Jharkhand Board JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन Important Questions and Answers.
JAC Board Class 12 Geography Important Questions Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन
बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)
प्रश्न-दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखें
1. झारखण्ड किस खनिज का भारत में सर्वाधिक उत्पादन है ?
(A) बॉक्साइट
(B) अभ्रक
(C) लौह खनिज
(D) तांबा।
उत्तर:
(C) लौह खनिज
2. मानोजाइट रेत में कौन-सा खनिज मिलता है ?
(A) तेल
(B) यूरेनियम
(C) थोरियम
(D) कोयला।
उत्तर:
(C) थोरियम
3. सबसे कठोर खनिज है
(A) हीरा
(B) ग्रेनाइट
(C) बसाल्ट
(D) गैब्रो।
उत्तर:
(A) हीरा
4. कौन-सी धातु लौह धातु है ?
(A) बॉक्साइट
(B) लौह खनिज
(C) अभ्रक
(D) कोयला।
उत्तर:
(B) लौह खनिज
5. हैमेटाइट लौह खनिज में लौह अंश है
(A) 20-30%
(B) 30-40%
(C) 40-50%
(D) 60-70%.
उत्तर:
(D) 60-70%.
6. तांबा की प्रसिद्ध खान है
(A) बस्तर
(B) खेतड़ी
(C) बेलौर
(D) झरिया।
उत्तर:
(B) खेतड़ी
7. लिग्नाइट कोयला कहां मिलता है ?
(A) झरिया
(B) नेवेली
(C) बोकारो
(D) रानीगंज।
उत्तर:
(B) नेवेली
8. भारत में सबसे बड़ा सौर ऊर्जा प्लांट कहां स्थित है ?
(A) नासिक
(B) माधोपुर
(C) कैगा
(D) चन्द्रपुर।
उत्तर:
(B) माधोपुर
9. निम्नलिखित में से कौन-सा अधात्विक खनिज है?
(A) लोहा
(B) चूना
(C) मैंगनीज़
(D) तांबा।
उत्तर:
(B) चूना
10. किरुबुरू लोहे की खान किस राज्य में स्थित है ?
(A) बिहार
(B) झारखण्ड
(C) उड़ीसा
(D) छत्तीसगढ़।
उत्तर:
(C) उड़ीसा
11. कर्नाटक में कौन-सी लोहे की खान स्थित है ?
(A) करीम नगर
(B) कुडप्पा
(C) कुद्रेमुख
(D) वैलाडिला।
उत्तर:
(C) कुद्रेमुख
12. हज़ारी बाग पठार किस खनिज के लिए प्रसिद्ध है ?
(A) लौह
(B) तांबा
(C) अभ्रक
(D) कोयला।
उत्तर:
(C) अभ्रक
13. भारत में सबसे बड़ा कोयला क्षेत्र है
(A) झरिया
(B) रानीगंज
(C) नेवेली
(D) सिंगारेनी।
उत्तर:
(A) झरिया
14. कल्पक्कम परमाणु गृह किस राज्य में है ?
(A) केरल
(B) कर्नाटक
(C) तमिलनाडु
(D) आन्ध्र प्रदेश।
उत्तर:
(C) तमिलनाडु
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)
प्रश्न 1.
भारत में निकाले गए खनिजों का 2006 में कितना मूल्य था?
उत्तर:
5.30 अरब रुपए।
प्रश्न 2.
भारत में कोयले के कुल भण्डार कितने हैं?
उत्तर:
21,390 करोड़ टन।
प्रश्न 3.
कोयला क्षेत्रों के दो समूह बताओ।
उत्तर:
गोंडवाना तथा टरशरी।।
प्रश्न 4.
बॉम्बे हाई कहां स्थित है ?
उत्तर:
मुम्बई से 176 कि० मी० दूर अरब सागर में।
प्रश्न 5.
भारत में खनिज तेल का उत्पार कितना है?
उत्तर:
3.24 करोड़ टन।
प्रश्न 6.
भारत में सबसे बड़ी तेल परिष्करणशाला कहां स्थित है?
उत्तर:
गुजरात राज्य में जाम नगर में (रिलायंस पेट्रोलियम लिमेटिड)।
प्रश्न 7.
भारत में लौह-अयस्क का कुल उत्पादन बताओ।
उत्तर:
7.5 करोड़ टन।
प्रश्न 8.
भारत में विद्युत् की उत्पादन क्षमता बताओ।
उत्तर:
101600 मेगावाट।
प्रश्न 9.
भारत में पहला परमाणु शक्ति केन्द्र कहां लगाया गया?
उत्तर:
1969 में मुम्बई के निकट तारापुर।
प्रश्न 10.
अपारम्परिक ऊर्जा के दो स्त्रोत बताओ।
उत्तर:
बायोगैस, सौर ताप।
प्रश्न 11.
भारत में कितने खनिजों का उत्पादन होता है?
उत्तर:
68 खनिजों का।
प्रश्न 12.
भारत की तीन खनिज पेटियों के नाम लिखो।
उत्तर:
उत्तर-पूर्वी पठार, दक्षिण-पश्चिमी पठार, उत्तर-पश्चिमी प्रदेश।
प्रश्न 13.
भारत में किस राज्य में कोयले का सर्वाधिक उत्पादन है?
उत्तर:
झारखण्ड में।
प्रश्न 14.
तालेचर में कोयले पर आधारित दो उद्योग बताओ।
उत्तर:
उर्वरक तथा ताप बिजली।
प्रश्न 15.
कोयले के दो प्रक्षालन केन्द्र बताओ।
उत्तर:
जामादोबा तथा लोदना।
प्रश्न 16.
भारत की किस नदी घाटी में गोंडवाना कोयला क्षेत्र है ?
उत्तर:
दामोदर घाटी।
प्रश्न 17.
सर्वप्रथम अपतटीय क्षेत्र में कहां तेल खोजा गया?
उत्तर:
गुजरात के अलियाबेट नामक द्वीप पर तथा मुम्बई हाई।
प्रश्न 18.
कावेरी द्रोणी के दो तेल क्षेत्र बताओ।
उत्तर:
नारीमनम तथा कोविलप्पल।
प्रश्न 19.
भारत में कच्चे तेल का सबसे बड़ा क्षेत्र बताओ।
उत्तर:
बॉम्बे हाई।
प्रश्न 20.
भारत में पहला बिजली घर कहां लगाया गया ?
उत्तर:
1897 में दार्जिलिंग में।
प्रश्न 21.
भारत में राष्ट्रीय ताप विद्युत् निगम के अधीन कितने बिजली घर हैं?
उत्तर:
13.
प्रश्न 22.
नहर कटिया से बारौनी तक तेल पाइप लाइन की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता बताओ।
उत्तर:
यह भारत में पहली तेल पाइप लाइन थी जो भारतीय तेल लिमेटिड (I.O.L.) द्वारा 1956 में निर्मित की गई।
प्रश्न 23.
भारत में एक प्रकार के लौह अयस्क का नाम लिखो।
उत्तर:
हेमेटाइट अथवा मेगनेटाइट।
प्रश्न 24.
कोयले के दो प्रकार के नाम लिखो।
उत्तर:
बिटुमिनस तथा एन्थेसाइट।
प्रश्न 25.
मैंगनीज़ उत्पन्न करने वाले दो प्रमुख राज्यों के नाम लिखो।
उत्तर:
कर्नाटक, छत्तीसगढ़।
प्रश्न 26.
दो परमाणु शक्ति गृहों के नाम लिखो।
उत्तर:
तारापुर, कल्पक्कम।
प्रश्न 27.
एल्यूमिनियम किस अयस्क से प्राप्त होता है ?
उत्तर:
बॉक्साइट।
प्रश्न 28.
कोयला उत्पादक करने वाले दो प्रमुख केन्द्रों/क्षेत्रों के नाम लिखें।
उत्तर:
झरिया रानीगंज।
प्रश्न 29.
अपारंपरिक ऊर्जा के दो महत्त्वपूर्ण स्रोत बताओ।
उत्तर:
सौर ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा।
प्रश्न 30.
असम राज्य के दो पेट्रोलियम उत्पादन क्षेत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:
डिगबोई तथा नहर कटिया।
प्रश्न 31.
भारत में बॉक्साइट उत्पादन करने वाले दो मुख्य राज्य कौन-से हैं ?
उत्तर:
उड़ीसा तथा झारखंड।
प्रश्न 32.
अंकलेश्वर में किस खनिज पदार्थ का उत्पादन होता है ?
उत्तर:
खनिज तेल।
प्रश्न 33.
उड़ीसा राज्य के दो कोयला उत्पादक क्षेत्रों के नाम लिखो।
उत्तर:
तलचर, रामपुर।
प्रश्न 34.
भारत में डोलोमाइट के दो प्रमुख उत्पादक राज्य बताओ।
उत्तर:
गुजरात व राजस्थान।
प्रश्न 35.
भारत में लौह अयस्क उत्पादन करने वाले दो मुख्य राज्य कौन-से हैं ?
उत्तर:
उड़ीसा, झारखण्ड।
प्रश्न 36.
कोलार क्षेत्र में किस धातु का उत्पादन होता है ?
उत्तर:
सोना।
प्रश्न 37.
भारत में कल्पक्कम तथा हीराकुड किस लिए प्रसिद्ध हैं ?
उत्तर:
अणु शक्ति तथा जल विद्युत्।
प्रश्न 38.
खनिज की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
खनिज निश्चित रासायनिक एवं भौतिक गुणधर्मों वाला प्राकृतिक पदार्थ है।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
खनिजों की प्रमुख विशेषताएं बताओ।
उत्तर:
खनिजों की कुछ निश्चित विशेषताएं होती हैं। यह क्षेत्र में असमान रूप से वितरित होते हैं। खनिजों की गुणवत्ता और मात्रा के बीच प्रतिलोमी सम्बन्ध पाया जाता है अर्थात् अधिक गुणवत्ता वाले खनिज, कम गुणवत्ता वाले खनिजों की तुलना में कम मात्रा में पाए जाते हैं। तीसरी प्रमुख विशेषता यह है कि ये सभी खनिज समय के साथ समाप्त हो जाते हैं। भूगर्भिक दृष्टि से इन्हें बनने में लम्बा समय लगता है और आवश्यकता के समय इनका तुरन्त पुनर्भरण नहीं किया जा सकता। अतः इन्हें संरक्षित किया जाना चाहिए और इनका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए क्योंकि इन्हें दोबारा उत्पन्न नहीं किया जा सकता।
प्रश्न 2.
खनिज के अन्वेषण में संलग्न अधिकरण बताओ।
उत्तर:
खनिज के अन्वेषण में संलग्न अधिकरण-भारत में, खनिजों का व्यवस्थित सर्वेक्षण, पूर्वेक्षण (Prospecting) तथा अन्वेषण के कार्य भारतीय भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग (ONGC), खनिज अन्वेषण निगम लि. (MECL), राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (NMDC), इंडियन ब्यूरो ऑफ माइन्स (IBM), भारत गोल्डमाइन्स लि० (BGML), राष्ट्रीय एल्यूमिनियम कं० लि. (NALU) और विभिन्न राज्यों के खद्यान एवं भू-विज्ञान विभाग करते हैं।
प्रश्न 3.
‘मुम्बई हाई’ और ‘सागर सम्राट्’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
खाड़ी कैम्बे के निकट अरब सागर में खनिज तेल के भण्डार प्राप्त हुए हैं। सागर तट से 120 कि० मी० दूर ‘मुम्बई हाई’ (Mumbai High) नामक तेल क्षेत्र में 19 फरवरी, 1974 को सागर सम्राट नामक जहाज द्वारा खुदाई से तेल प्राप्त हुआ है। भारत में यह पहला क्षेत्र है जिसका समुद्री क्षेत्र में विकास किया गया है। यह क्षेत्र भारत में सबसे अधिक तेल उत्पन्न करता है।
प्रश्न 4.
भारत के कितने क्षेत्र में तेलधारी (Oil Bearing) बेसिन हैं ? विभिन्न तेलधारी बेसिनों के नाम लिखो।
उत्तर:
भारत में लगभग 17 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल पर तेलधारी पर्त वाले 13 महत्त्वपूर्ण बेसिन हैं। इसमें 3 लाख 20 हज़ार वर्ग किलोमीटर का अवसादी तट क्षेत्र है जहां तेल मिलता है। कैम्बे बेसिन, ऊपरी असम तथा बॉम्बे हाई बेसिन में से तेल प्राप्त किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त कई क्षेत्र पेट्रोलियम उत्पादन के भावी क्षेत्र हैं, जैसे कावेरी-कृष्णा-गोदावरी बेसिन, राजस्थान, अण्डमान, शिवालिक पहाड़ियां, गंगा घाटी, कच्छ-सौराष्ट्र, केरल-कोंकण तट तथा महानदी बेसिन।
प्रश्न 5.
भारत में खनिज तेल के उत्पादन, उपभोग तथा आयात का वर्णन करो।।
उत्तर:
देश में खनिज तेल का उत्पादन उपभोग को देखते हुए कम है। सन् 2005-06 में खनिज तेल का उत्पादन 329 लाख टन था। यह हमारी केवल 35% आवश्यकताओं की पूर्ति करता है जबकि उपभोग लगभग 750 लाख टन हो गया है। इस प्रकार गत वर्ष 500 लाख टन खनिज़ तेल तथा पेट्रोलियम पदार्थों का आयात किया गया। यह आयात लगभग 35 हज़ार करोड़ के मूल्य का था। इस वृद्धि का मुख्य कारण खपत में वृद्धि, मूल्यों में वृद्धि तथा रुपए के मूल्य का कम होना है।
प्रश्न 6.
देश में विभिन्न तेल शोधन शालाओं के नाम लिखो तथा भविष्य में स्थापित की जाने वाली तेल शोधन शालाओं के नाम बताओ।
उत्तर:
भारत में 12 तेल शोधन शालाएं हैं। इन तेल शोधन शालाओं की कुल क्षमता 500 लाख टन प्रतिवर्ष है। मुम्बई, कोयाली, ट्राम्बे, मथुरा, नूनमती, बोगाई गांव, बरौनी, हल्दिया, विशाखापट्टनम, चेन्नई तथा कोचीन प्रमुख तेल शोधन शालाएं हैं। भविष्य में तीन तेल शोधन शालाएं करनाल (हरियाणा) तथा मंगलौर (कर्नाटक) व भटिंडा (पंजाब) में स्थापित की जाएंगी।
प्रश्न 7.
भारत में खनिजों का संरक्षण क्यों आवश्यक है ? हम उनका संरक्षण किस प्रकार कर सकते हैं ? दो बिन्दुओं में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
खनिजों के संरक्षण की आवश्यकता –
- खनन को परम्परागत विधियां बड़ी मात्रा में खनिजों को नष्ट कर देती हैं तथा कई पर्यावरणीय समस्याएं पैदा हो जाती हैं।
- देश का आर्थिक विकास खनिजों के उपभोग पर निर्भर करता है।
- खनिज समाप्त होने वाले संसाधन हैं। एक बार निकाले जाने पर खनिज पुनः निर्माण नहीं होते। भावी पीढ़ियों द्वारा प्रयोग के लिए खनिज आवश्यक है।
खनिजों के संरक्षण की विधियां –
- स्क्रैप धातुओं का उपयोग करना जैसे तांबा, जिस्ता आदि।
- सामरिक तथा कम उपलब्धता वाले खनिजों के उपयोग को कम किया जाए।
- कम मात्रा में उपलब्ध धात्विक खनिजों के लिए पूरक वस्तुओं का उपयोग किया जाए।
लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
भारत में खनिजों के बड़े भण्डार क्यों पाए जाते हैं ? निम्नलिखित के उत्तर दें –
(क) उच्च कोटि की गुणवत्ता वाले कौन-से खनिज मिलते हैं ?
(ख) किन खनिजों की भारत में कमी है ?
(ग) ऊर्जा खनिजों की स्थिति के बारे में बताओ।
उत्तर:
खनिजों के पर्याप्त भण्डार-विशाल आकार तथा विविध प्रकार की भू-वैज्ञानिक संरचनाओं के कारण भारत में औद्योगिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण खनिजों के बहुत बड़े और उत्तम कोटि के भण्डार पाए जाते हैं।
(क) उच्च कोटि के भण्डार – उच्च कोटि के लौह-अयस्क के भण्डारों के अलावा भारत में अनेक प्रकार के उच्च कोटि की गुणवत्ता वाले निम्न खनिज पाए जाते हैं-मिश्रधातु खनिज जैसे मैंगनीज, क्रोमाइट और टिटैनियम के काफ़ी बड़े भण्डार, गालक खनिज जैसे चूने का पत्थर, डोलोमाइट, जिप्सम आदि, ऊष्मसह जैसे मैग्नेसाइट, क्यानाइट और सिलिमेनाइट।
(ख) कमी वाले खनिज भण्डार – लेकिन भारत में कुछ अलौह खनिजों जैसे-तांबा, सीसा, जस्ता, टिन, ग्रेफाइट, टंग्सटन और पारे की अपेक्षाकृत कमी है। बॉक्साइट और अभ्रक का पर्याप्त भण्डार हैं। भारत में रासायनिक उर्वरक उद्योगों में काम आने वाले खनिजों; जैसे गन्धक, पोटाश और शैल फास्फेट की भी कमी है।
(ग) ऊर्जा खनिज – बिटुमिनस कोयले के भारत में विशाल भण्डार हैं, लेकिन देश में कोकिंग कोयले और पेट्रोलियम का अभाव है। फिर भी परमाणु खनिजों; जैसे-यूरेनियम और थोरियम के सन्दर्भ में भारत की स्थिति काफ़ी सुदृढ़ है।
प्रश्न 2.
भारत में प्राकृतिक गैस के क्षेत्र बताओ तथा एच० बी० जे० पाइप लाइन का वर्णन करो।
उत्तर:
भारत में प्राकृतिक गैस का कुल उत्पादन 22000 करोड़ घन मीटर है। इस समय कैम्बे बेसिन, कावेरी तट, जैसलमेर तथा बॉम्बे हाई से प्राकृतिक गैस प्राप्त की जा रही है। भारत में गैस के परिवहन के लिए हज़ीरा विजयपुर जगदीशपुर (H.B.J.) पाइप लाइन बनाई गई है। यह पाइप लाइन 1700 किलोमीटर लम्बी है।
यह पाइप लाइन गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश राज्यों में से गुजरती है। इस गैस से विजयपुर, सवाई माधोपुर, जगदीशपुर, शाहजहांपुर, आमला तथा बबराला उर्वरक कारखाने बनाने की योजना है। भारत में Gas Authority of India LTD. (GAIL), Oil and National Gas Commission (ONGC), Indian Oil Corporation (IOC), Hindustan Petroleum Corporation (HPC) नामक संस्थाएं गैस की खोज तथा प्रबन्ध का कार्य कर रही हैं।
प्रश्न 3.
भारत में ‘लौह पट्टी’ (Iron Belt) में स्थित इस्पात कारखाने बताओ।
उत्तर:
हमारे देश में 2004-05 में लौह अयस्क के आरक्षित भण्डार लगभग 200 करोड़ टन थे। लौह अयस्क के कुल आरक्षित भण्डारों का लगभग 95 प्रतिशत भाग उड़ीसा, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, गोआ, आन्ध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु राज्यों में स्थित हैं।
(1) उड़ीसा में लौह अयस्क सुन्दरगढ़, मयूरभंज, झार स्थित पहाड़ी श्रृंखलाओं में पाया जाता है। यहां की महत्त्वपूर्ण खदानें गुरुमहिसानी, सुलाएपत, बादामपहाड़ (मयूरभन्ज), किरुबुरू (केन्दूझार) तथा बोनाई (सुन्दरगढ़) है।
(2) झारखण्ड की ऐसी ही पहाड़ी श्रृंखलाओं में कुछ सबसे पुरानी लौह अयस्क की खदानें हैं तथा अधिकतर लौह एवं इस्पात संयन्त्र इनके आसपास ही स्थित हैं। नोआमण्डी और गुआ जैसी अधिकतर महत्त्वपूर्ण खदानें पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम जिलों में स्थित हैं।
(3) यह पट्टी और आगे दुर्ग, दांतेवाड़ा और बैलाडीला तक विस्तृत हैं। डल्ली तथा दुर्ग में राजहरा की खदानें देश की लौह अयस्क की महत्त्वपूर्ण खदानें हैं।
(4) कर्नाटक में, लौह अयस्क के निक्षेप बेलारी जिले के सन्दूर-होस्पेट क्षेत्र में तथा चिकमंगलूर जिले की बाबा बुदन पहाड़ियों और कुद्रेमुख तथा शिमोगा, चित्रदुर्ग और तुमकुर जिलों के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं।
(5) महाराष्ट्र के चन्द्रपुर भण्डारा और रत्नागिरि जिले, आन्ध्र प्रदेश के करीम नगर, वारंगल, कुरूनूल, कडप्पा तथा अनन्तपुर ज़िले और
(6) तमिलनाडु राज्य के सेलम तथा नीलगिरी ज़िले लौह अयस्क खनन के अन्य प्रदेश हैं।
(7) गोआ भी लौह अयस्क के महत्त्वपूर्ण उत्पादक के रूप में उभरा है।
प्रश्न 4.
ऐसे कौन मूल्य आधारित कारक हैं जिनके चलते खनिजों का संरक्षण आवश्यक है ? खनिजों का संरक्षण हम किस प्रकार कर सकते हैं ?
उत्तर:
खनिजों के संरक्षण की आवश्यकता:
- खनन की परम्परागत विधियां बड़ी मात्रा में खनिजों को नष्ट कर देती हैं तथा कई पर्यावरणीय समस्याएं पैदा हो जाती हैं।
- देश का आर्थिक विकास खनिजों के उपभोग पर निर्भर करता है।
- खनिज समाप्त होने वाले संसाधन हैं। एक बार निकाले जाने पर खनिज पुनः निर्माण नहीं होते। भावी पीढ़ियों द्वारा प्रयोग के लिए खनिज आवश्यक है।
खनिजों का संरक्षण:
- स्क्रैप धातुओं जैसे कि तांबा, जस्ता आदि का उपयोग करके।
- सामरिक तथा कम उपलब्धता वाले खनिजों का उपयोग कम करके।
- कम मात्रा में उपलब्ध धात्विक खनिजों के लिए पूरक वस्तुओं का उपयोग किया जाए।
प्रश्न 5.
लौह तथा अलौह खनिज में किन कारणों के आधार पर अन्तर स्पष्ट किया जा सकता है ?
उत्तर:
कारण | अतर | |
लौह खनिज (Ferrous Minerals) | अलौह खनिज (Non-ferrous Minerals) | |
प्रमुख धातु अंश | जिन खनिज पदार्थों में लौह धातु का अंश पाया जाता है, उन्हें लौह खनिज कहते हैं। | जिन खनिज पदार्थों में लौह धातु का अभाव होता है, उन्हें अलौह खनिज कहते हैं। |
मुख्य खनिज | लोहा, मैंगनीज़, क्रोमाइट, कोबाल्ट आदि लौह खनिज हैं। | सोना, तांबा, सीसा, निकल आदि अलौह खनिज हैं। |
उपयोग/प्रयोग उपयोगिता | इन खनिजों को लोहा-इस्पात उद्योग में प्रयोग किया जाता है। इस लोहे को कड़ा करने के लिए कई धातुओं को मिलाया जाता है। | अलौह खनिजों की अपनी-अपनी उपयोगिता उपयोगिता होती है तथा कई कीमती धातुएं मिलती हैं। |
प्रश्न 6.
लौह तथा अलौह खनिज में अन्तर स्पष्ट करो।
लौह खनिज (Ferrous Minerals) | अलौह खनिज (Non-ferrous Minerals) |
(1) जिन खनिज पदार्थों में लौह धातु का अंश पाया। जाता है, उन्हें लौह खनिज कहते हैं। | (1) जिन खनिज पदार्थों में लौह धातु का अभाव होता है, उन्हें अलौह खनिज कहते हैं। |
(2) लोहा, मैंगनीज़, क्रोमाइट, कोबाल्ट आदि लौह खनिज हैं। | (2) सोना, तांबा, सीसा, निकल आदि अलौह खनिज हैं। |
(3) इन खनिजों को लोहा-इस्पात उद्योग में प्रयोग किया जाता है। इस लोहे को कड़ा करने के लिए कई धातुओं को मिलाया जाता है। | (3) अलौह खनिजों की अपनी-अपनी उपयोगिता होती है तथा कई कीमती धातुएं मिलती हैं। |
प्रश्न 7.
धात्विक खनिज तथा अधात्विक खनिज में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
धात्विक खनिज (Metallic Minerals) | अधात्विक खनिज (Non-metallic Minerals) |
(1) धात्विक खनिज ऐसे खनिज पदार्थ हैं जिनको गलाने से विभिन्न धातुओं की प्राप्ति होती है। | (1) अधात्विक खनिजों को गलाने से किसी धातु की प्राप्ति नहीं होती। |
(2) लोहा, तांबा, बॉक्साइट, मैंगनीज़ धात्विक खनिज हैं। | (2) कोयला, नमक, संगमरमर, पोटाश अधात्विक खनिज हैं। |
(3) ये खनिज प्राय: तलछटी चट्टानों में पाए जाते हैं। | (3) ये खनिज प्रायः आग्नेय चट्टानों में पाए जाते हैं। |
(4) इन्हें पिघला कर प्रयोग नहीं किया जा सकता। हैं। | (4) इन्हें दोबारा पिघला कर भी प्रयोग किया जा सकता है। |
प्रश्न 8.
चट्टान तथा खनिज अयस्क में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
चट्टान (Rock) | खनिज अयस्क (Mineral Ore) |
(1) पृथ्वी के भू-पटल का निर्माण करने वाले सभी प्राकृतिक तथा ठोस पदार्थों को चट्टान कहते हैं। | (1) खनिज एक अजैव यौगिक है जो प्राकृतिक अवस्था में पाया जाता है। |
(2) चट्टान कई प्रकार के खनिजों का समूह होते हैं। | (2) खनिज अयस्क प्रायः एक प्रकार के खनिज से बने होते हैं, जैसे-लोहा। |
(3) इनका कोई निश्चित रासायनिक संगठन नहीं होता। | (3) इनका एक निश्चित रासायनिक संघटन होता है। |
(4) चट्टानें मुख्यतः तीन प्रकार की होती हैं-आग्नेय, तलछटी, रूपान्तरित। | (4) खनिज प्राय: 2000 प्रकार के पाए जाते हैं। |
निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)
प्रश्न 1.
भारत में लौह-अयस्क के उत्पादन तथा वितरण का वर्णन करो।
उत्तर:
लौह-अयस्क (Iron-ore):
महत्त्व (Importance) – “कोयला और लोहा किसी देश के औद्योगिक विकास की आधारशिला हैं।” (“Coal and iron are the twin pillars of modern industrialisation.”) यह धातु अत्यन्त सस्ती व टिकाऊ है। वर्तमान युग यन्त्रों
का युग है। सभी मशीनों व यन्त्रों के निर्माण का आधार लोहा है। लोहे से भारी मशीनें, रेल, मोटर, हवाई जहाज, पुल, डैम, खेतीबाड़ी आदि के यन्त्र बनाए जाते हैं। इसीलिए इस युग को ‘लौह-इस्पात का युग’ (Steel age) कहते हैं। लोहा हमारी आधुनिक सभ्यता का प्रतीक है। लोहे को औद्योगिक विकास की कुञ्जी भी कहा जाता है।
भारत में चार प्रकार का लोहा मिलता है –
1. मैगनेटाइट (Magnetite) – इस बढ़िया प्रकार के लोहे में 72% धातु अंश होते हैं। चुम्बकीय गुणों के कारण इसे मैगनेटाइट कहा जाता है।
2. हैमेटाइट (Hematite) – इस लाल रंग के लोहे में 60% से 70% तक धातु अंश होता है। यह रक्त की तरह लाल रंग का होता है।
3. लिमोनाइट (Limonite) – इस पीले रंग के लोहे में 40% से 60% तक लोहे का अंश होता है।
4. सिडेराइट (Siderite) – इस भूरे रंग के लोहे में धातु अंश 48% होता है। इस लोहे में अशुद्धियां अधिक होती हैं।
भारत संसार का 5% लोहा उत्पन्न करता है तथा आठवें स्थान पर है। भारतीय लोहे में कम अशुद्धियां हैं तथा इसमें 65% धातु का अंश होता है। देश में एक लम्बे समय के प्रयोग के लिए 2300 करोड़ टन लोहे के भण्डार हैं। इस प्रकार संसार के 20% भण्डार भारत में हैं। भारत में अधिकतर लोहा हैमेटाइट (Haematite) जाति का मिलता है जिसमें 60% से अधिक लोहा-अंश मिलता है। उत्पादन 2.2 करोड़ टन है।
लोहा क्षेत्रों का वितरण (Distribution) – झारखण्ड तथा उड़ीसा भारत का 75% लोहा उत्पन्न करता है। इसे भारत का लोहा क्षेत्र (Iron Ore belt of India) कहते हैं। इस क्षेत्र में भारत के मुख्य इस्पात कारखाने हैं।
विभिन्न राज्यों में उत्पादन निम्नलिखित है –
1. गोआ-गोआ राज्य भारत में लौह-अयस्क का सबसे बड़ा उत्पादक है। गोआ में लौह-अयस्क के नए भण्डारों के पता लगने से उत्पादन में बहुत वृद्धि हुई है। यहाँ घटिया प्रकार का लोहा पाया जाता है। उत्तरी गोआ तथा दक्षिणी गोआ में प्रमुख खानें हैं। यहां से लोहा जापान को निर्यात किया जाता है।
2. झारखण्ड-यह भारत में 98 लाख टन लोहा उत्पन्न करता है। इस राज्य में कोल्हन जागीर (Kolhan Estate) में सिंहभूम क्षेत्र प्रमुख क्षेत्र है। प्रमुख खानें निम्नलिखित हैं –
(क) नोआ मण्डी
(ख) पन सिरा बुडु
(ग) वुडाबुरू। नोआ मण्डी खान एशिया में सबसे बड़ी लोहे की खान है। इस लोहे को जमशेदपुर व दुर्गापुर कारखानों में भेजा जाता है।
3. उड़ीसा-यह राज्य देश का 13% लोहा उत्पन्न करता है। इस राज्य के मयूरभंज, क्योंझर तथा बोनाई जिलों में प्रमुख खानें हैं।
(क) मयूरभंज में गुरमहासिनी, सुलेपत, बादाम पहाड़ खाने हैं।
(ख) क्योंझर में बगिया बुडु खान है।
(ग) बोनाई में किरिबुरू खान से प्राप्त लोहा जापान को निर्यात किया जाता है तथा रूरकेला इस्पात कारखाने में प्रयोग किया जाता है।
4. छत्तीसगढ़ – इस राज्य में धाली-राजहरा की पहाड़ियां लोहे के प्रसिद्ध क्षेत्र हैं। बस्तर क्षेत्र में बैलाडिला (Bailadila) तथा रावघाट (Rawghat) के नये क्षेत्रों में लोहे की खानें हैं। यहां से लोहा जापान को निर्यात किया जाता है तथा भिलाई कारखाने में प्रयोग होता है।
5. तमिलनाडु – इस राज्य में सेलम तथा मदुराई क्षेत्रों में लोहे की खानें हैं। इस लोहे को प्रयोग करने के लिए सेलम में एक इस्पात कारखाना लगाया जा रहा है।
6. कर्नाटक – इस राज्य में बाबा बूदन पहाड़ियों में केमनगुण्डी तथा चिकमंगलूर में कुद्रेमुख क्षेत्र प्रसिद्ध हैं। यह लोहा भद्रावती इस्पात कारखाने में प्रयोग होता है।
7. आन्ध्र प्रदेश – आन्ध्र प्रदेश में कुडप्पा तथा करनूल क्षेत्र।
8. महाराष्ट्र-महाराष्ट्र में चांदा तथा रत्नागिरी क्षेत्र में लौहारा तथा पीपल गांव खान क्षेत्र।
9. राजस्थान राजस्थान में धनौरा व धनचोली क्षेत्र।
10. हरियाणा-हरियाणा में महेन्द्रगढ़ क्षेत्र।
11. जम्मू-कश्मीर-जम्मू-कश्मीर में ऊधमपुर क्षेत्र।
व्यापार (Trade) – भारत लौह-अयस्क का प्रमुख निर्यातक देश है। भारत से लोहा मारमागांव, विशाखापट्टनम, पाराद्वीप तथा मंगलौर बन्दरगाहों से निर्यात किया जाता है। भारत से जापान, जर्मनी, इटली, कोरिया देशों को काफ़ी मात्रा में लोहा निर्यात किया जाता है। 2010-11 में लगभग 28366 करोड़ रुपये का लोहा (276 लाख टन) निर्यात किया गया।
प्रश्न 2.
भारत में मैंगनीज़ के उत्पादन तथा वितरण का वर्णन करो।
उत्तर:
मैंगनीज़ (Manganese) – मैंगनीज़ एक लौहपूरक धातु है। इसका उपयोग लोहा, इस्पात उद्योग तथा रासायनिक उद्योग में किया जाता है। इससे ब्लीचिंग पाऊडर, रंग-रोगन, चीनी मिट्टी के बर्तन, शुष्क बैटरियां, बिजली तथा शीशे के सामान तैयार किए जाते हैं। इस धातु का मुख्य उपयोग इस्पात बनाने में होता है। लोहे तथा मैंगनीज़ का धातु मेल किया जाता है. जिसे फैरो मैंगनीज़ (Ferro-Manganese) कहते हैं।
उत्पादन (Production) – भारत संसार का 30% मैंगनीज़ उत्पन्न करता है तथा तीसरे स्थान पर है। देश में 18 करोड़ टन मैंगनीज़ के भण्डार हैं। 2000-01 में भारत में मैंगनीज का उत्पादन 15.86 लाख टन था। यह उत्पादन विदेशी मांग के अनुसार घटता-बढ़ता रहता है।
उत्पादन क्षेत्र – भारत में मैंगनीज़ निम्नलिखित चट्टानों में मिलता है –
- कर्नाटक प्रदेश में धारवाड़ चट्टानों में।
- छोटा नागपुर के पठार में लेटराइट चट्टानों में।
- छत्तीसगढ़ में प्राचीन आग्नेय चट्टानों में।
- मध्य प्रदेश में बालाघाट, छिंदवाड़ा तथा जबलपुर क्षेत्र।
- महाराष्ट्र में नागपुर तथा भण्डारा क्षेत्र।
- उड़ीसा में गंगपुर, कालाहांडी तथा कोरापुट व बोनाई क्षेत्र।
- कर्नाटक में बिलारी, शिमोगा, चितलदुर्ग क्षेत्र।
- आन्ध्र प्रदेश में विशाखापट्टनम क्षेत्र।
- झारखण्ड में सिंहभूम का चायबासा क्षेत्र।
- राजस्थान में उदयपुर तथा बांसवाड़ा क्षेत्र।
विभिन्न राज्यों में उत्पादन इस प्रकार है –
व्यापार-देश के कुल उत्पादन का 30% मैंगनीज़ विदेशों को (ग्रेट ब्रिटेन, अमेरिका, जर्मनी तथा जापान) निर्यात कर दिया जाता है। इसका मुख्य कारण देश में खपत कम होना है। देश में मैंगनीज़ साफ़ करने के 6 कारखाने हैं। देश में लोहा-इस्पात उद्योग में मांग बढ़ जाने से तथा विदेशी मुकाबले के कारण निर्यात प्रति वर्ष कम हो रहा है। विशाखापट्टनम देश से मैंगनीज़ निर्यात की सबसे बड़ी बन्दरगाह है। भारत लगभग 4 लाख टन मैंगनीज़ निर्यात करके 17 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा कमाता है।
प्रश्न 3.
भारत के कोयले के भण्डार, उत्पादन तथा वितरण का वर्णन करो। उत्तर
कोयला
(Coal) महत्त्व (Importance) – आधुनिक युग में कोयला शक्ति का प्रमुख साधन (Prime Source of Energy) है। कोयले को उद्योग की जननी (Mother of Industry) भी कहा गया है। कई उद्योगों के लिए कोयला एक कच्चे माल का पदार्थ है। कोयले से बचे-खुचे पदार्थ बैनज़ोल, कोलतार, मैथनोल आदि का प्रयोग कई रासायनिक उद्योगों में किया जाता है। रंग-रोगन, नकली रबड़, प्लास्टिक, रिबन, लैम्प आदि अनेक वस्तुएं कोयले से तैयार की जाती हैं। इस उपयोगिता के कारण कोयले को काला सोना भी कहा जाता है। कोयले को औद्योगिक क्रान्ति (Industrial Revolution) का आधार माना जाता है। संसार के अधिकांश औद्योगिक प्रदेश कोयला क्षेत्रों के निकट स्थित हैं, किसी सीमा तक आधुनिक सभ्यता कोयले पर निर्भर करती है।
रचना तथा कोयले की किस्में (Formation and Types of Coal) – भूमि के नीचे दबी हुई वनस्पति एक लम्बे समय के पश्चात् कोयले में बदल जाती है। अधिक ताप व दबाव के कारण वनस्पति कार्बन में बदल जाती है।
कार्बन की मात्रा के अनुसार कोयले की निम्नलिखित किस्में हैं –
- पीट (Peat) – यह घटिया किस्म का भूरे रंग का कोयला है जिसमें 30% से कम कार्बन होता है। यह कोयला निर्माण की प्रथम अवस्था है। इसकी जलन क्षमता कम होने के कारण इसका प्रयोग कम होता है।
- लिगनाइट (Lignite) – इस कोयले में 45% से 60% तक कार्बन की मात्रा होती है। इसका प्रयोग ताप विद्युत् में किया जाता है। इसमें से धुआं बहुत निकलता है।
- बिटुमिनस (Bituminus) – इस मध्यम श्रेणी के कोयले में 50% से 70% तक कार्बन होता है। 70% तक कार्बन होता है। कोकिंग कोयला इस प्रकार का होता है। इसे धातु गलाने तथा जलयानों में प्रयोग किया जाता है।
- एंथेसाइट (Anthracite) – यह उत्तम प्रकार का कोयला होता है जिसमें 80% से 95% तक कार्बन होता है। इसमें धुएं की कमी होती है। इसका रंग काला होता है। इस कठोर कोयले के भण्डार कम मिलते हैं।
भारत में कोयले के भण्डार (Coal Reserves in India) – भू-सर्वेक्षण विभाग (Geological Survey of India) के अनुसार भारत में कोयले के भण्डार 19235 करोड़ टन से अधिक हैं। भण्डारों की दृष्टि से भारत का विश्व में सातवां स्थान है। भारत में 98% भण्डार गोंडवाना क्षेत्र में है जबकि टरशरी क्षेत्र में केवल 2% कोयला भण्डार है। ये कोयला भण्डार अधिक देर तक के लिए पर्याप्त नहीं हैं। इनमें से कोकिंग कोयला केवल 200 करोड़ टन की मात्रा में है। इसलिए इस कोयले का संरक्षण आवश्यक है।
कोयले का उत्पादन (Production of Coal) – भारत में सबसे पहले कोयले का उत्पादन 1774 में पश्चिमी बंगाल में रानीगंज खान से आरम्भ हुआ। निरन्तर कोयले के उत्पादन में वृद्धि होती रही। स्वतन्त्रता के पश्चात् 30 वर्षों में कोयले के उत्पादन में 6 गुना वृद्धि हुई। भारत में कोयला चालक शक्ति का प्रमुख साधन है। कोयला सबसे महत्त्वपूर्ण शक्ति खनिज है। समस्त खनिजों के कुल मूल्य का 70% भाग कोयले से प्राप्त होता है।
इस व्यवसाय में 650 करोड़ रुपये की पूंजी लगी हुई है तथा 6 लाख से अधिक लोग काम करते हैं। भारत में कोयले की मांग के मुख्य क्षेत्र इस्पात उद्योग, शक्ति उत्पादन, रेलवे, घरेलू खपत तथा अन्य उद्योग हैं। सन् 1972 में भारत ने कोयले की खानों का राष्ट्रीयकरण (Nationalisation) कर दिया है तथा कोल इण्डिया लिमिटेड (Coal India LTD.) नामक सरकारी संस्था स्थापित की है। इस समय देश में लगभग 800 कोयला खानों से 3500 लाख टन कोयला निकाला जाता है। भारत में कोयला प्राप्ति के दो प्रकार के क्षेत्र हैं –
1. गोंडवाना कोयला क्षेत्र (Gondwana Coal fields) – इस क्षेत्र में भारत का उच्चकोटि का 98% कोयला मिलता है।
2. टरशरी कोयला क्षेत्र (Tertiary Coal fields) – इस क्षेत्र में केवल 2% कोयला मिलता है। यह कोयला निम्न कोटि का है।
कोयले का वितरण (Distribution of Coal) –
1. गोंडवाना कोयला क्षेत्र (Gondwana Coal fields) –
(i) झारखण्ड-यह राज्य भारत का 50% कोयला उत्पन्न करता है। यहां दामोदर घाटी में झरिया, बोकारो, कर्णपुर, गिरिडीह तथा डालटनगंज प्रमुख खाने हैं। झरिया का कोयला क्षेत्र सबसे बड़ी खान है। यहां बढ़िया प्रकार का कोक कोयला (Coaking Coal) मिलता है जो इस प्रकार के इस्पात के उद्योग में जमशेदपुर, आसनसोल, दुर्गापुर तथा बोकारो के कारखानों में प्रयोग होता है।
(ii) छत्तीसगढ़-इस राज्य का कोयला उत्पादन में दूसरा स्थान है। यहां कई नदी घाटियों में कोयला खानें हैं। यहां सिंगरौली कोयला क्षेत्र तथा कोरबा क्षेत्र प्रसिद्ध हैं। यहां से ताप बिजली घरों तथा भिलाई इस्पात केन्द्र को कोयला भेजा
जाता है। इसके अतिरिक्त सुहागपुर, रामपुर, पत्थर खेड़ा, सोनहट अन्य प्रमुख कोयला खानें हैं।
(iii) पश्चिमी बंगाल-इस राज्य का कोयला उत्पादन में तीसरा स्थान है। यहां 1267 वर्ग कि० मी० में फैली हुई रानीगंज की प्राचीन तथा सबसे गहरी खान है। यहां उच्च कोटि के कोयला भण्डार हैं।
(iv) अन्य क्षेत्र (Other Areas) –
- आन्ध्र प्रदेश में गोदावरी नदी घाटी में सिंगरौली, कोठगुडम तथा तन्दूर खानें हैं।
- महाराष्ट्र में वार्धा घाटी में चन्द्रपुर तथा बल्लारपुर।
- उड़ीसा में महानदी घाटी में तलेचर तथा रामपुर हिमगीर।
2. टरशरी कोयला क्षेत्र (Tertiary Coal fields) –
- असम-असम में लिग्नाइट कोयला लखीमपुर तथा माकूम क्षेत्र में मिलता है।
- मेघालय-मेघालय में गारो, खासी, जयंतिया पहाड़ियों में।
- राजस्थान राजस्थान में बीकानेर जिले में पालना नामक क्षेत्र में लिग्नाइट कोयला मिलता था।
- तमिलनाडु-यहां दक्षिणी अरकाट में नेवेली में लिग्नाइट कोयला खान है।
- जम्मू-कश्मीर-यहां पुंछ, रियासी तथा ऊधमपुर में निम्न कोटि का कोयला मिलता है।
प्रश्न 4.
भारतीय खनिज तेल के उत्पादन, भण्डार तथा वितरण का वर्णन करो।
उत्तर:
पेट्रोलियम (Petroleum)
महत्त्व (Importance) – प्राचीन काल में पेट्रोलियम का प्रयोग दवाइयों, प्रकाश व लेप आदि कार्यों के लिए किया जाता है। आधुनिक युग में खनिज तेल का व्यापारिक उपयोग सन् 1859 में शुरू हुआ जबकि संसार में खनिज तेल का पहला कुआं 22 मीटर गहरा U.S.A. में द्विसविलें नामक स्थान पर खोदा गया। आधुनिक युग में पेट्रोलियम शक्ति का सबसे बड़ा साधन है। इसे खनिज तेल (Mineral Oil) भी कहते हैं। इसका प्रयोग मोटर-गाड़ियों, वायुयान, जलयान, रेल इंजन, कृषि यन्त्रों में किया जाता है। इससे दैनिक प्रयोग की लगभग 5,000 वस्तुएं तैयार की जाती हैं। इससे स्नेहक, “रंग, दवाइयां, नकली रबड़ व प्लास्टिक, नाइलोन, खाद आदि पदार्थों का उत्पादन होता है।
तेल की उत्पत्ति (Formation of Petroleum) – पेट्रोलियम शब्द दो शब्दों के जोड़ से बना है (Petra = rock + oleum = oil) इसलिए इसे चट्टानी तेल भी कहते हैं। खनिज तेल कार्बन तथा हाइड्रोजन का मिश्रण है। पृथ्वी के नीचे दबी हुई समुद्री वनस्पति तथा जीव जन्तुओं से लाखों वर्षों के बाद अधिक ताप तथा दबाव के कारण खनिज तेल बन जाता है। खनिज तेल प्रायः रेत तथा चूने की परतदार चट्टानों में मिलता है।
भारत में खनिज तेल की खोज (Exploration of Oil in India):
भारत में सबसे पहला कुआं असम में नहोर पोंग नामक स्थान पर सन् 1857 में खोदा गया। यह कुआं 36 मीटर गहरा था। सन् 1893 में असम में डिगबोई तेल शोधनशाला स्थापित की गई। स्वतन्त्रता से पहले केवल असम राज्य से ही तेल प्राप्त होता था। सन् 1955 में तेल तथा प्राकृतिक गैस आयोग (Natural Gas Commission) की स्थापना हुई। इस आयोग द्वारा देश के भीतरी तटवर्ती क्षेत्रों में तेल की खोज का कार्य किया जाता है।
तेल के भण्डार (Oil Reserves) – भारत में तेल के भण्डार टरशरी युग की तलछटी चट्टानों में मिलते हैं। भारत में 10 लाख वर्ग कि. मी. क्षेत्र में तेल मिलने की आशा है। एक अनुमान के अनुसार देश में लगभग 17 अरब टन तेल के भण्डार हैं। ये भण्डार असम, बम्बई हाई तथा गुजरात में स्थित हैं। देश में तेल की बढ़ती खपत को देखते हुए हम कह सकते हैं कि ये भण्डार अधिक देर तक नहीं चलेंगे। इसलिए तेल के नये क्षेत्रों की खोज तथा संरक्षण आवश्यक है।
तेल का उत्पादन (Production of oil)-भारत में दिन-प्रतिदिन तेल की खपत बढ़ती जा रही है। साथ ही साथ तेल का उत्पादन बढ़ाया जा रहा है ताकि देश की तेल की मांग पूरी की जा सके।
भारत में मुख्य तेल क्षेत्र (Major oil fields in India)
1. असम-असम राज्य में उत्तर-पूर्वी भाग में लखीमपुर जिले में पाया जाता है। यह भारत का सबसे प्राचीन तेल क्षेत्र है। इस राज्य में निम्नलिखित तेल क्षेत्र महत्त्वपूर्ण हैं –
- डिगबोई क्षेत्र (Digboi Oil Field) – यह असम प्रदेश में भारत का सबसे प्राचीन तथा अधिक तेल वाला क्षेत्र है। यहां सन् 1882 में तेल का उत्पादन आरम्भ हुआ। 21 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 3 तेलकूप हैं-डिगबोई, बापापुंग तथा हंसापुंग। इस क्षेत्र में भारत का 30% खनिज तेल प्राप्त होता है।
- सुरमा घाटी (Surma Valley) – इस क्षेत्र में बदरपुर, मसीमपुर पथरिया नामक कूपों में घटिया किस्म का तेल थोड़ी मात्रा में पैदा किया जाता है।
- नाहरकटिया क्षेत्र (Naharkatiya Oil Fields) असम में यह एक नवीन तेल क्षेत्र है जिसमें नहरकटिया, लकवा प्रमुख तेलकूप हैं।
- हुगरीजन-मोरान तेल क्षेत्र (Hugrijan-Moran oil fields)
- शिव सागर तेल क्षेत्र (Sibsagar oil fields)
2. गुजरात तेल क्षेत्र (Gujarat oil fields) – कैम्बे तथा कच्छ की खाड़ी के निकट अंकलेश्वर, लयुनेज, कलोल नामक स्थान पर तेल का उत्पादन आरम्भ हो गया है। इस क्षेत्र से प्रति वर्ष 30 लाख टन तेल प्राप्त होता है। इस राज्य में तेल क्षेत्र बड़ौदा, सूरत, मेहसना ज़िलों में फैला हुआ है। इस क्षेत्र में मेहासना, ढोल्का, नवगाम, सानन्द आदि कई स्थानों पर तेल मिला है। यहां से तेल ट्राम्बे तथा कोयली के तेल शोधन कारखानों को भेजा जाता है।
3. अपतटीय तेल क्षेत्र (Off shore oil fields) – भारत के महाद्वीपीय निमग्न तट (Continental shelf) के 200 मीटर गहरे पानी में लगभग 4 लाख वर्ग कि० मी० क्षेत्र में तेल मिलने की सम्भावना है।
(i) बम्बई हाई क्षेत्र (Bombay High Fields) – खाड़ी कच्छ के कम गहरे समुद्री भाग (Off Shore region) में भी तेल मिल गया है। यहां बम्बई हाई क्षेत्र में 19 फरवरी, 1974 को ‘सागर सम्राट’ नामक जहाज़ द्वारा की गई खुदाई से Bombay High के क्षेत्र में तेल मिला है। इस क्षेत्र से 21 मई, 1976 से तेल निकलना आरम्भ हो गया। यहां से प्रतिवर्ष 150 लाख टन तेल निकालने का लक्ष्य है। यह क्षेत्र बम्बई (मुम्बई) से उत्तर-पश्चिमी में 176 कि० मी० दूरी पर स्थित है।
(ii) बसीन तेल क्षेत्र (Bassein Oil Field) बम्बई हाई के दक्षिण में स्थित इस क्षेत्र से तेल निकालना शुरू हो गया है।
प्रभावित क्षेत्र (Potential Areas) – देश के कई भागों में कुओं द्वारा खुदाई से तेल के भण्डारों का पता चला है। कावेरी घाटी तथा महानदी घाटी में तेल की खोज की गई है। कृष्णा-गोदावरी डेल्टा, असम-अराकान सीमा क्षेत्र में, अण्डमान-निकोबार द्वीप के समीपवर्ती तटीय क्षेत्र, खाड़ी कच्छ तथा खाड़ी खम्बात में तेल के सम्भावित क्षेत्र पाए गए हैं।
पाइप लाइनें (Pipe lines) – पाइप लाइनों द्वारा तेल क्षेत्रों से तेल शोधनशालाओं तक तेल भेजा जाता है। भारत में तेल पाइप लाइनों का निर्माण इस प्रकार किया गया है –
- डिगबोई से बरौनी तक 1152 कि० मी० लम्बी पाइप लाइन।
- लकवा-रुद्रसागर से बरौनी पाइप लाइन।
- बरौनी से हल्दिया पाइप लाइन।
- बरौनी से कानपुर, मथुरा, जालन्धर पाइप लाइन।
- कोयली-मथुरा पाइप लाइन।
- मुम्बई हाई से उरन तथा ट्राम्बे तक 210 कि० मी० पाइप लाइन।
- हज़ीरा (गुजरात) विजयपुर-जगदीशपुर (उत्तर प्रदेश) (HBJ) पाइप लाइन।
- कांडला से भटिंडा तक प्रस्ताविक तेल पाइप लाइन।
तेल शोधनशालाएं (Oil Refineries) – भारत में इस समय 18 तेल शोधनशालाएं हैं। इन कारखानों में तेल शोधन क्षमता लगभग 500 लाख टन है। डिगबोई, ट्राम्बे, विशाखापट्टनम, नूनमती, बरौनी, कोचीन, कोयली, चेन्नई, हल्दिया, बोंगई गांव तथा मथुरा में तेल शोधन कारखाने स्थित हैं। हरियाणा में करनाल तथा कर्नाटक में मंगलौर में तेल शोधनशालाएं स्थापित करने के प्रस्ताव हैं।
H.P.C.L. तथा B.P.C.L. में परिष्करणशालाएं मुम्बई में हैं। तातीपाका (आंध्र प्रदेश) में ONGC की परिष्करण शाला है। देश में सबसे बड़ी परिष्करणशाला जामनगर में रिलायंस की निजी क्षेत्र की परिष्करणशाला है।
व्यापार (Trade) – भारत में खनिज तेल का उत्पादन मांग की तुलना में कम है। इसलिए हमें तेल आयात करना पड़ता है। तेल का आयात मुख्यतः सऊदी अरब, ईरान, इराक, बर्मा, रूस आदि देशों से किया जाता है। एक अनुमान के अनुसार देश में लगभग 700 लाख टन तेल की खपत है। सन् 2000-2001 में विदेशों से 400 लाख टन तेल तथा सम्बन्धित पदार्थ आयात किए गए जिनका मूल्य 50000 करोड़ ₹ था। तेल की खपत को कम करने तथा आयात कम करने के लिए सरकार कई प्रयत्न कर रही है। नए क्षेत्रों में तेल का उत्पादन आरम्भ होने से भारत में तेल का उत्पादन पर्याप्त हो जाएगा।
प्रश्न 5.
भारत में खनिज पेटियों के वितरण का वर्णन करो।
उत्तर:
पठारों में तीन प्रमुख खनिज पेटियों की पहचान की जा सकती है –
1. उत्तर पूर्वी पठार-इस पट्टी में छोटा नागपुर का पठार, उड़ीसा का पठार और पूर्वी आंध्र प्रदेश का पठार शामिल हैं। धातु उद्योग में काम आने वाले विविध प्रकार के खनिजों के उत्तम कोटि के भण्डार इस पेटी में पाए जाते हैं। इनमें लौह-अयस्क, मैंगनीज़, अभ्रक, बॉक्साइट, चूने के पत्थर और डोलोमाइट के विशाल भण्डार हैं तथा ये व्यापक रूप में वितरित हैं। इस प्रदेश में तांबे, थोरियम, यूरेनियम, क्रोमियम, सिलिमेनाइट और फॉस्फेट के भण्डार भी हैं। इनके साथ ही दामोदर घाटी और छत्तीसगढ़ के कोयले के भण्डार भी हैं, जिन्होंने भारी उद्योगों के विकास में बहुत योगदान दिया है। समन्वित लोहा और इस्पात संयंत्र अधिकतर इसी पेटी में स्थित हैं। एल्यूमीनियम संयन्त्र भी यहीं स्थित हैं।
2. दक्षिण-पश्चिमी पठार – यह पेटी कर्नाटक के पठार और निकटवर्ती तमिलनाडु के पठार तक फैली है तथा धात्विक खनिजों से सम्पन्न है। यहां पाए जाने वाले धात्विक खनिज हैं-लौह-अयस्क, मैंगनीज़ और बॉक्साइट। कुछ अधात्विक खनिज भी यहां मिलते हैं। परन्तु यहां शक्ति के संसाधनों विशेष रूप से कोयले की कमी है। इसी कारण इस प्रदेश में भारी उद्योगों का विकास नहीं हो सका। इस देश की सोने की तीनों खानें इसी पेटी में स्थित हैं।
3. उत्तर – पश्चिमी प्रदेश-यह पेटी गुजरात में खंभात की खाड़ी से लेकर राजस्थान में अरावली की श्रेणियों तक फैली है। पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस इस पेटी के प्रमुख संसाधन हैं। अन्य खनिजों के भण्डार कम और बिखरे हुए हैं। लेकिन यह पेटी अनेक अलौह धातओं जैसे-तांबा, चांदी, सीसा और जस्ता के भण्डारों और उत्पादन के लिए विख्यात है।
4. अन्य क्षेत्र – खनिजों की इन पेटियों के बाहर, ऊपरी ब्रह्मपुत्र-घाटी उल्लेखनीय पेट्रोलियम उत्पादक क्षेत्र है। केरल में भारी खनिज बालू के विशाल संकेंद्रण हैं। देश के अन्य भागों में भी खनिज पाए जाते हैं, लेकिन बिखरे हुए हैं और उनके भण्डार आर्थिक दृष्टि दोहन के योग्य नहीं हैं।
प्रश्न 6.
भारत में अणु शक्ति पर एक लेख लिखो।
उत्तर:
अणु शक्ति (Atomic Energy):
अणु शक्ति आधुनिक युग में एक नवीन साधन है। द्वितीय विश्व युद्ध में परमाणु-विस्फोट के पश्चात् इस साधन का विकास हुआ। इसके लिए कुछ परमाणु खनिज आवश्यक है। यूरेनियम, थोरियम, जिरकोन तथा मोनोजाइट जैसे विघट नाभिक (Radio Active) तत्त्वों का प्रयोग किया जाता है। अणु शक्ति में बहुत कम ईंधन से बहुत अधिक ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। इसलिए यह एक सस्ता साधन है।
अणु खनिज (Atomic Minerals) – भारत में मोनोजाइट के विशाल भण्डार केरल तट पर मिलते हैं। जिरकोन केरल तथा तमिलनाडु तट पर पाई जाती है। यूरेनियम के खनिज भण्डार बिहार तथा राजस्थान में पाए जाते हैं। भारत में बिहार राज्य में थोरियम के भण्डार विश्व में सबसे अधिक हैं। इस प्रकार भारत में अणु-खनिज पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। भारत में अणु-शक्ति-भारत में 10 अगस्त, 1948 को अणु-शक्ति आयोग की स्थापना की गई।
इस आयोग के प्रथम अध्यक्ष डॉ० एच० जे० भाभा थे। भारत में पहली अणु भट्टी (Atomic Reactor) ‘अप्सरा’ मुम्बई के निकट ट्राम्बे में लगाई गई। 18 मई, 1974 को भारत में पहला अणु-विस्फोट राजस्थान में पोखरण नामक स्थान पर किया गया। भारत में अणु-शक्ति का प्रयोग विकास कार्यों के लिए ही किया जाता है। भारत में कई स्थानों पर भारी पानी (Heavy water) के यन्त्र लगाए गए तथा अनुसंधान केन्द्र बनाए गए हैं।
भारत के परमाणु विद्युत् गृह –
- तारापुर अणु शक्ति गृह-भारत में पहली परमाणु भट्टी मुम्बई के निकट तारापुर में कनाड़ा के सहयोग से लगाई गई। इसमें 200-200 MW के दो रिएक्टर हैं।
- राणा प्रताप सागर विद्युत् गृह-भारत में दूसरा परमाणु विद्युत् गृह राजस्थान में कोटा के निकट राणा प्रताप सागर में लगाया गया है।
- कल्पक्कम अणु शक्ति गृह-तमिलनाडु में कल्पक्कम में दो रिएक्टर 235-235 MW शक्ति के लगाए गए हैं।
- नरौरा अणु शक्ति गृह-यह शक्ति गृह उत्तर प्रदेश में बुलन्दशहर के निकट नरौरा स्थान पर लगाया जा रहा है।
- काकरापाडा अणु शक्ति गृह-यह शक्ति गृह गुजरात में काकरापाडा नामक स्थान पर लगाया जा रहा है। इसके अतिरिक्त कर्नाटक में कैगा (Kaiga) तथा राजस्थान में कोटा के निकट रावत भाटा (Rawat Bhata) में दो अणु शक्ति गृह लगाने का प्रस्ताव है।
प्रश्न 7.
भारत में अपरम्परागत ऊर्जा के साधनों पर नोट लिखो।
उत्तर:
ऊर्जा के परम्परागत साधन समाप्य साधन हैं, इसलिए औद्योगिक विकास के लिए अपरम्परागत संसाधनों का विकास आवश्यक है। इनमें सौर ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा, बायोगैस तथा पवन ऊर्जा महत्त्वपूर्ण हैं।
1. पवन ऊजो (Wind Energy) – इस साधन का प्रयोग पानी निकालने, जल सिंचाई तथा विद्युत् उत्पादन के लिए किया जाता है। पवन ऊर्जा से 2000 MW विद्युत् उत्पन्न की जा सकती है। गुजरात, तमिलनाडु, महाराष्ट्र तथा उड़ीसा राज्यों में तेज़ पवनों के कारण सुविधाएं हैं। भारत में पहली पवन चक्की (Wind Mill) 1986 में माँडवी (गुजरात में) स्थापित की गई।
2. ज्वारीय ऊर्जा (Tidal Energy) – इस संसाधन से उच्च ज्वार की लहरों को उत्पन्न किया जाता है। खाड़ी कच्छ में 900 MW विद्युत् उत्पादन का एक प्लांट लगाया गया है।
3. भूतापीय ऊर्जा (Geo Thermal Energy) – भारत में हिमाचल प्रदेश में मणीकरण में गर्म पानी के स्रोतों से भूतापीय ऊर्जा उत्पन्न की जाती है।
4. जैव ऊर्जा (Bio Energy) – खेती से बचे-खुचे पदार्थों का प्रयोग करके विद्युत् उत्पन्न की जाती है।
5. सौर ऊर्जा (Solar Energy) – यह एक सस्ता साधन है। सौर-कुकरों का प्रयोग खाना पकाने, पानी गर्म करने, फ़सलें सुखाने आदि के लिए किया जाता है। सौर ऊर्जा भविष्य का संसाधन है।
6. ऊर्जा ग्राम (Urja Gram) – ग्रामों में गोबर गैस प्लांट विद्युत् उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
भारत में अपरम्परागत ऊर्जा विकास
- पवन ऊर्जा – 900 MW
- बायोगैस – 83 ,,
- सौर ऊर्जा – 28 ,,
- कूड़ा-कर्कट ऊर्जा – 93 ,,
- सौर कुकर – 4 लाख
प्रश्न 8.
हिमाचल प्रदेश में शक्ति के साधनों के विकास का वर्णन करो।
उत्तर:
हिमाचल प्रदेश में जल विद्युत् शक्ति का प्रमुख साधन है। यहां पांच नदियां जल विद्युत् उत्पादन में अधिक क्षमता पूर्ण है-चिनाब, रावी, ब्यास, सतलुज तथा यमुना। ये नदियां इस राज्य से निकलती हैं। इन नदियों की उत्पादित जल विद्युत् क्षमता 20744 मेगावाट है। परन्तु इसमें से केवल 6 हजार मेगावाट ही प्रयोग की जाती है। यहां कई महत्त्वपूर्ण जल विद्युत् परियोजनाएं है।
- नाथपा-झाखड़ी परियोजना-सतलुज नदी पर
- कोल डैम परियोजना-सतलुज नदी पर
- घानवी जल विद्युत् परियोजना-घानवी नदी पर
- संजय विद्युत् परियोजना-भावा नदी पर
- रोंगटोंग परियोजना-रौंगटौंग नदी पर
- आन्ध्र योजना-आन्ध्र नदी पर
- गज योजना
- बिनवा योजना
- बनेर योजना
- बास्पा योजना
- खौली योजना
- चमेरा योजना रावी नदी पर
- लारजी योजना ब्यास नदी पर
- पार्वती योजना
- कड़छम योजना
मानचित्र कौशल (Map Skills)
प्रश्न-भारत के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित अंकित करो।
(1) सर्वाधिक कोयला उत्पादक राज्य
(2) भारत का सबसे बड़ा तेल क्षेत्र
(3) भारत का सबसे प्राचीन तेल क्षेत्र।
(4) भारत में सबसे बड़ी तेल शोधन शाला
(5) भारत में सर्वाधिक लोहा उत्पादक राज्य
(6) राजस्थान में एक तांबा क्षेत्र
(7) अंकलेश्वर तेल क्षेत्र।
(8) एक लिग्नाइट क्षेत्र
(9) कुद्रेमुख लोह खनिज क्षेत्र
(10) भटिण्डा तेल शोधनशाला।