Jharkhand Board JAC Class 12 History Important Questions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ Important Questions and Answers.
JAC Board Class 12 History Important Questions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ
बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)
1. ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों को पढ़ने वाला था –
(अ) जॉन मार्शल
(स) व्हीलर
(ब) कनिंघम
(द) प्रिंसेप
उत्तर:
(द) प्रिंसेप
2. बौद्ध और जैन धर्म के आरम्भिक ग्रन्थों में कितने महाजनपदों का उल्लेख मिलता है?
(अ) 8
(स) 16
(ब) 18
(द) 14
उत्तर:
(स) 16
3. अशोक के अधिकांश अभिलेख किस भाषा में हैं?
(अ) संस्कृत
(ब) पालि
(स) हिन्दी
(द) प्राकृत
उत्तर:
(द) प्राकृत
4. ‘अर्थशास्त्र’ का रचयिता कौन था?
(अ) बाणभट्ट
(ब) चाणक्य
(स) कल्हण
(द) मेगस्थनीज
उत्तर:
(ब) चाणक्य
5. ‘इण्डिका’ की रचना किसने की थी ?
(अ) चाणक्य
(ब) कर्टियस
(स) मेगस्थनीज
(द) प्लूटार्क
उत्तर:
(स) मेगस्थनीज
6. अशोक ने धम्म के प्रचार के लिए किस अधिकारी की नियुक्ति की ?
(अ) धर्माध्यक्ष
(ब) दानाध्यक्ष
(स) सैन्य महामात
(द) धर्म महामात
उत्तर:
(द) धर्म महामात
7. कौनसे शासक अपने नाम के आगे ‘देवपुत्र’ की उपाधि लगाते थे?
(अ) मौर्य शासक
(ब) शुंग शासक
(स) सातवाहन शासक
(द) कुषाण शासक
उत्तर:
(द) कुषाण शासक
8. ‘प्रयाग प्रशस्ति’ की रचना किसने की थी?
(अ) हरिषेण
(स) कालिदास
(ब) बाणभट्ट
(द) कल्हण
उत्तर:
(अ) हरिषेण
9. अभिलेखों के अध्ययन को कहते हैं –
(अ) मुखाकृति
(ब) पुरालिपि
(स) अभिलेखशास्त्र
(द) शिल्पशास्त्र
उत्तर:
(स) अभिलेखशास्त्र
10. निम्न में से सबसे महत्त्वपूर्ण जनपद था –
(अ) कुरु
(ब) मत्स्य
(स) गान्धार
(द) मगध
उत्तर:
(द) मगध
11. मगध महाजनपद की प्रारम्भिक राजधानी थी –
(अ) पटना
(ब) राजगाह
(स) संस्कृत
(द) हिन्दी
उत्तर:
(ब) राजगाह
12. मौर्य साम्राज्य का सबसे महत्त्वपूर्ण राजनीतिक केन्द्र
(अ) तक्षशिला
(ब) उज्जयिनी
(स) पाटलिपुत्र
(द) सुवर्णगिरि
उत्तर:
(स) पाटलिपुत्र
13. किस शासक को बीसवीं शताब्दी के राष्ट्रवादी नेताओं ने प्रेरणा का स्रोत माना है?
(अ) अशोक
(ब) कनिष्क
(स) समुद्रगुप्त
(द) चन्द्रगुप्त मौर्य
उत्तर:
(अ) अशोक
14. प्रयाग प्रशस्ति की रचना की –
(अ) कल्हण
(ब) हरिषेण
(स) अशोक
(द) विल्हण
उत्तर:
(ब) हरिषेण
15. आरम्भिक भारत का सबसे प्रसिद्ध विधिग्रन्थ है –
(अ) ऋग्वेद
(स) रामायण
(ब) मनुस्मृति
(द) महाभारत
उत्तर:
(ब) मनुस्मृति
16. छठी शताब्दी में सबसे पहले ढाले एवं प्रयोग किए गए चाँदी और ताँबे के सिक्के कहलाते हैं –
(अ) आहत
(स) सिक्का
(अ) मुहर
(द) रुपया
उत्तर:
(अ) आहत
17. सर्वप्रथम सोने के सिक्के किन शासकों ने जारी किए?
(अ) शक
(स) मौर्य
(ब) कुषाण
(द) गुप्त
उत्तर:
(ब) कुषाण
18. किस शासक के लिए देवानांपिय उपाधि का प्रयोग हुआ है?
(अ) समुद्रगुप्त
(स) अकबर
(ब) चन्द्रगुप्त
(द) अशोक
उत्तर:
(द) अशोक
19. जनपद शब्द का प्रयोग हमें किन दो भाषाओं में मिल जाता है?
(अ) पालि और प्राकृत
(ब) प्राकृत और पालि
(स) प्राकृत और संस्कृत
(द) पालि और संस्कृत
उत्तर:
(स) प्राकृत और संस्कृत
20. अजातशत्रु तथा अशोक जैसे शासकों के नाम किन अभिलेखों से प्राप्त हुए हैं?
(अ) प्राकृत अभिलेख
(ब) पालि अभिलेख
(स) संस्कृत अभिलेख
(द) तमिल अभिलेख
उत्तर:
(अ) प्राकृत अभिलेख
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।
1. …………. का अर्थ एक ऐसा भूखण्ड है जहाँ कोई जन अपना पाँव रखता है अथवा बस जाता है।
2. प्राचीनतम अभिलेख ………….. भाषा में लिखे जाते थे।
3. जहाँ सत्ता पुरुषों के एक समूह के हाथ में होती है …………… कहते हैं।
4. …………. आधुनिक बिहार के राजगीर का प्राकृत नाम है।
5. धम्म के प्रचार के लिए ……………. नामक विशेष अधिकारियों की नियुक्ति की गई।
6. सिलप्यादिकारम् ………….. भाषा का महाकाव्य है।
7. प्रयाग प्रशस्ति की रचना …………… राजकवि …………. ने की थी।
उत्तर:
1. जनपद
2. प्राकृत
3. ओलीगार्की, समूह शासन
4. राजगाह
5. धम्म महामात
6. तमिल
7. समुद्रगुप्त, हरिषेण।
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
साँची में कौनसी प्रसिद्ध पुरातात्विक इमारत स्थित है?
उत्तर:
साँची में अशोक द्वारा बनवाया गया बृहद् तथा प्रसिद्ध स्तूप स्थित है।
प्रश्न 2.
शासकों की प्रतिमा और नाम के सिक्के सर्वप्रथम किस राजवंश के राजाओं ने जारी किये थे?
उत्तर:
कुषाण राजवंश के राजाओं ने।
प्रश्न 3.
मौर्य शासकों की राजधानी पाटलिपुत्र का वर्तमान नाम क्या है?
उत्तर:
मौर्य शासकों की राजधानी पाटलिपुत्र का वर्तमान नाम पटना है।
प्रश्न 4.
भारत में सोने के सिक्के सबसे पहले कब और किस वंश के राजाओं ने जारी किए थे?
उत्तर:
प्रथम शताब्दी ईसवी में कुषाण राजाओं ने जारी किए थे।
प्रश्न 5.
लगभग दूसरी शताब्दी ई. में सुदर्शन सरोवर का जीर्णोद्धार किस शक राजा ने करवाया था?
उत्तर:
रुद्रदामन ने।
प्रश्न 6.
अभिलेख किसे कहते हैं?
उत्तर:
अभिलेख पत्थर, धातु या मिट्टी के बर्तन पर खुदे होते हैं।
प्रश्न 7.
अशोक के अधिकांश अभिलेखों और सिक्कों पर उसका क्या नाम लिखा है?
उत्तर:
अशोक के अधिकांश अभिलेखों और सिक्कों पर ‘पियदस्सी’ नाम लिखा है।
प्रश्न 8.
कलिंग पर विजय प्राप्त करने वाला मौर्य सम्राट् कौन था?
उत्तर:
सम्राट् अशोक।
प्रश्न 9.
छठी शताब्दी ई. पूर्व के चार महाजनपदों के नाम उनकी राजधानी सहित लिखिए।
उत्तर:
(1) अंग (चम्पा)
(2) मगध (राजगीर)
(3) काशी (वाराणसी)
(4) कोशल (श्रावस्ती)।
प्रश्न 10.
चौथी शताब्दी ई. पूर्व किसे मगध की राजधानी बनाया गया?
उत्तर:
चौथी शताब्दी ई. पूर्व में पाटलिपुत्र को मगध की राजधानी बनाई गयी।
प्रश्न 11.
मगध महाजनपद के सबसे शक्तिशाली होने के दो कारण बताइये।
उत्तर:
(1) खेती की अच्छी उपज होना
(2) लोहे की खदानों का उपलब्ध होना।
प्रश्न 12.
मौर्य साम्राज्य के इतिहास की जानकारी के लिए दो प्रमुख स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) कौटिल्य कृत ‘अर्थशास्त्र’
(2) मेगस्थनीज द्वारा लिखित ‘इण्डिका।
प्रश्न 13.
मौर्य साम्राज्य के पाँच प्रमुख राजनीतिक केन्द्रों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राजधानी पाटलिपुत्र तथा चार प्रान्तीय केन्द्र- तक्षशिला, उज्जयिनी, तोसलि, सुवर्णगिरि
प्रश्न 14.
सिल्लपादिकारम् क्या है?
उत्तर:
सिल्लपादिकारम् तमिल महाकाव्य है। प्रश्न 15. प्रयाग प्रशस्ति का ऐतिहासिक महत्त्व बताइये। उत्तर- प्रयाग प्रशस्ति से समुद्रगुप्त की विजयों, चारित्रिक विशेषताओं की जानकारी मिलती है।
प्रश्न 16.
मौर्य स्वम्राज्य का संस्थापक कौन था? उसने मौर्य साम्राज्य की स्थापना कब की ?
उत्तर:
(1) चन्द्रगुप्त मौर्य
(2) 321 ई. पूर्व
प्रश्न 17.
गुप्त साम्राज्य के इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोतों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
- साहित्य
- सिक्के
- अभिलेख
- हरिषेण द्वारा लिखित ‘प्रयाग प्रशस्ति’।
प्रश्न 18.
जातक ग्रन्थों का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
इनसे राजाओं और प्रजा के सम्बन्धों की जानकारी मिलती है।
प्रश्न 19.
‘मनुस्मृति’ के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
‘मनुस्मृति’ आरम्भिक भारत का सबसे प्रसिद्ध विधिग्रन्थ है।
प्रश्न 20.
प्रभावती गुप्त कौन थी?
उत्तर:
प्रभावती गुप्त चन्द्रगुप्त द्वितीय (375-415 ई.) की पुत्री थी।
प्रश्न 21.
जातक कथाएँ अथवा जातक कहानी क्या
उत्तर:
महात्मा बुद्ध के पूर्व जन्मों की कहानियों के संकलन को जातक कथाओं के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 22.
गुप्त वंश की किस शासिका ने भूमिदान किया था और क्यों?
उत्तर:
प्रभावती गुप्त ने भूमिदान किया था क्योंकि वह रानी थी।
प्रश्न 23.
‘हर्षचरित’ की रचना किसने की थी?
उत्तर:
बाणभट्ट ने।
प्रश्न 24.
‘ श्रेणी’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उत्पादकों और व्यापारियों के संघ’ श्रेणी’ कहलाते
प्रश्न 25.
सोने के सबसे भव्य सिक्के प्रचुर मात्रा में किन सम्राटों ने जारी किये?
उत्तर:
गुप्त सम्राटों ने।
प्रश्न 26.
‘अभिलेख शास्त्र’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
अभिलेखों के अध्ययन को ‘अभिलेख शास्त्र’ कहते हैं।
प्रश्न 27.
गण और संघ नामक राज्यों में कौन शासन करता था?
उत्तर:
लोगों का समूह।
प्रश्न 28.
महाजनपद के राजा का प्रमुख कार्य क्या
उत्तर:
किसानों, व्यापारियों तथा शिल्पकारों से कर तथा भेंट वसूल करना।
प्रश्न 29.
मगध राज्य के तीन शक्तिशाली राजाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
- बिम्बिसार
- अजातशत्रु
- महापद्मनन्द।
प्रश्न 30.
अशोक के प्राकृत के अधिकांश अभिलेख किस लिपि में लिखे गए थे?
उत्तर:
ब्राह्मी लिपि में।
प्रश्न 31.
‘तमिलकम’ में किन सरदारियों (राज्यों) का उदय हुआ?
उत्तर:
‘तमिलकम’ में चोल, चेर तथा पाण्ड्य सरदारियों का उदय हुआ।
प्रश्न 32.
दक्षिणी भारत के सरदारों तथा सरदारियों की जानकारी किससे मिलती है?
उत्तर:
प्राचीन तमिल संगम ग्रन्थों में संग्रहित कविताओं
प्रश्न 33.
‘देवपुत्र’ की उपाधि किन शासकों ने धारण की थी?
उत्तर:
कुषाण शासकों ने।
प्रश्न 34.
प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख किस नाम से प्रसिद्ध
उत्तर:
‘इलाहाबाद स्तम्भ अभिलेख’ के नाम से।
प्रश्न 35.
प्राचीन भारत में राजाओं और प्रजा के बीच रहने वाले तनावपूर्ण सम्बन्धों की जानकारी किससे मिली है?
उत्तर:
जातक कथाओं से।
प्रश्न 36.
अग्रहार’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
अग्रहार वह भू-भाग था, जो ब्राह्मणों को दान किया जाता था।
प्रश्न 37.
श्रेणी से क्या आशय है?
उत्तर:
उत्पादक एवं व्यापारियों के संघ को श्रेणी कहा जाता है।
प्रश्न 38.
दानात्मक अभिलेखों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
इनमें धार्मिक संस्थाओं को दिए दान का विवरण होता था।
प्रश्न 39.
इस युग में भारत से रोमन साम्राज्य को किन वस्तुओं का निर्यात किया जाता था ?
उत्तर:
कालीमिर्च जैसे मसालों, कपड़ों, जड़ी-बूटियों
प्रश्न 40.
‘पेरिप्लस ऑफ एभ्रियन सी’ नामक ग्रन्थ का रचयिता कौन था?
उत्तर:
एक यूनानी समुद्री यात्री
प्रश्न 41.
छठी शताब्दी ई. पूर्व में सबसे पहले किन सिक्कों का प्रयोग हुआ?
उत्तर:
चांदी और ताँबे के आहत सिक्कों का।
प्रश्न 42.
मुद्राशास्व’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
‘मुद्राशास्त्र’ सिक्कों का अध्ययन है।
प्रश्न 43.
पंजाब और हरियाणा में प्रथम शताब्दी ई. में किन कबाइली गणराज्यों ने सिक्के जारी किये?
उत्तर:
यौधेय गणराज्यों ने।
प्रश्न 44.
महाजनपद की दो प्रमुख विशेषताएँ क्या था?
उत्तर:
(1) अधिकांश महाजनपदों पर राजा का शासन होता था।
(2) प्रत्येक महाजनपद की एक राजधानी होती थी जो
प्रश्न 45.
अशोक के धम्म के कोई दो सिद्धान्त लिखिए।
उत्तर:
(1) बड़ों के प्रति आदर।
(2) संन्यासियों तथा ब्राह्मणों के प्रति उदारता।
प्रश्न 46.
अशोक के अभिलेखों की लिपियों को किस विद्वान ने पढ़ने में सफलता प्राप्त की और कब ?
उत्तर:
1838 ई. में जेम्स प्रिंसेप को अशोक के अभिलेखों की लिपियों को पढ़ने में सफलता मिली।
प्रश्न 47.
अशोक के अभिलेख किन भाषाओं में लिखे गए?
उत्तर:
अशोक के अधिकांश अभिलेख प्राकृत में हैं तथा पश्चिमोत्तर में मिले अभिलेख अरामेइक तथा यूनानी भाषा में हैं।
प्रश्न 48.
मौर्यवंश के इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
- कौटिल्यकृत ‘अर्थशास्त्र’
- मेगस्थनीज द्वारा रचित ‘इण्डिका’
- अशोककालीन अभिलेख
- जैन, बौद्ध और पौराणिक ग्रन्थ।
प्रश्न 49.
मेगस्थनीज ने सैनिक गतिविधियों के संचालन के लिए कितनी समितियों का उल्लेख किया है?
उत्तर:
मेगस्थनीज ने सैनिक गतिविधियों के संचालन के लिए एक समिति तथा 6 उपसमितियों का उल्लेख किया है।
प्रश्न 50.
बीसवीं सदी के राष्ट्रवादी नेताओं ने अशोक को प्रेरणा का स्रोत क्यों माना है?
उत्तर:
अन्य राजाओं की अपेक्षा अशोक एक बहुत शक्तिशाली, परिश्रमी, विनम्र, उदार एवं दानशील था।
प्रश्न 51.
सुदर्शन झील का निर्माण किसने करवाया था तथा किस शक राजा ने इसकी मरम्मत करवाई थी ?
उत्तर:
सुदर्शन झील का निर्माण मौर्यकाल में एक स्थानीय राज्यपाल ने करवाया था तथा शक राजा रुद्रदामन ने इसकी मरम्मत करवाई थी।
प्रश्न 52.
किस महिला शासिका द्वारा किया गया भूमिदान का उदाहरण विरला उदाहरण माना जाता है ?
उत्तर:
वाकाटक वंश की शासिका प्रभावती गुप्त द्वारा किया गया भूमिदान विरला उदाहरण माना जाता है।
प्रश्न 53.
शासकों द्वारा किए जाने वाले भूमिदान के दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) भूमिदान कृषि को नए क्षेत्रों में प्रोत्साहित करने की एक रणनीति थी।
(2) भूमिदान से दुर्बल होते राजनीतिक प्रभुत्व का संकेत मिलता है।
प्रश्न 54.
नगरों की दो प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) अधिकांश नगर महाजनपदों की राजधानियाँ
(2) प्राय: सभी नगर संचार मार्गों के किनारे बसे थे।
प्रश्न 55.
‘हर्षचरित’ के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
हर्षचरित कनौज के शासक हर्षवर्धन की जीवनी है। इसके लेखक बाणभट्ट थे, जो हर्षवर्धन के राजकवि थे।
प्रश्न 56.
आहत या पंचमार्क क्या है?
उत्तर:
6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में चाँदी के बने सिक्कों को आहत अथवा पंचमार्क कहा जाता है।
प्रश्न 57.
अशोक के ‘धम्म’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
अशोक ने अपनी प्रजा की उन्नति के लिए कुछ नैतिक नियमों के पालन पर बल दिया। इन्हें ‘धम्म’ कहते हैं।
प्रश्न 58.
जातक कथाओं के अनुसार राजा और प्रजा के बीच तनावपूर्ण सम्बन्धों के दो कारण लिखिए।
उत्तर:
(1) राजा अपनी प्रजा पर भारी कर लगाते थे।
(2) लुटेरों की लूटमार से लोगों में असन्तोष व्याप्त था।
प्रश्न 59.
गहपति कौन था?
उत्तर:
गहपति घर का मुखिया होता था और घर में रहने वाली स्वियों, बच्चों, नौकरों और दासों पर नियन्त्रण करता था।
प्रश्न 60.
आरम्भिक जैन और बौद्ध विद्वानों के अनुसार मगध के सबसे शक्तिशाली महाजनपद बनने के क्या कारण थे?
उत्तर:
मगध के शासक बिम्बिसार, अजातशत्रु, महापद्मनन्द अत्यन्त महत्त्वाकांक्षी थे तथा उनके मन्त्री उनकी नीतियाँ लागू करते थे।
प्रश्न 61.
ऐसे पाँच महाजनपदों के नाम लिखिए जिनके नाम जैन और बौद्ध ग्रन्थों में मिलते हैं।
उत्तर:
- वज्जि
- मगध
- कोशल
- कुरु
- पांचाल
प्रश्न 62.
गणराज्यों की दो विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
(1) गणराज्य में कई लोगों का समूह शासन करता था।
(2) इस समूह का प्रत्येक व्यक्ति राजा कहलाता था।
प्रश्न 63.
अशोक के धम्म के चार सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
- बड़ों के प्रति आदर
- संन्यासियों और ब्राह्मणों के प्रति उदारता
- सेवकों तथा दासों के साथ उदार व्यवहार
- दूसरों के धर्मों का आदर करना।
प्रश्न 64.
अभिलेखों में किनके क्रियाकलापों एवं उपलब्धियों का उल्लेख होता है?
उत्तर:
अभिलेखों में उन लोगों की उपलब्धियों, क्रियाकलापों एवं विचारों का उल्लेख होता है, जो उन्हें बनवाते हैं।
प्रश्न 65.
प्राचीन भारतीय इतिहास में छठी शताब्दी ई. पूर्व को एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तनकारी काल क्यों माना जाता है? दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
(1) इस काल में जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म का उदय हुआ।
(2) इस काल में 16 महाजनपदों का भी उदय हुआ।
प्रश्न 66.
दो लिपियों का जिक्र करें जिन्हें सम्राट अशोक के अभिलेखों में उपयोग किया गया है?
अथवा
अशोक के अभिलेख किन लिपियों में लिखे गए थे?
उत्तर:
अशोक के प्राकृत के अधिकांश अभिलेख ब्राह्मी लिपि में तथा पश्चिमोत्तर के कुछ अभिलेख खरोष्ठी लिपि में लिखे गए थे।
प्रश्न 67.
मौर्य साम्राज्य के अधिकारियों द्वारा किये जाने वाले दो कार्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) नदियों की देख-रेख करना
(2) भूमि मापन का काम करना।
प्रश्न 68.
मौर्य साम्राज्य क्यों महत्वपूर्ण था? दो बातों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) मौर्य साम्राज्य एक विशाल साम्राज्य था, जिसकी सम्भावना बड़ी चुनौतीपूर्ण थी।
(2) मौर्यकाल में वास्तुकला एवं मूर्तिकला का अत्यधिक विकास हुआ।
प्रश्न 69.
मौर्य साम्राज्य की दो त्रुटियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) मौर्य साम्राज्य केवल 150 वर्षों तक ही अस्तित्व में रहा।
(2) यह साम्राज्य उपमहाद्वीप के सभी क्षेत्रों में नहीं फैल पाया।
प्रश्न 70.
अर्थशास्त्र का रचयिता कौन था? इसका क्या ऐतिहासिक महत्त्व है?
उत्तर:
(1) कौटिल्य
(2) इसमें मौर्यकालीन सैनिक और प्रशासनिक संगठन तथा सामाजिक अवस्था के बारे में विस्तृत विवरण मिलते हैं।
प्रश्न 71.
यूनानी इतिहासकारों के अनुसार मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त के पास कितनी सेना थी?
उत्तर:
चन्द्रगुप्त मौर्य के पास 6 लाख पैदल सैनिक, 30 हजार घुड़सवार तथा 9 हजार हाथी थे।
प्रश्न 72.
दक्षिणी भारत में ‘सरदार’ कौन होते थे?
उत्तर:
सरदार एक शक्तिशाली व्यक्ति होता था, जिसका पद वंशानुगत भी हो सकता था और नहीं भी।
प्रश्न 73.
सरदार के दो कार्यों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) विशेष अनुष्ठान का संचालन करना
(2) युद्ध के समय सेना का नेतृत्व करना।
प्रश्न 74.
प्राचीन भारत में उपज बढ़ाने के तरीकों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
(1) हल का प्रचलन
(2) कुओं, तालाबों, नहरों के माध्यम से सिंचाई करना।
प्रश्न 75.
600 ई.पूर्व से 600 ई. के काल में ग्रामीण समाज में पाई जाने वाली विभिन्नताओं का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
इस युग में भूमिहीन खेतिहर मजदूर, किसान और बड़े-बड़े जमींदार अस्तित्व में थे।
प्रश्न 76.
इस युग में भूमिकर के सम्बन्ध में ब्राह्मणों को छोटे कौनसी सुविधाएँ प्राप्त थीं?
उत्तर:
(1) ब्राह्मणों से भूमिकर या अन्य कर नहीं वसूले जाते थे।
(2) ब्राह्मणों को स्थानीय लोगों से कर वसूलने का अधिकार था।
प्रश्न 77.
अशोक के अभिलेखों की क्या महत्ता है ?
उत्तर:
अशोक के अभिलेखों से अशोक की शासन- व्यवस्था उसके साम्राज्य विस्तार, धम्म प्रचार आदि कार्यों के बारे में जानकारी मिलती है।
प्रश्न 78.
‘राजगाह’ का शाब्दिक अर्थ बताइये।
उत्तर:
राजगाह’ का शाब्दिक अर्थ है ‘राजाओं का
प्रश्न 79.
जैन और बौद्ध ग्रन्थों में पाए जाने वाले महाजनपदों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- वज्जि
- मगध
- कोशल
- कुरु
- पांचाल
- गान्धार
- अवन्ति।
प्रश्न 80.
अभिलेखों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
अभिलेखों में उन लोगों की उपलब्धियाँ, क्रियाकलाप या विचार लिखे जाते हैं, जो उन्हें बनवाते हैं।
प्रश्न 81.
जैन एवं बौद्ध लेखकों के अनुसार मगध महाजनपद के प्रसिद्ध सम्राट कौन थे?
उत्तर:
जैन एवं बौद्ध लेखकों के अनुसार बिम्बिसार, अजातशत्रु तथा महापद्मनन्द मगध महाजनपद के प्रसिद्ध सम्राट थे।
प्रश्न 82.
मगध महाजनपद के सबसे शक्तिशाली होने के क्या कारण थे?
उत्तर:
- मगध क्षेत्र में खेती की उपज अच्छी थी
- यहाँ लोहे की अनेक खदानें थीं
- जंगली क्षेत्र में हाथी उपलब्ध थे।
प्रश्न 83.
सामान्यतः अशोक को अभिलेखों में किस नाम से सम्बोधित किया गया है?
उत्तर:
अधिकांशतः अशोक को अभिलेखों में देवनामप्रिय प्रियदर्शी अथवा पियदस्सी नाम से सम्बोधित किया गया है।
प्रश्न 84.
प्राकृत भाषा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्राकृत उन भाषाओं को कहा जाता था, जो जनसामान्य की भाषाएँ होती थीं।
प्रश्न 85.
अभिलेखों में किनका ब्यौरा होता है?
उत्तर:
अभिलेखों में राजाओं के क्रियाकलापों तथा महिलाओं और पुरुषों द्वारा धार्मिक संस्थाओं को दिए गए दान का ब्यौरा होता है।
प्रश्न 86.
अधिकांश महाजनपदों तथा ‘गण’ और ‘संघ’ नामक राज्यों में कौन शासन करता था?
उत्तर:
अधिकांश महाजनपदों में राजा तथा ‘गण’ और ‘संघ’ नामक राज्यों में लोगों का समूह शासन करता था।
प्रश्न 87.
मनुस्मृति क्या है? इसकी रचना कब की
उत्तर:
(1) मनुस्मृति प्रारम्भिक भारत का सबसे प्रसिद्ध विधि ग्रन्थ है
(2) इसकी रचना दूसरी शताब्दी ई. पूर्व और दूसरी शताब्दी ई. के बीच की गई।
प्रश्न 88.
छठी शताब्दी ई. पूर्व में पाटलिपुत्र और उज्जयिनी किन संचार मार्गों के किनारे बसे थे?
उत्तर:
पाटलिपुत्र नदी मार्ग के किनारे तथा उम्जयिनी भूतल मार्गों के किनारे बसे थे।
प्रश्न 89.
ओलीगार्की या समूह शासन से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
ओलीगार्की या समूह शासन उसे कहते हैं जहाँ सत्ता पुरुषों के एक समूह के हाथ में होती है।
प्रश्न 90.
कलिंग का आधुनिक नाम क्या है?
उत्तर:
उड़ीसा
प्रश्न 91.
अपने अधिकारियों और प्रजा के लिए प्राकृतिक पत्थरों और पॉलिश किए हुए स्तम्भों पर सन्देश लिखवाने वाले पहले सम्राट् कौन थे?
उत्तर:
अशोक वह पहले सम्राट् थे जिन्होंने अपने अधिकारियों और प्रजा के लिए प्राकृतिक पत्थरों और पॉलिश किए हुए स्तम्भों पर सन्देश लिखवाए।
प्रश्न 92.
चीनी शासक स्वयं को किस नाम से सम्बोधित करते थे?
उत्तर:
चीनी शासक स्वयं को स्वर्गपुत्र के नाम से सम्बोधित करते थे।
प्रश्न 93.
गुप्त शासकों का इतिहास किसकी सहायता से लिखा गया है?
उत्तर:
गुप्त शासकों का इतिहास साहित्य, सिक्कों और अभिलेखों की सहायता से लिखा गया है।
प्रश्न 94.
गंदविन्दु जातक नामक कहानी में क्या बताया गया है?
उत्तर:
गंदविन्दु जातक नामक एक कहानी में यह बताया गया है कि एक कुटिल राजा की प्रजा किस प्रकार दुःखी रहती है।
प्रश्न 95.
पालि भाषा में गहपति का प्रयोग किनके लिए किया जाता है?
उत्तर:
पालि भाषा में गहपति का प्रयोग छोटे किसानों और जमींदारों के लिए किया जाता है।
प्रश्न 96.
उत्तरी कृष्ण मार्जित पात्र से क्या अभिप्राय
उत्तर:
नगरों में मिले चमकदार कलई वाले मिट्टी के कटोरे, थालियाँ आदि उत्तरी कृष्ण मार्जित पात्र कहलाते हैं।
प्रश्न 97.
पियदस्सी शब्द से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पियदस्सी अर्थात् देखने में सुन्दर।
प्रश्न 98.
देवानांप्रिय शब्द का क्या आशय है?
उत्तर:’
देवानांप्रिय शब्द का आशय है, देवताओं का
प्रश्न 99.
अभिलेखशास्त्रियों ने पतिवेदक शब्द का अर्थ क्या बताया ?
उत्तर:
अभिलेखशास्त्रियों ने पतिवेदक शब्द का अर्थ संवाददाता बताया।
लघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अशोक द्वारा अपने अधिकारियों और प्रजा को दिए गए संदेशों को वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
अशोक ने अपने अधिकारियों और प्रजा को संदेश दिया कि वे बड़ों के प्रति आदर, संन्यासियों और ब्राह्मणों के प्रति उदारता, सेवकों और दासों के साथ उदार व्यवहार तथा दूसरे के धर्मों और परम्पराओं का आदर करें। वर्तमान समय में भी अशोक के संदेशों की प्रासंगिकता बनी हुई है।
प्रश्न 2.
“हड़प्पा सभ्यता के बाद डेढ़ हजार वर्षों के लम्बे अन्तराल में उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में कई प्रकार के विकास हुए।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(1) इस काल में सिन्धु नदी और इसकी उपनदियों के किनारे रहने वाले लोगों ने ऋग्वेद का लेखन- कार्य किया।
(2) उत्तर भारत, दक्कन पठार क्षेत्र और कर्नाटक आदि कई क्षेत्रों में कृषक बस्तियों का उदय हुआ।
(3) ईसा पूर्व पहली सहस्राब्दी के दौरान मध्य और दक्षिण भारत में शवों के अन्तिम संस्कार के नवीन तरीके अपनाए गए। इनमें महापाषाण नामक पत्थरों के बड़े-बड़े ढाँचे मिले हैं। कई स्थानों पर शवों के साथ लोहे से बने उपकरणों एवं हथियारों को भी दफनाया गया था।
प्रश्न 3.
ईसा पूर्व छठी शताब्दी से भारत में हुए नवीन परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
ईसा पूर्व छठी शताब्दी से भारत में हुए नवीन परिवर्तन- ई. पूर्व छठी शताब्दी से भारत में निम्नलिखित नवीन परिवर्तन हुए –
(1) इन परिवर्तनों में सबसे प्रमुख परिवर्तन आरम्भिक राज्यों, साम्राज्यों और रजवाड़ों का विकास है। इन राजनीतिक प्रक्रियाओं के लिए कुछ अन्य परिवर्तन जिम्मेदार थे। इनकी जानकारी कृषि उपज को संगठित करने के तरीके से होती है।
(2) इस युग में लगभग सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में नए नगरों का उदय हुआ।
प्रश्न 4.
जेम्स प्रिंसेप कौन था? उसके द्वारा किये |गए शोध कार्य का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जेम्स प्रिंसेप ईस्ट इण्डिया कम्पनी में एक अधिकारी के पद पर नियुक्त था। उसने 1838 ई. में ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों को पढ़ने में सफलता प्राप्त की। इन लिपियों का उपयोग सबसे आरम्भिक अभिलेखों और सिक्कों में किया गया है। प्रिंसेप को यह जानकारी हुई कि अभिलेखों और सिक्कों पर पियदस्सी अर्थात् सुन्दर मुखाकृति वाले राजा का नाम लिखा है। कुछ अभिलेखों पर राजा का नाम अशोक भी लिखा था।
प्रश्न 5.
“जेम्स प्रिंसेप के शोध कार्य से आरम्भिक भारत के राजनीतिक इतिहास के अध्ययन को एक नई दिशा मिली।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
(1) भारतीय तथा यूरोपीय विद्वानों ने उपमहाद्वीप पर शासन करने वाले प्रमुख राजवंशों की पुनर्रचना के लिए विभिन्न भाषाओं में लिखे अभिलेखों और ग्रन्थों का उपयोग किया। परिणामस्वरूप बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों तक उपमहाद्वीप के राजनीतिक इतिहास की एक सामान्य रूपरेखा तैयार हो गई।
(2) उसके पश्चात् विद्वानों को जानकारी हुई कि राजनीतिक परिवर्तनों और आर्थिक तथा सामाजिक विकासों के बीच सम्बन्ध तो थे, परन्तु सम्भवतः सीधे सम्बन्ध सदैव नहीं थे।
प्रश्न 6.
अभिलेख आज भी इतिहास की जानकारी के महत्त्वपूर्ण साधन हैं। स्पष्ट कीजिए।
अथवा
वर्तमान इतिहास लेखन में अभिलेखों की उपादेयता सिद्ध कीजिए।
अथवा
इतिहास लेखन में अभिलेखों का क्या महत्त्व है?
अथवा
अभिलेख किसे कहते हैं? उनका ऐतिहासिक महत्त्व बताइये।
उत्तर:
अभिलेख अभिलेख उन्हें कहते हैं, जो पत्थर, धातु या मिट्टी के बर्तन जैसी कठोर सतह पर खुदे होते हैं।
अभिलेखों का ऐतिहासिक महत्त्व –
(1) अभिलेखों में उन लोगों की उपलब्धियों, क्रियाकलापों तथा विचारों का उल्लेख मिलता है, जो उन्हें बनवाते हैं।
(2) इनमें राजाओं के क्रियाकलापों तथा महिलाओं और पुरुषों द्वारा धार्मिक संस्थाओं को दिए दान का विवरण होता है।
(3) अभिलेखों में इनके निर्माण की तिथि भी खुदी होती है।
प्रश्न 7.
जिन अभिलेखों पर तिथि खुदी हुई नहीं मिलती है, उनका काल निर्धारण किस प्रकार किया जाता था?
उत्तर:
जिन अभिलेखों पर तिथि खुदी हुई नहीं मिलती है, उनका काल निर्धारण आमतौर पर पुरालिपि अथवा लेखन शैली के आधार पर किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, लगभग 250 ई. पूर्व में अक्षर अ ‘प्र’ इस प्रकार लिखा जाता था और 500 ई. में बह भ इस प्रकार लिखा जाता था।
प्रश्न 8.
प्राचीनतम अभिलेख किन भाषाओं में लिखे जाते थे?
उत्तर:
प्राचीनतम अभिलेख प्राकृत भाषाओं में लिखे जाते थे। प्राकृत उन भाषाओं को कहा जाता था जो जनसामान्य की भाषाएँ होती थीं। प्राकृत भाषा में अजातशत्रु को ‘अजातसत्तु’ तथा अशोक को ‘असोक’ लिखा जाता है। कुछ अभिलेख तमिल, पालि और संस्कृत भाषाओं में भी मिलते हैं।
प्रश्न 9.
आरम्भिक भारतीय इतिहास में छठी शताब्दी ई. पूर्व को एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तनकारी काल क्यों माना जाता है?
उत्तर:
आरम्भिक भारतीय इतिहास में छठी शताब्दी ई. पूर्व को निम्न कारणों से एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तनकारी काल माना जाता है-
- इस काल को प्रायः आरम्भिक राज्यों, नगरों, लोहे के बढ़ते प्रयोग तथा सिक्कों के विकास के साथ जोड़ा जाता है।
- इस काल में बौद्ध धर्म, जैन धर्म सहित विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का विकास हुआ।
- इस काल में सोलह महाजनपदों का उदय हुआ।
प्रश्न 10.
‘जनपद’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
जनपद का अर्थ एक ऐसा भूखण्ड है, जहाँ कोई जन (लोग, कुल या जनजाति) अपना पाँव रखता है। अथवा बस जाता है। इस शब्द का प्रयोग प्राकृत व संस्कृत दोनों भाषाओं में मिलता है प्रारम्भ में इन जनों का कोई निश्चित स्थान नहीं होता था और अपनी आवश्यकतानुसार ये स्थान बदल लिया करते थे परन्तु शीघ्र ही वे एक निश्चित स्थान पर बस गए। भिन्न-भिन्न भौगोलिक क्षेत्र ‘जनों’ के बस जाने के कारण ‘जनपद’ कहलाने लगे।
प्रश्न 11.
बौद्धकालीन 16 महाजनपदों के नाम लिखिए।
अथवा
छठी शताब्दी ई. पूर्व के सोलह महाजनपदों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
छठी शताब्दी ई. पूर्व में भारत में अनेक महाजनपदों का उदय हुआ। बौद्ध और जैन धर्म के आरम्भिक ग्रन्थों में 16 महाजनपदों का उल्लेख मिलता है।
इनके नाम हैं –
- अंग
- मगध
- काशी
- कोशल
- वज्जि
- मल्ल
- चेदि
- वत्स
- कुरु
- पांचाल
- मत्स्य
- शूरसेन
- अश्मक
- अवन्ति
- कम्बोज तथा
- गान्धार।
प्रश्न 12.
मगध के शक्तिशाली महाजनपद के रूप में उदय के प्रमुख कारण लिखिए।
अथवा
मगध महाजनपद के सबसे शक्तिशाली बनने के क्या कारण थे?
थी।
उत्तर:
आधुनिक इतिहासकारों के अनुसार मगध महाजनपद के सबसे शक्तिशाली बनने के कारण –
- मगध क्षेत्र में खेती की उपज बहुत अच्छी होती
- मगध क्षेत्र में लोहे की खदानें भी सरलता से उपलब्ध थीं। अतः लोहे से उपकरण और हथियार बनाना आसान होता था।
- मगध के जंगलों में बड़ी संख्या में हाथी उपलब्ध थे। ये हाथी मगध राज्य की सेना के एक महत्त्वपूर्ण अंग थे।
- गंगा और इसकी उपनदियों से आवागमन सस्ता वसुलभ होता था।
- बिम्बिसार, अजातशत्रु की नीतियों मगध के विकास के लिए उत्तरदायी थीं।
प्रश्न 13.
आरम्भिक जैन एवं बौद्ध लेखकों के अनुसार मगध के सबसे शक्तिशाली महाजनपद बनने के क्या कारण थे?
उत्तर:
आरम्भिक जैन और बौद्ध लेखकों के अनुसार मगध के सबसे शक्तिशाली महाजनपद बनने के लिए मगध के पराक्रमी शासकों की नीतियाँ उत्तरदायी थीं। बिम्बिसार, अजातशत्रु, महापद्मनन्द आदि राजा अत्यन्त महत्त्वाकांक्षी एवं पराक्रमी शासक थे जिनके नेतृत्व में मगध राज्य का अत्यधिक विस्तार हुआ। इनके मन्त्री भी योग्य थे जो इनकी नीतियों को सफलतापूर्वक लागू करते थे।
प्रश्न 14.
महाजनपदों की शासन व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अधिकांश महाजनपदों पर राजा का शासन होता था, परन्तु ‘गण’ और ‘संघ’ नामक प्रसिद्ध राज्यों में कई लोगों का समूह शासन करता था। इस समूह का प्रत्येक व्यक्ति राजा कहलाता था। बन्जि संघ की ही भाँति कुछ राज्यों में भूमि सहित अनेक आर्थिक स्रोतों पर राजा गण सामूहिक नियन्त्रण रखते थे। प्रत्येक महाजनपद की एक राजधानी होती थी जो प्रायः किले से घेरी जाती थी।
प्रश्न 15.
मगध की प्रारम्भिक राजधानी राजगाह पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मगध की प्रारम्भिक राजधानी राजगाह (आधुनिक बिहार में स्थित राजगीर) थी। राजगाह का शाब्दिक अर्थ है—’राजाओं का घर’। पहाड़ियों के बीच बसा राजगाह एक किलेबन्द शहर था। बाद में चौथी शताब्दी ई. पूर्व में पाटलिपुत्र को राजधानी बनाया गया, जो अब पटना के नाम से जाना जाता है। यह गंगा के रास्ते आवागमन के मार्ग पर स्थित था।
प्रश्न 16.
अशोक कौन था?
उत्तर:
अशोक बिन्दुसार का पुत्र तथा चन्द्रगुप्त मौर्य का पौत्र था। वह आरम्भिक भारत का सर्वप्रसिद्ध सम्राट था। उसने कलिंग पर विजय प्राप्त की अशोक पहला सम्राट था, जिसने अपने अधिकारियों एवं प्रजा के लिए सन्देश प्राकृतिक पत्थरों और पालिश किए हुए स्तम्भों पर लिखवाये थे। उसने अपने अभिलेखों के माध्यम से ‘धम्म’ का प्रचार किया।
प्रश्न 17.
अशोक के अभिलेख किन भाषाओं और लिपियों में लिखे गए थे?
उत्तर:
अशोक के अभिलेखों की भाषाएँ एवं लिपियाँ – अशोक के अधिकांश अभिलेख प्राकृत भाषा में लिखे गए हैं जबकि पश्चिमोत्तर से प्राप्त अभिलेख अरामेइक और यूनानी भाषा में हैं। प्राकृत के अधिकांश अभिलेख ब्राह्मी लिपि में लिखे गए थे परन्तु पश्चिमोत्तर के कुछ अभिलेख खरोष्ठी लिपि में लिखे गए थे। अरामेइक और यूनानी लिपियों का प्रयोग अफगानिस्तान में मिले अभिलेखों में किया गया था।
प्रश्न 18.
मेगस्थनीज के द्वारा चन्द्रगुप्त मौर्य के सैनिक विभाग के प्रबन्ध के बारे में क्या विवरण दिया गया है?
उत्तर:
मेगस्थनीज ने लिखा है कि सैनिक विभाग का प्रबन्ध करने के लिए एक समिति तथा छः उपसमितियाँ बनी हुई थीं। पहली उपसमिति का काम नौसेना का संचालन करना था। दूसरी उपसमिति यातायात तथा खानपान का संचालन करती थी। तीसरी उपसमिति का काम पैदल सैनिकों का संचालन करना था। चौथी उपसमिति अश्वारोही सेना का संचालन करती थी तथा पाँचवीं उपसमिति का काम रथारोहियों का संचालन करना था। छठी उपसमिति हाथियों का संचालन करती थी।
प्रश्न 19.
मेगस्थनीज के अनुसार सैनिक गतिविधियों के संचालन के लिए नियुक्त दूसरी उपसमिति क्या कार्य करती थी?
उत्तर:
मेगस्थीज के अनुसार दूसरी उपसमिति विभिन्न प्रकार के कार्य करती थी, जैसे उपकरणों के ढोने के लिए बैलगाड़ियों की व्यवस्था करना, सैनिकों के लिए भोजन और जानवरों के लिए चारे की व्यवस्था करना तथा सैनिकों की देखभाल के लिए सेवकों और शिल्पकारों को नियुक्त करना आदि।
प्रश्न 20.
मेगस्थनीज के अनुसार मौर्य साम्राज्य के प्रमुख अधिकारियों के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) कुछ अधिकारी नदियों की देख-रेख तथा भूमि मापन का कार्य करते थे।
(2) कुछ अधिकारी प्रमुख नहरों से उपनहरों के लिए छोड़े जाने वाले पानी के मुखद्वार का निरीक्षण करते थे ताकि प्रत्येक स्थान पर पानी की समान पूर्ति हो सके। यही अधिकारी शिकारियों का संचालन करते थे।
(3) ये अधिकारी करवसूली करते थे और भूमि से जुड़े सभी व्यवसायों का निरीक्षण करते थे। इसके अतिरिक्त वे लकड़हारों, बढ़ई, लोहारों तथा खननकर्ताओं का भी निरीक्षण करते थे।
प्रश्न 21.
मौर्य साम्राज्य के प्रमुख राजनीतिक केन्द्रों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मौर्य साम्राज्य के पाँच प्रमुख राजनीतिक केन्द्र थे –
- पाटलिपुत्र- यह मौर्य साम्राज्य की राजधानी थी
- तक्षशिला यह प्रान्तीय केन्द्र था।
- उज्जयिनी – यह भी प्रान्तीय केन्द्र था।
- तोसलि – यह भी एक प्रान्तीय केन्द्र था।
- स्वर्णगिरि – यह भी एक प्रान्तीय केन्द्र था।
मगध साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र तथा उसके आस-पास के प्रान्तीय केन्द्रों पर सबसे सुदृढ़ प्रशासनिक नियन्त्रण था।
प्रश्न 22.
मौर्य साम्राज्य के महत्त्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
(1) मौर्य काल में भवन निर्माण कला, मूर्तिकला आदि की महत्त्वपूर्ण उन्नति हुई।
(2) मौर्य सम्राटों के अभिलेखों पर लिखे संदेश अन्य शासकों के अभिलेखों से भिन्न हैं।
(3) अन्य शासकों की अपेक्षा अशोक एक बहुत शक्तिशाली, प्रभावशाली और परिश्रमी शासक थे। वह बाद के राजाओं की अपेक्षा विनीत और नम्र भी थे।
(4) अशोक की उपलब्धियों से प्रभावित होकर बीसवीं सदी के राष्ट्रवादी नेताओं ने अशोक को प्रेरणा का स्रोत माना।
प्रश्न 23.
मौर्य साम्राज्य की कमजोरियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
(1) मौर्य साम्राज्य केवल 150 वर्ष तक ही अस्तित्व में रहा। इसे उपमहाद्वीप के इस लम्बे इतिहास में बहुत बड़ा काल नहीं माना जा सकता।
(2) मौर्य साम्राज्य उपमहाद्वीप के सभी क्षेत्रों में नहीं फैल पाया था। इसके अतिरिक्त मौर्य साम्राज्य की सीमाओं के अन्तर्गत भी नियन्त्रण एक समान नहीं था। अतः दूसरी शताब्दी ई. पूर्व तक उपमहाद्वीप के अनेक भागों में नए- नए शासक और रजवाड़े स्थापित होने लगे।
प्रश्न 24.
अशोक ने अपने साम्राज्य को अखण्ड बनाए रखने के लिए क्या उपाय किये?
उत्तर:
अशोक ने अपने साम्राज्य को अखण्ड बनाए रखने के लिए ‘धम्म’ के प्रचार का सहारा लिया। अशोक के ‘धम्म’ के सिद्धान्त बड़े साधारण व्यावहारिक तथा सार्वभौमिक थे। उसने धम्म के माध्यम से अपनी प्रजा की लौकिक और पारलौकिक उन्नति का प्रयास किया। उसने धम्म के प्रचार के लिए ‘धर्ममहामात्र’ नामक विशेष अधिकारी नियुक्त किए।
प्रश्न 25.
सरदार और सरदारी का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सरदार एक शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्ति होता था जिसका पद वंशानुगत भी हो सकता था और नहीं भी। उसके समर्थक उसके वंश के लोग होते थे सरदार विशेष अनुष्ठान का संचालन करता था, युद्ध के समय सेना का नेतृत्व करता था तथा लोगों के विवादों को सुलझाने में मध्यस्थता की भूमिका निभाता था। वह अपने अधीन लोगों से भेंट लेता था और उसे अपने समर्थकों में बाँट दिया करता था। सरदारी में सामान्यतया कोई स्थायी सेना या अधिकारी नहीं होते थे।
प्रश्न 26.
दक्षिण के राज्यों और उनके शासकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपमहाद्वीप के दक्कन और उससे दक्षिण के क्षेत्र में स्थित तमिलकम (अर्थात् तमिलनाडु एवं आन्ध्रप्रदेश और केरल के कुछ भाग) में चोल, चेर और पाण्ड्य जैसी सरदारियों का उदय हुआ। ये राज्य बहुत ही. समृद्ध और स्थायी सिद्ध हुए कई सरदार और राजा लम्बी दूरी के व्यापार द्वारा राजस्व जुटाते थे। इनमें मध्य और पश्चिम भारत के क्षेत्रों पर शासन करने वाले सातवाहन और उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तर और पश्चिम में शासन करने वाले मध्य एशियाई मूल के शक शासक सम्मिलित थे।
प्रश्न 27.
प्राचीन भारतीय शासक देवी-देवताओं के साथ जुड़ने का प्रयास क्यों करते थे?
उत्तर:
प्राचीन भारतीय शासक उच्च स्थान प्राप्त करने के लिए देवी-देवताओं के साथ जुड़ने का प्रयास करते थे। कुषाण शासकों ने इस उपाय का सर्वश्रेष्ठ उद्धरण प्रस्तुत किया। कुषाण सम्राटों ने देवस्थानों पर अपनी विशालकाय मूर्तियाँ स्थापित कीं। वे इन मूर्तियों के माध्यम से स्वयं देवतुल्य प्रस्तुत करना चाहते थे। कुछ कुषाण शासकों ने ‘देवपुत्र’ की उपाधि धारण की।
प्रश्न 28.
‘प्रयाग प्रशस्ति’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
‘प्रयाग प्रशस्ति’ के रचयिता हरिषेण थे, जो गुप्त वंश के सम्राट समुद्रगुप्त के राजकवि थे ‘प्रयाग- प्रशस्ति’ संस्कृत में लिखी गई थी। ‘प्रयाग प्रशस्ति’ से हमें समुद्रगुप्त के जीवन, विजयों, व्यक्तिगत गुणों, तत्कालीन राजनीतिक दशा आदि के बारे में जानकारी मिलती है। ‘प्रयाग प्रशस्ति’ में समुद्रगुप्त की दिग्विजय का उल्लेख है। ‘प्रयाग प्रशस्ति’ में समुद्रगुप्त को परमात्मा पुरुष, उदारता की प्रतिमूर्ति, कुबेर, वरुण, इन्द्र और यम के तुल्य बताया गया है।
प्रश्न 29.
हरिषेण द्वारा ‘प्रयाग प्रशस्ति’ में समुद्रगुप्त की चारित्रिक विशेषताओं का किस प्रकार वर्णन किया गया है?
उत्तर:
प्रयाग प्रशस्ति’ में हरिषेण ने समुद्रगुप्त के लिए लिखा है कि “धरती पर उनका कोई प्रतिद्वन्द्वी नहीं था अनेक गुणों और शुभ कार्यों से सम्पन्न उन्होंने अपने पैर के तलवे से अन्य राजाओं के यश को मिटा दिया है। वे परमात्मा पुरुष हैं, साधु (भले) की समृद्धि और असाधु (बुरे) के विनाश के कारण हैं। वे करुणा से भरे हुए हैं। उनके मस्तिष्क की दीक्षा दीन-दुखियों विरहणियों और पीड़ितों के उद्धार के लिए की गई है। वे देवताओं में कुबेर ( धन-देव), वरुण (समुद्र-देव), इन्द्र (वर्षा के देवता) और यम (मृत्यु-देव)
के तुल्य हैं।”
प्रश्न 30.
शक- शासक रुद्रदामन के अभिलेख में सुदर्शन झील के बारे में क्या विवरण दिया गया है?
उत्तर:
शक- शासक रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख में सुदर्शन झील के बारे में वर्णन है कि जलद्वारों और तटबन्धों वाली इस झील का निर्माण मौर्यकाल में एक स्थानीय राज्यपाल द्वारा किया गया था। परन्तु एक भीषण तूफान के कारण इसके तटबन्ध टूट गए और सारा पानी बह गया। तत्कालीन शासक रुद्रदामन ने इस झील की मरम्मत अपने से करवाई थी और इसके लिए अपनी प्रजा से कर भी नहीं लिया था।
प्रश्न 31.
जनता में राजा की छवि के बारे में किस स्त्रोत से जानकारी मिलती है?
उत्तर:
जनता में राजा की छवि के बारे में जातकों एवं पंचतंत्र जैसे ग्रन्थों में वर्णित कथाओं से जानकारी मिलती है। इतिहासकारों ने पता लगाया है कि इनमें से अनेक कथाओं के स्रोत मौखिक किस्से-कहानियाँ हैं, जिन्हें बाद में लिखा गया होगा। इन जातकों से राजा के व्यवहार के कारण जनता की शोचनीय स्थिति तथा राजा और प्रजा के बीच तनावपूर्ण सम्बन्धों की जानकारी मिलती है।
प्रश्न 32.
‘गंदतिन्दु’ नामक जातक कथा से राजा और प्रजा के सम्बन्धों पर क्या प्रकाश पड़ता है?
उत्तर:
गंदविन्दु’ नामक जातक कथा से पता चलता है कि एक कुटिल राजा की प्रजा किस प्रकार से दुःखी रहती है। जब राजा अपनी पहचान बदलकर प्रजा के बीच में यह जानने के लिए गया कि लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं, तो सभी लोगों ने अपने दुःखों के लिए राजा की आलोचना की। उनकी शिकायत थी कि रात में डाकू लोग उन पर हमला करते हैं तथा दिन में कर इकट्ठा करने वाले अधिकारी उन्हें परेशान करते हैं।
प्रश्न 33.
जातक कथाओं के अनुसार राजा और प्रजा के बीच सम्बन्ध तनावपूर्ण क्यों रहते थे?
उत्तर:
जातक कथाओं से ज्ञात होता है कि राजा और प्रजा, विशेषकर ग्रामीण प्रजा के बीच सम्बन्ध तनावपूर्ण रहते थे। इसका प्रमुख कारण यह था कि शासक अपने राजकोष को भरने के लिए प्रजा से बड़े-बड़े करों की माँग करते थे, जिससे किसानों में घोर असन्तोष व्याप्त था। जातक कथाओं से ज्ञात होता है कि राजा के अत्याचारों से बचने के लिए किसान लोग अपने घर छोड़कर जंगल की ओर भाग जाते थे। इस प्रकार राजा और ग्रामीण प्रजा के बीच तनाव बना रहता था।
प्रश्न 34.
छठी शताब्दी ई. पूर्व में उपज बढ़ाने के तरीकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) भारी वर्षा होने वाले क्षेत्रों में लोहे के फाल वाले हलों के माध्यम से उर्वर भूमि की जुताई की जाती थी। कुछ क्षेत्रों में खेती के लिए कुदाल का उपयोग किया जाता था।
(2) गंगा की घाटी में धान की रोपाई किए जाने से उपज में भारी वृद्धि होने लगी।
(3) उपज बढ़ने के लिए कुओं, तालाबों तथा नहरों के माध्यम से सिंचाई की जाती थी राजाओं द्वारा कुआँ, तालाबों तथा नहरों का निर्माण करवाया जाता था।
प्रश्न 35.
ग्रामीण समाज में पाई जाने वाली विभिन्नताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बौद्ध ग्रन्थों से पता चलता है कि भारत में खेती से जुड़े लोगों में भेद बढ़ता जा रहा था बौद्ध कथाओं में भूमिहीन खेतिहर श्रमिकों, छोटे किसानों और बड़े-बड़े जमींदारों का उल्लेख मिलता है। बड़े-बड़े जमींदार और ग्राम प्रधान शक्तिशाली तथा प्रभावशाली माने जाते थे तथा वे किसानों पर नियन्त्रण रखते थे आरम्भिक तमिल संगम साहित्य में भी गाँवों में रहने वाले विभिन्न वर्गों के लोगों का उल्लेख है, जैसे कि वेल्लालर या बड़े जमींदार, हलवाहा या उल्चर और दास अणिमई।
प्रश्न 36.
मनुस्मृति के अनुसार सीमा सम्बन्धी विवादों के समाधान के लिए राजा को क्या सलाह दी गई है?
उत्तर:
मनुस्मृति में सीमा सम्बन्धी विवादों के समाधान के लिए राजा को निम्न सलाह दी गई है –
चूंकि सीमाओं की अनभिज्ञता के कारण विश्व में बार-बार विवाद पैदा होते हैं, इसलिए उसे सीमाओं की पहचान के लिए गुप्त निशान जमीन में गाड़ कर रखने चाहिए जैसे कि पत्थर, हड्डियाँ, गाय के बाल, भूसी, राख, खपटे, गाय के सूखे गोबर, ईंट, कोयला, कंकड़ और रेत। उसे सीमाओं पर इसी प्रकार के और तत्त्व भूमि में छुपाकर गाड़ने चाहिए जो समय के \
साथ नष्ट न हों।
प्रश्न 37.
‘हर्षचरित’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
हर्षचरित’ हर्षचरित’ संस्कृत में लिखी गई कनौज के शासक हर्षवर्धन की जीवनी है। इस ग्रन्थ की रचना हर्षवर्धन के राजकवि बाणभट्ट ने की थी। ‘हर्षचरित’ से हर्षवर्धन के जीवन, राज्यारोहण, उसकी विजयों, चारित्रिक विशेषताओं आदि की जानकारी मिलती है। इससे तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक अवस्थाओं तथा समाज के विभिन्न वर्गों तथा उनके व्यवसाय के बारे में भी पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है।
प्रश्न 38.
‘गहपति’ के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
पालि भाषा में गहपति का प्रयोग छोटे किसानों और जमींदारों के लिए किया जाता था। गहपति घर का मुखिया होता था तथा घर में रहने वाली महिलाओं, बच्चों, नौकरों और दासों पर नियन्त्रण करता था। घर से जुड़े भूमि, जानवर या अन्य सभी वस्तुओं का वह मालिक होता था । कभी-कभी इस शब्द का प्रयोग नगरों में रहने वाले प्रतिष्ठित व्यक्तियों और व्यापारियों के लिए भी होता था।
प्रश्न 39.
बाणभट्ट ने अपने ग्रन्थ ‘हर्षचरित’ में विश्य क्षेत्र के जंगल के किनारे की एक बस्ती के जीवन का किस प्रकार चित्रण किया है?
उत्तर:
‘हर्षचरित’ के अनुसार, बस्ती के किनारे का अधिकांश क्षेत्र जंगल है और यहाँ धान की उपज वाली, खलिहान और उपजाऊ भूमि के हिस्सों को छोटे किसानों ने आपस में बाँट लिया है। यहाँ के अधिकांश लोग कुदाल का प्रयोग करते हैं क्योंकि घास से भरी भूमि में हल चलाना कठिन है। यहाँ लोग पेड़ की छाल के गट्ठर लेंकर चलते हैं। वे फूलों से भरे अनगिनत बोरे, अलसी और सन, भारी मात्रा में शहद, मोरपंख, मोम, लकड़ी और पास के बोझ लेकर आते जाते रहते हैं।
प्रश्न 40.
भूमिदान का उल्लेख किन में मिलता है? भूमिदान किन्हें दिया जाता था ?
उत्तर:
भूमिदान – ईसवी की आरम्भिक शताब्दियों से ही भूमिदान के प्रमाण मिलते हैं। कई भूमिदानों का उल्लेख अभिलेखों में मिलता है। इनमें से कुछ अभिलेख पत्थरों पर उत्कीर्ण थे परन्तु अधिकांश अभिलेख ताम्रपत्रों पर खुदे होते थे। इन्हें सम्भवतः उन लोगों को प्रमाण रूप में दिया जाता था जो भूमिदान लेते थे साधारणतया भूमिदान धार्मिक संस्थाओं और ब्राह्मणों को दिए गए थे।
प्रश्न 41.
अभिलेखों से प्रभावती गुप्त के भूमिदान किए जाने के बारे में क्या जानकारी मिलती है?
उत्तर:
प्रभावती गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय (लगभग 375-415 ई.) की पुत्री थी संस्कृत धर्मशास्त्रों के अनुसार महिलाओं को भूमि जैसी सम्पत्ति पर स्वतन्त्र अधिकार नहीं था। परन्तु एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि प्रभावती गुप्त भूमि की स्वामिनी थी और उसने भूमिदान भी किया था। इसका एक कारण यह हो सकता है कि चूँकि वह एक रानी थी और इसीलिए उनका यह उदाहरण एक विरला ही रहा हो।
प्रश्न 42.
प्रभावती गुप्त के अभिलेख से हमें ग्रामीण प्रजा के बारे में क्या जानकारी मिलती है?
उत्तर:
प्रभावती गुप्त के अभिलेख से हमें तत्कालीन ग्रामीण प्रजा के बारे में जानकारी मिलती है। उस समय गाँवों में ब्राह्मण, किसान तथा अन्य प्रकार के वर्गों के लोग रहते थे। ये लोग शासकों या उनके प्रतिनिधियों को अनेक प्रकार की वस्तुएँ प्रदान करते थे। अभिलेखों के अनुसार इन लोगों को गाँव के नए प्रधान की आज्ञाओं का पालन करना पड़ता था। ये लोग अपने भुगतान उसी को ही देते थे।
प्रश्न 43.
भूमिदान के प्रभावों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
- कुछ इतिहासकारों के अनुसार भूमिदान शासक वंश द्वारा कृषि को नये क्षेत्रों में प्रोत्साहित करने की एक रणनीति थी।
- जब राजा का शासन सामन्तों पर कमजोर होने लगा, तो उन्होंने भूमिदान के माध्यम से अपने समर्थकों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया।
- राजा स्वयं को उत्कृष्ट स्तर के मानव के रूप में प्रदर्शित करना चाहते थे।
- भूमिदान के प्रचलन से राज्य तथा किसानों के बीच सम्बन्ध की झांकी मिलती है।
प्रश्न 44.
अपने अभिलेख में दंगुन गाँव के दान में प्रभावती गुप्त द्वारा दी गई रियायतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अपने अभिलेख में प्रभावती गुप्त ने निम्नलिखित रियायतों की घोषणा की। इस गाँव में पुलिस या सैनिक प्रवेश नहीं करेंगे। दौरे पर आने वाले शासकीय अधिकारियों को यह गाँव पास देने और आसन में प्रयुक्त होने वाले जानवरों की खाल और कोयला देने के दायित्व से मुक्त है। साथ ही वे मदिरा खरीदने और नमक हेतु खुदाई करने के राजसी अधिकार को कार्यान्वित किए जाने से मुक्त हैं। इस गाँव को खनिज पदार्थ, खदिर वृक्ष के उत्पाद, फूल और दूध देने से भी छूट है।
प्रश्न 45.
छठी शताब्दी ई. पूर्व में उपमहाद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों में नये नगरों के विकास का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
लगभग छठी शताब्दी ई. पूर्व में उपमहाद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक नगरों का विकास हुआ। इनमें से अधिकांश नगर महाजनपदों की राजधानियाँ थीं। प्रायः सभी नगर संचार मार्गों के किनारे बसे थे। पाटलिपुत्र जैसे कुछ नगर नदी मार्ग के किनारे बसे थे। उज्जयिनी जैसे नगर भूतल मार्गों के किनारे बसे थे। इसके अतिरिक्त पुहार जैसे नगर समुद्र तट पर थे, जहाँ से समुद्री मार्ग प्रारम्भ हुए। मथुरा जैसे अनेक शहर व्यावसायिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक गतिविधियों के प्रमुख केन्द्र थे।
प्रश्न 46.
छठी शताब्दी ई. पूर्व में नगरों में रहने वाले सम्भ्रान्त वर्ग और शिल्पकार वर्गों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
किलेबन्द नगरों में उत्कृष्ट श्रेणी के मिट्टी के कटोरे और थालियाँ मिली हैं जिन पर चमकदार कलई चढ़ी है। सम्भवतः इनका उपयोग धनी लोग करते होंगे। इसके साथ ही सोने, चाँदी, हाथीदाँत, कांस्य आदि के बने आभूषण, उपकरण, हथियार भी मिले हैं इनका उपयोग भी धनी लोगों द्वारा किया जाता था। दानात्मक अभिलेखों में नगरों में रहने वाले बुनकर, लिपिक, बढ़ई, स्वर्णकार, व्यापारी, अधिकारी के बारे में विवरण मिलता है।
प्रश्न 47.
पाटलिपुत्र के इतिहास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
पाटलिपुत्र का विकास पाटलिग्राम नामक एक गाँव से हुआ। पाँचवीं सदी ई. पूर्व में मगध शासकों ने अपनी राजधानी राजगाह (राजगीर) से हटाकर इसे बस्ती में लाने का निर्णय किया और इसका नाम पाटलिपुत्र रखा। चौथी शताब्दी ई. पूर्व तक पाटलिपुत्र मौर्य साम्राज्य की राजधानी और एशिया के सबसे बड़े नगरों में से एक बन गया। कालान्तर में इसका महत्त्व कम हो गया। जब सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग यहाँ आया, तो उरो यह नगर खंडहर में परिवर्तित मिला।
प्रश्न 48.
छठी शताब्दी ई. पूर्व में उपमहाद्वीप और उसके बाहर के व्यापार मार्ग की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
छठी शताब्दी ई. पूर्व से ही उपमहाद्वीप में नदी मार्ग और भूमार्ग विकसित हो चुके थे। ये मार्ग कई दिशाओं में विकसित हो गए थे। मध्य एशिया और उससे भी आगे तक भू-मार्ग थे। समुद्र तट पर बने अनेक बन्दरगाहों से जल मार्ग अरब सागर से होते हुए, उत्तरी अफ्रीका, पश्चिम एशिया तक फैल गया था और बंगाल की खाड़ी से यह मार्ग चीन और दक्षिणपूर्व एशिया तक फैल गया था। राजाओं ने इन मार्गों पर नियन्त्रण करने का प्रयास किया।
प्रश्न 49.
छठी शताब्दी ई. पूर्व में उपमहाद्वीप में व्यापारी वर्ग तथा आयात-निर्यात पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
व्यापारी वर्ग-व्यापारिक मार्गों पर चलने वाले व्यापारियों में पैदल फेरी लगाने वाले व्यापारी तथा बैलगाड़ी और घोड़े खच्चरों के दल के साथ चलने वाले व्यापारी थे। साथ ही समुद्री मार्ग से भी लोग यात्रा करते थे। आयात-निर्यात- नमक, अनाज, कपड़ा, धातु और उससे बनी वस्तुएँ, पत्थर, लकड़ी, जड़ी-बूटी आदि वस्तुएँ एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाई जाती थीं भारत से कालीमिर्च जैसे मसालों, कपड़ों तथा जड़ी-बूटियों का निर्यात रोमन साम्राज्य को किया जाता था।
प्रश्न 50.
‘पेरिप्लस ऑफ एरीशियन सी’ नामक ग्रन्थ में एक यूनानी समुद्री यात्री ने मालाबार तट ( आधुनिक केरल) पर होने वाले आयात-निर्यात का क्या विवरण दिया है?
उत्तर:
यूनानी समुद्री यात्री के अनुसार भारी मात्रा में कालीमिर्च और दालचीनी खरीदने के लिए बाजार वाले नगरों में विदेशी व्यापारी जहाज भेजते हैं। यहाँ भारी मात्रा में सिक्कों, पुखराज, सुरमा, मूँगे, कच्चे शीशे, तांबे, टिन |और सीसे का आयात किया जाता है। इन बाजारों के आस-पास भारी मात्रा में उत्पन्न कालीमिर्च का निर्यात किया जाता है। इसके अतिरिक्त उच्च कोटि के मोतियों, हाथीदाँत, रेशमी वस्त्र, विभिन्न प्रकार के पारदर्शी पत्थरों, हीरों और काले नग तथा कछुए की खोपड़ी का आयात
होता है।
प्रश्न 51.
सिक्कों के प्रचलन से व्यापार और वाणिज्य सम्बन्धी गतिविधियों पर क्या प्रभाव पड़े ?
उत्तर:
- व्यापार में विनिमय कुछ सीमा तक आसान हो गया।
- बहुमूल्य वस्तु तथा भारी माश में अन्य वस्तुओं का विनिमय किया जाता था।
- दक्षिण भारत में अनेक रोमन सिक्कों के प्राप्त होने से पता चलता है कि दक्षिण भारत के रोमन साम्राज्य से व्यापारिक सम्बन्ध थे।
- गुप्तकाल में सिक्कों के माध्यम से व्यापार- विनिमय करने में आसानी होती थी जिससे राजाओं को भी लाभ होता था।
- यौधेय गणराज्यों ने भी सिक्के चलाए।
प्रश्न 52.
छठी शताब्दी ई. से सोने के सिक्के कम संख्या में मिलने से किन तथ्यों के बारे में जानकारी मिलती है?
उत्तर:
कुछ इतिहासकारों का मत है कि –
- इस काल में कुछ आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया
- रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् दूरवर्ती व्यापार में कमी आई जिससे उन राज्यों, समुदायों और क्षेत्रों की सम्पन्नता पर प्रभाव पड़ा, जिन्हें दूरवर्ती व्यापार से लाभ मिलता था।
- इस काल में नए नगरों और व्यापार के नये तन्त्रों का उदय होने लगा था।
- सिक्के इसलिए कम मिलते हैं क्योंकि वे प्रचलन में थे और उनका किसी ने भी संग्रह करके नहीं रखा था।
प्रश्न 53.
अशोककालीन ब्राह्मी लिपि का अर्थ किस प्रकार निकाला गया?
उत्तर:
ब्राह्मी लिपि का प्रयोग अशोक के अधिकांश अभिलेखों में किया गया है। अठारहवीं शताब्दी से यूरोपीय विद्वानों ने भारतीय विद्वानों की सहायता से आधुनिक बंगाली और देवनागरी लिपि में कई पाण्डुलिपियों का अध्ययन आरम्भ किया और उनके अक्षरों की प्राचीन अक्षरों के नमूनों से तुलना शुरू की। विद्वानों ने यह अनुमान लगाया कि से संस्कृत में लिखे हैं, जबकि प्राचीनतम अभिलेख वास्तव में प्राकृत में थे जेम्स प्रिंसेप को अशोककालीन ब्राह्मी लिपि का 1838 ई. में अर्थ निकालने में सफलता मिली।
प्रश्न 54.
विद्वानों द्वारा खरोष्ठी लिपि को कैसे पढ़ा गया?
उत्तर:
पश्चिमोत्तर के अभिलेखों में खरोष्ठी लिपि का प्रयोग किया गया है। इस क्षेत्र में शासन करने वाले हिन्द- यूनानी राजाओं (लगभग द्वितीय- प्रथम शताब्दी ई. पूर्व) द्वारा बनवाए गए सिक्कों में राजाओं के नाम यूनानी और खरोष्ठी में लिखे गए हैं। यूनानी भाषा पढ़ने वाले यूरोपीय विद्वानों ने अक्षरों का मेल किया। चूँकि जेम्स प्रिंसेप ने खरोष्ठी में लिखे अभिलेखों की भाषा की पहचान प्राकृत के रूप में की थी, इसलिए लम्बे अभिलेखों को पढ़ना आसान हो गया।
प्रश्न 55.
अपने अभिलेख में अशोक ने पतिवेदकों को क्या आदेश दिए हैं?
उत्तर:
अपने अभिलेख में अशोक यह कहते हैं, “अतीत में समस्याओं को निपटाने और नियमित रूप से सूचना एकत्र करने की व्यवस्थाएँ नहीं थीं। परन्तु मैंने निम्नलिखित व्यवस्था की है लोगों के समाचार हम तक ‘पतिवेदक’ (संवाददाता) सदैव पहुँचायेंगे। चाहे मैं कहीं भी हूँ, खाना खा रहा हूँ, अन्तःपुर में हूँ, विश्राम कक्ष में हूँ, गोशाला में हूँ, या फिर पालकी में मुझे ले जाया जा रहा हो अथवा वाटिका में हूँ। मैं लोगों के मसलों का निराकरण हर स्थल पर करूँगा।”
प्रश्न 56.
मौर्यकालीन इतिहास के प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिए।
अथवा
मौर्य साम्राज्य के इतिहास का पुनर्निर्माण करने में इतिहासकारों द्वारा प्रयुक्त विभिन्न साधनों का विवेचन कीजिये।
उत्तर:
- अशोक के अभिलेखों से अशोक के शासन, उसके धम्म आदि के बारे में जानकारी मिलती है।
- कौटिल्यकृत ‘अर्थशास्त्र’ से मौयों की शासन- व्यवस्था तथा मौर्यकालीन समाज पर प्रकाश पड़ता है।
- मेगस्थनीज की पुस्तक ‘इण्डिका’ से चन्द्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था आदि के बारे में जानकारी मिलती है।
- जैन, बौद्ध पौराणिक ग्रन्थों और मूर्तियों, स्तम्भों आदि से भी मौर्यकालीन इतिहास पर प्रकाश पड़ता है।
प्रश्न 57.
कलिंग युद्ध के परिणामों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
- इस युद्ध में लगभग एक लाख सैनिक मारे गए, 11⁄2 लाख बन्दी बनाए गए और इससे भी ज्यादा लोग मौत के मुँह में चले गए।
- इस युद्ध के बाद अशोक ने साम्राज्यवादी नीति का परित्याग कर दिया।
- अब अशोक ने धम्म का प्रचार-प्रसार करना शुरू कर दिया।
- कलिंग युद्ध के बाद अशोक बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया।
- इस युद्ध में हुए भारी नर संहार से अशोक को अत्यधिक पश्चाताप हुआ।
प्रश्न 58.
गुप्त शासकों का इतिहास लिखने में सहायक स्त्रोतों का वर्णन कीजिये।
अथवा
गुप्त वंश के इतिहास के प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
- पुराणों, स्मृतियों आदि से गुप्त वंश के इतिहास पर काफी प्रभाव पड़ता है।
- विभिन्न साहित्यिक रचनाओं से गुप्तकालीन शासन पद्धति, सामाजिक रीति-रिवाजों, राजनीतिक अवस्था आदि के बारे में जानकारी मिलती है।
- ‘प्रयाग प्रशस्ति’ से समुद्रगुप्त की विजयों, जीवन- चरित्र के बारे में जानकारी मिलती है।
- गुप्तकालीन सिक्कों से गुप्त शासकों के धर्म, साम्राज्य की सीमाओं के बारे में जानकारी मिलती है।
प्रश्न 59.
समुद्रगुप्त के चरित्र का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
- समुद्रगुप्त एक वीर योद्धा, कुशल सेनापति तथा महान विजेता था ।
- ‘प्रयाग प्रशस्ति’ के अनुसार समुद्रगुप्त परमात्मा पुरुष हैं। वह साधु की समृद्धि और असाधु के विनाश के कारण हैं। ये उदारता की प्रतिमूर्ति हैं। वे देवताओं में कुबेर, वरुण, इन्द्र और यम के तुल्य हैं।
- समुद्रगुप्त योग्य शासक भी थे।
- वह उच्च कोटि के विद्वान तथा साहित्य एवं कला के संरक्षक थे।
प्रश्न 60.
गुप्तकालीन सिक्कों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
गुप्त सम्राटों के अधिकांश सिक्के सोने के बने हैं। परन्तु कुछ गुप्त शासकों ने चाँदी तथा ताँबे के सिक्के भी चलाए। सोने के सबसे भव्य सिक्कों में से कुछ गुप्त – शासकों ने जारी किए। इन सिक्कों के माध्यम से दूर देशों से व्यापार विनिमय करने में आसानी होती थी जिससे शासकों को भी लाभ होता था। स्कन्दगुप्त ने भी सोने तथा चाँदी के सिक्के चलाए। उसके समय में सिक्कों की शुद्धता तथा सुन्दरता में कमी आ गई।
प्रश्न 61.
अशोक के ‘धम्म’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
अथवा
अशोक के धम्म के मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
अशोक के धम्म के सिद्धान्त बहुत ही साधारण और सार्वभौमिक थे। उसके अनुसार धम्म के माध्यम से लोगों का जीवन इस लोक में तथा परलोक में अच्छा रहेगा। उसके धम्म के सिद्धान्त थे –
- बड़ों के प्रति आदर
- संन्यासियों तथा ब्राह्मणों के प्रति उदारता
- सेवकों तथा दासों के प्रति उदार व्यवहार
- दूसरे के धर्मों और परम्पराओं का आदर
- क्रोध, उग्रता, निष्ठुरता, ईर्ष्या तथा अभिमान का परित्याग ।
प्रश्न 62.
मौर्य सम्राट् के अधिकारी क्या-क्या कार्य करते थे?
उत्तर:
मेगस्थनीज के द्वारा लिखे गए विवरण से हमें मौर्य सम्राट् के अधिकारियों के कार्यों का विवरण मिलता है –
साम्राज्य के महान् अधिकारियों में से कुछ नदियों की देख-रेख और भूमि मापन का कार्य करते हैं। कुछ प्रमुख नहरों से उपनहरों के लिए छोड़े जाने वाले पानी के मुखद्वार का निरीक्षण करते हैं ताकि प्रत्येक स्थान पर पानी की पूर्ति समान मात्रा में हो सके। यही अधिकारी शिकारियों का संचालन करते हैं और शिकारियों के कृत्यों के आधार पर उन्हें इनाम या दण्ड देते हैं। वे कर वसूली करते हैं और भूमि से जुड़े सभी व्यवसायों का निरीक्षण करते हैं. साथ ही लकड़हारों, बढ़ई, लोहारों और खननकर्त्ताओं का भी निरीक्षण करते हैं।
प्रश्न 63.
” भारतीय उपमहाद्वीप में ईसा पूर्व छठी शताब्दी से नए परिवर्तन के प्रमाण मिलते हैं।” कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय उपमहाद्वीप में ईसा पूर्व छठी शताब्दी से निम्नलिखित परिवर्तन हुए –
(1) भारतीय उपमहाद्वीप में आरम्भिक राज्यों, साम्राज्यों और रजवाड़ों का तीव्र गति से विकास हुआ है। इन राजनीतिक प्रक्रियाओं के पीछे कुछ अन्य परिवर्तन जिम्मेदार थे। इसके बारे में जानकारी का कृषि उपज को संगठित करने के तरीके से पता चलता है।
(2) इस काल में लगभग सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में नए नगरों का उदय हुआ। इतिहासकार इस प्रकार के विकास का आकलन करने के लिए अभिलेखों, ग्रन्थों, सिक्कों तथा चित्रों जैसे विभिन्न प्रकार के स्रोतों का अध्ययन करते हैं।
प्रश्न 64.
महाजनपदों का उद्भव कैसे हुआ? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
मध्य गंगा घाटी में 1000 ई.पू. के मध्य प्रथमतः लोहे के साक्ष्य प्राप्त होना प्रारम्भ हो जाते हैं। इस काल में लोहे के आरम्भ के फलस्वरूप उन्नत कृषि के औजार तथा हलों का प्रयोग आरम्भ हुआ। इस प्रयोग के कारण प्रचुर मात्रा में खेती की पैदावार हुई। कृषि में इस क्रान्ति के परिणामस्वरूप न केवल स्थायी जीवन को बढ़ावा मिला बल्कि राज्य को भरपूर राजस्व की भी प्राप्ति हुई। अधिक राजस्व की प्राप्ति के कारण राज्य को स्थायी सेना रखना सुगम हो गया। इस स्थायी सेना के माध्यम से राजाओं ने अपने क्षेत्र में कानून व्यवस्था स्थापित की, साथ ही साथ अपने समीपवर्ती क्षेत्रों को विजित करके अपने क्षेत्र तथा राज्य को विस्तृत बनाया। अंततः यही विस्तृत क्षेत्र सोलह महाजनपदों के रूप में स्थापित हुए।
प्रश्न 65.
मौर्य साम्राज्य की स्थापना किसने की? भारतीय इतिहास में मौर्य साम्राज्य की स्थापना का महत्त्व लिखिए।
उत्तर:
चन्द्रगुप्त मौर्य एक महान् विजेता था। चन्द्रगुप्त मौर्य ने 321 ई. पू. में मगध के शासक घनानंद को हराकर मगध को अपने अधिकार में कर लिया। मगध प्रदेश भारत में मौर्य साम्राज्य की स्थापना का आधार बना। मौर्य साम्राज्य की स्थापना के साथ ही भारत में छोटे-मोटे राज्य समाप्त हो गए और उनके स्थान पर एक विशालकाय साम्राज्य की स्थापना हुई। मौर्य साम्राज्य की स्थापना के पूर्व छोटे राज्यों का कोई क्रमबद्ध इतिहास नहीं था। मौर्य साम्राज्य की स्थापना के पश्चात् भारतीय इतिहास का क्रमबद्ध आधार बना मौर्य साम्राज्य के दौरान विदेश व्यापार में खूब उन्नति हुई, भारत का विदेशों से व्यापक सम्पर्क स्थापित हुआ, इसके साथ ही भारत से विदेशी सत्ता का अन्त भी हुआ।
प्रश्न 66.
यूनानी राजदूत मेगस्थनीज द्वारा वर्णित चन्द्रगुप्त मौर्य की सैन्य व्यवस्था पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
यूनानी राजदूत मेगस्थनीज ने चन्द्रगुप्त मौर्य की | सैन्य व्यवस्था का विधिवत वर्णन किया है। मेगस्थनीज के अनुसार सैन्य व्यवस्था के समुचित संचालन हेतु एक समिति और छह उपसमितियों का गठन किया गया था। इन समितियों को पृथक् पृथक् सैन्य गतिविधियों के संचालन की जिम्मेदारी दी गई थी। जैसे एक समिति नौसैनिक गतिविधियों का संचालन करती थी तो दूसरी समिति सैनिकों की भोजन व्यवस्था का संचालन करती थी तीसरी समिति पैदल सेना का संचालन, चौथी समिति अश्वारोहियों की सेना का, पाँचवीं समिति रथारोहियों की सेना तथा छठी समिति हाथियों की सेना का संचालन करती थी।
प्रश्न 67.
मौर्य साम्राज्य केवल 150 वर्षों तक ही चल सका क्यों?
उत्तर:
मौर्य साम्राज्य के केवल 150 वर्षों तक चलने के निम्न कारण हैं –
- अशोक की मृत्यु के पश्चात् मौर्य साम्राज्य की बागडोर निर्बल शासकों के हाथ में आई जो मौर्य साम्राज्य के विस्तृत क्षेत्रों को सम्भालने में सक्षम नहीं हुए।
- बौद्ध धर्म के अनुयायी होने के कारण अशोक को ब्राह्मण समाज के क्रोध का भाजन बनना पड़ा, वे मौर्य वंश के विरुद्ध हो गए।
- कलिंग विजय के पश्चात् अशोक पश्चात्ताप के भाव से भर उठे और उन्होंने अहिंसा की नीति अपनाई।
- साम्राज्य की सीमा के अन्तर्गत नियन्त्रण कमजोर होने के कारण अनेक राजे-रजवाड़ों ने अपनी स्वतन्त्र सत्ता घोषित कर दी।
इस प्रकार धीरे-धीरे मौर्य साम्राज्य का अन्त हो गया।
प्रश्न 68.
दैविक राजा से क्या तात्पर्य है? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
कुषाण शासक ने अपने राज्य को अक्षुण्ण बनाए रखने तथा प्रजा से पूजनीय तथा उच्च स्थिति प्राप्त करने के लिए अपने आपको ईश्वर के रूप में प्रस्तुत किया। इसका सर्वोत्तम प्रमाण उनकी मूर्तियों और सिक्कों से प्राप्त होता है। कई कुषाण शासक अपने नाम के आगे देवपुत्र की उपाधि लगाते थे। अनुमान लगाया जाता है कि उन्होंने चीनी शासकों का अनुसरण किया जो अपने नाम के आगे ‘स्वर्गपुत्र’ की उपाधि लगाते हैं। कुषाण और शकों ने इस बात का प्रचार किया कि राजा को शासन करने का दैवीय अधिकार परमात्मा से प्राप्त है और यह अधिकार वंशानुगत है।
प्रश्न 69
प्रशस्तियों से आप क्या समझते हैं? इलाहाबाद स्तम्भ अभिलेख किसके सम्बन्ध में है?
उत्तर:
प्रशस्तियों का तात्पर्य राजाओं के यशोगान से है। तत्कालीन साहित्यिक कवियों द्वारा अपने राजाओं की प्रशंसा में प्रशस्ति लिखी जाती थी। गुप्त साम्राज्य के सबसे शक्तिशाली सम्राट् समुद्रगुप्त के राजकवि हरिषेण ने प्रयाग प्रशस्ति के नाम से एक रचना की जिसे इलाहाबाद स्तम्भ अभिलेख कहा जाता है। यह प्रशस्ति संस्कृत में लिखी गई थी। हरिषेण ने सम्राट् समुद्रगुप्त की प्रशंसा में लिखा है-
“धरती पर उनका कोई प्रतिद्वन्द्वी नहीं है, अनेक गुणों और शुभ कार्यों से सम्पन्न उन्होंने अपने पैर के तलवे से अन्य राजाओं के यश को मिटा दिया है। वे परमात्मा पुरुष हैं, साधु की समृद्धि और असाधु के विनाश के कारण हैं। वे अजेय हैं। उनके कोमल हृदय को भक्ति और विनय से ही वश में किया जा सकता है। वे करुणा से भरे हुए हैं। वे अनेक सहस्र गायों के दाता हैं। उनके मस्तिष्क की दीक्षा दीन-दुखियों, बिरहिणियों और पीड़ितों के उद्धार के लिए की गई है। वे मानवता के लिए दिव्यमान उदारता की प्रतिमूर्ति हैं। वे देवताओं में कुबेर, वरुण, इन्द्र और यम के तुल्य हैं। ”
प्रश्न 70.
अभिलेखों से भूमिदान के सम्बन्ध में क्या विवरण प्राप्त होते हैं?
उत्तर:
भूमिदान से सम्बन्धित अभिलेख देश के कई हिस्सों से प्राप्त हुए हैं, कहीं-कहीं भूमि के छोटे टुकड़े तो कहीं बड़े-बड़े क्षेत्रों के दान का उल्लेख है। कुछ अभिलेख पत्थरों पर लिखे गए थे। अधिकांश अभिलेख ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण हैं। साधारणतया भूमिदान ब्राह्मणों और सामाजिक संस्थाओं को दिया जाता था। अभिलेख मुख्यतया संस्कृत में लिखे जाते थे, कुछ अभिलेख तमिल और तेलुगु भाषा में भी हैं। कुछ महिलाओं द्वारा भी भूमिदान के साक्ष्य प्राप्त हैं। वाकाटक वंश के राजा की रानी प्रभावती ने ब्राह्मण को भूमिदान किया था।
प्रश्न 71.
नए नगरों के विकास पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
उपमहाद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों में छठी शताब्दी ईसा पूर्व कई नगरों का विकास हुआ प्रमुख नगर महाजनपदों की राजधानियों के रूप में विकसित हुए। इन नगरों के विकास में प्राकृतिक रूप से संचार मार्गों की भूमिका रही है। पाटलिपुत्र गंगा नदी के किनारे, दक्षिण भारत में पुहार जैसे महाजनपद समुद्र तट के किनारे जहाँ समुद्री मार्ग प्रारम्भ हुए तथा मथुरा जैसे अनेक शहर व्यावसायिक गतिविधियों के प्रमुख केन्द्र थे। उज्जयिनी जैसे नगर भूतल परिवहन मार्गों से देश के सभी भागों से जुड़ा हुआ था। इसके अतिरिक्त तक्षशिला, कन्नौज, वाराणसी, श्रावस्ती, वैशाली, राजगीर, पैठन, सोपारा, विदिशा, धान्यकंटक, कोडूमनाल जैसे प्रमुख अन्य नए शहर विकसित हुए।
प्रश्न 72.
ब्राह्मी लिपि तथा खरोष्ठी लिपि का अध्ययन कैसे किया गया?
उत्तर:
ब्राह्मी लिपि भारत की सभी भाषा लिपियों की जनक है। यूरोपीय और भारतीय विद्वानों ने बंगाली और देवनागरी शब्दों को पढ़कर उनकी पुराने अभिलेखों के शब्दों से तुलना की आरम्भिक अभिलेखों का अध्ययन करने वाले विद्वानों ने कई बार यह अनुमान लगाया कि इन अभिलेखों की भाषा संस्कृत थी, वास्तव में अभिलेखों की भाषा प्राकृत थी।
1830 के दशक में जेम्स प्रिंसेप ने अथक प्रयासों से अशोककालीन ब्राह्मी लिपि को पढ़ने और उसका अर्थ निकालने में सफलता प्राप्त की। पश्चिमोत्तर भाग से प्राप्त होने वाली खरोष्ठी लिपि को पढ़ने की विधि अलग थी। यूनानी विद्वान् जो यूनानी लिपि को पढ़ने में समर्थ थे, ने खरोष्ठी भाषा के शब्दों को उसके
साथ मिलान करके पढ़ने में सफलता प्राप्त की।
प्रश्न 73.
गुजरात की सुदर्शन झील पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सुदर्शन झील एक कृत्रिम जलाशय था। हमें इस जलाशय के बारे में जानकारी लगभग दूसरी शताब्दी ई. के संस्कृत के एक पाषाण अभिलेख से होती है। इस अभिलेख में कहा गया है कि जलद्वारों और तटबन्धों वाली इस झील का निर्माण मौर्यकाल में एक स्थानीय राज्यपाल द्वारा किया गया था। लेकिन एक भीषण तूफान के कारण इसके तटबन्ध टूट गए और सारा पानी बह गया। बताया जाता है कि तत्कालीन शासक रुद्रदमन ने इस झील की मरम्मत अपने खर्चे से करवाई थी, और इसके लिए अपनी प्रजा से कर भी नहीं लिया था। इसी पाषाण खण्ड पर एक और अभिलेख है जिसमें कहा गया है कि गुप्त वंश के एक शासक ने एक बार फिर इस झील की मरम्मत करवाई थी।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
छठी शताब्दी ई. पूर्व के सोलह महाजनपदों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
छठी शताब्दी ई. पूर्व के सोलह महाजनपद
(1) जनपद-‘जनपद’ का अर्थ एक ऐसा भूखण्ड है, जहाँ कोई जन (लोग, कुल या जनजाति) अपना पाँव रखता है अथवा बस जाता है। बड़ा और शक्तिशाली जनपद ‘महाजनपद’ कहलाता था।
(2) सोलह महाजनपद-छठी शताब्दी ई. पूर्व में भारत में अनेक महाजनपदों का उदय हुआ। बौद्ध और जैन धर्म के आरम्भिक ग्रन्थों में सोलह महाजनपदों का उल्लेख मिलता है। यद्यपि महाजनपदों के नाम की सूची इन ग्रन्थों में एक समान नहीं है, परन्तु वज्जि, मगध, कोशल, कुरु, पांचाल, गान्धार और अवन्ति जैसे नाम प्रायः मिलते हैं। इससे ज्ञात होता है कि उक्त महाजनपद सबसे महत्त्वपूर्ण महाजनपदों में गिने जाते हैं।
छठी शताब्दी ई. पूर्व में भारत में निम्नलिखित सोलह महाजनपद अस्तित्व में थे –
- अंग
- मगध
- क्राशी
- कोशल
- वज्जि
- मल्ल
- चेदि
- वत्स
- कुरु
- पांचाल
- मत्स्य
- शूरसेन
- अश्मक
- अवन्ति
- कम्बोज
- गान्धार
(3) शासन व्यवस्था अधिकांश महाजनपदों पर राजा का शासन होता था, परन्तु ‘गण’ और ‘संघ’ के नाम से प्रसिद्ध राज्यों में कई लोगों का समूह शासन करता था। इस समूह का प्रत्येक व्यक्ति राजा कहलाता था। वज्जि संघ की ही भाँति कुछ राज्यों में भूमि सहित अनेक आर्थिक स्रोतों पर राजा गण सामूहिक नियन्त्रण रखते थे।
(4) महाजनपद की राजधानी- प्रत्येक महाजनपद की एक राजधानी होती थी, जो प्रायः किले से घेरी जाती थी। किलेबन्द राजधानियों की देखभाल और प्रारम्भिक सेनाओं और नौकरशाही के लिए भारी आर्थिक स्रोतों की आवश्यकता होती थी। शासकों का कार्य किसानों, व्यापारियों और शिल्पकारों से कर तथा भेंट वसूलना माना जाता था। इसके अतिरिक्त पड़ोसी राज्यों पर आक्रमण करके धन इकट्ठा करना भी सम्पत्ति जुटाने का एक वैध उपाय माना जाता था। धीरे-धीरे कुछ राज्यों ने अपनी स्थायी सेनाएँ और नौकरशाही तन्त्र तैयार कर लिए।
प्रश्न 2.
मौर्य साम्राज्य कितना महत्त्वपूर्ण था? विवेचना कीजिये।
उत्तर:
मौर्य साम्राज्य का महत्त्व उन्नीसवीं शताब्दी में जब इतिहासकारों ने भारत का आरम्भिक इतिहास लिखना शुरू किया, तो उन्होंने मौर्य- साम्राज्य को इतिहास का एक प्रमुख काल स्वीकार किया। इस समय भारत ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन एक औपनिवेशिक देश था। उन्नीसवीं तथा बीसवीं सदी के भारतीय इतिहासकारों को प्राचीन भारत में एक ऐसे साम्राज्य की सम्भावना बहुत चुनौतीपूर्ण तथा उत्साहवर्धक लगी।
संक्षेप में मौर्य साम्राज्य के महत्व का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) कला के क्षेत्र में उन्नति मौर्य काल में भवन- निर्माण कला तथा मूर्तिकला की महत्त्वपूर्ण उन्नति हुई। खुदाई में प्राप्त मौर्यकालीन सभी पुरातत्व एक उच्चकोटि की कला के प्रमाण हैं।
(2) मौर्य सम्राटों के अभिलेख अशोक ने अनेक शिलाओं, गुफाओं, स्तम्भों आदि पर अभिलेख उत्कीर्ण करवाये। ये अभिलेख जनता की भलाई के लिए थे। इतिहासकारों के अनुसार इन अभिलेखों पर लिखे सन्देश अन्य शासकों के अभिलेखों से भिन्न थे।
(3) अशोक की महानता इतिहासकारों के अनुसार अन्य शासकों की अपेक्षा सम्राट अशोक एक बहुत शक्तिशाली और न्यायप्रिय शासक था। वह परवर्ती राजाओं की अपेक्षा विनीत और नम्र भी था, जो अपने नाम के साथ बड़ी बड़ी उपाधियाँ जोड़ते थे इसलिए बीसवीं शताब्दी के राष्ट्रवादी नेताओं ने भी अशोक को प्रेरणा का स्रोत माना
(4) मौर्य साम्राज्य की कमजोरियाँ – यद्यपि मौर्य- साम्राज्य अत्यन्त गौरवशाली था, परन्तु उसमें कुछ कमजोरियाँ भी थीं जिनका वर्णन निम्नानुसार है-
- मौर्य साम्राज्य का केवल 150 वर्ष तक ही अस्तित्व में रहना- मौर्य साम्राज्य केवल 150 वर्ष तक ही अस्तित्व में रहा। इसे भारतीय उपमहाद्वीप के इस लम्बे इतिहास में बहुत बड़ा काल नहीं माना जा सकता।
- मौर्य साम्राज्य का सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में विस्तार न होना- मौर्य साम्राज्य का उपमहाद्वीप के सभी क्षेत्रों में विस्तार नहीं हो सका साम्राज्य की सीमा के अन्तर्गत भी सभी प्रदेशों पर नियन्त्रण एकसमान नहीं था अतः दूसरी शताब्दी ई. पूर्व तक उपमहाद्वीप के अनेक भागों में नये-नये शासकों और रजवाड़ों की स्थापना होने लगी।
प्रश्न 3.
दक्षिण भारत में सरदारों और सरदारियों के उद्भव की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
दक्षिण भारत में सरदारों और सरदारियों का उद्भव 600 ई. पूर्व से 600 ई. के काल में भारत के दक्कन और उससे दक्षिण के क्षेत्र में स्थित तमिलकम अर्थात् तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश एवं केरल के कुछ भाग में चोल, चेर और पाण्ड्य जैसी सरदारियों का उदय हुआ ये राज्य बहुत ही समृद्ध और स्थायी सिद्ध हुए।
(1) सरदार और सरदारी सरदार एक शक्तिशाली व्यक्ति होता था जिसका पद वंशानुगत भी हो सकता था और नहीं भी हो सकता था। उसके सहयोगी और समर्थक उसके वंश के लोग होते थे सरदारों के प्रमुख कार्य थे –
- विशेष अनुष्ठानों का संचालन करना
- युद्ध के समय सेना का नेतृत्व करना
- विवादों का निपटारा करने में मध्यस्थता की भूमिका निभाना सरदार अपनी अधीन प्रजा से भेंट लेता था और उसे अपने समर्थकों में बाँट देता था। राजा लोग विभिन्न करों की वसूली करते थे सरदारी में प्राय: कोई स्थायी सेना या अधिकारी नहीं होते थे।
(2) जानकारी के स्रोत हमें दक्षिण के इन राज्यों के विषय में विभिन्न प्रकार के स्रोतों से जानकारी मिलती है। उदाहरणार्थ- प्राचीन तमिल संगम ग्रन्थों में संकलित कविताएँ सरदारों का विवरण देती हैं।
(3) व्यापार द्वारा राजस्व प्राप्त करना-दक्षिण भारत के अनेक सरदार और राजा लम्बी दूरी के व्यापार द्वारा राजस्व प्राप्त करते थे इन राजाओं में मध्य और पश्चिम भारत के क्षेत्रों पर शासन करने वाले सातवाहन (लगभग द्वितीय शताब्दी ई. पूर्व से द्वितीय शताब्दी ईसवी तक ) और उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तर तथा पश्चिम में शासन करने वाले मध्य एशियाई मूल के शक शासक सम्मिलित थे।
(4) उच्च सामाजिक दर्जे का दावा करना – यद्यपि सातवाहनों की जाति के बारे में विद्वानों में मतभेद है, परन्तु सत्तारूढ़ होने के बाद उन्होंने उच्च सामाजिक दर्जे का दावा कई प्रकार से किया। अधिकांश विद्वानों के अनुसार सातवाहन ब्राह्मणवंशीय थे।
प्रश्न 4.
छठी शताब्दी ई. पूर्व से छठी शताब्दी ईसवी तक के काल में भारत के राजाओं तथा ग्रामीण प्रजा के बीच सम्बन्धों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
राजाओं तथा ग्रामीण प्रजा के बीच सम्बन्ध छठी शताब्दी ई. पूर्व से छठी शताब्दी ईसवी तक के काल में भारत में राजाओं तथा ग्रामीण प्रजा के बीच पाए जाने वाले सम्बन्धों के बारे में जातकों तथा पंचतंत्र जैसे ग्रन्थों से पर्याप्त जानकारी मिलती है। जातक कथाओं की रचना पहली सहस्राब्दी ई. के मध्य में पालि भाषा में की गई थी। ग्रामीण प्रजा की दयनीय दशा- जातक कथाओं से पता चलता है कि इस काल में ग्रामीण जनता की दशा बड़ी दयनीय थी। ‘गंदतिन्दु’ नामक जातक में वर्णित एक कथा में बताया गया है कि राजा की प्रजा बड़ी दुःखी थी। इन दुःखी लोगों में वृद्ध महिलाएँ, पुरुष, किसान, पशुपालक, ग्रामीण बालक आदि सम्मिलित थे।
एक बार राजा वेश बदलकर लोगों के बीच में यह जानने के लिए गया कि लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं। उन सभी लोगों ने अपने दुःखों के लिए राजा को उत्तरदायी ठहराया तथा उसकी कटु आलोचना की। उन्होंने अपना दुःख व्यक्त करते हुए राजा को बताया कि रात्रि में डाकू लोग उन पर हमला करते थे तथा दिन में कर एकत्रित करने वाले अधिकारी उन्हें प्रताड़ित करते थे। इस परिस्थिति से मुक्ति पाने के लिए लोग अपने-अपने गाँव छोड़कर जंगलों में बस गए। राजा और प्रजा के बीच तनावपूर्ण सम्बन्ध-उपर्युक्त कथा से ज्ञात होता है कि इस काल में राजा और प्रजा, विशेषकर ग्रामीण प्रजा के बीच सम्बन्ध तनावपूर्ण रहते थे।
इसका प्रमुख कारण यह था कि शासक अपने राजकोष को भरने के लिए लोगों से विभिन्न प्रकार के करों की माँग करते थे। इससे किसानों में पोर असन्तोष व्याप्त रहता था। इस जातक कथा से ज्ञात होता है कि इस संकट से बचने के लिए ग्रामीण लोग अपने घरों को छोड़ कर जंगलों में भाग जाते थे। इस प्रकार इस काल की जनता में राजा की छवि बड़ी खराब थी क्योंकि वे जनता का शोषण करते थे और उसके कष्टों एवं समस्याओं को दूर करने के लिए प्रयत्न नहीं करते थे।
प्रश्न 5.
छठी शताब्दी ई. पूर्व से छठी शताब्दी ईसवी तक के काल में किये जाने वाले भूमिदानों का वर्णन कीजिये। भूमिदानों के क्या प्रभाव हुए?
उत्तर:
भूमिदान प्राचीन भारत में शासकों, सामन्तों एवं धन-सम्पन्न लोगों द्वारा भूमिदान किये जाते थे अनेक भूमिदानों का उल्लेख अभिलेखों में मिलता है। इनमें से कुछ अभिलेख पत्थरों पर लिखे गए थे परन्तु अधिकांश अभिलेख ताम्र- पत्रों पर उत्कीर्ण होते थे जिन्हें उन लोगों को प्रमाण रूप में दिया जाता था, जो भूमिदान लेते थे।
(1) प्रभावती गुप्त द्वारा भूमिदान देना प्रभावती गुप्त गुप्त वंश के प्रसिद्ध सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय ( लगभग 375-415 ई.) की पुत्री थी। उसका विवाह दक्कन पठार के वाकाटक वंश के शासक रुद्रसेन द्वितीय के साथ हुआ था प्रभावती गुप्त ने दंगुन गाँव को भूमिदान के रूप में प्रसिद्ध आचार्य चनालस्वामी को दान किया था।
(2) भूमिदान अभिलेख से ग्रामीण प्रजा की जानकारी प्रभावती गुप्त के भूमिदान अभिलेख से हमें ग्रामीण प्रजा के बारे में जानकारी मिलती है। उस समय गाँवों में ब्राह्मण, किसान तथा अन्य प्रकार के वर्गों के लोग रहते थे। ये लोग शासकों या उनके प्रतिनिधियों को अनेक प्रकार की वस्तुएँ प्रदान करते थे।
(3) भूमिदान की भूमि में अन्तर भूमिदान की भूमि की माप एक जैसी नहीं थी। कुछ लोगों को भूमि के छोटे- छोटे टुकड़े दिए गए थे तो कुछ लोगों को बड़े-बड़े क्षेत्र दान में दिए गए थे। इसके अतिरिक्त भूमिदान में दान प्राप्त करने वाले लोगों के अधिकारों में भी क्षेत्रीय परिवर्तन मिलते हैं।
(4) भूमिदान के प्रभाव-भूमिदान के निम्नलिखित प्रभाव हुए –
- कुछ इतिहासकारों के अनुसार भूमिदान शासक- वंश के द्वारा कृषि को नये क्षेत्रों में प्रोत्साहित करने की एक रणनीति थी।
- कुछ इतिहासकारों का मत है कि भूमिदान से दुर्बल होते हुए राजनीतिक प्रभुत्व की जानकारी मिलती है।
- कुछ इतिहासकारों के अनुसार राजा स्वयं को उत्कृष्ट स्तर के मानव के रूप में प्रदर्शित करना चाहते थे।
प्रश्न 6.
छठी शताब्दी ई. पूर्व के नये नगरों तथा नगरों में रहने वाले सम्भ्रान्त वर्ग और शिल्पकारों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
(1) छठी शताब्दी ई. पूर्व के नये नगर- छठी शताब्दी ई. पूर्व में भारत के विभिन्न क्षेत्रों में नये नगरों का उदय हुआ। इनमें से अधिकांश नगर महाजनपदों की राजधानियाँ थीं। प्रायः सभी नगर संचार मार्गों के किनारे बसे थे। पाटलिपुत्र जैसे कुछ नगर नदी मार्ग के किनारे बसे थे। उज्जयिनी जैसे अन्य नगर भूतल मार्गों के किनारे बसे थे। इसके अतिरिक्त पुरहार जैसे नगर समुद्रतट पर स्थित थे, जहाँ से समुद्री मार्ग प्रारम्भ हुए मथुरा जैसे अनेक नगर व्यावसायिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक गतिविधियों के प्रमुख केन्द्र थे।
(2) नगरों में रहने वाले सम्भ्रान्त वर्ग के लोग और शिल्पकार – शासक वर्ग और राजा किलेबन्द नगरों में रहते थे। खुदाई में इन नगरों में उत्कृष्ट श्रेणी के मिट्टी के कटोरे तथा थालियाँ मिली हैं, जिन पर चमकदार कलई चढ़ी हुई है। इन्हें ‘उत्तरी कृष्ण मार्जित पात्र’ कहा जाता है। सम्भवतः इन पात्रों का उपयोग धनी लोग किया करते होंगे। इसके अतिरिक्त सोने, चाँदी, कांस्य, ताँबे, हाथीदांत, शीशे जैसे विभिन्न प्रकार के पदार्थों के बने आभूषण, उपकरण, हथियार, वर्तन आदि मिले हैं। इनका उपयोग भी अमीर लोग करते थे। दानात्मक अभिलेखों में नगरों में रहने वाले बुनकर, लिपिक, बढ़ई, कुम्हार, स्वर्णकार, लौहकार, धोबी, अधिकारी, धार्मिक गुरु, व्यापारी आदि शिल्पकारों के बारे में जानकारी मिलती है।
(3) श्रेणी – शिल्पकारों और व्यापारियों ने अपने संघ बना लिए थे, जिन्हें ‘श्रेणी’ कहा जाता है। ये श्रेणियाँ सम्भवतः पहले कच्चे माल को खरीदती थीं, फिर उनसे सामान तैयार कर बाजार में बेच देती थीं। यह सम्भव है कि शिल्पकारों ने नगरों में रहने वाले सम्भ्रान्त वर्ग के लोगों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए कई प्रकार के लौह उपकरणों का प्रयोग किया हो।
प्रश्न 7.
प्राचीन काल में भारतीय शासकों द्वारा प्रचलित सिक्कों का वर्णन कीजिये। सिक्कों के व्यापार और वाणिज्य सम्बन्धी गतिविधियों पर क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर:
प्राचीन काल में भारतीय शासकों द्वारा प्रचलित सिक्के प्राचीन काल में भारतीय शासकों द्वारा सोने, चाँदी, ताँबे आदि के सिक्के जारी किये गए। छठी शताब्दी ई. पूर्व में चाँदी और ताँबे के आहत सिक्कों का सबसे पहले प्रयोग किया गया। सम्पूर्ण भारत में उत्खनन में इस प्रकार के सिक्के मिले हैं।
(1) कुषाण राजाओं द्वारा प्रचलित सिक्के सोने के सिक्के सबसे पहले प्रथम शताब्दी ईसवी में कुषाण राजाओं द्वारा जारी किए गए थे। उत्तर और मध्य भारत के अनेक पुरास्थलों पर कुषाणों द्वारा प्रचलित सिक्के मिले हैं। सोने के सिक्कों के व्यापक प्रयोग से पता चलता है कि बहुमूल्य वस्तुओं तथा भारी मात्रा में अन्य वस्तुओं का विनिमय किया जाता था। इसके अतिरिक्त दक्षिण भारत के अनेक पुरास्थलों से बड़ी संख्या में रोमन सिक्के मिले हैं। इनसे जात होता है कि दक्षिण भारत के रोमन साम्राज्य से व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित थे।
(2) यौधेय शासकों द्वारा जारी किए गए सिक्के- पंजाब और हरियाणा के यौधेय (प्रथम शताब्दी ई.) कबायली गणराज्यों ने भी सिक्के जारी किये थे उत्खनन में यौधेय शासकों द्वारा जारी किए गए ताँबे के सिक्के हजारों की संख्या में मिले हैं, जिनसे पता चलता है कि यौधेय शासकों की व्यापारिक गतिविधियों में बड़ी रुचि और सहभागिता थी।
(3) गुप्त शासकों द्वारा जारी किये गए सिक्के-सोने के सबसे उत्कृष्ट सिक्कों में से कुछ सिक्के गुप्त शासकों द्वारा जारी किए गए थे। गुप्त शासकों के आरम्भिक सिक्कों में प्रयुक्त सोना अत्यन्त उत्कृष्ट कोटि का था। सोने के कम सिक्के मिलने के कारण छठी शताब्दी ई. से सोने के सिक्के मिलने कम हो गए। इसके कारण निम्नलिखित थे प्रमुख
- कुछ इतिहासकारों के अनुसार रोमन साम्राज्य के पतन के बाद दूरवर्ती व्यापार में कमी आई जिससे इन राज्यों समुदायों और प्रदेशों की सम्पन्नता क्षीण हो गई, जिन्हें दूरवर्ती व्यापार से लाभ मिलता था।
- कुछ अन्य इतिहासकारों का मत है कि इस काल में नये नगरों और व्यापार के नवीन तन्त्रों का उदय होने लगा था।
- यद्यपि इस काल के सोने के सिक्कों का मिलना तो कम हो गया, परन्तु अभिलेखों और ग्रन्थों में सिक्कों का उल्लेख होता रहा है।
प्रश्न 8.
“अशोक भारत का एक महान सम्राट था।” इस कथन की विवेचना कीजिए।
अथवा
अशोक को महान क्यों कहा जाता है ?
उत्तर:
अशोक की गिनती भारत के महान सम्राटों में की जाती है।
अशोक के महान् सम्राट कहे जाने के आधार –
(1) महान् विजेता- गद्दी पर बैठते ही अशोक ने अपने पितामह चन्द्रगुप्त मौर्य की भाँति साम्राज्यवादी नीति अपनाई। कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ से ज्ञात होता है कि अशोक ने कश्मीर को जीत कर मौर्य साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया। अशोक के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि अशोक ने कलिंग को जीतकर उसे अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया। इस प्रकार अशोक ने अपने पूर्वजों से प्राप्त मौर्य साम्राज्य को सुरक्षित ही नहीं रखा, बल्कि उसका विस्तार भी किया।
(2) योग्य शासक अशोक केवल एक विजेता ही नहीं, अपितु एक योग्य शासक भी था वह एक प्रजावत्सल सम्राट था। वह अपनी प्रजा को अपनी सन्तान के तुल्य समझता था तथा उसकी नैतिक और भौतिक उन्नति के लिए सदैव प्रयत्नशील रहता था। उसने प्रशासनिक क्षेत्र में अनेक सुधार किये और अपनी प्रशासकीय प्रतिभा का परिचय दिया।
(3) धम्म – विजेता- कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने साम्राज्यवादी एवं युद्धवादी नीति का परित्याग कर दिया। उसने बुद्ध घोष के स्थान पर धम्म घोष की नीति अपनाई । उसने धम्म के प्रचार के लिए अपना तन-मन-धन समर्पित कर दिया।
(4) बौद्ध धर्म को संरक्षण देना बौद्ध धर्म के प्रचारक एवं संरक्षक के रूप में भी प्राचीन भारतीय इतिहास में कि अशोक का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उसने बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों ल को शिलाओं, स्तम्भों पर उत्कीर्ण करवाया। उसने भारत के च विभिन्न प्रदेशों एवं विदेशों में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अनेक धर्म प्रचारक भेजे।
(5) कला का संरक्षक अशोक कला प्रेमी था। उसने रा अनेक राजप्रासादों, स्तम्भों, स्तूपों, विहारों आदि का निर्माण ि करवाया। उसके द्वारा निर्मित पाषाण स्तम्भ मौर्यकालीन कला के सर्वोत्कृष्ट नमूने हैं। बौद्धग्रन्थों के अनुसार अशोक ने 84,000 स्तूपों का निर्माण करवाया।
(6) अशोक की चारित्रिक विशेषताएँ- अशोक के स अभिलेखों का अध्ययन करने वाले इतिहासकारों को यह प्रतीत हुआ कि अन्य राजाओं की अपेक्षा अशोक एक बहुत से ही शक्तिशाली तथा परिश्रमी शासक था। इसके अतिरिक्त वह बाद के उन राजाओं की अपेक्षा विनीत भी था जो अपने नाम के साथ बड़ी-बड़ी उपाधियाँ जोड़ते थे। इसलिए बीसवीं सदी के राष्ट्रवादी नेताओं ने अशोक को प्रेरणा का स्रोत माना है।
प्रश्न 9.
मौयों की आर्थिक व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मौर्यों की आर्थिक व्यवस्था मौर्यो की आर्थिक व्यवस्था का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) कृषि- इस काल के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। कृषकों को राज्य का संरक्षण प्राप्त था। युद्ध के समय भी कृषकों को हानि नहीं पहुंचाई जाती थी। खेती हल और बैलों से की जाती थी। राज्य की ओर से सिंचाई की सुविधा दी जाती थी। अकाल और बाढ़ के समय कृषकों की सहायता की जाती थी मौर्य काल में गेहूं, जौ, चावल, चना, उड़द, मूंग, मसूर, सरसों, कपास, बाजरा आदि की खेती की जाती थी। मेगस्थनीज के अनुसार भारत के कृषक सदा प्रायः दो फसलें काटते थे। चन्द्रगुप्त मौर्य के गवर्नर पुष्यगुप्त ने सौराष्ट्र में सुदर्शन झील का निर्माण करवाया था। इससे ज्ञात होता है कि शासक सिंचाई के साधनों के विकास के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते थे।
(2) पशुपालन इस युग में पशुपालन भी एक प्रमुख व्यवसाय था। पशुओं में गाय-बैल, भेड़-बकरी, भैंस, गधे, ऊँट, सूअर, कुत्ते आदि प्रमुखता से पाले जाते थे।
(3) उद्योग-धन्धे इस काल में अनेक उद्योग-धन्धे विकसित थे। इस युग में सूती, ऊनी, रेशमी सभी प्रकार के वस्व जुने जाते थे। वस्यों का निर्यात विदेशों को किया जाता था। उच्चकोटि की मलमल बड़ी मात्रा में दक्षिण भारत से आयात की जाती थी। इस युग में विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण किया जाता था। इस समय जलपोतों का भी निर्माण होने लगा था, जिससे व्यापार का काफी विकास हुआ था। चमड़े का उद्योग भी उन्नत था।
(4) श्रेणियाँ मौर्यकाल में शिल्पियों तथा व्यवसायियों की अपनी श्रेणियाँ (संगठन) होती थीं। इन श्रेणियों को राज्य की ओर से सहायता दी जाती थी और उन्हें सरकारी नियमों के अनुसार कार्य करना पड़ता था।
(5) व्यापार वाणिज्य मौर्यकाल में आन्तरिक और वैदेशिक व्यापार दोनों उन्नत अवस्था में थे। बड़े-बड़े नगर सड़कों से जुड़ गए थे। आन्तरिक व्यापार के लिए देश में सुरक्षित स्थल मार्ग थे। इनमें पाटलिपुत्र से तक्षशिला तक जाने वाला राजपथ अत्यधिक महत्त्वपूर्ण था। राज्य की ओर से मार्गों की सुरक्षा का प्रबन्ध किया जाता था। आन्तरिक व्यापार देश की नदियों के मार्ग से भी होता था। मौर्य युग में विदेशी व्यापार भी उन्नत था लंका, बर्मा, पश्चिमी एशिया, मिस्र आदि के साथ व्यापारिक सम्बन्ध थे भारत से मिस्र को हाथी, कछुए सीपियाँ, मोती, रंग, नील और बहुमूल्य लकड़ी निर्यात होती थी।
(6) मुद्रा – मौर्यकाल में नियमित सिक्कों का प्रचलन हो गया था। सिक्के सोने, चाँदी तथा तांबे के बने होते थे। ‘अर्थशास्त्र’ में सुवर्ण (स्वर्ण मुद्रा), कार्यापण, पण या धरण (चाँदी के सिक्के), माषक (ताँबे के सिक्के), काकणी (ताम्र मुद्रा) आदि का उल्लेख मिलता है। मुद्राओं को सरकारी टकसालों में ढाला जाता था।
प्रश्न 10.
समुद्रगुप्त के चरित्र एवं व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
अथवा
समुद्रगुप्त के चरित्र का मूल्यांकन कीजिए। उत्तर- समुद्रगुप्त का चरित्र एवं व्यक्तित्व (मूल्यांकन) –
समुद्रगुप्त प्राचीन भारत का एक महान् सम्राट था। उसके चरित्र एवं व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन के निम्नानुसार किया गया है –
(1) गुणसम्पन्न व्यक्ति समुद्रगुप्त एक गुणसम्पन्न व्यक्ति था। वह उदार, दयालु और दानशील व्यक्ति था। वह साधु की समृद्धि और असाधु के विनाश का कारण था।
(2) वीर योद्धा तथा महान विजेता-समुद्रगुप्त एक ये वीर योद्धा, कुशल सेनापति तथा महान विजेता था। उसके कि सिक्कों पर अंकित ‘पराक्रमांक’, ‘व्याघ्रपराक्रम’ जैसी उपाधियाँ न्ता उसके अद्वितीय पराक्रम तथा शूरवीरता की परिचायक हैं।
(3) योग्य शासक समुद्रगुप्त एक योग्य शासक भी था। उसका प्रशासन अत्यन्त सुदृढ़ एवं सुव्यवस्थित था। वह एक प्रजावत्सल शासक था तथा अपनी प्रजा की नैति एवं भौतिक उन्नति के लिए सदैव प्रयत्नशील रहता था।
(4) कुशल राजनीतिज्ञ समुद्रगुप्त एक कुश राजनीतिज्ञ भी था। उसने देशकाल के अनुकूल भिन्न-भिन्न नीतियों का अनुसरण किया। जहाँ उसने आर्यावर्त के राज्य को जीतकर उन्हें अपने साम्राज्य में सम्मिलित किया, वह उसने दक्षिणापथ के राजाओं को पराजित कर उनके राज्य वापस लौटा दिये तथा उनसे केवल कर लेना ही उचि
समझा।
(5) साहित्य का संरक्षक समुद्रगुप्त साहित्य क संरक्षक था। वह स्वयं एक उच्च कोटि का विद्वान था औ विद्वानों, कवियों तथा साहित्यकारों का संरक्षक था। समुद्रगुप्त कविता भी करता था और अपनी काव्य निपुणता के कारण ‘कविराज’ की उपाधि से प्रसिद्ध था।
(6) कला का संरक्षक समुद्रगुप्त कला का भी संरक्षक था संगीत से उसे विशेष प्रेम था। वह स्वयं एक अच्छा संगीतज्ञ था। उसके कुछ सिक्कों पर उसे वीणा बजाते हुए दिखाया गया है, जिससे सिद्ध होता है कि वह संगीत प्रेमी था।
(7) धर्म-सहिष्णु समुद्रगुप्त वैष्णव धर्म का अनुवायी था वैष्णव धर्म का प्रबल समर्थक होते हुए भी उसका धार्मिक दृष्टिकोण उदार तथा न्यायपरक था उसने अपने राजदरबार में प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान वसुबन्धु को आश्रय प्रदान किया था।
प्रश्न 11.
अभिलेखशास्त्री एवं इतिहासकार अशोक के अभिलेखों से ऐतिहासिक साक्ष्य किस प्रकार प्राप्त करते हैं?
उत्तर:
अभिलेखों से ऐतिहासिक साक्ष्य प्राप्त करना –
(1) अभिलेखों का परीक्षण करना अशोक के एक अभिलेख में यह लिखा है कि “राजन देवानामपिय पियदस्सी यह कहते हैं।” इस अभिलेख में शासक अशोक का नाम नहीं लिखा है। इसमें अशोक द्वारा अपनाई गई उपाधियों (‘देवानाम्पिय’ तथा ‘पियदस्सी) का प्रयोग किया गया है परन्तु अन्य अभिलेखों में अशोक का नाम मिलता है।
जिसमें उसकी उपाधियाँ भी लिखी हैं। इन अभिलेखों का परीक्षण करने के पश्चात् अभिलेखशास्त्रियों ने पता लगाया है कि उनके विषय, शैली, भाषा और पुरालिपि विज्ञान, सबमें समानता है। अतः उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि इन अभिलेखों को एक ही शासक ने बनवाया था। अभिलेखशास्त्रियों तथा इतिहासकारों को इन अभिलेखों का अध्ययन करने के बाद यह पता लगाना पड़ता है कि अशोक ने अपने अभिलेखों में जो कहा है, वह कहाँ तक सही है।
(2) ब्रैकेट में लिखे शब्दों का अर्थ ढूँढ़ना- अशोक के कुछ अभिलेखों में कुछ शब्द ब्रैकेट में लिखे हुए हैं जैसे एक अभिलेख में अशोक कहता है कि “मैंने निम्नलिखित (व्यवस्था) की है ………….. ” इसी प्रकार अशोक ने अपने तेरहवें शिलालेख में कलिंग युद्ध मैं हुए विनाश का वर्णन करते हुए कहा है कि “इस युद्ध में एक लाख व्यक्ति मारे गए, डेढ़ लाख व्यक्ति बन्दी बनाए गए तथा इससे भी कई गुना व्यक्ति (महामारी, भुखमरी आदि) से मारे गए।” अभिलेखशास्त्री प्रायः वाक्यों के अर्थ स्पष्ट करने के लिए इन ब्रैकेटों का प्रयोग करते हैं। इसमें अभिलेखशास्त्रियों को बड़ी सावधानी बरतनी पड़ती है जिससे कि लेखक का मूल अर्थ बदल न जाए।
(3) युद्ध के प्रति मनोवृत्ति में परिवर्तन को दर्शाना- अशोक के तेरहवें शिलालेख से कलिंग के युद्ध के बारे में जानकारी मिलती है। इससे अशोक की वेदना प्रकट होती है। इसके साथ ही यह युद्ध के प्रति अशोक की मनोवृत्ति में परिवर्तन को भी दर्शाता है।
प्रश्न 12.
“अभिलेखों से प्राप्त जानकारी की भी सीमा होती है।” विवेचना कीजिए
अथवा
“राजनीतिक और आर्थिक इतिहास का पूर्ण ज्ञान मात्र अभिलेख शास्त्र से ही नहीं मिलता है।” विवेचना कीजिये।
उत्तर:
अभिलेखों से प्राप्त जानकारी की सीमा प्राचीन भारतीय इतिहास के निर्माण के लिए अभिलेखों से प्राप्त जानकारी पर्याप्त नहीं होती है। अभिलेखों से प्राप्त जानकारी की भी सीमा होती है। कभी-कभी इसकी तकनीकी सीमा होती है जैसे अक्षरों को हल्के ढंग से उत्कीर्ण किया जाता है, जिन्हें पढ़ पाना कठिन होता है। इसके अतिरिक्त -अभिलेख नष्ट भी हो सकते हैं, जिनसे अक्षर लुप्त हो जाते हैं। अभिलेखों के शब्दों के वास्तविक अर्थ के बारे में भी पूर्ण रूप से जानकारी प्राप्त करना भी काफी कठिन होता है क्योंकि कुछ अर्थ किसी विशेष स्थान या समय से सम्बन्धित होते हैं।
खुदाई में कई हजार अभिलेख प्राप्त हुए हैं। परन्तु सभी के अर्थ नहीं निकाले जा सके हैं। इसके अतिरिक्त ऐसे अनेक अभिलेख भी रहे होंगे, जो कालान्तर में सुरक्षित नहीं बचे हैं। इसलिए जो अभिलेख अभी उपलब्ध हैं, वे सम्भवतः कुल अभिलेखों के अंशमात्र हैं। यह भी आवश्यक नहीं है कि जिसे हम आज राजनीतिक और आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण मानते हैं, उन्हें अभिलेखों में अंकित ही किया गया हो।
उदाहरणार्थ, खेती की वन दैनिक प्रक्रियाएँ और जीवन के हर रोज के सुख-दुःख का उल्लेख अभिलेखों में नहीं मिलता है क्योंकि प्रायः अभिलेख पर बड़े और विशेष अवसरों का वर्णन करते हैं। इसके अतिरिक्त अभिलेख सदैव उन्हीं लोगों के विचारों को प्रकट करते प हैं, जो उन्हें बनवाते थे। इसलिए इन अभिलेखों में प्रकट किये गए विचारों की समीक्षा अन्य विचारों के परिप्रेक्ष्य में करनी होगी ताकि अपने अतीत का उचित ज्ञान हो सके। इस प्रकार स्पष्ट है कि राजनीतिक और आर्थिक इतिहास त का पूर्ण ज्ञान मात्र अभिलेख शास्त्र में ही नहीं मिलता है।
प्रश्न 13.
प्रारम्भिक राज्यों के रूप में महाजनपदों के राजनीतिक इतिहास का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रारम्भिक राज्यों के रूप में महाजनपदों के राजनीतिक इतिहास का वर्णन निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) प्रारम्भिक भारतीय इतिहास में छठी शताब्दी ई.पू. को एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तनकारी काल माना जाता है। इस काल का सम्बन्ध प्रायः आधुनिक राज्यों, नगरों, लोहे के बढ़ते प्रयोग एवं सिक्कों के विकास के साथ स्थापित किया जाता है। इसी काल के दौरान बौद्ध एवं जैन धर्म सहित विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का जन्म एवं विकास हुआ।
बौद्ध एवं जैन धर्म के प्रारम्भिक ग्रन्थों में महाजनपद नाम से 16 राज्यों का उल्लेख मिलता है। यद्यपि इन ग्रन्थों में महाजनपदों के सभी नाम एक जैसे नहीं हैं। लेकिन मगध, कोसल, वज्जि, कुरु, पांचाल, गांधार एवं अवन्ति जैसे नाम प्राय: एक समान देखने को मिलते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि अपने समय में इन सभी महाजनपदों की गिनती महत्त्वपूर्ण महाजनपदों में होती होगी।
(2) अधिकांश महाजनपदों का शासन राजा द्वारा संचालित होता था, लेकिन गण एवं संघ के नाम से प्रसिद्ध राज्यों में कई लोगों का समूह शासन करता था। इस समूह का प्रत्येक व्यक्ति राजा कहलाता था। भगवान बुद्ध और भगवान महावीर इन्हीं गणों से सम्बन्ध रखते थे। हालांकि इन राज्यों के इतिहास स्रोतों के अभाव के कारण नहीं ‘लिखे जा सके हैं, लेकिन यह सम्भावना है कि ऐसे कई राज्य लगभग एक हजार वर्षों तक अस्तित्व में रहे होंगे।
(3) प्रत्येक महाजनपद अपनी एक राजधानी रखता था। इस राजधानी के चारों तरफ किले का निर्माण किया जाता था। इन किलेबन्द राजधानी शहर के रख-रखाव एवं सेवाओं व नौकरशाही के खर्चों के लिए बहुत बड़ी मात्रा में धन की आवश्यकता पड़ती थी।
(4) इस काल में शासकों का कार्य कृषकों, व्यापारियों एवं शिल्पकारों से कर एवं भेंट वसूलना माना जाता था। वनवासियों एवं चरवाहों से भी कर लिए जाने की कोई जानकारी प्राप्त नहीं हुई थी। इस काल में पड़ौसी राज्यों पर आक्रमण करके भी धन एकत्रित किया जाता था।
प्रश्न 14.
मौर्य साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर;
मौर्य साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्थाओं की चर्चा हम निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत कर सकते हैं –
(1) केन्द्रीय शासन राजकीय सत्ता का प्रमुख केन्द्र तथा प्रशासन का सर्वोच्च सम्राट् होता था। सम्राट् के पास असीमित शक्तियाँ होती थीं। सम्राट् नियमों का निर्माता, सर्वोच्च न्यायाधीश, सेनानायक एवं मुख्य कार्यकारिणी का अध्यक्ष होता था।
(2) राजा के अधिकारियों के दायित्व – राजा ने राज्य कार्यों में सहायता एवं परामर्श हेतु मन्त्रिपरिषद् की स्थापना की थी। मन्त्रिपरिषद् में चरित्रवान तथा बुद्धिमान व्यक्तियों की नियुक्ति की जाती थी, परन्तु मन्त्रिपरिषद् का निर्णय राजा के लिए मानना अनिवार्य नहीं था कुछ अन्य अधिकारी भी होते थे, जैसे-अमात्य, महामात्य तथा अध्यक्ष आदि अमात्य मन्त्रियों के अधीन विभागों का काम संभालते थे।
(3) प्रान्तीय शासन संचालन की कुशल व्यवस्था हेतु मौर्य शासकों ने साम्राज्य को पाँच विभिन्न प्रान्तों में विभाजित किया था। प्रान्तीय शासन का प्रमुख राजपरिवार से सम्बन्धित होता था। उसका मुख्य कार्य प्रान्त में शान्ति एवं व्यवस्था बनाए रखना था।
(4) नगर की प्रशासनिक व्यवस्था उचित प्रशासनिक व्यवस्था हेतु नगर को कई भागों में बाँटा गया था। प्रत्येक नगर की अपनी नगरपालिका तथा न्यायपालिका थी। न्यायपालिका न्यायाधीश की सहायता हेतु न्यायाधिकारी न्य होते थे।
(5) ग्रामीण प्रशासनिक व्यवस्था-ग्राम प्रशासन की ह व्यवस्था, ग्राम पंचायतों के द्वारा की जाती थी। ग्राम का र मुखिया ‘ग्रामिक’ अथवा ‘ग्रामिणी’ कहलाता था। के
(6) दण्ड विधान दण्ड विधान काफी कठोर था। वहीं चोरी करने, डाका डालने एवं हत्या जैसे जघन्य अपराधों हेतु मृत्यु दण्ड का विधान था अपराधी का अंग-भंग भी ” किया जाता था। दीवानी तथा फौजदारी दो प्रकार के न्यायालय ता थे। सर्वोच्च न्यायाधीश स्वयं राजा होता था।
(7) सेना प्रणाली मौर्य शासकों ने शक्तिशाली सेना एवं का गठन किया था चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना में 6 लाख पैदल, 30,000 घुड़सवार तथा 9 हजार हाथी और 8 हजार
रथ थे।
(8) समाज, कला, शिक्षा तथा आर्थिक स्थिति- चा। कृषि लोगों का मुख्य व्यवसाय था। कृषि आधारित पशुपालन, शिल्प तथा उद्योग काफी उन्नत अवस्था में थे। साहित्य और शिक्षा का व्यापक प्रचार-प्रसार था अशोक पहला सम्राट् था जिसके बनवाये स्तम्भ शिल्पकला के उदाहरण हैं।
प्रश्न 15.
मौर्यकालीन इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लगभग 321 ई. पू. में चन्द्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। मौर्य वंश के उदय के साथ ही भारत का इतिहास रोचक बन जाता है क्योंकि इस काल में इतिहासकारों को तमाम ऐसे ऐतिहासिक साक्ष्य और विवरण प्राप्त होते हैं। प्रमुख स्रोतों का वर्णन निम्न है –
(1) मैगस्थनीज द्वारा रचित इंडिका मेगस्थनीज सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में 302 ई.पू. से 298 ई.पू. तक रहा। उसने अपनी पुस्तक इंडिका में भारत में देखे गए वृतान्त का प्रत्यक्षदर्शी विवरण लिखा है। मेगस्थनीज ने सम्राट् चन्द्रगुप्त की शासन व्यवस्था, सैनिक गतिविधियों का संचालन तथा मौर्यकालीन सामाजिक व्यवस्था के बारे में विस्तृत रूप से लिखा है। मेगस्थनीज द्वारा इंडिका में दिया गया वर्णन काफी हद तक प्रामाणिक माना जाता है।
(2) चाणक्य का अर्थशास्त्र- चाणक्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र मौर्यकालीन इतिहास का अन्य प्रमुख स्रोत है। मौर्यकालीन सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक दशाओं का अर्थशास्त्र में व्यापक वर्णन है।
(3) जैन, बौद्ध तथा पौराणिक ग्रन्थ जैन, बौद्ध तथा पौराणिक ग्रन्थों से भी मौर्यकालीन इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है। जैन विद्वानों ने प्राकृत, संस्कृत, तमिल जैसी भाषाओं में साहित्य का सूजन किया है।
(4) पुरातात्त्विक प्रमाण पुरातात्त्विक प्रमाण भी मौर्यकालीन इतिहास पर प्रकाश डालते हैं। उत्खनन में प्राप्त मूर्तियाँ, राजप्रासाद, स्तम्भ, सिक्के आदि उस काल के इतिहास को जानने में सहायक सिद्ध हुए हैं।
(5) अभिलेख सम्राट् अशोक ने अपने शासन काल में अनेक अभिलेख उत्कीर्ण करवाए। अभिलेखों से मौर्यकालीन शासन व्यवस्था, नैतिक आदर्शों, धम्मपद के सिद्धान्तों तथा जनकल्याण के लिए किए गए कार्यों की व्यापक जानकारी प्राप्त होती है। जूनागढ़ के अभिलेख तथा अशोक द्वारा लिखवाये गये अभिलेख इतिहास के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। मौर्यकालीन शासकों के सिक्के भी इस काल का इतिहास जानने में सहायक सिद्ध हुए।
प्रश्न 16.
राजधर्म के नवीन सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए एवं दक्षिण के राजा तथा सरदारों, दक्षिणी राज्यों के उदय पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
मौर्य साम्राज्य उपमहाद्वीप के सभी भागों में नहीं फैल पाया। साम्राज्य की सीमा के अन्तर्गत भी प्रशासन का नियन्त्रण एक समान नहीं था दूसरी शताब्दी ई.पू. आते-आते राजधर्म के नवीन सिद्धान्त स्थापित होने शुरू हो गए थे। उपमहाद्वीप के दक्कन और उससे दक्षिण के क्षेत्रों में जिनमें आन्ध्र प्रदेश, केरल राज्य तथा तमिलनाडु के कुछ भाग शामिल थे जिसे संयुक्त रूप से तमिल कम कहा जाता था, में नयी सरदारियों का उदय हुआ। इन सरदारियों में चोल, चेर तथा पांड्य प्रमुख थीं तीसरी शताब्दी के आरम्भ में मध्य भारत तथा दक्षिण में एक नया वंश जिसे वाकाटक कहते थे, बहुत प्रसिद्ध था।
सरदार एक प्रभावशाली व्यक्ति होता था। प्रायः सरदार का पद वंशानुगत होता था। सरदारियों की राज्य व्यवस्था, साम्राज्यों की व्यवस्था से भिन्न होती थी उनकी व्यवस्था में कराधान नहीं था साम्राज्य व्यवस्था में लोगों को कर देना पड़ता था। सरदारी में साधारण रूप से कोई स्थायी सेना या अधिकारी नहीं होते थे सरदार का कार्य विशेष अनुष्ठानों का संचालन करना था तथा विवादों को सुलझाने में मध्यस्थता करना भी था।
कई सरदार और राजा लम्बी दूरी के व्यापार द्वारा राजस्व एकत्र करते थे। मध्य एशियाई मूल के इन शासकों के सामाजिक उद्गम के बारे में विशेष विवरण प्राप्त नहीं है, लेकिन सत्ता में आने के बाद इन्होंने राजधर्म में नवीन सिद्धान्त की स्थापना की और राजत्व के अधिकार को दैवीय अधिकार से जोड़ा। कुषाण शासकों ने अपने आपको देवतुल्य प्रस्तुत करने के लिए देवस्थानों पर अपनी विशालकाय मूर्तियाँ लगवाई।
चौथी शताब्दी ई. में गुप्त साम्राज्य सहित कई बड़े- बड़े साम्राज्य के साक्ष्य प्राप्त हुए। इस काल को इतिहास में विशेष स्थान प्राप्त है। इस काल में सामन्ती प्रथा का उदय हुआ। कई साम्राज्य सामन्तों पर निर्भर थे, वे अपने निर्वाह स्थानीय संसाधनों द्वारा करते थे, जिसमें भूमि पर नियन्त्रण भी शामिल था जो सामन्त शक्तिशाली होते थे वे राजा बन जाते थे और जो राजा दुर्बल होते थे वे बड़े शासकों के अधीन हो जाते थे। इस प्रकार हम देखते हैं कि मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद राजधर्म के नवीन सिद्धान्तों का चलन प्रारम्भ हुआ। सरदार और सरदारी, सामन्त प्रथा, राजत्व का दैवीय अधिकार इन सिद्धान्तों के महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं।