JAC Board Class 10th Social Science Important Questions History Chapter 4 औद्योगीकरण का युग
वस्तुनिष्ठ
प्रश्न 1.
वह शब्द कौन-सा है जो आमतौर पर एशिया के लिए इस्तेमाल किया जाता है?
(क) सौदागर
(ख) आदि
(ग) प्राच्य
(घ) जादुई चिराग
उत्तर:
(ग) प्राच्य
2. विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में उच्च वर्ग के लोग निम्न में से किससे निर्मित वस्तुओं को महत्त्व देते थे?
(क) मशीनों से
(ख) हाथों से
(ग) (क) और
(ख) दोनों से
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) हाथों से
3. कौन-से बन्दरगाह 1780 के दशक से व्यापारिक बन्दरगाह के रूप में विकसित होने लगे थे?
(क) बम्बई व कलकत्ता
(ख) सूर व मछलीपट्टनम
(ग) कांडला व तूतीकोरिन
(घ) चेन्नई व कांडला
उत्तर:
(क) बम्बई व कलकत्ता
4. “भारतीय कपड़े की माँग कभी कम नहीं हो सकती क्योंकि दुनिया के किसी और देश में इतना अच्छा माल नहीं बनता।” यह कथन किसका है?
(क) हेनरी पतूलो
(ख) जे.एल.हैमंड
(ग) टी.ई.निकल्सन
(घ) माइकलः वुल्फ
उत्तर:
(क) हेनरी पतूलो
5. भारत में सन् 1854 में पहली कपड़ा मिल कहाँ लगी थी?
(क) सूरत
(ख) पुणे
(ग) बंबई
(घ) अहमदाबाद
उत्तर:
(ग) बंबई
6. जे. एन. टाटा ने किस वर्ष जमशेदपुर में भारत का प्रथम लौह एवं इस्पात संयन्त्र स्थापित किया?
(क) 1729 ई.
(ख) 1854 ई.
(ग) 1912 ई.
(घ) 1855 ई.
उत्तर:
(ग) 1912 ई.
7. किस वस्तु के विज्ञापन में भगवान विष्णु आकाश से रोशनी लाते दिखाए गए हैं?
(क) साबुन
(ख) ग्राइप वाटर
(ग) कपड़ा
(घ) इस्पात
उत्तर:
(क) साबुन
रिक्त स्थान पूर्ति सम्बन्धी प्रश्न
निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
1. इंग्लैण्ड में ………. के दशक में कारखानों का खुलना प्रारंभ हुआ।
उत्तर:
1730,
2. ……….. ने न्यूकॉमेन द्वारा बनाए गए भाप के इंजन में सुधार किए और ………… में नए इंजन का पेटेंट करा लिया।
उत्तर:
जेम्स वॉट,
3. ………….. में पहली कपड़ा मिल 1854 में लगी।
उत्तर:
बंबई,
4. देश की पहली जूट मिल …………. में और दूसरी 7 साल बाद ……………. में चालू हुई।
उत्तर:
1855, 1862
5. उद्योगपति नए मजदूरों की भर्ती के लिए प्रायः एक …………… रखते थे।
उत्तर:
जॉबर।
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
किस म्यूजिक कम्पनी ने अपनी पुस्तक की जिल्द पर दी गयी तस्वीर में नयी सदी के उदय का ऐलान किया था?
उत्तर:
ई. टी. पॉल म्यूजिक कम्पनी ने अपनी पुस्तक की जिल्द पर दी गयी तस्वीर में ‘नयी सदी के उदय’ का ऐलान किया था।
प्रश्न 2.
गिल्ड्स से आप क्या रमझते हैं ?
उत्तर:
गिल्ड्स उत्पादकों के संगटन होते थे। गिल्ड्स से जुड़े उत्पादक कारीगरों को प्रशिक्षण प्रदान करते थे, उत्पादकों पर नियन्त्रण रख्बते थं, प्रातिम्पर्नीं और गुल्य तय करते थे।
प्रश्न 3.
इंग्लैण्ड के कपड़ा व्यापारी किससे ऊन खरीदते थे ?
उत्तर:
इंग्लेण्ड के कपड़ा व्यापारी स्टेप्लर्स (Staplers) से ऊन खरीदते थे।
प्रश्न 4.
इंग्लैणंड का कौन-सा शहर फिनिशिंग सेंटर के नाम से जाना जाता था ?
उत्तर:
इंग्लैण्ड का लंदन शहर फिनिशिंग सेंटर के नाम से जाना जाता था।
प्रश्न 5.
आदि-औद्योगिक व्यवस्था की प्रमुख विशेषता क्या थी ?
उत्तर:
आदि औद्योगिक व्यवस्था पर मौंदागतों का: नंत्रण था और वस्तुओं का उत्पादन कासमानें की जनग गंमें गोड़ा ग।
प्रश्न 6.
कार्डिंग क्या है ?
अथवा
‘कार्डिंग’ शब्द को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
कार्डिंग वह प्रक्रिया थी जिसमें कपास या ऊन आदि रेशों को कताई के लिए तैयार किया जाता था।
प्रश्न 7.
सूती कपड़ा मिल की रूपरेखा किसने तैयार की थी?
उत्तर:
रिचर्ड आर्कराइट ने सूती कपड़ा मिल की रूपरेखा तैयार की थी।
प्रश्न 8.
ब्रिटेन के सबसे अधिक विकसित उद्योग कौन-कौन से थे?
उत्तर:
ब्रिटेन के सबसे अधिक विकसित उद्योग सूती कपड़ा उद्योग एवं कपास उद्योग थे।
प्रश्न 9.
ब्रिटेन का कौन-सा उद्योग 1840 ई. के दशक तक औद्योगीकरण के प्रथम चरण में सबसे बड़ा उद्योग बन चुका था ?
उत्तर:
ब्रिटेन का कपास उद्योग 1840 ई. के दशक तक औद्योगिकीकरण के प्रथम चरण में सबसे बड़ा उद्योग बन चुका था।
प्रश्न 10.
स्पिनिंग जेनी मशीन का निर्माण कब व किसने किया?
उत्तर:
जेम्स हरग्रीव्ज ने 1764 ई. में स्पिर्तिंग जेनी मशीन का निर्माण किया। नियुक्ति क्यों की?
उत्तर:
बुनकरों का निरीक्षण करने के लिए।
प्रश्न 12.
भारत के स्थानीय बाजार में कहाँ के आयातित मालों की भरमार थी ?
उत्तर:
भारत के स्थानीय बाजार में मैनचेस्टर के आयातित मालों की भरमार थी।
प्रश्न 13.
1860 के दशक में बुनकरों के समक्ष कौन-सी समस्या उत्पन्न हो गयी ?
उत्तर:
1860 के दशक में बुनकरों के समक्ष अच्छी कृपास के न मिलने की समस्या उत्पन्न हो गयी।
प्रश्न 14.
देश की पहली जूट मिल कब व किस राज्य में स्थापित हुई ?
उत्तर:
देश की पहली जूट मिल 1855 ई. में बंगाल में स्थापित हुई।
प्रश्न 15.
किस वर्ष मद्रास में पहली कताई और बुनाई मिल स्थापित हुई ?
उत्तर:
सन् 1874 ई. में मद्रास में पहली कताई और बुनाई मिल स्थापित हुई।
प्रश्न 16.
बंबई के उन दो उद्योगपतियों के नाम लिखिए, जिन्होंने 19 वीं सदी में विशाल औद्योगिक साम्राज्य स्थापित किया?
उत्तर:
- डिनशॉ पेटिट व
- जमशेदजी नुसरवान जी टाटा।
प्रश्न 17.
प्रथम विश्वयुद्ध तक कौन-कौन सी यूरोपीय प्रबन्धकीय एजेंसियाँ भारतीय उद्योगों के विशाल क्षेत्र का नियन्त्रण करती थीं?
उत्तर:
- बर्ड हीगलार्स एण्ड कम्पनी,
- एंड्रयू यूल,
- जार्डीन स्किनर एण्ड कम्पनी।
प्रश्न 18.
जॉबर कौन थे?
उत्तर:
उद्यमी, मिलों में नये मजंदूरों की भर्ती के लिए विश्वस्त कर्मचारी रखते थे, जो जॉबर कहलाता था। इन्हें अलग-अलग प्रदेशों में सरदार या मिस्त्री आदि भी कहते थे।
प्रश्न 19.
फ्लाई शटल के प्रयोग से कौन-कौन से लाभ प्राप्त हुए?
उत्तर:
फ्लाई शटल के प्रयोग से कामगारों की उत्पादन क्षमता में वृद्धि हुई. उत्पादन तीव्र हुआ तथा श्रम की माँग में कमी आयी।
प्रश्न 20.
बच्चों की वस्तुओं का प्रचार करने के लिए किसकी छवि का अधिक उपयोग किया जाता था ?
उत्तर:
बच्चों की वस्तुओं का प्रचार करने के लिए बाल कृष्ण की छवि का सबसे अधिक उपयोग किया जाता था।
लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA1 )
प्रश्न 1.
17वीं व 18वीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों में सौदागर माँग के होते हुए भी उत्पादन नहीं बढ़ा सकते थे क्यों?
अथवा
औद्योगिक क्रान्ति से पूर्व यूरोप के नए व्यापारियों को नगरों में औद्योगिक इकाइयाँ स्थापित करने में आई किन्हीं तीन प्रमुख समस्याओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
17वीं व 18वीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों में सौदागर माँग के होते हुए निम्न कारणों से उत्पादन नहीं बढ़ा सकते थे था।
- शहरी दस्तकार व व्यापारिक गिल्ड्स बहुत अधिक ताकतवर थे।
- गिल्ड्स से जुड़े उत्पादक कारीगरों को प्रशिक्षण देते थे, उत्पादनों पर नियन्त्रण रखते थे, प्रतिस्पर्धा तथा मूल्य तय करते थे तथा व्यवसाय में आने वाले नये लोगों को रोकते थे।
- शासकों ने भी विभिन्न गिल्ड्स को विशेष उत्पादों के उत्पादन व व्यापार को एकाधिकार प्रदान कर रखा था।
प्रश्न 2.
19वीं शताब्दी के अन्त में कपास के उत्पादन में बहुत अधिक वृद्धि हुई। यह वृद्धि उत्पादन प्रक्रिया में कौन-कौन से बदलावों का परिणाम थी ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
कपास के उत्पादन में अधिक वृद्धि उत्पादन प्रक्रिया में निम्नलिखित बदलावों का परिणाम थी:
- 18वीं शताब्दी में कुछ नये आविष्कारों ने उत्पादन प्रक्रिया के प्रत्येक चरण (कार्डिंग, ऐंठना, कताई व लपेटना) की कुशलता बढ़ा दी।
- महँगी नयी मशीनें कारखानों में लगने लगीं।
- कारखानों में समस्त प्रक्रियाएँ एक ही छत के नीचे और एक मालिक के हाथों में आ गयी थीं।
- अब उत्पादन प्रक्रिया पर निगरानी, गुणवत्ता पर ध्यान व श्रमिकों पर ध्यान रखना सम्भव हो गया था। पहले यह सम्भव नहीं था क्योंकि उत्पादन का कार्य गाँवों में होता था।
प्रश्न 3.
इंग्लैण्ड में औद्योगीकरण के दौरान प्रौद्योगिकीय बदलावों की गति धीमी थी? कारण दीजिए।
उत्तर:
इंग्लैण्ड में औद्योगीकरण के दौरान प्रौद्योगिकीय बदलावों की गति धीमी होने के निम्नलिखित कारण थे
- नवीन तकनीक बहुत अधिक महँगी थी। सौदागर व उद्योगपति इनके उद्योग को लेकर बहुत सावधान रहा करते थे।
- मशीनें प्रायः खराब हो जाती थीं तथा उनकी मरम्मत पर बहुत अधिक खर्च आता था।
- 19वीं शताब्दी के मध्य का औसत श्रमिक मशीनों पर काम करने वाला नहीं बल्कि परम्परागत कारीगर एवं श्रमिक ही होता था।
- आविष्कारकों एवं निर्माताओं के दावे के अनुसार मशीनें उतनी अच्छी भी नहीं होती थीं।
प्रश्न 4.
विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में उद्योगपति आधुनिक मशीनों का प्रयोग क्यों नहीं करना चाहते थे ? कारण दीजिए।
उत्तर:
विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में उद्योगपति निम्न कारणों से आधुनिक मशीनों का प्रयोग नहीं करना चाहते थे
- विक्टोरया कालीन ब्रिटेन में मानव श्रम प्रचुर मात्रा में उपलब्ध था। बड़ी संख्या में गरीब किसान व बेकार लोग नौकरियों की खोज में शहरों की ओर आते थे।
- मशीनें बहुत अधिक महँगी आती थीं तथा उनके रख-रखाव पर अधिक व्यय होता था।
- जिन उद्योगों में मौसम के साथ उत्पादन घटता-बढ़ता रहता था वहाँ उद्योगपति मशीनों की बजाय मजदूरों को ही काम पर रखना पसन्द करते थे।
प्रश्न 5.
विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में उच्च वर्ग के लोग हाथ से बनी चीजों को महत्त्व प्रदान करते थे, क्यों?
अथवा
ब्रिटेन के कुलीन व पूँजीपति वर्ग द्वारा हस्तनिर्मित वस्तुओं को प्राथमिकता क्यों दी जाती थी, कारण दीजिए।
अथवा
19वीं सदी के मध्य में, ब्रिटेन के अभिजात वर्ग के लोगों नेथों से बनी चीजों को प्राथमिकता क्यों दी? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में उच्च वर्ग के लोग हाथ से बनी वस्तुओं को अधिक प्राथमिकता देते थे क्योंकि
- हाथ से बनी चीजों को परिष्कार तथा सुरुचि का प्रतीक माना जाता था।
- हाथ से बनी हुई वस्तुओं को एक-एक करके बनाया जाता था जिससे उनकी डिजायन व फिनिशिंग अच्छी आती थी।
- मशीनों से बनने वाले उत्पादों को उपनिवेशों में निर्यात कर दिया जाता था।
प्रश्न 6.
1760 ई. के दशक के पश्चात् ईस्ट इण्डिया कम्पनी भारत से होने वाले कपड़े के निर्यात को और अधिक क्यों फैलाना चाहती थी ?
उत्तर:
1760 ई. के दशक के पश्चात् ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सत्ता सुदृढ़ीकरण की शुरुआत में भारत के कपड़ा निर्यात में गिरावट नहीं आयी। ब्रिटिश कपड़ा उद्योग का अभी विस्तार होना प्रारम्भ नहीं हुआ था। यूरोप में बारीक भारतीय कपड़ों की बहुत अधिक माँग थी इसलिए ईस्ट इण्डिया कम्पनी भी भारत से होने वाले कपड़े के निर्यात को ही और अधिक फैलाना चाहती थी।
प्रश्न 7.
1760 ई. और 1770 ई. के दशकों में बंगाल और कर्नाटक में राजनीतिक सत्ता स्थापित करने से पहले ईस्ट इण्डिया कम्पनी को निर्यात के लिए लगातार वस्तुओं की आपूर्ति आसानी से नहीं हो पाती थी, क्यों ?
उत्तर:
बुने हुए कपड़ों को हासिल करने के लिए फ्रांसीसी, डच तथा पुर्तगालियों के साथ-साथ स्थानीय व्यापारी भी होड़ में रहते थे। इस प्रकार बुनकर और आपूर्ति सौदागर बहुत अधिक मोलभाव करते थे और अपना माल सर्वाधिक ऊँची बोली लगाने वाले खरीददार को ही बेचते थे। यही कारण था कि ईस्ट इण्डिया कम्पनी को निर्यात के लिए लगातार वस्तुओं की आपूर्ति आसानी से नहीं हो पाती थी।
प्रश्न 8.
गुमाश्ता कौन थे? बुनकरों और गुमाश्तों के बीच झड़पें क्यों हुईं?
अथवा
गुमाश्ता के कार्य बताइए।
अथवा
गाँव में गुमाश्ता और बुनकरों के मध्य संघर्ष अधिक क्यों थे?
उत्तर:
गुमाश्ता ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा नियुक्त किये जाने वाले वेतनभोगी कर्मचारी होते थे, जो बुकनरों पर निगरानी रखने, माल इकट्ठा करने एवं कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने का कार्य करते थे। ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा नियुक्त. गुमाश्ते बाहर के लोग थे जिनका गाँव से कोई सामाजिक सम्बन्ध नहीं था। वे दोषपूर्ण व्यवहार करते थे।
माल समय पर तैयार न होने की स्थिति में बुनकरों को सजा देते थे। सजा के तौर पर बुनकरों को पीटा जाता था और कोड़े बरसाये जाते थे। कर्नाटक और बंगाल में कई स्थानों से बुनकर गाँव छोड़कर चले गये। अतः रोजाना ही बुनकरों व गुमाश्तों के मध्य झड़पों के समाचार आते रहते थे।।
प्रश्न 9.
भारत के औद्योगिक विकास पर प्रथम विश्वयुद्ध का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
भारत के औद्योगिक विकास पर प्रथम विश्वयुद्ध का निम्नलिखित प्रभाव पड़ा:
- भारत में मैनचेस्टर के माल का आयात कम हो गया।
- युद्ध के पश्चात् भारतीय बाजार में मैनचेस्टर अपनी पहले वाली स्थिति प्राप्त न कर सका।
- स्थानीय उद्योगपतियों ने घरेलू बाजारों पर नियन्त्रण स्थापित कर लिया।
- ब्रिटिश सूती वस्त्र उद्योग अपना आधुनिकीकरण नहीं कर सका।
प्रश्न 10.
जॉबर कौन होते थे? उनका क्या कार्य था?
अथवा
जॉबर किसे कहते हैं ? उसके कार्यों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में भारत में ‘जॉबर्स’ की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उद्योगपति अपने कारखानों में नये मजदूरों की भर्ती का कार्य अपने किसी पुराने व विश्वस्त कर्मचारी के माध्यम से कराते थे जिसे जॉबर कहा जाता था। इन्हें अलग-अलग इलाकों में सरदार या मिस्त्री आदि भी कहते थे। इनका प्रमुख कार्य अपने गाँव से लोगों को लाना होता था। वह अपने गाँव से लोगों को लाता था, उन्हें काम का भरोसा दिलाता था, उन्हें शहरों में जमने के लिए मदद देता था तथा मुसीबत में पैसे से मदद करता था। इस प्रकार जॉबर ताकतवर और मजबूत व्यक्ति बन गया। बाद में जॉबर मदद के बदले पैसे माँगने लगे और श्रमिकों की जिन्दगी को नियन्त्रित करने लगे।
प्रश्न 11.
बीसवीं शताब्दी में अपनी उत्पादकता बढ़ाने एवं मिलों से मुकाबला करने के लिए भारतीय बुनकरों ने किस प्रकार नई तकनीक को अपनाया ?
उत्तर:
बीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक में कई बुनकर फ्लाई शटल का प्रयोग करने लगे। फ्लाई शटल बुनाई के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक यान्त्रिक औजार था। फ्लाई शटल के प्रयोग से कामगारों की उत्पादन क्षमता बढ़ी, उत्पादन तीव्र गति से होने लगा एवं श्रम की माँग में कमी आई। सन् 1941 ई. तक भारत में 35 प्रतिशत से अधिक हथकरघों में फ्लाई शटल लगे हुए थे।
त्रावणकोर, मद्रास, मैसूर, कोचीन, बंगाल आदि क्षेत्रों में तो ऐसे हथकरघे 70-80 प्रतिशत तक थे। इसके अतिरिक्त कई छोटे-छोटे सुधार किये गये जिनसे बुनकरों को अपनी उत्पादकता बढ़ाने एवं मिलों से मुकाबला करने में मदद मिली।
प्रश्न 12.
नये उपभोक्ता पैदा करने में विज्ञापनों का क्या महत्त्व है?
अथवा
नये उपभोक्ता बनाने में विज्ञापनों की भूमिका को संक्षेप में बताइए।
अथवा
वस्तुओं के लिए बाजार में विज्ञापन के महत्त्व को समझाइए।
उत्तर:
विज्ञापन विभिन्न उत्पादों को आवश्यक एवं वांछनीय बना देते हैं। वे लोगों की सोच बदल देते हैं तथा नयी आवश्यकताएँ पैदा कर देते हैं। समाचार-पत्र-पत्रिकाओं, होर्डिंग्स, दीवारों, टेलीविजन के परदे पर सभी जगह विज्ञापन छाये हुए हैं। यदि हम इतिहास में पीछे .मुड़कर देखें तो पता चलता है कि औद्योगीकरण की शुरुआत से ही विज्ञापनों ने विभिन्न उत्पादों के बाजार के विस्तार में एवं एक नयी उपभोक्ता संस्कृति के निर्माण में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है।
प्रश्न 13.
मैनचेस्टर के उद्योगपतियों ने भारत में कपड़े बेचने के लिए लेबल का प्रयोग क्यों किया?
उत्तर:
मैनचेस्टर के उद्योगपतियों ने भारत में कपड़ा बेचना प्रारम्भ किया तो वे कपड़ों के बण्डलों पर लेबल लगाते थे। लेबल का लाभ यह होता था कि क्रेता को कम्पनी का नाम व उत्पादन के स्थान का पता चल जाता था। लेबल ही वस्तुओं की गुणवत्ता का प्रतीक था। जब किसी लेबल पर मोटे अक्षरों में ‘मेड इन मैनचेस्टर’ लिखा दिखाई देता था तो खरीददारों को कपड़ा खरीदने में किसी प्रकार का डर नहीं रहता था।
लघूत्तरात्मक (SA2)
प्रश्न 1.
यूरोप में आदि-औद्योगीकरण के दौरान किसानों ने सौदागरों के लिए कार्य करना क्यों प्रारम्भ किया?
अथवा
गाँवों के गरीब किसान एवं दस्तकार यूरोप के शहरी सौदागरों के लिए काम करने के लिए क्यों तैयार हो गये?
अथवा
“17वीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के सौदागर गाँवों में किसानों और कारीगरों से काम करवाने लगे।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यूरोप में आदि-औद्योगीकरण के दौरान किसानों ने सौदागरों के लिए निम्नलिखित कारणों से काम करना प्रारम्भ किया:
- सत्रहवीं व अठारहवीं शताब्दी में यूरोप में गाँवों के खुले खेत समाप्त होते जा रहे थे तथा कॉमन्स की बाडावन्दी की जा रही थी। गरीब किसान जो इन्हीं जमीनों पर आश्रित थे उनकी आजीविका छिन गई।
- कई किसानों के पास छोटे-छोटे खेत थे जिनसे उनके समस्त परिवार का पालन-पोषण नहीं किया जा सकता था।
- ऐसी स्थिति में शहरी सौदागरों ने किसानों को काम का प्रस्ताव दिया एवं पेशगी के रूप में रकम भी दी तो वे तैयार हो गये।
- सौदागरों के लिए काम करते हुए वे गाँव में ही रहते हुए अपने छोटे-छोटे खेतों को भी सम्भाल सकते थे।
- इस आदि औद्योगिक उत्पादन से होने वाली आय ने खेती के कारण सिमटती आय में किसानों को बहुत सहारा दिया। इससे उन्हें अपने सम्पूर्ण परिवार के श्रम संसाधनों के उपयोग करने का अवसर भी मिल गया।
- इस व्यवस्था से शहरों एवं गाँवों के मध्य एक घनिष्ठ सम्बन्ध विकसित हुआ।
प्रश्न 2.
“विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में कुलीन और पूँजीपति वर्ग द्वारा हस्तनिर्मित वस्तुओं को पसन्द किया जाता था।” स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में मानव श्रम प्रचुर मात्रा में उपलब्ध था। बड़ी संख्. में गरीब किसान व बेकार लोग कामकाज की तलाश में शहरों में आते थे। उद्योगपतियों को ऐसी मशीनों में कोई रुचि नहीं थी जिनके कारण श्रमिकों से तो छुटकारा मिल जाये परन्तु जिन पर बहुत अधिक व्यय होता हो। अनेक उत्पाद केवल हाथ से ही तैयार किये जाते थे। मशीनों से एक जैसे तथा एक किस्म के उत्पाद ही बड़ी संख्या में बनाये जा सकते थे।
लेकिन बाजार में अक्सर बारीक डिजाइन वाली एवं विशेष आकारों वाली वस्तुओं की बहुत अधिक माँग रहती थी। विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में उच्च वर्ग के लोग, कुलीन एवं पूँजीपति वर्ग हस्तनिर्मित वस्तुओं को अधिक महत्त्व देते थे, क्योंकि हाथ से बनी वस्तुओं को परिष्कार एवं सुरुचि का प्रतीक माना जाता था। उनकी फिनिशिंग अच्छी होती थी। उनको एक-एक करके बनाया जाता ६ तथा उनका डिजाइन अच्छा होता था।
मशीनों से बनने वाले उत्पादों को उपनिवेशों में निर्यात कर दिया जाता था। बाजार में हाथ से बनी वस्तुओं की बहुत अधिक माँग रहती थी। कई वस्तुओं के लिए यांत्रिक प्रौद्योगिकी की अपेक्षा मानवीय निपुणता की अधिक आवश्यकता पड़ती थी, जैसे-हथौड़ी, कुल्हाड़ियों का निर्माण। इसके अतिरिक्त हाथ से बनी वस्तुएँ उच्चवर्गीय लोगों की अभिरुचि को भी सन्तुष्ट करती थीं। .
प्रश्न 3.
बाजार में श्रम की बहुतायत से मजदूर वर्ग के जीवन पर पड़ने वाले कोई तीन प्रभाव बताइए।
उत्तर:
बाजार में श्रम की बहुतायत से मजदूर वर्ग के जीवन पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े
1. काम पाने के लिए गाँवों से बड़ी संख्या में मजदूर शहरों में आने ल। नौकरी मिलने की सम्भावना मित्रता तथा परिवारों के द्वारा जान-पहचान पर निर्भर करती थी। यदि किसी कारखाने में किसी व्यक्ति का सम्बन्धी या मित्र नौकरी करता था तो उसे नौकरी मिलने की सम्भावना अधिक रहती थी। सभी के पास ऐसे सामाजिक सम्पर्क नहीं होते थे। इसलिए रोजगार चाहने वाले बहुत से मजदूरों को कई सप्ताह तक प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। वे पुलों के नीचे अथवा रैनबसेरों में रातें काटते थे।
2. अनेक उद्योगों में मौसमी कार्य की वजह से मजदूरों को बीच-बीच में बहुत समय तक खाली बैठना पड़ता था। कार्य का मौसम समाप्त हो जाने के पश्चात् मजदूर पुनः बेरोजगार हो जाते थे।
3. लम्बे नेपोलियनी युद्ध के दौरान कीमतों में तीव्र गति से वृद्धि होने पर मजदूरों की आय के वास्तविक मूल्य में भारी कमी आ गयी। अब उन्हें वेतन तो पहले जितना मिलता था लेकिन उससे वे पहले जितनी वस्तुएँ नहीं खरीद सकते थे।
प्रश्न 4.
19वीं शताब्दी में “औद्योगिक क्रांति, मिश्रित वरदान सिद्ध हुई।” इस कथन पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
19वीं सदी में औद्योगिक क्रांति, मिश्रित वरदान सिद्ध हुई” इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित थे
1. उद्योगों का विकास:
औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप उत्पादन अब कारखानों में होने लगा। कपड़ा बुनने, सूत कातने के लिए कारखाने स्थापित हुए। मशीनों का उपयोग कर कपड़ा, लोहा एवं इस्पात, कोयला, सीमेण्ट, चीनी, कागज, शीशा और अन्य उद्योग स्थापित किए गए, जिनका बड़े स्तर पर उत्पादन हुआ। इस प्रकार औद्योगिक क्रांति से उद्योगों का विकास हुआ।
2. नगरीकरण को बढ़ावा:
औद्योगीकरण ने नगरीकरण को बढ़ावा दिया। औद्योगिक केन्द्र नगर के रूप में परिवर्तित हुए। वहाँ बाहर के लोग आकर बसने लगे, जिससे नगरीय जनसंख्या में वृद्धि हुई।
3. कुटीर उद्योगों की अवनति:
कारखानों की स्थापना होने से परम्परागत कुटीर एवं लघु उद्योगों का पतन हो गया।
4. सामाजिक विभाजन:
भारत में औद्योगीकरण के विकास के साथ ही नए-नए सामाजिक वर्गों का उदय और विकास हुआ। अधिक कल-कारखानों के विकसित होने से समाज में पूँजीपति वर्ग तथा श्रमिक वर्ग का उदय हुआ। निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि उत्पादन अच्छा तथा सस्ता होने लगा लेकिन सामाजिक असमानता में वृद्धि, नगरों की समस्या में वृद्धि, कुटीर एवं लघु उद्योगों की समाप्ति के कारण “औद्योगिक क्रांति मिश्रित वरदान सिद्ध हुई।”
प्रश्न 5.
मशीन आधारित उद्योगों के युग से पहले अन्तर्राष्ट्रीय वस्त्र बाजार में भारतीय वस्त्र उत्पादों की क्या स्थिति थी? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
मशीन आधारित उद्योगों के युग से पहले अन्तर्राष्ट्रीय वस्त्र बाजार में भारत के रेशम व सूती वस्त्र उत्पादों का बोलबाला था। अधिकांश देशों में मोटा कपास पैदा होता था जबकि भारत में उत्पन्न होने वाला कपास बारीक था जिससे अच्छे वस्त्र बनते थे। यहाँ से स्थल व जलमार्गों द्वारा वस्त्र उत्पादों को विदेशों में भेजा जाता था। आर्मीनियन एवं फारसी सौदागर पंजाब से अफगानिस्तान, पूर्वी फारस एवं मध्य एशिया के रास्ते यहाँ से विभिन्न वस्तुएँ लेकर जाते थे।
भारत से बने बारीक कपड़ों के शाल ऊँटों की पीठ पर लादकर पश्चिमोत्तर सीमा से पहाड़ी दरों एवं मरुस्थल के पार ले जाये जाते थे। मुख्य पूर्व औपनिवेशिक बन्दरगाहों से पर्याप्त समुद्री व्यापार संचालित होता था। गुजरात के तट पर स्थित सूरत बन्दरगाह के माध्यम से भारत खाड़ी एवं लाल सागर के बन्दरगाहों से जुड़ा हुआ था। कोरोमण्डल तट पर स्थित मछलीपट्टम व बंगाल में हुगली के माध्यम से दक्षिण-पूर्वी एशियाई बन्दरगाहों के साथ पर्याप्त व्यापार होता था।
प्रश्न 6.
1750 ई. के दशक तक भारतीय सौदागरों के नियन्त्रण वाला व्यापारिक नेटवर्क टूटने लगा था, क्यों?
उत्तर:
1750 ई. के दशक तक भारतीय सौदागरों के नियन्त्रण वाला व्यापारिक नेटवर्क टटने लगा था क्योकि
- 1750 के दशक तक यूरोपीय कम्पनियाँ स्थानीय दरबारों से व्यापारिक छूट तथा एकाधिकार प्राप्त कर शक्तिशाली होने लगी थीं।
- सूरत व हुगली जैसे बन्दरगाहों, जहाँ से भारतीय सौदागर अपनी व्यापारिक गतिविधियों को संचालित करते थे उनका पतन हो चुका था। इन बन्दरगाहों से होने वाले निर्यात में नाटकीय कमी आई। अब बम्बई व कलकत्ता जैसे नये बन्दरगाह उभरकर सामने आये जो यूरोपीय व्यापारियों के कब्जे में थे।
- पुराने बन्दरगाहों के स्थान पर नये बन्दरगाहों का बढ़ता महत्त्व औपनिवेशिक सत्ता की बढ़ती ताकत का संकेत था। नये बन्दरगाहों से होने वाला व्यापार यूरोपीय कम्पनियों के नियन्त्रण में था और यूरोपीय जहाजों के माध्यम से ही होता था।
- निर्यात में कमी आने के कारण भारतीय व्यापारिक घराने दिवालिया होते गये। शेष बचे व्यापारिक घरानों को यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों के नियन्त्रण में कार्य करने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं बचा था।
प्रश्न 7.
‘आदि-औद्योगीकरण’ क्या है? भारतीय बुनकरों पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने किस प्रकार नियन्त्रण स्थापित किया?
उत्तर:
आदि-औद्योगीकरण का अर्थ-हॉलैण्ड और यूरोप में कारखानों की स्थापना से पहले अन्तर्राष्ट्रीय बाजार के लिए बड़े पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन होने लगा था। यह उत्पादन कारखानों में नहीं होता था। ‘आदि’ किसी वस्तु की पहली प्रारम्भिक अवस्था का संकेत है।
अतः अनेक इतिहासकारों ने औद्योगीकरण में इस चरण को आदि-औद्योगीकरण का नाम दिया। आदि-औद्योगीकरण काल में औद्योगिक बाजार के लिए उत्पादन कारखानों की बजाय घरों पर हाथों से निर्मित किये जाते थे। भारतीय बुनकरों पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी का नियन्त्रण-ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारतीय बुनकरों पर निम्न प्रकार से अपना नियन्त्रण स्थापित किया
- कम्पनी ने कपड़ा व्यापारियों एवं दलालों को समाप्त करके बुनकरों पर प्रत्यक्ष नियन्त्रण स्थापित किया।
- कम्पनी को माल बेचने वाले बुनकरों को अन्य खरीददारों के साथ कारोबार करने पर पाबन्दी लगा दी।
- कम्पनी ने बुनकरों पर निगरानी रखने, माल एकत्रित करने एवं कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने के लिए वेतनभोगी कर्मचारी नियुक्त किये, जिन्हें गुमाश्ता कहा जाता था।
- जिन बुनकरों द्वारा कम्पनी से ऋण लिया जाता था उन्हें अपना बनाया कपड़ा गुमाश्ता को ही देना पड़ता था। उसे वे किसी अन्य व्यापारी को नहीं बेच सकत थे।
प्रश्न 8.
19वीं सदी की शुरुआत में भारत के कपड़ा निर्यात में क्यों गिरावट आने लगी?
अथवा
19वीं सदी के प्रारम्भ में भारतीय कपड़ा निर्यात बाजार क्यों ठप्प हुआ और स्थानीय बाजार क्यों सिकुड़ने लगे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
19वीं सदी के शुरुआत में भारत के कपड़ा निर्यात में निम्नांकित कारणों से गिरावट आने लगी
- इंग्लैण्ड में कपास उद्योग के विकास के साथ वहाँ के स्थानीय व्यापारियों ने आयातित कपड़े पर आयात शुल्क लगाने की माँग करनी प्रारम्भ कर दी जिससे कि मैनचेस्टर में बने कपड़े प्रतिस्पर्धा के बिना इंग्लैण्ड में आराम से बिक सकें।
- इंग्लैण्ड के व्यापारियों ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी पर दबाव डाला कि वह ब्रिटिश कपड़ों का भारतीय बाजार में भी विक्रय करें।
- 1860 ई. के दशक में भारतीय बुनकरों को अच्छी किस्म की कपास की पर्याप्त आपूर्ति में बाधा का सामना करना पड़ा।
- इंग्लैण्ड से भारत में आने वाला कपड़ा सस्ता एवं सुन्दर था। भारतीय वस्त्र उसका मुकाबला नहीं कर सके।
प्रश्न 9.
19वीं सदी में भारतीय बुनकरों को किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ा? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
अथवा
ब्रिटिश औद्योगीकरण के कारण भारतीय बुनकरों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ा?
अथवा
19वीं शताब्दी में भारतीय बुनकरों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
18वीं सदी के प्रारम्भ में भारतीय बुनकरों की क्या-क्या समस्याएँ थीं?
अथवा
19वीं शताब्दी में भारतीय बुनकरों की किन्हीं तीन प्रमुख समस्याओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
19वीं सदी में भारतीय बुनकरों को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ा:
- बुनकरों का निर्यात बाजार समाप्ति की ओर था तथा स्थानीय बाजार भी सिकुड़ रहा था।
- स्थानीय बाजार में मैनचेस्टर से आयातित मालों की अधिकता थी। कम लागत पर मशीनों से निर्मित आयातित कपास उत्पाद इतने सस्ते थे कि बुनकर उनका मुकाबला नहीं कर सकते थे। 1850 के दशक तक देश के अधिकांश बुनकर प्रदेशों में गरीबी व बेरोजगारी फैल गयी थी।
- 1860 के दशक में अमेरिका में गृह युद्ध प्रारम्भ होने से वहाँ से कपास का आना बन्द हो गया। इस पर ब्रिटेन भारत से कपास मँगाने लगा जिससे कपास की कीमतें अत्यधिक बढ़ गयीं। भारतीय बुनकरों को कपास मिलना मुश्किल हो गया। उन्हें मनमानी कीमत पर कपास खरीदनी पड़ती थी। इस कारण उनका इस व्यवसाय में बने रहना मुश्किल हो गया।
- 19वीं सदी के अन्त में भारतीय कारखानों में उत्पादन होने लगा तथा बाजार मशीनों से निर्मित वस्तुओं से भर गये थे फलस्वरूप भारतीय बुनकर उद्योग पतन के कगार पर पहुँच गया।
प्रश्न 10.
20वीं सदी के प्रथम दशक तक भारत में औद्योगीकरण की व्यवस्था में आये परिवर्तनों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
अथवा
“20वीं शताब्दी के पहले दशक तक भारत में औद्योगीकरण का स्वरूप कई बदलावों की चपेट में आ चुका था” इस कथन का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
20वीं सदी के प्रथम दशक तक भारत में औद्योगीकरण की व्यवस्था कई परिवर्तनों की चपेट में आ चुकी थी। देश में स्वदेशी आन्दोलन को गति मिलने से राष्ट्रवादियों ने लोगों को विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करने के लिए प्रेरित किया। औद्योगिक समूह अपने सामूहिक हितों की रक्षा के लिए संगठित हो गये तथा उन्होंने आयात शुल्क बढ़ाने एवं अन्य रियायतें देने के लिए सरकार पर दबाव डाला।
1906 ई. के पश्चात् चीन भेजे जाने वाले भारतीय धागे के निर्यात में भी कमी आना प्रारम्भ हो गया। चीनी बाजार में चीन व जापान के कारखानों से निर्मित सामग्री की पर्याप्तता हो गयी थी परिणामस्वरूप भारत के उद्योगपति धागे की बजाय कपड़े का निर्माण करने लगे। अत: 1900 से 1912 ई. के मध्य सूती कपड़े का उत्पादन दोगुना हो गया। प्रथम विश्व युद्ध के प्रारम्भ में औद्योगिक विकास मन्द रहा लेकिन युद्ध के दौरान औद्योगिक उत्पादन तीव्र गति से बढ़ा।
प्रश्न 11.
“प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् भारतीय बाजार में मैनचेस्टर की पहले वाली हैसियत नहीं रही।” कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश कारखाने सेना की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए युद्ध सम्बन्धी उत्पादन में व्यस्त थे इसलिए भारत में मैनचेस्टर के माल का आयात कम हो गया। युद्ध के दौरान भारत में औद्योगिक उत्पादन तेजी से बढ़ा। प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् भारतीय बाजार में मैनचेस्टर की पहले वाली स्थिति नहीं रही।
आधुनिकीकरण न कर पाने एवं अमेरिका, जर्मनी व जापान के मुकाबले कमजोर पड़ जाने के कारण ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। कपास का उत्पादन बहुत कम रह गया था तथा ब्रिटेन से होने वाले सूती कपड़े के निर्यात में भारी गिरावट आ गयी। परिणामस्वरूप ब्रिटेन के उपनिवेशों में विदेशी उत्पादों को हटाकर स्थानीय उद्योगपतियों ने घरेलू बाजारों पर नियन्त्रण स्थापित कर लिया तथा धीरे-धीरे अपनी स्थिति सुदृढ़ कर ली।
प्रश्न 12.
लेबलों ने मैनचेस्टर के कपड़ों के लिए भारत में बाजार तैयार करने में किस प्रकार सहायता पहुँचाई ?
उत्तर:
लेबलों ने मैनचेस्टर के कपड़ों के लिए भारत में बाजार तैयार करने में बहुत अधिक सहायता पहुँचायी। जब मैनचेस्टर के उद्योगपतियों ने भारत में कपड़ा बेचना प्रारम्भ किया तो वे कपड़ों के बंडलों पर लेबल लगाते थे। लेबल से औद्योगीकरण का युग 890 क्रेताओं को कम्पनी का नाम व उत्पादन के स्थान की जानकारी प्राप्त हो जाती थी। लेबल वस्त्रों की गुणवत्ता का प्रतीक भी था। जब किसी लेबल पर मोटे अक्षरों में ‘मेड इन मैनचेस्टर’ लिखा दिखाई देता था तो क्रेता को कपड़े खरीदने में किसी भी प्रकार का कोई संकोच नहीं होता था।
लेबलों पर केवल शब्द एवं अक्षर नहीं होते थे, बल्कि उन पर सुन्दर तस्वीरें भी बनी होती थीं। इन लेबलों पर प्रायः भारतीय देवी-देवताओं की तस्वीरें होती थीं। इन तस्वीरों के माध्यम से वस्त्र निर्माता यह दर्शाना चाहते थे कि ईश्वर की भी यह इच्छा है कि लोग उन वस्तुओं को खरीदें। लेबलों पर कृष्ण या सरस्वती की तस्वीर बनी होने का लाभ यह होता था कि विदेशों में बनी वस्तुएँ भी भारतीयों को जानी-पहचानी सी लगती थीं।
प्रश्न 14.
उत्पादों की बिक्री बढ़ाने में कैलेण्डर किस प्रकार सहायक थे?
उत्तर:
अखबार एवं पत्र-पत्रिकाओं को तो शिक्षित लोग ही समझ सकते थे लेकिन कैलेण्डर निरक्षर लोगों की समझ में भी आ जाते थे। चाय की दुकानों, कार्यालयों एवं मध्यवर्गीय लोगों के घरों में ये कैलेण्डर लटके रहते थे। इन कैलेण्डरों को लगाने वाले लोग विज्ञापनों को भी प्रतिदिन पूरे वर्षभर देखते रहते थे। इन कैलेण्डरों में भी नये उत्पादों को बेचने के लिए देवताओं के चित्र अंकित होते थे जिस कारण लोग इन उत्पादों को खरीदने को प्रेरित हो जाते थे।
इसके अतिरिक्त महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों, सम्राटों एवं नवाबों के चित्रों का भी कैलेण्डरों में भरपूर प्रयोग होता था। इनका सन्देश प्रायः यह होता था कि यदि आप इस शाही व्यक्ति का सम्मान करते हैं तो इस उत्पाद का भी सम्मान कीजिए, यदि इस उत्पाद का राजा प्रयोग करते हैं अथवा उसे शाही निर्देश से बनाया गया है तो उसकी गुणवत्ता पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता था। इस प्रकार उत्पादों की बिक्री बढ़ाने में कैलेण्डर महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान करते थे।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
औद्योगीकरण से आप क्या समझते हैं? इसका प्रारम्भ इंग्लैण्ड से ही क्यों हुआ? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
औद्योगिक क्रांति के तीन कारक लिखिए।
उत्तर:
औद्योगीकरण यानी उद्योगों की वृहत रूप से स्थापना उस औद्योगिक क्रांति की देन है जिसमें वस्तुओं का उत्पादन मशीनों द्वारा किया जाता है, मानव श्रम द्वारा नहीं। उत्पादन बड़े स्तर पर होने के कारण उसकी खपत के लिए बड़े बाजार की आवश्यकता होती है। औद्योगीकरण का प्रारंभ इंग्लैण्ड से ही होने के निम्नलिखित कारण थे:
1. इंग्लैण्ड की भौगोलिक स्थिति:
इंग्लैण्ड की भौगोलिक स्थिति उद्योग-धंधों के विकास के लिए अनुकूल थी। इंग्लैण्ड बाहरी आक्रमणों से सुरक्षित था तथा इसके पास अच्छे बंदरगाह थे, जो औद्योगीकरण के आवश्यक तत्व हैं।
2. खनिज पदार्थों की उपलब्धता:
इंग्लैण्ड के पास प्राकृतिक साधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे। इंग्लैण्ड के उत्तरी और पश्चिमी भाग में लोहे और कोयले की खाने उपलब्ध थीं, जिनसे आवश्यक सामग्री आसानी से उपलब्ध हो जाती थी।
3. नयी-नयी मशीनों का आविष्कार:
औद्योगिक क्रांति के लिए इंग्लैण्ड के वैज्ञानिकों ने नयी-नयी मशीनों का आविष्कार किया, जिनसे वस्त्र उद्योग, परिवहन, संचार व्यवस्था एवं खनन उद्योगों की प्रगति हुई।
4. मजदूरों की उपलब्धता:
बाड़ाबंदी कानून से छोटे किसान अपनी भूमि से बेदखल हो गए। अब उनके सामने रोजी-रोटी का प्रश्न उठ खड़ा हुआ। ये लोग कारखानों में काम करने के लिए विवश हो गए। इसलिए इंग्लैण्ड में कल-कारखानों के लिए सस्ते मजदूर सुलभ हो गए।
5. परिवहन की सुविधा:
कारखानों में उत्पादित वस्तुओं तथा कारखानों तक कच्चा माल पहुँचाने के लिए आवागमन के साधनों का विकास किया गया। सड़कों एवं जहाजरानी का विकास हुआ। बाद में रेलवे का भी विकास हुआ, जिससे औद्योगीकरण में सुविधा आई। इस प्रकार इंग्लैण्ड में अन्य यूरोपीय देशों की तुलना में ऐसी परिस्थितियाँ विद्यमान थीं जिनसे औद्योगिक क्रांति हुई।
प्रश्न 2.
उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोप में औद्योगीकरण की प्रक्रिया की प्रमुख विशेषताओं को विस्तार से बताइए। उत्तर-उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोप में औद्योगीकरण की प्रक्रिया की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. मुख्य उद्योग:
ब्रिटेन के प्रमुख उद्योगों में सूती उद्योग एवं कपास उद्योग दोनों सबसे अधिक विकसित उद्योग थे। कपास उद्योग सन् 1840 ई. तक औद्योगीकरण के प्रथम चरण में सबसे बड़ा उद्योग बन चुका था। इसके पश्चात् लोहा इस्पात उद्योग आगे निकल गया।
1840 ई. के दशक में इंग्लैण्ड में तथा 1860 ई. के दशक में उसके उपनिवेशों में रेलवे का विस्तार तीव्र गति से होने लगा। रेलवे के प्रसार के कारण लोहे व स्टील की माँग तेज गति से बढ़ी। सन् 1873 ई. तक ब्रिटेन के लोहा और स्टील निर्यात का मूल्य लगभग 7.7 करोड़ पौंड हो गया। यह राशि इंग्लैण्ड के कपास निर्यात के मूल्य से दोगुनी थी।
2. परम्परागत उद्योगों का आधिपत्य:
नये उद्योग परम्परागत उद्योगों को इतनी आसानी से हाशिये पर नहीं पहुँचा सकते थे। 19वीं शताब्दी के अन्त में प्रौद्योगिकीय रूप से विकसित औद्योगिक क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों की संख्या कुल श्रमिकों की 20 प्रतिशत से अधिक नहीं थी। कपड़ा उद्योग एक गतिशील उद्योग था लेकिन इसके उत्पादन का एक बड़ा भाग कारखानों में न होकर घरेलू इकाइयों में बनता था।
3. विकास के लिए आधार:
यद्यपि परम्परागत उद्योगों में परिवर्तन की गति माप से संचालित होने वाले सूती व धातु उद्योगों से निश्चित नहीं हो पा रही थी लेकिन ये परम्परागत उद्योगों पूरी तरह ठहराव की अवस्था में भी नहीं थे। खाद्य प्रसंस्करण, निर्माण, पॉटरी, काँच के काम, चर्म शोधन, फर्नीचर तथा औजारों के उत्पादन जैसे अनेक गैर-मशीनी क्षेत्र में तीव्र गति से विकास का कारण साधारण व छोटे-छोटे आविष्कारों का अधिक होना था।
4. प्रौद्योगिकीय बदलावों की धीमी गति:
ब्रिटेन में कई प्रौद्योगिकीय बदलाव हुए परन्तु उनकी गति बहुत धीमी थी। औद्योगिक भूदृश्य पर ये परिवर्तन तीव्र गति से नहीं फैले। नवीन प्रौद्योगिकी बहुत महँगी थी जिस कारण सौदागर व व्यापारी इसके प्रयोग के प्रश्न पर फूंक-फूंककर कदम रखते थे। मशीनें प्रायः खराब हो जाती थीं तो उनकी मरम्म्त पर बहुत अधिक व्यय आता था। नवीन मशीनें उनके आविष्कारों एवं निर्माताओं के दावे के अनुरूप उतनी अच्छी भी नहीं थीं।
प्रश्न 3.
“बाजार में श्रम की अधिकता से मजदूरों की जिंदगी भी प्रभावित हुई।” इस कथन की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
अथवा
19वीं शताब्दी में बाजार में कामगारों की अधिकता ने ब्रिटेन में कामगारों की जिन्दगी को किस प्रकार प्रभावित किया? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
19वीं शताब्दी में बाजार में श्रम की अधिकता ने ब्रिटेन के कामगारों की जिंदगी को निम्न प्रकार से प्रभावित किया
1. माँग की तुलना में श्रमिकों की अधिकता:
19वीं शताब्दी में बाजार में आवश्यकता से अधिक श्रमिक उपलब्ध थे इससे श्रमिकों के जीवन पर बहुत अधिक बुरा प्रभाव पड़ा। काम की कमी के कारण अधिकांश श्रमिकों को काम नहीं मिलता था। अतः वे कम वेतन पर काम करने को तैयार हो जाते थे। कुछ लोग वापस अपने गाँव लौट जाते थे।
2. मौसमी काम:
कई उद्योगों में वर्ष भर श्रमिकों को काम नहीं मिल पाता था। अनेक उद्योगों में मौसमी काम की वजह से श्रमिकों को बीच-बीच में बहुत समय तक खाली बैठना पड़ता था। जब काम का मौसम समाप्त हो जाता था तो श्रमिक पुनः सड़क पर आ जाते थे। कुछ श्रमिक सर्दियों के पश्चात् गाँव चले जाते थे जहाँ हर समय काम निकलने लगता था। लेकिन अधिकांश श्रमिक शहरों में ही रहकर छोटा-मोटा कोई काम ढूँढने की कोशिश करते थे जो उन्नीसवीं सदी के मध्य तक कोई आसान काम नहीं था।
3. कम वास्तविक वेतन:
यद्यपि 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में श्रमिकों के वेतन में कुछ वृद्धि की गयी लेकिन इससे श्रमिकों की स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ। कीमतों में वृद्धि के कारण वेतन में हुई वृद्धि निरर्थक हो गयी। श्रमिकों की औसत दैनिक आय का निर्धारण इस बात से होता था कि उन्होंने कितने दिन काम किया है।
4. निर्धनता तथा बेरोजगारी:
19वीं शताब्दी के मध्य में सबसे अच्छे समय में भी लगभग 10 प्रतिशत शहरी जनसंख्या अति निर्धन थी। सन् 1830 ई. के दशक में आयी आर्थिक मंदी में बेरोजगारों की संख्या बढ़कर विभिन्न क्षेत्रों में लगभग 35 से 75 प्रतिशत तक पहुँच गयी थी।
प्रश्न 4.
भारत के प्रारंभिक उद्यमियों की उद्योगों के विकास में भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत के प्रारंभिक उद्यमियों में द्वारकानाथ टैगोर, डिनशॉ पेटिट, जमशेदजी नुसरवानजी टाटा, तथा सेठ हुकुमचंद का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। 18वीं सदी के अंत में अंग्रेजों ने भारतीय अफीम का चीन को निर्यात शुरू कर दिया था। बदले में अंग्रेज इंग्लैंड ले जाने के लिए चीन से चाय खरीदते थे। इस व्यापार में बहुत-से भारतीय कारोबारियों ने सहायक के तौर पर प्रवेश किया। वे पैसा उपलब्ध कराना, आपूर्ति सुनिश्चित करना तथा माल को जहाजों में लदवाकर औद्योगीकरण का युग 1 रवाना करवाने जैसे कार्य करते थे।
उनमें से कुछ व्यवसायी पैसा कमाकर भारत में औद्योगिक उद्यम स्थापित करने की इच्छा रखते थे। बंगाल में द्वारकानाथ टैगोर ने चीन में व्यापार कर खूब पैसा कमाया तथा उद्योगों में निवेश करने लगे। उन्होंने 18301840 के दशक के दौरान 6 संयुक्त उद्यम कंपनियाँ लगाने में सफलता हासिल की। हालाँकि 1840 के दशक में आए व्यापक व्यावसायिक संकटों में बाकी व्यवसायियों की तरह उनके उद्यम भी डूब गए। 19वीं सदी में चीन के साथ व्यापार करने वाले बहुत-से व्यवसायी सफल उद्योगपति बनने में सफल रहे।
बंबई में डिनशॉ पेटिट तथा जमशेदजी नुसरवानजी टाटा (जिन्होंने बाद में देश में विशाल औद्योगिक साम्राज्य स्थापित किया) जैसे पारसियों ने चीन को आंशिक रूप से निर्यात कर तथा इंग्लैंड को कच्ची कपास आंशिक रूप से निर्यात कर पर्याप्त पैसा कमाया। मारवाड़ी व्यवसायी सेठ हुकुमचंद (1917 में कलकत्ता में देश की पहली जूट मिल के संस्थापक) ने भी चीन के साथ व्यापार किया। प्रसिद्ध उद्योगपति जी.डी.बिड़ला के पिता व दादा ने भी यही काम किया।
प्रश्न 5.
ब्रिटिश निर्माताओं ने विज्ञापनों के माध्यम से भारतीय बाजार पर किस प्रकार नियन्त्रण स्थापित करने का प्रयास किया? उदाहरण देकर समझाइए।
अथवा
उन्नीसवीं शताब्दी में उत्पादकों द्वारा बाजार के फैलाव के लिए प्रयुक्त विधियों को विस्तार से बताइए।
अथवा
भारतीय एवं ब्रिटिश निर्माताओं ने नये उपभोक्ता पैदा करने के लिए किन तरीकों को अपनाया ? लिखिए।
उत्तर:
उन्नीसवीं शताब्दी में ब्रिटिश उत्पादकों द्वारा बाजार के फैलाव के लिए प्रयुक्त विधियाँ निम्नलिखित हैं–
1. विज्ञापन:
बाजार के फैलाव व नये उपभोक्ताओं को अपने माल से जोड़ने के लिए उत्पादक, समाचार-पत्र एवं पत्रिकाओं, होर्डिंग्स आदि के माध्यम से विज्ञापन देते थे। विज्ञापनों ने विभिन्न उत्पादनों के बाजार को विस्तार -प्रदान करने एवं नयी उपभोक्ता संस्कृति का निर्माण करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। विज्ञापनों ने उत्पादों को अति आवश्यक एवं वांछनीय बना दिया था।
2. लेबल लगाना:
अपने उत्पादों के बाजार को फैलाने के लिए उत्पादक लेबल लगाने की विधि का प्रयोग करते थे। जब मैनचेस्टर के उद्योगपतियों ने भारत में कपड़ा बेचना प्रारम्भ किया तो वे कपड़ों के बण्डलों पर लेबल लगाते थे। लेबल लगाने का यह लाभ होता था कि क्रेताओं को निर्माता कम्पनी का नाम व उत्पादन के स्थान के बारे में जानकारी प्राप्त हो जाती थी। लेबल ही वस्तुओं की गुणवत्ता का प्रतीक भी होता था। जब किसी वस्तु के लेबल पर मोटे अक्षरों में ‘मेड इन मैनचेस्टर’ लिखा दिखाई देता तो खरीददारों को कपड़ा खरीदने में किसी भी प्रकार का कोई डर नहीं रहता था। लेबलों पर केवल शब्द व अक्षर ही नहीं होते थे बल्कि उन पर मुख्यतः भारतीय देवी-देवताओं की तस्वीरें बनी होती थीं।
3. कैलेण्डर:
उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में निर्माता उत्पादों को बेचने के लिए कैलेण्डर अपनाने लगे थे। समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं को तो शिक्षित लोग ही समझ सकते थे लेकिन कैलेण्डर निरक्षरों की समझ में भी आ जाते थे। उन्हें पान की दुकान, दफ्तरों व मध्यमवर्गीय घरों में लटकाया जाता था। जो लोग इन कैलेण्डरों को लगाते थे वे विज्ञापनों को भी सम्पूर्ण वर्ष देखते थे। इन कैलेण्डरों में भी नये उत्पादों को बेचने के लिए देवताओं के चित्र प्रयुक्त किये जाते थे।
4. महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों के चित्र:
देवी-देवताओं के चित्रों के साथ-साथ महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों, सम्राटों व नबावों के चित्र भी विज्ञापनों व कैलेण्डरों में बहुत अधिक प्रयोग किये जाते थे। इनका प्रायः यह संदेश होता था कि यदि आप इस शाही व्यक्ति का सम्मान करते हैं तो इस उत्पाद का भी सम्मान कीजिए। यदि इस उत्पाद को महत्त्वपूर्ण व्यक्ति, सम्राट या नबाव प्रयोग करते हैं तो इसकी गुणवत्ता पर प्रश्न-चिह्न नहीं लगाया जा सकता था।