JAC Board Class 9th Social Science Notes Economics Chapter 4 भारत में खाद्य सुरक्षा
→ मानव के भोजन के सम्बन्ध में कहा जाता है कि जिस प्रकार साँस लेने के लिए वायु आवश्यक है उसी प्रकार जीवन के लिए भोजन की आवश्यकता है।
→ खाद्य सुरक्षा से आशय है, सभी लोगों के लिए हमेशा भोजन की उपलब्धता, पहुँच और इसे प्राप्त करने की सामर्थ्य होना।
→ खाद्य सुरक्षा देश में प्रचलित सार्वजनिक वितरण प्रणाली, शासकीय सतर्कता और खाद्य सुरक्षा के खतरे की स्थिति में सरकार द्वारा की गई कार्यवाही पर निर्भर करती है।
→ देश में खाद्य सुरक्षा की आवश्यकता प्राकृतिक आपदाओं के समय देश की समस्त जनसंख्या को खाद्य असुरक्षा ग्रस्त होने से बचाव के लिए है। प्राकृतिक आपदाओं के समय खाद्य सुरक्षा में सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
→ देश में खाद्य सुरक्षा के अभाव में व्यापक भुखमरी और अकाल जैसी स्थितियों के पैदा होने का डर रहता है।
→ सन् 1943 में बंगाल प्रान्त में पड़े अकाल में लगभग 30 लाख लोगों की मृत्यु हुई। स्वतन्त्र भारत में बंगाल जैसी स्थिति कभी पैदा नहीं हुई लेकिन उड़ीसा के कालाहांडी तथा काशीपुर ऐसे स्थान हैं जहाँ अकाल जैसी दशाएँ कई वर्षों से बनी हुई हैं।
→ भारत में खाद्य एवं पोषण की दृष्टि से सबसे अधिक प्रभावित भूमिहीन-कृषक, पारम्परिक दस्तकार, छोटे-मोटे कामगार श्रमिक, निराश्रित और भिखारी आदि हैं।
→ कुपोषण से सबसे अधिक महिलायें प्रभावित होती हैं यह गम्भीर चिंता का विषय है क्योंकि इससे अजन्मे बच्चों को कुपोषण का खतरा रहता है। खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त आबादी का एक बड़ा भाग गर्भवती तथा दूध पिला रही महिलाओं तथा पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों का है।
→ भारत में खाद्य असुरक्षा की दृष्टि से सर्वाधिक लोगों की संख्या उत्तर प्रदेश के पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी भाग, बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा, पश्चिम-बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ भाग हैं।
→ खाद्य पदार्थों की सुरक्षा से न केवल वर्तमान की भुखमरी समाप्त होती है बल्कि भविष्य में भुखमरी का खतरा भी नहीं रहता।
→ जनसंख्या में भुखमरी के दो आयाम होते हैं-दीर्घकालिक और मौसमी भुखमरी।
→ स्वतन्त्रता के बाद भारतीय नीति-निर्माताओं ने खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए कृषि क्षेत्र में नयी रणनीति अपनाई जिसकी परिणति हरित क्रान्ति के रूप में हुई।
→ भारत सरकार द्वारा तैयार की गई खाद्य सुरक्षा व्यवस्था-बफर स्टॉक और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से अनाज की उपलब्धता और भी सुनिश्चित हो गई।
भारतीय खाद्य निगम अधिशेष उत्पादन वाले राज्यों में किसानों द्वारा उत्पादित खाद्यान्न को न्यूनतम समर्थित मूल्य पर खरीद कर बफर स्टॉक करता है।
→ भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त अनाज को सरकार विनियमित राशन की दुकानों के माध्यम से समाज के गरीब . वर्गों में वितरित कराती है जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली कहलाती है।
→ भारत में राशन व्यवस्था का श्रीगणेश सन् 1940 के दशक में बंगाल के अकाल की पृष्ठभूमि में हुआ।
→ गरीबी के उच्च स्तरों को ध्यान में रखते हुए सन् 1970 के दशक के मध्य खाद्य सम्बन्धी तीन महत्वपूर्ण अंतःक्षेप कार्यक्रम प्रारम्भ किए गए। जिनमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली, एकीकृत बाल-विकास सेवाएँ और काम के बदले अनाज कार्यक्रम प्रारम्भ किए गए।
→ प्रारम्भ में सार्वजनिक वितरण प्रणाली सभी के लिये समान रूप से उपलब्ध थी लेकिन बाद में इसे अधिक दक्ष और लक्षित बनाने के उद्देश्य से समय-समय पर संशोधित किया गया।
→ 1992 में देश में 1700 ब्लॉकों में संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (आर. पी. डी. एस.) शुरू की गयी।
→ जून 1997 लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टी. पी.डी.एस.) प्रारंभ की गई।
→ सन् 2000 में दो विशेष योजनाएँ-अंत्योदय अन्न योजना और अन्नपूर्णा योजना प्रारम्भ की गई। ये योजनाएँ क्रमश: ‘गरीबों में भी सर्वाधिक गरीब’ और ‘दीन वरिष्ठ नागरिक’ समूहों पर लक्षित हैं।
→ वर्ष 2014 में एफ. सी. आई. के पास गेहूँ और चावल का भंडार 65.2 करोड़ टन था जो न्यूनतम बफर प्रतिमान से बहुत अधिक था।
→ पी. डी. एस. गेहूँ की प्रति माह प्रति व्यक्ति खपत 2004-05 से ग्रामीण एवं नगरीय भारत में दोगुनी हो गई है।
→ देश की खाद्य-सुरक्षा व्यवस्था में सरकार की भूमिका के साथ-साथ अनेक सहकारी समितियाँ और गैर-सरकारी संगठन भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। जैसे महाराष्ट्र में एकेडमी ऑफ डेवलपमेंट साइंस का अनाज बैंक कार्यक्रम है।