Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Rachana अनुच्छेद लेखन Questions and Answers, Notes Pdf.
JAC Board Class 10 Hindi Rachana अनुच्छेद लेखन
अनुच्छेद – लेखन से अभिप्राय है किसी विषय से संबद्ध अपने विचारों को प्रकट करना। इसमें कुशलता प्राप्त करने के लिए अभ्यास की आवश्यकता होती है।
अनुच्छेद लिखने के लिए निम्नलिखित बातों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए –
(i) सबसे पहले विषय को भली-भाँति समझ लेना चाहिए। कभी-कभी किसी सूक्ति, लोकोक्ति अथवा कहावत पर भी लिखने के लिए कहा जाता है। अतः शीर्षक में निहित भावों एवं विचारों को समझने की चेष्टा करनी चाहिए।
(ii) अनुच्छेद की भाषा शुद्ध तथा उपयुक्त शब्दों से युक्त होनी चाहिए।
(iii) इसकी शैली इतनी सारगर्भित होनी चाहिए कि कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक भाव तथा विचार निहित हों।
(iv) इसके लेखन में केवल प्रतिपाद्य विषय पर ही ध्यान देना चाहिए। इधर-उधर की बातें नहीं लिखना चाहिए। अप्रासंगिक बातों का उल्लेख अनुच्छेद के गठन एवं सौंदर्य को नष्ट कर देता है।
(v) अनुच्छेद का प्रत्येक वाक्य दूसरे वाक्य से उचित रूप में संबद्ध होना चाहिए।
(vi) विषय के अनुरूप ही भाषा का प्रयोग होना चाहिए। विचार – प्रधान विषय में विचार एवं तर्क की तथा भावात्मक विषय में अनुभूति की प्रधानता होनी चाहिए।
(vii) भाव और भाषा की अभिव्यक्ति में स्पष्टता, मौलिकता और सरलता होनी चाहिए। अनुच्छेद अपने आप में पूर्ण होना चाहिए।
1. मेरी माँ की ममता
संकेत बिंदु – माँ का महत्त्व, माँ के कार्य, माँ की ममता और स्नेह, उपसंहार।
माँ का रिश्ता दुनिया के सब रिश्ते-नातों से ऊपर है, इस बात से कौन इनकार कर सकता है। माँ को हमारे शास्त्रों में भगवान माना गया है। जैसे भगवान हमारी रक्षा, हमारा पालन-पोषण और हमारी हर इच्छा को पूरा करते हैं वैसे ही माँ भी हमारी रक्षा, पालन-पोषण और स्वयं कष्ट सहकर हमारी सब इच्छाओं को पूरा करती है। इसलिए कहा गया है कि माँ के कदमों में स्वर्ग है। मुझे भी अपनी माँ दुनिया में सबसे प्यारी लगती हैं।
वे मेरी हर ज़रूरत का ध्यान रखती हैं। मैं भी अपनी माँ की सेवा करता हूँ। मेरी माँ घर में सबसे पहले उठती हैं। उठकर वे घर की सफ़ाई करने के बाद स्नान करती हैं और पूजा-पाठ से निवृत्त होकर हमें जगाती हैं। जब तक हम स्नानादि करते हैं, माँ हमारे लिए नाश्ता तैयार करने में लग जाती हैं। नाश्ता तैयार करके वे हमें स्कूल जाने के लिए कपड़े निकालकर देती है। जब हम स्कूल जाने के लिए तैयार हो जाते हैं तो वे हमें नाश्ता परोसती हैं। स्कूल जाते समय वे दोपहर के भोजन के लिए हमारे बस्तों में टिफिन रख देती हैं।
स्कूल में हम आधी छुट्टी के समय मिलकर भोजन करते हैं। कई बार हम अपना खाना एक-दूसरे से बाँट भी लेते हैं। मेरे सभी मित्र मेरी माँ के बनाए भोजन की बहुत तारीफ़ करते हैं। सचमुच मेरी माँ बहुत स्वादिष्ट भोजन बनाती हैं। मेरी माँ हमारे सहपाठियों को भी उतना ही प्यार करती हैं जितना हमसे। मेरे सहपाठी ही नहीं हमारे मुहल्ले के सभी बच्चे भी उनका आदर करते हैं। हम सब भाई-बहन अपनी माँ का कहना मानते हैं। छुट्टी के दिन हम घर की सफ़ाई में अपनी माँ का हाथ बँटाते हैं। मेरी माँ इतनी अच्छी है कि मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि उस जैसी माँ सब को मिले।
2. प्रदर्शनी अवलोकन
संकेत बिंदु – भूमिका, प्रदर्शनी स्थल, प्रदर्शित वस्तुएँ, उपसंहार।
पिछले महीने मुझे दिल्ली में अपने किसी मित्र के पास जाने का अवसर प्राप्त हुआ। संयोग से उन दिनों दिल्ली के प्रगति मैदान में एक अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी चल रही थी। मैंने अपने मित्र के साथ इस प्रदर्शनी को देखने का निश्चय किया। लगभग दो बजे हम प्रगति मैदान पहुँचे। प्रदर्शनी के मुख्य द्वार पर हमें यह सूचना मिल गई कि इस प्रदर्शनी में लगभग तीस देश भाग ले रहे हैं। हमने देखा की सभी देशों ने अपने-अपने पंडाल बड़े कलात्मक ढंग से सजाए हुए हैं। उन पंडालों में उन देशों की निर्यात की जाने वाली वस्तुओं का प्रदर्शन किया जा रहा था।
अनेक भारतीय कंपनियों ने भी अपने- अपने पंडाल सजाए हुए थे। प्रगति मैदान किसी दुल्हन की तरह सजाया गया था। प्रदर्शनी में सजावट और रोशनी का प्रबंध इतना शानदार था कि अनायास ही मन से वाह निकल पड़ती थी। प्रदर्शनी देखने आने वालों की काफ़ी भीड़ थी। हमने प्रदर्शनी के मुख्य द्वार से टिकट खरीद कर भीतर प्रवेश किया। सबसे पहले हम जापान के पंडाल में गए। जापान ने अपने पंडाल में कृषि, दूरसंचार, कंप्यूटर आदि से जुड़ी वस्तुओं का प्रदर्शन किया था। हमने वहाँ इक्कीसवीं सदी में टेलीफ़ोन एवं दूरसंचार सेवा कैसी होगी इसका एक छोटा-सा नमूना देखा। जापान ने ऐसे टेलीफ़ोन का निर्माण किया था जिसमें बातें करने वाले दोनों व्यक्ति एक-दूसरे की फोटो भी देख सकेंगे। वहीं हमने एक पॉकेट टेलीविज़न भी देखा, जो माचिस की डिबिया जितना था।
सारे पंडाल का चक्कर लगाकर हम बाहर आए। उसके बाद हमने दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी के पंडाल देखे। उस प्रदर्शनी को देखकर हमें लगा कि अभी भारत को उन देशों का मुकाबला करने के लिए काफ़ी मेहनत करनी होगी। हमने वहाँ भारत में बनने वाले टेलीफ़ोन, कंप्यूटर आदि का पंडाल भी देखा। वहाँ यह जानकारी प्राप्त करके मन बहुत खुश हुआ कि भारत दूसरे बहुत-से देशों को ऐसा सामान निर्यात करता है। भारतीय उपकरण किसी भी हालत में विदेशों में बने सामान से कम नहीं थे। हमने प्रदर्शनी में ही बने रेस्टोरेंट में जल-पान किया और इक्कीसवीं सदी में दुनिया में होने वाली प्रगति का नक्शा आँखों में बसाए विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में होने वाली अत्याधुनिक जानकारी प्राप्त करके घर वापस आ गए।
3. नदी किनारे एक शाम
संकेत बिंदु – भूमिका, नदी पर जाना, नदी का दृश्य, प्राकृतिक सौंदर्य, उपसंहार।
गर्मियों की छुट्टियों के दिन थे। स्कूल जाने की चिंता नहीं थी और न ही होमवर्क की। एक दिन चार मित्र एकत्र हुए और सभी ने यह तय किया कि आज की शाम नदी किनारे सैर करके बिताई जाए। कुछ तो गर्मी से राहत मिलेगी और कुछ प्रकृति के सौंदर्य के दर्शन करके जी खुश होगा। एक ने कही दूजे ने मानी के अनुसार हम सब लगभग छह बजे के करीब एक स्थान पर एकत्र हुए और पैदल ही नदी की ओर चल पड़े। दिन अभी ढला नहीं था बस ढलने ही वाला था। ढलते सूर्य की लाल-लाल किरणें पश्चिम क्षितिज पर ऐसे लग रही थीं मानो प्रकृति रूपी युवती लाल-लाल वस्त्र पहने खड़ी हो। पक्षी अपने- अपने घोंसलों की ओर लौटने लगे थे।
खेतों में हरियाली छायी हुई थी। ज्यों ही हम नदी किनारे पहुँचे सूर्य की सुनहरी किरणें नदी के पानी पर पड़ती हुई बहुत भली प्रतीत हो रही थीं। ऐसे लगता था मानो नदी के जल में हज़ारों लाल कमल एक साथ खिल उठे हों। नदी तट पर लगे वृक्षों की पंक्ति देखकर ‘तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए’ कविता की पंक्ति याद हो आई। नदी तट के पास वाले जंगल से ग्वाले पशु चराकर लौट रहे थे। पशुओं के पैरों से उठने वाली धूलि एक मनोरम दृश्य उपस्थित कर रही थी। हम सभी मित्र बातें कम कर रहे थे, प्रकृति के रूप-रस का पान अधिक कर रहे थे। थोड़ी ही देर में सूर्य अस्ताचल की ओर जाता हुआ प्रतीत हुआ।
नदी का जो जल पहले लाल-लाल लगता था अब धीरे-धीरे नीला पड़ना शुरू हो गया था। उड़ते हुए बगुलों की सफ़ेद सफ़ेद पंक्तियाँ उस धूमिल वातावरण में और भी अधिक सफ़ेद लग रही थीं। नदी तट पर सैर करते-करते हम गाँव से काफ़ी दूर निकल आए थे। प्रकृति की सुंदरता निहारते – निहारते ऐसे खोए थे कि समय का ध्यान ही न रहा। हम सब गाँव की ओर लौट पड़े। नदी तट पर नृत्य करती हुई प्रकृति रूपी नदी की यह शोभा विचित्र थी। नदी किनारे सैर करते हुए बिताई यह शाम हम ज़िंदगी भर नहीं भूलेंगे।
4. परीक्षा से पहले
संकेत बिंदु – भूमिका, परीक्षा की चिंता, परीक्षा की तैयारी, उपसंहार।
वैसे तो हर मनुष्य परीक्षा से घबराता है किंतु विद्यार्थी इससे विशेष रूप से घबराता है। परीक्षा में पास होना ज़रूरी है नहीं तो जीवन का एक बहुमूल्य वर्ष नष्ट हो जाएगा। अपने साथियों से बिछड़ जाएँगे। ऐसी चिंताएँ हर विद्यार्थी को रहती हैं। परीक्षा शुरू होने से पूर्व जब मैं परीक्षा भवन पहुँचा तो मेरा दिल धक-धक कर रहा था। परीक्षा शुरू होने से आधा घंटा पहले मैं वहाँ पहुँच गया था। मैं सोच रहा था कि सारी रात जागकर जो प्रश्न तैयार किए हैं यदि वे प्रश्न-पत्र में न आए तो मेरा क्या होगा ? इसी चिंता में मैं अपने सहपाठियों से खुलकर बात नहीं कर रहा था। परीक्षा भवन के बाहर का दृश्य बड़ा विचित्र था।
परीक्षा देने आए कुछ विद्यार्थी बिलकुल बेफ़िक्र लग रहे थे। वे आपस में ठहाके मार-मार कर बातें कर रहे थे। कुछ भी विद्यार्थी थे जो अभी तक किताबों या नोट्स से चिपके हुए थे। मैं अकेला ऐसा विद्यार्थी था जो अपने साथ घर से कोई किताब या सहायक पुस्तक नहीं लाया था क्योंकि मेरे पिता जी कहा करते हैं कि परीक्षा के दिन से पहले की रात को ज्यादा पढ़ना नहीं चाहिए। सारे साल का पढ़ा हुआ भूल जाता है। वे परीक्षा के दिन से पूर्व की रात को जल्दी सोने की भी सलाह देते हैं जिससे सवेरे उठकर विद्यार्थी तरो ताज़ा होकर परीक्षा देने जाए न कि थका- थका महसूस करे। परीक्षा भवन के बाहर लड़कों की अपेक्षा लड़कियाँ अधिक खुश नज़र आ रही थीं।
उनके खिले चेहरे देखकर ऐसा लगता था मानो परीक्षा के भूत का उन्हें कोई डर नहीं। उन्हें अपनी स्मरण शक्ति पर पूरा भरोसा था। थोड़ी ही देर में घंटी बजी। यह घंटी परीक्षा भवन में प्रवेश की घंटी थी। इसी घंटी को सुनकर सभी ने परीक्षा भवन की ओर जाना शुरू कर दिया। हँसते हुए चेहरों पर अब गंभीरता आ गई थी। परीक्षा भवन के बाहर अपना अनुक्रमांक और स्थान देखकर मैं परीक्षा भवन में प्रविष्ट हुआ और अपने स्थान पर जाकर बैठ गया। कुछ विद्यार्थी अब भी शरारतें कर रहे थे। मैं मौन हो धड़कते दिल से प्रश्न-पत्र बँटने की प्रतीक्षा करने लगा।
5. रेलवे प्लेटफार्म का दृश्य
संकेत बिंदु – भूमिका, प्लेटफ़ॉर्म का दृश्य, गाड़ी का आना, लोगों की भगदड़, तरह-तरह की गतिविधियाँ, उपसंहार।
एक दिन संयोग से मुझे अपने बड़े भाई को लेने रेलवे स्टेशन जाना पड़ा। मैं प्लेटफार्म टिकट लेकर रेलवे स्टेशन के अंदर गया। पूछताछ खिड़की से पता लगा कि दिल्ली से आने वाली गाड़ी प्लेटफार्म नंबर चार पर आएगी। मैं रेलवे पुल पार करके प्लेटफार्म नंबर चार पर पहुँच गया। वहाँ यात्रियों की बड़ी संख्या थी। कुछ लोग अपने प्रियजनों को लेने के लिए आए थे तो कुछ अपने प्रियजनों को गाड़ी में सवार कराने के लिए आए हुए थे।
जाने वाले यात्री अपने-अपने सामान के पास खड़े थे। कुछ यात्रियों के पास कुली भी खड़े थे। मैं भी उन लोगों की तरह गाड़ी की प्रतीक्षा करने लगा। इसी दौरान मैंने अपनी नज़र रेलवे प्लेटफार्म पर दौड़ाई। मैंने देखा कि अनेक युवक और युवतियाँ आधुनिक पोशाक पहने इधर-उधर घूम रहे थे। कुछ यात्री टी-स्टाल पर खड़े चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे, परंतु उनकी नज़रें बार-बार उस तरफ़ उठ जाती थीं, जिधर से गाड़ी आने वाली थी। कुछ यात्री बड़े आराम से अपने सामान के पास खड़े थे, लगता था कि उन्हें गाड़ी आने पर जगह प्राप्त करने की कोई चिंता नहीं।
उन्होंने पहले से ही अपनी सीट आरक्षित करवा ली थी। कुछ फेरीवाले भी अपना माल बेचते हुए प्लेटफार्म पर घूम रहे थे। सभी लोगों की नज़रें उस तरफ थीं जिधर से गाड़ी ने आना था। तभी लगा जैसे गाड़ी आने वाली हो। प्लेटफार्म पर भगदड़ – सी मच गई। सभी यात्री अपना-अपना सामान उठाकर तैयार हो गए। कुलियों ने सामान अपने सिरों पर रख लिया। सारा वातावरण उत्तेजना से भर गया। देखते-ही-देखते गाड़ी प्लेटफार्म पर आ पहुँची। कुछ युवकों ने तो गाड़ी के रुकने की भी प्रतीक्षा न की।
वे गाड़ी के साथ दौड़ते-दौड़ते गाड़ी में सवार हो गए। गाड़ी रुकी तो गाड़ी में सवार होने के लिए धक्का-मुक्की शुरू हो गई। हर कोई पहले गाड़ी में सवार हो जाना चाहता था। उन्हें दूसरों की नहीं केवल अपनी चिंता थी। मेरे भाई मेरे सामने वाले डिब्बे में थे। उनके गाड़ी से नीचे उतरते ही मैंने उनके चरण-स्पर्श किए और उनका सामान उठाकर स्टेशन से बाहर की ओर चल पड़ा। चलते-चलते मैंने देखा जो लोग अपने प्रियजनों को गाड़ी में सवार कराकर लौट रहे थे, उनके चेहरे उदास थे और मेरी तरह जिनके प्रियजन गाड़ी से उतरे थे, उनके चेहरों पर खुशी थी।
6. सूर्योदय का दृश्य
संकेत बिंदु – भूमिका, सूर्योदय, प्रकृति में परिवर्तन, घर – मंदिर की हलचल, प्राकृतिक सौंदर्य, उपसंहार।
पूर्व दिशा की ओर उभरती हुई लालिमा को देखकर पक्षी चहचहाने लगते हैं। उन्हें सूर्य के आगमन की सबसे पहले सूचना मिल जाती है। वे अपनी चहचहाहट द्वारा समस्त प्राणी जगत को रात के बीत जाने की सूचना देते हुए जागने की प्रेरणा देते हैं। सूर्य देवता का स्वागत करने के लिए प्रकृति रूपी नदी भी प्रसन्नता में भर कर नाच उठती है। फूल खिल उठते हैं, कलियाँ चटक जाती हैं और चारों ओर का वातावरण सुगंधित हो जाता है। सूर्य देवता के आगमन के साथ ही मनुष्य रात भर के विश्राम के बाद जाग उठते हैं।
हर तरफ चहल-पहल नज़र आने लगती है। किसान हल और बैलों के साथ अपने खेतों की ओर चल पड़ते हैं। गृहणियाँ घरेलू काम-काज में व्यस्त हो जाती हैं। मंदिरों एवं गुरुद्वारों में लगे लाउडस्पीकर से भजन- -कीर्तन के कार्यक्रम प्रसारित होने लगते हैं। भक्तजन स्नानादि से निवृत्त हो पूजा-पाठ में लग जाते हैं। स्कूली बच्चों की माताएँ उन्हें जगाने लगती हैं। दफ़्तरों को जाने वाले बाबू जल्दी-जल्दी तैयार होने लगते हैं, जिससे समय पर बस पकड़ कर अपने दफ्तर पहुँच सकें। थोड़ी देर पहले जो शहर सन्नाटे में लीन था आवाज़ों के घेरे में घिरने लगता है।
सड़कों पर मोटरों, स्कूटरों, कारों के चलने की आवाजें सुनाई देने लगती हैं। ऐसा लगता है मानो सड़कें भी नींद से जाग उठी हों। सूर्योदय के समय की प्राकृतिक सुषमा का वास्तविक दृश्य तो किसी गाँव, किसी पहाड़ी क्षेत्र अथवा किसी नदी तट पर ही देखा जा सकता है। सूर्योदय के समय सूर्य के सामने आँखें बंद कर दो-चार मिनट खड़े रहने से आँखों की ज्योति कभी क्षीण नहीं होती।
7. अपना घर
संकेत बिंदु – भूमिका, अपना घर, मनुष्य और पशु का घर के प्रति प्रेम, उपसंहार।
कहते हैं कि घरों में घर अपना घर। सच है अपना घर अपना ही होता है। अपने घर में चाहे सारी सुख-सुविधाएँ न भी प्राप्त हों तो भी वह अच्छा लगता है। जो स्वतंत्रता व्यक्ति को अपने घर में होती है वह बड़े-बड़े आलीशान घर में भी प्राप्त नहीं होती। पराये घर में जो झिझक, असुविधा होती है वह अपने घर में नहीं होती। अपने घर में व्यक्ति अपनी मर्ज़ी का मालिक होता है। दूसरे के घर में उस घर के स्वामी की इच्छानुसार अथवा उस घर के नियमों के अनुसार चलना होता है।
अपने घर में आप जो चाहें करें, चो चाहें खाएँ, जहाँ चाहें बैठें, जहाँ चाहें लेटें पर दूसरे के घर में यह सब संभव नहीं। शायद यही कारण है कि आजकल नौकरी करने वाले प्रतिदिन मीलों का सफ़र करके नौकरी पर जाते हैं परंतु रात को अपने घर वापस आ जाते हैं। पुरुष तो पहले भी नौकरी करने बाहर जाते थे। आजकल स्त्रियाँ भी नौकरी करने घर से कई मील दूर जाती हैं परंतु शाम को सभी अपने-अपने घरों को लौटना पसंद करते हैं। मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी तक भी अपने घर के महत्त्व को समझते हैं।
सारा दिन जंगल में चरने वाली गाएँ, भैंसें, भेड़, बकरियाँ संध्या होते ही अपने-अपने घरों को लौट आते हैं। पक्षी भी दिनभर दाना – तिनका चुगकर संध्या होते ही अपने- अपने घोंसलों को लौट आते हैं। घर का मोह ही उन्हें अपने घोंसला में लौट आने के लिए विवश करता है क्योंकि जो सुख अपने घर में मिलता है वह और कहीं नहीं मिलता। इसीलिए कहा गया है कि घरों में घर अपना घर।
8. जब आँधी आई
संकेत बिंदु – भूमिका, भयंकर गर्मी का प्रभाव, क्षितिज पर कालिमा का दिखाई देना, वातावरण में परिवर्तन, धूलभरी आँधी, उपसंहार।
मई का महीना था। सूर्य देवता लगता था मानो आग बरसा रहे हों। धरती भट्ठी की तरह जल रही थी। हवा भी गर्मी के डर से सहमी हुई थम- सी गई थी। पेड़-पौधे तक भीषण गर्मी से घबराकर मौन खड़े थे। पत्ता तक नहीं हिल रहा था। उस दिन विद्यालय से छुट्टी होने पर मैं अपने कुछ सहपाठियों के साथ पसीने में लथपथ अपने घर की ओर लौट रहा था कि अचानक पश्चिम दिशा में कालिमा-सी दिखाई दी। आकाश में चीलें मँडराने लगीं। चारों ओर शोर मच गया कि आँधी आ रही है।
हम सब ने तेज़ – तेज़ चलना शुरू किया, जिससे आँधी आने से पूर्व सुरक्षित अपने-अपने घर पहुँच जाएँ। देखते-ही-देखते तेज़ हवा के झोंके आने लगे। दूर आकाश धूलि से अट गया लगता था। हम सब साथी एक दुकान के छज्जे के नीचे रुक गए और प्रतीक्षा करने लगे कि आँधी गुज़र जाए तो चलें। पलक झपकते ही धूल का एक बहुत बड़ा बवंडर उठा। दुकानदारों ने अपना सामान सहेजना शुरू कर दिया। आस-पास के घरों की खिड़कियाँ – दरवाज़े ज़ोर-ज़ोर से बजने लगे। धूल भरी उस आँधी में कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।
हम सब आँखें बंद करके खड़े थे जिससे हमारी आँखें धूल से न भर जाएँ। राह चलते लोग रुक गए। स्कूटर, साइकिल और कार चलाने वाले भी अपनी-अपनी जगह रुक गए थे। अचानक सड़क के किनारे लगे वृक्ष की एक बहुत बड़ी टहनी टूट कर हमारे सामने गिरी। दुकानों के बाहर लगी कनातें उड़ने लगीं। बहुत से दुकानदारों ने जो सामान बाहर सजा रखा था, वह उड़ गया। धूल भरी आँधी में कुछ भी दिखाई न दे रहा था। चारों तरफ अफ़रा तफ़री मची हुई थी। आँधी का यह प्रकोप कोई घंटा भर रहा। धीरे-धीरे स्थिति सामान्य होने लगी।
यातायात फिर से चालू हो गया। हम भी उस दुकान के छज्जे के नीचे से बाहर आकर अपने-अपने घरों की ओर रवाना हुए। सच ही उस आँधी का दृश्य बड़ा ही डरावना था। घर पहुँचते-पहुँचते मैंने देखा रास्ते में बिजली के कई खंभे, वृक्ष आदि उखड़े पड़े थे। सारे शहर में बिजली भी ठप्प हो गई थी। मैं कुशलतापूर्वक अपने घर पहुँच गया। घर पहुँच कर मैंने चैन की साँस ली।
9. जब भूचाल आया
संकेत बिंदु – भूमिका, रात की शांति, कुत्तों का भौंकना, चारपाई का हिलना, मकान का गिरना, सबका घरों से दौड़ना, उपसंहार।
गर्मियों की रात थी। मैं अपने भाइयों के साथ मकान की छत पर सो रहा था। रात लगभग आधी बीत चुकी थी। गर्मी के मारे मुझे नींद नहीं आ रही थी। तभी अचानक कुत्तों के भौंकने का स्वर सुनाई पड़ा। यह स्वर लगातार बढ़ता ही जा रहा था और लगता था कि कुत्ते तेज़ी से इधर-उधर भाग रहे हैं। कुछ ही क्षण बाद हमारी मुर्गियों ने दड़बों में फड़फड़ाना शुरू कर दिया। उनकी आवाज़ सुनकर ऐसा लगता था कि जैसे उन्होंने किसी साँप को देख लिया हो। मैं बिस्तर पर लेटा – लेटा कुत्तों के भौंकने के कारण का विचार करने लगा।
मैंने समझा कि शायद वे किसी चोर को या संदिग्ध व्यक्ति को देखकर भौंक रहे हैं। अभी मैं इन्हीं बातों पर विचार कर ही रहा था कि मुझे लगा जैसे मेरी चारपाई को कोई हिला रहा है अथवा किसी ने मेरी चारपाई को झुला दिया हो। क्षण भर में ही मैं समझ गया कि भूचाल आया है। यह झटका भूचाल का ही था। मैंने तुरंत अपने भाइयों को जगाया और उन्हें छत से शीघ्र नीचे उतरने को कहा।
छत से उतरते समय हमने परिवार के अन्य सदस्यों को भी जगा दिया। तेज़ी से दौड़कर हम सब बाहर खुले मैदान में आ गए। वहाँ पहुँच कर हमने शोर मचाया कि भूचाल आया है। सब लोग घर से बाहर आ जाओ। सभी गहरी नींद में सोये पड़े थे हड़बड़ाहट में सभी बाहर की ओर दौड़े। मैंने उन्हें बताया कि भूचाल के झटके कभी-कभी कुछ मिनटों के बाद भी आते हैं। अतः हमें सावधान रहना चाहिए।
अभी यह बात मेरे मुँह में ही थी कि भूचाल का एक और ज़ोरदार झटका आया। सारे मकानों की खिड़कियाँ – दरवाज़े खड़-खड़ा उठे। हमें धरती हिलती महसूस हुई। हम सब धरती पर लेट गए। तभी पड़ोस से मकान ढहने की आवाज़ आई। साथ ही बहुत से लोगों के चीखने-चिल्लाने की आवाज़ें भी आईं। हममें से कोई भी डर के मारे अपनी जगह से नहीं हिला। कुछ देर बाद जब हमने सोचा कि जितना भूचाल आना था आ चुका, हम उन जगहों की ओर बढ़े। निकट जाकर देखा तो काफ़ी मकान क्षतिग्रस्त हुए थे। ईश्वर की कृपा से जान-माल की कोई हानि न हुई थी। वह रात सारे गाँववासियों ने पुनः भूचाल के आने की आशंका में घरों से बाहर रह कर ही बिताई।
10. परीक्षा भवन का दृश्य
संकेत बिंदु – भूमिका, परीक्षा से घबराहट, परीक्षार्थियों का आना, घबराहट और बेचैनी, परीक्षा भवन का दृश्य, उपसंहार।
मार्च महीने की पहली तारीख थी। उस दिन हमारी वार्षिक परीक्षाएँ शुरू हो रही थीं। परीक्षा शब्द से वैसे सभी मनुष्य घबराते हैं परंतु विद्यार्थी वर्ग इस शब्द से विशेष रूप से घबराता है। मैं जब घर से चला तो मेरा दिल भी धक् धक् कर रहा था। मैं रात भर पढ़ता रहा था और चिंता थी कि यदि सारी रात के पढ़े में से कुछ भी प्रश्न-पत्र में न आया तो क्या होगा ? परीक्षा भवन के बाहर सभी विद्यार्थी चिंतित से नज़र आ रहे थे। कुछ विद्यार्थी किताबें लेकर अब भी उसके पन्ने उलट-पुलट रहे थे।
कुछ बड़े खुश-खुश नज़र आ रहे थे। मैं अपने सहपाठियों से उस दिन के प्रश्न-पत्र के बारे में बात कर ही रहा था कि परीक्षा भवन में घंटी बजनी शुरू हो गई। यह संकेत था कि हमें परीक्षा भवन में प्रवेश कर जाना चाहिए। सभी विद्यार्थियों ने परीक्षा भवन में प्रवेश करना शुरू कर दिया। भीतर पहुँच कर हम सब अपने-अपने अनुक्रमांक के अनुसार अपनी-अपनी सीट पर जाकर बैठ गए। थोड़ी ही देर में अध्यापकों द्वारा उत्तर-पुस्तिकाएँ बाँट दी गईं और हमने उस पर अपना-अपना अनुक्रमांक आदि लिखना शुरू कर दिया। ठीक नौ बजते ही एक घंटी बजी और अध्यापकों ने प्रश्न- पत्र बाँट दिए। मैंने प्रश्न- पत्र पढ़ना शुरू किया। मेरी खुशी का कोई ठिकाना न था क्योंकि प्रश्न-पत्र के सभी
प्रश्न मेरे पढ़े हुए प्रश्नों में से थे। मैंने किए जाने वाले प्रश्नों पर निशान लगाए और कुछ क्षण तक यह सोचा कि कौन-सा प्रश्न पहले करना चाहिए और फिर उत्तर लिखना शुरू कर दिया। मैंने देखा कुछ विद्यार्थी अभी बैठे सोच ही रहे थे शायद उनके पढ़े में से कोई प्रश्न न आया हो। तीन घंटे तक मैं बिना इधर-उधर देखे लिखता रहा। मैं प्रसन्न था कि उस दिन मेरा पर्चा बहुत अच्छा हुआ था।
11. साइकिल चोरी होने पर
संकेत बिंदु – भूमिका, साइकिल स्कूल के बाहर खड़ी करना, साइकिल की चोरी होना, चोरी की रिपोर्ट लिखना, रिपोर्ट दर्ज न होना, निराशा, उपसंहार।
एक दिन मैं अपने स्कूल में अवकाश लेने का आवेदन-पत्र देने गया। मैं अपनी साइकिल स्कूल के बाहर खड़ी करके, उसे ताला लगाकर स्कूल के भीतर चला गया। जब थोड़ी देर में मैं लौट तो मैंने देखा मेरी साइकिल वहाँ नहीं थी, जहाँ मैं उसे खड़ी करके गया था। मैंने आसपास देखा पर मुझे मेरी साइकिल कहीं नज़र नहीं आई। मुझे यह समझते देर न लगी कि मेरी साइकिल चोरी हो गई है। मैं सीधा घर आ गया।
घर आकर मैंने अपनी माँ को बताया कि मेरी साइकिल चोरी हो गई है। मेरी माँ यह सुनकर रोने लगी। उसने कहा कि बड़ी मुश्किल से एक हज़ार रुपया खर्च करके तुम्हें साइकिल लेकर दी थी तुमने वह भी गँवा दी। मेरी साइकिल चोरी हो गई है, यह बात सारे मुहल्ले में फैल गई। किसी ने सलाह दी कि पुलिस में रिपोर्ट अवश्य लिखवा देनी चाहिए। मैं पुलिस से बहुत डरता हूँ। मैं डरता – डरता पुलिस चौकी गया।
मैं इतना घबरा गया था, मानो मैंने ही साइकिल चुराई हो। पुलिस वालों ने कहा साइकिल की रसीद लाओ, उसका नंबर बताओ, तब हम तुम्हारी रिपोर्ट लिखेंगे। साइकिल खरीदने की रसीद मुझसे गुम हो गई थी और साइकिल का नंबर मुझे याद नहीं था। मुझे क्या मालूम था कि मेरी साइकिल चोरी हो जाएगी ? निराश हो मैं घर लौट आया। सभी मुझसे साइकिल कैसे चोरी हुई? प्रश्न का उत्तर जानना चाहते थे। मैं एक ही उत्तर सभी को देता देता उकता – सा गया। पिताजी ने मुझे सांत्वना देते हुए कहा- जो होना था सो हो गया। ईश्वर चाहेंगे तो साइकिल ज़रूर मिल जाएगी। मेरा एक मित्र विशेष रूप से दुखी था। क्योंकि यदा-कदा वह मुझसे साइकिल माँग कर ले जाता था। मुझे अपनी साइकिल चोरी हो जाने का बहुत दुख हुआ था।
12. जीवन की अविस्मरणीय घटना
संकेत बिंदु – भूमिका, चिड़िया के बच्चे का घायल अवस्था में मिलना, सेवा, सेवा से आनंद, उपसंहार।
आज मैं दसवीं कक्षा में हूँ। माता-पिता कहते हैं कि अब तुम बड़े हो गए हो। मैं भी कभी – कभी सोचता हूँ कि क्या मैं सचमुच बड़ा हो गया हूँ। हाँ, मैं सचमुच बड़ा हो गया हूँ। मुझे बीते दिनों की कुछ बातें आज भी याद हैं जो मेरा मार्गदर्शन कर रही हैं। एक घटना ऐसी है जिसे मैं आज भी याद करके आनंद विभोर हो उठता हूँ। घटना कुछ इस तरह से है। कोई दो-तीन साल पहले की घटना है। मैंने एक दिन देखा कि हमारे आँगन में लगे वृक्ष के नीचे एक चिड़िया का बच्चा घायल अवस्था में पड़ा है।
मैं उस बच्चे को उठाकर अपने कमरे में ले आया। मेरी माँ ने मुझे रोका भी कि इसे इस तरह न उठाओ यह मर जाएगा किंतु मेरा मन कहता था कि इस चिड़िया के बच्चे को बचाया जा सकता है। मैंने उसे चम्मच से पानी पिलाया। पानी मुँह में जाते ही उस बच्चे ने जो बेहोश था पंख फड़फड़ाने शुरू कर दिए। यह देखकर मैं प्रसन्न हुआ। मैंने उसे गोद में लेकर देखा कि उस की टाँग में चोट आई है। मैंने अपने छोटे भाई को माँ से मरहम की डिबिया लाने को कहा। वह तुरंत मरहम की डिबिया ले आया।
उसमें से थोड़ी-सी मरहम मैंने उस चिड़िया के बच्चे की चोट पर लगाई। मरहम लगाते ही मानो उसकी पीड़ा कुछ कम हुई। वह चुपचाप मेरी गोद में ही लेटा था। मेरा छोटा भाई भी उस के पंखों पर हाथ फेरकर खुश हो रहा था। कोई घंटा भर मैं उसे गोद में ही लेकर बैठा रहा। मैंने देखा कि बच्चा थोड़ा उड़ने की कोशिश करने लगा था। मैंने छोटे भाई से रोटी मँगवाई और उसकी चूरी बनाकर उसके सामने रखी। वह उसे खाने लगा। हम दोनों भाई उसे खाते हुए देख कर खुश हो रहे थे। मैंने उसे अब अपनी पढ़ाई की मेज़ पर रख दिया।
रात को एक बार फिर उस के घाव पर मरहम लगाई। दूसरे दिन मैंने देखा चिड़िया का वह बच्चा मेरे कमरे में इधर-उधर फुदकने लगा है। वह मुझे देख चीं-चीं करके मेरे प्रति अपना आभार प्रकट कर रहा था। एक-दो दिनों में ही उस का घाव ठीक हो गया और मैंने उसे आकाश में छोड़ दिया। वह उड़ गया। मुझे उस चिड़िया के बच्चे के प्राणों की रक्षा करके जो आनंद प्राप्त हुआ उसे मैं जीवन भर नहीं भुला पाऊँगा।
13. आँखों देखा हॉकी मैच
संकेत बिंदु – भूमिका, खेल का महत्त्व, हॉकी मैच, दो टीमों का रोमांच, दर्शकों का उत्साह और शोर, उपसंहार।
भले ही आज लोग क्रिकेट के दीवाने बने हुए हैं परंतु हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी ही है। लगातार कई वर्षों तक भारत हॉकी के खेल में विश्वभर में सबसे आगे रहा किंतु खेलों में भी राजनीतिज्ञों के दखल के कारण हॉकी के खेल में हमारा स्तर दिनों-दिन गिर रहा है। 70 मिनट की अवधि वाला यह खेल अत्यंत रोचक, रोमांचक और उत्साहवर्धक होता है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे ऐसा ही एक हॉकी मैच देखने को मिला। यह मैच सुभाष एकादश और चंद्र एकादश की टीमों के बीच चेन्नई के खेल परिसर में खेला गया।
दोनों टीमें अपने-अपने खेल के लिए देश भर में जानी जाती हैं। दोनों ही टीमों में राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी भाग ले रहे थे। चंद्र एकादश की टीम क्योंकि अपने घरेलू मैदान पर खेल रही थी इसलिए उसने सुभाष एकादश को मैच के आरंभिक दस मिनटों में दबाए रखा। उसके फॉरवर्ड खिलाड़ियों ने दो-तीन बार विरोधी गोल पर आक्रमण किए। सुभाष एकादश का गोलकीपर
बहुत ही चुस्त और होशियार था। उसने अपने विरोधियों के सभी आक्रमणों को विफल बना दिया। जब सुभाष एकादश ने तेज़ी पकड़ी तो देखते ही देखते चंद्र एकादश के विरुद्ध एक गोल दाग दिया। गोल होने पर चंद्र एकादश की टीम ने एकजुट होकर दो-तीन बार सुभाष एकादश पर कड़े आक्रमण किए परंतु उनका प्रत्येक आक्रमण विफल रहा। इसी बीच चंद्र एकादश को दो पेनल्टी कार्नर भी मिले पर वे इसका लाभ न उठा सके। सुभाष एकादश ने कई अच्छे मूव बनाए। उनका कप्तान बलजीत सिंह तो जैसे बलबीर सिंह ओलंपियन की याद दिला रहा था।
इसी बीच सुभाष एकादश को भी एक पेनल्टी कार्नर मिला, जिसे उन्होंने बड़ी खूबसूरती से गोल में बदल दिया। इससे चंद्र एकादश के खिलाड़ी हताश हो गए। चेन्नई के दर्शक भी उनके खेल को देख कर कुछ निराश हुए। मध्यांतर के समय सुभाष एकादश दो शून्य से आगे थी। मध्यांतर के बाद खेल बड़ी तेज़ी से शुरू हुआ। चंद्र एकादश के खिलाड़ी बड़ी तालमेल से आगे बढ़े और कप्तान हरजीत सिंह ने दाएँ कोण से एक बढ़िया हिट लगाकर सुभाष एकादश पर एक गोल कर दिया। इस गोल से चंद्र एकादश के जोश में जबरदस्त वृद्धि हो गई। उन्होंने अगले पाँच मिनटों में दूसरा गोल करके मैच बराबरी पर ला दिया। दर्शक खुशी से नाच उठे। मैच समाप्ति की सीटी के बजते ही दर्शकों ने खिलाड़ियों को मैदान में जाकर शाबाशी दी। मैच का स्तर इतना अच्छा था कि मैच देख कर आनंद आ गया।
14. आँखों देखी दुर्घटना
संकेत बिंदु – भूमिका, प्रातः भ्रमण के लिए जाना, सड़क पर भीड़ की अधिकता, कार और ताँगे में टक्कर, पुलिस – अस्पताल, उपसंहार।
रविवार की बात है मैं अपने मित्र के साथ सुबह – सुबह सैर करने माल रोड पर गया। वहाँ बहुत से स्त्री-पुरुष और बच्चे भी सैर करने आए हुए थे। जब से दूरदर्शन पर स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रम आने लगे हैं अधिक-से-अधिक लोग प्रातः भ्रमण के लिए इन जगहों पर आने लगे हैं। रविवार होने के कारण उस दिन भीड़ कुछ अधिक थी। तभी मैंने वहाँ एक युवा दंपति को अपने छोटे बच्चे को बच्चागाड़ी में बैठा कर सैर करते देखा। अचानक लड़कियों के स्कूल की ओर एक रिक्शा आता हुआ दिखाई दिया।
उसमें दो सवारियाँ भी बैठी थीं। बच्चागाड़ी वाले दंपत्ति ने रिक्शे से बचने के लिए सड़क पार करनी चाही। जब वे सड़क पार कर रहे थे तो दूसरी तरफ से बड़ी तेज़ गति से आ रही एक कार उस रिक्शे से टकरा गई। रिक्शा चलाने वाला और दोनों सवारियाँ बुरी तरह से घायल हो गए थे। बच्चागाड़ी वाली स्त्री के हाथ से बच्चागाड़ी छूट गई। किंतु इससे पूर्व कि वह बच्चे समेत रिक्शे और कार की टक्कर वाली जगह पर पहुँचकर उन से टकरा जाती, मेरे साथी ने भागकर उस बच्चागाड़ी को सँभाल लिया।
कार चलाने वाले सज्जन को भी काफ़ी चोटें आई थीं पर उसकी कार को कोई खास क्षति नहीं पहुँची थी। माल रोड पर गश्त करने वाले पुलिस के तीन-चार सिपाही तुरंत घटना स्थल पर पहुँच गए। उन्होंने वायरलैस द्वारा अपने अधिकारियों और अस्पताल को फोन किया। चंद मिनटों में वहाँ ऐम्बुलेंस गाड़ी आ गई। हम सब ने घायलों को उठा कर ऐम्बुलेंस में लिटाया। पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी तुरंत वहाँ पहुँच गए।
उन्होंने कार चालक को पकड़ लिया था। प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस को बताया कि सारा दोष कार चालक का था। इस सैर-सपाटे वाली सड़क पर वह 100 कि० मी० की स्पीड से कार चला रहा था और रिक्शा सामने आने पर वह ब्रेक न लगा सका। दूसरी तरफ़ बच्चे को बचाने के लिए मेरे मित्र द्वारा दिखाई फुर्ती व चुस्ती की भी लोग सराहना कर रहे थे। उस दंपत्ति ने उसका विशेष धन्यवाद दिया।
15. हमने मनाई पिकनिक
संकेत बिंदु – भूमिका, पिकनिक का अर्थ, पिकनिक के लिए उचित स्थान का चुनाव, साइकिलों से जाना, प्राकृतिक सौंदर्य, खान-पान, मनोरंजन, उपसंहार पिकनिक एक ऐसा शब्द है जो थके हुए शरीर एवं मन में एकदम स्फूर्ति ला देता है। मैंने और मेरे मित्र ने परीक्षा के दिनों में बड़ी मेहनत की थी। परीक्षा का तनाव हमारे मन और मस्तिष्क पर विद्यमान था। उस तनाव को दूर करने के लिए हम दोनों ने यह निर्णय किया कि क्यों न किसी दिन माधोपुर हैडवर्क्स पर जाकर पिकनिक मनाई जाए। अपने इस निर्णय से अपने मुहल्ले के दो-चार और मित्रों को अवगत करवाया तो वे भी हमारे साथ चलने को तैयार हो गए। माधोपुर हैडवर्क्स हमारे नगर से दस कि० मी० दूरी पर था। हम सबने अपने – अपने साइकिलों पर जाने का निश्चय किया।
पिकनिक के लिए रविवार का दिन निश्चित किया गया। रविवार को हम सबने नाश्ता करने के बाद अपने-अपने लंच बॉक्स तैयार किए तथा कुछ अन्य खाने का सामान अपने-अपने साइकिलों पर रख लिया। मेरे मित्र के पास एक छोटा टेपरिकार्डर भी था उसे भी अपने साथ ले लिया तथा साथ में कुछ अपने मनपसंद गानों की टेप्स भी रख लीं। हम सब अपनी-अपनी साइकिल पर सवार होकर, हँसते-गाते एक-दूसरे को चुटकले सुनाते पिकनिक स्थल की ओर बढ़ चले।
लगभग 45 मिनट में हम सब माधोपुर हैडवर्क्स पर पहुँच गए। वहाँ हमने प्रकृति को अपनी संपूर्ण सुषमा के साथ विराजमान देखा। चारों तरफ़ रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे, शीतल और मंद-मंद हवा बह रही थी। हमने एक ऐसी जगह चुनी जहाँ घास की प्राकृतिक कालीन बिछी हुई थी। हमने वहाँ एक दरी बिछा दी। साइकिल चलाकर हम थोड़ा थक गए थे, अतः हमने पहले थोड़ी देर विश्राम किया। हमारे एक साथी ने हमारी कुछ फ़ोटो उतारीं। थोड़ी देर सुस्ता कर हमने टेप रिकार्डर चला दिया और गीतों की धुन पर मस्ती में भर कर नाचने लगे।
कुछ देर तक हमने इधर-उधर घूम कर वहाँ के प्राकृतिक दृश्यों का नज़ारा देखा। दोपहर को हम सबने अपने-अपने टिफ़िन खोले और सबने मिल बैठ कर एक-दूसरे का भोजन बाँट कर खाया। उसके बाद हमने वहाँ स्थित कैनाल रेस्ट हाउस रेस्तराँ में जाकर चाय पी। चाय-पान के बाद हमने अपने स्थान पर बैठकर अंताक्षरी खेलनी शुरू की। इसके बाद हमने एक-दूसरे को कुछ चुटकले और कुछ आपबीती हँसी मज़ाक की बातें बताईं। समय कितनी जल्दी बीत गया इसका हमें पता ही न चला। जब सूर्य छिपने को आया तो हम ने अपना-अपना सामान समेटा और घर की तरफ चल पड़े।
16. जैसी संगति बैठिए तैसोई फल होत
संकेत बिंदु – भूमिका, संगति का महत्त्व, सत्संगति, दुर्जन का साथ, उपसंहार।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जब तक वह समाज से संपर्क स्थापित नहीं करता तब तक उसके जीवन की गाड़ी नहीं चल सकती। समाज में कई प्रकार के लोग होते हैं। कुछ सदाचारी हैं तो कुछ दुराचारी। हमें ऐसे लोगों की संगति करनी चाहिए जो हमारे जीवन को उन्नत एवं निर्मल बनाएँ। अच्छी संगति का प्रभाव अच्छा तथा बुरी संगति का प्रभाव बुरा होता है। क्योंकि ‘जैसी संगति बैठिए तैसोई फल होत’ कहा भी है कि किसी व्यक्ति के आचरण को जानने के लिए उसकी संगति को जानना चाहिए।
क्योंकि दुष्टों के साथ रहने वाला व्यक्ति भला हो ही नहीं सकता। संगति का प्रभाव जाने अथवा अनजाने अवश्य पड़ता है। बचपन में जो बालक परिवार अथवा मुहल्ले में जो कुछ सुनते हैं, प्रायः उसी को दोहराते हैं। कहा गया है “दुर्जन यदि विद्वान भी हो तो उसकी संगति छोड़ देनी चाहिए। मणि धारण करने वाला साँप क्या भयंकर नहीं होता ?” सत्संगति का हमारे चरित्र के निर्माण में बड़ा हाथ रहता है। अच्छी पुस्तकों का अध्ययन भी सत्संग से कम नहीं। विद्वान लेखक अपनी पुस्तक रूप में हमारे साथ रहता है।
अच्छी पुस्तकें हमारी मित्र एवं पथ-प्रदर्शक हैं। महान व्यक्तियों के संपर्क ने अनेक व्यक्तियों के जीवन को कंचन के समान बहुमूल्य बना दिया। दुष्टों एवं दुराचारियों का संग मनुष्य को पतन की ओर ले जाता है। मनुष्य को विवेक प्राप्त करने के लिए सत्संगति का आश्रय लेना चाहिए। अपनी और समाज की उन्नति के लिए सत्संग से बढ़कर दूसरा साधन नहीं है। अच्छी संगति आत्म- बल को बढ़ाती है तथा सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।
17. सब दिन होत न एक समान
संकेत बिंदु – भूमिका, सुख-दुख, ऋतु परिवर्तन, उपसंहार।
जीवन को जल की संज्ञा दी गई है। जल कभी सम भूमि पर बहता है तो कभी विषम भूमि पर। कभी रेगिस्तान की भूमि उसका शोषण करती है तो कभी वर्षा की धारा उसके प्रवाह को बढ़ा देती है। मानव जीवन में भी कभी सुख का अध्याय जुड़ता है तो कभी दुख अपने पूरे दल-बल के साथ आक्रमण करता है। प्रकृति में दुख-सुख की धूप-छाया के दर्शन होते हैं। प्रातः काल का समय सुख का प्रतीक है तो रात्रि दुख का। विभिन्न ऋतुएँ भी जीवन के विभिन्न पक्षों की प्रतीक हैं। राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त ने ठीक ही कहा है –
संसार में किसका समय है एक सा रहता सदा,
है निशा दिवा सी घूमती सर्वत्र विपदा – संपदा।
संसार के बड़े-बड़े शासकों का समय भी एक-सा नहीं रहा है। अंतिम मुग़ल सम्राट् बहादुरशाह ज़फर का करुण अंत इस बात का प्रमाण है कि मनुष्य का समय हमेशा एक-सा नहीं रहता। जो आज दीन एवं दुखी है वह कल वैभव के झूले में झूलता दिखाई देता है। जो आज सुख-संपदा एवं ऐश्वर्य में डूबा हुआ है, संभव है भाग्य के विपरीत होने के कारण उसे दर-दर की ठोकरें खाने पर विवश होना पड़े। जो वृक्ष, लताएँ एवं पौधे वसंत ऋतु में वातावरण को मादकता प्रदान करते हैं, वही पतझड़ में वातावरण को नीरस बना देते हैं। जीवन सुख-दुख, आशा-निराशा एवं हर्ष – विषाद का समन्यव है। एक ओर जीवन का उदय है तो दूसरी ओर जीवन का अस्त। अतः ठीक ही कहा गया है ‘सब दिन होत न एक समान।’
18. जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी
संकेत बिंदु – भूमिका, अर्थ, देशानुराग, अधिकार और कर्तव्य, उपसंहार।
इस कथन का भाव है “जननी और जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊँचा है।” जो व्यक्ति अपनी माँ से और भूमि से प्रेम नहीं करता, वह मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं है। देश-द्रोह एवं मातृद्रोह से बड़ा अपराध कोई और नहीं है। यह ऐसा अपराध है जिसका प्रायश्चित्त संभव ही नहीं है। देश – प्रेम की भावना ही मनुष्य को यह प्रेरणा देती है कि जिस भूमि से उसका भरण-पोषण हो रहा है, उसकी रक्षा के लिए अपना सब कुछ अर्पित कर देना उसका परम कर्तव्य है। जननी एवं जन्मभूमि के प्रति प्रेम की भावना जीवधारियों की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। मनुष्य संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। अतः उसके हृदय में देशानुराग की भावना का उदय स्वाभाविक है। मरुस्थल में रहने वाले लोग हाँफ- हाँफकर जीते हैं, फिर भी उन्हें अपनी जन्मभूमि से अगाध प्रेम है। ध्रुववासी अत्यंत शीत के कारण अंधकार तथा शीत में काँप – काँप कर तो जीवन व्यतीत कर लेते हैं, पर अपनी मातृभूमि का बाल- बाँका नहीं होने देते। मुग़ल साम्राज्य के अंतिम दीप सम्राट बहादुरशाह ज़फर की रंगून के कारागार से लिखी ये पंक्तियाँ कितनी मार्मिक हैं –
कितना है बदनसीब ज़फर दफन के लिए,
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कूचा-ए-यार में।
जिस देश के लोग अपनी मातृ-भूमि से जितना अधिक स्नेह करते हैं, वह देश उतना ही उन्नत माना जाता है। देश-प्रेम की भावना ने ही भारत की पराधीनता की जंज़ीरों को काटने के लिए देश-भक्तों को प्रेरित किया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के प्रति हमारा कर्तव्य और भी बढ़ गया है। इस कर्तव्य की पूर्ति हमें जी-जान लगाकर करनी चाहिए।
19. नेता नहीं, नागरिक चाहिए
संकेत बिंदु – भूमिका, नेता, आदर्श नेता, आदर्श नागरिक और सद्गुण, अधिकार – कर्तव्य में संतुलन, उपसंहार।
लोगों का नेतृत्व करने वाले व्यक्ति को नेता कहते हैं। आदर्श नेता एक मार्ग-दर्शक के समान है, जो दूसरों को सुमार्ग की ओर ले जाता है। आदर्श नागरिक ही आदर्श नेता बन सकता है। आज के नेताओं में सद्गुणों का अभाव है। वे जनता के शासक बनकर रहना चाहते हैं, सेवक नहीं। उनमें अहं एवं स्पर्धा का भाव भी पाया जाता है। वर्तमान भारत की राजनीति इस तथ्य की परिचायक है कि नेता बनने की होड़ ने आपसी राग-द्वेष को ही अधिक बढ़ावा दिया है। इसीलिए यह कहा गया है – नेता नहीं नागरिक चाहिए। नागरिक को अपने कर्तव्य एवं अधिकारों के बीच समन्वय रखना पड़ता है।
यदि नागरिक अपने समाज के प्रति अपने कर्तव्य का समुचित पालन करता है तो राष्ट्र किसी संकट का सामना कर ही नहीं सकता। नेता बनने की तीव्र लालसा ने नागरिकता के भाव को कम कर दिया है। नागरिक के पास राजनीतिक एवं सामाजिक दोनों अधिकार रहते हैं। अधिकार की सीमा होती है। हमारे ही नहीं दूसरे नागरिकों के भी अधिकार होते हैं। अतः नागरिक को अपने कर्तव्यों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। नेता अधिकारों की बात ज्यादा जानता है, लेकिन कर्तव्यों के प्रति उपेक्षा भाव रखता है। उत्तम नागरिक ही उत्तम नेता होता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति का यह परम कर्तव्य है कि वह अपने आपको एक अच्छा नागरिक बनाए। नागरिक में नेतृत्व का भाव स्वयंमेव आ जाता है। नेता का शाब्दिक अर्थ है जो दूसरों को आगे ले जाए अर्थात् अपने साथियों के प्रति सहायता एवं सहानुभूति का भाव अपनाए। अतः देश को नेता नहीं नागरिक चाहिए।
20. आलस्य दरिद्रता का मूल है
संकेत बिंदु – भूमिका, परिश्रम का महत्त्व, उन्नति का मार्ग, आलस्य की हानियाँ, उपसंहार।
जो व्यक्ति श्रम से पलायन करके आलस्य का जीवन व्यतीत करते हैं वे कभी भी सुख-सुविधा का आनंद प्राप्त नहीं कर सकते। कोई भी कार्य यहाँ तक कि स्वयं का जीना भी बिना काम किए संभव नहीं। यह ठीक है कि हमारे जीवन में भाग्य का बड़ा हाथ है। दुर्भाग्य के कारण संभव है मनुष्य को विकास और वैभव के दर्शन न हों पर परिश्रम के बल पर वह अपनी जीविका के प्रश्न को हल कर ही सकता है। यदि ऐसा न होता तो श्रम के महत्त्व को कौन स्वीकार करता। कुछ लोगों का विचार है कि भाग्य के अनुसार ही मनुष्य सुख-दुख भोगता है। दाने-दाने पर मोहर लगी है, भगवान सब का ध्यान रखता है। जिसने मुँह दिया है, वह खाना भी देगा। ऐसे लोग यह भूल जाते हैं कि भाग्य का निर्माण भी परिश्रम द्वारा ही होता है। राष्ट्रकवि दिनकर ने ठीक ही कहा है –
ब्रह्मा से कुछ लिखा भाग्य में, मनुज नहीं लाया है।
उसने अपना सुख, अपने ही भुजबल से पाया है ॥
भगवान ने मुख के साथ-साथ दो हाथ भी दिए हैं। इन हाथों से काम लेकर मनुष्य अपनी दरिद्रता को दूर कर सकता है। हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहने वाला व्यक्ति आलसी होता है। जो आलसी है वह दरिद्र और परावलंबी है क्योंकि आलस्य दरिद्रता का मूल है। आज इस संसार में जो कुछ भी दिखाई दे रहा है, वह श्रम का ही परिणाम है। यदि सभी लोग आलसी बने रहते तो ये सड़कें, भवन, अनेक प्रकार के यान, कला-कृतियाँ कैसे बनतीं ? श्रम से मिट्टी सोना उगलती है परंतु आलस्य से सोना भी मिट्टी बन जाता है। अपने परिवार, समाज और राष्ट्र की दरिद्रता दूर करने के लिए आलस्य का परित्याग कर परिश्रम को अपनाने की आवश्यकता है। हमारे राष्ट्र में जितने हाथ हैं, यदि वे सभी काम में जुट जाएँ तो सारी दरिद्रता बिलख-बिलखकर विदा हो जाएगी। आलस्य ही दरिद्रता का मूल है 1
21. मन के हारे हार है, मन के जीते जीत (2018)
संकेत बिंदु – भूमिका, मन का महत्त्व, मानसिक शक्ति, उन्नति का मार्ग, उपसंहार।
मानव-शरीर यदि रथ के समान है तो यह मन उसका चालक है। मनुष्य के शरीर की असली शक्ति उसका मन है। मन के अभाव में शरीर का कोई अस्तित्व ही नहीं। मन ही वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य से बड़े-से-बड़े काम करवा लेती है। यदि मन में दुर्बलता का भाव आ जाए तो शक्तिशाली शरीर और विभिन्न प्रकार के साधन व्यर्थ हो जाते हैं। उदाहरण के लिए एक सैनिक को लिया जा सकता है। यदि उसने अपने मन को जीत लिया है तो वह अपनी शारीरिक शक्ति एवं अनुमान से कहीं अधिक सफलता पा सकता है।
यदि उसका मन हार गया तो बड़े-बड़े मारक अस्त्र-शस्त्र भी उसके द्वारा अपना प्रभाव नहीं दिखा सकते। मन की शक्ति के बल पर ही मनुष्य ने अनेक आविष्कार किए हैं। मन की शक्ति मनुष्य को अनवरत साधना की प्रेरणा देती है और विजयश्री उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो जाती है। जब तक मन में संकल्प एवं प्रेरणा का भाव नहीं जागता तब तक हम किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते। एक ही काम में एक व्यक्ति सफलता प्राप्त कर लेता है और दूसरा असफल हो जाता है। इसका कारण दोनों के मन की शक्ति की भिन्नता है। जब तक हमारा मन शिथिल है तब तक हम कुछ भी नहीं कर सकते। अतः ठीक ही कहा गया है- ” मन के हारे हार है मन के जीते जीत।”
22. सबै सहायक सबल के
संकेत बिंदु – भूमिका, बल की महत्ता, शक्ति और साहस, जिसकी लाठी उसकी भैंस, शक्ति के बल पर कुकृत्य छिपाना, उपसंहार।
यह संसार शक्ति का लोहा मानता है। लोग चढ़ते सूर्य की पूजा करते हैं। शक्तिशाली की सहायता के लिए सभी तत्पर रहते हैं लेकिन निर्बल को कोई नहीं पूछता। वायु भी आग को तो भड़का देती है, पर दीपक को बुझा देती है। दीपक निर्बल है, कमज़ोर है, इसलिए वायु का उस पर पूर्ण अधिकार है। व्यावहारिक जीवन में भी हम देखते हैं कि जो निर्धन हैं, वे और निर्धन बनते जाते हैं, और जो धनवान हैं उनके पास और धन चला आ रहा इसका एकमात्र कारण यही है कि सबल की सभी सहायता कर रहे हैं और निर्धन उपेक्षित हो रहा है।
सर्वत्र जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। सामाजिक जीवन से लेकर अंतर्राष्ट्रीय जीवन तक यह भावना काम कर रही है। एक शक्तिशाली राष्ट्र दूसरे शक्तिशाली राष्ट्र की सहायता सहर्ष करता है जबकि निर्धन देशों को शक्ति संपन्न देशों के आगे गिड़गिड़ाना पड़ता है। परिवार जैसे सीमित क्षेत्र में भी प्रायः यह देखने को मिलता है कि जो धनवान हैं, उनके प्रति सहायता एवं सत्कार की भावना अधिक होती है। घर में जब कभी कोई धनवान आता है तो उसकी खूब सेवा की जाती है, लेकिन जब द्वार पर भिखारी आता है तो उसको दुत्कार दिया जाता है।
निर्धन ईमानदारी एवं सत्य के पथ पर चलता हुआ भी अनेक कष्टों का सामना करता है जबकि शक्तिशाली दुराचार एवं अन्याय के पथ पर बढ़ता हुआ भी दूसरों की सहायता प्राप्त करने में समर्थ होता है। इसका कारण यही है कि उसके पास शक्ति है तथा अपने कुकृत्यों को छिपाने के लिए साधन हैं। अतः वृंद कवि का यह कथन बिल्कुल सार्थक प्रतीक होता है- सबै सहायक सबल के, कोऊ न निबल सहाय।
23. सच्चे मित्र से जीवन में सौंदर्य आता है
संकेत बिंदु – भूमिका, सामाजिक जीवन, मित्र की आवश्यकता, मित्र का चुनाव, सच्चा मित्र, उपसंहार।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के अभाव में उसका जीवन निर्वाह संभव नहीं। सामाजिकों के साथ हमारे संबंध अनेक प्रकार के हैं। कुछ हमारे संबंधी हैं, कुछ परिचित तथा कुछ मित्र होते हैं। मित्रों में भी कुछ विशेष प्रिय होते हैं। जीवन में यदि सच्चा मित्र मिल जाए तो समझना चाहिए कि हमें बहुत बड़ी निधि मिल गई है। सच्चा मित्र हमारा मार्ग प्रशस्त करता है।
वह दिन-प्रतिदिन हमें उन्नति की ओर ले जाता है। उसके सद्व्यवहार से हमारे जीवन में निर्मलता का प्रसार होता है। दुख के दिनों में वह हमारे लिए विशेष सहायक होता है। जब हम निरुत्साहित होते हैं तो वह हम में उत्साह भरता है। वह हमें कुमार्ग से हटा कर सुमार्ग की ओर चलने की प्रेरणा देता है। सुदामा एवं कृष्ण की तथा राम एवं सुग्रीव की आदर्श मित्रता को कौन नहीं जानता। श्रीकृष्ण ने अपने दरिद्र मित्र सुदामा की सहायता कर उसके जीवन को ऐश्वर्यमय बना दिया था। राम ने सुग्रीव की सहायता कर उसे सब प्रकार के संकट से मुक्त कर दिया।
सच्चा मित्र कभी एहसान नहीं जतलाता। वह मित्र की सहायता करना अपना कर्तव्य समझता है। वह अपनी दरिद्रता एवं अपने दुख की परवाह न करता हुआ अपने मित्र के जीवन में अधिक-से-अधिक सौंदर्य लाने का प्रयत्न करता है। सच्चा मित्र जीवन के बेरंग खाके में सुखों के रंग भरकर उसे अत्यंत आकर्षक बना देता है, अतः ठीक ही कहा गया है “सच्चे मित्र से जीवन में सौंदर्य आता है।”
24. जीवन का रहस्य निष्काम सेवा है
संकेत बिंदु – भूमिका, जीवन लक्ष्य का महत्त्व, परोपकार, सेवा-भाव, उपसंहार।
प्रत्येक मनुष्य अपनी रुचि के अनुसार अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करता है। कोई व्यापारी बनना चाहता है तो कोई कर्मचारी, कोई इंजीनियर बनने की लालसा से प्रेरित है तो कोई डॉक्टर बनकर घर भरना चाहता है। स्वार्थ पूर्ति के लिए किया गया काम उच्च कोटि की संज्ञा नहीं पा सकता। स्वार्थ के पीछे तो संसार पागल है। लोग भूल गए हैं कि जीवन का रहस्य निष्काम सेवा है। जो व्यक्ति काम – भावना से प्रेरित होकर काम करता है, वह कभी भी सुपरिणाम नहीं ला सकता। उससे कोई लाभ हो भी तो वह केवल व्यक्ति विशेष को ही होता है। समाज को कोई लाभ प्राप्त नहीं होता। निष्काम सेवा के द्वारा ही मनुष्य समाज के प्रति अपना उत्तरदायित्व निभा सकता है। कबीरदास ने भी अपने एक दोहे में यह स्पष्ट किया है –
जब लगि भक्ति सकाम है, तब लेगि निष्फल सेव।
कह कबीर वह क्यों मिले निहकामी निज देव ॥
निष्काम सेवा के द्वारा ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। समाज एवं देश को उन्नति की ओर ले जाने का श्रेष्ठतम तथा सरलतम साधन निष्काम सेवा है। हमारे संत कवियों तथा समाज सुधारकों ने इसी भाव से प्रेरित होकर अपनी चिंता छोड़ देश और जाति का कल्याण किया। इसलिए वे समाज और राष्ट्र के लिए कुछ कर सके। अपने लिए तो सभी जीते हैं। जो दूसरों के लिए जीता है, उसका जीवन अमर हो जाता है। तभी तो गुप्त जी ने कहा है – “वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे। ”
25. भीड़ भरी बस की यात्रा का अनुभव
संकेत बिंदु – भूमिका, यात्रा का कारण, बस की यात्रा, भीड़, उपसंहार।
वैसे तो जीवन को ही यात्रा की संज्ञा दी गई है पर कभी-कभी मनुष्य को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए गाड़ी अथवा बस का भी सहारा लेना पड़ता है। बस की यात्रा का अनुभव भी बड़ा विचित्र है। भारत जैसे जनसंख्या प्रधान देश में बस की यात्रा अत्यंत असुविधानजनक है। प्रत्येक बस में सीटें तो गिनती की हैं पर बस में चढ़ने वालों की संख्या निर्धारित करना एक जटिल कार्य है। भले ही बस हर पाँच मिनट बाद चले पर चलेगी पूरी तरह भर कर। गर्मियों के दिनों में तो यह यात्रा किसी भी यातना से कम नहीं।
भारत के नगरों की अधिकांश सड़कें सम न होकर विषम हैं। खड़े हुए यात्री की तो दुर्दशा हो जाती है, एक यात्री दूसरे यात्री पर गिरने लगता है। कभी-कभी तो लड़ाई-झगड़े की नौबत पैदा हो जाती है। लोगों की जेबें कट जाती हैं। जिन लोगों के कार्यालय दूर हैं, उन्हें प्रायः बस का सहारा लेना ही पड़ता है। बस यात्रा एक प्रकार से रेल यात्रा का लघु रूप है। जिस प्रकार गाड़ी में विभिन्न जातियों एवं प्रवृत्तियों के लोगों के दर्शन होते हैं, उसी प्रकार बस में भी अलग-अलग विचारों के लोग मिलते हैं।
इनसे मनुष्य बहुत कुछ सीख भी सकता है। भीड़ भरी बस की यात्रा जीवन की कठिनाइयों का सामना करने का छोटा-सा शिक्षालय है। यह यात्रा इस तथ्य की परिचायक है कि भारत अनेक क्षेत्रों में अभी तक भरपूर प्रगति नहीं कर सका। जो व्यक्ति बस यात्रा के अनुभव से वंचित है, वह एक प्रकार से भारतीय जीवन के बहुत बड़े अनुभव से ही वंचित है।
26. अधजल गगरी छलकत जाय
संकेत बिंदु – भूमिका, अधूरा ज्ञान- व्यर्थ, डींग हाँकना, झूठा प्रदर्शन और अपूर्णता, हीनता की ग्रंथि, झूठा गौरव और दिखावे की भावना,
उपसंहार। जल से आमुख भरी गगरी चुपचाप बिना उछले चलती है। आधी भरी हुई जल की मटकी उछल-उछल कर चलती है। ठीक यही स्वभाव मानव मन का भी है। वास्तविक विद्वान विनम्र हो जाते हैं। नम्रता ही उनकी शिक्षा का प्रतीक होता है। दूसरी ओर जो लोग अर्द्ध- शिक्षित होते हैं अथवा अर्द्ध- समृद्ध होते हैं, वे अपने ज्ञान अथवा धन की डींग बहुत हाँकते हैं।
अर्द्ध- शिक्षित व्यक्ति का डींग हाँकना बहुत कुछ मनोवैज्ञानिक भी है। वे लोग अपने ज्ञान का प्रदर्शन करके अपनी अपूर्णता को ढकना चाहते हैं। उनके मन में अपने अधूरेपन के प्रति एक प्रकार की हीनता का मनोभाव होता है जिसे वे प्रदर्शन के माध्यम से झूठा प्रभाव उत्पन्न करके समाप्त करना चाहते हैं। यही कारण है कि मध्यमवर्गीय व्यक्तियों के जीवन जितने आडंबरपूर्ण, प्रपंचपूर्ण एवं लचर होते हैं उतने निम्न या उच्च वर्ग के नहीं। उच्च वर्ग में शिक्षा, धन और समृद्धि रच जाती है।
इस कारण ये चीजें महत्त्व को बढ़ाने का साधन नहीं बनतीं। मध्यमवर्गीय व्यक्ति अपनी हर समृद्धि को, अपने गुण को, अपने महत्त्व को हथियार बनाकर चलाता है। प्रायः यह व्यवहार देखने में आता है कि अंग्रेज़ी की शिक्षा से अल्प परिचित लोग अंग्रेज़ी बोलने तथा अंग्रेज़ी में निमंत्रण- पत्र छपवाने में अधिक गौरव अनुभव करते हैं। अतः यह सत्य है कि अपूर्ण समृद्धि प्रदर्शन को जन्म देती है अर्थात् अधजल गगरी छलकत जाय।
27. मन चंगा तो कठौती में गंगा
संकेत बिंदु – भूमिका, संत रविदास का कथन, निर्मल मानव-मन की महत्ता, स्वच्छ और निष्पाप हृदय, आत्मिक शांति, उपसंहार।
संत रविदास का यह वचन एक मार्मिक सत्य का उद्घाटन करता है। मानव के लिए मन की निर्मलता का होना आवश्यक है। जिसका मन निर्मल होता है, उसे बाहरी निर्मलता ओढ़ने या गंगा के स्पर्श से निर्मलता प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। जिनके मन में मैल होती है, उन्हें ही गंगा की निर्मलता अधिक आकर्षित करती है। स्वच्छ एवं निष्पाप हृदय का व्यक्ति बाह्य आडंबरों से दूर रहता है। अपना महत्त्व प्रतिपादित करने के लिए वह विभिन्न प्रपंचों का सहारा नहीं लेता।
प्राचीन भारत में ऋषि-मुनि घर-बार सभी त्याग कर सभी भौतिक सुखों से रहित होकर भी परमानंद की प्राप्ति इसीलिए कर लेते थे कि उनकी मन – आत्मा पर व्यर्थ के पापों का बोझ नहीं होता था। बुरे मन का स्वामी चाहे कितना भी प्रयास कर ले कि उसे आत्मिक शांति मिले, परंतु वह उसे प्राप्त नहीं कर सकता। भक्त यदि परमात्मा को पाना चाहते हैं तो भगवान स्वयं भी उसकी भक्ति से प्रभावित हो उसके निकट आना चाहता है। वह भक्त के निष्कपट, निष्पाप और निष्कलुष हृदय में मिल जाना चाहता है।
28. जहाँ चाह, वहाँ राह
संकेत बिंदु – भूमिका, मनुष्य की संघर्षशीलता, उन्नति की राह, परिश्रम की उपयोगिता, उपसंहार।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में प्रतिष्ठापूर्वक जीवन यापन करने के लिए उसे निरंतर संघर्षशील रहना पड़ता है। इसके लिए वह नित्य नवीन प्रयास करता है, जिससे उसकी प्रतिष्ठा बनी रहे तथा वह नित्य प्रति उन्नति करता रहे। यदि मनुष्य के मन में उन्नति करने की इच्छा नहीं होगी तो वह कभी उन्नति कर ही नहीं सकता। अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए मनुष्य अनेक प्रयत्न करता है तब कहीं अंत में उसे सफलता मिलती है। सबसे
पहले मन में किसी कार्य को करने की इच्छा होनी चाहिए, तभी हम कार्य करते हैं और सफलता प्राप्त करते हैं। संस्कृत में एक कथन है कि ‘ उदयमेन हि सिद्धयंति कार्याणि न मनोरथ:’ अर्थात परिश्रम से ही कार्य की सिद्धि होती है। परिश्रम मनुष्य तब करता है जब उसके मन में परिश्रम करने की इच्छा उत्पन्न होती है। जिस मनुष्य के मन में कार्य करने की इच्छा ही नहीं होगी वह कुछ भी नहीं कर सकता। जैसे पानी पीने की इच्छा होने पर हम नल अथवा कुएँ से पानी लेकर पीते हैं। यहाँ पानी पीने की इच्छा ने पानी को प्राप्त करने के लिए हमें नल अथवा कुएँ तक जाने का मार्ग बनाने की प्रेरणा दी। अतः कहा जाता है कि जहाँ चाह, वहाँ राह।
29. का वर्षा जब कृषि सुखाने
संकेत बिंदु – भूमिका, साधन और समय में तारतम्यता, उचित अवसर, अनुकूल समय की परख, उपसंहार।
गोस्वामी तुलसीदास की इस सूक्ति का अर्थ है – जब खेती ही सूख गई, तब पानी के बरसने का क्या लाभ है ? जब ठीक अवसर पर वांछित वस्तु उपलब्ध न हुई तो बाद में उस वस्तु का मिलना बेकार ही है। साधन की उपयोगिता तभी सार्थक हो सकती है, जब वे समय पर उपलब्ध हो जाएँ। अवसर बीतने पर सब साधन व्यर्थ पड़े रहते हैं। अंग्रेज़ी में एक कहावत है- लोहे पर तभी चोट करो जबकि वह गर्म हो अर्थात् जब लोहा मुड़ने और ढलने को तैयार हो, तभी उचित चोट करनी चाहिए।
उस अवसर को खो देने पर केवल लोहे की टन टन की आवाज़ के अतिरिक्त कुछ लाभ नहीं मिल सकता। अतः मनुष्य को चाहिए कि वह उचित समय की प्रतीक्षा में हाथ पर हाथ रख कर न बैठा रहे, अपितु समय की आवश्यकता को पहले से ध्यान करके उसके लिए उचित तैयारी करे। हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है कि समय एक ऐसी स्त्री है जो अपने लंबे बाल मुँह के आगे फैलाए हुए निरंतर दौड़ती चली जा रही है।
जिसे भी समय रूपी उस स्त्री को वश में करना हो, उसे चाहिए कि वह समय के आगे-आगे दौड़ कर उस स्त्री के बालों से उसे पकड़े। उसके पीछे-पीछे दौड़ने से मनुष्य उसे नहीं पकड़ पाता। आशय यह है कि उचित समय पर उचित साधनों का होना ज़रूरी है। जो लोग आग लगने पर कुआँ खोदते हैं, वे आग में अवश्य झुलस जाते हैं। उनका कुछ भी शेष नहीं बचता।
30. परिश्रम सफलता की कुंजी है –
संकेत बिंदु – भूमिका, परिश्रम का महत्त्व, समयानुसार बुद्धि का सदुपयोग, परिश्रम और बुद्धि का तालमेल, उपसंहार।
संस्कृत की प्रसिद्ध सूक्ति है – ‘उद्यमेनहि सिद्धयंति कार्याणि न मनोरथः ‘ अर्थात् परिश्रम से ही कार्य की सिद्धि होती है, मात्र इच्छा करने से नहीं। सफलता प्राप्त करने के लिए परिश्रम ही एकमात्र मंत्र है। ‘श्रमेव जयते’ का सूत्र इसी भाव की ओर संकेत करता है। परिश्रम के बिना हरी-भरी खेती सूखकर झाड़ बन जाती है जबकि परिश्रम से बंजर भूमि को भी शस्य – श्यामला बनाया जा सकता है।
असाध्य कार्य भी परिश्रम के बल पर संपन्न किए जा सकते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति कितने ही प्रतिभाशाली हों, किंतु उन्हें लक्ष्य में सफलता तभी मिलती है जब वे अपनी बुद्धि और प्रतिभा को परिश्रम की सान पर तेज़ करते हैं। न जाने कितनी संभावनाओं के बीज पानी, मिट्टी, सिंचाई और जुताई के अभाव में मिट्टी बन जाते हैं, जबकि ठीक संपोषण प्राप्त करके कई बीज सोना भी बन जाते हैं। कई बार प्रतिभा के अभाव में परिश्रम ही अपना रंग दिखलाता है। प्रसिद्ध उक्ति है कि निरंतर घिसाव से पत्थर पर भी चिह्न पड़ जाते हैं।
जड़मति व्यक्ति परिश्रम द्वारा ज्ञान उपलब्ध कर लेता है। जहाँ परिश्रम तथा प्रतिभा दोनों एकत्र हो जाते हैं वहाँ किसी अद्भुत कृति का सृजन होता है। शेक्सपीयर ने महानता को दो श्रेणियों में विभक्त किया है – जन्मजात महानता तथा अर्जित महानता। यह अर्जित महानता परिश्रम के बल पर ही अर्जित की जाती है। अतः जिन्हें ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त नहीं है, उन्हें अपने श्रम-बल का भरोसा रखकर कर्म में जुटना चाहिए। सफलता अवश्य ही उनकी चेरी बन कर उपस्थित होगी।
31. समय का महत्त्व अथवा
अथवा
समय सबसे बड़ा धन है
संकेत बिंदु – भूमिका, जीवन की क्षणिकता, समय का महत्त्व, मनोरंजन और समय का मूल्य, परिश्रम ही प्रगति की राह, उपसंहार।
दार्शनिकों ने जीवन को क्षणभंगुर कहा है। इनकी तुलना प्रभात के तारे और पानी के बुलबुले से की गई है। अतः यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि हम अपने जीवन को सफल कैसे बनाएँ। इसका एकमात्र उपाय समय का सदुपयोग है। समय एक अमूल्य वस्तु है। इसे काटने की वृत्ति जीवन को काट देती है। खोया समय पुनः नहीं मिलता। दुनिया में कोई भी शक्ति नहीं जो बीते हुए समय को वापस लाए।
हमारे जीवन की सफलता-असफलता समय के सदुपयोग तथा दुरुपयोग पर निर्भर करती है। कहा भी है- क्षण को क्षुद्र न समझो भाई, यह जग का निर्माता है। हमारे देश में अधिकांश लोग समय का मूल्य नहीं समझते। देर से उठना, व्यर्थ की बातचीत करना, ताश खेलना आदि के द्वारा समय नष्ट करते हैं। यदि हम चाहते हैं तो हमें पहले अपना काम पूरा करना चाहिए। बहुत से लोग समय को नष्ट करने में आनंद का अनुभव करते हैं।
मनोरंजन के नाम पर समय नष्ट करना बहुत बड़ी भूल है। समय का सदुपयोग करने के लिए आवश्यक है कि हम अपने दैनिक कार्य को करने का समय निश्चित कर लें। फिर उस कार्य को उसी समय में करने का प्रयत्न करें। इस तरह का अभ्यास होने से हम समय का मूल्य समझ जाएँगे और देखेंगे कि हमारा जीवन निरंतर प्रगति की ओर बढ़ता जा रहा है। समय के सदुपयोग से ही जीवन का पथ सरल हो जाता है। महान व्यक्तियों के महान बनने का रहस्य समय का सदुपयोग ही है। समय के सदुपयोग के द्वारा ही मनुष्य अमर कीर्ति का पात्र बन सकता है। समय का सदुपयोग ही जीवन का सदुपयोग है। इसी में जीवन की सार्थकता है –
“कल करै सो आज कर, आज करै सो अब। पल में परलै होयगी, बहुरि करोगे कब॥
32. स्त्री शिक्षा का महत्त्व
संकेत बिंदु – भूमिका, शिक्षा का महत्त्व, नारी का घर और समाज में स्थान, सामाजिक कर्तव्य, गृह विज्ञान की शिक्षा, उपसंहार।
विद्या हमारी भी न तब तक काम में कुछ आएगी।
नारियों को भी सुशिक्षा दी न जब तक जाएगी।
आज शिक्षा मानव – जीवन का एक अंग बन गई है। शिक्षा के बिना मनुष्य ज्ञान – पंगु कहलाता है। पुरुष के साथ-साथ नारी को भी शिक्षा की आवश्यकता है। नारी शिक्षित होकर ही बच्चों को शिक्षा प्रदान कर सकती है। बच्चों पर पुरुष की अपेक्षा नारी के व्यक्तित्व का प्रभाव अधिक पड़ता है। अतः उसका शिक्षित होना ज़रूरी है। ‘स्त्री का रूप क्या हो ?’ – यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है। इतना तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि नारी और पुरुष के क्षेत्र अलग-अलग हैं।
पुरुष को अपना अधिकांश जीवन बाहर के क्षेत्र में बिताना पड़ता है जबकि नारी को घर और बाहर में समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता होती है। सामाजिक कर्तव्य के साथ-साथ उसे घर के प्रति भी अपनी भूमिका का निर्वाह करना पड़ता है। अतः नारी को गृह विज्ञान की शिक्षा में संपन्न होना चाहिए। अध्ययन के क्षेत्र में भी वह सफल भूमिका का निर्वाह कर सकती है।
शिक्षा के साथ-साथ चिकित्सा के क्षेत्र में भी उसे योगदान देना चाहिए। सुशिक्षित माताएँ ही देश को अधिक योग्य, स्वस्थ और आदर्श नागरिक दे सकती हैं। स्पष्ट हो जाता है कि स्त्री शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार होना चाहिए। नारी को फ़ैशन से दूर रह कर सादगी के जीवन का समर्थन करना चाहिए। उसकी शिक्षा समाजोपयोगी होनी चाहिए।
33. स्वास्थ्य ही जीवन है
संकेत बिंदु – भूमिका, स्वास्थ्य का महत्त्व, अस्वस्थ व्यक्ति की मानसिकता, अक्षमता, नशीले पदार्थों की अनुपयोगिता, पौष्टिक और सात्विक भोजन की आवश्यकता, भ्रमण की उपयोगिता, उपसंहार।
जीवन का पूर्ण आनंद वही ले सकता है जो स्वस्थ है। स्वास्थ्य के अभाव में सब प्रकार की सुख-सुविधाएँ व्यर्थ प्रमाणित होती हैं। तभी तो कहा है – ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’ अर्थात शरीर ही सब धर्मों का मुख्य साधन है। स्वास्थ्य जीवन है और अस्वस्थता मृत्यु है। अस्वस्थ व्यक्ति का किसी भी काम में मन नहीं लगता। बढ़िया से बढ़िया खाद्य पदार्थ उसे विष के समान लगता है। वस्तुतः उसमें काम करने की क्षमता ही नहीं होती। अतः प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह अपने स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील रहे। स्वास्थ्य-रक्षा के लिए नियमितता तथा संयम की सबसे अधिक ज़रूरत है।
समय पर भोजन, समय पर सोना और जागना अच्छे स्वास्थ्य के लक्षण हैं। शरीर की सफाई की तरफ भी पूरा ध्यान देने की ज़रूरत है। सफाई के अभाव से तथा असमय खाने-पीने से स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। क्रोध, भय आदि भी स्वास्थ्य को हानि पहुँचाते हैं। नशीले पदार्थों का सेवन तो शरीर के लिए घातक साबित होता है। स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए पौष्टिक एवं सात्विक भोजन भी ज़रूरी है। स्वास्थ्य रक्षा के लिए व्यायाम का भी सबसे अधिक महत्त्व है। व्यायाम से बढ़कर न कोई औषधि है और न कोई टॉनिक।
व्यायाम से शरीर में स्फूर्ति आती है, शक्ति, उत्साह एवं उल्लास का संचार होता है। शरीर की आवश्यकतानुसार विविध आसनों का प्रयोग भी बड़ा लाभकारी होता है। खेल भी स्वास्थ्य लाभ का अच्छा साधन है। इनसे मनोरंजन भी होता है और शरीर भी पुष्ट तथा चुस्त बनता है। प्रायः भ्रमण का भी विशेष लाभ है। इससे शरीर का आलस्य भागता है, काम में तत्परता बढ़ती है। जल्दी थकान का अनुभव नहीं होता।
34. मधुर वाणी
संकेत बिंदु – भूमिका, श्रेष्ठ वाणी की उपयोगिता, कटुता और कर्कश वाणी, चरित्र की स्पष्टता, विनम्रता और मधुरवाणी, उपसंहार।
वाणी ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ अलंकार है। वाणी के द्वारा ही मनुष्य अपने विचारों का आदान-प्रदान दूसरे व्यक्तियों से करता है। वाणी का मनुष्य के जीवन पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। सुमधुर वाणी के प्रयोग से लोगों के साथ आत्मीय संबंध बन जाते हैं, जो व्यक्ति कर्कश वाणी का प्रयोग करते हैं, उनसे लोगों में कटुता की भावना व्याप्त हो जाती है। जो लोग अपनी वाणी का मधुरता से प्रयोग करते हैं, उनकी सभी लोग प्रशंसा करते हैं। सभी लोग उनसे संबंध बनाने के इच्छुक रहते हैं। वाणी मनुष्य के चरित्र को भी स्पष्ट करने में सहायक होती है।
जो व्यक्ति विनम्र और मधुर वाणी से लोगों के साथ व्यवहार करते हैं, उसके बारे में लोग यही समझते हैं कि इनमें सद्भावना विद्यमान है। मधुर वाणी मित्रों की संख्या में वृद्धि करती है। कोमल और मधुर वाणी से शत्रु के मन पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है। वह भी अपनी द्वेष और ईर्ष्या की भावना को विस्तृत करके मधुर संबंध बनाने का इच्छुक हो जाता है। यदि कोई अच्छी बात भी कठोर और कर्कश वाणी में कही जाए तो लोगों पर उसकी प्रतिक्रिया विपरीत होती है। लोग यही समझते हैं कि यह व्यक्ति अहंकारी है। इसलिए वाणी मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ अलंकार है तथा उसे उसका सदुपयोग करना चाहिए।
35. नारी शक्ति
संकेत बिंदु – भूमिका, नारी का स्वरूप, प्राचीन ग्रंथों में नारी, नारी के बिना नर नारी की सक्षमता, उपसंहार।
नारी त्याग, तपस्या, दया, ममता, प्रेम एवं बलिदान की साक्षात मूर्ति है। नारी तो नर की जन्मदात्री है। वह भगिनी भी और पत्नी भी है। वह सभी रूपों में सुकुमार, सुंदर और कोमल दिखाई देती है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी नारी को पूज्य माना गया है। कहा गया है कि जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। उसके हृदय में सदैव स्नेह की धारा प्रवाहित होती रहती है। नर की रुक्षता, कठोरता एवं उद्दंडता को नियंत्रित करने में भी नारी की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। वह धात्री, जन्मदात्री और दुखहर्त्री है।
नारी के बिना नर अपूर्ण है। नारी को नर से बढ़कर कहने में किसी भी प्रकार की अतिशयोक्ति नहीं है। नारी प्राचीन काल से आधुनिक काल तक अपनी महत्ता एवं श्रेष्ठता प्रतिपादित करती आई है। नारियाँ, ज्ञान, कर्म एवं भाव सभी क्षेत्रों में अग्रणी रही हैं। यहाँ तक कि पुरुष वर्ग के लिए आरक्षित कहे जाने वाले कार्यों में भी उसने अपना प्रभुत्व स्थापित किया है। चाहे एवरेस्ट की चोटी ही क्यों न हो, वहाँ भी नारी के चरण जा पहुँचे हैं। अंटार्कटिका पर भी नारी जा पहुँची है। प्रशासनिक क्षमता का प्रदर्शन वह अनेक क्षेत्रों में सफलतापूर्वक कर चुकी है। आधुनिक काल की प्रमुख नारियों में श्रीमती इंदिरा गांधी, विजयलक्ष्मी पंडित, सरोजिनी नायडू, बछेंद्री पाल, सानिया मिर्ज़ा आदि का नाम गर्व के साथ लिया जा सकता है।
36. चाँदनी रात में नौका विहार
संकेत बिंदु – भूमिका, ग्रीष्म ऋतु में यमुना नदी में विहार, रात्रिकालीन प्राकृतिक सुषमा, उन्माद भरा वातावरण, उपसंहार।
ग्रीष्मावकाश में हमें पूर्णिमा के अवसर पर यमुना नदी में नौका विहार का अवसर प्राप्त हुआ। चंद्रमा की चाँदनी से आकाश शांत, तर एवं उज्ज्वल प्रतीत हो रहा था। आकाश में चमकते तारे ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो वे आकाश के नेत्र हैं जो अपलक चाँदनी में डूबे पृथ्वी के सौंदर्य को देख रहे हैं। तारों से जड़े आकाश की शोभा यमुना के जल में द्विगुणित हो गई थी। इस रात – रजनी के शुभ प्रकाश में हमारी नौका धीरे-धीरे चलती हुई ऐसी लग रही थी मानो कोई सुंदर परी धीरे-धीरे चल रही हो।
जब नौका नदी के मध्य में पहुँची तो चाँदनी में चमकता हुआ पुलिन आँखों से ओझल हो गया तथा यमुना के किनारे खड़े हुए वृक्षों की पंक्ति भृकुटि सी वक्र लगने लगी। नौका के चलने से जल में उत्पन्न लहरों के कारण उसमें चंद्रमा एवं तारकवृंद ऐसे झिलमिला रहे थे मानो तरंगों की लताओं में फूल खिले हों। रजत सर्पों-सी सीधी-तिरछी नाचती हुई चाँदनी की किरणों की छाया चंचल लहरों में ऐसी प्रतीत होती थी मानो जल में आड़ी-तिरछी रजत रेखाएँ खींच दी गई हों। नौका के चलते रहने से आकाश के ओर-छोर भी हिलते हुए लगते थे।
जल में तारों की छाया ऐसी प्रतिबिंबित हो रही थी मानो जल में दीपोत्सव हो रहा हो। ऐसे में हमारे एक मित्र ने मधुर राग छेड़ दिया, जिससे वातावरण और भी अधिक उन्मादित हो गया। धीरे-धीरे हम नौका को किनारे की ओर ले आए। डंडों से नौका को खेने पर जो फेन उत्पन्न हो रही थी वह भी चाँदनी के प्रभाव से मोतियों के ढेर – सी प्रतीत हो रही थी। समस्त दृश्य अत्यंत दिव्य एवं अलौकिक ही लग रहा था।
37. राष्ट्रीय एकता
संकेत बिंदु – भूमिका, क्षेत्रीयता के प्रति मोह, देश की एकता के लिए घातक, राष्ट्रीय भावना का महत्त्व, भाषाई एकता, अनेकता में एकता, उपसंहार।
आज देश के विभिन्न राज्य क्षेत्रीयता के मोह में ग्रस्त हैं। सर्वत्र एक-दूसरे से बिछुड़ कर अलग होने तथा अपना-अपना मनोराज्य स्थापित करने की होड़ लगी हुई है। यह स्थिति देश की एकता के लिए अत्यंत घातक है क्योंकि राष्ट्रीय एकता के अभाव में देश का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। राष्ट्र से तात्पर्य किसी भौगोलिक भू-खंड मात्र अथवा उस भू-खंड में सामूहिक रूप से रहने वाले व्यक्तियों से न होकर उस भू-खंड में रहने वाली संवेदनशील जनता से होता है।
अतः राष्ट्रीय एकता वह भावना है, जो किसी एक राष्ट्र के समस्त नागरिकों को एकता के सूत्र में बाँधे रखती है। राष्ट्र के प्रति ममत्व की भावना से ही राष्ट्रीय एकता की भावना का जन्म होता है। भारत प्राकृतिक, भाषायी, रहन-सहन आदि की दृष्टि से अनेक रूप वाला होते हुए भी राष्ट्रीय स्वरूप में एक है। पर्वतराज हिमालय एवं सागर इसकी प्राकृतिक सीमाएँ हैं, समस्त भारतीय धर्म एवं संप्रदाय आवागमन में आस्था रखते हैं।
भाषाई भेदभाव होते हुए भी भारतवासियों की भावधारा एक है। यहाँ की संस्कृति की पहचान दूर से ही हो जाती है। भारत की एकता का सर्वप्रमुख प्रमाण यहाँ एक संविधान का होना है। भारतीय संसद की सदस्यता धर्म, संप्रदाय, जाति, क्षेत्र आदि के भेदभाव से मुक्त हैं। इस प्रकार अनेकता में एकता के कारण भारत की राष्ट्रीय एकता सदा सुदृढ़ है।
38. बारूद के ढेर पर दुनिया
संकेत बिंदु – भूमिका, नए-नए वैज्ञानिक आविष्कार, अस्त्र-शस्त्रों की भरमार, रासायनिक पदार्थों की अधिकता, रसायनों से जीवन को ख़तरे, उपसंहार।
आधुनिक युग विज्ञान का युग है। मनुष्य ने अपने भौतिक सुखों की वृद्धि के लिए इतने अधिक वैज्ञानिक उपकरणों का आविष्कार कर लिया है कि एक दिन वे सभी उपकरण मानव सभ्यता के विनाश का कारण भी बन सकते हैं। एक- दूसरे देश को नीचा दिखाने के लिए अस्त्र-शस्त्रों, परमाणु बमों, रासायनिक बमों के निर्माण ने जहाँ परस्पर प्रतिद्वंद्विता पैदा की है वहीं इनका प्रयोग केवल प्रतिपक्षी दल को ही नष्ट नहीं करता अपितु प्रयोग करने वाले देश पर भी इनका प्रभाव पड़ता है।
नए-नए कारखानों की स्थापना से वातावरण प्रदूषित होता जा रहा है। भोपाल गैस दुर्घटना के भीषण परिणाम हम अभी भी सहन कर रहे हैं। देश में एक कोने से दूसरे कोने तक ज़मीन के अंदर पेट्रोल तथा गैस की नालियाँ बिछाईं जा रही हैं, जिनमें आग लगने से सारा देश जलकर राख हो सकता है। घर में गैस के चूल्हों से अक्सर दुर्घटनाएँ होती रहती हैं। पनडुब्बियों के जाल ने सागर तल को भी सुरक्षित नहीं रहने दिया है।
धरती का हृदय चीर कर मेट्रो रेल बनाई गई है। इसमें विस्फोट होने से अनेक नगर ध्वस्त हो सकते हैं। इस प्रकार आज की मानवता बारूद के एक ढेर पर बैठी है, जिसमें छोटी-सी चिंगारी लगने मात्र से भयंकर विस्फोट हो सकता है।
39. शक्ति अधिकार की जननी है
संकेत बिंदु – भूमिका, शक्ति के प्रकार, शारीरिक और मानसिक शक्तियों का संयोग, अधिकारों की प्राप्ति, सत्य और अहिंसा का बल, अनाचार का विरोध, उपसंहार।
शक्ति का लोहा कौन नहीं मानता है ? इसी के कारण मनुष्य अपने अधिकार प्राप्त करता है। प्रायः यह दो प्रकार की मानी जाती है – शारीरिक और मानसिक। दोनों का संयोग हो जाने से बड़ी से बड़ी शक्ति को घुटने टेकने पर विवश किया जा सकता है। अधिकारों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष की आवश्यकता होती है। इतिहास इस बात का गवाह है कि अधिकार सरलता, विनम्रता और गिड़गिड़ाने से प्राप्त नहीं होते। भगवान कृष्ण ने पांडवों को अधिकार दिलाने की कितनी कोशिश की पर कौरव उन्हें पाँच गाँव तक देने के लिए सहमत नहीं हुए थे।
तब पांडवों को अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए युद्ध का रास्ता अपनाना पड़ा। भारत को अपनी आज़ादी तब तक नहीं मिली थी जब तक उसने शक्ति का प्रयोग नहीं किया। देशवासियों ने सत्य और अहिंसा के बल पर अंग्रेज़ सरकार से टक्कर ली थी। तभी उन्हें सफलता प्राप्त हुई थी और देश आज़ाद हुआ था। कहावत है कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।
व्यक्ति हो अथवा राष्ट्र उसे शक्ति का प्रयोग करना ही पड़ता है। तभी अधिकारों की प्राप्ति होती है। शक्ति से ही अहिंसा का पालन किया जा सकता है, सत्य का अनुसरण किया जा सकता है, अत्याचार और अनाचार को रोका जा सकता है। इसी से अपने अधिकारों को प्राप्त किया जा सकता है। वास्तव में ही शक्ति अधिकार की जननी है।
40. भाषण नहीं राशन चाहिए
संकेत बिंदु – भूमिका, भाषण की उपयोगिता और अनुपयोगिता, नेताओं की करनी कथनी में अंतर, आम जनता की पीड़ा, उपसंहार।
हर सरकार का यह पहला काम है कि वह आम आदमी की सुविधा का पूरा ध्यान रखे। सरकार की कथनी तथा करनी में अंतर नहीं होना चाहिए। केवल भाषणों से किसी का पेट नहीं भरता। यदि बातों से पेट भर जाता तो संसार का कोई भी व्यक्ति भूख-प्यास से परेशान न होता। भूखे पेट से तो भजन भी नहीं होता। भारत एक प्रजातंत्र देश है। यहाँ के शासन की बागडोर प्रजा के हाथ में है, यह केवल कहने की बात है।
इस देश में जो भी नेता कुर्सी पर बैठता है, वह देश के उद्धार की बड़ी-बड़ी बातें करता है पर रचनात्मक रूप से कुछ भी नहीं होता। जब मंच पर आकर नेता भाषण देते हैं तो जनता उनके द्वारा दिखाए गए सब्जबाग से खुशी का अनुभव करती है। उसे लगता है कि नेता जिस कार्यक्रम की घोषणा कर रहे हैं, उससे निश्चित रूप से गरीबी सदा के लिए दूर हो जाएगी, लेकिन होता सब कुछ विपरीत है।
अमीरों की अमीरी बढ़ती जाती है और आम जनता की ग़रीबी बढ़ती जाती है। यह व्यवस्था का दोष है। इन नेताओं के हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और वाली कहावत चरितार्थ होती है। जनता को भाषण की नहीं राशन की आवश्यकता है। सरकार की ओर से ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि जनता को ज़रूरत की वस्तुएँ प्राप्त करने में कठिनाई का अनुभव न हो। उसे रोटी, कपड़ा, मकान की समस्या का सामना न करना पड़े। सरकार को अपनी कथनी के अनुरूप व्यवहार भी करना चाहिए। उसे यह बात गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि जनता को भाषण नहीं राशन चाहिए। भाषणों की झूठी खुराक से जनता को बहुत लंबे समय तक मूर्ख नहीं बनाया जा सकता।
41. सपने में चाँद की यात्रा
संकेत बिंदु – भूमिका, मन में विचार, सपना, चाँद पर भ्रमण, नींद का खुलना।
आज के समाचार-पत्र में पढ़ा कि भारत भी चंद्रमा पर अपना यान भेज रहा है। सारा दिन यही समाचार मेरे अंतर में घूमता रहा। सोया तो स्वप्न में लगा कि मैं चंद्रयान से चंद्रमा पर जाने वाला भारत का प्रथम नागरिक हूँ। जब मैं चंद्रमा के तल पर उतरा तो चारों ओर उज्ज्वल प्रकाश फैला हुआ था। वहाँ की धरती चाँदी से ढकी हुई लग रही थी। तभी एकदम सफ़ेद वस्त्र पहने हुए परियों ने मुझे पकड़ लिया और चंद्रलोक के महाराज के पास ले गईं। वहाँ भी सभी सफ़ेद उज्ज्वल वस्त्र पहने हुए थे।
उनसे वार्तालाप में मैंने स्वयं को जब भारत का नागरिक बताया तो उन्होंने मेरा सफ़ेद रसगुल्लों जैसी मिठाई से स्वागत किया। वहाँ सभी कुछ अत्यंत निर्मल और पवित्र था। मैंने मिठाई खानी शुरू ही की थी कि मेरी मम्मी ने मेरी बाँह पकड़ कर मुझे उठा दिया और डाँटने लगीं कि चादर क्यों खा रहा है ? मैं हैरान था कि यह क्या हो गया ? कहाँ तो मैं चंद्रलोक का आनंद ले रहा था और यहाँ चादर खाने पर डाँट पड़ रही है। मेरा स्वप्न भंग हो गया था और मैं भागकर बाहर की ओर चला गया।
42. मेट्रो रेल : महानगरीय जीवन का सुखद सपना
संकेत बिंदु – भूमिका, गति, व्यवस्थित, आराम।
मेट्रो रेल वास्तव में ही महानगरीय जीवन का एक सुखद सपना है। भाग-दौड़ की जिंदगी में भीड़-भाड़ से भरी सड़कों पर लगते हुए गतिरोधों से आज मुक्ति दिला रही है मेट्रो रेल। जहाँ किसी निश्चित स्थान पर पहुँचने में घंटों लग जाते थे, वहीं मेट्रो रेल मिनटों में पहुँचा देती है। यह यातायात का तीव्रतम एवं सस्ता साधन है। यह एक सुव्यवस्थित क्रम से चलती है। इससे यात्रा सुखद एवं आरामदेह हो गई है। बसों की धक्का-मुक्की, भीड़- भाड़ से मुक्ति मिल गई है। समय पर अपने काम पर पहुँचा जा सकता है। एक निश्चित समय पर इसका आवागमन होता है, इसलिए समय की बचत भी होती है। व्यर्थ में इंतज़ार नहीं करना पड़ता है। महानगर के जीवन में यातायात क्रांति लाने में मेट्रो रेल का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
43. युवाओं के लिए मतदान का अधिकार
भारत एक लोकतंत्र है जहाँ प्रत्येक व्यस्क को मताधिकार प्राप्त है। पंचायत से लेकर लोकसभा तक के सदस्यों को भारत की व्यस्क जनता अपने मतदान द्वारा चुनती है। युवाओं को अपने मत का महत्त्व समझकर ही इसका प्रयोग करना चाहिए। एक – एक व्यक्ति का मत बहुत ही अमूल्य होता है क्योंकि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की हार-जीत का निर्णय एक मत से भी हो जाता है, जिसके पक्ष में पड़ने से जीत और विपक्ष में जाने से हार का सामना करना पड़ता है।
युवा वर्ग को अपने मत का प्रयोग करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि जिसे वे अपना मत देने जा रहे हैं, वह उनके, समाज के तथा देश के लिए कितना उपयोगी सिद्ध हो सकता है। ईमानदार, परिश्रमी, समाजसेवी, परोपकारी तथा दयालु व्यक्ति ही आप के मत का अधिकारी हो सकता है। जात-बिरादरी – धर्म-संप्रदाय के नाम पर किसी को अपना मत नहीं देना चाहिए। अपने मत का प्रयोग सदा स्वच्छ छवि वाले व्यक्ति को देकर ही करें।
44. शिक्षक : शिक्षार्थी संबंध
शिक्षक-शिक्षार्थी के संबंध प्राचीन भारत में गुरू-शिष्य परंपरा के रूप में जाने जाते थे। राजा से रंक तक के बच्चे गुरूकुलों में शिक्षा ग्रहण करते थे, जहाँ कोई भेदभाव नहीं होता था। गुरू अपने शिष्यों को अपना समस्त ज्ञान दे देने में ही अपने कर्त्तव्य की इति समझते थे। वह उनके लिए उन की संतान से भी अधिक प्रिय होता था। जैसे गुरू द्रोणाचार्य के लिए अश्वत्थामा से भी अधिक प्रिय अर्जुन था। वर्तमान भौतिकतावादी युग में शिक्षक – शिक्षार्थी के संबंधों में भी अर्थ प्रधान हो गया है।
शिक्षार्थी पैसे खर्च करके शिक्षा ग्रहण करता है तथा शिक्षक उसे पढ़ाने के लिए निर्धारित शुल्क लेता है। इस प्रकार शिक्षक को शिक्षार्थी अपने धन से खरीदा हुआ समझता है तथा दोनों में वस्तु और उपभोक्ता का संबंध रह जाता है। वह गरिमा नहीं रह जाती जो प्राचीन गुरू-शिष्य परंपरा में थी। इसलिए हमारा कर्तव्य बनता है कि शिक्षा के बाजारीकरण पर रोक लगाई जाए। इसे मात्र व्यवसाय न बना कर देश के भावी नागरिक बनाने वाले शिक्षकों को वह सम्मान दिया जाए जो उन्हें धन देकर नहीं दिया जा सकता।
45. मित्रता
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के अभाव में उसका जीवन-निर्वाह संभव नहीं। सामाजिकों के साथ हमारे संबंध अनेक प्रकार के हैं। कुछ हमारे संबंधी हैं, कुछ परिचित तथा कुछ मित्र होते हैं। मित्रों में भी कुछ विशेष प्रिय होते हैं। जीवन में यदि सच्चा मित्र मिल जाए तो समझना चाहिए कि हमें बहुत बड़ी निधि मिल गई है। सच्चा मित्र हमारा मार्ग प्रशस्त करता है। वह दिन-प्रतिदिन हमें उन्नति की ओर ले जाता है। उसके सद्व्यवहार से हमारे जीवन में निर्मलता का प्रसार होता है। दुख के दिनों में वह हमारे लिए विशेष सहायक होता है। जब हम निरुत्साहित होते हैं तो वह हम में उत्साह भरता है।
वह हमें कुमार्ग से हटाकर सुमार्ग की ओर चलने की प्रेरणा देता है। सुदामा एवं कृष्ण की तथा राम एवं सुग्रीव की आदर्श मित्रता को कौन नहीं जानता। श्रीकृष्ण ने अपने दरिद्र मित्र सुदामा की सहायता कर उसके जीवन को ऐश्वर्यमय बना दिया था। राम ने सुग्रीव की सहायता कर उसे सब प्रकार के संकट से मुक्त कर दिया। सच्चा मित्र कभी एहसान नहीं जतलाता। वह मित्र की सहायता करना अपना कर्त्तव्य समझता है। वह अपनी दरिद्रता एवं अपने दुख की परवाह न करता हुआ अपने मित्र के जीवन में अधिक-से-अधिक सौंदर्य लाने का प्रयत्न करता है। सच्चा मित्र जीवन के बेरंग खाके में सुखों के रंग भरकर उसे अत्यंत आकर्षक बना देता है।
46. दहेज प्रथा : एक अभिशाप
दहेज का अर्थ है, विवाह के समय दी जाने वाली वस्तुएं। हमारे समाज में विवाह के साथ लड़की को माता-पिता का घर छोड़कर पति के घर जाना होता है। इस अवसर पर अपना स्नेह प्रदर्शित करने के लिए कन्या के पक्ष के लोग लड़की, लड़कों के संबंधियों को यथाशक्ति भेंट दिया करते हैं। यह प्रथा कब शुरू हुई, कहा नहीं जा सकता। लगता है कि यह प्रथा अत्यंत प्राचीन है। दहेज प्रथा जो आरंभ में स्वेच्छा और स्नेह से भेंट देने तक सीमित रही होगी धीरे-धीरे विकट रूप धारण करने लगी है।
वर पक्ष के लोग विवाह से पहले दहेज में ली जाने वाली धन-राशि तथा अन्य वस्तुओं का निश्चय करने लगे हैं। आधुनिक युग में कन्या की श्रेष्ठता शील-सौंदर्य से नहीं, बल्कि दहेज में आंकी जाने लगी। कन्या की कुरूपता और कुसंस्कार दहेज के आवरण में आच्छादित हो गए। खुलेआम वर की बोली बोली जाने लगी। दहेज में प्रायः राशि से परिवारों का मूल्यांकन होने लगा। इस प्रकार दहेज प्रथा एक सामाजिक समस्या बन गई है।
दहेज प्रथा समाप्त करने के लिए स्वयं युवकों को आगे आना चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे अपने माता-पिता तथा संबंधियों को स्पष्ट शब्दों में कह दें – शादी होगी तो बिना दहेज के होगी। इन युवकों को चाहिए कि वे उस संबंधी का डटकर विरोध करें जो नवविवाहिता को शारीरिक या मानसिक कष्ट देता है। दहेज प्रथा की विकटता को कम करने में नारी का आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र होना भी बहुत हद तक सहायक होता है।
अपने पैरों पर खड़ी युवती को दूसरे लोग अनाप-शनाप नहीं कह सकते। इसके अतिरिक्त चूंकि वह चौबीस घंटे घर पर बंद नहीं रहेगी, सास और ननदों की छींटाकशी से काफ़ी बची रहेगी। बहू के नाराज़ हो जाने से एक अच्छी खासी आय हाथ से निकल जाने का भय भी उनका मुख बंद किए रखेगा। दहेज-प्रथा हमारे समाज का कोढ़ है। यह प्रथा साबित करती है कि हमें अपने को सभ्य मनुष्य कहलाने का कोई अधिकार नहीं है।
जिस समाज में दुल्हिनों को प्यार की जगह यातनाएं दी जाती हैं, वह समाज निश्चित रूप से सभ्यों का नहीं नितांत असभ्यों का समाज है। अब समय आ गया है कि इस कुरीति को समूल उखाड़ फेंकेंगे।
47. कम्प्यूटर / कम्प्यूटर हमारा मित्र
कम्प्यूटर आधुनिक विज्ञान का अद्भुत करिश्मा है, जिसने सारे विश्व को एक बार तो अपने आकर्षण में जकड़ लिया है। यह पूरी तरह से हम सब का मित्र-सा बन गया है. कोई वैज्ञानिक प्रतिष्ठान हो या औद्योगिक प्रतिष्ठान, बैंक हो या बीमा निगम, रेलवे स्टेशन हो या बस डिपो, सार्वजनिक स्थल हो या सेना का मुख्यालय – सभी जगह कम्प्यूटर का बोल-बाला है। यही आज के बुद्धिजीवियों के चिन्तन का विषय बन रहा है और यही स्कूल-कॉलेजों में विद्यार्थियों की रुचि का केन्द्र है। भारत तेजी से इसके माध्यम से इक्कीसवीं शताब्दी में प्रवेश कर चुका है। हमारे नेता भी यह मानने लगे हैं कि बिना कम्प्यूटर के देश सर्वोन्मुखी विकास की ओर अग्रसर नहीं हो सकता।
कम्प्यूटर का प्रयोग शिक्षा, वैज्ञानिक अनुसंधान, चिकित्सा, व्यवसाय, मनोरंजन, सरकारी, गैर-सरकारी आदि सभी क्षेत्रों में होने लगा है। इंटरनेट के माध्यम से कम्प्यूटर विद्यार्थियों की लाइब्रेरी तथा पाठशाला बन गया है। बैंकों, प्रकाशन के क्षेत्र, परीक्षा परिणाम आदि सभी कार्य कम्प्यूटर द्वारा होने लगे हैं। कम्प्यूटर ने आज के जीवन को अत्यंत सुगम तथा सहज बना दिया है।
जहाँ कम्प्यूटर के इतने लाभ हैं, वहीं दिन-रात इस से चिपके रहने से शरीर पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। आँखें कमज़ोर हो जाती हैं तथा एक ही स्थिति में बैठे रहने से शरीर के अंगों में भी विकृति आ जाती है। इसलिए कम्प्यूटर का प्रयोग अत्यधिक समय तक नहीं करना चाहिए।
48. अपनी भाषा प्यारी भाषा
अपनी भाषा के उत्थान के बिना व्यक्ति उन्नति कर ही नहीं सकता। भाषा अभिव्यक्ति का प्रमुख माध्यम है। भाषा सामाजिक जीवन का अपरिहार्य अंग है। इसके बिना समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अपनी भाषा में अपने मन के विचारों को प्रकट करने में सुविधा रहती है। विदेशी भाषा कभी भी हमारे भावों को उतनी गहरी अभिव्यक्ति नहीं दे सकती जितनी हमारी मातृभाषा महात्मा गांधीजी ने भी इसी बात को ध्यान में रखकर मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने पर बल दिया था।
हमारे देश में अंग्रेज़ी के प्रयोग पर इतना अधिक बल दिए जाने के उपरांत भी अपेक्षित सफलता इसी कारण नहीं मिल पा रही हैं क्योंकि इसके द्वारा हम अपने विचारों को पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं दे सकते। हम हीनता की भावना का शिकार हो रहे हैं। अंग्रेज़ी – परस्तों द्वारा दिया जाने वाला यह तर्क भ्रमित कर रहा है कि, ” अंग्रेज़ी ज्ञान का वातायन है।” अपनी भाषा के बिना मानव की मानसिक भूख शांत नहीं हो सकती। निज भाषा की उन्नति से ही समाज की उन्नति होती है। निज भाषा जननी तुल्य है। अतः कहा गया है कि –
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिना निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।
49. स्वच्छता अभियान
स्वच्छता ही किसी घर, समाज और देश को स्वस्थ वातावरण और सुखद जीवन प्रदान करती है और इसलिए देश में सर्वत्र स्वच्छता अभियान चलाया जा रहा है। इसके लिए केंद्रीय तथा राज्य सरकारों की ओर से भरपूर सहयोग तथा सहायता दी जा रही है। खुले में शौच के स्थान पर गाँव-गाँव, बस्ती-बस्ती में शौचालयों का निर्माण किया जा रहा है। लोगों को शिक्षित भी किया जा रहा है कि खुले में शौच से कैसे वातावरण दूषित हो जाता है तथा बीमारियाँ फैलती हैं। विद्यालयों से लेकर कार्यालयों तक और घर से लेकर गली मुहल्ले तक साफ-सुथरे किए जा रहे हैं।
स्थानीय निकाय घर-घर जाकर कूड़ा एकत्र कर कूड़े का वैज्ञानिक रीति से संशोधन कर रहे हैं। साफ-सफाई के लिए गली, मुहल्ले, नगर, गाँव पुरस्कृत भी किए जा रहे हैं। इस अभियान को पूर्ण रूप से सफल बनाने के लिए हमें अपना घर, गली, मुहल्ला साफ रखना चाहिए तथा दूसरों को भी प्रेरित करना चाहिए कि वे भी स्वच्छता अभियान को अपना कर देश को स्वस्थ बनाएँ।
50. लड़कियों की शिक्षा
विद्या हमारी भी न तब तक काम में कुछ आएगी।
अर्धांगनियों को भी सुशिक्षा दी न जब तक जाएगी॥
ऐम बी डी आज शिक्षा मानव-जीवन का एक आवश्यक अंग बन गई है। शिक्षा के बिना मनुष्य ज्ञान – पंगु कहलाता है। पुरुष के साथ-साथ नारी को भी शिक्षा की आवश्यकता है। नारी शिक्षित होकर ही बच्चों को शिक्षा प्रदान कर सकती है। बच्चों पर पुरुष की अपेक्षा नारी के व्यक्तित्व का प्रभाव अधिक पड़ता है। अतः उसका शिक्षित होना ज़रूरी है।
‘स्त्री का रूप क्या हो ?’ – यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है। इतना तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि नारी और पुरुष के क्षेत्र अलग-अलग हैं। पुरुष को अपना अधिकांश जीवन बाहर के क्षेत्र में बिताना पड़ता है जबकि नारी को घर और बाहर में समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता होती है। सामाजिक कर्तव्य के साथ-साथ उसे घर के प्रति भी अपनी भूमिका का निर्वाह करना पड़ता है। अतः नारी को गृह विज्ञान की शिक्षा में संपन्न होना चाहिए। अध्ययन के क्षेत्र में भी वह सफल भूमिका का निर्वाह कर सकती है। शिक्षा के साथ-साथ चिकित्सा के क्षेत्र में भी उसे योगदान देना चाहिए। सुशिक्षित माताएँ ही देश को अधिक योग्य, स्वस्थ और आदर्श नागरिक दे सकती हैं।
स्पष्ट हो जाता है कि स्त्री-शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार सर्वत्र होना चाहिए। नारी को फैशन से दूर रहकर सादगी के जीवन का समर्थन करना चाहिए। उसकी शिक्षा समाजोपयोगी हो।
51. स्वच्छ भारत अभियान
संकेत बिंदु – सर्वमान्य विचारधारा, उद्देश्यमूलक बनाना, जागरूकता फैलाना
गांधी जी का यह कहना था कि स्वच्छता परमात्मा की आराधना के समान है। उनकी इस सर्वमान्य विचारधारा को ध्यान में रखते हुए 2 अक्टूबर, 2014 को भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के द्वारा गांधी जी की समाधि राजघाट से स्वच्छ भारत अभियान का श्रीगणेश किया गया था। इस अभियान में सरकारी और गैर-सरकारी कर्मचारी, सभी राज्यों के मंत्री, विद्यालयों के छात्र, शैक्षणिक और औद्योगिक संस्थानों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया।
स्वच्छता को केवल अपने घर, दुकान या दफ़्तर तक सीमित न रखकर अपने बाहरी वातावरण को भी स्वच्छ बनाने का जज्बा होना चाहिए। सभी देशवासियों को मिलकर इस स्वच्छ भारत अभियान को उद्देश्यमूलक बनाना है जिसके अंतर्गत सड़कों, शहरों, गांव, शैक्षिक और औद्योगिक संस्थानों इत्यादि की स्वच्छता का ध्यान रखना आवश्यक होगा। आज स्वच्छता का विस्तार करने के लिए देश के प्रत्येक घर में शौचालयों का निर्माण कर इस दिशा में अभूतपूर्व सफलता मिली है, इससे हमारा वातावरण स्वच्छ और स्वस्थ दिखाई देने लगा है और हर घर में पीने का स्वच्छ जल उपलब्ध भी हो रहा है।
इस अभियान को सफल बनाने के लिए बहुत से जाने-माने लोगों ने आगे बढ़कर हिस्सा लिया है और इस अभियान को नई गति दी है। देश के लाखों छात्रों, युवा-युवतियों ने अपना योगदान जागरूकता फैलाकर दिया है। हमें यह याद रखना चाहिए, कि इस स्वच्छ भारत अभियान को सफल बनाना केवल सरकार का नहीं बल्कि हम सब देशवासियों का दायित्व है। हमारे आस-पास किसी तरह की अस्वच्छता हमें बीमार कर सकती है। नाक बंद कर लेने से गंदगी दूर नहीं होगी, उसके लिए हमें खुद आगे बढ़कर उसे दूर करने का प्रयास करना होगा। हम सभी को यह प्रण लेना चाहिए कि इस देश को स्वच्छ बनाने में हम अपना पूर्ण योगदान देंगे।
52. कोरोना वायरसः एक महामारी अथवा कोरोना वायरस
संकेत बिंदु – कोरोना का संक्रमण, लॉकडाउन के सकारात्मक प्रभाव, कोरोना वायरस के लक्षण क्या हैं?
“कोरोना” का अर्थ ‘मुकुट जैसी आकृति’ होती है। इस अदृश्य वायरस को सूक्षदर्शी यंत्र से ही देखा जा सकता है। इसके वायरस के कणों के इर्द-गिर्द उभरे हुए काँटे जैसे ढाँचों से सूक्ष्मदर्शी में मुकुट जैसा आकार दिखाई देता है, इसी आधार पर इसका नाम रखा गया था। दूसरे अर्थ को समझने के लिए सूर्य ग्रहण के समय चंद्रमा सूर्य को ढक लेता है तो चंद्रमा के चारों और किरणें निकलती प्रतीत होती हैं उसको भी ‘कोरोना’ कहते हैं। कोरोना वायरस का प्रकोप चीन के वुहान में दिसंबर 2019 के मध्य में शुरू हुआ था और इसी कारण से इसका कोविड-19 नामकरण किया गया।
इसके प्रसार होते ही से ज़्यादातर मौतें चीन में हुई हैं लेकिन दुनिया भर में इससे कई लाख लोग प्रभावित होकर जान गँवा चुके हैं। चीन ने इस वायरस से बचने के लिए इमरजेंसी कदम उठाया जिसमें कई शहरों को लोकडाउन कर दिया गया था। इसकी रोकथाम के लिए सार्वजनिक परिवहन को रोक दिया गया था और सार्वजनिक जगहों और पर्यटन स्थलों को बंद कर दिया गया था। केवल चीन ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देश वायरस से बचने के लिए लोकडाउन लगाने जैसे कदम उठाए थे।
कोरोना वायरस मुख्य तौर पर जानवरों के बीच फैलता है लेकिन बाद में इसने मानवों को भी संक्रमित कर दिया। कोरोना वायरस के जो लक्षण हैं, उनमें 90 फीसदी मामलों में बुखार, 80 फीसदी मामलों में थकान और सूखी खाँसी, 20 फीसदी मामलों में साँस लेने में परेशानी देखी गई है। दोनों फेफड़ों में इससे परेशानी देखी गई। इसके अलावा बड़ी संख्या में लोगों को निमोनिया की भी शिकायत हुई है। इस बात को माना जा रहा है कि इस वायरस की शुरुआत वुहान शहर के सीफूड बाज़ार में हुई थी।
जिन लोगों में शुरुआत में यह पाया गया, वे लोग उस थोक बाजार में काम करते थे। इसके फैलने का जरिया अभी पूरी तरह साफ़ नहीं है। लेकिन इसके एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में फैलने के प्रमाण हैं। इसके साथ ऐसा माना जा रहा है कि इससे प्रभावित एक व्यक्ति कम से कम तीन से चार स्वस्थ लोगों तक वायरस को फैला सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम चीन में इसकी उत्पत्ति को जाँच कर रही है। वर्तमान में कोरोना वायरस से बचने के लिए अनेक वैक्सीन मौजूद हैं। विश्व के कई देशों में टीकाकरण अभियान शुरू हो चुका है।
आप इससे बचने के लिए टीकाकरण करवा सकते हैं। टीकाकरण के दौरान भी अभी आप अपने हाथों को साबुन और पानी के साथ कम से कम 20 सेकेंड तक धोएँ। दो गज की सामाजिक दूरी बनाए रखें बिना धुले हुए हाथों से अपनी आँखों, नाक या मुँह को न स्पर्श करें। जो लोग बीमार हैं, उनके ज़्यादा नजदीक न जाएँ, फेस मास्क लगाना न भूलें। टीकाकरण के लिए आप अपनी बारी का इंतजार कर लाभ उठा सकते हैं।
53. कमरतोड़ महँगाई
संकेत बिंदु – महँगाई के मुख्य कारण, भारत में महँगाई, महँगाई की रोकथाम के उपाय
आमतौर पर महँगाई का प्रमुख कारण उपभोक्ता वस्तुओं का अभाव तथा मुद्रास्फीति की दर है। जीवन के लिए आवश्यक दैनिक वस्तुओं की कमी कई बातों पर निर्भर करती है। इनमें, जैसे- अधिक वर्षा, हिमपात, अल्पवर्षा, अकाल, तूफान, फसलों की रोगग्रस्तता, प्रतिकूल मौसम, ओले, अनावृष्टि आदि। इसके अलावा स्वार्थी मानव द्वारा की गई गलत हरकतों द्वारा भी दैनिक उपयोगी वस्तुओं का कृत्रिम अभाव पैदा किया जाता है और फिर उन वस्तुओं को अधिक कीमत वसूल करके बेचा जाता है।
इस प्रकार के अनर्गल काम आमतौर पर थोक व्यापारियों द्वारा किए जाते हैं। वे किसी वस्तु विशेष की जमाखोरी करके आकस्मिक अभाव पैदा करते हैं और फिर उस वस्तु को जरूरतमंद के हाथों बेचकर मनमाने दाम वसूल करते हैं। यही कारण है कि भारत में महँगाई बढ़ जाती है और फिर अचानक घट जाती है। प्राइवेट सेक्टर के उत्पादनों की कीमतों पर प्रतिबंध लगाने तथा लाभ की सीमा तय करने में सरकार असमर्थ है। देश में भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है जिसका कारण जमाखोर तथा मुनाफाखोर हैं।
वेतन में हुई भारी वृद्धि का लाभ उठाकर उत्पादकों ने सभी प्रकार के उत्पादों की कीमतें काफी बढ़ा दीं। महँगाई भारत में हीं नहीं वरन पूरे विश्व में गंभीर समस्या के रूप में सामने आई है। समय के साथ महँगाई और भ्रष्टाचार के कारण हमारे देश की हालत कुछ ऐसी हो गई है कि अमीर और अमीर होता जा रहा है, गरीब गरीबी। उपभोक्ता और सरकार के बीच अच्छे तालमेल से महँगाई पर काबू पाया जा सकता है। महँगाई बढते ही सरकार देश मे ब्याज दर बढ़ा देती है। सरकार द्वारा तय की हुई राशि का आम आदमी तक पहुँचना बेहद जरूरी है।
इससे गरीबी में भी गिरावट आएगी और लोगों के जीने के स्तर में भी सुधार आएगा। समय – समय पर यह जाँच करना ज़रूरी है कि कोई व्यापारी या फिर कोई अन्य व्यक्ति कालाबाज़ारी या अधिक मुनाफाखोरी के काम में तल्लीन तो नहीं है। सरकार द्वारा सर्वेक्षण करना ज़रूरी है कि बाज़ार मे किसी वस्तु का दाम कितना है, यह तय मानक दरों से अधिक तो नहीं है। मूल सुविधाओं और अन्न के दाम समय – समय पर देखने होगे क्योंकि मनुष्य के जीवन के लिए अन्न बेहद ज़रूरी है।
54. बदलती जीवन शैली के परिणाम
संकेत बिंदु – जीवन-शैली का अर्थ, बदलती जीवन शैली के प्रभाव, मानव के लिए सीख
जीवन-शैली किसी व्यक्ति, समूह, रुचि, राय, व्यवहार की दिशा आदि को संयुक्त रूप से व्यक्त करता है। आधुनिकता की इस अंधी दौड़ और हमारी जीवन-शैली ने आज हमारे स्वास्थ्य को जानलेवा बीमारियों से ग्रसित कर दिया है। जितनी तेजी से विज्ञान ने तरक्की कर हमें सुविधाएँ उपलब्ध करवाई हैं उतनी ही तेजी से तरह – तरह की बीमारियों का शिकार बनाया है। मानसिक तनाव, जैसे रोग तथा अन्य रोग जैसे मोटापा, गैस, कब्ज अस्थमा, जोड़ों का दर्द, माइग्रेन, बवासीर, उच्च रक्तचाप, मधुमेह व हृदयरोग जैसे गंभीर रोग इसी आधुनिक जीवन शैली की देन हैं।
दरअसल, इस तनावभरी जीवनशैली में आज के युवा भूलते जा रहे हैं कि देर रात पार्टियों में धूम्रपान व शराब का सेवन उनके ही जीवन को किस कदर दुष्प्रभावित कर रहा है। धूम्रपान करने वाले युवाओं में नपुंसकता का प्रतिशत अपेक्षाकृत अधिक पाया जाता है. शारीरिक श्रम के नाम पर लोग दिनभर कुछ नहीं करते। पैदल नहीं चलते, सीढियाँ नहीं चढ़ते, शारीरिक श्रम न करने की वजह से लोगों का पाचन-तंत्र खराब हो जाता है।
हम अपना जीवन जी रहे हें या काट रहे हैं, यह जानना हमारे लिए बेहद जरूरी है। हमने आने-जाने के लिए खूब चौड़े मार्ग तो बना लिए लेकिन हम संकीर्ण विचारों से बुरी तरह ग्रस्त हैं। हम अनावश्यक खर्च करते हैं और बदले में काम बहुत कम करते हैं। हम खरीदते बहुत अधिक हैं परंतु आनंद कम ही उठा पाते हैं। हमारे घर बहुत बड़े – बड़े हैं परंतु उनमें रहने वाले परिवार छोटे हैं। हम बहुत निपुण हैं लेकिन समस्याओं में उलझे रहते हैं। हमारे पास दवाइयाँ अधिक हैं किंतु स्वास्थ्य कमजोर है, हम अधिक खाते-पीते हैं परंतु हँसते कम हैं।
देर रात तक जागते हैं और सुबह भारी थकान के साथ उठते हैं। कम पढ़ते हैं और अधिक टी.वी. देखकर तनाव मोल लेते हैं। हम प्रार्थना कम करते हैं और दूसरों से घृणा और नफ़रत अधिक करते हैं। हमने रहने का तरीका सीख लिया है किंतु हमें जीना नहीं आया। हम चाँद पर जाकर वापस आ गए लेकिन अभी तक अपने पड़ोसी से मुलाकात नहीं की। हमने बाहरी क्षेत्र जीत लिए परंतु भीतर से टूटे और हारे हुए हैं। हमने बड़े-बड़े काम किए परंतु बेहतर नहीं। हमारी ‘आधुनिक जीवन-शैली’ कितनी बुरी तरह बिगड़ी और बिखरी हुई है।
इस बात का शायद हमें अनुमान भी नहीं है। इस बिखराव के कारण हमें कितनी भारी कीमत चुकानी पड़ रही है और चुकानी पड़ेगी, इस बात को समझने में शायद अभी सदियाँ लगेंगी। फिर भी, क्योंकि ‘मनुष्य जीवन’ हमारे पास प्रकृति की एक अमूल्य धरोहर और उपहार है, इसलिए प्रकृति से हमें सुसभ्य ढंग से जीने की कला सीखनी चाहिए न कि अर्थहीन व भ्रमित आधुनिक जीवन शैली के प्रभाव में आकर उसके चकाचौंध में जीवन-यापन करें।
55. बढ़ते प्रदूषण की समस्या
संकेत बिंदु – प्रदूषण शब्द का अर्थ, अनेक समस्याएँ, स्वस्थ और प्रदूषण मुक्त वातावरण
प्रदूषण शब्द का अर्थ है – दूषित करना। प्रदूषण वर्तमान युग का एक ऐसा अभिशाप है, जो विज्ञान की शक्ति से जन्मा है और इसे झेलने के लिए आज संपूर्ण विश्व विवश है। मनुष्य ने प्रकृति की गोद में जन्म लिया है और प्रकृति सदैव से ही उसकी सहचरी रही है। मनुष्य अपने लोभ और स्वार्थ के कारण पर्यावरण की लगातार उपेक्षा करने लग गया है। मानव सभ्यता का विकास होता गया और वह अपने आसपास के पर्यावरण को जमकर प्रदूषित करता गया। आज प्रदूषण के बढ़ने से हमारी धरती पर अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं।
यदि समय रहते इन पर नियंत्रण न किया गया तो वे दिन दूर नहीं जब धीरे-धीरे सभी जीव-जंतुओं का विनाश हो जाएगा। वनों की अंधाधुंध कटाई, कारखानों की चिमनियों का प्रदूषित धुआँ, वाहनों का धुआँ धरती के पवित्र वातावरण को दूषित करता जा रहा है। प्रदूषण कई तरह के होते हैं। इनमें से सबसे हानिकारक जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, और ध्वनि प्रदूषण हैं।
महानगरों का सारा कूड़ा-करकट और मलमूत्र जल में डाल दिया जाता है जिससे हमारे पीने का पानी अशुद्ध और मलिन हो गया है और इस मलिन जल के सेवन से हमारे शरीर को अनेक तरह की बीमारियाँ लग रही हैं। वायु प्रदूषण हमारे द्वारा उत्पन्न की गई गैसों से संपूर्ण वायु में फैल जाता है और वही दूषित हवा को हम श्वसन क्रिया द्वारा अंदर लेते हैं और भयंकर बीमारियों का शिकार बन जाते हैं। ध्वनि प्रदूषण का कारण बढ़ती जनसंख्या भी है, जिसके कारण शोर-शराबा बढ़ता जा रहा है; जैसे – वाहनों का शोर, कल-कारखानों में मशीनों का शोरगुल इत्यादि। प्रदूषण पर नियंत्रण पाने के लिए सभी लोगो के संयुक्त प्रयास की आवश्यकता है जिससे की हम एक स्वस्थ और प्रदूषणमुक्त वातावरण का उपभोग कर सकें।
56. डिजिटल इंडिया मिशन
संकेत बिंदु – अति उत्तम मिशन, क्रांतिकारी कदम, देश की प्रगति में चार चाँद
भारत सरकार द्वारा चलाई जाने वाली डिजिटल इंडिया एक अति उत्तम मिशन है। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य भारत के सभी छोटे बड़े सरकारी विभागों को डिजिटल रूप देकर उनकी कार्य करने की गति को द्रुत करना और देश के हर कोने तक सरकारी और गैरसरकारी क्षेत्र में सुविधा पहुँचाना है। भारत के द्रुत विकास के लिए डिजिटल इंडिया योजना के तहत अनेक योजनाएँ चलाई जा रही हैं जिससे कि सभी नागरिकों को डिजिटल सुख-सुविधाएँ मिल सकेंगी। इस मिशन के अंतर्गत भारत के सभी क्षेत्र के कामों को इंटरनेट से जोड़ना भी आवश्यक समझा जा रहा है।
यह एक ऐसा क्रांतिकारी कदम है जिसमें इंटरनेट और कंप्यूटर के माध्यम से सरकारी योजनाओं का लाभ सीधे आम आदमी के बैंक खाते में पहुँचाकर लाभ देना। शिक्षा और कृषि से संबंधित जानकारी दूर-दूर ग्रामीणों तक पहुँचाना सुगम हो गया है। बिना पैसे प्रयोग किए क्रेडिट, डेबिट कार्ड या कैश वॉलेट द्वारा भुगतान, लैपटॉप या मोबाइल द्वारा फॉर्म जमा करना, रुपयों का भुगतान, रेलवे या होटलों की बुकिंग करना, समाचार या पत्रिका इंटरनेट पर पढ़ना आदि इसके बहुआयामी लाभ हैं।
डिजिटल इंडिया हमें भौगोलिक दृष्टि से एक दूसरे के अत्यंत निकट ले आया हैं। घर बैठे आज मोबाइल से ही सब कुछ किया जा रहा है। इस मिशन ने डिजिटल इंडिया अभियान में हमें विश्व के प्रमुख देशों के साथ कदम से कदम मिला कर चलने में हमारी सहायता की है। आज की आधुनिक सदी में डिजिटल इंडिया हमारे देश की प्रगति में चार चाँद लगा रहा है।
57. परीक्षा से पहले मेरी मनोदशा
संकेत बिंदु – परीक्षा के नाम से भय, पर्याप्त तैयारी, प्रश्नपत्र देखकर भय दूर हुआ
वैसे तो हर मनुष्य परीक्षा से घबराता है किंतु विद्यार्थी इससे विशेष रूप से घबराता है। परीक्षा में पास होना ज़रूरी है नहीं तो जीवन का एक बहुमूल्य वर्ष नष्ट हो जाएगा। अपने साथियों से बिछड़ जाएँगे। ऐसी चिंताएँ हर विद्यार्थी को रहती हैं। परीक्षा शुरू होने से पूर्व जब मैं परीक्षा भवन पहुँचा तो मेरा दिल धक-धक कर रहा था। परीक्षा शुरू होने से आधा घंटा पहले मैं वहाँ पहुँच गया था।
मैं सोच रहा था कि सारी रात जागकर जो प्रश्न तैयार किए हैं यदि वे प्रश्न-पत्र में न आए तो मेरा क्या होगा ? इसी चिंता में मैं अपने सहपाठियों से खुलकर बात नहीं कर रहा था। परीक्षा भवन के बाहर का दृश्य बड़ा विचित्र था। परीक्षा देने आए कुछ विद्यार्थी बिलकुल बेफ़िक्र लग रहे थे। वे आपस में ठहाके मार-मार कर बातें कर रहे थे। कुछ ऐसे भी विद्यार्थी थे जो अभी तक किताबों से चिपके हुए थे।
मैं अकेला ऐसा विद्यार्थी था जो अपने साथ घर से कोई किताब या सहायक पुस्तक नहीं लाया था क्योंकि मेरे पिता जी कहा करते हैं कि परीक्षा के दिन से पहले की रात को ज्यादा पढ़ना नहीं चाहिए। सारे साल का पढ़ा हुआ भूल जाता है। वे परीक्षा के दिन से पूर्व की रात को जल्दी सोने की भी सलाह देते हैं जिससे सवेरे उठकर विद्यार्थी तरो ताज़ा होकर परीक्षा देने जाए न कि थका-थका महसूस करे।
परीक्षा भवन के बाहर लड़कों की अपेक्षा लड़कियाँ अधिक खुश नज़र आ रही थीं। उनके खिले चेहरे देखकर ऐसा लगता था मानो परीक्षा के भूत का उन्हें कोई डर नहीं। उन्हें अपनी स्मरण शक्ति पर पूरा भरोसा था। थोड़ी ही देर में घंटी बजी। यह घंटी परीक्षा भवन में प्रवेश की घंटी थी। इसी घंटी को सुनकर सभी ने परीक्षा भवन की ओर जाना शुरू कर दिया हँसते हुए चेहरों पर अब गंभीरता आ गई थी। परीक्षा भवन के बाहर अपना अनुक्रमांक और स्थान देखकर मैं परीक्षा भवन में प्रविष्ट हुआ और अपने स्थान पर जाकर बैठ गया। कुछ विद्यार्थी अब भी शरारतें कर रहे थे। मैं मौन हो धड़कते दिल से प्रश्न – पत्र बँटने की प्रतीक्षा करने लगा !
58. परीक्षा भवन का दृश्य
संकेत बिंदु – परीक्षा से घबराहट, परीक्षार्थियों का आना, घबराहट और बेचैनी, परीक्षा भवन का दृश्य
मार्च महीने की पहली तारीख थी। उस दिन हमारी वार्षिक परीक्षाएँ शुरू हो रही थीं। परीक्षा शब्द से वैसे सभी मनुष्य घबराते हैं परंतु विद्यार्थी वर्ग इस शब्द से विशेष रूप से घबराता है। मैं जब घर से चला तो मेरा दिल भी धक् धक् कर रहा था। मैं रात भर पढ़ता रहा था और चिंता थी कि यदि सारी रात के पढ़े में से कुछ भी प्रश्न-पत्र में न आया तो क्या होगा ? परीक्षा भवन के बाहर सभी विद्यार्थी चिंतित से नज़र आ रहे थे। कुछ विद्यार्थी किताबें लेकर अब भी उसके पन्ने उलट-पुलट रहे थे।
कुछ बड़े खुश-खुश नज़र आ रहे थे। मैं अपने सहपाठियों से उस दिन के प्रश्न-पत्र के बारे में बात कर ही रहा था कि परीक्षा भवन में घंटी बजनी शुरू हो गई। यह संकेत था कि हमें परीक्षा भवन में प्रवेश कर जाना चाहिए। सभी विद्यार्थियों ने परीक्षा भवन में प्रवेश करना शुरू कर दिया। भीतर पहुँच कर हम सब अपने-अपने अनुक्रमांक के अनुसार अपनी-अपनी सीट पर जाकर बैठ गए। थोड़ी ही देर में अध्यापकों द्वारा उत्तर-पुस्तिकाएँ बाँट दी गईं और हमने उस पर अपना-अपना अनुक्रमांक आदि लिखना शुरू कर दिया।
ठीक नौ बजते ही एक घंटी बजी और अध्यापकों ने प्रश्न- पत्र बाँट दिए। मैंने प्रश्न – पत्र पढ़ना शुरू किया। मेरी खुशी का कोई ठिकाना न था क्योंकि प्रश्न-पत्र के सभी प्रश्न मेरे पढ़े हुए प्रश्नों में से थे। मैंने किए जाने वाले प्रश्नों पर निशान लगाए और कुछ क्षण तक यह सोचा कि कौन-सा प्रश्न पहले करना चाहिए और फिर उत्तर लिखना शुरू कर दिया। मैंने देखा कुछ विद्यार्थी अभी बैठे सोच ही रहे थे शायद उनके पढ़े में से कोई प्रश्न न आया हो। तीन घंटे तक मैं बिना इधर-उधर देखे लिखता रहा। मैं प्रसन्न था कि उस दिन मेरा पर्चा बहुत अच्छा हुआ था।
59. जीवन की अविस्मरणीय घटना
संकेत बिंदु – चिड़िया के बच्चे का घायल अवस्था में मिलना, सेवा से आनंद
आज मैं दसवीं कक्षा में हूँ। माता-पिता कहते हैं कि अब तुम बड़े हो गए हो। मैं भी कभी-कभी सोचता हूँ कि क्या मैं सचमुच बड़ा हो गया हूँ। हाँ, मैं सचमुच बड़ा हो गया हूँ। मुझे बीते दिनों की कुछ बातें आज भी याद हैं जो मेरा मार्गदर्शन कर रही हैं। एक घटना ऐसी है जिसे मैं आज भी याद करके आनंद विभोर हो उठता हूँ। घटना कुछ इस तरह से है। कोई दो-तीन साल पहले की घटना है। मैंने एक दिन देखा कि हमारे आँगन में लगे वृक्ष के नीचे एक चिड़िया का बच्चा घायल अवस्था में पड़ा है।
मैं उस बच्चे को उठाकर अपने कमरे में ले आया। मेरी माँ ने मुझे रोका भी कि इसे इस तरह न उठाओ यह मर जाएगा किंतु मेरा मन कहता था कि इस चिड़िया के बच्चे को बचाया जा सकता है। मैंने उसे चम्मच से पानी पिलाया। पानी मुँह में जाते ही उस बच्चे ने जो बेहोश था पंख फड़फड़ाने शुरू कर दिए। यह देखकर मैं प्रसन्न हुआ। मैंने उसे गोद में लेकर देखा कि उस की टाँग में चोट आई है। मैंने अपने छोटे भाई को माँ से मरहम की डिबिया लाने को कहा। वह तुरंत मरहम की डिबिया ले आया।
उसमें से थोड़ी-सी मरहम मैंने उस चिड़िया के बच्चे की चोट पर लगाई। मरहम लगाते ही मानो उसकी पीड़ा कुछ कम हुई। वह चुपचाप मेरी गोद में ही लेटा था। मेरा छोटा भाई भी उस के पंखों पर हाथ फेरकर खुश हो रहा था। कोई घंटा भर मैं उसे गोद में ही लेकर बैठा रहा। मैंने देखा कि बच्चा थोड़ा उड़ने की कोशिश करने लगा था। मैंने छोटे भाई से रोटी मँगवाई और उसकी चूरी बनाकर उसके सामने रखी।
वह उसे खाने लगा। हम दोनों भाई उसे खाते हुए देख कर खुश हो रहे थे। मैंने उसे अब अपनी पढ़ाई की मेज़ पर रख दिया। रात को एक बार फिर उस के घाव पर मरहम लगाई। दूसरे दिन मैंने देखा चिड़िया का वह बच्चा मेरे कमरे में इधर-उधर फुदकने लगा है। वह मुझे देख चीं-चीं करके मेरे प्रति अपना आभार प्रकट कर रहा था। एक-दो दिनों में ही उस का घाव ठीक हो गया और मैंने उसे आकाश में छोड़ दिया। वह उड़ गया। मुझे उस चिड़िया के बच्चे के प्राणों की रक्षा करके जो आनंद प्राप्त हुआ उसे मैं जीवन भर नहीं भुला पाऊँगा।
60. आँखोंदेखी दुर्घटना
संकेत बिंदु – प्रातः भ्रमण के लिए जाना, सड़क पर भीड़ की अधिकता, कार और ताँगे में टक्कर, पुलिस- अस्पताल
रविवार की बात है मैं अपने मित्र के साथ सुबह – सुबह सैर करने माल रोड पर गया। वहाँ बहुत से स्त्री-पुरुष और बच्चे भी सैर करने आए हुए थे। जब से दूरदर्शन पर स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रम आने लगे हैं अधिक-से-अधिक लोग प्रातः भ्रमण के लिए इन जगहों पर आने लगे हैं। रविवार होने के कारण उस दिन भीड़ कुछ अधिक थी। तभी मैंने वहाँ एक युवा दंपति को अपने छोटे बच्चे को बच्चागाड़ी में बैठाकर सैर करते देखा। अचानक लड़कियों के स्कूल की ओर एक रिक्शा आता हुआ दिखाई दिया।
उसमें दो सवारियाँ भी बैठी थीं। बच्चागाड़ी वाले दंपत्ति ने रिक्शे से बचने के लिए सड़क पार करनी चाही। जब वे सड़क पार कर रहे थे तो दूसरी तरफ से बड़ी तेज़ गति से आ रही एक कार उस रिक्शे से टकरा गई। रिक्शा चलाने वाला और दोनों सवारियाँ बुरी तरह से घायल हो गए थे। बच्चागाड़ी वाली स्त्री के हाथ से बच्चागाड़ी छूट गई। किंतु इससे पूर्व कि वह बच्चे समेत रिक्शे और कार की टक्कर वाली जगह पर पहुँचकर उन से टकरा जाती, मेरे साथी ने भागकर उस बच्चागाड़ी को सँभाल लिया।
कार चलाने वाले सज्जन को भी काफ़ी चोटें आई थीं पर उसकी कार को कोई खास क्षति नहीं पहुँची थी। माल रोड पर गश्त करने वाले पुलिस के तीन – चार सिपाही तुरंत घटना स्थल पर पहुँच गए। उन्होंने वायरलैस द्वारा अपने अधिकारियों और अस्पताल को फोन किया। चंद मिनटों में वहाँ ऐंबुलेंस गाड़ी आ गई। हम सब ने घायलों को उठा कर ऐंबुलेंस में लिटाया। पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी तुरंत वहाँ पहुँच गए। उन्होंने कार चालक को पकड़ लिया था। प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस को बताया कि सारा दोष कार चालक का था।
इस सैर-सपाटे वाली सड़क पर वह 100 कि० मी० की स्पीड से कार चला रहा था और रिक्शा सामने आने पर वह ब्रेक न लगा सका। दूसरी तरफ़ बच्चे को बचाने के लिए मेरे मित्र द्वारा दिखाई फुरती व चुस्ती की भी लोग सराहना कर रहे थे। उस दंपति ने उसका विशेष धन्यवाद दिया।
61. जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी
संकेत बिंदु – अर्थ, देशानुराग, अधिकार और कर्तव्य
इस कथन का भाव है “जननी और जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊँचा है।” जो व्यक्ति अपनी माँ से और भूमि से प्रेम नहीं करता, वह मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं है। देश-द्रोह एवं मातृद्रोह से बड़ा अपराध कोई और नहीं है। यह ऐसा अपराध है जिसका प्रायश्चित्त संभव ही नहीं है। देश-प्रेम की भावना ही मनुष्य को यह प्रेरणा देती है कि जिस भूमि से उसका भरण-पोषण हो रहा है, उसकी रक्षा के लिए अपना सब कुछ अर्पित कर देना उसका परम कर्तव्य है। जननी एवं जन्मभूमि के प्रति प्रेम की भावना जीवधारियों की स्वाभाविक प्रवृत्ति है।
मनुष्य संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। अतः उसके हृदय में देशानुराग की भावना का उदय स्वाभाविक है। मरुस्थल में रहने वाले लोग हाँफ – हाँफकर जीते हैं, फिर भी उन्हें अपनी जन्मभूमि से अगाध प्रेम है। ध्रुववासी अत्यंत शीत के कारण अंधकार तथा शीत में काँप-काँप कर तो जीवन व्यतीत कर लेते हैं, पर अपनी मातृभूमि का बाल- बाँका नहीं होने देते। मुग़ल साम्राज्य के अंतिम दीप सम्राट बहादुरशाह ज़फर की रंगून के कारागार से लिखी ये पंक्तियाँ कितनी मार्मिक हैं –
कितना है बदनसीब ज़फर दफन के लिए,
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कूचा – ए – यार में।
जिस देश के लोग अपनी मातृ-भूमि से जितना अधिक स्नेह करते हैं, वह देश उतना ही उन्नत माना जाता है। देश-प्रेम की भावना ने ही भारत की पराधीनता की जंजीरों को काटने के लिए देश भक्तों को प्रेरित किया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के प्रति हमारा कर्तव्य और भी बढ़ गया है। इस कर्तव्य की पूर्ति हमें जी-जान लगाकर करनी चाहिए।
62. मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
संकेत बिंदु – मन का महत्व, मानसिक शक्ति, उन्नति का मार्ग
मानव-शरीर यदि रथ के समान है तो यह मन उसका चालक है। मनुष्य के शरीर की असली शक्ति उसका मन है। मन के अभाव में शरीर का कोई अस्तित्व ही नहीं। मन ही वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य से बड़े-से-बड़े काम करवा लेती है। यदि मन में दुर्बलता का भाव आ जाए तो शक्तिशाली शरीर और विभिन्न प्रकार के साधन व्यर्थ हो जाते हैं। उदाहरण के लिए एक सैनिक को लिया जा सकता है। यदि उसने अपने मन को जीत लिया है तो वह अपनी शारीरिक शक्ति एवं अनुमान से कहीं अधिक सफलता पा सकता है।
यदि उसका मन हार गया तो बड़े- बड़े मारक अस्त्र-शस्त्र भी उसके द्वारा अपना प्रभाव नहीं दिखा सकते। मन की शक्ति के बल पर ही मनुष्य ने अनेक आविष्कार किए हैं। मन की शक्ति मनुष्य को अनवरत साधना की प्रेरणा देती है और विजयश्री उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो जाती है। जब तक मन में संकल्प एवं प्रेरणा का भाव नहीं जागता तब तक हम किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते। एक ही काम में एक व्यक्ति सफलता प्राप्त कर लेता है और दूसरा असफल हो जाता है। इसका कारण दोनों के मन की शक्ति की भिन्नता है। जब तक हमारा मन शिथिल है तब तक हम कुछ भी नहीं कर सकते। अतः ठीक ही कहा गया है – ” मन के हारे हार है मन के जीते जीत।”
63. मन चंगा तो कठौती में गंगा
संकेत बिंदु – संत रविदास का कथन, निर्मल मानव मन की महत्ता, स्वच्छ और निष्पाप हृदय, आत्मिक शांति
संत रविदास का यह वचन एक मार्मिक सत्य का उद्घाटन करता है। मानव के लिए मन की निर्मलता का होना आवश्यक है। जिसका मन निर्मल होता है, उसे बाहरी निर्मलता ओढ़ने या गंगा के स्पर्श से निर्मलता प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। जिनके मन में मैल होती है, उन्हें ही गंगा की निर्मलता अधिक आकर्षित करती है। स्वच्छ एवं निष्पाप हृदय का व्यक्ति बाह्य आडंबरों से दूर रहता है। अपना महत्व प्रतिपादित करने के लिए वह विभिन्न प्रपंचों का सहारा नहीं लेता।
प्राचीन भारत में ऋषि-मुनि घर-बार सभी त्याग कर सभी भौतिक सुखों से रहित होकर भी परमानंद की प्राप्ति इसीलिए कर लेते थे कि उनकी मन- आत्मा पर व्यर्थ के पापों का बोझ नहीं होता था। बुरे मन का स्वामी चाहे कितना भी प्रयास कर ले कि उसे आत्मिक शांति मिले, परंतु वह उसे प्राप्त नहीं कर सकता। भक्त यदि परमात्मा को पाना चाहते हैं तो भगवान स्वयं भी उसकी भक्ति से प्रभावित हो उसके निकट आना चाहता है। वह भक्त के निष्कपट, निष्पाप और निष्कलुष हृदय में मिल जाना चाहता है।
64. समय सबसे बड़ा धन है
अथवा
समय का सदुपयोग
संकेत बिंदु – जीवन की क्षणिकता, समय का महत्व, मनोरंजन और समय का मूल्य, परिश्रम ही प्रगति की राह
दार्शनिकों ने जीवन को क्षणभंगुर कहा है। इनकी तुलना प्रभात के तारे और पानी के बुलबुले से की गई है। अतः यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि हम अपने जीवन को सफल कैसे बनाएँ। इसका एकमात्र उपाय समय का सदुपयोग है। समय एक अमूल्य वस्तु है। इसे काटने की वृत्ति जीवन को काट देती है। खोया समय पुनः नहीं मिलता। दुनिया में कोई भी शक्ति नहीं जो बीते हुए समय को वापस लाए। हमारे जीवन की सफलता-असफलता समय के सदुपयोग तथा दुरुपयोग पर निर्भर करती है। कहा भी है- ” क्षण को क्षुद्र न समझो भाई, यह जग का निर्माता है।”
हमारे देश में अधिकांश लोग समय का मूल्य नहीं समझते। देर से उठना, व्यर्थ की बातचीत करना, ताश खेलना आदि के द्वारा समय नष्ट करते हैं। यदि हम चाहते हैं तो हमें पहले अपना काम पूरा करना चाहिए। बहुत से लोग समय को नष्ट करने में आनंद का अनुभव करते हैं। मनोरंजन के नाम पर समय नष्ट करना बहुत बड़ी भूल है। समय का सदुपयोग करने के लिए आवश्यक है कि हम अपने दैनिक कार्य को करने का समय निश्चित कर लें। फिर उस कार्य को उसी समय में करने का प्रयत्न करें।
इस तरह का अभ्यास होने से हम समय का मूल्य समझ जाएँगे और देखेंगे कि हमारा जीवन निरंतर प्रगति की ओर बढ़ता जा रहा है। समय के सदुपयोग से ही जीवन का पथ सरल हो जाता है। महान व्यक्तियों के महान बनने का रहस्य समय का सदुपयोग ही है। समय के सदुपयोग के द्वारा ही मनुष्य अमर कीर्ति का पात्र बन सकता है। समय का सदुपयोग ही जीवन का सदुपयोग है। इसी में जीवन की सार्थकता है- “कल करै सो आज कर, आज करै सो अब। पल में परलै होयगी, बहुरि करोगे कब॥ ”
65. राष्ट्रीय एकता
संकेत बिंदु – क्षेत्रीयता के प्रति मोह, भाषाई एकता, देश की एकता के लिए घातक, अनेकता में एकता
आज देश के विभिन्न राज्य क्षेत्रीयता के मोह में ग्रस्त हैं। सर्वत्र एक-दूसरे से बिछुड़ कर अलग होने तथा अपना-अपना मनोराज्य स्थापित करने अनुच्छेद-लेखन की होड़ लगी हुई है। यह स्थिति देश की एकता के लिए अत्यंत घातक है क्योंकि राष्ट्रीय एकता के अभाव में देश का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। राष्ट्र से तात्पर्य किसी भौगोलिक भू-खंड मात्र अथवा उस भू-खंड में सामूहिक रूप से रहने वाले व्यक्तियों से न होकर उस भू-खंड में रहने वाली संवेदनशील जनता से होता है।
अतः राष्ट्रीय एकता वह भावना है, जो किसी एक राष्ट्र के समस्त नागरिकों को एकता के सूत्र में बाँधे रखती है। राष्ट्र के प्रति ममत्व की भावना से ही राष्ट्रीय एकता की भावना का जन्म होता है। भारत प्राकृतिक, भाषायी, रहन-सहन आदि की दृष्टि से अनेक रूप वाला होते हुए भी राष्ट्रीय स्वरूप में एक है। पर्वतराज हिमालय एवं सागर इसकी प्राकृतिक सीमाएँ हैं, समस्त भारतीय धर्म एवं संप्रदाय आवागमन में आस्था रखते हैं।
भाषाई भेदभाव होते हुए भी भारतवासियों की भावधारा एक है। यहाँ की संस्कृति की पहचान दूर से ही हो जाती है। भारत की एकता का सर्वप्रमुख प्रमाण यहाँ एक संविधान का होना है। भारतीय संसद की सदस्यता धर्म, संप्रदाय, जाति, क्षेत्र आदि के भेदभाव से मुक्त हैं। इस प्रकार अनेकता में एकता के कारण भारत की राष्ट्रीय एकता सदा सुदृढ़ है।
66. भाषण नहीं राशन चाहिए –
संकेत बिंदु – भाषण की उपयोगिता और अनुपयोगिता, नेताओं की करनी – कथनी में अंतर, आम जनता की पीड़ा
हर सरकार का यह पहला काम है कि वह आम आदमी की सुविधा का पूरा ध्यान रखे। सरकार की कथनी तथा करनी में अंतर नहीं होना चाहिए। केवल भाषणों से किसी का पेट नहीं भरता। यदि बातों से पेट भर जाता तो संसार का कोई भी व्यक्ति भूख-प्यास से परेशान न होता। भूखे पेट से तो भजन भी नहीं होता। भारत एक प्रजातांत्रिक देश है। यहाँ के शासन की बागडोर प्रजा के हाथ में है, यह केवल कहने की बात है। इस देश में जो भी नेता कुरसी पर बैठता है, वह देश के उद्धार की बड़ी-बड़ी बातें करता है पर रचनात्मक रूप से कुछ भी नहीं होता।
जब मंच पर आकर नेता भाषण देते हैं तो जनता उनके द्वारा दिखाए गए सब्ज़बाग से खुशी का अनुभव करती है। उसे लगता है कि नेता जिस कार्यक्रम की घोषणा कर रहे हैं, उससे निश्चित रूप से गरीबी सदा के लिए दूर हो जाएगी, लेकिन होता सब कुछ विपरीत है। अमीरों की अमीरी बढ़ती जाती है और आम जनता की ग़रीबी बढ़ती जाती है। यह व्यवस्था का दोष है।
इन नेताओं के हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और वाली कहावत चरितार्थ होती है। जनता को भाषण की नहीं राशन की आवश्यकता है। सरकार की ओर से ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि जनता को ज़रूरत की वस्तुएँ प्राप्त करने में कठिनाई का अनुभव न हो। उसे रोटी, कपड़ा, मकान की समस्या का सामना न करना पड़े। सरकार को अपनी कथनी के अनुरूप व्यवहार भी करना चाहिए। उसे यह बात गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि जनता को भाषण नहीं राशन चाहिए। भाषणों की झूठी खुराक से जनता को बहुत लंबे समय तक मूर्ख नहीं बनाया जा सकता।
67. युवाओं के लिए मतदान का अधिकार
संकेत बिंदु – प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार, उपयोगी मताधिकार, मत का अधिकारी
भारत एक लोकतंत्र है जहाँ प्रत्येक वयस्क को मताधिकार प्राप्त है। पंचायत से लेकर लोकसभा तक के सदस्यों को भारत की वयस्क जनता अपने मतदान द्वारा चुनती है। युवाओं को अपने मत का महत्व समझकर ही इसका प्रयोग करना चाहिए। एक – एक व्यक्ति का मत बहुत ही अमूल्य होता है क्योंकि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की हार-जीत का निर्णय एक मत से भी हो जाता है, जिसके पक्ष में पड़ने से जीत और विपक्ष में जाने से हार का सामना करना पड़ता है।
युवा वर्ग को अपने मत का प्रयोग करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि जिसे वे अपना मत देने जा रहे हैं, वह उनके, समाज के तथा देश के लिए कितना उपयोगी सिद्ध हो सकता है। ईमानदार, परिश्रमी, समाजसेवी, परोपकारी तथा दयालु व्यक्ति ही आप के मत का अधिकारी हो सकता है। जात-बिरादरी – धर्म-संप्रदाय के नाम पर किसी को अपना मत नहीं देना चाहिए। अपने मत का प्रयोग सदा स्वच्छ छवि वाले व्यक्ति को देकर ही करें। युवाओं को अपने मत के अधिकार का प्रयोग देश हित में ज़रूर करना चाहिए। देश के अच्छी सरकार के गठन में युवाओं का मताधिकार एक क्रांतिकारी कदम माना जाता है।
68. अपनी भाषा प्यारी भाषा
संकेत बिंदु – अभिव्यक्ति का माध्यम, भाषा की उन्नति से समाज की उन्नति
अपनी भाषा के उत्थान के बिना व्यक्ति उन्नति कर ही नहीं सकता। भाषा अभिव्यक्ति का प्रमुख माध्यम है। भाषा सामाजिक जीवन का अपरिहार्य अंग है। इसके बिना समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अपनी भाषा में अपने मन के विचारों को प्रकट करने में सुविधा रहती है। विदेशी भाषा कभी भी हमारे भावों को उतनी गहरी अभिव्यक्ति नहीं दे सकती जितनी हमारी मातृभाषा। महात्मा गांधी जी ने भी इसी बात को ध्यान में रखकर मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने पर बल दिया था।
हमारे देश में अंग्रेज़ी के प्रयोग पर इतना अधिक बल दिए जाने के उपरांत भी अपेक्षित सफलता इसी कारण नहीं मिल पा रही है क्योंकि इसके द्वारा हम अपने विचारों को पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं दे सकते। हम हीन भावना का शिकार हो रहे हैं। अंग्रेज़ी-परस्तों द्वारा दिया जाने वाला यह तर्क भ्रमित कर रहा है कि, “अंग्रेज़ी ज्ञान का वातायन है।” अपनी भाषा के बिना मानव की मानसिक भूख शांत नहीं हो सकती। निज भाषा की उन्नति से ही समाज की उन्नति होती है। निज भाषा जननी तुल्य है। अतः कहा गया है कि-
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिना निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।
69. हमने मनाई पिकनिक
संकेत बिंदु – साइकिलों से जाना, प्राकृतिक सौंदर्य, खान-पान, मनोरंजन
संकेत बिंदु- पिकनिक के लिए उचित स्थान का चुनाव पिकनिक एक ऐसा शब्द है जो थके हुए शरीर एवं मन में एकदम स्फूर्ति ला देता है। मैंने और मेरे मित्र ने परीक्षा के दिनों में बड़ी मेहनत की थी। परीक्षा का तनाव हमारे मन और मस्तिष्क पर विद्यमान था। उस तनाव को दूर करने के लिए हम दोनों ने यह निर्णय किया कि क्यों न किसी दिन माधोपुर हैडवर्क्स पर जाकर पिकनिक मनाई जाए। अपने इस निर्णय से अपने मुहल्ले के दो-चार और मित्रों को अवगत करवाया तो वे भी हमारे साथ चलने को तैयार हो गए।
माधोपुर हैडवर्क्स हमारे नगर से दस कि० मी० दूरी पर था। हम सबने अपने-अपने साइकिलों पर जाने का निश्चय किया। पिकनिक के लिए रविवार का दिन निश्चित किया गया। रविवार को हम सबने नाश्ता करने के बाद अपने-अपने लंच बॉक्स तैयार किए तथा कुछ अन्य खाने का सामान अपने-अपने साइकिलों पर रख लिया। मेरे मित्र के पास एक छोटा टेपरिकार्डर भी था उसे भी अपने साथ ले लिया तथा साथ में कुछ अपने मनपसंद गानों की टेप्स भी रख लीं। हम सब अपनी-अपनी साइकिल पर सवार होकर, हँसते-गाते एक-दूसरे को चुटकले सुनाते पिकनिक स्थल की ओर बढ़ चले।
लगभग 45 मिनट में हम सब माधोपुर हैडवर्क्स पर पहुँच गए। वहाँ हमने प्रकृति को अपनी संपूर्ण सुषमा के साथ विराजमान देखा। चारों तरफ़ रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे, शीतल और मंद-मंद हवा बह रही थी। हमने एक ऐसी जगह चुनी जहाँ घास की प्राकृतिक कालीन बिछी हुई थी। हमने वहाँ एक दरी बिछा दी। साइकिल चलाकर हम थोड़ा थक गए थे, अतः हमने पहले थोड़ी देर विश्राम किया। हमारे एक साथी ने हमारी कुछ फ़ोटो उतारीं। थोड़ी देर सुस्ता कर हमने टेप रिकार्डर चला दिया और गीतों की धुन पर मस्ती में भर कर नाचने लगे। कुछ देर तक हमने इधर-उधर घूम कर वहाँ के प्राकृतिक दृश्यों का नज़ारा देखा।
दोपहर को हम सबने अपने-अपने टिफ़िन खोले और सबने मिल बैठ कर एक-दूसरे का भोजन बाँट कर खाया। उसके बाद हमने वहाँ स्थित कैनाल रेस्ट हाउस रेस्तराँ में जाकर चाय पी। चाय-पान के बाद हमने अपने स्थान पर बैठकर अंताक्षरी खेलनी शुरू की। इसके बाद हमने एक-दूसरे को कुछ चुटकले और कुछ आपबीती हँसी-मज़ाक की बातें बताईं। समय कितनी जल्दी बीत गया इसका हमें पता ही न चला। जब सूर्य छिपने को आया तो हम ने अपना-अपना सामान समेटा और घर की तरफ चल पड़े।
70. भीड़ भरी बस की यात्रा का अनुभव
संकेत बिंदु – यात्रा का कारण, बस की यात्रा, भीड़
वैसे तो जीवन को ही यात्रा की संज्ञा दी गई है पर कभी-कभी मनुष्य को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए गाड़ी अथवा बस का भी सहारा लेना पड़ता है। बस की यात्रा का अनुभव भी बड़ा विचित्र है। भारत जैसे जनसंख्या प्रधान देश में बस की यात्रा अत्यंत असुविधानजनक है। प्रत्येक बस में सीटें तो गिनती की हैं पर बस में चढ़ने वालों की संख्या निर्धारित करना एक जटिल कार्य है। भले ही बस हर पाँच मिनट बाद चले पर चलेगी पूरी तरह भर कर। गर्मियों के दिनों में तो यह यात्रा किसी भी यातना से कम नहीं।
भारत के नगरों की अधिकांश सड़कें सम न होकर विषम हैं। खड़े हुए यात्री की तो दुर्दशा हो जाती है, एक यात्री दूसरे यात्री पर गिरने लगता है। कभी-कभी तो लड़ाई-झगड़े की नौबत पैदा हो जाती है। लोगों की जेबें कट जाती हैं। जिन लोगों के कार्यालय दूर हैं, उन्हें प्रायः बस का सहारा लेना ही पड़ता है। बस यात्रा एक प्रकार से रेल – यात्रा का लघु रूप है। जिस प्रकार गाड़ी में विभिन्न जातियों एवं प्रवृत्तियों के लोगों के दर्शन होते हैं, उसी प्रकार बस में भी अलग-अलग विचारों के लोग मिलते हैं।
इनसे मनुष्य बहुत कुछ सीख भी सकता है। भीड़ भरी बस की यात्रा जीवन की कठिनाइयों का सामना करने का छोटा-सा शिक्षालय है। यह यात्रा इस तथ्य की परिचायक है कि भारत अनेक क्षेत्रों में अभी तक भरपूर प्रगति नहीं कर सका। जो व्यक्ति बस यात्रा के अनुभव से वंचित है, वह एक प्रकार से भारतीय जीवन के बहुत बड़े अनुभव से ही वंचित है।
71. परिश्रम सफलता की कुंजी है
संकेत बिंदु – परिश्रम का महत्व, समयानुसार बुद्धि का सदुपयोग, परिश्रम और बुद्धि का तालमेल
संस्कृत की प्रसिद्ध सूक्ति है – ‘उद्यमेन हि सिद्धयंति कार्याणि न मनोरथः’ अर्थात परिश्रम से ही कार्य की सिद्धि होती है, मात्र इच्छा करने से नहीं। सफलता प्राप्त करने के लिए परिश्रम ही एकमात्र मंत्र है। ‘श्रमेव जयते’ का सूत्र इसी भाव की ओर संकेत करता है। परिश्रम के बिना हरी-भरी खेती सूखकर झाड़ बन जाती है जबकि परिश्रम से बंजर भूमि को भी शस्य – श्यामला बनाया जा सकता है।
असाध्य कार्य भी परिश्रम के बल पर संपन्न किए जा सकते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति कितने ही प्रतिभाशाली हों, किंतु उन्हें लक्ष्य में सफलता तभी मिलती है जब वे अपनी बुद्धि और प्रतिभा को परिश्रम की सान पर तेज़ करते हैं। न जाने कितनी संभावनाओं के बीज पानी, मिट्टी, सिंचाई और जुताई के अभाव में मिट्टी बन जाते हैं, जबकि ठीक संपोषण प्राप्त करके कई बीज सोना भी बन जाते हैं। कई बार प्रतिभा के अभाव में परिश्रम ही अपना रंग दिखलाता है। प्रसिद्ध उक्ति है कि निरंतर घिसाव से पत्थर पर भी चिह्न पड़ जाते हैं।
जड़मति व्यक्ति परिश्रम द्वारा ज्ञान उपलब्ध कर लेता है। जहाँ परिश्रम तथा प्रतिभा दोनों एकत्र हो जाते हैं वहाँ किसी अद्भुत कृति का सृजन होता है। शेक्सपीयर ने महानता को दो श्रेणियों में विभक्त किया है – जन्मजात महानता तथा अर्जित महानता। यह अर्जित महानता परिश्रम के बल पर ही अर्जित की जाती है। अतः जिन्हें ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त नहीं है, उन्हें अपने श्रम-बल का भरोसा रखकर कर्म में जुटना चाहिए। सफलता अवश्य ही उनकी चेरी बन कर उपस्थित होगी।
72. मधुर वाणी
संकेत बिंदु – श्रेष्ठ वाणी की उपयोगिता, कटुता और कर्कश वाणी, चरित्र की स्पष्टता, विनम्रता और मधुरवाणी
वाणी ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ अलंकार है। वाणी के द्वारा ही मनुष्य अपने विचारों का आदान-प्रदान दूसरे व्यक्तियों से करता है। वाणी का मनुष्य के जीवन पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। सुमधुर वाणी के प्रयोग से लोगों के साथ आत्मीय संबंध बन जाते हैं, जो व्यक्ति कर्कश वाणी का प्रयोग करते हैं, उनसे लोगों में कटुता की भावना व्याप्त हो जाती है। जो लोग अपनी वाणी का मधुरता से प्रयोग करते हैं, उनकी सभी लोग प्रशंसा करते हैं।
सभी लोग उनसे संबंध बनाने के इच्छुक रहते हैं। वाणी मनुष्य के चरित्र को भी स्पष्ट करने में सहायक होती है। जो व्यक्ति विनम्र और मधुर वाणी से लोगों के साथ व्यवहार करते हैं, उसके बारे में लोग यही समझते हैं कि इनमें सद्भावना विद्यमान है। मधुर वाणी मित्रों की संख्या में वृद्धि करती है। कोमल और मधुर वाणी से शत्रु के मन पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है।
वह भी अपनी द्वेष और ईर्ष्या की भावना को विस्तृत करके मधुर संबंध बनाने का इच्छुक हो जाता है। यदि कोई अच्छी बात भी कठोर और कर्कश वाणी में कही जाए तो लोगों पर उसकी प्रतिक्रिया विपरीत होती है। लोग यही समझते हैं कि यह व्यक्ति अहंकारी है। इसलिए वाणी मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ अलंकार है तथा उसे उसका सदुपयोग करना चाहिए।
73. दहेज प्रथा : एक अभिशाप
संकेत बिंदु – दहेज का अर्थ, कन्या की श्रेष्ठता दहेज के आवरण में, खुलेआम बोली
दहेज का अर्थ है, विवाह के समय दी जाने वाली वस्तुएं। हमारे समाज में विवाह के साथ लड़की को माता-पिता का घर छोड़कर पति के घर जाना होता है। इस अवसर पर अपना स्नेह प्रदर्शित करने के लिए कन्या के पक्ष के लोग लड़की, लड़कों के संबंधियों को यथाशक्ति भेंट दिया करते हैं। यह प्रथा कब शुरू हुई, कहा नहीं जा सकता। लगता है कि यह प्रथा अत्यंत प्राचीन है। दहेज प्रथा जो आरंभ में स्वेच्छा और स्नेह से भेंट देने तक सीमित रही होगी धीरे-धीरे विकट रूप धारण करने लगी है।
वर पक्ष के लोग विवाह से पहले दहेज में ली जाने वाली धनराशि तथा अन्य वस्तुओं का निश्चय करने लगे हैं। आधुनिक युग में कन्या की श्रेष्ठता शील-सौंदर्य से नहीं, बल्कि दहेज में आंकी जाने लगी। कन्या की कुरूपता और कुसंस्कार दहेज के आवरण में आच्छादित हो गए। खुलेआम वर की बोली- बोली जाने लगी। दहेज में प्रायः राशि से परिवारों का मूल्यांकन होने लगा। इस प्रकार दहेज प्रथा एक सामाजिक समस्या बन गई है।
दहेज प्रथा समाप्त करने के लिए स्वयं युवकों को आगे आना चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे अपने माता-पिता तथा संबंधियों को स्पष्ट शब्दों में कह दें – शादी होगी तो बिना दहेज के होगी। इन युवकों को चाहिए कि वे उस संबंधी का डटकर विरोध करें जो नवविवाहिता को शारीरिक या मानसिक कष्ट देता है। दहेज प्रथा की विकटता को कम करने में नारी का आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र होना भी बहुत हद तक सहायक होता है।
अपने पैरों पर खड़ी युवती को दूसरे लोग अनाप-शनाप नहीं कह सकते। इसके अतिरिक्त चूंकि वह चौबीस घंटे घर पर बंद नहीं रहेगी, सास और ननदों की छींटा – कशी से काफ़ी बची रहेगी। बहू के नाराज़ हो जाने से एक अच्छी खासी आय हाथ से निकल जाने का भय भी उनका मुख बंद किए रखेगा।
दहेज-प्रथा हमारे समाज का कोढ़ है। यह प्रथा साबित करती है कि हमें अपने को सभ्य मनुष्य कहलाने का कोई अधिकार नहीं है। जिस समाज में दुल्हिनों को प्यार की जगह यातनाएं दी जाती हैं, वह समाज निश्चित रूप से सभ्यों का नहीं नितांत असभ्यों का समाज है। अब समय आ गया है कि इस कुरीति को समूल उखाड़ फेंकेंगे।
74. सच्चे मित्र से जीवन में सौंदर्य आता है
संकेत बिंदु – सामाजिक जीवन, मित्र की आवश्यकता, मित्र का चुनाव, सच्चा मित्र।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के अभाव में उसका जीवन – निर्वाह संभव नहीं। सामाजिकों के साथ हमारे संबंध अनेक प्रकार के हैं। कुछ हमारे संबंधी हैं, कुछ परिचित तथा कुछ मित्र होते हैं। मित्रों में भी कुछ विशेष प्रिय होते हैं। जीवन में यदि सच्चा मित्र मिल जाए तो समझना चाहिए कि हमें बहुत बड़ी निधि मिल गई है। सच्चा मित्र हमारा मार्ग प्रशस्त करता है। वह दिन-प्रतिदिन हमें उन्नति की ओर ले जाता है। उसके सद्व्यवहार से हमारे जीवन में निर्मलता का प्रसार होता है।
दुख के दिनों में वह हमारे लिए विशेष सहायक होता है। जब हम निरुत्साहित होते हैं तो वह हम में उत्साह भरता है। वह हमें कुमार्ग से हटा कर सुमार्ग की ओर चलने की प्रेरणा देता है। सुदामा एवं कृष्ण की तथा राम एवं सुग्रीव की आदर्श मित्रता को कौन नहीं जानता। श्रीकृष्ण ने अपने दरिद्र मित्र सुदामा की सहायता कर उसके जीवन को ऐश्वर्यमय बना दिया था। राम ने सुग्रीव की सहायता कर उसे सब प्रकार के संकट से मुक्त कर दिया। सच्चा मित्र कभी एहसान नहीं जतलाता।
वह मित्र की सहायता करना अपना कर्तव्य समझता है। वह अपनी दरिद्रता एवं अपने दुख की परवाह न करता हुआ अपने मित्र के जीवन में अधिक-से-अधिक सौंदर्य लाने का प्रयत्न करता है। सच्चा मित्र जीवन के बेरंग खाके में सुखों के रंग भरकर उसे अत्यंत आकर्षक बना देता है, अतः ठीक ही कहा गया है “सच्चे मित्र से जीवन में सौंदर्य आता है। ”
75. साँच को आँच नहीं
संकेत बिंदु – सत्य मार्ग के लिए दृढ़ संकल्प, सत्यमार्ग कठिन, सत्य के लिए त्याग, महापुरुषों से प्रेरणा।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जब तक वह समाज से संपर्क स्थापित नहीं करता तब तक उसके जीवन की गाड़ी नहीं चल सकती। कई बार मनुष्य अपने जीवन की गाड़ी को सुचारु रूप से चलाने के लिए असत्य का सहारा लेता है। असत्य का मार्ग उसे एक के बाद एक झूठ बोलने के लिए मज़बूर कर देता है और वह ऐसी झूठ की दलदल में फँस जाता है जहाँ उसके जीवन की गाड़ी डगमगा जाती है। इसलिए मनुष्य को सत्य मार्ग पर चलने के लिए दृढ़ रहना चाहिए। सत्य से मनुष्य के जीवन में उन्नति धीरे-धीरे होती है।
इस कछुआ चाल से मनुष्य का धैर्य टूटने लगता है, परंतु उसे अपने विश्वास को बनाए रखते हुए सत्य का मार्ग नहीं छोड़ना चाहिए। यह ठीक है कि सत्य के मार्ग पर चलना कठिन होता है, परंतु कठिनाई किस काम में नहीं आती है ? आग में तप कर ही सोना कुंदन बनता है। इसी प्रकार सत्य के मार्ग पर चलकर मनुष्य सफलता के उस शिखर को प्राप्त कर लेता है जिस पर पहुँचना प्रत्येक मनुष्य के वश में नहीं होता है। इसे वही मनुष्य प्राप्त कर सकता है जिसमें साहस और सच का ताप होता है।
मानव को इस मार्ग पर चलने के लिए बहुत त्याग करने पड़ते हैं। कई बार मनुष्य का सामना झूठ के प्रलोभन से हो जाता है। जिसमें समाज, सगे-संबंधी सभी को अपना स्वार्थ और लाभ दिखाई देता है, परंतु सत्य के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति उसमें फँसता नहीं है। वह सभी लोगों के स्वार्थ और लाभ को अनदेखा कर देता है जिससे सभी उसके दुश्मन बन जाते हैं। उसे स्वयं को सही सिद्ध करने के लिए सभी का त्याग करना पड़ता है।
जब सबके सामने झूठ की सच्चाई आती है तो उन लोगों को अपने किए पर पछतावा होता है क्योंकि झूठ के पैर नहीं होते। वह जिस मार्ग से अंदर आता है उसी मार्ग से सच से डरकर भाग जाता है। जिन महापुरुषों ने सच का दामन पकड़ा वे आज मरकर भी अमर हैं। उनके जीवन दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए हैं जैसे – महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, राजा हरिश्चंद्र इत्यादि। इसलिए मनुष्य को अपने जीवन को सफल बनाने के लिए सत्य का मार्ग अपनाना चाहिए क्योंकि साँच को आँच नहीं है।
76. जंक फूड
संकेत बिंदु – जंक फूड क्या होता है?, युवा पीढ़ी और जंक फूड, जंक फूड खाने के दुष्परिणाम
बर्गर, पिज़्ज़ा, नूडल्स, फ्रेंच फ्राइस, कोल्ड ड्रिंक आदि ये सब अल्पाहार जंक फूड कहलाते हैं। आधुनिक समय में हर वर्ग के लोग जंक फूड के दीवाने दिखाई देते हैं। आज की युवा पीढ़ी फल व हरी सब्ज़ियों का सेवन न कर जंक फूड को ही अपना पर्याप्त आहार समझने लगी है। समय के अभाव, सुविधाजनक व स्वादिष्ट होने के कारण युवा वर्ग जंक फूड की ओर अधिक आकर्षित रहता है। जबकि यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
इस फूड में पौष्टिक तत्वों की कमी होने के कारण युवा वर्ग व बच्चे मोटापा, शुगर, हृदय रोग व उच्च रक्तचाप आदि बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। जंक फूड खाने में तो स्वादिष्ट होता है किंतु इसमें पोषक तत्वों की कमी होती है। तैलीय होने के कारण इसे पचने में काफ़ी समय लगता है। पोषक तत्वों की कमी के कारण पेट तथा अन्य पाचन अंगों में खिंचाव रहता है। कब्ज़ व गैस की समस्या उत्पन्न हो जाती है। जंक फ़ूड का नियमित प्रयोग स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। जीवन को भरपूर जीने व स्वस्थ रहने के लिए जंक फूड से बचना चाहिए।
77. महानगरीय भीड़भाड़ और मेट्रो
संकेत बिंदु – यातायात और भीड़भाड़, प्रदूषण की समस्या, मेट्रो रेल की भूमिका, मेट्रो के लाभ
भारत दुनिया में सड़कों का दूसरा सबसे बड़ा नेटवर्क वाला देश है। वाणिज्यिक वाहनों में वृद्धि के कारण उच्च श्रेणी के सड़क परिवहन नेटवर्क प्रदान करना भारत सरकार के लिए एक चुनौती है। निजी वाहनों की संख्या में वृद्धि हुई है और भारत के लगभग सभी बड़े शहरों में सड़कों पर भीड़ बढ़ गई है। यह सड़कों पर यातायात, वाहन प्रदूषण से निपटने के लिए दिन-प्रतिदिन का दर्द और दर्द का दिन है, जो इन दिनों लोगों के लिए एक बड़ा मानसिक और शारीरिक तनाव का कारण बनता है।
औसतन एक व्यक्ति अपने दिन में लगभग 30 मिनट से लेकर 2 घंटे तक ड्राइविंग करता है। इस समय का अधिकांश समय ट्रैफिक जाम में बीतता है। भारतीय शहरों में अभी भी खराब सार्वजनिक परिवहन है और अधिकांश लोगों को निजी परिवहन पर निर्भर रहना पड़ता है। वाहनों की संख्या में वृद्धि के साथ, इन ऑटोमोबाइल से प्रदूषण में भारी वृद्धि हो रही है। वाहन में ईंधन का दहन विभिन्न गैसों जैसे सल्फर ऑक्साइड कॉर्बन मोनो ऑक्साइड नाइट्रोजन ऑक्साइड सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर आदि का उत्सर्जन करता है।
ये गैसें पर्यावरण तथा स्वास्थ्य पर प्रभाव डालती हैं और लंबे समय तक प्रभाव ग्लोबल वार्मिंग, एसिड वर्षा, पर्यावरण प्रणाली में असंतुलन आदि पैदा करके पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहे हैं। मेट्रो रेल आधुनिक जन परिवहन प्रणाली है जो शायद भविष्य में दिल्ली को इस भीषण समस्या से निपटने में मदद दे सके। मेट्रो रेल इन्हीं परेशानियों से निजात पाने का एक सकारात्मक कदम है। जापान, कोरिया, हांगकांग, सिंगापुर, जर्मनी एवं फ्रांस की तर्ज पर दिल्ली में इसे अपनाया गया। मेट्रो रेल की योजना विभिन्न चरणों से संपन्न होगी।
कई चरण तो पूरे हो भी गए हैं ओर सफलतापूर्वक काम कर रहे हैं। इसकी व्यवस्था अत्याधुनिक तकनीक से संचालित होती है। इसके कोच वातानुकूलित हैं। टिकट प्रणाली भी स्वचालित है। ट्रेन की क्षमता के अनुसार ही टिकट उपलब्ध होता है। स्टेशनों पर एस्केलेटर की सुविधा उपलब्ध है। मेट्रो लाइन को बस रूट के सामानांतर ही बनाया गया है, जिससे यात्रियों को मेट्रो से उतरने के बाद कोई दूसरा साधन प्राप्त करने में कठिनाई न हो।
मेट्रो रेल के दरवाज़े स्वचालित हैं। हर आने वाले स्टेशनों की जानकारी दी जाती रहती है। वातानुकूलित डब्बों में धूल-मिट्टी से बचकर लोग सुरक्षित यात्रा कर रहे हैं। ट्रैफिक जाम का कोई चक्कर नहीं है। दिल्ली के लिए एक नायाब तोहफा है – दिल्ली मेट्रो रेल। दिल्ली की समस्याओं के संदर्भ और दिल्ली मेट्रो रेल की संभावनाओं में कहा जा सकता है कि निःस्संदेह यह यहाँ के जीवन को काफी सहज कर देगी। यहाँ की यातायात प्रणाली के लिए एक वरदान सिद्ध होगी।
78. कारज धीरे होत हैं, काहे होत अधीर
संकेत बिंदु – धैर्य और इच्छा, शांत मन की उपयोगिता, प्रतीक्षा और उचित फल की प्राप्ति
जिसके पास धैर्य है, वह जो इच्छा करता है उसे अवश्य प्राप्त कर लेता है। प्रकृति हमें धीरज धारण करने की सीख देती है। धैर्य जीवन की लक्ष्य- प्राप्ति का द्वार खोलता है। जो लोग ‘जल्दी करो, जल्दी करो’ की रट लगाते हैं, वे वास्तव में ‘अधीर मन, गति कम’ लोकोक्ति को चरितार्थ करते हैं। सफलता और सम्मान उन्हीं को प्राप्त होता है, जो धैर्यपूर्वक काम में लगे रहते हैं। शांत मन से किसी कार्य को करने में निश्चित रूप से कम समय लगता है। बचपन के बाद जवानी धीरे-धीरे आती है। संसार के सभी कार्य धीरे-धीरे संपन्न होते हैं। यदि कोई रोगी डॉक्टर से दवाई लेने के तुरंत पश्चात पूर्णतया स्वस्थ होने की कामना करता है, तो यह उसकी नितांत मूर्खता है। वृक्ष को कितना भी पानी दो, परंतु फल प्राप्ति तो समय पर ही होगी। संसार के सभी महत्त्वपूर्ण विकास कार्य धीरे-धीरे अपने समय पर ही होते हैं। अतः हमें अधीर होने की बजाय धैर्यपूर्वक अपने कार्य में संलग्न होना चाहिए।
79. ग्लोबल वार्मिंग और जन-जीवन
संकेत बिंदु – ग्लोबल वार्मिंग का अभिप्राय, ग्लोबल वार्मिंग के कारण, ग्लोबल वार्मिंग से हानियाँ, बचाव के उपाय
पृथ्वी के सतह पर औसतन तापमान का बढ़ना ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापमान) कहलाता है। ग्लोबल वार्मिंग मुख्य रूप से मानव प्रेरक कारकों के कारण होता है। औद्योगीकरण में ग्रीनहाउस गैसों का अनियंत्रित उत्सर्जन तथा जीवाश्म ईंधन का जलना ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण है। ग्रीनहाउस गैस वायुमंडल में सूर्य की गरमी को वापस जाने से रोकता है। यह एक प्रकार के प्रभाव है जिसे “ग्रीनहाउस गैस प्रभाव” के नाम से जाना जाता है। इसके फलस्वरूप पृथ्वी के सतह पर तापमान बढ़ रहा है।
पृथ्वी के बढ़ते तापमान के फलस्वरूप पर्यावरण प्रभावित होता है अतः इस पर ध्यान देना आवश्यक है। पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के मात्रा में वृद्धि के कारण पृथ्वी के सतह पर निरंतर तापमान का बढ़ना ग्लोबल वार्मिंग है। ग्लोबल वार्मिंग दुनिया के सभी देशों के लिए एक बड़ी समस्या है, जिसका समाधान सकारात्मक शुरूआत के साथ करना चाहिए। पृथ्वी का बढ़ता तापमान विभिन्न खतरों को जन्म देता है, साथ ही इस ग्रह पर जीवन के अस्तित्व के लिए संकट पैदा करता है।
यह क्रमिक और स्थायी रूप से पृथ्वी के जलवायु में परिवर्तन उत्पन्न करता है तथा इससे प्रकृति का संतुलन प्रभावित होता है। पृथ्वी के सतह पर औसतन तापमान का बढ़ना ग्लोबल वार्मिंग कहलाता है। ग्लोबल वार्मिंग मुख्य रूप से मानव प्रेरक कारकों के कारण होता है। औद्योगीकरण में ग्रीनहाउस गैसों का अनियंत्रित उत्सर्जन तथा जीवाश्म ईंधन का जलना ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण है।
ग्रीनहाउस गैस वायुमंडल में सूर्य की गरमी को वापस जाने से रोकता है। यह एक प्रकार का प्रभाव है जिसे “ग्रीनहाउस गैस प्रभाव” के नाम से जाना जाता है। इसके फलस्वरूप पृथ्वी के सतह पर तापमान बढ़ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि के कारण, पृथ्वी से वायुमंडल में जल वाष्पीकरण अधिक होता है जिससे बादल में ग्रीन हाउस गैस का निर्माण होता है जो पुनः ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनता है।
जीवाश्म ईंधन का जलना, उर्वरक का उपयोग, अन्य गैसों में वृद्धि जैसे- ट्रोपोस्फेरिक ओजोन, और नाइट्रस ऑक्साइड भी ग्योबल वार्मिंग के कारक हैं। तकनीकी आधुनिकीकरण, प्रदूषण विस्फोट, औद्योगिक विस्तार की बढ़ते माँग, जंगलों की अंधाधुंध कटाई तथा शहरीकरण ग्लोबल वार्मिंग वृद्धि में प्रमुख रूप से सहायक हैं। हम जंगल की कटाई तथा आधुनिक तकनीक के उपयोग से प्राकृतिक प्रक्रियाओं को विक्षुब्ध कर रहे हैं। जैसे वैश्विक कार्बन चक्र, ओजोन की परत में छिद्र बनना तथा रंगों का पृथ्वी पर आगमन जिससे ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि हो रही है।
जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण तथा विनाशकारी प्रोद्यौगिकियों का कम उपयोग भी एक अच्छी पहल है। ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से जीवन पर खतरा बढ़ता जा रहा है। हमें सदैव के लिए पर्यावरण-विरोधी आदतों का त्याग करना चाहिए। हमें पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर रोक लगाना चाहिए, बिजली का उपयोग कम करना चाहिए, लकड़ी को जलाना बंद करना चाहिए आदि।
80. विद्यालयों की ज़िम्मेदारी बेहतर नागरिक – बोध
संकेत बिंदु – व्यक्तित्व निर्माण में विद्यालय का स्थान, राष्ट्र और समाज के प्रति उत्तरदायित्व, नागरिक अधिकारों – कर्तव्यों का बोध
विद्यालय हमें सिखाते हैं कि घर, परिवार, समाज, संस्थाओं और लोक में रहते हुए कर्तव्यों का निर्वहन कैसे करें। हमारा योगदान क्या और कैसे हो। पाठ्यक्रमों, परीक्षाओं, उपाधियों से परे व्यक्ति को एक श्रेष्ठ राष्ट्रभक्त और समर्पित व्यक्ति बनाने का दायित्व विद्यालय का ही है। लोकमंगल और राष्ट्रकल्याण के भाव को जगाते ऐसे विद्यालय समाज के गौरव होते हैं। समाज उनकी ओर अनेक आकांक्षाओं से निहारता है। उनसे ज्ञान की चमक बिखेरने की अपेक्षा करता है।
बदलते दौर में विद्यालय की भूमिका लगातार चुनौतीपूर्ण बन रही है। सामाजिक रचना के साथ वैश्विक स्तर पर होने वाले परिवर्तनों का असर गहरा है। इन परिवर्तनों के बीच में ही विद्यालय को स्वयं को ढालना होगा, बदलना होगा। आज की शिक्षा निःसंदेह संस्कार – केंद्रित नहीं रही। प्रतियोगिता की दुनिया में सभी मानदंड बिखर गए। शिक्षा चारित्रिक निर्माण का माध्यम थी, महज रोजगार हासिल करने का अटपटा-सा उपकरण बनकर रह गई। विद्यालय व्यक्तित्व को तराशे और संस्कारित करे, यह उम्मीद की जाती है। हमारे सामाजिक शब्दकोश में यह व्यक्तित्व विकास जैसे शब्द नहीं थे।
विद्यालय दायित्वों से भरा हुआ है। विद्यालय अपने दायित्वों का निर्वाह करने में थोड़ी भी चूक करते हैं तो केवल छात्र का भविष्य ही नहीं बल्कि राष्ट्र के भविष्य के सामने भी एक प्रश्न चिह्न खड़ा हो जाता। इसलिए आवश्यक है कि जीवन की सुरक्षा जिस प्रकार करते हैं वैसे ही अपने दायित्वों का निर्वाह भी करें। वर्तमान में प्रत्येक जिम्मेदार नागरिक को जिन दायित्वों का निर्वहन करना है, उनमें सीमा सुरक्षा, आंतरिक, सुरक्षा, देश की धरोहरों की सुरक्षा, स्वच्छता का ध्यान, साक्षरता का प्रचार-प्रसार आदि उल्लेखनीय हैं।
सभी चुनौतियाँ राष्ट्रवासियों की उम्मीदों एवं आशाओं से जुड़ी हैं। एकता, समता के साथ व्यवहार एवं जीवन शैली वर्ग शुचिता ही सही समाधान हो सकता है। हर नागरिक को परिवार व समाज से पहले अपने राष्ट्र के बारे में सोचना चाहिए। किसी भी देश का नाम उसके नागरिकों के अच्छा या बुरा होने से ऊँचा होता है। भारतीय संस्कृति में विद्यालय की महिमा और विराटता व्यापक है।
81. सोशल मीडिया और किशोर
संकेत बिंदु – सोशल मीडिया – तात्पर्य और विभिन्न प्रकार, किशोरों के आकर्षण-बिंदु, वर्तमान समय में सोशल मीडिया का प्रचलन और प्रभाव
सोशल मीडिया आज हमारे जीवन में एक बड़ी भूमिका निभा रहा है। सोशल मीडिया एक बहुत ही सशक्त माध्यम है और इसका प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति पर पड़ता है। सोशल मीडिया के बिना हमारे जीवन की कल्पना करना मुश्किल है, परंतु इसके अत्यधिक उपयोग के वजह से हमें इसकी कीमत भी चुकानी पड़ती है। सोशल मीडिया देश – विदेश में हो रही किसी भी घटनाओं को लोगों तक तुरंत पहुँचाने का काम करता है। सोशल मीडिया का प्रयोग कंप्यूटर, मोबाइल, टैबलेट, लैपटॉप आदि किसी भी साधन का उपयोग करके किया जा सकता है।
व्हाट्सएप्प, फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब आदि सोशल मीडिया के प्रमुख प्लेटफार्म हैं। इसके जरिए किसी भी खबर को पलभर में पूरे देश व विदेश में फैलाया जा सकता है। हम इस सच्चाई को अनदेखा नहीं कर सकते कि सोशल मीडिया आज हमारे जीवन में मौजूद सबसे बड़े घटकों में से एक है। इसके माध्यम से हम किसी भी प्रकार की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं तथा दुनिया के किसी भी कोने में बसे अपने प्रियजनों से बात कर सकते हैं।
सोशल मीडिया एक आकर्षक तत्व है और आज यह हमारे जीवन से जुड़ा हुआ है। युवा हमारे देश का भविष्य हैं, वे देश की अर्थव्यवस्था को बना या बिगाड़ सकते हैं, वहीं सोशल नेटवर्किंग साइटों पर उनका सबसे अधिक सक्रिय रहना, उन पर अत्यधिक प्रभाव डाल रहा है। जो कुछ भी हमें जानना होता है उसे बस हम एक क्लिक करके उसके बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
इन दिनों सोशल नेटवर्किंग साइटों से जुड़े रहना सबको पसंद है। कुछ लोगों का मानना है कि यदि आप डिजिटल रूप में उपस्थित नहीं हैं, तो आपका कोई अस्तित्व नहीं है। सोशल नेटवर्किंग साइटों पर उपस्थिति का बढ़ता दबाव और प्रभावशाली प्रोफ़ाइल, युवाओं को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर रही है। सोशल नेटवर्क के सकारात्मक प्रभाव हैं लेकिन बाकी सभी चीज़ों की तरह इसकी भी कुछ बुराइयाँ हैं। इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव भी हैं- यह परीक्षा में नकल करने में मदद करता है। छात्रों के शैक्षणिक श्रेणी और प्रदर्शन को खराब करता है।
निजता का अभाव उपयोगकर्ता हैकिंग, आइडेंटिटी की चोरी, फिशिंग अपराध इत्यादि जैसे साइबर अपराधों का शिकार हो सकता है। दुनिया भर में लाखों लोग हैं जो सोशल मीडिया का उपयोग प्रतिदिन करते हैं। इसके सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं का एक मिश्रित उल्लेख दिया गया है। इसमें बहुत सारी ऐसी चीजें हैं जो हमें सहायता प्रदान करने में महत्वपूर्ण हैं, तो कुछ ऐसी चीजें भी हैं जो हमें नुकसान पहुँचा सकती है।
82. यात्राएँ – अनुभव के नए क्षितिज
संकेत बिंदु – यात्रा – क्या, क्यों, कैसे?, यात्राओं से अनुभवों की व्यापकता, यात्राओं का सभ्यता के विकास में योगदान
यात्राएँ कई मायनों में महत्वपूर्ण हैं। यात्रा का अनुभव व्यक्ति के जीवन में गति भी लाता है। कहा भी गया है कि ठहराव का अर्थ मृत्यु है। इसलिए मनुष्य की जीवतंता का प्रमाण उसकी गतिशीलता एवं निरंतरता ही हैं जो जीवन में नया उत्साह जगाती है। प्राकृतिक और भौगोलिक विभिन्नताओं तथा विविधताओं से भरे क्षेत्र में भ्रमण करके उनके ऐतिहासिक व दार्शनिक स्थलों को देखने- निहारने तथा वहाँ बसने वाली जनता के रहन-सहन व संस्कृति को करीब से जानने को ही यात्रा कहा जाता है। कई उद्देश्यों को लेकर यात्राएं की जाती हैं।
कुछ यात्राएँ धार्मिक तो कुछ सामाजिक महत्व की होती हैं। यात्रा करने के कई लाभ भी हैं। कुछ लोग यात्रा मनोरंजन के लिए करते हैं तो कुछ स्वास्थ्य लाभ की दृष्टि के लिए करते हैं। जिज्ञासु अथवा ज्ञानपिपासु लोग एक- दूसरे स्थानों की यात्राओं में अधिक रुचि रखते हैं। पहाड़ों, सागरीय तटों तथा प्रकृति के मनोरम स्थलों पर घूमना सभी को आनंदित करता है। पर्यटन के लिहाज़ से हमारा देश समृद्ध हैं। देश दुनिया से बड़ी संख्या में लोग यहाँ आते हैं तथा देश – करते हैं।
प्रकृति के विभिन्न और विविध स्वरूपों को जानने का एक तरीका यात्रा है। कहीं हरी-भरी वादियाँ तो कही बर्फ से ढके पर्वतों के मनोरम दृश्य का नज़ारा तथा पहाड़ों से मिले रोमांच से उनके साहस में भी वृद्धि होती है। रंग-बिरंगी वेश-भूषा, रहन-सहन, रीति-रिवाजों, उत्सव-त्योहारों, भाषा – बोलियों, सभ्यताओं, संस्कृतियों तथा जानकारियों का आदान-प्रदान करने में पर्यटन का महत्वपूर्ण योगदान है।
यात्रा करने से हमें कई प्रकार के अनुभव प्राप्त होते हैं। साथ ही ज्ञान में वृद्धि भी होती हैं। यात्रा के दौरान विभिन्न देशों की सभ्यता तथा संस्कृति के लोगों का मिलन होता है। लोगों के रहन-सहन तथा भाषा संवाद से बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है। वैसे भी इनसान हमेशा कुछ-न-कुछ जानने के लिए उत्सुक रहता है। कई बार व्यक्ति विभिन्न लोगों तथा भिन्न-भिन्न स्थानों की यात्रा करके ही अनेक सद्गुणों को सीखता है। मानवता का असली स्वरूप उन्हें इस तरह के यात्राओं में ही महसूस करने का अवसर मिलता है।
यात्रा समय के सदुपयोग का सर्वोतम तरीका है। जब तक कोई व्यक्ति अपनी नीरस शारीरिक एवं मानसिक दिनचर्या को तोड़ता नहीं है, उसे संतुष्टि नहीं मिल पाती है। यात्रा से हम दिनचर्या की इस नीरसता को भंग कर सकते हैं। एक नई जगह पर व्यक्ति कुछ जानने के लिए उत्सुक एवं ज्ञान अर्जित करने के लिए व्यस्त हो जाता है। रोमांचित एवं आश्चर्यचकित करने वाले स्थल उसके उत्साह को जागृत रखते हैं। यात्रा के समय हम भिन्न-भिन्न लोगों से मिलते हैं। मनोविज्ञान में रुचि रखने वाले व्यक्तियों को दूसरों को समझने का अनुभव एवं दृष्टि प्राप्त होती है। मनुष्य के स्वभाव को समझ पाना सर्वोतम शिक्षा है। यात्रा का शौक रखना बहुत लाभदायक है इससे हम व्यस्त रहते हैं तथा शिक्षा प्राप्त होती है। हमारे शरीर एवं मन को नई ऊर्जा प्रदान होती है।
83. जब हम चार रनों से पिछड़ रहे थे
संकेत बिंदु – खिलाड़ियों की मनोदशा, दर्शकों की मनोदशा, प्रयास और परिणाम
जब हम चार रनों से पिछड़ रहे थे- हमारे विद्यालय की क्रिकेट टीम का डी०ए०वी० पंचकुला विद्यालय की टीम से विक्रम स्टेडियम में मैच चल रहा था। अंतिम ओवर था। दोनों टीमें अच्छा प्रदर्शन कर रही थीं। मैच रोमांचक मोड़ पर पहुँच चुका था। जीतने के लिए केवल छह रनों की आवश्यकता थी। दोनों टीमों के कप्तान जीत प्राप्त करने के लिए अपनी-अपनी टीम को प्रोत्साहित कर रहे थे। तभी डी०ए०वी० विद्यालय की टीम ने दो रन और बना लिए। हम चार रनों से पिछड़ रहे थे।
अंतिम दो गेंदों में हार-जीत का फैसला निश्चित था। मेरे दिमाग में अपने कोच की बातें गूंजने लगीं – खेलो, जी भरकर खेलो। यह समय फिर नहीं आएगा। दर्शकों की नज़रें भी हमारे खेल पर टिकी हुई थीं। तभी अचानक सामने से आती गेंद जैसे ही मेरे बल्ले से टकराई, उछल कर दर्शकों के मध्य जा गिरी। सारा स्टेडियम दर्शकों के शोर और तालियों से गूँज उठा। अंतिम गेंद के साथ ही हम मैच जीत चुके थे। मेरे आत्मविश्वास ने हमें विजयी बना दिया।
84. देश पर पड़ता विदेशी प्रभाव
संकेत बिंदु – हमारा देश और संस्कृति, विदेशी प्रभाव, परिणाम और सुझाव
देश पर पड़ता विदेशी प्रभाव – हमारा भारत देश अपनी सांस्कृतिक विशेषताओं के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन व समृद्ध संस्कृति है। अनेकता में एकता ही इसकी मूल पहचान है। अध्यात्म, सहिष्णुता, अहिंसा, धर्मनिरपेक्षता, परोपकार, मानव-सेवा आदि भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ हैं। किंतु आज की युवा पीढ़ी पर विदेशी संस्कृति का प्रभाव अधिक है। पाश्चात्य सभ्यता की चमक-दमक व स्वच्छंद आचरण युवा पीढ़ी को अपनी ओर अधिक आकर्षित करता है।
आज की पीढ़ी अपने संस्कारों, रीति-रिवाजों व नैतिक मूल्यों को भुलाकर विदेशी रंग में रँगती जा रही है जिस कारण भारतीय युवाओं का चारित्रिक पतन होता दिखाई दे रहा है। जबकि विदेशी लोगों का रुझान भारतीय संस्कृति की ओर देखा जा सकता है। कई विदेशी लोग भारतीय संस्कृति से इतने अधिक प्रभावित हैं कि वे अपने देश को छोड़कर सदा के लिए यहीं बस जाते हैं। विदेशी प्रभाव के कारण ही हमारे देश में संयुक्त परिवार का स्थान एकल परिवार ने ले लिया है। अपनी संस्कृति को बनाए रखने के लिए हमें अपने बच्चों तथा युवा पीढ़ी को कहानियों, चित्रों व कलाकृतियों के माध्यम से इसकी विशेषताओं से समय-समय पर अवगत करवाना होगा तथा भारतीय संस्कृति की उपयोगिता से परिचित कराना होगा।
85. मित्रता
संकेत बिंदु – आवश्यकता, कौन हो सकता है मित्र, लाभ
मित्रता – मित्रता और सच्चा मित्र जीवन में किसी वरदान से कम नहीं है। जब किसी के मन में अपनेपन और सौहार्द्र का भाव हो तो उसे मित्रता कहते हैं। मित्रता के अभाव में जीवन सूना और दुखमय हो जाता है। मित्र का होना जीवन में खुशी, उमंग और आत्मविश्वास का संचार करता है। हर वर्ग के मनुष्य के लिए मित्रता आवश्यक है। विद्यालय जाकर सबसे पहले बच्चा भी मित्र बनाने का प्रयास करता है। सच्चे मित्र पर आँखें मूँदकर विश्वास किया जा सकता है। वह एक भाई और एक शिक्षक के समान होता है।
जहाँ वह बुरे समय में सहारा बनकर सही राह दिखाता है, वहीं बुराई से सावधान भी करता है। वह मानो एक वैद्य के समान हमारी परेशानियों का इलाज भी करता है। कुछ लोग अल्पकालिक परिचय को मित्रता का नाम दे डालते हैं। उनके धोखा खाने की संभावना अधिक होती है। वहीं कुछ लालची और स्वार्थी लोगों से मित्रता करना भी हानिकारक हो सकता है। सच्ची मित्रता प्रत्येक दृष्टि से आदर्शपरक होती है। चरित्रवान आदर्श व्यक्ति से मित्रता करना सौभाग्य की बात होती है।
सदाचारी और बुद्धिमान,
मित्र हों ऐसे विद्वान।
86. लड़का-लड़की एक समान
संकेत बिंदु – ईश्वर की देन, भेदभाव के कारण, दृष्टिकोण कैसे बदलें
मनुष्य को एक सामाजिक प्राणी कहा जाता है। वह जिस समाज में कार्य करता है। उस समाज में दो जाति के मनुष्य रहते हैं- लड़का और लड़की। पुराने ज़माने में लड़की को शिक्षा प्राप्त करने के लिए भी नहीं भेजते थे। देश की आज़ादी के बाद लड़कियाँ हर क्षेत्र में कार्य करने लगी हैं आज के युग में सभी लड़कियाँ लड़कों के बराबरी में चलने लगी हैं। लड़कियाँ घर, समाज और देश का नाम रोशन कर रही हैं। कई भारतीय महिलाओं ने अपने देश का नाम ऊँचा किया है।
लड़कियों को किसी भी रूप में लड़कों से कमज़ोर नहीं समझा जा सकता, क्योंकि लड़कियों के बिना मनुष्य जीवन आगे नहीं बढ़ सकता। अगर परिवार चलाने के लिए लड़का ज़रूरी है, तो परिवार को आगे बढ़ाने के लिए लड़की भी ज़रूरी है। लड़कियों को उनकी सोच और उनके सपने सामने रखने का अधिकार मिलना चाहिए। उन्हें उनकी जिंदगी उनके हिसाब से जीने देना चाहिए। लड़कियों को लड़के जितनी समानता देने की शुरुआत घर से ही करनी चाहिए। उन्हें घर के हर निर्णय में भागीदारी दी जानी चाहिए।
उन्हें लोगों की संकुचित सोच से लड़ने के लिए तैयार करना चाहिए और उन्हें ऐसे पथ पर अग्रसर करना चाहिए कि वो लोगों की सोच को बदल सकें और लड़का-लड़की का भेदभाव खत्म कर सके। आज के इस युग में लड़का और लड़की में कोई अंतर नहीं है। लड़कियों की कर्मशीलता ही उनके सक्षम होने का सबूत है। आज कल सरकार की तरफ से लड़कियों के लिए काफी नई और सुविधाजनक योजनाओं का एलान किया जा रहा है।
लड़कियों के जन्म से लेकर पढ़ाई, नौकरी, बीमा, कारोबार, सरकारी सुविध आदि क्षेत्र में सरकार की तरफ से काफी मदद भी प्रदान की जा रही है, ताकि लड़कियाँ समाज में कभी किसी से पीछे न छूट जाएँ। भारत सरकार ने लड़कियों को लड़कों के बराबर कार्य करने का मौका दिया है। सरकार ने लड़कियों को हर क्षेत्र में सहायता करके उनका हौंसला बढ़ाया है। लड़कियों को शिक्षा के क्षेत्र से लेकर हर क्षेत्र में सुविधाएँ उपलब्ध कराई हैं। गरीब घर की लड़कियों के लिए मुफ्त शिक्षा और किताबों का प्रबंध किया है। आज के आधुनिक युग में लड़का-लड़की में कोई अंतर नहीं है। यदि आज भी कोई ऐसी धारणा रखता है कि लड़की कुछ नहीं कर सकती, तो वह बिलकुल गलत सोच रहा है।