JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

JAC Class 10 Hindi राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए ?
उत्तर :
सीता स्वयंवर के अवसर पर श्रीराम ने शिवजी के धनुष को तोड़ दिया था, जिस कारण परशुराम अत्यंत क्रोधित हो गए थे। तब लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने का कारण बताते हुए कहा था कि वह धनुष नहीं, बल्कि धनुही थी। यह बहुत पुराना था और राम के द्वारा हते ही टूट गया था। इसमें राम का कोई दोष नहीं है।

प्रश्न 2.
परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुई उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
राम और लक्ष्मण दोनों एक ही पिता की संतान थे। उन्होंने एक ही गुरु से शिक्षा पाई थी और एक-से वातावरण में रहे थे लेकिन फिर भी दोनों के स्वभाव में बहुत अंतर था। राम स्वभाव से शांत थे, पर लक्ष्मण उग्र स्वभाव के थे। धनुष टूट जाने पर राम ने शांत भाव से परशुराम से कहा था कि धनुष तोड़ने वाला कोई उनका दास ही होगा। लेकिन लक्ष्मण ने उन्हें मनचाही जली-कटी सुनाई थी।

राम ने परशुराम के क्रोध को शांत करने का प्रयास किया, तो लक्ष्मण ने अपनी व्यंग्यपूर्ण वाणी से उन्हें उकसाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। परशुराम के क्रोध करने पर राम शांत भाव से बैठे थे, पर लक्ष्मण उन पर व्यंग्य करते हुए उन्हें उकसाते रहे। राम ऋषि-मुनियों का आदर-सम्मान करने वाले थे, पर लक्ष्मण का स्वभाव ऐसा नहीं था। लक्ष्मण की वाणी परशुरामरूपी यज्ञ की अग्नि में आहुति के समान थी, तो राम की वाणी शीतल जल के समान उस अग्नि को शांत करने वाली थी।

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प्रश्न 3.
लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।
उत्तर :
लक्ष्मण (मुसकराते हुए) – मुनियों में श्रेष्ठ मुनिवर ! क्या आप स्वयं को बहुत बड़ा योद्धा समझते हैं? बार-बार मुझे अपनी कुल्हाड़ी क्यों दिखाते हैं ? क्यों आप अपनी फॅक से पहाड़ उड़ाने की कोशिश करना चाहते हैं?
परशुराम (गुस्से में भरकर) – लक्ष्मण! अपने शब्दों को रोक लो। अन्यथा यह फरसा रक्त चखने के लिए व्यग्र है।
लक्ष्मण (व्यंग्य भाव से) – मुनिवर ! मैं कुम्हड़े का फूल नाहीं हूँ, जो आपकी तर्जनी देख सूख जाऊँगा।
मैंने तो आपके फरसे और धनुष – बाण को देखकर समझा था कि आप कोई क्षत्रिय है। इसलिए अभिमानपूर्वक मैंने आपसे कुछ कह दिया था।
परशुराम (गुस्से से लाल होते हुए) – हे दुःसाहसी। मैंने कई बार पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन किया है।
लक्ष्मण (डरने का अभिनय करते हुए) – अरे ! आप तो ब्राह्मण हैं। आपके गले में यज्ञोपवीत भी है। मुझसे गलती हो गई। मुझे क्षमा करें। हमारे वंश में देवता, ब्राह्मण, भक्त और गौ के प्रति कभी वीरता नहीं दिखाई जाती।
परशुराम (गुस्से से पूछते हुए) – मूर्ख! मेरे फरसे को धार तुम्हारा मस्तक काटने के लिए व्याकुल है। संभल जा, अन्यथा युद्ध के लिए तैयार रह।

लक्ष्मण-ब्राहमण देवता! यदि आप मुझे मारेंगे, तो भी मैं आपके पैरों में ही पड़ेगा। मुनिवर! आपकी बात ही अनूठी है।
आपका एक-एक वचन ही करोड़ों वनों के समान है। बताइए कि फिर आपने व्यर्थ ही ये धनुष-बाण और फरसा क्यों धारण कर रखा है? आपको इन सबकी क्या जरूरत है? मैंने आपके इन अस्त्र-शस्त्रों को देखकर आपसे जो उल्टा-सीधा कह दिया है, कृपया उसके लिए मुझे क्षमा करें।

परशराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए? बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही॥ भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही। सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा।। मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर। गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर॥

परशुराम ने अपने विषय में कहा कि वे बाल ब्रह्मचारी हैं; स्वभाव के अति क्रोधी हैं। सारा संसार जानता है कि वे क्षत्रिय वंश के नाशक हैं। उन्होंने पृथ्वी से क्षत्रिय राजाओं को समाप्त कर देने की प्रतिज्ञा कर रखी है। न जाने उन्होंने कितनी बार अपने बाहुबल से पृथ्वी के क्षत्रिय राजाओं का वध कर उनके राज्य ब्राहमणों को सौंप दिए हैं। वे सहस्रबाहु जैसे अपार बलशाली की भुजाओं को काट देने वाले पराक्रमी वीर हैं।

उन्होंने अपने फरसे से लक्ष्मण को डराने के लिए कहा कि अरे राजा के बालक ! तू मेरे द्वारा मारा जाएगा। क्यों अपने माता-पिता को चिंता में डालता है? वे मानते थे कि उनका फ़रसा बड़ा भयानक है, जो गर्भ में ही बच्चों का नाश कर देने वाला है। गुस्सा आने पर वे छोटे-बड़े में कोई अंतर नहीं करते; वे किसी का भी वध कर देते हैं।

प्रश्न 5.
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताई?
अथवा
लक्ष्मण ने शूरवीरों के क्या गुण बताए हैं?
उत्तर :
लक्ष्मण ने बीर योद्धा की विशेषताओं के बारे में कहा कि वे व्यर्थं अपनी वीरता की डोंमें नहीं हाँकते बल्कि युद्ध-भूमि में युद्ध करते हैं; अपने अस्त्र-शस्त्रों से वीरता के जौहर दिखाते हैं। शत्रु को सामने पाकर जो अपने प्रताप की बातें करते हैं, वे कायर होते हैं।

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प्रश्न 6.
साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
विनम्रता सदा साहसियों और शक्तिशालियों को ही शोभा देती है। कमजोर और कायर व्यक्ति का विनम्न होना उसका गुण नहीं होता बल्कि उसकी मजबूरी होती है। वह किसी का क्या बिगाड़ सकता है? लेकिन कोई शक्तिशाली व्यक्ति अपनी शक्ति का दुरुपयोग न करके जब दोन-दुखियों के प्रति विनम्नता का भाव प्रकट करता है, तो सारे समाज में सम्मान प्राप्त करता है। तुलसीदास ने कहा भी है-‘परम धर्म श्रुति विदित अहिंसा’ तथा ‘पर पीड़ा सम नहि अधमाई’। साहस और धैर्य मन में उत्पन्न होने वाले वे भाव हैं, जो शक्ति को पाकर विपरीत स्थितियों में मानव को विचलित होने से रोक लेते हैं।

साहस और धैर्य ‘असमय के सखा’ हैं, जिन्हें शक्ति की सहायता से बनाकर रखा जाना चाहिए पर उसके साथ विनम्रता का बना रहना आवश्यक है। बिनम्न व्यक्ति ही किसी के साथ होने : वाले अन्याय के विरोध में खड़ा हो सकने का साहस करता है। भगवान विष्णु को जब भृगु ने ठोकर मारी थी और उन्होंने साहस व शक्ति होने के बावजूद विनम्नता का प्रदर्शन किया था, तभी उन्हें देवों में से सबसे बड़ा मान लिया गया था।

समाज में सदा से माना गया है कि अशक्त और असहाय की याचनापूर्ण करुण दृष्टि से जिसका हृदय नहीं पसीजा, भूखे व्यक्ति को अपने खाली पेट पर हाथ फिराते देखकर जिसने अपने सामने रखा भोजन उसे नहीं दे दिया, अपने पड़ोसी के घर में लगी आग को देखकर उसे बुझाने के लिए वह उसमें कूद नहीं पड़ा-बह मनुष्य न होकर पशु है, क्योंकि साहस और शक्ति होते हुए अन्याय का प्रतिकार न करना कायरता है। साहस और शक्ति के साथ विनम्रता मानव का सदा हित करती है। गुरु नानक देव ने कहा भी है –

जो प्राणी ममता तजे, लोभ, मोह, अहंकार
कह नानक आपन तरे, औरन लेत उबार।

साहस और शक्ति अनेक प्राणियों में होती है, पर विनम्रता के अभाव के कारण वे कभी भी समाज में प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त कर पाते। जब हमारे हृदय में विनम्रता का भाव होता है, तभी हम स्वयं को भुलाकर दूसरों के कष्टों को कम करने की बात सोचते हैं। सच्ची मनुष्यता इसी बात में छिपी हुई है कि मनुष्य साहस और शक्ति होने के साथ विनम्रता को हमेशा महत्त्व दें।

भगवान शिव इसलिए पूजनीय है कि उन्होंने साहस और शक्ति से संपन्न होते हुए विनम्रता का परिचय दिया था। उन्होंने विषपान कर देवताओं और दानवों की रक्षा की थी। भर्तृहरि ने राक्षस और मनुष्य का अंतर विनम्रता के आधार पर ही किया है। जो विनम्र है, वही महापुरुष है और जो अपने साहस व शक्ति को स्वार्थ के लिए प्रयोग करता है, वहीं राक्षस है। तभी तो मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है –

यही पशु प्रवृत्ति है कि आप-आप ही चरे।
मनुष्य है वही कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

वास्तव में साहस और शक्ति के साथ विनम्नता ही मानव को मानव बनाती है।

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प्रश्न 7.
भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) बिहसि लखनु बोले मदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठा। चहत उड़ावन फँकि पहात ॥
(ख) इहाँ कुम्हड़बतिआ कोड नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं।।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।
(ग) गाधिसू नु कर हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न जखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।
उत्तर :
(क) इन पंक्तियों में लक्ष्मण ने परशुराम के अभिमानपूर्ण स्वभाव पर व्यंग्य किया है। वे कहते हैं कि वीर वह होता है, जो वीरता का प्रदर्शन करे न कि व्यर्थ में डींगें हाँके। जब परशुराम ने यह कहा कि उन्होंने अपनी भुजाओं के बल से कई बार पृथ्वी के क्षत्रिय राजाओं को मिटाकर उनके राज्य ब्राह्मणों को दे दिए थे और उन्होंने सहस्त्रबाहु की भुजाओं को काट डाला था, तब लक्ष्मण ने मुसकराकर कहा कि मुनीश्वर !

आप स्वयं को बहुत बड़ा योद्धा समझते हैं और बार-बार कुल्हाड़ी दिखाकर डराना चाहते हैं। आप फूंक मारकर पहाड़ उड़ाने का कार्य करना चाहते हैं। भाब है कि राम और लक्ष्मण ऐसे क्षत्रिय बीर नहीं थे, जो सरलता और सहजता से परशुराम से हार जाते।

(ख) कवि ने यहाँ परशुराम के झूठे अभिमान को काव्य रूनि के माध्यम से स्पष्ट किया है। समाज में पुरानी उक्ति है कि कुम्हड़े के छोटे कच्चे फल की ओर तर्जनी का संकेत करने से बह मर जाता है। लक्ष्मण कुम्हड़े के कच्चे फल जैसे कमजोर नहीं थे, जो परशुराम की धमकी मात्र से भयभीत हो जाते। लक्ष्मण ने यदि उनसे अभिमानपूर्वक कुछ कहा था तो वह उनके अस्त्र-शास्त्र और फरसे को देखकर कहा था।

विश्वामित्र ने परशुराम की अभिमानपूर्वक प्रकट कहीं जाने वाली उनकी वीरता संबंधी बातों को सुनकर मन-ही-मन कहा था कि मुनि को हरा-ही-हरा सूझ रहा है। वे सामान्य क्षत्रियों को युद्ध में हराते रहे हैं, इसलिए उन्हें लगने लगा है कि वे राम-लक्ष्मण को भी युद्ध में आसानी से हरा देंगे। पर वे यह नहीं समझ पा रहे, कि ये दोनों साधारण क्षत्रिय नहीं हैं। ये गन्ने से बनी खाँड के समान नहीं, बल्कि फौलाद के बने खाँडे के समान हैं। मुनि व्यर्थ में बेसमझ बने हुए हैं और इनके प्रभाव को नहीं समझ पा रहे।

प्रश्न 8.
पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर :
“तुलसीदास ने अवधी भाषा के लोकप्रिय और परिनिष्ठित रूप को साहित्यिक रूप में प्रस्तुत किया है। उन्होंने व्याकरण के नियमों का पूर्ण रूप से निर्वाह किया है। उनकी भाषा में कहीं भी शिथिलता दिखाई नहीं देती। उनको वाक्य-रचना पूर्ण रूप से निर्दोष है। उन्होंने शब्द प्रयोग में उदार नीति का परिचय दिया है, जिसमें तत्सम तद्भव शब्दावली के साथ देशी शब्दों का भी प्रयोग दिखाई देता है। लोक प्रचलित मुहावरों और लोकोक्तियों के कारण उनकी भाषा सजीव, प्रवाहपूर्ण और प्रभावशाली बन गई है।

गोस्वामी जी ने प्रसंगानुकूल भाषा का प्रयोग किया है। रस की अनुकूलता के अतिरिक्त उन्होंने इस बात का पूरा ध्यान रखा है कि किस स्थान पर किस शब्द का प्रयोग किया जाए। उनकी भाषा सर्वत्र भावों और विचारों की सफल अभिव्यक्ति में समर्थ दिखाई देती है। गुण के सहारे रस की अभिव्यक्ति करने में उन्होंने सफलता पाई है। उनकी भाषा की वर्ण मैत्री दर्शनीय है। उन्होंने नाद सौंदर्य का पूरा ध्यान रखा है। बास्तब में भाषा पर जैसा अधिकार तुलसीदास का है, वैसा किसी और हिंदी कवि का नहीं है।

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प्रश्न 9.
इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
तुलसीदास हिंदी के श्रेष्ठतम भक्त कवियों में से एक हैं, जिन्होंने गंभीरतम दार्शनिक काव्य लिखने के साथ-साथ व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य प्रस्तुत किया है। इस प्रसंग में उन्होंने लक्ष्मण के माध्यम से मुनि परशुराम की करनी और कथनी पर कटाक्ष करते हुए व्यंग्य को सहज सुंदर अभिव्यक्ति की है। लक्ष्मण ने शिवजी के धनुष को धनुही कहकर परशुराम के अहं को चुनौती दी थी। उन्होंने व्यंग्य भरी वाणी में कहा –

(i) बिहसि लखनु बोले मदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूंकि पहारू॥

(ii) इहाँ कुम्हड़बतिआ कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥

लक्ष्मण ने व्यंग्य करते हुए परशुराम से कहा कि वे जो चाहते हैं, वह कह देना चाहिए। उन्हें क्रोध रोककर असह्य दुख नहीं सहना : चाहिए। परशुराम तो मानो काल को हाँक लगाकर बार-बार बुलाते थे। भला इस संसार में ऐसा कौन था, जो उनके शील को नहीं जानता था। वे संसार में प्रसिद्ध थे। लक्ष्मण कहते हैं कि वे अपने माता-पिता के ऋण से मुक्त हो चुके थे; अब उन्हें अपने गुरु के ऋण से : भी मुक्त हो जाना चाहिए।

सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये व्याज बड़ बाढ़ा।
अब आनिअ व्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।

वास्तव में तुलसीदास ने परशुराम के स्वभाव और उनके कश्चन के ढंग पर व्यंग्य कर अनूठे सौंदर्य की प्रस्तुति की है।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचानकर लिखिए –
(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।
(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
(ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लाबा। बार-बार मोहि लागि बोलाया।
(घ) लखन उतर आहुति सरिस भूगुबरकोपु कृसानु। बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।
उत्तर :
(क) अनुप्रास
(ख) उपमा, अनुप्रास
(ग) उत्प्रेक्षा, पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास
(घ) उपमा, रूपक

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रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 11.
“सामाजिक जीवन में क्रोध की जरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दुसरे के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।”
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।
उत्तर :
पक्ष में – वास्तव में हमारे सामाजिक जीवन में क्रोध की अत्यधिक जरूरत पड़ती है। यदि मनुष्य क्रोध को पूरी तरह से त्याग दे. तो दूसरों के द्वारा दिए जाने वाले कष्टों को वह अपने मन से कभी दूर न कर पाए और सदा के लिए घुट-घुट कर कष्ट उठाता रहे। सामाजिक जीवन सुखों-दुखों से मिलकर बनता है। हमें प्राय: दुख अपनों से ही नहीं बल्कि बाहर वालों से मिलते हैं। उस पीड़ा को तभी दूर किया जा सकता है, जब हम अपने मन में छिपे भावों को क्रोध प्रकट करके निकालते हैं।

जो व्यक्ति कभी क्रोध नहीं करता और जीवन में सकारात्मकता हूँढना चाहता है, लोग उसे कमजोर और कायर मानने लगते हैं। छोटे बच्चे भी क्रोध को रोकर या दुख प्रकर कर व्यक्त करते हैं। बिना दुखा के क्रोध उत्पन्न हो नहीं होता। क्रोध में सदा बदले की भावना छिपी हुई नहीं होती, बल्कि इसमें स्वरक्षा की भावना भी मिली होती है। यदि कोई हमें दो-चार टेढ़ी बातें कह जाए, तो उस दुख से बचने के लिए आवश्यक है कि क्रोध करके उसे बतला दिया जाए कि उसका स्थान कौन-सा है और कहाँ है? क्रोध दूसरों में भय को उत्पन्न करता है। जिस पर क्रोध प्रकट किया जाता है, यदि वह डर जाता है तो नम्र होकर पश्चात्ताप करने लगता है। इससे क्षमा का अवसर सामने आता है।

विपक्ष में – क्रोध एक मनोविकार है, जो दुख के कारण उत्पन्न होता है। प्रायः लोग अपनों पर अधिक क्रोध करते हैं। एक शिशु अपनी माता की आकृति से परिचित हो जाने के बाद जान जाता है कि उसे भोजन उसी से प्राप्त होगा। तब भूखा होने पर वह उसे देखते ही रोने लगता है और अपने क्रोध का आभास दे देता है। क्रोध चिड़चिड़ाहट को उत्पन्न करता है।

प्रायः क्रोध करने वाला उस तरफ़ देखता है, जिधर वह क्रोध करता है। क्रोध से क्रोध ही उत्पन्न होता है। क्रोध न करने वाला व्यक्ति अपनी बुद्धि या विवेक पर नियंत्रण रखता है, जिस कारण वह अनेक अनर्थों से बच जाता है। महात्मा बुद्ध, गुरु नानक देव, महात्मा गांधी आदि जैसे महापुरुषों ने अपने क्रोध पर विजय पाकर संसार भर में अपना नाम अमर कर लिया। क्रोध से बचकर हम अपना आत्मिक बल बढ़ा सकते हैं और आंतरिक शक्तियों को अनुकूल कार्यों की ओर लगा सकते हैं।

बाल्मीकि ने क्रोध पर विजय प्राप्त कर आदिकवि होने का यश प्राप्त कर लिया था। क्रोध पर नियंत्रण पाकर वैर से बचा जा सकता है। अतः जहाँ तक संभव हो सके, मनुष्य को क्रोध से बचकर जीवन जीना चाहिए।

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प्रश्न 12.
संकलित अंश में राम का व्यवहार विनयपूर्ण और संयत है, लक्ष्मण लगातार व्यंग्य बाणों का उपयोग करते हैं और परशुराम का व्यवहार क्रोध से भरा हुआ है। आप अपने आपको इस परिस्थिति में रखकर लिखें कि आपका व्यवहार कैसा होता?
उत्तर :
परशुराम के समान किए जाने वाले क्रोध से तो सामने वाले के हृदय में भी क्रोध का भाव ही भरेगा, जिससे क्लेश-भाव बढ़ेगा और समस्या बढ़ जाएगी। लक्ष्मण के समान व्यंग्य-बाणों का लगातार उपयोग भी सामने वाले व्यक्ति को भड़काएगा, जिससे उसका गुस्सा बढ़ेगा। विनय का भाव और संयत व्यवहार किसी क्रोधी व्यक्ति के क्रोध को भी शांत कर देने की क्षमता रखता है। इसलिए ऐसी परिस्थिति में श्रीराम के समान विनयपूर्वक और संयत व्यवहार करूँगा।

प्रश्न 13.
अपने किसी परिचित या मित्र के स्वभाव की विशेषताएं लिखिए।
उत्तर :
मेरे एक परिचित हैं-डॉ. सिंगला। उनका नर्सिंग होम मेरे घर से कुछ ही दूरी पर है। उनका घर भी नर्सिंग होम का ही एक हिस्सा है, जो उनके रोगियों के लिए बहुत उपयुक्त है। किसी भी आपातकाल में वे उनके पास मिनट में पहुँच सकते हैं। मेरे परिचित बहुत साफ-सुधरे रहते हैं। साफ़-सफाई उनके हर काम में दिखाई देती है।

चमचमाते फर्श, साफ-सुथरी दीवारें चुस्त कर्मचारी उनके नर्सिंग होम की पहचान है, जिसमें डॉ. सिंगला के स्वभाव की पहचान साफ़ झलकती है। वे मृदुभाषी हैं। उनके रोगियों का आधा रोग तो उनसे बातचीत करके ही दूर हो जाता है। उन्हें पेड़-पौधे लगाने का शौक है। रंग-बिरंगे फूल, झाड़ियाँ और बेलें उनके घर में महकती रहती हैं। अपने व्यस्त समय में से वे कुछ घड़ियाँ इनके लिए निकाल लेते हैं।

वे बहुत मिलनसार हैं। नगर के बहुत कम लोग ही ऐसे होंगे, जो उन्हें जानते-पहचानते न हों। वे अनेक सामाजिक संस्थाओं से जुड़कर समाज-सेवा के कार्यों में सहयोग दे रहे हैं। वे सभी के सुख-दुख में सहायता करने के लिए सदा तैयार रहते हैं। उनका व्यक्तित्व उन्हें जानने-पहचानने वाले सभी लोगों को एक उत्साह-सा प्रदान करता है।

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प्रश्न 14.
दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए-इस शीर्षक को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।
उत्तर :
घने जंगल में एक खरगोश उछलता-कूदता भागा जा रहा था। वह बड़ा प्रसन्न था और मन-ही-मन सोच रहा था कि उस से तेज़ कोई भी नहीं भाग सकता।
बिना ध्यान भागते हुए वह धीरे-धीरे चलते एक कछुए से टकरा गया। उसके पाँव पर हल्की-सी चोट लगी और वह रुक गया। वह कछुए से बोला-“अरे, तुम्हें चलना तो आता नहीं, पर फिर भी मेरे रास्ते में रुकावट बनते हो।”
कछुआ बोला – “भगवान ने चलने की जितनी क्षमता मुझे दी है, मेरे लिए बही काफी है। मेरा इतनी गति से ही काम चल जाता है।”
खरगोश ने व्यंग्य से कहा – ‘नहीं, नहीं! तुम तो बहुत तेज भागते हो; यहाँ तक कि मुझे भी दौड़ में हरा सकते हो। दौड़ लगाओगे मेरे साथ?
कछुए ने कहा-“नहीं भाई। मैं तुम्हारे सामने क्या हूँ? तुमसे दौड़ कैसे लगा सकता है?”
खरगोश ने उसे उकसाते हुए कहा – “अरे, हिम्मत तो कर। हम दोनों एक ही रास्ते पर जा रहे हैं। चल देखते हैं कि बड़े पीपल के पास वाले तालाब तक पहले कौन पहुँचता है। यदि तू जीत गया तो मैं कभी तुम्हें ‘सुस्त’ नहीं कहूँगा।”
कछुए ने धीमे स्वर में कहा – “अच्छा, मैं कोशिश करता हूँ।”
यह सुनते ही खरगोश तेजी से तालाब की दिशा में भागा। बिना पीछे देखे वह लगातार भागता हो गया। कछुए का कहीं कोई अता-पता नहीं था। खरगोश एक छायादार पेड़ के नीचे बैठ गया। उसने सोचा कि कछुआ शाम से पहले उस तक नहीं पहुँच पाएगा। यदि वह छाया में कुछ देर सुस्ता ले, तो फिर और तेज़ भाग सकेगा। बैठे-बैठे उसे नींद आ गई। जब उसकी आँख खुली, तो हल्का-हल्का अंधेरा होने वाला था। वह तेज गति से तालाब की ओर भागा। पर जब वह तालाब के किनारे पहुँचा, तो कछुआ वहाँ पहले से ही पहुँचकर उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। उसे देख कछुआ धीरे से मुस्कराया। खरगोश खिसियाकर बोला – “अरे, तुम पहुँच गए! मेरी जरा आँख लग गई थी।”
कछुआ बोला – “कोई बात नहीं। ऐसा हो जाता है, पर याद रखना कि तुम्हें दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए। ईश्वर ने सबको अलग-अलग गुण दिए हैं।”

प्रश्न 15.
उन घटनाओं को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।
उत्तर :
पहली घटना – पिछले वर्ष से मैं अपने स्कूल की हॉकी टीम में खेल रहा था। परसों जब शाम को मैं अभ्यास के लिए खेल के मैदान में पहुँचा, तो खेल-कूद के इंचार्ज के निकट एक अनजान लड़का हॉकी लिए खड़ा था। मुझे देखते ही उन्होंने कहा कि तुम्हारी जगह टीम में आज से यह लड़का खेलेगा। यह मेरा भतीजा है और इसने आज ही इस स्कूल में दाखिला लिया है। मैंने कहा कि एक साल से मैं इस टीम का नियमित सदस्य हूँ और मेरा खेल भी अच्छा है। उन्होंने मुझे गुस्से से देखा और कहा कि निर्णय का अधिकार उनका है कि कौन खेलेगा और कौन नहीं।

मैं चुपचाप वहाँ से चला आया। मैं स्कूल के प्राचार्य के पर गाया और उनसे बात की। उन्होंने मुझे समझाया और कहा कि वे स्कूल में इंचार्ज से बात करके मुझे बताएँगे। मैं नहीं जानता कि प्राचार्य महोदय की सर से क्या बात हुई, पर सातवें पीरियड में स्कूल का चपरासी एक नोटिस लाया कि शाम को मुझे खेलने के लिए पहले की तरह ही पहुँचना है। दुसरी घटना- मेरे घर के बाहर कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे।

मैं उन्हें खेलता हुआ देख रहा था। जैसे ही एक लड़के ने बॉल को हिट किया, तो वह उछलकर खिड़की से टकराई और शीशा टूट गया। बच्चों ने शीशा टूटता देखा और वहाँ से भागे। एक छोटा लड़का वहाँ खड़ा था। वह खेल नहीं रहा था, बस खेल देख रहा था। मेरा बड़ा भाई साइकिल पर कहीं बाहर से आ रहा था। उसने लड़कों को भागते और खिड़को के टूटे शीशे को देखा। उसने झपटकर उस छोटे लड़के को पकड़ लिया। इससे पहले कि वह उस पर हाथ उठा पाता, मैंने उसे ऐसा करने से रोका क्योंकि शीशा तोड़ने में लड़के का कोई हाथ नहीं था।

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प्रश्न 16.
अवधी भाषा आज किन-किन क्षेत्रों में बोली जाती है?
उत्तर :
पूर्वी हिंदी की अवधी भाषा जिन-जिन क्षेत्रों में बोली जाती है, वे हैं-उन्नाव, लखनऊ, राय बरेली, फतेहपुर, लखीमपुर खीरी, सीतापुर, बहराइच, बाराबंकी, गोंडा, फैजाबाद, सुल्तानपुर, इलाहाबाद, जौनापुर, मिर्जापुर आदि।

पाठेतर सक्रियता –

1. तुलसी की रचनाएँ पुस्तकालय से लेकर पढ़ें।
2. दोहा और चौपाई के वाचन का एक पारंपरिक ढंग है। लय सहित इनके वाचन का अभ्यास कीजिए।
3. कभी आपको पारंपरिक रामलीला अथवा रामकथा की नाट्य प्रस्तुति देखने का अवसर मिला होगा। उस अनुभव को अपने शब्दों में लिखिए।
4. इस प्रसंग की नाट्य प्रस्तुति करें।
5. कोही, कुलिस, खोरि, उरिन, नेवारे-इन शब्दों के बारे में शब्दकोश में दी गई विभिन्न जानकारियाँ प्राप्त कीजिए। उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से कीजिए।

यह भी जानें –

दोहा : दोहा एक लोकप्रिय मात्रिक छंद है जिसकी पहली और तीसरी पंक्ति में 13-13 मात्राएँ होती है और दूसरी और चौथी पंक्ति में 11-11 मात्राएँ।

चौपाई : मात्रिक छंद चौपाई चार पंक्तियों का होता है और इसकी प्रत्येक पंक्ति में 16 मात्राएँ होती हैं।
तुलसी से पहले सूफी कवियों ने भी अवधी भाषा में दोहा-चौपाई-छंद का प्रयोग किया है जिसमें मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत उल्लेखनीय है।

परशुराम और सहस्रबाहु की कथा

पाठ में ‘सहसबाहु सम सो रिपु मोरा’ का उल्लेख आया है। परशुराम और सहसबाहु के बैर की अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। महाभारत के अनुसार यह कथा इस प्रकार है –
परशुराम ऋषि जमदग्नि के पुत्र थे। एक बार राजा कार्तवीर्य सहसबाहु शिकार खेलते हुए जमदग्नि के आश्रम में आए। जमदग्नि के पास कामधेनु गाय थी, जो विशेष गाय थी। कहते हैं कि वह सभी कामनाएं पूरी करती थी। कार्तवीर्य सहसबाहु ने ऋषि जमदग्नि से कामधेनु गाय को प्राप्त करने की इच्छा प्रकट की। ऋषि द्वारा मना किए जाने पर सहसबाहु ने कामधेनु गाय को बलपूर्वक छीन लिया।

इस पर क्रोधित होकर परशुराम ने सहसबाहु का वध कर दिया। इस कार्य की ऋषि जमदग्नि ने घोर निंदा की थी और परशुराम को प्रायश्चित करने के लिए कहा था। क्रोध में भर कर सहसबाहु के पुत्रों ने ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी थी। इस पर पुनः क्रोधित होकर परशुराम ने पृथ्वी को क्षत्रिय बिहीन करने की प्रतिज्ञा की।

JAC Class 10 Hindi राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
श्रीराम ने परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए क्या किया था?
उत्तर :
सीता स्वयंवर के समय श्रीराम ने शिवजी के धनुष को तोड़ दिया था, जिस कारण परशुराम क्रोध से भर उठे थे। उनके क्रोध को शांत करने के लिए राम ने उनसे विनम्र स्वर में कहा था कि ‘हे नाथ! शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला आपका ही कोई दास होगा। यदि आप कोई आज्ञा देना चाहते हैं, तो मुझे दीजिए।’ उनकी वाणी में सहजता और मिठास थी। वे किसी भी प्रकार से परशुराम के गुस्से को बढ़ाने वाले शब्द नहीं बोले थे।

प्रश्न 2.
परशुराम ने राम को क्या उत्तर दिया था ?
उत्तर :
परशुराम ने राम से कहा था कि सेवक वह होता है जो सेवा करे, न कि शत्रुता की राह पर चले। शत्रु का काम करने वाले से लड़ाई ही करनी चाहिए। जिसने शिवजी के धनुष को तोड़ा है, वह सहस्रबाहु के समान उनका शत्रु है। उसे राज समाज से अलग हो जाना चाहिए। ऐसा न करने पर राज सभा में उपस्थित सभी राजा उनके द्वारा मार दिए जाएंगे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 3.
परशुराम को लक्ष्मण की किस बात पर अधिक गुस्सा आया?
अथवा
यम लक्ष्मण के किन तकों ने परशुराम के क्रोध की आग को भड़काया?
उत्तर :
लक्ष्मण ने शिवजी के धनुष को धनुही कहा था। लक्ष्मण के अनुसार शिव-धनुष इतना कमजोर था कि उस जैसे अनुहियों को वे अपने बचपन में खेल-खेल में ही तोड़ दिया करते थे। वैसे भी पुराने और जर्जर धनुषों को तोड़ देने से न कोई लाभ होता है और न हानि। : शिवजी के धनुष के इस अपमान से परशुराम का क्रोध बढ़ गया था।

प्रश्न 4.
लक्ष्मण ने परशुराम से यह क्यों कहा था कि उन्हें गाली देना शोभा नहीं देता?
उत्तर :
गाली असभ्य, मूर्ख और शक्तिहीन लोग दिया करते हैं। परशुराम वीर, धैर्यवान और क्षोभरहित थे। यदि उन्हें क्रोध आया था, तो वे अपने अस्त्र-शस्त्रों के प्रयोग से उसे प्रकट कर सकते थे न कि गाली देकर; क्योंकि शुरवीर युद्ध-भूमि में अपनी बीरता दिखाते हैं। इसलिए लक्ष्मण ने परशुराम से कहा था कि उन्हें गाली देना शोभा नहीं देता।

प्रश्न 5.
परशुराम को ‘नाथ’ कहकर किसने और क्या संबोधित किया था?
उत्तर :
परशुराम को श्रीराम ने ‘नाथ’ कहकर संबोधित किया था। उन्होंने बड़े ही विनयशीलता के साथ कहा था कि शिव-धनुष तोड़ने वाला आपका कोई दास ही होगा। आपका क्या आदेश है, आप मुझसे कह सकते हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 6.
सेवक धर्म के बारे में परशुराम ने श्रीराम से क्या कहा था?
उत्तर :
जब श्रीराम ने परशुराम से कहा कि शिव-धनुष तोड़ने वाला उनका कोई सेवक अथवा दास ही होगा, तो परशुराम ने कहा कि सेवक वह होता है जो सेवा का कार्य करे। लड़ाई अथवा उदंडता करने वाला सेवक नहीं कहलाता। ऐसे व्यक्ति से शत्रुता करनी चाहिए।

प्रश्न 7.
शिव धनुष तोड़ने वाले के विषय में परशराम ने क्या-क्या कहा?
अथवा
स्वयंवर स्थल पर शिवधनुष तोड़ने वाले को परशुराम ने किस प्रकार धमकाया ?
उत्तर :
परशुराम भरी सभा में श्रीराम के सम्मुख घोषणा करते हुए कहते हैं कि जिस किसी ने भी उनके आराध्य भगवान शिव का धनुष तोड़ा है, वह सहस्रबाहु के समान उनका शत्रु है। वह जो कोई भी हो स्वयं मेरे सामने आ जाए। यदि वह सामने नहीं आएगा, तो इस सभा में उपस्थित सभी राजा मारे जाएँगे।

प्रश्न 8.
भरी सभा में लक्षण के सम्मुख परशुराम अपनी वीरता का बखान किस प्रकार करते हैं?
अथवा
कि परशुराम ने अपनी किन विशेषताओं के उल्लेख के द्वारा लक्ष्मण को डराने का प्रयास किया?
उत्तर :
लक्ष्मण द्वारा भड़काने पर परशुराम अत्यंत क्रोध में आ गए। क्रोधावेश में वे अपने बाहुबल एवं बीरता का परिचय देते हुए कहते हैं कि वे बाल ब्रह्मचारी हैं। उनका स्वभाव अत्यंत क्रोधी है। वे विश्वभर में क्षत्रिय कुल के शत्रु के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने अपनी वीरता एवं बाहुबल से कई बार पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन कर दिया और बार-बार ब्राहमणों को जीता राज्य दान में दे दिया। सहसबाहु की भुजाओं को भी उन्होंने अपने फरसे से ही काटा था।

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प्रश्न 9.
परशुराम ने लक्ष्मण को अपने फरसे का किस प्रकार डर दिखाया?
उत्तर :
परशुराम ने लक्ष्मण को अपने क्रोध तथा फरसे से डराते हुए कहा कि राजा के बेटे! तू अपने माता-पिता को चिंता में क्यों डाल रहा है। मेरे हाथ में जो फरसा है, वह बड़ा ही भयानक है। यह छोटे-बड़े किसी में भेद नहीं करता। यह इतना भयानक है कि गर्भ में पलने वाले बच्चों का भी नाश कर देता है।

प्रश्न 10.
लक्ष्मण के अनुसार रषकुल के लोग किन-किन पर दया करते थे?
उत्तर :
उल्लर लक्ष्मण ने परशुराम से कहा कि रघुकुल में देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त और गौ पर सदा दया की जाती है। इन पर कभी कोई अत्याचार अथवा बार नहीं करता। इन्हें मारने से उन्हें पाप लगता है तथा उनके कुल की अपकीर्ति होती है। यदि कोई गलती से उन्हें मार दे, तो क्षमा मांगनी पड़ती है।

प्रश्न 11.
‘गाधिसू नु कर हृदय हसि मुनिहि हरियो सूझ’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
उक्त पंक्ति में मुनि विश्वामित्र मन-ही-मन हँसते हुए कहते हैं कि परशुराम को चारों ओर हरा-ही-हरा दिखाई दे रहा है। दूसरे अर्थों में कहा जाए तो वे राम-लक्ष्मण को साधारण शन्निय समझ रहे है।

प्रश्न 12.
परशुराम की स्वभावगत विशेषताएँ क्या हैं? पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
परशुराम ने अपने विषय में कहा कि वे बाल-ब्रह्मचारी हैं। वे स्वभाव के अति क्रोधी हैं। सारा संसार जानता है कि वे क्षत्रिय वंश के नाशक हैं। उन्होंने पृथ्वी से क्षत्रिय राजाओं को समाप्त कर देने की प्रतिज्ञा कर रखी है। न जाने उन्होंने कितनी बार अपने बाहुबल से पृथ्वी के क्षत्रिय राजाओं का वध कर उनके राज्य ब्राहमणों को सौंप दिए हैं। वे सहस्रबाहु जैसे अपार बलशाली की भुजाओं को काट देने वाले पराक्रमी वीर हैं।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 13.
‘गाधिसूनु’ किसे कहा गया है? वे मुनि की किस बात पर मन ही मन मुस्कुरा रहे थे?
उत्तर :
‘गाधिसूनु’ विश्वामित्र जी के लिए कहा गया है। वे मुनि परशुराम की बातों पर मन ही मन हंसते हैं कि परशुराम जी को चारों ओर हरा ही हरा दिखाई दे रहा है। दूसरे अर्थों में कहा जाए तो वे राम-लक्ष्मण को साधारण क्षत्रिय समझ रहे हैं।

पठित काव्यांश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न – 

दिए गए काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पी प्रश्नों के उचित विकल्प चुनकर लिखिए –

1. नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।
आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
सेवकु सो जो करें सेवकाई। अरि करनी करि करिअ लराई।।
सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।

(क) श्रीराम ने परशुराम के लिए किस शब्द का संबोधन किया?
(i) नाथ
(ii) भजनहारी
(iii) दास
(iv) समु
उत्तर :
(i) नाथ

(ख) भंजनिहारा का अर्थ है –
(i) सेवक
(ii) मित्र
(iii) शत्रु
(iv) टुकड़े करने वाला
उत्तर :
(iv) टुकड़े करने वाला

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

(ग) धनुष था
(i) शिव-धनुष
(ii) ब्रह्म-धनुष
(iii) राम-धनुष
(iv) विष्णु परशु
उत्तर :
(i) शिव-धनुष

(घ) परशुराम शिव-धनुष तोड़ने वाले को किसके समान अपना शत्रु मानते हैं?
(i) सहस्राबाहु के समान
(ii) दसानन के समान
(iii) दशरथ के समान
(iv) बाणासुर के समान
उत्तर :
(i) सहस्राबाहु के समान

(ङ) किसने शिव-धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई?
(i) रावण
(ii) लक्ष्मण
(ii) राम
(iv) परशुराम
उत्तर :
(ii) गम

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

2. बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारूरू। चहत उड़ावन कि पहारू॥
इहाँ कुम्हड़ बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाही।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥

(क) लखनु कौन है?
(i) लक्ष्मण
(iii) परशुराम
(iv) विश्वामित्र
उत्तर :
(i) लक्ष्मण

(ख) परशुराम किस प्रकार लक्ष्मण को डरा रहे हैं?
(i) हाल दिखाकर
(ii) अजगव दिखाकर
(iii) फरसा दिखाकर
(iv) धनुष-बाण दिखाकर
उत्तर :
(iii) फरसा दिखाकर

(ग) ‘कुम्हड़ बतिया’ का यहाँ क्या भाव है?
(i) बहुत वीर
(ii) बहुत नाजुक
(iii) बहुत कठोर
(iv) बहुत शंकालु
उत्तर :
(ii) बहुत नाजुक

(घ) कुम्हड़ बतिया किसको देखकर मर जाती है?
(i) फरसा
(ii) धूप
(iii) अँगूठा
(iv) तरजनी
उत्तर :
(iv) तरजनी

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

(ङ) लक्ष्मण की मृदु वाणी सुनकर परशुराम कैसी प्रतिक्रिया कर रहे हैं?
(i) परशुराम क्रोध कर रहे हैं।
(ii) परशुराम के क्रोध को शांत कर रही है।
(iii) (i) और (ii) दोनों विकल्प
(iv) कोई नहीं
उत्तर :
(i) परशुराम क्रोध कर रहे हैं।

काव्यबोध संबंधी बहुविकल्पी प्रश्न –

काव्य पाठ पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्नों के उत्तर वाले विकल्प चुनिए –

(क) ‘राम-लक्ष्मण’ का संवाद किससे हुआ?
(i) अयोध्यावासियों से
(ii) बालकों से
(iii) परशुराम से
(iv) लंकावासियों से
उत्तर :
(iii) परशुराम से

(ख) राम-लक्ष्मण परशुराम संवाद में किस भाषा का प्रयोग किया गया है?
(i) ब्रजभाषा
(ii) मैथिली भाषा
(iii) अवधी भाषा
(iv) मगही भाषा
उत्तर :
(ii) अवधी भाषा

(ग) तुलसीदास जी ने प्रस्तुत पद में किन छंदों का प्रयोग किया है?
(a) दोहा-चौपाई
(ii) रोला
(ii) सोरठा
(iv) हरिगीतिका
उत्तर :
(i) दोहा-चौपाई

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

(घ) तुलसीदास ने ‘भृगुकुल केतु’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त किया है।
(i) विश्वामित्र
(ii) लक्ष्मण
(ii) परशुराम
(iv) वशिष्ठ
उत्तर :
(iii) परशुराम

(अ) ‘अपमय खाँड न अखमय’ में अपमय’ का क्या अर्थ है?
(d) गन्ना
(ii) कुठार
(iii) लोहे से बना
(iv) खाँड से बना
उत्तर :
(iii) लोहे से बना

सप्रसंग व्याख्या, अर्थगता संबंधो एवं सौंयँ-सरहुना संबंधी प्रश्नोत्तर – 

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

1. नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥
आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही॥
सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।
सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा॥
सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
सुनि मुनिबचन लखन मुसकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।
बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाई॥
येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू॥
रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न संभार।
धनही सम तिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।

शब्दार्थ : नाथ – स्वामी। संभुधनु – शिवजी का धनुष। भंजनिहारा – तोड़ने वाला। आयेसु – आज्ञा। रिसाइ – क्रोध करना। कोही – क्रोधी। सो – वह। सेवकाई – सेवा। अरि – शत्रु। जेहि – जिसने। रिपु – शत्रु। बिलगाउ – अलग होना। लरिकाई – बचपन में। अवमाने – अपमान करना। रिस – गुस्सा करना। भृगुकुलकेतू – ब्राह्मण कुल के केतु, परशुराम। सम – समान। तिपुरारि – भगवान, शिव।

प्रसंग : प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संबाद’ से लिया गया है। मूल रूप से यह गोस्वामी तुलसीदास के द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के बालकांड में निहित है। गुरु विश्वामित्र के साथ राम और लक्ष्मण सीता स्वयंवर के अवसर पर राजा जनक की सभा में गए थे। राम ने वहाँ शिवजी के धनुष को तोड़ दिया था। परशुराम ने क्रोध में भरकर इसका विरोध किया था। तब राम ने उन्हें शांत करने का प्रयत्न किया था।

व्याख्या : श्रीराम ने परशुराम को संबोधित करते हुए कहा कि ‘हे नाथ! भगवान शिव के धनुष को तोड़ने वाला आपका कोई दास ही होगा। क्या आज्ञा है, आप मुझसे क्यों नहीं कहते?’ यह सुनकर क्रोधी मुनि गुस्से में भरकर बोले-“सेवक वह होता है, जो सेवा का काम करे। शत्रु का काम करने वाले से लड़ाई ही करनी चाहिए। हे राम! जिसने भगवान शिव के धनुष को तोड़ा है, वह सहस्रबाहु के समान ही मेरा शत्रु है। वह इस समाज को छोड़कर अलग हो जाए, नहीं तो इस सभा में उपस्थित सभी राजा मारे जाएंगे।”

मुनि के वचन सुनकर लक्ष्मण मुस्कुराए और परशुराम का अपमान करते हुए बोले-‘हे स्वामी! अपने बचपन में हमने बहुत-सी धनुहियाँ तोड़ डाली थी। किंतु आपने ऐसा क्रोध कभी नहीं किया। आपको इसी धनुष पर इतनी ममता किस कारण से है?” यह सुनकर भृगु वंश की ध्वजा के रूप में परशुराम गुस्से में भरकर कहने लगे-“अरे राजपुत्र! अमराज के वश में होने के कारण तुझे बोलने में कुछ होश नहीं है। सारे संसार में प्रसिद्ध भगवान शिव का धनुष क्या धनुही के समान है? तुम्हारे द्वारा शिवजी के धनुष को धनुही कहना तुम्हारा दुस्साहस है।”

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर :

1. पद में निहित भावों को स्पष्ट कीजिए।
2. परशुराम को ‘नाथ’ कहकर किसने अपनी बात कही थी?
3. परशुराम का स्वभाव कैसा था?
4. शिव धनुष तोड़ने वाले को परशुराम ने किसके समान शत्रु माना था?
5. परशुराम ने क्या चेतावनी दी थी?
6. परशुराम के वचनों को सुनकर लक्ष्मण के चेहरे पर कैसे भाव प्रकट हुए?
7. लक्ष्मण ने शिव धनुष को क्या कहा था?
8. लक्ष्मण की किस बात को सुनकर परशुराम को अधिक क्रोध आया था?
9. परशुराम के अनुसार लक्ष्मण किसके बस में होकर बोल रहा था?
10. परशुराम ने राम के वचनों का उत्तर कैसे दिया?
उत्तर :
1. रामचरितमानस के बालकांड से लिए गए इस पद के अनुसार राम ने सौता स्वयंवर के समय शिव के धनुष को तोड़ दिया था, जिस कारण परशुराम क्रोध से भर उठे। राम ने उन्हें मीठे शब्दों से शांत करना चाहा, लेकिन लक्ष्मण ने व्यंग्य भरे शब्दों से उनके क्रोध को भड़का दिया और उनसे जानना चाहा कि यह साधारण-सा धनुष उन्हें क्यों प्रिय है।
2. परशुराम को राम ने ‘नाथ’ कहकर अपनी बात कही थी।
3. परशुराम का स्वभाव अभिमान और क्रोध से भरा हुआ था।
4. परशुराम ने शिव धनुष तोड़ने वाले को सहस्त्रबाहु के समान अपना शत्रु माना था।
5. परशुराम ने चेतावनी दी थी कि यदि शिव का धनुष तोड़ने वाले को सभा से अलग नहीं किया गया, तो वे सभा में उपस्थित सभी राजाओं का वध कर देंगे।
6. परशुराम द्वारा सभी राजाओं का वध कर देने की बात सुनकर लक्ष्मण के चेहरे पर व्यंग्यपूर्ण मुसकराहट का भाव प्रकट हो गया।
7. लक्ष्मण ने शिवधनुष को धनुही कहा था।
8. जब लक्ष्मण ने कहा कि उन्होंने अपने लड़कपन में बैसी अनेक धनुहियाँ खेल-खेल में तोड़ दी थी, तो यह सुनकर परशुराम को अधिक क्रोध आया।
9. परशुराम के अनुसार लक्ष्मण काल अर्थात मृत्यु के बस में होकर बिना सोचे-समझे बोल रहा था।
10. परशुराम ने राम के विनयपूर्वक कहे गए शाब्दों का उत्तर क्रोध में भरकर दिया। उन्होंने कहा कि तुम कैसे सेवक हो ? सेवक तो वह होता है, जो सेवा करता है। जो शत्रु जैसा व्यवहार करता है, उससे लड़ाई ही की जानी चाहिए।

सौदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. कवि ने किस प्रकार पद में नाटकीयता उत्पन्न की है?
2. किस तत्त्व ने पद को स्वाभाविकता का गुण प्रदान किया है?
3. पद में किस काव्य-गुण की प्रधानता है?
4. कवि ने किस छंद का प्रयोग किया है?
5. कथन को संगीतात्मकता का गुण कैसे प्राप्त हुआ है?
6. कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है?
7. किस काव्य-रस का प्रयोग किया गया है?
8. पद में से शिव और परशुराम के दो-दो पर्यायवाची छाँटिए।
9. पद में प्रयुक्त अनुप्रास अलंकार के उदाहरण चुनकर लिखिए।
उत्तर :
1. तुलसीदास ने परशुराम के क्रोधपूर्ण स्वभाव और लक्ष्मण की निर्भयता को आधार बनाकर पद में नाटकीयता उत्पन्न की है।
2. संवादात्मकता ने कथन को स्वाभाविकता का गुण प्रदान किया है।
3. ओज गुण प्रधान है।
4. दोहा-चौपाई छंद का प्रयोग है।
5. स्वरमैत्री ने कवि को संगीतात्मकता का गुण प्रदान किया है।
6. अवधी भाषा।
7. वीर रस का प्रयोग है।
8. शिव – संभु, त्रिपुरारि।
परशुराम – परसुधरहि, भृगुकुलकेतू।
9. अनुप्रास –
आयेसु काह कहिअ किन,
सेवकु सो जो करै सेवकाई.
अरिकरनी करि करिअ,
सहसबाहु सम सो, सकल संसार
जिलगाउ विहाइ।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

2. लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें॥
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू॥
बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा॥
बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही॥
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही॥
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही॥
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा॥
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
गर्भह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर॥

शब्दार्थं : छति – हानि। लाभु – लाभ। नयन – नया। भोरे – धोखे। दोसू – दोष। रोसू – क्रोध। सठ – दुष्ट। सुभाउ – स्वभाव। जड़ – मूर्ख। मोही – मुझे। बिस्व – संसार, विश्व। विदित – विख्यात। महिदेव – ब्राह्मण। बिलोकु – देखकर। महीपकुमार – राजकुमार। अर्भक – बच्चा। दलन – नाश।

प्रसंग : प्रस्तुत पद गोस्वामी तुलसीदास के द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के बालकांड से लिया गया है। ‘सीता स्वयंवर’ के समय श्रीराम ने शिव का धनुष तोड़ दिया था, जिस कारण परशुराम क्रोध में भर गए। लक्ष्मण के द्वारा व्यंग्य करने पर परशुराम का गुस्सा भड़क गया, पर उनके गुस्से का लक्ष्मण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था।

व्याख्या : लक्ष्मण ने हंसकर कहा कि ‘हे देव ! सुनिए ! हमारे लिए तो सभी धनुष एक-से ही हैं। पुराने धनुष को तोड़ने में क्या लाभ और क्या हानि! श्री रामचंद्र ने इसे नया समझ कर धोखे से देखा था। फिर यह छुते ही टूट गया। इसमें रघुकुल के स्वामी श्रीराम का कोई दोष नहीं है। हे मुनि! आप बिना किसी कारण के क्रोध क्यों करते हैं?’ परशुराम ने अपने फ़रसे की ओर देखकर कहा-“अरे दुष्ट! तूने मेरा स्वभाव नहीं सुना? मैं तुम्हें बालक समझकर नहीं मार रहा हूँ। अरे मूर्ख ! क्या तू मुझे निरा मुनि हो समझता है।

मैं बालब्रह्मचारी और अत्यंत क्रोधी स्वभाव का हूँ। मैं क्षत्रिय कुल का शत्रु विश्व भर में प्रसिद्ध हूँ। आपनी भुजाओं के बल से मैंने पृथ्वी को राजाओं से रहित कर दिया और कई बार उसे ब्राह्मणों को दे डाला। हे राजकुमार! सहस्रबाहु की भुजाओं को काट देने वाले मेरे इस फरसे को देख ! अरे राजा के बालक! तू अपने माता-पिता को चिंता के वश में न कर। मेरा फरसा बड़ा भयानक है। यह गर्भ के बच्चों का भी नाश करने वाला है। यह छोटे-बड़े किसी की भी परवाह नहीं करता।”

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. लक्ष्मण सभी धनुषों को कैसा मानते थे?
3. लक्ष्मण के अनुसार राम ने धनुष को किस धोखे से छू लिया था?
4. लक्ष्मण के अनुसार धनुष तोड़ने में राम का कोई दोष क्यों नहीं था?
5. परशुराम लक्ष्मण का वध क्यों नहीं कर रहे थे?
6. परशुराम विश्व भर में अपने किन गुणों के कारण विख्यात थे?
7. परशुराम ने अपनी भुजाओं के बल से क्या किया था?
8. परशुराम ने क्रोध में लक्ष्मण को कौन-सा अस्त्र दिखाया था?
9. परशुराम का फ़रसा क्या कर सकने की योग्यता रखता था?
10. पद के अनुसार परशुराम के परिचय को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. गोस्वामी तुलसीदास ने लक्ष्मण के व्यंग्य-भावों तथा परशुराम के गुस्से को प्रकट करते हुए स्पष्ट किया है कि परशुराम को अपने बल-पराक्रम पर घमंड था, पर लक्ष्मण उनके बल से कदापि प्रभावित नहीं थे। वे उनसे डरते नहीं थे।
2. लक्ष्मण सभी धनुषों को एक-सा मानते थे। उनकी दृष्टि में उनमें कोई अंतर नहीं था।
3. लक्ष्मण के अनुसार राम ने शिवजी के धनुष को नया धनुष समझकर छू लिया था।
4. लक्ष्मण के अनुसार धनुष को तोड़ने में राम का कोई दोष नहीं था। धनुष पुराना था और राम के छूते ही वह टूट गया था।
5. परशुराम लक्ष्मण पर अत्यंत क्रोधित थे, पर वे उसे बालक समझकर उसका बध नहीं कर रहे थे।
6. विश्व भर में परशुराम अपने क्रोध और ब्रह्मचर्य के कारण प्रसिद्ध थे। वे क्षत्रिय वंश को अपना शत्रु मानते थे और उसे कई बार नष्ट करने के कारण विख्यात थे।
7. परशुराम ने अपनी भुजाओं के बल से पृथ्वी को अनेक बार क्षत्रियों से रहित करके उनका राज्य ब्राह्मणों को दान में दे दिया था।
8. परशुराम ने क्रोध में भरकर लक्ष्मण को अपना फरसा दिखाया था, जिसने सहस्रबाहु की भुजाओं को काट दिया था।
9. परशुराम का फ़रसा माँ के गर्भ में विद्यमान बच्चों को भी नष्ट कर देने की योग्यता रखता था।
10. परशुराम बाल ब्रह्मचारी, महाक्रोधी, क्षत्रियों के दुश्मन और अपार बलशाली ब्राह्मण थे। उन्होंने क्षत्रिय राजाओं का नाश किया था।

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. पद की भाषा कौन-सी है?
2. कवि ने किस छंद का प्रयोग किया है?
3. गेयता के गुण का आधार क्या है?
4. किस काव्य-रस की प्रधानता है?
5. इस पद को किस मूल ग्रंथ से लिया गया है?
6. किस काव्य-गुण का प्रयोग किया गया है?
7. पद से दो तद्भव शब्द छाँटकर लिखिए।
8. लक्ष्मण की शब्दावली में किन भावों की प्रमुखता है?
9. पद से दो तत्सम शब्द छाँटकर लिखिए।
10. प्रयुक्त अलंकारों को छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
1. पद की भाषा अवधी है।
2. दोहा-चौपाई छंद।
3. स्वरमैत्री।
4. बीर रस।
5. रामचरितमानस (बालकांड)।
6. ओज गुण।
7. धनुष, केवल
8. व्यंग्य, क्रोध
10. अनुप्रास –

  • हसि हमरे
  • नहि तोही
  • जून धनु, मुनि बिनु
  • काज करिअ कता
  • सठ सुनहि सुभाउ
  • बालकु बोलि बधौं
  • बाल ब्रह्मचारी
  • बिपुल बार
  • जड़ जानहि
  • भुजबल भूमि भूप

अतिशयोक्ति –

  • छुअत टूट

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

3. बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी॥
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूंकि पहा ॥
इहाँ कुम्हड़बतिआ कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥
देखि कुठारू सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।
भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सही रिस रोकी॥
सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।
बधे पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
जो बिलोकि अनुचित कहे. छमहु महामुनि धीर।
सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गंभीर।।

शब्दार्थ : बिहसि – हँस कर। मृदु बानी – कोमल वाणी। महाभट – महायोद्धा। मानी – समझते हैं। कुठारु – कुल्हाड़ी। कुम्हड़बतिआ – बहुत कमजोर, निर्बल व्यक्ति, काशीफल या कुम्हड़े का बहुत छोटा फल। तरजनी – अँगूठे के पास की उँगली। सरासन – धनुष। जनेउ – यज्ञोपवीत। बिलोकी – देखकर। रिस – गुस्सा। सुर – देवता। महिसुर – ब्राह्मण। हरिजन – भागवान के भक्त। अपकीरति – अपयश। मारतहू — आप मारें तो भी। पा – पैर। कोटि – करोड़ों। कुलिस – बज। बिलोकि – देखकर। गिरा – वाणी।

प्रसंग : प्रस्तुत पद तुलसीदास के द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के बालकांड से लिया गया है। सीना-स्वयंबर के समय श्रीराम ने शिवजी के धनुष को तोड़ दिया था, जिस कारण परशुराम क्रोधित हो गए थे। लक्ष्मण ने उन पर व्यंग्य किया था, जिससे परशुराम का गुस्सा भड़क उठा था।

व्याख्या : लक्ष्मण ने हँस कर कोमल वाणी में कहा-“अहो ! मुनीश्वर तो अपने आप को बड़ा वीर योद्धा समझते हैं। मुझे देखकर ये बार-बार अपनी कुल्हाड़ी दिखाते हैं। ये तो फैंक से पहाड़ उड़ा देना चाहते हैं। यहाँ कोई काशीफल या कुम्हड़े के फूल से बना छोटा-सा फल नहीं है, जो आपके अंगूठे के साथ वाली उँगली को देखकर ही मर जाए। मैंने जो कुछ कहा है, वह आपके कुल्हाड़े और धनुष-बाण को देखकर ही अभिमान सहित कहा है। भृगुवंशी समझकर और आपका यज्ञोपवीत देखकर आप जो कुछ कहते हैं, उसे मैं अपना गुस्सा रोककर सह लेता हूँ।

देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त और गौ-इन पर हमारे कुल में अपनी वीरता का प्रदर्शन नहीं किया जाता, क्योंकि इन्हें मारने से पाप लगता है और इनसे हार जाने पर अपकीर्ति होती है। इसलिए यदि आप मारे, तो भी आपके पैर ही पड़ना चाहिए। आपका एक-एक वचन ही करोड़ों वजों के समान है। धनुष-बाण और कुल्हाड़ा तो आप व्यर्थ ही धारण करते हैं। आपके इस धनुष-बाण और कुल्हाड़े को देखकर मैंने कुछ अनुचिता कहा हो, तो हे धौर महामुनि। आप क्षमा कीजिए।” यह सुनकर भृगु वंशमणि परशुराम क्रोध के साथ गंभीर वाणी में बोले।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर।

1. पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. परशुराम बार-बार अपना कुल्हाड़ा किसे दिखा रहे थे?
3. कवि के द्वारा प्रयुक्त काव्य रूढ़ि और समाज में चली आने वाली मान्यता को स्पष्ट कीजिए।
4. लक्ष्मण ने परशुराम से अभिमानपूर्वक बात क्यों की थी?
5. लक्ष्मण ने अपना गुस्सा रोककर परशुराम से बात क्यों की थी?
6. रघुकुल के लोग किन-किन पर वीरता का प्रदर्शन नहीं करते थे?
7. सूर्यवंशी जिन पर दया करते थे, उन्हें क्यों नहीं मारना चाहते थे?
8. लक्ष्मण ने परशुराम को मारने की अपेक्षा क्या करने की बात कही थी?
9. लक्ष्मण ने मुनि को अनुचित शब्द कहने के बाद उनसे क्या माँगा?
10. लक्ष्मण के क्रोध-भाव को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर :
1. लक्ष्मण ने परशुराम के द्वारा अभिमानपूर्वक कहे गए शब्दों पर व्यंग्य किया और उन्हें बताया कि उनके वंश में ब्राह्मणों पर शस्त्र नहीं उठाया जाता: भले ही वे बुरा व्यवहार क्यों न करें।
2. परशुराम लक्ष्मण को डराने के लिए उन्हें बार-बार अपना कुल्हाड़ा दिखा रहे थे।
3. युगों से समाज में एक मान्यता चली आ रही है कि काशीफल की बेल पर खिलने वाले फूल या छोटे फल की ओर तर्जनी से इशारा किया जाए, तो वह सूख कर गिर जाता है। छोटी आयु के लक्ष्मण की ओर परशुराम बार-बार ऊँगली उठाकर उन्हें डराने का प्रयत्न कर रहे थे। इसलिए लक्ष्मण ने उनसे कहा था कि वे काशीफल की बेल पर लगे फूल या फल की तरह कमजोर नहीं हैं, जो उनकी उठी उँगली से नष्ट हो जाएंगे।
4. लक्ष्मण ने परशुराम के कुल्हाड़े और धनुष-बाण देखकर उन्हें क्षत्रिय समझ लिया था और इसी कारण से उनसे अभिमानपूर्वक बात की थी।
5. लक्ष्मण जान गए थे कि परशुराम भृगुवंशी हैं। उनके गले में यज्ञोपवीत भी था। इसलिए उन्होंने अपना गुस्सा रोककर परशुराम से बात की थी।
6. रघुकुल के लोग देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त और गाय पर बोरता का प्रदर्शन नहीं करते थे।
7. सूर्यवंशी जिन पर दया करते थे, उन्हें कभी मारना नहीं चाहते थे क्योंकि उन्हें मारने से पाप लगता था और उनसे हार जाने पर अपयश मिलता था।
8. लक्ष्मण ने परशुराम को मारने की अपेक्षा उनके पाँव में पड़ने और क्षमा माँगने की बात कही थी।
9. लक्ष्मण ने मुनि को अनुचित शब्द कहने के बाद उनसे क्षमा माँगी थी।
10. लक्ष्मण अति क्रोधी स्वभाव का था। वह परशुराम के बड़बोलेपन को झेलने वाला नहीं था। वह निर्भीक, साहसी और वीर था।

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. कवि के द्वारा किस भाषा का प्रयोग किया गया है?
2. किस काव्य-रस की प्रधानता है?
3. किस काव्य-गुण का प्रयोग किया गया है?
4. किन छंदों का प्रयोग किया गया है?
5. किस प्रयोग ने संगीतात्मकता की सृष्टि की है?
6. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है?
7. काव्यांश में प्रयुक्त दो तत्सम शब्दों को छाँटकर लिखिए।
8. लक्ष्मण की भाषा में किसकी प्रधानता है?
9. काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
1. अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है।
2. वीर रस का प्रयोग है।
3. ओज गुण विद्यमान है।
4. दोहा-चौपाई छंद।
5. स्वरमैत्री के प्रयोग ने संगीतात्मकता की सृष्टि की है।
6. व्यंजना शब्द-शक्ति विद्यमान है।
7. मृद. कुल
8. व्यंग्य, बाक्वीरता।
9. अनुप्रास
मुनीस् महाभट मानी,
कछु कहा; कछु कहहु, कोटि कुलिस,
सुर, महिसुर: सुनि सरोष,
धरहु धनु
गिरा गंभीर पुनरुक्ति-प्रकाश
पुनि-पुनि उपमा
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

4. कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल्ल घालकु॥
भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू॥
कालकवलु होइहि छन माहीं। कहाँ पुकारि खोरि मोहि नाहीं ॥
तुम्ह हटकहु जौं चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।
लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बस्नै पारा।।
अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भांति बहु बरनी।।
नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू॥
बीरबती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
सूर समर करनी करहि कहि न जनावहिं आए।
विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथाहिं प्रतापु॥

शब्दार्थ : कौसिक – विश्वामित्र। भानु बंस – सूर्यवंशी। राकेस – चंद्र। निपट – बिलकुल। निरंकुसु – उदंड। अवधु – मूर्ख। कालकवलु – काल का ग्रास। खोरि – दोष। मोहि – मेरा। हटकहु – मना करो, रोको। उबारा – बचाना। रोषु – क्रोध। बरनी – वर्णन। दुसह – असह्य। सूर – शूरवीर। समर = बुद्ध। रन – युद्ध। रिपु – शत्रु।

प्रसंग : प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ से लिया गया है. मूल रूप से यह तुलसीदास द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के बालकांड में निहित है। सीता स्वयंवर के समय राम ने शिवजी के धनुष को तोड़ दिया था, जिस कारण परशुराम क्रोध से भर गए थे। लक्ष्मण ने उन पर व्यंग्य किया था, जिस कारण उनका क्रोध और अधिक बढ़ गया था।

व्याख्या : परशुराम ने राम और लक्ष्मण के गुरु विश्वामित्र को संबोधित करते हुए कहा कि ‘हे विश्वामित्र! सुनो! यह बालक बड़ा कुबुद्धिपूर्ण और कुटिल है। काल के वश होकर यह अपने कुल का घातक बन रहा है। यह सूर्यवंशरूपी चंद्रमा का कलंक है। यह बिलकुल उदंड, मूर्ख और निडर है। अभी क्षण भर बाद यह मौत के देवता काल का ग्रास बन जाएगा। मैं पुकार कर कहे देता हूँ कि इसके मर जाने के बाद फिर मुझे दोष नहीं देना। यदि तुम इसे बचाना चाहते हो, तो इसे हमारा प्रताप, बल और क्रोध बतलाकर ऐसा करने से रोक दो?’ लक्ष्मण ने तब कहा-‘हे मुनि! आपका सुयश आपके रहते और कौन वर्णन कर सकता है ? आपने पहले ही अनेक बार अपने मुँह से अपनी करनी का कई तरह से वर्णन किया है।

यदि इतने पर भी आपको संतोष न हुआ हो, तो फिर कुछ कह डालिए। क्रोध रोककर असह्य दुख मत सहो। आप वीरता का व्रत धारण करने वाले, धैर्यवान और ओभ रहित हैं। गाली देते हुए आप शोभा नहीं देते। शूरवीर तो युद्ध में अपनी शूरवीरता का कार्य करते हैं। वे बातें कहकर अपनी वीरता को प्रकट नहीं करते। शत्रु को युद्ध में पाकर कायर ही अपने प्रताप की डींगें हाँका करते हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. परशुराम ने लक्ष्मण को बचाने के लिए किसे संबोधित किया ?
3. परशुराम के अनुसार लक्ष्मण की विशेषताएँ कौन-कौन सी थी ?
4. परशुराम ने विश्वामित्र से अपने कौन-कौन से गुण लक्ष्मण को बताने के लिए कहा था?
5. लक्ष्मण ने परशुराम को क्या सुझाव दिया?
6. परशुराम राजसभा में क्या बता चुके थे ?
7. परशुराम क्या रोककर अधिक दख सह रहे थे?
8. लक्ष्मण ने परशुराम को किन-किन विशेषताओं का स्वामी माना था?
9. शूरवीर अपनी वीरता का परिचय किस प्रकार देता है?
10. लक्ष्मण की किस बात पर परशुराम नाराज थे?
उत्तर :
1. परशुराम ने विश्वामित्र को सुझाव दिया था कि वे लक्ष्मण को उनके गुण बताकर व्यर्थ बोलने और उकसाने से रोके, ताकि परशुराम उसका वध न करे। लेकिन लक्ष्मण ने उन्हें वीरता का पालन करने की शिक्षा दे दी थी।
2. परशुराम ने लक्ष्मण को बचाने के लिए ऋषि विश्वामित्र को संबोधित किया।
3. परशुराम के अनुसार लक्ष्मण मूर्ख, कुबुद्धिपूर्ण और कुटिल था। वह सूर्यवंशरूपी चंद्रमा का कलंक था। यह उदंड, मुर्ख और निडर था।
4. परशुराम ने विश्वामित्र से अपने बारे में लक्ष्मण को यह बताने के लिए कहा था कि वे बड़े प्रतापी, अति बलशाली और अत्यंत क्रोधी हैं।
5. लक्ष्मण ने परशुराम को सुझाव दिया कि उन्हें अपना सुयश अपने मुँह से स्वयं प्रकट करना चाहिए, क्योंकि उनके स्वयं वहाँ रहते हुए उनके सुयश को ठीक-ठीक ढंग से कोई और नहीं प्रकट कर सकता।
6. राजसभा में परशुराम अनेक बार अपनी विशेषताएँ बता चुके थे।
7. परशुराम अपने क्रोध को रोककर अधिक दुख सह रहे थे।
8. लक्ष्मण ने परशुराम को वीरता का व्रत धारण करने वाला, धैर्यवान और क्षोभरहित माना था।
9. शूरवीर युद्ध में लड़कर अपनी शूरवीरता को प्रदर्शित करता है, न कि अपनी वीरता की डींगें हाँककर।
10. लक्ष्मण को स्पष्टवादिता, स्वभाव और उग्रता के कारण परशुराम नाराज थे।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. तुलसीदास ने लक्ष्मण और परशुराम के स्वभाव के किन गुणों/ अवगुणों को प्रकट किया है?
2. कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है?
3. किस प्रकार के छंदों का प्रयोग किया गया है?
4. किस काव्य-रस का प्रयोग किया गया है?
5. किस काव्य-गुण की प्रधानता है?
6. किस शब्द-शक्ति का अधिकता से प्रयोग किया गया है?
7. संवादों से कथन को कौन-सा गुण प्राप्त हुआ है?
8. ‘बीरबती’ शब्द में कैसा भाव छिपा हुआ है?
9. परशुराम की वाणी में कौन-सा भाव प्रमुख है ?
10. काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. तुलसीदास ने लक्ष्मण की स्पष्टवादिता और साहस तथा परशुराम को डींगें हाँकने के स्वभाव को प्रकट किया है।
2. अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है।
3. दोहा-चौपाई का प्रयोग है।
4. वीर रस।
5. ओज गुण विद्यमान है।
6. लक्षणा शब्द-शक्ति का अधिक प्रयोग किया गया है।
7. नाटकीयता का गुण
8. व्यंग्यात्मकता
9. प्रचंड क्रोध
10. अनुप्रास –
पुकारि खोर, बहु बरनी,
दुसह दुख, कुटिल कालबस, कछु कहहू,
करनी करहिं कहि, कायर कथाहिं।

मानवीकरण –
कालकवतु होइहि छन माही

रूपक –
भानु बंस राकेस कलंकू

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

5. तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।।
सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि परेड कर बोरा ॥
अब जनि दे दोसु मोहि लोमू। कटुबादी बालक बाजोगू॥
बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मनिहार भा साँचा॥
कौसिक कहा छमिल अपराधू। बाल दोष गुन गहन साधू
खार कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही
उतर देत छोड़ों बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे
न त येहि काटि कुठार कठोरे। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोर।।
गाधि सून कह हृदय हसि मुनिहि हरियो सझा
अयमय खाँड़ न ऊखमय अबाई न बूझ अबूम।

शब्दार्थ : मोहि लागि- मेरे लिए। परसु – फ़रसा। कर – हाथ। बधजोगू – वध के योग्य। कटुबादी – कड़वा बोलने वाला। बिलोकि – देखकर। बाँचा – बचाया। मरनिहार – मरने को। साँचा – सचमुच। कौसिक – विश्वामित्र। खर कुठार – तीखी धार का कुठार। गाधिसून – विश्वामित्र। हरियो – हरा ही हरा।

प्रसंग : प्रस्तुत पद गोस्वामी तुलसीदास के द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के बालकांड से लिया गया है। सौता-स्वयंवर के अवसर पर परशुराम और लक्ष्मण के बीच शिव-धनुष के भंग होने के कारण विवाद हुआ था।

व्याख्या : लक्ष्मण ने कहा कि ‘हे मुनिवर परशुराम ! आप तो मानो काल को बार-बार हाँक लगाकर उसे मेरे लिए बुलाते हैं लक्ष्मण के कठोर वचन सुनते ही परशुराम ने अपने फ़रसे को सुधार कर हाथ में ले लिया और कहा कि “अब लोग मुझे दोष न दें। यह कड़वा बोलने वाला बालक मारे जाने के ही योग्य है। बालक समझकर मैंने इसे बहुत देर तक बचाया, लेकिन अब यह सचमुच मरने को आ गया है। तब गुरु विश्वामित्र ने कहा-“अपराध क्षमा कीजिए मुनिवर ! बालकों के दोष और गुण को साधु लोग नहीं गिनते।”

परशुराम बोले-“मेरा तीखी धार का फरसा, मैं दयारहित और क्रोधी हूँ। मेरे सामने यह गुरुद्रोही और अपराधी उत्तर दे रहा है। इतने पर ही मैं इसे बिना मारे छोड़ रहा हूँ। हे ऋषिवर! मैं इसे केवल आपके शोल और प्रेम के कारण बिना मारे छोड़ रहा हूँ। नहीं तो इसे इस कठोर फरसे से काटकर थोड़े से परिश्रम से ही गुरु के ऋण से मुक्त हो जाता।” विश्वामित्र ने मन-ही-मन हैसकर कहा-“मुनि को हरा-ही-हरा सूझ रहा है। अन्य सभी जगह पर विजयी होने के कारण ये राम और लक्ष्मण को भी साधारण क्षत्रिय ही समझ रहे हैं। पर वे लोहे से बनी हुई खाँड (खाँडा-खड्ग) हैं; गन्ने की खाँड नहीं, जो मुँह में डालते ही गल जाती है। मुनि अब भी बेसमझ बने हुए हैं और इनके प्रभाव को समझ नहीं पा रहे।”

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. पद में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।
2. लक्ष्मण के किस कथन से उनकी निडरता का परिचय मिलता है?
3. लक्ष्मण के कड़वे शब्दों को सुनकर परशुराम ने क्या किया?
4. परशुराम ने सभा से किस कार्य का दोष उन्हें न देने के लिए कहा?
5. विश्वामित्र ने परशुराम को क्या कहकर समझाया ?
6. परशुराम ने लक्ष्मण को गुरु-द्रोही क्यों कहा था?
7. परशुराम ने अपने किन गुणों का उल्लेख किया ?
8. विश्वामित्र के किस गुण के कारण परशुराम लक्ष्मण को मारे बिना छोड़ रहे थे?
9. विश्वामित्र ने अपने आप से क्या कहा था?
10. परशुराम क्यों क्रोधित हो गए?
उत्तर :
1. लक्ष्मण को अपना अपमान करते देखकर परशुराम ने फरसे को सुधार कर हाथ में ले लिया, पर गुरु विश्वामित्र के समझाने पर वे मान गए। लेकिन परशुराम ने अपनी बीरता की डींग हाँकने की आदत का फिर से परिचय दे दिया, जिसे सुनकर विश्वामित्र मन-ही-मन मुसकरा सोचने लगे कि ये नहीं समझते कि राम-लक्ष्मण सामान्य क्षत्रिय नहीं हैं।
2. ‘तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लाबा, बार-बार मोहि लागि बोलाबा’- इन पंक्तियों से लक्ष्मण की निडरता का परिचय मिलता है।
3. लक्ष्मण के कड़वे शब्दों को सुनकर परशुराम ने अपने भयानक फरसे को सुधार कर हाथ में ले लिया।
4. क्रोधित परशुराम ने सभा से बालक लक्ष्मण के वध का दोष न देने के लिए कहा।
5. विश्वामिन ने परशुराम को यह कहकर समझाया कि साधु बालकों के गुण और दोष को नहीं गिनते।
6. परशुराम को भगवान शिव ने बह धनुष संभाल कर रखने के लिए दिया था, जिसे सीता स्वयंवर के समय राम ने भंग कर दिया था। परशुराम ने इसे अपना और भगवान शिव का अपमान मानकर राजसभा में उपस्थित क्षत्रियों को बुरा-भला कहा। लक्ष्मण ने क्रोधभरी और व्यंग्यात्मक बातों से इसका विरोध किया था, जिस कारण परशुराम ने लक्ष्मण को गुरुद्रोही कहा।
7. परशुराम ने अपने गुणों को बताते हुए कहा था कि वे दया से रहित और क्रोधी स्वभाव के हैं।
8. विश्वामित्र के शील और प्रेमपूर्ण स्वभाव के कारण परशुराम अभी तक लक्ष्मण को बिना मारे छोड़ रहा था।
9. विश्वामित्र ने अपने आप से कहा था कि परशुराम को हरा-ही-हरा सूझ रहा है। अब तक वे साधारण क्षत्रियों पर बिना हारे विजय प्राप्त करते आए थे और अब उन्हें ऐसा लगने लगा था कि वे सभी क्षत्रियों को युद्ध में हरा सकते हैं। ये राम-लक्ष्मण गन्ने से बनी खाँड नहीं हैं, बल्कि फ़ौलाद के खाँडे हैं। जिन्हें हराना इनके लिए संभव नहीं। मुनि इनके प्रभाव को समझ नहीं पा रहे।
10. लक्ष्मण द्वारा बार बार भड़काए जाने व व्यंग्य भरे वाक्य बोलने के कारण परशुराम क्रोधित हो गए।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. तुलसीदास ने किस-किसके स्वभाव का सटीक वर्णन किया है?
2. नाटकीयता की सृष्टि किस कारण हुई है?
3. कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है?
4. किस काव्य-गुण की अधिकता दिखाई देती है?
5. किस काव्य-रस का प्रयोग किया गया है?
6. अवतरण में लयात्मकता की सृष्टि किस कारण हुई है?
7. किस छंद का प्रयोग किया गया है?
8. दो तत्सम शब्द लिखिए।
9. इस काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार लिखिए।
उत्तर :
1. तुलसीदास ने लक्ष्मण के तेज स्वभाव, विश्वामित्र के विवेक और परशुराम के अहंकार का सटीक वर्णन किया है।
2. संवादात्मकता ने कथन को नाटकीयता का गुण प्रदान किया है।
3. अवधी भाषा का प्रयोग है।
4. ओज गुण विद्यमान है।
5. बीर रस।
6. स्वरमैत्री और छंद युक्त होने के कारण रचना में लयात्मकता विद्यमान है।
7. दोहा-चौपाई छंद का प्रयोग किया गया है।
8. दोष, श्रम
9. हरा-ही-हरा सूझना।

उत्प्रेक्षा –
तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा

पुनरुक्तिप्रकाश –
बार-बार

रूपकातिशयोक्ति –
अयमय जाँड़ न ऊखमय

अनुप्रास –

  • कौसिक कहा, केवल कौसिक, काटि कुठार कठोरें,
  • गुन गनहि,
  • हृदय हसि मुनिहि हरियरे,
  • परसु
  • सुधारि बरेउ कर घोरा-
  • देई दोसू,
  • कटुबादी बालकु बधजोग, बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

6. कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
माता पितहि उरिन भये नीकें। गुररिनु रहा सोचु बड़ जी के॥
सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढ़ा।
अब आनिअ व्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।
सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा॥
भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिन बिचारि बचौं नृपद्रोही।
मिले ने कबहुँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता बरहि के बाड़े॥
अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सबनहि लखनु नेवारे।
लखन उतर आहुति सरिस भृगबरकोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।

शब्दार्थ : कहेउ – कहा। विदित – जानता। उरिन – ऋण से मुक्त। व्यवहारिआ – हिसाब करने वाला। कटु – कड़वा। मोही – मुझे। बिन – ब्राह्मण। नृपद्रोही – राजाओं के शत्रु। सुभट – अच्छे बलवान वीर। रन – युद्ध। द्विज – ब्राह्मण। सयनहि – संकेत से; इशारे से। नेवारे – रोक दिया। सरिस – समान। कोपु – क्रोध। कृसानु – आग। रघुकुलभानु – रघुकुल के सूर्य।

प्रसंग : प्रस्तुत पद गोस्वामी तुलसीदास के द्वारा रचित महाकाव्य ‘ रामचरितमानस’ के ‘बालकांड” से लिया गया है। सीता स्वयंवर के समय शिवजी के धनुष टूट जाने पर लक्ष्मण और परशुराम में विवाद हुआ था, जिसे राम ने अधिक बढ़ने से पहले ही रोक दिया था।

व्याख्या : लक्ष्मण ने कहा-‘हे मुनि! आपके शोल को कौन नहीं जानता? वह संसार भर में प्रसिद्ध है। आप माता-पिता के ऋण से तो भली-भाँति मुक्त हो चुके हैं। अब आप पर गुरु का ऋण रह गया है, जिसका आपके मन पर बड़ा बोझ है। आपको उसकी चिंता सता रही है।

वह ऋण मानो हमारे ही माथे निकाला था। बहुत दिन बीत गए। इसमें व्याज भी बहुत बढ़ गया होगा। अब किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुला लाइए, तो मैं तुरंत थैली खोलकर उधार चुका हूँ।” लक्ष्मण के कड़वे वचन सुनकर परशुराम ने अपना फ़रसा संभाला। सारी सभा हाय ! हाय ! करके पुकार उठी। लक्ष्मण ने कहा-‘”हे भृगु श्रेष्ठ! आप मुझे फरसा दिखा रहे हैं? पर हे राजाओं के शत्रु! मैं आपको ब्राह्मण समझकर अब तक बचा रहा है।

लगता है कि आपको कभी रणधीर, बलवान वोर नहीं मिले। हे ब्राह्मण देवता! आप घर ही में बड़े हैं।” यह सुनते ही सभी लोग पुकार उठे कि ‘यह अनुचित है ! अनुचित है!’ तब रघुकुलपति श्रीराम ने संकेत से लक्ष्मण को रोक दिया। आहुति के समान लक्ष्मण के उत्तर से परशुराम को क्रोधरूपी आग को बढ़ते देखकर रघुकुल के सूर्य श्रीराम ने जल के समान शीतल वचन कहे।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. लक्ष्मण ने परशुराम पर क्या व्यंग्य किया?
2. लक्ष्मण ने परशुराम के शील के संबंध में क्या कहा?
3. ‘माता पितहि उरिन भये नीके’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
4. परशुराम की चिंता अभी शेष क्यों थी?
5. यहाँ किस गुरु-ऋण की बात हो रही है? उसे चुकाने के लिए लक्ष्मण ने परशुराम को क्या उपाय सुझाया?
6. लक्ष्मण के व्यवहार का राजसभा पर क्या प्रभाव पड़ा?
7. लक्ष्मण परशुराम को क्यों बना रहे थे?
8. राम ने लक्ष्मण को बोलने से किस प्रकार रोका था?
9. लक्ष्मण के शब्द परशुराम के लिए कैसे थे?
10. इस अवतरण के आधार पर राम के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।
11. इस अवतरणा के आधार पर लक्ष्मण के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।
12. नृपदोही किसे कहा गया है और क्यों?
13. सभा में उपस्थित लोगों ने लक्ष्मण की कठोर और व्यंग्यपूर्ण बातों को सुनकर क्या प्रतिक्रिया दी?
उत्तर :
1. लक्ष्मण ने परशुराम से व्याय शैली में बात करते हुए कहा कि वे अपने माता-पिता के ऋण से मुक्त हो ही चुके हैं, अब गुरु-ऋण का जो हिसाब-किताब उनके मत्थे डाला गया है उसे भी चुका दें। वे व्यर्थ में अपने सिर पर बोझ क्यों लादे हुए हैं? आज तक उन्हें शक्तिशाली रणवीर मिले ही नहीं थे और इसलिए वे स्वयं को बहादुर मान रहे हैं।
2. लक्ष्मण ने परशुराम से कहा कि सारा संसार उनके शील को भली-भाँति जानता है।
3. इस पंक्ति का आशय है कि परशुराम अपने माता-पिता के ऋण से मुक्त हो चुके हैं।
4. परशुराम की चिंता अभी यह सोचकर शेष थी कि वे अपने गुरु के ऋण को किस प्रकार चुकाएँगे।
5. यहाँ लक्ष्मण ने परशुराम को अपने गुरु का ऋण चुकाने के लिए कहा है। लक्ष्मण के अनुसार परशुराम ने अपने गुरु से जो शस्त्र विद्या सौखी है, वे उस ऋण को उतार दें। इसके बाद लक्ष्मण ने ऋण चुकाने के लिए ब्याज गणना हेतु किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुलाने के लिए कहा।
6. लक्ष्मण के व्यवहार से सारी राजसभा हाय! हाय! करने लगी और कहने लगी कि लक्ष्मण का परशुराम के प्रति व्यवहार अनुचित है।
7. लक्ष्मण परशुराम को अब तक इसलिए बचा रहे थे, क्योंकि परशुराम ब्राह्मण थे और सूर्यवंशी ब्राह्मणों पर अस्त्र-शस्त्र नहीं उठाते थे। राम ने संकत के द्वारा नबमण को बोलने से रोका था।
9. लक्ष्मण के शब्द परशुराम के लिए क्रोधरूपी आग में आहुति के समान थे, जिस कारण उनका गुस्सा लगातार बढ़ता जा रहा था।
10. राम शांत, नम, विनयी, कोमल, मर्यादित और समझदार व्यक्तित्व के स्वामी थे। वे अपने कोमल शब्दों से बिगड़ी हुई स्थिति को नियंत्रित करने में समर्थ थे।
11. लक्ष्मण उग्र, क्रोधी और व्यंग्य करने वाले व्यक्तित्व के स्वामी थे। वे बोलते समय विवेकपूर्ण व्यवहार नहीं करते थे।
12. परशुराम को नपदोही कहा गया है, क्योंकि उन्होंने अनेक बार पृथ्वी से क्षत्रियों को समाप्त कर दिया था।
13. सभा में उपस्थित लोगों ने लक्ष्मण को कहार और व्यंग्यपूर्ण बातों को सुनकर अपना रोष और विरोध प्रकट किया।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. कवि ने किम भाषा का प्रयोग किया है?
2. किस प्रकार की शब्दावली का प्रयोग किया गया है?
3. कवि ने किन छंदों का प्रयोग किया है?
4. किस काव्य-रस का प्रयोग है?
5. किस काव्य-गुण की प्रधानता है?
6. कवि ने लयायकना की सृष्टि कैसे की है?
7. लक्ष्मणा के शब्दों में कौन-सी शब्द-शक्ति विद्यमान है?
8. कोई दो नद्भव शब्द छाँटकर लिखिए।
9. संवादों के कारण कौन-सी भाव विशेषता आ गई है?
10. ‘द्विजदेवता’ में कौन-सा भाव व्यक्त हुआ है?
11. दो तत्सम शब्द छाँटकर लिखिए।
12. इस काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार लिखिए।
उत्तर :
1. अवधी भाषा का सहज-सुंदर प्रयोग किया गया है।
2. तत्सम और तद्भव शब्दावली का स्वाभाविक-समन्वित प्रयोग किया गया है।
3. दोहा-चौपाई छंद का प्रयोग है।
4. बौर रस का प्रयोग है।
5. ओज गुण विद्यमान है।
6. स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
7. व्यंजना शब्द शक्ति विद्यमान है, जिसने लक्ष्मण के शब्दों को विशेष अर्थ प्रदान किया है।
8. थैली, दिन
9. नाटकीयता।
10. व्यंग्य, वक्रोक्ति।
11. आहुति, कटु।
12. बीप्सा –
हाय-हाय वक्रोक्ति
कहेउ लखन मुनि सील तुम्हारा। को नहि जान बिदिन संसारा॥
माता पितहि उरिन भये नौकें …………… थैली खोली।

उपमा –
लखन उत्तर आहुति सरिस
जल-सम बचन
भगुबरकोपु कृसानु

अनुप्रास –

व्याज बड़ बाढ़ा, बिन बिचारि बचौं
सब सभा
थैली खोली
कुठार सुधारा

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Summary in Hindi

कवि-परिचय :

तुलसीदास राममार्गीं शाखा के प्रतिनिधि कवि, हिंदी सहित्य के गौरव तथा भारतीय संस्कृति के रक्षक माने जाते हैं। इनकी रचनाएँ भारतीय धर्म एवं आस्था की प्रतीक बन गई हैं। तुलसीदास का जन्म सन 1532 ई० में उत्तर प्रदेश के बाँदा ज़िले के राजापुर ग्राम में हुआ था। कुछ विद्वान उनका जन्मस्थान सोरों (ज़िला एटा) भी मानते हैं। वे जाति से सरयूपारी ब्राह्मण थे। उनके पिता का नाम आत्माराम दूबे और माता का नाम हुलसी था।

तुलसीदास का बचपन बड़ी कठिनाइयों में व्यतीत हुआ। इनके पिता ने इन्हें मूल नक्षत्र में पैदा होने के कारण त्याग दिया था। बाद में नरहरि बाबा ने इनका पालन-पोषण किया। उनकी कृपा से तुलसीदास ने पुराण, वेद, इतिहास एवं दर्शन का खूब अध्ययन किया।

कहते हैं कि तुलसीदास यौवनकाल में अपनी पली पर विशेष अनुरक्त थे। लेकिन पल्नी की फटकार ने इनकी जीवन-दिशा को बदल दिया। इन्होंने अपना जीवन राम के चरणों में अर्पित कर दिया। भगवान राम के प्रति इनके मन में अगाध श्रद्धा थी। इन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा राम-काव्य को उत्कर्ष प्रदान किया।

सन 1623 ई० में काशी में इनका देहांत हो गया। इनके निधन के विषय में निम्नलिखित दोहा प्रचलित है-

संबत् सोलह सौ असी, असी गंग के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तग्यो शरीर॥

तुलसीदास ने अपना सारा जीवन राम की आराधना में लगा दिया। इनके द्वारा रचित बारह रचनाएँ हैं, जिनमें रामचरितमानस तथा विनय-पत्रिका
विशेष उल्लेखनीय हैं। रामचरितमानस प्रबंधकाव्य का आदर्श प्रस्तुत करता है, तो विनय-पत्रिका मुक्तक-शौली में रचा गया उत्कृष्ट गीति-काव्य है।

इसके अतिरिक्त तुलसीदास ने हनुमान-चालीसा, दोहावली, कवितावली, गीतावली आदि की रचना भी की। तुलसीदास के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता समन्वय की भावना है। इनके काव्य को समन्वय की विराट चेष्टा कहा गया हैं। अपने समन्वयवादी दृष्टिकोण के कारण ही तुलसीदास लोकनायक के आसन पर आसीन हुए। लोकसंग्रह का भाव तुलसी की भक्ति का अभिन्न अंग था। इसलिए इनकी भक्ति कृष्णभक्त कवियों के समान एकांगी न होकर सवांगपूर्ण हैं।

तुलसीदास का भाव-जगत पर पूर्ण अधिकार था। वे अपनी रचनाओं में; विशेषकर ‘मानस’ में; मार्मिक स्थलों के चयन में विशेष सफल रहे हैं। तुलसीदास ने श्रृंगार-रस का चित्रण मर्यदा के भीतर रहकर किया है। वात्सल्य-रस के चित्रण में भी इन्हें पूर्ण सफलता मिली है।तुलसी-काव्य में शांत-रस एवं करुण-रस की प्रधानता रही है। अन्य रसों का भी प्रसंगानुकूल वर्णन मिलता है। तुलसीदास ने धर्म का स्वस्थ रूप सामने रखकर अपने काव्य की रचना की हैं।

विनय-पत्रिका में तुलसीदास की दास्य भाव की भक्ति का आदर्श निहित है। भाषा, अर्थ-गौरव एवं पांडित्य तीनों दृष्टियों से विनय-पत्रिका अपना विशिष्ट स्थान रखती है। तुलसी की विनय की अभिव्यक्ति उनके भक्त-हृदय की परिचायक है –

ऐसो को उदार जग माहीं।
बिना सेवा जो द्रबै-दीन पर, राम सरस कोऊ नाहीं।

तुलसीदास ने अपने पात्रों में आदर्श को प्रतिष्ठा दिखाकर उनके चरित्र को अनुकरण का विषय बना दिया है। इन्होंने पात्रों के माध्यम से अनेक आदर्श हमारे सामने रखे। सामाजिक मर्यादाओं के प्रकाश में इन्होंने धर्म को नवीन रूप प्रदान किया। इन्होंने मानस में व्यक्ति-धर्म, समाज-धर्म तथा साष्ट्र-धर्म की स्थापना की। राम के चरित में विविध आदर्शो की स्थापना की। रमम एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श मित्र, आदर्श शत्रु तथा आदर्श राजा के रूप में हमारे सामने आते हैं।

तुलसीदास ने तस्कालीन समय में प्रचलित अवधी तथा ब्रज-दोनों भाषाओं को अपनाया है। रामचरितमानस में अवधी भाषा का प्रयोग हैं, जबकि कवितावली तथा विनय-पत्रिका में ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है। तुलसीदास ने सभी काव्य-शैलियों को अपनाया है जिनमें छप्पय, कवित्त, सवैया पद्धति विशेष उल्लेखनीय हैं। तुलसीदास ने अलंकारों का भी समुचित प्रयोग किया है। उनके काव्य में रूपक, निदर्शना, उपमा, व्यतिरेक, अप्रस्तुत प्रशंसा आदि अनेक अलंकारों का प्रयोग है।

JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

काविता का सार :

रामचरितमानस के बालकांड से लिए गए ‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संबाद’ में सोता-स्वयंवर के समय राम के द्वारा शिव कें धनुष-भंग करने के बाद मुने पष्युराम के क्रोध और राम-लक्मूण से उनके संवादों का वर्णन किया गया है। परशुराम को जब यह समाचार मिला कि शिब-धनुष खंडंडित कर दिया गया है, तो वे बहुत क्रोधित हुए। उनके क्रोध को देख्रकर राम ने विनयपूर्वक मुनि से कहा कि शिवजी के धनुष को तोड़ने बाला कोई उनका दास ही होगा। मुनि ने गुस्से में भरकर कहा कि सेवक वह होता है, जो सेवा का कान करे।

जिसने शिवजी के धनुष को तोड़ा है, बह सहसजाहु की तरह उनका शत्तु है। यदि उसने स्वयं को यहाँ उपस्थित राज समाज से अलग नहीं किया, तो सभी राजा मारे आाएंग। यह सुनकर लक्ष्मण ने कहा कि उन्हौंने लड़कपन में अनेक धनुहियाँ सोड़ दी थीं, पर तब तो उन्होंने ऐसा गुस्सा नहीं किया था। यह सुलकर युनि ने क्रोध में लक्षण को दुलकारते हुए पूला कि क्या उन्हें शिव-धनुष एक धनुहि के समान प्रतीत होता है ? लक्षण ने हैंपते हुए कहा कि धनुष तो सरे एक-से ही होते हैं।

पुराने धनुष को तोड़ने से क्या लाभ और क्या ह्नानि ? त्रीराम ने तो उस युराने धनुप को बह छुआ ही था कि वह टूट गया। गुस्से में भरकर परशुणाम ने कहा कि वे उसे बालक समझकर नहीं मार रहे। वे केबल भुनि ही नहीं है, बलिक बाल-ब्रहमचारी और अल्यंत क्रोधी हैं। से क्षत्रिय कुल के शत्रु के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनका फ़रसा बड़ा भयातक है। लक्षण ने हाँसते हुए युनि का मज़ाक उड़ाया और कहा कि कमजोर तो वे भी नहीं हैं। वे उन्हें व्राहमण समझकर व अज्ञोपवीत देखकर अपने क्रांध को रोक उन्हें सहारते हैं, क्योंकि उनके कुल सें ब्राहुमण, भक्त और गो पर बीरता नहीं दिखाई जाती। इन्हें मारने से पाप लगता है और इससे हार जाने पर अपयश मिलता है।

वैसे आपका एक-एक शन्द ही करोड़ों वज्रों के समान है। आपको किसी अस्न-शख्र को धारण करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह सुन परखुराम ने गुरु चिरबमित्र से कहा कि लधमण बड़ा कुदुद्धि और दुए हैं। यह सूर्यंश का कलंक है, जिसे वे क्षणभर बाद अपने कुल्हाड़े से काट डालेंगे। यदि वे उसे इचाना चहते है, तो उसे समझा-बुझा कर ऐसा बोलने से रोकें। बिश्वाभित्र तो नहीं सोले, पर लक्ष्मण ने कहा कि यदि परगुराम को अपने यारे में और कुछ भी कहना है, तो वे कह लें 1 वैसे वे अपना यश पहले ही काफ़ी बसान कर चुके हैं।

क्रोध को रोकार व्यर्थ दुख नहीं उठाना चाहिए। वैसे गाली देना उन्हें शोभा नहीं देता। शूरखीर तो अपना वल युद्ध-भुम में दिखाते हैं, वे ब्यर्ध में डींग चर्ति हैंका करते। यह सुन परशुराम ने गुस्से से भरकर अपना परशु सुधार कर हाथ में ले लिया। सब विश्वामित्र ने उनसे कहा कि वे उसके प्रपराध को क्षमा कर दें। बालकों के दोष और गुण को साधु नहीं गिनते।

तब परशुराम ने अहसान जताते हुए कहा कि वे विखायित्र के शील के कारण लक्क्रण को बिना मारे छोड़ रहे हैं, नहीं तो अपने फ़रसे से उसे काटकर अपने गुरु के और जो गुरु का ऋण शेष बचा है, उसे भी पूरी कर लें। यह सुनते ही परशुरान ने अपना कुल्हाड़ा संभाल लिया। सारी सभा में हाहाकार संच गया। लक्ष्सण की वाणी ने परशुरम की क्रोधरूपी अरिन में आहुति का काम किया। तब श्रीराम ने जल के समान शांत करने वाले झा्द कहे।

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