JAC Class 9 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया

JAC Class 9 Hindi किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
वह कौन-सी बात रही होगी जिसने लेखक को दिल्ली जाने के लिए बाध्य कर दिया ?
उत्तर :
लेखक को कटाक्ष भरे वाक्य कहे गए थे। इन वाक्यों ने उसे आहत कर उसके मन-मस्तिष्क को झिंझोड़ दिया था। उसने तय कर लिया था कि अब उसे जो भी काम करना है, करना शुरू कर देना चाहिए। लेखक की रुचि पेंटिंग में थी। उकील आर्ट स्कूल का नाम लेखक ने सुन रखा था जो दिल्ली में था। अपने प्रति कहे गए वाक्यों से आहत होकर तथा अपने सपने को पूरा करने के लिए ही लेखक दिल्ली जाने को बाध्य हुआ होगा।

प्रश्न 2.
लेखक को अंग्रेज़ी में कविता लिखने का अफसोस क्यों रहा होगा ?
उत्तर :
लेखक घर में उर्दू के वातावरण में पला था। उसकी भावनाओं की अभिव्यक्ति या तो उर्दू भाषा में होती थी या अंग्रेज़ी में। हिंदी में प्रतिष्ठित कवियों हरिवंशराय बच्चन, निराला और पंत से परिचय होने पर लेखक का रुझान हिंदी की तरफ बढ़ा। बच्चन से तो लेखक विशेष रूप से प्रभावित था। बच्चन हिंदी के विख्यात कवि थे। उनके नोट का जवाब लेखक ने अंग्रेज़ी में दिया था। बच्चन ने हिंदी साहित्य के प्रांगण में लेखक को स्थापित किया था। हिंदी के क्षेत्र में अपने उच्च स्थान को पाकर ही लेखक को अपने अंग्रेज़ी में कविता लिखने का अफसोस रहा होगा।

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प्रश्न 3.
अपनी कल्पना से लिखिए कि बच्चन ने लेखक के लिए ‘नोट’ में क्या लिखा होगा ?
उत्तर :
बच्चन लेखक से मिलना चाहते थे। परंतु लेखक उस समय स्टूडियो में नहीं थे इसलिए बच्चन ने लेखक के लिए एक ‘नोट’ छोड़ा था। उस समय के प्रतिष्ठित कवि द्वारा लेखक के लिए नोट छोड़ा जाना लेखक के लिए आनंददायक अनुभव रहा होगा। उसने लेखक के हृदय पर गहरी छाप छोड़ी थी। लेखक स्वयं को कृतज्ञ महसूस कर रहा था। इससे लगता है कि बच्चन ने लेखक के विषय में कुछ काव्य पंक्तियाँ लिखी होंगी तथा उनसे मिलने की इच्छा भी की होगी। यह भी हो सकता है कि बच्चन ने स्टूडियो में लेखक के चित्र और कविताएँ देखी हों और उनके प्रति ‘नोट’ में अपना दृष्टिकोण प्रकट किया हो।

प्रश्न 4.
लेखक ने बच्चन के व्यक्तित्व के किन-किन रूपों को उभारा है ?
उत्तर :
लेखक ने बच्चन के व्यक्तित्व के अग्रांकित रूपों को उभारा है-
1. सहायक – बच्चन सच्चे सहायक थे। लेखक को इलाहाबाद लाकर उसके एम० ए० के दोनों सालों का ज़िम्मा उन्होंने अपने ऊपर ले लिया था। हिंदी साहित्य के क्षेत्र में भी लेखक की रचनाओं, उसकी कविताओं के लिए बच्चन प्रेरक रहे। हिंदी साहित्य के प्रांगण में लेखक को स्थापित करने का श्रेय बच्चन को ही जाता है।
2. समय नियोजक – बच्चन समय का दृढ़ता से पालन करने वाले थे। अपने स्थान पर वे नियत समय पर ही पहुँचा करते थे
3. निश्छलता – निश्छलता बच्चन के व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण गुण था। उनके हृदय में किसी के प्रति छल-कपट नहीं था। वे एक ऐसे निश्छल कवि थे जिसके हृदय के आर-पार देखा जा सकता था।
4. कोमल हृदय – बच्चन कोमल हृदय के व्यक्ति थे। वे दूसरों के दुख को अपना समझकर उसे दूर करने की चेष्टा करते थे।
5. दृढ़ संकल्प शक्ति – बच्चन की संकल्प शक्ति फौलाद के समान मज़बूत थी। पत्नी के देहांत के पश्चात् वे दुखी और उदास फिर भी उन्होंने साहित्य – साधना में लीन होकर अपने आदर्शों और संघर्षों को जीवित रखा।
6. मौन सजग प्रतिभा – बच्चन प्रतिभावान व्यक्ति थे। उनकी मौन सजग प्रतिभा तो दूसरों की प्रतिभा को नया आयाम देने की स्वाभाविक क्षमता रखती थी।

प्रश्न 5.
बच्चन के अतिरिक्त लेखक को अन्य किन लोगों का तथा किस प्रकार का सहयोग मिला ?
उत्तर
बच्चन के सहयोग ने तो लेखक को हिंदी साहित्य में श्रेष्ठ स्थान प्रदान किया था, परंतु बच्चन के साथ-साथ सुमित्रानंदन पंत ने भी लेखक को सहयोग दिया। पंत जी की ही कृपा से लेखक को इंडियन प्रेस में अनुवाद का काम मिला था, तभी उन्होंने हिंदी में गंभीरता से कविता रचना करने का निर्णय लिया था। पंत जी ने ‘निशा- निमंत्रण’ के कवि के प्रति लेखक की इस कविता में संशोधन करके लेखक को सहयोग दिया था। ‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित एक कविता पर लेखक को निराला की प्रशंसा भी मिली। प्रशंसा उत्साहवर्धन करती है और क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए सहयोग करती है दिल्ली में रह रहे। लेखक को उनके भाई तेज बहादुर ने भी उनका सहयोग किया।

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प्रश्न 6.
लेखक के हिंदी लेखन में कदम रखने का क्रमानुसार वर्णन कीजिए।
उत्तर :
लेखक घर में उर्दू के वातावरण में पला था। उसकी आंतरिक भावनाएँ कविता के रूप में उर्दू में ही उभरती थीं। अभिव्यक्ति के लिए वह अंग्रेज़ी भाषा का भी प्रयोग करता था। हिंदी से लेखक का संबंध नहीं था। बच्चन से परिचय होने के बाद लेखक हिंदी की ओर आकृष्ट हुआ। बच्चन लेखक को इलाहाबाद लाए जहाँ लेखक एम० ए० करने लगे। पंत जी की कृपा से उन्हें इंडियन प्रेस में अनुवाद का काम मिला। तभी लेखक ने हिंदी कविता को गंभीरता से लिखने का निर्णय किया। उनकी रचनाएँ ‘सरस्वती’ और ‘चाँद’ पत्रिकाओं में छपने लगी थीं।

लेखक की चेतना में पंत और निराला के विचार, उनके संस्कार, इलाहाबाद के हिंदी साहित्यिक वातावरण तथा मित्रों के प्रोत्साहन ने लेखक को हिंदी लेखन में आगे बढ़ाया। बच्चन का प्रभाव लेखक पर सबसे अधिक पड़ा। बच्चन के नवीन प्रयोगों को लेखक भी अपनी रचनाओं में अपनाता था। इसी प्रकार निरंतर अभ्यास से उसका हिंदी लेखन प्रसिद्धि पाने लगा। लेखन में पंत जी ने भी संशोधन कर सहयोग किया। लेखक स्वयं मानते हैं कि हिंदी के साहित्यिक प्रांगण में बच्चन ही उन्हें घसीट लाए थे। कविता के क्षेत्र से निकलकर लेखक ने निबंध और कहानी के क्षेत्र में भी लेखन कार्य किया।

प्रश्न 7.
लेखक ने अपने जीवन में किन कठिनाइयों को झेला है, उनके बारे में लिखिए।
उत्तर :
लेखक का जीवन संघर्षों और कठिनाइयों से परिपूर्ण रहा है। दिल्ली में रहकर अपने पेंटिंग की शिक्षा को पूरा करने के लिए लेखक को या तो अपने भाई से सहायता लेनी पड़ती थी या वह स्वयं साइनबोर्ड पेंट कर अपना गुजारा चलाता था। पत्नी का देहांत हो जाने के कारण उसका जीवन एकाकी था। एकाकीपन की पीड़ा हृदय को उद्विग्न और खिन्न बनाए रखती थी। इसी पीड़ा की अभिव्यक्ति वह कविताओं एवं चित्रों के माध्यम से करता था। कुछ समय बाद लेखक ने देहरादून जाकर अपने ससुराल की केमिस्ट्स की दुकान पर कंपाउडरी भी सीखी।

लेखक लोगों से कम ही मिलता-जुलता था इसलिए अपनी पीड़ा की अभिव्यक्ति वह किसी के समक्ष नहीं कर पाता था। केवल खिन्न और दुखी मन से परिस्थितियों के साथ तालमेल बैठाने की चेष्टा करता रहता। बच्चन के कहने पर लेखक ने यदि एम० ए० शुरू किया तो दिमाग में नौकरी न करने की बात बैठे होने के कारण उसने पढ़ाई पूरी नहीं की। इंडियन प्रेस में अनुवाद का काम मिला तो हिंदी भाषा में निपुणता की समस्या सामने आई।

भाषा और शिल्प पर लेखक को गंभीरता से ध्यान देना पड़ा। बच्चन के नवीन प्रयोगों को वह अपनी रचनाओं में प्रयोग करता तो उसे कभी सफलता मिलती तो कभी असफलता। ‘निशा-निमंत्रण’ के रूप-प्रकार के अनुसार लिखने में उसे सफलता नहीं मिली। पंत जी ने उसकी कविता का संशोधन किया। अभ्यास के द्वारा, संघर्षो के बीच तथा बच्चन के सहयोग के साथ ही लेखक हिंदी साहित्य में अपना स्थान बनाने में सफल हो सका।

JAC Class 9 Hindi किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक को हिंदी साहित्य में प्रतिष्ठित करने में बच्चन कैसे सहायक सिद्ध हुए ?
उत्तर :
लेखक के उद्विग्न हृदय की पीड़ा कविता के माध्यम से उर्दू और अंग्रेज़ी में ही अभिव्यक्त होती थी। बच्चन जैसे प्रतिष्ठित कवि से परिचय होने के पश्चात् लेखक हिंदी लेखन की ओर प्रवृत्त हुआ। बच्चन ने लेखक को इलाहाबाद लाकर उसके एम० ए० के दोनों वर्षों का जिम्मा उठा लिया था। विभिन्न पत्रिकाओं में लेखक की छपी रचनाओं की प्रशंसा कर बच्चन ने लेखक को हिंदी लेखन को प्रेरित किया। उसके ‘अभ्युदय’ में प्रकाशित सॉनेट को बच्चन ने विशेष तौर पर पसंद कर उसे खालिस सॉनेट कहा। हिंदी लेखन के क्षेत्र में बच्चन ही उसकी प्रेरणा बने।

बच्चन की कविताओं के उच्च घोषों का लेखक पर प्रभाव पड़ा और यही भाव उसके जीवन का लक्ष्य बन गया। बच्चन अपने नवीन प्रयोगों के विषय में लेखक को बताते थे। लेखक भी उन प्रकारों का प्रयोग अपनी कविताओं में करने का प्रयास करता था। लेखक ने स्वयं स्वीकार किया है-“निश्चय ही हिंदी के साहित्यिक प्रांगण में बच्चन मुझे घसीट लाए थे।” बच्चन की सहायता और निरंतर अभ्यास से लेखक हिंदी लेखन में निपुण होता गया। उसने कविता के साथ-साथ कहानी एवं निबंध के क्षेत्र में भी कार्य किया।

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प्रश्न 2.
बच्चन के जीवन की किन घटनाओं का उल्लेख लेखक ने इस पाठ में किया है?
उत्तर :
बच्चन और लेखक देहरादून में साथ-साथ थे। बड़ा भयंकर तूफान आया था। बड़े-बड़े पेड़ सड़कों पर बिछ गए थे। टीन की छतें उड़ गई थीं। बच्चन उस तूफान में एक गिरते हुए पेड़ के नीचे आने के कारण बाल-बाल बचे थे। लेखक ने उस दिन स्पष्ट देखा था कि उस तूफान से बढ़कर एक और तूफान था जो उनके मन और मस्तिष्क से गुज़र रहा था। वे पत्नी के वियोग को झेल रहे थे। उनकी पत्नी उनकी अर्धांगिनी ही नहीं उनके संघर्षों और आदर्शों की संगिनी भी थी। इस पीड़ा को झेलते हुए भी वे साहित्य साधना में लीन थे।

लेखक ने उनकी समय का पाबंद होने की घटना का उल्लेख भी किया है। इलाहाबाद में भारी बरसात हो रही थी। बच्चन को स्टेशन पहुँचना था। मेजबान के लाख रोकने पर भी बच्चन नहीं रुके। भारी बरसात में उन्हें कोई सवारी नहीं मिली। बच्चन ने बिस्तर काँधे पर रखा और स्टेशन की ओर चल पड़े। उन्हें जहाँ पहुँचना था, वहाँ सही समय पर पहुँचे

प्रश्न 3.
करोल बाग से कनाट प्लेस तक के रास्ते को लेखक किस प्रकार व्यतीत करता था ?
उत्तर :
करोल बाग से कनाट प्लेस के रास्ते में लेखक कभी तो अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति चित्रों के रूप में करता तो कभी कविताओं के माध्यम से। उस समय लेखक को इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि ये कविताएँ कहीं छपेंगी। केवल अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति और मन की मौज के लिए वह चित्र बनाता और कविताएँ लिखता था। लेखक हर चेहरे, हर चीज़ और हर दृश्य को गौर से देखता और उसमें अपनी ड्राइंग का तत्व खोज लेता। अपनी कल्पनाशीलता के माध्यम से लेखक किसी भी दृश्य या किसी भी चेहरे को अपनी ड्राइंग और कविता का आधार बना लेता।

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प्रश्न 4.
कल्पनाशील होते हुए भी लेखक उद्विग्न क्यों रहता था ?
उत्तर :
लेखक में अद्भुत कल्पनाशीलता थी। उसमें अपने आप को आस-पास के दृश्यों और चित्रों में खो देने की अद्भुत शक्ति थी। इन्हीं से वह अपनी कविताओं और चित्रों के लिए तत्व प्राप्त करता था। यह सब होते हुए भी लेखक उद्विग्न था क्योंकि उसकी पत्नी का देहांत टी० बी० के कारण हो चुका था। दिल्ली में वह एकदम अकेला। एकाकीपन की पीड़ा उसके हृदय में खिन्नता भरती जा रही थी। अपने इसी एकाकीपन को वह अपने चित्रों और कविताओं द्वारा भरने की चेष्टा करता। किसी से अधिक न मिलने-जुलने के कारण आंतरिक पीड़ा को किसी से बाँट भी न पाता था, इसी कारण वह उद्विग्न रहता था।

प्रश्न 5.
लेखक के दिल्ली आने का क्या कारण था ?
उत्तर :
लेखक को किसी ने कुछ व्यंग्य-भरे वाक्य कह दिए थे। उन वाक्यों से लेखक के मन को बहुत चोट पहुँची, इसलिए उसने जीवन में कुछ करने का निश्चय किया। वह जिस हालत में बैठा था, उसी हालत में दिल्ली के लिए चल दिया। उसकी जेब में पाँच-सात रुपए थे। उसका दिल्ली आने का कारण आहत मन और कुछ कर दिखाने की चाह थी।

प्रश्न 6.
उकील आर्ट स्कूल लेखक का दाखिला कैसे हुआ ?
उत्तर :
लेखक अपने जीवन में कुछ करना चाहता था। उसने पेंटिंग करने का निर्णय लिया। पेंटिंग की शिक्षा के लिए उसने उकील आर्ट में दाखिला लेने के लिए सोचा। वह उकील आर्ट स्कूल गया, वहाँ उसका इम्तिहान लिया गया। उसका शौक और हुनर देखकर, उसको बिना फीस के आर्ट स्कूल में दाखिला मिल गया।

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प्रश्न 7.
उस समय लेखक की आर्थिक स्थिति कैसी थी ?
उत्तर :
लेखक जब घर से चला था तब उसकी जेब में पाँच-सात रुपए थे। उकील आर्ट स्कूल में बिना फीस के दाखिला हो गया था। लेखक अपना गुजारा चलाने के लिए साइन बोर्ड पेंट करता था या फिर कभी – कभी लेखक के भाई तेज़ बहादुर से मदद लेता था। इस तरह स्पष्ट होता है कि लेखक की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी।

प्रश्न 8.
उन दिनों लेखक का मन उद्विग्न क्यों रहता था ?
उत्तर :
उन दिनों लेखक का मन उदास रहता था। यद्यपि वह अपने चित्रों और कविताओं के माध्यम से अपने विचारों को प्रकट करता था परंतु मन का एकाकीपन समाप्त नहीं होता था। इसका कारण यह था कि लेखक ने अपनी पत्नी को खो दिया था अर्थात् उनकी पत्नी की टी० बी० से मृत्यु हो गई थी, इसलिए उसे अकेलापन अधिक कचोटता था। वह अपने कमरे में आकर अपने अकेलेपन से लड़ता और उद्विग्न होता था।

प्रश्न 9.
लेखक में क्या बुरी आदत थी ?
उत्तर :
लेखक में एक बहुत बुरी आदत थी कि वह पत्रों का जवाब नहीं देता था। यह नहीं था कि उसे पत्रों का जवाब सूझता नहीं था, परंतु उसे पत्र लिखने की आदत नहीं थी। वह सैकड़ों पत्रों के जवाब मन-ही-मन लिखकर हवा में साँस के साथ बिखेर देता था।

प्रश्न 10.
लेखक अपने जीवन के साथ कैसे ताल-मेल बैठाने का प्रयास कर रहा था ?
उत्तर :
लेखक अपने एकाकी जीवन के साथ तालमेल बैठाने का प्रयास कर रहा था। वह कुछ महीने दिल्ली में रहने के बाद देहरादून आ गया था। देहरादून में अपनी ससुराल की केमिस्ट्स एवं ड्रगिस्ट्स की दुकान पर कंपाउंडरी सीखने लगा। धीरे-धीरे उसे टेढ़े-मेढ़े अक्षरों में लिखे नुस्खा को पढ़ने में महारत हासिल हो गई थी।

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प्रश्न 11.
लेखक स्वयं को एकाकी क्यों अनुभव करता था ?
उत्तर :
लेखक को कम बोलने की आदत थी। वह अपनी आंतरिक भावनाओं को दूसरों के सामने व्यक्त करने से कतराते था। दूसरे लोगों को उसके एकाकीपन और आंतरिक भावनाओं से कोई मतलब नहीं था। वे बड़ों के सामने जुबान नहीं खोलते थे, इसीलिए वे अपनी आंतरिक पीड़ा से जूझते हुए अकेले रहते थे। अपनी इसी आदत के कारण वे एकाकी अनुभव करते थे।

प्रश्न 12.
लेखक के अनुसार बच्चन जी के मन और मस्तिष्क में कैसा तूफान चल रहा था ?
उत्तर :
सन् 1930 की बात है। उन दिनों बच्चन जी के मन और मस्तिष्क में अलग ही तरह का तूफ़ान चल रहा था। इसका कारण यह था कि उनके जीवन में सहयोग देने वाली अर्द्धांगिनी उन्हें मँझधार में छोड़कर चली गई थी। उनकी पत्नी उनके भावुक आदर्शों, उत्साहों और संघर्ष की युवासंगिनी थी। वह उनके सपनों को साकार करने वाली साथिन थीं, जो उनको छोड़कर जा चुकी थीं। उस समय बच्चन जी अंदर से टूट गए थे परंतु वे ऊपर से कठोर तथा उच्च मनोबल के बने हुए थे।

प्रश्न 13.
बच्चन जी ने लेखक से ऐसा क्यों कहा कि तुम यहाँ रहोगे तो मर जाओगे ?
उत्तर :
एक बार बच्चन जी देहरादून आए थे। उस समय लेखक अपने ससुराल की केमिस्ट की दुकान पर नौकरी कर रहा था। वे उसकी कला को परख कर वहाँ से चलने के लिए बोल पड़े। उन्हें लगा, यदि ये यहाँ रहेगा तो टी०बी० की दवाई बाँटते- बाँटते वह एक दिन इसी तरह मर जाएगा।

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प्रश्न 14.
लेखक लेखन कला में किससे प्रभावित थे ? क्यों ?
उत्तर :
लेखक लेखन कला में बच्चन जी से बहुत प्रभावित थे। वे लेखन कला में नए-नए प्रयोग करते थे। लेखक उनके नवीन प्रयोगों से प्रभावित होकर स्वयं की कविता में उनका प्रयोग करने लगे थे। परंतु उन्हें उस प्रकार की लेखन कला में कठिनाई आती थी। उन्होंने निरंतर प्रयास से उसी प्रकार के प्रयोग कर कई रचनाएँ लिखीं। उन्हें साहित्य क्षेत्र में स्थापित करने और लाने का श्रेय बच्चन जी को जाता है, इसीलिए लेखक बच्चन जी से बहुत प्रभावित था।

किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया Summary in Hindi

पाठ का सार :

प्रस्तुत पाठ में लेखक शमशेर बहादुर सिंह ने अपने हिंदी के क्षेत्र में आने और हिंदी में लेखन यात्रा का विवरण दिया है। लेखक घर में उर्दू के ही वातावरण में पला-बढ़ा था। बी०ए० में भी उसने उर्दू ही एक विषय लिया था। हिंदी से उसका संबंध नहीं था। उसकी भावनाएँ कविता और गज़ल बनकर उर्दू में निरुपित होतीं। अपने आंतरिक भावों को लेखक कभी-कभी अंग्रेजी भाषा में अभिव्यक्त करता था। हिंदी के क्षेत्र में आने के बाद लेखक का हिंदी से इतनी आत्मीयता का संबंध बन गया कि उसे अपने अंग्रेजी में लेखक का अफसोस होने लगा। इस पाठ में लेखक ने अपनी हिंदी तक पहुँचने की यात्रा का वर्णन करने के साथ-साथ हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवि हरिवंश राय बच्चन के सहयोग और उनके व्यक्तित्व का चित्रांकन भी किया है।

लेखक की रुचि अपनी भावनाओं को शब्दों और चित्रों के माध्यम से अभिव्यक्त करने की थी। उसे पेंटिंग का बहुत शौक था। लोगों द्वारा कहे गए वाक्य से आहत होकर लेखक ने दिल्ली आकर उकील आर्ट स्कूल में प्रवेश लेकर पेंटिंग में महारत हासिल करने का निर्णय किया। लेखक सुबह जब अपनी कक्षा तक पहुँचने का मार्ग तय करता तो अपने शौक के अनुसार मार्ग में उसकी दृष्टि आस- पास के लोगों के चेहरों और दृश्यों में अपनी ड्राइंग के लिए तत्व खोजने लगती। यह तत्व उसकी कविताओं और उसके चित्रों का आधार बनते। दिल्ली में रह रहे लेखक को उनके भाई तेज बहादुर द्वारा कभी-कभी सहायता मिल जाती और कभी वे साइनबोर्ड पेंट कर अपना गुजारा चला लेते।

लेखक का हृदय पत्नी के देहांत के बाद से ही उदास और खिन्न रहने लगा था। लेखक अपनी भावनाओं को लिखकर या कागज़ पर उकेर कर अपने एकाकीपन को भरने का प्रयास करता। एक बार बच्चन जी लेखक से मिल नहीं पाए लेकिन उन्होंने लेखक के लिए एक नोट छोड़ दिया जिसे पाकर लेखक ने अपने आप को कृतज्ञ अनुभव किया। अपनी कृतज्ञता की अभिव्यक्ति स्वरूप लेखक ने एक कविता लिखी। वह कविता अंग्रेजी में थी जिसका हिंदी क्षेत्र में आने पर लेखक को अफसोस हुआ। लेखक ने बच्चन को वह कविता भेजी।

लेखक का जीवन एकाकी था। खिन्न और उदास होते हुए भी लेखक अपनी परिस्थितियों से तालमेल बैठाने की कोशिश कर रहा था। एक बार बच्चन लेखक के भाई के मित्र ब्रजमोहन गुप्त के साथ लेखक से मिलने आए। लेखक उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए। बच्चन उस समय पत्नी वियोग की पीड़ा झेल रहे थे। वे निश्छल कवि थे जिसके मन में कोई छल-कपट नहीं था। बात और वाणी के धनी थे। हृदय मक्खन-सा कोमल था तो संकल्प फौलाद से मजबूत। समय का कठोरता से पालन करना बच्चन की आदत थी। वे वक्त पर अपने स्थान पर पहुँचते थे।

बच्चन जी ने ही लेखक को इलाहाबाद चलकर एम० ए० करने के लिए प्रेरित किया। लेखक ने एम० ए० के दोनों सालों का जिम्मा भी बच्चन ने अपने ऊपर ले लिया था। उनकी यही इच्छा थी कि लेखक पढ़-लिखकर अपने पैर जमाकर एक अच्छा आदमी बन जाए। परंतु लेखक ने अपने मन में नौकरी न करने की बात ठान रखी थी। पंत जी की कृपा से लेखक को इंडियन प्रेस में अनुवाद का काम मिला। तब लेखक ने हिंदी कविता को गंभीरता से लिखने का निर्णय लिया। लेखक की ‘सरस्वती’ और ‘चाँद’ में रचनाएँ छपीं। बच्चन ने ‘अभ्युदय’ में प्रकाशित उनके सॉनेट को पसंद किया।

निराला और पंत के विचार, उनसे प्राप्त संस्कार, इलाहाबाद का हिंदी साहित्यिक वातावरण, मित्रों का प्रोत्साहन आदि लेखक के हिंदी के प्रति खिंचाव के लिए कारक सिद्ध हुए। बच्चन के प्रभाव और उनकी प्रेरणा से लेखक ने बहुत कुछ सीखा। बच्चन ने कविता के क्षेत्र में नवीन प्रयोग किए। लेखक ने भी उसी प्रकार का प्रयोग कर अपनी रचनाएँ लिखीं। लेखक अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सका जिसका बच्चन जी को क्षोभ रहा। लेखक का हिंदी कविता में अभ्यास सफल हुआ। ‘सरस्वती’ में छपी उनकी कविता की निराला ने प्रशंसा की।

लेखक ने निबंध और कहानी के क्षेत्र में भी कार्य किया। लेखक अपने आप को हिंदी के साहित्यिक प्रांगण में लाने का श्रेय बच्चन जी को ही देता है। बच्चन जी वह मौन सजग प्रतिभा थी जिसने लेखक की प्रतिभा को स्वाभाविक रूप से जीवन दिया था। लेखक बच्चन के व्यक्तित्व को उनकी श्रेष्ठ कविता से बड़ा आँकता है। उन्हीं के कारण ही लेखक शमशेर सिंह बहादुर हिंदी साहित्य में श्रेष्ठ लेखन कर सके। लेखक की दृष्टि में उसका हिंदी तक पहुँचने का यह अनुभव नया या अनोखा नहीं है परंतु बच्चन जैसा व्यक्तित्व अवश्य दुष्प्राप्य है –

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कठिन शब्दों के अर्थ :

  • जुमला – वाक्य
  • फौरन – तत्काल
  • इम्तिहान – परीक्षा
  • लबे-सड़क – सड़क के किनारे
  • चुनाँचे – इसलिए
  • शेर – गाल के दो चरण
  • आकर्षण – खिंचाव
  • उद्विग्न – बेचैन
  • संलग्न – लीन
  • उपलब्धि – सफलता
  • महारत – निपुणता
  • अजूबा-इबारत – वाक्य की बनावट
  • अदब – सम्मान
  • सामंजस्य – तालमेल
  • प्रबल – शक्तिशाली
  • मेजबान – आतिथ्य करने वाला
  • बराय नाम – नाम के लिए
  • न्नेह – प्यार
  • प्लान – योजना
  • संकीर्ण – संकुचित
  • द्योतक – परिचायक
  • विन्यास – व्यवस्थित करना
  • क्षोभ – दुख
  • आकस्मिक – अचानक
  • व्यवधान – रुकावट, बाधा
  • दुष्प्राप्य – जिसका मिलना कठिन हो
  • तय – निश्चित
  • मुख्तसर – संक्षिप्त
  • बिला फीस – बिना फीस के
  • वहमो गुमान – ख्वाबो ख्याल, अंदेशा
  • गाल – फारसी और उर्दू में मुक्तक काव्य का एक प्रकार
  • विशिष्ट – अनूठा
  • जिक्र – चर्चा
  • देहांत – निधन
  • वसीला – सहारा
  • सॉनेट – यूरोपीय कविता का एक लोकप्रिय छंद जिसका प्रयोग
  • हिंदी कवियों ने भी किया है
  • गोया – मानो
  • एकांत – सुनसान
  • एकांतिकता – एकाकीपन
  • इत्तिफ़ाक – संयोग
  • झंझावात – तूफान
  • इसरार – आग्रह
  • बेफिक्र – चिंतामुक्त
  • अरसे तक – लंबे समय तक
  • खालिस – शुद्ध
  • उच्च-घोष – ऊँचे स्वर
  • स्टैंजा – गीत का चरण
  • आकृष्ट – आकर्षित
  • निरर्थक – व्यर्थ, अर्थहीन
  • सजग – जागरूक
  • मर्यांदा – सीमा

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

JAC Class 9 Hindi रहीम के दोहे Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) प्रेम का धागा टूटने पर पहले की भाँति क्यों नहीं हो पाता ?
(ख) हमें अपना दुख दूसरों पर क्यों नहीं प्रकट करना चाहिए? अपनी मन की व्यथा दूसरों से कहने पर उनका व्यवहार कैसा हो जाता है ?
(ग) रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जल को धन्य क्यों कहा है?
(घ) एक को साधने से सब कैसे सध जाता है?
(ङ) जलहीन कमल की रक्षा सूर्य भी क्यों नहीं कर पाता ?
(च) ‘नट’ किस कला में सिद्ध होने के कारण ऊपर चढ़ जाता है ?
(छ) मोती, मानुष, चून’ के संदर्भ में पानी के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) जिस प्रकार टूटे हुए सामान्य धागे को जोड़ने पर उसमें गाँठ पड़ जाती है, उसी प्रकार प्रेम के टूटे हुए धागे को जोड़ने पर वह पहले के समान नहीं रह पाता। उसमें अविश्वास की गाँठ पड़ जाती है।
(ख) हमें अपना दुख दूसरों पर इसलिए प्रकट नहीं करना चाहिए, क्योंकि वे हमारा दुख बाँट नहीं सकते। अपनी व्यथा कहने से वे हमारा मजाक उड़ाने लगते हैं।
(ग) सागर का जल खारा होता है, जिससे किसी की प्यास नहीं बुझती; जबकि पंक जल मीठा होने के कारण लघु जीवों की प्यास बुझाकर उन्हें तृप्त करता है। उसकी इसी उपयोगिता के कारण कवि ने पंक जल को धन्य कहा है।
(घ) एक पर अटूट विश्वास करके उसकी सेवा करने से सब कार्य सफल हो जाते हैं तथा मनुष्य को इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता।
(ङ) कमल जल में ही खिलता है; उसके अभाव में कमल का कोई अस्तित्व नहीं होता। इसलिए जलहीन कमल की रक्षा सूर्य भी नहीं कर सकता।
(च) नट कुंडली विद्या में सिद्ध होने के कारण ऊपर चढ़ जाता है।
(छ) जिस मोती का पानी अर्थात उसकी चमक समाप्त हो जाती है, उसका कोई मूल्य नहीं रह जाता। मनुष्य का पानी उतरने से आशय मनुष्य के मान-सम्मान के समाप्त होने से है। जाता है। चूना पानी के अभाव में घुलता नहीं है और सूखा आटा पानी के बिना पेट भरने के काम नहीं आता।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

प्रश्न 2.
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।
(ख) सुनि अठि हैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय।
(ग) रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय।
(घ) दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
(ङ) नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।
(च) जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।
(छ) पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष चून।
उत्तर :
(क) यदि प्रेम संबंधों में एक बार भी टूटन या दरार आ जाती है, तो वे संबंध पुनः पहले की तरह सहज नहीं हो पाते। उनमें कहीं-न-कहीं अविश्वास – रूपी गाँठ पड़ जाती है।
(ख) मानव को अपने जीवन के दुख सबके सामने प्रकट नहीं करने चाहिए, बल्कि उन्हें अपने हृदय में छिपाकर रखने चाहिए। लोग उन्हें जान कर केवल मज़ाक उड़ाते हैं; कोई भी उन दुखों को बाँटता नहीं है।
(ग) अनेक देवी-देवताओं की भक्ति करने के स्थान पर एक ही इष्टदेव के प्रति आस्था रखना अधिक अच्छा होता है। जिस प्रकार जड़ के सींचने से पेड़ से फल की प्राप्ति होती है, उसी प्रकार अपने एक इष्ट के प्रति ध्यान केंद्रित करने से ही फल की प्राप्ति होती है।
(घ) दोहा – छंद आकार में छोटा और स्वरूप में सरल होता है, पर थोड़े से अक्षरों से ही दीर्घ भावों को प्रकट करने की क्षमता रखता है।
(ङ) हिरण संगीत पर मुग्ध होकर अपना जीवन तक त्याग देते हैं। वे भागने की क्षमता रखते हुए भी भागते नहीं और संगीत के पुरस्कार स्वरूप शिकार बन जाते हैं। इसी प्रकार मनुष्य किसी के गुणों पर रीझकर पुरस्कारस्वरूप धन देते हैं।
(च) जहाँ छोटी चीज़ का उपयोग होता है। वहाँ बड़ी वस्तु किसी काम की नहीं होती और जहाँ बड़ी चीज़ प्रयुक्त होती है, वहाँ छोटी वस्तु बेकार है। सुई जो काम करती है, वह काम तलवार नहीं कर सकती और जिस काम के लिए तलवार है, वह काम सूई नहीं कर सकती। हर चीज़ की अपनी ही उपयोगिता है।
(छ) मोती में यदि चमक न रहे तो वह व्यर्थ है; मनुष्य यदि आत्म-सम्मान के भावों से रहित हो जाए तो बेकार है। सूखा आटा जल के बिना किसी का पेट भरने में सहायक नहीं। मोती, मनुष्य और चून के लिए पानी का अपना विशेष महत्त्व है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित भाव को पाठ में किन पंक्तियों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है –
(क) जिस पर विपदा पड़ती है वही इस देश में आता है।
(ख) कोई लाख कोशिश करे पर बिगड़ी बात फिर बन नहीं सकती।
(ग) पानी के बिना सब सूना है अतः पानी अवश्य रखना चाहिए।
उत्तर :
(क) चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध- नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस ॥
(ख) बिगरी बात बन नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय ॥
(ग) रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून ॥

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

प्रश्न 4.
उदाहरण के आधार पर पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए –
उदाहरण: कोय – कोई, जे जो
उत्तर :

  • ज्यों – जैसे
  • नहिं – नहीं
  • धनि – धन्य
  • जिय – जीव
  • होय – होना
  • तरवारि – तलवार
  • मूलहिं – मूल को
  • पिआसो – प्यासा
  • आवे – आना
  • ऊबरै – उबरना
  • बिथा – व्यथा
  • परिजाय – पड़ जाती है
  • कछु – कुछ
  • कोय – कोई
  • आखर – अक्षर
  • थोरे – थोड़े
  • माखन – मक्खन
  • सींचिबो – सींचना
  • पिअत – पीना
  • बिगरी – बिगड़ी
  • सहाय – सहायक
  • बिनु – बिना
  • अठिलैहैं – इठलाना

योग्यता विस्तार –

प्रश्न 1.
‘सुई की जगह तलवार काम नहीं आती’ तथा ‘बिन पानी सब सून’ इन विषयों पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

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प्रश्न 2.
‘चित्रकूट’ किस राज्य में स्थित है ? जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
‘चित्रकूट’ उत्तर प्रदेश में स्थित है।

परियोजना कार्य –

प्रश्न 1.
नीति संबंधी अन्य कवियों के दोहे / कविता एकत्र कीजिए और उन दोहों / कविताओं को चार्ट पर लिखकर भित्ति पत्रिका पर लगाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi रहीम के दोहे Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
रहीम की भाषा पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
रहीम ने अपने काव्य में प्रचलित ब्रज और अवधी भाषा का अधिक प्रयोग किया था। वे तुर्की, अरबी और फ़ारसी के परम विद्वान थे। इसलिए उनकी भाषा पर इन भाषाओं का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था। इन्होंने दोहे, सवैये, कवित्त और छप्पयों की रचना ब्रजभाषा में की थी। इनके सभी बरवै अवधी भाषा में हैं। इन्होंने खड़ी बोली की कविता भी इन्होंने की थी। ‘मद नाष्टक’ खड़ी बोली में है। कहीं- कहीं इन्होंने एक ही रचना में आठ-आठ भाषाओं का प्रयोग भी किया है। इनकी कविता में माधुर्य और प्रसाद गुण की अधिकता है। इनकी भाषा भावों का अनुसरण करने वाली है, जिसमें सभी गुणों का वहन करने की क्षमता है।

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प्रश्न 2.
‘गाँठ पड़ना’ से तात्पर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
रहीम के दोहे में ‘ गाँठ पड़ना’ लाक्षणिक प्रयोग है। इसका तात्पर्य है कि जिस प्रकार प्रयत्न करके जोड़ने के बाद भी धागा पहले जैसा एक सार नहीं होता, उसी प्रकार एक बार झगड़ा हो जाने के बाद मन में झगड़े की खटास कभी नहीं मिट पाती; फिर चाहे विवाद को मिटाने का लाख प्रयत्न भी कर लिया जाए। दोनों पक्षों के हृदय में अविश्वास रूपी गाँठ का भाव अवश्य विद्यमान रहता है।

प्रश्न 3.
‘चटकाय’ में निहित प्रतीकात्मकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘चटकाय’ शब्द प्रयोजनमूलक शब्द है, जो किसी विशेष प्रयोजन को प्रकट करता है। यह ‘झटके से तोड़ना और बिना अधिक सोच-समझ कर तोड़ना’ के भाव को प्रकट करता है। जब कोई व्यक्ति बिना किसी कारण के दूसरे व्यक्ति के साथ लड़ता – झगड़ता है और आपसी संबंधों को एकदम से समाप्त कर देता है, तब वह अधिक सोचता – विचारता नहीं है।

प्रश्न 4.
लोग दूसरों के दुखों को क्यों नहीं बाँटना चाहते ?
उत्तर :
इस संसार में सभी व्यक्ति दुखी हैं। सबके पास अपने-अपने दुख हैं। उन्हें अपने दुख ही बहुत बड़े लगते हैं। कोई भी व्यक्ति किसी दुख का मूल कारण नहीं समझना चाहता और न ही उसके दुख को दूर करने की सोचता है। जब तक किसी भी व्यक्ति को दूसरे का सुख-दुख अपना नहीं लगता, तब तक कोई उन्हें बाँटने को तैयार नहीं होता।

प्रश्न 5.
रहीम ने पेड़ के दृष्टांत से क्या स्पष्ट किया है ?
उत्तर :
रहीम ने पेड़ के दृष्टांत से यह स्पष्ट किया है कि जैसे पेड़ की जड़ में पानी डालने से फल-फूल प्राप्त होते हैं; उसी प्रकार किसी एक इष्टदेव के प्रति भक्ति भाव से सेवा करने से भक्त को सब प्रकार के फलों की प्राप्ति हो जाती है।

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प्रश्न 6.
कवि ने ‘नाद रीझि तन देत मृग’ के माध्यम से किस काव्य इस रूढ़ि के बारे में बताया है ?
उत्तर :
कवि ने ‘नाद रीझि तन देत मृग’ के माध्यम से साहित्य में प्रचलित काव्य रूढ़ि को प्रकट किया है कि हिरण संगीत की मधुर ध्वनि पर मुग्ध हो जाते हैं और उस समय इतने तल्लीन हो जाते हैं कि शिकारी के सामने होने पर भी भागते नहीं हैं। शिकारी उनकी इस कमज़ोरी को जानते हैं और शिकार करते समय इस विधि को अपनाते हैं। हिरण अपनी इस कमज़ोरी के कारण अपने प्राण खो देते हैं

प्रश्न 7.
कवि दोहे में प्रयुक्त ‘लघु’ शब्द से क्या भाव प्रकट करना चाहता है ?
उत्तर :
‘लघु’ का शाब्दिक अर्थ है – ‘छोटा’। कोई भी व्यक्ति आयु, जाति, पद, शक्ति, साहस, धन, बुद्धि आदि किसी भी प्रकार से दूसरों की तुलना में छोटा हो सकता है। इसके माध्यम से कवि यह प्रकट करना चाहता है कि कभी भी किसी को छोटा मानकर उसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। इस संसार में सभी अपना-अपना महत्व रखते हैं और सभी की अपनी-अपनी उपयोगिता है। कई बार ऐसा होता है कि जो काम बड़े-बड़े लोग नहीं कर पाते, उस काम को छोटे समझे जाने वाले लोग सरलता से कर देते हैं।

प्रश्न 8.
‘जलज’ शब्द के माध्यम से कवि मनुष्य को क्या समझाना चाहता है ?
उत्तर :
‘जलज’ शब्द से अभिप्राय है- ‘जल से उत्पन्न होने वाला अर्थात कमल’। कमल का फूल सूर्य की उपस्थिति में जल में उगता है; लेकिन जब तालाब का जल सूख जाता है, उस समय सूर्य की किरणों से कमल को सूखने से कोई नहीं बचा सकता। कवि मनुष्य से कहना चाहता है कि मुसीबत के समय अपनी संपत्ति ही काम आती है, कोई किसी का सहायक नहीं बनता। कवि के अनुसार परिस्थितियों के अनुकूल होने या न होने से अधिक साधन के न होने का अधिक प्रभाव पड़ता है। संचित धन की कमी अनुकूल परिस्थितियों को भी प्रतिकूल बना देती है।

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प्रश्न 9.
मोती का मूल्य कब तक होता है और कवि इसके माध्यम से क्या समझाना चाहता है ?
उत्तर :
मोती का मूल्य तब तक होता है, जब तक उस पर चमक होती है। वास्तव में मोती की गुणवत्ता उसके बाहरी भाग पर विद्यमान चमक है। जब चमक समाप्त हो जाती है, तो वह मूल्यहीन हो जाता है। कवि मोती के माध्यम से मनुष्य को यह शिक्षा देना चाहता है कि उसे सदा अपने सम्मान की रक्षा करनी चाहिए। सम्मान के बिना मनुष्य का जीवन महत्वहीन हो जाता है।

प्रश्न 10.
रहीम के दोहों की प्रसिद्धि का क्या कारण है ?
उत्तर :
रहीम के दोहे नीतिगत ज्ञान तथा मानव कल्याण की भावना से ओत-प्रोत होने के कारण अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। रहीम ने अपने दोहों के माध्यम से लोगों की सुप्त चेतना को जगाना चाहा है। उन्होंने लोगों में नई चेतना तथा जागृति लाने का भरसक प्रयास किया है। रहीम के दोहों में निहित संदेश लोगों के मन को झकझोर कर रख देता है।

प्रश्न 11.
रहीम ने मानव को अपना दुख मन में ही छिपाकर रखने के लिए क्यों कहा है ?
उत्तर :
रहीम ने मानव को समझाते हुए कहा है कि मनुष्य को अपने मन की पीड़ा तथा दर्द को सदैव अपने मन में ही छिपाकर रखना चाहिए। उसे यह पीड़ा जग-जाहिर नहीं करनी चाहिए। संसार में लोग एक-दूसरे की पीड़ा देखकर उसकी सहायता करने के स्थान पर उसका मज़ाक ही उड़ाते हैं।

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प्रश्न 12.
कवि ने किसी एक देव को इष्टदेव मानने के लिए क्यों कहा है ?
उत्तर :
कवि ने मानव को अनेक देवी-देवताओं की पूजा-आराधना करने की बजाय एक देव की पूजा करने तथा उसे इष्टदेव मानकर सेवा करने की सलाह दी है। ऐसा करने से मानव मन अलग-अलग दिशाओं की ओर नहीं दौड़ता। वह शांत मन होकर एक ईश्वर की पूजा करता है, तो उसके सभी कार्य सफल होते हैं।

प्रश्न 13.
कवि रहीम ने अपने दोहों में सुख-दुख के विषय में क्या कहा है ?
उत्तर :
कवि रहीम ने अपने दोहों में सुख-दुख के विषय में कहा है कि सुख-दुख सभी के जीवन के अंग हैं। ये सभी के जीवन में आते-जाते हैं। समय परिवर्तनशील है। जीवन में अनेक बार ऐसा समय आता है, जब मानव को ऐसे स्थानों पर आना-जाना पड़ता है जो उसके लिए अनुकूल नहीं होते। सुख-दुख समयानुसार व्यक्ति की परिस्थितियों को बदल देते हैं।

प्रश्न 14.
रहीम के अनुसार एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की शरण में कब जाता है ?
उत्तर :
रहीम के अनुसार एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की शरण में अपने कष्टों को दूर करने के लिए जाता है। विपरीत परिस्थितियों में उसे ऐसी वस्तुओं एवं स्थानों को भी अपनाना पड़ता है, जिसके लिए वह स्वयं को अनुकूल नहीं मानता। अतीत में भगवान राम को भी अयोध्या छोड़कर जंगलों के कष्टों एवं दुखों को भोगना पड़ा था।

प्रश्न 15.
रहीम के दोहे गागर में सागर भरने का साहस रखते हैं, कैसे ?
उत्तर :
रहीम एक नीति परख कवि हैं। इनके दोहे सीधे दिल और दिमाग पर प्रहार करते हैं। इनके दोहों में शब्द तो कम होते हैं, किंतु उन शब्दों की चोट और घाव अत्यंत गहरे होते हैं। इनके दोहों में निहित संदेश अत्यंत गंभीर और मानव कल्याण से ओत-प्रोत होते हैं। कवि ने छोटे-छोटे छंदों के माध्यम से मानव-जीवन की गंभीर समस्याओं को उठाने तथा उनके निवारण का तरीका बताया है। उनके दोहे कम शब्दों में भी मनुष्य को ज्ञान का अथाह सागर प्रदान करते हैं। इसलिए रहीम के दोहों को गागर में सागर की उपमा दी गई है।

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प्रश्न 16.
कवि ने अपने दोहों के माध्यम से लोगों को सोच-समझकर बोलने के लिए क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि ने अपने दोहों में लोगों को सोच-समझकर बोलने की शिक्षा देते हुए कहा है कि हमें बहुत विचार-विमर्श करने के बाद ही कोई बात मुँह से बाहर निकालनी चाहिए। यदि एक बार मुख से निकली हुई बात से कोई हानि हो जाती है, तो अथाह प्रयास करने पर भी वह बात ठीक नहीं हो पाती। बिना सोचे-समझे कहे गए शब्द ऐसे तीर की भाँति होते हैं, जिन्हें लौटाया नहीं जा सकता। इसलिए हमें सोच-समझकर बोलना चाहिए।

रहीम के दोहे Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन-परिचय – अब्दुर्रहीम खानखाना अर्थात रहीम का जन्म सन् 1556 ई० में लाहौर में हुआ था। बचपन से ही इनका मुगल दरबार से संबंध रहा। इसी कारण रहीम विद्या – व्यसनी हो गए। इन्होंने संस्कृत, अरबी, फ़ारसी आदि भाषाओं में अच्छी योग्यता प्राप्त की थी। युवावस्था में अकबर के दरबार में सेनापति के पद को सुशोभित करते हुए भी रहीम कविता करते थे। रहीम दानी स्वभाव के व्यक्ति थे, अतः याचक को यथेच्छ दान देकर संतुष्ट करना अपना कर्तव्य समझते थे। ये तुलसीदास के परम मित्र थे। जहाँगीर के समय में इनकी दशा बिगड़ गई थी। इनकी संपत्ति को राज्याधिकार में लेकर इन्हें पदच्युत कर दिया गया था। सन् 1626 ई० में इनकी मृत्यु हुई थी।

रचनाएँ – रहीम दोहावली, बरवै, नायिका भेद, श्रृंगार सोरठा, रहीम सतसई, श्रृंगार सतसई, रहीम रत्नावली, भाषिक वर्ण भेद, सदनाष्टक तथा रास पंचाध्यायी इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। इन्हें रहीम ग्रंथावली में संकलित किया गया है।

काव्य की विशेषताएँ – रहीम की कविता का विषय श्रृंगार, नीति और प्रेम है। इनका जीवन – अनुभव बहुत अधिक था। इस कारण इन्होंने जो कुछ लिखा, वह निजी अनुभव के आधार पर लिखा। इसलिए उसमें पाठक को प्रभावित करने की अपूर्व शक्ति है। इन्होंने केवल कल्पना पर उड़ने का प्रयत्न कहीं नहीं किया। जहाँ कहीं कल्पना को स्वीकार किया, वहाँ यथार्थ को भी साथ रखा गया है। इनकी अनेक सूक्तियाँ और नीति-संबंधी दोहे आज भी मानव का पथ-प्रदर्शन करते हैं। आपके कृष्ण-संबंधी दोहे भी सुंदर हैं और रहीम के हृदय की विशालता के परिचायक हैं।

रहीम का अवधी और ब्रजभाषा दोनों पर ही समान अधिकार था। कविता के लिए इन्होंने सामान्य ब्रजभाषा का ही प्रयोग किया। दोहों के अतिरिक्त इन्होंने कवित्त, सवैये और सोरठे भी लिखे हैं। इनकी प्रसिद्धि अपनी दोहावली के आधार पर ही है। इन्होंने अपनी कविता में लोकोक्तियों और लोक – प्रचलित उदाहरणों के आधार पर विषय को सरल तथा सुगम बनाने का यत्न किया है। अपनी भावुकतापूर्ण और अनुभव पर आधारित उक्तियों के कारण हिंदी – साहित्य दोहे में रहीम का विशेष स्थान है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

दोहों का सार :

रहीम के नीति के दोहे अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। उन्होंने अनुभव के आधार पर जिन तथ्यों का संग्रह किया है, वे इन दोहों में प्रस्तुत किए गए हैं। उन्होंने मानव जीवन के लिए उपयोगी सभी बातों का बड़ा मार्मिक वर्णन किया है। वे नीति-सिद्ध कवि थे। उनके काव्य में भक्ति, नीति तथा वैराग्य की त्रिवेणी बह रही है। उनके सूक्तिपरक दोहे भी अत्यधिक प्रभावशाली बन गए हैं। रहीम ने अपने दोहों के माध्यम से उन सब बातों की निंदा की है, जो मानव की प्रतिष्ठा में बाधक होती हैं। उनके दोहे अपनी सरलता, मधुरता, उपदेशात्मकता, सहजता एवं कलात्मकता के कारण हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि बन गए हैं।

व्याख्या –

1. रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय ॥

शब्दार्थ : चटकाय – झटके से। परि – पड़ना।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि ने प्रेम-संबंधों को सदा बनाकर रखने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या : कवि रहीम कहते हैं कि हमें प्रेम-रूपी धागे को चटकाकर नहीं तोड़ना चाहिए, क्योंकि टूटे हुए धागे को फिर से जोड़ा नहीं जा सकता। यदि जोड़ते भी हैं, तो उसमें गाँठ पड़ जाती है। इसी प्रकार आपसी प्रेम-संबंध भी यदि टूट जाएँ, तो वे फिर जुड़ नहीं पाते। यदि जुड़ भी जाएँ, तो उनमें पहले जैसी मधुरता नहीं रहती।

2. रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय॥

शब्दार्थ : बिथा – व्यथा, दुख। गोय – छिपाकर। अठि हैं – मज़ाक उड़ाना।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि ने यह समझाया है कि कभी भी किसी को अपने मन का दुख नहीं बताना चाहिए।

व्याख्या : रहीम कहते हैं कि अपने मन का दुख-दर्द मन में ही छिपाकर रखना चाहिए, क्योंकि सब तुम्हारी बातें सुनकर तुम्हारा मज़ाक ही उड़ाएँगे; कोई तुम्हारा दुख नहीं बाँटेगा। भाव है कि अपने हृदय के भावों को जगजाहिर मत करो। कोई किसी के दुखों को बाँटता नहीं है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

3. एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय ॥

शब्दार्थ : मूलहिं – जड़ को। अघाय – संतुष्ट होना, तृप्त होना।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि किसी एक को अपना इष्टदेव मानने की प्रेरणा देता है।

व्याख्या : कवि कहता है कि किसी एक इष्टदेव की सेवा करने से सभी कार्य सफल हो जाते हैं परंतु कई लोगों की सेवा करने से सबकुछ नष्ट हो जाता है। रहीम कहते हैं कि वृक्ष की जड़ को सींचने से वृक्ष पर खूब फल उगते हैं, जिन्हें खाकर मनुष्य तृप्त हो जाता है। इसी प्रकार से एक इष्ट को साधने से सब कार्य सफल होते हैं।

4. चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध- नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस ॥

शब्दार्थ : अवध – अयोध्या। रमि – रहना, बसना। नरसे – राजा। बिपदा – मुसीबत।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि ने चित्रकूट की महिमा का वर्णन किया है।

व्याख्या : रहीम कहते हैं कि अयोध्या नरेश श्री रामचंद्र जी चित्रकूट में निवास कर रहे हैं। चित्रकूट ऐसा पवित्र स्थान है कि कष्ट आने पर सभी यहाँ चले आते हैं। जिस पर मुसीबत पड़ती है, वह अपने कष्टों को दूर करने के लिए इस क्षेत्र में चला आता है।

5. दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि जाहिं ॥

शब्दार्थ : दीरघ – दीर्घ, विशाल, गहरे। अरथ – अर्थ, भाव। आखर अक्षर। थोरे थोड़े, कम। नट – अभिनेता, बाजीगर। कुंडली – साँप के बैठने की गोलाकार मुद्रा।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। कवि ने इस छोटे-से छंद में छिपे अर्थ- गांभीर्य की ओर संकेत किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि दोहे जैसे छोटे-से छंद में अक्षर तो बहुत कम होते हैं, परंतु उसमें अर्थ बहुत अधिक होता है। जैसे बाजीगर कुंडली मारकर और अपने को समेटकर ऊँचे-से-ऊँचे स्थान पर कूदकर चढ़ जाता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

6. धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय ॥

शब्दार्थ : पंक – कीचड़। लघु – छोटे। जिय – जीत। अघाय – तृप्त हो जाना। उदधि – सागर। पिआसो – प्यासा।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे के माध्यम से कवि ने संदेश दिया है कि कई बार छोटे-से भी बड़े-बड़े काम बन जाते हैं, जबकि बड़ों से छोटा काम भी नहीं बनता।

व्याख्या : कवि कहता है कि कीचड़ से भरा वह जल भी प्रशंसा करने योग्य है, जिसे पीकर छोटे-छोटे जीव अपनी प्यास बुझाकर तृप्त हो जाते हैं। इसके विपरीत उस सागर की प्रशंसा कौन करेगा, जिसके पास जाकर भी लोग प्यासे रह जाते हैं; क्योंकि सागर का जल खारा होने के कारण पीने योग्य नहीं होता।

7. नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत ॥

शब्दार्थ : नाद – ध्वनि, संगीत। रीझि – प्रसन्न होकर, मोहित होकर। मृग – हिरन। नर – मनुष्य। हेत – उद्देश्य, कारण।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि ने किसी के कार्य से प्रसन्न होने पर उसे समुचित पुरस्कार देने का संदेश दिया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि कर्णप्रिय ध्वनि अथवा संगीत सुनकर मृग अपने प्राण तक न्योछावर कर देता है, लोग भी किसी के कार्य से प्रसन्न होकर उसे कुछ न कुछ देते हैं। रहीम उस व्यक्ति को पशु से भी अधिक निम्न श्रेणी का मानते हैं, जो प्रसन्न होने पर भी किसी को कुछ नहीं देता।

8. बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।

शब्दार्थ : बिगरी – बिगड़ी हुई। मथे – मथने से।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि ने सदा सोच-समझकर बोलने पर बल दिया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि मनुष्य को सोच-विचार कर ही कोई बात मुँह से निकालनी चाहिए। जैसे फटे हुए दूध को मथने से उसमें से मक्खन नहीं निकाला जा सकता, उसी तरह यदि एक बार कही हुई किसी बात से बिगाड़ हो जाता है, तो फिर चाहे कोई लाख प्रयत्न भी करे बिगड़ी हुई बात बन नहीं सकती।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

9. रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि ॥

शब्दार्थ : बड़ेन – बड़े, धनवान तथा प्रतिष्ठित। लघु – छोटे, निर्धन। तरवारि – तलवार।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में रहीम ने यह स्पष्ट किया है कि बड़ी वस्तुओं और बड़े प्राणियों के साथ-साथ छोटी वस्तुओं और छोटे प्राणियों का भी महत्व होता है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि बड़े लोगों का संपर्क पाकर छोटों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए; क्योंकि जहाँ छोटी-सी सुई काम करती है, वहाँ तलवार काम नहीं आ सकती। भाव है कि छोटे-बड़े सभी महत्वपूर्ण हैं और सभी की अपनी-अपनी उपयोगिता है, इसलिए किसी की भी अवहेलना नहीं करनी चाहिए।

10. रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय ॥

शब्दार्थ : बिपति – मुसीबत। जलज – कमल। रवि – सूर्य।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। इस दोहे में कवि ने यह संदेश दिया है कि कठिनाई में सदा अपनी संपत्ति ही काम आती है।

व्याख्या : कवि रहीम कहते हैं कि जैसे पानी के बिना कमल को सूर्य भी नहीं बचा सकता, उसी तरह अपनी संपत्ति के बिना मुसीबत में कोई भी सहायता नहीं करता, विपत्ति के समय व्यक्ति को अपने पास संचित धन ही सहायता देता है। कष्ट के समय कोई किसी की सहायता नहीं करता।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 10 रहीम के दोहे

11. रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून ॥

शब्दार्थ : पानी – (i) स्वाभिमान, इज्ज़त (ii) चमक (iii) जल। ऊबरे – महत्व पाना। मानुष – मनुष्य।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहे के रचयिता रहीम हैं। इसमें उन्होंने पानी के विभिन्न अर्थों के माध्यम से अपने काव्य में चमत्कार उत्पन्न किया है।

व्याख्या : रहीम का कथन है कि मनुष्य को अपने मान-सम्मान का सदैव ध्यान रखना चाहिए। मान-सम्मान के अभाव में मनुष्य उसी प्रकार महत्वहीन हो जाता है, जिस प्रकार चमक रहित मोती तथा बिना जल के आटे का महत्व नहीं होता।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 रैदास के पद

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 रैदास के पद Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 रैदास के पद

JAC Class 9 Hindi रैदास के पद Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) पहले पद में भगवान और भक्त की जिन-जिन चीज़ों से तुलना की गई है, उनका उल्लेख कीजिए।
(ख) पहले पद की प्रत्येक पंक्ति के अंत में तुकांत शब्दों के प्रयोग से नाद-सौंदर्य आ गया है, जैसे – पानी, समानी आदि। इस पद से अन्य तुकांत शब्द छाँटकर लिखिए।
(ग) पहले पद में कुछ शब्द अर्थ की दृष्टि से परस्पर संबद्ध हैं। ऐसे शब्दों को छाँटकर लिखिए। उदाहरण: दीपक → बाती।
(घ) दूसरे पद में कवि ने ‘गरीब निवाजु’ किसे कहा है ? स्पष्ट कीजिए।
(ङ) दूसरे पद की ‘जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
(च) रैदास’ ने अपने स्वामी को किन-किन नामों से पुकारा है ?
(छ) निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए – मोरा, चंद, खाती, जोति, बरै, राती, छत्रु, धेरै, छोति, तुहीं, गुसईआ।
उत्तर :
(क) भगवान की तुलना – चंदन, घने बादल, चंद्रमा, दीपक, मोती, सुहागा, स्वामी।
भक्त की तुलना – पानी, मोर, चकोर, बाती, धागा, सोना, दास।
(ख) तुकांत शब्द – मोरा – चकोरा, बाती – राती, धागा – सुहागा, दासा – रैदासा।
(ग) चंदन → पानी; घनबन → मोरा; चंद → चकोरा; मोती → धागा; सोना → सुहागा ; स्वामी → दास।
(घ) कवि ने ‘गरीब निवाजु’ अपने आराध्य परमात्मा को कहा है, क्योंकि वे सदा गरीबों तथा दीन-दुखियों पर दया करते हैं।
(ङ) इस पंक्ति के माध्यम से कवि यह स्पष्ट करता है कि जिन लोगों को संसार के लोग अछूत समझते हैं, ऐसे लोगों पर परमात्मा दया करके उनकी सदा सहायता करते हैं। परमात्मा कोई भेदभाव नहीं करते। वे सब पर समान रूप से दया करते हैं।
(च) कवि ने अपने स्वामी को गरीब निवाजु, स्वामी, गोसाई, गोबिंद, हरि कहकर पुकारा है।
(छ) मोरा = मोर। चंद = चंद्रमा, चाँद। बाती = बत्ती। जोति = ज्योत। बर = जले। राती = रात, रात्रि। छत्रु = छत्र। धर = धरना। छोति = छूत। तुहीं = तुम ही, आप ही। गुसईआ = गोसाई, स्वामी।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 रैदास के पद

प्रश्न 2.
नीचे लिखी पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) जाकी अँग- अँग बास समानी
(ख) जैसे चितवत चंद चकोरा
(ग) जाकी जोति बरै दिन राती
(घ) ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै
(ङ) नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै
उत्तर :
(क) भक्त स्वयं गुणों से रहित है। वह पानी के समान रंग-रहित और गंध-रहित है, लेकिन ईश्वररूपी चंदन का सान्निध्य पाकर वह धन्य हो जाता है। वह गुणों की प्राप्ति कर लेता है। ईश्वरीय भक्ति उसे पापों से मुक्त करके उसके जीवन को सार्थकता प्रदान करती है।
(ख) भक्त तो सदा भवसागर पार करवाने वाले परमात्मा के प्रति स्वयं को अर्पित कर देना चाहता है। वह हर पल उसी के रूप-दर्शन करने की इच्छा करता है। जिस प्रकार चकोर अपने प्रिय चंद्रमा को निहारना चाहता है, उसी प्रकार संत रैदास भी प्रभूरूपी चाँद को एकटक देखना चाहते हैं; वे अपने ध्यान को किसी दूसरी ओर नहीं लगाना चाहते।
(ग) कवि कहता है कि ईश्वर सृष्टि के कण-कण में समाया हुआ है। प्रत्येक प्राणी में उसी की ज्योति जगमगा रही है। उसी के कारण हम जीवित हैं। वही हमारे श्वासों को चला रहा है।
(घ) कवि बताना चाहता है कि जीवों पर जैसी कृपा ईश्वर करता है, वैसी कृपा कोई और नहीं कर सकता। वही दीन-दुखियों का रक्षक है। उसके बिना मानव का सहायक कोई और नहीं है।
(ङ) परमात्मा किसी से नहीं डरता। वह तो नीच कों भी उच्च बना देता है। वह अपने भक्तों पर दया करके उनका उद्धार कर देता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 रैदास के पद

प्रश्न 3.
रैदास के इन पदों का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
पहले पद ‘अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी’ में कवि अपने आराध्य को सदा स्मरण करता है, क्योंकि वह स्वयं को उनसे अलग नहीं मानता। उसके अनुसार वह पानी है, तो प्रभु चंदन हैं। इसी प्रकार से वह स्वयं को मोर, चकोर, बाती, धागा, सोना तथा सेवक कहता है और अपने प्रभु को घनश्याम, चाँद, दीपक, मोती, सुहागा और स्वामी मानता है।

दूसरे पद ‘ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै’ में कवि ने अपने आराध्य के दयालु रूप का वर्णन किया है जो ऊँच-नीच, सुवर्ण-अवर्ण, अमीर-गरीब आदि का भेदभाव नहीं जानता। वह किसी भी कुल-गोत्र में उत्पन्न अपने भक्त को सहज भाव से अपनाकर उसे दुनिया में सम्मान दिलाता है तथा उसे सांसारिक बंधनों से मुक्त कर अपने चरणों में स्थान देता है। ईश्वर द्वारा नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना, सैन जैसे निम्न जाति में उत्पन्न भक्तों को समाज में उच्च स्थान दिलाने तथा उनका उद्धार करने के उदाहरण देकर कवि ने अपने इस कथन को सिद्ध किया है।

योग्यता – विस्तार –

प्रश्न 1.
भक्त कवि कबीर, गुरु नानक, नामदेव और मीराबाई की रचनाओं का संकलन कीजिए।

प्रश्न 2.
पाठ में आए दोनों पदों को याद कीजिए और कक्षा में गाकर सुनाइए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi रैदास के पद समान Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
रैदास की भक्ति की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
रैदास की भक्ति भक्त के मन की पुकार है, जो परमात्मा को रिझाने और पाने के लिए व्याकुल हैं। वे संतों के समान दार्शनिक सिद्धांतों के चक्कर में नहीं पड़े। उन्होंने सीधी-सादी और व्यावहारिक भाषा में अपने भक्त हृदय को प्रकट किया। उनकी भक्ति सच्चे हृदय की आवाज़ को व्यक्त करती है। वे हृदय के सच्चे थे और तर्क-वितर्क से उपलब्ध होने वाले कोरे ज्ञान की अपेक्षा सत्य से पूर्ण अनुभूति में अधिक विश्वास रखते थे। उनका मानना था कि राम का परिचय पाने के बाद ही हम अपने मन की दुविधा को दूर कर सकते हैं।

जिस प्रकार ‘तूंबा’ जल के ऊपर ही रहता है, उसी प्रकार हमें भी संसार में वैसे ही विचरण करना चाहिए। भक्ति दिखावे का नाम नहीं है। जब तक मनुष्य पूर्ण वैराग्य की स्थिति प्राप्त नहीं करता, तब तक भक्ति के नाम पर की जाने वाली सब साधनाएँ केवल भ्रम और आडंबर है जिनसे कोई लाभ नहीं हो सकता। सोने की शुद्धि का परिचय उसे पीटे, काटे, तपाने या सुरक्षित रखने से नहीं होता बल्कि सुहागे के साथ संयोग से होता है। हमारे हृदय में निर्मलता तभी उत्पन्न होती है, जब परमात्मा से हमारी पहचान हो जाती है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 रैदास के पद

प्रश्न 2.
रैदास ने जिस ‘राम’ की भक्ति की थी, उसका परिचय दीजिए।
उत्तर :
कबीर के ‘निर्गुण राम’ के समान रैदास का ‘सत्य राम’ भी निर्गुण और निराकार है, जिसे वे ‘माधो’ कहकर पुकारते हैं। यह राम का वह रूप नहीं है, जिन्हें सामान्य लोग जानते हैं। वह सर्वव्यापक और निर्गुण है; वह निराकार है; सब उसमें व्याप्त है और वह सबमें व्याप्त है। राम सदा एक रस है। वह निर्गुण, निराकार, उदय-अस्त से रहित, सर्वत्र व्यापक, निश्चल, अजन्मा, अनंत, अनुपम, निर्भय, अगम, अगोचर, अक्षर, अतर्क, अनादि, अनंत, निर्विकार और अविनाशी है।

उसमें न कर्म है और न अकर्म; न शुभ है और न अशुभ; न शीत है और न अशीत; न योग है और न भोग। वह शिव – अशिव, धर्म-अधर्म, जरा-मरण, दृष्टि- अदृष्टि, गेय – अगेय आदि के बंधन से परे है। वह एक है। वह अद्वितीय है। वह मूर्ति में नहीं है। जो मूर्ति को पूजते हैं, वे कच्ची बुद्धि वाले हैं। राम तो वह है, जिसका न कोई नाम है और न ही स्थान। वह सबमें व्याप्त है; उसे कहीं बाहर ढूँढ़ने की आवश्यकता नहीं होती।

प्रश्न 3.
रैदास ने स्वयं को पानी और प्रभु को चंदन क्यों माना है ?
उत्तर :
रैदास को प्रभु नाम जपने की लगन लगी है। वे स्वयं को पानी और प्रभु को चंदन मानते हैं। पानी का रंग, गंध व कोई स्वाद नहीं होता, परंतु जब पानी प्रभु-रूपी चंदन के साथ मिल जाता है तो उसमें भी रंग और सुगंध आ जाती है। कवि कहता है कि यदि उसमें कोई गुण विद्यमान है, तो ईश्वर की भक्ति के कारण है। ईश्वर ही सभी गुणों को प्रदान कर अपने भक्त को गुणवान बना देता है।

प्रश्न 4.
रैदास ने स्वयं की तुलना मोर से क्यों की है ?
उत्तर :
रैदास ने स्वयं की तुलना मोर से की है। जिस प्रकार बादलों को देखकर मोर अपने हृदय की प्रसन्नता को नाच नाचकर प्रकट करता है, उसी प्रकार भक्त – रूपी कवि भी प्रभु रूपी बादल को अपने मन में अनुभव करता है तथा आत्मविभोर होकर नाच उठता है।

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प्रश्न 5.
कवि ने स्वयं को धागा क्यों माना है ?
उत्तर :
ईश्वर का स्वरूप निराकार है। भक्त अपनी भक्ति के द्वारा उस स्वरूप का गुणगान करता है। वह स्वयं को प्रभु का सेवक बताता है। कवि स्वयं को उस धागे के समान मानता है, जो भक्ति के अमूल्य मोतियों को ईश्वर – नाम के रूप में पिरोता है। ईश्वर भक्त को अपने गुणों से प्रभावित करता है। भक्त के लिए वे सारे गुण मोती के समान हैं, जिन्हें वह भक्ति भावना रूपी धागे में पिरोता है। इसलिए रैदास ने स्वयं को धागा बताया है।

प्रश्न 6.
रैदास ने प्रभु को कैसा बताया है ?
उत्तर :
रैदास ने प्रभु को उदार, कृपालु तथा दयालु बताया है। उनके अतिरिक्त गरीबों तथा दीन-दुखियों का स्वामी अथवा रक्षक अन्य कोई नहीं है। वे ही सबके रक्षक और स्वामी हैं।

प्रश्न 7.
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती ॥
उपरोक्त पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
संत रैदास ने दास्य-भाव की भक्ति को प्रकट किया है और माना है कि उनका अस्तित्व परमात्मा के कारण है। परमात्मा ही गुणों का भंडार है और वही अपने भक्तों पर दया करता है। कवि की भाषा सधुक्कड़ी है, जिसमें तद्भव शब्दावली की अधिकता है। स्वरमैत्री ने संगीतात्मकता का गुण प्रदान किया है। अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश और उपमा का सहज, सुंदर और स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। माधुर्य गुण, शांत रस और अभिधा शब्द-शक्ति का सुंदर प्रयोग किया गया है।

प्रश्न 8.
कवि रैदास को किसकी आदत पड़ गई है, जो छोड़ने से भी नहीं छूट रही ?
उत्तर :
कवि रैदास बड़े ही दीन भाव से प्रभु से कहते हैं कि हे ईश्वर मुझे तो ‘राम-नाम’ जपने की रट लग गई है। दिन हो या रात – हर पल हर समय मेरी जिह्वा ‘राम-नाम’ का जप करती रहती है। यह आदत ऐसी पड़ गई है कि अब छूटने से भी नहीं छूट रही।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 रैदास के पद

प्रश्न 9.
कवि रैदास ने प्रभु को कैसा माना है ?
उत्तर :
कवि रैदास ने प्रभु को सबका रक्षक माना है। कवि के अनुसार उनके प्रभु दयावान हैं। वे सभी प्राणियों पर अपनी अनुकम्पा बनाए रखते हैं। उनकी दृष्टि में कोई छोटा-बड़ा नहीं है। वे दया के सागर तथा करुणाशील हैं। वे दीन-दुखियों पर दया करने वाले हैं और सभी प्राणियों को एक भाव से देखते हैं।

प्रश्न 10.
कवि ने दूसरे पद में ऊँच-नीच तथा भेदभाव से संबंधित क्या बातें कही हैं ?
उत्तर :
कवि ने दूसरे पद में स्पष्ट किया है कि ईश्वर के समक्ष ऊँच-नीच का कोई भेदभाव नहीं है। वे किसी को छोटा-बड़ा नहीं मानते। वे सभी को एक दृष्टि से देखते हैं। वे किसी भी कुल, गोत्र, जाति आदि में उत्पन्न अपने भक्त को समान रूप से अपना कर तथा उसे समुचित सम्मान देकर उसका उद्धार करते हैं। यही उस परमपिता परमेश्वर की दयालुता है।

प्रश्न 11.
दूसरे पद में कवि ने परमात्मा द्वारा किन लोगों के उद्धार की बात कही है ?
उत्तर :
दूसरे पद में कवि ने परमात्मा द्वारा नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना और सैन जैसे लोगों की भक्ति व आराधना से प्रसन्न होकर उनका उद्धार करने की बात कही है।

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प्रश्न 12.
कवि रैदास के पदों की भाषा-शैली स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि रैदास ने अपने पदों में मुख्य रूप से सरल तथा प्रचलित ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। इनकी भाषा में कहीं-कहीं उर्दू, राजस्थानी, खड़ी बोली, अवधी आदि के शब्दों का प्रयोग भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। इनके पदों में स्वरमैत्री तथा संगीतात्मकता का गुण सर्वत्र विद्यमान है। पदों में तत्सम शब्दों के स्थान पर तद्भव शब्दों की अधिकता है। इन्होंने सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग अत्यंत सहज ढंग से किया है।

रैदास के पद Summary in Hindi

कवि-परिचय :

जीवन-परिचय -रैदास अथवा रविदास निर्गुण काव्यधारा के संत कवियों में प्रमुख माने जाते हैं। आदि ग्रंथ के अनुसार इनका जन्म काशी में हुआ था। इनका समय सन् 1388 ई० से लेकर सन् 1518 ई० तक का माना जाता है। ये कबीर के समकालीन थे। इनके गुरु रामानंद थे। गृहस्थी होते हुए भी इनका जीवन संतों के समान था। इन्होंने अपनी रचनाओं में अपने पूर्ववर्ती और समकालीन संत कवियों नामदेव, कबीर आदि की भी चर्चा की है। इनके ज्ञान से प्रभावित होकर मीराबाई ने इन्हें अपना गुरु स्वीकार किया था। तत्कालीन शासक सिकंदर लोदी ने इन्हें दिल्ली भी आमंत्रित किया था।

रचनाएँ – रैदास द्वारा रचित दो ग्रंथ – ‘ रविदास की बानी’ और ‘रविदास के पद’ हैं। श्री गुरु ग्रंथ साहब में भी इनके कुछ पद संग्रहीत हैं। इनकी समस्त रचनाएँ ‘रैदास की बानी’ के नाम से उपलब्ध हैं।

काव्य की विशेषताएँ – रैदास ने अपनी रचनाओं में निर्गुण निराकार ब्रह्म के प्रति अपनी आस्था व्यक्त की है, किंतु सगुणोपासना से भी इनका कोई विरोध नहीं था। इसलिए इन्होंने अपनी वाणी में निर्गुण-निराकार परमात्मा को स्मरण करने के लिए सगुणोपासना में प्रचलित परमात्मा के माधव, हरि, गोबिंद, राम, केशव आदि शब्दों का निस्संकोच भाव से प्रयोग किया है। इन्होंने एकाग्र मन तथा एकनिष्ठ भाव से प्रभु स्मरण पर बल दिया है।

रैदास जातिगत भेदभाव, तीर्थ, व्रत, आडंबरपूर्ण पूजा आदि में विश्वास नहीं रखते थे। वे सहज, सरल तथा आडंबरहीन प्रभु-भक्ति करते थे। इनकी वाणी में आत्मा-परमात्मा की एकता का भाव व्यक्त हुआ है। वे आत्मा को परमात्मा का अभिन्न अंश मानते थे। इनकी वाणी में प्रमुखता लोक-कल्याण का भाव रहा है।

रैदास ने अपनी रचनाओं में मुख्य रूप से सरल तथा प्रचलित ब्रजभाषा का प्रयोग किया है; इसमें कहीं-कहीं खड़ी बोली, अवधी, राजस्थानी, अरबी-फ़ारसी तथा उर्दू के शब्दों का प्रयोग भी दिखाई दे जाता है। इनके पद ‘खालिक – सिकस्ता मैं तेरा’ में अरबी, फ़ारसी और उर्दू के शब्दों का बहुत प्रयोग हुआ है।

प्रचलित उपमानों तथा नाथों और निरंजनों के सहज, शून्य आदि शब्द भी प्राप्त होते हैं। इन्होंने मुक्तक गेय पदों, दोहा, चौपाई आदि छंदों में अपनी रचनाएँ की हैं। रैदास का काव्य भक्तिभाव से परिपूर्ण है, जिसमें निर्गुण ब्रह्म की आराधना के साथ-साथ गुरु-भक्ति, लोक कल्याण, कर्तव्य पालन, सत्संग, नाम-स्मरण आदि का महत्व प्रतिपादित किया गया है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 9 रैदास के पद

पदों का सार :

पाठ्य-पुस्तक में रैदास द्वारा रचित दो पद संकलित हैं। पहले पद में कवि ने अपने आराध्य की आराधना करते हुए स्पष्ट किया है कि उसे राम-नाम की रट लग गई है, जिसे वह अब छोड़ नहीं सकता। वह अपने प्रभु को चंदन और स्वयं को पानी; उन्हें घनश्याम और स्वयं को मोर; उन्हें चाँद तथा स्वयं को चकोर मानता है। वह अपने प्रभु को दीपक स्वयं को बाती; उन्हें मोती स्वयं को धागा तथा उन्हें स्वामी और स्वयं को उनका दास मानकर उनकी भक्ति करता है।

दूसरे पद में कवि ने प्रभु को सबका रक्षक माना है। कवि के अनुसार दुखियों पर दया करने वाला परमात्मारूपी स्वामी उस जैसे व्यक्ति को भी महान बना देता है। संसार जिसे अछूत मानता है, उसी पर परमात्मा द्रवित होकर कृपा करता है। वह किसी से भी नहीं डरता और नीच को भी ऊँचा बना देता है। कवि कहता है कि उसी परमात्मा की कृपा से नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना, सैन जैसे निम्न जाति में उत्पन्न व्यक्तियों का भी उद्धार हो गया था।

व्याख्या –

1. अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी,
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा ॥
बास – सुगंध। घन बादल। बरै जले। सोनहिं सोने में।

शब्दार्थ : बास – सुगंध। घन – बादल। बंर – जले। सोनहिं – सोने में।

प्रसंग : प्रस्तुत पद रैदास द्वारा रचित है, जोकि हमारी पाठ्यपुस्तक ‘स्पर्श’ (भाग – 1) में संकलित है। इस पद में कवि ने अपने आराध्य के प्रति अपनी अटूट भक्ति का परिचय दिया है।

व्याख्या : रैदास कहते हैं कि हे मेरे प्रभु ! अब मुझे राम नाम जपने की रट लग गई है, जो मुझसे किसी प्रकार से भी नहीं छूट सकती। हे प्रभु! आप चंदन के समान हैं और मैं पानी जैसा हूँ। मैं गंध से रहित पानी की तरह था, जिसमें आपके चंदन रूप की सुगंध घुलकर मेरे अंग-अंग में समा गई है। आप घने बादलों का समूह हैं और मैं मोर हूँ। मैं आपको ऐसे देखता हूँ, जैसे चंद्रमा को चकोर देखता है। आप दीपक हैं और मैं उसमें जलने वाली बत्ती हूँ, जिसकी ज्योत दिन-रात जलती रहती है। आप मोती हैं और मैं मोती को पिरोने वाला धागा हूँ। जैसे सोने को सुहागा शुद्ध कर देता है, वैसे ही आपने मुझे पवित्र कर दिया है। हे प्रभु! आप मेरे स्वामी हैं और मैं आपका दास हूँ। ऐसी ही भक्ति रैदास आपकी करता है।

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2. ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै।
गरीब निवाजु गुसईआ मेरा माथै छत्रु धरै ॥
जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै।
नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै॥
नामदेव कबीरु तिलोचनु सधना सैनु तरै।
कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै ॥

शब्दार्थ : लाल – स्वामी। गरीब निवाजु – गरीबों पर कृपा करने वाला। गुसईआ – स्वामी। माथै छत्रु धेरै महान बनाना। जाकी जिसकी। छोति – छुआछूत, अस्पृश्यता। ढरै द्रवित होना, दया करना। नामदेव महाराष्ट्र के एक प्रसिद्ध संत; इन्होंने मराठी और हिंदी दोनों – भाषाओं में रचना की है। तिलोचनु (त्रिलोचन ) – एक प्रसिद्ध वैष्णव आचार्य, जो ज्ञानदेव और नामदेव के गुरु थे। सधना – एक उच्च कोटि के संत, जो नामदेव के समकालीन माने जाते हैं। सैनु ये भी एक प्रसिद्ध संत हैं, ‘आदि गुरुग्रंथ साहब’ में संग्रहीत पद के आधार पर इन्हें रामानंद का समकालीन माना जाता है। जीउ – इच्छा। सरै – होना।

प्रसंग : प्रस्तुत पद रैदास द्वारा रचित है, जो हमारी पाठ्यपुस्तक ‘स्पर्श’ (भाग – 1) में संकलित है। इस पद में कवि ने स्पष्ट किया है कि परमात्मा के सामने ऊँच-नीच का कोई भेदभाव नहीं है। वह किसी भी कुल, गोत्र, जाति आदि में उत्पन्न अपने भक्त को समान रूप से अपनाकर और उसे समुचित सम्मान देकर उसका उद्धार करता है।

व्याख्या : कवि प्रभु की उदारता, कृपालुता तथा दयालुता का वर्णन करते हुए कहता है कि आपके अतिरिक्त गरीबों तथा दीन-दुखियों का स्वामी अथवा रक्षक अन्य कोई नहीं है। आप गरीबों के रक्षक तथा स्वामी हैं। आपने ही मुझ जैसे व्यक्ति को इतनी महानता प्रदान की है। जिनके स्पर्श को भी दुनिया वाले बुरा मानते हैं, ऐसे लोगों पर भी आप दया करते हैं। कवि कहता है कि मेरा गोबिंद तो नीच को भी उच्च बना देता है; वह किसी से डरता नहीं है। उस परमात्मा ने नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना और सैन जैसे लोगों की भक्ति से प्रसन्न होकर उनका उद्धार कर दिया। रविदास कहते हैं कि ‘हे संतो ! हरि की इच्छा से सभी कार्य संपन्न हो जाते हैं’।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान Textbook Exercise Questions and Answers.

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JAC Class 9 Hindi शक्र तारे के समान Textbook Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
महादेव भाई अपना परिचय किस रूप में देते थे ?
उत्तर :
महादेव भाई स्वयं का परिचय गांधी जी का ‘हम्माल’ अथवा ‘पीर – बावर्ची – भिश्ती – खर’ कहकर देते थे।

प्रश्न 2.
‘यंग इंडिया’ साप्ताहिक में लेखों की कमी क्यों रहने लगी थी ?
उत्तर :
‘यंग इंडिया’ में ‘क्रानिकल’ के हॉर्नीमैन लेख लिखते थे। सरकार ने उन्हें देश निकाला देकर इंग्लैंड भेज दिया था। इसलिए ‘यंग इंडिया’ में लेखों की कमी रहने लगी थी।

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प्रश्न 3.
गांधी जी ने ‘यंग इंडिया’ प्रकाशित करने के विषय में क्या निश्चय किया ?
उत्तर :
गांधी जी ने ‘यंग इंडिया’ को सप्ताह में दो बार प्रकाशित करने का निश्चय किया।

प्रश्न 4.
गांधी जी से मिलने से पहले महादेव जी कहाँ नौकरी करते थे ?
उत्तर :
गांधी जी से मिलने से पहले महादेव जी सरकार के अनुवाद – विभाग में नौकरी करते थे।

प्रश्न 5.
महादेव भाई के झोलों में क्या भरा रहता था ?
उत्तर :
महादेव भाई के झोलों में ताज़े-से-ताजे समाचार पत्र, मासिक – पत्र और पुस्तकें भरी रहती थीं।

प्रश्न 6.
महादेव भाई ने गांधी जी की कौन-सी प्रसिद्ध पुस्तक का अनुवाद किया था ?
उत्तर :
महादेव भाई ने गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ का अनुवाद किया था।

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प्रश्न 7.
अहमदाबाद से कौन-से दो साप्ताहिक निकलते थे ?
उत्तर :
अहमदाबाद से ‘यंग इंडिया’ और ‘नवजीवन’ नामक दो साप्ताहिक – पत्र प्रकाशित होते थे।

प्रश्न 8.
महादेव भाई दिन में कितनी देर काम करते थे ?
उत्तर :
महादेव भाई काम में रात और दिन के बीच कोई फ़र्क नहीं करते थे। वे निरंतर काम में लगे रहते थे। वे एक घंटे में चार घंटों का काम निपटा देते थे।

प्रश्न 9.
महादेव भाई से गांधी जी की निकटता किस वाक्य से सिद्ध होती है ?
उत्तर
महादेव भाई की मृत्यु के बाद भी जब प्यारेलाल जी से गांधी जी को कुछ कहना होता था तो उनके मुख से अनायास ही ‘महादेव’ निकलता था।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
गांधी जी ने महादेव को अपना वारिस कब कहा था ?
उत्तर :
गांधी जी ने महादेव को अपना वारिस तब कहा था जब वे सन् 1919 में जलियाँवाला बाग के हत्याकांड के दिनों में पंजाब जा रहे थे और उन्हें पलवल स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया था।

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प्रश्न 2.
गांधी जी से मिलने आनेवालों के लिए महादेव भाई क्या करते थे ?
उत्तर :
गांधी जी से मिलने आनेवालों की बातों को महादेव भाई सुनकर उनकी बातों की संक्षिप्त टिप्पणियाँ तैयार करके उनको गांधी जी के सम्मुख प्रस्तुत करते थे और आनेवालों के साथ उनकी भेंट भी करवाते थे।

प्रश्न 3.
महादेव जी की साहित्यिक देन क्या है ?
उत्तर :
महादेव भाई की भाषा शिष्ट और संस्कार संपन्न थी। इनकी लेखन शैली मनोहारी थी। इन्होंने गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया था जो प्रत्येक सप्ताह ‘यंग इंडिया’ में प्रकाशित होता रहा था। बाद में पुस्तक के रूप में इसका प्रकाशन हुआ था।

प्रश्न 4.
महादेव भाई की अकाल मृत्यु का कारण क्या था ?
उत्तर :
सन् 1935-36 में गांधी जी सेगाँव की सीमा पर झोंपड़ों में रहने लगे थे। महादेव भाई मगनवाड़ी में ही रहते थे। वहीं से वे वर्धा की असहनीय गरमी में रोज़ ग्यारह मील पैदल चलकर आते-जाते थे। यह कार्यक्रम काफ़ी लंबे समय तक चलता रहा। इसका उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा और उनकी अकाल मृत्यु हो गई।

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प्रश्न 5.
महादेव भाई के लिखे नोट के विषय में गांधी जी क्या कहते थे ?
उत्तर :
महात्मा गांधी कहा करते थे कि महादेव के लिखे नोट के साथ थोड़ा मिलान कर लेना चाहिए था क्योंकि महादेव भाई के द्वारा लिखे गए नोट में कभी कॉमा तक की भी गलती नहीं होती थी

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
पंजाब में फ़ौजी शासन ने क्या कहर बरसाया ?
उत्तर :
पंजाब में फ़ौजी शासन ने सन् 1919 ई० में जलियाँवाला बाग में निर्दोष लोगों को घेरकर मार दिया था। पंजाब में अधिकांश नेताओं को गिरफ़्तार करके फ़ौजी कानून के अंतर्गत आजीवन कैद की सजाएँ देकर काला पानी भेज दिया गया था। लाहौर से प्रकाशित होनेवाले राष्ट्रीय अंग्रेजी दैनिक समाचार-पत्र ‘ट्रिब्यून’ के संपादक श्री कालीनाथ राय को दस वर्ष जेल की सज़ा दे दी गई थी।

प्रश्न 2.
महादेव जी के किन गुणों ने उन्हें सबका लाड़ला बना दिया था ?
उत्तर :
महादेव जी सेवा-धर्म का पालन करने में निपुण थे। वे लोगों के द्वारा बताई गई बातें भी संक्षिप्त टिप्पणियाँ तैयार करने और उन्हें गांधी जी के सामने पेश करने, गांधी जी के लेख तैयार करने, उनके यात्रा-वर्णन लिखने, उनकी दैनिक गतिविधियों को देखने तथा सत्यनिष्ठा और विवेकपूर्ण ढंग से विकास करने के कारण सबके लाड़ले बन गए थे।

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प्रश्न 3.
महादेव जी की लिखावट की क्या विशेषताएँ थीं ?
उत्तर :
महादेव जी की लेखन शैली अत्यंत मनोहारी थी। वे अपने लेखन में शिष्ट और संस्कार – संपन्न भाषा का प्रयोग करते थे। गांधी जी से मिलने आनेवाले लोगों की व्यथा-कथा सुनकर स्वयं उनसे हुई बातों की संक्षिप्त तथा सटीक टिप्पणियाँ लिखने में वे अत्यंत निपुण थे। इनके द्वारा लिखी गई तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक तथा अन्य विषयों की टिप्पणियों के आधार पर गांधी जी ‘बांबे क्रॉनिकल’, ‘यंग इंडिया’, ‘नवजीवन’ आदि पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखते थे। गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ का अंग्रेजी अनुवाद इनकी लेखन शैली का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
‘अपना परिचय उनके ‘पीर- बावर्ची भिश्ती खर’ के रूप में देने में वे गौरवान्वित महसूस करते थे।’
उत्तर :
महादेव भाई लोगों को अपना परिचय गांधी जी के उस परिचारक के रूप में देने में गर्व अनुभव करते थे जो उनके सभी प्रकार के कार्य करने में समर्थ है। वे स्वयं को गांधी जी का ऐसा ही सेवक मानते थे क्योंकि वे उनके सभी कार्य करते थे। इसी में उन्हें गर्व अनुभव होता था कि वे गांधी जी के अनुचर हैं।

प्रश्न 2.
इस पेशे में आमतौर पर स्याह को सफ़ेद और सफ़ेद को स्याह करना होता था।
उत्तर :
वकालत का पेशा झूठ बोलने का पेशा माना जाता है क्योंकि इसमें वकील अपने ग्राहक को जिताने के लिए झूठ को सच और सच को झूठ बनाकर प्रस्तुत करते हैं। जो इस कार्य में निपुण होता है वही सफल वकील माना जाता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

प्रश्न 3.
देश और दुनिया को मुग्ध करके शुक्रतारे की तरह ही अचनाक अस्त हो गए।
उत्तर
महादेव भाई शुक्रतारे के समान अपनी आभा से संसार को मोहित करके अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गए थे।

प्रश्न 4.
उन पत्रों को देख-देखकर दिल्ली और शिमला में बैठे वाइसराय लंबी साँस उसाँस लेते रहते थे।
उत्तर :
महादेव भाई द्वारा लिखे गए पत्रों की विषय-वस्तु को पढ़कर दिल्ली और शिमला में बैठे हुए वाइसराय भी परेशान हो उठते थे।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
‘इक’ प्रत्यय लगाकर शब्दों का निर्माण कीजिए –
सप्ताह, अर्थ, साहित्य, धर्म, व्यक्ति, मास, राजनीति, वर्ष।
उत्तर :
साप्ताहिक, आर्थिक, साहित्यिक, धार्मिक, वैयक्तिक, मासिक, राजनैतिक, वार्षिक।

प्रश्न 2.
नीचे दिए गए उपसर्गों का उपयुक्त प्रयोग करते हुए शब्द बनाइए –
अ, नि, अन, नि, दुर, वि, कु, पर, सु, अधि।
उत्तर :

  • आर्य – अनार्य
  • डर – निडर
  • सार्थक – निरर्थक
  • सुलभ – दुर्लभ
  • क्रय – विक्रय
  • उपस्थित – अनुपस्थित
  • नायक – अधिनायक
  • आगत – अनागत
  • आकर्षण – विकर्षण
  • मार्ग – कुमार्ग
  • लोक – परलोक
  • भाग्य – दुर्भाग्य
  • आयात – निर्यात
  • विश्वास – अविश्वास।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित मुहावरों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
आड़े हाथों लेना, अस्त हो जाना, दाँतों तले अंगुली दबाना, मंत्र-मुग्ध करना, लोहे के चने चबाना।
उत्तर :
1. आड़े हाथों लेना – जब जोसफ़ ने बहाना बनाकर विद्यालय जाने से इनकार किया तो मम्मी ने उसे आड़े हाथों लिया और विद्यालय जाने के लिए विवश कर दिया।
2. अस्त हो जाना – आपसी कलह से बड़े-बड़े घरानों की ख्याति अस्त हो जाती है
3. दाँतों तले अंगुली दबाना – ताजमहल का सौंदर्य देखकर बड़े-बड़े कलाकार भी दाँतों तले अँगुली दबा लेते हैं।
4. मंत्र-मुग्ध करना – लोक-नृतकों ने अपने नृत्य से दर्शकों को मंत्र-मुग्ध कर दिया।
5. लोहे के चने चबाना – भारतीय सेना से मुकाबला करना लोहे के चने चबाने के समान है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों के पर्याय लिखिए-
वारिस, जिगरी, कहर, मुकाम, रूबरू, फ़र्क, तालीम, गिरफ़्तार।
उत्तर :

  • वारिस – उत्तराधिकारी
  • जिगरी – दिली
  • कहर – संकट
  • मुकाम – पड़ाव
  • रूबरू – सामने
  • फ़र्क – अंतर
  • तालीम – शिक्षा
  • गिरफ़्तार – बंदी

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प्रश्न 5.
उदाहरण के अनुसार वाक्य बदलिए –
उदाहरण : गांधी जी ने महादेव भाई को अपना वारिस कहा था।
गांधी जी महादेव भाई को अपना वारिस कहा करते थे।

  1. महादेव भाई अपना परिचय ‘पीर – बावर्ची – भिश्ती – खर’ के रूप में देते थे।
  2. पीड़ितों के दल-के-दल गामदेवी के मणिभवन पर उमड़ते रहते थे।
  3. दोनों साप्ताहिक अहमदाबाद से निकलते थे।
  4. देश-विदेश के समाचार पत्र गांधी जी की गतिविधियों पर टीका-टिप्पणी करते थे।
  5. गांधी जी के पत्र हमेशा महादेव की लिखावट में जाते थे।

उत्तर :

  1. महादेव भाई अपना परिचय ‘पीर – बावर्ची भिश्ती – खर’ के रूप में दिया करते थे।
  2. पीड़ितों के दल – के – दल गामदेवी के मणिभवन पर उमड़ा करते थे।
  3. दोनों साप्ताहिक अहमदाबाद से निकला करते थे।
  4. देश-विदेश के समाचार-पत्र गांधी जी की गतिविधियों पर टीका-टिप्पणी किया करते थे।
  5. गांधी जी के पत्र हमेशा महादेव जी लिखा करते थे।

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ को पुस्तकालय से लेकर पढ़िए।
उत्तर :
इन गतिविधियों को विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
जलियाँवाला बाग में कौन-सी घटना हुई थी ? जानकारी एकत्रित कीजिए।
उत्तर :
इन गतिविधियों को विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

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प्रश्न 3.
अहमदाबाद में बापू के आश्रम के विषय में चित्रात्मक जानकारी एकत्र कीजिए।
उत्तर :
इन गतिविधियों को विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 4.
सूर्योदय के 2-3 घंटे पहले पूर्व दिशा में या सूर्यास्त के 2-3 घंटे बाद पश्चिम दिशा में एक खूब चमकता हुआ ग्रह दिखाई देता है, वह शुक्र ग्रह है। छोटी दूरबीन से इसकी बदलती हुई कलाएँ देखी जा सकती हैं, जैसे चंद्रमा की कलाएँ।
उत्तर :
इन गतिविधियों को विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 5.
वीराने में जहाँ बत्तियाँ न हों वहाँ अँधेरी रात में जब आकाश में चाँद भी दिखाई न दे रहा हो तब शुक्र ग्रह (जिसे हम शुक्रतारा भी कहते हैं) के प्रकाश से अपने साए को चलते हुए देखा जा सकता है। कभी अवसर मिले तो इसे स्वयं अनुभव करके देखिए।
उत्तर :
इन गतिविधियों को विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

परियोजना कार्य –

प्रश्न 1.
सूर्यमंडल में नौ ग्रह हैं। शुक्र सूर्य से क्रमशः दूरी के अनुसार दूसरा ग्रह है और पृथ्वी तीसरा। चित्र सहित परियोजना पुस्तिका में अन्य ग्रहों के क्रम लिखिए।
प्रश्न 2.
‘स्वतंत्रता आंदोलन में गांधी जी का योगदान’ विषय पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।

प्रश्न 3.
भारत के मानचित्र पर निम्न स्थानों को दर्शाएँ –
अहमदाबाद, जलियाँवाला बाग (अमृतसर), कालापानी (अंडमान), दिल्ली, शिमला, बिहार, उत्तर प्रदेश।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi शक्र तारे के समान Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘शुक्रतारे के समान’ पाठ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
स्वामी आनंद द्वारा रचित पाठ ‘शुक्रतारे के समान’ में गाँधी जी के निजी सचिव महादेव भाई देसाई के जीवन के कुछ अंशों को प्रस्तुत किया गया है। लेखक के अनुसार महादेव भाई अत्यंत सरल, सज्जन, निष्ठावान, समर्पित एवं निरभिमानी व्यक्ति थे। उन्होंने महात्मा गाँधी की समस्त चिंताओं और उलझनों को अपने सिर पर ले लिया था, इस कारण कोई भी महान व्यक्ति महानतम कार्य तभी कर पाता है जब उसका सहयोगी महादेव भाई जैसा ही हो।

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प्रश्न 2.
महादेव भाई के अध्ययन की क्या विशेषताएँ थीं ?
उत्तर :
महादेव भाई साहित्यिक पुस्तकों की तरह तत्कालीन राजनीतिक गतिविधियों से संबंधित पुस्तकें अधिक पढ़ते थे। इन पुस्तकों से उन्हें भारत से संबंधित देश-विदेश में होनेवाली गतिविधियों की जानकारी मिल जाती थी। उन्हें ताज़े समाचार-पत्र, मासिक और साप्ताहिक – पत्रों को पढ़ने में विशेष रुचि थी। वे सम-सामयिक विषयों से संबंधित पुस्तकें अधिक पढ़ते थे।

प्रश्न 3.
‘यंग इंडिया’ अख़बार कहाँ से निकलता था ? इसका प्रकाशन करनेवालों ने गाँधी जी को संपादक क्यों बनाया ?
उत्तर :
‘यंग इंडिया’ अख़बार बंबई से निकलता था। इसमें लेखक लिखनेवाले हॉर्नीमैन को ब्रिटिश सरकार ने उनके निर्भीक लेखों के कारण देश निकाला दे दिया, जिससे ‘यंग इंडिया’ अख़बार में लेखों की कमी आ गई। ‘यंग इंडिया’ के मालिकों ने गाँधी जी से संपर्क किया और उन्हें अपने अख़बार का संपादक बनने का आग्रह किया। उन दिनों गाँधी जी को भी अपने लेखों के लिए अख़बार की आवश्यकता थी। इसलिए उन्होंने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

प्रश्न 4.
लेखक साबरमती आश्रम में क्या काम करते थे ?
उत्तर :
लेखक छह महीने के लिए साबरमती आश्रम में रहने के लिए गए। वहाँ उन्होंने शुरू में अख़बारों के ग्राहकों का हिसाब-किताब और साप्ताहिकों को डाक में डलवाने की व्यवस्था देखने का काम किया। कुछ दिनों बाद दोनों साप्ताहिकों के संपादन और छापाखाने की सारी व्यवस्था लेखक पर आ गई। इस प्रकार आश्रम में रहते हुए उन्होंने ‘यंग इंडिया’ और ‘नवजीवन’ समाचार-पत्रों के साप्ताहिक अंकों की व्यवस्था का काम किया।

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प्रश्न 5.
लेखक के अनुसार महादेव भाई का व्यक्तित्व कैसा था ?
उत्तर :
लघु तलनीय प्रश्न त उत्तर महादेव भाई का व्यक्तित्व उनके संपर्क में आनेवाले लोगों पर जादुई प्रभाव डालता था, जिसका प्रभाव कई-कई दिन तक रहता था। वे कभी भी किसी से कड़वी या चुभनेवाली बात नहीं करते थे। उनकी निर्मल प्रतिभा उनके संपर्क में आनेवाले व्यक्ति को चंद्र- शुक्र की प्रभा के साथ दूध से नहला देती थी।

प्रश्न 6.
महादेव भाई से मिलकर कैसा लगता था ?
उत्तर :
महादेव भाई से मिलकर ऐसा लगता था जैसे उनके व्यक्तित्व ने मिलनेवाले को सम्मोहित कर दिया हो। उनका सारा जीवन गाँधी जी के साथ मिलकर एक रूप हो गया था। उनकी संस्कार संपन्न भाषा और मनोहारी रूप सभी को अपनी ओर खींच लेता था। काम-काज में व्यस्त होने पर भी वे प्रतिदिन डायरी लिखा करते थे। उनका यही कार्यशैली मिलनेवाले को सुखद आनंद देती थी।

प्रश्न 7.
महादेव भाई के काम करने की गति कैसी थी ?
उत्तर :
महादेव भाई एक पठनशील नवयुवक थे। उन्हें जब भी अवसर मिलता था वे ‘यंग इंडिया’ तथा ‘नव जीवन’ के लिए लेख लिखते थे। उनकी काम करने की गति बहुत तेज़ थी। वे चार घंटों का काम एक ही घंटे में निपटा देते थे। वे चरखे पर सूत बहुत सुंदर कातते थे। उनके लिए काम के बीच रात – दिन में कोई अंतर नहीं था। किसी को भी उनके खाने-पीने का पता नहीं चलता था कि उन्होंने कब खाया, कब पिया।

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प्रश्न 8.
गाँधी जी महादेव भाई से कितना स्नेह करते थे ?
उत्तर :
गाँधी जी महादेव भाई से अत्यधिक स्नेह करते थे। सन् 1919 ई० में जलियाँवाला बाग हत्याकांड के संदर्भ में जब गाँधी जी को पंजाब जाते हुए पलवल स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया तो उसी समय गाँधी जी ने महादेव भाई के प्रति अपने प्रेम का परिचय देते हुए उन्हें अपना वारिस कह दिया था। सन् 1929 में महादेव भाई ने सारे देश में यात्राएँ की थीं।

शक्र तारे के समान Summary in Hindi

लेखक परिचय :

जीवन-परिचय – स्वामी आनंद का जन्म गुजरात के काठियावाड़ जिले के किमड़ी गाँव में सन् 1887 ई० में हुआ था। इनका बचपन का नाम हिम्मत लाल था। इन्हें दस वर्ष की आयु में कुछ साधु अपने साथ हिमालय की ओर ले गए थे। उन्हीं साधुओं ने इनका नाम स्वामी आनंद रख दिया था। सन् 1907 ई० से स्वामी आनंद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए थे। सन् 1917 ई० में इनका संपर्क गांधी जी से हुआ।

गांधी जी ने इन्हें ‘नवजीवन’ और ‘यंग इंडिया’ की प्रसार व्यवस्था का कार्यभार दिया। इन्होंने कुछ समय तक महाराष्ट्र से ‘तरुण हिंद’ नामक समाचार-पत्र निकाला था। इन्होंने बाल गंगाधर तिलक के ‘केसरी’ समाचार – पत्र में भी काम किया था। गांधी जी के संपर्क में आने के बाद ही इनका संबंध गांधी जी के निजी सहयोगी महादेव भाई और प्यारेलाल से हुआ।

रचनाएँ – स्वामी आनंद ने ‘तरुण हिंद’, ‘नवजीवन’, ‘केसरी’ आदि समाचार-पत्रों में अनेक लेख लिखे थे।

भाषा-शैली – स्वामी आनंद के आलेख ‘शुक्रतारे के समान’ में गांधी जी के निजी सचिव महादेव भाई देसाई के जीवन के विभिन्न पक्षों को यथार्थ रूप में प्रस्तुत किया गया है। लेखक की भाषा अत्यंत सहज एवं व्यावहारिक है। तेजस्वी, मुग्ध, आसेतु, हिमाचल, शिष्ट, संस्कार, संपन्न आदि तत्सम प्रधान शब्दों के साथ-साथ पीर, बावर्ची, भिश्ती, खर, जुल्म, अलावा, स्याह, सफ़ेद, हफ़्ता आदि विदेशी शब्दों का प्रयोग भी मिलता है।

इनकी शैली सहज, प्रभावपूर्ण तथा वर्णनप्रधान है, जैसे- ‘प्रथम श्रेणी की शिष्ट, संस्कार संपन्न भाषा और मनोहारी लेखन – शैली की ईश्वरीय देन महादेव को मिली थी।’ इनके वर्णनों में चित्रात्मकता का गुण भी विद्यमान है, जैसे- ‘बिहार और उत्तर प्रदेश के हज़ारों मील लंबे मैदान गंगा, यमुना और दूसरी नदियों के परम उपकारी, ‘सोने’ की कीमतवाले ‘गाद’ के बने हैं। आप सौ-सौ कोस चल लीजिए रास्ते में सुपारी फोड़ने लायक एक पत्थर भी कहीं मिलेगा नहीं।’ इस प्रकार स्वामी आनंद ने सहज, सरल भाषा एवं रोचक शैली में महादेव भाई के जीवन के कुछ प्रसंग प्रस्तुत किए हैं।

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पाठ का सार :

‘शुक्रतारे के समान’ पाठ के लेखक स्वामी आनंद हैं। इस पाठ में लेखक ने गांधी जी के निजी सचिव महादेव भाई देसाई की सरलता, सज्जनता, निष्ठा, समर्पण, लगन और विनम्रता का सजीव अंकन किया है। लेखक का मानना है कि जिस प्रकार शुक्रतारा अपनी आभा दिखाकर घंटे-दो घंटे में अस्त हो जाता है उसी प्रकार से गांधी जी के सचिव महादेव भाई भी भारत की स्वतंत्रता के उषाकाल में अपनी आभा दिखाकर अचानक ही अस्त हो गए। गांधी जी उन्हें अपने पुत्र से भी अधिक मानते थे।

वे सन् 1917 ई० में गांधी जी के पास आए थे। सन् 1919 ई० में जलियाँवाला बाग हत्याकांड के संदर्भ में जब गांधी जी को पंजाब जाते हुए पलवल स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया तो उसी समय उन्होंने महादेव भाई को अपना वारिस कह दिया था। सन् 1929 ई० में महादेव भाई ने सारे देश में यात्राएँ की थीं। इन्हीं दिनों पंजाब में फ़ौजी शासन के अत्याचारों और नेताओं की गिरफ़्तारी के समाचार आ रहे थे। ‘ट्रिब्यून’ के संपादक कालीनाथ राय को दस साल की जेल की सजा दी गई थी।

महादेव भाई इन दिनों के जुल्मों की टिप्पणियाँ तैयार करके गांधी जी को देते थे तथा गांधी जी उनके आधार पर ‘बांबे क्रॉनिकल’ में लेख लिखकर भेजते थे। जब ‘क्रॉनिकल’ के संपादक हार्नोमैन को देश निकाला देकर इंग्लैंड भेज दिया गया तो शंकर लाल बैंकर, उम्मर सोबानी तथा जमना दास द्वारका दास के अनुरोध पर गांधी जी ‘यंग इंडिया’ के संपादक बन गए और इसमें लिखने लगे। ‘यंग इंडिया’ सप्ताह में दो बार प्रकाशित होने लगा।

बाद में ‘नवजीवन’ और ‘यंग इंडिया’ दोनों अहमदाबाद से प्रकाशित होने लगे थे। लेखक भी साबरमती में रहने लगा और इन दोनों साप्ताहिकों का वितरण, प्रकाशन आदि का कार्य देखने लगा। गांधी जी और महादेव भाई का अधिकांश समय देश भ्रमण में ही व्यतीत होता था। उनके लेख आते रहते थे। महादेव भाई देश-विदेश के प्रमुख समाचारों पर गांधी जी के साथ टीका-टिप्पणी कर लेख भेजते थे।

गांधी जी के पास आने से पहले महादेव भाई सरकार के अनुवाद विभाग में नौकरी करते थे। इन्होंने नरहरि भाई के साथ वकालत पढ़ी थी और अहमदाबाद में वकालत भी प्रारंभ की थी। लुई फिशर और गंथर भी अपनी टिप्पणियों का मिलान महादेव भाई की टिप्पणियों के साथ करने के बाद ही गांधी जी के पास ले जाते थे। महादेव भाई तत्कालीन राजनीति से संबंधित पुस्तकों को भी पढ़ते रहते थे तथा उनमें भारत से संबंधित जानकारियों को सहेज लेते थे तथा जहाँ भी अवसर मिलता ‘यंग इंडिया’ तथा ‘नवजीवन’ के लिए लेख लिखते रहते थे।

उनकी काम करने की गति बहुत तेज थी। वे चार घंटों का काम एक घंटे में निपटा देते थे। वे सूत बहुत सुंदर कातते थे। उनके लिए काम में रात और दिन के बीच कोई अंतर नहीं होता था। उनके खाने-पीने का भी किसी को पता नहीं चलता था कि कब खाया ? महादेव भाई से मिलकर ऐसा लगता था जैसे उनके व्यक्तित्व ने मिलनेवाले को सम्मोहित कर दिया हो। महादेव भाई का समूचा जीवन गांधी जी के साथ मिलकर एकरूप हो गया था।

उन्हें गांधी जी से अलग करने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। कामकाज की व्यस्तताओं में भी वे प्रतिदिन डायरी भी लिखते थे। इनकी लेखन शैली अत्यंत शिष्ट, संस्कार-संपन्न भाषा और मनोहारी थी। इन्होंने गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ का अंग्रेजी में अनुवाद किया था जो ‘यंग इंडिया’ में हर हफ्ते छपता रहा था। अब उसका पुस्तक संस्करण छप चुका है।

सन् 1934-35 ई० में गांधी जी वर्धा के महिला आश्रम में और मगनवाड़ी में रहने के बाद से गाँव की सीमा पर एक पेड़ के नीचे जा बैठे थे। तभी वहाँ एक-दो झोंपड़े बने और फिर धीरे-धीरे मकान भी बन गए थे। तब तक महादेव भाई, दुर्गा बहन और चिन्नारायण मगनवाड़ी में ही रहते थे। वहीं से वे वर्धा की भयंकर गरमी में भी प्रतिदिन ग्यारह मील चलकर सेवाग्राम आते-जाते थे। इसी के प्रतिकूल प्रभाव से उनकी अकाल मृत्यु हो गई। गांधी जी के मन पर उनकी मृत्यु का बहुत प्रभाव पड़ा था तथा वे भर्तृहरि के भजन की एक पंक्ति सदा दोहराते रहते थे कि ‘ए रे जखम जोगे नहि जशे’ अर्थात् यह घाव कभी योग से भरेगा नहीं। कई बार जब उन्हें प्यारेलाल जी को बुलाना होता था तो उनके मुख से ‘महादेव’ ही निकलता था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 8 शक्र तारे के समान

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • आभा-प्रभा – चमक, तेज़।
  • कोई जोड़ न होना – कोई मुकाबला करने वाला न होना।
  • नक्षत्र-मंडल – तारा समूह।
  • कलगी रूप – तेज़ चमकनेवाला तारा।
  • हम्माल – बोझ उठानेवाला, कुली।
  • पीर – महात्मा, सिद्ध।
  • बावर्ची – खाना पकानेवाला, रसोइया।
  • भिश्ती – मशक से पानी ढोनेवाला व्यक्ति।
  • खर – घास, गधा।
  • आसेतुहिमाचल – रामेश्वर से हिमाचल तक विस्तीर्ण सेतुबंध।
  • दुलारे – प्यारे।
  • ब्यौरा – विवरण।
  • कालापानी – आजीवन कैद की सज़ा पाए कैदियों को रखने का स्थान, वर्तमान अंडमान-निकोबार द्वीप समूह।
  • रूबरू – आमने सामने।
  • धुरंधर – प्रवीण, उत्तम गुणों से युक्त।
  • टीका-टिप्पणी – व्याख्या, आलोचना।
  • चौकसाई – चौकस रहना, नज़र रखना।
  • कट्टर – दृढ़, जिसे अपने मत या विश्वास का अधिक आग्रह हो।
  • लाडला – प्यारा, दुलारा।
  • जिगरी दोस्त – गहरे मित्र।
  • पेशा – व्यवसाय।
  • स्याह – काला।
  • सल्तनत राज्य, हुकूमत।
  • व्याख्यान – भाषण, वक्तृता, किसी विषय की व्याख्या या टीका करना।
  • फुलस्केप – कागज़ का एक आकार।
  • चौथाई – चौथा भाग।
  • अग्रगण्य – प्रमुख, सबसे पहले गिना जाने वाला।
  • विवरण – वर्णन, व्याख्या।
  • अद्यतन – अब तक का, वर्तमान से संबंध रखने वाला।
  • गाद – तलहट, गाढ़ी चीज़।
  • सराबोर – तरबतर, डूबा हुआ।
  • अनवरत – लगातार।
  • सानी – बराबरी करनेवाला, उसी मोड़ का दूसरा।
  • अनगिनत – जिसे गिना न जा सके।
  • सिलसिला – क्रम।
  • अनायास – बिना किसी प्रयास के, आसानी से।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़ Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

JAC Class 9 Hindi धर्म की आड़ Textbook Questions and Answers

मौखिक –

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक- दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
आज धर्म के नाम पर क्या-क्या हो रहा है ?
उत्तर :
आज धर्म के नाम पर उत्पात हो रहे हैं। धर्म के नाम पर लोग जान लेने और देने के लिए तैयार हो जाते हैं। धर्म के नाम पर ज़िद की जाती है

प्रश्न 2.
धर्म के व्यापार को रोकने के लिए क्या उद्योग होने चाहिए ?
उत्तर :
धर्म के व्यापार को रोकने के लिए साहस और दृढ़ता के साथ उद्योग होने चाहिए। धर्म की उपासना के मार्ग में कोई रुकावट न हो तथा प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार अपने धर्म की आराधना कर सके।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

प्रश्न 3.
लेखक के अनुसार स्वाधीनता आंदोलन का कौन-सा दिन सबसे बुरा था ?
उत्तर :
स्वाधीनता आंदोलन का वह दिन सबसे बुरा था जिस दिन स्वाधीनता के क्षेत्र में खिलाफ़त, मुल्ला, मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान देना आवश्यक समझा गया।

प्रश्न 4.
साधारण-से- साधारण आदमी तक के दिल में क्या बात अच्छी तरह घर कर बैठी है ?
उत्तर :
साधारण-से-साधारण आदमी तक के दिल में यह बात अच्छी तरह घर कर बैठी है कि धर्म और ईमान की रक्षा के लिए प्राण तक दे देना उचित है।

प्रश्न 5.
धर्म के स्पष्ट चिह्न क्या हैं ?
उत्तर :
धर्म के स्पष्ट चिह्न शुद्धाचरण और सदाचार हैं।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
चलते – पुरज़े लोग धर्म के नाम पर क्या करते हैं ?
उत्तर :
कुछ चलते – पुरज़े लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए धर्म के नाम पर आम आदमी को भड़का देते हैं और वह बिना कुछ समझे-बूझे जिधर उन्हें हाँक दिया जाता है उधर ही उत्पात मचाने लगते हैं। वे धर्म-ईमान को जानें या न जानें, धर्म के नाम पर जान देने और जान लेने के लिए तैयार हो जाते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

प्रश्न 2.
चालाक लोग साधारण आदमी की किस अवस्था का लाभ उठाते हैं ?
उत्तर :
चालाक लोग यह जानते हैं कि साधारण-से- साधारण आदमी के दिल में यह बात अच्छी तरह बैठी हुई है कि धर्म और ईमान की रक्षा के लिए अपने प्राण तक दे देना उचित है। वह धर्म के वास्तविक स्वरूप से परिचित नहीं होता और परंपरा को निभाना ही अपना धर्म समझता है। उसकी अवस्था का चालाक लोग नाजायज़ फ़ायदा उठाकर धर्म के नाम पर दंगे करवा देते हैं।

प्रश्न 3.
आनेवाला समय किस प्रकार के धर्म को नहीं टिकने देगा ?
उत्तर
आनेवाला समय आडंबरपूर्ण धर्म को टिकने नहीं देगा। वह पाँच समय नमाज़ पढ़ने, दो-दो घंटे पूजा-पाठ करने के बाद दिन-भर बेईमानी करने और दूसरों को तकलीफ़ पहुँचानेवाले धर्म को टिकने नहीं देगा। नमाज़ और रोज़े, पूजा और गायत्री के नाम पर देश में उत्पात नहीं होने दिए जाएँगे।

प्रश्न 4.
कौन-सा कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाएगा ?
उत्तर :
देश में प्रत्येक व्यक्ति को उसके मन के अनुसार धर्म चुनकर अपनी इच्छा के अनुसार पूजा-पाठ करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। दो भिन्न धर्मों के माननेवालों को एक-दूसरे के धार्मिक अनुष्ठानों में बाधा नहीं डालनी चाहिए। यदि किसी धर्म के माननेवाले किसी दूसरे के धार्मिक मामलों में ज़बरदस्ती टाँग अड़ाते हैं तो उनका इस प्रकार का कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाएगा।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

प्रश्न 5.
पाश्चात्य देशों में धनी और निर्धन लोगों में क्या अंतर है ?
उत्तर :
पाश्चात्य देशों में धनी और निर्धन लोगों में बहुत अंतर है। बड़े-बड़े आलीशान महलों में धनी रहते हैं और निर्धन मामूली-सी झोंपड़ी में जीवन व्यतीत करते हैं। धनी निर्धनों की कमाई से ही दिन-प्रतिदिन और अधिक धनवान होते जाते हैं। वे सदा निर्धनों का शोषण करते रहते हैं।

प्रश्न 6.
कौन-से लोग धार्मिक लोगों से अच्छे हैं ?
उत्तर
वे लोग धार्मिक लोगों से अच्छे हैं, जो नास्तिक हैं तथा दूसरों के सुख-दुख का ध्यान रखते हैं। ऐसे लोग धर्म के नाम पर अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए आम आदमी को उकसाते नहीं हैं। इनका आचरण अच्छा होता है। वे मानवतावादी होते हैं। उनमें पशुत्व नहीं होता है।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (पचास-साठ शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले भीषण व्यापार को कैसे रोका जा सकता है ?
उत्तर :
धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले भीषण व्यापार को रोकने के लिए हमें साहस और दृढ़तापूर्वक प्रयास करने होंगे। इसके लिए धर्म की उपासना के मार्ग में किसी प्रकार की बाधा नहीं होनी चाहिए। जो जैसे चाहे उसी प्रकार से अपने धर्म को अपनाकर पूजा-अर्चना करे। दो भिन्न धर्मों को माननेवाले आपस में द्वेष-भाव न रखें। यदि कोई किसी धर्म के माननेवाले के धार्मिक कार्यों में बाधा डाले तो उसे दंडित किया जाए।

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प्रश्न 2.
‘बुद्धि की मार’ के संबंध में लेखक के क्या विचार हैं ?
उत्तर :
‘बुद्धि की मार’ से लेखक का यह तात्पर्य है कि एक साधारण व्यक्ति को धर्म के तत्वों का वास्तविक ज्ञान नहीं होता है। वह तो अपने धर्म गुरुओं द्वारा बताए हुए नियमों तथा परंपराओं के अनुसार आचरण करता रहता है। कुछ स्वार्थी तथा चालाक धर्मांध लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए ऐसे आम लोगों को दूसरे धर्मवालों के विरुद्ध इस प्रकार भड़का देते हैं कि वे बिना सोचे-समझे धर्म के नाम पर मरने-मारने के लिए तैयार हो जाते हैं। इस प्रकार उनकी बुद्धि पर परदा पड़ जाता है और वे उत्पात मचाना शुरू कर देते हैं। इसी को ‘बुद्धि की मार’ कहा गया है। इस स्थिति में सोचने-समझने की शक्ति समाप्त हो जाती है।

प्रश्न 3.
लेखक की दृष्टि में धर्म की भावना कैसी होनी चाहिए ?
उत्तर :
लेखक का मानना है कि धर्म की उपासना के मार्ग में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। जिसका मन जिस प्रकार चाहे, उसी प्रकार धर्म की भावना को अपने मन में जगाने के लिए स्वतंत्र हो। धर्म मन का सौदा हो, ईश्वर और आत्मा के बीच का संबंध हो, आत्मा को शुद्ध करने और ऊँचे उठाने का साधन हो। दो भिन्न धर्मों के माननेवालों के बीच टकराव नहीं होना चाहिए। जो व्यक्ति जैसा धर्म अपनाना चाहे उसे वैसा धर्म अपनाने और मानने की आज़ादी मिलनी चाहिए।

प्रश्न 4.
महात्मा गांधी के धर्म संबंधी विचारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
महात्मा गांधी ने धर्म को सर्वत्र मान्यता दी है। वे जीवन का प्रत्येक कार्य धर्म के अनुसार करते थे। धर्म से उनका तात्पर्य आडंबरों से नहीं था। वे धर्म का अर्थ जीवन में ऊँचे तथा उदार भावों को अपनाना मानते थे। वे ऐसी पूजा-पाठ, नमाज़ पढ़ना आदि व्यर्थ मानते थे जिसके बाद मनुष्य दिन-भर बेईमानी करता रहे। वे शुद्ध आचरण तथा सज्जनतापूर्वक जीवन-यापन करने को ही धर्म मानते थे।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

प्रश्न 5.
सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
लेखक का मानना है कि यदि हम समाज को धर्मानुसार चलाना चाहते हैं तो हमें अपने आचरण को सुधारना होगा। यदि हमारा आचरण अच्छा नहीं होगा तो सारा समाज ही भ्रष्ट हो जाएगा। लोग मुँह में राम बगल में छुरी जैसा आचरण करने लगेंगे। सर्वत्र उत्पात होंगे। एक दूसरे का गला काटने को सब तैयार हो जाएँगे। यदि हम अपना आचरण सुधार लेंगे तो हमारी देखा-देखी अन्य लोग भी अपना आचरण सुधार लेंगे। इस प्रकार एक के आचरण के सुधरने से सारा समाज सुधर जाएगा तथा सबका कल्याण होगा।

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
उबल पड़ने वाले साधारण आदमी का इसमें केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी नहीं समझता-बूझता, और दूसरे लोग उसे जिधर जोत देते हैं, उधर जुत जाता है।
उत्तर :
लेखक का मानना है कि आम आदमी को धर्म के संबंध में कुछ भी पता नहीं होता। उसे कुछ स्वार्थी लोग दूसरे धर्मावलंबियों के विरुद्ध इतना अधिक भड़का देते हैं कि वह उनके प्रति गुस्से से भर उठता है। वह गुस्से में अपने समझने-बूझने की शक्ति खो बैठता है और स्वार्थी लोग उसे जिस ओर हाँक देते हैं वह उधर ही चल पड़ता है।

प्रश्न 2.
यहाँ है बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना, और फिर धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए लोगों को लड़ाना-भिड़ाना।
उत्तर :
इन पंक्तियों में लेखक उन धर्माचार्यों पर कटाक्ष कर रहा है जो आम आदमी को अपने आडंबरपूर्ण धार्मिक अनुष्ठानों से इतना मोहित कर लेते हैं कि वे उन्हें ही ईश्वर का दूत समझने लगते हैं। वे अपनी सोचने-विचारने की शक्ति खो बैठते हैं। तब ये धर्माचार्य अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए इन आम आदमियों को ईश्वर, धर्म, आत्मा, ईमान आदि का नाम लेकर अन्य धर्मों के माननेवालों के विरुद्ध भड़का कर दंगा-फसाद करा देते हैं।

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प्रश्न 3.
अब तो, आपका पूजा-पाठ न देखा जाएगा, आपकी भलमनसाहत की कसौटी केवल आपका आचरण होगी।
उत्तर :
लेखक का मानना है कि आनेवाले समय में आडंबरपूर्ण तथा बेईमानी भरे धर्म-ईमान के लिए कोई स्थान नहीं रहेगा। इस युग में कोई किसी के पूजा-पाठ के आधार पर उसे सम्मान नहीं देगा बल्कि यह देखा जाएगा कि उसका आचरण कैसा है ? आपके अच्छे आचरण के आधार पर ही आपकी सज्जनता का मूल्यांकन किया जाएगा

प्रश्न 4.
तुम्हारे मानने ही से मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं रहेगा, दया करके, मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो और आदमी बनो!
उत्तर :
लेखक बेईमान, धोखेबाज़ धर्माचार्यों तथा धार्मिक लोगों की अपेक्षा उन नास्तिकों को श्रेष्ठ मानता है जो अच्छे आचरणवाले हैं तथा दूसरों सुख-दुख में उनका साथ देते हैं। उन पाखंडियों से तो ईश्वर भी यही कहता है कि आप जैसे पाखंडियों के मानने से मेरा ईश्वरत्व दुनिया में कायम नहीं रह सकता। इसलिए तुम मुझपर दया करो और मानवता को मानो। तुम्हें पशुत्व त्याग कर मानव बनना होगा तभी तुम्हें भी ईश्वर मिल सकेगा।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
उदाहरण के अनुसार शब्दों के विपरीतार्थक लिखिए –
उदाहरण: सुगम – दुर्गम
धर्म, ईमान, साधारण, स्वार्थ, दुरुपयोग, नियंत्रित, स्वाधीनता।
उत्तर :

  • धर्म – अधर्म
  • ईमान – बेईमान
  • साधारण – असाधारण
  • स्वार्थ – निःस्वार्थ
  • दुरुपयोग – सदुपयोग
  • नियंत्रित – अनियंत्रित
  • स्वाधीनता – पराधीनता।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित उपसर्गों का प्रयोग करके दो-दो शब्द बनाइए –
ला, बिला, बे, बद, ना, खुश, हर, गैर।
उत्तर :

  • ला – लाचार, लापता।
  • बिला- बिलावजह, बिलाकसूर।
  • बे – बेईमान, बेरहम।
  • बद – बदनाम, बदनियत।
  • ना – नाचीज़, नापसंद।
  • खुश – खुशबू, खुशहाल।
  • हर – हरतरह, हरसाल।
  • गैर- गैरकानूनी, गैरमुल्क।

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प्रश्न 3.
उदाहरण के अनुसार ‘त्व’ प्रत्यय लगाकर पाँच शब्द बनाइए –
उदाहरण: देव + त्व = देवत्व
उत्तर :

  • लघु + त्व = लघुत्व
  • गुरु + त्व गुरुत्व
  • प्रभु + त्व प्रभुत्व
  • देव + त्व = देवत्व
  • ईश्वर + त्व = ईश्वरत्व।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित उदाहरण को पढ़कर पाठ में आए संयुक्त शब्दों को छाँटकर लिखिए –
उदाहरणः चलते-पुरज़े
उत्तर :

  • समझता – बूझता
  • पढ़े – लिखे
  • इने – गिने
  • मन – माना
  • लड़ाना – भिड़ाना
  • भली – भाँति
  • पूजा – पाठ।

प्रश्न 5.
‘भी’ का प्रयोग करते हुए पाँच वाक्य बनाइए –
उदाहरण : आज मुझे बाज़ार होते हुए अस्पताल भी जाना है।
उत्तर :
(क) सलमा तो वहीदा को भी अपने साथ विद्यालय ले जाएगी।
(ख) रोहित भी सैम्सन के साथ मुंबई जाएगा।
(ग) शांता भी कांता के साथ सुबह नौ बजे की लोकल से अँधेरी जाती है।
(घ) अहमद भी अशोक के साथ ट्यूशन पढ़ने जाता है।
(ङ) हमें भी गांधी जी की तरह सत्यवादी बनना चाहिए।

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योग्यता – विस्तार –

प्रश्न 1.
‘धर्म एकता का माध्यम है’ – इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi धर्म की आड़ Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘धर्म की आड़’ निबंध का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘धर्म की आड़’ निबंध के लेखक गणेश शंकर विद्यार्थी हैं। इस निबंध में लेखक ने उन धर्माचार्यों की पोल खोली है जो धर्म की आड़ लेकर जनता को भड़काते हैं तथा एक-दूसरे धर्मावलंबियों को आपस में लड़वाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। लेखक का मानना है कि एक सामान्य व्यक्ति धर्म के रहस्य को समझ नहीं पाता। इसलिए उसके भोलेपन का लाभ तथाकथित धर्म गुरु उठाते हैं। वे उन्हें गुमराह कर दूसरे धर्मवालों से लड़ाते रहते हैं और अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं। लेखक ऐसे लोगों से बचकर मानव-धर्म को अपनाने पर बल देता है। हम सुख-दुख में एक-दूसरे की सहायता करें। हमारा आचरण शुद्ध हो। हम किसी के धार्मिक अनुष्ठानों में बाधक न बनें। हम सबको अपने-अपने धर्म के अनुसार पूजा-पाठ की स्वतंत्रता हो। यही सच्चा धर्म है।

प्रश्न 2.
हमारे देश और पश्चिमी देशों में आम आदमी की डोर किसके हाथ में है और उसमें क्या अंतर है ?
उत्तर :
सभी जगह आम आदमी की शक्ति का दुरुपयोग किया जाता है। हमारे देश में आम आदमी की डोर धर्म के ठेकेदारों के हाथ में है और पश्चिमी देशों में आम आदमी की डोर धनपतियों के हाथ में है। यहाँ आम आदमी को ईश्वर धर्म-कर्म और आत्मा का डर दिखाकर उसे बुद्धिहीन कर दिया जाता है और वह अपने धर्मगुरु के बताए मार्ग पर चलकर उसकी स्वार्थ सिद्धि के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। पश्चिमी देशों में धनपति धन की शक्ति दिखाकर लोगों को अपने प्रभाव में लेते हैं और अपनी इच्छानुसार उनसे और अधिक धन कमाने के लिए काम करवाते हैं।

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प्रश्न 3.
लेखक धार्मिक झगड़ों को समाप्त करने के लिए क्या सुझाव देता है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार धार्मिक झगड़ों को समाप्त करने के लिए हमें साहस और दृढ़ता के साथ स्वार्थी तत्वों को बेनकाब करना होगा। धर्म और उपासना के मार्ग में किसी भी प्रकार की कोई रुकावट नहीं आने देनी चाहिए। धर्म और ईमान, ईश्वर और आत्मा के मध्य संबंध होना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म की पूजा-अर्चना करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए और कोई भी व्यक्ति किसी के धार्मिक कार्यों में अड़चन न डाले।

प्रश्न 4.
देश की स्वाधीनता के लिए किए जा रहे उद्योग में कौन-सा दिन सबसे बुरा था ? क्यों ?
उत्तर :
देश की स्वाधीनता के लिए किए जा रहे उद्योग में सबसे बुरा दिन वह था जिस दिन स्वाधीनता के क्षेत्र में खिलाफ़त, मुल्ला, मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान देना आवश्यक समझा गया। ऐसा करने से मौलाना अब्दुल बारी और शंकराचार्य जैसे लोगों ने देश में धर्म के नाम पर ढोंग, पागलपन और उत्पात आरंभ कर दिए थे और देश को एक अलग ही दिशा दे दी।

प्रश्न 5.
महात्मा गांधी के अनुसार धर्म क्या है ? हमें उनसे क्या सीखना चाहिए ?
उत्तर :
महात्मा गाँधी जीवन में उच्च विचार और उदार गुण को अपनाने को धर्म मानते हैं। इसके लिए मनुष्य को सदाचारी, सत्यवादी, परोपकारी, सज्जन और सहनशील होना चाहिए। अपने आचरण को शुद्ध रखते हुए सबसे मेल-मिलाप बनाए रखें। सदा दूसरों के सुख-दुख में सहयोगी बनें। हमें गाँधी जी के जीवन से यह सीखना चाहिए कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में धर्म के अनुसार आचरण करना है, जिससे हम एक अच्छा समाज बना सकें। इससे समाज में धर्म के नाम पर उत्पात नहीं होंगे तथा सब परस्पर मिल-जुलकर रहेंगे।

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प्रश्न 6.
ला- मज़हब से क्या अभिप्राय है और ईश्वर इन लोगों से अधिक प्यार क्यों करेगा?.
उत्तर :
ला – मज़हब से अभिप्राय यह है कि ‘जिसका कोई धर्म न हो’ अथवा ‘जो किसी भी धर्म को नहीं मानता हो’ ऐसे लोगों को नास्तिक भी कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति किसी भी प्रकार से धार्मिक आडंबरों को नहीं मानते हैं। ईश्वर ऐसे लोगों से अधिक प्यार करेगा जो धर्म के नाम पर दिखावा नहीं करते। जो अच्छे और ऊँचे विचारोंवाले हों। जिनका आचरण शुद्ध हो। जो सुख-दुख में सबका साथ देते हों। इन लोगों की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं होता है।

प्रश्न 7.
‘मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
लेखक इस कथन के माध्यम से यह संदेश देना चाहता है कि हमें मानवता को बढ़ावा देना चाहिए। इसके लिए हमें अपने आचरण में मानवतावादी गुणों का विकास करना चाहिए। पशुओं के समान आचरण नहीं करना चाहिए। यदि हम ऐसा आचरण करने लगेंगे तो समाज में धार्मिक उत्पात बंद हो जाएँ, विश्वबंधुत्व की भावना को बल मिलेगा और पशुता का नाश होगा।

धर्म की आड़ Summary in Hindi

लेखक परिचय :

जीवन-परिचय – गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म मध्यप्रदेश के ग्वालियर नगर में सन् 1891 ई० में हुआ था। इन्होंने एंट्रेंस परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद कानपुर के करेंसी कार्यालय में नौकरी कर ली थी। सन् 1921 ई० में इन्होंने ‘प्रताप’ साप्ताहिक – पत्र निकाला था। इन्होंने आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी को अपना साहित्यिक गुरु मानकर आज़ादी के लिए संघर्ष करने की प्रेरणादायक रचनाओं की रचना की थी। इन्होंने ऐसी कुछ रचनाओं का अनुवाद भी किया था। स्वतंत्रता आंदोलनों में सक्रिय रूप में भाग लेने के कारण इन्हें कई बार जेल यात्राएँ करनी पड़ी थीं। सन् 1931 ई० में कानपुर में हुए सांप्रदायिक दंगों को शांत करवाते हुए इनकी मृत्यु हो गई थी। इनकी मृत्यु पर गांधी जी ने कहा था कि ‘काश ! ऐसी मौत मुझे मिली होती !’

रचनाएँ – गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपनी रचनाओं में ग़रीबों, किसानों, मज़दूरों तथा समाज के अन्य शोषित वर्गों के प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त करते हुए उनकी दयनीय दशा का यथार्थ चित्रण किया है ‘प्रताप’ साप्ताहिक में इनके लेख देश को आजादी दिलाने के लिए युवा वर्ग को प्रेरित करते थे। इनकी रचनाओं में सांप्रदायिक सद्भाव का स्वर मुखरित होता था।

भाषा-शैली – गणेश शंकर विद्यार्थी की भाषा – शैली अत्यंत सरल, सहज, व्यावहारिक तथा प्रभावपूर्ण है। ‘ धर्म की आड़’ लेख में इन्होंने व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग किया है। इनका व्यंग्य अत्यंत तीक्ष्ण तथा मर्मभेदी होता है, जैसे – ‘ इस समय, देश में धर्म की धूम है। उत्पात किए जाते हैं, तो धर्म और ईमान के नाम पर, और ज़िद की जाती है, तो धर्म और ईमान के नाम पर।’

लेखक ने तत्सम प्रधान और लोक प्रचलित उर्दू के शब्दों का भरपूर प्रयोग किया है, जैसे- दुरुपयोग, नेतृत्व, अट्टालिकाएँ, पाश्चात्य, स्वार्थ, शुद्धाचरण, ईश्वरत्व, कायम, दीनदार, मज़हब, बेईमानी, एतराज़, खिलाफ़त, जाहिल, वाजिब। लेखक ने कहीं-कहीं उद्बोधनात्मक शैली का प्रयोग भी किया है, जैसे- ‘सबके कल्याण की दृष्टि से आपको अपने आचरण को सुधारना पड़ेगा और यदि आप अपने आचरण को नहीं सुधारेंगे तो नमाज़ और रोज़े, पूजा और गायत्री आपको देश के अन्य लोगों की आज़ादी को रौंदने और देश-भर में उत्पातों का कीचड़ उछालने के लिए आज़ाद न छोड़ सकेगी।’ इस प्रकार लेखक ने अपने विषय को सहज भाव से व्यक्त करने में सफलता प्राप्त की है।

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पाठ का सार :

‘धर्म की आड़’ गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा रचित निबंध है। इस पाठ में लेखक ने धर्म के नाम पर लोगों को आपस में लड़ाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करनेवालों पर कटाक्ष किया है। लेखक का मानना है कि इस समय देश में धर्म की धूम है। धर्म और ईमान के नाम पर उत्पात किए जाते हैं। रमुआ पासी और मियाँ धर्म और ईमान की वास्तविकता चाहे जानें या न जानें पर उनके नाम पर मरने-मारने को तैयार हो जाते हैं।

देश के सभी शहरों की यही दशा है। आम आदमी बिना कुछ समझे-बूझे कुछ स्वार्थी तत्वों के संकेतों पर उत्पात मचाने लग जाता है। इससे उन स्वार्थी लोगों को नेतृत्व मिल जाता है। वे अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेते हैं। आम आदमी धर्म के तत्वों को जानता नहीं है। वह तो यही समझता है कि धर्म और ईमान की रक्षा के लिए अपने प्राण तक दे देना उचित है। इसी का लाभ उठाकर चालाक स्वार्थी लोग उन्हें भड़का देते हैं।

पाश्चात्य देशों में धनी और गरीबों के संघर्ष के कारण साम्यवाद, बोल्शोविज़्म आदि का जन्म हुआ था। हमारे देश में ऐसी स्थिति तो नहीं है परंतु धर्म के नाम पर करोड़ों लोगों की शक्ति का दुरुपयोग हो रहा है और इसका लाभ कुछ स्वार्थी लोग उठा रहे हैं। धर्म और ईमान के नाम पर किए जानेवाले इस भीषण व्यापार को रोकने के लिए जब तक साहस और दृढ़ता के साथ प्रयास नहीं किया जाएगा तब तक भारतवर्ष में ऐसे झगड़े बढ़ते ही रहेंगे।

लेखक का विचार है कि देश में प्रत्येक व्यक्ति अपने धर्म की उपासना अपने ढंग से करने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए। धर्म और ईमान मन का सौदा हो, ईश्वर और आत्मा के बीच संबंध हो, आत्मा को शुद्ध करने और ऊँचा उठाने का साधन हो। इससे किसी दूसरे व्यक्ति की स्वाधीनता को हानि नहीं पहुँचनी चाहिए। दो भिन्न धर्मों के माननेवालों में टकराव नहीं होना चाहिए। यदि कोई ऐसा कार्य करता है तो उसका यह कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध माना जाए।

लेखक ने स्वाधीनता संग्राम के दिनों में उस दिन को सबसे बुरा दिन माना है जब स्वाधीनता आंदोलन में मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान दिया गया था। इसी के परिणामस्वरूप मौलाना अब्दुल बारी तथा शंकराचार्य जैसे लोगों ने देश में मज़हबी पागलपन, प्रपंच और उत्पात का राज्य स्थापित कर दिया था। महात्मा गांधी ने धर्म को सर्वत्र महत्त्व दिया है। उनके अनुसार धर्म का अर्थ ऊँचे और उदार विचारों से था।

वे आवाज़ देने, शंख बजाने के स्थान पर शुद्धाचरण और सदाचार को धर्म मानते थे। लेखक भी पाँच समय नमाज़ पढ़ने अथवा दो घंटे तक पूजा करने के बाद दिन-भर बेईमानी करने को उचित नहीं मानता। वह आचरण को सुधारने पर बल देता है। ऐसे आडंबरी धार्मिक और दीनदार व्यक्तियों से तो वह उन नास्तिकों को अच्छा और ऊँचा मानता है, जिनका आचरण अच्छा है जो दूसरों के सुख-दुख का ध्यान रखते हैं और धर्म-ईमान के नाम पर उत्पात मचाना ग़लत समझते हैं। ईश्वर भी ऐसे ही नास्तिकों को प्यार करता है जो मानवता को आदर देते हैं तथा पशुता को त्याग देते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • आड़ – ओट।
  • उत्पात – उपद्रव।
  • उबल पड़ना – क्रोधित होना।
  • दोष – बुराई।
  • जोत देना – हाँक देना, चला देना।
  • चलते-पुरजज़े – चालाक।
  • जाहिल – मूर्ख।
  • नेतृत्व – अगुवाई।
  • कायम – स्थिर।
  • सुगम – आसान।
  • वाज़िब – उचित।
  • बेजा – अनुचित।
  • फ़ायदा – लाभ।
  • अट्टालिकाएँ – ऊँचे-ऊँचे मकान।
  • धनाढ्य – धनवान, अमीर।
  • चूसा जाना – शोषण होना।
  • स्वार्थ सिद्धि – अपना स्वार्थ पूरा करना।
  • उद्योग – प्रयास।
  • टाँग-अड़ाना – विघ्न डालना।
  • विरुद्ध – विपरीत।
  • अनियंत्रित – जो नियंत्रण में न हो।
  • धूर्त – चालबाज़।
  • खिलाफ़त – ख़लीफ़ा का पद।
  • मज़हबी – धार्मिक।
  • प्रपंच – ढोंग, छल।
  • एतराज़ – विरोध, आपत्ति।
  • भलमनसाहत – सज्जनता, शराफ़त।
  • कसौटी – परख, जाँच।
  • ला-मज़हब – जिसका कोई धर्म न हो, नास्तिक।
  • उकसाना – भड़काना।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

JAC Class 9 Hindi कीचड़ का काव्य Textbook Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक- दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
रंग की शोभा ने क्या कर दिया ?
उत्तर :
रंग की शोभा उत्तर दिशा में जमी थी। उस दिशा में लाल रंग ने आज कमाल ही कर दिया था।

प्रश्न 2.
बादल किसकी तरह हो गए थे ?
उत्तर :
बादल धुनी हुई रूई की बत्ती के समान हो गए थे।

प्रश्न 3.
लोग किन-किन चीज़ों का वर्णन करते हैं ?
उत्तर :
लोग आकाश, पृथ्वी और जलाशयों का वर्णन करते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

प्रश्न 4.
कीचड़ से क्या होता है ?
उत्तर :
कीचड़ से पैर, शरीर और वस्त्र गंदे हो जाते हैं। किसी को अपने ऊपर कीचड़ लगाना अच्छा नहीं लगता है।

प्रश्न 5.
कीचड़ जैसा रंग कौन पसंद करते हैं ?
उत्तर :
पुस्तकों के गत्तों पर, घरों की दीवारों पर, कीमती कपड़ों के लिए हम सब कीचड़ के जैसा रंग पसंद करते हैं। कला के जानकार भी मटमैला रंग पसंद करते हैं।

प्रश्न 6.
नदी के किनारे कीचड़ कब सुंदर दिखता है ?
उत्तर :
नदी के किनारे का कीचड़ तब सुंदर दिखाई देता है जब उसके सूखकर टुकड़े हो जाते हैं।

प्रश्न 7.
कीचड़ कहाँ सुंदर लगता है ?
उत्तर :
नदी किनारे मीलों तक जब समतल और चिकना कीचड़ एक-सा फैला हुआ होता है तब और खंभात में मही नदी के आगे दूर-दूर तक फैला हुआ तथा पहाड़ के पहाड़ डुबो लेने की शक्ति रखनेवाला कीचड़ सुंदर लगता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

प्रश्न 8.
‘पंक’ और ‘पंकज’ शब्द में क्या अंतर है ?
उत्तर
‘पंक’ कीचड़ को कहते हैं। ‘पंकज’ का अर्थ कमल है। पंकज पंक + ज अर्थात् कीचड़ से उत्पन्न होने वाला। ‘पंक’ शब्द घृणास्पद है और पंकज मन को आनंदित कर देता है।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
कीचड़ के प्रति किसी को सहानुभूति क्यों नहीं होती ?
उत्तर :
कीचड़ के प्रति किसी को सहानुभूति इसलिए नहीं होती क्योंकि कीचड़ में पैर डालना कोई पसंद नहीं करता। कीचड़ से शरीर गंदा हो जाता है। कीचड़ से वस्त्र मैले हो जाते हैं। अपने शरीर पर कीचड़ उड़े, यह किसी को पसंद नहीं है। सब कीचड़ से बचते हैं।

प्रश्न 2.
ज़मीन ठोस होने पर उसपर किनके पदचिह्न अंकित होते हैं ?
उत्तर :
जब कीचड़ ज़्यादा सूखकर ज़मीन को ठोस बना देती है तो उसपर गाय, बैल, भैंस, पाड़े, बकरे, भेड़ आदि के पदचिह्न दिखाई देने लगते हैं। कई बार इसपर आपस में लड़ते हुए पाड़े के सींगों के चिह्न भी दिखाई देते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

प्रश्न 3.
मनुष्य को क्या ज्ञान होता जिससे वह कीचड़ का तिरस्कार न करता ?
उत्तर :
मनुष्य को यदि इस बात का ज्ञान होता है कि हम धान भी कीचड़ में से ही पैदा करते हैं तो वह कभी भी कीचड़ का तिरस्कार नहीं करता। भारत के उत्तरी-पूर्वी राज्यों में सबसे अधिक पैदा होनेवाली धान की फसल कीचड़ में ही उगती है।

प्रश्न 4.
पहाड़ लुप्त कर देनेवाली कीचड़ की क्या विशेषता है ?
उत्तर :
खंभात के पास मही नदी के मुख से आगे जहाँ तक देखते हैं कीचड़ ही कीचड़ दिखाई देता है। यह कीचड़ इतना गहरा है कि इसमें हाथी तो क्या पहाड़ तक लुप्त हो सकते हैं।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
कीचड़ का रंग किन-किन लोगों को खुश करता है ?
उत्तर :
लेखक का मानना है कि कीचड़ का रंग बहुत सुंदर होता है। लोग पुस्तकों के गत्तों पर, घरों की दीवारों पर अथवा शरीर के कीमती कपड़ों के लिए कीचड़ के जैसे रंग पसंद करते हैं। कला के जानकारों को भी भट्टी में पकाए मिट्टी के बरतनों के लिए यही रंग पसंद है। फोटो लेते समय भी यदि उसमें मटमैलापन आ जाए तो फोटो के जानकार प्रसन्न हो जाते हैं।

प्रश्न 2.
कीचड़ सूखकर किस प्रकार के दृश्य उपस्थित करता है ?
उत्तर :
नदी किनारे जब कीचड़ सूख कर टुकड़े हो जाते हैं तो उसपर पड़ने वाली दरारें बहुत सुंदर लगती हैं। ज्यादा गरमी में जब इन टुकड़ों पर दरारें पड़ती हैं और ये टेढ़े हो जाते हैं, तब ये सुखाए हुए खोपरे जैसे दिखाई देते हैं। नदी किनारे मीलों तक फैला हुआ समतल और चिकना कीचड़ बहुत आकर्षक दृश्य उपस्थित करता है। इस कीचड़ के कुछ सूख जाने पर इसपर बने हुए बगुले तथा अन्य पक्षियों के चलने के निशान भी देखने में अच्छे लगते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

प्रश्न 3.
सूखे हुए कीचड़ का सौंदर्य किन स्थानों पर दिखाई देता है ?
उत्तर :
नदी के किनारे जब कीचड़ के सूखकर टुकड़े हो जाते हैं तब सूखे हुए कीचड़ का सौंदर्य दिखाई देता है। यही कीचड़ के सूखे हुए टुकड़े अधिक गरमी के कारण टेढ़े होकर सूखे खोपरे जैसे दिखाई देते हैं। सूखे हुए कीचड़ पर चलनेवाले बगुले तथा अन्य पक्षियों के पद – चिह्न भी देखने में सुंदर लगते हैं। जब कीचड़ अधिक सूखकर ठोस हो जाता है तो उसपर गाय, बैल, भैंस, भेड़ आदि के अंकित पद – चिह्नों की शोभा निराली ही होती है।

प्रश्न 4.
कवियों की धारणा को लेखक ने वृत्ति-शून्य क्यों कहा है ?
उत्तर :
कवियों की धारणा को लेखक ने वृत्ति-शून्य इसलिए कहा है क्योंकि वे लेखक के इस तर्क को स्वीकार नहीं करेंगे कि जिस ‘पंक’ शब्द को सुनने मात्र से ही वे पंक से घृणा करने लगते हैं, उसी ‘पंक’ से उत्पन्न पंकज का नाम सुनने से उनका मन हर्षित होकर गाने क्यों लगता है ? उस ‘पंक’ से उनकी घृणा व्यर्थ है। हमारा अन्न भी कीचड़ से ही पैदा होता है। इसलिए कीचड़ का तिरस्कार करना उचित नहीं है। वे अपना तर्क देकर लेखक के तर्क को स्वीकार नहीं करेंगे।

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
नदी किनारे अंकित पदचिह्न और सींगों के चिह्नों से मानो महिषकुल के भारतीय युद्ध का पूरा इतिहास ही इस कर्दम लेख
में लिखा हो ऐसा भास होता है।
उत्तर :
नदी के किनारे के सूखे कीचड़ में जवान भैंसे जब अपने सींगों को उस सूखे कीचड़ में धँसाकर आपस में मस्त होकर जूझते होंगे तो उनके परस्पर टकराने से उस सूखे कीचड़ पर जो चिह्न बनते हैं उनसे ऐसा प्रतीत होता है मानो भैंसों के परिवार के भारतीय युद्ध का पूरा इतिहास ही इस कीचड़ पर एक लेख के रूप में लिख दिया गया है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

प्रश्न 2.
आप वासुदेव की पूजा करते हैं इसलिए वसुदेव को तो नहीं पूजते, हीरे का भारी मूल्य देते हैं किंतु कोयले या पत्थर का नहीं देते और मोती को कंठ में बाँध कर फिरते हैं किंतु उसकी मातुश्री को गले में नहीं बाँधते !” कम-से-कम इस विषय पर कवियों के साथ तो चर्चा न करना ही उत्तम !
उत्तर :
लेखक जब कवियों को समझाना चाहता है कि कीचड़ का तिरस्कार करना उचित नहीं है तो यह सोचकर कवि उसे कहेंगे कि जब वासुदेव की पूजा करने पर वसुदेव को नहीं पूजा जाता, हीरे के लिए अधिक मूल्य देते हैं पर कोयले या पत्थर का अधिक मूल्य नहीं देते तथा मोती कंठ में पहनते हैं परंतु सीपी को तो गले में नहीं बाँधते हैं – वह उनसे कीचड़ की श्रेष्ठता के संबंध में कोई चर्चा न करना ही उचित मानता है।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के तीन-तीन पर्यायवाची शब्द लिखिए –
उत्तर :
JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य 1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों में कारकों को रेखांकित कर उनके नाम भी लिखिए-
उत्तर :

  1. कीचड़ का नाम लेते ही सब बिगड़ जाता है। – संबंध
  2. क्या कीचड़ का वर्णन कभी किसी ने किया है ? – संबंध
  3. हमारा अन्न कीचड़ से ही पैदा होता है। – करण
  4. पदचिह्न उस पर अंकित होते हैं। – अधिकरण
  5. आप वासुदेव की पूजा करते हैं। – संबंध

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों की बनावट को ध्यान से देखिए और इनका पाठ से भिन्न किसी नए प्रसंग में वाक्य प्रयोग कीजिए –
आकर्षक, यथार्थ, तटस्थता, कलाभिज्ञ, पदचिह्न, अंकित, तृप्ति, सनातन, लुप्त, जागृत, घृणास्पद, युक्ति शून्य, वृत्ति।
उत्तर :

  • आकर्षक – कन्याकुमारी में सूर्यास्त का दृश्य बहुत आकर्षक होता है।
  • यथार्थ – प्रेमचंद के साहित्य में ग्राम्य जीवन का यथार्थ चित्रण देखने को मिलता है।
  • तटस्थता – न्याय करते समय हमें तटस्थता की नीति अपनानी चाहिए।
  • कलाभिज्ञ – कलादीर्घा में अनेक कलाभिज्ञ एकत्र हुए।
  • पदचिह्न – हमें महापुरुषों के पदचिह्नों पर चलना चाहिए।
  • अंकित – सुभाषचंद बोस का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।
  • तृप्ति – गंगा – स्नान से मुझे तृप्ति मिली।
  • सनातन – हमें अपनी सनातन परंपराओं का पालन करना चाहिए।
  • लुप्त – मेरे देखते-देखते ही सुबह का तारा लुप्त हो गया।
  • जागृत – जागृत अवस्था में स्वप्न देखना उचित नहीं है।
  • घृणास्पद – गंदगी का ढेर देखना ही घृणास्पद है।
  • युक्ति शून्य – जया के सभी तर्क युक्ति शून्य थे।
  • वृत्ति – पीयूष विनम्र वृत्ति का बालक है।

प्रश्न 4.
नीचे दी गई संयुक्त क्रियाओं का प्रयोग करते हुए कोई अन्य वाक्य बनाइए –
(क) देखते-देखते वहाँ के बादल श्वेत पूनी जैसे हो गए।
उत्तर :
मेरे देखते-देखते ही गाड़ी चल पड़ी।

(ख) कीचड़ देखना हो तो सीधे खंभात पहुँचना चाहिए।
उत्तर :
सागर देखना हो तो सीधे कन्याकुमारी पहुँचना चाहिए।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

(ग) हमारा अन्न कीचड़ में से ही पैदा होता है
उत्तर :
कमल कीचड़ में से ही पैदा होता है।

प्रश्न 5.
न नहीं, मत का सही प्रयोग रिक्त स्थानों पर कीजिए-
(क) तुम घर ………. जाओ।
(ख) मोहन कल ………. आएगा।
(ग) उसे ………… जाने क्या हो गया है ?
(घ) डाँटो …………. प्यार से कहो।
(ङ) मैं वहाँ कभी ………… जाऊँगा।
(च) ………… वह बोला ……….. मैं।
उत्तर :
(क) तुम घर मत जाओ।
(ख) मोहन कल नहीं आएगा।
(ग) उसे न जाने क्या हो गया है ?
(घ) डाँटो मत प्यार से कहो।
(ङ) मैं वहाँ कभी नहीं जाऊँगा।
(च) न वह बोला न मैं।

योग्यता-विस्तार –

1. विद्यार्थी सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य देखें तथा अपने अनुभवों को लिखें।
2. कीचड़ में पैदा होनेवाली फसलों के नाम लिखिए।
3. भारत के मानचित्र में दिखाएँ कि धान की फसल प्रमुख रूप में किन-किन प्रांतों में उपजाई जाती है ?
4. क्या कीचड़ ‘गंदगी’ है ? इस विषय पर अपनी कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi कीचड़ का काव्य Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘कीचड़ का काव्य’ पाठ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘कीचड़ का काव्य’ काका कालेलकर द्वारा रचित एक ललित निबंध है। इस निबंध में लेखक ने कीचड़ की उपयोगिता का वर्णन किया है। लेखक के विचार में हमें कीचड़ के गंदेपन पर नहीं बल्कि उसकी मानव तथा पशु-पक्षियों के जीवन में उपयोगिता पर ध्यान देना चाहिए। मनुष्य मटमैला रंग पसंद करता है तथा पशु-पक्षियों को कीचड़ में क्रीड़ा करना और उसपर चलना अच्छा लगता है। देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों में सबसे अधिक पैदा होनेवाली धान की फसल कीचड़ में ही उग पाती है। कमल जिसे पंकज कहते हैं ‘पंक’ कीचड़ में से ही उगता है। इस प्रकार लेखक ने कीचड़ को हेय न कह श्रद्धेय माना है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

प्रश्न 2.
लेखक ने कीचड़ की महानता कैसे सिद्ध की है ?
उत्तर :
कीचड़ की महानता सिद्ध करने के लिए लेखक ने तीन उदाहरण दिए हैं। लेखक के अनुसार यदि मनुष्य यह अच्छी तरह से समझ ले कि धान जैसी फसल कीचड़ में ही पैदा होती है तो वह कीचड़ का तिरस्कार नहीं करेगा। दूसरे उदाहरण में, लेखक यह बताता है कि पंक से ही पंकज अर्थात कमल पैदा होता है, इसलिए पंक, कीचड़ से घृणा करना उचित नहीं है। इसी प्रकार से मल की मलिनता से परेशान नहीं होना चाहिए क्योंकि कमल में मल शब्द का प्रयोग होता है और कमल मन को आनंदित करता है।

प्रश्न 3.
आज लेखक को पूर्व और उत्तर दिशा में क्या अंतर दिखाई दे रहा है ?
उत्तर :
आज लेखक को पूर्व दिशा में विशेष आकर्षण दिखाई नहीं दे रहा था, क्योंकि बादलों के कारण पूर्व दिशा रंगहीन थी। दूसरी ओर उत्तर दिशा की लालिमा देखते ही बन रही थी। वहाँ बादलों ने अभी अपने पैर नहीं रखे थे, परंतु कितनी देर तक उत्तर दिशा लाल रंग में रँगी रहेगी। कुछ ही देर में वहाँ भी बादल छा गए।

प्रश्न 4.
कवि कीचड़ का वर्णन क्यों नहीं करते हैं? वे किन-किन चीज़ों की सुंदरता का वर्णन करते हैं ?
उत्तर :
कवि कीचड़ का वर्णन नहीं करते हैं, क्योंकि कीचड़ में पैर डालने से ही शरीर के साथ-साथ मन भी गंदा अनुभव करने लगता है और कपड़े गंदे हो जाते हैं, इसलिए सभी कीचड़ से दूर रहना पसंद करते हैं।
कवि प्रकृति का चित्रण करते हैं-धरती, आकाश, जलाशयों आदि की सुंदरता का वर्णन करते हैं। उन्हें आकाश का खुलापन, धरती की हरियाली और जलाशयों का कल-कल ध्वनि करता जल अधिक आकर्षित करता है। उन्हें चारों ओर रंग बिखेरनेवाली चीजें अधिक पसंद आती हैं। इसलिए वे लोग कीचड़ का वर्णन नहीं करते हैं।

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प्रश्न 5.
लेखक के अनुसार कीचड़ में कैसा सौंदर्य है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार कीचड़ में भी सौंदर्य है। कीचड़ का रंग बहुत सुंदर है। लोग पुस्तकों के गत्तों पर और घरों की दीवारों पर कीचड़ जैसे ही रंग पसंद करते हैं। कलाकारों को भी कीचड़ के रंग पसंद आते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि कीचड़ में भी सौंदर्य होता है।

प्रश्न 6.
लेखक कीचड़ देखने के लिए कहाँ जाने के लिए कह रहा है ?
उत्तर :
लेखक कहता है कि यदि कीचड़ देखने की इच्छा हो तो गंगा के किनारे या सिंधु नदी के किनारे जाना चाहिए। वहाँ कीचड़ का विशाल रूप दिखाई देगा। यदि वहाँ कीचड़ देखने से भी तृप्ति न मिले तो उसका विराट रूप देखने के लिए खंभात जाना चाहिए। वहाँ महानदी के मुख से आगे जहाँ तक भी नज़र जाए कीचड़ – ही कीचड़ देखने को मिलेगा। वहाँ कीचड़ इतना गहरा है कि उसमें पहाड़ भी डूब जाएँ।

प्रश्न 7.
कीचड़ में कौन-सा फूल और अन्न पैदा होता है ?
उत्तर :
पूर्वी क्षेत्रों में सबसे ज्यादा पैदा होनेवाली धान की फसल कीचड़ में ही होती है। हमारा राष्ट्रीय फूल कमल जो अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, वह भी कीचड़ में पैदा होता है। पंक, कीचड़ में पैदा होने के कारण उसे पंकज भी कहा जाता है।

कीचड़ का काव्य Summary in Hindi

लेखक – परिचय :

जीवन-परिचय – महात्मा गांधी के जीवन से अत्यंत प्रभावित काका कालेलकर अनूठे व्यक्तित्व के स्वामी थे। आपका जन्म महाराष्ट्र के सतारा नगर में सन् 1885 ई० में हुआ था। यह मराठी भाषी थे पर इन्हें हिंदी से विशेष लगाव था। यह महात्मा गांधी के साथ राष्ट्रभाषा प्रचार कार्य में लंबे समय तक जुड़े रहे। उस समय हिंदी के लिए ही ‘राष्ट्रभाषा’ शब्द का प्रयोग होता था। यह अनेक वर्षों तक साहित्य अकादमी में गुजराती भाषा के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते रहे। अपने जीवनकाल में इन्होंने देश-विदेश में दूर-दूर तक भ्रमण किया। यह घुमक्कड़ स्वभाव के थे। इनका देहावसान सन् 1982 में हुआ।

रचनाएँ – काका कालेलकर ने अपने जीवनकाल में लगभग 30 पुस्तकों की रचना की थी, जिनमें से प्रमुख हैं – हिमालनो प्रवास, लोकमाता (यात्रा – विवरण), स्मरण यात्रा संस्मरण, धर्मोदय (आत्मचरित), जीवननो आनंद, अवारनवार (निबंध-संग्रह)। इनकी अधिकांश पुस्तकों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है।

भाषा-शैली – काका कालेलकर मात्र घुमक्कड़ ही नहीं थे बल्कि अत्यंत उच्चकोटि के विद्वान और विचारक भी थे। उन्होंने स्वयं को केवल हिंदी के प्रचार तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि हिंदी – साहित्य को अपने लेखन से समृद्ध भी किया। यह घूमने-फिरने के शौकीन थे, इसलिए इन्होंने यात्रा – वृत्तांत के अंतर्गत हिंदी – साहित्य को देश-विदेश के लोगों का रहन-सहन, प्राकृतिक दृश्यों, स्वभावों, आदतों तथा विभिन्न समस्याओं से परिचित कराया। इनके द्वारा रचित निबंध विचारात्मक और विवरणात्मक शैली में हैं।

वर्णन में सजीवता का गुण लाने में इन्हें निपुणता प्राप्त है। तर्कपूर्ण ढंग से अपनी बात को प्रस्तुत करना इनकी लेखन शैली की विशिष्टता है। इनके चिंतन प्रधान निबंधों में भावात्मकता का पुट विद्यमान रहता है। अपनी सूक्ष्म दृष्टि से इन्होंने मानव मन में झाँकने की चेष्टा की है और किसी क्षेत्र के कण-कण को पहचानने का सफल प्रयत्न किया है। इनका लेखन कार्य अति प्रभावशाली है। सजीव और जीवंत भाषा – प्रयोग में यह सिद्धहस्त थे, इन्होंने तत्सम और तद्भव शब्दावली का समन्वित प्रयोग कर अपने विचारों को व्यक्त किया।

‘कीचड़ का काव्य’ निबंध में लेखक ने कीचड़ की उपयोगिता का काव्यमय भाषा – शैली में वर्णन किया है; जैसे- ” नदी के किनारे जब कीचड़ सूखकर उसके टुकड़े हो जाते हैं, तब वे कितने सुंदर दिखते हैं। ज्यादा गरमी से जब उन्हीं टुकड़ों में दरारें पड़ती हैं और वे टेढ़े हो जाते हैं, तब सुखाए हुए खोपरे जैसे दीख पड़ते हैं। ” इनके इन वर्णनों में चित्रात्मकता के भी दर्शन होते हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

पाठ का सार :

‘कीचड़ का काव्य’ काका कालेलकर द्वारा रचित ललित निबंध है। इस पाठ में लेखक ने कीचड़ की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए उसे श्रद्धेय बताया है। लेखक सूर्योदय का वर्णन करते हुए लिखता है कि आज सुबह पूर्व दिशा की अपेक्षा उत्तर दिशा में लालिमा थी जिसे कुछ ही देर बाद श्वेत कपास की पूनी जैसी रंगत के बादलों ने ढक दिया था। आकाश, पृथ्वी, जलाशयों का वर्णन तो सब करते हैं परंतु कीचड़ का वर्णन कोई नहीं करता है।

शायद इसलिए कि कीचड़ से स्वयं को गंदा करना किसी को भी अच्छा नहीं लगता है। लेखक को कीचड़ में भी सौंदर्य दिखाई देता है क्योंकि इसका रंग बहुत सुंदर है और लोग पुस्तकों के गत्ते पर घरों की दीवारों, कीमती कपड़ों आदि के लिए कीचड़ के जैसा रंग पसंद करते हैं। कलाकारों को भी यही रंग पसंद है पर कीचड़ का नाम लेते ही लोग नाक-भौं सिकोड़ लेते हैं।

लेखक नदी के किनारे सूखे हुए कीचड़ के टुकड़ों को सुखाए हुए खोपरों जैसा देखता है। नदी के किनारे दूर तक समतल और चिकने कीचड़ पर बगुलों और अन्य पक्षियों के पद- चिह्न लेखक को इन्हीं पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। कीचड़ जब अधिक सूखकर ठोस ज़मीन बन जाता है तो उसपर गाय, बैल, भैंस, भेड़ आदि के पद – चिह्न तथा अपने सींगों को कीचड़ से भरकर मल्ल युद्ध करनेवाले मदमस्त भैंसों के चिह्न इस दृश्य को और भी अधिक आकर्षक बना देते हैं के गंगा, सिंधु नदी के किनारे की कीचड़ से भी अधिक कीचड़ खंभात में माही नदी के मुख से आगे कीचड़ ही कीचड़ है जिसमें पहाड़ पहाड़ लुप्त हो सकते हैं।

हम लोग धान भी कीचड़ में पैदा करते हैं। कमल को पंकज भी कहते हैं जो कीचड़ से ही उत्पन्न होता है। मल से मलिनता का बोध होता है परंतु कमल में ‘मल’ शब्दांश के प्रयोग से कमल के समान मन खिल उठता है। लेखक कहता है कि यदि कवियों को ऐसे तर्क दें तो उन्हें नहीं समझाया जा सकता क्योंकि वे तो यही तर्क देंगे कि ‘वासुदेव की पूजा करते हैं परंतु वसुदेव की नहीं, हीरे कीमती होते हैं पर कोयला या पत्थर तो नहीं, मोती को गले में बाँधते हैं पर सीपी को तो नहीं।’ इसलिए वह कवियों से इस संबंध में कोई चर्चा नहीं करना चाहता।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 कीचड़ का काव्य

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • पूर्व – पूर्व दिशा।
  • आकर्षक – मुग्ध करनेवाला, रोचक।
  • शोभा – सुंदरता।
  • उत्तर – उत्तर दिशा।
  • श्वेत – सफ़ेद।
  • पूनी – धुनी हुई रूई की बत्ती।
  • जलाशय – तालाब।
  • तटस्थता – बिना भेदभाव के।
  • कलाभिज्ञ – कला के जानकार।
  • वार्मटोन – मटमैला रंग।
  • विज्ञ – जानकार।
  • खोपरे – नारियल।
  • पद-चिहून – पैरों के निशान।
  • अंकित – चिह्नित।
  • कारवाँ – झुंड।
  • पाड़े – भैंस के नर बच्चे।
  • महिषकुल – भैंसों का परिवार।
  • कर्दम – कीचड़।
  • अल्पोक्ति – थोड़ा कहना।
  • लुप्त – गायब।
  • आहूलादकत्व – हर्ष का भाव।
  • युक्तिशून्य – तर्क से रहित।
  • वृत्ति – स्वभाव।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन

JAC Class 9 Hindi वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन Textbook Questions and Answers

मौखिक –

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –

प्रश्न 1.
रामन भावुक प्रकृति-प्रेमी के अलावा और क्या थे ?
उत्तर :
रामन भावुक प्रकृति-प्रेमी के अतिरिक्त एक जिज्ञासु वैज्ञानिक भी थे।

प्रश्न 2.
समुद्र को देखकर रामन के मन में कौन-सी दो जिज्ञासाएँ उठीं ?
उत्तर :
समुद्र को देखकर रामन के मन में दो जिज्ञासाएँ उठीं कि समुद्र का रंग नीला क्यों होता है और समुद्र का रंग कोई दूसरा क्यों नहीं होता।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन

प्रश्न 3.
रामन के पिता ने उनमें किन विषयों की सशक्त नींव डाली ?
उत्तर :
रामन के पिता ने उनमें गणित और भौतिकी विषयों की सशक्त नींव डाली थी।

प्रश्न 4.
वाद्ययंत्रों की ध्वनियों के अध्ययन के द्वारा रामन क्या करना चाहते थे ?
उत्तर :
वाद्ययंत्रों की ध्वनियों के अध्ययन के द्वारा रामन उनकी ध्वनियों के पीछे छिपे वैज्ञानिक रहस्यों की परतें खोलना चाहते थे।

प्रश्न 5.
सरकारी नौकरी छोड़ने के पीछे रामन की क्या भावना थी ?
उत्तर :
रामन ने सरकारी नौकरी इसलिए छोड़ दी थी क्योंकि वे मानते थे कि सरस्वती की साधना सरकारी नौकरी की सुख-सुविधाओं से अधिक महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 6.
‘रामन प्रभाव’ की खोज के पीछे कौन-सा सवाल हिलोरें ले रहा था ?
उत्तर :
‘रामन प्रभाव’ की खोज के पीछे समुद्र के नीले रंग की वजह का सवाल हिलोरें ले रहा था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन

प्रश्न 7.
प्रकाश – तरंगों के बारे में आइंस्टाइन ने क्या बताया ?
उत्तर :
आइंस्टाइन के अनुसार प्रकाश – तरंगें प्रकाश के अति सूक्ष्म कणों की तीव्र धारा के समान हैं।

प्रश्न 8.
रामन की खोज ने किन अध्ययनों को सहज बनाया ?
उत्तर :
रामन की खोज ने पदार्थों की आण्विक और परमाण्विक संरचना के अध्ययनों को सहज बनाया।

लिखित –

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
कॉलेज के दिनों में रामन की दिली इच्छा क्या थी ?
उत्तर :
चपन से ही वैज्ञानिक रहस्यों को सुलझाने में लगे रहते थे। अपने कॉलेज के दिनों में उन्होंने शोधकार्यों में दिलचस्पी लेना प्रारंभ कर दिया था। उन्हीं दिनों उनका एक शोध – आलेख ‘फिलॉसॉफिकल’ मैगज़ीन में प्रकाशित भी हुआ था। उनकी दिली इच्छा यह थी कि वे अपना सारा जीवन शोधकार्य में लगा दें, किंतु उन दिनों इस कार्य को पूर्णकालिक व्यवसाय के रूप में अपनाने की कोई व्यवस्था नहीं थी।

प्रश्न 2.
वाद्ययंत्रों पर की गई खोजों से रामन ने कौन-सी भ्रांति तोड़ने की कोशिश की ?
उत्तर :
वाद्ययंत्रों की ध्वनियों पर किए जा रहे अपने शोधकार्यों में रामन ने वायलिन, चैलो, पियानो जैसे विदेशी वाद्यों के साथ ही वीणा, तानपूरा, मृदंगम् जैसे देशी वाद्यों पर भी काम किया था। उन्होंने वैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर पश्चिमी देशों की इस भ्रांति को भी तोड़ने की कोशिश की थी कि भारतीय वाद्ययंत्र विदेशी वाद्यों की तुलना में घटिया हैं।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन

प्रश्न 3.
रामन के लिए नौकरी संबंधी कौन-सा निर्णय कठिन था ?
उत्तर :
रामन के लिए सरकारी नौकरी छोड़कर कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर का पद स्वीकार करने का निर्णय लेना कठिन था। उन दिनों वे अत्यंत प्रतिष्ठित सरकारी पद पर थे। उन्हें अच्छा वेतन और अनेक सरकारी सुविधाएँ प्राप्त थीं। उन्हें नौकरी करते हुए भी दस साल हो चुके थे।

प्रश्न 4.
सर चंद्रशेखर वेंकट रामन को समय-समय पर किन-किन पुरस्कारों से सम्मानित किया गया ?
उत्तर :
रामन को ‘रामन प्रभाव’ की खोज पर सन् 1924 ई० में रॉयल सोसायटी की सदस्यता से सम्मानित किया गया। सन् 1929 ई० में उन्हें ‘सर’ की उपाधि प्रदान की गई। सन् 1930 ई० में उन्हें भौतिकी में नोबेल पुरस्कार मिला। सन् 1954 ई० में इन्हें ‘भारत रत्न’ प्रदान किया गया। इन्हें रोम का मेत्यूसी पदक, रॉयल सोसाइटी का ह्यूज़ पदक, फ़िलाडेल्फ़िया इंस्टीट्यूट का फ्रैंकलिन पदक और सोवियत रूस का अंतर्राष्ट्रीय लेनिन पुरस्कार भी मिला था।

प्रश्न 5.
‘रामन को मिलनेवाले पुरस्कारों ने भारतीय चेतना को जागृत किया।’ ऐसा क्यों कहा जाता है ?
उत्तर :
रामन नोबेल पुरस्कार प्राप्त करनेवाले पहले भारतीय वैज्ञानिक थे। उन्हें अन्य पदक और पुरस्कार तब मिले थे जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था। उन्हें मिलनेवाले सम्मानों ने भारत को एक नया आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास दिया था। उनसे प्रेरणा प्राप्त कर अन्य भारतीय वैज्ञानिकों ने भी अलग-अलग क्षेत्रों में शोधकार्य प्रारंभ कर दिए थे। इस प्रकार उन्हें मिलनेवाले पुरस्कारों ने भारतीय चेतना को जागृत कर दिया था।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

प्रश्न 1.
रामन के प्रारंभिक शोधकार्य को आधुनिक हठयोग क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
रामन कोलकाता में सरकारी नौकरी करते थे। इन दिनों भी उनकी वैज्ञानिक शोधकार्यों में रुचि बनी हुई थी। वे अपने कार्यालय से लौटते हुए बहू बाज़ार में स्थित डॉक्टर महेंद्र लाल द्वारा स्थापित ‘इंडियन एसोसिएशन फ़ॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस’ की प्रयोगशाला में उपलब्ध उपकरणों की सहायता से अपना शोधकार्य करते थे। उनका यह कार्य वास्तव में आधुनिक हठयोग का उदाहरण था जिसमें एक साधक अपने कार्यालय में कठिन परिश्रम करने के बाद बहू बाज़ार की साधारण – सी प्रयोगशाला में काम चलाऊ उपकरणों की सहायता से और अपनी प्रबल इच्छा-शक्ति के बल पर भौतिक विज्ञान को समृद्ध बनाने का प्रयास करता था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन

प्रश्न 2.
रामन की खोज ‘रामन प्रभाव’ क्या है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
रामन ने अनेक ठोस रवों और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन किया था। इसी के परिणाम को ‘रामन प्रभाव’ कहा गया है। इसके अनुसार जब एकवर्णीय प्रकाश की किरण किसी तरल या ठोस रवेदार पदार्थ से गुज़रती है तो गुज़रने के बाद उसके वर्ण में परिवर्तन आता है। इसका कारण यह होता है कि एकवर्णीय प्रकाश की किरण के फोटॉन जब तरल या ठोस रवे से गुज़रते हैं तो इनके अणुओं से टकराते हैं। इस कारण वे या तो ऊर्जा का कुछ अंश खो देते हैं या पा जाते हैं। दोनों ही स्थितियों में प्रकाश के वर्ण अथवा रंग में बदलाव आता है। एकवर्णीय प्रकाश की किरणों में सबसे अधिक ऊर्जा बैंगनी रंग के प्रकाश में होती है। इसके बाद नीले, आसमानी, हरे, पीले, नारंगी और लाल वर्ण आते हैं। एकवर्णीय प्रकाश-तरल या ठोस रवों से गुज़रते हुए जिस परिणाम में ऊर्जा खोता या पाता है, उसी हिसाब से उसका वर्ण परिवर्तित होता है।

प्रश्न 3.
‘रामन प्रभाव’ की खोज से विज्ञान के क्षेत्र में कौन-कौन से कार्य संभव हो सके ?
उत्तर :
‘रामन प्रभाव’ की खोज भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांति के समान थी। इससे प्रकाश की प्रकृति के संबंध में आइंस्टाइन ने जो कहा था उसका प्रायोगिक प्रमाण मिल गया क्योंकि एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन प्रकाश की किरण का तीव्रगामी सूक्ष्म कणों के प्रवाह के रूप में व्यवहार करती है। ‘रामन प्रभाव’ से पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना के अध्ययन में सहायता मिलती है। इस तकनीक द्वारा एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन के आधार पर पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की संरचना की सही जानकारी मिल जाती है। इससे पदार्थों का संश्लेषण प्रयोगशाला में करना तथा अनेक उपयोगी पदार्थों का कृत्रिम रूप से निर्माण भी संभव हो गया है।

प्रश्न 4.
देश को वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन प्रदान करने में सर चंद्रशेखर वेंकट रामन के महत्त्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
रामन केवल व्यक्तिगत प्रयोगों एवं वैज्ञानिक शोध-पत्र लेखन तक ही सीमित नहीं थे। उन्हें अपने भारतीय होने पर गर्व था। उनमें निहित राष्ट्रीय चेतना ने उन्हें देश में वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन के विकास की प्रेरणा दी। उन्हें स्मरण था कि किस प्रकार काम चलाऊ उपकरणों से वे बहू बाज़ार की प्रयोगशाला में वैज्ञानिक अनुसंधान में लगे रहते थे। इसलिए उन्होंने एक अत्यंत उन्नत प्रयोगशाला और शोध-संस्थान ‘रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट’ के नाम से बंगलौर में स्थापित की। उन्होंने भौतिक शास्त्र में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए ‘इंडियन जनरल ऑफ़ फीज़िक्स’ निकाला तथा ‘करेंट साइंस’ नामक पत्रिका का संपादन किया। उन्होंने अनेक शोधार्थियों का मार्गदर्शन भी किया था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन

प्रश्न 5.
सर चंद्रशेखर वेंकट रामन के जीवन से प्राप्त होनेवाले संदेश को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
सर चंद्रशेखर वेंकट रामन के जीवन से हमें यह संदेश मिलता है कि मनुष्य अपने जीवन में जो करना चाहता है वह उसे कर सकता है यदि उसमें उस कार्य को करने की लगन तथा इच्छा हो। रामन की शोधकार्य में इच्छा थी परंतु उन्हें एम० ए० करने के बाद वित्त विभाग में सरकारी नौकरी करनी पड़ी। इससे वे विचलित नहीं हुए बल्कि समय निकालकर सामान्य – सी प्रयोगशाला में अपने शोध करते रहे।

जब उन्हें कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर की नौकरी मिली तो वे सरकारी सुख-सुविधाएँ छोड़कर प्रोफ़ेसर की कम सुविधाओं और वेतनवाली नौकरी करने लगे क्योंकि यहाँ पढ़ने-लिखने और शोधकार्य की सुविधा थी। उनकी इसी दूर – दृष्टि ने उन्हें विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक बना दिया। रामन के जीवन से हमें यह भी शिक्षा लेनी चाहिए कि हम अपने आस-पास घट रही विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं की छानबीन एक वैज्ञानिक दृष्टि से करें तो हम प्रकृति के अनेक रहस्यों का उद्घाटन रामन की तरह कर सकते हैं।

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1.
उनके लिए सरस्वती की साधना सरकारी सुख-सुविधाओं से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण थी।
उत्तर :
रामन कोलकाता के सरकारी वित्त विभाग में अच्छे वेतन और सुख-सुविधाओं वाली नौकरी करते थे। उन्हीं दिनों कोलकाता विश्वविद्यालय में एक प्रोफ़ेसर की आवश्यकता थी। सुप्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री सर आशुतोष मुखर्जी रामन की प्रतिभा तथा वैज्ञानिक रुचि से परिचित थे। उन्होंने रामन को विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर का पद स्वीकार करने के लिए कहा। सुख-सुविधाओं और अच्छे वेतन की सरकारी नौकरी छोड़कर कम वेतन और कम सुविधाओं वाली विश्वविद्यालय की नौकरी स्वीकार करना रामन के लिए हिम्मत का काम था। उन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देकर विश्वविद्यालय की नौकरी स्वीकार कर ली क्योंकि वे मानते थे कि सरस्वती की साधना करना सरकारी सुख-सुविधाओं को भोगने से कहीं अधिक श्रेष्ठ है। इस प्रकार वे अध्ययन, अध्यापन और शोधकार्य में लग गए।

प्रश्न 2.
हमारे पास ऐसी न जाने कितनी ही चीजें बिखरी पड़ी हैं, जो अपने पात्र की तलाश में हैं।
उत्तर :
रामन चाहते थे कि प्रत्येक व्यक्ति अपने आसपास घट रही विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं की छानबीन एक वैज्ञानिक दृष्टि से करे। हमारे आसपास प्रकृति में अनेक ऐसी चीजें हैं, जिन्हें यदि हम ध्यान से देखें तो वे हमें अपनी ओर आकर्षित करती हैं और हमसे कहती हैं कि हमारे रहस्य को उद्घाटित करो। कोई रामन जैसा शोधार्थी ही प्रकृति के अज्ञात रहस्यों से परदा उठा सकता है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन

प्रश्न 3.
यह अपने-आप में एक आधुनिक हठयोग का उदाहरण था।
उत्तर :
प्राचीनकाल में योगी अनेक कठिन साधनाओं के द्वारा हठयोग का अभ्यास करते थे परंतु रामन ने अच्छे वेतन और सुख-सुविधाओं से युक्त सरकारी नौकरी होते हुए भी अपना वैज्ञानिक शोधकार्य करने के लिए अपने कार्यालय के समय के बाद बहू बाजार की इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस की प्रयोगशाला में जाया करते थे। यहाँ रामन को पर्याप्त उपकरण भी उपलब्ध नहीं होते थे। फिर भी वे अपना शोधकार्य करते रहे। उनका यह कार्य आधुनिक हठयोग का ही उदाहरण है जिसमें एक साधन दफ्तर में कड़ी मेहनत करने के बाद बहू बाजार की सामान्य-सी प्रयोगशाला में अपनी इच्छा-शक्ति के बल पर भौतिक विज्ञान को समृद्ध कर रहा था।

(घ) उपयुक्त शब्द का चयन करते हुए रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –

प्रश्न :
इंफ्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी, इंडियन एसोसिएशन फ़ार द कल्टिवेशन ऑफ़ साइंस, फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन, भौतिकी, रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट
1. रामन का पहला शोध – पत्र …………………….. में प्रकाशित हुआ था।
2. रामन की खोज …………………. के क्षेत्र में एक क्रांति के समान थी।
3. कोलकाता की मामूली सी प्रयोगशाला का नाम ……………… था।
4. रामन द्वारा स्थापित शोध संस्थान …………………….. नाम से जानी जाती है
5. पहले पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन करने के लिए …………. का सहारा लिया जाता था।
उत्तर :
1. रामन का पहला शोध – पत्र फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन में प्रकाशित हुआ था।
2. रामन की खोज भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांति के समान थी।
3. कोलकाता की मामूली-सी प्रयोगशाला का नाम इंडियन एसोसिएशन फ़ॉर द कल्टिवेशन ऑफ़ साइंस था।
4. रामन द्वारा स्थापित शोध संस्थान रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट नाम से जानी जाती है।
5. पहले पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन करने के लिए इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाता था।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 1.
नीचे कुछ समानदर्शी शब्द दिए जा रहे हैं जिनका अपने वाक्य में इस प्रकार प्रयोग करें कि उनके अर्थ का अंतर स्पष्ट हो सके।
(क) प्रमाण, (ख) प्रणाम, (ग) धारणा, (घ) धारण, (ङ) पूर्ववर्ती, (च) परवर्ती, (छ) परिवर्तन, (ज) प्रवर्तन
उत्तर :
(क) प्रमाण – इस बात का क्या प्रमाण है कि आप चौदह वर्ष के हैं ?
(ख) प्रणाम – राजेश सुबह उठकर अपने माता – पिता को प्रणाम करता है।
(ग) धारणा – अध्यापिका की सुमन के संबंध में अच्छी धारणा नहीं है।
(घ) धारण – राजा ने सुंदर मुकुट धारण किया हुआ है
(ङ) पूर्ववर्ती – इंदिरा गांधी से पूर्ववर्ती भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे।
(च) परवर्ती – हुमायूँ से परवर्ती मुग़ल सम्राट अकबर था।
(छ) परिवर्तन – प्रकृति में प्रतिपल परिवर्तन होता रहता है।
(ज) प्रवर्तन – हिंदी साहित्य में छायावाद का प्रवर्तन जयशंकर प्रसाद ने किया था।

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प्रश्न 2.
रेखांकित शब्द के विलोम शब्द का प्रयोग करते हुए रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए –
उत्तर :
(क) मोहन के पिता मन से सशक्त होते हुए भी तन से अशक्त हैं।
(ख) अस्पताल के अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी रूप से नौकरी दे दी गई है।
(ग) रामन ने अनेक ठोस रवों और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन किया।
(घ) आज बाज़ार में देशी और विदेशी दोनों प्रकार के खिलौने उपलब्ध हैं।
(ङ) सागर की लहरों का आकर्षण उसके विनाशकारी रूप को देखने के बाद अपकर्षण में परिवर्तित हो जाता है।

प्रश्न 3.
नीचे दिए उदाहरण में रेखांकित अंश में शब्द-युग्म का प्रयोग हुआ है-
उदाहरण: चाऊतान को गाने-बजाने में आनंद आता है।
उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित शब्द-युग्मों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
सुख-सुविधा, अच्छा-खासा, प्रचार- प्रसार, आस-पास
उत्तर :
सुख-सुविधा – रामन ने सरस्वती की साधना के लिए सुख-सुविधा त्याग दी।
अच्छा-खासा – सुंदरम अच्छा-खासा कमाता है, फिर भी उधार माँगता रहता है।
प्रचार-प्रसार – किसी भी उत्पाद का प्रचार-प्रसार दूरदर्शन के माध्यम से शीघ्र हो जाता है।
आस-पास – मीनाक्षी और कुंदा का घर आस- पास है।

प्रश्न 4.
प्रस्तुत पाठ में आए अनुस्वार और अनुनासिक शब्दों को निम्नलिखित तालिका में लिखिए –
उत्तर :
अनुस्वार – अनुनासिक
(क) अंदर – (क) ढूँढ़ते
(ख) अंक – (ख) ऊँचे
(ग) संस्था – (ग) भाँति
(घ) ढंग – (घ) पहुँचता
(ङ) संघर्ष – (ङ) जहाँ

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प्रश्न 5.
पाठ में निम्नलिखित विशिष्ट भाषा प्रयोग आए हैं। सामान्य शब्दों में इनका आशय स्पष्ट कीजिए –
घंटों खोए रहते, स्वाभाविक रुझान बनाए रखना, अच्छा-खासा काम किया, हिम्मत का काम था, सटीक जानकारी, काफ़ी ऊँचे अंक हासिल किए, कड़ी मेहनत के बाद खड़ा किया था, मोटी तनख्वाह
उत्तर :
बहुत देर तक सोचते रहते, अपनी पसंद बनाए रखना, बहुत काम किया, आसान काम नहीं था, पूरी और सही जानकारी, बहुत अच्छे अंक प्राप्त किए, बहुत परिश्रम से बनाया था, बहुत अच्छा वेतन

प्रश्न 6.
पाठ के आधार पर मिलान कीजिए –

  1. नीला – कामचलाऊ
  2. पिता – रव
  3. तैनाती – भारतीय वाद्ययंत्र
  4. उपकरण – वैज्ञानिक रहस्य
  5. घटिया – समुद्र
  6. फोटॉन – नींव
  7. भेदन – कोलकाता

उत्तर :

  1. नीला – समुद्र
  2. पिता – नींव
  3. तैनाती – कोलकाता
  4. उपकरण – काम चलाऊ
  5. घटिया – भारतीय वाद्ययंत्र
  6. फोटॉन – रव
  7. भेदन – वैज्ञानिक रहस्य।

प्रश्न 7.
पाठ में आए रंगों की सूची बनाइए। इनके अतिरिक्त दस रंगों के नाम और लिखिए। पाठ में आए रंग – बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी और लाल।
उत्तर :
अन्य रंग – गुलाबी, काला, केसरिया, फ़िरोजी, गेहुँआ, सलेटी, बादामी, नसवारी, सफ़ेद, मेंहदी।

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प्रश्न 8.
नीचे दिए गए उदाहरण के अनुसार ‘ही’ का प्रयोग करते हुए पाँच वाक्य बनाइए। उदाहरण: उनके ज्ञान की सशक्त नींव उनके पिता ने ही तैयार की थी।
उत्तर :

  1. रामन ने ही रामन-प्रभाव की खोज की थी।
  2. हनुमान ने ही लंका में जाकर सीता की खोज की थी।
  3. इंदु की पिटाई करनेवाली सगीता ही थी।
  4. भारत ने ही मोहाली में इंग्लैंड की क्रिकेट टीम को हराया था।
  5. राम ने ही रावण को बाण से मारा था।

योग्यता – विस्तार –

प्रश्न 1.
‘विज्ञान का मानव विकास में योगदान’ विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
भारत के किन-किन वैज्ञानिकों को नोबेल पुरस्कार मिला है ? पता लगाइए और लिखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

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प्रश्न 3.
न्यूटन के आविष्कार के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

परियोजना कार्य –

प्रश्न 1.
भारत के प्रमुख वैज्ञानिकों की सूची उनके कार्यों / योगदानों के साथ बनाइए।
प्रश्न 2.
भारत के मानचित्र में तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली और कोलकाता की स्थिति दर्शाएँ।
प्रश्न 3.
उत्तर
पिछले बीस-पच्चीस वर्षों में उन वैज्ञानिक खोजों, उपकरणों की सूची बनाइए, जिसने मानव-जीवन बदल दिया है। विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

JAC Class 9 Hindi वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
रामन को ‘रामन प्रभाव’ की खोज की प्रेरणा कैसे मिली ?
उत्तर :
रामन को प्रकृति से बहुत लगाव था। सन् 1921 ई० में समुद्री यात्रा कर रहे थे। वे जहाज़ के डेक पर खड़े होकर नीले सागर को घंटों देखते रहते थे। उन्हें सागर की नील वर्णीय आभा बहुत अच्छी लगती थी। वे सोचने लगे कि समुद्र का रंग नीला ही क्यों होता है ? कोई और रंग क्यों नहीं होता ? रामन अपने मन में उत्पन्न इस प्रश्न का उत्तर ढूँढ़ने में लग गए और उन्होंने ‘रामन-प्रभाव’ की खोज कर ली।

प्रश्न 2.
रामन ने सरकारी नौकरी करते हुए भी शोधकार्य कैसे जारी रखा ?
उत्तर
रामन की हार्दिक इच्छा थी कि वे अपना सारा जीवन शोधकार्यों को समर्पित कर दें, किंतु उन दिनों शोधकार्य को एक व्यवसाय के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं हुई थी। इन दिनों सभी प्रतिभावान विद्यार्थी सरकारी नौकरी करना पसंद करते थे। रामन ने भी कोलकाता में सरकारी वित्त-विभाग में सहायक जनरल अकाउंटेंट की नौकरी कर ली। अपने कार्यालय के बाद वे बहू बाज़ार में डॉक्टर महेंद्र लाल द्वारा स्थापित इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस की प्रयोगशाला में उपलब्ध सामान्य उपकरणों के माध्यम से अपना शोधकार्य करते थे।

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प्रश्न 3.
‘रामन की खोज भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांति है।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
रामन की खोज भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांति मानी जाती है। उनके ‘रामन प्रभाव’ के कारण ही प्रकाश की प्रकृति के संबंध में आइंस्टाइन के विचारों का प्रायोगिक प्रमाण मिल गया। आइंस्टाइन से पहले के वैज्ञानिक प्रकाश को तरंग के रूप में मानते थे, परंतु आइंस्टाइन ने बताया कि प्रकाश अति सूक्ष्म कणों की तीव्र धारा के समान है। इन अति सूक्ष्म कणों की तुलना आइंस्टाइन ने बुलेट से करते हुए उन्हें फोटॉन नाम दिया था। रामन के प्रयोगों ने आइंस्टाइन की इस धारणा का प्रत्यक्ष प्रमाण दे दिया, क्योंकि एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन स्पष्ट रूप से यह प्रमाणित करता है कि प्रकाश की किरण तीव्रगामी सूक्ष्म कणों के रूप में व्यवहार करती है। रामन की इस खोज के कारण ही पदार्थों की आण्विक एवं परमाण्विक संरचना के अध्ययन के लिए रामन स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाने लगा।

प्रश्न 4.
न्यूटन ने सेब को नीचे गिरते देख किस सिद्धांत की खोज की थी ?
उत्तर :
न्यूटन ने सेब को पेड़ से नीचे गिरते देखा तो उसे लगा कि पृथ्वी में ऐसी कोई शक्ति है जो सेब को नीचे की ओर खींच रही है। इसी रहस्य की खोज करते हुए उसने पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के सिद्धांत की खोज की थी।

प्रश्न 5.
रामन की शिक्षा पर किसका प्रभाव था ? उन्होंने अपनी शिक्षा कहाँ प्राप्त की ?
उत्तर :
रामन के पिता विशाखापत्तनम में गणित और भौतिकी के शिक्षक थे। पिता इन्हें बचपन से गणित और भौतिकी पढ़ाते थे। उन्हीं के कारण रामन की इन दो विषयों में दिलचस्पी बढ़ गई। उनके गणित और भौतिक से सशक्त ज्ञान की नींव उनके पिता ने तैयार की थी। रामन ने कॉलेज की पढ़ाई पहले ए०बी० एन० कॉलेज तिरुचिरापल्ली से और बाद में प्रेसीडेंसी कॉलेज मद्रास से की।

प्रश्न 6.
रामन ने विश्वविद्यालय की नौकरी करना क्यों स्वीकर किया ?
उत्तर :
रामन के जीवन की एक इच्छा थी कि वे आजीवन शोधकार्य करते रहे, परंतु उस समय सुयोग्य छात्रों को अच्छी सरकारी नौकरियाँ बहुत जल्दी मिल जाती थीं। इसीलिए उन्होंने सरकारी नौकरी कर ली। जब उन्हें विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर के पद पर कार्य करने का निमंत्रण मिला तो उन्होंने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इस नौकरी के पीछे उनका एक ही मकसद था कि वे विश्वविद्यालय में पढ़ाते हुए शोधकार्य भी कर सकते थे।

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प्रश्न 7.
रामन को भारतीय संस्कृति से कैसा लगाव था ? अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि मिलने के बाद भी रामन का स्वभाव कैसा रहा?
उत्तर :
रामन को सदा ही अपनी भारतीय संस्कृति से बहुत लगाव रहा। वे अपनी भारतीय पहचान को बनाए रखने के लिए दक्षिण भारतीय पहनावा पहनते थे। अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि मिलने के बाद भी रामन के स्वभाव में कोई अंतर नहीं आया था। उनका रहन-सहन साधारण था। वे एक आम दक्षिण भारतीय व्यक्ति के समान रहते थे। वे कट्टर शाकाहारी थे। उन्हें मदिरापान से सख्त परहेज़ था। उनमें किसी भी प्रकार का कोई अहंकार नहीं था।

प्रश्न 8.
एक दीपक से अन्य कई दीपक जल उठते हैं” से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
रामन को अपने आरंभिक दिनों में शोधकार्यों के लिए बहुत अधिक परेशानी उठानी पड़ी थी। इसलिए उन्होंने एक अत्यंत उन्नत प्रयोगशाला और शोध संस्थान की स्थापना बंगलौर में की। उनकी बनाई इस प्रयोगशाला और शोध संस्थान में उनके शोध छात्रों ने काफ़ी अच्छा काम किया और कई छात्र बाद में उच्च पदों पर भी सुशोभित हुए। उनका जीवन एक दीपक के समान था जिसके प्रकाश की किरणों ने पूरे देश को आलोकित और प्रभावित किया।

प्रश्न 9.
रामन के अनुसार प्रकृति हमें क्या संदेश देती है और उसका रहस्यभेदन किस प्रकार किया जा सकता है ?
उत्तर :
रामन के अनुसार प्रकृति हमें यह संदेश देती है कि हम उसका निरीक्षण एक प्रकृति-प्रेमी के रूप में करें और उसमें हो रहे परिवर्तनों के सदस्यों को वैज्ञानिक धरातल पर ढूँढ़ने का प्रयास करें। प्रकृति का रहस्य- भेदन रामन के अनुसार निरंतर कार्य करते हुए किया जा सकता है। इसके लिए हमारे अंदर वैज्ञानिक सूझ-बूझ और जिज्ञासा की प्रवृत्ति होनी चाहिए।

वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन-परिचय- धीरंजन मालवे का जन्म बिहार राज्य के नालंदा जिले के हुँवरावाँ नामक गाँव में 9 मार्च, सन् 1952 ई० को हुआ था। इन्होंने एम० एससी० (सांख्यिकी), एम०बी०ए० तथा एल०एल०बी० तक शिक्षा प्राप्त की है। इन्होंने आकाशवाणी तथा बी०बी०सी० लंदन में कार्य किया है। इन्होंने विज्ञान से संबंधित विभिन्न विषयों का प्रसारण भी किया है। वर्तमान में वे प्रसार भारती से संबंधित हैं।

रचनाएँ – इन्होंने रेडियो विज्ञान पत्रिका ‘ज्ञान-विज्ञान’ का संपादन तथा प्रसारण किया है। इनके द्वारा रचित पुस्तक ‘विश्व – विख्यात भारतीय वैज्ञानिक’ भारतीय वैज्ञानिकों का संक्षिप्त जीवन प्रस्तुत करती है। इन्होंने पर्यावरण से संबंधित एक पुस्तक भी लिखी है।

भाषा-शैली – धीरंजन मालवे ने अपनी रचनाओं में सीधी, सरल और प्रभावशाली भाषा का प्रयोग किया है। विषयानुरूप वैज्ञानिक शब्दावली का भी इन्होंने प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया है। ‘वैज्ञानिक चेतना के वाहकः चंद्रशेखर वेंकट रामन’ पाठ में भी लेखक ने नीलवर्णीय आभा, असंख्य, समक्ष, जिज्ञासा, अतिशयोक्ति, समृद्ध, एकवर्णीय जैसे तत्सम शब्दों के साथ-साथ दौरान, इस्तेमाल, बावजूद, फ़ैसला, दौर जैसे उर्दू के तथा फिलॉसॉफ़िकल, वायलिन, पियानो, फोटॉन, इंफ्रारेड, स्पेक्ट्रोस्कोपी आदि अंग्रेज़ी के शब्दों का प्रयोग भी किया है। इनकी शैली वर्णन प्रधान तथा प्रवाहमयी है, जैसे- पेड़ से सेब गिरते हुए तो लोग सदियों से देखते आ रहे थे, मगर गिरने के पीछे छिपे रहस्य को न्यूटन से पहले और कोई समझ नहीं पाया था। ठीक उसी प्रकार विराट समुद्र की नील वर्णीय आभा को भी असंख्य लोग आदिकाल से देखते आ रहे थे, मगर इस आभा पर पड़े रहस्य के परदे को हटाने के लिए हमारे समक्ष उपस्थित हुए-सर चंद्रशेखर वेंकट रामन। इस प्रकार लेखक की भाषा-शैली सीधी, सरल एवं वैज्ञानिक शब्दावली से युक्त वर्णन प्रधान है।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन

पाठ का सार :

‘वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्रशेखर वेंकट रामन’ नामक पाठ में धीरंजन मालवे ने रामन के जीवन और शोधकार्य का संक्षिप्त एवं तथ्यात्मक विवरण प्रस्तुत किया है, जैसे पेड़ से गिरते सेब को देखकर न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत खोज निकाला था, उसी प्रकार से चंद्रशेखर वेंकट रामन ने विराट सागर की नील-वर्णीय आभा देखकर रामन प्रभाव की खोज की थी। सन् 1921 ई० में की गई समुद्री यात्रा ने उन्हें इस ओर प्रेरित किया था।

चंद्रशेखर वेंकट रामन का जन्म 7 नवंबर, सन् 1888 ई० को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली नगर में हुआ था। इनके पिता विशाखापत्तनम में गणित और भौतिकी के शिक्षक थे। इनके पिता ने इन्हें बचपन से ही ये दोनों विषय पढ़ाए। इन्होंने ए०बी०एन० कॉलेज, तिरुचिरापल्ली और प्रेसीडेंसी कॉलेज चेन्नई में शिक्षा प्राप्त की थी। एम० ए० की परीक्षा उन्होंने अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की थी। कॉलेज के दिनों से ही इन्हें शोध कार्यों में रुचि थी। इनका पहला शोध आलेख फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन में प्रकाशित हुआ था।

इन्होंने कोलकाता में सरकारी वित्त विभाग में सहायक जनरल अकाउंटेंट के रूप में नौकरी कर ली। कार्यालय से समय मिलने पर वे बहू बाज़ार में स्थित डॉ० महेंद्र लाल सरकार द्वारा स्थापित इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस की प्रयोगशाला में अपना शोधकार्य करते रहते थे। इन्हीं दिनों इनका रुझान वाद्य यंत्रों की ओर हुआ तथा वाद्य यंत्रों में कंपन के आधार पर शोध कार्य करते हुए अनेक शोध-पत्र प्रकाशित किए। इनके शोध कार्यों तथा प्रतिभा से प्रभावित होकर सुप्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री सर आशुतोष मुखर्जी ने सन् 1917 में इन्हें कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर का पद ग्रहण करने का प्रस्ताव दिया जो इन्होंने स्वीकार कर लिया। इनके लिए सरस्वती की साधना सरकारी सुख-सुविधाओं से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण थी।

रामन प्रभाव की खोज के लिए इन्होंने ठोस और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन किया तो इन्हें ज्ञात हुआ कि जब एक वर्णीय प्रकाश की किरण किसी तरल पदार्थ अथवा ठोस रवेदार पदार्थ से गुज़रती है तो गुज़रने के बाद उसके वर्ण में परिवर्तन होता है। इसका कारण यह है कि जब एकवर्णीय प्रकाश की किरण के फोटॉन तरल या ठोस रवे से गुज़रते हैं तो इनके अणुओं के टकराने से या तो वे ऊर्जा का कुछ अंश खो देते हैं या पा लेते हैं। दोनों ही दशाओं में प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन हो जाता है। एकवर्णीय प्रकाश की किरणों में सबसे अधिक ऊर्जा बैंगनी रंग के प्रकाश में होती है। इसके बाद नीले, आसमानी, हरे, पीले, नारंगी और लाल वर्ण का नंबर आता है। लाल वर्णीय प्रकाश की ऊर्जा सबसे कम होती है।

रामन की इस खोज को भौतिकी के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि माना गया। इससे प्रकाश की प्रकृति के संबंध में आइंस्टाइन द्वारा व्यक्त विचारों का प्रायोगिक प्रमाण मिल गया। आइंस्टाइन से पहले के वैज्ञानिक प्रकाश को तरंग के रूप में मानते थे परंतु आइंस्टाइन ने इसे सूक्ष्म कणों की तीव्र धारा के समान कहा और इनकी तुलना बुलेट से करते हुए इसे फोटॉन नाम दिया। रामन की इस खोज के बाद पदार्थों की आण्विक और परमाण्विक संरचना के अध्ययन के लिए रामन स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाने लगा। इससे पदार्थों का संश्लेषण प्रयोगशाला में करना और अनेक उपयोगी पदार्थों का कृत्रिम रूप से निर्माण भी संभव हो गया।

रामन को ‘रामन प्रभाव’ की खोज पर सन् 1924 ई० में रॉयल सोसाइटी की सदस्यता से सम्मानित किया गया था। सन् 1929 ई० में इन्हें ‘सर’ की उपाधि प्रदान की गई तथा इससे अगले वर्ष उन्हें भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्हें रोम में मत्यूसी पदक, रॉयल सोसाइटी का हयूज़ पदक, फ़िलाडेल्फ़िया इंस्टीट्यूट का फ्रैंकलिन पदक, सोवियत रूस का अंतर्राष्ट्रीय लेनिन पुरस्कार भी दिया गया था। सन् 1954 ई० में भारत सरकार ने इन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया था।

रामन को भारतीय संस्कृति से सदा गहरा लगाव रहा है। वे सदा दक्षिण भारतीय पहनावा पहनते थे। वे शुद्ध शाकाहारी थे। वे मदिरा से सख्त परहेज़ करते थे। जब वे नोबल पुरस्कार प्राप्त करने स्टॉकहोम गए थे तो वहाँ उन्होंने अल्कोहल पर रामन प्रभाव का प्रदर्शन किया था। उन्होंने वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करने के लिए बंगलौर में ‘रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट’ नाम से एक उन्नत प्रयोगशाला और शोध संस्थान की स्थापना की थी। उन्होंने ‘इंडियन जनरल ऑफ फिजिक्स’ नामक शोध-पत्रिका का प्रकाशन किया था तथा सैकड़ों शोधार्थियों का मार्गदर्शन किया था। इन्होंने ‘करेंट साइंस’ नामक विज्ञान-पत्रिका का संपादन भी किया था। 21 नवंबर, सन् 1970 ई० को इनका देहांत हो गया था।

JAC Class 9 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चन्द्र शेखर वेंकट रामन

कठिन शब्दों के अर्थ :

  • नील-वर्णीय आभा – नीले रंग की चमक।
  • असंख्य – अनेक, जिनकी गिनती न की जा सके।
  • समक्ष – सामने।
  • निहारना – देखना।
  • जिज्ञासा – जानने की इच्छा।
  • विश्वविख्यात – विश्व में प्रसिद्ध।
  • अतिशयोक्ति – किसी बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहना।
  • सशक्त – मज़बूत।
  • कैरियर – व्यवसाय, पेशा।
  • दौरान – मध्य।
  • रुझान – झुकाव।
  • नितांत – बिल्कुल।
  • अभाव – कमी।
  • समृद्ध – उन्नत।
  • आकृष्ट – खिंचा हुआ, आकर्षित।
  • भ्रांति – संदेह।
  • सृजित – बनाया गया, रचा गया।
  • माहौल – वातावरण।
  • परिणति – परिणाम, फल।
  • वर्ण – रंग।
  • फोटॉन – प्रकाश का अंश।
  • एकवर्णीय – एक रंग का।
  • ऊर्जा – शक्ति, बल।
  • तीव्रगामी – तेज़ी से जाने वाली।
  • संश्लेषण – मिलान करना।
  • कृत्रिम – बनावटी।
  • अक्षुण्ण – दृढ़।
  • आहूलादित – आनंदित।

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.7

Jharkhand Board JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.7 Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9th Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.7

Page-233

Question 1.
Find the volume of the right circular cone with:
(i) radius 6 cm, height 7 cm
(ii) radius 3.5 cm, height 12 cm.
Answer:
(i) Radius (r) = 6 cm
Height (h) = 7 cm
∴ Volume e the cone = \(\frac{1}{3}\)πr2h
= \(\frac{1}{3} \times \frac{22}{7} \times 6^2 \times 7\)
= 264 cm3.

(ii) Radius (r) = 3.5 cm
Height (h) = 12 cm
∴ Volume of the cone = \(\frac{1}{3}\)πr2h
= \(\frac{1}{3} \times \frac{22}{7} \times 3.5 \times 3.5 \times 12\) cm3
= 154 cm3

Question 2.
Find the capacity in litres of a conical vessel with :
(i) radius 7 cm, slant height 25 cm
(ii) height 12 cm, slant height 13 cm.
Answer:
(i) Radius (r) = 7 cm
Slant height (l) = 25 cm
Let h be the height of the conical vessel.
h = \(\sqrt{l^{2} – r^{2}}\)
⇒ h = \(\sqrt{25^{2} – 7^{2}}\)
⇒ h = \(\sqrt{576}\)
⇒ h = 24 cm

Volume of the cone = \(\frac{1}{3}\)πr2h
= \(\frac{1}{3} \times \frac{22}{7} \times 7 \times 7 \times 24\) cm3
= 1232 cm3

Capacity of the vessel = = \(\frac{1232}{1000}\) litres
= 1.232 litres.

(ii) Height (l) = 12 cm
Slant height (h) = 13 cm
Let r be the radius of the conical vessel.
r = \(\sqrt{l^{2} – h^{2}}\)
⇒ r2 = \(\sqrt{13^{2} – 12^{2}}\)
⇒ r = \(\sqrt{25}\)
⇒ r = 5 cm

Volume of the cone = \(\frac{1}{3}\)πr2h
= \(\frac{1}{3} \times \frac{22}{7} \times 5 \times 5 \times 12\) cm3
= \(\frac{2200}{7}\) cm3

Capacity
= \(\frac{2200}{7 \times 1000} \text { litres }\)
= \(\frac{11}{35} \text { litres }\)

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.7

Question 3.
The height of a cone is 15 cm. If its volume is 1570 cm3, find the radius of the base. (Use π = 3.14)
Answer:
Height of the cone (h) = 15 cm
Volume of the cone = 1570 cm3
Let the radius of base of a cone be r сm.

∴ Volume of the cone = 1570 cm3
⇒ \(\frac{1}{3}\)πr2h = 1570
⇒ \(\frac{1}{3}\) × 3.14 × r2 × 15 = 1570
⇒ 15.7 × r2 = 1570
⇒ r2 = \(\frac{1570}{3.14 × 5}\) = 100
⇒ r2 = 100
⇒ r = 10 cm

Question 4.
If the volume of a right circular cone of height 9 cm is 48π cm3, find the diameter of its base.
Answer:
Height (h) = 9 cm
Volume = 48π cm3
Let the radius of the base of the cone be r сm.

∴ Volume = 48π cm3
⇒ \(\frac{1}{3}\)πr2h = 48π
⇒ \(\frac{1}{3}\) × r2 × 9 = 48
⇒ 3r2 = 48
⇒ r2 = \(\frac{48}{3}\) = 16
⇒ r = 4 cm
∴ Diameter of the base of the cone = 2 × r = 2 × 4 cm
= 8 cm

Question 5.
A conical pit of top diameter 3.5 m is 12m deep. What is its capacity in kilolitres ?
Answer:
Diameter of the top of the conical pit (d) = 3.5 m
Radius (r) = \(\frac{3.5}{2}\) = 1.75 m
Depth of the pit (h) = 12 m

Volume = \(\frac{1}{3}\)πr2h
= \(\frac{1}{3} \times \frac{22}{7} \times1.75 \times1.75 \times 12\) = 38.5 m3
∵ 1 m3 = 1 kilolitres
Capacity of the pit = 38.5 kilolitres.

Question 6.
The volume of a right circular cone is 9856 cm3. If the diameter of the base is 28 cm, find :
(i) height of the cone
(ii) slant height of the cone
(iii) curved surface area of the cone.
Answer:
(i) Diameter of the base of the cone (d) = 28 cm
Radius (r) = \(\frac{28}{2}\) cm = 14 cm
Let the height of the cone be h cm

The volume of the cone = \(\frac{1}{3}\)πr2h
= 9856 cm3
⇒ \(\frac{1}{3}\)πr2h = 9856
⇒ \(\frac{1}{3} \times \frac{22}{7} \times 14 \times 14 \times h\) = 9856
⇒ h = \(\frac{9856 \times 3}{\frac{22}{7} \times 14 \times 14}\)
⇒ h = 48 cm

(ii) Radius (r) = 14 cm
Height (h) = 48 cm
Let l be the slant height of the cone.
l2 = h2 + r2
⇒ l2 = 482 + 142
⇒ l2 = 2304 + 196
⇒ l2 = 2500
⇒ l = \(\sqrt{2500}\)
⇒ l = 50 cm.

(iii) Radius (r) = 14 cm
Slant Height (l) = 50 cm

Curved surface area = πrl
= \(\frac{22}{7}\) × 14 × 50 cm2
= 2200 cm2.

JAC Class 9 Maths Solutions Chapter 13 Surface Areas and Volumes Ex 13.7

Question 7.
A right triangle ABC with sides 5 cm, 12 cm and 13 cm is revolved about the side 12 cm. Find the volume of the solid so obtained.
Answer:
On revolving the ΔABC alone the side 12 cm, a cone of the radius (r) 5 cm, height (h) 12 cm and slant height (l) 13 cm will be formed
Volume of the solid so obtained = \(\frac{1}{3}\)πr2h
= \(\frac{1}{3}\) × π × 5 × 5 cm3 = 100 π cm3

Question 8.
If the triangle ABC in the Question 7 above is revolved about the side 5 cm, then find the volume of the solid so obtained. Find also the ratio of the volumes of the two solids obtained in Questions 7 and 8.
Answer:
On revolving the ΔABC alone the side 5 cm, a cone of the radius (r) 12 cm, height (h) 5 cm and slant height (l) 13 cm will be formed
Volume of the solid so obtained = \(\frac{1}{3}\)πr2h
= \(\frac{1}{3}\) × π × 12 × 12 × 5 = 240π cm3

Ratio of the Volume = \(\frac{100π}{240π}\) = \(\frac{5}{12}\)
= 5 : 12

Question 9.
A heap of wheat is in the form of a cone whose diameter is 10.5 m and height is 3 m. Find its volume. The heap is to be covered by canvas to protect it from rain. Find the area of the canvas required.
Answer:
Diameter of the base of the conical heap (d) = 10.5 m
Radius (r) = \(\frac{10.5}{2}\) = 5.25 m
Height (h) of the cone = 3 m

Volume of the heap = \(\frac{1}{3}\)πr2h
= \(\frac{1}{3} \times \frac{22}{7} \times 5.25 \times 5.25 \times 3\) m3
= 86.625 m3

Also,
l2 = h2 + r2
⇒ l2 = 32 + (5.25)2
⇒ l2 = 9 + 27.5625
⇒ l2 = 36.5625
⇒ l = \(\sqrt{36.5625}\) = 6.05 cm.

Area of canvas = Curved surface area = πrl
= \(\frac{22}{7}\) × 5.25 × 6.05 m2
= 99.825 m2

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम्

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JAC Board Class 9th Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम्

प्रत्यय से तात्पर्य – जो शब्द किसी संज्ञा शब्द, सर्वनाम शब्द, विशेषण शब्द अथवा धातु (क्रिया) शब्द के बाद (पीछे) जुड़कर किसी विशेष अर्थ को व्यक्त करते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं। ये प्रत्यय अपने मूल अर्थ में तो निरर्थक से प्रतीत होते हैं, किन्तु ये किसी शब्द के अन्त में जुड़कर शब्द-निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

परिभाषा – “वे शब्द, जिनको किसी शब्द या धातु के अन्त में जोड़ा जाता है, प्रत्यय कहलाते हैं।”
प्रतीयते विधीयते अनेन इति प्रत्ययः। अर्थात् जो शब्दांश शब्द या धातु के अन्त में लगकर उनके अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं, प्रत्यय कहलाते हैं।
प्रत्यय तीन प्रकार के होते हैं –

  1. कृत् प्रत्यय
  2. तद्धित प्रत्यय
  3. स्त्री प्रत्यय।

कृत् प्रत्यय – मूल क्रिया (धातु) शब्द के अन्त में भिन्न-भिन्न अर्थों का बोध कराने वाले जिन प्रत्ययों को जोड़कर संज्ञा, विशेषण, अव्यय तथा कहीं-कहीं क्रिया पद का निर्माण किया जाता है; उन प्रत्ययों को “कृत् प्रत्यय” कहते हैं। कृत् प्रत्ययों में क्त्वा’, ‘ल्यप्’, ‘तुमुन्’, ‘क्त’, ‘क्तवतु’, ‘शत’, ‘शानच्’ आदि प्रत्यय आते हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम्

तद्धित प्रत्यय – संज्ञा शब्द, सर्वनाम शब्द तथा विशेषण शब्द में जोड़े जाने वाले प्रत्यय तद्धित प्रत्यय कहे जाते हैं। जैसे ‘तरप्’, ‘तमप्’, ‘इनि’ आदि तद्धित प्रत्यय हैं।

स्त्री प्रत्यय – जो प्रत्यय विभिन्न शब्दों के अन्त में स्त्रीत्व का बोध कराने के लिए लगाये जाते हैं, उन्हें स्त्री प्रत्यय कहते हैं, जैसे ‘टाप’, ‘ङीप’ आदि स्त्री प्रत्यय हैं।

1. कृत् प्रत्यय

(i) क्त्वा प्रत्यय – ‘क्त्वा’ प्रत्यय में से प्रथम वर्ण ‘क’ का लोप होकर केवल ‘त्वा’ शेष रहता है। पूर्वकालिक क्रिया को बनाने के लिए ‘कर’ या ‘करके’ अर्थ में उपसर्गरहित क्रिया शब्दों में ‘क्त्वा’ प्रत्यय जोड़ा जाता है। इस प्रत्यय से बना हुआ शब्द अव्यय शब्द होता है। अतः उसके रूप नहीं चलते हैं, अर्थात् वह सभी विभक्तियों, सभी वचनों, सभी लिंगों तथा सभी पुरुषों में एक जैसा ही रहता है और उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता है। जैसे-‘वह पुस्तक पढ़कर खेलता है।’ इस वाक्य का संस्कृत में अनुवाद करने पर ‘स: पुस्तकं पठित्वा क्रीडति’ बना। इस वाक्य में दो क्रियाएँ हैं-प्रथम क्रिया ‘पढ़कर’ (पठित्वा) तथा दूसरी क्रिया ‘खेलता’ (क्रीडति) है।

दोनों क्रियाओं का कर्ता एक ही ‘वह’ (सः) है। यहाँ पठ् मूल क्रिया में ‘क्त्वा’ प्रत्यय जोड़ने पर ‘क्त्वा’ में ‘क’ का लोप करने पर ‘त्वा’ शेष रहा। ‘पठ् + त्वा’ धातु और प्रत्यय के मध्य ‘इ’ जोड़ने पर ‘पठित्वा’ पूर्वकालिक क्रिया का रूप बना, जिसका अर्थ-‘पढ़कर’ या ‘पढ़ करके’ हुआ। धातु और प्रत्यय के मध्य सब जगह ‘इ’ नहीं जुड़ता है। ‘इ’ केवल वहीं जुड़ता है. जहाँ क्रिया में ‘इ’ के जोड़े जाने की आवश्यकता होती है। यहाँ सन्धि के सभी नियम भी लगते हैं।

क्त्वा प्रत्ययान्त रूप

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम् 1

प्रकृति-प्रत्यय पृथक् करवाने पर मूलधातु + प्रत्यय करना होता है। जैसे- उषित्वा = वस् + क्त्वा न कि उस् + त्वा।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम्

(ii) ल्यप् प्रत्यय-‘ल्यप्’ प्रत्यय में ल् तथा प् का लोप हो जाने पर ‘य’ शेष रहता है। धातु से पूर्व कोई उपसर्ग हो तो वहाँ क्त्वा’ के स्थान पर ‘ल्यप् प्रत्यय प्रयुक्त होता है। यह ‘ल्यप् प्रत्यय भी ‘कर’ या ‘करके’ अर्थ में होता है। यह अव्यय शब्द होता है अतः रूप नहीं चलते हैं। जिन उपसर्गों के साथ ल्यप् वाले रूप अधिक प्रचलित हैं, उनके उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं।

ल्यप् प्रत्ययान्त रूप

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम् 2

(iii) तुमुन् प्रत्यय-‘तुमुन्’ प्रत्यय में से ‘मु’ के उ एवं अन्तिम अक्षर न् का लोप हो जाने पर ‘तुम्’ शेष रहता है। ‘तुमुन्’ प्रत्यय से बना रूप अव्यय होता है। अतः उसके रूप नहीं चलते हैं। प्रत्यय से बने कतिपय (कुछ) रूपों के उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं –

तुमुन् प्रत्ययान्त रूप (तुमुन् प्रत्यय से बने रूप)

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम् 3

(iv) क्त एवं क्तवतु प्रत्यय – (i) किसी कार्य की समाप्ति का ज्ञान कराने के लिए अर्थात् भूतकाल के अर्थ में क्त और क्तवतु प्रत्यय होते हैं।
(ii) क्त प्रत्यय धातु से भाववाच्य या कर्मवाच्य में होता है और इसका ‘त’ शेष रहता है। क्तवतु प्रत्यय कर्तृवाच्य में होता है और उसका ‘तवत्’ शेष रहता है।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम्

(iii) क्त और क्तवतु के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं। क्त प्रत्यय के रूप पुंल्लिंग में राम के समान, स्त्रीलिंग में ‘अ’ लगाकर रमा के समान और नपुंसकलिंग में फल के समान चलते हैं। क्तवतु के रूप पुल्लिंग में भगवत् के समान, स्त्रीलिंग में ‘ई’ जुड़कर नदी के समान तथा नपुंसकलिंग में जगत् के समान चलते हैं।

क्त प्रत्यय के उदाहरण

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम् 4

क्तवतु प्रत्यय के उदाहरण

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम् 5

(v) शतृ एवं शानच् प्रत्यय ‘शत’ प्रत्यय-वर्तमान काल में हुआ’ अथवा ‘रहा’, ‘रहे’ अर्थ का बोध कराने के लिए ‘शतृ’ प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है। ‘शतृ’ प्रत्यय सदैव परस्मैपदी धातुओं (क्रिया-शब्दों) से ही जुड़ते हैं। ‘शतृ’ के ‘श्’ और तृ के ‘ऋ’ का लोप होकर ‘अत्’ शेष रहता है। शतृ प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं, यहाँ ‘शतृ प्रत्यय से बने कुछ क्रियापदों का संग्रह पुल्लिंग में दिया जा रहा है। छात्र इन्हें समझें और कण्ठाग्र कर लें।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम् 6

शानच् प्रत्यय – ‘शतृ’ प्रत्यय के ही समान ‘शानच्’ प्रत्यय वर्तमान काल में हुआ’ अथवा ‘रहा’, ‘रही’, ‘रहे’ अर्थ का बोध कराने के लिए प्रयुक्त होता है। ‘शत’ प्रत्यय तो परस्मैपदी धातुओं (क्रिया-शब्दों) से ही जुड़ता है, किन्तु ‘शानच्’ प्रत्यय आत्मनेपदी धातुओं में ही जुड़ता है। शानच् प्रत्यय में से ‘श्’ और ‘च’ का लोप होकर ‘आन’ शेष रहता है। ‘आन’ के स्थान पर अधिकतर ‘मान’ हो जाता है। यहाँ ‘शानच्’ प्रत्यय से बने कुछ क्रियापदों का संग्रह पुल्लिंग में ही दिया जा रहा है। छात्र इन्हें समझें और कण्ठाग्र कर लें।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम् 7

(vi) अनीयर’ प्रत्यय – अनीयर’ प्रत्यय ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ अर्थ में प्रयुक्त होता है। ‘अनीयर’ प्रत्यय में से र् का लोप होने पर ‘अनीय’ शेष रहता है। अनीयर प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं। यहाँ केवल पुल्लिंग के ही रूप दिये जा रहे हैं। छात्र इन्हें समझें और कण्ठाग्र कर लें।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम् 8

(vii) तव्यत् प्रत्यय – ‘तव्यत्’ प्रत्यय ‘अनीयर’ प्रत्यय के समान ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ अर्थ में ही प्रयुक्त होता है। ‘तव्यत्’ प्रत्यय में से ‘त्’ का लोप होने पर ‘तव्य’ शेष रहता है। ‘तव्यत्’ प्रत्ययान्त शब्दों के तीनों लिंगों में रूप क्रमशः राम, रमा तथा फल की तरह चलते हैं। यहाँ केवल पुल्लिंग के ही रूप दिये जा रहे हैं। छात्र इन्हें समझें और स्मरण कर लें।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम् 9

2. तद्धित प्रत्यय

(i) ‘तरप’ प्रत्यय-दो वस्तुओं में से एक को श्रेष्ठ (अच्छा) या निकृष्ट (खराब) बताने के लिए गुणवाचक विशेषण के शब्दों में ‘तरप्’ प्रत्यय जोड़ा जाता है। इसमें से ‘तर’ शेष रहता है और इसके तीनों लिंगों में क्रमशः राम (पुं.) रमा (स्त्री) तथा पल (न.) के रूप चलते हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम् 10

नोट – ‘तरप्’ प्रत्यय विशेषण शब्दों में लगता है। पुल्लिंग में इस प्रत्यय से बने शब्दों के रूप ‘राम’ के समान, स्त्रीलिंग में ‘रमा’ के समान तथा नपुंसकलिंग में ‘फल’ के समान चलते हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम्

(ii) ‘तमप्’ प्रत्यय-बहुतों में से एक को श्रेष्ठ (अच्छी) या निकृष्ट (खराब) बताने के लिए शब्द के साथ ‘तमप’ । प्रत्यय जोड़ा जाता है। इसमें से ‘तम’ शेष रहता है। ‘तमप्’ प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम् 11

(iii) इनि प्रत्यय – 1. हिन्दी के ‘वाला’ अर्थ वाले शब्दों यथा-धन वाला, सुख वाला, गुण वाला आदि के लिए संस्कृत में शब्दों के साथ इनि’ प्रत्यय लगाते हैं। ‘इनि’ का ‘इन्’ शेष रहता है। जैसे – दण्ड + इनि – दण्ड + इन् = दण्डिन्।
त्याग + इनि – त्याग + इन् = त्यागिन्। इनि प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं। इनके रूप पल्लिंग में ‘करिन्’ के समान, स्त्रीलिंग में ‘ई’ जोड़कर नदी के समान और नपुंसकलिंग के रूप इनि से बने मूल रूप के समान ही रहते हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम्

‘इनि’ प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिङ्गों में (प्रथमा विभक्ति एकवचन) निम्नानुसार हैं –

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम् 12

3. स्त्री प्रत्यय

(i) टाप् (आ) प्रत्यय – अजादि गण में अकारान्त शब्दों से यदि स्त्रीलिङ्ग बनाना हो तो टाप् प्रत्यय का प्रयोग करते हैं। ‘टाप्’ प्रत्यय का ‘आ’ शेष रहता है। इसमें पुल्लिङ्ग शब्द के अन्तिम ‘आ’ का लोप कर दिया जाता है। किन्तु कुछ शब्द इस प्रत्यय के अपवाद भी हैं, उनमें अक् को इक् होने के बाद टाप् प्रत्यय लगता है। ‘टाप्’ प्रत्यय में से ‘ट्’ और ‘य’ का लोप हो जाने पर ‘आ’ शेष रहता है।
जैसे – गायक-गायिका, बालक-बालिका आदि। शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम् 13

(ii) ङीप् प्रत्यय – 1. ऋकारान्त तथा नकारान्त पुल्लिङ्ग शब्दों के साथ ङीप् प्रत्यय जोड़कर स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाते हैं। ‘ङीप्’ और ‘प्’ का लोप हो जाने ‘ई’ शेष रहता है।

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अभ्यास

प्रश्न: 1.
प्रत्यय की परिभाषा लिखिए।
उत्तर :
परिभाषा – वे शब्द, जिनका किसी शब्द या धातु से विधान किया जाता है (अन्त में जोड़ा जाता है), प्रत्यय कहलाते हैं।

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प्रश्न: 2.
सुप् और तिङ्के अतिरिक्त प्रत्यय के कितने मुख्य भेद हैं ? लिखिए।
उत्तर :
सुप् और तिङ् प्रत्यय के अतिरिक्त प्रत्यय के 3 (तीन) मुख्य भेद हैं –
(i) कृत् प्रत्यय
(ii) तद्धित प्रत्यय
(iii) स्त्री प्रत्यय।

प्रश्न: 3.
किन्हीं चार कृत् प्रत्ययों का नाम निर्देश कीजिए।
उत्तर :
(i) क्त्वा
(ii) ल्यप्
(iii) शतृ
(iv) शानच्।

प्रश्न: 4.
‘के लिए’ का अर्थ व्यक्त करने हेतु धातु में कौन-सा प्रत्यय जोड़ा जाता है ?
उत्तर :
‘तुमुन्’ प्रत्यय।

प्रश्न: 5.
भूतकालिक प्रत्ययों के नाम बताइये।
उत्तर :
‘क्त’ तथा ‘क्तवतु’ प्रत्यय।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम्

प्रश्न: 6.
‘क्त्वा’ तथा ‘ल्यप् प्रत्यय का प्रयोग कब करते हैं ?
उत्तर :
क्त्वा और ल्यप् दोनों ही पूर्वकालिक कृत् प्रत्यय हैं। जब दो क्रियाओं का कर्ता एक ही होता है तो जो क्रिया पूरी हो चुकी होती है, उसे बताने के लिए क्त्वा का प्रयोग करते हैं। क्त्वा’ का ‘त्व’ शेष रहता है। यह प्रत्यय ‘करके’ या ‘कर’ के अर्थ में प्रयोग होता है। लेकिन क्त्वा प्रत्यय वाली क्रिया के पूर्व कोई उपसर्ग लग जाता है तो क्त्वा के स्थान पर ‘ल्यप् प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न: 7.
‘तुमुन्’ प्रत्यय का प्रयोग किस विभक्ति के स्थान पर किया जाता है ? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘तुमुन्’ प्रत्यय का प्रयोग चतुर्थी विभक्ति के स्थान पर किया जाता है। क्योंकि ‘तुमुन् प्रत्यय ‘के लिए’,’को’, ‘निमित्त’ के अर्थ में प्रयुक्त होता है। इस प्रत्यय का तुम् शेष रहता है। ‘तुमुन्’ प्रत्ययान्त शब्द हेतुवाचक क्रिया के रूप में प्रयुक्त होते हैं। अत: वाक्य में इनके साथ एक मुख्य क्रिया अवश्य होती है जैसे मैं पढ़ना चाहता हूँ-अहं पठितुम् इच्छामि।

प्रश्न: 8.
‘चाहिए’ अर्थ का बोध कराने वाले प्रत्यय कौन-कौनसे हैं ?
उत्तर :
‘चाहिए’ अर्थ का बोध कराने वाले प्रत्यय ‘तव्यत्’ और ‘अनीयर्’ हैं।

प्रश्न: 9.
‘स्त्री प्रत्यय’ किसे कहते हैं ?
उत्तर :
पुल्लिङ्ग शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए जिन प्रत्ययों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें ‘स्त्री प्रत्यय’ कहते हैं।

प्रश्न: 10.
कृत् प्रत्यय एवं तद्धित प्रत्यय का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जिन प्रत्ययों का क्रिया से विधान होता है, कृत् प्रत्यय कहलाते हैं तथा जिन प्रत्ययों का विधान संज्ञा या विशेषण शब्दों के साथ होता है, तद्धित प्रत्यय कहलाते हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम्

प्रश्न: 11.
निम्नलिखित पदों में प्रकृति-प्रत्यय को अलग कीजिए –
अधीतः, जग्धवान्, गृहीत्वा, उपगम्य, पातुम्।
उत्तरम् :
अधि + इ + क्त; अद् + क्तवतु ग्रह + क्त्वा, उपगम् + ल्यप, सी + तुमुन्।

प्रश्न: 12.
निम्नलिखित में प्रकृति-प्रत्यय का मेल कीजिए –
मा कर्ता + ङीप्, एडक + टाप्, भाग् + इनि, बहु + तमप्, निम्न + तरप्, रक्षा तव्यत्, युध् + शानच्, वस् + शत, स्तु + क्तवतु।
उत्तरम् :
की, एडका, भागी, बहुतमः, निम्नतरः, रक्षितव्यः, युध्यमानः, वसन् स्तुतवान्।

प्रश्न: 13.
निम्नलिखित प्रत्ययान्त शब्दों को ‘कृत्’ ‘तद्धित’ और ‘स्त्री’ प्रत्ययान्त के रूप में अलग-अलग छाँटिये
कोकिला, हन्त्री, शूद्रता, पीत्वा, नीति, भूता, पूजनम्, हन्तव्यः, लेखनीयः, भगवती, लघुता, शिशुत्वम्।
उत्तरम् :

  • कृत् – पीत्वा, नीति, पूजनम्, हन्तव्यः, लेखनीयः।
  • तद्धित् – शूद्रता, लघुता, शिशुत्वम्।
  • स्त्री – कोकिला, हन्त्री, भूता, भगवती।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम्

प्रश्न: 14.
प्रत्येक धातु में कोई पाँच प्रत्यय जोड़कर उनका एक-एक उदाहरण लिखिए –
पठ्, नम्, पच्, दा, लभ्, दृश्, गम्, हस्, इष्, लभ्।
उत्तरम् :

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम् 15

प्रश्न: 15.
अधोलिखितवाक्येषु रेखांकितपदानां प्रकृति-प्रत्यय-विभाग प्रत्ययान्तपदं वा लिखत –
(निम्नलिखित वाक्यों में रेखांकित पदों में प्रकृति-प्रत्यय अलग कीजिये अथवा प्रत्ययान्त शब्द लिखिए-)

  1. अहं शयनं परित्यज्य भ्रमणं गच्छामि।
  2. श्यामः पुस्तकं केतुं गमिष्यति।
  3. मया रामायणं श्रुतम्।
  4. फलं खादन् बालकः हसति।
  5. सुरेशः ग्राम गत्वा धावति।
  6. सर्वान् विचिन्त्य बू (वच्) + तव्यत्।
  7. मुकेशः भोजनं खाद + शतृ पुस्तकं पठति।
  8. सः गृहकार्यं कृ + क्त्वा क्रीडति।
  9. सीता ग्रामात् आ + गम् + ल्यप् नृत्यति।
  10. भारतः पठ् + तुमुन् इच्छति।

उत्तर :

  1. परि + त्यज् + ल्यप्
  2. क्री + तुमुन्
  3. श्रु + क्त
  4. खाद् + शतृ
  5. गम् + क्त्वा
  6. वक्तव्यम्
  7. खादन्
  8. कृत्वा
  9. आगत्य
  10. पठितुम्।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम्

प्रश्न: 16.
निर्देशम् अनुसृज्य उदाहरणानुसारं संयोज्य वाक्यसंयोजनं क्रियताम्।
(निर्देश का अनुसरण करके उदाहरणानुसार जोड़कर वाक्यों को जोडिए।)
(क) पूर्ववाक्ये ‘क्त्वा’ प्रत्ययं प्रयुज्य वाक्यं संयोजयत –
(पहले वाक्य में ‘क्त्वा’ प्रत्यय का प्रयोग कर वाक्य-संयोजन कीजिए) महेशः खेलति। महेशः धावति।
उत्तरम् :
महेशः खेलित्वा धावति।

(ख) ‘तुमुन् प्रत्ययप्रयोगं कृत्वा वाक्यसंयोजनं क्रियताम्-
(तुमुन् प्रत्यय का प्रयोग कर वाक्य-संयोजन कीजिए
रामः वनं गच्छति। रामः अश्वम् आरोहति।
उत्तरम् :
रामः वनं गन्तुम् अश्वम् आरोहति।

(ग) पूर्ववाक्ये शतृप्रत्ययं प्रयुज्य वाक्यं पुनः लिखत –
(पूर्व वाक्य में ‘शतृ’ प्रत्यय का प्रयोग कर वाक्य को पुनः लिखिए-) छात्राः श्यामपट्ट स्पृशति। छात्रा: गृहं गच्छति।
उत्तरम् :
छात्राः श्यामपट्ट स्पृशन्तः गृहं गच्छन्ति।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय प्रकरणम्

(घ) ‘तुमुन्’ प्रत्ययं प्रयुज्य वाक्यं पुनः लिखत-
(तुमुन् प्रत्यय का प्रयोग कर वाक्य को पुनः लिखिए-) त्वं जलं पिबसि। त्वं कूपं गच्छसि।
उत्तरम् :
त्वं जलं पातुं कूपं गच्छसि।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम्

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JAC Board Class 9th Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम्

1. भवत् (आप-प्रथम पुरुष) पुल्लिंग

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 1

(नोट-सर्वनाम शब्दों में सम्बोधन नहीं होता है।)
‘भवत्’ के साथ सदैव प्रथम पुरुष को क्रिया प्रयोग की जाती है।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम्

2. भवत् (आप) नपुंसकलिंग

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 2

नोट – शेष सभी विभक्तियों में ‘भवत्’ के ये रूप पुल्लिंग भवत्’ के समान ही चलेंगे।

3. भवत् (आप) स्त्रीलिंग

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 3

नोट – भवत्-ई-भवती के सम्पूर्ण रूप ‘नदी’ (दीर्घ कारान्त स्त्रीलिंग) के समान चलते हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम्

4. इदम् (यह) पुल्लिंग

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 4

5. इदम् (यह) नपुंसकलिंग

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 5

नोट-शेष सभी विभक्तियों में ‘इदम्’ के ये रूप पुल्लिंग ‘इदम्’ के समान ही चलेंगे।

6. इदम् (यह) स्त्रीलिंग

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 6

7. युष्मद् (तुम) शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 7

नोट-युष्मद्’ शब्द के रूप तीनों लिंगों में समान होते

8. अस्मद् (मैं) शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 8

नोट- अस्मद्’ शब्द के रूप तीनों लिंगों में समान होते

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम्

9. सर्व (सब) पुल्लिंग शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 9

10. सर्व (सब) स्त्रीलिंग शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 10

11. सर्व (सब) नपुंसकलिंग शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 11

नोट-शेष विभक्तियों के रूप पुल्लिंग ‘सर्व’ की तरह चलेंगे।

12. तत्/तद् (वह) पुल्लिंग शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 12

नोट-प्रथमा विभक्ति एकवचन को छोड़कर सभी रूपों का आधार ‘त’ अक्षर है तथा ‘सर्व’ शब्द के समान रूप हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम्

13. तत् / तद् (वह) स्त्रीलिंग शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 13

14. तत् / तद् (वह) नपुंसकलिंग

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 14

नोट – ‘तद्’ नपुंसकलिंग के तृतीया विभक्ति से सप्तमी विभक्ति तक के ये सभी रूप ‘तद्’ पुल्लिंग के समान चलतेहै।

15. यत् (जो) पुंल्लिग शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 15

नोट-इस ‘यत्’ शब्द का सभी लिंगों में, सभी विभक्तियों के रूप में ‘य’ आधार रहेगा तथा इसके ‘सर्व’ के समान ही रूप चलेंगे।

16. यत् (जो) स्त्रीलिंग शब्द

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17. यत् (जो) नपुंसकलिंग शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 17

नोट-‘यत्’ नपुंसकलिंग के तृतीया विभक्ति से सप्तमी विभक्ति तक के सम्पूर्ण रूप ‘यत्’ पुंल्लिंग के समान ही चलेंगे।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम्

18.किम् (कौन) पुंल्लिंग शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 18

नोट-‘किम्’ शब्द के रूपों का मूल आधार सभी लिंगों एवं विभक्तियों में ‘क’ होता है तथा इसके रूप ‘सर्व’ शब्द के समान ही चलते हैं।

19. किम् (कौन) स्त्रीलिंग शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 19

20.किम् (कौन) नपुंसकलिंग शब्द

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 20

नोट – ‘किम्’ शब्द के नपुंसकलिंग के तृतीया विभक्ति से सप्तमी विभक्ति तक के सभी रूप ‘किम्’ पुल्लिंग के समान ही चलते हैं।

21. ‘एतत्’ (यह) पुल्लिंग शब्द नोट-‘एतत्’ के सभी रूप ‘तत्’ शब्द में पूर्व में ‘ए’ जोड़कर ‘तत्’ के रूपों के समान ही चलते हैं।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 21

22. ‘एतत्’ (यह) शब्द स्त्रीलिंग

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 22

23. ‘एतत्’ (यह) शब्द नपुंसकलिंग

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम् 23

नोट-शेष सभी विभक्तियों में रूप पुल्लिंग ‘एतत्’ की भाँति ही चलेंगे।

अभ्यास

प्रश्न: 1.
कोष्ठके प्रदत्तं निर्देशानुसारम् उचितविभक्तिपदेन रिक्तस्थानानां पूर्ति कुरुत
(कोष्ठक में दिये निर्देशानुसार उचित विभक्ति पद से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-)

  1. …………….. च एका दुहिता आसीत्।(तत्-स्त्रीलिंग षष्ठी)
  2. ……………….. विस्मयं गता।(तत्-स्त्रीलिंग प्रथमा)
  3. ………… मम श्वश्रूः सदैव मर्मघातिभिः कटुवचनैराक्षिपति माम्। (इदम्-स्त्रीलिंग प्रथम)
  4. ………………. काकिणी अपि न दत्ता। (यत्-पुल्लिंग तृतीया)
  5. तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता। (तत्-पुल्लिंग पंचमी)
  6. ………………. मरालैः सह विप्रयोगः। (यत्-पुंल्लिग षष्ठी)
  7. …………. अनुकूले स्थिते शक्रोऽपि नास्मान् बाधितुं शक्नुयात्। (इदम्-पुंल्लिंग सप्तमी)
  8. तत् ………….. अस्मात् मनोरथमभीष्टं साधयामि। (अस्मद्-प्रथमा)
  9. किन्तु ……….. सह केलिभिः कोऽपि न उपलभ्यमानः आसीत्। (तत्-पुंल्लिंग तृतीया)
  10. अयि चटकपोत ! ….. मित्रं भविष्यसि। (अस्मद्-षष्ठी)
  11. अपूर्वः इव ते हर्षो ब्रूहि ……. असि विस्मितः। (किम्-पुंल्लिंग तृतीया)
  12. …………… कुले आत्मस्तवं कर्तुमनुचितम्। (अस्मद्-षष्ठी)
  13. तां च …………. चित् श्रेष्ठिनो गृहे निक्षेपभूतां कृत्वा देशान्तरं प्रस्थितः। (किम्-पुल्लिंग षष्ठी)
  14. वत्स! पितृव्योऽयं ………….. । (युष्मद्-षष्ठी)
  15. …………… अस्मि तपोदत्तः। (अस्मद्-प्रथमा)
  16. गुरुगृहं गत्वैव विद्याभ्यासो …………… करणीयः। (अस्मद्-तृतीया)
  17. ………….. शब्दमवसुप्तस्तु जटायुरथ शुश्रुवे। (तत्-पुल्लिंग द्वितीया)
  18. वृद्धोऽहं …………. युवा धन्वी सरथः कवची शरी। (युष्मद्-प्रथमा)
  19. यतः ………………. स्थलमलापनोदिनी जलमलापहारिणश्च। (तत्-पुल्लिग प्रथमा)
  20. ……………. सर्वान् पुष्णाति विविधैः प्रकारैः। (इदम्-स्त्रीलिंग प्रथमा)

उत्तरम् :

  1. तस्याः
  2. सा
  3. इयम्
  4. येन
  5. तस्मात्
  6. येषाम्
  7. अस्मिन्
  8. अहम्
  9. तेन
  10. मम
  11. केन
  12. अस्माकं
  13. कस्य
  14. तव
  15. अहम्
  16. मया
  17. तम्
  18. त्वम्
  19. स:
  20. इयम्।

JAC Class 9 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम शब्दरूप प्रकरणम्

प्रश्न: 2.
कोष्ठकात् उचितविभक्तियुक्तं पदं चित्वा वाक्यपूर्तिः क्रियताम्
(कोष्ठक से उचित विभक्ति युक्त पद को चुनकर वाक्य की पूर्ति कीजिए-)

  1. नाऽहं जाने ……………… कोऽस्ति भवान्। (यत्, याभ्याम्, याः)
  2. सिकता: जलप्रवाहे स्थास्यन्ति ………………. ? (किम्, कानि, काषु)
  3. त्वया …………… पूर्वेषाम् अभीष्टाः कामाः पूरिताः। (आवाभ्याम्, अस्मत्, अहम्)
  4. प्रकृतिरेव ………………. विनाशकी सजाता। (तस्य, तयोः, तेषां)
  5. ………………. सर्वमिदानी चिन्तनीयं प्रतिभाति। (तत्, ते, तानि)
  6. भगवन् ! प्रष्टुमिच्छामि किम् ………………. मनः ? (इयं, अयं, इदम्)
  7. अशितस्यान्नस्य योऽणिष्ठः ……………… मनः। (तत्, तम्, तासाम्)
  8. बालिका ………………. निवारयन्ती। (तस्मै, ताभ्याम्, तम्)
  9. परं ………………. माता एकाकिनी वर्तते। (तव, तयोः, तेषु)
  10. …………………. अपि चायपेयस्य नास्ति। (इदम्, इदानीम्, अयम्)
  11. यत् ……………. अपि कथनीयं यां प्रत्येव कथय। (किम्, कौ, कानि)
  12. ………………. नृशंसाः । (मह्यम्, अस्मत्, वयम्)
  13. …………. इदानीं कुत्र गताः ? (ते, ताभ्याम्, तेभ्यः)
  14. कल्पतरुः ………….. उद्याने तिष्ठति स तव सदा पूज्यः। (तव, तेभ्यः, तस्मै)
  15. विषाक्तं जलं नद्यां निपात्यते …………….. मत्स्यादीनां जलचराणां च नाशो जायते। (येन, याभ्यां, याषु)

उत्तरम् :

  1. यत्
  2. किम्
  3. अस्मत्
  4. तेषां
  5. तत्
  6. इदम्
  7. तत्
  8. तम्
  9. तव
  10. इदानीम्
  11. किम्
  12. वयम्
  13. ते
  14. तव
  15. येन।

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 5 Pastoralists in the Modern World

JAC Board Class 9th Social Science Solutions History Chapter 5 Pastoralists in the Modern World

JAC Class 9th History Pastoralists in the Modern World InText Questions and Answers 

Activity (Page No. 101)

Question 1.
Read Sources A and B. Write briefly about what they tell you about the nature of the work undertaken by men and women in pastoral households.
Answer:
The nature of the work undertaken by men and women in pastoral households are as follows:

  1. The men graze the cattle, and frequently stay for weeks in the woods tending their herds.
  2. The women go to the markets every morning with baskets on their heads with little earthen pots filled with milk, butter-milk and ghee, each of these pots containing the proportion required for a day’s meal.

Question 2.
Why do you think pastoral groups often live on the edges of forests?
Answer:
I think pastoral groups often live on the edges of forests because :

  1. They cultivate a little ground by living in small villages near the skirt of woods.
  2. They graze their cattle in the forests.
  3. They gather and use many forest products and sell them in towns.

Activity (Page No. 104)

Question 1.
Write a comment on the closure of the forests to grazing from the standpoint of:
1. A forester
2. a pastoralist
Answer:
1. A Forester:
It is the duty of a forester that he must protect and take care of the forests. He must not allow the pastoralists to graze their cattle in the forests.

2. A Pastoralist:
All pastoralists depends on the forests. They rear cattle which need grass to graze. By restriction on their entry in the forests, not only the lives of their cattle will suffer, but their own livelihood will also be adversely affected.

Activity (Page No. 105)

Question 1.
Imagine you are living in 1890s. You belong to a community of nomadic pastoralists and craftsmen. You learn that the Government has declared your community a Criminal Tribe.
1. Describe briefly what you would have felt and done.
2. Write a petition to the local collector explaining why the Act is unjust and how it will affect your life.
Answer:
(1) It is very natural that I felt bad because it is absolutely wrong to declare any tribe as criminal just because it is a nomadic community. In this condition, I appeal to the government to rethink on its decision.

(2) To,
The Collector,
Jaisalmer
Subject: About the declaration of Raika community as a criminal tribe.
Sir,
With due respect, I want to attract your attention towards the above mentioned subject. Your government has declared our Raika community as criminal under the Criminal Tribes Act of 1871. This act is unjust for us because our community is declared criminal without any reason, just on the basis of our nomadic life. As this act has been enforced on us, therefore, our community is forced to live in a notified village. We are not allowed to move without a permit. The village police keep continuous watch on us. This makes us feel like as we are really criminals. Thus, this act has adversely affected our lives and seized our freedom completely.

Therefore, kindly request the government to abolish this Act.

A Petitioner
Jagpat Raika
Jaisalmer

Activity (Page No. 116)

Question 1.
Imagine that it is 1950 and you are a 60-year old Raika herder living in post-independence India. You are telling your grand-daughter about the changes which have taken place in your lifestyle after independence. What would you say?
Answer:
After independence, our life has changed significanthy since now there is not enough pasture for our animals to graze on, and, we are forced to reduce the number of cattle in our herds. We have to change our grazing ground also, as we are not allowed to go to Indus and graze our camels on the banks of the river because it is now a part of Pakistan.

The political boundary between India and Pakistan prevents us from going there. Now we have found an alternative grazing ground in Haryana. In recent years, our cattle go there and graze on agricultural fields after the harvests are cut. The animals also fertilise the soil with manure from their excreta. Your father did not like a herder’s life and decided to become a farmer.

I think you will lead a much better life then that what your father led. I hope you will be serious about your studies and do well in your life. Your father tries to give you all the facilities which he did not get. You must respect his sacrifice and try to achieve something in your life.

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 5 Pastoralists in the Modern World

Question 2.
Imagine that you have been asked by a famous magazine to write an article about the life and customs of the Maasai in pre-colonial Africa. Write the Article, giving it an interesting title.
Answer:
Life of the Maasai The title Maasai derives from the word Maa. Maa-sai means “My People” (‘Maa’ means ‘My’ and sai mean ‘people’ in their language). Maasai society is divided in to two parts Elders and Warriors. The Maasais are traditionally nomadic and pastoral people who depend on milk and meat for subsistence.

Massais are the native people of eastern Africa. They raise cattle, camels, goats, sheep and donkeys and they sell milk, meat, animal skin and wool. Maasailand is stretched over a vast area from South Kenya to the Steppes of northern Tanzania. The elders belonging to the higher age group decide on the affairs of the community by meeting as a group and they also settle disputes.

The warriors are the younger group who are responsible for the protection of the tribe. They also organise cattle raids as and when required. Since cattle are their wealth, these raids assume importance as in this way they are able to assert their power over other pastoral groups. However, the warriors are subject to the authority of the elders.

Question 3.
Find out more about some of the pastoral communities marked in Fig-11 and 12
JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 5 Pastoralists in the Modern World 1

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 5 Pastoralists in the Modern World 2
Answer:
Fig. 11. Pastoral Communities in India
1. Maldharis:
Maldharis are a tribal herdsman community in Gujarat of India. Originally nomads, they came to be known as Maldharis after settling in Junagarh district (mainly Gir Forest). The literal meaning of Maldhari is owner/keeper of animal stock. These semi-nomadic herders spend eight months of the year criss-crossing sparse pasturelands with their livestock including sheep, goats, cows, buffaloes and camels in a continual quest for fodder.

They are r stable as traditional dairy men of the region and they once supplied milk and cheese to the palaces of rajas. In different regions, the Maldharis belong to different castes. At present, they earn a living by obtaining milk from their cattle.

2. Monpas:
Monpas live in Arunachal Pradesh. They are also one of the 56 officially recognised ethnic groups in China. The Monpas are believed to be the only nomadic tribe in north-east India. They were totally dependent on animals like sheep, cows, yak, goats and horses and had no permanent settlement or attachment to a particular place. Almost all Monpas follow Tibetan Buddhism.

The traditional society of the Monpas was administered by a council which consists of six ministers, locally known as ‘Trukdri’. The Monpas practice shifting and permanent type of cultivation. Cattle, yak, cows, pigs, sheep and fowl are kept as domestic animals.

Fig. 12. Pastoral Communities in Africa
1. Zulu:
The Sulu, or also known as Amazulu are a Bantu ethnic group of southern Africa. The Sulus are the single-largest ethnic group in South Africa and were numbered about nine million in the late 20th century. The Zulu village is a great circle, made up of a spherical homestead, Umuzi, which is a cluster of beehive-shaped huts arranged around a cattle krall, isibaya. Main cultural dishes of the Zulus consist of cooked maize, mielies, phutu etc. Most Zulu people are Christians.

2. Bedouin:
The Bedouin or Bedu are a group of nomadic Arab people who have historically inhabited the desert regions in North Africa, The Arabian Peninsula, Iraq and the Levant. Livestock and herding, principally of goats, sheep and dromedary camels comprised the traditional livelihoods of Bedouins. These animals were used for meat, dairy products and wool.

Note: The students can search about more Indian and African pastoral communities mentioned in the map.

JAC Class 9th History Pastoralists in the Modern World Textbook Questions and Answers 

Question 1.
Explain why nomadic tribes need to move from one place to another. What are the advantages to the environment of this continuous movement?
Answer:
The nomadic tribes have mobile habitats. Each of them owns a herd of cattle. They have to look after the subsistence of their cattle. As sufficient water and pasture land cannot be available in any area throughout the year, they need to move from one place to another. As long as the pastures are available in an area, they remain there, afterwards they move to new areas.

Environmental advantages from continued movement of Nomadic tribes: Environment gains a lot from this continuous movement. This movement allows pastures to recover. This prevents their overuse. Animals are a source of natural manure on the lands they settle, which helps in maintaining the fertility of the soil.

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Question 2.
Discuss why the colonial government in India brought in the following laws. In each case, explain how the law changed the lives of pastoralists:
1. Waste Land Rules
2. Forest Acts
3. Criminal Tribes Act
4. Grazing Tax

1. Waste Land Rules:
The colonial government wanted to transform all grazing lands into cultivated farms to earn land revenue. Therefore, Waste Land Rules were enacted in various parts of the country. In most areas, regions taken over were actually grazing tracts used by pastoralists. So, expansion of cultivation inevitably meant the decline of pastures. ‘

2. Forest Acts:
By the mid-nineteenth century, various Forest Acts were enacted to categorise the forests. Through these Acts, some forests which produced commie ally valuable timber like deodar or sal were declared ‘Reserved’. No pastoral ts were allowed to access these forests. Other forests were classified as ‘Protected’. In these, some customary grazing rights were granted to the pastoralists, but their movements were severely restricted.

Pastoralists were now prohibited from obtaining valuable and nutritious fodder for their cattle. Even in the forest areas, were they were allowed entry, their movements were regulated. They needed a permit for entry. The number of days they could spend in the forest was limited.

Pastoralists were not allowed to remain in an area for a long time, even if forage was available, the grass was succulent and undergrowth in the forest was ample. They had to move regularly because the Forest Department permits that had been issued to them now ruled their lives. If they overstayed, they were liable to fines.

3. Criminal Tribes Act:
The colonial government wanted to rule over a settled population. It was easy to collect taxes form settled people. Secondly, settled people were seen as peaceable and law-abiding. Therefore, they passed the Criminal Tribes Act in 1871. By this Act, many communities of craftsmen, traders and pastoralists were classified as Criminal Tribes.

They were stated to be criminal by nature and birth. Once this Act came into force, these communities were expected to live only in notified village settlements. They were not allowed to move without a permit. The village police kept a continuous watch on them. This restricted their grazing grounds. Their agricultural stock declined and their trade and crafts were adversely affected.

4. Grazing Tax:
The colonial government looked for every possible source of taxation to enhance its revenue income. So, various grazing taxes were imposed on the pastoralists. They had to pay tax on every animal they grazed on the pastures. The tax per head of cattle went up rapidly and the system of collection was made increasingly efficient.

In the decades between 1850s and 1880s, the right to collect the tax was auctioned out to private contractors. These contractors tried to extract as high a tax as they could to recover the money they had paid to the state and earn as much profit as they could within the year. By the 1880s, the government began collecting taxes directly from the pastoralists. Each of them was given a pass.

The number of cattle he had and the amount of tax he paid was entered on the pass. As the tax had to be paid in cash, so pastoralists started selling their animals. The heavy burden of taxes had an adverse impact on their economic condition. Now, most of the pastoralists started taking loans from the moneylenders and were thus caught in debt trap.

Question 3.
Give reasons to explain why the Maasai community lost their grazing lands.
Answer:
Under colonial rule, the Maasais have faced the continuous loss of their grazing lands. The reasons behind this were as follows :
1. European imperial powers divided Africa into different colonies. In 1885, Maasai- land was cut into half with an international boundary between British Kenya and German Tanganyika. Subsequently, the best grazing lands were gradually taken over for white settlement and the Maasais were pushed into a small area in South Kenya and North Tanzania. The Maasais lost about 60 per cent of their pre-colonial lands. They were confined to an arid zone with uncertain rainfall and poor pastures.

2. From the late nineteenth century, the British colonial government in East Africa also encouraged local, peasants to expand cultivation. As cultivation expanded, pasturelands were turned into cultivated fields.

3. Large areas of grazing land were also turned into game reserves like the Maasai Mara and Samburu National Park in Kenya and Serengeti Park in Tanzania. Pastoralists were not allowed to enter these reserves; they could neither hunt animals nor graze their herds in these areas.

JAC Class 9 Social Science Solutions History Chapter 5 Pastoralists in the Modern World

Question 4.
There are many similarities in the way in which the modern world forced changes in the lives of pastoral communities in India and East Africa. Write about any two examples of changes which were similar for Indian pastoralists and the Maasai herders.
Answer:
1. Both in India and Africa, the forests were reserved by the European rulers and the pastoralists were restricted to enter these forests. Mostly, these reserved forests were in the areas that had traditionally been grazing grounds for nomadic pastoralists in these two countries.

2. Both African and Indian Pastoralists were subjected to new taxes like the Grazing Tax. They had to secure special permits to graze their herds in certain areas. They were regarded with extreme suspicion by the colonial powers.

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