Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Vyakaran अनुस्वार एवं अनुनासिक Questions and Answers, Notes Pdf.
JAC Board Class 9 Hindi Vyakaran अनुस्वार एवं अनुनासिक
अनुस्वार, अनुनासिक –
हिंदी में अनुस्वार और अनुनासिक का प्रायः प्रयोग किया जाता है।
अनुस्वार का उच्चारण इ इ, ण्, च, म् के समान होता है। जैसे – कंघी (कड्घी), गंजा (गज्जा), घंटी (घण्टी), संत (सल), पंप (पम्प) अनुस्वार के साथ मिलती-जुलती एक ध्वनि अनुनासिक भी है, जिसका रूप ‘ज’ है। इन दोनों में भेद केवल यह है कि जनस्वार की ध्वनि कठोर होती है और अनुनासिक की कोमल। अनुस्वार का उच्चारण नाक से होता है और अनुनासिक का उच्चारण मुख और नासिका दोनों से होता है। जैसे-हँस और हंस। हँस का अर्थ है-हँसना और हंस का अर्थ है-एक प्रकार का पक्षी।
हिंदी मानक लिपि में बिंदु –
(क) पंचमाक्षों (ङ, उ, ण, न, म) का जब अपने वर्ग के वर्णों के साथ संयोग होता है तब उनके स्थान पर अनुस्वार (-लिखा जाता है । जैसे –
- दन्त = दंत
- चज्वल = चंचल
- ठण्डा = ठंडा
- कड्यी = कंघी
- पम्प = पंप
- कन्द्रा = कंधा
(ख) य, र, ल, व, श, ष, स, ह के साथ अनुस्वार ही लगता है। जैसे -संयोग, संरक्षण, संसार, संशय, शंका, लंपट, बंदना, संबाद. हुंकार, हंता, रंक, रंज, लंका आदि।
(ग) यदि वर्ण के ऊपर मात्रा लगी हो, तो अनुनासिक (-) का उच्चारण होने पर भी अनुस्वार की बिंदी ही लगेरी। जैंसे-मैं, हैं, बेंमल्ला, सौंफ आदि।
अनुस्वार के प्रयोग संबंधी अन्य उदाहरण –
पुराना रूप – मानक रूप
- चन्दन – चंदन
- प्रशान्त – प्रशांत
- किन्तु – किंतु
- हिन्दी – हिंदी
- अन्त – अंत
- पण्डा – पंडा
- इन्द्र – इंद्र
- प्रबन्ध – प्रबंध
- अन्तर – अंतर
- सम्बन्धी – संबंधी
- निरन्तर – निरंतर
- हिन्दू – हिंदू
- चिह्न – चिह्न
- गन्दा – गंदा
- क्रन्दन – क्रंदन
- सन्ध्या – संध्या
- सुन्दर – सुंदर
- दन्त – दंत
- अन्तर – अंतर
- केन्द्र – कैंद्र
- निन्दनीय – निंदनीय
- आरम्भ – आरंभ
- आनन्द – आनंद
- ठण्डक – एंडक
- अभिनन्दन – अभिनंद्न
- सम्भावना – संभावन
- इप्टरनेशनल – इंटरनेशनल
- सम्पादक मण्डल – संपादक मंडल
- प्रेमचन्द – प्रेमचंद
- सन्दिग्ध – संदिन्ध
- सन्देह – संदेह
- अन्दर – अंदर
- तुरन्त – तुरंत
- इन्तज़ार – इंतजार
- सम्भव – संभव
- सन्देहास्पद – संदेहास्पद्
- शान्ति – शांति
- स्वतन्त्र – स्वतंत्र
- गणतन्त्र – गणतंत्र
- अम्बाला – अंबाला
- चण्डीगढ़ – चंडीगढ़
- मुम्बई – मुंबई
- हिन्दुस्तान – हिंदुस्तान
- गान्धी – गांधी
- सन्दीपन – संदीपन
- क्रान्ति – क्रांति
- श्रद्धार्जलि – श्रद्धाजाल
- दुर्गन्ध – दुर्गंध
- सन्धि – संधि
- सन्तोष – संतोष
- अम्बर – अंबर
- अझ्ग – अंग
- कुन्तल – कुंतल
- अम्भोज – अंभोज
- निशान्त – निशांत
- उत्कण्ठा – उत्कंठा
- पउ्चबाण – पंचबाण
- लम्बोदर – लंबोदर
- चन्द्रमा – चंद्रमा
- कालिन्दी – कालिंदी
- दन्तच्छद – दंतच्छद
- नरेन्द्र – नरेंद्र
- इन्दिरा – इंदिरा
- सन्तान – संतान
- वसुन्धरा – वसुंधरा
- बन्दर – बंदर
- देहान्त – देहांत
- कुन्दन – कुंदन
- किंवदन्ती – किंवर्दंती
- दम्पति – दंपति
- पन्द्रह – पंद्रह
- सम्पत्ति – संपत्ति
- अनन्त – अनंत
- इन्द्रियां – इंद्रियाँ
- पाण्डव – पांडव
- छन्द – छंद
- तम्बू – तंबू
- मन्दिर – मंदिर
- क्रान्ति – क्रांति
- अनुकम्पा – अनुकंपा
- दयानन्द – द्यानंद
- कवीन्द्र – कवींद्र
- सम्पदाय – संप्रदाय
- सम्भावित – संभावित
- पीताम्बर – पीतांबर
- परमानन्द – परमानंद्
- मन्दाकिनी – मंदाकिनी
अनुनासिकता के अशुद्ध प्रयोग संबंधी कुछ शुद्ध उदाहरण –
अशुद्ध – शुद्ध
- आंगन – आँगन
- उंगली – उँगली
- कांटा – काँटा
- पांव – पाँव
- चांद – चाँद
- गांव – गाँव
- बहुएं – बहुएँ
- अशुद्ध – शुद्ध
- खांसी – खाँसी
- टांक – टाँक
- फंसा – फँसा
- संभल – सँभल
- सांप – साँप
- नदियां – नदियाँ
आगत ध्वनियाँ :
अर्धचंद्राकार –
आजकल अंग्रेज़ी भाषा के प्रभाव से हिंदी में ‘आ’ आगत ध्वनि का प्रयोग किया जाने लगा है। जो ‘आ’ और ‘ओ’ के बीच की ध्वनि है। जैसे –
यदि हिंदी में ‘ऑ’ आगत ध्वनि का प्रयोग न किया जाए तब शब्दों की अभिव्यक्ति में दोष उत्पन्न होने की पूरी संभावना हो सकती है। जैसे –
- हाल – हालचाल
- बाल – शरीर के बाल
- काल – समय
- काफ़ी – पर्याप्त
- डाल – डालना
- हॉल – एक बड़ा कमरा
- बॉल – गेंद
- कॉल – बुलाना
- कॉफ़ी – एक पेय
- डॉल – गुड़िया