JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

JAC Class 10 Hindi बालगोबिन भगत Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे?
उत्तर :
खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत वेशभूषा से साधु नहीं लगते थे, परंतु उनका व्यवहार साधु जैसा था। वे कबीर के भक्त थे और उनके भजन ही गाते थे। उनके बताए मार्ग पर चलते थे। वे कभी झूठ नहीं बोलते थे। वे कभी किसी से निरर्थक बातों के लिए नहीं लड़ते थे, परंतु गलत बातों का विरोध करने में संकोच भी नहीं करते थे। वे कभी किसी की चीज़ को नहीं छूते थे और न ही व्यवहार में लाते थे। उनकी सब चीजें साहब (कबीर) की थी। उनके खेत में जो पैदावार होती थी, उसे लेकर वे कबीर के मठ पर जाते थे। वहाँ से उन्हें जो प्रसाद के रूप में मिलता था, उसी में अपने परिवार का निर्वाह करते थे। बालगोबिन भगत की : इन्हीं चारित्रिक विशेषताओं के कारण लेखक उन्हें साधु मानता था।

प्रश्न 2.
भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी?
उत्तर :
भगत के परिवार में पुत्र और पुत्रवधू के अतिरिक्त कोई नहीं था। पुत्र की मृत्यु के बाद उन्होंने पुत्रवधू को उसके घर भेजने का निर्णय लिया, परंतु पुत्रवधू उन्हें बढ़ती उम्र में अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी। वह उनकी सेवा करना अपना फर्ज़ समझती थी। उसके अनुसार बीमार पड़ने पर उन्हें पानी देने वाला और उनके लिए भोजन बनाने वाला कोई नहीं था। इसलिए भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेला छोड़ना नहीं चाहती थी।

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प्रश्न 3.
भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त की?
उत्तर :
भगत का एक बेटा था, जो हमेशा बीमार रहता था। एक दिन वह मर गया। भगत ने अपने बेटे के मरने पर शोक नहीं मनाया, क्योंकि उनके अनुसार बेटे की आत्मा परमात्मा के पास चली गई है। उनका कहना था कि आज एक विरहिनी अपने प्रेमी से मिलने गई है और उसके मिलन की खुशी में आनंद मनाना चाहिए, न कि अफ़सोस। उन्होंने अपने बेटे के मृत शरीर को फलों से सजाया और उसके पास एक दीपक जला दिया। फिर अपने बेटे के मृत शरीर के पास आसन पर बैठकर मिलन के गीत गाने लगे। उन्होंने अपनी बहू को भी रोने के लिए मनाकर दिया और उसे आत्मा के परमात्मा में मिलने की खुशी में आनंद मनाने को कहा।

प्रश्न 4.
भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
बालगोबिन भगत मँझोले कद के गोरे-चिट्टे व्यक्ति थे, जिनकी आयु साठ वर्ष से अधिक थी। उनके बाल सफ़ेद थे। वे दाढ़ी तो नहीं रखते थे, पर उनके चेहरे पर सफ़ेद बाल जगमगाते रहते थे। वे कमर में एक लँगोटी और सिर पर कबीरपंथियों जैसी कनफटी टोपी पहनते थे। जब सरदियाँ आती, तो ऊपर से एक काली कमली ओढ़ लेते थे। उनके माथे पर सदा रामानंदी चंदन चमकता था, जो नाक के एक छोर से ही औरतों के टीके की तरह शुरू होता था। वे अपने गले में तुलसी की जड़ों की एक बेडौल माला बाँधे रहते थे।

उनमें साधुओं वाली सारी बातें थीं। वे कबीर को ‘साहब’ मानते थे; उन्हीं के गीत गाते रहते थे और उन्हीं के आदेशों पर चलते थे। वे कभी झठ नहीं बोलते थे और सदा खरा व्यवहार करते थे। हर बात साफ़-साफ़ करते थे; किसी से व्यर्थ झगड़ा नहीं करते थे। किसी की चीज़ को कभी छूते तक नहीं थे। वे दूसरों के खेत में शौच तक के लिए नहीं बैठते थे। उनके खेत में जो कुछ पैदा होता, उसे सिर पर रखकर चार कोस दूर कबीरपंथी मठ में ले जाते थे और प्रसाद रूप में जो कुछ मिलता, वहीं वापस ले आते थे।

प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी?
उत्तर :
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के आश्चर्य का कारण थी क्योंकि वे अपने नियमों का दृढ़ता से पालन करते थे। वे सुबह मुँह अँधेरे उठते और गाँव से दो मील दूर नदी पर स्नान के लिए जाते। वापसी में पोखर के ऊँचे स्थान पर बैठकर खजड़ी बजाते हुए गीत गाते। यह नियम न सरदी देखता और न ही गरमी। वे बिना पूछे न ही किसी की वस्तु छूते और न ही व्यवहार में लाते थे। कई बार तो वे अपने नियमों पर इतने दृढ़ हो जाते कि शौच के लिए भी दूसरों के खेतों का प्रयोग नहीं करते थे। नियमों पर उनकी दृढ़ता ही लोगों के आश्चर्य का कारण बनती थी।

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प्रश्न 6.
पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
बालगोबिन भगत के गायन को न तो माघ की सरदी और न ही जेठ की गरमी प्रभावित करती थी। गरमी में उमस से भरी शामें भी उनके गायन से शीतल प्रतीत होती थीं। गरमियों में शाम के समय वे अपने घर के आँगन में कुछ संगीत प्रेमियों के साथ आसन लगाकर बैठ जाते थे। सबके पास खजड़ियाँ और करताल होते थे। बालगोबिन भगत एक पद गाते और उनके पीछे सभी लोग उसी पद को दोहराते हुए बारबार गाते। धीरे-धीरे गीत का स्वर से ऊँचा होने लगता था। स्वर की लय में एक निश्चित ताल और गति होती थी। उनके गीत मन से होते हुए तन पर हावी हो जाते थे। सुनने वाले और साथ गाने वाले अपनी सुध-बुध खो बैठते थे। बालगोबिन भगत उठकर नाचने लगते और सभी लोग उनका साथ देते थे।

प्रश्न 7.
कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
बालगोबिन भगत समाज में प्रचलित मान्यताओं को नहीं मानते थे। वे जाति-पाति में विश्वास नहीं रखते थे। सब लोगों को एक समझते थे। वे भगवान के निराकार रूप को मानते थे। उनके विचार में मृत्यु आनंद मनाने का अवसर था। जब उनके इकलौते बेटे की मृत्यु होती है, तो वे अपने बेटे के मृत शरीर को फूलों से सजाते हैं और गीत गाते हैं। उनके अनुसार आत्मा-रूपी प्रेमिका परमात्मा-रूपी प्रेमी से मिल गई है और उसके मिलन पर आनंद मनाना चाहिए अफ़सोस नहीं। भगत ने अपने बेटे का क्रिया-कर्म अपनी पुत्रवधू से करवाया।

उनकी पुत्रवधू ने ही अपने पति की चिता को अग्नि दी थी। उनकी जाति में विधवा के पुनर्विवाह को अनुचित नहीं मानते थे, परंतु उनकी पुत्रवधू इसके लिए तैयार नहीं थी। वह उन्हीं के पास रहकर उनकी सेवा करना चाहती थी। लेकिन उन्होंने उसे यौवन की ऊँच-नीच का ज्ञान करवाया और पुनर्विवाह के लिए तैयार किया। इससे हम कह सकते हैं कि बालगोबिन पुरानी सामाजिक मान्यताओं के समर्थक नहीं थे। वे अपने स्वार्थ की अपेक्षा दूसरों के हित का ध्यान रखते थे।

प्रश्न 8.
धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं? उस माहौल का शब्द-चित्र प्रस्तुत करें।
अथवा
बालगोबिन भगत के गीतों को खेतों में काम करते हुए और आते-जाते नर-नारियों पर क्या प्रभाव पड़ता था?
उत्तर :
आषाढ़ की फुहार पड़ते ही सारा गाँव खेतों में दिखाई देने लगता। वह मौसम धान की रोपाई का होता है। खेतों में कहीं हल चल रहे हैं और कहीं धान के पौधों की रोपाई हो रही है। घर की औरतें आदमियों के लिए भोजन लेकर खेतों की मुँडेर पर बैठी हैं। बच्चे पास में खेल रहे हैं। खेतों में ठंडी-ठंडी हवा चलती है। उसी समय सबके कानों में मधुर स्वर लहरियाँ पड़ने लगती हैं। यह स्वर बालगोबिन भगत का है। वे भी अपने खेत में धान की रोपाई कर रहे हैं।

उनका सारा शरीर खेत की गीली मिट्टी से लथ-पथ है। जिस प्रकार उनकी उँगलियाँ धान के पौधों को एक-एक करके पंक्तिबद्ध रूप दे रही थीं, उसी प्रकार उनका कंठ उनकी संगीत शब्दावली को स्वरों के ताल से ऊपरनीचे कर रहा था। ऐसे लग रहा था, जैसे कि संगीत के कुछ स्वर ऊपर स्वर्ग की ओर जा रहे हैं और कुछ स्वर धरती पर खेतों में काम करने वाले लोगों के कानों में जा रहे हैं। उनका संगीत खेतों में काम करने वाले लोगों के तन में लय पैदा कर देता है, जिससे वहाँ का सारा वातावरण संगीतमय हो जाता है।

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रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 9.
पाठ के आधार पर बताएं कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई है?
उत्तर :
लेखक के अनुसार बालगोबिन भगत कबीर के भगत थे। वे कबीर को ‘साहब’ कहते थे। वे कबीर के बताए नियमों का दृढ़ता से पालन करते थे। उनके अनुसार उनकी सब चीजें ‘साहब’ की देन हैं। उनके खेत में जो भी पैदावार होती थी, उसे सिर पर लादकर ‘साहब’ के दरबार में पहुँचा देते थे। वे सबकुछ भेंट स्वरूप दरबार में रख देते थे। वापसी में जो कुछ भी ‘प्रसाद’ के रूप में मिलता, उससे अपना निर्वाह करते थे। बालगोबिन भगत कबीर की तरह ही भगवान के निराकार रूप को मानते थे।

वे मृत्यु को दुख का नहीं बल्कि आनंद मनाने का अवसर मानते थे। कबीर ने आत्मा को परमात्मा की प्रेमिका बताया है, जो मृत्यु उपरांत अपने प्रियतम से जा मिलती है। बालगोबिन भगत ने कबीर की वाणी का पालन करते हुए अपने पुत्र के मृत शरीर को फूलों से सजाया और पास में दीपक जलाया। वे स्वयं भी पुत्र के मृत शरीर के पास बैठकर पिया मिलन के गीत गाने लगे। उन्होंने अपनी पुत्रवधू को भी रोने के लिए मना कर दिया था। इससे पता चलता है कि बालगोबिन भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा थी।

प्रश्न 10.
आपकी दृष्टि में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के क्या कारण रहे होंगे?
उत्तर
मेरे विचार में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के कई कारण रहे होंगे, जैसे कि भगत समाज में प्रचलित रूढ़िवादी सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। वे भगवान के निराकार रूप को मानते थे, जिसमें मनुष्य के अंत समय में आत्मा से परमात्मा का मिलन होता है। वे गृहस्थ होते हुए भी व्यवहार से साधु थे। वे सब चीज़ों की प्राप्ति में भगवान को सहायक मानते थे। जिन बातों को भगत मानते थे, वही बातें कबीर ने अपनी वाणी में कही थीं। इसलिए बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा थी।

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प्रश्न 11.
गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों भर जाता है?
उत्तर :
गाँव के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश में आषाढ़ चढ़ते ही विशेष उल्लास दिखाई देता है। आषाढ़ की ठंडी पुरवाई जेठ की तपती गरमी से छुटकारा दिलाती है। आषाढ़ में बारिश की रिमझिम शुरू हो जाती है। उस समय खेतों में धान की फसल की रोपाई आरंभ हो जाती है। धान की रोपाई करते समय किसान और उसका परिवार बहुत प्रसन्न दिखाई देते हैं क्योंकि यह फसल उनके सपनों को पूरा करती है। गाँव के सभी लोग खेतों में दिखाई देते हैं। चारों तरफ़ बैलों के गले की घंटियों की आवाजें, मिट्टी और पानी में छप-छप करते बच्चे तथा खेतों की मुँडेर पर आदमियों के लिए खाना लिए बैठी औरतें-यह दृश्य मन में उल्लास भर देता है। आषाढ़ में चारों ओर मेले जैसा वातावरण होता है।

प्रश्न 12.
“ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे।” क्या ‘साधु’ की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए? आप किन आधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति ‘साधु’ है?
उत्तर :
‘साधु’ की पहचान उसके पहनावे से नहीं बल्कि उसके व्यवहार से करनी चाहिए। भगवे कपड़े पहनने वाला हर व्यक्ति साधु नहीं होता अपितु परिवार में रहने वाला व्यक्ति भी साधु हो सकता है। साधु की पहचान निम्न आधारों पर की जा सकती है –
1. दृढ़-निश्चयी-साधु का स्वभाव दृढ़-निश्चयी होना चाहिए। उसे अपनी कथनी और करनी में अंतर नहीं करना चाहिए। अपने लिए व उसने जो नियम बनाए उसका दृढ़ता से पालन करना चाहिए; तभी दूसरे व्यक्ति भी उन नियमों का पालन करेंगे।
2. सीमित आवश्यकताएँ-साधु व्यक्ति की आवश्यकताएँ सीमित होनी चाहिए। उसे मायाजाल में नहीं फंसना चाहिए।
3. सरल स्वभाव-साधु व्यक्ति का स्वभाव सरल होना चाहिए। उसके मन में किसी के प्रति भेदभाव नहीं होना चाहिए।
4. मधुर वाणी-साधु व्यक्ति की वाणी मधुर होनी चाहिए, ताकि व्यक्ति उसकी वाणी सुनकर प्रभावित हुए बिना न रह सकें।
5. सामाजिक कुरीतियों से दूर-साधु व्यक्ति को समाज में फैली कुरीतियों से दूर रहना चाहिए। उसे संपर्क में आने वाले लोगों को भी उन कुरीतियों के अवगुणों से अवगत करवाना चाहिए। जिस व्यक्ति में उपरोक्त विशेषताएँ हों, वह गृहस्थ होते हुए भी साधु है। लेकिन भगवे कपड़े पहनकर पूजा-पाठ का दिखावा करने वाला व्यक्ति इन गुणों के अभाव में साधु होते हुए भी साधु नहीं है।

प्रश्न 13.
मोह और प्रेम में अंतर होता है। भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर आप इस कथन को सच सिद्ध करेंगे?
उत्तर :
मोह और प्रेम में अंतर होता है। भगत का एक ही बेटा था और वह भी दिमाग से सुस्त था अर्थात उसका दिमाग कमजोर था। भगत ने उसकी परवरिश बहुत प्यार से की थी। भगत के अनुसार कम दिमाग वालों को अधिक प्यार और देखभाल की आवश्यकता होती है। उन्होंने उसकी शादी की। बेटे की बहू भी सुशील और सुघड़ थी। एक दिन बेटा मर गया।

भगत ने बेटे के मोह में पड़कर शोक नहीं मनाया बल्कि उन्होंने उसकी मृत्यु को आनंद मनाने का अवसर बताया। वे शरीर के मोह में नहीं थे। वे मनुष्य की आत्मा से प्रेम करते थे। उनके अनुसार मृत्यु के बाद प्रेमिका रूपी आत्मा शरीर से निकलकर अपने प्रेमी रूपी परमात्मा से मिल जाती है। इसलिए उन्होंने बेटे मृत शरीर का श्रृंगार किया और मिलन के गीत गाए। भगत ने मृत्यु के सच को जान लिया था, इसलिए वे अपने बेटे के मोह में नहीं पड़े। उन्होंने अपनी पुत्रवधू को भी शोक मनाने से मना कर दिया था।

भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 14.
इस पाठ में आए कोई दस क्रियाविशेषण छाँटकर लिखिए और उनके भेद भी बताइए।
उत्तर :
1. हमारे समाज के सबसे नीचे स्तर का यह तेली। – स्थानवाचक क्रिया-विशेषण।
2. कपड़े बिलकुल कम पहनते थे। – परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण।
3. थोड़ी ही देर पहले मूसलाधार वर्षा खत्म हुई है। – परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण।
4. उनका यह गाना अँधेरे में अकस्मात कौंध उठने वाली बिजली की तरह किसे न चौंका देता? – रीतिवाचक क्रिया-विशेषण।
5. इन दिनों वह सवेरे ही उठते। – कालवाचक क्रिया-विशेषण।
6. धीरे-धीरे स्वर ऊँचा होने लगा। – रीतिवाचक क्रिया-विशेषण।
7. उसके सामने ज़मीन पर ही आसन जमाए गीत गाए चले जा रहे हैं। – स्थानवाचक क्रिया-विशेषण।
8. वह हर वर्ष गंगा-स्नान करने जाते। – कालवाचक क्रिया-विशेषण।
9. थोड़ा बुखार आने लगा। – परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण।
10. उस दिन भी संध्या में गीत गाए। – कालवाचक क्रिया-विशेषण।

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पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
पाठ में ऋतुओं के बहुत ही सुंदर शब्द-चित्र उकेरे गए हैं। बदलते हुए मौसम को दर्शाते हुए चित्र/फोटो का संग्रह कर एक अलबम
तैयार करें।
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
पाठ में आषाढ़, भादों, माघ आदि में विक्रम संवत कैलेंडर के मासों के नाम आए हैं। यह कैलेंडर किस माह से आरंभ होता है? महीनों की सूची तैयार कीजिए।
उत्तर :
विक्रम संवत कैलेंडर के महीने इस क्रम से होते हैं –
चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रवण, भादों, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन।

प्रश्न 3.
कार्तिक के आते ही भगत ‘प्रभाती’ गाया करते थे। प्रभाती प्रातःकाल गाए जाने वाले गीतों को कहते हैं। प्रभाती गायन का संकलन कीजिए और उसकी संगीतमय प्रस्तुति कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

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प्रश्न 4.
इस पाठ में जो ग्राम्य संस्कृति की झलक मिलती है वह आपके आसपास के वातावरण से कैसे भिन्न है?
उत्तर :
मैं देश के एक महानगर के अति व्यस्त और आधुनिक क्षेत्र में रहता/रहती हूँ। यहाँ का वातावरण किसी भी ग्राम्य क्षेत्र से बिलकुल भिन्न है। यहाँ चौड़ी-पक्की सड़कें हैं, जो चौबीस घंटे वाहनों से भरी रहती हैं। यहाँ आधी रात को भी सड़कों से शोर दूर नहीं होता। दिन के समय यहाँ बहुत भीड़ होती है। यहाँ सजे-सँवरे लोग दिखावे से भरा जीवन जीने की कोशिश में लगे रहते हैं।

सब तरफ़ बड़ीबड़ी दुकानें हैं; शोरूम हैं; गगनचुंबी इमारते हैं; बड़े-बड़े मल्टीप्लैक्स हैं; लंबी-लंबी गाड़ियों की भरमार है। यहाँ प्रकृति की सुंदरता नहीं है। कहीं-कहीं गमलों में कुछ पौधे अवश्य दिखाई दे जाते हैं, लेकिन पेड़ों का अभाव है। मेरे नगर से कुछ दूरी पर एक नदी है, पर वह बुरी तरह से प्रदूषित है। नगर के कारखानों का कचरा उसी में गिरता है। वास्तव में गाँव के साफ़-सुथरे वातावरण से मेरे नगर की कोई तुलना नहीं है।

यह भी जानें प्रभातियाँ मुख्य रूप से बच्चों को जगाने के लिए गाई जाती हैं। प्रभाती में सूर्योदय से कुछ समय पूर्व से लेकर कुछ समय बाद तक का वर्णन होता है। प्रभातियों का भावक्षेत्र व्यापक और यथार्थ के अधिक निकट होता है। प्रभातियों या जागरण गीतों में केवल सुकोमल भावनाएँ ही नहीं वरन् वीरता, साहस और उत्साह की बातें भी कही जाती हैं। कुछ कवियों ने प्रभातियों में राष्ट्रीय चेतना और विकास की भावना पिरोने का प्रयास किया है।

श्री शंभूदयाल सक्सेना द्वारा रचित एक प्रभाती –

पलकें, खोलो, रैन सिरानी।
बाबा चले खेत को हल ले सखियाँ भरती पानी॥
बहुएँ घर-घर छाछ बिलोती गातीं गीत मथानी।
चरखे के संग गुन-गुन करती सूत कातती नानी॥
मंगल गाती चील चिरैया आस्मान फहरानी।
रोम-रोम में रमी लाडली जीवन ज्योत सुहानी।
आलस छोड़ो उठो न सुखदे! मैं तब मोल बिकानी॥
पलकें खोलो हे कल्याणी॥

JAC Class 10 Hindi बालगोबिन भगत Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘बालगोबिन भगत’ पाठ के माध्यम से लेखक क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर :
‘बालगोबिन भगत’ पाठ के लेखक ‘रामवृक्ष बेनीपुरी’ हैं। लेखक बचपन से ही बालगोबिन भगत को आदरणीय व्यक्ति मानता था। लेखक ब्राह्मण था और बालगोबिन भगत एक तेली थे। उस समय के समाज में तेली को उचित सम्मान प्राप्त नहीं था। फिर भी ‘बालगोबिन भगत’ सबकी आस्था के केंद्र थे। लेखक ने इस पाठ के माध्यम से वास्तविक साधुत्व का परिचय दिया है। उसके अनुसार गृहस्थी में रहते हुए भी व्यक्ति साधु हो सकता है। साधु की पहचान उसका पहनावा नहीं अपितु उसका व्यवहार है।

अपने नियमों पर दृढ़ रहना, निजी आवश्यकताओं को सीमित करना, सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए प्रयत्नशील होना तथा मोह-माया के जाल से दूर रहने वाला व्यक्ति ही साधु हो सकता है। बालगोबिन भगत भगवान के निराकार रूप को मानते थे। उनके अनुसार उनका जो कुछ भी है, वह मालिक की देन है; उस पर उसी का अधिकार है। इसलिए वे अपने खेतों की पैदावार कबीर मठ में पहुँचा देते थे।

बाद में प्रसाद के रूप में जो मिलता, उसी से अपना निर्वाह करते थे। उन्होंने अपने पुत्र की मृत्यु पर अपनी पुत्रवधू से सभी क्रिया-कर्म करवाए। वे समाज में प्रचलित मान्यताओं को नहीं मानते थे। उन्होंने पुत्रवधू को पुनर्विवाह के लिए उसके घर भेज दिया था। वे अपने निजी स्वार्थ के लिए कुछ नहीं करते थे। उनके सभी कार्य परहित में होते थे। वे अंत तक अपने बनाए नियमों में विश्वास करते हुए जीते रहे।

उन्होंने आत्मा के वास्तविक रूप को पहचान लिया था। वे कहते थे कि अंत में आत्मा का परमात्मा से मिलन हो जाता है, इसलिए उसका मोह व्यर्थ है। व्यक्ति को अपनी मुक्ति के लिए परमात्मा से प्रेम करना चाहिए। इस पाठ के माध्यम से लेखक लोगों को पाखंडी साधुओं से सचेत करना चाहता है। पाठ हमें बताता है कि वास्तविक साधु वही होते हैं, जो समाज के सामने उदाहरण प्रस्तुत करें और समाज को पुरानी सड़ी-गली परंपराओं से मुक्त करवाएँ।

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प्रश्न 2.
‘बालगोबिन भगत’ पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत का चरित्र चित्रण कीजिए।
उत्तर :
बालगोबिन भगत लेखक ‘रामवृक्ष बेनीपुरी’ की इस कहानी का मुख्य पात्र है। बालगोबिन भगत का चरित्र-चित्रण कुछ प्रमुख बिंदुओं के आधार पर किया गया है –
परिचय – बालगोबिन भगत गृहस्थ होते हुए भी स्वभाव से साधु थे। उनकी आयु साठ वर्ष से ऊपर थी। उनकी पत्नी नहीं थी। परिवार में एक बीमार बेटा तथा उसकी पत्नी थी।

व्यक्तित्व – बालगोबिन भगत मँझोले कद के व्यक्ति थे। उनका रंग गोरा था। बाल सफ़ेद थे। वे लंबी दाढ़ी नहीं रखते थे। सफ़ेद बालों के कारण उनके चेहरे पर बहुत तेज़ था।

वेशभूषा – बालगोबिन भगत बहुत कम कपड़े पहनते थे। उनके अनुसार शरीर पर उतने ही कपड़े पहनने चाहिए, जितने शरीर पर आवश्यक हों। वे कमर पर एक लँगोटी पहनते थे और सिर पर कनफटी टोपी पहनते थे। सरदियों में वे काली कमली ओढ़ते थे। मस्तक पर रामानंदी चंदन का टीका होता था। वह टीका नाक से शुरू होकर ऊपर तक जाता था। गले में तुलसी की जड़ों की एक बेडौल माला होती थी।

व्यवसाय – बालगोबिन भगत का काम खेतीबाड़ी था। वे एक किसान थे। वे अपने खेत में धान की फसल उगाते थे।

कबीर के भक्त – बालगोबिन भगत गृहस्थ होते हुए भी साधु थे। उन्होंने अपने जीवन में कबीर का जीवन-वृत्त उतार रखा था। वे कबीर को अपना साहब मानते थे और उनकी शिक्षाओं पर अमल करते थे। उनके अनुसार उनका जो कुछ था, वह सब साहब (कबीर) की देन था।

मधुर गायक – बालगोबिन भगत एक मधुर गायक थे। उनका गीत सुनने वाला व्यक्ति अपनी सुध-बुध खोकर उसी में खो जाता था। वे कबीर के पद इस ढंग से गाते थे कि ऐसे लगता था, मानो सभी पद जीवित हो उठे हों। बालगोबिन भगत के संगीत का जादू सबको झूमने के लिए मजबूर कर देता था।

संतोषी वृत्ति के व्यक्ति – बालगोबिन भगत संतोषी वृत्ति के व्यक्ति थे। उनकी निजी आवश्यकताएँ सीमित थीं। उनके खेत में जो पैदावार होती थी, वे उसे कबीर के मठ में पहुँचा देते थे। वहाँ से जो प्रसाद के रूप में मिलता था, उसी में अपनी गहस्थी का निर्वाह करते थे।

परमात्मा से प्रेम – बालगोबिन भगत भगवान के निराकार रूप को मानते थे। उनके अनुसार आत्मा की मुक्ति के लिए परमात्मा से प्रेम करना चाहिए। उन्होंने मृत्यु की यह सच्चाई जान ली थी कि अंत में शरीर में से आत्मा निकलकर परमात्मा में मिल जाती है। इसलिए परमात्मा से प्रेम करना चाहिए।

मोहमाया से दूर – बालगोबिन भगत मोहमाया से दूर थे। उन्हें केवल परमात्मा से प्रेम था। वे मोहमाया के किसी भी बंधन में नहीं बँधते थे। जब उनके इकलौते बेटे की मृत्यु हुई, तो उन्होंने शोक मनाने की अपेक्षा उसे आनंद मनाने का अवसर माना। इस दिन उनके बेटे की आत्मा शरीर से मुक्त होकर परमात्मा से मिल गई थी। उन्होंने बेटे की मृत्यु के पश्चात उसकी पत्नी को भी उसके घर भेज दिया था, ताकि वह पुनर्विवाह कर सके। वे किसी प्रकार के मोह में नहीं पड़ना चाहते थे।

नियमों पर दृढ़ – बालगोबिन भगत अपने बनाए नियमों पर दृढ़ थे। वे किसी से बिना पूछे उसकी वस्तु व्यवहार में लाना तो दूर, छूते भी नहीं थे। गंगा-स्नान जाते समय मार्ग में कुछ भी नहीं खाते थे। उन्हें आने-जाने में चार-पाँच दिन लग जाते थे। वे अपनी दिनचर्या का पालन बीमारी में भी नियमपूर्वक करते रहे।

सामाजिक परंपराओं के विरोधी – बालगोबिन भगत सामाजिक परंपराओं के विरोधी थे। उन्होंने अपने बेटे की मृत्यु के सभी क्रिया-कर्म अपनी पुत्रवधू से करवाए थे। उन्होंने अपनी पुत्रवधू को पुनर्विवाह के लिए मजबूर किया था। वे उसे अपने पास रखकर उसके मन को मरता हुआ नहीं देख सकते थे। वे ऐसी सामाजिक मान्यताएँ नहीं मानते थे, जो किसी को दुख दें। बालगोबिन का चरित्र उनके साधुत्व को प्रकट करता है।

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प्रश्न 3.
बचपन में लेखक पक्का ब्राह्मण बनने के लिए क्या करता था?
उत्तर :
बचपन में लेखक को स्वयं पर बहुत गर्व था, क्योंकि वह एक ब्राह्मण था। ब्राह्मण ही ब्रह्म को जानता है, यह सोचकर लेखक भी पक्का ब्राह्मण बनने के लिए ब्रह्म को जानना चाहता था। इसलिए वह संध्या करता, गायत्री का जाप करता, धूप-हवन करता तथा चंदन का तिलक लगाता था। लेखक उन सभी क्रियाओं में बढ़-चढ़कर भाग लेता, जिससे उसका ब्राह्मणत्व सिद्ध हो। उसने अपने ब्राह्मणत्व में गाँव के कई ऐसे लोगों के पैर छूने भी छोड़ दिए थे, जो ब्राह्मण नहीं थे।

प्रश्न 4.
बालगोबिन भगत की पहचान लिखिए।
उत्तर :
बालगोबिन भगत मँझले कद के व्यक्ति थे। उनका रंग गोरा था। उनकी उम्र साठ वर्ष की थी। बाल पक गए थे। वे दाढी या जटा नहीं रखते थे। उनका चेहरा सदा सफ़ेद बालों से चमकता रहता था। वे शरीर पर उतने ही कपड़े पहनते थे, जितने शरीर को ढकने के लिए – आवश्यक थे। कमर में एक लँगोटी बाँधते थे और सिर कबीर-पंथी कनफटी टोपी पहनते थे। सरदियों में एक काली कमली ओढ़ते थे। माथे पर रामानंदी चंदन का टीका होता था, जिसे वह नाक से शुरू करके ऊपर तक लगाते थे। गले में तुलसी की जड़ों की माला पहनते थे। उनके साधारण पहनावे में भी लोगों को आकर्षित करने की शक्ति थी।

प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत किसके पद गाते थे?
उत्तर :
बालगोबिन भगत कबीर को बहुत मानते थे। वे सबकुछ उनकी देन मानते थे। वे कबीर के पद गाते थे। उनके गाने का ढंग ऐसा था कि सीधे-सादे पदों में भी जान आ जाती थी।

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प्रश्न 6.
कार्तिक मास से फाल्गुन मास तक बालगोबिन भगत सुबह के समय क्या करते थे?
उत्तर :
कार्तिक मास में बालगोबिन भगत की प्रभाती शुरू हो जाती थी। यह प्रभाती कार्तिक मास से शुरू होकर फाल्गुन मास तक चलती थी। वे सुबह अँधेरे में उठते और गाँव से दो मील दूर नदी पर स्नान करने जाते थे। वापसी में गाँव के पोखर के ऊँचे भिंडे पर बैठकर अपनी खजड़ी बजाते हुए गीत गाते थे। वे गीत गाते समय अपने आसपास के वातावरण को भूल जाते थे। उनमें माघ की सरदी में भी गीत गाते समय इतनी उत्तेजना आ जाती थी कि उन्हें पसीना आने लगता था, परंतु सुनने वालों का शरीर ठंड के कारण कँपकँपा रहा होता था।

प्रश्न 7.
बालगोबिन भगत की पुत्रवधू कैसी थी?
उत्तर :
बालगोबिन भगत का एक ही पुत्र था, जो दिमाग से कमज़ोर और बीमार था। बड़े होने पर उन्होंने अपने पुत्र की शादी की। उनकी पुत्रवधू बड़ी सुशील तथा सुघड़ थी। उसने घर का सारा प्रबंध सँभाल लिया था। पुत्रवधू के आने से भगत भी दुनियादारी से काफ़ी सीमा तक मुक्त हो गए थे। उसने पुत्र और पिता दोनों की सेवा की। वह ससुर को बुढ़ापे में अकेला छोड़कर पुनर्विवाह के पक्ष में नहीं थी।

प्रश्न 8.
पुत्र के मरने के पश्चात बालगोबिन भगत पुत्रवधू को उसके घर क्यों भेजना चाहते थे?
उत्तर :
बालगोबिन भगत ने पुत्र के श्राद्ध की अवधि पूरी होने के बाद अपनी पुत्रवधू को उसके घर भेज दिया था। उनकी जाति में पुनर्विवाह की अनुमति थी। वे अपने घर में जवान विधवा को नहीं रखना चाहते थे, क्योंकि उनके अनुसार व्यक्ति का अपने मन की भावनाओं पर नियंत्रण रखना आसान नहीं होता। उनकी पुत्रवधू जवान थी। वे नहीं चाहते थे कि वह उनके कारण अपने मन को मारकर उनके साथ रहे और यदि उससे कोई ऊँच-नीच हो गई, तो वे मुश्किल में पड़ जाएंगे। इसलिए उन्होंने उसे उसके घर भेज दिया।

प्रश्न 9.
बालगोबिन भगत का गंगा-स्नान पर जाते समय क्या नियम था?
उत्तर :
बालगोबिन भगत हर वर्ष गंगा-स्नान के लिए जाते थे। इस बहाने उन्हें संतों के दर्शन हो जाते थे। गंगा उनके गाँव से तीस कोस दूर थी। वहाँ जाने में चार-पाँच दिन लग जाते थे। वे गंगा-स्नान जाते समय अपने घर से ही खाकर चलते थे और वापस अपने घर पर आकर ही खाते थे। उनके अनुसार यदि वे साधु हैं, तो साधु को कहीं आते-जाते समय खाने की क्या आवश्यकता है और यदि वे गृहस्थ हैं, तो गृहस्थ के लिए भिक्षा माँगकर खाना अच्छा नहीं है। इसलिए वे दोनों कारणों से मार्ग में खाना नहीं खाते थे। मार्ग में प्यास लगने पर पानी अवश्य पीते थे।

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प्रश्न 10.
बालगोबिन भगत की मृत्यु किस प्रकार हुई?
उत्तर :
हर वर्ष की तरह बालगोबिन भगत गंगा-स्नान करने गए। अब वे बूढ़े हो गए थे, परंतु अपने नियम पर अडिग थे। वे पूरे रास्ते गाते-बजाते गए और कुछ नहीं खाया। जब वे गंगा-स्नान से लौटे, तो उनकी तबीयत खराब थी। धीरे-धीरे उनकी तबीयत बिगड़ने लगी, परंतु उन्होंने अपने नियम-व्रतों में ढील नहीं आने दी। वे अपने सभी दैनिक कार्य स्वयं करते थे। लोगों की आराम करने की सलाह को वे हँसी में टाल देते थे। एक शाम वे गीत गाकर सोए और उसी रात उनके जीवन की माला टूट गई। लोगों को सुबह पता चला कि बालगोबिन भगत नहीं रहे। उनकी मृत्यु उनके स्वभाव के अनुरूप हुई थी।

प्रश्न 11.
बालगोबिन अपना सर्वस्व किसे मानते थे?
उत्तर :
बालगोबिन भगत साधु थे और कबीर को ‘साहब’ मानते थे। वे उन्हीं के गीतों को गाते थे तथा उन्हीं के आदर्शों पर चलते थे। वे उन्हें ही अपना सर्वस्व मानते थे।

प्रश्न 12.
बालगोबिन भगत अपनी सभी चीज़ों को किसकी मानते थे?
उत्तर :
बालगोबिन भगत अपनी सभी चीज़ों को ‘साहब’ की मानते थे। जो कुछ भी खेत में पैदा होता था, वे उसे सिर पर लादकर चार कोस दूर साहब के दरबार में ले जाते थे।

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प्रश्न 13.
बालगोबिन भगत का संगीत जादू था, कैसे?
अथवा
बालगोबिन भगत के संगीत को जादू क्यों कहा गया है?
उत्तर :
इसमें कोई दो राय नहीं कि बालगोबिन भगत का संगीत जादू के समान था। जब वे गाना शुरू करते थे तब बच्चे, बूढ़े, जवान सभी झूमने लगते थे। उनके संगीत को सुनकर नारियों के होंठ काँप उठते थे। वे गुनगुनाने लगती थीं। रोपनी करने वालों की उँगलियाँ एक अजीब ही क्रम में चलने लगती थीं। इसलिए बालगोबिन भगत के संगीत को जादू कहा गया है।

पठित गद्याश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

दिए गए गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए –
बेटे के क्रिया – कर्म में तूल नहीं किया; पतोहू से ही आग दिलाई उसकी। किंतु ज्योंही श्राद्ध की अवधि पूरी हो गई, पतोहू के भाई को बुलाकर उसके साथ कर दिया, यह आदेश देते हुए कि इसकी दूसरी शादी कर देना। इधर पतोहू रो-रोकर कहती-मैं चली जाऊँगी तो बुढ़ापे में कौन आपके लिए भोजन बनाएगा, बीमार पड़े, तो कौन एक चुल्लू पानी भी देगा? मैं पैर पड़ती हूँ, मुझे अपने चरणों से अलग नहीं कीजिए। लेकिन भगत का निर्णय अटल था। तू जा, नहीं तो मैं ही इस घर को छोड़कर चल दूंगा-यह थी उनकी आखिरी दलील और इस दलील के आगे बेचारी की क्या चलती?

(क) बेटे की चिता को अग्नि किसने दी?
(i) बालगोबिन भगत ने
(ii) पतोहू के भाई ने
(iii) पतोहू ने
(iv) पंडित ने
उत्तर :
(iii) पतोहू ने

(ख) श्राद्ध की अवधि के पूरा होते ही पतोहू को कहाँ भेजा दिया?
(i) सैर करने
(ii) माता के दर्शन करने
(iii) वनवास में
(iv) मायके
उत्तर :
(iv) मायके

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(ग) ‘बेटे के क्रिया-कर्म में तूल नहीं किया’ से क्या आशय है?
(i) आडंबरों से क्रिया-कर्म करना
(ii) जमकर दिखावा करना
(iii) साधारण ढंग से क्रिया-कर्म करना
(iv) क्रिया-कर्म के लिए अनेक ज्ञानी पंडित बुलाना
उत्तर :
(iii) साधारण ढंग से क्रिया-कर्म करना

(घ) पति के निधन के पश्चात पतोहू भगत को छोड़कर क्यों नहीं जाना चाहती थी?
(i) जायदाद और अन्न का लालच था।
(ii) उसका भाई उसे नहीं ले जाना चाहता था।
(iii) उसे अपने यौवन की चिंता थी।
(iv) ससुर भगत के बुढ़ापे की चिंता थी।
उत्तर :
(iv) ससुर भगत के बुढ़ापे की चिंता थी।

(ङ) पतोहू के भाई से उसकी दूसरी शादी रचाने के निर्देश में भगत की किस विचारधारा का परिचय मिलता है?
(i) सामाजिक व धार्मिक रूढ़ियों में विश्वास न रखना।
(ii) स्वार्थी होने का।
(iii) अपनी पतोहू को सम्मान देना।
(iv) रीति-रिवाजों का सख्ती से पालन करना।
उत्तर :
(i) सामाजिक व धार्मिक रूढ़ियों में विश्वास न रखना।

उच्च चिंतन क्षमताओं एवं अभिव्यक्ति पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

पाठ पर आधारित प्रश्नों को पढ़कर सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए
(क) बालगोबिन भगत पाठ किस विधा में लिखा गया है?
(i) रेखाचित्र
(ii) संस्मरण
(iii) निबंध
(iv) नाटक
उत्तर :
(i) रेखाचित्र

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(ख) बेटे की मृत्यु पर बालगोबिन आनंद मनाने की बात क्यों कहते हैं?
(i) उनका बेटा ज्ञानी हो गया था।
(ii) क्योंकि उनके विचार से आत्मा-परमात्मा का एकाकार होता है।
(iii) क्योंकि उनका पुत्र झगड़ालू हो गया था।
(iv) क्योंकि वह मूक हो गया था।
उत्तर :
(ii) क्योंकि उनके विचार से आत्मा-परमात्मा का एकाकार होता है।

(ग) भगत किसे अपना साहब मानते थे?
(i) कबीर को
(ii) ईश्वर को
(iii) पक्षी को
(iv) वरुण को
उत्तर :
(i) कबीर को

(घ) बालगोबिन भगत की प्रभातफेरियाँ किस महीने से शुरू हो जाती थीं?
(i) चैत्र
(ii) वैशाख
(iii) पौष
(iv) कार्तिक
उत्तर :
(iv) कार्तिक

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. न जाने वह कौन-सी प्रेरणा थी, जिसने मेरे ब्राह्मण का गर्वोन्नत सिर उस तेली के निकट झुका दिया था। जब-जब वह सामने आता, मैं झुककर उससे राम-राम किए बिना नहीं रहता। माना, वे मेरे बचपन के दिन थे, किंतु ब्राह्मणता उस समय सोलहो कला से मुझ पर सवार थी। दोनों शाम संध्या की जाती, गायत्री का जाप होता, धूप-हवन जलाए जाते, चंदन-तिलक किया जाता और इन सारी चेष्टाओं से ‘ब्रह्म’ को जानकर पक्का ‘ब्राह्मण’ बनने की कोशिशें होती-ब्रह्म जानाति ब्राह्मणः!

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
2. बचपन में लेखक की क्या दशा थी?
3. लेखक गर्वोन्नत क्यों था?
4. लेखक का सिर किसके सामने और क्यों झुक गया?
5. ब्राह्मणता का सोलह कलाओं में सवार होने से क्या तात्पर्य है?
6. ‘ब्रह्म जानाति ब्राह्मण’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
1. पाठ-बालगोबिन भगत; लेखक-रामवृक्ष बेनीपुरी।

2. बचपन में लेखक ब्राह्मण धर्म के अनुसार पूजा-पाठ करता था। ब्राह्मण होने के कारण वह स्वयं को सबसे श्रेष्ठ मानता था। वह सुबह-शाम दोनों समय संध्या आदि करता था।

3. लेखक गर्वोन्नत इसलिए था, क्योंकि वह ब्राह्मण था। उसे ब्राह्मण द्वारा किए जाने वाले सभी कार्य; जैसे-पूजा-पाठ, संध्या, धूप-हवन करना, चंदन-तिलक लगाना आदि; सबकुछ आता था। इसलिए वह स्वयं को सबसे श्रेष्ठ समझकर गर्वोन्नत था।

4. लेखक का सिर बालगोबिन भगत के सामने झुक गया था। वह जब भी उन्हें देखता था, उन्हें झुककर राम-राम करता था। वह उनके गुणों के कारण उनसे प्रभावित था और उन्हें आदर-मान देता था। वे अत्यंत साधु प्रकृति के व्यक्ति थे।

5. इस कथन से तात्पर्य है कि लेखक स्वयं को पक्का ब्राह्मण समझता था। वह ब्राह्मण द्वारा किए गए सभी कार्य जैसे-पूजा-पाठ, संध्या, हवन आदि करता था। इस प्रकार वह स्वयं को इन साधनों के द्वारा ब्रह्म को जानने वाला पक्का ब्राह्मण समझता था।

6. जो ब्रह्म को जानता है, वह ब्राह्मण है।

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2. आसमान बादल से घिरा; धूप का नाम नहीं। ठंडी पुरवाई चल रही। ऐसे ही समय आपके कानों में एक स्वर-तरंग झंकार-सी कर उठी।
यह क्या है-यह कौन है! यह पूछना न पड़ेगा। बालगोबिन भगत समूचा शरीर कीचड़ में लिथड़े, अपने खेत में रोपनी कर रहे हैं। उनकी अँगुली एक-एक धान के पौधे को, पंक्तिबद्ध, खेत में बिठा रही है। उनका कंठ एक-एक शब्द को संगीत के जीने पर चढ़ाकर कुछ को ऊपर, स्वर्ग की ओर भेज रहा है और कुछ को इस पृथ्वी की मिट्टी पर खड़े लोगों के कानों की ओर! बच्चे खेलते हुए झूम उठते हैं; मेंड़ पर खड़ी औरतों के होंठ काँप उठते हैं, वे गुनगुनाने लगती हैं; हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते हैं; रोपनी करनेवालों की अँगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती हैं! बालगोबिन भगत का यह संगीत है या जादू!

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. लेखक ने किस अवसर का वर्णन किया है?
2. बालगोबिन भगत क्या कर रहे थे? अथवा बालगोबिन भगत अपने खेत में किसकी रोपनी कर रहे थे?
3. बालगोबिन भगत के कंठ से क्या निकल रहा था?
4. बालगोबिन भगत के संगीत का लोगों पर क्या प्रभाव पड़ रहा था?
उत्तर :
1. लेखक ने आषाढ़ के महीने में होने वाली रिमझिम वर्षा का वर्णन किया है। इस अवसर पर गाँव के सभी लोग अपने-अपने खेतों में हल चलाने अथवा रोपनी करने आ जाते हैं। आकाश बादलों से घिरा रहता है तथा ठंडी पुरवाई चलती रहती है।

2. बालगोबिन भगत पूरी तरह कीचड़ से सने हुए अपने खेत में रोपनी कर रहे थे। वे धान के पौधों को पंक्तिबद्ध रूप से खेत में रोप रहे थे।

3. बालगोबिन भगत अपने खेत में रोपनी करते हुए उच्च स्वर में मधुर-गीत गा रहे थे।

4. बालगोबिन का संगीत सुनकर खेलते हुए बच्चे झूमने लगते थे। उनका संगीत सुनकर स्त्रियाँ गुनगुनाने लगती थीं; हलवाहों के पैर ताल से उठते लगते थे। खेतों में रोपनी करने वाले भी मंत्रमुग्ध होकर क्रम से कार्य करने लगते थे। इस प्रकार बालगोबिन भगत का संगीत सब पर जादू-सा कर देता था।

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3. गरमियों में उनकी ‘संझा’ कितनी उमसभरी शाम को न शीतल करती! अपने घर के आँगन में आसन जमा बैठते। गाँव के उनके कुछ प्रेमी भी जुट जाते। खजड़ियों और करतालों की भरमार हो जाती। एक पद बालगोबिन भगत कह जाते, उनकी प्रेमी-मंडली उसे दहराती, तिहराती। धीरे-धीरे स्वर ऊँचा होने लगता-एक निश्चित ताल, एक निश्चित गति से। उस ताल-स्वर के चढ़ाव के साथ श्रोताओं के मन भी ऊपर उठने लगते। धीरे-धीरे मन तन पर हावी हो जाता। होते-होते, एक क्षण ऐसा आता कि बीच में खजड़ी लिए बालगोबिन भगत नाच रहे हैं और उनके साथ ही सबके तन और मन नृत्यशील हो उठे हैं। सारा आँगन नृत्य और संगीत से ओतप्रोत है!

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. गरमियों की संध्या में बालगोबिन भगत क्या करते थे?
2. प्रेमी-मंडली किनकी थी और उसका क्या काम था?
3. ‘मन तन पर हावी हो जाता’ से क्या आशय है?
4. होते-होते कौन-सा क्षण आ जाता था?
उत्तर :
1. बालगोबिन भगत अपने संगीत के स्वरों के द्वारा गरमियों की उमस भरी संध्या को शीतल कर देते थे। वे अपने आँगन में संगीत-प्रेमी मित्रों के साथ संगीत की सभा जुटा लेते थे। वे गाते थे तथा अन्य उसे दोहराते थे।

2. प्रेमी-मंडली उन संगीत-प्रेमी लोगों की मंडली थी, जो बालगोबिन भगत के घर गरमियों की उमस भरी शाम के समय खंजड़ियाँ और करताल बजाकर उनके गाए पदों को दोहराते थे तथा वातावरण में उमस के स्थान पर शीतलता भर देते थे।

3. इस कथन का आशय है कि बालगोबिन भगत के गाए हुए पदों को दोहराते समय लोग इतने मग्न हो जाते थे कि वे अपने तन की सुध भूलकर मन से भक्ति रस में डूब जाते थे। उन्हें दीन-दुनिया की सुध नहीं रहती थी। वे मनोलोक में विचरण करने लगते थे।

4. इस प्रकार भक्ति-रस में लीन होकर वह क्षण आ जाता था, जब बालगोबिन भगत भावविभोर होकर खजड़ी बजाते हुए नाचने लगते थे तथा उनकी प्रेमी-मंडली के सदस्य भी उनके चारों ओर घेरा बनाकर नाचते थे। ऐसे समय में सारा वातावरण संगीत की ताल पर नाचता हुआ लगता था।

4. बेटे को आँगन में एक चटाई पर लिटाकर एक सफ़ेद कपड़े से ढाँक रखा है। वह कुछ फूल तो हमेशा ही रोपे रहते, उन फूलों में से कुछ तोड़कर उस पर बिखरा दिए हैं; फूल और तुलसीदल भी। सिरहाने एक चिराग जला रखा है। और, उसके सामने ज़मीन पर ही आसन जमाए गीत गाए चले जा रहे हैं! वही पुराना स्वर, वही पुरानी तल्लीनता। घर में पतोहू रो रही है, जिसे गाँव की स्त्रियाँ चुप कराने की कोशिश कर रही हैं।

किंतु, बालगोबिन भगत गाए जा रहे हैं! हाँ, गाते-गाते कभी-कभी पतोहू के नज़दीक भी जाते और उसे रोने के बदले उत्सव मनाने को कहते। आत्मा परमात्मा के पास चली गई, विरहिनी अपने प्रेमी से जा मिली, भला इससे बढ़कर आनंद की कौन बात? मैं कभी-कभी सोचता, यह पागल तो नहीं हो गए। किंतु नहीं, वह जो कुछ कह रहे थे उसमें उनका विश्वास बोल रहा था-वह चरम विश्वास जो हमेशा ही मृत्यु पर विजयी होता आया है।

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अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. बेटे की मृत्यु पर बालगोबिन ने क्या किया?
2. बेटे की मृत-देह के पास बालगोबिन क्या करने लगे?
3. अपनी पतोहू को बालगोबिन ने क्या समझाया ?
4. आत्मा के संबंध में बालगोबिन के क्या विचार थे ?
5. लेखक बालगोबिन के संबंध में क्या सोचता था और क्यों?
उत्तर :
1. बालगोबिन के बेटे की बीमारी से मृत्यु हो गई थी। उन्होंने मृत बेटे को घर के आँगन में एक चटाई पर लिटाकर उसे एक सफ़ेद कपड़े से ढक दिया था। उन्होंने उस पर कुछ फूल और तुलसीदल बिखेर दिए थे और उसके सिरहाने दीपक जला दिया था।

2. वे अपने बेटे की मृत देह के सामने ज़मीन पर बैठकर गीत गाने लगे।

3. उन्होंने अपनी पतोहू को रोने से मना किया और कहा, कि आज रोने का नही, बल्कि उत्सव मनाने का दिन है, क्योंकि उसके पति की आत्मा अब परमात्मा से मिल गई है।

4. बालगोबिन का विचार था कि मरने के बाद आत्मा परमात्मा में जाकर लीन हो जाती है। परमात्मा रूपी प्रियतम के वियोग में भटकती हुई आत्मा मृत्यु के बाद अपने प्रिय से जा मिलती है।

5. लेखक को लगता था कि कहीं बालगोबिन पागल तो नहीं हो गए, क्योंकि वे अपने एकमात्र पुत्र की मृत्यु पर शोक की बजाय आनंद मना रहे हैं तथा अपनी पतोहू को भी रोने के स्थान पर उत्सव मनाने के लिए कह रहे हैं। उन्हें मृत्यु आनंद मनाने का अवसर लगता है।

5. बेटे के क्रिया-कर्म में तूल नहीं किया; पतोहू से ही आग दिलाई उसकी। किंतु ज्योंही श्राद्ध की अवधि पूरी हो गई, पतोहू के भाई को बुलाकर उसके साथ कर दिया, यह आदेश देते हुए कि इसकी दूसरी शादी कर देना। उनकी जाति में पुनर्विवाह कोई नई बात नहीं, किंतु पतोहू का आग्रह था कि वह यहीं रहकर भगतजी की सेवा-बंदगी में अपने वैधव्य के दिन गुज़ार देगी।

लेकिन, भगतजी का कहना थानहीं, यह अभी जवान है, वासनाओं पर बरबस काबू रखने की उम्र नहीं है इसकी। मन मतंग है, कहीं इसने गलती से नीच-ऊँच में पैर रख दिए तो। नहीं-नहीं, तू जा। इधर पतोहू रो-रोकर कहती-मैं चली जाऊँगी तो बुढ़ापे में कौन आपके लिए भोजन बनाएगा, बीमार पड़े, तो कौन एक चुल्लू पानी भी देगा? मैं पैर पड़ती हूँ, मुझे अपने चरणों से अलग नहीं कीजिए! लेकिन भगत का निर्णय अटल था।

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अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. बालगोबिन भगत ने बेटे का क्रिया-कर्म कैसे किया?
2. पतोहू के लिए बालगोबिन ने क्या प्रबंध किया?
3. पतोहू क्या चाहती थी और क्यों?
4. बालगोबिन पतोहू का पुनर्विवाह क्यों करना चाहते थे?
5. ‘भगत का निर्णय अटल था’-इससे भगत के चरित्र की किस विशेषता का बोध होता है?
उत्तर :
1. बालगोबिन भगत ने अपने बेटे के क्रिया-कर्म में कोई आडंबर नहीं किया। उन्होंने अपने बेटे की चिता में अपनी पतोहू से आग दिलाई।

2. श्राद्ध का समय समाप्त होते ही उन्होंने पतोहू के भाई को बुलाया और उसे अपनी बहन को साथ ले जाने के लिए कहा। उन्होंने उसके भाई को यह भी कहा कि अपनी बहन का दूसरा विवाह कर देना।

3. बालगोबिन भगत की पतोहू अपने भाई के साथ नहीं जाना चाहती थी; वह दूसरा विवाह भी नहीं करना चाहती थी। वह यहीं रहकर भगत जी की सेवा करना चाहती थी। वह उन्हें बुढ़ापे में बेसहारा छोड़कर नहीं जाना चाहती। वह उनके लिए खाना बनाना, बीमारी में देखभाल करना आदि कार्य करना चाहती थी।

4. बालगोबिन भगत के अनुसार पतोहू अभी जवान थी। उसके सामने सारा जीवन था, वह अकेले नहीं चल पाएगी। मनुष्य का मन चंचल होता है। वह भी कभी भटक सकती थी। इन सब बुराइयों से बचने के लिए ही वे अपनी पतोहू का विवाह कर देना चाहते थे।

5. इस कथन से भगत के चरित्र की दृढ़ता का पता चलता है कि वे अपनी कही हुई बात पर सदा अटल रहते थे। उनकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं था। इसलिए वे अपनी पतोहू के तर्कों को नहीं मानते और उसे उसके भाई के साथ भेज देते हैं, जिससे वह उसका पुनर्विवाह करवा सके।

बालगोबिन भगत Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

जीवन – आधुनिक युग के निबंधकारों में श्री रामवृक्ष बेनीपुरी का महत्वपूर्ण स्थान है। इनका जन्म मुजफ्फरपुर जिले (बिहार) के बेनीपुर गाँव में सन 1899 ई० में हुआ। बचपन में ही इनके सिर से माता-पिता की छाया उठ गई थी। सन 1920 में गांधीजी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन प्रारंभ होने पर ये अध्ययन छोड़कर राष्ट्र-सेवा में लग गए। गांधीजी के दर्शन में इनकी विशेष आस्था थी। ‘रामचरितमानस’ के पठन-पाठन ने इन्हें साहित्य की ओर प्रेरित किया। स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लेने के कारण इन्हें अनेक बार जेल की यातनाएँ सहन करनी पड़ी। सन 1968 ई० में इनका देहावसान हो गया।

रचनाएँ – पंद्रह वर्ष की अवस्था से ही ये पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखने लग गए थे। इन्होंने ‘बालक’, ‘तरुण भारत’, ‘किसान मित्र’, ‘नयी धारा’ आदि अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया। उपन्यास, नाटक, कहानी, यात्रा-विवरण, संस्मरण, निबंध आदि लगभग सभी गद्य विधाओं में बेनीपुरी जी की अनेक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। इनका पूरा साहित्य ‘बेनीपुरी रचनावली’ के आठ खंडों में प्रकाशित हुआ है। ‘पतितों के देश में’ (उपन्यास); ‘चिता के फूल’ (कहानी); ‘माटी की मूरतें’, ‘नेत्रदान’ तथा ‘मन और विजेता’ (रेखाचित्र); अंबपाली’ (नाटक); ‘गेहूँ और गुलाब’ (निबंध और रेखाचित्र); ‘पैरों में पंख बाँधकर’ (यात्रा विवरण); ‘जंजीरें और दीवारें’ (संस्मरण) आदि इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं।

भाषा-शैली – इनकी भाषा ओजपूर्ण तथा सशक्त है। इसमें प्रांतीय शब्दों का प्रयोग भी हुआ है। इन्होंने खड़ी बोली के परिष्टत रूप का प्रयोग किया है। इन्होंने सामान्य बोलचाल के शब्दों में तत्सम शब्दावली का सुंदर प्रयोग किया है। बाक्य रचना स्वाभाविक है। ‘बालगोबिन भगत’ इनके द्वारा रचित रेखाचित्र है, जिसमें लेखक ने एक ऐसे चरित्र का उद्घाटन किया है जो अपनले का लोकनायक है।

उसने रूढ़ियों से ग्रस्त समाज से टक्कर लेकर अपने युग में सर्वत्र क्रांतिकारी पग उठाए हैं। अपने पुराना को अपनी मोह से अग्नि दिलवाई और उसे पुनर्विवाह करने के लिए कहा। इस रेखाचित्र में मनोवृत्ति, मात्र, कंठ, अकस्मात, आपल जैसे तत्सप्प शब्दों के साथ-साथ लँगोटी, जाड़ा, तूल, खजड़ी, पियवा, रोपनी आदि देशज शब्दों का भी खुलकर प्रयोग किया है।

इनकी शैली भावपूर्ण, चित्रात्मक, विचारपूर्ण तथा कहीं-कहीं वर्णनात्मक हो गई है। कहीं-कहीं काव्यात्मक शैली के भी दर्शन होते हैं। जैसे… उनका यह गाना अँधेरे में अकस्मात कौंध उठने वाली बिजली की तरह किसे न चौंका देता?’ आषाढ़ के आगमन का वर्णन अत्यंत ही सजीवता लिए हुए है। जैसे – ‘आषाढ़ की रिमझिम है। समूचा गाँव खेतों में उतर पड़ा है। कहीं हल चल रहे हैं; कहीं रोपनी हो रही है। धान के पानी-भरे खेतों में बच्चे उछल रहे हैं। औरतें कलेवा लेकर मेंड़ पर बैठी हैं। आसमान बादलों से घिरा, धूप का नाम नहीं। ठंडी पुरवाई चल रही है।’

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पाठ का सार :

‘बालगोबिन भगत’ के लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी हैं। इस रेखाचित्र के माध्यम से उन्होंने एक ऐसे संन्यासी का वर्णन किया है, जो वेशभूषा या बाह्य-आडंबरों से संन्यासी नहीं लगता था। लेखक के अनुसार उसके संन्यासी होने का आधार मानवीय जीवन के प्रति प्रेम था। वह वर्ण-व्यवस्था और सामाजिक रूढ़ियों का विरोधी था। इस रेखाचित्र के माध्यम से हमें ग्रामीण जीवन की झलक देखने को मिलती है।

लेखक बचपन में स्वयं को पक्का ब्राह्मण मानता था। वह ब्राह्मण की पहचान करवाने वाली सभी क्रियाएँ करता था। वह इस बात पर विश्वास करता था कि ब्रह्म का ज्ञाता केवल ब्राह्मण होता है। लेकिन एक तेली के आगे लेखक का गर्व से ऊँचा सिर स्वयं ही झुक जाता था। हमारे समाज में तेली का यात्रा के समय मिलना अच्छा नहीं समझा जाता। बालगोबिन भगत साठ वर्ष के मँझोले कद के गोरे-चिट्ठे भी व्यक्ति थे। वे केवल कमर में एक लँगोटी तथा कबीरपंथियों वाली कनपटी टोपी पहनते थे।

सरदियों में एक काली कमली ओढ़ते थे। मस्तक पर रामानंदी चंदन का टीका तथा गले में तुलसी की जड़ों की माला पहनते थे। बालगोबिन एक गृहस्थ व्यक्ति थे। उनके बेटा-बहू थे। वे खेती-बाड़ी का काम करते थे। बालगोबिन गृहस्थ होते हुए भी साधु थे। वे ‘कबीर’ की मान्यताओं को बहुत मानते थे। उन्हीं के गीतों को गाते थे। वे ‘कबीर’ को ‘साहब’ मानते थे। ‘कबीर की मान्यताओं के अनुसार वे न कभी झूठ बोलते थे, न किसी की चीज़ को हाथ लगाते थे और न ही बिना पूछे व्यवहार में लाते थे।

उनकी हर चीज पर ‘साहब’ का अधिकार था। वे अपने खेत की पैदावार को सिर पर रख ‘कबीर’ के मठ पर जाते। उस पैदावार को भेट-स्वरूप चढ़ाते और जो कुछ प्रसाद के रूप में मिलता उसी में गुजारा करते थे। लेखक बालगोबिन भगत के गायन पर मुग्ध था। उनका गायन सदा सबको सुनने को मिलता था। आषाढ़ आते ही खेतों में धान की रोपाई शुरू हो जाती थी। पूरे गाँव के आदमी, औरतें और बच्चे खेतों में दिखाई देते थे। खेतों में रोपाई करते समय हर किसी के कानों में गाने का स्वर गूंजता रहता था।

इसका कारण यह था कि बालगोबिन रोपाई करते समय गाना गाते थे। उनके कंठ से निकला एक-एक शब्द ऐसा लगता था, जैसे कुछ ऊपर स्वर्ग की ओर तो कुछ पृथ्वी की मिट्टी पर खड़े लोगों के कानों में जा रहे हैं। उनके संगीत से सारा वातावरण संगीतमय हो जाता था। सभी लोग एक ताल में एक क्रम में काम करने लगते थे। वे भादों की अँधेरी रातों में पिया के प्यार के गीत गाते थे। इन गीतों के अनुसार पिया साथ होते हुए भी प्रियतमा अपने को अकेली समझती है, इसलिए बिजली की चमक से चौंक उठती है।

जब सारा संसार सो रहा होता था, उस समय बालगोबिन का संगीत जाग रहा होता था। बालगोबिन कार्तिक से फागुन तक प्रभाती गाया करते थे। वे सुबह अँधेरे में उठकर, दो मील चलकर नदी-स्नान करते थे। वापसी में गाँव के बाहर पोखरे पर वे अपनी खजड़ी लेकर बैठ जाते और गीत गाने लगते थे। लेखक को देर तक सोने की आदत थी, परंतु एक दिन उसकी आँख जल्दी खुल गई। वे माघ के दिन थे। बालगोबिन का संगीत लेखक को गाँव के बाहर पोखर पर ले गया।

वे अपने संगीत में बहुत मस्त थे। उनके माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं, लेकिन लेखक ठंड के मारे काँप रहा था। गरमियों में उमसभरी शाम को वे अपने गीतों से शीतल कर देते थे। उनके गीत लोगों के मन से होते हुए तन पर हावी हो जाते थे। वे भी बालगोबिन की तरह मस्ती में नाचने लगते थे। उनके घर का आँगन संगीत-भक्ति से ओत-प्रोत हो जाता था। सब लोगों ने बालगोबिन भगत की संगीत-साधना की चरम-सीमा उस दिन देखी, जिस दिन उनका इकलौता बेटा मरा था।

उनका बेटा दिमागी तौर पर सुस्त था। बालगोबिन उस पर अधिक ध्यान देते थे। उनके अनुसार ऐसे लोगों को अधिक-देखभाल और प्यार की आवश्यकता होती है। उनके बेटे की बहू बहुत सुघड़ और सुशील थी। उसने आते ही घर के सारे काम को सँभाल लिया था। उसने बालगोबिन भगत को दुनियादारी से काफी सीमा तक मुक्त कर दिया था। जिस दिन बालगोबिन का लड़का मरा, सारा गाँव उसके घर इकट्ठा हो गया। बालगोबिन को देखकर सभी लोग हैरान थे। उन्होंने अपने बेटे को आँगन में चटाई पर लिटा रखा था। उस पर सफ़ेद कपड़ा दे रखा था।

कुछ फूल और तुलसी के पत्ते उस पर बिखेर रखे थे। पास में ही वे आसन पर बैठे गीत गा रहे थे। कमरे में उनकी पुत्रवधू बैठी रो रही थी। वे बीचबीच में उसे चुप करवाते और कहते कि उसे रोना नहीं चाहिए। यह समय तो उत्सव मनाने का है। उनके बेटे की आत्मा परमात्मा में मिल गई है। आज प्रियतमा का अपने पिया से मिलन हो गया है। यह तो आनंद की बात है। लेखक को लग रहा था कि वे पागल हो गए हैं। उन्होंने अपने बेटे का क्रिया-कर्म अपने बेटे की बहू से करवाया था।

श्राद्ध की अवधि पूरी होने पर उन्होंने बहू को उसके घर भेज दिया। उन्होंने उसके घरवालों को उसकी दूसरी शादी करवाने का आदेश दिया। बहू ने उनकी बात मानने से इनकार कर दिया। वह उनके पास रहकर उनकी सेवा करना चाहती थी। उसे इस बात की बहुत चिंता थी कि बुढ़ापे में उनका ध्यान कौन रखेगा। लेकिन बालगोबिन भगत अपने कारण बहू का जीवन खराब नहीं करना चाहते थे और वे जवानी में संन्यास लेने के विरुद्ध थे।

इसलिए उन्होंने उसे घर छोड़ने की धमकी दी कि यदि वह अपने पिता के घर नहीं गई, तो वे घर छोड़कर चले जाएंगे। उनकी यह बात सुनकर बहू अपने घर चली गई। बालगोबिन भगत के स्वभाव के अनुरूप ही उनकी मृत्यु हुई। वे प्रतिवर्ष पैदल ही गंगा-स्नान के लिए जाते थे। गंगा-स्नान के बहाने वे संतों से मिलते थे। गंगा उनके गाँव से तीस कोस दूर थी। वे घर से ही खा-पीकर चलते थे और लौटकर घर पर ही आकर खाते थे। रास्ते भर । वे गाते-बजाते जाते थे। उनको आने-जाने में चार दिन लग जाते थे।

अब वे बूढ़े हो गए थे, लेकिन उनका लंबा उपवास और गायन लगातार चलता था। इस बार वे गंगा-स्नान से लौटकर आए, तो उनकी तबीयत खराब थी। बुखार में भी नियम-व्रत नहीं तोड़े। लोगों ने उन्हें सबकुछ छोड़कर आराम करने के लिए कहा, परंतु वे हँसकर टाल देते थे। एक दिन उन्होंने संध्या को गीत गाए, लेकिन रात को जीवन की माला का धागा टूट गया। लोगों को सुबह बालगोबिन भगत के गीतों का स्वर सुनाई नहीं दिया, तो उन्होंने देखा कि उनके शरीर से आत्मा निकलकर : परमात्मा से मिल गई थी।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

कठिन शब्दों के अर्थ :

गर्वोन्नत – गर्व से ऊँचा। सोलहो कला – पूरी तरह से। खामखाह – बेवजह। कौंध – चमक। मँझोला – न बहुत बड़ा न बहुत छोटा। चरम उत्कर्ष – बहुत ऊँचाई पर। कमली – कंबल, गर्म कपड़ा। पतोहू – पुत्रवधू/ पुत्र की स्त्री। रोपनी – धान की रोपाई। कलेवा – सवेरे का नाश्ता। पुरवाई – पूर्व की ओर से बहने वाली हवा। अधरतिया – आधी रात। खजड़ी – ढफली के आकार का छोटा वाद्य-यंत्र। निस्तब्धता – सन्नाटा। प्रभाती – प्रातःकाल गाया जाने वाला गीत। लोही – प्रात:काल की लालिमा। कुहासा – कोहरा, धुंध। आवृत – ढका हुआ। कुष्टा – एक प्रकार की नुकीली घास। बोदा – कम बुद्धि वाला। मतंग – बादल, मेघ। संबल – सहारा।

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