Jharkhand Board JAC Class 11 Political Science Solutions Chapter 1 संविधान – क्यों और कैसे? Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 1 संविधान – क्यों और कैसे?
Jharkhand Board Class 11 Political Science संविधान – क्यों और कैसे? InText Questions and Answers
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प्रश्न 1.
संविधान किस्से कहते हैं? या संविधान क्या है?
उत्तर:
संविधान एक लिखित या अलिखित दस्तावेज या दस्तावेजों का पुंज है जिसमें राज्य सम्बन्धी प्रावधान यह बताते हैं कि राज्य का गठन कै से होगा और वह किन सिद्धान्तों का पालन करेगा।
प्रश्न 2.
संविधान समाज को क्या देता है?
उत्तर:
संविधान समाज में तालमेल बिठाता है।, सरकार का निर्माण करता है, सरकार की सीमाएँ बताता है तथा समाज की आकांक्षाओं और लक्ष् यों को बताता है। यथा
- संविधान समाज में तालमेल बिठाता है: संविधान समाज में तालमेल बिठाता है। यह समाज में बुनियादी नियमों को प्रस्तुत कर रता है तथा उन्हें लागू कराता है ताकि समाज के सदस्यों में न्यूनतम समन्वय और विश्वास बना रहे।
- यह शक्ति का वित रण स्पष्ट करता है: यह समाज में शक्ति के मूल वितरण को स्पष्ट करता है तथा यह स्पष्ट करता है कि समाज में निर्णय लेने की शक्ति किसके पास होगी तथा सरकार कैसे निर्मित होगी।
- सरकार की शक्तियों पर सीमाएँ: संविधान सरकार द्वारा अपने नागरिकों पर लागू किये जाने वाले कानूनों की सीमाएँ तय करता है । इसी सन्दर्भ में वह नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान करता है।
- समाज की आकांक्षाएँ और लक्ष्य: संविधान सरकार को ऐसी क्षमता प्रदान करता है जिससे वह समाज की आकांक्षाओं को पूरा कर सके और एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए उचित परिस्थितियों का निर्माण कर सके।
प्रश्न 3.
संविधान समाज में शक्ति का बंटवारा कैसे करता है?
उत्तर:
संविधान समाज में शक्ति के मूल वितरण को स्पष्ट करता है। संविधान यह तय करता है कि कानून कौन बनायेगा। उदाहरण के लिए भारतीय संविधान में यह स्पष्ट किया गया है कि अधिकतर कानून संसद और राज्य विधानमण्डल बनायेंगे। संसद और राज्य विधानमण्डलों को कानून निर्माण का अधिकार संविधान प्रदान करता है। इसी प्रकार संविधान सरकार की अन्य संस्थाओं को भी शक्ति जैसे कार्यपालिका को कानूनों के क्रियान्वयन और न्यायपालिका को कानूनों को लागू करने की शक्ति प्रदान करता है।
प्रश्न 4.
भारत का संविधान कैसे बनाया गया?
उत्तर:
भारत के संविधान का निर्माण संविधान सभा ने 2 वर्ष 11 मास 18 दिन की अवधि में 166 दिनों तक बैठकें कर 26 नवम्बर, 1949 को पारित किया। संविधान सभा की संविधान निर्माण की प्रक्रिया इस प्रकार रही
- सार्वजनिक हित: संविधान सभा के सदस्यों ने पूरे देश के हित को ध्यान में रखकर विचार-विमर्श कर निर्णय लिया।
- सार्वजनिक विवेकयुक्त कार्यविधि: विभिन्न मुद्दों के लिए संविधान सभा की आठ मुख्य कमेटियाँ थीं। प्रत्येक कमेटी ने संविधान के कुछ-कुछ प्रावधानों का प्रारूप तैयार किया जिन पर बाद में पूरी संविधान सभा में चर्चा की गयी । प्रायः प्रयास यह किया गया कि निर्णय आम राय से हो, लेकिन कुछ प्रावधानों पर निर्णय मत विभाजन करके भी लिये गये।
- राष्ट्रीय आन्दोलन की विरासत को मूर्त रूप देना: संविधान सभा ने उन सिद्धान्तों को मूर्त रूप आकार दिया जो उसके सदस्यों ने राष्ट्रीय आन्दोलन से विरासत में प्राप्त किये थे। इन सिद्धान्तों का सारांश नेहरू द्वारा 1946 में प्रस्तुत ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ में मिलता है। इसी प्रस्ताव के आधार पर संविधान में समानता, स्वतंत्रता, लोकतंत्र और संप्रभुता को संस्थागत रूप दिया गया।
- संस्थागत व्यवस्थाएँ: संविधान सभा ने सरकार को जनकल्याण तथा लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्ध रखने हेतु शासन . के तीनों अंगों – विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए बहुत विचार मंथन – किया। परिणामस्वरूप संविधान सभा ने संसदीय व्यवस्था और संघात्मक व्यवस्था को स्वीकार किया।
- विभिन्न देशों के संविधानों के प्रावधानों को ग्रहण करना: संविधान सभा ने शासकीय संस्थाओं की संतुलित व्यवस्था स्थापित करने के लिए विभिन्न देशों के संविधानों के प्रावधानों व संवैधानिक परम्पराओं को ग्रहण किया तथा उन्हें भारतीय समस्याओं व परिस्थितियों के अनुरूप ढालकर अपना बना लिया।
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प्रश्न 5.
(ख) संविधान कितना प्रभावी है?
उत्तर:
संविधान कितना प्रभावी है? इस बात का निर्धारण इस बात के निर्धारण से किया जाता है कि कोई संविधान कैसे अस्तित्व में आया? किसने संविधान बनाया और उनके पास इसे बनाने की कितनी शक्ति थी?
यदि संविधान सैनिक शासकों या ऐसे अलोकप्रिय नेताओं द्वारा बनाये जाते हैं जिनके पास लोगों को अपने साथ लेकर चलने की क्षमता नहीं होती, तो वे संविधान कम प्रभावी या निष्प्रभावी होते हैं। यदि संविधान सफल राष्ट्रीय आन्दोलन के बाद आंदोलन के लोकप्रिय नेताओं द्वारा निर्मित किया जाता है तो उसमें समाज के सभी वर्गों को एक साथ ले चलने की क्षमता होती है, ऐसा संविधान प्रभावशाली होता है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि जिस संविधान निर्मात्री सभा के सदस्यों में जितनी अधिक लोकप्रियता, जनहित की भावना और समाज के सभी वर्गों को साथ ले चलने की क्षमता होगी संविधान उतना ही अधिक प्रभावी होगा। विश्व के सर्वाधिक सफल व प्रभावी संविधान भारत, दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका के हैं जिन्हें एक सफल राष्ट्रीय आन्दोलन के बाद बनाया गया है।
(ग) क्या संविधान न्यायपूर्ण है?
उत्तर:
एक न्यायपूर्ण संविधान, संविधान के प्रावधानों का आदर करने का कोई कारण अवश्य देता है। एक न्यायपूर्ण संविधान वह है जो लोगों को यह विश्वास दिला सके कि वह बुनियादी न्याय को प्राप्त करने के लिए उपयुक्त ढाँचा उपलब्ध कराता है।
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प्रश्न 6.
नीचे भारतीय और अन्य संविधानों के कुछ प्रावधान दिये गये हैं। बताएँ कि इनमें प्रत्येक प्रावधान का क्या कार्य है?
(क) सरकार किसी भी नागरिक को किसी धर्म का पालन करने या न करने की आज्ञा नहीं दे सकती।
(ख) सरकार को आय और सम्पत्ति की असमानताएँ कम करने का प्रयास अवश्य करना चाहिए।
(ग) राष्ट्रपति के पास प्रधानमंत्री को नियुक्त करने की शक्ति है।
(घ) संविधान वह सर्वोच्च कानून है जिसका सभी को पालन करना पड़ता है।
(ङ) भारतीय नागरिकता किसी खास नस्ल, जाति या धर्म तक सीमित नहीं है।
उत्तर:
(क) सरकार की शक्ति पर सीमा
(ख) समाज की आकांक्षा व लक्ष्य
(ग) निर्णय लेने की शक्ति की विशिष्टता
(घ) संविधान बुनियादी तालमेल बिठाता है।
(ङ) राष्ट्र की बुनियादी पहचान (राष्ट्रीय पहचान)।
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प्रश्न 7.
लोगों को जब यह पता चलता है कि उनका संविधान न्यायपूर्ण नहीं है तो वे क्या करते हैं?
उत्तर:
लोगों को जब यह पता चलता है कि उनका संविधान न्यायपूर्ण नहीं है तो वे संविधान के प्रावधानों का आदर नहीं करते। ऐसे संविधान को जनता से निष्ठा मिलनी बंद हो जाती है।
प्रश्न 8.
ऐसे लोगों का क्या होता है जिनका संविधान केवल कागज पर ही होता है?
उत्तर:
ऐसे लोगों को बुनियादी न्याय प्राप्त करने का ढाँचा उपलब्ध नहीं हो पाता।
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प्रश्न 9.
यदि भारत की संविधान सभा देश के सभी लोगों के द्वारा निर्वाचित होती तो क्या होता? क्या वह उस संविधान सभा से भिन्न होती जो बनाई गई?
उत्तर:
यदि भारत की संविधान सभा देश के सभी लोगों के द्वारा निर्वाचित होती तो भी संविधान सभा का रूप यही होता क्योंकि इस संविधान सभा में राष्ट्र के सभी प्रमुख नेता तथा समाज के सभी वर्गों के नेता व प्रबुद्ध लोग सम्मिलित थे। इसका प्रमाण यह है कि संविधान निर्माण के बाद हुए प्रथम आम चुनाव में संविधान सभा के लगभग सभी सदस्य निर्वाचित हो गये थे।
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प्रश्न 10.
यदि हमें 1937 में स्वतंत्रता मिल जाती तो क्या होता? हमें 1957 तक इंतजार करना पड़ता तो क्या होता? क्या तब बनाया गया संविधान हमारे वर्तमान संविधान से भिन्न होता?
उत्तर:
चाहे हमें 1937 में स्वतंत्रता मिल जाती, चाहे हमें 1957 तक इंतजार करना पड़ता; यदि स्वतंत्रता के समय विभाजन की परिस्थितियाँ इसी तरह की होतीं, तो हमारा संविधान वर्तमान संविधान से भिन्न नहीं होता क्योंकि हमारे संविधान निर्माता, उनकी लोकप्रियता तथा सार्वजनिक हित की दृष्टि यही होती।
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प्रश्न 11.
क्या यह संविधान उधार का था?
उत्तर:
नहीं, भारत का संविधान उधार का नहीं था । इसमें दूसरे संविधानों के जिन प्रावधानों को ग्रहण किया गया था, उन्हें देश की समस्याओं व परिस्थितियों के अनुकूल परिवर्तित कर अपनाया गया था।
प्रश्न 12.
हम ऐसा संविधान क्यों नहीं बना सके जिसमें कहीं से कुछ भी उधार न लिया गया हो?
उत्तर:
विश्व इतिहास के इस पड़ाव पर बनाये गये संविधान में पूर्णतः नवीन ढांचे को नहीं अपनाया जा सकता। संविधान में यदि कुछ नया हो सकता है तो वह यह है कि उसमें उधार लिए गए प्रावधानों में कुछ ऐसे परिवर्तन किये जाएं जो असफलताओं को दूर कर देश की आवश्यकताओं के अनुरूप बन सकें। भारत के संविधान निर्माताओं ने यह बखूबी किया है।
Jharkhand Board Class 11 Political Science संविधान – क्यों और कैसे? Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
इनमें कौनसा संविधान का कार्य नहीं है?
(क) यह नागरिकों के अधिकार की गारंटी देता है।
(ख) यह शासन की विभिन्न शाखाओं की शक्तियों के अलग-अलग क्षेत्र का रेखांकन करता है।
(ग) यह सुनिश्चित करता है कि सत्ता में अच्छे लोग आयें।
(घ) यह कुछ साझे मूल्यों की अभिव्यक्ति करता है।
उत्तर:
(ग) यह सुनिश्चित करता हैं कि सत्ता में अच्छे लोग आयें.
प्रश्न 2.
निम्नलिखित में कौन-सा कथन इस बात की एक बेहतर दलील है कि संविधान की प्रामाणिकता संसद से ज्यादा है?
(क) संसद के अस्तित्व में आने से कहीं पहले संविधान बनाया जा चुका था।
(ख) संविधान के निर्माता संसद के सदस्यों से कहीं ज्यादा बड़े नेता थे।
(ग) संविधान ही यह बताता है कि संसद कैसे बनायी जाये और इसे कौन-कौनसी शक्तियाँ प्राप्त होंगी।
(घ) संसद, संविधान का संशोधन नहीं कर सकती।
उत्तर:
(ग) संविधान ही यह बताता है कि संसद कैसे बनायी जाये और इसे कौन-कौनसी शक्तियाँ प्राप्त होंगी।
प्रश्न 3.
बतायें कि संविधान के बारे में निम्नलिखित कथन सही हैं या लत?
(क) सरकार के गठन और उसकी शक्तियों के बारे में संविधान एक लिखित दस्तावेज है।
(ख) संविधान सिर्फ लोकतांत्रिक देशों में होता है और उसकी जरूरत ऐसेही देशों में होती है।
(ग) संविधान एक कानूनी दस्तावेज है और आदर्शों तथा मूल्यों से इसका नेई सरोकार नहीं।
(घ) संविधान एक नागरिक को नई पहचान देता है।
उत्तर:
(क) सत्य
(ख) असत्य
(ग) असत्य
(घ) सत्य।
प्रश्न 4.
बतायें कि भारतीय संविधान के निर्माण के बारे में निम्नलिखित नुमान सही हैं या नहीं? अपने उत्तर का कारण बतायें।
(क) संविधान सभा में भारतीय जनता की नुमाइंदगी नहीं हुई। इसका निश्चन सभी नागरिकों द्वारा नहीं हुआ था।
(ख) संविधान बनाने की प्रक्रिया में कोई बड़ा फैसला नहीं लिया गया क्यंके उस समय नेताओं के बीच संविधान की बुनियादी रूपरेखा के बारे में आम सहमति थी।
(ग) संविधान में कोई मौलिकता नहीं है क्योंकि इसका अधिकांश हिस्सा गरे देशों से लिया गया है।
उत्तर:
(क) यद्यपि यह बात सत्य है कि संविधान सभा के सदस्य सार्वभौमिक वस्क मताधिकार के आधार पर नहीं चुने गये थे, तथापि उसे अधिक से अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण बनाने का प्रयास शि गया था। विभाजन के बाद संविधान सभा में कांग्रेस का वर्चस्व था। लेकिन कांग्रेस स्वयं विविधताओं से भरी हुई ऐसी पार्टी थी जिसमें लगभग सभी विचारधाराओं की नुमाइंदगी थी। इसमें सभी धर्म के सदस्यों को समुचित प्रनिधित्व दिया गया था। इसके अतिरिक्त संविधान सभा में अनुसूचित वर्गों के भी 26 सदस्य थे। अतः यह कह गलत होगा कि संविधान सभा भारतीय जनता की नुमाइंदगी नहीं करती थी।
(ख) यह बात भी असत्य है कि संविधान सभा के सदस्यों के बीच संविधकी बुनियादी रूपरेखा के बारे में आम सहमति थी इसलिए संविधान बनाने की प्रक्रिया में कोई बड़ा फैसला नहीं संविधान सभा के बड़े नेताओं के विचार हर बात पर एक-दूसरे के समान थे। डॉ. अम्बेडकर कांग्रेस और गांधी के कटु आलोचक थे। पटेल और नेहरू अनेक मुद्दों पर एक-दूसरे से असहम्। वास्तव में संविधान का केवल एक ही प्रावधान ऐसा है जो बिना किसी वाद-विवाद के पारित हुआ। यह प्रावधान भौमिक मताधिकार का था। इसके अतिरिक्त प्रत्येक विषय पर गंभीर विचार-विमर्श और वाद-विवाद हुए।
(ग) यह कहना गलत है कि संविधान में कोई मौलिकता नहीं है क्योंकि का अधिकांश हिस्सा दूसरे देशों से लिया गया है। वास्तव में हमारे संविधान निर्माताओं ने अन्य देशों की संवैधानिक पाओं से कुछ ग्रहण करने में परहेज नहीं किया। उन्होंने दूसरे देशों के प्रयोगों और अनुभवों से कुछ सीखने में संकनेहीं किया। परन्तु उन प्रावधानों व परम्पराओं को ग्रहण करने में कोरी अनुकरण की मानसिकता नहीं थी, बल्कि ने संविधान के प्रत्येक प्रावधान को भारत की समस्याओं और आशाओं के अनुरूप ग्रहण किया और उन्हें अपना बनाग।
भारत का संविधान एक विशाल तथा जटिल दस्तावेज है। इसकी मौलिकता पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया जा ता। संजीव पास बुक्स की शक्तियों को कई प्रकार से सीमित करता है। संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का स्पष्टीकरण कर दिया जाता है जिनका उल्लंघन कोई भी सरकार नहीं कर सकती। नागरिकों को मनमाने ढंग से बिना कारण के गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। यह सरकार की शक्तियों के ऊपर एक सीमा कहलाती है।
नागरिकों को सामान्यतः कुछ मौलिक स्वतंत्रताओं का अधिकार है, जैसे- भाषण की स्वतंत्रता, अंतर्रात्मा की आवाज पर काम करने की स्वतंत्रता, संगठन बनाने की स्वतंत्रता आदि। व्यवहार में इन अधिकारों को राष्ट्रीय आपातकाल में सीमित किया जा सकता है और संविधान उन परिस्थितियों का उल्लेख भी करता है जिसमें इन अधिकारों को वापिस लिया जा सकता है।
II. नागरिकों के अधिकारविहीन संविधान की संभावना-संसार का कोई भी संविधान अपने नागरिकों को शक्तिविहीन नहीं कर सकता। हाँ, तानाशाह शासक अवश्य संविधान को नष्ट कर देते हैं और वे नागरिकों की स्वतंत्रताओं का हनन करने की कोशिश करते हैं यद्यपि संविधान में नागरिकों को सुविधायें प्रदान की जाती हैं।
प्रश्न 5.
भारतीय संविधान के बारे में निम्नलिखित प्रत्येक निष्कर्ष की पुष्टि में दो उदाहरण दें।
(क) संविधान का निर्माण विश्वसनीय नेताओं द्वारा हुआ। उनके लिए जनता के मन में आदर था।
(ख) संविधान ने शक्तियों का बंटवारा इस तरह किया कि इसमें उलट-फेर मुश्किल है।
(ग) संविधान जनता की आशा और आकांक्षाओं का केन्द्र है।
उत्तर:
(क) संविधान का निर्माण उस संविधान सभा ने किया जो विश्वसनीय नेताओं से बनी थी क्योंकि
- इन सभी नेताओं ने राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लिया था। वे राष्ट्रीय आन्दोलन के लोकप्रिय नेता थे।
- संविधान निर्माण के सदस्य भारतीय समाज के सभी अंगों, वर्गों, जातियों; समुदायों और धर्मों के प्रतिनिधि सदस्य थे। भारतीय जनता के मन में उनके प्रति आदर था क्योंकि राष्ट्रीय आन्दोलन में उठने वाली सभी मांगों को संविधान बनाते समय उन्होंने ध्यान में रखा तथा उन्होंने पूरे देश व समाज के हित को ध्यान में रखकर ही विचार-विमर्श किया।
(ख) संविधान ने शक्तियों का बंटवारा इस तरह किया कि उसमें उलट-फेर मुश्किल है। कोई समूह संविधान को नष्ट नहीं कर सकता है। किसी एक संस्था का सारी शक्तियों पर एकाधिकार नहीं है। संविधान ने शक्ति को एक समान धरातल पर विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसी संस्थाओं और स्वतंत्र संवैधानिक निकाय जैसे निर्वाचन आयोग आदि में बांट दिया है। यह सुनिश्चित किया गया है कि यदि कोई एक संस्था संविधान को नष्ट करना चाहे तो अन्य दूसरी संस्थाएँ उसके अतिक्रमण को नियंत्रित कर लेंगी। अवरोध और संतुलन का भारतीय संविधान में कुशल प्रयोग किया गया है।
(ग) संविधान जनता की आशा और आकांक्षाओं का केन्द्र है। संविधान न्यायपूर्ण है। भारत के संविधान में न्याय के बुनियादी सिद्धान्तों का विशेष ध्यान दिया गया है। भारतीय संविधान सरकार को वह सामर्थ्य प्रदान करता है जिससे वह कुछ सकारात्मक लोक कल्याणकारी कदम उठा सके और जिन्हें कानून की मदद से लागू किया जा सके। हमारे संविधान में प्रस्तावना, मौलिक अधिकार, राज्य के नीति निर्देशक तत्व सरकार वयस्क मताधिकार तथा आरक्षण के प्रावधान आदि के द्वारा लोगों की आशा और आकांक्षाओं को पूरा करने की अपेक्षा की गई है।
प्रश्न 6.
किसी देश के संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों का साफ-साफ निर्धारण क्यों जरूरी है? इस तरह का निर्धारण न हो तो क्या होगा?
उत्तर:
I. संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों के निर्धारण की आवश्यकता – किसी भी देश के संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों का साफ-साफ निर्धारण करना अत्यन्त आवश्यक है। क्योंकि
- जब कोई एक समूह या संस्था अपनी शक्तियों को बढ़ा लेती है तो वह पूरे संविधान को नष्ट कर सकती है। इस समस्या से बचने के लिए यह आवश्यक है कि संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों का निर्धारण साफ-साफ इस तरह से किया जाये कि कोई भी संस्था या समूह संविधान को नष्ट न कर सके।
- संविधान की रूपरेखा इस प्रकार से तैयार की जाये कि कोई एक संस्था एकाधिकार प्राप्त न कर सके। ऐसा करने के लिए शक्तियों का विभाजन विभिन्न संस्थाओं में किया जाये। उदाहरण के लिए भारतीय संविधान में समान स्तर पर शक्तियों का वितरण कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के मध्य तथा कुछ स्वतन्त्र संवैधानिक निकायों जैसे निर्वाचन आयोग आदि में किया गया है।
- इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि यदि कोई संस्था संविधान को नष्ट करना चाहे तो अन्य संस्थाएँ उसके अतिक्रमण को रोक सकती हैं। भारतीय संविधान में इसी उद्देश्य से अवरोध व संतुलन के सिद्धान्त को अपनाया गया है।
II. निर्धारण के अभाव में क्या होगा: यदि संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों का साफ-साफ निर्धारण नहीं होगा तो कोई एक संस्था या सरकार का कोई अंग अपनी शक्तियों को बढ़ाकर दूसरी संस्थाओं की शक्तियों का अतिक्रमण कर लेगा और इस प्रकार सरकार की समस्त शक्तियों पर एकाधिकार कर संविधान को नष्ट कर सकता है। ऐसा होने पर सरकार निरंकुश हो जायेगी और नागरिकों की स्वतंत्रता नष्ट हो जायेगी।
प्रश्न 7.
शासकों की सीमा का निर्धारण करना संविधान के लिए क्यों जरूरी है? क्या कोई ऐसा भी संविधान हो सकता है जो नागरिकों को कोई अधिकार न दे?
उत्तर:
I. शासकों की सीमा के निर्धारण की आवश्यकता: संविधान का एक प्रमुख कार्य यह भी है कि वह सरकार द्वारा अपने नागरिकों पर लागू किये जाने वाले कानूनों की कोई सीमा तय करे। ये सीमाएँ इस रूप में मौलिक होती हैं कि सरकार कभी उनका उल्लंघन नहीं कर सकती। यदि संविधान द्वारा शासकों पर ऐसी सीमाएँ निर्धारित नहीं की जाती हैं तो सरकार निरंकुश होकर नागरिकों की स्वतंत्रताओं का हनन कर सकती है और शासन की शक्ति पर एकाधिकार कर संविधान को ही नष्ट कर सकती है। इसलिए नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा हेतु संविधान सरकार की शक्तियों को कई प्रकार से सीमित करता है। संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का स्पष्टीकरण कर दिया जाता है जिनका उल्लंघन कोई भी सरकार नहीं कर सकती।
नागरिकों को मनमाने ढंग से बिना कारण के गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। यह सरकार की शक्तियों के ऊपर एक सीमा कहलाती है। नागरिकों को सामान्यतः कुछ मौलिक स्वतंत्रताओं का अधिकार है, जैसे- भाषण की स्वतंत्रता, अंतर्रात्मा की आवाज पर काम करने की स्वतंत्रता, संगठन बनाने की स्वतंत्रता आदि । व्यवहार में इन अधिकारों को राष्ट्रीय आपातकाल में सीमित किया जा सकता है और संविधान उन परिस्थितियों का उल्लेख भी करता है जिसमें इन अधिकारों को वापिस लिया जा सकता है।
II. नागरिकों के अधिकारविहीन संविधान की संभावना-संसार का कोई भी संविधान अपने नागरिकों को शक्तिविहीन नहीं कर सकता। हाँ, तानाशाह शासक अवश्य संविधान को नष्ट कर देते हैं और वे नागरिकों की स्वतंत्रताओं का हनन करने की कोशिश करते हैं यद्यपि संविधान में नागरिकों को सुविधायें प्रदान की जाती हैं।
प्रश्न 8.
जब जापान का संविधान बना तब दूसरे विश्वयुद्ध में पराजित होने के बाद जापान अमेरिकी सेना के कब्जे में था। जापान के संविधान में ऐसा कोई प्रावधान होना असंभव था, जो अमेरिकी सेना को पसंद न हो क्या आपको लगता है कि संविधान को इस तरह बनाने में कोई कठिनाई है ? भारत में संविधान बनाने का अनुभव किस तरह इससे अलग है?
उत्तर:
संविधान वह लिखित दस्तावेज होता है जिसमें राज्य के विषय में कई प्रावधान होते हैं जो यह बताते हैं कि राज्य किन सिद्धान्तों का पालन करेगा। राज्य की सरकार किस विचारधारा पर आधारित नियमों एवं सिद्धान्तों के द्वारा शासन चलायेगी। जब किसी राज्य पर दूसरे राज्य का आधिपत्य हो जाता है तो उस राज्य के संविधान में शासकों की इच्छाओं के विपरीत कोई प्रावधान नहीं रखे जा सकते। अतः यह स्वाभाविक ही है कि जब जापान का संविधान बना उस समय जापान अमेरिकी सेना के कब्जे में था।
अतः यह स्वाभाविक ही है कि संविधान में कोई ऐसा प्रावधान नहीं रखा गया जो अमेरिकी सेना को पसन्द न हो। अतः जापान के उस संविधान में अमेरिकी शासकों के हितों का विशेष ध्यान रखा जाना स्वाभाविक था। भारत का संविधान बनाते समय कोई ऐसी बात नहीं थी। भारत में जब संविधान बना उस समय भारत एक स्वतंत्र तथा संप्रभु राष्ट्र था। भारतीय संविधान को औपचारिक रूप से गठित संविधान सभा ने बनाया था। इसमें देश के राष्ट्रीय आंदोलन के लगभग सभी नेता सम्मिलित थे तथा समाज के सभी धर्मों व वर्गों के लोगों का प्रतिनिधित्व था।
इसलिए भारत के संविधान में प्रत्येक प्रावधान भारत के राष्ट्रीय हित तथा सार्वजनिक हित तथा लोकतंत्रात्मक को ध्यान में रखकर बनाया गया। संविधान का अंतिम प्रारूप उस समय की राष्ट्रीय व्यापक आम सहमति को व्यक्त करता है। स्पष्ट है कि भारतीय संविधान के निर्माण का अनुभव जापान के संविधान के निर्माण से अलग था। जापान का संविधान एक थोपा गया संविधान था, जबकि भारत का संविधान निर्वाचित जन प्रतिनिधियों द्वारा जनहित में निर्मित किया गया था।
प्रश्न 9.
रजत ने अपने शिक्षक से पूछा: ” संविधान एक पचास साल पुराना दस्तावेज है और इस कारण पुराना पड़ चुका है। किसी ने इसको लागू करते समय मुझसे राय नहीं माँगी। यह इतनी कठिन भाषा में लिखा हुआ है कि मैं इसे समझ नहीं सकता। आप मुझे बतायें कि मैं इस दस्तावेज की बातों का पालन क्यों करूँ?” अगर आप शिक्षक होते तो रजत को क्या उत्तर देते?
उत्तर:
यदि मैं रजत का शिक्षक होता तो उसके प्रश्न का उत्तर इस प्रकार देता।
1. भारतीय संविधान एक जीवन्त दस्तावेज है। इसमें प्रमुख मूल्यों की रक्षा करने और नई परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढालने में एक संतुलन रखा गया है। भारतीय संविधान कठोरता और लचीलेपन दोनों का मिश्रण है। संविधान के कुछ अनुच्छेदों को तो संसद साधारण बहुमत से संशोधित कर सकती है और कुछ अनुच्छेदों में संशोधन के लिए उसे 2/3 बहुमत की आवश्यकता होती है तथा कुछ विषयों की संशोधन प्रक्रिया अत्यधिक जटिल है।
जिसमें संशोधन के लिए संसद के 2/3 बहुमत के साथ-साथ कम से कम आधे राज्यों के विधानमण्डलों का अनुमोदन आवश्यक है। इस संतुलन के कारण 50 वर्षों के बाद भी भारतीय संविधान बीते युग की बात नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसमें आवश्यकतानुसार संशोधन किया जा सकता है। इसमें दिसम्बर 2017 तक तक 101 संशोधन किये जा चुके हैं।
2. भारतीय संविधान के अधिकांश प्रावधान इस प्रकार के हैं जो कभी भी पुराने नहीं पड़ सकते। संविधान का मूल ढांचा सदैव ही एक जैसा रहेगा उसमें परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
3. इस संविधान का निर्माण संविधान सभा द्वारा किया गया जिसमें भारत के सभी घटकों, सभी धर्मों, सभी विचारधाराओं तथा जातियों व वर्गों का प्रतिनिधित्व था। ये सभी प्रतिनिधि राष्ट्रीय आन्दोलन के लोकप्रिय नेता, अनुभवी तथा जनहित से प्रेरित थे। अतः संविधान को काफी विचार-विमर्श के बाद लोकतंत्र तथा जनहित की दृष्टि से निर्मित किया गया तथा भावी परिस्थितियों के अनुरूप ढलने के लिए विशेष प्रावधान में किये गये हैं। अतः भारतीय संविधान पुराना दस्तावेज न होकर एक जीवन्त दस्तावेज है जिसमें भारत की परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुसार ढलने की क्षमता है।
प्रश्न 10.
संविधान के क्रिया-कलाप से जुड़े अनुभवों को लेकर एक चर्चा में तीन वक्ताओं ने अलग-अलग पक्ष लिए।
(क) हरबंस: भारतीय संविधान एक लोकतांत्रिक ढांचा प्रदान करने में सफल रहा है।
(ख) नेहा: संविधान में स्वतंत्रता, समता और भाईचारा सुनिश्चित करने का विधिवत वादा है। चूंकि ऐसा नहीं हुआ इसलिए संविधान असफल है।
(ग) नाजिमा: संविधान असफल नहीं हुआ, हमने उसे असफल बनाया। क्या आप इनमें से किसी पक्ष से सहमत हैं? यदि हाँ, तो क्यों? यदि नहीं, तो आप अपना पक्ष बतायें।
उत्तर:
मैं, हरबंस के इस कथन से सहमत हूँ कि भारतीय संविधान एक लोकतांत्रिक ढांचा प्रदान करने में सफ़ल भारतीय संविधान में सभी वर्गों के कल्याण एवं उनकी आवश्यताओं को ध्यान में रखते हुए संविधान निर्माताओं ने संविधान में लोकतंत्रीय शासन को स्थापित किया गया है। यथा
- संविधान में जहाँ सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार प्रदान कर प्रतिनिध्यात्मक शासन की स्थापना की गयी है।
- शासन की शक्तियों को समान स्तर पर सरकार के तीनों अंगों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में स्पष्ट रूप से विभाजित किया गया है ताकि कोई भी अंग निरंकुश न बन सके। उदाहरण के लिए संसद ने जब संविधान संशोधन के माध्यम से निरंकुश शक्तियों को प्राप्त करने की कोशिश की तो न्यायपालिका ने ‘मूल ढांचे की अवधारणा’ के माध्यम से संसद के इस अतिक्रमण को रोका है। इस प्रकार संविधान में नियंत्रण और संतुलन की व्यवस्था के द्वारा शासन की शक्ति को मर्यादित किया गया है।
- संविधान में नागरिकों को मूल अधिकार प्रदान कर नागरिक स्वतंत्रताओं की रक्षा की गयी है।
- भारत के संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, पंथ निरपेक्ष और प्रजातंत्रात्मक गणराज्य घोषित किया गया है। यह भी बताया गया है कि संविधान का उद्देश्य सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय प्रदान करना है जिससे भारतीय नागरिक अपने को स्वतंत्र महसूस करें।
- यद्यपि भारतीय संविधान अभी अपने समानता के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाया है। इसका प्रमुख कारण संविधान की असफलता नहीं है, बल्कि स्वतंत्रता के समय मिली यहाँ की विषम परिस्थितियाँ रही हैं, इन परिस्थितियों से जूझते हुए संविधान स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के लक्ष्य की ओर निरन्तर बढ़ रहा है।
संविधान – क्यों और कैसे? JAC Class 11 Political Science Notes
(अ) हमें संविधान की क्या आवश्यकता है?
→ संविधान तालमेल बिठाता है- प्रत्येक समाज ( बड़े समूह) की अपनी कुछ विशेषताएँ होती हैं, उसके सदस्यों में अनेक भिन्नताएँ जैसे- धार्मिक, सांस्कृतिक, भाषायी भिन्नताएँ होती हैं । लेकिन अपनी भिन्नताओं के बावजूद इसके सदस्यों को एक साथ रहना है तथा वे अनेक रूपों में परस्पर आश्रित। ऐसे समूह को शांतिपूर्वक साथ रहने के लिए कुछ बुनियादी नियमों के बारे में सहमत होना आवश्यक है।
अतः किसी भी समूह को सार्वजनिक रूप से मान्यता प्राप्त कुछ बुनियादी नियमों की आवश्यकता होती है जिसे समूह के सभी सदस्य जानते हों, ताकि आपस में एक न्यूनतम समन्वय बना रहे। जब इन नियमों को न्यायालय द्वारा लागू किया जाता है तो सभी लोग इन नियमों का पालन करते हैं। इस आवश्यकता की पूर्ति संविधान करता है। संविधान के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-
→ संविधान का पहला काम यह है कि वह बुनियादी नियमों का एक ऐसा समूह उपलब्ध कराये जिससे समाज के सदस्यों में एक न्यूनतम समन्वय और विश्वास बना रहे।
→ निर्णय निर्माण शक्ति की विशिष्टताएँ: संविधान कुछ ऐसे बुनियादी सिद्धान्तों का समूह है जिसके आधार पर राज्य का निर्माण और शासन होता है। वह समाज में शक्ति के मूल वितरण को स्पष्ट करता है तथा यह तय करता है कि कानून कौन बनायेगा। वह सत्ता जिसे कानूनों को बनाने का अधिकार है, उसे इस अधिकार को देने का काम संविधान करता है। अतः संविधान सरकार निर्मात्री सत्ता है। दूसरे शब्दों में, संविधान का दूसरा काम यह स्पष्ट करना है कि समाज में निर्णय लेने की शक्ति किसके पास होगी? संविधान यह भी तय करता है कि सरकार कैसे निर्मित होगी।
→ सरकार की शक्तियों पर सीमाएँ: संविधान का तीसरा काम यह है कि वह सरकार द्वारा अपने नागरिकों पर लागू किये जाने वाले कानूनों पर कुछ सीमाएँ लगाए। ये सीमाएँ इस रूप में मौलिक होती हैं कि सरकार कभी उनका उल्लंघन नहीं कर सकती। सरकार की शक्तियों को सीमित करने का सबसे सरल तरीका यह है कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों को स्पष्ट कर दिया जाये और कोई भी सरकार कभी भी उनका उल्लंघन न कर सके। व्यवहार में, इन अधिकारों को राष्ट्री य आपातकाल में सीमित किया जा सकता है और संविधान उन परिस्थितियों का भी उल्लेख करता है जिनमें इन अधिकारों को वापस लिया जा सकता है या सीमित किया जा सकता है।
→ समाज की आकांक्षाएँ और लक्ष्य: संविधान का चौथा कार्य यह है कि वह सरकार को ऐसी क्षमता प्रदान करे जिससे वह जनता की आकांक्षाओं को पूरा कर सके और एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए उचित परिस्थितियों का निर्माण कर सके। उदाहरण के लिए भारतीय संविधान सरकार को वह सामर्थ्य प्रदान करता है जिससे वह कुछ सकारात्मक लोक कल्याणकारी कदम उठा सके और जिन्हें कानून की मदद से लागू भी किया जा सके। राज्य के नीति निर्देशक तत्व सरकार से लोगों की कुछ आकांक्षाएँ पूरी करने की अपेक्षा करते हैं।
→ राष्ट्र की बुनियादी पहचान: संविधान किसी समाज की बुनियादी पहचान होता है। प्रथमतः, इसके माध्यम से ही किसी समाज की एक सामूहिक इकाई के रूप में पहचान होती है। इसके तहत कोई समाज कुछ बुनियादी नियमों और सिद्धान्तों पर सहमत होकर अपनी मूलभूत राजनीतिक पहचान बनाता है। दूसरे, संवैधानिक नियम समाज को एक ऐसी विशाल ढांचा प्रदान करते हैं जिसके अन्तर्गत उसके सदस्य अपनी व्यक्तिगत आकांक्षाओं, संजीव पास बुक्स लक्ष्य और स्वतन्त्रताओं का प्रयोग करते हैं।
अतः संविधान हमें नैतिक पहचान देता है। तीसरा, अनेक बुनियादी राजनैतिक और नैतिक नियम विश्व के सभी प्रकार के संविधानों में स्वीकार किये गये हैं। अधिकतर संविधान कुछ मूलभूत अधिकारों की रक्षा करते हैं; लोकतांत्रिक सरकारों का निर्माण करते हैं। चौथा, विभिन्न राष्ट्रों में देश की केन्द्रीय सरकार और विभिन्न क्षेत्रों के बीच के संबंधों को लेकर भिन्न-भिन्न अवधारणाएँ होती हैं। यह सम्बन्ध उस देश की राष्ट्रीय पहचान बनाता है।
→ (ब) संविधान की सत्ता: संविधान की सत्ता के सम्बन्ध निम्नलिखित प्रश्न उभरते हैं।
→ संविधान क्या है ? संविधान एक लिखित या अलिखित दस्तावेज या दस्तावेजों का पुंज है जिसमें राज्य सम्बन्धी प्रावधान यह बताते हैं कि राज्य का गठन कैसे होगा और वह किन सिद्धान्तों का पालन करेगा।
→ संविधान को प्रचलन में लाने का तरीका कोई संविधान कैसे अस्तित्व में आया, किसने संविधान बनाया और उनके पास इसे बनाने की कितनी शक्ति थी? यदि संविधान सैनिक शासकों या ऐसे अलोकप्रिय नेताओं द्वारा बनाये जाते हैं जिनके पास लोगों को अपने साथ लेकर चलने की क्षमता नहीं होती, तो वे संविधान निष्प्रभावी होते हैं। यदि संविधान सफल राष्ट्रीय आन्दोलन के बाद लोकप्रिय नेताओं द्वारा निर्मित किया जाता है।
तो उसमें समाज के सभी वर्गों को एक साथ ले चलने की क्षमता होती है, ऐसा संविधान प्रभावशाली होता है। विश्व के सर्वाधिक सफल संविधान भारत, दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका के हैं जिन्हें एक सफल राष्ट्रीय आन्दोलन के बाद बनाया गया। अतः संविधान बनाने वालों का प्रभाव भी एक हद तक संविधान की सफलता की संभावना सुनिश्चित करता है।
→ संविधान के मौलिक प्रावधान: एक सफल संविधान की यह विशेषता है कि वह प्रत्येक व्यक्ति को संविधान के प्रावधानों का आदर करने का कोई कारण अवश्य देता है। कोई भी संविधान खुद न्याय के आदर्श स्वरूप की स्थापना नहीं करता बल्कि उसे लोगों को यह विश्वास दिलाना पड़ता है कि वह बुनियादी न्याय को प्राप्त करने के लिए ढाँचा उपलब्ध कराता है। कोई संविधान अपने सभी नागरिकों की स्वतंत्रता और समानता की जितनी अधिक सुरक्षा करता है, उसकी सफलता की संभावना उतनी ही बढ़ जाती है।
→ (स) संस्थाओं की संतुलित रूपरेखा:
संविधान की रूपरेखा बनाने की एक कारगर विधि यह सुनिश्चित करना है कि किसी एक संस्था की सारी शक्तियों पर एकाधिकार न हो। ऐसा करने के लिए शक्ति को कई संस्थाओं में बांट दिया जाता है। उदाहरण के लिए भारतीय संविधान शक्ति को एक समान धरातल पर विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसी संस्थाओं और स्वतंत्र संवैधानिक निकाय जैसे निर्वाचन आयोग आदि, में बांट देता है। इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि यदि कोई एक संस्था संविधान को नष्ट करना चाहे तो अन्य दूसरी संस्थाएँ उसके अतिक्रमण को नियंत्रित कर लेंगी।
अवरोध और संतुलन के कुशल प्रयोग ने भारतीय संविधान की सफलता सुनिश्चित की है। संस्थाओं की रूपरेखा बनाने में इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि उसमें बाध्यकारी मूल्य, नियम और प्रक्रियाओं के साथ अपनी कार्यप्रणाली में लचीलापन का संतुलन होना चाहिए जिससे वह बदलती आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुकूल अपने को ढाल सके। सफल संविधान प्रमुख मूल्यों की रक्षा करने और नई परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढालने में एक संतुलन रखते हैं।
→ (द) भारतीय संविधान कैसे बना?:
औपचारिक रूप से एक संविधान सभा ने संविधान को बनाया जिसे अविभाजित भारत ने ‘कैबिनेट मिशन’ की योजना के अनुसार भारत में निर्वाचित किया गया था। इसकी पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई और फिर 14 अगस्त, 1947 को विभाजित भारत की संविधान सभा के रूप में इसकी पुनः बैठक हुई। विभाजन के बाद संविधान सभा के वास्तविक सदस्यों की संख्या घटकर 2299 रह गई। इनमें से 26 नवम्बर, 1949 को कुल 284 सदस्य उपस्थित थे। इन्होंने ही संविधान को अंतिम रूप से पारित व इस पर हस्ताक्षर किये। इस प्रकार संविधान सभा ने 9 दिसम्बर, 1946 से संविधान निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया जिसे 26 नवम्बर, 1949 को पूर्ण किया।
→ संविधान सभा का स्वरूप: भारत की संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार 1935 में स्थापित प्रांतीय विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष विधि से हुआ जिसमें 292 सदस्य ब्रिटिश प्रान्तों से और 93 सीटें देशी रियासतों से आवंटित होनी थीं। प्रत्येक प्रान्त की सीटों को तीन प्रमुख समुदायों मुसलमान, सिक्ख और सामान्य की सीटों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में बाँट दिया गया।
इस प्रकार हमारी संविधान सभा के सदस्य सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर नहीं चुने गये थे, पर उसे अधिकाधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण बनाने के प्रयास किये गये। सभी धर्म के सदस्यों को तथा अनुसूचित वर्ग के सदस्यों को उसमें स्थान दिया गया । संविधान सभा में यद्यपि 82% सीटें कांग्रेस दल से सम्बद्ध थीं, लेकिन कांग्रेस दल स्वयं भी विविधताओं से भरा था।
→ संविधान सभा के कामकाज की शैली: संविधान सभा के सदस्यों ने पूरे देश के हित को ध्यान में रखकर विचार-विमर्श किया। सदस्यों में हुए मतभेद वैध सैद्धान्तिक आधारों पर होते थे। संविधान सभा में लगभग उन सभी विषयों पर गहन चर्चा हुई जो आधुनिक राज्य की बुनियाद हैं। संविधान सभा में केवल एक प्रावधान सार्वभौमिक मताधिकार के अधिकार का प्रावधान – बिना किसी वाद-विवाद के ही पारित हुआ था।
→ संविधान सभा की कार्य विधि: संविधान सभा की सामान्य कार्यविधि में भी सार्वजनिक विवेक का महत्व स्पष्ट दिखाई देता था। विभिन्न मुद्दों के लिए संविधान सभा की आठ मुख्य कमेटियाँ थीं। प्राय: पं. नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद, सरदार पटेल, मौलाना आजाद और डॉ. अंबेडकर इन कमेटियों की अध्यक्षता करते थे जिनके विचार हर बात पर एक-दूसरे के समान नहीं थे, फिर भी सबने एक साथ मिलकर काम किया। प्रत्येक कमेटी ने संविधान के कुछ-कुछ प्रावधानों का प्रारूप तैयार किया जिन पर बाद में पूरी संविधान सभा में चर्चा की गई। प्राय: प्रयास यह किया गया कि निर्णय आम राय से हो, लेकिन कुछ प्रावधानों पर निर्णय मत विभाजन करके भी लिए गये।
→ राष्ट्रीय आंदोलन की विरासत: संविधान सभा केवल उन सिद्धान्तों को मूर्त रूप और आकार दे रही थी जो उसने राष्ट्रीय आन्दोलन से विरासत में प्राप्त किये थे। इस सिद्धान्तों का सारांश नेहरू द्वास 1946 में प्रस्तुत ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ में मिलता है। इसी प्रस्ताव के आधार पर संविधान में समानता, स्वतंत्रता, लोकतंत्र और संप्रभुता को संस्थागत स्वरूप दिया गया था।
→ संस्थागत व्यवस्थाएँ: संविधान को प्रभावी बनाने का तीसरा कारक यह है कि सरकार की सभी संस्थाओं को संतुलित ढंग से व्यवस्थित किया जाये। मूल सिद्धान्त यह रखा गया कि सरकार लोकतांत्रिक रहे, और जन कल्याण के लिए प्रतिबद्ध हो। संविधान सभा ने शासन के तीनों अंगों के बीच समुचित सन्तुलन स्थापित करने के लिए बहुत विचार मंथन किया। संविधान सभा ने संसदीय शासन व्यवस्था और संघात्मक व्यवस्था को स्वीकार किया।
शासकीय संस्थाओं की संतुलित व्यवस्था स्थापित करने में हमारे संविधान निर्माताओं ने दूसरे देशों के प्रयोगों और अनुभवों से सीखने में कोई संकोच नहीं किया। अतः उन्होंने विभिन्न देशों से अनेक प्रावधानों को लिया, संवैधानिक परम्पराओं को ग्रहण किया तथा उन्हें भारत की समस्याओं और परिस्थितियों के अनुकूल ढालकर अपना बना लिया।