Jharkhand Board JAC Class 9 Sanskrit Solutions व्याकरणम् समास प्रकरणम् Questions and Answers, Notes Pdf.
JAC Board Class 9th Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्
समासशब्दस्य अर्थः – “समासशब्दस्य अर्थः संक्षिप्तीकरणमिति अस्ति।” (समास शब्द का अर्थ संक्षेप करना है।)
समासस्य परिभाषा – समसनं समासः अथवा अनेकपदानाम् एक पदीभवनं समासः। अर्थात् यदा अनेकपदानि मिलित्वा एक पदं जायन्ते तदा सः समासः इति कथ्यते। (संयुक्त करने को समास कहते हैं अथवा अनेक पदों का मिलकर एक पद होना समास है। अर्थात् जब अनेक पदों को मिलकर एक पद बना दिया जाता है तब वह समास कहा जाता है।)
पूर्वोत्तरविभक्तिलोपः – सीतायाः पतिः = सीतापतिः। अस्मिन् विग्रहे सीतायाः इत्यत्र षष्ठीविभक्तिः पति इत्यत्र प्रथमा विभक्तिश्च श्रूयेते। समासे कृते अनयोः द्वयोरपि विभक्त्योः लोपो भवति। तत्पश्चात् सीतापति इति समस्तशब्दात् पुनरपि प्रथमाविभक्तिः क्रियते इत्येव सर्वत्र अवगन्तव्यम्। (सीतायाः पतिः = सीतापतिः। इस विग्रह में ‘सीतायाः’ पद में षष्ठी और ‘पतिः’ इसमें प्रथमा विभक्ति सनी जाती है। समास करने पर इन दोनों विभक्तियों का लोप होता है। इसके बाद ‘सीतापति’ इस समस्त शब्द से फिर प्रथमा विभक्ति की जाती है। इसी प्रकार सभी जगह समझना चाहिए।)
समासयुक्तः समस्तपदं कथ्यते (समासयुक्त शब्द समस्तपद कहा जाता है।) यथा – सीतापतिः।
समस्तशब्दस्य अर्थ बोधितुं यद् वाक्यम् उच्यते तद्वाक्यं विग्रहः इति कथ्यते। (समस्त शब्द का अर्थ जानने के लिए जो वाक्य कहा जाता है वह वाक्य ‘विग्रह’ कहा जाता है।) यथा रमायाः पतिः इति वाक्यं ‘रमापतिः’ शब्दस्य विग्रहः अस्ति ।
समास के होने पर अर्थ में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता है। जो अर्थ ‘सीता के पति’ (सीतायाः पतिः) इस विग्रह वाक्य का है वही अर्थ ‘सीतापतिः’ इस समस्त शब्द का है।
समास का पहला पद ‘पूर्वपद’ तथा दूसरा पद ‘उत्तरपद’ कहलाता है। जब दो या दो से अधिक पदों का मेल करके और बीच की कारक सम्बन्धी विभक्ति को हटाकर एक नवीन पद बनाया जाता है तो उसे समास करना कहते हैं। यथा रामम् आश्रितः = रामाश्रितः।
जब समासयुक्त पद में कारक सम्बन्धी चिह्नों अर्थात् विभक्तियों का निर्देश कर दिया जाता है तो उसे समास का विग्रह करना कहा जाता है। समास के शब्दों में कभी पूर्व पद (पहला शब्द) प्रधान रहता है और कभी उत्तरपद (बाद का शब्द) या अन्य पद प्रधान रहता है।
समासस्यभेदा: – संस्कृतभाषायां समासस्य मुख्यरूपेण चत्वारः भेदा सन्ति। समासे प्रायशः द्वे पदे भवतः – पूर्वपदम् उत्तरपदं च। पदस्य अर्थः पदार्थः भवति। यस्य पदार्थस्य प्रधानता भवति तदनुरूपेण एव समासस्य संज्ञा अपि भवति। यथा प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधानः अव्ययीभावः भवति उत्तरपदार्थप्रधानः तत्पुरुषः च भवति। तत्पुरुषस्य भेदः कर्मधारयः भवति। कर्मधारयस्य भेदः द्विगुः भवति। प्रायेण अन्यपदार्थप्रधान: बहुव्रीहिः भवति उभयपदार्थ प्रधानः द्वन्द्वः च भवति। एव समासस्य सामान्यरूपेण षड्भेदाः भवन्ति।
(संस्कृत भाषा में समास के मुख्य रूप से चार भेद हैं। समास में प्रायः दो पद होते हैं-पूर्वपद और उत्तरपद। पद का अर्थ ‘पदार्थ’ होता है। जिस पदार्थ की प्रधानता होती है, उसी के अनुरूप ही समास की संज्ञा भी होती है। जैसे साधारण नियम के अनुसार पूर्व पदार्थ प्रधान अव्ययीभाव होता है और उत्तरपदार्थ प्रधान तत्पुरुष होता है। तत्पुरुष का भेद ‘कर्मधारय’ होता है। कर्मधारय का भेद ‘द्विगु’ होता है। प्रायः अन्य पदार्थ प्रधान बहुव्रीहि होता है और उभय पदार्थ प्रधान ‘द्वन्द्व’ होता है। इस प्रकार सामान्य रूप से समास के छ: भेद होते हैं।
1. अव्ययीभाव समासः
अव्ययीभावस्य परिभाषा -यदा विभक्ति इत्यादिषु अर्थेषु वर्तमानम् अव्ययं पदं सुबन्तेन सह नित्यं समस्यते असौ. अव्ययीभाव समासो भवति। अथवा इदमत्र अवगन्तव्यम् –
1. अस्य समास्य प्रथमशब्दः अव्ययं द्वितीयश्च संज्ञाशब्दो भवति।
2. अव्ययशब्दार्थस्य अर्था पूर्व पदार्थस्य प्रधानता भवति।
3. समासस्य पद द्वयं मिलित्वा अव्ययं भवति।
4. अव्ययीभावसमासः नपुंसकलिङ्गस्य एकवचने भवति।
(जब विभक्ति इत्यादि अर्थों में उपस्थिति अव्यय पद सुबन्त के साथ मिलकर नित्य समास होता है, यही अव्ययीभाव समास होता है।
1. समास का प्रथम शब्द अव्यय और दूसरा संज्ञा शब्द होता है।
2. अव्यय पदार्थ अर्थात् पूर्वपदार्थ की प्रधानता होती है।
3. समास के दोनों पद मिलकर अव्यय होते हैं।
4. अव्ययीभाव समास नपुंसकलिंग के एकवचन में होता है। यथा –
2. तत्पुरुष समासः
तत्पुरुषस्य परिभाषा: – उत्तरपदार्थप्रधानः तत्पुरुषः भवति।
तत्पुरुषसमासे प्रायेण उत्तरपदार्थस्य प्रधानता भवति। यथा – राज्ञः पुरुष = राजपुरुषः। अत्र उत्तरपदं पुरुषः अस्ति तस्य एव प्रधानता अस्ति। ‘राजपुरुषम् आनय’ इति उक्ते सति पुरुषः एव आनीयते न तु राजा। तत्पुरुषसमासे पूर्वपदे या विभक्तिः भवति प्रायेण तस्याः नाम्ना एव समासस्य अपि नाम भवति। (तत्पुरुष समास में प्रायः उत्तरपदार्थ की प्रधानता होती है। यथा-राजः पुरुष = राजपुरुषः। यहाँ पर उत्तर पद पुरुष है उसी की प्रधानता है। राजपुरुषम् आनय यदि यह कहा जाय तो पुरुष को ही लाया जाय न कि ‘राजा’ तत्पुरुष समास के पूर्वपद में जो विभक्ति होती है। प्रायः उसी के नाम से ही समास का नाम भी होता है।) यथा –
अर्थात् जिस समास में उत्तर पद (बाद में आने वाले वाले पद) की प्रधानता होती है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। द्वितीया विभक्ति से सप्तमी विभक्ति तक छह विभक्तियों के आधार पर समास के छह भेद माने गये हैं।
तत्पुरुष समास के प्रमुख तीन भेद हैं –
(क) व्यधिकरण तत्पुरुष – इसके 6 भेद होते हैं –
1. द्वितीया, 2. तृतीया, 3. चतुर्थी, 4. पंचमी, 5. षष्ठी, 6. सप्तमी।
(ख) समानाधिकरण-इसके दो भेद होते हैं –
1. कर्मधारय, 2. द्विगु।
(ग) अन्य भेद-इसके चार भेद होते हैं –
1. अलुक् समास, 2. नब् समास, 3. उपपद् समास, 4. प्रादि समास।
उदाहरणानि –
(i) द्वितीया तत्पुरुष – जिसमें प्रथम पद द्वितीया विभक्ति का एवं द्वितीय पद प्रथमा विभक्ति का हो। जैसे –
(ii) तृतीया तत्पुरुष-जिसमें प्रथम पद तृतीया विभक्ति एवं द्वितीय पद प्रथमा विभक्ति का हो। जैसे –
(iii) चतुर्थी तत्पुरुष-जिसमें प्रथम पद चतुर्थी विभक्ति का हो। जैसे –
(iv) पञ्चमी तत्पुरुष-जिसमें प्रथम पद पञ्चमी विभक्ति का हो। जैसे –
(v) षष्ठी तत्पुरुष – जिस समास में प्रथम पद षष्ठी विभक्ति का एवं द्वितीय पद प्रथमा विभक्ति का हो, तो वह षष्ठी तत्पुरुष कहलाता है। जैसे –
(vi) सप्तमी तत्पुरुष – जहाँ प्रथम पद सप्तमी विभक्ति का एवं द्वितीय पद प्रथमा विभक्ति का हो, उसे सप्तमी तत्पुरुष कहते हैं। जैसे –
3. कर्मधारयः
कर्मधारयस्य परिभाषा – तत्पुरुषः समानाधिकरण कर्मधारयः।
यदा तत्पुरुषसमासस्य द्वयोः पदयोः एकविभक्तिः अर्थात् समानविभक्तिः भवति तदा सः समानाधिकरणः तत्पुरुषसमासः कथ्यते। अयमेव समासः कर्मधारयः इति नाम्ना ज्ञायते। अस्मिन् समासे साधारणतया पूर्वपदं विशेषणम् उत्तरपदञ्च विशेष्यं भवति। (जब तत्पुरुष समास के दोनों पदों में एक विभक्ति अर्थात् समान विभक्ति होती है तब वह समानाधिकरण तत्पुरुष समास कहा जाता है। यह ही समास कर्मधारय नाम से जाना जाता है। इस समास में साधारणतया पूर्वपद विशेषण तथा उत्तर पद विशेष्य होता है।)
यथा – नीलम् कमलम् = नीलकमलम्
1. अस्मिन् उदाहरणे नीलम् कमलम् इति द्वयोः पादयोः समानविभक्तिः अर्थात् प्रथमा विभक्तिः अस्ति।
2. अत्र नीलम् इति पदं विशेषणम् कमलम् इति पदञ्च विशेष्यम्। अत एव अयं कर्मधारयः समासः अस्ति।
1. इस उदाहरण में ‘नील कमलम्’ इन दोनों पदों में समान विभक्ति अर्थात् प्रथमा विभक्ति है।
2. यहाँ ‘नीलम्’ यह विशेषण पद और कमलम्’ यह विशेष्य पद है। इसीलिए यह कर्मधारय समास है।
अस्य उदाहरणानि अधोलिखितानि सन्ति – (इसके उदाहरण अधोलिखित हैं-)
(i) विशेषण-विशेष्यकर्मधारयः
(ii) उपमानोपमेय कर्मधारयः
(iii) उपमानोत्तरपदकर्मधारयः
(iv) अवधारणापूर्वपदकर्मधारयः
विशेषणं विशेष्येण समस्यते। अत्र अवधारणार्थं द्योतयितुं विग्रवाक्ये विशेषणात् परम् एव शब्दः प्रयुज्यते। (विशेषण को विशेष्य से परे होने पर। यहाँ अवधारणा के अर्थ में विग्रह वाक्य में विशेषण के बाद एवं शब्द रखते हैं।) यथा –
4. द्विगुसमासः
द्विगुसमासस्य परिभाषा – ‘संख्यापूर्वो द्विगु’
‘संख्यापूर्वो द्विगु’ इति पाणिनीयसूत्रानुसारं यदा कर्मधारयसमासस्य पूर्वपदं संख्यावाची उत्तरपदञ्च संज्ञावाची भवति तदा सः ‘द्विगुसमासः’ कथ्यते।
1. अयं समासः प्रायः समूहार्थे भवति।
2. समस्तपदं सामान्यतया नपुंसकलिङ्गस्य एकवचने अथवा स्त्रीलिङ्गस्य एकवचने भवति।
3. अस्य विग्रहे षष्ठीविभक्तेः प्रयोगः क्रियते।
(‘संख्यापूर्वो द्विगु’ इस पाणिनीय सूत्र के असार जब कर्मधारय समास का पूर्वपद संख्यावाची और उत्तर पद संज्ञावाची होता है तब वह द्विगु समास कहा जाता है।
1. यह समास समूह अर्थ में होता है।
2. समस्त पद सामान्यतया नपुंसकलिंग एकवचन में अथवा स्त्रीलिंग एकवचन में होता है।
3. इसके विग्रह में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।
5. बहुव्रीहि समासः
बहुव्रीहिसमासस्य परिभाषा-‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहि’
‘यस्मिन् समासे यदा अन्यपदार्थस्य प्रधानता भवति तदा सः बहुव्रीहिसमासः कथ्यते। अर्थात् अस्मिन् समासे न तु पूर्वपदार्थस्य प्रधानता भवति न हि उत्तरपदार्थस्य प्रत्युत द्वौ अपि पदार्थो मिलित्वा अन्यपदार्थस्य बोधं कारयतः। समस्तपदस्य प्रयोगः अन्यपदार्थस्य विशेषरूपेण भवति। (जिस समास में जब अन्य पदार्थ की प्रधानता होती है तब वह बहुव्रीहि समास कहा जाता है। अर्थात् जिस समास में न तो पूर्व पदार्थ की प्रधानता होती है न ही उत्तर पदार्थ की प्रधानता है अपितु दोनों पदार्थ मिलकर अन्य पदार्थ का बोध कराते हैं। समस्त पद का प्रयोग अन्य पदार्थ के विशेषण रूप में होता है। यथा-पीतम् अम्बरं. यस्य सः = पीताम्बरः (विष्णुः)
यहाँ ‘पीतम्’ तथा ‘अम्बरम्’ इन दोनों पदों में अर्थ की प्रधानता नहीं है अर्थात् ‘पीलावस्त्र’ इस अर्थ का ग्रहण नहीं होता है, अपितु दोनों पदार्थ मिलकर अन्य पदार्थ का अर्थात् ‘विष्णु’ का बोध कराते हैं। अर्थात् ‘पीताम्बरः’ यह समस्तपदार्थ “विष्णु’ है। इसलिए यहाँ बहुव्रीहि समास है। इसके अन्य उदाहरण निम्नलिखित हैं –
(i) समानाधिकार-बहतीहिः यदा समासस्य पर्वोत्तरपदयोः समानविभक्तिः (प्रथमा विभक्तिः) भवति तदा सः समानाधिकरणबहुव्रीहिः भवति। (जब समास के पूर्व पद और उत्तर पद में समान विभक्ति (प्रथमा विभक्ति) होती है तब वह समानाधिकरण बहुव्रीहि होता है।) यथा –
विग्रहः समस्त पदम्
1. प्राप्तम् उदकं यं सः = प्राप्तोदकः (ग्राम:) [जिसको जल प्राप्त हो गया है ऐसा (गाँव)]
2. हताः शत्रवः येन सः = हतशत्रुः (राजा) [मार दिये हैं शत्रु जिसने, वह (राजा)]
3. दत्तं भोजनं यस्मै सः = दत्तभोजन (भिक्षुकः) दिया गया है भोजन जिसे, वह (भिक्षुक)]
4. पतितं पण यस्मात् सः = पतितपर्णः (वृक्षः) [गिर गये हैं पत्ते जिससे, वह (वृक्ष)]
5. दश आननानि यस्य सः = दशाननः (रावण:) [दस हैं मुख जिसके, वह (रावण)।
6. वीराः पुरुषाः यस्मिन् (ग्राम) सः = वीरपुरुषः (ग्रामः) (वीर पुरुष है जिसमें, वह (गाँव)]
7. चत्वारि मुखानि यस्य सः = चतुर्मुखः (ब्रह्मा) [चार मुख हैं जिसके, वह (ब्रह्मा)]
(ii) व्यधिकरणबहुव्रीहिः – यदा समासस्य पूर्वोत्तरपदयोः भिन्न-विभक्ति भवतः तदा सः व्यधिकरणबहुव्रीहिः भवति। (जब समास के पूर्व पद और उत्तर पद में अलग-अलग विभक्तियाँ होती हैं तब वह व्याधिकरण बहुव्रीहि होता है।) यथा –
(iii) तुल्ययोगे बहुव्रीहिः – अत्र सहशब्दस्य तृतीयान्तपदेन सह समासो भवति।
(यहाँ सह शब्द का तृतीयान्त पद के साथ समास होता है।) यथा –
(iv) उपमानवाचकबहुव्रीहिः – (उपमानवाचक बहुव्रीहि)। यथा –
6. द्वन्द्वसमासः
द्वन्द्वः समासस्य परिभाषा – ‘चार्थे द्वन्द्वः’
द्वन्द्वसमासे परस्परं साकांक्षयोः पदयोः मध्ये ‘च’ आगच्छति, अतएव द्वन्द्वसमासः उभयपदार्थप्रधानः भवति। यथा-धर्मः च अर्थ: च-धर्मायौँ। अत्र पूर्वपदं धर्म: उत्तरपदम् अर्थ: अनयोः द्वयोः अपि प्रधानता अस्ति । द्वन्द्वसमासे समस्तपदं प्रायशः द्विवचने भवति। [द्वन्द्व समास में परस्पर आकांक्षायुक्त दो पदों के मध्य में ‘च’ आता है, इसलिए द्वन्द्व समास उभय पदार्थ प्रधान होता है। जैसे….धर्मः च अर्थ: च = धर्मार्थौ । यहाँ पूर्व पद धर्मः और उत्तर पद अर्थः इन दोनों की ही प्रधानता है। द्वन्द्व समास में समस्त पद प्रायः द्विवचन में होता है।]
समाहार (समूहः) अर्थे द्वन्द्वसमासस्य प्रायेण नपुंसकलिङ्ग एकवचने प्रयोगः भवति। यथा –
पाणी च पादौ च एषां समाहारः – पाणिपादम् (हाथ और पैर का समूह)
शिरश्च ग्रीवा च अनयोः समाहारः – शिरोग्रीवम् (सिर और गर्दन का समूह)
रथिकाश्च अश्वारोहाश्च एषां समाहारः – रथिकाश्वरोहम् (रथकार और घुड़सवार का समूह)
वाक् च त्वक् च अनयोः समाहारः – वाक्त्वचम् (वाणी और त्वचा का समूह)
छत्रं च उपानह च अनयोः समाहारः – छत्रोपानहम् (छतरी और जूतों का समूह)
अन्य उदाहरणानि –
अब समस्त पदों का समास विग्रह भी समझें –
अभ्यास 1
वस्तुनिष्ठ प्रश्नाः
प्रश्न 1.
अव्ययीभाव समासस्य अस्ति-(अव्ययीभाव समास का उदाहरण है-)
(अ) पीताम्बरः
(ब) नीलकमलम्
(स) यथाशक्ति
(द) त्रिलोकी
उत्तरम् :
(स) यथाशक्ति
प्रश्न 2.
बहुव्रीहि समासस्य उदाहरणम् अस्ति-(बहुव्रीहि समास का उदाहरण है-)
(अ) महापुरुषः
(ब) चतुर्युगम्
(स) उपकृष्णम्
(द) प्राप्तोदकः
उत्तरम् :
(द) प्राप्तोदकः
प्रश्न 3.
चन्द्रशेखरः इति पदे समासः अस्ति-(चन्द्रशेखरः इस पद में समास है.)
(अ) बहुव्रीहि
(ब) कर्मधारय
(स) अव्ययीभावः
(द) द्विगुः
उत्तरम् :
(अ) बहुव्रीहि
प्रश्न 4.
कर्मधारय समासस्य उदाहरणम् अस्ति-(कर्मधारय समास का उदाहरण है-)
(अ) पीताम्बरम्
(ब) पीताम्बरः
(स) निक्षिकम्
(द) पञ्चपात्रम्
उत्तरम् :
(अ) पीताम्बरम्
प्रश्न 5.
द्विगु समासस्य उदाहरणम् अस्ति-(द्विगु समास का उदाहरण है-)
(अ) दशाननः
(ब) दशपात्रम्
(स) अनुरथम्
(द) महापुरुषः
उत्तरम् :
(ब) दशपात्रम्
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नाः
निम्नलिखित पदानां समास विग्रहः कर्त्तव्यः (निम्नलिखित पदों का समास-विग्रह करें-)
लघूत्तरात्मक प्रश्नाः
निम्नलिखित पदानां समासविग्रहं कृत्वा समासस्य नामापि लेख्यः
(निम्नलिखित पदों का समास विग्रह करके समास नाम भी लिखो-)
प्रश्न: 1.
निम्नलिखित विग्रह वाक्यानां समासः करणीयः –
(निम्नलिखित विग्रह वाक्यों का समास करें…)
प्रश्न: 2.
‘क’ खण्ड ‘ख’ खण्डेन सह योजयत् – (क खण्ड को ख खण्ड के साथ जोड़िये) –
अभ्यास 2
निम्नलिखितयोः सामासिक पदयोः संस्कृते समासविग्रहं कृत्वा समास्य नाम लिखत –
1. (i) यथाशक्ति (ii) पञ्चपात्रम्।
उत्तरम् :
(i) शक्तिम् अनतिक्रम्यः = अव्ययीभाव समास। (शक्ति के अनुसार)
(ii) पञ्चानां पात्राणां समाहारः = द्विगु समास। (पाँच पात्रों का समूह)।
2. (i) घनश्यामः (ii) निर्धनः।
उत्तरम् :
(i) घन इव श्यामः = कर्मधारय समास। (मेघ के समान श्यामल-कृष्ण)
(ii) निर्गतं धनं यस्मात् = बहुव्रीहि समास। (नष्ट हो गया है धन जिससे)
3. (i) चतुर्युगम् (ii) सहरि।
उत्तरम् :
(i) चतुर्णाम् युगानां समाहारः = द्विगु समास। (चार युगों का समूह)
(ii) हरेः सादृश्यम् = अव्ययीभाव समास। (हरि के सदृश)
4. (i) महामुनिः (ii) शान्तिप्रियः।
उत्तरम् :
(i) महांश्चासौ मुनिः = कर्मधारय समास। (महान् मुनि)
(ii) शान्तिः प्रिया यस्य सः = बहुव्रीहि समास। (शान्ति है प्रिय जिसको)
5. (i) पञ्चवटी (ii) निर्मक्षिकम्।
उत्तरम् :
(i) पञ्चानां वटानां समाहारः = द्विगु समास। (पाँच वटों को समूह)
(ii) मक्षिकाणाम् अभावः = अव्ययीभाव समास। (मक्खियों से रहित)
6. (i) शताब्दी (ii) प्रत्येकम्।
उत्तरम् :
(i) शतानाम् अब्दानां समाहारः = द्विगु समास। (सौ वर्षों का समूह)
(ii) एकम् एकं प्रति = अव्ययीभाव समास। (हर एक)
7. (i) महर्षिः (ii) निर्लज्जः
उत्तरम् :
(i) महांश्च असौ ऋषिः = कर्मधारय समास। (महान् ऋषि)
(ii) निर्गता लज्जा यस्मात् सः = बहुव्रीहि समास। (निकल गई है लज्जा जिससे)
8. (i) द्वियमुनम् (ii) प्रतिदिनम्।
उत्तरम् :
(i) द्वयोः यमुनयोः समाहारः = द्विगु समास। (दो यमुनाओं का समूह)
(ii) दिनं दिन प्रति = अव्ययीभाव समास। (हर दिन)
9. (i) मुखचन्द्रः (ii) यशोधनः।
उत्तरम् :
(i) चन्द्रः इव मुखम् = कर्मधारय समास। (चन्द्रमा के समान मुख)
(ii) यशः एव धनं यस्य सः = बहुव्रीहि समास। (यश ही है धन जिसका)
10. (i) भूतबलि (ii) रघुकुलजन्मा।
उत्तरम् :
(i) भूतेभ्यः बलि = चतुर्थी तत्पुरुषः समास। (भूतों के लिए बलि)
(ii) रघुकुले जन्म यस्य सः = बहुव्रीहिः समास। (रघुकुल में हुआ है जन्म जिसका वह रामचन्द्र)
अभ्यास 3
निम्नलिखित समस्तपदानि कृत्वा समासनामोल्लेखं क्रियताम् –
1. (i) विविधाः प्रयोगाः (विविध प्रयोग।)
(ii) मनुष्येषु देवः यः सः (मनुष्यों में देव है, जो वह (राजा)।
उत्तर :
(i) विविध प्रयोगाः, कर्मधारय समास
(ii) मनुष्य देवः, बहुव्रीहि समास।।
2. (i) महान् च असौ राष्ट्रः (महान् राष्ट्र।)
(ii) ऊढ़ः रथः येन सः (वहन किया है रथ जिसने, वह (घोड़ा))।
उत्तर :
(i) महाराष्ट्रः, कर्मधारय समास
(ii) ऊढरथः, बहुव्रीहि समास।
3. (i) त्रयाणां लोकानां समाहारः (तीन लोकों का समूह।)
(ii) कामम् अनतिक्रम्य इति (जितनी इच्छा हो उतना।)
उत्तर :
(i) त्रिलोक, द्विगु समास
(ii) यथाकामम्, अव्ययीभाव समास।
4. (i) अष्टानाम् अध्यायानां समाहारः (आठ अध्यायों का समूह।)
(ii) रूपस्य योग्यम् (रूप के योग्य।)
उत्तर :
(i) अष्टाध्यायी, द्विगु समास
(ii) अनुरूपम्, अव्ययीभाव समास।
5. (i) दश आननानि यस्य सः (रावण:) (दस हैं मुख जिसके, वह (रावण))।
(ii) महान् अर्णवः (महान् समुद्र।)
उत्तर :
(i) दशाननः, बहुव्रीहि समास
(ii) महार्णवः, कर्मधारय समास।
6. (i) पञ्चानां गवां समाहारः (पाँच गायों या बैलों का समूह)।
(ii) जनानाम् अभावः (सुनसान ।)
उत्तर :
(i) पञ्चगवम्, द्विगु समास
(ii) निर्जनम्, अव्ययीभाव समास।
7. (i) पुरुषः व्याघ्रः इव (शूरः) (पुरुष व्याघ्र के समान बहादुर।)
(ii) चन्द्रः इव मुखं यस्य सः (चन्द्रमा के समान है मुख जिसका।)
उत्तर :
(i) पुरुषव्याघ्रः, कर्मधारय समास
(ii) चन्द्रमुखः, बहुव्रीहि समास।
8. (i) पञ्चानां गंगानां समाहारः (पाँच गंगाओं का समूह।)
(ii) गुरोः समीपम् (गुरु के समीप।)
उत्तर :
(i) पञ्चगंगम्, द्विगु समास
(ii) उपगुरु, अव्ययीभाव समास।
9. (i) चतुरः चौरः (चतुर चोर।)
(ii) दीघौं बाहु यस्य सः (दीर्घ हैं बाहु जिसकी।)
उत्तर :
(i) चतुर चौरः, कर्मधारय समास
(ii) दीर्घबाहुः, बहुव्रीहि समास।
10. (i) क्षणं क्षणं प्रति (प्रत्येक क्षण।)
(ii) त्रयाणां भुवनानां समाहारः (तीन भवनों का समूह।)
उत्तर :
(i) प्रतिक्षणम्, अव्ययीभाव समास
(ii) त्रिभुवनम्, द्विगु समास।