JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

JAC Class 10 Hindi लखनवी अंदाज़ Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं ?
उत्तर :
लेखक ने डिब्बे में प्रवेश किया, तो वहाँ पहले से ही एक सज्जन पुरुष पालथी लगाए सीट पर बैठे थे। उनके सामने खीरे रखे थे। लेखक को देखते ही उनके चेहरे के भाव ऐसे हो गए, जैसे उन्हें लेखक का आना अच्छा नहीं लगा। ऐसा लग रहा था, जैसे लेखक ने उनके एकांत चिंतन में विघ्न डाल दिया था। इसलिए वे परेशान हो गए। परेशानी की स्थिति में कभी खिड़की के बाहर देखते हैं और कभी खीरों को देखने लगे। उनकी असुविधा और संकोच वाली स्थिति से लेखक को लगा कि नवाब उनसे बातचीत करने में उत्सुक नहीं है।

प्रश्न 2.
नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंततः सूंघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?
उत्तर :
नवाब साहब ने बहुत नज़ाकत और सलीके से खीरा काटकर, उस पर नमक-मिर्च लगाया। फिर उन नमक-मिर्च लगी खीरे की फाँकों को खाने सूंघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया। उनकी इस हरकत का यह कारण होगा कि वे एक नवाब थे, जो दूसरों के सामने खीरे जैसी आम खाद्य वस्तु खाने में शर्म अनुभव करते थे।

लेखक को डिब्बे में देखकर नवाब को अपनी रईसी याद आने लगी। इसलिए उन्होंने खीरे को केवल सूंघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। नवाब साहब के ऐसा करने से लगता है कि वे दिखावे की जिंदगी जी रहे थे। वे दिखावा पसंद इनसान थे। इसी स्वभाव के कारण उन्होंने लेखक को देखकर खीरा खाना अपना अपमान समझा।

प्रश्न 3.
बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है? यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर :
हम लेखक के इन विचारों से पूरी तरह से सहमत नहीं हैं कि बिना विचार, घटना और पात्रों के कहानी लिखी जा सकती है; क्योंकि प्रत्येक कहानी के पीछे कोई-न-कोई घटना, विचार अथवा पात्र अवश्य होता है। उदाहरण के लिए लेखक की इस कहानी ‘लखनवी-अंदाज़’ को ही ले सकते हैं, जिसमें लेखक ने पतनशील सामंती वर्ग पर कटाक्ष करने के लिए सारा ताना-बाना बुना है। इसमें लेखक के इसी विचार की प्रमुखता है। घटना के रूप में रेलयात्रा तथा पात्र के रूप में लखनवी नवाब आ जाते हैं और कहानी बन जाती है। इसलिए यह कहना उचित नहीं है कि बिना विचार, घटना और पात्रों के कहानी बन सकती है। प्रत्येक कहानी में इन सबका होना बहुत आवश्यक है।

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प्रश्न 4.
उत्तर
आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे? हम इस निबंध को ‘अकड़-नवाब’ नाम देना चाहते हैं, क्योंकि इस पाठ के नवाब साहब अपना सारा काम अकड़ कर करते हैं। वे किसी सहयात्री से बातचीत नहीं करते। खीरे को ऐसे काटते हैं, जैसे कोई विशेष वस्तु हो। ‘खीरा आम आदमी के खाने की वस्तु है’-यह याद आते ही वे उसे खाने के स्थान पर सूंघकर खिड़की से बाहर फेंक देते हैं।

उनकी ये सभी हरकतें इस पाठ को ‘अकड़ नवाब’ शीर्षक देने के लिए बिलकुल सही हैं। इसके अतिरिक्त लेखक ने इस निबंध का नाम ‘लखनवी अंदाज़’ रखा है, जो लखनऊ के नवाबों के जिंदगी जीने के अंदाज़ का वर्णन करता है। लखनवी अंदाज़’ के अतिरिक्त इस निबंध का नाम ‘नवाब की सनक’ हो सकता है। इस निबंध में लेखक ने एक नवाब की सनक का वर्णन किया है।

नवाब एकांत में तो आम कार्य कर सकते हैं, लेकिन दूसरों के सामने आम कार्य करते समय उन्हें शर्म महसूस होती है। इसके लिए वे आम कार्य को भी खास बनाने का बेतुका प्रयत्न करते हैं। इस निबंध के अनुसार नवाब खीरे को बड़ी नज़ाकत और सलीके से खाने के लिए तैयार करता है। लेकिन नवाब उन खीरों को लेखक के सामने नहीं खाना चाहता, इसलिए केवल से कर ही खीरे को खिड़की से बाहर फेंक देता है। यह कार्य केवल सनकी लोग ही कर सकते हैं।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 5.
(क) नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है? इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
(ख) किन-किन चीजों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की तैयारी करते हैं ?
उत्तर :
(क) नवाब साहब ने पहले खीरों को धोया और फिर तौलिए से उन खीरों को पोंछा। जेब से चाकू निकालकर दोनों खीरे के सिरे काटे और उन्हें अच्छी तरह से गोदा। उसके बाद खीरों को बहुत सावधानी से छीलकर फाँकों को तौलिए पर बड़े अच्छे ढंग से सजा दिया। नवाब साहब के पास खीरा बेचने वालों के पास से ली गई नमक-मिर्च-जीरा की पुड़िया थी। नवाब साहब ने तौलिए पर रखे खीरों की फांकों पर जीरा-नमक-मिर्च छिड़का। उन खीरों की फाँकों को देखने मात्र से ही मुँह में पानी आने लगा था। इस तरह नवाब साहब ने बड़े नज़ाकत और सलीके से खीरा खाने की तैयारी की।

(ख) हम गाजर, टमाटर, मूली आदि चीजों को खाना पसंद करते हैं। इन चीजों को पहले धोकर पोंछ लेते हैं। फिर उन्हें चाकू से साफ़ करके पतली-पतली फाँकें कर लेते हैं। इसके बाद उन पर नमक और मसाला लगाकर खाने के लिए तैयार कर लेते हैं। खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों की और भी सनकों बारे में पढ़ा-सुना होगा।

किसी एक के बारे में लिखिए। उत्तर नवाब साहब द्वारा खीरे को खाने के लिए तैयार करना और फिर उसे केवल सूंघकर खिड़की के बाहर फेंक देना इसे नवाबी सनक कहा जा सकता है। इसी प्रकार हमने नवाबों की कई सनकों के बारे में सुना है। दो नवाब रेलवे स्टेशन पर गाड़ी पकड़ने के लिए जाते हैं। दोनों का एक ही डिब्बे के सामने आमना-सामना हो जाता है।

नवाबों में शिष्टाचार का बहुत महत्व होता है। इसी शिष्टाचार के कारण दोनों नवाब एक-दूसरे को डिब्बे में पहले जाने की बात करते हैं। गाड़ी चलने को तैयार हो जाती है, परंतु उन दोनों में से कोई डिब्बे में पहले चढ़ने की पहल नहीं करता। उनकी शिष्टाचार की सनक ने उनकी गाड़ी निकाल दी, परंतु दोनों अपनी जगह से टस-से-मस नहीं हुए।

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प्रश्न 7.
क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है? यदि हाँ तो ऐसी सनकों का उल्लेख करें।
उत्तर :
कभी-कभी किसी सनक का सकारात्मक रूप भी हो सकता है। उसकी सनक दूसरों को सुधरने के लिए मजबूर कर देती है। जैसे किसी को हर काम समय पर करने की आदत होती है। वह अपना सारा काम घड़ी की सुई के अनुसार करता है। आरंभ में उसकी इस आदत से लोग परेशान होते हैं, लेकिन फिर धीरे-धीरे लोगों को समय पर काम करने की आदत हो जाती है। इससे उनमें अनुशासन की भावना आ जाती है।

किसी-किसी व्यक्ति को सफ़ाई बहुत पसंद होती है। यदि उसके आस-पास का वातावरण बिखरा रहता है, तो वह चुपचाप सभी का काम करता रहता है; वह किसी से कुछ नहीं कहता। लोग उसको सफ़ाई-पसंद सनकी कहते हैं, परंतु वह फिर भी बिखरे हुए और गंदे सामान को साफ़ करके उचित स्थान पर रखता रहता है। उसकी इस आदत से लोगों में शर्मिंदगी का एहसास होता है और धीरे-धीरे वे भी अपनी आदतें सुधारने में लग जाते हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि सनक का सकारात्मक रूप भी होता है।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 8.
निम्नलिखित वाक्यों में से क्रियापद छाँटकर क्रिया-भेद भी लिखिए –
(क) एक सफ़ेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे।
(ख) नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया।
(ग) ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है।
(घ) अकेले सफ़र का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे।
(ङ) दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला।
(च) नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा।
(छ) नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए।
(ज) जेब से चाकू निकाला।
उत्तर :
(क) बैठे थे – अकर्मक क्रिया
(ख) दिखाया – सकर्मक क्रिया
(ग) कल्पना करना – अकर्मक क्रिया
(घ) खरीदे होंगे – सकर्मक क्रिया
(ङ) सिर काटे, झाग निकाला – सकर्मक क्रिया
(च) देखा – अकर्मक क्रिया
(छ) लेट गए – अकर्मक क्रिया,
(ज) निकालना – सकर्मक क्रिया

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पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
‘किबला शौक फरमाएँ’, ‘आदाब-अर्ज’…शौक फरमाएँगे’ जैसे कथन शिष्टाचार से जुड़े हैं। अपनी मातृभाषा के शिष्टाचार सूचक कथनों की एक सूची तैयार कीजिए।
उत्तर :
‘नमस्ते’, ‘आइए’, ‘बैठिए’, ‘कृपया कुछ लीजिए’, ‘धन्यवाद’, ‘क्षमा करना’, ‘कृपया यह काम कर दें’ आदि कुछ शिष्टाचार सूचक कथन हैं।

प्रश्न 2.
‘खीरा…मेदे पर बोझ डाल देता है; क्या वास्तव में खीरा अपच करता है। किसी भी खाद्य पदार्थ का पच-अपच होना कई कारणों पर निर्भर करता है। बड़ों से बातचीत कर कारणों का पता लगाइए।
उत्तर :
वास्तव में खीरा अपच खाद्य पदार्थ नहीं है; यह गरमियों में शीतलता प्रदान करता है परंतु इसका अधिक मात्रा में उपयोग करना नुकसान देता है। खाद्य पदार्थों का पच-अपच होना कई कारणों पर निर्भर करता है; जैसे-मौसम, व्यक्ति की शारीरिक स्थिति, खाद्य पदार्थ के प्रति लगाव आदि। सरदी के मौसम में ठंडी वस्तुओं का कम प्रयोग किया जाता है, क्योंकि यह स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है।

सबसे अधिक प्रभाव बच्चों और बुजुर्गों पर पड़ता है। ऐसे ही गरमियों में गरमाहट देने वाली वस्तु का प्रयोग कम किया जाता है, क्योंकि वे शरीर के तापमान को बढ़ा देती हैं और व्यक्ति के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। सरदी में हम गर्म वस्तुओं तथा गरमी में ठंडी वस्तुओं का प्रयोग अधिक करते हैं। बरसात के दिनों में ऐसी वस्तुओं के प्रयोग से बचा जाता है, जो बद-बादी होती हैं।

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प्रश्न 3.
खाद्य पदार्थों के संबंध में बहुत-सी मान्यताएँ हैं, जो आपके क्षेत्र में प्रचलित होंगी, उनके बारे में चर्चा करें।
उत्तर :
हमारे क्षेत्र में खाद्य पदार्थों से संबंधित बहुत-सी मान्यताएँ प्रचलित हैं। गरमियों में लू से बचने के लिए हम नींबू पानी, आम पन्ना, की लस्सी तथा बेल के शरबत का प्रयोग करते हैं। सरदियों में ठंड से बचने के लिए गुड़-शक्कर, मूंगफली, तिल, चाय, कॉफी आदि का प्रयोग किया जाता है। बरसात में कई लोग कढ़ी खाना अच्छा नहीं समझते। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी को चावल नहीं खाने चाहिए।

प्रश्न 4.
पतनशील सामंती वर्ग का चित्रण प्रेमचंद ने अपनी एक प्रसिद्ध कहानी ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में किया था और फिर बाद में सत्यजीत राय ने इस पर इसी नाम से एक फ़िल्म भी बनाई थी। यह कहानी ढूँढ़कर पढ़िए और संभव हो तो फ़िल्म भी देखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करें।

JAC Class 10 Hindi लखनवी अंदाज़ Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘लखनवी अंदाज़’ पाठ के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
उत्तर :
लेखक इस पाठ के माध्यम से बताना चाहता है कि बिना पात्रों, घटना और विचार के भी स्वतंत्र रूप से रचना लिखी जा सकती है। इस रचना के माध्यम से लेखक ने दिखावा पसंद लोगों की जीवन-शैली का वर्णन किया है। लेखक को रेलगाड़ी के डिब्बे में एक नवाब मिलता है। नवाब बड़े सलीके से खीरे को खाने की तैयारी करता है, लेकिन लेखक के सामने खीरा खाने में उसे संकोच होता है।

इसलिए अपने नवाबी अंदाज़ में लज़ीज रूप से तैयार खीरे को केवल सूंघकर खिड़की के बाहर फेंक देता है। नवाब के इस व्यवहार से लगता है कि वे आम लोगों जैसे कार्य एकांत में करना पसंद करते हैं। उन्हें लगता है कि कहीं किसी के देख लेने से उनकी शान में फर्क न आ जाए। आज का समाज भी ऐसी ही दिखावा पसंद संस्कृति का आदी हो गया है।

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प्रश्न 2.
लेखक ने नवाब की असुविधा और संकोच के लिए क्या अनुमान लगाया ?
उत्तर :
लेखक जिस डिब्बे में चढ़ा, वहाँ पहले से ही एक सज्जन पुरुष पालथी लगाए बैठे थे। उनके सामने दो खीरे रखे थे। लेखक को देखकर उन्हें असुविधा और संकोच हो रहा था। लेखक ने उनकी असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान लगाया कि नवाब साहब नहीं चाहते होंगे कि कोई उन्हें सेकंड क्लास में यात्रा करते देखे। यह उनकी रईसी के विरुद्ध था। नवाब साहब ने आम लोगों द्वारा खाए जाने वाले खीरे खरीद रखे थे। अब उन खीरों को लेखक के सामने खाने में उन्हे संकोच हो रहा था। सेकंड क्लास में यात्रा करना और खीरे खाना उनके लिए असुविधा और संकोच का कारण बन रहा था।

प्रश्न 3.
लेखक को खीरे खाने से इनकार करने पर अफ़सोस क्यों हो रहा था?
उत्तर :
नवाब साहब ने साधारण से खीरों को इस तरह से सँवारा कि वे खास हो गए थे। खीरों की सजावट ने लेखक के मुँह में पानी ला दिया, परंतु वह पहले ही खीरा खाने से इनकार कर चुका था। अब उसे अपना आत्म-सम्मान बचाना था। इसलिए नवाब साहब के दोबारा पूछने पर लेखक ने मेदा (आमाशय) कमज़ोर होने का बहाना बनाया।

प्रश्न 4.
नवाब साहब ने खीरा खाने का कौन-सा रईसी तरीका अपनाया? इससे लेखक के ज्ञान-चक्षु कैसे खुले?
उत्तर :
नवाब साहब दूसरों के सामने साधारण-सा खाद्य पदार्थ नहीं खाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने खीरे को किसी कीमती वस्तु की तरह तैयार किया। उस लजीज खीरे को देखकर लेखक के मुँह में पानी आ गया। इसके बाद नवाब साहब खीरे की फाँक को उठाया और नाक तक ले जाकर सूंघा। खीरे की महक से उनके मुँह में पानी आ गया। उन्होंने उस पानी को गटका और खीरे की फाँक को खिड़की से बाहर फेंक दिया।

इस तरह उन्होंने सारा खीरा बाहर फेंक दिया और लेखक को गर्व से देखा। उनके चेहरे से ऐसा लग रहा था, जैसे वे लेखक से कह रहे हों कि नवाबों के खीरा खाने का यह खानदानी रईसी तरीका है। यह तरीका देखकर लेखक सोचने लगा कि बिना खीरा खाए, केवल सूंघकर उसकी महक और स्वाद की कल्पना से तृप्ति का डकार आ सकता है, तो बिना विचार, घटना और पात्रों के इच्छा मात्र से ‘नई कहानी’ क्यों नहीं बन सकती। इसी सोच ने लेखक के ज्ञान-चक्षु खोल दिए।

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प्रश्न 5.
‘लखनवी अंदाज़’ पाठ का उद्देश्य क्या है?
उत्तर :
‘लखनवी अंदाज’ पाठ व्यंग्य प्रधान है। इस पाठ का मूल उद्देश्य यह दर्शाना है कि बिना पात्र, विचार, घटना के कहानी नहीं लिखी जा सकती है। साथ ही लेखक ने उन लोगों पर करारा व्यंग्य भी किया है, जो दिखावे तथा बनावटीपन में विश्वास रखते हैं।

प्रश्न 6.
नवाब साहब को देखते ही लेखक उसके प्रति व्यंग्य से क्यों भर जाता है?
उत्तर :
लेखक के मन में पहले से ही नवाबों के प्रति व्यंग्य की धारणा बनी हुई थी कि वे अपनी आन-बान-शान को अत्यधिक महत्व देते हैं। वे खाने-पीने के बहुत शौकीन होते हैं। वे औरों के समक्ष स्वयं को सदाचारी तथा शिष्ट बनाकर प्रस्तुत करते हैं। उसे नवाब द्वारा किया जाने वाला प्रत्येक कार्य उसे मात्र दिखावा लग रहा था, इसलिए लेखक नवाब साहब के प्रति व्यंग्य से भर जाता है।

प्रश्न 7.
पाठ के आधार पर यशपाल की भाषा-शैली स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
यशपाल ने अपनी रचना में सहज स्वाभाविक बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है। इनकी शैली भावपूर्ण, प्रवाहमयी, चित्रात्मक तथा वर्णनात्मक है। लेखक ने उर्दू शब्दों से मिश्रित बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है। इन्होंने शब्दों के माध्यम से वस्तुस्थिति को सजीव रूप भी प्रदान किया है।

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प्रश्न 8.
‘लखनवी अंदाज़’ किस प्रकार की रचना है?
अथवा
‘लखनवी अंदाज’ को रोचक कहानी बनाने वाली कोई दो बातें लिखिए।
उत्तर :
‘लखनवी अंदाज़’ पतनशील सामंती-वर्ग पर कटाक्ष करने वाली रचना है। इसमें लेखक ने आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग करके नवाबों के दिखावटी अंदाज़ का वर्णन किया है, जो वास्तविकता से संबंध रखता है। आज के समाज में दिखावटी संस्कृति को देखा जा सकता है।

पठित गद्यांश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न – 

दिए गए गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए –
लखनऊ स्टेशन पर खीरा बेचने वाले खीरे के इस्तेमाल का तरीका जानते हैं। ग्राहक के लिए जीरा मिला नमक और पिसी हुई लाल मिर्च की पुड़िया भी हाजिर कर देते हैं। नवाब साहब ने करीने से खीरे की फाँकों पर जीरा मिला नमक और लाल मिर्च की सुर्जी बुरक दी। उनकी प्रत्येक भाव-भंगिमा और जबड़ों के स्फुरण से स्पष्ट था कि उस प्रक्रिया में उनका मुख खीरे के रसास्वादन की कल्पना से प्लावित हो रहा था। हम कनखियों से देखकर सोच रहे थे, मियाँ रईस बनते हैं, लेकिन लोगों की नज़रों से बच सकने के ख्याल से अपनी असलियत पर उतर आए हैं।

(क) लखनऊ स्टेशन पर विक्रेता किसका इस्तेमाल का तरीका जानते हैं?
(i) सेब
(ii) खीरा
(iii) ककड़ी
(iv) पपीता
उत्तर :
(ii) खीरा

(ख) खीरे किसके पास थे?
(i) ट्रेन में बैठे ग्राहक के
(ii) यात्री लेखक के
(iii) नवाब साहब के
(iv) भिखारी के
उत्तर :
(iii) नवाब साहब के

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(ग) खीरा विक्रेता खीरे के साथ और क्या हाजिर करता था?
(i) काला नमक
(ii) चूरन
(iii) नींबू
(iv) जीरा मिला नमक और पिसी लाल मिर्च
उत्तर :
(iv) जीरा मिला नमक और पिसी लाल मिर्च

(घ) लेखक कनखियों से देखकर किसके बारे में सोच रहे थे?
(i) नवाब साहब की रईसी के बारे में
(ii) खीरे विक्रेता के बारे में
(iii) खीरे के स्वाद के बारे में
(iv) नवाब साहब की पोशाक के बारे में
उत्तर :
(i) नवाब साहब की रईसी के बारे में

(ङ) नवाब साहब की भाव-भंगिमा और जबड़ों के स्फुरण से क्या स्पष्ट था?
(i) खीरे को काटकर फेंकना चाहते थे।
(ii) खीरों को केवल सूंघना चाहते थे।
(iii) खीरों का रसास्वादन करना चाहते थे।
(iv) लेखक को भी खीरे का स्वाद बताना चाहते थे।
उत्तर :
(iii) खीरों का रसास्वादन करना चाहते थे।

उच्च चिंतन क्षमताओं एवं अभिव्यक्ति पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

पाठ पर आधारित प्रश्नों को पढ़कर सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए –
(क) लेखक ने ‘लखनवी अंदाज़’ पाठ में किस पर व्यंग्य किया गया है?
(i) निम्न वर्ग पर
(ii) उच्च वर्ग पर
(iii) सफ़ेदपोश नेताओं पर
(iv) पतनशील सामंती वर्ग
उत्तर :
(iv) पतनशील सामंती वर्ग

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(ख) लेखक की पुरानी आदत क्या करने की है?
(i) सोने की
(ii) कल्पना करने की
(iii) फल काटने की
(iv) रोने की धोने की
उत्तर :
(ii) कल्पना करने की

(ग) लखनऊ के खीरे की क्या विशेषता थी?
(i) लजीज
(ii) देसी
(iii) बासी
(iv) कषैला
उत्तर :
(i) लजीज

(घ) लेखक ने खीरे को क्या माना है?
(i) बहुमूल्य फल
(ii) अपदार्थ वस्तु
(iii) सुपाच्य वस्तु
(iv) स्वादिष्ट सब्जी
उत्तर :
(ii) अपदार्थ वस्तु

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. मुफस्सिल की पैसेंजर ट्रेन चल पड़ने की उतावली में फूंकार रही थी। आराम से सेकंड क्लास में जाने के लिए दाम अधिक लगते हैं। दूर तो जाना नहीं था। भीड़ से बचकर, एकांत में नयी कहानी के संबंध में सोच सकने और खिड़की से प्राकृतिक दृश्य देख सकने के लिए टिकट सेकंड क्लास का ही ले लिया।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
2. ‘मुफस्सिल की पैसेंजर ट्रेन’ से क्या आशय है ?
3. लेखक ट्रेन की कौन-सी क्लास में यात्रा कर रहा था और क्यों?
4. ‘ट्रेन चल पड़ने की उतावली में फूंकार रही थी।’ इस पंक्ति से लेखक ट्रेन की किस स्थिति की ओर संकेत कर रहा था?
5. ट्रेन में आराम से यात्रा करने के लिए लेखक किस क्लास में यात्रा करने की राय दे रहा था? उस क्लास में यात्रा करने से क्या हानि थी?
उत्तर :
1. पाठ-लखनवी अंदाज, लेखक-यशपाल।
2. जो साधारण ट्रेन प्रमुख नगर के आस-पास के क्षेत्रों में जाती है, उस ट्रेन को ‘मुफस्सिल की पैसेंजर ट्रेन’ कहते हैं। प्रमुख नगर में आस … पास से आने-जाने वाले दैनिक यात्री तथा अन्य लोग इस ट्रेन का लाभ उठाते हैं।
3. लेखक ट्रेन की द्वितीय श्रेणी में यात्रा कर रहा था। द्वितीय श्रेणी के डिब्बे में भीड़ नहीं होती तथा आराम से यात्रा की जा सकती थी। इसमें बैठने के लिए खिड़की के पास स्थान मिल जाता था, जिससे बाहर के दृश्य भी देखे जा सकते थे। लेखक एकांत में किसी कहानी का प्लाट भी सोचना चाहता था।
4. ट्रेन के इस वर्णन से लेखक संकेत कर रहा है कि ट्रेन में पुराने जमाने का भाप का इंजन लगा हुआ था, जो ट्रेन को चलाने से पहले फंकार-सी मारता था। यह फूंकार उसमें से भाप निकलने के कारण होती थी।
5. ट्रेन में आराम से यात्रा करने के लिए लेखक सेकंड क्लास के डिब्बे में यात्रा करने की सलाह दे रहा था। सेकंड क्लास में यात्रा करने की – मुख्य हानि यह थी कि इसके लिए पैसे अधिक खर्च करने पड़ते थे।

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2. गाड़ी छूट रही थी। सेकंड क्लास के एक छोटे डिब्बे को खाली समझकर, ज़रा दौड़कर उसमें चढ़ गए। अनुमान के प्रतिकूल डिब्बा निर्जन नहीं था। एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल के एक सफ़ेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे। सामने दो ताजे-चिकने खीरे तौलिए पर रखे थे। डिब्बे में हमारे सहसा कूद जाने से सज्जन की आँखों में एकांत चिंतन में विघ्न का असंतोष दिखाई दिया। सोचा, हो सकता है, यह भी कहानी के लिए सूझ की चिंता में हों या खीरे-जैसी अपदार्थ वस्तु का शौक करते देखे जाने के संकोच में हों।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. लेखक जब प्लेटफार्म प ट्रेन की क्या स्थिति थी? लेखक ने क्या किया?
2. लेखक के अनुमान के प्रतिकूल क्या हुआ?
3. लेखक ने डिब्बे में किसे और किस स्थिति में देखा?
4. लेखक ने डिब्बे में बैठे हुए सज्जन के विषय में क्या सोचा?
उत्तर :
1. लेखक जब प्लेटफार्म पर पहुंचा, तो ट्रेन चल पड़ी थी। लेखक ने चलती हुई ट्रेन में सेकंड क्लास का एक छोटा-सा डिब्बा देखा। वह उस डिब्बे को खाली समझकर उसमें चढ़ गया।
2. लेखक का अनुमान था कि जिस डिब्बे में वह चढ़ रहा है, वह खाली है। किंतु उसके अनुमान के विपरीत वह डिब्बा खाली नहीं था। उसमें एक व्यक्ति बैठा हुआ था।
3. लेखक ने डिब्बे की एक बर्थ पर लखनवी नवाब जैसे एक भद्र पुरुष को पालथी मारकर बैठे हुए देखा। उन सज्जन के सामने तौलिए पर दो ताज़े और मुलायम खीरे रखे हुए थे।
4. लेखक ने डिब्बे में बैठे हुए सज्जन के विषय में सोचा कि उसके डिब्बे में अचानक कूद आने से उन सज्जन की एकांत साधना में विघ्न पड़ गया है। उसे लगा कि शायद ये सज्जन भी उसकी तरह ही किसी कहानी की रूप-रेखा बनाने में डूबे हुए हों अथवा उन्हें उसके द्वारा यह देखे जाने पर संकोच हो रहा हो कि वे खीरे जैसी मामूली वस्तु खा रहे हैं।

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3. ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है। नवाब साहब की असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान करने लगे। संभव है, नवाब साहब ने बिलकुल अकेले यात्रा कर सकने के अनुमान में किफ़ायत के विचार से सेकंड क्लास का टिकट खरीद लिया हो और अब गवारा न हो कि शहर का कोई सफ़ेदपोश उन्हें मँझले दर्जे में सफ़र करता देखे।… अकेले सफ़र का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे और अब किसी सफ़ेदपोश के सामने खीरा कैसे खाएँ?

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न
1. लेखक की पुरानी आदत क्या थी और क्यों?
2. लेखक किस बात का अनुमान करने लगा?
3. लेखक के अनुसार नवाब साहब सेकंड क्लास में सफ़र क्यों कर रहे थे ?
4. नवाब साहब खीरे क्यों नहीं खा रहे थे?
उत्तर :
1. लेखक की पुरानी आदत थी कि वह जब अकेला अथवा खाली होता था, तो अनेक प्रकार की कल्पनाएँ करने लग जाता था। वह एक लेखक था, इसलिए कल्पना के आधार पर अपनी रचनाएँ करता था। खाली समय में इन्हीं कल्पनाओं में डूबा रहता था कि अब क्या नया लिखा जाए।

2. लेखक नवाब साहब के संकोच और असुविधा के कारण का अनुमान करने लगा। वह सोचने लगा कि नवाब साहब अकेले यात्रा करना चाहते होंगे। अधिक किराया खर्च न करना पड़े, इसलिए कुछ बचत करने के विचार से उन्होंने सेकंड क्लास का टिकट ले लिया होगा। अब उन्हें यह अच्छा नहीं लग रहा होगा कि शहर का कोई दूसरा सज्जन उन्हें इस प्रकार द्वितीय श्रेणी में यात्रा करते हुए देखे।

3. लेखक का विचार था कि एकांत में यात्रा करने के उद्देश्य से नवाब साहब ने सेकंड क्लास में यात्रा करना उचित समझा होगा। इसके अतिरिक्त प्रथम श्रेणी में किराया भी अधिक लगता है। सेकंड क्लास में एकांत भी मिल जाएगा और किराए की भी बचत हो जाएगी।

4. लेखक के विचार में नवाब साहब ने अकेले में सफ़र काटने के लिए खीरे खरीद लिए होंगे। अब वे खीरे इसलिए नहीं खा रहे थे, क्योंकि उन्हें लेखक के सामने खीरे जैसी मामूली वस्तु खाने में संकोच हो रहा था।

4. नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा। खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ निश्वास लिया। खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए। फाँक को सूंघा। स्वाद के आनंद में पलकें मुंद गईं। मुँह में भर आए पानी का घूट गले से उतर गया। तब नवाब साहब ने फाँक को खिड़की से बाहर छोड़ दिया। नवाब साहब खीरे की फाँकों को नाक के पास ले जाकर, वासना से रसास्वादन कर खिड़की के बार फेंकते गए।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. ‘सतृष्ण आँखों’ से देखने का क्या तात्पर्य है ? यहाँ कौन ऐसा कर रहा था?
2. नवाब साहब ने खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ निश्वास क्यों लिया?
3. नवाब साहब ने खीरे की फाँक का क्या किया?
4. नवाब साहब ने खीरे का आनंद कैसे लिया?
उत्तर :
1. जिन आँखों में किसी चीज़ को पाने की चाह होती है, उन्हें ‘सतृष्ण आँखें’ कहते हैं। यहाँ नवाब साहब कटे हुए खीरे की नमक-मिर्च लगी फाँकों को खा लेने की इच्छा से देख रहे थे, परंतु वे इन्हें खा नहीं सकते थे।
2. नवाब साहब खिड़की के बाहर देखकर लंबी साँस इसलिए ले रहे थे, क्योंकि वे चाहकर भी खीरा खा नहीं पा रहे थे।
3. नवाब साहब ने नमक-मिर्च लगी हुई खीरे की फाँकों में से एक फाँक उठाई और उसे अपने होंठों तक ले आए। इसके बाद उन्होंने उस फाँक को सँघा। उन्हें इससे इतना आनंद आया कि उनकी पलकें बंद हो गईं। उनके मुँह में पानी भर आया और पानी का यूंट उनके गले से उतर गया। इसके बाद उन्होंने खीरे की फाँक को खिड़की से बाहर फेंक दिया।
4. नवाब साहब ने खीरे का आनंद खीरे की फाँकों को खाकर नहीं, बल्कि उन फाँकों को सूंघकर लिया। सूंघने के बाद वे खीरे की फाँकों को खिड़की से बाहर फेंक देते थे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

5. नवाब साहब ने खीरे की सब फाँकों को खिड़की के बाहर फेंककर तौलिए से हाथ और होंठ पोंछ लिए और गर्व से गुलाबी आँखों से हमारी ओर देख लिया, मानो कह रहे हों- यह है खानदानी रईसों का तरीका! नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए। हमें तसलीम में सिर खम कर लेना पड़ा-यह है खानदानी तहज़ीब, नफ़ासत और नज़ाकत! हम गौर कर रहे थे, खीरा इस्तेमाल करने के इस तरीके को खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से संतुष्ट होने का सूक्ष्म, नफ़ीस या एब्स्ट्रैक्ट तरीका ज़रूर कहा जा सकता है परंतु क्या ऐसे तरीके से उदर की तृप्ति भी हो सकती है? नवाब साहब की ओर से भरे पेट के ऊँचे डकार का शब्द सुनाई दिया और नवाब साहब ने हमारी ओर देखकर कह दिया, ‘खीरा लज़ीज़ होता है लेकिन होता है सकील, नामुराद मेदे पर बोझ डाल देता है।’

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. नवाब साहब ने खीरा खाने की तैयारी कैसे की?
2. नवाब साहब ने खीरे का इस्तेमाल कैसे किया?
3. लेखक को नवाब साहब की किस बात पर अपना सिर झुकाना पड़ा?
4. लेखक किस बात पर विचार कर रहा था?
5. नवाब साहब ने खीरा न खाने का क्या कारण बताया ?
6. नवाब साहब का खीरा खाने का ढंग किस तरह अलग था?
7. नवाब साहब खीरा खाने के अपने ढंग के माध्यम से क्या दिखाना चाहते थे?
8. नवाब साहब ने अपनी खीज मिटाने के लिए क्या किया है?
उत्तर :
1. नवाब साहब ने खीरों के नीचे रखा तौलिया झाड़कर अपने सामने बिछा लिया। सीट के नीचे से पानी का लोटा निकालकर उन्होंने खीरों को खिड़की के बाहर धोया और उन्हें तौलिए से पोंछ लिया। जेब से चाकू निकालकर दोनों खीरों के सिर काटा और उन्हें गोदकर उनका झाग निकाला। खीरों को सावधानी से छीलकर वे उनकी फाँकों को तौलिए पर सजाते गए और उन पर जीरा मिला नमक व लाल मिर्च छिड़क दी।

2. नवाब साहब खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए और उसे सूंघा। फाँक को सूंघने से मिले आनंद से उनकी पलकें बंद हो गईं। उनके मुँह में पानी भर आया, जिसे वे गटक गए। इसके बाद उन्होंने वह फाँक खिड़की से बाहर फेंक दी। ऐसा ही उन्होंने खीरे की अन्य फाँकों के साथ किया। नवाब साहब ने इस प्रकार से खीरे का इस्तेमाल किया।

3. लेखक को नवाब साहब द्वारा खीरे के इस्तेमाल की विधि पर अपना सिर झुकाना पड़ा कि किस प्रकार से अपनी खानदानी शिष्टता, स्वच्छता और कोमलता प्रदर्शित करते हुए नवाब साहब ने खीरे का मात्र सूंघकर आनंद लिया था।

4. लेखक विचार कर रहा था कि जिस प्रकार से नवाब साहब ने मात्र सूंघकर खीरे का आनंद लिया है, क्या इससे पेट की संतुष्टि हो सकती है?

5. नवाब साहब ने खीरा न खाने का कारण बताया कि खीरा होता तो स्वादिष्ट है, परंतु आसानी से पचता नहीं है। इसके सेवन से आमाशय पर बोझ पड़ता है, इसलिए वे खीरा नहीं खाते हैं।

6. नवाब साहब ने बड़े ही सलीके से कटे हुए तथा नमक-मिर्च लगे खीरे की फाँकों को उठाया, उसे सूंघा तथा खाने की बजाय उसे एक-एक करके खिड़की से बाहर फेंक दिया। तत्पश्चात वे ऐसा दर्शाने लगे जैसे खीरा खाने से उनका पेट भर गया हो।

7. नवाब साहब रसास्वादन के माध्यम से तृप्त होने के विचित्र तरीके से अपनी अमीरी को प्रकट करना चाहते थे।

8. नवाब साहब ने अपनी खीज मिटाने के लिए नमक-मिर्च लगी खीरे की फाँकों को सूंघा तथा एक-एक करके बाहर फेंकते रहे तथा खीरा न खाने का कारण यह बताया कि वह आमाशय पर बोझ डालता है।

लखनवी अंदाज़ भगत Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन – हिंदी के यशस्वी उपन्यासकार, कहानी लेखक एवं निबंधकार यशपाल का जन्म 1903 ई० में जाब के फ़िरोज़पुर छावनी में हआ था। इनके पिताजी हीरालाल हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के भुंपल गाँव के निवासी थे, जहाँ वे छोटी-सी दुकान चलाते थे। इनकी माता प्रेमा देवी एक अनाथालय में अध्यापिका थीं। माता स्वयं को शाम चौरासी के मंत्रियों की वंशज मानती थीं। संभवतः यही कारण है कि प्रेमा देवी नौकरी करके अलग रहने लगी थीं। पति की मृत्यु के पश्चात उनका कांगड़ा आना जाना प्रायः समाप्त हो गया था।

यशपाल की प्रारंभिक शिक्षा कांगड़ा में हुई थी। माता उन्हें दयानंद सरस्वती का सच्चा सिपाही बनाना चाहती थी, इसलिए इन्हें पढ़ने के लिए गुरुकुल कांगड़ी में भेजा गया। लेकिन अस्वस्थता के कारण इन्हें गुरुकुल कांगड़ी छोड़ना पड़ा। इसके बाद इन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज से बी० ए० किया। यहीं पर रहते हुए यशपाल क्रांतिकारियों के संपर्क में आए। कांग्रेस के असहयोग आंदोलन में इन्होंने बढ़-चढ़कर भाग लिया।

इन्होंने चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह तथा सुखदेव के साथ काम किया और अनेक बार जेल भी गए। चंद्रशेखर के बलिदान के पश्चात यशपाल ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी’ के कमांडर-इन-चीफ बने और अनेक क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया। वर्ष 1936 के पश्चात इनकी रुचि साम्यवादी विचारधारा में बढ़ी और इन्होंने लखनऊ से ‘विप्लव’ नामक पत्रिका निकालना प्रारंभ किया।

साम्यवादी विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए यशपाल ने निरंतर संघर्ष किया। यशपाल की शादी जेल में ही हुई थी। इन्होंने अनेक बार विदेशों में भ्रमण किया और अपने संस्मरण लिखे। ‘लोहे की दीवार के दोनों ओर’, ‘राह बीती’ तथा ‘स्वार्गोद्यान बिन साँप’ इनके यात्रा वर्णन हैं। दिसंबर 1952 में इन्होंने वियाना में हुए विश्व शांति कांग्रेस में भाग लिया था। सन 1976 ई० में इनकी मृत्यु हो गई।

रचनाएँ – यशपाल मुख्यतः उपन्यासकार हैं। अमिता’, ‘दिव्या’, ‘झूठा सच’, ‘देशद्रोही’, ‘दादा कामरेड’ तथा ‘मेरी तेरी उसकी बात’ उनके प्रमुख उपन्यास हैं। इन्होंने दो सौ से अधिक कहानियाँ लिखी हैं। इनके प्रमुख कहानी-संग्रह ‘ज्ञान-दान’, ‘तर्क का तूफ़ान’, ‘पिंजरे की उड़ान’, ‘फूलों का कुर्ता’ आदि हैं। इनके निबंध ‘विप्लव’ तथा अन्य पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे। इनके प्रसिद्ध निबंध संग्रह हैं-‘बीबी जी कहती हैं मेरा चेहरा रोबीला है’, ‘देखा सोचा-समझा’, ‘मार्क्सवाद’, ‘गांधीवाद की शव परीक्षा’, ‘राम राज्य की कथा’, ‘चक्कर क्लब’, ‘बात-बात में बात’, ‘न्याय का संघर्ष’, ‘जग का मुजरा’ आदि।

भाषा-शैली – यशपाल ने अपनी रचनाओं में सहज एवं स्वाभाविक बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है। इनकी शैली भावपूर्ण, प्रवाहमयी, चित्रात्मक तथा वर्णनात्मक है। लखनवी अंदाज़’ इनकी पतनशील सामंती वर्ग पर कटाक्ष करने वाली रचना है। इसमें लेखक ने आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग किया है।

भाषा उर्दू शब्दों से मिश्रित बोलचाल की है; जैसे – ‘मुफस्सिल की पैसेंजर ट्रेन चल पड़ने की उतावली में फूंकार रही थीं।’ अन्यत्र भी इन्होंने सेकंड क्लास, सफ़ेदपोश, किफ़ायत, गुमान, मेदा, तसलीम, नफ़ासत, नज़ाकत, एवस्ट्रेक्ट, सकील जैसे विदेशी शब्दों का भरपूर प्रयोग किया है। कहीं-कहीं उदर, तृप्ति, प्लावित, स्फुरण जैसे तत्सम शब्द भी दिखाई दे जाते हैं।

इन्होंने शब्दों के माध्यम से वस्तुस्थिति को सजीव रूप भी प्रदान किया है; जैसे-नवाब साहब की यह स्थिति – ‘नवाब साहब खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए। फाँक को सूंघा। स्वाद के आनंद में पलकें मुंद गईं। मुँह में भर आए पानी का घुट गले से उतर गया।’ लेखक ने अपनी सहज भाषा-शैली में रचना को रोचक बना दिया है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

पाठ का सार :

‘लखनवी अंदाज’ पाठ के लेखक यशपाल हैं। इस रचना के माध्यम से लेखक सिद्ध करना चाहता है कि बिना पात्रों व कथ्य के कहानी नहीं लिखी जा सकती, परंतु एक स्वतंत्र रचना का निरूपण किया जा सकता है। इसमें लेखक ने नवाबों के दिखावटी अंदाज़ का वर्णन किया है, जो वास्तविकता से संबंध नहीं रखता। आज के समाज में इस दिखावटी संस्कृति को सहज देखा जा सकता है। लेखक एकांत में नई कहानी पर सोच-विचार करना चाहता था। इसलिए सेकंड क्लास का किराया ज्यादा होते हुए भी उसी का टिकट लिया।

सेकंड क्लास में कोई नहीं बैठता था। गाड़ी छटने वाली थी, इसलिए वह दौड़कर एक डिब्बे में चढ़ गया। जिस डिब्बे को वह खाली समझ रहा था, वहाँ पहले से ही नवाबी नस्ल के एक सज्जन पुरुष विराजमान थे। लेखक का उस डिब्बे में आना उन सज्जन को अच्छा नहीं लगा। नवाब के सामने तौलिए पर दो खीरे रखे थे। नवाब ने लेखक से बातचीत करना पसंद नहीं किया।

लेखक नवाब के बारे में अनुमान लगाने लगा कि उसे उसका आना क्यों अच्छा नहीं लगा। अचानक नवाब ने लेखक से खीरे खाने के लिए पूछा। लेखक ने इनकार कर दिया। नवाब साहब ने दोनों खीरों को धोया; तौलिए से पोंछकर चाकू से दोनों सिरों को काटकर खीरे का झाग निकाला। वे खीरे को बड़े सलीके और नजाकत से संवार रहे थे। उन्होंने खीरों पर नमक-मिर्च लगाया। नवाब साहब का मुंह देखकर ऐसा लग रहा था कि खीरे की फांक देखकर। उनके मुँह में पानी आ रहा है। खीरे की सजावट देखकर खीरा खाने का लेखक का मन हो रहा था, परंतु वह पहले इनकार कर चुका था।

इसलिए नवाब के दोबारा पूछने पर आत्मसम्मान के कारण उन्होंने इनकार कर दिया। नवाब साहब ने खीरे की फाँक उठाई, फाँक को होंठों तक ले गए। उसे सूंघा। खीरे के स्वाद के कारण मुँह में पानी भर गया था। परंतु नवाब। साहब ने फाँक को सँघकर खिड़की के बाहर फेंक दिया। नवाब साहब ने सभी फांकों को बारी-बारी से सूघा और खिड़की से बाहर फेंका दिया। बाद में नवाब साहब ने तौलिए से हाथ पोंछे और गर्व से लेखक की ओर देखा।

ऐसा लग रहा था, जैसे कह रहे हों कि खानदानी रईसों का यह भी खाने का ढंग है। लेखक यह सोच रहा था कि खाने के इस ढंग ने क्या पेट की भूख को शांत किया होगा? इतने में नवाब साहब जोर से डकार लेते हैं। अंत में नवाब साहब कहते हैं कि खीरा खाने में तो अच्छा लगता है, परंतु अपच होने के कारण मैदे पर भारी पड़ता है। लेखक को लगता है कि यदि नवाब बिना खीरा खाए डकार ले सकता है, तो बिना घटना-पात्रों और विचार के कहानी क्यों नहीं लिखी जा सकती?

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

कठिन शब्दों के अर्थ :

मुफस्सिल – केंद्रस्थ नगर के इर्द-गिर्द के स्थान। सफ़ेदपोश – भद्र व्यक्ति, सज्जन पुरुष। किफ़ायत – मितव्यता। आदाब अर्ज़ – अभिवादन करना। गुमान – भ्रम। एहतियात – सावधानी। बुरक देना – छिड़क देना। स्फुरण – फड़कना, हिलना। प्लावित – पानी भर जाना। पनियाती – रसीली। मेदा – आमाशय। तसलीम – सम्मान में। खम – झुकाना। तहज़ीब – शिष्टता। लज़ीज – मजेदार, स्वादिष्ट। नफ़ासत – स्वच्छता। नज़ाकत – कोमलता। गौर करना – विचार करना। नफ़ीस – बढ़िया। एब्स्ट्रैक्ट – सूक्ष्म, जिसका भौतिक अस्तित्व न हो। सकील – आसानी से न पचने वाला। उदर – पेट। तृप्ति – संतुष्टि। इस्तेमाल – प्रयोग। रईस – अमीर। सुगंध – खुशबू, महक। पैसेंजर – यात्री। नस्ल – जाति। ठाली बैठना – खाली बैठना।

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