Jharkhand Board JAC Class 10 Science Important Questions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव Important Questions and Answers.
JAC Board Class 10 Science Important Questions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
किसी स्थान पर चुम्बकीय सुई दक्षिण-उत्तर दिशा में ही क्यों ठहरती है?
उत्तर:
किसी स्थान पर चुम्बकीय सुई उस स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के अनुदिश ही ठहरती है तथा पृथ्वी पर किसी भी स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा दक्षिण से उत्तर की ओर होती है।
प्रश्न 2.
किसी धारावाही तार के निकट चुम्बकीय सुई अपनी स्थिति से विचलित क्यों हो जाती है?
उत्तर:
धारावाही चालक के द्वारा आसपास एक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। सामान्यतः दक्षिण-उत्तर दिशा में स्थित चुम्बकीय सुई धारावाही चालक के चुम्बकीय प्रभाव से अपनी सामान्य स्थिति से हट जाती है।
प्रश्न 3.
धारा के चुम्बकीय प्रभाव से कैसे ज्ञात कीजिएगा कि किसी तार में विद्युत धारा बह रही है या नहीं?
उत्तर:
तार के निकट रखने पर यदि कोई चुम्बकीय सुई अपनी दक्षिण-उत्तर दिशा में स्थिति से विचलित हो जाय तो तार में विद्युत धारा प्रवाहित हो रही होगी अन्यथा नहीं।
प्रश्न 4.
एक स्थान रखी चुम्बकीय सुई किसी भी दिशा में स्थिर रखी जा सकती है। इससे उस स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र के बारे में क्या सूचना मिलती है?
उत्तर:
उस स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता शून्य होती है।
प्रश्न 5.
चुम्बकीय क्षेत्र के दो मात्रक तथा उनमें सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर:
न्यूटन एम्पियर-1 मीटर तथा वेबर मीटर 2 दोनों मात्रक परस्पर समान होते हैं। [इन मात्रकों को टेस्ला (Tesla) भी कहा जाता है।]
प्रश्न 6.
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
किसी स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता उस बल के परिमाण से व्यक्त होती है जो उस स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् स्थित एकांक लम्बाई के चालक में एकांक विद्युत धारा प्रवाहित करने पर कार्य करता है तथा चुम्बकीय बल की दिशा, धारा एवं चुम्बकीय क्षेत्र दोनों की दिशाओं के लम्बवत होती है।
मात्रक-न्यूटन एम्पियर-1, मीटर-1 या वेबर मीटर-2।
प्रश्न 7.
पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की क्या दिशा होती है?
उत्तर:
पृथ्वी के सम्पूर्ण चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा किसी स्थान पर चुम्बकीय दक्षिण से चुम्बकीय उत्तर की ओर, उत्तरी गोलार्द्ध में क्षैतिज तल से कुछ नीचे की ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में क्षैतिज तल से कुछ ऊपर की ओर झुकी हुई होती है।
चुम्बकीय विषुवत् रेखा पर चुम्बकीय क्षेत्र क्षैतिज तल में दक्षिण से उत्तर की ओर होता है। उत्तरी चुम्बकीय ध्रुव पर पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र ऊर्ध्वाधरतः नीचे की ओर तथा दक्षिणी चुम्बकीय ध्रुव पर ऊर्ध्वाधरत ऊपर की ओर होता है।
(सामान्य उत्तर दक्षिण से उत्तर की ओर)
प्रश्न 8.
किसी धारावाही परिनालिका के सिरे की ओर देखने पर धारा की दिशा क्या होगी यदि वह सिरा चुम्बकीय सुई के उत्तरी ध्रुव को (i) आकर्षित करे, (ii) प्रतिकर्षित करे?
उत्तर:
(i) उत्तरी ध्रुव को आकर्षित करने वाला परिनालिका का सिरा दक्षिणी ध्रुव (S) होगा। अतः इस सिरे से धारा दक्षिणावर्त (clockwise) प्रतीत होगी। [चित्र (b)]
(ii) उत्तरी ध्रुव को आकर्षित करने वाला परिनालिका का सिरा उत्तरी ध्रुव (N) होगा। अत: इस सिरे से धारा वामावर्त (Anticlockwise) प्रतीत होगी। (चित्र (a))
प्रश्न 9.
चित्र में तार का आयताकार लूप प्रदर्शित है तार हमें धारा प्रवाहित हो रही है। तार के खण्ड AB के कारण बिन्दु P पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का मान लिखिए।
उत्तर:
शून्य।
[धारा की दिशा में आगे या पीछे दोनों ओर धारा के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र शून्य होता है।]
प्रश्न 10.
किस परिस्थिति में किसी चुम्बकीय क्षेत्र में रखे धारावाही चालक पर लगने वाला बल शून्य होता है?
उत्तर:
धारावाही चालक को चुम्बकीय क्षेत्र के समान्तर रखने पर चालक पर बल नहीं लगता अर्थात् शून्य हो जाता है।
प्रश्न 11.
विद्युत मोटर में किस प्रकार की ऊर्जा- रूपान्तरण होती है?
उत्तर:
विद्युत ऊर्जा (मुक्त इलेक्ट्रॉनों की गतिज ऊर्जा ) का मोटर के आर्मेचर (कुण्डली) की घूर्णन गति की गतिज ऊर्जा में।
प्रश्न 12.
विद्युत मोटर में ‘क्षेत्र चुम्बक’ का कार्य क्या है?
उत्तर:
क्षेत्र चुम्बक से वह चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न किया जाता है, जिसमें स्थित धारावाही कुण्डली पर चुम्बकीय बल-आघूर्ण उत्पन्न होता है तथा वह घूर्णन करती है।
प्रश्न 13.
विद्युत मोटर में ‘आर्मेचर’ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
नर्म लोहे के क्रोड (core) पर ताँबे के विद्युत अवरोधित तारों की वह कुण्डली जो चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित होती है तथा जिसमें धारा प्रवाहित होने पर, कुण्डली का घूर्णन होता है, आर्मेचर (Armature) कहलाती हैं।
प्रश्न 14.
स्वतंत्रतापूर्वक लटकी परिनालिका में धारा प्रवाहित करने पर यह उत्तर:दक्षिण दिशा में ही क्यों रुकती है?
उत्तर:
परिनालिका में धारा प्रवाहित करने पर यह एक चुम्बकीय द्विध्रुव (Magnetic Dipole) बन जाती है तथा पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र में (जिसकी दिशा दक्षिण से उत्तर की ओर होती है) स्थित होने के कारण पर चुम्बकीय बल आघूर्ण है, जो इसे घुमाकर (चुम्बकीय क्षेत्र के समान्तर) दिशा में ले आता है।
प्रश्न 15.
धारावाही चालक पर चुम्बकीय क्षेत्र के कारण लगने वाले बल का सूत्र लिखिए। यह बल किस दशा में अधिकतम और किस दशा में न्यूनतम होता है?
उत्तर:
F = iBl sine. जब धारावाही चालक क्षेत्र के लम्बवत् है तो चालक पर आरोपित बल अधिकतम (iBl) होता है जब धारावाही चालक क्षेत्र की दिशा में है तो चालक पर आरोपित बल न्यूनतम (शून्य) होता है।
प्रश्न 16.
टेस्ला की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
चुम्बकीय क्षेत्र B के S. I मात्रक न्यूटन. ऐम्पियर-1 मीटर-1 को वेबर मीटर-2 तथा टेस्ला कहा जाता है।
अर्थात् 1 टेस्ला = 1 वेबर मीटर-2
= 1 न्यूटन ऐम्पियर-1, मीटर-1।
प्रश्न 17.
यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करने वाले उपकरण का नाम लिखिए।
उत्तर:
विद्युत जनित्र (Electric Generator) अथवा डायनमो (Dynamo)।
प्रश्न 18.
‘फ्लक्स घनत्व’ की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
चुम्बकीय फ्लक्स तथा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के लम्बवत् किसी तल के क्षेत्रफल को निष्पत्ति फ्लक्स घनत्व कहलाते हैं।
प्रश्न 19.
विद्युत जनित्र कितने प्रकार के होते हैं? नाम लिखिए।
उत्तर:
दो प्रकार के –
- प्रत्यावर्ती धारा जनित्र
- दिष्ट धारा जनित्र।
प्रश्न 20.
विद्युत जनित्र का क्या उपयोग है?
उत्तर:
यांत्रिक ऊर्जा का उपयोग करके विद्युत ऊर्जा का उत्पादन।
प्रश्न 21.
दिष्ट धारा जनित्र के उस भाग का नाम लिखें-
(i) जिसमें विद्युत वाहक बल प्रेरित होता है।
(ii) जो धारा की दिशा का परिवर्तन करता है।
(iii) चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है।
उत्तर:
(i) आर्मेचर कुण्डली
(ii) विभक्त वलय दिशा परिवर्तक
(iii) क्षेत्र- चुम्बक।
प्रश्न 22.
लेन्ज का नियम क्या है?
उत्तर:
लेन्ज के नियम के अनुसार, प्रेरित विद्युत वाहक बल सदैव उस कारण का विरोध करता जिसके द्वारा बल स्वयं उत्पन्न होता है।
प्रश्न 23.
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता तथा चुम्बकीय फ्लक्स में संबंध लिखें।
उत्तर:
किसी क्षेत्र से गुजरने वाला चुम्बकीय फ्लक्स Φ = B.A. cos θ जबकि B = चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता; A = क्षेत्र का क्षेत्रफल।
θ = चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा का क्षेत्र पर अभिलम्ब से झुकाव।
प्रश्न 24.
ऐसा कब हो सकता है कि चुम्बकीय क्षेत्र में रखी कुण्डली से होकर गुजरने वाला फ्लक्स शून्य हो?
उत्तर:
जब कुण्डली का तल चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा समान्तर हो।
प्रश्न 25.
किसी चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित कुण्डली से होकर गुजरने वाले फ्लक्स का मान अधिकतम कब होता है?
उत्तर:
जब चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा कुण्डली के तल के अभिलम्बवत् हो।
प्रश्न 26.
चुम्बकीय फ्लक्स अदिश राशि है अथवा सदिश।
उत्तर:
अदिश राशि है।
प्रश्न 27.
‘वेबर’ किस भौतिक राशि का मात्रक है?
उत्तर:
चुम्बकीय फ्लक्स का।
प्रश्न 28.
एक लम्बा क्षैतिज तार पूर्व-पश्चिम दिशा में फैला है। यदि तार ऊर्ध्वाधर दिशा में ऊपर से नीचे की ओर गिरे तो बताइए-
(i) क्या तार में विद्युत चुम्बकीय प्रेरण होगा,
(ii) यदि हाँ तो तार में प्रेरित धारा की दिशा क्या होगी?
उत्तर:
(i) पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र में उसकी दिशा के लम्बवत् तार की गति के कारण विद्युत चुम्बकीय प्रेरण होगा।
(ii) यदि तार किसी बंद परिपथ का भाग है तो फ्लेमिंग के दक्षिण- हस्त नियम के अनुसार तार में प्रेरित धारा की दिशा पश्चिम से पूर्व की ओर होगी।
प्रश्न 29.
किसी बैटरी से बल्ब में प्रवाहित धारा कैसी होती है, A. C. या D. C.?
उत्तर:
D.C.
प्रश्न 30.
किसी सेल से प्रवाहित धारा का समय-धारा ग्राफ बनाइए।
उत्तर:
चित्र के अनुसार धारा का मान नियत रहेगा, अतः ग्राफ की रेखा x अक्ष के समान्तर होगी तथा x अक्ष से उसकी दूरी, yoy’ x धारा i के मान को व्यक्त करेगी।
प्रश्न 31.
प्रत्यावर्ती धारा को ‘प्रत्यावर्ती’ क्यों कहते हैं?
उत्तर:
प्रत्यावर्ती धारा की दिशा एक निश्चित आवर्त काल में विपरीत दिशाओं में बदलती (प्रति आवर्तित) रहती है अतः इसे ‘प्रत्यावर्ती’ कहते हैं।
प्रश्न 32.
घरों में प्रयुक्त विद्युत धारा की आवृत्ति कितनी होती है?
उत्तर:
50 हज।
प्रश्न 33.
L लम्बाई के एक सीधे चालक तार को B चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता वाले चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् रखने पर उसमें I धारा प्रवाहित की जाती है। चालक तार पर कितना बल लगेगा?
उत्तर:
चालक तार पर लगने वाला बल = I.B.L. न्यूटन।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
‘चुम्बकीय क्षेत्र’ का क्या अर्थ है? यह कैसे ज्ञात होता है कि पृथ्वी के सभी स्थानों पर चुम्बकीय क्षेत्र होता है?
उत्तर:
किसी चुम्बकीय वस्तु अथवा किसी धारावाही चालक (अथवा गतिमान आवेश) के आसपास का वह क्षेत्र जिसमें स्थित अन्य किसी चुम्बकित वस्तु या धारावाही चालक (अथवा गतिमान आवेश) पर चुम्बकीय बल का अनुभव हो, चुम्बकीय क्षेत्र कहलाता है।
पृथ्वी के सभी स्थानों पर यदि किसी चुम्बकीय सुई को स्वतंत्रतापूर्वक लटका कर उसे छोड़ दिया जाय तो वह घूमकर, किसी एक निश्चित दिशा (उत्तर:दक्षिण) में आ जाती है। इससे सिद्ध होता है कि पृथ्वी पर स्थित चुम्बकीय सुई, उसे निश्चित दिशा में लाने वाले बल का अनुभव करती है। अतः पृथ्वी के सभी स्थानों पर चुम्बकीय क्षेत्र है।
प्रश्न 2.
यह कैसे ज्ञात होता है कि धारावाही तार चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है?
उत्तर:
यदि किसी धारावाही तार के निकट एक चुम्बकीय सुई रखी जाय तो सुई अपनी सामान्य (उत्तर-दक्षिण) स्थिति से घूम जाती है। इसी प्रकार यदि धारावाही तार के समान्तर दूसरा धारावाही तार जो गति के लिए स्वतंत्र हो, रखा जाय तो दूसरा धारावाही तार अपने स्थान से हट जाता है। इससे सिद्ध होता है कि धारावाही तार से चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है, जो चुम्बकीय सुई अथवा दूसरे धारावाही तार पर चुम्बकीय बल लगाता है।
प्रश्न 3.
फ्लेमिंग का वाम हस्त नियम लिखिए।
उत्तर:
‘यदि बायें हाथ की दो उँगलियों तथा अँगूठे को परस्पर लम्बवत् दिशाओं में इस प्रकार फैलाया जाय कि पहली उँगली (तर्जनी) चुम्बकीय क्षेत्र (B) की दिशा को दूसरी उंगली (मध्यमा) विद्युत धारा (I) की दिशा को व्यक्त करे तो अँगूठा चुम्बकीय बल (F) की दिशा को व्यक्त करता है।
प्रश्न 4.
आरेख बनाकर किसी सीधे धारावाही तार के चुम्बकीय क्षेत्र की एक क्षेत्र-रेखा को प्रदर्शित कीजिए। धारा एवं क्षेत्र की दिशाएँ भी अंकित कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 5.
उपयुक्त आरेख बनाकर ‘चुम्बकीय क्षेत्र रेखा’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा सीधी अथवा वक्र रेखाओं से प्रदर्शित की जा सकती है इन रेखाओं को चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ कहते हैं।
चुम्बकीय क्षेत्र में किसी बिन्दु (P) पर चुम्बकीय क्षेत्र (B) की दिशा, उस बिन्दु से गुजरने वाली क्षेत्र रेखा पर खींचे गये स्पर्शी (Tangent) की दिशा से व्यक्त होती है।
प्रश्न 6.
मैक्सवेल का कार्क-स्क्र नियम बताइए।
उत्तर:
मैक्सवेल का कार्क स्क्रू नियम (Maxwell’s Cork-screw Rule) – किसी चालक तार में प्रवाहित विद्युत धारा से उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा इस नियम से ज्ञात की जा सकती है।
यदि किसी स्क्रू को दक्षिणावर्त (Clockwise) घुमाया जाय तो स्क्रू की नोक आगे को जाती है, तथा स्क्रू को वामावर्त घुमाने पर स्कू की नोक पीछे आती है। (चित्र)। अब यदि स्क्रू की नोक की गति की दिशा चालक में विद्युत धारा की दिशा को व्यक्त करे तो स्क्रू के घूर्णन की दिशा. चालक के चारों ओर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र में, वृत्ताकार क्षेत्र रेखाओं की, (दक्षिणावर्त अथवा वामावर्त) दिशा को प्रदर्शित करती है (चित्र (a) तथा (b))।
प्रश्न 7.
उपयुक्त आरेख बनाकर किसी धारावाही लूप के केन्द्र पर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा दिखाइए जब लूप में धारा की दिशा आपको (i) वामावर्त, (ii) दक्षिणावर्त दिखायी दे।
उत्तर:
वृत्ताकार लूप के केन्द्र पर चुम्बकीय क्षेत्र रेखा लूप के तल के लम्बवत् होती है। अर्थात् धारावाही लूप के केन्द्र पर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा, लूप के तल के ठीक
लम्बवत् होती है। इसकी दिशा भी मैक्सवेल के कॉर्क-स्क्रू नियम से ज्ञात की जा सकती है। अर्थात् यदि स्क्रू के घूर्णन की दिशा, लूप में धारा की दिशा को व्यक्त करे तो स्क्रू की नोक की गति की दिशा, चुम्बकीय क्षेत्र (B) की दिशा को प्रदर्शित करती है।
प्रश्न 8.
धारावाही परिनालिका की चुम्बकीय बल रेखाओं को आरेख बनाकर दर्शाइए। परिनालिका के अन्दर नर्म लोहे की छड़ रखने पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
अथवा
धारावाही परिनालिका में चुम्बकीय बल रेखाएँ खींचिए।
उत्तर:
चित्र से स्पष्ट है कि चुम्बकीय बल रेखायें के एक सिरे से अन्दर की ओर जाती हैं तथा दूसरे सिरे से बाहर निकलती हैं। परिनालिका का वह सिरा जिससे होकर क्षेत्र रेखायें अन्दर की ओर जाती हैं दक्षिणी
चुम्बकीय-ध्रुव की तरह व्यवहार करता है, तथा दूसरा सिरा जिससे क्षेत्र रेखायें बाहर निकलती हैं, उत्तरी ध्रुव की तरह व्यवहार करता है।
परिनालिका के अन्दर नर्म लोहे की छड़ रखने पर नर्म लोहे की छड़ चुम्बकित हो जायेगी।
प्रश्न 9.
किस धारावाही चालक के चुम्बकीय क्षेत्र के लिए लाप्लास का सूत्र लिखिए तथा चुम्बकीय पारगम्यता का मान लिखिए।
उत्तर:
लाप्लास का सूत्र (Laplace’s Formula)
∆B = \(\frac{\mu_0}{4 \pi} \times \frac{i \times \Delta l \times \sin \theta}{r^2}\)
चुम्बकीय पारगम्यता का मान 4π x 10-7 न्यूटन / ऐम्पियर² होता है।
प्रश्न 10.
किसी चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित धारावाही चालक पर चुम्बकीय बल का सूत्र लिखिए तथा चुम्बकीय क्षेत्र का मात्रक प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
यदि तीव्रता B के चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा से कोण θ बनाते हुए स्थित, लम्बाई l के चालक में विद्युत धारा i प्रवाहित हो तो चालक पर चुम्बकीय बल F = B.i.l sinθ
प्रश्न 11.
किसी चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित धारावाही चालक पर चुम्बकीय बल शून्य है। ऐसा किस दशा में संभव है, यदि धारा तथा चुम्बकीय क्षेत्र दोनों अशून्य (Non-zero) हों?
उत्तर:
चुम्बकीय बल F = B.i.l sinθ
यदि धारा (i) तथा चुम्बकीय क्षेत्र (B) शून्य नहीं है तो चुम्बकीय बल तभी शून्य होगा जब sin θ = 0° हो। अतः इस दशा में 0 = 0° अर्थात् चालक में धारा की दिशा तथा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा परस्पर समान्तर हों।
प्रश्न 12.
धारा की दिशा बदलने पर परिनालिका की ध्रुवता पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
परिनालिका में धारा की दिशा बदलने पर उत्तरी ध्रुव दक्षिणी ध्रुव के समान तथा दक्षिणी ध्रुव उत्तरी ध्रुव के समान व्यवहार करने लगेगा।
प्रश्न 13.
सम्बन्धित सूत्र देकर बताइए कि अनन्त लम्बाई के धारावाही तार के निकट किसी बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता किन कारकों पर किस प्रकार निर्भर करती है?
अथवा
अनन्त लम्बाई के सीधे धारावाही चालक के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
अनंत लम्बाई के सीधे तार से लम्बवत् दूरी r पर किसी बिन्दु P पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता,
B = \(\frac{\mu_0}{4 \pi} \cdot \frac{2 \mathrm{I}}{r}\)
जबकि I तार में प्रवाहित धारा की तीव्रता है।
अतः अनन्त लम्बाई के धारावाही तार के चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता:
- तार में धारा की तीव्रता के अनुक्रमानुपाती, तथा
- तार से लम्बवत् दूरी के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
प्रश्न 14.
चुम्बकीय क्षेत्र में गतिमान आवेश पर लॉरेन्ज बल का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
लॉरेन्ज बल F = q.u.B. sin θ जबकि q = आवेश की मात्रा v = आवेश की चाल, B = चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता तथा θ = आवेश की गति की दिशा तथा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के बीच कोण।
प्रश्न 15.
किसी चुम्बकीय क्षेत्र में गति करता हुआ विद्युत आवेश अपने ऋजुरेखीय मार्ग से विक्षेपित क्यों हो जाता है?
उत्तर:
चुम्बकीय क्षेत्र में गति करते हुए आवेशित कण पर उसकी गति की दिशा के लम्बवत् चुम्बकीय बल लगता है। इसके प्रभाव से कण में अपनी गति की दिशा के लम्बवत् भी विस्थापन होता रहता है। अतः कण ऋजुरेखीय मार्ग से मुड़ता जाता है।
प्रश्न 16.
किसी धातुखण्ड में बिना धारा प्रवाहित किये भी मुक्त इलेक्ट्रॉन निरन्तर गतिमान रहते हैं परन्तु उनकी गति से चालक के बाहर कोई चुम्बकीय क्षेत्र नहीं उत्पन्न होता। क्यों?
उत्तर:
मुक्त इलेक्ट्रॉनों की गति यादृच्छ होती है अर्थात् किसी भी क्षण पर चालक में जितने इलेक्ट्रॉन किसी एक ओर को गति करते हैं, लगभग उतने ही इलेक्ट्रॉन विपरीत दिशा में भी गति करते होते हैं। अतः चालक के बाहर किसी बिन्दु पर दो समान चुम्बकीय क्षेत्र विपरीत दिशाओं में उत्पन्न होते हैं, जिनका परिणामी शून्य होता है अथवा यादृच्छ गति में, किसी भी समय अन्तराल में इलेक्ट्रॉन का परिणामी विस्थापन शून्य होता है, जिससे मुक्त इलेक्ट्रॉनों का प्रभावी वेग शून्य होता है अतः उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र भी शून्य होता है।
प्रश्न 17.
दिये गये चित्र में धारावाही परिनालिका के सिरों पर उत्पन्न चुम्बकीय ध्रुवों के नाम अपनी उत्तर पुस्तिका में प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 18.
किसी चुम्बकीय क्षेत्र में गतिशील आवेश पर लगने वाला बल किन-किन बातों पर निर्भर करता है? इस बल के लिए आवश्यक सूत्र लिखिए।
उत्तर:
किसी चुम्बकीय क्षेत्र में गतिशील आवेश पर लगने वाला बल निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है-
- आवेश की चाल
- चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता,
- आवेश की मात्रा
- आवेश की गति की दिशा तथा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के बीच कोण।
बल F = q.vB sinθ
जहाँ
q = आवेश की मात्रा
v = आवेश की चाल
B = चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता
θ = आवेश की गति की दिशा तथा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के बीच कोण
प्रश्न 19.
किसी चुम्बकीय क्षेत्र में गतिमान आवेश पर लगने वाले बल का परिमाण एवं दिशा बताइए।
उत्तर:
किसी चुम्बकीय बल का परिमाण लगने वाले = आवेश गतिमान आवेश पर sin θ होगा।
जहाँ,
q = आवेश की मात्रा
v = आवेश की चाल
B = चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता
θ = आवेश की गति की दिशा तथा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के बीच कोण
चुम्बकीय क्षेत्र में गतिमान आवेश पर लगने वाले बल की दिशा आवेश के वेग की दिशा तथा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा, दोनों के लम्बवत् होगी।
प्रश्न 20.
‘चुम्बकीय फ्लक्स’ क्या होता है? आवश्यक सूत्र तथा मात्रक लिखिए।
उत्तर:
चुम्बकीय फ्लक्स (Magnetic Flux) – किसी तल से होकर गुजरने वाले संपूर्ण चुम्बकीय क्षेत्र की माप चुम्बकीय फ्लक्स (Magnetic flux) से की जाती है।
किसी चुम्बकीय क्षेत्र (B) तथा उसके लम्बवत् किसी तल के क्षेत्रफल (A) के गुणनफल को उस क्षेत्र से गुजरने वाला चुम्बकीय फ्लक्स कहते हैं। अतः
चुम्बकीय फ्लक्स (Φ) = चुम्बकीय क्षेत्र (B) x क्षेत्र के लम्बवत् क्षेत्रफल (A)
यदि यह तल चुम्बकीय क्षेत्र B की दिशा से झुका हुआ रखा हो तो चुम्बकीय फ्लक्स की गणना में चुम्बकीय क्षेत्र का वह घटक लेना पड़ता है जो दिए हुए तल के लम्बवत् हो। जैसे यदि तल पर खींचा गया अभिलम्ब क्षेत्र की दिशा से θ कोण बनाये, चित्र (ख), तो इस तल से गुजने वाला चुम्बकीय फ्लक्स
Φ = B.cos θ × A = B.A cos θ
स्पष्ट है कि जब तल चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् होता है तो उसमें होकर अधिकतम चुम्बकीय फ्लक्स गुजरता है जिसका मान Φ = B.A cos 0° = B.A होता है। यदि यह तल चुम्बकीय क्षेत्र के समान्तर होता है तो उसमें होकर गुजरने वाला चुम्बकीय फ्लक्स शून्य होता है।
चुम्बकीय फ्लक्स का SI मात्रक न्यूटन मीटर / ऐम्पियर है, जिसे वेबर (Weber) कहते हैं।
चुम्बकीय फ्लक्स का मात्रक निम्नवत् प्राप्त किया जा सकता है-
Φ = B.A.
अतः Φ का मात्रक B का मात्रक x A का मात्रक
प्रश्न 21.
किसी गतिमान चालक में विद्युत-चुम्बकीय प्रेरण किस प्रकार होता है?
उत्तर:
चित्र में एक आयताकार चालक दिखाया गया है जिसकी भुजाओं का कुछ भाग चुम्बकीय क्षेत्र (B) में स्थित है। यदि चालक को बायीं ओर किसी वेग (v) से चलाया जाय तो धारामापी में विक्षेप होता है जो चालक में विद्युत वाहक बल की उत्पत्ति को व्यक्त करता है।
यदि चालक को दाहिनी ओर चलाया जाय तो धारामापी में विक्षेप विपरीत दिशा में होता है। उपर्युक्त प्रयोग में चालक के आसपास के चुम्बकीय क्षेत्र में कोई परिवर्तन नहीं होता यह विद्युत चुम्बकीय प्रेरण, चुम्बकीय फ्लक्स रेखाओं तथा चालक के बीच सापेक्ष गति होने से उत्पन्न होता है। इस दशा में चुम्बकीय क्षेत्र चाहे समरूप हो या परिवर्तनीय, उसके सापेक्ष गति होने से ही प्रेरण होता है।
इस प्रयोग में यह आवश्यक है कि चालक की गति चुम्बकीय फ्लक्स रेखाओं के लम्बवत् तल में फ्लक्स रेखाओं को काटते हुए हो। उपर्युक्त उदाहरण में विद्युत चुम्बकीय प्रेरण चालक के केवल OR भाग में होता है जो फ्लक्स रेखाओं को काटते हुए गति करता है। चालक के PQ तथा SR भाग में, जो क्षेत्र रेखाओं को काटते हुए गति नहीं करते, विद्युत चुम्बकीय प्रेरण नहीं होता है अतः जब कोई चालक, किसी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के लम्बवत् दिशा में क्षेत्र रेखाओं को काटते हुए गति करता है तो चालक में प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है।
प्रश्न 22.
फ्लेमिंग के दायें हाथ का नियम लिखिए। दायें हाथ के अंगूठे का नियम क्या है?
अथवा
उत्तर:
यदि हम अपने दायें हाथ का अंगूठा, उसके पास वाली अँगुली (Forefinger) तथा बीच वाली अँगुली (Middle finger) को इस प्रकार फैलायें कि तीनों परस्पर लम्बवत् रहें और यदि अँगूठे के पास की अँगुली चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा तथा अंगूठा चालक की गति की दिशा प्रदर्शित करे तो बीच वाली अँगुली प्रेरित धारा की दिशा बतायेगी।
प्रश्न 23.
‘प्रत्यावर्ती धारा’ का क्या अर्थ है? किसी विद्युत सेल द्वारा प्राप्त धारा से प्रत्यावर्ती धारा किस प्रकार भिन्न होती है? आवश्यक समय-धारा ग्राफ बनाकर समझाइए।
उत्तर:
प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current) – प्रत्यावर्ती धारा वह वैद्युत धारा है जिसका परिमाण एवं दिशा आवर्त रूप में बदलती रहती है। विद्युत जनित्र एवं A. C. डायनमो द्वारा प्राप्त धारा प्रत्यावर्ती धारा होती है। प्रत्यावर्ती धारा एवं समय के मध्य खींचा गया ग्राफ एक ज्या वक्र होता है जैसा कि चित्र में प्रदर्शित किया गया है। OABCD विद्युत जनित्र की कुण्डली के एक चक्कर को प्रदर्शित करता है अर्थात् कुण्डली के प्रत्येक चक्कर में धारा की दिशा दो बार (ग्राफ में बिन्दु B तथा FT पर) बदलती है। ऐसा प्रत्येक चक्र में होता है। ग्राफ से स्पष्ट है कि धारा का मान भी समय के साथ बढ़ता-घटता रहती है।
किसी विद्युत सेल से प्राप्त धारा एकदिशीय होती है तथा इसका मान भी नियत रहता है- अर्थात् समय परिवर्तन के साथ बढ़ता घटता नहीं इसका समय धारा ग्राफ चित्र में प्रदर्शित है।
प्रश्न 24.
दिष्ट धारा जनित्र उत्पन्न विद्युत वाहक बल, किसी बैटरी से प्राप्त विद्युत वाहक बल से किस प्रकार भिन्न होता है? आवश्यक समय-धारा ग्राफ बनाकर बताइए।
उत्तर:
बैटरी का विद्युत वाहक बल नियत होता है अर्थात् समय परिवर्तन के साथ बढ़ता घटता नहीं, जबकि दिष्ट धारा जनित्र से प्राप्त विद्युत वाहक बल समय के साथ, शून्य से निश्चित मान E के बीच, एक निश्चित समय में बढ़ता घटता रहता है। जनित्र के आर्मेचर कुंडल के प्रत्येक घूर्णन में यह दो बार शून्य तथा दो बार अधिकतम हो जाता है [चित्र (क) तथा (ख)]
प्रश्न 25.
दिष्ट धारा जनित्र में आर्मेचर में उत्पन्न विद्युत बल तथा बाह्य परिपथ में प्राप्त विद्युत वाहक बल में क्या अन्तर होता है तथा क्यों?
उत्तर:
दिष्ट धारा जनित्र के आर्मेचर में उत्पन्न विद्युत वाहक बल प्रत्यावर्ती होता है अर्थात् इसकी ध्रुवता एक निश्चित आवृत्ति से बदलती रहती है, जबकि इससे बाह्य परिपथ में प्राप्त विद्युत वाहक बल दिष्ट अर्थात् एकदिशीय होता है। इसकी ध्रुवता समय के साथ परिवर्तित नहीं होती। इसका कारण दिष्ट धारा जनित्र में दिशा परिवर्तक (Commutator) का उपयोग है जो आर्मेचर के सिरों का बाह्य परिपथ के सिरों से संपर्क को ठीक उस क्षण पर पलट देता है, जब आर्मेचर के सिरों पर विद्युत वाहक बल की ध्रुवता बदलती है।
प्रश्न 26.
चित्र में एक-दूसरे के निकट स्थित दो कुण्डलियाँ प्रदर्शित हैं। कारण देते हुए बताइए कि धारामापी G में विक्षेप होगा या नहीं-
(i) कुंजी K को दबाते ही,
(ii) कुंजी को देर तक दबाये रखने पर,
(iii) कुंजी को छोड़ने पर।
उत्तर:
(i) कुंजी K दबाने के पहले परिपथ में धारा तथा चुम्बकीय फ्लक्स शून्य है। कुंजी दबाते ही धारा चालू होने के समय कुण्डली A में धारा प्रवाह के कारण चुम्बकीय फ्लक्स उत्पन्न होगा अर्थात् फ्लक्स की वृद्धि 0 से किसी मान तक होगी। इसके कारण कुण्डली B में विद्युत चुम्बकीय प्रेरण होने से धारा प्रवाहित होगी तथा धारामापी में विक्षेप होगा परंतु कुण्डली A में धारा का मान स्थिर हो जाने पर का मान भी स्थिर हो जायगा अर्थात् फ्लक्स – परिवर्तन रुक जाएगा। अतः कुण्डली B में धारा शून्य हो जायगी। इस प्रकार कुंजी K को दबाने पर धारामापी में एक क्षणिक विक्षेप होगा।
(ii) कुंजी K को दबाये रखने पर G में विक्षेप शून्य रहेगा, क्योंकि में धारा नियत रहने के कारण फ्लक्स- परिवर्तन शून्य रहेगा तथा B में प्रेरण नहीं होगा।
(iii) कुंजी छोड़ने पर धारामापी में पुनः क्षणिक विक्षेप विपरीत दिशा में होगा क्योंकि इस क्षण पर A में धारा का मान शून्य होने के दौरान, B में फ्लक्स का मान 6 से 0 तक घटेगा जिससे विद्युत चुम्बकीय प्रेरण से उत्पन्न धारा विपरीत दिशा में एक क्षण के लिए प्रवाहित होगी।
प्रश्न 27.
विद्युत जनित्र में ऊर्जा रूपान्तरण किस प्रकार का होता है? यह रूपान्तरण, विद्युत मोटर में होने वाले ऊर्जा रूपान्तरण से किस प्रकार भिन्न होता है?
उत्तर:
विद्युत जनित्र द्वारा यांत्रिक ऊर्जा (आर्मेचर की घूर्णन गतिज ऊर्जा) का रूपान्तरण विद्युत ऊर्जा में किया जाता है। विद्युत मोटर में इसके ठीक विपरीत, विद्युत ऊर्जा का रूपांतरण यांत्रिक ऊर्जा (आर्मेचर की घूर्णन गतिज ऊर्जा) होता है।
प्रश्न 28.
दिष्ट धारा मोटर तथा दिष्ट धारा जनित्र की रचनाएँ समान होती हैं? क्या एक ही यंत्र का प्रयोग दोनों प्रकार किया जा सकता है? यदि हाँ, तो कैसे?
उत्तर:
हाँ। यदि यंत्र के आर्मेचर में किसी बाहरी विद्युत धारा प्रवाहित की जाय तो आर्मेचर घूमने लगेगा – अर्थात् मोटर का कार्य करेगा। इसके विपरीत यदि आर्मेचर को किसी अन्य उपकरण (जैसे पेट्रोल या डीजल इंजन) की सहायता से घुमाया जाय तो आर्मेचर में विद्युत वाहक बल उत्पन्न होगा, जिससे बाह्य परिपथ में प्रवाहित की जा सकेगी। इस समय यंत्र दिष्ट धारा जनित्र का कार्य करेगा।
प्रश्न 29.
चित्र के अनुसार, एक दण्ड चुम्बक, तार के लूप की ओर गति कर रहा है। दूसरी ओर से प्रेक्षक के अनुसार लूप में धारा वामावर्त होगी या दक्षिणावर्त। कारण स्पष्ट करते हुए बताइए।
उत्तर:
दण्ड चुम्बक का N ध्रुव लूप की ओर गति करता है। इसका विरोध करने हेतु लूप का जो फलक चुम्बक की ओर है वह N ध्रुव बनेगा, जिससे वह चुम्बक प्रतिकर्षित करके दूर हटाए। तदनुसार प्रेक्षक की ओर का लूप का फलक S ध्रुव बनेगा, अतः प्रेक्षक की ओर से देखने पर लूप में प्रेरित धारा दक्षिणावर्त (Clockwise) होगी।
प्रश्न 30.
चित्र में दो कुण्डलियाँ P तथा S प्रदर्शित हैं। उपयुक्त नियम देते हुए बताइए कि कुंजी K को बंद करते तथा खोलते समय कुण्डली S में धारा की दिशा क्या होगी?
उत्तर:
कुंजी को बन्द करते समय P में धारा दक्षिणावर्त है, जिससे कुण्डली के केन्द्र पर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होगा। इस क्षेत्र की उत्पत्ति का विरोध तब होगा जब कुण्डली S द्वारा केन्द्र पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा विपरीत हो, अतः S में धारा की दिशा P में धारा की दिशा के विपरीत अर्थात् वामावर्त होगी।
कुंजी खोलते समय P का चुम्बकीय क्षेत्र घटेगा अतः इसका विरोध करने के लिए S में प्रेरित धारा P की समाप्त होने वाली धारा की ही दिशा में अर्थात दक्षिणावर्त होगी।
प्रश्न 31.
चित्र के अनुसार, एक दण्ड चुम्बक कुण्डली से होकर एक दिशा से दूसरी ओर ले जाने पर कुण्डली में प्रवाहित धारा की दिशा बदल जाती है। इसका कारण समझाइए।
उत्तर:
चुम्बक का कुण्डली की ओर जाते समय कुण्डली से होकर जाने वाला चुम्बकीय फ्लक्स बढ़ता है तथा चुम्बक के दूसरी ओर बाहर जाते समय यही चुम्बकीय फ्लक्स घटता है। अतः कुण्डली में प्रेरित धारा की दिशा पलट जाती है।
प्रश्न 32.
चित्र में x, कागज के तल के लम्बवत् भीतर को प्रवेश करती हुई चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ हैं। यदि कुण्डली को इन क्षेत्र रेखाओं को काटते हुए तीर से प्रदर्शित दिशा में चलाया जाय तो कुण्डली में प्रेरित धारा की दिशा ज्ञात कीजिए, जब कुंजी K (i) खुली हो, (ii) बंद हो। उत्तर का उचित तर्क दीजिए। (iii) कुण्डली में विद्युत चुम्बकीय प्रेरण किस दिशा में हो सकता है?
उत्तर:
(i) और (ii) कुंजी के खुले रहने या बंद रहने पर, किसी भी दशा में, कुण्डली में प्रेरित धारा शून्य ही रहेगी, क्योंकि तीर की दिशा में गति कराने पर कुण्डली से होकर गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स का मान परिवर्तित नहीं होगा [चुम्बकीय क्षेत्र एकसमान है तथा कुण्डली का क्षेत्रफल भी नियत है।
(iii) जब कोई चालक, किसी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के लम्बवत् दिशा में क्षेत्र रेखाओं को काटते हुए गति करता है जो चालक में प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है।
प्रश्न 33.
‘विद्युत प्रेरण’, ‘चुम्बकीय प्रेरण’ तथा ‘विद्युत चुम्बकीय प्रेरण’ में अन्तर बताइए।
उत्तर:
यदि किसी आवेशित वस्तु के निकट किसी चालक पदार्थ की अनावेशित वस्तु को लाया जाता है तो अनावेशित वस्तु के दोनों सिरों पर विपरीत प्रकृति का आवेश उत्पन्न हो जाता है। चालक के आवेशित होने की इस प्रक्रिया को ‘विद्युतप्रेरण’ कहते हैं।
चुम्बकीय क्षेत्र में रखने से किसी पदार्थ के चुम्बकित हो जाने की प्रक्रिया को ‘चुम्बकीय प्रेरण’ कहते हैं। समय के साथ परिवर्तनीय चुम्बकीय क्षेत्र के प्रभाव से विद्युत वाहक बल उत्पन्न होने की प्रक्रिया को ‘विद्युत -चुम्बकीय प्रेरण’ कहते हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
उदाहरण देकर समझाइए कि चुम्बकीय बल किस प्रकार उत्पन्न होता है तथा किन वस्तुओं पर कार्य करता है?
उत्तर:
चुम्बकीय बल (Magnetic Force) –
(i) प्राय: यह देखा जाता है कि स्वतंत्रतापूर्वक लटकी हुई अथवा किसी कीली (Pivot) पर टिकी हुई चुम्बकीय सुई जिसे कम्पास सुई (Compass needle) भी कहते हैं, उत्तर: दक्षिण दिशा में ठहरी रहती है। यदि सुई को उसकी स्थिति से किसी ओर घुमाकर छोड़ दिया जाय तो वह पुनः उत्तर:दक्षिण दिशा में लौट आती है इसका अर्थ यह है कि इस सुई पर कोई बल आघूर्ण (Torque) कार्य करता है, जो सुई को उत्तर: दक्षिण दिशा में बनाये रखने का प्रयास करता है।
(ii) उत्तर-दक्षिण दिशा में ठहरी हुई चुम्बकीय सुई के निकट यदि किसी दण्ड चुम्बक (Bar-magnet) का कोई सिरा लाया जाय तो सुई अपनी उत्तर:दक्षिण दिशा से विचलित हो जाती है तथा कुछ घूमकर किसी अन्य दिशा में स्थिर होती है। इसका अर्थ है कि दण्ड चुम्बक भी सुई पर कोई बल आघूर्ण आरोपित करता है।
(iii) यदि किसी चालक तार में विद्युत धारा प्रवाहित हो रही हो तो चुम्बकीय सुई को तार के निकट लाने पर भी वह अपनी उत्तर:दक्षिण की दिशा से विचलित हो जाता है।
अर्थात् तार में प्रवाहित विद्युत धारा भी चुम्बकीय सुई पर बल आघूर्ण उत्पन्न करती है।
(iv) यह भी देखा जाता है कि उपर्युक्त दशाओं में बल-आघूर्ण केवल चुम्बकीय सुई अथवा किसी अन्य चुम्बकीय सुई अथवा किसी अन्य चुम्बकित वस्तु पर ही लगता है, सामान्य अचुम्बकित वस्तुओं पर नहीं। उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि चुम्बकीय सुई पर लगने वाला बल आघूर्ण किसी विशेष प्रकार के बल के कारण उत्पन्न होता है, जो चुम्बकित वस्तुओं तथा विद्युत धारा से सम्बन्धित है। इस विशेष बल को जो किसी चुम्बकित वस्तु में बल-आघूर्ण उत्पन्न करता है, चुम्बकीय बल (Mag- netic Force) कहते हैं।
उपर्युक्त उदाहरणों से यह भी ज्ञात होता है कि-
- चुम्बकीय बल किसी चुम्बकित वस्तु (जैसे- दण्ड चुम्बक, चुम्बकीय सुई, पृथ्वी) अथवा किसी विद्युत धारा के द्वारा आरोपित किया जाता है।
- चुम्बकीय बल का अनुभव किसी चुम्बकित वस्तु द्वारा अथवा किसी धारावाही चालक द्वारा ही होता है।
प्रश्न 2.
(क) ‘चुम्बकीय क्षेत्र’ से क्या तात्पर्य है? यह किस प्रकार उत्पन्न होता है?
(ख) ‘चुम्बकीय क्षेत्र रेखा’ से क्या तात्पर्य है? इनके लक्षण लिखिए तथा बताइए कि किसी स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं से चुम्बकीय क्षेत्र के बारे में क्या जानकारी प्राप्त होती है?
उत्तर:
(क) चुम्बकीय क्षेत्र (Magnetic Field) – किसी चुम्बकित वस्तु अथवा किसी धारावाही चालक के आस-पास का वह क्षेत्र, जिसमें चुम्बकीय बल का अनुभव किया जा सके, चुम्बकीय क्षेत्र (Magnetic Field) कहलाता है।
अर्थात् यदि किसी स्थान पर स्थित चुम्बकित वस्तु अथवा धारावाही चालक पर चुम्बकीय बल का अनुभव हो तो कहा जाता है कि उस स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र है। प्रयोगों से ज्ञात होता है कि-
- पृथ्वी पर हर स्थान पर पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र होता है
- किसी चुम्बकीय वस्तु के आसपास उस वस्तु का चुम्बकीय क्षेत्र होता है, तथा
- किसी धारावाही चालक के आसपास विद्युत धारा का चुम्बकीय क्षेत्र होता है।
[चूँकि विद्युत धारा का अर्थ विद्युत आवेश की गति है, हम कहते हैं कि किसी गतिमान विद्युत आवेश के आस-पास उसका चुम्बकीय क्षेत्र होता है।]
चुम्बकीय क्षेत्र एक सदिश राशि है-अर्थात् इसकी एक दिशा होती है तथा इसका परिमाण मापा जा सकता है। (ख) चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा (Direction of Magnetic Field) – किसी स्थान पर स्थिर अवस्था में रुकी हुई चुम्बकीय सुई के उत्तरी (N) एवं दक्षिणी (S) ध्रुवों को मिलाने वाली ऋजुरेखा, उस स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को व्यक्त करती है। चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा चुम्बकीय सुई के दक्षिणी ध्रुव, (S) से उत्तरी ध्रुव (N) की ओर मानी जाती है। चुम्बकीय क्षेत्र को प्रतीक B से व्यक्त किया जाता है।
उदाहरणतः पृथ्वी के सभी स्थानों पर चुम्बकीय सुई दक्षिण-उत्तर दिशा में स्थिर होती है अतः पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा दक्षिण से उत्तर की ओर होती है।
चुम्बकीय सुई चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता (Intensity of Mag- netic Field) – चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता ( अर्थात् परिमाण) की माप, चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित धारावाही चालक पर लगने वाले चुम्बकीय बल से की जाती है।
यदि किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित हो तथा चालक तीव्रता B के चुम्बकीय क्षेत्र में, क्षेत्र की दिशा के लम्बवत् रखा हो तो चालक की लम्बाई पर लगने वाला चुम्बकीय बल (Fm) निम्नलिखित सूत्र से व्यक्त होता है:
Fm = i.B.l … (i)
यदि i = 1 ऐम्पियर
तथा i = 1 मीटर हो तो
Fm = 1 x B x 1 = B
अतः किसी स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता उस बल के परिमाण से व्यक्त होती है जो उस स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र में लम्बवत स्थित एकांक लम्बाई के चालक में एकांक विद्युत धारा प्रवाहित करने पर कार्य करता है।
चुम्बकीय क्षेत्र का मात्रक (Unit of Magnetic Field)-समीकरण (1) से,
चुम्बकीय क्षेत्र B का मात्रक वेबर / मीटर² (weber /metr²) भी लिखा जाता है अर्थात् 1 वेबर / मीटर² = 1 न्यूटन / ऐम्पियर मीटर।
प्रश्न 3.
प्रयोग द्वारा कैसे ज्ञात कीजिएगा कि किसी स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र है या नहीं तथा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा कैसे ज्ञात कीजिएगा?
उत्तर:
चुम्बकीय क्षेत्र की उपस्थिति ज्ञात करने के लिए उस स्थान पर एक हल्की एवं छोटी कम्पास सुई ( Com- pass-needle) रखी जाती है। यदि सुई अपनी सामान्य उत्तर:दक्षिण दिशा से विक्षेपित होकर किसी निश्चित दिशा में ठहरे तो उस स्थान पर (पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के यदि सुई उत्तर दिशा में ही ठहरती हैं तो उस स्थान पर अतिरिक्त) कोई चुम्बकीय क्षेत्र होगा।
पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की उपस्थिति को व्यक्त करता है। यदि उस स्थान पर रखी गयी कम्पास सुई किसी भी दिशा में घुमाकर ठहरायी जा सके अर्थात् सुई के ठहरने की कोई निश्चित दिशा न हो तो उस स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र पूर्णत: शून्य होगा।
चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा – किसी स्थान पर रखी गयी यथासंभव (कम्पास ) सुई के ध्रुवों को मिलाने वाली रेखा, चुम्बकीय क्षेत्र के अनुदिश होती है तथा सुई के दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की ओर माना जाता है। यह व्यावहारिक नियम तभी पूर्णत: सही है जब सुई जितना स्थान घेरती है उसमें चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता एकसमान (Uniform ) हो।
प्रश्न 4.
बायो-सेव का नियम लिखिए तथा सम्बन्धित सूत्र प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
बायो-सेवर्ट का नियम (Biot-Savart’s (Law) बायो एवं सेवर्ट (Biot and Savart) ने प्रयोगों द्वारा धारावाही चालक से उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का सूत्र प्राप्त किया। इस सूत्र के अनुसार धारावाही चालक के किसी छोटे खण्ड के द्वारा किसी बिन्दु पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता-
- चालक खण्ड की लम्बाई के अनुक्रमानुपाती
- चालक में बहने वाली धारा के अनुक्रमानुपाती
- चालक खण्ड से बिन्दु तक की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती एवं
- धारा की दिशा एवं चालक खण्ड को बिन्दु से मिलाने वाली रेखा के बीच में बनने वाले कोण ज्या (sine) के अनुक्रमानुपाती होती है।
अर्थात् यदि तार की लम्बाई ∆l, तार में बहने वाली धारा i, तार एवं बिन्दु P के बीच दूरी r तथा इस दूरी की धारा की दिशा में θ ( धीटा) का कोण बनाती हो और यदि बिन्दु P पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता B हो, तो बायो एवं सेवर्ट के नियमानुसार
μ0 एक नियतांक है, जिसे निर्वात (अथवा वायु) की चुम्बकशीलता अथवा चुम्बकीय पारगम्यता (Magnetic permeability) कहते हैं। इसका मान 4π x 10-7 न्यूटन / ऐम्पियर² होता है।
तद्नुसार \(\frac{\mu_0}{4 \pi}\)10-7 न्यूटन /ऐम्पियर²
प्रश्न 5.
चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित धारावाही चालक पर बल का सूत्र निगमित कीजिए तथा चुम्बकीय क्षेत्र का मात्रक ज्ञात कीजिए।
अथवा
समान चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित एक धारावाही चालक पर लगने वाले बल के लिए सूत्र लिखिए। इस बल की दिशा ज्ञात करने के लिए किस नियम का उपयोग करना होगा? समझाइए।
उत्तर:
चुम्बकीय क्षेत्र में धारावाही चालक पर बल धारावाही चालक के कारण चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है अत: जब एक धारावाही चालक को एक बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो धारावाही चालक के चुम्बकीय क्षेत्र और बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र के बीच पारस्परिक क्रिया होती है। इसके परिणामस्वरूप चालक पर एक बल कार्य करता है। यह बल बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र के परिमाण, दिशा, चालक में प्रवाहित धारा और चालक की लम्बाई पर निर्भर करता है।
यदि एक बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र B में स्थित l लम्बाई के एक चालक में, चुम्बकीय क्षेत्र B की दिशा से θ कोण पर विद्युत धारा i प्रवाहित हो रही हो तो उस पर कार्य करने वाला बल
F ∝ B
F ∝ i
F ∝ l
F ∝ sin θ
उपर्युक्त सम्बन्धों को मिलाकर लिखने पर
या,
F ∝ B.i.l. sin θ
F = K x B.i.l. sin θ
जहाँ K एक नियतांक है। चुम्बकीय क्षेत्र B का मात्रक MKS प्रणाली में इस प्रकार चुना गया है कि K का मान 1 हो।
अतः F = B.i.l. sin θ
इस समीकरण के अनुसार यदि धारा चुम्बकीय क्षेत्र के समान्तर या चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में हो तो चालक पर लगने वाला बल (F = Bil sin 0° = 0) शून्य होगा। चालक पर लगने वाले बल की दिशा फ्लेमिंग के वामहस्त नियम (Fleming’s Left Hand Rule) द्वारा दी जाती है। उपर्युक्त समीकरण से B के मात्रक की परिभाषा निम्नवत् दी जाती है-
B = \(\frac{\mathrm{F}}{i . l \sin \theta}\)
यदि l = 1 मीटर, i = 1 एम्पियर θ = 90° तथा F = 1 न्यूटन हो, तो B = 1 मात्रक होगा।
कभी-कभी B का मात्रक वेबर / मीटर² भी लिखा जाता है।
अतः 1 वेबर / मीटर² = 1 न्यूटन / ऐम्पियर मीटर।
प्रश्न 6.
विद्युत चुम्बकीय प्रेरण’ से क्या तात्पर्य है? प्रायोगिक उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विद्युत चुम्बकीय प्रेरण (Electro-Magnetic Induction) ‘यदि कोई चालक किसी चुम्बकीय क्षेत्र में फ्लक्स – रेखाओं को काटता हुए गति करे अथवा किसी चालक लूप या कुण्डली से होकर गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन हो तो चालक या लूप में एक विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है। इस घटना की विद्युत चुम्बकीय प्रेरण कहते हैं।’
इसके कुछ व्यावहारिक उदाहरण निम्नवत् हैं-
1. चित्र में एक कुण्डली अथवा परिनालिका प्रदर्शित है जो एक धारामापी से सम्बद्ध है। यदि किसी छड़-चुम्बक के एक सिरे को परिनालिका की ओर लाया जाता है तो धारामापी में विक्षेप होता है। यदि चुम्बक को दूर ले जाया जाता है तो धारामापी में विक्षेप पहले से विपरीत दिशा में होता है।
छड़ चुम्बक को कुण्डली के निकट लाने से कुण्डली से होकर जाने वाला चुम्बकीय फ्लक्स बढ़ता है तथा दूर ले जाने से घटता है (चित्र)। अतः कुण्डली में विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है, जिससे बन्द परिपथ में धारा बहती है और धारामापी में विक्षेप होता है प्रयोग से स्पष्ट होता है कि कुण्डली में फ्लक्स बढ़ते समय विद्युत वाहक बल एक ओर से तथा फ्लक्स घटते समय दूसरी ओर से लागू होता है।
2. यदि चुम्बक को स्थिर रखकर कुण्डली को चुम्बक के सापेक्ष चलाया जाय तो भी पहले प्रयोग की भाँति ही विद्युत वाहक बल कुण्डली में उत्पन्न होता है।
3. चित्र में एक-दूसरे के निकट स्थित दो कुण्डली दिखाये गये हैं। एक कुण्डली M में एक सेल तथा कुंजी द्वारा इच्छानुसार धारा प्रवाहित की अथवा रोकी जा सकती है। दूसरे कुण्डली N से एक धारामापी सम्बद्ध है।
जब कुण्डली M में, कुंजी को बन्द करके धारा प्रारम्भ की जाती है तो कुंजी बन्द करते समय दूसरे कुण्डली में लगे धारामापी में क्षणिक विक्षेप एक ओर को होता है। इसी प्रकार जब कुण्डली M में लगी कुंजी को खोल कर धारा का बहना रोका जाता है तो धारामापी में दूसरी ओर को क्षणिक विक्षेप होता है।
यह विक्षेप धारा के प्रारम्भ होते तथा समाप्त होते समय ही होते हैं अचर धारा बहते रहने पर धारामापी में विक्षेप नहीं होता। इसका अर्थ यह है कि पहले कुण्डली (M) में धारा के प्रारम्भ अथवा समाप्ति के समय दूसरे कुण्डली में विद्युत वाहक बल का क्षणिक प्रेरण होता है।
पहले कुण्डली में धारा का प्रवाह प्रारम्भ करने पर उसका चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। इस क्षेत्र के कारण दूसरे कुण्डली से होकर चुम्बकीय फ्लक्स प्रवाहित होता है। चूँकि धाराप्रवाह के पूर्व यह फ्लक्स नहीं था, धारा प्रवाहित करने से द्वितीय कुण्डली से होकर जाने वाले फ्लक्स में वृद्धि धारामापी में विक्षेप हुआ। इसी प्रकार पहले कुण्डली में धारा हुई, जिससे उसमें विद्युत वाहक बल का प्रेरण होने से समाप्त होने से द्वितीय कुण्डली से होकर जाने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में कमी होती है, जिससे विपरीत दिशा में विद्युत वाहक बल प्रेरित होता है।
यदि प्रथम कुण्डली के परिपथ में धारा नियंत्रक (Rheostat) लगा कर धारा का मान घटाया या बढ़ाया जाय तो धारा घटाते समय द्वितीय कुण्डली में एक ओर से तथा धारा बढ़ाते समय दूसरी ओर से विद्युत वाहक बल प्रेरित होता है। इसका कारण भी कुण्डली से होकर जाने वाले फ्लक्स का घटना या बढ़ना है।
इस प्रकार उपर्युक्त प्रयोगों से यह तथ्य प्राप्त होता है कि जब किसी कुण्डली से होकर जाने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है तो कुण्डली में विद्युत वाहक बल प्रेरित होता है। यदि कुण्डली का विद्युत परिपथ बन्द हो तो उसमें प्रेरित धारा (Induced current) प्रवाहित होती है यदि परिपथ खुला हो तो केवल विद्युत वाहक बल प्रेरित होता है, धारा प्रवाहित नहीं होती।
प्रश्न 7.
डायनमो क्या है? प्रत्यावर्ती धारा डायनमो की संरचना एवं कार्यविधि का वर्णन कीजिए।
अथवा
प्रत्यावर्ती धारा डायनमो का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाकर इसकी कार्यविधि समझाइए।
अथवा
प्रत्यावर्ती धारा डायनमो के प्रमुख भागों का विवरण देते हुए इसकी क्रियाविधि स्पष्ट कीजिए तथा समय- विद्युत वाहक बल ग्राफ बनाइए।
अथवा
विद्युत चुम्बकीय प्रेरण परिघटना के सिद्धान्त पर कार्य करने वाले प्रत्यावर्ती धारा डायनमों के कार्य विधि का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
डायनमो (Dynamo ) – आधुनिक युग में विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने का प्रमुख यंत्र डायनमो है। यह विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर कार्य करता है। डायनमो द्वारा यांत्रिक ऊर्जा का रूपान्तरण विद्युत ऊर्जा (Electrical energy) में किया जाता है।
डायनमो दो प्रकार के होते हैं-
- प्रत्यावर्ती धारा डायनमो (Alternating Current Dynamo)
- दिष्ट धारा डायनमो (Direct Current Dynamo)
(1) प्रत्यावर्ती धारा डायनमो (Alternating Current Dynamo ) – संरचना – प्रत्यावर्ती धारा डायनमो के तीन प्रमुख भाग होते हैं-
(i) क्षेत्र चुम्बक (Field magnets) – इसमें N.S. ध्रुव खण्डों वाला एक शक्तिशाली चुम्बक होता है। जिससे N, S के बीच में तीव्र चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न किया जा सके। इस चुम्बकीय क्षेत्र में कुण्डली (Coil) को घुमाया जाता है।
(ii) कुण्डली (Coil) – यह ताँबे के पृथक्कृत तारों की एक कुण्डली abcd होती है जिसे आर्मेचर (Armature) कहते हैं। कुण्डली को मुलायम लोहे के क्रोड पर लपेटा जाता है। इसे ध्रुवों के बीच क्षैतिज अक्ष के परितः भाप के टरबाइन या डीजल या पेट्रोल इंजन द्वारा घुमाया जाता है।
(iii) सप वलय तथा बुश (Slip Rings and Brushes) ताँबे के बने दो छल्ले या सर्पों वलय (slip rings) R1 तथा R2 होते हैं जिनका सम्बन्ध एक ओर तो कुण्डली abcd से आये ताँबे के तारों से होता है तथा दूसरी ओर ग्रेफाइट के दो खुश B1 तथा B2 से होता है। इन बुश का सम्बन्ध बाह्य परिपथ जिसमें धारा भेजनी है, से कर देते हैं। चित्र में बाह्य परिपथ को एक विद्युत बल्ब द्वारा दिखाया गया है।
सिद्धान्त (Principle)- जब किसी बन्द कुण्डली को चुम्बकीय क्षेत्र में घुमाया जाता है तो उसमें से गुजरने वाली फ्लक्स कारण रेखाओं में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है, जिसके कुण्डली में एक प्रेरित विद्युत वाहक बल और बाह्य परिपथ व कुण्डली में प्रेरित विद्युत धारा बहती है। कुण्डली को घुमाने में व्यय यांत्रिक ऊर्जा विद्युत में परिवर्तित हो जाती हैं।
कार्यविधि – (i) चित्र में दिखाए अनुसार कुण्डली चुम्बकीय क्षेत्र के समान्तर है अर्थात् इस समय उत्पन्न प्रेरित विद्युत वाहक बल तथा धारा शून्य होगी।
(ii) जैसे-जैसे कुण्डली दक्षिणावर्त दिशा में घूमती है, उनमें से होकर गुजरने वाली चुम्बकीय बल रेखाओं या फ्लक्स का मान बढ़ता जाता है तथा प्रेरित विद्युत वाहक बल तथा प्रेरित धारा उत्पन्न होती है, जिसकी दिशा फ्लेमिंग के दायें हाथ वाले नियम से जानी जा सकती है। बाह्य परिपथ में इनकी दिशा B1 से B2 की ओर होगी। जब कुण्डली उसी दिशा में घूमते हुए ऊर्ध्वाधर (भुजा AB ऊपर तथा CD नीचे) हो जाती है तो प्रेरित विद्युत वाहक बल तथा धारा अधिकतम होती है। कुण्डली इस बीच 0° से 90° घूम जाती है।
(iii) कुण्डली के और अधिक घूमने पर कुण्डली से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स का मान कम होता जाता है पर तथा कुण्डली के क्षैतिज होने पर (भुजा CD के स्थान AB तथा AB के स्थान पर CD) प्रेरित विद्युत वाहक बल बल तथा विद्युत धारा धीरे-धीरे कम होकर शून्य हो जाती है। कुण्डली इस बीच 90° से 180° के बीच घूम जाती है।
(iv) कुण्डली को और घुमाने पर उसमें से गुजरने चुम्बकीय फ्लक्स का मान फिर से बढ़ना शुरू होता है, परन्तु इस समय यदि धारा की दिशा फ्लेमिंग के दायें हाथ से मालूम की जाय तो वह दिशा (ii) की तुलना में विपरीत दिशा में होगी तथा बाह्य परिपथ में B2 से B की ओर प्रवाहित होगी। कुण्डली के ऊर्ध्वाधर (भुजा CD ऊपर तथा AB नीचे) होने पर प्रेरित विद्युत वाहक बल बल तथा विद्युत धारा अधिकतम होगी। इस बीच कुण्डली 180° से 270° के बीच घूम जाती है।
(v) यदि कुण्डली को और घुमाया जाय, जिससे कि वह दशा (i) की स्थिति में हो तो प्रेरित विद्युत वाहक बल तथा प्रेरित विद्युत धारा का शून्य होगा।
यदि कुण्डली में प्रेरित विद्युत वाहक बल और कुण्डली के घूर्णीय कोण में एक ग्राफ मान कुण्डली के क्षैतिज होने पर खींचा जाय तो वह (चित्र) के अनुसार होगा इस ग्राफ को देखने से ज्ञात होता है कि-
(i) कुण्डली के एक पूरे चक्कर (0° से 360° तक) के एक अर्द्ध-चक्र (0° से 180° तक) में वि. वा. बल का मानधनात्मक तथा दूसरे अर्द्ध-चक्र (180° से 360° तक) में ऋणात्मक होता है। अतः कुण्डली से जुड़े बाह्य परिपथ में प्रवाहित धारा की दिशा क्रमागत रूप से आधे चक्कर में एक और तथा अगले आधे चक्कर में दूसरी (विपरीत) ओर को रहती है। धारा की दिशा के परिवर्तित होते रहने के कारण ऐसी धारा को प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current or A.C.) कहते हैं।
(ii) प्रत्येक चक्र में वि. वा. बल तथा धारा का मान दो बार शून्य (0° तथा 180° पर) तथा दो बार महत्तम मान (+E तथा E) पर होता है।
कुण्डली के लगातार घूमते रहने से क्रमागत चक्करों में विद्युत वाहक बल एवं धारा के यह परिवर्तन एक निश्चित आवर्तकाल (कुण्डली के एक चक्कर का समय) अथवा एक निश्चित आवृत्ति (Frequency) (कुण्डली के चक्करों की संख्या प्रति सेकण्ड ) से दोहरायी जाती है।
प्रश्न 8.
प्रत्यावर्ती धारा (A.C.) डायनमो तथा दिष्ट धारा (D.C) डायनमो की रचना में मुख्य अन्तर क्या होता है रचना के इस अन्तर का डायनमो से प्राप्त विद्युत वाहक बल पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
प्रत्यावर्ती धारा डायनमो में आर्मेचर से बाह्य परिपथ का संपर्क करने के लिए दो सर्पों वलयों (Slip-Rings) का प्रयोग किया जाता है जिससे परिपथ सिरों का सम्पर्क आर्मेचर कुण्डली के सिरों से स्थायी होता है- अर्थात् आर्मेचर कुण्डली के एक पूर्ण घूर्णन में सिरों के संपर्क परस्पर बदलते नहीं। इससे परिपथ में धारा की दिशा परिवर्ती होती अर्थात् डायनमो का विद्युत वाहक बल प्रत्यावर्ती होता है।
दिष्ट-धारा डायनमो में दो सर्पी वलयों के स्थान पर के लिए एक ही वलय को दो – परिपथ से संपर्क के अर्द्ध-वलयों में विभक्त करके प्रत्येक अर्द्ध-वलय का संपर्क आर्मेचर – कुण्डली के एक सिरे से होता है। इस व्यवस्था से आर्मेचर कुण्डली के के सिरों एवं एवं बाह्य परिपथ सिरों का सम्पर्क प्रत्येक घूर्णन में दो बार परस्पर बदल जाता है। इसके प्रयोग से आर्मेचर में धारा प्रत्यावर्ती होते हुए भी बाहय परिपथ में धारा एक ही दिशा ही दिशा में प्रवाहित होती अर्थात् डायनमो दिष्ट विद्युत वाहक बल होती है, -वाहक बल प्राप्त होता है।
प्रश्न 9.
दिष्ट धारा जनित्र के सिद्धान्त, संरचना एवं क्रियाविधि का का आवश्यक चित्र सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दिष्ट धारा जनित्र (Direct Current Generator) – इसकी रचना प्रत्यावर्ती धारा डायनमो के समान ही होती है। अन्तर केवल इतना है कि इसमें सप वलयों (Slip-rings) के स्थान पर विभक्त वलयों (Split- rings) का उपयोग होता है।
संरचना (Structure) – इसके मुख्य भाग निम्नवत् हैं-
(1) क्षेत्र चुम्बक (Field magnets ) – चित्र में N तथा S ध्रुव खंडों वाला एक शक्तिशाली चुम्बक है। इसका कार्य शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करना है, जिसमें कुण्डली घूमती है।
(2) आर्मेचर (Armature) – यह एक कच्चे लोहे के बेलन पर पृथक्कृत ताँबे के तार को बहुत से चक्करों में लपेटकर बनायी जाती है। इसे चुम्बक NS के ध्रुवों के बीच बाह्य शक्ति, जैसे पेट्रोल
इंजन या जल शक्ति द्वारा तेजी से घुमाया जाता है।
(3) विभक्त वलय (Split-rings) – विभक्त वलय पीतल के खोखले बेलन को उसकी लम्बाई के अनुदिश काटकर बनाये जाते हैं। कुण्डली का एक सिरा एक विभक्त वलय R1 तथा दुसरा सिरा दूसरे विभक्त वलय R2 से जोड़ दिया जाता है।
(4) ख़ुश (Brushes) – ग्रेफाइट (कार्बन) के दो ब्रुश B1 व B2 विभक्त वलय R1 और R2 को स्पर्श किये रहते हैं और बाह्य परिपथ में धारा प्रवाहित करते हैं। ये दोनों ब्रुश बाह्य परिपथ के समान सिरों से सदैव जुड़े रहते हैं, परन्तु जैसे-जैसे आर्मेचर घूमता है (B1B2) उनको बारी-बारी से स्पर्श करते हैं और एक अर्द्ध-चक्र (Half-cycle) तक उसके सम्पर्क में रहते हैं तत्पश्चात् ब्रशों को आपस में बदल देते हैं।
सिद्धान्त (Principle) – जब आर्मेचर कुण्डली को क्षेत्र चुम्बक द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र में घुमाया जाता है तो कुण्डली से सहबद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होने के कारण कुण्डली में विद्युत चुम्बकीय प्रेरण से विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है, जिससे कुण्डली तथा बाह्य परिपथ में धारा प्रवाहित होती है। कुण्डली में उत्पन्न विद्युत वाहक बलप्रत्यावर्ती होता है। जिससे कुण्डली में तो धारा प्रत्यावर्ती होती है। परन्तु विभक्त वलय दिशा परिवर्तन द्वारा, बाह्य परिपथ में दिष्ट धारा प्राप्त की जाती है।
कार्यविधि – चित्र में ABCD एक कुण्डली है जो दक्षिणावर्त दिशा में घुमायी जाती है तो कुण्डली में विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के कारण एक धारा प्रेरित की जाती है। धारा की दिशा फ्लेमिंग के दाहिने हाथ के नियम से ज्ञात की जाती है।
कुण्डली के आधा चक्कर पूरा करने तक धारा की दिशा वही है। अतः पहले आधे चक्कर में धारा R2 से R1 की दिशा में बहती है। अगले आधे चक्कर में धारा की दिशा कुण्डली में बदल जाती है, परन्तु पहले ही ब्रुशों की स्थिति को इस प्रकार समायोजित किया जाता है कि जिस क्षण कुण्डली में धारा की दिशा बदलती है ठीक उसी क्षण ब्रुश का सम्बन्ध एक भाग से चक्कर दूसरे भाग से हो जाता है। अतः बाह्य परिपथ में धारा R2 से R1) की ओर ही बहती है, क्योंकि विभक्त वलय B1B2 ब्रुशों के सापेक्षा अपना स्थान बदल देते हैं। इस प्रकार बाह्य परिपथ में दिष्ट धारा प्राप्त होती है।
इस प्रकार के डायनमो से प्राप्त विद्युत वाहक बल तथा प्रेरित धारा समान दिशा की अवश्य होती है, परन्तु उसका मान विभिन्न घूर्णन कोणों पर एमसमान नहीं होता है या हम यह भी कह सकते हैं कि धारा या विद्युत वाहक बल का मान समय के साथ बदलता रहता है स्थिर नहीं रहता।
इस दोष को दूर करने के लिए तलों में विभिन्न कुण्डलियाँ बनाते हैं तथा उनसे प्राप्त विभिन्न विद्युत वाहक बल अथवा धारा का मान समय के साथ लगभग स्थिर रहता है।
प्रश्न 10.
प्रत्यावर्ती धारा जनित्र की रचना का सचित्र वर्णन करते हुए इसकी कार्यविधि समझाइए।
अथवा
प्रत्यावर्ती धारा जनित्र किस सिद्धान्त पर कार्य करता है? इसकी रचना एवं कार्यविधि का सचित्र वर्णन करो।
अथवा
प्रत्यावर्ती धारा जनित्र का कार्यकारी सिद्धान्त संरचना व उसकी कार्यविधि का सचित्र वर्णन कीजिए।
अथवा
प्रत्यावर्ती धारा विद्युत जनित्र की संरचना एवं कार्यविधि का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रचना- इसके मुख्य भाग निम्नवत् हैं-
1. क्षेत्र चुम्बक इसमें N और S ध्रुव खण्डों वाला एक शक्तिशाली चुम्बक होता है। इसका कार्य शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करना है, जिससे कुण्डली घूमती है।
2. आर्मेचर – यह एक कच्चे लोहे के बेलन पर पृथक्कृत ताँबे के तार को बहुत से चक्करों में लपेटकर बनायी जाती है। इसके चुम्बक NS के ध्रुवों के बीच बाह्य शक्ति जैसे पेट्रोल इंजन या जल शक्ति द्वारा तेजी से घुमाया जाता है।
3. सप वलय-ये ताँबे के बने दो छल्ले या सर्पी वलय होते हैं, जिनका सम्बन्ध एक ओर तो कुण्डली से आये ताँबे के तारों से होता है तथा दूसरी ओर ग्रेफाइट के दो ब्रुश से होता है।
4. खुश (Brushes) – ग्रेफाइट (कार्बन) के दो ब्रुश वलय सर्पों को स्पर्श किये रहते हैं और बाह्य परिपथ में धारा प्रवाहित करते हैं। ये दोनों ब्रुश बाह्य परिपथ के समान सिरों से सदैव जुड़े रहते हैं।
नोट – इसकी कार्यविधि और चित्र के लिए छात्र दीर्घ उत्तीय प्रश्न सं. 7 को देखें।
बहुविकल्पीय प्रश्न
निर्देश: प्रत्येक प्रश्न में दिये गये वैकल्पिक उत्तरों में से सही विकल्प चुनिए-
1. चुम्बकीय बल क्षेत्र एक-
(a) सदिश राशि है
(b) अदिश राशि है
(c) अदिश भी है और सदिश भी
(d) न अदिश है और न ही सदिश
उत्तर:
(a) सदिश राशि है
2. दो चुम्बकीय क्षेत्र रेखायें आपस में काट सकती हैं-
(a) हाँ
(b) नहीं
(c) काट भी सकती हैं और नहीं भी
(d) कभी-कभी काट भी सकती हैं
उत्तर:
(b) नहीं
3. चुम्बकीय क्षेत्र में रखे धारावाही चालक पर अधिकतम बल कार्य करेगा यदि-
(a) चालक पतला हो
(b) चालक मोटा हो
(c) चालक चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत हो
(d) चालक चुम्बकीय क्षेत्र के समान्तर हो
उत्तर:
(c) चालक चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत हो
4. कौन सा चुम्बकीय क्षेत्र का मात्रक नहीं है?
(a) वेबर / मीटर²
(b) टेस्ला
(c) गॉस
(d) न्यूटन / ऐम्पियर²
उत्तर:
(d) न्यूटन / ऐम्पियर²
5. किसी धारावाही परिनालिका को एक ओर से देखने पर यदि उसमें धारा की दिशा वामावर्त हो तो वह सिरा होगा-
(a) दक्षिणी ध्रुव
(b) उत्तरी ध्रुव
(c) उत्तरी या दक्षिणी ध्रुव कोई भी हो सकता है
(d) कोई भी ध्रुव नहीं बन सकता
उत्तर:
(b) उत्तरी ध्रुव
6. चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है-
(a) स्थिर विद्युत आवेश से
(b) केवल विद्युत धारा से
(c) केवल दण्ड चुम्बक से
(d) दण्ड चुम्बक तथा विद्युत धारा दोनों से
उत्तर:
(d) दण्ड चुम्बक तथा विद्युत धारा दोनों से
7. L मीटर लम्बाई के चालक में पूरब से पश्चिम की ओर क्षैतिज तल में I ऐम्पियर धारा बह रही है और यह चालक B न्यूटन (मीटर x एम्पियर) के चुम्बकीय क्षेत्र में रखा है। चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा ऊर्ध्वाधरतः ऊपर की ओर है। चालक पर लगने वाला बल होगा-
(a) ILB न्यूटन दक्षिण से उत्तर की ओर
(b) IBL न्यूटन उत्तर से दक्षिण की ओर
(c) \(\frac { 1 }{ BL }\) न्यूटन क्षैतिज तल में
(d) \(\frac { 1 }{ BL }\) न्यूटन दक्षिण से उत्तर की ओर
उत्तर:
(b) IBL न्यूटन उत्तर से दक्षिण की ओर
8. विद्युत मोटर में रूपान्तरण होता है-
(a) रासायनिक ऊर्जा का विद्युत ऊर्जा में
(b) विद्युत ऊर्जा का यान्त्रिक ऊर्जा में
(c) विद्युत ऊर्जा का प्रकाश ऊर्जा में
(d) विद्युत ऊर्जा का रासायनिक ऊर्जा में
उत्तर:
(b) विद्युत ऊर्जा का यान्त्रिक ऊर्जा में
9. धारावाही परिनालिका के कारण चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता निर्भर करती है-
(a) क्रोड के पदार्थ की प्रकृति
(b) विद्युत धारा का परिमाण
(c) कुण्डली में फेरों की संख्या पर
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी
10. चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक है-
(a) टेस्ला
(b) ओम
(c) एम्पियर
(d) वोल्ट ऐम्पियर
उत्तर:
(a) टेस्ला
11. चुम्बकीय क्षेत्र का मात्रक है-
(a) न्यूटन / ऐम्पियर मीटर
(b) न्यूटन – ऐम्पियर मीटर
(c) न्यूटन²/ ऐम्पियर मीटर
(d) न्यूटन / ऐम्पियर मीटर²
उत्तर:
(a) न्यूटन / ऐम्पियर मीटर
12. एक इलेक्ट्रॉन वेग से एक समान चुम्बकीय क्षेत्र लम्बवत् गति कर रहा है। इलेक्ट्रॉन पर लगने वाला बल होगा-
(a) ev/B
(b) evB
(c) eBo
(d) uB/e
उत्तर:
(b) evB
13. चुम्बकीय क्षेत्र में गतिमान आवेशित कण पर लगने वाला चुम्बकीय बल की दिशा ज्ञात करने के नियम हैं-
(a) ओम का नियम
(b) दायें हाथ के अंगूठे का नियम
(c) फ्लेमिंग के बायें हाथ का नियम पेंच का नियम
(d) दक्षिणावर्त
उत्तर:
(c) फ्लेमिंग के बायें हाथ का नियम पेंच का नियम
14. एक गतिमान आवेश उत्पन्न करता है-
(a) केवल चुम्बकीय क्षेत्र
(b) केवल विद्युत क्षेत्र
(c) चुम्बकीय व विद्युत क्षेत्र दोनों
(d) उपर्युक्त से कोई नहीं
उत्तर:
(c) चुम्बकीय व विद्युत क्षेत्र दोनों
15. किसी धारावाही चालक में बहने वाली धारा i और लम्बाई l को लम्बवत् B तीव्रता वाले चुम्बकीय क्षेत्र में रखा गया है। उस पर लगने वाला बल है-
(a) \(\frac { i }{ Bl }\)
(b) \(\frac { B }{ il }\)
(c) iBl
(d) \(\frac { l }{ Bi }\)
उत्तर:
(c) iBl
16. 1 टेस्ला बराबर होता है-
(a) 1 वेबर / मी²
(b) 1 गॉस
(c) 10-4 वेबर / मी²
(d) 10-4 गॉस
उत्तर:
(a) 1 वेबर / मी²
17. अनन्त लम्बाई के एक ऋजुरेखीय धारावाही चालक के निकट चुम्बकीय क्षेत्र का सूत्र है-
(a) \(\frac{\mu_0}{4 \pi}\left(\frac{i}{r}\right)\)
(b) \(\frac{\mu_0}{2 \pi}\left(\frac{i}{r}\right)\)
(c) \(\frac{\mu_0}{4 \pi}\left(\frac{i}{r^2}\right)\)
(d) \(\frac{\mu_0}{2 \pi}\left(\frac{i}{r^2}\right)\)
उत्तर:
(b) \(\frac{\mu_0}{2 \pi}\left(\frac{i}{r}\right)\)
18. चुम्बकीय क्षेत्र का मात्रक है-
(a) वेबर / मीटर
(b) वेबर / मीटर²
(c) वेबर मी²
(d) वेबर
उत्तर:
(b) वेबर / मीटर²
19. विद्युत जनित्र स्रोत है-
(a) विद्युत ऊर्जा का
(b) विद्युत आवेश का
(c) यांत्रिक ऊर्जा का
(d) इनमें से किसी का नहीं
उत्तर:
(a) विद्युत ऊर्जा का
20. डायनमो में रूपान्तरण होता है-
(a) यांत्रिक ऊर्जा का ऊष्मा में
(b) ऊष्मा का विद्युत ऊर्जा में
(c) चुम्बकीय ऊर्जा का विद्युत ऊर्जा में
(d) यांत्रिक ऊर्जा का विद्युत ऊर्जा में
उत्तर:
(d) यांत्रिक ऊर्जा का विद्युत ऊर्जा में
21. विद्युत जनित्र में विद्युत चुम्बकीय प्रेरण होता है-
(a) क्षेत्र चुम्बकों में
(b) आर्मेचर
(c) सप वलयों में
(d) विभक्त वलयों में
उत्तर:
(b) आर्मेचर
22. दिष्ट धारा जनित्र से किसी परिपथ में प्रवाहित धारा-
(a) का मान तथा दिशा, दोनों बदलते रहते हैं
(b) का मान स्थिर रहता है परंतु दिशा बदलती रहती है
(c) का मान तथा दिशा, दोनों नहीं बदलते
(d) का मान बदलता है परंतु दिशा नहीं बदलती
उत्तर:
(d) का मान बदलता है परंतु दिशा नहीं बदलती
23. प्रत्यावर्ती धारा-
(a) का मान एवं दिशा दोनों परिवर्तनीय होते हैं
(b) का मान स्थिर परंतु दिशा परिवर्तनीय होती हैं
(c) का मान परिवर्तनीय परंतु दिशा अपरिवर्तित रहती है
(d) का मान एवं दिशा दोनों अचर रहते हैं
उत्तर:
(a) का मान एवं दिशा दोनों परिवर्तनीय होते हैं
24. पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की दक्षिण से उत्तर की ओर होती है। एक तार को पूर्व-पश्चिम दिशा में फैलाकर ऊर्ध्वाधरत: ऊपर की ओर उठाया जाता है। यदि तार एक बंद परिपथ का भाग हो तो तार में प्रेरित धारा-
(a) पूर्व से पश्चिम की ओर होगी
(b) पश्चिम से पूर्व की ओर होगी
(c) शून्य होगी
(d) धारा की दिशा बदलती रहेगी
उत्तर:
(a) पूर्व से पश्चिम की ओर होगी
25. चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक है-
(a) न्यूटन / ऐम्पियर मीटर²
(b) न्यूटन / ऐम्पियर मीटर
(c) न्यूटन ऐम्पियर मीटर
(d) न्यूटन² / ऐम्पियर मीटर
उत्तर:
(c) न्यूटन ऐम्पियर मीटर
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
- फ्रिज तथा अल्मारियों के दरवाजों को बंद करने के लिए ………………….. प्रयोग किए जाते हैं।
- विद्युन्मय तार ………………….. रंग का प्रयोग किया जाता है।
- फ्यूज तार की मिश्र धातु में 63% टिन व 37% ………………….. होता है।
- हम अपने घरों में ………………….. V वोल्टता वाली प्रत्यावर्ती धारा प्राप्त करते हैं जिसकी आवृत्ति ………………….. Hz है।
- अतिभारण एवं लघुपथन से परिपथ की सुरक्षा के लिए ………………….. प्रयोग करना चाहिए।
- किसी परिपथ में धारा की उपस्थिति ज्ञात करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
उत्तर:
- चुम्बक
- लाल
- लैंड
- 220.50
- फ्यूजवार
- गैल्वेनोमीटर।