JAC Class 11 History Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

Jharkhand Board JAC Class 11 History Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते Important Questions and Answers.

JAC Board Class 11 History Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1. जापान में मेजी पुनस्स्थापना हुई-
(अ) 1876-77
(ब) 1867-68
(स) 1767-68
(द) 1858-59
उत्तर:
(ब) 1867-68

2. मेजी पुनर्स्थापना से पहले जापान में वास्तविक सत्ता किसके हाथ में थी?
(अ) सम्राट्
(ब) प्रधानमन्त्री
(स) सेना
(द) शोगुन।
उत्तर:
(द) शोगुन।

3. अमरीका के किस कमोडोर ने जापान की सरकार को समझौता करने पंर बाध्य किया?
(अ) नेल्सन
(ब) वाशिंगटन
(स) मैथ्यू पेरी
(द) जेफर्सन।
उत्तर:
(स) मैथ्यू पेरी

4. तनाको शोजो ने औद्योगिक प्रदूषण के विरुद्ध आन्दोलन कब शुरू किया?
(अ) 1870
(ब) 1770
(स) 1970
(द) 1897
उत्तर:
(द) 1897

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5. चीन में गणतन्त्र की स्थापना हुई-
(अ) 1911
(ब) 1890
(स) 1901
(द) 1949
उत्तर:
(अ) 1911

6. चीन में 1911 में गणतन्त्र की स्थापना किसके नेतृत्व में हुई?
(अ) चाउ एन लाई
(ब) कांग युवेई
(स) च्यांग काई शेक
(द) डॉ. सनयात सेन।
उत्तर:
(द) डॉ. सनयात सेन।

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-

1. साम्राज्यवादी जापान ने ……………. में अपनी कॉलोनी के रूप में कोरिया पर जबरन कब्जा कर लिया।
2. 1949 में …………….. ने ताइवान में चीन गणतंत्र की स्थापन की।
3. पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार ……………. में कायम हुई।
4. ……………… की साम्यवादी पार्टी की स्थापना 1921 में हुई थी।
5. अमरीकी नेतृत्व वाले कब्जे $(1945-47)$ के दौरान जापान का ………………. कर दिया गया।।
उत्तर:
1. सन् 1910
2. चियांग काई – शेक
3. 1949 ई.
4. चीन
5. विसैन्यीकरण

निम्न में से सत्य / असत्य कथन छाँटिये –

1. जापान ने चीन को 1894 में हराया और 1905 में रूस को पराजित किया।
2. 1945 में आंग्ल-अमरीकी सैन्य शक्ति के सामने चीन को हार माननी पड़ी।
3. हान चीन का सबसे बड़ा जातीय समूह है।
4. जापान में 1867-68 में तोकुगवा वंश के नेतृत्व में मेजी वंश का शासन समाप्त किया गया।
5. सन यात सेन के विचार कुओमीनतांग के राजनीतिक दर्शन के आधार बने।
उत्तर:
1. सत्य
2. असत्य
3. सत्य
4. असत्य
5. सत्य

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निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइये –

1. सन यात सेन (अ) ताईवान में चीनी गणतंत्र के संस्थापक
2. चियांग काई शेक (ब) दक्षिणी कोरिया के राष्ट्रपति
3. माओत्से तुंग (स) मेजी काल के प्रमुख जापानी बुद्धिजीवी
4. मून जे-इन (द) चीनी समाजवादी पार्टी के प्रमुख नेता
5. फुकुजावा यूकिची (य) कुओमीनतांग के नेता

उत्तर:

1. सन यात सेन (य) कुओमीनतांग के नेता
2. चियांग काई शेक (अ) ताईवान में चीनी गणतंत्र के संस्थापक
3. माओत्से तुंग (द) चीनी समाजवादी पार्टी के प्रमुख़ नेता
4. मून जे-इन (ब) दक्षिणी कोरिया के राष्ट्रपति
5. फुकुजावा यूकिची (स) मेजी काल के प्रमुख जापानी बुद्धिजीवी

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
1603 से 1867 तक जापान में कौन से परिवार के लोग शोगुन के पद पर आसीन थे ?
उत्तर:
तोकुगावा।

प्रश्न 2.
जापान का योद्धा वर्ग क्या कहलाता था ?
उत्तर:
समुराई।

प्रश्न 3.
17वीं शताब्दी के मध्य तक जापान का कौनसा शहर दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर बन गया था?..
उत्तर:
एदो।

प्रश्न 4.
जापान की किस बस्ती का रेशम दुनिया भर में उत्कृष्ट कोटि का रेशम माना जाता था ?
उत्तर:
निशिजिन का।

प्रश्न 5.
जापान में ‘मेजी पुनर्स्थापना’ कब हुई ?
उत्तर:
1867-68 में।

प्रश्न 6.
अमेरिका के किस जलसेनापति ने जापानी सरकार को अमेरिका के साथ व्यापारिक और राजनयिक सम्बन्ध स्थापित करने के लिए बाध्य किया?
उत्तर:
कॉमोडोर मैथ्यू पेरी ने।

प्रश्न 7.
जापान की सरकार ने किस नारे के साथ आधुनिकीकरण की नीति की घोषणा की?
उत्तर:
‘फुकोको क्योहे’ (समृद्ध देश, सुदृढ़ सेना) के नारे के साथ।

प्रश्न 8.
जापान की पहली रेलवे लाइन कब बिछाई गई ?
उत्तर:
1870-72 में।

प्रश्न 9.
जापान में आधुनिक बैंकिंग संस्थाओं का प्रारम्भ कब हुआ ?
उत्तर:
र – 1872 में।

प्रश्न 10.
जापान के किस प्रमुख बुद्धिजीवी ने जापान को एशियाई लक्षण छोड़कर अपना पश्चिमीकरण करने की सलाह दी थी?
उत्तर:
फुकुजावा यूकिची ने।

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प्रश्न 11.
तोक्यो में ओलम्पिक खेल कब हुए?
उत्तर:
1964 में।

प्रश्न 12.
आधुनिकीकरण के अन्तर्गत किस नगर को जापान की राजधानी बनाया गया?
उत्तर:
तोक्यो को

प्रश्न 13.
चीन और ब्रिटेन के बीच प्रथम अफीम युद्ध कब हुआ ?
उत्तर:
1839-1842 में।

प्रश्न 14.
आधुनिक चीन के संस्थापक कौन माने जातें हैं ?
उत्तर;
डॉ. सनयात सेन।

प्रश्न 15.
चीन में गणतन्त्र की स्थापना कब हुई और किसके नेतृत्व में हुई ?
उत्तर:
(1) 1911 में
(2) डॉ. सन – यात – सेन के नेतृत्व में।

प्रश्न 16.
डॉ. सनयात सेन का कार्यक्रम किसके नाम से प्रसिद्ध है ?
उत्तर:
तीन सिद्धान्त (सन मिन चुई) के नाम से।

प्रश्न 17.
डॉ. सनयात सेन के तीन सिद्धान्त कौन से थे?
उत्तर:
(1) राष्ट्रवाद
(2) गणतन्त्र की स्थापना
(3) समाजवाद।

प्रश्न 18.
डॉ. सनयात सेन ने किस दल की स्थापना की ?
उत्तर”
‘कुओमिनतांग’ की।

प्रश्न 19.
डॉ. सनयात सेन ने किन चार बड़ी जरूरतों पर बल दिया ?
उत्तर:
(1) कपड़ा
(2) रोटी
(3) मकान
(4) परिवहन।

प्रश्न 20.
जापान ने मन्चूरिया पर कब आक्रमण किया?
उत्तर:
1931 में।

प्रश्न 21.
जापान ने मन्चूरिया पर अधिकार करके वहाँ किसके नेतृत्व में सरकार का गठन किया ?
उत्तर:
मन्चुकाओ के नेतृत्व में।

प्रश्न 22.
चीन में साम्यवादी दल की स्थापना कब हुई ?
उत्तर:
1921 में।

प्रश्न 23.
चीन की तीन प्रमुख नदियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) पीली नदी (हुआंग हे )
(2) यांग्त्सी नदी (छांग जिआंग) तथा
(3) पर्ल नदी।

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प्रश्न 24.
जापान की भौगोलिक स्थिति समझाइए।
उत्तर:
जापान एक द्वीप – शृंखला है, जिसमें चार सबसे बड़े द्वीप हैं –
(1) होंशु
(2) क्युशू
(3) शिकोकू
(4) होकाइदो। ओकिनावा द्वीपों की श्रृंखला सबसे दक्षिण में है।

प्रश्न 25.
शोगुन कौन थे ?
उत्तर:
जापान की वास्तविक सत्ता शोगुनों के हाथ में थी जो सैद्धान्तिक रूप से सम्राट् के नाम पर शासन करते थे।

प्रश्न 26.
जापान अमीर देश क्यों समझा जाता था ?
उत्तर:
जापान चीन से रेशम तथा भारत से कपड़ा जैसी विलासी वस्तुएँ आयात करता था। इस कारण जापान अमीर देश समझा जाता था।

प्रश्न 27.
निशिजिन क्यों प्रसिद्ध था ?
अथवा
‘निशिजिन’ के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
निशिजिन क्योतो की एक बस्ती है। यहाँ बड़े पैमाने पर रेशम का उत्पादन किया जाता था। यहाँ केवल विशिष्ट प्रकार के महँगे उत्पाद बनाए जाते थे।

प्रश्न 28.
मुरासाकी शिकिबु कौन थी ? उसने किस ग्रन्थ की रचना की थी ?
उत्तर:
मुरासाकी शिकिबु जापान की एक प्रसिद्ध लेखिका थी। उसने ‘दि टेल ऑफ गेंजी’ (गेंजी की कथा ) नामक ग्रन्थ की रचना की थी।

प्रश्न 29.
‘मेजी पुनर्स्थापना’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
1867-68 में मेजी वंश के नेतृत्व में तोकुगावा वंश का शासन समाप्त कर दिया गया। अब वास्तविक सत्ता सम्राट के हाथ में आ गई।

प्रश्न 30.
अमरीका जापान में अपना प्रभाव क्यों बढ़ाना चाहता था ?
उत्तर:
अमरीका को प्रशान्त महासागर में अपने बेड़ों के लिए ईंधन प्राप्त करने के लिए स्थान की आवश्यकता थी।

प्रश्न 31.
अमरीका के किस जल-सेनापति के साथ जापान के शोगुन को सन्धि करनी पड़ी और कब ?
उत्तर:
(1) कमोडोर मैथ्यू पेरी के साथ
(2) 1854 ई. में। इस सन्धि के अनुसार जापान ने अमरीका के साथ राजनयिक तथा व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित किये।

प्रश्न 32.
पेरी के आगमन का जापानी राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
सम्राट का अचानक महत्त्व बढ़ गया। 1868 में एक आन्दोलन द्वारा शोगुन को सत्ता से हटा दिया गया।

प्रश्न 33.
जापान की सरकार ने ‘फुकोकु क्योहे’ के नारे के साथ नई नीति की घोषणा की? यह नीति क्या थी?
उत्तर:
जापान की सरकार ने ‘फुकोकु क्योहे’ (समृद्ध देश, मजबूत सेना) के नारे के साथ नई नीति की घोषणा की।

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प्रश्न 34.
जापान की सरकार ने ‘सम्राट्-व्यवस्था’ के पुनर्निर्माण का काम शुरू किया ‘सम्राट् व्यवस्था’ को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘सम्राट् व्यवस्था’ में सम्राट्, नौकरशाही तथा सेना इकट्ठे सत्ता चलाते थे और नौकरशाही व सेना सम्राट् के प्रति उत्तरदायी होते थे।

प्रश्न 35.
जापानी सरकार द्वारा सैन्य क्षेत्र में किये गये दो सुधारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) 20 वर्ष से अधिक आयु के नवयुवकों के लिए सेना में काम करना अनिवार्य कर दिया गया।
(2) एक आधुनिक सैन्य-बल तैयार किया गया।

प्रश्न 36.
लोकतान्त्रिक संविधान तथा आधुनिक सेना को महत्त्व देने के दो परिणाम लिखिए।
उत्तर:
(1) सेना ने साम्राज्य – विस्तार के उद्देश्य से मजबूत विदेश नीति के लिए दबाव डाला।
(2) जापान आर्थिक रूप से विकास करता गया।

प्रश्न 37.
जापान में पहली रेल लाइन कब बनाई गई ?
उत्तर:
जापान की पहली रेल लाइन 1870-72 में तोक्यो और योकोहामा के बन्दरगाह के बीच बिछाई गई।

प्रश्न 38.
तनाका शोजो कौन था ?
उत्तर:
तनाका शोजो जापान की संसद के पहले निम्न सदन का सदस्य था। 1897 में उसने औद्योगिक प्रदूषण के विरुद्ध पहला आन्दोलन शुरू किया।

प्रश्न 39.
फुकुजावा यूकिची कौन था? उसने जापान के आधुनिकीकरण के सम्बन्ध में क्या सुझाव दिए?
उत्तर:
फुकुजावा यूकिची जापान का मेजी काल का एक प्रमुख बुद्धिजीवी था। उसका कहना था कि जापान को अपने एशियाई लक्षण छोड़ कर पश्चिम का हिस्सा बन जाना चाहिए।

प्रश्न 40.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, जापान के किन नगरों पर नाभिकीय बम गिराए गए और क्यों गिराए गए ?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध को जल्दी समाप्त करने के लिए संयुक्त राज्य अमरीका ने जापान के दो नगरों- हिरोशिमा और नागासाकी पर नाभिकीय बम गिराए।

प्रश्न 41.
द्वितीय विश्व युद्ध में पराजित होने के बाद भी जापानी अर्थव्यवस्था का तेजी से पुनर्निर्माण हुआ। इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
(1) 1964 में जापान में ओलम्पिक खेल जापानी अर्थव्यवस्था की मजबूती के प्रमाण हैं।
(2) 1964 में जापान में बुलेट ट्रेन का जाल शुरू हुआ।

प्रश्न 42.
प्रथम अफीम युद्ध किन देशों के बीच हुआ और कब हुआ ?
उत्तर:
चीन और ब्रिटेन के बीच 1839-42 में प्रथम अफीम युद्ध हुआ।

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प्रश्न 43.
चीन के विचारक लियांग किचाऊ ने भारत के विषय में क्या विचार प्रकट किये थे ?
उत्तर:
1903 में लियांग किचाऊ ने लिखा था कि भारत एक कम्पनी के हाथों बर्बाद हो गया, ईस्ट इण्डिया कम्पनी के।

प्रश्न 44.
चीन में गणतन्त्र की स्थापना किसके नेतृत्व में हुई और कब ?
उत्तर:
1911 में चीन में मांचू साम्राज्य समाप्त कर दिया गया और डॉ. सन यात सेन के नेतृत्व में गणतन्त्र की स्थापना की गई।

प्रश्न 45.
डॉ. सनयात सेन कौन थे ?
उत्तर:
डॉ. सनयात सेन आधुनिक चीन के संस्थापक थे।

प्रश्न 46.
कुओमिनतांग दल की स्थापना किसने की थी ?
उत्तर:
डॉ. सनयात सेन ने कुओमिनतांग दल की स्थापना की थी।

प्रश्न 47.
च्यांग काई शेक कौन थे?
उत्तर:
डॉ. सनयात सेन की मृत्यु के बाद च्यांग काई शेक कुओमिनतांग के प्रमुख नेता बने।

प्रश्न 48.
चीन की साम्यवादी पार्टी की स्थापना कब हुई? इसके प्रमुख नेता कौन थे ?
उत्तर:
(1) चीन की साम्यवादी पार्टी की स्थापना 1921 में हुई थी।
(2) इसके प्रमुख नेता माओत्से तुंग थे।

प्रश्न 49.
माओत्से तुंग के आमूल परिवर्तनवादी दो तरीकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) माओत्से तुंग ने मजबूत किसान परिषद् का गठन किया, जमीन पर कब्जा और पुनर्वितरण के साथ एकीकरण हुआ।
(2) उन्होंने आजाद सरकार और सेना पर बल दिया

प्रश्न 50.
लाँग मार्च से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
च्यांग काई शेक के सैनिकों द्वारा आक्रमण करने पर माओत्से तुंग के नेतृत्व में साम्यवादियों को लाँग मार्च (1934-35) पर जाना पड़ा।

प्रश्न 51.
चीन में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (चीनी जनवादी गणतन्त्र) की स्थापना कब हुई ?
उत्तर:
1949 में चीन में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना हुई, जो ‘नए लोकतन्त्र’ के सिद्धान्तों पर आधारित थी।

प्रश्न 52.
लम्बी छलांग वाले आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? यह कब शुरू हुआ ?
उत्तर:
1958 में चीन में लम्बी छलांग वाले आन्दोलन की शुरुआत हुई। इसके द्वारा देश का तेजी से औद्योगीकरण करने का प्रयास किया गया।.

प्रश्न 53.
महान् सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति क्या थी? यह किसने शुरू की और कब ?
उत्तर:
1965 में माओत्से तुंग ने महान् सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति शुरू की थी। पुरानी संस्कृति, पुराने रीति- रिवाजों और पुरानी आदतों के विरुद्ध अभियान छेड़ा गया।

प्रश्न 54.
1978 में साम्यवादी पार्टी ने आधुनिकीकरण के लिए किस चार सूत्री लक्ष्य की घोषणा की थी ?
उत्तर:
1978 में साम्यवादी पार्टी ने आधुनिकीकरण के लिए एक चार-सूत्री लक्ष्य की घोषणा की थी। ये थे- विज्ञान, उद्योग, कृषि और रक्षा का विकास।

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प्रश्न 55.
सन् 1392 से 1910 तक कोरिया में किस राज वंश का शासन था ?
उत्तर:
सन् 1392 से 1910 तक कोरिया में जोसोन राजवंश का शासन था।

प्रश्न 56.
किस साम्राज्यवादी देश ने 1910 में कोरिया पर कब्जा कर लिया था ?
उत्तर:
साम्राज्यवादी देश जापान ने 1910 में अपनी कॉलोनी के रूप में कोरिया पर जबरन कब्जा कर लिया था।

प्रश्न 57.
कोरिया से जापानी औपनिवेशिक शासन कब समाप्त हुआ?
उत्तर:
कोरिया से जापानी औपनिवेशिक शासन अगस्त, 1945 में द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के साथ समाप्त हुआ।

प्रश्न 58.
कोरिया का विभाजन कब स्थायी रूप से स्थापित हो गया ?
उत्तर:
1948 में उत्तर और दक्षिण कोरिया में अलग-अलग सरकारें स्थापित होने के साथ कोरिया का विभाजन स्थायी रूप से स्थापित हो गया।

प्रश्न 59.
उत्तर व दक्षिण कोरिया के बीच युद्ध कब लड़ा गया ?
उत्तर:
दोनों कोरिया के बीच जून, 1950 से जुलाई, 1953 तक युद्ध लड़ा गया।

प्रश्न 60.
दक्षिण कोरिया को युद्ध में किस राष्ट्र की सेना ने समर्थन किया ?
उत्तर:
र – अमेरिकी अगुवाई वाली संयुक्त राष्ट्र सेना ने।

प्रश्न 61.
दक्षिण कोरिया के पहले राष्ट्रपति कौन थे ?
उत्तर:
सिन्गमैन री

प्रश्न 62.
‘पार्क चुंग ही’ दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति कब से कब तक रहे ?
उत्तर:
‘पार्क चुंग ही ‘ मई, 1961 से अक्टूबर, 1979 तक दक्षिण कोरिया के राष्अपति रहे।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शोगुन कौन थे? उनकी शासन व्यवस्था में क्या भूमिका थी?
उत्तर:
शोगुन – जापान में शासन का प्रमुख सम्राट् होता था जो क्योतो में रहता था। परन्तु बारहवीं शताब्दी में वास्तविक सत्ता शोगुनों के हाथ में आ गई। वे सैद्धान्तिक रूप से सम्राट् के नाम पर शासन करते थे। शासन व्यवस्था में शोगुनों की भूमिका-जापान में 1603 से 1867 तक तोकुगावा परिवार के लोग शोगुन पद पर आसीन थे। जापान 250 भागों में विभाजित था, जिनका शासन दैम्पो चलाते थे। शोगुन इन दैम्पो तथा समुराई (योद्धा वर्ग) पर नियन्त्रण रखते थे। शोगुन दैम्पो को लम्बी अवधि के लिए राजधानी एदो ( आधुनिक तोक्यो ) में रहने का आदेश देते थे, ताकि वे कोई खतरा उत्पन्न न कर सकें। शोगुन प्रमुख शहरों और खदानों पर भी नियन्त्रण रखते थे

प्रश्न 2.
शोगुनों के समय में जापान के नगरों के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शोगुनों के समय में जापान के नगरों का विकास-जापान में दैम्पो की राजधानियों का आकार बढ़ता गया जिसके परिणामस्वरूप 17वीं शताब्दी के मध्य तक जापान में एदो विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर बन गया। एदो के अतिरिक्त ओसाका तथा तोक्यो भी बड़े शहरों के रूप में विकसित हुए। जापान में कम से कम 6 ऐसे गढ़ वाले शहरों का उदय हुआ, जिनकी जनसंख्या 50,000 से अधिक थी। शहरों के विकास का महत्त्व –

  • शहरों के विकास से जापान की वाणिज्यिक अर्थव्यवस्था का विकास हुआ और वित्त तथा ऋण की प्रणालियाँ स्थापित हुईं।
  • व्यक्ति के गुण उसके पद से अधिक महत्त्वपूर्ण समझे जाने लगे।
  • शहरों में जीवन्त संस्कृति का विकास हुआ।
  • शहरों के व्यापारियों ने नाटकों तथा कलाओं को प्रोत्साहन दिया।
  • शहरों में रहने वाले प्रतिभाशाली लेखकों के लिए लेखन द्वारा अपनी आजीविका कमाने का अवसर मिला।

प्रश्न 3.
तोकुगावा शोगुनों के समय में जापान की अर्थव्यवस्था में आए परिवर्तन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तोकुगावा शोगुनों के समय में जापान की अर्थव्यवस्था में परिवर्तन – तोकुगावा शोगुनों के समय जापान एक धनी देश समझा जाता था। इसका कारण यह था कि जापान चीन से रेशम तथा भारत से कपड़ा जैसी विलासिता की वस्तुएँ मँगाता था। इन चीजों के आयात के लिए सोने तथा चाँदी के मूल्य चुकाने से अर्थव्यवस्था पर भार अवश्य पड़ा और इस कारण से तोकुगावा ने बहुमूल्य धातुओं के निर्यात पर प्रतिबन्ध लगा दिया। शोगुनों ने क्योतो के निशिजिन में रेशम उद्योग के विकास के लिए भी प्रयास किये जिससे रेशम का आयात कम किया जा सके। निशिजिन का रेशम सम्पूर्ण विश्व में उत्कृष्ट कोटि का रेशम माना जाने लगा। इससे जापान की अर्थव्यवस्था मजबूत हुई। मुद्रा के बढ़ते प्रयोग तथा चावल के शेयर बाजार के निर्माण से पता चलता है कि अर्थतन्त्र नई दिशाओं में विकसित हो रहा था।

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प्रश्न 4.
अमरीका के कामोडोर मैथ्यू पेरी ने जापान के तोकुगावा शोगुन को समझौता करने के लिए क्यों बाध्य किया? पेरी के आगमन के जापानी राजनीति पर क्या प्रभाव हुए?
उत्तर:
अमरीका अपने व्यापारिक हितों की पूर्ति के लिए जापान में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता था। जापान चीन के रास्ते में था और अमरीका चीन में एक बड़े बाजार की सम्भावना देखता था। इसके अतिरिक्त अमरीका को प्रशान्त महासागर में अपने बेड़े के लिए ईंधन लेने का स्थान भी चाहिए था। अतः 1853 में अमरीका ने कामोडोर मैथ्यू पेरी को जापान भेजा। उसने जापानी सरकार से एक ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर करने की माँग की, जिसके अनुसार जापान को अमरीका के साथ राजनयिक और व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करने थे। अमरीका की सैनिक शक्ति से भयभीत होकर जापान के शोगुन ने 1854 में ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए।

पेरी के आगमन का महत्त्व इससे जापान के सम्राट् का अचानक महत्त्व बढ़ गया। 1868 में शोगुन को जबरदस्ती सत्ता से हटा दिया गया। एदो को जापान की राजधानी बना दिया गया तथा उसका नया नाम तोक्यो रखा गया। प्रश्न 5. मेजी सरकार द्वारा ‘सम्राट व्यवस्था’ के पुनर्निर्माण के लिए किये गये उपायों का वर्णन कीजिए। उत्तर-सम्राट व्यवस्था का पुनर्निर्माण – मेजी सरकार ने जापान में सम्राट् व्यवस्था के पुनर्निर्माण के लिए अनेक कदम उठाये। सम्राट् व्यवस्था से अभिप्राय है कि एक ऐसी व्यवस्था जिसमें सम्राट् नौकरशाही और सेना इकट्ठे सत्ता चलाते थे और नौकरशाही तथा सेना सम्राट् के प्रति उत्तरदायी होते थे।

  • राजतान्त्रिक व्यवस्था के सिद्धान्तों को समझने के लिए जापान के कुछ अधिकारियों को यूरोप भेजा गया।
  • सम्राट् को सूर्य – देवी का वंशज माना गया। इसके साथ ही उसे पश्चिमीकरण का नेता भी बनाया गया।
  • जापान में सम्राट् का जन्म – दिन राष्ट्रीय अवकाश का दिन घोषित किया गया।
  • सम्राट् पश्चिमी ढंग की सैनिक वेशभूषा पहनने लगा। उसके नाम से आधुनिक संस्थाएँ स्थापित करने के अधिनियम बनाए गए।
  • 1890 की शिक्षा सम्बन्धी राजाज्ञा ने लोगों को पढ़ने, जनता के सार्वजनिक एवं साझे हितों को प्रोत्साहन देने के लिए प्रेरित किया।

प्रश्न 6.
मेजी सरकार ने शिक्षा के आधुनिकीकरण के लिए क्या कदम उठाये ?
उत्तर:

  • 1870 के दशक से नई विद्यालय व्यवस्था का निर्माण शुरू हुआ। लड़के और लड़कियों को स्कूल जाना अनिवार्य हो गया। 1910 तक जापान में स्कूल जाने से कोई वंचित नहीं रहा।
  • शिक्षा की फीस बहुत कम थी।
  • प्रारम्भ में पाठ्यक्रम पश्चिमी देशों के पाठ्यक्रमों पर आधारित था, परन्तु 1870 से आधुनिक विचारों पर बल दिया जाने लगा। इसके साथ-साथ राज्य के प्रति निष्ठा और जापानी इतिहास के अध्ययन पर भी बल दिया जाने लगा।
  • पाठ्यक्रम, पुस्तक के चयन तथा शिक्षकों के प्रशिक्षण पर शिक्षा मन्त्रालय नियन्त्रण रखता था। नैतिक संस्कृति के विषयों का अध्ययन करना अनिवार्य था। पुस्तकों में माता-पिता के प्रति आदर, राष्ट्र के प्रति स्वामि-भक्ति तथा अच्छे नागरिक बनने की प्रेरणा दी जाती थी।

प्रश्न 7.
गेंजी की कथा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गेंजी की कथा – मुरासाकी शिकिबु द्वारा रचित हेआन राजदरबार की इस काल्पनिक डायरी ‘दि टेल ऑफ दि गेंजी’ ने जापानी साहित्य में अपना प्रमुख स्थान बना लिया है। मुरासाकी शिकिबु एक प्रतिभाशाली लेखिका थी जिसने जापानी लिपि का प्रयोग किया। इस उपन्यास में कुमार गेंजी के रोमांचकारी जीवन पर प्रकाश डाला गया है तथा हेआन राज- दरबार के कुलीन वातावरण का सजीव चित्रण किया गया है। इसमें यह भी बताया गया है कि स्त्रियों को अपने पति चुनने तथा अपना जीवन व्यतीत करने की कितनी स्वतन्त्रता थी।

प्रश्न 8.
‘निशिजिन’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
निशिजिन – निशिजिन जापान के शहर क्योतो की एक बस्ती है। 16वीं शताब्दी में वहाँ 31 परिवारों का बुनकर संघ था। 17वीं शताब्दी के अन्त तक इस समुदाय में 70,000 लोग थे। निशिजिन में रेशम का उत्पादन किया जाता था। निशिजिन का रेशम समस्त विश्व में उत्कृष्ट कोटि का रेशम माना जाता था। यहाँ केवल विशिष्ट प्रकार के महँगे उत्पाद बनाए जाते थे। रेशम उत्पादन से ऐसे प्रादेशिक उद्यमी वर्ग का विकास हुआ, जिसने कालान्तर में तोकुगावा व्यवस्था को चुनौती दी। जब 1859 में विदेशी व्यापार प्रारम्भ हुआ, जापान से रेशम का निर्यात अर्थव्यवस्था के लिए मुनाफे का प्रमुख स्रोत बन गया। यह वह समय था, जबकि जापानी अर्थव्यवस्था पश्चिमी वस्तुओं से प्रतिस्पर्द्धा करने का प्रयास कर रही थी।

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प्रश्न 9.
राष्ट्र के एकीकरण के लिए मैजी सरकार द्वारा किए गए कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • राष्ट्र के एकीकरण के लिए मेजी सरकार ने पुराने गाँवों तथा क्षेत्रीय सीमाओं को परिवर्तित कर नवीन प्रशासनिक ढाँचा तैयार किया।
  • जापान में 20 वर्ष से अधिक आयु के नव-युवकों के लिए कुछ समय के लिए सेना में काम करना अनिवार्य कर दिया गया। एक आधुनिक सैन्य-बल तैयार किया गया।
  • कानून व्यवस्था’ बनाई गई, जो राजनीतिक दलों के कार्यों पर नजर रख सके, सभाएँ बुलाने पर नियन्त्रण रख सके तथा कठोर सेंसर व्यवस्था स्थापित कर सके।
  • सेना और नौकरशाही को सीधा सम्राट् के अधीन रखा गया। लोकतान्त्रिक संविधान तथा आधुनिक सेना को महत्त्व देने के दूरगामी परिणाम निकले। सेना ने साम्राज्यवादी नीति अपनाने के लिए मजबूत विदेश नीति पर बल दिया। इस कारण से जापान को चीन और रूस के साथ युद्ध लड़ने पड़े। इन दोनों युद्धों में जापान की विजय हुई। आर्थिक एवं औद्योगिक क्षेत्रों में भी जापान की अत्यधिक उन्नति हुई।

प्रश्न 10.
फुकुजावा यूकिची पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
फुकुजावा यूकिची – फुकुजावा यूकिची का जन्म 1835 में एक निर्धन समुराई परिवार में हुआ था। उसने नागासाकी तथा ओसाका में शिक्षा प्राप्त की। उसने डच, पश्चिमी विज्ञान और बाद में अंग्रेजी का अध्ययन किया। 1860 में वह अमरीका में पहले जापानी दूतावास में अनुवादक के पद पर नियुक्त हुआ। उन्होंने पश्चिमी देशों पर एक पुस्तक लिखी। उसने एक शिक्षा संस्थान की स्थापना की, जो आज केओ विश्वविद्यालय के नाम से प्रसिद्ध है।

फुकुजावा यूकिची ने ‘ज्ञान’ के लिए प्रोत्साहन’ नामक एक पुस्तक लिखी। इसमें उसने जापानी ज्ञान की कटु आलोचना की : ‘जापान के पास प्राकृतिक दृश्यों के अतिरिक्त गर्व करने के लिए कुछ भी नहीं है।” उसने आधुनिक कारखानों व संस्थाओं के अतिरिक्त पश्चिम के सांस्कृतिक सार तत्त्व को भी प्रोत्साहन दिया, जो कि उसके अनुसार सभ्यता की आत्मा है। उसके द्वारा एक नवीन नागरिक बनाया जा सकता था।

प्रश्न 11.
डॉ. सनयात सेन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
डॉ. सन यात सेन के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
डॉ. सनयात सेन- डॉ. सनयात सेन का जन्म 12 नवम्बर, 1866 को कैंटन के निकट एक गांव में हुआ था। वे आधुनिक चीन के संस्थापक माने जाते हैं। 1911 में चीन में क्रान्ति हो गई। वहाँ मांचू साम्राज्य समाप्त कर दिया – सेन के नेतृत्व में गणतन्त्र की स्थापना की गई। 1912 में सनयात सेन ने कुओमिनतांग दल की गया तथा सन – यात – स्थापना की।
डॉ. सनयात सेन के सिद्धान्त-

1. राष्ट्रवाद – इसका अर्थ था मांचू वंश को सत्ता से हटाना। मांचू वंश विदेशी राजवंश के रूप में देखा जाता था। डॉ. सेन ने चीनियों में राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार किया। उन्होंने चीनियों को विदेशी साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।

2. गणतन्त्रवाद – डॉ. सेन चीन में गणतन्त्र या गणतान्त्रिक सरकार की स्थापना करना चाहते थे।

3. समाजवाद-इससे अभिप्राय था-जो पूँजी का नियमन करे तथा भू-स्वामित्व में बराबरी लाए।
डॉ. सेन के विचार कुओमिनतांग दल के राजनीतिक दर्शन का आधार बने। उन्होंने कपड़ा, भोजन, घर और परिवहन — इन चार बड़ी आवश्यकताओं पर बल दिया।

प्रश्न 12.
चीन में प्रचलित परीक्षा प्रणाली का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चीन में अभिजात सत्ताधारी वर्ग में प्रवेश अधिकतर परीक्षा के द्वारा ही होता था। इसमें 8 भाग वाला निबन्ध निर्धारित प्रपत्र में शास्त्रीय चीनी भाषा में लिखना होता था। यह परीक्षा विभिन्न स्तरों पर हर तीन वर्ष में दो बार आयोजित की जाती थी। पहले स्तर की परीक्षा में केवल 1-2 प्रतिशत लोग ही 24 वर्ष की आयु तक उत्तीर्ण हो पाते थे। इसलिए कई निम्न श्रेणी के डिग्री धारकों के पास नौकरी नहीं होती थी। यह परीक्षा विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास में बाधक का काम करती थी; क्योंकि इसमें केवल साहित्यिक कौशल की माँग होती थी। चूँकि यह क्लासिक चीनी सीखने के कौशल पर ही आधारित थी, जिसकी आधुनिक विश्व में कोई प्रासंगिकता दिखाई नहीं देती थी। अन्त में, 1905 में इस प्रणाली को समाप्त कर दिया गया।

प्रश्न 13.
माओत्से तुंग के आमूल परिवर्तनवादी तौर-तरीकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
माओत्से तुंग के आमूल परिवर्तनवादी तौर-तरीके –
(1) 1928-34 के बीच माओत्से तुंग ने कुओमिनतांग के आक्रमणों से बचाव के लिए सुरक्षित शिविर लगाए।
(2) उन्होंने मजबूत किसान परिषद् (सोवियत) का गठन किया, जमींदारों की भूमि पर अधिकार कर उसे भूमिहीन कृषकों में बाँट दिया।
(3) माओत्से तुंग ने स्वतन्त्र सरकार और सेना पर बल दिया।
(4) उन्होंने महिलाओं की दशा सुधारने पर बल दिया। उन्होंने ग्रामीण महिला संघों की स्थापना को बढ़ावा दिया। उन्होंने विवाह के नये कानून बनाए, जिसमें आयोजित विवाहों तथा विवाह के समझौते खरीदने एवं बेचने पर रोक लगाई और तलाक को सरल बनाया।

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प्रश्न 14.
1930 में माओत्से तुंग द्वारा जुनवू में किए गए सर्वेक्षण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
“1930 में माओत्से तुंग द्वारा जुनवू में किया गया सर्वेक्षण – 1930 में जुनवू में किये गए एक सर्वेक्षण में माओत्से तुंग ने नमक और सोयाबीन जैसी दैनिक जीवन की वस्तुओं, स्थानीय संगठनों की तुलनात्मक दृढ़ताओं, छोटे व्यापारियों और शिल्पकारों, लौहारों, वेश्याओं, धार्मिक संगठनों की मजबूतियाँ, इन सबका परीक्षण किया, ताकि शोषण के पृथक्-पृथक् स्तरों को समझा जा सके। उन्होंने ऐसे आँकड़े एकत्रित किये कि कितने किसानों ने अपने बच्चों को बेचा है और इसके लिए उन्हें कितना धन मिला। लड़के 100-200 यूआन पर बिकते थे, परन्तु लड़कियों की बिक्री के कोई उदाहरण नहीं मिले; क्योंकि आवश्यकता मजदूरों की थी, स्त्रियों के शोषण की नहीं। इस अध्ययन के आधार पर उन्होंने सामाजिक समस्याओं के समाधान के तरीके प्रस्तुत किए।

प्रश्न 15.
पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार की उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार की उपलब्धियाँ – पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार 1949 में स्थापित हुई। यह ‘नए लोकतन्त्र’ के सिद्धान्त पर आधारित थी। इसकी उपलब्धियाँ इस प्रकार रहीं –

  • नया लोकतन्त्र चीन के सभी सामाजिक वर्गों का गठबन्धन था। इसके अन्तर्गत, अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्र सरकार के नियन्त्रण में रखे गए और निजी कारखानों तथा भूस्वामित्व को धीरे-धीरे समाप्त किया गया। यह कार्यक्रम 1953 तक चला।
  • उस समय सरकार ने समाजवादी परिवर्तन का कार्यक्रम शुरू करने की घोषणा की थी।
  • 1958 में सरकार ने लम्बी छलाँग वाले आन्दोलन की नीति अपनाई जिसके अन्तर्गत देश का तीव्र गति से औद्योगीकरण करने का प्रयास किया गया। लोगों को अपने घरों के पिछवाड़े में इस्पात की भट्टियाँ लगाने के लिए बढ़ावा दिया गया।
  •  ग्रामीण क्षेत्रों में पीपुल्स कम्यून शुरू किये गए। यहाँ लोग इकट्ठे जमीन के स्वामी थे तथा मिल-जुलकर फसल उगाते थे।

प्रश्न 16.
माओत्सेतुंग पार्टी द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को पाने के लिए क्या कार्य किये? वे इन लक्ष्यों की प्राप्ति में कैसे सफल रहे?
उत्तर:
माओत्सेतुंग साम्यवादी दल द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए चीनी जनसमुदाय को प्रेरित करने में सफल रहे। वे ‘समाजवादी व्यक्ति’ बनाने के लिए लालायित थे। इसकी पाँच चीजें प्रिय होती थीं –
(1) पितृ भूमि
(2) जनता
(3) काम
(4) विज्ञान तथा
(5) जन सम्पत्ति। किसानों, स्त्रियों, छात्रों और अन्य गुटों के लिए जन- संस्थाएँ बनाई गईं। उदाहरणार्थ ‘ऑल चाइना स्टूडेन्ट्स फेडरेशन’ के 32 लाख 90 हजार सदस्य थे।

प्रश्न 17.
‘1965 की चीन की महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
‘समाजवादी व्यक्ति’ की रचना के इच्छुक माओवादियों तथा कुशलता की बजाय विचारधारा पर माओ के जोर देने की आलोचना करने वालों के मध्य संघर्ष छिड़ गया। इस संघर्ष के परिणामस्वरूप माओत्सेतुंग ने 1965 में महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति शुरू की। इस क्रान्ति की शुरुआत उन्होंने अपने आलोचकों का मुकाबला करने के लिए की। इस क्रान्ति के अन्तर्गत पुरानी संस्कृति, पुरानी रिवाजों और पुरानी आदतों के विरुद्ध अभियान शुरू करने के लिए रेड गार्ड्स मुख्यतः – छात्रों और सेना-का प्रयोग किया गया। छात्रों और व्यावसायिक लोगों को जनता से ज्ञान प्राप्त करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में भेजा गया। विचारधारा (साम्यवादी होना) व्यावसायिक ज्ञान से अधिक महत्त्वपूर्ण थी।

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परिणाम –
(1) सांस्कृतिक क्रान्ति के फलस्वरूप देश में अव्यवस्था फैल गई और साम्यवादी पार्टी कमजोर हो गई।
(2) अर्थव्यवस्था और शिक्षा व्यवस्था में भारी गिरावट आई।
(3) धीरे-धीरे साम्यवादी दल ने अपना प्रभाव बढ़ना शुरू कर दिया।

प्रश्न 18.
यूसिन संविधान क्या था ?
उत्तर:
दक्षिण कोरिया के 1971 के चुनावों में पार्क चुंग ही को पुनः चुन लिया गया। इसके बाद अक्टूबर 1972 में पार्क ने यूसिन संविधान घोषित करके उसे कार्यान्वित किया। इस संविधान ने स्थायी अध्यक्षता को संभव बनाया। यूसिन संविधान के तहत राष्ट्रपति को कानून के क्षेत्राधिकार और प्रशासन पर पूर्ण अधिकार था तथा किसी भी कानून को ‘आपातकालीन नियम’ के रूप में निरस्त करने का भी एक संवैधानिक अधिकार था। इस प्रकार यूसिन संविधान के तहत राष्ट्रपति के पूर्ण अधिकार प्रणाली के साथ लोकतंत्र एक तरह से अस्थायी रूप से निलंबित हो गया।

निबन्धात्मक प्रश्न –
प्रश्न 1.
“चीन और जापान के भौतिक भूगोल में काफी अन्तर है।” स्पष्ट कीजिए।
अथवा
चीन और जापान की भौगोलिक स्थिति तथा उनकी प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
चीन का भौतिक भूगोल- चीन और जापान के भौतिक भूगोल में काफी अन्तर है। चीन विशालकाय . महाद्वीपीय देश है जिसमें कई प्रकार की जलवायु वाले क्षेत्र हैं। मुख्य क्षेत्र में तीन प्रमुख नदियाँ हैं –
(1) पीली नदी (हुआँग हो)
(2) यांग्त्सी नदी (छाँगजिआंग – विश्व की तीसरी सबसे लंम्बी नदी) तथा
(3) पर्ल नदी। चीन का बहुत-सा भाग पहाड़ी है।
चीन का जातीय समूह तथा भाषाएँ – हान चीन का सबसे प्रमुख जातीय समूह है। चीनी वहाँ की प्रमुख भाषा है। परन्तु वहाँ उइधुर, हुई, मांचू, तिब्बती आदि कई और राष्ट्रीयताएँ हैं। कैंटनीज (कैंटन की बोली- उए) तथा शंघाइनीज (शंघाई की बोली – वू) आदि बोलियाँ भी बोली जाती हैं।
चीनी भोजन- चीनी भोजनों में क्षेत्रीय विविधता पाई जाती है। इनमें चार प्रमुख प्रकार के भोजन उल्लेखनीय हैं-
(i) चीन में सबसे प्रसिद्ध भोजनं प्रणाली दक्षिणी या केंटोनी है, जो कैंटन व उसके आन्तरिक प्रदेशों की है। यह प्रणाली इसलिए प्रसिद्ध है कि विदेशों में रहने वाले अधिकतर चीनी कैंटन प्रान्त के हैं। डिमसम (शाब्दिक अर्थ दिल को छूना) यहाँ का प्रसिद्ध भोजन है। यह गुँथे हुए आटे को ‘सब्जी आदि भर कर उबाल कर बनाया गया व्यंजन है।
(ii) उत्तर में गेहूँ मुख्य आहार है।
(iii) शेचुआँ में प्राचीन काल में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा लाए गए मसाले और रेशम मार्ग द्वारा पन्द्रहवीं शताब्दी में पुर्तगालियों द्वारा लाई गई मिर्च के कारण विशेष झालदार और तीखा भोजन मिलता है।
(iv) पूर्वी चीन में चावल और गेहूँ दोनों खाए जाते हैं।
जापान के भौतिक भूगोल की विशेषताएँ – जापान के भौतिक भूगोल की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
1. चीन के विपरीत जापान एक द्वीप – शृंखला है। इनमें चार सबसे बड़े द्वीप हैं –
(1) होंशू
(2) क्यूशू
(3) शिकोकू तथा
(4) होकाइदो। सबसे दक्षिण में ओकिनावा द्वीपों की श्रृंखला है।

2. मुख्य द्वीपों की 50 प्रतिशत से अधिक भूमि पहाड़ी है।
3. जापान बहुत ही सक्रिय भूकम्प क्षेत्र है।
4. जापान की इन भौगोलिक परिस्थितियों ने वहाँ की वास्तुकला को प्रभावित किया है।
5. जापान की अधिकतर जनसंख्या जापानी है, परन्तु कुछ आयनू अल्पसंख्यक तथा कुछ कोरिया के लोग हैं कोरिया के लोगों को श्रमिक मजदूर के रूप में उस समय जापान लाया गया था, जब कोरिया जापान का उपनिवेश था।
6. जापान में पशु-पालन की परम्परा नहीं है।
7. चावल यहाँ की मुख्य फसल है और मछली प्रोटीन का मुख्य स्रोत है। यहाँ की कच्ची मछली साशिमी या सूशी अब सम्पूर्ण विश्व में लोकप्रिय हो गई है क्योंकि इसे बहुत ही स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है।

प्रश्न 2.
मेजी पुनर्स्थापना से क्या अभिप्राय है? जापान की सरकार ने राजनीतिक एवं शैक्षणिक क्षेत्रों में क्या सुधार किये?
उत्तर:
जापान में मेजी पुनर्स्थापना – 1867-68 में जापान में मेजी वंश के नेतृत्व में तोकुगावा वंश का शासन समाप्त किया गया। 1868 में एक प्रबल आन्दोलन द्वारा शोगुन को सत्ता से हटा दिया गया। सम्राट् को एदो में लाया गया। एदो को जापान की राजधानी बना दिया गया तथा उसका नया नाम तोक्यो रखा गया। तोक्यो का अर्थ है – ‘पूर्वी राजधानी’। अब शासन की वास्तविक सत्ता, सम्राट के हाथ में आ गई। इसे ‘मेजी पुनर्स्थापना’ अथवा ‘सम्राट की शक्ति का पुनरुद्धार’ कहते हैं।
1. राजनीतिक क्षेत्र में सुधार – जापान की मेजी सरकार ने राजनीतिक क्षेत्र में निम्नलिखित सुधार किये –
(i) नई नीति की घोषणा – सरकार ने ‘फुकोकु क्योहे’ (समृद्ध देश, मजबूत सेना) के नारे के साथ नई नीति की घोषणा की। सरकार की यह धारणा थी कि देश की अर्थव्यवस्था का विकास और मजबूत सेना का निर्माण करना अत्यन्त आवश्यक है अन्यथा उसे भी भारत की भाँति पराधीन बनना पड़ सकता है। अतः उसने जापानी जनता में राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार करने तथा प्रजा को नागरिक की श्रेणी में बदलने का निश्चय कर लिया।

(ii) सम्राट्-व्यवस्था का पुनर्निर्माण- मेजी सरकार ने सम्राट व्यवस्था के पुनर्निर्माण का कार्य शुरू किया। विद्वानों के अनुसार सम्राट व्यवस्था से अभिप्राय है एक ऐसी व्यवस्था जिसमें सम्राट, नौकरशाही तथा सेना इकट्ठे शासन चलाते थे और नौकरशाही तथा सेना सम्राट के प्रति उत्तरदायी होते थे। राजतान्त्रिक व्यवस्था के सिद्धान्तों को समझने के लिए कुछ अधिकारियों को यूरोप भेजा गया। सम्राट को सूर्य देवी का वंशज माना गया। इसके साथ ही उसे पश्चिमीकरण का नेता भी स्वीकार किया गया। सम्राट का जन्म-दिन राष्ट्रीय अवकाश का दिन घोषित किया गया। अब सम्राट् पश्चिमी ढंग की सैनिक वेशभूषा पहनने लगा। उसके नाम से आधुनिक संस्थाएँ स्थापित करने के अधिनियम जारी किये जाने लगे।

(iii) नवीन प्रशासनिक ढाँचा तैयार करना – राष्ट्र के एकीकरण के लिए मेजी सरकार ने पुराने गाँवों तथा क्षेत्रीय सीमाओं को परिवर्तित कर नया प्रशासनिक ढाँचा तैयार किया। 20 वर्ष से अधिक आयु के नवयुवकों के लिए कुछ समय के लिए सेना में काम करना अनिवार्य हो गया। एक आधुनिक सैन्य बल तैयार किया गया। कानून व्यवस्था बनाई गई जो राजनीतिक गुटों के गठन को देख सके, बैठकें आयोजित करने पर नियन्त्रण रख सके और कठोर सेंसर व्यवस्था बना सके।

सेना और नौकरशाही को सीधा सम्राट के अधीन रखा गया। इस प्रकार संविधान बनने के बाद भी सेना और नौकरशाही सरकारी नियन्त्रण से बाहर रहे। इस नीति के परिणामस्वरूप सेना ने साम्राज्य-विस्तार के लिए मजबूत विदेश नीति अपनाने पर बल दिया। इस कारण से जापान को चीन और रूस से युद्ध लड़ने पड़े, जिनमें जापान की विजय हुई। जापान की आर्थिक क्षेत्र में आश्चर्यजनक उन्नति हुई तथा उसने अपना एक औपनिवेशिक साम्राज्य स्थापित कर लिया। परन्तु सरकार ने अपने देश में लोकतन्त्र के प्रसार को रोका और उपनिवेशीकृत लोगों के साथ संघर्ष की नीति अपनाई।

2. शैक्षणिक क्षेत्र में विकास – 1870 के दशक से जापान में नई विद्यालय – व्यवस्था का निर्माण शुरू हुआ। लड़के तथा लड़कियों के लिए स्कूल जाना अनिवार्य हो गया। 1910 तक स्कूल जाने से कोई वंचित नहीं रहा। शिक्षा की फीस बहुत कम थी। शुरू में पाठ्यक्रम पश्चिमी देशों के नमूने पर आधारित था, परन्तु 1870 से आधुनिक विचारों पर बल देने के साथ-साथ राज्य के प्रति निष्ठा तथा जापानी इतिहास के अध्ययन पर भी बल दिया जाने लगा। पाठ्यक्रम, पुस्तकों के चयन तथा शिक्षकों के प्रशिक्षण पर शिक्षा मन्त्रालय का नियन्त्रण रहता था। नैतिक संस्कृति के विषयों का अध्ययन . आवश्यक था। पुस्तकों में माता-पिता के प्रति आदर, राष्ट्र के प्रति स्वामि-भक्ति और अच्छे नागरिक बनने की प्रेरणा दी जाती थी।

प्रश्न 3.
मैजी सरकार द्वारा जापान की अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण के लिए किये गये सुधारों का वर्णन कीजिए उद्योगों के तीव्र विकास का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
जापान की अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरण मैजी सरकार की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि था। इसके लिए मैजी सरकार ने निम्नलिखित कार्य किये –
(i) धन इकट्ठा करना – कृषि पर कर लगाकर धन इकट्ठा किया गया।
(ii) रेलवे लाइन का निर्माण – जापान की पहली रेलवे लाइन का निर्माण 1870-72 में हुआ जो तोक्यो से योकोहामा तक बनाई गई। 1894 तक जापान में 2118 मील लम्बी रेलवे लाइनों का निर्माण हो चुका था।
(iii) उद्योग- वस्त्र उद्योग के लिए मशीनें यूरोप से मँगाई गईं। लोहे, कपड़े आदि के अनेक कारखाने खोले गए। परिणामस्वरूप कारखानों में कपड़ा, लोहे का सामान, रेशम आदि बड़े पैमाने पर होने लगा। 1890 तक जापान में भाप से चलने वाले 250 से भी अधिक कारखाने स्थापित हो चुके थे। मजदूरों के प्रशिक्षण के लिए विदेशी कारीगरों को बुलाया गया।
(iv) बैंकों की स्थापना – 1872 में जापान में आधुनिक बैंकिंग संस्थाओं का प्रारम्भ हुआ। 1879 ई. तक जापान में लगभग 150 बैंक स्थापित हो चुके थे।
(v) जहाज – निर्माण – जापान में जहाज को सब्सिडी तथा करों में लाभ के द्वारा प्रमुख जहाजों में होने लगा।
उद्योग की बड़ी उन्नति हुई। मित्सुबिशी और सुमितोमी जैसी कम्पनियों जहाज़ – 1 ज़ – निर्माता बनने में सहायता मिली। इससे जापानी व्यापार जापान के
(vi) जायबात्सु (बड़ी व्यापारिक संस्थाएँ) का प्रभुत्व स्थापित होना – जायबात्सु बड़ी व्यापारिक संस्थाएँ जिन पर विशिष्ट परिवारों का नियन्त्रण था, का प्रभुत्व द्वितीय विश्व-युद्ध के बाद तक जापान की अर्थव्यवस्था पर बना रहा।

(vii) जनसंख्या में वृद्धि – 1872 में जापान की जनसंख्या 3.5 करोड़ थी जो 1920 में बढ़कर 5.5 करोड़ हो गई। जनसंख्या के दबाव को कम करने के लिए सरकार ने प्रवास को प्रोत्साहन दिया। पहले उत्तरी टापू होकाइदो की ओर, फिर हवाई और ब्राजील और जापान के बढ़ते हुए औपनिवेशिक साम्राज्य की ओर। उद्योगों के विकास के कारण शहरों की आबादी बढ़ गई। 1925 तक जापान की 21 प्रतिशत जनता शहरों में रहती थी। 1935 तक यह बढ़कर 32 प्रतिशत हो गई। इस प्रकार 1935 तक जापान के शहरों में रहने वाले लोगों की जनसंख्या 2.25 करोड़ थी।

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(viii) औद्योगिक मजदूर – 1870 में जापान में औद्योगिक मजदूरों की संख्या 7 लाख थी, जो बढ़कर 1913 में 40 लाख हो गई। अधिकतर मजदूर ऐसी इकाइयों में काम करते थे, जिनमें 5 से कम लोग थे और जिनमें मशीनों तथा विद्युत ऊर्जा का प्रयोग नहीं होता था। इन आधुनिक कारखानों में काम करने वालों में आधे से अधिक महिलाएँ थीं। 1886 में पहली आधुनिक हड़ताल महिलाओं द्वारा ही आयोजित की गई थी। 1900 के पश्चात् कारखानों में पुरुषों की संख्या बढ़ने लगी परन्तु 1930 के दशक में आकर ही पुरुषों की संख्या स्त्रियों से अधिक हुई।

(ix) कारखानों में मजदूरों की संख्या में वृद्धि – जापान में कारखानों में मजदूरों की संख्या भी बढ़ने लगी। 100 से अधिक मजदूर वाले कारखानों की संख्या 1909 में 1000 थी। 1920 तक इनकी संख्या 2000 से अधिक हो गई और 1930 के दशक में इनकी संख्या 4,000 हो गई। फिर भी 1940 में 5,50,000 कारखानों में 5 से कम मजदूर ही काम करते थे। इससे परिवार – केन्द्रित विचारधारा बनी रही।

पर्यावरण पर प्रभाव – उद्योगों के तीव्र विकास और लकड़ी जैसे प्राकृतिक संसाधनों की माँग से पर्यावरण का विनाश हुआ। संसद के पहले निम्न सदन के सदस्य तनाकोशोजो ने 1897 में औद्योगिक प्रदूषण के विरुद्ध पहला आन्दोलन शुरू किया। तनाकोशोजो ने कहा कि औद्योगिक प्रगति के लिए सामान्य लोगों की बलि नहीं दी जानी चाहिए। आशियो खान से वातारासे नदी में प्रदूषण फैलता जा रहा था जिसके कारण 100 वर्ग मील की कृषि भूमि नष्ट हो रही थी तथा 1000 परिवार प्रभावित हो रहे थे। 800 गाँववासी पर्यावरण प्रदूषण के विरुद्ध संगठित हो गए और उन्होंने सरकार को उचित कार्यवाही करने पर बाध्य कर दिया।

प्रश्न 4.
जापान के आक्रामक राष्ट्रवाद, पश्चिमीकरण और परम्परा पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
1. जापान का आक्रामक राष्ट्रवाद – मेजी संविधान सीमित मताधिकार पर आधारित था और उसकी डायट (संसद) के अधिकार भी सीमित थे। सम्राट की शक्ति की पुनर्स्थापना करने वाले नेता सत्ता में बने रहे तथा उन्होंने राजनीतिक दलों का गठन किया। 1918 तथा 1931 के बीच जनमत से चुने गए प्रधानमन्त्रियों ने मन्त्रिपरिषदों का गठन किया। इसके पश्चात् उन्होंने पार्टियों का भेद भुलाकर बनाई गई राष्ट्रीय एकता मन्त्रिपरिषदों के हाथों अपनी सत्ता खो दी। सम्राट सैन्य बलों का कमाण्डर था।

1890 से यह माना जाने लगा कि थल सेना और नौसेना का नियन्त्रण स्वतन्त्र है। 1899 में जापान के प्रधानमन्त्री ने आदेश दिए कि केवल सेवारत जनरल और एडमिरल ही मन्त्री बन सकते हैं। सेना को शक्तिशाली बनाने का अभियान और जापान का औपनिवेशिक विस्तार इस भय से सम्बन्धित थे कि जापान पश्चिमी देशों की दया पर निर्भर है। इस डर का उपयोग उन लोगों के दमन करने में किया गया जो सैन्य विस्तार के विरुद्ध और सेना को अधिक धन देने के लिए वसूले जाने वाले भारी करों के विरुद्ध आवाज उठा रहे थे।

2. ‘पश्चिमीकरण’ और ‘परम्परा’ – कुछ विद्वानों के अनुसार अमरीका तथा पश्चिमी यूरोपीय देश सभ्यता के शिखर पर थे, जहाँ जापान को भी पहुँचना चाहिए। ये विद्वान जापान का ‘पश्चिमीकरण’ किये जाने के पक्ष में थे। फुकुजावा, यूकिची मेजी काल के प्रमुख बुद्धिजीवियों में से थे। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि ” जापान को अपने में से एशिया को निकाल फेंकना चाहिए।” इसका मतलब यह था कि जापान को अपने एशियाई लक्षणों का परित्याग कर देना चाहिए तथा पश्चिमी देशों का अनुकरण करना चाहिए। पश्चिमी विचारों को पूरी तरह से स्वीकार करने पर आपत्ति करना – जापान की अगली पीढ़ी ने पश्चिमी विचारों को पूरी तरह से स्वीकार करने पर आपत्ति की तथा कहा कि राष्ट्रीय गर्व का निर्माण देसी मूल्यों पर किया जाना चाहिए दर्शनशास्त्री मियाके सेत्सुरे का कहना था कि विश्व-सभ्यता के हित में हर राष्ट्र को अपने विशेष कौशल का विकास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि, ” अपने को अपने देश के लिए समर्पित करना अपने को विश्व को समर्पित करना है। ” पश्चिमी उदारवाद का समर्थन करना – दूसरी ओर कुछ विद्वान पश्चिमी उदारवाद के समर्थक थे। वे चाहते थे कि जापान अपना आधार सेना की बजाय लोकतन्त्र को बनाए।

फ्रांसीसी क्रान्ति में लोगों के प्राकृतिक अधिकारों और जन – प्रभुसत्ता के सिद्धान्तों का समर्थन – संवैधानिक सरकार की माँग करने वाले जनवादी अधिकारों के आन्दोलन के नेता उएकी एमोरी फ्रांसीसी क्रान्ति में लोगों के प्राकृतिक अधिकारों तथा जन-प्रभुसत्ता के सिद्धान्तों के समर्थकं थे। वे उदारवादी शिक्षा के समर्थक थे जो प्रत्येक व्यक्ति का विकास कर सके। उनका कहना था कि, ” व्यवस्था से अधिक मूल्यवान चीज है स्वतन्त्रता। ” कुछ अन्य लोगों ने महिलाओं के मताधिकार का भी समर्थन किया। इस प्रकार के दबाव ने सरकार को संविधान की घोषणा करने पर विवश किया।

प्रश्न 5.
जापान में सत्ता- -केन्द्रित राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के क्या परिणाम हुए?
अथवा
जापान आधुनिकता पर विजय क्यों प्राप्त करना चाहता था ?
उत्तर:
जापान में सत्ता केन्द्रित राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के परिणाम – आधुनिकीकरण के परिणामस्वरूप जापान की शक्ति में अत्यधिक वृद्धि हुई। 1930-40 की अवधि में सत्ता केन्द्रित राष्ट्रवाद को बढ़ावा मिला। इसके फलस्वरूप जापान ने चीन और एशिया में अपने उपनिवेश स्थापित करने के लिए युद्ध लड़े। जापान ने 1937 में चीन पर आक्रमण कर उसके अनेक नगरों पर अधिकार कर लिया। जब 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ, तो उस समय जापान पहले से ही चीन के विरुद्ध युद्ध छेड़े हुए था। उग्र राष्ट्रवाद से प्रेरित होकर 1941 में जापान ने अमरीका की बन्दरगाह पर्ल हार्बर पर आक्रमण कर दिया। राष्ट्रवाद की प्रबलता के कारण सामाजिक नियन्त्रण में वृद्धि हुई। विरोधियों पर अत्याचार किए गए तथा उन्हें जेलों में बन्द कर दिया गया। देश-भक्तों की ऐसी संस्थाओं का निर्माण हुआ जो युद्ध का समर्थन करती थीं। इनमें महिलाओं के अनेक संगठन थे।

आधुनिकता पर विजय – 1943 में जापान में एक संगोष्ठी हुई ‘आधुनिकता पर विजय’। इसमें जापान के सामने यह समस्या थी कि आधुनिक रहते हुए पश्चिम पर कैसे विजय प्राप्त की जाए ? संगीतकार मोरोई साबुरो ने इस बात पर बल दिया कि संगीत को आत्मा की कला के रूप में उसका पुनर्वास कैसे कराया जाए? वे पश्चिमी संगीत का विरोध नहीं कर रहे थे। वे चाहते थे कि जापानी संगीत को पश्चिमी वाद्यों पर बजाए जाने से आगे ले जाया जाए। प्रसिद्ध दर्शनशास्त्री निशितानी केजी ने ‘आधुनिक’ को तीन पश्चिमी धाराओं के मिलन और एकता से परिभाषित किया ” पुनर्जागरण, प्रोटेस्टेन्ट सुधार और प्राकृतिक विज्ञानों का विकास।” उनका कहना था कि जापान की ‘नैतिक ऊर्जा’ ने उसे एक उपनिवेश बनने से बचा लिया और जापान का कर्त्तव्य बनता है कि एक नई विश्व पद्धति एक विशाल पूर्वी एशिया के निर्माण का प्रयत्न करे। इसके लिए एक नई सोच की आवश्यकता है जो विज्ञान और धर्म को जोड़ सके।

प्रश्न 6.
“द्वितीय विश्व युद्ध में पराजित होने के बाद भी जापान का एक वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में प्रकट हुआ। ” विवेचना कीजिए।
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध में पराजित होने के बाद भी जापान वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में उभरना- द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान युद्ध शीघ्र समाप्त करने के लिए अमरीका ने जापान के दो नगरों-हिरोशिमा तथा नागासाकी पर परमाणु बम गिराए। अतः जापान को आत्म-समर्पण करना पड़ा। अमरीकी नेतृत्व वाले कब्जे (1945-47) के दौरान, जापान का विसैन्यीकरण कर दिया गया और वहाँ एक नया संविधान लागू हुआ। इसके अनुच्छेद-9 के अनुसार युद्ध का राष्ट्रीय नीति के साधन के रूप में प्रयोग वर्जित है। कृषि – सुधार व्यापारिक संगठनों का पुनर्गठन और जापानी अर्थव्यवस्था में जायेबात्सु अर्थात् बड़ी एकाधिकार कम्पनियों के प्रभुत्व को समाप्त करने का प्रयास किया गया। राजनीतिक दलों को पुनर्जीवित किया गया। युद्ध के बाद जापान में पहले चुनाव 1946 में हुए। इसमें पहली बार महिलाओं ने भी मतदान किया।

जापानी अर्थव्यवस्था का विकास- द्वितीय विश्व युद्ध में अपनी भीषण पराजय के बावजूद, जापानी अर्थव्यवस्था का ज़िस तीव्र गति से विकास हुआ, उसे एक ‘युद्धोत्तर चमत्कार’ कहा गया है। संविधान को औपचारिक रूप से गणतान्त्रिक रूप इसी समय दिया गया। परन्तु जापान में जनवादी आन्दोलन तथा राजनीतिक भागेदारी का आधार बढ़ाने में बुद्धिजीवियों का ऐतिहासिक योगदान रहा है। अतः युद्ध से पहले के काल की सामाजिक सम्बद्धता को सुदृढ़ किया गया। इसके परिणामस्वरूप सरकार, नौकरशाही और उद्योग के बीच एक निकटता का सम्बन्ध स्थापित हुआ। अमरीकी समर्थन और कोरिया तथा वियतनाम में युद्ध छिड़ने से भी जापान की अर्थव्यवस्था को सहायता मिली।

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1964 में तोक्यो में हुए ओलम्पिक खेल जापानी अर्थव्यवस्था की मजबूती के प्रमाण थे। इसी प्रकार तीव्र गति वाली शिंकांसेन अर्थात् ‘बुलेट ट्रेनों’ का जाल भी 1964 में शुरू हुआ। इस पर रेल‍ गाड़ियाँ 200 मील प्रति घण्टे की रफ्तार से चलती थीं। ( अब वे 300 मील प्रति घण्टे की रफ्तार से चलती हैं।) जापानी : नई प्रौद्योगिकी के द्वारा श्रेष्ठ और सस्ते उत्पाद बाजार में प्रस्तुत करने में सफल रहे। नागरिक समाज आन्दोलन का उदय – 1960 के दशक में नागरिक समाज आन्दोलन का विकास हुआ। बढ़ते औद्योगीकरण के कारण स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ रहे दुष्प्रभाव की अवहेलना करने का विरोध किया गया।

1970 के दशक के उत्तरार्द्ध में वायु में प्रदूषण से भी समस्याएँ उत्पन्न हुईं। अनेक गुटों ने इन समस्याओं को पहचानने और साथ ही हताहतों के लिए मुआवजा देने की माँग की। सरकार द्वारा की गई कार्यवाही तथा नये कानूनों से स्थिति में काफी सुधार हुआ। 1980 के दशक के मध्य से पर्यावरण सम्बन्धी विषयों में लोगों की रुचि में कमी आई है क्योंकि 1990 के जापान में विश्व के कुछ कठोरतम पर्यावरण सम्बन्धी नियन्त्रण लागू किए गए। आज जापान एक विकसित देश है। इस रूप में वह अग्रगामी विश्व शक्ति की अपनी हैसियत को बनाए रखने के लिए अपने राजनीतिक और प्रौद्योगिक क्षमताओं का प्रयोग करने की चुनौतियों का सामना कर रहा है।

प्रश्न 7.
1911 की क्रान्ति से पूर्व आधुनिक चीन की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
1911 की क्रान्ति से पूर्व आधुनिक चीन की स्थिति 1911 की क्रान्ति से पूर्व आधुनिक चीन की स्थिति का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता –
1. जेसुइट मिशनरियों द्वारा चीन से सम्पर्क स्थापित करना – आधुनिक चीन की शुरुआत सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी में पश्चिम के साथ उसका प्रथम सम्पर्क होने के समय से मानी जा सकती है। इस काल में जेसुइट मिशनरियों ने खगोल विद्या तथा गणित जैसे पश्चिमी विज्ञानों को चीन पहुँचाया।

2. प्रथम अफीम युद्ध (1839-42 ) – ब्रिटेन ने अफीम के लाभप्रद व्यापार को बढ़ाने के लिए अपनी सैन्य – शक्ति का प्रयोग किया जिसके फलस्वरूप ब्रिटेन और चीन में प्रथम अफीम – युद्ध (1839-42 ) हुआ। इसमें चीन की बुरी तरह से पराजय हुई और उसे विवश होकर ब्रिटेन से नानकिंग की सन्धि करनी पड़ी। इस युद्ध ने चीन के सत्ताधारी क्विंग राजवंश की प्रतिष्ठा को प्रबल आघात पहुँचाया और उसे कमजोर किया। इसके फलस्वरूप चीन में सुधार तथा परिवर्तन की माँग प्रबल होती गई।

3. व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने पर बल देना- चीन के प्रसिद्ध सुधारकों कांग यूवेई तथा लियांग किचाउ ने चन की व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने पर बल दिया। अतः चीनी सरकार ने एक आधुनिक प्रशासकीय व्यवस्था, नई सेना तथा शिक्षा- प्रणाली के निर्माण के लिए नीतियाँ बनाईं। इसके अतिरिक्त संवैधानिक सरकार की स्थापना के हेतु स्थानीय विधायिकाओं का भी गठन किया गया। सुधारकों ने चीन को उपनिवेशीकरण से बचाये जाने पर भी बल दिया।

4. उपनिवेश बनाये गए देशों के नकारात्मक उदाहरण – साम्राज्यवादी शक्तियों द्वारा उपनिवेश बनाए गए देशों के नकारात्मक उदाहरणों ने भी चीनी विचारकों को प्रभावित किया। 18वीं सदी में पोलैण्ड के बँटवारे के उदाहरण ने चीनियों को अत्यधिक प्रभावित किया। भारत के उदाहरण ने भी चीन को प्रभावित किया। चीनी विचारक लियांग किचाउ का कहना था कि चीनी लोगों में एक राष्ट्र की जागरूकता उत्पन्न करके ही चीन पश्चिम का विरोध कर सकेगा। 1903 में उन्होंने लिखा कि, ” भारत एक ऐसा देश है, जो किसी और देश नहीं, बल्कि एक कम्पनी के हाथों नष्ट हो गया – ईस्ट इण्डिया कम्पनी के। वे ब्रिटेन की सेवा करने तथा अपने लोगों के साथ क्रूर होने के लिए भारतीयों की आलोचना करते थे। उनकी बातों ने चीनियों को अत्यधिक प्रभावित किया, क्योंकि चीनी महसूस करते थे कि ब्रिटेन, चीन के साथ युद्ध में भारतीय सैनिकों का प्रयोग करता है। ”

5. परम्परागत सोच को बदलने की आवश्यकता – चीनियों ने यह अनुभव किया कि परम्परागत सोच को बदलने की आवश्यकता है। कन्फ्यूशियसवाद को विचारधारा चीन के प्रसिद्ध दार्शनिक और धर्म-सुधारक कन्फ्यूशियस और उनके अनुयायियों की शिक्षाओं से विकसित की गई। इसके अन्तर्गत अच्छे व्यवहार, व्यावहारिक समझदारी और उचित सामाजिक सम्बन्धों पर बल दिया गया था। इस विचारधारा ने चीनियों के जीवन के प्रति दृष्टिकोण को प्रभावित किया, सामाजिक मानक दिये तथा चीनी राजनीतिक सोच और संगठनों को आधार प्रदान किया।

6. चीनियों को नये विषयों में प्रशिक्षित करना – नए विषयों में प्रशिक्षित करने के लिए विद्यार्थियों को जापान, ब्रिटेन तथा फ्रांस में पढ़ने भेजा गया। 1890 के दशक में बड़ी संख्या में चीनी विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने के लिए जापान गए। वे नये विचार लेकर चीन पहुँचे। उन्होंने चीन में गणतन्त्र की स्थापना करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। चीन ने जापान से न्याय, अधिकार और क्रान्ति के यूरोपीय विचारों के जापानी अनुवाद लिए।

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7. रूस-जापान युद्ध – 1905 में रूस और जापान के बीच युद्ध हुआ। यह एक ऐसा युद्ध था जो चीन की धरती पर और चीनी प्रदेशों पर प्रभुत्व के लिए लड़ा गया था। इस युद्ध के बाद सदियों पुरानी चीनी परीक्षा-प्रणाली समाप्त कर दी गई, जो चीनियों को अभिजात सत्ताधारी वर्ग में प्रवेश दिलाने का काम करती थी।

प्रश्न 8.
डॉ. सनयात सेन तथा च्यांग काई शेक के नेतृत्व में चीन के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. डॉ. सनयातसेन के नेतृत्व में चीन का विकास – 1911 में मांचू साम्राज्य समाप्त कर दिया गया और डॉ. सनयातसेन के नेतृत्व में गणतन्त्र की स्थापना की गई। डॉ. सेन आधुनिक चीन के संस्थापक माने जाते हैं। उन्होंने डॉक्टरी की परीक्षा उत्तीर्ण की, परन्तु वे चीन के भविष्य के प्रति चिन्तित थे। डॉ. सेन के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित थे
(1) राष्ट्रवाद – इसका अर्थ था मांचू वंश को सत्ता से हटाना, साथ ही साम्राज्यवादियों को चीन से हटाना। मांचू वंश विदेशी राजवंश के रूप में देखा जाता था।

(2) गणतन्त्र – चीन में गणतन्त्र या गणतान्त्रिक सरकार की स्थापना करना।

(3) समाजवाद – पूँजी का नियमन करना तथा भू-स्वामित्व में बराबरी लाना। 1912 में डॉ. सनयात सेन ने कुओमिनतांग दल की स्थापना की जो शीघ्र ही चीन का एक प्रमुख दल बन गया। डॉ. सनयात सेन के विचार कुओमिनतांग के राजनीतिक दर्शन का आधार बने। उन्होंने कपड़ा, भोजन, मकान और परिवहन – इन चार बड़ी आवश्यकताओं पर बल दिया।

2. च्यांग काई शेक के नेतृत्व में चीन का विकास – 1925 में डॉ. सनयात सेन की मृत्यु के पश्चात् च्यांग काई शेक कुओमिनतांग दल के नेता बने।
(1) च्यांग काई शेक ने सैन्य अभियानों के द्वारा वारलार्ड्सको (स्थानीय नेता जिन्होंने सत्ता छीन ली थी) अपने नियन्त्रण में किया और साम्यवादियों को नष्ट किया।
(2) उन्होंने सैक्यूलर और इहलौकिक कन्फ्यूशियसवाद का समर्थन किया, परन्तु साथ ही राष्ट्र का सैन्यकरण करने का कार्यक्रम जारी रखा।
(3) उन्होंने इस बात पर बल दिया कि लोगों को ‘एकताबद्ध व्यवहार की प्रवृत्ति और आदत’ का विकास करना चाहिए।
(4) उन्होंने महिलाओं के विकास पर भी बल दिया। उन्होंने महिलाओं को चार सद्गुण उत्पन्न करने के लिए प्रोत्साहित किया।

ये चार सद्गुण थे –
(1) सतीत्व
(2) रूप-रंग
(3) वाणी,
(4) काम। उन्होंने उनकी भूमिका को घरेलू स्तर पर ही देखने पर बल दिया।

(5) कुओमिनतांग का सामाजिक आधार शहरी प्रदेशों में था। औद्योगिक विकास की गति धीमी थी तथा कुछ ही क्षेत्रों तक सीमित थी। 1919 में शंघाई जैसे शहरों में औद्योगिक मजदूर वर्ग का उदय हो रहा था और उनकी संख्या लगभग पाँच लाख थी। परन्तु इनमें से अधिकतर लोग ‘नगण्य शहरी’ (शियाओ शिमिन), व्यापारी तथा दुकानदार होते थे। आधुनिक उद्योगों में मजदूरों की संख्या कम थी।

(6) व्यक्तिवाद बढ़ने के साथ-साथ, महिलाओं के अधिकार, परिवार बनाने के तरीके और प्रेम-मुहब्बत आदि विषयों पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा।

(7) सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में परिवर्तन लाने में स्कूलों और विश्वविद्यालयों के विस्तार से सहायता मिली। 1902 में पीकिंग विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। पत्रकारिता का भी विकास हुआ।

3. च्यांग काई शेक व कुओमिनतांग की असफलता- देश को एकीकृत करने के अपने भरसक प्रयासों के बावजूद कुओमिन तांग अपने संकीर्ण सामाजिक आधार और सीमित राजनीतिक दृष्टिकोण के कारण असफल हो गया।

यथा –
(i) डॉ. सनयात सेन के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त – पूँजी नियमन और भूमि अधिकारों में बराबरी लाना, को कभी भी कार्यान्वित नहीं किया गया। इसका कारण यह था कि पार्टी ने किसानों और बढ़ती हुई सामाजिक असमानता की अवहेलना की।
(ii) पार्टी ने लोगों की समस्याओं पर ध्यान देने के बजाय, सैनिक व्यवस्था थोपने का प्रयास किया।
(iii) 1937 में जापान ने चीन पर आक्रमण किया और चीन के अनेक नगरों पर अधिकार कर लिया। कुओमिनताँग की सेना को पीछे हटना पड़ा। दीर्घकालीन युद्धों ने चीन को कमजोर कर दिया।
(iv) 1945-49 की अवधि में चीन में कीमतें 30 प्रतिशत प्रति महीने की गति से बढ़ती गईं। इसके परिणामस्वरूप सामान्य व्यक्ति का जीवन बर्बाद हो गया।
(v) ग्रामीण चीन को दो संकटों का सामना करना पड़ा।

ये दो संकट थे –
(1) पर्यावरण सम्बन्धी संकट, जिसमें बंजर जमीन, वनों का नाश और बाढ़ शामिल थे तथा
(2) सामाजिक – आर्थिक संकट जो विनाशकारी जमीन – प्रथा आदि प्रौद्योगिकी तथा निम्न स्तरीय संचार के कारण था।

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प्रश्न 9.
चीन में 1978 से शुरू होने वाले सुधारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चीन में 1978 से शुरू होने वाले सुधार चीन में सांस्कृतिक क्रान्ति के बाद राजनीतिक दांव-पेंच की प्रक्रिया आरम्भ हुई। तंग शीयाओफिंग ने पार्टी पर सुदृढ़ नियन्त्रण बनाये रखा और साथ ही देश में समाजवादी बाजार अर्थव्यवस्था आरम्भ की।

1. चार-सूत्री लक्ष्य – 1978 में चीन की साम्यवादी पार्टी ने आधुनिकीकरण के अपने चार सूत्री लक्ष्य की घोषणा की। यह था – 1 – विज्ञान, उद्योग, कृषि और रक्षा का विकास। पार्टी से प्रश्न-उत्तर न करने की शर्त पर वाद-विवाद करने की अनुमति दे दी गई।

2. नये विचारों का प्रसार – इस नए और स्वतन्त्र वातावरण में नये विचारों का खूब प्रसार हुआ | 5 दिसम्बर, 1978 को दीवार पर लगे एक पोस्टर ने पाँचवीं आधुनिकता का दावा किया कि लोकतन्त्र के बिना अन्य आधुनिकताएँ निरर्थक हैं अर्थात् लोकतन्त्र के बिना आधुनिकीकरण सम्भव नहीं है। इसे पाँचवीं आधुनिकता का नाम दिया गया। पोस्टर में गरीबी को न हटा पाने तथा लैंगिक शोषण समाप्त न कर पाने के लिए सी. सी.पी. की आलोचना की गईं। परन्तु इस विरोध का दमन कर दिया गया।

3. तियानमेन चौक पर छात्रों का प्रदर्शन- 1989 में 4 मई के आन्दोलन की 70वीं वर्षगांठ पर अनेक बुद्धिजीवियों ने अधिक खुलेपन की माँग की और कठोर सिद्धान्तों (शू – शाओझी) को समाप्त करने की माँग की। बीजिंग के तियानमेन चौक पर हजारों चीनी छात्रों ने विशाल प्रदर्शन किया और लोकतन्त्र की माँग की, सरकार ने छात्रों के प्रदर्शन का क्रूरतापूर्वक दमन कर दिया। सम्पूर्ण विश्व में इसकी कटु आलोचना हुई।

4. चीन के विकास के सम्बन्ध में वाद-विवाद – कुछ समय पश्चात् चीन के विकास के विषय पर पुनः वाद- विवाद होने लगा। साम्यवादी पार्टी सुदृढ़ राजनीतिक नियन्त्रण, आर्थिक खुलेपन तथा विश्व बाजार से जुड़ाव का समर्थन करती है। परन्तु आलोचकों का कहना है कि सामाजिक गुटों, क्षेत्रों तथा पुरुषों और महिलाओं के बीच बढ़ती हुई असमानताओं से सामाजिक तनाव में वृद्धि हो रही है। अब चीन में पहले के पारम्परिक विचार फिर से जीवित हो रहे हैं। कन्फ्यूशियसवाद का प्रसार हो रहा है और इस बात पर बल दिया जा रहा है कि पश्चिम की नकल करने की बजाय चीन अपनी परम्परा पर चलते हुए भी एक आधुनिक समाज का निर्माण कर सकता है।

प्रश्न 10.
च्यांग काई शेक के नेतृत्व में ताइवान में सरकार की स्थापना का विवेचन कीजिए। वहाँ की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
च्यांग काई शेक के नेतृत्व में सरकार की स्थापना –
1. 1949 में च्यांग काई शेक का ताइवान भागना-चीन के साम्यवादी दल द्वारा पराजित होने के पश्चात् च्यांग काई शेक 30 करोड़ से अधिक अमरीकी डॉलर और बहुमूल्य कलाकृतियाँ लेकर 1949 में ताइवान भाग निकला। ताइवान में उसने चीनी गणतन्त्र की स्थापना की। 1894-95 में जापान के साथ हुए युद्ध में चीन को यह स्थान जापान को सौंपना पड़ा था। तब से ताइवान जापान का उपनिवेश बना हुआ था। कायरो घोषणा पत्र ( 1943) एवं पोट्सडैम उद्घोषणा (1949) के द्वारा चीन को सम्प्रभुता वापस मिल गई थी।

2. ताइवान में च्यांग काई शेक के नेतृत्व में दमनकारी सरकार की स्थापना – फरवरी, 1947 में हुए प्रबल प्रदर्शनों के पश्चात् कुओमिनतांग ने नेताओं की एक पूरी पीढ़ी का क्रूरतापूर्वक वध करवा दिया। च्यांग काई शेक के नेतृत्व कुओमिनतांग ने एक दमनकारी सरकार की स्थापना की। सरकार ने लोगों से बोलने की तथा राजनीतिक विरोध करने की स्वतन्त्रता छीन ली। सत्ता – केन्द्रों से स्थानीय लोगों को पूर्ण रूप से हटा दिया गया।

3. आर्थिक क्षेत्र में सुधार – च्यांग काई शेक की सरकार ने भूमि सुधार कार्यक्रम लागू किया जिसके परिणामस्वरूप खेती की उत्पादकता बढ़ी। सरकार ने अर्थव्यवस्था का भी आधुनिकीकरण किया जिसके फलस्वरूप 1973 में कुल राष्ट्रीय उत्पाद के मामले में ताइवान सम्पूर्ण एशिया में जापान के बाद दूसरे स्थान पर रहा। यह अर्थव्यवस्था मुख्यतः व्यापार पर आधारित थी तथा निरन्तर विकसित भी होती रही। परन्तु महत्त्वपूर्ण बात यह है अमीर और गरीब के बीच का अन्तराल निरन्तर कम होता गया।

4. ताइवान में लोकतन्त्र की स्थापना – ताइवान में लोकतन्त्र की स्थापना की घटना भी नाटकीय रही है। यह प्रक्रिया 1975 में च्यांग काई शेक की मृत्यु के बाद धीरे-धीरे शुरू हुई। 1987 में वहाँ फौजी कानून हटा लिया गया तथा विरोधी दलों को कानूनी मान्यता मिल गई। इसके बाद वहाँ लोकतन्त्र स्थापित करने की दिशा में काफी प्रगति हुई। पहले स्वतन्त्र मतदान के द्वारा स्थानीय ताइवानी लोग सत्ता में आने लगे। राजनयिक स्तर पर अधिकांश देशों के व्यापार मिशन केवल ताइवान में ही हैं। उनके द्वारा ताइवान में पूर्ण राजनयिक सम्बन्ध और दूतावास रखना सम्भव नहीं, क्योंकि ताइवान को चीन का ही एक भाग माना जाता है।

5. चीन के साथ पुनः एकीकरण की समस्या- चीन के साथ ताइवान का पुन: एकीकरण का प्रश्न अभी भी विवादास्पद बना हुआ है। अब ताइवान और चीन के बीच सम्बन्ध सुधर रहे हैं, ताइवानी व्यापार और निवेश चीन में बड़े पैमाने पर हो रहा है तथा आवागमन भी आसान हो गया है। आशा है कि चीन ताइवान को एक अर्ध-स्वायत्त क्षेत्र के रूप में स्वीकार करने में सहमत हो जायेगा, बशर्ते ताइवान पूर्ण स्वतन्त्रता के लिए कोई उग्र कदम नहीं उठाये।

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प्रश्न 11.
जापान तथा चीन द्वारा आधुनिकीकरण के लिए अपनाये गए मार्गों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
औद्योगिक समाजों ने आधुनिकता के अपने-अपने मार्ग बनाए। जापान और चीन की ऐतिहासिक परिस्थितियों ने उनके स्वतन्त्र तथा आधुनिक देश बनाने के बिल्कुल अलग-अलग मार्ग बनाए।
1. जापान के आधुनिकीकरण का मार्ग – जापान अपनी स्वतन्त्रता बनाए रखने में सफल रहा और पारम्परिक कौशल तथा प्रथाओं को नए तरीकों से प्रयुक्त कर पाया।
(i) उग्र-राष्ट्रवाद का उदय तथा शोषणकारी सत्ता को बनाए रखना – जापान में कुलीन तन्त्र के नेतृत्व में हुए आधुनिकीकरण ने एक उग्र राष्ट्रवाद को जन्म दिया और एक शोषणकारी सत्ता को बनाए रखा। इसने लोकतन्त्र की माँग का दमन कर दिया।
(ii) औपनिवेशिक साम्राज्य की स्थापना – जापान ने एक औपनिवेशिक साम्राज्य की स्थापना की जिससे उस क्षेत्र में कटुता की भावना बनी रही और आन्तरिक विकास भी अवरुद्ध हुआ।
(iii) जापान का आधुनिकीकरण और पश्चिमी साम्राज्यवादी शक्तियों का प्रभुत्व – जापान का आधुनिकीकरण ऐसे वातावरण में हुआ जब पश्चिमी साम्राज्यवादी शक्तियों का बोलबाला था। यद्यपि जापान ने पश्चिमी देशों की नकल की, परन्तु साथ ही अपनी समस्याओं के हल ढूँढ़ने का भी प्रयास किया। जापानी राष्ट्रवाद पर इन विवशताओं का प्रभाव देखा जा सकता है। एक ओर जापान के लोग एशिया को पश्चिमी शक्तियों के आधिपत्य से मुक्त रखने की आशा करते थे, दूसरे लोगों के लिए यही विचार साम्राज्य की स्थापना करने के लिए महत्त्वपूर्ण कारक सिद्ध हुए।
(iv) परम्पराओं का नए तथा अलग रचनात्मक तरीके से प्रयोग करना – जापान के सामाजिक तथा राजनीतिक संस्थानों के सुधार आदि के लिए परम्पराओं का नए तथा अलग रचनात्मक तरीके से प्रयोग करना आवश्यक था। उदाहरण के लिए, मेजी स्कूली पद्धति ने यूरोपीय तथा अमरीकी प्रथाओं के अनुरूप नये विषयों की शुरुआत की। किन्तु पाठ्यचर्या . का मुख्य उद्देश्य निष्ठावान नागरिक बनाना था। नैतिक शास्त्र का विषय पढ़ना अनिवार्य था जिसमें सम्राट के प्रति वफादारी पर बल दिया जाता था। इसी प्रकार परिवार में और दैनिक जीवन में आए परिवर्तन विदेशी और देशी विचारों को मिलाकर कुछ नया बनाने के प्रयास को उजागर करते हैं।

2. चीन के आधुनिकीकरण का मार्ग-चीन के आधुनिकीकरण का मार्ग बिल्कुल अलग था। यथा –
(i) परम्पराओं का परित्याग करना – 19वीं और 20वीं शताब्दी में परम्पराओं का परित्याग किया गया तथा राष्ट्रीय एकता एवं मजबूती स्थापित करने के उपाय ढूँढ़े गए। चीन के साम्यवादी दल तथा उसके समर्थकों ने परम्पराओं को समाप्त करने की लड़ाई लड़ी। उन्होंने महसूस किया कि परम्पराओं ने चीनी लोगों को गरीबी के जाल में जकड़ रखा है। इसके अतिरिक्त वे महिलाओं को अधीन बनाती हैं तथा देश को पिछड़ा हुआ रखती हैं।

(ii) लोगों को अधिकार एवं सत्ता देने का आश्वासन – चीन की साम्यवादी पार्टी ने लोगों को अधिकार एवं सत्ता देने का आश्वासन दिया परन्तु वास्तव में उसने बहुत ही केन्द्रीकृत राज्य की स्थापना की। साम्यवादी कार्यक्रम की सफलता ने नवीन आशा बँधाई परन्तु दमनकारी राजनीतिक व्यवस्था के कारण उनकी आशाएँ फलीभूत नहीं हुईं। परन्तु इससे शताब्दियाँ पुरानी असमानताएँ समाप्त हो गईं। शिक्षा का प्रसार हुआ और जनता में एक जागरूकता उत्पन्न हुई।

(iii) बाजार सम्बन्धी सुधार- चीनी साम्यवादी पार्टी ने बाजार सम्बन्धी सुधार किये और चीन को आर्थिक दृष्टि से शक्तिशाली बनाने में सफल हुई। परन्तु वहाँ की राजनीतिक व्यवस्था पर अब भी कड़ा नियन्त्रण है। अब समाज बढ़ती असमानताओं का सामना कर रहा है और सदियों से दबी हुई परम्पराएँ फिर से जीवित होने लगी हैं। इस नयी स्थिति से पुन: यह प्रश्न उठता है कि चीन किस प्रकार अपनी धरोहर को बनाए रखते हुए अपना विकास कर सकता है।

प्रश्न 12.
1987 के बाद दक्षिण कोरिया के लोकतंत्रीय विकासक्रम पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर:
1987 केबाद दक्षिण कोरिया में लोकतंत्रीय विकासक्रम 1987 के बाद दक्षिण कोरिया के लोकतंत्रीय विकासक्रम को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है –
(1) 1987 का प्रत्यक्ष चुनाव – नये संविधान के अनुसार, 1971 के बाद पहला प्रत्यक्ष चुनाव दिसम्बर, 1987 में आ, लेकिन विपक्षी दलों की एकजुटता में विफलता के कारण, चुन के सैन्य दल के एक साथी सैन्य नेता, ‘रोह ताएं- वू’ का चुनाव हुआ। हालांकि कोरिया में लोकतंत्र जारी रहा। लेकिन इन चुनावों में सैन्य शक्ति ही सत्ता पर कायम रही।

(2) 1992 के चुनाव और एक नागरिक नेतृत्व – 1990 में, लम्बे समय से विपक्षी नेता, रह चुके, किम यंग सैम ने एक बड़ी सत्तारूढ़ पार्टी बनाने के लिए रोह की पार्टी से समझौता किया। दिसम्बर, 1992 के चुनावों में दशकों से चल रहे सैन्य शासन के बाद, एक नागरिक नेता किम को राष्ट्रपति पद के लिए चुना गया।
नए चुनावों एवं सत्तावादी सेन्य शक्ति के विघटन के फलस्वरूप एक बार फिर लोकतंत्र की मुद्रा संकट का सामना करना पड़ा।

(3) शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण – दिसम्बर, 1997 में, एक लम्बे समय के बाद द. कोरिया में पहली बार शांतिपूर्ण हस्तांतरण हुआ और विपक्षी पार्टी के नेता किम डे- जुंग सत्ता में आए। सत्ता में दूसरा शांतिपूर्ण हस्तांतरण 2008 में हुआ जब रूढ़िवादी पार्टी के नेता ली माइक – बाक, प्रगतिशील पार्टी रोह मु-हयून प्रशासन के बाद अध्यक्ष चुने गए। 2012 में रूढिवादी पार्टी की नेता पार्क खान हे पहली महिला राष्ट्रपति के रूप में चुनी गईं। उनके पिता पार्क चुंग-ही की राजनीतिक विरासत के कारण उन्हें अपने कार्यकाल की शुरुआत में बहुत समर्थन प्राप्त हुआ, लेकिन मार्च, 2017 में, उनके मित्र द्वारा गुप्त रूप से सरकारी प्रबंधन किये जाने के कारण, उन पर महाभियोग चला और उन्हें कार्यालय से हटा दिया गया।

JAC Class 11 History Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

2016 में पार्क खन – हे के विरोध में नागरिकों के नेतृत्व में किए गए, केंडल लाइट विरोध, देश के लोकतांत्रिक कानून और प्रणालियों की सीमाओं के भीतर राष्ट्रपति के इस्तीफे की मांग हेतु शांतिपूर्ण प्रदर्शन आदि कोरियाई लोकतंत्र की परिपक्वता को दर्शाता है। मई, 2017 में तीसरी बार शांतिपूर्ण हस्तांतरण के द्वारा मून जे-इन ने राष्ट्रपति का पद संभाला है।
कोरियाई लोकतंत्र देश के गणतंत्रवाद को प्रोत्साहित करने वाले नागरिकों की जागरूकता का परिणाम है, जिसने आज इस देश को आगे बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाई है।

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