JAC Board Class 10th Social Science Notes Civics Chapter 2 संघवाद
→ संघवाद
- आधुनिक लोकतन्त्रों में सत्ता की साझेदारी का एक आम रूप है-शासन के विभिन्न स्तरों के मध्य सत्ता का ऊर्ध्वाधर विभाजन। इसे आमतौर पर संघवाद कहा जाता है।
- बेल्जियम सरकार ने एकात्मक शासन के स्थान पर संघीय शासन प्रणाली को अपनाया।
- श्रीलंका में व्यावहारिक रूप से अभी भी एकात्मक शासन व्यवस्था है।
→ संघवाद क्या है?
- संघीय शासन व्यवस्था में समस्त शक्तियाँ केन्द्र व राज्य सरकारों के मध्य बँट जाती हैं।
- एकात्मक शासन व्यवस्था में शासन का एक ही स्तर होता है एवं शेष इकाइयाँ उसके नियन्त्रण में रहकर कार्य करती हैं।
- संघीय शासन व्यवस्था में संविधान के मौलिक प्रावधानों को किसी एक स्तर की सरकार अकेले नहीं बदल सकती, बल्कि दोनों स्तरों की सरकारों की सहमति आवश्यक होती है।
- संघीय शासन व्यवस्था के दो प्रमुख उद्देश्य-देश की एकता की सुरक्षा करना व उसे बढ़ावा देना तथा क्षेत्रीय विविधताओं का पूर्ण सम्मान करना है।
- आपसी भरोसा तथा साथ रहने पर सहमति आदर्श संघीय व्यवस्था के दो पक्ष हैं।
- संघीय शासन व्यवस्थाएँ दो तरीकों से गठित होती हैं:
- दो या दो से अधिक स्वतन्त्र राष्ट्रों को साथ लाकर एक बड़ी इकाई गठित करना। जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विट्जरलैण्ड व ऑस्ट्रेलिया आदि।
- बड़े देश द्वारा अपनी आन्तरिक विविधता को ध्यान में रखते हुए राज्यों का गठन करना और फिर राज्य और राष्ट्रीय सरकार के बीच सत्ता का बँटवारा करना। जैसे भारत, बेल्जियम व स्पेन आदि।
→ भारत में संघीय व्यवस्था
- स्वतन्त्रता के पश्चात् भारतीय संविधान ने भारत को राज्यों का संघ घोषित किया।
- भारतीय संविधान में मौलिक रूप से दो स्तरीय शासन व्यवस्था का प्रावधान किया गया था-संघ सरकार (केन्द्र सरकार) एवं राज्य सरकारें तत्पश्चात् नगरपालिकाओं और पंचायतों के रूप में संघीय शासन का एक तीसरा स्तर भी जोड़ा गया।
- भारतीय संविधान में केन्द्र व राज्य सरकारों के मध्य कानूनी अधिकारों को तीन भागों में बाँटा गया है:
- संघ सची.
- राज्य सूची,
- समवर्ती सूची।
- संघ सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार सिर्फ केन्द्र सरकार को दिया गया है। संघ सूची में प्रतिरक्षा, विदेशी मामले, बैंकिंग, संचार एवं मुद्रा जैसे राष्ट्रीय महत्व के विषय सम्मिलित किये गये हैं।
- राज्य सूची में वर्णित विषयों पर सिर्फ राज्य सरकार ही कानून बना सकती है। इस सूची में पुलिस, व्यापार, वाणिज्य, सिंचाई एवं कृषि जैसे प्रान्तीय एवं स्थानीय महत्व के विषय सम्मिलित हैं।
- समवर्ती सूची के विषयों पर केन्द्र व राज्य सरकारें दोनों कानून बना सकती हैं। लेकिन टकराव की स्थिति में केन्द्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होता है। इस सूची के प्रमुख विषयों में शिक्षा, वन, मजदूर संघ, विवाह, गोद लेना व उत्तराधिकार जैसे विषय सम्मिलित हैं।
- हमारे संविधान के अनुसार शेष बचे विषय केन्द्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
- भारतीय संघ के सभी राज्यों को समान अधिकार प्राप्त नहीं हैं। असम, नागालैण्ड, अरुणाचल प्रदेश तथा मिजोरम जैसे कुछ राज्यों को अपने विशिष्ट सामाजिक और ऐतिहासिक परिस्थितियों की वजह से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 371 के तहत विशेष शक्तियाँ प्राप्त हैं जो स्वदेशी लोगों, उनकी संस्कृति तथा सरकारी सेवाओं में अधिमान्य रोजगार के भूमि अधिकारों के संरक्षण के सम्बन्धों में पूर्णतः उपयोगी हैं।
- चंडीगढ़, लक्षद्वीप तथा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली जैसे इलाके केन्द्र शासित प्रदेश कहलाते हैं। इन्हें राज्यों के समान अधिकार प्राप्त नहीं हैं।
→ संघीय व्यवस्था कैसे चलती है?
- संवैधानिक प्रावधानों और कानूनों के क्रियान्वयन की देख-रेख के लिए न्यायपालिका का गठन किया गया है।
- भारत में संघीय व्यवस्था की सफलता का श्रेय यहाँ की लोकतान्त्रिक राजनीति के चरित्र को दिया जा सकता है।
→ भाषयी नीति
- भारतीय संविधान में किसी एक भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया गया। हिन्दी को राजभाषा माना गया। यह लगभग 40 प्रतिशत भारतीयों की मातृभाषा है।
- हमारे संविधान में हिन्दी के अतिरिक्त 21 अन्य भाषाओं को अनुसूचित भाषा का दर्जा दिया गया है।
→ केन्द्र-राज्य सम्बन्ध
- 1990 के बाद देश के बहुत-से राज्यों में क्षेत्रीय दल उभर कर सामने आए तथा केन्द्र में गठबन्धन सरकार की शुरुआत
- राज्य पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट को 1 नवम्बर, 1956 ई. लागू किया गया था।
- जब केन्द्र एवं राज्य सरकार से शक्तियाँ लेकर स्थानीय सरकारों को प्रदान की जाती हैं तो इसे सत्ता का विकेन्द्रीकरण कहते हैं।
- स्व-शासन के लोकतान्त्रिक सिद्धान्त को वास्तविक बनाने का सबसे अच्छा तरीका स्थानीय सरकारों की स्थापना करना हैं।
→ भारत में विकेन्द्रीकरण
- लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम 1992 ई. में उठाया गया जब संविधान में संशोधन करके लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था के तीसरे स्तर, स्थानीय स्वशासन व्यवस्था को अधिक शक्तिशाली एवं प्रभावी बनाया गया।
- स्थानीय शासन व्यवस्था, जो गाँवों के स्तर पर मौजूद रहती है, को ‘पंचायती राज’ के नाम से भी जाना जाता है।
- स्थानीय स्वशासन का ढाँचा जिला स्तर तक का है। स्वशासन, गाँवों व शहरों दोनों स्थानों में स्थापित किया गया है।
- भारत में स्थानीय सरकारों की यह नयी व्यवस्था संसार में लोकतन्त्र का अब तक का सबसे बड़ा प्रयोग है।
→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. अधिकार क्षेत्र: एक ऐसा क्षेत्र जिस पर किसी का कानूनी अधिकार हो। यह एक भौगोलिक क्षेत्र भी हो सकता है। अथवा इसके अन्तर्गत कुछ विषयों को भी सम्मिलित किया जा सकता है।
2. गठबन्धन सरकार: एक से अधिक राजनीतिक दलों द्वारा साथ मिलकर बनायी गयी सरकार को गठबन्धन या मिली-जुली सरकार कहते हैं।
3. संघवाद: एक ऐसी शासन व्यवस्था जिसमें संविधान द्वारा शासन की शक्तियों का केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारों के मध्य बँटवारा कर दिया जाता है।
4. एकात्मक शासन व्यवस्था: शासन प्रणाली का वह रूप जिसमें संविधान द्वारा शासन की समस्त शक्तियों का केन्द्रीय सरकार के हाथों में केन्द्रीयकरण कर दिया जाता है।
5. संघ सूची: भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त वह सूची जिसमें वर्णित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार सिर्फ केन्द्र सरकार को होता है। संघ सूची में प्रतिरक्षा, विदेशी मामले, बैंकिंग, संचार, मुद्रा आदि राष्ट्रीय महत्व के विषय सम्मिलित हैं।
6. राज्य सूची: भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त वह सूची जिसमें वर्णित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार सिर्फ राज्य सरकार को ही होता है। राज्य सूची में पुलिस, व्यापार, वाणिज्य, कृषि एवं सिंचाई आदि प्रान्तीय एवं स्थानीय महत्त्व के विषय आते हैं।
7. समवर्ती सूची: भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त वह सूची जिसमें वर्णित विषयों पर केन्द्र व राज्य सरकार दोनों कानून बना सकते हैं। समवर्ती सूची में शिक्षा, वन, मजदूर संघ, विवाह, गोद लेना एवं उत्तराधिकार आदि विषय सम्मिलित हैं।
8. बाकी बचे विषय: सत्ता के विभाजन में जिन मामलों को सम्मिलित नहीं किया जाता है, वह बाकी बचे विषय कहलाते हैं। हमारे संविधान के अनुसार बाकी बचे विषय केन्द्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
9. केन्द्र-शासित प्रदेश: ऐसे क्षेत्र जो अपने छोटे आकार के कारण स्वतन्त्र राज्य नहीं बन सकते। ऐसे क्षेत्रों को राज्यों वाले अधिकार प्राप्त नहीं हैं। इन क्षेत्रों का शासन चलाने का विशेष अधिकार केन्द्र सरकार को प्राप्त है। ऐसे क्षेत्रों को केन्द्र-शासित प्रदेश कहते हैं; जैसे-चण्डीगढ़, लक्षद्वीप आदि।