Jharkhand Board JAC Class 10 Science Important Questions Chapter 11 मानव नेत्र एवं रंगबिरंगा संसार Important Questions and Answers.
JAC Board Class 10 Science Important Questions Chapter 11 मानव नेत्र एवं रंगबिरंगा संसार
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मानव नेत्र में किस प्रकार का लेंस होता है एवं प्रतिबिम्ब कहाँ बनता है?
उत्तर:
मानव नेत्र में मांसपेशियों का बना मुलायम, पारदर्शक, मोटा उत्तल लेंस होता है जो वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनाता है।
प्रश्न 2.
दूर दुष्टिदोष एवं निकट दृष्टिदोष के निवारण हेतु कौन-कौन से लेंस का प्रयोग होता है?
उत्तर:
दूर दृष्टिदोष के निवारण हेतु उत्तल लेंस तथा निकट दृष्टिदोष के निवारण हेतु अवतल लेंस का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 3.
जरा दृष्टि दोष एवं दृष्टि वैषम्य दोष के निवारण हेतु कौन-कौन से लेंस का प्रयोग होता है?
उत्तर:
जरा दृष्टि दोष के निवारण हेतु द्विफोकल लेंस एवं दृष्टि वैष्म्य दोष के निवारण हेतु बेलनाकार लेंस का प्रयोग होता है।
प्रश्न 4.
स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी से आप क्या समझते हैं? स्वस्थ नेत्र के लिए इसका मान कितना होता है?
उत्तर:
किसी नेत्र के लिए वह न्यूनतम दूरी जिसमें आने वाली किरणें नेत्र के रेटिना पर प्रतिबिम्ब बनाती हैं स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी कहते हैं। स्वस्थ नेत्र के लिए इसका मान 25 सेमी होता है।
प्रश्न 5.
निकट दृष्टिदोष उत्पन्न होने के दो कारण दीजिए।
उत्तर:
निकट दृष्ट्टिदोष उत्पन्न होने के कारण हैं-
- नेत्र गोलक का बड़ा हो जाना।
- नेत्र लेंस की फोकस दूरी कम हो जाना।
प्रश्न 6.
दूर दृष्टिदोष उत्पन्न होने के दो कारण लिखिए।
उत्तर:
दूर दृष्टिदोष उत्पन्न होने के दो कारण हैं-
- नेत्र गोलक का छोटा हो जाना।
- नेत्र लेंस की फोकस दूरी अधिक हो जाना।
प्रश्न 7.
पौधे हरे क्यों दिखाई देते हैं?
उत्तर:
हरे पौधों में क्लोरोफिल नामक पदार्थ पाया जाता है। जब सूर्य का प्रकाश इस पर पड़ता है तो यह सात रंगों में से हरे रंग को परावर्तित कर देता है जो हमारे नेत्र तक पहुँचता है तथा शेष रंगों को अवशोषित कर लेता है जिसके कारण पौधा हमें हरा दिखाई देता है।
प्रश्न 8.
मनुष्य के नेत्र में वस्तु का प्रतिबिम्ब कहाँ पर बनता है? यह प्रतिबिम्ब कैसा होता है?
उत्तर:
मनुष्य के नेत्र में वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनता है। यह प्रतिबिम्ब वास्तविक, उल्टा व छोटा होता है।
प्रश्न 9.
रेटिना के उस बिन्दु का नाम लिखिए जहाँ बना प्रतिबिम्ब दिखाई देता है।
उत्तर:
रेटिना के पीत बिन्दु पर बना प्रतिबिम्ब दिखाई देता है।
प्रश्न 10.
रेटिना के उस बिन्दु का नाम लिखिए जहाँ बना प्रतिबिम्ब दिखाई नहीं देता है?
उत्तर:
रेटिना के अन्ध बिन्दु पर बना प्रतिबिम्ब दिखाई नहीं देता है।
प्रश्न 11.
निकट बिन्दु किसे कहते हैं?
उत्तर:
नेत्र से न्यूनतम दूरी पर स्थित वह बिन्दु जहाँ पर रखी वस्तु को नेत्र स्पष्ट देख सकता है, निकट बिन्दु कहलाता है।
प्रश्न 12.
दूर बिन्दु किसे कहते हैं?
उत्तर:
नेत्र से अधिकतम दूरी पर स्थित वह बिन्दु जहाँ पर रखी वस्तु को नेत्र स्पष्ट देख सकता है, दूर बिन्दु कहलाता है।
प्रश्न 13.
फोटोग्राफिक कैमरे से बना प्रतिबिम्ब कैसा होता है?
उत्तर:
फोटोग्राफिक कैमरे से बना प्रतिबिम्ब स्थायी होता है।
प्रश्न 14.
निकट दृष्टिदोष क्या है?
उत्तर:
वह दृष्टिदोष जिसके कारण व्यक्ति निकट की वस्तुएँ तो देख सकता है किन्तु दूर की वस्तुएँ स्पष्ट नहीं देख सकता है निकट दृष्टि दोष कहलाता है।
प्रश्न 15.
दूर दृष्टिदोष क्या है?
उत्तर:
वह दृष्टिदोष जिसके कारण व्यक्ति दूर की वस्तुएँ तो देख सकता है किन्तु निकट की वस्तुएँ स्पष्ट नहीं देख सकता है, दूर दृष्टिदोष कहलाता है।
प्रश्न 16.
एक व्यक्ति के चश्मे में अवतल लेंस लगे हैं। व्यक्ति की आँख में कौन-सा दृष्टिदोष है?
उत्तर:
यदि व्यक्ति के चश्मे में अवतल लेंस लगे हैं तो उसकी आँख में निकट दृष्टिदोष है।
प्रश्न 17.
एक व्यक्ति के चश्मे में उत्तल लेन्स लगे हैं। व्यक्ति की आँख में कौन-सा दृष्टिदोष है?
उत्तर:
एक व्यक्ति के चश्मे में उत्तल लेंस लगे हैं तो व्यक्ति की आँख में दूर दृष्टिदोष है।
प्रश्न 18.
एक मनुष्य न अधिक दूर की वस्तु देख पाता है और न ही अधिक पास की वस्तु देख पाता है। उसके चश्मे में किस प्रकार का लेंस होगा?
उत्तर:
द्विफोकसी लेन्स।
प्रश्न 19.
फोटोग्राफिक फिल्म क्या है?
उत्तर:
सेल्युलाइड की बनी पतली फिल्म है जिस पर जिलेटिन में सिल्वर ब्रोमाइड की पतली तह लगी रहती है। यह प्रकाश के प्रति अधिक सुग्राही होती है।
प्रश्न 20.
ऑप्टिक तन्त्रिका का क्या कार्य है?
उत्तर:
ऑप्टिक तन्त्रिका रेटिना से संवेदनाओं को मस्तिष्क तक पहुँचाती है।
प्रश्न 21.
आँख की रेटिना पर स्थित दो प्रकाश संवेदी कोशिकाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
दो प्रकाश संवेदनशील कोशिकाएँ हैं-
- शंकु और
- शलाका।
प्रश्न 22.
उस कोशिका का नाम लिखिए जिनसे प्रकाश तथा अन्धकार का ज्ञान होता है?
उत्तर:
शलाका (Rods) कोशिकाएँ।
प्रश्न 23.
उस कोशिका का नाम लिखिए जिनके द्वारा रंगों की पहचान होती है?
उत्तर:
शंकु (Cone) कोशिकाएँ।
प्रश्न 24.
प्रकाशीय यन्त्र क्या है? एक प्राकृतिक तथा एक कृत्रिम प्रकाशीय यन्त्र का नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रकाश के प्रति संवेदनशील वह उपकरण जिसके द्वारा वस्तुओं को स्पष्टता से देखा जा सकता है मानव नेत्र प्राकृतिक तथा फोटोग्राफिक कैमरा कृत्रिम प्रकाशिक यन्त्र हैं।
प्रश्न 25.
जलीय द्रव (aqueous humur) क्या है?
उत्तर:
मानव नेत्र में नेत्र लेन्स एवं कॉर्निया के बीच में एक पतला पारदर्शक द्रव भरा रहता है, इसे जलीय द्रव, कहते हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मानव नेत्र की संरचना का केवल स्पष्ट नामांकित चित्र बनाइये।
उत्तर:
मानव नेत्र की संरचना का नामांकित चित्र-
प्रश्न 2.
मानव नेत्र के कौन-कौन से दोष होते हैं? समझाइये।
उत्तर:
मानव नेत्र के निम्नलिखित प्रमुख दोष होते हैं-
1. निकट दृष्टि दोष- जब व्यक्ति निकट की वस्तुएँ देख सकता है परन्तु दूर की वस्तुएँ स्पष्ट नहीं देख सकता तो ऐसे दोष को निकट दृष्टि दोष कहते हैं। यह दोष नेत्र गोलक का बड़ा हो जाने पर अथवा नेत्र लेंस की फोकस दूरी कम हो जाने पर होता है। इस दोष के कारण किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना के पूर्व बनता है जिसे अवतल लेंस का प्रयोग करके दूर किया जा सकता है।
2. दूर दृष्टि दोष- जब व्यक्ति दूर की वस्तुएँ देख सकता है किन्तु निकट की वस्तुएँ स्पष्ट नहीं देख सकता तो ऐसे दोष को दूर दृष्टि दोष कहते हैं। यह दोष नेत्र गोलक का छोटा हो जाने पर अथवा नेत्र लेंस की फोकस दूरी बढ़ जाने पर होता है। इसे उत्तल लेंस का प्रयोग करके दूर किया जा सकता है।
3. जरा दृष्टि दोष- जब व्यक्ति निकट एवं दूर दोनों की वस्तुओं को स्पष्ट नहीं देख पाता है तो वह जरा दृष्टि दोष कहलाता है। आयु वृद्धि के कारण नेत्रों की समंजन क्षमता घट जाती है। इसे द्विफोकस लेंस प्रयुक्त करके दूर किया जा सकता है।
4. दृष्टि वैषम्य- जब व्यक्ति सामान्य दूरी पर स्थित क्षैतिज तथा ऊर्ध्वाधर रेखाओं को एक साथ स्पष्ट नहीं देख सकता है तो दृष्टि वैषम्य कहलाता है। यह सिलियरी मांसपेशियों में विकृति उत्पन्न होने के कारण होता है जो बेलनाकार लेंस प्रयुक्त करके दूर किया जा सकता है।
प्रश्न 3.
पीत बिन्दु एवं अन्धबिन्दु किसे कहते हैं?
उत्तर:
- पीत बिन्दु – रेटिना का वह स्थान जहाँ पर किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब बनता है, उसे पीत बिन्दु कहते हैं।
- अन्ध बिन्दु – रेटिना का वह स्थान जहाँ पर किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब नहीं बनता है, उसे अन्ध बिन्दु कहते हैं।
प्रश्न 4.
दूर दृष्टि दोष किसे कहते हैं? इसके कारण एवं इस दोष का निवारण लिखिए।
उत्तर:
दूर दृष्टि दोष – जब व्यक्ति दूर की वस्तुएँ देख सकता है परन्तु निकट की वस्तुएँ स्पष्ट नहीं देख सकता तो ऐसे दोष को दूर दृष्टि दोष कहते हैं।
दोष के कारण इस दोष के होने के निम्नलिखित कारण हैं-
- नेत्र गोलक का छोटा होना।
- नेत्र लेंस की फोकस दूरी अधिक होना।
इस दोष में पास से आने वाली किरणों का प्रतिबिम्ब रेटिना के पीछे बनता है जबकि दूर से आने वाली किरणों का प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनता है।
दोष का निवारण – इस दोष के निवारण के लिए उत्तल लें प्रयुक्त करते हैं जिसके द्वारा सामान्य निकट बिन्दु पर रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब दोष युक्त नेत्र के निकट बिन्दु पर बन जाता है, जिससे वस्तु स्पष्ट दिखाई देने लगती है।
इस दृष्टि दोष के निवारण के लिए ऐसे उत्तल लेंस का प्रयोग किया जाना चाहिए जिसकी फोकस दूरी
f = \(\frac { Dx }{ x – D }\) के अनुरूप हो।
जहाँ D = स्वस्थ नेत्र की स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी
तथा x = दोषयुक्त नेत्र की निकट बिन्दु की दूरी
प्रश्न 5.
निकट दृष्टि दोष किसे कहते हैं? इस दोष के कारण एवं निवारण लिखिए।
उत्तर:
निकट दृष्टि दोष-जब व्यक्ति निकट की वस्तुएँ देख सकता है परन्तु दूर की वस्तुओं को स्पष्ट नहीं देख पाता है ऐसे दोष को निकट दृष्टि दोष कहते हैं।
दोष के कारण इस दोष के होने के निम्नलिखित कारण हैं-
- नेत्र गोलक का बड़ा हो जाना।
- नेत्र लेंस की फोकस दूरी कम हो जाना।
इस दोष में दूर से आने वाली किरणों का प्रतिबिम्ब रेटिना के पूर्व बनता है जबकि पास से आने वाली किरणों का प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनता है।
दोष का निवारण इस दोष के निवारण के लिए ऐसे अवतल लेंस प्रयुक्त करते हैं जिसकी फोकस दूरी उसके दूर बिन्दु की दूरी के बराबर होती है।
इसके अनन्त पर स्थित वस्तु का आभासी प्रतिबिम्ब अवतल लेंस के फोकस पर बनता है जहाँ पर नेत्र का दूर बिन्दु होता है। फोकस (दूर बिन्दु) पर बना प्रतिबिम्ब नेत्र के लिए वस्तु का कार्य करता है, जिसका अन्तिम प्रतिबिम्ब रेटिना पर बन जाता है अतः अब वस्तु स्पष्ट दिखाई देने लगती है।
प्रश्न 6.
मानव नेत्र क्या है? इसकी क्रियाविधि को लिखिए।
उत्तर:
मानव नेत्र मानव नेत्र प्रकाश संवेदनशील प्राकृतिक प्रकाशीय यन्त्र है जिसके द्वारा समीप एवं दूर की वस्तुओं को देखा जाता है। नेत्र की क्रियाविधि – किसी वस्तु से आने वाली प्रकाश की किरणें कॉर्निया, जलीय द्रव, पुतली, नेत्र लेन्स, काचाभ द्रव से होकर रेटिना तक पहुँचती हैं। रेटिना में उपस्थित शंकु एवं शलाका, प्रकाश के प्रति संवेदनशील होती हैं, इन्हीं संवेदनाओं को ऑप्टिक तन्त्रिका द्वारा मस्तिष्क में पहुँचाती हैं जहाँ पर हमें वस्तु को देखने की अनुभूति होती है। चित्र में इसका किरण आरेख प्रदर्शित है।
प्रश्न 7.
नेत्र की समंजन क्षमता में सिलियरी की भूमिका समझाइए।
उत्तर:
मानव नेत्र-मानव नेत्र प्रकाश संवेदनशील प्राकृतिक प्रकाशीय यन्त्र है जिसके द्वारा समीप एवं दूर की वस्तुओं को देखा जाता है। नेत्र की क्रियाविधि-किसी वस्तु से आने वाली प्रकाश की किरणें कॉर्निया, जलीय द्रव, पुतली, नेत्र लेन्स, काचाभ द्रव से होकर रेटिना तक पहुँचती हैं। रेटिना में उपस्थित शंकु एवं शलाका, प्रकाश के प्रति संवेदनशील होती हैं, इन्हीं संबेदनाओं को ऑप्टिक तन्त्रिका द्वारा मस्तिष्क में पहुँचाती हैं जहाँ पर हमें वस्तु को देखने की अनुभूति होती है। चित्र में इसका किरण आरेख प्रदर्शित है।
प्रश्न 8.
नेत्र की समंजन क्षमता को सचित्र समझाइए।
उत्तर:
किसी वस्तु को स्पष्ट देखने के लिए आवश्यक है कि उसका प्रतिबिम्ब रेटिना पर बने जिससे संवेदनाएँ ऑप्टिक तन्त्रिका द्वारा मस्तिष्क में पहुँच सकें।
एक स्वस्थ आँख की यह विशेषता होती है कि वह दूर तथा पास की वस्तुओं को स्पष्ट रूप से देख सकती है। जब वस्तु अत्यधिक दूरी (अनन्त) पर होती है तो उससे आने वाली समान्तर किरणों को नेत्र लेंस स्वत: ही रेटिना पर केन्द्रित कर देता है। इस स्थिति में आँख की मांसपेशियों पर कोई तनाव नहीं पड़ता है परन्तु जब वस्तु बहुत पास स्थित होती है तो सिलियरी मांसपेशियाँ सिकुड़ जाती हैं जिससे नेत्र लेंस इतना मोटा हो जाता है कि लेंस की फोकस दूरी कम होकर इस प्रकार समंजित हो जाती है कि वस्तु का प्रतिबिम्ब पुनः रेटिना पर ही बनता है। इस प्रकार नेत्र लेंस का सिलियरी मांसपेशियों द्वारा स्वतः रेटिना पर ही बनता है।
इस प्रकार नेत्र लेंस का सिलियरी मांसपेशियों द्वारा स्वतः ही मोटा या पतला होकर दूर तथा पास की वस्तुओं का प्रतिबिम्ब बन जाना नेत्र की समंजन क्षमता कहलाती है।
प्रश्न 9.
मानव नेत्र में कौन-कौन से दोष होते हैं? उनका निवारण किन लेंसों के द्वारा किया जाता है?
उत्तर:
मानव नेत्र में मुख्यतः चार प्रकार के दोष होते हैं-
दृष्टि दोष | निवारण हेतु प्रयुक्त लेंस |
1. निकट दृष्टि दोष | अवतल लेंस |
2. दूर दृष्टि दोष | उत्तल लेंस |
3. जरा दृष्टि दोष | द्विफोकसी |
4. दृष्टि वैषम्य | बेलनाकार |
प्रश्न 10.
प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण क्यों होता है?
उत्तर:
श्वेत प्रकाश वास्तव में कई रंगों का मिश्रण है। ‘किसी प्रिज्म से गुजरने के पश्चात्, प्रकाश के विभिन्न वर्ण, आपतित किरण के सापेक्ष अलग-अलग कोणों पर झुकते (मुड़ते हैं। लाल प्रकाश सबसे कम झुकता है जबकि बैंगनी सबसे अधिक झुकता है। इसलिए प्रत्येक वर्ण की किरणें अलग-अलग पथ के अनुदिश निर्गत होती हैं तथा सुस्पष्ट दिखाई देती हैं। यह सुस्पष्ट वर्णों का बैंड ही हमें स्पेक्ट्रम के रूप में दिखाई देता है।
प्रश्न 11.
श्वेत प्रकाश के स्पेक्ट्रम (अवयवी वर्णों का बैंड) को किस प्रकार पुनयोंजित किया जा सकता है?
उत्तर:
जब हम दो सर्वसम प्रिज्मों को एक-दूसरे सापेक्ष उल्टी स्थिति में रखते हैं तो पहले प्रिज्म द्वारा विक्षेपण से प्राप्त स्पेक्ट्रम के सभी वर्ण दूसरे प्रिज्म से होकर गुजरते हैं। इस स्थिति में हम देखते हैं कि दूसरे प्रिज्म से श्वेत प्रकाश का किरण पुंज निर्गत हो रहा है।
प्रश्न 12.
किसी माध्यम के ‘निरपेक्ष अपवर्तनांक’ तथा दो माध्यमों के ‘सापेक्ष अपवर्तनांक’ में अन्तर स्पष्ट कीजिए। इनमें क्या सम्बन्ध होता है?
उत्तर:
निरपेक्ष अपवर्तनांक (Relative Refrac-tive Index) – यदि प्रकाश की किरण निर्वात (free space or vacuum) से किसी प्रकाशिक माध्यम में जा रही हो तो निर्वात में आपतन कोण का ज्या तथा माध्यम में अपवर्तन कोण की ज्या के अनुपात को माध्यम का निरपेक्ष अपवर्तनांक कहते हैं।
अर्थात् माध्यम का निरपेक्ष अपवर्तनांक = \(\frac { sin i }{ sin r }\) जबकि i निर्वात में आपतन कोण तथा r माध्यम में अपवर्तन कोण है।
सापेक्ष अपवर्तनांक (Absolute Refractive Index) – यदि प्रकाश किरण का माध्यम (1) में आपतन कोण (i) तथा माध्यम (2) में अपवर्तन कोण (r) हो तो माध्यम (1) के सापेक्ष माध्यम (2) का
सापेक्ष अपवर्तनांक \({ }_1 n_2=\frac{\sin i}{\sin r}\)
यदि माध्यम (1) का निरपेक्ष अपवर्तनांक n1 तथा माध्यम (2) का निरपेक्ष अपवर्तनांक n2 हो तो
\({ }_1 n_2=\frac{n_2}{n_1}\)
अर्थात् माध्यम (2) का (1) के सापेक्ष अपवर्तनांक
[व्यावहारिक रूप में निरपेक्ष अपवर्तनांक के लिए निर्वात के स्थान पर वायु से लिया जा सकता है।]
प्रश्न 13.
किसी माध्यम में प्रकाश के ‘पूर्ण आन्तरिक परावर्तन’ हेतु आवश्यक दशाएँ लिखिए। इस प्रकार के परावर्तन को ‘पूर्ण’ क्यों कहते हैं?
अथवा
प्रकाश के पूर्ण आन्तरिक परावर्तन की आवश्यक शर्तें लिखिए।
उत्तर:
प्रकाश के पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के लिए निम्नलिखित शर्तें आवश्यक हैं-
- प्रकाश का गमन सघन माध्यम से विरल माध्यम में होना चाहिए।
- सघन माध्यम में प्रकाश का आपतन कोण, विरल माध्यम के सापेक्ष सघन माध्यम के क्रान्तिक कोण से अधिक होना चाहिए।
सामान्यतः किन्हीं दो पारदर्शी माध्यमों के पृथक्कारी तल पर अपवर्तन के साथ, आपतित प्रकाश के कुछ अंश का परावर्तन भी होता है परन्तु आपतन कोण का क्रान्तिक कोण से अधिक होने पर प्रकाश की संपूर्ण मात्रा का परावर्तन हो जाता है। अत: इसे पूर्ण आंतरिक परावर्तन कहते हैं।
प्रश्न 14.
प्रिज्म में ‘न्यूनतम विचलन’ का किरण आरेख बनाइए। प्रिज्म में अपवर्तन की इस विशेष स्थिति का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
आवश्यक किरण आरेख निम्नवत् है-
i1 आपतन कोण
r2 = निर्गत कोण
δm = न्यूनतम विचलन कोण
N1, N2 = अभिलम्ब
न्यूनतम विचलन की दशा में,
(1) प्रिज्म के भीतर अपवर्तित किरण, दोनों अपवर्तनांक तलों से समान कोण बनाती है अर्थात्
∠APQ = ∠AQP
(2) आपतन कोण (i1) = निर्गत कोण (r2)
(3) ‘न्यूनतम विचलन’ की स्थिति में प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण अधिकतम होता है। इस स्थिति का यही विशेष महत्त्व है।
प्रश्न 15.
किसी प्रिज्म का आपतन विचलन वक्र (i-d curve) का आरेख बनाइए तथा ‘न्यूनतम विचलन’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रिज्म का आपतन विचलन वक्र निम्न चित्र में प्रदर्शित है। इसके अनुसार यदि प्रिज्म पर प्रकाश का आपतन कोण (i) बढ़ाते जायें तो विचलन कोण (δ) का मान पहले घटता जाता है तथा एक स्थिति के बाद बढ़ने लगता है। विचलन कोण के इस परिवर्तन में इसके न्यूनतम मान को न्यूनतम विचलन कोण कहते हैं। चित्र में इसे δm से व्यक्त किया गया है।
प्रश्न 16.
प्रकाश तरंगों के न्यूनतम एवं अधिकतम तरंगदैष्यों के मान लिखिए तथा न्यूनतम से अधिकतम तरंगदैयों तक श्वेत प्रकाश के रंगों को क्रम से लिखिए।
उत्तर:
प्रकाश का न्यूनतम तरंगदैर्घ्य : 4000 ऐंग्स्ट्रॉम (4 x 10-10 मीटर)
अधिकतम तरंगदैर्ध्य : 7500 ऐंग्स्ट्रॉम
(7.5 x 10-10 मीटर)
रंगों का क्रम – बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी, लाल
प्रश्न 17.
किसी माध्यम के अपवर्तनांक में प्रकाश के वर्ण के अनुसार क्या परिवर्तन होता है? इनमें से किस वर्ण का अपवर्तनांक अधिकतम, किस वर्ण का न्यूनतम एवं किस रंग के प्रकाश का अपवर्तनांक, उनका मध्यमान होता है?
उत्तर:
किसी माध्यम का अपवर्तनांक प्रकाश के वर्णों के तरंगदैय बढ़ते जाने से घटता जाता है।
- अधिकतम अपवर्तनांक : बैंगनी रंग का
- न्यूनतम अपवर्तनांक : लाल रंग का
- मध्यमान अपवर्तनांक : पीले रंग का
प्रश्न 18.
प्रिज्म द्वारा प्रकाश के ‘वर्ण-विक्षेपण’ का क्या अर्थ है? प्रकाश के वर्ण-विक्षेपण का मूल कारण क्या है?
अथवा
उचित चित्र के द्वारा प्रकाश के वर्ण-विक्षेपण को समझाइए।
उत्तर:
एक से अधिक वर्णों (रंग) के मिश्रित प्रकाश का प्रिज्म से होकर अपवर्तन होने पर प्रकाश के संयोजी वर्णों के अलग-अलग हो जाने की क्रिया को प्रकाश का
वर्ण-विक्षेपण कहते हैं। इसका मूल कारण, विभिन्न वर्णों के प्रकाश के लिए प्रिज्म के माध्यम के अपवर्तनांक का भिन्न-भिन्न होना है।
प्रश्न 19.
स्पष्ट कीजिए कि काँच के आयताकार गुटके द्वारा प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण क्यों नहीं होता?
उत्तर:
जब प्रकाश आयताकार गुटके के दो समान्तर पृष्ठों से होकर गुजरता है तो पहले तल पर प्रकाश का एक ओर को विचलन दूसरे तल पर प्रकाश के विचलन के बराबर परन्तु विपरीत दिशा में होता है- अर्थात् गुटके में होकर जाने से प्रकाश संपूर्ण विचलन शून्य होता है। चूँकि वर्ण-विक्षेपण का कारण विभिन्न रंगों के प्रकाश के विचलन की भिन्नता है, गुटके द्वारा विचलन ‘शून्य’ होने के कारण वर्ण-विक्षेपण भी ‘शून्य’ होता है।
प्रश्न 20.
प्रकाश का ‘प्रकीर्णन’, प्रकाश के ‘विसरण’ से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
प्रकाश के विसरण की क्रिया उसके अनियमित परावर्तन से होती है, जिसमें जिस रंग का प्रकाश तल पर आपतित होता है, उसी रंग का प्रकाश परावर्तित होकर विसरित हो जाता है। इसके विपरीत प्रकीर्णन की क्रिया प्रकाश का विशेष रंग माध्यम के अणुओं द्वारा अवशोषित होकर पुनः होता है।
प्रश्न 21.
सूर्य के श्वेत प्रकाश में भी दिन के समय स्वच्छ वायुमण्डल का रंग नीला क्यों दिखायी देता है, जबकि सभी वायुमण्डलीय गैसें रंगहीन होती हैं?
उत्तर:
सूर्य के श्वेत प्रकाश में भी दिन के समय स्वच्छ वायुमण्डल का रंग नीला दिखायी देता है, क्योंकि वास्तव में वायुमण्डल का कोई अपना रंग नहीं होता है। यह नीला रंग, वायुमण्डल में उपस्थित गैसीय अणुओं का रंग है, जो जब श्वेत में नीले दिखाई देते हैं। सूर्य से आने वाला श्वेत प्रकाश गैसीय अणुओं से टकराता है तो उसके नीले रंग का हो जाते हैं।
लगभग तुरन्त ही ये अणु इस अतिरिक्त ऊर्जा ओं में अवशोषित हो जाता है जिससे अणु ऊर्जित को नीले रंग के प्रकाश के रूप में उत्सर्जित करके सभी दिशाओं में बिखेर देते हैं। यही नीला प्रकाश वायुमण्डलीय अणुओं के रंग के रूप में दिखायी देता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मानव नेत्र का नामांकित आरेख बनाइए तथा प्रमुख भागों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
मानव नेत्र द्वारा वस्तुओं से आने वाले प्रकाश के नेत्र में स्थित लेंस द्वारा अपवर्तन के कारण नेत्र के पिछले भाग में स्थित रेटिना (संवेदनशील पर्दा) पर वास्तविक उल्टे तथा छोटे प्रतिबिम्ब बनते हैं।
मानव नेत्र के प्रमुख भाग निम्नवत् हैं-
(1) दृढ़ पटल (Scelerotic) तथा रक्तक पटल (Choroid) – मनुष्य का नेत्र लगभग एक खोखले गोले के समान होता है। इसकी सबसे बाहरी पर्त, अपारदर्शी, श्वेत तथा दृढ़ (hard) होती है। इसे दृढ़ पटल (Scelerotic) कहते है। इसके द्वारा नेत्र के भीतरी भागों की सुरक्षा होती हैं।
(2) रक्तक पटल (Choroid) – दृढ़ पटल के भीतरी पृष्ठ से लगी एक पर्त या झिल्ली होती है जो काले रंग की होती है। इसे रक्तक पटल (Choroid) कहते हैं। काले रंग के कारण यह प्रकाश को अवशोषित करती तथा नेत्र के भीतर परावर्तन को रोकती है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि केवल बाहर से आने वाली प्रकाश किरणें ही रेटिना पर पड़ें।
(3) कॉर्निया (Cornea) – दृढ़ पटल के सामने का भाग कुछ हुआ और पारदर्शी होता है। इसे कॉर्निया कहते हैं। नेत्र में प्रकाश इसी भाग से होकर प्रवेश करता है। यह नेत्र का लगभग 1/6 भाग होता है।
(4) आइरिस (Iris) – कॉर्निया के पीछे एक रंगीन एवं अपारदर्शी झिल्ली का पर्दा होता है जिसे आइरिस कहते हैं।
(5) पुतली अथवा नेत्र तारा (Pupil) – आइरिस के बीच में एक छिद्र होता है जिसको पुतली कहते हैं यह गोल तथा काली दिखाई देती है। कॉर्निया से आया प्रकाश पुतली से होकर ही लेन्स पर पड़ता है। पुतली की यह विशेषता होती है कि अन्धकार में यह अपने आप बड़ी व अधिक प्रकाश में अपने-आप छोटी हो जाती है। इस प्रकार नेत्र में सीमित मात्रा में ही प्रकाश जा पाता है।
जब प्रकाश की मात्रा कम होती है तो आइरिस की मांसपेशियाँ की ओर सिकुड़कर पुतली बड़ा कर देती हैं जिससे है जिससे लेन्स पर पड़ने वाले प्रकाश की मात्रा बढ़ जाती है और जब प्रकाश की मात्रा अधिक होती है पुतली की मांसपेशियाँ ढीली हो जाती हैं जिससे पुतली छोटी हो जाती है और लेन्स पर कम प्रकाश आपतित होता है। इस क्रिया को पुतली-समायोजन कहते हैं। नेत्रों में यह क्रिया स्वतः होती रहती है।
(6) नेत्र लेन्स (Eye-lens) – पुतली के ठीक पीछे पारदर्शी ऊतकों (Tissues) का बना द्वि- उत्तल लेन्स होता है जिसे नेत्र-लेन्स कहते हैं। नेत्र लेन्स के पिछले भाग की वक्रता त्रिज्या छोटी तथा अगले भाग की भाग की वक्रता त्रिज्या बडी होती है। यह ऊतकों की कई पत मिलकर बना होता है जिनके अपवर्तनांक बाहर से अंदर की ओर बढ़ते जाते हैं।
अंदर का और बढ़त (माध्य n 1.44) सिलियरी (ciliary) मासपी मांसपेशियों द्वारा लेंस पर अधिक अथवा कम दबाव डालकर लेन्स की वक्रता त्रिज्याओं को बदला जा सकता है जिससे लेन्स की फोकस दूरी बदल जाती है और लेन्स द्वारा दूर एवं पास वाली सब वस्तुओं का प्रतिबिम्ब रेटिना पर बन सकता है। इस प्रकार हम र हम दूर एवं पास वाली वस्तुओं को देख सकते हैं।
(7) जलीय द्रव तथा काचाभ द्रव (Aqueous humur and Vitreous humur ) – कॉर्निया एवं नेत्र लेन्स के बीच के स्थान में जल समान पारदर्शी द्रव भरा रहता जिसका अपवर्तनांक 1.336 होता है। इसे जलीय द्रव कहते हैं। इसी प्रकार लेन्स के पीछे दृश्य-पटल तक का स्थान एक गाढ़े पारदर्शी एवं उच्च अपवर्तनांक के द्रव से भरा होता है। इसे काचाभ द्रव कहते हैं।
(8) रेटिना (Retina) कोरॉइड झिल्ली के नीचे तथा नेत्र के सबसे अन्दर की ओर एक पारदर्शी झिल्ली होती हैं जिसे रेटिना कहते हैं। वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना पर ही बनता रेटिना: बहुत सारी प्रकाश तंत्रिकाओं (Optic Nerves) की एक फिल्म होती है। रेटिना पर बने प्रतिबिम्ब का (वस्तु के रूप) रंग एवं आकार आदि का ज्ञान मस्तिष्क को इन तंत्रिकाओं द्वारा ही होता है। रेटिना के सब भाग प्रकाश के लिए समान सुग्राही नहीं होते।
(9) पीत बिन्दु (Yellow Spot) – लेन्स की मुख्य अक्ष, रेटिना को जिस बिन्दु पर काटती है उसे पीत बिन्दु (yellow spot) कहते हैं। रेटिना के इस भाग की सुग्राहिता सबसे अधिक होती है।
(10) अन्य बिन्दु (Blind Spot) – जिस स्थान से प्रकाश तंत्रिकाएँ, रेटिना को छेदकर मस्तिष्क को जाती हैं, उस स्थान की प्रकाश के लिए सुग्राहिता शून्य होती है। उसे अन्ध बिन्दु (blind spot) कहते हैं।
प्रश्न 2.
उपयुक्त किरण आरेख बनाकर नेत्र में का बनना स्पष्ट कीजिए तथा प्रतिबिम्ब की प्रकृति बताइए।
उत्तर:
नेत्रों की पलकें, फोटोग्राफिक कैमरे के शटर की भाँति कार्य करती हैं। पलकें खुलने पर वस्तु से आने वाला प्रकाश कॉर्निया पर पड़ता है तथा नेत्र तारा से होकर लेन्स पर आपतित होता है। इस क्रिया में आयरिस झिल्ली
नेत्र – तारा के व्यास को इस प्रकार समंजित करती है कि तेज प्रकाश की वस्तु से सीमित मात्रा में तथा कम प्रकाशवान वस्तु से पर्याप्त मात्रा में प्रकाश नेत्र में प्रवेश करे। इसके साथ ही सिलियरी – पेशियाँ लेंस के पृष्ठों की वक्रता त्रिज्याओं को घटा-बढ़ाकर लेंस की फोकस – दूरी को ऐसा समंजित करती हैं कि वस्तु दूर या निकट, उसका स्पष्ट प्रतिबिम्ब रेटिना पर बने यह प्रतिबिम्ब वास्तविक, उल्टा तथा छोटा होता है।
रेटिना की तंत्रिकाओं के सिरे इस प्रतिबिम्ब के प्रकाश से प्रभावित होकर मस्तिष्क को संदेश भेजते हैं, जिससे हम वस्तुओं को देखते हैं। किरण- आरेख – नेत्र से देखते समय वस्तु नेत्र के लेंस की फोकस दूरी के दुगुने से अधिक दूरी पर र होती है ती है। अतः सैद्धान्तिक किरण- आरेख को निम्नवत् दिखाया जा सकता है- वास्तव में रेटिना का भीतरी तल गोलीय अवतल होता है। नेत्र के लेन्स की वक्रता त्रिज्याओं की भिन्नता तथा लेन्स के मोटे होने के कारण सीधी वस्तु का प्रतिबिम्ब भी गोलीय है, जिससे प्रतिबिम्ब के सभी भाग गोलीय रेटिना पर स्पष्ट बनते हैं।
प्रश्न 3.
समंजन क्षमता का अर्थ, आवश्यक किरण आरेख बनाकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नेत्र की समंजन क्षमता (Accommoda-tion Power of Eye) – नेत्र में लेन्स की फोकस दूरी, बिना किसी समंजन के सामान्य अवस्था में लेन्स से रेटिना की दूरी के बराबर होती है अर्थात् यदि लेन्स की फोकस दूरी हो तो अनन्त पर स्थित वस्तु का प्रतिबिम्ब ठीक रेटिना पर ही बनता है।
अब यदि वस्तु को नेत्र के निकट लाया जाय अर्थात् u का मान घटाया जाय तो लेन्स की फोकस दूरी स्थिर रहने पर v का मान बढ़ता है अर्थात् \(\frac { v }{ f }\) हो जाता है। इस दशा में F वस्तु का रेटिना पर प्रतिबिम्ब स्पष्ट नहीं बनेगा। [चित्र (क)]
यदि प्रतिबिम्ब रेटिना पर ही स्पष्ट बनाना तो इसके दो उपाय हैं-
- लेन्स से रेटिना की दूरी बढ़ जाय अथवा
- लेन्स की फोकस दूरी घट जाय।
चूँकि नेत्र में लेन्स तथा रेटिना अपने स्थान पर अचर रहते हैं, निकट स्थित वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनाने के लिए नेत्र- लेंस की फोकस दूरी घट जाती है [चित्र (ख)]। इसका अर्थ यह है कि नेत्र में v का मान निश्चित रहता है परन्तु 14 के घटने-बढ़ने के साथ का मान घटता-बढ़ता रहता है।
‘नेत्र- लेंस द्वारा अपनी फोकस दूरी को आवश्यकतानुसार परिवर्तित कर लेने की क्षमता को समंजन क्षमता कहते हैं।
अब किसी लेंस की फोकस दूरी उसके पृष्ठों की वक्रता त्रिज्याओं पर निम्नलिखित सूत्र के अनुसार निर्भर करती है-
\(\frac { 1 }{ f }\) = (n – 1)\(\left[\frac{1}{\mathrm{R}_1}-\frac{1}{\mathrm{R}_2}\right]\)
जबकि n, लेंस के पदार्थ का अपवर्तनांक हैं।
नेत्र लेंस के लिए n का मान अचर रहता है। अतः फोकस दूरी को घटाने का कार्य लेंस के गोलीय पृष्ठों की वक्रता-त्रिज्याओं R1 तथा R2 को घटाकर किया जाता है। नेत्र का लेंस जिन सिलियरी पेशियों (Ciliary muscles) द्वारा अपने स्थान पर टिका रहता है, उनके द्वारा लेंस की परिधि पर चारों ओर से दबाव डालने लेंस के पृष्ठ अधिक वक्र अर्थात् कम वक्रता त्रिज्या के हो जाते हैं।
नेत्र की सामान्य अथवा श्रांत (relaxed) दशा में लेंस की फोकस दूरी अधिकतम (लेंस से रेटिना की दूरी के बराबर) होती है। इस दिशा में नेत्र अनन्त दूरी की वस्तुओं को स्पष्ट देख सकते हैं। इसे असमंजित दृष्टि (Unaccom modated Vision) कहते हैं।
प्रश्न 4.
निकट दृष्टि दोष तथा इसके निवारण का उपाय आवश्यक किरण आरेख बनाकर समझाइए।
अथवा
निकट दृष्टि दोष किसे कहते हैं? इस दोष के क्या कारण हैं? एक किरण आरेख खींचकर वर्णन कीजिए कि इस दोष को कम कैसे किया जाता है?
उत्तर:
निकट कट दृष्टि दोष (Short Sigh- tedness) – मनुष्य की दोष रहित सामान्य आँख अनन्त दूरी पर स्थित वस्तुओं को बिना समंजन के स्पष्ट देख सकती है तथा निकट स्थित वस्तुओं के लिए नेत्र- लेंस की फोकस दूरी के समंजन से देखना भी सम्भव होता है।
निकट-दृष्टि दोष नेत्र का वह दृष्टि दोष है, जिसके कारण मनुष्य को निकट की वस्तुएँ तो स्पष्ट दिखायी देती हैं परन्तु एक सीमित दूरी के आगे की वस्तुएँ स्पष्ट नहीं दिखायी देतीं। इस दोष को चिकित्सा-विज्ञान की भाषा में मायोपिया (Myopia) कहते हैं।
निकट दृष्टि दोष का कारण (Causes of short Sightedness) -इस दोष का सामान्य कारण, नेत्र-गोलक का कुछ लम्बा हो जाना है। इससे लेंस तथा रेटिना के बीच की दूरी कुछ अधिक हो जाती है तथा असंमंजित दशा में अनन्त पर स्थित वस्तुओं से आने वाली सैमान्तर किरणें रेटिना पर केन्द्रित न होकर उसके पहले ही प्रतिबिम्ब (I) बनाती हैं। अतः रेटिना (R) पर प्रतिबिम्ब स्पष्ट नहीं बनता। [चित्र (ख)]
निकट दृष्टि दोष का निवारण (Remedy of short Sightedness) – चूँकि निकट दृष्टि दोष में अनन्त स्थित वस्तुओं का प्रतिबिम्ब रेटिना के पहले ही बन जाता है, यदि आपतित समान्तर किरणों को नेत्र-लेंस पर पड़ने के पहले कुछ अपसरित (diverge) कर दिया जाय तो वेलेंस से कुछ दूर हटकर रेटिना पर प्रतिबिम्ब बना सकती हैं। अतः निकट दृष्टि दोष के निवारण के लिए नेत्र के सामने (चश्मे में) एक अवतल (अपसारी) लेंस का प्रयोग किया जाता है।
यह अवतल लेंस, अनन्त स्थित वस्तु से आने वाली समान्तर किरणों को अपसरित कर देता है, जिससे वस्तु का एक आभासी प्रतिबिम्ब 0, लेंस के फोकस (F) पर बन जाता है। यह प्रतिबिम्ब नेत्र-लेंस के लिए वस्तु का कार्य करता है तथा इसका प्रतिबिम्ब (I), रेटिना पर स्पष्ट बनता है।
चश्म में प्रयुक्त अवतल लेंस की उपयुक्त फोकस-दूरी ज्ञात करने के लिए पहले यह ज्ञात किया जाता है कि मनुष्य बिना चश्मे के अधिक-से-अधिक कितनी दूरी तक की वस्तु को स्पष्ट देख सकता है। इस दूरी को नेत्र का दूर-बिन्दु (Far-point) कहते हैं।
चूँकि सामान्य नेत्र के लिए दूर- दूर-बिन्दु अनन्त पर होता है, यह आवश्यक है कि दोष युक्त नेत्र के लिए अनन्त पर का प्रतिबिम्ब (अवतल लेंस द्वारा) नेत्र के स्थित वस्तु दूर-बिन्दु पर नेत्र का पर बने चित्र से स्पष्ट है कि O ही दोष युक्त दूरी लेन्स का दूर-बिन्दु है तथा अवतल लेन्स से इसकी की फोकस दूरी को व्यक्त करती है।
अतः निकट दृष्टि दोष निवारण हेतु प्रयुक्त अवतल लेंस की फोकस दूरी, दोष युक्त नेत्र के दूर-बिन्दु की दूरी के बराबर होनी चाहिए।
उदाहरणतः यदि कोई मनुष्य अधिक से अधिक 50 सेमी दूर स्थित वस्तु को ही स्पष्ट देख सकता है तो उसके चश्मे में 50 सेमी फोकस दूरी का अवतल लेंस लगाना होगा जिसकी क्षमता = \(\frac { 1 }{ 0.50 मीटर }\) = – 2D
प्रश्न 5.
‘दूर दृष्टि दोष’ क्या होता है? आवश्यक आरेख बनाकर इसके निवारण की विधि स्पष्ट कीजिए।
अथवा
आँख में दर दृष्टि दोष क्या होता है? इस दोष को दूर करने के लिए क्या करना होगा? चित्र बनाकर स्पष्ट रूप से ‘समझाइए।
उत्तर:
दूर दृष्टि दोष (Long Sightedness)-मनुष्य सामान्य नेत्र द्वारा निकट स्थित वस्तुओं को नेत्र- लेंस के समंजन के द्वारा स्पष्ट देख पाता है। यह समंजन सामान्य नेत्र में कम-से-कम 25 सेमी दूरी तक के लिए है। इससे कम दूरी की वस्तुओं को समंजन द्वारा भी स्पष्ट देखना सम्भव नहीं हो पाता इस दूरी (लगभग 25 सेमी) को नेत्र का निकट-बिन्दु (Near point ) अथवा स्पष्ट दृष्टि की दूरी (distance of distinct sion) कहते हैं तथा प्रतीक D से व्यक्त करते हैं।
यदि मनुष्य के नत्र। के नेत्र में दूर दृष्टि का दोष हो जाता है तो वह दूर स्थित परन्तु एक सीमा से कम दूरी की वस्तुओं को स्पष्ट नहीं यह सीमा, सामान्य नेत्र के निकट-बिन्दु देख पाता तथा (25 सेमी) से अधिक दूरी पर हो जाता है। इस दोष को हाइपरमेट्रोपिया (Hypermetropia) कहते हैं।
इस दोष में, सामान्य निकट-बिन्दु पर रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना के पीछे बनता है अतः स्पष्ट नहीं दिखायी देता [चित्र (क) तथा (ख)]। जिस मनुष्य की दृष्टि में यह दोष होता है उसे पुस्तक पढ़ने अथवा अन्य निकटस्थ वस्तुओं को स्पष्ट देखने के लिए 25 सेमी से अधिक दूरी पर रखना पड़ता है।
दूर दृष्टि दोष के कारण (Causes of Long Sightedness) – दूर दृष्टि दोष दो कारणों से उत्पन्न हो सकता है-
- नेत्र गोलक का कुछ चपटा हो जाना अर्थात् नेत्र में लेंस तथा रेटिना के बीच की दूरी सामान्य से कम हो जाती है, अथवा
- नेत्र की समंजन – क्षमता का कम हो जाना या पूर्णत: नष्ट हो जाना।
दूर दृष्टि दोष का निवारण (Remedy of Long Sightedness) – इस दोष का निवारण करने के लिए चश्मे में उपयुक्त फोकस दूरी के उत्तल लेंस का प्रयोग किया जाता है। यह लेंस, सामान्य निकट-बिन्दु पर स्थित वस्तु से आने वाली किरणों को कुछ अभिसरित (Converge) कर देता है, जिससे नेत्र- लेंस द्वारा बना अन्तिम प्रतिबिम्ब लेंस की ओर आकर रेटिना पर बनने लगता है।
दूर दृष्टि हेतु प्रयुक्त उत्तल लेन्स की फोकस दूरी की गणना निम्नवत की जाती है-
माना कि दोष युक्त नेत्र द्वारा मनुष्य दूरी D से कम दूरी पर स्थित वस्तु को स्पष्ट नहीं देख सकता, जबकि सामान्य नेत्र की स्पष्ट दृष्टि की दूरी D (या 25 सेमी) है। इसका अर्थ यह है कि दूरी D पर रखी गयी वस्तु का प्रतिबिम्ब, उत्तल लेंस द्वारा, वस्तु के पीछे दूरी D पर बनना चाहिए। यदि प्रयुक्त उत्तल लेंस की फोकस दूरी हो तो इस लेंस के लिए u = – D तथा v = D’
अतः सूत्र \(\frac{1}{f}=\frac{1}{v}-\frac{1}{u}\) से.
\(\frac{1}{f}=-\frac{1}{D’}-\frac{1}{-D}\)
या \(\frac{1}{f}=\frac{1}{D}-\frac{1}{D’}\)
उदाहरणतः यदि कोई मनुष्य 50 सेमी से कम दूरी पर स्पष्ट नहीं देख सकता तो
u = – 25 सेमी तथा v = – 50 सेमी लेने पर,
\(\frac{1}{f}=-\frac{1}{50}-\frac{1}{-25}\)
= \(\frac{1}{25}=\frac{1}{50}=\frac{1}{50}\)
अथवा f = 50 सेमी
अत: मनुष्य के चश्मे में 50 सेमी फोकस-दूरी का उत्तल लेंस लगाना होगा।
इस लेन्स की क्षमता
P = \(\frac{1}{+0.50 \text { मीटर }}\) = + 2D
प्रश्न 6.
उपयुक्त आरेख बनाकर ‘क्रान्तिक कोण’ एवं ‘पूर्ण आन्तरिक परावर्तन’ को स्पष्ट कीजिए तथा क्रान्तिक कोण एवं अपवर्तनांक में सम्बन्ध निगमित कीजिए।
उत्तर:
जब प्रकाश किसी सघन माध्यम (जैसे कांच, जल आदि) से किसी विरल माध्यम (जैसे वायु में गमन करता है तो अपवर्तन कोण (r), आपतन कोण (i) से बड़ा होता है। यदि आपतन कोण को बक़ते जाएं तो एक स्थिति ऐसी आती है जब अपवर्तन कोण (r) का मान 90° हो जाता है तथा आपतन कोण (i) का मान 90° से कम ही रहता है। इस दशा में अपवर्तित किरण, दोनों माध्यमों के पृथककारी तल को स्पर्श करती हुई जाती है।
सघन माध्यम में उस आपतन कोण को, जिसके लिए उंखल माध्यम में अपवर्तन कोण 90° होता है, संघन माध्यम स्केक्रक्रान्तिक कोण कहते हैं।
इस दशा में, यदि आपतन कोण (i = C) हो तथा a. विरल माध्यम के सापेक्ष सघन माध्यम का अपवर्तनांक हो तो स्नैल के नियम के अनुसार,
\(\frac{\sin i}{\sin r}\) = n’
अब i = C तथा r = 90°, (परन्तु sin 90° = 1 )
अतः \(\frac{ sin C}{ 1 }\) = n’ अथवा n’ = sin C.
यदि सघन माध्यम का अपवर्तनांक (विरल माध्यम के सापेक्ष) n हो तो
n = \(\frac{1}{n’}\) = \(\frac{1}{sin C}\)
अर्थात् माध्यम का अपवर्तनांक (n) = 1/sin C
जबकि माध्यम का क्रान्तिक कोण C है।
पूर्ण आन्तरिक परावर्तन (Total Internal Reflection ) – यदि सघन माध्यम में प्रकाश का आपतन कोण (i), क्रान्तिक कोण से अधिक हो, तो विरल माध्यम में अपवर्तन कोण 90° से बड़ा होना चाहिए। परन्तु ऐसा होने पर प्रकाश, विरल माध्यम में न जाकर पुनः सघन माध्यम से ही वापस आ जाता है अर्थात् परावर्तित हो जाता है।
दो पारदर्शी माध्यमों के बीच सघन माध्यम से विरल माध्यम की ओर गमन करने पर दोनों माध्यमों के पृथक्कारी तल से प्रकाश के पूर्णत: परावर्तित होने की क्रिया को पूर्ण आन्तरिक परावर्तन कहते हैं। इस क्रिया में परावर्तन के नियम (i = r) का पालन होता है।
प्रश्न 7.
प्रकाश के सन्दर्भ में प्रिज्म क्या होता है? किसी प्रिज्म से होकर प्रकाश के अपवर्तन एवं विचलन की क्रिया, किरण आरेख बनाकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी दो असमान्तर तलों के बीच स्थित पारदर्शी माध्यम (जैसे काँच) को, प्रकाश के संचरण के सन्दर्भ में प्रिज्म कहते हैं।
प्रिज्म के जिन दो असमान्तर समतलों से होकर प्रकाश का अपवर्तन होता है उसे प्रिज्म कोण (A) कहते हैं। संलग्न चित्र में प्रिज्म के प्रथम पृष्ठ के बिन्दु P पर प्रकाश आपतित किरण AP है, जो P पर खींचे गये अभिलम्ब से आपतन कोण (i1) बनाती है। ती है। इस तल पर प्रकाश का विचलन विरल माध्यम (वायु) सघन मध् माध्यम (काँच) में होने के कारण अपवर्तन कोण (r1), आपतन आपतन कोण (i1) से छोटा होता है, तथा अपवर्तित किरण PQ, आधार की ओर कुछ झुक जाती है।
दूसरे दूसरे अपवर्तक तल पर किरण PQ, कोण r2 बनाते हुए आपतित होती है तथा इस बिन्दु पर सघन से विरल माध्यम में जाने के कारण अपवर्तन कोण (i2), आपतन कोण (r2) से बड़ा होता है। अतः दूसरे तल से निर्गत किरण (QB), आधार की ओर कुछ और झुक जाती है।
अतः प्रिज्म के दोनों तलों पर अपवर्तन के कारण प्रकाश के मार्ग जो संपूर्ण परिवर्तन होता है, उसे विचलन कहते हैं। चित्रानुसार यह विचलन, आपतित किरण AP तथा निर्गत किरण QB के बीच बने कोण COB द्वारा व्यक्त होता है। इसे विचलन कोण (δ) कहते हैं।
प्रश्न 8.
‘वर्ण-विक्षेपण’ से क्या तात्पर्य है? प्रिज्म द्वारा वर्ण-विक्षेपण की क्रिया, आरेख बनाकर समझाइए।
अथवा
प्रिज्म द्वारा श्वेत प्रकाश के वर्ण विक्षेपण का वर्णन कीजिए। इसका नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:
वर्ण-विक्षेपण (Dispersion ) – जब प्रकाश किरणें किसी एक माध्यम (जैसे वायु) से किसी दूसरे माध्यम (जैसे काँच) जाती हैं अपने मार्ग से कुछ मुड़ जाती हैं अथवा विचलित (deviate) हो जाती हैं। यह विचलन माध्यम के अपवर्तनांक पर निर्भर होता है। प्रकाश के विभिन्न वर्णों (रंग) के लिए किसी माध्यम का अपवर्तनांक भिन्न-भिन्न होता है। बैंगनी रंग के प्रकाश के लिए अपवर्तनांक सर्वाधिक तथा लाल रंग के प्रकाश के लिए सबसे कम होता है। जिस वर्ण का अपवर्तनांक अधिक होता है उस वर्ण के प्रकाश का विचलन भी अधिक होता है।
अतः यदि दो या दो से अधिक वर्णों के मिश्रित प्रकाश की एक किरण वायु से आती हुई काँच के तल पर आप काँच ‘मैं जाने पर बैंगनी प्रकाश का विचलन सर्वाधिक तथा लाल प्रकाश का विचलन सबसे कम होगा। अतः विभिन्न वर्णों के लिए अपवर्तनांक की भिन्नता के कारण, की मिश्रित किरण, विभिन्न वर्णों की -किरणों ‘की प्रकाश- में अलग-अलग बँट जाएगी (चित्र)। किसी माध्यम में अपरिवर्तित होने पर एक से अधिक वर्णों के मिश्रित प्रकाश के अलग-अलग वर्णों के प्रकाश से विभक्त हो जाने की घटना को प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण (Dispersion of Light) कहते हैं। चित्र में बैंगनी (V) तथा लाल (R) वर्ण के मिश्रित प्रकाश का दो वर्णों में वर्ण-विक्षेपण प्रदर्शित है।
प्रिज्म द्वारा वर्ण-विक्षेपण (Dispersion by Prism)
यदि श्वेत प्रकाश को किसी पतली झिल्ली (Slit ) से पतले पुंज के रूप में निकालकर एक प्रिज्म पर डाला जाय तथा प्रिज्म के दूसरे फलक से निर्गत प्रकाश को एक श्वेत पर्दे पर लिया जाय तो पर्दे पर कई रंगों की एक पट्टी दिखायी देती है।
इस पट्टी का ऊपरी सिरा लाल और नीचे का सिरा बैंगनी दिखायी देता है तथा ऊपर से नीचे तक पट्टी का रंग क्रमशः बदलता जाता है- लाल (Red), नारंगी (Orange), पीला (Yellow), हरा (Green), आसमानी (Blue) नीला (Indigo) तथा बैंगनी (Violet)।
पट्टी में एक रंग से दूसरे में परिवर्तन धीरे-धीरे होता है तथा विभिन्न रंगों के बीच कोई तीक्ष्ण विभाजन रेखा नहीं होती। वास्तव में पट्टी के एक सिरे से दूसरे तक असंख्य रंगों का अविरल क्रम होता है, परन्तु हम अपने नेत्र से इन्हें अधिक-से-अधिक सात भिन्न समूहों में पहचान पाते हैं प्रिज्म से गुजरने पर प्रकाश के जिस रंग का अपवर्तनांक अधिक होता है, उसका विचलन भी अधिक होता है।
चूँकि श्वेत प्रकाश के संयोजी रंगों में बैंगनी रंग का अपवर्तनांक अधिकतम तथा लाल रंग का न्यूनतम होता है, बैंगनी रंग का विचलन सर्वाधिक एवं लाल रंग का विचलन न्यूनतम होता हैं। इसके बीच के रंग अपने अपवर्तनांक के अनुसार क्रम से विचलित होते हैं तथा श्वेत प्रकाश के संयोजी रंगों का स्पेक्ट्रम प्रदर्शित करते हैं।
प्रश्न 9.
प्रकाश के प्रकीर्णन से क्या तात्पर्य है? उदाहरण देकर समझाइए।
अथवा
प्रकाश का प्रकीर्णन किसे कहते हैं? किस रंग के प्रकाश के लिए प्रकीर्णन अधिकतम होता है?
अथवा
प्रकाश का प्रकीर्णन क्या होता है? किसी अंतरिक्ष यात्री को आकाश नीले की अपेक्षा काला क्यों प्रतीत होता है?
उत्तर:
प्रकाश का प्रकीर्णन (Scattering of Light) – सूर्य के श्वेत प्रकाश में भी आकाश नीला दिखायी देता है। वास्तव में आकाश का कोई रंग नहीं है, यह नीला रंग वायुमण्डल उपस्थित गैसीय अणुओं रंग का रंग है, जो श्वेत नीले रंग के ‘दिखायी देते हैं।
सूर्य से आने वाला श्वेत प्रकाश जब गैसीय अण अणु से टकराता है तो उसके नीले रंग का अंश अणुओं में अवशोषित हो जाता है जिससे अणु ऊर्जित (energised ) हो जाते हैं। लगभग तुरन्त ही अणु इस अतिरिक्त ऊर्जा को नीले के प्रकाश के रूप में उत्सर्जित करके सभी दिशाओं बिखेर देते हैं। यही नीला प्रकाश वायुमण्डलीय अणुओं के में दिखायी देता है।
किसी पदार्थ के अणुओं द्वारा किसी विशेष रंग के प्रकाश की ऊर्जा को अवशोषित करके उसे पुन: उत्सर्जित करने की क्रिया को प्रकाश का प्रकीर्णन कहते हैं। किसी अणु द्वारा अवशोषित एवं प्रकीर्णित प्रकाश का रंग अणु की संरचना एवं आकार (size) पर निर्भर करता है।
उदाहरणत:
(i) स्वच्छ गहरे जल का नीला-हरा दिखायी देना भी श्वेत प्रकाश के प्रकीर्णन का प्रभाव है। इसी प्रकार स्वर्ण (gold ) के कोलाइडी विलयन का रंग बैंगनी (violet) तथा रजत (silver) के कोलाइडी विलयन का रंग धूसर (grey) दिखायी देता है। लाल रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे कम तथा बैंगनी रंग का प्रकीर्णन सबसे अधिक होता है।
(ii) अंतरिक्ष में वायुमण्डल न होने के कारण प्रकाश का प्रकीर्णन नहीं होता है इसी कारण अंतरिक्ष से अंतरिक्ष – यात्री को आकाश नीले की अपेक्षा काला प्रतीत होता है।
आंकिक प्रश्न
प्रश्न 1.
एक व्यक्ति अपनी आँखों से 70 सेमी से कम दूरी पर रखी वस्तु को स्पष्ट नहीं देख पाता है। इस प्रकार व्यक्ति की आँखों में किस प्रकार का दोष है? इस दोष के निवारण के लिए उसे चश्मे में किस प्रकार का तथा कितनी फोकस दूरी के लेन्स का प्रयोग करना चाहिए?
हल:
इस तरह के व्यक्ति की आँख में दूर दृष्टि दोष है। इस दोष को दूर करने के लिए उसे चश्मे में ऐसे उत्तल लेंस का प्रयोग करना चाहिए जो 25 सेमी दूर रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब 70 सेमी दूरी पर बना दे। माना उत्तल लेंस की फोकस दूरी f है, तब
\(\frac{1}{v}-\frac{1}{u}=\frac{1}{f}\)
या, \(\frac{1}{-70}-\frac{1}{-25}=\frac{1}{f}\)
[∴ u = – 25 सेमी; v = – 70 सेमी]
या \(\frac{1}{f}=\frac{1}{25}-\frac{1}{70}\)
= \(\frac{14-5}{350}=\frac{9}{350}\)
∴ f = \(\frac { 350 }{ 9 }\) = 38.8 सेमी
प्रश्न 2.
एक व्यक्ति अपने नेत्रों से 40 सेमी से कम दूरी पर स्थित पुस्तक के अक्षरों को स्पष्ट नहीं देख सकता है। उसकी दृष्टि में कौन-सा दोष है? इस दोष का निवारण करने के लिए उसे किस प्रकार का तथा कितनी क्षमता के लेन्स का प्रयोग करना होगा?
हल:
व्यक्ति की आँख में दूर दृष्टि दोष है। इस दोष दूर करने के लिए उसे उत्तल लेन्स का प्रयोग करना को चाहिए।
यहाँ पर u = – 25 सेमी, v = – 40 सेमी, माना लेन्स की फोकस दूरी = f सेमी, तथा सूत्र \(\frac{1}{v}-\frac{1}{u}=\frac{1}{f}\) से
प्रश्न 3.
निकट दृष्टि दोष से पीड़ित व्यक्ति 20 सेमी दूर रखी पुस्तक को पढ़ सकता है। इस व्यक्ति को कितनी क्षमता के लेन्स को चश्मे में प्रयुक्त करना चाहिए, ताकि वह पुस्तक को नेत्र से 25 सेमी दूर रखकर पढ़ सके?
हल:
निकट दृष्टि दोष को दूर करने के लिए ऐसे अवतल लेन्स जिसकी फोकस दूरी है, का प्रयोग करना होगा, जो 25 सेमी दूर रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब 20 सेमी पर बना दे।
v = 20 सेमी, u = – 25 सेमी f = ?
सूत्र \(\frac{1}{f}=\frac{1}{v}-\frac{1}{u}\) में रखने पर,
\(\frac{1}{f}=\frac{1}{-20}-\frac{1}{-25}\)
= \(\frac{1}{25}-\frac{1}{20}\)
= \(\frac{4-5}{100}=\frac{-1}{100}\)
अत: f = 100 सेमी (अवतल लेन्स)
तथा इसकी क्षमता
P = \(\frac { 100 }{ f }\) = \(\frac { 100 }{ -100 }\) = – 1.0 D
प्रश्न 4.
निकट दृष्टि दोष से पीड़ित एक व्यक्ति अधिकतम 2 मीटर की दूरी तक देख सकता है। उसकी सही दृष्टि के लिए किस प्रकृति व कितनी फोकस दूरी का लेंस प्रयोग करना होगा स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी 0.25 मीटर है।
अथवा
स्वस्थ आँख के लिए दूर बिन्दु कितनी दूरी पर होता है? निकट दृष्टि दोष के कारण एक व्यक्ति अधिकतम 2 मीटर की दूरी तक देख सकता है, सही दृष्टि के लिए उसे किस क्षमता का लेंस प्रयोग करना चाहिए?
हल:
मनुष्य को अनन्त पर स्थित वस्तुएँ 2 मीटर की दूरी पर दिखाई देनी चाहिए।
अतः u = ∞, v = – 2 मीटर
\(\frac{1}{f}=\frac{1}{v}-\frac{1}{u}\),
या \(\frac{1}{f}=\frac{1}{-2}-\frac{1}{∞}\) f = – 2
अर्थात् फोकस दूरी 2 मीटर
लेंस की प्रकृति अवतल होगी।
क्षमता =\(\frac { 1 }{ f }\) = \(\frac { 1 }{ -2 }\) = 0.5D
स्वस्थ आँख के लिए दूर बिन्दु अनन्त होता है।
प्रश्न 5.
किसी निकट दृष्टि दोष से पीड़ित व्यक्ति का दूर बिन्दु नेत्र के सामने 80 सेमी दूरी पर है। इस दोष को दूर करने के लिए आवश्यक लेंस की प्रकृति तथा क्षमता क्या होगी?
हल:
दिया है-
प्रश्न 6.
दूर दृष्टि से पीड़ित एक व्यक्ति न्यूनतम 0.50 मीटर की दूरी तक देख सकता है। उसे सही दृष्टि के लिए किस प्रकृति तथा कितनी फोकस दूरी के लेंस का प्रयोग करना होगा ‘गणना कीजिए। स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी 0.25 मीटर है।
अथवा
दूर दृष्टि से पीड़ित एक व्यक्ति कम से कम 50 सेमी की दूर पर रखी वस्तु को स्पष्ट देख सकता है? इस व्यक्ति के दोष निवारण हेतु चश्मे में प्रयुक्त लेंस की प्रकृति, फोकस दूरी एवं क्षमता ज्ञात कीजिए।
हल:
मनुष्य को 25 सेमी पर स्थित वस्तु का प्रतिबिम्ब 50 सेमी पर बनना चाहिए अर्थात् u = – 0.25 मी = – 25 सेमी v = – 0.50 मी = – 50 सेमी
अतः सूत्र \(\frac{1}{f}=\frac{1}{v}-\frac{1}{u}\) से,
\(\frac{1}{f}=\frac{1}{-50}-\frac{1}{-25}=+\frac{1}{50}\)
∴ f = + 50 सेमी (उत्तल लेंस)
क्षमता = \(\frac { 1 }{ f }\) = \(\frac { 1 }{ 0.50 }\) = 2 D
प्रश्न 7.
37.5 सेमी फोकस दूरी के अवतल लेंस की सहायता से 25 सेमी दूरी पर रखी पुस्तक को पढ़ने वाले व्यक्ति की दृष्टि में कौन-सा दोष होगा? उसकी आँखों से प्रतिबिम्ब कितनी दूरी पर बनेगा?
हल:
चूँकि पुस्तक पढ़ने के लिए अवतल लेन्स की आवश्यकता है, अत: निकट दृष्टि दोष होगा।
दिया है, f = 37.5 सेमी, u = – 25 सेमी, v = ?
सूत्र \(\frac{1}{f}=\frac{1}{v}-\frac{1}{u}\) में रखने पर,
\(\frac{1}{-37.5}=\frac{1}{v}-\frac{1}{-25}\)
अथवा
\(\frac{1}{v}=\frac{1}{-37.5}-\frac{1}{25}\) = \(\frac { 1 }{ -15 }\)
अथवा v = – 15 सेमी
अतः आँखों से प्रतिबिम्ब की दूरी = 15 सेमी होगी।
प्रश्न 8.
100 सेमी की फोकस दूरी के अवतल लेंस की क्षमता की गणना होगी।
हल:
अवतल लेंस की फोकस दूरी (f) = 100 सेमी
लेंस की क्षमता P = \(\frac { 100 }{ f }\)
= – \(\frac { 100 }{ 100 }\)
= – 1D
प्रश्न 9.
एक लेंस की फोकस दूरी 2.5 सेमी है। यदि इसके द्वारा बना प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी 25 सेमी पर हो, तो लेंस की आवर्धन क्षमता की गणना कीजिए।
हल :
आवर्धन क्षमता M = 1 + \(\frac { D }{ f }\); दिया है f = 2.5 सेमी, D 25 सेमी
∴ M = 1 + \(\frac { 25 }{ 2.5 }\) = 11
प्रश्न 10.
निकट दृष्टि से पीड़ित एक व्यक्ति अधिक-से-अधिक 5 मीटर की दूरी तक देख सकता है। सही दृष्टि के लिए उसे किस क्षमता का लेंस प्रयोग करना होगा?
हल:
निकट दृष्टि के निवारण हेतु प्रयुक्त अवतल लेंस की फोकस दूरी = व्यक्ति की स्पष्ट दृष्टि की अधिकतम दूरी = 5 मीटर = 500 सेमी
∴ लेंस की क्षमता = –\(\frac { 100 }{ f }\) = –\(\frac { 100 }{ 500 }\)
= – 0.2 डायोप्टर
प्रश्न 11.
एक व्यक्ति पास की वस्तुएँ तो स्पष्ट देख सकता है, परन्तु 2 मीटर से अधिक दूरी की वस्तु को स्पष्ट नहीं देख सकता है। उसको कौन सा लेंस उपयोग करना चाहिए व किस क्षमता का?
हल:
दिया है-
v = – 2 मीटर
u = ∞
f = ?
लेंस के सूत्र –
\(\frac{1}{f}=\frac{1}{v}-\frac{1}{u}\) से,
\(\frac{1}{f}=\frac{1}{-2}-\frac{1}{-∞}\)
\(-\frac{1}{2}+\frac{1}{\infty}\)
f = – 2 मीटर (अवतल लेंस)
P = \(\frac { 1 }{ f }\) = \(\frac { 1 }{ -2 }\) = – 0.5 क्षमता का आभासी, अवतल लेंस।
बहुविकल्पीय प्रश्न
निर्देश: प्रत्येक प्रश्न में दिये गये वैकल्पिक उत्तरों में से सही विकल्प चुनिए-
1. स्वस्थ नेत्रों का निकट बिन्दु होता है-
(a) अनन्त
(b) 35 सेमी पर
(c) 30 सेमी पर
(d) 25 सेमी पर
उत्तर:
(d) 25 सेमी पर
2. आँखों में प्रवेश करने वाली प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करता है-
(a) परितारिका
(b) पुतली
(c) श्वेत मण्डल
(d) सिलियरी पेशियाँ
उत्तर:
(b) पुतली
3. निकट दृष्टि को ठीक करने के लिए आवश्यक अवतल लेन्स की फोकस दूरी-
(a) आँख से दूर बिन्दु की दूरी से कम होती है
(b) आँख से दूर बिन्दु की दूरी के बराबर होती है।
(c) 25 सेमी होती है
(d) आँख से दूर बिन्दु की दूरी से अधिक होती है
उत्तर:
(b) आँख से दूर बिन्दु की दूरी के बराबर होती है।
4. निकट दृष्टि दोष में-
(a) पास की वस्तु साफ नहीं दिखाई देती
(b) दूर की वस्तु साफ नहीं दिखाई देती
(c) पास बैठकर चाय नहीं पी सकते
(d) दिखना बिल्कुल बन्द हो जाता है।
उत्तर:
(b) दूर की वस्तु साफ नहीं दिखाई देती
5. मानव नेत्र में रेटिना पर बनने वाला प्रतिबिम्ब-
(a) सीधा होता है तथा सीधा ही दिखाई देता है
(b) उल्टा होता है तथा उल्टा ही दिखाई देता है
(c) उल्टा होता है परन्तु दिखाई सीधा देता है
(d) उपर्युक्त में से कोई सत्य नहीं
उत्तर:
(c) उल्टा होता है परन्तु दिखाई सीधा देता है
6. नेत्र लेन्स होता है-
(a) अभिसारी
(b) अपसारी
(c) अभिसारी या अपसारी कोई भी
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(a) अभिसारी
7. नेत्रों द्वारा रंगों का आभास होता है-
(a) रेटिना पर
(b) रेटिना की दण्ड कोशिकाओं द्वारा
(c) रेटिना की शंकु आकार की कोशिकाओं द्वारा
(d) पीत बिन्दु द्वारा
उत्तर:
(c) रेटिना की शंकु आकार की कोशिकाओं द्वारा
8. आँख के किस स्थान पर वस्तु का प्रतिबिम्ब बनने से यह दिखाई नहीं देगी-
(a) पीत बिन्दु
(b) अन्धबिन्दु
(c) रेटिना
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) अन्धबिन्दु
9. मानव नेत्र में स्पष्ट प्रतिबिम्ब बनने का कारण-
(a) नेत्र लेन्स तथा रेटिना के बीच की दूरी का आँख द्वारा समंजन
(b) नेत्र लेन्स का अपने स्थान से आगे या पीछे खिसकना
(c) नेत्र लेन्स की वक्रता त्रिज्या का आवश्यकतानुसार कम या अधिक होना
(d) नेत्र लेन्स का अपवर्तनांक बदलना
उत्तर:
(c) नेत्र लेन्स की वक्रता त्रिज्या का आवश्यकतानुसार कम या अधिक होना
10. निकट दृष्टि दोष के निवारण करने हेतु प्रयोग किया जाता है-
(a) अवतल लेन्स
(b) उत्तल लेन्स
(c) बेलनाकार लेन्स
(d) समोत्तल लेन्स
उत्तर:
(a) अवतल लेन्स
11. दूर दृष्टि दोष का कारण है, नेत्र लेंस-
(a) की फोकस – दूरी घट जाना
(b) की रेटिना से दूरी बढ़ जाना
(c) की रेटिना से दूरी घट जाना
(d) की से वक्रपृष्ठ का बेलनाकार हो जाना
उत्तर:
(c) की रेटिना से दूरी घट जाना
12. एक पारदर्शी पदार्थ जिसका अपवर्तनांक 1.0 से अधिक है, उसकी आभासी मोटाई उसकी वास्तविक मोटाई की तुलना में है-
(a) बराबर
(b) अधिक
(c) कम
(d) शून्य
उत्तर:
(c) कम
13. स्वस्थ आँखों के लिए दूर-बिन्दु स्थित होता है-
(a) 25 सेमी दूरी पर
(b) 50 सेमी दूरी पर
(c) 100 सेमी दूरी पर
(d) अनन्त पर
उत्तर:
(d) अनन्त पर
14. दूर दृष्टि दोष के निवारण में प्रयुक्त किया जाता है-
(a) निश्चित फोकस दूरी का अवतल लेंस
(b) निश्चित फोकस दूरी का उत्तल लेंस
(c) किसी भी फोकस दूरी का अवतल लेंस
(d) किसी भी फोकस दूरी का उत्तल लेंस
उत्तर:
(b) निश्चित फोकस दूरी का उत्तल लेंस
15. निकट दृष्टि दोष से पीड़ित व्यक्ति का दूर बिन्दु स्थित होता है-
(a) 25 सेमी पर
(b) 25 सेमी से कम दूरी पर
(c) अनन्त पर
(d) अनन्त से कम दूरी पर
उत्तर:
(d) अनन्त से कम दूरी पर
16. मनुष्य के स्वस्थ नेत्र में प्रतिबिम्ब बनता है-
(a) रेटिना पर
(b) रेटिना से आगे
(c) रेटिना के पीछे
(d) अनन्त पर
उत्तर:
(a) रेटिना पर
17. दूर दृष्टि दोष के निवारण के लिए निम्न में क्या विकल्प है-
(a) उत्तल दर्पण
(b) अवतल लेंस
(c) उत्तल लेंस
(d) अवतल दर्पण
उत्तर:
(c) उत्तल लेंस
18. स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी है-
(a) 25 सेमी
(b) 50 सेमी
(c) 75 सेमी
(d) 100 सेमी
उत्तर:
(a) 25 सेमी
19. एक व्यक्ति अपने चश्मे में 20 सेमी की फोकस दूरी का उत्तल लेंस प्रयोग करता है। इस लेंस की क्षमता होगी-
(a) 2 डायोप्टर
(b) + 5 डायोप्टर
(c) + 2 डायोप्टर
(d) 2 डायोप्टर
उत्तर:
(b) + 5 डायोप्टर
20. मानव नेत्र द्वारा किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब बनता है-
(a) कॉर्निया पर
(b) आइरिस पर
(c) पुतली पर
(d) रेटिना पर
उत्तर:
(d) रेटिना पर
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
- नेत्र की वह क्षमता जिसके कारण वह अपनी फोकस दूरी को समायोजित करके निकट तथा दूरस्थ वस्तुओं को फोकसित कर लेता है, नेत्र की ……………….. क्षमता कहलाती है।
- वह अल्पतम दूरी जिस पर रखी वस्तु को नेत्र बिना किसी तनाव के सुस्पष्ट देख सकता है उसे नेत्र का ……………….. अथवा सुस्पष्ट दर्शन की अल्पतम दूरी कहते हैं। सामान्य दृष्टि के वयस्क के लिए यह दूरी लगभग ……………….. होती है।
- दृष्टि की सामान्य अपवर्तक दोष हैं-निकट दृष्टि, दीर्घ दृष्टि तथा जरा दूरदृष्टिता निकट दृष्टि (निकट दृष्टिता दूर रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब दृष्टिपटल के ……………….. बनता है) को उचित क्षमता के ……………….. लेंस द्वारा संशोधित किया जाता है। दीर्घ-दृष्टि के ……………….. (दूरदृष्टिता – पास रखी वस्तुओं के प्रतिबिम्ब दृष्टिपटल ‘बनते हैं) को उचित क्षमता के ……………….. लेंस द्वारा संशोधित किया जाता है।
- वृद्धावस्था में नेत्र की समंजन क्षमता ……………….. जाती है।
- श्वेत प्रकाश का इसके अवयवी वर्णों में विभाजन ……………….. कहलाता है।
- प्रकाश के ……………….. के कारण आकाश का रंग नीला तथा सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य प्रतीत होती है।
उत्तर:
- समंजन
- निकट बिन्दु, 25 cm
- सामने, अवतल पीछे उत्तल
- घट
- विक्षेपण
- प्रकीर्णन, रक्ताभ