Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!
JAC Class 10 Hindi एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
हमारी आजादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग का योगदान भी कम नहीं रहा है। इस कहानी में ऐसे लोगों के योगदान को लेखक ने किस प्रकार उभारा है?
उत्तर :
इस कहानी में लेखक ने दुलारी और टुन्नू के माध्यम से समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग द्वारा आजादी की लड़ाई में दिए गए योगदान को स्पष्ट किया है। दुलारी को फेंकू सरदार मैंचेस्टर तथा लंका-शायर की मिलों की बनी बारीक सूत की मखमली किनारे वाली साड़ियों का बंडल लाकर देता है। दुलारी साड़ियों के उस बंडल को विदेशी वस्त्रों की होली जलाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को दे देती है। वह टुन्नू की दी हुई खादी की साड़ी पहनती है। फेंकू सरदार को अंग्रेज़ों का मुखबिर जानकर उसे झाड़ मारकर घर से निकाल देती है। टुन्नू विदेशी वस्त्रों के संग्रह करने वाले जुलूस के साथ जाता है और पुलिस द्वारा मार दिया जाता है। इस प्रकार लेखक ने स्वतंत्रता संग्राम में इनके योगदान को रेखांकित किया है।
प्रश्न 2.
कठोर हृदयी समझी जाने वाली दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर क्यों विचलित हो उठी?
उत्तर :
दुलारी को कठोर हृदयी तथा कर्कशा गौनहारिन समझा जाता है। वह होली के अवसर पर टुन्नू द्वारा साड़ी लाने पर उसे डाँटती है और साड़ी उठाकर फेंक देती है। परंतु जब उसे टुन्नू की मृत्यु का समाचार मिलता है, तो उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बह निकलती है। वह बहुत व्याकुल हो जाती है और टुन्नू की लाई हुई खद्दर की धोती निकालकर पहन लेती है। वह वहाँ जाना चाहती है, जहाँ टुन्नू को मारा गया था। वह मन-ही-मन टुन्नू के प्रति कोमल भावनाएँ रखती है। उसका टुन्नू से आत्मिक संबंध है। इन्हीं आत्मिक भावनाओं के वशीभूत होकर वह टुन्नू की मृत्यु का समाचार सुनकर विचलित हो उठी थी।
प्रश्न 3.
कजली दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन क्यों हुआ करता होगा?
उत्तर :
कुछ और परंपरागत लोक आयोजनों का उल्लेख कीजिए। कजली दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन लोकगीतों की परंपरा को प्रोत्साहन देने के लिए किया जाता था। इन आयोजनों में कजली गाने वाले विख्यात शायर भाग लिया करते थे। इससे जनता का मनोरंजन भी होता था तथा श्रेष्ठ गायकों को पुरस्कृत भी किया जाता था। कुछ अन्य परंपरागत लोक-आयोजन कुश्ती, नौटंकी, भांगड़ा, गिद्दा, लावणी, गरबा आदि हैं।
प्रश्न 4.
दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक दायरे से बाहर है, फिर भी अति विशिष्ट है। इस कथन को ध्यान में रखते हुए दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
दुलारी एक गौनहारिन अथवा गाना गाने का पेशा करने वाली महिला है। उसे समाज के विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक दायरे से बाहर माना जाता है। लेकिन उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताओं ने उसे विशिष्ट बना दिया है –
1. कसरती बदन – दुलारी मराठी महिलाओं की तरह धोती लपेटकर कसरत करती थी। वह दंड लगाने में निपुण थी तथा उसे अपने भुजदंडों पर पहलवानों की तरह गर्व था।
2. कर्कशा – दुलारी को अन्य गौनहारियाँ कर्कशा मानती हैं। वे उसे कठोर हृदया कहती हैं। जब टुन्नू उसके लिए धोती लाता है, तो वह उस पर चिल्ला पड़ती है-“खैरियत चाहते हो तो अपना यह कफ़न लेकर यहाँ से सीधे चले जाओ।”
3. कोमल हृदया – दुलारी कर्कशा और कठोर होते हुए भी अत्यंत कोमल है। टुन्नू जब होली पर उसके लिए धोती लाता है, – तो वह उसे फेंक देती है परंतु उसके जाने के बाद वह धोती उठाकर चूमने लगती है। इसी प्रकार से टुन्नू की मृत्यु का समाचार सुनकर वह इतनी विचलित हो उठती है कि उसकी आँखों से आँसुओं की गंगा बहने लगती है और वह उसकी दी हुई साड़ी पहनकर उसके मृत्यु के स्थान पर जाने के लिए चल पड़ती है।
4. श्रेष्ठ गायिका – दुक्कड़ गानेवालियों में दुलारी बहुत प्रसिद्ध है। उसमें पद्य में सवाल-जवाब करने की अद्भुत क्षमता थी। कजली गाने वाले बड़े-बड़े विख्यात शायर भी उसका सामना करते डरते थे। जब टुन्नू को उसके विरुद्ध पद्यात्मक प्रश्नोत्तरी में उतारा गया, तो उसके कंठ से छल-छल करता स्वर का सोता फूट निकला था।
5. देश-प्रेम – दुलारी के मन में अपने देश के प्रति अटूट श्रद्धा है। जब फेंकू सरदार उसे मैंचेस्टर तथा लंका-शायर की मिलों की बनी बारीक सूत की मखमली किनारेवाली धोतियों का बंडल देता है, तो वह उसे अपने पास न रखकर विदेशी वस्त्रों की होली जलाने वाले स्वदेशियों को दे देती है। उसे जैसे ही फेंकू के अंग्रेजों का मुखबिर होने का पता चलता है, वह उसे झाड़ मारकर घर से निकाल देती है। टाउन हॉल में जिस स्थान पर टुन्नू गिरा था उधर दृष्टि जमाकर दुलारी का गाना, उसकी टुन्नू के बलिदान के प्रति श्रद्धांजलि थी। इन समस्त विशेषताओं के कारण ही दुलारी त्याज्य होकर भी अति विशिष्ट है।
प्रश्न 5.
दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय कहाँ और किस रूप में हुआ?
उत्तर :
दुलारी का टुन्नू से प्रथम परिचय छह महीने पहले पिछली भादों में तीज के अवसर पर खोजवाँ बाजार में गाना गाते समय हुआ था। यहाँ खोजवाँ वालों का बजरडीहा वालों से मुकाबला था। दुलारी के कारण खोजवाँ वालों को अपनी जीत का पूरा भरोसा था। सामान्य गायन के बाद जब पद्यात्मक प्रश्नोत्तरी प्रारंभ हुई, तो बजरडीहा वालों की तरफ़ से.टुन्नू ने गाना शुरू किया। उस समय टुन्नू सोलह-सत्रह वर्ष का था। दुलारी उसके कंठ-स्वर की मधुरता का मुग्ध भाव से रसपान कर रही थी।
प्रश्न 6.
दुलारी का टुन्नू को यह कहना कहाँ तक उचित था-“सरबउला बोल जिन्नगी में कब देखले लोट…!” दुलारी के इस आक्षेप में आज के युवा वर्ग के लिए क्या संदेश छिपा है ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
दुलारी इस कथन के माध्यम से टुन्नू पर यह आक्षेप लगाती है कि वह बढ़-चढ़कर बोलता है। उसके कथनों में सत्यता नहीं है। इसी प्रसंग में आगे वह उस पर बगुला भगत होने का भी आक्षेप लगाती है। वह आज के युवा-वर्ग को बड़बोलापन त्याग कर गंभीर बनने का संदेश देती है। उन्हें आडंबरों को त्यागकर गांधीजी जैसा सीधा-सादा जीवन जीना चाहिए। देश के लिए आत्मबलिदानी बनना चाहिए तथा चातक जैसा प्रेमी बनना चाहिए।
प्रश्न 7.
भारत के स्वाधीनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू ने अपना योगदान किस प्रकार दिया?
उत्तर :
भारत के स्वाधीनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू का योगदान सराहनीय एवं अनुकरणीय है। दुलारी ने फेंकू सरदार द्वारा लाया गया मैंचेस्टर तथा लंका-शायर की मिलों में बनी हुई बारीक सूत की धोतियों का बंडल विदेशी वस्त्रों की होली जलाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को दे दिया था। उसने अंग्रेज़ों के मुखबिर फेंकू को अपने घर से झाड़ मारकर निकाल दिया था। टुन्नू ने विदेशी वस्त्रों को एकत्र करने वाले जुलूस में शामिल होकर आत्म-बलिदान दे दिया था।
प्रश्न 8.
दुलारी और टुन्नू के प्रेम के पीछे उनका कलाकार मन और उनकी कला थी? यह प्रेम दुलारी को देशप्रेम तक कैसे पहुँचाता है ?
उत्तर :
का प्रेम शारीरिक न होकर आत्मिक था। दुलारी टुन्न के कंठ-स्वर की मधुरता पर मुग्ध हो गई थी। टुन्न सोलह सत्रह वर्ष का था और दुलारी यौवन के अस्ताचल पर खड़ी थी। उसके मन के किसी कोने में टुन्नू ने अपना स्थान बना लिया। था। यह सब दोनों के कलाकार मन और कला के कारण हुआ था। टुन्नू द्वारा आबरवाँ की जगह खद्दर पहनना, लखनवी दोपलिया की जगह गांधी टोपी पहनना और दुलारी को खादी की धोती देना और अंत में स्वयं को देश के लिए कुर्बान कर देना दुलारी को भी देश-प्रेम की ओर प्रेरित करता है। दुलारी का विदेशी-वस्त्रों की होली जलानेवालों को कीमती साड़ियाँ देना, टुन्नू की मृत्यु के बाद उसकी दी हुई खादी की साड़ी पहनना, टुन्नू के मरणस्थल पर गाना गाना आदि दुलारी के देशप्रेम के उदाहरण हैं।
प्रश्न 9.
जलाए जाने वाले विदेशी वस्त्रों के ढेर में अधिकांश वस्त्र फटे-पुराने थे, परंतु दलारी दवारा विदेशी मिलों में बनी कोरी साडियों का फेंका जाना उसकी किस मानसिकता को दर्शाता है?
उत्तर :
टुन्नू जब दुलारी को होली के अवसर पर खादी की धोती देकर चला जाता है, तो दुलारी उसकी भेंट को लेकर उसी के विचारों में खो जाती है। इन विचारों से मुक्ति पाने के लिए वह रसोई की व्यवस्था में जुटना ही चाहती है कि फेंकू सरदार उसके लिए मैंचेस्टर और लंका-शायर की मिलों में बनी बारीक सूत की मखमली किनारेवाली धोतियों का बंडल लेकर आता है। तभी उधर से जलाने के लिए विदेशी-वस्त्रों का संग्रह करता हुआ देशभक्तों का दल ‘भारत जननी तेरी जय’ गीत गाते हुए निकलता है। लोग अपने पुराने विदेशी वस्त्र उन्हें दे रहे थे। दुलारी अपनी खिड़की खोलकर फेंकू द्वारा लाया गया धोतियों का बंडल नीचे फैली चादर पर फेंक देती है। इससे उसकी फेंकू के प्रति नफ़रत, टुन्नू के प्रति करुणा तथा देश के प्रति प्रेम की भावना व्यक्त होती है।
प्रश्न 10.
“मन पर किसी का बस नहीं; वह रूप या उमर का कायल नहीं होता”। टुन्नू के इस कथन में उसका दुलारी के प्रति किशोर जनित प्रेम व्यक्त हुआ है परंतु उसके विवेक ने उसके प्रेम को किस दिशा की ओर मोड़ा?
उत्तर :
टुन्नू जब होली के अवसर पर दुलारी को खादी की साड़ी भेंट करने आता है, तो दुलारी उपेक्षापूर्वक साड़ी टुन्नू के पैरों के पास फेंक देती है। वह उसे बहुत भला-बुरा कहती है। टुन्नू टप-टप आँसू बहाता है और यह कहकर कोठरी से बाहर निकल जाता है कि ‘मन पर किसी का बस नहीं, वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।’ वह ‘आबरवाँ’ पहनना छोड़कर खद्दर पहनने लगता है। स्वदेशियों की हड़ताल में शामिल होता है। विदेशी वस्त्रों को एकत्रकर उनकी होली जलाने वाले जुलूस के साथ टाउन हॉल तक जाता है, जहाँ एक पुलिस जमादार द्वारा मार दिया जाता है। इस प्रकार उसका विवेक उसे दैहिक प्रेम से देश-प्रेम की ओर ले जाता है।
प्रश्न 11.
‘एही छैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ का प्रतीकार्थ समझाइए।
उत्तर :
इस पंक्ति का शाब्दिक अर्थ है कि ‘इसी स्थान पर मेरे नाक की लौंग खो गई है राम’। वास्तव में दुलारी इस कथन के माध्यम से यह कहना चाहती है कि उसकी ‘नाक की लौंग’ अर्थात् प्रतिष्ठा यहाँ आकर नष्ट हो गई है। जहाँ दुलारी को थाने वालों ने गाने के लिए बुलाया था, उसी स्थान पर टुन्नू को मार दिया गया था। टुन्नू उसकी प्रतिष्ठा थी। टुन्नू के मरणास्थल पर दुलारी को बलपूर्वक नाचने-गाने के लिए कहना उसके सम्मान को नष्ट करना है।
JAC Class 10 Hindi एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
टुनू की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
टुन्नू सोलह-सत्रह वर्ष का जवानी की दहलीज पर पाँव रखने वाला युवक था। जिसका चरित्र बड़ा साफ-स्वच्छ और निर्मल था। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
1. सुंदर और निर्मल-टुन्नू किशोर अवस्था का अति सुंदर, गोरा, दुबला-पतला एवं लंबा किशोर था, जो पहली ही दृष्टि में आकृष्ट करने की क्षमता रखता था। दुलारी जैसी औरत भी उसकी ओर आकृष्ट होने पर विवश हो गई थी।
2. निर्धन-टुन्नू अति गरीब था। काशी में उसके पिता दिनभर गंगा के घाट पर बैठकर कर्मकांड किया करते थे और बड़ी कठिनाई से घर का खर्च चला पाते थे।
3. मेधावी-टुन्ने चाहे निर्धन परिवार में उत्पन्न हुआ था, पर वह मेधावी था। उसकी कल्पना-शक्ति अद्भुत थी। वह दूर की कौड़ी पकड़ने में अति निपुण था।
4. श्रेष्ठ कलाकार-टुन्नू श्रेष्ठ कलाकार था। उसने कजली जैसी लोक-कला में सिद्धहस्तता प्राप्त कर ली थी। उसमें हिम्मत थी कि वह दुलारी जैसी विख्यात गायिका को चुनौती दे सके।
5. गुण ग्राहक-जब टुन्नू को दुलारी के गुणों का पता लगा, तो वह उसकी कला को सीखने के लिए उसके पास जाने लगा। उसके प्रति उसके मन में श्रद्धा के भाव जग गए थे।
6. सच्चा प्रेमी-टुन्नू चाहे आयु में छोटा था, पर दुलारी के प्रति उसके हृदय में सच्चा प्रेम था। कलाकार के नाते वह उसे अपने प्रेम के योग्य मानता था।
7. सच्चा देशभक्त-टुन्नू देशभक्त था। गांधीजी के आदेशानुसार खद्दर पहनता था। उसी ने दुलारी के दिल में देशभक्ति का भाव भरा था। वह देश के लिए मर भी गया था।
प्रश्न 2.
‘एही छैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा’ कहानी में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘एही छैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा’ प्रथम दृष्टि में एक किशोर और यौवनावस्था के अस्ताचल पर खड़ी एक गाने वाली की प्रेमकथा प्रतीत होती है, जिसमें आत्मिक प्रेम को महत्व प्रदान किया गया है। इस कथा के माध्यम से लेखक ने यह संदेश दिया है कि समाज के उपेक्षित तथा त्याज्य माने जाने वाले वर्ग के लोगों का भी भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अद्भुत योगदान रहा है।
गाने का पेशा करने वाली दुलारी देशद्रोही फेंकू को झाड़ मारकर घर से निकाल देती है। फेंकू के दिए विदेशी वस्त्रों को विदेशी वस्त्रों की होली जलाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को दे देती है। टुन्नू जैसा किशोर गायक विदेशी वस्त्र त्यागकर खादी पहनता है और देशभक्तों के जुलूस में शामिल होकर अंग्रेजों द्वारा मार दिया जाता है। इस प्रकार यह देश-प्रेम और त्याग का संदेश देने वाली कहानी है।
प्रश्न 3.
टुन्नू और दुलारी का प्रेम कैसा था?
उत्तर :
दुलारी ने टुन्नू को खोजवाँ बाज़ार में गाने के अवसर पर देखा था। वहाँ वह उसके कंठ-स्वर की मधुरता पर मुग्ध हो गई थी। तब से उसके मन में टुन्नू के प्रति कोमल भाव जागृत हो गए थे। वह यौवन के अस्ताचल पर खड़ी थी, जबकि टुन्नू सोलह-सत्रह वर्ष का था। टुन्नू उसके पास आता; घंटे-आध घंटे उसके सामने बैठता; पूछने पर भी अपने हृदय की कामना व्यक्त नहीं करता, केवल अत्यंत मनोयोग से उसकी बातें सुनता था।
दुलारी को लगता यहाँ शरीर का कोई संबंध नहीं, केवल आत्मा का ही संबंध है। टुन्नू का यह कथन भी इसी आत्मिक प्रेम की ओर संकेत करता है-‘मैं तुमसे कुछ माँगता तो हूँ नहीं। देखो, पत्थर की देवी तक अपने भक्त द्वारा दी गई भेंट नहीं ठुकराती, तुम तो हाड़-मांस की बनी हो।’ टुन्नू दुलारी का भक्त है, प्रेमी नहीं। उधर दुलारी के मन में भी ‘इस कृशकाय और कच्ची उमर के पांडुमुख बालक टुन्नू पर करुणा’ है।
प्रश्न 4.
टुन्नू की मृत्यु कैसे हुई और क्यों?
उत्तर :
आज़ादी के आंदोलन से प्रभावित होकर टुन्नू भी उसमें कूद पड़ा। एक दिन जब टुन्नू विदेशी-वस्तुओं का बहिष्कार करने वाले जुलूस के साथ जा रहा था, तो पुलिस के ज़मादार अली सगीर ने उसे पकड़ लिया और उसे गालियाँ देकर जूतों से ठोकर मारी। टाउन हॉल के पास ही यह सब घटित हुआ। टुन्नू ने भी उसके इस व्यवहार का डटकर विरोध किया। अली सगीर ने उसे इतना मारा कि उसकी पसली टूट गई। टुन्नू के मुँह से रक्त की धारा बहने लगी और कुछ ही देर में उसकी मृत्यु हो गई।
प्रश्न 5.
विदेशी वस्त्रों का संग्रह करने वाले लोग कब हैरान रह गए और क्यों?
उत्तर :
विदेशी वस्त्रों का संग्रह करने वाले लोग तब हैरान रह गए, जब उनकी फैलाई चादर पर कोरी विदेशी साड़ियों का एक बंडल आकर गिरा। वे लोग जलाने के लिए विदेशी वस्त्र एकत्र कर रहे थे। अभी तक जो भी विदेशी-वस्त्र उन्होंने एकत्र किए थे, वे सब पुराने थे। परंतु ये बिल्कुल नई साड़ियाँ थीं, जिनको बंडल से बाहर तक नहीं निकाला गया था।
प्रश्न 6.
दुलारी ने टुन्नू द्वारा लाया गया उपहार क्यों ठुकरा दिया? .
उत्तर :
दुलारी और टुन्नू कजली गायन के एक दंगल में मिले थे। दोनों ही एक-दूसरे से प्रभावित हुए बिना न रहे, क्योंकि दोनों ही अपनी गायन कला में निपुण थे। टुन्नू ब्राह्मण परिवार से संबंध रखता था और दुलारी एक कजली गायिका थी, जिसे समाज आदर की दृष्टि से नहीं देखता था। टुन्नू दुलारी की कला का पुजारी था। वह दुलारी से आत्मिक प्रेम करने लगा था। कम आयु का टुन्नू समाज की ऊँच-नीच नहीं जानता था, परंतु दुलारी एक परिपक्व महिला थी। उसे टुन्नू का अपने घर में आना न पसंद था। वह नहीं चाहती थी कि उसके कारण टुन्नू की बदनामी हो। वह उसे दुत्कारती थी, ताकि वह कभी दोबारा न आए। इसलिए दुलारी ने उपहार में टुन्न द्वारा दी गई साड़ी को भी उसके सामने ठुकरा दिया।
प्रश्न 7.
टुन्नू ने दुलारी की तुलना कोयल से कर एक साथ कौन-से दो तीर चलाए थे?
उत्तर :
टुन्नू ने दुलारी की आवाज़ को कोयल की मधुर आवाज़ के समान कहकर उसकी मीठी आवाज़ की प्रशंसा की थी और साथ ही उसके साँवले-काले रंग की ओर संकेत कर दिया था। उसके कथन में यह भाव भी छिपा हुआ था कि जैसे कोयल का पालन-पोषण कौवे के घोंसले में होता है, वैसे ही तुम्हारा पोषण भी दूसरों के द्वारा ही हुआ है। यह कहकर टुन्नू ने दुलारी पर दोहरा तीर चलाया था।
प्रश्न 8.
‘एही छैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ के शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
‘एही छैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा’ का शाब्दिक अर्थ है-‘यही वह स्थान है जहाँ मेरे नाक की लोंग खो गई थी’। लेखक ने लोकगीत के मुखड़े जैसे प्रतीत होने वाले इस वाक्य को कहानी का शीर्षक बताया है, जिसमें गहरी प्रतीकार्थकता विद्यमान है। टुन्नू का दुलारी से विवाह नहीं हुआ था, इसलिए वह उसका सुहाग नहीं था। नाक की नथनी सुहाग का प्रतीक होता है और दुलारी मन-ही-मन टुन्न को अपने पति के रूप में मानती थी। उसके लिए उसके हृदय में वही स्थान था, जो किसी सुहागिन के लिए उसके सुहाग का होता है।
एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! Summary in Hindi
लेखक-परिचय :
शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र’ का जन्म काशी में सन 1911 में हुआ था। इनकी शिक्षा काशी के हरिश्चंद्र कॉलेज, क्वींस कॉलेज एवं काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हुई थी। इन्होंने स्कूल एवं विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया तथा कई पत्रिकाओं का संपादन भी किया। – इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-बहती गंगा, सुचिताच (उपन्यास), ताल तलैया, गजलिका, परीक्षा पचीसी (गीत एवं व्यंग्य गीत संग्रह)। इनकी अनेक संपादित रचनाएँ काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा – प्रकाशित हई हैं। वे काशी नागरी प्रचारिणी सभा के प्रधान पद पर भी रहे। सन 1970 में इनका देहांत हो गया। इनकी भाषा आंचलिक, तत्सम प्रधान तथा शैली वर्णनात्मक एवं संवादात्मक है।
पाठ का सार :
‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ पाठ के लेखक शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र’ हैं। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने गाने-बजाने वाले समाज के देश के प्रति असीम प्रेम, विदेशी शासन के प्रति क्षोभ और पराधीनता की जंजीरों को उतार फेंकने की तीव्र लालसा का वर्णन किया है।। दुलारी का शरीर पहलवानों की तरह कसरती था। वह मराठी महिलाओं की तरह धोती लपेटकर कसरत करने के बाद प्याज और हरी मिर्च के साथ चने खाती थी।
वह अपने रोजाना के कार्य से खाली नहीं हुई थी कि उसके घर के दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। दरवाजा खोलने पर उसने देखा कि टुन्नू बगल में कोई बंडल दबाए खड़ा था। दुलारी टुन्नू को डाँटती है कि उसने उसे यहाँ आने के लिए मनाकर रखा था। टुन्नू उसकी डॉट सुनकर सहम जाता है। वह उसके लिए गांधी आश्रम की खादी से बनी साड़ी लेकर आया था। वह उसे होली के त्योहार पर नई साड़ी देना चाहता था।
दुलारी उसे बुरी तरह फटकारती है कि ऐसे काम करने की अभी उसकी उम्र नहीं है। दुलारी टुन्नू की दी हुई धोती उपेक्षापूर्वक उसके पैरों के पास फेंक देती है। टुन्नू की आँखों से कज्जल-मलिन आँसुओं की बूंदें साड़ी पर टपक पड़ती हैं। वह अपमानित-सा वहाँ से चला जाता है। उसके जाने के बाद दुलारी धोती उठाकर सीने से लगा लेती है और आँसुओं के धब्बों को चूमने लगती है।
दुलारी छह महीने पहले टुनू से मिली थी। भादों की तीज पर खोजवाँ बाजार में गाने का कार्यक्रम था। दुलारी गाने में निपुण थी। उसे पद्य में सवाल-जवाब करने की अद्भुत क्षमता थी। बड़े-बड़े शायर भी उसके सामने गाते हुए घबराते थे। खोजवाँ बाज़ार वाले उसे अपनी तरफ़ से खड़ा करके अपनी जीत सुनिश्चित कर चुके थे। विपक्ष में उसके सामने सोलह-सत्रह साल का टुन्नू खड़ा था। टुन्नू के पिता यजमानी करके अपने घर का गुजारा करते थे। टुनू को आवारों को संगति में शायरी का चस्का लग गया था।
उसने भैरोहेला को उस्ताद बनाकर कजली की सुंदर रचना करना सीख लिया था। टुनू ने उस दिन दुलारी से संगीत में मुकाबला किया। दुलारी को भी अपने से बहुत छोटे लड़के से मुकाबला करना अच्छा लग रहा था। मुकाबले में टुन्नू के मुँह से दुलारी की तारीफ़ सुनकर सुंदर के ‘मालिक’ फेंकू सरदार ने टुन्नू पर लाठी से वार किया। दुलारी ने टुन्नू को उस मार से बचाया था। टुन्नू के जाने के बाद दुलारी उसी के बारे में सोच रही थी।
टुन्नू उसे आज अधिक सभ्य लगा था। टुन्नू ने कपड़े भी सलीके से पहन रखे थे। दुलारी ने टुन्नू की दी हुई साड़ी अपने संदूक में रख दी। उसके मन में टुनू के लिए कोमल भाव उठ रहे थे। टुन्नू उसके पास कई दिन से आ रहा था। वह उसे देखता रहता था और उसकी बातें बड़े ध्यान से सुनता था। दुलारी का यौवन ढल रहा था। टुन्नू पंद्रह-सोलह वर्ष का लड़का था, दुलारी ने दुनिया देख रखी थी। वह समझ गई कि टून्नू और उसका संबंध शरीर का न होकर आत्मा का है।
वह यह बात टुन्नू के सामने स्वीकार करने से डर रही थी। उसी समय फेंकू सरदार धोतियों का बंडल लेकर दुलारी की कोठरी में आता है। फेंकू सरदार उसे तीज पर बनारसी साड़ी दिलवाने का वायदा करता है। जब दुलारी और फेंकू सरदार बातचीत कर रहे थे, उसी समय उसकी गली में से विदेशी वस्त्रों की होली जलाने वाली टोली निकली। चार लोगों ने एक चादर पकड़ रखी थी जिसमें लोग धोती, कमीज़, कुरता, टोपी आदि डाल रहे थे। दुलारी ने भी फेंकू सरदार का दिया मैंचेस्टर तथा लंका-शायर की मिलों की बनी बारीक सूत की मखमली किनारेवाली धोतियों का बंडल फैली चादर में डाल दिया।
अधिकतर लोग जलाने के लिए पुराने कपड़े फेंक रहे थे। दुलारी की खिड़की से नया बंडल फेंकने पर सबकी नजर उस तरफ़ उठ गई। जुलूस के पीछे चल रही खुफिया पुलिस के रिपोर्टर अली सगीर ने भी दुलारी को देख लिया था। दुलारी ने फेंकू सरदार को उसकी किसी बात पर झाड़ से पीट-पीटकर घर से बाहर निकाल दिया। जैसे ही फेंकू दुलारी के घर से निकला, उसे पुलिस रिपोर्टर मिल जाता है। उसे देखकर वह झेंप जाता है। दुलारी के आँगन में रहने वाली सभी स्त्रियाँ इकट्ठी हो जाती हैं। सभी मिलकर दुलारी को शांत करती हैं। सब इस बात से हैरान थीं कि फेंकू सरदार ने दुलारी पर अपना सबकुछ न्योछावर कर रखा था, फिर आज उसने उसे क्यों मारा।
दुलारी कहती है कि यदि फेंकू ने उसे रानी बनाकर रखा था, तो उसने भी अपनी इज्जत, अपना सम्मान उसके नाम कर दिया था। एक नारी के सम्मान की कीमत कुछ नहीं है। पैसों से तन खरीदा जा सकता है, एक औरत का मन नहीं खरीदा जा सकता। उन दोनों के बीच झगड़ा टुन्नू को लेकर हुआ था। सभी स्त्रियाँ बैठी बातें कर रही थीं कि झींगुर ने आकर बताया कि टुनू महाराज को गोरे सिपाहियों ने मार दिया और वे लोग लाशें उठाकर भी ले गए। टुन्नू के मारे जाने का समाचार सुनकर दुलारी की आँखों से अविरल आँसुओं की धारा बह निकली। उसकी पड़ोसिनें भी दुलारी का हाल देखकर हैरान थीं।
सभी ने उसके रोने को नाटक समझा। लेकिन दुलारी अपने मन की सच्चाई जानती थी। उसने टुन्नू की दी साधारण खद्दर की धोती पहन ली। वह झींगुर से टुन्नू के शहीदी स्थल का पता पूछकर वहाँ जाने के लिए घर से बाहर निकली। घर से बाहर निकलते ही थाने के मुंशी और फेंकू सरदार ने उसे थाने चलकर अमन सभा के समारोह में गाने के लिए कहा। प्रधान संवाददाता ने शर्मा जी की लाई हुई रिपोर्ट को मेज पर पटकते हुए डाँटा और अखबार की रिपोर्टरी छोड़कर चाय की दुकान खोलने के लिए कहा।
उनके द्वारा लाई रिपोर्ट को उसने अलिफ़-लैला की कहानी कहा, जिसे प्रकाशित करना वह उचित नहीं समझता। उनकी दी हुई रिपोर्ट को छापने से उसे अपनी अखबार के बंद हो जाने का भय है। इस पर संपादक ने शर्मा जी को रिपोर्ट पढ़ने के लिए कहा। शर्मा जी ने अपनी रिपोर्ट का शीर्षक एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा’ रखा था। उनकी रिपोर्ट के अनुसार ‘कल छह अप्रैल को नेताओं की अपील पर नगर में पूर्ण हड़ताल रही। खोमचेवाले भी हड़ताल पर थे। सुबह से ही विदेशी वस्त्रों का संग्रह करके उनकी होली जलाने वालों के जुलूस निकलते रहे।
उनके साथ प्रसिद्ध कजली गायक टुन्नू भी था। जुलूस टाउन हॉल पहुँचकर समाप्त हो गया। सब जाने लगे तो पुलिस के जमादार अली सगीर ने टन्न को गालियाँ दी। टुन्न के प्रतिवाद करने पर उसे जमादार ने बूट से ठोकर मारी। इससे उसकी पसली में चोट लगी। वह गिर पड़ा और उसके मुँह से खून निकल पड़ा। गोरे सैनिकों ने उसे उठाकर गाड़ी में डालकर अस्पताल ले जाने के स्थान पर वरुणा में प्रवाहित कर दिया, जिसे संवाददाता ने भी देखा था। इस टुन्नू का दुलारी नाम की गौनहारिन से संबंध था।
कल शाम अमन सभा द्वारा टाउन हॉल में आयोजित समारोह में, जहाँ जनता का एक भी प्रतिनिधि उपस्थित नहीं था, दुलारी को नचाया-गवाया गया था। टुन्नू की मृत्यु से दुलारी बहुत उदास थी। उसने खद्दर की साधारण धोती पहन रखी थी। वह उस स्थान पर गाना नहीं चाहती थी, जहाँ आठ घंटे पहले उसके प्रेमी की हत्या कर दी गई थी। फिर भी कुख्यात जमादार अली सगीर के कहने पर उसने दर्दभरे स्वर में एही ठेयाँ झुलनी हेरानी हो रामा, कासों मैं पूलूं’ गाया और जिस स्थान पर टुन्नू गिरा था, उधर ही नज़र जमाए हुए गाती रही। गाते-गाते उसकी आँखों से आँसू बह निकले मानो टुन्नू की लाश को वरुणा में फेंकने से पानी की जो बूंदें छिटकी थीं, वे अब दुलारी की आँखों से बह निकली हैं।’ संपादक महोदय को रिपोर्ट तो सत्य लगी, परंतु वे इसे छापने में असमर्थ थे।
कठिन शब्दों के अर्थ :
दनादन – लगातार। चणक-चर्वण – चने चबाना। विलोल – चंचल। शीर्णवदन – उदास मुख। आर्द्र – गीला, रुंधा। कज्जल-मलिन – काजल से मैली। पाषाण-प्रतिमा – पत्थर की मूर्ति । दुक्कड़ – शहनाई के साथ बजाया जाने वाला एक तबले जैसा बाजा। महती – बहत अधिक। ख्याति – प्रसिद्धि। कजली – भादो की तीज पर गाया जाने वाला लोकगीत। कोर दबना – लिहाज करना। गौनहारिन – गाना गाने वाली, गाना गाने का पेशा करने वाली। दरगोड़े – पैरों से कुचलना या रौंदना।
तीरकमान हो जाना – लड़ने या मुकाबले के लिए तैयार : होना। आविर्भाव – प्रकट होना, सम्मुख आना। रंग उतरना – शोभा या रौनक घटना। वकोट – मुँह नोच लेना। अगोरलन – रखवाली करना। सरबउला बोल – बढ़-चढ़कर बोलना। अझे – इस प्रकार। बिथा – व्यथा। आबरवाँ – बहुत बारीक मलमल। कृशकाय – कमज़ोर शरीर। पांडुमुख – पीला मुँह। कृत्रिम – बनावटी। निभृत – छिपा हुआ, गुप्त, एकांत। उभय पार्श्व – दोनों तरफ़। मुखबर – ख़बर देने वाला। डाँका – लाँघना। आँखों में मेघमाला – आँखों से आँसुओं की झड़ी लगना। एही – इसी। ठैयाँ – स्थान। झुलनी – नाक की लौंग। हेरानी – खो गई। उदभ्रांत – हैरान।