JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

JAC Class 10 Hindi छाया मत छूना Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है?
उत्तर :
मनुष्य का जीवन कल्पनाओं के आधार पर नहीं टिकता। वह जीवन के कठोर धरातल पर स्थित होकर आगे गति करता है। पुरानी सुख भरी यादों से वर्तमान दुखी हो जाता है; मन में पलायनवाद के भाव उत्पन्न हो जाते हैं। उसे कठिन यथार्थ से आमना-सामना करके ही आगे बढ़ने की चेष्टा करनी चाहिए। इसलिए कवि ने जीवन की कठोर वास्तविकता को स्वीकार करने की बात कही है।

प्रश्न 2.
भाव स्पष्ट कीजिए –
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
उत्तर :
कवि ने माना है कि हर मनुष्य अपने जीवन में धन-दौलत और सुखों की प्राप्ति करना चाहता है, पर सबके लिए ऐसा हो पाना संभव नहीं होता। वह उसके लिए मृगतृष्णा के समान ही सिद्ध होकर रह जाता है। उसे केवल सुखों के प्राप्त हो जाने का झूठा आभास होता है। वह उसे प्राप्त नहीं कर पाता। इस कारण उसका हृदय पीड़ा से भर जाता है। हर चाँदनी रात के पीछे जिस तरह अमावस्या की अंधेरी रात छिपी रहती है, उसी प्रकार हर सुख के बाद दुख का भाव भी निश्चित रूप से छिपा रहता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

प्रश्न 3.
‘छाया’ शब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है ? कवि ने उसे छूने के लिए मना क्यों किया है ?
उत्तर :
‘छाया’ शब्द में लाक्षणिकता विद्यमान है, जो भ्रम और दुविधा की स्थिति को प्रकट करता है। यह सुखों के भावों को प्रकट करता है, जो मनुष्य के जीवन में सदा नहीं रहते। सुख-दुख मानव-जीवन के अंग हैं। जब दुख का भाव जीवन में आता है, तब मनुष्य बार-बार उन सुखों को याद करता है जिन्हें उसने कभी प्राप्त किया था। दुख की घड़ियों में सुखद समय की स्मृतियों में डूबने से उसके दुख दोगुने हो जाते हैं। इसलिए कवि ने उसे छूने के लिए मना किया है।

प्रश्न 4.
कविता में विशेषण के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में विशेष प्रभाव पड़ता है, जैसे कठिन यथार्थ। कविता में आए ऐसे अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी लिखिए कि इससे शब्दों के अर्थ में क्या विशिष्टता पैदा हुई?
उत्तर :
कवि ने छायावादी काव्यधारा से प्रभावित होकर अपनी कविता में विशेषणों का विशेष प्रयोग किया है, जैसे
(i) सुरंग सुधियाँ – यादों की विविधता और मोहक सुंदरता की विशिष्टता।
(ii) छवियों की चित्र-गंध – सुंदर रूपों में मादक गंध की विशिष्टता।
(iii) तन-सुगंध – सुगंध के साकार रूप की विशिष्टता।
(iv) जीवित-क्षण – समय की सकारात्मकता की विशिष्टता।
(v) शरण-बिंब – जीवन में आधार बनने की विशिष्टता।
(vi) यथार्थ कठिन – जीवन की कठोर वास्तविकता की विशिष्टता।
(vii) दुविधा-हत साहस – साहस होते हुए भी दुविधाग्रस्त रहने की विशिष्टता।
(viii) शरद्-रात – रात में शरद् ऋतु की ठंडक की विशिष्टता।
(ix) रस-बसंत – बसंत ऋतु में मधुर रस के अहसास की विशिष्टता।

प्रश्न 5.
‘मृगतृष्णा’ किसे कहते हैं ? कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है?
अथवा
प्रभुता की कामना को मृगतृष्णा क्यों कहा गया है? ‘छाया मत छूना’ कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
‘मृगतृष्णा’ का शाब्दिक अर्थ है-‘धोखा’ या ‘भ्रम’। जो न होकर भी होने को प्रकट करता है, वही मृगतृष्णा है। कवि ने कविता में सुख-संपदाओं की प्राप्ति से होने वाले मानसिक सुख के लिए ‘मृगतृष्णा’ शब्द का प्रयोग किया है। किसी व्यक्ति के पास चाहे अपार भौतिक सुख हो, पर उनसे मानसिक सुख और शांति की प्राप्ति होना संभव नहीं होता; भले ही उसकी संपन्नता को देखकर लोग उसे सुखी मानते रहे।

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प्रश्न 6.
‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ – यह भाव कविता की किस पंक्ति से झलकता है?
उत्तर :
कवि ने ‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ के लिए अपनी कविता में जिस पंक्ति का प्रयोग किया है, वह है
‘जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण’

प्रश्न 7.
कविता में व्यक्त दुख के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
हर व्यक्ति का जीवन सुख और दुखों के मेल से बना है। सुख के बाद दुख आते हैं, तो दुखों के बाद सुख। हमें सुख आनंद का अहसास करवाते हैं, तो दुख पीड़ा देते हैं। हम पीड़ा से मुक्ति पाने की चेष्टा करते हैं और सुख की घड़ियों को बार-बार याद करने लगते हैं, जिससे पीड़ा कम होने की अपेक्षा बढ़ जाती है; वह दोगुनी हो जाती है। हम धन-दौलत प्राप्त कर अपना जीवन सुखमय बनाने की कोशिश करते हैं, पर धन की प्राप्ति से सभी सुख प्राप्त नहीं होते। सुख का आधार मन की शांति है। हमें मन की शांति के लिए : प्रयत्नशील होना चाहिए। जो बातें बीत चुकी हों, उन्हें भुला देना चाहिए और सुखद भविष्य के लिए प्रयासरत हो जाना चाहिए। दुख के कारण पुरानी सुखद बातों को मन-ही-मन दोहराते नहीं रहना चाहिए।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 8.
‘जीवन में है सुरंग सुधियाँ सुहावनी’ से कवि का अभिप्राय जीवन की मधुर स्मृतियों से है। आपने अपने जीवन की कौन-कौन सी स्मृतियाँ सँजो रखी हैं?
उत्तर :
प्रत्येक व्यक्ति के मन में अनेक मधुर स्मृतियाँ छिपी रहती हैं, जो समय-समय पर प्रकट होती हैं। जब वे याद आती हैं, तब अनायास ही होंठों पर मुस्कान बिखर जाती है। जब मैं छोटा था, तब मेरी बुआ जी मेरे जन्मदिन पर एक साथ दस उपहार लेकर आई थीं। मैंने हैरान होकर उनसे पूछा था कि वे एक साथ इतने उपहार क्यों ले आई हैं? उन्होंने मुस्कराकर कहा था कि वे पिछले दस वर्ष से विदेश में थीं और मेरे जन्मदिन पर वे मुझे उपहार नहीं दे पाई थीं। इसलिए पिछले दस वर्षों के दस उपहार मुझे एक साथ दे रही हैं।

उपहार भी एक से बढ़कर एक थे। मैं खुशी से झूम उठा। आज भी मुझे वह घटना ऐसी लगती है, जैसे उसे घटित हुए कुछ ही देर हुई हो। मैं इस घटना को कभी नहीं भूल सकता। एक बार मैं पैदल स्कूल जा रहा था। एक नन्हा-सा पिल्ला मेरे पीछे-पीछे चलने लगा। मुझे उसका अपने पीछे आना अच्छा लगा। जब मैं स्कूल पहुँच गया, तो स्कूल के चौकीदार ने उसे भगा दिया।

छुट्टी के बाद जैसे ही मैं बाहर निकला, वैसे ही न जाने कहाँ से वह भागता हुआ आया और फिर मेरे पीछे-पीछे मेरे घर तक आया। यह क्रम अगले दिन भी चला। इसके बाद महीना भर मेरा और उसका स्कूल जाना-आना एक साथ हुआ। इसके बाद मुझे नहीं पता कि अचानक वह पिल्ला कहाँ चला गया। मैंने उसे ढूँढ़ने की कोशिश की, पर फिर वह मुझे कहीं दिखाई नहीं दिया। इस घटना को अनेक वर्ष बीत चुके हैं, पर मुझे उसकी मधुर स्मृति कभी नहीं भूलती।

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प्रश्न 9.
“क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?’ कवि का मानना है कि समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद देती है। क्या आप ऐसा मानते हैं ? तर्क सहित लिखिए।
उत्तर
समय का विशेष महत्व है। इसके बीत जाने पर हमें प्रायः दुख ही उठाना पड़ता है। समय कभी किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। यह लगातार आगे भागता जाता है। यदि हम इसके एक-एक क्षण को व्यर्थ गँवा देते हैं, तो हमारा कल्याण संभव नहीं हो सकता। कहा भी तो जाता है –

‘अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत’

प्राय: माना जाता है कि धन सबसे कीमती वस्तु है, पर यदि ध्यान से सोचा जाए तो समय धन से भी अधिक उपयोगी और मूल्यवान है। धन से हर वस्तु खरीदी जा सकती है, पर समय नहीं खरीदा जा सकता। यह घड़ी की टिक-टिक के साथ भागता जाता है। यदि किसी बीमार व्यक्ति को समय पर उपचार न मिले, तो उसका जीवन नहीं बचाया जा सकता। यदि समय पर विद्यार्थी पढ़ाई न करें, तो वे परीक्षा में पास नहीं हो सकते। यदि किसान समय पर अपने खेत की सिंचाई न करे, तो उसे उपज प्राप्त नहीं हो सकती।

रेलगाड़ी, बस, वायुयान आदि किसी के लिए प्रतीक्षा नहीं करते। समय चूक जाने पर वे अपने गंतव्य की ओर चले जाते हैं। यदि किसी उपलब्धि की हमें समय के बाद प्राप्ति हो भी जाती है, तो उसका कोई उपयोग नहीं रहता। फ़सल के सूख जाने के बाद वर्षा हो भी जाए तो उसका क्या लाभ? हमें चाहिए कि हम हर कार्य उचित समय पर ही करें, ताकि इससे समय की उपलब्धि की उपादेयता बनी रहे।

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
आप गर्मी की चिलचिलाती धूप में कभी सफ़र करें तो दूर सड़क पर आपको पानी जैसा दिखाई देगा पर पास पहुँचने पर वहाँ कुछ नहीं होता। अपने जीवन में भी कभी-कभी हम सोचते कुछ हैं, दिखता कुछ है लेकिन वास्तविकता कुछ और होती है। आपके जीवन में घटे ऐसे किसी अनुभव को अपने प्रिय मित्र को पत्र लिखकर अभिव्यक्त कीजिए।
उत्तर :
48, दुग्गल कॉलोनी,
कानपुर
15 सितंबर, 20……
प्रिय अंकुश,
मुझे तुम्हारा पत्र बहुत पहले प्राप्त हो गया था, पर मैं समय पर उसका उत्तर नहीं दे पाया। मुझे इस बात का खेद है। वास्तव में पिछले दिनों मेरे साथ कुछ ऐसा घटित हुआ, जिसकी मुझे कभी उम्मीद नहीं थी।

तुम्हें याद होगा कि मैंने अपने एक मित्र से तुम्हारा परिचय करवाया था, जब तुम पिछली छुट्टियों में घर आए थे। उसका नाम कपिल था। वह मेरी ही कक्षा में पढ़ता था और प्रायः मेरे घर आया करता था। वह होस्टल में रहता था। उसके माता-पिता किसी दूर के गाँव मम्मी-पापा उसे अपने बेटे के समान ही प्यार करते थे। यदि मेरे लिए वे बाजार से कुछ लाते थे, तो उसके लिए लाना नहीं भूलते थे।

कहते थे कि कितना होनहार बच्चा है! होशियार है, मीठा बोलता है, भोला-भाला है। पिछले सप्ताह उसने अपने गाँव के कुछ लोगों के साथ मिलकर हमारे घर में चोरी कर ली। हमारा लगभग पाँच लाख रुपये का नुकसान हो गया है। उसे हमारे घर की एक-एक चीज़ पता थी। लगभग हर रोज़ वह हमारे घर आता था। अगले महीने रीमा दीदी की शादी है, इसलिए घर में उसके दहेज का नया सामान था; नकदी थी।

वह सब चोरी चला गया। हमें तो विश्वास ही नहीं हुआ, जब पुलिस ने उसे उसके गाँव से पकड़कर हमारे सामने खड़ा कर दिया। उसने अपना अपराध कबूल कर लिया है, पर न तो उसके साथी पुलिस की पकड़ में आए हैं और न ही हमारा सामान बरामद हुआ। शायद हमारा सामान हमें वापस मिल जाए। उसकी शक्ल कितनी भोली थी, पर वह मन का कितना काला निकला! सच है कि हम लोगों के बारे में सोचते कुछ हैं, वे निकलते कुछ हैं। अच्छा, बाकी बातें अगली बार।
अंकल-आंटी को मेरी ओर से नमस्ते कहना।
तुम्हारा मित्र
अनुज

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प्रश्न 2.
कवि गिरिजाकुमार माथुर की ‘पंद्रह अगस्त’ कविता खोजकर पढ़िए और उस पर चर्चा कीजिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।

यह भी जानें –

प्रसिद्ध गीत ‘We shall overcome’ का हिंदी अनुवाद ‘हम होंगे कामयाब’ शीर्षक से कवि गिरिजाकुमार माथुर ने किया है।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण संबंधी एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली सनभावनी;
तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण

शब्दार्थ : छाया – भ्रम, दुविधा, पुरानी सुखद बातें। दूना – दोगुना। सुरंग – रंग-बिरंगी। सुधियाँ – यादें। सुहावनी – सुंदर। छवियों की चित्रगंध – चित्र की स्मृति के साथ उसके आस-पास की गंध का अनुभव। मनभावनी – मन को अच्छी लगने वाली। तन-सुगंध – शरीर की सुगंध। शेष – बाकी, पीछे। यामिनी – तारों भरी चाँदनी रात। कुंतल – लंबे बाल। छुअन – स्पर्श।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य–पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित कविता छाया मत छूना से लिया गया है, जिसके रचयिता गिरिजाकुमार माथुर हैं। कवि ने पुरानी सुखद बातों को बार-बार याद करने को उचित नहीं माना, क्योंकि ऐसा करने से जीवन में आए दुख दोगुने हो जाते हैं।

व्याख्या : कवि कहता है कि हे मेरे मन! तू पुरानी सुख भरी यादों को बार-बार अपने मन में मत ला; उन्हें याद मत कर। ऐसा करने से मन में छिपा दुख बढ़कर दोगुना हो जाएगा। हम मनुष्यों के जीवन में न जाने कितनी सुख भरी यादें होती हैं। वे सुखद रंग-बिरंगी छवियों की झलक और उनके आस-पास मधुर यादों की गंध सदा मन को मोहती हैं। वे सदा अच्छी लगती हैं।

जब सुखद समय बीत जाता है, तब केवल शरीर की मादक-मोहक सुगंध ही यादों में शेष रह जाती है। जब तारों से भरी सुखद चाँदनी रात बीत जाती है, तब यादें शेष रह जाती हैं। लंबे सुंदर बालों में लगे फूलों की याद ही चाँदनी के समान मन में छाई रहती हैं। सुख भरे समय में भूल से किया गया एक स्पर्श भी जीवित क्षण के समान सुंदर और मादक प्रतीत होता है। उसे भुलाने की बात मन में कभी नहीं आती। वही सुखद पल जीवन के लिए सुखदायी बनकर मन में छिपा रहता है।

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अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. अवतरण में निहित भावार्थ को स्पष्ट कीजिए।
2. ‘छाया मत छूना’ का तात्पर्य स्पष्ट कीजिए।
3. जीवन में किसकी पोहक यादें फैली थी?
4. ‘चित्र-गंध’ क्या है?
5. यामिनी बीतने का क्या अर्थ है ?
6. ‘कुंतल के फूल’ क्या हैं ?
7. ‘चाँदनी’ किसकी प्रतीक है?
8. ‘हर जीवित क्षण’ क्या है?
9. ‘शेष रही’ में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने सुख और दुख को जीवन का आवश्यक हिस्सा माना है। मनुष्य को जीवन में दुख आने की स्थिति में सुखों को याद नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे दुख कम नहीं होते बल्कि दोगुने हो जाते हैं।
2. ‘छाया मत छूना’ से तात्पर्य पुरानी सुखद बातों को याद न करने से है।
3. जीवन में सुखों की मोहक यादें फैली थीं।
4. मधुर यादों के साथ उसके आस-पास फैली गंध का अनुभव।
5. सुख के क्षणों का व्यतीत हो जाना।
6. ‘कुंतल के फूल’ प्रतीकात्मक शब्द हैं; जो सुखद घड़ियों को प्रकट करते हैं।
7. ‘चाँदनी’ प्रेम भरे क्षणों को व्यक्त करने वाला प्रतीकात्मक शब्द है। यह सुख की घड़ियों को प्रकट करता है।
8. ‘हर जीवित क्षण’ सख का अहसास करवाने वाला मधुर पल है।
9. प्रेमरूपी सुगंध का बना रहना ही ‘शेष रही’ को प्रकट करता है।

बोर्ड परीक्षा में पूछे गए प्रश्नोत्तर –

(क) ‘छाया मत छूना’-कवि ने ऐसा क्यों कहा?
(ख) ‘छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी’ का क्या तात्पर्य है?
(ग) ‘कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी’ में कवि को कौन सी यादें कचोटती हैं?
उत्तर :
(क) ‘छाया मत छूना’ से कवि का तात्पर्य पुरानी सुखद यादों और बातों को याद न करने से है।
(ख) जीवन में सुखों की मोहक यादें फैली थी, जिसकी मधुर यादों के साथ उसके आस-पास फैली गंध अत्यंत मनभावनी लगती है।
(ग) ‘कुंतल के फूल’ प्रतीकात्मक शब्द है; जो सुखद घड़ियों को प्रकट करता है। यहाँ कवि को सुख का अहसास करवाने वाले मधुर पलों की यादें कचौटती हैं।

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सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. भाव स्पष्ट कीजिए।
2. कवि के भावों को गहनता-गंभीरता किसने प्रदान की है?
3. किस बोली का प्रयोग किया गया है?
4. किस प्रकार की शब्दावली की अधिकता है?
5. किस बिंब का प्रयोग है?
6. कौन-सा काव्य-रस विदयमान है?
7. किस छंद ने लयात्मकता की सृष्टि की है?
8. किस काव्य-गुण का प्रयोग हुआ है ?
9. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग है?
10. दो तत्सम शब्द लिखिए।
11. दो तद्भव शब्द लिखिए।
12. यह कविता किस काव्य-धारा से संबंधित है?
13. प्रयुक्त अलंकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने सुख की घड़ियों में मन पर पड़ने वाले आनंद के भावों का प्रभाव प्रस्तुत किया है। उसका मानना है कि सुख के भावों को दुख की घड़ियों में याद करने से दुख बढ़ता है; घटता नहीं है।
2. प्रतीकात्मकता के प्रयोग ने कवि के भावों को गहनता-गंभीरता प्रदान की है।
3. खड़ी बोली का प्रयोग है।
4. तत्सम शब्दावली का अधिक प्रयोग किया गया है।
5. मानस बिंब का प्रयोग है।
6. वियोग श्रृंगार रस है।
7. तुकांत छंद ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
8. प्रसाद गुण विद्यमान है।
9. लक्षणा शब्द-शक्ति है।
10. कुंतल, चित्रगंध।
11. फूल, मन।
12. छायावाद
13. अनुप्रास –
दुख दूना, सुरंग सुधियां सुहावनी

उपमा –
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण।

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2. छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन-
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।

शब्दार्थ : वैभव – संपदा, धन-दौलत, संपत्ति। सरमाया – पूँजी। प्रभुता का शरणे बिंब – बड़प्पन का अहसास। भरमाया – भ्रम में पड़ना। मृगतृष्णा – भ्रम, धोखा। चंद्रिका – चाँदनी। कृष्णा – काली, अमावस्या। यथार्थ – वास्तविक। कठिन – मुश्किल। पूजन – पूजा।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित कविता ‘छाया मत छूना’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता श्री गिरिजाकुमार माथुर हैं। कवि का मानना है कि जीवन में दुख और सुख तो आते रहते हैं, पर दुख की घड़ियों में सुखों को याद नहीं करना चाहिए।

व्याख्या : कवि कहता है कि हे मेरे मन! जीवन में आने वाले दुखों के समय छायारूपी सुख को मत छूना, क्योंकि इससे दुख कम नहीं होता बल्कि वह दोगुना बढ़ जाता है। मेरे जीवन में न तो शान-शौकत है और न ही धन-दौलत; न तो मान-सम्मान है और न ही किसी प्रकार की पूँजी। श्रेष्ठता और प्रभुता की प्राप्ति की इच्छा केवल धोखे के पीछे भागना है। जो नहीं है, उसे प्राप्त करने की इच्छा है। हर सुख के पीछे दुख छिपा होता है। ठीक उसी प्रकार जैसे चाँदनी रात के पीछे अमावस्या की अंधेरी रात छिपी रहती है। हे मेरे मन! जो अति कठिन सच्चाई है; वास्तविकता है, तू उसकी पूजा कर। उसे प्राप्त करने का प्रयत्न कर।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. अवतरण में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
2. दुख क्यों दोगुना लगने लगता है?
3. कवि ने किन अभावों को प्रकट किया है?
4. ‘भरमाया’ में निहित अर्थ स्पष्ट कीजिए।
5. ‘मृगतृष्णा’ क्या है?
6. ‘चंद्रिका’ में छिपा प्रतीकार्थ स्पष्ट कीजिए।
7. ‘कृष्णा’ शब्द से कवि किसकी ओर संकेत करता है?
8. ‘यथार्थ कठिन’ क्या है?
9. ‘पूजन’ में निहित अर्थ को प्रकट कीजिए।
10. छाया से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
1. कवि ने कहा है कि दुख की घड़ियों में बीते समय के सुखों को याद करने से दुख कम नहीं होते बल्कि बढ़ जाते हैं। हर व्यक्ति सुख पाना चाहता है; धन-दौलत प्राप्त करना चाहता है। पर जितना हम सुखों के पीछे भागते हैं, वे उतने ही मृगतृष्णा सिद्ध होते हैं। हमें उनकी प्राप्ति सरलता से नहीं होती। हर सुख के पीछे दुख दो अवश्य छिपा रहता है। हमें जीवन की कठोर सच्चाइयों को ही मन में रखना चाहिए।
2. जब जीवन में दुख की घड़ियाँ आने पर हम पिछले सुखों के बारे में सोचने लगते हैं, तब दुख दोगुना लगने लगता है।
3. कवि ने मान-सम्मान, धन-दौलत और सुखों की पूँजी के अभाव को प्रकट किया है।
4. ‘भरमाया’ का अर्थ है-‘भ्रम में पड़ना’। सुखों को प्राप्त करने के लिए हम जितनी अधिक भाग-दौड़ करते हैं, ये उतना ही अधिक हमें भ्रम में डालते जाते हैं। इससे हमारी परेशानियाँ बढ़ती हैं।
5. ‘मृगतृष्णा’ का अर्थ है-‘भ्रम’ या ‘धोखा’। जो न होकर भी होने का आभास करवाता है, वही मृगतृष्णा है। जीवन में प्रभुता को पाने की इच्छा के लिए कवि ने इस शब्द का प्रयोग किया है।
6. ‘चंद्रिका’ का शाब्दिक अर्थ चाँदनी है, पर कवि ने इसे सुखों के रूप में प्रयुक्त किया है। हर व्यक्ति अपने जीवन में सुखरूपी चाँदनी को प्राप्त करना चाहता है।
7. ‘कृष्णा’ शब्द से कवि ने दुखरूपी अमावस्या का बोध करवाया है। कवि कहता है कि हर व्यक्ति के जीवन में दुखों का आना-जाना लगा रहता है।
8. ‘यथार्थ कठिन’ जीवन की वह सच्चाई है, जिसे हर व्यक्ति को झेलनी पडती है। कठोर परिश्रम करना और जीवन को सखी बनाने की चेष्टा इससे ही संबंधित है।
9. ‘पूजन’ प्रतीक शब्द है, जो कठोर परिश्रम में स्वयं को लगा देने के लिए प्रयुक्त किया है। यह निष्ठा और लगन का भी प्रतीक है। इसके पीछे आस्था का भाव छिपा हुआ है।
10. छाया से तात्पर्य पुरानी सुखद यादों को स्मरण करना है।

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सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. भाव व्यक्त कीजिए।
2. किस बोली से भावों को अभिव्यक्त किया गया है?
3. किस प्रकार की शब्द-योजना की प्रधानता है?
4. भावों की गहनता का आधार क्या है?
5. किसने कथन को गंभीरता प्रदान की है?
6. किस छंद ने लयात्मकता की सृष्टि की है?
7. कौन-सा काव्य-गुण विद्यमान है?
8. दो तत्सम और दो तद्भव शब्द चुनकर लिखिए।
9. इसमें कौन-सी शैली प्रयुक्त की गई है?
10. अलंकारों का उल्लेख कीजिए।
11. प्रतीक छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
1. कवि ने स्वीकार किया है कि जीवन में सुख-दुख आते रहते हैं। किसी के भी जीवन में केवल सुख नहीं रहते, बल्कि हर सुख के पीछे दुख निश्चित रूप से लगा रहता है।
2. खड़ी बोली।
3. तत्सम शब्दावली का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया गया है।
4. प्रतीकात्मकता।
5. लाक्षणिकता का प्रयोग किया गया है, जिससे कथन में गंभीरता उत्पन्न हुई है।
6. तुकांत छंद ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
7. प्रसाद गुण विद्यमान है।
8. तत्सम –
प्रभुता, मृगतृष्णा

तद्भव –
छाया, दुख

9. छायावादी।

10. अनुप्रास –
होगा दुख दूना
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन

11. (i) रात कृष्णा –
दुख-दीनता

(ii) छाया –
पुरानी यादें और भविष्य की कामनाएँ

(ii) चंद्रिका –
सुख-वैभव

(iv) मृगतृष्णा –
धोखा/मन का भटकाव

(v) दौड़ना –
सांसारिक तृष्णाएँ

(vi) कृष्णा –
निराशा/पीड़ा

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3. छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत महीं।
दुख है न चांद खिला शरद-गा आने पर,
क्या हुआ जो खिल पूल रस-बसंत्त जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू भखिष्य वरण,
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।

शब्दार्थ : दुविधा-हत साहस – साहस होते हुए भी दुविधा-ग्रस्त रहना। पंथ – रास्ता। शरद-रात – सर्दियों की रात। भविष्य वरण – आने वाले समय के सुखों का चुनाव।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित कविता ‘छाया मत छूना’ से ली गई हैं, जिसके रचयिता श्री गिरिजाकुमार, माथुर हैं। कवि ने प्रेरणा दी है कि पुराने सुखों की याद में हर पल डूबे रहना उचित नहीं है। इससे जीवन में दुखों की छाया बढ़ती है। परिश्रम करते हुए भविष्य को सँवारने की चेष्टा करना ही सदा अच्छा होता है।

व्याख्या : कवि कहता है कि हे मेरे मन ! दुख और निराशा की घड़ियों में बीते हुए सुखों को याद मत कर। ऐसा करने से वर्तमान के दुख बढ़ जाते हैं। हम अपने जीवन में अकारण ही निराशा के भावों से भरे रहते हैं। साहस होते हुए भी दुविधा से ग्रस्त रहते हैं। हमें अपने जीवन की राह दिखाई नहीं देती। भौतिक धन-दौलत से हम शारीरिक सुख-उपभोग तो प्राप्त कर लेते हैं, पर हमारे मन में व्याप्त दुखों का अंत नहीं होता। हमारे मन में दुख के भाव इतने अधिक हैं कि सुखों के आने का पता ही नहीं चलता।

शरद् ऋतु के साफ़-स्वच्छ आकाश में रात के समय चाँदरूपी सुख की चाँदनी दिखाई ही नहीं देती। मन की निराशा उसे प्रकट नहीं होने देती। बसंत ऋतु बीत जाने पर यदि फूल खिला भी, तो उसका क्या लाभ। भाव है कि किसी सुख के बीत जाने पर यदि उसका आभास हुआ भी, तो उसका कोई लाभ नहीं है। हे मन! तुम्हें जो जीवन में अभी तक नहीं मिला उसे भविष्य में प्राप्त कर; परिश्रम कर और सुख-दुख से दूर होकर मनचाहा प्राप्त कर। तू दुख की घड़ियों में सुख के क्षणों को याद मत कर।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. अवतरण में निहित भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
2. ‘दुविधा हत साहस’ क्या है?
3. ‘पंथ’ में निहित अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
4. सुख-सुविधाएँ प्राप्त होने पर भी हमें किसके अंत का पता नहीं होता?
5. ‘न चाँद खिला’ से क्या तात्पर्य है?
6. ‘क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
7. ‘भविष्य वरण’ का क्या अर्थ है ?
8. देह का सुख किससे प्राप्त करने की ओर संकेत किया गया है?
9. ‘फूल का खिलना’ किस बात का बोध कराता है ?
उत्तर :
1. कवि ने स्पष्ट किया है कि जब मन में उत्साह की कमी हो; वह दुख और पीड़ा के भावों से भरा हुआ हो, तब उसे अपने जीवन की राह साफ़-साफ़ दिखाई नहीं देती। मन के कष्टों को भुलाकर मनुष्य को भविष्य के सुखों की ओर बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।
2. ‘दुविधा हत साहस’ से तात्पर्य है-‘साहस होते हुए भी दुविधाग्रस्त रहना’।
3. ‘पंथ’ से तात्पर्य हमारे जीवन के उन उद्देश्यों से है, जिन्हें दुविधाग्रस्त होने के कारण हम प्राप्त कर सकने में सक्षम नहीं हो पाते।
4. सुख-सुविधाएँ प्राप्त होने पर भी हमें मन में व्याप्त दुखों के अंत का पता नहीं होता।
5. ‘न चाँद खिला’ प्रतीकात्मक प्रयोग है, जिसका तात्पर्य सुखों के प्राप्त न होने से है; जिस कारण मन में सुख का भाव उत्पन्न नहीं होता।
6. ‘क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर’ से कवि का तात्पर्य है कि उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि फूल कब खिला। फिर भले ही रंग-बसंत’ अर्थात समय बीत गया हो।
7. ‘भविष्य वरण’ का अर्थ आने वाले समय की ओर बढ़कर नए उद्देश्यों और लक्ष्यों की प्राप्ति करना है; उनका चुनाव करना है।
8. देह का सुख मन के सुख से प्राप्त करने की ओर संकेत किया गया है। धन-वैभव से देह के लिए बाहरी सुख बटोरे जा सकते हैं, पर वास्तविक सुख तभी प्राप्त होते हैं जब मन पूर्ण रूप से संतुष्ट हो; उसमें सुख का भाव छिपा हो।
9. ‘फूल का खिलना’ सुखों की प्राप्ति को प्रकट करता है। इससे जीवन में प्राप्त होने वाले आनंद का बोध होता है।

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सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. भाव स्पष्ट कीजिए।
2. भावों की गंभीरता का आधार क्या है?
3. कवि ने अपने कथन को गहनता किस प्रकार दी है?
4. किस बोली का प्रयोग है?
5. किस प्रकार की शब्दावली का प्रयोग अधिकता से किया गया है?
6. किस काव्य गुण का प्रयोग है?
7. कौन-सा छंद लयात्मकता का आधार बना है?
8. प्रश्न-शैली ने कथन को क्या प्रदान किया है?
9. दो तत्सम और दो तद्भव शब्द लिखिए।
10. प्रतीक छाँटकर लिखिए।
11. हिंदी की किस काव्यधारा से संबंधित है?
12. प्रयुक्त अलंकार चुनकर लिखिए।
उत्तर :
1. कवि ने सुख भरे भविष्य के लिए परिश्रम करने की प्रेरणा दी है तथा दुख की घड़ियों में सुखद पलों को याद न करने का परामर्श दिया है।
2. प्रतीकात्मकता।
3. लाक्षणिकता का प्रयोग भावों में गहनता का आधार बना है।
4. खड़ी बोली का प्रयोग है।
5. तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है।
6. प्रसाद गुण विद्यमान है।
7. तुकांत छंद ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
8. प्रश्न-शैली ने भावों को सामर्थ्य प्रदान किया है।
9. तत्सम –
दुविधा, वरण

तद्भव –
मन, फूल

10. चाँद, शरद-रात, फूल, बसंत, छाया।
11. छायावाद
12. अनुप्रास –
दुख दूना, खिला फूल, मिला धूल।

प्रश्न –
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?

JAC Class 10 Hindi छाया मत छूना Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘छाया मत छूना’ कविता के आधार पर गिरिजाकुमार माथुर की मानसिक सबलता पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
गिरिजाकुमार माथुर छायावादी काव्यधारा से प्रभावित थे और उनकी कविता में प्रेम-सौंदर्य और कल्पना की अधिकता है, पर कवि ने ‘छाया मत छूना’ कविता में कल्पना की उड़ान से बहुत दूर होकर अपनी मानसिक सबलता का परिचय दिया है। उनके अनुसार कोरी कल्पनाएँ जीवन में किसी काम की नहीं होती। इनसे सुखों की अनुभूति होती है, लेकिन जीवन का वास्तविक सुख प्राप्त नहीं होता।

जीवन में सुख दुख आते हैं, लेकिन दुख की घड़ियों में हम सुखों को याद करके अपनी पीड़ा को बढ़ा लेते हैं। जीवन में केवल मधुर सपने नहीं हैं, इसमें कठोरता भी बसती है। हमें पुरानी बातों को भुलाकर मज़बूत कदमों से भविष्य की ओर बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए। क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर? जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण। जीवन की सार्थकता इसी में है कि हम अपने लक्ष्य की ओर दृष्टि जमाए रखें और आगे बढ़ते जाएँ, न कि पिछले सुखों को याद कर आँसू बहाते रहे।

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प्रश्न 2.
‘छाया मत छूना’ में कवि ‘छाया’ किसे कहता है और क्यों?
उत्तर :
कवि ने अतीत के सुखों को छाया कहा है। अतीत में प्राप्त सुख हमारे वर्तमान को सुखमय नहीं बना सकते। वर्तमान जीवन में उनका कोई अस्तित्व नहीं। अतीत की छाया वर्तमान से मेल नहीं खाती, न ही यथार्थ में बदल सकती है। अतीत का सुख हमें असमंजस में लाकर खड़ा कर देता है। अत: अतीत की सुखरूपी छाया से दूर रहना ही उचित है।

प्रश्न 3.
‘तन सुगंध शेष रही बीत गई यामिनी’ पंक्ति को स्पष्ट करें।
उत्तर :
‘तन सुगंध शेष रही बीत गई यामिनी’ पंक्ति का संबंध कवि के जीवन की उन सुखद रातों से है, जो अब अतीत बन गई हैं। अब बस उनकी याद (सुगंध) ही शेष रह गई है। यह कैसी त्रासदी है कि पहले की सुखद रातें अब उसके लिए दुखद प्रतीत होती हैं, क्योंकि वर्तमान में प्रिया उसके साथ नहीं है।

प्रश्न 4.
कवि ने यश, वैभव, मान आदि को किसके समान बताया है ?
उत्तर :
मानव उसी तरह जीवनभर यश, वैभव, मान के पीछे भागता है, जैसे रेगिस्तान में हिरण जल के आभास में चमकती रेत के पीछे दौड़ता है। जीवन में यश, वैभव को कवि ने मृगतृष्णा के समान कहा है। जैसे हिरण की प्यास नहीं बुझती, उसी तरह मनुष्य भी अर्जित यश, वैभव, मान से संतुष्ट नहीं होता। उसकी लालसा कभी नहीं मिटती।

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प्रश्न 5.
कवि ने ‘छाया मत छूना’ कविता में कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों की है ?
उत्तर :
कवि के अनुसार अतीत की सुखद स्मृति हमारे वर्तमान को दुखद बनाती है। यह सच्चाई है कि जीवन में सुख-दुख आते-जाते हैं। कठिन परिस्थितियों का सामना करना व उनको स्वीकार करना यथार्थ को अपनाना है। सच्चाई से बचा नहीं जा सकता, इसलिए उसका पूजन करना ही मनुष्य के लिए लाभप्रद है। विचलित हुए बिना कष्टों का सामना करना या कठिनाइयों से सामंजस्य स्थापित करना ही यथार्थ पूजन है। कठिनाइयों का सामना करें, पलायन नहीं।

प्रश्न 6.
कैसे व्यक्ति को पंथ दिखाई नहीं देता?
उत्तर :
ऐसा व्यक्ति जो उचित-अनुचित या सही-गलत में अंतर नहीं कर सकता; जिसका मन दुविधाग्रस्त रहता है, उसे लक्ष्य की ओर जाने वाला मार्ग नहीं दिखता। उसे सफलता-असफलता की आशंका घेरे रहती है। ऐसा व्यक्ति न तो शारीरिक रूप से सुखी होता है, न ही मानसिक रूप से। ऐसा व्यक्ति उन क्षणों को भी सुखपूर्वक नहीं भोग सकता, जो उसे वर्तमान में प्राप्त हैं।

प्रश्न 7.
कवि हमें क्या भूल जाने की सलाह दे रहा है?
उत्तर :
कवि हमें समझाना चाहता है कि जो जीवन में हमें प्राप्त न हो सका, उसका शोक करने के स्थान पर उसे भूल जाना ही हितकर है। उसके चिंतन में घुलना अनुचित है। ऐसा करने वाला स्वयं को दुख ही देता है। अपने वर्तमान तथा भविष्य को व्यर्थ चिंता कर खराब न करें। जो नहीं मिला न सही, जो है उसे महत्व प्रदान करें; कम-से-कम उसे तो हाथों से न जाने दें।

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प्रश्न 8.
‘छाया मत छूना’ कविता का संदेश क्या है?
अथवा
‘छाया मत छूना’ कविता में कवि क्या कहना चाहता है?
अथवा
कवि अपने मन को ‘छाया मत छूना’ कहकर क्या समझाना चाहता है?
उत्तर :
कवि ने अपनी इस कविता द्वारा संदेश दिया है कि अतीत के सुखों की याद को अपने वर्तमान पर हावी न होने दें। जीवन में यथार्थ का सामना करें। अतीत के आधार पर जीवन संचालित नहीं हो सकता। वर्तमान को ही सुखद भविष्य का आधार माने। दुख के समय निराश हुए बिना उत्साह बनाए रखना चाहिए। संघर्ष ही जीवन का यथार्थ पक्ष है। सुखद स्मृतियों को याद कर वर्तमान को और अधिक दुखद न बनाएँ।

प्रश्न 9.
‘हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा’ के माध्यम से कवि हमें क्या समझाना चाहता है ?
उत्तर :
कवि के अनुसार जीवन में उसी प्रकार सुख और दुख आते-जाते हैं, जिस तरह से चाँदनी रात के बाद अमावस्या और फिर अमावस्या के बाद चाँदनी रात आती है। इसी तरह दुख-सुख का पहिया हम सबके जीवन में निरंतर चलता रहता है। जीवन की इस सच्चाई को जानकर हमें उसी परिस्थिति के अनुरूप जीवन व्यतीत करना चाहिए और हताश हुए बिना आगे बढ़ते रहना चाहिए।

प्रश्न 10.
कवि ने “छाया मत छूना’ कविता में किस ऋतु का उदाहरण देकर क्या स्पष्ट करना चाहा है –
उत्तर :
कवि गिरिजाकुमार माथुर ने ‘छाया मत छूना’ कविता में बसंत ऋतु तथा शरद ऋतु का वर्णन किया है। कवि ने बसंत ऋतु के समय में फूल का तथा शरद ऋतु के समय में चंद्रमा का अभाव दिखाया है। कवि द्वारा दोनों उदाहरण देने का एक ही अभिप्राय है कि यदि सुख की प्राप्ति ठीक समय पर नहीं होती, तो व्यक्ति को बहुत दुख होता है।

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प्रश्न 11.
कविता में ‘सुरंग सुधियाँ’ शब्द से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
कवि ने सुरंग सुधियों को अति सुंदर तथा मन को आकर्षक लगने वाली बताया है। ये मनभावन होती हैं। प्रत्येक व्यक्ति के मन में न जाने कितनी यादें एवं सुख के क्षण छिपे रहते हैं। उनकी याद एक सुखद गंध की तरह महकती रहती है। मानव को ये यादें किसी जीवित क्षण के समान ही प्रतीत होती हैं।

पिठित काव्यांश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

दिए गए काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पी प्रश्नों के उचित विकल्प चुनकर लिखिए –

1. छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
दुविधा-हत साहस हे, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।
दुख है न चांद खिला शरद-रात आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर,
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।

(क) दुख के समय में किन यादों से मन और दुखी हो जाता है?
(i) बुरी यादों से
(ii) सुखभरी यादों से
(iii) कड़वी यादों से
(iv) बचपन की यादों से
उत्तर :
(ii) सुखभरी यादों से

(ख) कवि का जीवन कैसा है?
(i) शान-शौकत से भरा
(ii) सुखमय
(iii) धन से परिपूर्ण
(iv) मान-सम्मान से हीन
उत्तर :
(iv) मान-सम्मान से हीन

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(ग) प्रभुता की इच्छा क्या है?
(i) लक्ष्य को प्राप्त करना
(ii) मृगतृष्णा
(iii) वास्तविकता को जानना
(iv) धोखे में रहना
उत्तर :
(ii) मृगतृष्णा

(घ) ‘हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
(i) हर सुख के पीछे दुख छिपा होता है।
(ii) दुख के बाद सुख आता है।
(iii) निराशा में आशा का होना।
(iv) बचपन के बाद यौवन का आना
उत्तर :
(i) हर सुख के पीछे दुख छिपा होता है।

(ङ) कवि किसकी पूजा के लिए प्रेरित करता है?
(i) मन की
(ii) तन की
(iii) वास्तविकता की
(iv) सुख की
उत्तर :
(iii) वास्तविकता की

काव्यबोध संबंधी बहुविकल्पी प्रश्न – 

काव्य पाठ पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्नों के उत्तर वाले विकल्प चुनिए –

(क) ‘छाया’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
(i) परछाईं
(ii) भविष्य
(iii) आशा
(iv) सुखद यादें
उत्तर :
(iv) सुखद यादें

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(ख) ‘चाँदनी’ किसका प्रतीक है?
(i) प्रेम भरे क्षणों का
(ii) घृणा का
(iii) प्रकाश का
(iv) अंधकार का
उत्तर :
(i) प्रेम भरे क्षणों का

(ग) ‘यामिनी बीतने’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
(i) दुख का समय व्यतीत हो जाना
(ii) सुख के क्षणों का व्यतीत हो जाना
(iii) अंधकार का मिट जाना
(iv) सुबह होना
उत्तर :
(ii) सुख के क्षणों का व्यतीत हो जाना

(घ) कवि को क्या नहीं दिखाई देता?
(i) साहस
(ii) दुविधा
(iii) पंथ
(iv) चाँदनी
उत्तर :
(iii) पंथ

छाया मत छूना Summary in Hindi

कवि-परिचय :

गिरिजाकुमार माथुर आधुनिक युग के प्रतिभा-संपन्न रचनाकार थे। ये प्रमुख रूप से प्रयोगवादी कवि माने जाते हैं, लेकिन इनकी कविताएँ मात्र प्रयोग के लिए न होकर जीवन की यथार्थ अनुभूति के चित्रण के लिए हैं। कोमलता एवं मधुरता के प्रति आकर्षक होने के कारण माथुर जी की कविता में छायावादी शैली का सौंदर्य भी प्राप्त होता है। माथुर जी का जन्म मध्यप्रदेश राज्य के गुना नामक स्थान पर सन 1918 ई० में हुआ था। इनके पिता ब्रज भाषा के प्रसिद्ध कवि थे। परिवार का स्तर साधारण था।

यही कारण है कि इनकी कविताओं एवं नाटकों में प्रायः सामान्य स्तर के जीवन का ही चित्रण रहता है। इनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर हुई। इन्होंने एम०ए०, एल०एल०बी० तक शिक्षा प्राप्त की। माथुर जी ने झाँसी में रहकर आकाशवाणी में भी कार्य किया। वे दूरदर्शन से भी संबंधित रहे। सन 1994 ई० में इनका निधन हो गया। माथुर जी में कविता लिखने की प्रतिभा जन्मजात थी।

पहले यह प्रतिभा कविता पढ़ने की अत्यधिक रुचि के रूप में प्रकट हुई। बाद में इन्होंने केवल 13 वर्ष की आयु में ही कविता लिखनी आरंभ कर दी। इनकी प्रमुख रचनाएँ मंजीर, नाश और निर्माण, धूप के दान, भीतरी नदी की यात्रा, शिलापंख चमकीले हैं। ‘पृथ्वी-कल्प’ इनका प्रतीकात्मक नाट्य-काव्य, जन्म कैद नाटक तथा नई कविता सीमाएँ और संभावनाएँ इनके द्वारा लिखित आलोचनात्मक रचनाएँ हैं।

माथुर जी ने रेडियो फ़ीचर, गीति नाट्य और प्रतीकात्मक नाटकों की भी रचना की है। माथुर जी एक भावुक कलाकार हैं। इनकी रचनाओं में व्यक्तिगत अनुभूतियों की बहुलता है। सरसता, मधुरता, सौंदर्य और प्रेम के प्रति आकर्षण इनकी कविताओं की अन्य प्रमुख विशेषताएँ हैं। इनकी कुछ कविताओं में यथार्थपरक दृष्टि का भी उन्मेष है। जीवन के कटु और मधुर रूप का भी चित्रण है।

इनकी कविता पर छायावाद का स्पष्ट प्रभाव है। इन्होंने रोमांस और संताप के भावों को अपनी कविता में स्थान दिया है। इन्होंने संवेदना और पीड़ा के भावों को महत्वपूर्ण माना है। इनमें प्रकृति के प्रति विशेष लगाव-सा है। मानवीकरण करते हुए इन्होंने प्रकृति से संबंधित अनेक चित्र बनाए हैं कंटकित बेरी करौंदे, महकते हैं झाब झोरे। सुन्न हैं, सागौन वन के, कान जैसे पात चौड़े॥

दूह, टीले टौरियों पर, धूप-सूखी घास भूरी। हाड़ टूटे देह कुबड़ी, चुप पड़ी है गैल बूढ़ी॥ कवि ने अपनी कविता में स्थान-स्थान पर आँचलिक शब्दावली का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया है। इन्होंने विषय की मौलिकता को बनाए रखने के लिए विशेष वातावरण की सृष्टि की है। इन्होंने मुक्त छंद में ध्वनि साम्य के प्रयोग के कारण तुक के बिना भी कविता में संगीतात्मकता को उत्पन्न किया है।

उनकी कविताओं में भाषा के दो रंग विद्यमान हैं। जहाँ रोमानी कविताओं में ये छोटी-छोटी ध्वनि वाले शब्दों का प्रयोग करते हैं, वहाँ क्लासिक स्वभाव वाली कविताओं में लंबी और गंभीर ध्वनि वाले शब्दों को महत्व देते हैं। इनकी भाषा प्रयोगवादी कविता के लिए अनुकूल है। इन्होंने नए प्रतीकों, बिंबों और उपमानों का प्रयोग किया है। इन्होंने देशी-विदेशी शब्दों का भी खुलकर प्रयोग किया है हाँडियाँ, मचिया, कठौते, लट्ठ, गूदड़, बैल, बक्खर।

राख, गोबर, चरी, औंगन, लेज, रस्सी, हल, कुल्हाड़ी। सूत की मोटी फताई, चका, हंसिया और गाड़ी। कवि की भाषा सहज और सरल है। उसमें सरसता विद्यमान है। कवि ने जहाँ भी अलंकारों का प्रयोग किया है, वे अति स्वाभाविक है। वर्णनात्मक शैली से इन्हें विशेष लगाव है।

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कविता का सार :

छाया मत छूना कविता मानव-जीवन के संदर्भो से जुड़ी हुई है। हमारे जीवन में सुख आते हैं, तो दुख भी अपने रंग दिखाते हैं। मनुष्य को सुख अच्छे लगते हैं, तो दुख परेशान करने वाले। व्यक्ति पुराने सुखों को याद करके वर्तमान के दुखों को और अधिक बढ़ा लेते हैं। कवि की दृष्टि में ऐसा करना उचित नहीं है। इससे दुखों की मात्रा बढ़ जाती है। सुख हमें सदा अच्छे लगते हैं। उनके द्वारा मिली प्रसन्नताएँ मन पर देर तक छायी रहती हैं।

प्रेम भरे क्षण भुलाने की कोशिश करने पर भी भूलते नहीं हैं। लेकिन मनुष्य सुखों के पीछे जितना अधिक भागता है, उतना ही अधिक भ्रम के जाल में उलझता जाता है। हर सुख के बाद दुख अवश्य आता है। हर चाँदनी के बाद अमावस्या भी छिपी होती है। मनुष्य को जीवन की वास्तविकता को समझना चाहिए; उसे स्वीकार करना चाहिए। मनुष्य के मन में छिपा साहस का भाव जब छिप जाता है, तो उसे जीवन की राह दिखाई नहीं देती। मानव मन में छिपे दुखों की सीमा का तो पता ही नहीं है। हर व्यक्ति को जीवन में सबकुछ नहीं मिलता।

जो हमें वर्तमान में प्राप्त हो गया है, हमें इसी में संतुष्ट होना चाहिए। जो अभी प्राप्त नहीं हुआ, उसे भविष्य में प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए। लेकिन पुरानी यादों से स्वयं को चिपकाए रखने का कोई लाभ नहीं है। उनसे दुख बढ़ते हैं, घटते नहीं।

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