Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य
JAC Class 10 Hindi आत्मकथ्य Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है ?
उत्तर :
कवि आत्मकथा लिखने से बचना चाहता है, क्योंकि उसे लगता है कि उसका जीवन साधारण-सा है। उसमें कुछ भी ऐसा नहीं जिससे लोगों को किसी प्रकार की प्रसन्नता प्राप्त हो सके। उसका जीवन अभावों से भरा हुआ है, जिन्हें वह औरों के साथ बाटना नहीं चाहता उसके जीवन में किसी के प्रति कोमल भाव अवश्य था, जो उसके निजी सुखद क्षण हैं इसे किसी को बताना नहीं चाहता।
प्रश्न 2.
आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में अभी समय भी नहीं कवि ऐसा क्यों कहता है?
उत्तर :
कवि को लगता है कि अभी उसके जीवन में बड़ी-बड़ी उपलब्धियाँ नहीं हैं, जिन्हें दूसरों के सामने प्रकट किया जा सके। वह अपने अभावग्रस्त जीवन के कष्टों को अपने हृदय में छिपाकर रखना चाहता है। इसलिए वह कहता है- अभी समय भी नहीं ।
प्रश्न 3.
स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का क्या आशय है?
उत्तर :
‘पाथेय’ का शाब्दिक अर्थ है-‘सबल’ या ‘रास्ते का सहारा’। कवि के हृदय में किसी अति रूपवान के लिए गहरा प्रेमभाव था। उसके प्रति मधुर यादें थीं और वे यादें ही उसके जीवन की आधार थीं, जिन्हें वह न तो औरों के सामने प्रकट करना चाहता था और न ही ‘स्मृति रूपी सहारे’ को अपने से दूर करना चाहता था। कवि के मन में छिपी मधुर स्मृतियाँ उसके सुखों का आधार थीं।
प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट करें –
(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
(ख) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उत्तर :
(क) कवि का कहना है कि उसे अपने जीवन में सुखों की प्राप्ति नहीं हुई। हर व्यक्ति की तरह वह भी अपने जीवन में सुख चाहता था। अवचेतन में छिपे सुख के भावों के कारण कवि ने भी सुख भरा सपना देखा था, पर वह सुख कभी उसे वास्तव में प्राप्त नहीं हुआ। वह सुख उसके बिलकुल पास आते-आते मुस्कुराकर दूर भाग गया।
(ख) कवि का प्रियतम अति सुंदर था। उसकी गालों पर मस्ती भरी लाली छाई हुई थी। उसकी सुंदर छाया में प्रेमभरी भोर भी अपने सुहाग की मधुरिमा प्राप्त करती थी।
प्रश्न 5.
‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’-कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है? उत्तर
अभाव
थे: दख थे: पीडा थी. पर फिर भी उसे कोई प्रेम करने वाला था। लेकिन कवि उस प्रेम-भाव को जग-जाहिर नहीं करना चाहता। वह उसे नितांत अपना मानता है, इसलिए वह मधुर चाँदनी की उस उज्ज्वल कहानी को दूसरों के लिए नहीं गाना चाहता।
प्रश्न 6.
‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर :
जयशंकर प्रसाद की कविता ‘आत्मकथ्य’ पर छायावादी काव्य-शिल्प की सीधी छाप दिखाई देती है, जिसे निम्न आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है –
1. भाषा की कोमलता-प्रसाद ने अपनी कविता में भाषा की कोमलता पर विशेष ध्यान दिया है। खड़ी बोली में रचित ‘आत्मकथ्य’ में कोमल शब्दों के प्रयोग की अधिकता है। ये शब्द मधुर और कर्णप्रिय हैं –
जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
कवि ने तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग किया है, जिससे शब्दों पर उनकी पकड़ का पता चलता है।
2. भाषा की लाक्षणिकता-लाक्षणिकता प्रसाद जी के काव्य की महत्वपूर्ण विशेषता है। इसके द्वारा कवि ने अपने सूक्ष्म भावों को सहजता से प्रकट किया है –
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।
3. भाषा की प्रतीकात्मकता-कवि ने अपनी कविता में प्रतीकात्मकता का भी अधिक प्रयोग किया है। उन्होंने प्रकृति-जगत से अपने अधिकांश प्रतीकों का प्रयोग किया है –
मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
‘मधुप’ मनरूपी भँवरा है, जो ‘गुनगुना’ कर भावों को प्रकट करता है। मुरझाकर गिरती ‘पत्तियाँ’ नश्वरता की प्रतीक हैं। कवि ने अपनी इस कविता में ‘अनंत-नीलिमा’, ‘गागर रीति’, ‘उज्ज्वल गाथा’, ‘चाँदनी रातों की’, ‘अनुरागिनी उषा’, ‘स्मृति पाथेय’, ‘थके पथिक’, ‘सीवन को उधेड़’, ‘कंथा’ आदि प्रतीकात्मक शब्दों का सहज-सुंदर प्रयोग किया है। -भाषा की चित्रमयता-प्रसाद की इस कविता की एक अनुपम विशेषता है-‘चित्रमयता’। कवि ने इसके द्वारा पाठक के सामने एक चित्र-सा प्रस्तुत किया है। इससे कविता में बिंब उपस्थित करने में सफलता मिली है।
5. भाषा की संगीतात्मकता – इस कविता में संगीतात्मकता का तत्व निश्चित रूप से विद्यमान है। इसका कारण यह है कि कवि को नाद, लय और छंद तीनों का अच्छा ज्ञान था। स्वरमैत्री ने संगीतात्मकता को उत्पन्न करने में सहायता प्रदान की है –
छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
6. भाषा की आलंकारिकता – भाषा को सजाने और प्रभावपूर्ण बनाने के लिए प्रसाद ने अपनी कविता में जगह-जगह अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया है –
(i) मधुप गुनगुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी-अनुप्रास
(ii) आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया-पुनरुक्ति प्रकाश
(iii) सीवन को उधेड़कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?-प्रश्न
(iv) अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में-मानवीकरण
7. मधुर-शब्द योजना – कवि को शब्दों की अंतरात्मा की सूक्ष्म पहचान है। जो शब्द जहाँ ठीक लगता है, कवि ने इसका वहीं प्रयोग किया है –
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?
इन पंक्तियों में ‘पाथेय’, ‘पथिक’, ‘पंथा’, ‘सीवन’, ‘कंथा’ आदि अत्यंत सटीक और सार्थक शब्द हैं, जो विशेष भावों को व्यक्त करते हैं।
प्रश्न 7.
कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है ?
उत्तर :
कवि ने सुख के जिस स्वप्न को देखा था उसे वह प्राप्त नहीं कर पाया। वह स्वप्न अधूरा ही रह गया, पर कवि के मन में उसकी याद गहराई से जमी हुई थी। कवि के हृदय में अपने प्रिय की सुखद छवि विद्यमान थी। उसका प्रिय भोला-भाला था, जिसके लिए कवि ने ‘सरलते’ शब्द का प्रयोग किया है। उसके लिए रस से भीगे अतीत के उन दिनों को भुला पाना कभी संभव नहीं हो पाया। वे प्यार-भरी मधुर चाँदनी रातें उसके लिए सदा याद रखने योग्य थीं। वे उसे अलौकिक आनंद प्रदान करती थीं।
प्रिय की हँसी का स्रोत उसके जीवन के कण-कण को सराबोर किए रहता था, पर वह कल्पना मात्र था। जब तक सपना आँखों के सामने छाया रहा, तब तक वह प्रसन्नता से भरा रहा; पर स्वप्न के समाप्त होते ही जीवन की वास्तविकता उसके सामने आ गई। उसकी आनंद-कल्पना अधूरी रह गई। उसका प्रिय अपार सौंदर्य का स्वामी था। उसके गालों की सौंदर्य-लालिमा के सामने उषा की लालिमा भी फीकी थी, पर अब वह दृश्य ही बदल गया है।
रचना और अभिव्यक्ति –
प्रश्न 8.
इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
श्री जयशंकर प्रसाद हिंदी के छायावादी काव्य के प्रवर्तक हैं। उन्होंने इस कविता में अपने व्यक्तित्व की हल्की-सी झलक दी है। वे अभावग्रस्त थे; वे धन-संपन्न नहीं थे; वे सामान्य जीवन जीते हुए यथार्थ को स्वीकार करते थे। वे अति विनम्र थे। उन्हें लगता था कि उनके जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो दूसरों को सुख दे सके इसलिए वे अपनी जीवन-कहानी औरों को नहीं सुनाना चाहते थे –
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीति।
वे प्रेमी-हृदय थे। उन्हें किसी से प्रेम था, पर वे उसके प्रेम को पा नहीं सके। वे स्वभाव से ऐसे थे कि न तो अपनी पीड़ा दूसरों के सामने प्रकट करना चाहते थे और न ही किसी की हँसी उड़ाना चाहते थे। वे दूसरों को अपने छोटे-से जीवन की कहानियाँ नहीं सुनाना चाहते थे। वे अपनी पीड़ा को अपने हृदय में समेटकर रखना चाहते थे।
प्रश्न 9.
आप किन व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहेंगे और क्यों?
उत्तर :
महान व्यक्तियों के द्वारा लिखित आत्मकथाएँ प्रेरणा की स्रोत होती हैं। ये पाठकों का मार्गदर्शन करती हैं। इनमें लेखक अपने जीवन की विभिन्न परिस्थितियों और दशाओं का वर्णन करते हैं। वे अपने जीवन पर पड़े विभिन्न प्रभावों का उल्लेख भी करते हैं। मैं महापंडित राहुल सांकृत्यायन के द्वारा रचित आत्मकथा ‘मेरी जीवन यात्रा’ पढ़ना चाहूँगा।
इसे पढ़ने से देश-विदेश में घूमने और स्थान-स्थान के ज्ञान को प्राप्त करने की प्रेरणा मिलेगी, विभिन्न क्षेत्रों के जीवन और रीति-रिवाजों को समझने की क्षमता मिलेगी। इसके अतिरिक्त मैं हरिवंशराय बच्चन की ‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’ और ‘नीड़ का निर्माण फिर-फिर’ पढ़ना चाहूँगा। इनसे एक महान लेखक और कवि के जीवन को निकट से जानने का अवसर मिलेगा।
प्रश्न 10.
कोई भी अपनी आत्मकथा लिख सकता है। उसके लिए विशिष्ट या बड़ा होना जरूरी नहीं। हरियाणा राज्य के गुड़गाँव में घरेलू सहायिका के रूप में काम करने वाली बेबी हालदार की आत्मकथा बहुतों के द्वारा सराही गई। आत्मकथात्मक शैली में अपने बारे में कुछ लिखिए।
उत्तर :
मैं अपने जीवन में कुछ ऐसा करना चाहती हूँ जिससे समाज में मेरा नाम हो; प्रतिष्ठा हो और लोग मेरे कारण मेरे परिवार को पहचाने। जीवन तो सभी प्राणी भगवान से प्राप्त करते हैं; पशु भी जीवित रहते हैं, पर उनका जीवन भी क्या जीवन है ? अनजाने-से इस दुनिया में। आते हैं और वैसे ही मर जाते हैं। मैं अपना जीवन ऐसे व्यतीत नहीं करना चाहती। मैं चाहती हूँ कि मेरी मृत्यु भी ऐसी हो, जिस पर सभी गर्व करें और युगों तक मेरा नाम प्रशंसापूर्वक लेते रहे।
मेरे कारण मेरे नगर और मेरे देश का नाम ख्याति प्राप्त करे। कल्पना चावला इस संसार में आईं और चली गईं। उनका धरती पर आना तो सामान्य था, पर यहाँ से जाना सामान्य नहीं था। आज उन्हें हमारा देश ही नहीं सारा संसार जानता है। उनके कारण उनके पैतृक शहर करनाल का नाम अब सभी की जुबान पर है। मैं भी चाहती हूँ कि अपने जीवन में मैं इतना परिश्रम करूँ कि मुझे विशेष पहचान मिले। मैं अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने देश की कीर्ति का कारण बनूँ।
पाठेतर सक्रियता –
प्रश्न 1.
किसी भी चर्चित व्यक्ति का अपनी निजता को सार्वजनिक करना या दूसरों का उनसे ऐसी अपेक्षा करना सही है-इस विषय के पक्ष-विपक्ष में कक्षा में चर्चा करें।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से कीजिए।
प्रश्न 2.
बिना ईमानदारी और साहस की आत्मकथा नहीं लिखी जा सकती। गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ पढ़कर पता लगाइए कि उसकी क्या-क्या विशेषताएँ हैं ?
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से कीजिए।
यह भी जानें –
प्रगतिशील चेतना की साहित्यिक मासिक पत्रिका हंस प्रेमचंद ने सन 1930 से 1936 तक निकाली थी। पुनः सन 1956 से यह साहित्यिक पत्रिका निकल रही है और इसके संपादक राजेंद्र यादव हैं।
बनारसीदास जैन कृत अर्धकथानक हिंदी की पहली आत्मकथा मानी जाती है। इसकी रचना सन 1641 में हुई और यह पद्यात्मक है। आत्मकथ्य का एक अन्य रूप यह भी देखें –
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।
मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना;
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना!
मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ;
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ,
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ!
– कवि बच्चन की आत्म-परिचय
कविता का अंश
सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण संबंधी एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
1. मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।
शब्दार्थ : मधुप – भँवरा, मनरूपी भँवरा। घनी – अत्यधिक। अनंत नीलिमा – अंतहीन विस्तार। असंख्य – अनगिनत; जिसकी गणना न की जा सके। मलिन – मैला। उपहास – मज़ाक। दुर्बलता – कमज़ोरी। गागर रीति – खाली घड़ा, ऐसा मन जिसमें कोई भाव नहीं।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई है। जिसके रचयिता छायावादी काव्य के प्रवर्तक श्री जयशंकर प्रसाद हैं। इसके माध्यम से कवि ने कहा है कि उनके जीवन में ऐसा कुछ भी विशेष नहीं है जो औरों को कुछ सरस दे पाए।
व्याख्या : कवि कहता है कि जीवनरूपी उपवन में उसका मनरूपी भँवरा गुनगुना कर न जाने अपनी कौन-सी कहानी कह जाता है। उस कहानी से किसी को सुख मिलता है या दुख, वह नहीं जानता। लेकिन इतना अवश्य है कि आज उपवन में कितनी अधिक पत्तियाँ मुरझाकर झड़ रही हैं। कवि का स्वर निराशा के भावों से भरा है। उसे केवल दुख और पीड़ारूपी मुरझाई पत्तियाँ ही दिखाई देती हैं। उसकी न जाने कितनी इच्छाएँ पूरी हुए बिना ही मन में घुटकर रह गईं।
उचित परिस्थितियों और वातावरण को न पाकर वे समय से पहले ही पीले-सूखे पत्तों की तरह मुरझाकर मिट गईं। जीवन के अंतहीन गंभीर विस्तार में जीवन के असंख्य इतिहास रचे जाते हैं। वे बीती हुई निराशा भरी बातें कवि की स्थिति और पीड़ा पर व्यंग्य करती हैं; उसका उपहास उड़ाती हैं और कवि चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता। वह अपने जीवन की विवशताओं के सामने असहाय है; हताश है।
उसकी पीड़ा भरी जिंदगी के बारे में जानने की इच्छा रखने वालों से वह दुख भरे स्वर में पूछता है कि उसकी पीड़ा और विवशता को देखकर भी क्या वे चाहते हैं कि कवि अपनी पीड़ा, दुर्बलता और अपने पर बीती दुखभरी कहानी को फिर से सुनाए; फिर से दोहराए ? क्या उसकी पीड़ा देखकर नहीं समझी जा सकती? जब तुम उसकी जीवनरूपी खाली गागर को देखोगे, तो क्या तुम्हें उसे देख-सुनकर सुख प्राप्त होगा? मेरे हताश और निराशा से भरे अभावपूर्ण मन में कोई ऐसा भाव नहीं है, जिसे दूसरों को सुनाया जा सके।
अर्धग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. पंक्तियों में निहित भाव स्पष्ट करें।
2. ‘मधुप’ में विद्यमान प्रतीकात्मकता लिखिए।
3. ‘पत्तियों का मुरझाना’ किसे स्पष्ट करता है?
4. ‘अनंत-नीलिमा’ और ‘असंख्य जीवन इतिहास’ क्या है?
5. कवि किससे कहता है-‘कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती’?
6. ‘रीति गागर’ क्या है?
7. व्यंग्य-उपहास कौन करते हैं ?
8. ‘तुम सुनकर सुख पाओगे’ में छिपे अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
9. कवि का जीवन कैसा था?
10. कवि अपनी कथा क्यों नहीं सुनाना चाहता था?
उत्तर :
1. कवि का जीवन दुखों और अभावों से भरा हुआ है, जिसकी व्यथा भरी कहानी वह औरों को नहीं सुनाना चाहता। किसी व्यक्ति की पीड़ा भरी कहानी को सुनकर किसी को खुशी प्राप्त नहीं होती।
2. ‘मधुप’ एक प्रतीकात्मक शब्द है। यह ‘मन’ को प्रकट करता है, जो भँवरे के समान जहाँ-तहाँ उड़कर कहीं भी पहुँच जाता है।
3. ‘पत्तियों का मुरझाना’ मन में उत्पन्न सुख और आनंद के भावों का मिट जाना है। तरह-तरह के अभावों के कारण कवि के हृदय में उत्पन्न भाव दबकर रह जाते थे।
4. ‘अनंत-नीलिमा’ जीवन का अंतहीन विस्तार है। मनुष्य अपने मन में हर समय न जाने कौन-कौन से विचार अनुभव करता है। यदि वे सुखद होते हैं, तो दुखद भी होते हैं। ‘अनंत-नीलिमा’ लाक्षणिक शब्द है, जो अपने भीतर व्यापकता के भावों को छिपाए हुए है। ‘असंख्य जीवन इतिहास’ मानव-मन में उत्पन्न वे विभिन्न विचार हैं, जो तरह-तरह की घटनाओं के घटित होने के आधार बने।
5. ‘कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती’-कवि उन लोगों से कहता है, जो उसकी पीड़ा भरी जिंदगी के विषय में जानना चाहते हैं।
6. ‘रीति सागर’ में लाक्षणिकता और प्रतीकात्मकता है, जो कवि के अभावग्रस्त जीवन की ओर संकेत करती है जिसमें कोई सुख-सुविधा नहीं है।
7. कवि के अपने ही मन की निराशा भरी बातें उस पर व्यंग्य-उपहास करती हैं।
8. कवि व्यंग्यार्थ का प्रयोग करते हुए कहता है कि क्या उसके जीवन को जानने की इच्छा रखने वाले लोग उसकी पीड़ा और व्यथा को सुनकर प्रसन्नता प्राप्त कर सकेंगे। निश्चित रूप से उन्हें उसकी पीड़ा भरी कहानी को सुनकर किसी आनंद की प्राप्ति कदापि नहीं होगी।
9. कवि का जीवन दुख और निराशा से भरा हुआ था।
10. कवि के जीवन में केवल असफलता, पीड़ा, दुख और निराशा के भाव ही थे; इसलिए वह अपनी कथा नहीं सुनाना चाहता था।
सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तरी –
प्रश्न :
1. कवि ने किस काव्य-शैली का प्रयोग किया है?
2. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग दिखाई देता है ?
3. कवि ने किन प्रतीकात्मक शब्दों का प्रयोग किया है?
4. कवि ने किस बोली का प्रयोग किया है ?
5. पंक्तियों में किस प्रकार के शब्दों की अधिकता है?
6. गेयात्मकता की सृष्टि किससे हुई है?
7. किस काव्य-गुण का प्रयोग किया गया है?
8. किस काव्य-रस का समावेशन हुआ है?
9. दो तत्सम शब्द छाँटकर लिखिए।
10. कविता का संबंध हिंदी के किस वाद से है?
11. अवतरण से अलंकार छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
1. कवि ने अपने हृदय की पीड़ा और असहायता को आत्मकथात्मक शैली में प्रकट किया है और कहा है कि उसकी दुख भरी कहानी सुनने-सुनाने के योग्य नहीं है।
2. लाक्षणिकता का प्रयोग किया गया है।
3. मधुप, पत्तियाँ, अनंत-नीलिमा, जीवन-इतिहास, रीति गागर आदि में प्रतीकात्मकता विद्यमान है।
4. खड़ी बोली।
5. तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
6. स्वरमैत्री ने गयात्मकता की सृष्टि की है।
7. प्रसाद गुण विद्यमान है।
8. करुण रस का प्रयोग है।
9. मधुप, अनंत।
10. छायावाद।
11. अनुप्रास –
कर कह जाता कौन कहानी
रूपकातिशयोक्ति –
‘मधुप गुन-गुना कर कह जाता है’ में ‘मधुप’ मनरूपी भँवरे के लिए प्रयुक्त हुआ है।
‘गागर रीती’, ‘जीवनरूपी खाली गागर’ के लिए प्रयुक्त हुआ है।
2. किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
रह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की।
शब्दार्थ : विडंबना – निराश करना, उपहास का विषय। प्रवंचना – धोखा।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई है। जिसके रचयिता छायावादी काव्यधारा के प्रवर्तक श्री जयशंकर प्रसाद हैं। उन्हें ‘हंस’ नामक पत्रिका के लिए आत्मकथा लिखने के लिए कहा गया था, लेकिन कवि को ऐसा प्रतीत होता है कि वे अति साधारण हैं और उनके जीवन में कुछ भी ऐसा नहीं है, जिसे पढ़-सुनकर लोग वाह-वाह कर उठे। कवि ने यथार्थ के साथ-साथ अपने विनम्र भावों को प्रकट किया है।
व्याख्या : जो लोग कवि की दुखपूर्ण कथा को सुनना चाहते हैं, कवि उनसे कहता है कि उसकी कथा सुनकर कहीं वे यह न समझने लगे कि वही उसकी जीवनरूपी गागर को खाली करने वाले थे। वे सब अपने आपको समझें; स्वयं को पहचानें। वे उसके भावों के रस को प्राप्त कर अपने आप को भरने वाले थे। अरे सरल मन वालो! यह उपहास और निराशा का विषय है कि मैं तुम्हारी हँसी उड़ाऊँ। मैं अपने दवारा की गई गलतियों या दूसरों के द्वारा दिए गए धोखों को क्यों प्रकट करूँ ? आत्मकथा के नाम से मुझे अपनी या औरों की बातें जग-जाहिर नहीं करनी।
कवि कहता है कि उसके जीवन में पूर्ण रूप से पीड़ा और निराशा की कालिमा नहीं है; उसमें मधुर चाँदनी रातों की मीठी स्मृतियाँ भी हैं, पर वह उन उज्ज्वल गाथाओं को कैसे गाए और वह उन्हें क्यों प्रकट करे? वह अपने जीवन के कोमल पक्षों में सभी को भागीदार नहीं बनाना चाहता, क्योंकि वे उसकी निजी यादें हैं। वह अपनी मधुर स्मृतियों में सबकी साझेदारी नहीं चाहता। वह कभी अपनों के साथ खिलखिलाकर हँसा था; मीठी बातों में डूबा था और उसका हृदय प्रसन्नता से भर उठा था-उन क्षणों को वह औरों को क्यों बताए?
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. पंक्तियों में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. कवि ने किसका रस लेने की बात कही है ?
3. कवि ने ‘खाली करने वाला’ किसे कहा है?
4. ‘अरी सरलते’ में विद्यमान विशिष्टता क्या है?
5. कवि अपनी कथनी के द्वारा क्या बताना चाहता है ?
6. ‘उज्ज्वल गाथा’ में निहित प्रतीकार्थ स्पष्ट कीजिए।
7. कवि औरों के समक्ष किस गाथा को नहीं गाना चाहता?
8. ‘उन बातों में छिपा भाव स्पष्ट कीजिए।
9. ‘विडंबना’ में छिपा अर्थ व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
1. कवि अपने सुख-दुख की गाथा को जग-जाहिर नहीं करना चाहता। वह कहता था कि उसके पास ऐसा कुछ नहीं है, जो औरों को प्रसन्नता दे सके। कवि न तो अपनी सुख भरी बातें प्रकट करना चाहता है और न ही दूसरों की भूलें व्यक्त करना चाहता है।
2. कवि ने अपना प्रेम भरा रस लेने की बात कही है।
3. कवि ने ‘खाली करने वाला’ उन्हें कहा है, जो उसकी दुखभरी कहानी सुनने की इच्छा करते हैं।
4. ‘अरी सरलते’ में प्रेमपूर्ण संबोधन विद्यमान है, जिससे कवि ने अपनत्व का भाव प्रकट किया है।
5. कवि अपनी कथनी के द्वारा बताना चाहता है कि वह न तो औरों की आलोचना करना चाहता है और न ही सबको अपनी व्यक्तिगत बातें सुनाना चाहता है।
6. ‘उज्ज्वल गाथा’ प्रतीकात्मकता और लाक्षणिकता से परिपूर्ण है, जिसमें कवि हृदय में छिपा प्रेम और अपनत्व का भाव प्रकट होता है। कवि को इससे सुख की अनुभूति हुई थी।
7. कवि उस गाथा को औरों के समक्ष नहीं गाना चाहता, जो उसकी पूर्ण रूप से व्यक्तिगत है; जिसमें उसकी प्रेमानुभूति छिपी हुई है।
8. ‘उन बातों में गूढार्थ विद्यमान है। इनसे कवि को जीवन में सुख प्राप्त हुआ था।
9. ‘विडंबना’ का अर्थ है-‘उपहास का विषय’ या ‘निराश करना’। कवि किसी का उपहास नहीं उड़ाना चाहता। वह अपनी बात से किसी की हँसी उड़ाकर उसे व्यथित करने के बारे में सोच भी नहीं सकता।
सौदर्य सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. कवि ने किसे व्यक्तिगत माना है?
2. पंक्तियों में किस शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है?
3. कवि ने किस बोली का प्रयोग किया है?
4. किस प्रकार की शब्दावली का प्रयोग किया गया है?
5. किस काव्य-गुण का प्रयोग दिखाई देता है?
6. नाटकीयता की सृष्टि का आधार क्या है?
7. लयात्मकता का आधार क्या है?
8. कवि ने किस शैली का प्रयोग किया है ?
9. दो तत्सम शब्दों को चुनकर लिखिए।
10. प्रयुक्त अलंकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने अपने सुख-दुख को व्यक्तिगत माना है और वह उन्हें सबके साथ नहीं बाँटना चाहता।
2. लाक्षणिकता का सुंदर प्रयोग किया गया है।
3. खड़ी बोली।
4. तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
5. प्रसाद गुण विद्यमान है।
6. संबोधन शैली के प्रयोग ने नाटकीयता की सृष्टि की है।
7. स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
8. आत्मकथात्मक शैली।
9. प्रवंचना, उज्ज्वल।
10. मानवीकरण –
अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों में।
अनुप्रास –
किंतु कहीं ऐसा न हो।
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ।
3. मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?
शब्दार्थ : स्वप्न – सपना। मुसक्या कर – मुस्कुराकर। अरुण-कपोलों – लाल गालों। मतवाली – मस्ती भरी। अनुरागिनी उषा – प्रेमभरी भोर । निज – अपना। स्मृति पाथेय – स्मृति रूपी सहारा। पथिक – मुसाफ़िर; यात्री। पंथा – रास्ता, राह। सीवन – सिलाई। कंथा – गुदड़ी, अंतर्मन।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ छायावादी कवि श्री जयशंकर प्रसाद के द्वारा रचित कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई हैं। कवि ने अपने जीवन की कहानी किसी को न सुनाने के बारे में सोचा था, क्योंकि उसे लगता था कि उसके जीवन में कुछ भी ऐसा सुखद नहीं था, जो किसी को सुख दे सके। उसके पास केवल सुखद यादें अवश्य थीं।
व्याख्या : कवि कहता है कि उसे अपने जीवन में कभी किसी सुख की प्राप्ति नहीं हुई। सपने में जिस सुख को अनुभव कर वह नींद से जाग गया था, वह भी उसे प्राप्त नहीं हुआ। वह सुख देने वाला उसके आलिंगन में आते-आते धीरे से मुस्कुराकर उससे दूर हो गया; उसे प्राप्त नहीं हुआ। जो सपने में सुख और प्रेम का आधार बना था, वह अपार सुंदर और मोहक था। उसके लाल-गुलाबी गालों की मस्ती भरी छाया में प्रेम भरी भोर अपने सुहाग की मिठास भरी मनोहरता को लेकर प्रकट हो गई थी।
भाव यह है कि उसके गालों में प्रात:कालीन लाली और शोभा विद्यमान थी। जीवन की लंबी राह पर थककर चूर हुए कविरूपी यात्री की स्मृतियों में केवल वही एक सहारा थी। उसकी यादें ही उसकी थकान को कुछ कम करती थीं। कवि नहीं चाहता कि उसकी मधुर यादों के आधार को कोई जाने। वह पूछता है कि क्या उसके अंतर्मन रूपी गुदड़ी की सिलाई को उधेड़कर उस छिपे रहस्य को आप देखना चाहेंगे? भाव यह है कि कवि उस रहस्य को अपने भीतर सँभालकर रखना चाहता है; उसे व्यक्त नहीं करना चाहता।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. पंक्तियों में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
2. कवि नींद से क्यों जाग गया था?
3. कवि किसे आलिंगन में लेने को आतुर था?
4. कवि के प्रिय का रूप कैसा था?
5. कवि ने भोर को कैसा माना है?
6. कवि को किसका सहारा प्राप्त हुआ था ?
7. कवि अपना रास्ता कैसा मानता है ?
8. ‘सीवन को उधेड़ना’ क्या है?
9. ‘कंथा’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
1. कवि को जीवन में किसी से प्रेम हुआ था, पर उसे अपने प्रेम की प्राप्ति नहीं हुई। कवि को लगता है कि उसके प्रिय की अपार सुंदरता ही उसके जीवन की प्रेरणा है और उसके स्मृतिरूपी सहारे से वह अपने जीवन की थकान को कम करने में सफल हुआ है। कवि के जीवन से परिचित होने की इच्छा रखने वालों को उसके प्रेम के विषय में जानने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वह विषय उसका पूर्णरूप से निजी था।
2. कवि उस स्वप्न को देखकर नींद से जाग गया था, जिसके सुख को उसने पाया ही नहीं था।
3. कवि स्वप्न में देखे अपने प्रिय को आलिंगन में लेने को आतुर था।
4. कवि का प्रिय अपार सुंदर था। उसके मतवाले लाल गाल ऐसे थे, जैसे प्रातः के समय पूर्व दिशा की लाली उसी से प्राप्त की गई हो।
5. कवि ने भोर को प्रेम और लाली से युक्त माना है।
6. कवि को स्वप्न में देखे अपने प्रिय की स्मृतियों का सहारा प्राप्त हुआ था।
7. कवि को अपना रास्ता कठिन प्रतीत होता है, जिस पर उसके थके हुए कदम आसानी से आगे नहीं बढ़ते।
8. ‘सीवन को उधेड़ना’ से अभिप्राय कवि के मन में छिपी पुरानी यादों को फिर से ताज़ा करना है, जिन्हें वह अपने हृदय में छिपा चुका है।
9. ‘कंथा’ का शाब्दिक अर्थ ‘गुदड़ी’ है, जिसे कवि ने अंतर्मन के लिए प्रयुक्त किया है।
सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. कवि ने पंक्तियों में किसका आभास दिया है ?
2. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है ?
3. किस बोली का प्रयोग है?
4. किस प्रकार की शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है?
5. काव्य-गुण कौन-सा विद्यमान है?
6. किस शैली का प्रयोग है?
7. दो तत्सम शब्द चुनकर लिखिए।
8. पंक्तियों में से निराशा के भाव का एक उदाहरण दीजिए।
9. कविता का संबंध हिंदी-साहित्य की किस काव्यधारा से है ?
10. प्रयुक्त अलंकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने अपने जीवन में किसी के प्रेम को प्राप्त करने का आभास दिया है, जिसका परिचय वह किसी को नहीं देना चाहता।
2. लाक्षणिकता विद्यमान है।
3. खड़ी बोली।
4. तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है।
5. प्रसाद गुण विद्यमान है।
6. आत्मकथात्मक शैली।
7. आलिंगन, अनुरागिनी।
8. मिला कहाँ वह सुख।
9. छायावाद।
10. व्यतिरेक –
जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी ऊषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
पुनरुक्ति प्रकाश –
आलिंगन में आते-आते अनुप्रास
थके पथिक की पंथा की
क्यों मेरी कंथा की।
4. छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।
शब्दार्थ : कथाएँ – कहानियाँ। मौन – चुप। आत्मकथा – अपनी कहानी। व्यथा – पीड़ा।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ छायावादी काव्यधारा के प्रवर्तक श्री जयशंकर प्रसाद के द्वारा रचित कविता ‘आत्मकथ्य’ से ली गई हैं। कवि से कहा गया था कि वह अपनी आत्मकथा लिखे, ताकि सभी उससे परिचित हो सकें। लेकिन कवि को लगता है कि उसकी जीवनी में कुछ भी ऐसा विशेष नहीं है, जिससे दूसरों को सुख प्राप्त हो सके।
व्याख्या : कवि कहता है कि उसका जीवन छोटा-सा है; सुखों से रहित है, इसलिए वह उससे संबंधित बड़ी-बड़ी कहानियाँ किस प्रकार सुनाए? वह अपनी कहानी सुनाने की अपेक्षा चुप रहकर औरों की कहानियों को सुनना अधिक अच्छा मानता है। वह उनकी कहानियों से कुछ पाना चाहता है। वह पूछता है कि लोग उसकी कहानी को सुनकर क्या करेंगे? उसकी जीवन कहानी सीधी-सादी और भोली-भाली थी, जिसमें कोई भी विशेष आकर्षण नहीं था। उसे लगता है कि अभी अपनी कहानी सुनाने का अवसर भी अनुकूल नहीं है। उसकी मौन पीड़ा अभी थकी-हारी सो रही है; उसके मन में छिपी हुई है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. पंक्तियों में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. कवि ने अपने जीवन को कैसा माना है?
3. कवि के जीवन में बड़ी-बड़ी कथाएँ क्यों नहीं थीं ?
4. कवि मौन रहकर क्या सुनना चाहता है?
5. कवि ने अपनी कथा को कैसा माना है?
6. कवि की मौन व्यथा हृदय में क्या कर रही है?
7. कवि ने क्यों लिखा कि ‘अभी समय भी नहीं।
8. कवि ने प्रश्न-चिहनों के प्रयोग से शिल्प में किस विशिष्टता को प्रकट किया है ?
9. ‘मौन व्यथा’ में निहित गूढार्थ को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. कवि अपनी कथा को दूसरों के सामने प्रकट नहीं करना चाहता। उसे लगता है कि उसकी पीड़ा भरी कहानी किसी को सुख नहीं दे पाएगी। इसलिए उसके लिए यही अच्छा है कि वह दूसरों की कहानी को सुने और अपनी कथा को अपने मन में ही छिपाकर रखे।
2. कवि ने अपने जीवन को छोटा-सा माना है।
3. कवि स्वभाव से विनम्र है। इसलिए हिंदी साहित्य में बहुत बड़ा योगदान होने पर भी वह मानता है कि उसके जीवन में बड़ी-बड़ी कथाएँ नहीं थीं।
4. कवि मौन रहकर दूसरों की कथाएँ सुनना चाहता है।
5. कवि ने अपनी कथा को भोली और सीधी-सादी माना है।
6. कवि की मौन व्यथा उसके हृदय में थककर सो रही है। वह उसकी वाणी द्वारा औरों के सामने व्यक्त नहीं होना चाहती।
7. कवि को लगता है कि उसकी आत्मकथा को सुनने से किसी को कोई सुख प्राप्त नहीं होगा। साथ ही वह अपनी पीड़ा को दूसरों के सामने उजागर करने का यह उचित अवसर नहीं मानता।
8. कवि ने प्रश्न-चिह्नों के प्रयोग से अपनी विनम्रता को प्रकट करने में सफलता प्राप्त की है। साथ ही कवि ने इनसे अपने पाठकों या श्रोताओं की जिज्ञासा में वृद्धि की है। कवि ने अपनी नकारात्मकता को प्रकट न कर प्रश्न-चिह्नों से कथन को नाटकीयता का गुण प्रदान किया है।
9. ‘मौन व्यथा’ में गूढार्थ विद्यमान है। जब व्यक्ति अपने दुख-दर्द को सबके सामने बार-बार कहता है, तो कोई भी उसे बाँटना नहीं चाहता बल्कि बाद में उस पर कटाक्ष व व्यंग्य करता है। दुख-सुख सभी के जीवन के आवश्यक हिस्से हैं। यह जीवन का यथार्थ है। इसलिए कवि उन्हें दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता। वह उसे अपने भीतर ही छिपाकर रखना चाहता है। कई बार पूछे जाने पर व्यथित व्यक्ति अपने दुख को प्रकट कर देता है, पर कवि अपनी पीड़ा को ‘मौन व्यथा’ कहकर चुप हो जाता है।
सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
1. कवि किसका परिचय औरों को नहीं देना चाहता?
2. कवि ने किस बोली का प्रयोग किया है?
3. किस प्रकार की शब्दावली की अधिकता है?
4. किस काव्य-गुण का प्रयोग किया गया है?
5. कवि के शब्दों में उसकी कौन-सी विशेषता साफ़ रूप से झलकती है?
6. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग है?
7. लयात्मकता की सृष्टि किस कारण हुई है?
8. अवतरण किस शैली से संबंधित है ?
9. प्रयुक्त किन्हीं दो तत्सम शब्दों को लिखिए।
10. यह किस युग की कविता है ?
11. प्रयुक्त अलंकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
1. कवि अपनी पीड़ा भरी आत्मकथा का परिचय औरों को नहीं देना चाहता।
2. खड़ी बोली।
3. तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है।
4. प्रसाद गुण विद्यमान है।
5. कवि की विनम्रता साफ़ रूप से दिखाई देती है।
6. अभिधा शब्द-शक्ति के प्रयोग ने कवि के कथन को सरलता-सरसता से प्रकट किया है।
7. स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
8. आत्मकथात्मक शैली।
9. मौन, व्यथा।
10. छायावाद।
11. अनुप्रास –
मैं मौन, मेरी मौन व्यथा
मानवीकरण –
मेरी भोली आत्मकथा, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा
JAC Class 10 Hindi आत्मकथ्य Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
आप अपना आत्मकथ्य पद्य या गद्य में लिखिए।
उत्तर :
मेरा आत्मकथ्य अभी किसी के लिए भी महत्वपूर्ण नहीं हो सकता। न तो अभी मैंने यथार्थ जीवन की राह में कदम बढ़ाए हैं और न ही मैं अपनी शिक्षा पूरी कर पाया हूँ। अभी मेरी केवल पंद्रह वर्ष की आयु है। मेरा जन्म जिस परिवार में हुआ है, वह मध्यवर्गीय है। पिताजी की नौकरी से प्राप्त होने वाली आय कठिनाई से परिवार को जीवन गुजारने योग्य सुविधाएँ प्रदान करती है। मेरे माता-पिता अपना पेट काटकर हम तीन भाई-बहनों का पेट भरते हैं; हमें पढ़ाते-लिखाते हैं।
स्वयं पुराना और घिसा-पिटा कपड़ा पहनकर भी हमें नए कपड़े लेकर देने का प्रयत्न करते हैं। उन्होंने हमें अच्छे संस्कार दिए हैं और कभी किसी के सामने हाथ न फैलाने की शिक्षा दी है। पढ़ाई-लिखाई के साथ मुझे व्यायाम करने और कुश्ती लड़ने का शौक है। मैं अपने स्कूल की ओर से कई बार कुश्ती प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुका हूँ और मैंने स्कूल के लिए कई पुरस्कार जीते हैं। पढ़ाई में भी मैं अच्छा हूँ। कक्षा में पहला या दूसरा स्थान प्राप्त कर लेता हूँ, जिस कारण माता-पिता के साथ-साथ अपने अध्यापकों की आँखों का भी तारा हूँ। मेरे सहपाठियों और मेरे मोहल्ले के लड़कों को मेरे साथ खेलना और बातें करना अच्छा लगता है। ईश्वर के प्रति मेरी अटूट आस्था है।
प्रश्न 2.
श्री जयशंकर प्रसाद ने ‘आत्मकथ्य’ नामक कविता की रचना क्यों की थी?
उत्तर
नामक पत्रिका का प्रकाशन करते थे। वे उसके संपादक थे। सन 1932 में उन्होंने पत्रिका का आत्मकथा विशेषांक निकालने का निर्णय लिया। उन्होंने प्रसाद जी से आग्रह किया कि वे भी आत्मकथा लिखें। लेकिन प्रसाद जी को ऐसा करना उचित प्रतीत नहीं हुआ। वे विनम्र थे और उन्हें लगता था कि उन्होंने ऐसा कुछ विशेष नहीं किया, जिससे उन्हें लोगों की वाहवाही मिलती। उनकी आत्मकथा न लिखने की इच्छा के कारण ‘आत्मकथ्य’ की रचना हुई, जिसे ‘हंस’ पत्रिका के आत्मकथा विशेषांक में छापा गया था।
प्रश्न 3.
कवि अपने जीवन के किस प्रसंग को जग-जाहिर नहीं करना चाहता था और क्यों?
उत्तर :
कवि किसी के प्रति अपने प्रेमभाव को जग-जाहिर नहीं करना चाहता था। वह नहीं चाहता था कि जिस प्रेम के सुख को उसने पाया नहीं और जिसका केवल सपना-भर देखा, उसे दूसरों के सामने प्रकट करे। वह प्रेम उसकी स्मृतियों का सहारा था, जो उसे जीने की प्रेरणा देता था।
प्रश्न 4.
कवि ने अपनी कथा को भोली क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि का जीवन सीधा-सादा और विनम्रता से भरा हुआ था। उसे नहीं लगता था कि उसकी कथा में किसी को कुछ विशेष देने की क्षमता है। उससे किसी प्रकार की वाहवाही भी प्राप्त नहीं की जा सकती। इसलिए कवि ने अपनी कथा को भोली कहा है।
प्रश्न 5.
प्रसाद के काव्य में प्रकृति-प्रेम झलकता है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि जयशंकर प्रसाद छायावाद के आधार स्तम्भ माने जाते हैं। प्रकृति छायावादी कवियों का मन चाहा शरण स्थल रही है। प्रकृति को मानवीय रूप में देखना और उससे प्यार करना इनके काव्य का प्रमुख गुण है। प्रसाद जी ने प्रकृति को अपने काव्य की सहचरी माना है। इसी कारण उसका सजीव चित्रण भी किया है।
प्रश्न 6.
कवि ने अपने जीवन को कैसा माना है?
उत्तर :
कवि ने अपने जीवन को छोटा और सरल माना है। उसका जीवन सुखों से रहित है; उसमें सर्वत्र दुखों का वास है। प्रेम और सुख की कल्पना करना भी उसे पीड़ादायक लगता है। उसका जीवन पीड़ा की एक कहानी है। उसकी यह कहानी किसी को भी सुख प्रदान नहीं कर सकती। वह अपने जीवन को स्वयं तक सीमित रखना चाहता है।
प्रश्न 7.
कवि ने कविता में अपना रास्ता कैसा और किस प्रकार का माना है?
उत्तर :
कवि ने अपना रास्ता अत्यंत कठिन तथा पीड़ादायक माना है। उसका रास्ता हृदय को द्रवित करने वाला है। उसे अपना रास्ता इतना अधिक कठिन प्रतीत होता है कि उस पर उसके थके कदम आसानी से नहीं बढ़ते। उसे पग-पग पर समस्याओं से जूझना पड़ता है। न चाहते हुए भी कष्टों को सहन करना पड़ता है।
प्रश्न 8.
कविता में कवि ने अपने प्रिय के विषय में क्या कहा है?
उत्तर :
कवि ने बताया है कि अतीत में उसने कभी किसी से प्रेम किया था लेकिन जिससे उसने प्रेम किया था, वह उसे प्राप्त नहीं हो सका। उसके प्रिय का अगाध सौंदर्य ही उसके जीवन की प्रेरणा थी। कवि अपने जीवन को पूर्ण रूप से व्यक्तिगत मानता है। वह अपने दुख भरे जीवन से किसी को परिचित नहीं करवाना चाहता।
प्रश्न 9.
कवि ने कविता में जीवन एवं मन को किस रूप में तथा कैसे प्रकट किया है?
उत्तर :
कवि ने कविता में जीवन को एक उपवन के रूप में प्रस्तुत किया है। इसी उपवन में मनरूपी भँवरा गुनगुनाता रहता है। किंतु वह चाहे कितनी भी गुंजार करे, उसके आस-पास अनेक पत्तियाँ मुरझाती रहती हैं।
आत्मकथ्य Summary in Hindi
कवि-परिचय :
जयशंकर प्रसाद आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रतिभावान कवि माने जाते हैं। ये छायावाद के प्रवर्तक थे। इन्होंने कहानी, नाटक, उपन्यास, आलोचना आदि हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई। इनका जन्म सन 1889 ई० में काशी के सुंघनी साहू नामक प्रसिद्ध वैश्य परिवार में हुआ था। इनके पिता देवी प्रसाद साहू काव्य-प्रेमी थे। जब उनका देहांत हुआ, तब प्रसाद की आयु केवल आठ वर्ष की थी। परिवारजन की मृत्यु, आत्म-संकट, पत्नी वियोग आदि कष्टों को झेलते हुए भी ये काव्य-साधना में लीन रहे। तपेदिक के कारण इनका देहांत 15 नवंबर 1937 में हुआ।
रचनाएँ – जयशंकर प्रसाद ने बड़ी मात्रा में साहित्य की रचना की। इन्होंने पद्य एवं गद्य दोनों क्षेत्रों में अनुपम रचनाएँ प्रस्तुत की हैं, जो निम्नलिखित हैं –
काव्य – ‘चित्राधार’, ‘कानन-कुसुम’, ‘झरना’, ‘लहर’, ‘प्रेम पथिक’, ‘आँसू’, ‘कामायनी’ आदि।
नाटक – ‘चंद्रगुप्त’, ‘स्कंदगुप्त’, ‘अजातशत्रु’, ‘जनमेजय का नागयज्ञ’, ‘ध्रुवस्वामिनी’, ‘करुणालय’, ‘कामना’, ‘कल्याणी’, ‘परिणय’, ‘प्रायश्चित्त’, ‘सज्जन’, ‘राज्यश्री’, ‘विशाख’, ‘एक घुट’ आदि।
कहानी – ‘छाया’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘इंद्रजाल’, ‘आकाशदीप’, ‘आँधी’ आदि। उपन्यास कंकाल, तितली, इरावती (अपूर्ण)।
साहित्यिक विशेषताएँ – जयशंकर प्रसाद ने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी और उसकी प्रत्येक विधा को समृद्ध किया। प्रसाद विरचित साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. स्वदेश-प्रेम – प्रसाद का स्वदेश-प्रेम सौंदर्य के अछूते चित्रों के रूप में व्यक्त हुआ है। संपूर्ण भारत उनके लिए सौंदर्य का भंडार है।
भारत के प्राकृतिक सौंदर्य पर मुग्ध होकर कवि ने उसका चित्रण किया है। ‘चंद्रगुप्त’ नाटक का अमर गीत है
‘अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।’
2. प्रकृति-चित्रण छायावादी कवियों का मनचाहा शरणस्थल प्रकृति ही रही है। प्रकृति को मानवीय रूप में देखना और उससे प्यार करना उनके काव्य में मुख्य रूप से अंकित है। प्रकृति को प्रसाद ने अपने काव्य की पृष्ठभूमि न मानकर सहचरी माना है और उसका सजीव चित्रण किया है। कोलाहल में भरी इस दुनिया से भागकर कवि प्रकृति की गोद में शरण लेना चाहता है, इसलिए वह लिखता है –
‘ले चल मुझे भुलावा देकर, मेरे नाविक धीरे-धीरे।
तज कोलाहल की अवनि रे।’
3. रहस्यवाद – छायावादी कवि रहस्यवादी हैं और प्रकृति में प्रभु के दर्शन करते हैं। प्रसाद के काव्य में रहस्यवादी तत्व पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। जिज्ञासा, प्रेम, विरह तथा मिलन की सीढ़ियों से गुजरने वाली ईश्वर-प्रेम की भावना का कवि ने वर्णन किया है। ईश्वर के अस्तित्व के विषय में जिज्ञासा व्यक्त करता हुआ कवि कहता है –
‘हे अनंत रमणीय! कौन तुम?
यह मैं कैसे कह सकता।
कैसे हो? क्या हो? इसका तो
भार विचार न सह सकता।’
प्रेम के सौंदर्य के साथ-साथ प्रसाद के काव्य में विश्व-बंधुत्व, सर्व जन हिताय तथा व्यापक मानवतावाद से ओत-प्रोत रचनाएँ भी हैं ! प्रसाद मूलत: आंतरिक अनुभूतियों के कवि हैं, परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि उनका काव्य समकालीन हलचलों को अनदेखा करता है। प्रसाद की कविता मानव में ईश्वर और ईश्वर में मानव को देखती है।
4. भाषा-शैली – प्रसाद की भाषा-शैली परिष्कृत, स्वाभाविक, तत्सम शब्दावली प्रधान एवं सरस है। छोटे-छोटे पदों में गंभीर भाव भर देना और उनमें संगीत लय का विधान करना प्रसाद की शैली की प्रमुख विशेषताएँ हैं। देश-प्रेम की रचनाओं में ओज गुण प्रधान शब्दावली, शृंगार रस प्रधान रचनाओं में माधुर्य-गुण से युक्त शब्दावली तथा सामान्यतः प्रसाद गुणयुक्त शब्दावली का प्रयोग किया गया है।
शब्द-चित्रों की सुंदर योजना प्रसाद की रचनाओं में रहती है। इनकी रचनाओं में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। प्रसाद की कविताओं में शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली का प्रामाणिक रूप मिलता है। इनकी काव्य-भाषा कहीं पर सरल तथा कहीं पर क्लिष्ट एवं तत्सम शब्दावली प्रधान है। स्वाभाविकता एवं प्रवाह उनकी भाषा की विशेषता है। भाषा भावानुकल है, इसलिए तत्सम शब्द भी स्वाभाविक लगते हैं। उनकी रचनाओं में मुहावरे बहुत कम हैं।
5. संगीतात्मकता – संगीतात्मकता उनके काव्य का प्रमुख स्वर है ! संगीत की स्वर-लहरी पद-पद पर झलकती है। ‘कामायनी’, ‘आँस’, ‘लहर’, ‘झरना’ सभी कविताएँ गेय हैं।
वस्तुतः उनके साहित्य में सर्वतोन्मुखी प्रतिभा की झलक दिखाई देती है।
कविता का सार :
मुंशी प्रेमचंद ने अपनी पत्रिका ‘हंस’ में छापने के लिए श्री जयशंकर प्रसाद से आत्मकथा लिखने का आग्रह किया था, पर उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया। उन्होंने आत्मकथा न लिखकर ‘आत्मकथ्य’ कविता लिखी थी, जो सन 1932 में ‘हंस’ में छपी। कवि ने इस कविता में जीवन के यथार्थ को प्रकट करने के साथ-साथ उन अनेक अभावों को भी लिखा था, जिन्हें उन्होंने झेला था। उनका कहना था कि उनका जीवन किसी भी सामान्य व्यक्ति के जीवन की तरह सरल और सीधा था जिसमें कुछ भी विशेष नहीं था, वह लोगों की वाहवाही लूटने और उन्हें रोचक लगने वाला नहीं था।
जीवनरूपी उपवन में मनरूपी भँवरा गुनगुना कर चाहे अपनी कहानी कहता हो, पर उसके आसपास पेड़-पौधों की न जाने कितनी पत्तियाँ मुरझाकर बिखरती रहती हैं। इस नीले आकाश के नीचे न जाने कितने जीवन-इतिहास रचे जाते हैं, पर ये व्यंग्य से भरे होने के कारण पीड़ा को प्रकट करते हैं। क्या इन्हें सुनकर सुख पाया जा सकता है? मेरा जीवन तो खाली गागर के समान व्यर्थ है, अभावग्रस्त है। इस संसार में व्यक्ति स्वार्थ भरा जीवन जीते हैं। वे दूसरों के सुखों को छीनकर स्वयं सुखी होना चाहते हैं। यह जीवन की विडंबना है।
कवि दूसरों के धोखे और अपनी पीड़ा की कहानी नहीं सुनाना चाहता। वह नहीं समझता कि उसके पास दूसरों को सुनाने के लिए मीठी बातें हैं। उसे अपने जीवन में सुख प्रदान करने वाली मीठी-अच्छी बातें दिखाई नहीं देतीं। उसे प्राप्त होने वाले सुख आधे रास्ते से ही दूर हो जाते हैं। उसकी यादें थके हुए यात्री के समान हैं, जिसमें कहीं सुखद यादें नहीं हैं। कोई भी उसके मन में छिपी दुखभरी बातों को क्यों जानना चाहेगा! उसके छोटे-से जीवन में बड़ी उपलब्धियाँ नहीं हैं।
इसलिए कवि अपनी कहानियाँ न सुनाकर केवल दूसरों की बातें सुनना चाहता है। वह चुप रहना चाहता है। कवि को अपनी आत्मकथा भोली-भाली और सीधी-सादी प्रतीत होती है। उसके हृदय में छिपी हुई पीड़ाएँ मौन-भाव से थककर सो गई थीं, जिन्हें कवि जगाना उचित नहीं समझता। वह नहीं चाहता कि कोई उसके जीवन के कष्टों को जाने।