Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 मेरे बचपन के दिन Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 मेरे बचपन के दिन
JAC Class 9 Hindi मेरे बचपन के दिन Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
“मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहना पड़ा जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है।”
इस कथन के आलोक में आप यह पता लगाएँ कि –
(क) उस समय लड़कियों की दशा कैसी थी ?
(ख) लड़कियों के जन्म के संबंध में आज कैसी परिस्थितियाँ हैं ?
उत्तर :
(क) जब लेखिका का जन्म हुआ, उन दिनों किसी परिवार में लड़की का जन्म लेना अच्छा नहीं माना जाता था। लोग लड़की के जन्म को परिवार के लिए बोझ मानते थे। इसलिए कुछ लोग तो लड़की के पैदा होते ही उसका गला दबाकर उसे मार देते थे। लड़की को जन्म देने वाली माँ को भी बुरा-भला कहा जाता था तथा उसकी भी ठीक से देखभाल नहीं की जाती थी।
(ख) आजकल लड़की और लड़के में कोई अंतर नहीं किया जाता है। लड़की के जन्म पर भी लड़की को जन्म देने वाली माँ की अच्छी प्रकार से देखभाल की जाती है। कुछ परंपरावादी परिवारों में अभी भी लड़की का जन्म अच्छा नहीं माना जाता है। वे लोग लड़की के पैदा होते ही उसे मार देते हैं। कुछ लोग गर्भ में लड़की का पता चलते ही गर्भपात करा देते हैं। अभी भी लड़की के जन्म को सहज रूप से नहीं लिया जाता। लेकिन ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है।
प्रश्न 2.
लेखिका उर्दू – फ़ारसी क्यों नहीं सीख पाई ?
उत्तर :
लेखिका के बाबा उर्दू-फारसी जानते थे। वे लेखिका को भी उर्दू-फारसी की विदुषी बनाना चाहते थे। उन्हें उर्दू-फारसी पढ़ाने के लिए एक मौलवी साहब को नियुक्त किया गया। जब मौलवी साहब लेखिका को पढ़ाने के लिए आए तो वह चारपाई के नीचे जा छिपी। वह मौलवी साहब से पढ़ने नहीं आई। इस प्रकार लेखिका उर्दू – फ़ारसी नहीं सीख पाई थी।
प्रश्न 3.
लेखिका ने अपनी माँ के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है ?
उत्तर :
लेखिका की माँ हिंदी पढ़ी-लिखी थी। वह पूजा-पाठ बहुत अधिक करती थी। माँ ने लेखिका को पंचतंत्र पढ़ना सिखाया था। माँ संस्कृत भी जानती थी। माँ को गीता पढ़ने में विशेष रुचि थी। माँ लिखती भी थी। वह मीरा के पद गाती थी। प्रभाती के रूप में वह ‘जागिए कृपानिधान पंछी बन बोले’ पद गाती थी। कुल मिलाकर वह एक धार्मिक महिला थी।
प्रश्न 4.
जवारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को लेखिका ने आज के संदर्भ में स्वप्न जैसा क्यों कहा है ?
उत्तर :
लेखिका ने जवारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को अत्यंत मधुर बताया है। वे उनके लड़के को राखी बाँधती थीं तथा उनकी पत्नी को ताई कहती थीं। नवाब के बच्चे इनकी माता जी को चचीजान कहते थे। वे आपस में मिल-जुलकर सभी त्योहार मनाते थे। दोनों परिवारों के बच्चों के जन्मदिन एक-दूसरे के घर मनाए जाते थे। आज का वातावरण इतना अधिक विषाक्त हो गया है कि सभी अपने-अपने संप्रदाय के संकुचित दायरों तक सीमित हो गए हैं। इसलिए लेखिका को अपने बचपन के दिनों में जवारा के नवाब के साथ अपने परिवार के आत्मिक संबंध स्वप्न जैसे लगते हैं।
रचना और अभिव्यक्ति –
प्रश्न 5.
जेबुन्निसा महादेवी वर्मा के लिए बहुत काम करती थी। जेबुन्निसा के स्थान पर यदि आप होतीं होते तो महादेवी से आपकी क्या अपेक्षा होती ?
उत्तर :
जेबुन्निसा के स्थान पर यदि मैं होती तो मैं चाहती कि महादेवी मेरे साथ अच्छा व्यवहार करे। वह मुझे अपनी प्रिय सखी माने और अपनी लिखी हुई कविता सबसे पहले मुझे सुनाए। वह मुझे अपने साथ कवि-सम्मेलनों में भी ले जाए। हम आपस में अपने सुख- दुख बाँटते रहें।
प्रश्न 6.
महादेवी वर्मा को काव्य प्रतियोगिता में चाँदी का कटोरा मिला था। अनुमान लगाइए कि आपको कोई इस तरह का पुरस्कार मिला हो और उसे देशहित में या किसी आपदा निवारण के काम में देना पड़े तो आप कैसा अनुभव करेंगे करेंगी ?
उत्तर :
यदि मुझे इस तरह का कोई पुरस्कार मिला होता और वह पुरस्कार मुझे देशहित में किसी को देना पड़ता तो मेरा मन प्रसन्नता से भर उठता। मुझे गर्व होता कि मेरी छोटी-सी भेंट देश के किसी कार्य में काम आएगी।
प्रश्न 7.
लेखिका ने छात्रावास के जिस बहुभाषी परिवेश की चर्चा की है उसे अपनी मातृभाषा में लिखिए।
उत्तर :
लेखिका के छात्रावास में हिंदू, मुसलमान, ईसाई सभी धर्मों की लड़कियाँ रहती थीं। इनमें मराठी, हिंदी, उर्दू, अवधी, बुंदेली आदि अनेक भाषाएँ बोलने वाली लड़कियाँ थीं। इस प्रकार से धर्म और भाषा का भेद होते हुए भी उनकी पढ़ाई में कोई कठिनाई नहीं आती थी। सब हिंदी में पढ़ती थीं। उन्हें उर्दू भी पढ़ाई जाती थी परंतु आपस में वे अपनी ही भाषा में बातचीत करती थीं। सबमें परस्पर बहुत प्रेम-भाव था।
प्रश्न 8.
महादेवी जी के इस संस्मरण को पढ़ते हुए आपको भी अपने बचपन की स्मृति मानस पटल पर उभरकर आई होगी, उसे संस्मरण शैली में लिखिए।
उत्तर :
मैं तब दस वर्ष की थी जब माता जी के साथ सेलम से चेन्नई जा रही थी। पिता जी गाड़ी में बैठाकर चले गए थे। गाड़ी में बहुत भीड़ थी। गर्मी का मौसम था। ठसाठस लोग भरे हुए थे। मुझे बहुत प्यास लग रही थी। मैंने माँ से पानी माँगा तो उन्हें याद आया कि पानी लाना तो वे भूल गई हैं। मैं प्यास से रोने लगी। आस-पास भी किसी के पास पानी नहीं था। एक स्टेशन पर गाड़ी रुकी तो माँ पानी लेने स्टेशन पर उतर गईं। इसी बीच गाड़ी चल पड़ी। माँ अभी तक लौट कर नहीं आई थीं। मैं ज़ोर-ज़ोर से माँ, माँ कहकर रो रही थी। आस-पास वाले मुझे चुप करा रहे थे। मैं और भी अधिक जोर से रोने लगी कि अचानक पीछे से आकर माँ ने मुझे कहा, ‘रोती क्यों है, ले पानी पी।’ माँ दूसरे डिब्बे में चढ़ गई थी और डिब्बे आपस में जुड़े थे इसलिए वह मेरे तक आ पहुँची थी। यदि माँ न आती तो ? यह सोचकर ही मैं सिहर उठती हूँ।
प्रश्न 9.
महादेवी ने कवि सम्मेलनों में कविता पाठ के लिए अपना नाम बुलाए जाने से पहले होने वाली बेचैनी का जिक्र किया है। अपने विद्यालय में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते समय आपने जो बेचैनी अनुभव की होगी, उस पर डायरी का एक पृष्ठ लिखिए।
उत्तर :
कल मेरे विद्यालय में गणतंत्र दिवस समारोह का आयोजन किया जाना है। मुझे इसमें अपनी कक्षा की ओर से भाषण देना है। मेरा दिल काँप रहा है। पता नहीं मुझे, क्या हो रहा है? मैंने भाषण लिख लिया है; बोलने का अभ्यास भी किया है पर मुझे डर लग रहा है। यदि मैं इसे भूल गया तो सब मेरा मजाक बनाएँगे। सारे विद्यालय के सामने इस प्रकार बोलने का यह मेरा पहला अवसर होगा।
भाषा-अध्ययन –
प्रश्न 10.
पाठ से निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द ढूंढकर लिखिए –
विद्वान, अनंत, निरपराधी, दंड, शांति।
उत्तर :
- विद्वान मूर्ख।
- अनंत अंत।
- निरपराधी – अपराधी।
- दंड – पुरस्कार।
- शांति – अशांति।
प्रश्न 11.
निम्नलिखित शब्दों में उपसर्ग / प्रत्यय अलग कीजिए और मूल शब्द बताइए-
उत्तर :
प्रश्न 12.
निम्नलिखित उपसर्ग-प्रत्ययों की सहायता से दो-दो शब्द लिखिए –
उपसर्ग – अनू, अ, सत्, स्व, दुर्
प्रत्यय – दार, हार, वाला, अनीय
उत्तर :
उपसर्ग : अन् – अनपढ़, अनमोल।
अ – अगाध, अचेत।
सत् सज्जन, सत्कार।
स्व – स्वभाव, स्वराज्य।
दुर् – दुर्गम, दुर्दशा।
प्रत्यय : दार – समझदार, चमकदार।
हार – होनहार, समाहार।
वाला – घरवाला, दूधवाला।
अनीय – माननीय, पूजनीय।
प्रश्न 13.
सामासिक पद छाँटकर विग्रह कीजिए –
उत्तर :
- पूजा-पाठ – पूजा और पाठ
- परमधाम – परम है जो धाम
- दुर्गा- पूजा – दुर्गा की पूजा
- कुल- देवी – कुल की देवी
- चारपाई – चार हैं पाँव जिसके
- कृपानिधान – कृपा का निधान
- कवि-सम्मेलन – कवियों का सम्मेलन
- मनमोहन – जो मन को मोहित करे।
यह भी जानें –
स्त्री दर्पण – इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली यह पत्रिका श्रीमती रामेश्वरी नेहरू के संपादन में सन् 1909 से 1924 तक लगातार प्रकाशित होती रही। स्त्रियों में व्याप्त अशिक्षा और कुरीतियों के प्रति जागृति पैदा करना उसका मुख्य उद्देश्य था।
JAC Class 9 Hindi मेरे बचपन के दिन Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
लेखिका के जन्म की कथा क्या है ?
उत्तर :
लेखिका का जन्म जिस परिवार में हुआ था, उस परिवार में कई पीढ़ियों से कोई लड़की पैदा नहीं हुई थी। इनके परिवार में प्रायः दो सौ वर्षों तक किसी लड़की ने जन्म नहीं लिया था। ऐसा भी सुना जाता था कि पहले लड़कियों को पैदा होते ही मार दिया जाता था। लेखिका के परिवार की कुल देवी दुर्गा थीं। इसके बाबा ने दुर्गा की बहुत पूजा की थी। परिणामस्वरूप परिवार में लेखिका का जन्म हुआ। लेखिका के जन्म पर उसका बहुत स्वागत किया गया था तथा उसे वह सब कुछ सहन नहीं करना पड़ा था, जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता था।
प्रश्न 2.
सुभद्रा कुमारी के साथ लेखिका का परिचय कैसे हुआ और वे कैसे साथ रहती थीं ?
उत्तर :
लेखिका का सुभद्रा कुमारी के साथ परिचय तब हुआ, जब उसे क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज की कक्षा पाँच में दाखिल कराया गया। वहाँ के छात्रावास के जिस कमरे में लेखिका को स्थान मिला, उस कमरे में सुभद्रा कुमारी पहले से रहती थीं और वे कक्षा सात में पढ़ती धीं। सुभद्रा जी कविताएँ लिखती थीं तथा लेखिका भी कविताएँ लिखती थी। लेखिका की कविताओं की चर्चा सारे छात्रावास में सुभद्रा जी ने की थी। इस प्रकार दोनों में मित्रता हो गई। जब अन्य लड़कियाँ खेलती थीं तब ये दोनों कॉलेज के किसी वृक्ष की डाल पर बैठकर कविताएँ लिखती थीं और ‘स्त्री दर्पण’ में प्रकाशनार्थ भेजती थीं। इनकी कविताएँ छप भी जाती थीं। ये कवि-सम्मेलनों में भी जाती थीं।
प्रश्न 3.
आनंद भवन में बापू के आने पर लेखिका ने क्या किया ?
उत्तर :
जब बापू आनंद भवन में आए तो लोग उनके दर्शनार्थ वहाँ जाने लगे। वे उन्हें देश के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के रूप में कुछ राशि भी देते थे। लेखिका भी अपने जेब खर्च में से कुछ बचाकर उन्हें देने गई तथा कवि सम्मेलन में पुरस्कार स्वरूप प्राप्त चाँदी का कटोरा भी उन्हें दिखाने के लिए साथ ले गई। बापू ने उससे वह कटोरा माँग लिया और लेखिका ने वह कटोरा उन्हें दे दिया। उसे कटोरा देने पर यह दुख हुआ कि कटोरा लेकर भी बापू ने उससे वह कविता सुनाने के लिए नहीं कहा, जिस पर उसे यह पुरस्कार मिला था। फिर भी वह प्रसन्न थी कि उसने पुरस्कार में मिला कटोरा बापू को दे दिया।
प्रश्न 4.
लेखिका ने सांप्रदायिक सद्भाव का क्या उदाहरण प्रस्तुत किया है ?
उत्तर :
लेखिका का परिवार उसके बचपन में जहाँ रहता था, वहाँ जवारा के नवाब भी रहते थे। उनकी पत्नी को ये लोग ताई साहिबा कहते थे तथा नवाब साहब के बच्चे लेखिका की माता जी को चचीजान कहते थे। दोनों परिवारों के बच्चों के जन्म-दिन एक-दूसरे के घरों में मनाए जाते थे। लेखिका नवाब के पुत्र को राखी बाँधती थी। तीज-त्योहार दोनों परिवार मिलकर मनाते थे। लेखिका के छोटे भाई के जन्म पर ताई साहिबा बच्चे के लिए कपड़े आदि लाई और बच्चे का नाम अपनी तरफ़ से मनमोहन रखा, जो सदा यही रहा। इस प्रकार, दोनों परिवार अलग-अलग धर्मों को मानने वाले होते हुए भी बहुत निकट थे। यह निकटता सांप्रदायिक सद्भाव का सुंदर उदाहरण है।
प्रश्न 5.
सुभद्रा के जाने के बाद लेखिका के कमरे की साथिन कौन थी और कैसी थी ?
उत्तर :
सुभद्रा के छात्रावास छोड़ने के बाद लेखिका के कमरे की साथिन एक मराठी लड़की जेबुन्निसा थी। वह कोल्हापुर से आई थी। जेबुन लेखिका के साथ घुल-मिल गई थी। वह लेखिका का बहुत सारा काम कर देती थी जिससे लेखिका को कविता लिखने का बहुत-सा समय मिल जाता था। जेबुन मराठी मिश्रित हिंदी भाषा बोलती थी। उसका पहनावा भी मराठी था।
प्रश्न 6.
लेखिका के समय का वातावरण कैसा था ?
उत्तर :
लेखिका के समय सांप्रदायिकता नहीं थी। विद्यालय में भी अलग-अलग स्थान से आई लड़कियाँ आपस में मिल-जुलकर रहती थीं। सभी प्रार्थना में और मेस में इकट्ठा काम करती थीं; उनमें कोई विवाद नहीं होता था। हिंदू-मुसलमान सब मिल-जुलकर रहते थे। तीज-त्योहार मिल-जुलकर मनाते थे। आपस में विश्वास और प्रेम का भाव था।
प्रश्न 7.
आज की स्थिति देखकर लेखिका को क्या लगता है ?
उत्तर :
पहले और आज के वातावरण में बहुत अंतर आ गया है। पहले लोगों में सांप्रदायिकता की अपेक्षा मिल-जुलकर रहने की भावना थी परंतु आज स्थिति ऐसी हो गई है कि लोग एक-दूसरे के प्रति अपना विश्वास खो बैठे हैं। उनके मन में एक-दूसरे के प्रति घृणा ने जन्म से लिया है। लेखिका वर्तमान समय में भी हिंदू-मुसलमान की एकता और मेल-जोल की भावना देखना चाहती, जो संभव नहीं लगता है। उन्हें पहले का समय एक सपना लगता है, जो अब खो गया है। यदि आज भी लोग सँभल जाएँ और एक हो जाएँ तो भारत की स्थिति बदल सकती है।
प्रश्न 8.
लेखिका को किस विद्यालय में प्रवेश दिलाया गया और वहाँ उसकी क्या दशा थी ?
उत्तर :
लेखिका के पिता उन्हें विदुषी बनाना चाहते थे। इसलिए उनकी पढ़ाई पर विशेष ध्यान दिया गया। बचपन में उन्हें घर पर ही शिक्षा दी गई। बाद में उन्हें मिशन स्कूल में दाखिल करवाया गया। वहाँ का वातावरण लेखिका को पसंद नहीं आया। इसलिए उसने वहाँ जाना बंद कर दिया। उनके पिता ने उन्हें क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज में पाँचवीं कक्षा में भर्ती करवाया। वहाँ का वातावरण लेखिका को बहुत अच्छा लगा। वहाँ हिंदू और ईसाई लड़कियाँ थीं। सबके लिए इकट्ठा भोजन बनता था। लेखिका का वहाँ मन लग गया था।
प्रश्न 9.
लेखिका की लेखन प्रतिभा को किसने पहचाना और उसे कैसे प्रोत्साहन दिया ?
उत्तर :
छात्रावास में लेखिका की साथिन सातवीं कक्षा की छात्रा सुभद्रा कुमारी चौहान थीं। उन्होंने लेखिका को छिप-छिप कर लिखते देखा। एक दिन उन्होंने उसकी एक कविता पूरे छात्रावास में दिखाई। सबको बता दिया कि यह कविता भी लिखती है। सुभद्रा कुमारी चौहान स्वयं भी कविता लिखती थीं। खाली समय में दोनों कविता लिखतीं और ( स्त्री दर्पण) पत्रिका में छपने के लिए भेज देती थीं। वे दोनों कवि-सम्मेलनों में भी भाग लेने लगीं। लेखिका को प्रायः प्रथम पुरस्कार मिलता था। इस प्रकार लेखिका की लेखन कला को प्रोत्साहन मिला। इसका श्रेय सुभद्रा कुमारी चौहान को जाता है।
प्रश्न 10.
लेखिका को किस बात का दुःख था और क्यों ?
उत्तर :
उन दिनों सत्याग्रह आंदोलन जोरों पर चल रहा था। जब बापू आनंद भवन आए तभी सभी ने अपने पास से पैसे इकट्ठे करके उन्हें दिए। लेखिका को एक कविता सम्मेलन में नक्काशीदार चाँदी का कटोरा मिला था। वह कटोरा लेकर बापू के पास गई। बापू के आग्रह पर उसने वह कटोरा बापू जी को दे दिया। उसे बापू को कटोरा देने का दुःख नहीं था। उसे दुःख इस बात का था कि बापू ने उससे यह भी नहीं पूछा कि किस कविता पर उसे यह पुरस्कार मिला था। उन्होंने उसकी कविता भी नहीं सुनी। यदि बापू उसकी कविता सुन लेते तो वह प्रसन्न हो जाती।
महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –
1. बाबा कहते थे, इसको हम विदुषी बनाएँगे। मेरे संबंध में उनका विचार बहुत ऊँचा रहा। इसलिए ‘पंचतंत्र’ भी पढ़ा मैंने, संस्कृत भी पढ़ी। ये अवश्य चाहते थे कि मैं उर्दू-फारसी सीख लूँ, लेकिन वह मेरे वश की नहीं थी। मैंने जब एक दिन मौलवी साहब को देखा तो बस, दूसरे दिन मैं चारपाई के नीचे जा छिपी। तब पंडित जी आए संस्कृत पढ़ाने। माँ थोड़ी संस्कृत जानती थीं। गीता में उन्हें विशेष रुचि थी। पूजा-पाठ के समय मैं भी बैठ जाती थी और संस्कृत सुनती थी। उसके उपरांत उन्होंने मिशन स्कूल में रख दिया मुझको। मिशन स्कूल में वातावरण दूसरा था, प्रार्थना दूसरी थी। मेरा मन नहीं लगा।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. ‘बाबा’ किसे विदुषी बनाना चाहते थे ?
2. लेखिका चारपाई के नीचे क्यों छिप गई थी ?
3. गीता में विशेष रुचि किन्हें थी ?
4. मिशन स्कूल का वातावरण था-
5. लेखिका का मिशन स्कूल में मन क्यों नहीं लगा ?
उत्तर :
1. बाबा महादेवी वर्मा को विदुषी बनाना चाहते थे। महादेवी जी के संबंध में उनके विचार ऊँचे थे। वे चाहते थे कि महादेवी जी उर्दू-फारसी भी सीखें।
2. उर्दू-फारसी पढ़ना लेखिका के वश की नहीं थी। उर्दू-फारसी पढ़ने के डर से लेखिका चारपाई के नीचे जाकर छिप गई थी।
3. गीता में लेखिका को विशेष रुचि थी। पूजा-पाठ के समय वह बैठ जाती थी और संस्कृत सुनती थी।
4. मिशन स्कूल का वातावरण आस्थामय था।
5. मिशन स्कूल का वातावरण लेखिका को पसंद नहीं था, इसलिए उसका मन वहाँ नहीं लगा।
2. उसी बीच आनंद भवन में बापू आए। हम लोग तब अपने जेब खर्च में से हमेशा एक-एक, दो-दो आने देश के लिए बचाते थे और जब बापू आते थे तो वह पैसा उन्हें दे देते थे। उस दिन जब बापू के पास मैं गई तो अपना कटोरा भी लेती गई। मैंने निकालकर बापू को दिखाया। मैंने कहा, ‘कविता सुनाने पर मुझको यह कटोरा मिला है।’ कहने लगे, ‘अच्छा, दिखा तो मुझको।’ मैंने कटोरा उनकी ओर बढ़ा दिया तो उसे हाथ में लेकर बोले, ‘तू देती है इसे ?’ अब मैं क्या कहती ? मैंने दे दिया और लौट आई। दुख यह हुआ कि कटोरा लेकर कहते, कविता क्या है ?
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. जब बापू आनंद भवन आते थे तो सब क्या करते थे ?
2. लेखिका को उपहार में क्या और क्यों मिला ?
3. लेखिका से कटोरा किसने ले लिया ?
4. लेखिका को किस बात का दुख हुआ ?
5. यह गद्यांश किस पाठ का है ? इसकी लेखिका कौन है ?
उत्तर
1. जब बापू आनंद भवन में आते थे तो सब जेब खर्च में बचाए हुए पैसे उन्हें देते थे।
2. कविता सुनाने पर लेखिका को उपहार में एक कटोरा मिला।
3. महात्मा गांधी ने लेखिका से कटोरा ले लिया।
4. गांधी जी ने लेखिका से उपहार में मिला कटोरा ले लिया और कविता के विषय में भी कुछ नहीं पूछा। इस बात से लेखिका दुखी हुई।
5. यह गद्यांश ‘मेरे बचपन के दिन’ पाठ का है। इसकी लेखिका महादेवी वर्मा जी हैं।
3. उस समय यह देखा मैंने कि सांप्रदायिकता नहीं थी। जो अवध की लड़कियाँ थीं, वे आपस में अवधी बोलती थीं; बुंदेलखंड की आती थीं, वे बुंदेली में बोलती थीं। कोई अंतर नहीं आता था और हम पढ़ते हिंदी थे। उर्दू भी हमको पढ़ाई जाती थी, परंतु आपस में हम अपनी भाषा में ही बोलती थीं। यह बहुत बड़ी बात थी। हम एक मेस में खाते थे, एक प्रार्थना में खड़े होते थे; कोई विवाद नहीं होता था।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. उन दिनों छात्रावास का वातावरण कैसा था ?
2. छात्रावास में रहने वाली लड़कियाँ कौन-कौन सी भाषाएँ बोलती थीं ?
3. इन छात्राओं के अध्ययन-अध्यापन का माध्यम क्या था ? इनके विद्यालय में अन्य कौन-सी भाषा पढ़ाई जाती थी ?
4. छात्राओं का परस्पर व्यवहार कैसा था ?
5. लड़कियाँ आपस में कौन-सी भाषा बोलती थीं ?
उत्तर :
1. उन दिनों छात्रावास का वातावरण सांप्रदायिक सद्भाव से युक्त था। हिंदू, मुसलमान, ईसाई आदि विभिन्न धर्म-संप्रदाय को मानने वाली लड़कियाँ आपस में मिल-जुलकर रहती थीं। उनमें कोई भेदभाव नहीं था।
2. छात्रावास में रहने वाली अवध की लड़कियाँ अवधी, बुंदेलखंड की रहने वाली बुंदेली, महाराष्ट्र की मराठी भाषा बोलती थीं। भाषा की विविधता का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था।
3. इन छात्राओं के अध्ययन-अध्यापन का माध्यम हिंदी था। इन्हें उर्दू भी पढ़ाई जाती थी। इन्हें हिंदी माध्यम से पढ़ने में कोई कठिनाई नहीं होती थी।
4. छात्राओं का परस्पर व्यवहार बहुत ही स्नेहपूर्ण तथा मित्रता का था। वे एक ही मेस में मिल-जुलकर खाना खाती थीं। वे प्रार्थना सभा में एक साथ खड़ी होती थीं। उनमें आपस में कोई मतभेद नहीं था। वे सदा एक-दूसरे की सहायता करने के लिए तैयार रहती थीं।
5. लड़कियाँ आपस में अपनी भाषा बोलती थीं।
4. राखी के दिन बहनें राखी बाँध जाएँ तब तक भाई को निराहार रहना चाहिए। बार-बार कहलाती थीं- ‘ भाई भूखा बैठा है राखी बंधवाने के लिए।’ फिर हम लोग जाते थे। हमको लहरिए या कुछ मिलते थे। इसी तरह मुहर्रम में हरे कपड़े उनके बनते थे तो हमारे भी बनते थे। फिर एक हमारा छोटा भाई हुआ वहाँ, तो ताई साहिबा ने पिताजी से कहा, ‘देवर साहब से कहो, वो मेरा नेग ठीक करके रखें। मैं शाम को आऊँगी। ‘ वे कपड़े-पड़े लेकर आईं। हमारी माँ को वे दुलहन कहती थीं।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. राखी बाँधने का क्या नियम था ?
2. राखी और मुहर्रम पर इन्हें क्या उपहार मिलते थे ?
3. लेखिका के छोटे भाई के जन्म पर ताई साहिबा ने क्या किया ?
4. लेखिका की माँ को ताई साहिबा क्या कहती थीं ? लेखिका के पिता को उन्होंने क्या संदेश भेजा ?
5. ‘निराहार’ का संधि-विच्छेद कीजिए।
उत्तर :
1. राखी बँधवाने का यह नियम था कि राखी के दिन जब तक बहनें भाई को राखी न बाँध जाएँ तब तक भाई को कुछ भी नहीं खाना चाहिए। उसे भूखा रहना चाहिए।
2. राखी पर लहरिए और मुहर्रम पर हरे कपड़े उपहार में मिलते थे।
3. लेखिका के छोटे भाई के जन्म पर ताई साहिबा ने इन्हें कपड़े आदि दिए और कहा कि नए बच्चे को छह महीने तक चाची – ताई के कपड़े पहनाए जाते हैं।
4. लेखिका की माँ को ताई साहिबा दुलहन कहती थीं। लेखिका के पिता को उन्होंने कहा कि देवर साहब से कहो कि वे उनका नेग तैयार करके रखें।
5. निर् + आहार।
5. वही प्रोफ़ेसर मनमोहन वर्मा आगे चलकर जम्मू यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहे, गोरखपुर यूनिवर्सिटी के भी रहे। कहने का तात्पर्य यह है कि मेरे छोटे भाई का नाम वही चला जो ताई साहिबा ने दिया। उनके यहाँ भी हिंदी चलती थी, उर्दू भी चलती थी। यों, अपने घर में वे अवधी बोलते थे। वातावरण ऐसा था उस समय कि हम लोग बहुत निकट थे। आज की स्थिति देखकर लगता है, जैसे वह सपना ही था। आज वह सपना खो गया।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. मनमोहन वर्मा और लेखिका का क्या संबंध था ? उनका नाम किसने रखा था ?
2. ताई साहिबा का परिचय दीजिए।
3. लेखिका के समय का वातावरण कैसा था ?
4. लेखिका का कौन-सा सपना खो गया है ?
5. ताई साहिबा के घर कौन-सी भाषा बोली जाती थी ?
उत्तर :
1. मनमोहन वर्मा लेखिका के छोटे भाई थे। उनका नाम उनके पड़ोस में रहने वाली मुसलमान बेगम साहिबा ने रखा था, जिन्हें वे ताई साहिबा कहते थे।
2. ताई साहिबा लेखिका के पड़ोस में रहने वाले जवारा के नवाब की पत्नी थीं। वे मुसलमान होते हुए भी लेखिका के परिवार से घुल-मिल गई थीं और लेखिका के पिता को अपना देवर मानती थीं।
3. लेखिका के समय देश का सांप्रदायिक वातावरण अत्यंत सहज तथा मेलजोल से परिपूर्ण था। हिंदू-मुसलमान मिल-जुलकर रहते थे। तीज-त्योहार मिलकर मनाते थे। आपस में विश्वास और प्रेम का भाव रहता था।
4. लेखिका वर्तमान समय में भी हिंदू-मुसलमान की एकता तथा मेलजोल की भावना का सपना देखती है, परंतु इन दिनों के सांप्रदायिक भेदभावों को देखकर उसे लगता है कि उसका सपना खो गया है।
5. ताई साहिबा के घर उर्दू और हिंदी बोली जाती है। वे अपने घर में अवधी बोलते थे।
मेरे बचपन के दिन Summary in Hindi
लेखिका-परिचय :
जीवन परिचय – श्रीमती महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य में आधुनिक युग की मीरा के नाम से विख्यात हैं। इसका कारण यह है कि मीरा की तरह महादेवी जी ने अपनी विरह-वेदना को कला के रूप में वाणी दी है। महादेवी जी का जन्म सन् 1907 में उत्तर प्रदेश के फरुर्खाबाद नामक नगर में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में हुई। माता के प्रभाव ने इनके हृदय में भक्ति – भावना के अंकुर को जन्म दिया।
शैशवावस्था में ही इनका विवाह हो गया था। आस्थामय जीवन की साधिका होने के कारण ये शीघ्र ही विवाह बंधन से मुक्त हो गईं। सन् 1933 में इन्होंने प्रयाग में संस्कृत विषय में एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। प्रयाग महिला विद्यापीठ के आचार्य पद के उत्तरदायित्व को निभाते हुए वे साहित्य – साधना में लीन रहीं। सन् 1987 ई० में इनका निधन हो गया। इन्हें साहित्य अकादमी एवं ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया था। भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया था।
काव्य – महादेवी जी ने पद्य एवं गद्य दोनों में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। कविता में अनुभूति तत्व की प्रधानता है तो गद्य में चिंतन की। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं- नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्य गीत तथा दीपशिखा। गद्य – श्रृंखला की कड़ियाँ, अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, क्षणदा।
भाषा-शैली – महादेवी वर्मा मूलरूप से कवयित्री हैं। इनकी भाषा-शैली अत्यंत सरल, भावपूर्ण, प्रवाहमयी तथा सहज है। ‘मेरे बचपन के दिन’ लेखिका की बचपन की स्मृतियों को प्रस्तुत करनेवाला आलेख है। इसमें लेखिका ने सहज-सरल भाषा का प्रयोग किया है जिसमें कहीं- कहीं तत्सम शब्दों का प्रयोग भी दिखाई देता है, जैसे- स्मृति, विचित्र, आकर्षण, रुचि, विद्यापीठ आदि। विदेशी शब्द दर्जा, नक्काशीदार, उस्तानी, तुकबंदी, डेस्क, कंपाउंड आदि का भी कहीं-कहीं प्रयोग किया गया है। इस प्रकार के शब्द प्रयोग से भाषा में प्रवाहमयता आ गई है।
लेखिका की शैली आत्मकथात्मक है जिसमें लेखिका का व्यक्तित्व तथा स्वभाव उभर आता है। जैसे लेखिका लिखती है-” बाबा चाहते थे कि मैं उर्दू – फ़ारसी सीख लूँ, लेकिन वह मेरे वश की नहीं थी। मैंने जब एक दिन मौलवी साहब को देखा तो बस, दूसरे दिन मैं चारपाई के नीचे जा छिपी।” बीच-बीच में संवादात्मकता से पाठ में रोचकता आ गई है। इस प्रकार लेखिका की भाषा-शैली रोचक, स्पष्ट, प्रभावपूर्ण तथा भावानुरूप है।
पाठ का सार :
‘मेरे बचपन के दिन’ पाठ में महादेवी वर्मा ने अपने बचपन की स्मृतियों को प्रस्तुत किया है। लेखिका का मानना है कि बचपन की स्मृतियाँ विचित्र आकर्षण से युक्त होती हैं। लेखिका अपने परिवार में लगभग दो सौ वर्ष बाद पैदा होने वाली लड़की थी। इसलिए उसके जन्म पर सबको बहुत प्रसन्नता हुई। लेखिका के बाबा दुर्गा के भक्त थे तथा फ़ारसी और उर्दू जानते थे। इनकी माता जबलपुर की थीं तथा हिंदी पढ़ी- लिखी थीं।
वे पूजा-पाठ बहुत करती थीं। माता जी ने इन्हें पंचतंत्र पढ़ना सिखाया था। बाबा इन्हें विदुषी बनाना चाहते थे। बाबा इन्हें उर्दू- फ़ारसी पढ़ाना चाहते थे परंतु इन्हें संस्कृत पढ़ने में रुचि थी। इन्हें पहले मिशन स्कूल में भेजा गया परंतु इनका वहाँ मन नहीं लगा तो इन्हें क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज में कक्षा पाँच में दाखिल कराया गया। यहाँ का वातावरण बहुत अच्छा था। छात्रावास के हर कमरे में चार छात्राएँ रहती थीं। इनके कमरे में सुभद्रा कुमारी थीं। वे लेखिका से दो कक्षाएँ आगे कक्षा सात में थीं।
वे कविता लिखती थीं और लेखिका ने भी कविताएँ लिखना शुरू कर दिया था। लेखिका की माता जी मीरा के पद गाती थीं जिन्हें सुनकर वह भी ब्रजभाषा में कविता लिखने लग गई थी परंतु यहाँ आकर सुभद्रा कुमारी को देखकर वह भी खड़ी बोली में कविता लिखने लगी। जब पहली बार सुभद्रा कुमारी ने लेखिका से पूछा कि क्या वह कविता लिखती है तब लेखिका ने डरकर ‘नहीं’ में उत्तर दिया था। जब सुभद्रा कुमारी ने उसकी किताबों की तलाशी ली तो उसमें से कविता लिखा हुआ कागज निकल पड़ा जिसे वे सारे छात्रावास में दिखा आईं कि महादेवी कविता लिखती है। इसके बाद दोनों में मित्रता हो गई।
क्रास्थवेट कॉलेज में एक पेड़ की डाल बहुत नीची थी। जब अन्य लड़कियाँ खेलती थीं तब ये दोनों पेड़ की डाल पर बैठकर तुकबंदी करती थीं। इनकी कविताएँ ‘स्त्री- दर्पण’ नामक पत्रिका में छप जाती थीं। वे कवि-सम्मेलनों में भी जाने लगीं। लेखिका 1917 में यहाँ आई थी। इन दिनों गांधी जी का सत्याग्रह आरंभ हो गया था तथा आनंद भवन स्वतंत्रता के संघर्ष का केंद्र बन गया था। इन दिनों होने वाले कवि सम्मेलनों की अध्यक्षता हरिऔध, श्रीधर पाठक, रत्नाकर आदि करते थे। लेखिका को प्रायः प्रथम पुरस्कार मिलता था। इन्हें सौ के लगभग पदक मिले थे। एक बार इन्हें पुरस्कार में चाँदी का कटोरा मिला, जिसे इन्होंने सुभद्रा को दिखाया तो उसने कहा कि एक दिन खीर बनाकर इस कटोरे में मुझे खिलाना।
जब आनंद भवन में बापू आए तो अपने जेब खर्च में से बचाई राशि उन्हें देने के लिए लेखिका वहाँ गई और उन्हें पुरस्कार में मिला चाँदी का कटोरा भी दिखाया। गांधी जी ने उसे कहा कि यह कटोरा मुझे दे दो। लेखिका ने वह उन्हें दे दिया और लौटकर सुभद्रा से कहा कि चाँदी का कटोरा तो गांधी जी ने ले लिया। सुभद्रा ने कहा कि और जाओ दिखाने पर खीर तो तुम्हें बनानी ही होगी, चाहे पीतल की कटोरी में ही खिलाओ। लेखिका को यह प्रसन्नता थी कि पुरस्कार में मिला कटोरा उसने गांधी जी को दिया था।
सुभद्रा जी के जाने के बाद लेखिका के साथ एक मराठी लड़की जेबुन्निसा रहने लगी। वह कोल्हापुर की रहने वाली थी। वह लेखिका के बहुत से काम भी कर देती थी। जेबुन्निसा मराठी शब्दों से मिली-जुली हिंदी बोलती थी। लेखिका ने भी उससे कुछ मराठी शब्द सीखे। उनकी अध्यापिका जेबुन के ‘इकडे तिकड़े’ जैसे मराठी शब्द सुनकर उसे टोकती कि ‘वाह! देसी कौवा, मराठी बोली !’ इस पर जेबुन कहती ‘यह मराठी कौवा मराठी बोलता है।’ जेबुन की वेशभूषा भी मराठी महिलाओं जैसे थी। वहाँ कोई सांप्रदायिक भेदभाव नहीं था। अवध की लड़कियाँ अवधी, बुंदेलखंड की बुंदेली बोलती थीं। यहाँ हिंदी, उर्दू आदि सब कुछ पढ़ाया जाता था परंतु आपस में बातचीत वे अपनी ही भाषा में करती थीं।
लेखिका जब विद्यापीठ आई तब तक उसका बचपन का क्रम ही चलता रहा। बचपन में वे जहाँ रहती थीं, वहीं जवारा के नवाब भी रहते थे। उनकी नवाबी समाप्त हो गई थी। उनकी पत्नी इन्हें कहती थी कि वे इन्हें ताई कहें। बच्चे उन्हें ‘ताई साहिब’ कहते थे। उनके बच्चे इनकी माता जी को चचीजान कहते थे। इनके जन्मदिन नवाब साहब के घर और नवाब साहब के बच्चों के इनके घर मनाए जाते थे।
उनके एक लड़का था जिसे ये राखी बांधती थीं। जब लेखिका का छोटा भाई हुआ तो वे उसके लिए कपड़े आदि लाई और उसका नाम मनमोहन रखा। वही आगे चलकर प्रोफेसर मनमोहन वर्मा जम्मू विश्वविद्यालय और गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति बने। उनके घर में हिंदी, उर्दू, अवधी आदि भाषाओं का प्रयोग होता था। उस वातावरण में दोनों परिवार एक-दूसरे के बहुत निकट थे। लेखिका को लगता है कि यदि आज भी ऐसा ही वातावरण बन जाता तो भारत की कथा ही कुछ और होती।
कठिन शब्दों के अर्थ :
- स्मृतियाँ – यादें
- खातिर – सेवा, सत्कार
- दर्जा – कक्षा
- उपरांत – बाद
- इकड़े-तिकड़े – इधर-उधर
- निराहार – भूखा, बिना खाए-पिए
- वाइस चांसलर – कुलपति
- परमधाम – स्वर्ग
- विदुषी – विद्वान स्त्री
- प्रतिष्ठित – सम्मानित
- नक्काशीदार – चित्रकारी से युक्त
- लोकर-लोकर – शीघ्र-शीघ्र
- लहरिए – रंगीन साड़ी