Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 बच्चे काम पर जा रहे हैं Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 बच्चे काम पर जा रहे हैं
JAC Class 9 Hindi बच्चे काम पर जा रहे हैं Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
कविता की पहली दो पंक्तियों को पढ़ने तथा विचार करने से आपके मन-मस्तिष्क में जो चित्र उभरता है उसे लिखकर व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
सर्दियों की धुंध-भरी सड़क पर छोटे-छोटे बच्चों को काम पर जाते देखना दुखदायी है। उनकी आयु अभी काम पर जाने की नहीं बल्कि खेलने-कूदने और विद्यालय जाने की है। यदि वे अभी से बड़ों वाला कार्य करने को विवश कर दिए गए हैं तो उनके बचपन का क्या हुआ ?
प्रश्न 2.
कवि का मानना है कि बच्चों के काम पर जाने की भयानक बात को विवरण की तरह न लिखकर सवाल के रूप में पूछा जाना चाहिए कि ‘काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे ?’ कवि की दृष्टि में किसी बात का विवरण न देते हुए उसे प्रश्न के रूप में क्यों पूछा जाना चाहिए ?
उत्तर :
छोटे बच्चों को काम पर भेजने का कार्य उनके माता-पिता, अभिभावक और जीवन की विवशताएँ हैं इसलिए समाज से प्रश्न किया जाना चाहिए कि ‘बच्चे काम पर क्यों जा रहे हैं ?’ यदि बच्चों ने काम पर जाना आरंभ कर दिया तो उनका बचपन कहाँ गया ? उनके जीवन के लिए शिक्षा – प्राप्ति का समय कहाँ गया ? उनकी खेल-कूद कहाँ गई ? वे बच्चे तो अपना बचपन खोकर जल्दी ही बड़े हो गए।
प्रश्न 3. :
सुविधा और मनोरंजन के उपकरणों से बच्चे वंचित क्यों हैं?
उत्तर :
बच्चे सुविधा और मनोरंजन के उपकरणों से वंचित हैं। उनके माँ-बाप गरीब हैं। उनके पास पेट भरने के लिए रोटी नहीं है तो उनके पास उनके लिए खेल-खिलौने कहाँ से आ सकते हैं? इसलिए उनके बच्चे खेलते नहीं, बल्कि काम करने के लिए जाते हैं।
प्रश्न 4.
दिन-प्रतिदिन के जीवन में हर कोई बच्चों को काम पर जाते देख रही है/ देख रहा है, फिर भी किसी को कुछ अटपटा नहीं लगता। इस उदासीनता के क्या कारण हो सकते हैं ?
उत्तर :
प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में प्राप्त किए जाने वाले सुखों तक ही सीमित है। उसे दूसरों के बच्चों के स्कूल जाने या न जाने से कोई मतलब नहीं है। वे सब स्वार्थी हैं। घरों – दुकानों उद्योगों में छोटे-छोटे बच्चे कम वेतन पर काम करते हैं। वे खेतों में काम करते हैं; कूड़ा बीनते हैं; भीख माँगते हैं पर पढ़ते नहीं हैं। माँ – बाप भी खुश हैं कि वे कुछ तो कमाकर लाते हैं। उनसे खाना तो नहीं माँगते। उन सब की उदासीनता के अपने-अपने कारण हैं, पर सबसे बड़ा कारण तो ग़रीबी है।
प्रश्न 5.
आपने अपने शहर में बच्चों को कब-कब और कहाँ-कहाँ काम करते हुए देखा है ?
उत्तर :
हमने अपने शहर में बच्चों को दुकानों में काम देखा है; घर-बाहर की सफ़ाई करते देखा है; कूड़ा बीनते और बोझ ढोते देखा है। उन्हें घरों में नौकर के रूप में देखा है; ढाबों पर खाना पकाते-परोसते देखा है।
प्रश्न 6.
बच्चों का काम पर जाना धरती के एक बड़े हादसे के समान क्यों है ?
उत्तर :
बच्चों का काम पर जाना एक भयानक प्रश्न है, यह एक हादसे के समान है। यदि वे अभी से काम पर जाने लगेंगे तो वे स्कूल जा सकेंगे; खेल-कूद नहीं सकेंगे। उनका बचपन अधूरा रह जाएगा। वे अनपढ़ रह जाएँगे और जीवन में उचित मार्ग प्राप्त नहीं कर सकेंगे। बचपन में ही बिगड़े हुए लोगों की संगत पाकर बिगड़ जाएँगे। उनकी बुद्धि का विकास ठीक प्रकार से नहीं हो सकेगा।
रचना और अभिव्यक्ति –
प्रश्न 7.
काम पर जाते किसी बच्चे के स्थान पर अपने-आपको रखकर देखिए। आपको जो महसूस होता है उसे लिखिए।
उत्तर :
यदि मैं अपने-आपको काम पर जाते किसी बच्चे के स्थान पर रखूं तो मेरा रोम-रोम काँप उठता है। मुझे अपने तन पर मैले-कुचैले कपड़े, पाँव में टूटी हुई चप्पल, मैला-गंदा शरीर और उलझे हुए बाल अनुभव कर स्वयं से ऐसा एहसास होता है जो सुखद नहीं है। मेरा पेट खाली हो और मन में नौकरी देने वाले मालिक की गालियाँ गरज रही हों तो मेरे मन में पीड़ा का उठना स्वाभाविक ही है। कोहरे या कीचड़ से भरी सड़क पर अकेले पैदल ही काम करने के लिए आगे बढ़ना निश्चित रूप से बहुत भयानक है।
भाषा-अध्ययन –
प्रश्न 8.
आपके विचार से बच्चों को काम पर क्यों नहीं भेजा जाना चाहिए ? उन्हें क्या करने के मौके मिलने चाहिए ?
उत्तर :
मेरे विचार में बच्चों को काम पर नहीं भेजा जाना चाहिए। उन्हें पढ़ने-लिखने का पूरा मौका मिलना चाहिए ताकि वे शिक्षा प्राप्त कर अपने जीवन को सँवार सकें। उन्हें खेलने-कूदने का उचित अवसर मिलना चाहिए ताकि वे तन-मन से स्वस्थ बन सकें। उन्हें अपने माता-पिता, सगे-संबंधियों और पास-पड़ोस से पूरा प्रेम मिलना चाहिए। ऐसा होने से ही उन के व्यक्तित्व का समुचित विकास हो सकेगा।
यह भी जानें –
संविधान के अनुच्छेद 24 में कारखानों आदि में बालक/बालिकाओं के नियोजन के प्रतिषेध का उल्लेख किया गया है, जिसके अनुसार ‘चौदह वर्ष से कम आयु के किसी बच्चे को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य परिसंकटमय नियोजन में नहीं लगाया जाएगा।’
JAC Class 9 Hindi बच्चे काम पर जा रहे हैं Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
कवि ने कविता में किस सामाजिक-आर्थिक विडंबना की ओर संकेत किया है ? कवि क्या चाहता है ?
उत्तर :
हमारे समाज में व्याप्त निर्धनता ही बच्चों को स्कूल जाने से रोकने की प्रमुख अवरोधक है। आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग के लोग अपने साथ छोटे-छोटे बच्चों को भी सहायता के लिए लगा लेते हैं। उनके द्वारा कमाए गए थोड़े से पैसे भी उनके जीवन का आधार बनने लगते हैं। वे उन्हें इसी लालच में पढ़ने के लिए स्कूल नहीं भेजते।
वे बच्चों को उचित दिशा नहीं दिलाते। जिन स्थानों पर छोटे-छोटे बच्चे काम करते हैं वहाँ के लोग भी कम पैसों से अधिक काम करवाने की स्वार्थ सिद्धि में आत्मिक प्रसन्नता प्राप्त कर बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित नहीं करते। कवि ने इसी सामाजिक-आर्थिक विडंबना की ओर संकेत करते हुए इसे भयानक माना है और चाहा कि बच्चे शिक्षा प्राप्त करें; खेलें कूदें और अपने बचपन से दूर न हों।
प्रश्न 2.
कवि ने किसे भयानक माना है और इस बात को किस रूप में प्रकट करना चाहता है ?
उत्तर :
कवि ने छोटे-छोटे बच्चों का पढ़ाई-लिखाई और खेल-कूद छोड़कर, परिवार की आर्थिक मजबूरी के कारण मेहनत-मज़दूरी के लिए जाना बहुत भयानक माना है। कवि बाल मज़दूरी की बात समाज के समक्ष एक विकराल प्रश्न के रूप में उपस्थित करना चाहता है। वह समाज से पूछना चाहता है कि छोटे बच्चों से इस प्रकार उनका बचपन क्यों छीन लिया गया है ?
प्रश्न 3.
कवि समाज से क्या जानना चाहता है ?
उत्तर :
कवि छोटे-छोटे बच्चों को काम पर जाते देखकर, समाज से यह जानना चाहता है कि इन बच्चों का बचपन कहाँ खो गया है। क्या इनकी गेंदें आकाश में खो गई हैं? क्या इनकी पुस्तकों को दीमकों ने खा लिया है? यदि नहीं, तो ये बच्चे अन्य बच्चों की तरह खेलते क्यों नहीं हैं, पढ़ते क्यों नहीं हैं? इन पर कैसी मजबूरी आ गई है जिसके कारण यह काम पर जाने लग गए हैं?
प्रश्न 4.
कवि के अनुसार दुनिया किसके बिना अधूरी है ? कैसे ?
उत्तर :
कवि के अनुसार दुनिया स्वच्छंद और स्वाभाविक बचपन के बिना अधूरी है। बच्चों का बचपन तभी खिल सकता है जब बच्चे खेल के मैदान और स्कूलों में विद्या – प्राप्ति के लिए दिखाई दें। इस दुनिया का अस्तित्व बच्चों की खिलखिलाहट, भोलेपन तथा स्वाभाविक जीवन से है। यदि बच्चों का बचपन ही उनके पास नहीं है, तो दुनिया बेजान है, अधूरी है।
प्रश्न 5.
‘हैं सभी चीजें हस्वमामूल’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
‘हैं सभी चीजें हस्वमामूल’ से अभिप्राय यह है कि छोटे बच्चों के लिए खेलों और मनोरंजन के लिए आवश्यक सभी सामग्रियाँ अभी भी वैसी हैं जैसी पहले थीं। उनमें कोई कमी नहीं हुई है। अभी भी उनके लिए विद्यालय है; मैदान है; घरों के आँगन हैं पर उनमें विवशता के मारे बच्चे नहीं हैं अर्थात् बच्चे वहाँ जाने की अपेक्षा काम पर जाने के लिए विवश हैं।
प्रश्न 6.
यदि आपके घर में ऐसा कोई बच्चा कार्य कर रहा है तो आप उसके लिए क्या करना चाहेंगे ?
उत्तर :
यदि हमारे घर ऐसा कोई बच्चा कार्य कर रहा है तो उसकी देखभाल भी अपने बच्चों के समान करेंगे। उसकी पढ़ाई के लिए प्रबंध करेंगे। उससे वही काम करवाए जाएँगे जो उसके उम्र के अनुसार सही होंगे। उसे खेलने-कूदने का उचित अवसर देंगे। उसके बचपन को पूरा ध्यान रखेंगे, जिससे वह अपना बचपन पूरी तरह जी सके और अपना व्यक्तित्व निखार सके।
प्रश्न 7.
‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ कविता का मूल भाव स्पष्ट करें।
उत्तर :
‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ कवि राजेश जोशी की रचना है। इसमें कवि ने समाज की सामाजिक-आर्थिक विडंबना की ओर संकेत किया है। आज के भौतिकवादी युग में मानव मानव से दूर तो हुआ ही है, पर साथ ही उसने बच्चों के बचपन को भी छीन लिया है। घर की आर्थिक स्थिति ने बच्चों को खेल-कूद और शिक्षा से दूर कर दिया है। सर्दियों के कोहरे में बच्चे स्कूल और खेलने का मैदान छोड़कर काम के लिए जा रहे हैं जो आज के समाज के लिए सबसे भयानक बात है।
बच्चों के खेल-खिलौने, पुस्तकें नष्ट हो गई हैं क्या ? तभी तो बच्चे काम के लिए जा रहे हैं। यदि वास्तव में ऐसा ही है तो दुनिया अधूरी हो जाएगी। दुनिया का अस्तित्व बच्चों के स्वाभाविक बचपन है। बच्चों का काम पर जाना बहुत भयानक बात है, इसे रोकना चाहिए। कवि कविता के माध्यम से दुनिया के सामने बाल मजदूरी के विकट विषय को रखना चाहता है तथा उनके लिए कुछ करने के लिए दूसरों को प्रेरित करना चाहता है।
सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
1. कोहरे से ढकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं
सुबह-सुबह
बच्चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह
काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे ?
शब्दार्थ : कोहरा – धुंध। विवरण- वर्णन, विस्तार। सवाल – प्रश्न।
प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘ बच्चे काम पर जा रहे हैं’ से लिया गया है, जिसके रचयिता श्री राजेश जोशी हैं। कवि को छोटे-छोटे बच्चों का खेल – कूद और पढ़ाई छोड़कर काम पर जाना बहुत बुरा लगता है।
व्याख्या : कवि कहता है कि सर्दियों में धुंध से ढकी सड़क पर सुबह-सुबह छोटे-छोटे बच्चे मेहनत-मज़दूरी करने जा रहे हैं। बच्चों का पढ़ाई-लिखाई और खेल – कूद को छोड़कर काम करने के लिए जाना हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है। इसे बढ़ा-चढ़ाकर लिखना और विवरण की तरह लिखना बहुत भयानक है। इसे इस प्रकार नहीं लिखा जाना चाहिए बल्कि इसे प्रश्न के रूप में लिखा जाना चाहिए कि बच्चे अपनी छोटी-सी आयु में काम करने के लिए क्यों जा रहे हैं ? भाव है कि उन्हें काम पर नहीं जाना चाहिए, बल्कि उन्हें भी अन्य बच्चों की तरह ही भोला-भाला जीवन जीना चाहिए।
अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) बच्चे किस समय कहाँ जा रहे हैं ?
(ख) कवि ने किसे भयानक माना है ?
(ग) कवि इस बात को किस रूप में प्रकट करना चाहता है ?
(घ) पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) बच्चे सर्दियों की सुबह-सवेरे धुंध में काम करने जा रहे हैं, ताकि वे अपना और अपनों का पेट भर सकें; घर का खर्च चला सकें।
(ख) कवि ने बच्चों के द्वारा विवशतावश पढ़ाई-लिखाई और खेल – कूद छोड़कर काम करने के लिए जाना बहुत भयानक माना है।
(ग) कवि इस बात को समाज के समक्ष प्रश्न के रूप में उपस्थित करना चाहता है और उससे पूछना चाहता है कि बच्चों से इस प्रकार उनका बचपन क्यों छीन लिया गया है ?
(घ) कवि को बच्चों के बचपन नष्ट होने और छोटी आयु में उन पर काम-काज का बोझ लादने से बहुत पीड़ा है। वह इसे भयानक मानता है। इससे बच्चे बचपन का अर्थ ही नहीं समझ पाएँगे। चित्रात्मकता के गुण से युक्त खड़ी बोली में रचित अवतरण में तत्सम और तद्भव शब्दावली का सहज प्रयोग किया गया है। अनुप्रास और प्रश्न अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग है। अभिधा शब्द – शक्ति और प्रसाद गुण विद्यमान है। अतुकांत छंद का प्रयोग है।
2. क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें
क्या दीमकों ने खा लिया है
सारी रंग-बिरंगी किताबों को
क्या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने
क्या किसी भूकंप में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें
क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन
खत्म हो गए हैं एकाएक
तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में ?
शब्दार्थ : अंतरिक्ष – आकाश। भूकंप – आकाश। भूकंप – भूचाल। मदरसों- विद्यालयों। एकाएक – अचानक।
प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ से अवतरित है जिसके रचयिता श्री राजेश जोशी हैं। अपने माता-पिता की सहायता करने के लिए बच्चे पढ़ाई-लिखाई और खेल – कूद छोड़कर नौकरी करने लगे हैं। उनका बचपन खो गया है। कवि ने इसीलिए समाज से प्रश्न किया है।
व्याख्या : कवि जानना चाहता है कि बच्चों की सारी गेंदें क्या आकाश में खो गई हैं? क्या उनकी रंग-बिरंगी पुस्तकों को दीमकों ने खा लिया है या उनके सारे खिलौने बड़े-बड़े काले पहाड़ों के नीचे दबकर नष्ट हो गए हैं ? बच्चे अब खेलते क्यों नहीं ? वे पढ़ते क्यों नहीं ? क्या उनके विद्या – प्राप्ति के स्थान अर्थात विद्यालय किसी भयंकर भूकंप के कारण ढह गए हैं ? क्या खेलने के लिए सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन अचानक ही समाप्त हो गए हैं ? यदि वास्तव में ऐसा ही है तो इस दुनिया में बाकी बचा ही क्या है ? यह दुनिया बच्चों के कारण ही है। यदि बच्चों का बचपन उनके पास नहीं तो दुनिया किसलिए है ? इसका कोई औचित्य शेष नहीं रहा।
अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) कवि की दृष्टि में बच्चों के लिए क्या करना आवश्यक है ?
(ख) बच्चों की प्रिय वस्तुओं के बारे में कवि क्या जानना चाहता है ?
(ग) एकाएक क्या नष्ट हो गया प्रतीत होता है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि की दृष्टि में बच्चों के लिए खेलना-कूदना और पढ़ना आवश्यक है।
(ख) कवि बच्चों की प्रिय वस्तुओं के बारे में जानना चाहता है कि वे सब कहाँ नष्ट हो गई हैं। बच्चों की गेंदें, रंग-बिरंगी पुस्तकें, खिलौने आदि कहाँ गए, जिनसे खेल – कूदकर बच्चे प्रसन्न होते थे, उनका बचपन उनके पास रहता था।
(ग) विद्यालयों की इमारतें, मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन एकाएक नष्ट हो गए प्रतीत होते हैं
(घ) कवि को बच्चों के बचपन नष्ट हो जाने पर गहरी पीड़ा है। वह जानना चाहता है कि उनके खेलने की सामग्री कहाँ गई। अतुकांत छंद का प्रयोग है। सामान्य बोल-चाल की शब्दावली का सहज प्रयोग किया गया है। उर्दू की शब्दावली का सहजता से प्रयोग सराहनीय है। प्रश्न अलंकार के प्रयोग ने कवि के विस्मय को जागृत किया है।
3. कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज्यादा यह
कि हैं सारी चीजें हस्बमामूल
पर दुनिया की हजारों सड़कों से गुजरते हुए
बच्चे, बहुत छोटे-छोटे बच्चे
काम पर जा रहे हैं।
शब्दार्थ : अगर – यदि। हस्बमामूल – चीजें, यथावत्, वस्तुएँ वैसी ही हैं जैसी होनी चाहिए।
प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ में संकलित कविता ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ से लिया गया है जिसके रचयिता श्री राजेश जोशी हैं। कवि को बच्चों का नौकरी पर जाना बहुत दुखदायी प्रतीत होता है क्योंकि उनका समय खेलने-कूदने और पढ़ने-लिखने का है न कि मेहनत-मज़दूरी करने का।
व्याख्या : कवि कहता है कि यदि बच्चों की गेंदें, रंग-बिरंगी पुस्तकें, खिलौने, विद्यालय, मैदान, बाग़-बगीचे और घरों के आँगन एकाएक समाप्त हो गए हैं तो यह बहुत भयानक है, क्योंकि इस कारण बच्चे खेलने और पढ़ने से वंचित हैं। उससे भयानक बात यह है कि ये सारी वस्तुएँ ज्यों की त्यों हैं। इनमें से कुछ भी नष्ट नहीं है, हुआ है पर दुनिया के हजारों छोटे-छोटे बच्चे काम पर जा रहे हैं। वे अपनी भूख मिटाने और अपने माता-पिता के बोझ को कम करने के लिए काम पर सड़कों से गुज़रते हुए जा रहे हैं। उनका बचपन तो न जाने कहाँ पीछे छूट गया है ? यह बहुत भयानक बात है।
अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) कवि की दृष्टि में अधिक भयानक क्या है ?
(ख) ‘हैं सभी चीजें हस्बमामूल’ का भावार्थ क्या है ?
(ग) छोटे-छोटे बच्चे कहाँ जा रहे हैं और क्यों ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
(क) कवि की दृष्टि में भयानक यह है कि छोटे-छोटे बच्चों की गेंदें, खिलौने, रंग-बिरंगी पुस्तकें आदि सब पहले की तरह हैं, पर उन सबको छोड़कर उन्हें काम करने के लिए जाना पड़ रहा है। वे असमय ही अपना बचपन खो बैठे हैं।
(ख) ‘ हैं सभी चीज़ें हस्बमामूल’ का भावार्थ है कि छोटे बच्चों के लिए खेलों और मनोरंजन के लिए आवश्यक सारी सामग्रियाँ अभी भी वैसी हैं जैसे पहले थीं। उनमें कोई कमी नहीं हुई है। अभी उनके लिए विद्यालय हैं; मैदान हैं; घरों के आँगन हैं पर उनमें विवशता के मारे बच्चे नहीं हैं।
(ग) छोटे-छोटे बच्चे काम करने के लिए जा रहे हैं, ताकि वे अपनी भूख मिटाने के लिए खाना प्राप्त कर सकें; अपने माता-पिता की सहायता कर सकें।
(घ) कवि ने छोटे बच्चों के द्वारा काम पर जाने पर दुख प्रकट किया है और माना है कि उन्हें खेल-कूद और पढ़ने-लिखने के कार्य में समय लगाना चाहिए। तद्भव शब्दावली के साथ विदेशी शब्दावली का प्रयोग किया है। अतुकांत छंद का प्रयोग हुआ है। पुनरुक्ति – प्रकाश का प्रयोग स्वाभाविक है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द-शक्ति ने काव्य को सरलता – सरसता प्रदान की है।
बच्चे काम पर जा रहे हैं Summary in Hindi
कवि-परिचय :
आधुनिक युग की पीड़ा और आपाधापी से उत्पन्न परेशानी को वाणी प्रदान करने में सक्षम कवि राजेश जोशी का जन्म सन् 1946 में मध्य प्रदेश के नरसिंहगढ़ जिले में हुआ था। अध्यापन कार्य के अलावा इन्होंने पत्रकारिता भी की। इन्होंने रूसी और जर्मन भाषाओं का भी ज्ञान प्राप्त किया था जिनका सदुपयोग इन्होंने साहित्यिक रचनाओं के सृजन में किया था।
श्री राजेश जोशी ने काव्य-लेखन के अतिरिक्त कहानियाँ, नाटक, लेख, टिप्पणियाँ भी लिखी हैं। इन्होंने कुछ नाट्य रूपांतर भी किए हैं तथा कुछ लघु फ़िल्मों के लिए पटकथाएँ भी लिखी हैं। इन्होंने संस्कृत में लिखित भर्तृहरि के काव्य की अनुरचना ‘भूमि का कल्पतरु यह भी’ नाम से की है। मायकोवस्की की कविता का अनुवाद ‘पतलून पहिना बादल’ नाम से किया है। इनके द्वारा भारतीय भाषाओं के साथ-साथ अंग्रेजी, रूसी और जर्मन भाषाओं में अनूदित साहित्य भी हिंदी साहित्य को दिया गया है।
श्री राजेश जोशी के प्रमुख काव्य संग्रह हैं – एक दिन बोलेंगे पेड़, मिट्टी का चेहरा, नेपथ्य में हँसी और दो पंक्तियों के बीच साहित्य अकादमी के द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। कवि की कविता में समाज-चित्रण पर विशेष बल दिया गया है। इसमें मानव के प्रति गहरी निष्ठा का भाव और जीवन के प्रति आस्था का स्वर विद्यमान है। मानवता की रक्षा के सद्प्रयास और निरंतर संघर्ष के पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा दी गई है। कवि को विश्व के नष्ट होने का खतरा जितना अधिक प्रतीत होता है, उतना ही अधिक वे जीवन की संभावनाओं की खोज के लिए बेचैन दिखाई देता है। कवि की भाषा में सहजता है, गति है, सरलता और सरसता है। उसमें स्थानीय बोली की पुट है। सीधे-सादे शब्दों में गहरे भावों को वहन करने की क्षमता विद्यमान है।
कविता का सार :
आज के भौतिकतावादी युग में मानव मानव से दूर तो हुआ ही है, पर साथ ही उसने बच्चों के बचपन को भी छीन लिया है। सामाजिक और आर्थिक विषमताओं ने बच्चों को खेल-कूद और शिक्षा से दूर कर दिया है। सर्दियों की कोहरे से भरी सड़क पर ‘बच्चे सुबह-सवेरे काम पर जा रहे हैं’ जो समय की सबसे भयानक बात है। कवि जानना चाहता है कि क्या बच्चों की खेलने की सारी गेंदें अंतरिक्ष में खो गई हैं या दीमकों ने उनकी रंग-बिरंगी किताबों को खा लिया है? क्या उनके सारे खिलौने नष्ट हो गए हैं? क्या सारे विद्यालय, बाग-बगीचे और घरों के आँगन अचानक समाप्त हो गए हैं? यदि बच्चों से उनके बचपन में ही काम लिया जाने लगा तो यह विश्व के लिए बहुत खतरनाक है।