Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 आत्मत्राण Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 आत्मत्राण
JAC Class 10 Hindi आत्मत्राण Textbook Questions and Answers
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
प्रश्न 1.
कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहा है?
उत्तर :
कवि ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है। वह प्रार्थना करता है कि ईश्वर उसे आत्मिक बल प्रदान करे। वह भले ही उसकी सहायता न करे, किंतु उसके आत्मविश्वास को बनाए रखे। कवि ईश्वर से अपने आप को स्वावलंबी बनाए रखने की प्रार्थना कर रहा है।
प्रश्न 2.
‘विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं’-कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है ?
उत्तर :
कवि इस पंक्ति के माध्यम से कहना चाहता है कि वह ईश्वर से अपने आपको मुसीबतों से बचाने की प्रार्थना नहीं करना चाहता। वह जीवन में प्रत्येक मुसीबत से स्वयं लड़ना चाहता है। वह संकट की घड़ी में संघर्ष करना चाहता है। वह पूर्णतः ईश्वर पर आश्रित न होकर स्वावलंबी बनना चाहता है। कवि कहता है कि वह ईश्वर से केवल आत्मिक बल चाहता है, ताकि वह अपने सभी कार्य स्वयं कर सके।
प्रश्न 3.
कवि सहायक के न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है?
अथवा
विपत्ति आने पर कवि ईश्वर से क्या प्रार्थना करता है?
उत्तर :
कवि कहता है कि दुख की घड़ी में यदि कोई सहायक नहीं मिलता, तो भी उसे इसका कोई गम नहीं है। वह ईश्वर से केवल इतनी प्रार्थना करता है कि ऐसे समय में भी वह अपना आत्मविश्वास और पराक्रम न खोए। वह चाहता है कि ईश्वर उसे इतनी शक्ति दे कि दुख में भी उसका मन हार न माने। वह उन दुखों से लड़ने की शक्ति पाने की प्रार्थना करता है।
प्रश्न 4.
अंत में कवि क्या अनुनय करता है?
उत्तर :
कविता के अंत में कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वे उसे दुखों को सहन करने की शक्ति प्रदान करे। वह सुख और दुख में एक जैसा अनुभव करे। जब उसके जीवन में सुख हो, तब भी वह विनम्र होकर ईश्वर को अपने आस-पास अनुभव करे तथा जब वह दुखों में घिर जाए, तब भी ईश्वर पर उसका विश्वास न डगमगाए। कवि प्रार्थना करता है कि ईश्वर उसे आत्मिक बल प्रदान करने के लिए सदैव उसके साथ रहे। वह कभी अपने पथ से विचलित न हो।
प्रश्न 5.
‘आत्मत्राण’ शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘आत्मत्राण’ शीर्षक का अर्थ बताते हुए उसका सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि ने ‘आत्मत्राण’ कविता में ईश्वर से आत्मिक एवं नैतिक बल प्रदान करने की प्रार्थना की है। ‘आत्म’ से तात्पर्य अपना तथा ‘त्राण’ का अर्थ रक्षा अथवा बचाव है। कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि उसे वह शक्ति प्रदान करे, जिससे वह अपने आप अपनी रक्षा कर सके। वह जीवन के सभी संघर्षों से स्वयं जूझना चाहता है। वह ईश्वर से सहायता नहीं चाहता अपितु वह अपनी सहायता स्वयं करना चाहता है। इसी आधार पर कवि ने इस कविता का नामकरण ‘आत्मत्राण’ किया है। यह नामकरण कविता के मूल भाव को व्यक्त करने में पूर्णत: सक्षम है। अतः यह शीर्षक एकदम उचित, सार्थक एवं स्टीक है।
प्रश्न 6.
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आप प्रार्थना के अतिरिक्त और क्या-क्या प्रयास करते हैं ? लिखिए।
उत्तर :
प्रायः अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की जाती है लेकिन हम अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना के साथ-साथ मेहनत भी करते हैं। केवल प्रार्थना करने से सफलता नहीं मिलती। प्रार्थना के साथ-साथ परिश्रम करने से ही सफलता मिलती है। इसके अतिरिक्त अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हम दूसरों से प्रेरणा लेते हैं। हम अपने-अपने क्षेत्र में उन्नति करते हुए अनेक लोगों से प्रेरणा लेकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं। इस प्रकार लक्ष्य-प्राप्ति पर हमारी इच्छाओं की पूर्ति होती है। ईश्वर की प्रार्थना के साथ-साथ हम स्वयं पर आत्मविश्वास रखकर ही अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर सकते हैं।
प्रश्न 7.
क्या कवि की यह प्रार्थना तम्हें अन्य प्रार्थना गीतों से अलग लगती है? यदि हाँ. तो कैसे?
उत्तर :
कवि की यह प्रार्थना अन्य प्रार्थना गीतों से अलग है। अन्य प्रार्थना गीतों में ईश्वर से अपना कल्याण करने की प्रार्थना की जाती है, किंतु इस प्रार्थना गीत में कवि स्वयं संघर्ष करके मुसीबतों का मुकाबला करना चाहता है। अन्य प्रार्थना गीतों में स्वयं को दीनहीन प्रदर्शित करके ईश्वर से उद्धार करने की प्रार्थना की जाती है, लेकिन इस प्रार्थना में कवि ने ईश्वर से कुछ न करने को कहा है।
वह केवल इतना चाहता है किं ईश्वर उसका आत्मिक और नैतिक बल बनाए रखे अन्य प्रार्थनाओं के विपरीत इस प्रार्थना में कवि ने अपना सारा भार ईश्वर पर नहीं डाला। कवि अपनी सहायता स्वयं करना चाहता है। वह केवल इतना चाहता है कि ईश्वर उसके आस-पास रहे और उसे उसकी मात्र अनुभूति होती रहे। इस प्रार्थना की यही विशेषताएँ इसे अन्य प्रार्थना गीतों से अलग करती है।
(ख) निम्नलिखित अंशों का भाव स्पष्ट कीजिए –
प्रश्न :
1. नत शिर होकर सुख के दिन में, तव मुख पहचानूँ छिन-छिन में।
2. हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही, तो भी मन में ना मानूँ क्षय
3. तरने की हो शक्ति अनामय, मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।
उत्तर :
1. इन पंक्तियों में कवि कहता है कि सुख के दिनों में भी उसे किसी तरह का अभिमान न हो! वह विनम्र रहे तथा ईश्वर में उसकी आस्था पहले जैसी ही बनी रहे। कवि कहना चाहता है कि वह सुख के दिनों में भी अपने सिर को झुकाकर अत्यंत विनम्र भाव से ईश्वर की छवि को पल-पल निहारता रहे। ईश्वर में उसका विश्वास ज़रा भी कम न हो। वह ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वह सुख के नशे में डूबकर उन्हें कभी न भूले।
2. इन पंक्तियों में कवि ने ईश्वर से प्रार्थना की है कि कठिन परिस्थितियों में भी उसका मन हार न माने। कवि कहना चाहता है कि उसे संसार में पग-पग पर हानि उठाना स्वीकार है और यदि उसे लाभ के स्थान पर धोखा मिले, तो भी वह नहीं घबराएगा। वह केवल इतना चाहता है कि ऐसी संकट की घड़ी में भी उसका मन न हारे। यदि उसका मन हार गया तो फिर उसके जीवन में कुछ भी शेष नहीं रहेगा। अतः कवि ने यहाँ ईश्वर से मानसिक बल देने की प्रार्थना की है।
3. इन पंक्तियों में कवि कहना चाहता है कि ईश्वर उसे इतनी मानसिक दृढ़ता दे कि वह अपने दुखों को सहन कर सके। कवि ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है कि यदि वह उसके दुखों के भार को कम करके उसे दिलासा न दे, तो भी उसे दुख नहीं है। वह केवल इतना चाहता है कि ईश्वर उसे मानसिक और शारीरिक रूप से इतना दृढ़ कर दे कि वह संसाररूपी सागर को सरलता से पार कर जाए। कवि ईश्वर से सांत्वना के स्थान पर स्वयं को संघर्ष करने की शक्ति प्रदान करने की बात कहता है।
योग्यता विस्तार –
प्रश्न 1.
रवींद्रनाथ ठाकुर ने अनेक गीतों की रचना की है। उनके गीत-संग्रह में से दो गीत छाँटिए और कक्षा में कविता-पाठ कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
प्रश्न 2.
अनेक अन्य कवियों ने भी प्रार्थना गीत लिखे हैं, उन्हें पढ़ने का प्रयास कीजिए। जैसे –
1. महादेवी वर्मा-क्या पूजा क्या अर्चन रे!
2. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला-दलित जन पर करो करुणा।
3. इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो न
हम चलें नेक रस्ते पर हम से, भूल कर भी कोई भूल हो न
इस प्रार्थना को ढूँढ़कर पूरा पढ़िए और समझिए कि दोनों प्रार्थनाओं में क्या समानता है? क्या आपको दोनों में कोई अंतर भी प्रतीत होता है ? इस पर आपस में चर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
परियोजना कार्य –
प्रश्न 1.
रवींद्रनाथ ठाकुर को नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय होने का गौरव प्राप्त है। उनके विषय में और जानकारी एकत्र कर परियोजना पुस्तिका में लिखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
प्रश्न 2.
रवींद्रनाथ ठाकुर की ‘गीतांजलि’ को पुस्तकालय से लेकर पढ़िए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
प्रश्न 3.
रवींद्रनाथ ठाकुर ने कलकत्ता (कोलकाता) के निकट एक शिक्षण संस्थान की स्थापना की थी। पुस्तकालय की मदद से उसके विषय में जानकारी एकत्रित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
प्रश्न 4.
रवींद्रनाथ ठाकुर ने अनेक गीत लिखे, जिन्हें आज भी गाया जाता है और उसे रवींद्र संगीत कहा जाता है। यदि संभव हो तो रवींद्र संगीत संबंधी कैसेट व सी०डी० लेकर सुनिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
JAC Class 10 Hindi आत्मत्राण Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
कवि ने ‘करुणामय’ किसे कहा है ? कवि ने क्या कामना की है ?
उत्तर :
कवि ने ‘करुणामय’ ईश्वर को कहा है। उसके अनुसार ईश्वर सब प्रकार से समर्थ और सर्वशक्तिमान है। ईश्वर में सबकुछ संभव कर देने की शक्ति है। कवि ने ईश्वर से कामना की है कि वह उसे जीवन में संघर्ष करने की शक्ति प्रदान करे। कवि जीवन की प्रत्येक मुसीबत में और प्रत्येक द्वंद्व में ईश्वर से अपने बलबूते पर सफल होने की कामना करता है। वह जीवन में प्रत्येक क्षण, अपने प्रत्येक सुख-दुख और संघर्ष में ईश्वर को अपने आस-पास अनुभव करना चाहता है।
प्रश्न 2.
कवि ईश्वर से दुख के समय सांत्वना के स्थान पर क्या चाहता है ?
उत्तर :
कवि कहता है कि दुख के समय ईश्वर यदि उसके हृदय को सांत्वना नहीं देता, तो भी उसे गम नहीं है। वह केवल इतना चाहता है कि ईश्वर उसे दुखों पर विजय पाने की शक्ति प्रदान करे। यदि दुख के क्षण में उसे कोई सहायक न भी मिले, तो भी कवि चाहता है कि उसका आत्मिक बल और पराक्रम बना रहे। वह स्वयं अपने दुखों से संघर्ष करके उन पर विजय पाना चाहता है। अभिप्राय यह है कि कवि अपनी समस्याओं व कठिनाइयों से स्वयं संघर्ष करना चाहता है; वह ईश्वर से केवल संघर्ष करने की शक्ति प्रदान करने के लिए कहता है।
प्रश्न 3.
अंत में कवि ने ईश्वर से क्या प्रार्थना की है?
उत्तर :
अंत में कवि ने ईश्वर से प्रार्थना की है कि वह सुख और दुख-दोनों ही स्थितियों में उसे अपने आस-पास अनुभव करे। कवि कहता है कि वह सुख में भी अपने ईश्वर को नहीं भूलना चाहता। वह विनम्रता से प्रभु के दर्शन करना चाहता है। जीवन में दुखरूपी रात्रि के आने पर तथा सारे संसार द्वारा धोखा मिलने पर कवि ने ईश्वर से प्रार्थना की है कि वह उस पर किसी प्रकार का संदेह न करे। कवि चाहता है कि वह दुख में भी ईश्वर पर अपने विश्वास को दृढ़ बनाए रखे।
प्रश्न 4.
‘आत्मत्राण’ कविता के द्वारा कवि क्या कहना चाहता है ? उसका संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘आत्मत्राण’ कविवर रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखित एक श्रेष्ठ कविता है। यह मूल रूप से बाँग्ला भाषा में लिखित है। इसमें कवि ने ईश्वर से उसे आत्मिक और मानसिक बल प्रदान करने की प्रार्थना की है। इसमें कवि ईश्वर से अपनी सहायता और कल्याण नहीं चाहता अपितु वह ईश्वर से ऐसी शक्ति को प्राप्त करना चाहता है, जिससे वह अपने जीवन के संकटों, मुसीबतों, मुश्किलों, दुर्बलताओं से लड़ सके; जिससे वह जीवनरूपी सागर से पार हो सके। कवि किसी दूसरे पर आश्रित होने की बजाय स्वावलंबी बनकर अपनी समस्याओं व दुर्बलताओं से संघर्ष करना चाहता है।
प्रश्न 5.
रवींद्रनाथ ठाकुर की भाषा-शैली पर नोट लिखिए।
उत्तर :
रवींद्रनाथ ठाकुर की भाषा-शैली अत्यंत सरस, सहज और सरल
विद्यमान है। इनकी शैली भावात्मक तथा आत्मकथात्मक है। इसमें प्रवाहमयता, लयात्मकता, संगीतात्मकता, चित्रात्मक आदि का समावेश है।
प्रश्न 6.
‘आत्मत्राण’ कविता की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
‘आत्मत्राण’ कविता रर्वींद्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित है। इसमें कवि ने तत्सम प्रधान सहज, सरल भाषा का प्रयोग किया है। शैली भावपूर्ण है। चित्रात्मकता एवं प्रवाहमयता का समावेश है। मुक्तक छंद का प्रयोग है। भक्ति रस तथा प्रसाद गुण है। अनुप्रास, पदमैत्री एवं स्वरमैत्री अलंकारों का प्रयोग हुआ है।
प्रश्न 7.
कवि किन पर विजय पाना चाहता है ? क्यों ?
उत्तर :
कवि दुखों पर विजय पाना चाहता है, ताकि उसका जीवन संघर्षमय बना रहे। वह अपने जीवन में निरंतर संघर्ष करना चाहता है। वह कहता है कि चाहे प्रभु उसके दुखी हृदय को सांत्वना न दें, परंतु उसे दुखों पर विजय पाने की शक्ति अवश्य प्रदान करें।
प्रश्न 8.
‘नत शिर होकर सुख के दिन में, तब मुख पहचानूँ छिन-छिन में।’ अवतरण का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर :
इस अवतरण में कविवर रवींद्रनाथ ठाकुर ने ईश्वर से प्रार्थना की है कि मैं तुम्हें सुखमय दिनों में भी न भुला पाऊँ। भाषा सहज, सरल, तत्सम प्रधान है। मक्तक छंद है। शांत रस है। प्रसाद गुण है। पनरुक्ति प्रकाश, पदमैत्री अलंकारों की छटा है। प्रवाहमयता एवं भावात्मकता का समावेश है।
प्रश्न 9.
‘आत्मत्राण’ कविता के आधार पर बताइए कि हमें दुख के समय प्रभु से किस प्रकार की प्रार्थना करनी चाहिए?
उत्तर :
कविता में कवि ने लकीर से हटकर चलने की बात की है। आमतौर पर मनुष्य ईश्वर से दुख को मिटाने या उससे मुक्त होने की प्रार्थना करता है, किंतु इस कविता में कवि ऐसा कुछ नहीं चाहता। वह ईश्वर से दुख सहने की शक्ति प्रदान करने के लिए कहता है। वह अपने कष्टों को सहने के लिए आत्मिक बल की याचना करता है।
प्रश्न 10.
‘आत्मत्राण’ कविता मूल रूप में किस भाषा में लिखी गई थी? कवि ने इसमें क्या प्रार्थना की है?
उत्तर :
‘आत्मत्राण’ कविता मूल रूप से बाँग्ला भाषा में लिखी गई। इसके रचनाकार रवींद्रनाथ टैगोर हैं। बाद में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इसका हिंदी में अनुवाद किया गया। इस कविता में कवि ने प्रभु से प्रार्थना की है कि वे उसे मानसिक तथा आत्मिक बल प्रदान करें, जिससे वह अपने जीवन के कष्टों का सामना कर सके।
आत्मत्राण Summary in Hindi
कवि-परिचय :
जीवन-श्री रवींद्रनाथ ठाकुर भारत में नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में कवि-रूप में प्रसिद्ध हैं, इसलिए उन्हें विश्व-कवि की संज्ञा दी गई है। उनका जन्म बंगाल के एक संपन्न परिवार में 6 मई 1861 में हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध घर पर ही किया गया। तीव्र प्रतिभा तथा स्वाध्याय के बल पर उन्होंने छोटी आयु में ही अनेक विषयों की जानकारी प्राप्त कर ली। प्रकृति के साथ उनका गहरा अनुराग था। उन्हें बैरिस्ट्री का अध्ययन करने के लिए विदेश भेजा गया, पर वे बिना परीक्षा दिए ही स्वदेश लौट आए।
रवींद्रनाथ की ग्रामीण जीवन में बड़ी रुचि थी। अत: उन्होंने बंगाल के गाँवों का खूब भ्रमण किया। गाँवों के लोक-जीवन से भी वे अत्यधिक प्रभावित थे। चित्रकला तथा संगीत में भी उनकी विशेष रुचि थी। सन 1913 ई० में उन्हें गीतांजलि के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने शांति निकेतन नामक एक शैक्षिक व सांस्कृतिक संस्था की स्थापना की, जो कि आज भी कार्यरत है। वर्ष 1941 में रवींद्रनाथ सदा के लिए निंद्रालीन हो गए।
रचनाएँ – रवींद्रनाथ ठाकुर की कविताओं में मानव-प्रेम, राष्ट्र-प्रेम तथा अध्यात्म-प्रेम की विशेष अभिव्यक्ति हुई है। प्रेम और सौंदर्य के प्रति भी उनका बड़ा आकर्षण रहा है। इन गुणों के कारण ही उनकी रचनाएँ विश्व विख्यात हुईं। बाँग्ला भाषा के साथ-साथ उन्होंने अंग्रेजी भाषा में भी साहित्य की रचना की है। उनकी प्राय: सभी रचनाओं का विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। उनकी उल्लेखनीय रचनाएँ हैं-गीतांजलि, नैवेद्य, पूरबी, क्षणिका, चित्र और सांध्य गीत आदि। कविता के अतिरिक्त उन्होंने कहानी, उपन्यास, यात्रा-वृत्तांत तथा निबंधों की भी रचना की है। इनकी प्रमुख कहानी ‘काबुलीवाला’ तथा प्रसिद्ध उपन्यास ‘गोरा’ है।
भाषा-शैली – रवींद्रनाथ ठाकुर की भाषा-शैली अत्यंत सरल, सरस और सहज है। इनकी भाषा में भावुकता के दर्शन अधिक होते हैं। मार्मिकता, प्रभावोत्पादकता तथा रोचकता इनकी भाषा की अन्य विशेषताएँ हैं। इनकी काव्य-भाषा में एक विशेष लय तथा ताल दिखाई देती है, जिससे इनकी भाषा में संगीतात्मकता आ गई है। इनकी कविताएँ भी गीत के समान गाई जा सकती हैं। रवींद्रनाथ ठाकुर की शैली भावात्मक और आत्मकथात्मक है। इनकी शैली में गीतात्मकता भी दिखाई देती है।
कविता का सार :
‘आत्मत्राण’ रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखी एक श्रेष्ठ कविता है। यह कविता मूल रूप से बाँग्ला भाषा में लिखी गई थी, जिसका हिंदी में : अनुवाद किया गया है। इस कविता में कवि ने ईश्वर से उसे आत्मिक और मानसिक बल प्रदान करने की प्रार्थना की है। कवि ईश्वर से अपनी सहायता और कल्याण नहीं चाहता अपितु वह ईश्वर से ऐसी शक्ति प्राप्त करना चाहता है, जिससे वह स्वयं अपनी समस्त मुसीबतों और संकटों से लड़ सके।
कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वह यह नहीं चाहता कि उसे मुसीबतों से बचाया जाए बल्कि वह यह चाहता है कि जीवन में अनेक मुसीबतें आने पर भी वह उनसे न डरे। उस समय उसमें इतना साहस आ जाए कि वह सभी मुसीबतों का डटकर मुकाबला करे। कवि कहता है कि हे करुणामय ईश्वर! आप दुखों और परेशानियों से दुखी मेरे हृदय को चाहे सांत्वना न दें, लेकिन मुझे इतनी शक्ति दें कि मैं दुखों पर विजय प्राप्त कर सकूँ।
जब मेरे जीवन में दुख आए और कोई मेरी सहायता करने वाला न मिले, तब आप मुझे इतनी शक्ति दें कि मेरा आत्मविश्वास और पराक्रम बना रहे। कवि चाहता है कि जब उसे चारों ओर हानि हो और विश्वास के स्थान पर धोखा मिले, तो ईश्वर उसके मन को दृढ़ता प्रदान करें; उसका मन कभी भी संघर्षों से घबराकर हार न माने।
कवि ईश्वर से पुन: प्रार्थना करता है कि हे ईश्वर! चाहे उसकी प्रतिदिन रक्षा न की जाए, किंतु उसे जीवनरूपी सागर को पार करने की शक्ति अवश्य प्रदान की जाए। वह कहता है कि यदि उसके दुखों के भार को कम नहीं किया जा सकता, तो उसे उन दुखों को सहन करने की शक्ति प्रदान की जाए।
कवि प्रार्थना करता है कि वह सुख के दिनों में भी ईश्वर के प्रति विनम्र बना रहे और अभिमान में डूबकर ईश्वर को न भूले। अंत में कवि कहता है कि जब वह दुखरूपी रात्रि में घिर जाए और सारा संसार उसे धोखा दे जाए, तो भी उसे अपने ईश्वर पर कोई संदेह न हो। दुख की घड़ी में भी उसका अपने ईश्वर पर विश्वास बना रहे।
सप्रसंग व्याख्या –
1. विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं
केवल इतना हो (करुणामय)
कभी न विपदा में पाऊँ भय।
शब्दार्थ : विपदाओं – विपत्तियों, मुसीबतों। करुणामय – दूसरों पर दया करने वाला, दया से परिपूर्ण। भय – डर।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखित तथा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा अनूदित कविता ‘आत्मत्राण’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने ईश्वर से आत्मिक एवं मानसिक बल देने की प्रार्थना की है।
व्याख्या : कवि कहता है कि हे ईश्वर! आप सब पर दया करने वाले हैं। आप सब प्रकार से समर्थ हैं। आप सबकुछ कर सकते हैं। फिर भी कवि उनसे अपने आपको विपत्तियों से बचाने की प्रार्थना नहीं करना चाहता। कवि के अनुसार वह केवल इतनी प्रार्थना करना चाहता है कि जब वह मुसीबतों में घिर जाए तो वह उन विपदाओं से न डरे। वह उन कठिनाइयों का सफलतापूर्वक सामना करना चाहता है। अतः वह ईश्वर से विपदाओं से जूझने की शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना करता है।
2. दुःख-ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही
पर इतना होवे (करुणामय)
दुख को मैं कर सकूँ सदा जय।
कोई कहीं सहायक न मिले
तो अपना बल पौरुष न हिले;
हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही
तो भी मन में ना मानूँ क्षय॥
शब्दार्थ : दुःख-ताप – कष्ट की पीड़ा। व्यथित – दुखी। चित्त – हृदय। सांत्वना – दिलासा। सहायक – सहायता करने वाला, मददगार। पौरुष – पराक्रम। वंचना – धोखा। क्षय – नाश।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित तथा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा अनुदित कविता ‘आत्मत्राण’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने ईश्वर से अपना कल्याण करने के स्थान पर संघर्ष करने की शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना की है।
व्याख्या : कवि कहता है कि चाहे ईश्वर सांसारिक दुखों से दुखी उसके हृदय को दिलासा न दें, परंतु वह इतना अवश्य चाहता है कि उसे दुखों पर विजय पाने की शक्ति प्रदान की जाए। वह स्वयं अपने दुखों से जूझकर उन पर विजय पाना चाहता है। दुख की घड़ी में यदि उसे कोई सहायक नहीं मिलता, तो उसे इतनी शक्ति अवश्य दी जाए कि उसका आत्मिक बल और पराक्रम न डगमगाए।
कवि ईश्वर से पुनः प्रार्थना करता है कि चाहे उसे जीवन में सदा हानि उठानी पड़े और लाभ के स्थान पर धोखा मिले, तो भी वह मन से हार न माने। वह ईश्वर से ऐसी शक्ति देने की प्रार्थना करता है कि मुसीबतों से बार-बार संघर्ष करने पर भी उसका मन कभी न हारे।
3. मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना नहीं
बस इतना होवे (करुणामय)
तरने की हो शक्ति अनामय।
मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।
केवल इतना रखना अनुनय –
वहन कर सकूँ इसको निर्भय।
शब्दार्थ : त्राण – रक्षा, बचाव। अनुदिन – प्रतिदिन। अनामय – स्वस्थ, रोग से रहित। लघु – छोटा। सांत्वना – दिलासा। अनुनय – विनय, दया। वहन – सहन। निर्भय – निडर।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित तथा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा अनूदित कविता ‘आत्मत्राण’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने ईश्वर से अपना कल्याण करने के स्थान पर संघर्ष करने की शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना की है।
व्याख्या : पंक्तियों के अनुसार कवि ईश्वर अपनी मुसीबतों और दुखों से प्रतिदिन रक्षा करने की प्रार्थना नहीं करना चाहता। वह केवल इतना चाहता है कि वे उसे स्वस्थ मन और तन से जीवनरूपी सागर को पार करने की शक्ति प्रदान करें। कवि पुनः कहता है कि ईश्वर चाहे उसके दुखों के भार को कम करके उसे दिलासा न दें, किंतु वे उसे जीवन में आने वाले दुखों को निडरतापूर्वक सहने की शक्ति दें। वह स्वयं संघर्ष करना चाहता है, किंतु प्रत्येक क्षण ईश्वर का साथ चाहता है।
4. नत शिर होकर सुख के दिन में
तब मुख पहचानूँ छिन-छिन में।
दुःख-रात्रि में करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही
उस दिन ऐसा हो करुणामय,
तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय॥
शब्दार्थ : नत शिर – सिर को झुकाकर। तव – तुम्हारा। दुःख-रात्रि – दुख से भरी रात। वंचना – धोखा, छल। निखिल – संपूर्ण। मही – पृथ्वी। संशय – संदेह, शक।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित एवं आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा अनूदित कविता ‘आत्मत्राण’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने ईश्वर से आत्मिक और मानसिक शक्ति देने की प्रार्थना की है, ताकि वह अपने जीवन-संघर्षों का मुकाबला कर सके।
व्याख्या : कवि प्रार्थना करते हए कहता है कि जब उसके जीवन में सुख के दिन आए तो भी वह ईश्वर को न भले। वह पल-पल सिर झकाकर उनके दर्शन करता रहे। जब उसके जीवन में दुखरूपी रात्रि आ जाए; सारा संसार उसे धोखा दे जाए और उसकी निंदा करे, तो भी वह ईश्वर पर विश्वास रखे। वह कभी ईश्वर पर संदेह न करे। कवि चाहता है कि सुख और दुख-दोनों ही स्थितियों में उसका ईश्वर पर विश्वास बना रहे।