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JAC Board Class 10 Science Notes Chapter 3 धातु एवं अधातु
→ धातुओं का स्त्रोत- धातुएँ मुक्त व संयुक्त दोनों अवस्थाओं में पायी जाती हैं। पृथ्वी में सबसे अधिक पायी जाने वाली धातु A1 है।
→ धातुएँ – वे तत्त्व जो अपने स्वतन्त्र इलेक्ट्रॉन त्यागकर धनायन बनाते हैं।
→ खनिज – पृथ्वी में पाये जाने वाले धातुओं के ऐसे यौगिक जिनमें रेत आदि की अशुद्धियाँ पाई जाती हैं।
→ अयस्क – वे खनिज जिससे धातु का निष्कर्षण, सुविधाजनक व लाभदायक हो।
→ अधात्री – अयस्क में उपस्थित मिट्टी, कंकड़, पत्थर आदि की अशुद्धियाँ।
→ भर्जन – वायु की उपस्थिति में अयस्क को गर्म करने की प्रक्रिया को भर्जन कहते हैं।
→ प्रगलन – धातु ऑक्साइडों को उच्च ताप पर अपचयित करके धातु प्राप्त करने की प्रक्रिया जिसमें धातु पिघली हुई अवस्था में प्राप्त होती है।
→ गालक – धातुकर्म की प्रक्रिया में प्रयुक्त होने वाला वह पदार्थ है जो अयस्क में उपस्थित अगलनीय अशुद्धियों से संयोग करके एक गलनीय धातुमल बनाता है जो हल्का होने के कारण उस पर तैरता है जिसे आसानी से अलग कर लिया जाता है।
→ धातुमल – अधात्री और गालक के साथ बना हुआ वह गलनीय पदार्थ जो धातु के ऊपर एक पृथक सतह बनाता है।
→ अम्लीय गालक- अम्लीय ऑक्साइड जैसे SiO2 जो क्षारीय अधात्री, जैसे- FeO, CaO आदि से क्रिया करके धातुमल (FeSiOg) बनाता है।
→ क्षारीय गालक – क्षारीय ऑक्साइड जैसे CaO जो अम्लीय अधात्री, जैसे- SiO2 आदि से संयोग करके धातुमल (CaSiO3) बनाता है।
→ ऐलुमिनोतापी विधि – Al का अपचायक के रूप में प्रयोग करके धात्विक ऑक्साइड के अपचयन से धातु प्राप्त करना।
→ धातुओं का शोधन – अशुद्ध धातु से शुद्ध धातु प्राप्त करना।
→ बेसमरीकरण – पिघले हुए अशुद्ध लोहे में वायु तेज प्रवाह से अशुद्धियों का ऑक्सीकरण।
अमलगमन – अशुद्ध धातु को पारे के साथ घोंटकर पारे का मिश्रधातु (अमलगम) बनाकर उसमें से शुद्ध धातु को पृथक करना। अमलगम का वाष्पन करने पर शुद्ध पारा दूर हो जाता है और अशुद्ध धातु शेष रह जाती है।
→ विद्युत अपघटनी शोधन – अशुद्ध धातु का एनोड तथा शुद्ध धातु का कैथोड लेकर इन्हें इसी धातु आयन के विलयन में डुबोकर विद्युत अपघटन करना, जिसमें एनोड में से शुद्ध धातु घुलकर विलयन में जाती है और विलयन से शुद्ध धातु कैथोड पर एकत्रित होती है।
→ एलुमिनियम के प्रमुख अयस्क – बॉक्साइट (Al2O3.2H2O), क्रायोलाइट (Na2AlF6।
आयरन के प्रमुख अयस्क – मैग्नेटाइट (Fe3O4 हेमेटाइट (Fe2O3), सिडेराइट (FeCO3), आयरन पाइराइट (FeS2)।
→ Al का धातुकर्म-
→ Fe का धातुकर्म
→ उभयधर्मी ऑक्साइड-
ऑक्सीजन के साथ संयुक्त होकर धातुएँ क्षारकीय ऑक्साइड बनाती हैं। ऐलुमिनियम ऑक्साइड एवं जिंक ऑक्साइड, क्षारकीय ऑक्साइड तथा अम्लीय ऑक्साइड, दोनों के गुणधर्म प्रदर्शित करती हैं। इन ऑक्साइड को उभयधर्मी ऑक्साइड कहते हैं।
→ जल एवं तनु अम्लों के साथ विभिन्न धातुओं की अभिक्रियाशीलता भिन्न-भिन्न होती है।
→ सक्रियता श्रेणी- अभिक्रियाशीलता के आधार पर अवरोही क्रम में व्यवस्थित सामान्य धातुओं की सूची को सक्रियता श्रेणी कहते हैं।
→ सक्रियता श्रेणी में हाइड्रोजन के ऊपर स्थित धातुएँ तनु अम्ल से हाइड्रोजन को विस्थापित कर सकती हैं।
→ अधिक अभिक्रियाशील धातुएँ अपने से कम अभिक्रिया- शील धातुओं को उसके लवण विलयन से विस्थापित कर सकती हैं।
→ प्रकृति में धातुएँ स्वतंत्र अवस्था में या अपने यौगिकों के रूप में पाई जाती हैं।
→ धातुकर्म – अयस्क से धातु का निष्कर्षण तथा उसका परिष्करण कर उपयोगी बनाने के प्रक्रम को धातुकर्म कहते हैं।
→ मिश्रधातु – दो या दो से अधिक धातुओं अथवा एक धातु या एक अधातु के समांगी मिश्रण को मिश्रधातु कहते हैं।
→ संक्षारण-लंबे समय तक आई वायु के संपर्क में रखने से लोहा जैसे कुछ धातुओं की सतह संक्षारित हो जाती है। इस परिघटना को संक्षारण कहते हैं।
→ अधातुओं के गुणधर्म धातुओं के विपरीत होते हैं। यह न तो आघातवर्ध्य तथा न ही तन्य होते हैं। ग्रैफाइट के अलावा सभी अधातुएँ ऊष्मा एवं विद्युत की कुचालक होती हैं। ग्रेफाइट विद्युत का चालक होता है।
→ अधातुएँ विद्युत ऋणात्मक तत्त्व होती हैं क्योंकि धातुओं के साथ अभिक्रिया में इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर ऋण आवेशित आयन बनाती हैं।
→ अधातुएँ ऑक्साइड बनाती हैं जो अम्लीय या उदासीन होती हैं।
→ अधातुएँ तनु अम्लों में से हाइड्रोजन का विस्थापन नहीं करती हैं। यह हाइड्रोजन के साथ अभिक्रिया कर हाइड्राइड बनाती हैं।