Jharkhand Board JAC Class 12 Political Science Important Questions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय Important Questions and Answers.
JAC Board Class 12 Political Science Important Questions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय
बहुचयनात्मक प्रश्न
1. खेती-बाड़ी के औजार के लिए गाँव वालों को किस पेड़ की लकड़ी की आवश्यकता थी?
(क) शीशम
(ख) अंगू
(ग) सागौन
(घ) बबूल
उत्तर:
(ख) अंगू
2. सूचना के अधिकार का आंदोलन किस सन् में प्रारंभ हुआ
(क) 1989
(ख) 1987
(ग) 1990
(घ) 1988
उत्तर:
(ग) 1990
3. चिपको आंदोलन की शुरुआत किस राज्य से हुई?
(क) उत्तराखण्ड
(ख) छत्तीसगढ़
(ग) झारखण्ड
(घ) मध्यप्रदेश
उत्तर:
(क) उत्तराखण्ड
4. गोलपीठ कविता किसके द्वारा लिखी गई है?
(क) फणीश्वर नाथ रेणु
(ख) नामदेव ढसाल
(ग) रवीन्द्रनाथ टैगोर
(घ) मैथिलीशरण गुप्त
उत्तर:
(ख) नामदेव ढसाल
5. बीकेयू किन प्रदेशों के किसानों का संगठन था?
(क) पंजाब और हरियाणा
(ख) पश्चिम उत्तरप्रदेश और पंजाब
(ग) हरियाणा और महाराष्ट्र
(घ) पश्चिम उत्तरप्रदेश और हरियाणा
उत्तर:
(घ) पश्चिम उत्तरप्रदेश और हरियाणा
6. मार्क्सवादी-लेनिनवादी समूहों को किस नाम से जाना जाता है?
(क) माओवादी
(ख) नक्सलवादी
(ग) गाँधीवादी
(घं) आतंकवादी
उत्तर:
(ख) नक्सलवादी
7. दलित पैंथर्स का गठन किया गया
(क) 1970
(ख) 1972
(ग) 1973
(घ) 1977
उत्तर:
(ख) 1972
8. चिपको आंदोलन किससे संबंधित है?
(क) पर्यावरण.
(ख) मानवीय
(ग) राष्ट्रीय
(घ) प्रांतीय
उत्तर:
(क) पर्यावरण
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :
1. देश ने आजादी के बाद …………… का मॉडल अपनाया था।
उत्तर:
नियोजित विकास
2. नामदेव ढसाल ………………… के प्रसिद्ध कवि थे।
उत्तर:
मराठी
3. ……………. से संकेत दलित समुदाय की ओर किया गया है।
उत्तर:
अँधेरे की पदयात्रा
4. दलित पैंथर्स नामक संगठन का निर्माण ………………..में सन् ……………….. में हुआ।
उत्तर:
महाराष्ट्र, 1972
5. दलितों पर हो रहे अत्याचार से संबंधित कानून …………………. में बनाया गया।
उत्तर:
1989
6. ……………. पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के किसानों का संगठन था।
उत्तर:
भारतीय किसान यूनियन
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
चिपको आंदोलन का सम्बन्ध किस प्रदेश से है?
उत्तर:
उत्तराखण्ड।
प्रश्न 2.
भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् विकास का कौनसा प्रतिमान अपनाया?
उत्तर:
नियोजित विकास का प्रतिमान
प्रश्न 3.
नामदेव ढसाल कौन थे?
उत्तर:
नामदेव ढसाल मराठी के प्रसिद्ध कवि थे।
प्रश्न 4.
प्रमुख कवि नामदेव ढसाल का सम्बन्ध किस राज्य से था?
उत्तर:
महाराष्ट्र राज्य से।
प्रश्न 5.
महेन्द्र सिंह टिकैत क्यों प्रसिद्ध हैं?
उत्तर:
महेन्द्र सिंह टिकैत भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष के रूप में प्रसिद्ध हैं।
प्रश्न 6.
दलित पैंथर्स नामक संगठन किसके द्वारा स्थापित किया गया?
उत्तर:
दलित पैंथर्स नामक संगठन का उदय 1972 में दलित युवाओं द्वारा स्थापित किया गया।
प्रश्न 7.
भारतीय किसान यूनियन का गठन किस प्रदेश में हुआ था?
उत्तर:
उत्तरप्रदेश में।
प्रश्न 8.
मछुआरों के राष्ट्रीय संगठन का क्या नाम है?
उत्तर:
नेशनल फिश वर्कर्स फोरम।
प्रश्न 9.
नामदेव ढसाल कौन थे? उनके दलित पैंथर्स समर्थक विचारों का उनकी एक मराठी कविता के आधार पर संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
नामदेव ढसाल मराठी के प्रसिद्ध कवि थे। उन्होंने अनेक रचनाएँ लिखीं जिनमें से कुछ बहुत प्रसिद्ध अंधेरे में पदयात्रा और सूरजमुखी आशीषों वाला फकीर है।
प्रश्न 10.
पंचायती राज की स्थापना कौनसे संवैधानिक संशोधन द्वारा लागू हुई?
उत्तर:
73वें संवैधानिक संशोधन द्वारा।
प्रश्न 11.
‘सूरजमुखी आशीषों वाला फकीर’ किनको इंगित करता है?
उत्तर:
डॉ. भीमराव अम्बेडकर।
प्रश्न 12.
बामसेफ का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी एम्पलाईज फेडरेशन।
प्रश्न 13.
हरित क्रांति से किस राज्य के किसानों को फायदा मिला?
उत्तर:
हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तरप्रदेश|
प्रश्न 14.
सूचना के अधिकार के आन्दोलन की शुरुआत कब हुई?
उत्तर:
1990 में।
प्रश्न 15.
संसद ने सूचना के अधिकार विधेयक को कब पास किया?
उत्तर:
2002 में।
प्रश्न 16.
पिछड़े वर्ग का पिता किसे कहा जाता है?
उत्तर:
डॉ. भीमराव अम्बेडकर को।
प्रश्न 17.
राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना 1992 में की गई।
प्रश्न 18.
सुन्दरलाल बहुगुणा, मेधा पाटकर तथा बाबा आमटे किस आन्दोलन से सम्बन्ध रखते हैं?
उत्तर:
पर्यावरण संरक्षण आन्दोलन।
प्रश्न 19.
चिपको आन्दोलन की शुरुआत कब हुई?
उत्तर:
1973 में।
प्रश्न 20.
मछुआरों की संख्या के लिहाज से भारत का विश्व में कौनसा स्थान है?
उत्तर:
दूसरा।
प्रश्न 21.
जन आन्दोलन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
ऐसे आन्दोलन जो लोगों की किसी समस्या या जनहित को लेकर चलाये जाते हैं उन्हें जन आन्दोलन कहते हैं।
प्रश्न 22.
चिपको आन्दोलन का उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
चिपको आन्दोलन का उद्देश्य वनों की रक्षा करना था।
प्रश्न 23.
चिपको आंदोलन का नूतन पहलू क्या था?
उत्तर:
चिपको आंदोलन का नूतन पहलू जंगल के वृक्षों की अंधाधुंध कटाई को रोकना था।
प्रश्न 24.
महाराष्ट्र में दलितों के हितों की रक्षा के लिए कौनसा संगठन बनाया गया और कब बनाया गया?
उत्तर:
महाराष्ट्र में 1972 में दलित युवाओं का संगठन दलित पैन्थर्स बनाया गया।
प्रश्न 25.
आन्ध्रप्रदेश के किस जिले में सबसे पहले ताड़ी (शराब) विरोधी आन्दोलन आरम्भ हुआ?
उत्तर:
ताड़ी (शराब) विरोधी आन्दोलन का आरम्भ नेल्लौर जिले में हुआ
प्रश्न 26.
आंध्रप्रदेश के नैल्लोर जिले के ताड़ी आंदोलन में महिलाओं ने क्या किया था?
उत्तर:
नैल्लोर में लगभग 5000 महिलाओं ने ताड़ी की बिक्री बंद करने संबंधी एक प्रस्ताव पास कर जिला कलेक्टर को भेजा।
प्रश्न 27.
नेशनल फिश वर्कर्स फोरम ने सरकार से कब लड़ाई लड़ी?
उत्तर:
नेशनल फिश वर्कर्स फोरम ने 1977 में केन्द्र सरकार के साथ अपनी पहली कानूनी लड़ाई लड़ी। प्रश्न 28. किन्हीं दो किसान आन्दोलनों के नाम लिखें।
उत्तर:
किसान आन्दोलनों के नाम हैं। तिभागा आन्दोलन, तेलंगाना आन्दोलन।
प्रश्न 29.
नेशनल फिश वर्कर्स फोरम ने केन्द्र सरकार से पहली कानूनी लड़ाई कब लड़ी?
उत्तर:
1997 में।
प्रश्न 30.
भारत में हुए किन्हीं दो पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित आन्दोलनों के नाम लिखिए।
उत्तर:
पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित आन्दोलन हैं। चिपको आन्दोलन, नर्मदा बचाओ आन्दोलन।
प्रश्न 31.
ए. एन. एफ. (ANF) का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
ए. एन. एफ. (ANF) का पूरा नाम है। नेशनल फिश वर्कर्स फोरम (National Fish Workers Forum)।
प्रश्न 32.
बी. के. यू. (BKU) का पूरा नाम बताइये।
उत्तर:
बी. के. यू. (BKU) का पूरा नाम है। भारतीय किसान यूनियन।
प्रश्न 33.
औपनिवेशिक दौर के प्रमुख आंदोलन कौन से थे?
उत्तर:
औपनिवेशिक दौर के प्रमुख आंदोलन किसान आंदोलन, मजदूर संगठनों के आंदोलन, आदिवासी मजदूर संगठनों के आंदोलन तथा स्वाधीनता आंदोलन थे।
प्रश्न 34.
ताड़ी – विरोधी आंदोलन का नारा क्या था?
उत्तर:
ताड़ी की बिक्री बंद करो।
प्रश्न 35.
संविधान के किन संशोधन के अंतर्गत महिलाओं को स्थानीय राजनीतिक निकायों में आरक्षण दिया गया?
उत्तर:
73वें और 74वें।
प्रश्न 36.
सूचना का अधिकार के आंदोलन की शुरुआत कब हुई और इसका नेतृत्व किसने किया?
उत्तर:
सूचना का अधिकार के आंदोलन की शुरुआत 1990 में हुई और इसका नेतृत्व मजदूर किसान शक्ति संगठन ने किया।
प्रश्न 37.
सूचना का अधिकार को राष्ट्रपति की मंजूरी कब हासिल हुई?
उत्तर:
जून, 2005
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
चिपको आन्दोलन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
चिपको आन्दोलन की शुरुआत 1973 में उत्तराखण्ड राज्य में हुई । इस आन्दोलन के द्वारा स्त्री-पुरुषों ने पेड़ों की व्यावसायिक कटाई के विरोध हेतु पेड़ों को अपनी बाँहों में घेर लिया ताकि उन्हें काटने से बचाया जा सके। यह विरोध आगामी दिनों में भारत के पर्यावरण आंदोलन के रूप में बदल गया तथा ‘चिपको आंदोलन’ के रूप में विश्वप्रसिद्ध हुआ।
प्रश्न 2.
भारत में नारी आन्दोलन की मुख्य विशेषता बताइये।
उत्तर:
भारत में नारी आन्दोलन की मुख्य विशेषता यह है कि यह एक गैर- राजनीतिक आन्दोलन है। इसका प्रमुख उद्देश्य महिलाओं का उत्थान करना है।
प्रश्न 3.
महिला सशक्तिकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
महिला सशक्तिकरण से तात्पर्य महिलाओं की समाज में दोयम दर्जे की भूमिका को समाप्त करना तथा समाज की मुख्यधारा के साथ जोड़ते हुए सभी क्षेत्रों में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने से है।
प्रश्न 4.
सूचना के अधिकार का आंदोलन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सूचना के अधिकार के आंदोलन का प्रारंभ 1990 में हुआ। राजस्थान में कार्य कर रहे ‘मजदूर किसान शक्ति संगठन’ ने भीम तहसील में सरकार के सामने यह माँग रखी कि अकाल राहत कार्य तथा मजदूरों को दिए जाने वाले वेतन के रिकार्ड का सार्वजनिक खुलासा किया जाये । यही माँग आगे चलकर सूचना के अधिकार आन्दोलन में बदल गई।
प्रश्न 5.
नर्मदा बचाओ आन्दोलन के प्रमुख नेता का नाम बताइए। उन्होंने इस आन्दोलन को कैसे आगे बढ़ाया?
उत्तर:
नर्मदा बचाओ आन्दोलन की प्रमुख नेता मेधा पाटकर हैं। 1980 के दशक में इस आन्दोलन की तरफ लोगों का ध्यान उस समय आकर्षित हुआ जब विस्थापित लोग सुसंगठित हुए और इस आन्दोलन के जाने-माने कार्यकर्ता बाबा आमटे, सुन्दरलाल बहुगुणा आदि इसमें शामिल हुए।
प्रश्न 6.
नर्मदा बचाओ आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं?
अथवा
नर्मदा बचाओ आन्दोलन पर संक्षिप्त नोट लिखिए ।
उत्तर:
नर्मदा बचाओ आन्दोलन बाँध परियोजनाओं के विरुद्ध चलाया गया आन्दोलन था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य बांध द्वारा विस्थापित लोगों के उचित पुनर्वास की व्यवस्था करना था। राज्य अधिकारियों द्वारा पुनर्वास की योजना को उचित ढंग से लागू नहीं किया जा रहा था। इसलिए मानवाधिकारों से जुड़े हुए कार्यकर्ता इस आंदोलन के समर्थक बन गये।
प्रश्न 7.
तेलंगाना आन्दोलन क्या था?
उत्तर:
तेलंगाना आन्दोलन हैदराबाद राज्य में 1946 में जागीरदारों द्वारा की जा रही जबरन एवं अत्यधिक वसूली के विरोध में चलाया गया क्रान्तिकारी आन्दोलन था । क्रान्तिकारी किसानों ने पाँच हजार गुरिल्ला सैनिक तैयार किए और जमींदारों के विरुद्ध संघर्ष आरम्भ किया। भारत सरकार द्वारा हस्तक्षेप करने पर यह आन्दोलन समाप्त हुआ।
प्रश्न 8.
चिपको आंदोलन की मुख्य माँगें क्या थीं?
उत्तर:
चिपको आंदोलन की मुख्य माँगें निम्न थीं।
- जंगल की कटाई का कोई भी ठेका बाहरी व्यक्ति को नहीं दिया जाना चाहिए।
- स्थानीय लोगों का जल, जंगल, जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर कारगर नियंत्रण होना चाहिए।
- सरकार लघु उद्योगों के लिए कम कीमत की सामग्री उपलब्ध कराए और इस क्षेत्र के पारिस्थितिकी संतुलन को नुकसान पहुँचाए बिना यहाँ का विकास सुनिश्चित करे।
- आंदोलन ने भूमिहीन वन कर्मचारियों का आर्थिक मुद्दा भी उठाया और न्यूनतम मजदूरी की गारंटी की माँग की।
प्रश्न 9.
ताड़ी विरोधी आन्दोलन क्या था?
उत्तर:
वर्ष 1992 के सितम्बर और अक्टूबर में आंध्रप्रदेश के गांवों में महिलाओं ने शराब के विरुद्ध लड़ाई छेड़ रखी थी। यह लड़ाई शराब माफिया और सरकार दोनों के खिलाफ थी। इस आंदोलन ने वृहद् रूप धारण कर लिया तो इसे राज्य में ताड़ी – विरोधी आंदोलन के रूप में जाना गया।
प्रश्न 10.
चिपको आंदोलन में महिलाओं ने सक्रिय भागीदारी की। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
चिपको आंदोलन में महिलाओं ने सक्रिय भागीदारी की। इस आंदोलन में महिलाओं ने शराबखोरी की लत के खिलाफ भी लगातार आवाज उठायी।
प्रश्न 11.
सरदार सरोवर परियोजना को कब और कहाँ प्रारंभ किया गया था?
उत्तर:
1980 के दशक के प्रारंभ में सरदार सरोवर परियोजना को मध्यप्रदेश में नर्मदा घाटी में प्रारंभ किया गया।
प्रश्न 12.
सरदार सरोवर परियोजना के क्या लाभ बताये गये?
उत्तर:
सरदार सरोवर परियोजना के अन्तर्गत एक बहुउद्देश्यीय बांध बनाने का प्रस्ताव है। इसके निर्माण से तीन राज्यों में पीने का पानी, सिंचाई तथा बिजली के उत्पादनं की सुविधा उपलब्ध करायी जा सकेगी। कृषि की उपज में गुणात्मक बढ़ोतरी होगी तथा इससे बाढ़ और सूखे की आपदाओं पर अंकुश लगाया जा सकेगा।
प्रश्न 13.
महिला सशक्तिकरण के लिए कोई दो सुझाव दीजिए।
उत्तर:
- महिलाओं के लिए उचित शिक्षा व्यवस्था की जाए ताकि उनका मानसिक विकास हो सके। इससे उनका दृष्टिकोण व्यापक होगा और वे अपने अधिकारों के प्रति सजग होंग ।
- महिलाएँ भी पुरुषों के समान क्षमता और सूझबूझ रखती हैं। महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए अवसर प्रदान किये जाने चाहिए।
प्रश्न 14.
सत्तर और अस्सी के दशक में समाज के कई तबकों का राजनीतिक दलों से मोहभंग होने का क्या कारण था?
उत्तर:
सत्तर और अस्सी के दशक में समाज के कई तबकों का राजनीतिक दलों से मोहभंग हुआ क्योंकि जनता पार्टी के रूप में गैर-कांग्रेसवाद का प्रयोग कुछ खास नहीं चल पाया और इसकी असफलता से राजनीतिक अस्थिरता का माहौल भी कायम हुआ था और इसका एक कारण सरकार की आर्थिक नीतियाँ भी रहीं।
प्रश्न 15.
नियोजित विकास के मॉडल को अपनाने के पीछे दो लक्ष्य क्या थे?
उत्तर:
नियोजित विकास का मॉडल अपनाने के पीछे दो लक्ष्य निम्न थे।
- आर्थिक संवृद्धि
- आय का समतापूर्ण बँटवारा।
प्रश्न 16.
जन आन्दोलनों से क्या अभिप्राय है?
अथवा
जन आन्दोलनों की प्रकृति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जन आन्दोलन- जन आन्दोलन वे आन्दोलन होते हैं, जो प्राय: समाज के संदर्भ या श्रेणी के क्षेत्रीय अथवा स्थानीय हितों, माँगों और समस्याओं से प्रेरित होकर प्रायः लोकतान्त्रिक तरीके से चलाए जाते हैं। चिपको आन्दोलन, दलित पैंथर्स आन्दोलन तथा ताड़ी विरोधी आन्दोलन इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
प्रश्न 17.
दलित पैंथर्स क्या था? इसकी किन्हीं दो माँगों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
दलित पैंथर्स – दलित हितों की दावेदारी के क्रम में महाराष्ट्र में सन् 1972 में दलित युवाओं का एक ‘संगठन ‘दलित पैंथर्स’ बना। दलित पैंथर्स की माँगें:
- जाति आधारित असमानता व भौतिक साधनों के मामले में दलितों के साथ हो रहे अन्याय समाप्त हों।
- आरक्षण के कानून और सामाजिक न्याय की नीतियों का कारगर ढंग से क्रियान्वयन हो।
प्रश्न 18.
दलित पैंथर्स की किन्हीं दो गतिविधियों पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
- दलित पैंथर्स ने दलित अधिकारों की दावेदारी करते हुए जन कार्यवाही का रास्ता अपनाया।
- महाराष्ट्र के विभिन्न इलाकों में दलितों पर बढ़ रहे अत्याचारों से लड़ना दलित पैंथर्स की एक अन्य प्रमुख गतिविधि थी। इसके परिणामस्वरूप सरकार ने 1989 में दलित अत्याचार करने वाले के लिए कठोर दंड के प्रावधान वाला एक व्यापक कानून बनाया।
प्रश्न 19.
‘दल आधारित आंदोलनों’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
दल आधारित आन्दोलन:
मुम्बई, कोलकाता तथा कानपुर जैसे औद्योगिक शहरों में सभी बड़े दलों ने मजदूरों को लामबंद करने के लिए अपने-अपने मजदूर संगठन बनाए। आंध्रप्रदेश के तेलंगाना क्षेत्र के किसान कंम्युनिस्ट पार्टियों के नेतृत्व में लामबन्द हुए। दलों के नेतृत्व में गठित इन आंदोलनों को ‘दल आधारित आंदोलन’ कहा गया।
प्रश्न 20.
नामदेव ढसाल कौन थे? उनके दलित पैंथर्स समर्थक ( पक्षधर ) विचारों की उनकी मराठी कविता के आधार पर संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
नामदेव ढसाल: नामदेव ढसाल मराठी भाषा के प्रसिद्ध कवि थे। उनकी मराठी कविता के आधार पर कहा जा सकता है कि।
- वे दलितों के प्रति सच्ची हमदर्दी रखते थे।
- वे दलितों को एक गरिमापूर्ण स्थान दिलाने के लिए जुझारू संघर्ष की बात करते थे।
- वे डॉ. अम्बेडकर को प्रेरणा पुरुष मानते थे।
प्रश्न 21.
जन आंदोलनों ने किस प्रकार लोकतंत्र को अभिव्यक्ति दी?
उत्तर:
जन आंदोलनों का इतिहास हमें लोकतांत्रिक राजनीति को अच्छी तरह से समझने में सहायता करता है। प्रथमतः, इन आंदोलनों का उद्देश्य दलीय राजनीति की बुराइयों को दूर करना था। दूसरे, इन आंदोलनों ने समाज के उन नये वर्गों की सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं को अभिव्यक्ति दी, जो अपनी समस्याओं को चुनावी राजनीति के माध्यम से हल नहीं कर पा रहे थे।
प्रश्न 22.
स्वतन्त्रता के बाद महिलाओं की स्थिति में क्या परिवर्तन आया है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता के बाद महिलाओं की स्थिति: स्वतन्त्रता के बाद महिलाओं को पुरुषों के समान समानता का दर्जा प्राप्त हुआ है। महिलाएँ किसी भी प्रकार की शिक्षा या प्रशिक्षण को चुनने के लिए स्वतन्त्र हैं। वे सार्वजनिक सेवाओं के हर क्षेत्र में अपनी भूमिका निभा रही हैं। परन्तु ग्रामीण समाज में अभी भी महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है जिसे दूर किये जाने की आवश्यकता है। यद्यपि कानूनी तौर पर महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्रदान किये गये हैं परन्तु आदि काल से चली आ रही पुरुष प्रधान व्यवस्था में व्यावहारिक रूप में महिलाओं के साथ अभी भी भेदभाव किया जाता है।
प्रश्न 23.
” ताड़ी विरोधी आन्दोलन महिला आन्दोलन का हिस्सा था ।” कारण बताइये।
उत्तर:
वर्ष 1992 के सितम्बर और अक्टूबर में आंध्रप्रदेश के गांवों में महिलाओं ने ताड़ी अर्थात् शराब के विरुद्ध लड़ाई छेड़ रखी थी। इस आंदोलन ने जब वृहद रूप धारण कर लिया तो यह महिला आंदोलन का हिस्सा बन गया क्योंकि।
- यह ताड़ी विरोध के साथ-साथ घरेलू हिंसा, दहेज-प्रथा कार्यस्थल एवं सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ आंदोलन बन गया जो कि महिला आंदोलन के मुख्य मुद्दे थे।
- इस आंदोलन ने महिलाओं के मुद्दों के प्रति समाज में व्यापक जागरूकता उत्पन्न की।
- इसमें महिलाओं को विधायिका में दिये जाने वाले आरक्षण के मामले उठे।
इस प्रकार ताड़ी विरोधी आंदोलन महिला आंदोलन का हिस्सा था।
प्रश्न 24.
आजादी के शुरुआती 20 सालों में अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय संवृद्धि होने के बावजूद गरीबी और असमानता बरकरार रही क्यों?
उत्तर:
आजादी के शुरुआती 20 सालों में अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय वृद्धि होने के बावजूद गरीबी और असमानता बरकरार रही क्योंकि आर्थिक संवृद्धि के लाभ समाज के हर तबके को समान मात्रा में नहीं मिले। जाति और लिंग पर आधारित सामाजिक असमानताओं ने गरीबी के मसले को और ज्यादा जटिल तथा धारदार बना दिया। शहरी- औद्योगिक क्षेत्र तथा ग्रामीण कृषि क्षेत्र के बीच न पाटी जा सकने वाली दूरी पैदा हुई। समाज के विभिन्न समूहों के बीच अपने साथ हो रहे अन्याय और वंचना का भाव प्रबल हुआ।
प्रश्न 25.
जन आंदोलन का क्या अर्थ है? दल समर्थित (दलीय) और स्वतंत्र (निर्दलीय) आंदोलन का स्वरूप स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
जन-आन्दोलन: प्रजातांत्रिक मर्यादाओं तथा संवैधानिकियमों के आधार पर तथा सामाजिक शिष्टाचार से संबंधित नियमों के पालन सहित सरकारी नीतियों, कानून व प्रशासन सहित किसी मुद्दे पर व्यक्तियों के समूह या समूहों के द्वारा असहमति प्रकट किया जाना जन-आंदोलन कहलाता है।
- दल आधारित आंदोलन: जब कभी राजनैतिक दल या राजनीतिक दलों के समर्थन प्राप्त समूहों द्वारा आंदोलन किये जाते हैं तो इन्हें दलीय आंदोलन कहा जाता है। जैसे किसान सभा आंदोलन एक दलीय आंदोलन था।
- स्वतंत्र जन आंदोलन: जब आंदोलन असंगठित लोगों के समूह द्वारा संचालित किये जाते हैं, तो वे निर्दलीय जन आंदोलन कहलाते हैं। जैसे—चिपको आंदोलन, दलित पैंथर्स आंदोलन|
प्रश्न 26.
महिला सशक्तिकरण के साधन के रूप में संसद और राज्य विधानसभाओं में सीटों के आरक्षण की व्यवस्था का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
महिला सशक्तिकरण के लिए यह आवश्यक है कि महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को बढ़ाया जाए। जब तक स्थानीय संस्थाओं, विधानमण्डलों और संसद में महिलाओं के लिए स्थान सुरक्षित नहीं किये जाते तब तक महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं हो सकता। 73वें – 74वें संवैधानिक संशोधन द्वारा ग्रामीण एवं शहरी स्थानीय संस्थाओं में तो महिलाओं के लिए कुल निर्वाचित पदों का एक-तिहाई भाग आरक्षित कर दिया गया है। इससे महिला सशक्तिकरण आन्दोलन को बल मिला। लेकिन संसद तथा राज्य विधान मण्डलों में अभी तक महिलाओं को आरक्षण प्रदान नहीं किया जा सका है।
प्रश्न 27.
क्या आप पंचायत स्तर पर महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटों पर आरक्षण के पक्ष में हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
पंचायत स्तर पर महिलाओं के लिए आरक्षण की यह व्यवस्था सही है; क्योंकि
- यह संस्था तभी सफलतापूर्वक कार्य कर सकती है जब इसके संगठन में पुरुष और स्त्रियों दोनों को स्थान मिले।
- यदि स्त्रियों को पंचायतों में आरक्षण दिया जाता है तो पंचायत और अधिक लोकतान्त्रिक संस्था बनेगी तथा लोगों का उस पर विश्वास बना रहेगा। क्योंकि स्त्रियाँ शारीरिक रूप से निर्बल होती हैं, इस कारण भी उनको अपनी सुरक्षा के लिए पंचायतों में आरक्षण दिया जाना चाहिए।
- ग्रामीण स्तर पर महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बहुत कम है, यदि पंचायतों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित की जाती हैं, तो इससे राजनीति में महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ेगी तथा उन्हें राजनीतिक शिक्षा भी मिलेगी।
प्रश्न 28.
आरक्षण व्यवस्था के पक्ष में कोई चार तर्क दीजिए।
उत्तर:
आरक्षण व्यवस्था के पक्ष में तर्क आरक्षण व्यवस्था के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं।
- सामाजिक सम्मान में वृद्धि: आरक्षण की नीति के फलस्वरूप कमजोर वर्ग के लोग सार्वजनिक सेवा के किसी भी उच्च पद को प्राप्त करने में सफल हो सकेंगे, जिससे उनके सामाजिक सम्मान में वृद्धि होगी।
- राजनीतिक भागीदारी में वृद्धि: आरक्षण की नीति के कारण समाज के उच्च वर्गों के साथ-साथ निम्न वर्गों को भी शासन प्रणाली और राजनीतिक व्यवस्था में अपनी भागीदारी निभाने का अवसर मिलता है।
- राजनीतिक चेतना में वृद्धि: कमजोर वर्गों के शिक्षित लोग अब अपने राजनीतिक अधिकारों के प्रति पहले से अधिक जागरूक हैं।
- आर्थिक उन्नति में सहायक: आरक्षण की नीति से समाज के गरीब वर्गों के लिए वर्षों से रुके हुए व्यवसाय के अवसर खुलेंगे, जिससे उनकी आर्थिक उन्नति होगी।
प्रश्न 29.
आरक्षण नीति के विरोध में कोई चार तर्क दीजिए।
उत्तर:
आरक्षण नीति के विरोध में तर्क- आरक्षण की नीति के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं।
- समानता के सिद्धान्त के विरुद्ध: आरक्षण की व्यवस्था समानता के मूल अधिकार के विरुद्ध है।
- जातिगत भेदभाव को बढ़ावा: इस व्यवस्था से जातिवाद को बहुत अधिक बढ़ावा मिला है।
- आरक्षण का लाभ सभी को समान रूप से नहीं: आरक्षण का लाभ अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों तथा पिछड़े वर्गों के सभी लोगों को नहीं मिल पाया है। इससे लाभ इन जातियों के एक छोटे से वर्ग ने उठाया है।
- निर्भरता को बढ़ावा: आरक्षण के कारण अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों तथा पिछड़े वर्गों की आत्म- निर्भरता में कमी हुई है।
प्रश्न 30.
किन्हीं तीन किसान आन्दोलनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
किसान आन्दोलन: तीन प्रमुख किसान आन्दोलन निम्नलिखित हैं।
- तिभागा आन्दोलन: तिभागा आन्दोलन 1946-47 में बंगाल में प्रारम्भ हुआ। यह आन्दोलन मुख्यतः जोतदारों के विरुद्ध मझोले किसान एवं बंटाईदारों का संयुक्त प्रयास था। इस आन्दोलन का मुख्य कारण भीषण अकाल था।
- तेलंगाना किसान आन्दोलन: तेलंगाना आन्दोलन हैदराबाद राज्य में 1946 में जागीरदारों द्वारा की जा रही जबरन एवं अत्यधिक वसूली के विरोध में चलाया गया क्रान्तिकारी किसान आन्दोलन था।
- आधुनिक आन्दोलन: 1980 के दशक में महाराष्ट्र, गुजरात तथा पंजाब के किसानों ने कपास के दामों को कम किए जाने के विरोध में आन्दोलन किया। 1987 में किसानों के द्वारा गुजरात विधानसभा का घेराव किये जाने के कारण पुलिस ने किसानों पर तरह-तरह के अत्याचार किए।
प्रश्न 31.
स्वयंसेवी संगठन अथवा स्वयंसेवी क्षेत्र के संगठन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
राजनीतिक धरातल पर सक्रिय कई समूहों का विश्वास लोकतांत्रिक संस्थाओं और चुनावी राजनीति से उठ गया। ये समूह दलगत राजनीति से अलग हुए और अपने विरोध के स्वर देने के लिए इन्होंने जनता को लामबंद करना शुरू किया। इस काम में विभिन्न तबकों के राजनीतिक कार्यकर्ता आगे आए और दलित तथा आदिवासी जैसे वंचितों को लामबंद करना शुरू किया। मध्यवर्ग तथा युवा कार्यकर्ताओं ने गाँव के गरीब लोगों के बीच रचनात्मक कार्यक्रम तथा सेवा संगठन चलाए। इन संगठनों के सामाजिक कार्यों की प्रकृति स्वयंसेवी थी इसलिए इन संगठनों को स्वयंसेवी संगठन या स्वयंसेवी क्षेत्र का संगठन कहा गया।
प्रश्न 32.
नर्मदा बचाओ आंदोलन के पक्ष और विपक्ष में दो-दो तर्क दीजिये।
उत्तर:
नर्मदा बचाओ आंदोलन के पक्ष में तर्क।
- बाँध के निर्माण से संबंधित राज्यों के 245 गाँव डूबने की आशंका थी। इससे ढाई लाख लोग निर्वासित हो सकते थे।
- इस प्रकार की परियोजनाओं का लोगों के स्वास्थ्य, आजीविका, संस्कृति और पर्यावरण पर कुप्रभाव पड़ता नर्मदा बचाओ आंदोलन के विपक्ष में तर्क है।
- नर्मदा पर बांध के निर्माण से गुजरात के एक बहुत बड़े हिस्से सहित तीन पड़ोसी राज्यों में पीने का पानी, सिंचाई, विद्युत उत्पादन की सुविधा उपलब्ध कराई जा सकेगी और कृषि उपज में वृद्धि होगी।
- बाँध निर्माण से बाढ़ व सूखे की आपदाओं पर रोक लगाई जा सकेगी।
प्रश्न 33.
स्वयंसेवी संगठनों को स्वतंत्र राजनीतिक संगठन क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
स्वयंसेवी संगठनों ने स्वयं को दलगत राजनीति से दूर रखा। स्थानीय अथवा क्षेत्रीय स्तर पर ये संगठन न तो चुनाव लड़े और न ही इन्होंने किसी एक राजनीतिक दल को अपना समर्थन दिया। हालांकि ये संगठन राजनीति में विश्वास करते थे और उसमें भागीदारी भी करना चाहते थे लेकिन इन्होंने राजनीतिक भागीदारी के लिए राजनीतिक दलों को नहीं चुना। इसी कारण इन संगठनों को स्वतंत्र राजनीतिक संगठन कहा जाता है।
प्रश्न 34.
अन्य पिछड़ा वर्ग का ‘ सम्पन्न तबका’ (Creamy Layer) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पिछड़ा वर्ग का सम्पन्न तबका (Creamy Layer) सम्पन्न तबका पिछड़े वर्गों में वह वर्ग है जो सामाजिक व शैक्षणिक दृष्टि से सम्पन्न है और जो राजनीतिक कारणों से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का लाभ उठा रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में कहा है कि यह वर्ग यदि सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न है तो उसे पिछड़ा वर्ग से अलग किया जाए; क्योंकि इसे पिछड़ा वर्ग नहीं माना जा सकता।
प्रश्न 35.
डॉ. भीमराव अम्बेडकर पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
डॉ. भीमराव अम्बेडकर: दलितों के मसीहा डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जन्म सन् 1891 में एक महर परिवार में हुआ। इन्होंने इंग्लैण्ड एवं अमेरिका से वकालत की शिक्षा ग्रहण की। 1923 में इन्होंने वकालत का पेशा अपनाया। सन् 1926 से 1934 तक ये बम्बई विधान परिषद् के सदस्य रहे। इन्होंने गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया। 1942 में यह वायसराय की कार्यकारिणी परिषद् के सदस्य नियुक्त किए गए। इन्हें भारत के संविधान की प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया। इन्हें स्वतन्त्र भारत का विधि मंत्री भी बनाया गया। इन्होंने हिंदू कोड बिल पास करवाया एवं संविधान में अनुसूचित जातियों को आरक्षण प्रदान करवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। सन् 1956 में इनका निधन हो गया।
प्रश्न 36.
भारत में लोकप्रिय जन आंदोलन से सीखे सबकों (पाठों ) का मूल्यांकन कीजिये।
उत्तर:
जन आंदोलन के सबक – जन आंदोलनों के द्वारा पढ़ाये जाने वाले प्रमुख सबक निम्नलिखित हैं।
- जन आंदोलन के द्वारा लोगों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बेहतर ढंग से समझने में सहायता मिली है।
- इन आंदोलनों का उद्देश्य लोकतान्त्रिक दलीय राजनीति की खामियों को दूर करना था।
- इन आंदोलनों ने समाज के उन नये वर्गों की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को अभिव्यक्ति दी है जो अपनी समस्याओं को चुनावी राजनीति के माध्यम से हल नहीं कर पा रहे थे।
- समाज के गहरे तनावों और जनता के क्षोभ को इन आंदोलनों ने एक सार्थक दिशा दी है।
- इन आंदोलनों ने भारतीय लोकतंत्र के बनाया है। तथा लोगों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनाया है।
प्रश्न 37.
स्वयंसेवी संगठनों के अनुसार लोकतांत्रिक सरकार की प्रकृति में सुधार कैसे आएगा?
उत्तर:
स्वयंसेवी संगठनों का मानना था कि स्थानीय मसलों के समाधान में स्थानीय नागरिकों की सीधी और सक्रिय भागीदारी राजनीतिक दलों की अपेक्षा कहीं ज्यादा कारगर होगी। इन संगठनों का विश्वास था कि लोगों की सीधी भागीदारी से लोकतांत्रिक सरकार की प्रकृति में सुधार आएगा।
प्रश्न. 38.
वर्तमान में स्वयंसेवी संगठनों की प्रकृति में आए बदलावों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
स्वयंसेवी संगठन शहरी और ग्रामीण इलाकों में लगातार सक्रिय हैं। परंतु अब इनकी प्रकृति बदल गई है। बाद के समय में ऐसे अनेक संगठनों का वित्त पोषण विदेशी एजेंसियों से होने लगा है। ऐसी एजेंसियों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सर्विस एजेंसियाँ भी शामिल हैं। इन संगठनों को बड़े पैमाने पर जब विदेशी धनराशि प्राप्त होती है जिससे स्थानीय पहल का आदर्श कुछ कमजोर हुआ है।
प्रश्न 39.
भारत में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण हेतु योजनाएँ भारत सरकार द्वारा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के कल्याण हेतु निम्नलिखित योजनाएँ चलायी जा रही हैं-
- शिक्षा के क्षेत्र में सभी राज्यों में इनके लिए उच्च स्तर तक शिक्षा निःशुल्क कर दी गई है। विभिन्न शिक्षण संस्थाओं में इनके लिए स्थान आरक्षित किए गए हैं।
- इन वर्गों की छात्राओं के लिए छात्रावास योजना प्रारम्भ की गई है।
- 1987 में भारत के जनजाति सहकारी बाजार विकास संघ की स्थापना की गई। 1992-93 में जनजातीय क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्रों की व्यवस्था की गई।
- मार्च, 1992 में बाबा साहब आम्बेडकर संस्था की स्थापना की गई। इन सबके अतिरिक्त इस समय 194 जनजातीय विकास योजनाएँ चल रही हैं।
प्रश्न 40.
महिला सशक्तिकरण की राष्ट्रीय नीति, 2001 के मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय महिला सशक्तिकरण (2001) के उद्देश्य – राष्ट्रीय महिला सशक्तिकरण नीति के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं।
- सकारात्मक आर्थिक और सामाजिक नीतियों द्वारा ऐसा वातावरण तैयार करना जिसमें महिलाओं को अपनी पूर्व क्षमता को पहचानने का मौका मिले और उनका पूर्ण विकास हो।
- महिलाओं द्वारा पुरुषों की भाँति राजनीतिक, आर्थिक-सामाजिक, सांस्कृतिक और नागरिक सभी क्षेत्रों में समान स्तर पर भी मानवीय अधिकारों और मौलिक स्वतन्त्रताओं का कानूनी और वास्तविक उपभोग।
- स्वास्थ्य देखभाल, प्रत्येक स्तर पर उन्नत शिक्षा, जीविका एवं व्यावसायिक मार्गदर्शन, रोजगार, समान पारिश्रमिक, सामाजिक सुरक्षा और सार्वजनिक पदों आदि में महिलाओं को समान सुविधाएँ।
- न्याय व्यवस्था को मजबूत बनाकर महिलाओं के विरुद्ध होने वाले किसी प्रकार के अत्याचारों का उन्मूलन करना।
प्रश्न 41.
सूचना का अधिकार अधिनियम क्या है? भारत में इसे कब पारित किया गया था?
उत्तर:
सूचना का अधिकार भारतीय संसद द्वारा पारित वह अधिनियम है जो नागरिकों के सूचना के अधिकार के बारे में नियमों और प्रक्रियाओं को निर्धारित करता है। इस अधिनियम के अंतर्गत भारत का कोई भी नागरिक किसी भी. सरकारी प्राधिकरण से सूचना प्राप्त करने हेतु अनुरोध कर सकता है और यह सूचना संबंधित विभाग को ज्यादा से ज्यादा 30 दिनों में उपलब्ध करानी होती है। भारत में यह विधेयक 2005 में पारित हुआ था।
प्रश्न 42.
भारत में पर्यावरण सुरक्षा हेतु क्या – क्या कदम उठाये जा रहे हैं? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा
पर्यावरणीय आन्दोलन का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पर्यावरणीय सुरक्षा आन्दोलन: भारत में पर्यावरण की सुरक्षा हेतु अनेक कदम उठाये जा रहे हैं, जिनमें प्रमुख हैं।
- स्वतन्त्र भारत में वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए अनेक स्थानों पर अभयारण्यों की स्थापना की गई और इन अभयारण्यों में सभी प्रकार के जीवों की सुरक्षा की व्यवस्था की गई, जिससे जंगलों की संख्या बढ़े और वातावरण स्वच्छ
हो। - पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी गई तथा सर्वत्र वृक्षारोपण कार्य प्रारम्भ किया गया। वृक्षों की कटाई रोकने के लिए उत्तरप्रदेश के पहाड़ी इलाकों में चिपको आन्दोलन चलाया गया।
- सिंचाई के लिए विभिन्न बाँधों की व्यवस्था की गई, इन बाँधों में सिंचाई एवं विद्युत उत्पादन दोनों कार्य चलने लगे।
- भारत में विकास की क्रान्ति के संदर्भ में कृषि क्षेत्र में हरित क्रान्ति का नारा दिया गया और अन्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त की गई।
प्रश्न 43.
भारतीय किसान यूनियन (BKU) की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
अथवा
भारतीय किसान यूनियन की किन्हीं दो विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर:
भारतीय किसान यूनियन ( बी. के.यू.) की विशेषताएँ – भारतीय किसान यूनियन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
- सरकार पर अपनी माँगों को मनवाने के लिए बीकेयू (BKU) ने रैली, धरना, प्रदर्शन और जेल भरो आन्दोलन का सहारा लिया।
- इस संगठन ने जातिगत समुदायों को आर्थिक मसले पर एकजुट करने के लिए जाति पंचायत की परम्परागत संस्था का उपयोग किया।
- बीकेयू (BKU) के लिए धनराशि और संसाधन इन्हीं जातिगत संगठनों के माध्यम से प्राप्त किया जाता था।
- 1990 के दशक में भारतीय किसान यूनियन ने अपने को सभी राजनीतिक दलों से दूर रखा। यह संगठन अपने संख्या बल के आधार पर राजनीति में एक दबाव समूह की तरह सक्रिय था।
प्रश्न 44.
किसान आंदोलन 80 के दशक में सबसे ज्यादा सफल सामाजिक आंदोलन था। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1990 के दशक के शुरुआती सालों तक बीकेयू ने अपने को सभी राजनीतिक दलों से दूर रखा था। यह अपने सदस्यों के संख्या बल के दम पर राजनीति में एक दबाव समूह की तरह सक्रिय था। इस संगठन ने राज्यों में मौजूद अन्य किसान संगठनों को साथ लेकर अपनी कुछ माँगें भी मनवा ली थीं। इस आंदोलन की सफलता के पीछे इसके सदस्यों की राजनीतिक मोल-भाव की क्षमता का हाथ था।
प्रश्न 45.
जन आंदोलन के आलोचक इन आंदोलनों का विरोध क्यों करते हैं?
उत्तर:
जन आंदोलन के आलोचक अकसर यह दलील देते हैं कि हड़ताल, धरना और रैली जैसी सामूहिक कार्रवाईयों से सरकार के कामकाज पर बुरा असर पड़ता है। उनके अनुसार इस तरह की गतिविधियों से सरकार की निर्णय-प्रक्रिया बाधित होती है तथा रोजमर्रा की लोकतांत्रिक व्यवस्था भंग होती है।
प्रश्न 46.
जन आंदोलन में भाग लेने वाले समूह चुनावी शासन- भूमि से अलग जन-कार्रवाई और लामबंदी की रणनीति क्यों अपनाते हैं?
उत्तर:
जन आंदोलन में भाग लेने वाली जनता सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित तथा अधिकारहीन वर्गों से संबंध रखती है। इन समूहों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अपनी बातों को कहने का पर्याप्त मौका नहीं मिलता है। इसी कारण ये समूह चुनावी शासन – भूमि से अलग जन- कार्रवाई और लामबंदी की रणनीति अपनाते हैं।
प्रश्न 47.
दलित पैंथर्स संगठन ने दलित अधिकारों की दावेदारी के लिए जन-कार्रवाई का रास्ता क्यों अपनाया?
उत्तर:
दलितों के सामाजिक और आर्थिक उत्पीड़न को रोक पाने में कानून की व्यवस्था नाकाम साबित हो रही थी। दलित जिन राजनीतिक दलों का समर्थन कर रहे थे जैसे रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया, वे चुनावी राजनीति में सफल नहीं हो पा रही थीं। ये पार्टियाँ हमेशा निशाने पर रहती थीं, चुनाव जीतने के लिए इन्हें किसी दूसरी पार्टी से गठबंधन करना पड़ता था । ये पार्टियाँ टूट का भी शिकार हुईं। इन वजहों से ‘दलित पैंथर्स’ ने दलित अधिकारों की दावेदारी करते हुए जन- कार्रवाई का रास्ता अपनाया।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् होने वाले प्रमुख किसान आन्दोलनों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् किसान आन्दोलन: स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में हुए कुछ प्रमुख किसान आन्दोलन निम्नलिखित हैं।
1. तिभागा आन्दोलन:
तिभागा आन्दोलन 1946-47 में बंगाल में प्रारम्भ हुआ। यह आन्दोलन मुख्यतः जोतदारों के विरुद्ध मझोले किसानों एवं बटाईदारों का संयुक्त आन्दोलन था। इस आन्दोलन के कारण कई गाँवों में किसान सभा का शासन स्थापित हो गया। परन्तु औद्योगिक मजदूर वर्ग और बड़े किसानों के समर्थन के बिना यह शीघ्र ही समाप्त हो गया।
2. तेलंगाना आन्दोलन:
तेलंगाना आन्दोलन हैदराबाद राज्य में 1946 में जागीरदारों द्वारा की जा रही जबरन एवं अत्यधिक वसूली के विरोध में चलाया गया क्रान्तिकारी किसान आन्दोलन था। इस आन्दोलन में क्रान्तिकारी किसानों ने पाँच हजार गुरिल्ला किसान तैयार कर जमींदारों के विरुद्ध संघर्ष आरम्भ कर दिया। भारत सरकार द्वारा हस्तक्षेप करने पर यह आन्दोलन समाप्त हो गया।
3. आधुनिक किसान आन्दोलन:
मार्च, 1987 में गुजरात के किसानों ने अपनी मांगें मनवाने के लिए विधान सभा का घेराव करने की योजना बनाई। सरकार ने गुजरात विधानसभा (गांधीनगर) की किलेबंदी कर दी। पुलिस ने किसानों पर तरह-तरह के अत्याचार किए और किसानों ने पुलिस के अत्याचारों के विरुद्ध ग्राम बंद करने की अपील की, जिसके कारण गुजरात के अनेक शहरों में दूध और सब्जी की समस्या कई दिनों तक रही।
प्रश्न 2.
सरकार की सार्वजनिक नीतियों पर जन आंदोलनों का प्रभाव काफी सीमित रहा है। विस्तारपूर्वक उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सरकार की सार्वजनिक नीतियों पर जन आंदोलनों का प्रभाव सीमित रहा है। इसके निम्न कारण हैं:
- समकालीन सामाजिक आंदोलन किसी एक मुद्दे के इर्द-गिर्द ही जनता को लामबंद करते हैं। इस तरह वे समाज के किसी एक वर्ग का ही प्रतिनिधित्व कर पाते हैं। इसी सीमा के कारण सरकार इन आंदोलनों की जायज माँगों को ठुकराने का साहस कर पाती है।
- लोकतांत्रिक राजनीति वंचित वर्गों के व्यापक गठबंधन को लेकर ही चलती है जबकि जनआंदोलनों के नेतृत्व में यह बात संभव नहीं हो पाती।
- राजनीतिक दलों को जनता के विभिन्न वर्गों के बीच सामंजस्य बैठाना पड़ता है, जबकि जन आंदोलनों का नेतृत्व इस वर्गीय हित के प्रश्नों को कायदे से सँभाल नहीं पाता। एक सच्चाई यह भी है कि राजनीतिक दलों ने समाज के वंचित और अधिकार हीन लोगों के मुद्दे पर ध्यान देना छोड़ दिया है।
- हालाँकि जन आंदोलन का नेतृत्व भी ऐसे मुद्दों को सीमित ढंग से ही उठा पाता है।
- विगत वर्षों में राजनीतिक दलों और जन आंदोलनों का आपसी संबंध भी कमजोर होता गया है। इससे राजनीति में सूनेपन का माहौल पनपा है।
प्रश्न 3.
दलित पैंथर्स संगठन के उदय और गतिविधियों पर लेख लिखिए।
उत्तर:
1. दलित पैंथर्स संगठन का उदय:
सातवें दशक के शुरुआती सालों से शिक्षित दलितों की पहली पीढ़ी ने अनेक मंचों से अपने हक की आवाज उठायी। इनमें अधिकतर शहर की झुग्गी बस्तियों में पलकर बड़े हुए दलित थे दलित हितों की दावेदारी के इसी क्रम में महाराष्ट्र में 1972 में दलित युवाओं का एक संगठन ‘दलित पैंथर्स’ बना। आजादी के बाद के सालों में दलित समूह प्रमुखतः “जाति-आधारित असमानता और भौतिक साधनों के मामले में अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ लड़ रहे थे। वे इस बात को लेकर सचेत थे कि संविधान में जाति-आधारित किसी भी तरह के भेदभावों के विरुद्ध गारंटी दी गई है।
2. दलित पैंथर्स संगठन की गतिविधि:
आरक्षण के कानून तथा सामाजिक न्याय की नीतियों का कारगर क्रियान्वयन के लिए इस संगठन ने संघर्ष किया। महाराष्ट्र के विभिन्न इलाकों में दलितों पर बढ़ रहे अत्याचार से लड़ना इस संगठन की मुख्य गतिविधियों में से एक था । दलित पैंथर्स संगठन ने दलितों पर हो रहे अत्याचार के मामलों पर लगातार विरोध आंदोलन चलाया। इस संगठन का वृहत्तर विचारात्मक एजेंडा जाति प्रथा को समाप्त करना तथा भूमिहीन गरीब किसान, शहरी औद्योगिक मजदूर और दलित सहित सारे वंचित वर्गों का एक संगठन खड़ा करना था।
प्रश्न 4.
भारत के किन्हीं दो सामाजिक आंदोलनों का उल्लेख कीजिये। उनके मुख्य उद्देश्यों की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
भारत के दो प्रमुख सामाजिक आंदोलन इस प्रकार हैं।
- महिला आंदोलन:
- महिला आंदोलन प्रारंभ में घरेलू हिंसा, दहेज प्रथा, कार्यस्थल और सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ कार्य करने वाले मध्यवर्गीय शहरी महिलाओं के बीच क्रियाशील थे।
- आठवें दशक के दौरान यह आंदोलन परिवार के अन्दर व उसके बाहर होने वाली यौन हिंसा के मुद्दों पर केन्द्रित रहा इन आंदोलनों ने दहेज प्रथा का विरोध, व्यक्तिगत तथा सम्पत्ति कानूनों में लैंगिक समानता की मांग की।
- नब्बे के दशक में महिला आंदोलन समान राजनीतिक प्रतिनिधित्व हेतु महिला आरक्षण की भी माँग करने लगा।
- चिपको आंदोलन:
चिपको आंदोलन का प्रारंभ उत्तराखंड के 2-3 गाँवों से व्यावसायिक प्रयोग हेतु पेड़ों को काटने से रोकने के सम्बन्ध में हुआ। इस आंदोलन से ये मुद्दे उठे- जंगल की कटाई का ठेका बाहरी व्यक्ति को न दिया जाये तथा स्थानीय लोगों का जल, जंगल, जमीन पर कारगर नियंत्रण होना चाहिए।
- सरकार लघु उद्योगों हेतु कम कीमत की सामग्री उपलब्ध कराए तथा इस क्षेत्र के पारिस्थितिक संतुलन को हानि पहुँचाये बिना यहाँ का विकास सुनिश्चित करे।
- चिपको आंदोलन में महिलाओं ने शराबखोरी की बात के विरोध में भी निरन्तर आवाज उठायी।
प्रश्न 5.
बीसवीं शताब्दी के 70 और 80 के दशकों में उदित-विकसित हुए गैर-राजनीतिक दलों वाले ( अथवा राजनैतिक दलों से स्वतन्त्र) आंदोलन पर लेख लिखिए।
उत्तर:
गैर-राजनैतिक या राजनैतिक स्वतन्त्र आन्दोलन के कारण 70 और 80 के दशकों में उदित हुए गैर-राजनैतिक या राजनीतिक दलों से स्वतन्त्र आन्दोलन के प्रमुख कारण अग्रलिखित हैं।
- गैर-कांग्रेसवाद का असफल होना: 70 और 80 के दशक में समाज के कई तबकों का राजनीतिक दलों के आचार-व्यवहार से मोहभंग हुआ। असफलता से राजनीतिक अस्थिरता का माहौल कायम हुआ जिनसे राजनीतिक दलों से स्वतन्त्र आन्दोलनों का उदय हुआ।
- केन्द्र सरकार की आर्थिक नीतियों से निराश: सरकार बेरोजगारी, गरीबी, महँगाई नहीं रोक सकी इसलिए सरकार की आर्थिक नीतियों से लोगों का मोहभंग हुआ।
- आर्थिक और सामाजिक असमानताएँ: बीसवीं शताब्दी के सत्तर और अस्सी के दशकों में जाति और लिंग पर आधारित मौजूदा असमानताओं ने गरीबी के मसले को और ज्यादा जटिल और धारदार बना दिया।
- अनेक समूहों का लोकतन्त्र से विश्वास उठ गया: राजनीतिक धरातल पर सक्रिय कई समूहों का लोकतान्त्रिक संस्थाओं और चुनावी राजनीति से विश्वास उठ गया। ये समूह दलगत राजनीति से अलग हुए और अपने विरोध को स्वर देने के लिए इन्होंने आवाम को लामबंद करना शुरू किया। इस प्रकार 1970-80 के दशक में गैर-राजनैतिक या राजनीतिक दलों से स्वतन्त्र आन्दोलनों की विशेष भूमिका रही।
प्रश्न 6.
‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ की विवेचना कीजिए।
अथवा
नर्मदा बचाओ आंदोलन का परिचय देते हुए इसकी प्रमुख गतिविधियों पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
नर्मदा बचाओ आंदोलन आठवें दशक के प्रारंभ में नर्मदा घाटी में विकास परियोजना के तहत मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र से गुजरने वाली नर्मदा और उसकी सहायक नदियों पर 30 बड़े और 135 मझौले तथा 300 छोटे बाँध बनाने का प्रस्ताव रखा गया। गुजरात के सरदार सरोवर तथा मध्यप्रदेश के नर्मदा सागर बाँध के रूप में दो सबसे बड़ी और बहुउद्देश्यीय परियोजनाओं का निर्धारण किया गया। नर्मदा नदी के बचाव में नर्मदा बचाओ आंदोलन चला। इस आंदोलन ने इन बाँधों के निर्माण का विरोध किया तथा इन परियोजनाओं के औचित्य पर भी सवाल उठाए हैं। प्रमुख गतिविधियाँ
- आंदोलन के नेतृत्व ने इस बात की ओर ध्यान दिलाया कि इन परियोजनाओं का लोगों के पर्यावास, आजीविका, संस्कृति तथा पर्यावरण पर बुरा असर पड़ा है।
- प्रारंभ में आंदोलन ने परियोजना से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित सभी लोगों के समुचित पुनर्वास किये जाने की माँग रखी।
- बाद में इस आंदोलन ने इस बात पर बल दिया कि ऐसी परियोजनाओं की निर्णय प्रक्रिया में स्थानीय समुदाय की भागीदारी होनी चाहिए।
- अब आंदोलन बड़े बांधों की खुली मुखालफत करता
- आंदोलन ने अपनी माँगें मुखर करने के लिए हरसंभव लोकतांत्रिक रणनीति का इस्तेमाल किया। यथा
- इसने अपनी बात न्यायपालिका से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय मंचों तक उठायी।
- इसके नेतृत्व ने सार्वजनिक रैलियां तथा सत्याग्रह जैसे तरीकों का भी प्रयोग किया।
प्रश्न 7.
जन आंदोलन के मुख्य कारण व भारतीय राजनीति पर प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जन आंदोलन के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं।
- राजनीतिक दलों के आचार: व्यवहार से मोह भंग होना सत्तर और अस्सी के दशक में समाज के कई तबकों का राजनीतिक दलों के आचार-व्यवहार से मोह भंग हो गया। इससे दल-रहित जन-आंदोलनों का उदय हुआ।
- सरकार की आर्थिक नीतियों से मोह भंग होना: सरकार की आर्थिक नीतियों से भी लोगों का मोह भंग हुआ क्योंकि जाति और लिंग आधारित सामाजिक असमानताओं ने गरीबी के मुद्दे को और ज्यादा जटिल बना दिया।
- लोकतांत्रिक संस्थाओं और चुनावी राजनीति से विश्वास उठना: राजनीतिक धरातल पर सक्रिय कई समूहों का विश्वास लोकतांत्रिक संस्थाओं और चुनावी राजनीति से उठ गया। इन समूहों ने दलगत राजनीति से अलग होकर आवाम को लामबंद कर अपने विरोध को स्वर दिया। भारतीय राजनीति पर जन आंदोलनों का प्रभाव भारतीय राजनीति पर जन आंदोलनों के निम्नलिखित प्रभाव पड़े:
- इन्होंने उन नये वर्गों की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को अभिव्यक्ति दी जो अपनी समस्याओं को चुनावी राजनीति के जरिये हल नहीं कर पा रहें थे।
- विभिन्न सामाजिक समूहों के लिए ये आंदोलन अपनी बात रखने का बेहतर माध्यम बनकर उभरे।
- समाज के गहरे तनावों और जनता के क्षोभ को एक सार्थक दिशा देकर इन आंदोलनों ने भारतीय लोकतंत्र के जनाधार को बढ़ाया है।
- ये आंदोलन जनता की जायज मांगों के नुमाइंदा बनकर उभरे हैं।
प्रश्न 8.
ताड़ी विरोधी आंदोलन से आपका क्या अभिप्राय है? विवेचना करें।
उत्तर:
ताड़ी विरोधी आंदोलन: ताड़ी विरोधी आंदोलन की शुरुआत 1992 में आंध्रप्रदेश के नेल्लौर जिले से मानी जाती है। इस आंदोलन के अन्तर्गत ग्रामीण महिलाओं ने शराब के खिलाफ लड़ाई छेड़ी और शराब की बिक्री पर पाबंदी लगाने की माँग की। यह लड़ाई शराब माफिया और सरकार दोनों के खिलाफ थी। ताड़ी-विरोधी आंदोलन में दो परस्पर विरोधी गुट थे। एक शराब माफिया और दूसरा ताड़ी के कारण पीड़ित परिवार। शराबखोरी से सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को हो रही थी।
इससे परिवार की अर्थव्यवस्था चरमराने लगी थी तथा परिवार में तनाव और मारपीट का माहौल बनने लगा था। दूसरी तरफ शराब के ठेकेदार ताड़ी व्यापार पर एकाधिकार बनाए रखने के लिए अपराधों में व्यस्त थे।
इस आंदोलन ने जब वृहद रूप धारण कर लिया तो यह महिला आंदोलन का हिस्सा बन गया क्योंकि:
- यह ताड़ी विरोध के साथ-साथ घरेलू हिंसा, दहेज-प्रथा, कार्यस्थल एवं सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ आंदोलन बन गया।
- इसने महिलाओं के मुद्दों के प्रति समाज में व्यापक जागरूकता उत्पन्न की
- इसमें महिलाओं को विधायिका में दिये जाने वाले आरक्षण के मामले उठे।
प्रश्न 9.
नेशनल फिशवर्कर्स फोरम पर विस्तारपूर्वक लेख लिखिए।
उत्तर:
मछुआरों की संख्या के लिहाज से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। अपने देश के पूर्वी और पश्चिमी दोनों ही तटीय क्षेत्रों में देसी मछुआरा समुदायों के हजारों परिवार का पेशा मत्सोद्योग है। सरकार ने जब मशीनीकृत मत्स्य- आखेट और भारतीय समुद्र में बड़े पैमाने पर मत्स्य – दोहन के लिए ‘बॉटम ट्रऊलिंग’ जैसे प्रौद्योगिकी के उपयोग की अनुमति दी तो मछुआरों के जीवन और आजीविका के आगे संकट आ खड़ा हुआ। पूरे 70 और 80 के दशक के दौरान मछुआरों के स्थानीय स्तर के संगठन अपनी आजीविका के मसले पर राज्य सरकारों से लड़ते रहे।
1980 के दशक के मध्यवर्ती वर्षों में आर्थिक उदारीकरण की नीति की शुरुआत हुई तो बाध्य होकर मछुआरों के स्थानीय संगठनों ने अपना राष्ट्रीय मंच बनाया। इसका नाम ‘नेशनल फिशवर्कर्स फोरम’ रखा गया। इस संगठन ने 1997 में केन्द्र सरकार से पहली कानूनी लड़ाई लड़ी और उसमें सफलता भी पाई। इस क्रम में इसके कामकाज ने एक ठोस रूप भी ग्रहण किया। इसकी लड़ाई सरकार की खास नीति के खिलाफ थी । केन्द्र सरकार की इस नीति के अंतर्गत व्यावसायिक जहाजों को गहरे समुद्र में मछली मारने की इजाजत दी गई थी।
इस नीति के कारण बहुराष्ट्रीय निगमों के लिए भी इस क्षेत्र के दरवाजे खुल गए थे। 1990 के पूरे दशक में एनएफएम ने केन्द्र सरकार से अनेक कानूनी लड़ाई लड़ी और सार्वजनिक संघर्ष भी किया। इस फोरम ने उन लोगों के हितों की रक्षा के प्रयास किए जो जीवनयापन के लिए मछली मारने के पेशे से जुड़े थे न कि इस क्षेत्र में मात्र लाभ के लिए निवेश करते हैं। सन् 2002 में इस संगठन ने राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया। इस हड़ताल का कारण विदेशी कंपनियों को सरकार द्वारा मछली मारने का लाइसेंस जारी करने के विरोध में किया गया था।
प्रश्न 10.
ताड़ी विरोधी आंदोलन का उदय किस प्रकार हुआ ? विवेचना कीजिए।
उत्तर:
आंध्र प्रदेश के नेल्लौर जिले के दुबरगंटा गाँव में 1990 के शुरुआती समय में महिलाओं के बीच प्रौढ़ साक्षरता कार्यक्रम चलाया गया। इसमें महिलाओं ने बड़ी संख्या में पंजीकरण कराया। कक्षाओं में महिलाएँ घर के पुरुषों द्वारा देशी शराब, ताड़ी आदि पीने की शिकायतें करती थीं। ग्रामीणों को शराब पीने की लत लग चुकी थी। इस वजह से वे शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर हो गए थे। इस लत की वजह से ग्रामीण अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हो रही थी। लोगों पर कर्ज का बोझ बढ़ गया। पुरुष अपने काम में गैर-हाजिर रहने लगे। शराबखोरी से सबसे ज्यादा
संजीव पास बुक्स दिक्कत महिलाओं को हो रही थी। क्योंकि इस आदत से परिवार की अर्थव्यवस्था चरमराने लगी। परिवार में तनाव और मारपीट का माहौल बनने लगा। इन कारणों की वजह से नेल्लोर में महिलाएँ ताड़ी की बिक्री के खिलाफ आगे आईं और उन्होंने शराब की दुकानों को बंद कराने के लिए दबाव बनाना शुरू किया। यह खबर दूसरे गाँवों में फैलते ही दूसरे गांवों महिलाओं ने भी इस आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया। प्रतिबंध संबंधी एक प्रस्ताव को पास कर जिला कलेक्टर को भेजा गया। यह आंदोलन धीरे-धीरे पूरे राज्य में फैल गया।
प्रश्न 11.
सूचना के अधिकार का आंदोलन के बारे में विस्तारपूर्वक लिखिए।
उत्तर:
सूचना के अधिकार का आंदोलन जन आंदोलनों की सफलता का एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है। यह आंदोलन सरकार से एक बड़ी माँग को पूरा कराने में सफल रहा है। इस आंदोलन की शुरुआत 1990 में हुई और इसका नेतृत्व मजदूर किसान शक्ति संगठन ने किया। राजस्थान में काम कर रहे इस संगठन ने सरकार के सामने यह माँग रखी कि अकाल राहत कार्य और मजदूरों को दी जाने वाली पगार के रिकॉर्ड का सार्वजनिक खुलासा किया जाए। यह माँग राजस्थान के एक अत्यंत ही पिछड़े क्षेत्र से उठायी गयी।
इस मुहिम के तहत ग्रामीणों प्रशासन से अपने वेतन और भुगतान के बिल उपलब्ध कराने को कहा क्योंकि इन लोगों का अनुमान था कि विकास कार्यों में लगाए जाने वाले धन की हेराफेरी हुई है। पहले 1994 और उसके बाद 1996 में एम के एस एस ने जन सुनवाई का आयोजन किया और प्रशासन को इस मामले में अपना पक्ष स्पष्ट करने को कहा। आंदोलन के दबाव में सरकार को राजस्थान पंचायती राज अधिनियम में संशोधन करना पड़ा।
नए कानून के तहत जनता को पंचायत के दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त करने की अनुमति मिल गई। 1996 में एम के एस एस ने दिल्ली में सूचना के अधिकार को लेकर राष्ट्रीय समिति का गठन किया। इन आंदोलनों के परिणामस्वरूप 2002 में ‘सूचना की स्वतंत्रता’ नाम का विधेयक पारित हुआ था। परंतु यह एक कमजोर अधिनियम था। सन् 2004 में सूचना के अधिकार के विधेयक को सदन में रखा। जून में 2005 में इस विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी हासिल हुई।