Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Rachana लघुकथा-लेखन Questions and Answers, Notes Pdf.
JAC Board Class 9 Hindi Rachana लघुकथा-लेखन
किसी घटना के संक्षिप्त रोचक वर्णन को लघुकथा कहते हैं। कहानी या कथा लिखना एक कला है। लघुकथा में कम-से-कम शब्दों में ही बात को इस प्रकार प्रस्तुत करना होता है कि वह पाठक के मन को चिंतन के लिए उद्वेलित कर दे। अपनी कल्पना और वर्णन – शक्ति के द्वारा लेखक कहानी के कथानक, पात्र या वातावरण को प्रभावशाली बना देता है। लेखक पाठक के लिए अपनी कल्पना और विचारों को नैतिक संदेश प्रदान करने के लिए एक कहानी के रूप में डालने की कोशिश करता है। विद्यार्थियों को पहले दी गई रूपरेखा के आधार, चित्र देखकर अथवा कहानी के संकेत पढ़कर कहानी लिखने का अभ्यास करना चाहिए।
कहानी के कुछ प्रमुख तत्व :
- कथावस्तु
- संवाद
- देशकाल और वातावरण
- भाषा-शैली
- चरित्र-चित्रण
- उद्देश्य
कथावस्तु – कथावस्तु से तात्पर्य कहानी में वर्णित घटनाओं और कार्य – व्यापार से है।
संवाद – कहानी के पात्रों द्वारा आपस में किए गए वार्तालाप को संवाद कहते हैं। कहानी के संवाद लिखते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि संवाद पात्र के अनुकूल हों।
देशकाल और वातावरण – कहानी में वर्णित घटना का संबंध जिस परिस्थिति अथवा वातावरण से है, उसे एक कहानी का देशकाल अथवा परिवेश कहा जाता है।
भाषा-शैली – कथाकार अपनी भाषा शैली के द्वारा कहानी के पात्रों को जीवंत और प्रभावशाली बनाता है। भाषा शैली कहानी का प्राण तत्व होती है।
चरित्र-चित्रण – कहानी के पात्रों के हाव-भाव तथा कार्य-व्यापार उनके चरित्र का निर्माण करते हैं।
उद्देश्य – कहानी का अभिप्राय ही कहानी का उद्देश्य है। पाठक कहानी के अभिप्राय को समझे बिना कहानी को सही ढंग से आत्मसात नहीं कर सकता।
कहानी लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –
- परिचय कहानी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। कहानी लिखते समय मुख्य चरित्र और एक घटना का उल्लेख के साथ परिचय लिखना चाहिए।
- परिचय के उपरांत कहानी की स्थिति के बारे में लिखना चाहिए।
- दी गई रूपरेखा अथवा संकेतों के आधार पर ही कहानी का विस्तार करें।
- कहानी में विभिन्न घटनाओं और प्रसंगों को संतुलित विस्तार दें।
- कहानी की भाषा सरल होनी चाहिए, जिससे पाठकों को आसानी से समझ आ जाए।
- कहानी रोचक और स्वाभाविक हो। घटनाओं का पारस्परिक संबंध हो और कहानी से कोई-न-कोई उपदेश मिलता हो।
- कहानी का शीर्षक उपयुक्त एवं आकर्षक होना चाहिए।
- कहानी का आरंभ आकर्षक होना चाहिए और अंत सहज ढंग से होना चाहिए।
संकेत बिंदुओं के आधार पर लघुकथा लेखन के कुछ उदाहरण –
1. एक बालक का अपने मित्रों के साथ बगीचे में जाना… चोरी से फल तोड़कर खाना… माली का बगीचे में आना… बच्चों का भाग जाना… एक बालक का पकड़े जाना… माली द्वारा उसे डाँटना… बालक का रोना.. माली की बात को आत्मसात करना… भविष्य में प्रतिष्ठित व्यक्ति बनना।
शीर्षक – सीख
एक दिन कुछ बालक विद्यालय से लौट रहे थे कि रास्ते में एक बगीचे में अमरूद से लदे पेड़ देखकर सभी बच्चे उसमें घुस गए। माली को वहाँ न पाकर बच्चे पेड़ पर चढ़ गए और अमरूद तोड़कर खाने लगे। एक बच्चा नीचे खड़ा बड़े बच्चों से गुहार लगा रहा था कि वे उसे भी थोड़े अमरूद तोड़ कर दे दें। पेड़ पर चढ़े एक बच्चे ने एक अमरूद उसकी ओर उछाल दिया।
अमरूद पाकर बालक बड़ा प्रसन्न हुआ और अमरूद खाने लगा। इतने में ही बालक ने ज़ोर से शोर मचाया, माली आ गया भागो…..। बच्चे पेड़ से उतरकर भागने लगे। वह छोटा बालक अमरूद खाने में लगा हुआ था उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था तभी माली ने आकर उसे धर दबोचा। माली उस बालक को पहचान गया। उससे बोला, तुम्हें बगीचे में चोरी करते हुए लज्जा नहीं आती? एक तो तुम्हारे पिता नहीं हैं ऊपर से तुम इन बच्चों के साथ गंदी आदतें सीख रहे हो।
बालक यह सुनकर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। बालक को रोता देखकर माली ने समझाया, “तुम्हारी माता भविष्य के सुनहरे सपने देखती हैं। तुम्हें तो अच्छी तरह पढ़ना चाहिए ताकि तुम बड़े होकर अपनी माँ का हाथ बँटा सको।’
बालक समझ गया उसने माली की बात गाँठ बाँध ली। इसके बाद वह बालक कभी उस बगीचे में नज़र नहीं आया। आगे चलकर यही बालक हमारे देश के दूसरे प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री के रूप में विख्यात हुए।
2. अध्यापक का शिष्यों के साथ घूमने जाना …… अच्छी संगति के महत्व को समझाना ……. एक गुलाब का पौधा देखना …… ढेला उठाकर सूँघना …… शिष्य का ढेला सूँघना ……. अध्यापक का शिष्यों को समझाना ……. गुलाब की पंखुड़ियाँ गिरना ……. पंखुड़ियों की संगति से मिट्टी से गुलाब की महक आना ……… जैसी संगति वैसे ही गुण-दोष।
शीर्षक – संगति का असर
एक अध्यापक अपने शिष्यों के साथ घूमने जा रहे थे। रास्ते में वे अपने शिष्यों के अच्छी संगति का महत्व समझा रहे थे। लेकिन शिष्य इसे समझ नहीं पा रहे थे। तभी अध्यापक ने फूलों से लदा एक गुलाब का पौधा देखा। उन्होंने एक शिष्य को उस पौधे के नीचे से तत्काल एक मिट्टी का ढेला उठाकर ले आने को कहा। जब शिष्य ढेला उठा लाया तो अध्यापक ने उससे उस ढेले को सूँघने को कहा।
शिष्य ने ढेला सूँघा और बोला, “गुरु जी इसमें से तो गुलाब की बड़ी खुशबू आ रही है।”
अध्यापक बोले, “बच्चो ! जानते हो इस मिट्टी में यह मनमोहक महक कैसे आई? दर सअसल इस मिट्टी पर गुलाब के फूलों की पंखुड़ियाँ, टूट-टूटकर गिरती हैं, तो मिट्टी में भी गुलाब की महक आने लगी है। जिस प्रकार गुलाब की पंखुड़ियों की संगति के कारण इस मिट्टी में से गुलाब की महक आने लगी उसी प्रकार जो व्यक्ति जैसी संगति में रहता है उसमें वैसे ही गुण-दोष आ जाते हैं।
3. व्यापारी का ऊँटों का व्यापार करना ……… उनके बच्चे खरीदकर बेचना ……… जंगल के पास चरने को भेजना ……… ऊँट का बच्चा शैतान होना ……… उसके गले में घंटी बाँधना ……… शेर ऊँटों को शिकार करने के लिए देखना ……… मौके की तलाश करना ……… ऊँटों का खतरा होना …….. चल पड़ना ………. बच्चे का झुंड से अलग जाना ……… शेर के द्वारा मारे जाना।
शीर्षक – मूर्खता का परिणाम
रेगिस्तान के किनारे स्थित एक गाँव में एक व्यापारी रहता था। वह ऊँटों का व्यापार करता था। वह ऊँटों के बच्चों को खरीदकर उन्हें शक्तिशाली बनाकर बेच देता था। इससे वह ढेर सारा धन कमाता था।
व्यापारी ऊँटों को पास के जंगल में घास चरने के लिए भेज देता था जिससे उनके चारे का खर्च बचता था। उनमें से एक ऊँट का बच्चा बहुत शैतान था। वह प्राय: समूह से दूर चलता था और इस कारण पीछे रह जाता था। बड़े ऊँट हरदम उसे समझाते थे, परंतु वह नहीं सुनता था। इसलिए उन सबने उसकी परवाह करना छोड़ दिया।
व्यापारी को उस छोटे ऊँट से बहुत प्रेम था। इसलिए उसने उसके गले में घंटी बाँध रखी थी। जब भी वह सिर हिलाता तो उसकी घंटी बजती थी जिससे उसकी चाल एवं स्थिति का पता चल जाता था।
एक बार उस स्थान से एक शोर गुजरा जहाँ ऊँट चर रहे थे। उसे ऊँट की घंटी के द्वारा उनके होने का पता चल गया था। उसने फ़सल में से झाँककर देखा तो उसे ज्ञात हुआ कि ऊँट का एक बड़ा समूह है लेकिन वह ऊँटों पर हमला नहीं कर सकता था क्योंकि समूह में ऊँट उससे बलशाली थे। इस कारण वह मौके की तलाश में वहाँ छुपकर खड़ा हो गया। समूह के एक बड़े ऊँट को खतरे का आभास हो गया। ऊँटों ने एक मंडली बनाकर जंगल से बाहर निकलना आरंभ कर दिया। शेर ने मौके की तलाश में उनका पीछा करना शुरू कर दिया। बड़े
ऊँट ने विशेषकर छोटे ऊँट को सावधान किया था। कहीं वह कोई परेशानी न खड़ी कर दे। पर छोटे ऊँट ने ध्यान नहीं दिया और वह लापरवाही से चलता रहा। छोटा ऊँट अपनी मस्ती में अन्य ऊँटों से पीछे रह गया। जब शेर ने उसको देखा तो वह उस पर झपट पड़ा। छोटा ऊँट अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागा, पर वह अपने आप को उस शेर से नहीं बचा पाया। उसका अंत बुरा हुआ क्योंकि उसने अपने बड़ों की आज्ञा का पालन नहीं किया था।
4. एक धनी सेठ के बेटे का आज्ञाकारी तथा होनहार होना… उसका बुरी संगत में पड़ना …….. उनके साथ उसका कक्षा छोड़कर भागना …….. उसे सिगरेट की लत लगना ……. उसके पिता का उसे सिगरेट पीते देखना पर कुछ न कहना …….. आदित्य को पश्चाताप होना …….. पिता से क्षमा माँगना ……. बुरी संगति को छोड़ना …….
संगति का प्रभाव
बनारस के पास एक छोटे-से नगर में सेठ श्याम दास रहते थे। उनका इकलौता था पुत्र था, जो बहुत ही होनहार था उसका नाम आदित्य था। विद्यालय के सभी शिक्षक आदित्य को बहुत पसंद किया करते थे क्योंकि वह आज्ञाकारी होने के साथ-साथ पढ़ाई में भी बहुत अच्छा था। उसकी कक्षा में कुछ ऐसे बच्चे भी पढ़ते थे जिनकी आदत खराब थी। न मालूम कैसे धीरे-धीरे आदित्य की मित्रता उन बच्चों के साथ हो गई। अब वह भी उन बच्चों की भाँति विद्यालय से भागने लगा। उसे कक्षा छोड़कर जाना अच्छा लगने लगा। वह पहले की भाँति विद्यालय तो आता, लेकिन बीच में ही विद्यालय से बाहर निकलकर उन मित्रों के साथ सिनेमा देखता, बाज़ार घूमता और जुआ खेलता। उसे सिगरेट पीने की लत भी लग गई थी। सेठ श्याम दास इन सब बातों से बेखबर थे। वे नहीं जानते थे कि उनका प्रिय पुत्र किस प्रकार बुरी संगति में पड़ गया है।
एक दिन किसी कार्यवश वे बाज़ार निकले, तो उन्होंने देखा कि आदित्य कुछ बच्चों के साथ पेड़ के नीचे बैठकर सिगरेट पी रहा है। पहले तो उन्हें अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ किंतु पास जाकर देखा, तो समझ गए कि आदित्य अब बुरी संगति में पड़ चुका है। अपने पिता को सामने खड़ा देखकर आदित्य झेंप गया। उसे कुछ जवाब देते नहीं बन पड़ा। बिना कुछ कहे वह अपने पिता के साथ हो लिया। रास्ते भर पिता-पुत्र में कोई बातचीत नहीं हुई। वह समझ चुका था कि उसने अपने पिता को बहुत कष्ट पहुँचाया है। घर आकर उसने अपने पिता से क्षमा माँगी और उन गलत दोस्तों का साथ छोड़ देने का प्रण लिया। उसे समझ आ गया था कि बुरे लोगों के साथ रहकर कुछ भला नहीं हो सकता।
5. सेठ काशीराम के पास अपार दौलत होना ……… पर मन की शांति नहीं ……… एक दिन आश्रम में जाना ……… संत द्वारा प्रश्न पूछना …….. सेठ द्वारा अपनी परेशानी को बताना ……….. दोनों का आश्रम के चक्कर लगाना ………… सेठ द्वारा सुंदर वृक्ष को छूना ….. काँटा चुभना …….. सेठ का चिल्लाना ……… संत द्वारा समझाया जाना ……. ईर्ष्या, क्रोध, लोभ का त्याग करना ……… शांति का प्राप्त होना ……….
शीर्षक-शांति की प्राप्ति
सेठ काशीराम के पास अपार धन-दौलत थी। उन्हें हर तरह का आराम था लेकिन उनके मन को शांति नहीं मिल पाती थी। हर पल उन्हें कोई-न-कोई चिंता परेशान किए रहती थी। एक दिन वे कहीं जा रहे थे तो रास्ते में उनकी नज़र एक आश्रम पर पड़ी। वहाँ उन्हें किसी साधु के प्रवचनों की आवाज़ सुनाई दी। उस आवाज़ से प्रभावित होकर काशीराम आश्रम के अंदर गए और बैठ गए।
प्रवचन समाप्त होने पर सभी अपने-अपने घर को चले गए। लेकिन सेठ वहीं बैठे रहे। उन्हें देखकर संत बोले, ” कहो, तुम्हारे मन में क्या निराशा है, जो तुम्हें परेशान कर रही है।”
इस पर काशीराम बोले, “बाबा, मेरे जीवन में शांति नहीं है।”
यह सुनकर संत बोले, ” घबराओ नहीं, तुम्हारे मन की सारी अशांति अभी दूर हो जाएगी। तुम आँखें बंद करके ध्यान की मुद्रा में बैठो।’ संत की बात सुनकर ज्यों ही काशीराम ध्यान की मुद्रा में बैठे त्यों ही उनके मन में इधर-उधर की बातें घूमने लगीं और उनका ध्यान उचट गया। संत ने यह देखकर सेठ से कहा, ‘चलो, आश्रम का एक चक्कर लगाते हैं।’
इसके बाद वे आश्रम में घूमने लगे। काशीराम ने एक सुंदर वृक्ष देखा तथा उसे हाथ से छुआ। हाथ लगाते ही उनके हाथ में एक काँटा चुभ गया और सेठ बुरी तरह चिल्लाने लगे। यह देखकर संत वापस अपनी कुटिया में आए। कटे हुए हिस्से पर लेप लगाया। कुछ देर बाद वे सेठ से बोले, “तुम्हारे हाथ में ज़रा-सा काँटा चुभा तो तुम बेहाल हो गए। सोचो कि जब तुम्हारे अंदर ईर्ष्या, क्रोध व लोभ जैसे बड़े-बड़े काँटे छिपे हैं, तो तुम्हारा मन भला शांत कैसे हो सकता है?”
संत की बात से सेठ काशीराम को अपनी गलती का अहसास हो गया। वे संतुष्ट होकर वहाँ से चले गए। उसके बाद सेठ काशीराम ने कभी भी ईर्ष्या नहीं की, क्रोध भी त्याग दिया।