JAC Board Class 9th Social Science Notes History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे
→ घुमंतू ऐसे लोग होते हैं, जो किसी एक स्थान पर स्थाई रूप से नहीं रहते अपितु अपनी आजीविका के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं।
→ जम्मू-कश्मीर के गुज्जर बकरवाल समुदाय के लोग भेड़-बकरियों के बड़े-बड़े झुण्ड रखते हैं।
→ हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों में रहने वाले चरवाहा समुदाय को ‘गद्दी’ के नाम से जाना जाता है।
→ ‘धंगर’ महाराष्ट्र का एक महत्वपूर्ण चरवाहा समुदाय है। कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश के पठारी क्षेत्रों में ‘गोल्ला’ समुदाय के लोग गाय-भैंस, जबकि ‘कुरुमा’ और ‘कुरुवा’ समुदाय के लोग भेड़-बकरियाँ पालते थे।
→ उत्तर प्रदेश, पंजाब, मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट्र के कई भागों में बंजारा चरवाहा समुदाय तथा राजस्थान के रेगिस्तानों में राइका समुदाय रहता था। औपनिवेशिक शासन के दौरान चरवाहों की जिन्दगी में बहुत बदलाव आए। उनके चरागाह सिमट गए, इधर-उधर आने-जाने पर रोक लगने लगी। उनसे जो लगान वसूल किया जाता था उसमें भी वृद्धि हुई। खेती में उनका हिस्सा घटने लगा जिससे उनके पेशे और हुनरों पर बहुत बुरा असर पड़ा।
→ उन्नीसवीं सदी के मध्य तक देश के विभिन्न राज्यों में वन अधिनियमों के बन जाने से चरवाहों की जिन्दगी बदल गई। अब उन्हें जंगलों में जाने से रोक दिया गया जो मवेशियों के लिए चारे के स्रोत थे।
→ भारत के अधिकांश चरवाही क्षेत्रों में उन्नीसवीं सदी के मध्य से ही चरवाही टैक्स लागू कर दिया गया।
→ आज भी अफ्रीका के लगभग सवा दो करोड़ लोग अपनी आजीविका के लिए किसी न किसी तरह की चरवाही गतिविधियों पर ही निर्भर हैं।
→ उन्नीसवीं सदी के आखिरी दशकों में औपनिवेशिक सरकार ने अफ्रीका में चरवाहों के एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमने-फिरने पर प्रतिबन्ध लगाना प्रारम्भ कर दिया।
→ बेदुईन्स, बरबेर्स, मासाई, सोमाली, बोरान, तुर्काना आदि अफ्रीका के प्रमुख चरवाहा समुदाय हैं।
→ उपनिवेश बनने से पहले ‘मासाई समाज’ दो सामाजिक श्रेणियों में बँटा हुआ था वरिष्ठ जन (ऐल्डर्स) और योद्धा (वॉरियर्स)। वरिष्ठ जन शासन चलाते थे, जबकि योद्धाओं को मुख्य रूप से लड़ाई लड़ने और कबीले की हिफाजत करने के लिए तैयार किया जाता था।
→ पर्यावरणवादी और अर्थशास्त्री अब इस बात को गम्भीरता से मानने लगे हैं कि घुमंतू चरवाहों की जीवन-शैली संसार के बहुत सारे पहाड़ी और सूखे क्षेत्रों में जीवनयापन के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है।
→ सन् 1871 ई.- अंग्रेजी शासक चरवाहों को सन्देह की दृष्टि से देखते थे। अतः सन् 1871 ई. में विदेशी सरकार ने चरवाहों के विरुद्ध एक अपराधी जनजाति अधिनियम पारित कर दिया। इसके अनुसार उन्हें अपराधी समुदायों का दर्जा दिया गया।
→ सन् 1850-1880 ई. – इन दशकों में टैक्स-वसूली का काम बाकायदा बोली लगाकर ठेकेदारों को सौंपा गया था।
→ सन् 1880 ई. – सरकार ने इस दशक में अपने कर्मचारियों के माध्यम से सीधे चरवाहों से ‘कर’ वसूल करना प्रारम्भ कर दिया था। प्रत्येक चरवाहे को एक ‘पास’ जारी कर दिया गया।
→ सन् 1885 ई. – ब्रिटिश कीनिया एवं जर्मन तांगान्यिका (वर्तमान तंज़ानिया) के बीच एक अन्तर्राष्ट्रीय सीमा खींचकर मासाईलैण्ड के दो बराबर-बराबर टुकड़े कर दिए गए।
→ सन् 1919 ई. – तांगान्यिका ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया।
→ सन् 1947 ई. – भारत-पाक विभाजन के पश्चात् ऊँट एवं भेड़ पालने वाले राइका समुदाय के लोग न तो सिन्ध प्रान्त में प्रवेश कर सकते थे और न ही सिन्धु नदी के किनारे अपने पशुओं को चरा सकते थे।
→ मारू – राजस्थान के मरुस्थल का स्थानीय नाम।
→ गुज्जर बक्करवाल-जम्मू – कश्मीर का एक चरवाहा समुदाय, जो भेड़ एवं बकरियाँ पालता है।
→ गद्दी – हिमाचल प्रदेश का एक चरवाहा समुदाय।
→ ढंडी – राजस्थान में ऊँटों के झुण्ड की बस्ती का स्थानीय नाम! मासाई-अफ्रीका का एक चरवाहा समुदाय।
→ धनगर – महाराष्ट्र का भेड़ पालने वाला प्रमुख समुदाय।
→ धार – ऊँचे पर्वतों में स्थित चरागाह।
→ चलवासी – एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने वाले घुमक्कड़ लोग।
→ चरवाही – वह प्रक्रिया जो जानवरों की देखभाल एवं चराने से सम्बन्धित है।
→ कृषि चरवाही – कृषि के साथ-साथ की जाने वाली चरवाही क्रिया।
→ घुमंतू चरवाहे – घुमंतू चरवाहे वे लोग हैं जो एक स्थान पर नहीं रहते बल्कि अपनी आजीविका के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं।
→ भाबर – गढ़वाल तथा कुमाऊँ के इलाके में पहाड़ियों के आस-पास पाए जाने वाला शुष्क वनों का क्षेत्र।
→ लूंठ – फसल की कटाई के बाद जमीन में शेष रह जाने वाले अनाज के पौधों का निचला सिरा या उनकी जड़।
→ चरागाह – भूमि के विशाल भाग में पशुओं के चरने के लिए उगाई गई घास तथा अन्य पौधों वाला क्षेत्र।
→ बुग्याल – ऊँचे पहाड़ों पर स्थित विस्तृत घास के मैदान।
→ खरीफ – वर्षा ऋतु में बोई जाने वाली तथा सितम्बर तथा अक्टूबर के बीच कटने वाली फसल।
→ रबी – जाड़ों की फसल, जिसे प्रायः मार्च के बाद काटा जाता है।
→ परम्परागत अधिकार – परम्परा और रीति-रिवाज के आधार पर मिलने वाले अधिकार।
→ अपराधी जनजाति अधिनियम – सन् 1871 ई. में, औपनिवेशिक सरकार ने भारत में अपराधी जनजाति अधिनियम (Criminal Tribes Act) पारित किया। इस अधिनियम के द्वारा दस्तकारों, व्यापारियों तथा चरवाहों की कुछ जातियों को अपराधी जनजातियों के रूप में वर्गीकृत किया गया।
→ निर्वाह – जीवन की जरूरी आवश्यकताएँ पूर्ण करना।