Jharkhand Board JAC Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम् Textbook Exercise Questions and Answers.
JAC Board Class 10th Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम्
JAC Class 10th Sanskrit शिशुलालनम् Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखिए)
(क) कुशलवौ कम् उपसृत्य प्रणमतः ?
(कुश और लव किसके पास जाकर प्रणाम करते हैं?)
(ख) तपोवन वासिनः कुशस्य मातरं केन नाम्ना आह्वयन्ति?
(तपोवनवासी कुश की माता को किस नाम से बुलाते हैं?)
(ग) वयोऽनुरोधात् कः लालनीयः भवति?
(उम्र के कारण कौन लाड़ करने योग्य होता है?)
(घ) केन सम्बन्धेन वाल्मीकिः लव कुशयोः गुरुः?
(किस संबंध से वाल्मीकि लव-कुश के गुरु हैं?)
(ङ) कुत्र लवकुशयोः पितुः नाम न व्यवह्रियते?
(लव-कुश के पिता का नाम कहाँ व्यवहार में नहीं लाया जाता ?)
उत्तरम्
(क) रामम्
(ख) देवी
(ग) शिशुजन: (बच्चे)
(घ) उपनयनोपदेशेन (यज्ञोपवीत संस्कार (दीक्षा) के कारण
(ङ) तपोवने (तपोवन में)।
प्रश्न 2.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत –
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए)
(क) रामाय कुशलवयोः कण्ठाश्लेषस्य स्पर्शः कीदृशः आसीत् ?
(राम के लिए कुश और लव को गले लगाने का स्पर्श कैसा था ?)
उत्तरम् :
रामाय कुशलवयोः कण्ठाश्लेषस्य स्पर्शः हृदयग्राही आसीत्।
(राम के लिए कुश-लव को गले लगाने का स्पर्श हृदयग्राही था।)
(ख) रामः लवकुशौ कुत्र उपवेशयितुं कथयति ?
(राम लव-कुश को कहाँ बैठने के लिए कहते हैं ?)
उत्तरम् :
रामः लवकुशौ आसनार्धमुपवेशयितुं कथयति।
(राम लव-कुश को आधे आसन पर बैठने के लिए कहते हैं।)
(ग) बालभावात् हिमकरः कुत्र विराजते ?
(बालभाव के कारण चन्द्रमा कहाँ शोभा देता है ?)
उत्तरम् :
बालभावात् हिमकरः पशुपति-मस्तके विराजते।
(बालभाव के कारण चन्द्रमा शिव के शिर पर शोभा देता है।)
(घ) कुशलवयोः वंशस्य कर्ता कः ?
(कुश और लव के वंश का कर्ता कौन है ?)
उत्तरम् :
कुशलवयोः वंशस्य कर्ता सहस्रदीधितिः। (कुश-लव के वंश का कर्ता सूर्य है।)
(ङ) कुशलवयोः मातरं वाल्मीकिः केन नाम्ना आह्वयति ?
(कुश-लव की माता को वाल्मीकि किस नाम से पुकारते हैं ?)
उत्तरम् :
कुशलवयोः मातरं वाल्मीकिः ‘वधूः’ इति नाम्ना आह्वयति।
(कुश-लव की माता को वाल्मीकि ‘बह के नाम से पुकारते हैं।)
प्रश्न 3.
रेखाङ्कितपदेषु विभक्ति तत्कारणंच उदाहरणानुसारं निर्दिशत –
(रेखाङ्कित पदों में विभक्ति-कारण का उदाहरणानुसार निर्देश कीजिए)
यथा – राजन् ! अलम् अतिदाक्षिण्येन। (महाराज ! अधिक दक्षता मत करो।)
उत्तरम् :
तृतीया विभक्ति। ‘अलम्’ के योग में तृतीया।
(क) रामः लवकुशौ आसनार्धम् उपवेशयति। (राम लवकुश को आधे आसन पर बैठाते हैं।)
उत्तरम् :
द्वितीया। ‘उप’ योगे (उप + विश्) के योग में।
(ख) धिङ्माम् एवं भृतम्। (इस प्रकार के मुझको धिक्कार है।)
उत्तरम् :
द्वितीया। ‘धिक्’ के योग में।
(ग) अङ्क-व्यवहितम् अध्यास्यतां सिंहासनम्। (गोदी में बने आसन पर बैठिए।)
उत्तरम् :
द्वितीया। अधिशीङ्स्थासां कर्म
(‘अधि’ उपसर्गपूर्वक शी, स्था तथा आस् धातु के योग में द्वितीया।)
(घ) अलम् अतिविस्तरेण। (अधिक विस्तार मत करो।)
उत्तरम् :
तृतीया। ‘अलम्’ के योग में तृतीया।
(ङ) रामम् उपसृत्य प्रणम्य च।।
उत्तरम् :
‘उप’ उपसर्ग के योग में ‘राम’ में द्वितीया।
प्रश्न 4.
यथानिर्देशम् उत्तरम्त् –
(निर्देशानुसार उत्तरम् दीजिए)
(क) ‘जानाम्यहं तस्य नामधेयम्’ अस्मिन् वाक्ये कर्तृ पदं किम्?
(इस वाक्य में कर्ता क्या है?)
उत्तरम् :
अहम् (मैं)।
(ख) ‘किं कुपिता एवं भणति उत प्रकृतिस्था’ अस्मात् वाक्यात् ‘हर्षिता’ इति पदस्य विपरीतार्थकं पदं चित्वा
लिखत।
(‘क्या नाराज हुई इस तरह कहते हो अथवा स्वाभाविक, इस वाक्य से ‘हर्षिता’ पद का विलोम लिखिए।)
उत्तरम् :
कुपिता (नाराज)
(ग) विदूषकः (उपसृत्य) ‘आज्ञापयतु भवान्’ अत्र भवान् इति पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(‘आज्ञापयतु भवान्’ में भवान् पद किसके लिए प्रयोग हुआ है?)
उत्तरम् :
रामाय (राम के लिए)।
(घ) ‘तस्मादङ्क-व्यवह्नितम् अध्यासाताम् सिंहासनम्’ अत्र क्रियापदं किम्’?
(‘तस्मादङ्क’ आदि वाक्य में क्रिया पद क्या है?)
उत्तरम् :
अध्यासाताम् (विराजिए)।
(ङ) ‘वयसस्तु न किञ्चिदान्तरम्’ अत्र ‘आयुषः’ इत्यर्थे किं पदं प्रयुक्तम्?
(‘वयसस्तु’ आदि वाक्य में आयुषः के अर्थ में क्या शब्द प्रयुक्त हुआ है?)
उत्तरम् :
वयसः (आयु का)।
प्रश्न 5.
अधोलिखितानि वाक्यानि कः कं प्रति कथयति –
(निम्नलिखित वाक्यों को कौन किससे कहता है -)
उत्तरम् :
प्रश्न 6.
(अ) मञ्जूषातः पर्यायद्वयं चित्वा पदानां समक्षं लिखत
[मञ्जूषा (बॉक्स) में से दो पर्यायवाची शब्द चुनकर पदों के सामने लिखिए-]
शिवः, शिष्टाचारः, शशिः, चन्द्रशेखरः, सुतः, इदानीम्, अधुना, पुत्रः, सूर्यः, सदाचारः, निशाकरः, भानुः।
(क) हिमकरः
(ख) सम्प्रति
(ग) समुदाचारः
(घ) पशुपतिः
(ङ) तनयः
(च) सहस्रदीधितिः।
उत्तरम् :
(क) हिमकरः = शशिः, निशाकरः
(ख) सम्प्रति = अधुना, इदानीम्
(ग) समुदाचारः = शिष्टाचारः, सदाचारः
(घ) पशुपतिः = चन्द्रशेखरः, शिवः
(ङ) तनयः = सुतः, पुत्रः
(च) सहस्रदीधितिः = सूर्यः, भानुः।
(आ) विशेषण-विशेष्यपदानि योजयत (विशेषण-विशेष्य पदों को जोड़िए) –
विशेषणपदानि – विशेष्यपदानि
यथा – श्लाघ्या – कथा
1. उदात्तरम्यः (क) समुदाचारः
2. अतिदीर्घः (ख) स्पर्शः
3. समरूपः (ग) कुशलवयोः
4. हृदयग्राही (घ) प्रवास:
5. कुमारयोः (ङ) कुटुम्बवृत्तान्तः।
उत्तरम् :
1. उदात्तरम्यः (क) समुदाचारः
2. अतिदीर्घः (घ) प्रवास:
3. समरूपः (ङ) कुटुम्बवृत्तान्तः।
4. हृदयग्राही (ख) स्पर्शः
5. कुमारयोः (ग) कुशलवयोः
प्रश्न 7.
(क) अधोलिखितपदेषु सन्धिं कुरुत (निम्नलिखित पदों में सन्धि कीजिए)
(क) द्वयोः + अपि
(ख) द्वौ + अपि
(ग) क: + अत्र
(घ) अनभिज्ञः + अहम्
(ङ) इति + आत्मानम्।
उत्तरम् :
(क) द्वयोरपि,
(ख) द्वावपि,
(ग) कोऽत्र,
(घ) अनभिज्ञोऽहम्,
(ङ) इत्यात्मानम्।
(ख) अधोलिखितपदेषु सन्धिविच्छेदं कुरुत –
(निम्नलिखित पदों का सन्धि-विच्छेद कीजिए)
(क) अहमप्येतयोः
(ख) वयोऽनुरोधात्
(ग) समानाभिजनौ
(घ) खल्वेतत्
उत्तरम् :
(क) अहमप्येतयोः = अहम + अपि + एतयोः
(ख) वयोऽनुरोधात् = वयः + अनुरोधात्
(ग) समानाभिजनौ = समान + अभिजनौ
(घ) खल्वेतत् = खलु + एतत्।
JAC Class 10th Sanskrit शिशुलालनम् Important Questions and Answers
शब्दार्थ चयनम् –
अधोलिखित वाक्येषु रेखांकित पदानां प्रसङ्गानुकूलम् उचितार्थ चित्वा लिखत –
प्रश्न 1.
रामस्य समीपम् उपसृत्य प्रणम्य च।
(अ) उपगम्य
(ब) प्रविशतः
(स) तापसी
(द) कुशलवौ
उत्तरम् :
(अ) उपगम्य
प्रश्न 2.
राजासनं खल्वेतत्, न युक्तमध्यासितुम्।
(अ) रामस्य समीपम्
(ब) प्रणम्य
(स) सिंहासनम्
(द) महाराजस्य
उत्तरम् :
(ब) प्रणम्य
प्रश्न 3.
भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधाद् गुणमहतामपि लालनीय एव।
(अ) भवतोः
(ब) परिष्वज्य
(स) राजासनम्
(द) बालको
उत्तरम् :
(द) बालको
प्रश्न 4.
एष भवतोः सौन्दर्यावलोकजनितेन कौतूहलेन पृच्छामि।
(अ) भवतोः
(ब) अयम्।
(स) कौतूहलेन
(द) क्षत्रियकुल
उत्तरम् :
(ब) अयम्।
प्रश्न 5.
समरूपः शरीरसन्निवेशः। वयसस्तु न किञ्चिदन्तरम्।
(अ) आयुसः
(ब) वंशयोः
(स) कथम्
(द) सोदयौँ
उत्तरम् :
(अ) आयुसः
प्रश्न 6.
आर्यस्य वन्दनायां लव इत्यात्मानं श्रावयामि।
(अ) युज्यते
(ब) श्रोता
(स) निर्दिश्य
(द) निवेदयामि
उत्तरम् :
(द) निवेदयामि
प्रश्न 7.
अहमत्रभवतोः जनकं नामतो वेदितुमिच्छामि।
(अ) सम्बन्धेन
(ब) पितरम्
(स) उपनयन
(द) जननी
उत्तरम् :
(ब) पितरम्
प्रश्न 8.
न कश्चिदस्मिन् तपोवने तस्य नाम व्यवहरति।
(अ) अमुष्य
(ब) कश्चित्
(स) व्यवहरति
(द) वयस्य
उत्तरम् :
(अ) अमुष्य
प्रश्न 9.
एवं तावत् पृच्छामि निरनुक्रोश इति क एवं भणति ?
(अ) विचिन्त्य
(ब) कुपिता
(स) प्रपात
(द) कथयति
उत्तरम् :
(द) कथयति
प्रश्न 10.
किं कुपिता एवं भणति, उत प्रकृतिस्था ?
(अ) क्रुद्धा
(ब) तपस्विनी
(स) स्वापत्यमेव
(घ) निर्भर्त्सयति
उत्तरम् :
(अ) क्रुद्धा
संस्कृतमाध्यमेन प्रश्नोत्तराणि –
एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
प्रश्न 1.
विदूषकः कान् मार्ग दर्शयति ?
(विदूषक किनको मार्गदर्शन करता है?)
उत्तरम् :
लवकुशौ।
प्रश्न 2.
कुशलवी कम् उपसृत्य प्रणमतः ?
(कुश और लव किसके पास जा कर प्रणाम करते हैं ?)
उत्तरम् :
रामम्।
प्रश्न 3.
रामः सौन्दर्यावलोकजनितेन कुतूहलेन कं पृच्छति ?
(राम सौन्दर्य देखने से उत्पन्न आश्चर्य से किसको पूछते हैं ?)
उत्तरम् :
कुशलवौ (लव-कुश को)।
प्रश्न 4.
कुशस्य समुदाचारः कीदृशः ?
(कुश का सदाचार कैसा है ?)
उत्तरम् :
उदात्तरम्यः (अत्यन्त रमणीय)।
प्रश्न 5.
कुशः स्वपितुः किं नाम न्यवेदयत् ?
(कुश ने अपने पिता का क्या नाम बताया ?)
उत्तरम् :
निरनुक्रोशः (निर्दयी)।
प्रश्न 6.
कशलवयोः जनकस्य निरनुक्रोशः इति नाम केन कतम् ?
(लवकुश के पिता का नाम निर्दयी किसने रखा ?)
उत्तरम् :
अम्बया (सीतया)।
प्रश्न 7.
लवकुशयोः जननीं ‘वधूः’ शब्देन कः आह्वयति ?
(लव-कुश की माँ को ‘वधू’ शब्द से कौन बुलाता है ?)
उत्तरम् :
वाल्मीकिः।
प्रश्न 8.
रामस्य कुमारयोः च कुटुम्बवृत्तान्तः कीदृशः ?
(राम और कुमारों का कुटुम्ब-वृत्तान्त कैसा है ?)
उत्तरम् :
समरूपः (समान)।
प्रश्न 9.
रामेण कः सम्माननीयः नाट्यांशानुसारम् ?
(नाट्यांश के अनुसार राम के द्वारा क्या सम्माननीय है ?)
उत्तरम् :
मुनिनियोगः (मुनि का कार्य)।
प्रश्न 10.
रामः किं श्रोतुम् इच्छति ?
(राम क्या सुनना चाहते हैं ?)
उत्तरम् :
सुहृद्जनसाधारणम् (सामान्य सुहद्जनों को)।
प्रश्न 11.
अतिथिजन-समुचितः कः आचारः ?
(अतिथि जनोचित क्या आचार बताया है ?)
उत्तरम् :
कण्ठाश्लेषः (गले लगना)।
प्रश्न 12.
रामः कुत्र स्थितः आसीत् ?
(राम कहाँ बैठे थे ?)
उत्तरम् :
सिंहासनस्य / सिंहासने (सिंहासन पर)।
प्रश्न 13.
कुशलवयोः वंशस्य कर्ता कः आसीत् ?
(कुश और लव के वंश का कर्ता (पूर्वज) कौन था ?)
उत्तरम् :
सहस्रदीधितिः (सूर्य)।
प्रश्न 14.
रामः कशलवौ केन (कथ) पच्छति ?
(राम कश लव को किससे (कैसे) पछते हैं ?)
उत्तरम् :
कुतूहलेन (आश्चर्य से)।
प्रश्न 15.
कुशलवयोः गुरोः नाम किम् आसीत् ?
(कुश और लव के गुरु का नाम क्या था ?)
उत्तरम् :
वाल्मीकिः (वाल्मीकि)।
प्रश्न 16.
वाल्मीकिः कुशलवयोः केन सम्बन्धेन गुरु आसीत् ?
(वाल्मीकि लव-कुश के किस सम्बन्ध से गुरु थे ?)
उत्तरम् :
उपनयनोपदेशेन (यज्ञोपवीत संस्कार से)।
प्रश्न 17.
लवः स्वमातुः कति नामानि कथयति?
(लव अपनी माँ के कितने नाम बताता है ?)
उत्तरम् :
द्वे (दो)।
प्रश्न 18.
तपोवनवासिनः कुशलवयोः मातरं केन नाम्ना आवयन्ति ?
(तपोवन के वासी कुश-लव की माता को किस नाम से बुलाते हैं ?)
उत्तरम् :
‘देवी’ इति (देवी)।
प्रश्न 19.
कस्य वेला सञ्जाता ?
(किसका समय हो गया ?)
उत्तरम् :
रामायणगानस्य (रामायण-गान का)।
प्रश्न 20.
लवकुशौ कः त्वरयति ?
(लव कुश को जल्दी कौन कराता है ?)
उत्तरम् :
उपाध्यायदूतः (गुरुंजी का दूत)।
पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए)
प्रश्न 21.
यदा रामः कुशलवौ आसनार्धम् उपवेष्टुं निर्दिशति तदा तौ किम् अकथयताम् ?
(जब राम ने कुश और लव को आधे आसन पर बैठने का निर्देश दिया तब उन्होंने क्या कहा ?)
उत्तरम् :
तदा तौ अकथयताम् – ‘राजासनम् खलु एतत्, न युक्तम् अध्यासितुम्।’
(तब उन्होंने कहा – ‘यह राजा का आसन है, बैठना उचित नहीं’।)
प्रश्न 22.
कौतूहलेन रामः किम् अपृच्छत् ? (आश्चर्य से राम ने क्या पूछा ?)
उत्तरम् :
क्षत्रियकुलपितामहयोः सूर्यचन्द्रयोः को वा भवतो वंशस्य कर्ता ?।
(क्षत्रिय ‘कुल’ के पितामहों, सूर्य और चन्द्र में से तुम्हारे वंश का कर्ता/पूर्वज कौन है?)
प्रश्न 23.
कुशलवयोः पितुः नाम कः जानाति ?
(लवकुश के पिता का नाम कौन जानता है ?)
उत्तरम् :
नाट्यांशानुसारं स्वपितुः नाम कुश: जानाति।
(नाट्यांश के अनुसार अपने पिता का नाम कुश जानता है।)
प्रश्न 24.
नाट्यांशानुसारं कुतूहलेनाविष्टो रामः किं वेदितुम् ऐच्छत् ?
(नाट्यांश के अनुसार आश्चर्यचकित राम क्या जानना चाहते थे ?)
उत्तरम् :
कुतूहलेनाविष्टः रामः कुशलवयोः मातरं नामतः वेदितुम् ऐच्छत्।
(आश्चर्यचकित राम लव-कुश की माता को नाम से जानना चाहते थे।)
प्रश्न 25.
रामायणस्य सन्दर्भः कीदृशः ?
(रामायण का सन्दर्भ कैसा है ?)
उत्तरम् :
रामायणस्य सन्दर्भः वसुमती प्रथममवतीर्णः गिरां सन्दर्भः।
(रामायण का सन्दर्भ पृथ्वी पर पहली बार अवतीर्ण हुआ वाणी का सन्दर्भ है।)
प्रश्न 26.
कुशलवौ केनोपदिश्यमानमार्गों प्रविशतः ?
(कुश और लव किसके द्वारा मार्ग-निर्देश किए जाते हुए प्रवेश करते हैं?)
उत्तरम् :
कुशलवौ विदूषकेणोपदिश्यमानमार्गों प्रविशतः।
(कुश और लव विदूषक द्वारा मार्ग-निर्देश किए जाते हुए प्रवेश करते हैं।)
प्रश्न 27.
रामस्य कौतूहलः केन जनितः आसीत् ?
(राम का आश्चर्य किससे उत्पन्न हुआ ?)
उत्तरम् :
रामस्य कौतूहल: कुशलवयोः सौन्दर्यावलोकजनितः आसीत्।
(राम का आश्चर्य कुश और लव के सौन्दर्य से उत्पन्न था।)
प्रश्न 28.
रामेण तपोवनस्य किं माहात्म्यम् मतम् ?
(राम ने तपोवन का क्या माहात्म्य माना ?)
उत्तरम् :
यतः तपोवने कुशलवयोः जनकस्य कोऽपि नाम न व्यवहरति।
(क्योंकि तपोवन में लव-कुश के पिता का कोई नाम नहीं लेता है।)
प्रश्न 29.
रामानुसारः प्रवासः कीदृशः भवति ?
(राम के अनुसार प्रवास कैसा होता है ?)
उत्तरम् :
रामानुसारः प्रवासः अतिदीर्घः दारुणश्च।
(राम के अनुसार प्रवास अत्यन्त लम्बा और कठोर है।)
प्रश्न 30.
रामायणस्य कविः कीदृशः ?
(रामायण का कवि कैसा है ?)
उत्तरम् :
रामायणस्य कवि पुराण: व्रतनिधिः च।
(रामायण का कवि पुरातन और तपोनिधि है।)
अन्वय-लेखनम् –
अधोलिखितश्लोकस्यान्वयमाश्रित्य रिक्तस्थानानि पूरयत –
(नीचे लिखे श्लोक के अन्वय के आधार पर रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए)
1. भवति ……… केतकच्छदत्वम् ॥
मञ्जूषा – पशुपति, लालनीयः, वयोऽनुरोधात्, मकरः।
गुणमहतामपि (i) ……… शिशुजनः (ii)……….एव भवति। बालभावात् (iii) ……… अपि (iv) …. मस्तक-केतकच्छदत्वं व्रजति।
उत्तरम् :
(i) वयोऽनुरोधात् (ii) लालनीयः (iii) हिमकरः (iv) पशुपति।
2. भवन्तौ ……….. परिकरः ॥
मञ्जूषा – पुराणः, सरसिरुहनाभस्य, वसुमतीम्, श्लाघ्या कथा।
भवन्तौ गायन्तौ (i) ……….. प्रतिनिधिः कविः अपि (ii)……….. प्रथमम् अवतीर्ण: गिराम् अयं सन्दर्भ: (iii) ………. च इयं (iv) ……… सः च अयं परिकरः नियतं श्रोतारं पुनाति रमयति च।
उत्तरम् :
(i) पुराण: (ii) वसुमतीम् (iii) सरसिरुहनाभस्य (iv) श्लाघ्या कथा।
प्रश्ननिर्माणम् –
अधोलिखित वाक्येषु स्थूलपदमाधृतय प्रश्ननिर्माणं कुरुत –
1. विदूषकेनोपदिश्यमानमार्गौ तापसौ कुशलवौ प्रविशतः।
(विदूषक द्वारा मार्ग दर्शाए हुए तपस्वी कुश और लव प्रवेश करते हैं।)
2. रामः कुशलवौ आसनार्धमुपवेशयति।
(राम कुश और लव को आधे आसन पर बैठाते हैं।)
3. शिशुजनो वयोऽनुरोधात् गुणवतामपि लालनीयः भवति।
(बच्चे उम्र के कारण गुणवानों के द्वारा भी लाड़ करने योग्य होते हैं।)
4. हिमकरः बालभावात् पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वं व्रजति।
(चन्द्रमा बालभाव से शिव के सिर पर केतकी के छत्र की शोभा प्राप्त करता है।)
5. आवयोः गुरोः नाम भगवान् वाल्मीकिः।
(हम दोनों के गुरु का नाम भगवान् वाल्मीकि है 1)
6. सा तपस्विनी मत्कृतेनापराधेन स्वापत्यमेवं भर्स्यति।
(वह बेचारी मेरे द्वारा किए गए अपराध के कारण अपनी सन्तान की इस प्रकार भर्त्सना करती है।)
7. अलम् अति-विस्तेरण।
(अधिक विस्तार मत करो।)
8. तपोवनवासिनः देवीति नाम्नाह्वयन्ति।
(तपोवनवासी ‘देवी’ इस नाम से बुलाते हैं।)
9. उपाध्यायदूतोऽस्मान् त्वरयति।
(उपाध्याय का दूत हमसे जल्दी करवाता है।)।
10. अपूर्वोऽयं मानवानां सरस्वत्यवतारः।
(मनुष्यों का यह सरस्वती अवतार अनोखा है।)
उत्तरम् :
1. विदषकेन उपदिश्यमानमार्गों को प्रविशतः ?
2. रामः कुशलवौ कत्र उपवेशयति ?
3. शिशुजनः कस्मात् गुणवतामपि लालनीयः भवति ?
4. हिमकरः कस्मात् पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वं व्रजति ?
5. युवयोः गुरोः नाम किम् ?
6. सा तपस्विनी केन कारणेन स्वापत्यमेवं भर्त्सयति ?
7. अलम् कः ?
8. के देवीति नाम्नाह्वयन्ति ?
9. क; युष्मान् त्वरयति ?
10. कीदृशोऽयं मानवानां सरस्वत्यवतारः।
भावार्थ-लेखनम् –
अधोलिखित पद्यांशानां संस्कृते भावार्थं लिखत –
1. भवति शिशुजनो ……………………… पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वम्।।
भावार्थ – अत्यधिक सदाचारस्यापि ना आवश्यकता। सद्गुणोपेतेभ्योऽपि आयुसः कारणात् अल्पवयो बालकः अपि लालनमर्हति। यतः शिशुभावात् एवं शशिः शिवस्य शिरसि केतकपुष्प निर्मितस्य आभूषणस्य शोभां प्राप्नोति।
2. भवन्तौ गायन्तौ ……………………………… सोऽयं परिकरः॥
भावार्थ – रामः कथयति – मह्यमसि महर्षेः निश्चितं कार्यम् आदरणीयमेव। यतः युवाम् उभौ अस्याः कथायाः गायकौ, पुरातनः तपोनिधि: वाल्मीकि, अस्याः कथायाः कवयिता, पृथिवीं सर्व प्रथममवतरितः एषा वाणी कमलनाभस्य विष्णो, एषा प्रशंसनीया कथा, असौ च संयोगः यत् निश्चयमेव श्रोतागणं पावनमानन्दितं च करिष्यति।
मित्र! मनुष्याणाम् अद्भुतः एषः शारदायाः अवतारः तर्हि अहम् सामान्य मित्राणि, जनसामान्यं च श्रोतुमीहे अतः समित्रानन्दन! सभ्यान् अस्माकं समीपं गमयताम्। अहमपि अनयोः चिरात् आसनेन श्रमम् विहार विधाय दूरं करोमि। (एवं पर्वे निष्क्रामन्ति)
अधोलिखितसूक्तीनां भावबोधं हिन्द्या, आंग्लभाषया संस्कृतभाषया वा लिखत।
(निम्नलिखित सूक्तियों का भाव हिन्दी, अंग्रेजी अथवा संस्कृत भाषा में लिखिए।)
(i) भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधात् गुणमहताम् अपि लालनीयः।
भावार्थ – शिशवः अल्पायुत्वात् गुणवताम् अपि लालनीया भवन्ति।
(बच्चे अल्पायु होने के कारण गुणवान् लोगों के भी लाड़ करने योग्य होते हैं।)
(ii) अतिदीर्घः प्रवासोऽयं दारुणश्च।
भावार्थ – सुविधानाम् अभावत्वात् गृहाबहिर्वासः कष्टप्रदः भवति अतः अति दीर्घः भवति।
(सुविधाओं के अभाव में घर से बाहर रहना बड़ा कष्टदायक होता है। अतः लम्बा होता है।)
(iii) न युक्त स्त्रीगतमनुयोक्तुम्।
भावार्थ – परकीयैः स्त्रीजनैः सह सम्बन्धवर्धनं न उचितम्।
(पराई स्त्रियों के साथ सम्बन्ध बढ़ाना उचित नहीं।)
शिशुलालनम् Summary and Translation in Hindi
पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ संस्कृत-साहित्य के इसी प्रसिद्ध नाटक ‘कुंदमाला’ के पंचम अंक का सम्पादित रूप है। नाटक में राम द्वारा अपने पुत्रों कुश, लव को पहचानने की कौतूहलवर्द्धक परिकल्पना है। नाट्यांश में श्रीराम अपने पुत्रों कुश और लव को सिंहासन पर बैठाना चाहते हैं किन्तु वे दोनों अति शालीनतापूर्वक मना कर देते हैं। सिंहासनारूढ़ श्रीराम कुश और लव के सौन्दर्य से आकृष्ट होकर उन्हें अपनी गोद में बैठा कर आनन्दित होते हैं। नाट्यांश में शिशु के दुलार का मार्मिक एवं मनोहर चित्रण किया गया है। इसी कारण से इसे ‘शिशुलालनम्’ शीर्षक दिया गया है।
मूलपाठः,शब्दार्थाः, अन्वयः,सप्रसंग हिन्दी-अनुवादः
(सिंहासनस्थः रामः। ततः प्रविशतः विदूषकेनोपदिश्यमानमार्गौ तापसौ कुशलवौ)
विदूषकः – इत इत आर्यो !
कुशलवी – (रामस्य समीपम् उपसृत्य प्रणम्य च) अपि कुशलं महाराजस्य ?
रामः – युष्मदर्शनात् कुशलमिव। भवतोः किं वयमत्र कुशलप्रश्नस्य भाजनम् एव, न पुनरतिथिजन-समुचितस्य कण्ठाश्लेषस्य। (परिष्वज्य) अहो हृदयग्राही स्पर्शः। (आसनार्धमुपवेशयति)
उभौ – राजासनं खल्वेतत्, न युक्तमध्यासितुम्।
रामः – सव्यवधानं न चारित्रलोपाय। तस्मादङ्क – व्यवहितमध्यास्यतां सिंहासनम्। (अङ्कमुपवेशयति)
उभौ – (अनिच्छां नाटयतः) राजन् ! अलमतिदाक्षिण्येन।
रामः – अलमतिशालीनतया।
भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधाद् गुणमहतामपि लालनीय एव।
व्रजति हिमकरोऽपि बालभावात् पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वम्।।
शब्दार्थाः – सिंहासनस्थः रामः = राघवः राज्यासने स्थितः (सिंहासन पर बैठे श्रीराम), ततः = तदा (तब), प्रविशतः = प्रवेशं कुरुतः (प्रवेश करते हैं), विदूषकेनोपदिश्यमानमार्गों = विदूषकेन निर्दिश्यमानपद्धतिः (विदूषक द्वारा राह बताए गए हुए), तापसौ = तपस्विनौ धृततापसवेषौ (तपस्वी), कुशलवौ = कुश: च लवः च (कुश और लव), इत इत आर्यो = अत्र-अत्र एतम् श्रीमन्तौ श्रेष्ठौ (इधर-इधर श्रेष्ठजनो!), रामस्य समीपम् = रामं समया (राम के समीप), उपसृत्य = उपगम्य (निकट जाकर), प्रणम्य = अभिवाद्य च (और प्रणाम करके), अपि कुशलं = किं मंगलं (क्या कुशल है), महाराजस्य = भूभृताम् (महाराज की),
युष्मदर्शनात् = युवयोः दर्शनात् (तुम्हारे दर्शन से), कुशलमिव = मंगलम् इव (कुशल-सा ही है), भवतोः = युवयोः (आप दोनों का), किं वयमत्र = अपि अत्र वयम् (क्या यहाँ हम), कुशलप्रश्नस्य = मंगलपृच्छायाः (कुशल पूछने के), भाजनम् एव = पात्रम् एव (पात्र ही हैं), न पुनरतिथिजनसमुचितस्य = न वयम् अभ्यागताय समीचीनस्य योग्यस्य (क्या हम अतिथि के लिए उचित के), कण्ठाश्लेषस्य – कण्ठे आश्लेषस्य, आलिङ्गनस्य (गले लगाने के पात्र नहीं हैं), परिष्वज्य = आलिङ्गनं कृत्वा (आलिंगन करके), अहो = आश्चर्य (अरे), हृदयग्राही स्पर्शः = हृदयेन ग्राह्यः स्वीकार्यः स्पर्शः (हृदय द्वारा ग्रहण करने योग्य स्पर्श),
आसनार्द्धम् = अर्द्धासने, पार्वे (आधे आसन पर), उपवेशयति = स्थापयति, आसयति (बैठाते हैं), राजासनम् = सिंहासनं, नृपासनम् (राजा का आसन है), खल्वेतत् = वस्तुतः निश्चितं इदम् (वास्तव में निश्चित ही यह), न युक्तमध्यासितुम् = नोचितम् उपवेष्टुम् (बैठना उचित नहीं), सव्यवधानं = व्यवधानेन सहितम् (रुकावट सहित), चारित्रलोपाय = आचरणनाशाय (आचरण लोप के लिए बाधा नहीं अर्थात् सिंहासन पर बैठने से तुम्हारे चरित्र की कोई हानि नहीं होगी), तस्मात् = अतः (इसलिए), अङ्क = क्रोडे (गोद में), व्यवहितम् = सम्पादितम् (बनाए हुए), अध्यास्यताम् = उपविश्यताम् (बैठो), सिंहासनम् = राजासनम् (सिंहासन पर), अङ्कमुपवेशयति = क्रोडे आसयति (गोदी में बैठाते हैं)। अनिच्छां नाटयतः = अनिच्छायाः अभिनयं कुरुतः (अनिच्छा का अभिनय करते हैं), राजन् = नृप! (हे राजन्), अलमति-दाक्षिण्येन = अत्यधिककौशलस्य आवश्यकता न वर्तते, अत्यधिक कौशलं मा कुरु [अत्यधिक दक्षता या कुशलता की आवश्यकता नहीं, अधिक दक्षता या कौशल मत करो (दिखाओ)।
भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधाद् गुणमहतामपि लालनीय एव।
व्रजति हिमकरोऽपि बालाभावात् पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वम्।।
अन्वयः – गुणमहतामपि वयोऽनुरोधात् शिशुजनः लालनीयः एव भवति। बालभावात् हिमकरः अपि पशुपति-मस्तक केतकच्छदत्वं व्रजति।
शब्दार्थाः – गुणमहतामपि = सद्गुणेषु उत्कृष्टेभ्यः अपि (महान् गुणवान् लोगों के लिए भी), वयोऽनुरोधात् = आयुस: कारणात्, अल्पवयोऽपि (कम उम्र का बालक भी, उम्र के कारण, अल्पायु होने के कारण), शिशुजनः = बालकः (शिशु या बालक), लालनीयः एव भवति = लालनस्य योग एव भवति, लालनमर्हति (लाड़ के योग्य होता है), यतः = (क्योंकि), बालभावात् हि = शिशुभावात् एव (बालभाव के कारण ही), हिमकरः अपि = शशिः, चन्द्रः अपि (चन्द्रमा भी), पशुपति-मस्तक = शिवस्य शिरसि, शेखरे (भगवान् शिव के मस्तक पर), केतकच्छदत्वम् = केतकपुष्प निर्मितस्य शेखरस्य आभूषणताम् (केवड़ा के फूलों से बने जूड़े पर लगे आभूषण की शोभा को), व्रजति =गच्छति, प्राप्नोति (प्राप्त होता है)।
सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह नाट्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘शिशुलालनम्’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ दिङ्नाग द्वारा रचित ‘कुन्दमाला’ नाटक से संकलित है। इस नाट्यांश में लेखक कुश और लव के साथ श्रीराम का संवाद, व्यवहार एवं सदाचार वर्णन करता है।
हिन्दी-अनुवादः – (श्रीराम सिंहासन पर बैठे हैं। तभी विदूषक द्वारा राह बताए हुए तपस्वी का वेश धारण किए हुए कुश और लव प्रवेश करते हैं।)
विदूषक-इधर-इधर (आइए) आर्य !
कुशलव – (राम के समीप जाकर और प्रणाम करके) क्या महाराज की कुशल है अर्थात् क्या महाराज सकुशल हैं ?
राम – आप दोनों के दर्शन से कुशल-सा ही है। क्या यहाँ हम आप कुशल समाचार पूछने के ही पात्र हैं? तो क्या हम अतिथियों के लिए उचित आलिङ्गन (गले लगने) योग्य नहीं हैं। (आलिङ्गन करके) अरे हृदय से स्वीकार्य स्पर्श है। (आधे आसन पर बैठाते हैं।)
दोनों – यह तो निश्चित ही राजसिंहासन है, बैठना उचित नहीं है।
राम – यह (आपके) चरित्र विनाश का व्यवधान नहीं है अर्थात् इस पर बैठने से आपके चरित्र का विनाश नहीं होगा। इसलिए गोद में बने हुए सिंहासन पर बैठे। (गोदी में बैठाते हैं।)
दोनों (लवकुश) – (अनिच्छा का अभिनय करते हैं) महाराज ! अत्यधिक उदारता मत करें।
राम – अधिक शालीनता की आवश्यकता नहीं है। “महान गुणवान् लोगों के लिए भी अल्पायु बाल उम्र के कारण लाड़ के योग्य होता है। (क्योंकि) बालभाव के कारण ही चन्द्रमा भगवान शिव के सिर पर केवड़ा के फूलों से बने जूड़े पर लगे आभूषण की शोभा को प्राप्त होता है।”
2. रामः – एष भवतोः सौन्दर्यावलोकजनितेन कौतूहलेन पृच्छामि-क्षत्रियकुल-पितामहयोः सूर्यचन्द्रयोः
को वा भवतोवंशस्य कर्ता ?
लवः – भगवन् सहस्रदीधितिः।
रामः – कथमस्मत्समानाभिजनौ संवृत्तौ ?
विदूषकः – किं द्वयोरप्येकमेव प्रतिवचनम् ?
लवः – भ्रातरावावां सोदयौं।
रामः – समरूपः शरीरसन्निवेशः।
वयसस्तु न किञ्चिदन्तरम्।
लवः – आवां यमलौ।
रामः – सम्प्रति युज्यते। किं नामधेयम् ?
लवः – आर्यस्य वन्दनायां लव इत्यात्मानं श्रावयामि (कुशं निर्दिश्य) आर्योऽपि गुरुचरणवन्दनायाम्
कुशः – अहमपि कुश इत्यात्मानं श्रावयामि।
रामः – अहो! उदात्तरम्यः समुदाचारः। किं नामधेयो भवतोगुरुः ?
शब्दार्थाः – एषः = अयम् (यह), भवतोः = युवयोः कुशलवयोः (आप दोनों कुश और लव का), सौन्दर्यावलोकजनितेन = सुन्दरतादर्शनोद्भूतेन (सुन्दरता के देखने के कारण), कौतूहलेन = आश्चर्येण (कुतूहल से/के कारण), पृच्छामि = प्रष्टुमिच्छामि (पूछता हूँ), क्षत्रियकुल = क्षात्रकुलोद्भूतयोः पितुः पित्रोः (क्षत्रिय कुल में उत्पन्न दादा/पूर्वज), सूर्यचन्द्रयोः = दिनकरनिशाकरयोः (सूर्य-चन्द्र), वंशयोः = कुलयोः अन्वयोः (वंशों में से), भवतोः = युवयोः (आप दोनों के), वंशस्य = अन्वयस्य, कुलस्य (कुल का), कर्ता = जनयिता (पैदा करने वाला), को = कः (कौन हैं अर्थात् आप सूर्यवंशी हैं या चन्द्रवंशी), भगवान् सहस्त्रदीधितिः = सहस्ररश्मिः भगवान् सूर्यः (हजार किरणों वाले सूर्य), कथम् = किम् (क्या),
अस्मत् = अस्माकम् (हमारे), समान = तुल्यः, सदृशः (समान), अभिजनौ = समानकुलोत्पन्नौ (एक कुल में पैदा होने वाले), संवृतौ = संजातौ (हो गए), किं = अपि (क्या), द्वयोरपि = उभयोरपि (दोनों का भी), एकमेव = समानमेव (एक ही), प्रतिवचनम् = उत्तरम्म् (उत्तरम् है), भ्रातरावावाम् = आवाम् उभौ एव बन्धू (हम दोनों ही भाई हैं), सोदयौँ = सहोदरौ (सगे भाई हैं), समरूप = रूपः समानः (रूप समान, एक जैसा), शरीरसन्निवेशः = अंगरचनाविन्यासः (शरीर की बनावट भी समान है), वयसस्तु = आयुसः तु, अवस्थायाः तु (आयु का), न किञ्चिद् अन्तरम् = किञ्चिदपि न्यूनाधिक्यम् (कोई अन्तर नहीं), आवां यमलौ = आवाम् उभौ एव युगलौ (हम दोनों ही जुड़वाँ हैं), सम्प्रति = इदानीम् (अब),
युज्यते = उचितम्, समीचीनम् (ठीक है, उचित है), किं नामधेयम् = किम् अभिधानम् (क्या नाम है), आर्यस्य = श्रीमतः श्रेष्ठ-जनस्य (आर्य की), वन्दनायाम् = निवेदने, सेवायाम् (सेवा में), लव इत्यात्मानं = लवनाम्ना स्वम् (‘लव’ नाम से अपने को), श्रावयामि = कथयामि/निवेदयामि (सुनाता हूँ, निवेदन करता हूँ, कहता हूँ, अर्थात् मेरा नाम लव है)। कुशं निर्दिश्य = कुशं प्रति संकेतं कृत्वा (कुश की ओर इशारा करके), आर्योऽपि = अग्रजोऽपि (भैया भी), गुरुचरणवन्दनायाम् = आयुवृद्धानाम् चरणसेवायाम् (गुरुचरणों की सेवा में), अहमपि = अहम् अपि (मैं भी), कुश इत्यात्मानम् = ‘कुश’ इति स्वाभिधानम् (‘कुश’ ऐसा अपना नाम निवेदन करता हूँ), अहो = आश्चर्यम् (अरे आश्चर्य है), उदात्तरम्यः = अत्यन्तरमणीयः (अत्यधिक मनोहर है), समुदाचारः = शिष्टाचारः (शिष्टाचार), किं नामधेयो भवतोर्गुरुः = युवयोः गुरोः किमभिधानम् (आपके गुरुजी का क्या नाम है ?)
सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह नाट्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य पुस्तक के ‘शिशुलालनम्’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ दिङ्नाग द्वारा रचित ‘कुन्दमाला’ नाटक से संकलित है। इस नाट्यांश में नाटककार लव और कुश के साथ राम का संवाद प्रस्तुत करता है। यहाँ राम कुश और लव से परिचय पूछते हैं। उन दोनों के वंश, गुरु, पिता और माता आदि के विषय में जानना चाहते हैं।
हिन्दी-अनुवादः – राम – यह आप दोनों (कुश-लव) की सुन्दरता को देखने से उत्पन्न कुतूहल के कारण पूछता हूँ कि क्षत्रिय कुल में उत्पन्न (तुम्हारे) पितामहों (पूर्वजों) का सूर्य एवं चन्द्र वंशों में से कौन जन्मदाता है अर्थात् आप सूर्यवंशी हैं अथवा चन्द्रवंशी।
लव – हजार किरणों वाले भगवान् सूर्य।
राम – क्या (आप) हमारे समान कुल में ही पैदा होने वाले हैं ?
विदूषक – क्या आप दोनों का एक ही उत्तरम् है ?
लव – हम दोनों भाई हैं, सहोदर हैं।
राम – रूप और अंग विन्यास (शारीरिक गठन) तो समान ही है। उम्र का तो कोई अन्तर नहीं है अर्थात् न्यूनाधिक नहीं है।
लव – हम दोनों जुड़वाँ भाई हैं।
राम – अब ठीक है। क्या नाम है ?
लव – श्रीमान् की सेवा में मैं अपने को ‘लव’ सुनाता (कहता हूँ) (कुश की ओर संकेत करके) भैया भी गुरुचरणों की सेवा में ……….
कुश – मैं भी ‘कुश’ अपना नाम निवेदन करता हूँ।
राम – आश्चर्य है, अत्यधिक शिष्टाचार है। आपके गुरुजी का क्या नाम है ?
3. लवः – ननु भगवान् वाल्मीकिः।
रामः – केन सम्बन्धेन ?
लवः – उपनयनोपदेशेन।
रामः – अहमत्रभवतो: जनकं नामतो वेदितुमिच्छामि।
लवः – न हि जानाम्यस्य नामधेयम्। न कश्चिदस्मिन् तपोवने तस्य नाम व्यवहरति।
रामः – अहो माहात्म्यम्।
कुशः – जानाम्यहं तस्य नामधेयम्।
रामः – कथ्यताम्।
कुशः – निरनुक्रोशो नाम ……..
रामः – वयस्य, अपूर्वं खलु नामधेयम्।
विदूषकः – (विचिन्त्य) एवं तावत् पृच्छामि निरनुक्रोश इति क एवं भणति ?
कुशः – अम्बा।
विदूषकः – किं कुपिता एवं भणति, उत प्रकृतिस्था ?
कुशः – यद्यावयोर्बालभावजनितं किञ्चिदविनयं पश्यति तदा एवम् अधिक्षिपति-निरनुक्रोशस्य पुत्रौ, मा चापलम् इति।
विदूषकः – एतयोर्यदि पितुर्निरनुक्रोश इति नामधेयम् एतयोर्जननी तेनावमानिता निर्वासिता एतेन वचनेन दारको निर्भर्त्सयति।
रामः – (स्वगतम्) धिङ् मामेवंभूतम्। सा तपस्विनी मत्कृतेनापराधेन स्वापत्यमेवं मन्युगभैर क्षरैर्निर्भर्त्तयति। (सवाष्पमवलोकयति)
शब्दार्थाः – ननु भगवान् वाल्मीकिः = भगवान् प्रचेतात्मजः वाल्मीकिः (भगवान् वाल्मीकि), केन सम्बन्धेन = केन प्रकारेण (किस सम्बन्ध से), उपनयनोपदेशेन = उपनयन (यज्ञोपवीत) उपदेशेन (संस्कारेण), [उपनयन = (संस्कार दीक्षा या) उपनयन की दीक्षा देने के कारण], अहमत्रभवतोः = अहम् युवयोः (मैं तुम दोनों के), ज को), नामतः = नाम्नः (नाम से), वेदितुमिच्छामि = ज्ञातुम् इच्छामि (जानना चाहता हूँ), न हि जानाम्यस्य नामधेयम् = (अहम्) एतस्य (जनकस्य) अभिधानं न जानामि [(क्योंकि मैं इनका) (पिताजी का) नाम नहीं जानता हूँ], अस्मिन् तपोवने = एतस्मिन् आश्रमे (इस तपोवन में), कश्चित् = कोऽपि (कोई भी), तस्य = अमुष्य मे जनकस्य (उन मेरे पिताजी का), नाम न व्यवहरति = अभिधानं न आचरति (नाम का प्रयोग नहीं करता है), अहो माहात्म्यम् = अहो आश्रमस्य महनीयता (अरे! आश्रम की महानता), जानाम्यहं तस्य नामधेयम् = अहम् अमुष्य अभिधानं जानामि (मैं उनका नाम जानता हूँ), कथ्यताम् = उद्यताम् तावत् (तो बताओ), निरनुक्रोशो नाम = निर्दयः (दयारहित नाम), वयस्य = (मित्र !),
अपूर्व खलु नामधेयम् = निश्चितरूपेण न श्रुतं पूर्वमभिधानम् (यह नाम पहले सुना हुआ नहीं है), विचिन्त्य = विचार्य (सोच कर), एवं तावत् पृच्छामि = तावत् त्वाम् इत्थम् पृच्छामि (तो तुमसे इस प्रकार पूछना चाहता हूँ), निरनुक्रोश इति कः एवं भणति = क एवं भणति ? (निर्दय ऐसा कौन कहता है), अम्बा = माता (माँ), किं कुपिता = किं क्रुद्धा सती (क्या नाराज होकर), एवं भणति = इत्थं कथयति (ऐसा कहती है), उत प्रकृतिस्था = अथवा स्वाभाविकरूपेण (अथवा स्वाभाविक रूप से), यदि आवयोः बालभावजनितं = चेत् नौ वात्सल्येन उद्भूतम् (यदि हमारे बालभाव से उत्पन्न), किञ्चिदविनयम् = काचिद् धृष्टताम्, उद्दण्डताम् (किसी उद्दण्डता को), पश्यति = ईक्षते (देखती हैं), तदा = तर्हि (तो, तब), एवम् = इत्थम् (इस प्रकार), अधिक्षिपति = आक्षिपति, आक्षेपं करोति, अधिक्षेपं करोति (फटकारती है), निरनुक्रोशस्य = निर्दयस्य (निर्दय के), पुत्रौ = आत्मजौ (बेटे), मा चापलम् इति = अलं चापल्येन (चपलता मत करो), एतयोः = अनयोः (इन दोनों के),
पितुर्निरनुक्रोश: नामधेयम् = जनकस्य निर्दय इति अभिधानम्, नाम (पिता का निर्दय नाम है), [तदा-तर्हि(तो)] एतयोः = अनयोः (इन दोनों की), जननी = माता (माताजी), तेनावमानिता = अमुना अपमानं कृत्वा तिरस्कृता (उसके द्वारा अपमानित की गई, तिरस्कार की हुई), निर्वासिता = निष्काषिता भवेत् (निकाली गई होगी), तदैव एतेन = तदैव अनेन (तभी इस), वचनेन = कथनेन (कथन से), सा = असौ (वह), दारको = पुत्रौ (पुत्रों को), निर्भर्सयति = तर्जयति (फटकारती है), स्वगतम् = आत्मगतम् (अपने आप से, मन ही मन), धिङ्मामेवंभूतम् = धिक्कारम् माम्, मयासैहैव एव घटितम् (धिक्कार है मुझे, मेरे साथ ही ऐसा घटित हुआ है), सा तपस्विनी = असा तपस्विनी (वह बेचारी), मत्कृतेनापराधेन = मया विहितेन अपराधेन (मेरे द्वारा किए गए अपराध से), स्वापत्यमेव = आत्मनः सन्ततिम्, प्रजाम् एव (अपनी सन्तान को ही), मन्युगभैरक्षरैः = क्रोधाविष्टैः वचनैः (क्रोधपूर्ण शब्दों से), निर्भर्त्सयति = तर्जयति (फटकारती है), सवाष्यमवलोकयति = सास्त्रम् पश्यति (अश्रुपूर्ण नेत्रों से देखता है)।
सन्दर्भ – प्रसङ्गश्च -यह नाट्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्यपुस्तक के ‘शिशुलालनम्’ पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ दिङ्नाग कृत ‘कुन्दमाला’ नाटक से संकलित है। इस नाट्यांश में श्रीराम कुश और लव में उनके गुरु का नाम, सम्बंध और पिता का नाम पूछना चाहते हैं। कुश पिता का नाम निरनुक्रोश (निर्दय) ऐसा बताकर उसके प्रति अपनी क्रोध भावना को प्रकट करता है। संवाद से राम के प्रति सीता का भी कोप-भाव प्रकट होता है।
हिन्दी-अनुवादः –
लव – निश्चय ही प्रचेतापुत्र वाल्मीकि।
राम – किस सम्बन्ध से ?
लव – उपनयन संस्कार की दीक्षा देने के कारण (सम्बन्ध से)।
राम – आप दोनों के पिताजी को नाम से जानना चाहता हूँ।
लव – इनका नाम (मैं) नहीं जानता। इस तपोवन में कोई उनके नाम का प्रयोग नहीं करता है।
अरे! आश्रम की (कितनी) महानता है।
कुश – मैं उनका नाम जानता हूँ।
राम – कहिए।
कुश – निर्दय नाम …….।
राम – मित्र, निश्चय ही पहले कभी न सुना हुआ नाम है।
विदूषक – (सोच कर) तो (तुमसे) इस प्रकार पूछना चाहता हूँ (मैं यों पूछना चाहता हूँ) कि ‘निर्दय’ (ऐसा नाम) कौन कहता है ?
कुश – माताजी।
विदूषक – क्या क्रोधित होकर कहती हैं या स्वाभाविक रूप से ?
कश – यदि हम दोनों की बालभाव के कारण उत्पन्न किसी ढीठता को देखती हैं तब इस प्रकार फटकारती हैं –
“निर्दयी के बेटो चपलता मत करो।”
विदूषक – इन दोनों के पिता का यदि ‘निर्दयी’ नाम है (तो निश्चय ही) इनकी माता उसने तिरस्कृत करके निर्वासित की है (इसलिए) इन वचनों से बच्चों (पुत्रों) को फटकारती है।
राम – (मन ही मन) इस प्रकार के मुझको धिक्कार है। वह बेचारी मेरे द्वारा किए हुए अपराध के कारण अपनी सन्तान को क्रोध भरे वचनों से फटकारती है। (अश्रुपूर्ण नेत्रों से देखते हैं।)
4 रामः – अतिदीर्घः प्रवासोऽयं दारुणश्च। (विदूषकमवलोक्य जनान्तिकम्) कुतूहलेनाविष्टो मातरमनयो मतो वेदितुमिच्छामि। न युक्तं च स्त्रीगतमनुयोक्तुम्, विशेषतस्तपोवने। तत् कोऽत्राभ्युपायः ?
विदूषकः – (जनान्तिकम्) अहं पुनः पृच्छामि। (प्रकाशम्) किं नामधेया युवयोर्जननी ?
लवः – तस्याः द्वे नामनी।
विदूषकः – कथमिव ?
लवः – तपोवनवासिनो देवीति नाम्नाह्वयन्ति, भगवान् वाल्मीकिर्वधूरिति।
रामः – अपि च इतस्तावद् वयस्य ! मुहूर्तमात्रम्।
विदूषकः – (उपसृत्य) आज्ञापयतु भवान्।
रामः – अपि कुमारयोरनयोरस्माकं च सर्वथा समरूपः कुटुम्बवृत्तान्तः ?
शब्दार्थाः – अयं = एषः (यह), प्रवासः = परदेशवासः (परदेश में रहना), अतिदीर्घः = अत्यधिकं दूरम् (बहुत लम्बा), दारुणश्च = निष्ठुरः, भयानकः च (और कठोर है), विदूषकमवलोक्य = विदूषकं दृष्ट्वा (विदूषक को देखकर), जनान्तिकम् = एकतः मुखं कृत्वा, मुखं परिवर्त्य (एक ओर मुँह मोड़कर), कुतूहलेनाविष्टः = सकुतूहलम् (कुतूहल के साथ), अनयोः = एतयोः (इनकी), मातरम् = जननीम् (माँ को), नामतः = नाम्नः, अभिधानात् (नाम से), वेदितमिच्छामि = ज्ञातुमीहे (जानना चाहता हूँ), स्त्रीगतम् = स्त्रीविषयकः (स्त्री के विषय में), अनुयोक्तम् = अन्वेष्टुम् (छानबीन करना), न युक्तम् = नोचितम् (उचित नहीं), विशेषतः = विशेषरूपेण (विशेष रूप से), तपोवने = तपस्थले, तपोभूमौ, आश्रमे (तपोवन में), तत् = तदा (तब), कोऽत्राभ्युपायः = अस्मिन् विषये कः उपचारः, उपायः (इस विषय में क्या उपाय है), जनान्तिकम् = मुखं परिवर्त्य (मुँह फेरकर), अहं पुनः पृच्छामि = अहं पुनः पृष्टुम् इच्छामि (मैं फिर पूछता हूँ, पूछना चाहता हूँ),
प्रकाशम् = स्पष्टरूपेण (खुले में), युवयोः = भवतोः (आप दोनों की), जननी = माता (माताजी का), किं नामधेया = अभिधाना (क्या नाम है, किस नाम की हैं), तस्याः = अमुष्याः (उसके), द्वे नामनी = द्वे अभिधाने स्तः (दो नाम हैं), कथमिव = केन प्रकारेण (किस प्रकार, कैसे), तपोवनवासिनः = तपोभूमौ वास्तव्याः (तपोवन में वास करने वाले), ताम् = (उसे), देवीति नाम्ना (देवी नाम से), आह्वयन्ति = आह्वानं कुर्वन्ति, आकारयन्ति (बुलाते हैं), भगवान् वाल्मीकिर्वधूरिति = महर्षिः प्राचेतसः ‘वधूः’ इति (नाम्ना आह्वयति) (और प्रचेतापुत्र महर्षि वाल्मीकि उसे ‘बहू’ कहकर बुलाते हैं), अपि च = किमन्यत् (और क्या), वयस्य = मित्र ! (मित्र !), तावत् = तर्हि (तो), मुहूर्त्तमात्रम् = क्षणमात्रम् इतः (आयाहि) (क्षणभर इधर आइए), उपसृत्य = उपगम्य, समीपं गत्वा (पास जाकर), आज्ञापयतु = आज्ञां देहि (आज्ञा दें), भवान् = श्रीमान् (आप), अपि = किम् (क्या), अनयोः = एतयोः (इन दोनों), कुमारयोः = किशोरयोः (कुमारों का), अस्माकं च = (और हमारा), कुटुम्बवृत्तान्तः = परिवारस्य विवरणम् (परिवार का वृत्तान्त), समरूपः एव = समानमेव (समान रूप है)।
सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह नाट्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य पुस्तक के ‘शिशुलालनम्’ पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ दिङ्नाग कृत ‘कुन्दमाला’ नाटक से संकलित है। इस नाट्यांश में श्रीराम कुश-लव की माँ का नाम जानना चाहते हैं, परन्तु तपोवन में नारी का परिचय पूछना उचित नहीं है। अंत में रुक जाते हैं।
हिन्दी-अनुवादः –
राम – यह परदेशवास भी अत्यन्त लम्बा और कठोर है। (विदूषक को देखकर एक ओर मुख मोड़कर) कुतूहल के साथ इन दोनों की माँ को नाम से जानना चाहता हूँ (परन्तु) स्त्री के विषय में खोजबीन (छानबीन) करना उचित नहीं। विशेष रूप से तपोवन में, तब यहाँ (इस विषय में) क्या उपाय है ?
विदूषक – (मुँह मोड़कर) मैं फिर पूछता हूँ। (खुले में) आप दोनों की माताजी का क्या नाम है ?
लव – उनके दो नाम हैं।
विदूषक – कैसे ?
लव – तपोवन में निवास करने वाले उसे ‘देवी’ बुलाते हैं और प्रचेतापुत्र महर्षि वाल्मीकि उसे ‘बहू’ कहकर बुलाते हैं।
राम – तो क्या मित्र ! क्षणभर इधर आइए।
विदूषक – (पास जाकर) आज्ञा दें आप।
राम – क्या इन दोनों कुमारों का और हमारे परिवार का वृत्तान्त समान ही है?
5. (नेपथ्ये)
इयती वेला सञ्जाता रामायणगानस्य नियोगः किमर्थं न विधीयते ?
उभौ – राजन्! उपाध्यायदूतोऽस्मान् त्वरयति।
रामः – मयापि सम्माननीय एव मुनिनियोगः। तथाहि
भवन्तौ गायन्तौ कविरपि पुराणो व्रतनिधिर्
गिरां सन्दर्भोऽयं प्रथममवतीर्णो वसुमतीम्।
कथा चेयं श्लाघ्या सरसिरुहनाभस्य नियतं,
पनाति श्रोतारं रमयति च सोऽयं परिकरः।।
वयस्य! अपूर्वोऽयं मानवानां सरस्वत्यवतारः; तदहं सुहृज्जनसाधारणं श्रोतुमिच्छामि। सन्निधीयन्तां सभासदः, प्रेष्यतामस्मदन्तिकं सौमित्रिः, अहमप्येतयोश्चिरासनपरिखेदं विहरणं कृत्वा अपनयामि।
(इति निष्क्रान्ताः सर्वे)
शब्दार्थाः – इयती = एतावती (इतनी), वेला = समयः, कालः (समय), सजाता = अजायत, अभवत् (हो गई), नियोगः = निश्चितं कार्यम् करणीयम् (कर्त्तव्य), किमर्थम् = कस्मै (किसलिए), न विधीयते = न क्रियते (नहीं किया जाता है), राजन् = महाराज !, नराधिप ! (हे महाराज), उपाध्यायदूतो = गुरोः दूतः (गुरुजी का दूत), अस्मान् = नः (हमें), त्वरयति = त्वरां, विधातुं प्रेरयति शीघ्रतां कारयति (जल्दी करा रहा है), मयापि = अहम् अपि (मैं भी), सम्माननीय एव = सम्मान योग्यं मन्यै एव (सम्मान के योग्य मानता हूँ), मुनिनियोगः = मुनेः कार्यम् (मुनि के कार्य को), तथाहि = यतः (क्योंकि)।
भवन्तौ ………………………………………………. परिकरः ।।
अन्वयः – भवन्तौ गायन्तौ पुराण: व्रतनिधिः कविः अपि वसुमी प्रथमं अवतीर्णः गिराम् अयं सन्दर्भः सरसिरुहनाभस्य च इयं श्लाघ्याकथा, सः च अयं परिकरः नियतं श्रोतारं पुनाति रमयति च।
शब्दार्थाः – भवन्तौ = युवाम् (आप दोनों), गायन्तौ = गानं कुर्वन्तौ (गायन करते हुए, गान करने वाले हैं), पुराण: = पुरातनः पुराणानाम् (प्राचीन), व्रतनिधिः = तपोनिधिः तपः पुंजः (तपस्वी), कविः अपि = कवयितापि (कवि भी), वसुमती = पृथिवीम्, भूमिम् (धरती पर), प्रथमम् = सर्वप्रथमम् (पहली बार), अवतीर्णः = अवतरितः (अवत गिराम् = वाणीम् (वाणी का), अयम् = एषः (यह), सन्दर्भः = काव्यम् (काव्य), सरसिरुहनाभस्य = कमलनाभस्य (विष्णु का), च इयम् = च एषा (और यह), श्लाघ्या = सराहनीया (सराहनीय, प्रशंसनीय), कथा = वृत्तान्तः (कथा है), सः च = असौ च (और वह), परिकरः = संयोगः, सम्बन्धः (संयोग), नियतम् = निश्चयमेव (निश्चय ही), श्रोतारं = श्रोतागणम् (श्रोताओं को), पुनाति रमयति च = पावनं, आनन्दितं च करोति (पवित्र और आनन्दित करता है, करने वाला है)। वयस्य! = मित्र ! (मित्र),
मानवानाम् = मनुष्याणाम् (मानव जाति का), अयम् = एषः (यह), सरस्वती-अवतारः = शारदायाः साक्षादवतारः (सरस्वती का अवतार है), अपूर्वः = अद्भुतः, न पूर्वदृष्टः एव अस्ति (अद्भुत, पहले न देखा हुआ है), तदहम् = तर्हि अहम् (तो मैं), सुहृद्जनसाधारणं = सामान्यसुहृदः, मित्राणि (सामान्य मित्रों को), श्रोतुमिच्छामि = श्रवणायोत्सुकोऽस्मि (सुनने का इच्छुक हूँ, सुनना चाहता हूँ), सभासदः = सांसदाः (सभासद), सन्निधीयन्ताम् = समीपम् आयान्तु (समीप आएँ), सौमित्रः = सुमित्रानन्दनः लक्ष्मणः (सुमित्रासुत लक्ष्मण), अस्मदन्तिकम् = अस्माकं समीपे (हमारे समीप), प्रेष्यताम् = गमयताम् (भेजा जाये, पहुँचाया जाये), अहमपि = (मैं भी), एतयोः = अनयोः (इन दोनों के), चिरासनपरिखेदम् = चिरात् आसनेन श्रमम् (बहुत देर तक बैठे रहने से हुई थकावट को), विहरणम् कृत्वा = विहारम् कृत्वा, विधाय (चहल-कदमी करके), अपनयामि = दूरं करोमि, विदधामि (दूर करता हूँ)।
सन्दर्भः प्रसङ्गश्च – यह नाट्यांश हमारी ‘शेमुषी’ पाठ्य पुस्तक के ‘शिशुलालनम्’ पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ दिङ्नाग कृत ‘कुन्दमाला’ नाटक से संकलित है। इस नाट्यांश में महर्षि वाल्मीकि और उनकी रामायण की प्रशंसा की गई है।
हिन्दी-अनुवादः – (नेपथ्य में) इतना समय (व्यतीत) हो गया। रामायण गाने के निर्धारित कार्य को क्यों नहीं किया जा रहा है ?
दोनों – महाराज ! गुरुजी का दूत (हमें) शीघ्रता करा रहा है। राम- मैं भी मुनि के कार्य को सम्मान योग्य मानता हूँ। क्योंकि आप दोनों (कुश और लव) इस (रामायण) कथा का गान करने वाले हैं, तपोनिधि पुराणमुनि (भगवान् वाल्मीकि) इस भी हैं, धरती पर पहली बार अवतरित होने वाला स्पष्ट वाणी वाला यह काव्य है, कमलनाभ विष्णु की यह प्रशंसनीय कथा है। इस प्रकार निश्चित ही यह संयोग श्रोताओं को पवित्र और आनन्दित करता है।
मित्र ! मानव जाति में यह सरस्वती का, जो पहले देखा हुआ नहीं है ऐसा अद्भुत अवतार है तो मैं सामान्य सुहृद्जनों को सुनना चाहता हूँ। सभासदों को पास आने दो। लक्ष्मण (सुमित्रानन्दन) को मेरे समीप भेज दो। मैं भी इन दोनों के बहुत देर से बैठे हुओं के परिश्रम को चहल-कदमी करके दूर करता हूँ।