Jharkhand Board JAC Class 11 History Solutions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परम्पराएँ Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 11 History Solutions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परम्पराएँ
Jharkhand Board Class 11 History बदलती हुई सांस्कृतिक परम्पराएँ In-text Questions and Answers
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क्रियाकलाप 2 : सोलहवीं शताब्दी के इंटली के कलाकारों की कृतियों के विभिन्न वैज्ञानिक तत्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इटली के कलाकारों की कृतियों में वैज्ञानिक तत्त्व – मध्य युग में कला पर धर्म का बहुत अधिक प्रभाव था परन्तु सोलहवीं शताब्दी में कला, धर्म के प्राचीन बन्धनों से मुक्त हो गई। अब कलाकार यथार्थवादी बन गए और स्वतन्त्र रूप से कलाकृति रचने लगे। अतः कला में मौलिकता तथा वास्तविकता पाई जाने लगी। अब कलाकार हूबहू मूल आकृति जैसी मूर्त्तियाँ बनाना चाहते थे। उनकी इस प्रवृत्ति से वैज्ञानिकों के कार्यों में बड़ी सहायता मिली। नरकंकालों का अध्ययन करने के लिए कलाकार आयुर्विज्ञान कालेजों की प्रयोगशालाओं में गए। बेल्जियम मूल के आन्ड्रीयस वेसेलियस पादुआ विश्वविद्यालय में आयुर्विज्ञान के प्राध्यापक थे।
वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सूक्ष्म परीक्षण के लिए मनुष्य के शरीर की चीर-फाड़ की। इसी समय से आधुनिक शरीर क्रिया विज्ञान की शुरुआत हुई । चित्रकारों को अब ज्ञात हो गया कि रेखागणित के ज्ञान से चित्रकार अपने परिदृश्य को ठीक तरह से समझ सकता है तथा प्रकाश के बदलते गुणों का अध्ययन करने से उनके चित्रों में त्रि-आयामी रूप दिया जा सकता है। बनाया।
चित्र के लिए तेल के एक माध्यम के रूप में प्रयोग के चित्रों को पूर्व की तुलना में अधिक रंगीन और चटख लियानार्डो दा विंची इटली का प्रसिद्ध चित्रकार था । उसकी अभिरुचि वनस्पति विज्ञान और शरीर रचना विज्ञान से लेकर गणित शास्त्र तथा कला तक विस्तृत थी। वह वर्षों तक आकाश में पक्षियों के उड़ने का परीक्षण करता रहा और उसने एक उड़न-मशीन का प्रतिरूप बनाया। उसने अपना नाम ‘लियोनार्डो दा विंची, परीक्षण का अनुयायी’ रखा।
उसने मोनालिसा तथा लास्ट सपर नामक चित्र बनाए। माइकेल एंजिलो भी इटली का एक प्रसिद्ध मूर्त्तिकार, चित्रकार और वास्तुकार था। उसने अपने चित्रों में यथार्थता लाने के लिए शरीर – विज्ञान का गहन अध्ययन किया। उसने पोप के सिस्टाइन चैपल की छत पर लेपचित्र बनाए। इस प्रकार शरीर – विज्ञान, रेखा गणित, भौतिकी और सौन्दर्य की उत्कृष्ट भावना ने इतालवी कला को नया रूप प्रदान किया, जिसे बाद में ‘यथार्थवाद’ कहा गया। यथार्थवाद की यह परम्परा उन्नीसवीं सदी तक चलती रही । पृष्ठ 162
क्रियाकलाप 3 : महिलाओं की आकांक्षाओं के संदर्भ में एक महिला (फेदेले) तथा एक पुरुष (कास्टिल्योनी) द्वारा अभिव्यक्त भावों की तुलना कीजिये। उन लोगों की सोच में क्या महिलाओं का एक निर्दिष्ट वर्ग ही था ?
उत्तर:
(1) महिलाओं की आकांक्षाओं के संदर्भ में फेदेले नामक महिला के विचार – सोलहवीं शताब्दी की .. कुछ महिलाएँ बौद्धिक रूप से बहुत रचनात्मक थीं और मानवतावादी शिक्षा की समर्थक थीं। वेनिस निवासी कसान्द्रा फेदेले ने महिलाओं के बारे में अपने विचार अभिव्यक्त करते हुए लिखा था कि ” यद्यपि महिलाओं को शिक्षा न तो पुरस्कार देती है और न किसी सम्मान का आश्वासन, तथापि प्रत्येक महिला को सभी प्रकार की शिक्षा को प्राप्त करने की इच्छा रखनी चाहिए और उसे ग्रहण करना चाहिए।” फेदेला ने तत्कालीन इस विचारधारा को चुनौती दी कि एक मानवतावादी विद्वान के गुण एक महिला के पास नहीं हो सकते। फ
ेदेले ने गणतन्त्र की आलोचना “स्वतन्त्रता की एक बहुत सीमित परिभाषा निर्धारित करने के लिए की, जो महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों की इच्छा का अधिक समर्थन करती थी। ” फेदेले के विचारों से यह स्पष्ट होता है कि उस काल में सब लोग शिक्षा को बहुत महत्त्व देते थे। चाहे वे पुरुष हों या महिला। इससे ज्ञात होता है कि महिलाओं को पुरुष-प्रधान समाज में अपनी अलग पहचान बनाने के लिए अधिक आर्थिक स्वतन्त्रता, सम्पत्ति और शिक्षा मिलनी चाहिए।
(2) महिलाओं की आकांक्षाओं के संदर्भ में कास्टिल्योनी नामक पुरुष के विचार – प्रसिद्ध लेखक और कूटनीतिज्ञ बाल्थासार कास्टिल्योनी ने अपनी पुस्तक ‘दि कोर्टियर’ में लिखा है कि ” मेरे विचार से अपने तौर-तरीके, व्यवहार, बातचीत के तरीके, भाव-भंगिमा और छवि में एक महिला पुरुष के सदृश नहीं होनी चाहिए।
जैसे कि यह कहना बिल्कुल उपयुक्त होगा कि पुरुषों को हट्टा-कट्टा और पौरुष – सम्पन्न होना चाहिए, इसी तरह एक स्त्री के लिए यह अच्छा ही है कि उसमें कोमलता और सहृदयता हो, एक स्त्रियोचित मधुरता का आभास उसके हर हाव-भाव में हो और यह उसके चाल-चलन, रहन-सहन और हर ऐसे कार्य में हो जो वह करती है, ताकि ये सारे गुण उसे हर हाल में एक स्त्री के रूप में ही दिखाएँ, न कि किसी पुरुष के सदृश।
यदि उन महानुभावों द्वारा दरबारियों को सिखाए गए नियमों में इन नीति वचनों को जोड़ दिया जाए, तो महिलाएँ इनमें से अनेक को अपनाकर स्वयं को श्रेष्ठ गुणों से सुसज्जित कर सकेंगी। मेरा यह मानना है कि मस्तिष्क के कुछ ऐसे गुण हैं जो महिलाओं के लिए उतने ही आवश्यक हैं जितने कि पुरुष के लिए जैसे कि अच्छे कुल का होना, दिखावे का परित्याग करना, सहज रूप से शालीन होना, आचरणवान, चतुर और बुद्धिमान होना, गर्वी, ईर्ष्यालु, कटु और उद्दण्ड न होना ” ” जिससे महिलाएँ उन क्रीड़ाओं को, शिष्टता और मनोहरता के साथ सम्पन्न कर सकें, जो उनके लिए उपयुक्त हैं।”
उपर्युक्त विचारों से यह ज्ञात होता है कि उस युग में प्रायः सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी बहुत सीमित थी और उनमें शिक्षा का प्रसार बहुत कम था। व्यापारी परिवारों में महिलाओं में शिक्षा का प्रसार अधिक था जबकि अभिजात वर्ग के परिवारों की महिलाओं में शिक्षा का प्रसार कम था। उस युग की प्रबुद्ध महिलाओं ने इस बात पर बल दिया कि महिलाओं की शिक्षा पर उचित ध्यान दिया जाना चाहिए।
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क्रियाकलाप 4: वे कौनसे मुद्दे थे जिनको लेकर प्रोटेस्टेन्ट धर्म के अनुयायी कैथोलिक चर्च की आलोचना करते थे?
उत्तर:
र – प्रोटेस्टेन्ट धर्म के अनुयायियों द्वारा कैथोलिक चर्च की आलोचना करना – प्रोटैस्टेन्ट धर्म के अनुयायी निम्नलिखित मुद्दों को लेकर कैथोलिक चर्च की आलोचना करते थे –
- कैथोलिक चर्च के अनुयायी अपने पुराने धर्मग्रन्थों में बताए गए तरीकों से धर्म का पालन नहीं कर रहे थे।
- कैथोलिक चर्च में अनेक अनावश्यक कर्मकाण्ड, अन्धविश्वास और आडम्बरों का समावेश हो गया था।
- कैथोलिक चर्च एक लालची तथा साधारण लोगों से बात-बात पर लूट-खसोट करने वाली संस्था बन गई थी।
- पादरी लोगों से धन ऐंठते रहते थे। उनका लोगों से धन ठगने का सबसे आसान तरीका ‘पाप-स्वीकारोक्ति’-नामक दस्तावेज था। इसे खरीदने वाला व्यक्ति अपने समस्त पापों से मुक्ति पा सकता था।
- चर्च द्वारा लगाए गए अनेक करों के कारण किसानों में असन्तोष था। उन्होंने इन करों का विरोध किया।
- यूरोप के शासक भी राज-काज में चर्च के हस्तक्षेप से नाराज थे।
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लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
चौदहवीं और पन्द्रहवीं शताब्दियों में यूनानी और रोमन संस्कृति के किन तत्वों को पुनर्जीवित किया गया?
उत्तर:
चौदहवीं तथा पन्द्रहवीं शताब्दियों में यूनानी और रोमन संस्कृति के तत्वों को पुनर्जीवित करना- चौदहवीं तथा पन्द्रहवीं शताब्दियों में यूनानी तथा रोमन संस्कृतियों के निम्नलिखित तत्वों को पुनर्जीवित किया गया –
(1) साहित्य के क्षेत्र में – प्राचीन यूनानी एवं रोमन साहित्य के अध्ययन पर बल दिया गया। पेट्रार्क ने प्राचीन यूनानी तथा रोमन ग्रन्थों के अध्ययन पर बल दिया।
(2) कला के क्षेत्र में – चौदहवीं तथा पन्द्रहवीं शताब्दियों में स्थापत्य कला की एक नई शैली का जन्म हुआ जिसमें यूनानी, रोमन तथा अरबी शैलियों का समन्वय था । इस नवीन शैली में शृंगार, सजावट तथा डिजाइन पर विशेष बल दिया गया। इस शैली में मेहराबों, गुम्बदों तथा स्तम्भों की प्रधानता थी।
यह नवीन शैली रोमन साम्राज्यकालीन शैली का पुनरुद्धार थी, जिसे बाद में ‘शास्त्रीय शैली’ कहा गया। “मूर्त्तिकला में भी नवीन शैली अपनाई गई। अब मूर्त्तिकला धर्म के प्राचीन बन्धनों से मुक्त हो गई तथा अब साधारण मनुष्य की मूर्त्तियाँ बनाई जाने लगीं। चित्रकला पर से भी धर्म का प्रभाव समाप्त हो गया। अब धार्मिक चित्रों के स्थान पर जन-जीवन से सम्बन्धित मौलिक एवं यथार्थ चित्र बनने लगे। जियटो ने जीते-जागते रूपचित्र (पोर्ट्रेट) बनाए।
(3) विज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में – चौदहवीं शताब्दी में यूरोप के अनेक विद्वानों ने प्लेटो और अरस्तू के ग्रन्थों से अनुवादों का अध्ययन करना शुरू किया। यूरोप के विद्वानों ने यूनानी ग्रन्थों के अरबी अनुवादों का अध्ययन किया। ये ग्रन्थ प्राकृतिक विज्ञान, गणित, खगोल विज्ञान, औषधि विज्ञान और रसायन विज्ञान से सम्बन्धित थे।
(4) मावतावाद – यूनानी और रोमन संस्कृतियों के प्रभाव से यूरोप में मानवतावादी विचारों का व्यापक प्रसार हुआ। मानवतावादी धार्मिक पाखण्डों, रूढ़ियों और अन्धविश्वासों में विश्वास नहीं करते थे। वे मानव जीवन पर धर्म का नियन्त्रण नहीं चाहते थे। वे भौतिक सुखों पर बल देते थे तथा वर्तमान जीवन को सुखी और आनन्ददायक बनाने पर बल देते थे।
प्रश्न 2.
इस काल में इटली की वास्तुकला और इस्लामी वास्तुकला की विशिष्टताओं की तुलना कीजिए।
उत्तर:
इटली की वास्तुकला की विशिष्टताएँ – पन्द्रहवीं शताब्दी में इटली में स्थापत्य कला की एक नई शैली का जन्म हुआ, जिसमें यूनानी, रोमन तथा अरबी शैलियों का समन्वय था। इस नवीन शैली में श्रृंगार, सजावट तथा डिजाइन पर विशेष बल दिया गया। इस शैली में मेहराबों, गुम्बदों तथा स्तम्भों की प्रधानता थी। यह नई शैली वास्तव मे रोमन साम्राज्यकालीन शैली का पुनरुद्धार थी जिसे ‘शास्त्रीय शैली’ कहा गया।
चित्रकारों और शिल्पकारों ने भवनों को लेपचित्र, मूर्तियों तथा उभरे चित्रों से सुसज्जित किया। प्रसिद्ध वास्तुकार ब्रुनेलेशी ने फ्लोरेन्स के भव्य गुम्बद का परिरूप प्रस्तुत किया था। रोम का सन्त पीटर का गिरजाघर तत्कालीन वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। लन्दन का सन्त पाल का गिरजाघर तथा वेनिस का सन्त मार्क का गिरजाघर आदि भी तत्कालीन वास्तुकला के श्रेष्ठ नमूने हैं।
इस्लामी वास्तुकला की विशिष्टताएँ – इस्लामी वास्तुकला में अनेक मस्जिदों, राजमहलों, इबादतगाहों तथा मकबरों का निर्माण किया गया। इनका आधारभूत नमूना एक जैसा था। मेहराब, गुम्बद, मीनार और खुले सहन इन इमारतों की विशेषताएँ थीं। ये इमारतें मुसलमानों की आध्यात्मिक और व्यावहारिक आवश्यकताओं को प्रकट करती थीं। मस्जिदों में एक खुला प्रांगण होता था।
इसमें एक फव्वारा अथवा जलाशय बनाया जाता था। बड़े कमरे की दो विशेषताएँ थीं –
- दीवार में मेहराब तथा
- एक मंच इसमें एक मीनार होती थी।
इस्लाम में सजीव चित्रों के निर्माण पर प्रतिबन्ध था परन्तु इससे कला के दो रूपों को प्रोत्साहन मिला-खुशनवीसी (सुन्दर लेखन की कला) तथा अरबेस्क (ज्यामितीय और वनस्पतीय डिजाइन)। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि इटली की वास्तुकला और इस्लामी वास्तुकला में हमें कुछ समानताएँ और कुछ अन्तर दिखाई देते हैं। इस्लामी वास्तुकला पर जहाँ धर्म का अधिक प्रभाव दिखाई देता है, वहीं इटली की वास्तुकला में मानवतावादी यथार्थ का अधिक प्रभाव दिखाई देता है।
प्रश्न 3.
मानवतावादी विचारों का अनुभव सबसे पहले इतालवी शहरों में क्यों हुआ?
उत्तर:
इतालवी शहरों में मानवतावादी विचारों का अनुभव – इतालवी शहरों में मानवतावादी विचारों का अनुभव सबसे पहले निम्नलिखित कारणों से हुआ –
(1) व्यापार एवं वाणिज्य की उन्नति के कारण इटली में बड़े-बड़े नगरों का उदय हुआ। वेनिस, जिनेवा, फ्लोरेन्स आदि प्रसिद्ध नगर थे। ये नगर यूनान के नगर – राज्य जैसे बन गए। ये यूरोप के अन्य नगरों से इस दृष्टि से अलग .थे कि यहाँ पर धर्माधिकारी और सामन्त वर्ग राजनीतिक दृष्टि से शक्तिशाली नहीं थे। नगरों के धनी व्यापारी और महाजन नगरों के शासन में स्वतन्त्रतापूर्वक भाग लेते थे। ये नगर शिक्षा, कला और व्यापार के केन्द्र बन गए।
(2) यूरोप में सबसे पहले विश्वविद्यालय इटली के शहरों में स्थापित हुए। इन विश्वविद्यालयों में रोमन कानून, चिकित्साशास्त्र, प्राकृतिक विज्ञान, गणित, रसायन विज्ञान, व्याकरण आदि विषय पढ़ाए जाते थे। ये विषय धार्मिक नहीं थे, बल्कि उस कौशल पर बल देते थे जो व्यक्ति चर्चा और वाद-1 द- विवाद से विकसित करता है।
(3) पन्द्रहवीं शताब्दी तक रोम तथा यूनानी विद्वानों ने अनेक क्लासिकी ग्रन्थ लिखे । ये ग्रन्थ प्राकृतिक विज्ञान, . गणित, खगोल विज्ञान आदि से सम्बन्धित थे। छापेखाने के निर्माण के बाद इन ग्रन्थों का मुद्रण इटली में हुआ था। इन पुस्तकों ने नये विचारों, वैज्ञानिक दृष्टिकोण आदि मानवतावादी विचारधारा का इतालवी नगरों में प्रसार करने में योगदान दिया।
(4) पेट्रार्क, दोनातेलो, माइकेल एंजेलो, लियोनार्दो दी विन्ची आदि मानवतावादी विचारकों ने इतालवी नगरों में मानवतावादी विचारधारा के प्रसार में योगदान दिया।
प्रश्न 4.
वेनिस और समकालीन फ्रांस में ‘अच्छी सरकार’ के विचारों की तुलना कीजिए।
उत्तर:
(1) वेनिस में ‘अच्छी सरकार’ के विचार- इटली में अनेक नगरों का उदय हुआ। ये नगर अपने आपको स्वतन्त्र नगर-राज्यों का एक समूह मानते थे। इन नगरों में वेनिस प्रमुख था । वेनिस एक गणराज्य था। यहाँ पर धर्माधिकारी तथा सामन्त वर्ग राजनीतिक दृष्टि से शक्तिशाली नहीं थे। अतः प्रशासन और राजनीति में उनका कोई प्रभाव नहीं था। नगर के धनी व्यापारी और महाजन नगर के शासकों में सक्रिय रूप से भाग लेते थे जिससे वहाँ नागरिकता की भावना विकसित हुई। इन नगरों के शासन सैनिक तानाशाहों के हाथ में आने के बाद भी इन नगरों के निवासी अपने को यहाँ का नागरिक कहने में गर्व का अनुभव करते थे
(2) फ्रांस में अच्छी सरकार के विचार – समकालीन फ्रांस में निरंकुश राजतन्त्र स्थापित था। वहाँ प्रशासन और राजनीति में धर्माधिकारियों तथा सामन्तों का बोलबाला था। सभी उच्च तथा महत्वपूर्ण पदों पर सामन्त वर्ग के लोग आसीन थे। ये लोग जन-साधारण का शोषण करते थे तथा अपने स्वार्थों की पूर्ति में लगे रहते थे।
यद्यपि फ्रांस में एस्टेट्स जनरल (परामर्शदात्री सभा) बनी हुई थी, परन्तु 1614 के बाद 175 वर्षों तक इसका अधिवेशन नहीं बुलाया गया था। इसका कारण यह था कि फ्रांस के शासक जन साधारण के साथ अपनी शक्ति बाँटना नहीं चाहते थे। फ्रांस में स्वतन्त्र किसानों, कृषि – दासों की बहुत बड़ी संख्या थी, परन्तु उन्हें किसी प्रकार के राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे । वहाँ मध्यम वर्ग की भी घोर उपेक्षा की जाती थी।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 5.
मानवतावादी विचारों के क्या अभिलक्षण थे?
उत्तर:
मानवतावादी विचारों के अभिलक्षण – मानवतावादी विचारों के अभिलक्षण निम्नलिखित थे –
(1) उन्नत ज्ञान प्राप्त करना – मानवतावाद का शाब्दिक अर्थ है – उन्नत ज्ञान। ‘मानवतावाद’ की विचारधारा के अनुसार ज्ञान असीमित है, बहुत कुछ जानना बाकी है और यह सब हम केवल धार्मिक शिक्षण से नहीं सीखते । इसी नयी संस्कृति को इतिहासकारों ने ‘मानवतावाद’ की संज्ञा दी।
(2) ‘मानवतावादी’ शब्द का प्रयोग – पन्द्रहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में ‘मानवतावादी’ शब्द उन अध्यापकों के लिए प्रयुक्त होता था जो व्याकरण, ‘अलंकारशास्त्र’, कविता, इतिहास और नीति दर्शन पढ़ाते थे। लैटिन शब्द ‘ह्यूमेनिटास’ से ‘ह्यूमेनिटिज’ शब्द अर्थात् ‘मानवतावाद’ की उत्पत्ति हुई है, जिसे कई शताब्दियों पूर्व रोम के वकील तथा निबन्धकार सिसरो ने ‘संस्कृति’ के अर्थ में लिया था। ये विषय धार्मिक नहीं थे, वरन् उस कौशल पर बल देते थे, जो व्यक्ति चर्चा और वाद-विवाद से विकसित करता है।
(3) धार्मिक कर्मकाण्डों और अन्धविश्वासों में अविश्वास – मानवतावादी धार्मिक कर्मकाण्डों, पाखण्डों तथा अन्धविश्वासों में विश्वास नहीं करते थे। मानवतावादी संस्कृति की विशेषताओं में से एक था-मानव जीवन पर धर्म का नियन्त्रण कमजोर होना।
(4) भौतिक सुखों पर बल देना – मानवतावादी भौतिक सम्पत्ति, शक्ति तथा गौरव पर बल देते थे। वेनिस के मानवतावादी फ्रेनचेस्को बरबारो ने अपनी एक पुस्तिका में सम्पत्ति प्राप्त करने को एक विशेष गुण बताकर उसका पक्ष लिया। लोरेन्जो वल्ला ने अपनी पुस्तक ‘आन प्लेजर’ में भोग-विलासों पर लगाई गई ईसाई धर्म की निषेधाज्ञा की आलोचना की ।
(5) अच्छे व्यवहारों पर बल – मानवतावादी अच्छे व्यवहारों पर बल देते थे। उनकी अच्छे व्यवहारों के प्रति रुचि थी-व्यक्ति को किस प्रकार विनम्रता से बोलना चाहिए, कैसे वस्त्र पहनने चाहिए तथा एक सभ्य व्यक्ति को किसमें दक्षता प्राप्त करनी चाहिए।
(6) मनुष्य का स्वभाव बहुमुखी है – मानवतावादियों की मान्यता थी कि मनुष्य का स्वभाव बहुमुखी है। सामन्ती समाज तीन भिन्न-भिन्न वर्गों (पादरी, अभिजात तथा कृषक) में विश्वास करता था परन्तु मानवतावादियों ने इस विचार को नकार दिया।
(7) वर्तमान जीवन को सुन्दर और उपयोगी बनाना – मानवतावादी वर्तमान जीवन को सुन्दर, आनन्ददायक और उपयोगी बनाने पर बल देते थे। वे परलोक की बजाय इस लोक को सफल और सुखी बनाने पर बल देते थे।
(8) सत्य, तर्क और नवीन दृष्टिकोण पर बल देना – मानवतावादी स्वतन्त्र चिन्तन, सत्य, तर्क और नवीन दृष्टिकोण का प्रचार करते थे।
प्रश्न 6.
सत्रहवीं शताब्दी के यूरोपियों को विश्व किस प्रकार भिन्न लगा? उसका एक सुचिन्तित विवरण दीजिए।
उत्तर:
सत्रहवीं शताब्दी के यूरोपियों की दृष्टि में विश्व – सत्रहवीं शताब्दी तक विश्व में कला, विज्ञान, साहित्य, धर्म, समाज, राजनीति आदि सभी क्षेत्रों में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन हो चुके थे। अतः सत्रहवीं शताब्दी के यूरोपियों की दृष्टि में विश्व निम्नलिखित बातों में भिन्न लगा-
(1) साहित्य के क्षेत्र में –
(i) मध्य युग में विद्वान लैटिन और यूनानी भाषाओं में अपनी पुस्तकों की रचना करते थे, परन्तु आधुनिक युग में बोलचाल की भाषा में साहित्य की रचना की जाने लगी। अब अंग्रेजी, फ्रांसीसी, जर्मन, इतालवी, स्पेनिश, डच आदि भाषाओं का विकास हुआ। अब समस्त विश्व में लोक भाषाओं तथा राष्ट्रीय . साहित्य की रचना होने लगी।
(ii) अब साहित्य पर से धर्म का प्रभाव समाप्त हो गया । अब साहित्य में मानव जीवन से सम्बन्धित विषयों पर विवेचन किया जाता था। अब साहित्य आलोचना – प्रधान, मानववादी और व्यक्तिवादी हो गया। इस युग में काव्य, महाकाव्य, नाटक, उपन्यास, कहानी, निबन्ध आदि पर उच्च कोटि के ग्रन्थ लिखे गए।
(2) कला के क्षेत्र में – मध्ययुग में कला पर धर्म का बहुत अधिक प्रभाव था तथा उस समय कलाकार स्वतन्त्र रूप से कलाकृति नहीं रच सकता था, परन्तु आधुनिक युग में कला धर्म के बन्धनों से मुक्त हो गई। अब कलाकार यथार्थवादी बन गए और स्वतन्त्र रूप से कलाकृति रचने लगे। अतः कला में मौलिकता तथा वास्तविकता पाई जाने लगी।
(3) विज्ञान के क्षेत्र में – आधुनिक युग में विज्ञान के क्षेत्र में पर्याप्त उन्नति हुई। इस युग में नये सिद्धान्त प्रतिपादित किए गए. तथा नवीन आविष्कार किए गए। कोपरनिकस ने इस मत का प्रतिपादन किया कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है जिससे दिन-रात होते हैं। केपलर ने कोपरनिकस के सिद्धान्त को गणित के प्रमाणों से पुष्ट किया। इसी प्रकार चिकित्साशास्त्र, रसायनशास्त्र, भौतिकशास्त्र आदि क्षेत्रों में भी पर्याप्त उन्नति हुई।
(4) भौगोलिक खोजें- आधुनिक युग में सामुद्रिक यात्राओं तथा भौगोलिक खोजों को प्रोत्साहन मिला। 1498 में वास्कोडिगामा उत्तमाशा अन्तरीप होता हुआ भारत के समुद्रतट पर स्थित कालीकट बन्दरगाह पहुँचा। कोलम्बस एक द्वीप पर पहुँचा जिसे यूरोपवासियों ने वेस्टइण्डीज कहा। कोलम्बस की इस यात्रा से ‘नये विश्व’ की खोज करना सरल हो गया। मेगलान के साथियों ने पृथ्वी का सर्वप्रथम चक्कर लगाया। अमेरिगो ने दक्षिणी अमेरिका का पता लगाया।
(5) सामाजिक क्षेत्र – व्यापारिक वर्ग के प्रभाव में वृद्धि हुई तथा कुलीन लोगों के सम्मान में कमी हुई। साधारण जनता में शिक्षा का प्रसार हुआ तथा दास- कृषकों को मुक्ति मिली।
(6) धार्मिक क्षेत्र में – कैथोलिक चर्च में व्याप्त धार्मिक पाखण्डों, कर्मकाण्डों और अन्धविश्वासों के विरुद्ध सोलहवीं शताब्दी में धर्म सुधार आन्दोलन हुआ।
(7) आर्थिक क्षेत्र में – उद्योग-धन्धों का विकास शुरू हुआ, जिसके फलस्वरूप औद्योगिक क्रान्ति के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गईं। व्यापारी वर्ग धनी वर्ग बन गया और पूंजीवाद का विकास हुआ।
(8) राजनीतिक क्षेत्र में – विश्व के विभिन्न देशों में राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ। यूरोप में अनेक राष्ट्रीय राज्यों का उदय हुआ। पोप की राजनीतिक शक्ति में कमी हुई और राजाओं की शक्ति में वृद्धि हुई। भाषा के आधार पर यूरोप के विभिन्न क्षेत्रों ने अपनी पहचान बनानी शुरू की।
(9) बौद्धिक क्षेत्र में – अब लोग स्वतन्त्रतापूर्वक चिन्तन करने लगे। सत्य की खोज, वाद-विवाद, तार्किक दृष्टिकोण आदि को बढ़ावा मिला। इससे वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास हुआ।
(10) भौतिकवादी दृष्टिकोण – आधुनिक युग में मनुष्य की धर्म एवं परलोक में रुचि कम हो गई तथा वह अपने वर्तमान जीवन को सुखी एवं सम्पन्न बनाने के लिए अधिक प्रयत्न करने लगा। अब मनुष्य का भौतिक जीवन महत्वपूर्ण हो गया। परिणामस्वरूप अधिक आकर्षक नगरों तथा सुविधाजनक घरों का निर्माण किया जाने लगा। अब मानव का रहन-सहन तथा खान-पान का स्तर बढ़ गया।
(11) नगरीय संस्कृति – 17वीं शताब्दी में अनेक नगरों की संख्या बढ़ रही थी। एक विशेष प्रकार की ‘नगरीय संस्कृति’ विकसित हो रही थी। नगर के लोग गाँवों के लोगों से अपने आपको अधिक सभ्य मानते थे। फ्लोरेन्स, वेनिस, रोम आदि नगर कला और विद्या के केन्द्र बन गए थे। अब नगर कला और ज्ञान के केन्द्र बन गए।
बदलती हुई सांस्कृतिक परम्पराएँ JAC Class 11 History Notes
पाठ- सार
1. इटली के नगरों का पुनरुत्थान- जब पश्चिमी यूरोप सामन्ती सम्बन्धों के कारण नया रूप ले रहा था तथा चर्च के नेतृत्व में उसका एकीकरण हो रहा था, पूर्वी यूरोप बाइजेंटाइन साम्राज्य के शासन में बदल रहा था, तब पश्चिम में इस्लाम एक साझी सभ्यता का निर्माण कर रहा था। इन्हीं परिवर्तनों ने इतालवी संस्कृति के पुनरुत्थान में सहायता प्रदान की । इससे इटली के तटवर्ती बंदरगाह पुनर्जीवित हो गए । बारहवीं शताब्दी से जब मंगोलों ने चीन के साथ व्यापार आरम्भ किया, तो इसके कारण पश्चिमी यूरोपीय देशों के व्यापार को बढ़ावा मिला। इसमें इटली के नगरों ने मुख्य भूमिका निभाई। अब वे अपने आपको स्वतन्त्र नगर- राज्यों का एक समूह मानते थे ।
2. विश्वविद्यालय – यूरोप में सबसे पहले विश्वविद्यालय इटली के शहरों में स्थापित हुए। ग्यारहवीं शताब्दी से पादुआ तथा बोलोनिया विश्वविद्यालय विधिशास्त्र के अध्ययन केन्द्र रहे थे। पेट्रार्क ने इस बात पर बल दिया कि प्राचीन यूनानी और रोमन लेखकों की रचनाओं का भली-भाँति अध्ययन किया जाना चाहिए।
3. मानवतावाद –
(i) पन्द्रहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में ‘मानवतावादी’ शब्द उन अध्यापकों के लिए प्रयुक्त होता था जो व्याकरण, अलंकारशास्त्र, कविता, इतिहास और नीति दर्शन विषय पढ़ाते थे। ये विषय धार्मिक नहीं थे वरन् उस कौशल पर बल देते थे जो व्यक्ति चर्चा और वाद-विवाद से विकसित करता है। इन क्रान्तिकारी विचारों ने अनेक विश्वविद्यालयों का ध्यान आकर्षित किया। फ्लोरेन्स धीरे-धीरे एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय बन गया । वह इटली के सबसे जीवन्त बौद्धिक नगर के रूप में जाना जाने लगा।
(ii) फ्लोरेन्स नगर की प्रसिद्धि में दो व्यक्तियों का प्रमुख हाथ था। ये दो व्यक्ति थे –
(1) दाँते
(2) जोटो।
(iii) ‘रेनेसाँ व्यक्ति’ शब्द का प्रयोग प्रायः उस मनुष्य के लिए किया जाता है जिसकी अनेक रुचियाँ हों और अनेक कलाओं में उसे निपुणता प्राप्त हो।
4. इतिहास का मानवतावादी दृष्टिकोण – मानवतावादियों ने पाँचवीं सदी से लेकर चौदहवीं सदी तक के युग को ‘मध्ययुग’ की संज्ञा दी। उनके अनुसार 15वीं शताब्दी से ‘आधुनिक युग’ की शुरुआत हुई।
5. विज्ञान और दर्शन – अरबों का योगदान – एक ओर यूरोप के विद्वान यूनानी ग्रन्थों के अरबी अनुवादों का अध्ययन कर रहे थे, दूसरी ओर यूनानी विद्वान अरबी और फारसी विद्वानों की रचनाओं को अन्य यूरोपीय लोगों के बीच प्रसार के लिए अनुवाद कर रहे थे। ये ग्रन्थ प्राकृतिक विज्ञान, गणित, खगोल विज्ञान, औषधि विज्ञान और रसायन विज्ञान से सम्बन्धित थे। मुस्लिम लेखकों में अरबी के हकीम और बुखारा के दार्शनिक इब्न-सिना तथा आयुर्विज्ञान विश्वकोश के लेखक अल-राजी उल्लेखनीय थे।
6. कलाकार और यथार्थवाद – कला, वास्तुकला और ग्रन्थों ने मानवतावादी विचारों के प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- मूर्तिकला – 1416 में दोनातल्लो ने सजीव मूर्त्तियाँ बनाकर नई परम्परा स्थापित की। नर कंकालों का अध्ययन करने के लिए कलाकार आयुर्विज्ञान कालेजों की प्रयोगशालाओं में गए।
- चित्रकला – चित्रकारों ने मूर्तिकारों की भाँति यथार्थ चित्र बनाने का प्रयास किया। लियानार्डो दा विन्ची नामक चित्रकार ने ‘मोनालिसा’ तथा ‘द लॉस्ट सपर’ नामक चित्रों का निर्माण किया।
- यथार्थवाद – शरीर विज्ञान, रेखागणित, भौतिकी और सौन्दर्य की उत्कृष्ट भावना ने इतालवी कला को नया रूप दिया जिसे बाद में ‘यथार्थवाद’ कहा गया। यथार्थवाद की यह परम्परा उन्नीसवीं शताब्दी तक चलती रही।
7. वास्तुकला – पुरातत्वविदों द्वारा रोम के अवशेषों का उत्खनन किया गया। इसने वास्तुकला की एक ‘नई शैली’ को बढ़ावा दिया जिसे ‘शास्त्रीय शैली’ कहा गया। पोप, धनी व्यापारियों और अभिजात वर्ग के लोगों ने उन वास्तुविदों को अपने भवन बनाने के लिए नियुक्त किया, जो शास्त्रीय वास्तुकला से परिचित थे। चित्रकारों और शिल्पकारों ने भवनों को लेपचित्रों, मूर्त्तियों और उभरे चित्रों से भी सुसज्जित किया। ब्रुनेलेशी ने फ्लोरेन्स के गुम्बद का परिरूप तैयार किया।
8. प्रथम मुद्रित पुस्तकें – 1455 में जर्मन मूल के जोहानेस गुटनबर्ग ने पहले छापेखाने का निर्माण किया। पन्द्रहवीं शताब्दी तक अनेक क्लासिकी ग्रन्थों का मुद्रण इटली में हुआ था। नये विचारों को बढ़ावा देने वाली एक मुद्रित पुस्तक सैकड़ों पाठकों के पास शीघ्रतापूर्वक पहुँच सकती थी। छपी हुई पुस्तकों के वितरण के कारण पन्द्रहवीं शताब्दी के अन्त से इटली की मानवतावादी संस्कृति का आल्पस पर्वत के पार तीव्रगति से प्रसार हुआ।
9. मनुष्य की एक नई संकल्पना – मानवतावादी संस्कृति की विशेषताओं में से एक था – मानव जीवन पर धर्म का नियंत्रण कमजोर होना। इटली के निवासी भौतिक सम्पत्ति, शक्ति और गौरव से बहुत ज्यादा आकृष्ट थे। लोरेन्जो वल्ला ने भोग-विलास पर ईसाई धर्म की निषेधाज्ञा की आलोचना की तथा अच्छे व्यवहारों की वकालत की।
10. महिलाओं की आकांक्षाएँ – मध्ययुगीन यूरोप में प्रायः सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी अत्यन्त सीमित थी और उन्हें घर-परिवार की देखभाल करने वाले के रूप में देखा जाता था। परन्तु व्यापारी परिवारों में महिलाओं की स्थिति भिन्न थी। दुकानदारों की स्त्रियाँ दुकानों को चलाने में प्रायः उनकी सहायता करती थीं। आधुनिक युग में कुछ महिलाएँ बौद्धिक रूप से रचनात्मक थीं और मानवतावादी शिक्षा से प्रभावित थीं। वेनिस निवासी कसान्द्रा फेरेले के अनुसार प्रत्येक महिला को सभी प्रकार की शिक्षा को प्राप्त करने की इच्छा रखनी चाहिए और उसे ग्रहण करना चाहिए। मंटुआ की मार्चिसा इसाबेल दि इस्ते ने अपने पति की अनुपस्थिति में अपने राज्य पर शासन किया।
11. ईसाई धर्म के अन्तर्गत वाद-विवाद –
(1) उत्तरी यूरोप में मानवतावादियों ने ईसाइयों को अपने पुराने धर्मग्रन्थों में बताए गए तरीकों से धर्म का पालन करने का आह्वान किया। उन्होंने अनावश्यक कर्मकाण्डों को त्यागने पर बल दिया। इसके बाद दार्शनिकों ने भी कहा कि मनुष्य को अपनी खुशी इसी विश्व में वर्तमान में ढूँढ़नी चाहिए।
(2) इंगलैण्ड के टॉमस मोर तथा हालैण्ड के इरैस्मस ने कहा कि चर्च एक लालची और साधारण लोगों से बात-बात पर लूट-खसोट करने वाली संस्था बन गई है।
(3) पादरी लोगों से धन लूटने के लिए ‘पाप-स्वीकारोक्ति’ नामक दस्तावेज का लाभ उठा रहे थे जिससे जन- साधारण में असन्तोष व्याप्त था।
(4) चर्च द्वारा लगाए गए करों से किसानों में भी असन्तोष था । उन्होंने इन करों का विरोध किया।
(5) यूरोप के शासक भी राज-काज में चर्च के हस्तक्षेप से नाराज थे।
(6) 1517 में एक जर्मन युवा भिक्षु मार्टिन लूथर ने कैथोलिक चर्च के विरुद्ध अभियान छेड़ा। इस आन्दोलन को ‘प्रोटेस्टेन्ट सुधारवाद’ की संज्ञा दी गई। फ्रांस में कैथोलिक चर्च ने प्रोटैस्टेन्ट लोगों को अपनी इच्छा के अनुसार उपासना करने की छूट दी। इंग्लैण्ड के शासकों ने पोप से अपने सम्बन्ध तोड़ दिए। इसके बाद राजा / रानी इंग्लैण्ड के चर्च के प्रमुख बन गए।
(7) प्रोटैस्टेन्ट धर्म सुधार आन्दोलन की बढ़ती हुई प्रगति से कैथोलिक चर्च बड़ा चिन्तित हुआ और उसने भी अनेक आन्तरिक सुधार करने शुरू कर दिये।
12. कोपरनिकसीय क्रान्ति – पोलैण्ड के वैज्ञानिक कोपरनिकस ने यह घोषणा की कि पृथ्वी समेत सारे ग्रह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। इसके बाद खगोलशास्त्री जोहानेस कैप्लर ने अपने ग्रन्थ में कोपरनिकस के सिद्धान्त को लोकप्रिय बनाया। गैलिलियो ने गतिशील विश्व के सिद्धान्त की पुष्टि की। न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।
13. ब्रह्माण्ड का अध्ययन – गैलिलियो तथा अन्य विचारकों ने बताया कि ज्ञान विश्वास से हटकर अवलोकन एवं प्रयोगों पर आधारित है। शीघ्र ही भौतिकी, रसायनशास्त्र तथा जीव-विज्ञान के क्षेत्र में अनेक प्रयोग और खोज- कार्य तीव्र गति से होने लगे। परिणामस्वरूप सन्देहवादियों तथा नास्तिकों के मन में समस्त सृष्टि की रचना के स्रोत के रूप में प्रकृति ईश्वर का स्थान लेने लगी। वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर बल दिया जाने लगा और सार्वजनिक क्षेत्र में एक नई वैज्ञानिक संस्कृति की स्थापना हुई।
14. क्या चौदहवीं शताब्दी में पुनर्जागरण हुआ था ?
पुनर्जागरण की अवधारणा –
(1) यूरोप में इस समय आए सांस्कृतिक परिवर्तन में रोम और यूनान की ‘क्लासिकी’ सभ्यता का ही केवल हाथ नहीं था। यूरोपियों ने न केवल यूनानियों तथा रोमनवासियों से सीखा, बल्कि भारत, अरब, ईरान, मध्य एशिया और चीन से भी ज्ञान प्राप्त किया।
(2) इस काल में जो महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए, उनमें धीरे-धीरे ‘निजी’ और ‘सार्वजनिक’ दो अलग-अलग क्षेत्र बनने लगे। व्यक्ति की दो भूमिकाएँ थीं – निजी और सार्वजनिक। वह न केवल तीन वर्गों (पादरी, अभिजात, कृषक ) में से किसी एक वर्ग का सदस्य ही था, बल्कि अपने आप में एक स्वतन्त्र व्यक्ति था।
(3) इस काल की एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि भाषा के आधार पर यूरोप के विभिन्न क्षेत्रों ने अपनी पहचान बनानी शुरू की। इन राज्यों के आंतरिक जुड़ाव का कारण समान भाषा का होना था।
चौदहवीं तथा पन्द्रहवीं शताब्दियाँ:
तिथि | घटना |
1300 | इटली के पादुआ विश्वविद्यालय में मानवतावाद पढ़ाया जाने लगा। |
1341 | पेट्रार्क को रोम में ‘राजकवि’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। |
1349 | फ्लोरेन्स में विश्वविद्यालय की स्थापना। |
1390 | जेफ्री चॉसर की ‘केन्टरबरी टेल्स’ का प्रकाशन। |
1436 | ब्रुनेलेशी ने फ्लोरेन्स में ड्यूमा का परिरूप तैयार किया। |
1453 | कुस्तुन्तुनिया के बाइजेन्टाइन शासक को ऑटोमन तुर्कों ने पराजित किया। |
1454 | गुटेनबर्ग ने विभाज्य टाइप से बाइबल का प्रकाशन किया। |
1484 | पुर्तगाली गणितज्ञों ने सूर्य का अध्ययन कर अक्षांश की गणना की। |
1492 | कोलम्बस अमरीका पहुँचे। |
1495 | लियोनार्डो दा विंची ने ‘द लास्ट सपर’ (अन्तिम भोज) चित्र बनाया। |
1512 | माइकल एंजिलो ने सिस्टीन चैपल की छत पर चित्र बनाए। |
सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दियाँ | |
1516 | टामस मोर की ‘यूटोपिया’ का प्रकाशन। |
1517 | मार्टिन लूथर द्वारा नाइन्टी – फाइव थीसेज की रचना। |
1522 | मार्टिन लूथर द्वारा बाइबल का जर्मन में अनुवाद। |
1525 | जर्मनी में किसान विद्रोह। |
1543 | एन्ड्रीयास वसेलियस द्वारा ‘ऑन एनाटमी’ ग्रन्थ की रचना। |
1559 | इंग्लैण्ड में आंग्ल – चर्च की स्थापना जिसके प्रमुख राजा / रानी थे। |
1569 | गेरहार्डस मरकेटर ने पृथ्वी का पहला बेलनाकार मानचित्र बनाया। |
1582 | पोप ग्रेगरी – XIII के द्वारा ग्रेगोरियन कैलेंडर का प्रचलन। |
1628 | विलियम हार्वे ने हृदय को रुधिर – परिसंचरण से जोड़ा। |
1673 | पेरिस में ‘अकादमी ऑफ साइंसेज’ की स्थापना। |
1687 | आइजक न्यूटन के ‘प्रिन्सिपिया मैथेमेटिका’ का प्रकाशन। |