Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त
JAC Class 10 Hindi सवैया और कवित्त Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि ने श्रीकृष्ण के लिए ‘श्रीब्रजदूलह’ का प्रयोग किया है। श्रीकृष्ण ब्रह्म स्वरूप हैं और सृष्टि के कण-कण में समाए हुए हैं। सारी सृष्टि उन्हीं की लीला, प्रेम, करुणा और दया का परिणाम है। वे प्रत्येक प्राणी के जीवन के आधार हैं और सभी की आत्मा में उन्हीं का वास है। इसलिए उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक कहा गया है।
प्रश्न 2.
पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
उत्तर :
(क) अनुप्रास –
(i) कटि किंकिनि के धुनि की मधुराई
(ii) साँवरे अंग लसै पट पीत।
(iii) हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
(iv) मंद हँसी मुखचंद जुहाई।
(v) जै जग – मंदिर-दीपक सुंदर।
(ख) रूपक –
(i) मंद हँसी मुखचंद जुहाई।
(ii) जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
पाँयनि नूपुर मंजु बसें, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
उत्तर :
कवि ने श्रीकृष्ण की अपार रूप-सुंदरता का वर्णन करते हुए कहा है कि उनके पाँव में पाजेब शोभा देती है, जो उनके चलने पर मधुर ध्वनि उत्पन्न करती है। उनकी कमर में करधनी मधुर धुन पैदा कर रही है। उनके साँवले-सलोने शरीर पर पीले रंग के वस्त्र अति शोभा देते हैं। उनकी छाती पर फूलों की सुंदर माला शोभायान है। ब्रजभाषा में रचित पंक्तियों में तत्सम शब्दावली की अधिकता है। सवैया छंद और स्वरमैत्री लयात्मकता का आधार है। अभिधा शब्द-शक्ति ने कथन को सरलता, सरसता और सहजता प्रदान की है। अनुप्रास अलंकार की स्वाभाविक शोभा प्रकट की गई है।
प्रश्न 4.
दूसरे कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतुराज बसंत के बाल-रूप का वर्णन परंपरागत बसंत वर्णन से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर :
परंपरागत रूप से बसंत का वर्णन करते हुए कवि प्रायः ऋतु परिवर्तन की शोभा का वर्णन करते हैं। वे रंग-बिरंगे फूलों, चारों ओर फैली हरियाली, नायिकाओं के झूले, परंपरागत रागों, राग-रंग आदि का बखान करते हैं। वे नर-नारियों के हृदय में उत्पन्न होने वाले प्रेम और काम-भावों का वर्णन करते हैं। लेकिन इस कवित्त में कवि ने बसंत का बाल-रूप में चित्रण किया है, जो कामदेव का बालक है। सारी प्रकृति उसके साथ वैसा ही व्यवहार करती दिखाई गई है, जैसा सामान्य जीवन में नवजात बच्चों से व्यवहार किया जाता है। इससे कवि की कल्पनाशीलता और सुकुमार भाव प्रवणता का परिचय मिलता है।
प्रश्न 5.
‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै’–इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
काव्य-रूढ़ि है कि सुबह-सवेरे जब कलियाँ फूलों के रूप में खिलती हैं, तो ‘चट्’ की ध्वनि करती हुई खिलती हैं। कवि ने इसी काव्य-रूढ़ि का प्रयोग करते हुए बालकरूपी बसंत को प्रातः जगाने के लिए गुलाब के फूलों की सहायता ली है। सुबह गुलाब के खिलते ही चटकने की ध्वनि उत्पन्न होती है। कवि ने इससे स्पष्ट किया है कि वे चुटकियाँ बजाकर बाल-बसंत को प्यार से जगाते हैं।
प्रश्न 6.
चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन-किन रूपों से देखा है?
उत्तर :
कवि ने चाँदनी रात की सुंदरता को स्फटिक की शिलाओं से बने सुधा मंदिर में प्रकट किया है, जो दही के समुद्र में उत्पन्न तरंगों के रूप में दिखाई देती है। वह दूध की झाग के समान सर्वत्र फैलकर अपनी सुंदरता को व्यक्त करती है। सारा आकाश उसकी आभा से जगमगाता है। चाँदनी रात में चाँदनी की तरह दमकती हुई राधा के प्रतिबिंब से ही चाँद सुंदर लगता है।
प्रश्न 7.
‘प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’- इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते हुए बताएं कि इसमें कौन-सा अलंकार है?
उत्तर :
राधा का रूप अति सुंदर है; चाँदनी में नहाया हुआ उसका रूप अति उज्ज्वल है। चंद्रमा की शोभा और चमक-दमक उसकी अपनी नहीं है, बल्कि वह राधा के रूप को बिंबित कर रहा है। इसलिए वह इतना सुंदर है। इस पंक्ति में उपमा अलंकार है।
प्रश्न 8.
तीसरे कवित्त के आधार पर बताइए कि कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है?
उत्तर :
फटिक सिलानि, उदधि दधि, दूध को सो फेन, मोतिन की जोति, तारासी मल्लिका को मकरंद, आरसी से अंबर।
प्रश्न 9.
पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
देव रीतिकालीन आचार्य कवि थे, जिनके काव्य में रीतिकालीन कविता की लगभग सभी विशेषताएँ दिखाई देती हैं। पठित कविताओं के आधार पर उनकी निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ दिखाई देती हैं –
1. शृंगारिकता – देव ने अपनी कविताओं में राधा-कृष्ण के माध्यम से अपनी शृंगारिक भावनाएँ प्रकट की हैं। उनकी प्रवृत्ति भी अन्य रीतिकालीन कवियों की तरह संयोग श्रृंगार में अधिक रमी है। राधा की रूप माधुरी ने विशेष रूप से प्रभावित किया है। चाँदनी रात में उसका रूप ऐसा निखरा हुआ है कि चंद्रमा भी उसका बिंब मात्र दिखाई देती है –
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।
2. भक्ति-भाव – देव चाहे शृंगारिक कवि थे, पर भारतीय संस्कारों में बँधने के कारण वे कभी नास्तिक नहीं रहे। उन्होंने अपनी कविता में बार-बार वैराग्य भावना और आस्तिकता को प्रकट किया है। वे वैष्णव थे। उन्होंने श्रीकृष्ण के प्रति अपने भक्ति-भाव को प्रकट किया है –
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई,
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सहाई॥
3. प्रकृति-चित्रण – देव ने अपनी कविताओं में प्रकृति-चित्रण अति सुंदर ढंग से किया है। उनके काव्य में प्रकृति साध्य नहीं है, बल्कि साधन है। उन्होंने प्रकृति वर्णन में ऋतु वर्णन की परंपरा का पालन किया। उनकी प्रकृति संबंधी मौलिक दृष्टि की वहाँ सराहना करनी पड़ती है, जहाँ उन्होंने बसंत का अति भावपूर्ण चित्रण किया है। उन्होंने बसंत का परंपरागत वर्णन न कर उसे कामदेव के बालक के रूप में प्रकट किया है, जिसकी सेवा में सारी प्रकृति लीन हो जाती है –
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छवि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावै, ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी है।
4. कला-पक्ष-देव ने अपने काव्य को सफल अभिव्यक्ति प्रदान करने के लिए शब्द शक्तियों का अच्छा प्रयोग किया है। उनके अमिधा के प्रयोग में सहजता है। उन्होंने माधुर्य और प्रसाद गुण का अच्छा प्रयोग किया है। उन्हें अनुप्रास अलंकार के प्रति विशेष मोह है-
(i) पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन
(ii) मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि
(iii) कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई
(iv) मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद
इन्होंने उपमा का भी अच्छा प्रयोग किया है। ब्रजभाषा की कोमलकांत शब्दावली का इन्होंने सार्थक और सुंदर प्रयोग किया है। इनके काव्य में तत्सम शब्दावली का प्रयोग अधिक है।
रचना और अभिव्यक्ति –
प्रश्न 10.
आप अपने घर की छत से पूर्णिमा की रात देखिए तथा उसके सौंदर्य को अपनी कलम से शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर :
मेरा घर यमुना-किनारे से कुछ ही दूरी पर है। इसके आसपास का क्षेत्र हरे-भरे पेड़ों, सरकंडों और झाड़ियों से भरा हुआ है। पूर्णिमा की रात को सारा आकाश तो चाँदनी से जगमगाता ही है, पर यमुना नदी का पानी भी उससे जगमगाता-सा प्रतीत होता है। जब पानी की लहरें तेजी से आगे बढ़ती हैं, तो चाँद के चमकीले टुकड़े उन पर सवार उछलते-कूदते-से प्रतीत होते हैं। अँधेरी रातों में प्राय: न दिखाई देने वाले पेड़ चाँदनी में अपना काला रूप लिए दिखाई देते हैं। वे सुंदर नहीं लगते। वे कुछ-कुछ डरावने से प्रतीत होते हैं। चाँदनी रात में यमुना में तैरती कोई-कोई नौका बहुत सुंदर लगती है।
पाठेतर सक्रियता –
प्रश्न 1.
भारतीय ऋतु चक्र में छह ऋतुएँ मानी गई हैं, वे कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर :
गरमी, सरदी, वर्षा, बसंत, हेमंत, शिशिर।
प्रश्न 2.
‘ग्लोबल वार्मिंग’ के कारण ऋतुओं में क्या परिवर्तन आ रहे हैं ? इस समस्या से निपटने के लिए आपकी क्या भूमिका हो सकती है?
उत्तर :
विश्व भर में बड़ी तेज़ी से उद्योग स्थापित किए जा रहे हैं। दूसरे विश्व युद्ध के बाद से हर देश नए-नए उद्योग स्थापित करके आर्थिक उन्नति की ओर तेज़ी से कदम बढ़ाने का प्रयत्न कर रहा है। ऊर्जा की उत्पत्ति के लिए वे जीवाश्मी ईंधन को जलाते हैं। कोयला और पेट्रोल भूमि के गर्भ से निकाल-निकालकर दिन-रात जलाया जा रहा है। इससे लोगों को सुख-सुविधाएँ तो अवश्य प्राप्त हो रही हैं, पर साथ-ही-साथ वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन गैसों की मात्रा बढ़ती जा रही है। ये दोनों गैसें वायु के तापमान को तेजी से बढ़ा रही हैं। इसे ही ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं।
इस तापमान वृद्धि का परिणाम ही है कि ध्रुवों पर जमी बर्फ की परत पिघलने लगी है। जिस ग्लेशियर से गंगा नदी निकलती है, वह तेजी से पिघलने लगा है। इसका परिणाम यह हो सकता है कि आने वाले समय में धरती के वातावरण का तापमान बढ़ने के साथ-साथ जल-स्रोतों में कमी आने लगेगी। ‘ग्लोबल वार्मिंग’ अर्थात ‘वैश्विक तापन’ पूरी पृथ्वी के लिए खतरे की घंटी है, जो हमारे भविष्य के लिए अति खतरनाक सिद्ध होगी। इससे समुद्रों का जलस्तर बढ़ने लगेगा, जिसके परिणामस्वरूप समुद्र तटों पर बसे नगर डूबने लगेंगे।
द्वीप पूरी तरह समुद्र में समा जाएँगे। ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से निपटने के लिए कोई एक व्यक्ति या कोई एक देश कुछ नहीं कर सकता। इस समस्या से निपटने के लिए विश्व भर के देशों को एक साथ मिलकर प्रयत्न करना होगा। हमें ऐसी नीतियाँ बनाकर कठोरता से लागू करनी होंगी कि कोयले और पेट्रोल के दहन को नियंत्रित किया जाए। सौर ऊर्जा, जलीय ऊर्जा, पवन ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा, सागरीय ऊर्जा आदि का अधिकसे-अधिक प्रयोग किया जाए ताकि हवा में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन गैसें न बढ़ें।
वाहनों के लिए सौर ऊर्जा या विद्युत का प्रयोग किया जाए। इस समस्या से निपटने के लिए हमारी भूमिका यह हो सकती है कि हम योजना-बद्ध तरीके से जन जागृति में सहायक बनें। जिन लोगों को इस समस्या का अभी पता नहीं है, उन्हें सचेत करें। अपने स्कूल में ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करें, जिनसे बच्चे-बच्चे को इस समस्या की जानकारी मिले। आज का बच्चा ही आने वाले कल के उद्योगपति और नेता होंगे। उचित जानकारी होने पर वे : इस समस्या पर नियंत्रण पा सकेंगे।
यह भी जानें –
कवित्त – कवित्त वार्णिक छंद है, उसके प्रत्येक चरण में 31-31 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के सोलहवें या फिर पंद्रहवें वर्ण पर यति रहती है। सामान्यतः चरण का अंतिम वर्ण गुरु होता है।
‘पाँयनि नूपुर’ के आलोक में भाव साम्य के लिए पढ़ें –
सीस मुकुट कटि काछनि, कर मुरली उर माल।
यों बानक मौं मन सदा, बसौ बिहारी लाल॥
– बिहारी
रीतिकालीन कविता की वसंत ऋतु का एक चित्रण यह भी देखिए –
कूलन में केलि में कछारन में कुंजन में,
क्यारिन में कलित कलीन किलकत है।
कहै पदमाकर परागन में पौनहू में
पातन में पिक में पलासन पगंत है।
द्ववारे में दिसान में दुनी में देस देसन में
देखौ दीपदीपन में दीपत दिगंत है।
बीथिन में ब्रज में नबेलिन में बेलिन में
बनन में बागन में बगस्यौ बसंत है।
– पदमाकर
JAC Class 10 Hindi सवैया और कवित्त Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
देव की कविता में शब्द भंडार पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
देव शब्दों के कुशल शिल्पी हैं, जिन्होंने एक-एक शब्द को बड़ी कुशलता से तराशकर अपने शब्द भंडार को समृद्ध किया है। उनकी वर्ण-योजना में संगीतात्मकता और चित्रात्मकता विद्यमान है। भाव और वर्ण-विन्यास में संगति है। उनका एक-एक शब्द मोतियों की तरह कवित्त-सवैयों की जमीन पर सजाया गया है –
पाँयनि नूपुर मंजु बज, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई॥
कवि के पास अक्षय शब्द-भंडार है। भिन्न-भिन्न पर्याय और विशेषणों द्वारा देव ने भावों की विभिन्न छवियों को उतारा है। उन्होंने अभिधा, लक्षणा और व्यंजना तीनों का सफलतापूर्वक प्रयोग किया है –
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।
कवि के शब्दों में तत्सम की अधिकता है। तद्भव शब्दावली का उन्होंने सुंदर प्रयोग किया है।
प्रश्न 2.
पठित पदों के आधार पर देव के चाक्षुक बिंब विधान को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
देव के काव्य में सुंदर ढंग से बिंब योजनाएँ की गई हैं। इससे श्रृंगारपरक अंश खिल उठे हैं। चाक्षुक बिंब योजना ऐसी है कि श्रोता या पाठक की आँखों के सामने कवि के मन में उभरी रूप-छवि स्पष्ट उभर आती है –
(i) साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।
(ii) पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
देव के बिंब विधान में संवेदनात्मक, अलंकरण और क्रमबद्धता के अतिरिक्त भावात्मक संबंध स्थापित करने की शक्ति है।
प्रश्न 3.
देव के कवित्त और सवैया की विशेषता लिखिए।
उत्तर :
छंद में लयमान होना कविता की विशेषता है। इससे कविता की सुंदरता की रक्षा होती है। विभिन्न छंदों के प्रयोग से काव्य के भावों को गति दी जा सकती है। देव ने कवित्त और सवैया के प्रयोग से लय की उत्पत्ति की है। कवि ने श्रृंगारिक लय बनाने के लिए कवित्त छंद का अधिक प्रयोग किया है। सवैया से प्रसाद, गुण और ओज तीनों गुणों को सरलता से प्रस्तुत करने में उन्होंने सफलता पाई है।
प्रश्न 4.
पठित कविताओं को आधार बनाकर देव के सौंदर्य-निरूपण पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
देव प्रेम, सौंदर्य और श्रृंगार के कवि हैं। उन्होंने अपने अधिकतर साहित्य की रचना सौंदर्य और श्रृंगार के आधार पर की है। उनकी कविता में सौंदर्य और श्रृंगार का पुराना रूप दिखाई देता है। उन्होंने इस क्षेत्र में नई कल्पनाएँ नहीं की थीं। उन्होंने परंपरागत उपमानों का ही प्रयोग किया था।
उन्होंने श्रीकृष्ण की सुंदरता सामंती प्रवृत्ति के आधार पर की है।
पाँयनि नूपुर मंजु बसें, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
राधा अद्भुत सौंदर्य की स्वामिनी है। उसके सौंदर्य के सामने सारे नर-नारी पानी भरते हैं। चाँद भी उसकी सुंदरता का बिंब मात्र है –
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।।
चाँदनी के रंग वाली वह स्फटिक के महल में छिपी-सी रहती है।
प्रश्न 5.
चाँदनी रात के उस रूप का वर्णन कीजिए, जिसे कवि ने अपने कवित्त में वर्णित किया है।
उत्तर :
चाँदनी रात सुंदरता की पर्याय है, जिसकी आभा ने सारे संसार को सुंदरता प्रदान की है। स्फटिक की शिलाओं से अमृत-सा उज्ज्वल भवन जगमगा उठता है और दही रूपी सागर की तरंगें अपार मात्रा में उमड़ जाती हैं। दूध की झाग-सी चाँदनी इस प्रकार सब ओर फैल जाती है कि बाहर-भीतर की दीवारें तक दिखाई नहीं देतीं। आँगन और फ़र्श चाँदनी-से नहा उठते हैं। तारे-सी सुंदर राधा चाँदनी में झिलमिलाती हुई ऐसी प्रतीत होती है, जैसे मोती की आभा में मल्लिका के पराग की सुगंध मिली हो। आईने जैसे साफ़-स्वच्छ आकाश में चाँदनी फैल जाती है। चंद्रमा की जगमगाहट राधा के प्रतिबिंब का ही रूप है।
प्रश्न 6.
देव ने मदन महीप बालक किसे और क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि देव ने मदन महीप बालक वसंत ऋतु को कहा है। वह वसंत को कामदेव के पुत्र के रूप में देखता है, क्योंकि वसंत के आगमन पर ही सारी प्रकृति हरियाली से युक्त हो जाती है। रंग-बिरंगे फूल खिल जाते हैं। मंद-मंद सुगंधित हवाएँ बहने लगती हैं। पंक्षी चहचहाने लगते हैं। यही कारण है कि कवि देव ने वसंत को मदन महीप बालक कहा है।
प्रश्न 7.
कवि ने किस कवित्त में रासलीला का दृश्य दिखाया है और कैसे?
उत्तर :
कवि ने दूसरे कवित्त में रासलीला का दृश्य दिखाया है। प्रकृति की मनोरम छटा का सहारा लेकर कवि ने रासलीला का सुंदर शब्द-चित्र सजाया है। उन्होंने महारास की कल्पना करते हुए चाँदनी रात को देखा है। वह कल्पना करते हैं, मानो दूर आकाश में स्फटिक शिलाओं से एक सुधा-मंदिर बना हुआ है। उस आकाश का फर्श एक दम पारदर्शी है। वह दूध के झाग के समान उज्ज्वल है। तारों के समान राधा की सखियों का झिलमिलाना रास है। चंद्रमा का प्रकाश भी राधा की परछाईं के समान ही प्रतीत होता है।
प्रश्न 8.
कवि देव के काव्य का प्रमुख विषय क्या है?
उत्तर :
कवि देव के काव्य का प्रमुख विषय शृंगार है। उन्होंने राधा-कृष्ण के माध्यम से शृंगारिक भावनाओं को प्रकट किया है। उन्होंने शृगार रस के दोनों पक्षों का भली-भाँति प्रयोग किया है। संयोग शृंगार को रचने में उनका मन अधिक रमता हैं। इसके साथ-साथ उन्होंने वैराग्य तथा भक्ति-भाव का भी सफल चित्रण किया है।
प्रश्न 9.
देव की भक्ति-भावना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
देव रीतिकाल के कवियों में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनके जीवन में भक्ति का प्रवेश शीघ्र हो गया था। उन्होंने वैराग्य और भक्ति-भावना का सुंदर सहज वर्णन किया है। उन्होंने शारीरिक क्रियाओं को माया का बंधन माना है। उनके काव्य में भक्ति के साथ-साथ दार्शनिकता के दर्शन भी बार-बार होते हैं।
प्रश्न 10.
देव के काव्यशिल्प पर विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर :
देव का काव्यशिल्प उनके भावपक्ष के अनुसार ही अत्यंत समृद्ध है। उनकी भाषा में सहजता तथा सरलता है। उन्होंने ब्रजभाषा में अपनी काव्य-धारा प्रवाहित की है। उनकी ब्रजभाषा में सर्वत्र स्वच्छता, एकरूपता विद्यमान है। इसी कारण इनकी भाषा में भावों के अनुकूल चलने की अद्भुत क्षमता है। उन्होंने प्रायः ठेठ ब्रजभाषा के शब्दों का ही अधिक प्रयोग किया है। उनकी भाण की प्रकृति साफ-सुथरी और अत्यंत निखरी है। देव का भाषा पर इतना अधिकार दिखाई पड़ता है कि वह कवि के इशारे पर नाचती है।
प्रश्न 11.
कवि देव ने पठित छंदों में प्रकृति का मानवीकरण किस प्रकार किया है?
उत्तर :
कवि देव ने प्रकृति को एक बालक के रूप में चित्रित किया है। उन्होंने ऋतुराज वसंत को कामदेव के पुत्र के समान माना है। इसके अतिरिक्त और भी अनेक स्थानों पर कवि ने बड़ी सहजता के साथ प्रकृति का मानवीकरण किया है; जैसे हवा बालक वसंत का पालना झुलाती है; तोते बालक से बातें करते हैं; वसंत की नज़र फूलों के पराग से उतारी गई आदि।
सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण संबंधी एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
सवैया –
1. पाँयनि नूपुर मंजु बसें, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सुहाई॥
शब्दार्थ : पाँयनि – पाँवों में। नूपुर – पायल, पाजेब। मंजु – सुंदर। कटि – कमर। किंकिनि – करधनि। लसै – शोभा देता है। पट – वस्त्र। पीत – पीला। हिये – छाती, हृदय। हुलसै – आनंदित होना। बनमाल – फूलों की माला। सुहाई – शोभा देती है। किरीट – मुकुट। दृग – आँखें। मंद – धीमी। मुखचंद – चंद्र के समान मुख। जुन्हाई – चाँदनी।
प्रसंग : प्रस्तुत सवैया रीतिकालीन कवि देव के द्वारा रचित है और इसे हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित किया गया है। इसमें कवि ने श्रीकृष्ण के बालरूप की अद्भुत सुंदरता का वर्णन किया है।
व्याख्या : कवि कहता है कि श्रीकृष्ण के पाँव में पाजेब है, जो उनके चलने पर अत्यंत सुंदर ध्वनि उत्पन्न करती है। उनकी कमर में करधनी है, जो मीठी धुन पैदा करती है। उनके साँवले-सलोने अंगों पर पीले रंग के वस्त्र शोभा दे रहे हैं। उनकी छाती पर फूलों की माला शोभा देती हुई मन में प्रसन्नता उत्पन्न करती है। उनके माथे पर मुकुट है और उनकी बड़ी-बड़ी आँखें हैं, जो चंचलता से भरी हैं। उनकी मंद-मंद हँसी उनके चाँद जैसे सुंदर चेहरे पर चाँदनी की तरह फैली हुई है। संसाररूपी इस मंदिर में दीपक के समान जगमगाते हुए अति सुंदर श्रीकृष्ण की जय-जयकार हो। कवि कहता है कि जीवन में सदा श्रीकृष्ण सहायता करते रहे।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. श्रीकृष्ण के पाँव में क्या है?
3. श्रीकृष्ण की कमर में बँधी किस वस्तु के कारण मधुर धुन उत्पन्न हो रही है?
4. श्रीकृष्ण के वस्त्र किस रंग के हैं?
5. उनके गले की शोभा को किसने बढ़ाया है?
6. श्रीकृष्ण की आँखों की सुंदरता को स्पष्ट कीजिए।
7. कवि को बालक कृष्ण के चेहरे पर मुस्कान कैसी प्रतीत हो रही है?
8. कवि ने किसकी जय-जयकार की है?
9. श्रीकृष्ण के माथे की शोभा किससे बढ़ी है?
उत्तर :
1. कवि ने पद में श्रीकृष्ण के बालरूप की सुंदरता को प्रस्तुत किया है। साँवले रंग के श्रीकृष्ण पीले रंग के वस्त्रों में सजे हुए अति सुंदर लगते हैं। उनके गले में माला है; पाँव में पाजेब है और कमर में करधनी शोभा दे रही है। उनके माथे पर मुकुट है और चेहरे पर चाँदनी के समान मुस्कान फैली हुई है।
2. श्रीकृष्ण के पाँव में पायल है।
3. श्रीकृष्ण की कमर में बँधी करधनी के कारण मधुर धुन उत्पन्न हो रही है।
4. श्रीकृष्ण के वस्त्र पीले रंग के हैं।
5. उनके गले की शोभा को ‘बनमाल’ अर्थात फूलों की माला ने बढ़ाया है।
6. श्रीकृष्ण की आँखें बड़ी-बड़ी और चंचलता से भरी हुई हैं।
7. कवि को श्रीकृष्ण के चेहरे पर फैली मुस्कान चाँदनी के समान प्रतीत हो रही है।
8. कवि ने श्रीकृष्ण की जय-जयकार की है।
9. श्रीकृष्ण के माथे की शोभा मुकुट के कारण बढ़ी है।
सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. कवि ने किस रूपक के माध्यम से श्रीकृष्ण से अपनी दया बनाए रखने की प्रार्थना की है?
2. पद में किस भाषा का प्रयोग किया गया है?
3. कवि ने किस प्रकार के शब्दों का समन्वित प्रयोग किया है ?
4. कवि ने सामंती वैभव के आधार पर किसका सौंदर्य चित्रण किया है?
5. किस शब्द में रूपकात्मकता और प्रतीकात्मकता का प्रयोग किया है ?
6. सवैया में बिंब किस प्रकार है?
7. किस छंद का प्रयोग किया है ?
8. लयात्मकता की सृष्टि किस प्रकार हुई है?
9. किस शब्दशक्ति के प्रयोग से कवि ने कथन को सरलता-सरसता प्रदान की है?
10. किस शब्द में लाक्षणिकता विद्यमान है।
11. कवि ने किस काव्य गुण का प्रयोग किया है?
12. पद में निहित अलंकार-योजना स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने श्रीकृष्ण की सुंदरता का चित्रण किया है और संसाररूपी इस मंदिर में सदा अपनी दया बनाए रखने की प्रार्थना की है।
2. ब्रजभाषा का सहज व सुंदर प्रयोग किया गया है।
3. तत्सम और तद्भव शब्दावली का समन्वित प्रयोग सराहनीय है।
4. कवि ने सामंती वैभव के आधार पर श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का चित्रण किया है।
5. ‘जग-मंदिर-दीपक’ में रूपकात्मकता और प्रतीकात्मकता विद्यमान है।
6. चाक्षुक बिंब।
7. सवैया छंद।
8. स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
9. अभिधा शब्द-शक्ति के प्रयोग ने कवि के कथन को सरलता-सरसता से प्रकट किया है।
10. ‘श्रीब्रजदूलह’ शब्द में लाक्षणिकता विद्यमान है।
11. माधुर्य गुण।
12. रूपक –
- मुखचंद
- मंद हँसी जुन्हाई
- जग-मंदिर-दीपक
अनुप्रास –
- हिये हुलसै
- कटि किंकिनि
- पट पीत
- मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई
- जै जग-मंदिर
- कवित्त
2. डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावैं ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै॥
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै॥
शब्दार्थ : डार – डाली, टहनी, डालकर। द्रुम – पेड़। पलना – बच्चों का झूला। नव पल्लव – नए पत्ते। सुमन – फूल। झिंगूला – झबला, ढीला-ढाला – वस्त्र। तन – शरीर। छबि – शोभा। पवन – हवा। केकी – मोर। कीर – तोता। कोकिल – कोयल। हलावे – हिलाती है। हुलसावै – खुश करती है। कर – हाथ। तारी – ताली। उतारो करै राई नोन – जिस बच्चे को नज़र लगी हो उसके सिर के चारों ओर राई-नमक घुमाकर आग में जलाने का टोटका। कंजकली – कमल की कली। लतान – बेलें। सारी – साड़ी। मदन – कामदेव। महीप – राजा। प्रातहि – सुबह-सुबह। चटकारी – चुटकी।
प्रसंग : प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ (भाग-2) में संकलित ‘कवित्त’ से लिया गया है, जिसके रचयिता रीतिकालीन कवि देव हैं। कवि ने ऋतुराज बसंत को एक बालक के रूप में प्रस्तुत किया है और प्रकृति के प्रति अपने प्रेम-भाव को प्रकट किया है।
व्याख्या : कवि कहता है कि बसंत एक नन्हे बालक की तरह पेड़ की डाली पर नए-नए पत्तों के पलने रूपी बिछौने पर झूलने लगा है। फूलों का ढीला-ढाला झबला उसके शरीर पर अत्यधिक शोभा दे रहा है। बसंत के आते ही पेड़-पौधे नए-नए पत्तों और फूलों से सज-धजकर शोभा देने लगे हैं। हवा उसके पलने को झुलाती है। कवि कहता है कि मोर और तोते अपनी-अपनी आवाज़ों में उससे बातें करते हैं। कोयल उसके पलने को झुलाती है और तालियाँ बजा-बजाकर अपनी प्रसन्नता प्रकट करती है।
कमल की कलीरूपी नायिका सिर पर लतारूपी साड़ी से सिर ढाँपकर अपने पराग कणों से बालक बसंत की नज़र उतार रही है। बालक बसंत को दूसरों की बुरी नज़र से बचाने के लिए वह वैसा ही टोटका कर रही है, जैसा सामान्य नारियाँ बच्चे की नज़र उतारने के लिए उसके सिर के चारों ओर राई-नमक घुमाकर आग में डालने का टोटका करती हैं। यह बसंत कामदेव महाराज का बालक है, जिसे प्रातः होते ही गुलाब चुटकियाँ बजाकर जगाते हैं। गुलाब की कली फूल में बदलने से पहले जब चटकती है, तो बसंत को जगाने के लिए ही ऐसा करती है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. कवित्त में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
2. बालक बसंत का बिछौना किससे बना है?
3. बसंत कैसे वस्त्र पहने हुए है?
4. बसंत के पालने को झुलाने का कार्य कौन कर रहा है?
5. कोयल क्या कर रही है?
6. कमल की कलीरूपी नायिका ने अपना सिर किससे ढाँपा और उसने क्या किया?
7. बसंत किसकी संतान है?
8. प्रातः होते ही बसंत को गुलाब किस प्रकार जगाते हैं ?
9. बसंत की नज़र किससे उतारी गई ?
उत्तर :
1. देव द्वारा रचित कवित्त में प्रकृति के मानवीकरण रूप को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है। कवि के अनुसार बसंत का बालक के रूप में जन्म हुआ है, जिसकी सेवा-सुश्रुषा में सारी प्रकृति जी-जान से जुट गई है। पत्तों के बिछौने पर हवा उसे झुलाती है और फूलों ने उसे वस्त्र प्रदान किए हैं। मोर और तोते उससे बातें करते हैं, तो कोयल तालियाँ बजा-बजाकर प्रसन्न होती है। कमल की कली उसे लगी नज़र को दूर करने के लिए टोटका करती है और गुलाब के फूल चटक-चटककर उसे सुबह जगाने का कार्य करते हैं। कामदेव के बालक की सेवा में सारी प्रकृति पूरी तरह से लगी हुई है।
2. बसंतरूपी बालक का बिछौना पेड़-पौधों के नए-नए कोमल पत्तों से बना हुआ है।
3. बसंत ने फूलों से बना ढीला-ढाला झबला पहना हुआ है।
4. बसंत के पालने को झुलाने का कार्य हवा कर रही है।
5. कोयल झूले को हिलाती है और तालियाँ बजा-बजाकर अपनी प्रसन्नता को प्रकट करती है।
6. कमल की कलीरूपी नायिका ने बेल से अपने सिर को ढाँपा और पराग-कणों से बसंत को लगी नज़र का टोटका पूरा किया।
7. बसंत कामदेव की संतान है।
8. प्रातः होते ही गुलाब चटक-चटककर बसंत को जगाते हैं।
9. बसंत की नज़र फूलों के पराग से उतारी गई।
सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. कवि ने किसके जन्म के अवसर पर प्रकृति में परिवर्तन चित्रित किए हैं।
2. प्रकृति का चित्रण किस रूप में किया गया है?
3. किस भाषा की योजना की गई है?
4. पद में किस काव्य-रस की प्रधानता है?
5. किस प्रकार की शब्द-योजना की गई है?
6. बिंब योजना किस प्रकार की है?
7. पद में किस छंद का प्रयोग है?
8. लयात्मकता की सृष्टि किस कारण हुई है?
9. भाषा को कोमल बनाने के लिए किन दो शब्दों का प्रयोग किया गया है?
10. पद में कौन-सा काव्य गुण विद्यमान है?
11. पद में किन अलंकारों का प्रयोग किया गया है?
उत्तर :
1. कवि ने कामदेव के बालक बसंत के जन्म के अवसर पर सारी प्रकृति में दिखाई देने वाले परिवर्तनों को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है।
2. प्रकृति का मानवीकरण रूप में चित्रण किया गया है।
3. ब्रजभाषा के कोमल कांत शब्द अति स्वाभाविक रूप से प्रयुक्त किए हैं।
4. वात्सल्य रस।
5. तत्सम और तद्भव शब्दावली का समन्वित प्रयोग सराहनीय है।
6. चाक्षुक बिंब है। गतिशील बिंब योजना की गई है।
7. कवित्त छंद।
8. स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
9. डार, तारी।
10. माधुर्य गुण का प्रयोग किया गया है।
11. अनुप्रास – हलावै-हुलसावै, सिर सारी, मदन महीप, केकी कीर, बालक बसंत, पुरित पराग
रूपक – मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि, प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।
3. फटिक सिलानि सौं सुधार्यो सुधा मंदिर,
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘देव’,
दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद।
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद॥
शब्दार्थ : फटिक – स्फटिक। सिलानि – शिलाएँ, चट्टानें। सुधा – अमृत। उदधि – समुद्र। दधि – दही। अमंद – जो कम न हो, बहुत अधिक। उमगे – उमड़ना। फेन – झाग। आँगन – अहाता। फरस बंद – फ़र्श के रूप में बना हुआ ऊँचा स्थान। तरुनि – युवती। तामें – उसमें। ठाढ़ी – खड़ी। भीति – दीवार। मल्लिका – बेले की जाति का एक सफ़ेद फूल। मकरंद – पराग, फूलों का रस। आरसी – दर्पण, आईना। अंबर – आकाश। प्रतिबिंब – परछाईं। लगत – लगता है।
प्रसंग : प्रस्तुत पद रीतिकालीन कवि देव के द्वारा रचित है, जो हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ (भाग-2) में संकलित है। इसमें कवि ने चाँदनी रात की आभा को अति सुंदर ढंग से प्रकट किया है। कवि ने इसके माध्यम से राधा के रूप-सौंदर्य को प्रस्तुत करने की चेष्टा की है।
व्याख्या : कवि कहता है कि अमृत की धवलता और उज्ज्वलता वाले भवन को स्फटिक की शिलाओं से इस प्रकार बनाया गया है कि उसमें दही के समुद्र की तरंगों-सा अपार आनंद उमड़ रहा है। भवन बाहर से भीतर तक चाँदनी उज्ज्वलता से इस प्रकार भरा हुआ है कि उसकी दीवारें भी दिखाई नहीं दे रहीं। दूध के झाग जैसी उज्ज्वलता सारे आँगन और फ़र्श के रूप में बने ऊँचे स्थान पर फैली हुई है। इस भवन में तारे की तरह झिलमिलाती युवती राधा ऐसी प्रतीत हो रही है, जैसे मोतियों की आभा और जूही की सुगंध हो। राधा की रूप छवि ऐसी ही है। आईने जैसे साफ़-स्वच्छ आकाश में राधा का गोरा रंग ऐसे फैला हुआ है कि इसी के कारण चंद्रमा राधा का प्रतिबिंब-सा लगता है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. कवि की कल्पना में सुधा मंदिर की रचना किससे की गई है?
3. भवन में किसकी तरंगों-सा अपार आनंद उमड़ रहा है?
4. भवन में बाहर से भीतर तक दीवारें क्यों नहीं दिखाई देतीं?
5. आँगन और फ़र्श पर चाँदनी किस प्रकार फैली हुई है?
6. युवती कैसी प्रतीत हो रही है ?
7. राधा में किसकी ज्योति और सुगंध मिली हुई है?
8. आकाश कैसा प्रतीत हो रहा है?
9. चंद्रमा कैसा प्रतीत होता है?
उत्तर :
1. महाकवि देव ने चाँदनी रात की आभा के माध्यम से राधा की अपार सुंदरता को प्रस्तुत किया है। उसकी सुंदरता से ही चाँद ने सुंदरता प्राप्त की है। चाँदनी का प्रभाव अति व्यापक है, जिसने सारे भवन को उज्ज्वलता प्रदान कर दी है।
2. कवि की कल्पना में सुधा मंदिर की रचना स्फटिक की शिलाओं से की गई है।
3. भवन में दही के समुद्र-सी तरंगों का अपार आनंद उमड़ रहा है।
4. भवन स्फटिक का बना है और चाँदनी की उज्ज्वलता का प्रसार ऐसा है कि बाहर से भीतर तक की दीवारें दिखाई नहीं देती।
5. आँगन और फ़र्श पर दूध की झाग-सी उज्ज्वलता चाँदनी के रूप में फैली हुई है।
6. युवती तारे-सी दिखाई दे रही है।
7. राधा में मोतियों की चमक और मल्लिका (जूही) की सुंगध मिली हुई है।
8. चाँदनी रात में आकाश आईने के समान साफ़-स्वच्छ और उज्ज्वलता से भरा हुआ दिखाई दे रहा है।
9. चंद्रमा राधा की उज्ज्वलता और सुंदरता से प्रतिबिंबित होता हुआ दिखाई दे रहा है।
सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. कवि ने किसके माध्यम से राधा की सुंदरता की प्रशंसा की है?
2. किस छंद का प्रयोग किया गया है?
3. कौन-सा काव्य-गुण प्रयोग किया गया है?
4. कवि ने किस भाषा में अपने भाव व्यक्त किए हैं ?
5. किस प्रकार के शब्दों की अधिकता है?
6. कौन-सा काव्य-रस प्रधान है?
7. पद में किन अलंकारों का प्रयोग किया गया है?
उत्तर :
1. कवि ने चाँदनी के माध्यम से राधा की सुंदरता का अद्भुत वर्णन किया है।
2. कवित्त छंद ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
3. माधुर्य गुण विद्यमान है।
4. ब्रजभाषा।
5. तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
6. शृंगार रस विद्यमान है।
7. रूपक –
उदधि दहि
अनुप्रास –
- सिलानि सौं सुधार्यो सुधा
- फेन फैल्यो
- तारा सी तरुनि तामें
- मिल्यो मल्लिका को मकरंद
उत्प्रेक्षा –
फटिक सिलानि सौं सुधार्यो सुधा मंदिर
व्यतिरेक –
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद
उपमा –
- दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद,
- तारा-सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
- आरसी से अंबर में
- आभा सी उजारी लगै
सवैया और कवित्त Summary in Hindi
कवि-परिचय :
देव रीतिकाल के कवि थे। इनका पूरा नाम देवदत्त द्विवेदी था। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा में सन 1673 में हुआ था। यह देवसरिया ब्राह्मण थे। इन्होंने स्वयं अपने बारे में लिखा है-‘योसरिया कवि देव को, नगर इटावौ वास’। इन्हें अपने जीवनकाल में आश्रय के लिए अनेक आश्रयदाताओं के पास भटकना पड़ा। ये कुछ समय के लिए औरंगज़ेब के पुत्र आजमशाह के दरबार में भी रहे थे, पर इन्हें जितना संतोष और सुख भोगीलाल नामक आश्रयदाता से प्राप्त हुआ, उतना किसी और से नहीं मिल सका। इनका देहांत सन 1767 में हुआ था।
रचनाएँ-देव के द्वारा रचित ग्रंथों की निश्चित संख्या अभी तक ज्ञात नहीं है। कुछ विद्वानों ने इनके ग्रंथों की संख्या 52 मानी है, तो किसी ने 72 तक स्वीकार की है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इनकी संख्या 25 मानी है। इनके ग्रंथों की संख्या की अनिश्चितता का कारण यह है कि ये अपनी पुरानी रचनाओं में ही थोड़ा-बहुत हेर-फेर करके नया ग्रंथ तैयार कर देते थे।
इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-भावविलास, रसविलास, काव्यरसायन, भवानीविलास, अष्टयाम, प्रेम तरंग, सुखसागर-तरंग, देव चरित्र, देव माया प्रपंच, शिवाष्टक, शब्द रसायन, देव शतक, प्रेम चंद्रिका आदि। साहित्यिक विशेषताएँ-देव की कविता का प्रमुख विषय शृंगार था। इन्होंने प्रायः राधा-कृष्ण के माध्यम से शृंगारिक भावनाओं को प्रकट किया है। इन्होंने संयोग श्रृंगार की रचना अधिक की है। वियोग श्रृंगार में इन्होंने विभिन्न भाव दशाओं का वर्णन किया है। देव ने वैराग्य और भक्ति-भावना का सुंदर वर्णन किया है।
ये शरीर और शारीरिक क्रियाओं को माया का बंधन मानते थे। इस संसार में कोई भी मौत से बच नहीं सकता, इसलिए इसकी क्षणभंगुरता देखकर इनके हृदय में इसके प्रति ग्लानि उत्पन्न होती है। देव ने आचार्य-कर्म को पूरा किया था और ‘शब्द रसायन’ के द्वारा काव्य की विभिन्न विशेषताओं का चित्रण किया था। इनके काव्य में दार्शनिकता के बार-बार दर्शन होते हैं।
ये ब्रह्म को एक और सर्वव्यापक मानते हैं। उसका न तो आरंभ है और न ही अंत; वह निर्गुण भी है और सगुण भी; वह अनंत, नित्य, सत्य और शाश्वत है। उसका वर्णन वेद भी नहीं कर सकते –
पै अपने ही गुन बंधे, माया को उपजाइ।
ज्यों मकरी अपने गुननि, उरझि-उरझि मुरझाई॥
देव के काव्य में प्रकृति का सुंदर चित्रण है। इनकी कविता में दरबारी संस्कृति का अधिक चित्रण हुआ है। इनकी कविता में दरबारों, आश्रयदाताओं की प्रशंसा भी की गई है। इन्होंने प्रेम और सौंदर्य के सहज चित्र खींचे हैं। देव ने अपनी कविता ब्रजभाषा में रची थी। इन्हें अनुप्रास अलंकार के प्रति विशेष मोह था। इन्होंने शब्द-शक्तियों का अच्छा प्रयोग किया है। छंद-योजना में लय और तुक का उन्होंने विशेष ध्यान रखा है। इनकी कविता में तत्सम शब्दावली का अधिक प्रयोग किया गया है। देव वास्तव में बहुत अच्छे भाषा शिल्पी थे।
कवित्त-सवैयों का सार :
देव के द्वारा रचित कवित्त-सवैयों में जहाँ एक ओर रूप-सुंदरता का अलंकारिक चित्रण किया गया है, वहीं दूसरी ओर प्रेम और प्रकृति के प्रति मनोरम भाव अभिव्यक्त किए गए हैं। पहले सवैये में श्रीकृष्ण के सौंदर्य का चित्रण किया गया है। इसमें उनका लौकिक रूप नहीं, बल्कि सामंती वैभव दिखाया गया है। उनके पाँवों में नूपुर मधुर ध्वनि उत्पन्न करते हैं और कमर में बँधी करधनी मीठी धुन-सी पैदा करती है। उनके साँवले रंग पर पीले वस्त्र और गले में फूलों की माला शोभा देती है।
उनके माथे पर सुंदर मुकुट है और चेहरे पर मंद-मंद मुस्कान चाँदनी के समान बिखरी हुई है। इस संसाररूपी मंदिर में उनकी शोभा दीपक के समान फैली हुई है। दूसरे कवित्त में बसंत को बालक के रूप में दिखाकर प्रकृति के साथ उसका संबंध जोड़ा गया है। बालकरूपी बसंत पेड़ों के नए-नए पत्तों के पलने पर झूलता है और तरह- : तरह के फूल उनके शरीर पर ढीले-ढाले वस्त्रों के रूप में सजे हुए हैं। हवा उन्हें झुलाती है, तो मोर और तोते उससे बातें करते हैं। कोयल उसे बहलाती है।
कमल की कलीरूपी नायिका उसकी नज़र उतारती है। कामदेव के बालक बसंत को सुबह-सवेरे गुलाब चुटकी दे-देकर जगाते है। तीसरे कवित्त में पूर्णिमा की रात में चाँद तारों से भरे आकाश की शोभा का वर्णन किया गया है। चाँदनी रात की शोभा को दर्शाने के लिए कवि ने दूध में फेन जैसे पारदर्शी बिंबों का प्रयोग किया है। चाँदनी बाहर से भीतर तक सर्वत्र फैली है। तारे की तरह झिलमिलाती । राधा अनूठी दिखाई देती है। उसके शरीर का अंग-प्रत्यंग अद्भुत छटा से युक्त है। चाँदनी जैसे रंग वाली राधा चाँदनी रात में स्फटिक के महल में छिपी-सी रहती है।