JAC Board Class 10th Social Science Notes Civics Chapter 4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले
→ लैंगिक विभाजन:
- लैंगिक असमानता सामाजिक असमानता का एक रूप है जो प्रत्येक स्थान पर दिखाई देती है।
- लैंगिक असमानता का आधार स्त्री व मुरुषों के विषय में प्रचलित रूढ़ छवियाँ तथा तयशुदा सामाजिक भूमिकाएँ हैं न कि उनकी जैविक बनावट।
- श्रम के लैंगिक विभाजन में औरतें घर के अन्दर का सारा काम; जैसे-खाना बनाना, सफाई करना, कपड़े धोना तथा बच्चों की देख-रेख करना आदि कार्य करती हैं जबकि मर्द घर के बाहर का काम करते हैं।
→ नारीवाद
- महिलाओं के राजनीतिक तथा वैधानिक दर्जे को ऊँचा उठाने, उनके लिए शिक्षा और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने की माँग करने तथा उनके निजी व पारिवारिक जीवन में भी बराबरी की मांग करने वाले आन्दोलनों को नारीवादी आन्दोलन कहते हैं।
- लैंगिक विभाजन की राजनीतिक अभिव्यक्ति तथा इस प्रश्न पर राजनीतिक गोलबंदी ने सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भूमिका को बढ़ाने में सहायता की है।
- स्वीडन, नॉर्वे व फिनलैण्ड जैसे स्कैंडिनेवियाई देशों में सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी का स्तर बहुत ऊँचा है।
→ भारत में महिलाओं की स्थिति
- भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् महिलाओं की स्थिति में बहुत सुधार आया है लेकिन आज भी वे पुरुषों से बहुत पीछे हैं। भारतीय समाज आज भी पितृ-प्रधान है।
- भारत में महिलाओं की साक्षरता दर 54 प्रतिशत जबकि पुरुषों की साक्षरता दर 76 प्रतिशत है।
- राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने का सबसे अच्छा तरीका है निर्वाचित संस्थाओं में महिलाओं के लिए कानूनी रूप से एक उचित हिस्सा तय कर देना। भारत में पंचायती राज के अन्तर्गत कुछ ऐसी ही व्यवस्था की गई है।
- आज भारत के ग्रामीण तथा शहरी स्थानीय निकायों में 10 लाख से अधिक निर्वाचित महिलाएँ हैं। नोट: 2011 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार भारत में महिला साक्षरता दर 65.46% व पुरुष साक्षरता 82.14% दर रही थी।
→ धार्मिक विभाजन
- धार्मिक विभाजन प्रायः राजनीति के मैदान में अभिव्यक्त होता है।
- गाँधीजी के मतानुसार, धर्म को कभी भी राजनीति से अलग नहीं किया जा सकता। धर्म से उनका अभिप्राय हिन्दू या इस्लाम जैसे धर्म से न होकर नैतिक मूल्यों से था जो सभी धर्मों से जुड़े हुए हैं।
- महात्मा गाँधी जी का मानना था कि राजनीति धर्म द्वारा स्थापित मूल्यों से निर्देशित होनी चाहिए।
→ साम्प्रदायिकता
- साम्प्रदायिक राजनीति इस सोच पर आधारित होती है कि धर्म ही मुख्य रूप से सामाजिक समुदाय का निर्माण करता है।
- साम्प्रदायिकता हमारे देश के लोकतन्त्र के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती रही है।
- भारतीय संघ ने किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में स्वीकार नहीं किया है।
→ जातीय विभाजन
- लिंग व धर्म के आधार पर विभाजन तो समस्त विश्व में देखा जा सकता है पर जाति पर आधारित विभाजन केवल भारतीय समाज में ही देखने को मिलता है।
- भारत में वर्ण व्यवस्था, अन्य जाति समूहों से भेदभाव तथा उन्हें अपने से अलग मानने की धारणा पर आधारित है।
- भारतीय जनगणना में प्रत्येक 10 वर्ष पश्चात् सभी नागरिकों के धर्म को भी दर्ज किया जाता है।
→ जातीय राजनीति
- भारतीय संविधान में किसी भी प्रकार के जातिगत भेदभाव पर रोक लगायी गयी है।
- भारत में साम्प्रदायिकता की तरह जातिवाद भी इस मान्यता पर आधारित है कि जाति ही सामाजिक समुदाय के गठन का एकमात्र आधार है।
- आर्थिक असमानता का एक महत्त्वपूर्ण आधार जाति भी है क्योंकि इससे विभिन्न संसाधनों तक लोगों की पहुँच निर्धारित होती है।
- जातिवाद तनाव, टकराव एवं हिंसा को भी बढ़ावा प्रदान करता है।
→ प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली
1. श्रम का लैंगिक विभाजन: श्रम के विभाजन का वह तरीका जिसमें घर के अन्दर के समस्त कार्य परिवार की महिलाएँ करती हैं या अपनी देखरेख में घरेलू नौकरों अथवा नौकरानियों से करवाती हैं।
2. नारीवादी: महिला और पुरुषों के समान अधिकारों एवं अवसरों में विश्वास करने वाली महिला या पुरुष।
3. पितृ-प्रधान: इसका शाब्दिक अर्थ तो पिता का शासन है पर इस शब्द का प्रयोग महिलाओं की तुलना में पुरुषों को अधिक महत्त्व, अधिक शक्ति देने वाली व्यवस्था के लिए भी किया जाता है।
4. लिंग-अनुपात: प्रति एक हजार पुरुषों के पीछे महिलाओं की संख्या लिंग अनुपात कहलाती है।
5. पारिवारिक कानून: विवाह, तलाक, गोद लेना तथा उत्तराधिकार जैसे परिवार से जुड़े मामलों से सम्बन्धित कानून। हमारे देश में सभी धर्मों के लिए अलग-अलग पारिवारिक कानून हैं।
6. वर्ण-व्यवस्था: जाति समूहों का पदानुक्रम जिसमें एक जाति के लोग प्रत्येक स्थिति में सामाजिक पायदान में सबसे ऊपर रहेंगे तो किसी जाति समूह के लोग क्रमागत के रूप में उनके नीचे रहेंगे।
7. शहरीकरण: ग्रामीण क्षेत्रों से निकलकर लोगों का शहरों में बसना शहरीकरण कहलाता है। जातिवाद-विवाह, कार्य तथा आहार के उद्देश्यों के लिए सामाजिक समूहों में लोगों का संगठन जातिवाद कहलाता है।
8. साम्प्रदायिकता: साम्प्रदायिकता समाज की वह स्थिति है जिसमें विभिन्न धार्मिक समूह अन्य समूहों पर अपनी श्रेष्ठता स्थापित करने का प्रयास करते हैं। साम्प्रदायिक राजनीति-किसी एक धार्मिक समूह की सत्ता एवं वर्चस्व तथा अन्य समूहों की उपेक्षा पर आधारित राजनीति को साम्प्रदायिक राजनीति कहते हैं।
9. धर्मनिरपेक्ष: सभी धर्मों को समान महत्त्व प्रदान करना।