JAC Board Class 10th Social Science Important Questions Geography Chapter 2 वन और वन्य जीव संसाधन
वस्तुनिष्ठ
प्रश्न 1.
भारत में कितने प्रतिशत वन्य वनस्पतिजात के लुप्त होने का खतरा है?
(क) 10 %
(ख) 15%
(ग) 20%
(घ) 30%
उत्तर:
(क) 10 %
2. निम्न में से कौन-सी संस्था संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची तैयार करती है?
(क) WTO
(ख) FAO
(ग) IUCN
(घ) UN
उत्तर:
(ग) IUCN
3. निम्न में से कौन-सी प्रजाति संकटग्रस्त है
(क) मणिपुरी हिरन
(ख) गैंडा
(ग) शेर की पूंछ वाला बंदर
(घ) ये सभी
उत्तर:
(घ) ये सभी
4. वन्य जीव अधिनियम किस वर्ष लागू किया गया
(क) सन् 1972
(ख) सन् 1973
(ग) सन् 1984
(घ) सन् 1998
उत्तर:
(क) सन् 1972
5. ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ कब शुरू हुआ था?
(क) 1971 में
(ख) 1972 में
(ग) 1973 में
(घ) 1974 में
उत्तर:
(ग) 1973 में
6. वन्य जीव की वह प्रजाति कौनसी है, जिसकी हड्डियों का एशियाई देशों में परम्परागत औषधियों में प्रयोग होने के कारण विलुप्ति के कगार पर है
(क) बाघ
(ख) बिल्ली
(ग) चीता
(घ) हिरण
उत्तर:
(क) बाघ
7. स्थायी वनों के अंतर्गत किस राज्य में सर्वाधिक क्षेत्र पाया जाता है?
(क) मध्य प्रदेश
(ख) बिहार
(ग) हरियाणा
(घ) हिमाचल प्रदेश
उत्तर:
(क) मध्य प्रदेश
8. सरिस्का बाघ रिजर्व किस राज्य में स्थित है
(क) उत्तर प्रदेश
(ख) असम
(ग) राजस्थान
(घ) उत्तराखण्ड
उत्तर:
(ग) राजस्थान
9. चिपको आन्दोलन का सम्बन्ध किस क्षेत्र से है
(क) हिमालय क्षेत्र
(ख) प्रायद्वीपीय क्षेत्र
(ग) मरुस्थलीय क्षेत्र
(घ) ये सभी
उत्तर:
(क) हिमालय क्षेत्र
रिक्त स्थान सम्बन्धी प्रश्न
निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
1. मानव और अन्य जीव-जन्तुओं द्वारा जिस जटिल तंत्र का निर्माण किया जाता है, उसे……….कहते हैं।
उत्तर:
पारिस्थितिकी,
2. भारत में समस्त विश्व की जैव उपजातियों की………… संख्या पायी जाती है।
उत्तर:
8 प्रतिशत
3. हमारे देश में वनों के अन्तर्गत लगभग……….क्षेत्रफल है।
उत्तर:
807276 वर्ग किमी.
4. अरुणाचल प्रदेश एवं हिमाचल प्रदेश में मिलने वाला ……….एक औषधीय पौधा है।
उत्तर:
हिमालयन यव,
5. भारत में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत………हुई।
उत्तर:
सन् 1973 में।
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पारिस्थितिक तंत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
मानव और दूसरे जीवधारी मिलकर एक जटिल तंत्र का निर्माण करते हैं, जिसे पारिस्थितिक तंत्र कहते हैं।
प्रश्न 2.
भारत में विश्व की कुल जैव उपजातियों की कितने प्रतिशत संख्या पाई जाती है?
उत्तर:
8 प्रतिशत (लगभग 16 लाख)।
प्रश्न 3.
वन्य प्राणियों की संकटग्रस्त प्रजातियों को बचाने हेतु दो सुझाव दीजिए।
उत्तर:
- शिकार पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।
- अधिक राप्ट्रीय उद्यान और वन्य जीव अभयारण्य स्थापित किए जाने चाहिए
प्रश्न 4.
अन्तर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संध ने जीवों और प्राणियों को कितनी जातियों में बाँटा है? उनके नाम लिखो।
उत्तर:
- सामान्य जातियाँ,
- संकटग्रस्त जातियाँ,
- सुभेद्य जातियाँ,
- दुर्लभ जातियाँ,
- स्थानिक जातियाँ,
- लुप्त जातियाँ
प्रश्न 5.
संकटग्रस्ट वन्य जीव प्रजातियों के दो नाम बताइए।
उत्तर:
काला हिरण, गैडा।
प्रश्न 6.
दुर्लभ जातियाँ किसे कहते हैं?
उत्तर:
जीव-जन्तु व वन्यति की वे प्रजातियाँ जिनकी संख्या बहुत कम बची है, दुलभ आतियाँ कहलाती हैं।
प्रश्न 7.
पूवोत्तर व मध्य भारत में किस कृषि के कारण वनों का निम्नीकरण हुआ है?
उत्तर:
पूर्वोत्तर व मध्य भारत में स्थानांतरी (झूम) कृषि के कारण वनों का निम्नीकरण हुआ है।
प्रश्न 8.
वनों से प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त होने वाले चार संसाधन लिखिए।
उत्तर:
वनों से प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त होने वाले चार संसाधन निम्नलिखित हैं:
- लकड़ी,
- रबड़,
- ईंधन,
- चारा।
प्रश्न 9.
हिमालयन यव किस प्रकार का पौधा है?
उत्तर:
हिमालयन यव (चीड़ की प्रकार का एक सदाबहार वृक्ष) औषधीय पौधा है जो औषधि निर्माण में काम आता है।
प्रश्न 10.
हिमालयन यव से कौन-सा रसायन निकाला जाता है?
उत्तर;
हिमालयन यव से टकसोल (Taxol) नामक रसायन निकाला जाता है।
प्रश्न 11.
भारत में जैव-विविधता को कम करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
अथवा
भारत में जैव-विविधता कम होने के कोई चार कारण लिखिए।
उत्तर:
- वन्य जीवों के आवासों का विनाश,
- जंगली जानवरों को मारना व आखेट,
- पर्यावरण प्रदूषण,
- विषाक्तिकरण,
- दावानल।
प्रश्न 12.
भारत का कितना सेंफ्रोवे क्षेत्र लुप्त हो चुका है?
उत्तर:
भारत का लगभग 40 प्रतिशत मेंग्रोव क्षेत्र लुप्त हो चुका है।
प्रश्न 13.
वनों की कटाई से होने वाले किन्हीं दो दुष्प्रभावों को लिखिए।
उत्तर:
वनों की कटाई से होने वाले दो दुष्प्रभाव हैं:
बाढ़, सूखा।
प्रश्न 14.
भारतीय वन्य जीवन अधिनियम 1972 में मुख्य प्रावधान क्या है ?
उत्तर:
भारतीय वन्य जीवन अधिनियम 1972 में मुख्य प्रावधान वन्य जीवों का आवास रक्षण है।
प्रश्न 15.
भारत की किन्हीं दो प्रमुख बाघ संरक्षण परियोजनाओं का नाम लिखिए।
उत्तर:
भारत की दो प्रमुख बाघ संरक्षण परियोजनाएँ हैं:
- पेरियार बाघ रिजर्व, केरल
- सरिस्का वन्य जीव पशु विहार, राजस्थान।
प्रश्न 16.
वन्य जीव अधिनियम, 1980 और 1986 के अन्तर्गत किन-किन जीवों को संरक्षित जातियों में सम्मिलित किया गया है?
उत्तर:
वन्य जीव अधिनियम, 1980 व 1986 के अन्तर्गत सैकड़ों तितलियों, पतंगों-भृंगों व ड्रैगन फ्लाई को संरक्षित जातियों में सम्मिलित किया गया है।
प्रश्न 17.
भारत में वनों को कितने वर्गों में बाँटा गया है?
उत्तर:
भारत में वनों को तीन वर्गों में बाँटा गया है-
- आरक्षित वन,
- रक्षित वन,
- अवर्गीकृत वन।
प्रश्न 18.
आरक्षित एवं रक्षित वनों का रख-रखाव क्यों किया जाता है?
उत्तर:
आरक्षित एवं रक्षित वनों का रख-रखाव इमारती लकड़ी, अन्य वन पदार्थों तथा उनके बचाव के लिए किया जाता है।
प्रश्न 19.
किन्हीं चार आंदोलनों के नाम बताओ जिन्हें वनों एवं वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए स्थानीय समुदायों ने आरम्भ किया था।
उत्तर:
- चिपको आन्दोलन,
- बीज बचाओ आन्दोलन,
- नवदानय आन्दोलन,
- भैरोंदेव डाकव सोंचुरी।
सोंचुरी। लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA1)
प्रश्न 1.
‘मानव अपने अस्तित्व के लिए पारिस्थितिक तन्त्र के विभिन्न तत्वों पर निर्भर है।’ व्याख्या कीजिए।
अथवा
‘मनुष्य किस प्रकार पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर है।’ संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
सभी पेड़-पौधे एवं जीव-जन्तुओं की भाँति मानव भी पारिस्थितिकी तंत्र का एक अभिन्न अंग है। पारिस्थितिकी तंत्र के एक अंग के रूप में मानव अपने अस्तित्व के लिए इसकी विभिन्नताओं पर निर्भर है। मानव की विभिन्न आवश्यकताएँ पारिस्थितिकी तंत्र से ही पूर्ण होती हैं।
उदाहरण के लिए हम हवा में साँस लेते हैं, पानी पीते हैं एवं मृदा में अनाज उत्पन्न करते हैं आदि। ये सभी पारिस्थितिकी तंत्र के अजैव घटक हैं। इनके बिना हम जीवित नहीं रह सकते हैं। विभिन्न पौधे, पशु एवं सूक्ष्मजीवी इनका पुनः सृजन करते हैं। अत: हम कह सकते हैं कि मनुष्य अपने अस्तित्व के लिए पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर है।
प्रश्न 2.
संकटग्रस्त एवं लुप्त जातियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संकटग्रस्त एवं लुप्त जातियों में निम्नलिखित अन्तर हैं
संकटग्रस्त जातियाँ । | लुप्त जातियाँ |
1. ये वे जातियाँ हैं जिनके लुप्त होने का खतरा है। | 1. ये वे जातियाँ हैं जो पूर्णतः समाप्त हो गई हैं। |
2. जिन परिस्थितियों के कारण इनकी संख्या कम हुई है| यदि वे अनवरत रूप से जारी रहती हैं. तो इन जातियों का जीवित रहना कठिन है। | 2. ये जातियाँ पहले से ही सम्पूर्ण पृथ्वी से गायब हो चुकी हैं और इनका जीवित होना संदेहास्पद है। |
3. इन जातियों को संरक्षण द्वारा बचाया मासिकता है तथा विशेष प्रयासों से इनमें वृद्धि भी सम्भव है। | 3. इन प्रजातियों को अब पुनः उत्पन्न करना सम्भव नहीं है। |
4. उदाहरण-मगरमच्छ, काला हिरण; भारतीय जंगली गधा, गैंडा, शेर की पूंछ वाला बन्दर, संगाई (मणिपुरी आदि। हिरण) आदि| | 4. उदाहरण-एशियाई चीता, गुलाबी सिर वाली बत्तख आदि। |
प्रश्न 3.
सुभेद्य एवं संकटग्रस्त जातियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सुभेद्य एवं संकटग्रस्त जातियों में निम्नलिखित अन्तर हैं:
सुभेद्य जातियाँ | संकटग्रस्त जातियाँ |
1. ये वे जातियाँ हैं जिनकी संख्या घट रही है। | 1. ये वे जातियाँ हैं जिनके लुप्त होने का खतरा है। |
2. वर्तमान में ये जातियाँ अस्तित्व में हैं परन्तु इनका बने रहना खतरे में है। इनकी संख्या लगातार कंम होती जा रही है। | 2. जिन विषम परिस्थितियों के कारण इनकी संख्या कम हुई है, यदि वे अनवरत रूप से जारी रहती हैं तो इन जातियों का जीवित रहना कठिन है। |
3. परिस्थितियों के न बदलने पर ये शीघ्र ही संकटग्रस्त जातियों की श्रेणी में आ जायेंगी। | 3. ये जातियाँ पहले से ही संकटग्रस्त हैं। |
4. उदाहरण-एशियाई हाथी, नीली भेड़, गंगा डॉल्फिन आदि । | 4. उदाहरण-भारतीय जंगली गधा, संगाई (मणिपुरी हिरण), गैंडा, शेर की पूँछं वाला बन्दर आदि। |
प्रश्न 4.
एशियाई चीता पर टिप्पणी लिखिए। इनके लुप्त होने के क्या कारण हैं?
उत्तर:
एशियाई चीता विश्व का सबसे तेज दौड़ने वाला स्तनधारी प्राणी है। यह बिल्ली परिवार का एक अजूबा एवं विशिष्ट सदस्य है। यह 112 किमी. प्रति घंटा की गति से दौड़ सकता है। चीते की विशिष्ट पहचान उसकी आँख के कोने से मुँह तक नाक के दोनों ओर फैले आँसुओं के लकीरनुमा निशान हैं।
चीते की यही पहचान उसे तेंदुए से अलग करती है। 20 वीं शताब्दी से पूर्व चीते एशिया व अफ्रीका में बहुतायत में मिलते थे। वर्तमान में इनके आवासीय क्षेत्र और शिकार की उपलब्धता होने से ये लगभग समाप्त हो चुके हैं। भारत सरकार ने वर्ष 1952 में ही चीते को लुप्त प्रजाति घोषित कर दिया था।
प्रश्न 5.
वन संसाधनों के सिकुड़ने में कृषि का फैलाव महत्वपूर्ण कारक रहा है? संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
अथवा
वनों को सबसे अधिक नुकसान कृषि के फैलाव के कारण हुआ है? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
भारत में कृषि के विस्तार का आरम्भ उपनिवेश काल के दौरान हुआ। भारत में वन सर्वेक्षण के अनुसार, सन् 1951 से 1980 के मध्य लगभग 26,200 वर्ग किमी. वन क्षेत्र कृषि भूमि में परिवर्तित किया गया। अधिकांश जनजातीय क्षेत्रों में विशेषकर मध्य एवं पूर्वोत्तर भारत में स्थानान्तरी कृषि (झूमिंग कृषि) के कारण वनों की कटाई बहुत अधिक मात्रा में हुई है। अतः कहा जा सकता है कि भारतीय वन संसाधनों के सिकुड़ने में कृषि का फैलाव महत्वपूर्ण कारक रहा है।
प्रश्न 6.
भारत में वृहत स्तरीय विकास परियोजनाएँ वनों के ह्रास के लिए किस तरह जिम्मेदार हैं, बताइए।।
उत्तर:
भारत की वृहत स्तरीय विकास परियोजनाओं ने वनों को बहुत अधिक नुकसान पहुँचाया है। वर्ष 1952 से अब तक लगभग 5,000 वर्ग किमी. से अधिक वन क्षेत्र को नदी घाटी परियोजनाओं के लिए नष्ट कर दिया गया है। वनों का सफाया आज भी अनवरत रूप से जारी है। ऐसा अनुमान है कि मध्य प्रदेश में नर्मदा सागर परियोजना के पूर्ण हो जाने पर 400,000 हेक्टेयर से भी अधिक क्षेत्र में फैला वन क्षेत्र जलमग्न हो जाएगा।
प्रश्न 7.
हिमालयन यव क्या है? इसकी उपयोगिता बताइए।
उत्तर:
हिमालयन यव एक प्रकार का औषधीय पौधा है। यह चीड़ के प्रकार का एक सदाबहार वृक्ष होता है। यह हिमाचल प्रदेश व अरुणाचल प्रदेश के कई भागों में पाया जाता है। इसके पेड़ की छाल, पत्तियों एवं जड़ों से टकसोल (Taxol) नामक रसायन निकाला जाता है, जिसका उपयोग कैंसर रोग की दवा बनाने में किया जाता है। यव वृक्ष के अत्यधिक दोहन से इस वनस्पति प्रजाति को खतरा उत्पन्न हो गया है। पिछले एक दशक में हिमाचल प्रदेश एवं अरुणाचल प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में यव के हजारों वृक्ष सूख गये हैं। प्रश्न 8. वन एवं वन्य जीवों का संरक्षण क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण से पारिस्थितिक विविधता बनी रहती है तथा हमारे जीवन के मूलभूत संसाधन-जल, वायु और मृदा आदि बने रहते हैं। ये विभिन्न जातियों में बेहतर जनन के लिए वनस्पति और पशुओं में जींस (Jenetic) विविधता को भी संरक्षित करते हैं।
प्रश्न 9.
भारत में प्रोजेक्ट टाइगर को शुरू करने के दो उद्देश्य क्या थे?
उत्तर:
‘प्रोजेक्ट टाइगर’ विश्व की प्रसिद्ध वन्य जीव परियोजनाओं में से एक है। भारत में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत सन् 1973 में हुई। भारत में प्रोजेक्ट टाइगर को शुरू करने के दो उद्देश्य निम्नलिखित थे
- भारत में बाघों की तीव्र गति से गिरती संख्या पर अंकुश लगाकर उनकी संख्या में वृद्धि करना।
- बाघों की खाल एवं हड्डियों के व्यापार की रोकथाम करना।
प्रश्न 10.
बाघों की प्रजाति लुप्त होने के क्या कारण हैं? संक्षेप में बताइए।
अथवा
बाघों की आबादी के लिए प्रमुख खतरे कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
वन्य जीव संरचना में बाघ (टाइगर) एक महत्वपूर्ण जंगली जाति है। 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में भारत में बाघों की संख्या 55.000 से घटकर मात्र 1.827 रह गई है। बाघों की प्रजाति के लुप्त होने के कारण अथवा प्रमुख खतरे निम्नलिखित हैं:
- व्यापार के लिए बाघों का शिकार करना।
- बाघों के आवास स्थलों का सीमित होना।
- बाघों के भोजन के लिए आवश्यक जंगली उपजालियों की संख्या कम होना।
- मानव जनसंख्या में वृद्धि।
- बाघों की खाल का व्यापार।
- परम्परागत औषधियों में बाघों की हड्डियों का प्रयोग किया जाना।
प्रश्न 11.
प्रमुख बाघ संरक्षण परियोजनाओं एवं उनसे सम्बन्धित राज्यों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रमुख बाघ संरक्षण परियोजनाएँ एवं उनसे सम्बन्धित राज्य निम्नलिखित हैं
- सुंदर वन राष्ट्रीय उद्यान-पश्चिम बंगाल
- बाँधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान-मध्य प्रदेश
- सरिस्का वन्य जीव पशु विहार-राजस्थान
- रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान-राजस्थान
- मानस बाघ रिजर्व-असम
- पेरियार बाघ रिजर्व-केरल
- कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान-उत्तराखण्ड।
प्रश्न 12.
“आजकल संरक्षण परियोजनाएँ जैव-विविधताओं पर केन्द्रित होती हैं न कि इनके विभिन्न घटकों पर” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
“आजकल संरक्षण परियोजनाएँ जैव-विविधताओं पर केन्द्रित होती हैं न कि इनके विभिन्न घटकों पर” यह कथन निम्न प्रकार से स्पष्ट है:
- संरक्षण नियोजन में छोटे कीटों एवं अन्य जानवरों को सम्मिलित करना-नवीन परियोजनाओं के अन्तर्गत कीटों एवं अन्य छोटी जातियों एवं जानवरों को भी संरक्षण नियोजन में स्थान दिया जा रहा है।
- नई अधिसूचना वन्य जीव अधिनियम, 1980 एवं 1986 के अन्तर्गत सैकड़ों तितलियों, पतंगों, भंगों एवं एक ड्रैगन फ्लाई को भी संरक्षित जातियों में सम्मिलित किया गया है। वर्ष 1991 में पौधों की भी 6 जातियों को प्रथम बार इस सूची में रखा गया।
- विभिन्न संरक्षणात्मक उपायों की पहले से अधिक गहनता से खोज की जा रही है।
प्रश्न 13.
स्थायी वन क्षेत्र से आप क्या समझते हैं? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
आरक्षित एवं रक्षित वन क्षेत्रों को स्थायी वन क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। इन वन क्षेत्रों का रखरखाव इमारती लकड़ी व अन्य वनोत्पाद प्राप्त करने तथा सुरक्षा कारणों से किया जाता है। मध्य प्रदेश राज्य में स्थायी वनों के अन्तर्गत सर्वाधिक क्षेत्र है। यह वन क्षेत्र राज्य के कुल वन क्षेत्र के लगभग 75 प्रतिशत भाग में फैला हुआ है।
लयूत्तरात्मक प्रश्न (SA2)
प्रश्न 1.
खनन, वन विनाश के लिए एक प्रमुख उत्तरदायी कारक है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
खनन, वन विनाश के लिए प्रमुख उत्तरदायी कारक है। यह निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट है
- खनन प्रक्रिया में बड़ी संख्या में मशीनें, श्रमिक, सड़कें, रेलवे आदि की आवश्यकता होती है। इनके कारण वनों का विनाश होता है।
- पश्चिम बंगाल में बक्सा टाइगर रिजर्व खनन के कारण गम्भीर खतरे में है। खनन प्रक्रिया ने आसपास के क्षेत्र को बहुत नुकसान पहुँचाया है।
- खनन-प्रक्रिया ने कई प्रजातियों के प्राकृतिक आवासों को नुकसान पहुँचाया है एवं कई प्रजातियों जैसे, भारतीय हाथी आदि के आवागमन के मार्ग को बाधित किया है।
- राजस्थान के सरिस्का बाघ रिजर्व क्षेत्र में खनन ने बहुत नुकसान पहुँचाया है। यहाँ के लोग वन्य-जीव संरक्षण अधिनियम के तहत खनन कार्य बन्द करवाने के लिए संघर्षरत हैं।
प्रश्न 2.
जैविक संसाधनों का विनाश सांस्कृतिक विविधता के विनाश से कैसे जुड़ा हुआ है? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
जैव संसाधनों का विनाश सांस्कृतिक विविधता के विनाश से जुड़ा है। यह निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है
- जैव विनाश के कारण कई मूल जातियाँ एवं वनों पर आश्रित रहने वाले कई समुदाय बहुत अधिक निर्धन हो चुके हैं। वे आर्थिक रूप से हाशिये पर पहुंच चुके हैं।
- यह समुदाय अपने भोजन, जल, औषधि, संस्कृति एवं अध्यात्म आदि के लिए वनों एवं वन्य जीवों पर निर्भर हैं।
- जैव संसाधनों के विनाश के कारण निर्धन वर्ग में पुरुषों की अपेक्षा महिलाएँ अधिक प्रभावित हुई हैं।
- जैव स्रोतों के ह्रास के कारण महिलाओं पर काम का बोझ बढ़ गया है।
कभी-कभी जो उन्हें संसाधन एकत्रित करने के लिए 10 किमी. से भी अधिक पैदल चलना पड़ता है। इसके कारण उनमें स्वास्थ्य सम्बन्धी कई प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं। महिलाओं के पास अपने बच्चों की देखभाल के लिए पर्याप्त समय नहीं है जिसके गम्भीर सामाजिक परिणाम हो सकते हैं। वनों की निरन्तर कटाई से उत्पन्न परोक्ष परिणाम जैसे-सूखा व बाढ़ ने निर्धन वर्ग को सबसे अधिक प्रभावित किया है। अतः कहा जा सकता है जैविक संसाधनों का विनाश सांस्कृतिक विविधता के विनाश से सम्बन्धित है।
प्रश्न 3.
‘वन एवं वन्य जीवों के ह्रास ने ग्रामीण समुदायों की महिलाओं की स्थिति को दयनीय बना दिया है।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कई समुदायों में भोजन, पानी, चारा एवं अन्य आवश्यकताओं की वस्तुओं को इकट्ठा करने की जिम्मेदारी महिलाओं की होती है। ऐसे समुदायों की महिलाएँ वन एवं वन्य जीवों के ह्रास से बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। यह निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट है
- जैसे-जैसे वन संसाधन कम होते जा रहे हैं, महिलाओं को उन्हें जुटाने के लिए और अधिक परिश्रम करना पड़ रहा है। कभी-कभी उन्हें इन संसाधनों को जुटाने के लिए एक लम्बी दूरी तक पैदल चलना पड़ता है।
- अत्यधिक परिश्रम के कारण महिलाओं को स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- काम का समय बढ़ने के कारण महिलाएं अपने घर एवं बच्चों की ढंग से देखभाल नहीं कर पाती हैं जिसके गम्भीर सामाजिक परिणाम होते हैं।
प्रश्न 4.
प्रशासनिक आधार पर भारत में वनों को कितने भागों में बाँटा गया है? बताइए।
उत्तर:
प्रशासनिक आधार पर भारत में वनों को निम्न तीन भागों में बाँटा गया है
1. आरक्षित वन:
ये वे वन हैं जो इमारती लकड़ी अथवा वन उत्पादों को प्राप्त करने के लिए पूर्णतः सुरक्षित कर लिये गये हैं। इन वनों में पशुओं को चराने व खेती करने की अनुमति नहीं दी जाती है। इन वनों को सर्वाधिक मूल्यवान माना जाता है। भारत के कुल वन क्षेत्र के आधे से अधिक क्षेत्र को आरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया गया है।
2. रक्षित वन:
ये वे वन हैं जिनमें पशुओं को चराने व खेती करने की अनुमति कुछ विशिष्ट प्रतिबन्धों के साथ प्रदान की जाती है। भारत में कुल वन क्षेत्र का एक-तिहाई हिस्सा रक्षित वन हैं। इन वनों को और अधिक नष्ट होने से बचाने के लिए इनकी सुरक्षा की जाती है। .
3. अवर्गीकृत वन:
अन्य सभी प्रकार के वन एवं बंजर भूमि इनके अन्तर्गत सम्मिलित की जाती है। इन वनों पर सरकार, व्यक्तियों एवं समुदायों का स्वामित्व होता है। देश के कुल वन क्षेत्र में से आरक्षित तथा रक्षित वन क्षेत्र को घटाकर शेष बचे भाग पर इन वनों का विस्तार है।
प्रश्न 5.
वनों को किस प्रकार से संरक्षित किया जा सकता है?
उत्तर:
वन संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं
- वनों की अंधाधुंध कटाई पर प्रतिबन्ध लगाना।
- अनियन्त्रित पशुचारण पर रोक।
- वनों से वृक्ष काटने पर उनके स्थान पर वृक्षारोपण करना आवश्यक हो।
- लकड़ी के ईंधन का कम से कम उपयोग किया जाए।
- वनों को हानिकारक कीड़े-मकोड़ों, बीमारियों एवं आग से बचाया जाए।
- वनों की उपयोगिता व महत्ता की जानकारी हेतु जनचेतना पैदा की जाए।
- ऊर्जा के वैकल्पिक साधनों का विकास किया जाए।
- वन क्षेत्र बढ़ाने के लिए वन्य क्षेत्रों का निर्धारण करना चाहिए।
प्रश्न 6.
भारत में संयुक्त वन-प्रबन्धन कार्यक्रम को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
- संयुक्त वन प्रबन्धन कार्यक्रम की शुरुआत सन् 1988 में ओडिशा राज्य से हुई। इस वर्ष ओडिशा राज्य ने संयुक्त वन प्रबन्धन का पहला प्रस्ताव पारित किया था।
- वन विभाग के अन्तर्गत संयुक्त वन प्रबन्धन क्षरित वनों के बचाव के लिए कार्य करता है और इसमें गाँव के स्तर पर संस्थाएँ बनायी जाती हैं, जिसमें ग्रामीण व वन विभाग के अधिकारी संयुक्त रूप से कार्य करते हैं।
- संयुक्त वन प्रबन्धन के अन्तर्गत संकटग्रस्त वनों के प्रबंधन एवं पुनर्जीवन के काम में ‘स्थानीय समुदायों की हिस्सेदारी सुनिश्चित की जाती है।
- संयुक्त वन प्रबन्धन स्थानीय संस्थाओं के निर्माण पर निर्भर करता है जिसके द्वारा अधिकांशतः स्थानीय समुदायों के प्रबन्धन के अन्तर्गत आने वाले संकटग्रस्त वन क्षेत्र में सुरक्षा गतिविधियाँ चलायी जाती हैं।
- इसके एवज में इन ग्रामीण समुदायों के सदस्य मध्यस्तरीय लाभ जैसे, गैर इमारती वन उत्पाद के हक़दार होते हैं एवं सफल संरक्षण से प्राप्त होने वाली इमारती लकड़ी में भी उन्हें हिस्सा मिलता है।
प्रश्न 7.
प्रकृति एवं इसकी कृतियों को संरक्षित रखने में सांस्कृतिक मूल्य किस प्रकार सहायक हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रकृति एवं इसकी कृतियों को संरक्षित रखने में सांस्कृतिक मूल्य निम्न प्रकार सहायक हैं
1. हमारे सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर ही प्रकृति एवं इसकी कृतियों को पवित्र माना जाता है। उदाहरण के लिएहमारी संस्कृति में झरनों, पहाड़ों, पेड़ों एवं नदियों को पवित्र मानते हुए उनकी पूजा व सुरक्षा की जाती है।
2. कई पवित्र एवं धार्मिक स्थलों के आस-पास हम बन्दरों और लंगूरों का जमघट देख सकते हैं। इन पवित्र स्थलों परं आने वाले दर्शनार्थी इन्हें खाना खिलाते हैं। इन प्राणियों को धार्मिक स्थल पर भक्तों के रूप में देखा जाता है।
3. राजस्थान राज्य के पश्चिमी भाग में बिश्नोई गाँव के आस-पास काले हिरण, चिंकारा एवं मोरों के झुण्ड देखे जा सकते हैं। ये जीव इस समुदाय के अभिन्न अंग माने जाते हैं। इन जीवों को यहाँ कोई हानि नहीं पहुँचाता है।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अन्तर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ (IUCN) के अनुसार विभिन्न प्रकार के पौधे एवं प्राणियों की जातियों के बारे में पता लगाइए। .
अथवा
अन्तर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ ने पौधों और प्राणियों को कितनी श्रेणियों में विभाजित किया है? विस्तार से बताइए।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ (IUCN) के अनुसार विभिन्न प्रकार के पौधे एवं प्राणियों की जातियों का विभाजन निम्नलिखित प्रकार से है
1. सामान्य जातियाँ:
ऐसी जातियाँ जिनकी संख्या जीवित रहने के लिए सामान्य मानी जाती है, सामान्य जातियाँ कहलाती हैं, जैसे-पशु, साल, चीड़, कृन्तक (रोडेंट्स) आदि।
2. संकटग्रस्त जातियाँ:
पादपों व वन्य-जीवों की वे जातियाँ जिनके लुप्त होने का खतरा है, संकटग्रस्त जातियाँ कहलाती हैं। जिन विषम परिस्थितियों के कारण इनकी संख्या कम हुई है, यदि उन पर नियन्त्रण स्थापित नहीं होता है तो इन जातियों का जीवित रहना कठिन हो जायेगा, जैसे-काला हिरण, मगरमच्छ, भारतीय जंगली गधा, गैंडा, गोंडावन, शेर की पूंछ वाला बन्दर, संगाई (मणिपुरी हिरण) आदि।
3. सुभेद्य जातियाँ:
जीव-जन्तुओं और पादपों की वे प्रजातियाँ जिनकी संख्या लगातार घट रही है, सुभेद्य जातियाँ कहलाती हैं। इन प्रजातियों पर विपरीत प्रभाव डालने वाली परिस्थितियों में परिवर्तन नहीं किया जाता एवं इनकी संख्या घटती रहती है तो यह संकटग्रस्त प्रजातियों की श्रेणी में आ जायेंगी, जैसे-नीली भेड़, एशियाई हाथी, गंगा डॉल्फिन आदि।
4. दुर्लभ जातियाँ:
जीव-जन्तु च वनस्पति की वह जातियाँ जिनकी संख्या बहुत कम रह गनी है, दुर्लभ प्रजातियाँ कहलाती हैं। यदि इनको प्रभावित करने कती पिषम परिस्थितियों नहीं बदली तो ये संकटग्रस्त प्रजातियों की श्रेणी में अ. सकती हैं। ये प्रजातियाँ सीमित क्षेत्रों में पायी जनी पैसे-शेर, चीना आदि।
5. स्थानिक जातियाँ:
प्रावृत्ति : मोने अगः क्षेत्रों में पाई जाने वादी नयाँ मानि प्रजातियाँ कहलाती हैं जैधे-अंडमधी किना अंडननी वात्री मुआ अवि
6. लुप्त जातियाँ: वे जातियाँ जो संसार से विलुप्त हो गयी हैं तथा जो जीवित नहीं हैं, विलुप्त जातियों की श्रेणी में रखी गई हैं। इनके रहने व आवासों की खोज करने पर उनकी अनुपस्थिति पाई गयी, जैसे-एशियाई चीता व गुलाबी सिर वाली बत्तख।
प्रश्न 2.
भारत सरकार द्वारा संचालित वन व वन्य-जीव संरक्षण कार्यक्रम के बारे में बताइए।
अथवा
भारत में वनों एवं वन्य-जीवों को संरक्षित रखने के लिए सरकार ने कौन-कौन से कदम उठाए हैं? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में वनों एवं वन्य-जीवों को संरक्षित रखने के लिए भारत सरकार ने निम्नलिखित कदम उठाये हैं
1. भारतीय वन्य जीवन (रक्षण) अधिनियम, 1972:
भारत में वन्य जीवन संरक्षण सन् 1952 से सन् 1972 तक राष्ट्रीय वन नीति के अन्तर्गत होता था। वन्य-जीवों की सुरक्षा के लिए सन् 1972 में भारतीय वन्य जीवन सुरक्षा अधिनियम बनाया गया, जो वर्तमान में कई संशोधनों के साथ लागू है। इस अधिनियम में वन्य-जीवों के आवास रक्षण के अनेक प्रावधान थे।
इस अधिनियम में उन प्राणियों का उल्लेख किया गया जो प्राकृतिक असन्तुलन के कारण विलुप्ति के कगार पर पहुँच चुके थे परन्तु जिन्हें बचा लिया गया। इस अधिनियम के अन्तर्गत सम्पूर्ण भारत में रक्षित जातियों की सूची भी प्रकाशित की गयी। इस अधिनियम के अन्तर्गत बची हुई संकटग्रस्त प्रजातियों के बचाव पर, शिकार प्रतिबन्धन पर, वन्य-जीव आवासों का कानूनी रक्षण एवं जंगली जीवों के व्यापार पर रोक लगाने आदि पर मुख्य रूप से जोर दिया गया।
2. राष्ट्रीय वन नीति:
भारत उन गिने-चुने देशों में से एक है जहाँ सन् 1894 से ही वन-नीति लागू है। इस वन-नीति को सन् 1952 एवं सन् 1988 में संशोधित किया गया। संशोधित वन-नीति, 1988 का मुख्य आधार, वनों की सुरक्षा, संरक्षण एवं विकास है। इसके मुख्य लक्ष्य हैं:
- प्राकृतिक संपदा का संरक्षण।
- पारिस्थितिकीय संतुलन के संरक्षण और पुनः स्थापना द्वारा पर्यावरण स्थायित्व को बचाये रखना।
- राष्ट्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वन उत्पादों में वृद्धि करना।
- वन उत्पादों के सही उपयोग को बढ़ावा देना तथा लकड़ी का अनुकूल विकल्प खोजना।
- इन उद्देश्यों की प्राप्ति और मौजूदा वनों पर पड़ रहे दबाव को न्यूनतम करने हेतु जनसाधारण, विशेषकर महिलाओं का अधिकतम सहयोग प्राप्त करना।
3. राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्य जीव पशु विहार:
वन्य-जीवों के संरक्षण की दृष्टि से विलुप्तप्राय जातियों तथा दुर्लभ जातियों के संरक्षण के लिए सम्पूर्ण भारत में राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्य-जीव पशु विहारों (अभयारण्यों) की स्थापना की गई है।
4. विशेष प्राणियों की सुरक्षा के लिए विशेष परियोजनाएँ:
भारत सरकार ने कई परियोजनाओं की घोषणा की है जिनका उद्देश्य गम्भीर खतरे में पड़े कुछ विशेष वन्य प्राणियों को संरक्षण प्रदान करना है। इन वन्य जीवों में बाघ, एक सींग वाला गैंडा, कश्मीरी हिरण (हंगुल), तीन प्रकार के मगरमच्छ-स्वच्छ जल मगरमच्छ, लवणीय जल मगरमच्छ व घड़ियाल, एशियाई शेर व अन्य प्राणी सम्मिलित हैं।
इनके अतिरिक्त कुछ समय पहले भारत सरकार ने भारतीय हाथी, काला हिरण, चिंकारा, भारतीय गोडावन और हिम तेंदुओं के शिकार और व्यापार पर सम्पूर्ण अथवा आंशिक प्रतिबन्ध लगाकर उन्हें कानूनी संरक्षण प्रदान किया है। भारत सरकार ने देश में बाघों की संख्या में तेजी से गिरावट को देखकर बाघों के संरक्षण के लिए सन् 1973 में विशेष बाघ परियोजना (प्रोजेक्ट टाइगर) प्रारम्भ की।