Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 बड़े भाई साहब Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 बड़े भाई साहब
JAC Class 10 Hindi बड़े भाई साहब Textbook Questions and Answers
मौखिक –
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –
प्रश्न 1.
कथा-नायक की रुचि किन कार्यों में थी?
उत्तर :
कथा-नायक की रुचि खेलने-कूदने और मौज-मस्ती के कार्यों में थी। उसे कंकरियाँ उछालना व कागज़ की तितलियाँ उड़ाना अच्छा लगता है। कभी-कभी वह इधर-उधर घूमता था और कभी तरह-तरह के खेल खेलता था। उसकी पढ़ने में बिलकुल भी रुचि न थी।
प्रश्न 2.
बड़े भाई साहब छोटे भाई से हर समय पहला सवाल क्या पूछते थे?
उत्तर :
बड़े भाई साहब छोटे भाई से हर समय पहला सवाल यही पूछते थे कि अब तक तुम कहाँ थे? उसके बाद वे लंबा-चौड़ा भाषण दिया करते थे।
प्रश्न 3.
दूसरी बार पास होने पर छोटे भाई के व्यवहार में क्या परिवर्तन आया?
उत्तर :
दूसरी बार पास होने पर छोटा भाई बड़े भाई की सहनशीलता का अनुचित लाभ उठाने लगा। वह पहले से अधिक स्वच्छंद हो गया। वह अपना अधिक समय खेल-कूद में ही लगाने लगा।
प्रश्न 4.
बड़े भाई साहब छोटे भाई से उम्र में कितने बड़े थे और वे कौन-सी कक्षा में पढ़ते थे?
उत्तर :
बड़े भाई साहब लेखक से उम्र में पाँच साल बड़े थे। वे नौवीं कक्षा में पढ़ते थे।
प्रश्न 5.
बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए क्या करते थे?
उत्तर :
बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए कॉपी और किताब के हाशियों पर चिड़ियों, कुत्तों और बिल्लियों की तसवीरें बनाया करते थे। कभी-कभी एक ही नाम, शब्द या वाक्य को कई बार लिखते थे और कभी ऐसी शब्द-रचना कर देते थे, जिसका कोई अर्थ और सामंजस्य नहीं होता था।
लिखित –
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30) शब्दों में लिखिए –
प्रश्न 1.
छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम-टेबिल बनाते समय क्या-क्या सोचा और फिर उसका पालन क्यों नहीं कर पाया?
उत्तर :
बड़े भाई द्वारा बुरी तरह लताड़े जाने पर छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम-टेबिल बना लिया। टाइम-टेबिल बनाते समय उसने सोचा कि अब वह खूब मन लगाकर पढ़ेगा और खेलकूद की ओर ध्यान नहीं देगा। उसने टाइम-टेबिल में खेलकूद का समय भी निर्धारित नहीं किया। लेकिन जैसे ही उसने टाइम-टेबिल का पालन करना चाहा, उसे खेलकूद की याद सताने लगी। उसे मैदान की सुखद हरियाली, हवा के हल्के-हल्के झोंके तथा कबड्डी व वॉलीबॉल आदि खेलों का आनंद अपनी ओर खींचने लगा। इस कारण छोटा भाई टाइम-टेबिल बनाकर भी उसका पालन नहीं कर पाया।
प्रश्न 2.
एक दिन जब गुल्ली-डंडा खेलने के बाद छोटा भाई बड़े भाई के सामने पहुंचा तो उनकी क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर :
एक दिन जब छोटा भाई गुल्ली-डंडा खेलने के बाद भोजन के समय लौटा, तो बड़े भाई साहब उस पर बहुत क्रोधित हुए। उन्हो डाँटते-फटकारते हुए कई तरह से समझाने का प्रयास किया। बड़े भाई साहब ने छोटे भाई से कहा कि उसे अपने पास होने का घमंड नहीं करना चाहिए। उन्होंने अनेक घमंडी लोगों और राजाओं के उदाहरण देकर उसे बताया कि घमंड करने से बड़े-से-बड़े व्यक्ति का भी नाश हो जाता है। उन्होंने उसके परीक्षा में पास होने को भी केवल एक संयोग बताया। बड़े भाई साहब ने छोटे भाई को खेलों से दूर रहने की नसीहत दी।
प्रश्न 3.
बड़े भाई साहब को अपने मन की इच्छाएँ क्यों दबानी पड़ती थीं ?
उत्तर :
बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई से पाँच साल बड़े थे। बड़ा होने के नाते वे हर समय यही कोशिश करते कि वे जो कुछ भी करें, वह उनके छोटे भाई के लिए एक उदाहरण बन जाए। वे सदा अपने आपको एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत करना चाहते थे। उन्हें लगता था कि वे जैसा आचरण करेंगे, उनका छोटा भाई भी वैसा ही आचरण करेगा। अतः अपने छोटे भाई को अच्छी शिक्षा देने की चाह के कारण बड़े भाई साहब को अपने मन की इच्छाएँ दबानी पड़ती थीं।
प्रश्न 4.
बड़े भाई साहब छोटे भाई को क्या सलाह देते थे और क्यों?
उत्तर :
बड़े भाई साहब छोटे भाई को पढ़ने-लिखने की सलाह देते थे। उनकी इच्छा थी कि जिस प्रकार वे हर उनका छोटा भाई भी अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगाए। उन्हें अपने छोटे भाई का खेलना और इधर-उधर घूमना अच्छा नहीं लगता था। बड़े भाई साहब चाहते थे कि उनका छोटा भाई पढ़-लिखकर विद्वान बने। इसी कारण वे उसे खेलकूद छोड़कर पढ़ने की सलाह दिया करते थे।
प्रश्न 5.
छोटे भाई ने बड़े भाई साहब के नरम व्यवहार का क्या फ़ायदा उठाया?
उत्तर :
लेखक के दूसरी बार पास होने और बड़े भाई साहब के फेल होने पर बड़े भाई साहब का व्यवहार नरम पड़ गया। वे अब लेखक को कम डाँटते थे। लेखक उनके नरम व्यवहार के कारण पहले से अधिक स्वच्छंद हो गया। उसने पढ़ने-लिखने के स्थान पर मौज-मस्ती करना शुरू कर दिया। वह अपना सारा समय पतंगबाजी और अन्य खेलों में लगाने लगा।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60) शब्दों में लिखिए –
प्रश्न 1.
बड़े भाई की डाँट-फटकार अगर न मिलती, तो क्या छोटा भाई कक्षा में अव्वल आता? अपने विचार प्रकट कीजिए। उत्तर :
बड़े भाई साहब के साथ उनका छोटा भाई भी होस्टल में रहता था। बड़े भाई साहब हर समय पढ़ते रहते थे। वे चाहते थे कि उनका छोटा भाई भी खूब पढ़े, किंतु छोटे भाई का ध्यान पढ़ाई की बजाय खेलों में अधिक था। वे उसे निरंतर डाँटते-फटकारते रहते। उनकी डाँट-फटकार का प्रभाव यह हुआ कि छोटा भाई कक्षा में अव्वल आया। यदि बड़े भाई साहब उसे न डाँटते, तो उसका अव्वल आना संभव नहीं था।
बड़े भाई साहब ने स्वयं को आदर्श रूप में प्रस्तुत करते हुए स्वयं को सभी प्रकार के खेलों से दूर रखा। उन्होंने एक पिता के समान छोटे भाई पर पूरा नियंत्रण रखा और उसे पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित किया। यदि बड़े भाई साहब छोटे भाई को न डाँटते, तो वह पढ़ने-लिखने में अपना ध्यान बिलकुल न लगाता और अव्वल आना तो दूर, वह पास भी न हो पाता। निश्चित रूप से छोटे भाई के अव्वल आने में बड़े भाई साहब की डाँट-फटकार का पूरा योगदान था।
प्रश्न 2.
‘बड़े भाई साहब’ पाठ में लेखक ने समूची शिक्षा के किन तौर-तरीकों पर व्यंग्य किया है ? क्या आप उनके विच्चार से सहमत हैं ?
अथवा
‘बड़े भाई साहब’ कहानी के आधार पर लगभग 100 शब्दों में लिखिए कि लेखक ने समूची शिक्षा प्रणाली के किन पहलुओं: पर व्यंग्य किया है? आपके विचारों से इसका क्या समाधान हो सकता है? तर्कपूर्ण उत्तर लिखिए।
उत्तर :
बड़े भाई साहब पाठ में लेखक ने शिक्षा के विभिन्न तौर-तरीकों पर व्यंग्य किया है। लेखक के अनुसार आजकल विद्यार्थियों को जो कुछ भी पढाया जा रहा है, उससे उनके वास्तविक जीवन का कोई लेना-देना नहीं है। इसे पढकर उन्हें जीवन में कोई विशेष लाभ: भी नहीं होता, किंतु परीक्षा पास करने के लिए विद्यार्थियों को यह सब रटना पड़ता है। लेखक कहता है कि इतिहास में अंग्रेजों का इतिहास पढ़ाया जाता है।
इस इतिहास का वर्तमान से कोई संबंध नहीं है और इसे पढ़कर विद्यार्थी कोई बहुत बड़ा नाम भी नहीं कमा लेखक की यह बात बिलकुल सही है कि विद्यार्थियों को आजकल जो कुछ पढ़ाया जा रहा है, वह उचित नहीं है। यह पढ़ाई-लिखाई उनके जीवन में कोई बदलाव लाने वाली नहीं है। यह पढ़ाई उन्हें किसी प्रकार से आत्मनिर्भर बनाने में भी सक्षम नहीं है। अतः हम लेखक के विचारों से पूर्णत: सहमत हैं।
प्रश्न 3.
बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ कैसे आती है?
उत्तर :
बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ अनुभव से आती है। उनका मत है कि किताबें पढ़ने से मनुष्य विद्या तो ग्रहण कर सकता है, किंतु जीवन जीने की समझ जिंदगी के अनुभव से आती है। अधिक पढ़ा-लिखा होने से व्यक्ति विद्वान तो बन सकता है, लेकिन जीवन जीने के लिए जीवन की समझ की भी ज़रूरत होती है, जो केवल अनुभव से ही प्राप्त की जा सकती है। कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी अनुभवी हो सकता है चाहे उसने किताबें न पढ़ी हों, किंतु उसे भी अपने अनुभव से जिंदगी की बहुत समझ होती है। उसे उसके जीवन में घटने वाली घटनाएँ ही अनुभवी बनाती हैं। बड़े भाई साहब जीवन के इसी अनुभव को किताबी ज्ञान से अधिक महत्व देते हैं।
प्रश्न 4.
छोटे भाई के मन में बड़े भाई साहब के प्रति श्रद्धा क्यों उत्पन्न हुई ?
उत्तर :
परीक्षा में दूसरी बार भी पास होने पर छोटा भाई पढ़ाई-लिखाई से दूर हो गया। एक दिन जब वह एक पतंग के पीछे दौड़ रहा था, तो बड़े भाई साहब ने उसे पकड़ लिया। उन्होंने उसे बुरी तरह फटकारा। उनके द्वारा दिए गए तर्क और उदाहरण इतने सटीक थे कि छोटा भाई हैरान रह गया। बड़े भाई साहब ने उसे बताया कि केवल किताबी ज्ञान पा लेने से कोई महान नहीं बन जाता, बल्कि जीवन की समझ अनुभव से आती है।
बड़े भाई साहब छोटे भाई को बड़े ही सुंदर ढंग से समझाते हैं कि पढ़-लिखकर पास होना और जीवन की समझ होना-दोनों अलग-अलग बातें हैं। वे चाहे परीक्षा में पास न हुए हों, किंतु उनके पास जीवन का अनुभव अधिक है। परीक्षा में केवल पास होना ही बड़ी बात नहीं है अपितु अच्छे-बुरे समय में अपने आपको उसके अनुसार ढाल लेना बड़ी बात है।
बड़े भाई साहब उसे अपनी माता, दादा और हेडमास्टर साहब का उदाहरण देकर समझाते हैं कि जीवन में अनुभव की अधिक आवश्यकता है और उनके पास उससे कहीं ज्यादा अनुभव है। बड़े भाई साहब की ऐसी विद्वत्तापूर्ण बातों को सुनकर छोटे भाई के मन में उनके प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो गई थी।
प्रश्न 5.
बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
(i) छोटे भाई का हितैषी – बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई का भला चाहने वाले हैं। वे निरंतर उसे अच्छाई की ओर प्रेरित करते हैं। वे स्वयं को उसके सामने एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत करते हैं। वे चाहते हैं कि उनका छोटा भाई किसी तरह से पढ़-लिख जाए। इसी कारण वे क्रोधित भी होते हैं और उस पर पूरा नियंत्रण भी रखते हैं।
(ii) गंभीर – बड़े भाई साहब गंभीर प्रवृत्ति के हैं। वे हर समय किताबों में खोए रहते हैं। वे अपने छोटे भाई के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहते हैं, इसलिए वे सदा अध्ययनशील रहते हैं। उनका गंभीर स्वभाव ही उन्हें विशिष्टता प्रदान करता है।
(iii) वाक् कला में निपुण – बड़े भाई साहब वाक् कला में निपुण हैं। वे अपने छोटे भाई को ऐसे-ऐसे उदाहरण देकर बताते हैं कि वह उनके आगे नतमस्तक हो जाता है। उन्हें शब्दों को सुंदर ढंग से प्रस्तुत करना आता है। यही कारण है कि वे अपने छोटे भाई पर अपना पूरा दबदबा बनाए रखते हैं।
(iv) वर्तमान शिक्षा-प्रणाली का विरोधी – बड़े भाई साहब वर्तमान शिक्षा-प्रणाली के विरोधी हैं। उनके अनुसार यह शिक्षा प्रणाली किसी प्रकार से भी लाभदायक नहीं है। यह विद्यार्थियों को कोरा किताबी ज्ञान देती है, जिसका वास्तविक जीवन में कोई लाभ नहीं होता। विद्यार्थी को ऐसी-ऐसी बातें पढ़ाई जाती हैं, जिनका उसके भावी जीवन से कोई संबंध नहीं होता। वे ऐसी शिक्षा-प्रणाली पर व्यंग्य करते हुए इसे दूर करने की बात कहते हैं।
प्रश्न 6.
बड़े भाई साहब ने जिंदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से किसे और क्यों महत्वपूर्ण कहा है ?
उत्तर :
बड़े भाई साहब ने जिंदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से जिंदगी के अनुभव को महत्वपूर्ण कहा है। उनके अनुसार किताबी ज्ञान से जीवन जीने की समझ नहीं आती। इससे जीवन की वास्तविकताओं का सामना भी नहीं किया जा सकता। किताबी ज्ञान प्राप्त करके व्यक्ति परिपक्व नहीं हो पाता। उनका मत है कि व्यक्ति अपनी जिंदगी के अनुभव से ही सबकुछ सीखता है। बहुत-से कम पढ़े-लिखे लोग भी; जिन्हें जिंदगी का अनुभव होता है; पढ़े-लिखे लोगों से अधिक समझदार होते हैं। जिंदगी का अनुभव हमें जीवन की कठिनाइयों का सामना करने में सक्षम बनाता है। व्यक्ति अपने अनुभव के आधार पर बड़े-से-बड़े कार्य को भी सरलता स से कर लेता है। जिंदगी का अनुभव हमें इतना परिपक्व बना देता है कि हम अपनी मुसीबतों को भी सरलता से झेल लेते हैं, जबकि से कर ले किताबी ज्ञान प्राप्त करने वाला व्यक्ति मुसीबतों में अपना धैर्य खो देता है। इसी कारण बड़े भाई साहब ने जिंदगी के अनुभव को किताबी ज्ञान स महत्वपण कहा है।
प्रश्न 7.
बताइए पाठ के किन अंशों से पता चलता है कि –
(क) छोटा भाई अपने भाई साहब का आदर करता है।
(ख) भाई साहब को जिंदगी का अच्छा अनुभव है।
(ग) भाई साहब के भीतर भी एक बच्चा है।
(घ) भाई साहब छोटे भाई का भला चाहते हैं।
उत्तर :
(क) छोटा भाई अपने बड़े भाई की डाँट-डपट को चुपचाप सहन करता है। दूसरी बार भी बड़े भाई साहब के फेल होने पर जब छोटा भाई परीक्षा में पास हो जाता है, तो वह खेलकूद में अधिक ध्यान लगाने लगता है। तब भी वह बड़े भाई साहब से छिपकर पतंगबाज़ी आदि करता है। इससे पता चलता है कि छोटा भाई अपने भाई साहब का आदर करता है।
(ख) भाई साहब अपने छोटे भाई को अनेक उदाहरण देकर घमंड न करने और जीवन में आगे बढ़ने को प्रेरित करते हैं। जब वे छोटे भाई को अपनी माता, दादा और हेडमास्टर साहब के विषय में बताते हैं, तो उनके द्वारा कही गई तर्कपूर्ण एवं सटीक बातों से पता चलता है कि उन्हें जिंदगी का अच्छा अनुभव है।
(ग) पाठ के अंत में जब भाई साहब एक पतंग की डोर को उछलकर पकड़ लेते हैं और होस्टल की ओर दौड़ते हैं, तो उनके इस व्यवहार से पता चलता है कि बड़े भाई साहब के भीतर भी एक बच्चा है।
(घ) छोटे भाई साहब को समय-समय पर पढ़ने-लिखने की ओर ध्यान लगाने के लिए कहते हैं। वे उसे समझाते हुए कहते हैं कि वे उसे किसी भी सूरत में गलत राह पर चलने नहीं देंगे। भाई साहब स्वयं एक आदर्श बनकर लेखक को जीवन में परिश्रम करने की शिक्षा देते हैं। उनकी डाँट-फटकार के पीछे भी उनका उद्देश्य लेखक का भला चाहना है। इससे स्पष्ट है कि बड़े भाई साहब छोटे भाई का भला चाहते हैं।
(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –
प्रश्न 1.
इम्तिहान पास कर लेना कोई चीज नहीं, असल चीज़ है बुद्धि का विकास।
उत्तर :
राक्षा में पास हाना काई है। बड़ी बात तो बुद्धि का विकास करना है। यदि कोई व्यक्ति अनेक परीक्षाएँ पास कर ले, किंतु उसे अच्छे-बुरे में अंतर करना न आए तो उसकी पढ़ाई व्यर्थ है। पुस्तकों को पढ़कर उसके ज्ञान से अपनी बुद्धि का विकास करना ही असली विद्या है।
प्रश्न 2.
फिर भी जैसे मौत और विपत्ति के बीच भी आदमी मोह और माया के बंधन में जकड़ा रहता है, मैं फटकार और घड़कियाँ खाकर भी खेल-कूद का तिरस्कार न कर सकता था।
उत्तर :
प्रस्तुत कथन छोटे भाई का है। वह अपने बड़े भाई से छिपकर खेलने जाया करता था। उसे पता था कि यदि उसके भाई साहब को पता चल जाएगा तो वे उसे बुरी तरह फटकारेंगे, किंतु छोटे भाई को खेल-कूद से इतना अधिक मोह था कि वह चाहकर भी खेल-कूद को नहीं छोड़ सकता था।
लेखक कहता है कि जिस प्रकार मौत और विपत्ति से घिरा हुआ मनुष्य भी मोह-माया के बंधनों से नहीं निकल पाता, उसी प्रकार बड़े भाई साहब की फटकार और घुड़कियाँ खाकर भी छोटा भाई अपने खेल-कूद को नहीं छोड़ सकता था। वह अपने खेलकूद के कारण अनेक प्रकार की डाँट-फटकार सहन करता था, लेकिन खेलकूद का मोह छोड़ पाना उसके लिए संभव नहीं था।
प्रश्न 3.
बुनियाद ही पुख्ता न हो तो मकान कैसे पायेदार बने ?
उत्तर :
इस पंक्ति से लेखक का आशय है कि किसी भी मज़बूत मकान के लिए मज़बूत नींव का होना आवश्यक है। यदि नींव कमजोर होगी, तो उस पर बना मकान भी कमजोर ही होगा। नींव जितनी मज़बूत होगी, उस पर बना मकान भी उतना ही मज़बूत होगा। उसी तरह किसी भी मज़बूत व्यक्तित्व के निर्माण के लिए उसकी नींव का बहुत बड़ा योगदान होता है। अत: नींव को मजबूत बनाना चाहिए।
प्रश्न 4.
आँखें आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो मंद गति से झूमता पतन की ओर चला आ रहा था, मानो कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नए संस्कार ग्रहण करने जा रही हो।
उत्तर :
लेखक कहता है कि एक दिन वह एक कटी हुई पतंग को लूटने के लिए उसके पीछे दौड़ रहा था। उस समय उसकी आँखें आसमान की ओर थीं और उसका मन उस कटी हुई पतंग की ओर लगा हुआ था। पतंग धीरे-धीरे हवा में लहराती हुई नीचे की ओर गिरने को थी। उस समय वह पतंग ऐसी प्रतीत हो रही थी, जैसे कोई पवित्र व शांत आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से धरती पर नया जन्म लेने के लिए उतर रही हो।
भाषा-अध्ययन –
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए –
नसीहत, रोष, आज़ादी, राजा, ताज्जुब
उत्तर
- नसीहत – उपदेश, सीख
- रोष – क्रोध, गुस्सा
- आज़ादी – स्वतंत्रता, स्वाधीनता
- राजा – नरेश, नृप
- ताज्जुब – हैरानी, आश्चर्य
प्रश्न 2.
प्रेमचंद की भाषा बहुत पैनी और मुहावरेदार है। इसीलिए इनकी कहानियाँ रोचक और प्रभावपूर्ण होती हैं। इस कहानी में आप देखेंगे कि हर अनुच्छेद में दो-तीन मुहावरों का प्रयोग किया गया है। उदाहरणतः इन वाक्यों को देखिए और ध्यान से पढ़िए –
मेरा जी पढ़ने में बिलकुल न लगता था। एक घंटा भी किताब लेकर बैठना पहाड़ था।
भाई साहब उपदेश की कला में निपुण थे। ऐसी-ऐसी लगती बातें कहते, ऐसे-ऐसे सूक्ति बाण चलाते कि मेरे जिगर के टुकड़े-टुकड़े हो जाते और हिम्मत टूट जाती। वह जानलेवा टाइम-टेबिल, वह आँखफोड़ पुस्तकें, किसी की याद न रहती और भाई साहब को नसीहत और फ़जीहत का अवसर मिल जाता।
निम्नलिखित मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
सिर पर नंगी तलवार लटकना, आड़े हाथों लेना, अंधे के हाथ बटेर लगना, लोहे के चने चबाना, दाँतों पसीना आना, ऐरा-गैरा नत्थू खैरा।
उत्तर :
- सिर पर नंगी तलवार लटकना – युद्ध-क्षेत्र में सैनिकों के सिर पर सदा नंगी तलवार लटकती रहती है।
- आड़े हाथों लेना – जब रमेश द्वारा मोहन पर लगाए आरोप झूठे निकले, तो मोहन ने उसे आड़े हाथों लिया।
- अंधे के हाथ बटेर लगना – सोहन कम पढ़ा-लिखा है, किंतु उसे सरकारी नौकरी मिल गई है। सच है कि अंधे के हाथों बटेर लग गई।
- लोहे के चने चबाना – जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए लोहे के चने चबाने पड़ते हैं।
- दाँतों पसीना आना – आई०ए०एस० की परीक्षा पास करने में दाँतों पसीना आ जाता है।
- ऐरा-गैरा नत्थू खैरा – एवरेस्ट पर चढ़ना ऐरे-गैरे नत्थू खैरे का काम नहीं है।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित तत्सम, तद्भव, देशी, आगत शब्दों को दिए गए उदाहरणों के आधार पर छाँटकर लिखिए –
तालीम, जल्दबाज़ी, पुख्ता, हाशिया, चेष्टा, जमात, हर्फ़, सूक्तिबाण, जानलेवा, आँखफोड़, घुड़कियाँ, आधिपत्य, पन्ना, मेला-तमाशा, मसलन, स्पेशल, स्कीम, फटकार, प्रातःकाल, विद्ववान, निपुण, भाई साहब, अवहेलना, टाइम-टेबिल
उत्तर :
प्रश्न 4.
क्रियाएँ मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं-सकर्मक और अकर्मक।
सकर्मक क्रिया – वाक्य में जिस क्रिया के प्रयोग में कर्म की अपेक्षा रहती है, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं; जैसे –
शीला ने सेब खाया।
मोहन पानी पी रहा है।
अकर्मक क्रिया – वाक्य में जिस क्रिया के प्रयोग में कर्म की अपेक्षा नहीं होती, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं; जैसे- शीला हँसती है।
बच्चा रो रहा है।
नीचे दिए वाक्यों में कौन-सी क्रिया है-सकर्मक या अकर्मक? लिखिए –
(ख) सकर्मक क्रिया
(ख) फिर चोरों-सा जीवन कटने लगा।
(ग) शैतान का हाल भी पढ़ा ही होगा।
(घ) मैं यह लताड़ सुनकर आँसू बहाने लगता।
(ङ) समय की पाबंदी पर एक निबंध लिखो।
(च) मैं पीछे-पीछे दौड़ रहा था।
उत्तर :
(क) सकर्मक क्रिया
(ख) सकर्मक क्रिया
(ग) सकर्मक क्रिया
(घ) सकर्मक क्रिया
(ङ) सकर्मक क्रिया
(च) अकर्मक क्रिया
प्रश्न 5.
‘इक’ प्रत्यय लगाकर शब्द बनाइए –
विचार, इतिहास, संसार, दिन, नीति, प्रयोग, अधिकार
उत्तर :
विचार + इक = वैचारिक
इतिहास + इक = ऐतिहासिक
संसार + इक = सांसारिक
दिन + इक = दैनिक
नीति + इक = नैतिक
प्रयोग + इक = प्रयोगिक
अधिकार + इक = अधिकारिक
योग्यता विस्तार –
प्रश्न 1.
प्रेमचंद की कहानियाँ मानसरोवर के आठ भागों में संकलित हैं। इनमें से कहानियाँ पढ़िए और कक्षा में सुनाइए। कुछ कहानियों का मंचन भी कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
प्रश्न 2.
शिक्षा रटंत विद्या नहीं है-इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
प्रश्न 3.
क्या पढ़ाई और खेल-कूद साथ-साथ चल सकते हैं कक्षा में इस पर वाद-विवाद कार्यक्रम आयोजित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
प्रश्न 4.
क्या परीक्षा पास कर लेना ही योग्यता का आधार है? इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
परियोजना कार्य –
प्रश्न 1.
कहानी में जिंदगी से प्राप्त अनुभवों को किताबी ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण बताया गया है। अपने माता-पिता, बड़े भाई-बहनों या अन्य बुजुर्ग/बड़े सदस्यों से उनके जीवन के बारे में बातचीत कीजिए और पता लगाइए कि बेहतर ढंग से जिंदगी जीने के लिए क्या काम आया-समझदारी/पुराने अनुभव या किताबी पढ़ाई ?
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 2.
आपकी छोटी बहिन/छोटा भाई छात्रावास में रहती/रहता है। उसकी पढ़ाई-लिखाई के संबंध में उसे एक पत्र लिखिए। उत्तर :
15-सी, कर्ण विहार
पुणे 4 जनवरी, 20……
प्रिय दुष्यंत
शुभाशीष!
मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि तुम खूब मन लगाकर पढ़ रहे हो। तुम दसवीं कक्षा में आ गए हो। अब तुम्हें पढ़ाई-लिखाई की ओर अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है। छात्रावास में रहने वाले अपने साथियों के साथ बैठकर खूब पढ़ा करो। यदि अब तुम मेहनत कर लोगे, तो तुम्हें जीवन भर इसका लाभ मिलेगा। दसवीं की पढ़ाई थोड़ी कठिन है। ऐसे में तुम्हें अपने आपको मानसिक रूप से तैयार करके खूब पढ़ाई करनी होगी। मैं आशा करता हूँ कि तुम अच्छे लड़कों की संगति में बैठकर पढ़ाई में ध्यान लगाते होगे। छात्रावास में तुम पर घरवालों का कोई अधिक नियंत्रण नहीं है। ऐसे में तुम्हें स्वयं ही अपनी जिम्मेवारी समझकर खूब पढ़ना-लिखना होगा। मुझे विश्वास है कि हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी तुम अच्छे अंकों से पास हो जाओगे। पढ़ाई में पूरा मन लगाना।
तुम्हारा बड़ा भाई
गौतम
JAC Class 10 Hindi बड़े भाई साहब Important Questions and Answers
निबंधात्मक प्रश्न –
प्रश्न 1.
बड़े भाई साहब छोटे भाई को अपना उदाहरण किस रूप में देते हैं ?
उत्तर :
छोटे भाई की खेलकूद में अधिक रुचि होने के कारण बड़े भाई साहब उसे डाँटते-फटकारते हैं। वे उसे उनसे सबक लेने की बात कहते हैं। वे अपने आपको उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि वे परीक्षा में पास होने के लिए जी-तोड़ मेहनत करते हैं। वे किसी मेले-तमाशे में नहीं जाते। प्रतिदिन होने वाले हॉंकी और क्रिकेट के मैचों से दूर रहते हैं। उनके इस प्रकार के तौर-तरीकों से उसे सीख लेनी चाहिए। यदि वह ऐसा नहीं कर सकता, तो उसे पढ़ाई-लिखाई छोड़कर वापस घर चले जाना चाहिए।
प्रश्न 2.
छोटे भाई की खेलकूद के प्रति रुचि की तुलना किससे की गई है ?
उत्तर :
छोटा भाई खेलकूद में अत्ययिक रुचि होने के कारण सदा बड़े भाई साहब से तिरस्कार पाता था। यद्यपि वह उनसे छिपकर खेलता था, फिर भी पकड़ा जाता था और बड़े भाई साहब उसे बुरी तरह फटकारते थे। छोटे भाई की खेलकूद में रुचि की तुलना मौत और विपत्ति के बीच फँसे उस व्यक्ति से की गई है, जो मोह-माया के बंधनों में जकड़ा हुआ है। जिस प्रकार व्यक्ति विपत्ति और मृत्यु के बीच फँसे होने पर भी मोह-माया को नहीं छोड़ पाता, उसी प्रकार छोटा भाई भी ब्रे़े भाई साहब द्वारा अनेक प्रकार से अपमानित होने पर भी खेलकुद को छोड़ पाने में असमर्थ था।
प्रश्न 3.
बड़े भाई साहब ने छोटे भाई को घमंड न करने की नसीहत किस प्रकार दी?
उत्तर :
बड़े भाई साहब ने छोटे भाई को रावण के उदाहरण के माध्यम से घमंड न करने की नसीहत दी। उन्होंने कहा कि रावण भूमंडल का स्वामी था। वह ऐसा चक्रवर्ती राजा था कि बड़े-बड़े देवता भी उसकी गुलामी करते थे। अग्नि और वरुण देवता भी उसके सेवक थे। ऐसे चक्रवर्ती राजा का भी घमंड के कारण अंत हो गया और उसका नामो-निशान तक मिट गया। वे कहते हैं कि घमंड सभी कुकर्मों में सबसे बड़ा है। मनुष्य को कभी भी अभिमान नहीं करना चाहिए। जो अभिमान करता है, उसका शीघ्र ही अंत हो जाता है। इसके अतिरिक्त उन्होंने शैतान और शाहेरूम का उदाहरण देकर भी अपने छोटे भाई को घमंड न करने की नसीहत दी।
प्रश्न 4.
छोटे भाई को बाजार में पतंग लूटते देखकर बड़े भाई साहब ने उसे कैसे डाँटा?
उत्तर :
एक दिन जब छोटा भाई पतंग लूटने के लिए दौड़ रहा था, तो बाजार से लौटते अपने बड़े भाई साहब से टकरा गया। बड़े भाई साहब उसे देखते ही क्रोधित हो गए। उन्होंने उसे डाँटते हुए कहा कि वह जिस आठवीं कक्षा में है, वह कोई छोटी कक्षा नहीं है। उसे अपनी पोजीशन का ख्याल रखना चाहिए। इस कक्षा को पास करके पहले जमाने में लोग नायब तहसीलदार बन जाया करते थे और आज भी अनेक आठवीं पास करने वाले लीडर और समाचार-पत्रों के संपादक हैं। अत: उसे अब आठवीं कक्षा में आने पर बाज़ारी लड़कों के साथ पतंग लूटते घूमना शोभा नहीं देता।
प्रश्न 5.
बड़े भाई साहब ने हेडमास्टर साहब और उनकी माँ का उदाहरण किस संदर्भ में दिया है ?
उत्तर :
बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई को समझाते हुए कहते हैं कि किताबी ज्ञान की अपेक्षा जीवन का अनुभव अधिक महत्वपूर्ण होता है। इसी संदर्भ में उन्होंने हेडमास्टर साहब और उनकी माँ का उदाहरण दिया है। वे कहते हैं कि हेडमास्टर साहब एम० ए० पास हैं, किंतु उनके घर का सारा प्रबंध उनकी माँ के हाथों में है। जब वे घर का प्रबंध करते थे, तो सदा कर्जदार रहते थे; किंतु उनकी माँ उतने ही धन से उनके घर का सारा प्रबंध बड़ी सहजता से कर लेती हैं। इसका कारण यह है कि उनकी माँ को जिंदगी की समझ है। अतः किताबी ज्ञान और जीवन के अनुभव में से जीवन का अनुभव श्रेष्ठ है।
प्रश्न 6.
कहानी के आधार पर बताइए कि लेखक ने अंग्रेज़ी की शिक्षा पर अपने क्या विचार प्रकट किए हैं?
उत्तर :
कहानी में अंग्रेजी भाषा के बारे में बताते हुए बड़े भाई साहब कहते हैं कि अंग्रेजी पढ़ना कोई आसान काम नहीं है और न ही इसे समझने के लिए दिन-रात एक करने पड़ते हैं। देर-देर तक पढ़ना पड़ता है। किताबों में आँखें गड़ाकर बैठना पडता है। न चाहते हुए भी अपना खन जलाना पडता है। इसकी कठिनाई इसी से समझो कि इसे बोल पाना और लिखना सभी के बस की बात नहीं है। यदि आसान होता तो सभी अंग्रेजी के विद्वान बन गए होते। दूसरों को क्या देखोगे, मुझे ही देखो। दिन-रात अंग्रेज़ी को पढ़ता हूँ; सारा दिमाग इसी में लगाकर रखता हूँ, फिर भी फेल हो जाता हूँ। इसी से अंदाज़ा लगा लो कि यह कितनी कठिन है।
प्रश्न 7.
कहानी में निहित संदेश को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कहानी में निहित संदेश यह है कि जिंदगी का अनुभव किसी भी पुस्तकीय ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण है। जीवन जीने की समझ जितनी अनुभव से आ सकती है, उतनी किताबी ज्ञान से कभी नहीं आ सकती। अनुभव जीवन की वास्तविकताओं से हमारा आमना-सामना करवाता है, लेकिन पुस्तकीय ज्ञान वास्तविकताओं से कोसों दूर होता है। पुस्तकीय ज्ञान व्यक्ति में धैर्य की परिभाषा तो अवश्य भर देता है, लेकिन धैर्य धारण करने की शक्ति उसे अनुभव से ही आती है। अनुभव व्यक्ति को परिपक्व बनाता है, जिससे वह हर कठिनाई का सामना बड़ी दृढ़ता और सूझ-बूझ के साथ करता है।
प्रश्न 8.
‘बड़े भाई साहब’ कहानी के आधार पर छोटे भाई की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
‘बड़े भाई साहब’ कहानी में छोटे भाई को एक आम विद्यार्थी के समान चित्रित किया गया है। वह सारा दिन खेलता-कूदता है। उसकी खेलने में अत्यधिक रुचि है। उसे सारा दिन मौज-मस्ती के अतिरिक्त कुछ और नहीं सूझता था। सारे दिन में वह एक घंटे से भी कम समय पढ़ता था, लेकिन फिर भी अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो जाता था। वह कुशाग्र बुद्धि का स्वामी था। उसके मन में अपने बड़े भाई के प्रति बहुत आदर-सम्मान की भावना थी। खेल-कूद न छोड़ पाने के कारण उसे अपने बड़े भाई की डाँट-फटकार भी सुननी पड़ती थी।
लघु उत्तरीय प्रश्न –
प्रश्न 1.
‘बड़े भाई साहब’ किस प्रकार की कहानी है? लेखक इसके द्वारा क्या स्पष्ट करना चाहता है?
उत्तर :
‘बड़े भाई साहब’ कहानी मुंशी प्रेमचंद के द्वारा आत्मकथात्मक शैली में लिखी एक श्रेष्ठ कहानी है। इस कहानी में लेखक ने बड़े भाई साहब के माध्यम से घर में बड़े भाई की आदर्शवादिता के कारण उसके बचपन के तिरोहित होने की बात कही गई है। लेखक इस कहानी के द्वारा यह स्पष्ट करना चाहता है कि घर के बड़े लोग अपने से छोटों को सही मार्ग दिखाने के लिए अनेक प्रकार के सामाजिक समझोते करते हैं।
प्रश्न 2.
मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘बड़े भाई साहब’ से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर :
मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘बड़े भाई साहब’ से हमें प्रेम और सौहार्द की शिक्षा मिलती है। हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने से छोटों को दुत्कारकर नहीं अपितु प्यार से समझाना चाहिए। हमें उन्हें अपमानित नहीं करना चाहिए। उनकी बातों को भी हमें प्रमुखता के साथ सुनना चाहिए। उनकी त्रुटियों को उन्हें प्यार से बताकर दूर करना चाहिए। उन्हें कभी इस बात का भान नहीं होना चाहिए कि बड़ों के सामने उनका अपना कोई अस्तित्व नहीं।
प्रश्न 3.
कहानी में यह कैसे पता चलता है कि छोटा भाई बड़े भाई का बहुत आदर-सम्मान करता था?
उत्तर :
कहानी में ऐसे बहुत-से स्थान हैं, जहाँ यह पता चलता है कि छोटा भाई बड़े भाई के प्रति अपने हृदय में कितना आदर-भाव रखता है। बड़े भाई द्वारा अपमानित करने पर भी वह और चुपचाप खड़ा रहता है। वह उनसे सवाल-जवाब नहीं करता। वह बड़े भाई की बातों को आदेश मानकर उन पर अमल करने का प्रयास करता है। वह श्रद्धावश उनके प्रति नतमस्तक हो जाता है।
प्रश्न 4.
बड़े भाई साहब का छोटे भाई के प्रति कैसा व्यवहार था?
उत्तर :
बड़े भाई साहब और उनके छोटे भाई में पाँच वर्ष का अंतर था। बड़े भाई साहब स्वभाव से क्रोधी थे। वे छोटे भाई को अत्यधिक खेलने-कूदने में रुचि लेने के कारण उसे बहुत डाँट-फटकार लगाते थे। वे उस समय का सदुपयोग करने तथा मन लगाकर पढ़ने की सलाह देते थे।
प्रश्न 5.
बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई को उनसे क्या सीख लेने को कहते थे?
उत्तर :
बड़े भाई का मानना था कि वे स्वयं बहुत मेहनती हैं; लगनशील हैं। वे सारा दिन पढ़ाई में लगे रहते हैं। वे खेल-कूद से भी दूर रहते हैं। अतः उनके छोटे भाई को उनसे सीख लेते हुए अपनी दिनचर्या उनके अनुसार बनाकर कड़ी मेहनत करनी चाहिए। व्यर्थ में इधर-उधर की बातों तथा खेल-कूद में समय नहीं गँवाना चाहिए।
प्रश्न 6.
बड़े भाई साहब की बातों का छोटे भाई पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
बड़े भाई की बातें सुनकर छोटे भाई का मन निराशा से भर जाता है; उसे आत्मग्लानि होने लगती है; वह स्वयं को सुधारना चाहता है; बड़े भाई द्वारा दिखाए मार्ग पर चलना चाहता है। अतः वह खूब मन लगाकर पढ़ने का निश्चय करता है। वह एक टाइम-टेबिल का भी निर्माण करता है, किंतु जल्दी ही उसका टाइम-टेबिल खेल-कूद की भेट चढ़ जाता है। वह फिर से खेलने-कूदने में मस्त हो जाता है।
प्रश्न 7.
किताबी ज्ञान के विषय में बड़े भाई साहब के क्या विचार थे?
उत्तर :
बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई को समझाते हुए कहते हैं कि जीवन में व्यक्ति का अनुभव किताबी ज्ञान से कहीं अधिक महत्वपूर्ण होता है। उन्हें उससे कहीं ज्यादा अनुभव था। वे जीवन में किताबी ज्ञान की बजाय समझ को अधिक महत्वपूर्ण मानते हुए कहते हैं कि यह समझ केवल अनुभव से ही प्राप्त की जा सकती है, न कि किताबी ज्ञान से।
बड़े भाई साहब Summary in Hindi
लेखक-परिचय :
जीवन-प्रेमचंद हिंदी साहित्य के ऐसे प्रथम लेखक हैं, जिन्होंने साहित्य का नाता जनजीवन से जोड़ा। उन्होंने अपने कथा साहित्य को सामान्य जन के चित्रण द्वारा सजीव बना दिया है। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त आर्थिक और सामाजिक विषमता को बड़ी निकटता से देखा था। यही कारण है कि उनके उपन्यासों एवं कहानियों में जीवन की यथार्थ अभिव्यक्ति का सजीव चित्रण उपलब्ध होता है। प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के लमही नामक गाँव में हुआ था। उनका वास्तविक नाम धनपत राय था।
आरंभ में वे नवाबराय के नाम से उर्दू में लिखते थे। बदलते युग के प्रभाव ने उनको हिंदी की ओर आकृष्ट किया। उन्होंने सदा वही लिखा, जो उनकी आत्मा ने कहा। वे मुंबई में पटकथा लेखक के रूप में अधिक समय तक इसलिए कार्य नहीं कर पाए क्योंकि वहाँ उन्हें फिल्म निर्माताओं के निर्देशों के अनुसार लिखना पड़ता था। उन्हें तो स्वतंत्र लिखना ही अच्छा लगता था। जीवन में निरंतर विकट परिस्थितियों का सामना करने के कारण प्रेमचंद का शरीर जर्जर होता चला गया। निरंतर साहित्य साधना करते हुए 8 अक्टूबर सन 1936 को उनका स्वर्गवास हो गया।
रचनाएँ – प्रेमचंद प्रमुख रूप से कथाकार थे। उन्होंने जो कुछ भी लिखा, वह समाज की मुँह बोलती तसवीर है। उन्होंने समाज के सभी वर्गों को अपनी रचनाओं का विषय बनाया; परंतु निर्धन, पीड़ित एवं पिछड़े हुए वर्ग के प्रति उनकी विशेष सहानुभूति थी। उन्होंने शोषक एवं शोषित दोनों वर्गों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं उपन्यास-वरदान, सेवा-सदन, प्रेमाश्रय, रंगभूमि, कायाकल्प, निर्मला, प्रतिज्ञा, गबन, कर्मभूमि, गोदान एवं मंगल सूत्र (अपूर्ण)।
कहानी संग्रह – प्रेमचंद ने लगभग 400 कहानियों की रचना की। उनकी प्रसिद्ध कहानियाँ ‘मानसरोवर’ कहानी संग्रह के आठ भागों में संकलित हैं।
नाटक – कर्बला, संग्राम और प्रेम की वेदी।
निबंध संग्रह – कुछ विचार।
भाषा-शैली – भाषा-शैली की दृष्टि से ‘बड़े भाई साहब’ कहानी प्रेमचंद की अन्य रचनाओं की भाँति उच्च कोटि की रचना है। उनकी भाषा बहुत सरल, सहज और आम बोलचाल की भाषा है, जो भावाभिव्यक्ति में पूर्णतः सक्षम है।
भाषा पूर्ण रूप से पात्रानुकूल है। इस कहानी में तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशी शब्दों का सुंदर मिश्रण है। कथा-संगठन, चरित्र-चित्रण एवं कथोपकथन की दृष्टि से भाषा बेजोड़ है। भाषा में मुहावरों, लोकोक्तियों तथा सूक्तियों के प्रयोग से सजीवता आ गई है। इस कहानी में उन्होंने आड़े हाथों लेना, घाव पर नमक छिड़कना, नामों-निशान मिटा देना, ऐरा-गैरा नत्थू खैरा, सिर फिरना, अंधे के हाथ बटेर लगना, दाँतों पसीना आना, लोहे के चने चबाना, पापड़ बेलना, आटे-दाल का भाव मालूम होना, गाँठ बाँधना जैसे अनेक मुहावरों का सटीक प्रयोग किया है।
देशज शब्दों के प्रयोग से उन्होंने भाषा को प्रसंगानुकूल बनाकर प्रवाहमयी बना दिया है। ‘बड़े भाई साहब’ कहानी आत्मकथात्मक शैली में लिखी गई है, जिसमें कथानायक स्वयं कहानी सुना रहा है। कहीं-कहीं संवादात्मक शैली का प्रयोग है, जिससे कहानी में नाटकीयता आ गई है। शैली में सरसता और रोचकता सर्वत्र विद्यमान है।
पाठका सार –
‘बड़े भाई साहब’ कहानी प्रेमचंद द्वारा आत्मकथात्मक शैली में लिखी एक श्रेष्ठ कहानी है। इस कहानी में उन्होंने बड़े भाई साहब के माध्यम से घर में बड़े भाई की आदर्शवादिता के कारण उनके बचपन के तिरोहित होने की बात कही है। बड़ा भाई सदा छोटे भाई के सामने अपना आदर्श रूप दिखाने के कारण कई बार अपने ही बचपन को खो देता है। बड़े भाई साहब और उनके छोटे भाई में पाँच वर्ष का अंतर है, किंतु वे अपने छोटे भाई से केवल तीन कक्षाएँ ही आगे हैं।
बड़े भाई साहब सदा पढ़ाई में डूबे रहते हैं, लेकिन उनके छोटे भाई का खेलकूद में अधिक मन लगाता है। दोनों भाई होस्टल में रहते हैं। बड़े भाई साहब प्राय: छोटे भाई को उसकी खेलकूद में अधिक रुचि के कारण डाँटते रहते हैं। वे उसे उनसे सीख लेने की बात कहते हैं। उनका कहना है कि वे बहुत मेहनत करते हैं; खेलकूद और खेल-तमाशों से दूर रहते हैं, इसलिए उसे उनसे सबक लेना चाहिए। वे छोटे भाई से कहते हैं कि यदि वह मेहनत नहीं कर सकता, तो उसे घर वापस लौट जाना चाहिए।
उनकी ऐसी बातें सुनकर छोटा भाई निराश हो जाता है। कुछ देर बाद वह जी लगाकर पढ़ने का निश्चय करता है और एक टाइम-टेबिल बना लेता है। वह अपने इस टाइम-टेबिल में खेलकूद को कोई स्थान नहीं देता, लेकिन शीघ्र ही उसका टाइम-टेबिल खेलकूद की भेंट चढ़ जाता है और वह फिर से खेलकूद में मस्त हो जाता है। बड़े भाई साहब की डाँट और तिरस्कार से भी वह अपने खेलकूद को नहीं छोड़ पाता।
कुछ समय बाद वार्षिक परीक्षाएँ हुईं। बड़े भाई साहब कठिन परिश्रम करके भी फेल हो गए, किंतु छोटा भाई प्रथम श्रेणी से पास हो गया। धीरे-धीरे छोटा भाई खेलकूद में अधिक मन लगाने लगा। बड़े भाई साहब से यह देखा नहीं गया। वे उसे रावण का उदाहरण देकर समझाते हैं कि घमंड नहीं करना चाहिए। घमंड करने से रावण जैसे चक्रवर्ती राजा का भी अस्तित्व मिट गया था; शैतान और शाहेरूम भी अभिमान के कारण नष्ट हो गए थे।
छोटा भाई उनके इन उपदेशों को चुपचाप सुनता रहा। वे कहते हैं कि उनकी नौवीं कक्षा की पढ़ाई बहुत कठिन है। अंग्रेजी, इतिहास, गणित तथा हिंदी आदि विषयों में पास होने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। उन्होंने अपनी कक्षा की पढ़ाई का ऐसा भयंकर चित्र खींचा कि छोटा भाई बुरी तरह से डर गया। दोबारा वार्षिक परीक्षाएँ हुईं। इस बार भी बड़े भाई साहब फेल हो गए और छोटा भाई पास हो गया। बड़े भाई साहब बहुत दुखी हुए।
छोटे भाई की अपने बारे में यह धारणा बन गई कि वह चाहे पढ़े या न पढ़े, लेकिन पास हो ही जाएगा। अतः उसने पढ़ाई करना बंद करके खेलकूद में ज्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया। बड़े भाई साहब भी अब उसे कम डाँटते थे। धीरे-धीरे छोटे भाई की स्वच्छंदता बढ़ती गई। उसे पतंगबाजी का नया शौक लग गया। अब वह सारा समय पतंगबाजी में नष्ट करने लगा, किंतु वह अपने इस शौक को बड़े भाई साहब से छिपकर पूरा करता था।
एक दिन वह एक पतंग लूटने के लिए पतंग के पीछे-पीछे दौड़ रहा था कि अचानक बाजार से लौट रहे बड़े भाई साहब से टकरा गया। उन्होंने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे डाँटते हुए कहा कि अब वह आठवीं कक्षा में है। अतः उसे अपनी पोजीशन का ख्याल करना चाहिए। पहले ज़माने में तो आठवीं पास नायब तहसीलदार तक बन जाया करते थे। बड़े भाई साहब उसे समझाते हुए कहते हैं कि जीवन में किताबी ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति का अनुभव होता है और उन्हें उससे कहीं ज्यादा अनुभव है।
वे अपनी माँ, दादा अपने स्कूल के हेडमास्टर साहब और उनकी माँ का उदाहरण देकर बताते हैं कि जिंदगी में केवल किताबी ज्ञान से ही काम नहीं चलता अपितु जिंदगी की समझ भी जरूरी होती है, जो केवल अनुभव से आती है। … बड़े भाई साहब के ऐसा समझाने पर छोटा भाई उनके आगे नतमस्तक होकर कहता है कि वे जो कुछ कह रहे हैं, वह बिलकुल सच है। बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई को गले लगा लेते हैं।
वे कहते हैं कि उनका भी मन खेलने-कूदने का करता है, लेकिन यदि वे ही खेलने-कूदने लगेंगे तो उसे क्या शिक्षा दे पाएँगे? तभी उनके ऊपर से एक कटी हुई पतंग गुजरती है, जिसकी डोर नीचे लटक रही थी। बड़े भाई साहब ने लंबे होने के कारण उसकी डोर पकड़ ली और तेजी से होस्टल की ओर दौड़ पड़े। उनका छोटा भाई भी उनके पीछे-पीछे दौड़ रहा था।
कठिन शब्दों के अर्थ :
दरजा – श्रेणी, तालीम – शिक्षा, बुनियाद – नींव, पुख्ता — मज़बूत, तंबीह – डाँट-डपट, हुक्म – आदेश, सामंजस्य – तालमेल, मसलन – उदाहरणतः, इबारत – लेख, चेष्टा – कोशिश, जमात – कक्षा, होस्टल – छात्रावास, हर्फ – अक्षर, मिहनत (मेहनत) – परिश्रम, सबक – सीख, बर्बाद – नष्ट, लताड़ – डाँट-डपट, निपुण – कुशल, सूक्ति-बाण – व्यंग्यात्मक कथन, तीखी बातें, चटपट – उसी क्षण, टाइम-टेबिल – समय-सारणी, स्कीम – योजना, अमल करना – पालन करना, अवहेलना – तिरस्कार, नसीहत – सलाह, फजीहत – अपमान, तिरस्कार – उपेक्षा, विपत्ति – मुसीबत, सालाना इम्तिहान – वार्षिक परीक्षा, हमदर्दी – सहानुभूति,
लज्जास्पद – शर्मनाक, शरीक – शामिल, ज़ाहिर – स्पष्ट, आतंक- भय, अव्वल – प्रथम, असल – वास्तविक, आधिपत्य – साम्राज्य, स्वाधीन – स्वतंत्र, महीप – राजा, कुकर्म – बुरा काम, अभिमान – घमंड, निर्दयी – क्रूर, मुमतहीन – परीक्षक, परवाह – चिंता, फायदा – लाभ, प्रयोजन – उद्देश्य, खुराफ़त – व्यर्थ की बातें, हिमाकत – बेवकूफ़ी, किफ़ायत – बचत (से), दुरुपयोग – अनुचित उपयोग, निःस्वाद – बिना स्वाद का, ताज्जुब – आश्चर्य, हैरानी, टास्क – कार्य, जलील – अपमानित, प्राणांतक – प्राण लेने वाला,
प्राणों का अंत करने वाला, कांतिहीन – चेहरे पर चमक न होना, स्वच्छंदता – आज़ादी, सहिष्णुता – सहनशीलता, कनकौआ – पतंग, अदब – इज्जत, पथिक – यात्री, मिडलची – आठवीं पास, जहीन – प्रतिभावान, महज़ – केवल, समकक्ष – बराबर, तुजुर्बा – अनुभव, मरज़ – बीमारी, बदहवास – बेहाल, मुहताज (मोहताज) – दूसरे पर आश्रित होना, कुटुंब – परिवार, इंतज़ाम – प्रबंध, बेराह – बुरा रास्ता, लघुता – छोटापन, जी – मन।