Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Vyakaran अलंकार Questions and Answers, Notes Pdf.
JAC Board Class 9 Hindi Vyakaran अलंकार
परिभाषा – अलंकार का सामान्य अर्थ होता है-शोभा, शृंगार, आभूषण या अलंकृत करना। लोकभाषा में इसे गहना कहते हैं। अलंकार कविता की शोभा को बढ़ाने का काम करते हैं। ये स्वयं शोभा नहीं होते अपितु कविता की शोभा बढ़ाने वाले तत्व होते हैं। संस्कृत के विद्वानों ने इसीलिए कहा है- ‘अलंकरोति इति अलंकार:’ अर्थात जो शोभा बढ़ाए उसे अलंकार कहते हैं।
कविता में कभी शब्द विशेष का प्रयोग कविता को शोभा प्रदान करता है तो कभी अर्थ अर्थात शब्द और अर्थ में चमत्कार उत्पन्न कर कविता की शोभा बढ़ाने वाले तत्व को अलंकार कहते हैं।
कविता में चमत्कार और सौंदर्य उत्पन्न करने में शब्द और अर्थ दोनों का समान महत्व होता है। कहीं शब्द विशेष के प्रयोग के कारण कविता की शोभा बढ़ जाती है तो कहीं अर्थ चमत्कार के कारण। जहाँ शब्द विशेष के कारण चमत्कार उत्पन्न होता है, वहाँ शब्दालंकार होते हैं। जब अर्थ विशेष आकर्षण को उत्पन्न करता है, वहाँ अर्थालंकार होता है। कविता में जहाँ चमत्कार शब्द और अर्थ दोनों पर आश्रित होता है, उन्हें उभयालंकार कहते हैं। अलंकार के प्रमुख रूप से दो भेद माने जाते हैं-शब्दालंकार और अर्थालंकार।
शब्दालंकार :
काव्य में जहाँ शब्द विशेष से चमत्कार की उत्पत्ति होती है, वहाँ शब्दालंकार होता है। यदि किसी शब्द विशेष को हटाकर वहाँ कोई अन्य समानार्थी शब्द रख दिया जाए तो वहाँ अलंकार नहीं रहता। प्रमुख शब्दालंकार हैं- अनुप्रास, यमक, श्लेष।
1. अनुप्रास अलंकार
लक्षण – जहाँ व्यंजनों की बार-बार आवृत्ति के कारण चमत्कार उत्पन्न हो, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण –
चारु चंद्र की चंचल किरणें,
खेल रही थीं जल-थल में।
यहाँ ‘च’ व ‘ल’ वर्ण की आवृत्ति के कारण चमत्कार उत्पन्न हुआ है। अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
विशेष – व्यंजनों की आवृत्ति के साथ स्वर कोई भी आ सकता है अर्थात् जहाँ स्वरों की विषमता होने पर भी व्यंजनों की एक क्रम से आवृत्ति हो वहाँ ‘अनुप्रास’ अलंकार होता है; जैसे –
क्या आर्यवीर विपक्ष वैभव देखकर डरते नहीं।
यहाँ ‘व’ के साथ भिन्न-भिन्न स्वरों का प्रयोग होने पर भी ‘अनुप्रास’ अलंकार है। विद्यार्थी सुविधानुसार निम्नलिखित उदाहरण कंठस्थ कर सकते हैं –
1. तरनि- तनूजा – तट तमाल तरुवर बहु छाए।
2. तजकर तरल तरंगों को,
इंद्रधनुष के रंगों को। (‘त’ की आवृत्ति)
3. साध्वी सती हो गई। (‘स’ की आवृत्ति)
4. तुम तुंग हिमालय श्रृंग,
और मैं चंचल गति सुर- सरिता। (‘त’ और ‘स’ की आवृत्ति)
5. मैया मैं नहिं माखन खायो। (‘म’ की आवृत्ति)
6. बसन बटोरि बोरि – बोरि तेल तमीचर। (‘ब’ की आवृत्ति)
7. सत्य सनेहसील सुख सागर। (‘स’ की आवृत्ति)
8. मुदित महीपति मंदिर आए।
सेवक सचित सुमंत बुलाए। (‘म’ और ‘स’ की आवृत्ति)
9. संसार की समरस्थली में धीरता धारण करो। (‘स’ और ‘ध’ की आवृत्ति)
10. मधुर मधुर मुस्कान मनोहर। (‘म’ की आवृत्ति)
11. बंदऊँ गुरुपद पदुम परागा।
सुरुचि सुवास सरस अनुरागा। (‘प’ तथा ‘स’ की आवृत्ति)
12. रघुपति राघव राजा राम। (‘र’ वर्ण की आवृत्ति)
13. सखी, निरख नदी की धारा। (‘न’ वर्ण की आवृत्ति)
14. सठ सुधरहिं सत संगति पाई।
पारस परसि कुधातु सुहाई ॥ (‘स’ तथा ‘प’ वर्ण की आवृत्ति)
15. सुधा सुरा सम साधु असाधू।
जनक एक जग जलधि अगाधू। (‘स’ और ‘ज’ वर्ण की आवृत्ति)
16. सुरभित सुंदर सुखद सुमन तुझ पर खिलते हैं (‘स’ वर्ण की आवृत्ति)
17. इस सोते संसार बीच (‘स’ वर्ण की आवृत्ति)
18. बैठे किंशुक छत्र लगा बाँध पाग – पीला। (‘प’ वर्ण की आवृत्ति)
19. भज दीनबंधु दिनेश दानव दैत्यवंश निकनंदनम। (‘द’ वर्ण की आवृत्ति)
20. कितनी करुणा कितने संदेश। (‘क’ वर्ण की आवृत्ति)
2. यमक अलंकार
यमक अलंकार में एक ही शब्द या शब्दांश की आवृत्ति होती है परंतु प्रत्येक बार शब्द या शब्दांश का अर्थ भिन्न-भिन्न होता है।
लक्षण – जहाँ एक शब्द अथवा शब्द- समूह का एक से अधिक बार प्रयोग हो परंतु प्रत्येक बार उसका अर्थ भिन्न-भिन्न हो, वहाँ यमक अलंकार होता है। जहाँ पर निरर्थक अथवा भिन्न-भिन्न अर्थ वाले सार्थक समुदाय का अनेक बार प्रयोग हो, वहाँ यमक अलंकार होता है।
इसे याद रखने का सूत्र है – वह शब्द पुनि-पुनि परै अर्थ भिन्न ही भिन्न।
उदाहरण –
कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय,
या खाए बौराय नर, वाह पाए बौराय।
‘सोने’ में ‘ धतूरे’ से भी सौ गुना नशा अधिक होता है। उसको (धतूरे को) खाने से मनुष्य पागल अर्थात् नशे का अनुभव करता है। इसको (सोने को) प्राप्त कर लेने मात्र से नशे का अनुभव करने लगता है।
यहाँ ‘कनक’ शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है परंतु प्रत्येक बार उसका अर्थ भिन्न-भिन्न है।
पहले ‘कनक’ का अर्थ ‘ धतूरा’ है तथा दूसरे ‘कनक’ का अर्थ ‘सोना’ है।
अतः यहाँ यमक अलंकार का चमत्कार है।
अन्य उदाहरण –
तो पर वारौं उरबसी, सुन राधिके सुजान।
तू मोहन के उरबसी, है उरवसी समान ॥
उरबसी –
(क) उर्वशी नामक अप्सरा।
(ख) उर (हृदय) में बसी हुई।
(ग) गले में पहना जाने वाला आभूषण।
उदाहरण –
1. माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर ॥
(मनका माला का दाना, मन का = हृदय का)
(फेर = हेरा-फेरी, चक्कर, फेर = फेरना)
2. कहे कवि बेनी बेनी ब्याल की चुराई लीनी।
(बेनी = कवि का नाम, चोटी)
3. तीन बेर खाती थीं वे तीन बेर खाती हैं।
(तीन बेर = तीन बार, बेर के तीन फल)
4. काली घटा का घमंड घटा।
(घटा = बादल, कम होना)
5. रति रति सोभा सब रति के शरीर की।
(रति-रति = ज़रा-ज़रा-सी, कामदेव की पत्नी)
6. जेते तुम तारे तेते नभ में न तारे हैं।
(तारे = उद्धार किया, सितारे)
7. खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा।
(कुल = परिवार, कुल-कुल = पक्षियों की चहचहाहट)
8. लहर-लहर कर यदि चूमे तो, किंचित विचलित मत होना।
(लहर तरंग, मचलना)
9. गुनी गुनी सब के कहे, तिगुनी गुनी न होतु।
सुन्यो कहुँ तरु अरक तैं, अरक समानु उदोतु ॥
(अरक = आक का पौधा, सूर्य)
10. ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहनवारी,
ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहाती हैं।
(मंदर = महल, = महल, पर्वत)
11. जगती जगती की मूक प्यास।
(जगती जागती, जगत, संसार)
3. श्लेष अलंकार
लक्षण – श्लेष का अर्थ है – चिपका हुआ। काव्य में जहाँ एक शब्द के साथ अनेक अर्थ चिपके हों, अर्थात् जहाँ एक ही शब्द के एक से अधिक अर्थ निकलें, वहाँ श्लेष अलंकार होता है।
उदाहरण –
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती, मानुस, चून ॥
(कवि रहीम कहते हैं कि मनुष्य को पानी अर्थात अपनी इज्जत अथवा मान-मर्यादा की रक्षा करनी चाहिए। बिना पानी के सब सूना है, व्यर्थ है। पानी के चले जाने से मोती का, मनुष्य का और चूने का कोई महत्त्व नहीं।)
यहाँ ‘पानी’ शब्द के तीन अर्थ हैं।
(1) मोती के पक्ष में ‘पानी’ का अर्थ है ‘चमक’, (2) मनुष्य के पक्ष में ‘पानी’ का अर्थ है ‘इज्जत’, (3) चून (आटा) के पक्ष में ‘पानी’ का अर्थ है पानी (जल)। पानी के बिना आटा नहीं गूँधा जा सकता।
यहाँ ‘पानी’ शब्द के एक से अधिक अर्थ निकलते हैं। अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।
श्लेष अलंकार के कुछ अन्य उदाहरण हैं –
विपुल धन अनेकों रत्न हो साथ लाए।
प्रियतम बतला दो लाल मेरा कहाँ है ॥
यहाँ ‘लाल’ शब्द के दो अर्थ पुत्र और मणि हैं।
को घटि ये वृष भानुजा, वे हलधर के वीर।
यहाँ वृषभानु की पुत्री अर्थात् राधिका और वृष की अनुजा अर्थात् बैल की बहन है। हलधर से बलराम और हल को धारण करने वाले का अर्थ है।
नर की अरु नल नीर की, गति एके कर जोय।
जेतो नीचो ह्वै चले, तेतो ऊँचो होय।
यहाँ ‘नीचो’ का अर्थ नीचे की तरफ़ तथा नम्र और ‘ऊँचो’ का अर्थ ऊँचाई की ओर तथा सम्मान है।
पी तुम्हारी मुख बास तरंग, आज बौरे भौरे सहकार।
हे सखि ! तुम्हारे मुख की सुगंध की तरंगों से भौरे बौरा गए हैं अर्थात मस्त हो गए हैं, उधर सहकार अर्थात् आम भी बौरा रहे हैं अर्थात् आमों पर मंजरियाँ निकल रही हैं। यहाँ ‘बौरे’ शब्द के दो अर्थ हैं। अतः ये श्लेष अलंकार हैं।
अन्य उदाहरण –
1. मधुवन की छाती को देखो,
सूखी कितनी इसकी कलियाँ।
(कलियाँ खिलने से पूर्व की अवस्था, यौवन की अवस्था, यौवन पूर्व की अवस्था)
2. मेरी भव बाधा हरो राधा नागरि सोइ।
जा तन की झाँईं परै, स्यामु हरित दुति होय ॥
(स्याम = श्रीकृष्ण, काला / गहरा नीला, दुख, पीड़ा)
3. बड़े न हूजे गुनन बिनु, बिरद बड़ाई पाइ।
कहत धतूरे सौं कनक, गहनौ गढ्यो न जाइ ॥
(कनक = सोना, धतूरा)
4. सुबरन को ढूँढ़त फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर।
(सुबरन के तीन अर्थ हैं-‘कवि’ के संदर्भ में, ‘सुबरन’ का अर्थ है – अच्छा शब्द, ‘व्यभिचारी’ के संदर्भ में ‘सुबरन’ का अर्थ है – अच्छा रूप रंग तथा ‘चोर’ के संदर्भ में ‘सुबरन’ का अर्थ है – स्वर्ण (सोना)।
अर्थालंकार
अर्थालंकार का संबंध भावों की सुंदरता से है। इसके द्वारा भावों की अनुभूति चमत्कारपूर्ण ढंग से व्यक्त होती है। अर्थात् जहाँ काव्य में अर्थ के कारण आकर्षण उत्पन्न होता है, उसे अर्थालंकार कहते हैं। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति आदि इसके विभिन्न प्रकार हैं।
1. उपमा अलंकार :
जिस काव्य पंक्ति में किसी जग प्रसिद्ध व्यक्ति या वस्तु की तुलना सामान्य वस्तु को अच्छा बताने के लिए असामान्य वस्तु से की जाती है, वहाँ उपमा अलंकार होता है।
उपमा – उपमा अलंकार के चार अंग हैं –
(1) उपमेय (2) उपमान (3) वाचक शब्द (4) साधारण धर्म।
1. उपमेय – जिसकी समता की जाती है, उसे उपमेय कहते हैं।
2. उपमान – जिससे समता की जाती है, उसे उपमान कहते हैं।
3. वाचक शब्द – उपमेय और उपमान की समता प्रकट करने वाले शब्द को वाचक शब्द कहते हैं।
4. साधारण धर्म -उपमेय और उपमान में गुण (रूप, रंग आदि) की समानता को साधारण धर्म कहते हैं।
उपमा अलंकार का लक्षण – जहाँ रूप, रंग या गुण के कारण उपमेय की उपमान से तुलना की जाए, वहाँ उपमा अलंकार होता है। उदाहरण – पीपर पात सरिस मन डोला।
(पीपल के पत्ते के समान मन डोल उठा)
उपमेय – मन
उपमान – पीपर पात
वाचक शब्द – सरिस (समान)
साधारण धर्म – डोला
जिस उपमा में चारों अंग होते हैं, उसे पूर्णोपमा कहते हैं। इनमें से किसी एक अथवा अधिक के लुप्त होने से लुप्तोपमा अलंकार होता है। अत: उपमा दो प्रकार की होती है – (1) पूर्णोपमा (2) लुप्तोपमा।
अन्य महत्वपूर्ण उदाहरण –
1. हो क्रुद्ध उसने शक्ति छोड़ी एक निष्ठुर नाग-सी।
(उसने क्रोध से भरकर एक शक्ति (बाण) छोड़ी जो साँप के समान भयंकर थी।) यहाँ ‘शक्ति’ उपमेय की ‘नाग’ उपमान से तुलना होने के कारण उपमा अलंकार है।
2. वह किसलय के से अंग वाला कहाँ है।
(यहाँ ‘ अंग’ उपमेय की ‘किसलय’ उपमान से तुलना है।)
3. यहाँ कीर्ति चाँदनी-सी, गंगा जी की धारा-सी
सुचपला की चमक से सुशोभित अपार है।
(धर्मलुप्त है अतः यहाँ लुप्तोपमा अलंकार है।)
4. मुख बाल – रवि सम
लाल होकर ज्वाला-सा बोधित हुआ।
(यहाँ क्रोध से लाल मुख की प्रातः कालीन सूर्य से तुलना है।)
5. नील गगन सहृदय शांत-सा सो रहा।
6. हरिपद कोमल कमल से।
7. गंगा का यह नीर अमृत के सम उत्तम है।
8. कबीर माया मोहिनी, जैसे मीठी खांड।
9. तारा – सी तुम सुंदर।
10. नंदन जैसे नहीं उपवन है कोई।
11. सिंहनी – सी काननों में, योगिनी-सी शैलों में,
शफरी-सी जल में,
विहंगिनी – सी व्योम में,
जाती अभी और उन्हें खोज कर लाती मैं।
12. रति सम रमणीय मूर्ति राधा की।
13. पड़ी थी बिजली-सी विकराल।
14. वह नव नलिनी से नयन वाला कहाँ है ?
15. नदियाँ जिनकी यशधारा-सी, बहती हैं अब भी निशि – बासर।
16. सूरदास अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यों पागी।
17. असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी।
18. सिंधु – सा विस्तृत और अथाह,
एक निर्वासित का उत्साह।
19. हाय फूल – सी कोमल बच्ची।
हुई राख की थी ढेरी ॥
20. वह दीपशिखा -सी शांत भाव में लीन।
21. यह देखिए, अरविंद से शिशुवृंद कैसे सो रहे।
22. तब तो बहता समय शिला-सा जम जाएगा।
23. चाटत रह्यौ स्वान पातरि ज्यौं, कबहूँ न पेट भरयो।
24. माबूत शिला-सी दृढ़ छाती।
25. मखमल के झूल पड़े हाथी-सा टीला।
26. लघु तरणि हंसिनी-सी सुंदर,
तिर रही खोल पालों के पर ॥
27. कंचन जैसी कामिनी, कमल सुकोमल रूप।
बदन बिलोको चंद्रमा, वनिता बनी अनूप ॥
28. लावण्य भार थर-थर
काँपा कोमलता पर सस्वर
ज्यों मालकोश नववीणा पर
29. यों ताशों के महलों-सी मिट्टी की वैभव बस्ती क्या।
30. किरण की लालिमा-सी लाल मदिरा में।
2. रूपक अलंकार :
जब प्रसिद्ध वस्तु से गुणों की समानता को दर्शाने के लिए किसी सामान्य वस्तु पर उसकी समानता दर्शाने के बदले सीधा आरोपण कर दिया जाता है, तो वहाँ रूपक अलंकार होता है।
अर्थात रूपक अलंकार में दो वस्तुओं अथवा व्यक्तियों में अद्भुतता को प्रकट किया जाता है। नाटक को भी रूपक कहते हैं क्योंकि वहाँ एक व्यक्ति के ऊपर दूसरे व्यक्ति का आरोप होता है, जैसे कोई राम का अभिनय करता है तो कोई रावण का।
लक्षण – जहाँ उपमेय में उपमान का आरोप हो, वहाँ रूपक अलंकार होता है।
उदाहरण – चरण-कमल बंदौं हरि राई।
(मैं भगवान के कमल रूपी चरणों की वंदना करता हूँ।)
यहाँ ‘ चरण’ उपमेय पर ‘कमल’ उपमान का आरोप है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है।
अन्य उदाहरण –
1. बीती विभावरी जाग री।
अंबर – पनघट में डुबो रही तारा-घट उषा नागरी।
यहाँ अंबर पर कुएँ का सितारों पर घड़े का तथा उषा पर नागरी का आरोप होने के कारण रूपक अलंकार है।
2. दुख हैं जीवन-तरु के मूल।
‘जीवन’ उपमेय पर ‘तरु’ उपमान का आरोप है। अतः यहाँ भी रूपक अलंकार है।
3. मैया मैं तो चंद्र – खिलौना लैहौं।
चंद्र उपमेय पर खिलौना उपमान का आरोप होने के कारण यहाँ रूपक अलंकार है।
मेखलाकार पर्वत अपार, अपने सहस्त्र दृग सुमन फाड़,
4. अवलोक रहा था बार-बार, नीचे जल में महाकार।
यहाँ दृग (आँखें) उपमेय पर फूल उपमान का आरोप है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है।
5. मेरे अंतर में आते ही देव निरंतर कर जाते हो व्यथा – भार।
लघु बार-बार कर- कंज बढ़ा कर।
यहाँ कर (हाथ) उपमेय पर कंज (कमल) उपमान का आरोप है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है।
6. मन – मधुकर पन करि तुलसी रघुपति पद कमल बसैहौं।
मन उपमेय पर मधुकर (भ्रमर) तथा पद (चरण) उपमेय पर कमल उपमान का आरोप है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है।
7. विषय – नारि मन-मीन भिन्न गति होत पल एक।
8. यहाँ विषय-वासना के ऊपर वारि (जल) तथा मन के ऊपर मीन (मछली) का आरोप है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है। प्रेम-सलिल से द्वेष का सारा मल धुल जाएगा।
यहाँ प्रेम उपमेय पर सलिल अर्थात जल उपमान का आरोप होने के कारण रूपक अलंकार है।
9. संत – हंस गुन गहहिं पय परिहरि वारि विकार।
यहाँ संत पर हंस का, गुण पर पय (दूध) का और वारि (जल) पर विकार का आरोप होने के कारण रूपक अलंकार है।
10. माया दीपक नर पतंग,
श्रमि भ्रमि इमै पड़त।
यहाँ ‘माया’ उपमेय पर ‘दीपक’ उपमान का तथा ‘नर’ उपमेय पर ‘पतंग’ उपमान का आरोप होने के कारण रूपक अलंकार है।
11. भजु मन चरण कंवल अविनासी।
यहाँ ‘ चरण’ उपमेय पर ‘कमल’ उपमान का आरोप होने के कारण रूपक अलंकार है।
12. दुख – जलनिधि डूबी का सहारा कहाँ है ?
यहाँ दुख में जलनिधि (समुद्र) का आरोप होने से रूपक अलंकार है।
3. उत्प्रेक्षा अलंकार –
जहाँ एक वस्तु में दूसरी की कल्पना या संभावना हो, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
लक्षण – जहाँ उपमेय में उपमान की संभावना पाई जाए वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इस अलंकार में मानो, मनो, मनु, मनहुँ, जनु, जानो आदि शब्दों के द्वारा उपमेय को उपमान मान लिया जाता है।
उदाहरण –
सिर फट गया उसका वहीं
मानो अरुण रंग का घड़ा।
यहाँ ‘ फटा हुआ सिर’ उपमेय में ‘लाल रंग का घड़ा’ उपमान की संभावना होने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है।
अन्य उदाहरण –
1. सोहत ओढ़े पीत पट, स्याम सलोने गात।
मनो नीलमणि सैल पर, आतप पर्यो प्रभात।
यहाँ श्रीकृष्ण के साँवले रूप तथा उनके पीले वस्त्रों में प्रातः कालीन सूर्य की धूप से सुशोभित नीलमणि पर्वत की संभावना होने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है।
2. कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए।
हिमकणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए।
यहाँ आँसुओं से भरे उत्तरा के नेत्रों उपमेय में ओस की बूँदों से युक्त कमलों की संभावना होने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है।
3. उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उनका लगा।
मानो हवा के ज़ोर से सोता हुआ सागर जगा।
यहाँ क्रुद्ध अर्जुन उपमेय में सागर उपमान की संभावना होने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है।
4. पद्मावती सब सखी बुलाई।
मनु फुलवारी सबै चलि आई।
यहाँ सखियाँ उपमेय में फुलवारी उपमान की संभावना है। अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।
5. नील परिधान बीच सुकुमार
खुल रहा मृदुल अधखुला अंग,
खिला हो ज्यों बिजली का फूल
मेघ वन बीच गुलाबी रंग।
यहाँ नील परिधान उपमेय में बादल के भीतर चमकने वाली बिजली उपमान की संभावना होने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है।
6. जान पड़ता, नेत्र देख बड़े-बड़े,
हीरकों में गोल नीलम हैं जड़े।
यहाँ नेत्रों उपमेय में हीरों में जड़े नीलम उपमान की संभावना होने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है।
7. बहुत काली सिल
ज़रा-से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो।
8. ले चला साथ मैं तुझे कनक
ज्यों भिक्षुक लेकर स्वर्ण झनक।
9. पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के,
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
10. चम चमाए चंचल नयन बिच घूँघट पट झीन। मानहु सुरसरिता विमल जल बिछुरत जुग मीन ॥
11. लंबा होता ताड़ का वृक्ष जाता,
मानो नभ छूना चाहता वह तुरंत ही।
12. हरि मुख मानो मधुर मयंक
13. लट- लटकानि मनु मत्त मधुमगन मादक मधुहि पिए।
14. चमचमात चंचल नयन बिच घूँघट पट झीन।
मानो सुरसरिता विमल जल उछलत जुग मीन।
15. मनु दृग फारि अनेक जमुन निरखत ब्रज सोभा।
16. पुलक प्रकट करती है धरती,
हरित तृणों की नोकों से,
मानो झूम रहे हैं तरु भी,
मंद पवन के झोंकों से।
4. अतिशयोक्ति अलंकार –
अतिशयोक्ति = अतिशय उक्ति। अतिशय का अर्थ है – अत्यधिक और उक्ति का अर्थ है कथन। इस प्रकार अतिशयोक्ति का अर्थ हुआ बढ़ा-चढ़ाकर कहना अर्थात् जब किसी गुण या स्थिति को बढ़ा-चढ़ाकर कहा जाए तो वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
लक्षण – जहाँ किसी वस्तु या विषय का इतना बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाए कि लोक मर्यादा का उल्लंघन हो जाए, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण –
देख लो साकेत नगरी है यही।
स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही ॥
साकेत नगरी में स्वर्ग जैसा गुण नहीं हो सकता। लेकिन कवि ने साकेत अर्थात् अयोध्या का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया है, इसलिए यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार है।
अन्य उदाहरण –
1. हनुमान की पूँछ में लगन न पाई आग।
लंका सिगरी जल गई, गए निशाचर भाग ॥
प्रस्तुत उदाहरण में हनुमान की पूँछ में आग लगते ही लंका का जल जाना और राक्षसों का भाग जाना आदि बातें बहुत ही बढ़ा-चढ़ा कर कही गई हैं। अतः यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार है।
2. पंखुरी लगे गुलाब की परिहैं गात खरोट।
गुलाब की पंखुरी से शरीर में खरोट पड़ जाएगी, यह संभव नहीं। यहाँ शरीर की सुकुमारता की अत्यंत प्रशंसा की गई है। अतः यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार है।
3. वह शर इधर गांडीव – गुण से भिन्न जैसे ही हुआ।
धड़ से जयद्रथ का उधर सिर छिन्न वैसे ही हुआ।
यहाँ बाण का छूटना तथा सिर का गिरना एक साथ दिखाए गए हैं। अतः यह अतिशयोक्ति अलंकार है।
4. प्राण छुटै प्रथमै रिपु के रघुनायक सायक छूट न पाए।
राम के बाण छोड़ने से पहले ही शत्रु के प्राण निकल जाने में अतिशयोक्ति है।
5. मानवीकरण अलंकार –
जहाँ जड़ वस्तुओं की भी मानव के समान जीवित मानते हुए मानवीय भावनाएँ निरूपित की जाती हैं, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।
लक्षण – जहाँ जड़ प्रकृति पर मानवीय भावनाओं तथा क्रियाओं का आरोप होता है, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है; जैसे-
दिवसावसान का समय
मेघमय आसमान से उतर रही है,
वह संध्या सुंदर परी-सी
धीरे-धीरे – धीरे।
यहाँ सूर्यास्त के समय संध्या को एक परी के समान धीरे-धीरे आकाश में उतरते हुए चित्रित किया गया है, अतः यहाँ मानवीकरण अलंकार है।
अन्य महत्वपूर्ण उदाहरण –
1. चंचल पग दीपशिखा के घर गृह, मग, वन में आया बसंत !
2. सुलगा फाल्गुन का सूनापन सौंदर्य शिखाओं में अनंत !
3. उदयाचल से किरन – धेनुएँ, हाँक ला रहा प्रभात का ग्वाला !
4. पूँछ उठाए, चली आ रही क्षितिज जंगलों से टोली।
5. अचल हिमगिरि के हृदय में आज चाहे कंप होले,
6. या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले। 7. आए महंत वसंत
8. मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
9. लो यह लतिका भी भर लाई
मधु मुकुल नवल रस गागरी।
10. कार्तिक की एक हँसमुख सुबह
नदी तट से लौटती गंगा नहाकर।
11. तन कर भाला यह बोला, राणा मुझको विश्राम न दे।
मुझको शोणित की प्यास लगी, बढ़ने दे शोणित पीने दे।
12. बीती विभावरी जाग री,
अंबर पनघट में डुबो रही। तारा-घट ऊषा नागरी।
13. प्राची का मुख तो देखो।
14. मेघमय आसमान से उतर रही
संध्या सुंदरी परी -सी धीरे-धीरे।
अभ्यास के लिए प्रश्नोत्तर –
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
प्रश्न 1.
अलंकार किसे कहते हैं ?
उत्तर :
कविता की शोभा बढ़ाने वाले तत्वों को अलंकार कहते हैं।
प्रश्न 2.
शब्दालंकार से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
शब्दालंकार का तात्पर्य है- जहाँ शब्दों के कारण कविता में चमत्कार उत्पन्न हो।
प्रश्न 3.
अर्थालंकार किसे कहते हैं ?
उत्तर :
अर्थालंकार का तात्पर्य है – जहाँ अर्थ के कारण किसी कविता या काव्यांश में चमत्कार उत्पन्न हो।
प्रश्न 4.
उपमान किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जिससे उपमेय की समता की जाती है, उसे उपमान कहते हैं।
प्रश्न 5.
उपमा तथा रूपक अलंकार में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
अत्यंत सादृश्य (समता) के कारण जहाँ एक वस्तु या प्राणी की तुलना दूसरी प्रसिद्ध वस्तु या प्राणी से की जाती है, वहाँ उपमा अलंकार होता है। अत्यंत समानता प्रकट करने के लिए रूपक अलंकार द्वारा उपमेय तथा उपमान में अभेद स्थापित किया जाता है।
प्रश्न 6.
दो अर्थालंकारों तथा दो शब्दालंकारों के नाम लिखिए।
उत्तर :
अर्थालंकार – उपमा, उत्प्रेक्षा।
शब्दालंकार – यमक, श्लेष।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित में प्रयुक्त अलंकारों के नाम बताइए –
1. तरनि- तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
2. मृदु मंद-मंद मंथर मंथर, लघु तरणि हंस-सी सुंदर प्रतिभट – कटक कटीले कोते काटि काटि
3. कालिका -सी किलकि कलेऊ देती काल को।
4. रावनु रथी विरथ रघुबीरा
5. रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून, पानी गए न उबरे मोती मानुस चून।
6. उदित उदय गिरि मंच पर रघुवर बाल पतंग, विकसे संत सरोज सब हरषे लोचन भृंग।
7. वह इष्ट देव के मंदिर की पूजा-सी,
वह दीप शिखा – सी शांत भाव में लीन
वह टूटे तरु की छूटी लता-सी दीन,
दलित भारत की विधवा है।
8. सोहत ओढ़े पीत पट स्याम सलोने गात
मनो नीलमणि शैल पर आतप पड्यो प्रभात।
9. माली आवत देखकर कलियाँ करें पुकार
फूले-फूले चुन लिए काल्हि हमारी बार।
10. राम नाम – अवलंब बिनु, परमारथ की आस,
बरसत बारिद बूँद गहि, चाहत चढ़न अकास।
11. पच्छी परछीने ऐसे परे परछीने बीर,
तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के।
उत्तर :
1. अनुप्रास
2. उपमा
3. अनुप्रास
4. अनुप्रास
5. श्लेष
6. रूपक
7. उपमा
8. अतिशयोक्ति
9. अन्योक्ति
10. अनुप्रास
11. यमक।
2. निम्नलिखित पदों में अलंकार पहचानिए –
प्रश्न :
1. निर्मल तेरा नीर अमृत के सम उत्तम है।
2. विज्ञान-यान पर चढ़ी सभ्यता डूबने जाती है।
3. चमक गई चपला चम-चम।
4. काँपा कोमलता पर सस्वर ज्यों मालकौश नव वीणा पर।
5. सुनहु सखा कह कृपा निधाना जेहि जप होइ सो स्यंदन आना।
6. जहाँ कली तू खिली, स्नेह से हिली पली।
7. ईस भजन सारथी सुजाना।
8. ले चला साथ तुझे कनक।
ज्यों भिक्षुक लेकर स्वर्ण झनक।
9. वन-शारदी चंद्रिका चादर ओढ़े।
10. नभ-मंडल छाया मरुस्थल-सा
11. जगकर सजकर रजनी बाले।
12. चँवर सदृश डोल रहे सरसों के सर अनंत।
13. महा अजय संसार रिपु।
14. तपके जगती-तल जावे जला।
उत्तर :
1. उपमा
2. रूपक
3. अनुप्रास,
4. उपमा, उत्प्रेक्षा
5. अनुप्रास
6. अनुप्रास
7. अनुप्रास
8. उत्प्रेक्षा
9. रूपक
10. उपमा
11. रूपक
12. उपमा
13. रूपक
14. अनुप्रास
3. निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों के नाम बताइए –
प्रश्न :
1. मुख बाल – रवि सम होकर,
ज्वाला – सा बोधित हुआ।
2. मुदित महीपति मंदिर आए, सेवक सचिव सुमंत बुलाए।
3. गिर पड़ा मैं पाद- पद्मों में पिता सब जानते हो।
4. कूकि कूकि केकी कलित, कुंजन करत कलोल।
5. युग नेत्र उनके जो अभी थे पूर्ण जल की धारा से,
अब रोष के मारे हुए वे दहकते अंगार से।
6. मनौ नील मनि सैल पर आतप पर्यो प्रभात।
7. हरि नीके नैनानुतें, हरि नीके ए नैन।
8. रानी मैं जानी अज्ञानी महा,
पवि पाहन हूँ तें कठोर हियो है।
9. चरण कमल बंदौं हरि राई।
10. आहुति सी गिर चढ़ी चिता पर, चमक उठी ज्वाला सी।
11. छलकती मुख की छवि पुंजता, छिटकती छिति छू तन की छटा।
12. पंखुरी लगे गुलाब की परिहैं गात खरौट।
13. चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल-थल में।
14. करि कर सरिस सुभग भुजदंडा।
15. या अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहिं कोई।
ज्यों-ज्यों बूढ़े स्याम रंग, त्यों-त्यों उज्जलु होई ॥
16. बंद नहीं अब भी चलते हैं,
नियति नटी के कार्य कलाप।
17. तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
18. तीन बेर खाती थी। वे तीन बेर खाती हैं।
19. काली घटा का घमंड घटा।
20. कहे कवि बेनी बेनी व्याल की चुराई लीनी।
21. मधुवन की छाती को देखो,
सुखी कितनी इसकी कलियाँ।
22. हाय फूल – सी कोमल बच्ची ! हुई राख की थी ढेरी।
23. नदियाँ जिनकी यशधारा- सी
बहती है अब भी निशि – बासर।
24. मखमल के झूल पड़े हाथी – सा टीला।
25. सब प्राणियों के मत्त मनोमयूर अहा नचा रहा।
26. मृदु मंद-मंद मंथर, लघु प्राणि हंस-सी सुंदर।
27. कलिका-सी कलेऊ देती काल को।
28. रावनु रथी विरथ रघुवीरा।
29. उदित उदय गिरि मंच पर रघुवर बाल पतंग।
विकसे संत सरोज सब हरषे लोचन भृंग ॥
30. वह इष्ट देव के मंदिर की पूजा-सी,
वह दीपशिखा – सी शांत भाव में लीन।
वह टूटे तरु की छूटी लता-सी दीन,
दलित भारत की विधवा है।
31. सोहत ओढ़े पीत पट स्याम सलोने गात,
मनो नीलमणि शैल पर आतप परयो प्रभात।
32. माली आवत देखकर कलियाँ करें पुकार,
फूले-फूले चुन लिए, कालि हमारी बार।
33. राम नाम अवलंब बिनु, परमारथ की आस,
बरसत वारिद बूँद गहि, चाहत चढ़त आकास।
34. पक्षी परछीने पर परछीने बीर।
तेरी बरछी ने वर छीने खलन के।
35. हनुमान की पूँछ में लग न पाई आग,
लंका सिगरी जरि गई, गए निसाचर भाग।
36. आवत-जात कुंज की गलियन रूप-सुधा नित पीजै।
37. हृदय यंत्र निनादित हो गया,
तुरत ही अनियंत्रित भाव से।
38. नभ – मंडल छाया मरुस्थल-सा,
दलबाँध अंधड़ आवैचला।
39. वह बाँसुरी की धुनि कानि परै,
कुल कानि हियो तजि भाजति हैं।
40. गोपी पद – पंकज पावन की रज जा में सिर भीजै।
41. सिंधु – सा विस्तृत और अथाह एक निर्वासित का उत्साह।
42. गुरु पद पंकज रेनु।
43. रती – रती सोभा सब रती के सरीर की।
44. तब तो बहता समय शिला-सा जम जाएगा।
45. तुमने अनजाने वह पीड़ा
छवि के सर से दूर भगा दी।
46. वह जिंदगी क्या जिंदगी, सिर्फ़ जो अपानी – सी बही।
47. निसि – बासर लाग्यो रहे कृष्ण चंद्र की ओर।
48. एक राम घनस्याम हित चातक तुलसीदास।
49. कितनी करुणा कितने संदेश।
50. परमहंस सम बाल्यकाल में सब सुख पाए।
51. विमल वाणी ने वीणा ली. कमल कोमल कर।
52. बरषत बारिद बूँद।
53. जुड़ गई जैसे दिशाएँ।
54. आए महंत बसंत।
55. यह देखिए अरविंद से शिशुवृंद कैसे सो रहे ?
56. भगन मगन रत्नाकर में वह राह।
57. बाल्य की केलियों का प्रांगण।
58. कूकै लगी कोइलें कदंबन पै बैठि फेरि।
59. यवन को दिया दया का दान।
60. निर्मल तेरा नीर अमृत के सम उत्तम है।
61. प्रातः नभ था बहुत गीला, शंख जैसे।
62. रामनाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वार।
63. झुककर मैंने पूछ लिया
खा गया मानो झटका।
64. वन शारदी चंद्रिका ओढ़े लसै समलंकृत कैसे भला।
65. राख का लीपा चौका।
66. तब सिव तीसरा नेत्र उभारा।
चितवत काम भयो जरि छारा।
उत्तर :
1. उपमा
2. अनुप्रास
3. रूपक
4. अनुप्रास
5. उपमा
6. उत्प्रेक्षा
7. यमक
8. उपमा
9. रूपक
10. उपमा
11. अनुप्रास
12. अतिशयोक्ति
13. अनुप्रास
14. उपमा
15. श्लेष
16. रूपक
17. अनुप्रास
18. यमक
19. यमक
20. यमक
21. अन्योक्ति
22. उपमा
23. उपमा
24. उपमा
25. रूपक अनुप्रास
26. अनुप्रास, उपमा
27. उपमा
28 अनुप्रास
29. रूपक
30. उपमा
31. उत्प्रेक्षा
32. अन्योक्ति
33. रूपक
34. यमक
35. अतिशयोक्ति
36. रूपक
37. रूपक
38. उपमा
39. यमक
40. रूपक
41. उपमा
42. रूपक
43. यमक
44. उपमा
45. रूपक
46. उपमा
47. रूपक
48. रूपक
49. अनुप्रास
50. उपमा
51. अनुप्रास
52. अनुप्रास
53. उपमा
54. रूपक
55. उपमा
56. अनुप्रास
57. उपमा
58. अनुप्रास
59 अनुप्रास
60. उपमा
61. उपमा
62. रूपक
63. उत्प्रेक्षा
64. उत्प्रेक्षा
65. उत्प्रेक्षा
66. अतिशयोक्ति।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों के नाम लिखिए –
1. (क) चारु चंद्र की चंचल किरणें
(ख) चंचल अंचल – सा नीलांबर
(ग) मैया मैं चंद्र खिलौना लैहों।
(घ) रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरै मोती मानुस चून।
(ङ) मानो हवा के ज़ोर से सोता हुआ सागर जगा।
2. (क) लट-लटकनि मनु मत्त मधुपगन मादक मधुहिं पिए।
(ख) मुख बाल रवि सम लाल होकर ज्वाल – सा बोधित हुआ।
(ग) संसार की समरस्थली में धीरता धारण करो।
(घ) भज मन चरण कमल अविनासी।
(ङ) औषधालय अयोध्या में बने तो थे सही।
किंतु उनमें रोगियों का नाम तक भी था नहीं।
3. (क) कल कानन कुंडल।
(ख) बढ़त – बढ़त संपति सलिल, मन सरोज बढ़ जाइ। (रूपक)
(ग) या अनुरागी चित्त की गति समुझे नहिं कोइ।
ज्यौं – ज्यौँ बूढ़े स्याम रंग त्यौं त्यौं उज्जलु होइ। (श्लेष)
(घ) कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
वा पाए बोराय नर वा खाए बौराय। (यमक)
(ङ) सिंधु – सा विस्तृत और अथाह। (उपमा)
उत्तर :
1. (क) अनुप्रास (ख) उपमा (ग) रूपक (घ) श्लेष (ङ) उत्प्रेक्षा
2. (क) अनुप्रास तथा उत्प्रेक्षा (ख) उपमा (ग) अनुप्रास (घ) रूपक (ङ) अतिशयोक्ति
3. (क) अनुप्रास (ख) रूपक (ग) श्लेष (घ) यमक (ङ) उपमा
प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों के नाम लिखिए –
(क) निमिष में वन व्यापित वीथिका।
विविध धेनु विभूषित हो गई।
(ख) भजन कह्यो ताते, भज्यो न एकहुँ बार।
दूर भजन जाते कह्यो, सो तू भज्यो गँवार ॥
(ग) चंचल है ज्यों मीन, अरुणोद पंकज सरिस।
(घ) गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन।
(ङ) बान न पहुँचे अंग लौ। अरि पहले गिर जाहिं।
उत्तर :
(क) अनुप्रास
(ख) यमक
(ग) उपमा
(घ) अनुप्रास
(ङ) अतिशयोक्ति
प्रश्न 6.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों के नाम लिखिए –
(क) रघुपति राघव राजा राम।
(ख) रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरे मोती मानुस चून ॥
(ग) कमल-सा कोमल गात सुहाना।
(घ) चरण-कमल बंदौं हरि राई।
(ङ) जिन दिन देखे वे कुसुम गई सु बीति बहार।
अब अलि रही गुलाब की अपत कँटीली डार ॥
उत्तर :
(क) अनुप्रास
(ख) श्लेष
(ग) उपमा
(घ) रूपक
(ङ) अन्योक्ति
प्रश्न 7.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों के नाम लिखिए –
(क) सकल सुमंगल मूल जग।
(ख) आवत जात कुंज की गलियन रूप – सुधा नित पीजै।
(ग) सिंधु – सा विस्तृत और अथाह एक निर्वासित का उत्साह।
(घ) कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
या खाए बौराय जग, वा पाए बौराय ॥
(ङ) कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए।
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए।
उत्तर :
(क) अनुप्रास
(ख) रूपक
(ग) उपमा
(घ) यमक
(ङ) उत्प्रेक्षा
प्रश्न 8.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों के नाम लिखिए-
(क) चरण-कमल बंदौ हरि राई।
(ख) नदियाँ जिनकी यशधारा-सी बहती हैं अब भी निशि – बासर।
(ग) कहे कवि बेनी बेनी ब्याल की चुराइ लीनी।
(घ) कंकन किंकिन नूपुर धुनि सुनि।
(ङ) सोहत ओढ़े पीत पट स्याम सलोने गात,
मनो नीलमणि शैल पर आतप पर्यो प्रभात।
उत्तर :
(क) रूपक
(ख) उपमा
(ग) यमक
(घ) अनुप्रास
(ङ) उत्प्रेक्षा
प्रश्न 9.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों के नाम लिखिए –
(क) तरनि- तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
(ख) यह देखिए, अरविंद से शिशु वृंद कैसे सो रहे।
(ग) राम नाम – अवलंब बिनु, परमारथ की आस।
(घ) काली घटा का घमंड घटा।
(ङ) मधुवन की छाती को देखो, सूखी कितनी इसकी कलियाँ।
उत्तर :
(क) अनुप्रास
(ख) उपमा
(ग) रूपक
(घ) यमक
(ङ) श्लेष
प्रश्न 10.
(क) निम्नलिखित अलंकारों की परिभाषा देकर उदाहरण दीजिए –
यमक और उत्प्रेक्षा
(ख) निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों के नाम लिखिए।
1. तरनि- तनूजा तट तमाल- तरुवर बहु छाए।
2. एक राम – घनश्याम हित चातक तुलसीदास।
उत्तर :
(क) यमक – जहाँ एक शब्द का एक से अधिक बार प्रयोग हो, पर प्रत्येक बार अर्थ में भिन्नता हो, वहाँ यमक अलंकार होता है।
उदाहरण: तीन बेर खाती थीं, वे तीन बेर खाती हैं।
उत्प्रेक्षा – जहाँ उपमेय में उपमान की संभावना हो, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
उदाहरण: लंबा होता ताड़ का वृक्ष जाता,
मानो गम छूना चाहता वह तुरंत हो।
(ख) 1. अनुप्रास 2. रूपक।
प्रश्न 11.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों के नाम लिखिए –
(क) चारु चंद्र की चंचल किरणें
(ख) चंचल अंचल सा नीलांबर
(ग) मैया, मैं चंद्र – खिलौना लैहों।
(घ) रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे, मोती मानस, चून॥
(ङ) मानो हवा के ज़ोर से सोता हुआ सागर जगा।
उत्तर :
(क) अनुप्रास
(ख) उपमा
(ग) रूपक
(घ) श्लेष
(ङ) उत्प्रेक्षा।