढ़े और वातावरण स्वच्छ
    हो।
  2. पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी गई तथा सर्वत्र वृक्षारोपण कार्य प्रारम्भ किया गया। वृक्षों की कटाई रोकने के लिए उत्तरप्रदेश के पहाड़ी इलाकों में चिपको आन्दोलन चलाया गया।
  3. सिंचाई के लिए विभिन्न बाँधों की व्यवस्था की गई, इन बाँधों में सिंचाई एवं विद्युत उत्पादन दोनों कार्य चलने लगे।
  4. भारत में विकास की क्रान्ति के संदर्भ में कृषि क्षेत्र में हरित क्रान्ति का नारा दिया गया और अन्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त की गई।

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प्रश्न 43.
भारतीय किसान यूनियन (BKU) की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
अथवा
भारतीय किसान यूनियन की किन्हीं दो विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर:
भारतीय किसान यूनियन ( बी. के.यू.) की विशेषताएँ – भारतीय किसान यूनियन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. सरकार पर अपनी माँगों को मनवाने के लिए बीकेयू (BKU) ने रैली, धरना, प्रदर्शन और जेल भरो आन्दोलन का सहारा लिया।
  2. इस संगठन ने जातिगत समुदायों को आर्थिक मसले पर एकजुट करने के लिए जाति पंचायत की परम्परागत संस्था का उपयोग किया।
  3. बीकेयू (BKU) के लिए धनराशि और संसाधन इन्हीं जातिगत संगठनों के माध्यम से प्राप्त किया जाता था।
  4. 1990 के दशक में भारतीय किसान यूनियन ने अपने को सभी राजनीतिक दलों से दूर रखा। यह संगठन अपने संख्या बल के आधार पर राजनीति में एक दबाव समूह की तरह सक्रिय था।

प्रश्न 44.
किसान आंदोलन 80 के दशक में सबसे ज्यादा सफल सामाजिक आंदोलन था। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1990 के दशक के शुरुआती सालों तक बीकेयू ने अपने को सभी राजनीतिक दलों से दूर रखा था। यह अपने सदस्यों के संख्या बल के दम पर राजनीति में एक दबाव समूह की तरह सक्रिय था। इस संगठन ने राज्यों में मौजूद अन्य किसान संगठनों को साथ लेकर अपनी कुछ माँगें भी मनवा ली थीं। इस आंदोलन की सफलता के पीछे इसके सदस्यों की राजनीतिक मोल-भाव की क्षमता का हाथ था।

प्रश्न 45.
जन आंदोलन के आलोचक इन आंदोलनों का विरोध क्यों करते हैं?
उत्तर:
जन आंदोलन के आलोचक अकसर यह दलील देते हैं कि हड़ताल, धरना और रैली जैसी सामूहिक कार्रवाईयों से सरकार के कामकाज पर बुरा असर पड़ता है। उनके अनुसार इस तरह की गतिविधियों से सरकार की निर्णय-प्रक्रिया बाधित होती है तथा रोजमर्रा की लोकतांत्रिक व्यवस्था भंग होती है।

प्रश्न 46.
जन आंदोलन में भाग लेने वाले समूह चुनावी शासन- भूमि से अलग जन-कार्रवाई और लामबंदी की रणनीति क्यों अपनाते हैं?
उत्तर:
जन आंदोलन में भाग लेने वाली जनता सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित तथा अधिकारहीन वर्गों से संबंध रखती है। इन समूहों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अपनी बातों को कहने का पर्याप्त मौका नहीं मिलता है। इसी कारण ये समूह चुनावी शासन – भूमि से अलग जन- कार्रवाई और लामबंदी की रणनीति अपनाते हैं।

प्रश्न 47.
दलित पैंथर्स संगठन ने दलित अधिकारों की दावेदारी के लिए जन-कार्रवाई का रास्ता क्यों अपनाया?
उत्तर:
दलितों के सामाजिक और आर्थिक उत्पीड़न को रोक पाने में कानून की व्यवस्था नाकाम साबित हो रही थी। दलित जिन राजनीतिक दलों का समर्थन कर रहे थे जैसे रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया, वे चुनावी राजनीति में सफल नहीं हो पा रही थीं। ये पार्टियाँ हमेशा निशाने पर रहती थीं, चुनाव जीतने के लिए इन्हें किसी दूसरी पार्टी से गठबंधन करना पड़ता था । ये पार्टियाँ टूट का भी शिकार हुईं। इन वजहों से ‘दलित पैंथर्स’ ने दलित अधिकारों की दावेदारी करते हुए जन- कार्रवाई का रास्ता अपनाया।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् होने वाले प्रमुख किसान आन्दोलनों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् किसान आन्दोलन: स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में हुए कुछ प्रमुख किसान आन्दोलन निम्नलिखित हैं।
1. तिभागा आन्दोलन:
तिभागा आन्दोलन 1946-47 में बंगाल में प्रारम्भ हुआ। यह आन्दोलन मुख्यतः जोतदारों के विरुद्ध मझोले किसानों एवं बटाईदारों का संयुक्त आन्दोलन था। इस आन्दोलन के कारण कई गाँवों में किसान सभा का शासन स्थापित हो गया। परन्तु औद्योगिक मजदूर वर्ग और बड़े किसानों के समर्थन के बिना यह शीघ्र ही समाप्त हो गया।

2. तेलंगाना आन्दोलन:
तेलंगाना आन्दोलन हैदराबाद राज्य में 1946 में जागीरदारों द्वारा की जा रही जबरन एवं अत्यधिक वसूली के विरोध में चलाया गया क्रान्तिकारी किसान आन्दोलन था। इस आन्दोलन में क्रान्तिकारी किसानों ने पाँच हजार गुरिल्ला किसान तैयार कर जमींदारों के विरुद्ध संघर्ष आरम्भ कर दिया। भारत सरकार द्वारा हस्तक्षेप करने पर यह आन्दोलन समाप्त हो गया।

3. आधुनिक किसान आन्दोलन:
मार्च, 1987 में गुजरात के किसानों ने अपनी मांगें मनवाने के लिए विधान सभा का घेराव करने की योजना बनाई। सरकार ने गुजरात विधानसभा (गांधीनगर) की किलेबंदी कर दी। पुलिस ने किसानों पर तरह-तरह के अत्याचार किए और किसानों ने पुलिस के अत्याचारों के विरुद्ध ग्राम बंद करने की अपील की, जिसके कारण गुजरात के अनेक शहरों में दूध और सब्जी की समस्या कई दिनों तक रही।

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प्रश्न 2.
सरकार की सार्वजनिक नीतियों पर जन आंदोलनों का प्रभाव काफी सीमित रहा है। विस्तारपूर्वक उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सरकार की सार्वजनिक नीतियों पर जन आंदोलनों का प्रभाव सीमित रहा है। इसके निम्न कारण हैं:

  1. समकालीन सामाजिक आंदोलन किसी एक मुद्दे के इर्द-गिर्द ही जनता को लामबंद करते हैं। इस तरह वे समाज के किसी एक वर्ग का ही प्रतिनिधित्व कर पाते हैं। इसी सीमा के कारण सरकार इन आंदोलनों की जायज माँगों को ठुकराने का साहस कर पाती है।
  2. लोकतांत्रिक राजनीति वंचित वर्गों के व्यापक गठबंधन को लेकर ही चलती है जबकि जनआंदोलनों के नेतृत्व में यह बात संभव नहीं हो पाती।
  3. राजनीतिक दलों को जनता के विभिन्न वर्गों के बीच सामंजस्य बैठाना पड़ता है, जबकि जन आंदोलनों का नेतृत्व इस वर्गीय हित के प्रश्नों को कायदे से सँभाल नहीं पाता। एक सच्चाई यह भी है कि राजनीतिक दलों ने समाज के वंचित और अधिकार हीन लोगों के मुद्दे पर ध्यान देना छोड़ दिया है।
  4. हालाँकि जन आंदोलन का नेतृत्व भी ऐसे मुद्दों को सीमित ढंग से ही उठा पाता है।
  5. विगत वर्षों में राजनीतिक दलों और जन आंदोलनों का आपसी संबंध भी कमजोर होता गया है। इससे राजनीति में सूनेपन का माहौल पनपा है।

प्रश्न 3.
दलित पैंथर्स संगठन के उदय और गतिविधियों पर लेख लिखिए।
उत्तर:
1. दलित पैंथर्स संगठन का उदय:
सातवें दशक के शुरुआती सालों से शिक्षित दलितों की पहली पीढ़ी ने अनेक मंचों से अपने हक की आवाज उठायी। इनमें अधिकतर शहर की झुग्गी बस्तियों में पलकर बड़े हुए दलित थे दलित हितों की दावेदारी के इसी क्रम में महाराष्ट्र में 1972 में दलित युवाओं का एक संगठन ‘दलित पैंथर्स’ बना। आजादी के बाद के सालों में दलित समूह प्रमुखतः “जाति-आधारित असमानता और भौतिक साधनों के मामले में अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ लड़ रहे थे। वे इस बात को लेकर सचेत थे कि संविधान में जाति-आधारित किसी भी तरह के भेदभावों के विरुद्ध गारंटी दी गई है।

2. दलित पैंथर्स संगठन की गतिविधि:
आरक्षण के कानून तथा सामाजिक न्याय की नीतियों का कारगर क्रियान्वयन के लिए इस संगठन ने संघर्ष किया। महाराष्ट्र के विभिन्न इलाकों में दलितों पर बढ़ रहे अत्याचार से लड़ना इस संगठन की मुख्य गतिविधियों में से एक था । दलित पैंथर्स संगठन ने दलितों पर हो रहे अत्याचार के मामलों पर लगातार विरोध आंदोलन चलाया। इस संगठन का वृहत्तर विचारात्मक एजेंडा जाति प्रथा को समाप्त करना तथा भूमिहीन गरीब किसान, शहरी औद्योगिक मजदूर और दलित सहित सारे वंचित वर्गों का एक संगठन खड़ा करना था।

प्रश्न 4.
भारत के किन्हीं दो सामाजिक आंदोलनों का उल्लेख कीजिये। उनके मुख्य उद्देश्यों की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
भारत के दो प्रमुख सामाजिक आंदोलन इस प्रकार हैं।

  • महिला आंदोलन:
    1. महिला आंदोलन प्रारंभ में घरेलू हिंसा, दहेज प्रथा, कार्यस्थल और सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ कार्य करने वाले मध्यवर्गीय शहरी महिलाओं के बीच क्रियाशील थे।
    2. आठवें दशक के दौरान यह आंदोलन परिवार के अन्दर व उसके बाहर होने वाली यौन हिंसा के मुद्दों पर केन्द्रित रहा इन आंदोलनों ने दहेज प्रथा का विरोध, व्यक्तिगत तथा सम्पत्ति कानूनों में लैंगिक समानता की मांग की।
    3. नब्बे के दशक में महिला आंदोलन समान राजनीतिक प्रतिनिधित्व हेतु महिला आरक्षण की भी माँग करने लगा।
  • चिपको आंदोलन:
    चिपको आंदोलन का प्रारंभ उत्तराखंड के 2-3 गाँवों से व्यावसायिक प्रयोग हेतु पेड़ों को काटने से रोकने के सम्बन्ध में हुआ। इस आंदोलन से ये मुद्दे उठे

    1. जंगल की कटाई का ठेका बाहरी व्यक्ति को न दिया जाये तथा स्थानीय लोगों का जल, जंगल, जमीन पर कारगर नियंत्रण होना चाहिए।
    2. सरकार लघु उद्योगों हेतु कम कीमत की सामग्री उपलब्ध कराए तथा इस क्षेत्र के पारिस्थितिक संतुलन को हानि पहुँचाये बिना यहाँ का विकास सुनिश्चित करे।
    3. चिपको आंदोलन में महिलाओं ने शराबखोरी की बात के विरोध में भी निरन्तर आवाज उठायी।

प्रश्न 5.
बीसवीं शताब्दी के 70 और 80 के दशकों में उदित-विकसित हुए गैर-राजनीतिक दलों वाले ( अथवा राजनैतिक दलों से स्वतन्त्र) आंदोलन पर लेख लिखिए।
उत्तर:
गैर-राजनैतिक या राजनैतिक स्वतन्त्र आन्दोलन के कारण 70 और 80 के दशकों में उदित हुए गैर-राजनैतिक या राजनीतिक दलों से स्वतन्त्र आन्दोलन के प्रमुख कारण अग्रलिखित हैं।

  1. गैर-कांग्रेसवाद का असफल होना: 70 और 80 के दशक में समाज के कई तबकों का राजनीतिक दलों के आचार-व्यवहार से मोहभंग हुआ। असफलता से राजनीतिक अस्थिरता का माहौल कायम हुआ जिनसे राजनीतिक दलों से स्वतन्त्र आन्दोलनों का उदय हुआ।
  2. केन्द्र सरकार की आर्थिक नीतियों से निराश: सरकार बेरोजगारी, गरीबी, महँगाई नहीं रोक सकी इसलिए सरकार की आर्थिक नीतियों से लोगों का मोहभंग हुआ।
  3. आर्थिक और सामाजिक असमानताएँ: बीसवीं शताब्दी के सत्तर और अस्सी के दशकों में जाति और लिंग पर आधारित मौजूदा असमानताओं ने गरीबी के मसले को और ज्यादा जटिल और धारदार बना दिया।
  4. अनेक समूहों का लोकतन्त्र से विश्वास उठ गया: राजनीतिक धरातल पर सक्रिय कई समूहों का लोकतान्त्रिक संस्थाओं और चुनावी राजनीति से विश्वास उठ गया। ये समूह दलगत राजनीति से अलग हुए और अपने विरोध को स्वर देने के लिए इन्होंने आवाम को लामबंद करना शुरू किया। इस प्रकार 1970-80 के दशक में गैर-राजनैतिक या राजनीतिक दलों से स्वतन्त्र आन्दोलनों की विशेष भूमिका रही।

प्रश्न 6.
‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ की विवेचना कीजिए।
अथवा
नर्मदा बचाओ आंदोलन का परिचय देते हुए इसकी प्रमुख गतिविधियों पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
नर्मदा बचाओ आंदोलन आठवें दशक के प्रारंभ में नर्मदा घाटी में विकास परियोजना के तहत मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र से गुजरने वाली नर्मदा और उसकी सहायक नदियों पर 30 बड़े और 135 मझौले तथा 300 छोटे बाँध बनाने का प्रस्ताव रखा गया। गुजरात के सरदार सरोवर तथा मध्यप्रदेश के नर्मदा सागर बाँध के रूप में दो सबसे बड़ी और बहुउद्देश्यीय परियोजनाओं का निर्धारण किया गया। नर्मदा नदी के बचाव में नर्मदा बचाओ आंदोलन चला। इस आंदोलन ने इन बाँधों के निर्माण का विरोध किया तथा इन परियोजनाओं के औचित्य पर भी सवाल उठाए हैं। प्रमुख गतिविधियाँ

  • आंदोलन के नेतृत्व ने इस बात की ओर ध्यान दिलाया कि इन परियोजनाओं का लोगों के पर्यावास, आजीविका, संस्कृति तथा पर्यावरण पर बुरा असर पड़ा है।
  • प्रारंभ में आंदोलन ने परियोजना से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित सभी लोगों के समुचित पुनर्वास किये जाने की माँग रखी।
  • बाद में इस आंदोलन ने इस बात पर बल दिया कि ऐसी परियोजनाओं की निर्णय प्रक्रिया में स्थानीय समुदाय की भागीदारी होनी चाहिए।
  • अब आंदोलन बड़े बांधों की खुली मुखालफत करता
  • आंदोलन ने अपनी माँगें मुखर करने के लिए हरसंभव लोकतांत्रिक रणनीति का इस्तेमाल किया। यथा
    1. इसने अपनी बात न्यायपालिका से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय मंचों तक उठायी।
    2. इसके नेतृत्व ने सार्वजनिक रैलियां तथा सत्याग्रह जैसे तरीकों का भी प्रयोग किया।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय

प्रश्न 7.
जन आंदोलन के मुख्य कारण व भारतीय राजनीति पर प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जन आंदोलन के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं।

  • राजनीतिक दलों के आचार: व्यवहार से मोह भंग होना सत्तर और अस्सी के दशक में समाज के कई तबकों का राजनीतिक दलों के आचार-व्यवहार से मोह भंग हो गया। इससे दल-रहित जन-आंदोलनों का उदय हुआ।
  • सरकार की आर्थिक नीतियों से मोह भंग होना: सरकार की आर्थिक नीतियों से भी लोगों का मोह भंग हुआ क्योंकि जाति और लिंग आधारित सामाजिक असमानताओं ने गरीबी के मुद्दे को और ज्यादा जटिल बना दिया।
  • लोकतांत्रिक संस्थाओं और चुनावी राजनीति से विश्वास उठना: राजनीतिक धरातल पर सक्रिय कई समूहों का विश्वास लोकतांत्रिक संस्थाओं और चुनावी राजनीति से उठ गया। इन समूहों ने दलगत राजनीति से अलग होकर आवाम को लामबंद कर अपने विरोध को स्वर दिया। भारतीय राजनीति पर जन आंदोलनों का प्रभाव भारतीय राजनीति पर जन आंदोलनों के निम्नलिखित प्रभाव पड़े:
    1. इन्होंने उन नये वर्गों की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को अभिव्यक्ति दी जो अपनी समस्याओं को चुनावी राजनीति के जरिये हल नहीं कर पा रहें थे।
    2. विभिन्न सामाजिक समूहों के लिए ये आंदोलन अपनी बात रखने का बेहतर माध्यम बनकर उभरे।
    3. समाज के गहरे तनावों और जनता के क्षोभ को एक सार्थक दिशा देकर इन आंदोलनों ने भारतीय लोकतंत्र के जनाधार को बढ़ाया है।
    4. ये आंदोलन जनता की जायज मांगों के नुमाइंदा बनकर उभरे हैं।

प्रश्न 8.
ताड़ी विरोधी आंदोलन से आपका क्या अभिप्राय है? विवेचना करें।
उत्तर:
ताड़ी विरोधी आंदोलन: ताड़ी विरोधी आंदोलन की शुरुआत 1992 में आंध्रप्रदेश के नेल्लौर जिले से मानी जाती है। इस आंदोलन के अन्तर्गत ग्रामीण महिलाओं ने शराब के खिलाफ लड़ाई छेड़ी और शराब की बिक्री पर पाबंदी लगाने की माँग की। यह लड़ाई शराब माफिया और सरकार दोनों के खिलाफ थी। ताड़ी-विरोधी आंदोलन में दो परस्पर विरोधी गुट थे। एक शराब माफिया और दूसरा ताड़ी के कारण पीड़ित परिवार। शराबखोरी से सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को हो रही थी।

इससे परिवार की अर्थव्यवस्था चरमराने लगी थी तथा परिवार में तनाव और मारपीट का माहौल बनने लगा था। दूसरी तरफ शराब के ठेकेदार ताड़ी व्यापार पर एकाधिकार बनाए रखने के लिए अपराधों में व्यस्त थे।
इस आंदोलन ने जब वृहद रूप धारण कर लिया तो यह महिला आंदोलन का हिस्सा बन गया क्योंकि:

  1. यह ताड़ी विरोध के साथ-साथ घरेलू हिंसा, दहेज-प्रथा, कार्यस्थल एवं सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ आंदोलन बन गया।
  2. इसने महिलाओं के मुद्दों के प्रति समाज में व्यापक जागरूकता उत्पन्न की
  3. इसमें महिलाओं को विधायिका में दिये जाने वाले आरक्षण के मामले उठे।

प्रश्न 9.
नेशनल फिशवर्कर्स फोरम पर विस्तारपूर्वक लेख लिखिए।
उत्तर:
मछुआरों की संख्या के लिहाज से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। अपने देश के पूर्वी और पश्चिमी दोनों ही तटीय क्षेत्रों में देसी मछुआरा समुदायों के हजारों परिवार का पेशा मत्सोद्योग है। सरकार ने जब मशीनीकृत मत्स्य- आखेट और भारतीय समुद्र में बड़े पैमाने पर मत्स्य – दोहन के लिए ‘बॉटम ट्रऊलिंग’ जैसे प्रौद्योगिकी के उपयोग की अनुमति दी तो मछुआरों के जीवन और आजीविका के आगे संकट आ खड़ा हुआ। पूरे 70 और 80 के दशक के दौरान मछुआरों के स्थानीय स्तर के संगठन अपनी आजीविका के मसले पर राज्य सरकारों से लड़ते रहे।

1980 के दशक के मध्यवर्ती वर्षों में आर्थिक उदारीकरण की नीति की शुरुआत हुई तो बाध्य होकर मछुआरों के स्थानीय संगठनों ने अपना राष्ट्रीय मंच बनाया। इसका नाम ‘नेशनल फिशवर्कर्स फोरम’ रखा गया। इस संगठन ने 1997 में केन्द्र सरकार से पहली कानूनी लड़ाई लड़ी और उसमें सफलता भी पाई। इस क्रम में इसके कामकाज ने एक ठोस रूप भी ग्रहण किया। इसकी लड़ाई सरकार की खास नीति के खिलाफ थी । केन्द्र सरकार की इस नीति के अंतर्गत व्यावसायिक जहाजों को गहरे समुद्र में मछली मारने की इजाजत दी गई थी।

इस नीति के कारण बहुराष्ट्रीय निगमों के लिए भी इस क्षेत्र के दरवाजे खुल गए थे। 1990 के पूरे दशक में एनएफएम ने केन्द्र सरकार से अनेक कानूनी लड़ाई लड़ी और सार्वजनिक संघर्ष भी किया। इस फोरम ने उन लोगों के हितों की रक्षा के प्रयास किए जो जीवनयापन के लिए मछली मारने के पेशे से जुड़े थे न कि इस क्षेत्र में मात्र लाभ के लिए निवेश करते हैं। सन् 2002 में इस संगठन ने राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया। इस हड़ताल का कारण विदेशी कंपनियों को सरकार द्वारा मछली मारने का लाइसेंस जारी करने के विरोध में किया गया था।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय

प्रश्न 10.
ताड़ी विरोधी आंदोलन का उदय किस प्रकार हुआ ? विवेचना कीजिए।
उत्तर:
आंध्र प्रदेश के नेल्लौर जिले के दुबरगंटा गाँव में 1990 के शुरुआती समय में महिलाओं के बीच प्रौढ़ साक्षरता कार्यक्रम चलाया गया। इसमें महिलाओं ने बड़ी संख्या में पंजीकरण कराया। कक्षाओं में महिलाएँ घर के पुरुषों द्वारा देशी शराब, ताड़ी आदि पीने की शिकायतें करती थीं। ग्रामीणों को शराब पीने की लत लग चुकी थी। इस वजह से वे शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर हो गए थे। इस लत की वजह से ग्रामीण अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हो रही थी। लोगों पर कर्ज का बोझ बढ़ गया। पुरुष अपने काम में गैर-हाजिर रहने लगे। शराबखोरी से सबसे ज्यादा

संजीव पास बुक्स दिक्कत महिलाओं को हो रही थी। क्योंकि इस आदत से परिवार की अर्थव्यवस्था चरमराने लगी। परिवार में तनाव और मारपीट का माहौल बनने लगा। इन कारणों की वजह से नेल्लोर में महिलाएँ ताड़ी की बिक्री के खिलाफ आगे आईं और उन्होंने शराब की दुकानों को बंद कराने के लिए दबाव बनाना शुरू किया। यह खबर दूसरे गाँवों में फैलते ही दूसरे गांवों महिलाओं ने भी इस आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया। प्रतिबंध संबंधी एक प्रस्ताव को पास कर जिला कलेक्टर को भेजा गया। यह आंदोलन धीरे-धीरे पूरे राज्य में फैल गया।

प्रश्न 11.
सूचना के अधिकार का आंदोलन के बारे में विस्तारपूर्वक लिखिए।
उत्तर:
सूचना के अधिकार का आंदोलन जन आंदोलनों की सफलता का एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है। यह आंदोलन सरकार से एक बड़ी माँग को पूरा कराने में सफल रहा है। इस आंदोलन की शुरुआत 1990 में हुई और इसका नेतृत्व मजदूर किसान शक्ति संगठन ने किया। राजस्थान में काम कर रहे इस संगठन ने सरकार के सामने यह माँग रखी कि अकाल राहत कार्य और मजदूरों को दी जाने वाली पगार के रिकॉर्ड का सार्वजनिक खुलासा किया जाए। यह माँग राजस्थान के एक अत्यंत ही पिछड़े क्षेत्र से उठायी गयी।

इस मुहिम के तहत ग्रामीणों प्रशासन से अपने वेतन और भुगतान के बिल उपलब्ध कराने को कहा क्योंकि इन लोगों का अनुमान था कि विकास कार्यों में लगाए जाने वाले धन की हेराफेरी हुई है। पहले 1994 और उसके बाद 1996 में एम के एस एस ने जन सुनवाई का आयोजन किया और प्रशासन को इस मामले में अपना पक्ष स्पष्ट करने को कहा। आंदोलन के दबाव में सरकार को राजस्थान पंचायती राज अधिनियम में संशोधन करना पड़ा।

नए कानून के तहत जनता को पंचायत के दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त करने की अनुमति मिल गई। 1996 में एम के एस एस ने दिल्ली में सूचना के अधिकार को लेकर राष्ट्रीय समिति का गठन किया। इन आंदोलनों के परिणामस्वरूप 2002 में ‘सूचना की स्वतंत्रता’ नाम का विधेयक पारित हुआ था। परंतु यह एक कमजोर अधिनियम था। सन् 2004 में सूचना के अधिकार के विधेयक को सदन में रखा। जून में 2005 में इस विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी हासिल हुई।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

बहुचयनात्मक प्रश्न

1. 1952 के चुनावों में कुल मतदाताओं में केवल साक्षर मतदाताओं का प्रतिशत था
(क) 35 प्रतिशत
(ख) 25 प्रतिशत
(ग) 15 प्रतिशत
(घ) 75 प्रतिशत
उत्तर:
(ग) 15 प्रतिशत

2. कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक थे
(क) श्यामा प्रसाद मुखर्जी
(ख) आचार्य नरेन्द्र देव
(ग) ए.वी. वर्धन
(घ) कु. मायावती
उत्तर:
(ख) आचार्य नरेन्द्र देव

3. 1948 में भारत के गवर्नर जनरल पद की शपथ किसने ली-
(क) लार्ड लिटन
(ख) लार्ड माउंटबेटन
(ग) लार्ड रिपन
(घ) चक्रवर्ती राजगोपालाचारी
उत्तर:
(घ) चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

4. भारत का संविधान तैयार हुआ-
(क) 26 जनवरी, 1950
(ख) 26 नवम्बर, 1949
(ग) 15 अगस्त, 1947
(घ) 30 जनवरी, 1948
उत्तर:
(ख) 26 नवम्बर, 1949

5. भारत में दलितों का मसीहा किसे कहा जाता है?
(क) राजा राममोहन राय
(ख) दयानन्द सरस्वती
(ग) बी. आर. अम्बेडकर
(घ) गोपाल कृष्ण गोखले
उत्तर:
(ग) बी. आर. अम्बेडकर

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6. स्वतन्त्र पार्टी का गठन किया-
(क) सी. राजगोपालाचारी
(ख) श्यामा प्रसाद मुखर्जी
(ग) पं. दीनदयाल उपाध्याय
(घ) रफी अहमद किदवई
उत्तर:
(क) सी. राजगोपालाचारी

7. भारतीय जनसंघ के संस्थापक थे-
(क) मोरारजी देसाई
(ख) मीनू मसानी
(ग) अटल बिहारी वाजपेयी
(घ) श्यामा प्रसाद मुखर्जी
उत्तर:
(घ) श्यामा प्रसाद मुखर्जी

8. भारत के संविधान पर हस्ताक्षर हुए-
(क) 15 अगस्त, 1947
(ख) 30 जनवरी, 1948
(ग) 24 जनवरी, 1950
(घ) 26 नवम्बर, 1949
उत्तर:
(ग) 24 जनवरी, 1950

9. भारत के पहले चुनाव आयुक्त बने
(क) सुकुमार सेन
(ख) सी. राजगोपालाचारी
(ग) ए. के. गोपालन
(घ) पी.सी. जोशी
उत्तर:

10. स्वतंत्र भारत में बने पहले मंत्रिमंडल में शिक्षामंत्री
(क) कामराज नाडार
(ख) जगजीवन राम
(ग) पी. डी. टंडन
(घ) मौलाना अबुल कलाम आजाद
उत्तर:
(क) कामराज नाडार

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11. स्वतंत्र भारत में पहला आम चुनाव कब हुआ?
(क) 1951
(ख) 1952
(ग) 1953
(घ) 1949
उत्तर:
(ख) 1952

12. स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य मंत्री थे-
(क) राजकुमारी अमृतकौर
(ख) पी.सी.
(ग) सुकुमार सेन
(घ) जगजीवन राम
उत्तर:
(क) राजकुमारी अमृतकौर

13. 1959 में कांग्रेस सरकार ने संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत केरल की कम्युनिस्ट सरकार को बर्खास्त कर दिया?
(क) अनुच्छेद 370
(ख) अनुच्छेद 354
(ग) अनुच्छेद 356
(घ) अनुच्छेद 352
उत्तर:
(ग) अनुच्छेद 356

14. काँग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन कब हुआ था?
(क) 1934
(ख) 1955
(ग) 1948
(घ) 1942
उत्तर:
(क) 1934

15. इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी के संस्थापक कौन थे?
(क) कामराज नाडार
(ख) पी. सी. जोशी
(ग) मोरारजी देसाई
(घ) भीमराव अंबेडकर
उत्तर:
(घ) भीमराव अंबेडकर

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. पीआरआई के शासन को ………………………… कहा जाता है।
उत्तर:
परिपूर्ण तानाशाही

2. ………………………… स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में संचार मंत्री थे।
उत्तर:
रफी अहमद किदवई

3. सिंहासन मूलतः ………………………… भाषा में बनाई गई थी।
उत्तर:
मराठी

4. ए. के. गोपालन, ……………………. राज्य के प्रमुख कम्युनिस्ट नेता थे।
उत्तर:
केरल

5. पार्टी के अंदर मौजूद विभिन्न समूह ……………………. कहे जाते हैं।
उत्तर:
गुट

6. ………………….. 1942 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता थे।
उत्तर:
दीन दयाल उपाध्याय

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समग्र मानवतावाद सिद्धान्त के प्रणेता का नाम लिखिए दीनदयाल उपाध्याय।

प्रश्न 2.
भारत में एक दल प्रधानता के युग में किस दल को सबसे अधिक प्रभावशाली माना गया?
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस।

प्रश्न 3.
भारत में एक दल की प्रधानता का युग कब समाप्त हुआ?
उत्तर:
1977।

प्रश्न 4.
एक दल प्रधानता का युग किस वर्ष से शुरू हुआ था?
उत्तर:
सन् 1952 के प्रथम आम चुनावों से।

प्रश्न 5.
1977 के लोकसभा चुनावों में किस पार्टी को सत्ता प्राप्त हुई?
उत्तर:
जनता पार्टी को।

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प्रश्न 6.
प्रथम तीन आम चुनावों में किस राजनीतिक दल को नेतृत्व प्रदान किया गया?
उत्तर:
कांग्रेस पार्टी।

प्रश्न 7.
प्रथम आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी को कितनी सीटें प्राप्त हुईं?
उत्तर:
प्रथम आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी को 489 सीटों में से 364 सीटें प्राप्त हुईं।

प्रश्न 8.
“एकदल व्यवस्था से अधिक ठीक-ठीक भारतीय दलीय व्यवस्था को एक दल प्रधानता कहना उचित होगा।” किसने कहा था?
उत्तर:
रजनी कोठारी ने।

प्रश्न 9.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना किस वर्ष हुई?
उत्तर:
सन् 1885 में।

प्रश्न 10.
भारत में समाजवादी दल का गठन कब हुआ?
उत्तर:
भारत में समाजवादी दल का गठन 1934 में हुआ।

प्रश्न 11.
प्रथम चुनाव आयुक्त कौन बना?
उत्तर:
सुकुमार सेन।

प्रश्न 12.
भारत रत्न से सम्मानित पहले भारतीय थे।
उत्तर:
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी।

प्रश्न 13.
भारतीय जनसंघ की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
सन् 1951 में।

प्रश्न 14.
भारत में निर्वाचन आयोग का गठन कब हुआ?
उत्तर:
सन् 1950 में।

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प्रश्न 15.
भारत का संविधान कब से अमल में आया?
उत्तर:
भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 से अमल में आया।

प्रश्न 16.
भारत में तीसरे आम चुनाव कब हुए? लिखिये।
उत्तर:
सन् 1962 में।

प्रश्न 17.
पहले तीन आम चुनावों में लोकसभा में दूसरे स्थान पर रहने वाली ( सबसे बड़ी पार्टी) का नाम
उत्तर:
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी।

प्रश्न 18.
कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक थे।
उत्तर:
आचार्य नरेन्द्र देव।

प्रश्न 19.
संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
डॉ. भीमराव अम्बेडकर।

प्रश्न 20.
भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
श्यामा प्रसाद मुखर्जी।

प्रश्न 21.
1957 में कांग्रेस पार्टी किस राज्य में पराजित हुई?
उत्तर:
केरल।

प्रश्न 22.
किस विद्वान ने कांग्रेस की तुलना सराय से की है?
उत्तर:
डॉ. अम्बेडकर ने।

प्रश्न 23.
स्वतंत्रता के बाद भारत में एक पार्टी के प्रभुत्व का दौर क्यों रहा था?
उत्तर:
स्वतंत्रता के बाद भारत में कांग्रेस ही एकमात्र ऐसी पार्टी थी जिसका संगठन पूरे देश में गांव-गांव तक फैला हुआ था। इसीलिए एकदलीय प्रभुत्व का दौर रहा।

प्रश्न 24.
भारतीय दलीय व्यवस्था की कोई एक विशेषता बताइए।
उत्तर:
भारत में बहुदलीय प्रणाली है और राजनीतिक दल विभिन्न हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

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प्रश्न 25.
प्रथम तीन आम चुनावों में कांग्रेस को कितनी सीटें प्राप्त हुईं?
उत्तर:
प्रथम आम चुनाव में 364, दूसरे आम चुनाव में 371 और तीसरे आम चुनाव में 361 सीटें प्राप्त हुईं।

प्रश्न 26.
किन दो राज्यों में कांग्रेस 1952-67 के दौरान सत्ता में नहीं थी?
उत्तर:
कांग्रेस 1952-67 के दौरान केरल एवं जम्मू-कश्मीर में सत्ता में नहीं थी।

प्रश्न 27.
स्वतंन्त्र पार्टी कब अस्तित्व में आई और इसका नेतृत्व किसने किया?
उत्तर:
स्वतन्त्र पार्टी की स्थापना 1959 में की गई और इस पार्टी का नेतृत्व सी. राजगोपालाचारी, ए. एम. मुंशी, एन. जी. रंगा आदि ने किय ।

प्रश्न 28.
उत्तरी राज्यों जम्मू-कश्मीर तथा पंजाब के दो क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के नाम बताइए।
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर का महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय दल नेशनल कान्फ्रेंस है, जबकि पंजाब का महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय दल अकाली दल है।

प्रश्न 29.
किस दशक के अंत में चुनाव आयोग ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल शुरू किया?
उत्तर:
सन् 1990

प्रश्न 30.
किस पत्रिका ने यह लिखा था कि जवाहर लाल नेहरू ” अपने जीवित रहते ही यह देख लेंगे और पछताएँगे कि भारत में सार्वभौम मताधिकार असफल रहा।”
उत्तर:
ऑर्गनाइजर।

प्रश्न 31.
कांग्रेस दल किस सन् में राष्ट्रीय चरित्र वाले जनसभा के रूप में अस्तित्व में आया?
उत्तर:
कांग्रेस दल 1905 से 1918 तक के काल में राष्ट्रीय चरित्र वाले एक जनसभा के रूप में अस्तित्व में आया।

प्रश्न 32.
राष्ट्रीय मंच पर किस नेता के आगमन से कांग्रेस पार्टी एक जन आन्दोलन में बदल गई।
उत्तर:
राष्ट्रीय मंच पर महात्मा गांधी के आगमन ने कांग्रेस पार्टी को एक आंदोलन में बदल दिया।

प्रश्न 33.
प्रथम आम चुनावों के समय कितने राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय दल विद्यमान थे?
उत्तर:
प्रथम आम चुनावों में 14 राष्ट्रीय स्तर एवं 52 राज्य स्तर के दल विद्यमान थे।

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प्रश्न 34.
भारत में किस चुनाव प्रणाली को अपनाया गया है?
उत्तर:
भारत में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर ‘सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले की जीत’ प्रणाली को अपनाया गया है।

प्रश्न 35.
भारत में 1967 के आम चुनावों में कौन-कौन से राज्यों में कांग्रेस को बहुमत मिला?
उत्तर:
भारत में 1967 के आम चुनावों में जम्मू-कश्मीर, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, मैसूर (कर्नाटक), आंध्रप्रदेश तथा असम राज्यों में बहुमत मिला।

प्रश्न 36.
जनसंघ ने किस विचार पर जोर दिया?
उत्तर:
जनसंघ ने ‘एक देश, एक संस्कृति और एक राष्ट्र’ के विचार पर जोर दिया।

प्रश्न 37.
समाजवादी पार्टी किन-किन पार्टियों में विभाजित हुई?
उत्तर:
समाजवादी पार्टी ‘किसान मजदूर प्रजा पार्टी’, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी तथा संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में विभाजित हुई।

प्रश्न 38.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय कांग्रेस के प्रभावशाली नेताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में पं. नेहरू, सरदार पटेल, मोरारजी देसाई, जगजीवन राम, डॉ. अम्बेडकर, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद तथा सी. राजगोपालाचारी शामिल थे।

प्रश्न 39.
विश्व के किन्हीं चार ऐसे देशों के नाम लिखिए जो अपनी लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए प्रसिद्ध हैं।
उत्तर:
ये देश हैं। इंग्लैण्ड , भारत, अमेरिका, फ्रांस।

प्रश्न 40
भारतीय संविधान का निर्माण कब हुआ?
उत्तर:
भारत के संविधान का निर्माण 26 नवम्बर, 1949 को हुआ।

प्रश्न 41.
संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
डॉ. भीमराव अम्बेडकर।

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प्रश्न 42.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय साम्यवादी पार्टी के मुख्य नेताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय साम्यवादी पार्टी के मुख्य नेताओं में ए. के. गोपालन, नम्बूदरीपाद, एस. ए. डांगे, अजय घोष तथा जी. सी. जोशी शामिल थे।

प्रश्न 43.
जनसंघ पार्टी के तीन नेताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय और बलराज मधोक

प्रश्न 44.
एक पार्टी के लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए प्रसिद्ध किन्हीं चार राष्ट्रों के नाम बताइए।
उत्तर:
ये राष्ट्र हैं। भूतपूर्व सोवियत संघ, चीन, क्यूबा, सीरिया।

प्रश्न 45.
तानाशाही और सैन्य आधिपत्य वाले किन्हीं चार राष्ट्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:
ये राष्ट्र हैं। म्यांमार, बेलारूस, इंरीट्रिया, अधिकांश समय पाकिस्तान भी ऐसी सरकारों के अधीन रहा।

प्रश्न 46.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का विभाजन कब हुआ?
उत्तर:
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का विभाजन 1964 में सी. पी. एम. या भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और सी.पी.आई. अथवा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के रूप में हुआ।

प्रश्न 47.
रूस की बोल्शेविक क्रान्ति कब हुई?
उत्तर:
रूस में बोल्शेविक क्रान्ति अक्टूबर सन् 1917 में हुई।

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प्रश्न 48.
भारत में अनुच्छेद 356 का तथाकथित दुरुपयोग सर्वप्रथम कब हुआ?
उत्तर:
केन्द्र की कांग्रेस सरकार द्वारा संविधान के अनुच्छेद 356 का प्रथम दुरुपयोग 1959 में केरल की वैधानिक रूप से चुनी गई कम्युनिस्ट सरकार को बर्खास्त करके किया गया।

प्रश्न 49.
स्वतंत्र पार्टी किस वजह के कारण दूसरी पार्टियों से अलग थी?
उत्तर:
स्वतंत्र पार्टी आर्थिक मसलों पर अपनी खास किस्म की पक्षधरता के कारण दूसरी पार्टियों से अलग थ ।

प्रश्न 50.
1952 के चुनाव में वोट हासिल करने के लिहाज से कौन सी पार्टी दूसरे नंबर पर रही?
उत्तर:
सोशलिस्ट पार्टी।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय दलीय व्यवस्था की कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  1. भारत में बहुदलीय व्यवस्था है और राजनीतिक दल विभिन्न हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  2. भारतीय दलीय व्यवस्था में राष्ट्रीय दलों के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों का भी अस्तित्व है।

प्रश्न 2.
उपनिवेशवाद से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उपनिवेशवाद वह विचारधारा जिससे प्रेरित होकर प्राय: एक शक्तिशाली राष्ट्र अन्य राष्ट्र या किसी राष्ट्र विशेष के किसी भाग पर अपना वर्चस्व स्थापित कर, उसके आर्थिक एवं प्राकृतिक संसाधनों का शोषण अपने हित के लिए करता है उसे उपनिवेशवाद कहते हैं।

प्रश्न 3.
आपके मतानुसार ‘एकल पार्टी प्रभुत्व’ से क्या अभिप्राय है? भारत में इस स्थिति का कालखण्ड बताइये।
उत्तर:
एकल पार्टी प्रभुत्व ‘एकल पार्टी प्रभुत्व’ से आशय है। राजनीतिक व्यवस्था पर अन्य दलों के होते हुए भी किसी एक दल का वर्चस्व स्थापित होना। भारत में 1952 से लेकर 1967 तक कांग्रेस दल का प्रभुत्व रहा।

प्रश्न 4.
प्रथम तीन आम चुनावों में एक दल के प्रभुत्व के कारणों को इंगित कीजिए।
अथवा
भारत के पहले तीन चुनावों में कांग्रेस के प्रभुत्व के दो कारण बताइये।
अथवा
आपके मतानुसार आजादी के बाद 20 वर्षों तक भारतीय राजनीति में कांग्रेस के प्रभुत्व के क्या कारण रहे? किन्हीं दो को बताइये।
अथवा
भारत में लम्बे समय तक कांग्रेस के दलीय प्रभुत्व के लिए उत्तरदायी किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रथम तीन चुनावों में कांग्रेस के प्रभुत्व के कारण थे।

  1. राष्ट्रीय संघर्ष में कांग्रेसी नेताओं का जनता में अधिक लोकप्रिय होना।
  2. कांग्रेस के पास ही राष्ट्र के कोने-कोने व ग्रामीण स्तर तक संगठन होना तथा
  3. पंडित नेहरू का करिश्माई व्यक्तित्व का होना।

प्रश्न 5.
मतदान के किन्हीं दो तरीकों का वर्णन करो।
उत्तर:

  1. मतपत्र के द्वारा मतदान: मतपत्र पर हर उम्मीदवार का नाम और चुनाव चिन्ह अंकित होता है। मतदाता को मतपत्र पर अपने पसंद के उम्मीदवार के नाम पर मोहर लगानी होती है।
  2. ई. वी. एम. द्वारा मतदान: ई.वी.एम. मशीन में मतदाता को अपनी पसंद के नाम के आगे की बटन दबानी होती है।

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प्रश्न 6.
काँग्रेस पार्टी के प्रभुत्व ने पहले तीन चुनावों में भारत में लोकतंत्र स्थापित करने में किस प्रकार मदद की?
उत्तर:
पहला आम चुनाव एक गरीब और अनपढ़ देश में लोकतंत्र की पहली परीक्षा थी। उस समय तक लोकतंत्र केवल समृद्ध देशों में मौजूद था। उस समय तक यूरोप के कई देशों ने महिलाओं को मतदान का अधिकार नहीं दिया था। इस संदर्भ में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के साथ भारत का प्रयोग एक साहसिक और जोखिम भरा कदम था। 1952 में भारत का आम चुनाव पूरी दुनिया में लोकतंत्र के इतिहास के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। अब यह तर्क दे पाना संभव नहीं रहा कि गरीबी या शिक्षा की कमी की स्थितियों में लोकतांत्रिक चुनाव नहीं कराए जा सकते हैं। यह साबित हुआ कि दुनिया में कहीं भी लोकतंत्र का अभ्यास किया जा सकता है। अगले दो आम चुनावों ने भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत किया।

प्रश्न 7.
” सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के साथ भारत का प्रयोग बहुत साहसिक और जोखिम भरा दिखाई दिया।” बयान को सही ठहराते हुए तर्क दीजिए।
उत्तर:
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के साथ भारत का प्रयोग बहुत साहसिक और जोखिम भरा दिखाई दिया। इसके तर्क निम्न हैं।

  1. देश के विशाल आकार और जनसंख्या ने इन चुनावों को असामान्य बना दिया।
  2. 1952 का चुनाव भारत जैसे गरीब और अनपढ़ देश के लिए एक बड़ी परीक्षा थी।
  3. इसके पहले लोकतंत्र मुख्यतया यूरोप और उत्तरी अमेरिका जैसे विकासशील देशों में हुआ करता था जहाँ की जनसंख्या साक्षर थी।

प्रश्न 8.
दल-बदल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
दल-बदल का साधारण अर्थ एक दल से दूसरे दल में सम्मिलित होना है। इसमें निम्नलिखित स्थितियाँ सम्मिलित हैं।

  1. किसी विधायक का किसी दल के टिकट पर निर्वाचित होकर उसे छोड़ देना और अन्य किसी दल में शामिल हो जाना।
  2. मौलिक सिद्धान्तों पर विधायक का अपनी पार्टी की नीति के विरुद्ध योगदान करना।
  3. किसी दल को छोड़ने के बाद विधायक का निर्दलीय रहना।

प्रश्न 9.
1952 के चुनाव ने यह साबित कर दिया कि भारतीय जनता ने विश्व के इतिहास में लोकतंत्र के सबसे बड़े प्रयोग को बखूबी अंजाम दिया। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1952 में देश के अधिकांश हिस्सों में मतदान हुआ। लोगों ने इस चुनाव में बढ़-चढ़कर उत्साहपूर्वक भाग लिया। कुल मतदाताओं में से आधे से अधिक ने मतदान के दिन अपना मत डाला। चुनावों के परिणाम घोषित हुए तो हारने वाले उम्मीदवारों ने भी इस परिणाम को निष्पक्ष बताया। सार्वभौम मताधिकार के इस प्रयोग ने आलोचकों का मुँह बंद कर दिया। अत: हर जगह यह बात मानी जाने लगी कि भारतीय जनता ने विश्व के इतिहास में लोकतंत्र के सबसे बड़े प्रयोग को बखूबी अंजाम दिया।

प्रश्न 10.
भारत के किन्हीं दो ऐसे क्षेत्रीय दलों के नाम लिखिए जो किसी क्षेत्र विशेष से जुड़े हुए हैं।
उत्तर:

  1. द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK): द्रविड़ मुनेत्र कड़गम तमिलनाडु में एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय दल है।
  2. बीजू जनता दल – बीजू जनता दल उड़ीसा में एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय दल है।

प्रश्न 11.
भारतीय जनसंघ की दो विचारधाराएँ बताइये।
उत्तर:

  1. भारतीय जनसंघ ने एक देश, एक संस्कृति और एक राष्ट्र के विचार पर जोर दिया।
  2. जनसंघ का विचार था कि भारतीय संस्कृति और परम्परा के आधार पर भारत आधुनिक, प्रगतिशील और ताकतवर बन सकता है।

प्रश्न 12.
आलोचक ऐसा क्यों सोचते थे कि भारत में चुनाव सफलतापूर्वक नहीं कराए जा सकेंगे? किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
भारत चुनाव सफलतापूर्वक सम्पन्न नहीं कराये जा सकने के सम्बन्ध में आलोचकों के तर्क ये थे।

  1. भारत क्षेत्रफल तथा जनसंख्या की दृष्टि से बहुत बड़ा देश है तथा शुरू से ही नागरिकों को सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार प्रदान कर दिया गया है। इतने बड़े निर्वाचक मण्डल के लिए व्यवस्था करना बहुत कठिन होगा।
  2. भारत के अधिकांश मतदाता अशिक्षित थे। वे स्वतंत्र व समझदारी से मताधिकार का प्रयोग कर सकेंगे, इस पर उन्हें संदेह था।

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प्रश्न 13.
आचार्य नरेन्द्र देव कौन थे?
उत्तर:
आचार्य नरेन्द्र देव प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी एवं कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक थे। वे बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध विद्वान् थे तथा किसान आन्दोलन के सक्रिय नेता थे। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का नेतृत्व किया।

प्रश्न 14.
डॉ. अम्बेडकर ने कांग्रेस पार्टी को एक सराय की संज्ञा क्यों दी?
उत्तर:
डॉ. अम्बेडकर ने कांग्रेस पार्टी को एक सराय कहा क्योंकि कांग्रेस पार्टी के द्वार समाज के सभी लोगों के लिए खुले हुए थे। डॉ. अम्बेडकर के अनुसार कांग्रेस पार्टी के द्वार मित्रों, दुश्मनों, चालाक व्यक्तियों, मूर्खों तथा यहाँ तक कि सम्प्रदायवादियों के लिए भी खुले हुए
थे।

प्रश्न 15.
हमारे देश की चुनाव प्रणाली के कारण काँग्रेस पार्टी की जीत को अलग से बढ़ावा मिला। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हमारे देश की चुनाव:
प्रणाली में ‘सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत’ के तरीके को अपनाया गया है। इस ‘प्रणाली के अनुसार अगर कोई पार्टी बाकियों की अपेक्षा थोड़े ज्यादा वोट हासिल करती है तो दूसरी पार्टियों को प्राप्त वोटों के अनुपात की ‘ तुलना में उसे कहीं ज्यादा सीटें हासिल होती हैं। इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि कांग्रेस पार्टी की जीत का आँकड़ा और दायरा हमारी चुनाव – प्रणाली के कारण बढ़ा-चढ़ा दिखता है ।

उदाहरण: 1952 में कांग्रेस पार्टी को कुल वोटों में से मात्र 45 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे लेकिन कांग्रेस को 74 फीसदी सीटें हासिल हुईं। सोशलिस्ट पार्टी वोट हासिल करने के लिहाज से दूसरे नंबर पर रही। उसे 1952 के चुनाव में पूरे देश में कुल 10 प्रतिशत वोट मिले थे लेकिन यह पार्टी 3 प्रतिशत सीटें भी नहीं जीत पायी।

प्रश्न 16.
साझा सरकारों के हुए परिणामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
साझा सरकारों के दुष्परिणाम निम्न हैं।

  1. विभाजन व विघटन की प्रवृत्ति
  2. वसरवादिता की प्रवृत्ति
  3. उत्तरदायित्व की प्रवृत्ति
  4. राजनीतिक दलों की नीतियों और कार्यक्रमों में अनिश्चितता और अस्पष्टता।

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प्रश्न 17.
निर्दलियों की बढ़ती संख्या एक चुनौती है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
चुनाव में किसी राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न होने की स्थिति में निर्दलीय उम्मीदवारों की भूमिका बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि हो रही है। ये निर्दलीय उम्मीदवार भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हैं। यह भारतीय दलीय व्यवस्था के हित में नहीं है।

प्रश्न 18.
भारत ही एकमात्र ऐसा देश नहीं है जो एक पार्टी के प्रभुत्व के दौर से गुजरा हो। संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत ही एकमात्र ऐसा देश नहीं है जो एक पार्टी के प्रभुत्व के दौर से गुजरा हो। दुनिया के बाकी देशों को ‘देखने पर हमें एक पार्टी के प्रभुत्व के बहुत से उदाहरण मिलेंगे। हालाँकि बाकी मुल्कों में एक पार्टी के प्रभुत्व और भारत में ‘एक पार्टी के प्रभुत्व के बीच एक अंतर है। बाकी के देशों में एक पार्टी का प्रभुत्व लोकतंत्र की कीमत पर कायम हुआ है।
उदाहरण

  1. कुछ देशों जैसे चीन, क्यूबा और सीरिया के संविधान में सिर्फ एक ही पार्टी को देश के शासन की अनुमति दी गई है।
  2. कुछ अन्य देशों जैसे म्यांमार, बेलारूस और इरीट्रिया में एक पार्टी का प्रभुत्व कानूनी और सैन्य उपायों के चलते कायम हुआ है।
  3. अब से कुछ साल पहले तक मैक्सिको, दक्षिण कोरिया और ताईवान भी एक पार्टी के प्रभुत्व वाले देश थे।

प्रश्न 19.
भीमराव रामजी अंबेडकर पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
आपका पूरा नाम बाबा साहब भीमराव रामजी अंबेडकर है। आप जाति विरोधी आंदोलन के नेता और दलितों को न्याय दिलाने के लिए हुए संघर्ष के अगुआ थे। आपने इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना की। बाद में शिड्यूल्ड कास्टस् फेडरेशन की स्थापना की। आप रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के गठन के योजनाकार रहे हैं। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान वायसराय की काउंसिल में सदस्य रहे हैं। आप संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। भारत की आजादी के बाद नेहरू के पहले मंत्रिमंडल में मंत्री की भूमिका अदा की। आपने हिन्दू कोड बिल के मुद्दे पर अपनी असहमति जताते हुए 1951 में इस्तीफा दे दिया। आपने 1956 में हजारों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया

प्रश्न 20.
सी. राजगोपालाचारी के व्यक्तित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
सी. राजगोपालाचारी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं प्रसिद्ध साहित्यकार थे। वे संविधान सभा के सदस्य थे तथा भारत के प्रथम गवर्नर जनरल बने वे केंन्द्र सरकार में मंत्री तथा मद्रास के मुख्यमंत्री भी रहे। 1959 में उन्होंने स्वतन्त्र पार्टी की स्थापना की। उनकी सेवाओं के लिए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित भी किया गया।

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प्रश्न 21.
श्यामा प्रसाद मुखर्जी के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
श्यामा प्रसाद मुखर्जी:
श्यामा प्रसाद मुखर्जी संविधान सभा के सदस्य थे। वे हिन्दू महासभा के महत्त्वपूर्ण नेता तथा भारतीय जनसंघ के संस्थापक थे। वे कश्मीर को स्वायत्तता देने के विरुद्ध थे। कश्मीर नीति पर जनसंघ के प्रदर्शन के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया तथा 1953 में हिरासत में ही उनकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 22.
विपक्षी दल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जो दल सरकार की नीतियों एवं कार्यक्रमों की कमियों को उजागर कर उनकी आलोचना करे उसे विपक्षी दल कहा जाता है। स्वतन्त्रता प्राप्ति से लेकर 1967 तक भारत में संगठित विरोधी दल का अभाव था, परन्तु वर्तमान में संगठित विरोधी दल पाया जाता है।

प्रश्न 23.
भारत की किन्हीं तीन राष्ट्रीय पार्टियों के नाम व चुनाव चिह्न बताइए।
उत्तर:
पार्टी का नाम – चुनाव चिह्न

  1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस – हाथ
  2. भारतीय जनता पार्टी – कमल का फूल
  3. बहुजन समाज पार्टी – हाथी

प्रश्न 24.
भारत में लोकतन्त्र स्थापित करने की चुनौती को समझाइये।
उत्तर:
भारत में लोकतन्त्र स्थापित करने की चुनौती: भारत में लोकतन्त्र स्थापित करने की चुनौती निम्न कारणों से थी।
1. विभिन्न धार्मिक राजनीतिक समूहों में एकता स्थापित करना: भारतीय नेताओं के समक्ष लोकतन्त्र की स्थापना हेतु विभिन्न धार्मिक एवं राजनीतिक समूहों में पारस्परिक एकता की भावना को विकसित करने की चुनौती थी।

2. निष्पक्ष चुनावों की व्यवस्था करना: भारत के विस्तृत आकार को देखते हुए निष्पक्ष चुनावों की व्यवस्था करना भी एक गम्भीर चुनौती थी। चुनाव क्षेत्रों का सीमांकन करना, मताधिकार प्राप्त वयस्क व्यक्तियों की सूची बनाना भी आवश्यक था। मतदाताओं में केवल 15 प्रतिशत ही साक्षर थे। 1952 के चुनाव में 50 प्रतिशत मतदाताओं ने मत डाला। चुनाव निष्पक्ष हुए। इस प्रकार भारत लोकतन्त्र स्थापित करने में सफल रहा।

प्रश्न 25.
प्रारम्भ से ही कांग्रेस पार्टी का भारतीय राजनीति में केन्द्रीय स्थान रहा है । क्यों?
उत्तर:
कांग्रेस भारत का सबसे पुराना राजनीतिक दल रहा है। भारतीय राजनीति के केन्द्र में यह दो दृष्टिकोणों से प्रमुख -प्रथम, अनेक दल तथा गुट कांग्रेस के केन्द्र से विकसित हुए हैं और इसके इर्द-गिर्द अपनी नीतियों तथा अपनी गुटीय रणनीतियों को विकसित किया तथा द्वितीय, भारतीय राजनीति के वैचारिक वर्णक्रम के केन्द्र का अभियोग करते हुए यह एक ऐसे केन्द्रीय दल के रूप में स्थित रहा है, जिसके दोनों ओर अन्य दल तथा गुट नजर आते रहे हैं। भारत में स्वतंत्रता के बाद से केवल एक केन्द्रीय दल उपस्थित रहा है और वह है कांग्रेस पार्टी। लेकिन वर्तमान समय में दलीय व्यवस्था के स्वरूप में व्यापक परिवर्तन आया है जिसमें बहुदलीय व्यवस्था और क्षेत्रीय दलों के विकास ने एकदलीय प्रभुत्व की स्थिति को कमजोर बना दिया है।

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प्रश्न 26.
प्रथम तीन आम चुनावों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की मजबूत स्थिति के पीछे उत्तरदायी कारणों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कांग्रेस की प्रधानता के लिए उत्तरदायी कारण- प्रथम तीन आम चुनावों में कांग्रेस की मजबूत स्थिति के पीछे निम्नलिखित कारण जिम्मेदार रहे हैं।

  1. कांग्रेस पार्टी को राष्ट्रीय आंदोलन के वारिस के रूप में देखा गया। आजादी के आंदोलन के अग्रणी नेताओं ने अब कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े।
  2. कांग्रेस ही ऐसा दल था जिसके पास राष्ट्र के कोने-कोने व ग्रामीण स्तर तक फैला हुआ एवं संगठित संगठन था।
  3. कांग्रेस एक ऐसा संगठन था जो अपने आपको स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल ढाल सकने में समर्थ था।
  4. कांग्रेस पहले से ही एक सुसंगठित पार्टी थी। बाकी दल अभी अपनी रणनीति सोच ही रहे होते थे कि कांग्रेस अपना अभियान शुरू कर देती इस प्रकार कांग्रेस को ‘अव्वल और इकलौता’ होने का फायदा मिला।
  5. पण्डित नेहरू का करिश्माई व्यक्तित्व भी कांग्रेस के प्रभुत्व को बनाने में सफल रहा।

प्रश्न 27.
पहले तीन आम चुनावों में काँग्रेस के प्रभुत्व का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पहले तीन आम चुनावों में कांग्रेस के प्रभुत्व का वर्णन निम्न कथनों द्वारा किया जा सकता है।

  1. 1952 के चुनाव में कॉंग्रेस 489 सीटों में से 364 सीटों पर विजयी रही।
  2. 16 सीटों के साथ कम्युनिस्ट पार्टी दूसरे स्थान पर रही।
  3. लोकसभा के चुनाव के साथ-साथ विधानसभा के चुनावों में भी कांग्रेस पार्टी ने बड़ी जीत हासिल की।
  4. त्रावणकोर-कोचीन, मद्रास और उड़ीसा को छोड़कर सभी राज्यों में कांग्रेस ने अधिकतर सीटों पर जीत दर्ज की। आखिरकार इन तीनों राज्यों में भी काँग्रेस की ही सरकार बनी। इस तरह राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर पर पूरे देश में काँग्रेस पार्टी का शासन कायम हुआ।
  5. 1957 और 1962 में क्रमशः दूसरा और तीसरा चुनाव हुआ। इस चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा में अपनी पुरानी स्थिति कायम रखी, उसका दशांश भी कोई विपक्षी पार्टी नहीं जीत सकी।

प्रश्न 28.
शक्तिशाली विपक्ष पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
आठवीं लोकसभा चुनावों तक 1969-70 तथा 1977-79 के काल को छोड़कर भारतीय राजनीति में सामान्यतः विपक्ष कमजोर तथा विभाजित ही रहा, लेकिन 9वीं लोकसभा चुनाव से लेकर 16वीं लोकसभा के चुनावों में संसद तथा भारतीय राजनीति में शक्तिशाली विपक्ष रहा है। 1990 ई. में कांग्रेस (इ) शक्तिशाली विपक्ष की स्थिति में थी, जिसे लोकसभा में 193 स्थान और राज्यसभा में लगभग बहुमत प्राप्त था। 10वीं व 11वीं लोकसभा में भी कांग्रेस को मुख्य विपक्षी दल की स्थिति प्राप्त रही जबकि 14वीं व 15वीं लोकसभा में भाजपा को मुख्य विपक्षी दल की स्थिति प्राप्त रही। 16वीं लोकसभा में कांग्रेस व दूसरे क्षेत्रीय दल, शक्तिशाली विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं। इस काल में राज्य स्तर पर भी अधिकांश राज्यों में विपक्ष पर्याप्त शक्तिशाली रहा है।

प्रश्न 29.
भारत में राजनीतिक दलों द्वारा अपने कार्यों का निर्वहन करने में आने वाली तीन कठिनाइयों को बताइये।
उत्तर:
राजनीतिक दलों की समस्याएँ: भारत में राजनीतिक दलों की प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं।

  1. दलीय व्यवस्था में अस्थिरता: भारतीय दलीय व्यवस्था निरन्तर बिखराव और विभाजन का शिकार रही है। सत्ता प्राप्ति की लालसा ने राजनीतिक दलों को अवसरवादी बना दिया है जिससे यह संकट उत्पन्न हुआ है।
  2. राजनीतिक दलों में गुटीय राजनीति: भारत के अधिकांश राजनीतिक दलों में तीव्र आन्तरिक गुटबन्दी विद्यमान है। इन दलों में छोटे-छोटे गुट पाये जाते हैं।
  3. दलों में आन्तरिक लोकतन्त्र का अभाव: भारत के अधिकांश राजनीतिक दलों में आन्तरिक लोकतन्त्र का अभाव है और वे घोर अनुशासनहीनता से पीड़ित हैं। भारत में अधिकांश राजनीतिक दल नेतृत्व की मनमानी प्रवृत्ति और सदस्यों की अनुशासनहीनता से पीड़ित है।

प्रश्न 30.
राजनीतिक दलों के प्रमुख तत्त्वों को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
राजनीतिक दलों के प्रमुख तत्त्व: किसी भी राजनीतिक दल के निर्माण के लिए निम्न तत्त्वों का होना आवश्यक है।

  1. संगठन: संगठन से तात्पर्य है। कि दल ने अपने कुछ लिखित एवं अलिखित नियम, उपनियम, कार्यालय, पदाधिकारी आदि होने चाहिए। ये दल के सदस्यों को अनुशासित रखते हैं।
  2. मूलभूत सिद्धान्तों में एकता: सिद्धान्तों की एकता ही दल को ठोस आधार प्रदान करती है। सैद्धान्तिक एकता के अभाव में दल की जड़ें हिल जायेंगी।
  3. संवैधानिक साधनों का प्रयोग: राजनीतिक दलों को जाति, धर्म, सम्प्रदाय या वर्ग हित की अपेक्षा राष्ट्रीय हित की अभिवृद्धि हेतु प्रयास करना चाहिए।

प्रश्न 31.
1952 के पहले आम चुनाव से लेकर 2004 के आम चुनाव तक मतदान के तरीके में क्या बदलाव आये हैं?
उत्तर:
1952 से लेकर 2004 के आम चुनाव तक मतदान के तरीकों में निम्न प्रकार बदलाव आये हैं।

  1. 1952 के पहले आम चुनाव में प्रत्येक उम्मीदवार के नाम व चुनाव चिह्न की एक मतपेटी रखी गयी थी। हर मतदाता को एक खाली मत पत्र दिया गया जिसे उसने अपने पसंद के उम्मीदवार की मतपेटी में डाला। शुरूआती दो चुनावों के बाद यह तरीका बदल दिया गया।
  2. बाद के चुनावों में मतपत्र पर हर उम्मीदवार का नाम व चुनाव चिह्न अंकित किया गया। मतदाता को मतपत्र में अपने पसंद के उम्मीदवार के आगे मुहर लगानी होती थी।
  3. सन् 1990 के दशक के अन्त में चुनाव आयोग ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का प्रयोग शुरू कर दिया। इसमें मतदाता अपने पसंद के उम्मीदवार के सामने दिये गये बटन को दबा देता है।

प्रश्न 32.
भारतीय दलीय व्यवस्था की कोई तीन कमियाँ लिखिए जो सरकारों की अस्थिरता के लिए उत्तरदायी हैं।
उत्तर:
भारतीय दलीय व्यवस्था की कमियाँ – भारतीय दलीय व्यवस्था की निम्नलिखित कमियाँ या समस्याएँ सरकार की अस्थिरता के लिए उत्तरदायी हैं।

  1. राजनीतिक दल-बदल: भारतीय राजनीतिक दलों में वैचारिक प्रतिबद्धता का अभाव तीव्र आन्तरिक गुटबन्दी और गहरी सत्ता लिप्सा ने दलीय व्यवस्था में राजनीति दल-बदल को जन्म दिया है जिसने राजनीतिक अस्थिरता को जन्म दिया।
  2. नेतृत्व संकट: भारत में राजनीतिक दलों के समक्ष नेतृत्व का संकट भी है। नेतृत्व का बौना कद दल को एकजुट रखने में असमर्थ रहता है।
  3. वैचारिक प्रतिबद्धता का अभाव: विचारधारा पर आधारित दलों जैसे मार्क्सवादी दल, भारतीय साम्यवादी दल, भाजपा आदि ने भी घोर अवसरवादी राजनीति का परिचय देते हुए येन-केन प्रकारेण सत्ता प्राप्त करने के लिए अपने सिद्धान्तों को तिलांजलि दी है।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 33.
भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व राजनीतिक दलों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता से पूर्व भारत के राजनीतिक दल इस प्रकार थे।

  1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस: स्वतन्त्रता से पूर्व भारत में राजनीतिक दलों का जन्म विदेशी साम्राज्य के विरुद्ध राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन कोचलाने के लिए हुआ था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना सन् 1885 में हुई थी। वास्तव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस उस समय न केवल एक राजनीतिक दल था, बल्कि एक ऐसा मंच था जिसमें हर विचारधारा के लोग शामिल थे, जिनका उद्देश्य छोटे-छोटे सुधार करना था। गई।
  2. मुस्लिम लीग: 1906 में मुस्लिम हितों की रक्षा के लिए अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना की
  3. भारतीय साम्यवादी दल: 1924 में साम्यवादी दल की स्थापना एम.एन. रॉय ने की।
  4. भारतीय समाजवादी पार्टी1934 में आचार्य नरेन्द्र देव, जयप्रकाश नारायण एवं राममनोहर लोहिया ने भारतीय समाजवादी पार्टी की स्थापना की।

प्रश्न 34.
भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख कार्यक्रमों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भाजपा के प्रमुख कार्यक्रम: भाजपा की जो नीतियाँ, सिद्धान्त एवं कार्यक्रम हैं, वे अपने पूर्ववर्ती जनसंघ की नीतियों, सिद्धान्तों एवं कार्यक्रमों से समानता रखते हैं। जनसंघ गाँधीवाद, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्रीय एकता, लोकतन्त्र, न्याय एवं समानता के आदर्शों पर टिका हुआ था। राष्ट्रीय एकता के सन्दर्भ में इसका नारा था कि अनुच्छेद 370 को समाप्त कर कश्मीर का पूर्णत: भारत में विलय हो तथा वह एक सामान्य राज्य का दर्जा प्राप्त करे।

राष्ट्रीय सुरक्षा के सन्दर्भ में यह कठोर रुख अपनाने का समर्थक था। यह एक ऐसा दल था जो भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को पूर्ण रूप से अपनाये हुए था। परन्तु ज्यों ही जनसंघ भाजपा में परिवर्तित हुआ त्यों ही अपने मूलभूत सिद्धान्तों से धीरे-धीरे दूर होता चला गया।

प्रश्न 35.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कार्यक्रमों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कार्यक्रम: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कार्यक्रमों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है।

  1. स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व कांग्रेस का मुख्य उद्देश्य स्वतन्त्रता प्राप्ति था, उस समय कांग्रेस एक राजनीतिक दल नहीं बल्कि राष्ट्रीय आन्दोलन भी था। स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान इसके आदर्श थे। संसदीय लोकतन्त्र, धर्मनिरपेक्षता तथा समाजवाद।
  2. स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरान्त कांग्रेस 30 वर्षों तक सत्तारूढ़ रही। इन तीस वर्षों में कांग्रेस ने अस्पृश्यता उन्मूलन, दलितों का उत्थान, जमींदारी प्रथा का उन्मूलन, मिश्रित अर्थव्यवस्था पर बल, सार्वजनिक उद्यमों की स्थापना के कार्यक्रम अपनाये।
  3. वर्तमान में कांग्रेस पार्टी अपने समाजवादी सिद्धान्तों से काफी दूर हो चुकी है। चुनाव घोषणा पत्रों के माध्यम से कांग्रेस आर्थिक सुधार, प्रगति, विकास तथा प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार का वचन देती है और उदारवादी अर्थव्यवस्था को अपनाए हुए है।

प्रश्न 36.
भारत में क्षेत्रीय दलों की प्रकृति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। क्षेत्रीय दल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
उत्तर:
भारत में क्षेत्रीय दलों की प्रकृति- भारत में क्षेत्रीय दलों की प्रकृति को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है।

  1. जाति, धर्म, क्षेत्र या समुदाय पर आधारित क्षेत्रीय दल: भारत के कुछ क्षेत्रीय दल या तो किसी जाति विशेष पर आधारित हैं या धर्म – विशेष पर या क्षेत्र विशेष पर या किसी समुदाय विशेष पर आधारित हैं।
  2. राष्ट्रीय दलों से निकले क्षेत्रीय दल: कुछ क्षेत्रीय दल वे हैं जो किसी समस्या विशेष या नेतृत्व के प्रश्न को लेकर राष्ट्रीय दलों विशेषकर कांग्रेस आदि से अलग हुए हैं, जैसे- केरल कांग्रेस, बंगला कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, तमिल मनीला कांग्रेस आदि।
  3. विचारधारा पर आधारित क्षेत्रीय दल: भारत में कुछ राजनीतिक दल विचारधारा पर आधारित हैं, जैसे फारवर्ड ब्लॉक, किसान मजदूर पार्टी आदि।

प्रश्न 37.
आजादी के बाद भारत में अनेक पार्टियों ने मुक्त और निष्पक्ष चुनाव में एक-दूसरे से स्पर्धा की फिर भी काँग्रेस पार्टी ही विजयी होती गई। क्यों?
उत्तर:
काँग्रेस पार्टी की इस असाधारण सफलता की जड़ें स्वाधीनता संग्राम की विरासत में है। कांग्रेस पार्टी को जनता ने तथा सभी ने आंदोलन के वारिस के रूप में देखा। आजादी के आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाने वाले कई नेता अब काँग्रेस के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे थे। काँग्रेस शुरू से ही एक सुसंगठित पार्टी थी। चुनाव के दौरान जब तक बाकी के दल चुनावी रणनीति सोच रहे होते थे तब तक कांग्रेस अपना चुनावी अभियान शुरू कर चुकी होती थी। अनेक पार्टियों का गठन स्वतंत्रता के समय के आस-पास अथवा उसके बाद में हुआ।

जबकि काँग्रेस पार्टी आजादी के वक्त तक देश में चारों ओर फैल चुकी थी। इस पार्टी के संगठन का नेटवर्क स्थानीय स्तर तक पहुँच चुका था। कांग्रेस पार्टी की सबसे खास बात यह थी कि यह आजादी के आंदोलन की अग्रणी थी और इसकी प्रकृति सबको साथ लेकर चलने की थी। इसी कारण आजादी के बाद भारत में अनेक पार्टियों ने मुक्त और निष्पक्ष चुनाव में एक-दूसरे से स्पर्धा की फिर भी काँग्रेस पार्टी हर बार विजयी होती गई।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 38.
कॉंग्रेस पार्टी के जन्म से लेकर अब तक इस पार्टी में क्या बदलाव आया है? संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
शुरू-शुरू में काँग्रेस में अंग्रेजीदाँ, अगड़ी जाति, उच्च मध्यवर्ग और शहरी अभिजन का वर्चस्व था। परंतु जब भी कॉंग्रेस ने सविनय अवज्ञा जैसे आंदोलन चलाए उसका सामाजिक आधार बढ़ा। काँग्रेस ने परस्पर विरोधी हितों के कई समूहों को एक साथ जोड़ा। समय के साथ-साथ काँग्रेस में किसान और उद्योगपति, गाँव और शहर के रहने वाले, मालिक और मजदूर और उच्च, मध्य एवं निम्न वर्ग सभी जातियों को जगह मिली।

धीरे-धीरे काँग्रेस का नेतृवर्ग विस्तृत हुआ। इसका नेतृवर्ग अब उच्च वर्ग या जाति के पेशेवर लोगों तक ही सीमित नहीं रहा। इसमें खेती-किसानी की बुनियाद वाले तथा गाँव- गिरान की तरफ रुझान रखने वाले नेता भी उभरे। आजादी के समय तक काँग्रेस एक सतरंगे सामाजिक गठबंधन की शक्ल धारण कर चुकी थी और वर्ग, जाति, धर्म, भाषा तथा अन्य हितों के आधार पर इस सामाजिक गठबंधन से भारत की विविधता की नुमाइंदगी हो रही थी।

प्रश्न 39.
किस वजह से काँग्रेस ने एक जनव्यापी राजनीतिक पार्टी का रूप लिया और राजनीतिक- व्यवस्था में इसका दबदबा कायम हुआ?
उत्तर:
काँग्रेस का जन्म 1885 में हुआ था। उस समय यह नवशिक्षित, कामकाजी और व्यापारिक वर्गों का एक हित – समूह भर थी। लेकिन 20वीं सदी में इस पार्टी ने जन आंदोलन का रूप ले लिया । इस वजह से कांग्रेस ने एक जनव्यापी राजनीतिक पार्टी का रूप लिया और राजनीतिक व्यवस्था में इसका दबदबा कायम हुआ।

प्रश्न 40.
ए. के. गोपालन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
ए. के. गोपालन केरल के कम्युनिस्ट नेता थे। आपके राजनीतिक जीवन की शुरुआत काँग्रेस कार्यकर्ता के रूप में हुई। परंतु 1939 में आपने कम्युनिस्ट पार्टी के साथ खुद को जोड़ा। 1964 में कम्युनिस्ट पार्टी के विभाजन के पश्चात् आप कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) में शामिल हुए और इस पार्टी की मजबूती के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किया। आपको सांसद के रूप में विशेष ख्याति प्राप्त हुई।

प्रश्न 41.
कॉंग्रेस पार्टी में गुटों की मौजूदगी की प्रणाली शासक दल के भीतर संतुलन साधने के औजार की तरह काम करती थी। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
काँग्रेस पार्टी की अधिकतर प्रांतीय इकाइयाँ विभिन्न गुटों को मिलाकर बनी थीं। ये गुट अलग-अलग विचारधाराओं वाले थे और इस कारण काँग्रेस एक भारी-भरकम मध्यमार्गी पार्टी के रूप में उभरकर सामने आती थी। दूसरी पार्टियाँ अक्सर काँग्रेसी गुटों को प्रभावित करने का कार्य करती रहती थीं। इस प्रकार बाकी पार्टियाँ हाशिए पर रहकर ही नीतियों और फैसलों को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर पाती थीं। ये पार्टियाँ सत्ता के वास्तविक इस्तेमाल से कोसों दूर थीं। शासक दल का कोई विकल्प नहीं था। इसके बावजूद विपक्षी पार्टियाँ लगातार काँग्रेस की आलोचना करती थीं, उस पर दबाव डालती थीं और इस क्रम में उसे प्रभावित करती थीं। इस प्रकार गुटों की मौजूदगी की यह प्रणाली शासक दल के भीतर संतुलन साधने के औजार की तरह काम करती थी । इस तरह राजनीतिक होड़ काँग्रेस के भीतर ही चलती थी।

प्रश्न 42.
1950 के दशक में विपक्षी दलों की मौजूदगी ने भारतीय शासन- व्यवस्था के लोकतांत्रिक चरित्र को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
1950 के दशक में विपक्षी दलों को लोकसभा अथवा विधानसभा में मात्र कहने भर को प्रतिनिधित्व मिल पाया फिर भी इन दलों ने भारतीय शासनव्यवस्था के लोकतांत्रिक चरित्र को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस कथन की पुष्टि निम्न तथ्यों से की जा सकती है।

  1. इन दलों ने काँग्रेस पार्टी की नीतियों और व्यवहारों की सुचिन्तित आलोचना की। इन आलोचनाओं में सिद्धांतों का बल होता था। बदला।
  2. विपक्षी दलों ने शासक दल पर अंकुश रखा और इन दलों के कारण काँग्रेस पार्टी के भीतर शक्ति-संतुलन
  3. इन दलों ने लोकतांत्रिक राजनीतिक विकल्प की संभावना को जीवंत रखा। ऐसा करके इन दलों ने व्यवस्थाजन्य रोष को लोकतंत्र-विरोधी बनने से रोका।
  4. इन दलों ने ऐसे नेता तैयार किए जिन्होंने आगे के समय में हमारे देश की तस्वीर को संवारने में अहम भूमिका निभाई।

प्रश्न 43.
आजादी के बाद काफी समय तक भारत देश में लोकतांत्रिक राजनीति का पहला दौर एकदम अनूठा था। इस कथन के समर्थन में तर्क दीजिए।
उत्तर:
शुरुआती सालों में काँग्रेस और विपक्षी दलों के नेताओं के बीच पारस्परिक सम्मान का गहरा भाव था। स्वतंत्रता की घोषणा के बाद अंतरिम सरकार ने देश का शासन सँभाला था। इसके मंत्रिमंडल में डॉ. अंबेडकर और श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेता शामिल थे। नेहरू सोशलिस्ट पार्टी के प्रति काफी लगाव रखते थे। इसलिए उन्होंने जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी नेताओं को सरकार में शामिल होने का प्रस्ताव दिया था।

अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी से इस प्रकार की नजदीकी उसके प्रति सम्मान का भाव दलगत प्रतिस्पर्धा के तेज़ होने के बाद लगातार कम होता गया। राष्ट्रीय आंदोलन का चरित्र समावेशी था। इस तरह हम यह कह सकते हैं कि आजादी के बाद लंबे समय तक अपने देश में लोकतांत्रिक राजनीति का पहला दौर अनूठा था।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय राजनीति में 1952 से 1966 के युग को ‘एक दल के प्रभुत्व का दौर’ कहकर पुकारा गया है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? किन्हीं तीन कारकों की व्याख्या कीजिये जिन्होंने इस प्रभुत्व को बनाए रखने में सहायता की।
अथवा
प्रथम तीन आम चुनावों के सन्दर्भ में एक दल की प्रधानता का वर्णन कीजिए तथा इस प्रधानता के कारकों को स्पष्ट कीजिये। संजीव पास बुक्स
उत्तर:
स्वतंत्रता के बाद भारत के राजनैतिक परिदृश्य में कांग्रेस का वर्चस्व लगातार तीन दशकों तक कायम रहा। यह निम्न प्रथम तीन आम चुनावों के परिणामों से स्पष्ट होता है।

  1. प्रथम तीन चुनावों में संसद की 494 सीटों में से कांग्रेस ने 1952 में 364, 1957 में 371 तथा 1962 में 361 सीटें जीतीं।
  2. इस काल में केरल और जम्मू-कश्मीर को छोड़कर शेष सभी राज्यों में भी कांग्रेस की सरकारें बनीं। उपर्युक्त चुनाव परिणाम दर्शाते हैं कि 1952 से 1966 तक भारत में ‘एक दलीय प्रभुत्व’ की स्थिति  ही।

भारत में एक दल की प्रधानता के कारण: भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् चुनावों में एक दल के प्रभुत्व के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  1. कांग्रेस पार्टी को सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व प्राप्त था: कांग्रेस पार्टी में देश के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व प्राप्त था। कांग्रेस पार्टी उदारवादी, उग्रवादी, दक्षिणपंथी, साम्यवादी तथा मध्यमार्गी नेताओं का एक महान मंच था।
  2. कांग्रेस का चमत्कारिक नेतृत्व: कांग्रेस में जवाहरलाल नेहरू थे जो भारतीय राजनीति के सबसे करिश्माई और लोकप्रिय नेता थे।
  3. राष्ट्रीय आंदोलन की विरासत: कांग्रेस पार्टी को स्वतंत्रता संग्राम के वारिस के रूप में देखा गया। स्वतंत्रता आंदोलन के अनेक अग्रणी नेता अब कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे थे।
  4. गुटों में तालमेल और सहनशीलता: कांग्रेस गठबंधनी स्वभाव के कारण विभिन्न गुटों के प्रति सहनशील थी। इससे कांग्रेस एक भारी-भरकम मध्यमार्गी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आती थी। इस सन्दर्भ में दूसरी पार्टियाँ कांग्रेस का विकल्पं प्रस्तुत नहीं कर पायीं।

प्रश्न 2.
कांग्रेस पार्टी की विचारधारा एवं कार्यक्रमों की विवेचना कीजिए।
अथवा
भारतीय कांग्रेस पार्टी के कार्यक्रमों व सिद्धान्तों पर एक आलोचनात्मक नोट लिखिए।
उत्तर:
भारतीय कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की प्रमुख नीतियाँ एवं कार्यक्रम निम्नलिखित हैं।
I. राजनीतिक कार्यक्रम।

  1. कांग्रेस लोकतन्त्र तथा राष्ट्र की एकता व अखण्डता में विश्वास करती है
  2. यह पार्टी राजनीतिक भ्रष्टाचार व राजनीतिक अपराधीकरण का विरोध करती है।
  3. यह लोकपाल की नियुक्ति का समर्थन करती है।
  4. यह आतंकवादियों तथा अन्य राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के विरुद्ध निरन्तर संघर्ष करने के संकल्प पर बल देती है।
  5. यह विदेश नीति के सन्दर्भ में गुटनिरपेक्षता तथा पंचशील अन्तर्राष्ट्रीय शांति के सिद्धान्तों का समर्थन करती है। आर्थिक तथा सामाजिक कार्यक्रम-
  6. यह लोगों को आत्म-निर्भर बनाने तथा भारत जैसे गरीब देश को सम्पन्नता की ओर ले जाने; गरीबी को दूर करने, बेरोजगारी को मिटाने के प्रति वचनबद्ध है।
  7. यह आर्थिक सुधारों की गति को तीव्र करने, घरेलू उत्पादों में वृद्धि करने, कृषि की पैदावार में वृद्धि करने तथा कृषि आधारित उद्योगों को प्रोत्साहन देने पर बल देती है।
  8. यह आवासीय योजनाओं का विस्तार करने तथा गरीब व कमजोर वर्ग के लोगों को सस्ती दरों पर आवास उपलब्ध कराने, दलितों, आदिवासियों तथा महिला कल्याण, बाल-कल्याण, पर विशेष
  9. योजनाओं एवं कार्यक्रमों पर बल, देती है।
  10. यह संचार के साधनों के तीव्र विकास, शिक्षा व स्वास्थ्य सम्बन्धी योजनाओं के विस्तार पर बल देती है । इस प्रकार ये कुछ नीतियाँ व कार्यक्रम हैं जिनको लेकर यह पार्टी चुनावों में भाग लेती है।

प्रश्न 3.
भारतीय साम्यवादी दल की नीतियों एवं कार्यक्रमों का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
भारतीय साम्यवादी दल की नीतियाँ एवं कार्यक्रम: भारतीय साम्यवादी दल की नीतियाँ एवं कार्यक्रमों का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है।
(क) राजनीतिक कार्यक्रम- पार्टी के राजनीतिक कार्यक्रम एवं नीतियाँ निम्नलिखित हैं।

  1. पार्टी राष्ट्रीय एकता और अखण्डता, साम्प्रदायिक सद्भाव और धर्मनिरपेक्ष लोकतान्त्रिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए वचनबद्ध है।
  2. पार्टी केन्द्र- द- राज्य सम्बन्धों का पुनर्गठन करके राज्यों को आर्थिक शक्तियाँ देने के पक्ष में है।
  3. पार्टी भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए लोकपाल विधेयक का समर्थन करती है।
  4. पार्टी अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा चुनाव प्रणाली में व्यापक सुधार करने, अनुच्छेद 356 को समाप्त किये जाने के पक्ष में है।
  5. पंचायती राज संस्थाओं को मजबूती के पक्ष में है।

(ख) आर्थिक कार्यक्रम: भारतीय साम्यवादी दल के आर्थिक कार्यक्रम एवं नीतियाँ निम्न हैं।

  1. सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण रोका जाए। दूर संचार, बिजली आदि की नीतियों को बदला जाए। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को चुस्त-दुरुस्त किया जाए।
  2. मौजूदा औद्योगिक नीति को बदला जाए। अन्धाधुन्ध उदारीकरण की नीतियों को बदला जाए जो देश की सम्प्रभुता को कमजोर कर रही हैं।
  3. बजट का 50 प्रतिशत कृषि, बागवानी, मत्स्य पालन आदि के विकास के लिए आवण्टित किया जाए और सिंचाई की सुनिश्चित व्यवस्था की जाए।

(ग) सामाजिक कार्यक्रम: भारतीय साम्यवादी दल की सामाजिक नीतियाँ एवं कार्यक्रम निम्नलिखित हैं।

  1. महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की जाए।
  2. लोगों के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण की नीतियों को ग्रामीण क्षेत्र में बढ़ावा दिया जाए।
  3. शिक्षा तथा जन साक्षरता का प्रसार किया जाए।
  4. काम के अधिकार को संविधान में मौलिक अधिकार के रूप में प्रदान किया जाए।
  5. स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था की जाए।

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प्रश्न 4.
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में लोकतांत्रिक प्रणाली अपनाने के प्रतिकूल कौन-कौनसी चुनौतियाँ थीं? विस्तारपूर्वक लिखिये।
उत्तर:
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में लोकतान्त्रिक प्रणाली अपनाने के प्रतिकूल परिस्थितियाँ: स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में लोकतान्त्रिक प्रणाली को अपनाने के प्रतिकूल निम्नलिखित प्रमुख चुनौतियाँ थीं।

  • सार्वभौमिक मताधिकार द्वारा स्वतंत्र और निष्पक्ष आम चुनाव कराना: भारत के आकार को देखते हुए स्वतंत्र और निष्पक्ष आम चुनाव कराना अत्यन्त कठिन मामला था क्योंकि:
    1. चुनाव कराने के लिए चुनाव क्षेत्रों का सीमांकन आवश्यक था,
    2. मताधिकार प्राप्त वयस्क व्यक्तियों की मतदाता सूची बनाना आवश्यक था। ये दोनों ही काम उस समय अत्यन्त कठिन और समय लेने वाले।
  • निरक्षरता और गरीबी उस वक्त देश के मतदाताओं में महज 15 फीसदी ही साक्षर थे। मतदाताओं की बड़ी संख्या गरीब और अनपढ़ लोगों की थी और ऐसे माहौल में चुनाव लोकतंत्र के लिए परीक्षा की कठिन घड़ी था।
  • जातिवाद, क्षेत्रवाद तथा साम्प्रदायिकता: स्वतंत्रता के समय देश में जातिवाद, क्षेत्रवाद, साम्प्रदारिकता, राजाओं के प्रति भक्ति आदि तत्त्व प्रबल थे, जो निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव में बाधक बने हुए थे। मतदाताओं के अशिक्षित और गरीब होने से उन पर इन तत्त्वों के प्रभाव की पूरी गुंजाइश थी। देश में अनेक दलों, जैसे हिन्दू महासभा, मुस्लिम लीग आदि ने साम्प्रदायिक आधार अपना लिया था। साम्प्रदायिक आधार पर ये मतदाताओं को प्रभावित कर रहे थे। ऐसे में लोकतंत्र की सफलता में ये बाधक हो रहे थे।

प्रश्न 5.
1950 के दशक में भारत में विपक्षी पार्टियों की भूमिका की विवेचना कीजिय।
उत्तर:
1950 के दशक में लोकसभा में विपक्षी दलों का प्रतिनिधित्व: 1950 के दशक में भारत में अनेक राजनैतिक दल थे। यद्यपि कांग्रेस का प्रभुत्व था, तथापि अनेक राजनैतिक दलों ने चुनावों में अपने संजीव पास बुक्स उम्मीदवार उतारे थे। ये दल थे। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी आदि।

इस दशक में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। उसे 16 लोकसभा सीटें मिलीं जबकि जनसंघ को तीन चार सीटें ही मिलीं। अन्य दलों को भी कोई खास कामयाबी नहीं मिली। विपक्ष की भूमिका 1950 के दशक में भारत में यद्यपि विपक्षी दलों को लोकसभा या विधानसभा में कहने भर का प्रतिनिधित्व मिला तथापि उसने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। यथा

  1. कांग्रेस की नीतियों की सैद्धान्तिक आलोचना विपक्षी दलों ने कांग्रेस पार्टी की नीतियों और व्यवहारों की सकारात्मक आलोचना की जिसमें सिद्धान्तों का बल होता था।
  2. शासक दल पर अंकुश लगाना इस काल में विपक्षी दलों ने उसकी नीतियों की सैद्धान्तिक आलोचना करके शासक दल पर अंकुश रखा।
  3. राजनीतिक विकल्प की संभावना को जीवित रखना इन दलों ने लोकतांत्रिक राजनीतिक विकल्प की संभावना को जीवित रखा।
  4. कांग्रेस तथा विपक्षी नेताओं के बीच परस्पर सम्मान भाव इस दौर में कांग्रेस और विपक्षी दलों के नेताओं के बीच परस्पर सम्मान का गहरा भाव रहा। लेकिन 60 के दशक में यह सम्मान भाव लगातार कम होता गया।

प्रश्न 6.
मतदान के बदलते तरीके पर निबंध लिखिए।
उत्तर:
इन दिनों चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक मशीन का उपयोग किया जाता है। इसके माध्यम से मतदाता उम्मीदवारों के बारे में अपनी पसंद जाहिर करते हैं। परंतु शुरू-शुरू में ऐसी मशीनों का उपयोग नहीं किया जाता था। पहले के चुनावों में प्रत्येक चुनाव केन्द्र में प्रत्येक उम्मीदवार के लिए एक मतपेटी रखी जाती थी और उस मतपेटी पर उम्मीदवार का चुनाव चिह्न अंकित रहता था। प्रत्येक मतदाता को एक खाली मतपत्र दिया जाता था और उस पर वह अपने पसंद के उम्मीदवार की मतपेटी में डाल देता।

इस काम में स्टील के बक्सों का इस्तेमाल होता था। हर एक मतपेटी में भीतर और बाहर की तरफ संबंधित उम्मीदवार का चिह्न अंकित होता था। मतपेटी के बाहर किसी एक तरफ उम्मीदवार का नाम उर्दू, हिन्दी और पंजाबी भाषा में लिखा हुआ होता था। इसके साथ-साथ चुनाव क्षेत्र, चुनाव केन्द्र और मतदान केन्द्र की संख्या भी दर्ज होती थी। उम्मीदवार के आंकिक ब्यौरे वाला एक कागजी मुहरबंद पीठासीन पदाधिकारी के दस्तखत के साथ मतपेटी में लगाया जाता था। तत्पश्चात् मतपेटी के ढक्कन को तार के सहारे बाँधा जाता था और इसी जगह मुहरबंद लगाया जाता था।

यह सारा काम चुनाव की नियत तारीख के एक दिन पहले हो जाता था। चुनाव चिह्न और बाकी ब्यौरों को दर्ज करने के लिए मतपेटी को पहले सरेस कागज या ईंट के टुकड़े से रगड़ा जाता था। यह काम बहुत लंबा चलता था। शुरुआती दो चुनाव के बाद यह तरीका बदल दिया गया। अब मतपत्र पर हर उम्मीदवार का नाम और चुनाव चिह्न अंकित किया जाने लगा। मतदाता को इस मतपत्र पर अपने पसंद के उम्मीदवार के नाम पर मुहर लगानी होती थी । यह तरीका अगले चालीस सालों तक चलन में रहा। सन् 1990 के दशक के अंत में चुनाव आयोग ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल शुरू किया और 2004 तक पूरे देश में ईवीएम का उपयोग शुरू हुआ।

प्रश्न 7.
सोशलिस्ट पार्टी के जन्म, विकास, विचारधारा, उपलब्धियाँ और प्रमुख नेताओं को ध्यान में रखकर उस पर निबंध लिखिए।
उत्तर:
सोशलिस्ट पार्टी की जड़ों को आजादी से पहले के उस वक्त में ढूँढ़ा जा सकता है जब भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस जनआंदोलन चला रही थी। काँग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन काँग्रेस के भीतर 1934 में युवा नेताओं की टोली ने किया था। ये नेता कांग्रेस को ज्यादा-से-ज्यादा परिवर्तनकारी और समतावादी बनाना चाहते थे। 1948 में काँग्रेस ने अपने संविधान में परिवर्तन किया। यह परिवर्तन इसलिए किया गया था ताकि काँग्रेस के सदस्य दोहरी सदस्यता न धारण कर सकें। इस वजह से काँग्रेस के समाजवादियों को मजबूरन 1948 में अलग होकर सोशलिस्ट पार्टी बनानी पड़ी। परंतु सोशलिस्ट पार्टी चुनावों में कुछ खास कामयाबी प्राप्त नहीं कर सकी।

इस कारण पार्टी के समर्थकों को बड़ी निराशा हुई। हालाँकि सोशलिस्ट पार्टी की मौजूदगी हिन्दुस्तान के अधिकतर राज्यों में थी लेकिन पार्टी को चुनावों में छिटपुट सफलता ही मिली। समाजवादी लोकतांत्रिक समाजवाद की विचारधारा में विश्वास करते थे और इस आधार पर वे काँग्रेस तथा साम्यवादी दोनों से अलग थे। वे काँग्रेस की आलोचना करते थे। क्योंकि काँग्रेस पूँजीपतियों और जमींदारों का पक्ष लेती थी तथा मजदूरों और किसानों की उपेक्षा करती थी। समाजवादियों को 1955 में दुविधा की स्थिति का सामना करना पड़ा क्योंकि काँग्रेस ने घोषणा कर दी कि उसका लक्ष्य समाजवादी बनावट वाले समाज की रचना है। ऐसे में समाजवादियों के लिए खुद को काँग्रेस का कारगर विकल्प बनाकर पेश करना मुश्किल हो गया।

सोशलिस्ट पार्टी के कई टुकड़े हुए और कुछ मामलों में बहुधा मेल भी हुआ । इस प्रक्रिया में कई समाजवादी दल बने। इन दलों में किसान मजदूर प्रजा पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का नाम लिया जा सकता है। जयप्रकाश नारायण, अच्युत पटवर्धन, अशोक मेहता, आचार्य नरेन्द्र देव, राममनोहर लोहिया और एस. एम. जोशी समाजवादी दलों के नेताओं में प्रमुख थे। मौजूदा हिन्दुस्तान के कई दलों जैसे समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल (यूनाइटेड) और जनता दल (सेक्युलर) पर सोशलिस्ट पार्टी की छाप देखी जा सकती है।

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प्रश्न 8.
इंस्टीट्यूशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
इंस्टीट्यूशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी का मैक्सिको में लगभग साठ सालों तक शासन रहा। स्पेनिश में इसे पीआरआई कहा जाता है। इस पार्टी की स्थापना 1929 में हुई थी। तब इसे नेशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी कहा जाता था। इस पार्टी को मैक्सिकन क्रांति की विरासत हासिल थी। मुख्यतः पीआरआई में राजनेता और सैनिक नेता, मजदूर और किसान संगठन तथा अनेक राजनीतिक दलों समेत कई किस्म के हितों का संगठन था।

समय बीतने के साथ पीआरआई के संस्थापक प्लूटार्को इलियास कैलस ने इसके संगठन पर कब्जा जमा लिया और इसके बाद नियमित रूप से होने वाले चुनावों में हर बार पीआरआई ही विजयी होती रही। बाकी पार्टियाँ बस नाम की थीं ताकि शासक दल को वैधता मिलती रहे। चुनाव के नियम इस तरह तय किए गए कि पीआरआई की जीत हर बार पक्की हो सके। पीआरआई के शासन को ‘परिपूर्ण तानाशाही’ कहा जाता है। आखिरकार सन् 2000 में हुए राष्ट्रपति पद के चुनाव में यह पार्टी हारी। मैक्सिको अब एक पार्टी के दबदबे वाला देश नहीं रहा। बहरहाल, अपने दबदबे के दौर में पीआरआई ने जो दाँव-पेंच अपनाए थे उनका लोकतंत्र की सेहत पर बड़ा खराब असर पड़ा है।

प्रश्न 9.
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया पर लेख लिखिए।
उत्तर:
1920 के दशक के शुरुआती सालों में भारत के विभिन्न हिस्सों में साम्यवादी – समूह उभरे। ये रूस की बोल्शेविक क्रांति से प्रेरित थे और देश की समस्याओं के समाधान के लिए साम्यवाद की राह अपनाने की तरफदारी कर रहे थे। काँग्रेस से साम्यवादी 1941 के दिसंबर में अलग हुए। इस समय साम्यवादियों ने नाजी जर्मनी के खिलाफ लड़ रहे ब्रिटेन को समर्थन देने का फैसला किया। दूसरी गैर – काँग्रेस पार्टियों के विपरीत कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के पास आजादी के समय एक सुचारू पार्टी मशीनरी और समर्पित कॉडर मौजूद थे।

बहरहाल, आजादी हासिल होने पर इस पार्टी के भीतर कई स्वर उभरे। आजादी के तुरंत बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का विचार था कि 1947 में सत्ता का जो हस्तांतरण हुआ वह सच्ची आजादी नहीं थी। इस विचार के साथ पार्टी ने तेलंगाना में हिंसक विद्रोह को बढ़ावा दिया। साम्यवादी अपनी बात के पक्ष में जनता का समर्थन हासिल नहीं कर सके और इन्हें सशस्त्र सेनाओं द्वारा दबा दिया गया। फलस्वरूप इन्हें अपने पक्ष को लेकर पुनर्विचार करना पड़ा। 1951 में साम्यवादी पार्टी ने हिंसक क्रांति का रास्ता छोड़ दिया और आने वाले आम चुनावों में भाग लेने का फैसला किया।

पहले आम चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने 16 सीटें जीतीं और सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बनकर उभरी। इस दल को ज्यादातर समर्थन आंध्रप्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार और केरल में मिला। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख नेताओं में ए. के. गोपालन, एस. ए. डांगे, ई. एम. एस. नम्बूदरीपाद, पी. सी. जोशी, अजय घोष और पी. सुंदरैया के नाम लिए जाते हैं। चीन और सोवियत संघ के बीच विचारधारात्मक अंतर आने के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी 1964 में बड़ी टूट का शिकार हुई। सोवियत संघ की विचारधारा को सही मानने वाले भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में रहे जबकि इसके विरोध में राय रखने वालों ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) या सीपीआई (एम) नाम से अलग दल बनाया। ये दोनों दल आज तक कायम हैं

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प्रश्न 10.
भारतीय जनसंघ पार्टी पर विस्तारपूर्वक लेख लिखिए।
उत्तर:
भारतीय जनसंघ का गठन 1951 में हुआ था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसके संस्थापक-अध्यक्ष थे। इस दल की जड़ें आजादी के पहले के समय से सक्रिय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और हिन्दू महासभा में खोजी जा सकती हैं। जनसंघ अपनी विचारधारा और कार्यक्रमों के कारण बाकी दलों से भिन्न है। जनसंघ ने ‘एक देश, एक संस्कृति और एक राष्ट्र’ के विचार पर जोर दिया। इसका मानना था कि देश भारतीय संस्कृति और परंपरा के आधार पर आधुनिक, प्रगतिशील और ताकतवर बन सकता है।

जनसंघ ने भारत और पाकिस्तान को एक करके ‘अखंड भारत’ बनाने की बात पर जोर दिया। अंग्रेजी को हटाकर हिन्दी को राजभाषा बनाने के आंदोलन में यह पार्टी अग्रणी थी। इसने धार्मिक और सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों को रियायत देने की बात का विरोध किया। चीन द्वारा 1964 में आण्विक परीक्षण करने पर जनसंघ ने लगातार इस बात की पैरोकारी की कि भारत भी अपने आण्विक हथियार तैयार करे। 1950 के दशक में जनसंघ चुनावी राजनीति के हाशिए पर रहा।

इस पार्टी को 1952 के चुनाव में लोकसभा की तीन सीटों पर सफलता मिली और 1957 के आम चुनावों में इसने लोकसभा की 4 सीटें जीतीं। शुरुआती सालों में इस ‘पार्टी को हिन्दी भाषी राज्यों मसलन राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के शहरी इलाकों में समर्थन मिला। जनसंघ के नेताओं में श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय और बलराज मधोक के नाम शामिल हैं। भारतीय जनता पार्टी की जड़ें इसी जनसंघ में हैं।

प्रश्न 11.
स्वतंत्र पार्टी पर विस्तारपूर्वक लेख लिखि।
उत्तर:
काँग्रेस के नागपुर अधिवेशन में जमीन की हदबंदी, खाद्यान्न के व्यापार, सरकारी अधिग्रहण और सहकारी खेती का प्रस्ताव पास हुआ था। इसी के बाद 1959 के अगस्त में स्वतंत्र पार्टी अस्तित्व में आई। इस पार्टी का नेतृत्व सी. राजगोपालाचारी, के. एम. मुंशी, एन. जी. रंगा और मीनू मसानी जैसे पुराने काँग्रेस नेता कर रहे थे। यह पार्टी आर्थिक मसलों पर अपनी खास किस्म की पक्षधरता के कारण दूसरी पार्टियों से अलग थी स्वतंत्र पार्टी चाहती थी कि सरकार अर्थव्यवस्था में कम हस्तक्षेप करे इसका मानना था कि समृद्धि सिर्फ व्यक्तिगत स्वतंत्रता के जरिए आ सकती है।

स्वतंत्र पार्टी अर्थव्यवस्था में विकास के नजरिए से किए जा रहे राजकीय हस्तक्षेप, केन्द्रीकृत नियोजन, राष्ट्रीयकरण और अर्थव्यवस्था के भीतर सार्वजनिक क्षेत्र की मौजूदगी को आलोचना की निगाह से देखती थी। यह पार्टी आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के हित को ध्यान में रखकर किए जा रहे कराधान के भी खिलाफ थी। इस दल ने निजी क्षेत्र को खुली छूट देने की तरफदारी की। स्वतंत्र पार्टी कृषि में जमीन की हदबंदी, सहकारी खेती और खाद्यान्न के व्यापार पर सरकारी नियंत्रण के खिलाफ थी। इस दल ने गुटनिरपेक्षता की नीति और सोवियत संघ से मित्रता के रिश्ते को कायम रखने को भी गलत माना। इसने संयुक्त राज्य अमरीका से मित्रता के रिश्ते बनाने की वकालत की।

अनेक क्षेत्रीय पार्टियों और हितों के साथ मेल करने के कारण स्वतंत्र पार्टी देश के विभिन्न हिस्सों में ताकतवर हुई। स्वतंत्र पार्टी की तरफ जमींदार और राजा-महाराजा आकर्षित हुए। भूमि सुधार के कानूनों से इनकी मिल्कियत और हैसियत को खतरा मँडरा रहा था और इससे बचने के लिए इन लोगों ने स्वतंत्र पार्टी का दामन थामा। उद्योगपति और व्यवसायी वर्ग के लोग राष्ट्रीयकरण और लाइसेंस नीति के खिलाफ थे। इन लोगों ने भी स्वतंत्र पार्टी का समर्थन किया। इस पार्टी का सामाजिक आधार बड़ा संकुचित था और इसके पास पार्टी सदस्य के रूप में समर्पित कॉडर की कमी थी। इस वजह से यह पार्टी अपना मजबूत सांगठनिक नेटवर्क खड़ा नहीं कर पाई।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

बहुचयनात्मक प्रश्न

1. प्रथम पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल था।
(क) 1951-1956
(ख) 1952-1957
(ग) 1955-1960
(घ) 1947-1952
उत्तर:
(क) 1951-1956

2. स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में किस आर्थिक प्रणाली को अपनाया गया?
(क) पूँजीवादी
(ख) मिश्रित
(ग) समाजवादी
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) मिश्रित

3. योजना आयोग की स्थापना कब की गई?
(क) 1950
(ख) 1952
(ग) 1960
(घ) 1962
उत्तर:
(क) 1950

4. हरित क्रान्ति के दौरान किस फसल का सर्वाधिक उत्पादन हुआ?
(क) गेहूँ
(ख) बाजरा
(ग) सोयाबीन
(घ) चावल
उत्तर:
(क) गेहूँ

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5. लौह-अयस्क का विशाल भंडार था।
(क) उड़ीसा
(ख) पंजाब
(ग) केरल
(घ) उत्तरप्रदेश
उत्तर:
(क) उड़ीसा

6. प्रथम पंचवर्षीय योजना में सर्वाधिक बल किस पर दिया गया।
(क) कृषि
(ख) उद्योग
(ग) पर्यटन
(घ) संचार
उत्तर:
(क) कृषि

7. भारत में नियोजन प्रक्रिया की प्रेरणा किस देश से ली गई।
(क) सोवियत संघ
(ख) चीन
(ग) जापान
(घ) अमेरिका।
उत्तर:
(क) सोवियत संघ

8. दूसरी पंचवर्षीय योजना कब शुरू हुई?
(क) 1951
(ख) 1956
(ग) 1966
(घ) 1957
उत्तर:
(ख) 1956

9. चौथी पंचवर्षीय योजना कब से शुरू होनी थी?
(क) 1961
(ख) 1966
(ग) 1967
(घ) 1962
उत्तर:
(ख) 1966

10. पहली योजना का मूलमंत्र क्या था?
(क) संरचनात्मक बदलाव
(ख) प्रौद्योगिकी
(ग) धीरज
(घ) कृषि
उत्तर:
(ग) धीरज

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

संजीव पास बुक्सं
1. …………………….. ‘से उन लोगों की तरफ संकेत किया जाता है जो गरीब और पिछड़े सामाजिक समूह की तरफदारी करते हैं।
उत्तर:
वामपंथ

2. ……………………… पंचवर्षीय योजना में भारी उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया।
उत्तर:
दूसरी

3. पहली पंचवर्षीय योजना का मूलमंत्र था धीरज, लेकिन दूसरी योजना की कोशिश तेज गति से ……………………….बदलाव करने की थी।
उत्तर:
संरचनात्मक

4. केरल में विकास और नियोजन के लिए जो रास्ता चुना उसे …………………… कहा जाता है।
उत्तर:
केरल मॉडल

5. इकॉनोमी ऑफ परमानेंस के लेखक ……………………….. हैं।
उत्तर:
जे.सी. कुमारप्पा

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतन्त्र भारत के समक्ष विकास के कौन-कौनसे दो मॉडल थे?
उत्तर:
पूँजीवादी मॉडल और समाजवादी मॉडल।

प्रश्न 2.
योजना आयोग की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
मार्च, 1950 में।

प्रश्न 3.
1944 में उद्योगपतियों ने देश में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया जिसे किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
बॉम्बे प्लान।

प्रश्न 4.
वामपंथ से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
वामपंथ से उन लोगों की तरफ संकेत किया जाता है जो गरीब और पिछड़े सामाजिक समूह की तरफदारी करते हैं और इन तबकों को फायदा पहुँचाने वाली सरकारी नीतियों का समर्थन करते हैं।

प्रश्न 5.
भारत सरकार ने योजना आयोग के स्थान पर किस नई संस्था की स्थापना की?
उत्तर:
नीति आयोग।

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प्रश्न 6.
दूसरी पंचवर्षीय योजना में मुख्यतः किस बात पर जोर दिया गया?
उत्तर:
औद्योगिक विकास पर।

प्रश्न 7.
दक्षिणपंथ से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
दक्षिणपंथ से उन लोगों को इंगित किया जाता है जो यह मानते हैं कि खुली प्रतिस्पर्धा और बाजारमूलंक अर्थव्यवस्था के माध्यम से ही प्रगति हो सकती है।

प्रश्न 8.
” विकासशील देशों को सार्वजनिक उद्यमों का सहारा लेना ही पड़ता है, क्योंकि इनके सहयोग के बिना अर्थव्यवस्था गतिशील हो ही नहीं सकती ।” यह कथन किसका है? हुआ ?
उत्तर:
यह कथन प्रो. हैन्सन का है।

प्रश्न 9.
भारत में अर्थव्यवस्था के कौनसे स्वरूप को स्वीकार किया गया है?
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था।

प्रश्न 10.
‘मिल्कमैन ऑफ इण्डिया’ किसे कहा जाता है?
उत्तर:
वर्गीज कुरियन को।

प्रश्न 11.
नियोजित विकास क्या है?
उत्तर:
नियोजित विकास, विकास की एक प्रक्रिया है।

प्रश्न 12.
पश्चिमी मुल्कों में किस वजह से पुरानी सामाजिक संरचना टूटी और पूँजीवाद तथा उदारवाद का उदय
उत्तर:
आधुनिकीकरण।

प्रश्न 13.
आधुनिकीकरण किसका पर्यायवाची माना जाता था?
उत्तर:
संवृद्धि, भौतिक प्रगति और वैज्ञानिक तर्कबुद्धि।

प्रश्न 14.
1969 में केन्द्र सरकार ने कितने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया?
उत्तर:
14 बैंकों का।

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प्रश्न 15.
नियोजन की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर:
नियोजन के द्वारा आर्थिक तथा सामाजिक जीवन के विभिन्न अंगों में समन्वय स्थापित करके समाज की उन्नति की जा सकती है।

प्रश्न 16.
भारत में नियोजन के दो उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  1. देश की राष्ट्रीय आय में वृद्धि करना।
  2. क्षेत्रीय असन्तुलन को कम करना।

प्रश्न 17.
सार्वजनिक क्षेत्र का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र का मुख्य उद्देश्य आर्थिक पूँजी का निर्माण करना, आधारभूत उद्योगों का विकास करना तथा आर्थिक समानता की स्थापना करना है।

प्रश्न 18.
सार्वजनिक क्षेत्र का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा निर्यात में वृद्धि, रोजगार के अवसरों में वृद्धि तथा बीमार कारखानों की पुर्नस्थापना होती है।

प्रश्न 19.
सार्वजनिक क्षेत्र की प्रमुख कमियाँ बताइए।
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों में अनुशासनहीनता, कार्यकुशलता में कमी तथा उत्तरदायित्व की कमी पायी जाती है।

प्रश्न 20.
भारत में हरित क्रान्ति की क्या आवश्यकता थी?
उत्तर:
देश में कृषिगत विकास करने तथा खाद्यान्नों का अधिकाधिक उत्पादन करके इस क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने हेतु हरित क्रान्ति की आवश्यकता पड़ी।

प्रश्न 21.
हरित क्रान्ति के मुख्य उद्देश्य कौन – कौनसे हैं?
उत्तर:
हरित क्रान्ति के प्रमुख तत्त्व हैं। कृषि का निरन्तर विस्तार करना, दोहरी फसल का उद्देश्य तथा अच्छे बीजों का प्रयोग करना।

प्रश्न 22.
हरित क्रांति का एक नकारात्मक प्रभाव बताएं।
उत्तर:
हरित क्रांति के प्रभावस्वरूप धनाढ्य वर्गों ने गरीब व भूमिहीन किसानों का शोषण व दमन किया। परिणामतः नक्सलवादी आंदोलन को बल मिला।

प्रश्न 23.
हरित क्रांति के दो सकारात्मक परिणाम लिखिये
उत्तर:

  1. देश में खाद्यान्न की उपलब्धता में बढ़ोतरी हुई।
  2. झोले वर्ग के किसानों का उभार हुआ।

प्रश्न 24.
दूसरी पंचवर्षीय योजना के योजनाकार कौन थे?
उत्तर:
पी. सी. महालनोबिस।

प्रश्न 25.
दूसरी पंचवर्षीय योजना में किसके विकास पर जोर दिया गया?
उत्तर:
दूसरी पंचवर्षीय योजना में भारी उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया।

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प्रश्न 26.
बाम्बे प्लान क्या है?
उत्तर:
1944 में भारतीय उद्योगपतियों का एक समूह बॉम्बे में एकत्र हुआ। इस बैठक में इन उद्योगपतियों ने नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया। इसे ही बाम्बे प्लान के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 27.
भारतीय सांख्यिकीय संस्थान के संस्थापक कौन थे?
उत्तर:
पी. सी. महालनोबिस।

प्रश्न 28.
हरित क्रान्ति का किसानों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
हरित क्रान्ति के कारण किसानों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में बदलाव आया है। वे राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। विभिन्न राजनीतिक दल अब किसानों को साथ लेकर चलते हैं ।

प्रश्न 29.
जे. सी. कुमारप्पा का असली नाम क्या था?
उत्तर:
जे. सी. कॉर्नेलियस।

प्रश्न 30.
भूमि सुधार से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भूमि सुधार से आशय है भूमि के स्वामित्व का पुनर्वितरण करना।

प्रश्न 31.
आपकी दृष्टि में अंग्रेजी शासन समाप्त होने पर भूमि सुधार का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रयास कौनसा किया गया था?
उत्तर:
जमींदारी प्रथा को समाप्त करना।

प्रश्न 32.
भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण कब किया गया?
उत्तर:
भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण जुलाई, 1969 में किया गया।

प्रश्न 33.
भारत में कृषि क्षेत्र में सुधार हेतु क्या-क्या प्रयास किये गये?
उत्तर:
भारत में कृषि सुधार हेतु उन्नत बीजों का प्रयोग किया, भूमि सुधार किए गए तथा सिंचाई के साधनों की उचित व्यवस्था की गई।

प्रश्न 34.
HYV बीजों का प्रयोग किन राज्यों में किया गया ? इसका क्या लाभ हुआ?
उत्तर:
HYV (High Yeilding Variety) बीजों का प्रयोग तमिलनाडु, पंजाब एवं आन्ध्रप्रदेश में किया गया तथा इससे गेहूँ की पैदावार अच्छी हुई।

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प्रश्न 35.
भारत में पंचवर्षीय योजनाओं का मूल उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
भारत में पंचवर्षीय योजनाओं का मूल उद्देश्य आर्थिक विकास के साथ-साथ आत्मनिर्भरता, सामाजिक न्याय तथा समाजवाद लागू करना था।

प्रश्न 36.
उड़ीसा के आदिवासियों ने लोहा – इस्पात उद्योग की स्थापना का विरोध क्यों किया?
उत्तर:
उड़ीसा के आदिवासियों को इस बात का डर था कि यदि लोहा – इस्पात के उद्योग की स्थापना होती है, तो वे बेरोजगार हो जायेंगे तथा उन्हें विस्थापित होना पड़ेगा।

प्रश्न 37.
चौधरी चरण सिंह ने काँग्रेस पार्टी से अलग होकर कौन-सी पार्टी बनाई?
उत्तर:
भारतीय लोकदल।

प्रश्न 38.
जमींदारी उन्मूलन से होने वाले दो लाभ बताइये।
उत्तर:

  1. कृषकों का शोषण होना बन्द हो गया।
  2. कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई।

प्रश्न 39.
केरल मॉडल में नव लोकतंत्रात्मक पहल नाम का अभियान कैसे चलाया गया था?
उत्तर:
इस अभियान में लोगों को स्वयंसेवी नागरिक संगठनों के माध्यम से विकास की गतिविधियों में सीधे शामिल करने का प्रयास किया गया।

प्रश्न 40.
योजना आयोग के सदस्य के रूप में आप भारत की प्रथम पंचवर्षीय योजना में किस क्षेत्र पर बल देते?
उत्तर:
योजना आयोग के सदस्य के रूप में मैं भारत की प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र पर बल देता।

प्रश्न 41.
ऑपरेशन फ्लड से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
1970 में ऑपरेशन फ्लड के नाम से एक ग्रामीण विकास कार्यक्रम शुरू हुआ था जिसमें सहकारी दूध- उत्पादकों को उत्पादन और वितरण के राष्ट्रव्यापी तंत्र से जोड़ा गया।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नियोजन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
नियोजन एक बौद्धिक प्रक्रिया है। यह कार्यों को क्रमबद्ध रूप से सम्पादित करने की एक मानसिक पूर्व प्रवृत्ति है, यह कार्य करने से पहले सोचना है तथा अनुमानों के स्थान पर तथ्यों को ध्यान में रखकर काम करना है।

प्रश्न 2.
पर्यावरणविदों के विरोध के क्या कारण थे? उनके विरोध के बावजूद भी केन्द्र सरकार उड़ीसा में इस्पात उद्योग की स्थापना के राज्य सरकार के प्रस्ताव को मंजूरी क्यों देना चाहती थी?
उत्तर:
उड़ीसा में इस्पात प्लांट लगाये जाने से पर्यावरणविदों को इस बात का भय था कि खनन और उद्योग से पर्यावरण प्रदूषित होगा। केन्द्र सरकार को लगता था कि उद्योग लगाने की अनुमति नहीं दी गई, तो इससे एक बुरी मिसाल कायम होगी और देश में पूँजी निवेश को बाधा पहुँचेगी।

प्रश्न 3.
विकास सम्बन्धी निर्णय लेने से पूर्व सरकार को क्या-क्या सावधानियाँ बरतनी पड़ती हैं? लोकतन्त्र में किन-किन विशेषज्ञों की सलाह महत्त्वपूर्ण मानी जाती है?
उत्तर:

  1. सरकार को विकास सम्बन्धी योजना के बारे में निर्णय लेने से पूर्व एक सामाजिक समूह के हितों को दूसरे सामाजिक समूह के हितों की तथा वर्तमान पीढ़ी और भावी पीढ़ी के हितों की तुलना में तोला जाता है।
  2. लोकतन्त्र में विकास सम्बन्धी निर्णयों के सम्बन्ध में विशेषज्ञों की राय लेनी चाहिए, लेकिन अन्तिम निर्णय जनप्रतिनिधियों द्वारा ही लिया जाना चाहिए।

प्रश्न 4.
1940 और 1950 के दशक में नियोजन के पक्ष में दुनियाभर में हवा क्यों बह रही थी?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था के पुननिर्माण के लिए नियोजन के विचार को 1940 और 1950 के दशक में पूरे विश्व में जनसमर्थन मिला था क्योंकि यूरोप, जापान और जर्मनी ने युद्ध की विभीषिका झेलने के बाद नियोजन से अपनी अर्थव्यवस्था पुनः खड़ी कर ली थी। सोवियत संघ ने भारी कठिनाई के बीच नियोजन के द्वारा शानदार आर्थिक प्रगति की थी।

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प्रश्न 5.
योजना आयोग के संगठन का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
योजना आयोग की स्थापना 15 मार्च, 1950 को की गई। इसमें एक अध्यक्ष ( प्रधानमन्त्री), एक उपाध्यक्ष, तीन अशंकालीन सदस्य:

  1. केन्द्रीय गृह मन्त्री
  2. केन्द्रीय रक्षामन्त्री
  3. केन्द्रीय वित्तमन्त्री तथा तीन पूर्वकालिक सदस्य होते थे।

प्रश्न 6.
नियोजन के प्रमुख तीन तत्त्व बताइये।
उत्तर:
नियोजन के तीन तत्त्व ये हैं।

  1. उपलब्ध साधनों का सही आकलन
  2. इन साधनों के आर्थिक उपयोग हेतु एक योजना
  3. सभी साधनों का अनुकूलतम प्रयोग।

प्रश्न 7.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था किस प्रकार की थी?
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत पिछड़ी हुई थी। इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था थी। अंग्रेजों ने भारतीय संसाधनों का इतना बुरी तरह दोहन किया कि भारतीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह खराब हो गई। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था गतिहीन, अर्द्धसामन्ती तथा असन्तुलित अर्थव्यवस्था थी।

प्रश्न 8.
उन कारणों का वर्णन कीजिए जिनकी वजह से सरकार ने उड़ीसा में इस्पात उद्योग स्थापित करने का राजनीतिक निर्णय लेना चाहा।
उत्तर:
इस्पात की विश्वव्यापी माँग बढ़ी तो निवेश के लिहाज से उड़ीसा एक महत्त्वपूर्ण जगह के रूप में उभरा। उड़ीसा में लौह-अयस्क का विशाल भंडार था । उड़ीसा की राज्य सरकार ने लौह-अयस्क की इस अप्रत्याशित माँग को भुनाना चाहा। उसने अंतर्राष्ट्रीय इस्पात निर्माताओं और राष्ट्रीय स्तर के इस्पात – निर्माताओं के साथ सहमति – पत्र पर हस्ताक्षर किए।

प्रश्न 9.
सार्वजनिक क्षेत्र के विस्तार से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्रों का निर्माण एवं विस्तार से आशय है। भारी उद्योगों, कोयले तथा तेल की खोज तथा परमाणु ऊर्जा के विकास, अन्य महत्त्वपूर्ण उद्योगों के निर्माण एवं विस्तार का उत्तरदायित्व केन्द्रीय सरकार के पास होना तथा इसके लिए वित्तीय तथा मानव शक्ति संसाधन का प्रबन्ध सरकार द्वारा करना।

प्रश्न 10.
भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की कोई दो समस्याएँ बताइये।
उत्तर:
भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की समस्याएँ हैं।

  1. सार्वजनिक क्षेत्र में लालफीताशाही और नौकरशाही का बोलबाला है, जिस कारण से सार्वजनिक क्षेत्र की कार्यकुशलता निजी क्षेत्र की अपेक्षा बहुत कम है।
  2. भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की प्रमुख समस्या प्रबन्ध व्यवस्था का कुशल न होना है।

प्रश्न 11.
सार्वजनिक क्षेत्र की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं।

  1. सार्वजनिक क्षेत्र में सरकार की समस्त आर्थिक तथा व्यावसायिक गतिविधियाँ शामिल की जाती हैं।
  2. सार्वजनिक क्षेत्र आर्थिक असमानताओं को कम करके आर्थिक समानता की स्थापना का प्रयास करता है।
  3. सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों पर पूर्ण रूप से राष्ट्रीय नियन्त्रण होता है। इसमें एकाधिकार की प्रवृत्ति पाई जाती है।

प्रश्न 12.
भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की उत्पत्ति के कोई चार कारण बताइए।
उत्तर:

  1. राज्य ने जनता के कल्याण के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की स्थापना की।
  2. बहु-उद्देश्यीय परियोजनाएँ सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत ही स्थापित की जा सकती हैं।
  3. समाजवादी समाज की स्थापना करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र को अपनाना अतिआवश्यक है।
  4. क्षेत्रीय आर्थिक असमानता सार्वजनिक क्षेत्र के उदय का महत्त्वपूर्ण कारण है।

प्रश्न 13.
दक्षिणपंथी विचारधारा क्या है?
उत्तर:
दक्षिणपंथी विचारधारा: इस विचारधारा में उन लोगों या दलों को सम्मिलित किया जाता है जो यह मानते हैं कि खुली प्रतिस्पर्धा और बाजारमूलक अर्थव्यवस्था के द्वारा ही प्रगति हो सकती है अर्थात् सरकार को अर्थव्यवस्था में गैरजरूरी हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए भूतपूर्व स्वतन्त्र पार्टी तथा वर्तमान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को (विशेषकर 1991 की नई आर्थिक नीति के बाद) दक्षिण पंथ की राजनीतिक पार्टियाँ कहा जाता है।

प्रश्न 14.
वामपंथी विचारधारा क्या है?
उत्तर:
वामपंथी विचारधारा प्रायः वामपंथी विचारधारा में उन लोगों व राजनीतिक दलों को सम्मिलित किया जाता है जो साम्यवादी या समाजवादी, माओवादी, लेनिनवादी, नक्सलवादी, प्रजा समाजवादी, फॉरवर्ड ब्लॉक आदि दल स्वयं को इसी विचारधारा के पक्षधर एवं उस पर चलने के लिए कार्यक्रम एवं नीतियाँ बनाते हैं। प्राय: ये गरीब एवं पिछड़े सामाजिक ‘समूह की तरफदारी करते हैं। वे इन्हीं वर्गों को लाभ पहुँचाने वाली सरकारी नीति का समर्थन करते हैं।

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प्रश्न 15.
पी. सी. महालनोबिस कौन थे?
उत्तर:
पी. सी. महालनोबिस अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के विख्यात वैज्ञानिक एवं सांख्यिकीविद थे। इन्होंने सन् 1931 में भारतीय सांख्यिकी संस्थान की स्थापना की थी। वे दूसरी पंचवर्षीय योजना के योजनाकार थे तथा तीव्र औद्योगीकरण तथा सार्वजनिक क्षेत्र की सक्रिय भूमिका के समर्थक थे ।

प्रश्न 16.
जे. पी. कुमारप्पा कौन थे?
उत्तर:
जे. पी. कुमारप्पा का जन्म 1892 में हुआ। इनका असली नाम जे. सी. कार्नेलियस था। इन्होंने अमेरिका में अर्थशास्त्र एवं चार्टर्ड एकाउंटेंट की शिक्षा प्राप्त की। ये महात्मा गाँधी के अनुयायी थे। आजादी के बाद उन्होंने गाँधीवादी आर्थिक नीतियों को लागू करने का प्रयास किया। उनकी कृति ‘इकानॉमी ऑफ परमानैंस’ को बड़ी ख्याति मिली। योजना आयोग के सदस्य के रूप में भी उनको ख्याति प्राप्त हुई।

प्रश्न 17.
हरित क्रान्ति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
हरित क्रान्ति: हरित क्रान्ति से अभिप्राय कृषि उत्पादन में होने वाली उस भारी वृद्धि से है जो कृषि की नई नीति अपनाने के कारण हुई है। जे. जी. हारर के अनुसार, ” हरित क्रान्ति शब्द 1968 में होने वाले उन आश्चर्यजनक परिवर्तनों के लिए प्रयोग में लाया जाता है, जो भारत के खाद्यान्न उत्पादन में हुआ था तथा अब भी जारी है।”

प्रश्न 18.
भारत में नियोजन की आवश्यकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
भारत में नियोजित विकास के कारणों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत में नियोजन की आवश्यकता मुख्यतः अग्रलिखित कारणों से अनुभव की जाती है।

  1. नियोजन के द्वारा आर्थिक तथा सामाजिक जीवन के विभिन्न अंगों में समन्वय स्थापित करके समाज की उन्नति की जा सकती है।
  2. नियोजन द्वारा सामाजिक एवं आर्थिक न्याय की स्थापना की जा सकती है।
  3. देश में व्याप्त आर्थिक असंतुलन को समाप्त करने तथा राष्ट्रीय आय में वृद्धि करने व लोगों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने की दृष्टि से नियोजन का अत्यधिक महत्त्व समझा गया।
  4. आर्थिक नियोजन का महत्त्व इस दृष्टि से भी था कि समाजवादी लक्ष्यों को प्राप्त किया जाए।
  5. साधनों के उचित प्रयोग, वैज्ञानिक साधनों के प्रयोग तथा राष्ट्रीय पूँजी का सही मात्रा में सदुपयोग की दृष्टि से भी नियोजन की अत्यधिक आवश्यकता थी ।

प्रश्न 19.
भारत में नियोजन के महत्त्व एवं उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में नियोजन का महत्त्व एवं उपयोगिता – भारत में नियोजन के महत्त्व के सम्बन्ध में अग्रलिखित तर्क दिये जा सकते हैं।

  1. नियोजन के अन्तर्गत आर्थिक विकास का दायित्व राज्य ग्रहण कर लेता है तथा एक सामूहिक गतिविधि के रूप में योजनाओं के माध्यम से आर्थिक विकास का प्रारम्भ तथा उसका निर्देशन करता है।
  2. आधुनिक लोककल्याणकारी राज्य में आर्थिक संसाधनों के समानतापूर्ण वितरण में नियोजन की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
  3. नियोजन खुले बाजार वाली अर्थव्यवस्थाओं में अस्थिरता की सम्भावनाओं को दूर करने में सहायक है।
  4. विदेशी व्यापार की दृष्टि से भी नियोजन उपयोगी है। नियोजन से विदेशी व्यापार को अपने देश के हितों की शर्तों पर किया जा सकता है।
  5. प्रभावी नियोजन द्वारा अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है।

प्रश्न 20.
भारत में योजना आयोग की स्थापना किस प्रकार हुई? इसके कार्यों के दायरे का उल्लेख कीजिये।
अथवा
योजना आयोग के कार्यों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
योजना आयोग की स्थापना: योजना आयोग की स्थापना सन् 1950 में भारत सरकार ने एक सीधे-सादे प्रस्ताव के द्वारा की। योजना आयोग एक सलाहकारी भूमिका निभाता रहा है। योजना आयोग के कार्य-योजना आयोग के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं।

  1. देश के भौतिक संसाधनों और जनशक्ति का अनुमान लगाना तथा उन संसाधनों की वृद्धि की संभावनाओं का पता लगाना।
  2. देश के संसाधनों के सन्तुलित उपयोग के लिए प्रभावकारी योजना बनाना।
  3. योजना की क्रियान्विति के चरणों का निर्धारण तथा उनके लिए संसाधनों का नियमन करना।
  4. आर्थिक विकास में आने वाली बाधाओं की ओर संकेत करना तथा योजना की सफल क्रियान्विति के लिए उपयुक्त परिस्थिति निर्धारित करना।
  5. योजना की चरणवार प्रगति का अवलोकन करना तथा इस बारे में आवश्यक उपायों की सिफारिश करना।

प्रश्न 21.
राष्ट्रीय विकास परिषद् की रचना तथा उद्देश्य बताएँ।
उत्तर:

  • राष्ट्रीय विकास परिषद् का संगठन: राष्ट्रीय विकास परिषद् के सदस्यों के रूप में निम्नलिखित व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाता है।
    1. प्रधानमंत्री राष्ट्रीय विकास परिषद् का अध्यक्ष होता है।
    2. योजना आयोग के सभी सदस्य।
    3. सभी राज्यों के मुख्यमंत्री तथा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का मुख्यमंत्री या उनका प्रतिनिधि।
  • परिषद् की बैठकों में उन मन्त्रियों को भी बुलाया जाता है, जिनके विभागों के सम्बन्ध में विचार किया जाना है। राष्ट्रीय विकास परिषद् के उद्देश्य
    1. योजना के समर्थन में राष्ट्र के साधनों तथा प्रयत्नों का उपयोग करना और उन्हें शक्तिशाली बनाना।
    2. सभी महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में सामान्य आर्थिक नीतियों की उन्नति करना।
    3. देश के सभी भागों का सन्तुलित विकास सुनिश्चित करना।

प्रश्न 22.
राष्ट्रीय विकास परिषद् के मुख्य कार्य बताइये।
उत्तर:
राष्ट्रीय विकास परिषद् के कार्य: राष्ट्रीय विकास परिषद् के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं।

  1. राष्ट्रीय योजना की प्रगति पर समय-समय पर विचार करना।
  2. राष्ट्रीय विकास को प्रभावित करने वाली आर्थिक तथा सामाजिक नीतियों सम्बन्धी विषयों पर विचार करना।
  3. राष्ट्रीय योजना के निर्धारित लक्ष्यों व उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सुझाव देना।
  4. राष्ट्रीय योजना के निर्माण के लिए तथा इसके साधनों के निर्धारण के लिए पथ-प्रदर्शक सूत्र निश्चित करना।
  5. योजना आयोग द्वारा तैयार की गई राष्ट्रीय योजना पर विचार करना।
  6. राष्ट्रीय विकास को प्रभावित करने वाली सामाजिक तथा आर्थिक नीति के महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार करना।
  7. समय समय पर योजना के कार्यों की समीक्षा करना तथा राष्ट्रीय योजना में प्रतिपादित उद्देश्यों तथा कार्य लक्ष्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक उपायों की सिफारिश करना।

प्रश्न 23.
हरित क्रान्ति की आवश्यकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
हरित क्रान्ति की आवश्यकता- 1960 के मध्य भारत को राजनीतिक एवं आर्थिक क्षेत्र में गम्भीर समस्याओं का सामना करना पड़ा। इस काल में चीन तथा पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध, सूखा तथा अकाल, विदेशी मुद्रा संकट तथा खाद्यान्न के भारी संकट का सामना करना पड़ा। खाद्य संकट के कारण सरकार को गेहूँ का आयात करना पड़ा। इन सबने भारतीय नेतृत्व को चिन्ता में डाल दिया कि किस प्रकार इन परिस्थितियों से बाहर निकला जाए।

अतः भारतीय नीति-निर्धारकों ने कृषि उत्पादन में तेजी से वृद्धि करने का निर्णय किया ताकि भारत खाद्यान्न क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन जाए। यहीं से भारत में हरित क्रान्ति की शुरुआत मानी जाती है। हरित क्रान्ति का मुख्य उद्देश्य देश में कृषिगत पैदावार बढ़ाकर भारत को खाद्यान्न क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना था।

प्रश्न 24.
“भारत में स्वतंत्रता से पूर्व ही नियोजन के पक्ष में कुछ उद्योगपति आ गए थे।” इस कथन के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
यद्यपि भारत 1947 में आजाद हुआ था परंतु नियोजन के पक्ष में दो या ढाई वर्ष पूर्व ही बातें चलने लगी थीं। 1944 में उद्योगपतियों का एक तबका एकत्र हुआ इस समूह ने देश में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया। इसे ‘बॉम्बे प्लान’ की संज्ञा दी गई। ‘बॉम्बे प्लान’ की मंशा थी कि सरकार औद्योगिक तथा अन्य आर्थिक निवेश के क्षेत्र में बड़े कदम उठाए। इस तरह दक्षिणपंथी और वामपंथी दोनों की इच्छा थी कि देश नियोजित अर्थव्यवस्था की राह पर चले। इस कारण भारत के स्वतंत्र होते ही योजना आयोग अस्तित्व में आया। प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष बने। भारत अपने विकास के लिए कौन सा रास्ता और रणनीति अपनाएगा यह फैसला करने में इस संस्था ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा ।

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प्रश्न 25.
प्रथम पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
प्रथम पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य – प्रथम पंचवर्षीय योजना के निम्न उद्देश्य हैं।

  1. प्रथम योजना का सर्वप्रथम उद्देश्य द्वितीय विश्वयुद्ध तथा देश के विभाजन के फलस्वरूप देश में जो आर्थिक अव्यवस्था तथा असन्तुलन पैदा हो चुका था उसको ठीक करना था।
  2. दूसरा उद्देश्य देश में सर्वांगीण सन्तुलित विकास प्रारम्भ करना था।
  3. तीसरा उद्देश्य उत्पादन क्षमता में वृद्धि तथा आर्थिक विषमता को यथासम्भव कम करना था।
  4. प्रथम योजना का एक उद्देश्य मुद्रास्फीति के दबाव को भी कम करना था।
  5. यातायात के साधनों में वृद्धि करना।
  6. बड़े पैमाने पर सामाजिक सेवाओं की व्यवस्था पर भी जोर दिया गया था।
  7. राज्यों में कुशल प्रशासकीय मशीनरी की व्यवस्था करना भी इस योजना का मुख्य उद्देश्य था।

प्रश्न 26.
नियोजित विकास के शुरुआती दौर का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
नियोजित विकास के शुरुआती दौर का मूल्यांकन निम्न प्रकार से किया जा सकता है।

  1. भारत के आगामी आर्थिक विकास की बुनियाद इसी दौर में पड़ी।
  2. भारत के इतिहास की कुछ सबसे बड़ी विकास परियोजनाएँ इसी अवधि में शुरू हुईं। इसमें सिंचाई और बिजली  उत्पादन के लिए शुरू की गई। भाखड़ा नांगल और हीराकुंड जैसी विशाल बाँध परियोजनाएँ शामिल हैं।
  3. सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ भारी उद्योग जैसे इस्पात संयंत्र, तेल शोधक कारखाने, विनिर्माता इकाइयाँ, रक्षा उत्पादन आदि इसी अवधि में शुरू हुए।
  4. इस दौर में परिवहन और संचार के आधारभूत ढाँचे में भी काफी वृद्धि हुई।

प्रश्न 27.
नियोजित विकास के शुरुआती दौर के समय भूमि सुधार के लिए किए गए प्रयास का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नियोजित विकास के शुरुआती दौर में भूमि सुधार के गंभीर प्रयास हुए। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण और सफल प्रयास जमींदारी प्रथा को समाप्त करने का था। यह प्रथा अंग्रेजी शासन के समय से चली आ रही थी। इस प्रथा को समाप्त करने से जमीन उस वर्ग के हाथ से मुक्त हुई जिसे खेती में कोई दिलचस्पी नहीं थी। इससे राजनीति पर दबदबा कायम रखने की जमींदारों की क्षमता भी घटी। जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों को एक साथ करने के प्रयास किए गए ताकि खेती का काम सुविधाजनक हो सके।

इस बात के लिए भी कानून बनाया गया कि कोई व्यक्ति अधिकतम कितनी भूमि अपने नाम पर रख सकता है। हालाँकि यह कानून सफल नहीं हो पाया। काश्तकारों के लिए भी कानून बना कि जो काश्तकार किसी और की जमीन बटाई पर जोत- बो रहे थे, उन्हें कानूनी सुरक्षा प्रदान की गई। परंतु इस कानून पर शायद ही अमल हुआ।

प्रश्न 28.
पंचवर्षीय योजनाओं के चार प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पंचवर्षीय योजनाओं के उद्देश्य: पंचवर्षीय योजनाओं के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं।

  1. आर्थिक संवृद्धि: आर्थिक संवृद्धि से अभिप्राय निरंतर सकल घरेलू उत्पाद तथा प्रति सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि है। लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए आर्थिक संवृद्धि (अधिक वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करना) आवश्यक है।
  2. आधुनिकीकरण: उत्पादन में नई तकनीक का प्रयोग तथा सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन को आधुनिकीकरण कहते हैं। अतः आधुनिकीकरण लाना पंचवर्षीय योजनाओं का मुख्य उद्देश्य है।
  3. आत्मनिर्भरता: आत्मनिर्भरता से अभिप्राय उन वस्तुओं के आयात से बचना है जिनका उत्पादन देश के अन्दर किया जाता है। पंचवर्षीय योजनाओं में इसी उद्देश्य को पूर्ण करने का प्रयास किया गया है।
  4. न्याय या समानता: सम्पत्ति व आय की विषमता को कम कर प्रत्येक के लिए आधारभूत सुविधाओं की व्यवस्था करना भी पंचवर्षीय योजनाओं के प्रमुख उद्देश्यों में शामिल है।

प्रश्न 29.
हरित क्रांति के विषय में कौन-कौनसी आशंकाएँ थीं? क्या यह आशंकाएँ सच निकलीं?
उत्तर:
सामान्यतः हरित क्रान्ति के विषय में दो भ्रान्तियाँ थीं।

  1. हरित क्रान्ति से अमीरों तथा गरीबों में विषमता बढ़ जायेगी क्योंकि बड़े जमींदार ही इच्छित अनुदानों का क्रय कर सकेंगे और उन्हें ही हरित क्रांति का लाभ मिलेगा और वे और अधिक धनी हो जायेंगे। निर्धनों को हरित क्रान्ति से कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा।
  2. उन्नत बीज वाली फसलों पर जीव-जन्तु आक्रमण करेंगे। दोनों भ्रांतियाँ सच नहीं हुईं क्योंकि सरकार ने छोटे किसानों को निम्न ब्याज दर पर ऋणों की व्यवस्था की और रासायनिक खादों पर आर्थिक सहायता दी ताकि वे उन्नत बीज तथा रासायनिक खाद सरलता से खरीद सकें और उनका उपयोग कर सके। जीव-जन्तुओं के आक्रमणों को भारत सरकार द्वारा स्थापित अनुसंधान संस्थाओं की सेवाओं द्वारा कम कर दिया गया।

प्रश्न 30.
मिश्रित अर्थव्यवस्था का अर्थ तथा विशेषताएँ बताइये
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था का अर्थ भारत ने विकास के लिए पूँजीवादी मॉडल और समाजवादी मॉडल दोनों ही मॉडल की कुछ एक बातों को ले लिया और अपने देश में उन्हें मिले-जुले रूप में लागू किया । इसी कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को मिश्रित अर्थव्यवस्था कहा जाता है। मिश्रित अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ।

  1. इसमें खेती, किसानी, व्यापार और उद्योगों का एक बड़ा भाग निजी क्षेत्र के हाथों में रहा।
  2. राज्य ने अपने हाथ में भारी उद्योग रखे और उसने आधारभूत ढाँचा प्रदान किया।
  3. राज्य ने व्यापार का नियमन किया तथा कृषि क्षेत्र में कुछ बड़े हस्तक्षेप किये।

प्रश्न 31.
मिश्रित अर्थव्यवस्था के मॉडल की क्या-क्या आलोचनाएँ की गईं?
उत्तर:
भारत में अपनाये गये विकास के मिश्रित अर्थव्यवस्था के मॉडल की दक्षिणपंथी और वामपंथी दोनों खेमों ने आलोचनाएँ कीं। यथा

  1. योजनाकारों ने निजी क्षेत्र को पर्याप्त जगह नहीं दी है और न ही निजी क्षेत्र के बढ़वार के लिए कोई उपाय किया गया है।
  2. विशाल सार्वजनिक क्षेत्र ने ताकतवर निहित स्वार्थों को खड़ा किया है और इन न्यस्त हितों ने निवेश के लिए लाइसेंस तथा परमिट की प्रणाली खड़ी करके निजी पूँजी की राह में रोड़े अटकाए हैं।
  3. सरकार ने अपने नियंत्रण में जरूरत से ज्यादा चीजें रखीं। इससे भ्रष्टाचार और अकुशलता बढ़ी है।
  4. सरकार ने केवल उन्हीं क्षेत्रों में हस्तक्षेप किया जहाँ निजी क्षेत्र जाने को तैयार नहीं थे । इस तरह सरकार ने निजी क्षेत्र को मुनाफा कमाने में मदद की।

प्रश्न 32.
योजना आयोग का गठन किन कारणों से किया गया था? क्या वह अपने गठन के उद्देश्य में सफल रहा?
उत्तर:
योजना आयोग का गठन:

  • भारत में योजना आयोग का गठन 15 मार्च, 1950 को किया गया। इसका गठन निम्नलिखित उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किया गया था।
    1. पूर्ण रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना,
    2. गरीबी का उन्मूलन करना,
    3. सामाजिक समानता की स्थापना करना,
    4. उपलब्ध संसाधनों का उचित प्रयोग करना,
    5. संतुलित क्षेत्रीय विकास करना तथा
    6. राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय बढ़ाना। लेकिन योजना आयोग अपने गठन के उद्देश्यों में पूर्णतः सफल नहीं हुआ है।
  • वह अपने उद्देश्यों में आंशिक रूप से भी सफल हुआ है क्योंकि:
    1. बेरोजगारी की समस्या अभी भी बनी हुई है।
    2. देश में गरीबी विद्यमान है।
    3. गरीब और गरीब हुआ है तथा अमीर और अमीर बना है। अतः सामाजिक असमानता कम होने के स्थान पर बढ़ी है।
    4. देश में क्षेत्रीय विकास संतुलित न होकर असंतुलित हुआ है।

प्रश्न 33.
स्वतंत्रता के बाद भूमि सुधार हेतु सरकार द्वारा क्या प्रयास किये गये?
उत्तर:
स्वतंत्रता के बाद भूमि सुधार हेतु निम्नलिखित प्रयास किये गये।

  1. जमींदारी प्रथा की समाप्ति: भूमि सुधार सम्बन्धी सबसे महत्त्वपूर्ण प्रयास जमींदारी प्रथा को समाप्त करने का था। जमींदारी प्रथा को समाप्त करने से जमीन उस वर्ग के हाथ से मुक्त हुई जिसे कृषि में कोई दिलचस्पी नहीं थी।
  2. चकबन्दी: जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों को एक-साथ करने के प्रयास किए गए ताकि खेती का काम सुविधाजनक हो सके।
  3. जोत की अधिकतम सीमा का निर्धारण: भूमि सुधार हेतु इस बात के कानून बनाए गए कि कोई व्यक्ति अधिकतम कितनी भूमि अपने पास रख सकता है। लेकिन जिनके पास सीमा से अधिक जमीन थी, उन्होंने इन कानून से बचने के रास्ते खोज लिये।
  4. बटाईदार/ किरायेदार काश्तकार को सुरक्षा: जो काश्तकार किसी और की जमीन बटाई पर जोत- बो रहे थे, उन्हें भी ज्यादा कानूनी सुरक्षा प्रदान की गई, लेकिन इस पर शायद ही कहीं अमल हुआ।

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प्रश्न 34.
उड़ीसा में किसका भंडार है? इससे संबंधित उद्योग लगाने पर आदिवासी, पर्यावरणविदों तथा केन्द्र सरकार को किस बात का भय था?
उत्तर:
उड़ीसा में लौह-अयस्क का भंडार है। लौह-अयस्क के ज्यादातर भंडार उड़ीसा के सर्वाधिक अविकसित. इलाकों में है। खासकर इस राज्य के आदिवासी बहुल जिलों में। आदिवासियों को डर है अगर यहाँ उद्योग लग गए तो उन्हें अपने घर से बार-बार विस्थापित होना पड़ेगा और आजीविका भी छिन जाएगी। पर्यावरणविदों को इस बात का भय है कि खनन और उद्योग से पर्यावरण प्रदूषित होगा। केन्द्र सरकार को भय है कि यदि उद्योग लगाने की अनुमति नहीं दी गई, तो इससे एक बुरी मिसाल कायम होगी और देश में पूँजी निवेश को बाधा पहुँचेगी।

प्रश्न 35.
योजना आयोग पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
उत्तर:
योजना आयोग संविधान द्वारा स्थापित आयोग है, जो दूसरे निकायों से भिन्न है। योजना आयोग की स्थापना मार्च, 1950 में, भारत सरकार ने एक सीधे-सादे प्रस्ताव के जरिए की। यह आयोग एक सलाहकार की भूमिका निभाता है और इसकी सिफारिशें तभी प्रभावकारी हो पाती हैं जब मंत्रिमंडल उन्हें मंजूर करे।

प्रश्न 36.
आर्थिक नीति किसी समाज की वास्तविक राजनीतिक स्थिति का अंग होती है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नियोजित विकास के शुरुआती दौर के समय भूमि सुधार के लिए कुछ नियम-कायदे बनाए गए। परंतु कृषि की बेहतरी और खेतिहर जनता की भलाई से जुड़ी इन नीतियों को ठीक और कारगर तरीके से अमल में ला पाना इतना आसान नहीं था। यह तभी संभव था जब ग्रामीण भूमिहीन जनता लामबंद हो परन्तु भू-स्वामी बहुत ताकतवर थे। इनका राजनीतिक रसूख भी होता था। इस वजह से भूमि सुधार के अनेक प्रस्ताव या तो कानून का रूप नहीं ले सके या कानून बनने पर मात्र कागज की शोभा बढ़ाते रहे। इस प्रकार हमें यह पता चलता है कि आर्थिक नीति किसी समाज की वास्तविक राजनीतिक स्थिति का अंग होती है।

प्रश्न 37.
श्वेत क्रांति पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
गुजरात एक ‘आणंद’ नामक शहर है। सहकारी दूध उत्पादन का आंदोलन अमूल इसी शहर में कायम है। इसमें गुजरात के 25 लाख दूध उत्पादक जुड़े हैं। ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन के लिहाज से ‘अमूल’ अपने आप में एक अनूठा और कारगर मॉडल है। इसी मॉडल के विस्तार को श्वेत क्रांति के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 38.
‘ऑपरेशन फ्लड’ के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
1970 में ‘ऑपरेशन फ्लड’ के नाम से एक ग्रामीण विकास कार्यक्रम शुरू हुआ था। इसके अंतर्गत सहकारी दूध: उत्पादकों को उत्पादन और विपणन के एक राष्ट्रव्यापी तंत्र से जोड़ा गया। हालाँकि यह कार्यक्रम मात्र डेयरी – कार्यक्रम नहीं था। इस कार्यक्रम में डेयरी के काम को विकास के एक माध्यम के रूप में अपनाया गया था ताकि ग्रामीण लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त हों, उनकी आमदनी बढ़े और गरीबी दूर हो। इन कार्यक्रमों के कारण सहकारी दूध उत्पादकों की सदस्य संख्या लगातार बढ़ रही है। सदस्यों में महिलाओं की संख्या भी बढ़ी है। महिला सहकारी डेयरी के जमातों में भी इजाफा हुआ है।

प्रश्न 39.
हरित क्रांति के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • हरित क्रांति के सकारात्मक प्रभाव निम्नलिखित हैं।
    1. हरित क्रांति से खेतिहर पैदावार में सामान्य किस्म का इजाफा हुआ।
    2. देश में खाद्यान्न की उपलब्धता में वृद्धि हुई।
    3. हरित क्रांति के कारण देश में मंझोले दर्जे के किसानों यानी मध्यम श्रेणी के भू-स्वामित्व वाले किसानों का उभार हुआ और देश के अनेक हिस्सों में ये प्रभावशाली बनकर उभरे।
  • हरित क्रांति के नकारात्मक प्रभाव निम्नलिखित हैं।
    1. समाज के विभिन्न वर्गों और देश के अलग-अलग इलाकों के बीच ध्रुवीकरण तेज हुआ।
    2. पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे इलाके कृषि के लिहाज से समृद्ध हो गए जबकि बाकी इलाके खेती के लिहाज से पिछड़ गए।
    3. गरीब किसानों और भू-स्वामियों के बीच का अंतर मुखर हो उठा। इससे देश के विभिन्न हिस्सों में वामपंथी संगठनों के लिए गरीब किसानों को लामबंद करने के लिहाज से अनुकूल स्थिति पैदा हुई।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नियोजन का अर्थ बताइये तथा उसके उद्देश्यों का विवेचन कीजिए।
अथवा
नियोजन से आप क्या समझते हैं? भारत में नियोजन के उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतीय योजना आयोग ने नियोजन को परिभाषित करते हुए लिखा है कि “नियोजन साधनों के संगठन की एक विधि है जिसके माध्यम से साधनों का अधिकतम लाभप्रद उपयोग निश्चित सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है। ” नियोजन के उद्देश्य
कराना। भारत में नियोजन के उद्देश्य निम्नलिखित हैं।

  1. पूर्ण रोजगार: भारत में बेरोजगारी की समस्या को दूर कर लोगों को पूर्ण रोजगार के अवसर उपलब्ध
  2. गरीबी का उन्मूलन: निर्धनता निवारण हेतु व्यक्ति की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति व जीविकोपार्जन के साधन उपलब्ध कराना।
  3. सामाजिक समानता की स्थापना करना: धन के समान वितरण द्वारा सामाजिक समानता की स्थापना करना।
  4. उपलब्ध संसाधनों का उचित प्रयोग: सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम लाभप्रद उपयोग निश्चित करना।
  5. सन्तुलित क्षेत्रीय विकास: विकास सम्बन्धी क्षेत्रीय असन्तुलन को दूर कर सन्तुलित क्षेत्रीय विकास करना।
  6. राष्ट्रीय आय व प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोत्तरी करना: राष्ट्रीय आय व प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करना।
  7. सामाजिक उद्देश्य: वर्ग रहित समाज की स्थापना करना।

इस प्रकार नियोजन आधुनिक युग की नूतन प्रवृत्ति है। इसके अभाव में राष्ट्र सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक क्षेत्र में प्रगति नहीं कर सकता।

प्रश्न 2.
भारत में नियोजन के विकास का प्रारम्भ किस प्रकार हुआ है? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
I. भारत में नियोजन के विकास का प्रारम्भ: भारत में नियोजन के प्रारम्भ का विवेचन मोटे रूप से निम्नलिखित दो बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है। स्वतन्त्रता से पूर्व भारत में नियोजन व विकास-

  1. भारत में पहली बार नियोजित विकास का विचार श्री एम. विश्वेश्वरैया ने सन् 1934 में अपनी पुस्तक ‘भारत के लिए नियोजित अर्थव्यवस्था’ में प्रतिपादित किया।
  2. सन् 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पं. जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में भारत में नियोजन व विकास के संदर्भ में एक समिति गठित की। इस समिति ने अनेक प्रस्तावों की रूपरेखा तैयार की।
  3. सन् 1944 में देश के प्रमुख उद्योगपतियों ने देश के आर्थिक विकास के लिए बम्बई योजना नामक एक योजना तैयार की तथा श्री एम. एन. राय ने भी एक दस वर्षीय योजना ‘जनता योजना’ तैयार की।
  4. अगस्त, 1944 में तत्कालीन भारत सरकार ने भारत के पुनर्निर्माण हेतु एक दीर्घावधि की तथा एक अल्पावधि की दो योजनाएँ तैयार कीं।
  5. सन् 1946 में गठित एक आयोग ने भारत के विकास के लिए केन्द्रीय स्तर पर एक योजना आयोग के गठन का सुझाव दिया।

II. स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में नियोजन व विकास तथा योजना आयोग की स्थापना: स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् 15 मार्च, 1950 को पण्डित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में भारत सरकार द्वारा पारित एक प्रस्ताव के आधार पर योजना आयोग का गठन किया गया।

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प्रश्न 3.
पहले दो दशकों में भारत के नेताओं ने कौनसी रणनीति अपनाई और उन्होंने ऐसा क्यों किया? विकास की रणनीति
उत्तर:
भारत के योजना आयोग ने विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाओं का विकल्प चुना। इस योजना के अनुसार केन्द्र सरकार और सभी राज्य सरकारों के बजट को दो हिस्सों में बाँटा गया। एक हिस्सा गैर योजना व्यय का था। इसके अन्तर्गत सालाना आधार पर दैनंदिन मदों पर खर्च करना था। दूसरा हिस्सा योजना- व्यय का था। योजना में तय की गई प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए इसे पांच साल की अवधि में व्यय करना था।

  • प्रथम पंचवर्षीय योजना:
    1. इस योजना में ज्यादा जोर कृषि – क्षेत्र पर था। इसके अंतर्गत बांध और सिंचाई के क्षेत्र में निवेश किया गया। क्योंकि विभाजन के कारण कृषि क्षेत्र को गहरी मार लगी थी।
    2. इस योजना में भूमि सुधार पर भी जोर दिया गया।
    3. योजनाकारों का बुनियादी लक्ष्य राष्ट्रीय आय के स्तर को ऊँचा करने का था। यह तभी संभव था जब लोगों की बचत हो। इसलिए बचत को बढ़ावा देने की कोशिश की गई।
  • द्वितीय पंचवर्षीय योजना:
    1. इस योजना में भारी उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया क्योंकि तेज गति से संरचनात्मक बदलाव का लक्ष्य रखा गया था।
    2. बिजली, रेलवे, इस्पात, मशीनरी, संचार आदि उद्योगों को सार्वजनिक क्षेत्र में विकसित करने की दिशा में आगे बढ़ाया गया।
    3. सरकार ने देशी उद्योगों को संरक्षण देने के लिए आयात पर भारी शुल्क लगाया।

प्रश्न 4.
भारत में प्रारंभिक विकास की रणनीतियों पर उठे किन्हीं दो मुद्दों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
प्रारंभिक दौर के विकास में जो रणनीतियाँ अपनाई गईं उन पर अनेक मुद्दे उठे उनमें से दो प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित थे।

  • कृषि बनाम उद्योग: इस संबंध में मुख्य मुद्दा यह उठा कि भारत जैसी अर्थव्यवस्था में कृषि और उद्योग के बीच किसमें ज्यादा संसाधन लगाये जाने चाहिए। यथा-
    1. कुछ लोगों का कहना था कि दूसरी योजना में उद्योगों पर ज्यादा जोर देने के कारण खेती और ग्रामीण इलाकों को चोट पहुँची। इसलिए उन्होंने ग्रामीण औद्योगीकरण तथा कृषि पर बल दिया।
    2. कुछ का सोचना था कि औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर को तेज किये बगैर गरीबी के मकड़जाल से छुटकारा नहीं मिल सकता।
  • (2) निजी क्षेत्र बनाम सार्वजनिक क्षेत्र – भारत द्वारा विकास के लिये अपनायी गयी मिश्रित अर्थव्यवस्था के सम्बन्ध में निजी व सार्वजनिक क्षेत्र सम्बन्धी ये मुद्दे उठे।
    1. योजनाकारों ने निजी क्षेत्र को पर्याप्त जगह नहीं दी है और न ही निजी क्षेत्र के बढ़वार के लिए कोई उपाय किया गया है।
    2. विशाल सार्वजनिक क्षेत्र ने ताकतवर निहित स्वार्थों के हितों के निवेश के लिए लाइसेंस तथा परमिट की प्रणाली खड़ी करके निजी पूँजी की राह में रोड़े अटकाए हैं। सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार और अकुशलता भी बढ़ी है।
    3. सरकार ने शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र की उपेक्षा की है तथा निजी क्षेत्र को मुनाफा कमाने में मदद की है।

प्रश्न 5. भारत
में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका एवं महत्त्व का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका एवं महत्त्व: भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका व इसके महत्त्व को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है।

  1. समाजवादी समाज की स्थापना: आर्थिक असमानता को कम करके समाजवादी समाज की स्थापना के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम महत्त्वपूर्ण हैं ।
  2. सन्तुलित आर्थिक विकास में सहायक: सार्वजनिक उद्यम पिछड़े क्षेत्रों के तीव्र विकास करने व पिछड़े तथा सम्पन्न राज्यों के बीच खाई को पाटने में सहायक हैं।
  3. सामरिक (सुरक्षा) उद्योगों के लिए महत्त्वपूर्ण: नागरिकों की सुरक्षा हेतु विश्वसनीय हथियारों का निर्माण निजी क्षेत्र को न सौंपकर सार्वजनिक क्षेत्र को सौंपना अधिक उपयोगी है।
  4. लोककल्याणकारी योजनाओं को लागू करने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण कुछ मूलभूत जन उपयोगी सेवाएँ, जैसे पानी, बिजली, परिवहन, स्वास्थ्य सुविधा और शिक्षा तथा कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने की दृष्टि से सार्वजनिक क्षेत्र ही उपयोगी है।
  5. अर्थव्यवस्था पर नियन्त्रण: अर्थव्यवस्था को उतार-चढ़ावों से बचाने के लिए तथा इसको नियमित रखने के लिए सरकारी नियन्त्रण आवश्यक है।
  6.  विदेशी सहायता: विदेशी सहायता की प्राप्ति के लिए भी सार्वजनिक क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है।
  7. प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा: सार्वजनिक क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों का जनहित में विवेकपूर्ण ढंग से विदोहन संभव होता है
  8. रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना: ये उद्योग बेरोजगारी को दूर करने में सहायता प्रदान करते हैं।
  9. निर्यात को प्रोत्साहन: सार्वजनिक क्षेत्र देश के निर्यात को बढ़ाने में बहुत सहायक सिद्ध हुआ. है।
  10. सहायक उद्योगों का विकास: सार्वजनिक क्षेत्र ने सहायक उद्योगों के विकास में सहायता प्रदान की है।

प्रश्न 6.
देश की स्वतंत्रता के पश्चात् विकास के स्वरूप में और इससे जुड़े नीतिगत निर्णयों के बारे में किस सीमा तक टकराव था? क्या यह टकराव आज भी जारी है विस्तार से समझाइये।
उत्तर:
भारत 15 अगस्त, 1947 को आजाद हुआ। आजादी के बाद अपने देश में ऐसे कई फैसले लिए गए जिससे सामाजिक समूह का हित सधे। इनमें से कोई भी फैसला बाकी फैसलों से मुँह फेरकर नहीं लिया जा सकता था। सारे फैसले आपस में आर्थिक विकास के एक मॉडल या विजन से बँधे हुए थे। लगभग सभी इस बात पर सहमत थे कि भारत के विकास का अर्थ आर्थिक संवृद्धि और आर्थिक-सामाजिक न्याय दोनों ही हैं। इस बात पर भी सहमति थी कि इस मामले को व्यवसायी, उद्योगपति और किसानों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता।

सरकार को इस मसले में प्रमुख भूमिका निभानी थी। यद्यपि आर्थिक संवृद्धि हो और सामाजिक न्याय मिले इसे सुनिश्चित करने के लिए सरकार कौन सी भूमिका निभाए? इस सवाल पर मतभेद थे। क्या कोई ऐसा केन्द्रीय संगठन जरूरी है जो पूरे देश के लिए योजना बनाएं? क्या सरकार को कुछ महत्त्वपूर्ण उद्योग और व्यवसाय खुद चलाने चाहिए? अगर सामाजिक न्याय आर्थिक संवृद्धि की जरूरतों के आड़े आता हो तो ऐसी सूरत में सामाजिक न्याय पर कितना जोर देना उचित होगा?

इनमें से प्रत्येक सवाल पर टकराव हुए जो आज तक जारी है। जो फैसले लिए गए उनके राजनीतिक परिणाम सामने आए। इनमें से अधिकतर मसलों पर राजनीतिक रूप से कोई फैसला लेना ही था और इसके लिए राजनीतिक दलों से सलाह-मशविरा करना जरूरी था, साथ ही जनता की स्वीकृति भी हासिल करनी थी।

प्रश्न 7.
भारत में विकास की प्रारंभिक रणनीति की मुख्य उपलब्धियाँ क्या रहीं और इसकी सीमाएँ क्या थीं? विकास की रणनीति की उपलब्धियाँ नियोजित विकास की प्रारंभिक रणनीतियों की अग्र प्रमुख उपलब्धियाँ रहीं।
उत्तर:

  • आर्थिक विकास की नींव की स्थापना- विकास के इस दौर में भारत के आगामी आर्थिक विकास की नींव पड़ी। यथा
    1. भारत के इतिहास की कुछ सबसे बड़ी विकास परियोजनाएँ इसी अवधि में शुरू हुईं।
    2. सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ भारी उद्योग, जैसे- इस्पात संयंत्र, तेल शोधक कारखाने, विनिर्माता इकाइयाँ, रक्षा- उत्पादन आदि इसी अवधि में शुरू हुए।
    3. इस दौर में परिवहन और संचार के आधारभूत ढाँचे में भी काफी इजाफा हुआ।
  • भूमि सुधार: इस अवधि में जमींदारी प्रथा की समाप्ति, चकबन्दी, अधिकतम भूमि सीमा का निर्धारण आदि भूमि सुधार के गंभीर प्रयास किये गये।
  • हरित क्रांति: सरकार ने खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कृषि की एक नई रणनीति अपनायी इसके अन्तर्गत समृद्ध तथा सिंचाई सुविधा क्षेत्र के किसानों को उच्च गुणवत्ता के बीज, उर्वरक, कीटनाशक आदि अनुदानित मूल्य पर मुहैया कराये तथा उनकी उपज को एक निर्धारित मूल्य पर खरीद लिया। इसे हरित क्रांति कहा गया। इससे उत्पादन में वृद्धि हुई तथा मझोले दर्जे के किसानों का उभार हुआ।

प्रारंभिक रणनीति की सीमाएँ: विकास की इस प्रारंभिक रणनीति की निम्नलिखित सीमाएँ रहीं।

  1. भूमि सुधार के अनेक प्रस्ताव या तो कानून का रूप नहीं ले सके या उनका उचित क्रियान्वयन नहीं हो सका।
  2. हरित क्रांति के दौर में धनी किसानों और बड़े भू-स्वामियों को सबसे ज्यादा फायदा हुआ और गरीब किसानों बड़े भूस्वामियों के बीच का अन्तर बढ़ा।
  3. इससे पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्र ही समृद्ध हुए।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 8.
हरित क्रांति क्या थी? हरित क्रान्ति के दो सकारात्मक और दो नकारात्मक परिणामों की परीक्षा कीजिए।
अथवा
हरित क्रांति क्या है? हरित क्रान्ति के सकारात्मक एवं नकारात्मक पहलू बताइये।
अथवा
हरित क्रान्ति से क्या अभिप्राय है? हरित क्रान्ति के प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
हरित क्रान्ति किसे कहते हैं? इसकी सफलता के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
हरित क्रान्ति का अर्थ- हरित क्रांति से अभिप्राय कृषिगत उत्पादन की तकनीक को सुधारने तथा कृषि उत्पादन में वृद्धि करने से है। इसके तीन तत्त्व थे।

  1. कृषि का निरन्तर विस्तार
  2. दोहरी फसल लेना तथा
  3. अच्छे बीजों का तथा आधुनिक कृषि पद्धति का प्रयोग।

हरित क्रान्ति के सकारात्मक प्रभाव
अथवा
हरित क्रान्ति की सफलता के विभिन्न पक्ष

  • भारत में हरित क्रान्ति के सकारात्मक परिणाम सामने आये, जो इस प्रकार हैं।
    1. उत्पादन में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई: हरित क्रान्ति के प्रभावस्वरूप कृषिगत उत्पादन में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई जिससे भारत गेहूँ आयात करने के स्थान पर निर्यात करने की स्थिति में आ गया।
    2. औद्योगिक विकास को बढ़ावा: इससे औद्योगिक विकास को भी बढ़ावा मिला क्योंकि अच्छे बीजों, अधिक पानी, खाद तथा कृत्रिम यन्त्रों के लिए उद्योग लगाए गए।
    3. बुनियादी ढाँचे का विकास: हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप भारत में बुनियादी ढाँचे में उत्साहजनक विकास देखने को मिला।
    4. जलविद्युत शक्ति को बढ़ावा: बाँधों द्वारा संचित किए गये पानी का जलविद्युत शक्ति के उत्पादन में प्रयोग किया गया।
    5. किसानों में संगठनात्मक एकता जागृत हुई- हरित क्रांति के परिणामस्वरूप भारतीय किसानों में संगठनात्मक एकता जागृत हुई तथा किसानों में राजनैतिक चेतना आई।
  • हरित क्रांति के नकारात्मक प्रभाव।
    1. हरित क्रांति ने निर्धन और छोटे किसानों तथा धनी जमीदारों के बीच की खाई को बहुत गहरा कर दिया।
    2. इससे पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तरप्रदेश जैसे क्षेत्र कृषि की दृष्टि से समृद्ध हो गये जबकि शेष इलाकों में कृषि पिछड़ी रही।

प्रश्न 9.
खाद्य संकट के बारे में विस्तारपूर्वकं लिखिए।
उत्तर:
1960 के दशक में कृषि की दशा बद से बदतर होती गई। 1940 और 1950 के दशक में ही खाद्यान्न के उत्पादन की वृद्धि दर, जनसंख्या की वृद्धि दर से जैसे-तैसे अपने को ऊपर रख पाई थी। 1965 से 1967 के बीच देश अनेक हिस्सों में सूखा पड़ा। इसी समय में भारत ने दो युद्धों का सामना किया और उसे विदेशी मुद्रा के संकट को भी झेलना पड़ा। इन सारी बातों के कारण खाद्यान्न की भारी कमी हो गई।

देश के अनेक भागों में अकाल जैसी स्थिति आन पड़ी। बिहार में खाद्यान्न संकट सबसे ज्यादा विकराल था। यहाँ स्थिति लगभग अकाल जैसी हो गई थी। बिहार के सभी जिलों में खाद्यान्न का अभाव बड़े पैमाने पर था। इस राज्य के 9 जिलों में अनाज की पैदावार सामान्य स्थिति की तुलना में आधी से भी कम थी।

इनमें से पाँच जिले अपनी सामान्य पैदावार की तुलना में महज एक-तिहाई ही अनाज उपजा रहे थे। खाद्यान्न के अभाव में कुपोषण बड़े पैमाने पर फैला और इसने गंभीर रूप धारण किया। 1967 में बिहार की मृत्यु दर पिछले साल की तुलना में 34 प्रतिशत बढ़ गई थी। इन वर्षों के दौरान बिहार में उत्तर भारत के अन्य राज्यों की तुलना में खाद्यान्न की कीमतें भी बढ़ीं। अपेक्षाकृत समृद्ध पंजाब की तुलना में गेहूँ और चावल बिहार में दो गुने अथवा उससे भी ज्यादा दामों में बिक रहे थे। सरकार ने उस वक्त ‘ज़ोनिंग’ या ‘इलाकाबंदी’ की नीति अपना रखी थी। इसी वजह से विभिन्न राज्यों के बीच व्यापार बंद था।

इस नीति के कारण उस वक्त बिहार में खाद्यान्न की उपलब्धता में भारी मात्रा में गिरावट आई। ऐसी दशा में समाज के सबसे गरीब तबके पर सबसे ज्यादा असर पड़ा। खाद्य संकट के कई परिणाम हुए। सरकार को गेहूँ का आयात करना पड़ा और विदेशी मदद भी स्वीकार करनी पड़ी। अब योजनाकारों के सामने पहली प्राथमिकता यह थी कि किसी भी तरह खाद्यान्न के मामले में भारत आत्मनिर्भर बने। पूरी योजना-प्रक्रिया और इससे जुड़ी आशा तथा गर्वबोध को इन बातों से धक्का लगा।

प्रश्न 10.
हरित क्रांति की आवश्यकता क्यों पड़ी? इसके परिणाम लिखिए ।
उत्तर- खाद्यान्न संकट के कारण देश पर बाहरी दबाव पड़ने की आशंका बढ़ गई थी। भारत विदेशी खाद्य सहायता पर निर्भर होने लगा था, खासकर संयुक्त राज्य अमरीका के। संयुक्त राज्य अमरीका ने इसकी एवज में भारत पर अपनी आर्थिक नीतियों को बदलने के लिए दबाव डाला। सरकार ने खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कृषि की नई रणनीति अपनाई। जो इलाके अथवा किसान खेती के मामले में पिछड़े हुए थे, सरकार ने उनको ज्यादा सहायता देने की रणनीति अपनाई। परंतु कुछ समय पश्चात् इस नीति को छोड़ दिया गया।

सरकार ने अब उन इलाकों पर ज्यादा संसाधन लगाने का फैसला किया जहाँ सिंचाई की सुविधा मौजूद थी और जहाँ किसान समृद्ध थे। इस नीति के पक्ष में यह तर्क दिया गया कि जो पहले से ही सक्षम है वह कम समय में उत्पादन की रफ्तार को बढ़ाने में सहायक होंगे। सरकार ने उच्च गुणवत्ता के बीज, उर्वरक, कीटनाशक और बेहतर सिंचाई सुविधा बड़े अनुदानित मूल्य पर उपलब्ध कराना शुरू किया। सरकार ने इस बात का भी आश्वासन दिया कि उपज को एक निर्धारित मूल्य पर खरीदा जाएगा। यही परिघटना ‘हरित क्रांति’ के नाम से जानी गई।

हरित क्रांति के परिणाम: इस प्रक्रिया में धनी किसानों और बड़े भू-स्वामियों को अधिक फायदा हुआ। हरि क्रांति से खेतिहर पैदावार में सामान्य किस्म का इजाफा हुआ और देश में खाद्यान्न की उपलब्धता में वृद्धि हुई। यद्यपि इसके कारण समाज के विभिन्न वर्गों और देश के अलग-अलग इलाकों के बीच ध्रुवीकरण तेज हुआ। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश जैसे इलाकों के किसान समृद्ध हो गए जबकि बाकी इलाके खेती के मामले में पिछड़ गए।

हरि क्रांति के कारण गरीब किसानों और भू-स्वामियों के बीच का अंतर मुखर हो उठा। इससे देश के विभिन्न हिस्सों में वामपंथी संगठनों के लिए गरीब किसानों को लामबंद करने के लिहाज से अनुकूल स्थिति पैदा हुई। हरित क्रांति की वजह से कृषि में मध्यम दर्जे के किसानों का उभार हुआ । इन्हें बदलावों का फायदा हुआ था और ये देश के अनेक हिस्सों में ताकतवर बनकर उभरे

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

बहुच्चयनात्मक प्रश्न

1. भारतीय दलीय व्यवस्था का स्वरूप है।
(क) एकदलीय
(ख) द्विदलीय
(ग) बहुदलीय
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) बहुदलीय

2. निर्बल व अस्थिर शासन जिस प्रणाली का दोष है, वह है।
(क) एकदल की तानाशाही
(ख) द्विदलीय प्रणाली
(ग) बहुदलीय प्रणाली
(घ) दलविहीन प्रणाली
उत्तर:
(ग) बहुदलीय प्रणाली

3. जनता पार्टी का उदय कब हुआ?
(क) 1980
(ख) 1998
(ग) 1999
(घ) 1977
उत्तर:
(घ) 1977

4. निम्न में कौनसा दल अखिल भारतीय दल है?
(क) तेलुगूदेशम
(ख) कांग्रेस
(ग) समाजवादी पार्टी
(घ) राष्ट्रीय जनता दल।
उत्तर:
(ख) कांग्रेस

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5. निम्न में से किस राज्य में क्षेत्रीय दल प्रभावी है।
(क) तमिलनाडु
(ख) उत्तरप्रदेश
(ग) राजस्थान
(घ) मध्यप्रदेश
उत्तर:
(क) तमिलनाडु

6. निम्न में दक्षिण भारत की प्रमुख क्षेत्रीय पार्टी कौनसी है?
(क) डी. एम. के.
(ख) राष्ट्रीय जनता दल
(ग) इनैलो
(घ) नेशनल कांफ्रेंस
उत्तर:
(क) डी. एम. के.

7. 1980 के दशक के आखिर के सालों में देश की राष्ट्रीय राजनीति में किस मुद्दे का उदय हुआ?
(क) काँग्रेस प्रणाली
(ख) अन्य पिछड़ा वर्ग
(ग) मंडल मुद्दे
(घ) राष्ट्रीय मोर्चा
उत्तर:
(ग) मंडल मुद्दे

8. राजीव गाँधी की हत्या कब हुई थी?
(क) 1983
(ख) 1990
(ग) 1985
(घ) 1991
उत्तर:
(घ) 1991

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9. राजीव गाँधी की मृत्यु के पश्चात् प्रधानमंत्री किसको चुना गया?
(क) संजय गाँधी
(ख) नरसिम्हा राव
(ग) गुलजारी लाल नंदा
(घ) मोरारजी देसाई
उत्तर:
(ख) नरसिम्हा राव

10. बामसेफ का गठन हुआ-
(क) 1978
(ख) 1980
(ग) 1991
(घ) 1989
उत्तर:
(क) 1978

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए 

1. 1978 में ………….. का गठन हुआ।
उत्तर:
बामसेफ

2. बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक ……………. थे।
उत्तर:
कांशीराम

3. मुस्लिम महिला अधिनियम ………………में पास किया गया।
उत्तर:
1986

4. अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने का प्रस्ताव …………….. मुद्दे में किया गया था।
उत्तर:
मंडल

5. बाबरी मस्जिद के विवादित ढाँचे को विध्वंस करने की घटना ………………… के दिसंबर महीने में घटी।
उत्तर:
1992

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में गठबन्धन की राजनीति की शुरुआत कौनसे दशक में शुरू हुई?
उत्तर:
1990 के दशक में।

प्रश्न 2.
जनता दल का गठन कब किया गया?
उत्तर:
सन् 1988 में।

प्रश्न 3.
राजग का गठन हुआ
उत्तर:
1999 में।

प्रश्न 4.
संप्रग सरकार का गठन कब हुआ?
उत्तर:
2004 में।

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प्रश्न 5.
सन् 1989 की प्रमुख राजनैतिक घटना क्या थी?
उत्तर:
कांग्रेस की हार।

प्रश्न 6.
किसी भी दल को बहुमत प्राप्त नहीं हो ऐसी संसद को कहते हैं।
उत्तर:
त्रिशंकु संसद।

प्रश्न 7.
2004 के लोकसभा चुनावों में किस गठबन्धन की सरकार बनी?
उत्तर:
संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन।

प्रश्न 8.
भारत में सन् 2009 में किस गठबंधन की सरकार केंन्द्र में दोबारा बनी थी?
उत्तर:
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की।

प्रश्न 9.
संयुक्त मोर्चा की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
सन् 1996 में।

प्रश्न 10.
मण्डल आयोग की सिफारिशों को कब लागू किया गया?
उत्तर:
1990 में।

प्रश्न 11.
1989 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी को कितनी सीटों पर विजय मिली?
उत्तर:
1989 के चुनाव में काँग्रेस पार्टी को 197 सीटों पर विजय मिली थी।

प्रश्न 12.
कौनसा क्षेत्रीय दल है जो राष्ट्रभाषा हिन्दी का विरोध और राज्यों की स्वायत्तता का हिमायती है?
उत्तर:
द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डी.एम.के.)।

प्रश्न 13.
भारत में राजनीतिक दलों को मान्यता देने वाली संस्था का नाम बताइये।
उत्तर:
निर्वाचन आयोग।

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प्रश्न 14.
भारतीय दलीय व्यवस्था का वह कौनसा स्वरूप है जो राजनीतिक अस्थायित्व और अवसरवादिता को जन्म देता है?
उत्तर:
राजनीतिक दल-बदल।

प्रश्न 15.
राजनीतिक दलों के ध्रुवीकरण के प्रमुख बाधक तत्त्व क्या हैं?
उत्तर:
विचारधाराओं की विभिन्नता।

प्रश्न 16.
भारतीय दलीय व्यवस्था की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर: बहुदलीय व्यवस्था, शासन सत्ता को मर्यादित करना।

प्रश्न 17.
राजनीतिक दलों के दो कार्य बताइए।
उत्तर:
,राजनीतिक चेतना का प्रसार, शासन सत्ता को मर्यादित करना।

प्रश्न 18.
क्षेत्रीय दल किसे कहते हैं?
उत्तर:
क्षेत्रीय दल वे दल कहलाते हैं जिनका संगठन एवं प्रभाव क्षेत्र प्रायः केवल एक राज्य या प्रदेश तक सीमित होता है।

प्रश्न 19.
वर्तमान दलीय व्यवस्था की उभरती हुई दो प्रवृत्तियाँ बताइए।
उत्तर:

  1. जाति आधारित दलों का गठन
  2. राजनीतिक अपराधीकरण।

प्रश्न 20.
भारतीय दलीय व्यवस्था के दो दोष बताइए।
उत्तर:

  1. साम्प्रदायिकता तथा क्षेत्रवाद की प्रबलता।
  2. नैतिकता का अभाव।

प्रश्न 21.
राजनीतिक दलों के दो आवश्यक तत्त्व बताइये।
उत्तर:
संगठन, सामान्य सिद्धान्तों में एकता।

प्रश्न 22.
किन्हीं चार क्षेत्रीय दलों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. डी. एम. के.
  2. ए. डी. एम. के.
  3. अकाली दल
  4. तेलगूदेशम।

प्रश्न 23.
किस चुनाव के बाद लोकसभा में किसी भी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला?
उत्तर:
1989 के लोकसभा चुनावों के बाद किसी भी एक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हुआ।

प्रश्न 24.
1989 के चुनावों के पश्चात् केन्द्र में जनता दल ने किसके नेतृत्व में सरकार बनाई?
उत्तर:
1989 के चुनावों के पश्चात् केन्द्र में जनता दल ने वी. पी. सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाई।

प्रश्न 25.
1989 से 2004 के चुनावों तक लोकसभा में किस पार्टी के स्थान बढ़ते रहे हैं?
उत्तर:
भारतीय जनता पार्टी के।

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प्रश्न 26.
लोकतान्त्रिक सरकार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
लोकतान्त्रिक सरकार वह सरकार होती है जिसमें सत्ता के बारे में अन्तिम निर्णय जनता द्वारा लिया जाता है।

प्रश्न 27.
संयुक्त मोर्चा की एक विशेषता लिखिए।
उत्तर:
संयुक्त मोर्चा का गठन कांग्रेस को सत्ता से दूर रखने के लिए किया गया।

प्रश्न 28.
मंडल मुद्दा से आपका क्या आशय है?
उत्तर:
अन्य पिछड़ा वर्ग को मिले आरक्षण के समर्थक और विरोधियों के बीच चले विवाद को मंडल मुद्दा कहा गया।

प्रश्न 29.
भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार से समर्थन वापस कब लिया?
उत्तर:
भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार से 23 अक्टूबर, 1990 को समर्थन वापस लिया।

प्रश्न 30.
भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था में गठबन्धन युग के उदय का कोई एक कारण लिखें।
उत्तर:
भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था में गठबन्धनवादी युग के उदय का महत्त्वपूर्ण कारण क्षेत्रीय दलों में वृद्धि है।

प्रश्न 31.
गठबन्धन की राजनीति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गठबन्धन की राजनीति का अर्थ कई दलों द्वारा सरकार का निर्माण करने से लिया जाता है।

प्रश्न 32.
गठबन्धनवादी राजनीति की प्रमुख समस्या क्या है?
उत्तर:
गठबन्धनवादी राजनीति की प्रमुख समस्या है। इसमें क्षेत्रीय पार्टियाँ राजनीतिक सौदेबाजी तथा अवसरवादिता की राजनीति करती हैं।

प्रश्न 33.
बाबरी मस्जिद कब गिराई गई, उस समय केन्द्र में किस पार्टी की सरकार थी?
उत्तर:
बाबरी मस्जिद 6 दिसम्बर, 1992 को गिराई गई, उस समय केन्द्र में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी तथा पी. वी. नरसिम्हा राव प्रधानमन्त्री थे।

प्रश्न 34.
2014 के लोकसभा चुनावों में किस दल को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ है?
उत्तर:
भारतीय जनता पार्टी को।

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प्रश्न 35.
वैचारिक प्रतिबद्धता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वैचारिक प्रतिबद्धता: वैचारिक प्रतिबद्धता से अभिप्राय है। राजनीतिक दलों का आर्थिक तथा राजनीतिक विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध होना।

प्रश्न 36.
चुनावों में क्षेत्रीय दलों की शक्ति में वृद्धि के फलस्वरूप होने वाले तीन राजनैतिक परिणाम बताइये।
उत्तर:
चुनावों में क्षेत्रीय दलों की शक्ति में वृद्धि के फलस्वरूप होने वाले तीन राजनैतिक परिणाम हैं।

  1. राजनीतिक अस्थिरता में वृद्धि
  2. क्षेत्रवाद को बढ़ावा
  3. मिली-जुली राजनीति का प्रारंभ।

प्रश्न 37.
भारत के किन्हीं तीन क्षेत्रीय दलों के नाम लिखिए।
उत्तर:
क्षेत्रीय दल हैं।

  1. द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डी.एम.के.)।
  2. अखिल भातीय अन्ना द्रविड़ मुनैत्र कड़गम (ए. आई. अन्ना डी. एम. के.) तथा।
  3. तेलगूदेशम।

प्रश्न 38.
भारत के दो राष्ट्रीय दलों के नाम लिखिये।
उत्तर:
राष्ट्रीय दल हैं। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी।

प्रश्न 39.
भारत में दलीय व्यवस्था की कोई तीन समस्याएँ बताइए।
उत्तर:
भारतीय दलीय व्यवस्था की तीन समस्याएँ ये हैं।

  1. दलों की सरकार
  2. दलों में वैचारिक प्रतिबद्धता का अभाव
  3. दलों में आन्तरिक लोकतन्त्र का अभाव।

प्रश्न 40.
निम्न को सुमेलित कीजिए:
(i) राष्ट्रीय मोर्चा – कांग्रेस व क्षेत्रीय दल
(ii) संयुक्त मोर्चा – भाजपा व क्षेत्रीय दल
(iii) राजग – कांग्रेस व राष्ट्रीय मोर्चा
(iv) संप्रग – जनता दल व क्षेत्रीय दल
उत्तर:
(i) राष्ट्रीय मोर्चा – जनता दल व क्षेत्रीय दल
(ii) संयुक्त मोर्चा – कांग्रेस व राष्ट्रीय मोर्चा
(iii) राजग – भाजपा व क्षेत्रीय दल
(iv) संप्रग – कांग्रेस व क्षेत्रीय दल

प्रश्न 41.
राजीव गाँधी की हत्या के जिम्मेदार कौन थे?
उत्तर:
राजीव गाँधी की हत्या के जिम्मेदार लिट्टे से जुड़े श्रीलंकाई तमिल थे

प्रश्न 42.
अन्य पिछड़ा वर्ग को और क्या बोल कर संकेत किया जाता है?
उत्तर:
अदर बैकवर्ड क्लासेज।

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प्रश्न 43.
मंडल आयोग को आधिकारिक रूप से क्या कहा गया?
उत्तर:
मंडल आयोग को आधिकारिक रूप से दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग कहा गया।

प्रश्न 44.
बामसेफ का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एम्पलाइज फेडरेशन।

प्रश्न 45.
हिन्दुत्व अथवा हिंदूपन शब्द को किसने गढ़ा था?
उत्तर:
हिन्दुत्व अथवा हिंदूपन शब्द को वी. डी. सावरकर ने गढ़ा था।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किस वर्ष भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई और इसके प्रथम अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
भारतीय जनता पार्टी की स्थापना सन् 1980 में हुई। पहले यह जनता पार्टी का घटक थी लेकिन दोहरी सदस्यता के प्रश्न पर जनता पार्टी से मतभेद हो गया और पूर्व जनसंघ अलग हो गया। अटल बिहारी वाजपेयी पार्टी के प्रथम अध्यक्ष थे।

प्रश्न 2.
राजनीतिक दल-बदल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कोई जनप्रतिनिधि किसी खास दल के चुनाव चिह्न को लेकर चुनाव लड़े और चुनाव जीतने के बाद इस दल को छोड़कर किसी दूसरे दल में शामिल हो जाए, तो इसे राजनीतिक दल-बदल कहते हैं।

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प्रश्न 3.
संयुक्त मोर्चा सरकार की प्रमुख विशेषता बताइये।
उत्तर:
संयुक्त मोर्चा सरकार 1 जून, 1996 में देवेगौड़ा के नेतृत्व में बनी। इस सरकार की महत्त्वपूर्ण विशेषता यह थी कि केन्द्र में बनी सरकार क्षेत्रीय पार्टियों के समर्थन पर टिकी हुई थी और भारतीय राजव्यवस्था के इतिहास में पहली बार भारतीय साम्यवादी दल केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में शामिल हुआ।

प्रश्न 4.
1989 में भारत में गठबन्धन सरकार की आवश्यकता क्यों पड़ी? एक उदाहरण दें।
उत्तर:
1989 में भारत में गठबन्धन सरकार की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि लोकसभा के चुनाव में त्रिशंकु लोकसभा का गठन हुआ था। किसी भी एक राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हुआ और यह समय की आवश्यकता थी।

प्रश्न 5.
गठबंधन सरकार का क्या अर्थ है? गठबंधन सरकार सबसे पहले केन्द्र में कब बनी?
उत्तर:
गठबंधन सरकार: विभिन्न दल एक गठबंधन बनाकर जब एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम के अन्तर्गत सरकार का गठन करते हैं तो उसे गठबंधन सरकार कहा जाता है। केन्द्र में पहली गठबंधन सरकार सन् 1989 में वी. पी. सिंह के नेतृत्व में बनी थी।

प्रश्न 6.
पोखरण नाभिकीय परीक्षण कब किए गये और उस समय किस दल की सरकार थी?
उत्तर:
पोखरण में पहली बार 1974 में नाभिकीय परीक्षण किये गये। उस समय केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी। इन्दिरा गांधी प्रधानमन्त्री थीं। पोखरण – II नाभिकीय परीक्षण 11 मई और 13 मई, 1999 में किए गए, उस समय राजग की सरकार थी और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे।

प्रश्न 7.
1988 का वर्ष भारतीय राजनीति में क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
1988 का वर्ष भारतीय राजनीति में विशेष स्थान रखता है क्योंकि इस वर्ष राष्ट्रीय स्तर पर एक नए राजनीतिक दल – जनता दल का निर्माण हुआ था। वी. पी. सिंह को जनता दल का सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुना गया था।

प्रश्न 8.
क्या क्षेत्रीय दल आवश्यक हैं? अपने उत्तर के पक्ष में दो तर्क दीजिए।
उत्तर:
भारत में क्षेत्रीय दल आवश्यक हैं, क्योंकि।

  1. भारत एक विशाल देश है जिसमें विभिन्न भाषाओं, धर्मों तथा जातियों के लोग रहते हैं। अनेक क्षेत्रीय दलों का निर्माण जाति, धर्म एवं भाषा के आधार पर हुआ है।
  2. भारत में विभिन्न क्षेत्रों की अपनी समस्याएँ तथा आवश्यकताएँ हैं। इनके हितों की पूर्ति के लिए विभिन्न क्षेत्रीय दलों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।

प्रश्न 9.
भारत में गठबन्धन सरकारों के निर्माण के दो कारण बताइए।
उत्तर:

  1. 1989 के बाद राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस का आधिपत्य समाप्त हो गया और कांग्रेस के विरुद्ध अनेक राजनीतिक दल आये जिससे गठबन्धनवादी सरकारों का दौर शुरू हुआ।
  2. क्षेत्रीय दलों की बढ़ती संख्या के कारण भी एक राष्ट्रीय दल को लोकसभा या विधानसभा में बहुमत मिलना कठिन हो गया, जिससे गठबन्धन की राजनीति शुरू हुई।

प्रश्न 10.
संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (संप्रग): संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन का निर्माण मई, 2004 में कांग्रेस एवं उसके सहयोगी दलों ने किया। इस दल की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी को बनाया गया तथा कांग्रेस के नेता डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने का निर्णय लिया गया जिन्होंने 2004 और 2009 में अपनी सरकार बनाई।

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प्रश्न 11.
कांग्रेस प्रणाली से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
कांग्रेस पार्टी की स्थापना 1885 में हुई। उसके कई वर्षों बाद तक भी कांग्रेस स्वयं में एक गठबन्धन पार्टी के रूप में कार्य करती रही क्योंकि इसमें कई धर्मों, जातियों, भाषाओं तथा क्षेत्रों के लोग शामिल थे। इसे ही कांग्रेस प्रणाली कहते हैं।

प्रश्न 12.
मंडल मुद्दा क्या था?
उत्तर: मंडल मुद्दा – सन् 1990 में वी. पी. सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करते हुए यह प्रावधान किया कि केन्द्र सरकार की नौकरियों ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ को 27 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया जायेगा। इससे अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के समर्थक और विरोधियों के बीच एक विवाद चला। इस विवाद को ही मंडल मुद्दा कहा गया।

प्रश्न 13.
अयोध्या में विवादित ढाँचे को कब गिराया गया था? राज्य सरकार को कैसे दंडित किया गया?
उत्तर:
6 दिसम्बर, 1992 को अयोध्या में विवादित ढाँचे को गिराया गया था। इसके दंड स्वरूप प्रथमतः उत्तर प्रदेश की तत्कालीन भाजपा सरकार को बर्खास्त किया गया। दूसरे, मुख्यमंत्री कल्याण सिंह पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्यायालय के अवमानना के विरोध में मुकदमा दर्ज किया गया। तीसरे, जिन-जिन राज्यों में भाजपा सरकारें थीं उन्हें बर्खास्त कर वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू किया गया।

प्रश्न 14.
वी. पी. मंडल पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
वी.पी. मंडल का जन्म 1918 में हुआ था। ये 1967-1970 तथा 1977 – 1979 में बिहार से सांसद चुने गए। इन्होंने दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग की अध्यक्षता की। इस आयोग ने अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने की सिफारिश समाजवादी नेता बने। 1968 में ये डेढ़ माह के लिए बिहार के मुख्यमंत्री बने। 1977 में ये जनता पार्टी में शामिल हुए।

प्रश्न 15.
मिली-जुली सरकारों के दुष्परिणामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
साझा सरकारों के दुष्परिणाम निम्न हैं।

  1. विभाजन व विघटन की प्रवृत्ति
  2. अवसरवादिता की प्रवृत्ति
  3. उत्तरदायित्व की प्रवृत्ति
  4. राजनीतिक दलों की नीतियों और कार्यक्रमों में अनिश्चितता और अस्पष्टता।

प्रश्न 16.
निर्दलीय उम्मीदवार की वर्तमान समय में बढ़ती संख्या एक चुनौती है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
चुनावों में किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने के कारण निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि हो रही है। यह निर्दलीय उम्मीदवार भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हैं। यह भारतीय दलीय व्यवस्था के हित में नहीं है।

प्रश्न 17.
राजनीतिक अपराधीकरण से क्या आशय है?
उत्तर:
राजनीतिक दलों द्वारा अपराध जगत के माफिया सरदारों को चुनावों में उम्मीदवार बनाकर धन-बल, बल के आधार पर लोकसभा और विधानसभाओं में पहुँचाया जाना राजनीतिक अपराधीकरण कहलाता है।

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प्रश्न 18.
स्पष्ट जनादेश और खण्डित जनादेश में क्या अन्तर है?
उत्तर:
स्पष्ट जनादेश का अभिप्राय है। किसी एक राजनैतिक दल को लोकसभा के चुनावों में स्पष्ट बहुमत मिलना और खण्डित जनादेश का अभिप्राय है। लोकसभा के चुनावों में किसी भी राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत न मिलना।

प्रश्न 19.
बहुदलीय प्रणाली से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
बहुदलीय व्यवस्था: बहुदलीय व्यवस्था से अभिप्राय है। लोकसभा या राज्य विधानसभाओं में अनेक राजनीतिक दल विद्यमान होना जैसे आज लोकसभा में 50 से भी अधिक राजनीतिक दल हैं।

प्रश्न 20.
भारत की नई आर्थिक नीति कब शुरू की गई थी? इसका मुख्य वास्तुकार कौन था?
उत्तर:
भारत की नई आर्थिक नीति को 1991 में संरचना समायोजन कार्यक्रम के रूप में शुरू किया गया था और इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव द्वारा शुरू किया गया था।

  1. भारत की नई आर्थिक नीति का शुभारंभ तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने किया था।
  2. आर्थिक परिवर्तन पहली बार 1991 में दिखाई दिए और मौलिक रूप से उस दिशा को बदल दिया जो भारतीय अर्थव्यवस्था ने आजादी के बाद से उदारीकृत और खुली अर्थव्यवस्था के लिए अपनायी थी।

प्रश्न 21.
शाहबानो मामला क्या था? इस मामले पर भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस विरोधी रुख क्यों अपनाया?
उत्तर:
शाहबानो मामला: शाहबानो मामला एक 62 वर्षीया तलाकशुदा मुस्लिम महिला शाहबानो का है। उसने अपने भूतपूर्व पति से गुजारा भत्ता हासिल करने के लिए अदालत में एक अर्जी दायर की थी। सर्वोच्च न्यायालय ने शाहबानो के पक्ष में फैसला सुनाया। पुरातनपंथी मुसलमानों ने अदालत के इस फैसले को अपने ‘पर्सनल लॉ’ में हस्तक्षेप माना । कुछ मुस्लिम नेताओं की माँग पर सरकार ने मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 पास किया जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को निरस्त कर दिया गया।

प्रश्न 12.
मंडल मुद्दा क्या था?
उत्तर:
मंडल मुद्दा: सन् 1990 में वी. पी. सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करते हुए यह प्रावधान किया कि केन्द्र सरकार की नौकरियों ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ को 27 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया जायेगा। इससे अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के समर्थक और विरोधियों के बीच एक विवाद चला। इस विवाद को ही मंडल मुद्दा कहा गया।

प्रश्न 13.
अयोध्या में विवादित ढाँचे को कब गिराया गया था? राज्य सरकार को कैसे दंडित किया गया?
उत्तर:
6 दिसम्बर, 1992 को अयोध्या में विवादित ढाँचे को गिराया गया था। इसके दंड स्वरूप प्रथमतः उत्तर प्रदेश की तत्कालीन भाजपा सरकार को बर्खास्त किया गया। दूसरे, मुख्यमंत्री कल्याण सिंह पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्यायालय के अवमानना के विरोध में मुकदमा दर्ज किया गया। तीसरे, जिन-जिन राज्यों में भाजपा सरकारें थीं उन्हें बर्खास्त कर वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू किया गया।

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प्रश्न 14.
वी. पी. मंडल पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
वी.पी. मंडल का जन्म 1918 में हुआ था। ये 1967-1970 तथा 1977 – 1979 में बिहार से सांसद चुने गए। इन्होंने दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग की अध्यक्षता की। इस आयोग ने अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने की सिफारिश समाजवादी नेता बने। 1968 में ये डेढ़ माह के लिए बिहार के मुख्यमंत्री बने। 1977 में ये जनता पार्टी में शामिल हुए।

प्रश्न 15.
मिली-जुली सरकारों के दुष्परिणामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
साझा सरकारों के दुष्परिणाम निम्न हैं।

  1. विभाजन व विघटन की प्रवृत्ति
  2. अवसरवादिता की प्रवृत्ति
  3. उत्तरदायित्व की प्रवृत्ति
  4. राजनीतिक दलों की नीतियों और कार्यक्रमों में अनिश्चितता और अस्पष्टता।

प्रश्न 16.
निर्दलीय उम्मीदवार की वर्तमान समय में बढ़ती संख्या एक चुनौती है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
चुनावों में किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने के कारण निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि हो रही है। यह निर्दलीय उम्मीदवार भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हैं। यह भारतीय दलीय व्यवस्था के हित में नहीं है।

प्रश्न 17.
राजनीतिक अपराधीकरण से क्या आशय है?
उत्तर:
राजनीतिक दलों द्वारा अपराध जगत के माफिया सरदारों को चुनावों में उम्मीदवार बनाकर धन-बल, बल के आधार पर लोकसभा और विधानसभाओं में पहुँचाया जाना राजनीतिक अपराधीकरण कहलाता है।

प्रश्न 18.
स्पष्ट जनादेश और खण्डित जनादेश में क्या अन्तर है?
उत्तर:
स्पष्ट जनादेश का अभिप्राय है। किसी एक राजनैतिक दल को लोकसभा के चुनावों में स्पष्ट बहुमत मिलना और खण्डित जनादेश का अभिप्राय है। लोकसभा के चुनावों में किसी भी राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत न मिलना।

प्रश्न 19.
बहुदलीय प्रणाली से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
बहुदलीय व्यवस्था: बहुदलीय व्यवस्था से अभिप्राय है। लोकसभा या राज्य विधानसभाओं में अनेक राजनीतिक दल विद्यमान होना जैसे आज लोकसभा में 50 से भी अधिक राजनीतिक दल हैं।

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प्रश्न 20.
भारत की नई आर्थिक नीति कब शुरू की गई थी? इसका मुख्य वास्तुकार कौन था?
उत्तर:
भारत की नई आर्थिक नीति को 1991 में संरचना समायोजन कार्यक्रम के रूप में शुरू किया गया था और इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव द्वारा शुरू किया गया था।

  1. भारत की नई आर्थिक नीति का शुभारंभ तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने किया था।
  2. आर्थिक परिवर्तन पहली बार 1991 में दिखाई दिए और मौलिक रूप से उस दिशा को बदल दिया जो भारतीय अर्थव्यवस्था ने आजादी के बाद से उदारीकृत और खुली अर्थव्यवस्था के लिए अपनायी थी।

प्रश्न 21.
शाहबानो मामला क्या था? इस मामले पर भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस विरोधी रुख क्यों अपनाया?
उत्तर:
शाहबानो मामला: शाहबानो मामला एक 62 वर्षीया तलाकशुदा मुस्लिम महिला शाहबानो का है। उसने अपने भूतपूर्व पति से गुजारा भत्ता हासिल करने के लिए अदालत में एक अर्जी दायर की थी। सर्वोच्च न्यायालय ने शाहबानो के पक्ष में फैसला सुनाया। पुरातनपंथी मुसलमानों ने अदालत के इस फैसले को अपने ‘पर्सनल लॉ’ में हस्तक्षेप माना।

कुछ मुस्लिम नेताओं की माँग पर सरकार ने मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 पास किया जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को निरस्त कर दिया गया। भाजपा ने कांग्रेस सरकार के इस कदम की आलोचना की और इसे अल्पसंख्यक समुदाय को दी गई अनावश्यक रियायत तथा तुष्टिकरण करार दिया।

प्रश्न 22.
भारत में वामपंथी एवं दक्षिणपंथी राजनीतिक दलों का उल्लेख कीजिए तथा उनकी विचारधारा में कोई दो अन्तर लिखिये।
उत्तर:
प्रमुख वामपंथी तथा दक्षिण पंथी राजनैतिक दल: भारत में वामपंथी विचारधारा के पोषक दल हैं। सीपीएम, सीपीआई, रिपब्लिक पार्टी, फारवर्ड ब्लाक एवं समाजवादी पार्टी, जबकि दक्षिणपंथी विचारधारा का पोषक दल भारतीय जनता पार्टी है। वामपंथी तथा दक्षिणपंथी राजनैतिक दलों की विचारधारा में अन्तर:

  1. वामपंथी दल धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक- आर्थिक न्याय, राष्ट्रीयकरण आदि का समर्थन करते हैं, जबकि दक्षिणपंथी दल भारतीय संस्कृति, प्रबल राष्ट्रवाद, उदारीकरण, भूमंडलीकरण की नीतियों का समर्थन करते हैं।
  2. वामपंथी दल सार्वजनिक क्षेत्र के समर्थक हैं जबकि दक्षिणपंथी दल निजी क्षेत्र के समर्थक हैं ।

प्रश्न 23.
राजनीतिक दलों में आन्तरिक लोकतन्त्र के अभाव से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
राजनीतिक दलों में आन्तरिक लोकतन्त्र का अभाव: भारत के अधिकांश राजनीतिक दलों में आन्तरिक लोकतन्त्र का अभाव है। यथा – प्रथमतः 1997 तक अधिकांश राजनीतिक दलों में लम्बे समय से संगठनात्मक चुनाव नहीं हुए। 1997 में चुनाव आयोग के निर्देश पर ही ये चुनाव हो सके। दूसरे, भारतीय राजनीतिक दलों का निर्माण किन्हीं प्रक्रियाओं, मर्यादाओं, सिद्धान्तों या कानूनों के आधार पर नहीं होता है। तीसरे, भारतीय राजनीतिक दलों के आय-व्यय का कोई लेखा-जोखा सदस्यों के सामने प्रस्तुत नहीं किया जाता।

प्रश्न 24.
भारत की बहुदलीय व्यवस्था पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
बहुदलीय व्यवस्था: भारत में बहुदलीय व्यवस्था है अर्थात् लोकसभा में अनेक राजनैतिक दलों के सदस्य हैं। वर्तमान में लोकसभा में कुल मिलाकर 50 से भी अधिक राजनैतिक दल हैं। कुछ राजनैतिक दल राष्ट्रीय या अखिल भारतीय राजनैतिक दल हैं तो कुछ राज्य स्तरीय तथा क्षेत्रीय दल हैं। 1989 तक भारत की बहुदलीय व्यवस्था में एक राजनीतिक दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रधानता की स्थिति बनी रही, लेकिन धीरे-धीरे कांग्रेस का वर्चस्व समाप्त हो गया और वर्तमान में किसी एक राजनैतिक दल का वर्चस्व नहीं है। यद्यपि 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला है तथापि अनेक क्षेत्रीय दलों को भी अपने राज्यों में अच्छी सफलता मिली है।

प्रश्न 25.
जनता दल का निर्माण किन कारणों से हुआ? इसके मुख्य घटकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
जनता दल: जनता दल का निर्माण 1988 में हुआ। 1987 में कांग्रेस के कई प्रमुख नेताओं ने पार्टी का त्याग करके जनमोर्चा का निर्माण किया। इसके साथ ही अनेक नेता एक ऐसे नये राजनीतिक दल का निर्माण करने का प्रयास कर रहे थे, जो कांग्रेस का विकल्प बन सके। 26 जुलाई, 1988 को चार विपक्षी दलों जनता पार्टी, लोकदल, कांग्रेस (स) और जनमोर्चा के विलय से एक नये राजनीतिक दल की स्थापना की गई। इस नये दल का नाम समाजवादी जनता दल रखा गया। 11 अक्टूबर, 1988 को बैंगलोर में समाजवादी जनता दल का नाम बदलकर जनता दल कर दिया गया। श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को जनता दल का प्रधान मनोनीत किया गया।

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प्रश्न 26.
जनता दल के कार्यक्रमों एवं नीतियों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जनता दल के कार्यक्रम एवं नीतियाँ – जनता दल के प्रमुख कार्यक्रम एवं नीतियाँ निम्नलिखित हैं।

  1. जनता दल का लोकतन्त्र में दृढ़ विश्वास है और उत्तरदायी प्रशासनिक व्यवस्था को अपनाने के पक्ष में है।
  2. जनता दल ने भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए सात सूत्रीय कार्यक्रम अपनाने की बात कही है।
  3.  पार्टी राजनीति में बढ़ते हुए भ्रष्टाचार को रोकने के लिए लोकपाल की नियुक्ति के पक्ष में है।
  4. पार्टी पंचायती राज संस्थाओं को अधिक स्वायत्तता देने के पक्ष में है।
  5. जनता दल महिलाओं को संसद और राज्य विधानमण्डलों में 33 प्रतिशत और सरकारी, सार्वजनिक व निजी क्षेत्र की नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण दिलाने के पक्ष में है।

प्रश्न 27.
1990 के पश्चात् भारत में राजनीतिक दलों के कौनसे गठबंधन उभरे? इस परिवर्तन के किन्हीं दो परिणामों को उजागर कीजिये।
उत्तर:

  • 1990 के पश्चात् भारत में केन्द्र में राजनीतिक दलों के तीन गठबंधन उभरे
    1. 1996 और 1997 में देवेगोड़ा और इन्द्रकुमार गुजराल के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चा सरकार बनी जिसे कांग्रेस ने बाहर से समर्थन दिया।
    2. 1998 और 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपानीत राजग की गठबंधन सरकार बनी।
    3. 2004 तथा 2009 में कांग्रेसनीत संप्रग सरकार का गठन हुआ।
    4. 2014 में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपानीत राजग की सरकार बनी।
  • गठबंधन राजनीति के परिणाम इस प्रकार रहे।
    1. गठबंधन की राजनीति के परिणामस्वरूप पिछड़ी जातियों के राजनीतिक और सामाजिक दावे को सभी दलों ने स्वीकार कर लिया।
    2. गठबंधन की राजनीति के परिणामस्वरूप केन्द्रीय शासन में क्षेत्रीय दलों का प्रभुत्व बढ़ा।

प्रश्न 28.
भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था में गठबन्धनवादी युग के उदय के किन्हीं चार कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था में गठबन्धनवादी राजनीति के उदय के कारण – भारत में गठबन्धनवादी राजनीति के उदय के कारण निम्नलिखित हैं।

  1. कांग्रेसी प्रभुत्व का अन्त: 1989 के बाद कांग्रेस पार्टी की स्थिति पहले जैसी नहीं रही जिससे गठबन्धनवादी सरकारों का दौर शुरू हुआ।
  2. क्षेत्रीय दलों की संख्या में वृद्धि: क्षेत्रीय दलों की बढ़ती संख्या के कारण किसी भी एक राष्ट्रीय दल को लोक सभा या विधानसभा में बहुमत मिलना कठिन हो गया। इससे राजनीतिक दल गठबन्धन बनाने लगे हैं।
  3. दलबदल -दल-बदल के कारण सरकारों का अनेक बार पतन हुआ और जो नई सरकारें बनीं वे भी गठबन्धन करके बनीं।
  4. क्षेत्रीय हितों की उपेक्षा: प्रायः केन्द्र में बनी राष्ट्रीय दलों की सरकारों ने क्षेत्रीय हितों की उपेक्षा की है। इससे क्षेत्रीय स्तर के दलों ने मुद्दों पर आधारित राजनीति के अनुसार गठबन्धनकारी दौर की शुरुआत की।

प्रश्न 29.
राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन के उदय का वर्णन करें।
उत्तर:
राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन;
राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन (NDA) का निर्माण मई, 1999 में भारतीय जनता पार्टी एवं इसके सहयोगी दलों ने किया। इस गठबन्धन में अधिकतर वे दल ही सम्मिलित थे जो बारहवीं लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी के गठबन्धन में सम्मिलित थे। राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन ने भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमन्त्री के रूप में पेश किया। इस गठबन्धन ने 1999 में हुए 13वीं लोकसभा के चुनावों में 297 सीटों पर विजय प्राप्त की तथा अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनाई, परन्तु 2004 में 14वीं और 2009 में 15वीं लोकसभा के चुनावों में इस गठबन्धन को हार का सामना करना पड़ा। 2014 के लोकसभा चुनावों में पुन: इस गठबन्धन ने विजय प्राप्त की और नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में वर्तमान में राजग की ही सरकार है।

प्रश्न 30.
1989 के बाद कांग्रेस एवं भारतीय जनता पार्टी के निर्वाचित प्रदर्शन का क्या रुझान रहा? उत्तर-1989 के बाद कांग्रेस एवं भारतीय जनता पार्टी के निर्वाचन प्रदर्शन का रुझान इस प्रकार रहा-
1. कांग्रेस:
1989 के बाद कांग्रेस के निर्वाचन प्रदर्शन में गिरावट आई है तथा प्रत्येक चुनाव में कांग्रेस के वोट एवं सीटें कम होती चली गईं तथा जो पार्टी 1960 एवं 70 के दशक में दो-तिहाई बहुमत प्राप्त कर लेती थी वह अपने दम पर इतनी सीट भी नहीं जीत पाती कि वह अपनी सरकार बना ले। 2004 के 14वीं और 2009 के 15वीं लोकसभा के चुनावों के पश्चात् कांग्रेस अन्य दलों के सहयोग से केन्द्र में सरकार बनाने में सफल रही है, लेकिन 2014 के 16वीं लोकसभा चुनावों में उसे केवल 44 सीटें ही प्राप्त हुई हैं।

2. भारतीय जनता पार्टी:
1989 के बाद भारतीय जनता पार्टी की वोट एवं सीटें बढ़ती गईं तथा भारतीय राजनीति में इसने महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया तथा 1998, 1999 तथा 2014 के लोकसभा चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और इसने केन्द्र में सरकार बनाई।

प्रश्न 31.
यह कहना कहाँ तक उचित है कि भारत में कुछ सहमति बनाने में गठबंधन सरकार ने सहायता की है?
उत्तर:
गठबंधन सरकार की सहमति बनाने में भूमिका:

  1. नयी आर्थिक नीति पर सहमति: अधिकतर दलों का मानना है कि नई आर्थिक नीतियों से देश समृद्ध होगा और भारत विश्व की एक आर्थिक शक्ति बनेगा।
  2. पिछड़ी जातियों के राजनीतिक और सामाजिक दावे की स्वीकृति: गठबंधन सरकारों में शामिल राजनीतिक दलों में यह सहमति बनी है कि पिछड़ी जातियों को शिक्षा तथा रोजगार में आरक्षण दिया जाए।
  3. केन्द्रीय शासन में प्रान्तीय दलों की भूमिका की स्वीकृति: गठबंधन सरकारों में प्रान्तीय दल केन्द्रीय सरकार में साझेदार बन रहे हैं। अब प्रान्तीय और केन्द्रीय दलों का भेद कम हो रहा है।
  4. विचारधारा की जगह कार्यसिद्धि पर जोर-गठबंधन सरकार में एक साझा कार्यक्रम होता है और इस कार्यक्रम की क्रियान्विति पर अधिक जोर दिया जाता है। विचारधारा का तत्त्व इस सरकार में गौण हो गया है।

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प्रश्न 32.
कांशीराम के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
कांशीराम का जन्म 1934 में हुआ था। ये बहुजन समाज के सशक्तीकरण के प्रतिपादक और बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक थे। इन्होंने सामाजिक और राजनीतिक कार्य के लिए केन्द्र सरकार की नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। इन्होंने डीएस-4 की स्थापना की। ये एक कुशाग्र रणनीतिकार थे। इनके अनुसार राजनीतिक सत्ता, सामाजिक समानता का आधार है। ये उत्तर भारत के राज्यों में दलित राजनीति के संगठनकर्ता की भूमिका निभा चुके हैं।

प्रश्न 33.
गठबन्धन की राजनीति के उदय का हमारे लोकतंत्र पर क्या असर पड़ा है?
अथवा
भारत में गठबन्धन की राजनीति के प्रभाव समझाइये।
उत्तर:
गठबन्धन की राजनीति के लोकतन्त्र पर प्रभाव: भारत में गठबन्धन की राजनीति का भारतीय लोकतंत्र पर निम्न प्रमुख प्रभाव पड़े-

  1. एकदलीय प्रभुत्व की समाप्ति: गठबन्धन की राजनीति से भारतीय लोकतंत्र में कांग्रेस के दबदबे की समाप्ति हुई और बहुदलीय प्रणाली का युग शुरू हुआ।
  2. क्षेत्रीय पार्टियों का बढ़ता प्रभाव: क्षेत्रीय पार्टियों ने गठबन्धन सरकार बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। अब प्रान्तीय दल केन्द्रीय सरकार में साझेदार बन रहे हैं तथा उनका दृष्टिकोण व्यापक हुआ है।
  3. विचारधारा की जगह कार्यसिद्धि पर जोर-गठबंधन की राजनीति के इस दौर में राजनीतिक दल विचारधारागत की जगह सत्ता में हिस्सेदारी पर जोर दे रहे हैं।
  4. जन-आंदोलन और संगठन विकास के नये रूप-गठबंधन की राजनीति में जन-आंदोलन और संगठन विकास के नये रूप सामने आ रहे हैं। ये रूप गरीबी, विस्थापन, न्यूनतम मजदूरी, भ्रष्टाचार विरोध, आजीविका और सामाजिक सुरक्षा के मुद्दों पर जन-आंदोलन के जरिये राजनीति में उभर रहे हैं।

प्रश्न 34.
भारतीय जनता पार्टी के उदय पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
भारतीय जनता पार्टी: भारतीय जनता पार्टी का उदय 1980 में जनता पार्टी में दोहरी सदस्यता के मुद्दे को लेकर असहमति के कारण हुआ। 19 मार्च, 1980 को जनता पार्टी के केन्द्रीय संसदीय बोर्ड ने बहुमत से फैसला किया कि जनता पार्टी का कोई भी अधिकारी, विधायक और सांसद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की दैनिक गतिविधियों में भाग नहीं ले सकता। परन्तु बोर्ड की बैठक में श्री अटल बिहारी वाजपेयी और श्री लालकृष्ण आडवाणी तथा नाना जी देशमुख ने इस निर्णय का विरोध किया।

5 अप्रैल, 1980 को भूतपूर्व जनसंघ के सदस्यों ने नई दिल्ली में दो दिन का सम्मेलन किया और एक नई पार्टी बनाने का निश्चय किया। 6 अप्रैल, 1980 को भूतपूर्व विदेशमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में भारतीय जनता पार्टी के नाम से एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल का गठन किया गया।

प्रश्न 35.
संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन की नीतियों एवं कार्यक्रमों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (संप्रग) के नीति एवं कार्यक्रम-संप्रग की प्रमुख नीतियाँ एवं कार्यक्रम निम्नलिखित हैं।

  1. सामाजिक सद्भावना को बनाए रखना और उसमें वृद्धि करना।
  2. आने वाले दशकों में आर्थिक विकास की दर 7% से 8% के मध्य बनाए रखना ताकि रोजगार के अवसर पैदा हो सकें।
  3. कृषकों, कृषि श्रमिकों व विशेष तौर पर असंगठित क्षेत्रों के श्रमिकों के कल्याण में वृद्धि करना और उनके परिवार के भविष्य को विश्वसनीय व सुरक्षित बनाना
  4. स्त्रियों को राजनीतिक, शैक्षणिक, आर्थिक और कानूनी पक्ष से सुदृढ़ करना।
  5. अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़ी जातियों तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों को पूर्ण अवसर की समानता, विशेषकर शिक्षा तथा रोजगार के क्षेत्र में दी जाए।

प्रश्न 36.
भारत के राजनीतिक मानचित्र में लोकसभा चुनाव, 2004 में निम्नांकित को दर्शाइये।
1. ऐसे दो राज्य जहाँ राजग को संप्रग से अधिक सीटें मिलीं।
2. ऐसे दो राज्य जहाँ संप्रग को राजग से अधिक सीटें मिलीं।
उत्तर:
(नोट- मानचित्र सम्बन्धी प्रश्नों में प्रश्न संख्या 5 का उत्तर देखें।)

प्रश्न 37.
गठबन्धन की राजनीति पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
गठबन्धन सरकार की शुरुआत केन्द्रीय स्तर पर 1977 में हुई जब केन्द्र में जनता पार्टी की सरकार बनी। इसी दौरान केन्द्र स्तर पर काँग्रेस का एकाधिकार समाप्त हो चुका था। आगे चलकर भारत में कई गठबन्धन की सरकारें बनीं। 1989, 1991, 1996, 1998, 1999, 2004, 2009 तथा 2014 के चुनावों में गठबंधन की सरकार बनी। 1999 में भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन का निर्माण किया तो 2004 में काँग्रेस ने सत्ता प्राप्ति के लिए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का निर्माण किया।

प्रश्न 38.
बामसेफ पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
बामसेफ का गठन 1978 में हुआ। इसका पूरा नाम बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एम्पलाइज फेडरेशन है। यह सरकारी कर्मचारियों का कोई साधारण – सा ट्रेड यूनियन नहीं था। इस संगठन ने ‘बहुजन’ अर्थात् अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों की राजनीतिक सत्ता की जबरदस्त तरफदारी की।

प्रश्न 39.
बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद राज्य सरकार का क्या हुआ?
उत्तर:

  1. भाजपा की राज्य सरकार बर्खास्त कर दी गई थी।
  2. इसके साथ ही, अन्य राज्य जहाँ भाजपा सत्ता में थी, उन्हें भी राष्ट्रपति शासन के तहत रखा गया था।
  3. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मामला दर्ज किया गया था।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

प्रश्न 40.
‘हिन्दुत्व’ अथवा ‘हिंदूपन’ शब्द को परिभाषित करते हुए वी.डी. सावरकर का क्या आशय था?
उत्तर:
‘हिन्दुत्व’ अथवा ‘हिन्दूपन’ शब्द को वी. डी. सावरकर ने गढ़ा था और इसको परिभाषित करते हुए उन्होंने इसे भारतीय राष्ट्र की बुनियाद बताया। उनके कहने का आशय यह था कि भारत राष्ट्र का नागरिक वही हो सकता है, जो भारतभूमि को न सिर्फ ‘पितृभूमि’ बल्कि अपनी ‘पुण्यभूमि’ भी स्वीकार करें। हिन्दुत्व के समर्थकों का तर्क है कि मजबूत राष्ट्र सिर्फ एकीकृत राष्ट्रीय संस्कृति की बुनियाद पर ही बनाया जा सकता है।

प्रश्न 41.
भारत में गठबंधन राजनीति का।
उत्तर:
भारत में गठबंधन का युग 1989 के लंबा दौर कब और क्यों शुरू हुआ?
चुनावों के बाद देखा जा सकता है। काँग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी लेकिन उसने एक भी बार बहुमत हासिल नहीं किया, इसलिए उसने विपक्षी पार्टी की भूमिका निभाई। इसके कारण राष्ट्रीय मोर्चा (जनता दल और अन्य क्षेत्रीय दलों का गठबंधन) अस्तित्व में आया। इसको बीजेपी और लेफ्ट फ्रंट का समर्थन मिला। बीजेपी और लेफ्ट फ्रंट सरकार में शामिल नहीं हुए लेकिन उन्होंने बाहर से अपना समर्थन दिया। गठबंधन के दौर में कई प्रधानमंत्री बने और उनमें से कुछ के पास छोटी अवधि के लिए कार्यालय था।

प्रश्न 42.
मंडल आयोग को लागू करने का समाज और राजनीति पर क्या प्रभाव हुआ?
उत्तर:
मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का फैसला राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार द्वारा लिया गया। इससे अन्य पिछड़ा वर्ग की राजनीति को सुगठित रूप देने में मदद मिली। नौकरी में आरक्षण के सवाल पर बहस हुई और इनसे’अन्य पिछड़ा वर्ग अपनी पहचान लेकर सजग हुआ। जो इस तबके को लामबंद करना चाहते थे उनका फायदा हुआ। इस दौर में अनेक पार्टियाँ आगे आयीं, जिन्होंने रोजगार और शिक्षा के क्षेत्र में अन्य पिछड़ा वर्ग को बेहतर अवसर उपलब्ध कराने की माँग की। इन दलों ने सत्ता में ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ की हिस्सेदारी का सवाल भी उठाया।

प्रश्न 43.
मंडल आयोग का गठन क्यों किया गया था?
उत्तर:
मंडल आयोग का गठन भारतीय समाज के विभिन्न तबकों के बीच शैक्षिक और सामाजिक पिछड़ेपन की व्यापकता का पता लगाने और इन पिछड़े वर्गों की पहचान के तरीके बताने के लिए किया गया था। आयोग से यह भी अपेक्षा की गई थी कि वह इन वर्गों के पिछड़ेपन को दूर करने के उपाय सुझाएगा।

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प्रश्न 44.
बसपा पार्टी के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
1978 में दलितों के राजनीतिक संगठन बामसेफ का उदय हुआ । इस संगठन ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों की राजनीतिक सत्ता की जबरदस्त तरफदारी की। इसी का परवर्ती विकास ‘दलित-शोषित समाज संघर्ष समिति’ है, जिससे बाद के समय में बहुजन समाज पार्टी का उदय हुआ। इस पार्टी की अगुवाई कांशीराम ने की। यह पार्टी अपने शुरुआती दौर में एक छोटी पार्टी थी और इसे पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के दलित मतदाताओं का समर्थन हासिल था, लेकिन 1989 और 1991 के चुनावों में इस पार्टी को उत्तर प्रदेश में सफलता मिली। आजाद भारत में यह पहला मौका था, जब कोई राजनीतिक दल मुख्यतया दलित मतदाताओं के समर्थन के बूते ऐसी राजनीतिक सफलता हासिल कर पाया था। इस पार्टी का समर्थन सबसे ज्यादा दलित मतदाता करते हैं।

प्रश्न 45.
इंदिरा साहनी केस के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
1990 के अगस्त में राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों में से एक को लागू करने का फैसला लिया। यह सिफारिश केन्द्रीय सरकार और उसके उपक्रमों की नौकरियों में अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के संबंध में थी। सरकार के फैसले से उत्तर भारत के कई शहरों में हिंसक विरोध का स्वर उमड़ा। इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में भी चुनौती दी गई और यह प्रकरण ‘इंदिरा साहनी केस’ के नाम से जाना जाता है। क्योंकि सरकार के फैसले के खिलाफ अदालत में जिन लोगों ने अर्जी दायर की थी, उनमें एक नाम इंदिरा साहनी का भी था।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में क्षेत्रीय दलों का महत्त्व क्यों बढ़ता जा रहा है?
अथवा
भारत में राज्य स्तरीय (क्षेत्रीय) पार्टियों की भूमिका की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में क्षेत्रीय दलों की बढ़ती भूमिका: भारत में अनेक राजनैतिक दल क्षेत्रीय आधार पर गठित हैं। ऐसे दलों में द्रमुक, अन्ना द्रमुक, अकाली दल मुस्लिम लीग, नेशनल कांफ्रेंन्स, असम गण परिषद्, सिक्किम संग्राम परिषद्, तेलगूदेशम, तमिल मनीला कांग्रेस, नगालैण्ड लोकतान्त्रिक दल, मणिपुर पीपुल्स पार्टी – सपा, बीजद, राष्ट्रीय लोकदल, एकीकृत जनता दल, राजद आदि प्रमुख हैं। अपने-अपने क्षेत्रों में यह दल प्रभावी हैं और राष्ट्रीय दलों का कुछ राज्यों को छोड़कर शेष में प्रभाव नगण्य है।

1989 से 2009 तक के चुनावों में किसी भी एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाने के कारण भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों का महत्त्व बढ़ गया। जहाँ-जहाँ क्षेत्रीय दल प्रभावी हैं, वहाँ-वहाँ राष्ट्रीय दल, विशेषकर कांग्रेस और भाजपा उखड़ गये हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि लोकसभा में राजनैतिक दल चार समूहों में विभाजित हो गए।

  1. भाजपा और उसके क्षेत्रीय सहयोगी दल
  2. कांग्रेस और उसके सहयोगी दल
  3. वामपंथी दल और उसके सहयोगी क्षेत्रीय दल
  4. तीनों मोर्चों से तटस्थ क्षेत्रीय व राष्ट्रीय दल (सपा तथा बसपा आदि)।

इस प्रकार अब सरकार बनाने के लिए राष्ट्रीय दलों को क्षेत्रीय दलों के साथ गठबन्धन करना तथा सरकार निर्माण में तथा सत्ता की भागीदारी में उनको शामिल करना संसद में आवश्यक बहुमत प्राप्त करने के लिए आवश्यक हो गया है।

प्रश्न 2.
1980 के दशक के आखिर के सालों में आए उन बदलावों का उल्लेख कीजिये, जिनका हमारी भावी राजनीति पर गहरा असर पड़ा।
उत्तर:
1980 के दशक के आखिर के सालों में देश में ऐसे पांच बदलाव आए, जिनका हमारी आगे की राजनीति पर गहरा असर पड़ा। यथा।

  1. 1989 के चुनावों में कांग्रेस की हार: 1989 के इस चुनाव में कांग्रेस लोकसभा की 197 सीटें ही जीत की और केन्द्र में भी एकदलीय प्रभुत्व की स्थिति समाप्त हो गई।
  2. मंडल मुद्दे का उदय: 1990 में राष्ट्रीय मोर्चा की नयी सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया जिसमें प्रावधान किया गया कि केन्द्र सरकार की नौकरियों में ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ को 27% आरक्षण दिया जायेगा। इसके बाद की देश की राजनीति में पिछड़ी जातियों के आरक्षण का यह मुद्दा, जिसे ‘मंडल मुद्दा’ कहा गया, छाया रहा।
  3. नये आर्थिक सुधार की नीतियाँ: इस दौर में विभिन्न सरकारों ने आर्थिक सुधार की नीतियाँ अपनायीं। इसकी शुरुआत राजीव गाँधी की सरकार के समय हुई। बाद की सभी सरकारों ने इस नयी आर्थिक नीति पर अमल जारी रखा।
  4. अयोध्या के विवादित ढाँचे का बिध्वंस: 1992 में अयोध्या के विवादित ढाँचे को ध्वस्त करने की घटना ने राजनीति में कई परिवर्तनों को जन्म दिया। इन बदलावों का संबंध भाजपा के उदय और हिंदुत्वं की राजनीति से है।
  5. राजीव गाँधी की हत्या; मई, 1991 में राजीव गाँधी की हत्या के परिणामस्वरूप कांग्रेस के प्रति चुनावों में सहानुभूति लहर ने कांग्रेस को लाभ पहुँचाया तथा केन्द्र में कांग्रेस पार्टी सत्तारूढ़ हुई।

प्रश्न 3.
भारत में मिली-जुली या गठबन्धन सरकारों की राजनीति की व्याख्या करें।
उत्तर:
भारत में मिली-जुली या गठबन्धन की राजनीति मिली-जुली सरकार का साधारण अर्थ है। कई दलों द्वारा मिलकर सरकार का निर्माण करना। मिली-जुली सरकार का निर्माण प्रायः उस स्थिति में किया जाता है। जब किसी एक दल को चुनावों के बाद स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हुआ हो। तब दो या दो से अधिक दल मिलकर संयुक्त सरकार का निर्माण करते हैं। इन मिली-जुली सरकारों की राजनीति की अपनी कुछ विशेषताएँ होती हैं। जिनका वर्णन निम्नलिखित है।

  1. समझौतावादी कार्यक्रम: ऐसी सरकारों का राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक कार्यक्रम समझौतावादी होता है, जिसमें कि प्रत्येक दल की बातों को व कार्यक्रम को ध्यान में रखा जाता है।
  2. सर्वसम्मत नेता: मिली-जुली सरकार के निर्माण से पूर्व यद्यपि सभी दल मिलकर अपने नेता का चुनाव करते हैं, नेता का चुनाव प्रायः सर्वसम्मति के आधार पर किया जाता है तथापि घटक दलों के नेता व उनके अस्तित्व को नकारा नहीं जाता। इसके कारण सरकार में एकता बनी रहती है।
  3. सर्वसम्मत निर्णय: मिली-जुली सरकार में शामिल घटक दल किसी भी राष्ट्रीय अथवा क्षेत्रीय समस्या का हल सर्वसम्मति से करते हैं।
  4. मिल-जुलकर कार्य करना: मिली-जुली सरकार में शामिल सभी घटक दल मिल-जुलकर कार्य करते हैं। एक दल द्वारा किया गया गलत कार्य सभी दलों द्वारा किया गया गलत कार्य समझा जाएगा, इसलिए सभी दल मिल-जुल कर कार्य करते हैं।

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन की नीतियों एवं कार्यक्रमों का वर्णन करें।
उत्तर:
राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन: अप्रैल, 1999 में वाजपेयी की सरकार मात्र 13 दिन की अवधि में ही गिर जाने के बाद मई, 1999 में 24 राजनीतिक दलों ने मिलकर राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन (राजग) के नाम से एक गठबन्धन बनाया। राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन ने भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमन्त्री के रूप में पेश किया। राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन की नीतियाँ एवं कार्यक्रम – राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन की प्रमुख नीतियाँ व कार्यक्रम निम्नलिखित हैं।

  1. लोकपाल; घोषणा पत्र में वायदा किया गया कि प्रधानमन्त्री समेत सभी व्यक्तियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच के लिए लोकपाल विधेयक पारित किया जाएगा।
  2. आर्थिक उदारीकरण-: देश में आर्थिक उदारीकरण की नीति को जारी रखा जायेगा।
  3. निर्धनता: घोषणा पत्र में निर्धनता के निवारण पर बल दिया गया।
  4. आम सहमति से शासन: घोषणा पत्र में सभी प्रमुख मुद्दों पर विपक्ष के साथ मिलकर आम सहमति से शासन चलाने की बात कही गयी।
  5. नए राज्य: छत्तीसगढ़, उत्तराखण्ड तथा झारखण्ड नए राज्य बनाए गए।
  6. प्रसार भारती: प्रसार भारती अधिनियम की समीक्षा की जाएगी। इसके साथ भारतीय हितों के संरक्षण के लिए व्यापक प्रसारण विधेयक पारित किया जाएगा।
  7. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को विभिन्न सामाजिक- आर्थिक क्षेत्रों में विकास कार्यक्रम के साथ जोड़ने के प्रयास किए जाएंगे।
  8. राष्ट्रीय सुरक्षा: गठबन्धन ने राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोपरि महत्त्व देने का वायदा किया।
  9. अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध: अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पड़ौसी व मित्र राष्ट्रों के सम्बन्धों में प्रगाढ़ता लाई जाएगी तथा सार्क और आसियान की तरह क्षेत्रीय और समूहीकरण को बढ़ावा दिया जाएगा।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 9 भारतीय राजनीति : नए बदलाव

प्रश्न 5.
वर्तमान में भारतीय दलीय व्यवस्था की उभरती प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय दलीय व्यवस्था की उभरती प्रवृत्तियाँ वर्तमान में भारतीय दलीय व्यवस्था की उभरती हुई प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं।

  1. एक दल से साझा सरकारों की ओर: 1989 के बाद के लोकसभा के चुनावों में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला परिणामतः साझा सरकारें अस्तित्व में आईं।
  2. क्षेत्रीय दलों का बढ़ता वर्चस्व: वर्तमान राजनीतिक दलीय स्थिति में सत्ता की जोड़-तोड़ में क्षेत्रीय दलों की भूमिका बढ़ी है।
  3. निर्दलीय सदस्यों की बढ़ती भूमिका: किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने की स्थिति में निर्दलीय उम्मीदवारों की भी भूमिका बढ़ जाती है।
  4. दलीय प्रणाली का सत्ता केन्द्रित स्वरूप: वर्तमान समय में राजनीतिक दलों का उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्त करना रह गया है तथा उनके लिए विचारधाराएँ, समस्याएँ गौण हो गई हैं।
  5. भाषावाद, जातिवाद, सम्प्रदायवाद का प्रभाव: सत्ता प्राप्ति के लिए राजनीतिक दल भाषा, जाति एवं सम्प्रदायों का भी सहारा लेते हैं।
  6. दलों में आन्तरिक गुटबन्दी: भारत के सभी राजनीतिक दल आन्तरिक गुटबन्दी की समस्या से पीड़ित हैं।
  7. राजनीतिक अपराधीकरण: प्रायः सभी राजनीतिक दलों द्वारा आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को चुनावों में खड़ा किया जा रहा है जो धन-बल व भुज-बल के आधार पर मत प्राप्त करते हैं।
  8. दल की कथनी व करनी में अन्तर: पिछले कुछ वर्षों में भारतं में दलों की कथनी व करनी में अन्तर अपने भीषणतम रूप में उभरा है।
  9. केन्द्र व राज्य में टकराहट:  केन्द्र व राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकारें होती हैं जिससे केन्द्र व राज्यों के मध्य विभिन्न राजनीतिक मुद्दों को लेकर टकराहट की स्थिति बनी रहती है।

प्रश्न 6.
भारतीय दलीय व्यवस्था की प्रमुख समस्याओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय दलीय व्यवस्था की: समस्याएँ भारतीय दलीय व्यवस्था की प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं।

  1. दलों की संख्या में वृद्धि: भारत में बहुदलीय व्यवस्था है। राजनीतिक दलों की इस प्रकार की भरमार ने अस्थिर राजनैतिक स्थिति के साथ-साथ अन्य समस्याओं को भी जन्म दिया है।
  2. वैचारिक प्रतिबद्धता का अभाव: भारतीय राजनीतिक दलों में वैचारिक प्रतिबद्धता का अभाव है। वैचारिक प्रतिबद्धता से रहित इन दलों का मुख्य उद्देश्य येन-केन-प्रकारेण सत्ता प्राप्त करना होता है।
  3. दलीय व्यवस्था में अस्थायित्व: भारतीय राजनीतिक दल निरन्तर बिखराव और विभाजन के शिकार हैं। इस कारण इन दलों में तथा भारतीय दलीय व्यवस्था में स्थायित्व का अभाव है।
  4. दलों में आन्तरिक लोकतंत्र का अभाव: भारत के अधिकांश राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव है और वे घोर अनुशासनहीनता से पीड़ित हैं।
  5. राजनीतिक दलों में गुटीय राजनीति: लगभग सभी राजनीतिक दल तीव्र आंतरिक गुटबन्दी की समस्या से पीड़ित हैं।
  6. सत्ता के लिए संविधानेतर और विघटनकारी प्रवृत्तियों को अपनाना: राजनीतिक दलों ने पिछले दशक की राजनीति में बहुत अधिक मात्रा में संविधानेतर और विघटनकारी प्रवृत्तियों को अपना लिया है।
  7. नेतृत्व का संकट: भारत में वर्तमान में राजनीतिक दलों के समक्ष नेतृत्व का संकट भी बना हुआ है। अधिकांश राजनीतिक दलों के पास ऐसा नेतृत्व नहीं है, जिसका अपना ऊँचा राजनैतिक कद हो।

प्रश्न 7.
” भारतीय राजनीतिक दलों में अत्यधिक प्रतियोगिता एवं विरोध होने के बावजूद भी कई विषयों में सर्वसहमति है।” इस कथन के संदर्भ में सर्व- सहमति के बिन्दुओं की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
भारतीय राजनीतिक व्यवस्था की यह एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है कि ” भारतीय राजनीतिक दलों में अत्यधिक प्रतियोगिता एवं विरोध होने के बावजूद भी कई विषयों में सर्वसहमति है।” यथा।

  1. संवैधानिक व्यवस्था में विश्वास; भारत का प्रत्येक राजनीतिक दल भारतीय संवैधानिक व्यवस्था में विश्वास रखता हैं तथा विभिन्न मुद्दों का संवैधानिक दायरे के अन्तर्गत ही हल चाहता है।
  2. राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता बनाये रखना: भारत के सभी राजनीतिक दल देश की एकता व अखण्डता को बनाये रखने पर सहमत हैं।
  3. मौलिक अधिकार एवं स्वतन्त्रताओं की रक्षा: भारत के सभी राजनीतिक दल लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के प्रति एकमत रहते हैं।
  4. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़ी जातियों के राजनीतिक तथा सामाजिक दावे की स्वीकृति: आज सभी राजनीतिक दल शिक्षा और रोजगार में अनुसूचित जाति, जनजाति एवं पिछड़ी जातियों के लिए सीटों के आरक्षण के पक्ष में हैं।
  5. नई आर्थिक नीतियों पर सहमति: ज्यादातर राजनीतिक दल नई आर्थिक नीतियों के पक्ष में हैं। इनका मानना है कि नई आर्थिक नीतियों से देश समृद्ध होगा और भारत विश्व की एक आर्थिक शक्ति बनेगा।
  6. राष्ट्र के शासन में प्रान्तीय दलों की भूमिका की स्वीकृति -गठबंधन सरकारों में प्रान्तीय दल केन्द्रीय सरकार में साझेदार बन रहे हैं।
  7. विचारधारा की जगह कार्यसिद्धि पर जोर- अब राजनीतिक दलों में विचारधारा के स्थान पर सत्ता प्राप्ति तथा कार्यसिद्धि पर सहमति बनती जा रही है।

प्रश्न 8.
मंडल आयोग पर विस्तार में लेख लिखिए।
उत्तर:
1977-79 की जनता पार्टी की सरकार के समय उत्तर भारत में पिछड़े वर्ग के आरक्षण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती से आवाज उठाई गई। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर इस दिशा में अग्रणी थे। उनकी सरकार ने बिहार में ‘ओबीसी’ को आरक्षण देने के लिए एक नीति लागू की। इसके बाद केन्द्र सरकार ने 1978 में एक आयोग बैठाया। इस आयोग को पिछड़ा वर्ग की स्थिति को सुधारने के उपाय बताने का काम दिया गया। इसी कारण आधिकारिक रूप से इस आयोग को ‘दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग’ कहा गया। इस आयोग को इसके अध्यक्ष बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल के नाम पर ‘मंडल कमीशन’ कहा गया।

मंडल आयोग का गठन भारतीय समाज के विभिन्न तबकों के बीच शैक्षिक और सामाजिक पिछड़ेपन की व्यापकता का पता लगाने और इन पिछड़े वर्गों की पहचान के तरीके बताने के लिए किया गया था। आयोग से यह भी अपेक्षा की गई थी कि वह इन वर्गों के पिछड़ेपन को दूर करने के उपाय सुझाएगा। आयोग ने 1980 में अपनी सिफारिशें पेश कीं। आयोग का मशविरा था कि पिछड़ा वर्ग को पिछड़ी जाति के अर्थ में स्वीकार किया जाए, क्योंकि अनुसूचित जातियों से इतर ऐसी अनेक जातियाँ हैं, जिन्हें वर्ण व्यवस्था में ‘नीच’ समझा जाता है।

आयोग ने एक सर्वेक्षण किया और पाया कि इन पिछड़ी जातियों की शिक्षा संस्थाओं तथा सरकारी नौकरियों में बड़ी कम मौजूदगी है। इस वजह से आयोग ने इन समूहों के लिए शिक्षा संस्थाओं तथा सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत सीट आरक्षित करने की सिफारिश की। मंडल आयोग ने अन्य पिछड़ा वर्ग की स्थिति सुधारने के लिए कई और समाधान सुझाए जिनमें भूमि सुधार भी एक था।

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प्रश्न 9.
अयोध्या विवाद के बारे में विस्तारपूर्वक लिखिए।
उत्तर:
बाबरी विवाद पर फैजाबाद जिला न्यायालय द्वारा फरवरी, 1986 में एक फैसला सुनाया गया। इस अदालत ने फैसला सुनाया था कि बाबरी मस्जिद के अहाते का ताला खोल दिया जाना चाहिए ताकि हिन्दू यहाँ पूजा कर सकें संजीव पास बुक्स क्योंकि वे इस जगह को पवित्र मानते हैं। अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद को लेकर दशकों से विवाद चला आ रहा था। बाबरी मस्जिद 16वीं सदी में बनी थी। कुछ हिन्दुओं के मतानुसार यह मस्जिद एक राम मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी।

इस विवाद ने अदालती मुकदमे का रूप ले लिया और मुकदमा कई दशकों तक जारी रहा। 1940 के दशक के आखिरी सालों में मस्जिद में ताला लगा दिया गया क्योंकि मामला अदालत में था। जैसे ही बाबरी मस्जिद के अहाते का ताला खुला वैसे ही दोनों पक्षों में लामबंदी होने लगी। अनेक हिन्दू और मुस्लिम संगठन इस मसले पर अपने-अपने समुदाय को लामबंद करने की कोशिश में जुट गए। भाजपा ने इसे अपना बहुत बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया।

प्रश्न 10.
कड़े मुकाबले और कई संघर्षों के बावजूद अधिकतर दलों के बीच सहमति उभरती सी दिखती है। इस कथन की पुष्टि के लिए तर्क दीजिए।
उत्तर:

  1. नयी आर्थिक नीति पर सहमति: कई समूह नयी आर्थिक नीति के खिलाफ हैं, लेकिन ज्यादातर राजनीतिक दल इन नीतियों के पक्ष में हैं। इन दलों का मानना है कि नई आर्थिक नीतियों से देश समृद्ध होगा और भारत, विश्व की एक आर्थिक शक्ति बनेगा।
  2. पिछड़ी जातियों के राजनीतिक और सामाजिक दावे की स्वीकृति: राजनीतिक दलों ने पहचान लिया है कि पिछड़ी जातियों के सामाजिक और राजनीतिक दावे को स्वीकार करने की जरूरत है। इस कारण आज सभी राजनीतिक दल शिक्षा और रोजगार में पिछड़ी जातियों के लिए सीटों के आरक्षण के पक्ष में हैं। राजनीतिक दल यह भी सुनिश्चित करने के लिए तैयार हैं कि ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ को सत्ता में समुचित हिस्सेदारी मिले।
  3. देश के शासन में प्रांतीय दलों की भूमिका की स्वीकृति: प्रांतीय दल और राष्ट्रीय दल का भेद लगातार कम होते जा रहा है। प्रांतीय दल केन्द्रीय सरकार में साझीदार बन रहे हैं और इन दलों ने पिछले बीस सालों में देश की राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  4. विचारधारा की जगह कार्यसिद्धि पर जोर और विचारधारागत सहमति के बगैर राजनीतिक गठजोड़: गठबंधन की राजनीति के इस दौर में राजनीतिक दल विचारधारागत अंतर की जगह सत्ता में हिस्सेदारी की बातों पर जोर दे रहे हैं। उदाहरण: अनेक दल भाजपा की ‘हिन्दुत्व’ की विचारधारा से सहमत नहीं हैं, लेकिन ये दल भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल हुए और सरकार बनाई, जो पाँच सालों तक चली।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

बहुचयनात्मक प्रश्न

1. विविधता के सवाल पर भारत ने कौन-सा दृष्टिकोण अपनाया?
(क) लोकतांत्रिक
(ख) राजनीतिक
(ग) सामाजिक
(घ) सांस्कृतिक
उत्तर:
(क) लोकतांत्रिक

2. इन्दिरा गाँधी की हत्या कब हुई थी?
(क) 24 जून, 1982
(ख) 25 अगस्त, 1974
(ग) 31 अक्टूबर, 1983
(घ) 31 अक्टूबर, 1984
उत्तर:
(घ) 31 अक्टूबर, 1984

3. किस राज्य में असम गण परिषद् सक्रिय है?
(क) गुजरात
(ख) तमिलनाडु
(ग) पंजाब
(घ) असम
उत्तर:
(घ) असम

4. द्रविड़ आंदोलन के प्रणेता कौन थे-
(क) हामिद अंसारी
(ख) लाल डेंगा
(ग) ई.वी. रामास्वामी नायकर
(घ) शेख मोहम्मद अब्दुल्ला
उत्तर:
(ग) ई.वी. रामास्वामी नायकर

5. पंजाब और हरियाणा राज्य बने
(क) 1950
(ख) 1966
(ग) 1965
(घ) 1947
उत्तर:
(ख) 1966

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

6. जम्मू और कश्मीर को संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत विशेष दर्जा दिया गया था?
(क) अनुच्छेद 370
(ख) अनुच्छेद 371
(ग) अनुच्छेद 375
उत्तर:
(क) अनुच्छेद 370

7. डी. एम. के. किस राज्य में सक्रिय है?
(क) तमिलनाडु
(ख) आन्ध्रप्रदेश
(ग) पंजाब
(घ) उत्तरप्रदेश
उत्तर:
(क) तमिलनाडु

8. नेशनल कान्फ्रेंस किस राज्य में सक्रिय है?
(क) जम्मू-कश्मीर
(ख) राजस्थान
(ग) पंजाब
(घ) हिमाचल प्रदेश
उत्तर:
(क) जम्मू-कश्मीर

9. शेख अब्दुल्ला के निधन के पश्चात् नेशनल कॉन्फेरेंस का नेतृत्व किसके पास गया?
(क) उमर अब्दुल्ला
(ख) गुलाम मोहम्मद सादिक
(ग) फारूक अब्दुल्ला
(घ) महबूबा मुफ्ती
उत्तर:
(ग) फारूक अब्दुल्ला

10. जम्मू और कश्मीर राज्य को पुनर्गठित करके किन दो केन्द्र शासित प्रदेशों का गठन किया?
और कश्मीर
(क) लेह और लद्दाख
(ख) जम्मू
(ग) जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख
(घ) लद्दाख और कश्मीर
उत्तर:
(ग) जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:

1. सिखों की राजनीतिक शाखा के रूप में 1920 के दशक में …………………. दल का गठन किया गया।
उत्तर:
अकाली

2. ………………… को जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 द्वारा अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया गया।
उत्तर:
5 अगस्त, 2019

3. भारत सरकार द्वारा ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ ………………. में चलाया गया।
उत्तर:
जून, 1984

4. पूर्वोत्तर क्षेत्र को भारत से जोड़ने वाली राहदारी ………………….. किलोमीटर लंबी है।
उत्तर:
22

5. नागालैंड को राज्य का दर्जा …………………में दिया गया।
उत्तर:
1963

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय भू-भाग में किस क्षेत्र को सात बहनों का भाग कहा जाता है?
उत्तर:
पूर्वोत्तर के सात राज्यों को।

प्रश्न 2.
भारत और पाकिस्तान के मध्य विवाद का मुख्य मुद्दा क्या रहा है?
उत्तर:
कश्मीर मुद्दा।

प्रश्न 3.
1947 से पहले जम्मू-कश्मीर का शासक कौन था ?
उत्तर:
हरि सिंह।

प्रश्न 4.
नेशनल कांफ्रेंस ने किसके नेतृत्व में आन्दोलन चलाया?
उत्तर:
शेख अब्दुल्ला।

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प्रश्न 5.
ई. वी. रामास्वामी नायकर किस नाम से प्रसिद्ध थे?
उत्तर:
पेरियार।

प्रश्न 6.
जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी ताकतों का बोलबाला कब से शुरू हुआ?
उत्तर:
1989 से।

प्रश्न 7.
धारा 370 किस राज्य से सम्बन्धित है?
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर।

प्रश्न 8.
धारा 370 को समाप्त करने के पक्ष में कौनसी पार्टी रही है?
उत्तर;
भारतीय जनता पार्टी।

प्रश्न 9.
दक्षिण भारत का सबसे बड़ा आन्दोलन किसे माना जाता है?
उत्तर:
द्रविड़ आन्दोलन।

प्रश्न 10.
1984 में स्वर्ण मन्दिर में हुई सैनिक कार्यवाही को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
ऑपरेशन ब्लू स्टार।

प्रश्न 11.
असम को बाँटकर किन प्रदेशों को बनाया गया?
उत्तर:
मेघालय, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश।

प्रश्न 12.
लाल डेंगा किस दल के नेता थे?
उत्तर:
मीजो नेशनल फ्रंट|

प्रश्न 13.
सिक्किम विधानसभा के लिए पहला लोकतांत्रिक चुनाव कब हुआ?
उत्तर:
1974 में।

प्रश्न 14.
अंगमी जापू फिजो किसकी आजादी के आन्दोलन के नेता थे?
उत्तर:
नगालैण्ड|

प्रश्न 15.
असम आन्दोलन आसू ( AASU) का पूरा नाम क्या है?
उत्तर:
ऑल असम स्टूडेन्ट यूनियन।

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प्रश्न 16.
पूर्वोत्तर के किन राज्यों को सात बहनों के नाम से जाना जाता है?
उत्तर:

  1. असम
  2. नगालैंड
  3. मेघालय,
  4. मिजोरम,
  5. अरुणाचल प्रदेश,
  6. त्रिपुरा और
  7. मणिपुर।

प्रश्न 17.
जम्मू-कश्मीर में कौनसे तीन राजनीतिक क्षेत्र शामिल हैं?
उत्तर:
जम्मू, कश्मीर और लद्दाख।

प्रश्न 18.
नेशनल कांफ्रेन्स किस राज्य में सक्रिय क्षेत्रीय दल है?
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर।

प्रश्न 19.
अकाली दल और जनसंघ ने किस वर्ष पंजाब में गठबन्धन सरकार का निर्माण किया?
उत्तर:
1967 में।

प्रश्न 20.
पूर्वोत्तर भारत के किन्हीं दो पड़ौसी देशों के नाम बताइए।
उत्तर: म्यांमार, चीन।

प्रश्न 21.
क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने वाला कोई एक कारण बतायें।
उत्तर:
क्षेत्र का असन्तुलित आर्थिक विकास।

प्रश्न 22.
ऑपरेशन ब्लू स्टार कब और किसके द्वारा चलाया गया?
उत्तर:
ऑपरेशन ब्लू स्टार 1984 में इंदिरा गाँधी द्वारा चलाया गया।

प्रश्न 23.
क्षेत्रीय आकांक्षाओं का एक आधारभूत सिद्धान्त क्या है?
उत्तर:
क्षेत्रीय आकांक्षाएँ लोकतान्त्रिक राजनीति का अभिन्न अंग हैं।

प्रश्न 24.
अकाली दल किस राज्य से सम्बन्धित है?
उत्तर:
अकाली दल पंजाब से सम्बन्धित है।

प्रश्न 25.
किन्हीं दो क्षेत्रीय दलों के नाम लिखिए।
उत्तर:  नेशनल कान्फ्रेंस, डी. एम. के.।.

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प्रश्न 26.
1979 से 1985 तक चला असम आन्दोलन किसके विरुद्ध चला?
उत्तर:
यह आन्दोलन विदेशियों के विरुद्ध चला।

प्रश्न 27.
गोवा, दमन और दीव पुर्तगाल से कब स्वतन्त्र हुए?
उत्तर:
दिसम्बर, 1961 में गोवा, दमन और दीव पुर्तगाल से स्वतन्त्र हुए।

प्रश्न 28.
सिक्किम विधानसभा के लिए प्रथम लोकतान्त्रिक चुनाव कब हुए?
उत्तर:
सिक्किम विधानसभा के लिए प्रथम लोकतान्त्रिक चुनाव 1974 में हुए।

प्रश्न 29.
आनन्दपुर साहिब प्रस्ताव कब पास किया गया और इसका सम्बन्ध किसके साथ है?
उत्तर:
आनन्दपुर साहिब प्रस्ताव 1973 में पास किया गया और इसका सम्बन्ध राज्यों की स्वायत्तता से है।

प्रश्न 30.
पंजाब में किस दल ने पंजाबी सूबा के लिए आन्दोलन चलाया?
उत्तर:
पंजाब में अकाली दल ने पंजाबी सूबा के लिए आन्दोलन चलाया।

प्रश्न 31.
जम्मू-कश्मीर के उग्रवादियों की सहायता कौनसा देश कर रहा था?
उत्तर:
कश्मीर के उग्रवादियों को पाकिस्तान भौतिक और सैन्य सहायता दे रहा था।

प्रश्न 32.
अनुच्छेद 370 किस राज्य को अन्य राज्यों के मुकाबले में अधिक स्वायत्तता देता है?
उत्तर:
अनुच्छेद 370 में जम्मू-कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों के मुकाबले अधिक स्वायत्तता दी गई है।

प्रश्न 33.
विविधता की चुनौती से निपटने के लिए क्या किया गया?
उत्तर:
विविधता की चुनौती से निपटने के लिए देश की अंदरूनी सीमा रेखाओं का पुनर्निर्धारण किया गया।

प्रश्न 34.
भारत में किस दशक को स्वायत्तता की माँग के दशक के रूप में देखा जाता है?
उत्तर:
भारत में 1980 के दशक को स्वायत्तता की माँग के दशक के रूप में देखा जाता है।

प्रश्न 35.
डी.एम. के. ने किस भाषा का विरोध किया?
उत्तर:
डी. एम. के. ने हिन्दी भाषा का विरोध किया।

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प्रश्न 36.
क्षेत्रवाद को रोकने के कोई दो उपाय बताइये।
उत्तर:
क्षेत्रवाद को रोकने के दो उपाय हैं।

  1. राष्ट्रीय नीति का निर्धारण करना तथा
  2. सांस्कृतिक एकीकरण के लिए प्रयास करना।

प्रश्न 37.
भाषा के आधार पर राज्यों के गठन की माँग करते हुए जनआंदोलन कहाँ चले?
उत्तर:
आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात।

प्रश्न 38.
जम्मू और कश्मीर किन तीन सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों को मिलाकर बना है?
उत्तर:
जम्मू, कश्मीर और लद्दाख।

प्रश्न 39.
द्रविड़ आंदोलन का लोकप्रिय नारा क्या था?
उत्तर:
‘उत्तर हर दिन बढ़ता जाए, दक्षिण दिन – दिन घटता जाए’।

प्रश्न 40.
डी. एम. के. के संस्थापक कौन थे?
उत्तर”:
सी. अन्नादुरै।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
क्षेत्रवाद से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
क्षेत्रवाद: क्षेत्रवाद से अभिप्राय किसी भी देश के उस छोटे से क्षेत्र से है जो औद्योगिक, सामाजिक आदि कारणों से अपने पृथक् अस्तित्व के लिए जागृत है। क्षेत्रवाद केन्द्रीयकरण के विरुद्ध क्षेत्रीय इकाइयों को अधिक शक्ति व स्वायत्तता प्रदान करने के पक्ष में है।

प्रश्न 2.
क्षेत्रवाद के उदय के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:
क्षेत्रवाद के उदय के कारण – क्षेत्रवाद के उदय के कारण हैं।

  1. भाषावाद: भारत में सदैव ही अनेक भाषाएँ बोलने वालों ने कई बार अलग-अलग राज्य के निर्माण के लिए व्यापक आन्दोलन किया।
  2. जातिवाद: जिन क्षेत्रों में किसी एक जाति की प्रधानता रही है, वहीं पर क्षेत्रवाद का उग्र रूप देखने को मिलता है।

प्रश्न 3.
क्षेत्रवादी आन्दोलन से हमें क्या सबक मिलता है?
उत्तर:
क्षेत्रीय आन्दोलन से हमें

  1. यह सबक मिलता है कि क्षेत्रीय आकांक्षाएँ लोक राजनीति का अभिन्न अंग हैं तथा
  2. लोकतान्त्रिक वार्ता करके क्षेत्रीय आकांक्षाओं का हल निकालना चाहिए।

प्रश्न 4.
क्षेत्र पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
क्षेत्र-क्षेत्र उस भू-भाग को कहते हैं जिसके निवासी सामान्य भाषा, धर्म, परम्पराएँ, सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक विकास आदि की दृष्टि से भावनात्मक रूप से एक-दूसरे से जुड़े हुए हों। यह भूभाग सीमावर्ती राज्य, राज्य का एक या अधिक भाग भी हो सकते हैं। भारतीय संदर्भ में प्रान्तों तथा संघीय प्रदेश को क्षेत्र कहा जाता है।

प्रश्न 5.
अलगाववाद का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अलगाववाद: अलगाववाद से अभिप्राय एक राज्य से कुछ क्षेत्र को अलग-अलग करके स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की माँग है। अर्थात् सम्पूर्ण इकाई से अलग अपना स्वतन्त्र अस्तित्व बनाए रखने की माँग अलगाववाद है। अलगाववाद का उदय उस समय होता है जब क्षेत्रवाद की भावना उग्र रूप धारण कर लेती है।

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प्रश्न 6.
भारत में अलगाववाद के दो उदाहरण बताइए।
उत्तर:
अलगाववाद के उदाहरण- भारत में अलगाववाद के उदाहरण हैं।

  1. 1960 में डी. एम. के. तथा अन्य तमिल दलों ने तमिलनाडु को भारत से अलग करवाने का आन्दोलन किया।
  2. असम के मिजो हिल के लिए जिले के लोगों ने भारत से अलग होने की माँग की और इस मांग को पूरा करवाने के लिए उन्होंने मिजो फ्रंट की स्थापना की।

प्रश्न 7.
अलगाववाद के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  1. राजनीतिक कारण: अलगाववाद की भावना को भड़काने में राजनीतिक दलों की संकीर्ण मनोवृत्ति को प्रमुख कारण माना जा सकता है।
  2. आर्थिक पिछड़ापन: असमान आर्थिक विकास और पिछड़ापन भी अलगाववाद को बढ़ावा देता है। पिछड़े क्षेत्रों में पृथकतावाद की भावना जन्म लेती है।

प्रश्न 8.
भारत और पाकिस्तान का मसला सुलझाने के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ ने 21 अप्रैल, 1948 के प्रस्ताव में किन तीन चरणों वाली प्रक्रिया की अनुशंसा की?
उत्तर:
पाकिस्तान ने कश्मीर राज्य के बड़े हिस्से पर नियंत्रण जारी रखा इसलिए इस मामले को संयुक्त राष्ट्रसंघ में ले जाया गया। 21 अप्रेल, 1948 के अपने प्रस्ताव में निम्न तीन चरणों वाली प्रक्रिया की अनुशंसा की

  1. पाकिस्तान को अपने वे सारे नागरिक वापस बुलाने थे जो कश्मीर में घुस गए थे।
  2. भारत को धीरे-धीरे अपनी फौज कम करनी थी ताकि कानून व्यवस्था बनी रहे।
  3. स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से जनमत संग्रह कराया जाए।

प्रश्न 9.
भारत में क्षेत्रीय दलों के विकास के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:

  1. भारत एक विशाल देश है। इसकी बनावट में विभिन्नताएँ पाई जाती हैं। भौगोलिक विभिन्नता के कारण अलग-अलग क्षेत्रीय दल भी पाये जाते हैं।
  2. राजनीतिक दलों की महत्त्वाकांक्षी प्रवृत्ति व अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए क्षेत्रीय भावनाओं को अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग करते हैं।

प्रश्न 10.
रामास्वामी नायकर ( अथवा पेरियार ) के जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
उत्तर:
रामास्वामी नायकर का जन्म सन् 1879 में हुआ। वे पेरियार के नाम से प्रसिद्ध हुए। वे जाति विरोधी आंदोलन और द्रविड़ संस्कृति और पहचान के पुनः संस्थापक के रूप में प्रसिद्ध हुए। उन्होंने दक्षिण में ब्राह्मण विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया तथा द्रविड़ कषगम नामक संस्था स्थापित की।

प्रश्न 11.
डी. एम. के. दल पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
डी. एम. के. – डी. एम. के. तमिलनाडु का महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय दल है। वर्तमान समय में इस दल के अध्यक्ष करुणानिधि हैं। इस दल की स्थापना 1949 में चेन्नई में श्री सी. एम. अन्नादुराय ने की। डी. एम. के. का पूरा नाम द्रविड़ – मुनेत्र कषगम है। इसमें द्रविड़ शब्द द्रविड़ जाति का प्रतीक है, मुनेत्र का अर्थ है प्रगतिशीलता और कषगम का अर्थ है- संगठन।

प्रश्न 12.
तेलगूदेशम् पार्टी का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
तेलगूदेशम् पार्टी: तेलगूदेशम् पार्टी आन्ध्रप्रदेश का महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय दल है। इस दल के वर्तमान अध्यक्ष चन्द्रबाबू नायडू हैं। इस दल की स्थापना 1982 में फिल्म अभिनेता एन. टी. रामाराव ने की। तेलगूदेशम् पार्टी की स्थापना कांग्रेस शासन की प्रतिक्रियास्वरूप हुई। तेलगूदेशम विकेन्द्रित संघवाद का समर्थक है।

प्रश्न 13.
अन्ना डी. एम. के. पार्टी के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
अन्ना डी. एम. के. – अन्ना डी. एम. के. पार्टी भी तमिलनाडु का महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय दल है। इस दल की वर्तमान अध्यक्ष सुश्री जयललिता हैं। इस दल की स्थापना रामचन्द्रन ने 1972 में की। यह दल हिन्दी भाषा को दक्षिण के राज्यों पर थोपने के विरुद्ध है। यह दल द्विभाषा फार्मूला का समर्थन करता है।

प्रश्न 14.
आनंदपुर साहिब प्रस्ताव का सिखों तथा देश पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
आनंदपुर साहिब प्रस्ताव के निम्न प्रभाव पड़े चलाया।

  1. इसके प्रभावस्वरूप अकाली दल ने पंजाब और पड़ौसी राज्यों के मध्य पानी के बँटवारे के मुद्दे पर आंदोलन
  2. इसके प्रभावस्वरूप स्वायत्त सिख पहचान की बात उठी।
  3. इसके प्रभावस्वरूप ही चरमपंथी सिखों ने भारत से अलग होकर खालिस्तान की माँग की।

प्रश्न 15.
1980 में अकाली दल की प्रमुख मांगों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. चण्डीगढ़ को पंजाब की राजधानी बनाया जाए।
  2. दूसरे राज्यों के पंजाबी भाषी क्षेत्रों को पंजाब में मिलाया जाए।
  3. पंजाब का औद्योगिक विकास किया जाए।
  4. भाखड़ा नांगल योजना पंजाब के नियन्त्रणाधीन हो।
  5. देश के सभी गुरुद्वारे शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्ध कमेटी के प्रबन्ध में हों।

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प्रश्न 16.
ऑपरेशन ब्लू स्टार से क्या आशय है?
उत्तर:
ऑपरेशन ब्लू स्टार: 1980 के दशक में पंजाब में सन्त भिण्डरावाले ने स्वर्ण मन्दिर को अपने कब्जे में लेकर वहाँ पर अस्त्र-शस्त्र एकत्र करना शुरू कर दिये जिसके कारण श्रीमती इन्दिरा गाँधी की सरकार को भिण्डरावाले के विरुद्ध ऑपरेशन ब्लू स्टार के अन्तर्गत कार्यवाही करनी पड़ी। सरकार ने स्वर्ण मन्दिर में सेना भेजकर उसे भिण्डरावाला से मुक्त करवाया।

प्रश्न 17.
1985 के पंजाब समझौते के किन्हीं दो महत्त्वपूर्ण पक्षों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. एक सितम्बर, 1982 के बाद हुई किसी कार्यवाही के दौरान आन्दोलन में मारे गये लोगों को अनुग्रह राशि के भुगतान के साथ-साथ सम्पत्ति की क्षति के लिए मुआवजा दिया जायेगा।
  2. दिल्ली में नवम्बर में हुए दंगों की जाँच कर रहे रंगनाथ मिश्र आयोग का कार्यक्षेत्र बढ़ाकर उसमें बोकारो और में उपद्रवों की जांच को भी शामिल किया जायेगा।

प्रश्न 18.
सिख विरोधी दंगे कब और क्यों हुए?
उत्तर:
सिख विरोधी दंगे 1984 में हुए। यह दंगे 31 अक्टूबर, 1984 में श्रीमती गांधी की हत्या के विरोध में हुए जिसमें 2000 से अधिक सिख स्त्री-पुरुष व बच्चे मारे गये। इन दंगों से देश की एकता व अखण्डता के लिए खतरा उत्पन्न हो गया। इसलिए राजीव गांधी ने पंजाब में शान्ति बनाये रखने के लिए अकाली नेताओं से समझौता किया जिसे पंजाब समझौता कहा जाता है।

प्रश्न 19.
नेशनल कान्फ्रेंस के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
नेशनल कान्फ्रेंस: नेशनल कान्फ्रेंस जम्मू-कश्मीर का महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय दल है। इस दल के वर्तमान अध्यक्ष उमर अब्दुल्ला हैं। इस दल की स्थापना 1920 में हुई। नेशनल कान्फ्रेंस धारा 370 को बनाये रखने के पक्ष में है। तथा जम्मू-कश्मीर को और अधिक स्वायत्तता देने के पक्ष में है। इस पार्टी ने जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय को स्थायी माना है।

प्रश्न 20.
1980 के दशक में पंजाब एवं असम संकट में एक समानता एवं एक असमानता बताइए।
उत्तर:

  1. समानता: 1980 के दशक में पंजाब एवं असम में होने वाले दोनों संकट क्षेत्रीय स्तर के थे।
  2. असमानता: पंजाब संकट केवल एक धर्म एवं समुदाय से सम्बन्धित था, जबकि असम संकट अलग धर्मों एवं समुदायों से सम्बन्धित था।

प्रश्न 21.
क्षेत्रवाद राष्ट्रीय एकता के लिए चुनौती है। समझाइये|
उत्तर:
संकीर्ण क्षेत्रवाद राष्ट्रीय एकता के लिए चुनौती बन जाता है। क्षेत्रवाद के फलस्वरूप विभिन्न क्षेत्र के लोग कभी प्रादेशिक भाषा, कभी राजनीतिक स्वशासन, कभी क्षेत्रीय स्वार्थ को लेकर पृथक् राज्य की माँग करने लगते हैं, जो राष्ट्रीय एकता के लिए चुनौती होती है।

प्रश्न 22.
नये राज्यों के निर्माण के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
नये राज्यों के निर्माण के पक्ष में तर्क।

  1. पिछड़े क्षेत्रों का विकास तीव्र गति से होने लगता है।
  2. लोगों की शासन में सहभागिता बढ़ती है।
  3. राजनीतिक चेतना का विकास होता है।
  4. केन्द्रीय शासन के प्रशासनिक दबाव से मुक्ति मिल जाती है।
  5. नये राज्यों का गठन राष्ट्रविरोधी गतिविधि नहीं है।

प्रश्न 23.
नये राज्यों के निर्माण के विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
नये राज्यों के निर्माण के विपक्ष में तर्क।

  1. नये राज्यों की माँग विभिन्न क्षेत्रों में संघर्ष तथा तनाब पैदा करती है।
  2. पिछड़े क्षेत्रों का विकास नये राज्यों के गठन मात्र से सम्भव नहीं है।
  3. नये राज्यों के गठन से अनावश्यक प्रशासनिक तन्त्र में वृद्धि होती है।
  4. नये राज्यों के गठन से क्षेत्रवाद की भावना को बल मिलता है।

प्रश्न 24.
द्रविड आन्दोलन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए द्रविड़ आन्दोलन।
उत्तर:
द्रविड आन्दोलन की बागडोर तमिल समाज सुधारक ई.वी. रामा स्वामी नायकर ‘पेरियार’ के हाथों में थी। इस आन्दोलन से एक राजनीतिक संगठन ‘द्रविड – कषगम’ का सूत्रपात हुआ। यह संगठन ब्राह्मणों के वर्चस्व तथा हिन्दी का विरोध करता था तथा उत्तरी भारत के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभुत्व को नकारते हुए क्षेत्रीय गौरव की प्रतिष्ठा पर जोर देता था। प्रारम्भ में द्रविड आन्दोलन समग्र दक्षिण भारतीय सन्दर्भ में अपनी बात रखता था लेकिन अन्य दक्षिणी राज्यों से समर्थन न मिलने के कारण धीरे-धीरे तमिलनाडु तक ही सिमट कर रह गया। बाद में द्रविड कषगम दो धड़ों में बँट गया और आन्दोलन की समूची राजनीतिक विरासत द्रविड मुनेत्र कषगम के पाले में केन्द्रित हो गयी।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

प्रश्न 25.
क्षेत्रवाद क्या है? यह भारत की राज्य व्यवस्था को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर:
क्षेत्रवाद: क्षेत्रवाद का अर्थ किसी ऐसे छोटे से क्षेत्र से है जो भाषायी धार्मिक, भौगोलिक, सामाजिक अथवा ऐसे ही अन्य कारक के आधार पर अपने पृथक् अस्तित्व के लिए प्रयत्नशील है। इस प्रकार क्षेत्रवाद से अभिप्राय है राज्य की तुलना में किसी क्षेत्र विशेष से लगाव| क्षेत्रवाद के प्रभाव: भारत की राज्य व्यवस्था को क्षेत्रवाद निम्न प्रकार से प्रभावित करता है।

  1. क्षेत्रवाद के आधार पर राज्य केन्द्र सरकार से सौदेबाजी करते हैं।
  2. क्षेत्रवाद ने कुछ हद तक भारतीय राजनीति में हिंसक गतिविधियों को उभारा है।
  3. चुनावों के समय क्षेत्रवाद के आधार पर राजनीतिक दल उम्मीदवारों का चुनाव करते हैं और क्षेत्रीय भावनाओं को भड़काकर वोट प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं।
  4. मन्त्रिमण्डल का निर्माण करते समय मन्त्रिमण्डल में प्रायः सभी मुख्य क्षेत्रों के प्रतिनिधियों को लिया जाता है।

प्रश्न 26. भारत में क्षेत्रवाद के उदय के चार कारण बताइये।
उत्तर:
क्षेत्रवाद के कारण: क्षेत्रवाद के उदय के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  1. आर्थिक असन्तुलन:क्षेत्र विशेष के लोगों की यह धारणा है कि पिछड़ेपन के कारण उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है तथा उनके आर्थिक विकास की उपेक्षा की जा रही है, यह भावना भी क्षेत्रवाद को बढ़ावा देती है।
  2. भाषागत विभिन्नताएँ: भारत में भाषा के आधार पर अनेक राज्यों का निर्माण हुआ है।
  3. राज्यों के आकार में असमानता: राज्यों का विशाल आकार भी क्षेत्रवाद को बढ़ावा देता है।
  4. प्रशासनिक कारण: प्रशासनिक कारणों से भी विभिन्न राज्यों की प्रगति में अन्तर रहा है, पंचवर्षीय योजनाओं के द्वारा भी राज्यों का समान विकास नहीं हुआ। यह अन्तर भी क्षेत्रवाद को बढ़ावा देता है।

प्रश्न 27.
संविधान की धारा 370 क्या है? इस प्रावधान का विरोध क्यों हो रहा है?
उत्तर:
संविधान की धारा 370: कश्मीर को संविधान में धारा 370 के तहत विशेष दर्जा दिया गया है। धारा 370 के अन्तर्गत जम्मू-कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों के मुकाबले अधिक स्वायत्तता दी गई है। राज्य का अपना संविधान है। धारा 370 का विरोध: धारा 370 का विरोध लोगों का एक समूह इस आधार पर कर रहा है कि जम्मू-कश्मीर राज्य को धारा 370 के अन्तर्गत विशेष दर्जा देने से यह भारत के साथ नहीं जुड़ पाया है। अतः धारा 370 को समाप्त कर जम्मू-कश्मीर राज्य को भी अन्य राज्यों के समान होना चाहिए।

प्रश्न 28.
क्षेत्रीय असन्तुलन से आप क्या समझते हैं? भारतीय राजनीतिक व्यवस्था पर इसके प्रभावों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
क्षेत्रीय असन्तुलन: क्षेत्रीय असन्तुलन का अर्थ यह है कि भारत के विभिन्न राज्यों तथा क्षेत्रों का विकास एक जैसा नहीं है। भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के विकास स्तर और लोगों के जीवन स्तर में पाये जाने वाले अन्तर को क्षेत्रीय असन्तुलन का नाम दिया जाता है। क्षेत्रीय असन्तुलन के प्रभाव: क्षेत्रीय असन्तुलन भारतीय लोकतन्त्र पर मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रभाव डाल रहा

  1. पिछड़े क्षेत्रों में असन्तुष्टता की भावना बड़ी तेजी से बढ़ रही है।
  2. क्षेत्रीय असन्तुलन से क्षेत्रवाद की भावना को बल मिला है।
  3. क्षेत्रीय असन्तुलन ने अनेक क्षेत्रीय दलों को जन्म दिया है।
  4. क्षेत्रीय असन्तुलन से पृथकतावाद तथा आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा मिला है।

प्रश्न 29.
भारत में क्षेत्रीय असन्तुलन के प्रमुख कारणों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
क्षेत्रीय असन्तुलन के कारण: भारत में क्षेत्रीय असन्तुलन के प्रमुख कारण अग्रलिखित हैं।

  1. भौगोलिक विषमताओं ने क्षेत्रीय असन्तुलन पैदा किया है। परिस्थितियों के कारण भारत में एक ओर राजस्थान जैसा मरुस्थल है। जो कम उपजाऊ है तो दूसरी ओर पंजाब जैसे उपजाऊ क्षेत्र हैं।
  2. भाषा की विभिन्नता ने क्षेत्रीय असन्तुलन को बढ़ावा दिया है।
  3. ब्रिटिश सरकार ने कुछ क्षेत्रों का विकास किया और कुछ का नहीं किया, जिससे क्षेत्रीय असन्तुलन पैदा हुआ।
  4. क्षेत्रीय असन्तुलन का एक महत्त्वपूर्ण कारण नेताओं की अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास पर अधिक बल देने की प्रवृत्ति भी है।

प्रश्न 30.
क्षेत्रीय असन्तुलन को दूर करने के सुझाव दीजिए।
उत्तर:
क्षेत्रीय असन्तुलन को दूर करने के उपाय: क्षेत्रीय असन्तुलन को दूर करने हेतु निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं।

  1. पिछड़े हुए क्षेत्रों के विकास के लिए विशेष प्रयास किए जाएँ। पिछड़े क्षेत्रों में विशेषकर बिजली, यातायात व संचार के साधनों का विकास किया जाए।
  2. पिछड़े लोगों व जन-जातियों के विकास के लिए विशेष कदम उठाए जाएँ।
  3. जो प्रशासनिक अधिकारी आदिवासी क्षेत्रों में नियुक्त किए जाएँ उन्हें विशेष प्रशिक्षण दिया जाए और उन्हीं को नियुक्त किया जाए जो इन क्षेत्रों के बारे में थोड़ा-बहुत ज्ञान भी रखते हों।
  4. केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में सभी क्षेत्रों को उचित प्रतिनिधित्व दिया जाए।

प्रश्न 31.
क्षेत्रीय असन्तुलन क्षेत्रवाद का जनक है। व्याख्या कीजिए।
अथवा
क्षेत्रीय असन्तुलन भारत में क्षेत्रवाद का प्रमुख कारण है। समझाइये
उत्तर:
क्षेत्रीय असन्तुलन क्षेत्रवाद के जनक के रूप में – क्षेत्रीय असन्तुलन से अभिप्राय विभिन्न क्षेत्रों के बीच प्रति व्यक्ति आय, साक्षरता दरों, स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवाओं की उपलब्धता, औद्योगीकरण का स्तर आदि के आधार पर अन्तर पाया जाना है। भारत में विभिन्न राज्यों के बीच बड़े पैमाने पर असन्तुलन पाया जाता है। क्षेत्रीय असन्तुलन ने भारत में निम्न रूप में क्षेत्रवाद को पैदा किया है।

  1. क्षेत्रीय विभिन्नताओं एवं असन्तुलन के कारण क्षेत्रीय भेदभाव को बढ़ावा मिला है।
  2. भारत में क्षेत्रीय असन्तुलन के कारण क्षेत्रवादी भावनाओं को बल मिला है। इसके कारण कई क्षेत्रों ने पृथक् राज्य की मांग की है।
  3. क्षेत्रीय असन्तुलन ने क्षेत्रवादी हिंसा, आन्दोलनों व तोड़-फोड़ को बढ़ावा दिया है।
  4. अनेक क्षेत्रीय दल क्षेत्रीय असन्तुलन के कारण ही बने हैं जो अब क्षेत्रवाद को बढ़ावा दे रहे हैं।

प्रश्न 32.
भारत में दबाव की प्रक्रिया के रूप में क्षेत्रवाद की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में दबाव की प्रक्रिया के रूप में क्षेत्रवाद की भूमिका- भारत में दबाव की प्रक्रिया के रूप में क्षेत्रवाद को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है।

  1. दबाव की प्रक्रिया के रूप में क्षेत्रवाद एक सीमा तक भारत के विकास में गति प्रदान करता है। क्षेत्रवादी नेतृत्व सत्ता में रहकर अपने राज्यों के विकास के लिए विशेष प्रयत्न करता है। तमिलनाडु, पंजाब व हरियाणा इसके प्रमाण हैं।
  2. दबाव की प्रक्रिया के रूप में क्षेत्रवाद अनेक बार पूर्ण या पृथक् राज्य की मांग के रूप में उभरता है। इसके कारण अनेक आन्दोलन हुए और अनेक पृथक् राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, गुजरात, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा आदि का जन्म हुआ।
  3. दबाव की प्रक्रिया की भूमिका में क्षेत्रवाद का एक अन्य रूप अन्तर्राज्यीय नदी विवादों के रूप में सामने आया है। कावेरी, रावी, व्यास नदियों का पानी आदि इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

प्रश्न 33.
” क्षेत्रवाद का अभिप्राय पृथकतावाद नहीं है ।” व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
क्षेत्रवाद क्षेत्रीय असन्तुलन का परिणाम है। क्षेत्रीय हितों के संरक्षण हेतु यह लोकतंत्र की प्राणवायु है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में काफी समय से अनेक क्षेत्रवादी आंदोलन चल रहे हैं। ये आंदोलन अपने क्षेत्र को भारतीय संघ में एक अलग राज्य की माँग करते हैं। झारखण्ड, छत्तीसगढ़ के क्षेत्रवादी आंदोलन इसी तरह के थे। क्षेत्रवादी आंदोलन अपने क्षेत्र में आर्थिक विकास की गति को तेज करना चाहते हैं तथा अपनी सांस्कृतिक भाषायी पहचान भी बनाए रखना चाहते हैं। इस प्रकार क्षेत्रवाद का अभिप्राय पृथकतावाद नहीं है।

प्रश्न 34.
लोकतांत्रिक दृष्टिकोण से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भारत ने विविधता के सवाल पर लोकतांत्रिक दृष्टिकोण को अपनाया। लोकतंत्र में क्षेत्रीय आकांक्षाओं की राजनीतिक अभिव्यक्ति की अनुमति है और लोकतंत्र क्षेत्रीयता को राष्ट्र-विरोधी नहीं मानता। लोकतांत्रिक राजनीति में इस बात के पूरे अवसर होते हैं कि विभिन्न दल और समूह क्षेत्रीय पहचान, आकांक्षा अथवा किसी खास क्षेत्रीय समस्या को आधार बनाकर लोगों की भावनाओं की नुमाइंदगी करें। इस तरह लोकतांत्रिक राजनीति की प्रक्रिया में क्षेत्रीय आकांक्षाएँ और बलवती होती हैं। लोकतांत्रिक राजनीति का एक अर्थ यह भी है कि क्षेत्रीय मुद्दों और समस्याओं पर नीति-निर्माण की प्रक्रिया में समुचित ध्यान दिया जाएगा और उन्हें इसमें भागीदारी दी जाएगी।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

प्रश्न 35.
जम्मू और कश्मीर के सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों के बारे में बताइए।
उत्तर:
जम्मू और कश्मीर तीन सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों: जम्मू, कश्मीर और लद्दाख से बना हुआ है।

  1. जम्मू: इस क्षेत्र में छोटी पहाड़ियाँ और मैदानी भाग हैं। इसमें मुख्य रूप से हिन्दू रहते हैं। मुसलमान, सिख और अन्य मतों के लोग भी रहते हैं।
  2. कश्मीर: यह क्षेत्र मुख्य रूप से कश्मीर घाटी है। यहाँ रहने वाले अधिकतर कश्मीरी मुसलमान हैं और शेष हिन्दू, सिख, बौद्ध तथा अन्य हैं।
  3. लद्दाख: यह पहाड़ी क्षेत्र है। इसकी जनसंख्या बहुत कम है, जिसमें बराबर संख्या में बौद्ध और मुसलमान रहते हैं।

प्रश्न 36.
कश्मीरियत से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जम्मू और कश्मीर एक राजसी रियासत थी। यहाँ हिन्दू राजा हरिसिंह का शासन था। हरिसिंह भारत या पाकिस्तान में न शामिल होकर अपना स्वतंत्र राष्ट्र बनाना चाहते थे। पाकिस्तानी नेताओं के अनुसार कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा है क्योंकि वहाँ अधिकांश आबादी मुसलमान थी। परंतु उस रियासत के लोगों ने इसे इस तरह नहीं देखा उन्होंने सोचा कि सबसे पहले वे कश्मीरी हैं। क्षेत्रीय अभिलाषा का यह मुद्दा कश्मीरियत कहलाता है।

प्रश्न 37.
पंजाब समझौते के मुख्य प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पंजाब समझौता: पंजाब समझौते के महत्त्वपूर्ण प्रावधान निम्न हैं।

  1. मारे गये निरपराध व्यक्तियों के लिए मुआवजा: एक सितम्बर, 1982 के बाद हुई किसी कार्यवाही में आन्दोलन में मारे गये लोगों को अनुग्रह राशि के भुगतान के साथ सम्पत्ति की क्षति के लिए मुआवजा दिया जायेगा।
  2. सेना में भर्ती: देश के सभी नागरिकों को सेना में भर्ती का अधिकार होगा और चयन के लिए केवल योग्यता ही आधार होगा।
  3. नवम्बर दंगों की जाँच: दिल्ली में नवम्बर में हुए दंगों की जांच कर रहे रंगनाथ मिश्र आयोग का कार्यक्षेत्र बढ़ाकर उसमें बोकारो और कानपुर में हुए उपद्रवों की जाँच को शामिल किया जायेगा।
  4. सेना से निकाले हुए व्यक्तियों का पुनर्वास – सेना से निकाले हुए व्यक्तियों को पुनर्वास और उन्हें लाभकारी रोजगार दिलाने के प्रयास किये जायेंगे।

प्रश्न 38.
असम समझौता क्या था और इसके क्या परिणाम हुए?
उत्तर:
असम समझौता: 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गाँधी और आसू के बीच एक समझौता हुआ जिसमें यह तय किया गया कि जो लोग बांग्लादेश युद्ध के दौरान या उसके बाद के वर्षों में असम आए हैं, उनकी पहचान की जाएगी और . उन्हें वापस भेजा जायेगा। समझौते के परिणाम: समझौते के निम्न प्रमुख परिणाम निकले

  1. समझौते के बाद ‘आसू’ और असम-गण-संग्राम परिषद् ने साथ मिलकर ‘असम-गण- क्षेत्रीय राजनीतिक दल बनाया।
  2. असम गण परिषद् 1985 में इस वायदे के साथ सत्ता में आया कि विदेशी लोगों की समस्या का समाधान कर लिया जायेगा।
  3. असम समझौते से प्रदेश में शान्ति कायम हुई तथा प्रदेश की राजनीति का चेहरा बदल गया।

प्रश्न 39.
शेख अब्दुल्ला के जीवन के कुछ प्रमुख पहलुओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
शेख अब्दुल्ला:
शेख अब्दुल्ला का जन्म 1905 में हुआ। वे भारतीय स्वतन्त्रता से पूर्व ही जम्मू एवं कश्मीर के नेता के रूप में उभरे। वे जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता दिलाने के साथ-साथ वहाँ धर्मनिरपेक्षता की स्थापना के समर्थक थे। उन्होंने राजशाही के विरुद्ध राज्य में जन-आन्दोलन का नेतृत्व किया। वे धर्मनिरपेक्षता के आधार पर जीवन भर पाकिस्तान का विरोध करते रहे। वे नेशनल कान्फ्रेंस के संगठनकर्ता और प्रमुख नेता थे।

वे भारत में जम्मू-कश्मीर के विलय के उपरान्त जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री (1947 में) बने। उनके मन्त्रिमण्डल को भारत सरकार की कांग्रेस सरकार ने 1953 में बर्खास्त कर दिया था तभी से 1968 तक उन्हें कारावास में ही रखा। 1974 में इन्दिरा गाँधी की कांग्रेस सरकार से समझौता हुआ। वे राज्य के मुख्यमन्त्री पद पर आरूढ़ हुए। 1982 में उनका देहान्त हो गया।

प्रश्न 40.
लालडेंगा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
लालडेंगा-लालडेंगा का जन्म 1937 में हुआ। वे मिजो नेशनल फ्रंट के संस्थापक और सबसे ख्याति प्राप्त नेता थे। 1959 में मिजोरम में पड़े भयंकर अकाल और उस समय की असम सरकार द्वारा उस समय के अकाल की समस्या के समाधान में विफल होने के कारण वे देश-विद्रोही बन गए। वे अनेक वर्षों तक भारत के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष करते रहे। यह संघर्ष लगभग बीस वर्षों तक चला। वे पाकिस्तान में एक राज्य शरणार्थी के रूप में रहते हुए भी भारत विरोधी गतिविधियाँ चलाते रहे।

अंत में वे प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के बुलाने पर स्वदेश लौटे और 1986 में राजीव गाँधी के साथ उन्होंने सुलह की और दोनों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये और मिजोरम को नया राज्य बनाया गया। लालडेंगा नवनिर्मित मिजोरम के मुख्यमन्त्री बने। 1990 में उनका निधन हो गया।

प्रश्न 41.
राजीव गाँधी का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
राजीव गाँधी फिरोज गाँधी और इन्दिरा गाँधी के पुत्र थे। उनका जन्म 1944 में हुआ। 1980 के बाद वे देश की सक्रिय राजनीति में शामिल हुए। अपनी माँ इन्दिरा गाँधी की हत्या के बाद वे राष्ट्रव्यापी सहानुभूति के वातावरण में भारी बहुमत से 1984 में देश के प्रधानमंत्री बने और 1989 के बीच वह प्रधानमंत्री पद पर रहे। उन्होंने पंजाब में आतंकवाद के विरुद्ध उदारपंथी नीतियों के समर्थक लोंगोवाल से समझौता किया।

उन्हें मिजो विद्रोहियों और असम के छात्र संघों में समझौता करने में सफलता मिली। राजीव देश में उदारवाद या खुली अर्थव्यवस्था एवं कंप्यूटर प्रौद्योगिकी के प्रणेता थे। श्रीलंका नक्सलीय समस्या को सुलझाने के लिए उन्होंने भारतीय शांति सेना को श्रीलंका भेजा। संभवत: ऐसा माना जाता है कि श्रीलंका के विद्रोही तमिल संगठन (एल.टी.टी.ई.) ने आत्मघाती हमले द्वारा 1991 में उनकी हत्या कर दी।

प्रश्न 42.
गोवा को संघ शासित प्रदेश तथा पूर्ण राज्य का दर्जा किस प्रकार प्राप्त हुआ? संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा: 1961 में पुर्तगालियों से गोवा को मुक्त कराने के बाद महाराष्ट्रवादी पार्टी ने गोवा को महाराष्ट्र में मिलाने की माँग रखी जबकि यूनाइटेड गोअन पार्टी ने गोवा को स्वतन्त्र या पृथक् राज्य बनाने की माँग की। फलतः 1967 की जनवरी में केन्द्र सरकार ने गोवा में एक विशेष जनमत सर्वेक्षण कराया। इसमें गोवा के लोगों से पूछा गया कि आप लोग महाराष्ट्र में शामिल होना चाहते हैं अथवा अलग बने रहना चाहते हैं। भारत में यही एकमात्र अवसर था जब किसी मसले पर सरकार ने जनमत की इच्छा को जानने के लिए जनमत संग्रह जैसी प्रक्रिया अपनायी थी। अधिकतर लोगों ने महाराष्ट्र से अलग रहने के पक्ष में मत डाला। इस तरह गोवा संघ शासित प्रदेश बना रहा। अन्ततः 1987 में गोवा भारत संघ का एक राज्य बना।

प्रश्न 43.
1980 के दशक में उत्पन्न पंजाब और असम संकट के बीच एक समानता और एक अन्तर बताइये।
उत्तर:
पंजाब व असम संकट के बीच समानता: 1980 के दशक में पंजाब और असम दोनों में भाषा के आधार पर नवीन राज्य गठन की माँग उठाई गई। इसके तहत पंजाबी और हिन्दी भाषा के आधार पर पंजाब का तीन राज्यों- पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में विभाजन हुआ। इसी प्रकार असम भी क्षेत्रीय भाषाओं के आधार पर क्रमशः नगालैंड, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश व मिजोरम और असम सात राज्यों में विभाजित हुआ। पंजाब व असम के विभाजन के बीच अन्तर: पंजाब, हरियाणा व हिमाचल प्रदेश की मांग पूर्णत: भाषा पर आधारित थी जबकि असम से पृथक् हुए राज्यों का आधार भाषा के साथ-साथ संस्कृति और क्षेत्रीय परिवेश भी थे।

प्रश्न 44.
भारत में पूर्वोत्तर की क्षेत्रीय आकांक्षा स्वायत्तता की माँग रही है ।” इस कथन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत में पूर्वोत्तर में स्वायत्तता की माँग भारत में पूर्वोत्तर की क्षेत्रीय आकांक्षा स्वायत्तता की माँग रही है। स्वतंत्रता के समय मणिपुर और त्रिपुरा को छोड़कर पूर्वोत्तर का सारा हिस्सा असम कहलाता था। इस क्षेत्र के गैर असमी लोगों को जब लगा कि असम सरकार उन पर असमी भाषा थोप रही है तो इस क्षेत्र से राजनीतिक स्वायत्तता की माँग उठी। 1970 के दशक में पूरे राज्य में असमी भाषा लादने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और दंगे हुए।

इन्होंने ‘आल पार्टी हिल्स कांफ्रेंस’ का गठन किया और माँग की कि असम से अलग जनजातीय राज्य बनाये जाएं। अन्ततः केन्द्र सरकार ने असम को बाँट कर मेघालय, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश बनाया तथा त्रिपुरा और मणिपुर को भी राज्य का दर्जा दिया करबी और दिमसा समुदायों को जिला परिषद् के अन्तर्गत स्वायत्तता दी गई तथा बोड़ो जनजाति को स्वायत्त परिषद् का दर्जा दिया गया।

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प्रश्न 45.
मास्टर तारा सिंह का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
मास्टर तारा सिंह: मास्टर तारा सिंह 1885 में जन्मे। वे युवा अवस्था में ही प्रमुख सिख धार्मिक एवं राजनैतिक नेता के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त कर सके। वे शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्ध कमेटी (एस.पी.डी.) के शुरुआती नेताओं में से एक थे। उन्हें इतिहास में अकाली आन्दोलन के सबसे महान नेता के रूप में याद किया जाता है। वे देश की स्वतन्त्रता आन्दोलन के समर्थक, ब्रिटिश सत्ता के विरोधी थे लेकिन उन्होंने केवल मुसलमानों के साथ समझौते की कांग्रेस
नीति का डटकर विरोध किया। वे देश की आजादी के बाद अलग पंजाबी राज्य के निर्माण के समर्थक रहे। 1967 में उनका निधन हो गया।

प्रश्न 46.
कश्मीर का भारत में विलय किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
अक्टूबर 1947 में, पाकिस्तान ने कश्मीर पर कब्जा करने के लिए अपनी तरफ से कबायली घुसपैठिए भेजे। इसने महाराजा को भारतीय सैनिक सहायता लेने के लिए बाध्य किया। भारत ने सैनिक सहायता दी और कश्मीर घाटी से. घुसपैठियों को वापस खदेड़ दिया, परंतु भारत ने सहायता देने से पहले महाराजा से विलय प्रपत्र पर हस्ताक्षर करवा लिये। इस प्रकार कश्मीर का भारत में विलय हुआ।

प्रश्न 47.
भारत सरकार ने सन् 2000 में कौनसे तीन नये राज्यों का गठन किया? इनके गठन का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए। नये राज्यों के निर्माण के दो उद्देश्य बताइये|
अथवा
उत्तर:
नये राज्यों के निर्माण के उद्देश्य: भारत सरकार ने सन् 2000 में उत्तरांचल (उत्तराखण्ड), झारखण्ड और छत्तीसगढ़ नामक तीन नये राज्यों का गठन किया। इन राज्यों के गठन के प्रमुख उद्देश्य निम्न हैं।
1. ऐतिहासिक कारण: स्वतन्त्र भारत में विभिन्न देशी रियासतों और प्रान्तों को मिलाकर राज्यों का पुनर्गठन किया गया था। लेकिन कुछ रियासतों को यह महसूस होता था कि यदि उनका पृथक् अस्तित्व रहता तो वे न केवल अपनी मौलिक संस्कृति तथा क्षेत्रीय विशिष्टता को बनाये रखते बल्कि सीमित क्षेत्र होने के कारण उनका विकास भी बेहतर और तीव्र गति से सम्भव हो पाता।

2. राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाएँ: स्थानीय नेताओं और राजनीतिक दलों ने अपनी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए जनता को उज्ज्वल भविष्य के नाम पर पृथक् राज्य निर्माण के लिए भड़काया।

प्रश्न 48.
भारत में सिक्किम का विलय किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
भारत में सिक्किम का विलय: स्वतंत्रता के समय सिक्किम भारत का अंग तो नहीं था लेकिन उसकी रक्षा और विदेशी मामलों का जिम्मा भारत सरकार का था और वहाँ के आंतरिक प्रशासन की बागडोर यहाँ के राजा चोग्याल के हाथों में थीं। लेकिन सिक्किम के राजा स्थानीय जनता की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को संभाल नहीं सके। वहाँ की नेपाली मूल की जनता में यह भाव घर कर गया कि चोग्याल अल्पसंख्यक लेवचा भूटिया के छोटे से अभिजन तबके का शासन उन पर लाद रहा है। 1975 में अप्रैल में भारत के साथ सिक्किम के पूर्ण विलय का एक प्रस्ताव सिक्किम विधानसभा ने पारित किया। इस प्रस्ताव के बाद सिक्किम में जनमत संग्रह कराया गया जिसमें जनता ने प्रस्ताव के पक्ष में मुहर लगा दी। भारत सरकार ने सिक्किम विधानसभा के अनुरोध को तुरन्त मान लिया तथा सिक्किम भारत का 22वाँ राज्य बन गया।

प्रश्न 49.
भारत में मणिपुर के विलय को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में मणिपुर का विलय: वर्तमान में पूर्वोत्तर क्षेत्र में सात राज्य हैं। असम, मेघालय, मिजोरम, नगालैण्ड, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा और मणिपुर। इन सात राज्यों को ‘सात बहनें’ कहा जाता है। 1947 के भारत विभाजन से पूर्वोत्तर के इलाके भारत के शेष भागों से एकदम अलग-थलग पड़ गये। अलग-थलग पड़ जाने के कारण इस इलाके में विकास नहीं हो सका। स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय मणिपुर भी ब्रिटिश शासन के अधीन था। 15 अक्टूबर, 1949 को भारतीय संघ में भाग ‘ग’ के राज्य के रूप में शामिल हुआ। इसके बाद 1963 में केन्द्र शासित प्रदेश अधिनियम के अन्तर्गत विधानसभा गठित की गयी। 21 जनवरी, 1972 को मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।

प्रश्न 50.
संत हरचंद सिंह लोंगोवाल का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
हरचंद सिंह का जन्म 1932 में हुआ था। ये सिखों के धार्मिक एवं राजनीतिक नेता थे। इन्होंने छठे दशक के दौरान राजनीतिक जीवन की शुरुआत अकाली नेता के रूप में की। 1980 में अकाली दल के अध्यक्ष बने। इन्होंने अकालियों की प्रमुख माँगों को लेकर प्रधानमंत्री राजीव गाँधी से समझौता किया। 1985 में एक अज्ञात युवक ने इनकी हत्या कर दी।

प्रश्न 51.
अंगमी जापू फिजो कौन थे? संक्षेप में परिचय दीजिए।
उत्तर:
अंगमी जापू फिजो का जन्म 1904 में हुआ था। वे पूर्वोत्तर भारत में नागालैंड की आजादी के आंदोलन के नेता के रूप में प्रसिद्ध हुए। वे नागा नेशनल काउंसिल के अध्यक्ष बने। उन्होंने नागालैंड को भारत से अलग देश बनाने के लिए भारत सरकार के विरुद्ध अनेक वर्षों तक सशस्त्र संघर्ष चलाया। वे भूमिगत हो गए और पाकिस्तान में शरण ली अपने जीवन के अंतिम तीन वर्ष ब्रिटेन में गुजारें। 1990 में इनका निधन हो गया।

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प्रश्न 52.
1990 के दशक के मध्यवर्ती वर्षों में पंजाब में किस प्रकार शांति आई? इसके अच्छे परिणाम क्या थे?
उत्तर:
यद्यपि 1992 में पंजाब राज्य में आम चुनाव हुए लेकिन गुस्से में आई जनता ने मतदान में सहयोग नहीं दिया। महज 24 फीसदी मतदाता वोट डालने आए। हालाँकि उग्रवाद को सुरक्षा बलों ने दबा दिया था परंतु पंजाब के लोगों ने, चाहे वे सिख हों या हिन्दू, इस क्रम में अनेक कष्ट और यातनाएँ सहीं। 1990 के दशक के मध्यवर्ती वर्षों में पंजाब में शांति बहाल हुई। इसके पश्चात् 1997 में अकाली दल और भाजपा के गठबंधन को बड़ी विजय मिली। उग्रवाद के खात्मे के बाद के दौर में यह पंजाब का पहला चुनाव था। राज्य में एक बार फिर आर्थिक विकास और सामाजिक परिवर्तन के सवाल प्रमुख हो उठे। हालांकि धार्मिक पहचान यहाँ की जनता के लिए लगातार प्रमुख बनी हुई है लेकिन राजनीति अब धर्मनिरपेक्षता की राह पर चल पड़ी है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सिक्किम का भारत में विलय किस प्रकार हुआ? विस्तार में लिखिए।
उत्तर:
आजादी के समय सिक्किम को भारत की ‘शरणागति’ प्राप्त थी। इसका मतलब यह था कि सिक्किम भारत का अंग नहीं था लेकिन वह पूरी तरह संप्रभु राष्ट्र भी नहीं था। सिक्किम की रक्षा और विदेशी मामलों का जिम्मा भारत सरकार का था जबकि सिक्किम के आंतरिक प्रशासन की बागडोर यहाँ के राजा चोग्याल के हाथों में थी। यह व्यवस्था टिक नहीं पायी क्योंकि सिक्किम के राजा स्थानीय जनता की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को संभाल नहीं सके। यहाँ की आबादी में एक बड़ा हिस्सा नेपालियों का था। नेपाल मूल की जनता के मन में यह भाव घर कर गया कि चोग्याल अल्पसंख्यक लेपचा-भूटिया के एक छोटे से अभिजन तबके का शासन उन पर लाद रहा है। चोग्याल विरोधी दोनों समुदायों के नेताओं ने भारत सरकार से मदद माँगी और भारत सरकार का समर्थन हासिल किया।

सिक्किम विधानसभा के लिए पहला लोकतांत्रिक चुनाव 1974 में हुआ और इसमें सिक्किम काँग्रेस को जीत मिली। यह पार्टी भारत में सिक्किम विलय की पक्षधर थी। सिक्किम विधानसभा ने पहले भारत के सह-प्रान्त बनने की कोशिश की और 1975 के अप्रैल में एक प्रस्ताव पास किया। इस प्रस्ताव में भारत के साथ सिक्किम विलय की बात कही गई थी। इसके बाद तुरंत सिक्किम में जनमत-संग्रह कराया गया और जनमत संग्रह में जनता ने विधानसभा के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी। भारत सरकार ने सिक्किम विधानसभा की बात तुरंत मान ली और इस प्रकार सिक्किम, भारत का 22वाँ राज्य बना।

प्रश्न 2.
भारत में नए राज्यों के निर्माण सम्बन्धी दृष्टिकोण का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत में नए राज्यों के निर्माण सम्बन्धी दृष्टिकोण भारत में नए राज्यों के निर्माण की माँग के प्रमुख कारण व दृष्टिकोण निम्नलिखित हैं।
1. आर्थिक असन्तुलन एवं विषमताएँ: स्वतन्त्रता के पश्चात् देश की विकास योजनाओं तथा कार्यक्रमों का लाभ सभी राज्यों को समान रूप से नहीं मिल पाया। परिणामस्वरूप क्षेत्र आर्थिक रूप से पिछड़ गये। उन्होंने नए राज्यों की माँग प्रारम्भ कर दी। विदर्भ, तेलंगाना, उत्तराखण्ड आदि राज्य इसी के अन्तर्गत आते हैं।

2. भाषायी और सांस्कृतिक कारण: भारत भाषायी तथा सांस्कृतिक विविधता वाला देश है। अतः स्वतन्त्रता के बाद इसी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की माँग उठने लगी और इसी आधार पर आंध्रप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा. आदि राज्यों का गठन हुआ।

3. ऐतिहासिक कारण: स्वतन्त्र भारत में किसी राज्य में विलीन हुई कुछ रियासतों को यह महसूस होता था कि उनका अलग अस्तित्व रहता तो वे अपनी मौलिक संस्कृति और क्षेत्रीय विशिष्टता को बनाये रखतीं।

4. राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाएँ: कुछ स्थानीय नेताओं तथा राजनीतिक दलों ने अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए स्थानीय जनता को पृथक् राज्य निर्माण के लिए भड़काया। झारखण्ड मुक्ति मोर्चा, नगा राष्ट्रीय मोर्चा, गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट इसी श्रेणी में आते हैं।

5. विशिष्ट क्षेत्रीय मुद्दे: उत्तराखण्ड राज्य की माँग पहाड़ी क्षेत्र के विकास के सन्दर्भ में तथा झारखण्ड और छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण की माँग आदिवासी बहुल क्षेत्र के विकास के सन्दर्भ में उठी।

प्रश्न 3.
पुर्तगाल से गोवा मुक्ति का संक्षेप में विवरण दीजिए।
अथवा
गोवा का भारत में विलय किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
1974 में भारत में अंग्रेजी साम्राज्य का खात्मा हो गया था लेकिन पुर्तगाल ने गोवा, दमन और दीव से अपना शासन हटाने से इनकार कर दिया। यह क्षेत्र सोलहवीं सदी से ही औपनिवेशिक शासन में था। अपने लंबे शासनकाल में पुर्तगाल ने गोवा की जनता का दमन किया था। उसने यहाँ के लोगों को नागरिक के अधिकार से वंचित रखा और जबरदस्ती धर्म-परिवर्तन कराया। आजादी के बाद भारत सरकार ने बड़े धैर्यपूर्वक पुर्तगाल को गोवा से शासन हटाने के लिए रजामंद करने का प्रयत्न किया। गोवा में आजादी के लिए मजबूत जन आंदोलन चला। इस आंदोलन को महाराष्ट्र के समाजवादी सत्याग्रहियों का साथ मिला।

दिसंबर, 1961 में भारत सरकार ने गोवा में अपनी सेना भेज दी। दो दिन की कार्यवाही में भारतीय सेना ने गोवा मुक्त करा लिया। जल्दी ही एक और समस्या उठ खड़ी हुई। महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के नेतृत्व में एक तबके ने माँग रखी कि गोवा को महाराष्ट्र में मिला दिया जाए क्योंकि यह मराठी भाषी क्षेत्र है। परंतु बहुत से गोवावासी गोवानी पहचान और संस्कृति की स्वतंत्र अहमियत बनाए रखना चाहते थे। कोंकणी भाषा के लिए भी इनके मन में आग्रह था। इस तबके का नेतृत्व यूनाइटेड गोअन पार्टी ने किया। 1967 के जनवरी में केन्द्र सरकार ने गोवा में एक विशेष जनमत सर्वेक्षण कराया। अधिकतर लोगों ने महाराष्ट्र से अलग रहने के पक्ष में मत डाला। इस तरह गोवा संघ शासित प्रदेश बना रहा। अंततः 1987 में गोवा भारत संघ का एक राज्य बना।

प्रश्न 4.
संक्षेप में स्वतंत्र भारत के समक्ष 1947 से 1991 के मध्य तनाव के दायरे के नामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
तनाव के दायरे निम्नलिखित हैं।

  1. आजादी के तुरंत बाद ही हमारे देश को विभाजन, विस्थापन, देसी रियासतों के विलय और राज्यों के पुनर्गठन जैसे कठिन मसलों का सामना करना पड़ा। देश और विदेश के अनेक पर्यवेक्षकों का अनुमान था कि भारत एकीकृत राष्ट्र के रूप में ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाएगा।
  2. आजादी के तुरंत बाद जम्मू-कश्मीर का मसला सामने आया। यह मद्दा सिर्फ भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष का नहीं था। कश्मीर घाटी के लोगों की राजनीतिक आकांक्षाओं का सवाल भी इससे जुड़ा हुआ था।
  3. पूर्वोत्तर के कुछ भागों में भारत का अंग होने के मसले पर सहमति नहीं थी। पहले नागालैंड में और फिर मिजोरम में भारत से अलग होने की माँग उठी । दक्षिण भारत में भी द्रविड़ आंदोलन से जुड़े कुछ समूहों ने अलग राष्ट्र की बात उठायी थी।
  4. अलगाव के इन आंदोलनों के अतिरिक्त देश में भाषा के आधार पर राज्यों के गठन की मांग करते हुए जन आंदोलन चले। मौजूदा आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात ऐसे ही आंदोलनों वाले राज्य हैं। दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों खासकर तमिलनाडु में हिन्दी को राजभाषा बनाने के खिलाफ विरोध आंदोलन चला।
  5. 1950 के दशक के उत्तरार्द्ध से पंजाबी भाषी लोगों ने अलग राज्य बनाने की आवाज उठानी शुरू कर दी। उनकी माँग आखिरकार मान ली गई और 1966 में पंजाब और हरियाणा नाम से राज्य बनाए गए। बाद में छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड का गठन हुआ। विविधता की चुनौती से निपटने के लिए देश की अंदरूनी सीमा रेखाओं का पुनर्निर्धारण किया गया।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

प्रश्न 5.
भारत के उत्तर पूर्वी भाग में बढ़ती राजनीतिक हिंसा की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत के उत्तर-पूर्वी भाग में बढ़ती राजनीतिक हिंसा: भारत के उत्तर-1 – पूर्वी भाग में बढ़ती राजनीतिक हिंसा के मूल में निम्नलिखित तीन मुद्दे प्रमुख रहे हैं। यथा
1. स्वायत्तता की माँग:
स्वतंत्रता के समय मणिपुर और त्रिपुरा को छोड़कर पूर्वोत्तर का सारा हिस्सा असम कहलाता था। इस क्षेत्र के गैर- असमी लोगों को जब लगा कि असम की सरकार उन पर असमी भाषा थोप रही है तो इस इलाके से राजनीतिक स्वायत्तता की माँग उठी। 1970 के दशक में पूरे राज्य में असमी भाषा लादने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और दंगे हुए। इन्होंने ‘आल पार्टी हिल्स कांफ्रेंस’ का गठन किया और माँग की कि असम से अलग एक जनजातीय राज्य बनाया जाये। संजीव पास बुक्स अन्ततः केन्द्र सरकार ने असम को बाँटकर मेघालय, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश बनाया तथा त्रिपुरा और मणिपुर को भी राज्य का दर्जा दिया गया।

2. अलगाववादी आंदोलन:
पूर्वोत्तर के कुछ समूहों ने सिद्धान्तगत तैयारी के साथ अलग देश बनाने की माँग भी की। 1966 में लालडेंगा के नेतृत्व में मिजो नेशनल फ्रंट ने आजादी की माँग करते हुए सशस्त्र अभियान शुरू किया और भारतीय सेना और मिजो विद्रोहियों के बीच दो दशक तक लड़ाई चली। अन्ततः 1986 में राजीव गाँधी और लालडेंगा के बीच शांति समझौता हुआ।

3. बाहरी लोगों के खिलाफ आंदोलन:
बांग्लादेश से बहुत सी मुस्लिम आबादी असम में आकर बसी। इससे असमी लोगों के मन में यह भावना घर कर गई कि इन विदेशी लोगों को पहचान कर उन्हें अपने देश नहीं भेजा गया तो स्थानीय जनता अल्पसंख्यक हो जायेगी।
1979 में ‘आसू’ नामक छात्र संगठन ने विदेशियों के विरोध में एक आंदोलन चलाया जिसे पूरे असम का समर्थन मिला। आंदोलन के दौरान हिंसक और त्रासद घटनाएँ भी हुईं। अन्ततः 1985 में सरकार के साथ एक समझौता हुआ और हिंसक आन्दोलन समाप्त हुआ।

प्रश्न 6.
जम्मू-कश्मीर की 1948 से 1986 के मध्य राजनीति से जुड़ी प्रमुख घटनाओं का विवरण लिखिए।
उत्तर:

  1. जम्मू-कश्मीर में 1948 के उपरांत तथा 1952 तक की राजनीति: प्रधानमंत्री बनने के बाद, शेख अब्दुल्ला ने भूमि सुधार और अन्य नीतियाँ शुरू कीं जिनसे सामान्य जन को लाभ पहुँचा। हालाँकि कश्मीर के दर्जे पर उनकी स्थिति के विषय में उनके और केन्द्र सरकार के बीच मतभेद बढ़ता गया।
  2. शेख अब्दुल्ला की बर्खास्तगी एवं चुनाव: 1953 में शेख अब्दुल्ला को बर्खास्त कर दिया गया और कई वर्षों तक कैद रखा गया। शेख अब्दुल्ला के बाद जो नेता सत्तासीन हुए उनको उतना लोकप्रिय समर्थन नहीं मिला और वह राज्य में शासन नहीं चला पाए जिसका मुख्य कारण केन्द्र का समर्थन था। विभिन्न चुनावों में अनाचार और हेरफेर संबंधी गंभीर आरोप थे।
  3. जम्मू-कश्मीर में 1953 से 1977 तक की राजनीतिक घटनाएँ
    • 1953 से 1974 के बीच की अवधध में कांग्रेस पार्टी मे राज्य की नीतियों पर प्रभाव डाला। विभाजित हो चुकी नेशनल कांफ्रेंस काँग्रेस के समर्थन से राज्य में कुछ समय तक सत्तासीन रही लेकिन बाद में वह काँग्रेस में मिल गई। इस तरह राज्य की सत्ता सीधे काँग्रेस के नियंत्रण में आ गई। इसी बीच शेख अब्दुल्ला और भारत सरकार के बीच समझौते की कोशिश जारी रही।
    • 1965 में जम्मू और कश्मीर के संविधान में परिवर्तन करके राज्य के प्रधानमंत्री का पदनाम बदलकर मुख्यमंत्री कर दिया गया। इसके अनुसार, भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के गुलाम मोहम्मद सादिक राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने।
    • 1974 में इंदिरा गाँधी का शेख अब्दुल्ला के साथ समझौता हुआ और वे राज्य के मुख्यमंत्री बन गए। उन्होंने नेशनल कांफ्रेंस को फिर से खड़ा किया और 1977 के विधानसभा चुनाव में बहुमत से जीत हासिल की।
  4. जम्मू-कश्मीर फारूख अब्दुल्ला के प्रथम कार्यकाल में (1982-1986): सन् 1982 में शेख अब्दुल्ला की मृत्यु के पश्चात् नेशनल कांफ्रेंस के नेतृत्व की कमान उनके पुत्र फारूख अब्दुल्ला ने संभाली और मुख्यमंत्री बने। परंतु कुछ ही समय बाद उन्हें पदच्युत कर दिया गया और नेशनल कांफ्रेंस से अलग हुआ एक गुट अल्प अवधि के लिए सत्ता में आया । केन्द्र सरकार के हस्तक्षेप से फारूख अब्दुल्ला की सरकार को हटाने पर कश्मीर में नाराजगी की भावना पैदा हुई। 1986 में नेशनल कांफ्रेंस ने केन्द्र में सत्तासीन पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन किया।

प्रश्न 7.
भारत के कुछ भागों में व्याप्त अलगाववादी आंदोलन से हम क्या सबक सीख सकते हैं?
उत्तर:
1980 के बाद के दौर में भारत के कुछ भागों में व्याप्त अलगाववादी आन्दोलन से हम अग्रलिखित सबक सीख सकते हैं।

  1. क्षेत्रीय आकांक्षाएँ लोकतांत्रिक राजनीति का अभिन्न अंग हैं। क्षेत्रीय आकांक्षाएँ लोकतांत्रिक राजनीति का अभिन्न अंग हैं। अतः भारत को क्षेत्रीय आकांक्षाओं से निपटने की तैयारी लगातार रखनी होगी।
  2. क्षेत्रीय आकांक्षाओं के लिए लोकतांत्रिक बातचीत का रास्ता ही उचित है – क्षेत्रीय आकांक्षाओं को दबाने की जगह उनके साथ लोकतांत्रिक बातचीत का तरीका अपनाना सबसे अच्छा होता है। उदाहरण के लिए पंजाब के उग्रवाद, पूर्वोत्तर के अलगाववादी आन्दोलन तथा कश्मीर समस्या पर बातचीत के जरिये सरकार ने क्षेत्रीय आंदोलनों के साथ समझौता किया। इससे सौहार्द का माहौल बना और कई क्षेत्रों में तनाव कम हुआ।
  3. साझेदारी के महत्त्व को समझना: केवल लोकतांत्रिक ढाँचा खड़ा कर लेना ही पर्याप्त नहीं है। इसके साथ ही विभिन्न क्षेत्रों के दलों और समूहों को केन्द्रीय राजव्यवस्था में हिस्सेदारी बनाना भी जरूरी है। यदि राष्ट्रीय स्तर के निर्णयों में क्षेत्रों को वजन नहीं दिया गया तो उनमें अन्याय और अलगाव का बोध पनपेगा।
  4. आर्थिक विकास की प्रक्रिया में पिछड़ेपन को प्राथमिकता दें: भारत में आर्थिक विकास की प्रक्रिया का एक तथ्य क्षेत्रीय असंतुलन भी है। ऐसे में पिछड़े इलाकों को लगता है कि उनके साथ भेदभाव हो रहा है। ऐसी स्थिति में यह प्रयास किया जाना चाहिए कि पिछड़े इलाकों को लगे कि उनके पिछड़ेपन को प्राथमिकता के आधार पर दूर किया जा रहा है।

प्रश्न 8.
उत्तर-पूर्वी राज्यों की चुनौतियों एवं उसकी अनुक्रियाओं पर एक नोट लिखिए।
उत्तर:
उत्तर-पूर्वी राज्यों की चुनौतियाँ भारत का उत्तर-पूर्वी क्षेत्र सात राज्यों (असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, नगालैण्ड, मिजोरम एवं त्रिपुरा) से मिलकर बनता है। इन सात राज्यों को सात बहनें भी कहकर पुकारा जाता है। इन राज्यों की चुनौतियों तथा उनकी अनुक्रियाओं को निम्न प्रकार वर्णित किया गया है।

  1. नगालैण्ड: नगालैण्ड की जनसंख्या लगभग 20 लाख है। नगालैण्ड में अनेक जातियाँ एवं कबीले पाये जाते हैं। इसमें यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट, नंगा नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी तथा नगा नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल जैसे राजनीतिक दल पाये जाते हैं। ये दल अलगाववादियों से सम्बन्धित हैं।
  2. मिजोरम: मिजोरम राज्य की जनसंख्या लगभग 10 लाख है। मिजोरम के मुख्य क्षेत्रीय दल पीपुल्स कान्फ्रेंस तथा मिजो यूनियन पार्टी, मिजोरम में एक अलगाववादी संगठन मिजो नेशनल फ्रंट भी है, जो हिंसक कार्यवाहियों में संलग्न रहता है।
  3. त्रिपुरा: त्रिपुरा की जनसंख्या लगभग 32 लाख है। त्रिपुरा में चार जिले हैं। यहाँ पर छोटे-छोटे क्षेत्रीय राजनीतिक दल हैं। इनमें त्रिपुरा उपजाति युवा समिति तथा त्रिपुरा जन मुक्ति संगठन सेना प्रमुख हैं।
  4. मणिपुर: मणिपुर की जनसंख्या लगभग 32 लाख है। इसमें मणिपुर हिल यूनियन, कूरी नेशनल एसेम्बली तथा मणिपुर जन मुक्ति सेना जैसे क्षेत्रीय दल हैं। अन्तिम दल अलगाववादी दल है।
  5. मेघालय: मेघालय की जनसंख्या लगभग 24 लाख है। मेघालय के कुछ क्षेत्रीय दल ऑल पार्टी हिल लीडर्स कान्फ्रेंस तथा हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी हैं।
  6. असम: असम की जनसंख्या 2 करोड़ 70 लाख से भी अधिक है। असम में उल्फा नामक एक उग्रवादी एवं अलगाववादी संगठन पाया जाता है।

प्रश्न 9.
द्रविड़ आन्दोलन पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
द्रविड़ आन्दोलन: द्रविड़ आन्दोलन भारत के क्षेत्रीय आन्दोलनों में एक शक्तिशाली आन्दोलन था। देश की राजनीति में यह आन्दोलन क्षेत्रीय भावनाओं की सर्वप्रथम और सबसे प्रबल अभिव्यक्ति था। द्रविड़ आन्दोलन को निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत समझा जा सकता

  1. आन्दोलन का स्वरूप: सर्वप्रथम इस आन्दोलन के नेतृत्व में एक हिस्से की आकांक्षा एक स्वतन्त्र द्रविड़ राज्य बनाने की थी, परन्तु आन्दोलन ने कभी सशस्त्र संघर्ष का मार्ग नहीं अपनाया। अन्य दक्षिणी राज्यों का समर्थन न मिलने के कारण यह आन्दोलन तमिलनाडु तक ही सीमित रहा।
  2. नेतृत्व के साधन: द्रविड़ आन्दोलन का नेतृत्व तमिल सुधारक नेता ई. वी. रामास्वामी नायकर के हाथों में था।
  3. आन्दोलन का संगठन: द्रविड़ आन्दोलन की प्रक्रिया से एक राजनैतिक संगठन द्रविड़ कषगम का सूत्रपात हुआ। यह संगठन ब्राह्मणों के वर्चस्व की खिलाफत (विरोध) करता था। उत्तरी भारत के राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक प्रभुत्व को नकारते हुए क्षेत्रीय गौरव की प्रतिष्ठा पर जोर देता था।
  4. डी. एम. के. की सफलताएँ: 1965 के हिन्दी विरोधी आन्दोलन की सफलता ने डी.एम. के. को जनता के बीच और भी लोकप्रिय बना दिया। 1967 के विधानसभा चुनावों में उसे सफलता मिली।
  5. डी.एम.के. का विभाजन एवं कालान्तर की राजनीतिक घटनाएँ: सी. अन्नादुरै की मृत्यु के बाद डी.एम.के. दल के दो टुकड़े हो गये। इसमें एक दल मूल नाम डी.एम. के. को लेकर आगे चला जबकि दूसरा दल खुद को ऑल इण्डिया अन्नाद्रमुक कहने लगा। तमिलनाडु की राजनीति में ये दोनों दल चार दशकों से दबदबा बनाए हुए हैं।

JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ

प्रश्न 10.
भारतीय राजनीति में अलगाववादी आंदोलन का वर्णन कीजिये। भारतीय राजनीति में अलगाववादी आंदोलन
उत्तर:
भारतीय राजनीति में अलगाववादी आन्दोलन का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।
1. अलगाववाद से आशय: अलगाववाद से अभिप्राय एक राज्य से कुछ क्षेत्र को अलग करके स्वतंत्र राज्य की स्थापना की माँग है अर्थात् सम्पूर्ण इकाई से अलग अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखने की माँग अलगाववाद है। अलगाववाद का उदय उस समय होता है, जब क्षेत्रवाद की भावना उग्र रूप धारण कर लेती है।

2. भारत में हुए प्रमुख अलगाववादी आंदोलन: भारत में प्रमुख अलगाववादी आंदोलन निम्नलिखित रहे

  • जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन: स्वतंत्रता के तुरन्त बाद जम्मू-कश्मीर का मामला सामने आया। यह सिर्फ भारत – पाकिस्तान के मध्य संघर्ष का मामला नहीं था। कश्मीर घाटी के लोगों की राजनीतिक आकांक्षाओं का सवाल भी इससे जुड़ा हुआ था। 1989 में जम्मू-कश्मीर में पुनः अलगाववादी राजनीति ने सिर उठाया। अलगाववादियों का एक वर्ग कश्मीर को अलग राष्ट्र बनाना चाहता था जो न तो भारत का हिस्सा हो और न पाक का। केन्द्र ने विभिन्न अलगाववादी समूहों से बातचीत शुरू कर दी है। अलग राष्ट्र की माँग की जगह अब अलगाववादी समूह अपनी बातचीत में भारत संघ के साथ कश्मीर के रिश्ते को पुनर्परिभाषित करने पर जोर दे रहे हैं।
  • पूर्वोत्तर में अलगाववादी आंदोलन: पूर्वोत्तर के कुछ भागों में भारत का अंग होने के मुद्दे पर सहमति नहीं थी। पहले नागालैंड में और फिर मिजोरम में भारत से अलग होने की माँग करते हुए जोरदार आंदोलन चले। भारत के पूर्वोत्तर के राज्य असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा में इस प्रकार की मागें उठती रहती हैं।
  • द्रविड़ आंदोलन: दक्षिण भारत में द्रविड़ आंदोलन से जुड़े कुछ समूहों ने एक समय अलग राष्ट्र की बात उठायी थी। लेकिन कुछ समय बाद ही दक्षिणी राज्यों का यह आंदोलन समाप्त हो गया ।

3. लगाववादी आंदोलन के कारण: भारतीय राजनीति में अलगाववादी आंदोलन के प्रमुख कारण निम्नलिखित

  • राजनीतिक कारण: भारतीय राजनीति में अलगाववादी भावना को भड़काने में राजनीतिक दलों की संकीर्ण मनोवृत्ति प्रमुख कारण रही है। पूर्वोत्तर के अलगाववादी आंदोलन के पीछे उनकी क्षेत्रीय आकांक्षा रही है।
  • आर्थिक पिछड़ापन: असमान आर्थिक विकास और पिछड़ापन भी अलगाववाद को बढ़ावा देता है। पिछड़े क्षेत्रों में पृथकतावाद की भावना जन्म लेती है।

4. भारतीय राजनीति में अलगाववादी आंदोलन में सबक- भारतीय राजनीति को अलगाववादी आंदोलनों से निम्न शिक्षाएँ मिली हैं।

  • क्षेत्रीय आकांक्षाएँ लोकतांत्रिक राजनीति का अभिन्न अंग हैं। भारत सरकार को इनसे निपटने की तैयारी लगातार रखनी होगी।
  • क्षेत्रीय आकांक्षाओं के लिए लोकतांत्रिक बातचीत का रास्ता ही उचित है।
  • विभिन्न क्षेत्रीय दलों को केन्द्रीय राजनीति का हिस्सा बनाना भी आवश्यक है।
  • आर्थिक विकास में पिछड़े राज्यों को प्राथमिकता दी जाये।

प्रश्न 11.
जम्मू और कश्मीर में 2002 और इससे आगे की राजनीति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:

  1. 2002 में जम्मू और कश्मीर राज्य में चुनाव हुए जिसमें नेशनल कांफ्रेंस पार्टी को हार का सामना करना पड़ा और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और कॉंग्रेस की मिली-जुली सरकार आ गई। मुफ्ती मोहम्मद पहले तीन वर्ष सरकार के मुखिया बनें और बाद में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के गुलामनबी आजाद मुखिया बने। परंतु 2008 में राष्ट्रपति शासन लगने के कारण वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए।
  2. अगला चुनाव नवंबर: दिसंबर के 2008 में हुआ। एक और मिली-जुली सरकार 2009 में उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में सत्ता में आई। परन्तु, राज्य को लगातार हुर्रियत कॉन्फ्रेंस द्वारा पैदा की गई गड़बड़ियों का सामना करना पड़ा।
  3. 2014 में, राज्य में फिर चुनाव हुए, जिसमें पिछले 25 वर्षों में सबसे अधिक मतदान हुआ। परिणामस्वरूप पीडीपी और बीजेपी की गठबंधन वाली सरकार सत्ता में आई। मुफ्ती मोहम्मद सईद के बाद उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती
    अप्रैल, 2016 में राज्य की प्रथम महिला मुख्यमंत्री बनी। महबूबा मुफ्ती के कार्यकाल में बाहरी और भीतरी तनाव बढ़ाने वाली बड़ी आतंकवादी घटनाएँ हुईं।
  4. जून, 2018 में बीजेपी द्वारा मुफ्ती सरकार को दिया समर्थन वापस लेने पर वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। 5 अगस्त, 2019 को जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 द्वारा अनुच्छेद 370 समाप्त कर दिया और राज्य को पुनर्गठित कर दो केन्द्र शासित प्रदेश – जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख बना दिए गए।

प्रश्न 12.
1980 के बाद के दौर में भारत की राजनीति तनावों के घेरे में रही और समाज के विभिन्न तबकों की माँगों में पटरी बैठा पाने की लोकतांत्रिक राजनीति की क्षमता की परीक्षा हुई। इन उदाहरणों से क्या सबक मिलता है?
उत्तर:

  1. पहला और बुनियादी सबक यह है कि क्षेत्रीय आकांक्षाएँ लोकतांत्रिक राजनीति का अभिन्न अंग हैं। क्षेत्रीय मुद्दे की अभिव्यक्ति कोई असामान्य अथवा लोकतांत्रिक राजनीति के व्याकरण से बाहर की घटना नहीं है। भारत एक बड़ा लोकतंत्र है और यहां विभिन्नताएँ भी बड़े पैमाने पर हैं। अतः भारत को क्षेत्रीय आकांक्षाओं से निपटने की तैयारी लगातार रखनी होगी।
  2. दूसरा सबक यह है कि क्षेत्रीय आकांक्षाओं को दबाने की जगह उनके साथ लोकतांत्रिक बातचीत का तरीका अपनाना सबसे अच्छा होता है।
  3. तीसरा सबक है सत्ता की साझेदारी के महत्त्व को समझना। सिर्फ लोकतांत्रिक ढाँचा खड़ा कर लेना ही काफी नहीं होता बल्कि इसके साथ ही विभिन्न क्षेत्रों के दलों और समूहों को केन्द्रीय राजव्यवस्था में हिस्सेदार बनाना भी जरूरी है।
  4. चौथा सबक यह है कि आर्थिक विकास के ऐतबार से विभिन्न इलाकों के बीच असमानता हुई तो पिछड़े क्षेत्रों को लगेगा कि उनके साथ भेदभाव हो रहा है। भारत में आर्थिक विकास प्रक्रिया का एक तथ्य क्षेत्रीय असंतुलन भी है। ऐसे में स्वाभाविक है कि पिछड़े प्रदेशों अथवा कुछ प्रदेशों के पिछड़े इलाकों को लगे कि उनके पिछड़ेपन को प्राथमिकता के आधार पर दूर किया जाना चाहिए।
  5. सबसे आखिरी और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इन मामलों से हमें अपने संविधान निर्माताओं की दूरदृष्टि का पता चलता है। वे विभिन्नताओं को लेकर अत्यंत सजग थे। हमारे संविधान के प्रावधान इस बात के साक्ष्य हैं। संविधान की छठी अनुसूची में विभिन्न जनजातियों को अपने आचार-व्यवहार और पारंपरिक नियमों को संरक्षित रखने की पूर्ण स्वायत्तता दी गई है। पूर्वोत्तर की कुछ जटिल राजनीतिक समस्याओं को सुलझाने में ये प्रावधान बड़े निर्णायक साबित हुए।

JAC Class 12 Political Science Solutions in Hindi & English Jharkhand Board

JAC Jharkhand Board Class 12th Political Science Solutions in Hindi & English Medium

JAC Board Class 12th Political Science Solutions in Hindi Medium

Jharkhand Board Class 12th Political Science Part 1 Contemporary World Politics (समकालीन विश्व राजनीति भाग-1)

Jharkhand Board Class 12th Political Science Part 2 Politics in India since Independence (स्वतंत्र भारत में राजनीति भाग-2)

JAC Board Class 12th Political Science Solutions in English Medium

JAC Board Class 12th Political Science Part 1 Contemporary World Politics

  • Chapter 1 The Cold War Era
  • Chapter 2 The End of Bipolarity
  • Chapter 3 US Hegemony in World Politics
  • Chapter 4 Alternative Centres of Power
  • Chapter 5 Contemporary South Asia
  • Chapter 6 International Organisations
  • Chapter 7 Security in the Contemporary World
  • Chapter 8 Environment and Natural Resources
  • Chapter 9 Globalisation

JAC Board Class 12th Political Science Part 2 Politics in India since Independence

  • Chapter 1 Challenges of Nation Building
  • Chapter 2 Era of One-party Dominance
  • Chapter 3 Politics of Planned Development
  • Chapter 4 India’s External Relations
  • Chapter 5 Challenges to and Restoration of the Congress System
  • Chapter 6 The Crisis of Democratic Order
  • Chapter 7 Rise of Popular Movements
  • Chapter 8 Regional Aspirations
  • Chapter 9 Recent Developments in Indian Politics

JAC Class 12 Political Science Important Questions in Hindi & English Jharkhand Board

JAC Jharkhand Board Class 12th Political Science Important Questions in Hindi & English Medium

JAC Board Class 12th Political Science Important Questions in Hindi Medium

Jharkhand Board Class 12th Political Science Important Questions: समकालीन विश्व राजनीति

Jharkhand Board Class 12th Political Science Important Questions: स्वतंत्र भारत में राजनीति

JAC Board Class 12th Political Science Important Questions in English Medium

JAC Board Class 12th Political Science Important Questions: Contemporary World Politics

  • Chapter 1 The Cold War Era Important Questions
  • Chapter 2 The End of Bipolarity Important Questions
  • Chapter 3 US Hegemony in World Politics Important Questions
  • Chapter 4 Alternative Centres of Power Important Questions
  • Chapter 5 Contemporary South Asia Important Questions
  • Chapter 6 International Organisations Important Questions
  • Chapter 7 Security in the Contemporary World Important Questions
  • Chapter 8 Environment and Natural Resources Important Questions
  • Chapter 9 Globalisation Important Questions

JAC Board Class 12th Political Science Important Questions: Politics in India since Independence

  • Chapter 1 Challenges of Nation Building Important Questions
  • Chapter 2 Era of One-party Dominance Important Questions
  • Chapter 3 Politics of Planned Development Important Questions
  • Chapter 4 India’s External Relations Important Questions
  • Chapter 5 Challenges to and Restoration of the Congress System Important Questions
  • Chapter 6 The Crisis of Democratic Order Important Questions
  • Chapter 7 Rise of Popular Movements Important Questions
  • Chapter 8 Regional Aspirations Important Questions
  • Chapter 9 Recent Developments in Indian Politics Important Questions

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन Important Questions and Answers.

JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. इस्तमरारी बन्दोबस्त सबसे पहले लागू किया गया –
(क) बंगाल में
(ख) मद्रास में
(ग) बम्बई में
(घ) उत्तरप्रदेश में
उत्तर:
(क) बंगाल में

2. इस्तमरारी बन्दोबस्त लागू किया गया –
(क) 1794 में
(ख) 1792 में
(ग) 1793 में
(घ) 1795 में
उत्तर:
(ख) 1792 में

3. ‘राजा’ शब्द का प्रयोग किया जाता था–
(क) शक्तिशाली जमींदारों के लिए
(ख) ताल्लुकदारों के लिए
(ग) जोतदारों के लिए
(प) रैयतदारों के लिए
उत्तर:
(क) शक्तिशाली जमींदारों के लिए

4. बर्दवान में जमींदारी की नीलामी की गई थी, वर्ष
(क) 1798 में
(ख) 1797 में
(ग) 1897 में
(घ) 1795 में
उत्तर:
(ख) 1797 में

5. बंगाल में किस गवर्नर जनरल ने इस्तमरारी बन्दोवस्त लागू किया.
(क) लार्ड डलहौजी ने
(ख) विलियम बैंटिक ने
(ग) लार्ड कार्नवालिस ने
(घ) लार्ड एलिनवरो ने
उत्तर:
(ग) लार्ड कार्नवालिस ने

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

6. रैयत शब्द का प्रयोग अंग्रेजों ने किया –
(क) किसानों के लिए
(ख) जमींदारों के लिए
(ग) ताल्लुकदारों के लिए
(घ) राजाओं के लिए
उत्तर:
(क) किसानों के लिए

7. धनी किसानों के लिए जिस शब्द का प्रयोग होता था, वह था –
(क) फौजदार
(ख) जोतदार
(ग) ताल्लुकदार
(घ) फरमाबरदार
उत्तर:
(ख) जोतदार

8. जमींदार द्वारा राजस्व वसूलने वाला अधिकारी कहलाता थ –
(क) दामुला
(ख) अमला
(ग) आमूला
(घ) अमली
उत्तर:
(ख) अमला

9. घोर आर्थिक मंदी जिस सन् में आई, वह था –
(क) 1950
(ख) 1929
(ग) 1930
(घ) 1932
उत्तर:
(ख) 1929

10. बाहरी लोग को संथाल लोग क्या कहते थे?
(क) परदेशी
(ख) अंग्रेजी बाबू
(ग) दिकू
(घ) इनमें
उत्तर:
(ग) दिकू

11. संथालों का नेतृत्व किसने किया?
(क) सोदी
(ख) कान्हू
(ग) ‘क’ तथा ‘ख’ दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) ‘क’ तथा ‘ख’ दोनों

12. बुकानन कौन था?
(क) ब्रिटिश एजेन्ट
(ग) यात्री
(ख) अंग्रेज अधिकारी
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) ब्रिटिश एजेन्ट

13. अमेरिका में गृह युद्ध कब आरम्भ हुआ?
(क) 1760 में
(ग) 1840 में
(ख) 1761 में
(घ) 1861 में
उत्तर:
(घ) 1861 में

JAC Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

14. रेलों का युग प्रारम्भ होने से पहले कौनसा कस्बा दक्कन से आने वाली कपास के लिए संग्रह केन्द्र था ?
(क) मिर्जापुर
(ग) मद्रास
(ख) बम्बई
(घ) जयपुर
उत्तर:
(क) मिर्जापुर

15. दक्कन दंगा आयोग की रिपोर्ट ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत की गई –
(क) 1870 में
(ख) 1875 में
(ग) 1878 में
(घ) 1980 में
उत्तर:
(ग) 1878 में

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:

1. ………………. “शब्द का प्रयोग अक्सर शक्तिशाली जमींदारों के लिए किया जाता था।
2. इस्तमरारी बंदोबस्त ……………… ने राजस्व की राशि निश्चित करने के लिए लागू की थी।
3. अमेरिकी स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान ……………… ब्रिटिश सेना का कमाण्डर था।
4. 1793 में बंगाल में इस्तमरारी बंदोबस्त लागू करते समय वहाँ का …………… कार्नवालिस था
5. …………… शब्द का प्रयोग अंग्रेजों के विवरणों में किसानों के लिए किया जाता था।
6. …………… का शाब्दिक अर्थ है वह व्यक्ति जिसके पास लाठी या डंडा हो।
उत्तर:
1 राजा
2. ईस्ट इण्डिया कम्पनी
3. कार्नवालिस
4. गवर्नर जनरल
5. रैयत
6. लाठियाल

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बंगाल में इस्तमरारी बन्दोबस्त कब लागू हुआ?
उत्तर:
सन् 1793

प्रश्न 2.
अंग्रेजी विवरणों के अनुसार ‘रैयत’ शब्द का प्रयोग किनके लिए किया जाता था ?
उत्तर:
किसानों के लिए।

प्रश्न 3.
राजस्व इकट्ठा करने के समय जमींदार का जो अधिकारी गाँव में आता था, उसे क्या कहा जाता था ?
उत्तर:
अमला।

प्रश्न 4.
बंगाल के धनी किसानों के वर्ग को क्या कहा जाता था?
उत्तर:
जोतदार

प्रश्न 5.
जोतदारों की जमीन का काफी बड़ा भाग किनके द्वारा जोता जाता था ?
उत्तर:
बटाईदारों द्वारा

प्रश्न 6.
जब राजस्व का भुगतान न किये जाने पर जमींदार की जमींदारी को नीलाम किया जाता था तो प्रायः उन जमीनों को कौन खरीद लेते थे?
उत्तर:
जोतदार

प्रश्न 7.
1930 के दशक में अंततः जमींदारों का भट्ठा क्यों बैठ गया?
उत्तर:
1930 के दशक की घोर मंदी के कारण।

प्रश्न 8.
पहाड़िया जीवन का प्रतीक क्या था?
उत्तर:
कुदाल।

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प्रश्न 9.
संथालों की शक्ति का प्रतीक क्या था?
उत्तर:
हल

प्रश्न 10.
पहाड़िया लोग किस प्रकार की खेती करते थे?
उत्तर:
म खेती।

प्रश्न 11.
संधाल लोग किस प्रकार की खेती करते थे?
उत्तर:
स्थायी खेती।

प्रश्न 12.
1875 में पुणे के सूपा गाँव में हुआ किसानों का आन्दोलन किनके विरोध में था?
उत्तर:
साहूकारों और अनाज के व्यापारियों के विरोध

प्रश्न 13.
साहूकार कौन होता था?
उत्तर:
साहूकार पैसा उधार देता था और व्यापार भी करता था।

प्रश्न 14.
दक्षिण के गाँवों में रैयतों ने किस सन् में बगावत की?
उत्तर:
सन् 1875 में।

प्रश्न 15.
इस्तमरारी बन्दोबस्त किन-किन के मध्य लागू किया गया ?
उत्तर:
ईस्ट इण्डिया कम्पनी तथा बंगाल के जमींदारों के मध्य ।

प्रश्न 16.
1857 के गदर में बंगाल के किस राजा ने अंग्रेजों की मदद की थी ?
उत्तर:
बंगाल के बर्दवान के राजा मेहताबचन्द ने।

प्रश्न 17.
1930 की आर्थिक मंदी का जमींदारों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
इसके फलस्वरूप जमींदारों की दशा दयनीय हो गई।

प्रश्न 18.
रेलों का युग शुरू होने से पहले कपास का परिवहन कैसे होता था?
उत्तर:
नौकाओं, बैलगाड़ियों तथा जानवरों के द्वारा।

प्रश्न 19.
भारत में सर्वप्रथम औपनिवेशिक शासन कहाँ स्थापित हुआ?
उत्तर:
बंगाल में।

प्रश्न 20.
गाँवों में किनकी शक्ति जमींदारों की ताकत की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली होती थी?
उत्तर:
जोतदारों की।

प्रश्न 21.
बंगाल के किस क्षेत्र में जोतदार सबसे अधिक शक्तिशाली थे?
उत्तर:
उत्तरी बंगाल में।

प्रश्न 22.
बंगाल में जोतदार किन अन्य नामों से पुकारे जाते थे?
उत्तर:
‘हवलदार’, ‘गांटीदार’ तथा ‘मंडल’ के नामों

प्रश्न 23.
‘पाँचवीं रिपोर्ट’ ब्रिटिश संसद में कब प्रस्तुत की गई थी?
उत्तर:
1813 ई. में ।

प्रश्न 24.
अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने वाले संथालों का नेता कौन था?
उत्तर:
सिधू मांझी ।

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प्रश्न 25.
संथालों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कब किया?
उत्तर:
1855-56 में।

प्रश्न 26.
मैनचेस्टर काटन कम्पनी कब और कहाँ स्थापित की गई ?
उत्तर:
1859 ई. में इंग्लैण्ड में

प्रश्न 27.
रेलों के विकास से पूर्व दक्कन से आने वाली कपास के लिए कौनसा शहर संग्रह केन्द्र था?
उत्तर:
मिर्जापुर।

प्रश्न 28.
ऋणदाता लोग देहात के किस प्रथागत मानक का उल्लंघन कर किसानों का शोषण कर रहे थे?
उत्तर;
ऋणदाता मूलधन से अधिक ब्याज वसूल कर रहे थे।

प्रश्न 29.
दक्कन दंगा आयोग की रिपोर्ट ब्रिटिश संसद में कब प्रस्तुत की गई ?
उत्तर:
सन् 1878 ई. में।

प्रश्न 30.
रेग्यूलेटिंग एक्ट कब पारित किया गया ?
उत्तर:
1773 ई. में ।

प्रश्न 31.
ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने बंगाल की दीवानी कब प्राप्त की?
उत्तर:
सन् 1765 ई. में

प्रश्न 32.
रेग्यूलेटिंग एक्ट क्या था ?
उत्तर:
ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कार्यकलापों को विनियमित करने वाला अधिनियम।

प्रश्न 33.
सन् 1862 तक ब्रिटेन में जितना भी कपास का आयात होता था, उसका कितना भाग अकेले भारत से जाता था?
उत्तर:
90 प्रतिशत।

प्रश्न 34.
अमेरिका में गृह युद्ध का सूत्रपात कब हुआ?
उत्तर:
सन् 1861 ई. में ।

प्रश्न 35.
जोतदारों की स्थिति क्या थी? वे जमींदारों से किस प्रकार प्रभावशाली होते थे?
उत्तर:
जोतदार बंगाल के धनी किसान थे। उनका ग्रामवासियों पर नियन्त्रण था और वे रैयत को अपने पक्ष में रखते थे।

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प्रश्न 36.
गाँवों में जोतदार के शक्तिशाली होने के कारण लिखिए।
अथवा
गाँवों में जोतदारों की शक्ति जमींदारों की शक्ति से अधिक क्यों थी ? कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) जोतदार गाँवों में ही रहते थे, ग्रामवासियों पर नियंत्रण रखते थे।
(2) वे रैयत को अपने पक्ष में एकजुट रखते थे।

प्रश्न 37.
जोतदार जमींदारों का किस प्रकार प्रतिरोध करते थे? दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
(1) जोतदार जमींदारों द्वारा गाँव की लगान बढ़ाने का विरोध करते थे
(2) वे जमींदार को राजस्व भुगतान में देरी करा देते थे।

प्रश्न 38.
पाँचवीं रिपोर्ट से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पाँचवीं रिपोर्ट भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रशासन तथा क्रियाकलापों के विषय में तैयार की गई थी।

प्रश्न 39.
जमींदार किस प्रकार अपनी जमींदारियाँ बचा लेते थे? दो उदाहरण दीजिये ।
उत्तर:
(1) फर्जी बिक्री द्वारा
(2) अपनी जमींदारियों का कुछ हिस्सा महिलाओं को प्रदान करके।

प्रश्न 40.
1832 ई. तक किस भूमि को संथालों की भूमि के रूप में सीमांकित किया गया?
उत्तर:
दामिन-इ-कोह के रूप में सीमांकित भूमि को संथालों की भूमि घोषित किया गया।

प्रश्न 41.
दक्कन दंगा रिपोर्ट क्या थी ? इसके अनुसार रैयत विद्रोह का क्या कारण था ?
उत्तर:
दक्कन दंगा रिपोर्ट दक्कन के दंगों से सम्बन्धित रिपोर्ट थी रैयत विद्रोह का कारण ऋणदाताओं, साहूकारों न्पों की शोषण नीति थी।

प्रश्न 42.
झूम खेती किस बात पर निर्भर करती थी?
उत्तर:
झुम खेती नई जमीनें खोजने और भूमि की से प्राकृतिक उर्वरता का उपयोग करने की क्षमता पर निर्भर करती थी।

प्रश्न 43.
इस्तमरारी बन्दोबस्त कब एवं किस क्षेत्र में न्य लागू किया गया ?
उत्तर:
इस्तमरारी बन्दोबस्त 1793 में बंगाल में लागू किया गया।

प्रश्न 44.
कुदाल और हल किन लोगों के जीवन का प्रतीक माना जाता था?
उत्तर:
कुदाल’ पहाड़िया लोगों के जीवन का तथा ‘हल’ संथालों के जीवन का प्रतीक माना जाता था।

प्रश्न 45.
1860 के दशक से पूर्व ब्रिटेन में कपास न का आयात कहाँ से किया जाता था?
उत्तर:
1860 के दशक से पूर्व ब्रिटेन में कपास के समस्त आयात का 75% अमेरिका से किया जाता था।

प्रश्न 46.
रैयतवाड़ी क्या थी? इसे कहाँ लागू किया गया?
अथवा
बम्बई दक्कन में ब्रिटिश सरकार द्वारा लागू की गई राजस्व प्रणाली का नाम बताइये।
उत्तर:
रैयतवाड़ी राजस्व की प्रणाली थी, जो कम्पनी सरकार तथा रैयत (किसानों) के बीच बम्बई दक्कन में लागू की गई थी।

प्रश्न 47.
दक्कन में किसानों का विद्रोह कब व कहाँ से शुरू हुआ?
उत्तर:
दक्कन में किसानों का विद्रोह 1875 में (आधुनिक पुणे जिले में) से शुरू हुआ।

प्रश्न 48.
‘दामिन-इ-कोह’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
1832 में संथालों को स्थाई रूप से बसाने के लिए ‘दामिन-इ-कोह’ नामक एक भू-भाग निश्चित किया गया।

प्रश्न 49.
बुकानन कौन था?
उत्तर:
फ्रांसिस बुकानन एक चिकित्सक था जो भारत आया तथा 1794 से 1815 तक बंगाल चिकित्सा सेवा में कार्य किया।

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प्रश्न 50.
पहाड़िया लोग कौन थे? वे अपना निर्वाह कैसे करते थे?
उत्तर:
पहाड़िया लोग राजमहल की पहाड़ियों में रहते थे तथा जंगलों की उपज से अपना जीवन निर्वाह करते थे।

प्रश्न 51.
संथाल कौन थे?
उत्तर:
संथाल लोग राजमहल की पहाड़ियों में बसे हुए थे। वे हलों द्वारा स्थायी कृषि करते थे।

प्रश्न 52.
संथालों द्वारा ब्रिटिश शासन के विरुद्ध किये गए विद्रोह के कारणों पर प्रकाश डालिए।
अथवा
संथालों को विद्रोह पर क्यों उतरना पड़ा? दो कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) अंग्रेजों ने संथालों की भूमि पर भारी कर लगा दिया।
(2) साहूकार लोग बहुत ऊँची दर पर ब्याज लगा रहे

प्रश्न 53.
1875 में साहूकारों के विरुद्ध रैयत द्वारा विद्रोह करने के अन्तर्गत किए गए दो कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) रैयत ने साहूकारों के बहीखाते जला दिए और ऋणबंध नष्ट कर दिये। (2) उन्होंने साहूकारों की अनाज की दुकानें लूट लीं।

प्रश्न 54.
रैयतवाड़ी प्रणाली की एक विशेषता बताइये।
उत्तर:
रैयतवाड़ी प्रणाली के राजस्व की राशि सीधे रैयत के साथ तय की जाती थी।

प्रश्न 55.
बम्बई दक्कन में अंग्रेजों के विरुद्ध किसानों के विद्रोह के दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) किसानों से बहुत अधिक राजस्व वसूल किया जाता था
(2) उन्हें ब्याज की ऊँची दरों पर साहूकारों से ऋण लेना पड़ता था।

प्रश्न 56.
ब्रिटिश काल में दक्कन में दंगा होने का मुख्य कारण बताइये।
उत्तर:
ऋणदाता ऋण चुकाने के बाद रैयत को उसकी रसीद नहीं देते थे बंधपत्रों में जाली आँकड़े भर लेते थे।

प्रश्न 57.
किन दो कारणों से भारतीय दस्तकार बेकार हो गए?
उत्तर:
(1) ब्रिटेन से तैयार माल मंगाना और कच्चा माल ब्रिटेन भेजना
(2) कपास के उत्पादन में कमी।

प्रश्न 58.
किन दो कारणों से भारतीय किसान दरिद्र हो गए?
उत्तर:
(1) किसानों पर भारी भूमि कर लगाना
(2) साहूकारों, व्यापारियों द्वारा किसानों का शोषण

प्रश्न 59.
अंग्रेजों ने भारत के विभिन्न भागों में भू- राजस्व सम्बन्धी कौन-कौन सी तीन प्रणालियाँ प्रचलित क?
उत्तर:
(1) इस्तमरारी बन्दोबस्त
(2) रैयतवाड़ी बन्दोबस्त
(3) महलवाड़ी बन्दोबस्त।

प्रश्न 60.
ब्रिटिश सरकार ने संथालों को किस क्षेत्र में बसने की अनुमति प्रदान की थी?
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार ने संथालों को राजमहल की तलहटी में बसने की अनुमति प्रदान की थी।

प्रश्न 61.
जमीन के किस क्षेत्र को संथालों की भूमि घोषित किया गया?
उत्तर:
‘दामिन-इ-कोह’ को संथालों की भूमि घोषित किया गया।

प्रश्न 62.
पहाड़िया लोगों का क्या व्यवसाय था ?
उत्तर:
पहाड़िया लोग झूम खेती करते थे।

प्रश्न 63.
संथाल लोग कौनसी फसलें उगाते थे?
उत्तर:
संथाल लोग चावल, कपास, सरसों, तम्बाकू आदि की फसलें उगाते थे।

प्रश्न 64.
1875 में रैयत द्वारा साहूकारों के विरुद्ध विद्रोह करने के दो कारणों का उल्लेख कीजिये ।
उत्तर:
(1) ऋणदाता वर्ग अत्यन्त संवेदनहीन हो गया था।
(2) ऋणदाता ऋण चुकाए जाने के बाद रैयत को उसकी रसीद नहीं देते थे।

प्रश्न 65.
ऋणदाता लोग गांवों में प्रचलित मानकों और रूढ़ि-रिवाजों का किस प्रकार उल्लंघन कर रहे थे ?
उत्तर:
ऋणदाता लोग रैयत से मूलधन से भी अधिक ब्याज वसूल कर रहे थे।

प्रश्न 66.
साहूकार रैयत को ऋण देने से क्यों इन्कार कर रहे थे? दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) भारतीय कपास की मांग घटती जा रही थी
(2) कपास की कीमतों में गिरावट आ रही थी।

प्रश्न 67.
पहाड़िया और संधाल लोग किन उपकरणों से खेती करते थे?
उत्तर:
पहाड़िया लोग कुदाल से तथा संथाल लोग हल से खेती करते थे।

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प्रश्न 68.
संथाल लोगों का बंगाल में कब आगमन हुआ?
उत्तर:
संथाल लोगों का 1780 के दशक में बंगाल में आगमन हुआ।

प्रश्न 69.
संथाल लोग अंग्रेजों को आदर्श निवासी क्यों लगे ?
उत्तर:
क्योंकि उन्हें जंगलों का सफाया करने तथा भूमि को पूरी शक्ति के साथ जोतने में कोई संकोच नहीं था।

प्रश्न 70.
रैयत ऋणदाताओं को कुटिल तथा धोखेबाज क्यों समझते थे?
उत्तर:
(1) ऋणदाता खातों में धोखाधड़ी करते थे।
(2) वे कानून को घुमाकर अपने पक्ष में कर लेते थे।

प्रश्न 71.
रैयत द्वारा साहूकारों के विरुद्ध अंग्रेजों को दिए गए प्रार्थना-पत्र में उल्लिखित दो शिकायतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) रैयत द्वारा कड़ी शर्तों पर बंधपत्र लिखना
(2) साहूकारों द्वारा रैयत की उपज ले जाना और बदले में रसीद न देना।

प्रश्न 72.
पहाड़ी लोग कौन थे?
उत्तर:
राजमहल की पहाड़ियों के आस-पास रहने वाले लोग पहाड़ी कहलाते थे। वे जंगल की उपन से अपना जीवन निर्वाह करते थे।

प्रश्न 73.
प्राय: ‘राजा’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया जाता था?
उत्तर:
शक्तिशाली जमींदारों के लिए।

प्रश्न 74.
रैयत व शिकमी रैयत में क्या सम्बन्ध था?
उत्तर:
रैयत जमींदारों के लिए जमीन जोतते थे एवं कुछ जमीन अन्य रैयतों को लगाने पर दे देते थे जिन्हें शिकमी रैयत कहा जाता था।

प्रश्न 75.
अमेरिका में गृहयुद्ध के समय ब्रिटेन को भारत से कपास का कितना निर्यात होता था?
उत्तर:
90 प्रतिशत।

प्रश्न 76.
ताल्लुकदार का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर:
ताल्लुकदार का शाब्दिक अर्थ है वह व्यक्ति जिसके साथ ताल्लुक यानी सम्बन्ध हो। आगे चलकर ताल्लुक का अर्थ क्षेत्रीय इकाई हो गया।

प्रश्न 77.
‘पाँचवीं रिपोर्ट’ किसके द्वारा तैयार की गई थी?
उत्तर:
प्रवर समिति।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“संथालों और पहाड़ियों के बीच लड़ाई हल और कुदाल के बीच लड़ाई थी।” सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
पहाड़िया लोग झूम खेती करते थे और अपनी कुदाल से जमीन खुरच कर दालें तथा ज्वार बाजरा उगाते थे। दूसरी ओर संथाल लोग जंगलों को साफ करके हलों से जमीन जोतते थे तथा चावल, कपास आदि की खेती करते थे। इससे पहाड़िया लोगों को राजमहल की पहाड़ियों में पीछे हटना पड़ा। एक ओर कुदाल पहाड़िया लोगों के जीवन का प्रतीक था, तो दूसरी ओर हल संथालों के जीवन का प्रतीक था और दोनों के बीच लड़ाई हल और कुदाल के बीच लड़ाई थी।

प्रश्न 2.
‘इस्तमरारी बन्दोबस्त’ क्या था?
अथवा
स्थायी बन्दोबस्त से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
1793 ई. में बंगाल के गवर्नर जनरल ने बंगाल में ‘इस्तमरारी बन्दोबस्त’ लागू किया। इस बन्दोवस्त के अन्तर्गत ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने राजस्व की राशि निश्चित कर दी थी जो प्रत्येक जमींदार को चुकानी पड़ती थी। जो जमींदार अपनी निश्चित राशि नहीं चुका पाते थे, उनसे राजस्व वसूल करने के लिए उनकी जमींदारियां नीलाम कर दी जाती थीं। यह बन्दोबस्त ईस्ट इण्डिया कम्पनी तथा जमींदारों के बीच हुआ था।

प्रश्न 3.
फ्रांसिस बुकानन के बारे में आप क्या जानते हँ?
उत्तर:
फ्रांसिस बुकानन एक चिकित्सक था जो बंगाल चिकित्सा सेवा में 1794 से 1815 तक कार्यरत रहा। कुछ समय के लिए वह लार्ड वेलेजली का शल्य चिकित्सक (सर्जन) भी रहा। कलकता में उसने एक चिड़ियाघर की ‘स्थापना की जो कलकत्ता अलीपुर चिड़ियाघर के नाम से मशहूर हुआ। बंगाल सरकार के अनुरोध पर उसने ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अधिकार क्षेत्र में आने वाली भूमि का विस्तृत सर्वेक्षण कर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।

प्रश्न 4.
भागलपुर के कलेक्टर ऑगस्टस क्लीवलैण्ड ने पहाड़िया लोगों से शान्ति स्थापना हेतु कौनसी नीति अपनाई?
उत्तर:
भागलपुर के कलेक्टर ऑगस्टस क्लीवलैण्ड ने शान्ति स्थापना हेतु पहाड़िया मुखियाओं के साथ एक समझौता किया, जिसमें मुखियाओं को एक वार्षिक भत्ता दिया जाना था तथा बदले में मुखियाओं को अपने लोगों के चाल-चलन को ठीक रखने की जिम्मेदारी लेनी थी। उनसे यह भी आशा की गई थी कि वे अपनी बस्तियों में व्यवस्था बनाए रखेंगे और अपने लोगों को अनुशासन में रखेंगे। परन्तु बहुत से मुखियाओं ने भत्ता लेने से मना दिया।

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प्रश्न 5.
बुकानन द्वारा वर्णित गंजुरिया पहाड़ की यात्रा का विवरण प्रस्तुत कीजिये।
उत्तर:
बुकानन के अनुसार गंजुरिया में अभी जुताई की गई है जिससे पता चलता है कि इसे कितने शानदार इलाके में बदला जा सकता है इसकी सुन्दरता और समृद्धि विश्व के किसी भी क्षेत्र जैसी विकसित की जा सकती है। यहाँ की जमीन अलबत्ता चट्टानी है लेकिन बहुत ही ज्यादा बढ़िया है। उसने उतनी बढ़िया सरसों और तम्बाकू कहीं नहीं देखी। संथालों ने वहाँ कृषि क्षेत्र की सीमा काफी बढ़ा ली थी, वे यहाँ 1800 के आसपास आये थे।

प्रश्न 6.
संथालों के बारे में बुकानन के विचारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बुकानन ने संथालों के क्षेत्र में भ्रमण किया और उनके बारे में ये विचार व्यक्त किये कि ” नयी जमीनें साफ करने में वे बहुत होशियार होते हैं, लेकिन नीचता से रहते हैं। उनकी झोंपड़ियों में कोई बाड़ नहीं होती और दीवारें सीधी खड़ी की गई छोटी-छोटी लकड़ियों की बनी होती हैं जिन पर भीतर की ओर लेप ( पलस्तर) लगा होता है। झोंपड़ियाँ छोटी और मैली-कुचैली होती हैं, उनकी छत सपाट होती है, उनमें उभार बहुत कम होता है।”

प्रश्न 7.
कड़वा के पास की चट्टानों के बारे में बुकानन ने क्या लिखा?
उत्तर:
कडुया के पास की चट्टानों के बारे में बुकानन ने लिखा कि, “लगभग एक मील चलने के बाद मैं एक शिलाफलक पर आ गया, जिसका कोई यह एक छोटा दानेदार ग्रेनाइट है जिसमें लाल-लाल फेल्डस्पार, क्वार्ट्ज और काला अबरक लगा है …… । वहाँ से आधा मील से अधिक की दूरी पर मैं एक अन्य चट्टान पर आया वह भी स्तरहीन थी और उसमें बारीक दानों वाला ग्रेनाइट था जिसमें पीला सा फेल्डस्पार, सफेद-सा क्वार्ट्ज और काला अबरक था।”

प्रश्न 8.
जमींदार को किसानों से राजस्व एकत्रित करने में किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ता था?
उत्तर:
जमींदार को किसानों से राजस्व एकत्रित करने में निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता था –
(1) कभी-कभी खराब फसल होने पर किसानों के लिए राजस्व का भुगतान करना कठिन हो जाता था।
(2) उपज की नीची कीमतों के कारण भी किसानों के लिए राजस्व का भुगतान करना कठिन हो जाता था।
(3) कभी-कभी किसान जानबूझकर स्वयं भी भुगतान में देरी कर देते थे।

प्रश्न 9.
एक राजस्व सम्पदा क्या थी? सूर्यास्त विधि क्या थी?
उत्तर:
ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में एक जमींदार के नीचे अनेक गाँव होते थे। ईस्ट इंडिया कम्पनी के अनुसार एक जमींदारी के भीतर आने वाले गाँव मिलकर एक राजस्व सम्पदा का रूप ले लेते थे। जमींदारों को ईस्ट इण्डिया कम्पनी को एक निश्चित तारीख को सूर्यास्त तक राजस्व जमा कराना अनिवार्य था। राजस्व जमा न होने की दशा में उसकी जमींदारी नीलाम की जा सकती थी। इसे ही सूर्यास्त विधि कहा जाता था।

प्रश्न 10.
1832 के दशक में किसानों को ऋण क्यों लेने पड़े?
उत्तर:
1832 के दशक के पश्चात् कृषि उत्पादों में तेजी से गिरावट आयी जिससे किसानों की आय में और भी तेजी से गिरावट आ गयी। इसके अतिरिक्त 1832-34 के वर्षों में ग्रामीण क्षेत्र अकाल की चपेट में आ गये जिससे जन-धन की भारी हानि हुई किसानों के पास इस संकट का सामना करने के लिए खाद्यान्न नहीं था। राजस्व की बकाया राशियाँ बढ़ती गयीं परिणामस्वरूप किसानों को ऋण लेने पड़े।

प्रश्न 11.
वनों की कटाई और स्थायी कृषि के बारे बुकानन के विचार लिखिए।
उत्तर:
राजमहल की पहाड़ियों के एक गाँव से गुजरते हुए बुकानन ने लिखा, “इस प्रदेश का दृश्य बहुत बढ़िया है। यहाँ खेती विशेष रूप से, घुमावदार संकरी घाटियों में धान की फसल, बिखरे हुए पेड़ों के साथ साफ की गई जमीन और चट्टानी पहाड़ियाँ सभी अपने आप में पूर्ण हैं, कमी है तो बस इस क्षेत्र में प्रगति की और विस्तृत तथा उन्नत खेती की, जिनके लिए यह प्रदेश अत्यन्त संवेदनशील है। यहाँ टसर और लाख के लिए बागान लगाए जा सकते हैं।”

प्रश्न 12.
16 मई, 1875 को पूना के जिला मजिस्ट्रेट ने अपने पत्र में आयुक्त को क्या लिखित सूचना दी?
उत्तर:
16 मई, 1875 को पूना के जिला मजिस्ट्रेट ने पुलिस आयुक्त को लिखा कि, “शनिवार 15 मई को सूपा आने पर मुझे इस उपद्रव का पता चला। एक साहूकार का घर पूरी तरह जला दिया गया लगभग एक दर्जन मकानों को तोड़ दिया गया और उनमें घुसकर वहाँ के सारे सामान को आग लगा दी गई। खाते पत्र बाँड, अनाज, देहाती कपड़ा सड़कों पर लाकर जला दिया गया, जहाँ राख के ढेर अब भी देखे जा सकते हैं।”

प्रश्न 13.
भाड़ा-पत्र क्या था ?
उत्तर:
जब किसान ऋणदाता का कर्ज चुकाने में असमर्थ हो जाता था तो उसके पास अपना सर्वस्व जमीन, गाड़ियाँ, पशुधन देने के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं था; लेकिन जीवनयापन हेतु खेती करना जरूरी था इसलिए उसने ऋणदाता से जमीन, पशु या गाड़ी फिर किराये पर ले ली; इसके लिए उसे एक भाड़ा पत्र ( किरायानामा) लिखना पड़ता था, जिसमें साफ तौर पर यह लिखा होता था कि ये पशु और गाड़ियाँ उसकी अपनी नहीं हैं।

प्रश्न 14.
इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए राजकीय प्रतिवेदनों के प्रयोग में क्या-क्या सावधानियाँ बरतनी न चाहिए?
उत्तर:
राजकीय प्रतिवेदन सरकार की दृष्टि से तैयार किये जाते हैं जो पूरी तरह विश्वसनीय नहीं होते हैं अतः इन्हें सावधानीपूर्वक पढ़ा जाना चाहिए। इनका प्रयोग करने में से पहले समाचार पत्रों, गैर-राजकीय वृत्तान्तों, वैधानिक र अभिलेखों एवं मौखिक स्रोतों से संकलित साक्ष्य के साथ उनका मिलान करके उनकी विश्वसनीयता का सत्यापन करना आवश्यक है।

प्रश्न 15.
बर्दवान के राजा की सम्पदा क्यों नीलाम की गई?
उत्तर:
1797 में बर्दवान के राजा की कई सम्पदाएँ नीलाम की गई। बर्दवान के राजा पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी के राजस्व की बड़ी रकम बकाया हो गई थी इसलिए उसकी सम्पदा नीलाम की गई खरीददारों में जिसने सबसे ऊँची बोली लगाई, उसको जमींदारी बेच दी गई। लेकिन यह खरीददारी फर्जी थी क्योंकि बोली लगाने वालों में 95% लोग राजा के एजेन्ट ही थे वैसे जमींदारी खुले तौर पर बेच दी गई थी लेकिन उन जमींदारियों का नियन्त्रण राजा के हाथ में ही रहा।

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प्रश्न 16.
सरकारी राजस्व जमा करने में जमींदारों के समक्ष कौन-कौनसी समस्याएँ आ रही थीं?
उत्तर:
1. राजस्व की माँग बहुत ऊँची थी।
2. यह ऊँची माँग 1790 के दशक में लागू की गई थी जब कृषि की उपज की कीमतें बहुत नीची थीं जिससे किसानों के लिए लगान चुकाना मुश्किल था।
3. राजस्व असमान था। फसल चाहे अच्छी हो या खराब, राजस्व का सही समय पर भुगतान करना जरूरी था।
4. यदि राजस्व निश्चित तिथि की शाम तक जमा नहीं हो पाता था तो जमींदारी नीलाम की जा सकती थी।

प्रश्न 17.
जमींदारों पर नियन्त्रण रखने के लिए कम्पनी सरकार ने क्या नीति अपनाई थी?
उत्तर:
1. जमींदारों की सैनिक टुकड़ियों को भंग कर दिया गया।
2. सीमा शुल्क समाप्त कर दिया गया और उनकी कचहरियों को कम्पनी द्वारा नियुक्त कलेक्टर की देखरेख में रख दिया गया।
3. जमींदारों से स्थानीय न्याय और स्थानीय पुलिस की व्यवस्था करने की शक्ति छीन ली गई।
4. जमींदार के अधिकार को पूरी तरह सीमित एवं प्रतिबंधित कर दिया गया। कलेक्टर के कार्यालय की शक्ति बढ़ गई।

प्रश्न 18.
जमींदार अपनी जमींदारी में राजस्व कैसे वसूल करता था?
उत्तर:
एक जमींदार की जमींदारी में अनेक गाँव होते थे। कम्पनी सारे गाँवों को मिलाकर उसे एक सम्पदा मानकर उस पर राजस्व की माँग लागू करती थी। उसके बाद जमींदार यह निर्धारित करता था कि उसे किन-किन गाँवों से कितना-कितना राजस्व वसूल करना है। राजस्व वसूल करने के लिए उसने अमला नामक एक अधिकारी नियुक्त कर रखा था। फिर जमींदार निर्धारित राजस्व को कम्पनी सरकार के खजाने में जमा करवाता था।

प्रश्न 19.
गाँवों से राजस्व वसूलने में जमींदार को क्या-क्या कठिनाइयाँ आती थीं?
उत्तर:
1. किसानों की आमदनी कम होने के कारण लगान वसूलने में कठिनाई आती थी।
2. फसल खराब होने पर राजस्व वसूली में परेशानी आती थी।
3. फसल की कीमतें नीची थीं।
4. किसान जान-बूझकर भी लगान जमा कराने में देरी करते थे।
5. जमींदार बाकीदारों पर मुकदमा तो चला सकता था, मगर न्यायिक प्रक्रिया लम्बी होने से उसे उस मुकदमे से राजस्व वसूली में कोई लाभ नहीं मिल पाता था।

प्रश्न 20.
बुकानन के अनुसार दिनाजपुर के जोतदार किस प्रकार जमींदारों का प्रतिरोध करते थे?
उत्तर:
बुकानन के अनुसार जोतदार बड़ी-बड़ी जमीनों को जोतते थे। वे बहुत हठीले और जिद्दी थे वे राजस्व के रूप में थोड़ी सी राशि देते थे और हर किस्त में कुछ-न- कुछ बकाया रकम रह जाती थी। जमींदारों द्वारा उन्हें कचहरी में बुलाये जाने पर वे उनकी शिकायत करने के लिए फौजदारी धाना या मुन्सिफ की कचहरी में पहुँच जाते थे और अपने अपमानित किये जाने की शिकायत करते थे वे रैयत को जमींदारों को राजस्व न देने के लिए भड़काते रहते थे।

प्रश्न 21.
पाँचवीं रिपोर्ट क्या थी? इसमें किसके बारे में बताया गया था?
उत्तर:
सन् 1813 में ब्रिटिश संसद में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की गई, जिनमें से एक रिपोर्ट पाँचवीं रिपोर्ट कहलाती थी। इस रिपोर्ट में भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रशासन और क्रियाकलापों का वर्णन था। इस रिपोर्ट में जमींदारों और रैयतों (किसानों) की अर्जियाँ तथा अलग-अलग जिलों के कलेक्टरों की रिपोर्ट, राजस्व विवरणियों से सम्बन्धित सांख्यिकीय तालिकाएँ और अधिकारियों द्वारा बंगाल तथा मद्रास (वर्तमान चेन्नई) के राजस्व तथा न्यायिक प्रशासन पर लिखी हुई टिप्पणियाँ शामिल थीं।

प्रश्न 22.
जमींदारों की भू-सम्पदाओं की नीलामी व्यवस्था के दोषों को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
जमींदारों की भू-सम्पदाओं की नीलामी व्यवस्था के निम्न दोष थे –
(1) भू-सम्पदाओं की नीलामी में अनेक खरीददार होते थे और ऊंची बोली लगाने वाले को बेच दी जाती थी नीलामी में अधिकतर बिक्री फर्जी होती थी।
(2) भू-सम्पदाओं की नीलामी में अधिकांश खरीददार जमींदारों के ही नौकर या एजेंट होते थे जो जमींदार की ओर से नीलामी में भाग लेते थे। इस प्रकार जमींदारी की जमीनें खुले तौर पर बेच दी जाती थीं पर उनकी जमींदारी का नियन्त्रण उन्हीं के हाथों में रहता था।

प्रश्न 23.
औपनिवेशिक बंगाल में जमींदार अपने क्षेत्र से राजस्व वसूली किस प्रकार करते थे?
उत्तर:
औपनिवेशिक बंगाल में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने राजस्व वसूली हेतु जमींदारों को क्षेत्र दे रखे थे। एक जमींदार की जमींदारी में अनेक गाँव होते थे जिनकी संख्या 400 तक होती थी ईस्ट इण्डिया कम्पनी एक जमींदारी के समस्त गाँवों को मिलाकर उसे एक सम्पदा मानकर उस पर राजस्व की माँग लागू करती थी राजस्व वसूल करने के लिए जमींदार एक अधिकारी नियुक्त करते थे। यही अधिकारी प्रत्येक गाँव से राजस्व वसूल करके जमींदार को देते थे तत्पश्चात् जमींदार एकत्रित राशि को कम्पनी सरकार के आदेशानुसार उसके खजाने में जमा करवाता था।

प्रश्न 24.
ब्रिटेन के उद्योगपतियों ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार का विरोध क्यों किया?
उत्तर:
(1) ब्रिटेन में ऐसे अन्य व्यापारिक समूह थे, जो भारत तथा चीन के साथ ईस्ट इण्डिया कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार का विरोध करते थे। ये समूह चाहते थे कि जिस शाही फरमान द्वारा कम्पनी को यह एकाधिकार मिला था, उसे रद्द किया जाये ब्रिटेन के उद्योगपति व निजी व्यापारी भी भारत से व्यापार करना चाहते थे।

(2) कई राजनीतिक समूहों का भी यह कहना था कि बंगाल पर मिली विजय का लाभ केवल ईस्ट इण्डिया कम्पनी को ही मिल रहा है, सम्पूर्ण ब्रिटिश राष्ट्र को नहीं।

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प्रश्न 25.
भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन को नियंत्रित करने के लिए ब्रिटिश संसद द्वारा क्या कार्यवाही की गई?
उत्तर:
(1) कम्पनी शासन को विनियमित और नियंत्रित करने के लिए अठारहवीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में अनेक अधिनियम पारित किये गये।
(2) कम्पनी को बाध्य किया गया कि वह भारत प्रशासन के विषय में नियमित रूप से अपनी रिपोर्ट भेजा करे।
(3) कम्पनी के कामकाज की जाँच करने के लिए कई समितियाँ नियुक्त की गयीं। एक प्रवर समिति द्वारा पाँचवीं रिपोर्ट तैयार की गई।

प्रश्न 26.
पहाड़ी लोगों को पहाड़िया क्यों कहा जाता था? इनके जीवन पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
अथवा
पहाड़िया लोगों के जीवन की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
पहाड़ी लोग पश्चिमी बंगाल में राजमहल की पहाड़ियों एवं उसके आसपास के क्षेत्र में निवास करते थे, इसलिए इन्हें पहाड़िया कहा जाता था। इनकी आजीविका जंगल की उपज पर आधारित थी। ये जंगलों से महुआ के फूल, रेशम के कोये तथा राल और काठकोयले के लिए लकड़ी प्राप्त करते थे। वे जंगलों में झाड़ियों व घास- फूस को आग लगाकर जमीन साफ कर ‘झूम’ खेती करते थे तथा कुदाल से जमीन खुरचकर दालें तथा ज्वार- बाजरा उगाते थे।

प्रश्न 27.
कार्नवालिस ने इस्तमरारी बन्दोबस्त व्यवस्था क्यों लागू की?
उत्तर:
बंगाल के गवर्नर चार्ल्स कॉर्नवालिस ने इस्तमरारी बन्दोबस्त व्यवस्था 1793 ई. में लागू की थी। उस समय बंगाल की कृषि की स्थिति अच्छी नहीं थी सरकार को प्रतिवर्ष भूमि के ठेके देने पड़ते थे अतः कार्नवालिस ने दीर्घ अध्ययन के उपरान्त बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में इस्तमरारी बन्दोबस्त व्यवस्था लागू कर दी। इस व्यवस्था के अनुसार ठेकेदार ही भूमि के स्वामी होते थे तथा वे कम्पनी को निश्चित कर देते थे। इससे कम्पनी की आय निश्चित हो गयी।

प्रश्न 28.
कार्नवालिस की इस्तमरारी बंदोबस्त व्यवस्था के सकारात्मक परिणाम बताइए।
उत्तर:
कार्नवालिस की इस्तमरारी बंदोबस्त व्यवस्था के सकारात्मक परिणाम निम्नलिखित थे –
(1) कम्पनी की आय निश्चित बनाने में आसानी हुई।
(2) जमींदार ही स्थायी रूप से भूमि का स्वामी मान लिया गया अतः उसने अपनी भूमि उपजाऊ बनाने का प्रयास किया।
(3) कम्पनी के कर्मचारियों की संख्या सीमित हो गयी तथा राजस्व वसूलने के लिए अधिक धन तथा बल की आवश्यकता नहीं रही।
(4) इस्तमरारी बन्दोबस्त का सबसे बड़ा लाभ बंगाल के जमींदारों को हुआ। अब उन्हें सरकार को किसी प्रकार को भेंट नहीं देनी पड़ती थी।

प्रश्न 29.
कार्नवालिस की इस्तमरारी व्यवस्था के नकारात्मक परिणाम बताइए।
उत्तर:
कार्नवालिस की इस्तमरारी व्यवस्था के नकारात्मक परिणाम अग्रलिखित हैं –
(1) आरम्भ में अनेक जमींदार किसानों से लगान नहीं वसूल सके, जिसके परिणामस्वरूप उनकी जमींदारी बिक गयी।
(2) भूमि की माप तथा भू-राजस्व का निर्धारण सही ढंग से नहीं हो पाया था।
(3) आशाओं के विपरीत जमींदारों ने अपनी जमीन के सुधार पर कोई ध्यान नहीं दिया।

प्रश्न 30.
‘झूम’ खेती से आप क्या समझते हैं तथा यह किसके द्वारा की जाती थी?
उत्तर:
‘झूम’ खेती पहाड़िया लोगों द्वारा की जाती थी। ये लोग जंगल की झाड़ियाँ काटकर और घास-फूस में आग लगाकर जमीन साफ करके खेती करते थे। ये लोग कुदाल से जमीन को थोड़ा खुरचकर अपने खाने के लिए विभिन्न प्रकार की दालें तथा ज्वार, बाजरा उत्पन्न कर लेते थे। कुछ वर्षों तक उस साफ की गई जमीन पर खेती करते थे और फिर कुछ वर्षों के लिए उसे परती छोड़कर नये इलाके में चले जाते थे।

प्रश्न 31.
पहाड़िया लोगों द्वारा मैदानों में बसे हुए किसानों पर आक्रमण क्यों किये जाते थे?
उत्तर:
(1) पहाड़िया लोगों द्वारा ये आक्रमण अधिकतर अपने आप को अभाव या अकाल के वर्षों में जीवित रखने के लिए किये जाते थे।
(2) पहाड़िया लोग इन आक्रमणों के माध्यम से मैदानों में बसे हुए लोगों के सामने अपनी सत्ता का प्रदर्शन करना चाहते थे।
(3) ऐसे आक्रमण बाहरी लोगों के साथ अपने राजनीतिक सम्बन्ध बनाने के लिए भी किये जाते थे, मैदानों में रहने वाले जमींदारों को पहाड़ी मुखियाओं को नियमित रूप से खिराज देना पड़ता था।

प्रश्न 32.
ब्रिटिश सरकार पहाड़िया लोगों का दमन क्यों कर देना चाहती थी?
उत्तर:
(1) अंग्रेजों ने जंगलों की कटाई-सफाई के काम को प्रोत्साहन दिया और जमींदारों तथा जोतदारों ने परती भूमि को धान के खेतों में बदल दिया।
(2) अंग्रेजों ने स्थायी कृषि के विस्तार पर बल दिया क्योंकि उससे राजस्व के स्रोतों में वृद्धि हो सकती थी तथा नियत के लिए फसल पैदा हो सकती थी ।
(3) अंग्रेज जंगलों को उजाड़ मानते थे तथा पहाड़िया लोगों को असभ्य, बर्बर तथा उपद्रवी मानते थे।

प्रश्न 33.
बम्बई दक्कन में राजस्व की नई प्रणाली क्यों लागू की गई ?
उत्तर:
(1) 1810 के बाद उपज की कीमतों में वृद्धि होने से बंगाल के जमींदारों की आमदनी में बढ़ोतरी हुई, लेकिन कम्पनी की आमदनी में वृद्धि नहीं हुई, क्योंकि इस्तमरारी बन्दोबस्त के अनुसार कम्पनी बढ़ी हुई आमदनी में अपना दावा नहीं कर सकती थी।

(2) अपने वित्तीय साधनों में बढ़ोतरी की इच्छा से कम्पनी ने भू-राजस्व को अधिक से अधिक बढ़ाने के तरीकों पर विचार किया, इसलिए उन्नीसवीं शताब्दी में कम्पनी शासन में शामिल किये गये प्रदेशों में नए राजस्व बन्दोबस्त किए गए।

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प्रश्न 34.
“रैयतवाड़ी बन्दोबस्त’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
रैयतवाड़ी बन्दोबस्त से आप क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
बम्बई दक्कन में 1820 के दशक में एक नई राजस्व प्रणाली लागू की गई, जिसे ‘रैयतवाड़ी बन्दोबस्त’ कहते हैं। इस प्रणाली के अन्तर्गत राजस्व की राशि सीधे रैयत (किसान) के साथ तय की जाती थी। भिन्न-भिन्न प्रकार की भूमि से होने वाली औसत आय का अनुमान लगा लिया जाता था और सरकार के हिस्से के रूप उसका एक अनुपात निर्धारित कर दिया जाता था। हर तीस वर्ष के बाद जमीनों का फिर से सर्वेक्षण किया जाता था और राजस्व की दर तदनुसार बढ़ा दी जाती थी।

प्रश्न 35.
ईस्ट इण्डिया कम्पनी को अपनी नई राजस्व नीति से क्या अपेक्षाएँ थीं?
उत्तर:
ईस्ट इण्डिया कम्पनी को अपनी राजस्व नीति से निम्न अपेक्षाएँ थीं –
(1) कम्पनी को यह आशा थी कि इस नीति से उन समस्याओं का समाधान हो जाएगा जो बंगाल की विजय के समय से ही उनके समक्ष उपस्थित हो रही थीं।
(2) अधिकारियों को यह अपेक्षा थी कि इससे छोटे किसानों एवं धनी भू-स्वामियों का एक ऐसा वर्ग उत्पन्न हो जाएगा जिनके पास कृषि में सुधार करने के लिए पूँजी तथा उद्यम दोनों होंगे।
(3) कम्पनी को यह आशा थी कि ब्रिटिश शासन से पालन-पोषण एवं प्रोत्साहन प्राप्त कर यह वर्ग कम्पनी के प्रति स्वामि भक्त बना रहेगा।

प्रश्न 36.
ईस्ट इण्डिया कम्पनी के काल में जमींदारों की असफलता के कारण लिखिए।
उत्तर:
ईस्ट इण्डिया कम्पनी के काल में जमींदारों की असफलता के निम्नलिखित कारण हैं-
राजस्व की प्रारम्भिक माँगें बहुत ऊँची थी, ऐसा इसलिए किया गया कि आगे कृषि की कीमतों में वृद्धि होने पर राजस्व नहीं बढ़ाया जा सकता। इस हानि को पूरा करने के लिए ऊंची दरें रखी गयी इसका यह कारण बताया गया कि जैसे ही कृषि का उत्पादन बढ़ेगा वैसे ही जमींदारों का बोझ कम हो जाएगा। राजस्व असमान था फसल अच्छी हो या खराब राजस्व का भुगतान सही समय पर करना जरूरी था इस्तमरारी बन्दोबस्त ने प्रारम्भ में जमींदारों की शक्ति को रैयत से राजस्व इकट्ठा करने और अपनी जमींदारी का प्रबन्धन करने तक ही सीमित कर दिया था।

प्रश्न 37.
बम्बई दक्कन में 1820 के दशक में लागू किए गए रैयतवाड़ी बन्दोबस्त के किसानों पर क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर:
(1) रैयतवाड़ी बन्दोबस्त के अन्तर्गत माँगा गया राजस्य बहुत अधिक था। परिणामस्वरूप बहुत से स्थानों पर किसान अपने गाँव छोड़ कर नए क्षेत्रों में चले गए।
(2) राजस्व अधिकारी किसानों से कठोरतापूर्वक राजस्व वसूल करते थे। राजस्व न देने वाले किसानों की फसलें जब्त कर ली जाती थीं और सम्पूर्ण गाँव पर जुर्माना किया जाता था।
(3) 1832-34 के वर्षों में देहाती इलाके अकाल की चपेट में आ गए जिसके परिणामस्वरूप दक्कन में आधी मानव जनसंख्या और एक-तिहाई पशुधन मौत के मुँह में
चला गया।

प्रश्न 38.
1820 के दशक में लागू किये गये राजस्व के बारे में 1840 के दशक में ब्रिटिश अधिकारियों ने क्या अनुभव किया? लिखिए।
उत्तर:
1840 के दशक में ब्रिटिश अधिकारियों ने 1820 में लागू किये गये राजस्व के बारे में यह अनुभव किया कि –
(1) सभी जगह किसान कर्ज के बोझ से दबे हैं।
(2) 1820 के दशक में लागू किए गए राजस्व सम्बन्धी बन्दोबस्त कठोरतापूर्ण थे।
(3) राजस्व की माँग बहुत ज्यादा थी
(4) राजस्व संकलन की व्यवस्था कठोर एवं लचकहीन थी
(5) इसके बाद उन्होंने राजस्व सम्बन्धी माँग कुछ हल्की की जिससे कृषि को प्रोत्साहन मिल सके।

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प्रश्न 39.
ब्रिटेन के सूती वस्त्र निर्माता कपास की आपूर्ति हेतु वैकल्पिक स्रोत क्यों और कैसे खोज रहे थे?
उत्तर:
1860 के दशक से पूर्व ब्रिटेन में कच्चे माल के रूप में आयात की जाने वाली समस्त कपास का तीन- चौथाई भाग अमेरिका से आता था। अमेरिकी कपास पर निर्भरता के कारण ब्रिटेन के वस्त्र निर्माता अधिक परेशान थे। वे सोचते थे कि यदि कभी यह स्रोत बन्द हो गया तो हमें कपास कहाँ से मिलेगी ? अतः वे कपास के अन्य स्रोतों की खोज में जुटे। 1857 में ब्रिटेन में कपास आपूर्ति संघ की स्थापना की गई तथा 1859 में मैनचेस्टर कॉटन कम्पनी की स्थापना की गई।

प्रश्न 40.
1865 में अमेरिकी गृह युद्ध की समाप्ति का महाराष्ट्र के निर्यात व्यापारियों तथा साहूकारों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
1865 में अमेरिकी गृहयुद्ध समाप्त होने पर वहाँ कपास का उत्पादन पुनः होने से भारतीय कपास की माँग घटने लगी। इस पर महाराष्ट्र के निर्यातकों और साहूकारों ने दीर्घावधि ऋण देने से किसानों को मना कर दिया। उन्होंने यह देख लिया था कि भारतीय कपास की मांग पटती जा रही है तथा कपास की कीमतों में भी गिरावट आ रही है। अब उन्हें यह अनुभव होने लगा था कि अब किसानों में उनका ऋण चुकाने की क्षमता नहीं रही है।

प्रश्न 41.
ब्रिटेन के सूती वस्त्र निर्माता भारत से कपास का आयात क्यों करना चाहते थे?
उत्तर:
ब्रिटेन के सूती वस्त्र निर्माताओं ने भारत को एक ऐसा देश समझा जो अमेरिकी कपास के आयात का स्थान ले सकता था और अमेरिका कपास की आपूर्ति बन्द – होने पर लंकाशायर की कपास की माँग पूरी कर सकता था भारत की भूमि तथा जलवायु दोनों ही कपास की खेती के लिए अनुकूल थीं तथा यहाँ सस्तां श्रम भी उपलब्ध था। 1861 में जब अमेरिका से आने वाली कपास के आयात में भारी गिरावट आ गई, तो भारत से कपास का आयात करने का निश्चय किया गया।

प्रश्न 42.
संथालों को ‘अगुआ बाशिंदे’ किसलिए कहा गया?
उत्तर:
सन् 1800 के लगभग संथाल राजमहल की पहाड़ियों के निचले हिस्से में जंगलों को साफ कर स्थायी नी रूप से बस गये। एक ओर पहाड़िया लोग जंगल काटने के लिए हल को हाथ लगाने के लिए तैयार नहीं थे और न उपद्रवी व्यवहार कर रहे थे, दूसरी ओर संथाल अंग्रेजों को न्छ अगुआ बाशिन्दे प्रतीत हुए क्योंकि उन्हें जंगलों का सफाया करने में कोई संकोच नहीं था और वे भूमि को पूरी शक्ति की लगा कर जोतते थे।

प्रश्न 43.
ब्रिटिश कलाकार विलियम होजेज के ल्ल बारे में आप क्या जानते हो?
उत्तर:
विलियम होजेज एक ब्रिटिश कलाकार था पर जिसने कैप्टन कुक के साथ प्रशान्त महासागर की यात्रा की। न क्लीवलैंड के निमन्त्रण पर होजेज 1782 ई. में उसके साथ या जंगल भू-सम्पदाओं के भ्रमण पर गया था। वहाँ होजेज न्य ने ऐसी तस्वीरें बनाई जो ताम्रपट्टी में अम्ल की सहायता र्ति से चित्र के रूप में कटाई करके छापी जाती हैं जिन्हें एक्वाटिंट के नाम से जाना जाता था उस समय के अनेक चित्रकारों की तरह होजेज ने भी बड़े सुन्दर रमणीय दृश्यों की खोज की थी। वह उस समय के चित्रोपम दृश्यों के खोजी कलाकार स्वच्छंदतावाद की विचारधारा से प्रेरित थे।

प्रश्न 44.
डेविड रिकार्डों के बारे में आप क्या जानते हो? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
डेविड रिकार्डों 1820 के दशक तक इंग्लैण्ड में एक जाने-माने अर्थशास्त्री के रूप में जाने जाते थे। रिकार्डों के मतानुसार, भू-स्वामी को उस समय लागू ‘औसत लगानों को प्राप्त करने का ही हक होना चाहिए। जब भूमि से ‘औसत लगान’ से अधिक प्राप्त होने लगे तो भूस्वामी को अधिशेष आय होगी जिस पर सरकार को कर लगाने की आवश्यकता होगी। यदि कर नहीं लगाया गया तो किसान किरायाजीवी में बदल जायेंगे और उनकी अधिशेष आय का भूमि के सुधार में उत्पादन रीति से निवेश नहीं होगा।

प्रश्न 45.
दक्कन दंगा आयोग की स्थापना क्यों की गई और इसने अपनी रिपोर्ट में किसे दोषी ठहराया?
उत्तर:
जब विद्रोह दक्कन में तेजी से फैला तो भारत सरकार ने 1857 के विद्रोह से सबक लेकर बम्बई की सरकार पर दबाव डाला कि वह दंगों के कारणों की छानबीन करने के लिए एक आयोग बैठाये इस प्रकार दक्कन दंगा आयोग की स्थापना की गई। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बढ़े हुए राजस्व की माँग को दोषी न मानकर सारा दोष ऋणदाताओं और साहूकारों का बताया।

प्रश्न 46.
अपनी जमींदारी को छिनने से बचाने के लिए जमींदारों ने कौन-से तरीके अपनाये?
उत्तर:
(1) जमींदारी का कुछ हिस्सा किसी महिला सम्बन्धी को दे दिया जाता था क्योंकि महिलाओं की सम्पत्ति को छीना नहीं जाता था।
(2) जमींदार की नीलाम की जाने वाली जमीन को जमींदार के एजेन्ट ही खरीद लेते थे।
(3) जमींदार कभी भी राजस्व की पूरी माँग अदा नहीं करता था।
(4) नीलामी में कोई जमीन खरीदने वाले बाहरी व्यक्ति को उस जमीन का कब्जा ही नहीं मिल पाता था अथवा पुराने जमींदार के लठियाल नये खरीददार को मार- पीट कर भगा देते थे।

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प्रश्न 47.
“पहाड़िया लोगों का जीवन घनिष्ठ रूप से जंगलों से जुड़ा हुआ था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिकारियों, झूम खेती करने वालों, खाद्य बटोरने वालों, काठकोयला बनाने वालों तथा रेशम के कीड़े पालने वालों के रूप में पहाड़िया लोगों का जीवन घनिष्ठ रूप से एक्वाटिंट के नाम से जाना जाता था उस समय के अनेक चित्रकारों की तरह होजेज ने भी बड़े सुन्दर रमणीय दृश्यों की खोज की थी। वह उस समय के चित्रोपम दृश्यों के खोजी कलाकार स्वच्छंदतावाद की विचारधारा से प्रेरित थे।

प्रश्न 44.
डेविड रिकार्डों के बारे में आप क्या जानते हो? संक्षेप में बताइए ।
उत्तर:
डेविड रिकार्डों 1820 के दशक तक इंग्लैण्ड में एक जाने-माने अर्थशास्त्री के रूप में जाने जाते थे। रिकार्डों के मतानुसार, भू-स्वामी को उस समय लागू ‘औसत लगानों को प्राप्त करने का ही हक होना चाहिए। जब भूमि से ‘औसत लगान’ से अधिक प्राप्त होने लगे तो भूस्वामी को अधिशेष आय होगी जिस पर सरकार को कर लगाने की आवश्यकता होगी। यदि कर नहीं लगाया गया तो किसान किरायाजीवी में बदल जायेंगे और उनकी अधिशेष आय का भूमि के सुधार में उत्पादन रीति से निवेश नहीं होगा।

प्रश्न 45.
दक्कन दंगा आयोग की स्थापना क्यों की गई और इसने अपनी रिपोर्ट में किसे दोषी ठहराया?
उत्तर:
जब विद्रोह दक्कन में तेजी से फैला तो भारत सरकार ने 1857 के विद्रोह से सबक लेकर बम्बई की सरकार पर दबाव डाला कि वह दंगों के कारणों की छानबीन करने के लिए एक आयोग बैठाये इस प्रकार दक्कन दंगा आयोग की स्थापना की गई। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बढ़े हुए राजस्व की माँग को दोषी न मानकर सारा दोष ऋणदाताओं और साहूकारों का बताया।

प्रश्न 46.
अपनी जमींदारी को छिनने से बचाने के लिए जमींदारों ने कौन-से तरीके अपनाये?
उत्तर:
(1) जमींदारी का कुछ हिस्सा किसी महिला सम्बन्धी को दे दिया जाता था क्योंकि महिलाओं की सम्पत्ति को छीना नहीं जाता था।
(2) जमींदार की नीलाम की जाने वाली जमीन को जमींदार के एजेन्ट ही खरीद लेते थे।
(3) जमींदार कभी भी राजस्व की पूरी माँग अदा नहीं करता था।
(4) नीलामी में कोई जमीन खरीदने वाले बाहरी व्यक्ति को उस जमीन का कब्जा ही नहीं मिल पाता था अथवा पुराने जमींदार के लठियाल नये खरीददार को मार- पीट कर भगा देते थे।

प्रश्न 47.
“पहाड़िया लोगों का जीवन घनिष्ठ रूप से जंगलों से जुड़ा हुआ था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिकारियों, झूम खेती करने वालों, खाद्य बटोरने वालों, काठकोयला बनाने वालों तथा रेशम के कीड़े पालने वालों के रूप में पहाड़िया लोगों का जीवन घनिष्ठ रूप से एक्वाटिंट के नाम से जाना जाता था। उस समय के अनेक चित्रकारों की तरह होजेज ने भी बड़े सुन्दर रमणीय दृश्यों की खोज की थी। वह उस समय के चित्रोपम दृश्यों के खोजी कलाकार स्वच्छंदतावाद की विचारधारा से प्रेरित थे।

प्रश्न 44.
डेविड रिकार्डों के बारे में आप क्या जानते हो? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
डेविड रिकार्डों 1820 के दशक तक इंग्लैण्ड में एक जाने-माने अर्थशास्त्री के रूप में जाने जाते थे। रिकार्डों के मतानुसार, भू-स्वामी को उस समय लागू ‘औसत लगानों’ को प्राप्त करने का ही हक होना चाहिए। जब भूमि से ‘औसत लगान’ से अधिक प्राप्त होने लगे तो भूस्वामी को अधिशेष आय होगी जिस पर सरकार को कर लगाने की आवश्यकता होगी। यदि कर नहीं लगाया गया तो किसान किरायाजीवी में बदल जायेंगे और उनकी अधिशेष आय का भूमि के सुधार में उत्पादन रीति से निवेश नहीं होगा।

प्रश्न 45.
दक्कन दंगा आयोग की स्थापना क्यों की गई और इसने अपनी रिपोर्ट में किसे दोषी ठहराया?
उत्तर:
जब विद्रोह दक्कन में तेजी से फैला तो भारत सरकार ने 1857 के विद्रोह से सबक लेकर बम्बई की सरकार पर दबाव डाला कि वह दंगों के कारणों की छानबीन करने के लिए एक आयोग बैठाये। इस प्रकार दक्कन दंगा आयोग की स्थापना की गई। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बड़े हुए राजस्व की माँग को दोषी न मानकर सारा दोष ऋणदाताओं और साहूकारों का बताया।

प्रश्न 46.
अपनी जमींदारी को छिनने से बचाने के लिए जमींदारों ने कौन-से तरीके अपनाये?
उत्तर:
(1) जमींदारी का कुछ हिस्सा किसी महिला सम्बन्धी को दे दिया जाता था क्योंकि महिलाओं की सम्पत्ति को छीना नहीं जाता था।
(2) जमींदार की नीलाम की जाने वाली जमीन को जमींदार के एजेन्ट ही खरीद लेते थे।
(3) जमींदार कभी भी राजस्व की पूरी माँग अदा नहीं करता था।
(4) नीलामी में कोई जमीन खरीदने वाले बाहरी व्यक्ति को उस जमीन का कब्जा ही नहीं मिल पाता था अथवा पुराने जमींदार के लठियाल नये खरीददार को मार- पीट कर भगा देते थे।

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प्रश्न 47.
” पहाड़िया लोगों का जीवन घनिष्ठ रूप से जंगलों से जुड़ा हुआ था। ” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिकारियों, झूम खेती करने वालों, खाद्य बटोरने वालों, काठकोयला बनाने वालों तथा रेशम के कीड़े पालने वालों के रूप में पहाड़िया लोगों का जीवन घनिष्ठ रूप से जंगलों से जुड़ा हुआ था। वे इमली के पेड़ों के बीच बनी अपनी झोंपड़ियों में रहते थे और आम के पेड़ों की छाँह में आराम करते थे। वे प्रदेश को अपनी निजी भूमि मानते थे और बाहरी लोगों के प्रवेश का प्रतिरोध करते थे।

प्रश्न 48.
पहाड़ियों के प्रति अंग्रेजों का क्या दृष्टिकोण था?
उत्तर:
अंग्रेज पहाड़ियों को असभ्य, बर्बर, उपद्रवी तथा क्रूर समझते थे और उन पर शासन करना एक कठिन कार्य मानते थे इसलिए उन्होंने यह विचार किया कि जंगलों का सफाया करके, वहाँ स्थायी कृषि की स्थापना की जाए तथा जंगली लोगों को पालतू एवं सभ्य बनाया जाए। अत: अंग्रेजों ने पहाड़िया लोगों को खेती का व्यवसाय अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया।

प्रश्न 49.
पहाड़िया लोग संथाल लोगों को अपना शत्रु क्यों मानते थे?
उत्तर:
संथाल लोग राजमहल के जंगलों को नष्ट करते हुए, इमारती लकड़ी को काटते हुए, जमीन जोतते हुए और चावल तथा कपास का उत्पादन करते हुए राजमहल की पहाड़ियों में बड़ी संख्या में बस गए। उन्होंने निचली पहाड़ियों पर अधिकार कर लिया। इससे पहाड़िया लोगों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया और उन्होंने संथालों का प्रतिरोध करना शुरू कर दिया।

प्रश्न 50.
अंग्रेजों ने राजमहल की पहाड़ियों में संथालों को बसाने का निश्चय क्यों किया?
उत्तर:
अंग्रेज संचालों को आदर्श निवासी मानते थे क्योंकि वे जंगलों को नष्ट करने के समर्थक थे तथा जमीन को पूरी शक्ति लगाकर जोतते थे अतः उन्होंने 1832 तक राजमहल के एक काफी बड़े क्षेत्र को ‘दामिन-इ-कोह’ के रूप में सीमांकित कर दिया और इसे संथालों की भूमि घोषित कर दिया। अतः यहाँ संथाल बड़ी संख्या में बस गए और कई प्रकार की वाणिज्यिक खेती करने लगे तथा व्यापारियों साहूकारों के साथ लेन-देन करने लगे।

प्रश्न 51.
संथालों द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने के क्या कारण थे?
उत्तर:
(1) संथालों को यह ज्ञात हो गया कि उन्होंने जिस भूमि पर खेती करना शुरू किया था, वह उनके हाथों से निकलती जा रही थी
(2) संथालों ने जिस जमीन पर खेती शुरू की थी, उस पर सरकार ने भारी कर लगा दिया था
(3) साहूकारों ने बहुत ऊँची दर पर ब्याज लगा दिया था और कर्ज अदा न किए जाने पर संथालों की जमीन पर कब्जा कर लेते थे
(4) जमींदार लोग दामिन क्षेत्र पर अपने नियंत्रण का दावा कर रहे थे।

प्रश्न 52.
बम्बई दक्कन में किसानों के विद्रोह के कारणों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
(1) अम्बई (मुम्बई) में लागू की गई रैयतवाड़ी प्रणाली के अन्तर्गत किसानों से माँगा गया राजस्व बहुत अधिक था। राजस्व अदा न करने वाले किसानों की फसलें जब्त कर ली जाती थीं।
(2) कालान्तर में साहूकारों ने ऋण देना बन्द कर दिया।
(3) ऋणदाता संवेदनहीन थे तथा ब्याज मूलधन से भी अधिक वसूल करते थे।
(4) ऋणदाता ऋण चुकायी गई राशि की रसीद नहीं देते थे तथा बंधपत्रों में जाली आँकड़े भर देते थे और किसानों की उपज को नीची कीमतों पर लेते थे।

प्रश्न 53.
1861 में अमेरिका में छिड़ने वाले गृहयुद्ध का भारतीय किसानों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
1861 में अमेरिका में गृह बुद्ध छिड़ने पर अमेरिका से आने वाली कच्ची कपास के आयात में भारी गिरावट आ गई। इस स्थिति में दक्कन के गाँवों के रैयतों (किसानों) को विपुल धनराशि ऋण के रूप में मिलने लगी। परन्तु इस अवसर पर केवल धनी किसानों को लाभ हुआ तथा अधिकांश किसान ऋण के भार से दब गए। व्यापारियों और साहूकारों ने ऋण देने से इन्कार कर दिया। दूसरी ओर राजस्व की माँग बढ़ा दी गई। ऋणदाता खातों में धोखाधड़ी करने लगे और कानून की अवहेलना करने लगे।

प्रश्न 54.
रैयत ऋणदाता को कुटिल और धोखेबाज क्यों समझने लगे थे?
उत्तर:
ऋणदाता ऋण चुकाए जाने के बाद रैयत को उसकी रसीद नहीं देते थे तथा बंधपत्रों में जाली आँकड़े भर लेते थे। वे कानून को घुमाकर अपने पक्ष में कर लेते थे और रैयत से हर तीसरे वर्ष एक नया बंधपत्र भरवाते थे। वे किसानों की फसलों को नीची कीमतों पर ले लेते थे तथा अवसर पाकर किसानों की धन सम्पत्ति पर ही अधिकार कर लेते थे। भिन्न-भिन्न प्रकार के दस्तावेजों और बंधपत्रों से किसान असंतुष्ट थे।

निबन्धात्मक प्रश्न –

प्रश्न 1.
“गाँवों में जोतदारों की स्थिति अत्यन्त मजबूत थी और जमींदारों की शक्ति की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली थी।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गाँवों में जोतदारों की सुदृढ़ स्थिति अठारहवीं शताब्दी के अन्त में बंगाल के गाँवों में जोतदारों की स्थिति अत्यन्त मजबूत थी तथा जमींदारों की शक्ति की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली थी।
(1) बड़ी-बड़ी जमीनों के स्वामी- जोतदार गाँवों में रहते थे तथा वे बड़ी-बड़ी जमीनों के स्वामी थे। ये धन-सम्पन्न किसान थे। इन जोतदारों ने जमीन के बड़े-बड़े रकों पर अधिकार कर रखा था। ये रकबे (क्षेत्र) कभी- कभी तो कई हजार एकड़ में फैले होते थे। स्थानीय व्यापारियों और साहूकारों के व्यवसाय पर भी उनका नियंत्रण था और इस प्रकार वे उस क्षेत्र के दरिद्र किसानों पर अपनी शक्ति का प्रयोग करते थे। उनकी जमीन का काफी बड़ा भाग बटाईदारों के माध्यम से जोता जाता था। ये बटाईदार स्वयं अपने हल-बैल लाकर खेती करते थे और फसल के बाद उपज का आधा हिस्सा जोतदारों को दे देते थे।

(2) गाँवों में जोतदारों की शक्ति-गाँवों में जोतदारों की शक्ति जमींदारों की शक्ति की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली होती थी। जोतदार गाँवों में ही रहते थे तथा गाँवों में रहने वाले किसानों पर उनका सीधा नियंत्रण था। जमींदारों द्वारा लगान बढ़ाने के लिए किए जाने वाले प्रयासों का वे घोर प्रतिरोध करते थे तथा लगान वसूली में बाधा डालते थे जो रैयत उन पर निर्भर रहते थे, उन्हें वे अपने पक्ष में एकजुट रखते थे तथा जमींदार के राजस्व के भुगतान में जानबूझ कर देरी करा देते थे।

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(3) जोतदारों द्वारा जमींदारी को खरीदना राजस्व अदा न करने पर जब जमींदारी नीलाम होती थी, तो प्रायः जोतदार ही उन जमीनों को खरीद लेते थे।

(4) उत्तरी बंगाल में जोतदारों का सबसे अधिक शक्तिशाली होना- उत्तरी बंगाल में जोतदार सबसे अधिक शक्तिशाली थे। कुछ स्थानों पर जोतदारों को ‘हवलदार’ कहा जाता था और कुछ अन्य स्थानों पर वे ‘गांटीदार’ म अथवा ‘मंडल’ कहलाते थे। जोतदारों के उदय होने के २ फलस्वरूप जमींदारों के अधिकारों का कमजोर पड़ना अनिवार्य था।

(5) रैयत को राजस्व न देने के लिए भड़काना-जोतदार अपने राजस्व के रूप में कुछ थोड़े से रुपये दे देते थे और लगभग हर किस्त में कुछ न कुछ बकाया राशि रह जाती थी। जमींदार की रकम के कारण यदि अधिकारी उन्हें न्यायालय में बुलाते थे, तो वे तुरन्त उनकी शिकायत करने के लिए फौजदारी थाना अथवा मुन्सिफ की कचहरी में पहुँच क जाते थे तथा जमींदार के कारिन्दों द्वारा उन्हें अपमानित किए जाने की बात कहते थे। जोतदार रैयत को राजस्व न देने के लिए भी भड़काते रहते थे।

प्रश्न 2.
पहाड़िया लोग कौन थे? ब्रिटिश सरकार की उनका दमन करने के लिए क्यों प्रयत्नशील थी?
अथवा
पहाड़िया लोग कौन थे? बाहरी लोगों के आगमन पर उनकी क्या प्रतिक्रिया थी?
उत्तर:
पहाड़िया लोगों का परिचय –
(1) झूम खेती करना – पहाड़िया लोग जंगल ‍ शाड़ियों को काटकर और पास फेंस को जलाकर जमीन साफ करते थे। ये लोग अपने भोजन के लिए अनेक प्रका की दालें तथा ज्वार बाजरा उगा लेते थे।

(2) जंगलों से प्राप्त उत्पादों का उपयोग करना- पहाड़िया लोग खाने के लिए जंगलों से महुआ के फूल इकट्ठे करते थे तथा बेचने के लिए रेशम के कोया और राला तथा काठकोयला बनाने के लिए लकड़ियाँ इकट्ठी करते थे पेड़ों के नीचे उगे हुए घास-फूंस पशुओं के लिए चरागा का काम देती थी।

(3) पहाड़ियों के जीवन का जंगल से घनिष्ठ रूपा से जुड़ना पहाड़िया लोग शिकारियों, झूम खेती करने बालों, खाद्य पदार्थ इकट्ठा करने वालों, काठकोयला बनाने वालों तथा रेशम के कीड़े पालने वालों के रूप में अपना जीवन निर्वाह करते थे। उनका जीवन जंगल से मनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ था। वे इमली के पेड़ों के नीचे अपनी झोंपड़ियों में रहते थे तथा आम के वृक्षों की छाँह में विश्राम करते थे।

(4) पहाड़िया लोगों के मुखिया पहाड़िया लोगों के मुखिया अपने समूह में एकता बनाए रखते थे तथा आपसी लड़ाई-झगड़ों को निपटा देते थे। अन्य जनजातियों तथा मैदानी लोगों के साथ लड़ाई छिड़ने पर वे अपनी जन- जाति का नेतृत्व करते थे।

(5) मैदानी भागों पर आक्रमण करना पहाड़िया लोग मैदानी भागों में बसे हुए किसानों पर आक्रमण करते थे ये आक्रमण प्रायः अभाव या अकाल के वर्षों में जीवित रखने के लिए किए जाते थे। इन आक्रमणों के माध्यम से वे अपनी शक्ति का प्रदर्शन भी करना चाहते थे।

(6) अंग्रेजों द्वारा पहाड़िया लोगों का दमन करना- अंग्रेज लोग जंगलों की कटाई-सफाई कर स्थायी कृषि का विस्तार करना चाहते थे वे जंगलों को उजाड़ मानते थे तथा पहाड़िया लोगों को असभ्य, बर्बर, क्रूर तथा उपद्रवी मानते थे। 1770 के दशक में अंग्रेजों ने पहाड़ियों का क्रूरतापूर्वक दमन किया। इसके बाद पहाड़िया लोग पहाड़ों के भीतरी भागों में चले गए। बाद में संथालों ने उन्हें पराजित कर दिया और उन्हें पहाड़ियों के भीतर चले जाने के लिए बाध्य कर दिया।

प्रश्न 3.
ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी काल में बंगाल में जोतदारों के उदय को विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी काल में बंगाल में जोतदारों के उदय के विस्तार को अग्र बिन्दुओं के अन्तर्गत समझा जा सकता है-
(1) 18वीं शताब्दी में बंगाल में उदित होने वाले धनी किसानों को जोतदार कहा गया। इन्होंने गाँवों में अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी।
(2) 19वीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों तक आते- आते जोतदारों ने जमीन के बड़े-बड़े टुकड़े प्राप्त कर लिए थे जो 1000 एकड़ में फैले हुए थे।
(3) जोतदारों का गाँवों के स्थानीय व्यापार एवं साहूकारों के कारोबार पर भी नियन्त्रण था। वे अपने क्षेत्र के निर्धन किसानों पर भी अपनी शक्ति का अधिक प्रयोग करते थे।
(4) जोतदारों की भूमि का एक बड़ा भाग बटाईदारों के माध्यम से जोता जाता था जो स्वयं अपना हल लाते थे, खेतों में मेहनत करते थे एवं फसल उत्पन्न होने के पश्चात् उपज का आधा भाग जोतदारों को प्रदान करते थे।
(5) गाँवों में जोतदारों की शक्ति जमींदारों की शक्ति से अधिक प्रभावशाली थी। जमींदार शहर में रहते थे जबकि जोतदार गाँवों में रहा करते थे फलस्वरूप जोतदारों का गाँव के अधिकांश निर्धन लोगों पर सीधा नियन्त्रण रहता था।
(6) जोतदारों का जमींदारों से संघर्ष चलता रहता था। इसके निम्न कारण हैं-
(i) जमींदारों द्वारा लगान बढ़ाने पर जोतदार विरोध करते थे।
(ii) जोतदार जमींदार के अधिकारियों को अपना कर्तव्य पालन करने से रोकते थे।
(iii) जो लोग जोतदारों पर निर्भर रहते थे उन्हें वे अपने पक्ष में एकजुट रखते थे।
(iv) जोतदार जमींदारों को परेशान करने की नीयत से किसानों द्वारा जमींदारों को दिए जाने वाले राजस्व के भुगतान में जानबूझकर देरी करने के लिए उकसाते थे।
(v) जब जमींदारों की भू-सम्पदाएँ नीलाम होती थीं तो जोतदार उनकी जमीन को खरीद लेते थे जो जमींदारों को अच्छा नहीं लगता था।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि बंगाल में जोतदार शक्तिशाली बनकर उभरे। उनके उदय से जमींदारों के अधिकारों का कमजोर पड़ना स्वाभाविक था।

प्रश्न 4.
संथाल विद्रोह कब व क्यों हुआ? इस पर एक लघु निबन्ध लिखिए।
अथवा
संथाल कौन थे? उनके विद्रोह के कारणों का विश्लेषण कीजिये।
उत्तर:
संथालों का परिचय
(1) संथालों का राजमहल की पहाड़ियों में बसना संथाल लोग 1800 के आस-पास राजमहल की पहाड़ियों में बस गए थे ब्रिटिश अधिकारियों ने संथालों को राजमहल की पहाड़ियों में बसकर स्थायी खेती करने के लिए राजी कर लिया। इस प्रकार 1800 के आसपास संचाल जंगलों को साफ कर इमारती लकड़ी को काटते हुए पहाड़ियों की तलहटी में जमीन साफ कर धान और कपास की स्थायी कृषि करने लगे। इन्होंने पहाड़िया लोगों को राजमहल की पहाड़ियों के भीतरी भाग में जाने के लिए मजबूर कर दिया।

(2) दामिन-इ-कोह का निर्माण सन् 1832 के आसपास ब्रिटिश कम्पनी ने एक बड़े भू-भाग को संथालों के लिए सीमांकित कर दिया जो ‘दामिन-इ-कोह’ कहलाया। इसे संथाल भूमि घोषित कर दिया गया।

(3) संथालों की संख्या वृद्धि – दामिन-इ-कोह के सीमांकन के बाद संथालों की बस्तियाँ तेजी से बढ़ीं। सन् 1838 में गाँवों की संख्या 40 थी जो 1851 तक 1,473 गाँवों में बदल गई और जनसंख्या जो पहले 3,000 थी, बढ़कर 82,000 से भी अधिक हो गई। खेती का विस्तार होने से कम्पनी के राजस्व में भी वृद्धि होने लगी। संथाल विद्रोह कब और क्यों? सन् 1855-56 में संथालों ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। सिधू मांझी उनका नेता था।

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इस विद्रोह के प्रमुख कारण अग्रलिखित थे –
(1) कम्पनी सरकार द्वारा भारी कर लगाना- कम्पनी सरकार ने प्रारम्भ में संथालों को जो भूमि दी थी, उस पर कोई राजस्व नहीं था; लेकिन जैसे ही संथालों ने कृषि में विकास किया, कम्पनी सरकार ने उन पर भारी कर लगा दिया।
(2) ऊँची ब्याज दर साहूकारों द्वारा ऊँची दर पर ब्याज लगाया गया तथा कर्ज अदा न कर पाने पर उनकी जमीन पर कब्जा कर लिया गया।
(3) जमींदारों का अपने नियंत्रण का दावा- जिस जमीन को साफ कर संथाल लोग खेती कर रहे थे, उस पर अब जमींदारों ने अपने नियंत्रण का दावा करना शुरू कर दिया ।
(4) संथालों की मानसिकता में बदलाव — संथालों ने 1850 के दशक तक यह महसूस किया कि उनका अधिकार जमीन पर से खत्म होता जा रहा है। उन्हें अपने *लिए एक ऐसे आदर्श संसार का निर्माण करना है, जहाँ उनका अपना शासन हो जमींदारों, साहूकारों और औपनिवेशिक राज के विरुद्ध विद्रोह करने का समय अब आ गया है।

प्रश्न 5.
ईस्ट इण्डिया कम्पनी की भू-राजस्व नीतियों का जमींदारों द्वारा किस प्रकार प्रतिरोध किया गया?
अथवा
ब्रिटिश भू-राजस्व नीतियों का जमींदारों ने कौन- कौनसी नई रणनीतियाँ बनाकर प्रतिरोध किया और उसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
ग्रामीण क्षेत्रों में जोतदारों की स्थिति उभर रही श्री लेकिन जमींदारों की सत्ता पूर्णतः समाप्त नहीं हुई थी। राजस्व की अत्यधिक मांग और अपनी भू-सम्पदा को ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा नीलाम करने की समस्या से निपटने के लिए जमींदारों ने कुछ रणनीतियाँ बनाई –
(1) जमींदारों द्वारा अपनी भू-सम्पदा का स्त्रियों को हस्तान्तरण – ईस्ट इण्डिया कम्पनी महिलाओं के हिस्सों की नीलामी नहीं करती थी इसलिए जमींदार अपनी जमींदारी को नीलामी से बचाने के लिए अपनी भू-सम्पदा के कुछ भागों को अपने परिवार की स्वियों के नाम हस्तान्तरित कर देते थे।

(2) नकली नीलामी जमींदारों ने अपने एजेंटों को नीलामी के दौरान खड़ा करके नीलामी की प्रक्रिया में जोड़-तोड़ किया। वे जानबूझकर कम्पनी के अधिकारियों को परेशान करने के लिए राजस्व का भुगतान नहीं करते थे जिससे भुगतान न की गई बकाया राशि बढ़ जाती थी। जब भू-सम्पदा का हिस्सा नीलाम किया जाता था तो जमींदार के व्यक्ति ही अन्य खरीददारों के मुकाबले ऊँची बोली लगाकर सम्पत्ति को खरीद लेते थे।

(3) अन्य तरीके जमींदार लोग भू-सम्पदा को परिवारजनों के नाम स्थानान्तरित करने या फर्जी बिक्री दिखाकर अपनी भू-सम्पदा को छिनने से बचने के साथ- साथ कुछ अन्य तरीके भी अपनाते थे। यदि कम्पनी के किसी अधिकारी की जिद के कारण किसी जमींदार की भू-सम्पदा को किसी बाहर का व्यक्ति खरीद लेता था तो उसे कब्जा प्राप्त नहीं हो पाता था कभी-कभी पुराने किसान नये जमींदार को लोगों की जमीन में घुसने नहीं देते थे।
परिणाम- 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में कृषि उत्पादों में मंदी की स्थिति समाप्त हो गई। इसलिए जो जमींदार 1790 ई. के दशक की परेशानियों को झेलने में सफल हो
गए, उन्होंने अपनी सत्ता को सुदृढ़ बना लिया। राजस्व के भुगतान सम्बन्धी नियमों को लचीला बनाने के फलस्वरूप गाँवों पर जमींदारों की पकड़ और मजबूत हो गयी। परन्तु 1930 की मंदी के कारण जमींदारों को नुकसान उठाना पड़ा और ग्रामीण क्षेत्रों में जोतदारों ने अपनी स्थिति और अधिक मजबूत कर ली।

प्रश्न 6.
1820 के दशक में बम्बई दक्कन में रैयतवाड़ी बन्दोबस्त क्यों लागू किया गया? इसके किसानों पर क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर:
बम्बई दक्कन में रैयतवाड़ी बन्दोबस्त लागू करने के कारण 1820 के दशक में बम्बई दक्कन में रैयतवाड़ी बन्दोबस्त लागू किये जाने के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
(1) भू-राजस्व को अधिक से अधिक बढ़ाना- 1810 के बाद कृषि के मूल्य बढ़ गए, जिससे उपज के मूल्य में वृद्धि हुई और बंगाल के जमींदारों की आमदनी में वृद्धि हुई। परन्तु इस्तमरारी बन्दोबस्त के कारण ब्रिटिश सरकार इस बढ़ी हुई आय में अपने हिस्से का कोई दावा नहीं कर सकती थी। अतः उसने अपने भू-राजस्व को अधिक से अधिक बढ़ाने के लिए नवीन राजस्व प्रणालियाँ लागू करने का निश्चय कर लिया।

(2) डेविड रिकार्डों के विचारों से प्रभावित होना- ब्रिटिश अधिकारी इंग्लैण्ड के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डेविड रिकार्डों के विचारों से प्रभावित थे रिकार्डों के विचारों के अनुसार भू-स्वामी को उस समय लागू ‘ औसत लगानों को प्राप्त करने का ही अधिकार होना चाहिए। ब्रिटिश अधिकारियों ने महसूस किया कि बंगाल में जमींदार लोग किराया जीवियों के रूप में बदल गए थे क्योंकि उन्होंने अपनी जमीनें पट्टे पर दे दीं और किराये की आमदनी पर निर्भर रहने लगे। इसलिए ब्रिटिश अधिकारियों ने एक नवीन राजस्व प्रणाली अपनाने का निश्चय किया।

रैयतवाड़ी बन्दोबस्त लागू करना 1820 के दशक में बम्बई दक्कन में रैयतवाड़ी बन्दोबस्त लागू किया गया। इस प्रणाली के अन्तर्गत राजस्व की राशि सीधे रैयत के साथ तय की जाती थी। भिन्न-भिन्न प्रकार की भूमि से होने वाली औसत आय का अनुमान लगा लिया जाता था। रैयत की राजस