JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Rachana पत्र लेखन-औपचारिक पत्र Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10 Hindi Rachana पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

जिन लोगों के साथ औपचारिक संबंध होते हैं उन्हें औपचारिक पत्र लिखे जाते हैं। इन पत्रों में व्यक्तिगत और आत्मीय विचार प्रकट नहीं किए जाते। इनमें अपनेपन का भाव पूरी तरह गायब रहता है। इनमें अपने विचारों को भली-भाँति सोच-विचारकर प्रकट किया जाता है। प्रायः औपचारिक पत्र सरकारी और गैर-सरकारी कार्यालयों के अधिकारियों, निजी संस्थानों, पत्र-पत्रिकाओं के संपादकों, अध्यापकों, प्रधानाचार्यों, व्यापारियों आदि को लिखे जाते हैं। औपचारिक पत्रों की रूप-रेखा प्रायः निम्नलिखित आधारों पर निर्धारित की जाती है –

1. प्रेषक का पता
2. दिनांक
3. प्राप्तकर्ता का पद नाम तथा पता
4. विषय का संक्षिप्त उल्लेख
5. संबोधन
6. विषय-वस्तु
7. समापन शिष्टता
8. प्रेषक के हस्ताक्षर
9. प्रेषित का पद / नाम / पता

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

(क) कार्यालयी पत्र

1. भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय की ओर से महाराष्ट्र सरकार को नई शिक्षा नीति लागू करने के लिए पत्र लिखिए।
उत्तर :
रजत शर्मा
सचिव, भारत सरकार
शिक्षा मंत्रालय
दिनांक : 12 मार्च, 20 ….
सेवा में
सचिव
शिक्षा विभाग
महाराष्ट्र राज्य
मुंबई
विषय – नई शिक्षा नीति लागू करना

महोदय
मुझे आपको यह सूचित करने का निर्देश दिया गया है कि भारत सरकार के निश्चयानुसार शिक्षा सत्र 20… से संपूर्ण देश में नई शिक्षा नीति को लागू कर दिया जाए। महाराष्ट्र में भी इस नीति को क्रियान्वित किया जाए तथा इस योजना को लागू करने के लिए किए गए प्रयासों से मंत्रालय को भी परिचित कराया जाए।
आपका विश्वासपात्र
ह० रजत शर्मा
(रजत शर्मा)
सचिव, शिक्षा मंत्रालय।

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

2. उपायुक्त, सिरसा की ओर से मुख्य सचिव हरियाणा सरकार को एक पत्र लिखकर बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए अनुरोध करें।
उत्तर :
बी० एस० यादव
उपायुक्त, सिरसा
दिनांक 16 अगस्त, 20….
सेवा में
मुख्य सचिव
हरियाणा राज्य
चंडीगढ़
विषय – बाढ़ पीड़ितों की सहायता हेतु पत्र
महोदय
1. मैं आपको सूचित करता हूँ कि इन दिनों हुई भयंकर वर्षा के परिणामस्वरूप सिरसा के आसपास के गाँवों में भीषण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई है। खड़ी फसलें नष्ट हो गई हैं तथा जन-धन और संपत्ति की भी बहुत हानि हुई है। मैंने अन्य जिला अधिकारियों के साथ स्थिति का निरीक्षण भी किया है।

2. जिला – स्तर पर बाढ़ पीड़ितों की यथासंभव सहायता की जा रही है, जो अपर्याप्त है। आपसे प्रार्थना है कि बाढ़ पीड़ितों को राज्य सरकार की ओर से विशेष आर्थिक सहायता प्रदान की जाए, जिससे वे अपने टूटे-फूटे मकान बना सकें तथा नष्ट हुई फ़सल के स्थान पर अगली फ़सल की तैयारी कर सकें।

3. बाढ़ के कारण बीमारियों का प्रकोप भी बढ़ गया है। जिला स्वास्थ्य अधिकारी इन बीमारियों पर नियंत्रण करने में पूर्णरूप से सक्षम नहीं हैं। अतः विशेष चिकित्सकों के दल को भी भेजने का प्रबंध करें।
भवदीय
बी० एस० यादव
उपायुक्त, सिरसा

3. भारत सरकार के उद्योग मंत्रालय की ओर से हिमाचल प्रदेश सरकार के उद्योग सचिव को राज्य में उद्योग-धंधों को प्रोत्साहित करने के लिए एक पत्र लिखिए।
उत्तर :
भारत सरकार
उद्योग मंत्रालय
नई दिल्ली
22 सितंबर, 20….
श्री पी० एस० यादव
सचिव, उद्योग विभाग, हिमाचल प्रदेश
विषय – उद्योग धंधों को प्रोत्साहित करने हेतु पत्र
प्रिय श्री यादव जी
विगत दिनों हिमाचल प्रदेश के कुछ उद्योगपतियों ने इस मंत्रालय को राज्य में उद्योग-धंधों की दयनीय स्थिति से अवगत कराया। मुझे बहुत दुख हुआ कि उद्योग-धंधों की उपेक्षा के कारण जहाँ हिमाचल प्रदेश की आर्थिक स्थिति को आघात पहुँचा है, वहीं देश की प्रगति भी अवरुद्ध हो रही है। इस संबंध में आप व्यक्तिगत रूप से रुचि लें तथा प्रदेश में उद्योग-धंधों को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न योजनाएँ चलाएँ। इस संदर्भ में विस्तृत योजनाएँ आपको अलग से भेजी जा रही हैं।
इन योजनाओं को लागू करने में यदि आपको कोई कठिनाई हो तो मुझसे संपर्क कर सकते हैं।
शुभकामनाओं सहित,
आपकी सद्भावी
पूनम शर्मा
शिमला

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4. शारदा विद्या मंदिर, लखनऊ के प्राचार्य की ओर से महर्षि दयानंद विद्यालय के प्राचार्य को वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह में मुख्य अतिथि पद को स्वीकार करने हेतु एक पत्र लिखिए।
उत्तर :
शारदा विद्या मंदिर
लखनऊ
18 अक्तूबर, 20….
सेवा में
डॉ० नरेश चंद्र मिश्र
प्राचार्य
महर्षि दयानंद विद्यालय
लखनऊ
विषय – मुख्य अतिथि पद के निमंत्रण हेतु पत्र
प्रिय डॉ० मिश्र जी
हमारे विद्यालय का वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह 18 जनवरी, 20…. को आयोजित करने का निश्चय किया गया है। इसमें मुख्य अतिथि पद को सुशोभित करने हेतु आपसे निवेदन है कि आप अपने अति व्यस्त समय में से कुछ अमूल्य क्षण प्रदान कर हमें अनुगृहीत करें। इस समारोह में विद्यार्थियों को शैक्षणिक तथा विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों में श्रेष्ठता प्रदर्शित करने के लिए पुरस्कृत किया जाएगा। यदि आप इस विषय में अपनी सुविधानुसार मुझे समय दे सकें तो मैं आपका विशेष रूप से आभारी होऊँगा।
शुभकामनाओं सहित
शुभाकांक्षी
डॉ० के० के० मेनन

5. अपने क्षेत्र में मलेरिया फैलने की संभावना को देखते हुए स्वास्थ्य अधिकारी को पत्र लिखिए।
उत्तर :
14 / 131, सुभाष नगर
सेलम
तिथि : 17 मई, 20 ….
स्वास्थ्य अधिकारी
नगर-निगम
सेलम
विषय – मलेरिया की रोकथाम हेतु पत्र।
आदरणीय महोदय
इस पत्र के द्वारा मैं अपने क्षेत्र ‘सुभाष नगर’ की सफ़ाई व्यवस्था की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहता हूँ। आप जानते हैं कि यह क्षेत्र पर्याप्त ढलान पर बसा हुआ है। बरसात में यहाँ स्थान-स्थान पर पानी रुक जाता है। यही नहीं सड़कों के दोनों ओर गंदगी के ढेर लगे रहते हैं। सफ़ाई कर्मचारी कोई ध्यान नहीं देते। परिणामस्वरूप यहाँ मक्खियों और मच्छरों का जमघट बना रहता है। रुका हुआ पानी मच्छरों की संख्या में तीव्र गति से वृद्धि करता है। अतः इस तरफ़ ध्यान न दिया गया तो इस क्षेत्र में मलेरिया फैलने की पूरी संभावना है। अतः आपसे प्रार्थना है कि इस क्षेत्र की तुरंत सफ़ाई करवाने का आदेश दें और मलेरिया की रोकथाम के लिए समुचित व्यवस्था करें। यही नहीं यहाँ के निवासियों को आवश्यक दवाइयाँ भी मुफ़्त उपलब्ध करवाई जाएँ।
आशा है कि आप मेरी प्रार्थना की ओर ध्यान देंगे और उचित प्रबंध द्वारा इस क्षेत्र के निवासियों को मलेरिया के प्रकोप से बचा लेंगे।
भवदीय
अनुराग छाबड़ा

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

6. अपने नगर के जलापूर्ति अधिकारी को पर्याप्त और नियमित रूप से पानी न मिलने की शिकायत करते हुए पत्र लिखिए।
उत्तर :
512, शास्त्री नगर
रोहतक
तिथि : 14 मार्च, 20….
जलापूर्ति अधिकारी
नगरपालिका
रोहतक
विषय – पेयजल की कठिनाई हेतु शिकायती पत्र।
मान्यवर
बड़े खेद की बात है कि पिछले एक मास से ‘शास्त्री नगर’ क्षेत्र में पेयजल की कठिनाई का अनुभव किया जा रहा है। नगरपालिका की ओर से पेयजल की सप्लाई बहुत कम होती जा रही है। कभी-कभी तो पूरा-पूरा दिन पानी नलों में नहीं आता। मकानों की पहली दूसरी मंज़िल तक तो पानी चढ़ता ही नहीं। आप पानी की आवश्यकता के विषय में जानते हैं।
पानी की कमी के कारण यहाँ के लोगों का जीवन कष्टमय बन गया है। आप से प्रार्थना है कि इस क्षेत्र में पेय जल की समस्या का समाधान करें।
आशा है कि आप इस विषय पर ध्यान देंगे और शीघ्र ही उचित कार्यवाही करेंगे।
भवदीय,
राम सिंह चौटाला

7. अपने मोहल्ले में वर्षा के कारण उत्पन्न हुए जल भराव की समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट करने के लिए नगरपालिका अधिकारी को पत्र लिखिए।
उत्तर :
4/307, जगाधरी गेट
अंबाला
दिनांक : 18 सितंबर, 20….
स्वास्थ्य अधिकारी
नगरपालिका
अंबाला
विषय – जलभराव की समस्या हेतु शिकायती पत्र।
महोदय
निवेदन यह है कि मैं जगाधरी गेट का निवासी हूँ। यह क्षेत्र सफ़ाई की दृष्टि से पूरी तरह उपेक्षित है। वर्षा के दिनों में तो इसकी और बुरी हालत हो जाती है। इन दिनों प्रायः सभी गलियों में वर्षा का जल भरा हुआ है। नगरपालिका इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रही। इस जल भराव के कारण आवागमन में ही कठिनाई नहीं होती बल्कि बीमारी फैलने का भी खतरा है।
आपसे नम्र निवेदन है कि आप स्वयं एक बार आकर इस जल भराव को देखें। तभी आप हमारी कठिनाई को समझ पाएँगे। कृपया इस क्षेत्र से जल निकास का शीघ्र प्रबंध करें।
आशा है कि आप मेरी प्रार्थना की तरफ़ ध्यान देंगे।
भवदीय,
महेश बजाज

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

8. चुनाव के दिनों में कार्यकर्ता घर, विद्यालयों और मार्गदर्शक आदि पर बेतहाशा पोस्टर लगा जाते हैं। इससे लोगों को होने वाली असुविधा पर अपने विचार व्यक्त करते हुए ‘दैनिक लोक वाणी’ समाचार-पत्र के ‘जनमत’ कॉलम के लिए पत्र लिखिए।
उत्तर :
480, नई बस्ती
चंबा
दिनांक : 22 जनवरी, 20….
संपादक
दैनिक लोकवाणी
चेन्नई
विषय – जगह-जगह राजनीतिक पोस्टर लगाने हेतु शिकायती पत्र |
आदरणीय महोदय
मैं आपके लोकप्रिय पत्र के ‘जनमत कॉलम’ के लिए एक पत्र लिख रहा हूँ। इसे प्रकाशित करने की कृपा करें। आप जानते हैं कि चुनाव के दिनों में कार्यकर्ता बिना सोचे-समझे, विद्यालयों, घरों तथा मार्गदर्शन चित्रों आदि पर अत्यधिक पोस्टर लगा जाते हैं। घर अथवा विद्यालय कोई राजनीतिक संस्थाएँ नहीं। उन पर लगे पोस्टरों से यह भ्रम हो जाता है कि घर तथा विद्यालय भी किसी राजनीतिक दल से संबद्ध है। इन पोस्टरों से मार्गदर्शन चित्र इस तरह ढक जाते हैं कि अजनबी को रास्ते के बारे में कुछ पता नहीं चलता। इन पोस्टरों को लगाने वालों की भीड़ के कारण आम लोगों को तथा छात्रों को असुविधा होती है। अतः मैं सरकार तथा राजनीतिक दलों का ध्यान इस तरफ़ दिलाना चाहता हूँ।
आशा है कि आप लोगों की सुविधा का ध्यान रखते हुए मेरे इस पत्र को प्रकाशित करने का आदेश देंगे।
भवदीय
मोहन मेहता

(ख) आवेदन-पत्र

9. कॉलेज प्रबंधक को प्राध्यापक की नौकरी के लिए आवेदन-पत्र लिखिए।
उत्तर :
83, नौरोजी नगर
दिल्ली
12 दिसंबर 20….
प्रबंधक
गायत्री कॉलेज
नई दिल्ली
विषय – प्राध्यापक की नौकरी हेतु आवेदन पत्र।
मान्यवर महोदय
दिनांक 10 दिसंबर, 20…. के दैनिक ‘हिंदुस्तान’ से ज्ञात हुआ है कि आपके यहाँ हिंदी विषय के तीन प्राध्यापकों के स्थान रिक्त हैं। प्राध्यापक के पद की नियुक्ति के लिए आपने जो शैक्षणिक योग्यताएँ माँगी हैं, मैं उसके लिए अपने आपको पूर्ण समर्थ समझता हूँ। अतः मैं आपकी सेवा में यह प्रार्थना-पत्र भेज रहा हूँ। मेरी शैक्षणिक योग्यता तथा अनुभव का विवरण इस प्रकार है –
1. मैंने 2005 ई० में पंजाब विश्वविद्यालय से हिंदी विषय में एम० ए० प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है। सन 2006 में मैंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की योग्यता परीक्षा उत्तीर्ण की है।
2. मैंने एक वर्ष तक डी० ए० वी० कॉलेज, चंडीगढ़ में अस्थायी रूप से रिक्त प्राध्यापक के पद पर भी कार्य किया है।
3. स्कूल तथा कॉलेज जीवन में मेरी क्रिकेट तथा बैडमिंटन में विशेष रुचि रही है।
4. मैंने भाषण तथा वाद-विवाद प्रतियोगिता में भी अनेक बार प्रथम स्थान प्राप्त किया है। आवश्यक प्रमाण-पत्र इस प्रार्थना-पत्र के साथ भेज रहा हूँ। मुझे पूर्ण आशा है कि आप मेरे प्रार्थना-पत्र पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेंगे और मुझे अपनी ख्याति प्राप्त संस्था में काम करने का अवसर प्रदान करेंगे।
धन्यवाद सहित
भवदीय
जगमोहन सहगल
संलग्न : प्रमाण पत्रों की प्रतिलिपियाँ

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

10. दिल्ली नगर निगम के अध्यक्ष को एक आवेदन-पत्र लिखिए, जिसमें लिपिक के पद के लिए आवेदन किया गया हो।
उत्तर :
4 / 19, अशोक नगर
नई दिल्ली
15 दिसंबर, 20….
अध्यक्ष
नगर-निगम
दिल्ली
विषय – लिपिक के पद हेतु आवेदन पत्र।
मान्यवर महोदय
निवेदन है कि मुझे विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि आपके कार्यालय में एक क्लर्क की आवश्यकता है। मैं इस रिक्ति के लिए अपनी सेवाएँ प्रस्तुत करता हूँ। मेरी योग्यताएँ इस प्रकार हैं –
(i) बी० ए० द्वितीय श्रेणी
(ii) टाइप का पूर्ण ज्ञान-गति 50 शब्द प्रति मिनट
(iii) अनुभव – एक वर्ष
(iv) आयु – 24वें वर्ष में प्रवेश
मुझे अंग्रेज़ी एवं हिंदी का अच्छा ज्ञान है। पंजाबी भाषा पर भी अधिकार है।
आशा है कि आप मेरी योग्यता को देखते हुए अपने अधीन काम करने का अवसर प्रदान करेंगे। मैं सच्चाई एवं ईमानदारी के साथ काम करने का आश्वासन दिलाता हूँ।
योग्यता एवं अनुभव संबंधी प्रमाण-पत्र इस प्रार्थना-पत्र के साथ संलग्न कर रहा हूँ।
धन्यवाद सहित
भवदीय
सुखदेव गोयल
संलग्न : उपर्युक्त

11. ‘जनसंख्या विभाग’ को घर-घर जाकर सूचनाएँ एकत्रित करने वाले ऐसे सर्वेक्षकों की आवश्यकता है, जो हिंदी और अंग्रेजी में भली-भाँति बात कर सकते हों और सूचनाओं को सही-सही दर्ज कर सकते हों। इसके साथ ही आवेदकों में विनम्रतापूर्वक बात करने की योग्यता होनी चाहिए। इस काम में अपनी रुचि प्रदर्शित करते हुए जनसंख्या विभाग के सचिव को आवेदन-पत्र लिखिए।
उत्तर :
7, रामलीला मार्ग
हमीरपुर
दिनांक : 14 दिसंबर, 20….
प्रशासनिक अधिकारी
जनसंख्या विभाग
कोयंबटूर
विषय – सर्वेक्षक की नौकरी हेतु आवेदन-पत्र।
आदरणीय महोदय
मुझे आज के दैनिक समाचार-पत्र में प्रकाशित विज्ञापन से ज्ञात हुआ है कि आपको घर-घर जाकर सूचनाएँ एकत्रित करने के लिए सर्वेक्षकों की आवश्यकता है। मैं आपके कार्यालय द्वारा निर्धारित योग्यताओं को पूर्ण करता हूँ।
मैंने इसी वर्ष (20…) बारहवीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण की है। कुछ समय तक मैंने स्थानीय कार्यालय में कार्य भी किया है। मैं हिंदी तथा अंग्रेजी भाषा समझने तथा इन दोनों भाषाओं में वार्तालाप करने में दक्ष हूँ।
मैं अपनी सेवाएँ प्रदान करना चाहता हूँ। आशा है कि आप मुझे अवसर प्रदान करेंगे। आवश्यक प्रमाण-पत्र मैं भेंटवार्ता के अवसर पर साथ लेकर आऊँगा।
भवदीय
महेश महाजन

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

12. ‘प्रचंड भारत’ दैनिक समाचार-पत्र को खेल- विभाग के लिए संवाददाताओं की आवश्यकता है। पद के लिए खेलों का ज्ञान और रुचि के साथ-साथ हिंदी भाषा में अच्छी गति से लिखने का अभ्यास अनिवार्य है। इस पद के लिए आवेदन-पत्र लिखिए।
उत्तर :
14, पश्चिम विहार,
कोटा
दिनांक : 15 सितंबर, 20….
संपादक
दैनिक ‘प्रचंड भारत’
कोटा
विषय – खेल संवाददाता के पद हेतु आवेदन पत्र।
मान्यवर महोदय
आपके लोकप्रिय समाचार पत्र में प्रकाशित विज्ञापन से ज्ञात हुआ कि आपको खेल विभाग के लिए संवाददाताओं की आवश्यकता है। इस पद के लिए मैं अपनी सेवाएँ अर्पित करना चाहता हूँ।
मेरी योग्यताओं का विवरण इस प्रकार है –
शैक्षिक योग्यता बी० ए० प्रथम श्रेणी – 2000, पत्रकारिता में डिप्लोमा – 2001
विद्यालय की क्रिकेट टीम का कप्तान – अवधि 2 वर्ष
मुझे खेलों की सामग्री का पर्याप्त अनुभव है। मुझे हिंदी भाषा का अच्छा ज्ञान है। विद्यालय तथा महाविद्यालय की पत्रिका में मेरे लेख भी प्रकाशित होते रहे हैं।
आवश्यक प्रमाण-पत्र इस आवेदन पत्र के साथ संलग्न हैं।
आशा है कि आप मुझे सेवा का अवसर प्रदान करेंगे।
आपका आज्ञाकारी
प्रतीक राय

(ग) व्यावसायिक पत्र

13. रिक्तियों के लिए समाचार-पत्र में विज्ञापन के प्रकाशन हेतु पत्र लिखिए।
उत्तर :
मल्होत्रा बुक डिपो
रेलवे रोड
जालंधर।
29 सितंबर 20….
विज्ञापन व्यवस्थापक
दैनिक ट्रिब्यून
चंडीगढ़
विषय – विज्ञापन प्रकाशन हेतु पत्र।
प्रिय महोदय
इस पत्र के साथ एक विज्ञापन का प्रारूप भेज रहा हूँ जिसे कृपया 7 अक्टूबर तथा 14 अक्टूबर के अंकों में प्रकाशित कर दें। आपका बिल प्राप्त होते ही उसका भुगतान कर दिया जाएगा।
विज्ञापन का प्रारूप
आवश्यकता है एक ऐसे अनुभवी सेल्स मैनेजर की जो स्वतंत्र रूप से प्रतिष्ठान के बिक्री काउंटर को सँभाल सके। वेतन ₹1500-2000 तथा निःशुल्क आवास की व्यवस्था। बहुत योग्य तथा अनुभवी अभ्यार्थी को योग्यतानुसार उच्च वेतन भी दिया जा सकता है। निम्नलिखित पते पर 15 नवंबर, 20…. तक लिखें या मिलें –
मल्होत्रा बुक डिपो,
रेलवे रोड, जालंधर शहर।
धन्यवाद,
आपका विश्वासी
एस० के० सिक्का
प्रबंधक।
संलग्न : विज्ञापन

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

14. गलत माल मिलने की शिकायत करते हुए सामान बेचने वाले प्रतिष्ठान ‘क्रीड़ा विहार’ को एक पत्र लिखिए।
उत्तर :
केंद्रीय विद्यालय
बेंगलुरु
दिनांक : 18 जुलाई, 20 ….
व्यवस्थापक
‘क्रीड़ा विहार’
जालंधर
विषय – गलत माल की प्राप्ति हेतु शिकायती पत्र।
महोदय
हमने दिनांक : 17-1-20…. को सामान की सूची भेजी थी। उस सूची का क्रमांक नं० 713 है। हमने दो दर्जन क्रिकेट के गेंद, 6 बल्ले तथा 12 रैकेट मँगवाए थे, लेकिन आपने सारा माल गलत भेजा है। लगता है कि यह सामान किसी दूसरी जगह पर जाना था लेकिन आपके कर्मचारी ने भूल से ऐसा कर दिया है।
कृपया आप अपना माल वापस मँगवा लें और हमारे सूची के अनुसार हमारा माल शीघ्र भिजवा दें। अतिरिक्त व्यय भार आपको वहन करना होगा।
भवदीय
विकास खन्ना
(प्राचार्य)

15. आपको दिल्ली के किसी पुस्तक-विक्रेता से कुछ पुस्तकें मँगवानी हैं। वी० पी० पी० द्वारा मँगवाने के लिए पत्र लिखिए।
उत्तर :
5/714, तिलक नगर
कटक
17 नवंबर, 20….
प्रबंधक
मल्होत्रा बुक डिपो
गुलाब भवन
6, बहादुर शाह ज़फ़र मार्ग
नई दिल्ली – 110002
विषय – पुस्तकें मँगवाने हेतु पत्र।
महोदय
निम्नलिखित पुस्तकें स्थानीय पुस्तक-विक्रेता से नहीं मिल रहीं, अतः ये पुस्तकें वी० पी० पी० द्वारा शीघ्र भेजने का कष्ट करें। यदि अग्रिम भेजने की आवश्यकता हो तो सूचित करें। पुस्तकों पर उचित कमीशन काटना न भूलें। पुस्तकें नवीन पाठ्यक्रम के अनुसार होनी चाहिए।

1. हिंदी गाइड (कक्षा दस) …… एक प्रति
2. इंग्लिश गाइड (कक्षा दस) …… एक प्रति
3. नागरिक शास्त्र के सिद्धांत (कक्षा दस) …… एक प्रति
4. भूगोल (कक्षा दस) ….. एक प्रति
5. विज्ञान (कक्षा दस) …… एक प्रति
भवदीय
निशा सिंह

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

(घ) प्रार्थना-पत्र

16. अपने प्रधानाचार्य को एक प्रार्थना-पत्र लिखिए, जिसमें कई महीने से अंग्रेज़ी की पढ़ाई न होने के कारण उत्पन्न कठिनाई का वर्णन किया गया हो।
उत्तर :
प्रधानाचार्य
केंद्रीय विद्यालय
पुड्डुचेरी
विषय-अंग्रेज़ी की पढ़ाई न हो पाने हेतु शिकायती पत्र।
मान्यवर महोदय
आप भली-भाँति जानते हैं कि हमारे अंग्रेज़ी के अध्यापक श्री ज्ञानचंद जी पिछले तीन सप्ताह से बीमार हैं। अभी भी उनके स्वास्थ्य में विशेष सुधार नहीं हो रहा। डॉक्टर का कहना है कि अभी श्री ज्ञानचंद जी को स्वस्थ होने में कम-से-कम दो सप्ताह और लगेंगे। पिछले तीन सप्ताह से हमारी अंग्रेज़ी की पढ़ाई ठीक ढंग से नहीं हो रही। आपने जो प्रबंध किया है, वह संतोषजनक नहीं है। उधर परीक्षा सिर पर आ रही हैं। अभी पाठ्यक्रम भी समाप्त नहीं हुआ है। पुनरावृत्ति के लिए भी समय नहीं बचेगा। अतः आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप हमारी अंग्रेज़ी की पढ़ाई का उचित एवं संतोषजनक प्रबंध करें। यदि कुछ कालांश बढ़ा दिए जाएँ तो और भी अच्छा रहेगा।
आशा है कि हमारी कठिनाई को शीघ्र ही दूर करने का प्रयास करेंगे।
आपका आज्ञाकारी
नवनीत (दस ‘क’)

17. अपने विद्यालय के प्रधानाध्यापक को छुट्टी के लिए प्रार्थना पत्र लिखिए।
उत्तर :
प्रधानाध्यापक
केंद्रीय विद्यालय
आगरा
विषय – अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र।
मान्यवर महोदय
निवेदन है कि मेरी बड़ी बहन की शादी 11 नवंबर, 20…. को दिल्ली में होनी तय हुई है। हमारे परिवार के सभी सदस्य वहाँ पहुँच चुके हैं। मैं और मेरी छोटी बहन 9 नवंबर को रात की गाड़ी से दिल्ली जाएँगे। कृपया मुझे दस और ग्यारह नवंबर का अवकाश प्रदान करें।
आपका आज्ञाकारी
महेश चंद्र भुजबल
कक्षा : दस ‘ग’
तिथि: 9 नवंबर, 20 ….

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18. अपने प्रधानाचार्य को प्रार्थना पत्र लिखिए, जिसमें पुस्तकालय के लिए नई पुस्तकों और बाल-पत्रिकाओं को मँगाने की प्रार्थना की गई हो।
उत्तर :
प्रधानाचार्य
राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय
जम्मू
विषय – पुस्तकालय में पुस्तकें मँगवाने हेतु पत्र।
मान्यवर महोदय
गत सप्ताह आपने प्रार्थना सभा में विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए विद्यालय के पुस्तकालय की उपयोगिता पर प्रकाश डाला था। आपने छात्रों को पुस्तकालय से अच्छी-अच्छी पुस्तकें निकलवाकर उनका अध्ययन करने की भी प्रेरणा दी थी। लेकिन पुस्तकालय में छात्रों ने जिन पुस्तकों तथा बाल – पत्रिकाओं की माँग की, वे प्रायः विद्यालय में उपलब्ध नहीं हैं।
आपसे नम्र निवेदन है कि कुछ नई पुस्तकें तथा बालोपयोगी पत्रिकाओं को मँगवाने की व्यवस्था करें। पुस्तकों तथा पत्रिकाओं के अध्ययन से जहाँ छात्र वर्ग के ज्ञान में वृद्धि होती है, वहाँ उनका पर्याप्त मनोरंजन भी होता है।
आशा है कि आप हमारी प्रार्थना पर शीघ्र ध्यान देंगे।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
मनोज कुमार
तिथि : 7.11.20….

19. विद्यालय के प्राचार्य को संध्याकालीन खेलों के उत्तम प्रबंध के लिए प्रार्थना पत्र लिखिए।
उत्तर :
प्राचार्य
नवयुग विद्यालय
वर्धमान
विषय – संध्याकालीन खेलों के उत्तम प्रबंध हेतु पत्र।
मान्यवर महोदय
निवेदन यह है कि आप ने प्रात:कालीन सभा में खेलों के महत्त्व पर प्रकाश डाला था। हम विद्यालय परिसर में संध्या के समय खेलना चाहते हैं, परंतु हमारे विद्यालय के परिसर का खेल का मैदान साफ़ नहीं है तथा हमें खेल की उचित सामग्री भी प्राप्त नहीं होती।
आपसे अनुरोध है कि खेल के मैदान को साफ़ करवाने की तथा खेलों की सामग्री दिलवाने की कृपा करें।
धन्यवाद
भवदीय
देबाशीष डे
तथा कक्षा दस के अन्य विद्यार्थी
दिनांक : 24 अप्रैल, 20….

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

20. अध्यक्ष परिवहन निगम को अपने गाँव तक बस सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए प्रार्थना पत्र लिखिए।
उत्तर :
अध्यक्ष
परिवहन निगम
दिल्ली
विषय – बस सुविधा उपलब्ध करवाने हेतु पत्र |
आदरणीय महोदय
मैं गाँव ‘सोनपुरा’ का एक निवासी हूँ। वह गाँव दिल्ली से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर है। खेद की बात है कि परिवहन निगम की ओर से इस गाँव तक कोई बस सेवा उपलब्ध नहीं है। यहाँ के किसानों को नगर से कृषि के लिए आवश्यक सामान लाने में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। छात्र – छात्राओं को अपने-अपने विद्यालयों तथा महाविद्यालयों में पहुँचने के लिए भी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। अतः आपसे प्रार्थना है कि इस गाँव तक बस सेवा उपलब्ध करवाने की कृपा करें।
आशा है कि हमारी प्रार्थना पर शीघ्र ध्यान दिया जाएगा।
धन्यवाद सहित
भवदीय
रमेश ‘बाल रत्न’
निवासी ‘सोनपुरा गाँव’
तिथि : 18 मार्च, 20….

21. अपने विद्यालय के प्रधानाध्यापक को एक प्रार्थना-पत्र लिखिए, जिसमें खेलों की आवश्यक तैयारी तथा खेल का सामान उपलब्ध करवाने की प्रार्थना की गई हो।
उत्तर :
प्रधानाध्यापक
केंद्रीय विद्यालय
पणजी
विषय – खेलों की तैयारी के संबंध में पत्र
मान्यवर महोदय
आपने एक छात्र-सभा में भाषण देते हुए इस बात पर बल दिया था कि छात्रों को शिक्षा के साथ-साथ खेलों का महत्त्व भी समझना चाहिए। खेल शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। खेद की बात यह है कि आप खेलों की आवश्यकता तो खूब समझते हैं पर खेल सामग्री के अभाव की ओर कभी आपका ध्यान नहीं गया। खेलों के अनेक लाभ हैं। ये स्वास्थ्य के लिए बड़ी उपयोगी हैं। ये अनुशासन, समयपालन, सहयोग तथा सद्भावना का भी पाठ पढ़ाते हैं। अतः आपसे नम्र निवेदन है कि आप खेलों का सामान उपलब्ध करवाने की कृपा करें। इससे छात्रों में खेलों के प्रति रुचि बढ़ेगी। वे अपनी खेल प्रतिभा का विकास कर सकेंगे।
आशा है कि आप मेरी प्रार्थना पर उचित ध्यान देंगे और आवश्यक आदेश जारी करेंगे।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
रजत शर्मा
कक्षा : दस ‘ब’
दिनांक : 17 अप्रैल, 20….

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-औपचारिक पत्र

22. अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को छात्रवृत्ति के लिए प्रार्थना पत्र लिखिए।
उत्तर :
प्रधानाचार्य
राजकीय उच्च विद्यालय
भोपाल
विषय – छात्रवृत्ति हेतु पत्र।
महोदय
सविनय निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय की दसवीं कक्षा का एक छात्र हूँ। मैं प्रथम श्रेणी से आपके विद्यालय में पढ़ रहा हूँ। मैंने परीक्षा में सदैव अच्छे अंक प्राप्त किए हैं। खेलकूद तथा विद्यालय के अन्य कार्यक्रमों में भी मेरी रुचि है। मुझे पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं। अपने सहपाठियों के प्रति मेरा व्यवहार हमेशा शिष्टतापूर्ण रहा है। अध्यापक वर्ग भी मेरे आचार-व्यवहार से संतुष्ट हैं।

हमारे घर की आर्थिक स्थिति अचानक खराब हो गई है जिससे मेरी पढ़ाई में बाधा उपस्थित हो गई है। मेरे पिताजी मेरी पढ़ाई का व्यय- भार सँभालने में स्वयं को असमर्थ पा रहे हैं। अतः आपसे मेरी विनम्र प्रार्थना है कि मुझे छात्रवृत्ति प्रदान करने की कृपा करें। मैं जीवन भर आपका आभारी रहूँगा। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि कठोर परिश्रम द्वारा मैं बोर्ड की परीक्षा में विशेष योग्यता प्राप्त करने वाले छात्राओं की सूची में उच्च स्थान प्राप्त कर विद्यालय की शोभा बढ़ाऊँगा।
धन्यवाद सहित।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
अखिलेश
कक्षा : दस ‘ग’
दिनांक : 7 नवंबर, 20….

23. अपने विद्यालय की प्रधानाचार्या को बीमारी के कारण अवकाश प्रदान करने हेतु प्रार्थना पत्र लिखिए।
उत्तर :
प्रधानाचार्या
डी० ए० वी० उच्च विद्यालय
जबलपुर
विषय – बीमारी के कारण अवकाश हेतु पत्र
महोदय
सविनय निवेदन है कि मुझे कल रात को अकस्मात ज्वर हो गया था और अभी तक नहीं उतरा है। डॉक्टर साहब ने मुझे पूर्ण विश्राम करने की सलाह दी है। इस कारण मैं कल और परसों दो दिन स्कूल में उपस्थित नहीं हो सकती। अतः कृपा करके मुझे दो दिन की छुट्टी देकर कृतार्थ करें
आपका अति धन्यवाद होगा।
आपकी आज्ञाकारी शिष्या
रेखा
कक्षा : दसवीं ‘ए’
दिनांक : 19 अप्रैल 20….

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24. दूरदर्शन निदेशालय को पत्र लिखकर अनुरोध कीजिए कि किशोरों के लिए देशभक्ति की प्रेरणा देने वाले अधिकाधिक कार्यक्रमों को प्रसारित करने की ओर ध्यान दिया जाय।
उत्तर :
पवन कुमार अरोड़ा
28, नेशनल पार्क
नई दिल्ली- 110024
दिनांक – 19 सितंबर, 20……..
सेवा में
निदेशक
दूरदर्शन निदेशालय
नई दिल्ली-110001
महोदय,
आप के केंद्र से बालकों, युवाओं तथा अन्य वर्ग के लोगों के लिए अनेक मनोरंजक तथा ज्ञान वर्धक कार्यक्रम प्रसारित होते हैं, जिसके लिए आप बधाई के पात्र हैं परन्तु किशोरों के लिए कोई भी विशेष कार्यक्रम प्रसारित नहीं होता।
आपसे अनुरोध है कि किशोरों के लिए देशभक्ति की प्रेरणा देने वाले तथा उनके ज्ञान में वृद्धि करने वाले कार्यक्रमों को भी अधिकाधिक प्रसारित करने की कृपा करें, जिस से किशोर देश के प्रति सद्भाव रखते हुए देश के सभ्य एवं देशभक्त नागरिक बन सकें।
धन्यवाद,
भवदीय,
पवन कुमार अरोड़ा

25. आपके नाम से प्रेषित एक हजार रु. के मनीआर्डर की प्राप्ति न होने का शिकायत पत्र अधीक्षक, पोस्ट ऑफिस को लिखिए।
उत्तर :
515/3 – आदर्श नगर,
दिल्ली
दिनांक 25 मार्च, 20……..
सेवा में
अधीक्षक,
पोस्ट ऑफिस,
दिल्ली – 6
प्रिय महोदय,
निवेदन यह है कि मैंने 19 फरवरी, 20……. को रसीद संख्या 9102 द्वारा डाकघर, आदर्श नगर से अपने भाई श्री चैतन्य नारायण, 720/9 अंबाला शहर को एक हज़ार रुपए का मनीऑर्डर उस के जन्मदिन पर कुछ उपहार खरीदने के लिए भेजा था। वह मनीऑर्डर, आज एक महीने से भी अधिक समय बीत जाने पर भी उसे नहीं मिला है।
आप से अनुरोध है कि इस संबंध में उचित जाँच-पड़ताल करवाने की कृपा करें तथा मनीऑर्डर उचित स्थान पर पहुँचाने अथवा मुझे वापस दिलवाने का कष्ट करें।
किए गए मनीऑर्डर की रसीद की फोटो प्रतिलिपि संलग्न है।
धन्यवाद,
भवदीय,
श्याम नारायण

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26. नेशनल बुक ट्रस्ट के प्रबंधक को पत्र लिखकर हिंदी में प्रकाशित नवीनतम बाल साहित्य की पुस्तकें भेजने हेतु अनुरोध कीजिए।
उत्तर :
प्राचार्य,
बाल भारती उच्च विद्यालय
नागपुर,
दिनांक : 25 जुलाई, 20………
प्रति
प्रबंधक
नेशनल बुक ट्रस्ट
नई दिल्ली,
महोदय,
हमारे विद्यालय के बाल – पुस्तकालय के लिए ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित नवीनतम बाल साहित्य की पुस्तकों का एक सैट भेजने की कृपा करें। पुस्तकों का बिल साथ में भेजें, जिस का भुगतान बैंक के चैक द्वारा कर दिया जाएगा।
धन्यवाद,
भवदीय,
राज शंकर पुरोहित
प्राचार्य

27. रेल द्वारा बुक कराकर भेजा गया घरेलू सामान आपके निवास के निकटस्थ स्टेशन तक नहीं पहुँचा है। इसकी शिकायत करते हुए रेल प्रबंधक को एक पत्र लिखिए।
उत्तर :
कृष्ण मुरारी पांडेय
48, संगम मार्ग
इलाहाबाद,
दिनांक : 29 सितंबर, 20……….
सेवा में
प्रबंधक
उत्तर रेलवे मंडल कार्यालय
इलाहाबाद।
महोदय,
निवेदन यह है कि मैंने दिल्ली से अपना घरेलू सामान इलाहाबाद के लिए दिनांक 30 अगस्त, 20…. को रसीद संख्या एन. आर. डी – 55129 से बुक कराया था, जो अब तक यहाँ नहीं पहुँचा है। इस संबंध में इलाहाबाद के पार्सल कार्यालय से कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। अतः आप से अनुरोध है कि इस संबंध में समुचित कार्यवाही करते हुए मुझे सामान दिलवाया जाए।
धन्यवाद,
भवदीय,
कृष्ण मुरारी पांडेय

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28. आए दिन बस चालकों की असावधानी के कारण हो रही दुर्घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए किसी समाचार-पत्र के संपादक को एक पत्र लिखिए।
उत्तर :
संपादक
दैनिक हिंदुस्तान
नई दिल्ली।
महोदय,
आपके लोकप्रिय समाचार-पत्र के माध्यम से मैं संबंधित अधिकारियों तथा संस्थाओं के संचालकों का ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहता हूँ कि दिन-प्रतिदिन बस चालकों की असावधानियों से जो दुर्घटनाएँ होती हैं, उनसे कितने ही परिवार उजड़ जाते हैं। बस चालकों की असावधानी को रोकने के लिए केवल प्रशिक्षित चालकों को ही बस चलाने के लिए दी जाए तथा वे किसी नशीले पदार्थ का सेवन कर बस न चलाएँ। इन चालकों को बस चलाने का प्रमाण-पत्र इनकी अच्छी प्रकार से परीक्षा करने के बाद ही दिया जाना चाहिए। इन्हें सीमा में रहकर ही बस चलाने के निर्देश देने चाहिए तथा समय-समय पर इनकी डॉक्टरी जाँच भी आवश्यक होनी चाहिए।
आशा है कि इस संबंध में अवश्य ही उचित कार्यवाही की जाएगी।
भवदीय
अजय कुमार चुघ
28, नेशनल मार्ग, नई दिल्ली
दिनांक : 22 मार्च, 20…..

29. विद्यालय के गेट पर मध्यावकाश के समय ठेले पर रेहड़ी वालों द्वारा जंक फूड बेचे जाने की शिकायत करते को पत्र लिखकर उन्हें रोकने का अनुरोध कीजिए।
उत्तर :
सेवा में,
प्रधानाचार्य
केंद्रीय विद्यालय
शिलांग
मान्यवर महोदय,
सविनय निवेदन यह है कि विद्यालय में जब मध्यावकाश होता है तो विद्यालय के मुख्य द्वार के पास कुछ ठेले और रेहड़ी वाले स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सस्ते जंक फूड बेचने के लिए आ जाते हैं। विद्यार्थी अनजाने में ही उनसे ऐसी वस्तुएँ खरीद कर खाते हैं, जो बाद में उनके स्वास्थ्य को हानि पहुँचाती हैं।
आप से अनुरोध है कि ऐसे ठेले और रेहड़ी वालों को विद्यालय के मुख्य द्वार के पास नहीं आने दिया जाए तथा विद्यार्थियों को भी इनसे खरीद कर खाने से मना किया जाए।
धन्यवाद।
भवदीय,
आर०एस० संगमा
प्रधान- अध्यापक शिक्षक संघ शिलांग
दिनांक 24 मार्च, 20….

JAC Class 10 Hindi रचना विज्ञापन लेखन

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Rachana विज्ञापन लेखन Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10 Hindi Rachana विज्ञापन लेखन

आधुनिक युग विज्ञापन का युग है। अब किसी भी व्यापार की सफलता बहुत बड़ी सीमा तक विज्ञापन की सफलता पर आधारित है। यह एक सशक्त और प्रभावशाली कला है। पत्र-पत्रिका, रेडियो, टेलीविज्ञन, सिनेमा आदि विज्ञापनों की भरमार से घिरे दिखाई देते हैं। सभी प्रकार की पत्रिकाओं में विज्ञापनों से भरे हुए पृष्ठ दिखाई देते हैं। जन-संचार के माध्यमों से विविध विज्ञापन दिखाए जाते हैं। व्यापारी अधिक-सेअधिक लाभ प्राप्त करने के लिए एक से बढ़कर एक आकर्षक और लुभावने विज्ञापन प्रकाशित कराता है या रेडियो-दुरदर्शन पर प्रस्तुत कराता है। पोस्टर, होडिंग आदि के माध्यम से विज्ञापन विश्व-स्तर पर लोकप्रियता प्राप्त कर लेते हैं।

विज्ञापन का अर्थ एवं उद्देश्य –

सामान्य रूप से विज्ञापन का अर्थ ‘विशेष सूचना या जानकारी’ देना है। यह जानकारी उत्पादक उपभोक्ता को देता है। वह उत्पादित वस्तु के रूप, गुण, उपादेयता, मूल्य आदि की पूरी सूचना आकर्षक ढंग से प्रदान करता है, जिससे उपभोक्ता में उस वस्तु को खरीदने की इच्छा जात्रत हो उठती है। व्यापारिक क्षेत्र में विज्ञापन के मुख्य रूप से तीन उद्देश्य हैं-माँग उत्पन्न करना (to produce demand), माँग बनाए रखना (to maintain demand) तथा माँग की वृद्धि करना (to increase demand) । उत्पादक को लाभ पहुँचाना, उपभोक्ता को शिक्षित करना, विक्रेता की सहायता करना तथा उत्पादक और उपभोक्ता के बीच मधुर संबंधों को स्थापित करना भी विज्ञापन के उद्देश्य हैं। ये व्यवसाय को सर्वांगमुखी बनाते हैं। वास्तव में हमारा आज का सारा जीवन ही विश्रापनमय हो चुका है। विज्ञापन केवल उत्पादन की वृद्धि में ही सहायता नहीं देते, बल्कि प्रतिस्पर्धा की क्षमता बढ़ाकर मूल्यों को स्थिरता भी प्रदान करते हैं। इसका महत्त्व बहुआयामी होता है और इससे स्वस्थ प्रतियोगिता को बल मिलता है । बैंकों तथा बीमा कंपनियों के विज्ञापनों से मनुष्य के जीवन-स्तर में भी सुधार होता है।

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व्यापारिक विज्ञापन के माध्यम –

विभिन्न दृश्य एवं श्रव्य माध्यम उत्पादित वस्तु के रूप, गुण, मूल्य आदि से संबंधित जानकारी अपने सम्मानित ग्राहक को देते हैं। माध्यम का चुनाव अत्यंत आवश्यक है क्योंकि सही या गलत माध्यम के चुनाव से विज्ञापन सफल या असफल हो सकता है। प्राय: माध्यम तीन प्रकार के स्वीकार किए जाते हैं-

1. पत्र-पत्रिकाएँ
2. बाह्य विज्ञापन-इनमें पोस्टर, होडिंग, पंफलेट आदि आते हैं।
3. अन्य साधन-रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा आदि इसमें रखे जा सकते हैं।
मोटे रूप से इनका वर्गीकरण दृश्य और श्रव्य माध्यमों में भी किया जा सकता है।

पत्र-पत्रिकाएँ अन्य माध्यमों की अपेक्षा अधिक लोकप्रिय तथा जन-सुलभ माध्यम हैं। इनका प्रचार विश्वव्यापी है। इसालए किसा एक स्थान का वस्तु का प्रचार पूरे विश्व में संभव हो सकता है। दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक, वार्षिक पत्र-पत्रिकाएँ हर भाषा में उपलब्ध हो जाती हैं। सरकारी और ग़ैर-सरकारी स्तर पर छपी सभी पत्र-पत्रिकाओं में विज्ञापन अनिवार्य रूप से छपे रहते हैं क्योंकि इनसे प्राप्त आय के द्वारा पत्रिका का प्रकाशन सरलता से किया जा सकता है। सुंदर बहुरंगी चित्रों, स्पष्ट अक्षरों और रोचक विवरणों से विज्ञापन को सँवारा जाता है। इस माध्यम की परिसीमा यह है कि इसका स्वरूप केवल पढ़ी-लिखी जनता ही जान पाती है।

बाहय विज्ञापनों का प्रदर्शन सार्वजनिक स्थानों पर किया जाता है। सुंदर-रंगीन एवं आकर्षक चित्रों से सजे विज्ञापनों को सड़कों, चौराहों आदि पर कहीं भी देखा जा सकता है। यद्यपि यह माध्यम महँगा है पर फिर भी इसका प्रचलन बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है। दीवारों पर लेखन, इश्तहार, छोटे-बड़े प्रपत्र एवं पंफलेट इसी माध्यम के अंतर्गत आते हैं, जो बहुत महँगे भी नहीं हैं।

आधुनिक युग में रेडियो-ट्रांजिस्टर जहाँ श्रव्य माध्यम के अंतर्गत आते हैं तो टेलीविजन, सिनेमा श्रव्य-दृश्य माध्यम के अंतर्गत आते हैं। नर-नारी तथा वाद्यों की मिली-जुली आवाज़ दूर से ही संभावित उपभोक्ता को अपनी ओर आकर्षित करने का गुण रखती हैं। छोटी-छोटी विज्ञापन फिल्मों की आजकल भरमार है। कार्टूनों तथा अभिनेताओं के माध्यम से ग्राहक को अपनी ओर आकृष्ट करने में ये पूर्ण रूप से सक्षम हैं। डालडा, बाटा शूज़, लिबर्टी शूज़, लिम्का, कैम्पा कोला, लक्स साबुन, लाइफबॉय, चिप्स, कैडबरीज चॉकलेट आदि उत्पादकों के विज्ञापन सभी माध्यमों के द्वारा ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

कभी-कभी व्यापारी विभिन्न प्रतियोगिताओं, मूल्यों में कमी, कूपन द्वारा लॉटरी आदि योजनाओं से भी ग्राहक को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करते हैं और इन सब का प्रचार विज्ञापनों के माध्यम से ही किया जाता है।

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व्यापारिक विज्ञापन और हिंदी –

विज्ञापन की भाषा सदा वही होनी चाहिए जिस क्षेत्र में उसका प्रचार किया जा रहा हो। विज्ञापन के लिए भाषा का प्रयोग विशेष प्रकार से किया जाता है। हिंदी राष्ट्रभाषा है। इसलिए विज्ञापनों में अधिकता से इसका प्रयोग अनिवार्य है। भाषा का प्रयोग इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि निम्नलिखित तत्व मुखर हो उठें-
1. आकर्षक तत्व (Attention Value)
2. श्रव्यता एवं सुपाठ्यता (Readability \& Listenability)
3. स्मरणीयता (Memorability)
4. विक्रय की शक्ति (Selling Power)
हिंदी के विज्ञापनों में ये सभी गुण अनिवार्य रूप से विद्यमान हैं। चित्र, रंग, शीर्षक तथा नारों के माध्यम से इन्हें अधिक प्रभावशाली बनाने के नित्य नए प्रयास किए जाते हैं। विभिन्न प्रकार की वाक्य संरचना तथा शब्दों के अनूठे प्रयोग से इन्हें सँवारा-निखारा गया है, जिससे इनकी प्रभाव प्रवणता में वृद्धि हुई है। जैसे-

(क) काव्यमय भाषा के प्रयोग से –
(I) साफ़ ताज़ा साँस, मज़बूत स्वस्थ दाँत (कोलगेट टूथ पेस्ट)
(II) आयोडैक्स मलिए, काम पर चलिए (आयोडैक्स)
(III) फैैशन निखर-निखर उठा है (बॉम्बे डाइंग)
(IV) ये लम्हे ये पल-छिन, कितने मीठे हर दिन (कैडबरीज़ चॉकलेट)

(ख) विस्मयादि बोधक चिह्नों के प्रयोग से –
(I) नया! प्रेस्टीज
(II) वाह ! ताज
(III) नई! डबल डिटर्जेट

(ग) शीर्ष पंक्तियों के प्रयोग से –
(I) रंग-रूप में आज भी वही बालपन (पियर्स साबुन)
(II) तकलीफ़ से आराम (पचनोल)
(III) सहयोग के लिए धन्यवाद (जीवन बीमा निगम)

(घ) ‘और’ के प्रयोग से –
(I) और नैसकैफ़े अब नए पैक में
(II) और इसके निर्माता हैं डिपी

(ङ) ‘क्योंकि’, ‘सिर्फ ‘ के प्रयोग से –
(I) क्योंकि यह अधिक ताकत देता है (ग्लूकोज डी)
(II) सिर्फ़ मारगो ही (मारगो साबुन)
(III) क्यों न हो, मैं डाबर का लाल दंत मंजन इस्तेमाल करता हूँ।

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(च) विभिन्न भाषाओं के शब्दों के उचित प्रयोग से –
(I) सुपर रिन की चमकार ज्यादा सफ़ेद
(II) खूबसूरत रंग और दिलकश डिजाइन
(III) रोबिन ब्लू प्राकृतिक एवं मनोरम शुभ्रता के लिए
(IV) मज़ेदार भोजन का राज

(छ) ग्राहक को सुझाव देने के लिए –
(I) लक्स शुद्ध और सौम्य है
(II) क्लियरसिल मुहाँसों को खोलती है, उन्हें साफ़ करती है, दूर करती है
(III) हार्लिक्स ज्यादा शक्ति देता है

(ज) ‘लीजिए’, ‘माँगिए’, ‘दीजिए’ के प्रयोग से
(I) सेरिडोन लीजिए
(II) सदा वुडबर्ड ग्राइपवाटर ही माँगिए
(III) छह देना, सारे घर के बदल डालूँगा (सिलवेनिया लक्ष्मण बल्ब)

अब व्यापारिक विज्ञापनों के कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं –

विज्ञापन 1. सर्व शिक्षा अभियान के तहत ‘वयस्क साक्षरता मिशन 2020’

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विज्ञापन 2. सिलाई मशीन का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 3. नहाने के साबुन का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 4. ‘रोशनी’ मोमबत्ती बनाने वाली कंपनी के लिए

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विज्ञापन 5. रुचि हिमालयन चाय का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 6. अर्पण शुद्ध घी का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 7. सपना नारियल तेल का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 8. सारिका साड़ियों का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 9. बच्चों की कॉमिक्स का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 10. रेफ्रिज़रेटर का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 11. आग बुझाने के यंत्र का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 12. पर्यावरण विभाग की ओर से जल-संरक्षण का आग्रह करते हुए एक विज्ञापन लगभग शब्दों में तैयार कीजिए।

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विज्ञापन 13. किसी ठंडे पेय पदार्थ का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 14. साइकिल का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 15. कमीज़ का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 16. सीमेंट का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 17. वाशिंग मशीन का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 18. प्रेशर कुकर व प्रेशर पैन का विज्ञापन लिखिए।

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विज्ञापन 19. टूथ ब्रश का विज्ञापन लिखिए।

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(ख) डिस्प्ले विज्ञापन :

प्रश्न 1.
प्रशांत इलेक्ट्रॉॅनिक्स ने बाज़ार में रंगीन टेलीविज़न का एक नया मॉडल पेश किया है। उसका एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
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प्रश्न 2.
महावीर स्टेडियम, हिसार में लगने वाले एक व्यापारिक मेले के प्रचारार्थ एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
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प्रश्न 3.
नगर में आयोजित होने वाली भारत की सांस्कृतिक एकता प्रदर्शनी को देखने के लिए लोगों को आमंत्रित करते हुए 25-50 शब्दों में एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
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प्रश्न 4.
देश की जनता को ‘मतदान अधिकार’ के प्रति जागरूक करने के लिए मुख्य निर्वाचन आयुक्त कार्यालय की ओर से लगभग 25-50 शब्दों में एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
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प्रश्न 5.
रचना कॉपी और रजिस्टर की मशहूरी के लिए लगभग शब्दों में विज्ञापन तैयार कीजिए।
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प्रश्न 6.
बच्चों की पत्रिका मिशिका के होली विशेषांक के प्रचारार्थ एक डिस्प्ले विज्ञापन तैयार कीजिए।
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प्रश्न 7.
कल्पना साड़ियों की वार्षिक सेल के प्रचार के लिए एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
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प्रश्न 8.
भुवन की आवासीय योजना के अंतर्गत बने-बनाए मकानों के विक्रय के लिए एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
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प्रश्न 9.
आयकर विभाग की ओर से समय पर आयकर जमा कराने हेतु एक विज्ञापन का प्रारूप तैयार कीजिए।
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प्रश्न 10.
आपके क्षेत्र में विराट हास्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। उसके विषय में जानकारी देने के लिए लगभग 25-30 शब्दों में विज्ञापन तैयार कीजिए।
JAC Class 10 Hindi रचना विज्ञापन लेखन 29

प्रश्न 11.
आपके नगर में मिठाई की एक दुकान खुली है। इसके प्रचार के लिए एक विज्ञापन लगभग 25-50 शब्दों में तैयार कीजिए।
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JAC Class 10 Hindi मौखिक अभिव्यक्ति सुनना

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions मौखिक अभिव्यक्ति सुनना Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10 Hindi मौखिक अभिव्यक्ति सुनना

अर्थग्रहण करना :

हम सब मानव सामाजिक प्राणी हैं। हम बोल- सुनकर अपने भावों का आदान-प्रदान करते हैं। लिखकर तथा संकेतों से भी हम स्वयं को अभिव्यक्त कर सकते हैं पर सुनने-बोलने से हमारी अभिव्यक्ति अधिक सहजता और सरलता से होती है। हमारे दैनिक जीवन में बोलने-सुनने से हो आपसी व्यवहार अधिक होता है।

सुनना एक कला है। हम सब इसके महत्त्व को समझते हैं। ईश्वर ने इसीलिए तो हमें दो कान दिए हैं। एक छोटा बच्चा बोलना बाद में सीखता है पर सुनना और समझना पहले आरंभ करता है। वास्तव में हम सुनने से ही तो बोलना सीखते हैं। तभी तो जन्म से बहरे लोग प्रायः गूँगे भी होते हैं। सुनना किसी के द्वारा बोले गए शब्दों का कानों में जाना मात्र नहीं है। उसका वास्तविक अर्थ उनका तात्पर्य समझना है; उसे मन-मस्तिष्क में बिठाना है और उसके अनुसार जीवन में अपनी प्रतिक्रियाओं को प्रकट करना है। किसी की बात को सुनकर उसे बाहर निकाल देना किसी भी प्रकार से सार्थक नहीं हो सकता। यदि किसी के द्वारा कही गई किसी बात का अनुपालन हमें बाद में करना हो तो उसे लिखकर अपने पास रख लेना अधिक अच्छा रहता है। ऐसा करने से प्रत्येक बात हमारे ध्यान में बनी रहती है।

सुनने से संबंधित प्रश्नों का स्वरूप :

आपके अध्यापक/अध्यापिका आपको कोई गद्य या पद्य सुनाएँगे और उस पर आधारित प्रश्न आप से पूछेंगे। आपको उन प्रश्नों के उत्तर सुने गए गद्य या पद्य के आधार पर देने होंगे। जिन प्रश्नों को आप से पूछा जाएगा उससे संबंधित प्रश्न पत्र आपको कुछ सुनाने से पहले दिया जाएगा। ये प्रश्न व्याकरण, रिक्त स्थान पूर्ति, शब्द – अर्थ, नाम, निष्कर्ष आदि से संबंधित हो सकते हैं। अध्यापक/अध्यापिका आपको गद्य या पद्य केवल एक ही बार सुनाएँगे। आपको स्मरण के आधार पर उत्तर देने होंगे। प्रत्येक प्रश्न-पत्र में दस प्रश्न होंगे।

JAC Class 10 Hindi मौखिक अभिव्यक्ति सुनना

उदाहरण –

1. आपको परीक्षक एक अनुच्छेद सुनाएँगे। उसे ध्यानपूर्वक सुनिए और अनुच्छेद पर आधारित दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए। अनुच्छेद दोबारा नहीं पढ़ा जाएगा।
दक्षिण भारत में कन्याकुमारी के आसपास स्थित ऐतिहासिक स्थल भी दर्शनीय हैं। यहाँ से कुछ दूर एक गोलाकार दुर्ग है, जिसे सर्कुलर फोर्ट कहा जाता है। यह सागर के किनारे बना हुआ है। यहाँ समुद्र की लहरें शांत गति से बहती हैं। कुछ किलोमीटर पर कानुमलायन मंदिर, नागराज मंदिर, पद्मनाभपुरम मंदिर भी देखने योग्य हैं।
कन्याकुमारी के छोटे से खोकेनुमा बाज़ारों में ताड़पत्तों और नारियल से निर्मित हस्तशिल्प की वस्तुएँ तथा सागर से प्राप्त शंख और सीप की मालाएँ और दूसरी वस्तुएँ पर्यटकों को बहुत आकर्षित करती हैं। यहाँ तीनों समुद्रों से अलग-अलग रंग की रेत निकलती है। यह रेत इन बाज़ारों में प्लास्टिक की छोटी-छोटी थैलियों में बिक्री के लिए मिल जाती है, जिसे पर्यटक खरीदना नहीं भूलते। कन्याकुमारी में ठहरने की अच्छी व्यवस्था है। विवेकानंद शिला स्मारक समिति ने विवेकानंदपुरम आश्रम का निर्माण किया है, जहाँ यात्रियों के रहने और खाने-पीने की व्यवस्था है। यहीं एक ऐसा स्थान है जहाँ उत्तर भारत के यात्रियों को अपने घर जैसा खाना प्राप्त हो जाता है।
कन्याकुमारी यद्यपि तमिलनाडु प्रदेश में है लेकिन यहाँ पहुँचने और लौटने का रास्ता केरल प्रदेश की राजधानी त्रिवेंद्रम से है। केरल को भारत का हरियाला जादू कहा जाता है क्योंकि इस प्रदेश में चारों ओर हरियाली ही हरियाली नज़र आती है। इसलिए कन्याकुमारी से यदि टैक्सी या निजी कार अथवा बस द्वारा त्रिवेंद्रम लौटा जाए तो यात्रा का पूरा मार्ग हरियाली की सुखद छाया को ओढ़कर चलता है। इसी रास्ते पर हाथियों की सुरक्षित

वनस्थली और अरब सागर तट पर स्थित कोवलम बीच भी दर्शनीय है। कोवलम सागर तट पर सागर – स्नान की सुखद अनुभूति प्राप्त करने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक आकर स्नान करते हैं और नारियल का मीठा पेय पीकर परम तुष्टि भाव से यात्रा की परिपूर्णता का आनंद लाभ करते हैं।

प्रश्न :
1. इसमें किसकी सुंदरता का वर्णन किया गया है ?
2. गोलाकार दुर्ग का नाम क्या है ?
3. बाज़ारों में बिकने वाली हस्तशिल्प की वस्तुएँ बनी होती हैं-
(क) रेशम की (ख) ताड़ – पत्तों की (ग) पत्थर की (घ) चीनी – मिट्टी की
4. यहाँ कितने समुद्रों की रंग-बिरंगी रेत मिलती है ?
5. विवेकानंद शिक्षा स्मारक समिति ने किस आश्रम का निर्माण किया है ?
6. आश्रम में किन यात्रियों को घर जैसा खाना प्राप्त होता है ?
7. कन्याकुमारी किस राज्य में है ?
8. कन्याकुमारी पहुँचने और लौटने का रास्ता किस राज्य से है ?
9. अरब सागर का कौन-सा तट दर्शनीय है ?
10. यात्री यहाँ क्या पीना पसंद करते हैं ?
उत्तर :
1. कन्याकुमारी की सुंदरता का वर्णन।
2. सर्कुलर फोर्ट।
3. (ख) ताड़पत्तों की।
4. तीन समुद्रों की रंग-बिरंगी रेत।
विवेकानंदपुरम आश्रम का निर्माण।
6. उत्तर भारत के यात्रियों को।
7. तमिलनाडु प्रदेश में।
8. केरल राज्य से।
9. कोवलम बीच
10. नारियल का मीठा पेय।

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2. अनुच्छेद को ध्यानपूर्वक सुनकर उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर अनुच्छेद में खोजकर लिखिए।
सर्कस अब घाटे का सौदा हो चुका है। अब जहाँ कहीं भी सर्कस लगाया जाता है सर्कस मालिक को चार गुना दाम पर ज़मीन, बिजली तथा अन्य सुविधाएँ प्राप्त हो पाती हैं। इसके अतिरिक्त पुलिस और प्रशासन का रवैया भी प्रायः असहयोगात्मक ही रहता है। ‘इंडियन सर्कस फेडरेशन’ का मानना है कि सर्कस के लिए सबसे बड़ी समस्या उसे लगाने वाले मैदान की है। एक दशक पहले तक शहरों में खाली भूखंड आसानी से मिल जाते थे।

अब वहाँ व्यावसायिक कॉम्पलेक्स बन गए हैं। अधिकांश शहरों में आबादी से काफ़ी दूर ही जगह मिल पाती है। इससे काफ़ी कम दर्शक ‘शो’ देखने आते हैं। कई सर्कस मालिक अब सर्कस को समाप्त होती कला मानने लगे हैं, जिसे सरकार और समाज हर कोई मरते देखकर भी खामोश है। पिछले कुछ वर्षों में जैमिनी, भारत, ओरिएंटल और प्रभात सर्कस को बंद होना पड़ा। कुछ वर्ष पूर्व सरकार ने केरल में ‘जमुना स्टिर सेंटर’ की स्थापना की है। ताकि इस व्यवसाय में आने वाले बच्चों के प्रशिक्षण की व्यवस्था हो सके। सर्कस उस्ताद चुन्नी बाबू कहते हैं कि सर्कस संकट के दौर से गुजर रहा है। अगर सरकार ने इसकी मदद नहीं की तो जिन हज़ारों लोगों को इसके माध्यम से दो जून की रोटी मिल रही है, वह भी बंद हो जाएगी।

सर्कस के कलाकारों का ‘शो’ के दौरान अधिकांश खाली सीटें देखकर मनोबल टूट गया है। जब कभी सीटें भरी होती हैं, खेल दिखाने में मज़ा आ जाता है। सर्कस का एक प्रमुख हिस्सा है- जोकर। आमतौर पर बिना किसी काम का लगने वाला कद-काठी में छोटा-सा इनसान जो किसी काम का नहीं लगता सर्कस की ‘रिंग’ में अपनी अजीब हरकतों से किसी को भी हँसा देता है। तीन घंटे के ‘शो’ में दर्शकों को हँसाते रहने का आकर्षण ही कलाकारों को बाँधे रखता है।

प्रश्न :
1. सर्कस अब आर्थिक दृष्टि से कैसा सौदा है ?
2. सर्कस मालिकों को सुविधाएँ अब किस दाम पर प्राप्त हो पाती हैं ?
3. सर्कस के प्रति पुलिस और प्रशासन का रवैया रहता है –
(क) सहयोगात्मक
(ख) असहयोगात्मक
(ग) उदासीन
(घ) नृशंस
4. खाली भूखंडों पर अब क्या बन गए हैं ?
5. सर्कस को समाप्त होता देखकर कौन-कौन खामोश हैं ?
6. पिछले वर्षों में कौन-कौन सी सर्कसें बंद हुई हैं ?
7. बच्चों को सर्कस हेतु प्रशिक्षण की व्यवस्था किसने की है ?
8. किसने कहा है कि सर्कस संकट के दौर से गुजर रहा है ?
9. सर्कस के कलाकारों का मनोबल क्यों टूट रहा है ?
10. रिंग में अपनी हरकतों से कौन हँसाता है ?
उत्तर :
1. घाटे का सौदा।
2. चार गुना दाम पर
3. (ख) असहयोगात्मक।
4. व्यावसायिक कॉम्पलेक्स।
5. जनता और सरकार।
6. जैमिनी, भारत, ओरिएंटल और प्रभात सर्कसें
7. केरल में ‘जमुना स्टिर सेंटर’ ने।
8. उस्ताद चुन्नी बाबू ने।
9. अधिकांश शो में खाली सीटों को देखकर।
10. अपनी हरकतों से जोकर हँसाता है।

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भाषण –

3. भाषण को ध्यानपूर्वक सुनकर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर भाषण के आधार पर दीजिए –
युगों से गुरु का स्थान भारतीय समाज में अत्यंत ऊँचा माना जाता रहा है। भक्ति का साधन कृपा है और गुरुकृपा के बिना उसकी प्राप्ति नहीं होती। नारायण तीर्थ ने प्राचीन आचार्यों के आधार पर भक्ति के जो तेईस अंग गिनाए हैं उनमें गुरु को भक्ति का प्रथम अंग माना गया है। रामचरित मानस में गुरु शंकर रूपी हैं; हरि का नर रूप है; यही नहीं भगवान राम से भी बढ़कर है। विधाता के रुष्ट हो जाने पर गुरु रक्षा कर लेता है किंतु गुरु के रुष्ट हो जाने पर कोई ऐसा साधन नहीं बचता जो रक्षा का आधार बन सकता हो। गुरु की इस गरिमा का कारण यह है कि वही जीव के मोह-अंधकार को दूर करता है और उसे ज्ञान प्रदान करता है। गुरु की शरण में जाकर उससे शिक्षा प्राप्त करना ही ज्ञान की प्राप्ति करना है –

श्री गुरु पद नख मनि गन जोती।
सुमिरत दिव्य दृष्टि हिय होती ॥

तुलसी के राम ने शबरी को उपदेश देते समय गुरु सेवा को राम कृपा का स्वतंत्र और अमोघ साधन माना है।
प्राचीन साहित्य में गुरु का स्वरूप और उसके कार्यक्षेत्र समय, स्थान और परिस्थिति के अनुसार बदलते रहे हैं पर उसका विवेक, ज्ञान, दूरदर्शिता और निष्ठा बदलती हुई दिखाई नहीं देती। देवताओं के गुरु बृहस्पति यदि देवताओं के हित और कल्याण के विषय में कार्य करते रहे तो दानवों के गुरु शुक्राचार्य दानवों की मानसिकता के आधार पर सोचते – विचारते रहे। वशिष्ठ मुनि और विश्वामित्र ने यदि श्री राम को शिक्षित किया तो संदीपन गुरु ने श्रीकृष्ण को ज्ञान ही नहीं दिया अपितु सहज-सरल जीवन जीने का भी पाठ पढ़ाया।

द्रोणाचार्य ने कौरवों – पांडवों को अस्त्र-शस्त्र चलाने के अभ्यास के साथ-साथ धर्म और नीति का भी ज्ञान दिया था। चाणक्य ने चंद्रगुप्त को शिक्षित कर देश के इतिहास को ही बदल दिया था। यदि सिकंदर के गुरु अरस्तु ने उसे सारे विश्व को जीतने के लिए उकसाया था तो चाणक्य ने अपने शिष्य को धर्म और देश की रक्षा करना सिखाकर उसके कमजोर इरादों को मिट्टी में मिला दिया था। गुरु कुम्हार की तरह कार्य करता हुआ शिष्य रूपी कच्ची मिट्टी को मनचाहा आकार प्रदान कर देता है।

यह ठीक है कि हर माँ अपने बच्चे की पहली गुरु होती है। वह उसे जीवन के साथ-साथ अच्छे संस्कार देती है पर किसी भी छोटे बच्चे के मन पर अपने अध्यापक का जैसा गहरा प्रभाव पड़ता है, वैसा किसी अन्य व्यक्ति का नहीं पड़ता। वह उसे अपना आदर्श मानने लगता है और उसी का अनुकरण करने का प्रयत्न करता है। इसलिए यह अति आवश्यक है कि वह वास्तव में ही आदर्श जीवन जीने का प्रयत्न करे।

अध्यापक ही ऐसा केंद्रबिंदु है जहाँ से बौद्धिक परंपराएँ तथा तकनीकी कुशलता एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को संचारित होती हैं। वह सभ्यता के दीप को प्रज्वलित रखने में योगदान प्रदान करता है। वह केवल व्यक्ति का ही मार्गदर्शन नहीं करता बल्कि सारे राष्ट्र के भाग्य का निर्माण करता है। इसलिए उसे समाज के प्रति अपने विशिष्ट कर्तव्य को भली-भाँति पहचानना चाहिए। अध्यापक का जितना महत्त्व है, उतने ही व्यापक उसके व्यापक कार्य हैं। शिक्षण, गठन, निरीक्षण, परीक्षण, मार्गदर्शन, मूल्यांकन और सुधारात्मक कार्यों के साथ-साथ उसे विद्यार्थियों, अभिभावकों और समुदाय से अनुकूल संबंध स्थापित करने पड़ते हैं।

कोई भी अध्यापक अपने छात्र – छात्राओं में लोकप्रिय तभी हो सकता है जब उसमें उचित जीवन शक्ति विद्यमान हो। मार-पीट, डाँट-डपट का विद्यार्थियों के कोमल मन पर सदा ही विपरीत प्रभाव पड़ता है। छात्रों के भावात्मक विकास के लिए अध्यापक का संवेगात्मक संतुलन बहुत आवश्यक होता है। उसमें सामाजिक चातुर्य, उत्तम निर्णय की क्षमता, जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण, परिस्थितियों का सामना करने का साहस और व्यावसायिक निष्ठा निश्चित रूप से होनी चाहिए।

कोई भी व्यक्ति विषय के ज्ञान के अभाव में शिक्षक नहीं हो सकता। प्रायः माना जाता है कि एक अयोग्य चिकित्सक मरीज के शारीरिक हित के लिए खतरनाक है परंतु एक अयोग्य शिक्षक राष्ट्र के लिए इससे भी अधिक घातक है क्योंकि वह न केवल अपने छात्रों के मस्तिष्क को विकृत बनाता तथा हानि पहुँचाता है बल्कि उनके विकास को अवरुद्ध भी करता है तथा उनकी आत्मा को विकृत कर देता है।

अध्यापक में नेतृत्व की क्षमता होना आवश्यक है पर उसे जिस प्रकार के नेतृत्व की क्षमता की आवश्यकता है वह अन्य प्रकार के नेतृत्व से भिन्न है। उसका नेतृत्व उसके चरित्र, शक्ति, प्रभावशीलता तथा दूसरों से प्राप्त आदर पर निर्भर है। यह भी ध्यान रखने योग्य है कि अति दृढ़ व्यक्तित्व नेतृत्व के लिए उसी प्रकार की अयोग्यता है जिस प्रकार का निर्बल व्यक्तित्व व्यर्थ होता है। उसका मानसिक रूप से सुसज्जित होना आवश्यक है।

एक समय था जब अध्यापक राज्याश्रम में पलते थे और गुरुकुलों में विद्यार्थियों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान करते थे। इस भौतिकतावादी युग में शिक्षा का व्यावसायीकरण हो चुका है पर फिर भी अध्यापक को किसी भी अवस्था में शिक्षा के प्रति अपनी निष्ठा को नहीं त्यागना चाहिए और उसे जीवन-मूल्यों को बनाकर रखना चाहिए। व्यावसायीकरण के कारण अध्यापकों छात्रों के संबंधों में परिवर्तन आया है जो समाज के समुचित विकास के लिए अच्छा नहीं है। अध्यापक को विद्यार्थियों की भावनाओं को मानवीय रूप प्रदान करने में सक्षम होना चाहिए।

यदि वह स्वयं जलता हुआ दीप नहीं है तो वह दूसरों में ज्ञान के प्रकाश को प्रसारित करने में सदैव असमर्थ रहेगा। समाज के विकास के लिए आदर्श अध्यापक अति आवश्यक है। उनके अभाव में सभ्यता और संस्कृति की कल्पना करना भी अत्यंत कठिन है।

प्रश्न :
1. भारतीय समाज में गुरु का स्थान कब से अति ऊँचा माना जाता रहा है ?
2. नारायण तीर्थ ने भक्ति के तेईस अंगों में गुरु को भक्ति का कौन-सा अंग माना है ?
(क) पहला
(ग) चौदहवाँ
(ख) दसवाँ
(घ) बीसवाँ
3. तुलसी ने राम कृपा का स्वतंत्र और अमोघ साधन किसे माना है ?
4. देवताओं के गुरु कौन थे ?
5. सिकंदर को विश्व-विजय के लिए किसने उकसाया था ?
6. सारे राष्ट्र के भाग्य का निर्माण कौन करता है ?
7. छात्रों के विकास के लिए अध्यापकों में किसकी अति आवश्यकता होती है ?
8. अध्यापक का नेतृत्व किन विशेषताओं पर निर्भर करता है ?
9. गुरुकुलों में विद्यार्थी शिक्षा प्राप्ति के लिए क्या दिया करते थे ?
10. भौतिकतावादी युग में शिक्षा का क्या हो गया है ?
उत्तर :
1. युगों से।
2. (क) पहला।
3. गुरु की शरण में जाकर उससे शिक्षा प्राप्त करने को।
4. बृहस्पति।
5. सिकंदर के गुरु अरस्तु ने।
6. अध्यापक।
7. संवेगात्मक संतुलन की।
8. अध्यापक के चरित्र, शक्ति और प्रभावशीलता तथा दूसरों से प्राप्त आदर पर।
9. विद्यार्थी निःशुल्क शिक्षा प्राप्त किया करते थे।
10. व्यावसायीकरण

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वार्तालाप / संवाद –

4. नीचे दिए गए वार्तालाप को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(वार्तालाप) :
राम्या – मुझे जल्दी से मम्मी को बताना है कि मेरा परीक्षा परिणाम आज शाम तक आ जाएगा।
शर्मिष्ठा – तो बता दे। देर क्यों कर रही है ?
राम्या – मेरा मोबाइल तो घर पर ही रह गया है। क्या करूँ ?
शर्मिष्ठा – करना क्या है ? मेरा मोबाइल ले और मम्मी से बात कर ले।
राम्या – हाँ, यह तो है। कितना सुख हो गया है मोबाइल का अब।
शर्मिष्ठा – अरे, इसने सारी दुनिया को गाँव बनाकर रख दिया है।
राम्या – क्या मतलब ?
शर्मिष्ठा – मतलब यह है कि अब पल भर में संसार के किसी भी कोने में किसी से भी बात कर लो। लगता है कि हर कोई बिलकुल पास है। ऐसा तो गाँवों में ही होता था।
राम्या – मोबाइल लोगों के पास पहुँचा भी बहुत तेज़ी से है
शर्मिष्ठा – कभी सोचा भी नहीं था कि मोबाइल इतनी तेज़ी से लोगों की जेब में अपना स्थान बनाएगा।
राम्या – बहुत लाभ हैं इसके
शर्मिष्ठा – लाभ तो हैं तभी तो हर अमीर-गरीब के पास दिखाई देने लगा है यह।
राम्या – अब तो यह मज़दूरों और रिक्शा चलाने वालों के पास भी दिखाई देता है
शर्मिष्ठा – उनके लिए यह और भी ज़रूरी है। वे छोटे शहरों और गाँवों से काम करने बड़े शहरों में आते हैं। मोबाइल से वे अपने घर से सदा जुड़े रहते हैं।
राम्या – नुकसान भी तो हैं इसके
शर्मिष्ठा – वे क्या हैं? मेरे विचार से तो मोबाइल का कोई नुकसान नहीं है।
राम्या – इससे अपराध बढ़े हैं। बच्चे भी क्लास में इसे लेकर बैठे रहते हैं। उनका ध्यान पढ़ाई की ओर कम और मोबाइल पर अधिक रहता है। शर्मिष्ठा – हाँ, आतंकवादी तो इससे विस्फोट तक करने लगे हैं।
राम्या – ओह ! फिर तो बड़ा खतरनाक सिद्ध हो सकता है।
शर्मिष्ठा – जेलों में भी अपराधी छिप-छिप कर इनका प्रयोग करते हुए पकड़े जा चुके हैं।
राम्या – अरे, हर अच्छाई में बुराई तो सदा ही छिपी रहती है। वह इसमें भी है।
शर्मिष्ठा – वह तो है। अच्छा यह ले मोबाइल और कर ले बात

प्रश्न :
1. वार्तालाप किस-किस के बीच हुआ ?
2. किसने किससे मोबाइल पर बात करनी थी ?
3. मोबाइल ने दुनिया को बना दिया है-
(क) नगर
(ख) कस्बा
(ग) गाँव
(घ) महानगर
4. मोबाइल की पहुँच किस-किस के पास हो चुकी है ?
5. अपराधों की वृद्धि में किसने सहायता दी है ?
6. क्लास में बच्चे मोबाइल से क्या करते रहते हैं ?
7. आतंकवादी मोबाइल का प्रयोग किस कार्य के लिए करने लगे हैं ?
8. अपराधी छिप-छिप कर कहाँ से मोबाइल का प्रयोग करने लगे हैं ?
9. सदा अच्छाई में क्या छिपी रहती है ?
10. किसने मम्मी से बात करने के लिए अपना मोबाइल दिया ?
उत्तर :
1. राम्या और शर्मिष्ठा के बीच।
2. राम्या को अपनी मम्मी से बात करनी थी।
3. (ग) गाँव।
4. हर गरीब-अमीर के पास।
5. मोबाइल के प्रयोग ने।
6. एस०एम०एस० करते रहते हैं।
7. विस्फोट करने में।
8. जेलों से।
9. बुराई।
10. शर्मिष्ठा ने।

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कविता –

5. कविता को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

JAC Class 10 Hindi मौखिक अभिव्यक्ति सुनना 1

प्रश्न :
1. कवि ने पगली को कहाँ देखा था ?
2. नाक को ढके बिना कहाँ से नहीं गुजरा जा सकता था ?
(क) गंदी नाली के पास से
(ग) गंदे कपड़ों के पास से
(ख) कूड़े के ढेर के पास से
(घ) सड़े हुए फलों के पास से
3. कवि ने किस महीने में पगली को देखा था ?
4. पगली का शरीर किससे ढका हुआ था ?
5. पगली क्यों चिल्ला रही थी ?
6. पगली की वाणी थी –
(क) कोमल
(ख) कटु-कर्कश
(ग) सहज
(घ) शांत
7. पगली का रूप आकार क्या था ?
8. ‘दैव की मारी’ से तात्पर्य है –
(क) किस्मत की मारी
(ख) भूख की मारी
(ग) रिश्तेदारों की सताई हुई
(घ) गरीबी की मारी
9. कवि ने पगली के पागलपन का कारण किसे माना है ?
10. कवि का स्वर कैसा है ?
उत्तर :
1. कॉलेज के निकट, कच्ची सड़क के पास।
2. (क) गंदी नाली के पास से।
3. पौष के महीने में।
4. गंदे काले चिथड़ों से।
5. पगली पागलपन के कारण चिल्ला रही थी। उसके अवचेतन मन में पागल हो जाने के दुखदायी कारण छिपे हुए थे।
6. (ख) कटु-कर्कश।
7. वह कुबड़ी काली थी।
8. (क) किस्मत की मारी।
9. कवि ने किसी एक को पगली के पागलपन का कारण नहीं बताया। उसने अनेक संभावनाएँ प्रकट की हैं।
10. मानवतावादी।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 15 अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 15 अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 15 अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले

JAC Class 10 Hindi अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले Textbook Questions and Answers

माखक –

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
बड़े-बड़े बिल्डर समुद्र को पीछे क्यों धकेल रहे थे?
उत्तर :
बड़े-बड़े बिल्डर समुद्र को पीछे धकेलकर उस ज़मीन पर बड़ी-बड़ी इमारतें और मकान बनाना चाहते थे। इसी कारण समुद्र धीरे-धीरे सिकुड़ते जा रहे थे।

प्रश्न 2.
लेखक का घर किस शहर में था?
उत्तर :
लेखक का घर पहले ग्वालियर में था। अब वह वर्सेवा (मुंबई) में रहता है।

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प्रश्न 3.
जीवन कैसे घरों में सिमटने लगा है?
उत्तर :
जीवन छोटे-छोटे डिब्बे जैसे घरों में सिमटने लगा है।

प्रश्न 4.
कबूतर परेशानी में इधर-उधर क्यों फड़फड़ा रहे थे?
उत्तर :
कबूतर का एक अंडा बिल्ली ने तोड़ दिया था और दूसरा लेखक की माँ के हाथ से गिरकर टूट गया था। दोनों अंडे टूट जाने के कारण ही कबूतर परेशानी में इधर-उधर फड़फड़ा रहे थे।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
अरब में लशकर को नूह के नाम से क्यों याद करते हैं?
उत्तर :
नूह एक पैग़ंबर था, जिसका असली नाम लशकर था। सारी उम्र रोते रहने के कारण ही उसे नूह के नाम से याद किया जाता है। उन्होंने एक बार एक ज़ख़्म कुत्ते को दुत्कार दिया। कुत्ते ने उन्हें कहा कि वह ईश्वर की मर्ज़ी से कुत्ता बना है और वही सबका मालिक है। इसी बात को याद करके नूह सारा जीवन रोते रहे और अपनी गलती पर पछताते रहे।

प्रश्न 2.
लेखक की माँ किस समय पेड़ों के पत्ते तोड़ने से मना करती थीं और क्यों ?
उत्तर :
लेखक की माँ सूरज ढलने के बाद पेड़ों के पत्तों को तोड़ने से मना करती थीं। उनका विश्वास था कि संध्या के समय फूलों को तोड़ने से फूल-पत्तियाँ बदुदुआ देते हैं और पेड़ रोते हैं। वे पेड़ों की पत्तियों और फूलों में भी जीवन का होना मानती थीं।

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प्रश्न 3.
प्रकृति में आए असंतुलन का क्या परिणाम हुआ ?
उत्तर :
प्रकृति में आए असंतुलन के भयंकर परिणाम सामने आए हैं। गर्मी में अधिक गर्मी पड़ना, असमय वर्षा होना, भूकंप, बाढ़ तथा तूफान आना, नए-नए रोगों का बढ़ना आदि प्रकृति में आए असंतुलन के ही परिणाम हैं।

प्रश्न 4.
लेखक की माँ ने पूरे दिन का रोज़ा क्यों रखा ?
उत्तर :
लेखक की माँ ने कबूतर के अंडे को बिल्ली से बचाकर उसे दूसरे स्थान पर रखने की कोशिश की। इस बीच वह उनके हाथ से गिरकर टूट गया। इस पाप के पश्चाताप के लिए ही लेखक की माँ ने पूरे दिन का रोज़ा रखा।

प्रश्न 5.
लेखक ने ग्वालियर से बंबई तक किन बदलावों को महसूस किया ? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लेखक जब ग्वालियर में रहता था, तो वहाँ लोगों के मन में सभी प्राणियों के लिए दया के भाव थे; पशु-पक्षियों के प्रति भी करुणा दिखाई जाती थी। लेकिन मुंबई में सबकुछ बदला हुआ था। मुंबई में जंगलों और समुद्र को नष्ट करके बस्तियाँ बसाई जा रही थीं। इन जंगलों और समुद्र में रहने वाले जीव-जंतुओं के विषय में किसी को कोई चिंता नहीं थी।

प्रश्न 6.
‘डेरा डालने’ से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘डेरा डालने’ से तात्पर्य अल्पकालिक निवास है। जब कोई अपनी मंज़िल तक पहुँचने से पहले किसी जगह पर कुछ देर के लिए रुकता है, वो उसे ‘डेरा डालना’ कहते हैं; जैसे-‘आज रात यहीं डेरा डाल लो, सुबह फिर यात्रा शुरू करेंगे’।

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प्रश्न 7.
शेख अयाज्त के पिता अपने बाजू पर काला च्योंटा रेंगता देख भोजन छोड़कर क्यों उठ खड़े हुए ?
उत्तर :
शेख अयाज़ के पिता भोजन करने से पूर्व कुएँ पर नहाने गए थे। जब वे भोजन करने बैठे, तो उन्होंने देखा कि उनकी बाजू पर एक काला च्योंटा रेंग रहा है। वह नहाते समय उनके बाजू पर चढ़ गया था। वे भोजन छोड़कर उस च्योंटे को उसके घर कुएँ में वापस छोड़ने के लिए ही उठ खड़े हुए थे।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा ?
अथवा
‘अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि बढ़ती हुई आबादी का पशुपक्षियों और मनुष्यों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ रहा है? इसका समाधान क्या हो सकता है ? उत्तर लगभग 100 शब्दों में दीजिए।
उत्तर :
बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर काफ़ी बुरा प्रभाव पड़ा है। इसके कारण मनुष्य ने समुद्र को पीछे सरकाकर उसकी ज़मीन पर अपने रहने की जगह बना ली है। पेड़ों की निरंतर कटाई की जा रही है तथा लगातार प्रदूषण के फैलने से पशु-पक्षी बस्तियों से दूर हो गए हैं। पर्यावरण का पूरा संतुलन बिगड़ गया है। पर्यावरण के इसी असंतुलन के कारण अब अधिक गर्मी और असमय वर्षा होने लगी है। समय-समय पर आने वाले भूकंप, बाढ़ और तरह-तरह की बीमारियाँ भी इसी का परिणाम हैं। बढ़ती हुई आबादी से चारों ओर वातावरण प्रदूषित हो गया है, जिससे मनुष्य का साँस लेना भी कठिन होता जा रहा है।

प्रश्न 2.
लेखक की पत्नी को खिड़की में जाली क्यों लगवानी पड़ी?
उत्तर :
लेखक के फ्लैट में कबूतरों ने अपना घोंसला बना लिया था। उन कबूतरों के बच्चे छोटे थे, जिससे वे उन्हें भोजन देने के लिए दिन में आने-जाने लगे। वे कबूतर बार-बार आते-जाते कभी कोई चीज़ गिराकर तोड़ देते थे, तो कभी लेखक की लाइब्रेरी में घुसकर किताबें नीचे गिरा देते थे। लेखक की पत्नी कबूतरों की इस प्रकार की हरकतों से परेशान हो गई। उन कबूतरों को घर में आने-जाने से रोकने के लिए ही उसे खिड़की में जाली लगवानी पड़ी।

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प्रश्न 3.
‘अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ में समुद्र के गुस्से का क्या कारण था? उसे अपना गुस्सा कैसे शांत किया?
उत्तर :
बड़े-बड़े बिल्डर समुद्र को धीरे-धीरे पीछे धकेलकर उसकी जमीन पर इमारतें बनाते जा रहे थे। जब इन बिल्डरों ने समुद्र की सारी जगह पर अधिकार करना चाहा, तो समुद्र को गुस्सा आ गया। उसने अपना गुस्सा निकालने के लिए एक रात तीन समुद्री जहाज़ों को उठाकर तीन अलग-अलग दिशाओं में फेंक दिया। एक जहाज़ वर्ली के समुद्र के किनारे पर आकर गिरा, दूसरा बांद्रा के कार्टर रोड के सामने गिरा और तीसरा गेटवेऑफ़ इंडिया पर गिरकर बुरी तरह टूट गया। इस प्रकार समुद्र ने गुस्से को प्रकट करके बिल्डरों को चेतावनी दी थी।

प्रश्न 4.
‘मट्टी से मट्टी मिले,
खो के सभी निशान,
किसमें कितना कौन है,
कैसे हो पहचान’
इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि संसार में सबकुछ नश्वर है। मनुष्य अपने आप पर व्यर्थ ही अभिमान करता है। अंततः नष्ट होकर वह मिट्टी में ही मिल जाता है। जीवन-भर बड़ी-बड़ी डींगें हाँकने वाले मनुष्य का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। मिट्टी में मिल जाने पर यह पहचानना कठिन हो जाता है कि यह किसकी मिट्टी है। लेखक के कहने का भाव यह है कि मनुष्य को अंत में मिट्टी में ही विलीन हो जाना है। अत: उसे कभी घमंड नहीं करना चाहिए।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न :
1. नेचर की सहनशक्ति की एक सीमा होती है। नेचर के गुस्से का एक नमूना कुछ साल पहले मुंबई में देखने को मिला था।
2. जो जितना बड़ा होता है उसे उतना ही कम गुस्सा आता है।
3. इस बस्ती ने न जाने कितने परिंदों-चरिंदों से उनका घर छीन लिया है। इनमें से कुछ शहर छोड़कर चले गए हैं। जो नहीं जा सके हैं उन्होंने यहाँ-वहाँ डेरा डाल लिया है।
4. शेख अयाज़ के पिता बोले, ‘नहीं, यह बात नहीं है। मैंने एक घरवाले को बेघर कर दिया है। उस बेघर को कुएँ पर उसके घर छोड़ने जा रहा हूँ।’ इन पंक्तियों में छिपी हुई उनकी भावना को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. लेखक का आशय है कि नेचर अर्थात प्रकृति भी एक सीमा तक सबकुछ सहन करती है। जब मनुष्य प्रकृति से अधिक छेड़छाड़ करता है, तो वह उसे अवश्य दंडित करती है। जब प्रकृति को गुस्सा आता है, तो वह तबाही मचा देती है। कुछ साल पहले बंबई में भी प्रकृति के ऐसे ही गुस्से का एक उदाहरण देखने को मिला था। तब समुद्र ने तीन समुद्री जहाजों को मुंबई के तीन अलग अलग स्थानों पर फेंककर अपने गुस्से को व्यक्त किया था। प्रकृति का गुस्सा अत्यंत भयानक होता है। अतः मनुष्य को प्रकृति के साथ अधिक छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए।

2. लेखक का आशय है कि जो जितना अधिक महान होता है, वह उतना ही अधिक विनम्र एवं शांत होता है। वह दूसरों पर कम क्रोधित होता है। जो महान होता है, वह प्रायः शांत रहकर अपना बड़प्पन दिखाता है। किंतु यदि कोई उसे बार-बार परेशान करता है, तो उसका गुस्सा भी भयंकर होता है। तब वह बहुत आक्रामक हो जाता है।

3. लेखक का आशय है कि बढ़ती हुई आबादी के कारण मनुष्य ने अनेक बस्तियों को बसाना शुरू कर दिया है। बस्तियों के बसाने के लिए उसने जंगलों को काट डाला है, जिससे जंगलों में रहने वाले पशु-पक्षी बेघर हो गए हैं। बस्तियों ने इन पशु-पक्षियों से उनका घर छीन लिया है। इनमें से कुछ पशु-पक्षी लोगों के बसने के कारण शहर छोड़कर चले गए हैं। जो नहीं जा पाए, उन्होंने इधर-उधर अपने रहने की जगह बना ली है। ये पशु-पक्षी इन बस्तियों के आस-पास ही मँडराते रहते हैं।

4. इन पंक्तियों में शेख अयाज़ के पिता की प्राणीमात्र के प्रति करुणा की भावना व्यक्त हुई है। शेख अयाज़ के पिता शरीर पर चिपके च्योंटे को वापस उसके घर पहुँचा देते हैं। उन्हें इस बात का दुख था कि उन्होंने एक प्राणी को उसके घर से बेघर कर दिया है। उस बेघर हुए प्राणी के प्रति उनमें करुणा की भावना थी। इसी कारण वे भोजन छोड़कर पहले उस च्योंटे को कुएँ में छोड़ने के लिए चल देते हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 15 अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित वाक्यों में कारक चिहुनों को पहचानकर रेखांकित कीजिए और उनके नाम रिक्त स्थानों में लिखिए; जैसे –
(क) माँ ने भोजन परोसा।
(ख) मैं किसी के लिए मुसीबत नहीं हूँ।
(ग) मैंने एक घर वाले को बेघर कर दिया।
(घ) कबूतर परेशानी में इधर-उधर फड़फड़ा रहे थे।
(ङ) दरिया पर जाओ तो उसे सलाम किया करो।
उत्तर :
(क) माँ ने भोजन परोसा। – कतो कारक
(ख) मैं किसी के लिए मुसीबत नहीं हूँ। – संप्रदान कारक
(ग) मैंने एक घर वाले को बेघर कर दिया। – अपादान कारक
(घ) कबूतर परेशानी में इधर-उधर फड़फड़ा रहे थे। – अधिकरण कारक
(ङ) दरिया पर जाओ तो उसे सलाम किया करो। – अधिकरण कारक

प्रश्न 2.
नीचे दिए गए शब्दों के बहुवचन रूप लिखिए –
चींटी, घोड़ा, आवाज़, बिल, फ़ौज, रोटी, बिंदु, दीवार, टुकड़ा।
उत्तर :
चींटी – चींटियाँ
घोड़ा – घोड़े
आवाज़ – आवाजें
बिल – बिलों
फ़ौज – फ़ौजें
रोटी – रोटियाँ
बिंदु – बिंदुओं
दीवार – दीवारें
टुकड़ा – टुकड़े

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प्रश्न 3.
ध्यान दीजिए नुक्ता लगाने से शब्द के अर्थ में परिवर्तन हो जाता है। पाठ में ‘दफा’ शब्द का प्रयोग हुआ है जिसका अर्थ होता है-बार (गणना संबंधी), कानून संबंधी। यदि इस शब्द में नुक्ता लगा दिया जाए तो शब्द बनेगा ‘दफा’ जिसका अर्थ होता है-दूर करना, हटाना। यहाँ नीचे कुछ नुक्तायुक्त और नुक्तारहित शब्द दिए जा रहे हैं उन्हें ध्यान से देखिए और अर्थगत अंतर को समझिए।
सजा – सज़ा
नाज – नाज़
जरा – ज़रा
तेज – तेज़
निम्नलिखित वाक्यों में उचित शब्द भरकर वाक्य पूरे कीजिए –
(क) आजकल ………. बहुत खराब है। (जमाना/ज़माना)
(ख) पूरे कमरे को ……………….. दो। (सजा/सज़ा)
(ग) ………. चीनी तो देना। (जरा/जरा)
(घ) माँ दही ……… भूल गई। (जमाना/जमाना)
(ङ) दोषी को ……………… दी गई। (सजा/सज़ा)
(च) महात्मा के चेहरे पर …………… था। (तेज/तेज़)
उत्तर :
(क) आजकल ज़माना बहुत खराब है।
(ख) पूरे कमरे को सजा दो।
(ग) ज़रा चीनी तो देना।
(घ) माँ दही जमाना भूल गई।
(ङ) दोषी को सज़ा दी गई।
(च) महात्मा के चेहरे पर तेज था।

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
पशु-पक्षी एवं वन्य संरक्षण केंद्रों में जाकर पशु-पक्षियों की सेवा-सुश्रूषा के संबंध में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

परियोजना- कार्य –

प्रश्न 1.
अपने आसपास प्रतिवर्ष एक पौधा लगाइए और उसकी समुचित देखभाल कर पर्यावरण में आए असंतुलन को रोकने में अपना योगदान दीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

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प्रश्न 2.
किसी ऐसी घटना का वर्णन कीजिए जब अपने मनोरंजन के लिए मानव द्वारा पशु-पक्षियों का उपयोग किया गया हो
उत्तर :
एक दिन मैं सरकस देखने गया। वहाँ मैंने देखा कि मानव द्वारा अनेक पशु-पक्षियों का उपयोग मनोरंजन के लिए हो रहा था। वहाँ शेर और रीछ के कई कारनामे दिखाकर तथा बंदरों को इधर-उधर उछालकर लोगों का मनोरंजन किया जा रहा था। सरकस में हाथी का उपयोग भी मनोरंजन के लिए हो रहा था। इसके अतिरिक्त चिड़ियाघर में भी तोते, मैना, चिड़िया, शेर, बतख, मगरमच्छ, हाथी और अन्य जीव-जंतुओं का उपयोग मनुष्य के मनोरंजन के लिए ही होता है।

JAC Class 10 Hindi अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले Important Questions and Answers

निबंधात्मक प्रश्न –

प्रश्न 1.
बादशाह सुलेमान और चींटियों से जुड़ी घटना का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
ईसा से 1025 वर्ष पूर्व सुलेमान नामक बादशाह हुए। वे मनुष्यों के साथ-साथ पशु-पक्षियों की भाषा भी जानते थे। एक बार वे अपनी सेना के साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में कुछ चींटियों ने उनके घोड़ों की आवाज़ सुनी, तो वे डर गईं। उन्होंने एक-दूसरे से जल्दी-जल्दी बिलों में घुसने की बात कही। बादशाह सुलेमान ने उनकी बात सुन ली। उन्होंने चींटियों से कहा कि उन्हें घबराने की ज़रूरत नहीं है। वे तो सबके साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करने वाले हैं। तब चींटियों ने उनके लिए ईश्वर से प्रार्थना की और बादशाह अपनी मंजिल की ओर चले गए।

प्रश्न 2.
शेख अयाज़ के पिता भोजन छोड़कर क्यों उठ खड़े हुए? इससे उनके व्यक्तित्व की किस विशेषता का पता चलता है ? अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
शेख अयाज़ के पिता कुएँ पर नहाने गए थे। वहीं से काला च्योंटा उनके शरीर पर चढ़ गया था। जब उन्होंने अपनी बाजू पर उसे रेंगते देखा, तो तुरंत उसे वापस उसके घर अर्थात कुएँ में छोड़ने का निर्णय लिया। इसलिए वे अपना भोजन वहीं छोड़कर उस च्योंटे को कुएँ में छोड़ने के लिए चल पड़े। इस घटना से पता चलता है कि उनके हृदय में अन्य जीवों के लिए असीमित दया थी।

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प्रश्न 3.
नूह सारा जीवन क्यों रोते रहे थे ?
उत्तर :
नूह का वास्तविक नाम लशकर था। एक बार उनके सामने से एक जख्मी कुत्ता गुज़रा। उन्होंने उसे दुत्कारते हुए कहा कि गंदे कुत्ते। मेरी नज़रों से दूर हो जाओ। उस जख्मी कुत्ते ने जवाब दिया कि तुम्हें इनसान और मुझे कुत्ता बनाने वाला ईश्वर एक है। अत: तुम्हें मुझसे इतनी घृणा नहीं करनी चाहिए। यह बात सुनकर नूह को अपनी भूल का अहसास हुआ। इसी भूल का पश्चाताप करने के लिए वे सारा जीवन रोते रहे। लेखक ने इस घटना का उल्लेख करते मानवता व दयालुता का उदाहरण देने के लिए किया है।

प्रश्न 4.
मानव ने अपनी बुद्धि के बल पर क्या किया है?
उत्तर :
मानव ने अपनी बुद्धि के बल पर संसार के अन्य प्राणियों के अधिकार छीने हैं। यद्यपि पशु, पक्षी, मानव, पर्वत, समुद्र आदि का इस धरती पर समान अधिकार है, लेकिन मानव ने सारी धरती पर केवल अपना अधिकार जमाना शुरू कर दिया है। पहले जहाँ पूरा संसार एक परिवार के समान रहता था, अब मानव-बुद्धि के कारण वह छोटे-छोटे टुकड़ों में बँट गया है। परिणामस्वरूप मिल-जुलकर रहने की भावना समाप्त होती जा रही है। वर्तमान समय में ऐसे अनेक परिवार देखने को मिल जाएँगे, जो अब संयुक्त न रहकर एकल में परिवर्तित हो गए हैं। यह भी मानव द्वारा बुद्धि प्रयोग का प्रत्यक्ष उदाहरण है।

प्रश्न 5.
बढ़ती हुई जनसंख्या का क्या प्रभाव पड़ा है ?
उत्तर :
जनसंख्या के बढ़ने से मनुष्य ने अपने रहने के लिए पर्वत, जंगल और समुद्र को नष्ट करना शुरू कर दिया है। जंगलों को निरंतर काटा जा रहा है। इससे जंगलों में रहने वाले जीव-जंतुओं पर गहरा प्रभाव पड़ा है। वे सभी बेघर होकर इधर-उधर भटकने लगे हैं। कई जीव-जंतुओं की प्रजातियाँ ही लुप्त होती जा रही हैं। जनसंख्या के बढ़ने से चारों ओर प्रदूषण फैल रहा है, जिससे पक्षी लोगों के निवास स्थानों से दूर होते जा रहे हैं। बढ़ती जनसंख्या के कारण ही प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है। इसके फलस्वरूप जीवों की अनेक प्रजातियाँ दिन-प्रतिदिन विलुप्त हो रही हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
सुलेमान बादशाह एक सहृदयी एवं मानवतावादी मनुष्य थे। कैसे?
उत्तर :
सुलेमान बादशाह केवल मानव जाति के ही राजा नहीं थे, अपितु वे सभी छोटे-बड़े, पशु-पक्षियों के भी हाकिम थे। वे उनकी भाषा जानते थे। वे मानव ही नहीं बल्कि प्राणीमात्र के हितचिंतक थे। उनके हृदय में प्राणीमात्र के प्रति गहन संवेदनाएँ एवं प्रेम था। इस आधार पर कहा जा सकता है कि सुलेमान बादशाह एक सहृदयी एवं मानवतावादी मनुष्य थे।

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प्रश्न 2.
शेख अयाज़ कौन थे? उन्होंने आत्मकथा में किस घटना का चित्रण किया है?
उत्तर :
शेख अयाज़ सिंधी भाषा के महाकवि थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा में अपने पिताजी के जीवन की एक उदारतापूर्ण घटना का चित्रण किया है, जिसमें उनके पिता एक च्योंटे को उसके घर पहुँचाने के लिए खाना छोड़कर उठ गए थे।

प्रश्न 3.
नूह का परिचय दीजिए।
उत्तर :
बाइबिल और दूसरे पावन-ग्रंथों में नूह नामक एक पैगंबर का वर्णन मिलता है। उनका असली नाम लशकर था, लेकिन अरब ने उनको नूह के जकब से याद किया है।

प्रश्न 4.
नूह ने कुत्ते को क्यों दुत्कारा? कुत्ते ने उनको क्या जवाब दिया?
उत्तर :
नूह ने कुत्ते को इसलिए दुत्कारा था, क्योंकि वह घायल और जख्मी अवस्था में उनके सामने आ गया था। कुत्ते ने उनकी दुत्कार सुनकर जवाब दिया कि न मैं अपनी मर्जी से कुत्ता हूँ, न तुम अपनी पसंद से इनसान हो। बनाने वाला सबका तो वही एक है।

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प्रश्न 5.
“सब की पूजा एक-सी, अलग-अलग है रीत।
मस्जिद जाए मौलवी, कोयल गाए गीत॥”
दोहे का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस दोहे का भाव यह है कि इस संसार में जितने भी प्राणी हैं, उन सभी का प्रभु की पूज़ा करने का ढंग एक समान है। बस उनकी पूजा करने के रीति-रिवाज अलग-अलग हैं। जैसे एक मौलवी मस्ज़िद जाकर नमाज़ अदा करता है, तो कोयल गीत गाकर प्रभु की पूजा करती है।

प्रश्न 6.
संपूर्ण संसार एक अनूठा परिवार है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
यह संसार प्रकृति की अनुपम देन है। प्रकृति ने संपूर्ण संसार को एक परिवार की तरह बनाया है। उसने किसी में कोई अंतर नहीं किया। संसार में असंख्य पशु, पक्षी, मानव, पर्वत, समुद्र आदि मौजूद हैं, किंतु इन सबकी संसार में बराबर की हिस्सेदारी है। प्रकृति के सम्मुख प्रत्येक प्राणी बराबर है, जो परस्पर परिवार के समान जुड़े हुए हैं। इस प्रकार संपूर्ण संसार एक अनूठा परिवार है।

प्रश्न 7.
“नदियाँ सींचे खेत को, तोता कुतरे आम।
सूरज ठेकेदार-सा, सबको बाँटे काम॥”
दोहे का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस दोहे का भाव यह है कि इस संसार में असंख्य प्राणी हैं। प्रकृति ने प्रत्येक प्राणी को उसकी क्षमता, शक्ति एवं बुद्धि के अनुसार अलग अलग कार्य बाँटे हैं। इसलिए यहाँ नदियों का कार्य खेतों का सिंचन करना है और तोते का कार्य आम खाना है। सूर्य एक ठेकेदार के समान है, जो सबमें कार्यों का बँटवारा करता है।

प्रश्न 8.
‘अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ के माध्यम से लेखक क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर :
‘अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ लेखक द्वारा लिखा गया एक प्रेरक लेख है। इसमें उन्होंने बताया है कि पहले मनुष्य में सभी जीवों के प्रति करुणा का भाव होता था; वह दूसरों के दुख को अपना समझता था, किंतु आज स्थिति बदल गई है। आज वह एक-दूसरे का विरोधी बन गया है। आज प्रकृति से खिलवाड़ कर रहा है। लेखक मानव को प्रकृति से खिलवाड़ न करने तथा मिलजुल कर रहने का संदेश देना चाह रहा है।

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प्रश्न 9.
पाठ में लेखक ने अपनी माँ के बारे में क्या बताया है ?
उत्तर :
लेखक अपनी माँ के विषय में बताते हुए कहता है कि उसके हृदय में सभी प्राणियों के प्रति दया और करुणा की भावना थी। उसकी माँ प्रकृति के कण-कण में जीवन तथा उसके मंगल की कामना करती थी। उसकी माँ को पत्तियों, फूलों, दरिया, कबूतर, मुर्गे आदि में जीवन का अहसास होता था। वह इन सभी जीवों तथा प्रकृति के रूप को तंग न करने की भी बात करती थी।

प्रश्न 10.
कबूतर के अंडे को बचाते समय लेखक की माँ के साथ क्या घटना घटी?
उत्तर :
एक बार लेखक की माँ कबूतर के अंडे को बिल्ली से बचाने का प्रयास कर रही थी। उसके इसी प्रयास में कबूतर का अंडा उसके हाथ से छिटककर ज़मीन पर गिर गया और टूट गया। इससे माँ का हृदय अत्यंत दुख से भर गया।

प्रश्न 11.
अंडा टूट जाने पर लेखक की माँ ने उसका पश्चाताप कैसे किया?
उत्तर :
कबूतर का अंडा टूट जाने पर लेखक की माँ स्वयं को उसका दोषी मान रही थी। वह इस बात से इतनी दुखी थी कि उसने पूरा दिन कुछ भी नहीं खाया-पीया। उसे यह घटना पाप के समान लग रही थी। अतः अपनी भूल का पश्चाताप करने हेतु वह सारा दिन नमाज़ पढ़ती रही।

प्रश्न 12.
लेखक के घर में तोड़-फोड़ कौन करता था?
उत्तर :
लेखक के घर में तोड़-फोड़ कबूतर करते थे। कभी कबूतर उसके पुस्तकालय में आकर उत्पात मचाते थे, तो कभी घर के अन्दर अन्य चीजों को तोड़-फोड़ देते थे। उनके इस उत्पात से लेखक और उसका परिवार बहुत परेशान था।

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प्रश्न 13.
आपकी माँ आपको किन कार्यों के लिए प्रेरित करता है?
उत्तर :
मेरी माँ बहुत अच्छी हैं। वे मुझे प्रतिदिन अच्छी-अच्छी बातें सिखाती हैं। वे कहती हैं कि हमें कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए। किसी जीव की हत्या नहीं करनी चाहिए। प्रकृति को साफ़ और स्वच्छ रखना चाहिए। पशु-पक्षियों का आदर-सम्मान करना चाहिए। एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए।

प्रश्न 14.
लेखक के मन में हज़रत मुहम्मद के प्रति कैसे भाव थे?
उत्तर :
लेखक जन्म से ही धार्मिक स्वभाव का था। उसके मन में हज़रत मुहम्मद के प्रति अगाध श्रद्धा थी। उसकी माँ अक्सर उसे हज़रत मुहम्मद का हवाला देते हुए उपदेश दिया करती थी। लेखक माँ के उन उपदेशों को मान भी लेता था।

प्रश्न
कुत्ते को नूह गंदा जीव क्यों मानते थे?
उत्तर :
नूह का धर्म इस्लाम था। वे पूर्णतः धार्मिक विचारों वाले व्यक्ति थे। कुत्ते को इस्लाम में गंदा जीव कहा गया है। इस्लाम धर्म में आस्था नूह का पर होने के कारण वे कुत्ते को गंदा जीव मानते थे। इसलिए उन्होंने कुत्ते को दुत्कारा था।

प्रश्न 16.
समुद्र ने अपने गुस्से का परिचय किस प्रकार दिया?
उत्तर :
मानव द्वारा लगातार प्रकृति से खिलवाड़ करने से समुद्र बहुत दुखी था। उसने अपने दुख को रोष के रूप में प्रकट करते हुए तीन जहाजों को आकाश में उछाल दिया। तीनों जहाज़ तीन अलग-अलग दिशाओं में जा गिरे। पहला जहाज वी तट पर जाकर उलट गया; दूसरा जहाज़ कार्टर रोड बाँद्रा में उल्टा जा गिरा; तीसरा गेटवे ऑफ़ इंडिया पर जाकर गिरा, जहाँ वह बुरी तरह से टूट-फूट गया।

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प्रश्न 17.
पाठ के आधार पर प्रतिपादित कीजिए कि दूसरों के दुख से दुखी होने वाले लोग अब कम मिलते हैं।
उत्तर
दसरों के दख से दखी होने वाले लोग पहले बहत मिलते थे क्योंकि उनमें प्राणीमात्र के प्रति करुणा का भाव होता था. वे दसरों के दुख से दुखी हो जाते थे परन्तु आज लोग दूसरे के दुख को देखकर दुखी नहीं होते। मनुष्य ने धरती पर अधिकार करना शुरू कर दिया है, जिससे पशु, पक्षी, पर्वत, सागर आदि के प्रति भी उसके मन में करुणा नहीं है। जंगलों को काट कर बस्तियाँ बन रही हैं। पर्वतों को फाड़ा जा रहा है तथा सागर को पाट कर बिल्डिंगें बन रही हैं। स्वयं लेखक अपने घर में कबूतरों के बने घोंसले से परेशान होकर खिडकी में जाली लगाकर कबूतरों के घर में प्रवेश पर रोक लगा देता है। इससे स्पष्ट है कि अब दूसरों के दुख से दुखी होने वाले लोग कम मिलते हैं।

अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन – निदा फ़ाज़ली का जन्म 12 अक्तूबर सन 1938 को दिल्ली में हुआ, लेकिन इनका सारा बचपन ग्वालियर में बीता। निदा फ़ाज़ली उर्दू की साठोत्तरी पीढ़ी के महत्वपूर्ण कवि माने जाते हैं। इनकी शेरो-शायरी पाठक के दिलो-दिमाग में सरलता से घर कर लेती है। निदा फ़ाज़ली को समय-समय पर अनेक पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया है। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘खोया हुआ सा कुछ’ के लिए उन्हें 1999 के साहित्य अकादमी पुरस्कार के लिए चुना गया था। वर्तमान में निदा फ़ाज़ली फ़िल्म उद्योग से जुड़े हुए हैं।

रचनाएँ – निदा फ़ाज़ली की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –
लफ़्जों का पुल (कविता संग्रह), खोया हुआ सा कुछ (शायरी संग्रह)
दीवारों के बीच (आत्मकथा का पहला भाग), दीवारों के पार (आत्मकथा का दूसरा भाग)
तमाशा मेरे आगे (फ़िल्मी दुनिया पर लिखे संस्मरणों का संग्रह)
निदा फ़ाज़ली को सामान्य बोलचाल की भाषा में प्रभावशाली काव्य रचना में महारत प्राप्त है। इनकी गद्य रचनाओं में भी शेर-ओ-शायरी को कुछ इस ढंग से पिरोया गया है कि वे थोड़े में ही बहुत कुछ कह जाते हैं। उनकी इस विशेषता ने उन्हें काफी लोकप्रिय बनाया है।

भाषा-शैली – निदा फ़ाज़ली की भाषा-शैली अत्यंत समृद्ध है। सरलता, सहजता, सरसता और प्रभावोत्पादकता इनकी भाषा-शैली की विशेषताएँ हैं। इनकी भाषा में रोचकता और प्रवाहमयता को भी सर्वत्र देखा जा सकता है। इन्होंने तत्सम व तद्भव शब्दों के साथ-साथ उर्दू-फ़ारसी के शब्दों का सुंदर प्रयोग किया है। प्रस्तुत पाठ में इन्होंने बीच-बीच में जो दोहों और सूक्तियों का प्रयोग किया है, वह इनकी भाषा को चार चाँद लगा देता है। इनकी भाषा में कहीं-कहीं अंग्रेजी के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है; जैसे – नेचर, बिल्डर, कार्टर रोड, गेटवे ऑफ़ इंडिया, फ्लैट, लाइब्रेरी आदि।

निदा फ़ाज़ली की शैली कहीं वर्णनात्मक है, तो कहीं आत्मकथात्मक है। कहीं-कहीं इन्होंने संवादात्मक शैली का भी प्रयोग किया है। इनकी शैली में अनेक ऐसे गुण हैं, जो उसे श्रेष्ठ सिद्ध करते हैं।

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पाठ का सार :

प्रस्तुत पाठ ‘अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले निदा फ़ाज़ली द्वारा लिखी पुस्तक ‘तमाशा मेरे आगे’ में से लिया गया एक प्रेरक लेख है। इसमें उन्होंने बताया है कि पहले मनुष्य में सभी जीव-जंतुओं के प्रति करुणा का भाव होता था। वह दूसरों के दुख से दुखी होता था, किंतु आज मनुष्य के हृदय में दूसरे के दुख को देखकर भी दुख के भाव नहीं उमड़ते। मनुष्य धरती पर अपना अधिकार करता जा रहा है, जिससे अन्य प्राणी बेघर होते जा रहे हैं। लेखक के अनुसार पहले मनुष्य के हृदय में प्राणीमात्र के प्रति करुणा का भाव होता था।

ईसा से 1025 वर्ष पूर्व हुए बादशाह सुलेमान चींटी तक की रक्षा किया करते थे। वे स्वयं को किसी के लिए मुसीबत न मानकर सभी प्राणियों पर करुणा बरसाते थे। एक अन्य घटना का उल्लेख करते हुए लेखक कहता है कि सिंधी भाषा के महाकवि शेख अयाज की आत्मकथा में भी उनके पिता की सभी प्राणियों के प्रति करुणा की चलता है। वे लिखते हैं कि एक बार उनके पिता कुएँ से नहाकर लौटे, तो भोजन करते समय उन्होंने अपनी बाजू पर काले च्योंटे को रेंगते हुए देखा। वे तुरंत उस च्योंटे को उसके घर अर्थात् कुएँ में छोड़ने चल दिए। उन्हें इस बात का दुख था कि उन्होंने उसे बेघर कर दिया है।

प्राणियों के प्रति करुणा का एक अन्य उदाहरण नूह नाम के एक पैग़ंबर से जुड़ा हुआ है। एक बार उन्होंने एक ज़ख्मी कुत्ते को दुत्कार दिया था। कुत्ते ने जवाब दिया कि कोई अपनी मर्ज़ी से जानवर या इनसान नहीं बनता। सबको बनाने वाला खुदा है। तब नूह को अपनी गलती पर इतना पश्चाताप हुआ कि वे जीवन-भर एक कुत्ते को दुख पहुँचाने के दर्द से रोते रहे। लेखक कहता है कि सभी जीव-जंतुओं से प्रेम करने वाले और सबके प्रति करुणा का भाव रखने वाले ऐसे लोग अब नहीं हैं। अब तो मनुष्य ने सारी धरती पर अपना अधिकार करना शुरू कर दिया है। उसके हृदय में पशुओं, पक्षियों, पर्वतों, समंदरों के प्रति कोई करुणा का भाव नहीं है। मिल-जुलकर रहने की भावना भी उसमें धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है।

लेखक कहता है कि बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण मनुष्य ने समुद्र को पीछे सरकाना शुरू कर दिया है। बस्तियाँ बसाने के लिए उसने पेड़ों को भी काटना शुरू कर दिया है, जिससे प्रकृति में असंतुलन पैदा हो गया है। गर्मी में अधिक गर्मी पड़ना, भूकंप, बाढ़ और नए-नए रोगों का होना प्रकृति के इसी असंतुलन का परिणाम है। लेखक कहता है कि प्रकृति तंग आकर कई बार अपना गुस्सा भी प्रकट करती है। कुछ वर्ष पहले मुंबई में समुद्र ने तीन समुद्री जहाज़ों को अलग-अलग स्थानों पर फेंककर अपने गुस्से को व्यक्त भी किया था।

लेखक कहता है कि उसकी माँ के हृदय में भी सभी प्राणियों के प्रति दया और करुणा की भावना थी। उसकी माँ पेड़ों की पत्तियों, फूलों, दरिया, कबूतर और मुर्गे आदि में भी जीवन को महसूस करती थी और इन्हें तंग करने से मना करती थी। लेखक एक घटना का वर्णन करता है कि एक बार उसकी माँ ने कबूतर के अंडे को बिल्ली से बचाने की कोशिश की। इस कोशिश में वह अंडा उसके हाथ से गिरकर टूट गया। उसकी माँ इस बात से इतनी दुखी हुई कि उसने पूरा दिन कुछ भी नहीं खाया। उसे लगा कि उसके हाथ से पाप हो गया है और वह सारा दिन नमाज़ पढ़कर अपनी भूल पर पश्चाताप करती रही।

लेखक के अनुसार अब काफ़ी कुछ बदल गया है। मनुष्य लगातार बस्तियाँ बसाता जा रहा है, जिससे जंगलों को काटा जा रहा है। जंगलों के काटने से इसमें रहने वाले अनेक जीव-जंतु बेघर हो रहे हैं, लेकिन किसी को इसकी कोई चिंता नहीं है। लेखक कहता है कि उसके फ्लैट में भी कबूतरों ने जब घोंसला बनाया, तो वह परेशान हो उठा था। उसकी पत्नी ने कबूतरों के आने-जाने को रोकने के लिए खिड़की में जाली लगा दी थी। लेखक दुख प्रकट करता है कि अब जीव-जंतुओं के प्रति किसी के हृदय में करुणा का भाव नहीं है। सभी प्राणियों से प्रेम करने वाले और दूसरों के दुख में दुखी होने वाले लोग अब इस संसार में नहीं हैं।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

बादशाह – राजा, हाकिम – राजा, मालिक, दफा – बार, रखवाला – रक्षा करने वाला, जिक्र – वर्णन, बेघर – घर से रहित, लश्कर (लशकर) – सेना, विशाल जनसमुदाय, लकब – पद सूचक नाम, जख्मी – घायल, मर्जी – इच्छा, मुद्दत – काफ़ी समय, प्रतीकात्मक – प्रतीकस्वरूप, एकांत – अकेलापन, दालान – बरामदा, सिमटना – सिकुड़ना, आबादी – जनसंख्या, बेवक्त – बिना समय के, असमय,

जलजले – भूकंप, लानी – ऐसे पर्यटक जो भ्रमण कर नए-नए स्थानों के विषय में जानना चाहते हैं, काबिल – योग्य, अजीज़ – प्रिय प्यारा, मज़ार – दरगाह, कब्र, गुंबद – मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारे आदि के ऊपर बनी गोल छत, अज़ान – नमाज़ के समय की सूचना जो मस्जिद की छत या दूसरी ऊँची जगह पर खड़े होकर दी जाती है, डेरा – अस्थायी पड़ाव, गुनाह – पाप, खुदा – ईश्वर, परिंदे – पक्षी, खामोश – चुप।

JAC Class 10 Hindi रचना अनुच्छेद लेखन

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JAC Board Class 10 Hindi Rachana अनुच्छेद लेखन

अनुच्छेद – लेखन से अभिप्राय है किसी विषय से संबद्ध अपने विचारों को प्रकट करना। इसमें कुशलता प्राप्त करने के लिए अभ्यास की आवश्यकता होती है।
अनुच्छेद लिखने के लिए निम्नलिखित बातों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए –
(i) सबसे पहले विषय को भली-भाँति समझ लेना चाहिए। कभी-कभी किसी सूक्ति, लोकोक्ति अथवा कहावत पर भी लिखने के लिए कहा जाता है। अतः शीर्षक में निहित भावों एवं विचारों को समझने की चेष्टा करनी चाहिए।
(ii) अनुच्छेद की भाषा शुद्ध तथा उपयुक्त शब्दों से युक्त होनी चाहिए।
(iii) इसकी शैली इतनी सारगर्भित होनी चाहिए कि कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक भाव तथा विचार निहित हों।
(iv) इसके लेखन में केवल प्रतिपाद्य विषय पर ही ध्यान देना चाहिए। इधर-उधर की बातें नहीं लिखना चाहिए। अप्रासंगिक बातों का उल्लेख अनुच्छेद के गठन एवं सौंदर्य को नष्ट कर देता है।
(v) अनुच्छेद का प्रत्येक वाक्य दूसरे वाक्य से उचित रूप में संबद्ध होना चाहिए।
(vi) विषय के अनुरूप ही भाषा का प्रयोग होना चाहिए। विचार – प्रधान विषय में विचार एवं तर्क की तथा भावात्मक विषय में अनुभूति की प्रधानता होनी चाहिए।
(vii) भाव और भाषा की अभिव्यक्ति में स्पष्टता, मौलिकता और सरलता होनी चाहिए। अनुच्छेद अपने आप में पूर्ण होना चाहिए।

1. मेरी माँ की ममता

संकेत बिंदु – माँ का महत्त्व, माँ के कार्य, माँ की ममता और स्नेह, उपसंहार।

माँ का रिश्ता दुनिया के सब रिश्ते-नातों से ऊपर है, इस बात से कौन इनकार कर सकता है। माँ को हमारे शास्त्रों में भगवान माना गया है। जैसे भगवान हमारी रक्षा, हमारा पालन-पोषण और हमारी हर इच्छा को पूरा करते हैं वैसे ही माँ भी हमारी रक्षा, पालन-पोषण और स्वयं कष्ट सहकर हमारी सब इच्छाओं को पूरा करती है। इसलिए कहा गया है कि माँ के कदमों में स्वर्ग है। मुझे भी अपनी माँ दुनिया में सबसे प्यारी लगती हैं।

वे मेरी हर ज़रूरत का ध्यान रखती हैं। मैं भी अपनी माँ की सेवा करता हूँ। मेरी माँ घर में सबसे पहले उठती हैं। उठकर वे घर की सफ़ाई करने के बाद स्नान करती हैं और पूजा-पाठ से निवृत्त होकर हमें जगाती हैं। जब तक हम स्नानादि करते हैं, माँ हमारे लिए नाश्ता तैयार करने में लग जाती हैं। नाश्ता तैयार करके वे हमें स्कूल जाने के लिए कपड़े निकालकर देती है। जब हम स्कूल जाने के लिए तैयार हो जाते हैं तो वे हमें नाश्ता परोसती हैं। स्कूल जाते समय वे दोपहर के भोजन के लिए हमारे बस्तों में टिफिन रख देती हैं।

स्कूल में हम आधी छुट्टी के समय मिलकर भोजन करते हैं। कई बार हम अपना खाना एक-दूसरे से बाँट भी लेते हैं। मेरे सभी मित्र मेरी माँ के बनाए भोजन की बहुत तारीफ़ करते हैं। सचमुच मेरी माँ बहुत स्वादिष्ट भोजन बनाती हैं। मेरी माँ हमारे सहपाठियों को भी उतना ही प्यार करती हैं जितना हमसे। मेरे सहपाठी ही नहीं हमारे मुहल्ले के सभी बच्चे भी उनका आदर करते हैं। हम सब भाई-बहन अपनी माँ का कहना मानते हैं। छुट्टी के दिन हम घर की सफ़ाई में अपनी माँ का हाथ बँटाते हैं। मेरी माँ इतनी अच्छी है कि मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि उस जैसी माँ सब को मिले।

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2. प्रदर्शनी अवलोकन

संकेत बिंदु – भूमिका, प्रदर्शनी स्थल, प्रदर्शित वस्तुएँ, उपसंहार।

पिछले महीने मुझे दिल्ली में अपने किसी मित्र के पास जाने का अवसर प्राप्त हुआ। संयोग से उन दिनों दिल्ली के प्रगति मैदान में एक अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी चल रही थी। मैंने अपने मित्र के साथ इस प्रदर्शनी को देखने का निश्चय किया। लगभग दो बजे हम प्रगति मैदान पहुँचे। प्रदर्शनी के मुख्य द्वार पर हमें यह सूचना मिल गई कि इस प्रदर्शनी में लगभग तीस देश भाग ले रहे हैं। हमने देखा की सभी देशों ने अपने-अपने पंडाल बड़े कलात्मक ढंग से सजाए हुए हैं। उन पंडालों में उन देशों की निर्यात की जाने वाली वस्तुओं का प्रदर्शन किया जा रहा था।

अनेक भारतीय कंपनियों ने भी अपने- अपने पंडाल सजाए हुए थे। प्रगति मैदान किसी दुल्हन की तरह सजाया गया था। प्रदर्शनी में सजावट और रोशनी का प्रबंध इतना शानदार था कि अनायास ही मन से वाह निकल पड़ती थी। प्रदर्शनी देखने आने वालों की काफ़ी भीड़ थी। हमने प्रदर्शनी के मुख्य द्वार से टिकट खरीद कर भीतर प्रवेश किया। सबसे पहले हम जापान के पंडाल में गए। जापान ने अपने पंडाल में कृषि, दूरसंचार, कंप्यूटर आदि से जुड़ी वस्तुओं का प्रदर्शन किया था। हमने वहाँ इक्कीसवीं सदी में टेलीफ़ोन एवं दूरसंचार सेवा कैसी होगी इसका एक छोटा-सा नमूना देखा। जापान ने ऐसे टेलीफ़ोन का निर्माण किया था जिसमें बातें करने वाले दोनों व्यक्ति एक-दूसरे की फोटो भी देख सकेंगे। वहीं हमने एक पॉकेट टेलीविज़न भी देखा, जो माचिस की डिबिया जितना था।

सारे पंडाल का चक्कर लगाकर हम बाहर आए। उसके बाद हमने दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी के पंडाल देखे। उस प्रदर्शनी को देखकर हमें लगा कि अभी भारत को उन देशों का मुकाबला करने के लिए काफ़ी मेहनत करनी होगी। हमने वहाँ भारत में बनने वाले टेलीफ़ोन, कंप्यूटर आदि का पंडाल भी देखा। वहाँ यह जानकारी प्राप्त करके मन बहुत खुश हुआ कि भारत दूसरे बहुत-से देशों को ऐसा सामान निर्यात करता है। भारतीय उपकरण किसी भी हालत में विदेशों में बने सामान से कम नहीं थे। हमने प्रदर्शनी में ही बने रेस्टोरेंट में जल-पान किया और इक्कीसवीं सदी में दुनिया में होने वाली प्रगति का नक्शा आँखों में बसाए विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में होने वाली अत्याधुनिक जानकारी प्राप्त करके घर वापस आ गए।

3. नदी किनारे एक शाम

संकेत बिंदु – भूमिका, नदी पर जाना, नदी का दृश्य, प्राकृतिक सौंदर्य, उपसंहार।

गर्मियों की छुट्टियों के दिन थे। स्कूल जाने की चिंता नहीं थी और न ही होमवर्क की। एक दिन चार मित्र एकत्र हुए और सभी ने यह तय किया कि आज की शाम नदी किनारे सैर करके बिताई जाए। कुछ तो गर्मी से राहत मिलेगी और कुछ प्रकृति के सौंदर्य के दर्शन करके जी खुश होगा। एक ने कही दूजे ने मानी के अनुसार हम सब लगभग छह बजे के करीब एक स्थान पर एकत्र हुए और पैदल ही नदी की ओर चल पड़े। दिन अभी ढला नहीं था बस ढलने ही वाला था। ढलते सूर्य की लाल-लाल किरणें पश्चिम क्षितिज पर ऐसे लग रही थीं मानो प्रकृति रूपी युवती लाल-लाल वस्त्र पहने खड़ी हो। पक्षी अपने- अपने घोंसलों की ओर लौटने लगे थे।

खेतों में हरियाली छायी हुई थी। ज्यों ही हम नदी किनारे पहुँचे सूर्य की सुनहरी किरणें नदी के पानी पर पड़ती हुई बहुत भली प्रतीत हो रही थीं। ऐसे लगता था मानो नदी के जल में हज़ारों लाल कमल एक साथ खिल उठे हों। नदी तट पर लगे वृक्षों की पंक्ति देखकर ‘तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए’ कविता की पंक्ति याद हो आई। नदी तट के पास वाले जंगल से ग्वाले पशु चराकर लौट रहे थे। पशुओं के पैरों से उठने वाली धूलि एक मनोरम दृश्य उपस्थित कर रही थी। हम सभी मित्र बातें कम कर रहे थे, प्रकृति के रूप-रस का पान अधिक कर रहे थे। थोड़ी ही देर में सूर्य अस्ताचल की ओर जाता हुआ प्रतीत हुआ।

नदी का जो जल पहले लाल-लाल लगता था अब धीरे-धीरे नीला पड़ना शुरू हो गया था। उड़ते हुए बगुलों की सफ़ेद सफ़ेद पंक्तियाँ उस धूमिल वातावरण में और भी अधिक सफ़ेद लग रही थीं। नदी तट पर सैर करते-करते हम गाँव से काफ़ी दूर निकल आए थे। प्रकृति की सुंदरता निहारते – निहारते ऐसे खोए थे कि समय का ध्यान ही न रहा। हम सब गाँव की ओर लौट पड़े। नदी तट पर नृत्य करती हुई प्रकृति रूपी नदी की यह शोभा विचित्र थी। नदी किनारे सैर करते हुए बिताई यह शाम हम ज़िंदगी भर नहीं भूलेंगे।

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4. परीक्षा से पहले

संकेत बिंदु – भूमिका, परीक्षा की चिंता, परीक्षा की तैयारी, उपसंहार।

वैसे तो हर मनुष्य परीक्षा से घबराता है किंतु विद्यार्थी इससे विशेष रूप से घबराता है। परीक्षा में पास होना ज़रूरी है नहीं तो जीवन का एक बहुमूल्य वर्ष नष्ट हो जाएगा। अपने साथियों से बिछड़ जाएँगे। ऐसी चिंताएँ हर विद्यार्थी को रहती हैं। परीक्षा शुरू होने से पूर्व जब मैं परीक्षा भवन पहुँचा तो मेरा दिल धक-धक कर रहा था। परीक्षा शुरू होने से आधा घंटा पहले मैं वहाँ पहुँच गया था। मैं सोच रहा था कि सारी रात जागकर जो प्रश्न तैयार किए हैं यदि वे प्रश्न-पत्र में न आए तो मेरा क्या होगा ? इसी चिंता में मैं अपने सहपाठियों से खुलकर बात नहीं कर रहा था। परीक्षा भवन के बाहर का दृश्य बड़ा विचित्र था।

परीक्षा देने आए कुछ विद्यार्थी बिलकुल बेफ़िक्र लग रहे थे। वे आपस में ठहाके मार-मार कर बातें कर रहे थे। कुछ भी विद्यार्थी थे जो अभी तक किताबों या नोट्स से चिपके हुए थे। मैं अकेला ऐसा विद्यार्थी था जो अपने साथ घर से कोई किताब या सहायक पुस्तक नहीं लाया था क्योंकि मेरे पिता जी कहा करते हैं कि परीक्षा के दिन से पहले की रात को ज्यादा पढ़ना नहीं चाहिए। सारे साल का पढ़ा हुआ भूल जाता है। वे परीक्षा के दिन से पूर्व की रात को जल्दी सोने की भी सलाह देते हैं जिससे सवेरे उठकर विद्यार्थी तरो ताज़ा होकर परीक्षा देने जाए न कि थका- थका महसूस करे। परीक्षा भवन के बाहर लड़कों की अपेक्षा लड़कियाँ अधिक खुश नज़र आ रही थीं।

उनके खिले चेहरे देखकर ऐसा लगता था मानो परीक्षा के भूत का उन्हें कोई डर नहीं। उन्हें अपनी स्मरण शक्ति पर पूरा भरोसा था। थोड़ी ही देर में घंटी बजी। यह घंटी परीक्षा भवन में प्रवेश की घंटी थी। इसी घंटी को सुनकर सभी ने परीक्षा भवन की ओर जाना शुरू कर दिया। हँसते हुए चेहरों पर अब गंभीरता आ गई थी। परीक्षा भवन के बाहर अपना अनुक्रमांक और स्थान देखकर मैं परीक्षा भवन में प्रविष्ट हुआ और अपने स्थान पर जाकर बैठ गया। कुछ विद्यार्थी अब भी शरारतें कर रहे थे। मैं मौन हो धड़कते दिल से प्रश्न-पत्र बँटने की प्रतीक्षा करने लगा।

5. रेलवे प्लेटफार्म का दृश्य

संकेत बिंदु – भूमिका, प्लेटफ़ॉर्म का दृश्य, गाड़ी का आना, लोगों की भगदड़, तरह-तरह की गतिविधियाँ, उपसंहार।

एक दिन संयोग से मुझे अपने बड़े भाई को लेने रेलवे स्टेशन जाना पड़ा। मैं प्लेटफार्म टिकट लेकर रेलवे स्टेशन के अंदर गया। पूछताछ खिड़की से पता लगा कि दिल्ली से आने वाली गाड़ी प्लेटफार्म नंबर चार पर आएगी। मैं रेलवे पुल पार करके प्लेटफार्म नंबर चार पर पहुँच गया। वहाँ यात्रियों की बड़ी संख्या थी। कुछ लोग अपने प्रियजनों को लेने के लिए आए थे तो कुछ अपने प्रियजनों को गाड़ी में सवार कराने के लिए आए हुए थे।

जाने वाले यात्री अपने-अपने सामान के पास खड़े थे। कुछ यात्रियों के पास कुली भी खड़े थे। मैं भी उन लोगों की तरह गाड़ी की प्रतीक्षा करने लगा। इसी दौरान मैंने अपनी नज़र रेलवे प्लेटफार्म पर दौड़ाई। मैंने देखा कि अनेक युवक और युवतियाँ आधुनिक पोशाक पहने इधर-उधर घूम रहे थे। कुछ यात्री टी-स्टाल पर खड़े चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे, परंतु उनकी नज़रें बार-बार उस तरफ़ उठ जाती थीं, जिधर से गाड़ी आने वाली थी। कुछ यात्री बड़े आराम से अपने सामान के पास खड़े थे, लगता था कि उन्हें गाड़ी आने पर जगह प्राप्त करने की कोई चिंता नहीं।

उन्होंने पहले से ही अपनी सीट आरक्षित करवा ली थी। कुछ फेरीवाले भी अपना माल बेचते हुए प्लेटफार्म पर घूम रहे थे। सभी लोगों की नज़रें उस तरफ थीं जिधर से गाड़ी ने आना था। तभी लगा जैसे गाड़ी आने वाली हो। प्लेटफार्म पर भगदड़ – सी मच गई। सभी यात्री अपना-अपना सामान उठाकर तैयार हो गए। कुलियों ने सामान अपने सिरों पर रख लिया। सारा वातावरण उत्तेजना से भर गया। देखते-ही-देखते गाड़ी प्लेटफार्म पर आ पहुँची। कुछ युवकों ने तो गाड़ी के रुकने की भी प्रतीक्षा न की।

वे गाड़ी के साथ दौड़ते-दौड़ते गाड़ी में सवार हो गए। गाड़ी रुकी तो गाड़ी में सवार होने के लिए धक्का-मुक्की शुरू हो गई। हर कोई पहले गाड़ी में सवार हो जाना चाहता था। उन्हें दूसरों की नहीं केवल अपनी चिंता थी। मेरे भाई मेरे सामने वाले डिब्बे में थे। उनके गाड़ी से नीचे उतरते ही मैंने उनके चरण-स्पर्श किए और उनका सामान उठाकर स्टेशन से बाहर की ओर चल पड़ा। चलते-चलते मैंने देखा जो लोग अपने प्रियजनों को गाड़ी में सवार कराकर लौट रहे थे, उनके चेहरे उदास थे और मेरी तरह जिनके प्रियजन गाड़ी से उतरे थे, उनके चेहरों पर खुशी थी।

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6. सूर्योदय का दृश्य

संकेत बिंदु – भूमिका, सूर्योदय, प्रकृति में परिवर्तन, घर – मंदिर की हलचल, प्राकृतिक सौंदर्य, उपसंहार।

पूर्व दिशा की ओर उभरती हुई लालिमा को देखकर पक्षी चहचहाने लगते हैं। उन्हें सूर्य के आगमन की सबसे पहले सूचना मिल जाती है। वे अपनी चहचहाहट द्वारा समस्त प्राणी जगत को रात के बीत जाने की सूचना देते हुए जागने की प्रेरणा देते हैं। सूर्य देवता का स्वागत करने के लिए प्रकृति रूपी नदी भी प्रसन्नता में भर कर नाच उठती है। फूल खिल उठते हैं, कलियाँ चटक जाती हैं और चारों ओर का वातावरण सुगंधित हो जाता है। सूर्य देवता के आगमन के साथ ही मनुष्य रात भर के विश्राम के बाद जाग उठते हैं।

हर तरफ चहल-पहल नज़र आने लगती है। किसान हल और बैलों के साथ अपने खेतों की ओर चल पड़ते हैं। गृहणियाँ घरेलू काम-काज में व्यस्त हो जाती हैं। मंदिरों एवं गुरुद्वारों में लगे लाउडस्पीकर से भजन- -कीर्तन के कार्यक्रम प्रसारित होने लगते हैं। भक्तजन स्नानादि से निवृत्त हो पूजा-पाठ में लग जाते हैं। स्कूली बच्चों की माताएँ उन्हें जगाने लगती हैं। दफ़्तरों को जाने वाले बाबू जल्दी-जल्दी तैयार होने लगते हैं, जिससे समय पर बस पकड़ कर अपने दफ्तर पहुँच सकें। थोड़ी देर पहले जो शहर सन्नाटे में लीन था आवाज़ों के घेरे में घिरने लगता है।

सड़कों पर मोटरों, स्कूटरों, कारों के चलने की आवाजें सुनाई देने लगती हैं। ऐसा लगता है मानो सड़कें भी नींद से जाग उठी हों। सूर्योदय के समय की प्राकृतिक सुषमा का वास्तविक दृश्य तो किसी गाँव, किसी पहाड़ी क्षेत्र अथवा किसी नदी तट पर ही देखा जा सकता है। सूर्योदय के समय सूर्य के सामने आँखें बंद कर दो-चार मिनट खड़े रहने से आँखों की ज्योति कभी क्षीण नहीं होती।

7. अपना घर

संकेत बिंदु – भूमिका, अपना घर, मनुष्य और पशु का घर के प्रति प्रेम, उपसंहार।

कहते हैं कि घरों में घर अपना घर। सच है अपना घर अपना ही होता है। अपने घर में चाहे सारी सुख-सुविधाएँ न भी प्राप्त हों तो भी वह अच्छा लगता है। जो स्वतंत्रता व्यक्ति को अपने घर में होती है वह बड़े-बड़े आलीशान घर में भी प्राप्त नहीं होती। पराये घर में जो झिझक, असुविधा होती है वह अपने घर में नहीं होती। अपने घर में व्यक्ति अपनी मर्ज़ी का मालिक होता है। दूसरे के घर में उस घर के स्वामी की इच्छानुसार अथवा उस घर के नियमों के अनुसार चलना होता है।

अपने घर में आप जो चाहें करें, चो चाहें खाएँ, जहाँ चाहें बैठें, जहाँ चाहें लेटें पर दूसरे के घर में यह सब संभव नहीं। शायद यही कारण है कि आजकल नौकरी करने वाले प्रतिदिन मीलों का सफ़र करके नौकरी पर जाते हैं परंतु रात को अपने घर वापस आ जाते हैं। पुरुष तो पहले भी नौकरी करने बाहर जाते थे। आजकल स्त्रियाँ भी नौकरी करने घर से कई मील दूर जाती हैं परंतु शाम को सभी अपने-अपने घरों को लौटना पसंद करते हैं। मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी तक भी अपने घर के महत्त्व को समझते हैं।

सारा दिन जंगल में चरने वाली गाएँ, भैंसें, भेड़, बकरियाँ संध्या होते ही अपने-अपने घरों को लौट आते हैं। पक्षी भी दिनभर दाना – तिनका चुगकर संध्या होते ही अपने- अपने घोंसलों को लौट आते हैं। घर का मोह ही उन्हें अपने घोंसला में लौट आने के लिए विवश करता है क्योंकि जो सुख अपने घर में मिलता है वह और कहीं नहीं मिलता। इसीलिए कहा गया है कि घरों में घर अपना घर।

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8. जब आँधी आई

संकेत बिंदु – भूमिका, भयंकर गर्मी का प्रभाव, क्षितिज पर कालिमा का दिखाई देना, वातावरण में परिवर्तन, धूलभरी आँधी, उपसंहार।

मई का महीना था। सूर्य देवता लगता था मानो आग बरसा रहे हों। धरती भट्ठी की तरह जल रही थी। हवा भी गर्मी के डर से सहमी हुई थम- सी गई थी। पेड़-पौधे तक भीषण गर्मी से घबराकर मौन खड़े थे। पत्ता तक नहीं हिल रहा था। उस दिन विद्यालय से छुट्टी होने पर मैं अपने कुछ सहपाठियों के साथ पसीने में लथपथ अपने घर की ओर लौट रहा था कि अचानक पश्चिम दिशा में कालिमा-सी दिखाई दी। आकाश में चीलें मँडराने लगीं। चारों ओर शोर मच गया कि आँधी आ रही है।

हम सब ने तेज़ – तेज़ चलना शुरू किया, जिससे आँधी आने से पूर्व सुरक्षित अपने-अपने घर पहुँच जाएँ। देखते-ही-देखते तेज़ हवा के झोंके आने लगे। दूर आकाश धूलि से अट गया लगता था। हम सब साथी एक दुकान के छज्जे के नीचे रुक गए और प्रतीक्षा करने लगे कि आँधी गुज़र जाए तो चलें। पलक झपकते ही धूल का एक बहुत बड़ा बवंडर उठा। दुकानदारों ने अपना सामान सहेजना शुरू कर दिया। आस-पास के घरों की खिड़कियाँ – दरवाज़े ज़ोर-ज़ोर से बजने लगे। धूल भरी उस आँधी में कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।

हम सब आँखें बंद करके खड़े थे जिससे हमारी आँखें धूल से न भर जाएँ। राह चलते लोग रुक गए। स्कूटर, साइकिल और कार चलाने वाले भी अपनी-अपनी जगह रुक गए थे। अचानक सड़क के किनारे लगे वृक्ष की एक बहुत बड़ी टहनी टूट कर हमारे सामने गिरी। दुकानों के बाहर लगी कनातें उड़ने लगीं। बहुत से दुकानदारों ने जो सामान बाहर सजा रखा था, वह उड़ गया। धूल भरी आँधी में कुछ भी दिखाई न दे रहा था। चारों तरफ अफ़रा तफ़री मची हुई थी। आँधी का यह प्रकोप कोई घंटा भर रहा। धीरे-धीरे स्थिति सामान्य होने लगी।

यातायात फिर से चालू हो गया। हम भी उस दुकान के छज्जे के नीचे से बाहर आकर अपने-अपने घरों की ओर रवाना हुए। सच ही उस आँधी का दृश्य बड़ा ही डरावना था। घर पहुँचते-पहुँचते मैंने देखा रास्ते में बिजली के कई खंभे, वृक्ष आदि उखड़े पड़े थे। सारे शहर में बिजली भी ठप्प हो गई थी। मैं कुशलतापूर्वक अपने घर पहुँच गया। घर पहुँच कर मैंने चैन की साँस ली।

9. जब भूचाल आया

संकेत बिंदु – भूमिका, रात की शांति, कुत्तों का भौंकना, चारपाई का हिलना, मकान का गिरना, सबका घरों से दौड़ना, उपसंहार।

गर्मियों की रात थी। मैं अपने भाइयों के साथ मकान की छत पर सो रहा था। रात लगभग आधी बीत चुकी थी। गर्मी के मारे मुझे नींद नहीं आ रही थी। तभी अचानक कुत्तों के भौंकने का स्वर सुनाई पड़ा। यह स्वर लगातार बढ़ता ही जा रहा था और लगता था कि कुत्ते तेज़ी से इधर-उधर भाग रहे हैं। कुछ ही क्षण बाद हमारी मुर्गियों ने दड़बों में फड़फड़ाना शुरू कर दिया। उनकी आवाज़ सुनकर ऐसा लगता था कि जैसे उन्होंने किसी साँप को देख लिया हो। मैं बिस्तर पर लेटा – लेटा कुत्तों के भौंकने के कारण का विचार करने लगा।

मैंने समझा कि शायद वे किसी चोर को या संदिग्ध व्यक्ति को देखकर भौंक रहे हैं। अभी मैं इन्हीं बातों पर विचार कर ही रहा था कि मुझे लगा जैसे मेरी चारपाई को कोई हिला रहा है अथवा किसी ने मेरी चारपाई को झुला दिया हो। क्षण भर में ही मैं समझ गया कि भूचाल आया है। यह झटका भूचाल का ही था। मैंने तुरंत अपने भाइयों को जगाया और उन्हें छत से शीघ्र नीचे उतरने को कहा।

छत से उतरते समय हमने परिवार के अन्य सदस्यों को भी जगा दिया। तेज़ी से दौड़कर हम सब बाहर खुले मैदान में आ गए। वहाँ पहुँच कर हमने शोर मचाया कि भूचाल आया है। सब लोग घर से बाहर आ जाओ। सभी गहरी नींद में सोये पड़े थे हड़बड़ाहट में सभी बाहर की ओर दौड़े। मैंने उन्हें बताया कि भूचाल के झटके कभी-कभी कुछ मिनटों के बाद भी आते हैं। अतः हमें सावधान रहना चाहिए।

अभी यह बात मेरे मुँह में ही थी कि भूचाल का एक और ज़ोरदार झटका आया। सारे मकानों की खिड़कियाँ – दरवाज़े खड़-खड़ा उठे। हमें धरती हिलती महसूस हुई। हम सब धरती पर लेट गए। तभी पड़ोस से मकान ढहने की आवाज़ आई। साथ ही बहुत से लोगों के चीखने-चिल्लाने की आवाज़ें भी आईं। हममें से कोई भी डर के मारे अपनी जगह से नहीं हिला। कुछ देर बाद जब हमने सोचा कि जितना भूचाल आना था आ चुका, हम उन जगहों की ओर बढ़े। निकट जाकर देखा तो काफ़ी मकान क्षतिग्रस्त हुए थे। ईश्वर की कृपा से जान-माल की कोई हानि न हुई थी। वह रात सारे गाँववासियों ने पुनः भूचाल के आने की आशंका में घरों से बाहर रह कर ही बिताई।

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10. परीक्षा भवन का दृश्य

संकेत बिंदु – भूमिका, परीक्षा से घबराहट, परीक्षार्थियों का आना, घबराहट और बेचैनी, परीक्षा भवन का दृश्य, उपसंहार।

मार्च महीने की पहली तारीख थी। उस दिन हमारी वार्षिक परीक्षाएँ शुरू हो रही थीं। परीक्षा शब्द से वैसे सभी मनुष्य घबराते हैं परंतु विद्यार्थी वर्ग इस शब्द से विशेष रूप से घबराता है। मैं जब घर से चला तो मेरा दिल भी धक् धक् कर रहा था। मैं रात भर पढ़ता रहा था और चिंता थी कि यदि सारी रात के पढ़े में से कुछ भी प्रश्न-पत्र में न आया तो क्या होगा ? परीक्षा भवन के बाहर सभी विद्यार्थी चिंतित से नज़र आ रहे थे। कुछ विद्यार्थी किताबें लेकर अब भी उसके पन्ने उलट-पुलट रहे थे।

कुछ बड़े खुश-खुश नज़र आ रहे थे। मैं अपने सहपाठियों से उस दिन के प्रश्न-पत्र के बारे में बात कर ही रहा था कि परीक्षा भवन में घंटी बजनी शुरू हो गई। यह संकेत था कि हमें परीक्षा भवन में प्रवेश कर जाना चाहिए। सभी विद्यार्थियों ने परीक्षा भवन में प्रवेश करना शुरू कर दिया। भीतर पहुँच कर हम सब अपने-अपने अनुक्रमांक के अनुसार अपनी-अपनी सीट पर जाकर बैठ गए। थोड़ी ही देर में अध्यापकों द्वारा उत्तर-पुस्तिकाएँ बाँट दी गईं और हमने उस पर अपना-अपना अनुक्रमांक आदि लिखना शुरू कर दिया। ठीक नौ बजते ही एक घंटी बजी और अध्यापकों ने प्रश्न- पत्र बाँट दिए। मैंने प्रश्न- पत्र पढ़ना शुरू किया। मेरी खुशी का कोई ठिकाना न था क्योंकि प्रश्न-पत्र के सभी

प्रश्न मेरे पढ़े हुए प्रश्नों में से थे। मैंने किए जाने वाले प्रश्नों पर निशान लगाए और कुछ क्षण तक यह सोचा कि कौन-सा प्रश्न पहले करना चाहिए और फिर उत्तर लिखना शुरू कर दिया। मैंने देखा कुछ विद्यार्थी अभी बैठे सोच ही रहे थे शायद उनके पढ़े में से कोई प्रश्न न आया हो। तीन घंटे तक मैं बिना इधर-उधर देखे लिखता रहा। मैं प्रसन्न था कि उस दिन मेरा पर्चा बहुत अच्छा हुआ था।

11. साइकिल चोरी होने पर

संकेत बिंदु – भूमिका, साइकिल स्कूल के बाहर खड़ी करना, साइकिल की चोरी होना, चोरी की रिपोर्ट लिखना, रिपोर्ट दर्ज न होना, निराशा, उपसंहार।

एक दिन मैं अपने स्कूल में अवकाश लेने का आवेदन-पत्र देने गया। मैं अपनी साइकिल स्कूल के बाहर खड़ी करके, उसे ताला लगाकर स्कूल के भीतर चला गया। जब थोड़ी देर में मैं लौट तो मैंने देखा मेरी साइकिल वहाँ नहीं थी, जहाँ मैं उसे खड़ी करके गया था। मैंने आसपास देखा पर मुझे मेरी साइकिल कहीं नज़र नहीं आई। मुझे यह समझते देर न लगी कि मेरी साइकिल चोरी हो गई है। मैं सीधा घर आ गया।

घर आकर मैंने अपनी माँ को बताया कि मेरी साइकिल चोरी हो गई है। मेरी माँ यह सुनकर रोने लगी। उसने कहा कि बड़ी मुश्किल से एक हज़ार रुपया खर्च करके तुम्हें साइकिल लेकर दी थी तुमने वह भी गँवा दी। मेरी साइकिल चोरी हो गई है, यह बात सारे मुहल्ले में फैल गई। किसी ने सलाह दी कि पुलिस में रिपोर्ट अवश्य लिखवा देनी चाहिए। मैं पुलिस से बहुत डरता हूँ। मैं डरता – डरता पुलिस चौकी गया।

मैं इतना घबरा गया था, मानो मैंने ही साइकिल चुराई हो। पुलिस वालों ने कहा साइकिल की रसीद लाओ, उसका नंबर बताओ, तब हम तुम्हारी रिपोर्ट लिखेंगे। साइकिल खरीदने की रसीद मुझसे गुम हो गई थी और साइकिल का नंबर मुझे याद नहीं था। मुझे क्या मालूम था कि मेरी साइकिल चोरी हो जाएगी ? निराश हो मैं घर लौट आया। सभी मुझसे साइकिल कैसे चोरी हुई? प्रश्न का उत्तर जानना चाहते थे। मैं एक ही उत्तर सभी को देता देता उकता – सा गया। पिताजी ने मुझे सांत्वना देते हुए कहा- जो होना था सो हो गया। ईश्वर चाहेंगे तो साइकिल ज़रूर मिल जाएगी। मेरा एक मित्र विशेष रूप से दुखी था। क्योंकि यदा-कदा वह मुझसे साइकिल माँग कर ले जाता था। मुझे अपनी साइकिल चोरी हो जाने का बहुत दुख हुआ था।

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12. जीवन की अविस्मरणीय घटना

संकेत बिंदु – भूमिका, चिड़िया के बच्चे का घायल अवस्था में मिलना, सेवा, सेवा से आनंद, उपसंहार।

आज मैं दसवीं कक्षा में हूँ। माता-पिता कहते हैं कि अब तुम बड़े हो गए हो। मैं भी कभी – कभी सोचता हूँ कि क्या मैं सचमुच बड़ा हो गया हूँ। हाँ, मैं सचमुच बड़ा हो गया हूँ। मुझे बीते दिनों की कुछ बातें आज भी याद हैं जो मेरा मार्गदर्शन कर रही हैं। एक घटना ऐसी है जिसे मैं आज भी याद करके आनंद विभोर हो उठता हूँ। घटना कुछ इस तरह से है। कोई दो-तीन साल पहले की घटना है। मैंने एक दिन देखा कि हमारे आँगन में लगे वृक्ष के नीचे एक चिड़िया का बच्चा घायल अवस्था में पड़ा है।

मैं उस बच्चे को उठाकर अपने कमरे में ले आया। मेरी माँ ने मुझे रोका भी कि इसे इस तरह न उठाओ यह मर जाएगा किंतु मेरा मन कहता था कि इस चिड़िया के बच्चे को बचाया जा सकता है। मैंने उसे चम्मच से पानी पिलाया। पानी मुँह में जाते ही उस बच्चे ने जो बेहोश था पंख फड़फड़ाने शुरू कर दिए। यह देखकर मैं प्रसन्न हुआ। मैंने उसे गोद में लेकर देखा कि उस की टाँग में चोट आई है। मैंने अपने छोटे भाई को माँ से मरहम की डिबिया लाने को कहा। वह तुरंत मरहम की डिबिया ले आया।

उसमें से थोड़ी-सी मरहम मैंने उस चिड़िया के बच्चे की चोट पर लगाई। मरहम लगाते ही मानो उसकी पीड़ा कुछ कम हुई। वह चुपचाप मेरी गोद में ही लेटा था। मेरा छोटा भाई भी उस के पंखों पर हाथ फेरकर खुश हो रहा था। कोई घंटा भर मैं उसे गोद में ही लेकर बैठा रहा। मैंने देखा कि बच्चा थोड़ा उड़ने की कोशिश करने लगा था। मैंने छोटे भाई से रोटी मँगवाई और उसकी चूरी बनाकर उसके सामने रखी। वह उसे खाने लगा। हम दोनों भाई उसे खाते हुए देख कर खुश हो रहे थे। मैंने उसे अब अपनी पढ़ाई की मेज़ पर रख दिया।

रात को एक बार फिर उस के घाव पर मरहम लगाई। दूसरे दिन मैंने देखा चिड़िया का वह बच्चा मेरे कमरे में इधर-उधर फुदकने लगा है। वह मुझे देख चीं-चीं करके मेरे प्रति अपना आभार प्रकट कर रहा था। एक-दो दिनों में ही उस का घाव ठीक हो गया और मैंने उसे आकाश में छोड़ दिया। वह उड़ गया। मुझे उस चिड़िया के बच्चे के प्राणों की रक्षा करके जो आनंद प्राप्त हुआ उसे मैं जीवन भर नहीं भुला पाऊँगा।

13. आँखों देखा हॉकी मैच

संकेत बिंदु – भूमिका, खेल का महत्त्व, हॉकी मैच, दो टीमों का रोमांच, दर्शकों का उत्साह और शोर, उपसंहार।

भले ही आज लोग क्रिकेट के दीवाने बने हुए हैं परंतु हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी ही है। लगातार कई वर्षों तक भारत हॉकी के खेल में विश्वभर में सबसे आगे रहा किंतु खेलों में भी राजनीतिज्ञों के दखल के कारण हॉकी के खेल में हमारा स्तर दिनों-दिन गिर रहा है। 70 मिनट की अवधि वाला यह खेल अत्यंत रोचक, रोमांचक और उत्साहवर्धक होता है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे ऐसा ही एक हॉकी मैच देखने को मिला। यह मैच सुभाष एकादश और चंद्र एकादश की टीमों के बीच चेन्नई के खेल परिसर में खेला गया।

दोनों टीमें अपने-अपने खेल के लिए देश भर में जानी जाती हैं। दोनों ही टीमों में राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी भाग ले रहे थे। चंद्र एकादश की टीम क्योंकि अपने घरेलू मैदान पर खेल रही थी इसलिए उसने सुभाष एकादश को मैच के आरंभिक दस मिनटों में दबाए रखा। उसके फॉरवर्ड खिलाड़ियों ने दो-तीन बार विरोधी गोल पर आक्रमण किए। सुभाष एकादश का गोलकीपर

बहुत ही चुस्त और होशियार था। उसने अपने विरोधियों के सभी आक्रमणों को विफल बना दिया। जब सुभाष एकादश ने तेज़ी पकड़ी तो देखते ही देखते चंद्र एकादश के विरुद्ध एक गोल दाग दिया। गोल होने पर चंद्र एकादश की टीम ने एकजुट होकर दो-तीन बार सुभाष एकादश पर कड़े आक्रमण किए परंतु उनका प्रत्येक आक्रमण विफल रहा। इसी बीच चंद्र एकादश को दो पेनल्टी कार्नर भी मिले पर वे इसका लाभ न उठा सके। सुभाष एकादश ने कई अच्छे मूव बनाए। उनका कप्तान बलजीत सिंह तो जैसे बलबीर सिंह ओलंपियन की याद दिला रहा था।

इसी बीच सुभाष एकादश को भी एक पेनल्टी कार्नर मिला, जिसे उन्होंने बड़ी खूबसूरती से गोल में बदल दिया। इससे चंद्र एकादश के खिलाड़ी हताश हो गए। चेन्नई के दर्शक भी उनके खेल को देख कर कुछ निराश हुए। मध्यांतर के समय सुभाष एकादश दो शून्य से आगे थी। मध्यांतर के बाद खेल बड़ी तेज़ी से शुरू हुआ। चंद्र एकादश के खिलाड़ी बड़ी तालमेल से आगे बढ़े और कप्तान हरजीत सिंह ने दाएँ कोण से एक बढ़िया हिट लगाकर सुभाष एकादश पर एक गोल कर दिया। इस गोल से चंद्र एकादश के जोश में जबरदस्त वृद्धि हो गई। उन्होंने अगले पाँच मिनटों में दूसरा गोल करके मैच बराबरी पर ला दिया। दर्शक खुशी से नाच उठे। मैच समाप्ति की सीटी के बजते ही दर्शकों ने खिलाड़ियों को मैदान में जाकर शाबाशी दी। मैच का स्तर इतना अच्छा था कि मैच देख कर आनंद आ गया।

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14. आँखों देखी दुर्घटना

संकेत बिंदु – भूमिका, प्रातः भ्रमण के लिए जाना, सड़क पर भीड़ की अधिकता, कार और ताँगे में टक्कर, पुलिस – अस्पताल, उपसंहार।
रविवार की बात है मैं अपने मित्र के साथ सुबह – सुबह सैर करने माल रोड पर गया। वहाँ बहुत से स्त्री-पुरुष और बच्चे भी सैर करने आए हुए थे। जब से दूरदर्शन पर स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रम आने लगे हैं अधिक-से-अधिक लोग प्रातः भ्रमण के लिए इन जगहों पर आने लगे हैं। रविवार होने के कारण उस दिन भीड़ कुछ अधिक थी। तभी मैंने वहाँ एक युवा दंपति को अपने छोटे बच्चे को बच्चागाड़ी में बैठा कर सैर करते देखा। अचानक लड़कियों के स्कूल की ओर एक रिक्शा आता हुआ दिखाई दिया।

उसमें दो सवारियाँ भी बैठी थीं। बच्चागाड़ी वाले दंपत्ति ने रिक्शे से बचने के लिए सड़क पार करनी चाही। जब वे सड़क पार कर रहे थे तो दूसरी तरफ से बड़ी तेज़ गति से आ रही एक कार उस रिक्शे से टकरा गई। रिक्शा चलाने वाला और दोनों सवारियाँ बुरी तरह से घायल हो गए थे। बच्चागाड़ी वाली स्त्री के हाथ से बच्चागाड़ी छूट गई। किंतु इससे पूर्व कि वह बच्चे समेत रिक्शे और कार की टक्कर वाली जगह पर पहुँचकर उन से टकरा जाती, मेरे साथी ने भागकर उस बच्चागाड़ी को सँभाल लिया।

कार चलाने वाले सज्जन को भी काफ़ी चोटें आई थीं पर उसकी कार को कोई खास क्षति नहीं पहुँची थी। माल रोड पर गश्त करने वाले पुलिस के तीन-चार सिपाही तुरंत घटना स्थल पर पहुँच गए। उन्होंने वायरलैस द्वारा अपने अधिकारियों और अस्पताल को फोन किया। चंद मिनटों में वहाँ ऐम्बुलेंस गाड़ी आ गई। हम सब ने घायलों को उठा कर ऐम्बुलेंस में लिटाया। पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी तुरंत वहाँ पहुँच गए।

उन्होंने कार चालक को पकड़ लिया था। प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस को बताया कि सारा दोष कार चालक का था। इस सैर-सपाटे वाली सड़क पर वह 100 कि० मी० की स्पीड से कार चला रहा था और रिक्शा सामने आने पर वह ब्रेक न लगा सका। दूसरी तरफ़ बच्चे को बचाने के लिए मेरे मित्र द्वारा दिखाई फुर्ती व चुस्ती की भी लोग सराहना कर रहे थे। उस दंपत्ति ने उसका विशेष धन्यवाद दिया।

15. हमने मनाई पिकनिक

संकेत बिंदु – भूमिका, पिकनिक का अर्थ, पिकनिक के लिए उचित स्थान का चुनाव, साइकिलों से जाना, प्राकृतिक सौंदर्य, खान-पान, मनोरंजन, उपसंहार पिकनिक एक ऐसा शब्द है जो थके हुए शरीर एवं मन में एकदम स्फूर्ति ला देता है। मैंने और मेरे मित्र ने परीक्षा के दिनों में बड़ी मेहनत की थी। परीक्षा का तनाव हमारे मन और मस्तिष्क पर विद्यमान था। उस तनाव को दूर करने के लिए हम दोनों ने यह निर्णय किया कि क्यों न किसी दिन माधोपुर हैडवर्क्स पर जाकर पिकनिक मनाई जाए। अपने इस निर्णय से अपने मुहल्ले के दो-चार और मित्रों को अवगत करवाया तो वे भी हमारे साथ चलने को तैयार हो गए। माधोपुर हैडवर्क्स हमारे नगर से दस कि० मी० दूरी पर था। हम सबने अपने – अपने साइकिलों पर जाने का निश्चय किया।

पिकनिक के लिए रविवार का दिन निश्चित किया गया। रविवार को हम सबने नाश्ता करने के बाद अपने-अपने लंच बॉक्स तैयार किए तथा कुछ अन्य खाने का सामान अपने-अपने साइकिलों पर रख लिया। मेरे मित्र के पास एक छोटा टेपरिकार्डर भी था उसे भी अपने साथ ले लिया तथा साथ में कुछ अपने मनपसंद गानों की टेप्स भी रख लीं। हम सब अपनी-अपनी साइकिल पर सवार होकर, हँसते-गाते एक-दूसरे को चुटकले सुनाते पिकनिक स्थल की ओर बढ़ चले।

लगभग 45 मिनट में हम सब माधोपुर हैडवर्क्स पर पहुँच गए। वहाँ हमने प्रकृति को अपनी संपूर्ण सुषमा के साथ विराजमान देखा। चारों तरफ़ रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे, शीतल और मंद-मंद हवा बह रही थी। हमने एक ऐसी जगह चुनी जहाँ घास की प्राकृतिक कालीन बिछी हुई थी। हमने वहाँ एक दरी बिछा दी। साइकिल चलाकर हम थोड़ा थक गए थे, अतः हमने पहले थोड़ी देर विश्राम किया। हमारे एक साथी ने हमारी कुछ फ़ोटो उतारीं। थोड़ी देर सुस्ता कर हमने टेप रिकार्डर चला दिया और गीतों की धुन पर मस्ती में भर कर नाचने लगे।

कुछ देर तक हमने इधर-उधर घूम कर वहाँ के प्राकृतिक दृश्यों का नज़ारा देखा। दोपहर को हम सबने अपने-अपने टिफ़िन खोले और सबने मिल बैठ कर एक-दूसरे का भोजन बाँट कर खाया। उसके बाद हमने वहाँ स्थित कैनाल रेस्ट हाउस रेस्तराँ में जाकर चाय पी। चाय-पान के बाद हमने अपने स्थान पर बैठकर अंताक्षरी खेलनी शुरू की। इसके बाद हमने एक-दूसरे को कुछ चुटकले और कुछ आपबीती हँसी मज़ाक की बातें बताईं। समय कितनी जल्दी बीत गया इसका हमें पता ही न चला। जब सूर्य छिपने को आया तो हम ने अपना-अपना सामान समेटा और घर की तरफ चल पड़े।

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16. जैसी संगति बैठिए तैसोई फल होत

संकेत बिंदु – भूमिका, संगति का महत्त्व, सत्संगति, दुर्जन का साथ, उपसंहार।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जब तक वह समाज से संपर्क स्थापित नहीं करता तब तक उसके जीवन की गाड़ी नहीं चल सकती। समाज में कई प्रकार के लोग होते हैं। कुछ सदाचारी हैं तो कुछ दुराचारी। हमें ऐसे लोगों की संगति करनी चाहिए जो हमारे जीवन को उन्नत एवं निर्मल बनाएँ। अच्छी संगति का प्रभाव अच्छा तथा बुरी संगति का प्रभाव बुरा होता है। क्योंकि ‘जैसी संगति बैठिए तैसोई फल होत’ कहा भी है कि किसी व्यक्ति के आचरण को जानने के लिए उसकी संगति को जानना चाहिए।

क्योंकि दुष्टों के साथ रहने वाला व्यक्ति भला हो ही नहीं सकता। संगति का प्रभाव जाने अथवा अनजाने अवश्य पड़ता है। बचपन में जो बालक परिवार अथवा मुहल्ले में जो कुछ सुनते हैं, प्रायः उसी को दोहराते हैं। कहा गया है “दुर्जन यदि विद्वान भी हो तो उसकी संगति छोड़ देनी चाहिए। मणि धारण करने वाला साँप क्या भयंकर नहीं होता ?” सत्संगति का हमारे चरित्र के निर्माण में बड़ा हाथ रहता है। अच्छी पुस्तकों का अध्ययन भी सत्संग से कम नहीं। विद्वान लेखक अपनी पुस्तक रूप में हमारे साथ रहता है।

अच्छी पुस्तकें हमारी मित्र एवं पथ-प्रदर्शक हैं। महान व्यक्तियों के संपर्क ने अनेक व्यक्तियों के जीवन को कंचन के समान बहुमूल्य बना दिया। दुष्टों एवं दुराचारियों का संग मनुष्य को पतन की ओर ले जाता है। मनुष्य को विवेक प्राप्त करने के लिए सत्संगति का आश्रय लेना चाहिए। अपनी और समाज की उन्नति के लिए सत्संग से बढ़कर दूसरा साधन नहीं है। अच्छी संगति आत्म- बल को बढ़ाती है तथा सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।

17. सब दिन होत न एक समान

संकेत बिंदु – भूमिका, सुख-दुख, ऋतु परिवर्तन, उपसंहार।

जीवन को जल की संज्ञा दी गई है। जल कभी सम भूमि पर बहता है तो कभी विषम भूमि पर। कभी रेगिस्तान की भूमि उसका शोषण करती है तो कभी वर्षा की धारा उसके प्रवाह को बढ़ा देती है। मानव जीवन में भी कभी सुख का अध्याय जुड़ता है तो कभी दुख अपने पूरे दल-बल के साथ आक्रमण करता है। प्रकृति में दुख-सुख की धूप-छाया के दर्शन होते हैं। प्रातः काल का समय सुख का प्रतीक है तो रात्रि दुख का। विभिन्न ऋतुएँ भी जीवन के विभिन्न पक्षों की प्रतीक हैं। राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त ने ठीक ही कहा है –
संसार में किसका समय है एक सा रहता सदा,
है निशा दिवा सी घूमती सर्वत्र विपदा – संपदा।
संसार के बड़े-बड़े शासकों का समय भी एक-सा नहीं रहा है। अंतिम मुग़ल सम्राट् बहादुरशाह ज़फर का करुण अंत इस बात का प्रमाण है कि मनुष्य का समय हमेशा एक-सा नहीं रहता। जो आज दीन एवं दुखी है वह कल वैभव के झूले में झूलता दिखाई देता है। जो आज सुख-संपदा एवं ऐश्वर्य में डूबा हुआ है, संभव है भाग्य के विपरीत होने के कारण उसे दर-दर की ठोकरें खाने पर विवश होना पड़े। जो वृक्ष, लताएँ एवं पौधे वसंत ऋतु में वातावरण को मादकता प्रदान करते हैं, वही पतझड़ में वातावरण को नीरस बना देते हैं। जीवन सुख-दुख, आशा-निराशा एवं हर्ष – विषाद का समन्यव है। एक ओर जीवन का उदय है तो दूसरी ओर जीवन का अस्त। अतः ठीक ही कहा गया है ‘सब दिन होत न एक समान।’

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18. जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

संकेत बिंदु – भूमिका, अर्थ, देशानुराग, अधिकार और कर्तव्य, उपसंहार।

इस कथन का भाव है “जननी और जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊँचा है।” जो व्यक्ति अपनी माँ से और भूमि से प्रेम नहीं करता, वह मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं है। देश-द्रोह एवं मातृद्रोह से बड़ा अपराध कोई और नहीं है। यह ऐसा अपराध है जिसका प्रायश्चित्त संभव ही नहीं है। देश – प्रेम की भावना ही मनुष्य को यह प्रेरणा देती है कि जिस भूमि से उसका भरण-पोषण हो रहा है, उसकी रक्षा के लिए अपना सब कुछ अर्पित कर देना उसका परम कर्तव्य है। जननी एवं जन्मभूमि के प्रति प्रेम की भावना जीवधारियों की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। मनुष्य संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। अतः उसके हृदय में देशानुराग की भावना का उदय स्वाभाविक है। मरुस्थल में रहने वाले लोग हाँफ- हाँफकर जीते हैं, फिर भी उन्हें अपनी जन्मभूमि से अगाध प्रेम है। ध्रुववासी अत्यंत शीत के कारण अंधकार तथा शीत में काँप – काँप कर तो जीवन व्यतीत कर लेते हैं, पर अपनी मातृभूमि का बाल- बाँका नहीं होने देते। मुग़ल साम्राज्य के अंतिम दीप सम्राट बहादुरशाह ज़फर की रंगून के कारागार से लिखी ये पंक्तियाँ कितनी मार्मिक हैं –
कितना है बदनसीब ज़फर दफन के लिए,
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कूचा-ए-यार में।
जिस देश के लोग अपनी मातृ-भूमि से जितना अधिक स्नेह करते हैं, वह देश उतना ही उन्नत माना जाता है। देश-प्रेम की भावना ने ही भारत की पराधीनता की जंज़ीरों को काटने के लिए देश-भक्तों को प्रेरित किया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के प्रति हमारा कर्तव्य और भी बढ़ गया है। इस कर्तव्य की पूर्ति हमें जी-जान लगाकर करनी चाहिए।

19. नेता नहीं, नागरिक चाहिए

संकेत बिंदु – भूमिका, नेता, आदर्श नेता, आदर्श नागरिक और सद्गुण, अधिकार – कर्तव्य में संतुलन, उपसंहार।

लोगों का नेतृत्व करने वाले व्यक्ति को नेता कहते हैं। आदर्श नेता एक मार्ग-दर्शक के समान है, जो दूसरों को सुमार्ग की ओर ले जाता है। आदर्श नागरिक ही आदर्श नेता बन सकता है। आज के नेताओं में सद्गुणों का अभाव है। वे जनता के शासक बनकर रहना चाहते हैं, सेवक नहीं। उनमें अहं एवं स्पर्धा का भाव भी पाया जाता है। वर्तमान भारत की राजनीति इस तथ्य की परिचायक है कि नेता बनने की होड़ ने आपसी राग-द्वेष को ही अधिक बढ़ावा दिया है। इसीलिए यह कहा गया है – नेता नहीं नागरिक चाहिए। नागरिक को अपने कर्तव्य एवं अधिकारों के बीच समन्वय रखना पड़ता है।

यदि नागरिक अपने समाज के प्रति अपने कर्तव्य का समुचित पालन करता है तो राष्ट्र किसी संकट का सामना कर ही नहीं सकता। नेता बनने की तीव्र लालसा ने नागरिकता के भाव को कम कर दिया है। नागरिक के पास राजनीतिक एवं सामाजिक दोनों अधिकार रहते हैं। अधिकार की सीमा होती है। हमारे ही नहीं दूसरे नागरिकों के भी अधिकार होते हैं। अतः नागरिक को अपने कर्तव्यों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। नेता अधिकारों की बात ज्यादा जानता है, लेकिन कर्तव्यों के प्रति उपेक्षा भाव रखता है। उत्तम नागरिक ही उत्तम नेता होता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति का यह परम कर्तव्य है कि वह अपने आपको एक अच्छा नागरिक बनाए। नागरिक में नेतृत्व का भाव स्वयंमेव आ जाता है। नेता का शाब्दिक अर्थ है जो दूसरों को आगे ले जाए अर्थात् अपने साथियों के प्रति सहायता एवं सहानुभूति का भाव अपनाए। अतः देश को नेता नहीं नागरिक चाहिए।

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20. आलस्य दरिद्रता का मूल है

संकेत बिंदु – भूमिका, परिश्रम का महत्त्व, उन्नति का मार्ग, आलस्य की हानियाँ, उपसंहार।

जो व्यक्ति श्रम से पलायन करके आलस्य का जीवन व्यतीत करते हैं वे कभी भी सुख-सुविधा का आनंद प्राप्त नहीं कर सकते। कोई भी कार्य यहाँ तक कि स्वयं का जीना भी बिना काम किए संभव नहीं। यह ठीक है कि हमारे जीवन में भाग्य का बड़ा हाथ है। दुर्भाग्य के कारण संभव है मनुष्य को विकास और वैभव के दर्शन न हों पर परिश्रम के बल पर वह अपनी जीविका के प्रश्न को हल कर ही सकता है। यदि ऐसा न होता तो श्रम के महत्त्व को कौन स्वीकार करता। कुछ लोगों का विचार है कि भाग्य के अनुसार ही मनुष्य सुख-दुख भोगता है। दाने-दाने पर मोहर लगी है, भगवान सब का ध्यान रखता है। जिसने मुँह दिया है, वह खाना भी देगा। ऐसे लोग यह भूल जाते हैं कि भाग्य का निर्माण भी परिश्रम द्वारा ही होता है। राष्ट्रकवि दिनकर ने ठीक ही कहा है –

ब्रह्मा से कुछ लिखा भाग्य में, मनुज नहीं लाया है।
उसने अपना सुख, अपने ही भुजबल से पाया है ॥

भगवान ने मुख के साथ-साथ दो हाथ भी दिए हैं। इन हाथों से काम लेकर मनुष्य अपनी दरिद्रता को दूर कर सकता है। हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहने वाला व्यक्ति आलसी होता है। जो आलसी है वह दरिद्र और परावलंबी है क्योंकि आलस्य दरिद्रता का मूल है। आज इस संसार में जो कुछ भी दिखाई दे रहा है, वह श्रम का ही परिणाम है। यदि सभी लोग आलसी बने रहते तो ये सड़कें, भवन, अनेक प्रकार के यान, कला-कृतियाँ कैसे बनतीं ? श्रम से मिट्टी सोना उगलती है परंतु आलस्य से सोना भी मिट्टी बन जाता है। अपने परिवार, समाज और राष्ट्र की दरिद्रता दूर करने के लिए आलस्य का परित्याग कर परिश्रम को अपनाने की आवश्यकता है। हमारे राष्ट्र में जितने हाथ हैं, यदि वे सभी काम में जुट जाएँ तो सारी दरिद्रता बिलख-बिलखकर विदा हो जाएगी। आलस्य ही दरिद्रता का मूल है 1

21. मन के हारे हार है, मन के जीते जीत (2018)

संकेत बिंदु – भूमिका, मन का महत्त्व, मानसिक शक्ति, उन्नति का मार्ग, उपसंहार।

मानव-शरीर यदि रथ के समान है तो यह मन उसका चालक है। मनुष्य के शरीर की असली शक्ति उसका मन है। मन के अभाव में शरीर का कोई अस्तित्व ही नहीं। मन ही वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य से बड़े-से-बड़े काम करवा लेती है। यदि मन में दुर्बलता का भाव आ जाए तो शक्तिशाली शरीर और विभिन्न प्रकार के साधन व्यर्थ हो जाते हैं। उदाहरण के लिए एक सैनिक को लिया जा सकता है। यदि उसने अपने मन को जीत लिया है तो वह अपनी शारीरिक शक्ति एवं अनुमान से कहीं अधिक सफलता पा सकता है।

यदि उसका मन हार गया तो बड़े-बड़े मारक अस्त्र-शस्त्र भी उसके द्वारा अपना प्रभाव नहीं दिखा सकते। मन की शक्ति के बल पर ही मनुष्य ने अनेक आविष्कार किए हैं। मन की शक्ति मनुष्य को अनवरत साधना की प्रेरणा देती है और विजयश्री उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो जाती है। जब तक मन में संकल्प एवं प्रेरणा का भाव नहीं जागता तब तक हम किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते। एक ही काम में एक व्यक्ति सफलता प्राप्त कर लेता है और दूसरा असफल हो जाता है। इसका कारण दोनों के मन की शक्ति की भिन्नता है। जब तक हमारा मन शिथिल है तब तक हम कुछ भी नहीं कर सकते। अतः ठीक ही कहा गया है- ” मन के हारे हार है मन के जीते जीत।”

22. सबै सहायक सबल के

संकेत बिंदु – भूमिका, बल की महत्ता, शक्ति और साहस, जिसकी लाठी उसकी भैंस, शक्ति के बल पर कुकृत्य छिपाना, उपसंहार।

यह संसार शक्ति का लोहा मानता है। लोग चढ़ते सूर्य की पूजा करते हैं। शक्तिशाली की सहायता के लिए सभी तत्पर रहते हैं लेकिन निर्बल को कोई नहीं पूछता। वायु भी आग को तो भड़का देती है, पर दीपक को बुझा देती है। दीपक निर्बल है, कमज़ोर है, इसलिए वायु का उस पर पूर्ण अधिकार है। व्यावहारिक जीवन में भी हम देखते हैं कि जो निर्धन हैं, वे और निर्धन बनते जाते हैं, और जो धनवान हैं उनके पास और धन चला आ रहा इसका एकमात्र कारण यही है कि सबल की सभी सहायता कर रहे हैं और निर्धन उपेक्षित हो रहा है।

सर्वत्र जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। सामाजिक जीवन से लेकर अंतर्राष्ट्रीय जीवन तक यह भावना काम कर रही है। एक शक्तिशाली राष्ट्र दूसरे शक्तिशाली राष्ट्र की सहायता सहर्ष करता है जबकि निर्धन देशों को शक्ति संपन्न देशों के आगे गिड़गिड़ाना पड़ता है। परिवार जैसे सीमित क्षेत्र में भी प्रायः यह देखने को मिलता है कि जो धनवान हैं, उनके प्रति सहायता एवं सत्कार की भावना अधिक होती है। घर में जब कभी कोई धनवान आता है तो उसकी खूब सेवा की जाती है, लेकिन जब द्वार पर भिखारी आता है तो उसको दुत्कार दिया जाता है।

निर्धन ईमानदारी एवं सत्य के पथ पर चलता हुआ भी अनेक कष्टों का सामना करता है जबकि शक्तिशाली दुराचार एवं अन्याय के पथ पर बढ़ता हुआ भी दूसरों की सहायता प्राप्त करने में समर्थ होता है। इसका कारण यही है कि उसके पास शक्ति है तथा अपने कुकृत्यों को छिपाने के लिए साधन हैं। अतः वृंद कवि का यह कथन बिल्कुल सार्थक प्रतीक होता है- सबै सहायक सबल के, कोऊ न निबल सहाय।

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23. सच्चे मित्र से जीवन में सौंदर्य आता है

संकेत बिंदु – भूमिका, सामाजिक जीवन, मित्र की आवश्यकता, मित्र का चुनाव, सच्चा मित्र, उपसंहार।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के अभाव में उसका जीवन निर्वाह संभव नहीं। सामाजिकों के साथ हमारे संबंध अनेक प्रकार के हैं। कुछ हमारे संबंधी हैं, कुछ परिचित तथा कुछ मित्र होते हैं। मित्रों में भी कुछ विशेष प्रिय होते हैं। जीवन में यदि सच्चा मित्र मिल जाए तो समझना चाहिए कि हमें बहुत बड़ी निधि मिल गई है। सच्चा मित्र हमारा मार्ग प्रशस्त करता है।

वह दिन-प्रतिदिन हमें उन्नति की ओर ले जाता है। उसके सद्व्यवहार से हमारे जीवन में निर्मलता का प्रसार होता है। दुख के दिनों में वह हमारे लिए विशेष सहायक होता है। जब हम निरुत्साहित होते हैं तो वह हम में उत्साह भरता है। वह हमें कुमार्ग से हटा कर सुमार्ग की ओर चलने की प्रेरणा देता है। सुदामा एवं कृष्ण की तथा राम एवं सुग्रीव की आदर्श मित्रता को कौन नहीं जानता। श्रीकृष्ण ने अपने दरिद्र मित्र सुदामा की सहायता कर उसके जीवन को ऐश्वर्यमय बना दिया था। राम ने सुग्रीव की सहायता कर उसे सब प्रकार के संकट से मुक्त कर दिया।

सच्चा मित्र कभी एहसान नहीं जतलाता। वह मित्र की सहायता करना अपना कर्तव्य समझता है। वह अपनी दरिद्रता एवं अपने दुख की परवाह न करता हुआ अपने मित्र के जीवन में अधिक-से-अधिक सौंदर्य लाने का प्रयत्न करता है। सच्चा मित्र जीवन के बेरंग खाके में सुखों के रंग भरकर उसे अत्यंत आकर्षक बना देता है, अतः ठीक ही कहा गया है “सच्चे मित्र से जीवन में सौंदर्य आता है।”

24. जीवन का रहस्य निष्काम सेवा है

संकेत बिंदु – भूमिका, जीवन लक्ष्य का महत्त्व, परोपकार, सेवा-भाव, उपसंहार।

प्रत्येक मनुष्य अपनी रुचि के अनुसार अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करता है। कोई व्यापारी बनना चाहता है तो कोई कर्मचारी, कोई इंजीनियर बनने की लालसा से प्रेरित है तो कोई डॉक्टर बनकर घर भरना चाहता है। स्वार्थ पूर्ति के लिए किया गया काम उच्च कोटि की संज्ञा नहीं पा सकता। स्वार्थ के पीछे तो संसार पागल है। लोग भूल गए हैं कि जीवन का रहस्य निष्काम सेवा है। जो व्यक्ति काम – भावना से प्रेरित होकर काम करता है, वह कभी भी सुपरिणाम नहीं ला सकता। उससे कोई लाभ हो भी तो वह केवल व्यक्ति विशेष को ही होता है। समाज को कोई लाभ प्राप्त नहीं होता। निष्काम सेवा के द्वारा ही मनुष्य समाज के प्रति अपना उत्तरदायित्व निभा सकता है। कबीरदास ने भी अपने एक दोहे में यह स्पष्ट किया है –

जब लगि भक्ति सकाम है, तब लेगि निष्फल सेव।
कह कबीर वह क्यों मिले निहकामी निज देव ॥

निष्काम सेवा के द्वारा ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। समाज एवं देश को उन्नति की ओर ले जाने का श्रेष्ठतम तथा सरलतम साधन निष्काम सेवा है। हमारे संत कवियों तथा समाज सुधारकों ने इसी भाव से प्रेरित होकर अपनी चिंता छोड़ देश और जाति का कल्याण किया। इसलिए वे समाज और राष्ट्र के लिए कुछ कर सके। अपने लिए तो सभी जीते हैं। जो दूसरों के लिए जीता है, उसका जीवन अमर हो जाता है। तभी तो गुप्त जी ने कहा है – “वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे। ”

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25. भीड़ भरी बस की यात्रा का अनुभव

संकेत बिंदु – भूमिका, यात्रा का कारण, बस की यात्रा, भीड़, उपसंहार।

वैसे तो जीवन को ही यात्रा की संज्ञा दी गई है पर कभी-कभी मनुष्य को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए गाड़ी अथवा बस का भी सहारा लेना पड़ता है। बस की यात्रा का अनुभव भी बड़ा विचित्र है। भारत जैसे जनसंख्या प्रधान देश में बस की यात्रा अत्यंत असुविधानजनक है। प्रत्येक बस में सीटें तो गिनती की हैं पर बस में चढ़ने वालों की संख्या निर्धारित करना एक जटिल कार्य है। भले ही बस हर पाँच मिनट बाद चले पर चलेगी पूरी तरह भर कर। गर्मियों के दिनों में तो यह यात्रा किसी भी यातना से कम नहीं।

भारत के नगरों की अधिकांश सड़कें सम न होकर विषम हैं। खड़े हुए यात्री की तो दुर्दशा हो जाती है, एक यात्री दूसरे यात्री पर गिरने लगता है। कभी-कभी तो लड़ाई-झगड़े की नौबत पैदा हो जाती है। लोगों की जेबें कट जाती हैं। जिन लोगों के कार्यालय दूर हैं, उन्हें प्रायः बस का सहारा लेना ही पड़ता है। बस यात्रा एक प्रकार से रेल यात्रा का लघु रूप है। जिस प्रकार गाड़ी में विभिन्न जातियों एवं प्रवृत्तियों के लोगों के दर्शन होते हैं, उसी प्रकार बस में भी अलग-अलग विचारों के लोग मिलते हैं।

इनसे मनुष्य बहुत कुछ सीख भी सकता है। भीड़ भरी बस की यात्रा जीवन की कठिनाइयों का सामना करने का छोटा-सा शिक्षालय है। यह यात्रा इस तथ्य की परिचायक है कि भारत अनेक क्षेत्रों में अभी तक भरपूर प्रगति नहीं कर सका। जो व्यक्ति बस यात्रा के अनुभव से वंचित है, वह एक प्रकार से भारतीय जीवन के बहुत बड़े अनुभव से ही वंचित है।

26. अधजल गगरी छलकत जाय

संकेत बिंदु – भूमिका, अधूरा ज्ञान- व्यर्थ, डींग हाँकना, झूठा प्रदर्शन और अपूर्णता, हीनता की ग्रंथि, झूठा गौरव और दिखावे की भावना,

उपसंहार। जल से आमुख भरी गगरी चुपचाप बिना उछले चलती है। आधी भरी हुई जल की मटकी उछल-उछल कर चलती है। ठीक यही स्वभाव मानव मन का भी है। वास्तविक विद्वान विनम्र हो जाते हैं। नम्रता ही उनकी शिक्षा का प्रतीक होता है। दूसरी ओर जो लोग अर्द्ध- शिक्षित होते हैं अथवा अर्द्ध- समृद्ध होते हैं, वे अपने ज्ञान अथवा धन की डींग बहुत हाँकते हैं।

अर्द्ध- शिक्षित व्यक्ति का डींग हाँकना बहुत कुछ मनोवैज्ञानिक भी है। वे लोग अपने ज्ञान का प्रदर्शन करके अपनी अपूर्णता को ढकना चाहते हैं। उनके मन में अपने अधूरेपन के प्रति एक प्रकार की हीनता का मनोभाव होता है जिसे वे प्रदर्शन के माध्यम से झूठा प्रभाव उत्पन्न करके समाप्त करना चाहते हैं। यही कारण है कि मध्यमवर्गीय व्यक्तियों के जीवन जितने आडंबरपूर्ण, प्रपंचपूर्ण एवं लचर होते हैं उतने निम्न या उच्च वर्ग के नहीं। उच्च वर्ग में शिक्षा, धन और समृद्धि रच जाती है।

इस कारण ये चीजें महत्त्व को बढ़ाने का साधन नहीं बनतीं। मध्यमवर्गीय व्यक्ति अपनी हर समृद्धि को, अपने गुण को, अपने महत्त्व को हथियार बनाकर चलाता है। प्रायः यह व्यवहार देखने में आता है कि अंग्रेज़ी की शिक्षा से अल्प परिचित लोग अंग्रेज़ी बोलने तथा अंग्रेज़ी में निमंत्रण- पत्र छपवाने में अधिक गौरव अनुभव करते हैं। अतः यह सत्य है कि अपूर्ण समृद्धि प्रदर्शन को जन्म देती है अर्थात् अधजल गगरी छलकत जाय।

27. मन चंगा तो कठौती में गंगा

संकेत बिंदु – भूमिका, संत रविदास का कथन, निर्मल मानव-मन की महत्ता, स्वच्छ और निष्पाप हृदय, आत्मिक शांति, उपसंहार।

संत रविदास का यह वचन एक मार्मिक सत्य का उद्घाटन करता है। मानव के लिए मन की निर्मलता का होना आवश्यक है। जिसका मन निर्मल होता है, उसे बाहरी निर्मलता ओढ़ने या गंगा के स्पर्श से निर्मलता प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। जिनके मन में मैल होती है, उन्हें ही गंगा की निर्मलता अधिक आकर्षित करती है। स्वच्छ एवं निष्पाप हृदय का व्यक्ति बाह्य आडंबरों से दूर रहता है। अपना महत्त्व प्रतिपादित करने के लिए वह विभिन्न प्रपंचों का सहारा नहीं लेता।

प्राचीन भारत में ऋषि-मुनि घर-बार सभी त्याग कर सभी भौतिक सुखों से रहित होकर भी परमानंद की प्राप्ति इसीलिए कर लेते थे कि उनकी मन – आत्मा पर व्यर्थ के पापों का बोझ नहीं होता था। बुरे मन का स्वामी चाहे कितना भी प्रयास कर ले कि उसे आत्मिक शांति मिले, परंतु वह उसे प्राप्त नहीं कर सकता। भक्त यदि परमात्मा को पाना चाहते हैं तो भगवान स्वयं भी उसकी भक्ति से प्रभावित हो उसके निकट आना चाहता है। वह भक्त के निष्कपट, निष्पाप और निष्कलुष हृदय में मिल जाना चाहता है।

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28. जहाँ चाह, वहाँ राह

संकेत बिंदु – भूमिका, मनुष्य की संघर्षशीलता, उन्नति की राह, परिश्रम की उपयोगिता, उपसंहार।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में प्रतिष्ठापूर्वक जीवन यापन करने के लिए उसे निरंतर संघर्षशील रहना पड़ता है। इसके लिए वह नित्य नवीन प्रयास करता है, जिससे उसकी प्रतिष्ठा बनी रहे तथा वह नित्य प्रति उन्नति करता रहे। यदि मनुष्य के मन में उन्नति करने की इच्छा नहीं होगी तो वह कभी उन्नति कर ही नहीं सकता। अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए मनुष्य अनेक प्रयत्न करता है तब कहीं अंत में उसे सफलता मिलती है। सबसे

पहले मन में किसी कार्य को करने की इच्छा होनी चाहिए, तभी हम कार्य करते हैं और सफलता प्राप्त करते हैं। संस्कृत में एक कथन है कि ‘ उदयमेन हि सिद्धयंति कार्याणि न मनोरथ:’ अर्थात परिश्रम से ही कार्य की सिद्धि होती है। परिश्रम मनुष्य तब करता है जब उसके मन में परिश्रम करने की इच्छा उत्पन्न होती है। जिस मनुष्य के मन में कार्य करने की इच्छा ही नहीं होगी वह कुछ भी नहीं कर सकता। जैसे पानी पीने की इच्छा होने पर हम नल अथवा कुएँ से पानी लेकर पीते हैं। यहाँ पानी पीने की इच्छा ने पानी को प्राप्त करने के लिए हमें नल अथवा कुएँ तक जाने का मार्ग बनाने की प्रेरणा दी। अतः कहा जाता है कि जहाँ चाह, वहाँ राह।

29. का वर्षा जब कृषि सुखाने

संकेत बिंदु – भूमिका, साधन और समय में तारतम्यता, उचित अवसर, अनुकूल समय की परख, उपसंहार।

गोस्वामी तुलसीदास की इस सूक्ति का अर्थ है – जब खेती ही सूख गई, तब पानी के बरसने का क्या लाभ है ? जब ठीक अवसर पर वांछित वस्तु उपलब्ध न हुई तो बाद में उस वस्तु का मिलना बेकार ही है। साधन की उपयोगिता तभी सार्थक हो सकती है, जब वे समय पर उपलब्ध हो जाएँ। अवसर बीतने पर सब साधन व्यर्थ पड़े रहते हैं। अंग्रेज़ी में एक कहावत है- लोहे पर तभी चोट करो जबकि वह गर्म हो अर्थात् जब लोहा मुड़ने और ढलने को तैयार हो, तभी उचित चोट करनी चाहिए।

उस अवसर को खो देने पर केवल लोहे की टन टन की आवाज़ के अतिरिक्त कुछ लाभ नहीं मिल सकता। अतः मनुष्य को चाहिए कि वह उचित समय की प्रतीक्षा में हाथ पर हाथ रख कर न बैठा रहे, अपितु समय की आवश्यकता को पहले से ध्यान करके उसके लिए उचित तैयारी करे। हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है कि समय एक ऐसी स्त्री है जो अपने लंबे बाल मुँह के आगे फैलाए हुए निरंतर दौड़ती चली जा रही है।

जिसे भी समय रूपी उस स्त्री को वश में करना हो, उसे चाहिए कि वह समय के आगे-आगे दौड़ कर उस स्त्री के बालों से उसे पकड़े। उसके पीछे-पीछे दौड़ने से मनुष्य उसे नहीं पकड़ पाता। आशय यह है कि उचित समय पर उचित साधनों का होना ज़रूरी है। जो लोग आग लगने पर कुआँ खोदते हैं, वे आग में अवश्य झुलस जाते हैं। उनका कुछ भी शेष नहीं बचता।

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30. परिश्रम सफलता की कुंजी है –

संकेत बिंदु – भूमिका, परिश्रम का महत्त्व, समयानुसार बुद्धि का सदुपयोग, परिश्रम और बुद्धि का तालमेल, उपसंहार।

संस्कृत की प्रसिद्ध सूक्ति है – ‘उद्यमेनहि सिद्धयंति कार्याणि न मनोरथः ‘ अर्थात् परिश्रम से ही कार्य की सिद्धि होती है, मात्र इच्छा करने से नहीं। सफलता प्राप्त करने के लिए परिश्रम ही एकमात्र मंत्र है। ‘श्रमेव जयते’ का सूत्र इसी भाव की ओर संकेत करता है। परिश्रम के बिना हरी-भरी खेती सूखकर झाड़ बन जाती है जबकि परिश्रम से बंजर भूमि को भी शस्य – श्यामला बनाया जा सकता है।

असाध्य कार्य भी परिश्रम के बल पर संपन्न किए जा सकते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति कितने ही प्रतिभाशाली हों, किंतु उन्हें लक्ष्य में सफलता तभी मिलती है जब वे अपनी बुद्धि और प्रतिभा को परिश्रम की सान पर तेज़ करते हैं। न जाने कितनी संभावनाओं के बीज पानी, मिट्टी, सिंचाई और जुताई के अभाव में मिट्टी बन जाते हैं, जबकि ठीक संपोषण प्राप्त करके कई बीज सोना भी बन जाते हैं। कई बार प्रतिभा के अभाव में परिश्रम ही अपना रंग दिखलाता है। प्रसिद्ध उक्ति है कि निरंतर घिसाव से पत्थर पर भी चिह्न पड़ जाते हैं।

जड़मति व्यक्ति परिश्रम द्वारा ज्ञान उपलब्ध कर लेता है। जहाँ परिश्रम तथा प्रतिभा दोनों एकत्र हो जाते हैं वहाँ किसी अद्भुत कृति का सृजन होता है। शेक्सपीयर ने महानता को दो श्रेणियों में विभक्त किया है – जन्मजात महानता तथा अर्जित महानता। यह अर्जित महानता परिश्रम के बल पर ही अर्जित की जाती है। अतः जिन्हें ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त नहीं है, उन्हें अपने श्रम-बल का भरोसा रखकर कर्म में जुटना चाहिए। सफलता अवश्य ही उनकी चेरी बन कर उपस्थित होगी।

31. समय का महत्त्व अथवा
अथवा
समय सबसे बड़ा धन है

संकेत बिंदु – भूमिका, जीवन की क्षणिकता, समय का महत्त्व, मनोरंजन और समय का मूल्य, परिश्रम ही प्रगति की राह, उपसंहार।

दार्शनिकों ने जीवन को क्षणभंगुर कहा है। इनकी तुलना प्रभात के तारे और पानी के बुलबुले से की गई है। अतः यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि हम अपने जीवन को सफल कैसे बनाएँ। इसका एकमात्र उपाय समय का सदुपयोग है। समय एक अमूल्य वस्तु है। इसे काटने की वृत्ति जीवन को काट देती है। खोया समय पुनः नहीं मिलता। दुनिया में कोई भी शक्ति नहीं जो बीते हुए समय को वापस लाए।

हमारे जीवन की सफलता-असफलता समय के सदुपयोग तथा दुरुपयोग पर निर्भर करती है। कहा भी है- क्षण को क्षुद्र न समझो भाई, यह जग का निर्माता है। हमारे देश में अधिकांश लोग समय का मूल्य नहीं समझते। देर से उठना, व्यर्थ की बातचीत करना, ताश खेलना आदि के द्वारा समय नष्ट करते हैं। यदि हम चाहते हैं तो हमें पहले अपना काम पूरा करना चाहिए। बहुत से लोग समय को नष्ट करने में आनंद का अनुभव करते हैं।

मनोरंजन के नाम पर समय नष्ट करना बहुत बड़ी भूल है। समय का सदुपयोग करने के लिए आवश्यक है कि हम अपने दैनिक कार्य को करने का समय निश्चित कर लें। फिर उस कार्य को उसी समय में करने का प्रयत्न करें। इस तरह का अभ्यास होने से हम समय का मूल्य समझ जाएँगे और देखेंगे कि हमारा जीवन निरंतर प्रगति की ओर बढ़ता जा रहा है। समय के सदुपयोग से ही जीवन का पथ सरल हो जाता है। महान व्यक्तियों के महान बनने का रहस्य समय का सदुपयोग ही है। समय के सदुपयोग के द्वारा ही मनुष्य अमर कीर्ति का पात्र बन सकता है। समय का सदुपयोग ही जीवन का सदुपयोग है। इसी में जीवन की सार्थकता है –
“कल करै सो आज कर, आज करै सो अब। पल में परलै होयगी, बहुरि करोगे कब॥

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32. स्त्री शिक्षा का महत्त्व

संकेत बिंदु – भूमिका, शिक्षा का महत्त्व, नारी का घर और समाज में स्थान, सामाजिक कर्तव्य, गृह विज्ञान की शिक्षा, उपसंहार।

विद्या हमारी भी न तब तक काम में कुछ आएगी।
नारियों को भी सुशिक्षा दी न जब तक जाएगी।

आज शिक्षा मानव – जीवन का एक अंग बन गई है। शिक्षा के बिना मनुष्य ज्ञान – पंगु कहलाता है। पुरुष के साथ-साथ नारी को भी शिक्षा की आवश्यकता है। नारी शिक्षित होकर ही बच्चों को शिक्षा प्रदान कर सकती है। बच्चों पर पुरुष की अपेक्षा नारी के व्यक्तित्व का प्रभाव अधिक पड़ता है। अतः उसका शिक्षित होना ज़रूरी है। ‘स्त्री का रूप क्या हो ?’ – यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है। इतना तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि नारी और पुरुष के क्षेत्र अलग-अलग हैं।

पुरुष को अपना अधिकांश जीवन बाहर के क्षेत्र में बिताना पड़ता है जबकि नारी को घर और बाहर में समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता होती है। सामाजिक कर्तव्य के साथ-साथ उसे घर के प्रति भी अपनी भूमिका का निर्वाह करना पड़ता है। अतः नारी को गृह विज्ञान की शिक्षा में संपन्न होना चाहिए। अध्ययन के क्षेत्र में भी वह सफल भूमिका का निर्वाह कर सकती है।

शिक्षा के साथ-साथ चिकित्सा के क्षेत्र में भी उसे योगदान देना चाहिए। सुशिक्षित माताएँ ही देश को अधिक योग्य, स्वस्थ और आदर्श नागरिक दे सकती हैं। स्पष्ट हो जाता है कि स्त्री शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार होना चाहिए। नारी को फ़ैशन से दूर रह कर सादगी के जीवन का समर्थन करना चाहिए। उसकी शिक्षा समाजोपयोगी होनी चाहिए।

33. स्वास्थ्य ही जीवन है

संकेत बिंदु – भूमिका, स्वास्थ्य का महत्त्व, अस्वस्थ व्यक्ति की मानसिकता, अक्षमता, नशीले पदार्थों की अनुपयोगिता, पौष्टिक और सात्विक भोजन की आवश्यकता, भ्रमण की उपयोगिता, उपसंहार।

जीवन का पूर्ण आनंद वही ले सकता है जो स्वस्थ है। स्वास्थ्य के अभाव में सब प्रकार की सुख-सुविधाएँ व्यर्थ प्रमाणित होती हैं। तभी तो कहा है – ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’ अर्थात शरीर ही सब धर्मों का मुख्य साधन है। स्वास्थ्य जीवन है और अस्वस्थता मृत्यु है। अस्वस्थ व्यक्ति का किसी भी काम में मन नहीं लगता। बढ़िया से बढ़िया खाद्य पदार्थ उसे विष के समान लगता है। वस्तुतः उसमें काम करने की क्षमता ही नहीं होती। अतः प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह अपने स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील रहे। स्वास्थ्य-रक्षा के लिए नियमितता तथा संयम की सबसे अधिक ज़रूरत है।

समय पर भोजन, समय पर सोना और जागना अच्छे स्वास्थ्य के लक्षण हैं। शरीर की सफाई की तरफ भी पूरा ध्यान देने की ज़रूरत है। सफाई के अभाव से तथा असमय खाने-पीने से स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। क्रोध, भय आदि भी स्वास्थ्य को हानि पहुँचाते हैं। नशीले पदार्थों का सेवन तो शरीर के लिए घातक साबित होता है। स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए पौष्टिक एवं सात्विक भोजन भी ज़रूरी है। स्वास्थ्य रक्षा के लिए व्यायाम का भी सबसे अधिक महत्त्व है। व्यायाम से बढ़कर न कोई औषधि है और न कोई टॉनिक।

व्यायाम से शरीर में स्फूर्ति आती है, शक्ति, उत्साह एवं उल्लास का संचार होता है। शरीर की आवश्यकतानुसार विविध आसनों का प्रयोग भी बड़ा लाभकारी होता है। खेल भी स्वास्थ्य लाभ का अच्छा साधन है। इनसे मनोरंजन भी होता है और शरीर भी पुष्ट तथा चुस्त बनता है। प्रायः भ्रमण का भी विशेष लाभ है। इससे शरीर का आलस्य भागता है, काम में तत्परता बढ़ती है। जल्दी थकान का अनुभव नहीं होता।

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34. मधुर वाणी

संकेत बिंदु – भूमिका, श्रेष्ठ वाणी की उपयोगिता, कटुता और कर्कश वाणी, चरित्र की स्पष्टता, विनम्रता और मधुरवाणी, उपसंहार।

वाणी ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ अलंकार है। वाणी के द्वारा ही मनुष्य अपने विचारों का आदान-प्रदान दूसरे व्यक्तियों से करता है। वाणी का मनुष्य के जीवन पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। सुमधुर वाणी के प्रयोग से लोगों के साथ आत्मीय संबंध बन जाते हैं, जो व्यक्ति कर्कश वाणी का प्रयोग करते हैं, उनसे लोगों में कटुता की भावना व्याप्त हो जाती है। जो लोग अपनी वाणी का मधुरता से प्रयोग करते हैं, उनकी सभी लोग प्रशंसा करते हैं। सभी लोग उनसे संबंध बनाने के इच्छुक रहते हैं। वाणी मनुष्य के चरित्र को भी स्पष्ट करने में सहायक होती है।

जो व्यक्ति विनम्र और मधुर वाणी से लोगों के साथ व्यवहार करते हैं, उसके बारे में लोग यही समझते हैं कि इनमें सद्भावना विद्यमान है। मधुर वाणी मित्रों की संख्या में वृद्धि करती है। कोमल और मधुर वाणी से शत्रु के मन पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है। वह भी अपनी द्वेष और ईर्ष्या की भावना को विस्तृत करके मधुर संबंध बनाने का इच्छुक हो जाता है। यदि कोई अच्छी बात भी कठोर और कर्कश वाणी में कही जाए तो लोगों पर उसकी प्रतिक्रिया विपरीत होती है। लोग यही समझते हैं कि यह व्यक्ति अहंकारी है। इसलिए वाणी मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ अलंकार है तथा उसे उसका सदुपयोग करना चाहिए।

35. नारी शक्ति

संकेत बिंदु – भूमिका, नारी का स्वरूप, प्राचीन ग्रंथों में नारी, नारी के बिना नर नारी की सक्षमता, उपसंहार।

नारी त्याग, तपस्या, दया, ममता, प्रेम एवं बलिदान की साक्षात मूर्ति है। नारी तो नर की जन्मदात्री है। वह भगिनी भी और पत्नी भी है। वह सभी रूपों में सुकुमार, सुंदर और कोमल दिखाई देती है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी नारी को पूज्य माना गया है। कहा गया है कि जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। उसके हृदय में सदैव स्नेह की धारा प्रवाहित होती रहती है। नर की रुक्षता, कठोरता एवं उद्दंडता को नियंत्रित करने में भी नारी की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। वह धात्री, जन्मदात्री और दुखहर्त्री है।

नारी के बिना नर अपूर्ण है। नारी को नर से बढ़कर कहने में किसी भी प्रकार की अतिशयोक्ति नहीं है। नारी प्राचीन काल से आधुनिक काल तक अपनी महत्ता एवं श्रेष्ठता प्रतिपादित करती आई है। नारियाँ, ज्ञान, कर्म एवं भाव सभी क्षेत्रों में अग्रणी रही हैं। यहाँ तक कि पुरुष वर्ग के लिए आरक्षित कहे जाने वाले कार्यों में भी उसने अपना प्रभुत्व स्थापित किया है। चाहे एवरेस्ट की चोटी ही क्यों न हो, वहाँ भी नारी के चरण जा पहुँचे हैं। अंटार्कटिका पर भी नारी जा पहुँची है। प्रशासनिक क्षमता का प्रदर्शन वह अनेक क्षेत्रों में सफलतापूर्वक कर चुकी है। आधुनिक काल की प्रमुख नारियों में श्रीमती इंदिरा गांधी, विजयलक्ष्मी पंडित, सरोजिनी नायडू, बछेंद्री पाल, सानिया मिर्ज़ा आदि का नाम गर्व के साथ लिया जा सकता है।

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36. चाँदनी रात में नौका विहार

संकेत बिंदु – भूमिका, ग्रीष्म ऋतु में यमुना नदी में विहार, रात्रिकालीन प्राकृतिक सुषमा, उन्माद भरा वातावरण, उपसंहार।

ग्रीष्मावकाश में हमें पूर्णिमा के अवसर पर यमुना नदी में नौका विहार का अवसर प्राप्त हुआ। चंद्रमा की चाँदनी से आकाश शांत, तर एवं उज्ज्वल प्रतीत हो रहा था। आकाश में चमकते तारे ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो वे आकाश के नेत्र हैं जो अपलक चाँदनी में डूबे पृथ्वी के सौंदर्य को देख रहे हैं। तारों से जड़े आकाश की शोभा यमुना के जल में द्विगुणित हो गई थी। इस रात – रजनी के शुभ प्रकाश में हमारी नौका धीरे-धीरे चलती हुई ऐसी लग रही थी मानो कोई सुंदर परी धीरे-धीरे चल रही हो।

जब नौका नदी के मध्य में पहुँची तो चाँदनी में चमकता हुआ पुलिन आँखों से ओझल हो गया तथा यमुना के किनारे खड़े हुए वृक्षों की पंक्ति भृकुटि सी वक्र लगने लगी। नौका के चलने से जल में उत्पन्न लहरों के कारण उसमें चंद्रमा एवं तारकवृंद ऐसे झिलमिला रहे थे मानो तरंगों की लताओं में फूल खिले हों। रजत सर्पों-सी सीधी-तिरछी नाचती हुई चाँदनी की किरणों की छाया चंचल लहरों में ऐसी प्रतीत होती थी मानो जल में आड़ी-तिरछी रजत रेखाएँ खींच दी गई हों। नौका के चलते रहने से आकाश के ओर-छोर भी हिलते हुए लगते थे।

जल में तारों की छाया ऐसी प्रतिबिंबित हो रही थी मानो जल में दीपोत्सव हो रहा हो। ऐसे में हमारे एक मित्र ने मधुर राग छेड़ दिया, जिससे वातावरण और भी अधिक उन्मादित हो गया। धीरे-धीरे हम नौका को किनारे की ओर ले आए। डंडों से नौका को खेने पर जो फेन उत्पन्न हो रही थी वह भी चाँदनी के प्रभाव से मोतियों के ढेर – सी प्रतीत हो रही थी। समस्त दृश्य अत्यंत दिव्य एवं अलौकिक ही लग रहा था।

37. राष्ट्रीय एकता

संकेत बिंदु – भूमिका, क्षेत्रीयता के प्रति मोह, देश की एकता के लिए घातक, राष्ट्रीय भावना का महत्त्व, भाषाई एकता, अनेकता में एकता, उपसंहार।

आज देश के विभिन्न राज्य क्षेत्रीयता के मोह में ग्रस्त हैं। सर्वत्र एक-दूसरे से बिछुड़ कर अलग होने तथा अपना-अपना मनोराज्य स्थापित करने की होड़ लगी हुई है। यह स्थिति देश की एकता के लिए अत्यंत घातक है क्योंकि राष्ट्रीय एकता के अभाव में देश का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। राष्ट्र से तात्पर्य किसी भौगोलिक भू-खंड मात्र अथवा उस भू-खंड में सामूहिक रूप से रहने वाले व्यक्तियों से न होकर उस भू-खंड में रहने वाली संवेदनशील जनता से होता है।

अतः राष्ट्रीय एकता वह भावना है, जो किसी एक राष्ट्र के समस्त नागरिकों को एकता के सूत्र में बाँधे रखती है। राष्ट्र के प्रति ममत्व की भावना से ही राष्ट्रीय एकता की भावना का जन्म होता है। भारत प्राकृतिक, भाषायी, रहन-सहन आदि की दृष्टि से अनेक रूप वाला होते हुए भी राष्ट्रीय स्वरूप में एक है। पर्वतराज हिमालय एवं सागर इसकी प्राकृतिक सीमाएँ हैं, समस्त भारतीय धर्म एवं संप्रदाय आवागमन में आस्था रखते हैं।

भाषाई भेदभाव होते हुए भी भारतवासियों की भावधारा एक है। यहाँ की संस्कृति की पहचान दूर से ही हो जाती है। भारत की एकता का सर्वप्रमुख प्रमाण यहाँ एक संविधान का होना है। भारतीय संसद की सदस्यता धर्म, संप्रदाय, जाति, क्षेत्र आदि के भेदभाव से मुक्त हैं। इस प्रकार अनेकता में एकता के कारण भारत की राष्ट्रीय एकता सदा सुदृढ़ है।

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38. बारूद के ढेर पर दुनिया

संकेत बिंदु – भूमिका, नए-नए वैज्ञानिक आविष्कार, अस्त्र-शस्त्रों की भरमार, रासायनिक पदार्थों की अधिकता, रसायनों से जीवन को ख़तरे, उपसंहार।

आधुनिक युग विज्ञान का युग है। मनुष्य ने अपने भौतिक सुखों की वृद्धि के लिए इतने अधिक वैज्ञानिक उपकरणों का आविष्कार कर लिया है कि एक दिन वे सभी उपकरण मानव सभ्यता के विनाश का कारण भी बन सकते हैं। एक- दूसरे देश को नीचा दिखाने के लिए अस्त्र-शस्त्रों, परमाणु बमों, रासायनिक बमों के निर्माण ने जहाँ परस्पर प्रतिद्वंद्विता पैदा की है वहीं इनका प्रयोग केवल प्रतिपक्षी दल को ही नष्ट नहीं करता अपितु प्रयोग करने वाले देश पर भी इनका प्रभाव पड़ता है।

नए-नए कारखानों की स्थापना से वातावरण प्रदूषित होता जा रहा है। भोपाल गैस दुर्घटना के भीषण परिणाम हम अभी भी सहन कर रहे हैं। देश में एक कोने से दूसरे कोने तक ज़मीन के अंदर पेट्रोल तथा गैस की नालियाँ बिछाईं जा रही हैं, जिनमें आग लगने से सारा देश जलकर राख हो सकता है। घर में गैस के चूल्हों से अक्सर दुर्घटनाएँ होती रहती हैं। पनडुब्बियों के जाल ने सागर तल को भी सुरक्षित नहीं रहने दिया है।

धरती का हृदय चीर कर मेट्रो रेल बनाई गई है। इसमें विस्फोट होने से अनेक नगर ध्वस्त हो सकते हैं। इस प्रकार आज की मानवता बारूद के एक ढेर पर बैठी है, जिसमें छोटी-सी चिंगारी लगने मात्र से भयंकर विस्फोट हो सकता है।

39. शक्ति अधिकार की जननी है

संकेत बिंदु – भूमिका, शक्ति के प्रकार, शारीरिक और मानसिक शक्तियों का संयोग, अधिकारों की प्राप्ति, सत्य और अहिंसा का बल, अनाचार का विरोध, उपसंहार।

शक्ति का लोहा कौन नहीं मानता है ? इसी के कारण मनुष्य अपने अधिकार प्राप्त करता है। प्रायः यह दो प्रकार की मानी जाती है – शारीरिक और मानसिक। दोनों का संयोग हो जाने से बड़ी से बड़ी शक्ति को घुटने टेकने पर विवश किया जा सकता है। अधिकारों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष की आवश्यकता होती है। इतिहास इस बात का गवाह है कि अधिकार सरलता, विनम्रता और गिड़गिड़ाने से प्राप्त नहीं होते। भगवान कृष्ण ने पांडवों को अधिकार दिलाने की कितनी कोशिश की पर कौरव उन्हें पाँच गाँव तक देने के लिए सहमत नहीं हुए थे।

तब पांडवों को अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए युद्ध का रास्ता अपनाना पड़ा। भारत को अपनी आज़ादी तब तक नहीं मिली थी जब तक उसने शक्ति का प्रयोग नहीं किया। देशवासियों ने सत्य और अहिंसा के बल पर अंग्रेज़ सरकार से टक्कर ली थी। तभी उन्हें सफलता प्राप्त हुई थी और देश आज़ाद हुआ था। कहावत है कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।

व्यक्ति हो अथवा राष्ट्र उसे शक्ति का प्रयोग करना ही पड़ता है। तभी अधिकारों की प्राप्ति होती है। शक्ति से ही अहिंसा का पालन किया जा सकता है, सत्य का अनुसरण किया जा सकता है, अत्याचार और अनाचार को रोका जा सकता है। इसी से अपने अधिकारों को प्राप्त किया जा सकता है। वास्तव में ही शक्ति अधिकार की जननी है।

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40. भाषण नहीं राशन चाहिए

संकेत बिंदु – भूमिका, भाषण की उपयोगिता और अनुपयोगिता, नेताओं की करनी कथनी में अंतर, आम जनता की पीड़ा, उपसंहार।

हर सरकार का यह पहला काम है कि वह आम आदमी की सुविधा का पूरा ध्यान रखे। सरकार की कथनी तथा करनी में अंतर नहीं होना चाहिए। केवल भाषणों से किसी का पेट नहीं भरता। यदि बातों से पेट भर जाता तो संसार का कोई भी व्यक्ति भूख-प्यास से परेशान न होता। भूखे पेट से तो भजन भी नहीं होता। भारत एक प्रजातंत्र देश है। यहाँ के शासन की बागडोर प्रजा के हाथ में है, यह केवल कहने की बात है।

इस देश में जो भी नेता कुर्सी पर बैठता है, वह देश के उद्धार की बड़ी-बड़ी बातें करता है पर रचनात्मक रूप से कुछ भी नहीं होता। जब मंच पर आकर नेता भाषण देते हैं तो जनता उनके द्वारा दिखाए गए सब्जबाग से खुशी का अनुभव करती है। उसे लगता है कि नेता जिस कार्यक्रम की घोषणा कर रहे हैं, उससे निश्चित रूप से गरीबी सदा के लिए दूर हो जाएगी, लेकिन होता सब कुछ विपरीत है।

अमीरों की अमीरी बढ़ती जाती है और आम जनता की ग़रीबी बढ़ती जाती है। यह व्यवस्था का दोष है। इन नेताओं के हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और वाली कहावत चरितार्थ होती है। जनता को भाषण की नहीं राशन की आवश्यकता है। सरकार की ओर से ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि जनता को ज़रूरत की वस्तुएँ प्राप्त करने में कठिनाई का अनुभव न हो। उसे रोटी, कपड़ा, मकान की समस्या का सामना न करना पड़े। सरकार को अपनी कथनी के अनुरूप व्यवहार भी करना चाहिए। उसे यह बात गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि जनता को भाषण नहीं राशन चाहिए। भाषणों की झूठी खुराक से जनता को बहुत लंबे समय तक मूर्ख नहीं बनाया जा सकता।

41. सपने में चाँद की यात्रा

संकेत बिंदु – भूमिका, मन में विचार, सपना, चाँद पर भ्रमण, नींद का खुलना।

आज के समाचार-पत्र में पढ़ा कि भारत भी चंद्रमा पर अपना यान भेज रहा है। सारा दिन यही समाचार मेरे अंतर में घूमता रहा। सोया तो स्वप्न में लगा कि मैं चंद्रयान से चंद्रमा पर जाने वाला भारत का प्रथम नागरिक हूँ। जब मैं चंद्रमा के तल पर उतरा तो चारों ओर उज्ज्वल प्रकाश फैला हुआ था। वहाँ की धरती चाँदी से ढकी हुई लग रही थी। तभी एकदम सफ़ेद वस्त्र पहने हुए परियों ने मुझे पकड़ लिया और चंद्रलोक के महाराज के पास ले गईं। वहाँ भी सभी सफ़ेद उज्ज्वल वस्त्र पहने हुए थे।

उनसे वार्तालाप में मैंने स्वयं को जब भारत का नागरिक बताया तो उन्होंने मेरा सफ़ेद रसगुल्लों जैसी मिठाई से स्वागत किया। वहाँ सभी कुछ अत्यंत निर्मल और पवित्र था। मैंने मिठाई खानी शुरू ही की थी कि मेरी मम्मी ने मेरी बाँह पकड़ कर मुझे उठा दिया और डाँटने लगीं कि चादर क्यों खा रहा है ? मैं हैरान था कि यह क्या हो गया ? कहाँ तो मैं चंद्रलोक का आनंद ले रहा था और यहाँ चादर खाने पर डाँट पड़ रही है। मेरा स्वप्न भंग हो गया था और मैं भागकर बाहर की ओर चला गया।

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42. मेट्रो रेल : महानगरीय जीवन का सुखद सपना

संकेत बिंदु – भूमिका, गति, व्यवस्थित, आराम।

मेट्रो रेल वास्तव में ही महानगरीय जीवन का एक सुखद सपना है। भाग-दौड़ की जिंदगी में भीड़-भाड़ से भरी सड़कों पर लगते हुए गतिरोधों से आज मुक्ति दिला रही है मेट्रो रेल। जहाँ किसी निश्चित स्थान पर पहुँचने में घंटों लग जाते थे, वहीं मेट्रो रेल मिनटों में पहुँचा देती है। यह यातायात का तीव्रतम एवं सस्ता साधन है। यह एक सुव्यवस्थित क्रम से चलती है। इससे यात्रा सुखद एवं आरामदेह हो गई है। बसों की धक्का-मुक्की, भीड़- भाड़ से मुक्ति मिल गई है। समय पर अपने काम पर पहुँचा जा सकता है। एक निश्चित समय पर इसका आवागमन होता है, इसलिए समय की बचत भी होती है। व्यर्थ में इंतज़ार नहीं करना पड़ता है। महानगर के जीवन में यातायात क्रांति लाने में मेट्रो रेल का महत्त्वपूर्ण योगदान है।

43. युवाओं के लिए मतदान का अधिकार

भारत एक लोकतंत्र है जहाँ प्रत्येक व्यस्क को मताधिकार प्राप्त है। पंचायत से लेकर लोकसभा तक के सदस्यों को भारत की व्यस्क जनता अपने मतदान द्वारा चुनती है। युवाओं को अपने मत का महत्त्व समझकर ही इसका प्रयोग करना चाहिए। एक – एक व्यक्ति का मत बहुत ही अमूल्य होता है क्योंकि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की हार-जीत का निर्णय एक मत से भी हो जाता है, जिसके पक्ष में पड़ने से जीत और विपक्ष में जाने से हार का सामना करना पड़ता है।

युवा वर्ग को अपने मत का प्रयोग करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि जिसे वे अपना मत देने जा रहे हैं, वह उनके, समाज के तथा देश के लिए कितना उपयोगी सिद्ध हो सकता है। ईमानदार, परिश्रमी, समाजसेवी, परोपकारी तथा दयालु व्यक्ति ही आप के मत का अधिकारी हो सकता है। जात-बिरादरी – धर्म-संप्रदाय के नाम पर किसी को अपना मत नहीं देना चाहिए। अपने मत का प्रयोग सदा स्वच्छ छवि वाले व्यक्ति को देकर ही करें।

44. शिक्षक : शिक्षार्थी संबंध

शिक्षक-शिक्षार्थी के संबंध प्राचीन भारत में गुरू-शिष्य परंपरा के रूप में जाने जाते थे। राजा से रंक तक के बच्चे गुरूकुलों में शिक्षा ग्रहण करते थे, जहाँ कोई भेदभाव नहीं होता था। गुरू अपने शिष्यों को अपना समस्त ज्ञान दे देने में ही अपने कर्त्तव्य की इति समझते थे। वह उनके लिए उन की संतान से भी अधिक प्रिय होता था। जैसे गुरू द्रोणाचार्य के लिए अश्वत्थामा से भी अधिक प्रिय अर्जुन था। वर्तमान भौतिकतावादी युग में शिक्षक – शिक्षार्थी के संबंधों में भी अर्थ प्रधान हो गया है।

शिक्षार्थी पैसे खर्च करके शिक्षा ग्रहण करता है तथा शिक्षक उसे पढ़ाने के लिए निर्धारित शुल्क लेता है। इस प्रकार शिक्षक को शिक्षार्थी अपने धन से खरीदा हुआ समझता है तथा दोनों में वस्तु और उपभोक्ता का संबंध रह जाता है। वह गरिमा नहीं रह जाती जो प्राचीन गुरू-शिष्य परंपरा में थी। इसलिए हमारा कर्तव्य बनता है कि शिक्षा के बाजारीकरण पर रोक लगाई जाए। इसे मात्र व्यवसाय न बना कर देश के भावी नागरिक बनाने वाले शिक्षकों को वह सम्मान दिया जाए जो उन्हें धन देकर नहीं दिया जा सकता।

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45. मित्रता

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के अभाव में उसका जीवन-निर्वाह संभव नहीं। सामाजिकों के साथ हमारे संबंध अनेक प्रकार के हैं। कुछ हमारे संबंधी हैं, कुछ परिचित तथा कुछ मित्र होते हैं। मित्रों में भी कुछ विशेष प्रिय होते हैं। जीवन में यदि सच्चा मित्र मिल जाए तो समझना चाहिए कि हमें बहुत बड़ी निधि मिल गई है। सच्चा मित्र हमारा मार्ग प्रशस्त करता है। वह दिन-प्रतिदिन हमें उन्नति की ओर ले जाता है। उसके सद्व्यवहार से हमारे जीवन में निर्मलता का प्रसार होता है। दुख के दिनों में वह हमारे लिए विशेष सहायक होता है। जब हम निरुत्साहित होते हैं तो वह हम में उत्साह भरता है।

वह हमें कुमार्ग से हटाकर सुमार्ग की ओर चलने की प्रेरणा देता है। सुदामा एवं कृष्ण की तथा राम एवं सुग्रीव की आदर्श मित्रता को कौन नहीं जानता। श्रीकृष्ण ने अपने दरिद्र मित्र सुदामा की सहायता कर उसके जीवन को ऐश्वर्यमय बना दिया था। राम ने सुग्रीव की सहायता कर उसे सब प्रकार के संकट से मुक्त कर दिया। सच्चा मित्र कभी एहसान नहीं जतलाता। वह मित्र की सहायता करना अपना कर्त्तव्य समझता है। वह अपनी दरिद्रता एवं अपने दुख की परवाह न करता हुआ अपने मित्र के जीवन में अधिक-से-अधिक सौंदर्य लाने का प्रयत्न करता है। सच्चा मित्र जीवन के बेरंग खाके में सुखों के रंग भरकर उसे अत्यंत आकर्षक बना देता है।

46. दहेज प्रथा : एक अभिशाप

दहेज का अर्थ है, विवाह के समय दी जाने वाली वस्तुएं। हमारे समाज में विवाह के साथ लड़की को माता-पिता का घर छोड़कर पति के घर जाना होता है। इस अवसर पर अपना स्नेह प्रदर्शित करने के लिए कन्या के पक्ष के लोग लड़की, लड़कों के संबंधियों को यथाशक्ति भेंट दिया करते हैं। यह प्रथा कब शुरू हुई, कहा नहीं जा सकता। लगता है कि यह प्रथा अत्यंत प्राचीन है। दहेज प्रथा जो आरंभ में स्वेच्छा और स्नेह से भेंट देने तक सीमित रही होगी धीरे-धीरे विकट रूप धारण करने लगी है।

वर पक्ष के लोग विवाह से पहले दहेज में ली जाने वाली धन-राशि तथा अन्य वस्तुओं का निश्चय करने लगे हैं। आधुनिक युग में कन्या की श्रेष्ठता शील-सौंदर्य से नहीं, बल्कि दहेज में आंकी जाने लगी। कन्या की कुरूपता और कुसंस्कार दहेज के आवरण में आच्छादित हो गए। खुलेआम वर की बोली बोली जाने लगी। दहेज में प्रायः राशि से परिवारों का मूल्यांकन होने लगा। इस प्रकार दहेज प्रथा एक सामाजिक समस्या बन गई है।

दहेज प्रथा समाप्त करने के लिए स्वयं युवकों को आगे आना चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे अपने माता-पिता तथा संबंधियों को स्पष्ट शब्दों में कह दें – शादी होगी तो बिना दहेज के होगी। इन युवकों को चाहिए कि वे उस संबंधी का डटकर विरोध करें जो नवविवाहिता को शारीरिक या मानसिक कष्ट देता है। दहेज प्रथा की विकटता को कम करने में नारी का आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र होना भी बहुत हद तक सहायक होता है।

अपने पैरों पर खड़ी युवती को दूसरे लोग अनाप-शनाप नहीं कह सकते। इसके अतिरिक्त चूंकि वह चौबीस घंटे घर पर बंद नहीं रहेगी, सास और ननदों की छींटाकशी से काफ़ी बची रहेगी। बहू के नाराज़ हो जाने से एक अच्छी खासी आय हाथ से निकल जाने का भय भी उनका मुख बंद किए रखेगा। दहेज-प्रथा हमारे समाज का कोढ़ है। यह प्रथा साबित करती है कि हमें अपने को सभ्य मनुष्य कहलाने का कोई अधिकार नहीं है।

जिस समाज में दुल्हिनों को प्यार की जगह यातनाएं दी जाती हैं, वह समाज निश्चित रूप से सभ्यों का नहीं नितांत असभ्यों का समाज है। अब समय आ गया है कि इस कुरीति को समूल उखाड़ फेंकेंगे।

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47. कम्प्यूटर / कम्प्यूटर हमारा मित्र

कम्प्यूटर आधुनिक विज्ञान का अद्भुत करिश्मा है, जिसने सारे विश्व को एक बार तो अपने आकर्षण में जकड़ लिया है। यह पूरी तरह से हम सब का मित्र-सा बन गया है. कोई वैज्ञानिक प्रतिष्ठान हो या औद्योगिक प्रतिष्ठान, बैंक हो या बीमा निगम, रेलवे स्टेशन हो या बस डिपो, सार्वजनिक स्थल हो या सेना का मुख्यालय – सभी जगह कम्प्यूटर का बोल-बाला है। यही आज के बुद्धिजीवियों के चिन्तन का विषय बन रहा है और यही स्कूल-कॉलेजों में विद्यार्थियों की रुचि का केन्द्र है। भारत तेजी से इसके माध्यम से इक्कीसवीं शताब्दी में प्रवेश कर चुका है। हमारे नेता भी यह मानने लगे हैं कि बिना कम्प्यूटर के देश सर्वोन्मुखी विकास की ओर अग्रसर नहीं हो सकता।

कम्प्यूटर का प्रयोग शिक्षा, वैज्ञानिक अनुसंधान, चिकित्सा, व्यवसाय, मनोरंजन, सरकारी, गैर-सरकारी आदि सभी क्षेत्रों में होने लगा है। इंटरनेट के माध्यम से कम्प्यूटर विद्यार्थियों की लाइब्रेरी तथा पाठशाला बन गया है। बैंकों, प्रकाशन के क्षेत्र, परीक्षा परिणाम आदि सभी कार्य कम्प्यूटर द्वारा होने लगे हैं। कम्प्यूटर ने आज के जीवन को अत्यंत सुगम तथा सहज बना दिया है।

जहाँ कम्प्यूटर के इतने लाभ हैं, वहीं दिन-रात इस से चिपके रहने से शरीर पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। आँखें कमज़ोर हो जाती हैं तथा एक ही स्थिति में बैठे रहने से शरीर के अंगों में भी विकृति आ जाती है। इसलिए कम्प्यूटर का प्रयोग अत्यधिक समय तक नहीं करना चाहिए।

48. अपनी भाषा प्यारी भाषा

अपनी भाषा के उत्थान के बिना व्यक्ति उन्नति कर ही नहीं सकता। भाषा अभिव्यक्ति का प्रमुख माध्यम है। भाषा सामाजिक जीवन का अपरिहार्य अंग है। इसके बिना समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अपनी भाषा में अपने मन के विचारों को प्रकट करने में सुविधा रहती है। विदेशी भाषा कभी भी हमारे भावों को उतनी गहरी अभिव्यक्ति नहीं दे सकती जितनी हमारी मातृभाषा महात्मा गांधीजी ने भी इसी बात को ध्यान में रखकर मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने पर बल दिया था।

हमारे देश में अंग्रेज़ी के प्रयोग पर इतना अधिक बल दिए जाने के उपरांत भी अपेक्षित सफलता इसी कारण नहीं मिल पा रही हैं क्योंकि इसके द्वारा हम अपने विचारों को पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं दे सकते। हम हीनता की भावना का शिकार हो रहे हैं। अंग्रेज़ी – परस्तों द्वारा दिया जाने वाला यह तर्क भ्रमित कर रहा है कि, ” अंग्रेज़ी ज्ञान का वातायन है।” अपनी भाषा के बिना मानव की मानसिक भूख शांत नहीं हो सकती। निज भाषा की उन्नति से ही समाज की उन्नति होती है। निज भाषा जननी तुल्य है। अतः कहा गया है कि –

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिना निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।

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49. स्वच्छता अभियान

स्वच्छता ही किसी घर, समाज और देश को स्वस्थ वातावरण और सुखद जीवन प्रदान करती है और इसलिए देश में सर्वत्र स्वच्छता अभियान चलाया जा रहा है। इसके लिए केंद्रीय तथा राज्य सरकारों की ओर से भरपूर सहयोग तथा सहायता दी जा रही है। खुले में शौच के स्थान पर गाँव-गाँव, बस्ती-बस्ती में शौचालयों का निर्माण किया जा रहा है। लोगों को शिक्षित भी किया जा रहा है कि खुले में शौच से कैसे वातावरण दूषित हो जाता है तथा बीमारियाँ फैलती हैं। विद्यालयों से लेकर कार्यालयों तक और घर से लेकर गली मुहल्ले तक साफ-सुथरे किए जा रहे हैं।

स्थानीय निकाय घर-घर जाकर कूड़ा एकत्र कर कूड़े का वैज्ञानिक रीति से संशोधन कर रहे हैं। साफ-सफाई के लिए गली, मुहल्ले, नगर, गाँव पुरस्कृत भी किए जा रहे हैं। इस अभियान को पूर्ण रूप से सफल बनाने के लिए हमें अपना घर, गली, मुहल्ला साफ रखना चाहिए तथा दूसरों को भी प्रेरित करना चाहिए कि वे भी स्वच्छता अभियान को अपना कर देश को स्वस्थ बनाएँ।

50. लड़कियों की शिक्षा

विद्या हमारी भी न तब तक काम में कुछ आएगी।
अर्धांगनियों को भी सुशिक्षा दी न जब तक जाएगी॥

ऐम बी डी आज शिक्षा मानव-जीवन का एक आवश्यक अंग बन गई है। शिक्षा के बिना मनुष्य ज्ञान – पंगु कहलाता है। पुरुष के साथ-साथ नारी को भी शिक्षा की आवश्यकता है। नारी शिक्षित होकर ही बच्चों को शिक्षा प्रदान कर सकती है। बच्चों पर पुरुष की अपेक्षा नारी के व्यक्तित्व का प्रभाव अधिक पड़ता है। अतः उसका शिक्षित होना ज़रूरी है।

‘स्त्री का रूप क्या हो ?’ – यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है। इतना तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि नारी और पुरुष के क्षेत्र अलग-अलग हैं। पुरुष को अपना अधिकांश जीवन बाहर के क्षेत्र में बिताना पड़ता है जबकि नारी को घर और बाहर में समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता होती है। सामाजिक कर्तव्य के साथ-साथ उसे घर के प्रति भी अपनी भूमिका का निर्वाह करना पड़ता है। अतः नारी को गृह विज्ञान की शिक्षा में संपन्न होना चाहिए। अध्ययन के क्षेत्र में भी वह सफल भूमिका का निर्वाह कर सकती है। शिक्षा के साथ-साथ चिकित्सा के क्षेत्र में भी उसे योगदान देना चाहिए। सुशिक्षित माताएँ ही देश को अधिक योग्य, स्वस्थ और आदर्श नागरिक दे सकती हैं।

स्पष्ट हो जाता है कि स्त्री-शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार सर्वत्र होना चाहिए। नारी को फैशन से दूर रहकर सादगी के जीवन का समर्थन करना चाहिए। उसकी शिक्षा समाजोपयोगी हो।

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51. स्वच्छ भारत अभियान

संकेत बिंदु – सर्वमान्य विचारधारा, उद्देश्यमूलक बनाना, जागरूकता फैलाना

गांधी जी का यह कहना था कि स्वच्छता परमात्मा की आराधना के समान है। उनकी इस सर्वमान्य विचारधारा को ध्यान में रखते हुए 2 अक्टूबर, 2014 को भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के द्वारा गांधी जी की समाधि राजघाट से स्वच्छ भारत अभियान का श्रीगणेश किया गया था। इस अभियान में सरकारी और गैर-सरकारी कर्मचारी, सभी राज्यों के मंत्री, विद्यालयों के छात्र, शैक्षणिक और औद्योगिक संस्थानों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया।

स्वच्छता को केवल अपने घर, दुकान या दफ़्तर तक सीमित न रखकर अपने बाहरी वातावरण को भी स्वच्छ बनाने का जज्बा होना चाहिए। सभी देशवासियों को मिलकर इस स्वच्छ भारत अभियान को उद्देश्यमूलक बनाना है जिसके अंतर्गत सड़कों, शहरों, गांव, शैक्षिक और औद्योगिक संस्थानों इत्यादि की स्वच्छता का ध्यान रखना आवश्यक होगा। आज स्वच्छता का विस्तार करने के लिए देश के प्रत्येक घर में शौचालयों का निर्माण कर इस दिशा में अभूतपूर्व सफलता मिली है, इससे हमारा वातावरण स्वच्छ और स्वस्थ दिखाई देने लगा है और हर घर में पीने का स्वच्छ जल उपलब्ध भी हो रहा है।

इस अभियान को सफल बनाने के लिए बहुत से जाने-माने लोगों ने आगे बढ़कर हिस्सा लिया है और इस अभियान को नई गति दी है। देश के लाखों छात्रों, युवा-युवतियों ने अपना योगदान जागरूकता फैलाकर दिया है। हमें यह याद रखना चाहिए, कि इस स्वच्छ भारत अभियान को सफल बनाना केवल सरकार का नहीं बल्कि हम सब देशवासियों का दायित्व है। हमारे आस-पास किसी तरह की अस्वच्छता हमें बीमार कर सकती है। नाक बंद कर लेने से गंदगी दूर नहीं होगी, उसके लिए हमें खुद आगे बढ़कर उसे दूर करने का प्रयास करना होगा। हम सभी को यह प्रण लेना चाहिए कि इस देश को स्वच्छ बनाने में हम अपना पूर्ण योगदान देंगे।

52. कोरोना वायरसः एक महामारी अथवा कोरोना वायरस

संकेत बिंदु – कोरोना का संक्रमण, लॉकडाउन के सकारात्मक प्रभाव, कोरोना वायरस के लक्षण क्या हैं?

“कोरोना” का अर्थ ‘मुकुट जैसी आकृति’ होती है। इस अदृश्य वायरस को सूक्षदर्शी यंत्र से ही देखा जा सकता है। इसके वायरस के कणों के इर्द-गिर्द उभरे हुए काँटे जैसे ढाँचों से सूक्ष्मदर्शी में मुकुट जैसा आकार दिखाई देता है, इसी आधार पर इसका नाम रखा गया था। दूसरे अर्थ को समझने के लिए सूर्य ग्रहण के समय चंद्रमा सूर्य को ढक लेता है तो चंद्रमा के चारों और किरणें निकलती प्रतीत होती हैं उसको भी ‘कोरोना’ कहते हैं। कोरोना वायरस का प्रकोप चीन के वुहान में दिसंबर 2019 के मध्य में शुरू हुआ था और इसी कारण से इसका कोविड-19 नामकरण किया गया।

इसके प्रसार होते ही से ज़्यादातर मौतें चीन में हुई हैं लेकिन दुनिया भर में इससे कई लाख लोग प्रभावित होकर जान गँवा चुके हैं। चीन ने इस वायरस से बचने के लिए इमरजेंसी कदम उठाया जिसमें कई शहरों को लोकडाउन कर दिया गया था। इसकी रोकथाम के लिए सार्वजनिक परिवहन को रोक दिया गया था और सार्वजनिक जगहों और पर्यटन स्थलों को बंद कर दिया गया था। केवल चीन ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देश वायरस से बचने के लिए लोकडाउन लगाने जैसे कदम उठाए थे।

कोरोना वायरस मुख्य तौर पर जानवरों के बीच फैलता है लेकिन बाद में इसने मानवों को भी संक्रमित कर दिया। कोरोना वायरस के जो लक्षण हैं, उनमें 90 फीसदी मामलों में बुखार, 80 फीसदी मामलों में थकान और सूखी खाँसी, 20 फीसदी मामलों में साँस लेने में परेशानी देखी गई है। दोनों फेफड़ों में इससे परेशानी देखी गई। इसके अलावा बड़ी संख्या में लोगों को निमोनिया की भी शिकायत हुई है। इस बात को माना जा रहा है कि इस वायरस की शुरुआत वुहान शहर के सीफूड बाज़ार में हुई थी।

जिन लोगों में शुरुआत में यह पाया गया, वे लोग उस थोक बाजार में काम करते थे। इसके फैलने का जरिया अभी पूरी तरह साफ़ नहीं है। लेकिन इसके एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में फैलने के प्रमाण हैं। इसके साथ ऐसा माना जा रहा है कि इससे प्रभावित एक व्यक्ति कम से कम तीन से चार स्वस्थ लोगों तक वायरस को फैला सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम चीन में इसकी उत्पत्ति को जाँच कर रही है। वर्तमान में कोरोना वायरस से बचने के लिए अनेक वैक्सीन मौजूद हैं। विश्व के कई देशों में टीकाकरण अभियान शुरू हो चुका है।

आप इससे बचने के लिए टीकाकरण करवा सकते हैं। टीकाकरण के दौरान भी अभी आप अपने हाथों को साबुन और पानी के साथ कम से कम 20 सेकेंड तक धोएँ। दो गज की सामाजिक दूरी बनाए रखें बिना धुले हुए हाथों से अपनी आँखों, नाक या मुँह को न स्पर्श करें। जो लोग बीमार हैं, उनके ज़्यादा नजदीक न जाएँ, फेस मास्क लगाना न भूलें। टीकाकरण के लिए आप अपनी बारी का इंतजार कर लाभ उठा सकते हैं।

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53. कमरतोड़ महँगाई

संकेत बिंदु – महँगाई के मुख्य कारण, भारत में महँगाई, महँगाई की रोकथाम के उपाय

आमतौर पर महँगाई का प्रमुख कारण उपभोक्ता वस्तुओं का अभाव तथा मुद्रास्फीति की दर है। जीवन के लिए आवश्यक दैनिक वस्तुओं की कमी कई बातों पर निर्भर करती है। इनमें, जैसे- अधिक वर्षा, हिमपात, अल्पवर्षा, अकाल, तूफान, फसलों की रोगग्रस्तता, प्रतिकूल मौसम, ओले, अनावृष्टि आदि। इसके अलावा स्वार्थी मानव द्वारा की गई गलत हरकतों द्वारा भी दैनिक उपयोगी वस्तुओं का कृत्रिम अभाव पैदा किया जाता है और फिर उन वस्तुओं को अधिक कीमत वसूल करके बेचा जाता है।

इस प्रकार के अनर्गल काम आमतौर पर थोक व्यापारियों द्वारा किए जाते हैं। वे किसी वस्तु विशेष की जमाखोरी करके आकस्मिक अभाव पैदा करते हैं और फिर उस वस्तु को जरूरतमंद के हाथों बेचकर मनमाने दाम वसूल करते हैं। यही कारण है कि भारत में महँगाई बढ़ जाती है और फिर अचानक घट जाती है। प्राइवेट सेक्टर के उत्पादनों की कीमतों पर प्रतिबंध लगाने तथा लाभ की सीमा तय करने में सरकार असमर्थ है। देश में भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है जिसका कारण जमाखोर तथा मुनाफाखोर हैं।

वेतन में हुई भारी वृद्धि का लाभ उठाकर उत्पादकों ने सभी प्रकार के उत्पादों की कीमतें काफी बढ़ा दीं। महँगाई भारत में हीं नहीं वरन पूरे विश्व में गंभीर समस्या के रूप में सामने आई है। समय के साथ महँगाई और भ्रष्टाचार के कारण हमारे देश की हालत कुछ ऐसी हो गई है कि अमीर और अमीर होता जा रहा है, गरीब गरीबी। उपभोक्ता और सरकार के बीच अच्छे तालमेल से महँगाई पर काबू पाया जा सकता है। महँगाई बढते ही सरकार देश मे ब्याज दर बढ़ा देती है। सरकार द्वारा तय की हुई राशि का आम आदमी तक पहुँचना बेहद जरूरी है।

इससे गरीबी में भी गिरावट आएगी और लोगों के जीने के स्तर में भी सुधार आएगा। समय – समय पर यह जाँच करना ज़रूरी है कि कोई व्यापारी या फिर कोई अन्य व्यक्ति कालाबाज़ारी या अधिक मुनाफाखोरी के काम में तल्लीन तो नहीं है। सरकार द्वारा सर्वेक्षण करना ज़रूरी है कि बाज़ार मे किसी वस्तु का दाम कितना है, यह तय मानक दरों से अधिक तो नहीं है। मूल सुविधाओं और अन्न के दाम समय – समय पर देखने होगे क्योंकि मनुष्य के जीवन के लिए अन्न बेहद ज़रूरी है।

54. बदलती जीवन शैली के परिणाम

संकेत बिंदु – जीवन-शैली का अर्थ, बदलती जीवन शैली के प्रभाव, मानव के लिए सीख

जीवन-शैली किसी व्यक्ति, समूह, रुचि, राय, व्यवहार की दिशा आदि को संयुक्त रूप से व्यक्त करता है। आधुनिकता की इस अंधी दौड़ और हमारी जीवन-शैली ने आज हमारे स्वास्थ्य को जानलेवा बीमारियों से ग्रसित कर दिया है। जितनी तेजी से विज्ञान ने तरक्की कर हमें सुविधाएँ उपलब्ध करवाई हैं उतनी ही तेजी से तरह – तरह की बीमारियों का शिकार बनाया है। मानसिक तनाव, जैसे रोग तथा अन्य रोग जैसे मोटापा, गैस, कब्ज अस्थमा, जोड़ों का दर्द, माइग्रेन, बवासीर, उच्च रक्तचाप, मधुमेह व हृदयरोग जैसे गंभीर रोग इसी आधुनिक जीवन शैली की देन हैं।

दरअसल, इस तनावभरी जीवनशैली में आज के युवा भूलते जा रहे हैं कि देर रात पार्टियों में धूम्रपान व शराब का सेवन उनके ही जीवन को किस कदर दुष्प्रभावित कर रहा है। धूम्रपान करने वाले युवाओं में नपुंसकता का प्रतिशत अपेक्षाकृत अधिक पाया जाता है. शारीरिक श्रम के नाम पर लोग दिनभर कुछ नहीं करते। पैदल नहीं चलते, सीढियाँ नहीं चढ़ते, शारीरिक श्रम न करने की वजह से लोगों का पाचन-तंत्र खराब हो जाता है।

हम अपना जीवन जी रहे हें या काट रहे हैं, यह जानना हमारे लिए बेहद जरूरी है। हमने आने-जाने के लिए खूब चौड़े मार्ग तो बना लिए लेकिन हम संकीर्ण विचारों से बुरी तरह ग्रस्त हैं। हम अनावश्यक खर्च करते हैं और बदले में काम बहुत कम करते हैं। हम खरीदते बहुत अधिक हैं परंतु आनंद कम ही उठा पाते हैं। हमारे घर बहुत बड़े – बड़े हैं परंतु उनमें रहने वाले परिवार छोटे हैं। हम बहुत निपुण हैं लेकिन समस्याओं में उलझे रहते हैं। हमारे पास दवाइयाँ अधिक हैं किंतु स्वास्थ्य कमजोर है, हम अधिक खाते-पीते हैं परंतु हँसते कम हैं।

देर रात तक जागते हैं और सुबह भारी थकान के साथ उठते हैं। कम पढ़ते हैं और अधिक टी.वी. देखकर तनाव मोल लेते हैं। हम प्रार्थना कम करते हैं और दूसरों से घृणा और नफ़रत अधिक करते हैं। हमने रहने का तरीका सीख लिया है किंतु हमें जीना नहीं आया। हम चाँद पर जाकर वापस आ गए लेकिन अभी तक अपने पड़ोसी से मुलाकात नहीं की। हमने बाहरी क्षेत्र जीत लिए परंतु भीतर से टूटे और हारे हुए हैं। हमने बड़े-बड़े काम किए परंतु बेहतर नहीं। हमारी ‘आधुनिक जीवन-शैली’ कितनी बुरी तरह बिगड़ी और बिखरी हुई है।

इस बात का शायद हमें अनुमान भी नहीं है। इस बिखराव के कारण हमें कितनी भारी कीमत चुकानी पड़ रही है और चुकानी पड़ेगी, इस बात को समझने में शायद अभी सदियाँ लगेंगी। फिर भी, क्योंकि ‘मनुष्य जीवन’ हमारे पास प्रकृति की एक अमूल्य धरोहर और उपहार है, इसलिए प्रकृति से हमें सुसभ्य ढंग से जीने की कला सीखनी चाहिए न कि अर्थहीन व भ्रमित आधुनिक जीवन शैली के प्रभाव में आकर उसके चकाचौंध में जीवन-यापन करें।

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55. बढ़ते प्रदूषण की समस्या

संकेत बिंदु – प्रदूषण शब्द का अर्थ, अनेक समस्याएँ, स्वस्थ और प्रदूषण मुक्त वातावरण

प्रदूषण शब्द का अर्थ है – दूषित करना। प्रदूषण वर्तमान युग का एक ऐसा अभिशाप है, जो विज्ञान की शक्ति से जन्मा है और इसे झेलने के लिए आज संपूर्ण विश्व विवश है। मनुष्य ने प्रकृति की गोद में जन्म लिया है और प्रकृति सदैव से ही उसकी सहचरी रही है। मनुष्य अपने लोभ और स्वार्थ के कारण पर्यावरण की लगातार उपेक्षा करने लग गया है। मानव सभ्यता का विकास होता गया और वह अपने आसपास के पर्यावरण को जमकर प्रदूषित करता गया। आज प्रदूषण के बढ़ने से हमारी धरती पर अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं।

यदि समय रहते इन पर नियंत्रण न किया गया तो वे दिन दूर नहीं जब धीरे-धीरे सभी जीव-जंतुओं का विनाश हो जाएगा। वनों की अंधाधुंध कटाई, कारखानों की चिमनियों का प्रदूषित धुआँ, वाहनों का धुआँ धरती के पवित्र वातावरण को दूषित करता जा रहा है। प्रदूषण कई तरह के होते हैं। इनमें से सबसे हानिकारक जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, और ध्वनि प्रदूषण हैं।

महानगरों का सारा कूड़ा-करकट और मलमूत्र जल में डाल दिया जाता है जिससे हमारे पीने का पानी अशुद्ध और मलिन हो गया है और इस मलिन जल के सेवन से हमारे शरीर को अनेक तरह की बीमारियाँ लग रही हैं। वायु प्रदूषण हमारे द्वारा उत्पन्न की गई गैसों से संपूर्ण वायु में फैल जाता है और वही दूषित हवा को हम श्वसन क्रिया द्वारा अंदर लेते हैं और भयंकर बीमारियों का शिकार बन जाते हैं। ध्वनि प्रदूषण का कारण बढ़ती जनसंख्या भी है, जिसके कारण शोर-शराबा बढ़ता जा रहा है; जैसे – वाहनों का शोर, कल-कारखानों में मशीनों का शोरगुल इत्यादि। प्रदूषण पर नियंत्रण पाने के लिए सभी लोगो के संयुक्त प्रयास की आवश्यकता है जिससे की हम एक स्वस्थ और प्रदूषणमुक्त वातावरण का उपभोग कर सकें।

56. डिजिटल इंडिया मिशन

संकेत बिंदु – अति उत्तम मिशन, क्रांतिकारी कदम, देश की प्रगति में चार चाँद

भारत सरकार द्वारा चलाई जाने वाली डिजिटल इंडिया एक अति उत्तम मिशन है। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य भारत के सभी छोटे बड़े सरकारी विभागों को डिजिटल रूप देकर उनकी कार्य करने की गति को द्रुत करना और देश के हर कोने तक सरकारी और गैरसरकारी क्षेत्र में सुविधा पहुँचाना है। भारत के द्रुत विकास के लिए डिजिटल इंडिया योजना के तहत अनेक योजनाएँ चलाई जा रही हैं जिससे कि सभी नागरिकों को डिजिटल सुख-सुविधाएँ मिल सकेंगी। इस मिशन के अंतर्गत भारत के सभी क्षेत्र के कामों को इंटरनेट से जोड़ना भी आवश्यक समझा जा रहा है।

यह एक ऐसा क्रांतिकारी कदम है जिसमें इंटरनेट और कंप्यूटर के माध्यम से सरकारी योजनाओं का लाभ सीधे आम आदमी के बैंक खाते में पहुँचाकर लाभ देना। शिक्षा और कृषि से संबंधित जानकारी दूर-दूर ग्रामीणों तक पहुँचाना सुगम हो गया है। बिना पैसे प्रयोग किए क्रेडिट, डेबिट कार्ड या कैश वॉलेट द्वारा भुगतान, लैपटॉप या मोबाइल द्वारा फॉर्म जमा करना, रुपयों का भुगतान, रेलवे या होटलों की बुकिंग करना, समाचार या पत्रिका इंटरनेट पर पढ़ना आदि इसके बहुआयामी लाभ हैं।

डिजिटल इंडिया हमें भौगोलिक दृष्टि से एक दूसरे के अत्यंत निकट ले आया हैं। घर बैठे आज मोबाइल से ही सब कुछ किया जा रहा है। इस मिशन ने डिजिटल इंडिया अभियान में हमें विश्व के प्रमुख देशों के साथ कदम से कदम मिला कर चलने में हमारी सहायता की है। आज की आधुनिक सदी में डिजिटल इंडिया हमारे देश की प्रगति में चार चाँद लगा रहा है।

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57. परीक्षा से पहले मेरी मनोदशा

संकेत बिंदु – परीक्षा के नाम से भय, पर्याप्त तैयारी, प्रश्नपत्र देखकर भय दूर हुआ

वैसे तो हर मनुष्य परीक्षा से घबराता है किंतु विद्यार्थी इससे विशेष रूप से घबराता है। परीक्षा में पास होना ज़रूरी है नहीं तो जीवन का एक बहुमूल्य वर्ष नष्ट हो जाएगा। अपने साथियों से बिछड़ जाएँगे। ऐसी चिंताएँ हर विद्यार्थी को रहती हैं। परीक्षा शुरू होने से पूर्व जब मैं परीक्षा भवन पहुँचा तो मेरा दिल धक-धक कर रहा था। परीक्षा शुरू होने से आधा घंटा पहले मैं वहाँ पहुँच गया था।

मैं सोच रहा था कि सारी रात जागकर जो प्रश्न तैयार किए हैं यदि वे प्रश्न-पत्र में न आए तो मेरा क्या होगा ? इसी चिंता में मैं अपने सहपाठियों से खुलकर बात नहीं कर रहा था। परीक्षा भवन के बाहर का दृश्य बड़ा विचित्र था। परीक्षा देने आए कुछ विद्यार्थी बिलकुल बेफ़िक्र लग रहे थे। वे आपस में ठहाके मार-मार कर बातें कर रहे थे। कुछ ऐसे भी विद्यार्थी थे जो अभी तक किताबों से चिपके हुए थे।

मैं अकेला ऐसा विद्यार्थी था जो अपने साथ घर से कोई किताब या सहायक पुस्तक नहीं लाया था क्योंकि मेरे पिता जी कहा करते हैं कि परीक्षा के दिन से पहले की रात को ज्यादा पढ़ना नहीं चाहिए। सारे साल का पढ़ा हुआ भूल जाता है। वे परीक्षा के दिन से पूर्व की रात को जल्दी सोने की भी सलाह देते हैं जिससे सवेरे उठकर विद्यार्थी तरो ताज़ा होकर परीक्षा देने जाए न कि थका-थका महसूस करे।

परीक्षा भवन के बाहर लड़कों की अपेक्षा लड़कियाँ अधिक खुश नज़र आ रही थीं। उनके खिले चेहरे देखकर ऐसा लगता था मानो परीक्षा के भूत का उन्हें कोई डर नहीं। उन्हें अपनी स्मरण शक्ति पर पूरा भरोसा था। थोड़ी ही देर में घंटी बजी। यह घंटी परीक्षा भवन में प्रवेश की घंटी थी। इसी घंटी को सुनकर सभी ने परीक्षा भवन की ओर जाना शुरू कर दिया हँसते हुए चेहरों पर अब गंभीरता आ गई थी। परीक्षा भवन के बाहर अपना अनुक्रमांक और स्थान देखकर मैं परीक्षा भवन में प्रविष्ट हुआ और अपने स्थान पर जाकर बैठ गया। कुछ विद्यार्थी अब भी शरारतें कर रहे थे। मैं मौन हो धड़कते दिल से प्रश्न – पत्र बँटने की प्रतीक्षा करने लगा !

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58. परीक्षा भवन का दृश्य

संकेत बिंदु – परीक्षा से घबराहट, परीक्षार्थियों का आना, घबराहट और बेचैनी, परीक्षा भवन का दृश्य

मार्च महीने की पहली तारीख थी। उस दिन हमारी वार्षिक परीक्षाएँ शुरू हो रही थीं। परीक्षा शब्द से वैसे सभी मनुष्य घबराते हैं परंतु विद्यार्थी वर्ग इस शब्द से विशेष रूप से घबराता है। मैं जब घर से चला तो मेरा दिल भी धक् धक् कर रहा था। मैं रात भर पढ़ता रहा था और चिंता थी कि यदि सारी रात के पढ़े में से कुछ भी प्रश्न-पत्र में न आया तो क्या होगा ? परीक्षा भवन के बाहर सभी विद्यार्थी चिंतित से नज़र आ रहे थे। कुछ विद्यार्थी किताबें लेकर अब भी उसके पन्ने उलट-पुलट रहे थे।

कुछ बड़े खुश-खुश नज़र आ रहे थे। मैं अपने सहपाठियों से उस दिन के प्रश्न-पत्र के बारे में बात कर ही रहा था कि परीक्षा भवन में घंटी बजनी शुरू हो गई। यह संकेत था कि हमें परीक्षा भवन में प्रवेश कर जाना चाहिए। सभी विद्यार्थियों ने परीक्षा भवन में प्रवेश करना शुरू कर दिया। भीतर पहुँच कर हम सब अपने-अपने अनुक्रमांक के अनुसार अपनी-अपनी सीट पर जाकर बैठ गए। थोड़ी ही देर में अध्यापकों द्वारा उत्तर-पुस्तिकाएँ बाँट दी गईं और हमने उस पर अपना-अपना अनुक्रमांक आदि लिखना शुरू कर दिया।

ठीक नौ बजते ही एक घंटी बजी और अध्यापकों ने प्रश्न- पत्र बाँट दिए। मैंने प्रश्न – पत्र पढ़ना शुरू किया। मेरी खुशी का कोई ठिकाना न था क्योंकि प्रश्न-पत्र के सभी प्रश्न मेरे पढ़े हुए प्रश्नों में से थे। मैंने किए जाने वाले प्रश्नों पर निशान लगाए और कुछ क्षण तक यह सोचा कि कौन-सा प्रश्न पहले करना चाहिए और फिर उत्तर लिखना शुरू कर दिया। मैंने देखा कुछ विद्यार्थी अभी बैठे सोच ही रहे थे शायद उनके पढ़े में से कोई प्रश्न न आया हो। तीन घंटे तक मैं बिना इधर-उधर देखे लिखता रहा। मैं प्रसन्न था कि उस दिन मेरा पर्चा बहुत अच्छा हुआ था।

59. जीवन की अविस्मरणीय घटना

संकेत बिंदु – चिड़िया के बच्चे का घायल अवस्था में मिलना, सेवा से आनंद

आज मैं दसवीं कक्षा में हूँ। माता-पिता कहते हैं कि अब तुम बड़े हो गए हो। मैं भी कभी-कभी सोचता हूँ कि क्या मैं सचमुच बड़ा हो गया हूँ। हाँ, मैं सचमुच बड़ा हो गया हूँ। मुझे बीते दिनों की कुछ बातें आज भी याद हैं जो मेरा मार्गदर्शन कर रही हैं। एक घटना ऐसी है जिसे मैं आज भी याद करके आनंद विभोर हो उठता हूँ। घटना कुछ इस तरह से है। कोई दो-तीन साल पहले की घटना है। मैंने एक दिन देखा कि हमारे आँगन में लगे वृक्ष के नीचे एक चिड़िया का बच्चा घायल अवस्था में पड़ा है।

मैं उस बच्चे को उठाकर अपने कमरे में ले आया। मेरी माँ ने मुझे रोका भी कि इसे इस तरह न उठाओ यह मर जाएगा किंतु मेरा मन कहता था कि इस चिड़िया के बच्चे को बचाया जा सकता है। मैंने उसे चम्मच से पानी पिलाया। पानी मुँह में जाते ही उस बच्चे ने जो बेहोश था पंख फड़फड़ाने शुरू कर दिए। यह देखकर मैं प्रसन्न हुआ। मैंने उसे गोद में लेकर देखा कि उस की टाँग में चोट आई है। मैंने अपने छोटे भाई को माँ से मरहम की डिबिया लाने को कहा। वह तुरंत मरहम की डिबिया ले आया।

उसमें से थोड़ी-सी मरहम मैंने उस चिड़िया के बच्चे की चोट पर लगाई। मरहम लगाते ही मानो उसकी पीड़ा कुछ कम हुई। वह चुपचाप मेरी गोद में ही लेटा था। मेरा छोटा भाई भी उस के पंखों पर हाथ फेरकर खुश हो रहा था। कोई घंटा भर मैं उसे गोद में ही लेकर बैठा रहा। मैंने देखा कि बच्चा थोड़ा उड़ने की कोशिश करने लगा था। मैंने छोटे भाई से रोटी मँगवाई और उसकी चूरी बनाकर उसके सामने रखी।

वह उसे खाने लगा। हम दोनों भाई उसे खाते हुए देख कर खुश हो रहे थे। मैंने उसे अब अपनी पढ़ाई की मेज़ पर रख दिया। रात को एक बार फिर उस के घाव पर मरहम लगाई। दूसरे दिन मैंने देखा चिड़िया का वह बच्चा मेरे कमरे में इधर-उधर फुदकने लगा है। वह मुझे देख चीं-चीं करके मेरे प्रति अपना आभार प्रकट कर रहा था। एक-दो दिनों में ही उस का घाव ठीक हो गया और मैंने उसे आकाश में छोड़ दिया। वह उड़ गया। मुझे उस चिड़िया के बच्चे के प्राणों की रक्षा करके जो आनंद प्राप्त हुआ उसे मैं जीवन भर नहीं भुला पाऊँगा।

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60. आँखोंदेखी दुर्घटना

संकेत बिंदु – प्रातः भ्रमण के लिए जाना, सड़क पर भीड़ की अधिकता, कार और ताँगे में टक्कर, पुलिस- अस्पताल

रविवार की बात है मैं अपने मित्र के साथ सुबह – सुबह सैर करने माल रोड पर गया। वहाँ बहुत से स्त्री-पुरुष और बच्चे भी सैर करने आए हुए थे। जब से दूरदर्शन पर स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रम आने लगे हैं अधिक-से-अधिक लोग प्रातः भ्रमण के लिए इन जगहों पर आने लगे हैं। रविवार होने के कारण उस दिन भीड़ कुछ अधिक थी। तभी मैंने वहाँ एक युवा दंपति को अपने छोटे बच्चे को बच्चागाड़ी में बैठाकर सैर करते देखा। अचानक लड़कियों के स्कूल की ओर एक रिक्शा आता हुआ दिखाई दिया।

उसमें दो सवारियाँ भी बैठी थीं। बच्चागाड़ी वाले दंपत्ति ने रिक्शे से बचने के लिए सड़क पार करनी चाही। जब वे सड़क पार कर रहे थे तो दूसरी तरफ से बड़ी तेज़ गति से आ रही एक कार उस रिक्शे से टकरा गई। रिक्शा चलाने वाला और दोनों सवारियाँ बुरी तरह से घायल हो गए थे। बच्चागाड़ी वाली स्त्री के हाथ से बच्चागाड़ी छूट गई। किंतु इससे पूर्व कि वह बच्चे समेत रिक्शे और कार की टक्कर वाली जगह पर पहुँचकर उन से टकरा जाती, मेरे साथी ने भागकर उस बच्चागाड़ी को सँभाल लिया।

कार चलाने वाले सज्जन को भी काफ़ी चोटें आई थीं पर उसकी कार को कोई खास क्षति नहीं पहुँची थी। माल रोड पर गश्त करने वाले पुलिस के तीन – चार सिपाही तुरंत घटना स्थल पर पहुँच गए। उन्होंने वायरलैस द्वारा अपने अधिकारियों और अस्पताल को फोन किया। चंद मिनटों में वहाँ ऐंबुलेंस गाड़ी आ गई। हम सब ने घायलों को उठा कर ऐंबुलेंस में लिटाया। पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी तुरंत वहाँ पहुँच गए। उन्होंने कार चालक को पकड़ लिया था। प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस को बताया कि सारा दोष कार चालक का था।

इस सैर-सपाटे वाली सड़क पर वह 100 कि० मी० की स्पीड से कार चला रहा था और रिक्शा सामने आने पर वह ब्रेक न लगा सका। दूसरी तरफ़ बच्चे को बचाने के लिए मेरे मित्र द्वारा दिखाई फुरती व चुस्ती की भी लोग सराहना कर रहे थे। उस दंपति ने उसका विशेष धन्यवाद दिया।

61. जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

संकेत बिंदु – अर्थ, देशानुराग, अधिकार और कर्तव्य

इस कथन का भाव है “जननी और जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊँचा है।” जो व्यक्ति अपनी माँ से और भूमि से प्रेम नहीं करता, वह मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं है। देश-द्रोह एवं मातृद्रोह से बड़ा अपराध कोई और नहीं है। यह ऐसा अपराध है जिसका प्रायश्चित्त संभव ही नहीं है। देश-प्रेम की भावना ही मनुष्य को यह प्रेरणा देती है कि जिस भूमि से उसका भरण-पोषण हो रहा है, उसकी रक्षा के लिए अपना सब कुछ अर्पित कर देना उसका परम कर्तव्य है। जननी एवं जन्मभूमि के प्रति प्रेम की भावना जीवधारियों की स्वाभाविक प्रवृत्ति है।

मनुष्य संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। अतः उसके हृदय में देशानुराग की भावना का उदय स्वाभाविक है। मरुस्थल में रहने वाले लोग हाँफ – हाँफकर जीते हैं, फिर भी उन्हें अपनी जन्मभूमि से अगाध प्रेम है। ध्रुववासी अत्यंत शीत के कारण अंधकार तथा शीत में काँप-काँप कर तो जीवन व्यतीत कर लेते हैं, पर अपनी मातृभूमि का बाल- बाँका नहीं होने देते। मुग़ल साम्राज्य के अंतिम दीप सम्राट बहादुरशाह ज़फर की रंगून के कारागार से लिखी ये पंक्तियाँ कितनी मार्मिक हैं –

कितना है बदनसीब ज़फर दफन के लिए,
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कूचा – ए – यार में।

जिस देश के लोग अपनी मातृ-भूमि से जितना अधिक स्नेह करते हैं, वह देश उतना ही उन्नत माना जाता है। देश-प्रेम की भावना ने ही भारत की पराधीनता की जंजीरों को काटने के लिए देश भक्तों को प्रेरित किया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के प्रति हमारा कर्तव्य और भी बढ़ गया है। इस कर्तव्य की पूर्ति हमें जी-जान लगाकर करनी चाहिए।

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62. मन के हारे हार है, मन के जीते जीत

संकेत बिंदु – मन का महत्व, मानसिक शक्ति, उन्नति का मार्ग

मानव-शरीर यदि रथ के समान है तो यह मन उसका चालक है। मनुष्य के शरीर की असली शक्ति उसका मन है। मन के अभाव में शरीर का कोई अस्तित्व ही नहीं। मन ही वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य से बड़े-से-बड़े काम करवा लेती है। यदि मन में दुर्बलता का भाव आ जाए तो शक्तिशाली शरीर और विभिन्न प्रकार के साधन व्यर्थ हो जाते हैं। उदाहरण के लिए एक सैनिक को लिया जा सकता है। यदि उसने अपने मन को जीत लिया है तो वह अपनी शारीरिक शक्ति एवं अनुमान से कहीं अधिक सफलता पा सकता है।

यदि उसका मन हार गया तो बड़े- बड़े मारक अस्त्र-शस्त्र भी उसके द्वारा अपना प्रभाव नहीं दिखा सकते। मन की शक्ति के बल पर ही मनुष्य ने अनेक आविष्कार किए हैं। मन की शक्ति मनुष्य को अनवरत साधना की प्रेरणा देती है और विजयश्री उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो जाती है। जब तक मन में संकल्प एवं प्रेरणा का भाव नहीं जागता तब तक हम किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते। एक ही काम में एक व्यक्ति सफलता प्राप्त कर लेता है और दूसरा असफल हो जाता है। इसका कारण दोनों के मन की शक्ति की भिन्नता है। जब तक हमारा मन शिथिल है तब तक हम कुछ भी नहीं कर सकते। अतः ठीक ही कहा गया है – ” मन के हारे हार है मन के जीते जीत।”

63. मन चंगा तो कठौती में गंगा

संकेत बिंदु – संत रविदास का कथन, निर्मल मानव मन की महत्ता, स्वच्छ और निष्पाप हृदय, आत्मिक शांति

संत रविदास का यह वचन एक मार्मिक सत्य का उद्घाटन करता है। मानव के लिए मन की निर्मलता का होना आवश्यक है। जिसका मन निर्मल होता है, उसे बाहरी निर्मलता ओढ़ने या गंगा के स्पर्श से निर्मलता प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। जिनके मन में मैल होती है, उन्हें ही गंगा की निर्मलता अधिक आकर्षित करती है। स्वच्छ एवं निष्पाप हृदय का व्यक्ति बाह्य आडंबरों से दूर रहता है। अपना महत्व प्रतिपादित करने के लिए वह विभिन्न प्रपंचों का सहारा नहीं लेता।

प्राचीन भारत में ऋषि-मुनि घर-बार सभी त्याग कर सभी भौतिक सुखों से रहित होकर भी परमानंद की प्राप्ति इसीलिए कर लेते थे कि उनकी मन- आत्मा पर व्यर्थ के पापों का बोझ नहीं होता था। बुरे मन का स्वामी चाहे कितना भी प्रयास कर ले कि उसे आत्मिक शांति मिले, परंतु वह उसे प्राप्त नहीं कर सकता। भक्त यदि परमात्मा को पाना चाहते हैं तो भगवान स्वयं भी उसकी भक्ति से प्रभावित हो उसके निकट आना चाहता है। वह भक्त के निष्कपट, निष्पाप और निष्कलुष हृदय में मिल जाना चाहता है।

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64. समय सबसे बड़ा धन है
अथवा
समय का सदुपयोग

संकेत बिंदु – जीवन की क्षणिकता, समय का महत्व, मनोरंजन और समय का मूल्य, परिश्रम ही प्रगति की राह

दार्शनिकों ने जीवन को क्षणभंगुर कहा है। इनकी तुलना प्रभात के तारे और पानी के बुलबुले से की गई है। अतः यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि हम अपने जीवन को सफल कैसे बनाएँ। इसका एकमात्र उपाय समय का सदुपयोग है। समय एक अमूल्य वस्तु है। इसे काटने की वृत्ति जीवन को काट देती है। खोया समय पुनः नहीं मिलता। दुनिया में कोई भी शक्ति नहीं जो बीते हुए समय को वापस लाए। हमारे जीवन की सफलता-असफलता समय के सदुपयोग तथा दुरुपयोग पर निर्भर करती है। कहा भी है- ” क्षण को क्षुद्र न समझो भाई, यह जग का निर्माता है।”

हमारे देश में अधिकांश लोग समय का मूल्य नहीं समझते। देर से उठना, व्यर्थ की बातचीत करना, ताश खेलना आदि के द्वारा समय नष्ट करते हैं। यदि हम चाहते हैं तो हमें पहले अपना काम पूरा करना चाहिए। बहुत से लोग समय को नष्ट करने में आनंद का अनुभव करते हैं। मनोरंजन के नाम पर समय नष्ट करना बहुत बड़ी भूल है। समय का सदुपयोग करने के लिए आवश्यक है कि हम अपने दैनिक कार्य को करने का समय निश्चित कर लें। फिर उस कार्य को उसी समय में करने का प्रयत्न करें।

इस तरह का अभ्यास होने से हम समय का मूल्य समझ जाएँगे और देखेंगे कि हमारा जीवन निरंतर प्रगति की ओर बढ़ता जा रहा है। समय के सदुपयोग से ही जीवन का पथ सरल हो जाता है। महान व्यक्तियों के महान बनने का रहस्य समय का सदुपयोग ही है। समय के सदुपयोग के द्वारा ही मनुष्य अमर कीर्ति का पात्र बन सकता है। समय का सदुपयोग ही जीवन का सदुपयोग है। इसी में जीवन की सार्थकता है- “कल करै सो आज कर, आज करै सो अब। पल में परलै होयगी, बहुरि करोगे कब॥ ”

65. राष्ट्रीय एकता

संकेत बिंदु – क्षेत्रीयता के प्रति मोह, भाषाई एकता, देश की एकता के लिए घातक, अनेकता में एकता

आज देश के विभिन्न राज्य क्षेत्रीयता के मोह में ग्रस्त हैं। सर्वत्र एक-दूसरे से बिछुड़ कर अलग होने तथा अपना-अपना मनोराज्य स्थापित करने अनुच्छेद-लेखन की होड़ लगी हुई है। यह स्थिति देश की एकता के लिए अत्यंत घातक है क्योंकि राष्ट्रीय एकता के अभाव में देश का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। राष्ट्र से तात्पर्य किसी भौगोलिक भू-खंड मात्र अथवा उस भू-खंड में सामूहिक रूप से रहने वाले व्यक्तियों से न होकर उस भू-खंड में रहने वाली संवेदनशील जनता से होता है।

अतः राष्ट्रीय एकता वह भावना है, जो किसी एक राष्ट्र के समस्त नागरिकों को एकता के सूत्र में बाँधे रखती है। राष्ट्र के प्रति ममत्व की भावना से ही राष्ट्रीय एकता की भावना का जन्म होता है। भारत प्राकृतिक, भाषायी, रहन-सहन आदि की दृष्टि से अनेक रूप वाला होते हुए भी राष्ट्रीय स्वरूप में एक है। पर्वतराज हिमालय एवं सागर इसकी प्राकृतिक सीमाएँ हैं, समस्त भारतीय धर्म एवं संप्रदाय आवागमन में आस्था रखते हैं।

भाषाई भेदभाव होते हुए भी भारतवासियों की भावधारा एक है। यहाँ की संस्कृति की पहचान दूर से ही हो जाती है। भारत की एकता का सर्वप्रमुख प्रमाण यहाँ एक संविधान का होना है। भारतीय संसद की सदस्यता धर्म, संप्रदाय, जाति, क्षेत्र आदि के भेदभाव से मुक्त हैं। इस प्रकार अनेकता में एकता के कारण भारत की राष्ट्रीय एकता सदा सुदृढ़ है।

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66. भाषण नहीं राशन चाहिए –

संकेत बिंदु – भाषण की उपयोगिता और अनुपयोगिता, नेताओं की करनी – कथनी में अंतर, आम जनता की पीड़ा

हर सरकार का यह पहला काम है कि वह आम आदमी की सुविधा का पूरा ध्यान रखे। सरकार की कथनी तथा करनी में अंतर नहीं होना चाहिए। केवल भाषणों से किसी का पेट नहीं भरता। यदि बातों से पेट भर जाता तो संसार का कोई भी व्यक्ति भूख-प्यास से परेशान न होता। भूखे पेट से तो भजन भी नहीं होता। भारत एक प्रजातांत्रिक देश है। यहाँ के शासन की बागडोर प्रजा के हाथ में है, यह केवल कहने की बात है। इस देश में जो भी नेता कुरसी पर बैठता है, वह देश के उद्धार की बड़ी-बड़ी बातें करता है पर रचनात्मक रूप से कुछ भी नहीं होता।

जब मंच पर आकर नेता भाषण देते हैं तो जनता उनके द्वारा दिखाए गए सब्ज़बाग से खुशी का अनुभव करती है। उसे लगता है कि नेता जिस कार्यक्रम की घोषणा कर रहे हैं, उससे निश्चित रूप से गरीबी सदा के लिए दूर हो जाएगी, लेकिन होता सब कुछ विपरीत है। अमीरों की अमीरी बढ़ती जाती है और आम जनता की ग़रीबी बढ़ती जाती है। यह व्यवस्था का दोष है।

इन नेताओं के हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और वाली कहावत चरितार्थ होती है। जनता को भाषण की नहीं राशन की आवश्यकता है। सरकार की ओर से ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि जनता को ज़रूरत की वस्तुएँ प्राप्त करने में कठिनाई का अनुभव न हो। उसे रोटी, कपड़ा, मकान की समस्या का सामना न करना पड़े। सरकार को अपनी कथनी के अनुरूप व्यवहार भी करना चाहिए। उसे यह बात गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि जनता को भाषण नहीं राशन चाहिए। भाषणों की झूठी खुराक से जनता को बहुत लंबे समय तक मूर्ख नहीं बनाया जा सकता।

67. युवाओं के लिए मतदान का अधिकार

संकेत बिंदु – प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार, उपयोगी मताधिकार, मत का अधिकारी

भारत एक लोकतंत्र है जहाँ प्रत्येक वयस्क को मताधिकार प्राप्त है। पंचायत से लेकर लोकसभा तक के सदस्यों को भारत की वयस्क जनता अपने मतदान द्वारा चुनती है। युवाओं को अपने मत का महत्व समझकर ही इसका प्रयोग करना चाहिए। एक – एक व्यक्ति का मत बहुत ही अमूल्य होता है क्योंकि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की हार-जीत का निर्णय एक मत से भी हो जाता है, जिसके पक्ष में पड़ने से जीत और विपक्ष में जाने से हार का सामना करना पड़ता है।

युवा वर्ग को अपने मत का प्रयोग करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि जिसे वे अपना मत देने जा रहे हैं, वह उनके, समाज के तथा देश के लिए कितना उपयोगी सिद्ध हो सकता है। ईमानदार, परिश्रमी, समाजसेवी, परोपकारी तथा दयालु व्यक्ति ही आप के मत का अधिकारी हो सकता है। जात-बिरादरी – धर्म-संप्रदाय के नाम पर किसी को अपना मत नहीं देना चाहिए। अपने मत का प्रयोग सदा स्वच्छ छवि वाले व्यक्ति को देकर ही करें। युवाओं को अपने मत के अधिकार का प्रयोग देश हित में ज़रूर करना चाहिए। देश के अच्छी सरकार के गठन में युवाओं का मताधिकार एक क्रांतिकारी कदम माना जाता है।

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68. अपनी भाषा प्यारी भाषा

संकेत बिंदु – अभिव्यक्ति का माध्यम, भाषा की उन्नति से समाज की उन्नति

अपनी भाषा के उत्थान के बिना व्यक्ति उन्नति कर ही नहीं सकता। भाषा अभिव्यक्ति का प्रमुख माध्यम है। भाषा सामाजिक जीवन का अपरिहार्य अंग है। इसके बिना समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अपनी भाषा में अपने मन के विचारों को प्रकट करने में सुविधा रहती है। विदेशी भाषा कभी भी हमारे भावों को उतनी गहरी अभिव्यक्ति नहीं दे सकती जितनी हमारी मातृभाषा। महात्मा गांधी जी ने भी इसी बात को ध्यान में रखकर मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने पर बल दिया था।

हमारे देश में अंग्रेज़ी के प्रयोग पर इतना अधिक बल दिए जाने के उपरांत भी अपेक्षित सफलता इसी कारण नहीं मिल पा रही है क्योंकि इसके द्वारा हम अपने विचारों को पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं दे सकते। हम हीन भावना का शिकार हो रहे हैं। अंग्रेज़ी-परस्तों द्वारा दिया जाने वाला यह तर्क भ्रमित कर रहा है कि, “अंग्रेज़ी ज्ञान का वातायन है।” अपनी भाषा के बिना मानव की मानसिक भूख शांत नहीं हो सकती। निज भाषा की उन्नति से ही समाज की उन्नति होती है। निज भाषा जननी तुल्य है। अतः कहा गया है कि-

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिना निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।

69. हमने मनाई पिकनिक

संकेत बिंदु – साइकिलों से जाना, प्राकृतिक सौंदर्य, खान-पान, मनोरंजन

संकेत बिंदु- पिकनिक के लिए उचित स्थान का चुनाव पिकनिक एक ऐसा शब्द है जो थके हुए शरीर एवं मन में एकदम स्फूर्ति ला देता है। मैंने और मेरे मित्र ने परीक्षा के दिनों में बड़ी मेहनत की थी। परीक्षा का तनाव हमारे मन और मस्तिष्क पर विद्यमान था। उस तनाव को दूर करने के लिए हम दोनों ने यह निर्णय किया कि क्यों न किसी दिन माधोपुर हैडवर्क्स पर जाकर पिकनिक मनाई जाए। अपने इस निर्णय से अपने मुहल्ले के दो-चार और मित्रों को अवगत करवाया तो वे भी हमारे साथ चलने को तैयार हो गए।

माधोपुर हैडवर्क्स हमारे नगर से दस कि० मी० दूरी पर था। हम सबने अपने-अपने साइकिलों पर जाने का निश्चय किया। पिकनिक के लिए रविवार का दिन निश्चित किया गया। रविवार को हम सबने नाश्ता करने के बाद अपने-अपने लंच बॉक्स तैयार किए तथा कुछ अन्य खाने का सामान अपने-अपने साइकिलों पर रख लिया। मेरे मित्र के पास एक छोटा टेपरिकार्डर भी था उसे भी अपने साथ ले लिया तथा साथ में कुछ अपने मनपसंद गानों की टेप्स भी रख लीं। हम सब अपनी-अपनी साइकिल पर सवार होकर, हँसते-गाते एक-दूसरे को चुटकले सुनाते पिकनिक स्थल की ओर बढ़ चले।

लगभग 45 मिनट में हम सब माधोपुर हैडवर्क्स पर पहुँच गए। वहाँ हमने प्रकृति को अपनी संपूर्ण सुषमा के साथ विराजमान देखा। चारों तरफ़ रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे, शीतल और मंद-मंद हवा बह रही थी। हमने एक ऐसी जगह चुनी जहाँ घास की प्राकृतिक कालीन बिछी हुई थी। हमने वहाँ एक दरी बिछा दी। साइकिल चलाकर हम थोड़ा थक गए थे, अतः हमने पहले थोड़ी देर विश्राम किया। हमारे एक साथी ने हमारी कुछ फ़ोटो उतारीं। थोड़ी देर सुस्ता कर हमने टेप रिकार्डर चला दिया और गीतों की धुन पर मस्ती में भर कर नाचने लगे। कुछ देर तक हमने इधर-उधर घूम कर वहाँ के प्राकृतिक दृश्यों का नज़ारा देखा।

दोपहर को हम सबने अपने-अपने टिफ़िन खोले और सबने मिल बैठ कर एक-दूसरे का भोजन बाँट कर खाया। उसके बाद हमने वहाँ स्थित कैनाल रेस्ट हाउस रेस्तराँ में जाकर चाय पी। चाय-पान के बाद हमने अपने स्थान पर बैठकर अंताक्षरी खेलनी शुरू की। इसके बाद हमने एक-दूसरे को कुछ चुटकले और कुछ आपबीती हँसी-मज़ाक की बातें बताईं। समय कितनी जल्दी बीत गया इसका हमें पता ही न चला। जब सूर्य छिपने को आया तो हम ने अपना-अपना सामान समेटा और घर की तरफ चल पड़े।

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70. भीड़ भरी बस की यात्रा का अनुभव

संकेत बिंदु – यात्रा का कारण, बस की यात्रा, भीड़

वैसे तो जीवन को ही यात्रा की संज्ञा दी गई है पर कभी-कभी मनुष्य को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए गाड़ी अथवा बस का भी सहारा लेना पड़ता है। बस की यात्रा का अनुभव भी बड़ा विचित्र है। भारत जैसे जनसंख्या प्रधान देश में बस की यात्रा अत्यंत असुविधानजनक है। प्रत्येक बस में सीटें तो गिनती की हैं पर बस में चढ़ने वालों की संख्या निर्धारित करना एक जटिल कार्य है। भले ही बस हर पाँच मिनट बाद चले पर चलेगी पूरी तरह भर कर। गर्मियों के दिनों में तो यह यात्रा किसी भी यातना से कम नहीं।

भारत के नगरों की अधिकांश सड़कें सम न होकर विषम हैं। खड़े हुए यात्री की तो दुर्दशा हो जाती है, एक यात्री दूसरे यात्री पर गिरने लगता है। कभी-कभी तो लड़ाई-झगड़े की नौबत पैदा हो जाती है। लोगों की जेबें कट जाती हैं। जिन लोगों के कार्यालय दूर हैं, उन्हें प्रायः बस का सहारा लेना ही पड़ता है। बस यात्रा एक प्रकार से रेल – यात्रा का लघु रूप है। जिस प्रकार गाड़ी में विभिन्न जातियों एवं प्रवृत्तियों के लोगों के दर्शन होते हैं, उसी प्रकार बस में भी अलग-अलग विचारों के लोग मिलते हैं।

इनसे मनुष्य बहुत कुछ सीख भी सकता है। भीड़ भरी बस की यात्रा जीवन की कठिनाइयों का सामना करने का छोटा-सा शिक्षालय है। यह यात्रा इस तथ्य की परिचायक है कि भारत अनेक क्षेत्रों में अभी तक भरपूर प्रगति नहीं कर सका। जो व्यक्ति बस यात्रा के अनुभव से वंचित है, वह एक प्रकार से भारतीय जीवन के बहुत बड़े अनुभव से ही वंचित है।

71. परिश्रम सफलता की कुंजी है

संकेत बिंदु – परिश्रम का महत्व, समयानुसार बुद्धि का सदुपयोग, परिश्रम और बुद्धि का तालमेल

संस्कृत की प्रसिद्ध सूक्ति है – ‘उद्यमेन हि सिद्धयंति कार्याणि न मनोरथः’ अर्थात परिश्रम से ही कार्य की सिद्धि होती है, मात्र इच्छा करने से नहीं। सफलता प्राप्त करने के लिए परिश्रम ही एकमात्र मंत्र है। ‘श्रमेव जयते’ का सूत्र इसी भाव की ओर संकेत करता है। परिश्रम के बिना हरी-भरी खेती सूखकर झाड़ बन जाती है जबकि परिश्रम से बंजर भूमि को भी शस्य – श्यामला बनाया जा सकता है।

असाध्य कार्य भी परिश्रम के बल पर संपन्न किए जा सकते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति कितने ही प्रतिभाशाली हों, किंतु उन्हें लक्ष्य में सफलता तभी मिलती है जब वे अपनी बुद्धि और प्रतिभा को परिश्रम की सान पर तेज़ करते हैं। न जाने कितनी संभावनाओं के बीज पानी, मिट्टी, सिंचाई और जुताई के अभाव में मिट्टी बन जाते हैं, जबकि ठीक संपोषण प्राप्त करके कई बीज सोना भी बन जाते हैं। कई बार प्रतिभा के अभाव में परिश्रम ही अपना रंग दिखलाता है। प्रसिद्ध उक्ति है कि निरंतर घिसाव से पत्थर पर भी चिह्न पड़ जाते हैं।

जड़मति व्यक्ति परिश्रम द्वारा ज्ञान उपलब्ध कर लेता है। जहाँ परिश्रम तथा प्रतिभा दोनों एकत्र हो जाते हैं वहाँ किसी अद्भुत कृति का सृजन होता है। शेक्सपीयर ने महानता को दो श्रेणियों में विभक्त किया है – जन्मजात महानता तथा अर्जित महानता। यह अर्जित महानता परिश्रम के बल पर ही अर्जित की जाती है। अतः जिन्हें ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त नहीं है, उन्हें अपने श्रम-बल का भरोसा रखकर कर्म में जुटना चाहिए। सफलता अवश्य ही उनकी चेरी बन कर उपस्थित होगी।

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72. मधुर वाणी

संकेत बिंदु – श्रेष्ठ वाणी की उपयोगिता, कटुता और कर्कश वाणी, चरित्र की स्पष्टता, विनम्रता और मधुरवाणी

वाणी ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ अलंकार है। वाणी के द्वारा ही मनुष्य अपने विचारों का आदान-प्रदान दूसरे व्यक्तियों से करता है। वाणी का मनुष्य के जीवन पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। सुमधुर वाणी के प्रयोग से लोगों के साथ आत्मीय संबंध बन जाते हैं, जो व्यक्ति कर्कश वाणी का प्रयोग करते हैं, उनसे लोगों में कटुता की भावना व्याप्त हो जाती है। जो लोग अपनी वाणी का मधुरता से प्रयोग करते हैं, उनकी सभी लोग प्रशंसा करते हैं।

सभी लोग उनसे संबंध बनाने के इच्छुक रहते हैं। वाणी मनुष्य के चरित्र को भी स्पष्ट करने में सहायक होती है। जो व्यक्ति विनम्र और मधुर वाणी से लोगों के साथ व्यवहार करते हैं, उसके बारे में लोग यही समझते हैं कि इनमें सद्भावना विद्यमान है। मधुर वाणी मित्रों की संख्या में वृद्धि करती है। कोमल और मधुर वाणी से शत्रु के मन पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है।

वह भी अपनी द्वेष और ईर्ष्या की भावना को विस्तृत करके मधुर संबंध बनाने का इच्छुक हो जाता है। यदि कोई अच्छी बात भी कठोर और कर्कश वाणी में कही जाए तो लोगों पर उसकी प्रतिक्रिया विपरीत होती है। लोग यही समझते हैं कि यह व्यक्ति अहंकारी है। इसलिए वाणी मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ अलंकार है तथा उसे उसका सदुपयोग करना चाहिए।

73. दहेज प्रथा : एक अभिशाप

संकेत बिंदु – दहेज का अर्थ, कन्या की श्रेष्ठता दहेज के आवरण में, खुलेआम बोली

दहेज का अर्थ है, विवाह के समय दी जाने वाली वस्तुएं। हमारे समाज में विवाह के साथ लड़की को माता-पिता का घर छोड़कर पति के घर जाना होता है। इस अवसर पर अपना स्नेह प्रदर्शित करने के लिए कन्या के पक्ष के लोग लड़की, लड़कों के संबंधियों को यथाशक्ति भेंट दिया करते हैं। यह प्रथा कब शुरू हुई, कहा नहीं जा सकता। लगता है कि यह प्रथा अत्यंत प्राचीन है। दहेज प्रथा जो आरंभ में स्वेच्छा और स्नेह से भेंट देने तक सीमित रही होगी धीरे-धीरे विकट रूप धारण करने लगी है।

वर पक्ष के लोग विवाह से पहले दहेज में ली जाने वाली धनराशि तथा अन्य वस्तुओं का निश्चय करने लगे हैं। आधुनिक युग में कन्या की श्रेष्ठता शील-सौंदर्य से नहीं, बल्कि दहेज में आंकी जाने लगी। कन्या की कुरूपता और कुसंस्कार दहेज के आवरण में आच्छादित हो गए। खुलेआम वर की बोली- बोली जाने लगी। दहेज में प्रायः राशि से परिवारों का मूल्यांकन होने लगा। इस प्रकार दहेज प्रथा एक सामाजिक समस्या बन गई है।

दहेज प्रथा समाप्त करने के लिए स्वयं युवकों को आगे आना चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे अपने माता-पिता तथा संबंधियों को स्पष्ट शब्दों में कह दें – शादी होगी तो बिना दहेज के होगी। इन युवकों को चाहिए कि वे उस संबंधी का डटकर विरोध करें जो नवविवाहिता को शारीरिक या मानसिक कष्ट देता है। दहेज प्रथा की विकटता को कम करने में नारी का आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र होना भी बहुत हद तक सहायक होता है।

अपने पैरों पर खड़ी युवती को दूसरे लोग अनाप-शनाप नहीं कह सकते। इसके अतिरिक्त चूंकि वह चौबीस घंटे घर पर बंद नहीं रहेगी, सास और ननदों की छींटा – कशी से काफ़ी बची रहेगी। बहू के नाराज़ हो जाने से एक अच्छी खासी आय हाथ से निकल जाने का भय भी उनका मुख बंद किए रखेगा।

दहेज-प्रथा हमारे समाज का कोढ़ है। यह प्रथा साबित करती है कि हमें अपने को सभ्य मनुष्य कहलाने का कोई अधिकार नहीं है। जिस समाज में दुल्हिनों को प्यार की जगह यातनाएं दी जाती हैं, वह समाज निश्चित रूप से सभ्यों का नहीं नितांत असभ्यों का समाज है। अब समय आ गया है कि इस कुरीति को समूल उखाड़ फेंकेंगे।

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74. सच्चे मित्र से जीवन में सौंदर्य आता है

संकेत बिंदु – सामाजिक जीवन, मित्र की आवश्यकता, मित्र का चुनाव, सच्चा मित्र।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के अभाव में उसका जीवन – निर्वाह संभव नहीं। सामाजिकों के साथ हमारे संबंध अनेक प्रकार के हैं। कुछ हमारे संबंधी हैं, कुछ परिचित तथा कुछ मित्र होते हैं। मित्रों में भी कुछ विशेष प्रिय होते हैं। जीवन में यदि सच्चा मित्र मिल जाए तो समझना चाहिए कि हमें बहुत बड़ी निधि मिल गई है। सच्चा मित्र हमारा मार्ग प्रशस्त करता है। वह दिन-प्रतिदिन हमें उन्नति की ओर ले जाता है। उसके सद्व्यवहार से हमारे जीवन में निर्मलता का प्रसार होता है।

दुख के दिनों में वह हमारे लिए विशेष सहायक होता है। जब हम निरुत्साहित होते हैं तो वह हम में उत्साह भरता है। वह हमें कुमार्ग से हटा कर सुमार्ग की ओर चलने की प्रेरणा देता है। सुदामा एवं कृष्ण की तथा राम एवं सुग्रीव की आदर्श मित्रता को कौन नहीं जानता। श्रीकृष्ण ने अपने दरिद्र मित्र सुदामा की सहायता कर उसके जीवन को ऐश्वर्यमय बना दिया था। राम ने सुग्रीव की सहायता कर उसे सब प्रकार के संकट से मुक्त कर दिया। सच्चा मित्र कभी एहसान नहीं जतलाता।

वह मित्र की सहायता करना अपना कर्तव्य समझता है। वह अपनी दरिद्रता एवं अपने दुख की परवाह न करता हुआ अपने मित्र के जीवन में अधिक-से-अधिक सौंदर्य लाने का प्रयत्न करता है। सच्चा मित्र जीवन के बेरंग खाके में सुखों के रंग भरकर उसे अत्यंत आकर्षक बना देता है, अतः ठीक ही कहा गया है “सच्चे मित्र से जीवन में सौंदर्य आता है। ”

75. साँच को आँच नहीं

संकेत बिंदु – सत्य मार्ग के लिए दृढ़ संकल्प, सत्यमार्ग कठिन, सत्य के लिए त्याग, महापुरुषों से प्रेरणा।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जब तक वह समाज से संपर्क स्थापित नहीं करता तब तक उसके जीवन की गाड़ी नहीं चल सकती। कई बार मनुष्य अपने जीवन की गाड़ी को सुचारु रूप से चलाने के लिए असत्य का सहारा लेता है। असत्य का मार्ग उसे एक के बाद एक झूठ बोलने के लिए मज़बूर कर देता है और वह ऐसी झूठ की दलदल में फँस जाता है जहाँ उसके जीवन की गाड़ी डगमगा जाती है। इसलिए मनुष्य को सत्य मार्ग पर चलने के लिए दृढ़ रहना चाहिए। सत्य से मनुष्य के जीवन में उन्नति धीरे-धीरे होती है।

इस कछुआ चाल से मनुष्य का धैर्य टूटने लगता है, परंतु उसे अपने विश्वास को बनाए रखते हुए सत्य का मार्ग नहीं छोड़ना चाहिए। यह ठीक है कि सत्य के मार्ग पर चलना कठिन होता है, परंतु कठिनाई किस काम में नहीं आती है ? आग में तप कर ही सोना कुंदन बनता है। इसी प्रकार सत्य के मार्ग पर चलकर मनुष्य सफलता के उस शिखर को प्राप्त कर लेता है जिस पर पहुँचना प्रत्येक मनुष्य के वश में नहीं होता है। इसे वही मनुष्य प्राप्त कर सकता है जिसमें साहस और सच का ताप होता है।

मानव को इस मार्ग पर चलने के लिए बहुत त्याग करने पड़ते हैं। कई बार मनुष्य का सामना झूठ के प्रलोभन से हो जाता है। जिसमें समाज, सगे-संबंधी सभी को अपना स्वार्थ और लाभ दिखाई देता है, परंतु सत्य के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति उसमें फँसता नहीं है। वह सभी लोगों के स्वार्थ और लाभ को अनदेखा कर देता है जिससे सभी उसके दुश्मन बन जाते हैं। उसे स्वयं को सही सिद्ध करने के लिए सभी का त्याग करना पड़ता है।

जब सबके सामने झूठ की सच्चाई आती है तो उन लोगों को अपने किए पर पछतावा होता है क्योंकि झूठ के पैर नहीं होते। वह जिस मार्ग से अंदर आता है उसी मार्ग से सच से डरकर भाग जाता है। जिन महापुरुषों ने सच का दामन पकड़ा वे आज मरकर भी अमर हैं। उनके जीवन दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए हैं जैसे – महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, राजा हरिश्चंद्र इत्यादि। इसलिए मनुष्य को अपने जीवन को सफल बनाने के लिए सत्य का मार्ग अपनाना चाहिए क्योंकि साँच को आँच नहीं है।

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76. जंक फूड

संकेत बिंदु – जंक फूड क्या होता है?, युवा पीढ़ी और जंक फूड, जंक फूड खाने के दुष्परिणाम

बर्गर, पिज़्ज़ा, नूडल्स, फ्रेंच फ्राइस, कोल्ड ड्रिंक आदि ये सब अल्पाहार जंक फूड कहलाते हैं। आधुनिक समय में हर वर्ग के लोग जंक फूड के दीवाने दिखाई देते हैं। आज की युवा पीढ़ी फल व हरी सब्ज़ियों का सेवन न कर जंक फूड को ही अपना पर्याप्त आहार समझने लगी है। समय के अभाव, सुविधाजनक व स्वादिष्ट होने के कारण युवा वर्ग जंक फूड की ओर अधिक आकर्षित रहता है। जबकि यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

इस फूड में पौष्टिक तत्वों की कमी होने के कारण युवा वर्ग व बच्चे मोटापा, शुगर, हृदय रोग व उच्च रक्तचाप आदि बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। जंक फूड खाने में तो स्वादिष्ट होता है किंतु इसमें पोषक तत्वों की कमी होती है। तैलीय होने के कारण इसे पचने में काफ़ी समय लगता है। पोषक तत्वों की कमी के कारण पेट तथा अन्य पाचन अंगों में खिंचाव रहता है। कब्ज़ व गैस की समस्या उत्पन्न हो जाती है। जंक फ़ूड का नियमित प्रयोग स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। जीवन को भरपूर जीने व स्वस्थ रहने के लिए जंक फूड से बचना चाहिए।

77. महानगरीय भीड़भाड़ और मेट्रो

संकेत बिंदु – यातायात और भीड़भाड़, प्रदूषण की समस्या, मेट्रो रेल की भूमिका, मेट्रो के लाभ

भारत दुनिया में सड़कों का दूसरा सबसे बड़ा नेटवर्क वाला देश है। वाणिज्यिक वाहनों में वृद्धि के कारण उच्च श्रेणी के सड़क परिवहन नेटवर्क प्रदान करना भारत सरकार के लिए एक चुनौती है। निजी वाहनों की संख्या में वृद्धि हुई है और भारत के लगभग सभी बड़े शहरों में सड़कों पर भीड़ बढ़ गई है। यह सड़कों पर यातायात, वाहन प्रदूषण से निपटने के लिए दिन-प्रतिदिन का दर्द और दर्द का दिन है, जो इन दिनों लोगों के लिए एक बड़ा मानसिक और शारीरिक तनाव का कारण बनता है।

औसतन एक व्यक्ति अपने दिन में लगभग 30 मिनट से लेकर 2 घंटे तक ड्राइविंग करता है। इस समय का अधिकांश समय ट्रैफिक जाम में बीतता है। भारतीय शहरों में अभी भी खराब सार्वजनिक परिवहन है और अधिकांश लोगों को निजी परिवहन पर निर्भर रहना पड़ता है। वाहनों की संख्या में वृद्धि के साथ, इन ऑटोमोबाइल से प्रदूषण में भारी वृद्धि हो रही है। वाहन में ईंधन का दहन विभिन्न गैसों जैसे सल्फर ऑक्साइड कॉर्बन मोनो ऑक्साइड नाइट्रोजन ऑक्साइड सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर आदि का उत्सर्जन करता है।

ये गैसें पर्यावरण तथा स्वास्थ्य पर प्रभाव डालती हैं और लंबे समय तक प्रभाव ग्लोबल वार्मिंग, एसिड वर्षा, पर्यावरण प्रणाली में असंतुलन आदि पैदा करके पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहे हैं। मेट्रो रेल आधुनिक जन परिवहन प्रणाली है जो शायद भविष्य में दिल्ली को इस भीषण समस्या से निपटने में मदद दे सके। मेट्रो रेल इन्हीं परेशानियों से निजात पाने का एक सकारात्मक कदम है। जापान, कोरिया, हांगकांग, सिंगापुर, जर्मनी एवं फ्रांस की तर्ज पर दिल्ली में इसे अपनाया गया। मेट्रो रेल की योजना विभिन्न चरणों से संपन्न होगी।

कई चरण तो पूरे हो भी गए हैं ओर सफलतापूर्वक काम कर रहे हैं। इसकी व्यवस्था अत्याधुनिक तकनीक से संचालित होती है। इसके कोच वातानुकूलित हैं। टिकट प्रणाली भी स्वचालित है। ट्रेन की क्षमता के अनुसार ही टिकट उपलब्ध होता है। स्टेशनों पर एस्केलेटर की सुविधा उपलब्ध है। मेट्रो लाइन को बस रूट के सामानांतर ही बनाया गया है, जिससे यात्रियों को मेट्रो से उतरने के बाद कोई दूसरा साधन प्राप्त करने में कठिनाई न हो।

मेट्रो रेल के दरवाज़े स्वचालित हैं। हर आने वाले स्टेशनों की जानकारी दी जाती रहती है। वातानुकूलित डब्बों में धूल-मिट्टी से बचकर लोग सुरक्षित यात्रा कर रहे हैं। ट्रैफिक जाम का कोई चक्कर नहीं है। दिल्ली के लिए एक नायाब तोहफा है – दिल्ली मेट्रो रेल। दिल्ली की समस्याओं के संदर्भ और दिल्ली मेट्रो रेल की संभावनाओं में कहा जा सकता है कि निःस्संदेह यह यहाँ के जीवन को काफी सहज कर देगी। यहाँ की यातायात प्रणाली के लिए एक वरदान सिद्ध होगी।

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78. कारज धीरे होत हैं, काहे होत अधीर

संकेत बिंदु – धैर्य और इच्छा, शांत मन की उपयोगिता, प्रतीक्षा और उचित फल की प्राप्ति

जिसके पास धैर्य है, वह जो इच्छा करता है उसे अवश्य प्राप्त कर लेता है। प्रकृति हमें धीरज धारण करने की सीख देती है। धैर्य जीवन की लक्ष्य- प्राप्ति का द्वार खोलता है। जो लोग ‘जल्दी करो, जल्दी करो’ की रट लगाते हैं, वे वास्तव में ‘अधीर मन, गति कम’ लोकोक्ति को चरितार्थ करते हैं। सफलता और सम्मान उन्हीं को प्राप्त होता है, जो धैर्यपूर्वक काम में लगे रहते हैं। शांत मन से किसी कार्य को करने में निश्चित रूप से कम समय लगता है। बचपन के बाद जवानी धीरे-धीरे आती है। संसार के सभी कार्य धीरे-धीरे संपन्न होते हैं। यदि कोई रोगी डॉक्टर से दवाई लेने के तुरंत पश्चात पूर्णतया स्वस्थ होने की कामना करता है, तो यह उसकी नितांत मूर्खता है। वृक्ष को कितना भी पानी दो, परंतु फल प्राप्ति तो समय पर ही होगी। संसार के सभी महत्त्वपूर्ण विकास कार्य धीरे-धीरे अपने समय पर ही होते हैं। अतः हमें अधीर होने की बजाय धैर्यपूर्वक अपने कार्य में संलग्न होना चाहिए।

79. ग्लोबल वार्मिंग और जन-जीवन

संकेत बिंदु – ग्लोबल वार्मिंग का अभिप्राय, ग्लोबल वार्मिंग के कारण, ग्लोबल वार्मिंग से हानियाँ, बचाव के उपाय

पृथ्वी के सतह पर औसतन तापमान का बढ़ना ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापमान) कहलाता है। ग्लोबल वार्मिंग मुख्य रूप से मानव प्रेरक कारकों के कारण होता है। औद्योगीकरण में ग्रीनहाउस गैसों का अनियंत्रित उत्सर्जन तथा जीवाश्म ईंधन का जलना ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण है। ग्रीनहाउस गैस वायुमंडल में सूर्य की गरमी को वापस जाने से रोकता है। यह एक प्रकार के प्रभाव है जिसे “ग्रीनहाउस गैस प्रभाव” के नाम से जाना जाता है। इसके फलस्वरूप पृथ्वी के सतह पर तापमान बढ़ रहा है।

पृथ्वी के बढ़ते तापमान के फलस्वरूप पर्यावरण प्रभावित होता है अतः इस पर ध्यान देना आवश्यक है। पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के मात्रा में वृद्धि के कारण पृथ्वी के सतह पर निरंतर तापमान का बढ़ना ग्लोबल वार्मिंग है। ग्लोबल वार्मिंग दुनिया के सभी देशों के लिए एक बड़ी समस्या है, जिसका समाधान सकारात्मक शुरूआत के साथ करना चाहिए। पृथ्वी का बढ़ता तापमान विभिन्न खतरों को जन्म देता है, साथ ही इस ग्रह पर जीवन के अस्तित्व के लिए संकट पैदा करता है।

यह क्रमिक और स्थायी रूप से पृथ्वी के जलवायु में परिवर्तन उत्पन्न करता है तथा इससे प्रकृति का संतुलन प्रभावित होता है। पृथ्वी के सतह पर औसतन तापमान का बढ़ना ग्लोबल वार्मिंग कहलाता है। ग्लोबल वार्मिंग मुख्य रूप से मानव प्रेरक कारकों के कारण होता है। औद्योगीकरण में ग्रीनहाउस गैसों का अनियंत्रित उत्सर्जन तथा जीवाश्म ईंधन का जलना ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण है।

ग्रीनहाउस गैस वायुमंडल में सूर्य की गरमी को वापस जाने से रोकता है। यह एक प्रकार का प्रभाव है जिसे “ग्रीनहाउस गैस प्रभाव” के नाम से जाना जाता है। इसके फलस्वरूप पृथ्वी के सतह पर तापमान बढ़ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि के कारण, पृथ्वी से वायुमंडल में जल वाष्पीकरण अधिक होता है जिससे बादल में ग्रीन हाउस गैस का निर्माण होता है जो पुनः ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनता है।

जीवाश्म ईंधन का जलना, उर्वरक का उपयोग, अन्य गैसों में वृद्धि जैसे- ट्रोपोस्फेरिक ओजोन, और नाइट्रस ऑक्साइड भी ग्योबल वार्मिंग के कारक हैं। तकनीकी आधुनिकीकरण, प्रदूषण विस्फोट, औद्योगिक विस्तार की बढ़ते माँग, जंगलों की अंधाधुंध कटाई तथा शहरीकरण ग्लोबल वार्मिंग वृद्धि में प्रमुख रूप से सहायक हैं। हम जंगल की कटाई तथा आधुनिक तकनीक के उपयोग से प्राकृतिक प्रक्रियाओं को विक्षुब्ध कर रहे हैं। जैसे वैश्विक कार्बन चक्र, ओजोन की परत में छिद्र बनना तथा रंगों का पृथ्वी पर आगमन जिससे ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि हो रही है।

जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण तथा विनाशकारी प्रोद्यौगिकियों का कम उपयोग भी एक अच्छी पहल है। ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से जीवन पर खतरा बढ़ता जा रहा है। हमें सदैव के लिए पर्यावरण-विरोधी आदतों का त्याग करना चाहिए। हमें पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर रोक लगाना चाहिए, बिजली का उपयोग कम करना चाहिए, लकड़ी को जलाना बंद करना चाहिए आदि।

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80. विद्यालयों की ज़िम्मेदारी बेहतर नागरिक – बोध

संकेत बिंदु – व्यक्तित्व निर्माण में विद्यालय का स्थान, राष्ट्र और समाज के प्रति उत्तरदायित्व, नागरिक अधिकारों – कर्तव्यों का बोध

विद्यालय हमें सिखाते हैं कि घर, परिवार, समाज, संस्थाओं और लोक में रहते हुए कर्तव्यों का निर्वहन कैसे करें। हमारा योगदान क्या और कैसे हो। पाठ्यक्रमों, परीक्षाओं, उपाधियों से परे व्यक्ति को एक श्रेष्ठ राष्ट्रभक्त और समर्पित व्यक्ति बनाने का दायित्व विद्यालय का ही है। लोकमंगल और राष्ट्रकल्याण के भाव को जगाते ऐसे विद्यालय समाज के गौरव होते हैं। समाज उनकी ओर अनेक आकांक्षाओं से निहारता है। उनसे ज्ञान की चमक बिखेरने की अपेक्षा करता है।

बदलते दौर में विद्यालय की भूमिका लगातार चुनौतीपूर्ण बन रही है। सामाजिक रचना के साथ वैश्विक स्तर पर होने वाले परिवर्तनों का असर गहरा है। इन परिवर्तनों के बीच में ही विद्यालय को स्वयं को ढालना होगा, बदलना होगा। आज की शिक्षा निःसंदेह संस्कार – केंद्रित नहीं रही। प्रतियोगिता की दुनिया में सभी मानदंड बिखर गए। शिक्षा चारित्रिक निर्माण का माध्यम थी, महज रोजगार हासिल करने का अटपटा-सा उपकरण बनकर रह गई। विद्यालय व्यक्तित्व को तराशे और संस्कारित करे, यह उम्मीद की जाती है। हमारे सामाजिक शब्दकोश में यह व्यक्तित्व विकास जैसे शब्द नहीं थे।

विद्यालय दायित्वों से भरा हुआ है। विद्यालय अपने दायित्वों का निर्वाह करने में थोड़ी भी चूक करते हैं तो केवल छात्र का भविष्य ही नहीं बल्कि राष्ट्र के भविष्य के सामने भी एक प्रश्न चिह्न खड़ा हो जाता। इसलिए आवश्यक है कि जीवन की सुरक्षा जिस प्रकार करते हैं वैसे ही अपने दायित्वों का निर्वाह भी करें। वर्तमान में प्रत्येक जिम्मेदार नागरिक को जिन दायित्वों का निर्वहन करना है, उनमें सीमा सुरक्षा, आंतरिक, सुरक्षा, देश की धरोहरों की सुरक्षा, स्वच्छता का ध्यान, साक्षरता का प्रचार-प्रसार आदि उल्लेखनीय हैं।

सभी चुनौतियाँ राष्ट्रवासियों की उम्मीदों एवं आशाओं से जुड़ी हैं। एकता, समता के साथ व्यवहार एवं जीवन शैली वर्ग शुचिता ही सही समाधान हो सकता है। हर नागरिक को परिवार व समाज से पहले अपने राष्ट्र के बारे में सोचना चाहिए। किसी भी देश का नाम उसके नागरिकों के अच्छा या बुरा होने से ऊँचा होता है। भारतीय संस्कृति में विद्यालय की महिमा और विराटता व्यापक है।

81. सोशल मीडिया और किशोर

संकेत बिंदु – सोशल मीडिया – तात्पर्य और विभिन्न प्रकार, किशोरों के आकर्षण-बिंदु, वर्तमान समय में सोशल मीडिया का प्रचलन और प्रभाव

सोशल मीडिया आज हमारे जीवन में एक बड़ी भूमिका निभा रहा है। सोशल मीडिया एक बहुत ही सशक्त माध्यम है और इसका प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति पर पड़ता है। सोशल मीडिया के बिना हमारे जीवन की कल्पना करना मुश्किल है, परंतु इसके अत्यधिक उपयोग के वजह से हमें इसकी कीमत भी चुकानी पड़ती है। सोशल मीडिया देश – विदेश में हो रही किसी भी घटनाओं को लोगों तक तुरंत पहुँचाने का काम करता है। सोशल मीडिया का प्रयोग कंप्यूटर, मोबाइल, टैबलेट, लैपटॉप आदि किसी भी साधन का उपयोग करके किया जा सकता है।

व्हाट्सएप्प, फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब आदि सोशल मीडिया के प्रमुख प्लेटफार्म हैं। इसके जरिए किसी भी खबर को पलभर में पूरे देश व विदेश में फैलाया जा सकता है। हम इस सच्चाई को अनदेखा नहीं कर सकते कि सोशल मीडिया आज हमारे जीवन में मौजूद सबसे बड़े घटकों में से एक है। इसके माध्यम से हम किसी भी प्रकार की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं तथा दुनिया के किसी भी कोने में बसे अपने प्रियजनों से बात कर सकते हैं।

सोशल मीडिया एक आकर्षक तत्व है और आज यह हमारे जीवन से जुड़ा हुआ है। युवा हमारे देश का भविष्य हैं, वे देश की अर्थव्यवस्था को बना या बिगाड़ सकते हैं, वहीं सोशल नेटवर्किंग साइटों पर उनका सबसे अधिक सक्रिय रहना, उन पर अत्यधिक प्रभाव डाल रहा है। जो कुछ भी हमें जानना होता है उसे बस हम एक क्लिक करके उसके बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

इन दिनों सोशल नेटवर्किंग साइटों से जुड़े रहना सबको पसंद है। कुछ लोगों का मानना है कि यदि आप डिजिटल रूप में उपस्थित नहीं हैं, तो आपका कोई अस्तित्व नहीं है। सोशल नेटवर्किंग साइटों पर उपस्थिति का बढ़ता दबाव और प्रभावशाली प्रोफ़ाइल, युवाओं को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर रही है। सोशल नेटवर्क के सकारात्मक प्रभाव हैं लेकिन बाकी सभी चीज़ों की तरह इसकी भी कुछ बुराइयाँ हैं। इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव भी हैं- यह परीक्षा में नकल करने में मदद करता है। छात्रों के शैक्षणिक श्रेणी और प्रदर्शन को खराब करता है।

निजता का अभाव उपयोगकर्ता हैकिंग, आइडेंटिटी की चोरी, फिशिंग अपराध इत्यादि जैसे साइबर अपराधों का शिकार हो सकता है। दुनिया भर में लाखों लोग हैं जो सोशल मीडिया का उपयोग प्रतिदिन करते हैं। इसके सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं का एक मिश्रित उल्लेख दिया गया है। इसमें बहुत सारी ऐसी चीजें हैं जो हमें सहायता प्रदान करने में महत्वपूर्ण हैं, तो कुछ ऐसी चीजें भी हैं जो हमें नुकसान पहुँचा सकती है।

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82. यात्राएँ – अनुभव के नए क्षितिज

संकेत बिंदु – यात्रा – क्या, क्यों, कैसे?, यात्राओं से अनुभवों की व्यापकता, यात्राओं का सभ्यता के विकास में योगदान

यात्राएँ कई मायनों में महत्वपूर्ण हैं। यात्रा का अनुभव व्यक्ति के जीवन में गति भी लाता है। कहा भी गया है कि ठहराव का अर्थ मृत्यु है। इसलिए मनुष्य की जीवतंता का प्रमाण उसकी गतिशीलता एवं निरंतरता ही हैं जो जीवन में नया उत्साह जगाती है। प्राकृतिक और भौगोलिक विभिन्नताओं तथा विविधताओं से भरे क्षेत्र में भ्रमण करके उनके ऐतिहासिक व दार्शनिक स्थलों को देखने- निहारने तथा वहाँ बसने वाली जनता के रहन-सहन व संस्कृति को करीब से जानने को ही यात्रा कहा जाता है। कई उद्देश्यों को लेकर यात्राएं की जाती हैं।

कुछ यात्राएँ धार्मिक तो कुछ सामाजिक महत्व की होती हैं। यात्रा करने के कई लाभ भी हैं। कुछ लोग यात्रा मनोरंजन के लिए करते हैं तो कुछ स्वास्थ्य लाभ की दृष्टि के लिए करते हैं। जिज्ञासु अथवा ज्ञानपिपासु लोग एक- दूसरे स्थानों की यात्राओं में अधिक रुचि रखते हैं। पहाड़ों, सागरीय तटों तथा प्रकृति के मनोरम स्थलों पर घूमना सभी को आनंदित करता है। पर्यटन के लिहाज़ से हमारा देश समृद्ध हैं। देश दुनिया से बड़ी संख्या में लोग यहाँ आते हैं तथा देश – करते हैं।

प्रकृति के विभिन्न और विविध स्वरूपों को जानने का एक तरीका यात्रा है। कहीं हरी-भरी वादियाँ तो कही बर्फ से ढके पर्वतों के मनोरम दृश्य का नज़ारा तथा पहाड़ों से मिले रोमांच से उनके साहस में भी वृद्धि होती है। रंग-बिरंगी वेश-भूषा, रहन-सहन, रीति-रिवाजों, उत्सव-त्योहारों, भाषा – बोलियों, सभ्यताओं, संस्कृतियों तथा जानकारियों का आदान-प्रदान करने में पर्यटन का महत्वपूर्ण योगदान है।

यात्रा करने से हमें कई प्रकार के अनुभव प्राप्त होते हैं। साथ ही ज्ञान में वृद्धि भी होती हैं। यात्रा के दौरान विभिन्न देशों की सभ्यता तथा संस्कृति के लोगों का मिलन होता है। लोगों के रहन-सहन तथा भाषा संवाद से बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है। वैसे भी इनसान हमेशा कुछ-न-कुछ जानने के लिए उत्सुक रहता है। कई बार व्यक्ति विभिन्न लोगों तथा भिन्न-भिन्न स्थानों की यात्रा करके ही अनेक सद्गुणों को सीखता है। मानवता का असली स्वरूप उन्हें इस तरह के यात्राओं में ही महसूस करने का अवसर मिलता है।

यात्रा समय के सदुपयोग का सर्वोतम तरीका है। जब तक कोई व्यक्ति अपनी नीरस शारीरिक एवं मानसिक दिनचर्या को तोड़ता नहीं है, उसे संतुष्टि नहीं मिल पाती है। यात्रा से हम दिनचर्या की इस नीरसता को भंग कर सकते हैं। एक नई जगह पर व्यक्ति कुछ जानने के लिए उत्सुक एवं ज्ञान अर्जित करने के लिए व्यस्त हो जाता है। रोमांचित एवं आश्चर्यचकित करने वाले स्थल उसके उत्साह को जागृत रखते हैं। यात्रा के समय हम भिन्न-भिन्न लोगों से मिलते हैं। मनोविज्ञान में रुचि रखने वाले व्यक्तियों को दूसरों को समझने का अनुभव एवं दृष्टि प्राप्त होती है। मनुष्य के स्वभाव को समझ पाना सर्वोतम शिक्षा है। यात्रा का शौक रखना बहुत लाभदायक है इससे हम व्यस्त रहते हैं तथा शिक्षा प्राप्त होती है। हमारे शरीर एवं मन को नई ऊर्जा प्रदान होती है।

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83. जब हम चार रनों से पिछड़ रहे थे

संकेत बिंदु – खिलाड़ियों की मनोदशा, दर्शकों की मनोदशा, प्रयास और परिणाम

जब हम चार रनों से पिछड़ रहे थे- हमारे विद्यालय की क्रिकेट टीम का डी०ए०वी० पंचकुला विद्यालय की टीम से विक्रम स्टेडियम में मैच चल रहा था। अंतिम ओवर था। दोनों टीमें अच्छा प्रदर्शन कर रही थीं। मैच रोमांचक मोड़ पर पहुँच चुका था। जीतने के लिए केवल छह रनों की आवश्यकता थी। दोनों टीमों के कप्तान जीत प्राप्त करने के लिए अपनी-अपनी टीम को प्रोत्साहित कर रहे थे। तभी डी०ए०वी० विद्यालय की टीम ने दो रन और बना लिए। हम चार रनों से पिछड़ रहे थे।

अंतिम दो गेंदों में हार-जीत का फैसला निश्चित था। मेरे दिमाग में अपने कोच की बातें गूंजने लगीं – खेलो, जी भरकर खेलो। यह समय फिर नहीं आएगा। दर्शकों की नज़रें भी हमारे खेल पर टिकी हुई थीं। तभी अचानक सामने से आती गेंद जैसे ही मेरे बल्ले से टकराई, उछल कर दर्शकों के मध्य जा गिरी। सारा स्टेडियम दर्शकों के शोर और तालियों से गूँज उठा। अंतिम गेंद के साथ ही हम मैच जीत चुके थे। मेरे आत्मविश्वास ने हमें विजयी बना दिया।

84. देश पर पड़ता विदेशी प्रभाव

संकेत बिंदु – हमारा देश और संस्कृति, विदेशी प्रभाव, परिणाम और सुझाव

देश पर पड़ता विदेशी प्रभाव – हमारा भारत देश अपनी सांस्कृतिक विशेषताओं के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन व समृद्ध संस्कृति है। अनेकता में एकता ही इसकी मूल पहचान है। अध्यात्म, सहिष्णुता, अहिंसा, धर्मनिरपेक्षता, परोपकार, मानव-सेवा आदि भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ हैं। किंतु आज की युवा पीढ़ी पर विदेशी संस्कृति का प्रभाव अधिक है। पाश्चात्य सभ्यता की चमक-दमक व स्वच्छंद आचरण युवा पीढ़ी को अपनी ओर अधिक आकर्षित करता है।

आज की पीढ़ी अपने संस्कारों, रीति-रिवाजों व नैतिक मूल्यों को भुलाकर विदेशी रंग में रँगती जा रही है जिस कारण भारतीय युवाओं का चारित्रिक पतन होता दिखाई दे रहा है। जबकि विदेशी लोगों का रुझान भारतीय संस्कृति की ओर देखा जा सकता है। कई विदेशी लोग भारतीय संस्कृति से इतने अधिक प्रभावित हैं कि वे अपने देश को छोड़कर सदा के लिए यहीं बस जाते हैं। विदेशी प्रभाव के कारण ही हमारे देश में संयुक्त परिवार का स्थान एकल परिवार ने ले लिया है। अपनी संस्कृति को बनाए रखने के लिए हमें अपने बच्चों तथा युवा पीढ़ी को कहानियों, चित्रों व कलाकृतियों के माध्यम से इसकी विशेषताओं से समय-समय पर अवगत करवाना होगा तथा भारतीय संस्कृति की उपयोगिता से परिचित कराना होगा।

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85. मित्रता

संकेत बिंदु – आवश्यकता, कौन हो सकता है मित्र, लाभ

मित्रता – मित्रता और सच्चा मित्र जीवन में किसी वरदान से कम नहीं है। जब किसी के मन में अपनेपन और सौहार्द्र का भाव हो तो उसे मित्रता कहते हैं। मित्रता के अभाव में जीवन सूना और दुखमय हो जाता है। मित्र का होना जीवन में खुशी, उमंग और आत्मविश्वास का संचार करता है। हर वर्ग के मनुष्य के लिए मित्रता आवश्यक है। विद्यालय जाकर सबसे पहले बच्चा भी मित्र बनाने का प्रयास करता है। सच्चे मित्र पर आँखें मूँदकर विश्वास किया जा सकता है। वह एक भाई और एक शिक्षक के समान होता है।

जहाँ वह बुरे समय में सहारा बनकर सही राह दिखाता है, वहीं बुराई से सावधान भी करता है। वह मानो एक वैद्य के समान हमारी परेशानियों का इलाज भी करता है। कुछ लोग अल्पकालिक परिचय को मित्रता का नाम दे डालते हैं। उनके धोखा खाने की संभावना अधिक होती है। वहीं कुछ लालची और स्वार्थी लोगों से मित्रता करना भी हानिकारक हो सकता है। सच्ची मित्रता प्रत्येक दृष्टि से आदर्शपरक होती है। चरित्रवान आदर्श व्यक्ति से मित्रता करना सौभाग्य की बात होती है।
सदाचारी और बुद्धिमान,
मित्र हों ऐसे विद्वान।

86. लड़का-लड़की एक समान

संकेत बिंदु – ईश्वर की देन, भेदभाव के कारण, दृष्टिकोण कैसे बदलें

मनुष्य को एक सामाजिक प्राणी कहा जाता है। वह जिस समाज में कार्य करता है। उस समाज में दो जाति के मनुष्य रहते हैं- लड़का और लड़की। पुराने ज़माने में लड़की को शिक्षा प्राप्त करने के लिए भी नहीं भेजते थे। देश की आज़ादी के बाद लड़कियाँ हर क्षेत्र में कार्य करने लगी हैं आज के युग में सभी लड़कियाँ लड़कों के बराबरी में चलने लगी हैं। लड़कियाँ घर, समाज और देश का नाम रोशन कर रही हैं। कई भारतीय महिलाओं ने अपने देश का नाम ऊँचा किया है।

लड़कियों को किसी भी रूप में लड़कों से कमज़ोर नहीं समझा जा सकता, क्योंकि लड़कियों के बिना मनुष्य जीवन आगे नहीं बढ़ सकता। अगर परिवार चलाने के लिए लड़का ज़रूरी है, तो परिवार को आगे बढ़ाने के लिए लड़की भी ज़रूरी है। लड़कियों को उनकी सोच और उनके सपने सामने रखने का अधिकार मिलना चाहिए। उन्हें उनकी जिंदगी उनके हिसाब से जीने देना चाहिए। लड़कियों को लड़के जितनी समानता देने की शुरुआत घर से ही करनी चाहिए। उन्हें घर के हर निर्णय में भागीदारी दी जानी चाहिए।

उन्हें लोगों की संकुचित सोच से लड़ने के लिए तैयार करना चाहिए और उन्हें ऐसे पथ पर अग्रसर करना चाहिए कि वो लोगों की सोच को बदल सकें और लड़का-लड़की का भेदभाव खत्म कर सके। आज के इस युग में लड़का और लड़की में कोई अंतर नहीं है। लड़कियों की कर्मशीलता ही उनके सक्षम होने का सबूत है। आज कल सरकार की तरफ से लड़कियों के लिए काफी नई और सुविधाजनक योजनाओं का एलान किया जा रहा है।

लड़कियों के जन्म से लेकर पढ़ाई, नौकरी, बीमा, कारोबार, सरकारी सुविध आदि क्षेत्र में सरकार की तरफ से काफी मदद भी प्रदान की जा रही है, ताकि लड़कियाँ समाज में कभी किसी से पीछे न छूट जाएँ। भारत सरकार ने लड़कियों को लड़कों के बराबर कार्य करने का मौका दिया है। सरकार ने लड़कियों को हर क्षेत्र में सहायता करके उनका हौंसला बढ़ाया है। लड़कियों को शिक्षा के क्षेत्र से लेकर हर क्षेत्र में सुविधाएँ उपलब्ध कराई हैं। गरीब घर की लड़कियों के लिए मुफ्त शिक्षा और किताबों का प्रबंध किया है। आज के आधुनिक युग में लड़का-लड़की में कोई अंतर नहीं है। यदि आज भी कोई ऐसी धारणा रखता है कि लड़की कुछ नहीं कर सकती, तो वह बिलकुल गलत सोच रहा है।

JAC Class 10 Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2

Jharkhand Board JAC Class 10 Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2

Unless stated otherwise, use π = \(\frac{22}{7}\)

Question 1.
Find the area of a sector of a circle with radius 6 cm if angle of the sector is 60°.
Solution :
Area of a sector = \(\frac{\pi r^2 \theta}{360}\)
r = 6, θ = 60°
= \(\frac{22}{7} \times \frac{6 \times 6 \times 60}{360}=\frac{132}{7}\) = 18.85 cm².

JAC Class 10 Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2

Question 2.
Find the area of a quadrant of a circle whose circumference is 22 cm.
Solution :
JAC Class 10 Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 - 1
С = 2πr = 22
JAC Class 10 Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 - 2

Question 3.
The length of the minute hand of a clock is 14 cm. Find the area swept by the minute hand in 5 minutes.
Solution :
Length of the minute hand = 14 cm = r.
In 15 minutes the minute hand sweeps an area equal to a quadrant.
Area of the quadrant = \(\frac{\pi r^2}{4}\)
JAC Class 10 Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 - 3

Alternative Method:
One minute = 6°
5 minutes = 30°
Area swept by the minute hand
= πr² \(\frac{θ}{360°}\)
= \(\frac{22}{7}\) × 14 × 14 × \(\frac{30°}{360°}\)
= 51.33 cm².

Question 4.
A chord of a circle of radius 10 cm subtends a right angle at the centre. Find the area of the corresponding: (i) minor segment, (ii) major sector. (Use π = 3.14)
Solution :
JAC Class 10 Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 - 4
Radius of the circle = 10 cm
Major segment is making 360° – 90° = 270°
Area of the sector making angle 270° = \(\frac{270°}{360°}\) × πr² cm²
= \(\frac{1}{4}\) × 10²π = 25 π cm²
= 25 × 3.14 cm² = 235.5 cm²
∴ Area of the major segment = 235.5 cm²
Height of ΔAOB = OA = 10 cm
Base of ΔAOB = OB = 10 cm
Area of ΔAOB = \(\frac{1}{2}\) × OA × OB
= \(\frac{1}{2}\) × 10 × 10 = 50 cm²
Major segment is making 90°
Area of the sector making angle 90° = \(\frac{90°}{360°}\) × πr² cm²
= \(\frac{1}{4}\) × 10²
= 25 × 3.14 cm² = 78.5 cm²
Area of the minor segment = Area of the sector making angle 90° – Area of ΔAOB
= 78.5 cm² – 50 cm² = 28.5 cm².

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Question 5.
In a circle of radius 21 cm, an arc subtends an angle of 60° at the centre. Find: (i) the length of the arc, (ii) area of the sector formed by the arc, (iii) area of the segment formed by the corresponding chord.
Solution :
JAC Class 10 Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 - 5
(i) Length of the arc AB = \(\frac{2 \pi r \theta}{360^{\circ}}\) θ = 60°, r = 21
= 2 × \(\frac{22}{7} \times \frac{21 \times 60}{360}\) = 22cm

(ii) Area of the sector formed by the arc = \(\frac{\pi r^2 \theta}{360^{\circ}}\)
= \(\frac{22}{7} \times \frac{21 \times 21 \times 60}{360^{\circ}}\)
= 11 × 21 = 231 cm².

(iii) Area of the segment formed APBLA = Area of the sector PAOB – Area of the ΔOAB
Area of ΔOAB = ?
From O, draw OL ⊥ AB. AL = ?, OL = ?
JAC Class 10 Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 - 6

Question 6.
A chord of a circle of radius 15 cm subtends an angle of 60° at the centre. Find the areas of the corresponding minor and major segments of the circle. (Use π = 3.14 and \(\sqrt{3}\) = 1.73).
Solution :
JAC Class 10 Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 - 7
Area of the minor segment APB = Area of the sector OAPB – Area of ΔOAB
= \(\frac{\pi r^2 \theta}{360^{\circ}}\) – Area of ΔOAB
Area of the sector OAPB = \(\frac{3.14 \times 15 \times 15 \times 60}{360}\) = 1.57 × 75 cm²
OPB is an isosceles triangle. OA = OB ∴ \(\hat{A}\) = \(\hat{B}\) = 60°.
The triangle becomes an equilateral triangle.JAC Class 10 Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 - 8
Area of the sector OAPB = 1.57 × 75 = 117.75 cm²
∴ Area of the minor segment APB = 117.75 – 97.31 = 20.44 sq.cm.
Area of the major segment AQBA = Area of the circle – Area of the minor segment
= πr² – 20.44
= (3.14 × 15 × 15) – 20.44
= 706.50 – 20.44 = 686.06 sq.cm.

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Question 7.
A chord of a circle of radius 12 cm subtends an angle of 120° at the centre. Find the area of the corresponding segment of the circle. (Use π = 3.14 and \(\sqrt{3}\) = 1.73).
Solution :
JAC Class 10 Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 - 9
Area of the segment APB = Area of the sector PAOB – Area of ΔOAB
r = 12, θ = 120°, π = 3.14
∴ Area of the sector PAOB = \(\frac{\pi r^2 \theta}{360^{\circ}}\)
= \(\frac{3.14 \times 12 \times 12 \times 120}{360}\)
= 3.14 × 12 × 4
= 3.14 × 48
= 150.72 cm².
Area of ΔOAB = \(\frac{1}{2}\) × b × h b = AB, h = OC
Draw OC ⊥ AB.
AOB is an isosceles triangle. OC ⊥ AB.
ΔAOC ≅ BOC (RHS)
∴ AC = CB.
A\(\hat{O}\)C = 60°, O\(\hat{A}\)C = 30°, A\(\hat{C}\)O = 90°
In ΔOAC, O\(\hat{C}\)A = 90°. sin O\(\hat{A}\)C = \(\frac{OC}{OA}\)
sin 30° = \(\frac{OC}{12}\) sin 30° = \(\frac{1}{2}\)
\(\frac{1}{2}\) = \(\frac{OC}{12}\)
2OC = 12
OC = \(\frac{12}{2}\) = 6 cm.

In ΔOAC, O\(\hat{C}\)A = 90°
OC² + AC² = OA²
6² + AC² = 12²
AC² = 12² – 6²
= (12 + 6) (12 – 6)
= 18 × 6 = 108
AC = \(\sqrt{108}\) = \(\sqrt{36 \times 3}\) = 6\(\sqrt{3}\)
AC = CB = 6\(\sqrt{3}\)
∴ AB = 12\(\sqrt{3}\)
Area of ΔOAB = \(\frac{1}{2}\) × b × h
= \(\frac{1}{2}\) × AB × OC
= \(\frac{1}{2}\) × 12\(\sqrt{3}\) × 6 = 36\(\sqrt{3}\)
Area of the segment APB = Area of the sector PAOB – Area of triangle OAB
= 150.72 – 62.28
= 88.44 cm².

Question 8.
A horse is tied to a peg at one corner of a square-shaped grass field of side 15 m by means of a 5 m long rope. Find
JAC Class 10 Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 - 10
(i) the area of that part of the field in which the horse can graze.
(ii) the increase in the grazing area if the rope were 10 m long instead of 5 m. (Use π = 3.14).
Solution :
(i) When the rope is 5m long, area grazed = \(\frac{\pi r^2}{4}\) (quadrant)
= \(\frac{3.14 \times 5 \times 5}{4}=\frac{78.5}{4}\) = 19.625 m².

(ii) When the rope is 10 m long, area grazed = \(\frac{\pi r^2}{4}\)
= \(\frac{3.14 \times 10 \times 10}{4}=\frac{3.14 \times 100}{4}=\frac{314}{4}\)
= 78.5 cm².
Increased area available when the rope is 10 m long is
= 78.500 – 19.625 = 58.875 cm².

Question 9.
A brooch is made with silver wire in the form of a circle with diameter 35 mm. The wire is also used in making 5 diameters which divide the circle into 10 equal sectors as shown in the figure. Find:
(i) the total length of the silver wire required
(ii) the area of each sector of the brooch.
Solution :
JAC Class 10 Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 - 11
A\(\hat{O}\)B = 180°
It is divided into five equal parts,
∴ Each part = θ = \(\frac{180°}{5}\) = 36°.
Total length of silver wire used = πd × 5 × 35
= \(\frac{22}{7}\) × 35 + 175
= 110 + 175
= 285 mm².

Area of each sector = \(\frac{\pi r^2 \theta}{360^{\circ}}\)
= \(\frac{22}{7} \times \frac{35}{2} \times \frac{35}{2} \times \frac{36}{360}\)
= \(\frac{11 \times 35}{4}=\frac{385}{4}\) mm².

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Question 10.
An umbrella has 8 ribs which are equally spaced. Assuming umbrella to be a flat circle of radius 45 cm, find the area between two consecutive ribs of the umbrella.
Solution :
Number of ribs in umbrella = 8
Radius of umbrella while flat = 45 cm.
Angle between two consecutive ribs of the umbrella = \(\frac{360}{8}\) = 45°
JAC Class 10 Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 - 12

Question 11.
A car has two wipers which do not overlap. Each wiper has a blade of length 25 cm sweeping through an angle of 115°. Find the total area cleaned at each sweep of the blades.
Solution :
Given, length of wiper blade = 25 cm = r (say)
Angle made by the blade, θ = 115°
JAC Class 10 Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 - 13

Question 12.
To warn ships for underwater rocks, a lighthouse spreads a red coloured light over a sector of angle 80° to a distance of 16.5 km. Find the area of the sea over which the ships are warned. (Use π = 3.14)
Solution :
π = 3.14, r = 16.5, θ = 80°
Area warned = \(\frac{\theta \pi r^2}{360^{\circ}}\)
= \(\frac{3.14 \times 16.5 \times 16.5 \times 80}{360}\)
= 3.14 × 5.5 × 11
= 3.14 × 60.5 = 189.970
= 189.97 sq.kms.

JAC Class 10 Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2

Question 13.
A round table cover has six equal designs as shown in the figure. If the radius of the cover is 28 cm, find the cost of making the designs at the rate of Re. 0.35 per cm². (Use \(\sqrt{3}\) = 1.7).
JAC Class 10 Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 - 14
Solution :
[Draw a circle with centre O using a convenient radius. Draw a diameter AOD. Keep the protractor on AD and make three equal angles of 60° each such that A\(\hat{O}\)B = B\(\hat{O}\)C = C\(\hat{O}\)D. Produce BO and CO to meet the circumference at E and F respectively. Join AB, BC, CD, DE, EF, EA. We get a regular hexagon and six segments which are shaded.

Let one segment be APB.
Find the area of one segment. Multiply it by 6. We get the area of the six segments formed. Find the cost of making these designs as follows:
Area of one design × 6 × Rate]

JAC Class 10 Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 - 15
The design APB is nothing but a segment. We have to find the area of this segment using the following relation:
Area of the sector OAPB – Area of equilateral ΔAOB
JAC Class 10 Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 - 16

Cost of making these six designs = Area × Rate
= 464.8 × 0.35
= Rs. 162.68.

Question 14.
Tick the correct answer in the following:
Area of a sector of angle p (in degrees) of a circle with radius R is
(A) \(\frac{P}{180}\) × 2πR²
(B) \(\frac{P}{180}\) × πR²
(C) \(\frac{P}{360}\) × 2πR
(D) \(\frac{P}{720}\) × 2πR²
Solution :
Area of sector = \(\frac{\theta \pi r^2}{360^{\circ}}\) (Given, θ = p, r = R)
= \(\frac{p \pi R^2}{360}=\frac{p 2 \pi R^2}{720}\)

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-अनौपचारिक पत्र

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Rachana पत्र लेखन-अनौपचारिक पत्र Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10 Hindi Rachana पत्र लेखन-अनौपचारिक पत्र

1. अपने मित्र अथवा अपनी सखी को अपने जन्म-दिवस पर बधाई – पत्र लिखिए –
उत्तर :
56-एल, मॉडल टाउन
कोच्ची
31 मार्च, 20….
प्रिय सखी नलिनी
सस्नेह नमस्कार !
आज ही तुम्हारा पत्र प्राप्त हुआ है। यह जानकर अत्यंत प्रसन्नता हुई कि तुम 4 अप्रैल को अपना 17वाँ जन्म – दिवस मना रही हो। इस अवसर पर तुमने मुझे भी आमंत्रित किया है इसके लिए अतीव धन्यवाद।
प्रिय सखी, मैं इस शुभावसर पर अवश्य पहुँचती, लेकिन कुछ कारणों से उपस्थित होना संभव नहीं। मैं अपनी शुभकामनाएँ भेज रही हूँ। ईश्वर से प्रार्थना है कि वे तुम्हें चिरायु प्रदान करें। तुम्हारा भावी जीवन स्वर्णिम आभा से मंडित हो। अगले वर्ष अवश्य आऊँगी। मैं अपनी ओर से एक छोटी-सी भेंट भेज रही हूँ, आशा है कि तुम्हें पसंद आएगी। इस शुभावसर पर अपने माता-पिता को मेरी ओर से हार्दिक बधाई अवश्य देना।
तुम्हारी प्रिय सखी
मधु

2. आपके मित्र को छात्रवृत्ति प्राप्त हुई है। उसे बधाई पत्र लिखिए।
उत्तर :
512, चौक घंटाघर
भुवनेश्वर
19 जून, 20….
प्रिय मित्र सुमन
सस्नेह नमस्कार !
दिल्ली बोर्ड की दशम कक्षा की परिणाम सूची में तुम्हारा नाम छात्रवृत्ति प्राप्त छात्रों की सूची में देखकर मुझे अतीव प्रसन्नता हुई। प्रिय मित्र, मुझे तुमसे यही आशा थी। तुमने परिश्रम भी तो बहुत किया था। तुमने सिद्ध कर दिया कि परिश्रम की बड़ी महिमा है। 85 प्रतिशत अंक प्राप्त करना कोई खाला जी का घर नहीं। अपनी इस शानदार सफलता पर मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकार करें। अपने माता-पिता को भी मेरी ओर से बधाई देना। ग्रीष्मावकाश में तुम्हारे पास आऊँगा। मिठाई तैयार रखना।
आपका अपना
विवेक शर्मा

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3. आपकी बड़ी बहन को चिकित्सा महाविद्यालय में प्रवेश प्राप्त हो गया है। इस सफलता के लिए बधाई – पत्र लगभग 80-100 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
परीक्षा भवन
देहरादून
06-07-20XX
आदरणीय दीदी
सादर प्रणाम
आशा है आप सकुशल होंगी। में भी यहाँ कुशलता से हूँ अभी-अभी माँ का पत्र मिला। पत्र से पता चला कि आपका ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टीट्यूट, दिल्ली में दाखिला हो गया है। मेरी ओर से आपको बहुत – बहुत बधाई।
ऑल इंडिया में प्रवेश पाकर आपने सचमुच बड़ा मोर्चा मार लिया है। आपकी मेहनत रंग ले आई है। आप हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत हैं। भगवान आपको जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्रदान करे। मैं चाहती थी कि स्वयं दिल्ली आकर आपको बधाई दूँ, परंतु मेरी परीक्षाएँ सिर पर हैं। परीक्षा समाप्त होते ही आपसे आकर मिलूँगी। आपसे परीक्षा में सफलता का मूलमंत्र भी लूँगी।
घर में चाचा जी एवं चाची जी को मेरा प्रणाम दीजिएगा। नन्हे को मेरा स्नेह। शेष मिलने पर। मिलने की शुभेच्छा के साथ- आपकी प्रिय बहन
क. ख. ग.

4. अपने मित्र को एक पत्र लिखकर उसे ग्रीष्मावकाश का कार्यक्रम बताइए।
अथवा
ग्रीष्मावकाश के अवसर पर भ्रमणार्थ अपने मित्र को निमंत्रण पत्र लिखिए।
उत्तर :
37/9, रेलवे रोड
हैदराबाद
15 मई, 20….
प्रिय मित्र दिनेश
सस्नेह नमस्कार !
आशा है आप सब कुशल होंगे। आपके पत्र से ज्ञात हुआ है कि आपका विद्यालय ग्रीष्मावकाश के लिए बंद हो चुका है। हमारी परीक्षाएँ 28 मई को समाप्त हो रही हैं। इसके पश्चात विद्यालय 15 जुलाई तक बंद रहेगा। इस बार हम पिता जी के साथ शिमला जा रहे हैं। लगभग 20 दिन तक हम शिमला में रहेंगे। वहाँ मेरे मामा जी भी रहते हैं। अतः वहाँ रहने में हमें पूरी सुविधा रहेगी। शिमला के आस-पास सभी दर्शनीय स्थान देखने का निर्णय किया है। मेरे मामाजी के बड़े सुपुत्र वहाँ हिंदी के अध्यापक हैं। उनकी सहायता एवं मार्ग-दर्शन से मैं अपने हिंदी के स्तर को बढ़ा सकूँगा।

प्रिय मित्र, यदि आप भी हमारे साथ चलें तो यात्रा का आनंद आ जाएगा। आप किसी प्रकार का संकोच न करें। मेरे माता-पिताजी भी आपको मेरे साथ देखकर बहुत प्रसन्न होंगे। आप शीघ्र ही अपना कार्यक्रम सूचित करना। हमारा विचार जून के प्रथम सप्ताह में जाने का है। शिमला से लौटने के बाद दिल्ली तथा आगरा जाने का भी विचार है। दिल्ली में अनेक दर्शनीय स्थान हैं। आगरा का ताजमहल तो मेरे आकर्षण का केंद्र है, क्योंकि मुझे अभी तक इस सुंदर भवन को देखने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ। आशा है कि इस बार यह जिज्ञासा भी शांत हो जाएगी। आप अपना कार्यक्रम शीघ्र ही सूचित करना।
अपने माता-पिता को मेरी ओर से सादर नमस्कार कहना।
आपका मित्र
विजय नायडू

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-अनौपचारिक पत्र

5. अपने मित्र को उसके पिता के स्वर्गवास होने पर संवेदना – पत्र लिखिए।
उत्तर :
4587/15, दरियागंज
दिल्ली
21 जनवरी, 20….
प्रिय मित्र
कल्पना भी न की गई थी कि 19 जनवरी का दिन हम सबके लिए इतना दुखद होगा। आपके पिता के निधन का समाचार पाकर बड़ा शोक हुआ। हाय ! यह विधाता का कितना निर्दय प्रहार हुआ है। आपके पिता की असामयिक मृत्यु से हमारे घर में शोक का वातावरण छा गया। सबकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी। मेरे पिताजी ने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा, “मैंने अपना निकटतम मित्र तथा सहयोगी खो दिया है।
प्रिय मित्र ! गत मास जब मैं आपसे मिलने आया था तो उस समय आपके पिताजी कितने स्वस्थ थे। विधि का विधान भी बड़ा विचित्र है। उनका साधु व्यक्तित्व अब भी आँखों के सामने घूम रहा है। उनकी सज्जनता और परोपकार – भावना से सभी प्रभावित थे। उनके निधन से आपके परिवार को ही हानि नहीं पहुँची अपितु सारे नगर को हानि हुई है। उनकी शिक्षा में भी अत्यंत रुचि थी। उन्हीं की प्रेरणा से आप प्रत्येक परीक्षा में शानदार सफलता प्राप्त करते रहे हैं –
प्रिय मित्र ! काल के आगे सब असहाय और विवश हैं। उसकी शक्ति से कोई नहीं बच सकता। उसके आगे सबने मस्तक झुकाया है। धैर्य धारण करने के अतिरिक्त दूसरा उपचार नहीं है। हम सब आपके इस अपार दुख में सम्मिलित होकर संवेदना प्रकट करते हैं। आप धैर्य से काम लीजिए। अपने छोटे भाइयों को सांत्वना दो। माताजी को भी इस समय आपके सहारे की आवश्यकता है। मित्र ! निश्चय ही आप पर भारी ज़िम्मेदारी आ पड़ी है। ईश्वर से मेरी नम्र प्रार्थना है कि वे आपको इस अपार दुख को सहन करने की शक्ति दें और स्वर्गीय आत्मा को शांति प्रदान करें।
आपके दुख में दुखी
रवि वर्मा

6. आपके मित्र के पिता के सीमा पर शहीद हो जाने का समाचार प्राप्त होने पर अपनी भावनाएँ व्यक्त करते हुए मित्र को संवेदना पत्र लिखिए।
उत्तर :
4587/15, दरियागंज
दिल्ली
21 जनवरी, 20….
प्रिय मित्र
कल्पना भी न की गई थी कि 19 जनवरी का दिन हम सबके लिए इतना दुखद होगा। आपके पिता के निधन का समाचार पाकर बड़ा शोक हुआ हाय ! यह विधाता का कितना निर्दय प्रहार हुआ है। आपके पिता की असामयिक मृत्यु से हमारे घर में शोक का वातावरण छा गया। सबकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी। मेरे पिताजी ने आपके शहीद पिता की मृत्यु पर उद्गार व्यक्त करते हुए कहा, “मैंने अपना निकटतम मित्र तथा सहयोगी खो दिया है।” प्रिय मित्र ! गत मास जब मैं आपसे मिलने आया था तो उस समय आपके पिताजी कितने स्वस्थ थे।

उनसे देशभक्ति का सबक सीखा था। विधि का विधान भी बड़ा विचित्र है उनका पौरुष व्यक्तित्व अब भी आँखों के सामने घूम रहा है। उनकी वीरता, सज्जनता और परोपकार – भावना से सभी प्रभावित थे। उनके निधन से आपके परिवार को ही हानि नहीं पहुँची अपितु सारे नगर, देश को हानि हुई है। उनकी शिक्षा में भी अत्यंत रुचि थी। उन्हीं की प्रेरणा से आप प्रत्येक परीक्षा में शानदार सफलता प्राप्त करते रहे हैं।

प्रिय मित्र ! काल के आगे सब असहाय और विवश हैं। उसकी शक्ति से कोई नहीं बच सकता। उसके आगे सबसे मस्तक झुकाया है। धैर्य धारण करने के अतिरिक्त दूसरा उपचार नहीं है। हम सब आपके इस अपार दुख में सम्मिलित होकर संवेदना प्रकट करते हैं। आप धैर्य से काम लीजिए। अपने छोटे भाइयों को सांत्वना दो। माताजी को भी इस समय आपके सहारे की आवश्यकता है। मित्र ! निश्चय ही आप पर भारी जिम्मेदारी आ पड़ी है। ईश्वर से मेरी नम्र प्रार्थना है कि वे आपको इस अपार दुख को सहन करने की शक्ति दें और स्वर्गीय आत्मा को शांति प्रदान करें।
आपके दुख रवि वर्मा
रवि वर्मा

JAC Class 10 Hindi रचना पत्र लेखन-अनौपचारिक पत्र

7. छात्रावास में रहने वाले अपने छोटे भाई को एक पत्र 80-100 शब्दों में लिखकर प्रातः काल नियमित रूप से योग एवं प्राणायाम का अभ्यास करने के लिए प्रेरित कीजिए।
उत्तर :
परीक्षा भवन
नई दिल्ली
दिनांक : 16 अक्टूबर, 20XX
प्रिय अनुज
सस्नेह।
कैसे हो? तुम्हारे स्कूल से तुम्हारा अर्धवार्षिक परीक्षा परिणाम अभी प्राप्त हुआ। तुमने हमेशा की तरह इस बार भी प्रत्येक विषय में श्रेष्ठ प्रदर्शन किया। शाबाश! आगे भी ऐसे ही बने रहना। उज्ज्वल भविष्य के लिए ऐसे परीक्षा परिणामों की बहुत आवश्यकता होती है किंतु अच्छे अंक पाने की होड़ में अपने स्वास्थ्य को दाँव पर नहीं लगाना चाहिए। मुझे पता है कि तुम दिन-रात आजकल अपनी बोर्ड परीक्षा की तैयारी में व्यस्त रहते हो, पर तुम्हें यह भी स्मरण रहना चाहिए कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। तुम प्रातःकाल तो जल्दी उठ ही जाते हो। तुम उस समय योग और प्राणायाम के लिए कुछ समय अवश्य निकाला करो। योग और प्राणायाम के द्वारा तन और मन दोनों ही चुस्त और स्वस्थ रहते हैं। ये कम समय में अधिक लाभ देंगे तथा तुम्हें परीक्षा की तैयारी करते समय भी अधिक सक्रिय रखेंगे। आशा तुम मेरी इस सलाह को ज़रूर मानकर योग और प्राणायाम को अपनी दिनचर्या बनाओगे।
माता जी व पिता जी की ओर से तुम्हें ढेर सारा प्यार।
तुम्हारा भाई
हितेज़

8. अपने पिता जी को पत्र लिखिए जिसमें अपनी परीक्षा में उत्तीर्ण होने की सूचना देते हुए खर्च के लिए रुपये मँगवाओ।
उत्तर :
परीक्षा भवन
क० ख० ग०
5 मई, 20….
पूज्य पिताजी
सादर प्रणाम।
आपको यह जानकर हर्ष होगा कि हमारा परीक्षा परिणाम निकल आया है। मैं 580 अंक लेकर प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो गया हूँ। अपनी कक्षा में मेरा दूसरा स्थान है। मुझे स्वयं इस बात का दुःख है कि मैं प्रथम स्थान प्राप्त न कर सका। इसका कारण यह है कि मैं दिसंबर मांस में बीमार हो गया था और लगभग 20-25 दिन विद्यालय न जा सका। यदि मैं बीमार न हुआ होता तो संभव था कि छात्रवृत्ति प्राप्त करता। अब मैं सातवीं कक्षा में अधिक अंक प्राप्त करने का प्रयत्न करूँगा।
अब मुझे सातवीं कक्षा की नई पुस्तकें आदि खरीदनी हैं। कुछ मित्र मेरी इस सफलता पर पार्टी भी माँग रहे हैं। अतः आप मुझे 2500 रुपये यथाशीघ्र भेजने की कृपा करें।
आपका आज्ञाकारी पुत्र,
राघव।

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9. अपने छोटे भाई को कुसंगति की हानियाँ बताकर अच्छे लड़कों की संगति में रहने की प्रेरणा देते हुए पत्र लिखिए।
उत्तर :
720, सेक्टर 27 – सी.
कुरुक्षेत्र।
20 फ़रवरी, 20….
प्रिय जगदीश,
प्रसन्न रहो।
हमें पूर्ण विश्वास है कि तुम सदा मेहनत करते हो और मिडिल परीक्षा में कोई अच्छा स्थान लेकर उत्तीर्ण होगे। तुम्हारी नियमितता और अनुशासन- पालन को देखकर हमें यह विश्वास हो गया है कि तुम्हारा भविष्य उज्ज्वल है, लेकिन एक बात का ध्यान अवश्य रखना कि कहीं कुसंगति में फँसकर अपने को दूषित न कर लेना। यदि तुम बुरे लड़कों के जाल से न बचोगे तो तुम्हारा भविष्य अंधकारमय बन जाएगा और तुम अपने रास्ते से भटक जाओगे। तुम्हें जीवन-भर कष्ट उठाने पड़ेंगे और तुम अपने उद्देश्य में सफल न हो सकोगे।

कुसंगति छात्र का सबसे बड़ा शत्रु है। दुराचारी बच्चे होनहार बच्चों को भी भ्रष्ट कर देते हैं। प्रारंभ में बुरे बच्चों की संगति बड़ी मनोरम लगा करती है, लेकिन यह भविष्य को धूमिल कर देती है। दूसरी ओर अच्छे बच्चों की संगति करने से चरित्र ऊँचा होता है, कई अच्छे गुण आते हैं। अच्छे बालक की सभी प्रशंसा करते हैं।
आशा है कि तुम कुसंगति के पास तक नहीं फटकोगे, फिर भी तुम्हें सचेत कर देना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ। माताजी और पिताजी का आशीर्वाद तुम्हारे साथ है, किसी वस्तु की ज़रूरत हो तो लिखना।
तुम्हारा बड़ा भाई,
भुवन मोहन

10. अपनी माता जी को बीमारी की अवस्था पर चिंता व्यक्त करते हुए अपने पिताजी को एक पत्र लिखिए।
उत्तर :
7/454, माधोपुरी
राँची
10 नवंबर, 20….
श्रद्धेय पिताजी
सादर चरण-स्पर्श !
मैंने पहले पत्र में भी आपको माँ के बढ़ते हुए रोग की सूचना दी थी और आपके परामर्श के अनुसार डॉ० भंडारी को भी दिखाया लेकिन अभी तक कुछ स्वास्थ्य लाभ नहीं हुआ। माँ के निरंतर बढ़ते हुए रोग ने हमें बहुत चिंतित कर दिया है। वे बहुत दुर्बल हो गई हैं। आप कृपया शीघ्र पहुँचने का प्रयत्न करें। संभव हो तो दूरभाष पर बात करें।
आपका प्रिय पुत्र
चैतन्य पुरी

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11. अपने छोटे भाई के जन्म-दिवस पर आमंत्रित करते हुए मित्र को पत्र लिखिए।
उत्तर :
परीक्षा भवन
25 मार्च, 20….
प्रिय मित्र विकास
सप्रेम नमस्कार !
आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि मेरे अनुज दीपक का जन्मदिवस 12 अप्रैल, 20… को सायं पाँच बजे घर के आँगन में मनाया जाएगा। इस शुभावसर की शोभा बढ़ाने के लिए कुछ प्रसिद्ध गायक भी सम्मिलित होंगे। आपसे निवेदन है कि आप भी इस अवसर पर पधारें और अनुज दीपक को आशीर्वाद देने की कृपा करें।
अपने माता-पिता को मेरी ओर से प्रणाम कहें।
आपका मित्र
मानस

12. अपने मित्र / सहेली को एक पत्र लिखकर बताइए कि आपके स्कूल में 15 अगस्त का दिन कैसे मनाया गया।
उत्तर :
48 – A, आदर्श नगर,
गुरदासपुर।
18 अगस्त, 20….
प्रिय सखी दीपा,
सप्रेम नमस्ते।
बहुत दिनों से तुम्हारा पत्र नहीं मिला। क्या कारण है ? मैं तुम्हें दो पत्र डाल चुकी हूँ पर उत्तर एक का भी नहीं मिला। कोई नाराज़गी तो नहीं। अगर ऐसी-वैसी कोई बात हो तो क्षमा कर देना।
हाँ, इस बार हमारे स्कूल में 15 अगस्त का दिन बड़ी धूमधाम से मनाया गया। इसकी थोड़ी-सी झलक मैं पत्र द्वारा तुम्हें दिखा रही हूँ। 15 अगस्त मनाने की तैयारियाँ एक महीना पहले ही शुरू कर दी गई थीं। स्कूल में सफ़ेदी कर दी गई थी। लड़कियों को सामूहिक नृत्य की ट्रेनिंग देना कई दिन पहले ही शुरू कर दी गई थी। हमें ‘हमारे अमर शहीद’ एकांकी नाटक की रिहर्सल भी कई बार करवाई गई।

निश्चित दिन को ठीक सुबह सात बजे 15 अगस्त का समारोह शुरू हो गया। सबसे पहले तिरंगा झंडा फहराने की रस्म क्षेत्र के जाने-माने समाज सेवक चौधरी रामलाल जी ने अदा की। इसके बाद स्कूल की छात्राओं ने रंगारंग कार्यक्रम पेश करने शुरू कर दिए। गिद्धा नाच ने सबका मन मोह लिया। इसके बाद देश-प्रेम के गीत गाए गए। मैंने भी एक गीत गाया था। मैंने सामूहिक गायन में भी भाग लिया।

इसके बाद एकांकी ‘हमारे अमर शहीद’ का मंचन हुआ। इसके हर सीन पर तालियाँ बजती थीं। समारोह के अंत में मुख्य अतिथि और हमारी बड़ी बहन जी ने भाषण दिए, जिसमें देश-भक्ति की प्रेरणा थी।
15 अगस्त का यह समारोह मुझे हमेशा याद रहेगा, क्योंकि मुझे इसमें दो खूबसूरत इनाम मिले हैं। पूज्य माताजी और भाभी जी को प्रणाम। रिंकू और गुड्डी को प्यार देना। इस बार पत्र का उत्तर ज़रूर देना।
तुम्हारी अनन्य सखी,
वर्तिका

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13. परीक्षा में असफल होने पर बहन को सांत्वना पत्र लिखिए।
उत्तर :
519, राम कुटीर,
रामनगर, दिल्ली।
5 जुलाई, 20….
प्रिय बहन सिया,
प्रसन्न रहो।
पिता जी का अभी-अभी पत्र आया है। तुम्हारे असफल होने का समाचार मिला। मुझे तो पहले ही तुम्हारे पास होने की आशा नहीं थी। इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है। जिन परिस्थितियों में तुमने परीक्षा दी, इसमें असफल रहना स्वाभाविक ही था। पहले माताजी बीमार हुईं, फिर तुम स्वयं बुखार में फँस गई। जिस कष्ट को सहन करके तुमने परीक्षा दी वह मुझ से छिपा नहीं है। इस पर तुम्हें रंचमात्र भी खेद नहीं करना चाहिए। तुम अपने मन से यह बात निकाल दो कि हम तुम्हारे असफल होने पर नाराज़ हैं। हाँ, अब अगले वर्ष की परीक्षा के लिए तैयार हो जाओ। किसी पुस्तक की आवश्यकता हो तो लिखो। डटकर पढ़ाई करो। माताजी एवं पिताजी को प्रणाम।
तुम्हारा प्यारा भाई,
वरुण

14. अपने मित्र को एक पत्र लिखिए जिसमें दहेज की कुप्रथा के बारे में विवेचना हो।
उत्तर :
डी० ए० वी० उच्च विद्यालय,
कोलकाता।
1 मार्च, 20….
प्रिय मित्र सुशील,
सप्रेम नमस्ते।
आपका पत्र मिला, तदर्थ धन्यवाद। बहन रमा की मँगनी के विषय में आपने मुझसे परामर्श माँगा है। दहेज के संबंध में मेरी सम्मति माँगी है। इसके लिए कुछ शब्द प्रस्तुत हैं।
मैं मनु के इस उपदेश का प्रचारक हूँ कि जिस घर में नारियों की पूजा होती है, उस घर में देवता निवास करते हैं। आज इस आदर्श पर पोछा फिर गया है। जिस गृहस्थ के घर में कन्या पैदा होती है, वह समझता है कि मुझ पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा है। मेरी सम्मति में इन सब बुरी भावनाओं का मूल कारण केवल मात्र दहेज-प्रथा है।
आज की प्रचलित दहेज-प्रथा ने कई सुंदर देवियों को पतित होने पर विवश किया है। कइयों ने अपने माता-पिता को कष्ट में देखकर आत्महत्याएँ की हैं।
क्या आपको अंबाला की प्रेमलता की आत्महत्या की घटना स्मरण नहीं ? माता-पिता की इज़्ज़त की रक्षा के लिए उसने अपने प्राणों की बलि दे दी। इसी कारण समाज सुधारकों की आँखें खुलीं। समाज सुधारकों ने इस कुप्रथा का अंत करने का बीड़ा उठाया।
मेरी अपनी सम्मति में कन्यादान ही महान् दान है। जिस व्यक्ति ने अपने हृदय का टुकड़ा दे दिया उसका यह दान तथा त्याग क्या कम है ? आज के नवयुवकों की बढ़ती हुई दहेज की लालसा मुझे सर्वथा पसंद नहीं है। वरों की इस प्रकार से बढ़ती हुई कीमतें समाज के भविष्य के लिए महान संकट बन रही हैं।

मेरी सम्मति में आप रमा बहन के लिए एक ऐसा वर ढूँढ़ें जो हर प्रकार से योग्य हो, स्वस्थ, समुचित रोज़गार वाला और शिक्षित हो। धनी-मानी और लालची लोगों की ओर एक बार भी नज़र न डालें। समय आ रहा है जबकि स्वतंत्र भारत के कर्णधार कानूनन दहेज प्रथा को बंद कर देंगे।
इस संबंध में बहुत सोचने और घबराने की आवश्यकता नहीं है।
आपका अभिन्न हृदय
मनोहर लाल

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15. अपने छोटे भाई को पत्र लिखिए जिसमें प्रातः भ्रमण के लाभ बताए गए हों।
उत्तर :
208, कृष्ण नगर,
इंदौर
15 अप्रैल, 20….
प्रिय सुरेश,
प्रसन्न रहो।
कुछ दिनों से तुम्हारा कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ। तुम्हारे स्वास्थ्य की बहुत चिंता है। व्यक्ति का स्वास्थ्य उसकी पूँजी होती है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ आत्मा निवास करती है। गत वर्ष के टाइफाइड का प्रभाव अब तक भी तुम्हारे ऊपर बना हुआ है। मेरा एक ही सुझाव है कि तुम प्रातः भ्रमण अवश्य किया करो। यह स्वास्थ्य सुधार के लिए अनिवार्य है। इससे मनुष्य को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।

प्रातः भ्रमण से शरीर चुस्त रहता है। कोई बीमारी पास नहीं फटकती। प्रातः बस्ती से बाहर की वायु बहुत ही शुद्ध होती है। इसके सेवन से स्वच्छ रक्त का संचार होता है। मन खिल उठता है, मांसपेशियाँ बलवान् बनती हैं। स्मरण शक्ति बढ़ती है। प्रातःकाल खेतों की हरियाली से आँखें ताज़ा हो जाती हैं।

मुझे आशा है कि तुम मेरे आदेश का पालन करोगे। नित्य प्रातः उठकर सैर के लिए जाया करोगे। अधिक क्या कहूँ। तुम्हारे स्वास्थ्य का रहस्य प्रातः भ्रमण में छिपा है। पूज्य माताजी को प्रणाम। अणु-शुक को प्यार।
तुम्हारा अग्रज,
प्रमोद कुमार

16. अपनी छोटी बहन को सादा जीवन बिताने के लिए पत्र लिखिए।
उत्तर :
केंद्रीय उच्च विद्यालय,
झाँसी।
2 नवंबर, 20….
प्रिय बहन मधु,
प्यार भरी नमस्ते।
कल पूज्य माताजी का पत्र मिला। घर का हाल-चाल ज्ञात हुआ। यह पढ़कर मुझे दुःख भी हुआ और हैरानी भी कि तुम फ़ैशनपरस्ती की ओर बढ़ रही हो। फ़ैशन विद्यार्थी का सबसे बड़ा शत्रु है।
बहन, तुम समझदार हो। सादगी, सरलता और सद्विचार उन्नति की सीढ़ियाँ हैं। फ़ैशन हमारी संस्कृति और सभ्यता के प्रतिकूल है। प्रगति की दौड़ में फ़ैशनपरस्त व्यक्ति हमेशा ही पिछड़ जाता है।
सादी वेश-भूषा व्यक्ति को ऊँचा उठाती है। सादापन मनुष्य का आंतरिक शृंगार है। अच्छे कुल की लड़कियाँ सादा खान-पान और सादा रहन- सहन कभी नहीं त्यागतीं। फ़ैशन की तितलियाँ बनना उन्हें शोभा नहीं देता। तड़क-भड़क व्यक्ति के आचरण को ले डूबती है। अत: इसे दूर से ही नमस्कार दो। गांधीजी कहा करते थे कि लड़के-लड़कियों में सादगी होना बहुत ज़रूरी है।
फिर तुम एक भारतीय लड़की हो। तुम्हें सीता, सावित्री, द्रौपदी, अनुसूइया आदि के समान आदर्श बनना है। कीलर या मारग्रेट नहीं बनना है। मुझे विश्वास है कि तुम मेरी इस छोटी-सी परंतु महत्त्वपूर्ण शिक्षा के अनुसार आचरण करोगी। इसी में हमारे परिवार का मंगल है।
तुम्हारा भाई,
रवि शंकर
कक्षा : सातवीं ‘ए’

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17. छात्रावासीय जीवन पर टिप्पणी करते हुए अपने बड़े भाई के नाम एक पत्र लिखिए।
उत्तर :
512, टैगोर भवन
इलाहाबाद विश्वविद्यालय
इलाहाबाद
दिनांक : 20 जुलाई, 20 ….
पूज्य भाई साहब
नमस्कार !
आशा है कि आप सब सकुशल हैं। मुझे यहाँ प्रवेश मिल गया है तथा टैगोर भवन छात्रावास में कमरा भी मिल गया है। यहाँ के सभी साथी बहुत ही मिलनसार तथा हँसमुख हैं। हमारे छात्रावास में खेलों तथा मनोरंजन के साधनों में दूरदर्शन, कंप्यूटर आदि उपलब्ध हैं। यहाँ के भोजनालय में भोजन अत्यंत पौष्टिक तथा स्वास्थ्यवर्धक प्राप्त होता है। स्नानागार आदि भी स्वच्छ तथा हवादार हैं। कमरे में पंखा लगा हुआ है तथा कमरे के बाहर छज्जे में से प्राकृतिक दृश्य बहुत सुंदर दिखाई देते हैं।
आप माताजी एवं पिताजी को समझा दें कि मैं यहाँ पर सुखपूर्वक हूँ तथा मन लगाकर पढ़ रहा हूँ। समय पर खा-पी लेता हूँ तथा व्यायाम भी करता हूँ। उन्हें नमस्कार कहें तथा रुचि को स्नेह दें।
आपका अनुज
तरुण कुमार

18. आपका छोटा भाई अनुराग परीक्षा में नकल करते हुए पकड़ा गया। उसे भविष्य में ऐसा न करने की सलाह देते हुए पत्र लिखिए।
उत्तर :
परीक्षा भवन
नई दिल्ली
दिनांक : 20-05-20XX
प्रिय अनुराग
शुभाशीष
आशा है कि तुम सकुशल होंगे। मैं भी यहाँ कुशलतापूर्वक हूँ और अपने कामकाज में व्यस्त हूँ।
कल ही मुझे यह पता चला कि तुम विज्ञान की परीक्षा में नकल करते पकड़े गए और इसके लिए प्रधानाचार्य ने तुम्हें दंडित किया है। तुम्हारा विज्ञान का पेपर भी रद्द कर दिया गया है और तुम्हें दोबारा परीक्षा देने के लिए कहा गया है। भाई, तुमने ऐसा क्यों किया ? तुम्हारी इस हरकत से माता-पिता को कितना दुख हुआ है। मेरे द्वारा बार-बार समझाने पर भी तुमने अपनी पढ़ाई की ओर ध्यान नहीं दिया। सारा समय मित्रों के साथ बाहर घूमने और दूरदर्शन देखने में बिताने का यही नतीजा होता है। यदि हमारा कहा मानकर प्रतिदिन केवल एक-दो घंटे पढ़ाई की होती, तो आज यह दुख न झेलना पड़ता। अब भी समय है, सँभल जाओ और पढ़ाई में अपना मन लगाओ।
आशा है कि तुम मेरी सलाह पर ध्यान दोगे और भविष्य में कभी यह गलती नहीं दोहराओगे।
तुम्हारा भाई
क. ख. ग

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19. जन्म – दिवस पर प्राप्त भेंट के लिए धन्यवाद – पत्र लिखिए।
उत्तर :
712, जनता नगर
कोयंबटूर
24 दिसंबर, 20….
पूज्य चाचा जी
सादर प्रणाम !
आपने मेरे जन्म-दिवस पर मुझे अपनी शुभ कामनाओं के साथ-साथ जो घड़ी भेजी है, उसके लिए मैं आपका हार्दिक धन्यवाद करती हूँ। मेरी पहली घड़ी पुरानी हो जाने के कारण न तो ठीक तरह से चलती थी और न ही ठीक समय की सूचना देती थी। अतः मैं नई घड़ी की आवश्यकता अनुभव कर रही थी। घड़ी देखने में भी अत्यन्त आकर्षक है। ठीक समय देने में तो इसका जवाब नहीं।
चाचाजी, मुझे तोहफ़े तो और भी मिले हैं पर आपकी घड़ी की बराबरी कोई नहीं कर सकता। आपकी यह प्रिय भेंट चिरस्मरणीय है।
इस भेंट के लिए मैं एक बार फिर आपका धन्यवाद करती हूँ।
चाचीजी को सादर प्रणाम। विमल और कमल को मेरी ओर से सस्नेह नमस्कार।
आपकी आज्ञाकारी
लक्ष्मी मेनन

20. छोटे भाई को पत्र लिखो और उसे समय का महत्व बताइए।
उत्तर :
16, रूप नगर
अवंतिपुर
25 मई, 20….
प्रिय अनुज
चिरंजीव रहो !
कल ही पिताजी का पत्र प्राप्त हुआ है। उसमें उन्होंने तुम्हारे विषय में यह शिकायत की है कि तुम समय के महत्त्व को नहीं समझते। अपना अधिकांश समय खेल-कूद में तथा मित्रों से व्यर्थ के वार्तालाप में नष्ट कर देते हो। नरेश ! तुम्हारे लिए यह उचित नहीं। समय ईश्वर का दिया हुआ अमूल्य धन है। इसका ठीक ढंग से व्यय करना हमारा कर्तव्य है। समय की अपेक्षा करने वाला कभी महान नहीं बन सकता।

शीघ्र ही तुम्हारा स्कूल ग्रीष्मावकाश के लिए बंद हो रहा है। तुमने अपने भ्रमण के लिए जो योजना बनाई है, वह ठीक है। कुछ दिन शिमला में रहने से तुम्हारा मन तथा शरीर दोनों स्वस्थ बन जाएँगे। वहाँ भी तुम अध्ययन का क्रम जारी रखना। ज्ञान की वृद्धि के लिए पाठ्यक्रम के अतिरिक्त भी कुछ उपयोगी पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए लेकिन दृष्टि परीक्षा पर ही केंद्रित रहे।

प्रत्येक क्षण का सदुपयोग एक पीढ़ी के समान है जो हमें निरंतर उत्थान तथा प्रगति की ओर ले जाता है। संसार इस बात का साक्षी है कि जितने भी महान व्यक्ति हुए हैं, उन्होंने अपने जीवन के किसी भी क्षण को व्यर्थ नहीं जाने दिया। इसीलिए वे आज इतिहास के पृष्ठों में अमर हो गए हैं। पंत जी ने भी अपने जीवन को सुंदर रूप में देखने के लिए भगवान से कामना करते हुए कहा है- यह पल-पल का लघु जीवन, सुंदर, सुखकर, शुचितर हो।

प्रिय अनुज ! याद रखो। समय संसार का सबसे बड़ा शासक है। बड़े-बड़े नक्षत्र भी उसके संकेत पर चलते हैं। हमारी सफलता-असफलता समय के सदुपयोग अथवा दुरुपयोग पर ही निर्भर करती है। समय का मूल्य समझना, जीवन का मूल्य समझना है। हमारे देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो समय के दुरुपयोग में ही जीवन का आनंद ढूँढ़ते हैं। ऐसे लोग प्रायः व्यर्थ की बातचीत में, ताश खेलने में, चल-चित्र देखने में तथा आलस्यमय जीवन व्यतीत करने में ही अपना समय नष्ट करते रहते हैं। हमारे जीवन में मनोरंजन का भी महत्त्व है. पर मेहनत का पसीना बहाने के बाद। मनोरंजन के नाम पर समय नष्ट करना भूल ही नहीं बल्कि बहुत बड़ी मूर्खता है।
इस प्रकार समय के सदुपयोग में ही जीवन की सार्थकता है।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि तुम समय का मूल्य समझोगे और उसके सदुपयोग द्वारा अपने जीवन को सफल बनाओगे।
मेरी ओर से माता-पिता को प्रणाम।
तुम्हारा हितैषी
रवींद्र वर्मा

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21. किसी मुद्दे पर आपका अपने मित्र से मतभेद हो गया है। उसे 80-100 शब्दों में पत्र लिखकर अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए बताइए कि यह मित्रता आपके लिए क्या महत्व रखती है।
उत्तर :
55, जनकपुरी
नई दिल्ली
दिनांक : 25 फरवरी 2020
प्रिय मित्र सुरेश
सप्रेम नमस्कार।
मैं यहाँ अपने परिवार के साथ सकुशल हूँ कि तुम भी अपने परिवारजन के साथ कुशलतापूर्वक होंगे। सर्वप्रथम मैं दिल से तुम्हें चुनाव में विजयी होने के लिए बधाई देता हूं। दिल्ली के विधानसभा चुनाव में तुम आम आदमी पार्टी के टिकट पर लड़ रहे थे और तुम चाहते हो कि चुनाव प्रचार में मैं तुम्हारा साथ दूँ। परंतु मैं उस पार्टी की विचारधारा से सहमत नहीं था और मैंने तुम्हारे साथ प्रचार न करने का निर्णय लिया था और इस कारण तुम मुझसे नाराज़ हो गए। तुम इस बात से भलीभाँति परिचित हो कि लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक को स्वेच्छा से पार्टी या नेता का चुनाव या समर्थन करने का अधिकार है और मैंने भी उसी अधिकार का प्रयोग किया। मुझे आशा है कि तुम मेरी बात समझोगे और अपनी नाराजगी दूर करोगे। हमारी मित्रता बहुत घनिष्ठ है जिसमें मतभेद हो सकते हैं नाराजगी नहीं। मुझे आशा है कि तुम पत्र पढ़कर शीघ्र ही उत्तर होगे। तुम्हारे पत्र की प्रतीक्षा में।
तुम्हारा मित्र
क. ख. ग.

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22. सार्वजनिक स्थलों पर बढ़ते हुए धूम्रपान तथा उसके कारण संभावित रोगों की ओर संकेत करते हुए किसी दैनिक समाचार पत्र के संपादक को 80-100 शब्दों में पत्र लिखिए।
उत्तर :
परीक्षा भवन
नई दिल्ली
दिनांक: 29 मार्च 2020
सेवा में
संपादक में
नव भारत टाइम्स
बहादुर शाह ज़फर रोड
नई दिल्ली
विषय – सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान का प्रभाव
महोदय
मैं दिल्ली के चाँदनी चौक का निवासी, आपका ध्यान सार्वजनिक स्थलों पर बढ़ते धूम्रपान व उसके कारण संभावित रोगों की ओर दिलाना चाहता हूँ। प्रतिदिन मैं इस समस्या को देखता, महसूस करता और सहता हूँ।
धूम्रपान से होने वाली घातक बीमारी से हम सभी अवगत हैं। धूम्रपान करने से कैंसर सहित और भी कई घातक बीमारियाँ होती है। यह न सिर्फ धूम्रपान करने वालो को रोगग्रस्त करता है अपितु जो धूम्रपान के इर्द-गिर्द रहते हैं उन्हें भी अपनी चपेट में ले लेता है। इस समस्या के समाधान हेतु राज्य सरकार तथा केंद्र सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र को धूम्रपान मुक्त बनाने के लिए कानून की व्यवस्था की थी। परंतु कुछ लोग इस कानून का पालन नहीं कर रहे हैं जिससे सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान न करने वाले लोग भी बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं।
आशा है आप इस पत्र को प्रकाशित कर सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित करवाने में मदद करेंगे ताकि इस पर कठोर कानून बने व लागू हो।
शुभ कामनाओं सहित
धन्यवाद
भवदीय
क ख ग

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 16 पतझर में टूटी पत्तियाँ

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 16 पतझर में टूटी पत्तियाँ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 16 पतझर में टूटी पत्तियाँ

JAC Class 10 Hindi पतझर में टूटी पत्तियाँ Textbook Questions and Answers

मौखिक –

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग क्यों होता है ?
अथवा
शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग-अलग कैसे हैं ? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
शुद्ध सोना और गिन्नी का सोने में क्या अंतर है ?
उत्तर :
शुद्ध सोना बिलकुल शुद्ध होता हैं; इसमें किसी तरह की कोई मिलावट नहीं होती। इसके विपरीत गिन्नी के सोने में ताँबा मिला होता है। इसी कारण वह अधिक चमकदार और मज़बूत होता है।

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प्रश्न 2.
प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जो शुद्ध आदर्शों के साथ-साथ व्यावहारिकता का भी प्रयोग करते हैं, उन्हें प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट कहते हैं।

प्रश्न 3.
पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श क्या है ?
उत्तर :
पाठ के अनुसार शुद्ध आदर्श है-‘अपने सिद्धांतों, सत्य आदि का पालन करना’। इसमें व्यंवहारवाद के लिए कोई स्थान नहीं होता।

प्रश्न 4.
लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड़’ का इंजन लगने की बात क्यों कही है?
उत्तर :
जापानियों का दिमाग बहुत तेज्ञ गति से चलता है। वे हर काम को जल्दी निपय देना चाहते हैं। इसी कारण लेखक ने जापानियों के दिमाग में स्पीड का इंजन लगने की बात कही है।

प्रश्न 5.
जापानी में चाय पीने की विधि को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
जापानी में चाय पीने की विधि को चा-नो-यू कहते हैं।

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प्रश्न 6.
जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान की क्या विशेषता है ?
उत्तर :
जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान पर पूरी तरह से शांति होती है। यही उस स्थान की मुख्य विशेषता है।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से और व्याकहारिकता की तुलना ताँबे से क्यों की गई है?
उत्तर :
लेखक के अनुसार शुद्ध आदर्श सोने के समान खो होते है। सोने की तरह ही उनमें पूर्ण शुद्धता होती है। अतः वे सोने के समान मूल्यवान हैं। दूसरी ओर व्यावहारिकता ताँबे के समान है, जो शुद्ध आदर्शरूपी सोने में मिलकर उसे चमक प्रदान करती है। व्यावहारिकता ताँबे के समान ऊपरी तौर पर चमकदार होती है।

प्रश्न 2.
चाजीन ने कौन-सी क्रियाएँ गरिमापूर्ण बंग से पूरी की ?
उत्तर :
जापानी विधि से चाय पिलाने वाले को चाजीन कहा गया है। जब लेखक और उसके मित्र वहाँ चाय पीने गए, तो उसने कमर झुकाकर प्रणाम किया और उन्हें बैठने की जगह दिखाई। उसके बाद अँगीठी सुलगाकर उसने चायदानी रखी। वह दूसरे कमरे में जाकर बर्तन लेकर आया और उन बर्तनों को उसने तौलिए से साफ़ किया। इन्हीं क्रियाओं को उसने अत्यंत गरिमापूर्ण ढंग से पूरा किया था।

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प्रश्न 3.
‘टी-सेंरेमनी’ में कितने आदमियों को प्रवेश दिया जाता था और क्यों ?
उत्तर :
‘टी-सेंरेमनी’ में तीन आदमियों को प्रवेश दिया जाता था। ‘ टी-सेंरमनी’ की मुख्य विशेषता वहाँ की शांति होती है। यदि अधिक व्यक्तियों को प्रवेश दिया जाए, तो वहाँ शांति भंग होने की आशंका रहती है। एक समय में तीन व्यक्ति ही शांतिपूर्ण चाय पीने के उस ढंग का सही आनंद उठा सकते हैं।

प्रश्न 4.
चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयय में क्या परिवर्तन महसूल किया?
उत्तर :
चाय पीने के बाद लेखक ने महसूस किया कि उसके दिमाग के दौड़ने की गति धीर-धीर कम हो रही थी। कुछ देर बाद दिमाग की गति बिलकुल बंद हो गई और उसका दिमाग पूरी तरह शांत हो गया। लेखक को ऐसा प्रतीत हुआ मानो वह अनंतकाल में जी रहा है। उसे अपने चारों ओर इसनी शांति महसूस हो रही थी कि उसे सन्नाटा भी साफ़ सुनाई दे रहा था।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
गाधीजी में नेतृत्व की अद्भुत कमता थी; उदाहरण साित्त इस बात की पुष्टि कीजिए।
उत्तर :
गंधीजी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी। यह बात उनके अहिंसात्मक आंदोलनों से स्पष्ट हो जाती है। वे अकेले चलते थे और लाखोंलोग उनके पीछे हो जाते थे। नमक का कानून तोड़ने के लिए जब उन्होंने जनता का आहवान किया तो उनके नेतृत्व में हज़ारों लोग उनके साथ पैदल ही दाँडी यात्रा पर निकल पड़े थे। इसी प्रकार से असहयोग आंदोलन के समय भी उनकी एक आवाज़ पर देश के हज़ारों नौज़वान अपनी पढ़ाई छोड़कर उनके नेतृत्व में आंदोलन के पथ पर चल पड़े थे।

प्रश्न 2.
आपके विचार से कौन-से ऐसे मूल्य हैं जो शाश्वत हैं ? वर्तमान समय में इन मूल्यों की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
मेरे विचार में ईमानदारी, सत्य बोलना, अहिंसा, पारस्परिक प्रेमभाव, सदाचार, परिश्रम करना, निरंतर कर्म करते रहना, मानव धर्म का पालन करना, देश और समाज के प्रति निष्ठावान रहना, दूसरों की सहायता करना आदि शाश्वत मूल्य हैं। वर्तमान समय में जबकि सर्वत्र भ्रष्टाचार, अनाचार, हिंसा, द्वेष, आलसीपन, कदाचार आदि दुर्भावों का बोलबाला है, हम इन शाश्वत मूल्यों को अपनाकरं अपना, अपने परिवार, समाज तथा देश का नाम ऊँचा कर सकते हैं। ये शाश्वत मूल्य ही हमें सद्मार्ग दिखा सकते हैं।

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प्रश्न 3.
अपने जीवन की किसी ऐसी घटना का उल्लेख कीजिए जब –
1. शुद्ध आदर्श से आपको हानि-लाभ हुआ हो।
2. शुद्ध आदर्श में व्यावहारिकता का पुट देने से लाभ हुआ हो।
उत्तर :
1. एक बार एक सज्जन हमारे घर का दरवाज़ा खटखटा रहे थे। मैंने बाहर जाकर देखा। वे पिताजी के बारे में पूछ रहे थे। मैंने उन्हें बैठक में बैठाया और पिताजी को बुला लाया। उन सज्जन के जाने के बाद पिताजी ने मुझे डाँटा और कहा कि बिना मुझसे पूछे किसी को भी अंदर मत लाया करो। मैंने काम अच्छा किया था, परंतु मुझे फल उसके अनुसार नहीं मिला। इसके विपरीत एक बार मैं कक्षा का काम करके नहीं गया। जब अध्यापक जी ने पूछा कि काम क्यों नहीं किया, तो मैंने स्पष्ट उत्तर दे दिया कि कल मेरी तबियत खराब थी। मेरे सत्य बोलने पर अध्यापक जी ने मुझे कोई दंड नहीं दिया। यह मेरे सत्य बोलने का अच्छा फल था।

2. एक बार मैं अपनी दुकान पर बैठा हुआ था; पिंताजी कहीं गए हुए थे। एक ग्राहक कुछ सामान लेने आया। उसका कुल मूल्य दो हज़ार रुपये बना। ग्राहक इस पर कुछ रियायत चाहता था। मुझे ज्ञात था कि इस सामान की बिक्री पर हमें लगभग तीस प्रतिशत लाभ हो रहा है। मैंने उसे दस प्रतिशत की छूट दे दी। इस प्रकार मैंने अपने आदर्शों की रक्षा करते हुए अपनी व्यवहारिकता से लाभ लिया और ग्राहक को भी प्रसन्न कर दिया। अब वह व्यक्ति सदा हमारी दुकान से ही सामान खरीदता है।

प्रश्न 4.
‘शुद्ध सोने में ताँबे की मिलावट या ताँबे में सोना’, गांधीजी के आदर्श और व्यवहार के संदर्भ में यह बात किस तरह झलकती है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कुछ लोगों का मत है कि गांधीजी ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट’ थे। वे व्यावहारिकता को पहचानते थे। उन्होंने केवल आदर्शों का सहारा नहीं लिया, बल्कि वे आदर्शों के साथ-साथ व्यावहारिकता को मिलाकर चले। लेखक के अनुसार इसके लिए गांधीजी ने कभी भी अपने आदर्शों को व्यावहारिकता के स्तर पर नहीं उतरने दिया। वे अपने आदर्शों को उसी ऊँचाई पर रखते थे; उन्हें नीचे नहीं गिराते थे। उन्होंने व्यावहारिकता को ऊँचा उठाकर उसे आदर्शों की ऊँचाई तक पहुँचाया। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि उन्होंने कभी भी सोने में ताँबा मिलाने का प्रयत्न नहीं किया बल्कि ताँबे में सोना मिलाकर उसकी कीमत बढ़ाई। उन्होंने अपनी व्यावहारिकता को ऊँचा उठाकर आदर्शों के रूप में प्रतिष्ठित किया।

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प्रश्न 5.
‘गिरगिट’ कहानी में आपने समाज में व्याप्त अवसरानुसार अपने व्यवहार को पल-पल में बदल डालने की एक बानगी देखी। इस पाठ के अंश ‘गिन्नी का सोना’ के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए कि ‘आदर्शवादिता’ और ‘व्यावहारिकता’ इनमें से जीवन में किसका महत्व है ?
उत्तर :
‘गिन्नी का सोना’ पाठ के माध्यम में लेखक बताना चाहता है कि जीवन में व्यवहारवादी लोग लाभ-हानि का हिसाब-किताब लगाने में अधिक निपुण होते हैं। इसलिए वे आदर्शवादी लोगों से कहीं आगे निकल जाते हैं, परंतु समाज की दृष्टि में उनका महत्व अधिक नहीं होता है। इसके विपरीत जो आदर्शवादी व्यक्ति हैं, वे व्यवहारिकता को अपने आदर्शों के अनुरूप ढाल लेते हैं और अपने साथ-साथ समाज की भी उन्नति करते हैं। इसलिए जीवन में आदर्शोन्मुखी व्यावहारिकता का ही अधिक महत्व है।

प्रश्न 6.
लेखक के मित्र ने जापानी लोगों के मानसिक रोग के क्या-क्या कारण बताए ? आप इन कारणों से कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर :
लेखक के मित्र ने बताया कि जापान में मानसिक रोगियों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। इसका कारण जापानी लोगों के जीवन का तेज़ गति से चलना है। वे लोग दौड़ रहे हैं। उनका दिमाग निरंतर कार्यशील रहता है। उसने यह भी बताया कि जापानी अब अमेरिका से आगे बढ़ने की होड़ में लगे हैं। वे एक महीने का काम एक दिन में करने का प्रयत् करते हैं। उनका दिमाग लगातार कुछ नया करने के लिए सोचता रहता है।

इससे धीरे-धीरे उनके दिमाग पर तनाव बढ़ रहा है और वे मानसिक रोग के शिकार हो रहे हैं। मेरे विचार से जीवन में संघर्ष करना और आगे बढ़ना अच्छी बात है, किंतु अपने आपको केवल दूसरे से आगे बढ़ने के लिए निरंतर काम में उलझाए रखना उचित नहीं है। काम के साथ-साथ स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी ज़रूरी है।

प्रश्न 7.
लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लेखक का मत है कि हम अकसर बीते हुए दिनों के बारे में सोचते हैं या भविष्य के रंगीन सपनों में डूबे रहते हैं। वास्तव में सत्य केवल वर्तमान है और हमें उसी में जीना चाहिए। अतीत को हम चाहकर भी लौटा नहीं सकते और भविष्य को हमने देखा नहीं है। आने वाला कल कैसा होगा, कोई नहीं जानता।

अतः अतीत और भविष्य के बारे में सोचकर अपने आपको दुखी करने का कोई लाभ नहीं है। वर्तमान, जो सामने दिखाई दे रहा है, उसी को सत्य मानकर उसका भरपूर आनंद उठाने का प्रयास करना चाहिए। वर्तमान के एक-एक पल को जीना ही वास्तव में जीवन जीना है। इसी आधार पर लेखक ने वर्तमान जीवन में जीने के लिए कहा है।

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(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –

I

प्रश्न 1.
1. समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है तो वह आदर्शवादी लोगों का ही दिया हुआ है।
2. जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तब ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्टों’ के जीवन से आदर्श धंरे-धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी व्यावहारिक सूझ-बूझ ही आगे आने लगती है।
II
3. हमारे जीवन की रफ़्तार बढ़ गई है। यहाँ कोई चलता नहीं, बल्कि दौड़ता है। कोई बोलता नहीं, बकता है। हम जब अकेले पड़ते हैं, तब अपने आप से लगातार बड़बड़ाते रहते हैं।
4. सभी क्रियाएँ इतनी गरिमापूर्ण ढंग से की कि उसकी हर भंगिमा से लगता था मानो जयजयवंती के सुर गूँज रहे हों।
I
उत्तर :
1. लेखक यहाँ स्पष्ट करना चाहता है कि समाज को शाश्वत मूल्य देने का श्रेय आदर्शवादी लोगों को है। वे अपने आदर्शों से समाज को एक आदर्श मार्ग दिखाते हैं और उन्हें उस पर चलने की प्रेरणा देते हैं। आदर्शवादी लोग समाज को जीने और रहने योग्य बनाते हैं। वे समाज को निरंतर एक दिशा देकर ऊँचा उठाने का प्रयास करते है। उन्हीं के कारण ही समाज में सद्गुणों का विकास होता है।

2. लेखक कहता है कि जो लोग आदर्शों के साथ-साथ व्यावहारिकता को भी लेकर चलते हैं, उन्हें ‘ प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट’ कहा जाता है। ऐसे लोग आदर्शों को केवल थोड़ा-सा अपनाते हैं। जब व्यावहारिकता का वर्णन होने लगता है, तो ये लोग धीरे-धीरे अपने आदर्शों को छोड़ते चले जाते हैं और उनकी व्यावहारिक सूझ-बूझ ही सामने आने लगती। जिन आदर्शों की वे बात करते हैं, वे कहीं भी दिखाई नहीं देते।

II

3. यहाँ लेखक ने अपने जापानी मित्र के माध्यम से जापान के लोगों के बारे में बताया है कि उनके जीवन की रफ़्तार अत्यंत तेज़ है। वे लोग निरंतर दौड़ते प्रतीत होते हैं। लेखक कहता है कि यह रफ्तार उनके जीवन में ही नहीं अपितु चलने और बोलने में भी है। उनका दिमाग निरंतर कुछ-न-कुछ सोचता रहता है। वे प्रत्येक क्षण कुछ-न-कुछ करते रहते हैं। यहाँ तक कि जब वे अकेले होते हैं, तो भी वे अपने आपसे लगातार बड़बड़ाते रहते हैं।

4. लेखक के कहने का आशय है कि जापानी विधि से चाय बनाने वाला व्यक्ति प्रत्येक कार्य अत्यंत गरिमापूर्ण ढंग से कर रहा था। उसकी क्रियाओं को देखकर ऐसा अनुभव हो रहा था मानो जयजयवंती नामक मधुर राग बज रहा हो। उसकी इन क्रियाओं को देखकर एक मधुरता और अपनेपन का अहसास होता था। चाय बनाने वाले व्यक्ति की समस्त क्रियाएँ एकदम गरिमापूर्ण एवं अनूठी थीं, जो मन को शांति प्रदान करती थीं।

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भाषा-अध्ययन –

I

प्रश्न 1.
नीचे दिए गए शब्दों का वाक्य में प्रयोग कीजिए –
व्यावहारिकता, आदर्श, सूझबूझ, विलक्षण, शाश्वत
उत्तर :
व्यावहारिकता – प्रत्येक व्यक्ति के लिए व्यावहारिकता का ज्ञान जरूरी है।
आदर्श – हमें अपने जीवन में कुछ आदर्श अपनाने चाहिएँ।
सूझबूझ – सूझबूझ से लिए गए निर्णय सदैव लाभकारी होते हैं।
विलक्षण – सचिन में विलक्षण प्रतिभा है।
शाश्वत ईश्वर का नाम शाश्वत है।

प्रश्न 2.
‘लाभ-हानि’ का विग्रह इस प्रकार होगा-लाभ और हानि
यहाँ द्वंद्व समास है जिसमें दोनों पद प्रधान होते हैं। दोनों पदों के बीच योजक शब्द का लोप करने के लिए योजक चिहून लगाया जाता है। आगे दिए गए द्वंद्व समास का विग्रह कीजिए –
(क) माता-पिता = ………..
(ङ) अन्न-जल = ………..
(ख) पाप-पुण्य = ………..
(च) घर-बाहर = ………..
(ग) सुख-दुख = ………..
(ए) देश-विदेश = ………..
(घ) रात-दिन = ………..
उत्तर :
(क) माता-पिता = माता और पिता
(ख) पाप-पुण्य = पाप और पुण्य
(ग) सुख-दुख = सुख और दुख
(घ) रात-दिन = रात और दिन
(ङ) अन्न-जल = अन्न और जल
(च) घर-बाहर = घर और बाहर
(छ) देश-विदेश = देश और विदेश

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प्रश्न 3.
नीचे दिए गए विशेषण शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए –
(क) सफल = ………….
(ख) विलक्षण = ………
(ग) व्यावहारिक = …………
(घ) सजग = …………..
(ङ) आदर्शवादी = ……….
(च) शुद्ध = ………..
उत्तर :
(क) सफल = सफलता
(ख) विलक्षण = विलक्षणता
(ग) व्यावहारिक = व्यावहारिकता
(घ) सजग = सजगता
(ङ) आदर्शवादी = आदर्शवादिता
(च) शुद्ध = शुद्धता

प्रश्न 4.
नीचे दिए गए वाक्यों में रेखांकित अंश पर ध्यान दीजिए और शब्द के अर्थ को समझिए –
(क) शुद्ध सोना अलग है।
(ख) बहुत रात हो गई अब हमें सोना चाहिए।
ऊपर दिए गए वाक्यों में सोना’ का क्या अर्थ है? पहले वाक्य में ‘सोना’ का अर्थ है धातु ‘स्वर्ण’। दूसरे वाक्य में ‘सोना’ का अर्थ है ‘सोना’ नामक क्रिया। अलग-अलग संदर्भो में ये शब्द अलग अर्थ देते हैं अथवा एक शब्द के कई अर्थ होते हैं। ऐसे शब्द अनेकार्थी शब्द कहलाते हैं। नीचे दिए गए शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ स्पष्ट करने के लिए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
उत्तर, कर, अंक, नग
उत्तर :

  • उत्तर – इन सभी प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
  • उत्तर – ध्रुव तारा उत्तर दिशा में दिखाई देता है। कर
  • इस पुल का उद्घाटन नेताजी के कर-कमलों से हुआ।
  • कर – हमें समय पर आय कर जमा करवाना चाहिए।
  • अंक – तुमने परीक्षा में कितने अंक प्राप्त किए हैं?
  • अंक – बालक दौड़कर माँ के अंक में छिप गया।
  • नग – रेखा की अंगूठी में कई नग जड़े हैं।
  • नग – नगराज हिमालय हमारे देश की उत्तर दिशा में है।

II

प्रश्न 5.
नीचे दिए गए वाक्यों को संयुक्त वाक्य में बदलकर लिखिए –
(क) 1. अँगीठी सुलगायी।
2. उस पर चायदानी रखी।
1. चाय तैयार हुई।
2. उसने वह प्यालों में भरी।
(ग) 1. बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया।
2. तौलिये से बरतन साफ़ किए।
उत्तर :
(क) अँगीठी सुलगायी और उस पर चायदानी रखी।
(ख) चाय तैयार हुई और उसने प्यालों में भरी।
(ग) बगल के कमरे में जाकर कुछ बरतन ले आया और उन्हें तौलिये से साफ़ किया।

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प्रश्न 6.
नीचे दिए गए वाक्यों से मिश्र वाक्य बनाइए –
(क) 1. चाय पीने की यह एक विधि है।
2. जापानी में उसे चा-नो-यू कहते हैं।
(ख) 1. बाहर बेढब-सा एक मिट्टी का बरतन था।
2. उसमें पानी भरा हुआ था।
(ग) 1. चाय तैयार हुई।
2. उसने वह प्यालों में भरी।
3. फिर वे प्याले हमारे सामने रख दिए।
उत्तर :
(क) चाय पीने की यह एक विधि है, जिसे जापानी में चा-नो-यू कहते हैं।
(ख) बाहर बेढब-सा एक मिट्टी का बरतन था, जिसमें पानी भरा हुआ था।
(ग) जैसे ही चाय तैयार हुई, उसने उसे प्यालों में भरकर प्याले हमारे सामने रख दिए।

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
I. गांधीजी के आदर्शों पर आधारित पुस्तकें पढ़िए ; जैसे-महात्मा गांधी द्वारा रचित ‘सत्य के प्रयोग’ और गिरिराज किशोर द्वारा रचित उपन्यास ‘गिरमिटिया’।
उत्तर
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
II. पाठ में वर्णित ‘टी-सेरेमनी’ का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

परियोजना-कार्य – 

प्रश्न 1.
भारत के नक्शे पर वे स्थान अंकित कीजिए जहाँ चाय की पैदावार होती है। इन स्थानों से संबंधित भौगोलिक स्थितियाँ क्या हैं और अलग-अलग जगह की चाय की क्या विशेषताएँ हैं, इनका पता लगाइए और परियोजना पुस्तिका में लगाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

JAC Class 10 Hindi पतझर में टूटी पत्तियाँ Important Questions and Answers

निबंधात्मक प्रश्न –

प्रश्न 1.
कुछ लोगों का गांधी जी के बारे में क्या कहना है ? ‘गिन्नी का सोना’ प्रसंग के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लेखक कहता है कि कुछ लोग गांधीजी को ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट’ अर्थात व्यावहारिक आदर्शवादी मानते हैं। ऐसे लोगों का गांधी जी के बारे में यह कहना यह है कि वे व्यावहारिकता से भली-भाँति परिचित थे। उन्हें समय और अवसर को देखकर कार्य करने की पूरी समझ थी। वे व्यावहारिकता की असली कीमत जानते थे। इसी कारण वे अपने विलक्षण आदर्श चला सके। यदि उन्हें व्यावहारिकता की समझ न होती, तो वे केवल कल्पना में ही रहते और लोग भी उनके पीछे-पीछे न चलते।

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प्रश्न 2.
लेखक ने व्यवहारवादियों और आदर्शवादियों में क्या अंतर बताया है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार व्यवहारवादी हमेशा समय और अवसर का लाभ उठाते हैं। वे सदा सजग रहते हैं और इसी कारण उन्हें सफलता भी अधिक मिलती है। वे अपने व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति करने में अन्य लोगों से बहुत आगे रहते हैं। दूसरी ओर आदर्शवादी केवल अपना भला नहीं करते अपितु दूसरों को भी अपने साथ उन्नति के मार्ग पर लेकर चलते हैं। आदर्शवादी सदैव समाज को सही दिशा देने का प्रयास करते हैं। जहाँ आदर्शवादियों ने समाज को ऊपर उठाया है, वहीं व्यवहारवादियों ने समाज को सदा गिराया ही है।

प्रश्न 3.
‘व्यक्ति विशेष की उन्नति समाज की उन्नति है’-विषय पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
किसी भी समाज की उन्नति उसके व्यक्तियों पर निर्भर करती है। यदि व्यक्ति उन्नति करता है, तो समाज की उन्नति अपने आप हो जाती है। एक व्यक्ति से परिवार बनता है, परिवारों से गाँव बनता है और गाँवों से देश व समाज का निर्माण होता है। एक व्यक्ति की उन्नति का प्रभाव सीधे समाज पर पड़ता है। व्यक्ति समाज की सबसे छोटी इकाई है, किंतु इसका सीधा संबंध समाज से है। अत: कहा: जा सकता है कि व्यक्ति विशेष की उन्नति समाज की उन्नति है।

प्रश्न 4.
‘गिन्नी का सोना’ प्रसंग का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘गिन्नी का सोना’ प्रसंग में लेखक ने व्यवहारवादी लोगों को गिन्नी के सोने के समान बताया है। जिस प्रकार गिन्नी के सोने में शदध सोने और ताँबे का मिश्रण होता है, उसी प्रकार व्यवहारवादी लोगों में भी आदर्शों और व्यावहारिकता का मिश्रण होता है। लेखक का मानना जाता है, तो वह गलत है। लेखक का मत है कि पूर्ण व्यवहारवादी लोगों से समाज का कल्याण नहीं हो सकता। व्यावहारिकता से समाज का कभी लाभ नहीं होता। व्यावहारिकता व्यक्ति को सफलता तो दिला सकती है, किंतु समाज का कल्याण केवल आदर्शवादिता से ही संभव है।

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट से तात्पर्य है-‘शुद्ध आदर्शों के साथ-साथ व्यावहारिकता का प्रयोग करने वाले।’ शुद्ध आदर्श भी शुद्ध सोने के समान होते हैं, किंतु कुछ लोग उनमें व्यावहारिकता का थोड़ा-सा ताँबा लगाकर काम चलाते हैं। इस स्थिति में इन्हें प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट कहा जाता है।

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प्रश्न 2.
मानवीय जीवन की रफ़्तार क्यों बढ़ गई है?
उत्तर :
मानवीय जीवन की रफ्तार इसलिए बढ़ गई है, क्योंकि इस संसार में कोई चलता नहीं बल्कि दौड़ रहा है। कोई किसी से बोलता नहीं बल्कि बक रहा है। अकेलेपन में भी हम अपने आप से ही बड़बड़ाते रहते हैं।

प्रश्न 3.
मानव होने के नाते हम प्रायः कहाँ उलझे रहते हैं ?
उत्तर :
मानव एक चिंतनशील एवं कल्पनाशील प्राणी है, इसलिए कभी हम गुजरे हुए दिनों की खट्टी-मिट्ठी यादों में उलझे रहते हैं, तो कभी भविष्य के रंगीन सपने देखते हैं। हम या तो भूतकाल में खोए रहते हैं या फिर भविष्य के बारे में सोचते हैं।

प्रश्न 4.
लेखक की दृष्टि में सत्य क्या है?
उत्तर :
लेखक की दृष्टि में मनुष्य के सामने जो वर्तमान हैं, वही सत्य है। इसलिए हमें केवल उसी में जीना चाहिए। वास्तव में भूतकाल और भविष्यकाल दोनों ही मिथ्या हैं। उनके बारे में सोचने से कोई लाभ नहीं है।

प्रश्न 5.
‘गिन्नी का सोना’ पाठ में लेखक ने किसे और क्यों श्रेष्ठ बताया है?
उत्तर :
का सोना’ पाठ में लेखक ने आदर्शवादियों और व्यवहारवादियों में से आदर्शवादियों को श्रेष्ठ बताया है। आदर्शवादी इसलिए श्रेष्ठ हैं, क्योंकि वे स्वयं भी उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होते हैं और अन्य लोगों को भी उन्नति के मार्ग पर अपने साथ ले जाते हैं।

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प्रश्न 6.
समाज को आदर्शवादियों ने क्या दिया है? उसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर :
समाज को आदर्शवादियों ने शाश्वत मूल्यों की भेंट दी है। ये शाश्वत मूल्य मानव को भटकने से बचाएँगे; उन्हें सद्मार्ग दिखाएंगे। उन्हें जीवन में आने वाले कष्टों से लड़ने की शक्ति तथा साहस प्रदान करेंगे।

प्रश्न 7.
‘झेन की देन’ पाठ में लेखक ने चाय पीने के विषय में क्या जानकारी दी है?
उत्तर :
‘झेन की देन’ पाठ में लेखक बताता है कि जापान में चाय पीने का ढंग बड़ा ही निराला था। वहाँ चाय पीने की जगह एकदम शांतिपूर्ण थी। लेखक और उसके मित्रों को प्याले में दो बूट चाय लाकर दी गई। इस चाय को उन्होंने धीरे-धीरे बूंद-बूंद करके लगभग डेढ़ घंटे में पीया।

प्रश्न 8.
लेखक को चाय पीते समय किस बात का ज्ञान हुआ?
उत्तर :
लेखक को चाय पीते समय ज्ञान हुआ कि मनुष्य व्यर्थ में ही भूतकाल और भविष्यकाल की चिंता में उलझा रहता है, जबकि वास्तविकता तो वर्तमान है जो हमारे सामने घट रहा है। वह यह भी बताता है कि जो वर्तमान को जीता है, वही सही अर्थों में आनंद को प्राप्त करता है।

प्रश्न 9.
जापान में किस प्रकार की बीमारियाँ हैं और वहाँ के कितने प्रतिशत लोग इससे बीमार हैं?
उत्तर :
लेखक के अनुसार जापान में मानसिक बीमारियाँ अधिक हैं। वहाँ के लोग निरंतर दिमागी-कार्य में डूबे रहते हैं। मस्तिष्क का ज़रूरत से अधिक प्रयोग करने के कारण वे मानसिक बीमारियों के शिकार हो गए हैं। पाठ के अनुसार वहाँ के लगभग अस्सी प्रतिशत लोग मनोरोगी हैं।

प्रश्न 10.
लेखक ने ‘टी-सेरेमनी’ में चाय पीते समय क्या निर्णय लिया?
उत्तर :
लेखक ने टी-सेरेमनी में चाय पीते-पीते यह निर्णय लिया कि अब वह कभी भी अतीत और भविष्य के बारे में नहीं सोचेगा। उसे लगा कि जो वर्तमान हमारे सामने है, वही सत्य है। भूतकाल और भविष्य दोनों ही मिथ्या हैं। क्योंकि भूतकाल चला गया है, जो कभी लौटकर नहीं आएगा और भविष्य अभी आया ही नहीं है। अतः इन दोनों के बारे में सोचना छोड़कर वर्तमान में जीने में ही वास्तविक आनंद है।

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प्रश्न 11.
‘टी सेरेमनी’ की तैयारी और उसके प्रभाव पर चर्चा कीजिए।
अथवा
चा-नो-मू की पूरी प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
अथवा
टी-सेरेमेनी क्या है?
उत्तर :
जापान में चाय पीने की एक विशेष विधि है, जिससे मस्तिष्क का तनाव कम हो जाता है। इस विधि को ‘चा-नो-मू’ कहते हैं। ‘टी-सेरेमनी’ में चाय पिलानेवाला अँगीठी सलगाने से लेकर प्याले में चाय डालने तक की सभी क्रियाएँ अत्यंत गरिमापूर्ण ढंग से करता है। इस सेरेमनी में तीन से अधिक लोगों को प्रवेश नहीं दिया जाता। यहाँ का वातावरण शांतिपूर्ण होता है।

प्याले में दो-दो घूट चाय दी जाती है, जिसे बूंद-बूंद करके लगभग डेढ़ घंटे में पीया जाता है। यह चाय पीने के बाद ऐसा अनुभव होता है जैसे दिमाग के दौड़ने की गति धीरे-धीरे कम हो गई है। कुछ देर बाद दिमाग बिलकुल शांत हो जाता है और ऐसा लगता है जैसे अनंतकाल में जी रहे हों। अपने चारों ओर इतनी शांति महसूस होती है कि सन्नाटा भी साफ सुनाई देता है।

प्रश्न 12.
जापान में मानसिक रोग के क्या कारण बताए हैं? उससे होने वाले प्रभाव का उल्लेख करते हुए लिखिए कि इसमें ‘टी सेरेमनी’ की क्या उपयोगिता है?
उत्तर :
जापान में मानसिक रोग का प्रमुख कारण वहाँ के लोगों का निरंतर दिमागी कार्यों में डूबे रहना है। वे आगे बढ़ने की होड़ में एक महीने का काम एक दिन में करने का प्रयास करते हैं, जिससे उनके दिमाग पर तनाव बढ़ जाता है और वे मानसिक न जाते हैं। ‘टी सेरेमनी’ में चाय-पान करते समय अतीत और भविष्य की न सोचकर वर्तमान में जीने का संकल्प किया जाता है, जिससे सभी प्रकार के मानसिक तनावों से मुक्ति मिल जाती है। ‘टी सेरेमनी’ का शांतिपूर्ण वातावरण और एक-एक घुट लेकर चाय पीने से वे वर्तमान में जी कर तनाव रहित हो जाते हैं।

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प्रश्न 13.
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
असल में दोनों काल मिथ्या हैं। एक चला गया है, दूसरा आया नहीं है। हमारे सामने जो वर्तमान क्षण है, वही सत्य है। उसी में जीना चाहिए। चाय पीते-पीते उस दिन मेरे दिमाग से भूत और भविष्य दोनों काल उड़ गए थे। केवल वर्तमान क्षण सामने था और वह अनंत काल जितना विस्तृत था।
(क) गद्यांश में किन दो कालों के बारे में बात की गई है और उनकी क्या विशेषता है?
(ख) लेखक ने किस काल को सत्य माना है और क्यों?
(ग) गद्यांश से लेखक क्या समझाना चाहता है?
उत्तर :
(क) गद्यांश में भूत और भविष्य कालों के बारे में बात की गई है। भूतकाल बीत गया है और भविष्य काल अभी आया नहीं है, इसलिए इनके विषय में विचार करना व्यर्थ है।
(ख) लेखक ने वर्तमान काल को सत्य माना है क्योंकि वही हमारे सामने सत्य स्वरूप में उपस्थित है। इसलिए हमें वर्तमान में ही जीना चाहिए।
(ग) इस गद्यांश से लेखक यह समझाना चाहता है कि हमें वर्तमान में जीना चाहिए, भूत और भविष्य के विषय में सोच कर परेशान नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 14.
भूत, भविष्य और वर्तमान में किसे सत्य माना गया है?
उत्तर :
लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, क्योंकि वहीं हमारे सामने सत्य स्वरूप में उपस्थित है।

पतझर में टूटी पत्तियाँ Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन – रवींद्र केलेकर का जन्म 7 मार्च सन 1925 को कोंकण क्षेत्र में हुआ था। छात्र जीवन से ही इनका झुकाव गोवा को मुक्त करवाने की ओर था। इसी कारण वे गोवा मुक्ति आंदोलन में शामिल हो गए। केलेकर की रुचि पत्रकारिता में भी रही। ये गांधीवादी दर्शन से बहुत प्रभावित थे। इनके लेखन पर भी इसका प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। रवींद्र केलेकर को समय-समय पर अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें गोवा कला अकादमी द्वारा दिया गया साहित्य पुरस्कार भी शामिल है।

रचनाएँ – रवींद्र केलेकर ने हिंदी के साथ-साथ कोंकणी और मराठी भाषा में भी लिखा है। इन्होंने अपनी रचनाओं में जनजीवन के विविध पक्षों, मान्यताओं और व्यक्तिगत विचारों को देश और समाज के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया है। इनके द्वारा की गई टिप्पणियों में चिंतन की मौलिकता के साथ-साथ मानवीय सत्य तक पहुँचने की सहज चेष्टा है। इनके गद्य की एक विशेषता थोड़े में ही बहुत कुछ कह देना है। सरल और थोड़े शब्दों में लिखना कठिन काम माना जाता है, किंतु रवींद्र केलेकर ने यह कार्य अपनी रचनाओं में बड़ी सरलता से कर दिखाया है।

इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं उजवादाचे सूर, समिधा, सांगली ओथांबे (कोंकणी); कोंकणीचे राजकरण, जापान जसा दिसला (मराठी); पतझर में टूटी पत्तियाँ(हिंदी)। – रवींद्र केलेकर ने काका कालेलकर की अनेक पुस्तकों का संपादन और अनुवाद भी किया है।

भाषा-शैली – रवींद्र केलेकर की भाषा-शैली अत्यंत सरल, स्पष्ट और सरस है। सामान्य पाठक भी इनकी भाषा को सरलता से समझ लेता है। वे बहुत ही नपे-तुले शब्दों में अपनी बात को समझाते हैं। उनकी भाषा में कहीं भी नीरसता का अनुभव नहीं होता। भाषा क में प्रवाहमयता और प्रभावोत्पादकता सर्वत्र दिखाई देती है।

इनकी भाषा में तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशी सभी शब्दों का मिश्रण है। इनकी भाषा की सरलता और सहजता देखते ही बनती है; उदाहरणस्वरूप-“अक्सर हम या तो गुज़रे हुए दिनों की खट्टी मीठी यादों में उलझे रहते हैं या भविष्य के रंगीन सपने देखते रहते हैं। हम या तो भूतकाल में रहते हैं या भविष्यकाल में। असल में दोनों काल मिथ्या हैं। एक चला गया है, दूसरा आया नहीं है।” रवींद्र केलेकर की शैली की विशेषता उसकी संक्षिप्तता है। कहीं-कहीं उन्होंने आत्मकथात्मक शैली और कहीं सूक्ति शैली का भी प्रयोग किया है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 16 पतझर में टूटी पत्तियाँ

पाठ का सार :

प्रस्तुत पाठ में लेखक रवींद्र केलेकर ने दो अलग-अलग प्रसंगों के माध्यम से एक जागरूक और सक्रिय नागरिक बनने की प्रेरणा दी है। पहले प्रसंग ‘गिन्नी का सोना’ में लेखक ने जीवन में अपने लिए सुख-साधन जुटाने वालों के स्थान पर उन लोगों का अधिक महत्व बताया है, जो संसार को जीने और रहने योग्य बनाते हैं। दूसरे प्रसंग ‘झेन की देन’ में बौद्ध दर्शन में वर्णित शांतिपूर्ण जीवन के विषय में बताया गया है।

I. गिन्नी का सोना –

इस प्रसंग में लेखक कहता है कि गिन्नी का सोना शुद्ध सोने से भिन्न होता है। इसमें ताँबा मिला होता है। यह चमकदार और अधिक मज़बूत होता है। शुद्ध आदर्श भी शुद्ध सोने के समान होते हैं। कुछ लोग शुद्ध आदर्शों में व्यावहारिकता का मिश्रण करते हैं। ऐसे लोगों को ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट’ कहा जाता है। लेखक कहता है कि कुछ लोग गांधीजी को ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट’ कहते हैं, किंतु गांधीजी व्यावहारिकता को आदर्शों के स्तर पर ले जाते थे। इस प्रकार वे सोने में ताँबा नहीं बल्कि ताँबे में सोना मिलाकर उसका मूल्य बढ़ा दिया करते थे।

लेखक ने आदर्शवादियों और व्यवहारवादियों में से आदर्शवादियों को श्रेष्ठ बताया है। आदर्शवादी स्वयं भी उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होते हैं और अन्य लोगों को भी उन्नति के मार्ग पर अपने साथ ले जाते हैं। समाज को शाश्वत मूल्यों की देन आदर्शवादियों की ही है।

II. झेन की देन –

प्रस्तुत प्रसंग में लेखक कहता है कि जापानी लोगों को मानसिक बीमारियाँ अधिक होती हैं। इसका कारण यह है कि जापान में जीवन की गति बहुत तेज़ है। उनका मस्तिष्क निरंतर क्रियाशील रहता है, जिससे वे तनाव और मानसिक रोगों के शिकार हो जाते हैं। लेखक बताता है कि जापान में चाय पीने की एक विशेष विधि है, जिससे मस्तिष्क का तनाव कम होता है। जापान में इस विधि को चा-नो-यू कहते हैं। लेखक अपने मित्रों के साथ एक ‘टी सेरेमनी’ में जाता है। वहाँ चाय पिलाने वाला उनका स्वागत करता है और अँगीठी सुलगाने से लेकर प्याले में चाय डालने तक की सभी क्रियाएँ अत्यंत गरिमापूर्ण ढंग से करता है।

लेखक कहता है कि इस विधि से चाय पीने की मुख्य विशेषता वहाँ का शांतिपूर्ण वातावरण है। वहाँ तीन से अधिक लोगों को प्रवेश नहीं दिया जाता। लेखक और उसके मित्रों को वहाँ प्याले में दो-दो घूँट चाय दी गई, जिसे उन्होंने बूँद-बूँद करके लगभग डेढ़ घंटे में पीया। तब लेखक ने अनुभव किया कि वहाँ का वातावरण अत्यंत शांत होने के कारण उनके मस्तिष्क की गति भी धीरे-धीरे धीमी हो गई थी।

लेखक को लगा जैसे वह अनंतकाल में जी रहा है। लेखक को चाय पीते हुए भी ज्ञान हुआ कि मनुष्य व्यर्थ में ही भूतकाल और भविष्यकाल में उलझा रहता है। वास्तविक सत्य तो वर्तमान है, जो हमारे सामने घटित हो रहा है। वर्तमान में जीना ही जीवन का वास्तविक आनंद उठाना है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 16 पतझर में टूटी पत्तियाँ

कठिन शब्दों के अर्थ :

व्यावहारिकता – समय और अवसर देखकर कार्य करने की सुझ, चंद लोग – कुछ लोग, प्रैक्टिकल आइडियॉलिस्ट – व्यावहारिक आदर्शवादी, बखान – वर्णन करना, बयान करना, सूझ-बुझ – काम करने की समझ, स्तर – श्रेणी, के स्तर – के बेराबर, सजग – सचेत, कीमत – मूल्य, शाश्वत – जो सदैव एक सा रहे, जो बदला न जा सके, शुद्ध सोना – 24 कैरेट का (बिना मिलावट का) सोना, गिन्नी का सोना 22 कैरेट (सोने में ताँबा मिला हुआ) का सोना, जिससे गहने बनवाए जाते हैं, अस्सी फ़ीसदी – अस्सी प्रतिशत,

मानसिक – मस्तिष्क संबंधी, दिमागी, मनोरुग्ण – तनाव के कारण मन से अस्वस्थ, रु़्तार – गति, प्रतिस्पदर्धा – होड़, स्पीड – गति, टी-सेंरेमनी – जापान में चाय पीने का विशेष आयोजन, तातामी – चटाई, चा-नो-यू – जापानी भाषा में टी-सेरमनी का नाम, पर्णकुटी – पत्तों से बनी कुटिया, बेढब-सा – बेडौल, चाजीन – जापानी विधि से चाय पिलाने वाला, गरिमापूर्ण – सलीके से, भंगिमा – मुद्रा, जयजयवंती – एक राग का नाम, खदबदाना – उबलना, सिलसिला – क्रम, उलझन – असमंजस की स्थिति, अनंतकाल – वह काल जिसका अंत न हो, सन्नाटा – खामोशी, मिध्या – भ्रम, विस्तृत – विशाल।

JAC Class 10 Hindi व्याकरण शब्द और पद में अंतर

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Vyakaran शब्द और पद में अंतर Questions and Answers, Notes Pdf.

JAC Board Class 10 Hindi Vyakaran शब्द और पद में अंतर

  • शब्द भाषा की स्वतंत्र और सार्थक इकाई है।
  • शब्द को व्याकरण के नियमों के अनुसार किसी वाक्य में प्रयोग करने पर वह पद बन जाता है।
  • एक से अधिक पद जुड़कर एक ही व्याकरणिक इकाई का काम करने पर पदबंध कहलाते हैं।
  • शब्द का वर्गीकरण

JAC Class 10 Hindi व्याकरण शब्द और पद में अंतर 1

प्रश्न 1.
शब्द किसे कहते हैं ?
उत्तर :
शब्द वर्गों के मेल से बनाइ गई भाषा की स्वतंत्र और सार्थक इकाई है। जैसे-राम, रावण, मारना।

प्रश्न 2.
शब्द का प्रत्यक्ष रूप किसे कहते हैं?
उत्तर :
भाषा में जब शब्द कर्ता में बिना परसर्ग के आता है तो वह अपने मूल रूप में आता है। इसे शब्द का प्रत्यक्ष रूप कहते हैं। जैसे-वह, लड़का, मैं।

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प्रश्न 3.
कोशीय शब्द किसे कहते हैं?
उत्तर :
जिस शब्द का अर्थ शब्दकोश से प्राप्त हो जाए उसे कोशीय शब्द कहते हैं। जैसे-मनुष्य, घोड़ा।

प्रश्न 4.
व्याकरणिक शब्द किसे कहते हैं?
उत्तर :
व्याकरणिक शब्द उस शब्द को कहते हैं जो व्याकरणिक कार्य करता है। जैसे-‘मुझसे आजकल विद्यालय नहीं जाया जाता।’ इस वाक्य में जाता शब्द व्याकरणिक शब्द है।

प्रश्न 5.
पद किसे कहते हैं ?
अथवा
शब्द वाक्य में प्रयुक्त होने पर क्या कहलाता है ?
उत्तर :
जब किसी शब्द को व्याकरण के नियमों के अनुसार किसी वाक्य में प्रयोग किया जाता है तब वह पद बन जाता है। जैसे-राम, रावण, मारा शब्द है। इनमें विभक्तियों, परसर्ग, प्रत्यय आदि को जोड़ कर पद बन जाता है। जैसे-राम ने रावण को मारः।

प्रश्न 6.
पद के कितने और कौन-कौन से भेद हैं?
उत्तर :
पद के पाँच भेद संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया और अव्यय हैं।

प्रश्न 7.
शब्द और पद में क्या अंतर है?
उत्तर :
शब्द भाषा की स्वतंत्र और सार्थक इकाई है और वाक्य के बाहर रहता है, परंतु जब शब्द वाक्य के अंग के रूप में प्रयोग किया जाता है तो इसे पद कहते हैं। जैसे-‘लड़का, मैदान, खेलना’ शब्द हैं। इन शब्दों से यह वाक्य बनाने पर-‘लड़के मैदान में खेलते हैं’-ये पद बन जाते हैं।

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प्रश्न 8.
पदबंध किसे कहते हैं?
उत्तर :
पदबंध का शाब्दिक अर्थ है-पदों में बँधा हुआ। जब एक से अधिक पद मिलकर एक इकाई के रूप में व्याकरणिक कार्य करते हैं तो वे पदबंध कहलाते हैं। जैसे चिडिया सोने के पिंजरे में बंद है। इस वाक्य में सोने का पिंजरा पदबंध है। पदबंध वाक्यांश मात्र होते हैं, काव्य नहीं। पदबंध में एक से अधिक पदों का योग होता है और ये पद आपस में जुड़े होते हैं।

प्रश्न 9.
शब्द के सभी भेद स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
शब्द और शब्दावली वर्गीकरण निम्नलिखित दृष्टियों से किया जा सकता है –
(क) अर्थ की दृष्टि से वर्गीकरण –
अर्थ की दृष्टि से निम्नलिखित चार भेद किए जाते हैं –
(i) एकार्थी – जिन शब्दों का प्रयोग केवल एक अर्थ में ही होता है, उन्हें एकार्थी शब्द कहते हैं। जैसे
पुस्तक, पेड़, घर, घोड़ा, पत्थर आदि।
(ii) अनेकार्थी – जो शब्द एक से अधिक अर्थ बताने में समर्थ हैं, उन्हें अनेकार्थी शब्द कहते हैं। इन शब्दों का प्रयोग जिस संदर्भ में किया जाएगा,
ये उसी के अनुसार अर्थ देंगे। जैसे –
काल – समय, मृत्यु।
अर्क – सूर्य, आक का पौधा।
(iii) पर्यायवाची या समानार्थी – जिन शब्दों के अर्थों में समानता हो, उन्हें पर्यायवाची या समानार्थी शब्द कहते हैं।
जैसे – कमल-जलज, नीरज, अंबुज, सरोज।
आदमी – नर, मनुष्य, मानव।
(iv) विपरीतार्थी – विपरीत अर्थ प्रकट करने वाले शब्दों को विपरीतार्थी अथवा विलोम शब्द कहते हैं। जैसे
आशा-निराशा
अँधेरा – उजाला हँसना-रोना
गुण – दोष

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(ख) इतिहास की दृष्टि से वर्गीकरण –

इतिहास की दृष्टि से शब्दों के पाँच भेद हैं –
(i) तत्सम – तत्सम शब्द का अर्थ है – तत् (उसके) + सम (समान) अर्थात् उसके समान जो शब्द संस्कृत के मूल रूपों के समान ही हिंदी में प्रयुक्त होते हैं, उन्हें तत्सम कहते हैं। इनका प्रयोग हिंदी में भी उसी रूप में किया जाता है, जिस रूप में संस्कृत में किया जाता है। जैसे –
नेत्र, जल, पवन, सूर्य, आत्मा, माता, भवन, नयन, आशा, सर्प, पुत्र, हास, कार्य, यदि आदि।

(ii) तद्भव – तद्भव शब्द का अर्थ है तत् (उससे) + भव (पैदा हुआ) जो शब्द संस्कृत के मूल रूपों से बिगड़ कर हिंदी में प्रयुक्त होते हैं, उन्हें तद्भव कहते हैं, जैसे-दुध से दुग्ध, घोटक से घोड़ा, आम्र से आम, अंधे से अंधा, कर्म से काम, माता से माँ, सर्प से साँप, सप्त से सात, रत्न से रतन, भक्त से भगत।

(iii) देशज – देशज का अर्थ होता है देश + ज अर्थात् देश में जन्मा। लोकभाषाओं से आए हुए शब्द देशज कहलाते हैं। कदाचित् ये शब्द बोलचाल से बने हैं।
जैसे – पेड़, खिड़की, अटकल, तेंदुआ, लोटा, डिबिया, जूता, खोट, फुनगी आदि।

(iv) विदेशज – जो शब्द विदेशी भाषाओं से लिए गए हैं, उन्हें विदेशज कहते हैं।
अंग्रेज़ी – डॉक्टर, नर्स, स्टेशन, प्लेटफ़ॉर्म, पेंसिल, बटन, फ़ीस, मोटर, कॉलेज, ट्रेन, ट्रक, कार, बस, स्कूटर, फ्रीज आदि।
फ़ारसी – दुकान, ईमान, ज़हर, किशमिश, उम्मीद, फ़र्श, जहाज, कागज, ज़मींदार, बीमार, सब्जी, दीवार आदि।
अरबी – कीमत, फ़ैसला, कायदा, तरफ़, नहर, कसरत, नशा, वकील, वज़न, कानून, तकदीर, खराब, कत्ल, फौज़, नज़र, खत आदि।
तुर्की – तगमा, तोप, लाश, चाकू, उर्दू, कैंची, बेग़म, गलीचा, बावर्ची, बहादुर, चम्मच, कैंची, कुली, कुरता आदि।
पुर्तगाली – तंबाकू, पेड़ा, गिरिजा, कमीज, तौलिया, बालटी, मेज़, कमरा, अलमारी, संतरा, साबुन, चाबी, आलपीन, कप्तान आदि।
फ्रांसीसी – कारतूस, कूपन, अंग्रेज़।

(v) संकर-दो भाषाओं के शब्दों के मिश्रण से बने शब्द संकर शब्द कहलाते हैं।
यथा – जाँचकर्ता-जाँच (हिंदी) कर्ता (संस्कृत)
सज़ाप्राप्त – सज़ा (फ़ारसी) प्राप्त (संस्कृत)
रेलगाड़ी – रेल (अंग्रेज़ी) गाड़ी (हिंदी) उद्गम के आधार पर शब्दों की एक और कोटि हिंदी शब्दावली में पाई जाती है जिसे अनुकरणात्मक या ध्वन्यात्मक कहते हैं।
यथा – हिनहिनाना, चहचहाना, खड़खड़ाना, भिनभिनाना आदि।

(ग) रचना की दृष्टि से वर्गीकरण

प्रयोग के आधार पर शब्दों के भेद तीन प्रकार के होते हैं –
(i) मूल अथवा रूढ़ शब्द – जो शब्द किसी अन्य शब्द के संयोग से नहीं बनते हैं और अपने आप में पूर्ण होते हैं उन्हें रूढ़ अथवा मूल शब्द कहते हैं। ये शब्द किसी विशेष अर्थ के लिए रूढ़ या प्रसिद्ध हो जाते हैं। इनके खंड या टुकड़े नहीं किए जा सकते।
जैसे – घड़ा, घोड़ा, काला, जल, कमल, कपड़ा, घास, दिन, घर, किताब, मुंह।

(ii) यौगिक – दो शब्दों के संयोग से जो सार्थक शब्द बनते हैं, उन्हें यौगिक कहते हैं। दूसरे शब्दों में यौगिक शब्द वे शब्द होते हैं जिनमें रूढ़ शब्द के अतिरिक्त प्रत्यय, उपसर्ग या एक अन्य रूढ़ शब्द अवश्य होता है अर्थात ये दो अंशों को जोड़ने से बनते हैं, जिनमें एक शब्द आवश्यक रूप से रूढ़ होता है। जैसे-नमकीन-इसमें नमक रूढ़ तथा ईन प्रत्यय है।
जैसे – गतिमान, विचारवान, पाठशाला, विद्यालय, प्रधानमंत्री, गाड़ीवान, पानवाला, घुड़सवार, बैलगाड़ी, स्नानघर, अनपढ़, बदचलन ।

(iii) योगरूढ़ – दो शब्दों के योग से बनने पर भी किसी एक निश्चित अर्थ में रूढ़ हो जाने वाले शब्द योगरूढ़ कहलाते हैं।
जैसे – चारपाई, तिपाई, जलज (जल + ज = कमल), दशानन (दस + आनन = रावण), जलद (जल + द= बादल), जलधि (जल + धि = समुद्र)।

(घ) रूपांतरण की दृष्टि से शब्दों के भेद –

(i) विकारी शब्द – जिन शब्दों के रूप में विकार (परिवर्तन) उत्पन्न हो जाता है, उन्हें विकारी शब्द कहते हैं। संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया-ये चार प्रकार के शब्द विकारी कहलाते हैं। इनमें लिंग, वचन एवं कारक आदि के कारण विकारी उत्पन्न हो जाता है।

(ii) अविकारी शब्द-जिन शब्दों के रूप में विकार (परिवर्तन) उत्पन्न नहीं होता और जो अपने मूल में बने रहते हैं, उन्हें अविकारी शब्द कहते हैं। अविकारी शब्द को अव्यय भी कहा जाता है। क्रिया-विशेषण, समुच्चयबोधक, संबंधसूचक तथा विस्मयादिबोधक-ये चार प्रकार के शब्द अविकारी कहलाते हैं। क्रिया-विशेषण इधर समुच्चयबोधक और संबंधसूचक के ऊपर विस्मयादिबोधक ओह।

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(ङ) प्रयोग की दृष्टि से –

प्रयोग के आधार पर शब्दों का वर्गीकरण निम्नलिखित दो वर्गों में किया जाता है –
(i) सामान्य शब्द – आम जन-जीवन में प्रयोग होने वाले शब्द सामान्य शब्द कहलाते हैं; जैसे-दाल, भात, खाट, लोटा, सुबह, हाथ, पाँव, घर, मैदान।
(ii) पारिभाषिक शब्द – जो शब्द ज्ञान-विज्ञान अथवा विभिन्न व्यवसायों में विशेष अर्थों में प्रयोग किए जाते हैं, पारिभाषिक शब्द कहलाते हैं। इन्हें
तकनीकी शब्द भी कहते हैं. जैसे-संज्ञा. सर्वनाम, रसायन, समाजशास्त्र, अधीक्षक।

प्रश्न 10.
शब्द पद कब बन जाता है? उदाहरण देकर तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
उत्तर :
शब्द को जब व्याकरण के नियमों के अनुसार वाक्य में प्रयोग करते हैं तब वह पद बन जाता है, जैसे-राम, रावण, मारा शब्द हैं। इनसे बना वाक्य-राम ने रावण को मारा। पद है।

JAC Class 10 Hindi अपठित बोध अपठित काव्यांश

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JAC Board Class 10 Hindi अपठित बोध अपठित काव्यांश

अपठित-बोध के अंतर्गत विद्यार्थी को किसी को पढ़कर उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर का चयन करना होता है। इन प्रश्नों का उत्तर देने से पूर्व अपठित को अच्छी प्रकार से पढ़कर समझ लेना चाहिए। जिन प्रश्नों के उत्तर पूछे गए हैं वे उसी में ही। छिपे रहते हैं। सटीक विकल्प का चयन करना चाहिए। अपठित का शीर्षक भी पूछा जाता है। शीर्षक अपठित में व्यक्त भावों के अनुरूप होना चाहिए। शीर्षक-चयन से अपठित का मूल-भाव भी स्पष्ट होना चाहिए। मुख्य भावार्थ का विकल्प भावों को स्पष्ट करने वाला होना चाहिए। 10 अभ्यास के लिए कुछ यहाँ दिए जा रहे हैं –

अपठित काव्यास के महत्तपूर्ण उदाहरण :

निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के सही विकल्प वाले उत्तर चुनिए –

1. चाह नहीं, मैं सरबाला के गहनों में गूंथा जाऊँ,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ।
चाह नहीं, सम्राटों के शव पर हे हरि! डाला जाऊँ,
चाह नहीं, देवों के सिर पर चढूँ, भाग्य पर इठलाऊँ।
मुझे तोड़ लेना, वनमाली उस पथ में देना तुम फेंक।
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ पर जाएँ वीर अनेक।

1. प्रस्तुत पंक्तियों का शीर्षक है –
(क) सुरबाला का गहना
(ख) पुष्प की अभिलाषा
(ग) सम्राट
(घ) मातृभूमि
उत्तर :
(ख) पुण्य की अभिलाषा

2. कवि ने किसके माध्यम से देश-भक्ति का संदेश दिया है?
(क) भाग्य
(ख) वनमाली
(ग) फूल
(घ) ये सभी
उत्तर :
(ग) फूल

3. कवि द्वारा देश भक्ति का कौन-सा संदेश दिया गया है?
(क) श्रम करने का
(ख) ज्ञान प्राप्त करने का
(ग) सर्वस्व न्योछावर करने का
(घ) स्व-कल्याण करने का
उत्तर :
(ग) सर्वस्व न्योछावर करने का

4. पुष्प को किस बात की चाह नहीं है?
(क) देवबालाओं के शृंगार करने
(ख) प्रेमी की माला में गँथने
(ग) सम्राटों के शवों को सजाने तथा देवों पर अर्पित होने
(घ) ये सभी विकल्प
उत्तर :
(घ) ये सभी विकल्प

5. पुष्प किनके चरणों पर समर्पित होकर जीवन की सार्थकता प्रमाणित करना चाहता है?
(क) देशभक्तों के चरणों पर
(ख) भगवान के चरणों पर
(ग) देशवासियों के चरणों पर
(घ) महिलाओं के चरणों पर
उत्तर :
(क) देशभक्तों के चरणों पर

JAC Class 10 Hindi अपठित बोध अपठित काव्यांश

2. आँधियों ने गोद में हमको खिलाया है न भूलो;
कंटकों ने सिर हमें सादर झुकाया है न भूलो;
सिंधु का मथ कर कलेजा हम सुधा भी शोध लाए;
औ’ हमारे तेज से सूरज लजाया है न भूलो!
वे हमीं तो हैं कि इक हुँकार से यह भूमि काँपी,
वे हमीं तो हैं, जिन्होंने तीन डग में सृष्टि नापी,
और वे भी हम, कि जिनकी सभ्यता के विजयरथ की
धूल उड़कर छोड़ आई छाप अपनी विश्वव्यापी!

1. पंक्तियों का उचित शीर्षक है
(क) आँधिया
(ख) सिंधु
(ग) वीर पुरुष
(घ) विजय रथ
उत्तर :
(ग) वीर पुरुष

2. ‘कंटकों ने सिर हमें सादर झुकाया है’ पंक्ति का भाव है
(क) वीर भारतीयों के समक्ष मुसीबतें भी नमन करती हैं।
(ख) काँटों की चुभन दुखदाई प्रतीत होती है।
(ग) काँटों के चुभने से ही मुसीबतें आती हैं।
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर :
(क) वीर भारतीयों के समक्ष मुसीबतें भी नमन करती हैं।

3. भारतीयों के तेज़ के सम्मुख कौन लज्जित हो जाता है?
(क) शत्रु
(ख) सूर्य
(ग) चाँद
(घ) नभ
उत्तर :
(ख) सूर्य

4. कविता की किस पंक्ति में समुद्र मंथन का जिक्र हुआ है?
(क) वे हमीं तो हैं कि इक हुँकार से यह भूमि काँपी।
(ख) सिंधु का मथकर कलेजा हम सुधा भी शोध लाए।
(ग) और वे भी हम, कि जिनकी सभ्यता के विजय रथ की।
(घ) आँधियों ने गोद में हमको खिलाया है न भूलो।
उत्तर :
(ख) सिंधु का मथकर कलेजा हम सुधा भी शोध लाए।

5. मुसीबतों के प्रतीक कौन-से शब्द हैं?
(क) आँधी, संघर्ष और कंटक
(ख) हुँकार, सृष्टि, डग
(ग) सिंधु, सूरज, सभ्यता
(घ) धूल, रथ, डग
उत्तर :
(क) आँधी, संघर्ष और कंटक

JAC Class 10 Hindi अपठित बोध अपठित काव्यांश

3. हिमालय के आँगन में उसे प्रथम किरणों का दे उपहार।
उषा ने हँस अभिनंदन किया और पहनाया हीरक हार।
जगे हम, लगे जगाने विश्व लोक में फैला फिर आलोक।
व्योम-तम-पुंज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक।
विमल प्राणी ने वीणा ली कमल कोमल कर में सप्रीत।
सप्तस्वर सप्तसिंधु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम-संगीत।
बचाकर बीज रूप से सृष्टि, नाव पर झेल प्रलय का शीत।
अरुण-केतन लेकर निज हाथ वरुण पथ में हम बढ़े अभीत।

1. प्रस्तुत पंक्तियों का उचित शीर्षक कौन-सा है
(क) हमारा प्यारा भारतवर्ष
(ख) व्योम-तम-पुंज
(ग) सप्तस्वर
(घ) वरुण पथ
उत्तर :
(क) हमारा प्यारा भारतवर्ष

2. काव्यांश का उचित उद्देश्य क्या है?
(क) भारत के विश्व-संस्कृति के प्रथम उद्घोषक के रूप में चित्रित करना
(ख) भारत की गौरव-गाथा का प्रचार करना
(ग) अज्ञानता का शोक बताना
(घ) सूर्य की किरणों को ज्ञान का प्रतीक बताना
उत्तर :
(क) भारत को विश्व-संस्कृति के प्रथम उद्घोषक के रूप में चित्रित करना

3. भारत ने किसके प्रसार के द्वारा विश्व को शोक रहित बना दिया है?
(क) तकनीकी
(ख) मुद्रा
(ग) संदेश
(घ) ज्ञान
उत्तर :
(घ) ज्ञान

4. सूर्योदय की किरणें सबसे पहले कहाँ पड़ती हैं?
(क) सागर पर
(ख) हिमालय पर
(ग) नभ पर
(घ) मरुस्थल पर
उत्तर :
(ख) हिमालय पर

5. सिंधु यानी सागरों की संख्या कितनी बताई गई है?
(क) पाँच
(ख) छह
(ग) सात
(घ) आठ
उत्तर :
(ग) सात

JAC Class 10 Hindi अपठित बोध अपठित काव्यांश

4. तितली, तितली! कहाँ चली हो नंदन-वन की रानी-सी?
वन-उपवन में, गिरि-कानन में फिरती हो दीवानी-सी।
फूल-फूल पर, अटक-अटक कर करती कुछ मनमानी-सी।
पत्ती-पत्ती से कहती कुछ अपनी प्रणय कहानी-सी।
यह मस्ती, इतनी चंचलता किसे अलि! तुमने पाई?
कहाँ जा रही हो इस निर्जर मदिर उषा में अलसाई?
सोते ही सोते मीठी-सी सुधि तुमको किसकी आई?
जो चल पड़ी जाग तुम झटपट लेते-लेते अंगड़ाई।

1. काव्यांश का उचित शीर्षक है –
(क) उपवन
(ख) तितली रानी
(ग) प्रणय कहानी
(घ) चंचलता
उत्तर :
(ख) तितली रानी

2. कवि तितली को कहाँ की रानी कहकर संबोधित कर रहा है?
(क) स्वर्ग की रानी
(ख) रात की रानी
(ग) नंदनवन की रानी
(घ) जल की रानी
उत्तर :
(ग) नंदनवन की रानी

3. तितली रानी किसके समान वन-उपवन में भटकती रहती है?
(क) बालिका के समान
(ख) चंचल हवा के समान
(ग) दीवानी के समान
(घ) भ्रामरी के समान
उत्तर :
(ग) दीवानी के समान

4. तितली किस समय आलस्य से भरकर अंगड़ाई लेते हुए किसी से मिलने जा रही है?
(क) प्रभात की बेला में
(ख) अपराहन में
(ग) सायंकालीन बेला में
(घ) रात्रि में
उत्तर :
(क) प्रभात की बेला में

5. तितली अपनी प्रणय कहानी किससे कहती फिरती है?
(क) पत्ती-पत्ती से
(ख) फूल-फूल से
(ग) वन-उपवन से
(घ) ये सभी विकल्प
उत्तर :
(घ) ये सभी विकल्प

JAC Class 10 Hindi अपठित बोध अपठित काव्यांश

5. रोमांचित-सी लगती वसुधा आई जी गेहूँ में बाली,
अरहर-सनई की सोने की किंकिणियाँ हैं शोभाशाली।
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध फूली सरसों पीली-पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही नीलम की कलि, तीसी नीली।
अब रजत स्वर्ण मंजरियों से लद गई आम तरु की डाली,
झर रहे ढाँक, पीपल के दल हो उठी कोकिला मतवाली।

1. प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक है –
(क) फूली सरसों
(ख) ग्रामश्री
(ग) हरित धरा
(घ) स्वर्ण मंजरियाँ
उत्तर :
(ख) ग्रामश्री

2. धरती रोमांचित लग रही है क्योंकि
(क) बरसात हो गई है।
(ख) जौ-गेहूँ में बालियाँ आ गई हैं।
(ग) बीजों में अंकुरण हो गया है।
(घ) उसकी मिट्टी में उर्वरता आ गई है।
उत्तर :
(ख) जौ-गेहूँ में बालियाँ आ गई हैं।

3. वातावरण में किसके तेल की सगंध आ रही है?
(क) सरसों के तेल की
(ख) मूंगफली के तेल की
(ग) तिल के तेल की
(घ) अलसी के तेल की
उत्तर :
(क) सरसों के तेल की

4. किस वृक्ष की डालियाँ सुनहरे बौरों से लद गई हैं?
(क) महुआ
(ख) नीम
(ग) आम
(घ) जामुन
उत्तर :
(ग) आम

5. ‘नीलम की कलि’ किन्हें कहा गया है?
(क) अलसी पर खिली नीली कलियों को कहा गया है।
(ख) पीली सरसों पर खिली लाल कलियों को कहा गया है।
(ग) आम की हरी बौरों में नीली कलियों को कहा गया है।
(घ) नीलम पत्थर को कहा गया है।
उत्तर :
(क) अलसी पर खिली नीली कलियों को कहा गया है।

JAC Class 10 Hindi अपठित बोध अपठित काव्यांश

6. यह लघु सरिता का बहता जल, कितना शीतल, कितना निर्मल।
हिमगिरि के हिम से निकल-निकल, यह विमल दूध-सा हिम का जल
कर-कर निनाद कल-कल, छल-छल, बहता आता नीचे पल-पल।
तन का चंचल, मन का विह्वल, यह लघु सरिता का बहता जल।
निर्मल जल की यह तेज धार, करके कितनी श्रृंखला पार,
बहती रहती है लगातार, गिरती-उठती है बार-बार।
रखता है तन में इतना बल, यह लघु सरिता का बहता जल।

1. काव्यांश का उचित शीर्षक चुनिए
(क) सरिता का बहता जल
(ख) निर्मलता
(ग) चंचलता
(घ) विह्वलता
उत्तर :
(क) सरिता का बहता जल

2. सरिता का जल कहाँ से निकलकर मैदानों तक आ जाता है?
(क) सागर से
(ख) हिमालय से
(ग) खाड़ी से
(घ) पाताल से
उत्तर :
(ख) हिमालय से

3. हिमालय से निकलते हुए जल का रंग कैसा बताया गया है?
(क) मटमैला
(ख) पीला
(ग) दूधिया
(घ) भूरा
उत्तर :
(ग) दूधिया

4. ‘कर-कर निनाद कल-कल, छल-छल’ में कौन-सा अलंकार है?
(क) यमक अलंकार
(ख) श्लेष अलंकार
(ग) उपमा अलंकार
(घ) अनुप्रास अलंकार
उत्तर :
(घ) अनुप्रास अलंकार

5. काव्यांश का उद्देश्य क्या है?
(क) वीरतापूर्वक सामना करते हुए लक्ष्य की ओर बढ़ना
(ख) बाधाओं से दूर भागने की कोशिश करना
(ग) सरिता के जल से आचमन करना
(घ) सरिता के जल से स्वयं को पवित्र करना
उत्तर :
(क) बाधाओं का वीरतापूर्वक सामना करते हुए लक्ष्य की ओर बढ़ना

JAC Class 10 Hindi अपठित बोध अपठित काव्यांश

7. भारत के शीश हिमालय को, है मेरा बारंबार नमन!
सबसे पहले जिसके माथे पर-सूरज तिलक लगाता है,
जिसके यश को सागर अपनी अनगिन लहरों से गाता है,
जिसकी ऊँचाई पर, मैं ही क्या गर्वित भारत माता है,
जननी के इस गौरव गिरि की आरती सजाता नील गगन!

1. कवि ने हिमालय को क्या कहा है?
(क) अधिपति
(ख) नागमणि
(ग) भारत का शीश
(घ) भारत का भाल
उत्तर :
(ग) भारत का शीश

2. उपयुक्त शीर्षक चुनिए
(क) हिमालय
(ख) भारत देश
(ग) जननी
(घ) नील गगन
उत्तर :
(क) हिमालय

3. कवि किसे बार-बार नमन करता है?
(क) भारत-माता को
(ख) हिमालय को
(ग) अपनी जननी को
(घ) सागर को
उत्तर :
(ख) हिमालय को

4. हिमालय के यश का गान कौन कर रही हैं?
(क) भारत की महिलाएँ
(ख) औषधियाँ
(ग) सागर की लहरें
(घ) ऊँची लताएँ
उत्तर :
(ग) सागर की लहरें

5. भारत-माता को हिमालय की किस बात पर गर्व है?
(क) सबसे साफ़-सुथरा होने के कारण
(ख) सबसे ऊँचा होने के कारण
(ग) सबसे हरा-भरा होने के कारण।
(घ) गुणकारी औषधियों की मौजूदगी के कारण
उत्तर :
(ख) सबसे ऊँचा होने के कारण

JAC Class 10 Hindi अपठित बोध अपठित काव्यांश

8. वे मुसकाते फूल नहीं-जिनको आता है मुरझाना,
वे तारों के दीप नहीं-जिनको भाता है बुझ जाना,
वे नीलम से मेघ, नहीं-जिनको है घुल जाने की चाह,
वह अनंत ऋतुराज, नहीं-जिससे देखी जाने की राह!
वे सूने से नयन नहीं-जिनमें बनते आँसू मोती,
वह प्राणों की सेज, नहीं-जिनमें बेसुध पीड़ा सोती।
ऐसा तेरा लोक, वेदना नहीं, नहीं जिसमें अवसाद,
जलना जाना नहीं, नहीं-जिसने जाना मिटने का स्वाद!
क्या अमरों का लोक मिलेगा तेरी करुणा का उपहार?
रहने दो हे देव! अरे यह मेरा मिटने का अधिकार!

1. काव्यांश का उचित शीर्षक चुनिए
(क) मुसकाते फूल
(ख) मिटने का अधिकार
(ग) ऋतुराज वसंत
(घ) मोती के समान आँसू
उत्तर :
(ख) मिटने का अधिकार

2. वसंत ऋतु कब अर्थहीन हो जाती है?
(क) जब अर्ध यौवन पर आ जाती है।
(ख) जब समय-सीमा को त्याग कर परे साल बनी रहती है।
(ग) जब वह यौवन की अवहेलना करती है।
(घ) जब वह समय से पहले चली जाती है।
उत्तर :
(ख) जब समय सीमा को त्यागकर पूरे साल बनी रहती है।

3. कवि ने संसार को क्या कहा है?
(क) प्राणों की सेज
(ख) तारों का दीप
(ग) वेदना का लोक
(घ) आस्था का संगम
उत्तर :
(ग) वेदना का लोक

4. काव्यांश का उद्देश्य है
(क) विपत्तियों का हँसकर सामना कर आत्म-बलिदान देना
(ख) विपत्तियों को आने न देना
(ग) विपत्तियों पर नियंत्रण लगाना
(घ) मिटने के स्वाद का आनंद लेना
उत्तर :
(क) विपत्तियों का हँसकर सामना कर आत्म-बलिदान देना

5. प्रभु की करुणा का उपहार किसे मिल सकता है?
(क) जो अमर हो गए हैं।
(ख) जो गुमनाम हो गए हैं।
(ग) जो अचानक मिट गए हैं।
(घ) जो जीवन के आनंद में लिप्त हो गए हैं।
उत्तर :
(क) जो अमर हो गए हैं।

JAC Class 10 Hindi अपठित बोध अपठित काव्यांश

9. आवश्यकता की पुकार को श्रुति ने श्रवण किया है?
कहो, करो ने आगे बढ़ किसको साहाय्य दिया है?
आर्तनाद तक कभी पदों ने क्या तुमको पहुँचाया?
क्या नैराश्य-निमग्न जनों को तुमने कंठ लगाया?
पैदा कर जिस देश जाति ने तुमको पाला-पोसा।
किए हुए है वह निज हित का तुमसे बड़ा भरोसा।
उससे होना उऋण प्रथम है सत्कर्तव्य तुम्हारा।
फिर दे सकते हो वसुधा को शेष स्वजीवन सारा।

1. काव्यांश का उचित शीर्षक चुनिए –
(क) आवश्यकता की पुकार
(ख) आर्तनाद
(ग) स्वजीवन
(घ) सत्कर्तव्य
उत्तर :
(घ) सत्कर्तव्य

2. आवश्यकता की पुकार क्या है?
(क) ज़रूरतमंद की आवश्यकता की पुकार सुनकर उसकी पूर्ति करना
(ख) किसी की भी आवश्यकता की पुकार सुनकर उसकी पूर्ति करना
(ग) गैर-ज़रूरतमंद की आवश्यकता की पूर्ति करना
(घ) ये सभी विकल्प सही हैं
उत्तर :
(क) ज़रूरतमंद की आवश्यकता की पुकार सुनकर उसकी पूर्ति करना

3. मनुष्य का प्रथम कर्तव्य क्या है?
(क) देश-जाति के ऋण से दबकर शांत रहना
(ख) देश-जाति के ऋण से मुक्त होकर उसकी सेवा करना
(ग) देश की स्वार्थ की भावना से सेवा करना
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(ख) देश-जाति के ऋण से मुक्त होकर उसकी सेवा करना

4. किन लोगों को गले लगाकर सांत्वना देनी चाहिए?
(क) निराश लोगों को
(ख) बेसुध लोगों को
(ग) पिछड़े लोगों को
(घ) असहाय लोगों को
उत्तर :
(क) निराश लोगों को

5. हमें क्या सुनकर सहायता करनी चाहिए?
(क) करुण पुकार
(ख) कराह
(ग) वेदना की पुकार
(घ) ये सभी विकल्प सही हैं
उत्तर :
(घ) ये सभी विकल्प सही हैं

JAC Class 10 Hindi अपठित बोध अपठित काव्यांश

10. मैं तो वही खिलौना लूंगा, मचल गया दीना का लाल।
खेल रहा था जिसको लेकर, राजकुमार उछाल-उछाल।
व्यथित हो उठी मां बेचारी, था सुस्वर्ण निर्मित वह तो।
खेल इसी से लाल, नहीं है, राजा के घर भी यह तो।
राजा के घर नहीं, नहीं माँ, तू मुझको बहकाती है।
इस मिट्टी से खेलेगा क्या, राजपुत्र तू ही कह तो।
फेंक दिया मिट्टी में उसने, मिट्टी का गुड्डा तत्काल।
मैं तो वही खिलौना लूँगा, मचल गया दीना का लाल।

1. कविता का उपयुक्त शीर्षक है –
(क) दीना का लाल
(ख) खिलौना
(ग) राजकुमार
(घ) खेल
उत्तर :
(ख) खिलौना

2. माँ ने बेटे को क्या समझाने का प्रयास किया है?
(क) ऐसा खिलौना तो ढूँढने से नहीं मिलेगा।
(ख) ऐसा खिलौना तो राजकुमार के पास भी नहीं होगा।
(ग) ऐसा खिलौना तो बाजार में भी नहीं मिलेगा।
(घ) ये सभी विकल्प सही हैं।
उत्तर :
(ख) ऐसा खिलौना तो राजकुमार के पास भी नहीं होगा।

3. दीना का लाल क्या लेना चाहता है?
(क) सस्ता खिलौना
(ख) मखमल का खिलौना
(ग) राजकुमार के खिलौने जैसा
(घ) स्वचालित खिलौना
उत्तर :
(ग) राजकुमार के खिलौने जैसा

4. दीना के लाल ने मिट्टी का गुड्डा कहाँ फेंक दिया?
(क) छत पर
(ख) मिट्टी में
(ग) द्वार पर
(घ) घास में
उत्तर :
(ख) मिट्टी में

5. ‘तू’ मुझको बहकाती है। पंक्ति में ‘तू’ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
(क) पिता
(ख) माता
(ग) बेटा
(घ) राजकुमार
उत्तर :
(ख) माता

JAC Class 10 Hindi अपठित बोध अपठित काव्यांश

11. “माँ, कह एक कहानी!’
‘बेटा, समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?’
‘कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी।
कह माँ, कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी?
माँ, कह एक कहानी?’
‘सुन, उपवन में बड़े सवेरे, तात भ्रमण करते थे तेरे।
जहाँ सुरभि मनमानी।”जहाँ सुरभि मनमानी! हाँ माँ, यही कहानी।’
‘वर्ण-वर्ण के फूल खिले थे, झलमल कर हिम-बिंदु झिले थे,
हलके झोंके हिले-मले थे, लहराता था पानी।’
‘लहराता था पानी! हाँ, हाँ, यही कहानी।’

1. बेटा किससे कहानी कहने के लिए कह रहा है?
(क) माँ से
(ख) पिता से
(ग) नानी से
(घ) दादी से
उत्तर :
(क) माँ से

2. दासी ने बेटे को क्या बताया?
(क) उसकी माँ नानी की बहन है।
(ख) उसकी माँ नानी की बेटी है।
(ग) उसकी माँ नानी की बहू है।
(घ) उसकी माँ दादी की बेटी है।
उत्तर :
(ख) उसकी माँ की बेटी है।

3. माँ कहानी की शुरुआत कहाँ से करती है?
(क) पिता के उपवन घूमने से
(ख) नानी के बाग से
(ग) नदी-किनारे से
(घ) स्वयं की सुबह की सैर से
उत्तर :
(क) पिता के उपवन घूमने से

4. ओस की बूंदें कहाँ झलक रही थीं?
(क) रंगीन फ़र्श पर
(ख) रंगीन फूलों पर
(ग) पेड़ की सूखी डालों पर
(घ) फलों पर
उत्तर :
(ख) रंगीन फूलों पर

5. उपवन में किसे मनमानी करते बताया गया है?
(क) राजकुमारी को
(ख) माँ को
(ग) तितली
(घ) सुरभि
उत्तर :
(घ) सुरभि

JAC Class 10 Hindi अपठित बोध अपठित काव्यांश

12. रात यों कहने लगा मुझ से गगन का चाँद,
आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है!
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता है,
और फिर बेचैन हो जगता न सोता है।
जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ?
मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते;
और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।

1. काव्यांश का उचित शीर्षक चुनिए
(क) अनोखा जीव
(ख) चाँद और कवि
(ग) चाँदनी
(घ) उलझन
उत्तर :
(ख) चाँद और कवि

2. चाँद ने मनष्य को क्या कहा?
(क) विचित्र प्राणी
(ख) ज्ञानशील प्राणी
(ग) भोला-भाला प्राणी
(घ) विवेकशून्य प्राणी
उत्तर :
(क) विचित्र प्राणी

3. कवि हमेशा कहाँ खोया रहता है?
(क) यथार्थ लोक में
(ख) परलोक में
(ग) कल्पना लोक में
(घ) स्वर्गलोक में
उत्तर :
(ग) कल्पना लोक में

4. चाँद स्वयं के बारे में क्या बताता है?
(क) एकदम नया
(ख) बहुत पुराना
(ग) शीतल करने वाला
(घ) चाँदनी देने वाला
उत्तर :
(ख) बहुत पुराना

5. चाँद ने किसे मरते और जन्म लेते देखा है?
(क) सूर्य भगवान को
(ख) सप्तर्षि को
(ग) प्रथम पुरुष मनु को
(घ) राजा इक्ष्वाकु को
उत्तर :
(ग) प्रथम पुरुष मनु को

JAC Class 10 Hindi अपठित बोध अपठित काव्यांश

13. हम अनिकेतन, हम अनिकेतन।
हम तो रमते राम हमारा क्या घर, क्या दर, कैसा वेतन?
अब तक इतनी यों ही काटी, अब क्या सीखें नव परिपाटी।
कौन बनाए आज घरौंदा, हाथों चुन-चुन कंकड़-माटी।
ठाठ फ़कीराना है अपना बाघंबर सोहे अपने तन।
देखे महल, झोंपड़े देखे, देखे हास-विलास मजे के।
संग्रह के सब विग्रह देखे, अँचे नहीं कुछ अपने लेखे।
लालच लगा कभी, पर हिय में मच न सका शोणित-उद्वेलन।

1. काव्यांश का उचित शीर्षक चुनिए –
(क) फ़कीराना ठाठ
(ख) हम अनिकेतन
(ग) नव परिपाटी
(घ) हास-विलास
उत्तर :
(ख) हम अनिकेतन

2. कवि किसके प्रति रुचि नहीं रखता?
(क) वैभव और विलास के प्रति
(ख) भ्रमण
(ग) विरक्तता
(घ) फकीराना ठाठ
उत्तर :
(ख) वैभव और विलास के प्रति

3. व्यक्ति में भटकाव और बेचैनी किस कारण होती है?
(क) मोह के कारण
(ख) अशांति के कारण
(ग) वैभव के कारण
(घ) ये सभी विकल्प
उत्तर :
(ग) वैभव के कारण

4. वैभव के प्रति रुचि रखने वाला व्यक्ति प्रायः कैसा होता है?
(क) परोपकारी
(ख) धनवान
(ग) परस्वार्थी
(घ) स्वार्थी-आत्मकेंद्रित
उत्तर :
(घ) स्वार्थी-आत्मकेंद्रित

5. विरक्त लोगों के बारे में कौन-सा कथन असत्य है?
(क) ये साधु स्वभाव के होते हैं।
(ख) ये लालची नहीं होते हैं।
(ग) इनमें संग्रह करने की भावना होती है।
(घ) ये एक स्थान में टिककर नहीं रहते।
उत्तर :
(ग) इनमें संग्रह करने की भावना होती है।

JAC Class 10 Hindi अपठित बोध अपठित काव्यांश

14. हे ग्राम-देवता नमस्कार!
सोने-चाँदी से नहीं किंतु तुमने मिट्टी से किया प्यार
हे ग्राम-देवता नमस्कार!
जन-कोलाहल से दूर कहीं एकाकी सिमटा-सा निवास
रवि-शशि का उतना नहीं कि जितना प्राणों को होता प्रकाश।
श्रम-वैभव के बल पर करते हो जड़ में चेतन का विकास।
दानों-दानों से फूट रहे सौ-सौ दानों के हरे हास।
यह है न पसीने की धारा, यह गंगा की है धवल धार।
हे ग्राम-देवता नमस्कार!

1. काव्यांश का उचित शीर्षक चुनिए
(क) मिट्टी से प्यार
(ख) कोलाहल
(ग) ग्राम-देवता
(घ) श्रम-वैभव
उत्तर :
(क) ग्राम-देवता

2. ग्राम-देवता कहाँ रहता है?
(क) मंदिर में
(ख) पहाड़ में
(ग) महल में
(घ) छोटी-सी कुटिया में
उत्तर :
(घ) छोटी-सी कुटिया में

3. ग्राम-देवता किससे प्यार करता है?
(क) भक्तों से
(ख) मिट्टी से
(ग) प्रसाद से
(घ) फल-मेवों से
उत्तर :
(ख) मिट्टी से

4. ग्राम-देवता क्या करके धरती को चेतन बना देता है?
(क) धरती में अन्न पैदा कर
(ख) बारिश करवाकर
(ग) फसल काटकर
(घ) अन्न बाँटकर
उत्तर :
(क) धरती में अन्न पैदा कर

5. ग्राम-देवता के परिश्रम से निकलने वाले पसीने को क्या बताया गया है?
(क) आकाशगंगा
(ख) गंगा की उज्जवल धारा
(ग) चूने की लकीर
(घ) दूध की सफ़ेद धारा
उत्तर :
(ख) गंगा की उज्जवल धारा

JAC Class 10 Hindi अपठित बोध अपठित काव्यांश

15. जग में सचर-अचर जितने हैं, सारे कर्म निरत हैं।
धुन है एक न एक सभी को, सबके निश्चित व्रत हैं।
जीवन-भर आतप वह वसुधा पर छाया करता है।
तुच्छ पत्र की भी स्वकर्म में कैसी तत्परता है।
रवि जग में शोभा सरसाता, सोम सुधा बरसाता।
सब हैं लगे कर्म में, कोई निष्क्रिय दृष्टि न आता।
है उद्देश्य नितांत तुच्छ तृण के भी लघु जीवन का।
उसी पूर्ति में वह करता है अंत कर्ममय तन का।

1. काव्यांश का उचित शीर्षक है
(क) सचर-अचर
(ख) वसुधा
(ग) कर्म करो
(घ) कर्ममय तन
उत्तर :
(ग) कर्म करो

2. सांसारिक लोग किस धुन में लगे हुए हैं?
(क) लक्ष्य-प्राप्ति की
(ख) भोग-विलास की
(ग) व्रत करने की
(घ) कर्म करने की
उत्तर :
(क) लक्ष्य-प्राप्ति की

3. संसार को तेज़ की प्राप्ति किससे होती है?
(क) ज्ञान से
(ख) वैभव से
(ग) अग्नि से
(घ) सूर्य से
उत्तर :
(घ) सूर्य से

4. अमृत के समान शीतलता कौन प्रदान करता है?
(क) जाड़ा
(ख) वसंत
(ग) चंद्रमा
(घ) समीर
उत्तर :
(ग) चंदमा

5. काव्यांश में कवि का उद्देश्य क्या है?
(क) सदा कर्म करते रहना
(ख) सदा अच्छे समय की प्रतीक्षा करना
(ग) ज़रूरत पड़ने पर कर्म करना
(घ) मनमर्जी कर्म करते रहना
उत्तर :
(क) सदा कर्म करते रहना

JAC Class 10 Hindi अपठित बोध अपठित काव्यांश

16. इतने ऊँचे उठो कि जितना उछा गगन है।
देखो इस सारी दुनिया को एक दृष्टि से
सिंचित करो धरा, समता की भाव वृष्टि से
जाति-भेद की, धर्म-वेस की
काले गोरे रंग-द्वेष की
काले गोरे रंग-द्वेष की
ज्वालाओं से जलते जग में
इतने शीतल बहो कि जितना मलय पवन है।

1. काव्यांश का उचित शीर्षक चुनिए
(क) दुनिया
(ख) जाति-भेद
(ग) इतने ऊँचे उठो
(घ) रंग-द्वेष
उत्तर :
(ग) इतने ऊँचे उठो

2. कवि मनुष्य को किसके समान ऊँचे उठने को कह रहा है?
(क) हिमालय
(ख) आसमान
(ग) सूर्य
(घ) चाँद
उत्तर :
(ख) आसमान

3. ऊँचे विचारों वाला मनुष्य क्या करता है?
(क) स्वयं को अलग रखता है।
(ख) सर्व-कल्याण की भावना रखता है।
(ग) सिर्फ़ परिचितों के कल्याण की भावना रखता है।
(घ) मनमौजी होकर अपने लोगों का कल्याण करता है।
उत्तर :
(ख) सर्व-कल्याण की भावना रखता है।

4. संसार किस भेद-भाव से ग्रस्त है?
(क) जाति-धर्म
(ख) वेश-भूषा
(ग) काले-मोटे रंग
(घ) ये सभी विकल्प
उत्तर :
(घ) ये सभी विकल्प

5. भेदभाव को दूर करने के लिए कवि ने क्या कहा है?
(क) ममता की भावना का प्रचार करना
(ख) द्वेष-भावना का प्रचार करना
(ग) हीन भावना का प्रचार करना
(घ) ये सभी विकल्प
उत्तर :
(क) ममता की भावना का प्रचार करना

JAC Class 10 Hindi अपठित बोध अपठित काव्यांश

17. ऊषा की सुकुमार रश्मि से रंचित थी जिसकी चितवन,
प्रात-स्वप्न-सा कहाँ खो गया वह मेरा भोला बचपन!
मृदुल सुनहरी चंचलता वह आज कहाँ है! लीन हुई,
यौवन की मोहलक सरिता में, क्या पीड़ा की मीन हुई!
सरल हंसी जिसमें सोती थी पड़ी हुई पीड़ा चुपचाप,
आज अश्रु से लिखती उर में अतीत का भूला इतिह्मस!

1. काव्यांश का उचित शीर्षक चुनिए
(क) सरिता
(ख) उषा की रश्मि
(ग) मेरा बचपन
(घ) इतिहास
उत्तर :
(ग) मेरा बचपन

2. कवि अपने बचपन के दिनों को क्या कहता है?
(क) अतीत का भूला इतिहास
(ख) नव लिखित इतिहास
(ग) अविस्मृत यादें
(घ) स्वर्णिम स्मृतियाँ
उत्तर :
(क) अतीत का भूला इतिहास

3. कवि की बचपन की चंचलता किसमें बदल गई है?
(क) मुसीबतों में
(ख) कठिन दिनचर्या में
(ग) यौवन की गंभीरता में ।
(घ) यौवन की सुकुमारता में
उत्तर :
(ग) अतीत की गंभीरता में

4. कवि अपने बचपन की यादों को हृदय पर किससे लिख रहा है?
(क) स्याही से
(ख) अश्रु से
(ग) पंख से
(घ) पेन से
उत्तर :
(ख) अश्रु से

JAC Class 10 Hindi अपठित बोध अपठित काव्यांश

5. कवि ने बचपन को किसके समान खो दिया है?
(क) हवा के समान
(ख) दिवा-स्वप्न के समान
(ग) बहुमूल्य हीरे के समान
(घ) रात्रि के स्वप्न के समान
उत्तर :
(ख) दिवा-स्वप्न के समान

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 बड़े भाई साहब

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 बड़े भाई साहब Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 बड़े भाई साहब

JAC Class 10 Hindi बड़े भाई साहब Textbook Questions and Answers

मौखिक – 

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
कथा-नायक की रुचि किन कार्यों में थी?
उत्तर :
कथा-नायक की रुचि खेलने-कूदने और मौज-मस्ती के कार्यों में थी। उसे कंकरियाँ उछालना व कागज़ की तितलियाँ उड़ाना अच्छा लगता है। कभी-कभी वह इधर-उधर घूमता था और कभी तरह-तरह के खेल खेलता था। उसकी पढ़ने में बिलकुल भी रुचि न थी।

प्रश्न 2.
बड़े भाई साहब छोटे भाई से हर समय पहला सवाल क्या पूछते थे?
उत्तर :
बड़े भाई साहब छोटे भाई से हर समय पहला सवाल यही पूछते थे कि अब तक तुम कहाँ थे? उसके बाद वे लंबा-चौड़ा भाषण दिया करते थे।

प्रश्न 3.
दूसरी बार पास होने पर छोटे भाई के व्यवहार में क्या परिवर्तन आया?
उत्तर :
दूसरी बार पास होने पर छोटा भाई बड़े भाई की सहनशीलता का अनुचित लाभ उठाने लगा। वह पहले से अधिक स्वच्छंद हो गया। वह अपना अधिक समय खेल-कूद में ही लगाने लगा।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 बड़े भाई साहब

प्रश्न 4.
बड़े भाई साहब छोटे भाई से उम्र में कितने बड़े थे और वे कौन-सी कक्षा में पढ़ते थे?
उत्तर :
बड़े भाई साहब लेखक से उम्र में पाँच साल बड़े थे। वे नौवीं कक्षा में पढ़ते थे।

प्रश्न 5.
बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए क्या करते थे?
उत्तर :
बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए कॉपी और किताब के हाशियों पर चिड़ियों, कुत्तों और बिल्लियों की तसवीरें बनाया करते थे। कभी-कभी एक ही नाम, शब्द या वाक्य को कई बार लिखते थे और कभी ऐसी शब्द-रचना कर देते थे, जिसका कोई अर्थ और सामंजस्य नहीं होता था।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30) शब्दों में लिखिए –

प्रश्न 1.
छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम-टेबिल बनाते समय क्या-क्या सोचा और फिर उसका पालन क्यों नहीं कर पाया?
उत्तर :
बड़े भाई द्वारा बुरी तरह लताड़े जाने पर छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम-टेबिल बना लिया। टाइम-टेबिल बनाते समय उसने सोचा कि अब वह खूब मन लगाकर पढ़ेगा और खेलकूद की ओर ध्यान नहीं देगा। उसने टाइम-टेबिल में खेलकूद का समय भी निर्धारित नहीं किया। लेकिन जैसे ही उसने टाइम-टेबिल का पालन करना चाहा, उसे खेलकूद की याद सताने लगी। उसे मैदान की सुखद हरियाली, हवा के हल्के-हल्के झोंके तथा कबड्डी व वॉलीबॉल आदि खेलों का आनंद अपनी ओर खींचने लगा। इस कारण छोटा भाई टाइम-टेबिल बनाकर भी उसका पालन नहीं कर पाया।

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प्रश्न 2.
एक दिन जब गुल्ली-डंडा खेलने के बाद छोटा भाई बड़े भाई के सामने पहुंचा तो उनकी क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर :
एक दिन जब छोटा भाई गुल्ली-डंडा खेलने के बाद भोजन के समय लौटा, तो बड़े भाई साहब उस पर बहुत क्रोधित हुए। उन्हो डाँटते-फटकारते हुए कई तरह से समझाने का प्रयास किया। बड़े भाई साहब ने छोटे भाई से कहा कि उसे अपने पास होने का घमंड नहीं करना चाहिए। उन्होंने अनेक घमंडी लोगों और राजाओं के उदाहरण देकर उसे बताया कि घमंड करने से बड़े-से-बड़े व्यक्ति का भी नाश हो जाता है। उन्होंने उसके परीक्षा में पास होने को भी केवल एक संयोग बताया। बड़े भाई साहब ने छोटे भाई को खेलों से दूर रहने की नसीहत दी।

प्रश्न 3.
बड़े भाई साहब को अपने मन की इच्छाएँ क्यों दबानी पड़ती थीं ?
उत्तर :
बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई से पाँच साल बड़े थे। बड़ा होने के नाते वे हर समय यही कोशिश करते कि वे जो कुछ भी करें, वह उनके छोटे भाई के लिए एक उदाहरण बन जाए। वे सदा अपने आपको एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत करना चाहते थे। उन्हें लगता था कि वे जैसा आचरण करेंगे, उनका छोटा भाई भी वैसा ही आचरण करेगा। अतः अपने छोटे भाई को अच्छी शिक्षा देने की चाह के कारण बड़े भाई साहब को अपने मन की इच्छाएँ दबानी पड़ती थीं।

प्रश्न 4.
बड़े भाई साहब छोटे भाई को क्या सलाह देते थे और क्यों?
उत्तर :
बड़े भाई साहब छोटे भाई को पढ़ने-लिखने की सलाह देते थे। उनकी इच्छा थी कि जिस प्रकार वे हर उनका छोटा भाई भी अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगाए। उन्हें अपने छोटे भाई का खेलना और इधर-उधर घूमना अच्छा नहीं लगता था। बड़े भाई साहब चाहते थे कि उनका छोटा भाई पढ़-लिखकर विद्वान बने। इसी कारण वे उसे खेलकूद छोड़कर पढ़ने की सलाह दिया करते थे।

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प्रश्न 5.
छोटे भाई ने बड़े भाई साहब के नरम व्यवहार का क्या फ़ायदा उठाया?
उत्तर :
लेखक के दूसरी बार पास होने और बड़े भाई साहब के फेल होने पर बड़े भाई साहब का व्यवहार नरम पड़ गया। वे अब लेखक को कम डाँटते थे। लेखक उनके नरम व्यवहार के कारण पहले से अधिक स्वच्छंद हो गया। उसने पढ़ने-लिखने के स्थान पर मौज-मस्ती करना शुरू कर दिया। वह अपना सारा समय पतंगबाजी और अन्य खेलों में लगाने लगा।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60) शब्दों में लिखिए –

प्रश्न 1.
बड़े भाई की डाँट-फटकार अगर न मिलती, तो क्या छोटा भाई कक्षा में अव्वल आता? अपने विचार प्रकट कीजिए। उत्तर :
बड़े भाई साहब के साथ उनका छोटा भाई भी होस्टल में रहता था। बड़े भाई साहब हर समय पढ़ते रहते थे। वे चाहते थे कि उनका छोटा भाई भी खूब पढ़े, किंतु छोटे भाई का ध्यान पढ़ाई की बजाय खेलों में अधिक था। वे उसे निरंतर डाँटते-फटकारते रहते। उनकी डाँट-फटकार का प्रभाव यह हुआ कि छोटा भाई कक्षा में अव्वल आया। यदि बड़े भाई साहब उसे न डाँटते, तो उसका अव्वल आना संभव नहीं था।

बड़े भाई साहब ने स्वयं को आदर्श रूप में प्रस्तुत करते हुए स्वयं को सभी प्रकार के खेलों से दूर रखा। उन्होंने एक पिता के समान छोटे भाई पर पूरा नियंत्रण रखा और उसे पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित किया। यदि बड़े भाई साहब छोटे भाई को न डाँटते, तो वह पढ़ने-लिखने में अपना ध्यान बिलकुल न लगाता और अव्वल आना तो दूर, वह पास भी न हो पाता। निश्चित रूप से छोटे भाई के अव्वल आने में बड़े भाई साहब की डाँट-फटकार का पूरा योगदान था।

प्रश्न 2.
‘बड़े भाई साहब’ पाठ में लेखक ने समूची शिक्षा के किन तौर-तरीकों पर व्यंग्य किया है ? क्या आप उनके विच्चार से सहमत हैं ?
अथवा
‘बड़े भाई साहब’ कहानी के आधार पर लगभग 100 शब्दों में लिखिए कि लेखक ने समूची शिक्षा प्रणाली के किन पहलुओं: पर व्यंग्य किया है? आपके विचारों से इसका क्या समाधान हो सकता है? तर्कपूर्ण उत्तर लिखिए।
उत्तर :
बड़े भाई साहब पाठ में लेखक ने शिक्षा के विभिन्न तौर-तरीकों पर व्यंग्य किया है। लेखक के अनुसार आजकल विद्यार्थियों को जो कुछ भी पढाया जा रहा है, उससे उनके वास्तविक जीवन का कोई लेना-देना नहीं है। इसे पढकर उन्हें जीवन में कोई विशेष लाभ: भी नहीं होता, किंतु परीक्षा पास करने के लिए विद्यार्थियों को यह सब रटना पड़ता है। लेखक कहता है कि इतिहास में अंग्रेजों का इतिहास पढ़ाया जाता है।

इस इतिहास का वर्तमान से कोई संबंध नहीं है और इसे पढ़कर विद्यार्थी कोई बहुत बड़ा नाम भी नहीं कमा लेखक की यह बात बिलकुल सही है कि विद्यार्थियों को आजकल जो कुछ पढ़ाया जा रहा है, वह उचित नहीं है। यह पढ़ाई-लिखाई उनके जीवन में कोई बदलाव लाने वाली नहीं है। यह पढ़ाई उन्हें किसी प्रकार से आत्मनिर्भर बनाने में भी सक्षम नहीं है। अतः हम लेखक के विचारों से पूर्णत: सहमत हैं।

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प्रश्न 3.
बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ कैसे आती है?
उत्तर :
बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ अनुभव से आती है। उनका मत है कि किताबें पढ़ने से मनुष्य विद्या तो ग्रहण कर सकता है, किंतु जीवन जीने की समझ जिंदगी के अनुभव से आती है। अधिक पढ़ा-लिखा होने से व्यक्ति विद्वान तो बन सकता है, लेकिन जीवन जीने के लिए जीवन की समझ की भी ज़रूरत होती है, जो केवल अनुभव से ही प्राप्त की जा सकती है। कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी अनुभवी हो सकता है चाहे उसने किताबें न पढ़ी हों, किंतु उसे भी अपने अनुभव से जिंदगी की बहुत समझ होती है। उसे उसके जीवन में घटने वाली घटनाएँ ही अनुभवी बनाती हैं। बड़े भाई साहब जीवन के इसी अनुभव को किताबी ज्ञान से अधिक महत्व देते हैं।

प्रश्न 4.
छोटे भाई के मन में बड़े भाई साहब के प्रति श्रद्धा क्यों उत्पन्न हुई ?
उत्तर :
परीक्षा में दूसरी बार भी पास होने पर छोटा भाई पढ़ाई-लिखाई से दूर हो गया। एक दिन जब वह एक पतंग के पीछे दौड़ रहा था, तो बड़े भाई साहब ने उसे पकड़ लिया। उन्होंने उसे बुरी तरह फटकारा। उनके द्वारा दिए गए तर्क और उदाहरण इतने सटीक थे कि छोटा भाई हैरान रह गया। बड़े भाई साहब ने उसे बताया कि केवल किताबी ज्ञान पा लेने से कोई महान नहीं बन जाता, बल्कि जीवन की समझ अनुभव से आती है।

बड़े भाई साहब छोटे भाई को बड़े ही सुंदर ढंग से समझाते हैं कि पढ़-लिखकर पास होना और जीवन की समझ होना-दोनों अलग-अलग बातें हैं। वे चाहे परीक्षा में पास न हुए हों, किंतु उनके पास जीवन का अनुभव अधिक है। परीक्षा में केवल पास होना ही बड़ी बात नहीं है अपितु अच्छे-बुरे समय में अपने आपको उसके अनुसार ढाल लेना बड़ी बात है।

बड़े भाई साहब उसे अपनी माता, दादा और हेडमास्टर साहब का उदाहरण देकर समझाते हैं कि जीवन में अनुभव की अधिक आवश्यकता है और उनके पास उससे कहीं ज्यादा अनुभव है। बड़े भाई साहब की ऐसी विद्वत्तापूर्ण बातों को सुनकर छोटे भाई के मन में उनके प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो गई थी।

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प्रश्न 5.
बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
(i) छोटे भाई का हितैषी – बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई का भला चाहने वाले हैं। वे निरंतर उसे अच्छाई की ओर प्रेरित करते हैं। वे स्वयं को उसके सामने एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत करते हैं। वे चाहते हैं कि उनका छोटा भाई किसी तरह से पढ़-लिख जाए। इसी कारण वे क्रोधित भी होते हैं और उस पर पूरा नियंत्रण भी रखते हैं।

(ii) गंभीर – बड़े भाई साहब गंभीर प्रवृत्ति के हैं। वे हर समय किताबों में खोए रहते हैं। वे अपने छोटे भाई के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहते हैं, इसलिए वे सदा अध्ययनशील रहते हैं। उनका गंभीर स्वभाव ही उन्हें विशिष्टता प्रदान करता है।

(iii) वाक् कला में निपुण – बड़े भाई साहब वाक् कला में निपुण हैं। वे अपने छोटे भाई को ऐसे-ऐसे उदाहरण देकर बताते हैं कि वह उनके आगे नतमस्तक हो जाता है। उन्हें शब्दों को सुंदर ढंग से प्रस्तुत करना आता है। यही कारण है कि वे अपने छोटे भाई पर अपना पूरा दबदबा बनाए रखते हैं।

(iv) वर्तमान शिक्षा-प्रणाली का विरोधी – बड़े भाई साहब वर्तमान शिक्षा-प्रणाली के विरोधी हैं। उनके अनुसार यह शिक्षा प्रणाली किसी प्रकार से भी लाभदायक नहीं है। यह विद्यार्थियों को कोरा किताबी ज्ञान देती है, जिसका वास्तविक जीवन में कोई लाभ नहीं होता। विद्यार्थी को ऐसी-ऐसी बातें पढ़ाई जाती हैं, जिनका उसके भावी जीवन से कोई संबंध नहीं होता। वे ऐसी शिक्षा-प्रणाली पर व्यंग्य करते हुए इसे दूर करने की बात कहते हैं।

प्रश्न 6.
बड़े भाई साहब ने जिंदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से किसे और क्यों महत्वपूर्ण कहा है ?
उत्तर :
बड़े भाई साहब ने जिंदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से जिंदगी के अनुभव को महत्वपूर्ण कहा है। उनके अनुसार किताबी ज्ञान से जीवन जीने की समझ नहीं आती। इससे जीवन की वास्तविकताओं का सामना भी नहीं किया जा सकता। किताबी ज्ञान प्राप्त करके व्यक्ति परिपक्व नहीं हो पाता। उनका मत है कि व्यक्ति अपनी जिंदगी के अनुभव से ही सबकुछ सीखता है। बहुत-से कम पढ़े-लिखे लोग भी; जिन्हें जिंदगी का अनुभव होता है; पढ़े-लिखे लोगों से अधिक समझदार होते हैं। जिंदगी का अनुभव हमें जीवन की कठिनाइयों का सामना करने में सक्षम बनाता है। व्यक्ति अपने अनुभव के आधार पर बड़े-से-बड़े कार्य को भी सरलता स से कर लेता है। जिंदगी का अनुभव हमें इतना परिपक्व बना देता है कि हम अपनी मुसीबतों को भी सरलता से झेल लेते हैं, जबकि से कर ले किताबी ज्ञान प्राप्त करने वाला व्यक्ति मुसीबतों में अपना धैर्य खो देता है। इसी कारण बड़े भाई साहब ने जिंदगी के अनुभव को किताबी ज्ञान स महत्वपण कहा है।

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प्रश्न 7.
बताइए पाठ के किन अंशों से पता चलता है कि –
(क) छोटा भाई अपने भाई साहब का आदर करता है।
(ख) भाई साहब को जिंदगी का अच्छा अनुभव है।
(ग) भाई साहब के भीतर भी एक बच्चा है।
(घ) भाई साहब छोटे भाई का भला चाहते हैं।
उत्तर :
(क) छोटा भाई अपने बड़े भाई की डाँट-डपट को चुपचाप सहन करता है। दूसरी बार भी बड़े भाई साहब के फेल होने पर जब छोटा भाई परीक्षा में पास हो जाता है, तो वह खेलकूद में अधिक ध्यान लगाने लगता है। तब भी वह बड़े भाई साहब से छिपकर पतंगबाज़ी आदि करता है। इससे पता चलता है कि छोटा भाई अपने भाई साहब का आदर करता है।

(ख) भाई साहब अपने छोटे भाई को अनेक उदाहरण देकर घमंड न करने और जीवन में आगे बढ़ने को प्रेरित करते हैं। जब वे छोटे भाई को अपनी माता, दादा और हेडमास्टर साहब के विषय में बताते हैं, तो उनके द्वारा कही गई तर्कपूर्ण एवं सटीक बातों से पता चलता है कि उन्हें जिंदगी का अच्छा अनुभव है।

(ग) पाठ के अंत में जब भाई साहब एक पतंग की डोर को उछलकर पकड़ लेते हैं और होस्टल की ओर दौड़ते हैं, तो उनके इस व्यवहार से पता चलता है कि बड़े भाई साहब के भीतर भी एक बच्चा है।

(घ) छोटे भाई साहब को समय-समय पर पढ़ने-लिखने की ओर ध्यान लगाने के लिए कहते हैं। वे उसे समझाते हुए कहते हैं कि वे उसे किसी भी सूरत में गलत राह पर चलने नहीं देंगे। भाई साहब स्वयं एक आदर्श बनकर लेखक को जीवन में परिश्रम करने की शिक्षा देते हैं। उनकी डाँट-फटकार के पीछे भी उनका उद्देश्य लेखक का भला चाहना है। इससे स्पष्ट है कि बड़े भाई साहब छोटे भाई का भला चाहते हैं।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
इम्तिहान पास कर लेना कोई चीज नहीं, असल चीज़ है बुद्धि का विकास।
उत्तर :
राक्षा में पास हाना काई है। बड़ी बात तो बुद्धि का विकास करना है। यदि कोई व्यक्ति अनेक परीक्षाएँ पास कर ले, किंतु उसे अच्छे-बुरे में अंतर करना न आए तो उसकी पढ़ाई व्यर्थ है। पुस्तकों को पढ़कर उसके ज्ञान से अपनी बुद्धि का विकास करना ही असली विद्या है।

प्रश्न 2.
फिर भी जैसे मौत और विपत्ति के बीच भी आदमी मोह और माया के बंधन में जकड़ा रहता है, मैं फटकार और घड़कियाँ खाकर भी खेल-कूद का तिरस्कार न कर सकता था।
उत्तर :
प्रस्तुत कथन छोटे भाई का है। वह अपने बड़े भाई से छिपकर खेलने जाया करता था। उसे पता था कि यदि उसके भाई साहब को पता चल जाएगा तो वे उसे बुरी तरह फटकारेंगे, किंतु छोटे भाई को खेल-कूद से इतना अधिक मोह था कि वह चाहकर भी खेल-कूद को नहीं छोड़ सकता था।

लेखक कहता है कि जिस प्रकार मौत और विपत्ति से घिरा हुआ मनुष्य भी मोह-माया के बंधनों से नहीं निकल पाता, उसी प्रकार बड़े भाई साहब की फटकार और घुड़कियाँ खाकर भी छोटा भाई अपने खेल-कूद को नहीं छोड़ सकता था। वह अपने खेलकूद के कारण अनेक प्रकार की डाँट-फटकार सहन करता था, लेकिन खेलकूद का मोह छोड़ पाना उसके लिए संभव नहीं था।

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प्रश्न 3.
बुनियाद ही पुख्ता न हो तो मकान कैसे पायेदार बने ?
उत्तर :
इस पंक्ति से लेखक का आशय है कि किसी भी मज़बूत मकान के लिए मज़बूत नींव का होना आवश्यक है। यदि नींव कमजोर होगी, तो उस पर बना मकान भी कमजोर ही होगा। नींव जितनी मज़बूत होगी, उस पर बना मकान भी उतना ही मज़बूत होगा। उसी तरह किसी भी मज़बूत व्यक्तित्व के निर्माण के लिए उसकी नींव का बहुत बड़ा योगदान होता है। अत: नींव को मजबूत बनाना चाहिए।

प्रश्न 4.
आँखें आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो मंद गति से झूमता पतन की ओर चला आ रहा था, मानो कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नए संस्कार ग्रहण करने जा रही हो।
उत्तर :
लेखक कहता है कि एक दिन वह एक कटी हुई पतंग को लूटने के लिए उसके पीछे दौड़ रहा था। उस समय उसकी आँखें आसमान की ओर थीं और उसका मन उस कटी हुई पतंग की ओर लगा हुआ था। पतंग धीरे-धीरे हवा में लहराती हुई नीचे की ओर गिरने को थी। उस समय वह पतंग ऐसी प्रतीत हो रही थी, जैसे कोई पवित्र व शांत आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से धरती पर नया जन्म लेने के लिए उतर रही हो।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए –
नसीहत, रोष, आज़ादी, राजा, ताज्जुब
उत्तर

  • नसीहत – उपदेश, सीख
  • रोष – क्रोध, गुस्सा
  • आज़ादी – स्वतंत्रता, स्वाधीनता
  • राजा – नरेश, नृप
  • ताज्जुब – हैरानी, आश्चर्य

प्रश्न 2.
प्रेमचंद की भाषा बहुत पैनी और मुहावरेदार है। इसीलिए इनकी कहानियाँ रोचक और प्रभावपूर्ण होती हैं। इस कहानी में आप देखेंगे कि हर अनुच्छेद में दो-तीन मुहावरों का प्रयोग किया गया है। उदाहरणतः इन वाक्यों को देखिए और ध्यान से पढ़िए –
मेरा जी पढ़ने में बिलकुल न लगता था। एक घंटा भी किताब लेकर बैठना पहाड़ था।
भाई साहब उपदेश की कला में निपुण थे। ऐसी-ऐसी लगती बातें कहते, ऐसे-ऐसे सूक्ति बाण चलाते कि मेरे जिगर के टुकड़े-टुकड़े हो जाते और हिम्मत टूट जाती। वह जानलेवा टाइम-टेबिल, वह आँखफोड़ पुस्तकें, किसी की याद न रहती और भाई साहब को नसीहत और फ़जीहत का अवसर मिल जाता।
निम्नलिखित मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
सिर पर नंगी तलवार लटकना, आड़े हाथों लेना, अंधे के हाथ बटेर लगना, लोहे के चने चबाना, दाँतों पसीना आना, ऐरा-गैरा नत्थू खैरा।
उत्तर :

  • सिर पर नंगी तलवार लटकना – युद्ध-क्षेत्र में सैनिकों के सिर पर सदा नंगी तलवार लटकती रहती है।
  • आड़े हाथों लेना – जब रमेश द्वारा मोहन पर लगाए आरोप झूठे निकले, तो मोहन ने उसे आड़े हाथों लिया।
  • अंधे के हाथ बटेर लगना – सोहन कम पढ़ा-लिखा है, किंतु उसे सरकारी नौकरी मिल गई है। सच है कि अंधे के हाथों बटेर लग गई।
  • लोहे के चने चबाना – जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए लोहे के चने चबाने पड़ते हैं।
  • दाँतों पसीना आना – आई०ए०एस० की परीक्षा पास करने में दाँतों पसीना आ जाता है।
  • ऐरा-गैरा नत्थू खैरा – एवरेस्ट पर चढ़ना ऐरे-गैरे नत्थू खैरे का काम नहीं है।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित तत्सम, तद्भव, देशी, आगत शब्दों को दिए गए उदाहरणों के आधार पर छाँटकर लिखिए –
JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 बड़े भाई साहब 1
तालीम, जल्दबाज़ी, पुख्ता, हाशिया, चेष्टा, जमात, हर्फ़, सूक्तिबाण, जानलेवा, आँखफोड़, घुड़कियाँ, आधिपत्य, पन्ना, मेला-तमाशा, मसलन, स्पेशल, स्कीम, फटकार, प्रातःकाल, विद्ववान, निपुण, भाई साहब, अवहेलना, टाइम-टेबिल
उत्तर :
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प्रश्न 4.
क्रियाएँ मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं-सकर्मक और अकर्मक।
सकर्मक क्रिया – वाक्य में जिस क्रिया के प्रयोग में कर्म की अपेक्षा रहती है, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं; जैसे –
शीला ने सेब खाया।
मोहन पानी पी रहा है।
अकर्मक क्रिया – वाक्य में जिस क्रिया के प्रयोग में कर्म की अपेक्षा नहीं होती, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं; जैसे- शीला हँसती है।
बच्चा रो रहा है।
नीचे दिए वाक्यों में कौन-सी क्रिया है-सकर्मक या अकर्मक? लिखिए –
(ख) सकर्मक क्रिया
(ख) फिर चोरों-सा जीवन कटने लगा।
(ग) शैतान का हाल भी पढ़ा ही होगा।
(घ) मैं यह लताड़ सुनकर आँसू बहाने लगता।
(ङ) समय की पाबंदी पर एक निबंध लिखो।
(च) मैं पीछे-पीछे दौड़ रहा था।
उत्तर :
(क) सकर्मक क्रिया
(ख) सकर्मक क्रिया
(ग) सकर्मक क्रिया
(घ) सकर्मक क्रिया
(ङ) सकर्मक क्रिया
(च) अकर्मक क्रिया

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प्रश्न 5.
‘इक’ प्रत्यय लगाकर शब्द बनाइए –
विचार, इतिहास, संसार, दिन, नीति, प्रयोग, अधिकार
उत्तर :
विचार + इक = वैचारिक
इतिहास + इक = ऐतिहासिक
संसार + इक = सांसारिक
दिन + इक = दैनिक
नीति + इक = नैतिक
प्रयोग + इक = प्रयोगिक
अधिकार + इक = अधिकारिक

योग्यता विस्तार –

प्रश्न 1.
प्रेमचंद की कहानियाँ मानसरोवर के आठ भागों में संकलित हैं। इनमें से कहानियाँ पढ़िए और कक्षा में सुनाइए। कुछ कहानियों का मंचन भी कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
शिक्षा रटंत विद्या नहीं है-इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

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प्रश्न 3.
क्या पढ़ाई और खेल-कूद साथ-साथ चल सकते हैं कक्षा में इस पर वाद-विवाद कार्यक्रम आयोजित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 4.
क्या परीक्षा पास कर लेना ही योग्यता का आधार है? इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

परियोजना कार्य – 

प्रश्न 1.
कहानी में जिंदगी से प्राप्त अनुभवों को किताबी ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण बताया गया है। अपने माता-पिता, बड़े भाई-बहनों या अन्य बुजुर्ग/बड़े सदस्यों से उनके जीवन के बारे में बातचीत कीजिए और पता लगाइए कि बेहतर ढंग से जिंदगी जीने के लिए क्या काम आया-समझदारी/पुराने अनुभव या किताबी पढ़ाई ?
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 2.
आपकी छोटी बहिन/छोटा भाई छात्रावास में रहती/रहता है। उसकी पढ़ाई-लिखाई के संबंध में उसे एक पत्र लिखिए। उत्तर :
15-सी, कर्ण विहार
पुणे 4 जनवरी, 20……
प्रिय दुष्यंत
शुभाशीष!
मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि तुम खूब मन लगाकर पढ़ रहे हो। तुम दसवीं कक्षा में आ गए हो। अब तुम्हें पढ़ाई-लिखाई की ओर अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है। छात्रावास में रहने वाले अपने साथियों के साथ बैठकर खूब पढ़ा करो। यदि अब तुम मेहनत कर लोगे, तो तुम्हें जीवन भर इसका लाभ मिलेगा। दसवीं की पढ़ाई थोड़ी कठिन है। ऐसे में तुम्हें अपने आपको मानसिक रूप से तैयार करके खूब पढ़ाई करनी होगी। मैं आशा करता हूँ कि तुम अच्छे लड़कों की संगति में बैठकर पढ़ाई में ध्यान लगाते होगे। छात्रावास में तुम पर घरवालों का कोई अधिक नियंत्रण नहीं है। ऐसे में तुम्हें स्वयं ही अपनी जिम्मेवारी समझकर खूब पढ़ना-लिखना होगा। मुझे विश्वास है कि हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी तुम अच्छे अंकों से पास हो जाओगे। पढ़ाई में पूरा मन लगाना।
तुम्हारा बड़ा भाई
गौतम

JAC Class 10 Hindi बड़े भाई साहब Important Questions and Answers

निबंधात्मक प्रश्न –

प्रश्न 1.
बड़े भाई साहब छोटे भाई को अपना उदाहरण किस रूप में देते हैं ?
उत्तर :
छोटे भाई की खेलकूद में अधिक रुचि होने के कारण बड़े भाई साहब उसे डाँटते-फटकारते हैं। वे उसे उनसे सबक लेने की बात कहते हैं। वे अपने आपको उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि वे परीक्षा में पास होने के लिए जी-तोड़ मेहनत करते हैं। वे किसी मेले-तमाशे में नहीं जाते। प्रतिदिन होने वाले हॉंकी और क्रिकेट के मैचों से दूर रहते हैं। उनके इस प्रकार के तौर-तरीकों से उसे सीख लेनी चाहिए। यदि वह ऐसा नहीं कर सकता, तो उसे पढ़ाई-लिखाई छोड़कर वापस घर चले जाना चाहिए।

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प्रश्न 2.
छोटे भाई की खेलकूद के प्रति रुचि की तुलना किससे की गई है ?
उत्तर :
छोटा भाई खेलकूद में अत्ययिक रुचि होने के कारण सदा बड़े भाई साहब से तिरस्कार पाता था। यद्यपि वह उनसे छिपकर खेलता था, फिर भी पकड़ा जाता था और बड़े भाई साहब उसे बुरी तरह फटकारते थे। छोटे भाई की खेलकूद में रुचि की तुलना मौत और विपत्ति के बीच फँसे उस व्यक्ति से की गई है, जो मोह-माया के बंधनों में जकड़ा हुआ है। जिस प्रकार व्यक्ति विपत्ति और मृत्यु के बीच फँसे होने पर भी मोह-माया को नहीं छोड़ पाता, उसी प्रकार छोटा भाई भी ब्रे़े भाई साहब द्वारा अनेक प्रकार से अपमानित होने पर भी खेलकुद को छोड़ पाने में असमर्थ था।

प्रश्न 3.
बड़े भाई साहब ने छोटे भाई को घमंड न करने की नसीहत किस प्रकार दी?
उत्तर :
बड़े भाई साहब ने छोटे भाई को रावण के उदाहरण के माध्यम से घमंड न करने की नसीहत दी। उन्होंने कहा कि रावण भूमंडल का स्वामी था। वह ऐसा चक्रवर्ती राजा था कि बड़े-बड़े देवता भी उसकी गुलामी करते थे। अग्नि और वरुण देवता भी उसके सेवक थे। ऐसे चक्रवर्ती राजा का भी घमंड के कारण अंत हो गया और उसका नामो-निशान तक मिट गया। वे कहते हैं कि घमंड सभी कुकर्मों में सबसे बड़ा है। मनुष्य को कभी भी अभिमान नहीं करना चाहिए। जो अभिमान करता है, उसका शीघ्र ही अंत हो जाता है। इसके अतिरिक्त उन्होंने शैतान और शाहेरूम का उदाहरण देकर भी अपने छोटे भाई को घमंड न करने की नसीहत दी।

प्रश्न 4.
छोटे भाई को बाजार में पतंग लूटते देखकर बड़े भाई साहब ने उसे कैसे डाँटा?
उत्तर :
एक दिन जब छोटा भाई पतंग लूटने के लिए दौड़ रहा था, तो बाजार से लौटते अपने बड़े भाई साहब से टकरा गया। बड़े भाई साहब उसे देखते ही क्रोधित हो गए। उन्होंने उसे डाँटते हुए कहा कि वह जिस आठवीं कक्षा में है, वह कोई छोटी कक्षा नहीं है। उसे अपनी पोजीशन का ख्याल रखना चाहिए। इस कक्षा को पास करके पहले जमाने में लोग नायब तहसीलदार बन जाया करते थे और आज भी अनेक आठवीं पास करने वाले लीडर और समाचार-पत्रों के संपादक हैं। अत: उसे अब आठवीं कक्षा में आने पर बाज़ारी लड़कों के साथ पतंग लूटते घूमना शोभा नहीं देता।

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प्रश्न 5.
बड़े भाई साहब ने हेडमास्टर साहब और उनकी माँ का उदाहरण किस संदर्भ में दिया है ?
उत्तर :
बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई को समझाते हुए कहते हैं कि किताबी ज्ञान की अपेक्षा जीवन का अनुभव अधिक महत्वपूर्ण होता है। इसी संदर्भ में उन्होंने हेडमास्टर साहब और उनकी माँ का उदाहरण दिया है। वे कहते हैं कि हेडमास्टर साहब एम० ए० पास हैं, किंतु उनके घर का सारा प्रबंध उनकी माँ के हाथों में है। जब वे घर का प्रबंध करते थे, तो सदा कर्जदार रहते थे; किंतु उनकी माँ उतने ही धन से उनके घर का सारा प्रबंध बड़ी सहजता से कर लेती हैं। इसका कारण यह है कि उनकी माँ को जिंदगी की समझ है। अतः किताबी ज्ञान और जीवन के अनुभव में से जीवन का अनुभव श्रेष्ठ है।

प्रश्न 6.
कहानी के आधार पर बताइए कि लेखक ने अंग्रेज़ी की शिक्षा पर अपने क्या विचार प्रकट किए हैं?
उत्तर :
कहानी में अंग्रेजी भाषा के बारे में बताते हुए बड़े भाई साहब कहते हैं कि अंग्रेजी पढ़ना कोई आसान काम नहीं है और न ही इसे समझने के लिए दिन-रात एक करने पड़ते हैं। देर-देर तक पढ़ना पड़ता है। किताबों में आँखें गड़ाकर बैठना पडता है। न चाहते हुए भी अपना खन जलाना पडता है। इसकी कठिनाई इसी से समझो कि इसे बोल पाना और लिखना सभी के बस की बात नहीं है। यदि आसान होता तो सभी अंग्रेजी के विद्वान बन गए होते। दूसरों को क्या देखोगे, मुझे ही देखो। दिन-रात अंग्रेज़ी को पढ़ता हूँ; सारा दिमाग इसी में लगाकर रखता हूँ, फिर भी फेल हो जाता हूँ। इसी से अंदाज़ा लगा लो कि यह कितनी कठिन है।

प्रश्न 7.
कहानी में निहित संदेश को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कहानी में निहित संदेश यह है कि जिंदगी का अनुभव किसी भी पुस्तकीय ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण है। जीवन जीने की समझ जितनी अनुभव से आ सकती है, उतनी किताबी ज्ञान से कभी नहीं आ सकती। अनुभव जीवन की वास्तविकताओं से हमारा आमना-सामना करवाता है, लेकिन पुस्तकीय ज्ञान वास्तविकताओं से कोसों दूर होता है। पुस्तकीय ज्ञान व्यक्ति में धैर्य की परिभाषा तो अवश्य भर देता है, लेकिन धैर्य धारण करने की शक्ति उसे अनुभव से ही आती है। अनुभव व्यक्ति को परिपक्व बनाता है, जिससे वह हर कठिनाई का सामना बड़ी दृढ़ता और सूझ-बूझ के साथ करता है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 बड़े भाई साहब

प्रश्न 8.
‘बड़े भाई साहब’ कहानी के आधार पर छोटे भाई की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
‘बड़े भाई साहब’ कहानी में छोटे भाई को एक आम विद्यार्थी के समान चित्रित किया गया है। वह सारा दिन खेलता-कूदता है। उसकी खेलने में अत्यधिक रुचि है। उसे सारा दिन मौज-मस्ती के अतिरिक्त कुछ और नहीं सूझता था। सारे दिन में वह एक घंटे से भी कम समय पढ़ता था, लेकिन फिर भी अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो जाता था। वह कुशाग्र बुद्धि का स्वामी था। उसके मन में अपने बड़े भाई के प्रति बहुत आदर-सम्मान की भावना थी। खेल-कूद न छोड़ पाने के कारण उसे अपने बड़े भाई की डाँट-फटकार भी सुननी पड़ती थी।

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
‘बड़े भाई साहब’ किस प्रकार की कहानी है? लेखक इसके द्वारा क्या स्पष्ट करना चाहता है?
उत्तर :
‘बड़े भाई साहब’ कहानी मुंशी प्रेमचंद के द्वारा आत्मकथात्मक शैली में लिखी एक श्रेष्ठ कहानी है। इस कहानी में लेखक ने बड़े भाई साहब के माध्यम से घर में बड़े भाई की आदर्शवादिता के कारण उसके बचपन के तिरोहित होने की बात कही गई है। लेखक इस कहानी के द्वारा यह स्पष्ट करना चाहता है कि घर के बड़े लोग अपने से छोटों को सही मार्ग दिखाने के लिए अनेक प्रकार के सामाजिक समझोते करते हैं।

प्रश्न 2.
मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘बड़े भाई साहब’ से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर :
मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘बड़े भाई साहब’ से हमें प्रेम और सौहार्द की शिक्षा मिलती है। हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने से छोटों को दुत्कारकर नहीं अपितु प्यार से समझाना चाहिए। हमें उन्हें अपमानित नहीं करना चाहिए। उनकी बातों को भी हमें प्रमुखता के साथ सुनना चाहिए। उनकी त्रुटियों को उन्हें प्यार से बताकर दूर करना चाहिए। उन्हें कभी इस बात का भान नहीं होना चाहिए कि बड़ों के सामने उनका अपना कोई अस्तित्व नहीं।

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प्रश्न 3.
कहानी में यह कैसे पता चलता है कि छोटा भाई बड़े भाई का बहुत आदर-सम्मान करता था?
उत्तर :
कहानी में ऐसे बहुत-से स्थान हैं, जहाँ यह पता चलता है कि छोटा भाई बड़े भाई के प्रति अपने हृदय में कितना आदर-भाव रखता है। बड़े भाई द्वारा अपमानित करने पर भी वह और चुपचाप खड़ा रहता है। वह उनसे सवाल-जवाब नहीं करता। वह बड़े भाई की बातों को आदेश मानकर उन पर अमल करने का प्रयास करता है। वह श्रद्धावश उनके प्रति नतमस्तक हो जाता है।

प्रश्न 4.
बड़े भाई साहब का छोटे भाई के प्रति कैसा व्यवहार था?
उत्तर :
बड़े भाई साहब और उनके छोटे भाई में पाँच वर्ष का अंतर था। बड़े भाई साहब स्वभाव से क्रोधी थे। वे छोटे भाई को अत्यधिक खेलने-कूदने में रुचि लेने के कारण उसे बहुत डाँट-फटकार लगाते थे। वे उस समय का सदुपयोग करने तथा मन लगाकर पढ़ने की सलाह देते थे।

प्रश्न 5.
बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई को उनसे क्या सीख लेने को कहते थे?
उत्तर :
बड़े भाई का मानना था कि वे स्वयं बहुत मेहनती हैं; लगनशील हैं। वे सारा दिन पढ़ाई में लगे रहते हैं। वे खेल-कूद से भी दूर रहते हैं। अतः उनके छोटे भाई को उनसे सीख लेते हुए अपनी दिनचर्या उनके अनुसार बनाकर कड़ी मेहनत करनी चाहिए। व्यर्थ में इधर-उधर की बातों तथा खेल-कूद में समय नहीं गँवाना चाहिए।

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प्रश्न 6.
बड़े भाई साहब की बातों का छोटे भाई पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
बड़े भाई की बातें सुनकर छोटे भाई का मन निराशा से भर जाता है; उसे आत्मग्लानि होने लगती है; वह स्वयं को सुधारना चाहता है; बड़े भाई द्वारा दिखाए मार्ग पर चलना चाहता है। अतः वह खूब मन लगाकर पढ़ने का निश्चय करता है। वह एक टाइम-टेबिल का भी निर्माण करता है, किंतु जल्दी ही उसका टाइम-टेबिल खेल-कूद की भेट चढ़ जाता है। वह फिर से खेलने-कूदने में मस्त हो जाता है।

प्रश्न 7.
किताबी ज्ञान के विषय में बड़े भाई साहब के क्या विचार थे?
उत्तर :
बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई को समझाते हुए कहते हैं कि जीवन में व्यक्ति का अनुभव किताबी ज्ञान से कहीं अधिक महत्वपूर्ण होता है। उन्हें उससे कहीं ज्यादा अनुभव था। वे जीवन में किताबी ज्ञान की बजाय समझ को अधिक महत्वपूर्ण मानते हुए कहते हैं कि यह समझ केवल अनुभव से ही प्राप्त की जा सकती है, न कि किताबी ज्ञान से।

बड़े भाई साहब Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन-प्रेमचंद हिंदी साहित्य के ऐसे प्रथम लेखक हैं, जिन्होंने साहित्य का नाता जनजीवन से जोड़ा। उन्होंने अपने कथा साहित्य को सामान्य जन के चित्रण द्वारा सजीव बना दिया है। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त आर्थिक और सामाजिक विषमता को बड़ी निकटता से देखा था। यही कारण है कि उनके उपन्यासों एवं कहानियों में जीवन की यथार्थ अभिव्यक्ति का सजीव चित्रण उपलब्ध होता है। प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के लमही नामक गाँव में हुआ था। उनका वास्तविक नाम धनपत राय था।

आरंभ में वे नवाबराय के नाम से उर्दू में लिखते थे। बदलते युग के प्रभाव ने उनको हिंदी की ओर आकृष्ट किया। उन्होंने सदा वही लिखा, जो उनकी आत्मा ने कहा। वे मुंबई में पटकथा लेखक के रूप में अधिक समय तक इसलिए कार्य नहीं कर पाए क्योंकि वहाँ उन्हें फिल्म निर्माताओं के निर्देशों के अनुसार लिखना पड़ता था। उन्हें तो स्वतंत्र लिखना ही अच्छा लगता था। जीवन में निरंतर विकट परिस्थितियों का सामना करने के कारण प्रेमचंद का शरीर जर्जर होता चला गया। निरंतर साहित्य साधना करते हुए 8 अक्टूबर सन 1936 को उनका स्वर्गवास हो गया।

रचनाएँ – प्रेमचंद प्रमुख रूप से कथाकार थे। उन्होंने जो कुछ भी लिखा, वह समाज की मुँह बोलती तसवीर है। उन्होंने समाज के सभी वर्गों को अपनी रचनाओं का विषय बनाया; परंतु निर्धन, पीड़ित एवं पिछड़े हुए वर्ग के प्रति उनकी विशेष सहानुभूति थी। उन्होंने शोषक एवं शोषित दोनों वर्गों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं उपन्यास-वरदान, सेवा-सदन, प्रेमाश्रय, रंगभूमि, कायाकल्प, निर्मला, प्रतिज्ञा, गबन, कर्मभूमि, गोदान एवं मंगल सूत्र (अपूर्ण)।

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कहानी संग्रह – प्रेमचंद ने लगभग 400 कहानियों की रचना की। उनकी प्रसिद्ध कहानियाँ ‘मानसरोवर’ कहानी संग्रह के आठ भागों में संकलित हैं।
नाटक – कर्बला, संग्राम और प्रेम की वेदी।
निबंध संग्रह – कुछ विचार।
भाषा-शैली – भाषा-शैली की दृष्टि से ‘बड़े भाई साहब’ कहानी प्रेमचंद की अन्य रचनाओं की भाँति उच्च कोटि की रचना है। उनकी भाषा बहुत सरल, सहज और आम बोलचाल की भाषा है, जो भावाभिव्यक्ति में पूर्णतः सक्षम है।

भाषा पूर्ण रूप से पात्रानुकूल है। इस कहानी में तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशी शब्दों का सुंदर मिश्रण है। कथा-संगठन, चरित्र-चित्रण एवं कथोपकथन की दृष्टि से भाषा बेजोड़ है। भाषा में मुहावरों, लोकोक्तियों तथा सूक्तियों के प्रयोग से सजीवता आ गई है। इस कहानी में उन्होंने आड़े हाथों लेना, घाव पर नमक छिड़कना, नामों-निशान मिटा देना, ऐरा-गैरा नत्थू खैरा, सिर फिरना, अंधे के हाथ बटेर लगना, दाँतों पसीना आना, लोहे के चने चबाना, पापड़ बेलना, आटे-दाल का भाव मालूम होना, गाँठ बाँधना जैसे अनेक मुहावरों का सटीक प्रयोग किया है।

देशज शब्दों के प्रयोग से उन्होंने भाषा को प्रसंगानुकूल बनाकर प्रवाहमयी बना दिया है। ‘बड़े भाई साहब’ कहानी आत्मकथात्मक शैली में लिखी गई है, जिसमें कथानायक स्वयं कहानी सुना रहा है। कहीं-कहीं संवादात्मक शैली का प्रयोग है, जिससे कहानी में नाटकीयता आ गई है। शैली में सरसता और रोचकता सर्वत्र विद्यमान है।

पाठका सार –

‘बड़े भाई साहब’ कहानी प्रेमचंद द्वारा आत्मकथात्मक शैली में लिखी एक श्रेष्ठ कहानी है। इस कहानी में उन्होंने बड़े भाई साहब के माध्यम से घर में बड़े भाई की आदर्शवादिता के कारण उनके बचपन के तिरोहित होने की बात कही है। बड़ा भाई सदा छोटे भाई के सामने अपना आदर्श रूप दिखाने के कारण कई बार अपने ही बचपन को खो देता है। बड़े भाई साहब और उनके छोटे भाई में पाँच वर्ष का अंतर है, किंतु वे अपने छोटे भाई से केवल तीन कक्षाएँ ही आगे हैं।

बड़े भाई साहब सदा पढ़ाई में डूबे रहते हैं, लेकिन उनके छोटे भाई का खेलकूद में अधिक मन लगाता है। दोनों भाई होस्टल में रहते हैं। बड़े भाई साहब प्राय: छोटे भाई को उसकी खेलकूद में अधिक रुचि के कारण डाँटते रहते हैं। वे उसे उनसे सीख लेने की बात कहते हैं। उनका कहना है कि वे बहुत मेहनत करते हैं; खेलकूद और खेल-तमाशों से दूर रहते हैं, इसलिए उसे उनसे सबक लेना चाहिए। वे छोटे भाई से कहते हैं कि यदि वह मेहनत नहीं कर सकता, तो उसे घर वापस लौट जाना चाहिए।

उनकी ऐसी बातें सुनकर छोटा भाई निराश हो जाता है। कुछ देर बाद वह जी लगाकर पढ़ने का निश्चय करता है और एक टाइम-टेबिल बना लेता है। वह अपने इस टाइम-टेबिल में खेलकूद को कोई स्थान नहीं देता, लेकिन शीघ्र ही उसका टाइम-टेबिल खेलकूद की भेंट चढ़ जाता है और वह फिर से खेलकूद में मस्त हो जाता है। बड़े भाई साहब की डाँट और तिरस्कार से भी वह अपने खेलकूद को नहीं छोड़ पाता।

कुछ समय बाद वार्षिक परीक्षाएँ हुईं। बड़े भाई साहब कठिन परिश्रम करके भी फेल हो गए, किंतु छोटा भाई प्रथम श्रेणी से पास हो गया। धीरे-धीरे छोटा भाई खेलकूद में अधिक मन लगाने लगा। बड़े भाई साहब से यह देखा नहीं गया। वे उसे रावण का उदाहरण देकर समझाते हैं कि घमंड नहीं करना चाहिए। घमंड करने से रावण जैसे चक्रवर्ती राजा का भी अस्तित्व मिट गया था; शैतान और शाहेरूम भी अभिमान के कारण नष्ट हो गए थे।

छोटा भाई उनके इन उपदेशों को चुपचाप सुनता रहा। वे कहते हैं कि उनकी नौवीं कक्षा की पढ़ाई बहुत कठिन है। अंग्रेजी, इतिहास, गणित तथा हिंदी आदि विषयों में पास होने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। उन्होंने अपनी कक्षा की पढ़ाई का ऐसा भयंकर चित्र खींचा कि छोटा भाई बुरी तरह से डर गया। दोबारा वार्षिक परीक्षाएँ हुईं। इस बार भी बड़े भाई साहब फेल हो गए और छोटा भाई पास हो गया। बड़े भाई साहब बहुत दुखी हुए।

छोटे भाई की अपने बारे में यह धारणा बन गई कि वह चाहे पढ़े या न पढ़े, लेकिन पास हो ही जाएगा। अतः उसने पढ़ाई करना बंद करके खेलकूद में ज्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया। बड़े भाई साहब भी अब उसे कम डाँटते थे। धीरे-धीरे छोटे भाई की स्वच्छंदता बढ़ती गई। उसे पतंगबाजी का नया शौक लग गया। अब वह सारा समय पतंगबाजी में नष्ट करने लगा, किंतु वह अपने इस शौक को बड़े भाई साहब से छिपकर पूरा करता था।

एक दिन वह एक पतंग लूटने के लिए पतंग के पीछे-पीछे दौड़ रहा था कि अचानक बाजार से लौट रहे बड़े भाई साहब से टकरा गया। उन्होंने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे डाँटते हुए कहा कि अब वह आठवीं कक्षा में है। अतः उसे अपनी पोजीशन का ख्याल करना चाहिए। पहले ज़माने में तो आठवीं पास नायब तहसीलदार तक बन जाया करते थे। बड़े भाई साहब उसे समझाते हुए कहते हैं कि जीवन में किताबी ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति का अनुभव होता है और उन्हें उससे कहीं ज्यादा अनुभव है।

वे अपनी माँ, दादा अपने स्कूल के हेडमास्टर साहब और उनकी माँ का उदाहरण देकर बताते हैं कि जिंदगी में केवल किताबी ज्ञान से ही काम नहीं चलता अपितु जिंदगी की समझ भी जरूरी होती है, जो केवल अनुभव से आती है। … बड़े भाई साहब के ऐसा समझाने पर छोटा भाई उनके आगे नतमस्तक होकर कहता है कि वे जो कुछ कह रहे हैं, वह बिलकुल सच है। बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई को गले लगा लेते हैं।

वे कहते हैं कि उनका भी मन खेलने-कूदने का करता है, लेकिन यदि वे ही खेलने-कूदने लगेंगे तो उसे क्या शिक्षा दे पाएँगे? तभी उनके ऊपर से एक कटी हुई पतंग गुजरती है, जिसकी डोर नीचे लटक रही थी। बड़े भाई साहब ने लंबे होने के कारण उसकी डोर पकड़ ली और तेजी से होस्टल की ओर दौड़ पड़े। उनका छोटा भाई भी उनके पीछे-पीछे दौड़ रहा था।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

दरजा – श्रेणी, तालीम – शिक्षा, बुनियाद – नींव, पुख्ता — मज़बूत, तंबीह – डाँट-डपट, हुक्म – आदेश, सामंजस्य – तालमेल, मसलन – उदाहरणतः, इबारत – लेख, चेष्टा – कोशिश, जमात – कक्षा, होस्टल – छात्रावास, हर्फ – अक्षर, मिहनत (मेहनत) – परिश्रम, सबक – सीख, बर्बाद – नष्ट, लताड़ – डाँट-डपट, निपुण – कुशल, सूक्ति-बाण – व्यंग्यात्मक कथन, तीखी बातें, चटपट – उसी क्षण, टाइम-टेबिल – समय-सारणी, स्कीम – योजना, अमल करना – पालन करना, अवहेलना – तिरस्कार, नसीहत – सलाह, फजीहत – अपमान, तिरस्कार – उपेक्षा, विपत्ति – मुसीबत, सालाना इम्तिहान – वार्षिक परीक्षा, हमदर्दी – सहानुभूति,

लज्जास्पद – शर्मनाक, शरीक – शामिल, ज़ाहिर – स्पष्ट, आतंक- भय, अव्वल – प्रथम, असल – वास्तविक, आधिपत्य – साम्राज्य, स्वाधीन – स्वतंत्र, महीप – राजा, कुकर्म – बुरा काम, अभिमान – घमंड, निर्दयी – क्रूर, मुमतहीन – परीक्षक, परवाह – चिंता, फायदा – लाभ, प्रयोजन – उद्देश्य, खुराफ़त – व्यर्थ की बातें, हिमाकत – बेवकूफ़ी, किफ़ायत – बचत (से), दुरुपयोग – अनुचित उपयोग, निःस्वाद – बिना स्वाद का, ताज्जुब – आश्चर्य, हैरानी, टास्क – कार्य, जलील – अपमानित, प्राणांतक – प्राण लेने वाला,

प्राणों का अंत करने वाला, कांतिहीन – चेहरे पर चमक न होना, स्वच्छंदता – आज़ादी, सहिष्णुता – सहनशीलता, कनकौआ – पतंग, अदब – इज्जत, पथिक – यात्री, मिडलची – आठवीं पास, जहीन – प्रतिभावान, महज़ – केवल, समकक्ष – बराबर, तुजुर्बा – अनुभव, मरज़ – बीमारी, बदहवास – बेहाल, मुहताज (मोहताज) – दूसरे पर आश्रित होना, कुटुंब – परिवार, इंतज़ाम – प्रबंध, बेराह – बुरा रास्ता, लघुता – छोटापन, जी – मन।