JAC Board Class 10th Social Science Important Questions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक
बहुविकल्पीय प्रश्न
1. भारत में ग्रामीण क्षेत्र में किस क्षेत्रक का सर्वाधिक योगदान ह
(क) प्राथमिक
(ख) द्वितीयक
(ग) तृतीयक
(घ) ये सभी
उत्तर:
(क) प्राथमिक
2. किस क्षेत्रक की गतिविधियाँ प्राकृतिक संसाधनों के प्रत्यक्ष उपयोग पर आधारित हैं
(क) प्राथमिक क्षेत्रक
(ख) द्वितीयक क्षेत्रक
(ग) तृतीयक क्षेत्रक
(घ) ये सभी
उत्तर:
(क) प्राथमिक क्षेत्रक
3. द्वितीयक क्षेत्रक को कहा जाता है
(क) औद्योगिक क्षेत्रक
(ख) कृषि क्षेत्रक
(ग) सेवा क्षेत्रक
(घ) सहायक क्षेत्रक
उत्तर:
(क) औद्योगिक क्षेत्रक
4. किस क्षेत्रक में अल्प रोजगार सर्वाधिक मिलता है
(क) सेवा क्षेत्रक
(ख) उत्पाद क्षेत्रक
(ग) उद्योग क्षेत्रक
(घ) कृषि क्षेत्रक
उत्तर:
(घ) कृषि क्षेत्रक
5. मनरेगा का पूरा नाम है
(क) महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण गारंटी अधिनियम
(ख) महानगर. राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कानून
(ग) मन से रोजगार योजना
(घ) राष्ट्रीय स्वर्णिम चतुर्भुज योजना
उत्तर:
(क) महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण गारंटी अधिनियम
रिक्त स्थान
निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. प्राथमिक क्षेत्रक को……………भी कहा जाता है।
उत्तर:
कृषि एवं सहायक,
2. द्वितीयक क्षेत्रक के……………की प्रक्रिया अपरिहार्य है।
उत्तर:
विनिर्माण,
3. तृतीयक क्षेत्रक को……….भी कहा जाता है।
उत्तर:
सेवा क्षेत्रक,
4. हमारे देश में आधे से अधिक श्रमिक……..में कार्यरत है।
उत्तर:
प्राथमिक क्षेत्रक।
अति लघूत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
प्राथमिक क्षेत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं तो उसे प्राथमिक क्षेत्र कहते हैं।
प्रश्न 2.
प्राथमिक क्षेत्र में कौन-सी आर्थिक गतिविधियाँ सम्मिलित की जाती हैं?
उत्तर:
प्राथमिक क्षेत्रक में कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन, खनन, आखेट, संग्रहणण, मुर्गी पालन आदि गतिविधियाँ सम्मिलित की जाती हैं।
प्रश्न 3.
जब्ब हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके वस्तुओं का उत्पादन करते हैं, तो इस प्रकार की गतिविधियाँ किस आर्थिक क्षेत्रक के अन्तर्गत करते हैं?
अथवा
जब हम प्राकृतिक उत्पादों को अन्य रूपों में परिवर्तित करते हैं, तब यह गतिविधि किस आर्थिक क्षेत्रक के अन्तर्गत आती हैं?
उत्तर:
प्राथमिक क्षेत्र ।
प्रश्न 4.
प्राथमिक क्षेत्रक को कृषि एवं सहायक क्षेत्रक क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
प्राथमिक क्षेत्रक को कृषि एवं सहायक क्षेत्रक इसलिए कहा जाता है क्योंकि हम अधिकतर प्राकृतिक उत्पाद कृषि, पशुपालन, मत्स्य एवं वनों से प्राप्त करते हैं।
प्रश्न 5.
द्वितीयक क्षेत्रक की गतिविधियों से क्या आशय है?
उत्तर:
द्वितीयक क्षेत्रक की गतिविधियों के अन्तर्गत प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रणाली द्वारा अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है। इसके विनिर्माण की प्रक्रिया अपरिहार्य है।
प्रश्न 6.
द्वितीयक क्षेत्रक को औद्योगिक क्षेत्रक क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
क्योंकि यह क्षेत्रक क्रमशः संवर्धित विभिन्न प्रकार के उद्योगों से जुड़ा हुआ है।
प्रश्न 7.
तृतीयक क्षेत्रक की किन्हीं चार गतिविधियों के नाम बताइए।
अथवा
तृतीयक क्षेत्र की किन्हीं दो सेवाओं के नाम लिखिए। नहीं करता बल्कि सेवाओं का सृजन करता हैन
प्रश्न 9.
अन्तिम वस्तुएँ कौन-सी होती हैं?
उत्तर:
अन्तिम वस्तुएँ वे वस्तुएँ
उत्तर:
अन्तिम वस्तुएँ वे वस्तुएँ है जिनका प्रयोग अंतिम उपयोग अथवा पूँजी निर्माण में होता है। इन्हें फिर से बेचा नहीं जाता।
प्रश्न 10.
मध्यवर्ती वस्तुएँ क्या हैं?
उत्तर:
मध्यवर्ती वस्तुएँ वे उत्पादित वस्तुएँ हैं जिनका प्रयोग उत्पादक कच्चे माल के रूप में उत्पादन प्रक्रिया में करता है अथवा उन्हें फिर से बेचने के लिए खरीदा जाता है।
प्रश्न 11.
बिस्कुट के उत्पादन हेतु कोई दो मध्यवर्ती वस्तुएँ लिखिए।.
प्रश्न 12.
सकल घरेलू उत्पाद से क्या अभिप्राय है?
अथवा
सकल घरेलू उत्पाद की गणना किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
तीनों क्षेत्रकों के उत्पादनों के योगफल को देश का सकल घरेलू उत्पाद (जी. डी. पी.) कहते हैं। यह किसी देश के भीतर किसी विशेष वर्ष में उत्पादित सभी अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य होता है।
प्रश्न 13.
बेरोजगारी किसे कहते हैं?
उत्तर:
लब प्रचलित मजदूरी पर काम करने के इच्छुक व सक्षम व्यवितयों को कोई कार्य उपलब्य नहीं होता तो ऐसी स्थिंत को बेरोजगारी कहा जाता है।
प्रश्न 14.
मौसमी बेरोजगारी क्या है?
उत्तर:
ब्रेरोजगारी की वह स्थिति जिसमें लोगों को पूरे साल काम नहीं मिलता अर्थात् साल के कुछ महीनों में ये लोग बिना काम के रहते हैं, मौसमी बेरोजगारी कहलाती है; जैसे- ग्रामीण क्षेत्र में खराब मौसम के कारण उत्पन्न बेरोजगारी।
प्रश्न 15.
कुल उत्पादन और रोजगार की दृष्टि से कौन-सा क्षेत्रक सबसे महत्त्वपूर्ण हो गया है ?
उत्तर:
फुल उत्पादन और रोजगार की दृष्टि से द्वितीयक क्षेत्रक सबसे महत्वपूर्ण हो गया है।
प्रश्न 16.
कौन-सा क्षेत्रक सबसे अधिक रोजगार देता है?
अथवा
भारत में अधिकांश श्रमिक आज भी किस क्षेत्र में नियोजित हैं?
उत्तर:
प्राथमिक क्षेत्रक सबसे अधिक रोजगार देता है। भारत में अधिकांश श्रमिक आज भी इसी क्षेत्रक में नियोजित है।
प्रश्न 17.
कृषि और उद्योग के विकास से किन सेवाओं का विकास होता है?
उत्तर:
कषष और उद्योग के विकास से परिवहन, व्यापार, भण्डारण जैसी सेवाओं का विकास होता है।
प्रश्न 18.
भारत में कृषि आधारित किन्हीं दो उद्गोगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- चीनी उद्योग
- चाय उद्योग।
प्रश्न 19.
संगठित क्षेत्रक से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
संगठित क्षेत्रक के अन्तर्गत वे उद्यम अथवा कार्य स्थान आते हैं जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है, काम सुनिश्चित होता है और सरकारी नियमों व विनियमों का अनुपालन किया जाता है।
प्रश्न 20.
असंगठित क्षेत्रक से क्या आशय है?
उत्तर:
असंगठित क्षेत्रक छोटी-छोटी और बिखरी इकाइयाँ, जो अधिकांशतः राजकीय नियन्त्रण से आहर होती है, से निर्मित होता है। इस क्षेत्रक के नियम और विनियम तो होते हैं किन्तु उनका अनुपालन नहीं होता है।
प्रश्न 21.
कौन-सा क्षेत्रक अर्त्यधिक मांग पर ही रोजगार प्रस्तावित करता है?
उत्तर:
संगठित क्षेत्रक अत्यधिक माँग पर ही रोजगार प्रस्तावित करता है।
प्रश्न 22.
ग्रामीण क्षेत्रों में कौन-से लोग हैं, जो असंगठित क्षेत्रक में काम करते हैं?
उत्तर:
ग्रामीण क्षेत्रों में मुख्यतः भूमिहीन कृषि श्रमिक, छोटे और सीमांत किसान, फसल बँंटाइदार और कारीगर ( जैसे-बुनकर, लुहार, बढ़ई व सुनार) आदि असंगठित क्षेत्रक में काम करते हैं।
प्रश्न 23.
किन श्रमिकों को शहरी व ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में संरक्षण दिए जाने की आवश्यकता है?
उत्तर:
आकस्मिक श्रमिकों को शहरी व ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में संरक्षण दिए जाने की आवश्यकता है।
प्रश्न 24.
संसाधनों के स्वामित्व के आधार पर दो क्षेत्रक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
संसाधनों के स्वामित्व के आधार पर दो क्षेत्रक निम्नलिखित हैं: सार्वजनिक क्षेत्रक
प्रश्न 25.
सार्वजनिक क्षेत्रक किसे कहते हैं?
उत्तर:
स्रकार्वजनिक क्षेत्रक वह क्षेत्रक होता है जिस पर सरकार का स्वामित्व, नियंत्रण एवं प्रबंधन होता है।
प्रश्न 26.
सार्वजनिक क्षेत्रक के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
- भारतीय रेलवे
- भारतीय ड्डाक विभाग।
प्रश्न 27.
निजी क्षेत्रक के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
- टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी लिमिटेड,
- रिलायंस इण्डस्ट्रीज लिमिटेड।
प्रश्न 28.
निजी क्षेत्रक का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
निजी क्षेत्रक का मुख्य उद्देश्य अधिकतम लाभ अर्जित करना है।
प्रश्न 29.
सार्वजनिक क्षेत्रक का मुख्य उदेश्य क्या होता है?
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्रक का मुख्य उद्देश्य समाज कल्याण में वृद्धि करना होता है।
प्रश्न 30.
सरकार सेवाओं पर किए गए व्यय की भरपाई कैसे करती है?
उत्तर:
सरकार सेवाओं पर किए गए व्यय की भरपाई कर लगाकर या अन्य तरीकों से करती है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA1)
प्रश्न 1.
भारतीय अर्थव्यवस्था में प्राथमिक क्षेत्रक के महत्त्व को बताइए।
अथवा
भारतीय अर्थव्यवस्था में प्राथमिक क्षेत्रक के महत्त्व के किन्हीं चार सूत्रों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
“विकास की प्रारम्भिक अवस्थाओं में प्राथमिक क्षेत्रक’ ही आर्थिक सक्रियता का सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक रहा है।” इस कथन का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर
भारतीय अर्थव्यवस्था में प्राथमिक क्षेत्रक का महत्त्व निम्नलिखित है
- प्राथमिक क्षेत्रक में कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन, वनारोपण आदि सम्मिलित हैं जो भारतीय अर्थव्यवस्था को योगदान देते हैं।
- भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जी. डी. पी.) में प्राथमिक क्षेत्रक का योगदान लगभग 13 प्रतिशत है।
- भारत में रोजगार में प्राथमिक क्षेत्र की हिस्सेदारी 44 प्रतिशत है।
- यह भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे अधिक रोजगार प्रदान करने वाला क्षेत्रक है।
प्रश्न 2.
भारतीय अर्थव्यवस्था में द्वितीयक क्षेत्रक के महत्त्व के कोई चार सूत्र लिखिए।
उत्तर:
भारतीय अर्थव्यवस्था में द्वितीयक क्षेत्रक का महत्त्व निम्नलिखित है
- द्वितीयक क्षेत्रक प्राथमिक एवं तृतीयक क्षेत्रक के विकास को बढ़ावा देता है।
- यह लोगों को रोजगार प्रदान करता है। रोजगार में इस क्षेत्रक की हिस्सेदारी लगभग 25 प्रतिशत है।
- भारत के जी. डी. पी. में द्वितीयक क्षेत्रक लगभग 2 प्रतिशत योगदान देता है।
- यह क्षेत्रक लोगों को अनेक निर्मित वस्तुएँ; जैसे-कपड़ा, चीनी, गुड़, कार, इस्पात आदि प्रदान करता है।
प्रश्न 3.
तृतीयक क्षेत्रक क्या है? क्या भारत में तृतीयक क्षेत्रक का योगदान बढ़ता जा रहा है?
अथवा
सेवा क्षेत्र को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
तृतीयक क्षेत्रक:
इसके अन्तर्गत वे क्रियाएँ आती हैं जो प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रकों के विकास में मदद करती हैं। इसे सेवा क्षेत्रक भी कहते हैं; जैसे-अध्यापक, डॉक्टर, वकील, व्यापार, दूरसंचार, स्वास्थ्य आदि। भारत में विगत दशकों से तृतीयक क्षेत्रक का योगदान निरन्तर बढ़ता जा रहा है। इस क्षेत्रक में रोजगार में भी वृद्धि हुई है। जी. डी. पी. में इस क्षेत्र के योगदान में निरन्तर वृद्धि हुई है। सन् 1973-74 में इसका जी.डी.पी. में योगदान लगभग 48% था, जो 2013-14 में बढ़कर 68% हो गया है।
प्रश्न 4.
अन्तिम वस्तुओं और मध्यवर्ती वस्तुओं में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अन्तिम वस्तुओं और मध्यवर्ती वस्तुओं में निम्नलिखित अन्तर हैं अन्तिम वस्तुएँ
अन्तिम वस्तुएँ | मध्यवर्ती वस्तुएँ |
1. अन्तिम वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती हैं जो उपभोक्ताओं के पास पहुँचती हैं। | 1. मध्यवर्ती वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका उपयोग अन्तिम वस्तुओं के उत्पादन में किया जाता है। |
2. अन्तिम वस्तुओं का मूल्य राष्ट्रीय आय में सम्मिलित किया जाता है। उदाहरण-चॉकलेट, बिस्कुट, ब्रेड, अलमारी व टेलीविजन आदि। | 2. मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य राष्ट्रीय आय में सम्मिलित नहीं होता है। उदाहरण-आटा, कपास, गे है, स्टील आचे। |
प्रश्न 5.
सकल घरेलू उत्पाद की गणना करते समय केवल अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं को ही क्यों सम्मिलित किया जाता है?
उत्तर:
सकल घरेलू उत्पाद की गणना करते समय केवल अन्तिम वस्तुएँ एवं सेवाओं को ही सम्मिलित किया जाता है क्योंकि इससे दोहरी गणना की सम्भावना नहीं रहती है। यदि मध्यवर्ती वस्तुओं जो कि अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्माण में प्रयुक्त की जाती हैं, की गणना भी कर ली जाए तो इससे दोहरी गणना हो जाएगी जिससे हमें वास्तविक राष्ट्रीय आय की जानकारी प्राप्त नहीं हो पायेगी।
प्रश्न 6.
अल्प अथवा छिपी बेरोज़गारी क्या है? यह किन क्षेत्रों में विद्यमान है?
अथवा
छिपी या प्रच्छन्न बेरोजगारी क्या है?
उत्तर:
किसी कार्यस्थल पर यदि आवश्यकता से अधिक लोग कार्य कर रहे हों तथा जिनके जाने से उत्पादन पर कोई असर न पड़े, ऐसी स्थिति को अल्प बेरोज़गारी या प्रच्छन्न बेरोज़गारी कहते हैं। कृषि क्षेत्रक में, जहाँ परिवार के सभी सदस्य कार्य करते हैं, प्रत्येक व्यक्ति कुछ-न-कुछ काम करता दिखाई पड़ता है, किन्तु वास्तव में उनका श्रम-प्रयास विभाजित होता है तथा किसी को भी पूर्ण रोजगार प्राप्त नहीं होता है।
यह स्थिति अल्प बेरोज़गारी की स्थिति होती है। इसे छिपी या प्रच्छन्न बेरोज़गारी भी कहते हैं। यह बेरोज़गारी सेवा क्षेत्रक में भी पायी जाती है। यहाँ हजारों अनियमित श्रमिक पाए जाते हैं, जो दैनिक रोजगार की तलाश में रहते हैं। वे श्रमसाध्य, कठिन और जोखिमपूर्ण कार्य करते हैं किन्तु अपनी क्षमता से कम आय प्राप्त कर पाते हैं।
प्रश्न 7.
संगठित क्षेत्रक क्या है?
अथवा
संगठित क्षेत्रक को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
संगठित क्षेत्रक में वे उद्यम या कार्य स्थान आते हैं, जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है और इसलिए लोगों के पास सुनिश्चित काम होता है। इस क्षेत्रक में सरकार का नियंत्रण होता है इनके लिए नियम-विनियम होते हैं जिनका पालन होता है। इन नियमों एवं विनियमों का अनेक विधियों; जैसे-कारखाना अधिनियम, सेवानुदान अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, दुकान एवं प्रतिष्ठान अधिनियम आदि में उल्लेख किया जाता है।
प्रश्न 8.
असंगठित क्षेत्रक क्या है? अथवा असंगठित क्षेत्रक को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
असंगठित क्षेत्रक के अन्तर्गत वे छोटी-छोटी और बिखरी हुई इकाइयाँ आती हैं जो सामान्यतः राजकीय नियन्त्रण के बाहर होती हैं। यद्यपि इनके लिए भी नियम व विनियम बने हैं परन्तु उनका पालन नहीं होता है। इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कम वेतन वाले रोजगार हैं और प्रायः नियमित नहीं हैं। इस क्षेत्रक में बहुत बड़ी संख्या में लोग अपने-अपने छोटे कार्यों, जैसे-सड़कों पर विक्रय अथवा मरम्मत कार्य में स्वतः नियोजित हैं। इसी प्रकार कृषक अपने खेतों में कार्य करते हैं एवं आवश्यकता पड़ने पर मजदूरी पर श्रमिकों को लगाते हैं। .
प्रश्न 9.
“असंगठित क्षेत्रक के श्रमिक अनियमित व कम मजदूरी पर काम करने के अतिरिक्त सामाजिक भेदभाव के भी शिकार हैं।” क्या आप इस कथन से सहमत हैं? कारण दीजिए।
उत्तर:
हाँ, मैं इस कथन से सहमत हूँ। इसके निम्नलिखित कारण हैं.
- असंगठित क्षेत्रक में अधिकांश श्रमिक अनुसूचित जाति, जनजाति एवं पिछड़ी जातियों से हैं इसलिए वे सामाजिक भेदभाव के शिकार होते हैं।
- ये श्रमिक दलित वर्गों से सम्बन्धित होते हैं। अतः उन्हें अपना मूल्यांकन कर अधिक मजदूरी माँगने का साहस नहीं होता है।
- इसके अतिरिक्त महिला श्रमिकों को भी शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर माना जाता है और वे कार्यस्थल पर भेदभाव का बहुत अधिक शिकार होती हैं।
प्रश्न 10.
किन सुविधाओं को उपलब्ध कराना सरकार का उत्तरदायित्व है?
उत्तर:
निम्नलिखित सुविधाओं को उपलब्ध कराना सरकार का उत्तरदायित्व है
- ऐसी वस्तुओं को उपलब्ध कराना जिन्हें निजी क्षेत्रक उचित कीमत पर उपलब्ध नहीं कराते हैं; जैसे सड़क, पुल, रेलवे, बन्दरगाह, विद्युत आदि का निर्माण। इसके निर्माण हेतु अत्यधिक मुद्रा की आवश्यकता होती है जो सामान्यतः निजी क्षेत्रक की क्षमता से बाहर होती है।
- शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
- आर्थिक सहायता के रूप में सरकारी समर्थन।
- आवास, भोजन एवं पोषण सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
- शुद्ध व सुरक्षित पेयजल की उपलब्धता को सुनिश्चित कराना।
लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA2)
प्रश्न 1.
प्राथमिक क्षेत्रक की मुख्य गतिविधियों को कुछ उदाहरण देकर बताइए। इन्हें प्राथमिक क्यों कहा जाता है?
अथवा
प्राथमिक क्षेत्रक से क्या आशय है? इसे कृषि एवं सहायक क्षेत्रक क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
जब हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं, तो इसे प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधि कहा जाता है। इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कृषि, डेयरी, खनन, मत्स्य पालन, वनारोपण आदि क्रियाएँ आती हैं। उदाहरण के लिए-कपास की खेती। यह एक मौसमी फसल है, यह मुख्यतः प्राकृतिक कारकों; जैसे-वर्षा, सूर्य का प्रकाश और जलवायु पर निर्भर है।
इस क्रिया द्वारा उत्पादित कपास एक प्राकृतिक उत्पाद होता है। इसे प्राथमिक क्षेत्रक इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह उन सभी उत्पादों का आधार है, जिन्हें हम निर्मित करते हैं। चूँकि हम अधिकांशतः प्राकृतिक वस्तुएँ कृषि, डेयरी, मत्स्य पालन एवं वनारोपण से प्राप्त करते हैं, इसलिए इस क्षेत्रक को कृषि एवं सहायक क्षेत्रक भी कहा जाता है।
प्रश्न 2.
द्वितीयक क्षेत्रक क्या है?
अथवा
द्वितीयक क्षेत्रक की गतिविधियों के बारे में आप क्या जानते हैं? उदाहरण दें।
अथवा
द्वितीयक क्षेत्रक का संक्षिप्त वर्णन करें। इसे औद्योगिक क्षेत्रक क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
द्वितीयक क्षेत्रक के अन्तर्गत वे क्रियाएँ आती हैं जिनमें प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रक्रिया के माध्यम से अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है। यह प्राथमिक क्षेत्रक से अगली अवस्था है। यहाँ वस्तुएँ सीधे प्रकृति से उत्पादित नहीं होती बल्कि निर्मित की जाती हैं। इसलिए विनिर्माण की प्रक्रिया आवश्यक होती है जो किसी कारखाने, कार्यशाला अथवा घर में हो सकती है। उदाहरणार्थ, कपास के पौधे से प्राप्त रेशे से सूत कातना व कपड़ा बुनना, गन्ने से चीनी एवं मिट्टी से ईंट का विनिर्माण आदि। चूँकि यह क्षेत्रक क्रमशः विभिन्न प्रकार के उद्योगों से जुड़ा हुआ है, इसलिए इसे औद्योगिक क्षेत्रक भी कहा जाता है।
प्रश्न 3.
महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम (मनरेगा) 2005 को सविस्तार समझाइए।
उत्तर:
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजागार गारण्टी अधिनियम, 2005 का उद्देश्य चयनित जिलों में ग्रामीण क्षेत्रों के प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को वर्ष में कम से कम 100 दिन के रोजगार की गारंटी देना है, जो काम करने में सक्षम हैं और जिन्हें काम की जरूरत है। वर्ष 2009-10 में इसका नाम बदलकर ‘महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम’ कर दिया गया है।
राज्यों में कृषि’ श्रमिकों के लिए लागू वैधानिक न्यूनतम मजदूरी का भुगतान इसके लिए किया जाएगा। इसके अन्तर्गत 33 प्रतिशत लाभभोगी महिलाएँ होंगी। रोज़गार न दिए जाने पर निर्धारित दर से बेरोजगारी भत्ता सरकार द्वारा दिया जायेगा। इस प्रकार यह अधिनियम रोज़गार की वैधानिक गारण्टी प्रदान करता है। इस अधिनियम के अंतर्गत ठन कार्यों को वरीयता प्रदान की जाएगी जिनसे भविष्य में भूमि से उत्पादन बढ़ाने में मदद मिल सकेगी।
प्रश्न 4.
संगठित क्षेत्रक क्या है? संगठित क्षेत्रक की कार्य-स्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
संगठित क्षेत्रक के कर्मचारियों की स्थिति पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
अथवा
कर्मचारियों द्वारा संगठित क्षेत्रक को प्राथमिकता क्यों दी जाती है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
किन कारणों से संगठित क्षेत्र असंगठित क्षेत्र से प्राथमिक है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
संगठित क्षेत्रक: संगठित क्षेत्रक में वे उद्यम अथवा कार्यस्थान आते हैं जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है। इस कारण लोगों के पास सुनिश्चित कार्य होता है। इस क्षेत्रक में सरकार का नियंत्रण होता है तथा राजकीय नियमों एवं विनियमों का अनुपालन किया जाता है। संगठित क्षेत्रक की निम्नलिखित कार्य-स्थितियाँ होती हैं
- इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कुछ औपचारिक प्रक्रियाएँ होती हैं। व्यक्ति को एक नियुक्ति पत्र दिया जाता है जिसमें काम की सभी शर्तों का स्पष्ट उल्लेख होता है।
- संगठित क्षेत्रक के कर्मचारियों को रोजगार सुरक्षा के लाभ मिलते हैं।
- लोग निश्चित घण्टे तक ही काम करते हैं। यदि वे अधिक घण्टे काम करते हैं तो इन्हें इसके लिए नियोक्ता द्वारा अतिरिक्त भुगतान किया जाता है।
- लोग नियमित रूप से मासिक वेतन प्राप्त करते हैं।
- वेतन के अतिरिक्त लोग कई अन्य लाभ भी प्राप्त करते हैं; जैसे-छुट्टी का भुगतान, भविष्य निधि, चिकित्सकीय भत्ते, पेंशन आदि।
- रोजगार की शर्ते नियमित होती हैं। लोगों के काम सुनिश्चित होते हैं।
- यहाँ स्वच्छ पीने का पानी एवं सुरक्षित वातावरण जैसी सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। उक्त कार्य-स्थितियों के कारण संगठित क्षेत्र असंगठित क्षेत्र से प्राथमिक है।
प्रश्न 5.
असंगठित क्षेत्रक क्या है? असंगठित क्षेत्रक की कार्य-स्थितियाँ क्या हैं?
अथवा
असंगठित क्षेत्र की किन्हीं तीन विशेषताओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
असंगठित क्षेत्रक असंगठित क्षेत्रक में छोटे-छोटे एवं बिखरे हुए उद्यमों को सम्मिलित किया जाता है, जिन पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता है तथा सरकार के नियमों व विनियमों का अनुपालन नहीं किया जाता है। असंगठित क्षेत्रक की निम्न कार्य-स्थितियाँ/ कार्यविधियाँ हैं
- इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कोई औपचारिक प्रक्रिया नहीं होती है। व्यक्ति को नियोक्ता द्वारा कोई औपचारिक नियुक्ति पत्र नहीं दिया जाता है।
- इस क्षेत्रक के अन्तर्गत रोजगार में मजदूरी कम व अनियमित होती है।
- इस क्षेत्रक में काम के घण्टे सुनिश्चित नहीं होते हैं। इसमें अतिरिक्त काम के अतिरिक्त घंटे के लिए भुगतान की कोई व्यवस्था नहीं है।
- इस क्षेत्रक में रोजगार की सुनिश्चितता नहीं होती है व लोगों को नियोक्ता द्वारा अकारण किसी भी समय काम छोड़ने के लिए कहा जा सकता है।
- इस क्षेत्रक में लोग दैनिक मजदूरी प्राप्त करते हैं। दैनिक मजदूरी के अतिरिक्त अन्य किसी लाभ का प्रावधान नहीं है।
- इस क्षेत्रक में सवेतन अवकाश एवं बीमारी के कारण छुट्टी आदि का कोई प्रावधान नहीं है।
प्रश्न 6.
क्या सार्वजनिक क्षेत्रक का होना अपरिहार्य है? उक्त कथन की पुष्टि कीजिए।
अथवा
आपके विचार से सार्वजनिक क्षेत्र क्यों आवश्यक है? कोई तीन बिन्दु लिखिए।
अथवा
कोई छः सार्वजनिक सुविधाओं के नाम बताइए।
अथवा
सार्वजनिक क्षेत्रक राष्ट्र के आर्थिक विकास में किस प्रकार योगदान करता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हाँ, सार्वजनिक क्षेत्रक का होना अपरिहार्य है। इसके लिए निम्नलिखित कारण हैं
- केवल सरकार ही सड़कों, पुलों, रेलवे, पत्तनों, विद्युत व सिंचाई बाँधों जैसी आवश्यक सार्वजनिक परियोजनाओं पर पर्याप्त निवेश कर सकती है। सभी लोगों को सुविधाएँ प्रदान करने के लिए सरकार यह निवेश करती है।
- सरकार निजी क्षेत्रक के लिए सहायक होती है। निजी क्षेत्रक सरकारी सहायता के बिना अपना उत्पादन जारी नहीं रख सकता। सरकार निजी क्षेत्रक एवं लघु उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए वास्तविक लागत से कम कीमत पर बिजली उपलब्ध कराती है।
- सरकार किसानों से खाद्यान्न खरीदती है और उन्हें अपने गोदामों में भण्डारण करती है। इसके पश्चात् वह इन्हें राशन की दुकानों के माध्यम से उपभोक्ताओं को कम कीमत पर बेचती है।
- कई क्रियाएँ सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी होती हैं; जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य आदि। सरकार को इन क्रियाओं पर व्यय करना पड़ता है।
- सरकार मानव विकास के पक्ष, जैसे सुरक्षित पेयजल की उपलब्धता, निर्धनों के लिए आवास सुविधाएँ और भोजन व पोषण पर ध्यान देती है।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था के तीनों क्षेत्रकों का संक्षिप्त वर्णन करते हुए सोदाहरण बताइए कि तृतीयक क्षेत्रक अन्य क्षेत्रों से भिन्न कैसे है?
अथवा
आर्थिक गतिविधियों के तीन क्षेत्रक कौन-कौन से हैं? सोदाहरण समझाइए।
अथवा
प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रकों को उदाहरण की सहायता से समझाइए।
अथवा
अर्थव्यवस्था में प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक क्षेत्रों की परस्पर निर्भरता को समझाइए।
अथवा
प्राथमिक क्षेत्रक और द्वितीयक क्षेत्रक में चार बिन्दु देते हुए अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक अर्थव्यवस्था के तीन क्षेत्रक निम्नलिखित हैं
1. प्राथमिक क्षेत्रक:
जब हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं तो इसे प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधियाँ कहा जाता है। प्राथमिक क्षेत्रक को कृषि एवं सहायक क्षेत्रक भी कहा जाता है। भारतीय अर्थव्यवस्था में रोजगार की दृष्टि से प्राथमिक क्षेत्रक की भूमिका अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। उदाहरण-गेहूँ की खेती, मछली पालन, वनोपज इकट्ठा करना, खानों से खनिजों का उत्खनन, लकड़ी काटना, पशुपालन आदि।
2. द्वितीयक क्षेत्रक:
इस क्षेत्रक के अन्तर्गत वे क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं जिनमें प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रक्रिया के माध्यम से अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है। इस क्षेत्रक में वस्तुएँ सीधे प्रकृति से उत्पादित नहीं होती हैं बल्कि निर्मित की जाती हैं इसलिए विनिर्माण की प्रक्रिया अपरिहार्य है। यह प्रक्रिया किसी कारखाने अथवा घर में संचालित की जा सकती है। इस क्षेत्रक को औद्योगिक क्षेत्रक भी कहा जाता है। उदाहरण-फर्नीचर उद्योग, कागज निर्माण उद्योग, सूती वस्त्र उद्योग, लोहा व इस्पात उद्योग, इंजीनियरिंग उद्योग आदि।
3. तृतीयक क्षेत्रक:
प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रक के अतिरिक्त अन्य समस्त गतिविधियों को तृतीयक क्षेत्रक में सम्मिलित किया जाता है। इसके अन्तर्गत वे क्रियाएँ आती हैं जो प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रकों के विकास में मदद करती हैं। ये गतिविधियाँ स्वतः वस्तुओं का उत्पादन नहीं करती हैं बल्कि उत्पादन प्रक्रिया में सहयोग करती हैं। इस क्षेत्रक में विभिन्न गतिविधियाँ वस्तुओं की बजाय सेवाओं का सृजन करती हैं। इसलिए इस क्षेत्रक को सेवा क्षेत्रक भी कहा जाता है।
उदाहरण: अध्यापक, डॉक्टर, वकील, रेलवे, दूरसंचार, दुकानदार, व्यापार, शिक्षा व स्वास्थ्य आदि। ततीयक क्षेत्रक की अन्य क्षेत्रों से भिन्नता तृतीयक क्षेत्रक परिवहन, संचार, बीमा, बैंकिंग, भण्डारण व व्यापार आदि से सम्बन्धित सेवाएँ प्रदान करता है। तृतीयक क्षेत्रक को सेवा क्षेत्रक भी कहते हैं। तृतीयक क्षेत्रक अन्य दो क्षेत्रकों से भिन्न है।
इसका कारण है कि अन्य दो क्षेत्रक (प्राथमिक व द्वितीयक क्षेत्रक) वस्तुएँ उत्पादित करते हैं जबकि यह क्षेत्रक अपने आप कोई वस्तु उत्पादित नहीं करता है बल्कि इस क्षेत्रक में सम्मिलित क्रियाएँ प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रकों के विकास में माध्यम होती हैं अर्थात् ये प्राथमिक क्रियाएँ उत्पादन प्रक्रिया में मदद करती हैं।
उदाहरण के लिए, प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रक द्वारा उत्पादित वस्तुओं को थोक एवं खुदरा विक्रेताओं को बेचने के लिए ट्रैक्टर, ट्रकों एवं रेलगाड़ी द्वारा परिवहन करने की जरूरत पड़ती है। इन वस्तुओं को कभी-कभी गोदाम या शीतगृह में भण्डारण की भी आवश्यकता होती है। हमें उत्पादन एवं व्यापार में सुविधा के लिए कई लोगों से टेलीफोन से भी बातें करनी होती हैं
या पत्राचार करना पड़ता है एवं कभी-कभी बैंक से पैसा भी उधार लेना पड़ता है। इस प्रकार परिवहन, भण्डारण, संचार एवं बैंकिंग प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रकों के विकास में सहायक होते हैं। इस प्रकार कह सकते हैं कि अर्थव्यवस्था में प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक क्षेत्र परस्पर एक-दूसरे पर निर्भर है।
प्रश्न 2.
भारत में तृतीयक क्षेत्रक इतना अधिक महत्त्वपूर्ण क्यों हो गया है? कारण दीजिए।
अथवा
गत वर्षों में उत्पादन में तृतीयक क्षेत्रक के बढ़ते महत्त्व के कारणों पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
अथवा
भारत में तृतीयक क्षेत्रक अधिक महत्त्वपूर्ण क्यों हो रहा है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भारत में तृतीयक क्षेत्रक’ महत्त्वपूर्ण क्यों हो रहा है? किन्हीं तीन कारणों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
भारत में तृतीयक क्षेत्र विस्तार और महत्त्व को बढ़ाने वाले कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यद्यपि 1973-74 और 2013-14 के 40 वर्षों में सभी क्षेत्रकों में उत्पादन में वृद्धि हुई है परन्तु सबसे अधिक वृद्धि तृतीयक क्षेत्रक के उत्पादन में हुई है। परिणामस्वरूप, भारत में प्राथमिक क्षेत्रक को प्रतिस्थापित करते हुए तृतीयक क्षेत्रक.सबसे बड़े उत्पादक क्षेत्रक के रूप में उभरा है। भारत में तृतीयक क्षेत्रक के अधिक महत्त्वपूर्ण होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
1. बुनियादी सेवाएँ:
किसी भी देश में आर्थिक विकास को गति प्रदान करने के लिए कुछ आधारभूत सेवाओं की आवश्यकता होती है। इन सेवाओं में अस्पताल, शैक्षिक संस्थाएँ, डाक व तार सेवा, थाना, न्यायालय, ग्रामीण प्रशासनिक कार्यालय, नगर निगम, रक्षा, परिवहन, बैंक, बीमा आदि प्रमुख हैं। किसी विकासशील देश में इन सेवाओं के प्रबंधन की . जिम्मेदारी सरकार की होती है।
2. परिवहन व संचार के साधनों का विकास:
कृषि एवं उद्योगों के विकास के कारण परिवहन, संचार, भण्डारण, व्यापार आदि सेवाओं का विस्तार होता है। प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रक का विकास जितना अधिक होगा, ऐसी सेवाओं की माँग उतनी ही अधिक होगी।
3. नई सेवाएँ:
गत कुछ वर्षों से आधुनिकीकरण एवं वैश्वीकरण के कारण सूचना एवं प्रौद्योगिकी पर आधारित कुछ नवीन सेवाएँ महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक होती जा रही हैं; जैसे-ए., टी. एम. बूथ; काल सेंटर, इंटरनेट कैफे, सॉफ्टवेयर कम्पनी आदि। इन सेवाओं के उत्पादन में तीव्र वृद्धि हो रही है।
4. अधिक आय अधिक सेवाएँ:
हमारे देश में प्रतिव्यक्ति आय बढ़ रही है, जैसे-जैसे आय बढ़ती है तो कुछ लोग अन्य सेवाओं; जैसे-रेस्तरां, शॉपिंग, पर्यटन, निजी अस्पताल, निजी विद्यालय, व्यावसायिक प्रशिक्षण आदि की माँग प्रारम्भ कर देते हैं। शहरों में इन सेवाओं की माँग बहुत तेजी से बढ़ रही है।
प्रश्न 3.
संगठित एवं असंगठित क्षेत्रक क्या हैं? इन क्षेत्रकों की रोजगार परिस्थितियों की तुलना कीजिए।
अथवा
अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्र में प्रचलित रोजगार की दशाओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
संगठित और असंगठित क्षेत्रकों की रोजगार परिस्थितियों की तुलना कीजिए।
अथवा
संगठित क्षेत्र क्या है? इसकी कार्य अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. संगठित क्षेत्रक:
संगठित क्षेत्रक में वे उद्यम अथवा कार्य-स्थान आते हैं, जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है और इसलिए लोगों के पास सुनिश्चित काम होता है। ये क्षेत्रक सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं एवं उन्हें राजकीय नियमों व विनियमों का अनुपालन करना होता है। इन नियमों व विनियमों का अनेक विधियों; जैसे-कारखाना अधिनियम की निश्चित न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, सेवानुदान अधिनियम, दुकान एवं प्रतिष्ठान अधिनियम आदि में उल्लेख किया गया है।
यह क्षेत्रक संगठित क्षेत्रक इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसकी कुछ औपचारिक प्रक्रिया एवं क्रियाविधि होती है। इस क्षेत्रक के अन्तर्गत. रोजगार सुरक्षित, काम के घण्टे निश्चित एवं अतिरिक्त कार्य के लिए अतिरिक्त वेतन मिलता है। कर्मचारियों को कार्य के दौरान एवं सेवानिवृत्ति के पश्चात् भी अनेक सुविधाएँ मिलती हैं।
2. असंगठित क्षेत्रक:
असंगठित क्षेत्रक के अन्तर्गत वे छोटी-छोटी और बिखरी इकाइयाँ सम्मिलित होती हैं जो अधिकांशतः सरकारी नियन्त्रण से बाहर होती हैं। यद्यपि इस क्षेत्रक के नियम और विनियम तो होते हैं परन्तु उनका पालन नहीं होता है। ये अनियमित एवं कम वेतन वाले रोजगार होते हैं। इनमें सवेतन छुट्टी, अवकाश, बीमारी के कारण छुट्टी आदि का कोई प्रावधान नहीं होता है और न ही रोजगार की सुरक्षा। श्रमिकों को बिना किसी कारण काम से हटाया जा सकता है। संगठित एवं असंगठित क्षेत्रकों की रोजगार परिस्थितियों की तुलना.निम्नलिखित प्रकार से है
संगठित क्षेत्रक की रोजगार परिस्थितियाँ | असंगठित क्षेत्रक की रोजगार परिस्थितियाँ |
(i) इस क्षेत्रक के उद्योगों एवं प्रतिष्ठानों को सरकार द्वारा पंजीकृत कराना अवश्यक होता है। | (i) इस क्षेत्रक के अन्तर्गत दुकानों व प्रतिष्ठानों को सरकार से पंजीकृत कराना अनिवार्य नहीं है। |
(ii) यह क्षेत्रक सरकारी नियमों व उपनियमों के अधीन कार्य करता है। ये नियम व विनियम सभी नियोक्ताओं, कर्मचारियों व श्रमिकों पर समान रूप से लागू होते हैं। | (ii) इस क्षेत्रक के नियम व विनियम तो होते हैं परन्तु उनका अनुपालन नहीं किया जाता है। |
(iii) इस क्षेत्रकं में काम करने की अवधि व काम के घण्टे निशिचत होते हैं। | (iii) इस क्षेत्रक में काम करने के घण्टे निश्चित नहीं होते हैं। |
(iv) इस क्षेत्रक में कार्य करने वाले कर्मचारियों, श्रमिकों को मासिक वेतन प्राप्त होता है। | (iv) इस क्षेत्रक में काम करने वाले कर्मचारी/श्रमिक दैनिक मजदूरी प्राप्त करते हैं। |
(v) इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कर्मचारी मासिक वेतन के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के भत्ते, सवेतन अवकाश का भुगतान, प्रोविडेंट फंड, वार्षिक वेतन वृद्धि आदि सुविधाएँ प्राप्त करते हैं। | (v) इस क्षेत्रक के अन्तर्गत श्रमिकों को दैनिक मजदूरी के अतिरिक्त कोई अन्य भत्ता नहीं मिलता है। |
(vi) इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कर्मचारियों/ श्रमिकों को रोजगार सुरक्षा प्राप्त होती है। | (vi) इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कार्यरत कर्मचारियों/श्रमिकों को रोजगार सुरक्षा प्राप्त नहीं होती है। |
(vii) इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कर्मचारियों / श्रमिकों को नियोक्ता द्वारा एक नियुक्ति पत्र दिया जाता है जिसमें काम की सभी शर्ते एवं दशाएँ वर्णित होती हैं। | (vii) इस क्षेत्रक. के अन्तर्गत कर्मचारियों/श्रमिकों को कोई औपचारिक नियुक्ति पत्र नहीं दिया जाता है। |
(viii) इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कर्मचारियों को कार्यस्थल पर स्वच्छ पानी, स्वास्थ्य एवं कार्य का सुरक्षित वातावरण आदि सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं। | (viii) इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कर्मचारियों को इस प्रकार की सुविधाओं का लगभग अभाव देखने को मिलता है। |
(ix) इस क्षेत्रक में श्रम संघ महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अतः श्रमिकों का शोषण नहीं होता है। | (ix) इस क्षेत्रक में श्रम संधों के अभाव के कारण श्रमिकों का अत्यधिक शोषण होता है। |
प्रश्न 4.
असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों का किस प्रकार से शोषण किया जाता है? इस क्षेत्रक में श्रमिकों के संरक्षण हेतु कौन-कौन से उपाय किए जा सकते हैं?
उत्तर:
असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों का शोषण-असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों का निम्न प्रकार से शोषण किया जाता है
- इस क्षेत्रक में श्रमिकों के संरक्षण के लिए बनाये गये सरकारी नियमों एवं विनियमों का पालन नहीं होता है।
- असंगठित क्षेत्रक में बहुत कम वेतन/मजदूरी दी जाती है और वह भी नियमित रूप से नहीं दी जाती है।
- इस क्षेत्रक में मजदूर सामान्यतः अशिक्षित, अनभिज्ञ व असंगठित होते हैं, इसलिए वे नियोक्ता से मोल-भाव कर अच्छी मजदूरी सुनिश्चित करने की स्थिति में नहीं होते हैं।
- इस क्षेत्रक में अतिरिक्त समय में काम तो लिया जाता है परन्तु अतिरिक्त वेतन नहीं दिया जाता है।
- इस क्षेत्रक में सवेतन छुट्टी, अवकाश, बीमारी के कारण छुट्टी का कोई प्रावधान नहीं है।
- इस क्षेत्रक में रोजगार सुरक्षा भी नहीं होती है। नियोक्ता द्वारा कर्मचारियों को बिना किसी कारण काम से हटाया। जा सकता है।
- इस क्षेत्रक के अन्तर्गत कुछ मौसमों में जब काम नहीं होता है, तो कुछ लोगों को काम से छुट्टी दे दी जाती है। बहुत से लोग नियोक्ता की पसन्द पर निर्भर होते हैं।
असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों के संरक्षण हेतु किये जा सकने वाले उपाय: असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों के संरक्षण हेतु अग्रलिखित उपाय किये जा सकते हैं
1. ग्रामीण क्षेत्रों में सुविधाओं का विस्तार:
भारत में लगभग 80 प्रतिशत ग्रामीण परिवार छोटे व सीमांत किसानों की श्रेणी में हैं जो असंगठित क्षेत्रक के अन्तर्गत आता है। इन किसानों को उन्नत बीजों की समय पर आपूर्ति, कृषि उपकरणों, साख, भण्डारण सुविधा और विपणन की सुविधाओं के माध्यम से सहायता पहुँचाने की आवश्यकता है।
2. लघु एवं कुटीर उद्योगों का संरक्षण:
सरकार को चाहिए कि वह लघु व कुटीर उद्योगों को कच्चा माल प्राप्त करने एवं उत्पादों के विपणन में सहायता प्रदान करे ताकि वे अधिक आय अर्जित कर अपने श्रमिकों को भी अधिक वेतन एवं सुविधाएँ प्रदान कर सकें।
3. न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण सरकार असंगठित क्षेत्रक के लिए न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण कर उसे कड़ाई से लागू करे तथा वर्तमान नियमों व कानूनों को कड़ाई से लागू करे।
4. सामाजिक सुविधाओं का विस्तार:
असंगठित क्षेत्रक में कार्यरत श्रमिकों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के लिए सरकार को सार्वजनिक सुविधाओं का तीव्र गति से विस्तार करना चाहिए।
प्रश्न 5.
सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रक क्या हैं? इसकी गतिविधियों एवं कार्यों का तुलनात्मक अध्ययन कीजिए।
अथवा
सार्वजनिक क्षेत्रक एवं निजी क्षेत्रक में कोई तीन अंतर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
सार्वजनिक क्षेत्रक, निजी क्षेत्रक से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्रक:
सार्वजनिक क्षेत्रक के अन्तर्गत उत्पादन के साधनों पर सरकार का स्वामित्व, प्रबंधन व नियंत्रण होता है। सरकार ही समस्त सेवाएँ उपलब्ध कराती है। इस क्षेत्रक का मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक कल्याण में वृद्धि करना होता है। निजी क्षेत्रक-निजी क्षेत्र के अन्तर्गत उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व होता है। इस क्षेत्रक की गतिविधि का उद्देश्य लाभ अर्जित करना होता है। सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रक की गतिविधियों एवं कार्यों का तुलनात्मक अध्ययन सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रक की गतिविधियों एवं कार्यों का तुलनात्मक अध्ययन निम्न प्रकार से है
सार्वजनिक क्षेत्रक | निजी क्षेत्रक |
1. इस क्षेत्रक के अन्तर्गत अधिकांश परिसम्पत्तियों पर सरकार का स्वामित्व होता है और सरकार ही सभी आवश्यक सेवाएँ उपलब्ध करती है, जैसे—डाकघर, भारतीय रेलवे, आकाशवाणी, इण्डियन एयरलाइन्स आदि। | 1. इस क्षेत्रक में परिसम्पत्तियों पर स्वामित्व एवं सेवाओं के वितरण की जिम्मेदारी एकल व्यक्ति या कम्पनी के हाथों में होती है, जैसे मित्तल पब्लिकेशन्स, टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी, रिलायंस इण्डस्ट्रीज लिमिटेड आदि। |
2. सार्वजनिक क्षेत्रक का उद्देश्य सार्वजनिक कल्याण में वृद्धि करना होता है। | 2. निजी क्षेत्रक की गतिविधियों का उद्देश्य लाभ अर्जित करना होता है। |
3. इस क्षेत्रक में उत्पादन एवं वितरण सम्बन्धी समस्त निर्णय सरकार द्वारा निर्धारित नीति द्वारा लिये जाते हैं। | 3. इस क्षेत्रक में उत्पादन एवं वितरण सम्बन्धी निर्णय निजी स्वामियों अथवा प्रबन्धकों द्वारा लिए जाते हैं। |
4. सरकार समाज के लिए आवश्यक सार्वजनिक परियोजनाओं में बहुत अधिक राशि का व्यय करती है, जैसे-सड़क, पुल, नहर, बन्दरगाह आदि का निर्माण करना। | 4. निजी क्षेत्रक अपने लाभ के उद्देश्य के कारण बहुत अधिक राशि व्यय करने वाली परियोजनाओं में निवेश नहीं करता है। |
5. कई प्रकार की गतिवधियों को पूरा करना सरकार का प्राथमिक दायित्व होता है; जैसे-शिक्षा, स्वास्थ्य, विद्युत आदि। इसलिए सरकार बड़ी संख्या में विद्यालय, महाविद्यालय, अस्पताल, विद्युत परियोजनाएँ आदि चलाती है। | 5. निजी क्षेत्रक का ऐसा किसी प्रकार का कोई दायित्व नहीं होता है यदि वह ऐसी सेवाएँ प्रदान करता है तो इसके लिए वह राशि वसूलता है। उदाहरण के लिए, हमारे क्षेत्र में निजी पब्लिक स्कूल, सरकारी स्कूल की तुलना में बहुत अधिक फीस लेते हैं। |