Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 गीत – अगीत
JAC Class 9 Hindi गीत – अगीत Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) नदी का किनारों से कुछ कहते हुए बह जाने पर गुलाब क्या सोच रहा है ? इससे संबंधित पंक्तियों को लिखिए।
(ख) जब शुक गाता है, तो शुकी के हृदय पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
(ग) प्रेमी जब गीत गाता है, तो प्रेमिका की क्या इच्छा होती है ?
(घ) प्रथम छंद में वर्णित प्रकृति-चित्रण को लिखिए।
(ङ) प्रकृति के साथ पशु-पक्षियों के संबंध की व्याख्या कीजिए।
(च) मनुष्य को प्रकृति किस रूप में आंदोलित करती है ? अपने शब्दों में लिखिए।
(छ) सभी कुछ गीत है, अगीत कुछ नहीं होता। कुछ अगीत भी होता है क्या ? स्पष्ट कीजिए।
(ज) ‘गीत-अगीत’ के केंद्रीय भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) तट पर एक गुलाब सोचता है, “देते स्वर यदि मुझे विधाता, अपने पतझर के सपनों का मैं भी जग को गीत सुनाता। ”
(ख) जब शुक गाता है तो उसका स्वर सारे जंगल में गूँज उठता है, परंतु शुकी चुपचाप रहती है और अपने पंख फुलाकर भविष्य में मिलने वाले मातृत्व के सुखद भावों में डूबी रहती है।
(ग) प्रेमी जब गीत गाता है, तो प्रेमिका उसका गीत सुनने घर से बाहर उस स्थान तक आ जाती है जहाँ प्रेमी गीत गा रहा होता है। वह एक नीम के पेड़ के नीचे छिपकर उसका गीत सुनती रहती है और मन-ही-मन सोचती है कि वह अपने प्रेमी के गीत की एक कड़ी क्यों न बन गई ? प्रेमी गीत गाता रहता है और प्रेमिका का हृदय प्रसन्नता से भरता जाता है।
(घ) नदी पहाड़ से उतरकर कल-कल ध्वनि करती हुई निरंतर बहते हुए सागर की ओर तेजी से बढ़ती जाती है। नदी अपने रास्ते में पड़े हुए पत्थरों से टकराकर आगे बढ़ती जाती है। नदी के किनारे गुलाब के फूल उगे हुए हैं। कवि ने प्रकृति का मानवीकरण किया है जो किसी सामान्य मानव की तरह अपने भावों को व्यक्त करती है। वह अपने प्रियतम सागर से मिलने के लिए तेज़ वेग से बहती हुई अपने हृदय में छिपी प्रेमकथा अपने तल में पड़े पत्थरों को सुनाती जाती है और नदी किनारे उगा गुलाब सोचता है कि यदि उसके पास वाणी होती तो वह भी पतझड़ के सपनों का गीत सुनाता।
(ङ) प्रकृति के साथ पशु-पक्षियों का संबंध तो मणि- कंचन योग की तरह है। पशु-पक्षी अपने सुंदर रंगों, तरह-तरह के रूप- आकारों, आवाज़ों और चहचहाहट से प्रकृति को जीवंतता प्रदान करते हैं। हरे-भरे पेड़ जब तक पक्षियों के कलरव से गुंजायमान नहीं होते; झाड़ियों के झुरमुट तरह-तरह के कीड़े-मकोड़ों की ध्वनियों से नहीं गूँजते और जंगल छोटे-बड़े जीवों की आवाज़ों से नहीं थर्राते तब तक प्रकृति सूनी-सी लगती है। भागते-दौड़ते पशु, उड़ते – मंडराते पक्षी, रेंगते – सरकते कीड़े और सरीसृप, तालाब में तैरती मछलियाँ और टर-टर्राते मेंढक और बादलों में उड़ती सारसों की पंक्तियाँ ही प्रकृति को जीवन देती हैं। प्रकृति और पशु-पक्षी एक-दूसरे के पूरक ही तो हैं।
(च) मनुष्य और प्रकृति एक-दूसरे से गहरे जुड़े हुए हैं। मनुष्य प्रकृति का हिस्सा ही तो है। प्रकृति उसे सदा आंदोलित करती रहती है तथा उसकी विभिन्न प्रेरणाओं की आधार बनती है। आकाश में उमड़ते-घुमड़ते बादल, उड़ते रंग-बिरंगे पक्षी तथा तरह-तरह के कीड़े-मकोड़े मानव को सदा आंदोलित करते हैं कि वह भी उनकी तरह आकाश में उड़ान भरे और मनुष्य हवा में उड़ान भरने के लिए साधन बना लिए। पानी में मछली की तरह तैरना सीख लिया; सागर की गहराइयों में गोते खाना सीख लिया। ऊँचे पेड़ों पर रहने वाले पक्षियों को देख ऊँचे-ऊँचे भवनों में रहना सीख लिया। प्रकृति सदा मनुष्य को प्रेरणा देती है, दिशा दिखाती है। तभी तो वह तितली के रंगों से प्रेरित रंग-बिरंगे कपड़े पहनना सीख गया।
(छ) यदि मन के कोमल भावों को गाकर मधुर स्वर में प्रकट करना गीत है तो मन के वे कोमल भाव अगीत हैं जो मन में छिपे रहते हैं। वे मुखर नहीं होते, मौन रह जाते हैं। यदि गीत हैं तो वे अगीत के कारण से हैं। मन में छिपे सभी कोमल-कठोर भाव अगीत ही तो हैं जो शब्दों का रूप नहीं ले पाते। यदि अगीत न हों तो गीत बन नहीं सकते। गीत तो अगीत के ही शाब्दिक रूप हैं। इस संसार के हर मानव में हर समय तरह-तरह के भाव उत्पन्न होते रहते हैं। वे भाव, प्रेम, घृणा, वीरता, भक्ति, साहस, करुणा आदि के हो सकते हैं, पर हर भाव तब तक गीत नहीं बनता जब तक उसे शब्द प्राप्त नहीं हो जाते। वास्तव में भावों के रूप में अगीत पहले बनते हैं और गीतों की सर्जना बाद में होती है।
(ज) ‘गीत-अगीत’ कविता में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि प्रेम की पहचान प्रदर्शन में नहीं अपितु मौन-भाव से प्रेम की पीड़ा को पी जाने में है। नदी विरह गीत गाते हुए तीव्र गति से सागर से मिलने चली जाती है। वह अपनी विरह व्यथा अपने मार्ग में आने वाले पत्थरों को सुनाती है, परंतु नदी किनारे उगा हुआ गुलाब मौन-भाव से सोचता रहता है तथा अपने प्रेम-भावों को व्यक्त नहीं करता है। तोता दिन निकलने पर मुखरित हो उठता है परंतु तोती स्नेहभाव में डूबी मौन रहती है। प्रेमी उच्च स्वर में आल्हा गाकर अपना प्रेम व्यक्त करता है परंतु प्रेमिका छिपकर उसका गीत सुनकर भी मौन रहती है।
प्रश्न 2.
संदर्भ – सहित व्याख्या कीजिए –
(क) अपने पतझर के सपनों का
मैं भी जग को गीत सुनाता।
(ख) गाता शुक जब किरण वसंती
छूती अंग पर्ण से छनकर।
(ग) हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की, बिधना ?
यों मन में गुनती है।
उत्तर :
सप्रसंग व्याख्या के लिए पद क्रमांक 1, 2, 3 की व्याख्या देखिए।
भाषा-अध्ययन –
निम्नलिखित उदाहरण में ‘वाक्य- विचलन’ को समझने का प्रयास कीजिए। इसी आधार पर प्रचलित वाक्य – विन्यास लिखिए –
उदाहरण: तट पर एक गुलाब सोचता- एक गुलाब तट पर सोचता है।
(क) देते स्वर यदि मुझे विधाता
(ख) बैठा शुक उस घनी डाल पर
(ग) गूँज रहा शुक का स्वर वन में
(घ) हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की
(ङ) शुकी बैठी अंडे है सेती।
उत्तर :
(क) यदि विधाता मुझे स्वर देते।
(ख) उस घनी डाल पर शुक बैठा है।
(ग) वन में शुक का स्वर गूँज रहा है।
(घ) मैं गीत की कड़ी क्यों न हुई ?
(ङ) शुकी बैठकर अंडे सेती है।
JAC Class 9 Hindi गीत – अगीत Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
‘गीत-अगीत’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि प्रेम की पहचान मुखरता में नहीं अपितु मौन भाव में है।
उत्तर :
‘गीत-अगीत’ कविता में कविवर श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने प्रेम के साहित्यिक पक्ष को अभिव्यक्ति प्रदान की है। कवि का मानना है कि प्रेम की पहचान मुखरता में नहीं अपितु प्रेम की पीड़ा को मौन भाव से पी जाने में है। इसे कवि ने नदी और गुलाब, शुक और शुकी तथा प्रेमी और प्रेमिका की निम्नलिखित तीन स्थितियों के माध्यम से स्पष्ट किया है –
(क) नदी पहाड़ से नीचे उतरकर समुद्र की ओर तेजी से आगे बढ़ती हुई निरंतर विरह के गीत गाती है। वह किनारे या मध्य धारा में पड़े पत्थरों से दिल की पीड़ा कहकर अपना मन हल्का कर लेती है। लेकिन किनारे पर उगा हुआ एक गुलाब मन ही मन सोचता है कि भगवान यदि उसे भी वाणी प्रदान करता तो वह भी पतझड़ में मिलने वाली हताशा और दुख प्रकट कर पाता। वह भी संसार को बताता कि विरह की पीड़ा कितनी दुखमय है, पर वह ऐसा कर नहीं पाता। नदी तो गा-गाकर विरह भावना को व्यक्त करती हुई बह रही है पर गुलाब किनारे पर चुपचाप खड़ा है।
(ख) एक तोता किसी पेड़ की उस घनी शाखा पर बैठा है जो नीचे की शाखा को छाया दे रहा है जिस पर उसका घोंसला है घोंसले में तोती पंख फुला कर मौन भाव से बैठी है। वह मातृत्व भाव से भरी हुई है और अपने अंडों को सेने का कार्य कर रही है। सूर्य के निकलने के बाद सुनहरी वसंती किरणें जब पत्तों से छन-छनकर नीचे आती हैं तो तोता प्रसन्नता से भरकर मधुर गीत गाता है, किंतु तोती मौन है। उसके गीत मन में उमड़कर भी बाहर नहीं आते। वह तो अपने उत्पन्न होने वाले बच्चों के प्रेम में मग्न है। तोते का स्वर तो सारे जंगल में गूँज रहा है, वह अपने प्रसन्नता के भावों को प्रकट कर रहा है पर तोती अपने पंख फुला कर मातृत्व के सुखद भावों में डूबी है।
(ग) शाम के समय प्रेमी आल्हा की कथा को रसमय ढंग से गाता है। उसकी आवाज़ सुनते ही उसकी प्रेमिका स्वयं ही खिंची चली आती है – वह घर में नहीं रह पाती। वह प्रेमी के सामने यह सोचकर नहीं जाती कि कहीं उसका प्रेमी गीत गाना बंद न कर दे। वह वहीं एक नीम के पेड़ के नीचे चोरी-चोरी छिपकर गीत सुनती रहती है और मन में सोचती है कि हे ईश्वर ! मैं भी अपने प्रेमी के गीत की एक कड़ी क्यों न बन गई? प्रेमी उच्च स्वर में गीत गा रहा है पर प्रेमिका का हृदय मूक प्रसन्नता से भरता जा रहा है।
इन तीनों स्थितियों में नदी, शुक और प्रेम मुखरित हैं किंतु गुलाब, शुकी और प्रेमिका अपने प्रेम को व्यक्त नहीं करते हैं किंतु मन-ही-मन प्रेम का आस्वादन करते हैं। इनका प्रेम भी नदी, शुक और प्रेमी से कम महत्वपूर्ण नहीं है। इनका यह मौन भाव ही इनके सात्विक प्रेम की पहचान है। इसलिए स्पष्ट है कि सच्चा प्रेम मुखरता में नहीं बल्कि मौन भाव में होता है।
प्रश्न 2.
नदी अपने हृदय की पीड़ा को कैसे कम करती है और उसके विरह के गीत कौन सुनता है ?
उत्तर :
नदी अपने हृदय की पीड़ा को कम करने के लिए पहाड़ से नीचे उतरते हुए तेज़ी से आगे बढ़ते हुए विरह के गीत गाती है। अपनी विरह – पीड़ा की कथा कल-कल ध्वनि से सुनाती है। उसकी विरह कथा किनारे या मध्य पड़े पत्थर सुनते हैं। इस तरह नदी अपनी बात कह कर अपना मन हल्का कर लेती है।
प्रश्न 3.
नदी को अपनी पीड़ा व्यक्त करते देख गुलाब का फूल क्या सोच रहा है ?
उत्तर :
नदी को अपनी पीड़ा व्यक्त करते देख गुलाब सोचता है कि यदि भगवान ने उसे भी वाणी दी होती तो वह भी की कहानी सुनाता। वह भी संसार को बताता कि पतझड़ आने पर वह कैसे निराश और दुखी हो जाता है
प्रश्न 4.
शुक अपना प्यार कैसे व्यक्त करता है ?
उत्तर :
शुक अपने परिवार के साथ पेड़ की शाखा पर बने घोंसले में रहता है। शुकी घोंसले में अंडों को सेने का काम करती है। वह मातृत्व के स्नेह में डूबी हुई है। शुक सूर्य निकलने के बाद सुनहरी वसंती किरणें जब पत्तों से छनकर उसकी ओर आती हैं तो वह प्रसन्नता से भर जाता है और मधुर गीत गाने लगता है। इस प्रकार वह अपना प्रेम प्रकट करता है।
प्रश्न 5.
शुकी, शुक के प्रेम-भरे गीत सुनकर भी बाहर क्यों नहीं आती है ?
उत्तर :
शुकी घोंसले में अपने पंख फैलाकर अपने अंडे सेने का काम कर रही है। वह मातृत्व स्नेह से भरी हुई है। उसे शुक के प्रेम-भरे गीत सुनाई दे रहे हैं। परंतु उसके गीत मन में उमड़कर भी बाहर नहीं आते। शुकी अपने उत्पन्न होने वाले बच्चों के प्रेम में सिक्त है। वह शुक का प्रेम-गीत सुन रही है, परंतु उसका प्रेम मौन रूप धारण किए हुए है। वह अपना प्रेम प्रकट नहीं करती है क्योंकि वह मातृत्व के सुखद भावों में डूबी हुई है।
प्रश्न 6.
प्रेमी आल्हा गीत क्यों गाता है ?
उत्तर :
कवि एक प्रेमी जोड़े का वर्णन करता है। प्रेमी संध्या होते ही आल्हा की कथा रसमय ढंग से गाने लगता है। से अपनी प्रेमिका को अपने पास बुलाना चाहता है। वह चाहता है कि उसके गीत सुनकर, उसकी प्रेमिका उसके वह अपने प्रेम को गीतों के माध्यम से व्यक्त करता है।
प्रश्न 7.
प्रेमिका का प्रेम मौन क्यों है ?
उत्तर :
प्रेमिका प्रेमी की आल्हा की कथा सुनकर अपने को रोक नहीं पाती है। वह घर से प्रेम में डूबी हुई निकल पड़ती है। वह घर से प्रेमी से मिलने निकलती है, परंतु वह उसके सामने न जाकर एक पेड़ के पीछे छिपकर खड़ी हो जाती है। वहीं खड़े-खड़े वह अपने प्रेमी द्वारा गाए जा रहे गीत सुनती है। वह ईश्वर से प्रार्थना करती है कि ईश्वर उसे प्रेमी के गीत की एक कड़ी बना दे। वह मौन रहकर अपने प्रेम को प्रकट करती है। वह अपने प्रेम को शब्दों में व्यक्त नहीं करती है।
व्याख्या :
1. गाकर गीत विरह के तटिनी वेगवती बहती जाती है।
दिल हलका कर लेने को उपलों से कुछ कहती जाती है।
तट पर एक गुलाब सोचता, “देते स्वर यदि मुझे विधाता,
अपने पतझर के सपनों का मैं भी जग को गीत सुनाता।”
गा-गाकर बह रही निर्झरी, पाटल मूक खड़ा तट पर है।
गीत, अगीत, कौन सुंदर है ?
शब्दार्थ : तटिनी नदी वेगवती तेज़ी से बहने वाली। उपलों – पत्थरों। विधाता – ईश्वर। जग – संसार। निर्झरी नदी। पाटल – गुलाब, रंग के जैसा। मूक – चुपचाप।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित कविता ‘गीत-अगीत’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने प्रेम और शृंगार के भावों को व्यंजित किया है। उसने माना है कि प्रेम-भावों में मौन रहने वालों का महत्व किसी प्रकार से भी कम नही है। तीन चित्रों में से प्रस्तुत पहले चित्र में नदी और गुलाब के रूपक से कवि ने अपने कथन की सार्थकता को प्रमाणित करने की चेष्टा की है।
व्याख्या : कवि प्रश्न करते हुए कहता है कि गीत के स्वर प्रकट करना अच्छा है या मौन रहना ? वह प्रश्न का उत्तर देने की अपेक्षा चित्र प्रस्तुत करता है। नदी पहाड़ से नीचे उतरकर समुद्र की ओर तेज़ी से आगे बढ़ती हुई निरंतर विरह के गीत गाती जाती है। कल-कल की ध्वनि करती हुई नदी निरंतर बहती रहती है, अपनी विरह – पीड़ा की कथा कहती है। वह किनारे या मध्य धारा में पड़े पत्थरों से दिल की पीड़ा कहकर अपना मन हल्का कर लेती है।
लेकिन किनारे पर उगा हुआ एक गुलाब मन ही मन सोचता है कि भगवान यदि उसे भी वाणी प्रदान करता तो वह भी पतझर में मिलने वाली हताशा और दुख को प्रकट कर पाता। वह भी संसार को बताता कि विरह की पीड़ा कितनी दुखमय है, पर वह ऐसा कर नहीं पाता। नदी तो गा-गा कर विरह भावना को व्यक्त करती हुई बह रही है पर गुलाब किनारे पर चुपचाप खड़ा है। पता नहीं, व्यक्त किया गया गीत अच्छा है या मौन भाव से प्रकट किया गया भाव श्रेष्ठ है ?
2. बैठा शुक उस घनी डाल पर जो खोंते पर छाया देती।
पंख फुला नीचे खोंते में शुकी बैठ अंडे है सेती।
गाता शुक जब किरण वसंती छूती अंग पर्ण से छनकर।
किंतु, शुकी के गीत उमड़कर रह जाते स्नेह में सनकर।
गूँज रहा शुक का स्वर वन में फूला मग्न शुकी का पर है।
गीत, अगीत, कौन सुंदर है ?
शब्दार्थ : शुक – तोता। खोंते – घोंसले, नीड़। शुकी – तोती। पर्ण – पत्ते। स्नेह – प्यार। सनकर – युक्त होकर। फूला – प्रसन्नता से भरा।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित कविता ‘गीत-अगीत’ से ली गई हैं, जिसमें कवि प्रेम के मौन और मुखर रूपों में से किसी एक को श्रेष्ठ घोषित करना चाहता है पर वह ऐसा शब्दों में न कर शब्द-चित्रों के द्वारा प्रकट करता है।
व्याख्या : तोता किसी पेड़ की उस घनी शाखा पर बैठा है जो नीचे की शाखा को छाया दे रही है। उस पर उसका घोंसला है। घोंसले में तोती पंख फुलाकर मौन भाव से बैठी है। वह मातृत्व भाव से भरी हुई है और अपने अंडों को सेने का कार्य कर रही है। सूर्य के निकलने के बाद सुनहरी वसंती किरणें जब पत्तों से छन-छन कर नीचे आती हैं तो तोता प्रसन्नता से भरकर मधुर गीत गाता है, किंतु तोती मौन है। उसके गीत मन में उमड़कर भी बाहर नहीं आते। वह तो अपने उत्पन्न होने वाले बच्चों के प्रेम में सिक्त है। तोते का स्वर तो सारे जंगल में गूँज रहा है, वह अपने प्रसन्नता के भावों को प्रकट कर रहा है पर तोती अपने पंख फुलाकर भावी मातृत्व के सुखद भावों में डूबी है। कवि प्रश्न करता है कि पता नहीं गीत सुंदर है या अगीत ?
3. दो प्रेमी हैं यहाँ, एक जब पड़े साँझ आल्हा गाता है,
पहला स्वर उसकी राधा को घर से यहाँ खींच लाता है।
चोरी-चोरी खड़ी नीम की छाया में छिपकर सुनती है,
‘हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की, बिधना ?’ यों मन में गुनती है।
वह गाता, पर किसी वेग से फूल रहा इसका अंतर है।
गीत, अगीत, कौन सुंदर है ?
शब्दार्थ : बिधना – ब्रह्म, भाग्य। आल्हा – पृथ्वीराज चौहान के समय का एक योद्धा, वीर रस का गीत।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित कविता ‘गीत-अगीत’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने गीत-अगीत में अंतर स्पष्ट करने के लिए विभिन्न चित्र अंकित किए हैं जिनके माध्यम से मौन प्रेम को महत्वपूर्ण बताया है। नदी – गुलाब तथा शुक शुकी के चित्रों के माध्यम से उसने प्रेमी-प्रेमिका के प्रेम-भाव को प्रस्तुत किया है।
व्याख्या : कवि कहता है कि यहाँ दो प्रेमी हैं। शाम के समय प्रेमी आल्हा की कथा को रसमय ढंग से गाता है। उसकी आवाज़ सुनते ही उसकी प्रेमिका स्वयं ही खिंची चली आती है – वह घर में नहीं रह पाती। वह प्रेमी के सामने भी एकदम से नहीं जाती शायद यह सोचकर कि उसका प्रेमी कहीं गीत गाना बंद न कर दे। वह वहीं एक नीम के पेड़ के नीचे चोरी-चोरी छिपकर गीत सुनती रहती है और मन में सोचती है कि हे ईश्वर ! मैं भी अपने प्रेमी के गीत की एक कड़ी क्यों न बन गई। प्रेमी उच्च स्वर में गीत गा रहा है पर प्रेमिका का हृदय प्रसन्नता से भरता जा रहा है। पता नहीं, प्रेमी के द्वारा गाकर प्रकट किया गया प्रेम-भाव महत्वपूर्ण है या प्रेमिका के द्वारा छिपकर प्रकट किया मौन प्रेम ?
गीत – अगीत Summary in Hindi
कवि-परिचय :
जीवन-परिचय – आधुनिक भारतीय जनमानस को राष्ट्रीय चेतना का पाठ पढ़ाने वाले राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म 30 सितंबर, सन् 1908 को बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया गाँव में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई थी। मोकामाघाट के स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करके उन्होंने सन् 1932 में पटना विश्वविद्यालय से इतिहास में बी० ए० ऑनर्स किया।
सन् 1950 में बिहार विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग में प्राध्यापक नियुक्त हुए। वे सन् 1952 से 1964 तक राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रहे। इसके बाद वे भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रहे। कुछ वर्षों तक आप भारत सरकार के हिंदी सलाहकार भी रहे। उनकी साहित्यिक सेवाओं के कारण भागलपुर विश्वविद्यालय ने उन्हें डी० लिट्० की उपाधि प्रदान की। सन् 1959 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से अलंकृत किया। उनका निधन सन् 1974 में हुआ।
रचनाएँ – कविवर दिनकर ने अपनी रचनाएँ काव्य, निबंध आलोचना, बाल-साहित्य आदि के रूप में प्रस्तुत की हैं। ‘कुरुक्षेत्र’, ‘रश्मिरथी’, ‘उर्वशी’, ‘हुंकार’, ‘रेणुका’, ‘रसवंती’, ‘परशुराम की प्रतीक्षा’, ‘द्वंद्वगीत’, ‘धूप-छाँह ‘, सीपी और शंख’, ‘धूप और धुआँ’ आदि उनकी प्रसिद्ध काव्य रचनाएँ हैं।
‘संस्कृति के चार अध्याय’ आपका संस्कृति संबंधी एक विशाल ग्रंथ है। ‘शुद्ध कविता की खोज’, ‘मिट्टी की ओर’ तथा ‘अर्द्ध- नारीश्वर’, उनकी प्रसिद्ध गद्य रचनाएँ हैं। ‘चित्तौड़ का साका’ तथा ‘ मिर्च का मज़ा इनके बाल-साहित्य के अंतर्गत लिखी गई पुस्तकें हैं।
काव्य की विशेषताएँ – कविवर दिनकर सर्वोन्मुखी प्रतिभा के कवि हैं। उन्होंने अपने काव्य में जीवन के विविध पक्षों को अभिव्यक्ति दी है। उन्होंने भारतीय समाज और संस्कृति की अनेक समस्याओं को अपने काव्य में संजोया है। उनके काव्य का मुख्य स्वर देश-प्रेम एवं राष्ट्रीय उत्थान की भावना है। उन्होंने विश्व में व्याप्त वर्ग संघर्ष व पूँजीवादी व्यवस्था का भी विरोध किया है। प्रकृति-चित्रण की दृष्टि से भी इनके काव्य में ग्राम्य-जीवन सजीव हो उठता है।
कवि के हृदय में समाज के दलित वर्ग के प्रति सहानुभूति का स्वर दिखाई देता है। कवि की भाषा सहज, सरल, मधुर एवं तत्सम प्रधान खड़ी बोली है। लाक्षणिकता इनकी भाषा की प्रमुख विशेषता है। इन्होंने मुख्य रूप से गीति – शैली को अपनाया है। इन्होंने प्रबंध एवं मुक्तक दोनों ही शैलियों में काव्य-रचनाएँ की हैं। छंद और अलंकारों की विविधता इनके काव्य की विशेषता है।
कविता का सार :
श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित कविता ‘गीत-अगीत’ शृंगारिक चेतना से परिपूर्ण रचना है जिसमें जीवन में प्रेम और कोमलता के महत्व को प्रतिपादित किया गया है। कवि मानता है कि प्रेम की महानता उसकी पहचान करने में नहीं है बल्कि मौन भाव में सारी पीड़ा को पी जाने में है। कवि ने तीन रूपकों के माध्यम से अपने भाव कहने चाहे हैं। वे रूपक हैं-सरिता और गुलाब, मुखर शुक और मौन शुकी तथा आल्हा गाने वाला प्रेमी और चोरी-चोरी उसका गीत सुनने वाली उसकी प्रेमिका।
नदी विरह के गीत गाती हुई तीव्र वेग से बहती हुई आगे निकल जाती है। वह किनारे पड़े पत्थरों से कुछ-कुछ कहकर अपना हृदय हल्का कर लेती है पर नदी के किनारे उगा हुआ एक गुलाब मौन भाव से सोच में डूबा रहता है। वह अपने प्रेम-भावों को प्रकट नहीं कर पाता। एक डाली पर तोता बैठा है और उसके कुछ नीचे घोंसले में पड़े अंडों को तोती से रही है। धूप की सुनहरी किरणों को पाकर तोता तो गाता है पर तोती स्नेह भाव में डूबी मौन है, वह कुछ नहीं बोलती।
प्रेमी संध्या समय आल्हा गाता है। वह अपने प्रेम को गीत के माध्यम से व्यक्त करता है पर उसकी प्रेमिका नीम की छाया में चुपचाप गीत सुनती है, कुछ बोलती नहीं, पर सोचती अवश्य है कि भाग्य ने उसे गीत की कड़ी क्यों नहीं बना दिया। इस कविता में जो नहीं कहा गया, वह कहे गए से अधिक महत्वपूर्ण है।