JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 1 माता का आँचल

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 1 माता का आँचल Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 1 माता का आँचल

JAC Class 10 Hindi माता का आँचल Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है ?
उत्तर :
माँ बच्चे की जन्मदाता तथा पालन-पोषण करने वाली होती है। स्वाभाविक रूप से बच्चा माँ से अधिक लगाव रखता है। माँ भी एक बाप की अपेक्षा हृदय से अधिक प्यार-दुलार करती है। वह बाप की अपेक्षा बच्चों की भावनाओं को अधिक अच्छे ढंग से समझ लेती है। माँ का अपने बच्चे से आत्मिक प्रेम होता है। बच्चा चाहकर भी माँ की ममता को नहीं भुला सकता। यह भी सत्य है कि एक बाप अपने बच्चों को बहुत अधिक प्यार तो दे सकता है, लेकिन एक माँ का हृदय वह कभी प्राप्त नहीं कर सकता। इसलिए प्रस्तुत पाठ में पिता से अधिक लगाव होने पर भी बच्चा विपदा के समय पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है।

प्रश्न 2.
आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है?
उत्तर :
मनुष्य स्वाभाविक रूप से अपनी आयु तथा प्रकृति के लोगों के साथ अधिक जुड़ा रहता है। वह मन से उनकी संगति लेना चाहता है। उनकी संगति में आकर उसके दुख, रोग आदि सब मिट जाते हैं। विशेषकर बच्चा अपने जैसे साथियों की संगति अवश्य चाहता है, क्योंकि उनके बिना उसकी अठखेलियाँ और मौज-मस्ती अधूरी रह जाती हैं। वह अपनी संगति में आकर अपने सारे सुख-दुख भूल जाता है। इसलिए भोलानाथ भी अपने साथियों को देखकर सिसकना भूल जाता है।

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प्रश्न 3.
आपने देखा होगा कि भोलानाथ और उसके साथी जब-तब खेलते-खाते समय किसी न किसी प्रकार की तुकबंदी करते हैं। आपको यदि अपने खेलों आदि से जुड़ी तुकबंदी याद हो तो लिखिए।
उत्तर :
(i) अक्कड़-बक्कड़ बंबे बो,
अस्सी नब्बे पूरे सौ।
सौ पे लगा धागा,
चोर निकलकर भागा।

(ii) पौशम पा भई पौशम पा
डाकिए ने क्या किया
सौ रुपये की घड़ी चुराई
अब तो जेल में जाना पड़ेगा
जेल की रोटी खानी पड़ेगी।
जेल का पानी पीना पड़ेगा।

प्रश्न 4.
भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है?
अथवा
माता के अँचल पाठ में वर्णित खेलों से आज के खेल कितने अलग हैं, उसका तुलनातमक वर्णन कीजिए।
उत्तर :
भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री हमारे खेल और खेलने की सामग्री से निम्नलिखित प्रकार से भिन्न है –
(i) भोलानाथ और उसके साथी तमाशे, नाटक, चिड़ियाँ पकड़ना, घर बनाना, दुकान लगाना आदि खेल खेला करते थे।
हम क्रिकेट खेलना, कार्टून देखना, साइकिल दौड़ाना, सवारी करना, तैरना आदि खेल खेलते हैं।
(ii) भोलानाथ और उसके साथी चबूतरा, चौकी, सरकंडे, पत्ते, गीली मिट्टी, फूटे घडे के टुकडे, ठीकरे आदि सामग्री का प्रयोग करते थे। हम साइकिल, रस्सी, टी०वी०, कंप्यूटर, इंटरनेट, पेन, पेंसिल आदि सामग्री का प्रयोग करते हैं।

प्रश्न 5.
पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों?
उत्तर :
1. देखिए, मैं खिलाती हूँ। मरदुए क्या जाने कि बच्चों को कैसे खिलाना चाहिए और महतारी के हाथ से खाने पर बच्चों का पेट भी भरता है। यह कहकर वह थाली में दही-भात सानती और अलग-अलग तोता, मैना, कबूतर, हंस, मोर आदि के बनावटी नाम से कौर बनाकर यह कहते हुए खिलाती कि जल्दी खा लो, नहीं तो उड़ जाएँगे; पर हम उन्हें इतनी जल्दी उड़ा जाते थे कि उड़ने का मौका ही नहीं मिलता।

2. एक टीले पर जाकर हम लोग चूहों के बिल में पानी डालने लगे। नीचे से ऊपर पानी फेंकना था हम सब थक गए। तब तक गणेशजी के चूहे की रक्षा के लिए शिवजी का साँप निकल आया। रोते-चिल्लाते हम लोग बेतहाशा भाग चले।

3. इसी समय बाबूजी दौड़े आए। आकर झट हमें मइयाँ की गोद से अपनी गोद में लेने लगे पर हमने मइयाँ के आँचल की प्रेम और शांति के चँदोवे की छाया न छोड़ी।

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प्रश्न 6.
इस उपन्यास अंश में तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति का चित्रण है। आज की ग्रामीण संस्कृति में आपको किस तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं ?
उत्तर :
आज की ग्रामीण संस्कृति में हमें अनेक तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं –

  • आज के ग्रामीण परिवेश में बच्चों के परस्पर स्नेह में बँधे हुए झुंड दिखाई नहीं देते।
  • बच्चे बाहर खेलने की अपेक्षा अपने घरों में अधिकांश बँधे रहते हैं।
  • खेलने के लिए पहले जैसे खुले मैदान नहीं रहे।
  • आज उनके खेल तथा खेलने की सामग्री भी बदल चुकी है।
  • आज के बच्चे क्रिकेट खेलना पसंद करते हैं, मिट्टी आदि के ढेलों से नहीं।

प्रश्न 7.
पाठ पढ़ते-पढ़ते आपको भी अपने माता-पिता का लाड़-प्यार याद आ रहा होगा। अपनी इन भावनाओं को डायरी में अंकित कीजिए।
उत्तर :
बचपन में हमें भी सुबह-सवेरे माँ बड़े प्यार से जगाया करती थी। जल्दी-जल्दी नहला-धुलाकर तथा साफ़ कपड़े पहनाकर फिर हमें खेलने के लिए छोड़ देती थीं। पिताजी हमें अपने कंधे पर बिठाकर दूर तक झुलाया करते थे। कभी-कभी आँगन में अपनी पीठ पर बैठाकर घोड़े की तरह झुला दिया करते थे। कभी-कभी वे हमें अपने साथ लेकर नदी में नहलाने के लिए ले जाते थे और अपनी गोदी में लेकर पानी में खूब डुबकियाँ लगाते थे। कई बार पिताजी हमें अपने साथ खेतों में घुमाया करते थे। माँ अपने आँचल में बिठाकर हमें दूध पिलाया करती; भोजन खिलाती थीं। पेट भर जाने पर भी हमसे और खाने के लिए कहती थीं। बच्चों के साथ बाहर खेलने जाते तो बड़े प्यार से समझा-बुझाकर भेजती थीं। अनेक नसीहतें देती थीं।

प्रश्न 8.
यहाँ माता-पिता का बच्चे के प्रति जो वात्सल्य व्यक्त हुआ है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
प्रस्तुत पाठ में बच्चे के प्रति माता-पिता के वात्सल्य का सजीव वर्णन किया गया है। बच्चे का माँ के आँचल में खेलना, माँ द्वारा सुबह बच्चे को नहला-धुलाकर तथा कपड़े आदि पहनाकर खेलने भेजना, पूजा-पाठ आदि करके उसके माथे पर तिलक लगाना आदि का सजीव चित्रण हुआ है। बच्चे का अपने पिता की मूंछों के साथ खेलने का अनूठा वर्णन हुआ है। पिता बच्चों को अपने कंधों पर झुला-झुलाकर उनका मन बहलाता है; उनके साथ कुश्ती करता है। बच्चों का मन खुश करने हेतु हार जाता हैं, जिससे बच्चे खिलखिलाकर हँस पड़ते हैं। माँ बच्चों को तोता, मैना, कबूतर, हंस, मोर आदि के बनावटी नाम देकर उन्हें भोजन खिलाती है। बच्चों को थोड़ी-सी चोट लगने पर माता-पिता दुखी हो जाते हैं। माँ अपने बच्चे को अपने आँचल में छिपाकर उनसे प्यार करती है।

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प्रश्न 9.
‘माता का अँचल’ शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य शीर्षक सुझाइए।
उत्तर :
‘माता का अँचल’ पाठ के माध्यम से लेखक ने माँ के आँचल के प्रेम एवं शांति का वर्णन किया है। लेखक और उसका भाई वैसे तो अधिकतर अपने पिता के साथ रहते हैं। उनके पास सोते हैं, लेकिन जो प्यार और शांति उन्हें माँ के आँचल में मिलती है वैसी पिता के साथ नहीं मिलती। माँ अपने बच्चों को नहला-धुलाकर, कुरता-टोपी, तिलक आदि लगाकर बाहर खेलने के लिए भेजती है। पिता के द्वारा रोटी खिलाने पर भी माँ बच्चों को कबूतर, तोता, मैना आदि के बनावटी नाम देकर रोटी खिलाती है।

पाठ के अंत में भी जब बच्चे साँप से भयभीत होकर घर पहुँचते हैं, तो वे अपनी माँ के आँचल में छिप जाते हैं। उन्हें हुक्का गुड़गुड़ाते हुए पिता अनदेखा कर देते हैं। माँ ही अपने आँचल में लेकर बच्चों की चोट पर हल्दी का लेप लगाती है। काँपते होंठों को बार-बार देखकर उन्हें गले लगा लेती है। उसी समय बाबूजी माँ की गोद से बच्चों को लेना चाहते हैं, लेकिन बच्चे अपनी माता के अँचल की प्रेम और शांति की छाया को नहीं छोड़ते। संभवतः माता का अँचल एक उपयुक्त शीर्षक है। इसका अन्य शीर्षक ‘बचपन’ हो सकता है।

प्रश्न 10.
बच्ने माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं ?
उत्तर :
बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को अपनी क्रीड़ाओं के माध्यम से अभिव्यक्त करते हैं। वे अपने मन की भावनाओं को अपनी क्रीड़ा के माध्यम से प्रकट करते हैं। उनकी भावनाएँ ही उनके प्रेम का प्रतीक होती हैं। वे कभी नाराज़, तो कभी प्रसन्न होकर अपना प्रेम प्रदर्शित करते हैं।

प्रश्न 11.
इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है वह आपके बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है?
उत्तर :
प्रस्तुत पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है, वह हमारे बचपन की दुनिया से पूर्णतः भिन्न है। हमारी दुनिया में परस्पर स्नेह भाव, दोस्ती, विचारों के आदान-प्रदान आदि की कमी है। आज मित्र-मंडली जैसा शब्द भी खो गया सा लगता है, जिसमें परस्पर प्रेमभाव से भरकर, मस्ती में चूर होकर कहीं बाहर खेलने जाए। फिर पहले की अपेक्षा आज की दुनिया में प्राकृतिक खेलों का चलन कम हो गया है और कृत्रिम खेल व सामग्री का चलन बढ़ा है।

आज की दुनिया कृत्रिम उपादानों से घिरी हुई है। उसमें स्वाभाविकता छिप गई है। तमाशे करना, नाटक खेलना, मिट्टी का घर बनाना, चिड़ियों संग खेलना आदि प्राकृतिक खेल तथा सामग्री अब कहीं नहीं मिलती। अब तो हमारी दुनिया कंप्यूटर, टी० वी०, क्रिकेट आदि में उलझकर रह गई है।

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प्रश्न 12.
फणीश्वरनाथ रेणु और नागार्जुन की आंचलिक रचनाओं को पढ़िए।
उत्तर :
फणीश्वर नाथ रेणु हिंदी साहित्य के महान आंचलिक कथाकार हैं। नागार्जुन भी प्रमुख आंचलिक लेखक माने जाते हैं। विद्यार्थी इनकी रचनाएँ पुस्तकालय से लेकर पढ़ें।

JAC Class 10 Hindi माता का आँचल Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘जहाँ बुड्ढों का संग, तहाँ खर्चे का तंग’ प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से समाज में बुजुर्गों की निरंतर उपेक्षा की ओर संकेत किया गया है, कैसे?
उत्तर :
यह सत्य है कि आज के आधुनिक युग में मनुष्य पहले की अपेक्षा अधिक लालची, सीमित तथा स्वार्थी हो गया। उसमें नैतिकता, परस्पर स्नेह, बुजुर्गों का सम्मान, पारिवारिक देखभाल आदि जीवन मूल्य समाप्त हो गए हैं। इसलिए आज वह अपने बुजुर्गों की अपनी मौज-मस्ती में चूर है। बुजुर्ग इसी उपेक्षा के शिकार होकर खर्चे की तंगी के कारण अपना विडंबनापूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे हैं। लेखक ने इस पंक्ति के माध्यम से जहाँ बुजुर्गों के उपेक्षित जीवन के प्रति चिंता व्यक्त की है, वहीं आज के युवा समाज पर कटु व्यंग्य भी किए हैं।

प्रश्न 2.
तारकेश्वर नाथ का नाम ‘भोलानाथ’ कैसे पड़ा?
उत्तर :
बाबूजी सुबह-सवेरे अपने साथ-साथ लेखक तथा उसके भाई को भी उठा दिया करते थे और अपने साथ उन्हें भी नहला-धुलाकर पूजा पर बिठा लिया करते थे पूजा के पश्चात बाबूजी अपने दोनों बेटों के चौड़े मस्तक पर अर्ध चंद्राकार की रेखाएँ बना देते थे। उनके सिर पर लंबी-लंबी जटाएँ थीं। अतः उनके मस्तक पर भभूत बहुत अच्छी लगती थी। इस प्रकार भोले के समान वेश होने के कारण तारकेश्वरनाथ का नाम भोलानाथ पड़ गया।

प्रश्न 3.
‘मरदुए क्या जाने कि बच्चों को कैसे खिलाना चाहिए।’ इस पंक्ति में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से लेखक ने पुरुष समाज पर व्यंग्य किया है। यह सत्य है कि नारी की अपेक्षा पुरुष के अंदर वात्सल्य भावना बहुत कम होती है। माँ के रूप में नारी एक बच्चे को जो लाड़-प्यार दे सकती है, वैसा पिता के रूप में पुरुष नहीं दे सकता। पिता की अपेक्षा माँ बच्चों के मन को झाँककर देख लेती है। वह भावनात्मक रूप से बच्चों के साथ जुड़ी रहती है। इसलिए वह बच्चों की भावनाओं को शीघ्रता से समझ लेती है।

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प्रश्न 4.
पाठ में बच्चों द्वारा जो घरौंदा बनाया था, उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
लेखक की मित्र-मंडली ने जो घरौंदा बनाया था, उसमें धूल की मेंड़ से दीवार बनाई गई और तिनकों का छप्पर। उसमें दातुन के खंभे तथा दियासलाई की पेटियों के किवाड़ लगाए गए। उसके अंदर घड़े के मुँहड़े की चूल्हा-चक्की, दीये की कड़ाही और बाबूजी की पूजा वाली कलछी बनाई गई। घर में पानी का घी, धूल के पिसान और बालू की चीनी से मित्र-मंडली भोजन करती थी। सब लोग घर के अंदर पंगत में बैठकर यह भोजन जीमते थे। इस प्रकार लेखक ने बच्चों का यह अद्भुत घरौंदा बनाया।

प्रश्न 5.
लेखक को उसके पिताजी क्या कहकर पुकारते थे? लेखक अपने माता-पिता को क्या कहकर पुकारता था?
उत्तर :
लेखक के पिता उसे बड़े प्यार से भोलानाथ कहकर पुकारा करते थे। असल में लेखक का नाम ‘तारकेश्वरनाथ’ था। लेखक अपने पिता को ‘बाबूजी’ तथा माता को ‘मइयाँ’ कहकर पुकारता था।

प्रश्न 6.
लेखक के पिता जब रामायण का पाठ करते थे, तब लेखक क्या करता था?
उत्तर :
लेखक के पिता जब सुबह स्नान के बाद रामायण का पाठ करते थे, तब लेखक उनके बगल में बैठकर दर्पण में अपने मुख को निहारता था। ओर देखते थे, तब वह कुछ शरमाकर दर्पण को नीचे रख देता था। यह देखकर लेखक के पिता भी मुस्कुरा पड़ते थे।

प्रश्न 7.
प्रतिदिन सुबह लेखक के पिता उसे किस प्रकार तैयार करते थे?
उत्तर :
लेखक रात को अपने पिता के साथ बैठक में सोया करता था। उसके पिता जब सुबह उठते थे, तब वे अपने साथ लेखक को भी उठा . देते थे। फिर उसे नहलाकर पूजा पर बिठा लेते थे। वे लेखक के माथे पर भभूत का तिलक लगा देते थे।

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प्रश्न 8.
लेखक ‘बम-भोला’ कब बन जाता था?
उत्तर :
जब लेखक के पिता उसके माथे पर भभूति तथा त्रिपुंड लगा देते थे, तो उसका माथा खिल उठता था। लेखक की लंबी-लंबी जटाएँ थीं तथा भभूत लगाने से वह अच्छा खासा ‘बम भोला’ लगता था।

प्रश्न 9.
पूजा-पाठ करने के बाद लेखक के पिता क्या करते थे?
उत्तर :
पूजा-पाठ करने के बाद लेखक के पिता राम-नाम लिखने लगते थे। वे अपनी ‘रामनामा’ बही में हज़ार राम-नाम लिखकर उसे पाठ कर रख देते थे। पाँच सौ बार कागज़ के छोटे-छोटे टुकडों पर राम-नाम लिखकर आटे की गोलियों में लपेटते थे और उन गोलियों को लेकर गंगा जी की ओर चल पड़ते थे। वहाँ वे ये गेलियाँ मछलियों को खिला देते थे।

प्रश्न 10.
जब लेखक के पिता गंगा में आटे की गोलियाँ फेंकते थे, तब लेखक क्या करता था?
उत्तर :
जब लेखक के पिता गंगा में आटे की गोलियाँ फेंककर मछलियों को खिलाते थे, तब लेखक उनके कंधे पर विराजमान होता था और बैठे-बैठे हँसा करता था। जब उसके पिताजी मछलियों को चारा खिलाकर घर वापस लौटते थे, तब बीच रास्ते में उसको पेड़ों की डालों पर बिठाकर झूला झुलाते थे।

प्रश्न 11.
बैजू कौन था ? वह किसे चिढ़ाता था?
उत्तर :
बैजू लेखक की मंडली का एक लड़का था। वह सभी लड़कों में बड़ा ढीठ था। बैजू मूसन तिवारी को चिढ़ाता था। वह उन्हें चिढ़ाने के लिए कहता था कि ‘बुढ़वा बेईमान माँगे करैला का चोखा।’

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प्रश्न 12.
लेखक के पिता ने यह क्यों कहा कि ‘लड़के और बंदर पराई पीर नहीं समझते।’
उत्तर :
लेखक के पिता ने ऐसा इसलिए कहा, क्योंकि बच्चे अपने खेल, आनंद तथा मौज-मस्ती के लिए किसी का भी मजाक उड़ाने से पीछे नहीं हटते; फिर चाहे जिसका मज़ाक वे उड़ा रहे हैं; उसे कितना ही कष्ट क्यों न हो। उन्हें इससे कोई मतलब नहीं होता। यही काम बंदरों का भी है। इसलिए लेखक के पिता ने कहा कि लड़के और बंदर पराई पीर नहीं समझते।’

प्रश्न 13.
लेखक और उसके मित्रों ने जब चूहे के बिल में पानी डाला, तब क्या हुआ?
उत्तर :
लेखक और उसके मित्रों ने जब चूहे के बिल में पानी डाला, तो उसके अंदर से साँप निकल आया। उसे देखकर सभी लड़के वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गए।

प्रश्न 14.
बिल में से साँप निकलने पर बच्चों का क्या हाल हुआ?
उत्तर :
जब बिल में से साँप निकला, तो बच्चे रोते-चिल्लाते बेतहाशा भागे। कोई औंधा गिरा, कोई अंटाचिट। किसी का सिर फूटा, किसी के दाँत टूटे। लेखक का सारा शरीर लहूलुहान हो गया। उसके पैर के तलवे काँटों से छलनी हो गए थे।

माता का आँचल Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन-परिचय – शिवपूजन सहाय का जन्म सन 1893 में गाँव उनवास जिला शाहाबाद (बिहार) में हुआ। इनके बचपन का नाम भोलानाथ था। दसवीं की परीक्षा पास करने के बाद इन्होंने बनारस की अदालत में नकलनवीस की नौकरी की। बाद में ये हिंदी के अध्यापक बन गए। असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर इन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। शिवपूजन सहाय तत्कालीन लेखकों में बहुत लोकप्रिय और सम्मानित व्यक्ति थे। इन्होंने जागरण, हिमालय, माधुरी, बालक आदि कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का संपादन किया। इसके साथ ही ये हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिका मतवाला के संपादक-मंडल में थे। सन 1963 में इनका देहांत हो गया।

रचनाएँ – शिवपूजन सहाय मुख्यतः गद्य लेखक थे। देहाती दुनिया, ग्राम सुधार, वे दिन वे लोग, स्मृतिशेष आदि इनकी दर्जन भर गद्य-कृतियाँ प्रकाशित हुई हैं। शिवपूजन रचनावली के चार खंडों में इनकी संपूर्ण रचनाएँ प्रकाशित हैं।

साहित्यिक विशेषताएँ – शिवपूजन सहाय आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख साहित्यकार माने जाते हैं। इन्होंने युगीन समाज की विडंबनाओं, समस्याओं, सामाजिक एवं राजनीतिक विषयों आदि का यथार्थ चित्रण किया है। समाज में बढ़ रहे शोषण के विरुद्ध इन्होंने आवाज़ उठाई है। इन्होंने सामाजिक कुरीतियों का डटकर विरोध करते हुए नारी में चेतना जागृत करने का प्रयास भी किया। सहाय जी ने ग्राम्य संस्कृति का अनूठा चित्रण किया है। देहाती दुनिया, ग्राम-सुधार, माता का आँचल आदि ऐसी प्रमुख रचनाएँ हैं जिनमें ग्राम्य संस्कृति, रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज आदि का सजीव अंकन हुआ है। माता का आँचल में लेखक ने माँ के आँचल की गरिमा तथा ग्राम्य संस्कृति का अनूठा वर्णन किया है। इन्होंने स्पष्ट शब्दों में बताया है कि युवा वर्ग मस्ती में चूर रहता है, तो बुजुर्ग लोग बेबस होने के कारण अपनी आजीविका चलाने हेतु खर्चे से भी तंग हो जाते हैं। उन्होंने कहा है –

जहाँ लड़कों का संग, तहाँ बाजे मृदंग।
जहाँ बुड्ढों का संग, तहाँ खर्चे का तंग॥

सहाय जी की भाषा-शैली सरल-सरस खड़ी बोली है। इनकी भाषा में लोक जीवन और लोक संस्कृति के प्रसंग सहज ही मिल जाते हैं। इनकी भाषा में आंचलिक शब्दों का प्रचुर प्रयोग हुआ है। इसके साथ-साथ तत्सम, तद्भव, उर्दू, फारसी, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। इन्होंने वर्णनात्मक, चित्रात्मक, विवरणात्मक शैलियों का भावपूर्ण प्रयोग किया है। मुहावरों एवं लोकोक्तियों के प्रयोग से इनकी भाषा में रोचकता एवं प्रवाहमयता उत्पन्न हो गई है। संभवतः शिवपूजन सहाय हिंदी साहित्य के महान लेखक थे। इनका हिंदी साहित्य में अपूर्व योगदान है।

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पाठ का सार :

शिवपूजन सहाय द्वारा लिखित ‘माता का अँचल’ उनके उपन्यास का अंश है। प्रस्तुत पाठ में लेखक ने माँ के अंचल की ‘ममता’ के साथ-साथ ग्राम्य संस्कृति का अनूठा चित्रांकन किया है। समाज में युवा जहाँ मौज-मस्ती में रहते हैं, वहाँ बजर्ग कठिनता से जीवनयापन कर पाते हैं। लेखक ने बताया है कि उसके पिता सुबह उठकर स्नान कर पूजा-पाठ करते थे। वे लेखक तथा उसके भाई को भी पूजा-स्थान पर बैठा लेते थे।

लेखक अधिकांश अपने पिता के साथ रहता था। पूजा के बाद पिता उसके माथे पर भभूत और तिलक लगाकर उसे भोलानाथ कहकर पुकारते थे। बाबूजी द्वारा रामायण पाठ करते समय वे दोनों भाई आईने में अपना मुँह निहारा करते थे। इसके बाद बाबूजी अपनी ‘रामनामा बही’ में हज़ार बार राम नाम लिखकर उसे पाठ करने की पोथी के साथ बंद करके रख देते थे। बाबूजी द्वारा गंगा में मछलियों को आटे की गोलियाँ खिलाते समय दोनों भाई उनके कंधों पर बैठे हँसते थे।

कभी-कभी बाबूजी उनसे कुश्ती करते थे। वे दोनों अपने बाबूजी की लंबी-लंबी मूंछों के साथ खेलते थे। बाबूजी प्यार से उन्हें चूमते थे। घर आकर बाबूजी उन्हें चौके पर बिठाकर अपने हाथों से खाना खिलाया करते थे। लेखक तथा उसके भाई के मना करने पर उनकी माँ बड़े प्यार से तोता, मैना, कबूतर, हँस, मोर आदि के बनावटी नाम से टुकड़े बनाकर उन्हें दही-भात खिलाती थी। छककर खाने के बाद वे नग-धडंग अवस्था में बाहर दौड़ पड़ते थे। कभी अचानक माँ पकड़ ले, तो वे उनकी चोटी गूंथकर तथा उन्हें कुरता-टोपी पहनाकर ही छोड़ती थीं। वे सिसकते-सिसकते बाबूजी की गोद में बाहर आते।

बाहर आते ही वे बालकों के झुंड के साथ मौज-मस्ती में डूब जाते थे। वे चबूतरे पर बैठकर तमाशे और नाटक किया करते थे। मिठाइयों की दुकान; जिसमें पत्ते की पूरियाँ, मिट्टी की जलेबियाँ आदि मिलती है; लगाया करते थे। सभी बच्चों के साथ मिलकर वे घर बनाते थे, जिसमें तिनकों का छप्पर, दातून के खंभे, दीए की कड़ाही आदि रखे जाते थे। उसी घरौंदे में सभी पंक्ति में बैठ जीमने लगते। बाबूजी भी उनके पास चले आते थे। कभी-कभी वे बारात का जुलूस निकालते थे, जिसमें कनस्तर का तंबूरा और आम के पौधे की शहनाई बजती।

टूटी चूहेदानी की पालकी बनती और समधी बनकर बकरे पर चढ़ जाते। यह बारात एक कोने से दूसरे कोने तक जाती थी। कभी मित्रमंडली इकट्ठी होकर खेती करने लगती। इस प्रकार के नाटक वे प्रतिदिन खेला करते थे। किसी दूल्हे के आगे चलती पालकी देखते ही ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगते। एक बार बूढ़े वर ने खदेलकर लेखक मंडली को ढेलों से मारा। एक बार रास्ते में आते हुए मूसन तिवारी को बुढ़वा बेईमान कहकर चिढ़ा दिया। मूसन तिवारी ने उनको खूब खदेड़ा। उसके बाद मूसन तिवारी पाठशाला पहुँच गए।

वहाँ चार लड़कों में से बैजू तो भाग निकला, लेकिन लेखक और उसका भाई पकड़ा गया। यह सुनकर बाबूजी पाठशाला दौड़ें आए। गुरुजी से विनती कर बाबूजी उन्हें घर ले आए। फिर वे रोना-धोना भूलकर अपनी मित्र मंडली के साथ हो गए। उनके मित्र मकई के खेत में चिड़ियों को पकड़ने लगे, वे खेत से अलग होकर ‘रामजी की चिरई, रामजी का खेत खा लो चिरई भर-भर पेट’ गीत गाते रहे। कुछ दूरी पर बाबूजी तथा अन्य गाँव के लोग यह तमाशा देख रहे थे। एक टीले पर जाकर लेखक और उसका भाई अपने मित्रों के साथ मिलकर चूहों के बिल में पानी डालने लगे।

कुछ देर बाद उसमें से गणेशजी के चूहे की रक्षा के लिए शिव का सांप निकल आया। उससे डरकर वे रोते-चिल्लाते वहाँ से भाग चले। गिरते-फिसलते, काँटों में चलते वे सब खून से लथपथ हो गए। सभी अपने-अपने घर में घुस गए। उस समय बाबूजी बरामदे में बैठे हुक्का पी रहे थे। वे दोनों अपनी माँ की गोद में जाकर बैठ गए। उन्हें डर से कांपते हुए देखकर लेखक की माँ रोने लगी। वह व्याकुल होकर कारण पूछने लगी। कभी उन्हें अपने आँचल में छिपाती, तो कभी प्यार करने लगती। माँ ने तुरंत हल्दी पीसकर लेखक और उसके भाई के घावों पर लगाई। उनका शरीर काँप रहा था। आँखें चाहकर भी खुलती न थीं। बाबूजी दौड़कर उन्हें गोद में लेने लगे, लेकिन वे अपनी माँ के आँचल में ही छुपे रहे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 1 माता का आँचल

कठिन शब्दों के अर्थ :

मृदंग – एक प्रकार का वाद्य-यंत्र। संग – के साथ। तड़के – प्रातः, सुबह। लिलार – ललाट, माथा। त्रिपुंड – एक प्रकार का तिलक जिसमें माथे पर तीन आड़ी या अर्धचंद्र के आकार की रेखाएँ बनाई जाती हैं। जटाएँ – बाल। भभूत – राख। विराजमान – स्थापित, बैठना। उतान – पीठ के बल लेटना। सामकर – मिलाकर। अफ़र जाते – भरपेट खा लेते। ठौर – स्थान। कड़वा तेल – सरसों का तेल। बोथकर – सराबोर कर देना। चॅदोआ – छोटा शमियाना। ज्योनार – भोज, दावत। जीमने – भोजन करना। कनस्तर – टीन का एक ओहार – परदे के लिए डाला हुआ कपड़ा। अमोले – आम का उगता हुआ पौधा। कसोरे – मिट्टी का बना छिछला कटोरा। रहरी – अरहर। अँठई – कुत्ते के शरीर में चिपके रहने वाले छोटे कीड़े। चिरौरी – विनती, प्रार्थना। मइयाँ – माँ। महतारी – माँ। अमनिया – साफ़, शुद्ध। ओसारे में – बरामदे में।

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