Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Vyakaran समास Questions and Answers, Notes Pdf.
JAC Board Class 10 Hindi Vyakaran समास
समास – परस्पर संबंध रखने वाले दो अथवा दो से अधिक शब्दों के मेल का नाम समास है। समास द्वारा शब्द-समूहों को संक्षिप्त किया जाता है। जैसे – राजा का पुत्र = राजपुत्र।
समस्त पद – विभिन्न शब्दों के समूह को संरक्षित करने से जो शब्द बनता है उसे समस्त पद या सामासिक पद कहते हैं।
समास-विग्रह – सामासिक पद को तोड़ना समास-विग्रह कहलाता है। जैसे राष्ट्रपिता एक समस्त पद अथवा सामासिक पद है। इसका समास विग्रह होगा-राष्ट्र का पिता।
संधि और समास में अंतर –
संधि में जहाँ दो वर्णों का मेल होता है, वहीं समास में दो शब्दों का मेल होता है।
समास में दो पद होते हैं-पूर्व पद तथा उत्तर पद, जबकि संधि में ऐसा कुछ नहीं होता।
संधि और समास में अंतर – संधि और समास दोनों में विग्रह तथा मेल होता है। संधि में जहाँ संधि तथा संधि-विच्छेद होता है वहाँ समास में समस्त पद तथा समास-विग्रह होता है। समास के छह भेद होते हैं।
समास के भेद
1. अव्ययीभाव समास :
जिस समास में पहला पद प्रधान हो और समस्त पद अव्यय (क्रिया, विशेषण) का काम करे, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जैसे –
प्रतिदिन = प्रत्येक दिन
यथारूप = रूप के अनुसार
प्रतिपल = प्रत्येक पल
यथाविधि = विधि के अनुसार
यथाशीघ्र = जितना शीघ्र हो
आजन्म = जन्म भर
यथामति = मति के अनुसार
आमरण = मरने तक
यथासमय = समय के अनुसार
आजीवन = जीवन भर
2. तत्पुरुष समास :
तत्पुरुष का शाब्दिक अर्थ है (तत् = वह, पुरुष = आदमी) वह (दूसरा) आदमी । इस प्रकार ‘तत्पुरुष’ शब्द अपना एक अच्छा उदाहरण है। इसी आधार पर इसका नाम यह पड़ा है, क्योंकि ‘तत्पुरुष’ समास का दूसरा पद प्रधान होता है। इस प्रकार जिस समास का दूसरा पद प्रधान होता है और दोनों पदों के बीच प्रथम (कर्ता) तथा अंतिम (संबोधन) कारक के अतिरिक्त शेष किसी भी कारक की विभक्ति का लोप पाया जाता है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे –
राजपुरुष = राजा का पुरुष
राहखर्च = राह के लिए खर्च
ऋणमुक्त = ऋण से मुक्त
वनवास = वन में वास।
व्यावहारिक = व्याकरण
तत्पुरुष के छह भेद हैं जिनका परिचय इस प्रकार है –
(क) कर्म तत्पुरुष –
जिसमें कर्म कारक की विभक्ति (को) का लोप पाया जाता है। जैसे –
ग्रंथकर्ता = ग्रंथ को करने वाला
आशातीत = आशा को लाँघ कर गया हुआ
स्वर्गप्राप्त = स्वर्ग को प्राप्त
जलपिपासु = जल को पीने की इच्छा वाला
देशगत = देश को गत (गया हुआ)
गृहागत = गृह को आगत (आया हुआ)
यशप्राप्त = यश को प्राप्त
ग्रंथकार = ग्रंथ को रचने वाला
परलोक गमन = परलोक को गमन
ग्रामगत = ग्राम को गत (गया हुआ)
(ख) करण तत्पुरुष –
जिसमें करण कारक की विभक्ति (से तथा के द्वारा) का लोप पाया जाता है। जैसे –
हस्तलिखित = हस्त से लिखित
तुलसीकृत = तुलसी से कृत
बाणबिद्ध = बाण से बिद्ध
वज्रहत = वज्र से हत
ईश्वरप्रदत्त = ईश्वर से प्रदत्त
मनगढ़ंत = मन से गढ़ी हुई
कपड़छन = कपड़े से छना हुआ
मदमाता = मद से माता
शोकाकुल = शोक से आकुल
प्रेमातुर = प्रेम से आतुर
दयार्द्र = दया से आर्द्र
अकाल पीड़ित = अकाल से पीड़त
कष्ट साध्य = कष्ट से साध्य
गुरुकृत = गुरु से किया हुआ
मदांध = मद से अंधा
दु:खार्त्त = दु:ख से आर्त्त
मनमाना = मन से माना हुआ
रेखांकित = रेखा से अंकित
कीर्तियुक्त = कीर्ति से युक्त
अनुभवजन्य = अनुभव से जन्य
गुणयुक्त = गुण से युक्त
जन्मरोगी = जन्म से रोगी
दईमारा = दई से मारा हुआ
बिहारी रचित = बिहारी द्वारा रचित
(ग) संप्रदान तत्पुरुष –
जिसमें संप्रदान कारक की विभक्ति (के लिए) का लोप पाया जाता है। जैसे –
कष्ट साध्य = कष्ट से साध्य
गुरुकृत = गुरु से किया हुआ
मदांध = मद से अंधा
दु:खार्त्त = दु:ख से आर्त्त
मनमाना = मन से माना हुआ
रेखांकित = रेखा से अंकित
कीर्तियुक्त = कीर्ति से युक्त
अनुभवजन्य = अनुभव से जन्य
गुणयुक्त = गुण से युक्त
जन्मरोगी = जन्म से रोगी
दईमारा = दई से मारा हुआ
बिहारी रचित = बिहारी द्वारा रचित
ठकुरसुहाती = ठाकुर को सुहाती
आरामकुर्सी = आराम के लिए कुर्सी
बलिपशु = बलि के लिए पशु
विद्यागृह = विद्या के लिए गृह
गुरुदक्षिणा = गुरु के लिए दक्षिणा
हवनसामग्री = हवन के लिए सामग्री
मार्गव्यय = मार्ग के लिए व्यय
युद्धभूमि = युद्ध के लिए भूमि
राज्यलिप्सा = राज्य के लिए लिप्सा
डाकगाड़ी = डाक के लिए गाड़ी
जेबखर्च = जेब के लिए खर्च
(घ) अपादान तत्पुरुष –
जिसमें अपादान कारक की विभक्ति का लोप पाया जाता है। जैसे –
पथभ्रष्ट = पथ से भ्रष्ट
भयभीत = भय से भीत
पदच्युत = पद से च्युत
ऋणमुक्त = ऋण से मुक्त
देशनिर्वासित = देश से निर्वासित
बंधनमुक्त = बंधन से मुक्त
ईश्वरविमुख = ईश्वर से विमुख
मदोन्मत्त = मद से उन्मत्त
विद्याहीन = विद्या से हीन
आकाशपतित = आकाश से पतित
धर्मभ्रष्ट = धर्म से भ्रष्ट
देशनिकाला = देश से निकालना
गुरुभाई = गुरु के संबंध से भाई
रोगमुक्त = रोग से मुक्त
कामचोर = काम से जी चुराने वाला
आकाशवाणी = आकाश से आगत वाणी
जन्मांध = जन्म से अंधा
धनहीन = धन से हीन
(ङ) संबंध तत्पुरुष –
जिसमें संबंध कारक की विभक्ति का लोप पाया जाता है। जैसे –
मृगशावक = मृग का शावक
वज्रपात = वज्र का पात
घुड़दौड़ = घोड़ों की दौड़
लखपति = लाखों (रुपए) का पति
राजरानी = राजा की रानी
अमचूर = आम का चूर
बैलगाड़ी = बैलों की गाड़ी
वनमानुष = वन का मानुष
दीनानाथ = दीनों के नाथ
रामकहानी = राम की कहानी
रेलकुली = रेल का कुली
पितृगृह = पिता का घर
राष्ट्रपति = राष्ट्र का पति
चायबागान = चाय के बगीचे
वाचस्पति = वाच: (वाणी) का पति
विद्याभ्यासी = विद्या का अभ्यासी
रामाश्रय = राम का आश्रय
अछूतोद्धार = अछूतों का उद्धार
विचाराधीन = विचार के अधीन
देवालय = देवों का आलय
लक्ष्मीपति = लक्ष्मी का पति
रामानुज = राम का अनुज
पराधीन = पर (अन्य) का अधीन
राजपुत्र = राजा का पुत्र
पवनपुत्र = पवन का पुत्र
राजकुमार = राजा का कुमार
(च) अधिकरण तत्पुरुष –
जिसमें अधिकरण कारक की विभक्ति का लोप पाया जाता है। जैसे –
देशाटन = देशों में अटन
वनवास = वन में वास
कविश्रेष्ठ = कवियों में श्रेष्ठ
आनंदमग्न = आनंद में मग्न
गृहप्रवेश = गृह में प्रवेश
शरणागत = शरण में आगत
ध्यानावस्थित = ध्यान में अवस्थित
कलाप्रवीण = कला में प्रवीण
शोकमग्न = शोक में मग्न
दानवीर = दान (देने) में वीर
कविशिरोमणि = कवियों में शिरोमणि
आत्मविश्वास = आत्म (स्वयं) पर विश्वास
आपबीती = अपने पर बीती
घुड़सवार = घोड़े पर सवार
कानाफूसी = कानों में फुसफुसाहट
हरफनमौला = हर फ़न में मौला
नगरवास = नगर में वास
घरवास = घर में वास
इनके अतिरिक्त तत्पुरुष के तीन अन्य भेद और भी माने जाते हैं –
(i) नञ् तत्पुरुष –
निषेध या अभाव के अर्थ में किसी शब्द से पूर्व ‘अ’ या ‘अन्’ लगाने से जो समास बनता है, उसे नञ् तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे –
अहित = न हित
अधर्म = न धर्म
अनुदार = न उदार
अनिष्ट = न इष्ट
अपूर्ण = न पूर्ण
असंभव = न संभव
अनाश्रित = न आश्रित
अनाचार = न आचार
विशेष – (क) प्रायः संस्कृत शब्दों में जिस शब्द के आदि में व्यंजन होता है, तो ‘नञ्’ समास में उस शब्द से पूर्व ‘अ’ जुड़ता है और यदि शब्द के आदि में स्वर होता है, तो उससे पूर्व ‘अन्’ जुड़ता है। जैसे –
अन् + अन्य = अनन्य
अन् + उत्तीर्ण = अनुत्तीर्ण
अ + वांछित = अवांछित
अ + स्थिर = अस्थिर
(ख) किंतु उक्त नियम प्रायः तत्सम शब्दों पर ही लागू होता है, हिंदी शब्दों पर नहीं। हिंदी में सर्वत्र ऐसा नहीं होता। जैसे –
अन् + चाहा = अनचाहा
अ + काज = अकाज
अन् + होनी = अनहोनी
अन + बन = अनबन
अ + न्याय = अन्याय
अन + देखा = अनदेखा
अ + टूट = अटूट
अ + सुंदर = असुंदर
(ग) हिंदी और संस्कृत शब्दों के अतिरिक्त ‘गैर’ और ‘ना’ वाले शब्द भी ‘न’ तत्पुरुष के अंतर्गत आ जाते हैं। जैसे –
नागवार
नापसंद
गैरहाजिर
नाबालिग
नालायक
गैरवाज़िब
(ii) अलुक् तत्पुरुष –
जिस तत्पुरुष समास में पहले पद की विभक्ति का लोप नहीं होता, उसे ‘अलुक्’ समास कहते हैं। जैसे –
मनसिज = मन में उत्पन्न
युधिष्ठिर = युद्ध में स्थिर
वाचस्पति = वाणी का पति
धनंजय = धन को जय करने वाला
विश्वंभर = विश्व को भरने वाला
खेचर = आकाश में विचरने वाला
(iii) उपपद तत्पुरुष –
जिस तत्पुरुष समास का स्वतंत्र रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता, ऐसे सामासिक शब्दों को ‘उपपद’ तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे –
जलज = जल + ज (‘ज’ का अर्थ उत्पन्न अर्थात पैदा होने वाला है, पर इस शब्द को अलग से प्रयोग नहीं किया जा सकता है।)
तटस्थ = तट + स्थ
पंकज = पंक + ज
कृतघ्न = कृत + घन
तिलचट्टा = तिल + चट्टा
बटमार = बट + मार
पनडुब्बी = पन + डुब्बी
कलमतराश = कलम + तराश
गरीबनिवाज़ = गरीब + निवाज़
गृहस्थ = गृह + स्थ
जलद = जल + द
उरग = उर + ग
लकड़फोड़ = लकड़ + फोड़
घरघुसा = घर + घुसा
घुड़चढ़ी = घुड़ + चढ़ी
सौदागर = सौदा + गर
चोबदार = चोब + दार
3. कर्मधारय समास :
जिस समास के दोनों पदों के बीच विशेष्य-विशेषण अथवा उपमेय-उपमान का संबंध हो और दोनों पदों में एक ही कारक (कर्ता कारक) की विभक्ति आए, उसे कर्मधारय समास कहते हैं। जैसे –
नीलकमल = नीला है जो कमल
लाल मिर्च = लाल है जो मिर्च
पुरुषोत्तम = पुरुषों में है जो उत्तम
महाराजा = महान है जो राजा
सज्जन = सत् (अच्छा) है जो जन
भलामानस = भला है जो मानस (मनुष्य)
सद्गुण = सद् (अच्छ) हैं जो गुण
शुभागमन = शुभ है जो आगमन
नीलांबर = नीला है जो अंबर
महाविद्यालय = महान है जो विद्यालय
कालापानी = काला है जो पानी
चरणकमल = कमल रूपी चरण
प्राणप्रिय = प्राणों के समान प्रिय
वज्रदेह = वज्र के समान देह
विद्याधन = विद्या रूपी धन
देहलता = देह रूपी लता
घनश्याम = घन के समान श्याम
कालीमिर्च = काली है जो मिर्च
महारानी = महान है जो रानी
नीलगाय = नीली है जो गाय
करकमल = कमल के समान कर
मुखचंद्र = मुख रूपी चंद्र
नरसिंह = सिंह के समान है जो नर
देहलता = देह रूपी लता
भवसागर = भव रूपी सागर
पीतांबर = पीत है जो अंबर
मालगाड़ी = माल ले जाने वाली गाड़ी
चंद्रमुख = चंद्र के समान है जो मुख
पुरुषसिंह = सिंह के समान है जो पुरुष
नीलकंठ = नीला है जो कंठ
महाजन = महान है जो जन
बुद्धिबल = बुद्धि रूपी बल
गुरुदेव = गुरु रूपी देव
करपल्लव = पल्लव रूपी कर
कमलनयन = कमल के समान नयन
कनकलता = कनक की सी लता
चंद्रमुख = चंद्र के समान मुख
मृगनयन = मृग के नयन के समान नयन
कुसुमकोमल = कुसुम के समान कोमल
सिंहनाद = सिंह के नाद के समान नाद
जन्मांतर = अंतर (अन्य) जन्म
नराधम = अधम है जो नर
दीनदयालु = दीनों पर है जो दयालु
मुनिवर = मुनियों में है जो श्रेष्ठ
मानवोचित = मानवों के लिए है जो उचित
पुरुषरत्न = पुरुषों में है जो रत्न
घृतान्न = घृत में मिला हुआ अन्न
छायातरु = छाया-प्रधान तरु
वनमानुष = वन में निवास करने वाला मानुष
गुरुभाई = गुरु के संबंध से भाई
बैलगाड़ी = बैलों से खींची जाने वाली गाड़ी
दहीबड़ा = दही में डूबा हुआ बड़ा
जेबघड़ी = जेब में रखी जाने वाली घड़ी
पनचक्की = पानी से चलने वाली चक्की
कर्मधारय और बहुव्रीहि तथा द्विगु और बहुव्रीहि का अंतर –
(i) कर्मधारय समास विशेषण और विशेष्य, उपमान और उपमेय में होता है। बहुव्रीहि समास में समस्त पदों को छोड़कर अन्य तीसरा ही अर्थ प्रधान होता है। जैसे –
नीलांबर – यहाँ नीला विशेषण तथा अंबर विशेष्य है। अत: यह कर्मधारय समास का उदाहरण है।
दशानन – दश हैं आनन जिसके अर्थात रावण। यहाँ दश और आनन दोनों शब्द मिलकर अन्य अर्थ का बोध करा रहे हैं। अतः यह बहुव्रीहि समास का उदाहरण है।
(ii) द्विगु समास में पहला पद संख्यावाचक होता है और समस्त पद से समुदाय का बोध होता है। जैसे-
दशाब्दी – दस वर्षों का समूह, पंचसेरी-पाँच सेरों का समूह। बहुव्रीहि में भी पहला खंड संख्यावाचक हो सकता है। उसके योग से जो समस्त शब्द बनता है, वह किसी अन्य अथवा तीसरे अर्थ का बोधक होता है। जैसे-
चतुर्भुज – यदि इसका अर्थ चार भुजाओं का समूह लें तो यह द्विगु समास है, पर चार हैं भुजाएँ जिसकी अर्थ लेने से बहुव्रीहि समास बन जाएगा।
4. द्विगु समास :
जिस समास में पहला पद संख्यावाचक (गिनती बनाने वाला) हो, दोनों पदों के बीच विशेषण-विशेष्य संबंध हो और समस्त पद समूह या समाहार का ज्ञान कराए, उसे द्विगु समास कहते हैं। जैसे –
शताब्दी = शत (सौ) अब्दों (वर्षों) का समूह
सतसई = सात सौ दोहों का समूह
चौराहा = चार राहों (रास्तों) का समाहार
चौमासा = चार मासों का समाहार
अठन्नी = आठ आनों का समूह
पंसेरी = पाँच सेरों का समाहार
दोपहर = दो पहरों का समाहार
त्रिफला = तीन फलों का समूह
चौपाई = चार पदों का समूह
नव-रत्न = नौरत्नों का समूह
त्रिवेणी = तीन वेणियों (नदियों) का समाहार
सप्ताह = सप्त (सात) अह (दिनों) का समूह
सप्तर्षि = सात ऋषियों का समूह
अष्टाध्यायी = अष्ट (आठ) अध्यायों का समूह
त्रिभुवन = तीन भुवनों (लोकों) का समूह
पंचवटी = पाँच वट (वृक्षों) का समाहार
नवग्रह = नौ ग्रहों का समाहार
चतुर्वर्ण = चार वर्णों का समूह
चतुष्पदी = चार पदों का समाहार
पंचतत्व = पाँच तत्वों का समूह
5. वंद्व समास :
जिस समस्त पद के दोनों पद प्रधान हों तथा विग्रह (अलग-अलग) करने पर दोनों पदों के बीच ‘और’, ‘तथा’, ‘अथवा’, ‘या’ योजक शब्द लगें, उसे वंद्व समास कहते हैं। जैसे –
अन्न-जल = अन्न और जल
पाप-पुण्य = पाप और पुण्य
धर्माधर्म = धर्म और अधर्म
वेद-पुराण = वेद और पुराण
दाल-रोटी = दाल और रोटी
नाम-निशान = नाम और निशान
दीन-ईमान = दीन और ईमान
लव-कुश = लव और कुश
नमक-मिर्च = नमक और मिर्च
अमीर-गरीब = अमीर और गरीब
राजा-रंक = राजा और रंक
राधा-कृष्ण = राधा और कृष्ण
निशि-वासर = निशि (रात) और वासर (दिन)
देश-विदेश = देश और विदेश
माँ-बाप = माँ और बाप
ऊँच-नीच = ऊँच और नीच
सुख-दुख = सुख और दुख
माता-पिता = माता और पिता
भाई-बहन = भाई और बहन
रात-दिन = रात और दिन
नदी-नाले = नदी और नाले
रुपया-पैसा = रुपया और पैसा
दूध-दही = दूध और दही
आब-हवा = आब (पानी) और हवा
आमद-रफ़्त = आमद (अना) और रफ़्त (जाना)
घी-शक्कर = घी और शक्कर
नर-नारी = नर और नारी
गुण-दोष = गुण तथा दोष
देश-विदेश = देश और विदेश
राम-लक्ष्मण = राम और लक्ष्मण
भीमार्जुन = भीम और अर्जुन
धन-धाम = धन और धाम
भला-बुरा = भला और बुरा
धर्माधर्म = धर्म या अधर्म
पाप-पुण्य = पाप या पुण्य
छोटा-बड़ा = छोटा या बड़ा
जात-कुजात = जात या कुजात
ऊँचा-नीचा = ऊँचा या नीचा
न्यूनाधिक = न्यून (कम) या अधिक
थोड़ा-बहुत = थोड़ा या बहुत
6. बहुव्रीहि समास :
जिस समास का कोई भी पद प्रधान नहीं होता और दोनों पद मिलकर किसी अन्य शब्द (संज्ञा) के विशेषण होते हैं, उसे ‘बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे –
चक्रधर = चक्र को धारण करने वाला अर्थात विष्णु
कुरूप = कुत्सित (बुरा) है रूप जिसका (कोई व्यक्ति)
बड़बोला = बड़े बोल बोलने वाला (कोई व्यक्ति)
लंबोदर = लंबा है उदर (पेट) जिसका अर्थात गणेश
महात्मा = महान है आत्मा जिसकी (व्यक्ति विशेष)
सुलोचना = सुंदर हैं लोचन (नेत्र) जिसके (स्त्री विशेष)
आजानुबाहु = अजानु (घुटनों तक) लंबी हैं भुजाएँ जिसकी (व्यक्ति विशेष)
दिगंबर = दिशाएँ ही हैं वस्त्र जिसके अर्थात नग्न।
राजीव-लोचन = राजीव (कमल) के समान लोचन (नेत्र) हैं जिसके (व्यक्ति विशेष)
चंद्रमुखी = चंद्र के समान मुख है जिसका (कोई स्त्री)
चतुर्भुज = चार हैं भुजाएँ जिसकी अर्थात विष्णु
अलोना = (अ) नहीं है लोन (नमक) जिसमें ऐसी कोई पकी सब्ज़ी
अंशुमाली = अंशु (किरणें) हैं माला जिसकी अर्थात सूर्य
लमकना = लंबे हैं कान जिसके अर्थात चूहा
तिमंज़िला = तीन हैं मंज़िल जिसमें वह मकान
अनाथ = जिसका कोई नाथ (स्वामी या संरक्षक) न हो (कोई बालक)
असार = सार (तत्व) न हो जिसमें (वह वस्तु)
सहस्नबाहु = सहस्न (हज़ार) हैं भुजाएँ जिसकी अर्थात दैत्यराज
ष्ट्कोण = षट् (छह) कोण हैं जिसमें (वह आकृति)
मृगलोचनी = मृग के समान लोचन हैं जिसके (कोई स्त्री)
वज्रांगी (बजंरगी) = वज्र के समान अंग हैं जिसके अर्थात हनुमान
पाषाण हृदय = पाषाण के समान कठोर हो हृदय जिसका (कोई व्यक्ति)
सतखंडा = सात हैं खंड जिसमें (वह भवन)
सितार = सितार (तीन) हों जिसमें (वह बाजा)
त्रिनेत्र = तीन हैं नेत्र जिसके अर्थात शिव
द्विरद = द्वि (दो) हों रद (दाँत) जिसके अर्थात हाथी
चारपाई = चार हैं पाए जिसमें अर्थात खाट
कलहप्रिय = कलह (क्लेश, झगड़ा) प्रिय हो जिसको (कोई व्यक्ति)
कनफटा = कान हो फटा हुआ जिसका (कोई व्यक्ति)
मनचला = मन रहता हो चलायमान जिसका (कोई व्यक्ति)
मृत्युंजय = मृत्यु को भी जीत लिया है जिसने अर्थात शंकर
सिरकटा = सिर हो कटा हुआ जिसका (कोई भूत-प्रेतादि)
पतझड़ = पत्ते झड़ते हैं जिसमें वह ॠतु
मेघनाद = मेघ के समान नाद है जिसका अर्थात रावण का पुत्र
घनश्याम = घन के समान श्याम है जो अर्थात कृष्ण
मक्खीचूस = मक्खी को भी चूस लेने वाला अर्थात कृपण (कंजूस)
विषधर = विष को धारण करने वाला अर्थात सर्प
गिरिधर = गिरि (पर्वत) को धारण करने वाला अर्थात कृष्ण
जितेंद्रिय = जीत ली है इंद्रियाँ जिसने (संयमी पुरुष)
कृत-कार्य = कर लिया है कार्य जिसने (सफूल व्यक्ति)
इंद्रजीत = इंद्र को जीत लिया है जिसने (मेघनाद)
गजानन = गज के समान आनन (मुख) है जिसका अर्थात गणेश
बारहसिंगा = बारह सींग हैं जिसके ऐसा मृग विशेष
पीतांबर = पीत (पीले) अंबर (वस्त्र) हैं जिसके अर्थात ‘कृष्ण’
चंद्रशेखर = चंद्र है शेखर (मस्तक) पर जिसके अर्थात ‘शिव’
नीलकंठ = नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव
शुभ्र-वस्त्र = शुभ्र (स्वच्छ) हैं वस्त्र जिसके (कोई व्यक्ति)
श्वेतांबर = श्वेत हैं अंबर (वस्त्र) जिसके अर्थात सरस्वती
अजातशत्रु = नहीं पैदा हुआ हो शत्रु जिसका (कोई व्यक्ति)
अभ्यास के लिए प्रश्नोत्तर –
प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के एक-दो पंक्तियों में उत्तर दीजिए –
(क) तत्पुरुष समास का प्रमुख अभिलक्षण क्या है?
(ख) कर्मधारय समास का प्रमुख अभिलक्षण क्या है?
उत्तर :
(क) जिस समास का दूसरा पद प्रधान होता है और दोनों पदों के बीच कारक चिह्न का लोप होता है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं,
जैसे-‘वनवास’ का विस्तार हुआ ‘वन में वास’- यहाँ ‘में’ कारक चिह्न का लोप हुआ है।
(ख) जिस समास के दोनों पदों में विशेष्य-विशेषण अथवा उपमेय-उपमान संबंध हो और दोनों पदों में केवल कर्ता कारक की विभक्ति आए, उसे कर्मधारय समास कहते हैं, जैसे-‘नीलकमल’। इसका विस्तार हुआ ‘नीला है जो कमल’।
प्रश्न 2.
उपयुक्त शब्द से वाक्य पूरा कीजिए –
………… शब्द कर्मधारय और बहुब्रीहि दोनों का उदाहरण है (पीतांबर/नीलगगन)
उत्तर :
पीतांबर।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यों में टेढ़े अक्षर वाले शब्दों की जगह समस्त शब्द का उपयोग करते हुए वाक्य बदलकर लिखिए।
नमूना-वह नृत्य की कला जानती है।
वह नृत्यकला जानती है।
- उन बच्चों में देश के प्रति बहुत प्रेम है।
- ऋषि ध्यान में मग्न थे और मन के पूरे योग से तपस्या कर लेता है।
- हे ईश्वर, आप मुक्ति और आनंद देने वाले हैं।
- युद्ध के क्षेत्र में राजा के पुत्र ने वायु की गति से घोड़ा दौड़ाया।
- रेखा से अंकित शब्दों का संधि-विच्छेद कीजिए।
- मोहन में कई गुण हैं वह कार्य में कुशल और धर्म में निष्ठ हैं। इसीलिए इसे सब गुणों से संपन्न होते हैं।
उत्तर :
- उन बच्चों में बहुत देशप्रेम है।
- ऋषि ध्यानमग्न होकर मनोयोग से तपस्या कर रहे थे।
- हे ईश्वर, आप ही मुक्ति -आनंद देने वाले हैं।
- युद्ध के क्षेत्र में राजपुत्र ने वायुगति से घोड़ा दौड़ाया।
- रेखांकित शब्दों की संधि का विच्छेद कीजिए।
- मोहन में कई गुण हैं वह कार्यकुशल और धर्मनिष्ठ है इसलिए इसे सर्वगुणसंपन्न कहते हैं।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित समस्त शब्दों में पहले शब्द का मूल रूप पहचानकर लिखिए और पूरे का शब्द-अर्थ बताइए –
घुड़दौड़, बचपन, रहनुमा, तिराहा, खिलवाड़, छुटभैये, बिनमाँगा, बड़बोला, पनचक्की, दुतरफ़ा, पनवाड़ी, सुनहरा।
उत्तर :
- घुड़दौड़ = घोड़ा, घोड़ों की दौड़।
- बचपन = बच्चा, बच्चा होने की दशा।
- रहनुमा = राह, राह दिखाने वाला।
- तिराहा = तीन, तीन तरफ़ राह (रास्ता)।
- खिलवाड़ = खेल, खेल करना।
- छुटभैये = छोटा, छोटे लोग।
- बिनमाँगा = बिना, बिना माँगे हुए।
- बड़बोला = बड़ा, बढ़-चढ़कर बोलना।
- पनचक्की = पानी, पानी से चलने वाली चक्की।
- दुतरफ़ा = दो, दोनों तरफ़
- पनवाड़ी = पान, पान बेचने वाला।
- सुनहरा = सोना, सोने जैसा रंग वाला।
प्रश्न 5.
समास का प्रकार बताइए –
अधपका, रक्तचंदन, पुरुषोत्तम, ध्यानकेंद्रित, लघुकथा, विद्यालय, देश-प्रेम, वनवास, नीलाभ, विचारमग्न
उत्तर :
- अधपका = कर्मधारय
- रक्तचंदन = कर्मधारय
- पुरुषोत्तम = कर्मधारय
- ध्यानकेंद्रित = तत्पुरुष
- लघुकथा = कर्मधारय
- विद्यालय = तत्पुरुष
- देश-प्रेम = तत्पुरुष
- वनवास = तत्पुरुष
- नीलाभ = कर्मधारय
- विचारमग्न = तत्पुरुष।
प्रश्न 6.
(i) निम्नलिखित शब्दों का सामासिक पद बनाकर समास के भेद का नाम भी लिखिए:
जन का आंदोलन, नील है जो कमल, मति के अनुसार, तीन गुणों का समूह
विद्या रूपी धन, चंद्र है शिखर पर जिसके अर्थात शिव, युद्ध में वीर
(ii) निम्नलिखित समस्त पदों का विग्रह करके समास के भेद का नाम लिखिए –
नवनिधि, यथासमय
राजदूत, धूप-दीप
यथार्थ, शांतिप्रिय, भीमार्जुन
उत्तर :
(i) जनांदोलन – तत्पुरुष समास
त्रिगुण – द्विगु समास
युद्धवीर – तत्पुरुष समास
नीलकमल – कर्मधारय समास
विद्याधन – कर्मधारय समास
मत्यानुसार – अव्ययीभाव समास
चंद्रशेखर – बहुब्रीहि समास
(ii) नौ निधियों का समूह – द्विगु समास
धूप और दीप – वंद समास
भीम और अर्जुन – वंद समास
समय के अनुसार – अव्ययी भाव समास
यथाअर्थ – अव्ययीभाव समास
राजा का दूत – तत्पुरुष समास
शांति है जिसे प्रिय – कर्मधारय समास