Jharkhand Board JAC Class 12 Geography Important Questions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ Important Questions and Answers.
JAC Board Class 12 Geography Important Questions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ
बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)
प्रश्न – दिए गए चार वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर चुनकर लिखो-
1. प्रदूषण का प्रमुख साधन है ?
(A) अपशिष्ट उत्पाद
(B) फ़सलें
(C) पशु
(D) वन।
उत्तर:
(A) अपशिष्ट उत्पाद
2. कौन – सा साधन प्रदूषण का प्राकृतिक साधन है ?
(A) मानव
(B) जल
(C) कृषि
(D) ज्वालामुखी।
उत्तर:
(D) ज्वालामुखी।
3. गंगा नदी में कानपुर के निकट प्रदूषण का साधन क्या है ?
(A) चमड़ा उद्योग
(B) कागज़ उद्योग
(C) गैसें
(D) कचरा।
उत्तर:
(A) चमड़ा उद्योग
4. यमुना नदी के किनारे कौन – सा नगर प्रदूषण का साधन है ?
(A) लखनऊ
(B) मथुरा
(C) कानपुर
(D) वाराणसी।
उत्तर:
(B) मथुरा
5. शोर के स्तर को मापने की इकाई है ?
(A) मिलीबार
(B) डेसीबल
(C) डेसी मीटर
(D) सैं०मी०।
उत्तर:
(B) डेसीबल
6. धारावी की गन्दी बस्ती किस राज्य में है ?
(A) कर्नाटक
(B) गुजरात
(C) महाराष्ट्र
(D) राजस्थान
उत्तर:
(C) महाराष्ट्र
7. भू-निम्नीकरण का कौन-सा कारक नहीं है ?
(A) अपरदन
(B) लवणता
(C) भूक्षारता
(D) वन।
उत्तर:
(D) वन।
8. भारत में कुल भौगोलिक क्षेत्र में बंजर भूमि का प्रतिशत है-
(A) 7.5
(B) 10.5
(C) 15.9
(D) 17.9.
उत्तर:
(D) 17.9.
9. झबुआ जिला किस राज्य में है ?
(A) कर्नाटक
(B) मध्य प्रदेश
(C) छत्तीसगढ़
(D) झारखण्ड
उत्तर:
(B) मध्य प्रदेश
10. 2050 तक विश्व जनसंख्या का कितना भाग नगरों में होगा ?
(A) एक चौथाई
(B) एक तिहाई
(C) दो तिहाई
(D) तीन चौथाई
उत्तर:
(C) दो तिहाई
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)
प्रश्न 1.
किस नगर में वाहनों से कार्बन मोनो डाइऑक्साइड अधिक प्राप्त होता है ?
उत्तर:
दिल्ली में।
प्रश्न 2.
गंगा नदी में प्रतिदिन प्रदूषित जल की कितनी मात्रा बहती है ?
उत्तर:
87.3 करोड़ लिटर।
प्रश्न 3.
कानपुर नगर में गंगा नदी के साथ-साथ चमड़े के कितने कारखाने हैं ?
उत्तर:
150.
प्रश्न 4.
वायु प्रदूषण के दो स्रोत बताओ।
उत्तर:
ज्वालामुखी, कारखाने तथा वायुयान।
प्रश्न 5.
ओजोन परत को पतला करने वाली गैस बताओ।
उत्तर:
क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC)।
प्रश्न 6.
प्रदूषण के तीन मुख्य प्रकार बताओ।
उत्तर:
प्रदूषकों के परिवहन के माध्यम के आधार पर प्रदूषण को तीन वर्गों में विभाजित करते हैं –
(i) वायु प्रदूषण
(ii) जल प्रदूषण
(iii) भूमि प्रदूषण।
प्रश्न 7.
देश में दुपहिया वाहनों की कितनी संख्या है ?
उत्तर:
2.83 करोड़।
प्रश्न 8.
धूम – कोहरा किसे कहते हैं ?
उत्तर:
औद्योगिक नगरों में कार्बन डाइऑक्साइड गैस के ऊपर धुएँ के जम जाने से इसे धूम कोहरा (Smog) कहते हैं।
प्रश्न 9.
प्रदूषण के मानव जन्य स्त्रोत बताओ ।
उत्तर:
औद्योगिक, नगरीय, कृषि तथा सांस्कृतिक।
प्रश्न 10.
भारत की दो प्रमुख प्रदूषित नदियां बताओ।
उत्तर:
गंगा तथा यमुना।
प्रश्न 11.
प्रदूषण के सांस्कृतिक जल स्त्रोत बताओ।
उत्तर:
तीर्थ यात्राएं, धार्मिक मेले, पर्यटन।
प्रश्न 12.
भारत में कितना क्षेत्रफल भूमि अपरदन से पीड़ित है ?
उत्तर:
13 करोड़ हेक्टयेर भूमि।
प्रश्न 13.
मृदा का लवणीकरण किस क्षेत्र में तथा क्यों हुआ
उत्तर:
उत्तरी भारत में अत्यधिक जल सिंचाई के कारण।
प्रश्न 14.
रासायनिक उर्वरक के प्रयोग का हानिकारक प्रभाव बताओ।
उत्तर:
यह मृदा के सूक्ष्म जीवों को नष्ट कर देते हैं ।
प्रश्न 15.
अम्लीय वर्षा का मुख्य कारण क्या है ?
उत्तर:
कारखानों से निकलने वाली गंधक।
प्रश्न 16.
नगरीय अपशिष्ट किस प्रकार एक संसाधन बन सकते हैं ?
उत्तर:
इनका उपयोग ऊर्जा और खाद उत्पादन करके ।
प्रश्न 17.
किस प्रकार के प्रदूषण से सांस सम्बन्धी विभिन्न बीमारियां उत्पन्न होती हैं ?
उत्तर:
वायु प्रदूषण।
प्रश्न 18.
भारत में नगरीय कूड़ा-कर्कट निपटाने सम्बन्धी तीन प्रमुख समस्याएं बताओ।
उत्तर:
(i) ठोस पदार्थों के अपघटन में लम्बा समय लगता है। इस पर कुतरने वाले जीव तथा मक्खियां मण्डराने लगती हैं।
(ii) इससे जल तथा भूमि का प्रदूषण बढ़ता है।
(iii) ये फेफड़ों, हृदय तथा सांस की बीमारियां उत्पन्न करते हैं।
प्रश्न 19.
उत्तर प्रदेश राज्य के दो नगर लिखो जो मुख्य रूप से गंगा नदी में प्रदूषण के लिए उत्तरदायी है ?
उत्तर:
कानपुर तथा वाराणसी।
प्रश्न 20.
बिहार तथा उत्तर प्रदेश राज्यों में गंगा नदी के प्रदूषित भाग बताओ ।
उत्तर:
(i) कानपुर से वाराणसी
(ii) वाराणसी से पटना।
प्रश्न 21.
शोर का स्तर मापने की यूनिट क्या है ?
उत्तर:
डेसीबल।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
प्रदूषण का अनुमान लगाने वाले तीन कारक बताओ।
उत्तर:
- मानव मल-मूत्र का निकास
- गन्दगी से हानि
- हानि की मात्रा।
प्रश्न 2.
प्रदूषण तथा प्रदूषक में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
प्रदूषण से अभिप्राय वायु, भूमि तथा जल साधनों का अवनयन तथा हानिकारक बनना। प्रदूषक उन पदार्थों को कहते हैं जो वातावरण में प्रदूषण फैलाते हैं ।
प्रश्न 3.
भारत में वायु प्रदूषण के किन्हीं तीन स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
औद्योगिक क्रान्ति के कारण वायु प्रदूषण दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। वायु प्रदूषण के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं –
- प्राकृतिक स्रोत – जैसे ज्वालामुखी विस्फोट, धूल, तूफ़ान, अग्नि आदि ।
- उद्योग – उद्योगों से धुआं, राख, गैसें प्रदूषण उत्पन्न होते हैं तथा दृश्यता कम होती है ।
- मोटर वाहन – मोटर वाहनों की बढ़ती संख्या से गैसें, सीसा युक्त ईंधन तथा नाइट्रोजन डाइऑक्साइड कार्बन मोनोऑक्साइड उत्पन्न होती है।
प्रश्न 4.
नदियों के प्रदूषण के दो उदाहरण दो।
उत्तर:
नदियों का प्रदूषण – तीव्र गति से होने वाले नगरीकरण और औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप भारी मात्रा में अपशिष्ट जल नदियों में पहुंच रहा है। गंगा कार्य योजना के प्रारम्भ होने से पूर्व गंगा में प्रतिदिन 87.3 करोड़ लीटर प्रदूषित जल बहाया जाता था। साबरमती एक छोटी-सी नदी है। इसमें भी अहमदाबाद शहर का 99.8 करोड़ लीटर गंदा पानी प्रतिदिन डाला जाता है।
प्रश्न 5.
भारत में वायु प्रदूषण के तीन स्त्रोत बताओ।
उत्तर:
औद्योगिक विकास के कारण वायु प्रदूषण दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। वायु प्रदूषण के अग्रलिखित स्रोत हैं –
- प्राकृतिक स्रोत जैसे धूल, तूफान, अग्नि आदि।
- उद्योग तथा कारखाने, धुआं, राख, गैसें प्रदूषण का स्रोत हैं।
- मोटर वाहनों से कार्बन मोनो ऑक्साइड गैसें, सीसा, गैसें, वायु प्रदूषण का कारण है।
प्रश्न 6.
भारत में जल प्रदूषण के लिए उत्तरदायी किन्हीं दो सांस्कृतिक गतिविधियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(i) धार्मिक उत्सव
(ii) पर्यटन
प्रश्न 7.
भारत के दो ऐसे राज्यों के नाम बताइए जहाँ पाँच प्रतिशत से कम जनसंख्या ग़रीबी रेखा से नीचे है।
उत्तर:
गोवा तथा जम्मू-कश्मीर में पाँच प्रतिशत से कम लोग ग़रीब रेखा से नीचे हैं। गोवा – 4.40% तथा जम्मू- कश्मीर 3.48%।
प्रश्न 8.
भारत के कई बड़े नगरों में ‘ ध्वनि प्रदूषण’ किस प्रकार खतरनाक हो गया है ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत के कई बड़े-बड़े महानगरों में ध्वनि प्रदूषण बहुत ख़तरनाक रूप धारण कर गया है। ध्वनि प्रदूषण के सभी स्रोतों में से यातायात द्वारा पैदा किया गया शोर सब से बड़ा कलेश है। मोटरवाहन, वाहन, रेलगाड़ी तथा वायुयान प्रमुख कारक है। निर्माण उद्योग, मशीनीकृत निर्माण, तोड़-फोड़ कार्य, ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। इसके अतिरिक्त सायरन, लाऊड स्पीकर, फेरी वाले, सामुदायिक गतियों तथा त्योहारों पर भी ध्वनि प्रदूषण बहुत है।
प्रश्न 9.
” भारत में मानवीय क्रिया-कलापों के कारण हुआ भूमि निम्नीकरण प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा हुए भूमि निम्नीकरण की तुलना में अधिक हानिकारक है।” इस कथन का उदाहरण सहित विश्लेषण करिए।
उत्तर:
मानव जनित भू-निम्नीकरण कुल निम्नीकरण का 5.88 प्रतिशत है। यह प्राकृतिक क्रियाओं द्वारा जनित भू- निम्नीकरण (2.4%) से अधिक है। मानव जनित क्रियाओं द्वारा निम्न कोटि भूमियां उत्पन्न होती हैं जैसे स्थानान्तरित कृषि जनित क्षेत्र, रोपण कृषि जनित क्षेत्र, क्षरित वन क्षेत्र, क्षरित चरागाह तथा खनन एवं औद्योगिक व्यर्थ क्षेत्र
प्रश्न 10.
भारत में विभिन्न प्रकार की जल-जनित बीमारियों का प्रमुख स्रोत क्या है ? जल-जनित किसी एक बीमारी का नाम बताइए।
उत्तर:
प्रदूषित जल का उपयोग विभिन्न प्रकार का जल जनित बीमारियों का प्रमुख स्रोत है। हेपेटाइटस एक जल जनित बीमारी है
प्रश्न 11.
भारत में उत्पादक सिंचाई उच्च उत्पादकता प्राप्त करने में किस प्रकार समर्थ है ?
उत्तर:
उत्पादक सिंचाई कृषि ऋतु में पर्याप्त आर्द्रता प्रदान करती है। इससे उत्पादकता में वृद्धि होती है। प्रति हेक्टेयर भूमि में जल निवेश की मात्रा अधिक होती है ।
प्रश्न 12.
मानवीय क्रियाएं जल प्रदूषण के लिए उत्तरदायी हो सकती हैं। कुछ ऐसी क्रियाएं लिखें जिसके द्वारा हम जल को प्रदूषण से बचा सकते हैं ?
उत्तर:
- औद्योगिक प्रक्रियाएं अपशिष्ट पदार्थ को जल में बहाने से रोक कर।
- बहते हुए जल स्रोत में कपड़े धोने, पशुओं के नहाने की प्रक्रियाएं रोक कर।
- कृषि पैदावार में कीटनाशकों एवं रासायनिक उर्वरक का कम प्रयोग कर।
- अति सिंचाई कम करके।
प्रश्न 13.
जल-संभर प्रबन्धन क्या है ?
उत्तर:
जल-संरक्षण और प्रबन्धन – अलवणीय जल की घटती हुई उपलब्धता और बढ़ती मांग से, सतत् पोषणीय विकास के लिए महत्त्वपूर्ण जीवनदायी संसाधन के संरक्षण और प्रबन्धन की आवश्यकता बढ़ गई है। विलवणीकरण द्वारा सागर / महासागर से प्राप्त जल उपलब्धता, उसकी अधिक लागत के कारण नगण्य हो रही है। भारत को जल-संरक्षण के लिए तुरन्त कदम उठाने हैं और प्रभावशाली नीतियां और कानून बनाने हैं और जल संरक्षण हेतु प्रभावशाली उपाय अपनाने हैं। जल बचत तकनीकी और विधियों के विकास के अतिरिक्त, प्रदूषण से बचाव के प्रयास भी करने चाहिए। जल-संभर विकास, वर्षा जल संग्रहण, जल के पुनः चक्रण और पुन: उपयोग और लम्बे समय तक जल की आपूर्ति के लिए जल का संयुक्त उपयोग बढ़ाना होगा।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
वायु प्रदूषण के प्रभाव बताओ।
अथवा
वायु प्रदूषण के कारण एवं प्रभाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वायु प्रदूषण के मुख्य स्रोत – वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं –
(क) प्राकृतिक स्रोत – जैसे – ज्वालामुखी विस्फोट, धूल, तूफ़ान, अग्नि आदि
(ख) मानवकृत स्रोत – जैसे – कारखाने, नगर- केंद्र, मोटर, वाहन, वायुयान, उर्वरक, पीड़क जीवनाशी, ताप बिजली घर आदि।
उदाहरण:
(1) उद्योगों से अनेक प्रकार की विषैली गैसें राख और धूल
(2) ताप बिजली घरों से गंधक, नाइट्रोजन ऑक्साइड और कार्बन ऑक्साइड
(3) मोटर वाहनों से मोनोक्साइड और सीसा वायुमण्डल में छोड़े जाते हैं। यही नहीं ओज़ोन की परत को पतला करने वाला क्लोरो फ्लूरो कार्बन (सी० एफ० सी०) भी वायुमण्डल में छोड़ा जाता है।
(4) इनके अलावा अनेक औद्योगिक प्रक्रियाओं द्वारा हानिकारक गंध भी वायु में फैल जाती है। इसके लिए विशेष रूप से दोषी लुगदी और कागज़, चमड़ा और रासायनिक उद्योग हैं।
वायु प्रदूषण के प्रभाव – वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य और पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं पर प्रभाव डालता है।
(1) क्लोरो फ्लुरोकार्बन ओज़ोन की परत को समाप्त कर देता है, इसके परिणामस्वरूप सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर पहुंच जाती हैं और इससे वायुमण्डल में तापमान में वृद्धि हो जाती है।
(2) वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य गैसों के संकेंद्रण के बढ़ जाने से हरित गृह प्रभाव पैदा होता है। इससे भी वायुमण्डल के तापमान में वृद्धि होती है।
(3) इन गैसों के कारण नगरों में धूम – कुहरा छा जाता है। इसे नगरी धूम – कुहरा कहते हैं। यह मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है।
(4) वायु प्रदूषण से ‘अम्ल वृष्टि’ भी हो सकती है।
(5) नगरीय पर्यावरण के वर्षा जल के विश्लेषण से पता चला है कि ग्रीष्म ऋतु के बाद पहली वर्षा में पी० एच० मान बाद की वर्षा की तुलना में कम होता है। एन० ई० ई० आर० आई० द्वारा किए गए परीक्षणों के अनुसार कोच्चि का पी० एच० मान सबसे कम 4.5 था, जबकि सभी नगरीय संकुलों की वर्षा के जल का पी० एच० मान 6.2 और 7.6 के मध्य था।
प्रश्न 2.
प्रदूषित जल के नगरीय स्त्रोत क्या हैं ?
उत्तर:
प्रदूषित जल के नगरीय स्रोत ये हैं- मल जल, घरेलू तथा नगरपालिका का कचरा, औद्योगिक अपशिष्ट, मोटर वाहनों का धुआं आदि। कुछ उदाहरणों से नगरीय अपशिष्टों के नदियों में बहाव की विकरालता का अनुमान लगाया जा सकता है। कानपुर महानगरीय क्षेत्र में स्थित चमड़े के 150 कारखाने गंगा में प्रतिदिन 58 लाख लीटर अपशिष्ट जल बहाते हैं। दिल्ली के निकट यमुना तो एक गंदा नाला बन कर रह गई है। यमुना में 17 खुले गन्दे नालों के द्वारा प्रतिदिन 32.3 करोड़ गैलन मल जल डाला जाता है। गंगा में प्रतिदिन गन्दा और प्रदूषित जल डालने वाले गन्दे नाले ही गंगा को अपवित्र करने वाले प्रमुख अपराधी हैं।
गंगा की कुल लम्बाई 2555 कि० मी० है। इसकी कुल लम्बाई में से 600 कि० मी० का भाग बुरी तरह से प्रदूषित हो गया है । औद्योगिक और नगरीय स्रोतों से जल प्रदूषण के उदाहरण के रूप में गंगा और यमुना के नाम लिए जा सकते हैं। तीव्र गति से होने वाले नगरीकरण और औद्योगीकरण परिणामस्वरूप भारी मात्रा में अपशिष्ट जल नदियों में पहुंच रहा है। गंगा कार्य योजना के प्रारम्भ होने से पूर्व गंगा में प्रतिदिन 87.3 करोड़ लीटर प्रदूषित जल बहाया जाता था । साबरमती एक छोटी-सी नदी है। इसमें भी अहमदाबाद शहर का 99.8 करोड़ लीटर गन्दा पानी प्रतिदिन डाला जाता है ।
प्रश्न 3.
गंगा और यमुना नदियों में प्रदूषण की तुलना करो।
उत्तर:
गंगा नदी | यमुना नदी | |
1. प्रदूषित भाग | (i) कानपुर जैसे नगरों से औद्योगिक प्रदूषण | (i) दिल्ली से चम्बल के संगम तक
(ii) मथुरा और आगरा |
2. प्रदूषण का स्वरूप | (i) कानपुर जैसे नगरों से औद्योगिक प्रदूषण
(ii) नगरीय केन्द्रों से घरेलू अपशिष्ट (iii) नदी में लाशों का प्रवाह। |
(i) हरियाणा और उत्तर प्रदेश द्वारा सिंचाई के लिए जल की निकासी
(ii) कृषीय अपवाह के परिणामस्वरूप यमुना में सूक्ष्म प्रदूषकों का उच्च स्तर (iii) दिल्ली के घरेलू और औद्योगिक अपशिष्टों का नदी में प्रवाह। |
प्रश्न 4.
उद्योगों के कौन-से उत्पाद तथा अपशिष्ट पदार्थ जल प्रदूषण करते हैं ?
उत्तर:
उद्योग उत्पादों के अलावा अपशिष्ट जैसे अवांछनीय उत्पादों का उत्पादन करते हैं। ये अवांछनीय उत्पाद हैं- औद्योगिक अपशिष्ट, प्रदूषित अपशिष्ट जल, विषैली गैसें, रासायनिक अवशिष्ट, अनेक भारी धातुएं, धूल, धुआं आदि। अधिकतर औद्योगिक अपशिष्ट प्रवाहित जल में बहा दिए जाते है। परिणामतः विषैले तत्त्व जल के भंडार, नदियों तथा अन्य जलाशयों में पहुंच कर इसके जैवतंत्र को नष्ट कर देते हैं। जल को प्रदूषित करने वाले मुख्य उद्योग – चमड़ा, लुगदी और कागज़, वस्त्र तथा रासायनिक उद्योग हैं। कारखानों और सीमेंट की चूना बनाने वाली भट्टियों, कोयले की खानों, मोटर वाहनों, ताप बिजली घरों आदि से भारी मात्रा में निकलने वाले कणीय पदार्थों द्वारा मृदा का बड़े पैमाने पर प्रदूषण होता है।
प्रश्न 5.
प्रदूषित वायु तथा जल से किन रोगों का प्रसार होता है ?
उत्तर:
वायु प्रदूषण से फेफड़ों, हृदय, स्नायु तंत्र और परिसंचरण तंत्रों के रोग होते हैं। कोलकाता के चार में से तीन व्यक्ति सांस की किसी न किसी बीमारी जैसे – खांसी और श्वास नली शोथ (ब्रोनकाइटिस) से पीड़ित थे। वायु प्रदूषण का सबसे अधिक खतरा बच्चों को होता है, क्योंकि इसका सीधा प्रभाव फेफड़ों पर पड़ता है। इससे मनोवैज्ञानिक और शारीरिक हानियां भी होती हैं। प्रदूषित जल के कारण सामान्य रूप से उत्पन्न होने वाली बीमारियां ये हैं- अतिसार, रोहा, आंतों के कृमि, पीलिया, आदि। विश्व बैंक और विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों से स्पष्ट है कि भारत में एक-चौथाई संक्रामक रोग जल से पैदा होते हैं।
प्रश्न 6.
भूमि प्रदूषण पर एक टिप्पणी लिखो।
उत्तर:
भूमि प्रदूषण (Land Pollution ) – भूमि प्रदूषण में ह्रास और मृदा तथा वनस्पति के आवरण का प्रदूषण शामिल है। मृदा की गुणवत्ता के घटने के ये कारण हैं –
(1) मृदा अपरदन
(2) पौधों के पोषक तत्त्वों में कमी
(3) मृदा में सूक्ष्म जीवों का घटना
(4) नमी की कमी,
(5) विभिन्न हानिकारक तत्त्वों का संकेंद्रण आदि।
अपरदन प्राकृतिक और मानवीय दोनों प्रकार के कारकों से होता है। वन विनाश अतिचराई और भूमि का अनुचित उपयोग भी अपरदन की गति को तेज़ कर देते हैं। एक अनुमान के अनुसार देश की 13 करोड़ हेक्टेयर भूमि अपरदन की समस्याओं से पीड़ित है। केवल स्थानांतरी कृषि के कारण ही तीन करोड़ हेक्टेयर भूमि अपरदन से प्रभावित है। अपरदन के अतिरिक्त, मृदा के लवणीकरण और जल भराव के निम्नलिखित कारण हैं – भूविज्ञान की दृष्टि से अनुपयुक्त क्षेत्रों में बांधों, जलाशयों, नहरों और तालाबों का निर्माण, नहरी सिंचाई का अत्यधिक उपयोग और अप्रवेशय चों वाले क्षेत्रों में बाढ़ के पानी का रुख मोड़ना। इनके द्वारा भूमि की संभावित क्षमता घटती है। अति सिंचाई के कारण देश के उत्तरी मैदानों में लवणीय और क्षारीय क्षेत्रों में वृद्धि हुई है। सिंचाई मृदा की संरचना को भी बदल देती है। इनके अलावा, रासायनिक उर्वरक, पीड़कनाशी, कीट नाशी और शाक-नाशी मृदा के प्राकृतिक, भौतिक रासायनिक और जैविक गुणों को नष्ट करके मृदा को बेकार कर देते हैं।
प्रश्न 7.
प्रदूषण से क्या अभिप्राय है ? इसकी पहचान की तीन कसौटियां बताओ।
उत्तर:
प्रदूषण की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है। “मानवीय क्रियाकलापों से उत्पन्न अपशिष्ट उत्पादों से कुछ पदार्थ और उर्जा मुक्त होती है, जिससे प्राकृतिक पर्यावरण में कुछ परिवर्तन होते हैं, ये परिवर्तन प्रायः हानिकारक होते हैं।” पहचान की कसौटियां – प्रदूषण की पहचान के लिए प्रायः तीन कसौटियों का उपयोग किया जाता है।
ये हैं –
(i) मानवीय क्रियाकलापों से उत्पन्न अपशिष्ट पदार्थ तथा मानवीय अपशिष्टों का निपटान,
(ii) प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से फेंके गए अपशिष्टों से उत्पन्न हानि, और
(iii) परिस्थितियां जहां हानि का दुष्प्रभाव तीसरे पक्ष को सहना पड़ता है।
प्रश्न 8.
वायु प्रदूषण के मुख्य स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वायु प्रदूषण के मुख्य स्रोत –
वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं –
(क) प्राकृतिक स्रोत – जैसे-ज्वालामुखी विस्फोट, धूल, तूफ़ान, अग्नि आदि
(ख) मानवकृत स्रोत – जैसे – कारखाने, नगर – केंद्र, मोटर, वाहन, वायुयान, उर्वरक, पीड़क जीवनाशी, ताप बिजली घर आदि।
उदाहरण:
(1) उद्योगों से अनेक प्रकार की विषैली गैसें, राख और धूल।
(2) ताप बिजली घरों से गंधक, नाइट्रोजन ऑक्साइड और कार्बन ऑक्साइड।
(3) मोटर वाहनों से मोनोक्साइड और सीसा वायुमण्डल में छोड़े जाते हैं। यही नहीं ओज़ोन की परत को पतला करने वाला क्लोरो फ्लूरो कार्बन (सी० एफ० सी०) भी वायुमण्डल में छोड़ा जाता है।
(4) इनके अलावा अनेक औद्योगिक प्रक्रियाओं द्वारा हानिकारक गंध भी वायु में फैल जाती है। इसके लिए विशेष
रूप से दोषी लुगदी और कागज़, चमड़ा और रासायनिक उद्योग हैं।
प्रश्न 9.
मोटर वाहनों द्वारा वायु प्रदूषण का वर्णन करो। चार महानगरों से उदाहरण दो।
उत्तर:
मोटर वाहनों द्वारा वायु प्रदूषण – विगत तीन दशकों में मोटर वाहनों की संख्या 32 गुना बढ़ गई है। 1997-98 में देश में 5.3 लाख बसें, 25.3 लाख ट्रक, लगभग 2.83 करोड़ दुपहिया वाहन, 13.4 लाख आटोरिक्शा तथा लगभग 50 लाख कारें, जीप और टैक्सियां थीं। इनके प्रभाव से सम्पूर्ण भारत के नगरों की वायु की गुणवत्ता घट गई है। इसके कारण हैं- प्रदूषण नियन्त्रण का अभाव और सीसा युक्त ईंधन का उपयोग करने वाले मोटर वाहनों की संख्या में निरन्तर वृद्धि। राष्ट्रीय पर्यावरणीय अभियांत्रिकी शोध संस्थान (एन० ई० ई० आर० आई०) ने कुछ नगरों में वायुमण्डलीय प्रदूषकों का पर्यवेक्षण करके संकेंद्रण की प्रवृत्तियों का वार्षिक औसत निकाला है।
(1) इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि मुम्बई, कोलकाता और चेन्नई में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के संकेंद्रण की प्रवृत्ति में स्थिरता आ रही है।
(2) इसके विपरीत दिल्ली में सल्फर डाइऑक्साइड का संकेंद्रण घट रहा है, लेकिन यह मुम्बई और कोलकाता में बढ़ रहा है। सभी नगरों में निलम्बित कणीय पदार्थों का संकेंद्रण कुछ हद तक बढ़ गया हैं।
(3) सीसा युक्त ईंधन का उपयोग करने वाले मोटर वाहनों से वायुमण्डल में लगभग 95% सीसा – प्रदूषण होता है।
भारत: चार महानगरों में वाहनीय उत्सर्जन (प्रतिदिन अनुमानित भार टनों में)
नगर | निलंबित कणिकीय पदार्थ | सल्फर डाइऑक्साइड | नाइट्रोजन के ऑक्साइड | हाइड्रो कार्बन | कार्बन मोनोक्साइ्ड | योग |
दिल्ली | 8.58 | 7.47 | 105.38 | 207.98 | 542.51 | 872 |
मुम्बई | 4.66 | 3.36 | 59.02 | 90.17 | 391.6 | 549 |
बंगलौर | 2.18 | 1.47 | 21.8 | 65.42 | 162.8 | 254 |
कोलकाता | 2.71 | 3.04 | 45.58 | 36.57 | 156.87 | 245 |
प्रश्न 10.
भारत में भूमि में लवणीकरण तथा जल भराव के कारण बताओ।
उत्तर:
(i) बांधों, जलाश्यों, नहरों और तालाबों का निर्माण।
(ii) नहरी सिंचाई का अत्यधिक प्रयोग
(iii) अप्रवेशीय चट्टानों वाले क्षेत्र में बाढ़ के पानी का रुख मोड़ना।
निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions )
प्रश्न 1.
भारत में नगरीकरण तथा इससे उत्पन्न समस्याओं का वर्णन करो।
उत्तर:
नगरीकरण (Urbanization ) – कई भूगोलवेत्ताओं ने नगरीकरण के सम्बन्ध में कुछ परिभाषाएं दी हैं।
(i) ग्रिफिथ टेलर (Griffith Taylor ) महोदय के शब्दों में, “नगरीकरण लोगों का गाँव से नगरों की ओर स्थानान्तरण है।” (‘Urbanization is a shift of people from village to city.”) (ii) जी० टी० ट्रिवार्थ के अनुसार, “कुल जनसंख्या में नगरीय जनसंख्या के अनुपात में वृद्धि को नगरीकरण की प्रक्रिया कहते हैं।”
(“The urbanization process denotes an increase in the fraction of a population which is urban.”) समय के साथ बदलती हुई राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक परिस्थितियों के फलस्वरूप मानव बस्तियों का विकास होता रहा और उनमें धीरे-धीरे नगरीय विशेषताओं का प्रसार हुआ। अतः वे नगरीय बस्तियों में परिवर्तित हुईं। इस प्रकार नगरीकरण एक ऐसी प्रक्रिया (process ) है जिसके अन्तर्गत ग्रामीण बस्तियाँ नगरीय बस्तियों के रूप में बदलती हैं। समाजशास्त्री ई० ई० बर्गेल (E. E. Bergel) महोदय ने यह कहा है कि ” गाँवों के नगरीय क्षेत्रों में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को नगरीकरण कहते हैं।” इस प्रकार किसी भी क्रिया से नगरीय जनसंख्या में होने वाली वृद्धि को नगरीकरण कहते हैं।
भारत में नगरीकरण की प्रकृति एवं प्रवृत्तियाँ (Nature and Trends of Urbanization in India)
भारत संसार के उन देशों में से एक है जिसमें बहुत कम नगरीकरण हुआ है। यद्यपि भारत की नगरीय जनसंख्या का आकार बहुत विशाल है तथा इस दृष्टिकोण से भारत का संसार में चीन के पश्चात् दूसरा स्थान है परन्तु कुल जनसंख्या में नगरीय जनसंख्या का प्रतिशत अनुपात बहुत कम है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की केवल 31.2% जनसंख्या ही नगरीय है जबकि विश्व की कुल जनसंख्या का लगभग 45% भाग नगरों में रहता है। भारत का 31.2% नगरीय जनसंख्या का अनुपात संयुक्त राज्य अमेरिका के 75%, जापान के 77%, सोवियत रूस के 66%, ऑस्ट्रेलिया के 85% तथा न्यूज़ीलैण्ड के 84% अनुपात की तुलना में कुछ भी नहीं।
अब तो चीन ने भी अपनी 32% नगरीय जनसंख्या के साथ इस दृष्टि से भारत को पर्याप्त पीछे छोड़ दिया है। पिछले 100 वर्षों में भारत की नगरीय जनसंख्या निरन्तर बढ़ती रही है जो 1901 की 11% से बढ़कर 2001 में 27.78% हो गई है। 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में भारत की कुल नगरीय जनसंख्या केवल 2 करोड़ 60 लाख थी । तब से नगरीय जनसंख्या 11 गुनी (28.53 करोड़) से अधिक हो गई है। भारत देश में नगरीय जनसंख्या वृद्धि दर एक दशक से दूसरे दशक में भिन्न-भिन्न रही है जो निम्नलिखित तालिका से स्पष्ट होती है –
भारत में नगरीय जनसंख्या में वृद्धि 1901-2001
वर्ष | नगरीय जनसंख्या (000 में) | कुल जनसंख्या का प्रतिशत | दशकीय वृद्धि (प्रतिशत में) |
1901 | 25,867 | 11.00 | – |
1911 | 25,958 | 10.40 | 0.35 |
1921 | 28,091 | 11.34 | 8.22 |
1931 | 33,468 | 12.18 | 19.14 |
1941 | 44,168 | 14.10 | 31.97 |
1951 | 62,444 | 17.62 | 41.38 |
1961 | 78,937 | 18.20 | 26.41 |
1971 | 109,114 | 20.22 | 38.23 |
1981 | 159,727 | 23.31 | 46.02 |
1991 | 212,867 | 25.72 | 36.00 |
2001 | 285,305 | 27.78 | 31.33 |
गन्दी बस्तियों तथा नगरीय कूड़ा-कर्कट की समस्या (Problem of Slums and Urban-Waste):
नगरों में जनसंख्या की अधिकता के कारण अनेक समस्याओं का विकास हो गया है जिनमें गन्दी बस्तियों तथा नगरीय कूड़ा-कर्कट की अधिकता और निपटान ( disposal) सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है।
गन्दी बस्तियाँ (Slums ) – नगरों में जनसंख्या अधिक और स्थान कम होने के कारण आवासीय समस्या होती है । नगरीय क्षेत्रों में बहुमंजिले भवनों का निर्माण इसी समस्या का प्रतिफल है। प्रायः जब निर्धन लोग रोज़गार की तलाश में अपने गाँवों को छोड़कर नगरों में आकर बसने लगते हैं तो नगरों में आवास बहुत महँगा तथा कम होने के कारण वे नगर के बाहर पड़ी भूमि पर झुग्गी-झोंपड़ियाँ बनाकर रहना आरम्भ कर देते हैं जिससे वहाँ गन्दी बस्तियों का विकास होने लगता है।
इन गन्दी बस्तियों में जनसंख्या का घनत्व बहुत अधिक होता है और वहाँ जल तथा घरेलू मल के निकास के लिए कोई व्यवस्था नहीं होती । इन बस्तियों में रहने वाले लोग अत्यन्त ही निम्न स्तर का जीवन व्यतीत करते हैं । यद्यपि इन गन्दी बस्तियों में रहने वाले लोगों के लिए प्रशासन अनेक सुविधायें प्रदान करने का प्रयास करता है, तथापि ये आवासीय बस्तियाँ बहुत ही निम्न स्तर की होती हैं और प्रायः ये गन्दगी तथा बीमारियों के क्षेत्र ही होती हैं। भारत के लगभग सभी बड़े नगरों में ऐसी गन्दी बस्तियाँ ( Slums) पाई जाती हैं।
हमारे देश में पहली बार 2001 की जनगणना में नगरों में पाई जाने वाली गन्दी बस्तियों के आँकड़े एकत्रित किये गये हैं। राज्य सरकारों द्वारा घोषित तथा मान्यता प्राप्त गन्दी बस्तियों में रहने वाले व्यक्तियों को गन्दी बस्ती जनसंख्या कहा जाता है। देश में कुल 4 करोड़ 3 लाख जनसंख्या गन्दी बस्तियों में निवास करती हैं जो गन्दी बस्तियों वाले नगरों की कुल जनसंख्या को लगभग 22.6 प्रतिशत भाग है। इससे स्पष्ट होता है कि इन नगरों की लगभग एक चौथाई जनसंख्या गन्दी बस्तियों में दयनीय जीवन व्यतीत कर रही है।
देश में सबसे अधिक गन्दी बस्तियों की जनसंख्या महाराष्ट्र राज्य में अभिलेखित की गई है जो एक करोड़ 6 लाख, 40 हज़ार है।
दस लाख से अधिक जनसंख्या वाले महानगरों में सबसे अधिक गन्दी बस्तियों की जनसंख्या बृहत् मुम्बई में पाई जाती है जो कि कुल जनसंख्या का 48.88 प्रतिशत भाग है। पटना नगर में न्यूनतम गन्दी बस्ती जनसंख्या पाई जाती है जो कुल जनसंख्या का मात्र 0.25 प्रतिशत भाग है। भारत की लगभग एक प्रतिशत जनसंख्या महाराष्ट्र के गन्दी बस्तियों में निवास करती है और महाराष्ट्र राज्य की लगभग 6 प्रतिशत जनसंख्या बृहत् मुम्बई की गन्दी बस्तियों में रहती है। विभिन्न राज्यों के नगरों में गन्दी बस्तियों में रहने वाली जनसंख्या का अनुपात 41.33% से 1.81 प्रतिशत है जो अधिकतम मेघालय (41.33%) और न्यूनतम केरल (1.81% ) है।
नगरीय कूड़ा-कर्कट (Urban Waste ) – नगरों में जनसंख्या की अधिकता के कारण विकसित होने वाली दूसरी बड़ी समस्या वहाँ एकत्रित होने वाला कूड़ा-कर्कट तथा घरेलू मल (domestic sewage ) हैं। इन पदार्थों से प्रायः भूमि तथा जलीय प्रदूषण विकसित हो जाते हैं। भूमि प्रदूषण का सबसे महत्त्वपूर्ण कारक घरेलू मल तथा औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ हैं। नगरों द्वारा ठोस कूड़ा- कर्कट, मानवीय मल, पशुशालाओं से प्राप्त गन्दगी, कारखानों तथा खदानों से प्राप्त बेकार पदार्थों के ढेर जमा हो जाने से भूमि अन्य कार्यों, विशेषकर कृषि के उपयुक्त नहीं रहती। इन पदार्थों से प्राप्त अनेक रोगजनक वनस्पति तथा खाद्य पदार्थों द्वारा मानव शरीर में प्रवेश कर जाते हैं जिनसे कई बीमारियाँ पनपने लगती हैं।
नदियों के जल को सबसे अधिक प्रदूषित नगरों के गन्दे नालों द्वारा फेंके गये घरेलू मल करते हैं। नगरों के गन्दे नालों ने ही गंगा और यमुना के जल को प्रदूषित कर दिया है। यह कितनी बड़ी विडंबना है कि इन नदियों के तट पर बसे नगरों में इन्हीं नदियों का जल पीने के काम में लाया जाता है। प्रदूषित जल नदियों में रहने वाले जीवों को भी प्रभावित करता है। प्रदूषित जल से पीलिया, पेचिश और टाइफाइड जैसी बीमारियाँ फैलती हैं जो मानव को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं।
प्रश्न 2.
भारत में पर्यावरण प्रदूषण पर निबन्ध लिखो।
उत्तर:
पर्यावरण (Environment):
आस-पास की परिस्थिति या परिवेश जिसमें मनुष्य रहता है उसे पर्यावरण अर्थात् वातावरण कहते हैं। पर्यावरण में प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक दोनों प्रकार के तत्त्वों का समावेश होता है।
पर्यावरण प्रदूषण (Environmental Pollution)
आधुनिक युग में पर्यावरण प्रदूषण मानव के लिए एक गम्भीर समस्या बन गई है। इससे पृथ्वी तल पर मानव जीवन के अस्तित्व को भी भय हो गया है। साधारण शब्दों में भौतिक, रासायनिक तथा जैविक तत्त्वों के प्राकृतिक वातावरण में ऐसे अनैच्छिक परिवर्तनों को जिसका जैव समुदाय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े उसे प्रदूषण (Pollution) कहते हैं।
पर्यावरण प्रदूषण का इतिहास उतना ही पुराना है जितना की मानव का इतिहास । जब से मानव इस पृथ्वी पर आया है तब से ही वह अपने वातावरण को प्रदूषित कर उसकी गुणवत्ता को कम कर रहा है। सबसे पहले उसने वातावरण में आग के प्रयोग से प्रदूषण किया जिससे गैसें धुआँ तथा राख बनी । जब से गाँवों, कस्बों, नगरों तथा औद्योगीकरण का विकास हुआ है तब से यह परिस्थिति धीरे-धीरे और भी अधिक बिगड़ने लगी क्योंकि प्राकृतिक वायु, जल तथा मिट्टी में हर प्रकार की अशुद्धियाँ एकत्रित होने लगीं जिससे पर्यावरण में न सुधारी जाने वाली हानियाँ होने लगीं। वास्तव में प्रदूषण ने वर्तमान तथा आने वाली पीढ़ी के समक्ष एक बहुत गम्भीर समस्या खड़ी कर दी है।
प्रदूषक (Pollutants):
विकसित तथा विकासशील देशों में पाये जाने वाले कुछ सामान्य प्रदूषक निम्नलिखित हैं –
1. निक्षेपित पदार्थ (Deposited Matter) – जैसे कालिख (soot), धुआँ (smoke) चर्म शोधन के समय उत्पन्न धूल (tandust) तथा ग्रिट (grit) इत्यादि।
2. गैसें (Gases) – जैसे सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड, अमोनिया, फ्लोरीन तथा क्लोरीन इत्यादि।
3. रासायनिक यौगिक (Chemical Compounds ) – जैसे एल्डिहाइड (aldehydes), आर्सीन (arsines), हाइड्रोजन फ्लोराइड (Hydrogen fluorides), फासजीन (Phosgenes) तथा अपमार्जक ( detergents) इत्यादि।
4. धातुएँ (Metals ) – जैसे सीसा, लोहा, जस्ता तथा पारा इत्यादि।
5. आर्थिक विष (Economic Poisons ) – जैसे शाकनाशी (herbicides), फंगसनाशी (fungicides), कीटनाशी (insecticides) तथा अन्य जैवनाशी इत्यादि ।
6. वाहितमल ( Sewage)
7. रेडियोधर्मी पदार्थ (Radioactive substances )।
8. शोर तथा ऊष्मा (Noise and heat)।
वायुमण्डलीय प्रदूषण (Atmospheric Pollution):
जब भौतिक, रासायनिक तथा जैविक तत्त्वों द्वारा वायुमण्डल की वायु में ऐसे अनैच्छिक परिवर्तन हो जायें जिनसे जैव समुदाय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े उसे वायुमण्डलीय प्रदूषण (Atmospheric pollution) कहते हैं। 18वीं शताब्दी में हुई औद्योगिक क्रान्ति व भाप के इन्जन के आविष्कार से तो वायु प्रदूषण में अत्यधिक वृद्धि होने लगी । कोयले के अधिकाधिक उपयोग तथा इससे उत्पादित धुआँ व गंधक के यौगिकों ने वायुमण्डल को अधिक-से-अधिक दूषित करना प्रारम्भ कर दिया था। जल और भूमि के प्रदूषण का तो केवल स्थानीय या प्रादेशिक प्रभाव पड़ता है, परन्तु वायु प्रदूषण से तो पूरा भू-मण्डल प्रभावित हो जाता है। प्रदूषित वायु में से होकर जब वर्षा होती है, तब प्रदूषण तत्त्व वर्षा जल के साथ मिलकर जलाशयों, भूमि और महासागरों को प्रदूषित कर देते हैं। वायुमण्डलीय प्रदूषण, प्राकृतिक तथा मानवीय दोनों प्रकार का हो सकता है। प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा वायु प्रदूषण – प्राकृतिक वायु प्रदूषण मानव के जन्म से पहले से होता आ रहा है और यह वायुमण्डलीय प्रदूषण का प्रमुख स्रोत है।
प्राकृतिक वायु प्रदूषण के विभिन्न स्रोत निम्नलिखित हैं –
(i) ज्वालामुखी विस्फोट (Volcanic eruptions)
(ii) दावाग्नि (Forest fires)
(iii) जैविक तथा अजैविक पदार्थों का प्राकृतिक अपघटन (Natural decay of organic and inorganic matter) ज्वालामुखी विस्फोटों द्वारा वायुमण्डल में धूल, ज़हरीली गैसों, धुएँ के कणों तथा ऊष्मा की बहुत अधिक मात्रा मिश्रित हो जाती है। दावाग्नि द्वारा भीं धुआँ, राख और गैसें आदि वायु में मिलते हैं। पदार्थों के अपघटन द्वारा भी दुर्गंध तथा सल्फर ऑक्साइड तथा नाइट्रोजन जैसी हानिकारक गैसें उत्पन्न होती हैं। वायुमण्डलीय प्रदूषण का लगभग 99% भाग केवल इन प्राकृतिक प्रकियाओं द्वारा ही उत्पन्न होता है जबकि मात्र एक प्रतिशत भाग मानवीय प्रक्रियाओं द्वारा होता है।
मानवीय क्रियाओं द्वारा वायु प्रदूषण – मानवीय क्रियाओं द्वारा वायु प्रदूषण मुख्यतः निम्नलिखित कारणों से होता है –
(i) जीवाश्म ईंधनों का जलाया जाना
(ii) रासायनिक प्रक्रियाएं।
(i) जीवाश्म ईंधनों का जलाया जाना – पिछले कुछ दशकों में भारी मात्रा में जीवाश्म ईंधनों को जलाया गया है। फलस्वरूप वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ रही है। ऐसा अनुमान है कि पिछले सौ वर्षों में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में लगभग 25% वृद्धि हुई है । फलस्वरूप वायुमण्डल में इस गैस की वृद्धि से वायुमण्डल का तापमान बढ़ गया है। ऐसा अनुमान है कि विगत सौ वर्षों में भू-मण्डलीय मध्यमान तापमान में 0.3° सेल्सियस से लेकर 0.7° सेल्सियस तक वृद्धि हुई है। बड़े पैमाने पर वनों के विनाश से भी कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि हुई है ।
कोयले और खनिज तेल के जलने से सल्फर डाइऑक्साइड भी वायुमण्डल में चली जाती है । मोटरों और कारों के धुएँ के साथ निकले सीसे, कार्बन मोनोक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड के अंश भी वायुमण्डल में मिल जाते हैं मोटरों-कारों का धुआँ साँस के साथ नाक में जाकर जलन पैदा करता है तथा साँस के रोगों का कारण बनता है। बड़े नगरों में मोटरों-कारों के इस विषैले धुएँ से वायु इतनी प्रदूषित हो जाती है कि लोगों का दम घुटने लगता है और उन्हें ऑक्सीजन लेने के लिए “फेस मास्क” पहनने पड़ते हैं।
(ii) रासायनिक प्रक्रियाएँ – कारखानों, वाहनों तथा जीवाश्म ईंधनों के जलने से जो गैसें बाहर निकलती हैं उनकी रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा भी वायु प्रदूषित होती रहती है। इन प्रक्रियाओं द्वारा धूम कोहरे का विकास, ओज़ोन का ह्रास और विषैली गैसों का विकास अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
वायु प्रदूषण पर नियन्त्रण (Control mn Air Pollution):
स्वस्थ जीवन के लिए वायु नितांत आवश्यक है। यदि हम स्वस्थ जीवन भोगना चाहते हैं तो हमें हर हालत में वायु के प्रदूषण को रोक कर इसे शुद्ध रखना होगा। स्वस्थ निवासी ही अपने देश में पाये जाने वाले साधनों का समझदारी से समुचित विकास कर सकते हैं।
जलीय प्रदूषण (Water Pollution):
जब भौतिक, रासायनिक तथा जैविक तत्त्वों द्वारा जलाशयों के जल में ऐसे अनैच्छिक परिवर्तन हो जाएं जिनसे जैव समुदाय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े उसे जलीय प्रदूषण कहते हैं। जल प्रदूषण की समस्या ने दिल्ली, कोलकाता तथा मुम्बई जैसे बड़े एवं औद्योगिक नगरों में बहुत विकट रूप धारण कर लिया है। जलीय प्रदूषण केवल नदियों, तालाबों तथा झीलों के धरातलीय जल तक ही सीमित नहीं होता, अपितु यह समुद्री जल तथा भूमिगत जल में भी पाया जाता है। जलीय प्रदूषण के लिए निम्नलिखित मानवीय क्रियाएँ उत्तरदायी होती हैं –
(1) घरेलू मल (Domestic Sewage )
(2) औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ (Industrial Wastes )
(3) कृषि की प्रक्रियाएँ (Agricultural Activities)
(4) तापीय प्रदूषण (Thermal Pollution)
(5) समुद्री प्रदूषण (Marine Pollution )
भूमि प्रदूषण
(Land Pollution)
जब भौतिक, रासायनिक तथा जैविक तत्त्वों द्वारा भूमि पर पाई जाने वाली मृदा में ऐसे अनैच्छिक परिवर्तन हो जायें, जिससे भूमि किसी कार्य, विशेषकर कृषि के लिए उपयुक्त न रहे तो इसे भूमि प्रदूषण या मृदा प्रदूषण कहते हैं। भूमि प्रदूषण में निम्नलिखित दो महत्त्वपूर्ण प्रक्रियाएँ सम्मिलित होती हैं-
(1) मृदा अपरदन
(2) प्रदूषकों का मृदा में संचय।
1. मृदा अपरदन – मिट्टी के नष्ट होने की प्रक्रिया को मिट्टी का कटाव या मृदा अपरदन (Soil Erosion) कहते हैं। प्राकृतिक परिस्थितियों में मृदा अपरदन खड़ी ढाल तथा विरल वनस्पति वाले क्षेत्रों में अधिक होता है। मूसलाधार वर्षा के समय जल का तेज़ बहना ढालू भूमि से मिट्टी की परतों को या तो बहा ले जाता है या उनमें गहरी नालियाँ बना देता है।
कई बार मानव द्वारा मिट्टी के दुरुपयोग तथा उसके अन्य कार्यों द्वारा भी मिट्टी के कटाव की प्रक्रिया को बढ़ावा मिला है। प्राकृतिक वनस्पति की अन्धाधुन्ध कटाई, अत्यधिक चराई तथा असंगत विधियों से की गई कृषि मानव के कुछ ऐसे कार्य हैं जिन्होंने मृदा अपरदन की इस प्रक्रिया को काफ़ी बढ़ावा दिया है जिसका दुष्परिणाम मानव स्वयं भुगत रहा है। मृदा अपरदन से मिट्टी के पौष्टिक तत्त्व सदा के लिए नष्ट हो जाते हैं और इसकी उत्पादन क्षमता कम हो सकती है।
2. प्रदूषकों का संचय – अनेक स्रोतों से विभिन्न प्रदूषक भूमि में संचित हो जाते हैं जिनको वह भूमि किसी कार्य विशेषकर कृषि के लिए उपयुक्त नहीं रहती। अधिकांश वायु तथा जलीय प्रदूषक भी मृदा में प्रवेश करके भूमि को प्रदूषित कर देते हैं।
प्रश्न 3.
भारत में नगरीय अपशिष्टों के निपटान से सम्बन्धित प्रमुख समस्याओं की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
नगरीय अपशिष्टों के निपटान की समस्याएं – नगरों की पर्यावरणीय समस्याओं में जल, वायु और शोर प्रदूषण तथा विषैले और खतरनाक अपशिष्टों का निपटान शामिल है।
समस्याएं – मानव मल के सुरक्षित निपटान के लिए (सीवर) या अन्य माध्यमों की कमी और कूड़ा-कचरा संग्रहण की सेवाओं की अपर्याप्तता जल प्रदूषण को बढ़ाती है, क्योंकि असंग्रहीत कूड़ा-कचरा बहकर नदियों में चला जाता है। औद्योगिक अपशिष्टों का नदियों में बहाया जाना जल प्रदूषण का मुख्य कारण है। नगर-आधारित उद्योगों और अनुपचारित मलजल से उत्पन्न प्रदूषण नीचे की ओर के नगरों में स्वास्थ्य की गम्भीर समस्याएं पैदा करता है।
अपशिष्टों की मात्रा में वृद्धि – नगरों में ठोस अपशिष्ट की प्रति व्यक्ति और कुल मात्रा दोनों ही बढ़ रही हैं। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि देश के नगरीय क्षेत्रों में अपशिष्टों का जनन प्रति व्यक्ति निरन्तर बढ़ रहा है। 1971-97 की अवधि में यह 375 ग्राम प्रतिदिन से बढ़कर 490 ग्रा० प्रतिदिन हो गया है। अपशिष्ट जनन में वृद्धि तथा इसके साथ ही जनसंख्या वृद्धि ने अपशिष्टों की कुल मात्रा को प्रकट करने वाली संख्याओं को बहुत बढ़ा दिया है। कुल अपशिष्टों की मात्रा 14.9 टन प्रतिदिन से बढ़कर 48. 1 टन प्रतिदिन हो गई
ठोस अपशिष्टों का प्रभाव – यही नहीं, ठोस अपशिष्टों में जैव प्रक्रियाओं से सड़ने – गलने जैव विघटनीय, जैव पदार्थों का स्थान प्लास्टिक और अन्य कृत्रिम पदार्थ लेते जा रहे हैं, जिनके विघटन में बहुत अधिक समय लगता है। जब इस ठोस अपशिष्ट का संग्रहण और निपटान सक्षम तथा प्रभावशाली ढंग से नहीं किया जाता है, तो इस पर कुतरने वाले जीव और मक्खियां मंडराने लगते हैं, जो बीमारियां फैलाते हैं। यह भूमि और जल संसाधनों का प्रदूषण और ह्रास भी करता है।
सारणी – भारत : नगर जनित ठोस अपशिष्ट का संघटन ( प्रतिशत में)
उपरोक्त सारणी सैं स्पष्ट है कि समय के अनुसार प्लास्टिक, कांच और धातुओं की मात्रा में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 20 वर्षों में प्लास्टिक में पांच गुनी वृद्धि दर्ज की गई है। इसमें से अधिकतर का कोई पुनर्चक्रीय मूल्य नहीं है। अतः नगरपालिकाओं द्वारा इसका रसोई के कचरे के रूप में निपटान कर दिया जाता है।
स्वास्थ्य के लिए हानिकारक – ठोस अपशिष्टों के संग्रहण में असमर्थता एक गम्भीर समस्या है। मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई और बैंगलौर जैसे नगरों में 90 प्रतिशत ठोस अपशिष्ट इकट्ठा कर लिया जाता है। लेकिन अधिकतर नगरों और कस्बों में जनित अपशिष्टों का 30 से 50 प्रतिशत भाग का संग्रहण नहीं किया जाता। सड़कों, घरों के बीच की खाली भूमि और बेकार भूमि पर इसके ढेर लग जाते हैं। ऐसे ढेर स्वास्थ्य के लिए गम्भीर खतरा हैं। यह उल्लेखनीय तथ्य है कि ठोस अपशिष्टों के संग्रहण में सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएं दोनों कार्य कर रही हैं, लेकिन नगरीय अपशिष्टों के निपटान की समस्या अभी तक सुलझ नहीं पाई हैं। इन अपशिष्टों को संसाधन मानकर इनका उपयोग ऊर्जा और खाद उत्पादन के लिए किया जाना चाहिए।
भौम जल पर प्रभाव – नागरिक अधिकारियों द्वारा संग्रहीत नगरपालिका के लगभग 90 प्रतिशत अपशिष्ट अनुपचारित रूप में ही, नगर या कस्बों के बाहर निम्नभूमि में डाल दिए जाते हैं। परिणामस्वरूप भारी धातुएं, भौमजल में मिलकर उसे पीने अयोग्य बना देते हैं। अनुपचारित अपशिष्ट धीरे-धीरे सड़ते हैं। इस सड़न की प्रक्रिया के दौरान हानिकर जैव गैसें निकलकर वायुमण्डल में फैल जाती हैं। इसमें मीथेन गैस (65 से 75 प्रतिशत) भी होती है। जो हरित गृह प्रभाव उत्पन्न करने वाली गैस है। कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में इस गैस में भूमण्डलीय तापन की 34 गुनी क्षमता है।
प्रश्न 4.
भूमि अपरदन, लवणीकरण तथा जलभराव की समस्याओं का उदाहरण सहित वर्णन करो।
उत्तर:
अपरदन के कारकों द्वारा भूमि की सम्भावित क्षमता घटती है।
1. अति सिंचाई – अति सिंचाई के कारण देश के उत्तरी मैदानों में लवणीय और क्षारीय क्षेत्रों में वृद्धि हुई है। सिंचाई की संरचना को भी बदल देती है। इनके अलावा, रासायनिक उर्वरक, पीड़कनाशी, कीटनाशी और शाकनाशी मृदा के प्राकृतिक, भौतिक रासायनिक और जैविक गुणों को नष्ट करके, मृदा को बेकार कर देते हैं।
2. उर्वरक – रासायनिक उर्वरक मृदा के सूक्ष्म जीवों को नष्ट कर देते हैं। ये जीव मृदा में नाइट्रोजन परिवर्तन का कार्य करते हैं। ये अनुर्वरता में वृद्धि करते हैं तथा मृदा की जलधारण को घटा देते हैं। इनके कुछ अंश फसलों में चले जाते हैं, जो मानव के लिए धीमे विष का कार्य करते हैं।
3. कीटनाशक – इसी प्रकार कीड़ों को मारने के लिए उपयोग में लाए जाने वाले कार्बनिक फास्फेट के यौगिक मृदा में लम्बी अवधि तक बने रहकर उसके सूक्ष्मजीवों को नष्ट करते रहते हैं।
4. औद्योगिक अपशिष्ट – औद्योगिक और नगरीय अपशिष्टों का अनुचित निपटान तथा नगरीय और औद्योगिक क्षेत्रों के निकट प्रदूषित मल जल से की गई सिंचाई भी मृदा का ह्रास करती है। उद्योगों और नगरों के अपशिष्टों के विषैले रासायनिक पदार्थ आस-पास के क्षेत्रों की मृदा में मिलकर उसे प्रदूषित कर देते हैं।
5. चिमनियों का धुआं – इसके अलावा कारखानों तथा अन्य स्रोतों को चिमनियों से निकलने वाले गैसीय और ठोस कणिकीय प्रदूषकों को उड़ाकर हवा सुदूर क्षेत्रों तक ले जाती है। विषैले पदार्थों से युक्त ये प्रदूषक मृदा में मिलकर उसे प्रदूषित करते हैं।
6. अम्ल वर्षा – कारखानों से निकलने वाली गंधक अम्लीय वर्षा का कारण है। इससे मृदा में अम्लता बढ़ती है। कारखानों और सीमेंट के चूना बनाने वाली भट्टियों, कोयले की खानों, मोटर वाहनों, ताप बिजली घरों आदि से भारी मात्रा में निकलने वाले कणीय पदार्थों के द्वारा मृदा का बड़े पैमाने पर प्रदूषित होता है।