Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 2 स्मृति Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 2 स्मृति
JAC Class 9 Hindi स्मृति Textbook Questions and Answers
बोध-प्रश्न :
प्रश्न 1.
भाई के बुलाने पर घर लौटते समय लेखक के मन में किस बात का डर था ?
उत्तर :
लेखक अपने साथियों के साथ सर्दी के दिनों में बेर खाने गया हुआ था। जब गाँव के एक आदमी ने उसे बताया कि उसका बड़ा भाई उसे बुला रहा है, तो वह डर गया। उसके मन में तरह-तरह के विचार उठने लगे। उसे अपने भाई से पिटने का डर सताने लगा। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसके किस अपराध का दंड उसे दिया जाएगा। लेखक को इस बात की आशंका थी कि शायद बेर तोड़कर खाने के अपराध के कारण उसकी पिटाई हो। बड़े भाई के हाथों मार पड़ने के डर से ही वह घर में डरते-डरते घुसा था।
प्रश्न 2.
मक्खनपुर पढ़ने जाने वाली बच्चों की टोली रास्ते में पड़ने वाले कुएँ में ढेला क्यों फेंकती थी ?
उत्तर :
मक्खनपुर पढ़ने जाने वाली बच्चों की टोली के सभी बच्चे शरारती थे। लेखक भी उनमें से एक था। एक दिन जब वे सभी स्कूल से लौट रहे थे, तो उन्होंने रास्ते में पड़ने वाले कुएँ में झाँका। लेखक ने कुएँ में एक ढेला भी फेंका। उसका उद्देश्य उससे निकलने वाली आवाज़ को सुनना था। जैसे ही लेखक ने कुएँ में ढेला फेंका, तो साँप के फुंफकारने की आवाज सुनाई दी। सभी बच्चे उसको सुनकर हैरान रह गए। उसके बाद तो सभी ने उछल-उछलकर एक-एक ढेला फेंका। जब कुएँ से साँप के फुंफकारने की आवाज़ आती थी, तो वे जोर-जोर से हँसते थे। तब से वे प्रतिदिन आते-जाते उस कुएँ में ढेला फेंकते थे। ऐसा करने में उन्हें बड़ा मजा आता था।
प्रश्न 3.
‘साँप ने फुफकार मारी या नहीं, ढेला उसे लगा या नहीं, यह बात अब तक स्मरण नहीं’ – यह कथन लेखक की किस मनोदशा को स्पष्ट करता है?
उत्तर :
इस कथन से स्पष्ट होता है कि घटना के समय लेखक पूरी तरह से बदहवास था। चिट्ठियों के कुएँ में गिरते ही लेखक का ध्यान ढेले की आरे से हट गया था। उसे सिर्फ कुएँ में गिरती चिट्ठियाँ ही दिखाई दे रही थी। ढेले का कुएँ में गिरना, साँप को लगना या न लगना, साँप का फुंफकारना या न फुंफकारना- इन सबका उसे ध्यान न रहा।
प्रश्न 4.
किन कारणों से लेखक ने चिट्ठियों को कुएँ से निकालने का निर्णय लिया?
उत्तर :
लेखक को डर था कि चिट्ठियों खोने की बात सुनकर उसे बड़े भाई से अवश्य मार पड़ेगी। भाई से झूठ बोलने का साहस भी उसमें नहीं था। इसके अतिरिक्त उसे विश्वास था कि वह साँप को मारकर चिट्ठियाँ पुनः प्राप्त कर लगा, क्योंकि इसमें पहले भी वह कई साँप मार चुका था। इन्हीं सब कारणों से लेखक ने चिट्ठियों को कुएँ से निकालने का निर्णय लिया।
प्रश्न 5.
साँप का ध्यान बँटाने के लिए लेखक ने क्या-क्या युक्तियाँ अपनाईं ?
उत्तर :
लेखक को अपने भाई की चिट्ठियाँ उठाने के लिए साँप वाले कुएँ में उतरना है पड़ा। साँप साक्षात् मौत के समान उसके सामने था। उसने देखा कि कुएँ का व्यास कम होने के कारण वहाँ डंडा चलाना संभव नहीं है। अब किसी प्रकार साँप को धोखा देकर उसके पास पड़ी चिट्ठियाँ उठाने में ही भलाई थी। लेखक ने साँप का ध्यान बँटाने के लिए डंडे को साँप की विपरीत दिशा में पटका। साँप उस ओर झपटा, तो उसका स्थान बदल गया और लेखक ने तुरंत चिट्ठियाँ उठा लीं। अब लेखक ने देखा कि उसका डंडा साँप के नीचे है। उसने कुएँ की बगल से एक मुट्ठी मिट्टी लेकर साँप के दाईं ओर फेंकी। साँप उस पर झपटा और लेखक ने दूसरे हाथ से डंडा खींच लिया। साँप ने तभी दूसरा वार भी किया, किंतु डंडा बीच में होने के कारण लेखक को काट न सका। इस प्रकार लेखक चिट्ठियाँ और डंडा लेकर सकुशल कुएँ से बाहर आ गया।
प्रश्न 6.
कुएँ में उतरकर चिट्ठियों को निकालने संबंधी साहसिक वर्णन को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
लेखक अपने छोटे भाई को कुएँ के बाहर छोड़कर चिट्ठियाँ निकालने के लिए साँप वाले कुएँ में दाखिल हुआ है। उसने सोचा था कि वह डंडे से साँप को मारकर चिट्ठियाँ लेकर बाहर आ जाएगा। किंतु कुएँ का व्यास बहुत कम था; वहाँ डंडा चलाना संभव ही नहीं था। चिट्ठियाँ साँप के आस-पास ही गिरी हुई थीं। लेखक के सामने दो मार्ग थे। एक तो यह कि वह साँप को मार दे और दूसरा यह कि साँप से बिल्कुल छेड़खानी किए बगैर चिट्ठियाँ उठा ले। उसने दूसरे मार्ग को चुनने का निर्णय लिया। जैसे ही लेखक ने धीरे-धीरे साँप के पास पड़ी चिट्ठी की ओर डंडा बढ़ाया, तो साँप ने डंडे पर आक्रमण कर दिया।
लेखक के हाथ से डंडा छूट गया। उसने डंडा उठाकर फिर चिट्ठी उठाने का प्रयास किया, तो साँप ने डंडे पर पुनः वार किया और डंडे पर चिपट गया। झिझक, सहम और आतंक से लेखक की ओर डंडा खिंच गया और उसके व साँप के स्थान बदल गए। लेखक ने तुरंत चिट्ठियाँ उठाकर धोती के छोर में बाँध ली। इस तेजी में डंडा साँप के पास गिर गया था। लेखक ने कुएँ के बगल से थोड़ी-सी मिट्टी मुट्ठी में लेकर साँप के दाईं ओर फेंकी। साँप तुरंत उस मिट्टी पर झपटा और लेखक ने तेज़ी से डंडा उठा लिया। इसके बाद वह डंडा लेकर 36 फुट ऊपर चढ़कर कुएँ के बाहर सकुशल पहुँचा। उसकी बाँहें पूरी तरह थक गई थीं और छाती फूल कर धौंकनी के समान चल रही थी; किंतु चिट्ठियाँ लेकर कुएँ के बाहर पहुँच जाने की उसे बहुत प्रसन्नता हो रही थी।
प्रश्न 7.
इस पाठ को पढ़ने के बाद किन-किन बाल-सुलभ शरारतों के विषय में पता चलता है ?
उत्तर :
बचपन सदा ही अनेक खट्टी-मीठी यादों से भरा होता है। हमारे बचपन में अनेक ऐसी घटनाएँ घटती हैं, जो हमें आजीवन याद रहती हैं। व्यक्ति बचपन की शरारतों को याद करके बाद में कई बार रोमांचित होता है। बचपन में व्यक्ति सब प्रकार की चिंताओं से बेपरवाह होता है। इस पाठ के आरंभ में ही लेखक का अपने बचपन में साथियों के साथ झरबेरी के बेर तोड़-तोड़कर खाना और इधर-उधर घूमने का वर्णन है। लेखक और उसके साथी रास्ते में पड़ने वाले कुएँ में झाँककर और ढेला फेंककर शरारत करते हैं। जब कुएँ का सांप उनके ढेले पर फुंफकारता है, तो उन्हें बड़ा मज़ा आता है। बचपन में हम असंभव से असंभव काम को करने के लिए भी तैयार हो जाते हैं। लेखक का साँप वाले कुएँ में घुसकर चिट्ठियाँ निकालने का निर्णय लेना भी ऐसा ही असंभव कार्य था।
प्रश्न 8.
‘मनुष्य का अनुमान और भावी योजनाएँ कभी-कभी कितनी मिथ्या और उल्टी निकलती हैं’-का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस पंक्ति के माध्यम से लेखक स्पष्ट करना चाहता है कि कई बार मनुष्य सोचता कुछ है, किंतु होता कुछ और है। मनुष्य अपनी बुद्धि से सोच-समझकर अनुमान लगाता है और भावी योजनाएँ बनाता है, लेकिन समय आने पर वे सभी अनुमान और योजनाएँ निरर्थक सिद्ध होती हैं। उसकी सारी बातें धरी की धरी रह जाती हैं। इस पाठ में भी लेखक साँप को डंडे से मारने की योजना बनाकर कुएँ में उतरता है, परंतु कुएँ के धरातल पर पहुँचकर वह देखता है कि उसका अनुमान और योजना बिल्कुल गलत थी। कुएँ का व्यास कम होने के कारण वहाँ डंडा चलाने का स्थान ही नहीं था। लेखक द्वारा लगाया गया अनुमान और उसकी योजना व्यर्थ सिद्ध होती है।
प्रश्न 9.
‘फल तो किसी दूसरी शक्ति पर निर्भर है’ – पाठ के संदर्भ में इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस पंक्ति के माध्यम से लेखक स्पष्ट करना चाहता है कि जब कोई व्यक्ति दृढ़ संकल्प कर लेता है, तो फिर वह फल की चिंता नहीं करता। किसी भी कार्य की सुखद या दुखद समाप्ति ईश्वर की इच्छा पर निर्भर करती है। लेखक ने कुएँ में घुसकर चिट्ठियाँ निकालने का साहसिक निर्णय लिया। वह चिट्ठियों के लिए साँप से टकराने को तैयार था। उसने तो दृढ़ संकल्प कर लिया था और अब उसे फल की कोई चिंता नहीं थी। अब चाहे मौत का आलिंगन होता अथवा साँप से बचकर उसे दूसरा जन्म मिलता, उसने पीछे न हटने का निर्णय लिया था। उसने सबकुछ ईश्वर के ऊपर छोड़ दिया था।
JAC Class 9 Hindi स्मृति Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
लेखक और उसका भाई कुएँ के बाहर बैठे क्यों रो रहे थे ?
उत्तर :
लेखक और उसके भाई के रोने का कारण यह था कि वे अपने बड़े भाई द्वारा डाक में डालने वाली चिट्ठियाँ साँप को ढेला मारने के चक्कर में कुएँ में गिरा बैठे थे। लेखक ने चिट्ठियाँ टोपी के नीचे रखी हुई थीं। अपनी प्रतिदिन की आदत के अनुसार जैसे ही उसने टोपी उतारकर कुएँ में ढेला फेंका, तो चिट्ठियाँ उड़कर कुएँ में जा गिरीं। कुएँ में साँप होने के कारण उसमें से चिट्ठियाँ निकालना आसान नहीं था। यदि वे घर जाकर यह बात बताते, तो पिटने का डर था। अतः पिटने के डर के कारण लेखक और उसका छोटा भाई कुएँ के बाहर बैठकर रोने लगे थे।
प्रश्न 2.
लेखक अपने बचपन में किस वस्तु से अधिक मोह रखता था और क्यों ?
उत्तर :
लेखक अपने बचपन में बबूल के डंडे से बहुत अधिक मोह रखता था। वह डंडा उसे रायफल से भी अधिक प्रिय था। उस डंडे से अधिक मोह होने का एक कारण यह भी था कि वह उसके द्वारा अनेक साँप मार चुका था। इसके अतिरिक्त इसी डंडे की सहायता से उसने अनेक बार आम तोड़े थे। लेखक अपने डंडे को गरुड़ की संज्ञा देता है। उसे अपना निर्जीव डंडा सजीव प्रतीत होता था।
प्रश्न 3.
मक्खनपुर पढ़ने जाने वाले बच्चों की क्या आदत बन गई थी ?
उत्तर :
मक्खनपुर पढ़ने जाने वाले बच्चों की यह आदत बन गई थी कि जब भी वे गाँव से मक्खनपुर जाते, तो लौटते समय रास्ते में पड़ने वाले कुएँ में पत्थर अवश्य फेंकते। उस कुएँ में एक साँप रहता था। जब वे कुएँ में पत्थर फेंकते, तो साँप की फुंफकारने की आवाज़ सुनाई देती। उस आवाज़ को सुनकर उन्हें मज़ा आता था। इसी आदत के कारण लेखक को एक बार भारी कठिनाई का भी सामना करना पड़ा। लेखक और उसका छोटा भाई मक्खनपुर डाकखाने में चिट्ठियाँ डालने जा रहे थे, तो अपनी पुरानी आदत के अनुसार लेखक ने ज्यों ही टोपी हाथ में लेकर कुएँ में मिट्टी का ढेला फेंका तो उसकी टोपी में रखी चिट्ठियाँ कुएँ में जा गिरी थीं।
प्रश्न 4.
लेखक के अनुसार दुविधा की बेड़ियाँ किस प्रकार कट जाती हैं ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार दृढ़ संकल्प तथा स्थिति का सामना करने की इच्छा से दुविधा की बेड़ियाँ कट जाती हैं। दृढ़ संकल्प मनुष्य को किसी भी खतरे का सामना करने के लिए तैयार कर देता है।
प्रश्न 5.
इस संस्मरण में से तीन ऐसे वाक्य चुनकर लिखिए, जो आपको बहुत अच्छे लगे हों ?
उत्तर :
- दृढ़ संकल्प से दुविधा की बेड़ियाँ कट जाती हैं।
- मार के ख्याल से शरीर ही नहीं मन भी काँप जाता था।
- दिन का बुढ़ापा बढ़ता जाता था।
प्रश्न 6.
लेखक किस समय की बात कर रहा था ? उस समय उसकी और उसके भाई की क्या आयु थी ?
उत्तर :
लेखक अपने बचपन की बात कर रहा था। सन् 1908 दिसंबर के अंत में यह घटना घटी थी। सर्दी का मौसम था। उस समय लेखक ग्यारह वर्ष का और उसका भाई आठ वर्ष का था। घटना उस समय की है, जब दोनों भाई बड़े भाई के कहने पर मक्खनपुर डाकखाने में चिट्ठियाँ डालने गए थे।
प्रश्न 7.
जिस कुएँ में साँप रहता था, वह कुआँ कैसा था ?
उत्तर :
जिस कुएँ में साँप रहता था, वह कुआँ गाँव से चार फर्लांग की दूरी पर था। कुआँ कच्चा था तथा चौबीस हाथ गहरा था। उस कच्चे कुएँ का व्यास ऊपर अधिक और नीचे बहुत कम था। नीचे का व्यास डेढ़ गज से अधिक नहीं था। कुएँ में पानी नहीं था।
प्रश्न 8.
लेखक ने अपनी आदत के अनुसार क्या किया और उसका क्या परिणाम निकला ?
उत्तर :
लेखक स्कूल से आते-जाते समय कुएँ में रह रहे साँप को पत्थर मारता था। जब वह मक्खनपुर डाकखाने में चिट्ठियाँ डालने जा रहा था, उस समय आदत के अनुसार उसने हाथ में टोपी घुमाते हुए कुएँ में पत्थर फेंका। उस समय वह भूल गया था कि उसने टोपी में चिट्ठियाँ रखी हुई हैं। टोपी हाथ में लेते ही चिट्ठियाँ कुएँ में जा गिरीं।
प्रश्न 9.
लेखक को माँ की गोद क्यों याद आ रही थी ?
उत्तर :
लेखक से चिट्ठियाँ उस कुएँ में गिर गई थीं, जिसमें साँप रहता था। वहाँ से चिट्ठियाँ निकालना कठिन था। दोनों भाई घबरा गए। छोटा भाई घबराकर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। लेखक को भी रोना आ रहा था, पर वह खुलकर रो नहीं पा रहा था; उसे अपने बड़े भाई से पिटने का डर सता रहा था। उस समय उसे माँ की गोद याद आ रही थी। वह चाह रहा था कि माँ उसे छाती से लगा ले और कह दे कि चिट्ठियाँ ही थीं; वे फिर से लिखी जा सकती हैं। उस समय लेखक को माँ की गोद के अतिरिक्त कोई सहारा दिखाई नहीं दे रहा था।
प्रश्न 10.
‘पर उस नग्न मौत से मुठभेड़ के लिए मुझे भी नग्न होना पड़ा।’ लेखक ने ऐसा क्यों कहा?
उत्तर :
‘पर उस नग्न मौत से मुठभेड़ के लिए मुझे भी नग्न होना पड़ा’ से लेखक का अभिप्राय यह था कि कुएँ में साक्षात मौत-रूपी साँप था, जो मुकाबला करने उसे डँसने का इंतजार कर रहा था। वास्तव में मौत सजीव और नग्न रूप में कुएँ में बैठी थी। उस मौत से के लिए लेखक ने अपनी और अपने भाई की पहनी हुई धोती उतार लीं। साथ में ठंड से बचने के लिए कानों पर लपेट रखी धोती भी उतार लीं। इस प्रकार धोतियों को गाँठ मारकर रस्सी बनाई। इसलिए लेखक ने कहा कि नग्न मौत से लड़ने के लिए उसे नंगा होना पड़ा।
प्रश्न 11.
लेखक को स्वयं पर विश्वास क्यों था ?
उत्तर :
लेखक को विश्वास था कि वह कुएँ में उतरकर व साँप को मारकर चिट्ठियाँ ले आएगा। इसका कारण यह था कि उसने अपने डंडे से पहले भी बहुत सारे साँप मारे थे। वह साँप को मारना बाएँ हाथ का खेल समझता था। इसलिए उसने अपने छोटे भाई को आश्वासन दिया कि वह कुएँ में उतरते ही साँप को मार देगा।
प्रश्न 12.
पाठ के आधार पर लेखक की किन विशेषताओं का पता चलता है ?
उत्तर :
‘स्मृति’ पाठ के लेखक ‘ श्रीराम शर्मा’ हैं। लेखक ने इस पाठ में अपने बचपन की एक साहसिक घटना का वर्णन किया है। जिस समय लेखक के साथ यह घटना घटी, उस समय वह ग्यारह वर्ष का था। पाठ के आधार पर पता चलता है कि लेखक बहुत साहसी, निर्भीक, सूझ-बूझ वाला और फुर्तीला था। उसने अपनी सूझ-बूझ और साहस से कुएँ में रहने वाले विषधर का मुकाबला किया और चिट्ठियों को बड़ी फुर्ती से उठाकर सुरक्षित बाहर आ गया।
प्रश्न 13.
तीनों पत्र कुएँ में कैसे गिर गए ?
उत्तर :
लेखक अपने छोटे भाई के साथ तीनों पत्रों को डाकखाने में डालने के लिए जा रहा था। रास्ते में गाँव से चार फर्लांग की दूरी पर एक कुआँ था, जिसमें पानी नहीं था। वे दोनों रोज़ यहाँ आकर रुकते थे तथा कुएँ के अंदर बैठे साँप को पत्थर मारते थे। आज भी उन्होंने टोपी उतारते हुए नीचे कुएँ में जैसे ही एक ढेला उठाकर फेंका, तीनों पत्र सर- सराकर नीचे गिर पड़े, क्योंकि लेखक ने तीनों पत्र टोपी के नीचे रखे हुए थे।
प्रश्न 14.
छोटे भाई को कैसे लगा कि उसके भाई का काम तमाम होने वाला है ?
उत्तर :
कुएँ में से फूँ-फूँ और लेखक के उछलने की आवाजें सुनकर छोटे भाई को लगा कि उसके भाई का काम तमाम होने वाला है। अब वह नहीं बच सकता। साँप बार-बार डंक मार रहा था और लेखक अपने डंडे द्वारा बचने का प्रयास कर रहा था। यह दृश्य देखकर लेखक के छोटे भाई के मुख से चीख निकल गई और उसे विश्वास हो गया कि अब अवश्य साँप उसके भाई को डँस लेगा।
प्रश्न 15.
कुएँ के बाहर आ जाने पर लेखक की बाँहें क्यों थक गई थीं ?
उत्तर :
लेखक साँप को चकमा देकर 36 फुट ऊपर हाथों के बल पर चढ़ गया। यह कार्य कोई आसान काम नहीं था। इस काम में उसकी जान का जोखिम था। उसकी छाती फूल कर धौंकनी के समान चल रही थी। बिना रुके 36 फुट हाथों के सहारे ऊपर चढ़ना अपने आप में एक कठिन कार्य था। इसलिए लेखक की बाँहें थक गई थीं।
स्मृति Summary in Hindi
पाठ का सार :
श्रीराम शर्मा द्वारा रचित ‘स्मृति’ संस्मरण उनके बचपन की एक साहसपूर्ण घटना का स्मरण करवाते हुए बच्चों को जीवन में साहस और विवेक से काम लेने की प्रेरणा देता है। यह घटना सन् 1908 ई० की भयंकर सर्दियों की एक शाम को साढ़े तीन-चार बजे की है, जब लेखक अपने साथियों के साथ झरबेरी के बेर खा रहा था। उस समय वह ग्यारह वर्ष का था। उसके साथ उसका आठ वर्षीय छोटा भाई भी था। तभी उसे घर से बड़े भाई का बुलावा आया। वे डरते-डरते घर गए कि कहीं चोरी से बेर तोड़कर खाने पर मार न पड़े।
परंतु भाई ने उन्हें मक्खनपुर डाकखाने में डालने के लिए पत्र दिए और जल्दी से जाकर डाल आने के लिए कहा, जिससे आज शाम की डाक से पत्र निकल जाएँ। पत्रों को अपनी टोपी में रखकर, कानों को ठंड से बचाने के लिए धोती से बाँध कर और अपना-अपना डंडा लेकर दोनों भाई प्रसन्नतापूर्वक मक्खनपुर चल दिए। दोनों भाई उछलते-कूदते गाँव से चार फर्लांग दूर उस कुएँ के पास पहुँच गए जिसमें पानी नहीं था, पर एक साँप रहता था। स्कूल जाते समय वे तथा अन्य बच्चे कुएँ में पत्थर फेंककर साँप की फुफकार सुनते थे।
आज भी उसने कुएँ के किनारे से एक ढेला उठाया और उछलकर एक हाथ से टोपी उतारते हुए साँप पर ढेला फेंक मारा। इस बीच तीनों पत्र भी चक्कर काटते हुए कुएँ में गिरने लगे, क्योंकि पत्र उसने टोपी में रखे हुए थे। इन पत्रों को पकड़ने के लिए उसने झपट्टा भी मारा, पर वे उसकी पहुँच से बाहर होने के कारण कुएँ में जा गिरे। कुएँ में भयंकर साँप था। वहाँ से पत्र निकालना संभव नहीं था।
इसलिए दोनों कुएँ के किनारे पर बैठकर रोने लगे। उसे माँ की याद आ रही थी और वह चाह रहा था कि माँ उसे छाती से लगा ले और प्यार से कह दे कि कोई बात नहीं, चिट्ठियाँ फिर लिख ली जाएँगी। उसका मन यह भी कह रहा था कि कुएँ में गिरी हुई चिट्ठियों पर मिट्टी डाल दी जाए और घर जाकर कह दिया जाए कि चिट्ठियाँ डाल आए हैं, पर वह झूठ नहीं बोलना चाहता था। घर जाकर सच बोलने पर उसे पिटने का भय था। इसी दुविधा में सोचते – विचारते और सिसकते हुए उसे पंद्रह मिनट हो गए।
अंत में उसने निश्चय किया कि वह कुएँ में घुसकर चिट्ठियाँ निकालेगा। पाँच धोतियाँ और कुछ रस्सी मिलाकर कुएँ की गहराई तक जाने का प्रबंध करने के बाद धोती के एक सिरे से डंडा बाँधकर कुएँ में डाल दिया तथा दूसरे सिरे को कुएँ की डेंग से बाँधकर छोटे भाई को दे दिया। इसके बाद वह धोती के सहारे कुएँ में घुसने लगा, तो उसका भाई रोने लगा। उसने यह कहकर उसे तसल्ली दी कि वह कुएँ में जाते ही साँप को मारकर चिट्ठियाँ ले आएगा, क्योंकि इससे पहले भी वह अनेक साँप मार चुका है।
जैसे ही वह कुएँ के धरातल से चार- पाँच गज़ ऊपर तक पहुँचा, तो यह देखकर भयभीत हो गया कि साँप फन फैलाए धरातल से एक हाथ ऊपर उठकर लहरा रहा है। रस्सी के नीचे बँधे हुए डंडे के हिलने से साँप क्रोधित होकर फन फैलाए खड़ा था। दोनों हाथों से धोती पकड़कर उसने अपने पाँव कुएँ की बगल में लगाए जिससे दीवार से कुछ मिट्टी नीचे गिर गई और उस जिस पर साँप ने फुंफकार कर मुँह मारा। वह किसी तरह अपने पैर कुएँ की बगल में सटाकर कुएँ के दूसरी ओर साँप से डेढ़ गज की दूरी पर धरातल पर खड़ा हो गया।
डंडे से साँप को मारने की संभावना पर विचार करने पर यह उसे संभव नहीं लगता, क्योंकि वहाँ डंडा घुमाने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं था। दो चिट्ठियाँ साँप के पास पड़ी हुई थीं। उसने डंडे से साँप के ओर की चिट्ठियाँ अपनी ओर सरकाने का प्रयास किया जैसे ही उसका डंडा चिट्ठियों के पास पहुँचा साँप ने फुंफकार कर डंडे पर डंक मारा।
कुएँ में फूँ-फूँ और लेखक के उछलने की आवाजें सुनकर उसके छोटे भाई को लगा कि पुनः उसके भाई का काम तमाम हो गया है। उसके मुँह से चीख निकल गई। पर किया और डंडे से चिपक भी गया। जैसे ही लेखक ने डंडा अपनी ओर खींचा, साँप का पिछला भाग उसके हाथों को छू गया तथा डंडे को उसने एक तरफ पटक दिया। डंडे को अपनी ओर खींचने से लेखक और साँप के आसन बदल गए थे। अतः उसने फौरन लिफ़ाफ़े और पोस्टकार्ड उठाकर धोती के छोर में बाँधे, जिन्हें छोटे भाई ने ऊपर खींच लिया। डटा रहा और उसने डंडे के सहारे पुनः पत्र उठाने का प्रयास किया।
इस बार साँप ने डंडे पर वार भी अब उसके सामने डंडे को उठाने की समस्या थी, क्योंकि साँप डंडे पर बैठा हुआ था। तब उसने कुएँ की बगल से मिट्टी लेकर दायी ओर फेंकी, जिस पर साँप झपटा और वह डंडा लेकर 36 फुट ऊपर चढ़ गया। हालाँकि इस कार्य में उसकी बाहें थक गई थीं तथा छाती फूल कर धौंकनी के समान चल रही थी। ऊपर आकर कुछ देर वह बेहाल पड़ा रहा तथा किशनपुर के उस लड़के को; जिसने उसे ऊपर चढ़ते हुए देखा था; तथा अपने छोटे भाई को किसी से भी इस घटना का जिक्र करने से मना कर दिया।
सन् 1915 में जब लेखक ने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली, तो माँ को यह घटना सुनाई। उन्होंने अपने आँसुओं से भरे नेत्रों के साथ उसे गोद में ऐसे बैठा लिया, जैसे कोई चिड़िया अपने बच्चों को पंखों के नीचे छिपा लेती अपने अतीत के उन दिनों को लेखक बहुत अच्छा मानता है, जब रायफल के बिना डंडे से ही वह साँप के शिकार करता था।
कठिन शब्दों के अर्थ :
- चिल्ला जाड़ा – बहुत अधिक सर्दी।
- सहमा हुआ – डरा हुआ।
- कसूर – अपराध, दोष।
- आशंका – संदेह।
- प्रकोप – तेज़ी, आतंक।
- किलोल – क्रीड़ा।
- प्रवृत्ति – आदत।
- मृगशावक – हिरण का बच्चा।
- बिजली-सी गिरना – मुसीबत आना।
- अकस्मात् – अचानक।
- हत – आहत।
- उद्वेग – व्याकुलता, घबराहट।
- कपोल – गाल।
- दुधारी – दो तरफ धार वाली।
- दृढ़ – मज़बूत।
- संकल्प – इरादा।
- विषधर – साँप।
- बूता – बल।
- ठानना – निश्चय करना।
- धरातल – तल, धरती।
- अक्ल चकराना – घबरा जाना।
- प्रतिद्वंद्वी – दुश्मन, शत्रु, वैरी, दो समान विरोधी।
- व्यास – घेरा।
- पीठ दिखाना – मैदान छोड़कर भाग जाना।
- एकाग्रचित्तता – ध्यान केंद्रित करना।
- चक्षुःश्रवा – आँखों से सुनने वाला।
- मोहनी-सी डालना – मोहित कर देना।
- आकाश-कुसुम – काल्पनिक पुष्प, कठिन कार्य।
- मिथ्या – गलत, झूठी।
- अवलंबन – सहारा, आश्रय।
- बाध्य – मज़बूर।
- उपहास – मज़ाक।
- उपरांत – बाद में।
- नाकीद – किसी बात के लिए ज़ोर देकर अनुरोध करना।
- डैने – पंख।